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GENERIC ELECTIVE

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स्‍नातक‍पाठ्यक्रम
Generic Elective (ह िंदी)
ह दिं ी‍हिनेमा‍और‍उिका‍अध्‍ययन
अनुक्रम
इकाई-1 : हिनेमा‍:‍िामान्‍य‍पररचय
1. सिनेमा का िामान्य परिचय एवं उिकी सवकाि यात्रा डॉ. जविीमल्ल पािख
2. सिनेमा की भाषा औि उिके सवसभन्न प्रकाि डॉ. नीिा जलक्षसत्र
3. सिन्दी सिनेमा औि उिकी सवषयवाि कोसियााँ डॉ. जविीमल्ल पािख
इकाई-2 : हिनेमा‍अध्‍ययन
1. सिनेमा अध्ययन की दृसियााँ एवं सिनेमा में यथाथथ औि डॉ. िषथबाला शमाथ
उिका ट्रीिमेंि, िाइपिरियल
2. सिदं ी सिनेमा के दशथकों की सवसवध कोसियााँ औि उिका डॉ. िीमा शमाथ
िाष्‍टट्रीय एवं अतं ििाष्‍टट्रीय बाजाि
इकाई-3 : हिनेमा:‍अिंतर्वस्तु‍और‍तकनीक‍
1. सिदं ी सिनेमा की अंतवथस्तु औि तकनीक का सवस्तृत अध्ययन डॉ. आलोक िंजन पांडेय
2. सिनेमा में सनदेशन एवं सनदेशन का कायथ तथा डॉ. मिेन्र प्रजापसत
िेंििबोडथ औि सिनेमा प्रिािण असधसनयम
इकाई-4 :‍हिनेमा‍अध्‍ययन‍की‍हदशाएँ
1. सिनेमा अध्ययन की सदशाएाँ : भाग-1 (सिनेमा की िैद्ासं तकी डॉ. मिेंर प्रजापसत
औि उिकी व्याविारिक िमीक्षा)
2. सिनेमा अध्ययन की सदशाएाँ – भाग-2 (सिदं ी की कुछ डॉ. मिेंर प्रजापसत
मित्‍त्‍वपणू थ सिल्मों की व्याविारिक िमीक्षा)
3. सिनेमा अध्ययन की सदशाएाँ : भाग-3 (सिनेमा के दृश्य, तकनीक, डॉ. मिेंर प्रजापसत
किानी, स्पेशल इिे क्ि, आइिम, गीत, िगं ीत आसद की िमीक्षा)

हिन्‍
दी-विभाग

मक्ु ‍त‍हशक्षा‍हर्द्यालय
सदल्ली सवश्वसवद्यालय
5, के वेलिी लेन, सदल्ली-110007
इकाई-1

1. सिनेमा का िामान्य परिचय एवं उिकी ववकाि यात्रा

डॉ. जवरीमल्ल पारख


प्रोफेसर (सेवानिवत्त
ृ )
इन्दिरा गााँधी राष्ट्रीय मक्
ु त ववश्वववद्यालय

1.1 प्रस्तावना

यह पाठ ससिेमा के बारे में है । ससिेमा एक जिसंचार माध्यम है । इस पाठ में आप


ससिेमा के बारे में जािकारी प्राप्त करें गे। ससिेमा का उिय उदिीसवीं सिी के अंनतम िशक में
फ्ांस में हुआ था। ससिेमा एक दृश्य माध्यम है और इसकी शुरुआत भी दृश्य माध्यम के रूप में
ही हुई थी। लेककि कुछ िशकों के बाि इसके साथ आवाज़ भी जुड़ गयी और इस तरह यह दृश्य-
श्रव्य माध्यम बि गया। आरं भ में इसके दृश्य श्वेत-श्याम रूप में ही पिे पर आते थे, लेककि
कुछ और िशकों के बाि दृश्य रं गीि में भी आिे लगे। तकिीकी दृन्ष्ट्ि से ससिेमा में इतिे अधधक
पररवतति हुए हैं कक आज के ससिेमा और सौ साल पहले के ससिेमा में ज़मीि-आसमाि का अंतर
दिखायी िे ता है । ससिेमा के तकिीकी पक्ष में हुए इस ववकास िे ससिेमा के निमातण और प्रिशति
पर गहरा प्रभाव डाला है । साथ ही पहले ससिेमा को धथयेिर में एक बड़े से श्वेत पिे पर अंधेरे में
िे ख्निा होता था और आज भी ससिेमा को धथयेिर में जाकर िे खिा ही प्रभावशाली लगता है ।
लेककि अब क़िल्मों को घर में िे लीववजि पर और चलते-कफरते मोबाइल पर भी िे खा जा सकता
है । इससलए यह जरूरी है कक ससिेमा के तकिीकी पक्ष की संक्षक्षप्त जािकारी प्राप्त करें ताकक यह
समझ सकें कक क़िल्में कैसे बिती हैं और उिका प्रिशति ककस तरह ककया जाता है ।

ससिेमा मुख्य रूप से मिोरं जि का माध्यम है । लेककि यह सूचिा और सशक्षा िे िे का


माध्यम भी है । ससिेमा का उपयोग खासतौर पर कहािी कहिे के सलए ककया जाता है । ससिेमा के
इनतहास का अथत ही है कथाधचत्रों का इनतहास। हालांकक ससिेमा की अदय ववधाओं के बारे में भी
इस पाठ में जािकारी िी जाएगी। इस तरह इस पाठ में ससिेमा के बारे में जािकारी के साथ-
साथ उसकी ववकास यात्रा के बारे में भी बताया जाएगा।

1.2 उद्दे श्य

इस पाठ में आप ससिेमा का सामादय पररचय और उसकी ववकास यात्रा के बारे में पढें ग।े इसको
पढिे के बाि आप:

• एक माध्यम के रूप में ससिेमा के तकिीकी पक्ष के बारे में बता सकेंगे;

1
• एक माध्यम के रूप में ससिेमा की ववसशष्ट्िता और उसके ववववध उपयोगों का उल्लेख कर
सकेंगे;
• ससिेमा के वैन्श्वक ववकास के बारे में बता सकेंगे;
• भारत में ससिेमा के उिय और ववकास की जािकारी िे सकेंगे; और
• ससिेमा माध्यम की वततमाि न्थथनत का पररचय प्राप्त कर सकेंगे।

1.3 सिनेमा प्रौद्योगिकी का ववकाि

ससिेमा की तकिीक के बारे में जािकारी हाससल करिे से पहले यह जाििा जरूरी है कक
यह ककस वैज्ञानिक ससद्धांत पर आधाररत है । यदि ककसी िौड़ते हुए घोड़े के क्रम से सलये गये
न्थथर धचत्रों को इस गनत से आाँखों के आगे से गज
ु ारा जाए कक एक समिि में लगभग चौबीस-
पचीस धचत्र निकल सकें तो हमें ऐसा आभास होगा कक हम घोड़े को िौड़ता हुआ िे ख रहे हैं। इसी
ससद्धांत पर ससिेमा माध्यम आधाररत है । जब हम ससिेमाघर में बैठकर क़िल्म िे ख रहे होते हैं
तो िरअसल हम न्थथर धचत्रों के एक रोल को िे ख रहे होते हैं जो इस गनत से हमारी आंखों के
आगे से गुजरती है कक हमें वे धचत्र न्थथर िहीं बन्ल्क गनतशील िज़र आिे लगते हैं।

आधुनिक युग से पहले दृश्य संबंधी थमनृ तयों को आमतौर पर िािक और धचत्र के रूप में
पुिरत धचत ककया जाता था। लेककि ये िोिों रूप थमनृ त और कल्पिा के संयोजि से निसमतत ककये
जाते थे। लेककि आधुनिक युग में फोिोग्राफी के आववष्ट्कार िे यथाथत के ककसी एकक्षण को जैसा
वह है , उसे उसी रूप में अंककत कर िा संभव कर दिखाया। न्थथर छाया धचत्रों के संयोजि से
गनतशील धचत्रों का ववकास उदिीसवीं सिी के आखखरी िशकों में हुआ। इसके आववष्ट्कार का श्रेय
अमरीकी आववष्ट्कार कथॉमस एडडसि (1847-1931) को जाता है । लेककि शुरुआत में इसमें िस
ू रे
कई लोगों िे सहयोग दिया था। इस तरह का पहला प्रयास इंगलैंड के एडवडत मुइब्रिज (1830-
1904) िे ककया था। मुइब्रिज िे घुड़िौड़ के मैिाि में कई सारे तार बांध दिये और प्रत्येक तार
को एक न्थथर कैमरे के शिर से जोड़ दिया। िौड़ता हुआ घोड़ा तारों को धगरा िे ता था न्जससे कई
सारे धचत्र लगातार कैमरे द्वारा सलये गये। इि न्थथर धचत्रों को एक डडथक पर लगाकर उि पर
लालिे ि की रोशिी डालकर िौड़ते हुए घोड़े का ब्रबंब प्रिसशतत ककया गया। उससे प्रेररत होकर फ्ांस
के वैज्ञानिक मारे (Etienne Jules Marey, 1830-1904) िे1882 में एक ही कैमरे से बहुत से धचत्रों
की शूदिंग करिे वाले उपकरणों का आववष्ट्कार ककया।

मुइब्रिज से प्रेरणा लेकर थॉमसएडडसि की भी इसमें दिलचथपी बढी। एडडसि िे गनतशील


तथवीरों का प्रयोग 1888 में थकॉदिश वैज्ञानिक ववसलयम कैिेडीडडक्शि (1860-1935) के नििे शि
में शुरू ककये जब उसिे वेक्सससलेंडरपर फोिोग्राफी को ररकॉडत करिे का प्रयास ककया।1889 में
डडक्शि िे इस क्षेत्र में जबित थत पहल की जब उसिे जाजतईथिमेि (1854-1932) की सेल्युलाइड

2
का इथतेमाल ककया। सेल्यल
ु ाइड क़िल्म बाि में गनतशील छायांकि का श्रेष्ट्ठ माध्यम बि गयी
क्योंकक इसे रोल करिा आसाि था और मिचाही लंबाई िी जा सकती थी। डडक्शि िे एडडसि के
कैमरे का इथतेमाल करते हुए 15 सैकंड की कई क़िल्मों का अंकि ककया। लेककि एडडसि इि
धचत्रों के सावतजनिक प्रिशति के सलए इिके प्रक्षेपण की समथया िहीं सुलझा सका।

इसका हल फ्ांस के अगथतेल्युसमए (1862-1954) और लुईल्युसमए (1864-1948)भाइयों


िे निकाला। उदहोंिे आधुनिक पोिे बल कैमरे का इथतेमाल ककया जो वप्रंिर और प्रोजेक्िर के रूप
में भी काम कर सकता था। ल्युसमए बंधुओं की ससिेमािोग्राफी एडडसि के यंत्र पर ही आधाररत
थी। 28 दिसंबर, 1895 को ल्युसमए बंधुओं िे पेररस के एक कैफे के बेसमें ि में िशतकों से पैसे
लेकर गनतशील तथवीरों का संक्षक्षप्त सा प्रिशति ककया। क़िल्मों के इनतहास की शुरुआत इसी
तारीख से हुई। 19वीं सिी के अंत तक आते-आते िनु िया के कई दहथसों में मुवी कैमरे का प्रयोग
होिे लगा था। इिके द्वारा दिखाये जािे वाले छायाधचत्र 35 समलीमीिर के होते थे और प्रत्येक
एक सैकंड में सोलह न्थथर धचत्र होते थे न्जदहें क़िल्मों की भाषा में फ्ेम कहा जाता है ।

आरं भ में ससिेमा में आवाज़ िहीं थी, मूक क़िल्में ही दिखायी जाती थीं। लेककि आवाज़
को दृश्यों के साथ संयोन्जत करिा आसाि काम िहीं था। इसकी कोसशश लगातार होती रही
लेककि लगभग तीि िशकों के बाि क़िल्मों में आवाज़ का भी समावेश सफलतापूवक
त कर सलया
गया। इसके सलए हॉलीवुड थिुडडयोवाितर िािसत िे वीिाफोि प्रणाली का प्रयोग शुरू ककया था
न्जसिे अलग फोिोग्राकफक डडथक के साथ धचत्र का संयोजि ककया। इस प्रकार धचत्रों के साथ
ध्वनियों, संवािों और संगीत का समश्रण आरं भ हुआ। ससिेमा के आववष्ट्कार के साथ ही क़िल्मों
को रं गीि बिािे के प्रयोग शुरू हो गये थे। पहले ककिेमा कलर और बाि में िे क्िीकलर में क़िल्में
बििे लगी। रं गीि क़िल्मों के क्षेत्र में लगातार प्रयोग होते रहे ।

आरं भ में जब ल्यसु मए बंधओ


ु ं िेक़िल्म बिािा शुरू ककया तब कैमरा एक थथाि पर न्थथर
रहता था और कैमरे के सामिे से जो भी दृश्य गुजरता उसे ररकॉडत कर सलया जाता था। वह भी
एक बार में । यािी एक क़िल्म एक शॉि की होती थी। लेककि बाि में कैमरे का इथतेमाल तरह-
तरह से ककया जािे लगा। उसे आगे-पीछे , ऊपर-िीचे, िायें-बायें चलाते हुए क़िल्म शूि की जािे
लगी। एक ही थथाि पर रखते हुए कैमरे के लैंस को िजिीक से और िरू से क़िल्मािा मुमककि
हुआ न्जसे ससिेमा की भाषा में जूम इि और जूम आउि कहा जाता है । शन्क्तशाली लैंसों की
खोज िे अनतिरू और अत्यधधक पास की चीजों कोक़िल्मािा संभव ककया। िस
ू रा महत्त्वपूणत
तकिीकी बिलाव यह हुआ कक ववसभदि शॉिों को जोड़कर क़िल्म को लंबा ककया जािा मुमककि
हुआ। इस प्रकक्रया को ससिेमा की भाषा में संपादित करिा कहते हैं। इससे अलग-अलग थथािों
और अलग-अलग समय पर क़िल्माये गये ववसभदि शॉिों को आपस में जोड़िे का काम ही
संपािि द्वारा िहीं ककया जाता बन्ल्क उिको जोड़िे की ववसभदि ववधधयों का प्रयोग ककया जािे

3
लगा था। कि, फेडइि, फेड आउि, डडजॉल्व, जंप कि, फ्लेशबेक आदि कई प्रववधधयााँ हैं न्जिके
माध्यम से संपािि संपदि ककया जाता है । संपािि में िवीितम यंत्रों के प्रयोग के कारण
एडडदिंग के साथ-साथ समन्क्संग का काम भी अधधक कुशलता और कई िये तरह के प्रयोगों के
द्वारा ककया जािे लगा है ।

क़िल्म में जब दृश्य के साथ आवाज़ भी जुड़ गयी तो दृश्य को अधधक यथाथतपरक
बिाकर पेश ककया जा सकिा संभव हो सका। ककसी दृश्य में केवल पात्रों द्वारा कही जा रही
बातों को न्जदहें हम संवाि के रूप में जािते हैं उिको क़िल्मािा ही िहीं बन्ल्क उसके साथ पूरे
माहौल में जो आवाज़ें होती हैं न्जिसे माहौल जीवंत बिता है उसे भी ररकाडत करिा संभव हो
सका। बाि में दृश्य के प्रभाव को बढािे के सलए संगीत का भी प्रयोग ककया जािे लगा। भारतीय
क़िल्मों में तो इसी कारण गीत और संगीत की एक थवतंत्र ववधा ही ववकससत हो गयी। आरं भ में
संवाि और ध्वनियों को शूदिंग के िौराि साथ-साथ ही ररकाडत करिा होता था। लेककि बाि में इसे
थिुडडयो में अलग से ररकाडत ककया जािे लगा। बाि में संपािि के िौराि समन्क्संग की प्रकक्रया के
द्वारा दृश्य के साथ आवाज़ और ध्वनियों को जोड़ा जािे लगा। यही िहीं डब करिे की प्रववधध के
कारण गैर जरूरी आवाज़ों को दृश्यों से मक्
ु त करिा संभव हो सका। अब डडन्जिल साउं डससथिम
के आिे के बाि आवाज़ और ध्वनियों के थतर को कई गुिा बढा दिया है ।

क़िल्मों की एक महत्त्वपण
ू त ववधा है ़िीचर क़िल्म न्जसे कथाधचत्र भी कहा जाता है । जब
पहली बार ़िीचर क़िल्में बििी शुरू हुई तो ऐसी चमत्काररक कहानियााँ भी प्रथतत
ु की जािे लगीं
न्जदहें िािकों में दिखािा मुमककि िहीं था। क़िल्मों में िो या अधधक दृश्यों के समन्क्संग द्वारा
ऐसे दृश्यों को दिखाया जािा भी संभव हो सका न्जदहें यथावत क़िल्मािा मुमककि िहीं था। इस
कायत को और भी आसाि कंप्यूिर के आगमि िे कर दिया है । अब अधधक जदिल दृश्यों को
कंप्यूिर के द्वारा निसमतत ककया जा सकता है । इसी वजह से जुराससक पाकत, िाइिे निक, िसमतिि
े र,
कक्रस, अवतार जैसी क़िल्में संभव हो सकी हैं।

1.3.1 बोध प्रश्न (प्रश्िों की थवयं जांच करिा)

1. ससिेमा के आववष्ट्कार का श्रेय इि ववकल्पों में से ककसे दिया जािा चादहएॽ

(i) थॉमसएडडसि

(ii) ववसलयम कैिेडीडडक्शि

(iii) अगथिे ल्युसमए और लई


ु ल्युसमए

(iv) एडवडत मुइब्रिज ( )

4
2. निम्िसलखखत प्रश्िों के उत्तर ‘हां’ या ‘िा’ में िीन्जए:

(i) क़िल्म का पहला प्रिशति पेररस में 28 दिसंबर 1895 को हुआ। ( )

(ii) रं गीि ससिेमा की शरु


ु आत श्वेत-श्याम ससिेमा से पहले हुई। ( )

(iii) कि, फेड इि, फेड आउि, डडजॉल्व आदि शूदिंग की ववधधयााँ हैं। ( )

(iv) क़िल्म के द्वारा कहािी कहिे की ववधा को ़िीचर क़िल्म कहते हैं। ( )

1.4 सिनेमा की ववसिष्टता औि प्रकायय

ल्यसु मए बंधओ
ु ं िे पहली बार न्जि क़िल्मों का सावतजनिक प्रिशति ककया था, वे एक से िो
समिि लंबी थी और प्रत्येक क़िल्म एक-एक शॉि की थीं। उिमें से एक कफल्म में फैक्िरी से
निकलते हुए मजिरू ों को दिखाया गया था। एक अदय क़िल्म में एक छोिा बच्चा बगीचे में पािी
िे ते माली को पाइप पर पााँव रखकर परे शाि करता है। एक अदय क़िल्म में पेररस में होिे वाली
ककसी कादफ्ेंस में शासमल होिे के सलए आए लोगों के आगमि को िशातया गया है । अगर इि
आरं सभक क़िल्मों पर ववचार करें तो हम आसािी से समझ सकते हैं कक बाि में ससिेमा िे न्जि
दिशाओं में प्रगनत की, ल्यूसमए बंधुओं की क़िल्मों में उि सबके मूल रूप ववद्यमाि थे। पहली
क़िल्म वत्त
ृ धचत्र का, िस
ू री क़िल्म कथाधचत्र का और तीसरी क़िल्म समाचार धचत्र का मूल रूप
है ।ल्यसु मए बंधुओं िे लोगों को एक ऐसे अिुभव से गज
ु रिे का मौका दिया न्जसकी वे इससे पहले
कल्पिा भी िहीं कर सकते थे। उदहोंिे उस िनु िया को न्जसे वे जीते और िे खते थे और न्जसका
वे दहथसा थे, उसको ठीक वैसे ही जीवंत और गनतशील रूप में ससिेमा के पिे पर िे खा। यह
अिुभव एक चमत्कार से कम िहीं था। लेककि बाि में फ्ांस के ज्याजतमेसलस (1868-1938) िे
चमत्कार को िस
ू रे शब्िों में अयथाथत को यथाथत बिाकर पेश ककया। उसिे एक खखलौिा रे लगाड़ी
को प्रकृनत धचत्र की पष्ट्ृ ठभसू म में चलते हुए क़िल्माया और यह भ्रम पैिा ककया जैसे कक एक
वाथतववक रे लगाड़ी चल रही है । इसी तरह ज्याजतमसे लसिे ‘ए दरपिूदि मूि’ िामक क़िल्म में
मिुष्ट्य द्वारा चंद्रमा की यात्रा का काल्पनिक दृश्य प्रथतुत ककया। ल्यसु मए िे यथाथत को यथाथत
की तरह पेश ककया लेककि मेसलस िे इस संभाविा को जदम दिया कक इस माध्यम के जररए
नितांत काल्पनिक िनु िया को यथाथत के रूप में पेश ककया जा सकता है । ससिेमा एक ऐसा
माध्यम है जहााँ यथाथत को फैं िे सी की तरह ओर फैं िे सी को यथाथत की तरह पेश ककया जा सकता
है ।

क़िल्म माध्यम में इस बात का महत्त्व िहीं होता कक क्या दिखाया जा रहा है बन्ल्क इस
बात का भी महत्त्व होता है कक ककस तरह दिखाया जा रहा है । जब हम जो दिखाया जा रहा है
उस पर ववचार करते हैं तो यह सवाल भी हमारे सामिे आता है कक क्या िहीं दिखाया जा रहा

5
है । अगर क़िल्म को यथाथत की यथावत असभव्यन्क्त के रूप में ही िे खें तो भी हम पाते हैं कक
उस यथाथत को संपूणत
त ा में िहीं बन्ल्क प्रानतनिधधकता में व्यक्त ककया गया है । यािी कक उदहीं
ब्रबंबों का चयि ककया गया है जो यथाथत की संपूणत
त ा का प्रनतनिधधत्व करते हों। संपूणत की
प्रानतनिधधकता का निधातरण क़िल्मकार पर निभतर करता है और क़िल्मकार यह काम अपिी समझ
के अिुसार करता है । इसका अथत यह है कक कोई अदय क़िल्मकार यदि प्रानतनिधधकता के सलए
ब्रबंबों का चयि सभदि रूप में करता है तो उसी यथाथत की असभव्यन्क्त सभदि रूप में होगी।

ससिेमा माध्यम का उपयोग सूचिा, सशक्षा और मिोरं जि तीिों प्रकायों के सलए ककया
जाता है । वत्त
ृ धचत्रों के निमातण के पीछे मुख्य रूप से सूचिा और सशक्षा ही है । भारत में क़िल्म्स
डडववजि कई िशकों से ऐसी क़िल्में निसमतत करता रहा है जो सामनयक सूचिाओं का दृश्यात्मक
संप्रेषण करती है । इसके अनतररक्त कई अत्यंत महत्त्वपूणत घििाक्रम न्जिके बारे में हम अखबार,
रे डडयो और िे लीववज़ि के माध्यम से तत्काल कुछ-ि-कुछ जािकारी हाससल कर लेते हैं उिके बारे
में ववथतार से वत्त
ृ धचत्र द्वारा जािकारी हाससल की जा सकती है । इसी तरह क़िल्मों के माध्यम से
सशक्षा का कायत भी अत्यंत प्रभावी रूप में ककया जाता रहा है । उिाहरण के सलए इनतहास के
ववद्याधथतयों को ताजमहल के बारे में क़िल्म बिाकर भी जािकारी िी जा सकती है । इसी तरह
ववज्ञाि के ससद्धांतों को समझािे के सलए दृश्यों का इथतेमाल ककया जा सकता है । वत्त
ृ धचत्रों और
समाचारों के सलए अब िे लीववजि िे केंद्रीय थथाि ग्रहण कर सलया है । लेककि क़िल्म का
सवातधधक उपयोग मिोरं जि प्रिाि के सलए ककया जा रहा है । इसके सलए ऐसी कथात्मक क़िल्मों
का निमातण ककया जाता है न्जिको िे खकर मिुष्ट्य उसी तरह का आिंि ग्रहण करता है जैसा
आिंि उपदयास पढिे से प्राप्त होता है । क़िल्म की सवातधधक लोकवप्रय ववधा कथात्मक क़िल्में ही
हैं।

कथाधचत्रों की शुरुआत बीसवीं सिी के आरं भ में हुई। जैसाकक हमिे ल्युसमए और मेसलस
के उिाहरणों में िे खा कक ससिेमा में यथाथत और फैं िे सी को पेश करिे की संभाविा निदहत है ।
इसिे जल्िी ही ववसशष्ट्ि ववधा का रूप ले सलया और बीसवीं सिी का लोकवप्रय माध्यम बि गया।
जीवि का दृश्यात्मक अंकि करिे की क्षमता से जीवि की कथा प्रथतुत करिा आसाि हो गया।
जीवि को हम यहााँ शब्िों के माध्यम से िहीं बन्ल्क दृश्यों और शब्िों के माध्यम से ग्रहण करते
हैं, ब्रबल्कुल वैसे ही जैसे कक हमारा वाथतववक जीवि होता है । ससिेमा के सफेि पिे पर जीवि
को घिता हुआ िे खते हैं। यह जीवि काल्पनिक होता है । काल्पनिक इस अथत में कक यह ककसी
पिकथा लेखक की कलम से जदम लेता है और असभिेताओं के असभिय द्वारा आकार ग्रहण
करता है । लेककि इस काल्पनिक कथा में यथाथत का प्रनतब्रबंब अवश्य होता है । कोई भी काल्पनिक
कथा जीवि की बुनियािी सच्चाइयों से परे होकर निसमतत िहीं हो सकती। यह भी सत्य है कक
ससफत इि सच्चाइयों को िे खिे के सलए कोई कफल्म िहीं िे खता। वह उि प्रयत्िों को भी िे खिा

6
चाहता है न्जसके जररए जीवि अपिे को अलग-अलग ढं ग से असभव्यक्त करता है । ये प्रयत्ि
और ये संघषत हमेशा और हर ककसी के जीवि में ककसी-ि-ककसी रूप में दिखाई िे ते हैं। इससलए
सादहत्य की तरह क़िल्में भी हर िौर में अपिे पहले के िौर से अलग होती हैं और एक ही िौर
की क़िल्में एक िस
ू रे से अलग होकर भी एक ही समय को असभव्यक्त कर रही होती हैं।

1.4.1 बोध प्रश्न

3. निम्िसलखखत वाक्यों में सही ववकल्प से ररक्त थथािों को पूनतत कीन्जए:

(i) ससिेमा में यथाथत की ---------- असभव्यन्क्त होती है (संपूण\त प्रानतनिधधक)।

(ii) ल्युसमएबंधुओं िे अपिी क़िल्मों में यथाथत को ----------- की तरह पेश ककया
(यथाथत/फैं िे सी)।

(iii) ज्याजतमेसलस िे अपिी क़िल्मों में यथाथत को --------- की तरह पेश ककया (यथाथत/फैं िे सी)।

4. ससिेमा माध्यम का उपयोग निम्िसलखखत में से ककस प्रकायत के सलए ककया जा सकता
है ॽ

(i) सूचिा

(ii) सशक्षा

(iii) मिोरं जि

(iv) उपयुक्
त त तीिों के सलए ( )

5. आपकी दृन्ष्ट्ि में निम्िसलखखत में से जो कथि सही हो, उिके आगे ‘हााँ’ और जो गलत
हो उसके आगे ‘िहीं’ सलखखए:

(i) क़िल्म का सवातधधक उपयोग सशक्षा प्रिाि के सलए ककया जाता है । ( )

(ii) क़िल्म की सवातधधक लोकवप्रय ववधा कथात्मक क़िल्में ही है । ( )

(iii) काल्पनिक कथा में यथाथत का प्रनतब्रबंब िहीं होता। ( )

(iv) ससिेमा में जीवि दृश्यों और शब्िों के माध्यम से असभव्यक्त होता है । ( )

1.5 ववश्व सिनेमा की यात्रा

जैसाकक बताया जा चक
ु ा है , ल्यसु मए बंधुओं िे एक-एक, िो-िो समिि की अत्यंत लघु
क़िल्मों का निमातण ककया था। क़िल्म के निमातण के क्षेत्र में िस
ू रा महत्त्वपूणत िाम ज्याजतमेसलस

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का सलया जाता है न्जसका मूल पेशा जाि ू दिखािा था। उसिे कुछ ऐसी क़िल्मों का निमातण ककया
न्जसमें यथाथत और फैं िे सी का सन्म्मसलत प्रयोग ककया गया था। उसके द्वारा ककए गए प्रयोगों
को ‘दरकक़िल्म’ के िाम से जािा जाता है क्योंकक वह इस तरह से कैमरे का प्रयोग करिे में
सफल हुआ न्जससे ससिेमा के पिे पर लोगों िे वह िे खा जो मेसलस दिखािा चाहता था, ि कक
वह जो उसिे शि
ू ककया था।

मेसलस के बाि बीसवीं सिी के पहले िशक में अमेररका में ऐसी क़िल्मों का निमातण ककया
गया न्जसे ़िीचर क़िल्मों का आरं सभक रूप कहा जा सकता है । इिमें एडववि एस पोित र की
क़िल्म ‘दिलाइफऑफ एिअमेररकि फायरमेि’ (1902) और ‘दि ग्रेि रे ि रॉबेरी’ (1903) का
उल्लेख ककया जा सकता है। मेसलस िे ल्यसु मए बंधुओं के ववपरीत एक शॉि के थथाि पर बहुत
से शॉि की क़िल्मों का निमातण ककया था। लेककि बीसवीं सिी के आरं भ में बििे वाली क़िल्मों में
ववसभदि शॉिों को संपादित कर क़िल्म का निमातण ककया गया। यह एक ियी शुरुआत थी और
संपादित करिे और ववसभदि शॉिों को आगे-पीछे जोड़कर कहािी का निमातण कर सकिे की
क्षमता क़िल्मकारों िे हाससल कर ली। ‘दि ग्रेि रे ि रॉबेरी’ इस दृन्ष्ट्ि से पहली प्रभावशाली क़िल्म
कही जा सकती है न्जसे िे खते हुए िशतकों में इस बात की उत्सुकता बिी रहती है कक आगे क्या
होगा। इस क़िल्म में कैमरे के ववववध उपयोग पहली बार िे खिे को समले और संपािि की भी कई
ववधधयों का उपयोग ककया गया। बीसवीं सिी के शरू
ु में यूरोप, आथरे सलया और एसशया में लघु
क़िल्मों का निमातण शुरू हो गया था।

क़िल्म एक रचिात्मक माध्यम भी है इसका प्रमाण सबसे पहले अमरीकी क़िल्मकारडी.


डब्ल्यू. धग्रकफथ(1875-1948) की क़िल्मों से समला। उदहोंिे अपिी क़िल्मों में कहािी कहिे के
सलए ववसभदि दृश्यों को ऐसे रचिात्मक रूप में जोडकर प्रथतुत ककया जो िशतकों को तकतसंगत
और सामंजथयपण
ू त िज़र आए। ‘दिबथत ऑफ ए िेशि’ (1915) और ‘इििोलेरेंस’ (1916) उिकी
ऐसी ही मुकम्मल क़िल्में थीं। इसके बाि पूरी िनु िया में क़िल्म ववधा का तेजी से ववकास हुआ।
इस िौर के क़िल्मकारों िे कई तरह की क़िल्मों का निमातण ककया न्जिमें कॉमेडी, मेलोड्रामा,
वत्त
ृ धचत्र आदि ववधाओं का उपयोग ककया गया था। धग्रकफथ के अलावा चाली चेप्लीि इस िौर के
िस
ू रे सवातधधक महत्त्वपण
ू त क़िल्मकार थे।

1920 में जमति क़िल्मकार रोबित ववयिे िे ‘दिकेब्रबिेिऑफ डॉ. कासलगरी’ क़िल्म का
निमातण ककया न्जससे जमति असभव्यंजिावािी ससिेमा की शुरुआत हुई। 1920 के िशक में ही
फ्ांस के कई प्रभाववािी क़िल्मकार सामिे आए। लेककि इस िशक में सबसे ज्यािा प्रभाव छोड़ा
उि युवा सोववयत कफल्मकारों िे न्जदहोंिे संपािि के माध्यम से क़िल्म को एक ब्रबल्कुल ियी
शैली और अथत प्रिाि ककया। माक्सतवाि की द्वंद्वात्मकता का प्रयोग करते हुए सोववयत
क़िल्मकारों िे मोंिाज की एक ियी शैली की शुरुआत की। इि क़िल्मकारों में सवातधधक महत्त्वपण
ू त

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िाम सगेइआइसेंन्थिि का है न्जिकी क़िल्म ‘बेिलशीपपोिे म्कीि’ (1925) में इस मोंिाज शैली का
चरम उत्कषत दिखाई िे ता है । इसी िशक में प्रससद्ध जमति क़िल्मकारकफ्ज़ लांग की क़िल्म
‘मेरोपोलीस’ (1927) और फ्ांसीसी क़िल्मकार ड्रायर की क़िल्म ‘ि पैशिऑफ जोि ऑफ आकत’
(1928) का उल्लेख करिा भी जरूरी है ।

क़िल्म निमातण के आरं सभक तीस साल मूक क़िल्मों के थे यािी कक क़िल्में ब्रबिा आवाज़
के होती थीं। न्जि क़िल्मों की चचात ऊपर की गयी हैं वे सभी मूक क़िल्में हैं। 1927 में
‘दिजाज़ससंगर’ क़िल्म के साथ ही सवाक क़िल्मों का िौर शुरू हुआ। हालांकक आरं सभक सवाक
क़िल्मों में आज की तरह बहुत उच्च गण
ु वत्ता के िशति िहीं होते थे। लेककि आवाज़ िे क़िल्मों में
यथाथत को अपिी पूणत
त ा में प्रथतुत करिे का आधार प्रिाि कर दिया। अब संवािों के द्वारा
कक्रयाओं को ज्यािा अथतवाि बिाया जा सकता था। इसिे क़िल्म ववधा में कई िये तरह के
प्रयोगों का राथता खोला। कफर भी इस बात को समझिा जरूरी है कक क़िल्म मूलतः दृश्य ववधा
है , संवाि और ध्वनि उसके सहायक के रूप में ही आते हैं। सवाक क़िल्मों िे वत्त
ृ धचत्रों और
कथाधचत्रों िोिों के ववकास का मागत प्रशथत ककया। क़िल्मों का इथतेमाल राजिीनतक प्रचार के
सलए भी ककया जािे लगा। इस दृन्ष्ट्ि से िाज़ी िौर में दहिलर के समथति में राजिीनतक प्रचार के
सलए जमतिी में कई वत्त
ृ धचत्रों का निमातण ककया गया न्जिमें लेिी राइफेंथिाल(1902-2003) की
‘दरंफऑफ दिववल’ (1935) और ‘ओलंवपया’ (1938) खासतौर पर उल्लेखिीय हैं।

ववश्व ससिेमा का ववकास तीसरे िशक के बाि तेजी से होता रहा। अमेररका में ससिेमा की
प्रौद्योधगकी के ववकससत होिे के साथ-साथ क़िल्म कला का भी बहुववध ववकास हुआ। खासतौर
पर चाली चेप्लीि (1889-1977) िे सामान्जक-राजिीनतक ववषयों को लेकर कॉमेडी शैली में कई
बेहतरीि क़िल्मों का निमातण ककया। उिकी अधधकांश प्रससद्ध क़िल्में मसलि ‘दिगोल्डरश’,
‘मॉडितिाइम्स’, मूक िौर की श्रेष्ट्ठ कफल्मों में से हैं। फासीवाि के ववरुद्ध उदहोंिे ‘दि ग्रेि डडक्िे िर’
क़िल्म का निमातण ककया था। यह चाली चेप्लीि की सवाक क़िल्म थी। इसके अनतररक्त िस
ू रे
ववश्वयुद्ध के िौराि अमेररका में ऑसतिवेलेस(1915-1985) िे ‘ससदिज़िकेि’ (1941) का निमातण
ककया था। हॉलीवुड जहााँ अमेररकी क़िल्में बिती थीं वह ववश्व में ससिेमा के श्रेष्ट्ठ केंद्र के रूप में
थथावपत हो गया। उसकी यह प्रनतष्ट्ठा आज भी बिी हुई है । खासतौर पर लोकवप्रय और मिोरं जक
क़िल्में बिािे के सलए हॉलीवुड जािा जािे लगा। लेककि रचिात्मक और कलात्मक क़िल्मों का
निमातण यूरोप में अधधक हुआ न्जिमें फ्ांस, इिली और सोववयत संघ का ववशेष थथाि था।

िस
ू रे ववश्व युद्ध के िौराि ससिेमा िे तेजी से ववकास ककया। यूरोप में यह िौर एक ओर
फासीवाि के उभार का था तो िस
ू री ओर अक्िूबर क्रांनत (1917) िे यूरोप के बुद्धधजीववयों को
माक्सतवाि की ओर प्रेररत ककया। सादहत्य की तरह ससिेमा में भी यथाथतवाि की असभव्यन्क्त पर
बल दिया जािे लगा। लेककि यथाथतवाि की असभव्यन्क्त ककसी एक ढं ग से िहीं हो रही थी। उिमें

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िये-िये प्रयोग हो रहे थे। यही कारण है कक िस
ू रे ववश्वयुद्ध के िौराि और बाि में ससिेमा की
कई धाराओं की शुरुआत हुई। इि क़िल्मों के कारण ही ससिेमा को कला के क्षेत्र में क्लाससकी का
िजात हाससल हुआ। आज भी उस िौर में बिी क़िल्मों को ववश्व ससिेमा में खास मुकाम हाससल
है ।

ववश्व ससिेमा में उद्िे श्यपण


ू त और कलात्मक क़िल्मों की शुरुआत का श्रेय सोववयत ससिेमा
को जाता है न्जसिे माक्सतवाि से प्रेरणा लेकर ससिेमा में यथाथतवाि की शरु
ु आत की। सगेइ
आइसेंन्थिि न्जिका उल्लेख पहले ककया जा चुका है, के अलावा पुडोवककि िे मन्क्समगोकी के
प्रख्यात उपदयास ‘मिर’ पर इसी िाम से क़िल्म बिायी। आइसेंन्थिि और पुडोवककि के बाि जो
क़िल्मकार सबसे अधधक प्रससद्ध हुए वह थे आंद्रेईतारोकवथकी न्जिकी ‘सोलेररस’, ‘थिाकर’,
‘आंद्रेईरुबलेव’ और ‘ि समरर’ ववशेष रूप से चधचतत हैं।

िस
ू रे ववश्वयुद्ध के बाि न्जस यथाथतवािी ससिेमा की शुरुआत इिली में हुई उसे िव
यथाथतवािी ससिेमा के िाम से जािा जाता है। इि क़िल्मकारों में ववट्िोररयोडीससका,
रोबेतोरोसेसलिी, फ्ेडडकोफेसलिी का िाम ववशेष रूप से उल्लेखिीय हैं। िव यथाथतवाि की कफल्मों
में डीससका की ‘बाइससकलथीव्ज’ (1948) को क्लाससक क़िल्म का िजात हाससल है । िस
ू रे
ववश्वयुद्ध के बाि की इिली के यथाथत को न्जस सािगी और गहि संवि
े िशीलता के साथ
डीससका िे पेश ककया वह अपिे प्रभाव में अतुलिीय था।

फ्ेंच ससिेमा में िये तरह के ससिेमा की शुरुआत का श्रेय जांरेिुआ को है न्जिकी 1939
में बिी कफल्म ‘रूल्सऑफ ि गेम’ िे क़िल्म कला को िया थवरूप प्रिाि ककया। फ्ांस के ससिेमा
को न्जसे कक दयूवेव का ससिेमा कहा जािे लगा था, पचास और साठ के िशक में भी कई िये
प्रयोग ककए। इि क़िल्मकारों में फ्ांसुआत्रफ
ु ो (जल्
ू सएिन्जमः 1962), ज्यांलकगोिार (कंिे प्िः
1963; िेथलेसः 1959), जाकररवेि, क्लाउडशाबरोल, एररकरोहमर आदि का िाम ववशेष रूप से
उल्लेखिीय है ।

यूरोप और अमेररका में क़िल्म आंिोलिों से बाहर भी अच्छे ससिेमा का ववकास हुआ था।
मसलि, अमेररका के एल्फ्ेडदहचकॉक (1899-1980) िे चौथे िशक से लगातार धिलर से पररपण
ू त
क़िल्मों का निमातण ककया था। उिकी क़िल्मों में क़िल्म कला का उत्कषत िे खा जा सकता है।
उिकी क़िल्मों में ‘साइको’, ‘दिबडत’, ‘वदित गो’ सवातधधक महत्त्वपूणत हैं।

यूरोप के अलावा ससिेमा का ववकास एसशया, िक्षक्षण अमेररका और अफ्ीका में भी हुआ
है । 1960 की क्रांनत के बाि के िौर में क्यूबा िे कई उल्लेखिीय क़िल्मों का निमातण ककया। ऐसी
ही एक क़िल्म लुससया (1969) न्जसके नििे शक हुम्बिोसोलेस थे, उसमें वत्त
ृ धचत्र शैली में लुससया
िामक थत्री के संघषत को प्रथतुत ककया गया था। एसशया में जापाि, भारत और चीि में कई

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प्रससद्ध कफल्मकार हुए। इिमें जापाि के अकीराकुरोसावा और भारत के सत्यन्जत राय (1925-
1976) का िाम उल्लेखिीय हैं। अकीराकुरोसावा की ‘राशोमॉि’ और ‘सेवि समुराई’ ववश्वववख्यात
क़िल्में हैं।

ससिेमा का ववकास आज भी हो रहा है लेककि अमेररका, यूरोप का ससिेमा सातवें िशक के बाि
व्यावसानयकता और मिोरं जि के िायरे में ही सीसमत होकर रह गया है । क़िल्में बिािा अब बहुत
बड़ा उद्योग हो गया है और इसिे रचिात्मक और कलात्मक क़िल्मों के सलए गज
ंु ाइश काफी कम
कर िी है । कफर भी समय-समय पर कई उत्कृष्ट्ि क़िल्में सामिे आती रहती हैं।

1.5.1 बोध प्रश्न

6. निम्िसलखखत क़िल्मों को उिके सही क़िल्मकारों के साथ समलाएाँ:

(i) दिबथत ऑफ ए िेशि (क) सगेइआइसेंन्थिि

(ii) मेरोपोलीस (ख) चालीचेन्प्लि

(iii) दि ग्रेि डडक्िे िर (ग) कफ्ज लांग

(iv) बेिलसशपपोिे न्म्कि (घ) डी.डब्ल्यू.धग्रकफथ

7. निम्िसलखखत प्रश्िों के उत्तर एक-एक पंन्क्त में िीन्जए।

(i) सोववयत संघ का आरं सभक ससिेमा ककस ववचारधारा से प्रभाववत थाॽ

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

(ii) िस
ू रे ववश्वयुद्ध के बाि के इिली के ससिेमाई आंिोलि को ककस िाम से जािा जाता है ॽ

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

(iii) फ्ांस के 1950-60 के िशक के ससिेमाई आंिोलि को ककस िाम से जािा जाता है ॽ

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

1.6 भाित में सिनेमा की ववकाि-यात्रा

भारत में ससिेमा का ववकास ववश्व ससिेमा के लगभग समािांतर हुआ। ल्युसमए बंधुओं िे
भारत में अपिी क़िल्मों का प्रिशति 7 जुलाई 1896 की शाम को छह बजे मुंबई के वािसि होिल
में ककया था। इि प्रिशतिों िे भारतीयों में भी ससिेमा के प्रनत आकषतण पैिा कर दिया और
उदिीसवीं सिी के समाप्त होते-होते ससिेमा के निमातण की तरफ भारत िे भी अपिा किम बढा

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सलया था। ल्युसमए बंधओ
ु ंकी क़िल्में िे खिे वालों में हररश्चंद्र सखारामभािवडेकर भी थे। भािवडेकर
न्थथर फोिोग्राफी की कला में प्रवीण थे। उदहोंिे वह कैमरा मंगाया न्जस तरह के कैमरे से
ल्यूसमए बंधु अपिी क़िल्में बिाते थे। उदहोंिे मुंबई के ही हैंधगगगाडति में एक कुश्ती का
आयोजि ककया और इस कैमरे से उदहोंिे अपिी पहली क़िल्म बिाई। इस कफल्म को धोिे के
सलए इंग्लैंड भेजा गया और बाि में 1899 में अदय यूरोपीय क़िल्मों के साथ इसको भारत में
प्रिसशतत ककया गया। इसके बाि 1901 में पहला वत्त
ृ धचत्र भारत में निसमतत हुआ न्जसमें एक
भारतीय ववद्याथी के वविे श से पढकर लौििे के दृश्य को क़िल्माया गया था। भािवडेकर के बाि
न्जस िस
ू रे भारतीय का िाम सामिे आता है वह है हीरालालसेि न्जदहोंिे बीसवीं सिी में कई
क़िल्मों का निमातण ककया और भारत में जगह-जगह घूमकर क़िल्मों का प्रिशति भी ककया। लेककि
भारतीय ससिेमा के वपतामह समझे जािे वाले क़िल्मकार थे, ढूंडडराज गोववंि फालके न्जदहें लोग
िािा साहब फालकेके िाम से भी जािते हैं। फालके िे 1913 में भारत की पहली ़िीचरक़िल्म का
निमातण ककया था न्जसका िाम थाः राजा हररश्चंद्र। यह क़िल्म भारत की पौराखणक कथाओं पर
आधाररत थी। क़िल्म आवाज़ रदहत थी। इसे अपार लोकवप्रयता समली और इसके बाि भारत में
क़िल्म निमातण का ससलससला चल पड़ा। लगभग िो िशकों तक भारत में मक
ू क़िल्में बिती रही
और पूरे भारत में दिखाई जाती रही। भारत में क़िल्मों के निमातण से पहले तक पारसीधथयेिर के
िािक काफी लोकवप्रय थे। इि िािकों की शैली मेलोड्रामा की थी। भारतीय ससिेमा िे भी इसी
शैली को अपिाया। आरं भ में पारसीधथयेिर की तरह क़िल्में भी धासमतक, पौराखणक और रहथय
रोमांच से पररपण
ू त कथाओं पर आधाररत होती थीं लेककि बाि में सामान्जक यथाथत को भी
असभव्यन्क्त समलिे लगी थी। इस तरह की क़िल्म जो 1925 में बिी थी वह थीः ‘सावकारी पाश’।
इसके नििे शक थे बाबूरावपेंिर और इसके िायक थे, वी. शांताराम जो बाि मे दहंिी और मराठी
क़िल्मों के बड़े असभिेता और निमातता-नििे शक बिे। भारत में 1300 से अधधक मूक क़िल्में बिी
थीं।

पहली सवाक क़िल्म का निमातण 1931 में हुआ। ‘आलमआरा’ पहली सवाक क़िल्म थी
न्जसका नििे शि अिे सशर ईरािी िे ककया था। यह दहंिथ
ु तािी भाषा में बिी क़िल्म थी। इसी साल
तेलुगु में ‘भक्त प्रह्लाि’ और तसमल में ‘कासलिास’ का निमातण हुआ था। इसके बाि सवाक
क़िल्मों के निमातण का ससलससला बढता गया। बहुभाषी िे श होिे के कारण भारत में ववसभदि
भाषाओं में क़िल्में बििा थवाभाववक है । अंग्रेजी सदहत भारत की पच्चीस से अधधक भाषाओं में
क़िल्में बिती हैं। इिमें सबसे अधधक क़िल्में दहंिी (न्जसमें उित ू और दहंिथ
ु तािी कफल्में भी शासमल
हैं), तसमल, तेलुगु, कदिड़ और मलयालम में बिती हैं। प्रनतवषत लगभग एक हजार से अधधक
क़िल्मों का निमातण भारत में ककया जाता है जो ववश्व के ककसी भी िे श द्वारा प्रनतवषत बिाई जािे
वाली क़िल्मों से ज्यािा है ।

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शुरुआती िशकों में क़िल्म निमातण के सलए कई कंपनियााँ और थिूडडयो थथावपत ककए
गए। इिमें रं जीतमुवीिोि, दयूधथयेिसत, प्रभात थिूडडयो, वाडडयामुवीिोि, बोंबेिाकीज,
समिवातमुवीिोि आदि प्रमुख हैं। अंग्रेजों िे भारतीय क़िल्मों पर नियंत्रण के सलए 1920 में सेंसर
की व्यवथथा लागू की, जो आज भी जारी है । 1930 के िशक के बाि सादहत्य के प्रगनतशील
आंिोलि के प्रभाव में यथाथतवाि की असभव्यन्क्त पर बल दिया जािे लगा तो इसका असर
क़िल्मों पर भी दिखाई िे िे लगा। थवतंत्रता प्रान्प्त से पहले तक ववसभदि प्रनतबंधों के कारण
आजािी की लड़ाई को क़िल्म का ववषय बिाकर प्रथतुत करिा मन्ु श्कल था लेककि सामान्जक
ववषयों को लेकर क़िल्में बिाई जा सकती थीं। यही वजह है कक आज़ािी से पहले के िौर में
समाज सध
ु ार से संबंधधत कई क़िल्मों का निमातण ककया गया। इसके अलावा समाज को एक सत्र

में बांधे रखिे से संबंधधत ववषयों को क़िल्मों के माध्यम से प्रथतुत ककया गया। भारत में बििे
वाली मेलोड्रामाई क़िल्मों में गीत, संगीत और ित्ृ य को अनिवायत उपकरणों के रूप में इथतेमाल
ककया जाता रहा है ।

भारतीय ससिेमा में आरं भ से ही एक ओर मिोरं जि प्रधाि क़िल्में बिती रहीं, तो िस


ू री
ओर, सामान्जक सोद्िे श्यता से प्रेररत कलात्मक क़िल्में भी बिती रहीं। पचास के िशक में ऐसी
कफल्में बिािे वालों में , वी. शांताराम, ववमल राय, महबूब, असमय चक्रवती, सत्यन्जत राय,
गुरूित्त, राजकपूर, चेति आिंि, ऋन्त्वक घिक, ख्वाजा अहमिअब्बास, सोहराब मोिी, एस. एस.
वासि, मण
ृ ाल सेि, ऋवषकेश मुखजी आदि का िाम सलया जा सकता है । इप्िा के सहयोग से
बिी ‘धरती के लाल’ (1946), चेति आिंि के नििे शि में बिी ‘िीचा िगर’ (1946), ब्रबमल राय
की ‘िो बीघा ज़मीि’ (1953), महबूब की ‘मिर इंडडया’(1957), सत्यन्जत राय की ‘पाथेर
पांचाली’, राजकपूर की ‘बूिपासलश’ और ‘जागते रहो’, गुरुित्त की ‘प्यासा’इस िौर की श्रेष्ट्ठ क़िल्में
हैं।

1954 में भारत में सरकार की ओर से राष्ट्रीय कफल्म पुरथकारों की शुरुआत की गई। अब
भी हर साल श्रेष्ट्ठ भारतीय क़िल्मों को ये पुरथकार प्रिाि ककए जाते हैं। बच्चों के सलए क़िल्मों को
प्रोत्सादहत करिे के सलए 1955 में भारत सरकार िे ‘धचल्ड्रदस क़िल्म सोसाइिी’ की थथापिा की।
1960 में भारत सरकार िे क़िल्म ववत्त निगम की थथापिा की न्जसका िाम बिलकर राष्ट्रीय
क़िल्म ववत्त निगम कर दिया गया है । इसका उद्िे श्य अच्छी क़िल्मों के निमातण को प्रोत्सादहत
करिा था और इसके सलए निगम की तरफ से आधथतक सहायता प्रिाि की जाती थी। इसी वषत
पुणे में क़िल्म इंथिीट्यूि की थथापिा की गई न्जसका िाम बाि में बिलकर क़िल्म एंड
िे लीववजि इंथिीट्यूि कर दिया गया। इस संथथाि िे भारतीय ससिेमा को उत्कृष्ट्ि कोदि के
नििे शक और असभिेता प्रिाि ककए।

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सत्तर के िशक में भारतीय ससिेमा में उत्कृष्ट्ि कलात्मक क़िल्म बिािे वाले कई
क़िल्मकार सामिे आए। इस िौर की ये क़िल्में मुख्य धारा की क़िल्मों से अलग तरह की थी।
इस िौर की कलात्मक और सोद्िे श्यपूणत क़िल्मों के आंिोलि को समािांतर ससिेमा आंिोलि िाम
दिया गया। यह अखखल भारतीय आंिोलि था। इसी िौर के प्रमुख क़िल्मकारों में बांग्ला में
उत्पलेंि ु चक्रवती, बद्
ु धिे व बसु, गौतम घोष, मलयालम में जी अरववंिि और अिरू गोपाल कृष्ट्णि,
कदिड़ में धगरीश कासरवल्ली, बी.वी. कारं थ, धगरीश किातड, मराठी में जब्बार पिे ल और अमोल
पालेकर, गुजराती में सत्यिे विब
ु े और दहंिी में श्याम बेिेगल, बासु भट्िाचायत, बासुचिजी,
एम.एस.सथ्य,ु मखण कौल, कुमार शहािी, गोववंि निहलािी, सईि अख्तर समज़ात, केति मेहता,
आदि िे ववश्व थतरीय क़िल्मों का निमातण ककया। कलात्मक उत्कषतता के सलहाज से यह िौर
काफी महत्त्वपूणत कहा जा सकता है । इस िौर में भारतीय ससिेमा िे कई िये प्रयोग ककए। िब्बे
के िशक तक आते-आते सरकारी प्रोत्साहि के अभाव में ससिेमा की समािांतर धारा लप्ु त हो
गई।

1.6.1 बोध प्रश्न

8.निम्िसलखखत वाक्यों में ररक्त थथािों की पनू तत दिये गये ववकल्पों में से कीन्जए।

(i) भारत में बििे वाली पहली ़िीचर क़िल्म -------------- थी।

(ii) भारत की पहली सवाक क़िल्म ‘आलमआरा’ के नििे शक ------------------- थे।

(iii) मूक क़िल्म ‘सावकारी पाश’ के िायक ------------------ थे।

(iv) ‘धरती के लाल’ क़िल्म का निमातण --------- के सहयोग से हुआ था।

(वी.शांताराम, आिे सशर ईरािी, इप्िा, राजा हररश्चंद्र)

9. उपयुक्
त त पदठत अंश के आधार पर बताइए कक कौि से कायत कब हुएॽ

(i) ‘पाथेर पांचाली’ का निमातण कौि से साल में हुआॽ

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

(ii) ल्युसमए बंधुओं की क़िल्मों का भारत में पहली बार प्रिशति कब हुआॽ

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(iii) भारत की पहली सवाक क़िल्म कब प्रिसशतत हुईॽ

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

14
(iv) क़िल्म ववत्त निगम की थथापिा ककस साल की गयीॽ

--------------------------------------------------------------------------------------------------------

1.7 सिनेमा का वतयमान दौि

ससिेमा से संबंधधत प्रौद्योधगकी में वपछले कुछ िशकों में तेजी से बिलाव हुआ है । इसिे
क़िल्मों के निमातण और प्रिशति िोिों को बहुत िरू तक प्रभाववत ककया है । कंप्यि
ू र और डडन्जिल
प्रौद्योधगकी िे ससिेमा के निमातण में तकिीकी पक्ष को ज्यािा प्रबल कर दिया है । िे लीववजि के
आववष्ट्कार िे भी ससिेमा की िनु िया को िरू तक प्रभाववत ककया है । वपछले पााँच-छह िशकों से
क़िल्में िीवी पर भी दिखायी जािे लगी हैं और इंिरिेि के बढते उपयोग िे कंप्यि
ू र और मोबाइल
पर भी क़िल्मों का प्रिशति आम हो गया है । िीवी के सलए अलग से क़िल्में और धारावादहक बििे
लगे हैं। थमाित फोि िे मोबाइल पर ऐसे एप्प उपलब्ध करा दिये हैं न्जि पर क़िल्म, धारावादहक,
वत्त
ृ धचत्र ि केवल िे खे जा सकते हैं बन्ल्क उिके सलए अलग से भी इि ववधाओं में कायतक्रम का
निमातण और प्रिशति होिे लगा है । भारत में भी ससिेमा के इस ववकास के सभी चरणों के प्रभाव
को िे खा जा सकता है ।

सरकारी मिि की वजह से सातवें-आठवें िशकों में ववसभदि भारतीय भाषाओं में काफी
उत्कृष्ट्ि कफल्में बिी थीं लेककि िब्बे के िशक के बाि सरकार से समलिे वाले प्रोत्साहि के अभाव
में सामान्जक सौद्िे श्य और कलात्मक क़िल्मों का निमातण पहले की तुलिा में कम हो गया। इस
न्थथनत में सुधार वपछले िो िशक में दिखाई दिया है। एक बार कफर मुख्यधारा की क़िल्मों के
िायरे में ही कई युवा क़िल्मकारों िे उत्कृष्ट्ि क़िल्मों का निमातण ककया है और यह परं परा अब भी
जारी है ।

भारतीय क़िल्मों का आज ववश्व बाजार बि गया है । वविे श में बसे भारतीयों के कारण
यूरोप और अमेररका में भारतीय क़िल्मों के नियसमत प्रिशति होिे लगे हैं। िे लीववजि और इंिरिेि
िे क़िल्मों के िशतक बढादिये हैं। लोग अब वीसीडी और डीवीडी के रूप में या अपिे लेपिॉप और
पेि ड्राइव में क़िल्मों की प्रनतसलवप अपिे पास रखिा पसंि करते हैं। यही कारण है कक कलात्मक
और गैर व्यावसानयक क़िल्में भी अपिी लागत निकाल लेती है । क़िल्म उद्योग में आधथतक रूप से
आयी न्थथरता के कारण ही क़िल्मकारों के सलए िये प्रयोग करिा ज्यािा आसाि हो गया है । अब
हॉलीवुड की तरह भारत में भी काफी बड़े बजि की क़िल्में बििे लगी हैं। और प्रौद्योधगकी की
दृन्ष्ट्ि से िये प्रयोग भी ककए जािे लगे हैं। यही वजह है कक यदि एक ओर ‘कक्रश’,रोबो, 2.0,
रा.वि, बाहुबली जैसी क़िल्में बि रही हैं तो िस
ू री ओर लोकवप्रय एनिमेशि क़िल्मों का निमातण
भी हो रहा है । लेककि अब कम बजि में अच्छी क़िल्में भी बिायी जा सकती हैं और धथयेिर की

15
बजाय इंिरिेि के जररए सीधे लोगों के कंप्यूिर और मोबाइल पर पहुाँचाया जा सकता है । निश्चय
ही ससिेमा का भववष्ट्य उज्ज्वल है ।

1.7.1 बोध प्रश्न

10. क़िल्मों को इिमें से ककस माध्यम के जररए िे खा जा सकता हैॽ

(i) ससिेमा हाल के पिे पर

(ii) िे लीववजि पर

(iii) कंप्यूिर और मोबाइल पर

(iv) उपयुक्
त त सभी पर ( )

1.8 िािांि

ससिेमा की प्रौद्योधगकी और निमातण में अमेररका और यरू ोप का योगिाि सवातधधक है ।


लेककि एसशया और लेदिि अमेररका के िे श इसमें पीछे िहीं है । इस पाठ में ससिेमा के उिय और
ववकास के बारे में आपिे संक्षक्षप्त ज्ञाि प्राप्त ककया है । वैसे तो ससिेमा का उिय और ववकास
ऐसा ववषय है न्जस पर एक पाठ में बात करिा संभव िहीं है । लेककि इसमें हमिे ससिेमा के
उिय और ववकास का संक्षक्षप्त वववरण प्रथतुत ककया है । इस पाठ को पढिे से आप ससिेमा की
तकिीक के बारे में और उसमें होिे वाले पररवततिों के बारे में जाि सकेंगे। ससिेमा का उपयोग
सूचिा, सशक्षा और मिोरं जि तीिों प्रकायों के सलए ककया जाता है । लेककि इस माध्यम का सबसे
अधधक उपयोग कहािी को दृश्यात्मक रूप में प्रथतुत करिे के सलए ककया जाता है । इस ववधा को
़िीचर क़िल्म कहा जाता है। पहली क़िल्म का निमातण बीसवीं सिी के पहले िशक में ककया गया
था। भारत में पहली क़िल्म 1913 में बिी थी। आरं भ में क़िल्म मक
ू थी बाि में वह सवाक हुई।
आरं भ में श्वेत-श्याम थी, बाि में रं गीि क़िल्में बििे लगीं। क़िल्में िनु िया की प्रायः सभी भाषाओं
में बिती है । एसशया में जापाि, चीि और भारत क़िल्मों के निमातण में अग्रणी हैं। भारत में सबसे
ज्यािा क़िल्में बिती हैं। भारतीय लोकवप्रया ससिेमा में मेलोड्रामा को ववशेष महत्त्व दिया जाता है ।
संगीत, गीत और ित्ृ य को ववशेष थथाि हाससल है । आज भारतीय ससिेमा में िये प्रयोग होिे
लगे हैं और उसे अंतरराष्ट्रीय मादयता समल रही है ।

1.9 उपयोिी पुस्तकें

1. ववश्व ससिेमा का सौंियतबोध - संपािक: श्रीराम नतवारी, प्रभुिाथ ससंह ‘आज़मी’, 2015,
भारतीय ज्ञािपीठ, ियी दिल्ली।

16
2. पन्श्चम और ससिेमा - दििेश श्रीिेत, 2012, वाणी प्रकाशि, ियी दिल्ली।

3. भारतीय ससिेमा का सफरिामा - संकलि और संपािि: जयससंह, 2013, प्रकाशि ववभाग,


सूचिा और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।

4. भारतीय ससिेमा का अंत:करण - वविोि िास, 2003, मेधा बुक्स, दिल्ली।

5. लोकवप्रय ससिेमा और सामान्जक यथाथत – जवरीमल्ल पारख, 2019, अिासमका पन्ब्लशसत


एंड डडथरीब्यूिसतप्रा.सल., ियी दिल्ली।

6. दहदिी ससिेमा का समाजशाथत्र - जवरीमल्ल पारख, 2006, ग्रंथसशल्पी, दिल्ली।

1.10 अभ्याि

1. ससिेमा के तकिीकी पक्ष के ववकास पर प्रकाश डासलए।

2. ववश्व ससिेमा के प्रमख


ु आंिोलिों का संक्षक्षप्त पररचय िीन्जए।

3. ससिेमा के प्रमख
ु प्रकायों का सोिाहरण उल्लेख कीन्जए।

4. भारतीय ससिेमा के उिय और ववकास का संक्षक्षप्त वववरण प्रथतुत कीन्जए।

5. ककसी ऐसी क़िल्म की समीक्षा सलखखए जो आपको बहुत पसंि हो।

17
2. सिनेमा की भाषा औि उिके ववसभन्न प्रकाि

डॉ. िीरा जलक्षब्रत्र


िौलतराम कॉलेज, दिल्ली

2.1 प्रस्तावना

ससिेमा वथतत
ु ः उदिीसवीं शताब्िी का महाि आववष्ट्कार है , इस खोज िे मािव जीवि
की कल्पिा और रचिात्मक सोच को िई उड़ाि िी है । ससिेमा ववज्ञाि होते हुए भी अपिी
असभव्यन्क्त में कलात्मक है और इस कारण यह समकालीि सभी कलाओं में सबसे अधधक
सशक्त होिे के साथ-साथ सबसे अधधक प्रभावशाली भी है । ससिेमा में सादहत्य, संगीत, कला के
ववसभदि रूपों का समच्
ु चय होता है , िरअसल ससिेमा में समकालीि समथत कलाएाँ अपिे
उत्कृष्ट्ितम रूप में प्रकि होती हैं। इसीसलए ससिेमा को ‘कलेन्क्िव आित ’ भी कहा जाता है । कफल्म
अिेक अथों में सामदू हक कला है । उसकी ये सामदू हक कोसशश ही ससिेमा को अदय कला माध्यमों
से अलग रूप प्रिाि करती है । ससिेमा िे समवेत थवर कहािी कहिे के सलए जो िई भाषा
ववकससत की है उसे कैमरे की भाषा भी कहते हैं। ससिेमा िरअसल ककसी कथा कहािी को सुिािे
की अपेक्षा उसे दिखाता है । ससिेमा की असभव्यन्क्त की उस भाषा पर बात करिे से पहले उसके
थवरूप को समझिा भी युन्क्तसंगत रहे गा।

2.2 अगधिम का उद्दे श्य

इस पाठ के माध्यम से आप निम्िसलखखत ब्रबि


ं ओ
ु ं को समझेंग-े
1. ससिेमा की भाषा को समझ सकेंगे।

2. ससिेमा में शॉि, दृश्य और क्रम का वगीकरण समझेंगे, साथ ही इिके माध्यम से ससिेमा
के परिे पर कहािी कैसे कही जाती है , उसे समझेंगे।

3. ससिेमा की भाषा में प्रकाश-संयोजि के महत्त्व को समझेंगे।

4. ससिेमा में फॉली साउं ड के महत्त्व को भी समझ सकेंगे।

5. ससिेमा के ववसभदि प्रकारों, ववशेषकर व्यावसानयक ससिेमा, समािांतर ससिेमा और क्षेत्रीय


ससिेमा के अंतर को समझ सकेंगे।

2.3 ववषय-प्रवेि

ससिेमा के जदम के साथ ही ववश्व भर में ववद्वािों िे धचंति-मिि द्वारा उसके थवरूप,
रचिा प्रकक्रया पर ववचार करिा आरं भ ककया। इस संिभत में प्रख्यात आलोचक डॉ. मैिेजर पाण्डेय

18
जी सलखते हैं-‘‘आजकल कला की कोई भी चचात कफल्म को छोड़कर पूरी िहीं हो सकती। वह आज
के युग की सवातधधक प्रभावशाली और प्रनतनिधध कला है । कफल्म के निमातण में कला और ववज्ञाि,
साधिा और व्यवसाय, वैयन्क्तक रचिाशीलता और सामूदहक प्रयत्ि का गहरा सामंजथय होता है ।
कफल्म अिेक अथों में सामूदहक कला है । उसमें असभिेता, नििे शक, कथाकार, फोिोग्राफर,
संगीतकार, गायक, वािक, िततक और तकिीकी ववशेषज्ञों का सामदू हक योगिाि होता है । कफल्म
निमातण के पीछे पाँूजी की ज़रूरत होती है और आगे बाज़ार की धचंता। कफल्म का िशतक भी समह

होता है । इस तरह कफल्म आधुनिक युग की सामूदहक कला है ।’’ (मैिेजर पाण्डेय, सादहत्य के
समाजशाथत्र की भूसमका, पष्ट्ृ ठ संख्या-40) अपिी असभव्यन्क्त में कलात्मक इस कला रूप में कथा
सादहत्य, िािक, कववता-गीत, संगीत (वाद्य-गायि), ित्ृ य, फोिोग्राफी, कला (थिोरीबोडत), एडडदिंग
(कम्प्यि
ू र), साउं ड समककं सग, वी-एफ-एक्स- (थपेशल इफेक्ि) के जररये एक दिशा में एक बात
(कहािी) कहिे की कोसशश की जाती है । ससिेमा के ववषय में मेत्ज़ कहते हैं। “ससिेमा जब ककसी
चीज को बताता है तो थवयं को संप्रेवषत करिे की अपेक्षा असभव्यक्त करता है ” (वारे ि बकलैंड,
पुथतक - कफल्म थिडीज, पष्ट्ृ ठ संख्या-3) ससिेमा, सादहत्य या अदय कला माध्यम की तरह अपिी
तरह की अिोखी कला है , जहााँ कई और कला रूप, ववज्ञाि और तकिीक समलकर एक साथ, एक
कहािी समलकर प्रथतत
ु करते हैं। न्जस भाषा में ससिेमा कहािी कहता है , वो प्रथतुनत में भले ही
साधारण दिखता हो लेककि कहािी कहिे की यह प्रकक्रया कतई साधारण िहीं है । इतिा ही िहीं
ससिेमा िे मिुष्ट्य के िे खिे-समझिे के ढं ग को भी काफी बिला है । न्जस संिभत में वॉल्िर
बेंजासमि सलखते हैं- “िे खिे और सुििे के हमारे पूरे ढं ग को कफल्म िे बहुत सक्ष्
ू म बिा दिया है ।
ककसी कफल्म में प्रथतुत रोजमरे के व्यावहाररक जीवि के ऐसे प्रसंगों का ज्यािा बारीकी से और
ज्यािा कोणों से ववश्लेषण संभव है , जबकक ककसी धचत्र या िािक में ऐसा संभव िहीं।” (पहल
पब्रत्रका, संपािक- अरुण कमल, पष्ट्ृ ठ संख्या-146) यही फकत उसे सादहन्त्यक ववधा िािक से अलग
करता है । िािक अपिी प्रथतुनत में ससिेमा के करीब लगता है , लेककि ससिेमाई भाषा में
ववसभदि तरह के शॉट्स में कहािी कहिे की कला ससिेमा को िािक से अलग करती है ,
ववशेषरूप से क्लोज-अप शॉि। क्यूंकक वहााँ न्जतिी बारीकी से ववश्लेषण संभव है वैसा िािक में
संभव िहीं है । इस ववषय में वविोि िास सलखते हैं- “िरअसल एक अच्छी कफल्म हमें िे खिा
ससखाती है । ससिेमा के यथाथत से हम जीवि के यथाथत को एक िई दृन्ष्ट्ि से िे खिे लगते हैं। यह
दृन्ष्ट्ि ककसी िशति से िहीं, कफल्म के उि छोिे -छोिे दृश्यों और संवािों से उपलब्ध होती है । हर
िशतक उसे िया अथत िे ता है । कफल्म का पाठ हर िशतक के साथ बिलता रहता है ।” (वविोि िास,
भारतीय ससिेमा का अंतःकरण, पष्ट्ृ ठ संख्या-205) ससिेमा िे ककथसागोई की एक सभदि भाषा को
जदम दिया है इसके बारे में भारतीय नििे शक गौतम घोष कहते हैं - “ससिेमा इस शताब्िी की िई
भाषा है । इस भाषा में कथा भी प्रथतुत की जा सकती है और डॉक्यूमेंिेशि भी। यह काम वैसे ही
ककया जा सकता है जैसे ककसी अदय भाषा यािी शान्ब्िक भाषा में , पत्रकाररता भी की जाती है

19
और कववता भी सलखी जाती है ।” (गौतम घोष, समकालीि सज
ृ ि पब्रत्रका, पष्ट्ृ ठ संख्या-62) ससिेमा
की इस िई ककथसागोई की भाषा को समझिे के िरअसल ससिेमा की असभव्यन्क्त की भाषा को
समझिा होगा, जो िरअसल कैमरे की भाषा है ।

2.3.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्ि (क) प्रश्िों के उत्तर ‘हााँ’ या ‘िहीं’ में िीन्जए-

1. ससिेमा एक सामदू हक कला है । (------)

2. िे खिे और सि
ु िे के हमारे परू े ढं ग को कफल्म िे बहुत सक्ष्
ू म बिा दिया है । (-------)
3. ससिेमाई भाषा में ववसभदि तरह के शॉट्स में कहािी कहिे की कला ससिेमा को िािक
से अलग करती है । (---------)

4. कफल्म का पाठ हर िशतक के साथ बिलता रहता है । (-------)

प्रश्ि (ख) कोष्ट्ठक में दिए गए शब्िों में से सही शब्ि चुिकर ररक्त थथाि की पूनतत कीन्जएµ

1. ससिेमा जब ककसी चीज को बताता है , तो थवयं को संप्रेवषत करिे की अपेक्षा -----------


करता है । (असभव्यक्त, मक्
ु त, आवरणयुक्त)

2. ससिेमा िे समवेत थवर में कहािी कहिे के सलए जो िई भाषा ववकससत की है उसे ------
की भाषा भी कहते हैं। (कैमरे , सादहत्य, समाज)

3. कफल्म के निमातण में कला और ववज्ञाि, साधिा और व्यवसाय, वैयन्क्तक रचिाशीलता


और --------- प्रयत्ि का गहरा सामंजथय होता है । (सामूदहक, एकाकी)

2.4 सिनेमा की भाषा

सादहत्य में न्जस तरह साथतक शब्िों के समूहों द्वारा वाक्य तथा वाक्यों से अिच्
ु छे ि की
रचिा होती है उसी प्रकार ससिेमा में क्रमवार कई शॉट्स के संयोजि से सीि (दृश्य) एवं सीदस
के संयोजि से सीक्वेंस (क्रम) की रचिा होती है । न्जस प्रकार कोई लेखक ककसी ववषय को
चुिकर क्रमवार वाक्यों, अिुच्छे िों द्वारा कहािी कहता है , उसी प्रकार नििे शक भी ववषयािुसार
शॉट्स, सीदस एवं सीक्वेंस का क्रमवार संयोजि करता हुआ कहािी को परिे पर धचब्रत्रत करता
है । अब हम ससिेमा की मल
ू भाषा यानि शाट्स पर ववचार करें गे। सादहत्य में जो थथाि शब्िों का
है , कफल्म में वही थथाि शॉि का है । इस ववषय में कक्रश्चयि मेत्ज़ कहते हैं- “जहााँ से साधारण
भाषा व्यवथथा की चरम सीमा (वाक्य/संयुक्त वाक्य) पूरी होती है , वहााँ से ससिेमाई भाषा (कफल्म
निमातण) के रूप की सीमा आरं भ होती है , चाँकू क कफल्म निमातण का प्रारं सभक ब्रबंि ु (शॉि) ही वाक्य
से आरम्भ होता है ।” (कक्रश्चयि मेत्ज़, कफल्म लैंग्वेज अ सससमयोदिक्स ऑफ ससिेमा, पष्ट्ृ ठ
संख्या-10) इस बात को इस प्रकार समझा जा सकता है कक ससिेमा में दिखिे वाला एक शॉि

20
िरअसल कई बार पूरे पररवेश, पात्र की मिःन्थथनत, थथाि आदि सभी को एक क्षण में
व्याख्यानयत कर िे ता है , जबकक साधारण भाषा में इतिा सब कहिे के सलए संभवतः एक
अिुच्छे ि सलखिा पड़ सकता है । इससलए ससिेमा की भाषा अपिी असभव्यन्क्त में बेजोड़ है । इस
ववषय में डॉ. ककशोर वासवािी सलखते हैं- “ससिेमाई भाषा आख्यािमूलक (िैरेदिव) वववेचिात्मक
शन्क्त में बेजोड़ है । कई बार एक क्षण का शॉि भी एक पूरी अवधारणा को आख्यानयत और
वववेधचत करके रख िे ता है ।” (डॉ. ककशोर वासवािी, ससिेमाई भाषा और दहंिी संवािों का
ववश्लेषण, पष्ट्ृ ठ संख्या -99)

ससिेमा में सबसे पहले धग्रकफथ िे दृश्यों को शॉट्स में ववभान्जत ककया था, न्जसके बारे में
मिमोहि चड्ढा सलखते हैं- “धग्रकफथ िे सबसे पहले पहचािा कक ससिेमा की मूलभूत इकाई,
रं गमंच की तरह दृश्य िहीं शॉि है , इससलए उदहोंिे एक दृश्य को कई शॉट्स में ववभान्जत करिा
शुरू ककया और इि शॉट्स को जोड़कर एक दृश्य का निमातण ककया” (मिमोहि चड्ढा, दहंिी
ससिेमा का इनतहास, पष्ट्ृ ठ संख्या-52) धग्रकफथ द्वारा दृश्य को शॉट्स में ववभान्जत करिे के
उपक्रम की तुलिा कथा सादहत्य से करते हुए सत्यन्जत रे सलखते हैं-“धग्रकफथ की समझ में यह
बात पहले ही आ गई थी कक एक सााँस में जैसे मुंह से कहािी िहीं कही जाती या कथा-सादहत्य
में भी न्जस प्रकार वाक्य सजाये जाते हैं। ससिेमा की कहािी को भी खंड-खंड दृश्यों और शॉट्स
में ववभान्जत कर कहिा पड़ता है । प्रत्येक शॉि एक वाक्य या एक शब्ि हुआ करता है । शब्िों की
तरह शॉट्स की भाषा हुआ करती है और वह भाषा कफल्म की एकांनतक भाषा है , दृश्य-वथतु की
भाषा है । कथा सादहत्य में कहािी को न्जस प्रकार अिुच्छे िों-पररच्छे िों में ववभान्जत करिे की
आवश्यकता पड़ती है , ससिेमा की कहािी को उसी प्रकार ‘समक्स’ या ‘फेड’ जातीय ववशेष यांब्रत्रक
एवं रासायनिक उपायों के सहारे खंड-खंड में ववभान्जत ककया जा सकता है -ससिेमा की भाषा
मूलतः कैमरे की भाषा हुआ करती है ।” (सत्यन्जत रे , चलधचत्र, पष्ट्ृ ठ संख्या-16) ससिेमा में
िरअसल पूरी कहािी को कहिे के सलए उसे सीि (दृश्यों) में बााँिा जाता है , कफर उस सीि (दृश्य)
को शॉि में ववभान्जत ककया जाता है । इदही शॉि से बिे सीि को एक क्रम में लगाकर सीक्वेंस
में कहािी को िशतकों के सामिे रख जाता है । आइए अब समझिे की कोसशश करते हैं कक शॉि
क्या है ?

2.4.1 िॉट

शॉि ससिेमा की सबसे छोिी इकाई है , यािी नििे शक का कैमरा ऑि होिे और ऑफ होिे
के बीच का समय। िस
ू रे शब्िों में- ससिेमा के परिे पर जैसे ही एक फ्ेम के बाि कोई और फ्ेम
आिा। उिाहरण के सलए मसलि- िो व्यन्क्त आपस में बात कर रहे हैं, तो जैसे ही एक व्यन्क्त
बोलता है , नििे शक का कैमरा उसके संवाि और भाव को कैि करता है , वह एक शॉि है । जैसे ही,
िस
ू रा व्यन्क्त उसका जवाब िे ता है और कैमरा उसकी बात को ररकॉडत करता है , वह िस
ू रा शॉि

21
हो जाता है । इस प्रकार एक थथाि पर होिे वाली बातचीत को कई शॉट्स में बााँिकर शूि ककया
जाता है और इि शॉट्स को एक क्रम से जोड़कर सीि (दृश्य) का निमातण होता है ।

िॉट कटअवे- एक शॉि के बाि ‘कि’ होता है , न्जसके बाि िस


ू रा शॉि जोड़ा जाता है , उसे
‘किअवे’ कहते हैं। साधारण भाषा कोड में जो जगह अधत ववराम और पण
ू त ववराम की है , ससिेमा
भाषा में उसी तरह इसे शॉि को जोड़िे के सलए आया हुआ ‘पॉज’ या अधतववराम कह सकते हैं।
ब्रबिा शॉि किअवे के ससिेमा के परिे पर कहािी कहिा मुन्श्कल है । ये कई बार फेड-इि, फेड-
आउि और कई अदय इफेक्ि के साथ अगले शॉि के पहले जोड़ा जाता है । यही वो क्षण हैं , जब
दृश्य पररवतति के पहले िशतक को अगले शॉि में ले जािे का संकेत िे िे का काम भी करता है ।
आइए अब ससिेमा की भाषा की पहली और सबसे छोिी इकाई शॉि के प्रकार को भी समझते हुए
चलते हैं।

िॉट के प्रकाि- ससिेमा में कहािी कहिे के सलए पूरी कहािी जरूरत के दहसाब से शॉट्स
में ववभान्जत करिी पड़ती है । हर एक शॉि का एक अलग अथत होता है । ससिेमा की भाषा में
शॉट्स के माध्यम से ककस तरह कहािी कही जाती है , इसे इस प्रकार समझा जा सकता है ।

बर्य आई व्यू िॉट-यह शॉि कफल्मकार द्वारा ककसी लोकेशि को थथावपत करिे के सलए
बहुत ऊपर से सलया जाता है । ससिेमा में पहले इस तरह के शॉि प्रायः हे लीकॉप्िर से सलये जाते
थे। आजकल इस तरह के शॉि ड्रोि से सलए जाते हैं। इसी शॉि में कफल्मकार कफल्म की कहािी
ककस िे श या शहर की है , यह थथावपत करता है ।

मास्टि िॉट- इसे थिै न्ब्लसशंग शॉि भी कहते हैं। कफल्म में कहािी ककस जगह की है और
ककस पररवेश की है इसे बतािे के सलए अक्सर इस तरह के शॉि का प्रयोग ककया जाता है ।

इस शॉि में िायक के आस-पास का माहौल और उसकी पष्ट्ृ ठभसू म को थथावपत ककया
जाता है ।

फुल िॉट- इसमें ककसी कलाकार के पूरे शरीर को िशातया जाता है इसी को लांग शॉि भी
कहते हैं। इसके जररए कलाकार के हाव-भाव और एक्शि को दिखाया जाता है ।

समर् िॉट- इस शॉि में कलाकार का शरीर का ऊपरी आधा दहथसा दिखाते हैं।

समर् क्लोजअप िॉट- इस शॉि में कलाकार के हाव-भाव को बारीकी से दिखािे के सलए
कंधे से चेहरे तक का दहथसा दिखाया जाता है ।

एक्स्रीम क्लोजअप- इसमें कलाकार के चेहरे के भाव को ररकॉडत ककया जाता है । हालांकक
यह शॉि कलाकार के अलावा ककसी वथतु या दृश्य का भी हो सकता है । जब कफल्मकार यह

22
चाहता है कक िशतक उस ववशेष भाव या वथतु की डडिे ल को ज्यािा गौर से िे खें, तो वह इस शॉि
का प्रयोग करता है ।

ओ-टी-एि- िॉट (ओवि द िोल्र्ि िॉट)- कफल्म में इस तरह का शॉि िो व्यन्क्तयों की
बातचीत में प्रयोग होता है । जब िो व्यन्क्त आमिे सामिे बात करते हैं तब एक व्यन्क्त के
बोलिे पर िस
ू रे व्यन्क्त के कंधे से बगल से यह शॉि इस तरह सलया जाता है , न्जसमें बोलिे
वाला और सुििे वाला िोिों उस शॉि में दिखाई िे ते हैं, लेककि एक कलाकार का चेहरा और िस
ू रे
का कंधा ही दिखाई िे ता है । इस शॉि के जररए िरअसल िोिों पात्रों के भाव भंधगमा और कक्रया
प्रनतकक्रया को िजत ककया जाता है ।

फेि टू फेि (समर् िॉट)- इस शॉि में िो व्यन्क्त िो जब आमिे सामिे बात करते हैं तो
इसमें िोिों ही पात्र साइड से दिखाई िे ते हैं और इसमें िोिों कलाकारों का कमर से ऊपर का
दहथसा दिखाई िे ता है ।

लो एंिल िॉट- ककसी वथतु या पात्र को मदहमा मंडडत या शन्क्तशाली दिखािे के सलए
कैमरे को तुलिात्मक रूप से िीचे रखा जाता है ताकक वह व्यन्क्त या वथतु अपिे सामादय
आकार से ज्यािा बड़ा और ववराि दिखाई िे । अक्सर इस तरह का शॉि एक्शि कफल्मों में हीरो
या ववलेि को और खतरिाक दिखािे के सलए या थथावपत करिे के सलए सलया जाता है ।

हाई एंिल िॉट- ककसी वथतु या पात्र को कमरतर या प्रभावहीि दिखािे के सलए कैमरे को
तुलिात्मक रूप से ऊपर रखा जाता है ताकक वह व्यन्क्त या वथतु अपिे सामादय आकार से छोिा
और िगण्य दिखाई िे । कभी-कभी इस एंगल का इथतेमाल, पात्रें के अंिर की घबराहि और डर
को दिखािे के सलए भी ककया जाता है ।

2.4.2 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्ि (क) निम्िसलखखत प्रश्िों के अधधकतम तीि पंन्क्तयों में उत्तर िीन्जएµ

1. शॉि ककसे कहते हैं?


2. हाई एंगल शॉि का इथतेमाल क्यों ककया जाता है ?

प्रश्ि (ख) सही शब्िों से ररक्त थथाि की पनू तत कीन्जए।

1. ससिेमा की भाषा मूलतः ------------------ की भाषा हुआ करती है । (कैमरे , सादहत्य,


समाज)

2. ववलेि को और ख़तरिाक दिखािे के सलए ------------------ शॉि का इथतेमाल ककया जाता


है । (लो एंगल शॉि, माथिर शॉि, हाई एंगल शॉि)

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3. ककसी सीि में शहर या िे श को थथावपत करिे के सलए ------------------ शॉि का उपयोग
ककया जाता है । (बडत आई व्यू, क्लोज अप शॉि)

प्रश्ि (ग) निम्िसलखखत कथिों पर सही/गलत के निशाि लगाइए।

1. शॉट्स को एक क्रम से जोड़कर सीि (दृश्य) का निमातण होता है । (सही/गलत)

2. ब्रबिा शॉि किअवे के ससिेमा के परिे पर कहािी कहिा मुन्श्कल िहीं है । (सही/गलत)

2.5 िीन (दृश्य)

शॉट्स को एक सही क्रम से जोड़िे पर दृश्य या सीि का निमातण होता है , दृश्य या सीि
से तात्पयत है कक एक थथाि पर, एक समय पर सलए गए सभी शॉट्स को समलाकर दृश्य बिता
है । जैसे- ककसी कफल्म में घर के भीतर िो व्यन्क्तयों की एक बातचीत चल रही है । उिकी उस
समय की सारी बातचीत, चाहे वो ककतिी ही िे र क्यूाँ ि चले, एक दृश्य है । जैसे ही वो उठकर
बाहर सड़क पर आते हैं, वो िस
ू रा दृश्य हो जायेगा। एक थथाि पर, एक समय पर सलए गए
सारे शॉट्स से समलकर दृश्य (सीि) बिता है और इदहीं दृश्यों को कहािी के अिुसार जोड़कर
कफल्म का निमातण होता है । दृश्यों को जोड़कर ही कफल्मकार ककसी कहािी को कफल्म में तब्िील
करता है । ब्रबिा दृश्यों को जोड़े कोई भी कहािी िहीं कही जा सकती है ?

2.6 िीक्वें ि (क्रम)

सीक्वेंस से मतलब है कक जब ससिेमा में सभी दृश्यों को कहािी के क्रम के अिुसार


एडडदिंग के समय एक क्रम से लगाया जाता है , तो उसे क्रम या सीक्वेंस कहते हैं। न्जस प्रकार
शॉट्स से समलकर सीि (दृश्य) बिता है , उसी प्रकार सीि (दृश्य) से समलकर सीक्वेंस (क्रम)
बिता है । ससिेमा में शूदिंग कहािी के क्रम से िहीं होती है बन्ल्क उसे सुववधािस
ु ार अलग-अलग
क्रम से शूि ककया जाता है, कफर एडडदिंग के समय उदहें एक क्रम से जोड़कर कहािी बयााँ की
जाती है । इि सबके सही और प्रभावशाली क्रम में लगाये जािे के बाि ही कफल्म तैयार होती है ।
ककसी भी कफल्म की कहािी को न्जतिे प्रभावशाली ढं ग से एडडदिंग के िौराि जोड़ा जाता है ,
सामादय भाषा में उसे ही परिे पर कहािी कहिा कहा जा सकता है । कफल्म निमातण में सीक्वेंस
का बहुत महत्त्व होता है । सीक्वेंस से ही तय होता है कक कफल्म की कहािी को रोचक ढं ग से
कहा गया है अथवा िहीं। न्जस तरह ककसी कववता अथवा कहािी में अिावश्यक शब्िों को हिा
िे िे से वह और निडर जाती है , उसी प्रकार कफल्म की कहािी को सही क्रम से लगाते हुए गैर
जरूरी सीि को हिािे और जरूरी सीि को क्रम से जोड़िे को ही एडडदिंग कहते हैं। ससिेमा की
भाषा में न्जस तरह एक शॉि की तुलिा भाषा में ‘वाक्य’ से कर सकते हैं, उसी तरह सीक्वेंस
की तुलिा एक ‘अिुच्छे ि’ से कर सकते हैं। हालााँकक ससिेमा की इस भाषा को और प्रभावशाली

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बिािे में प्रकाश-संयोजि (लाइि-कम्पोजीशि) और पाश्वत संगीत (बैक ग्राउं ड साउं ड) का भी ववशेष
योगिाि होता है । ससिेमा की भाषा यािी शॉि को और प्रभावशाली बिािे में इिकी बहुत अहम
भूसमका होती है , इससलए ससिेमा की भाषा पर कोई भी बात इि पर चचात ककये ब्रबिा पूरी िहीं हो
सकती है ।

2.6.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्ि (क) निम्िसलखखत कथिों पर सही/गलत के निशाि लगायें।

1. कफल्म निमातण में सीक्वेंस का बहुत महत्त्व िहीं होता है । (सही/गलत)

2. ससिेमा में शूदिंग कहािी के क्रम से होती है । (सही/गलत)

प्रश्ि (ख) निम्िसलखखत शब्िों से ररक्त थथाि की पूनतत कीन्जए।

1. शॉट्स को एक सही क्रम से जोड़िे पर ------------- का निमातण होता है । (सीक्वेंस, मूड,)

2. ससिेमा की भाषा में न्जस तरह एक -------- की तुलिा भाषा में ‘वाक्य’ से कर सकते हैं,
उसी तरह सीक्वेंस की तल
ु िा एक ‘अिुच्छे ि’ से कर सकते हैं। (शॉि, ध्वनि, प्रकाश)

2.7 सिनेमाई भाषा में प्रकाि-िंयोजन का महत्त्व

ससिेमा में ससफत कैमरे की ही भाषा िहीं होती बसलक कैमरे के जररए जो कुछ कफल्माया
जाता है , वह सब समेककत रूप से कफल्म की भाषा होती है । और इसमें प्रकाश संयोजि का ववशेष
महत्त्व है क्योंकक वो उस भाषा को और अथतवाि बिाता है । कैमरा पात्रों के मिोभावों को और
गहराई से िजत करता है । ससिेमा में कई तरह की लाइि (प्रकाश व्यवथथा) का इथतेमाल ककया
जाता है । जैसे- ‘की’ लाइि, कफल लाइि, बैक लाइि, साइड लाइि, रैंबरें ड लाइि, बिरफ्लाई लाइि,
बाउं स लाइि, सॉफ्ि लाइि, कैच लाइि, प्रैन्क्िकल लाइि (लैपिॉप, फोि, िी-वी- इत्यादि), फ्लैि
लाइि, लो की-लाइि, हाई की-लाइि, मोदिवेिेड लाइि और कैं डल लाइि आदि।

इस प्रकार के प्रकाश संयोजि द्वारा कफल्मकार अपिी कफल्म की भाषा को और


प्रभावशाली और संप्रेषणीय बिाते हैं। िरअसल ससिेमा में कैमरे के जररए जो कहािी कही जाती
है , उसमें प्रकाश संयोजि का ववशेष महत्त्व है । ककसी भी शॉि में क्या दिखेगा, ककतिा दिखेगा
और कैसा दिखेगा, ये प्रकाश संयोजि पर ही निभतर करता है । प्रकाश संयोजि द्वारा ि केवल
ससिेमाई भाषा की मारक क्षमता का सुदिर प्रयोग होता है , बसलक वह यह भी तय करता है कक
िशतक कहााँ और ककतिा िे खें। इतिा ही िहीं मशहूर कफल्मकार गुरुित अपिी कफल्मों में सुंिर
और प्रभावशाली प्रकाश-संयोजि के जररये न्जस तरह पररवेश और पात्र के मिोभाव व्यक्त करते
हुए कहािी कहते थे, वो आज भी बेजोड़ है । उिकी कफल्में आज भी कफल्म थकूल में प्रकाश-

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संयोजि समझािे के सलए ववशेष रूप से पढाई जाती हैं। उिकी कफल्में ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’
और ‘साहब बीबी और गल
ु ाम’ इसे समझिे के सलए िे खी जा सकती है । सही प्रकाश-संयोजि
कैमरे की भाषा की क्षमता को कई गुिा बढा िे ता है , प्रकाश-संयोजि द्वारा नििे शक ि केवल
कहािी के अिुरूप पररवेश को जीवंत बिाता है , बसलक ककरिार के मिोभाव को समझिे में िशतक
की मिि भी करता है । ववशेष रूप से हॉरर कफल्में इसका बदढया उिाहरण हैं।

2.8 सिनेमाई भाषा में पाश्वय ध्वनन िंयोजन (बैक ग्राउं र् िाउं र्) का महत्त्व

याँू तो ससिेमा की भाषा, कैमरे की भाषा है और एक शॉि िरअसल एक वाक्य जैसा होता
है , लेककि इस दृश्य भाषा में ससफत दृश्य िहीं होता बसलक उसे जीवंत बिािे के सलए बैक ग्राउं ड
साउं ड भी होता है । िरअसल बैकग्राउं ड साउं ड ककसी भी शॉि को प्रमाखणक और यथाथत बिाते हैं ।
ससिेमा के आभासी यथाथत को वाथतववक अिभ
ु व करवािे में इिका ववशेष योगिाि होता है ।
पररवेश को जीवंत करिे वाले बैक ग्राउं ड साउं ड संयोजि, जो कक शॉि लेिे के बाि कफल्म को
ररयसलन्थिक बिािे के सलए बाि में जोड़ा जाता है , उसे ‘फॉली साउं ड’ भी कहते हैं, जैस-े िरवाजे
की आवाज, जूते, घड़ी, बतति, पािी इत्यादि की वो आवाजें जो हमारे पररवेश में सहज रूप से
उपन्थथत रहती हैं। कई बार शॉि लेते समय यह आवाज थपष्ट्ि रूप से कैमरे में िजत िहीं हो
पाती, इससलए इदहें जरूरत के मुताब्रबक िकली चीजों के जररये बाि में ररकॉडत ककया जाता है
और एडडदिंग के समय शॉि के साथ समक्स ककया जाता है । ससिेमा में पररवेश को जीवंत करिे
वाला ये ‘फॉली साउं ड’ दृश्य को सजीव बिा िे ता है इससलए इिके महत्त्व को कभी िकारा िहीं
जा सकता है । यहााँ तक कक जब ससिेमा का आरं सभक काल था और ‘फॉली साउं ड’ की तकिीक
इजाि िहीं हुई थी, तब भी ससिेमा के मूक धचत्रें के साथ पाश्वत संगीत दिया जाता था, क्यूंकक वो
दृश्य को एक गनतमयता और जीवंतता प्रिाि करते थे। आजकल की अधधकांश एक्शि, धिलर,
सथपें स, हॉरर और साइंस-कफक्शि कफल्मों के जररये इिके महत्त्व को समझा जा सकता है ।

2.8.1 अभ्याि के सलए प्रश्न

प्रश्ि (क) निम्िसलखखत प्रश्िों के अधधकतम िो पंन्क्तयों में उत्तर िीन्जए।

1. ससिेमा में प्रकाश-संयोजि ककतिे प्रकार का होता है , कृपया िाम बताइए?

2. ‘फॉली साउं ड’ से आप क्या समझते हैं?

प्रश्ि (ख) निम्िसलखखत कथिों पर सही/गलत के निशाि लगाएं।

1. ससिेमा में पररवेश को जीवंत करिे वाला ये ‘फॉली साउं ड’ दृश्य को सजीव बिा िे ता है ।
(सही/गलत)

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2. ससिेमा में प्रकाश संयोजि का ववशेष महत्त्व िहीं है । (सही/गलत)

2.9 सिनेमा के प्रकाि

भारतीय ससिेमा को कहािी के रीिमें ि औत प्रथतनु त के सलहाज से िो भागों में ववभान्जत


ककया जा सकता है , एक- व्यावसानयक ससिेमा और िस
ू रा- समािांतर ससिेमा। इस बात को याँू
समझा जा सकता है कक ककसी भी कहािी पर कुछ ‘सेि’ फॉमल
ूत ों के दहसाब से जब कफल्म बिायीं
जाती है , न्जसका उद्िे श्य ससफत मि
ु ाफा कमािा होता है , तो उसे हम व्याविानयक सिनेमा के वगत
में रखते हैं। जबकक ककसी भी संजीिा मद्
ु िे पर यथाथतपरक ढं ग से बिायी कफल्म को हम
िमानांति सिनेमा के वगत में रख सकते हैं, ऐसी कफल्म का उद्िे श्य मि
ु ाफा कमािा ि होकर
आम िशतकों का वैचाररक और संवेििात्मक ववकास करिा होता है । इि िोिों से अलग कुछ
कफल्में प्रादत ववशेष की भाषा, संथकृनत और जीवि शैली को ध्याि में रखकर उि ववशेष िशतकों
के सलए ही बिायी जाती हैं, उदहें हम ‘क्षेत्रीय ससिेमा’ कह सकते हैं। क्षेत्रीय ससिेमा का प्रसार-
प्रचार कई बार बस उसी राज्य ववशेष तक ही सीसमत रहता है । इसके िशतकों की संख्या
तुलिात्मक रूप से व्यावसानयक ससिेमा से कम रहती है । क्षेत्रीय ससिेमा की ववषय-वथतु में
व्यावसानयक और समािांतर िोिों ससिेमा का पयातप्त प्रभाव रहता है ।

व्याविानयक सिनेमा- भारत में हर साल सभी भाषाओं की कुल 1600 से ज्यािा कफल्में
ररलीज होती हैं। व्यावसानयक या मुख्य धारा के ससिेमा से आशय उि ‘फॉमल
ूत ा कफल्मों’ से है ,
न्जिमें एकसाथ एक्शि, कॉमेडी, रोमांस, सथपें स, मेलोड्रामा जैसे सारे मसाले डाले जाते हैं। इि
‘फॉमूल
त ा कफल्मों’ में िशतकों की मिोववृ त्त को ध्याि में रहकर एक्शि, कॉमेडी, रोमांस, सथपें स,
मेलोड्रामा सब-कुछ डाला जाता है , न्जिका कई बार कफल्म की कहािी से कोई सीधा संबंध िहीं
होता है । ये कफल्में ि केवल संगीतमय होती हैं बन्ल्क कई बार इिके दृश्य अताककतक भी होते हैं,
इस तरह के ससिेमा को हम व्यावसानयक ससिेमा कह सकते हैं। वततमाि में व्यावसानयक ससिेमा
में आइिम िंबर, दहंसा और उत्तेजक दृश्यों की एक खास जगह बि गई है। भारत में दहंिी,
तसमल, तेलगू, बांग्ला, और भोजपुरी भाषा में बििे वाली अधधकांश कफल्म को हम श्रेणी में रख
सकते हैं। व्यावसानयक ससिेमा में कफल्मों का रें ड िशतकों की पसंि और झक
ु ाव के दहसाब से
बिलता भी रहता है । क्षेत्रीय भाषाओं की कफल्मों पर भी व्यावसानयक ससिेमा की ‘फॉमूल
त ा कफल्मों’
का असर सहज ही िे खा जा सकता है । हालााँकक वपछले िो िशक से कुछ िए आये कफल्मकारों िे
व्यावसानयक और समािांतर ससिेमा के बीच की रे खा को हल्का करिे की कोसशश की है , लेककि
फॉमूल
त ाबद्ध ससिेमा अभी भी अपिी जगह बिाये हुए है । दहंिी ससिेमा की आज भी अधधकांश
प्रिसशतत होिे वाली कफल्में ‘फॉमूल
त ा कफल्में ’ ही हैं।

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िमानांति सिनेमा- समािांतर ससिेमा से आशय भारतीय ससिेमा में ऐसे जि सरोकारी
और यथाथतवािी कला आंिोलि से है , न्जिमें समाज के यथाथत जीवि का ि केवल यथावत
कफल्मांकि हुआ, बसलक व्यावसानयक ससिेमा के ववशुद्ध मिोरं जि और अनतरं जि से युक्त
कहानियों से अलग आम जि की कहानियों को प्रमुखता से जगह समली। इस ससिेमा िे कथ्य
और सशल्प िोिों थतर पर ससिेमा में िए प्रयोग भी ककये। 1925 में बाबूराव पें िर की कफल्म
‘साहूकारी पाश’ और उसके बाि आई 1937 में आई ‘िनु िया ि मािे’ कफल्म को भारत में
समािांतर ससिेमा की एकिम शुरुआती कफल्म के रूप में िे खा जा सकता है ।

भारतीय ससिेमा में सामान्जक और यथाथतवािी आंिोलि के रूप में ख्वाजा अहमि अब्बास
की कफल्म ‘धरती के लाल’ (1946) और चेति आिंि द्वारा की कफल्म ‘िीचा िगर’ (1946) को
िे खा जा सकता है । इि कफल्मों िे उस समय अंतरराष्ट्रीय थतर पर अपिी उपन्थथनत िजत की
थी।

1950 से 1970 के िशक के िौराि कई िए कफल्मकारों िे िव-यथाथतवािी कलात्मक


ससिेमा को पूरी प्रनतबद्धता के साथ िशतकों के सामिे रखा। इिमें सत्यन्जत रे , ऋन्त्वक घिक,
मण
ृ ाल सेि, तपि ससदहा, ख्वाजा अहमि अब्बास, बद्
ु धिे व िासगुप्ता, चेति आिंि, गुरुित्त और
वी- शांताराम, आदि कफल्मकार प्रमख
ु हैं। इिकी कफल्मों िे भारत में सचेति, यथाथतवािी कला
ससिेमा की ि केवल िींव रखी बसलक इिकी कफल्मों िे अंतरराष्ट्रीय थतर पर भी कई पुरथकार
जीते। इस िौर की समिांतर ससिेमा की प्रमुख कफल्मों में- पाथेर पांचाली, अपरान्जतो, अपुर
संसार, िो बीघा जमीि, प्यासा, िागररक, अजांब्रत्रक, असभजि आदि।

1970 से 1980 के बीच समािांतर ससिेमा की इस परं परा को कई प्रनतभाशाली


कफल्म्कारे समलें न्जिमे प्रमुख हैं- श्याम बेिेगल, मखण कॉल, अपणात सेि धगररश कासरवल्ली,
अडूर गोपालकृष्ट्णि रान्जंिर ससंह बेिी, सईि समजात, गोववदि निहलािी, कुमार साहिी,जी
अरववदिि, गुलजार आदि। इस िौर की प्रमुख कफल्में थीं- उसकी रोिी, आषा ढ का एक दिि,
अंकुर, निशांत, 36 चौरं गी लेि, माया िपतण, िवु वधा, थवयंवरम, िथतक, िीक्षा आदि।

1990 के बाि से समािांतर ससिेमा की धारा अवरुद्ध हो गयी, बढते पाँूजी के िबाव और
लगातार कम होते सरकारी सहयोग के कारण प्रनतबद्ध कफल्मकारों के सलए ससिेमा बिािा
लगातार मुन्श्कल होता गया। हालााँकक िई आई कफल्मकारों की पीढी िे समािांतर ससिेमा के बीच
की रे खा को धसू मल करते हुए कुछ ऐसी कफल्में बिायीं न्जदहें िशतकों िे भी पयातप्त सराहा ऐसे
कफल्मकारों में प्रमुख हैं- राम गोपाल वमात, मखणरत्िम, ररतुपणों घोष, ववशाल भारद्वाज, राजू
हीरािी, अिुराग कश्यप, ववधु वविोि चोपड़ा, आसमर खाि आदि।

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क्षेत्रीय सिनेमा- क्षेत्रीय ससिेमा से तात्पयत उस ससिेमा से है जो ककसी एक राज्य ववशेष
की भाषा, संथकृनत और झक
ु ाव को ध्याि में रखकर बिाया जाता है , साथ ही उसके िशतकों का
िायरा भी सीसमत ही होता है । उसका प्रिशति भी अखखल भारतीय थतर पर िहीं हो पाता है ,
इसके बावजूि क्षेत्रीय ससिेमा को पयातप्त लोकवप्रयता हाससल है । भारत में बांग्ला, तसमल,
मलयालम, मराठी और कदिड़ ससिेमा िे ि केवल िे श में बसलक वविे श में भी ववशेष उपन्थथनत
िजत की है । ववशेषरूप से बांग्ला कफल्मकारों िे अपिे क्राफ्ि की वजह से अंतरराष्ट्रीय थतर पर
प्रससद्ध िजत की है । भारत में लगभग बीस भाषाओं में ससिेमा बिता है । न्जिमें दहंिी के अलावा
बांग्ला, तसमल, मराठी, तेलगू, मलयालम, कदिड़, उडड़या, पंजाबी, भोजपुरी, गुजराती, छतीसगढी,
अससमया प्रमख
ु हैं। 1932 में बांग्ला सिनेमा को हॉलीवुड की तजत पर िॉलीवुड पक
ु ारा जािे लगा।
समािांतर ससिेमा आंिोलि की ववधधवत शुरुआत भी बांग्ला ससिेमा से ही हुई। बांग्ला ससिेमा के
प्रमुख कफल्मकारों में - सत्यन्जत रे , मण
ृ ाल सेि, ऋन्त्वक घिक, अपणात सेि, ररतुपणों घोष आदि
हैं। कन्नड़ सिनेमा के प्रमख
ु कफल्मकारों में-धगररश किातड, धगररश कासरवल्ली,पी- शेषाद्री, जी- वी
अय्यर प्रमख
ु हैं। समािांतर ससिेमा आंिोलि में कदिड़ ससिेमा का भी योगिाि रहा है।
मलयालम कफल्म उद्योग को मौलीवुड भी कहा जाता है । यह भारत का चौथा सबसे बड़ा कफल्म
उद्योग है । मलयालम ससिेमा सामान्जक सरोकारों वाली कफल्में बिािे के सलए जािा जाता है ।
1928 में बिी ‘ववगत कुमारि’ से मलयालम ससिेमा की शुरुआत मािी जाती है । प्रमुख
कफल्मकारों में- अडूर गोपालकृष्ट्णि, जी- अरववदिि, शाजी एि-करुण, िी-वी- चंद्रि का िाम
सलया जा सकता है । मिाठी सिनेमा का आरं भ िािा साहे ब फाल्के द्वारा निसमतत भारतीय ससिेमा
की पहली मूक कफल्म ‘राजा हररश्चंद्र’ 1913 से मािा जाती है । तब से लेकर अब तक मराठी
ससिेमा िे उत्तरोत्तर ववकास ककया है । मराठी ससिेमा के कई कफल्मकारों िे दहंिी ससिेमा को भी
समद्
ृ ध ककया है । मराठी ससिेमा में भी निरं तर सामान्जक मुद्िों पर उत्कृष्ट्ि कफल्में बिती रही
हैं। तसमल ससिेमा िक्षक्षण भारतीय ससिेमा में सबसे बड़ा कफल्म उद्योग है । 1960 में तसमल और
तेलगू िोिों भाषाओं में पहली बोलती कफल्म ‘कासलिास’ ररलीज हुई। तसमल ससिेमा को कौलीवुड
भी कहते हैं। एक समय दहंिी ससिेमा से प्रभाववत होिे वाला तसमल ससिेमा आज दहंिी ससिेमा
को अपिे क्राफ्ि से लगातार प्रभाववत कर रहा है । तसमल ससिेमा के कई प्रनतभाशाली संगीत
नििे शकों िे भी दहंिी ससिेमा की संगीत परं परा को िब्बे के िशक में प्रभाववत ककया। न्जिमें
इलैयाराजा और ए-आर- रहमाि प्रमुख हैं। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कक भारत में कफल्म
निमातण ि केवल ववववध भाषाओं में निरं तर प्रगनतशील है बसलक भारतीय जीवि शैली और
अलग-अलग रूप-रं ग में लगातार प्रथतुत भी कर रहा है । ससिेमा िरअसल अपिे समय के मिुष्ट्यों
का जीवंत िथतावेजीकरण करता है । भारत के संिभत में यह काम ससिेमा िे आरं भ से ही ककया
है ।

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2.9.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्ि (क) निम्िसलखखत कथिों पर सही/गलत के निशाि लगाइए।

1. बंगला ससिेमा को हॉलीवुड की तजत पर िॉलीवुड कहा जाता है । (सही/गलत)

2. मलयालम ससिेमा में सामान्जक कफल्में अधधक बिती हैं। (सही/गलत)

3. मराठी ससिेमा का आरं भ िािा साहे ब फाल्के से िहीं हुआ है । (सही/गलत)

प्रश्ि (ख) निम्िसलखखत शब्िों से ररक्त थथाि की पूनतत कीन्जए।

1. ककसी भी कहािी पर कुछ ‘सेि’ फॉमल


ूत ों के दहसाब से जब कफल्म बिायी जाती है ,
न्जसका उद्िे श्य ससफत ------------कमािा होता है , तो उसे हम व्यावसानयक ससिेमा के वगत
में रखते हैं। (मुिाफा, िाम, शोहरत)

2. समािांतर ससिेमा से आशय भारतीय ससिेमा में ऐसे जि सरोकारी और यथाथतवािी ------
-------आंिोलि से है । (कला, धचत्र, मूनतत)

3. बांग्ला ससिेमा के प्रमख


ु कफल्मकारों में ------------ मण
ृ ाल सेि, ऋन्त्वक घिक, अपणात
सेि, ररतुपणों घोष आदि हैं। (सत्यन्जत रे , अमोल पालेकर, राजू हीरािी)

अभ्याि के सलए प्रश्न

प्रश्ि (क) निम्िसलखखत प्रश्िों के उत्तर िीन्जए।

1. ससिेमा के ववषय में ककसी प्रससद्ध ससद्धांतकार के ववचार सलखखए।

2. ससिेमा की भाषा के बारे में समझाइए।

3. शॉि ककतिे प्रकार के होते हैं, उिके िाम बताइए?

4. माथिर शॉि से आप क्या समझते हैं?

5. बडत आई ववव्यू शॉि से आप क्या समझते हैं?

6. शॉि किअवे से आप क्या समझते हैं?

7. ससिेमा में प्रकाश-संयोजि ककतिे प्रकार का होता है , कृपया िाम बताइए?

8. समािांतर ससिेमा ककस तरह से मुख्य धारा के ससिेमा से अलग है , समझाइए।

9. क्षेत्रीय ससिेमा की न्थथनत पर प्रकाश डासलए।

10. व्यावसानयक ससिेमा से आप क्या समझते हैं?

30
3. हहन्दी सिनेमा औि उिकी ववषयवाि कोहटयााँ

डॉ. जवरीमल्ल पारख


प्रोफेसर (सेवानिवत्त
ृ )
इन्दिरा गााँधी राष्ट्रीय मुक्त ववश्वववद्यालय

3.1 प्रस्तावना

यह पाठ दहंिी ससिेमा और उसकी ववषयवार कोदियों के बारे में है । इससे पहले के पाठ
में आपिे ससिेमा का सामादय पररचय और उसकी ववकास यात्रा के बारे में अध्ययि ककया था।
अब आप इस पाठ में दहंिी ससिेमा के बारे में जािकारी प्राप्त करें गे। दहंिी ससिेमा का इनतहास
उतिा ही पुरािा है न्जतिा भारतीय ससिेमा का। भारत में कथा क़िल्मों के निमातण की शुरुआत
1913 में ‘राजा हररश्चंद्र’ से हुई थी, जो एक मूक क़िल्म थी। इससलए उसे ककसी भाषा ववशेष की
श्रेणी में िहीं रखा जा सकता। पहली सवाक क़िल्म ‘आलमआरा’ का निमातण 1931 में हुआ था
और इसकी भाषा उित-ू दहंिी थी, न्जसे दहंिथ
ु तािी भी कहा जाता है । दहंिी, उित ू और दहंिथ
ु तािी इि
तीिों श्रेखणयों में आिे वाली क़िल्मों को इिमें से ककसी भी श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकक
बोलिे में इि तीिों भाषा रूपों में अंतर करिा बहुत मुन्श्कल है । हम यहााँ इि तीिों श्रेखणयों में
आिे वाली क़िल्मों को दहंिी क़िल्में ही कहें गे।

भारत में कथात्मक ससिेमा की शुरुआत हुए 107 साल हो चुके हैं और दहंिी क़िल्मों का
इनतहास भी िब्बे साल पुरािा है । भारत में लगभग पच्चीस भाषाओं में क़िल्में बिती हैं, इिमें से
दहंिी एक है । लेककि दहंिी क़िल्मों का महत्त्व इस दृन्ष्ट्ि से अधधक है कक इसकी लोकवप्रयता दहंिी
भाषी क्षेत्रों तक सीसमत िहीं है । ससिेमा की लगभग सभी प्रववृ त्तयों, ववषयों और आंिोलिों को
दहंिी ससिेमा में िे खा जा सकता है । इस पाठ में हम दहंिी ससिेमा की ववसशष्ट्िता और महत्त्व पर
ववचार करें गे। आज़ािी से पहले और आज़ािी के बाि के ववकास का संक्षक्षप्त लेखा-जोखा भी
प्रथतुत करें गे। साथ ही, दहंिी ससिेमा के वततमाि िौर के बारे में भी चचात करें गे। दहंिी ससिेमा के
ववकास के साथ-साथ उसके अब तक के इनतहास का ववषयवार ववभाजि कर उस पर भी चचात
करें गे ताकक आप समझ सकें कक दहंिी में ककस तरह की क़िल्में बिती रही हैं और उिका क्या
महत्त्व है ।

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3.2 उद्दे श्य

इस इकाई में आप दहंिी ससिेमा और उसकी ववषयवार कोदियों के बारे में जािकारी प्राप्त
करें गे। इसको पढिे के बाि आप:

• दहंिी ससिेमा के उिय और उसकी पहचाि के बारे में बता सकेंगे,


• थवतंत्रता पव
ू त और थवतंत्रता के बाि के दहंिी ससिेमा के बारे में उल्लेख कर सकेंगे,
• दहंिी ससिेमा के वततमाि िौर के बारे में जािकारी िे सकेंगे, और
• दहंिी ससिेमा की ववषयवार कोदियों का संक्षक्षप्त पररचय िे सकेंगे।

3.3 हहंदी सिनेमा का आिं भ औि उिकी ववसिष्टता

उत्तर-पन्श्चम भारत में जब ससिेमा के प्रिशति की शरु


ु आत हुई उससे पहले इस क्षेत्र में पारसी
रं गमंच लोकवप्रय था। इस रं गमंच को पारसी इससलए कहा जाता है क्योंकक इसकी शरु
ु आत पारसी
लोगों िे की थी, लेककि इिके द्वारा खेले जािे वाले िािक दहंिी-उित ,ू गज
ु राती और मराठी में
होते थे। लेककि पारसी रं गमंच के दहंिी-उित ू िािक िरअसल एक समलीजल
ु ी भाषा के िािक थे
न्जदहें बाि में दहंिथ
ु तािी के तौर पर जािा गया। पारसी रं गमंच पर खेले जािे वाले िािक
आमतौर पर मिोरं जि प्रधाि होते थे और उिके कथािक पौराखणक, ऐनतहाससक और काल्पनिक
होते थे। िाच, गािे और प्रभावशाली संवाि इि िािकों की खास ववशेषता थी। जब बीसवीं सिी
के िस
ू रे िशक में क़िल्मों का निमातण शरू
ु हुआ तो धीरे -धीरे इि िािकों की लोकवप्रयता कम होिे
लगी और क़िल्मों की लोकवप्रयता बढिे लगी। पारसी रं गमंच की कंपनियााँ लेखक और कलाकार
क़िल्मों से जड़
ु िे लगे। वे ही कथािक जो कल तक पारसी रं गमंच पर लोकवप्रय थे, वे अब
क़िल्मों के सलए भी अपिाए जािे लगे। यही िहीं पारसी िािकों की तरह क़िल्मों में भी िाच-
गािों की भरमार होिे लगी। इस तरह दहंिी ससिेमा िे पारसी रं गमंच की परं परा को कमोबेश
यथावत अपिा सलया और उसी का ववकास ककया।

पारसी रं गमंच के िािकों की परं परा की शरु


ु आत उदिीसवीं सिी के मध्य से हुई थी, जब
लखिऊ के शायर और लेखक सैयि आगा हसि अमाित लखिवी िे 1851 में ‘इदिर सभा’
िामक गीनतिाट्य सलखा था। यह िािक इतिा लोकवप्रय हुआ कक लंबे समय तक यह पारसी
रं गमंच पर खेला जाता रहा और जो िये िािक सलखे गये वे भी ‘इदिर सभा’ की शैली में सलखे
गये। अमाित के इस िािक पर यदि एक ओर पारसी परं परा का प्रभाव था, तोिस
ू री ओर लोक
िािकों की भारतीय परं परा से भी वह अछूता िहीं था। भारत की लगभग सभी लोक िाट्य
शैसलयों में गीत, संगीत और ित्ृ य का समावेश जरूर होता है । पारसी रं गमंच िे इिको अपिािे
के साथ-साथ अपिी मेलोड्रामाई शैली भी ववकससत की। मेलोड्रामा िािक का ऐसा रूप है न्जसमें
उत्तेजिापण
ू त िािकीयता और भावुकता का समावेश होता है । इिके संयोजि के सलए गीत, संगीत

32
और भावपूणत संवािों का सहारा सलया जाता है । दहंिी ससिेमा िे इस शैली को ि केवल अपिाया
बन्ल्क उसका ववकास भी ककया। दहंिी ससिेमा की लोकवप्रयता की बड़ी वजह यही है । यह परं परा
पन्श्चम की यथाथतवािी परं परा से सभदि है । यहााँ तक कक दहंिी ससिेमा िे अपिे समय के यथाथत
को भी कमोबेश इसी शैली में असभव्यक्त ककया।

3.3.1 बोध प्रश्न


1. दहंिी ससिेमा िे रं गमंच की ककस परं परा को अपिायाॽ
(i) अंग्रेजी रं गमंच
(ii) लोक रं गमंच
(iii) पारसी रं गमंच
(iv) ककसी को भी िहीं ( )

3.4 स्वतंत्रता-पूवय हहंदी सिनेमा

1913 से 1931 के मध्य बिी लगभग 1300 मूक क़िल्मों को ककसी भाषा ववशेष की श्रेणी
में िहीं रखा जा सकता। भाषायी क़िल्मों के इनतहास की शरु
ु आत 1931 में बिी सवाक क़िल्म
‘आलमआरा’ से हुई जो पहली दहंिथ
ु तािी भाषा की क़िल्म थी। इस क़िल्म का नििे शि आिे सशर
ईरािी िे ककया था। इसका कथािक ऐनतहाससक कल्पिा पर आधाररत था और इसमें कुल 12
गािे थे। इस क़िल्म से ही गीत, संगीत और ित्ृ य भारतीय ससिेमा के अनिवायत अंग बि गये।
1931 में कुल 28 सवाक क़िल्में बिी थीं न्जिमें से 23 क़िल्में दहंिी की थीं। इस िौर में बििे
वाली क़िल्मों के ववषय धासमतक, पौराखणक, ऐनतहाससक और सामान्जक थे। इस िौर में मेलोड्रामाई
और यथाथतवािी िोिों तरह की क़िल्में बिीं। हालांकक यथाथतवािी क़िल्मों में भी गीत और संगीत
अवश्य होते थे। 1930 के िशक तक आते-आते राष्ट्रीय मुन्क्त आंिोलि ि ससफत व्यापक
जिआंिोलि में बिल गया था बन्ल्क ककसाि, मजिरू , िसलत और न्थत्रयों की भागीिारी भी बढ
रही थी। यह एहसास भी बढ रहा था कक ससफत राजिीनतक मन्ु क्त ही पयातप्त िहीं है बन्ल्क
सामान्जक मुन्क्त भी जरूरी है । उस समय राजिीनतक क़िल्म बिािा आसािि हीं था, लेककि
सामान्जक सवालों पर क़िल्म बिािे पर कोई रोक-िोक िहीं थी। दयूधथयेिसत िे 1933 में
‘राजरािीमीरा’ और 1934 में ‘चंडीिास’ क़िल्में बिायी न्जिमें समाज सुधार का संिेश भी निदहत
था। 1933 में ही दयूधथयेिसत िे आगाहश्र कश्मीरी द्वारा सलखखत ‘यहूिी की लड़की’ क़िल्म बिायी
थी न्जसमें सांप्रिानयक सद्भाव का संिेश दिया गया था। प्रभात क़िल्म्स की ‘अमत
ृ मंथि’ (1934)
में पशु बसल का ववरोध ककया गया था। इसी साल मोहि भविािी िे ‘मजिरू ’ क़िल्म बिायी थी
न्जसका लेखि प्रेमचंि िे ककया था। 1936 में बोंबेिॉकीजिे िसलत समथया पर ‘अछूतकदया’
क़िल्म बिायी थी। हालांकक इस िौर में मिोरं जि प्रधाि क़िल्में ही अधधक बिीं। 1943 में बिी
‘ककथमत’ अत्यंत लोकवप्रय क़िल्म थी जो कलकत्ता में लगातार तीि साल तक चलती रही थी।

33
1940-50 के िशक में कई महत्त्वपूणत क़िल्मकार दहंिी ससिेमा के क्षेत्र में सकक्रय हुए न्जिमें
वी. शांताराम (िनु िया ि मािे, आिमी, डॉकोििीस की अमर कहािी), सोहराबमोिी (पक
ु ार,
ससकंिर, पथ्
ृ वीवल्लभ), महबूबखाि (औरत, अिमोलघड़ी, िज़मा), ब्रबमलराय (हमराही), केिारशमात
(धचत्रलेखा), असमयचक्रवती (अिजाि, बसंत), ख्वाजाअहमि अब्बास (धरती के लाल), चेतिआिंि
(िीचा िगर) आदि के िाम ववशेष रूप से उल्लेखिीय हैं। इि क़िल्मकारों िे जोभी क़िल्में बिायीं
उिका कोई ि कोई सामान्जक मकसि अवश्य होता था। इस सामान्जक मकसि को एक ठोस
वैचाररक दिशा आज़ािी के आंिोलि के साथ-साथ 1930 के बाि उभरे प्रगनतशील सादहन्त्यक और
सांथकृनतक आंिोलि िे भी िी थी। 1946 में ख्वाजा अहमि अब्बास के नििे शि में बिी ‘धरती
के लाल’ का निमातण भारतीय जि िाट्यसंघ (इप्िा) िे ककया था न्जसमें बंगाल के िसु भतक्ष को
ववषय बिाया गया था। इसी वषत चेति आिंि के नििे शि में बिी क़िल्म ‘िीचािगर’ में भी इप्िा
से जुड़े कलाकारों का सहयोग था। प्रगनतशील कलाकारों के ससिेमा में सकक्रय होिे िे आज़ािी के
बाि के िो िशकों तक दहंिी ससिेमा को प्रगनतशील और जिोदमुखी दिशा प्रिाि की।

3.4.1 बोध प्रश्न

1. प्रेमचंि िे दहंिी की कौि सी क़िल्म का लेखि ककया थाॽ

(i) मजिरू
(ii) पुकार
(iii) औरत
(iv) िीचािगर ( )

2. निम्िसलखखत क़िल्मों को उि क़िल्मकारों से समलाि करें न्जदहोंिे उिका नििे शि


ककया था:

(i) धचत्रलेखा (क) वी.शांताराम


(ii) धरती के लाल (ख) केिार शमात
(iii) आिमी (ग) महबूब
(iv) अिमोल घड़ी (घ) ख्वाजा अहमि अब्बास

3.5 स्वातंत्र्योति हहंदी सिनेमा

आज़ािी के बाि के लगभग डेढ िशकों की क़िल्मों पर िेहरू युग की ववचारधारा का गहरा
प्रभाव था। ये क़िल्में भी मेलोड्रामाई शैली में बिायी गयी थीं लेककि इस शैली िे क़िल्मों के
यथाथतवािी कथ्य को कमजोर िहीं ककया था बन्ल्क उसको अधधक संप्रेषणीय बिाया था। इस िौर
की क़िल्मों में मध्यवगत के साथ-साथ समाज के पििसलत वगों के जीवि के संघषों और बिलावों

34
को पेश ककया गया था। यह वह िौर था जब दहंिी में कलात्मक और लोकवप्रय क़िल्मों का
निमातण अपिे उत्कषत पर था। इसिौर में दहंिी में िहे ज, िो आाँखें बारह हाथ, िवरं ग
(वी.शांताराम); जोगि (केिारशमात); आवारा, बूिपासलश, जागते रहो, अब दिल्ली िरू िहीं
(राजकपूर); आि, अमर, मिर इंडडया (महबूब); आिंिमठ, काबुलीवाला (हेमेिगुप्ता); िाग,
कठपुतली, सीमा (असमयचक्रवती); बैजूबावरा (ववजय भट्ि); िायरा (कमाल अमरोही);
िोबीघाज़मीि, सुजाता, िे विास, यहूिी, बंदििी (ब्रबमलराय); मुदिा, शहर और सपिा, चार दिल
चार राहें , आसमाि महल (ख्वाजा अहमि अब्बास), ियािौर, धूल का फूल, धमतपुत्र
(बी.आर.चोपड़ा/यश चोपड़ा); सोिे की धचडड़या (शादहि लतीफ); अिुराधा, अिाड़ी (ऋषीकेश
मुखजी); मुगले आज़म (के. आससफ) जैसी सामान्जक दृन्ष्ट्ि से जागरूक और प्रगनतशील क़िल्मों
का निमातण हुआ था। इि क़िल्मों में सामान्जक समथयाओं के संिभत में आिशत और यथाथत,
भाविा और कत्ततव्य और परं परा और प्रगनत का संघषत थपष्ट्ि रूप से िे खा जा सकता था।

आज़ािी के बाि िे श के िवनिमातण की चुिौनतयााँ और उम्मीिों की असभव्यन्क्त िेहरू युग की


समान्प्त के साथ कमजोर पड़िे लगी थीं। पूंजीवािी ववकास के न्जस राथते पर िे श चल रहा था,
उसिे व्यावसानयक मािससकता को बढावा दिया। इसका असर क़िल्मों पर भी दिखायी िे िे लगा।
1960 के बाि के िौर में ससिेमा में सामान्जक प्रश्ि हासशए पर पहुाँचिे लगे। उसकी जगह प्रेम
ब्रत्रकोण वाली कहानियों िे ले ली न्जिमें खलिायक की मौजूिगी जरूरी हो गयी थी। िाच-गािे
और मारधाड़ से भरपूर इि क़िल्मों में जीवि की कोई सच्चाई िज़र िहीं आती थी। केवल सतही
मिबहलाव ही ऐसी क़िल्मों का उद्िे श्य होता था। उछल-कूि करिे वाले असभिेता लोकवप्रय होिे
लगे। असभिेब्रत्रयााँ भी ससफत अपिे ग्लैमर पर ही ध्याि िे ती थीं। यह दहंिी ससिेमा का पति काल
था।

िमानांति सिनेमा

इसकी प्रनतकक्रया होिा थवाभाववक था। इसी िौर में पूणे में प्रभात थिुडडयो के पररसर में
भारत सरकार िे क़िल्म और िे लीववजि संथथाि की थथापिा की। इस संथथाि के माध्यम से
असभिेता, नििे शक, छायाकार, साउं डररकाडडतथि और पिकथा लेखकों की एक ियी युवा पीढी
सामिे आयी। वहााँ ववद्याधथतयों को ववश्व का बेहतरीि ससिेमा िे खिे और उिसे सीखिे का मौका
समला। ितीजा यह हुआ कक वे यह समझिे में कामयाब हुए कक दहंिी का व्यावसानयक ससिेमा
उिका आिशत िहीं हो सकता। वे अलग तरह की क़िल्म बिािा चाहते थे और 1970-80 के िशक
में भारत की लगभग सभी प्रमुख भाषाओं में इि िये क़िल्मकारों िे ियी तरह की क़िल्में बिायीं
और ससिेमा का एक समािांतर आंिोलि खड़ा कर दिया। इसे समािांतर ससिेमा िाम दिया गया।
इस आंिोलि पर इिली के िवयथाथतवाि, फ्ांस के दयूवेव के साथ-साथ बांग्ला और मलयालम के
उि क़िल्मकारों का भी प्रभाव था जो पहले से ही िये तरह का ससिेमा बिा रहे थे। इिमें

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सत्यन्जत राय, ऋन्त्वक घिक, मण
ृ ाल सेि, अिरू गोपाल कृष्ट्णि और जी.अरववंिि प्रमुख थे।
ियी पीढी के इि क़िल्मकारों को सरकार की ओर से भी प्रोत्साहि समला। उदहें क़िल्म बिािे के
सलए सरकार की ओर से अिुिाि समला न्जससे उिके सलए िये तरह का ससिेमा बिािा संभव हो
सका। इस िौर के प्रमख
ु दहंिी क़िल्मकारों में बासु भट्िाचायत (तीसरी कसम, अिुभव, आववष्ट्कार),
श्याम बेिेगल (अंकुर, निशांत, मंथि, भूसमका, जि
ु ूि, मंडी), गोववंि निहलािी ( आक्रोश,
अधतसत्य, पािी, तमस), बासुचिजी (सारा आकाश, रजिीगंधा, छोिी सी बात), सईि अख्तर समज़ात
(अरववंि िे साई की अजीब िाथताि, अल्बितवपंिो को गथ
ु सा क्यों आता है , मोहि जोशी हान्जर हो),
गौतम घोष (पार, अंतजतली यात्रा), प्रकाश झा ( िामुल, पररणनत), कंु िि शाह (जािे भी िो यारो),
मखण कौल (उसकी रोिी, िवु वधा, सतह से उठता आिमी), कुमार शहािी (माया िपतण, तरं ग,
ख्याल गाथा), केति मेहता (भविीभवई, समचत मसाला, माया मेमसाहब), जब्बार पिे ल (सुबह)
आदि कई िाम सलये जा सकते हैं न्जदहोंिे दहंिी ससिेमा को ियी तरह की क़िल्में ब्रबल्कुल ियी
भाषा में प्रिाि की। लेककि यह आंिोलि लंबा िहीं चल पाया। िब्बे के िशक तक आते-आते
सरकार िे ऐसी क़िल्मों को अिुिाि िे िा लगभग बंि कर दिया था। इसका एक कारण कफल्मों
के प्रिशति की समुधचत व्यवथथा का ि होिा भी था।

3.5.1 बोध प्रश्न

4. िेहरू युग के ससिेमा में इिमें से ककि के बीच संघषत की असभव्यन्क्त िहीं हुई।
(i) आिशत और यथाथत
(ii) सत्य और कल्पिा
(iii) प्रगनत और परं परा
(iv) भाविा और कत्ततव्य ( )

5. समािांतर ससिेमा को समािांतर ससिेमा क्यों कहा जाता है ॽ

(i) इिमें ससिेमा की िो धाराएाँ थीं।


(ii) इिमें थत्री और पुरुष को एक िस
ू रे के समािांतर पेश ककया जाता था।
(iii) यह लोकवप्रय धारा के समािांतर कलात्मक क़िल्मों की धारा थी।
(v) इिमें से कोई उत्तर सही िहीं। ( )

3.6 हहंदी सिनेमा का वतयमान दौि

1990 के बाि की पररन्थथनतयों को आमतौर पर भूमंडलीकरण के िौर के रूप में जािा


जाता है । आधथतक उिारीकरण की िीनतयों का प्रभाव सामान्जक प्रश्िों से प्रेररत क़िल्मों पर भी
पड़ा। लेककि ऐसा िहीं था कक इस िौर में अच्छी क़िल्में बििा बंि हो गयी थीं। दहंिी ससिेमा

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आरं भ से ही सांप्रिानयक एकता और सांथकृनतक ववववधता का पक्षधर रहा है। यहााँ तक कक
ववभाजि के समय भी दहंिी ससिेमा अपिे पथ से ववचसलत िहीं हुआ था, लेककि 1990 के बाि
बढती सांप्रिानयकता के िबाव का असर ससिेमा पर भी दिखायी िे िे लगा था। आतंकवाि के िाम
पर अंधराष्ट्रवाि को बढावा िे िे वाली क़िल्मों का रुझाि बढिे लगा था। ‘रोजा’, ‘बोंबे’, ‘सरफरोश’,
‘ए वेडिेथडे’ और इस तरह की बहुत सी क़िल्मों में इसका प्रभाव िे खा जा सकता है । लेककि इसी
िौर में ऐसे बहुत से क़िल्मकार सामिे आये न्जदहोंिे इस िौर की जिववरोधी प्रववृ त्तयों के प्रनत
आलोचिात्मक रुख वाली क़िल्मों का निमातण ककया। ऐसे क़िल्मकारों में ववशाल भारद्वाज
(मक़बूल, ओंकारा, है िर), आशुतोष गोवरीकर (लगाि, थविे स, जोधा अकबर), आसमर खाि (तारे
ज़मीि पर, ससक्रेि सुपरथिार), राकेश मेहरा (रं ग िे बसंती, दिल्ली-6), अिुराग कश्यप (ब्लेक
फ्ाइडे, िे व डी., गैंग्स ऑफ वाथसेपुर), सुजॉय घोष (बिला, कहािी), शुजीत सरकार (वपकु,
ववकीडॉिर, अक्िूबर), दिबाकर बिजी (खोसला का घोंसला, बोंबे िॉकीज), नतंग्मांशु धूसलया (हाससल,
पािससंह तोमर), अिुभव ससदहा (मुल्क, आदित कल 15), िंदिता िास (क़िराक़, मंिो), निसशकांत
कामत (मब
ंु ई मेरी जाि), राहुल ढोलककया (परज़ानिया, लम्हा), िीरज गेयाि (मसाि), ज़ोया
अख्तर (गली बॉय), मेघिा गुलज़ार (तलवार, राजी, छपाक) आदि के िाम उल्लेखिीय हैं। इस
िौर में हमारे समय के लगभग सभी प्रमख
ु राजिीनतक और सामान्जक सवालों को क़िल्मों के
जररए उठािे का साहस और िये प्रयोग करिे की प्रववृ त्त इि क़िल्मों में िे खी जा सकती है ।
हालांकक अब भी ऐसे क़िल्मकार ज्यािा हैं जो अपिे दृन्ष्ट्िकोण में यथा न्थथनतवािी हैं और ऐसी
व्यावसानयक क़िल्में बिािा ही उिका मकसि है , जो लोगों का सतही मिोरं जि करे ।

3.6.1 बोध प्रश्न

6. निम्िसलखखत क़िल्मकारों को उिके द्वारा नििे सशत क़िल्मों से समलाि कीन्जए।

(i) िंदिता िास (क) छपाक


(ii) मेघिा गुलज़ार (ख) मसाि
(iii) नतंग्मांशुधूसलया (ग) क़िराक़
(iv) िीरज गेयाि (घ) हाससल

3.7 हहंदी फ़िल्मों की ववषयवाि कोहटयााँ

मूक ससिेमा के िौर में बििे वाली अधधकतर क़िल्में पौराखणक और धासमतक ववषयों पर होती
थीं। यह प्रववृ त्त सवाक क़िल्मों के आरं सभक िौर में भी िे खी जा सकती थीं। लेककि जैसे मूक
ससिेमा के िौर में ही ‘सावकारी पाश’ (1925) जैसे सामान्जक सवालों पर भी क़िल्में बिीं, वैसे ही
यह प्रववृ त्त बाि में और मजबूत होती गयी। धीरे -धीरे दहंिी ससिेमा में ववषय और ववधा िोिों
दृन्ष्ट्ियों से कई तरह की क़िल्मों का निमातण हुआ। यहां हम वपछले िब्बे साल में बिी दहंिी

37
क़िल्मों पर ववषयवार दृन्ष्ट्ि से ववचार करें गे। ये कुछ प्रमुख ववषय हैं लेककि इसका अथत यह िहीं
है कक इिके अलावा ककसी अदय ववषय पर क़िल्में िहीं बिी हैं। ककसी क़िल्म को ककसी एक
ववषय से बांधकर भी िहीं िे खा जा सकता। एक क़िल्म को कई ववषयों से जोड़कर िे खा जा
सकता है ।

3.7.1 धासमयक-पौिाणिक औि ऐनतहासिक फ़िल्में

िािा साहब फाल्के िे जब ‘राजा हररश्चंद्र’ (1913) क़िल्म बिायी तब उिकी सोच यही
थी कक भारत की धमतभीरु जिता को धासमतक और पौराखणक कथाओं के माध्यम से ही ससिेमा
हाल तक लाया जा सकता है । इसीका ितीजा था कक मूक ससिेमा के पूरे िौर में इसी तरह की
क़िल्में बहुत ज्यािा बिीं। यह प्रववृ त्त सवाक क़िल्मों के आरं सभक िौर में भी बिी रही। ‘सती
साववत्री’, ‘सती अिसूया’, ‘िे वयािी’, ‘द्रौपिी’, ‘सती सल
ु ोचिा’, ‘भक्त ध्रुव’, ‘भक्त प्रहलाि’ जैसी
क़िल्में बिीं और इिके द्वारा िशतकों की धासमतक भाविा का िोहि होता रहा। लेककि इसी
आरं सभक िौर में भन्क्त आंिोलि से जुड़े भक्त कववयों और संतों पर भी कई क़िल्में बिीं।
कलकत्ता के दयूधथयेिसत िे 1933 में मीरा के जीवि पर ‘राजरािी मीरा’ और बांग्ला भक्त कवव
चंडीिास के जीवि पर 1934 में ‘चंडीिास’ क़िल्म बिायी। मीरा पर तसमल और दहंिी में एक और
क़िल्म 1945 में िक्षक्षण में बिी न्जसमें प्रख्यात गानयका एम. एस.सुब्बालक्ष्मी िे मीरा की
भूसमका निभायी थी और मीरा के भजि भी गाये थे। मीरा पर ही 1979 में गुलज़ार िे भी क़िल्म
बिायी न्जसका संगीत पंडडत रववशंकर िे दिया था। कबीर, तुलसीिास, संत ज्ञािेश्वर, आदि कई
अदय भक्त कववयों पर भी क़िल्में बिती रहीं। इस तरह की क़िल्मों में जानत और धमत के आधार
पर भेिभाव की आलोचिा की गयी थी। लेककि अधधकतर धासमतक और पौराखणक क़िल्में िै वीय
चमत्कारों, धासमतक और सामान्जक रूदढयों और अंधववश्वासों का ही प्रचार करती रही हैं। रामायण,
महाभारत और अदय पौराखणक चररत्रों और कथाओं पर बििे वाली इि क़िल्मों का हमेशा से एक
खास िशतक वगत रहा है । कभी-कभी इस तरह की क़िल्में काफी लोकवप्रय भी हो जाती हैं। 1975
में बिी ‘जय संतोषी मां’ ऐसी ही लोककवप्रय क़िल्म थी। धासमतक और पौराखणक कथाओं पर बििे
वाले िे लीववजि धारावादहक भी काफी पसंि ककये जाते हैं।

ऐनतहासिक फ़िल्में

ऐनतहाससक कथािकों पर आधाररत क़िल्में आमतौर पर िो प्रकार की होती हैं। एक


ऐनतहाससक चररत्रों और घििाओं पर आधाररत और िस
ू री ऐनतहाससक कल्पिा पर आधाररत।
ऐनतहाससक घििाओं पर आधाररत क़िल्में भी जरूरी िहीं कक ऐनतहाससक तथ्यों पर आधाररत हों।
मसलि, ‘बैजूबावरा’, ‘मुगले आज़म’, ‘आषाढ का एक दिि’, ‘शतरं ज के खखलाड़ी’, ‘पद्मावत’ आदि
लोकवप्रय क़िल्मों के बहुत से पात्र ऐनतहाससक हैं लेककि उिमें दिखायी जािे वाली घििाएाँ

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इनतहास द्वारा प्रमाखणत िहीं हैं। ज्यािातर वे लोकप्रचसलत िं तकथाओं या कववयों-कथाकारों की
रचिाओं पर आधाररत हैं। ‘धचत्रलेखा’, ‘िवरं ग’, ‘लगाि’ जैसी क़िल्में पूरी तरह काल्पनिक कथाओं
पर आधाररत हैं, लेककि उिके संिभत ऐनतहाससक हैं। ऐनतहाससक क़िल्मों का उििे श्य इनतहास का
यथातथ्य धचत्रण करिा िहीं होता बन्ल्क उिके माध्यम से वततमाि के ककसी प्रश्ि का उत्तर
खोजिा होता है । मसलि, भारत का ववभाजि और सांप्रिानयकता की समथया का उत्तर खोजते हुए
कई क़िल्में बिी हैं न्जिका संिेश दहंि-ू मन्ु थलम भाईचारा है । आज़ािी से पहले बिी ‘पुकार’,
‘हुमाय’ूाँ , ‘शाहजहााँ’ और आज़ािी के बाि बिी क़िल्मों में ‘बैजूबावरा’, ‘अिारकली’, ‘मुगले आज़म’,
‘ताजमहल’ में ि केवल दहंि-ू मुन्थलम भाईचारे का संिेश दिया गया है , बन्ल्क एक राजा से न्जस
तरह के दयाय की अपेक्षा की जाती है , उसको भी ववषय बिाया गया है । महाराणा प्रताप,
सशवाजी, झााँसी की रािी लक्ष्मी बाई, मंगल पांडे, सभ
ु ाषचंद्रबोस, महात्मा गांधी आदि के जीवि
पर बिी क़िल्मों द्वारा िे शभन्क्त का संिेश दिया गया है । ऐसा ही संिेश ‘लगाि’ और ‘पद्मावत’
क़िल्मों द्वारा भी दिया गया है ।

3.7.1.1 बोध प्रश्न

7. ऐनतहाससक क़िल्मों के कथािक ककस तरह के होते हैंॽ

(i) ऐनतहाससक घििाओं और चररत्रों पर आधाररत


(ii) काल्पनिक इनतहास पर आधाररत
(iii) िं तकथाओं और लेखकों की रचिाओं पर आधाररत
(iv) उपयुक्
त त सभी तरह के कथािक ( )

3.7.2 हहंदी सिनेमा में प्रेम िंबंधों की असभव्यक्क्त

सादहत्य की तरह ससिेमा में भी प्रेमकथाओं की असभव्यन्क्त उतिी ही परु ािी है न्जतिा
कक ससिेमा। आमतौर पर दहंिी क़िल्मों में प्रेम को ब्रत्रकोण कथाओं के रूप में पेश ककया जाता रहा
है । िायक, िानयका और खलिायक और@या खलिानयका। िायक और िानयका के समलि में ये
खलपात्र बाधा बिकर उपन्थथत होते हैं, लेककि अंत में िायक और िानयका का समलि हो जाता
है और क़िल्म का सख
ु ि अंत हो जाता है । खलिायक या खलिानयका केवल थत्री-परु
ु ष िहीं होते
वरि वे ककसी ि ककसी बुराई के प्रतीक होते हैं न्जदहें परान्जत करके ही िायक और िानयका
एकिस
ू रे से समल पाते हैं। प्रेम कहािी का तीसरा कोण सिै व खल पात्र ही हो, यह आवश्यक िहीं
है । वह अच्छे चररत्र का पात्र भी हो सकता है । िरअसल, थत्री-परु
ु ष के बीच प्रेम की असभव्यन्क्त
समाज से निरपेक्ष होकर िहीं हो सकती। प्रेम संबंधों पर भी सामान्जक संरचिाओं और परं पराओं
का असर होता है । प्रेम के बीच धमत, जानत और आधथतक व सामान्जक है ससयत का भी असर होता
है । ‘मुगले आज़म’ में अकबर सलीम का वववाह एक किीज़ से करिे के सलए तैयार िहीं होता

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जबकक वह भी उसी धमत की है । ‘बॉबी’ में भी आधथतक और सामान्जक है ससयत िायक-िानयका के
समलि में बाधा बिकर उपन्थथत हो जाते हैं। भारत जैसे परं परावािी समाज में प्रेमवववाह को
प्राय: अच्छा िहीं समझा जाता जबकक दहंिी क़िल्मों में प्रेम और उसके सलए हर तरह का बसलिाि
एक महत्त्वपूणत ससिेमाई रूदढ रहा है ।

आजकल ससिेमा में थत्री-परु


ु ष संबंधों को अधधक जदिल रूप में धचब्रत्रत करिे का प्रयत्ि
भी दिखायी िे ता है । ऐसे प्रयत्िों के पीछे व्यावसानयकता का िबाव भी काम करता रहा है ।
मसलि, वववादहत न्थत्रयों के अदय परु
ु षों से संबंधों को लेकर इधर कई क़िल्में बिी हैं, न्जिमें
सेक्स और दहंसा के मसाले का इथतेमाल ककया गया है । यदि हम दहंिी क़िल्म ‘अिुराधा’, ‘तीसरी
कसम’ और ‘बंदििी’ जैसी क़िल्मों की तुलिा ‘मडतर’, और ‘हवस’ जैसी क़िल्मों से करें तो आसािी
से समझ सकते हैं कक इि बाि की क़िल्मों में मकसि थत्री शरीर के अधधकाधधक प्रिशति और
सेक्स के उदमक्
ु त धचत्रण का रहा है । इसका मतलब यह िहीं है कक संबध
ं ों की जदिलता की तरफ
आज का क़िल्मकार ध्याि िहीं िे ता। महे श मांजरे कर की क़िल्म ‘अन्थतत्व’ और लीिा यािव की
क़िल्म ‘शब्ि’ की तुलिा भले ही ‘तीसरी कसम’ और ‘अिुराधा’ से ि की जा सकती हो लेककि
थत्री के अंतमति को समझिे का प्रयत्ि इिमें अवश्य हैं।

दहंिी ससिेमा िे इधर के वषों में अपिे परं परावािी िरु ाग्रहों से मुन्क्त पािे की कोसशश की
है और वह पहले की तुलिा में अधधक पररपक्व और आधुनिक हुआ है । आज का दहंिी ससिेमा
थत्री पुरुष संबध
ं ों के ज्यािा जदिल रूपों को व्यक्त करिे का साहस कर रहा है । ‘अन्थतत्व’, ‘चांििी
बार’, ‘समथिर एंड समसेजअय्यर’, ‘फायर’, ‘15 पाकत एवेदयू’, ‘रे िकोि’, ‘शब्ि’, ‘हजारों ख्वादहशें ऐसी’,
‘हम-तुम’, ‘सलाम िमथते’, ‘अक्िूबर’ जैसी क़िल्में ससफत हमारे समय के जदिल यथाथत को ही
व्यक्त करिे का प्रयत्ि िहीं करतीं बन्ल्क इिमें प्रेम के धचत्रण की परं परावािी पद्धनत से
छुिकारा पािे का प्रयत्ि भी दिखायी िे ता है ।

3.7.2.1 बोध प्रश्न

8. निम्िसलखखत में से जो कथि सही हो, उिके आगे ‘हां’ और जो गलत हो उिके आगे
‘िहीं’ सलखखए।

(i) माता-वपता द्वारा वववाह को दहंिी ससिेमा में तरजीह िी गयी है । ( )

(ii) दहंिी ससिेमा में प्रेम कथाओं को ब्रत्रकोण प्रेम कथा के रूप में प्रथतुत ककया जाता
रहा है । ( )

(iii) ‘मुगले आज़म’ में सलीम और अिारकली का वववाह धमत की सभदिता के कारण
िहीं हो पाता। ( )

(iv) प्रेम ब्रत्रकोण का तीसरा कोण सिै व खल पात्र होता है । ( )

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3.7.3 िामाक्जक यथाथय िंबंधी फ़िल्में

आमतौर पर यह मािा जाता है कक ससिेमा का यथाथत से कोई संबध


ं िहीं होता, वह ससफत
मिोरं जि के सलए है । यह बात अधधकतर दहंिी क़िल्मों के बारे में सच भी प्रतीत होती है । लेककि
प्रत्येक तरह के ससिेमा का यथाथत से वैसा ही संबंध होता है जैसाकक सादहन्त्यक रचिाओं का
होता है । लेककि यह भी सही है कक सादहत्य की तरह ससिेमा भी यथाथत को उसी रूप में व्यक्त
िहीं करता बन्ल्क क़िल्मकार की सोच और कल्पिा का उसमें बड़ा हाथ होता है । सामान्जक यथाथत
संबंधी क़िल्मों को भी ववषयवार कई कोदियों में ववभान्जत ककया जा सकता है । यहााँ उिमें से
कुछ प्रमुख कोदियों का उल्लेख ककया गया है ।

िमाज िुधाि िंबध


ं ी फ़िल्में

जब सवाक ससिेमा का निमातण शुरू हुआ, तब िे श अंग्रेजों के अधीि था और सेंसरसशप


के कारण क़िल्मकारों के सलए ऐसे ववषयों पर क़िल्म बिािा संभव िहीं था, न्जसमें तत्कालीि
राजिीनतक व्यवथथा की आलोचिा हो। यही वजह है कक उस िौर में ऐसी क़िल्में ज्यािा बिीं
न्जिमें सामान्जक मसले उठाये गये थे। मसलि, 1932 में जब गााँधी और अंबेडकर के बीच पूिा
समझौता हुआ और यह पूरे िे श में चचात का ववषय बिा, तब क़िल्मकारों िे िसलत प्रश्ि को केंद्र
में रखकर कुछ क़िल्में बिायीं। 1936 में बोंबे िॉकीज िे ‘अछूत कदया’ िामक क़िल्म का निमातण
ककया। इसमें एक िाह्मण युवक और िसलत युवती के बीच प्रेम को कहािी का ववषय बिाया
गया था। 1940 में एक और क़िल्म ‘अछूत’ िाम से बिी थी। इस िौर में कई क़िल्में ऐसी बिीं
न्जिमें ववसभदि सामान्जक सवालों को उठाया गया था। मसलि, अिमेल वववाह पर ‘िनु िया ि
मािे’, वैश्याववृ त्त पर ‘आिमी’, सांप्रिानयक एकता पर ‘पड़ोसी’, आदि। 1940 के बाि लगभग िो
िशकों तक िसलत मद्
ु िे पर कोई क़िल्म िहीं बिीं, लेककि सामान्जक जागरूकता से संबंधधत कई
क़िल्में बिीं न्जिमें ववसभदि सामान्जक समथयाओं को उठाया गया था।

ग्रामीि यथाथय िंबध


ं ी फ़िल्में

आज़ािी के बाि के लगभग डेढ िशक तक क़िल्मकारों पर िेहरू जी की सोच का प्रभाव


था। उिका माििा था कक यदि िे श औद्योधगक दृन्ष्ट्ि से उदिनत करता है तो उसका लाभ िे श के
गरीब और मेहितकश जिता को भी समलेगा। लेककि उद्योगीकरण की प्रकक्रया इतिी आसाि
िहीं थी। इसकी कीमत भी गरीब ककसािों को चुकािी पड़ी। ब्रबमल राय की क़िल्म ‘िो बीघा
ज़मीि’ में उद्योगीकरण और ककसािों को मद्
ु िा बिाया गया था। उद्योगीकरण के कारण
परं परागत उद्योग-धंधे बंि होिे लगे थे। इि धंधों से जुड़े मजिरू और कारीगर बेकार होिे लगे
थे। इस प्रश्ि को बी.आर.चोपड़ा िे ‘िया िौर’ के माध्यम से उठाया था। ककसािों और गााँव वालों
के सामिे उद्योगीकरण ही चुिौती िहीं थी। असशक्षक्षत और असंगदठत होिे के कारण ककसाि

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जमींिारों और महाजिों के हाथों लुिे जा रहे थे। इस दृन्ष्ट्ि से ‘मिर इंडडया’ अत्यंत महत्त्वपूणत
क़िल्म है । यह क़िल्म आज़ािी के बाि के आशावाि से प्रेररत है । इसी तरह का आशावाि राजकपूर
की क़िल्म ‘जागते रहो’ में भी िे खा जा सकता है ।

जानतवाद औि दसलत यथाथय िंबंधी फ़िल्में

इस बात को िहीं भूला जािा चादहए कक दहंिी का व्यावसानयक ससिेमा यथान्थथनत का


समथतक ससिेमा है । दहंिी क़िल्मों में आमतौर पर उि प्रश्िों से बचिे की कोसशश की जाती है ,
न्जससे हमारा समाज बहुत ज्यािा पीडड़त है । दहंिी क़िल्मों में पात्रों की जानत का उल्लेख होता है
लेककि समाज में जानत संबंधी द्वंद्व है , उस पर क़िल्में आमतौर पर चुप रहती हैं। 1959 में
बिी ‘सुजाता’ में ब्रबमल राय िे जानत का प्रश्ि उठाया था। आमतौर क़िल्में जािे-अिजािे उच्च
जानतवािी अहं कार को प्रकि करती हैं। दहंिी क़िल्में लगभग उि सभी सामान्जक मूल्यों और
परं पराओं को मदहमामंडडत करती हैं जो सवणतपरथतिाह्मणवािी प्रभाव का पररणाम हैं।

1970 के आसपास भारतीय ससिेमा में यथाथतवाि की जो ियी लहर उभरी उसिे िसलत
समाज की समथयाओं को भी अपिा ववषय बिाया। श्याम बेिेगल िे आरं भ से ही इस ओर ध्याि
दिया है । ‘अंकुर’, ‘मंथि’ और ‘समर’ में उदहोंिे िसलत समथया को अपिी क़िल्मों का ववषय
बिाया है । इसी तरह मण
ृ ाल सेि की क़िल्म ‘मग
ृ या’, गोववंि निहलािी की क़िल्म ‘आक्रोश’,
सत्यन्जत राय की ‘सद्गनत’, गौतम घोष की ‘पार’, प्रकाश झा की ‘िामुल’, अरुण कौल की ‘िीक्षा’
और शेखर कपूर की ‘बैंडडिक्वीि’ में भी ककसी ि ककसी रूप में िसलत यथाथत का धचत्रण िे ख
सकते हैं। 1990 में जब मंडल आयोग की ससफाररशें लागू की गयी तब आरक्षण का सवाल एक
बार कफर चचात का ववषय बिा। लेककि इस पूरे िौर में ऐसा कोई क़िल्मकार सामिे िहीं आया जो
आरक्षण के पक्ष में क़िल्म बिाये। लगभग िो िशक बाि प्रकाश झा िे ‘आरक्षण’ क़िल्म बिायी
थी। 1990 के बाि ऐसी पररन्थथनतयााँ बिीं न्जसकी वजह से िसलतों पर हमले बढते चले गये।
कुछ क़िल्मकारों िे इि मुद्िों को लेकर क़िल्में बिायीं। ऑिरककसलंग पर ‘आक्रोश’, ‘खाफ’, ‘गुड्डू
रं गीला’, ‘धड़क’ आदि क़िल्में बिीं। िीरज गैवाि िे ‘मसाि’ में सवणत और िसलत के बीच की प्रेम
कहािी को ववषय बिाया है । लेककि िसलतों के सवाल पर 2019 में बिी अिुभव ससदहा की
‘आदित कल 15’ बहुत सामनयक और साहसपूणत क़िल्म है।

िांप्रदानयक िद्भाव औि हहंद-ू मुक्स्लम िंबंधी फ़िल्में

दहंिी ससिेमा की एक खास रूदढ रही है , दहंि-ू मुन्थलम भाईचारे की। इसकी वजह यह है
कक भारत का शायि ही कोई प्रांत ऐसा हो जहााँ दहंि-ू मुन्थलम आबािी साथ-साथ ि बसती हो।
दहंिी क़िल्में कई अथों में समलीजुली संथकृनत की वाहक रही हैं। पूरी तरह से मन्ु थलम पष्ट्ृ ठभूसम
पर बिी क़िल्में मसलि, ‘मुगले आज़म’, ‘चौिहवीं का चााँि’, ‘बरसात की रात’, ‘मेरे महबूब’,

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‘पाकीज़ा’, ‘उमराव जाि’ आदि िे जबितथत कामयाबी हाससल की हैं। सांप्रिानयक उदमाि और बार-
बार होिे वाले िं गों के बावजूि दहंिी ससिेमा िे इस बात को लगातार रे खांककत ककया है कक दहंि ू
और मुसलमाि एक ही डाल के िो फूल हैं। न्जस प्रकार दहंि ू समाज में गरीब और अमीर िो वगत
हैं उसी तरह मुन्थलम समाज में भी गरीब और अमीर िोिों हैं। लोकवप्रय दहंिी ससिेमा िे आमतौर
पर जब भी मुन्थलम कहानियों को उठाया है तो अमीर और असभजात समाज की ही कहानियााँ
उठायी हैं। 1970-80 के बाि से ऐसी क़िल्में भी बिी हैं न्जिमें साधारण है ससयत के मुसलमािों
की कहािी भी कही गयी हैं। इस िौर में बिी ‘िथतक’, ‘गरम हवा’, ‘गमि’, ‘बाज़ार’, ‘अंजुमि’,
‘सलीम लंगड़े पेमत रो’, ‘मम्मो’, ‘िसीम’, ‘हरी-भरी’, ‘क़िज़ा’, ‘मुल्क’, ‘गली बॉय’ जैसी साधारण
मध्यवगत और निम्ि वगत के मुन्थलम समाज पर बिी क़िल्में भी हैं न्जदहें सामान्जक सोद्िे श्यता
और कलात्मक उत्कषतता के कारण सराहा भी गया है । इस िौर में कुछ ऐसी क़िल्में भी बिी हैं
न्जिमें वततमाि में मुन्थलम समाज को न्जस तरह की अंिरुिी और बाहरी चुिौनतयों का सामिा
करिा पड़ा है , उसका बहुत ही प्रभावी धचत्रण ककया गया है । ‘िसीम’, ‘क़िज़ा’, ‘मुल्क’ ऐसी ही
क़िल्में हैं।

3.7.3.1 बोध प्रश्न

9. निम्िसलखखत ववषयों पर बिी सही क़िल्म पर सही का निशाि लगाइए।


(i) िसलत समथया पर आधाररत क़िल्म (गमि/सज
ु ाता)
(ii) ककसाि की ऋण समथया पर आधाररत क़िल्म (मिर इंडडया/हरी-भरी)
(iii) समाज सध
ु ार संबध
ं ी क़िल्म (िनु िया िा मािे/िसीम)
(iv) ववभाजि संबंधी क़िल्म (िसीम/गरम हवा)

3.7.4 दे िभक्क्त औि िाष्रवाद िंबंधी फ़िल्में

दहंिी ससिेमा आरं भ से ही िे शभन्क्त से संबंधधत क़िल्में बिाता रहा है । औपनिवेसशक िौर
में जरूर ऐसी िे शभन्क्त की क़िल्म बिािा मसु मकि िहीं था, न्जसमें अंग्रेज सरकार का प्रत्यक्षया
अप्रत्यक्ष ववरोध व्यक्त हो। क़िल्मकारों िे उसके सलए ऐसे राथते निकाले न्जससे लोगों में िे श के
प्रनत प्रेम और गौरव का भाव उत्पदि हो। 1943 में बिी क़िल्म ‘ककथमत’ में कवव प्रिीप का
सलखा एक िे शभक्त पण
ू ग
त ीत ‘िरू हिो ए िनु ियावालो दहंिथ
ु ताि हमारा है ’ के पक्ष में यही तकत दिया
गया था कक यह जमति और जापाि के खखलाफ है , ि कक अंग्रेजों के खखलाफ। लेककि िे श के
आज़ाि होिे के बाि िे शभन्क्त पर आधाररत बहुत सी क़िल्में बिीं और आज भी बि रही हैं।
आज़ािी के लड़ाई के िौराि हुई प्रमख
ु घििाओं और अंग्रेजों के हाथों शहीि हुए िे शभक्तों को
लेकर भी कई क़िल्में बिीं। ‘क्रांनत’, ‘जि
ु ि
ू ’, ‘लगाि’, ‘शहीि’, ‘ठग्स ऑफ दहंिोथताि’ आदि क़िल्में
अंग्रेजों के ववरुद्ध संघषों से प्रेररत हैं। इसी तरह मंगल पााँड,े लक्ष्मीबाई, भगतससंह, चंद्रशेखर

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आज़ाि, सुभाषचंद्र बोस, सूयस
त ेि, महात्मा गााँधी आदि को केंद्र में रखकर भी कई क़िल्में बिायी
गयीं। आज़ािी के बाि पड़ोसी िे शों पाककथताि और चीि के साथ हुए यद्
ु धों िे िे श भन्क्त की
भाविाओं को फैलािे में काफी योगिाि ककया। इि यद्
ु धों िे क़िल्मकारों को प्रेररत ककया कक वे
िे शभन्क्त की भाविा से ओतप्रोत क़िल्में बिायें और लोग इि क़िल्मों को िे खिे के सलए उमड़
पड़ें। 1962 के यद्
ु ध पर ‘हकीकत’ बिी, 1965 पर ‘उपकार’, 1971 पर ‘बोडतर’, करधगल मठ
ु भेड़
के समय ‘एलओसी’, ‘लक्ष्य’ और ‘करधगल’ आदि क़िल्में बिीं। 1980 के बाि जब िे श में
आतंकवािी घििाएाँ बढिे लगीं तो ऐसी बहुत सी क़िल्में बिीं न्जिमें आतंकवाि के ववरोध को
िे शभन्क्त की भाविा से जोड़कर िे खा जािे लगा। ‘रोजा’, ‘सरफरोश’, ‘ए वेडिेथडे’ आदि इसी तरह
की क़िल्में हैं।

आमतौर पर िे शभन्क्त की भाविा को राष्ट्रवाि से गड्डमड्ड कर दिया जाता है । राष्ट्रवाि


एक ववचारधारा है जो मािती है कक राष्ट्र ही सवोपरर है । लेककि भारत जैसे बहुलतावािी िे श में
राष्ट्र की पररभाषा एक आयामी िहीं हो सकती। भारत जैसे िे श में सांप्रिानयकता और आतंकवाि
इस बहुलतावािी भारत के अथवीकार पर दिकी धारणाएाँ हैं जो ि ससफत धमत को राष्ट्र के साथ
जोड़ती है बन्ल्क धमत को ही राष्ट्र माििे के सलए प्रेररत करती हैं। दहंिी ससिेमा का ववकास
िक्षक्षण एसशया के बहुलतावािी सांथकृनतक परं परा के एक घिक के रूप में हुआ है । वपछले सत्तर
सालों में भारत िामक राष्ट्र की निसमतनत की कोसशशें भी इसी परं परा के एक अववभाज्य दहथसे के
रूप में हुई हैं। इससलए यह बहुत थवाभाववक है कक इस ससिेमा का प्रमख
ु थवर सांथकृनतक
बहुलता के पक्ष में हो। ‘िसीम’, ‘मुंबईमेरीजाि’, ‘दिल्ली-6’, ‘शादहि’, ‘बजरं गी भाईजाि’, ‘मुल्क’
जैसी कई क़िल्में इसी बहुलतावािी राष्ट्रवाि से प्रेररत क़िल्में हैं।

3.7.4.1 बोध प्रश्न

10. न्जि ऐनतहाससक घििाओं का उल्लेख िीचे ककया गया है , उिसे संबंधधत एक-एक
क़िल्म का िाम बताइए।
(i) 1857 का महाववद्रोह (----------------------)
(ii) 1962 का भारत-चीि युद्ध (----------------------)
(iii) 1965 का भारत-पाककथताि युद्ध (----------------------)
(iv) 1971 का भारत-पाककथताि युद्ध (----------------------)

3.7.5 स्त्री केंहित फ़िल्में

दहंिी के लोकवप्रय ससिेमा िे कई िशकों तक िारी की जो तथवीर पेश की है , वह वही है


न्जसके आिशत धासमतक पुथतकों में समलते हैं और जो पूवत पूंजीवािी समाजों में िारी की वाथतववक
न्थथनत का प्रनतब्रबंब हैं। इसके अिुसार िारी जीवि की इसके अलावा और कोई साथतकता िहीं है

44
कक वह अपिे पनत और बच्चों के सलए जीये, अपिी िै दहक पववत्रता की रक्षा करे और हर तरह से
अपिे पनत के प्रनत एकनिष्ट्ठ रहे । जो िारी इि जीवि मूल्यों को थवीकार िहीं करती उसे दहंिी
क़िल्मों में खलिानयका बिाकर पेश ककया जाता रहा है । िारी के ये ही िो रूप दहंिी ससिेमा में
लंबे समय तक थवीकायत रहे हैं और इसका समसामनयक यथाथत से कोई संबध
ं िहीं है । लेककि
इस तरह की क़िल्में पुरुष वचतथव को बिाये रखिे में अहम भूसमका निभाती हैं न्जसके चलते
िारी की सामान्जक न्थथनत िोयम िजे की बिी हुई है । इि क़िल्मों में संयुक्त पररवार को भी
आिशत पररवार की तरह पेश ककया जाता था और इस पररवार को तोड़िे वाली बहू को
खलिानयका बिाकर पेश ककया जाता था। ‘भाभी’, ‘खाििाि’, ‘मेहरबाि’, ‘तीि बहुरानियां’, ‘िो
राथते’ इसी परं परा की क़िल्में थीं। लेककि 1970 के िशक के बाि से इि परं परावािी सोच में
बिलाव दिखायी िे िे लगा। अब पररवार के िूििे का थथाि िांपत्य संबध
ं ों के िूिि िे ले सलया।
ऐसी कई क़िल्में बिीं न्जिमें पनत-पत्िी के संबंधों में तिाव, उिका अलग होिा और अंत में
उिका पुिसमतलि िशातया गया था। ‘कोरा कागज़’, ‘अिभ
ु व’, ‘आववष्ट्कार’, ‘िरू रयााँ’, ‘गह
ृ प्रवेश’, ‘थोड़ी
सी बेवफाई’, ‘जुिाई’, ‘ये कैसा इंसाफ’, ऐसी ही क़िल्में थीं।

िब्बे के िशक के बाि थत्री केंदद्रत क़िल्मों में कफर बिलाव दिखायी िे िे लगा। पहले की
क़िल्मों में थत्री जीवि की मुन्श्कलों और ववडंबिाओं को व्यक्त करते हुए उिके साथ बराबरी और
मिुष्ट्योधचत व्यवहार करिे पर बल िे ती थी। जबकक िब्बे के बाि के िौर की क़िल्मों में बराबरी
और मािवीय व्यवहार के साथ-साथ उिके सबलीकरण पर अधधक बल है । ऐसी क़िल्मों में थत्री
जीवि के पाररवाररक और सामान्जक सवालों को ही िहीं उठाया गया है बन्ल्क राजिीनतक सवालों
को भी उठाया गया है । यहााँ न्थत्रयााँ अपिे जीवि के बारे में खि
ु फैसले लेती दिखायी िे ती हैं। वह
मध्ययुगीि उि मूल्यों को चुिौती िे ती दिखायी िे ती हैं, जो न्थत्रयों की पराधीिता के कारण रहे
हैं। थत्री जीवि पर केंदद्रत कुछ ऐसी क़िल्मों में ‘सूरज का सातवााँ घोड़ा’, ‘िासमिी’, ‘बैंडडिक्वीि’,
‘मम्मो’, ‘फायर’, ‘सरिारी बेगम’, ‘मत्ृ युिंड’, ‘गॉडमिर’, ‘हरी-भरी’, ‘अन्थतत्व’, ‘जुबैिा’, ‘क्या
कहिा’, ‘लज्जा’, ‘चााँििी बार’, ‘क्वीि’, ‘राजी’, ‘छपाक’ आदि का िाम सलया जा सकता है ।

3.7.5.1 बोध प्रश्न

11. निम्िसलखखत ववषयों से संबधं धत ककसी एक-एक क़िल्म का िामोल्लेख कीन्जए।


(i) संयुक्त पररवार को मदहमामंडडत करिे वाली क़िल्म
(ii) िांपत्य संबंधों के िूििे से संबंधधत क़िल्म
(iii) थत्री समािता का प्रश्ि उठािे वाली क़िल्म
(iv) थत्री के उत्पीड़ि संबंधी क़िल्म

45
3.7.6 जीवनी पिक फ़िल्में

इधर दहंिी क़िल्मों में जीविी परक क़िल्में बिािे का चलि काफी बढ गया है । ऐसा िहीं
है कक इस तरह की क़िल्में पहले िहीं बिती थी। पहले भी भगत ससंह, सुभाषचंद्रबोस, समज़ात
गासलब, लक्ष्मीबाई, महात्मा गााँधी, फूलि िे वी आदि के जीवि पर क़िल्में बिीं हैं लेककि इधर इस
तरह की क़िल्मों की बाढ सी आ गयी प्रतीत होती है । खासतौर पर खेलकूि से जुड़े लोगों के
जीवि पर बहुत सी क़िल्में बिी हैं। प्रससद्ध एथसलि समल्खाससंह पर ‘भाग समल्खा भाग’, कक्रकेिर
महें द्र ससंह धोिी पर ‘एम.एस. धोिी’, ओलंवपक ववजेता बॉक्सर मेरी कॉम पर ‘मेरी कॉम’, एथसलि
पािससंह तोमर पर ‘पािससंह तोमर’, कुश्ती में िे श का िाम कमािे वाली फोगाि बहिों पर बिी
‘िं गल’ इिमें से कुछ क़िल्में हैं न्जिको िशतकों िे काफी पसंि ककया है । खेलकूि की िनु िया के
अलावा भी कई ऐसे लोगों पर क़िल्में बिी हैं न्जिके जीवि को प्रथतुत करिा क़िल्मकारों को
जरूरी लगा है । एअरहोथिे स िीरजा भिोत के जीवि पर ‘िीरजा’, वकील शादहि आज़मी पर
‘शादहि’ (2013), िक्षक्षण की क़िल्म असभिेत्री ससल्क न्थमता पर ‘दि डिी वपक्चर’ और इसी तरह
मे घिा गुलज़ार िे एससड हमले की सशकार हुई लक्ष्मी अग्रवाल के जीवि पर ‘छपाक’ कफल्म
बिायी हैं। इससे पहले भी उदहोंिे ‘तलवार’ और ‘राजी’ में वाथतववक जीवि कथाओं का
क़िल्मांकि ककया था। क़िल्मकार कई बार प्रख्यात हन्थतयों की लोकवप्रयता से प्रेररत होकर भी
क़िल्म बिाते हैं, तो कई बार ऐसे व्यन्क्तयों का चयि करते हैं न्जिका जीवि संघषों से भरा रहा
है और न्जिके माध्यम से समाज की कोई-ि-कोई सच्चाई सामिे आती है ।

3.7.6.1 बोध प्रश्न

12. क़िल्म और व्यन्क्तत्व का समलाि कीन्जए न्जि पर क़िल्में बिी हैं।


(i) िं गल (क) बेंडडिक्वीि
(ii) छपाक (ख) ससल्क न्थमता
(iii) दिडिी वपक्चर (ग) फोगाि बहिें
(iv) फूलि िे वी (घ) लक्ष्मी अग्रवाल

3.8 िािांि

इस पाठ में हमिे दहंिी ससिेमा और उसके ववसभदि ववषयों पर ववचार ककया है । दहंिी
ससिेमा का इनतहास लगभग िब्बे साल पुरािा है । न्जदहें हम आमतौर पर दहंिी क़िल्में कहते हैं,
उिमें दहंिी, उित ू और दहंिथ
ु तािी में बिी क़िल्मों को शासमल ककया जाता है । हमिे इस बात का
उल्लेख ककया है कक आरं सभक दहंिी क़िल्मों पर पारसी रं गमंच के िािकों का प्रभाव रहा है । यही
वजह है कक दहंिी ससिेमा िे पन्श्चम के यथाथतवाि की जगह मेलोड्रामा शैली को अपिाया। इस
शैली में गीत, संगीत और ित्ृ य का ववशेष योगिाि होता है । दहंिी क़िल्मों के इनतहास को तीि

46
युगों में ववभान्जत ककया गया है । थवतंत्रता-पूवत की दहंिी क़िल्में न्जसका काल 1931 से 1947 के
बीच का है । थवातंत्र्योतर िौर को 1947 से 1990 तक माि सकते हैं और वततमाि िौर की
क़िल्मों के काल को 1990 से अब तक मािा जा सकता है । 1947 से 1990 के िौर में िो तरह
की प्रववृ त्तयााँ खासतौर पर दिखायी िे ती हैं। एक, िेहरू युग के प्रभाव का िौर और िस
ू रा
समािांतर ससिेमा का िौर। 1990 का िौर भूमंडलीकरण का िौर है । लेककि इस िौर में भी
2001 से हम ियी प्रववृ त्तयों का उभार िे ख सकते हैं।

दहंिी ससिेमा की ववषयवार कोदियों पर भी पाठ में चचात की गयी हैं। इस दृन्ष्ट्ि से
धासमतक-पौराखणक, ऐनतहाससक, प्रेम संबंधी, सामान्जक यथाथत संबंधी, िे शभन्क्त और राष्ट्रवाि
संबंधी, थत्री केंदद्रत और जीविीपरक क़िल्मों के रूप में दहंिी ससिेमा का ववषयवार ववभाजि
ककया गया है । सामान्जक यथाथत संबध
ं ी क़िल्मों में भी समाज सुधार, ग्रामीण यथाथत, जानतवाि
और िसलत यथाथत, सांप्रिानयकता और दहंि-ू मुन्थलम संबंधों के उपववभाजि ककये गये हैं। इिके
अलावा भी दहंिी क़िल्मों के और कई ववभाजि ककये जा सकते हैं, मसलि सादहन्त्यक कृनतयों पर
भी दहंिी में लगातार क़िल्में बिती रही हैं। इसी तरह अपराध केंदद्रत क़िल्मों का ससलससला
लगातार िे खा जा सकता है। ऐसे कई ववभाजि ववद्याथी अपिे अिुभवों से भी सलख सकते हैं।

3.9 उपयोिी पुस्तकें

1. दहंिी ससिेमा: आदि से अिंत (चार खंड) - संपािक प्रहलाि अग्रवाल, 2014, सादहत्य
भंडार, इलाहाबाि।
2. एिसाइक्लोपीडडया ऑफ दहंिी ससिेमा - संपािक: गुलज़ार, गोववंि निहलािी और
सैबलचिजी, 2003, एिसाइक्लापीडडया ब्रििानिका (इंडडया) प्रा.सल., ियी दिल्ली और
पोपुलर प्रकाशि प्रा.सल., मब
ुं ई।
3. भारतीय ससिेमा का सफरिामा - संकलि और संपािि: जयससंह, 2013, प्रकाशि
ववभाग, सूचिा और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार।
4. भारतीय ससिेमा का अंत:करण - वविोि िास, 2003, मेधा बुक्स, दिल्ली।
5. लोकवप्रय ससिेमा और सामान्जक यथाथत – जवरीमल्ल पारख, 2019, अिासमका पन्ब्लशसत
एंड डडथरीब्यूिसतप्रा.सल., ियी दिल्ली।
6. दहदिी ससिेमा का समाजशाथत्र – जवरीमल्ल पारख, 2006, ग्रंथसशल्पी, दिल्ली।
7. दहंिी ससिेमा का इनतहास - मिमोहि चड्ढा, 1990, सधचि प्रकाशि, ियी दिल्ली।

3.10 अभ्याि

1. थवतंत्रता-पूवत के दहंिी ससिेमा की प्रमुख प्रववृ त्तयों पर प्रकाश डासलए।


2. िेहरू युगीि ससिेमा और समािांतर ससिेमा का तुलिात्मक वववेचि कीन्जए।

47
3. दहंिी क़िल्मों में सामान्जक यथाथत के ककि-ककि मुद्िों को उठाया गया है , सोिाहरण
बताइए।
4. थत्री जीवि संबंधी क़िल्मों में आिे वाले पररवततिों का उल्लेख कीन्जए।
5. िे शभन्क्तपूणत क़िल्मों पर एक संक्षक्षप्त निबंध सलखखए।

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इकाई-2

1.सिनेमा अध्ययन की दृक्ष्टयााँ एवं सिनेमा में यथाथय औि


उिका रीटमेंट, हाइपिरियल
डॉ. हषतबाला शमात
दहदिी ववभाग, इदद्रप्रथथ कॉलेज,
दिल्ली ववश्वववियालय, दिल्ली

1.1 प्रस्तावना

ससिेमा बीसवीं सिी की महत्त्वपूणत घििाओं में से एक है । लोकवप्रयता और लोकतांब्रत्रक


होिे के िोिों पैमािों को साथ लेकर चलती यह ववधा एक सामदू हक कला है । ससिेमा िे हमारे
संसार को ववथतत
ृ ककया है । पहली कफल्म में रे लगाड़ी के चलिे के दृश्य से आज ससिेमा
हाइपरररएसलिी की िनु िया तक आ चुका है । संसार की लगभग सभी कलाओं को अपिे भीतर
समेिता ससिेमा मिुष्ट्य की कल्पिाओं को ऊाँची उड़ाि िे ता है । लूसमएर बदधुओं के ससिेमा के
यथाथतवाि से आज हम बहुआयामी (मल्िी-डायमें शि) ससिेमा तक आ गए हैं। कमसशतयल और
समािांतर ससिेमा के बीच के रे खाएाँ धीरे धीरे धंध
ु ली हो रही हैं। आज ससिेमा के सलए बेहतरीि
समय है - तकिीक, कथ्य, कहानियों के रीिमेंि, नििे शकों की पररपक्वता और जागरूक िशतक
सभी बेहतर ससिेमा की मााँग कर रहे हैं। यह सुखि है कक ससिेमा अपिी सौ वषत की यात्रा के
िौराि ववचार की यात्रा को भी उतिा ही महत्त्व िे िे लगा है न्जतिा अपिे केदद्रीय तत्व मिोरं जि
को!

प्रथतुत पाठ में आप ससिेमा के सदिभत में ववववध ससद्धांतों का पररचय प्राप्त कर सकेंगे।

1.2 अगधिम प्रफक्रया का उद्दे श्य

इस इकाई को पढिे के बाि ववद्याथी निम्िसलखखत कायत करिे में समथत हो सकेंगे-- ---

• ससिेमा की पररभाषा समझ सकेंगे।


• ससिेमा अध्ययि की आवश्यकता जाि सकेंगे।
• ससिेमा अध्ययि की दृन्ष्ट्ियों पर चचात कर सकेंगे।
• ससिेमा में यथाथत का रीिमें ि ककि ससद्धांतों के माध्यम से ककया गया है , इसे बता
सकेंगे।
• यथाथत और अनत यथाथत में अंतर के प्रमख
ु ब्रबंिओ
ु ं का उल्लेख कर सकेंगे।
• हाइपरररएसलिी का अथत समझ सकेंगे।
• हाइपरररएसलिी के सदिभत में ज्यााँबौदद्रला के योगिाि का उल्लेख कर सकेंगे।
• हाइपरररएसलिी और ससिेमा का सम्बदध थथावपत कर सकेंगे।

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1.3 सिनेमा : एक बहुआयामी कला

सिनेमा को आज ठीक उसी प्रकार की बहुआयामी कला मािा जाता है , जैसा एक समय
में िािक को मािा जाता था। िनु िया भर की समथत कलाएाँ आज उस छोिे से लेंस के भीतर
समादहत हैं, न्जसके माध्यम से हमें िायक-िानयका की िनु िया का पररचय समलता है । पररचय ही
िहीं समलता बन्ल्क उिके सहारे एक ऐसी िनु िया हमारे सामिे खल
ु जाती है , जो हमें साथ
बहाकर ले जािे में समथत होती है । यह िनु िया काल्पनिक लोक की भी हो सकती है (फ्ोजि) या
कफर लगभग यथाथतवािी भी (जािे भी िो यारों)! पर यह सत्य है कक ससिेमा एक ही साथ कई
पीदढयों को बााँधिे में समथत रहा है । सबके सलए उसके पास अपिे खजािे में कुछ-ि-कुछ है —ठीक
उस बचपि के कहािी वाले बाबा के पोिली की तरह जो खुलते ही सबके सलए कुछ ख़ास िे ती
थी। ससिेमा को एक समय में िे खिे और बिािे पर ख़ास तरह की पाबन्दियााँ लगाई गई, सभ्य
समाज के सलए ससिेमा घरों में जािा उधचत िहीं समझा गया, पर आज वह इनतहास है । आज
ससिेमा ऊाँची उड़ाि भर रहा है –कमसशतयल क़िल्में अपिे रोचक अंिाज में सदिे श िे रही हैं और
ससिेमा के िायरों का ववथतार हुआ है ।

ससिेमा कलाओं के क्रम में शायि सबसे िवीि ववधा है पर इसिे मिुष्ट्य को सबसे
ज्यािा बााँधा और प्रभाववत ककया है । आज ससिेमा का शायि सबसे बेहतरीि िौर है क्योंकक
लगातार प्रयोग के माध्यम से िए-िए ववषयों के साथ रीिमेंि बिल रहा है । आज का िशतक भी
अधधक पररपक्व हुआ है और नििे शकों िे भी रीिमें ि प्रववधधयों का ववकास ककया है । बोल्ड ववषयों
के साथ-साथ िई तकिीक िे ससिेमा के िायरों का ववथतार ककया है ।

ससिेमा की यह यात्रा लुसमएर बदधुओं द्वारा आरम्भ होती है । 1896 में 6 मूक कफल्मों
के मुंबई के वािसि होिल में प्रिशति के साथ शुरू होिे वाली यात्रा में न्जस यथाथत का धचत्रण था,
वह अत्यंत सीसमत था। रे लगाड़ी के चलिे का दृश्य (ि अराइवल ऑफ रे ि) अथवा माली के पािी
के पाइप से भीग जािे का दृश्य िशतक के सलए अद्भुत और ववथमयकारी िोिों ही था क्योंकक
इससे पहले िशतक िे कैमरे की आाँख के जाि ू से कोई साक्षात्कार िहीं ककया था। एड्ववसपोित र की
कफल्म ‘ि ग्रेि रे ि रॉबरी’ में डाकू को आता िे खकर िशतकों के बीच भगिड़ मच गई। इि
आरन्म्भक प्रयोगों को चमत्कार की तरह िे खा गया तथा उत्साह, आिदि और चमत्कार की समली
जुली प्रनतकक्रया सामिे आई। मेसलएस िे िैरेदिव थरक्चर को लेकर कई क़िल्में बिाईं न्जसमें से
एक अत्यंत लोकवप्रय कफल्म थी ‘ए दरपिू मूि’ न्जसमें चााँि की यात्रा को लेकर रोचक कल्पिाएाँ
बुिी गईं थी। इि कल्पिाओं िे भीतर से यथाथत के सलए एक िई राह निकली और ससिेमा िे
िी-डी, फोर-डी और अब िाइि-डी तक ससिेमा का ववकास ककया।

ससिेमा की इस यात्रा में कैमरे की भाषा की सबसे बड़ी भूसमका है ।

50
1.3.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

1. ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति हााँ या ना में दीक्जए—

i. ससिेमा की यात्रा का आरम्भ लुसमएर बंधुओं द्वारा ककया गया (.....)


ii. ससिेमा में केवल ससिेमािोग्राफी ही महत्वपूणत है (.....)

2. कोष्ठक में हदए िए िब्दों में िे िही िब्द चन


ु कि रिक्त स्थान की पनू तय कीक्जए—

i. मेसलएस िे ..........................को लेकर कई कफल्मों का निमातण ककया ( िैरेदिव थरक्चर,


मेिा थरक्चर )
ii. मुंबई के वािसि होिल में ............ कफल्मों का प्रिशति ककया गया (5. 6,7)
iii. ससिेमा के निमातण के िौर में ................. को लेकर अिेक प्रयोग ककए गए ( यथाथत,
कल्पिा, मिष्ट्ु य, कहािी)
iv. ससिेमा की भाषा .........( नििे शक, िशतक, कैमरे ) द्वारा निसमतत की जाती है ।

1.4 सिनेमा अध्ययन की परिभाषाएाँ

इि पिू ी यात्रा को मात्र इनतहास के क्रम ववकास के माध्यम से िहीं समझा जा सकता।
ससिेमा का आरन्म्भक ववकास करिे वालों िे अपिे भीतर की आवाज और कुछ िया प्रयोग करिे
की इच्छा को लेकर कैमरे के साथ प्रयोग करिा आरम्भ ककया। लुसमएर बदधुओं से लेकर पेररस
की धचककन्त्सक एनतयेिे जल्
ु स मसी के भीतर मिष्ट्ु य की गनतववधधयों को कैि करिे के सलए
कैमरे की रे खीय गनत को इथतेमाल करिे के पीछे मिुष्ट्य की न्जज्ञासा ही केंद्र में थी। जॉजत
ईथिमैि िे ‘सेल्युलाइड’ को व्यवसाय से जोड़ा। धीरे -धीरे ससिेमा को मात्र मिोरं जि की ववधा ि
मािकर गम्भीर ववमशत के रूप में थवीकार ककया जािे लगा। ससिेमा को ववश्वववद्यालयों में
पढाया जािे लगा और फ्ेंकफित थकूल से लेकर बसमिंघम थकूल तक ससिेमा अध्ययि की
पद्िनतयों का ववकास हुआ। िोमचोमथकी िे भी मीडडया को लेकर सैद्धांनतकी तैयार की।

ससिेमा के गम्भीर अध्येताओं को ससिेमा के ववश्व पिल पर अध्ययि के सलए ससद्धांत


की आवश्यकता थी। ससद्धांत के सहारे वे अकािसमक जगत में ससिेमा को समझिे और ससिेमा
के ववववध ववषयों के साथ सम्बदध को समझिे का प्रयास कर सकते थे। ससिेमा अध्ययि को
लेकर अिेक पररभाषाएाँ िी गई हैं न्जिमे से कुछ इस प्रकार हैं---

रूिलेज इिसाइक्लोपीडडया के अिुसार “…a set of scholarly approaches within the


academic discipline of cinema studies that question the essentialism of cinema
and provides conceptual frameworks for understanding film's relationship to
reality, the other arts, individual viewers, and society at large." अथातत ससिेमा

51
अध्ययि अकािसमक अध्ययि के द्वारा ससिेमा की आवश्यकता पर सवाल भी उठाता है और
ससिेमा का वाथतववकता, कलाओं, िशतकों और समाज के साथ सम्बदध समझिे के सलए एक
सैद्धांनतक रूपरे खा भी बिाता है । लेमैि Film Theory को a way of breaking down
movies and television मािते हैं।

Semiotic ससद्धांत कफल्म को एक भावषक धचह्ि के रूप में िे खता है न्जसे डी-कंथरक्ि
करके कफल्म को िए रूप में समझा जा सकता है ।

वाथतव में कफल्म ससद्धांत की आवश्यकता इसीसलए हुई क्योंकक इसके माध्यम से
ववसभदि जगहों पर चलिे वाले ससिेमा के एक रूप को थथावपत ककया जा सके तथा िशतक के
मि पर होिे वाले प्रभाव का एक समन्दवत अध्ययि प्रथतुत ककया जा सके। वाथतव में यह एक
अत्यंत अकािसमक पर रोचक काम भी है क्योंकक इसके माध्यम से िो अलग-अलग भूगोल में
रहिे वाले िशतकों के बीच के सम्बदध को बिाया और समझा जा सकता है । िो अलग िे शों में
एक जैसे ववषयों के साथ होिे वाले रीिमेंि को जािा जा सकता है , िो अलग िनु िया के बीच के
फॉमत की सभदिता के आधार पर उस समाज को समझा जा सकता है ।

1.4.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्न क: ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति एक िब्द या एक पंक्क्त में दीक्जए—

i. क्या ससिेमा को जि माध्यम कहा जा सकता है ?

ii. क्या ससिेमा का अकािसमक अध्ययि सम्भव है ?

iii. क्या ससिेमा को व्यावसानयक और गैर व्यावसानयक श्रेणी में बााँिकर िे खा जा सकता है ?

iv. क्या ससिेमा के जदम के मल


ू में मिष्ट्ु य की न्जज्ञासा को रखा जा सकता है ?

प्रश्न ि : िही िब्दों िे रिक्त स्थान की पनू तय कीक्जए-

i. ससिेमा के सदिभत में इिसाइक्लोपीडडया की पररभाषा में ...................रूपरे खा बिािे पर


बल दिया गया है ( व्यावहाररक, सैद्धांनतक)

ii. .................... िे सेल्युलाइड को व्यवसाय से जोड़ा ( लुसमएर, जॉजतईथिमैि)

iii. ससिेमा के ससद्धांत अलग अलग ...............से कफल्म िे खिे का िजररया प्रथताववत करते
हैं ( दृन्ष्ट्ि, सीमाओं)

1.5 सिनेमा अध्ययन की दृक्ष्टयााँ

पक्श्चम में सिनेमा में अिेक प्रयोग ककए गए। पन्श्चमी ससिेमा तकिीक की दृन्ष्ट्ि से
निरं तर प्रयोगधमी रहा है । ववज्ञाि के क्षेत्र में प्रयोग को समझिे के अिंत सत्र
ू ों में से एक प्रयोग

52
उदहोंिे ससिेमा की असम्भाव्य दिखिे वाली कहानियों में ककया। िनु िया को बचािे की इस मुदहम
का जो साम्राज्यवािी मुहावरा पन्श्चम िे गढा, उसिे यथाथत को िे खिे की अिेक सैद्धान्दतककयों
का निमातण ककया। ससिेमा अध्ययि के ससद्धांत मल ू त: पन्श्चम में ही निसमतत हुए। (याँू यदि चाहें
तो भारतीय काव्यशाथत्रीय पद्िनतयों के भीतर कफल्म को पढिे के सूत्रों की खोज की जा सकती
है , पर अभी उस रूप में ककसी निन्श्चत ससद्धांत की खोज थथावपत िहीं हुई है ) मुख्य रूप से
तीि प्रकार के कफल्म ससद्धांत मािे जा सकते हैं—

Realism अथवा यथाथयवादी सिद्धांत, classical अथवा िास्त्रीयतावादी तथा


Formalism अथवा िैलीबद्ध सिद्धांत। यूाँ तो ससिेमा में अप्रेट्स ससद्धांत, रे िररक ससद्धांत,
औिर ससद्धांत, फेमेनिथि ससद्धांत, नियोररयसलज्म, मान्क्सतथि ससद्धांत, मोंिाज ससद्धांत, उत्तर-
औपनिवेसशक ससद्धांत, मिोवैज्ञानिक ससद्धांत, मािवतावािी ससद्धांत भी िे खे जाते हैं। यहााँ हम
इिमें से कुछ पर अत्यंत सीसमत रूप में चचात करें गे।

यथाथयवादी सिद्धांत ससिेमा को ‘जो है , जैसा है ’ के आधार पर िे खिे का समथति करता


है । ‘अन्दफलिडत’ रूप में कैमरे द्वारा कैि ककए गए दृश्यों को यथासम्भव हूबहू रखिे का प्रयास
इसमें ककया जाता है । िायक िानयका साधारण चेहरे वाले सामादय व्यन्क्तयों के समाि होिे
चादहए तथा ‘ऑिलोकेशि’ शूि करिे की कोसशश की जाती है । यथाथतवािी ससिेमा ससद्धांत की
कोसशश है कक िशतक अपिे जीवि की असली छवव को महसूस कर सके क्योंकक अदय सभी
ससद्धांतों में िशतक को सत्य की भूलभुलैया के भीतर ले जाकर कैि कर दिया जाता है । इसमें
कफल्म के दृश्यों को यथाथत रूप िे िे की कोसशश की जाती है । समचत मसाला, अंकुर, अल्बित वपंिो को
गथ
ु सा क्यों आता है जैसी क़िल्में इसी यथाथत से रूबरू करािे वाली क़िल्में है । आजकल कमसशतयल
ससिेमा भी समाज के िजिीक जाकर यथाथतवािीसेि और कहािी को सामिे लािे की कोसशश कर
रहा है । आज के यथाथतवािी सेि डडजायिर के रूप में िंजय ििदिावड़े का िाम सलया जा सकता
है । उदहोंिे आईएएिएस से बातचीत में कहा, "वाथतववकता पर आधाररत कफल्में करिा हमेशा
मुन्श्कल होता है । आप प्रेम कहािी में कुछ भी कर सकते हैं, लेककि जब आप सच्ची घििाओं
पर आधाररत कफल्में या बायोग्राफी कफल्में करते हैं, तो लोग कहािी के बारे में पहले से ही जािते
हैं। आप ऐसी कफल्म के साथ कुछ भी गलत िहीं कर सकते। आपको इस बारे में खास जािकारी
होिी चादहए कक ककसी ववशेष युग में शहर कैसा दिखता था या उस िौर में या उसके आसपास
ककस तरह की कफल्में ररलीज हुई थीं।"

उदहोंिे आगे बताया, "जब आप फ्ेम िे खते हैं तो वह ससफत ककरिार के बारे में िहीं होता।
अगर आप ककरिार को हिा िे ते हैं तो थक्रीि पर सबसे अधधक प्रोडक्शि का डडजाइि िजर आता
है ।‘’

http://www.deshbandhu.co.in/entertanment/tv-mission-mars-set-designer-said-
more-challenging-than-real-fantasy-150998-1

53
िास्त्रीय सिद्धांत यूाँ तो यथाथतवािी धचत्रों की प्रथतनु त पर ही बल िे ता है पर उसकी
रचिात्मक प्रथतुनत की छूि चाहता है । यह अपिे नियमों और ससद्धांतों के आधार पर बड़े सेि
लगािे की वकालत करते हैं, भव्य कथाओं का चयि करते हैं और क्लाससकल यािी आसभजात्य
रूपरे खा के आधार पर कथाओं का रीिमेंि भव्य ही होता है । पर कफर भी यह ककसी तरह के
थपेशलइफेक्ट्स का समथति िही करता, ऑिलोकेशिशूि को प्रोत्सादहत करता है , मंझे कलाकारों
को चि
ु ता है और उद्िात भाव प्रथतत
ु करता है । ‘ि गॉडफािर’ कफल्म इसके उिाहरण के रूप में
िे खी जा सकती है न्जसमें अलपचीिो और मालेििांडो मुख्य भूसमका में थे। ववलकफ्डशीड िे The
New York Review of Book में सलखा The movie is preposterously entertaining,
telling Puzo's compendium of old-time Mafia anecdotes with all the gravity of
Old Testament epic.यह महाकाव्यात्मक प्रथतनु त शाथत्रीय ससद्धांत के केंद्र में है ।

फौमयसलस्ट सिद्धांत ननदे िक द्वािा एक समािांतर यथाथत निसमतत करिे की बात कहता
है । नििे शक अपिी रचिात्मक क्षमता का प्रयोग करते हुए कफल्म में अिेकािेक प्रयोग करता है
तथा थपेशलइफेक्ट्स के जररए िशतकों को बााँधिे का काम करता है । यह यथाथत के भ्रम को तोड़िे
का काम करता है और िनु िया में िए-िए चररत्रों को निसमतत करके लोगों के मि पर यथाथत का
एक िया रूप कंथरकि करता है । थिार-वार सीरीज, एवेंजसतसीरीज, थपाइडरमैि आदि क़िल्में ऐसी
ही िनु िया निसमतत करते हैं।

अप्रेट्ि सिद्धांत ससिेमा के िशतक और नििे शक के बीच के सम्बदध को अप्रेट्स यािी


कैमरे के आधार पर िे खिे की बात करता है । असल में यह ससद्धांत ससिेमैदिक उपकरणों के
माध्यम से कथासत्र
ू को इस तरह िशातिे की बात करता है न्जससे कथा-प्रथतनु त और िशतक के
बीच कैमरे की िजर से एक सम्बदध बिाया जाता है —खेत-खसलहाि, ििी-िाले से लेकर िायक
िानयका के जीवि की प्रथतुनत कैमरे की आाँख से होती है । इसी सम्बदध के आधार पर िशतक
अपिे सलए कथा प्रथतुनत का चयि करते हैं Sergei Eisensteinके अिुसार , the cinematic
exquisite essences and worth rely on how to metamorphose the “real world”
occurrences within the orb lenses of the cameras.

असल में सभी ससद्धांत ससिेमा के भीतर यथाथत को समझिे की ही युन्क्तयों को जााँचिे
की कोसशश करते हैं। ससिेमा यथाथत का पुिरुत्पािि करता है –िे खिे की बात यह है कक यथाथत
के साथ नििे शक का व्यवहार कैसा है । इसी को यथाथत के साथ रीिमें ि कहा गया है । ककसी भी
कफल्म की कहािी कुछ कल्पिा और कुछ यथाथत को लेकर ही सलखी और बिाई जाती है । इसमें
एक ओर कल्पिा है तो िस
ू री ओर यथाथत वहीं तीसरी ओर यथाथत कैसा होिा चादहए का ववजि
भी शासमल है । ससिेमा अब न्जस िौर में है , उसमें यथाथत और अनत-यथाथत, प्रोजेक्िे ड यथाथत के
बीच की रे खाएाँ अत्यंत धुंधली हो गई हैं। इस सम्बदध में आधुनिकतम ससद्धांत है -
हाइपरररएसलिी। हाइपरररएसलिी के ससद्धांत के अिस
ु ार अब कुछ भी सत्य िहीं है , सब कुछ
मीडडया द्वारा नियंब्रत्रत है । िशतक इसी नियंब्रत्रत सत्य के बीच ही जीता है और इसके अिुसार ही

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अपिी प्रनतकक्रया िे ता है । उसका ररमोि कंरोल तकिीक के हाथ में है , वही उसे चलाती है और
उसी की प्रनतच्छाया को वह सत्य मािकर अपिा जीवि जीता है । इस पर ववथतार से आगे चचात
की जाएगी।

1.5.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्न क : ननम्नसलणित प्रश्नों का उत्ति एक या दो पंक्क्तयों में दीक्जए –

i. अप्रेट्स ससद्धांत क्या है ?

ii. औिर(ऑथर) ससद्धांत के केंद्र में ककसे रखा जाता है ?

प्रश्न ि: ननक्म्लणित प्रश्नों पि िही/िलत के ननिान लिाइए—

i. क्लाससकल ससद्धांत एक प्रकार के आसभजात्य का प्रारूप प्रथतुत करता है ( सही/गलत)

ii. फॉमतसलथि ससद्धांत मुख्य रूप से कथा संरचिा को समझिे की प्रववधध है ( सही/ गलत)

iii. फेमेनिथि ससद्धांत के आधार पर अिेक परु ािी क़िल्में न्जिमें परु
ु ष शन्क्त को िशातया
गया है , मूलत: थत्री ववरोधी दिखाई िे ती हैं ( सही/ गलत)

प्रश्न ि : िही िब्द चयन किते हुए रिक्त स्थान की पूनतय कीक्जए—

i. .....................ससद्धांत तकिीक के सहारे एक समािांतर यथाथत का निमातण करता है ।


(फॉमतसलथि, क्लाससकल)

ii. मिोवैज्ञानिक ससद्धांत .................के भीतर नछपी ग्रन्दथयों को समझिे के सूत्र िे ता है ।


(मिुष्ट्य, समाज)

iii. कफल्म के भीतर ...............का िजररया कफल्म के रीिमें ि को निधातररत करता है ।


(िशतक, नििे शक)

iv. कफल्म ससद्धांत कफल्म को ................ की सम्भाविाएाँ जगाते हैं( पढिे, िे खिे)

1.6 सिनेमा में यथाथय का रीटमेंट

द्ववतीय ववश्वयद्
ु ध के बाद इटली में कफल्मकारों िे ससिेमा के िई धारा का ववकास
ककया। ससिेमा में इस धारा को ‘िव-यथाथतवािी’ धारा के िाम से जािा गया। इस धारा िे आम
आिमी को केंद्र में रखिे पर बल दिया। मिुष्ट्य के जीवि की त्रासिी से रूबरू करािे का काम
ससिेमा िे सम्भाला। प्रसूि ससदहा सलखते हैं ‘इिली के नियो-ररयसलज्म के इस िए ससिेमा-युग में
वहााँ के कफल्मकारों में रोसेसलिी, डीससका, अदतोनियािी और डी-सान्दतस का िाम कफल्मकारों में
अधधक चधचतत हुआ। अंतरातष्ट्रीय थतर पर कफल्म की इस िई प्रथतुनत को सम्वेििशील और िई

55
सोच वाले कफल्मकारों द्वारा सहषत थवीकार ककया गया।’ (भारतीय ससिेमा: एक अिंत यात्रा, पष्ट्ृ ठ
180)

ससिेमा में यथाथत को िे खिे के सलए िो धाराएाँ काम करती रही हैं—एक ओर व्याविानयक
अथवा कमसशतयल कफल्मों के निमातता यथाथत का इथतेमाल िुकड़ों में करते रहे हैं और उसके
माध्यम से व्यावसानयक लाभ कमािा ही उिका उद्िे श्य होता है न्जदहें मुम्बईया थिाइल में ‘पैसा
वसल
ू ’ क़िल्में कहा जाता है वहीं िस
ू री ओर िमानांति सिनेमा (न्जसे बाि में िया ससिेमा कहा
गया) ससिेमा को कला के माध्यम के रूप में चयनित करता है । उसकी सबसे बड़ी ववशेषता है -
जीवि का थवाभाववक धचत्रण। अपिी सम्वेििशीलता के साथ िया ससिेमा यथाथत जीवि की
तकलीफों को केंद्र में रखता है , साधारण चेहरों को कफल्म के िायक के रूप में चुिता है , युवाओं
के ववद्रोह को िशातता है , सामान्जक-आधथतक िि
ु त शा के प्रनत असंतोष को रे खांककत करता है यािी
‘लाजतर िे ि लाइफ’ की परू ी अवधारणा के ववरोध में समािांतर ससिेमा आकार लेता है ।

ससिेमा के ये िोिों रूप यथाथत के साथ अपिे-अपिे थतर पर व्यवहार करते हैं। सत्यन्जत
रे िे ‘पाथेर पांचाली’ कफल्म का निमातण 1955 में ककया न्जसे यथाथत के थतर की एक महत्त्वपूणत
कफल्म मािा जाता है । कहा जाता है कक जापािी कफल्मकार कुरोसावा िे इस बात को बार-बार
कहा कक न्जसिे सत्यजीत की कफल्मों को िहीं िे खा, उसके सलए संसार ब्रबल्कुल वैसा ही होगा
जैसे सूयत या चदद्र के ब्रबिा िनु िया को िे खिा! यथाथत समाज की प्रनतकृनत को समांतर कफल्मों िे
प्रथतुत करते हुए िया मुहावरा गढा।

ससिेमा के यथाथत प्रयोग पर काम करते हुए कोरोसोवा िे ससिेमा को अिेक कलाओं से
जोड़ते हुए भी उसे निजी, मौसलक और ववसशष्ट्ि दृन्ष्ट्ि से जोड़ा—ठीक सत्यन्जत रे की तरह!
रोशोमि, सेवि समुराई जैसी क़िल्में जापाि के अतीत और इनतहास को पुि: प्रथतुत ही िहीं
करती बन्ल्क वततमाि को समझिे की कुाँजी भी िे ती है । उिकी एक कफल्म ‘मािािायो’ न्जसका
दहदिी अथत होगा—‘अभी िहीं’ का न्जक्र यहााँ यथाथत की समझ के सलए ककया जा सकता है । इस
कफल्म में एक वद्
ृ ध प्रोफेसर पढिे-सलखिे के सलए अपिे िौकरी छोड़ िे ता है । उसके घर आिे
वाले ववद्याथी उससे हर जदमदिि पर पछ
ू ते है कक क्या वह मत्ृ यु के सलए तैयार है , उसका उत्तर
हर बार होता है —अभी िहीं! जीवि और मत्ृ यु में से हर बार प्रोफेसर जीवि के पक्ष में है ।

यह यथाथत हमारे भीतर आथथा जगाता है और हमे भीतर से मजबूत बिािे का काम
करता है । यह नििे शक की ही दृन्ष्ट्ि है जो कथा के साथ ककस प्रकार का रीिमें ि ककया जाए, इसे
प्रथताववत और निधातररत करती है । एक ही ववषय पर दहदिी ससिेमा में यश चोपड़ा और अिुराग
बासु क रीिमेंि ववषय को लेकर ककतिा सभदि होगा, कफल्म के िशतक इसे भली-भांनत समझ
सकते हैं। आज के उत्तर आधुनिक समाज में ववषय को िे खिे के इतिे आईिे हैं कक ककसी एक
को सही और ककसी िस
ू रे को गलत िहीं कहा जा सकता! यथाथत अपिे समय की पररन्थथनतयों से
भी ऊजात पाता है , इसीसलए एक समय में ठीक-ठाक लगता यथाथत बाि में पण
ू त
त या खाररज भी हो
सकता है । थत्री छवव को ही लेकर िे खें तो एक समय में दहदिी (बॉलीवुड) ससिेमा न्जस थत्री की

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छवव के यथाथत को निसमतत कर रहा था, वह बेचारी और अब्लािुमा थत्री अपिे पनत को ककसी
अदय थत्री से बचािे में ही अपिी ऊजात की पररणनत िे खती थी पर आज उसी थत्री के प्रोफेशिल
संकि (मंगल समशि) अपिी मजी से जीवि जीिे की शतत, गलत को गलत कहिे के साहस
(वपंक) साहस के बिले में वपतस
ृ त्ता के खतरों का सामिा (छपाक) आदि अिेक रूपों को भी
ससिेमा दिखा रहा है । इस िजर से कफल्मों के कि का ववथतार हुआ है । प्राच्य कफल्मों को
समझिे के सलए कुछ िए प्राच्यससद्धांतो की भी आवश्यकता होगी।

1.6.1 प्रश्नों के ववस्ताि िे उत्ति दीक्जए –

i. 80 के िशक में ससिेमा में यथाथत के रीिमें ि को उिाहरण सदहत समझाइए।


ii. वषत 2000 के बाि दहदिी ससिेमा िे यथाथत को समझिे की िई पद्धनत ववकससत की हैं,
क्या आप इस कथि से सहमत हैं?
iii. ससिेमा में यथाथत के रीिमेंि के सदिभत में ककदहीं िो नििे शकों की तल
ु िा कीन्जए( दहंि :
िे विास कफल्म के अलग अलग समय में निमातण में अंतर को िे खा जा सकता है )

1.7 हाइपिरियल एक अननवायय सिद्धांत

हाइपिरियल की अवधारणा का निमातण उत्तर आधनु िक अवधारणाओं में से एक है ।


ज्यााँबौदद्रला िे इस शब्ि का प्रयोग ककया। उत्तर आधुनिकता पुरािे सभी नियमों को चुिौती िे ती
है और इसे डी-कंथरक्ि करती है । उच्च और निम्ि के मध्य के अंतर को समाप्त करती यह
अवधारणा अपिे समय तक के सारे िैरेदिव्स को िकार िे ती है । एक यथाथत के बिले अिेक
यथाथत को प्रथतुत करती यह अवधारणा खंडों में जीवि को पकड़िे की बात करती है क्योंकक
जीवि को अब एक साथ समझिा संभव िहीं है । इसे कभी प्रतीकों से समझा जाएगा तो कभी
व्यंग्य से! लघुता ही सत्य है क्योंकक महािता पर आधाररत सभी वत
ृ ांतों का निषेध हो चुका है।
इससलए उत्तर आधुनिकता ‘हाइब्रिड’ शब्ि का प्रयोग करती है क्योंकक िनु िया अब केवल एक भ्रम
है । जााँबौदद्रला इसके सलए डडज्िीलैंड का उिाहरण िे ता है और बताता है कक डडज्िीलैंड की िनु िया
हमारे भीतर वाथतववक और अनतवाथतववकता के अंतर को समिाती है । उसे िे खकर एक ऐसी
वाथतववकता का आभास होता है जो वाथतव में िहीं है पर कफर भी उसके भीतर रहकर एक िई
िनु िया में होिे का आभास होता है । यह एक तरह का ‘ससम्यूलेशि’ या प्रतीक है जहााँ धचह्िों को
ही सत्य माि सलया जाता है । इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है कक हम एक ववज्ञापि
िे खते हैं जो यह िावा करता है कक ककसी ख़ास िवा का सेवि करिे से कि ककसी भी उम्र तक
बढाया जा सकता है । अब हम सब वाथतववक ववज्ञाि से पररधचत होते हुए भी इस िवा के प्रनत
लालानयत हो उठते हैं क्योंकक अपिी िबी हुई आकांक्षाओं को मूतत करिे के सलए हमें एक धचह्ि
या प्रतीक समल जाता है । यह आकषतण इस िवा की ब्रबक्री में सहायक होता है जबकक इसका
वाथतववकता से कोई लेिा िे िा िहीं है । यह िांड के प्रनत एक ख़ास तरह का आकषतण है जो उस
प्रतीक को बाजार में जगह बिािे में मिि करता है । इसी ससद्धांत के तहत हम गोरी करिे वाली
क्रीम अथवा न्थलम करिे वाले ववज्ञापिों के पीछे थवयं को एक उपभोक्ता में बिल िे ते हैं। इस

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हाइपरररएसलिी में उत्पाि केंद्र में है । डडज्िीलैंड एक ऐसी ही अनतवाथतववकता है न्जसके भीतर
प्रवेश करिे की इच्छा हमें उस िनु िया की खोज कफल्मों के भीतर करिे के सलए मजबूर करती है ।
यह िनु िया झठ
ू ी होते हुए भी हमें ववश्वास दिलाती है कक यह सत्य है और हम उसे सत्य माििे
पर मजबूर हो जाते हैं। बौदद्रला कहता है “It is the real that has become our true utopia
- but a utopia that is no longer in the realm of the possible, that can only be
dreamt as one would dream of a lost object” (Simulacra and Simulation)

यह एक तरह का चुम्बकीय (magnetic) आकषतण है जो वथतुओं (appratus) के सहारे


कल्पिा( imagination) को सत्य का जामा पहिाया जाता है (concealing the fact that the
real is no longer real, and thus of saving the reality principle) आज हम न्जस यग

में जी रहे हैं उसमे सत्य को ढूाँढिे के सलए न्जतिे भी प्रयास ककए जाते हैं, वे सब तकिीक द्वारा
संचासलत हैं। ऐसे में सत्य को पहचाििे के सलए प्रतीक निसमतत ककए जाते हैं, न्जससे वह सब
कुछ सत्य लगिे लगे, जो सत्य िहीं है । महाि साब्रबत करिे के सलए कथाएाँ निसमतत की जाती हैं
और कल्पिा को सत्य बिािे के सलए उससे जुड़े प्रतीक बिाए जाते हैं। बौदद्रला इस सम्बदध में
मीडडया की भूसमका पर सवाल उठाता है । उसका माििा है कक मीडडया इस समय इतिी
शन्क्तशाली है कक वह तथ्यों को जैसा चाहे वैसे प्रथतुत करके िशतक को यह ववश्वास दिलाती है
कक वही सत्य है । वह इसके आधार पर 9/11 के सदिभत में भी सवाल उठाता है कक यह घििा
भी ठीक वैसी िहीं थी, जैसे उसे दिखाया गया। पाँूजीवािी समाज में िशतक को यह ववश्वास
दिलाया जाता है जैसे वह ही घििाओं के केंद्र में है जबकक वह कहीं िहीं होता!

इसे एक उिाहरण से समझा जा सकता है --धारावादहकों, ख़ासकर ररएसलिी कहे जािे


वाले शो में एक ऐसी अनतवाथतववकता का निमातण ककया जाता है —न्जसमें रोिा-हाँसिा, गािा-
उत्साह-पैसा और प्रेम सबकुछ एक साथ दिखाया जाता है । भाविाओं की बहती ििी में पीछे पाश्वत
गीत भी है , ररएसलिी जज रोते और हं सते भी हैं और ऐसा लगता है कक यही िनु िया का सबसे
बड़ा सच है और इस शो में जो जीता है , उसे अब सबकुछ हाससल हो सकेगा! पर क्या यह
सचमच
ु होता है ? यह एक बड़ा सवाल है जहााँ माता-वपता भी इस रं गीि िनु िया के सामिे वाले
चेहरे को सच मािकर अपिी आकांक्षाओं का बोझ अपिी संतािों पर लाि रहे हैं। बौदद्रला इसके
चार रूप बताता है —

1. न्जसमे एक ब्रबलकुल समाि दिखिे वाली प्रनतकृनत निसमतत की जाती है , न्जसे सच मािा
जा सकता है ।

2. जहााँ सत्य और प्रोजेक्िे ड सत्य के बीच की रे खा धुंधली होिे लगती है ।

3. जहााँ धचह्ि ही केंद्र में आ जाता है ।

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4. जहााँ मूल की जरूरत ही िहीं होती, माथक, झठ
ू े चेहरे , धचह्िों, प्रतीकों को ही सत्य माि
सलया जाता है , और उसी को लोग जीिे लगते हैं। यहााँ आकर सत्ता का सच ही िनु िया
का यथाथत बि जाता है क्योंकक अब िनु िया में कुछ भी सच िही है ।

1.7.1 प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्न क: ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति एक या दो पंक्क्तयों में दीक्जए-

i. हाइपरररएसलिी क्या है ? इसके प्रवततक का िाम बताइए।


ii. हाइपरररएसलिी के िो उिाहरण िीवी की िनु िया से िीन्जए।
iii. बौदद्रला िे हाइपरररएसलिी में ककि िो तत्त्वों पर बल दिया है ?
iv. हाइपरररएसलिी के निमातण में धचह्िों की क्या भसू मका है ?

प्रश्न ि : ननम्नसलणित कथनों की िही/िलत के आधाि पि पिि कीक्जए –

i. आजकल कफल्मों में अनत वाथतववकता के अिेक उिाहरण समलते हैं ( सही/ गलत)
ii. हाइपरररएसलिी की अवधारणा जीवि को अिेक खंडों में िे खिे की प्रथताविा िे ती है ।
(सही/ गलत)
iii. हाइपरररएसलिी समथत पूवत अवधारणाओं को िकार िे ती है । (सही/गलत)

1.8 हाइपिरियल औि सिनेमा

सिनेमा में इन प्रनतकृनतयों का निमातण बहुत अधधक हुआ है । हम जािते हैं कक ससिेमा
अधधकांशत: प्रनतकृनतयों में ही सत्याभास का निमातण करता है । ससिेमा िशतक के सामिे एक ऐसे
सत्य का निमातण करता है न्जसका उसकी िनु िया से कोई सम्बदध िहीं होता। यह यथाथत उि
साधारण सी दिखिे वाली कफल्म कहानियों में भी होता है जहााँ एक सामादय जीवि जीिे वाले
आिमी की िनु िया अंत में बिलती है और वह सबकुछ हाससल कर लेता है । ससिेमा हॉल में बैठे
िशतक के भीतर यह ववश्वास जदम लेता है कक अंत में सब ठीक हो जाएगा। ध्याि से िे खा जाए
तो यह एक ऐसे यथाथत का निमातण है , न्जसके पूरे होिे के सम्बदध में कोई भववष्ट्यवक्ता भी िहीं
जाि सकता! पर कफर भी कफल्म उसे यह भरोसा िे ती हैं कक अंत में सब कुछ ठीक होगा।
परीकथाओं की तरह एक ऐसे यथाथत का निमातण ककया जाता है जो तीि घंिे के आभासी सत्य
को थथावपत करता है ।

बौदद्रला िे न्जस हाइपरररएसलिी की चचात की वह एक बड़े यथाथत को दिखाती है । इस


सदिभत में तकिीक के योगिाि को याि रखिा जरूरी है । यह आभासी सत्य/ यथाथत तकिीक की
सहायता से निसमतत ककया जाता है न्जससे आिमी उस कल्पिा को ही सच माििे के सलए मजबरू
हो जाता है । सच और कल्पिा के बीच की धुंधली होती रे खाएाँ न्जि सवालों को पैिा करती हैं,
उि पर अलग से ववचार की जरूरत है । यहााँ पााँच कफल्मों की सहायता से इस हाइपरररएसलिी के
उिाहरण को िे खा जा सकता है Inception, The Matrix, Keiichi Matsuda’s short movie,
A night at the Museum-2, Kriti short movie in Hindi ( आपसे उम्मीि की जाती है कक

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आप इि कफल्मों को िे खेंगे और इिके आधार पर हाइपरररएसलिी को और अधधक ववथतार से
समझेंगे)

यहााँ एक कफल्म के उिाहरण को िे खा जा सकता है —काएचीमास्तद


ु ा की िॉटय फफल्म। यह
कफल्म 6 समिि की है न्जसे मात्सुिा िे हाइपरररएसलिी का ही िाम दिया है । यह कफल्म भववष्ट्य
को तकिीक के सहारे क्लाईड़ोथकोवपक िजररये से िे खिे की िई दृन्ष्ट्ि प्रथताववत करती है । इसमें
तकिीक पर निभतरता से जीवि को िे खिे की दृन्ष्ट्ि धंध
ु ली हो जाती है , सबकुछगड्ड-मड्ड हो
जाता है । तकिीक हर दृन्ष्ट्ि को नियंब्रत्रत करती है । तकिीक के सहारे हम जो भी िे खते हैं, उसके
प्रभाव को बाधधत ककया जा सकता है । इस कफल्म िे समाज को िे खिे और समझिे के बीच की
रे खाओं को पररसीसमत कर दिया। मावतलस और एवेंजरसीरीज में भी इस तरह की वचअ
ुत ल िनु िया
का निमातण ककया गया है । डॉक्िर थरें ज के िशतक जािते हैं कक अपिी िे ह के समािांतर चलिे
वाले इलाज में डॉक्िर थरें ज की आत्मा वचअ
ुत ली उपन्थथत दिखाई िे ती है । डॉक्िर थरें ज इस
समय अपिे िश्ु मि काईससलीयस से वचअ
ुत ल लड़ाई कर रहा है और िशतक के सामिे उसकी
आत्मा और शरीर एक साथ उपन्थथत दिखाई िे ते हैं। तकिीक के उि दृश्यों को भी सम्भव कर
दिया है , न्जदहें एक समय में असम्भव माि सलया गया था। इसे एक प्रकार की ससिे-क्रान्दत ही
कहा जा सकता है ।

निष्ट्कषत रूप में कहा जा सकता है कक ससिेमा अध्ययि एक गंभीर अकािसमक कायत है
न्जसके माध्यम से ससिेमा िे खिे और पढिे के अिेक रूपों का ववकास ककया गया। ससिेमा के
एक सजग ववद्याथी से अपेक्षा की जाती है कक वे इि पद्धनतयों का गहि अध्ययि करें साथ ही
ससिेमा के पन्श्चमी और भारतीय िोिों रूपों को िे खें न्जससे व्यावहाररक और सैद्धांनतक िोिों ही
प्रकार से ससिेमा को जााँचा, परखा और समझा जा सके!

स्वयं जााँच किें —

i. हाइपि ररएसलिी पर आधाररत ककसी एक कफल्म का ववश्लेषण कीन्जए।


ii. भारतीय ससिेमा मेंक्या रोबोि कफल्म को तकिीक के उिाहरण के रूप में िे खा जा सकता
है ?
iii. हहन्दी सिनेमा में हाइपरररएसलिी के तीि उिाहरण सलखखए।
iv. क्या भारतीय ससिेमा में तकिीक के प्रयोग की तुलिा पन्श्चमी ससिेमा के तकिीक से
की जा सकती है ? क्या यह तल
ु िा करिा सही होगा?

िंदभय िूची :
1. How to read a Film: James Monacco
2. Simulcara and Simulation: Jean Baudrilard
3. भारतीय ससिे ससद्धांत: अिुपम ओझा
4. भारतीय ससिेमा: एक अिंत यात्रा : प्रसि
ू ससदहा

60
2. हहंदी सिनेमा के दियकों की ववववध कोहटयााँ औि
उिका िाष्रीय एवं अंतििाष्रीय बाज़ाि

डॉ. सीमा शमात


जािकी िे वी कॉलेज

2.1 प्रस्तावना

ससिेमा एक सशक्त दृश्य-श्रव्य माध्यम है । ससिेमा में ‘िशतक’ महत्त्वपण


ू त भूसमका निभाते
हैं, ककसी भी कफल्म की सफलता उसके िशतकों पर निभतर करती है । ससिेमा और उसके िशतकों का
संबंध कुछ ऐसा है कक अक्सर ववशेष िशतकों को ध्याि में रखते हुए खास ककथम की कफल्में
बिायी जाती हैं। इस प्रकक्रया में िशतक की रुधच ससिेमा के कथ्य को पररवनततत करती है और
ससिेमा का कथ्य ‘िशतक’ की मािससकता में बिलाव लाता है । भारतीय समाज और संथकृनत के
पररष्ट्कार में ससिेमा का महत्त्वपूणत योगिाि है । ससिेमा एक ऐसा माध्यम है , न्जसमें समाज के
लगभग सभी वगों का कमोवेश प्रनतनिधधत्व होता है , या यों कह सकते हैं कक लगभग सभी वगों
के लोग ससिेमा को िे खते हैं। अतः यहााँ इस पाठ में दहंिी ससिेमा के िशतकों की ववववध कोदियों
और उसके राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बाजार को जाििा अपेक्षक्षत समझकर उसे रे खांककत करिे का
प्रयास ककया गया है ।

2.2 अगधिम का उद्दे श्य

इस पाठ के अध्ययि के बाि आप निम्िसलखखत जािकारी प्राप्त कर पायेंगे–


1. ससिेमा और िशतक के अदतःसम्बदध की जािकारी।
2. िशतकों के ववववध वगत का पररचय।
3. दहदिी ससिेमा के राष्ट्रीय बाजार का पररचय।
4. दहदिी ससिेमा के अंतरराष्ट्रीय बाजार का पररचय।
5. िशतक की मािससकता और बॉक्स ऑकफस के सम्बदध पर चचात।
6. िशतक से संबद्ध ससिेमा के ववववध पक्षों की जािकारी िे िा।
7. ससिेमा के ‘बाजार’ की जािकारी।

हहन्दी सिनेमा के दियकों की ववववध कोहटयााँ

जैसा कक प्रथताविा में हम बता चुके हैं कक ससिेमा की सफलता के सलए ‘िशतक’ और
उसका ‘मूड’ अहम भूसमका निभाते हैं क्योंकक कफल्म का कथ्य िशतकों की असभरुधच को ध्याि में
रखकर सलखा जाता है । सवतप्रथम पिकथा लेखक िशतक की मािससकता, मिोववज्ञाि और ‘मूड’ को

61
पकड़ता है ? उसी के अिुरूप कफल्म का तािा-बािा बुिा जाता है । कफल्म िे खिे के पीछे कई
उद्िे श्य नछपे होते हैं—

(1) कफल्म ववशुद्ध मिोरं जि के सलए िे खी जाती है । (2) कफल्म िशतकों की बौद्धधकता
न्जज्ञासा को शांत करती है , समािांतर ससिेमा की कफल्में उसी कोदि में आती हैं। (3) तीसरी कोदि
ऐसे िशतकों की भी होती है, जो चाहता है कक कफल्म उसके बौद्धधकता तकों पर खरी उतरे और
मिोरं जि भी करे ।

ककसी भी कफल्म की पठकथा के साथ जब तक िशतक थवयं को जोड़कर िहीं िे खता, तब


तक वह कफल्म को हृिय से थवीकार िहीं कर पाता और इस कारण पररश्रम से बिायी गई
कफल्म भी असफल हो जाती है । कफल्म के िायक के साथ िशतकों की संवि
े िाएाँ जुड़तीं हैं, िायक
का संघषत, पीड़ा, हषत, रोमांस सब ‘िशतक’ का अपिा बि जाता है । काव्यशाथत्रीय भाषा में इसे
‘सहृिय’ का िाम दिया गया।’ श्याम बेिेगल िे एक साक्षात्कार में कहा था ‘भारतीय िशतकों का
डी.एि.ए. एक खास ककथम की कफल्में ही पसंि करता है ।’ लेककि समय के साथ इस डी.एि.ए.
में भी पररवतति िे खिे को समला है । अब ‘जो दिखता है , वहीं ब्रबकता है ’ कहिा पयातप्त िहीं है ,
बन्ल्क कहा जाता है कक वही ब्रबकता है जो िशतक चाहता है ।

कफल्म िे खिे के पीछे ‘िशतक’ का मािससक-सामान्जक थतर कायत करता है । अक्सर ऐसा
िे खिे को समलता है कक ककसी कफल्म को बहुत पररश्रम से बिाया गया, कफल्म ‘मेककं ग’ के
उद्िे श्य में सफल भी रही पर बॉक्स ऑकफस पर कमाई िहीं कर पायी। इसके पीछे ‘िशतक’ की
मािससकता या ‘मूड’ ही कायत करता है । कफल्म न्जसे पररश्रम से तैयार ककया गया, कफल्म की िीम
के हर सिथय िे अपिा बेहतर प्रयास ककया पर वह िशतक की दृन्ष्ट्ि में कमतर ही रह गया।
कारण कोई भी हो सकता है । (1) कफल्म का कथ्य िशतकों को प्रभाववत िहीं कर पाया। (2) कफल्म
के प्रिशति का ढं ग िशतक के सलए िवीि, सभदि और उसकी समझ के परे था। कफल्म के पात्रों के
साथ िशतक तारतम्यता या आत्मीयता िहीं बिा पाया क्योंकक जब तक िशतक िायक या पात्रों से
जुड़ता िहीं है , तब तक वह उसे थवीकार िहीं कर पाता। उिाहरण के सलए िायक से प्रेम और
खलिायक से घण
ृ ा िशतकों का सहज थवभाव है , लेककि जब अचािक पिे पर आकर संजय ित्त
यह घोषणा करते हैं– “िायक िहीं खलिायक हूाँ मैं” तब ‘खलिायक’ के साथ अचािक सहािुभूनत
का जुड़िा िशतक के ‘मूड’ को ही िशातता है । (3) कफल्म की सफलता-असफलता का एक पैमािा यह
भी है कक कफल्म का ठीक प्रकार से प्रचार ि हो सका इससलए वह अपिे लक्षक्षत िशतकों तक िहीं
पहुाँच पायी और असफल हो गयी। इि सभी कारणों की जााँच करिे पर एक ही मुख्य बात
निकलकर सामिे आती है कक कफल्म-निमातण, प्रिशति-प्रकक्रया की अंनतम और महत्त्वपूणत कसौिी
उसके िशतक ही हैं।

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सिनेमा के दियकों का विीकिि

दहदिी ससिेमा के िशतकों की ववववध कोदियों का वगीकरण अिेक आधार पर ककया जा सकता है—

िामाक्जक आधाि

1. उच्च वगत - निम्ि वगत

2. सशक्षक्षत वगत - असशक्षक्षत वगत

3. शहरी वगत - ग्रामीण वगत

4. बहुसंख्यक वगत - अल्पसंख्यक वगत

5. थत्री वगत - पुरुष वगत

आयुविय आधाि

1. प्रौढ

2. युवा

3. बाल िशतक

ववषय असभरुगच आधारित दियक विय

(1) सामान्जक (2) राजिीनतक (3) धासमतक (4) खेल जगत (5) साइंस कफक्शि (6) रोमांदिक कफल्म
(7) मिोववज्ञाि आधाररत (8) कृषक/मजिरू केंदद्रत कफल्म (9) एक्शि कफल्म (10) कािूति कफल्म
(11) रहथयमयी/मायावी एवं हॉरर कफल्म (12) सुखांत कफल्म (13) िख
ु ांत कफल्म (14) सथपेंस
आधाररत अधूरी कफल्म (अक्सर ऐसी कफल्मों के सीक्वेंस बिाये जाते हैं, उसके पीछे भी िशतकों की
‘डडमांड’ एवं ‘मूड’ ही कायत करते हैं)।

इिके अनतरिक्त

1. व्यावसानयक ससिेमाई िशतक

2. समािांतर ससिेमाई िशतक

3. अदय क्षेत्रीय भाषा से ‘डब’ (अिूदित) कफल्म का िशतक

4. वविे शी कफल्मों से ‘डब’ (अिदू ित) कफल्म के िशतकों आदि की अिेक कोदियााँ दिखाई पड़ती
हैं।

5. वविे शी िशतक

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दियकों का िामाक्जक आधाि

उच्च विय/ननम्न विय—जैसा कक पहले बताया जा चक


ु ा है , कफल्म का िशतक कफल्म के
िायक से थवयं को संबद्ध करके िे खता है । उच्च वगत एवं निम्ि वगत के िशतकों का कफल्म के
प्रनत दृन्ष्ट्िकोण सभदि होता है । धिी वगत अधधकांशतः वैभव ‘थिे ट्स’, सफलता, महं गे बजि की
भव्य कफल्में िे खिा पसंि करता है । ऐसे िशतकों के सलए महं गे भव्य ‘सेिों’ की, वविे शी पष्ट्ृ ठभसू म
की पररकल्पिा की जाती है।

निम्ि वगत को कफल्म का दिकि जुिािे में ववशेष कतरब्योंत करिी पड़ती है , अपिे
रोजमरात के खचत से सभदि वह अलग से पैसा बचाता है इससलए कफल्म िे खिे का उसका मुख्य
उद्िे श्य ववशुद्ध मिोरं जि होता है । संघषतशील िायक अपिी गरीबी, भुखमरी और वववशता से
ऊपर उठकर कैसे सफल होता है , यह उसका कफल्म िे खिे का उद्िे श्य होता है । ‘जुड़वााँ’, ‘हीरो िं-
1’, पाित िर, ‘राजा बाबू’ आदि डेववड धवि की कफल्में ऐसे िशतक वगत में बहुत लोकवप्रय हुईं न्जिमें
अक्सर कथ्य उतिा प्रभावशाली िहीं था पर निम्ि वगत के िशतक के मिोरं जि और आकषतण के
सलए भरपूर मसाला रखा गया था।

सिक्षक्षत विय-असिक्षक्षत विय—सशक्षक्षत िशतक वगत अपिी बौद्धधकता न्जज्ञासाओं को शांत


करिे के सलए कथ्य की मजबूती, तकत और िवीि खोज पर ववशेष ध्याि िे ता है , वह कफल्म की
पिकथा में तारतम्यता की खोज करता है । ववशद्
ु ध मिोरं जि, िशातिे के सलए कथ्य में तकाततीत
बातों को जोड़ िे िा उसे िहीं भाता।

असशक्षक्षत वगत ववशद्


ु ध मिोरं जि पर अधधक बल िे ता है । यह ऐसा वगत है जो
अल्पसशक्षक्षत या पण
ू त
त ः असशक्षक्षत है , उसे साइंस कफक्शि जैसी कफल्में प्रभाववत िहीं कर पातीं। वह
कफल्म को अपिे बौद्धधकता थतर के अिरू
ु प िे खता है ।

िहिी-ग्रामीि विय—िशतकों का शहरी वगत शहर की राजिीनतक-सामान्जक समथयाओं,


उपलन्ब्धयों, महािगरीय चुिौनतयों को कफल्म में खोजता है । उिाहरण के सलए सि 1977 में एक
कफल्म आयी ‘घरौंिा’ जो डॉ. शंकर शेष के िािक ‘घरौंिा’ पर आधाररत थी। यह कफल्म महािगर
में ‘अपिे घर की तलाश’ ववषय पर आधाररत थी। जादहर सी बात है कक ‘अपिे घर की तलाश’
की चुिौती शहरी वगत की अधधक है इससलए वह कफल्म ग्रामीण िशतक की तुलिा में शहरी िशतकों
को अधधक प्रभाववत करती है ।

ग्रामीण वगत कफल्म में अपिी जमीिी सच्चाइयों की खोज करता है । ववपरीत मौसम की
मार सहते हुए िायक थवयं को ककस प्रकार थथावपत करता है । फसल, प्राकृनतक आपिाएाँ, सि
ू खोरी,
महाजिी व्यवथथा, ग्रामीण ववकास आदि ववषय तथा ग्रामीण सामान्जक समथयाएाँ आदि ववषय
ग्रामीण िशतकों को अधधक प्रभाववत करते हैं। ‘गाइड’, ‘मिर इंडडया’, ‘िया िौर’, ‘गोिाि’ जैसी

64
कफल्में ऐसे िशतकों द्वारा ववशेष रूप से सराही गयीं। लोकधुिों को भी ऐसा िशतक वगत ववशेष चाव
से िे खता है उिाहरण के सलए श्री 420 का ‘रमैया वथता वैया’, ‘िाधगि’ का ‘जािग
ू र सैंया छोड़
मेरी बदहयााँ’, ‘मिर इंडडया का ‘िःु ख भरे दिि बीते रे भैया अब सुख आया रे ’ आदि।

बहुिंख्यक विय-अल्पिंख्यक विय—कुछ कफल्में बहुसंख्यक वगत को ध्याि में रखकर बिायी
जाती हैं तो कुछ अल्पसंख्यक वगत को ध्याि में रखकर निसमतत होती हैं। 7 जिवरी, 1977 को
मिमोहि िे साई की कफल्म आयी ‘अमर अकबर एदथोिी’ न्जसमें तीि भाई, तीि अलग-अलग
धासमतक पररवेश में बड़े हुए। कफल्म में तीि वगों दहंि,ू मुन्थलम और इसाई को प्रनतनिधधत्व दिया
गया था। इस प्रकार कफल्म में हर वगत के िशतकों को जोड़िे का कायत ककया गया था। कफल्म की
बॉक्स ऑकफस पर कमाई हुई 15.5 करोड़।

बहुसंख्यक वगत की सामान्जक समथयाओं, मादयताओं एवं आथथा को लेकर कफल्में बिायी
गयीं। उिाहरण के सलए पद्मावत (25 जिवरी, 2018) जो कक संजय लीला भंसाली द्वारा नििे सशतत
कफल्म थी। इस ऐनतहाससक कफल्म में दहंि ू रजवाडे, परं परा, िारी-अन्थमता जैसे ववषयों को उठाया
गया था। इस कफल्म िे बॉक्स ऑकफस पर 5.85 ब्रबसलयि रुपयों की कमाई की। इसी प्रकार
ववजय शमात द्वारा नििे सशत ‘जय संतोषी मााँ’ (15 अगथत, 1975) को ररलीज हुई। यह कफल्म
बहुसंख्यक िशतक वगत द्वारा बहुत सराही गयी। 2006 में ररलीज ‘वववाह’ भी ऐसी ही एक कफल्म
थी न्जसिे इस िशतक वगत की बहुत प्रशंसा पायी।

अल्पसंख्यक िशतक वगत के सलए बिायी गयी कफल्मों के कुछ उिाहरण हैं ‘निकाह’ 24
ससतंबर, 1982 को ररलीज हुई। इस कफल्म के नििे शक थे बलिे व राज चोपड़ा। यह कफल्म मुन्थलम
वववाह की मादयताओं और कदठिाइयों को लेकर बिायी गयी। रामािंि सागर द्वारा नििे सशत
‘सलमा’ 1985 में ररलीज हुई जो शायर और तवायफ के प्रेम को िशातती है । 2008 में ‘जोधा
अकबर’ आशुतोष गोवररकर द्वारा नििे सशत कफल्म थी न्जसमें दहंि ू रािी जोधा का गररमामय
भव्य धचत्रण और मन्ु थलम शासक अकबर का प्रशासि िशातया गया था। 400 समलयि में निसमतत
इस कफल्म िे 1.12 ब्रबसलयि की बॉक्स ऑकफस में कमाई िजत की। इस कफल्म के माध्यम से
बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक िशतक वगत की प्रशंसा बिोरी गयी।

स्त्री विय-पुरुष विय—थत्री िशतक वगत को ध्याि में रखते हुए िारी-प्रधाि कफल्मों का निमातण
ककया जाता है उिाहरण के सलए ‘लज्जा’, ‘गुलाब गैंग’, ‘िीक्षा’, थत्री, ‘ि थकाई इज वपंक’ आदि।
‘िॉयलेि एक प्रेम कथा’, ‘पैडमैि’ भी इसी कोदि की कफल्में हैं न्जिमें थत्री की समथयाओं, संघषों,
चुिौनतयों, िारी अन्थमता एवं अन्थतत्व को ध्याि में रखा गया है । ऐसा िहीं है कक इि कफल्मों
का िशतक पुरुष वगत िहीं है, बन्ल्क यहााँ महत्त्वपण
ू त तथ्य यह है कक थत्री िशतक वगत की भाविाओं
को यहााँ सवातधधक महत्त्व दिया गया है ।

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अधधकांश दहंिी कफल्में पुरुष प्रधाि होती हैं, न्जिमें िानयका की भूसमका सजाविी रूप में
प्रथतुत होती है । कफल्म का अधधकांश दहथसा िायक के दहथसे में चला जाता है । ऐसी कफल्मों का
निमातण पुरुष िशतक वगत की भाविाओं को ध्याि में रखकर ककया जाता है ।

आयु विय के आधाि पि ‘दियक’ की कोहटयााँ—व्यन्क्त की समझ, पररपक्वता, अिुभव एवं


भाषा ज्ञाि को ध्याि में रखते हुए तथा आयु से संबद्ध सामान्जक, मिोवैज्ञानिक पहलुओं को
ध्याि में रखते हुए इस वगत की कोदियााँ रखी गयीं। यह सहज ही िे खा गया है कक आयु
पररपक्वता, ववचारों की प्रौढता के आधार पर समयािस
ु ार, व्यन्क्त की असभरुधच में बिलाव होता
है । बच्चे एक ही कफल्म को बीस बार भी िे ख लें तब भी बोररयत अिुभव िहीं करते जबकक
वयथक िशतक ककसी कफल्म को बहुत अच्छी लगिे के पश्चात भी अधधकतम िो से तीि बार
िे खिा पसंि करता है । बाल िशतक के सलए बिी कफल्में छोिी होती हैं , युवा िशतक के सलए बिी
कफल्में अपेक्षाकृत बड़ी होती हैं।

प्रौढ़ दियक विय—प्रौढ िशतक अक्सर पाररवाररक, ताककतक, सामान्जक-राजिीनतक समथयाओं


पर केन्दद्रत एवं धासमतक कफल्मेां में अधधक असभरुधच रखता है । यह वगत समाज की लघु इकाई
‘पररवार’ से भाविात्मक रूप से जुड़ा होता है इससलए पाररवाररक कफल्मों को भी बहुत पसंि करता
है ? ऐसे वगत के सलए सीनियर ससिीजि से संबंधधत समथयाएाँ अकेलापि, पीढीगत िकराव,
न्जजीववषा, संघषत जीवि के खट्िे -मीठे अिुभव जुड़े होते हैं। उिाहरण के सलए 1984 में महे श भट्ि
द्वारा नििे सशत कफल्म आयी ‘सारांश’ न्जसके सलए सवतश्रेष्ट्ठ असभिेता के तौर पर अिुपम खेर को
कफल्म ़िेयर पुरथकार भी दिया गया। कफल्म का कथ्य था—एक सेवानिवत्त
ृ थकूल सशक्षक और
उसकी पत्िी, दयूयॉकत में हुई लूि की घििा और अपिे एकमात्र पुत्र की हत्या की त्रासिी से कैसे
उबरिे का प्रयास करते हैं। इकलौते बेिे की हत्या, व्यवथथा से संघषत और ढलती उम्र की चुिौनतयााँ
का इस कफल्म में प्रभावशाली अंकि ककया गया था।

1983 में नििे शक मोहि कुमार की कफल्म ‘अवतार’ व्यावसानयक दृन्ष्ट्ि से बहुत दहि रही
कफल्म में पीढीगत िकराव और बच्चों के कत्ततव्य ववमुख होिे के पश्चात भी कफल्म का अधेड़
िायक ककस प्रकार थवासभमाि पूवक
त अपिे जीवि के संघषों से जझ
ू ता है । िघ
ु ि
त िा में उसका एक
हाथ भी कि गया है पर कोई भी ववपरीत पररन्थथनत उसे परान्जत िहीं कर पाती। वह एक
अपराजेय िायक है । लगभग इसी ववषय को लेकर नििे शक रवव चोपड़ा की कफल्म आयी बागबाि
(2003)। इस कफल्म में वही अपराजेय िायक अपिे संघषों और पीड़ा को पुथतक में उतारता है ।
उसकी पुथतक बहुत लोकवप्रयता हाससल करती है ।

सि 2005 में संजय लीला भंसाली द्वारा नििे सशत कफल्म आयी ‘ब्लैक’ जो एक अंधी
बच्ची और उसके अधेड़ सशक्षक के संघषों और चुिौनतयों को िशातती है । चीिी कम (2007), कभी

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खुशी, कभी गम (2001), मोहब्बतें (2000), निःशब्ि (2007) इसी श्रेणी की कफल्में हैं, जो प्रौढ िशतकों
को ध्याि में रखकर बिायी गयीं इसीसलए ‘लीड’ रोल में प्रौढ िायक को वरीयता िी गयी।

युवा-दियक विय—युवा िशतक वगत को ध्याि में रखते हुए जो कफल्में बिायी जाती हैं उिमें
युवा पीढी का जोश, थवप्ि, उड़ाि, न्जज्ञासा, ियी ववचारधारा, रोमािी रं ग, संघषत, भिकाव आदि ववषय
समादहत होते हैं। युवा पीढी की ियी मािससकता का पुरािी पीढी से िकराव, िया जोश, ववद्रोह
आदि ववषय भी इसके अंतगतत शासमल ककये जा सकते हैं।

2004 में मखणरत्िम द्वारा नििे सशत कफल्म आयी ‘युवा’। इसमें िशातया गया है कक
माइकल, अजि
ुत और लल्लि का जीवि उस समय एक िस
ू रे से जुड़ जाता है जब वे कोलकाता में
बिलते राजिीनतक वप्रदृश्य के िौराि षड्यंत्र के जाल में फंसते हैं। इस कफल्म को कफल्म फेयर
पुरथकार भी समले और 26 करोड़ की आय ‘युवा’ कफल्म को हुई।

1971 में िे व आिंि द्वारा नििे सशत एक कफल्म आयी ‘हरे रामा, हरे कृष्ट्णा’। कफल्म का
ववषय था—पररवार में समुधचत थिेह ि समलिे से युवा पीढी का भिकाव और िशे के कारोबार में
सलप्त सौिागरों के चंगुल में फंसिे की वववशता।

युवा मािससकता के थवप्िों, रोमािी रं गों को आधार बिाकर भी बॉक्स ऑकफस पर सुपर
दहि कफल्में बिीं न्जिका कथ्य, संगीत और संवाि भी बहुत लोकवप्रय हुए। 1995 में नििे शक
आदित्य चोपड़ा की कफल्म आयी ‘दिल वाले, िल्
ु हनिया ले जायेंगे’। इस कफल्म िे लोकवप्रयता के
अिेक कीनततमाि तोड़े। इस कफल्म के संवाि युवा िशतकों की ज़बाि पर थे। उिाहरण के सलए
“बड़े-बड़े िे शों में ऐसी छोिी-छोिी बातें होती रहती हैं सेिोरीिा।” इसी प्रकार 1998 में नििे शक
करण जौहर की कफल्म ररलीज हुई, न्जसका िाम था ‘कुछ कुछ होता है ’ इस कफल्म में प्रेम
ब्रत्रकोण को एक िये दृन्ष्ट्िकोण से धचब्रत्रत ककया गया। इस कफल्म के संवाि भी युवा िशतकों में
बेहि लोकवप्रय हुए। उिाहरण के सलए “हम एक बार जीते हैं, एक बार मरते हैं, शािी भी एक बार
होती है ...और प्यार एक बार ही होता है ।” तथा “लड़ककयों के पीछे िहीं भागता, लड़ककयााँ मेरे पीछे
भागती हैं।”

सि 2007 में एक कफल्म आयी ‘ओम शांनत ओम’ न्जसकी नििे शक फराह खाि थीं।
पुिजतदम के प्रेम की अवधारणा इस कफल्म का मुख्य ‘थीम’ था। इस कफल्म के संवाि भी िशतकों
को बहुत भाये। कफल्म िे खकर लौि रहे िशतक अक्सर इि संवािों को िोहराते पाये जाते थे।
“कहते हैं अगर ककसी चीज़ को दिल से चाहो...तो पूरी कायिात उसे तुमसे समलािे की कोसशश में
लग जाती है ।” तथा “इतिी सशद्ित से मैंिे तुम्हें पािे की कोसशश की है ...कक हर ज़रे िे मझ
ु े
तुमसे समलािे की सान्जश की है ।” इस कफल्म िे बॉक्स ऑकफस पर 1.53 ब्रबसलयि की कमाई
की।

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सि 2009 में नििे शक राजकुमार दहरािी की कफल्म ‘िी इडडयट्स’ आयी। इस कफल्म में
युवा िशतकों के आकषतण हेतु कॉलेज में पढिे वाले तीि युवा चररत्रों, उिके थवप्ि मािससकता,
पढाई और पररवार का िबाव सभी बातों को कुशलता से उभारा गया था। कफल्म इस अवधारणा
को िशतकों के समक्ष रखती है कक अंक ककसी की प्रनतभा का पैमािा िहीं होते। सफलता प्रान्प्त के
सलए उस क्षेत्र में व्यन्क्त की रुधच होिा अत्यदत आवश्यक है । नििे शक राजकुमार दहरािी की
ववशेषता यही है कक वे गंभीर बातों को भी मिोरं जक और हाँसते-हाँसाते ढं ग से प्रथतुत कर िे ते हैं।
इस कफल्म का एक संवाि दृष्ट्िव्य है —इस िे श में गारं िी के साथ, 30 समिि में वपज्जा आ जाता
है , लेककि एंबुलेंस िहीं।”

‘हम तुम’ (2004) नििे शक कुणाल कोहली भी युवा िशतकों में लोकवप्रय कफल्म थी।

राजकपूर, गुरुित्त, िे वािंि, शम्मी कपूर, राजेश खदिा, असभताभ बच्चि, शाहरूख खाि, संजय
ित्त, आसमर खाि, सलमाि खाि, ऋनतक रोशि, वैजयंती माला, िरधगस, वहीिा रहमाि, आशा पारे ख,
हे मा मासलिी, श्रीिे वी, रे खा, माधुरी िीक्षक्षत, ऐश्वयात राय, ववद्या बालि आदि की कफल्में युवा िशतकों
को बहुत लुभाती रही हैं और उिकी भरपूर तासलयााँ भी बिोरी हैं। दहंिी कफल्मों का सबसे बड़ा
िशतक वगत ‘युवा वगत’ ही है जो नियसमत कफल्म िे खता है ।

बाल-दियक—दहंिी ससिेमा के िशतकों में आयु वगत में सबसे छोिे आयु वगत बाल िशतकों का
है बालमि की िनु िया सतरं गी होती है । यह ऐसे थवप्िों की िनु िया है जहााँ रं ग है , फैं िे सी है ,
रहथयमयी-जाि ू भरी िनु िया है । यहााँ काल्पनिक हीरो हैं, जािई
ु पररयााँ हैं, आश्चयत लोक हैं। ऐसी
िनु िया यथाथत से िरू थवन्प्िल अधधक है । बाल िशतकों को ध्याि में रखकर कफल्मों के कथ्य इदहीं
पर आधाररत होते हैं। िस
ू री महत्त्वपूणत बात भाषा-ज्ञाि को लेकर है । बाल िशतकों का भाषा ज्ञाि
सीसमत होता है इससलए संवािों में भावषक थतर का ववशेष ध्याि रखा जाता है । बाल िशतकों के
सलए बिी कफल्मों में तीसरी महत्त्वपूणत बात बाल मिोववज्ञाि से संबंधधत है । बच्चों के मि तक
पहुाँचिे के सलए बच्चों जैसी सोच आवश्यक है । चौथी महत्त्वपूणत बात कफल्म की लंबाई से संबधं धत
है । बच्चे चंचल प्रववृ त्त के होते हैं इससलए उदहें लघु कफल्में अधधक प्रभाववत करती हैं।

सि 1983 में नििे शक शेखर कपूर की ‘मासूम’ कफल्म ररलीज हुई। पररवार में सौतले
बच्चे को ‘एडजथि’ करिे के तिाव को लेकर यह कफल्म आयी। ‘सौतले’ का तिाव कफल्म के
वयथक पात्रों में न्जतिा अधधक है , उतिी ही निन्श्चंतता पररवार के तीिों बच्चों में है । वे सहज
भाव से एक-िस
ू रे के समत्र बि जाते हैं, हाँसते, िाचते-गाते हैं। कफल्म का गीत ‘लकड़ी की काठी,
काठी पे घोड़ा’ बाल िशतकों में बेहि लोकवप्रय हुआ।

1987 में शेखर कपूर द्वारा नििे सशत ‘समथिर इंडडया’ ररलीज हुई। यह कफल्म अिाथ
बच्चों की समथया और सुपर िेचुरल पावर प्राप्त िायक अरुण की कथा कहती है । यह कफल्म

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बाल िशतकों को बहुत भायी और ‘मौगैम्बो खुश हुआ’ का संवाि बाल िशतकों की ज़बाि पर चढ
गया।

सि 2007 में नििे शक आसमर खाि की कफल्म ‘तारे ज़मीं पर’ ररलीज हुई न्जसे कफल्म
़िेयर की सवतश्रेष्ट्ठ कफल्म मािा गया। कफल्म का कथ्य डडथलेन्क्सया से पीडड़त बच्चे के
मिेाववज्ञाि, तिाव, सामादय बच्चों की भााँनत चीजों को ि समझ पािे की धचंता, पाररवाररक-
सामान्जक अपमाि को झेलिे की वववशता आदि कई अहम बातों को िशतकों के समक्ष रखती है।
बाल मिोववज्ञाि की झलक कफल्म के इसी संवाि से समल जाती है —‘निकंु भ सर बहुत अच्छे हैं। वे
िस
ू रे िीचर की तरह कभी िहीं डााँिते। उिके चेहरे पर सिा मुथकाि रहती है । उदहें मेरी तरह रं ग,
मछसलयााँ और धचत्र बिािा पसंि है । निकंु भ सर िे मुझे कई िई बातें बतायीं जो कक बेहि
मजेिार हैं। मैं बड़ा होकर निकंु भ सर जैसा बििा चाहूाँगा।’

बाल िशतकों को लुभािे के सलए धासमतक-ऐनतहाससक पात्रों को लेकर एिीमेशि कफल्में भी


बिायी गयीं जैसे माईफ्ेंड गणेश (2007), बाल गणेश (2007), बाल हिुमाि आदि। काल्पनिक
चररत्रों पर आधाररत ‘शन्क्तमाि’ कफल्म भी बाल िशतकों िे बहुत सराही।

प्रश्नों की जााँच स्वयं किना—

प्रश्न (क) िही िब्द के चन


ु ाव के द्वािा रिक्त स्थान की पूनतय कीक्जए—

1. पिकथा-लेखक िशतक की मािससकता और------------------------------------- को पकड़ता है ।


(रं ग/मूड़)

2. कफल्म िे खिे के पीछे िशतक का ----------------------------------------थतर (मािससक/भौनतक)


कायत करता है ।

3. युवा िशतक वगत ---------------------------------------- कफल्म िे खता है (नियसमत/यिा किा)

4. बाल िशतकों की िनु िया ------------------------------------------- होती है । (िवरं गी/सतरं गी)

प्रश्न (ि) ननम्नसलणित बहुववकल्पीय प्रश्नों में िे िही ववकल्प का चयन कीक्जए—

1. ‘जंगल बुक’-कफल्म मुख्यतः ककस िशतक वगत को ध्याि में रखते हुए बिायी गयी।

(i) युवा िशतक (ii) प्रौढ िशतक

(iii) बाल िशतक (iv) ककसी के सलए भी िहीं

2. ‘िी इडडयट्स’ कफल्म का लक्षक्षत िशतक वगत कौि है ।

(i) सशक्षारत युवा वगत (ii) बाल वगत

(iii) कृषक वगत (iv) मजिरू वगत

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3. असशक्षक्षत ग्रामीण िशतक वगत में जागरुकता लािे के उद्िे श्य से ककस कफल्म का निमातण
हुआ।

(i) शौचालय: एक प्रेम कथा (ii) िं गल


(iii) सुल्ताि (iv) िबंग
4. दहदिी ससिेमा का बड़ा िशतक वगत कौि है ?
(i) प्रौढ (ii) युवा
(iii) बाल (iv) कृषक
प्रश्ि (ग) निम्िसलखखत में से सही ववकल्प का चयि कीन्जए—
1. ववशुद्ध मिोरं जि युक्त कफल्मों को श्रसमक-वगत ककस उद्िे श्य से कफल्म िे खता है —
(क) अपिी शारीररक एवं मािससक थकाि भुलािे के सलए मिोरं जक कफल्म िे खते हैं।
(ख) सामान्जक समथया का निराकरण करिे के सलए कफल्म िे खते हैं।
2. अक्सर प्रौढ-िशतक ककस तरह की कफल्मों में रुधच लेता है ।
(क) क्योंकक प्रौढ िशतक उि सभी समथयाओं से जूझता है और कफल्म के माध्यम से
उिका समाधाि चाहता है ।
(ख) क्योंकक प्रौढ िशतक का मिोरं जि इस प्रकार की कफल्में िे खकर ही होता है ।
3. िनु िया में सवातधधक कफल्में कहााँ िे खी जाती हैं।
(क) भारत
(ख) इंग्लैंड

व्याविानयक सिनेमाई दियक-िमानांति सिनेमाई दियक—व्यावसानयक कफल्मों में असभरुधच


रखिे वाले िशतक ढाई से तीि घंिे की कफल्म में ववशद्
ु ध मिोरं जि खोजते हैं। वे उसमें ऐसे सभी
तत्त्व खोजते हैं जैसे एक्शि, रोमांस, खूबसूरत लोकेशि, संगीत, िवीितम फैशि रें ड, मेकअप
इत्यादि। इसी कारण व्यावसानयक कफल्में इदहीं मसालों को आधार बिाकर बिी होती हैं। ऐसी
कफल्मों का िशतक वगत बहुत बड़ा है , इससलए व्यावसानयक कफल्मों का निमातण अधधक होता है । ये
कफल्में निमातता के उद्िे श्य (अधधकाधधक आय) में सफल होती हैं। कुछ प्रससद्ध कफल्में न्जदहोंिे
बॉक्स ऑकफस पर कीनततमाि थथावपत कीं—मेरा िाम जोकर, िे विास, मिर इंडडया, मुगले आजम,
डॉि, शोले, अमर अकबर एंथिी, मैंिे प्यार ककया, िी इडडयट्स, जोधा अकबर, कोई समल गया,
पद्मावत आदि इस वगत की कफल्मों की सूची बहुत लम्बी है ।

िमानांति सिनेमाई दियक—समािांतर अथवा कला कफल्मों का िशतक कफल्मों के कथ्य


उद्िे श्य और साथतक संिेश पर दृन्ष्ट्ि दिकाता है । इि कफल्मों में भव्य सेि िहीं होते, िा ही महं गी
पोशाक या आउिडोर लोकेशि के िशति होते हैं। ऐसी कफल्मों का कथ्य मजबूत और गहरे संिेश
की छाप छोड़ता है । उिाहरण के सलए अंकुर कफल्म िसलत खेनतहर मजिरू और उसकी पत्िी के

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िै दहक शोषण पर आधाररत भी न्जसे िशतकों िे बहुत पसंि ककया और कफल्म िे 42 पुरथकार
जीते। 1930 में एक कफल्म आयी ‘मग
ृ या’। इस कफल्म में समथुि चक्रवती को बेहतरीि असभिय
का पुरथकार समला। यह कफल्म उड़ीसा में अंग्रज
े ी सरकार के ववरुद्ध संथाल आदिवाससयों के
ववद्रोह की कथा पर आधाररत थी। इसी प्रकार सईि समजात की कफल्म ‘अल्बित वपंिो को गथ
ु सा
क्यों आता है ’। मध्यवगीय व्यन्क्त के जीवि के ववरोधाभासों पर केंदद्रत थी।

अरुण कौल के नििे शि में एक कफल्म आयी ‘िीक्षा’ न्जसमें िसलतों के प्रनत भेिभाव, िारी
शोषण, ववधवा की समथया को मासमतक ढं ग से उभारा गया। समािांतर ससिेमा में कफल्मों के गहि
अथत और उससे संबद्ध महत उद्िे श्य तथा ज़मीिी सच्चाइयों को ववशेष रूप से ध्याि में रखा
जाता है । यह फेंिे सी से िरू यथाथत ससिेमा है । गोववदि निहलािी की कफल्म ‘आक्रोश’ (1981)
आदिवाससयों के जीवि पर आधाररत थी। ‘अथत’, ‘बाजार’, ‘मंथि’, ‘मंडी’, िामुल, सारांश आदि इस वगत
के महत्त्वपूणत उिाहरण हैं।

ववषयाधारित दियकों के विय—प्रत्येक मिुष्ट्य की असभरुधच सभदि होती है । अपिी रुधच के


अिुरूप ही िशतक कफल्में िे खिा पसंि करता है । यह ब्रबलकुल वैसा ही है जैसे समाचार पत्र में हर
पष्ट्ृ ठ का पाठक अलग होता है अपिी रुधच एवं बौद्धधक थतर के अिुरूप पाठक अपिा पेज खोज
लेता है । राजिीनतक, समाचारों का पाठक अलग है , आधथतक का अलग, धासमतक-ज्योनतष समाचारों,
कफल्म जगत, खेल जगत का पाठक अलग है । संपािकीय पष्ट्ृ ठ का पाठक वगत अलग है । इसी
प्रकार कफल्मों के अिुरूप उसके िशतकों का वगत भी सभदि है ।

िामाक्जक फफल्म—ऐसी कफल्मों के ववषय व्यन्क्त, पररवार और समाज के संबंध, समाज की


ववसभदि समथयाओं पर आधाररत होते हैं उिाहरण के सलए-सत्यम सशवम सद
ु िरम, िो आाँखें बारह
हाथ, िया िौर, राम तेरी गंगा मैली, प्रेम रोग, कज़र (पुिजतदम के ससद्धांत पर आधाररत) प्यार
झुकता िहीं, लज्जा, वॉिर आदि।

िाजनीनतक फफल्म—आज ‘राजिीनत’ केंद्र में है । कमोबेश हर व्यन्क्त की दिलचथपी


राजिीनत में है । इससलए िशतकों की रुधच और मााँग के अिुरूप राजिीनतक कफल्में आयीं। जैस—

‘आज का एम.एल.ए. रामावतार (1984), सरकार, आरक्षण, रावण आदि।

धासमयक फफल्म—धासमतक कफल्मों का भी एक बड़ा वगत है । धासमतक आथथा, ववश्वास एवं


अध्यात्म, ईश्वरीय दयाय, कमत-ससद्धांत आदि बातों पर ये कफल्में आधाररत होती हैं। उिाहरण के
सलए-जय संतोषी मााँ, भन्क्त में शन्क्त (1979), सशरडी साईं, मााँ आदि।

ऐनतहासिक फफल्म—इनतहास के तथ्यों और कल्पिा पर आधाररत कफल्में भी िशतकों को


बहुत भाती हैं। जैस-े मुगले आज़म, शाहजहााँ, गोलकंु डा का कैिी, जोधा अकबर, बाजीराव मथतािी,

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पद्मावत आदि कफल्में िशतकों के मध्य बहुत सफल रहीं। ‘पद्मावत’ जैसी कफल्में भरपूर वववािों के
पश्चात भी िशतकों में जुिूि के साथ िे खी जाती हैं।

कृषक/मजदिू विय पि आधारित फफल्म—कृषकों से जुड़ी हुई ज़मीिी सच्चाइयों, समथयाओं,


प्राकृनतक आपिाओं, मजिरू यूिीयि, पाँूजीपनत और श्रसमक का िकराव आदि ववषयों पर आधाररत
कफल्मों का एक खास िशतक वगत है ।

नािी प्रधान फफल्में —ऐसी कफल्मों में थत्री से जुड़ी समथयाओं को उभारा जाता है । िारी-
प्रधाि कफल्मों में जो िशतकों में ववशेष रूप से सराही गयी-िासमिी, लज्जा, बैंडडि क्वीि, जुबैिा,
वािर, फायर, गुलाब गैंग, थत्री, ि थकाई इज वपंक आदि।

िोमांहटक फफल्म—रोमांदिक कफल्में िशतकों के बीच बहुत लोकवप्रय रहती हैं ववशेष रूप से
युवा िशतक इि कफल्मों का बहुत बड़ा िशतक वगत है । जैसे जूली (1975), लैला मजिू (1976), सोहिी
मदहवाल (1984), हीर रााँझा (1970), कयामत से कयामत तक, मैंिे प्यार ककया, प्यार झुकता िहीं,
दिलवाले िल्
ु हनिया ले जायेंगे, कुछ कुछ होता है आदि कफल्मों िे िशतकों की खूब तासलयााँ बिोरीं।

िाइंि फफक्िन—साइंस और फैं िे सी पर आधाररत कफल्में भी िशतकों को बहुत लभ


ु ाती हैं।
जैस-े समथिर इंडडया 1987), कक्रश, लव थिोरी 2050, 2-0, रोबोि, समशि मंगल आदि।

एक्िन फफल्म—एक्शि से भरपूर कफल्में िशतकों में खब


ू सराही जाती हैं। िशतकों के मि का
आक्रोश जहााँ वह सावतजनिक िहीं कर पाता उसका कारण अिेक प्रकार के िबाव हो सकते हैं। वह
आक्रोश ऐसी एक्शि कफल्मों को िे खकर ‘कैथारससस’ का कायत करता है । असमताभ बच्चि की तो
छवव ही िशतकों के मध्य ‘एंग्री यंग मैि’ की है । सलमाि खाि, ऋनतक रोशि, रजिीकांत आदि की
कफल्में िशतकों में उिके एक्शि दृश्यों के कारण बहुत लोकवप्रय हुईं। ऐसी कफल्मों में ‘शोले’ िे
सफलता के िये कीनततमाि गढे । इस कफल्म के संवाि िशतकों की जुबाि पर चढ गये-‘इि कुत्तों के
आगे मत िाचिा बसंती’ और ‘ककतिे आिमी थे’ आदि।

िेल जित ् पि आधारित फफल्म—खेलों में रुधच रखिे वाले िशतकों को ध्याि में रखते हुए
खेल प्रधाि कफल्मों का निमातण ककया जाता है । जैसे लगाि, चख िे इंडडया, मैरी कॉम, भाग समल्खा
भाग आदि।

हास्य प्रधान फफल्में—अपिे रोजमरात के संघषों, तिावों को िरू करिे के सलए िशतकों का
ऐसा वगत भी है जो हाथय कफल्में िे खिा पसंि करता है । िशतकों द्वारा हाथय कफल्मों में रुधच लेिे
के कारण दहंिी कफल्मों का िायक ही हाथय के दृश्य भी करिे लगा। असभताभ बच्चि, आसमर
खाि, अक्षय कुमार आदि असभिेता इसके उिाहरण हैं। असभताभ बच्चि की कफल्म ‘िमक हलाल’
का प्रससद्ध संवाि दृष्ट्िव्य है ।

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“आई कैि िॉक इंन्ग्लश, आई कैि वॉक इंन्ग्लश, आई कैि लाफ इंन्ग्लश ब्रबकॉज इंन्ग्लश
इज ऐ वैरी फिी लैंग्वेज, भैरों ब्रबकम्स बैरो ब्रबकॉज िे यर माइंड़स आर वैरी िैरो।”

एनीमेिन फफल्म—ऐिीमेशि कफल्में सभी वगत के िशतकों को आकवषतत करती हैं पर बाल
िशतक ऐसी कफल्मों को बहुत रुधचपूवक
त िे खता है । जंगल बुक (बाल िशतक) हम-तुम (युवा िशतक)
आदि कफल्में इसका उिाहरण हैं।

िहस्यमयी मायावी औि हॉिि फफल्म—ऐसी कफल्म में रुधच रखिे वालों का एक खासा
िशतक वगत है । महल, राज़, भल
ू -भूलैया, थत्री आदि कफल्में िशतकों में बहुत लोकवप्रय हुईं।

क्षेत्रीय भाषाओं औि ववदे िों िे र्ब हहंदी फफल्में भी िशतकों में बहुत पसंि की गयी हैं।
जैस—
े ‘ि लॉयि ककं ग’, ‘एवेंजसत एंड गेम’, ‘िाइिै निक’, ‘थिार वॉसत’, ‘फ्ोजि’ आदि ।

ववदे िी दियक दहंिी ससिेमा का एक बड़ा वगत वविे शी िशतक वगत का है । अदतरराष्ट्रीय थतर
पर दहंिी कफल्में बहुत लोकवप्रय हैं। वविे शी िशतकों के दहंिी कफल्मों में रुधच लेिे के अिेक
महत्त्वपूणत कारण हैं—
1. पयतिि को प्रोत्साहि।
2. भारतीय धमत, संथकृनत, अध्यात्म को जाििा।
3. भारतीय समाज और इनतहास की जािकारी।
4. दहंिी भाषा का ज्ञाि अन्जतत करिा।
5. ववशुद्ध मिोरं जि।
6. सरहि पार की प्रेम कहानियों में रुधच आदि।

राजकपूर की कफल्मों से लेकर अब तक की बहुत सी कफल्में वविे शी िशतकों में सराही गयी
हैं। राजकपूर द्वारा असभिीत गािा— “मेरा जूता है जापािी, ये पतलूि इंन्ग्लशतािी, सर पे लाल
िोपी रूसी, कफर भी दिल है दहंिथ
ु तािी।” ‘वसध
ु ैव कुिुम्बकम’ की भाविा को िशातता है । यह गािा
वविे शी िशतकों में बहुत लोकवप्रय हुआ।

असमताभ बच्चि की ‘डॉि’ कफल्म का यह प्रससद्ध संवाि—“डॉि का इंतजार तो ग्यारह


मुल्कों की पसु लस कर रही है ... लेककि डॉि को पकड़िा मुन्श्कल ही िहीं िामुमककि है ।” आज भी
वविे शी िशतकों की ज़बाि पर है । इस संवाि में आया हुआ अंक ‘ग्यारह िे शों की पुसलस’ से ही
दहदिी ससिेमा की अदतरराष्ट्रीय व्यान्प्त और प्रभाव का आकलि हो जाता है ।

प्रश्नों की जााँच स्वयं किना


प्रश्ि : सही ववकल्प का चयि कीन्जए—
(क) प्रभास द्वारा असभिीत कफल्म ‘बाहुबली-2’ िे ककतिी आय अन्जतत की थी—

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(i) 318 करोड़ (ii) 153 करोड़ (iii) 511 करोड़।
(ख) 2013 में भारत वावषतक कफल्म निमातण के कौि से पायिाि पर था—
(i) प्रथम (ii) द्ववतीय (iii) तत
ृ ीय (iv) कोई िहीं।
(ग) सभी भारतीय भाषाओं को समलाकर भारत में लगभग ककतिी कफल्मों का निमातण होता
है —
(i) 1200 कफल्में (ii) 1600 कफल्में ।

हहंदी सिनेमा का िाष्रीय औि अंतििाष्रीय बाजाि


दहंिी ससिेमा ि केवल भारत में िे खा जाता है बन्ल्क भारत से बाहर प्रवासी भारतीयों एवं
वविे शी िशतकों द्वारा भी िे खा जाता है । हमारे िे श की सरकार अपिे थतर पर एवं ववसभदि
संथथाओं के माध्यम से ससिेमा के सलए राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार ववकससत करिे के
निरं तर प्रयास करती है । प्रथतुत लेख के द्वारा ववद्याथी ससिेमा के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय
बाजार से पररधचत होंगे।

‘बाज़ार’ एक ऐसा थथाि है , जहााँ मिष्ट्ु य की आवश्यकता की ववसभदि वथतुएाँ एक ही


थथाि पर समल जाती हैं। बाजार में मिुष्ट्य की ‘आवश्यकता’ कायत करती है । ‘बाज़ारवाि’ अपिी
‘आवश्यकता’ के अिुसार मिुष्ट्य खोज लेता है । आज भूमण्डलीकरण के िौर में उपभोक्तावािी
संथकृनत का सवतत्र प्रसार है , इसी कारण संपूणत ववश्व बाजार के रूप में थथावपत है , बाजारवाि से
समाज का प्रत्येक वगत और क्षेत्र प्रभाववत है । बाज़ार का ववश्लेषण कुछ इस प्रकार ककया गया है —
बापू हमें धरती पााँवों से िहीं,
दिल से िापिे की कला ससखा गये हैं,
आिमी की ब्रबग-बॉस बििे की आित कायम है ,
ब्रबग बॉस बििे के सलए सत्ता/संथकृनत पर कब्जा होिा जरूरी है ,
बाज़ार की चकाचौंधा से हर कोई मोदहत है ,
अब घरों की पहचाि िहीं---
घर का पता पूछो तो पहले िक
ू ार का िाम लेता है ,
बाज़ार मािी का भी मोल लगािे में मादहर है ।

थपष्ट्ि है कक बाज़ार की दृन्ष्ट्ि अपे लाभ पर केंदद्रत है। उपभोक्ता संथकृनत में बाज़ार और
उसके मुिाफे की दृन्ष्ट्ि के कारण समाज में परं परा और मूल्य ववखंडडत हो रहे हैं। बाज़ार की
मााँग के अिुरूप भाषा में भी बिलाव िे खिे को समलता है । ये बिलाव सादहत्य, पत्रकाररता और
ससिेमा सभी थतर पर पररलक्षक्षत होते हैं।

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ससिेमा की पिकथा और गीत की भाषा में बाजार और उसकी मााँग ही कायत करते हैं।
बाजार ववशेष कहािी की मााँग और गीत के थतर पर ‘ररसमक्स’ का रें ड अपिी आवश्यकतािुसार
तय कर लता है । भवािी प्रसाि समश्र के शब्िों में कहें तो—
जी हााँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूाँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूाँ,
मैं ककससम-ककसम के गीत बेचता हूाँ।
जी, माल िे खखए, िाम बताऊाँगा,
कुछ गीत सलखे हैं मथती में मैंिे,
कुछ गीत सलखे हैं पथती में मैंिे,
यह गीत, सख्त सर-िित भुलाएगा,
यह गीत वपया को पास बुलाएगा!

सादहर लुधधयािवी िे भी ऐसे ही ववचार बाज़ार के संिभत में व्यक्त ककए हैं—‘आज उि
गीतों को बाज़ार में ले आया हूाँ। मैंिे जो गीत तेरे प्यार की खानतर सलखे।’ थपष्ट्ि है कक ससिेमा
की पिकथा और गीतों का बाजार ववकससत हुआ। उस बाजार की दृन्ष्ट्ि में मािवीय मूल्यों और
संवेििाओं का उतिा महत्त्व िहीं था, न्जतिा कक अधधकाधधक आय अन्जतत करिा था। ससिेमा एक
ऐसा माध्यम है जहााँ पिकथा लेखक, गीतकार, संगीतकार, संपािक, नििे शक आदि महत्त्वपण
ू त
भूसमका निभाते हैं। कफल्म के ‘िशतकों’ के माध्यम से होती है । इससलए कफल्म ववशेष िशतक वगत
को ध्याि में रखकर बिायी जाती है । कफल्म अधधकाधधक िशतकों तक पहुाँच सके, इसके सलए
कफल्म प्रचार के अिेक उपाय ककये जाते हैं, कफल्मों के पोथिर, होडडिंग्स से लेकर ककसी लोकवप्रय
िे लीववज़ि धारावादहक के मध्य प्रचार करिा कफल्म से संबंधधत न्क्वज़ प्रनतयोधगता रखिा, भारतीय
ससिेमा का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार बहुत व्यापक है । िनु िया में सवातधधक कफल्में भारत
के लोग िे खते हैं। भारतीय ससिेमा की लोकवप्रयता इस तथ्य से आंकी जा सकती है कक यहााँ
सभी भारतीय भाषाओं को समलाकर लगभग 1,600 कफल्में प्रनतवषत बिती हैं। 20वीं सिी में
भारतीय ससिेमा अमरीका के ‘हॉलीवुड और चीिी कफल्म उद्योग के समािांतर एक ववश्व उद्योग
के रूप में थथावपत हुआ। सि 2013 में भारत वावषतक कफल्म निमातण में प्रथम पायिाि पर था
उसके बाि िाईजीररया, हॉलीवुड और चीि कफल्म उद्योग का िाम आता है । भारतीय ससिेमा िे
90 से अधधक िे शों में अपिा बाजार थथावपत ककया है जहााँ ववसभदि भारतीय कफल्में प्रिसशतत
होती हैं। ‘रावि’, ‘कृष 3’, ‘िं गल’ आदि कफल्में िनु िया भर में $ 300 समसलयि की आय के कारण
ब्लॉक बथिर बि गयीं। बॉक्स ऑकफस ‘बॉलीवुड’ या दहंिी ससिेमा सबसे बड़ा राजथव लगभव 43%
का योगिाि िे ता है । उसके पश्चात तसमल और तेलुगू ससिेमा का बॉक्स ऑकफस राजथव लगभग
36% है ।

75
बहुसांथकृनतक और तेजी से वैन्श्वक (ग्लोबल) भारतीय िशतकों की मााँग पर भारतीय
संगीत िे भी क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगीत शैसलयों का समश्रण कर व्यापक बाज़ार मााँग उत्पदि
की है । व्यावसानयक रूप में कफल्म संगीत की ब्रबक्री भारत के पूरे संगीत की ब्रबक्री का 48% है ।
दहदिी ससिेमा ि केवल भारतीयों, प्रवासी भारतीयों और वविे शी िशतकों में बहुतम लोकवप्रय है
इससलए इसका एक बड़ा बाजार है ।

ववत्त वषत 2018 में भारतीय कफल्म उद्योग 15,890 करोड़ रुपये का था, जबकक ववत्त वषत
2017 में यह आंकड़ा 14,500 रुपये का था। ‘अभी भारतीय कफल्म उद्योग करीब 17,500 करोड़
रुपये का हो चुका है और 2020 के अंत तक इसके 23,800 करोड़ रुपये का हो जािे का अिुमाि
है । भारतीय कफल्म उद्योग के कुल राजथव में बॉलीवड
ु यािी दहदिी कफल्मों की दहथसेिारी लगभग
45 प्रनतशत है । वषत 2018 में बॉलीवुड िे (डब दहंिी कफल्मों सदहत) 3,300 करोड़ रुपये से ज्यािा
की कमाई की थी। 2019 के ससतंबर तक यह आंकड़ा पार हो गया और वषत के प्रथम िौ महीिों
में दहंिी ससिेमा िे 3,700 करोड़ से अधधक रुपये की आय अन्जतत की।

ववगत वषों की तुलिा में सि 2019 में सवातधधक कफल्मों-16 िे ‘100 करोड़ी क्लब’ में
अपिा थथाि बिाया जबकक 2018 में यह संख्या 12 थी। 2018 में केवल ‘ससम्बा’, ‘200 करोड़ी
क्लब’ में पहुाँची थी, 2019 में 5 कफल्मों िे इस क्लब में अपिा थथाि पाया। 2018 में ‘संजू’ और
‘पद्मावत’ िे 300 करोड़ रुपयों की आय अन्जतत की। 2019 में ‘वॉर’ कफल्म िे ‘300 करोड़ी क्लब’
में अपिा थथाि बिाया।

अक्षय कुमार द्वारा असभिीत कफल्मों में ‘केसरी’ िे 153 करोड, ‘समशि मंगल’ िे 200
करोड़, ‘हाउस फुल 4’ िे 200 करोड़ का कारोबार ककया। बाजार के आाँकड़ों की दृन्ष्ट्ि से 2019 की
ये 10 कफल्में सवातधधक आय अन्जतत करिे में सफल रहीं—

क्रम कफल्म क्लेक्शि (करोड़ रुपयों में )


1. वॉर 318.00
2. कबीर ससंह 278.24
3. ऊरी 244.06
4. भारत 209.36
5. हाउस फुल 4 206.00
6. समशि मंगल 200.16
7. िोिल धमाल 154.30
8. केसरी 153.00
9. नछछोरे 150.00
10. साहो (दहंिी संथकरण) 149.00

76
सि 2018 में आसमर खाि की िं गल िे 387 करोड़ और प्रभास की बाहुबली 2 िे 511
करोड़ की सवातधधक आय अन्जतत की।

इस प्रकार दहंिी कफल्मों का सशक्त आय अन्जतत करिे वाला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय


बाजार है । सि 1997 में अजय ब्रबजली िे ‘पी.वी.आर. वप्रया’ के साथ मल्िीप्लेक्स का आरं भ
ककया था। आज मल्िीप्लेक्स िे ससिेमा मिोरं जि की तथवीर बिल िी है । ‘आज िे श में 2,950
मल्िीप्लेक्स हैं। मल्िीप्लेक्स के बाजार में 821 थक्रीि के साथ पी.वी.आर. सबसे ऊपर है । अदय
प्रमुख मल्िीप्लेक्स हैं—आईिॉक्स (598 थक्रीि), कानितवल (470 थक्रीि), ससिेपोसलस (360 थक्रीि) व
समराज (124 थक्रीि)। 2-0, वॉर आदि कई कफल्मों के वीएफ एक्स (ववजअ
ु ल इफेक्ट्स) भी
ववश्वथतरीय हैं। भारत की वी.एफ.एक्स. कंपनियााँ वविे शी कफल्मों के सलए भी वी.एफ.एक्स. तैयार
कर रही हैं।

प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्ि (क) : निम्िसलखखत प्रश्िों के 2-3 वाक्यों में उत्तर िीन्जए—

(i) भारतीय ससिेमा की लोकवप्रयता का आकलि ककस प्रकार ककया जाता है ?

(ii) भारतीय संगीत िे ककस प्रकार व्यापक बाजार मााँग उत्पदि की है ।

(iii) भारतीय ससिेमा के सलए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय बाजार ववकससत करिे वाली


संथथाओं के िाम बताइए।

प्रश्ि (ख) : निम्िसलखखत प्रश्िों के उत्तर एक-िो पंन्क्तयों में िीन्जए—

1. ससिेमा के कथ्य को प्रभाववत करिे वाला प्रमख


ु कारक कौि-सा है ?

2. ससिेमाई िशतक को ‘सहृिय’ कब कहा जायेगा?

3. कफल्म ‘शौचालय’ को आप ससिेमा की ककस कोदि में रखेंगे और क्यों?

4. सामान्जक आधार पर िशतकों को ककतिे वगों में बांिा जा सकता है ?

5. कफल्म निमातण प्रकक्रया की प्रमख


ु कसौिी ककसे कहा जाता है ?

6. ‘राजिीनत’ ववषय आधाररत तीि कफल्मों के िाम बताइए।

7. एनिमेशि कफल्म ‘माई फ्ेंड गणेशा’ के िशतकों को ककस वगत में रखा जाएगा?

प्रश्ि (ग) : निम्िसलखखत पर दिप्पणी सलखखए—

1. िशतक असभरुधच

2. समािांतर ससिेमाई िशतक

3. व्यावसानयक ससिेमाई िशतक

4. युवा िशतकों के सलए बिी महत्त्वपूणत कफल्म

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5. थत्री प्रधाि कफल्म

6. कृषक प्रधाि कफल्म

प्रश्ि (घ) : निम्िसलखखत प्रश्िों के उत्तर ववथतार से सलखखए—

1. ‘जो दिखता है , वही ब्रबकता है ।’ इस कथि की समीक्षा कीन्जए।

2. व्यावसानयक ससिेमा में रुधच रखिे वाले िशतकों के सलए कफल्म बिाते समय ककि
बातों को ध्याि में रखा जाता है ।

3. दहदिी ससिेमा के अंतरराष्ट्रीय बाजार पर एक लेख सलखखए।

4. ऐनतहाससक ससिेमा के िशतकों की दृन्ष्ट्ि से कफल्म ‘बाजीराव मथतािी’ अथवा


‘पद्मावत’ कफल्म पर प्रकाश डासलए।

5. 2019 में िशतकों द्वारा सबसे अधधक पसंि की गयीं कफल्मों पर प्रकाश डासलए।

78
इकाई-3

1. हहंदी सिनेमा की अंतवयस्तु औि तकनीक का ववस्तत


ृ अध्ययन
डॉ. आलोक रं जि पांडेय
रामािुजि कॉलेज, दिल्ली

1.1 प्रस्तावना

दहंिी ससिेमा का अपिा इनतहास रहा है जो ववववध आयामों को तय करते हुए आज यहााँ
तक पहुाँचा है । इसिे तमाम तरह की यात्राएाँ तय कीं और इिसे तमाम उतार-चढाव िे खे हैं। आज
ववश्व भारत के ससिेमा की ओर भी िज़र बिाए हुए है और भारतीय ससिेमा लगातार बेहतर
प्रिशति कर थवयं को थथावपत भी करिे में कोई कसर िहीं छोड़ रहा है । प्रथतत
ु पाठ में आप
इस ववषय के और संिभों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।

1.2 अगधिम का उद्दे श्य

इस अध्याय को पढिे के बाि आप दहंिी ससिेमा का एक संक्षक्षप्त पररचय प्राप्त कर


सकेंगे। ककस तरह से दहंिी ससिेमा िे अपिा ववथतार ककया और यहााँ तक की यात्रा की। ससिेमा
को तमाम पररप्रेक्ष्य में आप िे ख समझ पािे में भी सक्षम हो पाएंगे। ससिेमा में ककस तरह से
ववमशों का योगिाि है और वे इसे कैसे प्रभाववत करते हैं, इि सबको समझ पािे में सक्षम हो
सकेंगे। ससिेमा में तकिीकी की क्या भूसमका है , कैसे तकिीकी िे ससिेमा को बिला है , प्रभाववत
ककया है और लगातार उसे बेहतर बिा रहा है , इि सब बातों को भी आप इस अध्याय के अंिर
समझ सकेंगे।

1.3 ववषय-परिचय

दहंिी ससिेमा का अपिा एक शाििार इनतहास रहा है । यह इनतहास शाििार इससलए हो


पाया है क्योंकक ससिेमा की अंतवतथतु िे लोगों को प्रभाववत ककया । इस परू े अध्याय में दहंिी
ससिेमा के इनतहास के अध्ययि के माध्यम से इसकी अंतवतथतु पर ववचार करें गे । ससिेमा में
बाक़ी चीज़ें तो प्रभाववत करती हैं लेककि यदि उसकी अंतवतथतु अच्छी िहीं है तो वह ज़्यािा सफल
और प्रभावशाली िहीं हो सकती है । अंतवतथतु के ववववध थवरूपों पर,उसके ववववध आयामों पर इस
अध्याय में चचात करें गे। इसके साथ-साथ ससिेमा के निमातण में उसके तकिीकी पक्ष को भी हम
ववथतार से पढें गे। आजकल तकिीकी का यग
ु है और ससिेमा इि तकिीककयों का उपयोग कर
लगातार बेहतर कर रहा है । इसमें कौि-कौि सी तकिीकी ककि-ककि जगहों पर कैसे उपयोग की
जाती है इसका संक्षक्षप्त वववरण इस अध्याय में होगा न्जससे ववद्याधथतयों को इसकी जािकारी हो
सकेगी। इस अध्याय को पढिे के बाि वे ससिेमा के अंतवतथतु व उसके तकिीकी पक्ष की बेहतर
समझ ववकससत कर पाएाँगे।

79
असभिय कला को आज सवोत्तम मंच प्रिाि करिे वाला माध्यम ससिेमा है । भारत के
साथ-साथ ववश्व की प्राचीितम संथकृनतयों में असभिय कला के ववसभदि थवरूपों की जािकारी
समलती है । भारत में तो असभिय व िािक से संबंधधत भरतमनु ि का ‘िाट्यशाथत्र’ बहुत प्रससद्ध
रचिा मािी जाती है बाि में न्जसे आधार बिाकर बहुत से ग्रंथ सलखे गए एवं उि सभी िे अपिे-
अपिे मतों से इस शैली व ववधा में अपिा सकारात्मक योगिाि भी दिया। सैकड़ों-हज़ार वषों की
यात्रा अब का़िी आगे जा पहुाँची है । आज के िौर में बाज़ार िे इसकी पहुाँच को सवतसल
ु भ बिा
दिया है । भारत में अदय क्षेत्रीय ससिेमा भी आज अच्छा कायत कर रहे हैं लेककि दहंिी ससिेमा
इसमें अग्रणीय है । अपिी ववषयवथतु एवं िशतकों की बड़ी संख्या िोिों ही ऐसे बड़े कारण हैं कक
आज दहंिी ससिेमा की ओर ववश्वदृन्ष्ट्ि पड़ती है ।

न्जस तरह सादहत्य समाज के आगे चलिे वाली मशाल है जो समाज को दिशा दिखाता
है ,ठीक उसी तरह ससिेमा भी है । ससिेमा और सादहत्य में बेहि गहरा संबंध है । न्जस तरह
सादहत्य सहृिय को प्रभाववत करता है , उसके सलए व्यन्क्त को सादहत्य पढिा पड़ेगा,उसकी ओर
रुख़ करिा पड़ेगा,ठीक उसी तरह ससिेमा भी सहृिय व्यन्क्त को प्रभाववत करिे की भरपूर क्षमता
रखता है । ससिेमा हमारे समक्ष िई-िई दृन्ष्ट्ि प्रथतुत करता है ताकक हम िनु िया को िए तरीक़े से
िे खें,समझें,अपिे दृन्ष्ट्िकोण का ववकास कर पाएाँ। िशति के क्षेत्र में अग्रणीय िे श फ़्ांस के िाशतनिक
न्जयिलज िे कहा कक ससिेमा में इतिी ताक़त है कक वह िशतिशाथत्र भी बिल सकता है । इस
बिलिे का कारण उसकी बौद्धधकता िहीं अवपतु भाविात्मक क्षमता है । एक िशतक पिे के पीछे
एवं पिे पर दिखलाई जािे वाली आकृनतयों को ककसी सुनिन्श्चत दृन्ष्ट्िकोण से जाििे-समझिे की
प्रववृ त्त से प्रायः मक्
ु त करा चक
ु ा होता है । यही कारण है कक यह एक बहुत ज़्यािा प्रभावशाली
माध्यम के रूप में हमारे समक्ष आज उपन्थथत है ।

भारत में ससिेमा की शुरुआत बीसवीं सिी से हुई। प्रारं भ के िशकों में मक
ू क़िल्मों के
बाि बोलती क़िल्मों का चलि प्रारं भ हुआ। आज तकिीकी के ववथतार िे इसे बड़े िए-िए आयाम
िे दिए हैं। वततमाि शताब्िी अपिे साथ बहुत कुछ साथ लेकर आयी है । इसके पास अिेक तथवीरें
एवं ध्वनियााँ हैं। इसका यह क़तई अथत िहीं है कक वपछली शताब्िी में यह सब िहीं था,लेककि
अंतर यह है कक वततमाि शताब्िी में उदहें सजािे-साँवारिे तथा संरक्षक्षत और इथतेमाल करिे की
अद्भुत क्षमता है । आज से पहले ऐसा िहीं हुआ था। चुंबकीयिे प के साथ - साथ डडन्जिल
तकिीकों के ववथतार से बड़े पैमािे पर सच
ू िाओं को संग्रहीत ककया जा रहा है । आज वैन्श्वक थतर
पर आभासी प्रयोगशालाओं का निमातण ककया जा रहा है जहााँ सूचिाओं को आभासीथपेस में
रखकर अिुसध
ं ाि ककया जा सकेगा।

प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

कोष्ट्ठक में दिए गए शब्िों की सहायता से ररक्त थथाि की पूनतत कीन्जए-

80
1. असभिय कला को सवोत्तम मंच प्रिाि करिे वाला ........... ससिेमा है ।
(माध्यम,हधथयार,कारण )

2. न्जस तरह सादहत्य समाज के आगे चलिे वाली ........... है जो समाज को दिशा दिखाता
है , ठीक उसी तरह ससिेमा भी है । (मशाल, िीपक, गाड़ी)

3. भारत मे ससिेमा की शुरुआत ........वीं सिी में हुई । (19, 18, 20)

ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति 'हााँ' या 'ना' में दीक्जए-

1. आज वैन्श्वक थतर पर आभासी प्रयोगशालाओं का निमातण ककया जा रहा है जहााँ सूचिाओं


को आभासीथपेस में रखकर अिुसंधाि ककया जा सकेगा। ( )

2. ससिेमा और सादहत्य में बेहि गहरा संबंध है । ( )

ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति एक िब्द या एक पंक्क्त में दीक्जए-

1. भारत में ससिेमा की शरु


ु आत कब से हुई?

2. भारत में प्रारं सभक थतर पर ककस तरह कक कफल्मों का निमातण हो रहा था?

हहंदी सिनेमा की अंतवयस्तु

वपछली शताब्िी के ससिेमा की अंतवतथतु की यदि बात करें तो जो एक बात निकलकर


सामिे आती है कक उस समय ग्रामीण भारत को भरपूर थथाि समलता था। इस शताब्िी के
ससिेमा में यह बात िज़र िहीं आती है । हम ससिेमा और सादहत्य को समाज का िपतण कहते हैं
एवं कहते हैं कक समाज में जो हो रहा है उसी का प्रनतब्रबंब इसमें समलता है । क्या आज के भारत
में गााँव िहीं है ? लेककि आज के ससिेमा में इिका न्ज़क्र बहुत कम या ि के बराबर है । जब गााँव
ही सभदि होगा,वह पररवेश ही िहीं होगा तो उसकी समथयाओं आदि का न्ज़क्र हो यह कैसे संभव
हो सकता है ? थोड़ा इनतहास में जाकर बात करें तो 1936 में प्रिसशतत ‘अछूत कदया’ में पहली
बार भारतीय गााँव का रुमािी एवं आिशत धचत्रण पहली बार ककया गया था। महात्मा गााँधी की
रचिा ‘दहंि थवराज’ न्जसका प्रकाशि 1905 में हुआ,इसी के बाि ग्रामीण भारत राष्ट्रवािी
आंिोलि का संिभत ब्रबंि ु बििे लगा था। बाि में गााँधी िे अपिे परू े आंिोलिों को जाि-बूझकर
गााँव से जोड़ा। ब्रबिा गााँवों के जड़
ु े ये सब कुछ साथतक हो ही िहीं सकते थे। गााँधी िे थपष्ट्ि तौर
पर मािा कक आधुनिक सभ्यता िे पाश्चात्य िे श के लोगों को ि सस़ित मशीिी न्ज़ंिगी जीिे पार
मजबूर कर दिया है अवपतु उदहें हि से ज़्यािा लालची कक़थम का भी मिुष्ट्य बिा दिया है । गााँधी
अपिे पथ
ु तक में थपष्ट्ि रूप से सलखते हैं कक “मझ
ु े भय है कक उद्योगवाि मािव जानत के सलए
असभशाप बि जािे वाला है। उद्योगवाि सवतथा इस बात पर निभतर है कक आप में शोषण करिे
की ककतिी शन्क्त है ।.......पुिः मैं सा़ि शब्िों में अपिा ववश्वास ज़ादहर कर िे िा चाहता हूाँ कक
बड़े पैमािे पर माल तैयार करिे का पागलपि ही आज के ववश्व संकि के सलए न्ज़म्मेिार है ।”

81
महात्मा गााँधी औद्योधगकवाि के ज़ररए लाए जा रहे शहरीकरण को भववष्ट्य में सा़ि-सा़ि िे ख रहे
थे। वे इससलए भारतीयों को सचेत भी कर रहे थे। भारत में तब भी गााँवों की न्थथनतयााँ सहज
बिी हुई थीं लेककि एक भववष्ट्यद्रष्ट्िा यह सोच रहा था कक क्या यह सब कुछ ऐसे ही सहज बचा
रह पाएगा?

आज़ािी के पहले की क़िल्मों के केंद्र में भारतीय गााँव व उिकी समथयाएाँ अच्छी तरह
उजागर होती हैं। ‘इप्िा’ जो भारत की प्रगनतशील संथकृनत कसमतयों की संथथा थी,के संथथापक
ख्वाजा अहमिअब्बास के नििे शि में बिी ‘धरती के लाल’ में बंगाल में पड़िे वाले भयािक
अकाल को धचब्रत्रत करती हुई करुण कथा है । ग्रामीण ककसािों का शहर में पलायि,शहर की
अलग तरह की त्रासदियााँ,मवेशी,खेती-ककसािी के अिेक प्रतीकों के माध्यम से यह एक शाििार
क़िल्म रही।

‘िया िौर’ अपिे समय की एक प्रगनतशील क़िल्म रही। िाम से ही थपष्ट्ि है कक उस


समय जो िया िौर आ रहा था या आिे वाला था,वह कैसा होगा इसका धचत्रण इस क़िल्म में
बख़ूबी ककया गया था। वह िया िौर अवश्य ही प्रगनत को लािे वाला था लेककि उस प्रगनत की
आड़ में बहुत कुछ ऐसा था जो हमारे गााँव समाज की िींव था,वह खोता जा रहा था। क़िल्म के
खलिायक को आधुनिक संवाहक की भसू मका में चुिा गया था। यदि िए िौर का आगाज़ ग्राम
समाज के वविाश के संिेश के साथ हुआ तो औद्योधगक ववकास का कोलाहल,ग्रामीण पुिरुत्थाि
के उत्साह में कहीं ि कहीं कमी की मद्धधम आहि सि
ु ाई अवश्य िे रही थी। भारतीय क़िल्मों की
बात करें और शुरुआती िौर की ख़ासकर तो ‘िो बीघा ज़मीि’ के ब्रबिा चचात अधूरी मािी जाएगी।
ववमल राय की इस क़िल्म में औद्योगीकरण से उत्पदि ववथथापि और पलायि की न्थथनतयों को
अच्छे से िशातया गया है । आज़ािी के तुरंत बाि ककसी नििे शक द्वारा इस तरह की निराशावािी
क़िल्म बिाया जािा लोगों को आश्चयत चककत करता है लेककि यह सचाई थी तो इसे दिखाए
जािे से इंकार भी कैसे ककया जा सकता था। आज़ािी के हसीि सपिे हम सबिे समलकर िे खे थे
लेककि समय के साथ धीरे -धीरे यह सपिे समट्िी में समलते िज़र आिे लगे। इसकी ध्वनियों को
आप क़िल्मों व 1960 बाि के सादहत्य में भी िे ख सकते हैं न्जसे मोहभंग का सादहत्य भी कहा
जाता है , वह सब बख़ूबी िजत है । ‘थवतंत्रता के बाि ग्राम-ववषयक क़िल्में बिाए जािे का अदय
कारण था सादहत्यकारों, कफल्मकारों तथा संथकृत कसमतयों के 'यथाथतवाि के प्रनत बढता आकषतण’।
30 तथा 40 के िशकों में भारतीय लेखकों िे अपिे-अपिे अंतमति को ििोला। शहरी सेवकों िे
महसूस ककया कक वह ग्रामीण भारत (असली भारत) की सच्ची तथवीर प्रथतुत करिे में असमथत
थे। सुन्ष्ट्मता चक्रवती के अिुसार उक्त आत्मािुभूनत िे न्जस यथाथतवाि को जदम दिया वह भारत
की िाशतनिक और सौंियतशाथत्रीय परं पराओं के सलए ब्रबल्कुल िया था। यूरोपीय िव यथाथतवािी
ववचारों से असभप्रेररत थवातंत्र्योत्तर कालीि ससिेमा भी असली भारत को ग्राम समाज में तलाशिे
लगा। ववमल राय, न्जया सरहिी, ख्वाजा अहमि अब्बासवी. शांताराम, निनतिबोस तथा महबब

सरीखे नििे शकों िे समय-समय पर जारी ककये वक्तव्यों में यथाथतवाि के सलये प्रनतबद्धता जादहर
की। हालांकक यहााँ बतला िे िा प्रासंधगक होगा कक यथाथतवाि के बारे में सबकी राय अलग अलग

82
थी। इप्िा के उद्घािि भाषण(1943) में अब्बास िे यथाथतवाि के संिभत में मजिरू ों के भववष्ट्य से
जुड़कर एक िई िनु िया के निमातण की बात कही थी तो क़िल्म फेयर पब्रत्रका में 1955 में
प्रकासशत एक लेख में ववमल राय िेथपष्ट्ि कहा कक यथाथतवाि कोई 'मािवीय पररन्थथनत' ि हो
कर महज़ 'आत्मबोध' था। बहरहाल यथाथत की खोज में प्रयत्िशील थवातंत्र्योत्तरकालीि क़िल्मकार
क़िल्म आख्याि में गीत ित्ृ यों को शासमल करिे का लोभ त्याग िहीं सका।

दहंिी ससिेमा में ग्रामीण पररवेश का धचत्रण लगातार जारी रहा। 1957 में ‘मिर इंडडया’
जैसी क़िल्म ररलीज़ हुई। इसिे सफलता के िए कीनततमाि थथावपत ऐसे ही िहीं ककए अवपतु
इसके पीछे का कारण इसके ववषयवथतु का गांभीयत था। भारत के ग्रामीण अंचल और उसकी
पररन्थथनतयों को अच्छी तरह यह क़िल्म उधेड़ रही थी। लोगों िे इसे का़िी पसंि भी ककया था।
1974 में श्याम बेिेगल की क़िल्म ‘अंकुर’ की प्रशंसा सबिे की। पूरी तरह ग्रामीण पररवेश,वहााँ के
प्रेम को यह क़िल्म परू ी तरह से दिखा पािे में सक्षम है । गााँवों में सामंती दृन्ष्ट्िकोण जो व्याप्त
था यह क़िल्म उसका एक तरह से प्रनतकार करती हुई िज़र आती है । यह उस समय के ग्रामीण
समाज की एक बहुत सामादय सी न्थथनत बि गयी थी,श्याम बेिेगल इि सब को दिखा पािे में
सफल हुए। उदहोंिे ही 1975 में एक और क़िल्म बिाई ‘निशादत’ न्जसकी पिकथा सलखी प्रससद्ध
रं गकमी ववजय तें िल
ु कर िे। यह क़िल्म सामंती उत्पीड़ि और उसके ववरुद्ध ककसािों द्वारा
आयोन्जत एक बड़े ववद्रोह की शाििार घििा है । यह जो सामंतों का िौर रहा है उस पर इस तरह
की क़िल्मों िे गहरी चोि की है । बेिेगल की दृन्ष्ट्ि आधुनिकतावािी है । िोिों ही क़िल्मों में
ग्रामीण जीवि की एकांतमयता और जड़ता को भंग करिे के सलए बाहरी हथतक्षेप की आवश्यकता
की अिरु े खख़त ककया गया है।

ग्रामीण जीवि पर प्रकाश डालिे वाली तीसरी क़िल्म 'मंथि' है न्जसे इनतहास और
समकासलकता की दृन्ष्ट्ि से बेहतर और सरु
ु धचपूणत मािा जा सकता है । मंथि का निमातण
आपातकाल (1975-1977) में हुआ था। इससलए उसमें आपातकाल की तथाकधथत उपलन्ब्धयों को
ि केवल धचन्दहत ककया गया बन्ल्क आपातकाल की सवातधधक शन्क्तशाली उपन्थथनत िौकरशाही
को ग्रामीण भारत ववकास के हथतक्षेप का आधार माि सलया। मिोहर राव (धगरीश करिाड) को
शहर से भेजा गया है ताकक वह गााँव में सहकारी िग्ु ध उत्पािि की व्यवथथा कर सके। ककदतु
गााँव के सभी िध
ू के उत्पािक जमींिार गंगािाथ समश्र (अमरीश पुरी) को िध
ू बेचते हैं। एक
सावतजनिक सभा में ग्रामवाससयों को सहकाररता से समलिे वाले लाभ की सच
ू िा िी जाती है ।
गंगािाथ तथा सरपंच आशंककत हैं न्जस पर राव िसलतों को पंचायत के चुिावों में भाग लेिे के
सलए उकसाते हैं अंत में एक िसलत उम्मीिवार चुिाव जीत जाता है । सरपंच तथा गंगािाथ समल
कर राव के तबािले की कोसशश करते हैं। यद्यवप राव का तबािला हो जाता है कफर भी सरपंच
तथा गंगािाथ सहकारी आंिोलि को पूणत
त या कुचलिे में िाकामयाब हो जाते हैं। इस प्रकार मंथि
ग्राम समाज की समथयाओं की निशाििे ही के सलए सामंतवाि की कठोर आलोचिा से कतराते हुए
साधि (Agency) को अधधक महत्त्व िे ती है । ककदतु अगर ववकास का साधि शहर से भेजा गया

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सरकारी अधधकारी है तो क्या यह माि सलया जाए कक सरकारी हथतक्षेप से ग्राम समाज के सभी
अंतववतरोध खुि-ब-खुि समाप्त हो जाएाँगे।

बेिेगल की तीिों क़िल्मों के बारे में अंनतम बात। तीिों क़िल्मों का चररत्र डाक्यम
ु ें री धचत्र
सरीखा है । यदि कहा जाए कक बेिेगल िे भारतीय ग्राम की तथवीर प्रथतुत करिे की जगह पर
डाक्युमेंरी शैली में यथाथतवाि की आधनु िकतावािी (यूरोपीय) समझ को पिे पर उतारिे की कोसशश
की है तो अनतशयोन्क्त िहीं होगी।

1970-80 के िशक के बाि से दहंिी ससिेमा में एंग्रीयंगमैि की शुरुआत हो चुकी थी।
असमताभ बच्चि जैसे युवा कलाकार जो एक िया कलेवर लेकर भारतीय ससिेमाईपररदृश्य में
उपन्थथत हो रहे थे, उसमें युवाओं का वह गुथसा भी िज़र आ रहा था, जो तत्कालीि समाज के
ववववध पहलुओं को लेकर मौजूि था। राजेश खदिा जैसे सुपरथिार के आगे जो केवल प्रेम और
मोहब्बत की िनु िया का बािशाह मािा जाता था, पहली बार असमताभ बच्चि िे अपिे गथ
ु सैल
अंिाज़ से एक िया कथ्य प्रथतुत करिे की कोसशश की थी। ककसी भी समाज में केवल प्रेम से
काम िहीं चलता, सामान्जक, आधथतक, राजिीनतक पररदृश्य भी उतिे ही आवश्यक होते हैं। यह
आठवें िशक के बाि से बहुत सारी कफल्मों में उभर कर सामिे आिे लगा था। दहंिी ससिेमा में
समल मजिरू और उिकी समथया को लेकर बहुत सी क़िल्में बििे लगी थीं। मजिरू ों की समथया
को लेकर बड़े फलक पर पहली बार माक्सतवाि के िनु िया के मजिरू ों एक हो का िारा चररताथत हो
रहा था। समल के मजिरू की सहािुभूनत बिोरता हुआ एवं उिसे हमििी जताते हुए कोई एक
मजिरू ही कफल्म का हीरो होता था एवं बड़े-बड़े कापोरे ि घरािे एवं समल के मासलक लगातार
उिके िश्ु मि या कफल्म के ववलेि के रूप में चररतातथत ककए जाते रहे हैं। दहंिी ससिेमा में ऐसा एक
लम्बा िौर चला।

90 के िशक के बाि जब भारत िे वैश्वीकरण के प्रभाव को अपिे ऊपर िे खा तो पूरा


पररदृश्य ही बिल गया था। केवल समाज की आधथतक संरचिा ही िहीं बिली थी अवपतु
सांथकृनतक संरचिा के साथ-साथ बहुत कुछ बिल गया था। उसका सीधा असर यहााँ की कफल्मों
में िे खिे को समलता है । वैश्वीकरण के आिे के बाि से न्जस तरह से खाि-पाि, वेश-भष
ू ा, बोली-
भाषा, आदि अिेक कारक प्रभाववत होते हैं, उसका प्रमाण यहााँ कक उि िौर की कफल्मों में दिखाई
िे ता है । तकिीकी जो लगातार ववकससत हो रही थी, उसिे अिेक थतर पर इि पर गहरा प्रभाव
डाला। तमाम तरह के िए आयाम कफल्मांकि, कैमरे , ध्वनि आदि के साथ हो रहे थे। उसिे
कफल्म कला को तकिीकी रूप से ज्यािा निखार कर सामिे प्रथतुत ककया था.

वततमाि भारत के ससिेमा पर सौदियत की आड़ में पुरुषों की भोगववृ त्त को तप्ृ त करिे का
लगतार आरोप लगाया जा रहा है । संजीिा होिे के साथ-साथ यह आरोप काफी हि तक वततमाि
को लक्षक्षत भी करता है । उपभोक्तावाि के इस समय में जब बाज़ार मुिाफा कमािे की होड़ में है
और हर वथतु को माल में तब्िील कर रहा है तब िारी की िे ह इससे बच िहीं सकी है । यकीिि

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दहंिी ससिेमा होलीवुड की दृन्ष्ट्ि ववदयास की प्रणासलयों से लाभान्दवत हुआ है ककं तु समय-समय
पर वह भारतीय दृन्ष्ट्ि-ववदयास की बारीककयों को भी अपिाता रहा है ।

शताब्िी के संक्रमण के साथ हमिे इनतहास के न्जस चरण में किम रखा उसे उत्तरसाक्षर
कहा जाता है । उत्तर साक्षरता की ववशेषता है कक लोग पढ सकते हैं ककं तु पढिा िहीं, िे खिा
अधधक चाहते हैं। इसका एक अथत हुआ मुदद्रत पाठ के वचतथव को चुिौती। यही कारण है कक
आज मदु द्रत पाठ, दृश्य-श्रव्य पाठ के साथ ररश्ते कायम करिे के सलए बेताब हैं। इसका सवोत्कृष्ट्ि
उिाहरण समाचार-पत्रों के इलेक्रॉनिक संथकरण हैं जहााँ पाठ के साथ-साथ दृश्य-श्रव्य पाठ तथा
ववज्ञापि, परा-पाठ के रूप में मौजूि हैं। यह कहिा गैर न्जम्मेिारािा होगा कक आिे वाले समय
में मुदद्रत पाठ अन्थतत्वहीि हो जाएगा। कफर भी एक बात तय है -डडन्जिल पिे पर पठि-कक्रया की
अिुभूनत पूणत
त या सभदि होगी।

ससिेमा और अदय दृश्य-श्रव्य पाठों की ववराि उपन्थथनत के बाि भारतीय अकािसमक


जगत िे कुछ अपवािों को छोड़कर उिके प्रनत चुप्पी साध रखी है । अधधकतर सामान्जक ववज्ञािी
ससिेमा के बारे में ि तो अकािसमक संवाि करिा चाहते हैं और ि उसके सम्बदध में लेखि।
ऐसा भी िहीं कक वह उसके प्रभाव से बेखबर हैं। हो सकता है वह दृश्य-श्रव्य पाठों के प्रनत
असह्य और असुरक्षक्षत महसूस करते हों। सदियों पहले जब वाधचक परम्परा के समक्ष मुद्रण
संथकृनत उपन्थथत हुई होगी तो वाधचक परम्परा के समथतकों िे भी थवयं को इतिा ही असहज
पाया होगा। ववगत िशकों में अमेररका, यरू ोप तथा ऑथरे सलया महाद्वीप में क़िल्म अध्ययि को
अकािसमक जगत वही िजात प्रिाि कर चुका है जो सामान्जक ववज्ञाि के ववषयों को। यह कायत
क़िल्म-अध्ययि के ववसशष्ट्ि ववभागों की थथापिा से सम्पदि हुआ। इि ववभागों को थिातक,
पराथिातक, पाठ्यक्रम चलािे और डॉक्िरे ि की उपाधधयााँ प्रिाि करिे का अधधकार है । इसका
मतलब यह िहीं कक कफल्म अध्ययि की पररभाषा अथवा िायरे को लेकर ववद्वाि एकमत हैं।
वथतुतः शुरू से ही इसका िायरा इतिा व्यापक और लचीला रखा गया कक क़िल्म पाठों के
अध्ययि के साथ-साथ, क़िल्मों के निमातण, ववपणि, प्रिशति और आथवािि को कफल्म अध्ययि
की प्रणाली का दहथसा बिाया जा सके। इस उद्िे श्य से असभलेखागारीय सामग्री की पररभाषा भी
अत्यदत व्यापक रखी गई है । मसलि, क़िल्मपाठ, निमातण, ववतरण तथा प्रिशति से सम्बन्दधत
प्रकासशत सामग्री/आकड़े, ववज्ञापि, रे डडयो, िे लीववज़ि, ससिेमा, इंिरिेि, मोबाइल के साथ ससिेमा
के अंतःसम्बदध सरकारी िथतावेज (सेंसरबोडत की ररपोित इत्यादि) ताकक अलग-अलग ऐनतहाससक
चरणों में राज्य और ससिेमा के आपसी सम्बदधों की पड़ताल की जा सके।

क़िल्म पाठ के अध्येताओं िे कफल्म को आधुनिक कला के इनतहास में संिसभतत करिे के
अलावा ससिेमा में राष्ट्र, िथल, वगत, जानत इत्यादि के सरोकारों तथा िारीवाि सलंगपरीय ससिेमा
समलैंधगक क़िल्म के ववमशत के साथ जोड़िे का प्रयास ककया है । कुछ ववद्वािों िे ससिेमा के
वगीकरण द्वारा एक सारग्रही ववधा को जदम दिया है । 1995 में प्रकासशत एक महत्त्वपण
ू त आलेख
में रवव वासुिेवि िे सलखा कक कफल्म अध्ययि का उद्िे श्य आधनु िकता की तफतीश है क्योंकक

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ससिेमा मूलतः आधनु िकता का केंद्रीय उपकरण है । इसकी िो थतरों पर निशाििे ही हो सकती है ।
प्रथम, एक यंत्र के रूप में जो आकृनतयों की प्रनतसलवप तैयार कर निरूपण की परं पराओं का
परावतति करता है तथा द्ववतीय, उस उपकरण के रूप में जो सामान्जक और संथथागत तौर पर
आधुनिकता के पररचालि के सलए उत्तरिायी है । गौरतलब है कक ससिेमा की यात्रा शहर से शरू

होकर ग्रामीण अंचलों की ओर रुख करती है । इससलए आधुनिकता की तथवीर पहले शहरी तथा
बाि में ग्रामीण िशतकों को िे खिे को समलती है ।

आशा कथबेकर के अिुसार तमाम ववरोधाभासों से निपििे के सलए दहंिी ससिेमा एक


आिशत िैनतक िह्माण्ड रचता है न्जसमें औपचाररक रूप से थत्री की मयातिा का उल्लंघि ि हो
ककदतु अिौपचाररक रूप से पुरुषों को श्रंगाररक आिंि प्राप्त हो सके। इसके सलए वह अिेक प्रकार
की धूतत
त ापण
ू त रणिीनतयााँ तैयार करता है , जैसे ित्ृ य-गीतों के जररये िे ह का प्रिशति आशा
कथबेकर इि रणिीनतयों को तीि खण्डों में बााँिती हैं। 1. कौमायय का महहमा मण्र्न-दहंिी ससिेमा
की थत्री पववत्र है जैसे गंगा ििी का जल अथवा सीता 2. प्रदियन- प्रिशति सिै व सावतजनिक रूप
में ककया जाता है चाहे वह धथयेिर, बार, डडथकोधेक, रे थत्रााँ या सड़क पर हो। इस प्रिशति को
आख्याि के भीतर तथा बाहर मौजूि िशतक समाि रूप से िे खते हैं। 3. ननहािने की प्रववृ त्त का
नकाि-ससिेमाई दृश्य रचिा को कुछ इस प्रकार व्यवन्थथत ककया जाता है मािो ित्ृ य को आख्याि
के भीतर बैठा िशतक निहार रहा हो ि कक बाहरी िशतक। इसका लाभ यह है कक बाहरी िशतक
अपराध-बोध से मुक्त होकर संपूणत यौनिक सुख प्राप्त कर लेता है । कफल्मकार जािता है कक
भारतीय सेंसर बोडत िग्ि दृश्यों को दिखािे की इजाजत िहीं िे ता। इससलए वह कपि द्वारा वषात
गीत के बहािे कामक
ु ता को प्रोत्सादहत करता है ।

दहंिी ससिेमा में थत्री ब्रबम्ब का निरूपण कई प्रकार से हुआ है । इसका सवातधधक प्रचसलत
ब्रबम्ब है पौराखणक िे वी मााँ का क़िल्मकारों िे िानयकाओं की िैनतक सवोपररता थथावपत करिे के
उद्िे श्य से उदहें राधा, साववत्री, सीता, िग
ु ात, काली के तुल्य बतलाया। िे वी मााँ आिशत है 1. वह
पववत्रता की प्रतीक है । 2. उसे अपमाि सहिा पड़ता है ताकक अराजकता को समाप्त कर िई
व्यवथथा की थथापिा की जा सके। 3. उसके पत्र
ु ों को उसकी सरु क्षा के सलए तत्पर रहिा चादहए।
4. दयाय के सलए संघषत िे वी मााँ की मयातिा को बचािे का संघषत है । िे वी-मााँ का थथाई तथा
अत्यंत शन्क्तशाली ब्रबम्बमिर इन्ण्डया (1957) में िे खा गया। िे वी-मााँ के ककरिार में (िरधगस)
भारत माता का प्रनतरूप है। जब उसकी ब्रबगड़ैल संताि ब्रबरजू (सि
ु ील ित्त) ही उसका अपमाि
करिे लगती है तो भारत माता उसे गोली मार िे िे में जरा भी िहीं दहचकती। राधा (भारत माता)
के सलए ब्रबरजू पुत्र िहीं गया है वह केवल एक घखृ णत डकैत है ।

िे वी मााँ की िस
ू री छवव राधा (मीरा) है । रास लीला की परं परा में राधा के साथ तीि
ब्रबम्ब जुड़े हैं -दिव्यता, श्रग
ं ृ ाररकता तथा गत्यात्मक। दहंिी ससिेमा िे राधा-कृष्ट्ण के समथक का
भरपरू उपयोग ककया है चाहे वह गीत गाता चल (1975) हो या कफर बोल राधा बोल अथवा
मुकद्िर का ससकंिर अथवा िे विास। िे वी-मााँ की तीसरी छवव सीता है न्जसे अपिे पनत के हाथों

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अपमानित होिा पड़ता है । वह अपिी पववत्रता को थथावपत करिे के सलए अन्ग्ि-परीक्षा से गुजरिे
के सलए तैयार हो जाती है । ए. चदद्रा के नििे शि में बिी 'तेजाब' (1988), बासु भट्िाचायत की
'पंचविी' (1986) तथा श्याम बेिेगल की 'निशांत' (1975) सीता के ब्रबम्ब के उत्कृष्ट्ि उिाहरण हैं।
िग
ु ात/काली (शन्क्त) की झलक हमें 1970 तथा 80 के िशकों में बिी तीि कफल्मों -इंसाफ का
तराजू (1980), प्रनतघात (1987), जख्मी औरत (1988) तथा 90 के िशक में बिी 'मत्ृ यु िण्ड'
में थपष्ट्ितः दिखलाई पड़ती है । एक अध्ययि में उदहें बिला लेिे वाली (Avenging Women)
की संज्ञा िी गई है । मेरे ववचार से यह पाश्चात्य शब्िावली का यान्दत्रक आरोपण है वाथतव में
िग
ु ात बिला िहीं लेती वह तो असुर और आसुरी प्रववृ त्त का संहार करती है इससलए इि क़िल्मों की
िानयकाएाँ िग
ु ात की प्रनतरूप हैं ि कक ककसी हॉलीवुड की क़िल्म की तजत पर गढी प्रनतशोधात्मक
िारी।

प्रश्नों की स्वयं जााँच किना :

प्रश्न क-कोष्ठक में हदए िए िब्दों की िहायता िे रिक्त स्थान की पनू तय कीक्जए-

1. 1936 में प्रिसशतत ........... में पहली बार भारतीय गााँव का रूमािी एवं आिशत धचत्रण
ककया गया था । (अछूत कदया, िी बीघा जमीि, मिर इंडडया )

2. ‘िया िौर’ अपिे समय की एक ......... कफल्म रही । (जाि-ू िोिा संबंधी, प्रगनतशील,
रूदढवािी)

3. श्याम बेिेगल ‘अंकुर’ िे ............ का प्रनतकार ककया । ( समांतवाि, राष्ट्रवाि, क्षेत्रवाि)

4. वततमाि भारत के ससिेमा पर ...........पुरुषों की भोगववृ त्त को तप्ृ त करिे का लगातार


आरोप लगाया जा रहा है । (सौंियत की आड़ में , भोग की आड़ में )

प्रश्न ि-ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति 'हााँ' या 'ना' में दीक्जए-

1. रासलीला की परं परा में राधा के साथ तीि ब्रबम्ब जुड़े हैं -दिव्यता, श्रग
ं ृ ाररकता तथा
गत्यात्मक।

2. दहंिी ससिेमा में थत्री ब्रबम्ब का निरूपण कई प्रकार से हुआ है ।

3. ‘मिर इंडडया’ जैसी क़िल्म िे सफलता के िए कीनततमाि थथावपत ककए।

प्रश्न ि-ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति एक िब्द या एक पंक्क्त में दीक्जए-

1. परु
ु षों को श्रंग
ृ ाररक आिंि िे िे के सलए ससिेमा क्या रूप अपिाता है ?

2. ससिेमा ककस तरह का माध्यम है ?

1.4 वैश्वीकिि के बाद हहंदी सिनेमा

90 के िशक में भारतीय अथतव्यवथथा के वैन्श्वक अथतव्यवथथा के साथ जड़


ु जािे से
भारतीय िशतकों को िे लीववजि के जररये कई वविे शी चैिल्स से रूबरू होिे का अवसर समला। दहंिी

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ससिेमा के सलए धचंताजिक िौर था। उसके समक्ष चुिाती थी सत्र
ू का कायम रखते हुए िवोदमेष
करिा। 1993 में प्रयोग के रूप में शासमल ककये गये आइिम गीत को इसी ऊहापोह की पररखणनत
मािा जा सकता है । आइिम गीत की ववशेषतायें हैं-1. प्रमख
ु ककरिार का ससिेमाई आख्याि का
दहथसा ि होिा। 2 प्रिशति का ऊजातमय होिा। 3. द्ववअथी शब्िों व्यंजिापूणत भाव-भंधगमाओं का
प्रयोग । कुछ क़िल्म ववशेषज्ञों का माििा है कक आइिम गीत की शरु
ु आत 'खलिायक' (1997)
की बहुचधचतत और लोकवप्रय प्रथतनु त 'चोली के पीछे क्या है ' से हुई थी। इस गीत को लेकर
राष्ट्रीय मीडडया में जबितथत प्रनतकक्रया हुई। दिल्ली के वकील और भारतीय जिता पािी के सिथय
आर. पी. चुग िे दिल्ली उच्च दयायालय में एक याधचका िायर की न्जसमें गीत पर प्रनतबंध
लगािे का अिुरोध ककया था। अपिी याधचका में चुग िे गीत को ‘अश्लील तथा न्थत्रयों के सलए
अपमािजिक’ घोवषत ककया था। इसी प्रकार फरीिाबाि के वविीत कुमार िे थथािीय उपभोक्ता
फोरम में िायर की गई एक याधचका में गीत पर पाबंिी लगािे की मांग उठाई। कुमार की िलील
थी कक गीत 'भारतीय समाज की संथकृनत, अंतरात्मा तथा िैनतकता' के ववरुद्ध था। मीडडया
द्वारा वववाि को अधधक प्रश्रय दिये जािे का एक ितीजा यह हुआ कक कफल्म िे बॉक्सऑक़िस
पर अच्छा कारोबार ककया। खलिायक की सफलता के बाि आइिम गीत मािो दहंिी ससिेमा के
रूपक बि गये । छम्माछम्मा (चाइिा गेि, 1998), महबूब मेरे (कफजा, 2000), बाबूजी जरा धीरे
(िम, 2003), माही वे (कल हो ि हो), धूम मचा ले (धूम 2004), कजरारे (बंिी और बबली,
2005), मैया मैया (गुरु, 2007), िे खता है तू क्या (क्रेजी, 2008), िजतिों क़िल्में बिीं न्जदहोंिे
आइिम गीतों का सफल प्रयोग ककया। यह मुमककि है कक िे ह प्रिशति और व्यापारीकरण के िौर
में भववष्ट्य के आइिम गीतों परु
ु ष ककरिारों का महत्त्व भी बढे गा।

प्रश्नों की स्वयं जााँच किना :

प्रश्न क- कोष्ठक में हदए िए िब्दों की िहायता िे रिक्त स्थान की पनू तय कीक्जए-

1. 90 के िशक के बाि जब भारत िे ........ के प्रभाव को अपिे ऊपर िे खा तो पूरा


पररदृश्य ही बिल गया था । (वैश्वीकरण, आधुनिकीकरण, संथकृनतकरण )

2. ............ के इस समय में जब बाजार मि


ु ाफा कमािे की होड़ में हो और हर वथतु को
माल में तब्िील कर रहा हो तब िारी की िे ह इससे बच िहीं सकी है । (उपभोक्तावाि,
साम्यवाि, समाजवाि)

3. आइिम गीत की ववशेषता है प्रिशति का ............होिा। (ऊजातमय, िीरस, उबाऊ,


क्लाससकल)

प्रश्न ि- ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति 'हााँ' या 'ना' में दीक्जए-

1. 'चोली के पीछे क्या है ' गीत को लेकर राष्ट्रीय मीडडया में जबित थत प्रनतकक्रया हुई।

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2. दिल्ली के वकील और भारतीय जिता पािी के सिथय आर. पी. चुग िे दिल्ली उच्च
दयायालय में एक याधचका िायर की न्जसमें गीत पर प्रनतबंध लगािे का अिरु ोध िहीं
ककया था।

1.5 हहंदी सिनेमा औि तकनीकी

वततमाि िौर में हमारा ससिेमा होलीवुड से बहुत कुछ सीख्र रहा है ,उसकी िक़ल कर रहा
है । एक्शि से भरपरू क़िल्में जहााँ पहले होलीवड
ु में ही अधधक बिती थी, अब जबरिथत एक्शि
वाली क़िल्में यहााँ भी बििे लगी हैं और उसकी एकमात्र बड़ी वजह है तकिीकी का ववकास।
तकिीकी िे असंभव से लगिे वाले दृश्यों को संभव बिा दिया है ।

ककसी भी ससिेमा को बेहतर बिािे के सलए,उसके प्रभाव में वद्


ृ धध करिे के सलए तकिीकी
का महत्त्वपूणत योगिाि होता है । कैमरा, साउं ड, लाइि आदि-आदि के प्रभाव से आज ससिेमा िे
अपिे दृश्यात्मकता से लेकर ध्वदयात्मकता तक में प्रभावशाली पररवतति कर सलया है ।

ससिेमा में एक महत्त्वपूणत दहथसा होता है जब कैमरे की सहायता से शॉि सलया जाता है ।
दिग्िशतक कफल्मांकि के समय ‘रोल कैमरा’ कहता है मतलब कैमरा शुरू करो और अपिे दहसाब
से शॉि संतोषप्रि ढं ग से परू ा हो जािे पर ‘कि एंड वप्रंि इि’ कहता है । इस िौराि अंककत छवव
शॉि है । अब कैमरे को उठाकर एक जगह से िस
ू री जगह ले जाया जाएगा तो जादहर है कक शॉि
बिल जाएगा। शॉि बिल जािे का यह अथत िहीं है कक दृश्य बिल जाएगा। एक ही दृश्य में कई
शॉि हो सकते हैं और होते भी हैं। िस
ू री तरफ एक ही शॉि एक ही दृश्य से िस
ू रे और तीसरे में
जा सकता है । ऐसा उस हालत में होता है जब कैमरा पात्रों के पीछे – पीछे यहााँ से निकलकर वहााँ
और वहााँ से निकलकर वहााँ जाता रहे । जैसे यह कक हीरोइि अपिे पनत से लड़कर बेडरूम से
निकल पड़ी और कैमरा उसके पीछे हो सलया। बैठक को पार करते हुए वह घर से बाहर पहुाँची
जहााँ उसे अपिा प्रेमी आता हुआ समला न्जसिे उससे कहा कक मेरे साथ चलो। वह उसकी गाड़ी में
बैठ गई, कैमरा भी गाड़ी में सवार हो गया और उिकी बातचीत िजत करता रहा। ऐसा करते हुए
वह ककसी अदय जगह पहुाँच गए और कैमरा भी वहााँ पहुाँच कर अपिा काम कर रहा है । इसमें
कि से पहले कई दृश्य हैं लेककि कैमरा चल ही रहा है । इससलए यह पूरा प्रसंग एक शॉि है । शॉि
भी कई तरह के होते हैं। जैसे लॉदगशॉि, जो िशतक को घििा थथल से पररधचत करवािे का काम
करता है । जैसे प्लेिफॉमत पर गाड़ी आती है और कोई एक व्यन्क्त,ककसी के अगवािी के सलए
आया हुआ है । कभी-कभी कैमरे को बहुत ही िरू ी पर रखकर कफल्मांकि ककया जाता है । इसे
‘एक्सरीमलॉदगशॉि’ कहा जाता है । जैसे बफत से ढकी हुई पहाडड़यों को या िरू सागर में सूरज डूब
रहा है और कोई अकेला जहाज चला जा रहा है । कवर शॉि या माथिर शॉि वह होता है न्जसमें
यह पता चल जाये कक कौि कहााँ पर है । जब कैमरे के सामिे ककसी पात्र या वथतु को इतिा
िजिीक रख दिया जाता है कक पिे पर केवल वही दिखाई िे रहे तो इसे क्लोज़शॉि कहते हैं।
अगर हम ककसी और की कही बात पर सुििेवाले की भाव-भंधगमा व्यक्त करिे के सलए उसका
क्लोज़शॉि लेते हैं तो वह ररऐकशिशॉि कहा जाता है ।

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कफल्मों में आजकल अलग भाषा की कफल्मों को ककसी अलग भाषा में डब करिे का
कायत भी काफी तेज़ी से हो रहा है । डब्रबंग का मतलब है कक ककसी एक भाषा में बि चुकी कफल्म
को िब
ु ारा शि
ू ककए बगैर ककसी अदय भाषा की कफल्म बिा डालिा। जैसे कक अंग्रेजी की एक
कफल्म है और उसे दहंिी में डब करिा है तो चुिौती यह होती है कक हर अंग्रेजी संवाि की जगह
कोई ऐसा दहंिी संवाि सलख िें जो उतिे ही समय में बोला जा सके और उस को तरह सलखें कक
जब उसे अंग्रेजी बोलिे वाले पात्र के माँुह में िाल दिया जाये तो उसके होठों का खल
ु िा और बंि
होिा भी ऐसा लगे कक मािों वह वह उसी िस
ू री भाषा के शब्िों को बोल रहा हो,मूल भाषा के
शब्िों को िहीं। लेककि इसमें कई चुिौनतयााँ भी हैं,जैसे कक अिूदित भाषा का संवाि उतिे ही
समय का होिा चादहए न्जतिे समय का मल
ू भाषा का संवाि है । ज्यािा या कम होिे पर
अनतररक्त रूप में होठ दहलते रहें गे। जैसे तसमल कफल्म को दहंिी में डब करते समय यह दिक्कत
होती है कक जैसे लगता है कक संवाि दहंिी में बहुत जल्िी-जल्िी बोले जा रहे हैं। तो इि सब
तरह की समथयाओं से भी निबििा होता है ।

प्रश्नों की स्वयं जााँच किना :

प्रश्न क- कोष्ठक में हदए िए िब्दों की िहायता िे रिक्त स्थान की पनू तय कीक्जए-

1. कफल्मों में आज कल अलग भाषा की कफल्मों को ककसी अलग भाषा में ........ करिे का
कायत भी काफी तेज़ी से हो रहा है । (डब, ररकाडत, कफल्म)

2. ककसी भी ससिेमा को बेहतर बिािे के सलए, उसके प्रभाव में वद्


ृ धध करिे के सलए
तकिीकी का महत्त्वपूणत योगिाि होता है । (तकिीक, ससिेमा, कफल्म)

प्रश्न ि- ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति एक िब्द या एक पंक्क्त में दीक्जए-

1. एक भाषा में बिी कफल्म को िस


ू री भाषा में बिलिे की प्रकक्रया को क्या कहते हैं?

2. दिग्िशतक कैमरा को शुरू करिे के सलए ककस शब्ि का इथतेमाल करता है ?

1.6 सिनेमा का तकनीकी पक्ष

ससिेमा बहुत हि तक तकिीकी पर निभतर करता है । इससलए इसके तकिीकी पक्ष को


समझिा अत्यंत आवश्यक है । ससिेमा के तकिीकी पक्ष को हम निम्ि रूप से समझिे का
प्रयास करें गे -

सिनेमेटोग्राफि (कैमिामैन)

कैमेरा तथा कैमरामैि के ब्रबिा कफल्म िहीं बि सकती । वे सभी कायत जो कक कैमरे की
तकिीकी से होते हैं, जैसे – कैमरा थिे ण्ड, कफल्म थपीड, लेदस चुिाव, फ्ेमै कम्पोन्जशि, कैमरा
कोि आदि सभी कायत कैमरामैि को आिा अत्यावश्यक होती है । अच्छे कफल्मांकि के सलए एक
अच्छे तथा कुशल कैमरामैि की आवश्यकता होती है । साथ ही कैमरामैि को यह पता भी होिा

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चादहए कक कफल्म नििे शक क्या चाहता है । ‘जो कैमरामैि नििे शक की कल्पिा के साथ सुर
समला सकता है वही कैमरामैि नििे शक के मि की कल्पिा को साथतक रूप से कफल्म में पूरी
तरह प्रनतफसलत कर पाएगा। इससलए नििे शक, कैमरामैि और कलाकारों में अच्छी आपसी समझ
की जरूरत होती है । इसी कारण अधधकांशतः यह िे खा जाता है कक एक नििे शक एक ववशेष
कैमरामैि को लेकर ही काम करते हैं । झि से कैमरामैि िहीं बिलता चाहते। कैमरामैि को
सहायता के सलए सहयोगी कैमरामैि भी होते हैं, वे भी कैमरामैि के साथ अिेक िानयत्वों का
वहि करते हैं । नििे शक एवं पिकथा कक जरूरत के दहसाब से एवं दृश्य के अिुसार कैमरामैि
को लाइि की व्यवथथा करिी होती है ।

लाइट व्यवस्था

लाइि व्यवथथा कफल्म तकिीकी पक्ष का एक महत्त्वपूणत अंग है । दृश्यों को कैमरे में
प्रभावशाली ढं ग से बंि करिे के सलए लाइि व्यवथथा का होिा महत्त्वपण
ू त है । हर एक सीि के
अिुरूप लाइि व्यवथथा करिा जरूरी होता है । इिडोर शूदिंग के सलए बड़े-बड़े पावर के बल्ब की
जरूरत होती है । सूरज की रौशिी यदि कम होती है तो उपकरणों की सहायता से कृब्रत्रम लाइि
व्यवथथा का प्रबंध ककया जाता है । बड़े-बड़े ररफ़्लेक्िसत भी उपयोग में लाये जाते हैं। शूदिंग के
िौराि अलग-अलग प्रकाश स्रोतों का प्रयोग ककया जाता है । कैमरामैि की सच
ू िा के अिुसार
लाइि बाईज़ खड़े रहते हैं। लाइिमैि के नियंत्रण में लाइि व्यवथथा का कायत होता है ।

ध्वनन मुिि (िाउं र् िे कार्र्िंि)

शूदिंग के िौराि कलाकारों के संवाि तथा अलग-अलग ध्वनियों को ध्वनि मुदद्रत ककया
जाता है । शदू िंग के समय बोले गए संवाि गाइड रै क के रूप में ध्वनि मदु द्रत ककए जाते है ।
उसके बाि उसी िे प्स का डब्रबंग करके संबंधधत कलाकारों से रे कोडडिंग थिूडडयों में उिके होठों की
हलचल के साथ मैच करके ध्वनि मुदद्रत ककए जाते हैं और यही संवाि का साउं ड रै क अंनतम वप्रंि
में आता है । इससलए मूलभूत तौर पर शूदिंग के समय ध्वनि मुद्रण आवश्यक होता है ।

र्बबंि

संपािि की अंनतम रूपरे खा के अिस


ु ार साउं डररकॉडडिंग थिूडडयों में हर एक कलाकार से
उिके संवाि कहलवाए जाते है । एक प्रकक्रया को ‘डब्रबग
ं ’ कहते हैं शदू िंग के समय ररकॉडत ककए
संवाि कफल्म में िहीं रखे जाते उदहें गाइड रै क की तरह रखा जाता है । बाि में प्रत्येक दृश्य को
पिे पर डालकर एक-एक दृश्य के अिस
ु ार कलाकारों से संवाि बल
ु वाए जाते हैं। “कलाकार पिे पर
अपिे असभनित चररत्र के होठों की गनत को िे खते हैं। अपिे होठों की गनत से समलाकर वे संवाि
बोलते हैं। वे गाइड रै क की सहायता लेतें हैं। शूदिंग के समय संवाि बोलिे में यदि कोई कमी रह
गई हो या उच्चारण में त्रुदि रही हो तो डब्रबंग के समय उसे सुधारिे का सुयोग रहता है । डब्रबंग
में संवाि के अलावा और कोई भी शब्ि ररकॉडत िहीं होता।”

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िाउं र् इफेक्ट

डब्रबंग के बाि साउं ड इफेक्ि का काम बाकी रहता है । संवाि के अलावा कफल्मों में अिेक
अदय आवाज़ें भी होती हैं । जैसे जत
ू े पहिकर चलिे की आवाज, बाररश की आवाज, कााँच के
बततिों की आवाज, िरवाजा बंि करिे या खुलिे की आवाज, गाड़ी थिाित होिे की आवाज, हॉित की
आवाज, पुसलस के गाड़ी के सायरि की आवाज आदि। वैसे ही पशु पंनछयों की आवाज, कुत्तों का
भौंकिा, आदि समथत ध्वनियों की आवश्यकता होती है । ये ही सब थपेशल साउं ड इफेक्ि हैं।
‘नििे शक के आवश्यकतािस
ु ार प्रधाि सह नििे शक तासलका बिाते हैं कक कौि सी आवाज कहााँ
लगेगी, तििुसार शब्ियंत्री के साथ ववचार-ववमशत करके ररकॉडत करिे की व्यवथथा करते हैं। अपिे
ड्रामा सेंस का इथतेमाल करते हुए शब्ियंत्री कफल्म के ववसभदि दृश्यों में इि समथत ध्वनियों,
संगीत एवं संवाि को िक्षता के साथ ररकॉडत करते हैं। असल में ये ‘साउं ड इफेक्ि’ ववशेष प्रभाव
उत्पदि करते हैं।’

प्रश्नों की स्वयं जााँच किना

प्रश्न क- कोष्ठक में हदए िए िब्दों की िहायता िे रिक्त स्थान की पनू तय कीक्जए-

1. इंडोर शूदिंग के सलए बड़े-बड़े पावर के ………..की जरूरत होती है । ( बल्ब, साउं ड, कैमेरा )

2. नििे शक के आवश्यकतािस
ु ार प्रधाि सहनििे शक तासलका बिाते हैं कक कौि सी
........कहााँ लगेगी, तििुसार शब्ियंत्री के साथ ववचार-ववमशत करके ररकॉडत करिे की
व्यवथथा करते हैं । (गीत, आवाज़, सीि)

3. डब्रबंग के बाि ......... इफेक्ि का काम बाकी रहता है । (साउं ड, लाईि, एक्शि)

अभ्याि के सलए प्रश्न

क. लघु प्रश्न

1. ससिेमा में प्रिसशतत होिे वाले आइिम गीत की ववशेषताओं पर प्रकाश डासलए।

2. वैश्वीकरण के बाि दहंिी ससिेमा में आए बिलाओं पर प्रकाश डासलए।

3. दहंिी ससिेमा में ग्रामीण पष्ट्ृ िभूसम पर बिी कफल्मों पर संक्षक्षप्त दिप्पणी सलखखए ।

4. दहंिी ससिेमा के इनतहास पर एक संक्षक्षप्त एवं साथतक लेख सलखखए ।

5. सादहत्य की तरह ससिेमा भी समाज को दिशा दिखिे वाला ज़ररया है । इस कथि की


समीक्षा कीन्जए ।

6. ससिेमेिोग्राफर से क्या समझते हैं?

7. कफल्म तकिीकी के पक्ष में लाइि व्यवथथा का महत्त्व समझाइए ।

92
8. ससिेमा को प्रभाववत करिे वाले कारकों का उल्लेख कीन्जए ।

9. ससिेमा के ववकास में तकिीकी का क्या योगिाि है । उल्लेख कीन्जये ।

10. भारतीय ससिेमा में दहंिी ससिेमा के थथाि पर प्रकाश डासलए ।

ि. ववस्तत
ृ उत्तिीय प्रश्न

1. दहंिी ससिेमा की अंतवतथतु की ववशेषताओं पर प्रकाश डासलए ।

2. दहंिी ससिेमा के इनतहास का ववथतत


ृ वणति कीन्जये ।

3. दहंिी ससिेमा और तकिीकी पर एक ववथतत


ृ दिप्पणी सलखखए ।

93
2. सिनेमा में ननदे िक एवं ननदे िन का कायय तथा
िेंििबोर्य औि सिनेमा प्रिािि अगधननयम

डॉ. महें द्र प्रजापनत


हं सराज कालेज, दिल्ली

2.1 प्रस्तावना
कफल्म समीक्षक ससिेमा को नििे शक की ववधा मािते हैं। नििे शि ससिेमा का वह तकिीकी पक्ष
है , न्जसके द्वारा कफल्मों का पूरा खाका तैयार होता है । नििे शक ससिेमा का जिक होता है । वह
कफल्म के निमातण की पूरी प्रकक्रया को पहले तैयार करता है । कहािी, पिकथा, गीत, संगीत, ित्ृ य,
संवाि सबकी भूसमका नििे शक ही तय करता है । दहंिी ससिेमा में बहुत सारे ऐसे नििे शक हुए हैं
न्जदहोंिे अपिी कफल्मों से समाज को िई चेतिा िी है । सरकार द्वारा गदठत ‘कफल्म सेंसर बोडत’
कफल्मों को समाज में पहुाँचिे से पहले प्रमाण-पत्र िे ता है । कफल्म की कहािी के दहसाब से सेंसर
बोडत उसपर अपिी प्रनतकक्रया िे कर प्रमाण-पत्र जारी करता है । ब्रबिा प्रणाम-पत्र के कोई भी कफल्म
प्रिसशतत िहीं की जा सकती है ।

2.2 अगधिम का उद्दे श्य


इस पाठ को पढकर आप निम्िसलखखत कायत कर सकिे में सक्षम हो जाएाँगे–
(1) नििे शि के तकिीकी पक्ष को जाि पाएाँगे।
(2) नििे शक और ससिेमा के संबंध को समझ पाएाँगे।
(3) कुछ महत्त्वपूणत नििे शकों की कफल्मों से पररधचत हो पाएाँगे।
(4) कुछ िए ववषयों पर बिी कफल्मों से पररधचत हो सकेंगे।
(5) कफल्म सेंसर बोडत के नियम को जाि पाएाँगे।
(6) कफल्म सेंसर बोडत द्वारा ववतररत ककए जािे वाले प्रणाम-पत्र की प्रकक्रया को जाि
पाएाँगे।
(7) नििे शक की असभव्यन्क्त और सेंसर बोडत के नियम के बीच की प्रकक्रया को जाि पाएाँगे।

सिनेमा में ननदे िक एवं ननदे िन का कायय (चनु नन्दा फफल्मों के आधाि पि)

ससिेमा का तकिीकी पक्ष है । ससिेमा मूलत: नििे शक की ववधा है । नििे शक ही ससिेमा


की भावभूसम तय करता है । कफल्म की मूल कहािी में बिलाव नििे शक ही करता है । कफल्म के
निमातण का आरं भ ही नििे शक से होता है । नििे शक अपिे दहसाब से कहािी को मोड़ता है । उसे
सामनयक बिाता है । कहािी और पिकथा के बीच के िोष को िरू करता है । दृश्य और कहािी के
आधार पर गीतों का चुिाव करता है । पिकथा के अिुसार असभिेताओ का चयि करता है ।
असभिेता को श्रेणी तय करता है । यहााँ तक कक असभिेताओं की वेश-भूषा तक नििे शक ही तय

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करता है । नििे शक न्जतिा िरू िशी होगा कफल्म भी उतिी ही प्रभावशाली होगी। कफल्म धचंतक
असभिेता या असभिेत्री िहीं बन्ल्क नििे शक को िे खकर कफल्में िे खिे जाते हैं। नििे शक ससिेमा को
गढता है । नििे शि, नििे शक का हधथयार है । कोई भी व्यन्क्त जो नििे शक बिता है , वह पहले
निित शि की तकिीकी को ससखता है । नििे शि में व्यन्क्त कफल्म निमातण के नियमों और
बारीककयों को सीखता है । नििे शि को सीखा जा सकता है लेककि यह कोई िहीं कह सकता है कक
नििे शि सीख कर कोई बेहतर कफल्म बिा सकता है क्योंकक नििे शक वही अच्छा होगा जो
तकिीकी ज्ञाि के साथ ही ववचार सम्पदि होगा। न्जसे समाजशाथत्र और इनतहास का ज्ञाि होगा
वही बेहतर नििे शक हो सकता है ।
दहंिी ससिेमा में बहुत सारे ऐसे नििे शक हुए हैं न्जदहोंिे अपिी िवीि दृन्ष्ट्ि से ससिेमा की
पररपािी को बिला है । ऐसे नििे शकों की संख्या सैकड़ों में हैं लेककि यहााँ कुछ ऐसे नििे शकों की
कफल्मों का पररचय दिया जा रहा है जो सामनयक हैं और प्रासंधगक भी।

2.3 िमि (श्याम बेनेिल)


श्याम बेिेगल समांतर और लोकवप्रय ससिेमा के बहुचधचतत क़िल्मकार हैं। उदहोंिे न्जतिी
कफल्मों का नििे शि ककया उि कफल्मों में समाज का यथाथत बहुत करीब से िे खिे को समलता है ।
कफल्म िसलतों की समथया के साथ उिके अंिर के प्रनतरोध को भी गहराई से उठाती है । श्याम
बेिेगल द्वारा नििे सशत ‘समर’ जानतवािी व्यवथथा की सड़ चुकी मािससकता पर गहरा प्रहार
करती है । ‘समर’ भारत के मध्य प्रिे श के सागर न्जले के कुल्लू गााँव की कहािी है । इस गााँव में
िसलत, वपछड़ा और सवणत एक साथ रहते हैं। श्याम बेिेगल दहंिी ससिेमा की पररपािी को बिलिे
वाले पहले क़िल्मकार है । सत्तर के िशक से शरू
ु हुई उिकी कफल्मी यात्रा आज तक जारी है तो
इससलए कक उदहोंिे समय के दहसाब से अपिी कफल्मों की ववषय-वथतु तो बिल ली लेककि उसकी
संवेििा के साथ कोई समझौता िहीं ककया। वह वाथतववक कहानियों पर कफल्म बिािे का
जोखखम लेते हैं। ककसी घििा या पररवेश से प्रभाववत होकर उदहोंिे कई कफल्मों का निमातण
ककया। ‘समर’ भी सत्य घििा पर आधाररत कफल्म है । सागर न्जले के प्रशासनिक अधधकारी रह
चुके हषतमंिर के सलखे संथमरणों को एकत्र कर अशोक समश्रा िे कफल्म की पिकथा सलखी। कफल्म
में कुल्लू गााँव के एक कुाँए पर घिी घििा को आधार बिाया है । उस कुाँए के उत्तर ओर से
िाह्मण पािी भरते हैं, पूरब की ओर से ठाकुर, पन्श्चम की ओर से अहीर, िाई और धोबी पािी
भरते हैं। िक्षक्षण की ओर से िसलत पािी भरते हैं। यह नियम है कक िसलत तभी पािी भर सकता
है जब सवणत पािी भर लेंगे। इस बीच कोई िसलत पािी भरिे पहुाँचता तो उसे अपराधी मािकर
सवणत उदहें सजा िे ते थे। िसलत िाथल
ू ाल अदहरवार (रघुवीर यािव) की पत्िी िल ु ारी बाई
(राजेश्वरी) काँु ए पर पािी भरिे जाती है तो उसे लोधी ठाकुर (रवव झााँकल) की पत्िी सवणों के
साथ पािी भरिे आिे की वजह से पीिी जाती है । सवणत थत्री उसे मारती भी है और उसके हाथ
में कोढ भी डायगिोस कर िे ती है । िाथि
ू वाई के सलए मुआवजा मााँगिे ठाकुर के पास जाता है तो
ठाकुर उसे बेइज्जत कर के भगा िे ता है ।

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‘समर’ सरकार द्वारा हैंडपंप लगवािे के सलए िसलतों और सवणों के बीच के संघषत की
कहािी के साथ आगे बढती है । िाथू उि िसलतों में जागरूक है । वह चाहता है हैंडपंप िसलतों की
बथती में लगे। जब वह ववरोध करता है तो उसका घर जला दिया जाता है । घर जलिे के बाि
िाथू एक मंदिर जाकर सब ठीक होिे की प्राथतिा करता है । वहााँ भी उसे मंदिर में घुसिे के िाम
पर प्रताडड़त ककया जाता है । िसलतों की मााँग पर सरकार द्वारा हैंडपम्प लगवािे के सलए एक
अफसर को भेजा जाता है । िसलतों की बथती में पम्प खि
ु ता िे ख ठाकुर िसलतों को मारते हैं।
िसलतों के अंिर चेतिा आती है वह इस मार-पीि के प्रनतरोध में और कम मजिरू ी के कारण
खेतों में काम करिा बंि कर िे ते हैं। ठाकुर उदहें मजबूर करिे के सलए उि पर कई प्रनतबंध
लगाता है और प्रताडड़त करिे की कोसशश करता है । िसलतों का काम रोकिे के सलए वह अदय
जानतयों से उिका काम करिे को मिा करता हैं। जैसे िाई को उिके बाल काििे से मिा करता
है । िाह्मण अपिी आिा चक्की में उिका अिाज िहीं पीसेगा, पिे ल उदहें बीड़ी बिािे के सलए
तें िप
ू त्ता िहीं िे गा। िाथू इि सबमें जागरूक है । वह ठाकुर के प्रनतबंधों को बिातश्त िहीं करता और
बीड़ी का काम करिे सागर चला जाता है । वहााँ भी उसका शोषण होता है । बीड़ी फैक्िरी का
मासलक िाथू को पैसे अपिे भाई के खखलाफ हररजि-एक्ि लगवा िे ता है । वह िोिों संपंि भाइयों
के बीच फंस जाता है । एक दिि मौका समलते ही वह कफर गााँव भाग आता है । अपिी पत्िी को
कमाए हुए पैसे िे ता है तो घर की हालत में कुछ सध ु ार आता है । िाथू खुशी में मंदिर जाकर
झंडा चढािे की कोसशश करता है तो मंदिर द्वारा मारा पीिा जाता है । मंदिर में घुसिे के अपराध
में ठाकुर पंचायत बैठाता है । पंचायत के निणतय के अिुसार ठाकुर िाथू के ससर पर पेशाब करता
है । श्याम बेिेगल क़िल्मकार से अधधक आंिोलिकारी हैं। उिकी कफल्में भारतीय समाज में व्याप्त
जानतवाि, धासमतक आडंबर, िाह्मणवाि, अमािवीयता और के ववसभदि पक्षों को उजागर करती हैं।
समर उसी तरह की कफल्म है । गााँव में फैली अव्यवथथा और आडंबर की पोल खोलती समर
िसलत समाज के आक्रोश और गुथसे को िए ढं ग से पेश करती है ।
कफल्म में छोिे -छोिे प्रसंगों के जररए गााँव और शहर में अंिर तक घुसी जानतवाि की
शैतािी को दिखाया गया है। खि
ु एक कफल्म नििे शक होकर कफल्म वालों पर मारक व्यंग्य केवल
श्याम बेिेगल की कफल्म में ही संभव था। श्याम बेिेगल का खि
ु माििा है कक समाज के पढे -
सलखे लोग अिपढ और गंवार लोगों से अधधक जानतवािी और शोषण करिे वाले हैं। अगर समाज
का यह वगत समािता का भाव रखे तो िसलतों को कोई दिक्कत िहीं होगी ि उिको ववरोध करिा
पड़ेगा।
कफल्म के अंिर भी एक कफल्म बििे की प्रकक्रया चल रही है न्जसमें एक कफल्म की
शूदिंग चल रही है । कफल्म में नििे शक की भूसमका कानततक (रजत कपूर) िे की है । जो जानतवाि
की घिी एक घििा पर कफल्म बिािे के सलए आते हैं। िरअसल कफल्म की कहािी शूदिंग के
जररए ही चलती है । नििे शक कानततक श्याम बेिेगल जब ककसी ववषय पर कफल्म बिाते हैं तो
उसके बौद्धधक पररप्रेक्ष्य को भी उसमें रखते हैं। कफल्म का नििे शक अपिे यूनिट्स के अदय
सिथयों के साथ भारतीय संरचिा के ववसभदि पक्षों पर बात करता है ।एक दिि पुसलस अधधकारी
जो कक खि
ु िसलत है , उदहें अपिे यहााँ लंच पर बल
ु ाता है । जहााँ भोजि के साथ जानत व्यवथथा

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पर बातचीत होती है । पुसलस अधधकारी कहता है -“इस सेंचुरी में हमिे जानत व्यवथथा के बैकबोि
को तोड़ा है । अगले सौ साल में हम इसे पूरी तरह ख़त्म िे तो...।” तभी उसका बच्चा थकूल से
आता है जो कहता है कक उसे सब थकूल में चमार का बच्चा बोलते हैं तो पसु लस अधधकार उसे
अपिे पास बुलाकर कहता है -“तुम्हारे पापा चमार है इसमें रोिे की क्या बात है ...बेिे तुम अपिे
आपको जो बिाओगे वही रहोगे।” नििे शि की दृन्ष्ट्ि से िे खें तो यह कफल्म बहुत ही महत्त्वपूणत
है ।

2.4 ब्लैक फ्राइर्े (अनुिाि कश्यप)


दहदिी ससिेमा में आतंक, दहंसा और िं गों पर आधाररत कफल्में हमेशा बिती रही हैं।
नििे शकों िे अपिी क्षमता से इि ववषयों को सुलझािे का प्रयत्ि ककया है न्जिमें से कुछ तो
काफी सफल भी रहे हैं ।मखणरत्िम की ‘बॉम्बे’ के बाि अिुराग कश्यप की ‘ब्लैक फ्ायडे’ इसी
ववषय पर बिी कफल्म है ।‘ब्लैक फ्ायडे’ प्रख्यात पत्रकार हुसैि जैिी की ककताब ‘ब्लैक फ्ायडे’ पर
बिी है न्जसकी पिकथा और नििे शि अिरु ाग कश्यप िे थवयं परू ा ककया-कफल्म की कहािी 1992
में बाबरी मन्थजि ढहाए जािे के बाि 1993 के माचत में मुम्बई में हुए ससलससलेवार बम ववथफोिों
और सांप्रिानयक िं गों पर आधाररत है ।भारतीय समाज अपिे आजाि होिे के साथ ही िं गों और
आतंकवाि की कई घििाओं का साक्षी रहा है ।सत्ता और प्रशासि के आपसी थवाथत के सलए हमेशा
िं गे होते रहे है ।भारत के चेहरे पर ऐसे िं गों के खूि के छीिें लगातार पड़ते रहे हैं।एक जख्म
सख
ू ता िहीं कक िस
ू रा समलता रहा है । बाबरी मन्थजि कांड से दहदि ू मन्ु थलम की साझा-संथकृनत
का पूणत
त याः खंडि हो गया न्जसके कारण सांप्रिानयक संघषत और ववद्वेष की भाविा और अधधक
गहरी होती गयी। 6 दिसंबर 1992 के बाबरी मन्थजि के ववध्वंस के रूप में भारत िे जो त्रासिी
झेली है उसकी िीस आज भी दिलों में उठती है । परू ी कफल्म में अिरु ाग कश्यप िे न्जस तरह से
शोध ककया है वह उिके नििे शकीय व्यन्क्तत्व की खास पहचाि है ।
‘ब्लैक फ्ायडे’ अपिे समय की कफल्मों से बहुत आगे की कफल्म है ।भारतीय िशतकों में सच
िे खिे और समझिे की ताकत िहीं है और ि ही वह मािवीय सरोकारों की कफल्मों से थवयं को
जोड़ पाता है । न्जसे हम ‘कला ससिेमा’ कहते हैं वह इसी तरह का ससिेमा है । कला ससिेमा में
समाज के यथाथत को िंगा करके दिखाया जािे लगा शायि इसीसलए मिोरं जि और दहंसा की
कफल्मों के आिी हो चुके भारतीय जिमािस को वैचाररक और समाज के ककसी समय पर बहस
करिे वाली धीमी गनत की कफल्में लुभा िहीं पायी।
‘ब्लैक फ्ायडे’ िे एक पहल तो शरू
ु की है । इस कफल्म में अिरु ाग िे न्जस तरह का
पररवेश खड़ा ककया वह िशतकों को तब तक बाधें रखता है जब तक कफल्म खत्म िहीं होती।
इतिा ही िहीं कफल्म की समान्प्त पर भी िशतक एक सवाल अपिे साथ लेकर जाता है कक लोगों
को क्या बिाया जा रहा है ? कौि बिा रहा है और क्यों बिा रहा है ? ऐसा भी िहीं कक लोग
जािते िहीं हैं परं तु उसे जड़ तक जाििा िहीं चाहते हैं। यही वजह है कक ऐसी घििाएाँ भारतीय

97
समाज को समय-समय पर झकझोरती रहती हैं। पूरी कफल्म में एक बौखलाहि है जो िं गों की
पोल खोलती है और उिका भी जो इसमें ककसी ि ककसी वजह से शासमल हैं।
अिरु ाग कश्यप िे ‘ब्लैक फ्ायडे’ के माध्यम से एक ऐसे समाज का आईिा प्रथतत
ु ककया
है जो ककसी हाथ की कठपुतसलयााँ होते हैं। पहले तो वह उदमाि और भाविात्मक प्रवाह में बह
जाते हैं कफर थवयं दयाय के सलए भिकते रहते हैं।भारतीय समाज का एक सच यह भी है कक अब
तक न्जतिे िं गे हुए है उसमे अधधकतर राजिीनतक लाभ के सलए हुए हैं। राजिीनतक शन्क्तयााँ
अपिे लाभ के सलए बार-बार समाज के हाससए पर पड़े और रोिी जैसी बनु ियािी चीजों के सलए
संघषत करते लोगों का इथतेमाल करते हैं। ‘ब्लैक फ्ायडे’ अपिे आपमें भारतीय समाज के उस चेहरे
का आईिा है न्जिके सलए िं गा,फसाि और आतंकी हमले ककसी रोजगार की तरह हैं। वे धमत और
जेहाि की बातें करके मासम
ू ों और िािािों को अपिे चंगुल में फसाते हैं कफर अपिे मकसि को
अंजाम िे ते हैं। कई बार वह ऐसा अपिी शन्क्त प्रिसशतत करिे के सलए करते हैं और अपिे
व्यन्क्तगत मािससक कीड़े को शादत करिे के सलए भी।
‘ब्लैक फ्ायडे’ न्जतिी धीमी गनत से चलती है उतिी ही तेज गनत से अपिे ववषय को
सल
ु झािे में सफल होती है । कफल्म की कहािी कई दहथसों और चररत्रों में बंिी है जो अपिा कायत
अपिे थवाभाववक ढं ग से करते हैं। कफल्म का आरं भ अंधेरे से शुरू होता है पर उसके पीछे छुपे
सच पूरी तरह से दिखते हैं। िशतकों को इि काले दृश्यों के पीछे का रहथय अपिी चमक के साथ
झलकता है । कफल्म में दिखाए गए प्रमाणों से ही सच पता चलता है कक इस िं गे में 300 से
अधधक लोगों की मत्ृ यु होती है और लगभग 2000 के करीब लोग घायल होते हैं। पुसलससया जांच
से पता चलता है कक बमों को बिािे में ‘आरडी एक्स’ का प्रयोग हुआ था जो कक िेवी कथिम
अधधकाररयों एवं बाडतर पुसलस की समलीभगत से मुंबई पहुंचा था। कफल्म में िं गो के बाि िाउि
इिादहम काथकर का साथी तथकर अपराधी िाईगर मेमि, न्जसका ऑकफस इि िं गों में जला दिया
गया था। इससे क्रोधधत होकर मेमि िब
ु ई में एक बैठक कराता है और इसमें इि िं गों का माकूल
जवाब िे िे का निणतय सलया जाता है और इसकी पररणनत 12 माचत, 1993 के मुंबई बम धमाकों
में होती है । इस िं गे की जााँच के तहत 14 माचत असगर मक
ु ािम िाईगर का मैिेजर धगरफ्तार
ककया जाता है । इसके बाि धगरफ्ताररयों का लम्बा ससलससला चलता है । बािशाह खाि आदित्य
श्रीवाथतव 10 मई, 1993 को धगरफ्तार ककया जाता है और 5 अगथत, 1994 को मेमि का भाई
याकूब मेमि िे लीववजि के इंिरव्यू में बताता है कक इि बम धमाकों के पीछे उसके भाई का हाथ
था और मेमि पररवार का कोई भी सिथय उसके इस कृत्य में साथ िहीं था। इस पूरी घििा को
अिुराग “ज्यों-ज्यों बूढे श्याम रं ग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय” के अंिाज में खोलते है और अंत तक
मुम्बई िं गों के बििे की योजिा से लेकर अपराधधयों के धगरफ्तार होिे तक के तमाम दृश्यों को
प्रथतुत कर िे ते हैं।
‘ब्लैक फ्ायडे’ में कोई कहािी िहीं है ।कोई ववशेष पररवार और समि
ु ाय िहीं है ससफत
घििाएाँ हैं और घििाओं का वववरण है ।कफल्म के रीलीज होिे तक इस केस का कोई निणतय कोित
की तरफ से िहीं आया था इससलए कफल्म ककसी फैसले तक िहीं पहुाँच पाती। ससफत िशतकों में
कुछ सवाल छोड़ जाती है न्जसमें उसी का उत्तर भी छुपा हुआ है । कफल्म के आरं भ में ही थक्रीि

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पर महात्मा गााँधी का एक प्रससद्ध कथि उभरता है-“आाँख के बिले आाँख की भाविा एक दिि
पूरी िनु िया को अंधा कर िे गी।” यह कथि अिुराग की पूरी कफल्म में अपिे वजि
ू के साथ मौजूि
है । परू ी कफल्म इसी गज
ु ाररश में निकल जाती है कक जो िफरत हम बो रहे हैं वो एक दिि हमारे
ही लोगों का िुकसाि करे गी।

2.5 िुजारिि (िंजय लीला भंिाली)


संजय लीला भंसाली दहंिी ससिेमा के संभाविाशील नििे शक हैं। दहंिी ससिेमा की पररपािी
को तोड़ते हुए जीवि की छोिी-छोिी सच्चाईयों को पिे पर बिु िा उिका शगल है । खामोशी, हम
दिल िे चक ु े सिम, सााँवररया, ब्लैक जैसी लीक से हिकर कफल्में बिािे वाले संजय की कफल्म
‘गुजाररश’ भी दहंिी ससिेमा के पिे पर जीवि और मत्ृ यु का उत्सव रचती है । संजय िे ‘हूज
लाइफ इज इि एिीवे’ और ‘ि सी से प्रभाववत होकर 'गुजाररश' का निमातण ककया। भारत जैसे
पारं पररक िे श में ‘इच्छामत्ृ यु’ जैसे गंभीर मद्
ु िे को पिे पर दिखािे का साहस करिा ही बड़ी बात
है । ‘गज
ु ाररश’ मैथकेरे हास (ररनतक रोशि) िामक जािग
ू र की कहािी है जो अपिे ही समत्र द्वारा
जाि ू दिखाते समय धोखे से धगरा दिया जाता है न्जससे उसका पूरा शरीर ववकलांग हो जाता है
और क्वाड्रोप्लेन्जया िामक बीमारी से ग्रथत हो जाता है । इस बीमारी की वहज से वह खि
ु से
उठ-बैठ भी िहीं सकता। चौिह वषों से ब्रबथतर पर न्जंिगी गुजारिे के बाि वह इच्छा-मत्ृ यु के
सलए कािूिी ढं ग से कायतवाही करता है । यहााँ तक कक वह अपिे ऊपर बैठी मक्खी भी िहीं उड़ा
सकता। एक तरह से िे खें तो ‘गज
ु ाररश’ न्जजीववषा से भरे एक व्यन्क्त की कहािी है न्जसका
अतीत बहुत प्रनतन्ष्ट्ठत रहा है लेककि छल द्वारा ऊाँचाई से धगराए जािे पर उसका शरीर अपंग हो
जाता है कफर भी चौिह वषों से वह जी रहा है । ऐसी कफल्में बिाते समय नििे शक की न्ज़म्मेिारी
बढ जाती है लेककि संजय लीला भंसाली से यह उम्मीि की जा सकती है कक वह बेहतर कफल्म
बिा सकते हैं और उदहोंिे साब्रबत भी ककया है । इस कफल्म में रूहािी इश्क़ को भी जीवंत होते
िे खा जा सकता है । सोकफया (ऐश्वयात राय) मैथकेरे हास से प्रेम करती है और उसकी िे खभाल
करती है । उि िोिों को पता है कक इस प्रेम की पररणनत अंततः मत्ृ यु है कफर भी िोिों एक िस
ू रे
को प्रेम करते हैं। सोकफया अपिा पूरा जीवि मैथकेरे हास पर लगािे के सलए तैयार है । बहुत दिि
के बाि पिे पर ऐसा प्रेम दिखा जो िे ह से परे हो। मैथकेरे हास अिम्य साहस से भरा खश ु हाल
जीवि जीिे वाला व्यन्क्त है । कुछ भी ि कर पािे की असमथतता को वह मत्ृ यु को ग्रहण कर के
खत्म करिा चाहता है । वह अपिी जीवि की एकरसता से ऊब गया है –“गुजाररश, मैथकरै िस की
निजता आत्म-सम्माि के साथ साथ सामान्जक पक्ष एवं वैधानिक पक्षों की भी व्याख्या करती है ।
कफल्म अिुच्छे ि 21 जीिे के मूलभूत अधधकार के बरक्स इन्च्छत मत्ृ यु को रख कर सोचती है जो
व्यन्क्त कष्ट्िों को झेल रहा है और मत्ृ यु के माध्यम से असहिीय िित से निजात चाहता है ।”1 इस
कफल्म के बहािे इच्छा मत्ृ यु पर सरकार और दयायालय से हुई बहसें यह बताती हैं कक भारत में
यह कािूि अभी लागू िहीं है लेककि इस कफल्म में उसे सच होते दिखाया गया है ।

1
‘अनहद’, विविन शर्मा, नयी सदी कम वसनेर्म, अनज्ञु म बुक्स, वदल्ली, 2018, िृष्ठ-67

99
प्रश्नों की स्वयं जााँच किना
1. ननम्नसलणित प्रश्नों के उत्ति ‘हााँ’ या ‘ना’ में दीक्जए-
(i) श्याम बेिेगल समांतर और लोकवप्रय ससिेमा के बहुचधचतत क़िल्मकार हैं। (......)
(ii) कफल्म 'समर' िसलत जीवि पर आधाररत िहीं है । (......)
2. कोष्ठक में हदए िए िब्दों में िे िही िब्द चुनकि रिक्त स्थानों की पूनतय कीक्जए–
(i) श्याम बेिेगल क़िल्मकार से अधधक ................ हैं। (आंिोलिकारी, गीतकार, कहािीकार)
(ii) ‘ब्लैक फ्ायडे’ प्रख्यात ........ हुसैि जैिी की ककताब ‘ब्लैक फ्ायडे’ पर बिी है । (कवव,
क़िल्मकार, पत्रकार)
(iii) संजय लीला भंसाली .......... ससिेमा के संभाविाशील नििे शक हैं। (दहंिी, तसमल, तेलुग)ू
(iv) कफल्म गज
ु ाररश ......... पर आधाररत कफल्म है । (प्रेम, िे शभन्क्त, इच्छामत्ृ यु)

2.6 तमन्ना (महे ि भट्ट)


अधधकतर कफल्मों िे ‘थडत जेंडर’ के िेगेदिव रूप को ही धचब्रत्रत ककया है । आश्चयत की बात
यह है कक इस िेगदे िव रूप को हम ककदिर समाज का असल रूप ही माि बैठे थे। कुछ कफल्मों
िे इस िकारात्मक छवव को तोड़कर िायक की छवव थथावपत करती है । सच्ची घििा पर
आधाररत महे श भट्ि की कफल्म ‘तमदिा’। इस कफल्म में केवल ‘रांसजेंडर’ जैसे संवेििशील मुद्िे
को ही िहीं उठाया गया बन्ल्क यह भी दिखाया गया है कक इंसानियत ककसी ववशेष वगत या धमत
की जागीर िहीं है , जो कुल एवं धमत के साथ ही आएगी। परे श रावल िे ‘ककदिर’ के ककरिार को
इस कफल्म में जीवंत कर दिया है । पराये की बेिी को अपिी बेिी मािकर पालिा, पूरे ककदिर
समाज से उस अिजाि लड़की के सलए लड़िा, न्जससे उसका कोई िाता िहीं था, इंसानियत की
एक अिठ
ू ी समसाल है । इस कफल्म में एक साथ कई मद्
ु िों की ओर िशतकों का ध्याि आकवषतत
ककया गया। यह कफल्म उि सभी ‘रांसजेंडसत’ का प्रनतनिधधत्व करती है , न्जदहें समाज की
मुख्यधारा से अलग कर दिया गया है लेककि उदहोिें कभी-भी थवयं को इस समाज व इंसानियत
से अलग िहीं समझा। इस कफल्म की खूबी ये है कक ये कफल्म ककसी लेखक की कोरी कल्पिा
िहीं है बन्ल्क सच है । समाज के द्वारा िी गयी िफरत में भी यह इंसानियत का फूल खखला रहे
हैं– कफल्म का यही संिेश है । कफल्म में जब पज
ू ा भट्ि को यह बात मालम
ू होती है कक उसको
पालिे वाला एक ककदिर है। तमदिा को जब उसका असली वपता अगवा करवाता है और तमदिा
उससे पूछती है कक एक दिि की बच्ची को क्यों आपिे कचड़े के डब्बे में फेंकवा दिया था तब
उसका असली वपता कहता है वंश बेदियों से िहीं बेिों से चलता है , बेदियााँ कलंक होती हैं तब
तमदिा के द्वारा कहे गए यह संवाि बरसों पुरािी चली आ रही रूदढयों पर कड़ा प्रहार करते हैं
और समाज को उसका असली आइिा दिखाते हैं– “कलंक...बेदियााँ कलंक होती हैं? आप लोग
काली की पूजा करते हैं ि! िग
ु ात की आरती उतारते हैं ि! सीता और साववत्री को िे ववयों का िजात
िे ते हैं! ककस परं परा के बारे में बात कर रहे हैं आप?” तमदिा का वपता कहता है – “बंि कर
अपिी बकवास! अगर तेरे बाि मेरी िस बेदियााँ और भी होती तो मैं उदहें भी जाि से मार िे ता।

100
तेरी मााँ िे हरा दिया मुझे एक के बाि एक बेिी-बेिी-बेिी।” तब तमदिा– “जादहल हैं आप। जादहल
हैं। उस बेचारी औरत को िोष िे रहे हैं...यह भी िहीं जािते कक एक बच्चे का लड़का या लड़की
होिा बाप की वजह से होता है मााँ की िहीं। मख
ू त है वो िे श, बकवास है वो संथकार, वो सशक्षा जो
हमें यह ससखाती है कक औरत एक कलंक है । अरे ! एक आिमी ऐसा क्या कर सकता है जो मैं
िहीं कर सकती।” िरअसल तमदिा एक ऐसे ककदिर की कहािी है न्जसिे वषों पहले िाचिा-
गािा छोड़ दिया था लेककि एक बच्ची को पाकर उसकी ममता जाग जाती है । वह मेहित करके
उसे पढाता है लेककि कभी बताता िहीं कक वह ककदिर है । एक दिि जब उसकी पढाई के सलए
पैसे की कमी हो जाती है तब वही ककदिर कफर से श्रंग
ृ ार करके िाचिे जाता है । यह दृश्य दहला
कर रख िे िे वाला है । जब वह एक उत्सव में िाचकर पैसे कमाकर आ रहा होता है उसी समय
तमदिा ब्रबिा बताए वहााँ पहुाँच जाती है । तब उसे पहली बार पता चलता है कक उसे एक ककदिर
िे पाला है । वह सलीम चाचा से कहती है – “मझ
ु े यह सोचकर भी नघि आती है कक इसिे मझ
ु े
कभी छुआ भी होगा।” वह उसे ‘दहजड़ा’ कहकर बुलाती है तो मिोज वाजपेयी द्वारा कह गए यह
संवाि समाज के िोगली मादयताओं से ि केवल पिात उठाते हैं बन्ल्क उिके खखलाफ अपिा
प्रनतरोध भी ज़ादहर करते हैं । मिोज वाजपेयी (सलीम चाचा) परे श रावल से कहता है – “डरता
क्यों है ? डरता क्यों है ? डरिा तो इसे चादहए तेरे क़ज़त से जो यह पूरी न्जंिगी िहीं चुका पाएगी।”
आगे सलीम चाचा पूजा भट्ि से कहते हैं– “अरे ! तेरी ज़बाि में छाले िहीं पड़ गए इसको दहजड़ा
बोलते हुए। िनु िया में कोई ककसी के सलए क्या करे गा जो इसिे तेरे सलए ककया। िहीं, तो छोड़
गए थे तेरे अपिे तुझे कचड़े के डब्बे में सड़िे के सलए। कीड़े-मकोड़े तुझे जहााँ से चबाते वहााँ से
उठाया इसिे तझ
ु े। हम सबिे इससे कहा था कक िे िे इसे ककसी यतीम खािे में या िे िे इसे
पुसलस को लेककि िहीं रात-रात भर सीिे से धचपकाए जागता रहा ताकक तू सो सके, िंगें पााँव
चला, भूखा रहा ताकक तुझे खखला सके...अब अगर यह दहजड़ा है तो लाित है हम िनु िया भर के
मिों पर।”
2.7 लक्ष्मी (नािेि कुकनूि)
िागेश कुकिूर दहंिी ससिेमा में अपिे अलग अंिाज के सलए जािे जाते हैं। ब्रबलकुल िए
ववषय-वथतु पर कफल्म बिाकर वह िशतकों के बीच अपिी उपन्थथनत िज़त करते हैं। उदहोंिे
है िराबाि ब्लज
ू (1998), रॉकफॉडत (1999), इकबाल (2005), डोर (2006), आशायें (2010),
लक्ष्मी (2014), धिक (2016) जैसी कम बजि की महत्त्वपूणत कफल्में बिायी हैं। ‘लक्ष्मी’ एक
ऐसी लड़की लक्ष्मी की कहािी है न्जसके बाबा िे ही उसे एक संथथा चलािे वाली औरत के हाथ
बेच दिया जो िे ह व्यापार करिे का काम करती थी। सच्ची घििा पर आधाररत इस कफल्म में
वेश्याववृ त्त की समथया को उठाया गया है । चौिह साल की मासूम लक्ष्मी (मोिाली ठाकुर) का
उसके गााँव से अपहरण हो जाता है । लक्ष्मी का अपहरण करिे वाले उसे रे ड्डी ििसत (सतीश
कौसशक) और उसके छोिे भाई को बेच िे ते हैं। छोिे से गााँव से िरू शहर में लक्ष्मी एक आश्रम में
लायी जाती है , जहााँ वेश्याववृ त्त की जाती है । िलाल की भूसमका थवयं कफल्म के नििे शक िागेश
कूकिरू िे की है । इस अंधरे ी िनु िया में सबसे पहले उसका सामिा सबसे बड़े भाई रे ड्डी से होता

101
है , जो उसका बलात्कार करता है । रे ड्डी बूढा धिवाि व्यन्क्त है । इसके बाि लक्ष्मी को कोठे पर
न्जथम का धंधा करिे के सलए भेज दिया जाता है । यह धंधा रे ड्डी ििसत ही चलाते हैं। इस कोठे
पर लक्ष्मी की मल
ु ाकात थवणात मैडम (शेफाली शाह) से होती है , जो इस धंधे का काम-काज
िे खती है । कोठे पर पहुाँची लक्ष्मी को इस धंधे की बारीककयााँ समझाई जाती हैं, ताकक वह धंधे को
अपिा ले। लक्ष्मी इसके सलए तैयार िहीं है और कई बार भागिे की कोसशश करती है , लेककि
अब यही कोठा उसका घर और पररवार बि जाता है । लक्ष्मी का बचपि न्जथम के इस बाजार में
खो जाता है । कुछ असे बाि लक्ष्मी शराब की आिी हो जाती है । आखखरकार उसे आशा की एक
ककरण िजर आती है । उमा िामक एक सोशल वकतर कोठे पर अक्सर लड़ककयों से समलिे आती
है । लक्ष्मी को उमा बताती है कक उसिे उसका पररवार ढूाँढ निकाला है । लक्ष्मी एक बार कफर
भागिे की कोसशश करती है, लेककि रे ड्डी का छोिा भाई उसे पकड़ लेता है । एक दिि लक्ष्मी के
पास एक ऐसा ग्राहक आता है जो एक एिजीओ से जड़
ु ा होता है और उमा का िोथत है । मोहि
एक न्थिं ग ऑपरे शि करता है और लड़ककयों को छुड़ाता है । अब मोहि और उमा को ऐसा गवाह
चादहए, जो रे ड्डी ििसत के खखलाफ अिालत में गवाही िे सके। चौिह साल की 'लक्ष्मी' को उसके
गााँव-पररवार से लाकर अदय लड़ककयों के साथ शहर में रखा जाता है । रे ड्डी बंधु अपिे एिजीओ
'धमतववलास' की आड़ में कमससि और लाचार लड़ककयों की न्जथमफरोशी करते हैं। लक्ष्मी भी
उिके चंगुल में फंस जाती है । कफर भी मुक्त होिे की उसकी छिपिाहि और न्जजीववषा प्रभाववत
करती है । वह ककसी प्रकार उिके चंगुल से बाहर निकलती है । बाहर निकलिे के बाि वह रे ड्डी
बंधु को उिके अपराधों की सजा दिलवािे के सलए भरे कोित में कफर से लांछि और अपमाि
सहती है । 'लक्ष्मी' एक लड़की की दहम्मत की कहािी है । लक्ष्मी ववद्रोही है । वह इस न्जल्लत की
िनु िया से निकलिा चाहती है । पहली बार भागिे के बाि पकड़ी जाती है रे ड्डी कहता है – “अच्छा
हुआ भागी तेरे को पता तो चला कक हम क्या तोप चीज़ हैं।” इस पर लक्ष्मी कहती है - “जाऊाँगी,
जरूर भागाँग
ू ी|” यािी वह वहााँ रहिा िहीं चाहती है । जािती है कक भागी तो मारी जाएगी कफर भी
निडर होकर भागिे को कहती है । मदहला आश्रम से वेश्याएाँ धीरे -धीरे अपिे सलए कोई अदय काम
ढूाँढिे निकल पड़ती है | इसी कारण समाज सध
ु ारक लक्ष्मी से जब पछ
ू ता है कक “यहााँ से सब जा
चुकी है अब ससफत तुम बची हो। तुम भी जािा चाहोगी ?” तो लक्ष्मी कहती है - “मैं कोरि
जाऊाँगी।” समाज सध
ु ारक कहता है कोित बच्चों के सलए िहीं है तो लक्ष्मी कहती है - “मैं छः महीिे
धरम ववलास में रह चक
ु ी हूाँ।” जब कोित में केस िजत करािे की न्थथनत बिती है तो वकील लक्ष्मी
की महज 14 साल की उम्र के कारण केस फाइल िहीं करिा चाहता। कहता है -“हम खूब मेहित
करें गे,सब कुछ करें गे और ये बाि में खुि पीछे हि जाएगी।” न्जस पर लक्ष्मी कहती है -“िहीं
हिूाँगी।” वकील कहता है - “वो लोग तुम्हें डराएाँगे, धमकाएाँगे, तुम्हारी फाड़ के रख िें गे। वो लोग
तुम्हारी...” आगे लक्ष्मी इस वाक्य को पूरा करती हुई कहती है - “इज्जत और दहम्मत की
धन्ज्जयााँ उड़ायेंगे।” वकील इस बात पर केस लड़िे के सलए सहमत हो जाता है । लक्ष्मी कोित में
रे प और जबरि वेश्यावनृ त में लािे का इल्जाम लगाती है । इस पर ववपक्ष का वकील पूछता है -“जो
िोिों इल्जाम तुम लगा रही हो, जािती हो उि िोिों इल्जामों का मतलब? समझा सकती हो।
रे प का मतलब समझाओगी। लक्ष्मी कहती है -“मझ
ु े समझािा िहीं आता लेककि मेरे साथ हुआ,

102
बार-बार हुआ। न्जसके साथ होता है वही समझ सकता है ।” ववपक्ष का वकील लक्ष्मी के तेवर से
फ्थिे ड हो जाता है । समाज में िैनतकता का हवाला िे कर कहती है - “एक चौिह साल की लड़की
सेक्स और रे प की बात करती है । यही तो प्रोब्लम है हमारे िे श के साथ, बच्चे आखखर बच्चे कहााँ
रहे । हर ककथम की इदफोमेशि तो आसािी से समल जाती है । अब ये केस एक चौिह साल की
लड़की की गवाही पर दिका है । ऐसी लड़की न्जसके चररत्र पर शक है ।” लक्ष्मी के साथ एक दिि
सात लोग लगातार सेक्स करते है न्जसका चोरी से वीडडयो बिा सलया जाता है । लक्ष्मी का वकील
कोित में वह वीडडयो दिखाते हुए कहता है - “सात, सात बार और वो भी एक ही रात में और जैसा
कक आपिे िे खा ये रे प था िॉि सेक्स।” जो कापोरे िर लक्ष्मी को उसके बाप से तीस हजार रूपए
में खरीिती है कोित में केस चलिे के िौराि वह लक्ष्मी को इस केस से अपिा िाम हिािे के
सलए कहती है । कापोरे िर- “ये बहािरु ी के बेकफजुल ख्यालात दिमाग से निकाल िो। मेरे को जेल
भेज कर क्या समलेगा तेरे को? मैं िो चार-महीिों में छूि जाऊाँगी। तम्
ु हारा क्या होगा। तम्
ु हारा
खाििाि तक तुमको िहीं अपिाएगा। कोित भी तम्
ु हारे जैसे ववन्क्िम्स को कोई पैसा िहीं
दिलवाता। थिे ि तुमको िागररक का िजात िहीं िे गा। तम
ु को राशि काडत िहीं समलेगा।” लक्ष्मी एक
बच्ची की न्जजीववषा और साहस की कहािी है । वह पररन्थथनत से डरती िहीं बन्ल्क उसका
सामिा करके उससे बाहर निकलती है ।

2.8 फफल्म िेंिि बोर्य औि सिनेमा प्रिािि अगधननयम


िेंरल बोर्य ऑफ फफल्म िहटय फफकेिन की थथापिा 15 जिवरी, 1952 को मंब ु ई में हुई।
कफल्म सेंसर बोडत द्वारा भारत में बििे वाली कफल्मों की समीक्षा करती है । कफल्मों और िीवी
कायतक्रमों में प्रसाररत होिे वाली कफल्मों, धारावादहकों की सामान्जक समीक्षा कर प्रमाखणत करती
है । भारत सरकार के सच
ू िा एवं प्रसारण मंत्रालय के अंिर काम करिे वाला यह एक ऐसा निकाय
है जो भारत में बिािे वाले चलधचत्रों की गण
ु वत्ता को प्रमाखणत करता है । सेंसर बोडत को अधधकार
है कक वह ककसी भी कफल्म अथवा धारावादहक को थवीकार करे या अथवीकार करे । कफल्मों,
धारावादहकों आदि को प्रमाण-पत्र ववतररत करिे का अधधकार सेंसर बोडत को ससिेमैिोग्राफ
अधधनियम, 1952 (अधधनियम 37) का आधार दिया गया है ।
2.9 केन्िीय फफल्म िेंिि बोर्य की फफल्मों के सलए 4 श्रेणियााँ है :
• अ (अनिबिंधधत) या U- इि कफल्मों को सभी आयु-वगत के व्यन्क्त िे ख सकते हैं।
• अ/व या U/A- इस श्रेणी की कफल्मों के कुछ दृश्यों में दहंसा, अश्लील भाषा या यौि
संबंधधत सामग्री हो सकती है , इस श्रेणी की कफल्में केवल 12 साल से बड़े व्यन्क्त ककसी
असभभावक की उपन्थथनत में ही िे ख सकते हैं।
• व (वयथक) या A - यह वह श्रेणी है न्जसके सलए ससफत वयथक यानि 18 साल या उससे
अधधक उम्र वाले व्यन्क्त ही िे ख सकते हैं।

103
• वव (ववशेष) या S- यह ववशेष श्रेणी है और ब्रबरले ही कफल्मों को प्रिाि की जाती है , यह
उि कफल्मों को िी जाती है जो ववसशष्ट्ि िशतकों जैसे कक इंजीनियर या डॉक्िर आदि के
सलए बिाई जाती हैं।

(ववफकपीर्र्या िे िाभाि)
चलगचत्र अगधननयम, 1952 में िंिोधन को मंज़िू ी
प्रधािमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंब्रत्रमंडल िे चलधचत्र अधधनियम, 1952 (Cinematograph
Act, 1952) में संशोधि के सलये चलधचत्र संशोधि ववधेयक, 2019 (Cinematograph
Amendment Bill, 2019) को प्रथतुत करिे की मंज़ूरी िी है ।
▪ इस संशोधि का प्रथताव सच
ू िा एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा ककया गया था।
▪ प्रथताववत ववधेयक का उद्िे श्य कफल्म की सादहन्त्यक चोरी/पायरे सी (Piracy) को रोकिा
है और इसमें गैर-अधधकृत कैमकॉडडिंग (Cam cording) और कफल्मों की कॉपी
(Duplication of films) बिािे के खखलाफ िं डात्मक प्रावधािों को शासमल करिा है ।
प्रस्ताववत िंिोधन
िैि-अगधकृत रिकॉर्र्िंि को िोकने हे तु नई धािा 6AA
▪ चलधचत्र अधधनियम, 1952 की धारा 6A के बाि एक और धारा 6AA जोड़ी जाएगी।
▪ इस धारा के अिुसार, ‘अदय कोई लागू कािूि के बावजूि ककसी व्यन्क्त को लेखक की
सलखखत अिुमनत के ब्रबिा ककसी ऑडडयो ववजुअल ररकॉडत उपकरण का उपयोग करके
ककसी कफल्म या उसके ककसी दहथसे को प्रसाररत करिे या प्रसाररत करिे का प्रयास करिे
या प्रसाररत करिे में सहायता पहुाँचािे की अिुमनत िहीं होगी।
▪ “यहााँ लेिक का अथय चलगचत्र अगधननयम, 1957 की धािा 2 की उपधािा-D में दी िई
व्याख्या के िमान है ।"
धािा-7 में िंिोधन
▪ धारा-7 में संशोधि का उद्िे श्य धारा-6AA के प्रावधािों के उल्लंघि के मामले में
िं डात्मक प्रावधािों को शासमल करिा है । मुख्य अधधनियम की धारा-7 में उपधारा-1 के
बाि उपधारा-1A जोड़ी जाएगी।
▪ इसके अिस
ु ार, “यहद कोई व्यक्क्त धािा-6AA के प्रावधानों का उल्लंघन किता है , तो उिे
3 िाल तक का कािावाि या 10 लाि रुपए तक का जुमायना या दोनों िज़ा दी जा
िकती है ।”
िंिोधन के लाभ
▪ प्रथताववत संशोधिों से इस उद्योग के राजथव में वद्
ृ धध होगी, रोज़गार का सज
ृ ि होगा,
भारत के राष्ट्रीय बौद्धधक संपिा अधधकार िीनत (India’s National IP policy) के
प्रमुख उद्िे श्यों की पूनतत होगी और पायरे सी तथा ऑिलाइि ववषय-वथतु के कॉपीराइि
उल्लंघि के मामले में राहत समलेगी।

104
2.10 िाष्रीय बौद्गधक िंपदा अगधकाि नीनत
▪ केंद्रीय मंब्रत्रमंडल िे मई 2016 में राष्ट्रीय बौद्धधक संपिा अधधकार िीनत को मंज़ूरी िी
थी।
▪ इस िीनत के तहत सात लक्ष्य निधातररत ककये गए हैं जो इस प्रकार हैं-
1. बौद्गधक िंपदा अगधकाि जािरूकता : पहुाँच और प्रोत्साहि- समाज के सभी वगो में
बौद्धधक संपिा अधधकारों के आधथतक, सामान्जक और सांथकृनतक लाभों के प्रनत
जागरूकता पैिा करिा।
2. बौद्गधक िंपदा अगधकािों का िज
ृ न : बौद्धधक संपिा अधधकारों के सज
ृ ि को बढावा।
3. वैधाननक एवं ववधायी ढााँचा : मज़बूत और प्रभावशाली बौद्धधक संपिा अधधकार नियमों
को अपिािा, ताकक अधधकृत व्यन्क्तयों तथा बह
ृ द् लोकदहत के बीच संतुलि कायम हो
सके।
4. प्रिािन एवं प्रबंधन : सेवा आधाररत बौद्धधक संपिा अधधकार प्रशासि को आधुनिक और
मज़बत
ू बिािा।
5. बौद्गधक िंपदा अगधकािों का व्याविायीकिि : व्यावसायीकरण के ज़ररये बौद्धधक संपिा
अधधकारों का मल्
ू य निधातरण।
6. प्रवतयन एवं न्यायागधकिि : बौद्धधक संपिा अधधकारों के उल्लंघि को रोकिे के सलये
प्रवतति एवं दयानयक प्रणासलयों को मज़बूत बिािा।
7. मानव िंिाधन ववकाि : मािव संसाधिों, संथथािों की सशक्षण, प्रसशक्षण, अिस
ु ंधाि
क्षमताओं को मज़बूत बिािा तथा बौद्धधक संपिा अधधकारों के तहत कौशल-निमातण का
प्रयास करिा।
िंिोधन की आवश्यकता
▪ समय के साथ एक माध्यम के रूप में ससिेमा, इसकी प्रौद्योधगकी, उपकरण और यहााँ
तक कक िशतकों में भी महत्त्वपूणत बिलाव आया है । पूरे िे श में िीवी चैिलों और केबल
िेिवकत के ववथतार से मीडडया और मिोरं जि के क्षेत्र में कई पररवतति हुए हैं। लेककि िई
डडन्जिल तकिीक के आगमि ववशेष रूप से इंिरिेि पर पायरे िेड कफल्मों के प्रिशति से
पायरे सी का खतरा बढा है । इससे कफल्म उद्योग और सरकार को राजथव की अत्यधधक
हानि होती है ।
▪ कफल्म उद्योग की लंबे समय से मांग रही है कक सरकार कैमकोडडिंग और पायरे सी रोकिे
के सलये कािि
ू में संशोधि पर ववचार करे । भारतीय प्रधािमंत्री द्वारा भारतीय ससिेमा
का राष्ट्रीय संग्रहालय (National Museum of Indian Cinema) के उद्घािि अवसर
पर यह घोषणा की गई थी कक कैमकोडडिंग और पायरे सी निषेध की व्यवथथा की जाएगी।
▪ इससे पहले चलधचत्र अधधनियम और नियमों की समीक्षा करिे और ससफाररशें िे िे के
सलये वषत 2013 में मुिगल ससमनत तथा वषत 2016 में श्याम बेिेगल ससमनत का गठि
भी ककया गया था।

105
मुदिल िसमनत
▪ इस ससमनत का गठि 4 फरवरी, 2013 को चलधचत्र अधधनियम, 1952 के तहत
प्रमाणीकरण मद्
ु िों पर ववचार करिे हे तु पंजाब व हररयाणा उच्च दयायालय के पव
ू त मख्
ु य
दयायाधीश मुकुल मुिगल की अध्यक्षता में ककया गया था।
▪ मुिगल ससमनत िे अपिी ररपोित में अश्लीलता और सांप्रिानयक वैमिथय, मदहलाओं के
धचत्रण और सलाहकार मंडल जैसे मद्
ु िों के संबध
ं में दिशा-नििे श, वगीकरण, कफल्मों की
पायरे सी, अपीलीय पंचाि की दयाय सीमा तथा चलधचत्र अधधनियम, 1952 के प्रावधािों
की समीक्षा पर अपिी ससफाररशें प्रथतुत की थीं।
श्याम बेनेिल िसमनत
▪ 1 जिवरी, 2016 को कफल्मों के प्रमाणि हे तु सवािंगीण रूपरे खा का निमातण करिे के
सलये श्याम बेिेगल की अध्यक्षता में इस ससमनत का गठि ककया गया था।
▪ इस ससमनत को कफल्म प्रमाणि के सलये ववश्व भर में सवतश्रेष्ट्ठ पद्धनतयों पर ध्याि
केंदद्रत करते हुए और कलात्मक रचिात्मकता को पयातप्त थथाि प्रिाि करते हुए केंद्रीय
कफल्म प्रमाणि बोडत के लाभ के सलये प्रकक्रयाओं और दिशा-नििे शों के साथ-साथ जि
अिुकूल और निष्ट्पक्ष प्रभावी ढााँचे के निमातण की ससफाररशें प्रथतुत करिी थीं।
(साभार-https://www.drishtiias.com/hindi/daily-updates/daily-news-analysis/cabinet-
approves-amendment-to-the-cinematograph-act-1952)

2.11 प्रश्नों का जााँच स्वयं किना


प्रश्ि क. निम्िसलखखत प्रश्िों का उत्तर एक-िो पंन्क्तयों में िीन्जए-
(1) नििे शक और नििे शि में अंतर सलखखए?
(2) सेंसर बोडत क्या है ?
प्रश्ि ख. निम्िसलखखत कथिों पर सही गलत के निशाि लगाइए-
(1) तमदिा दहजड़े के जीवि पर केन्दद्रत कफल्म है । (सही/गलत)
(2) गुजाररश कफल्म के नििे शक दिवाकर बिजी हैं। (सही/गलत)
(3) ब्लैक फ्ाइडे 1992 में हुए के बम ब्लाथि पर आधाररत कफल्म है । (सही/गलत)
प्रश्ि ग. सही शब्ि के चुिाव द्वारा ररक्त थथािों की पनू तत कीन्जए-
(1) ‘हूज लाइफ इज इि एिीवे’ से प्रभाववत होकर ........ का निमातण ककया। (तमदिा,
गुजाररश, मंिो)
(2) कफल्म लक्ष्मी के नििे शक ................... हैं। (महे श भट्ि, िागेश कुकिूर, असमताभ
बच्चि )
(3) सेंसर बोडत की थथापिा 15 ......... 1952 को मुंबई में हुई। (माचत, फरवरी, जिवरी)
2.12 अभ्याि के सलए प्रश्न
प्रश्ि क. निम्िसलखखत प्रश्िों के उत्तर िीन्जए
(1) नििे शक के क्या गण
ु होिे चादहए?

106
(2) कफल्म तमदिा के आधार पर समाज में दहजड़ों की न्थथनत पर ववचार कीन्जए?
(3) कफल्म ‘समर’ में असभव्यक्त िसलत जीवि की व्याख्या कीन्जए?
(4) सेंसर बोडत द्वारा दिए जािे वाले प्रमाण-पत्र का पररचय िीन्जए?
(5) कफल्म प्रसारण के पााँच आवश्यक नियम सलखखए?
ख. निम्िसलखखत शब्िों के अथत बताइए-
प्रसारण, समर, मंत्रीमंडल, संसोधि , उपक्रम
ग. निम्िसलखखत वाक्यों का पिक्रम ठीक कीन्जए
(1) पायरे सी तथा ववषय-वथतु के कॉपीराइि ऑिलाइि उल्लंघि के मामले में राहत
समलेगी।
(2) मोहि एक ऑपरे शि न्थिं ग करता है और लड़ककयों को छुड़ाता है ।
(3) अब ये एक चौिह साल केस की लड़की की गवाही पर दिका है ।
(4) भारत सरकार के एवं सूचिा प्रसारण मंत्रालय के अंिर काम करिे वाला यह एक ऐसा
निकाय है जो भारत में बिािे वाले चलधचत्रों की गण
ु वत्ता को प्रमाखणत करिा है ।

107
इकाई-4
1. सिनेमा अध्ययन की सिशाएँ : भाग-1
(सिनेमा की िैद्ाांसिकी और उिकी व्यावहाररक िमीक्षा)
डॉ. र्हेंद्र प्रजमिवि
हसं रमज कॉलेज, वदल्ली
1.1 प्रस्िावना
कलम कम संबंध सृजन से है और र्नष्ु य ने अिने आरवभिक सर्य से इस सृजनमत्र्किम कम िररचय
वदयम है। र्मनि सभ्यिम के विकमस के समथ कलमरूिों कम िी विकमस होिम गयम। कलम द्िमरम र्वतिष्क और
कल्िनम को वशविि करने कम अथा ऐसे र्वतिष्क कम वनर्माण करनम है जो र्मनििम के बेहिरीन सोिमनों को
िमर करे , जहमाँ से र्नष्ु य संकुवचि विचमरों से ऊिर उठ सकिम है। वसनेर्म कई कलमओ ं की सर्वु चि विधम है।
नृत्य, गीि, संगीि, अविनय, वचत्रकलम सिी कलमएाँ इसर्ें सर्मवहि हैं इसीवलए वसनेर्म आर् जनिम से
आसमनी से संिमद करने र्ें सफल हुआ। वसनेर्म आज के दौर कम एक र्हत्त्ििणू ा कलम र्मध्यर् है और इस
कलम र्मध्यर् कम अिने सर्मज से गहरे तिरों िर जड़ु मि है।

1.2 असिगम का उि्िेश्य


इस िमठ को िढ़कर आि वनभनवलविि कमया कर सकने र्ें सिर् हो जमएंगे–
(8) कलम के रूि र्ें वसनेर्म कम विकमस सर्झ सकें गे।
(9) िकनीकी और वसनेर्म के अंि:संबंधों को सर्झ सकें गे।
(10) वसनेर्म वनर्माण की प्रवियम को सर्झ िमएंगे।
(11) कलम और वसनेर्म कम सबं धं सर्झ सकें गे।
(12) वसनेर्म और सर्मज के बीच के संबंध सर्झ िमएंगे।
(13) वसनेर्म र्ें वचवत्रि कल्िनम और यथमथा के बीच की दरू ी को सर्झ िमएंगे।
(14) सर्मज की िमषम और वसनेर्म की िमषम के बीच अिं र सर्झ िमएगं े।

1.3 सिनेमा का िामान्य पररचय


वसनेर्म हर्मरी संतकृ वि कम वहतसम है। हर्मरे जन-जीिन को अगर कोई कलम व्यमिक तिर िर
प्रिमविि कर िमयी िो िो िी वसनेर्म है। वसनेर्म के आरंि से ही व्यमिसमवयक और अव्यमिसमवयक वफल्र्ें
बनिी रही हैं। उन्हीं वफल्र्ों को दशाकों और आलोचकों ने यमद रिम वजन्होंने हर्मरी समंतकृ विक चेिनम को
गहरमई से प्रिमविि वकयम। वसनेर्म वसफा आनंद नहीं विचमर िी है। सिमल यह है वक आि देिने के वलए वकस

108
िरह की वफल्र्ें चनु िे हैं। वसनेर्म सर्मज को िैचमररक रूि से र्जबिू ी िी प्रदमन करिम है। सबसे लोकवप्रय
कलम र्मध्यर् के रूि र्ें हर् वसनेर्म को देििे हैं। वफल्र्ें सर्मज और सर्य कम जीिंि दतिमिेज़ होिी हैं। चररत्र
प्रधमन यम वकसी घटनम िर बनी वफल्र्ों कम वनर्माण समर्मवजक बदलमि की िवू िा के उद्देश्य से वकयम जमिम है।
नब्बे के बमद वहदं ी वसनेर्म र्ें कई िरह के ग्रप्ु स बने। कुछ लोगों के वलए वसनेर्म वसफा व्यिसमय थम, ये
िे लोग थे वजन्हें वसनेर्म बनमनम अिनी िरु मनी िीढ़ी से विरमसि र्ें वर्लम थम। दसू रे िे लोग हैं, वजन्होंने लंबे
संघषा के बमद अिनम तथमन बनमयम और िह एक ही िरह की वफल्र्ें बनमकर िैसम कर्मिे हैं। रमर्गोिमल िर्मा,
डेविड धिन, रमजकुर्मर संिोषी, करण जौहर, आवदत्य चोिड़म जैसे वनदेशक इसी श्रेणी र्ें आिे हैं। िीसरे िे
लोग हैं वजनके वलए वसनेर्म एक आंदोलन है। िह वसनेर्म से सर्मज को बदलनम चमहिे हैं। अनरु मग कश्यि,
विगर्मंशु धवू लयम, वदिमकर बनजी, शजु ीि सरकमर, अनरु मग बमसु जैसे लोगों ने वसनेर्म को गलोबल से लोकल
बनमयम लेवकन उन्हें ख्यमवि गलोबल वर्ली। इन विल्र्कमरों ने ऐसे-ऐसे विषयों को उठमयम वजससे अन्य लोगों
को वघन आिी थी। जो विषय िथमकवथि सभ्य सर्मज के वलए अनवफट बैठिे थे। नए लोगों ने प्रयोग वकयम
और सफलिम िी िमयी।
यिु म िीढ़ी वहदं ी वसनेर्म के कें द्र र्ें रही। वसनेर्म की कहमनी र्ें िी और देिने िमलों र्ें िी। चवंू क
विल्र्कमर इस सच्चमई से अिगि हैं इसवलए उन्होंने यिु मओ ं के प्रवि ईर्मनदमरी बरिी। आज जो लोग वफल्र्ें
बनम रहे हैं उनके कें द्र र्ें िी यिु म िीढ़ी है। यिु म, थ्री इवडयट्स, रंग दे बसिं ी, तटूडेंट ऑफ द ईयर, वदल दोतिी
एक्सट्रम आवद वफल्र्ें यिु म र्न को छूने िमली हैं। यिु मओ ं को के वन्द्रि कर हर िषा दजानों वफल्र्ों कम वनर्माण
होिम है। आने िमले सर्य र्ें वसनेर्म यिु मओ ं के वलए कुछ बेहिर ही करे गम–“वसनेर्म यिु म जीिन के र्द्दु ों एिं
सर्तयमओ ं को लेकर बेहद ईर्मनदमर िवू र्कम वनिमिम रहम है। यिु म वहदं ी वसनेर्म ने अिनी व्यमिसमवयक
सर्तयमओ ं और सीर्मओ ं के बमिजदू लोकििधरिम एिं समथाकिम से सर्झौिम नहीं वकयम है, िमरि र्ें सबसे
ज्यमदम यिु म आबमदी है एिं सबसे ज्यमदम समल र्ें विल्र्ें बनिी हैं। उभर्ीद है, यिु म िगा वसनेर्म के िेत्र र्ें िरिी
जर्ीन को उिार बनमयेगम।”2 वफल्र्ें किी एक जैसी वनवर्ाि नहीं हो सकिी हैं। वहदं ी वफल्र् उद् योग बहुि बड़म
है। यहमाँ विविन्न िमषमओ,ं िररिेशों से लोग आिे हैं और अिने ढगं से कमर् करिे हैं। यह जरूर है वक नई िीढ़ी
िर उभर्ीद वकयम जमनम चमवहए। िही बेहिर वसनेर्म बनम िमएगी। उसके िमस नई दृवि और कमर् करने कम नयम
ढंग है।
िर्ू ंडलीकरण के बमद वहदं ी वसनेर्म बनमने िमलों और देिने िमलों दोनों की दृवि बदली है। आगे र्ैं
कुछ ऐसी वफल्र्ों की चचमा करने जम रहम हाँ वजसर्ें सर्मज कम नयम चेहरम देिने को वर्लिम है। ये वफल्र्ें वहदं ी
वसनेर्म की िमरंिररक छवि को िोड़िे हुए ऐसे विषयों िर बनी हैं वजन्हें अिी िक वकसी विल्र्कमर द् िमरम
वदिमने की वहभर्ि नहीं की गई थी।
1.3.1 प्रश्नों की स्वयां जाँच करना
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों के उत्तर ‘हमाँ’ यम ‘नम’ र्ें दीवजए-

2
‘अनहद’, विविन शर्मा, नयी सदी का ससनेमा अनुज्ञम बुक्स, वदल्ली, 2018, िृष्ठ-171

109
(i) कलम कम संबंध सृजन से है (......)।
(ii) वसनेर्म सर्मज को िैचमररक रूि से र्जबिू नहीं करिम (......)।
प्रश्न (ि) कोष्ठक र्ें वदए गए शब्दों र्ें से सही शब्द चनु कर ररक्त तथमनों की िवू िा कीवजए-
(i) वसनेर्म हर्मरी ................. कम वहतसम है ( जीिन, धर्ा, संतकृ वि)
(ii) ..............िीढ़ी वहदं ी वसनेर्म के कें द्र र्ें रही (नई, िरु मनी, यिु म)
(iii) वसनेर्म को के िल ……… िक सीवर्ि नहीं वकयम जम सकिम (र्नोरंजन, कलम,
वसनेर्महॉल)
(iv) िर्ू डं लीकरण के बमद वहदं ी वसनेर्म बनमने िमलों और देिने िमलों दोनों की ..... बदली है
(िकनीकी, सोच,दृवि)

1.4 कला रूप में सिनेमा की िैि्िाांसिक िमीक्षा


वसनेर्म आज एक कलम के रूि र्ें सिार्मन्य हो चक ु म है, वजसकी एक लभबी प्रवियम चली वजसर्ें
िवश्चर् के वसने वसद्धमन्िों की र्हत्त्ििणू ा िवू र्कम है, वसनेर्म को कलम के रूि र्ें प्रविवष्ठि करने र्ें िवश्चर्
और ििू ा के वर्ले-जुले प्रयमसों की बड़ी िवू र्कम है। शुरूआिी चरण र्ें वसनेर्म को कलम के रूि र्ें देिनम
के िल एक ‘वफल्र् सरमहनम’ र्मनी जमिी थी। यह िर् िचमसिें दशक के िहले िक चलिम रहम। अन्य
कलमओ ं की िरह वसनेर्म िी देशकमल, समर्मवजक संरचनम और व्यवक्त की सर्तयमओ ं से सीधे जड़ु म रहिम है।
आज हर् जो वसनेर्म देििे हैं िह कोई चर्त्कमर यम िमंविकमरी िररििान नहीं है बवल्क वसनेर्म की िोज एक
लंबे िैज्ञमवनक आविष्कमर कम निीज़म है। “विछले डेढ़ सौ िषों र्ें इस सर्मज, सभ्यिम िथम संतकृ वि के समथ
कई चीजें जड़ु ी हैं। इन नयी चीजों र्ें सर्मज, संतकृ वि िथम सभ्यिम को गहरमई से प्रिमविि करने िमले दवु नयम
के सिमावधक बड़े और अनठू े कलम र्मध्यर्ों से वसनेर्म कम जड़ु नम कमफी र्हत्त्ििणू ा रहम। वसनेर्म आज के दौर
कम एक र्हत्त्ििणू ा कलम र्मध्यर् है और इस कलम र्मध्यर् कम अिने सर्मज से गहरे तिरों िर जड़ु मि
है।वसनेर्म बवु नयमदी रूि से सर्मज से अलग नहीं होिम। वसनेर्म चमहे र्नोरंजन के वलए हो यम व्यिसमय के
वलए यम कलम के उत्कषा की अविव्यवक्त के वलए उसर्ें अिने दौर कम सर्मज वकसी न वकसी रूि र्ें व्यक्त हुए
वबनम नहीं रह सकिम। यह अविव्यवक्त प्रत्यि और अविरंवजि रूि र्ें िी हो सकिी है और प्रत्यि और
रचनमत्र्क रूि र्ें िी।
वसनेर्म ने समर्मवजक यथमथा को िबू सरू िी से प्रतििु वकयम है। वसनेर्म को के िल र्नोरंजन िक
सीवर्ि नहीं वकयम जम सकिम बवल्क वसनेर्म सर्मज को गहरमई िक प्रिमविि िी करिम है और िदु प्रिमविि
िी होिम है। कलम र्नष्ु य की सृजनमत्र्किम की िररचमयक है। र्नष्ु य ने किी अिनी अविव्यवक्त िो किी
र्नोरंजन के वलए अनेक कलमओ ं कम वनर्माण वकयम।अन्य कलमओ ं र्ें वसनेर्म सबसे लोकिमंवत्रक है और हर
िगा िक आसमनी से िहुचाँ ने र्ें सिर् िी है।

110
वसनेर्म को हर्ेशम र्नोरंजन कम र्मध्यर् सर्झम गयम इसवलए गंिीर कलम के रूि र्ें उसे किी
तिीकमर नहीं वकयम गयम।एक सर्य के बमद वसनेर्म ने यथमथािमदी वफल्र्ों कम वनर्माण कर इस िथ्य को िोड़
वदयम वक वसनेर्म र्मत्र व्यमिमर है। सत्यजीि रे , विर्ल रॉय, रमजकिरू , श्यमर् बेनेगल, गोविन्द वनहलमनी आवद
वफल्र्कमरों ने यह समवबि वकयम वक वसनेर्म व्यमिमर और व्यिसमय के समथ समर्मवजक सर्तयमओ ं और
संिेदनमओ ं को बेहिर ढंग से व्यक्त करने र्ें सिर् है।वसनेर्म के व्यमिमरी होने की धमरणम से ही बौद्वधक ने इसे
समवहत्य कम वहतसम र्मनने से इन्कमर कर वदयम जबवक वसनेर्म बनने की प्रवियम समवहत्य से ही आरभि होिी है।
रमही र्मसर्ू रज़म ने इस बमि को तिि रूि से वलिम है-“वफल्र् कलम है यम व्यमिमर? र्ैं वफल्र् को समवहत्य कम
अंग र्मनिम ह।ाँ आज के र्मनि र्ें आत्र्म की िेचीदगी को अविव्यक्त करने के वलए समवहत्य के िमस उिन्यमस
और वफल्र् के वसिम कोई समधन नहीं है। र्ैं यहमाँ यह बहस नहीं छोड़नम चमहिम वक कवििम कम क्यम बनेगम।
...कमव्य को समवहत्य र्मनिम हाँ और र्ैं उिन्यमस और वफल्र् को िी कमव्य कम ही एक रूि र्मनिम ह।ाँ
जैस-े जैसे जीिन िेचीदम होिम गयम, िैसे ही िैसे कमव्य िरण बदलिम गयम। र्हमकमव्य उिन्यमस बनम और
नमटक वफल्र्। कुछ लोग यह कहिे हैं वक अच्छी वफल्र् के िल िही हो सकिी है जो असमवहवत्यक हो। र्ैं यह
बमि नहीं र्मनिम। आि कह सकिे हैं वक वफल्र् दृवि की कलम है इसवलए िह समवहत्य नहीं हो सकिी।
समवहत्य िी अब दृवि की ही कलम है। हर्ने वजस वदन वलिनम सीिम थम समवहत्य ने िो उसी वदन बोलनम बदं
कर वदयम थम। हर् िी एक वकिमब हैं वजसे डमयरे क्टर हर्मरे समर्ने िोलिम ही जमिम है और िढ़े वलिे हैं िो
उसके सनु मए वबनम िी हर् इस वकिमब को िढ़ सकिे है।”3
वसनेर्म कलम की सबसे बड़ी विशेषिम यही है वक िह अिने सर्मज के ित्कमलीन प्रिमि को सवचत्र
वदिमने र्ें सिर् है। वसनेर्म एक बमर र्ें करोड़ों लोगों िक िहुचाँ कर वकसी सर्तयम यम संिेदनम को व्यक्त कर
सकिम है जो कोई अन्य र्मध्यर् नहीं कर सकिम है।
कलम और वसनेर्म कम सबं धं यंू ही वििमवदि नहीं है दरअसल वसनेर्म कम एक बहुि बडम. गणु
र्नोरंजन िी है जबवक कलम के बमरे र्ें बौद् वधक िगा कम यह विचमर रहम है वक कलम र्मनि जीिन की
जीविकम और र्नोरंजन कम समधन नहीं है बवल्क िह उसके र्मनवसक विकमस कम प्रर्मण है और उसके
सृजनमत्र्किम कम चरर्ोत्कषा िी। र्नष्ु य ने जैस-े जैसे र्मनवसक विकमस वकयम विविन्न कलमओ ं के र्मध्यर् से
अिनी रचनमत्र्किम कम िररचय िी वदयम। आरंविक सर्य र्ें ित्थरों िर वफर कमगज िर वफर कै निमस िर और
वफर िदे िर। वसनेर्म नें अिने समर्मवजक सरोकमरों को हर्ेशम अिनी अविव्यवक्त कम र्मध्यर् बनमयम और उसे
प्रदवशाि करने कम समहस िी वकयम।

1.5 सिनेमा की व्यावहाररक िमीक्षा


अिनी निीन विचमरधमरम और िमंविकमरी िेिर के कमरण िरू े विश्व र्ें जमने जमने िमले फ्मसं ने ही
वसनेर्म विधम को िी जन्र् वदयम। लवू र्यर बंधु ह्यआगतट और लईु हृ िथम जॉजा वर्वलए िीनों फ्मंस के नमगररक

3
िसधु म-81, िृष्ठ 81

111
थे। लवू र्यर बन्धु विछले कई िषों से छमयमंकन के िेत्र र्ें अविनि प्रयोगों र्ें जटु े थे। अिने प्रमरंविक प्रयोगों र्ें
सफलिम िमने के बमद उन्हें चलवचत्रों कम र्मध्यर् यथमथा को प्रतििु करने के वलए सिाश्रेष्ठ लगम। 28 वदसभबर
1895 को िेररस र्ें िहली बमर जब उन्होंने तटेशन िर आ रही रे लगमड़ी, फै क्टरी से छूटने के बमद घर जमने के
वलए बमहर आिे र्ज़दरू ों िथम बगीचों र्ें िमनी देिे र्मली के चलवचत्र प्रदवशाि वकए िो इन वफल्र्ों र्ें
तथमन/सर्य िथम िररिेश कम प्रर्मवणक प्रतििु ीकरण िणू ा यथमथा को जी लेने कम एहसमस करमिम थम।
सर्मज की धड़कनें वसनेर्म र्ें समफ सनु ी जम सकिी है। वसनेर्म सर्मज की गविविवधयों को व्यक्त
करने र्ें सबसे सर्था र्मध्यर् है। िह यहमाँ समवहत्य से अवधक प्रिमिी र्मध्यर् इसवलए समवबि हो जमिम है
क्योंवक समवहत्य वकसी घटनम कम र्मत्र िणान कर सकिम है िरंिु वसनेर्म उसे सवचत्र वदिम िी सकिम है। वसनेर्म
की यही शवक्त है।
इिनम शवक्तशमली होने के बमिजदू िी यह सिमल बनम रह जमिम है वक क्यम वसनेर्म वकसी िी घटनम
को उसी संिेदनम के समथ व्यक्त कर सकिम है जो उसकी र्ल ू संिेदनम है? दरअसल वसनेर्म एक िणू ारूिेण
व्यमिसमवयक र्मध्यर् है। िह वकसी गविविवध को व्यक्त करने से िहले यह विचमर करिम है वक जो िह वदिमने
जम रहम है, िह दशाकों से वकिनम जड़ु िमएगम। यह एक वफल्र्कमर की व्यवक्तगि र्जबरू ी िी होिी है क्योंवक
उसके समर्ने एक दशाक की प्रविवियम कम दबमि िी होिम है। यहमाँ िर प्लेटो के अनक ु रण कम वसद् धमिं लमगू
होिम है। प्लेटो कम र्मननम है वक हर कलम प्रकृ वि कम अनक
ु रण होिी है। जो कुछ िी वनवर्ाि वकयम जम रहम है
िह प्रकृ वि र्ें िहले से ही र्ौजदू है।
वसनेर्म कलम एक ऐसम र्मध्यर् है जो कई बमर बनिम वबगड़िम है। वसनेर्म र्ें एक िमस बमि यह िी है
वक िह एक व्यवक्त द् िमरम सृवजि नहीं होिी बवल्क उसर्ें िरू म एक िगा कमर् करिम है वसनेर्म िरू म िैयमर होने
िक कई िरह के प्रवियमओ ं से गजु रिम है वलहमजम उसके बनने र्ें कमफी िक्त िी लगिम है। कवििम, कहमनी,
उिन्यमस, नमटक आवद समवहवत्यक विधमएाँ एक बमर छिने के बमद िररििान की गंजु मइश नहीं रि िमिी। वचत्र
िी एक बमर बनने के बमद दबु मरम सधु मरम नहीं जम सकिम जबवक वसनेर्म के यहमाँ अंविर् कुछ नहीं होिम। वहदं ी
वसनेर्म की दवु नयम र्मयमिी है। यहमाँ िमिनमओ ं कम कोई र्ल्ू य नहीं। इसकी िहली प्रमथवर्किम व्यिसमय है।
यहमाँ कम र्ंत्र ही है ‘जो वदििम है िो वबकिम है’। यहमाँ व्यमिसमवयक सफलिम के वलए हर िरह की शिों को
िरू म करनम िड़िम है। वसनेर्म एक बड़म र्मध्यर् है वजसर्ें िैसम बेवहसमब लगिम है इसवलए वफल्र्कमर की िरू ी
कोवशश होिी है वक उसकी वफल्र् वटकट विड़की िर सफलिम के झंडे गमड़े। चमहे उसके वलए वकसी िी तिर
िक जमनम िड़े। वहदं ी कथम समवहत्य र्ें अिमर सफलिम प्रमप्त करने के बमद प्रेर्चंद जीविकम के वलए जब वफल्र्
लेिन के िेत्र र्ें उिरे िो यहमाँ असंिेदनशीलिम को सहन नहीं कर सके क्योंवक उनकी कहमवनयमाँ िमठनीय िो
अिश्य थी िरंिु उसके वसनेर्मई रूिमंिरण र्ें कई िरह के व्यमिसमवयक दृवि से बदलमि करने िड़े वजससे
उनकी कहमवनयों कम र्ल ू तिर ित्र् हो गयम। प्रेर्चंद जी को गहरम धक्कम लगम क्योंवक िह कहमवनयों को
जीविकम के वलए नहीं अिनी रचनमशीलिम को जीविि रिने के वलए वलििे थे।

112
वसनेर्म की दवु नयम वनर्ार् है। वजसने उसकी शिों को अिनम वलयम यम तियं को उस वहसमब से ढमल
वलयम उसने दौलि और शोहरि दोनों हमवसल वकयम। कर्लेश्िर इसके सबसे बड़े उदमहरण हैं। कर्लेश्िर ने
वसनेर्म र्ें िमाँच दशकों िक कमर् वकयम और सफलिम िी प्रमप्त की। कर्लेश्िर वहदं ी समवहत्य के उन
प्रवििमशमली कथमकमरों र्ें है वजन्होंने वसनेर्म के र्मनदडं ों को कई बमर अिने वहसमब से बदलम िी वसफा
सर्झौिम नहीं वकयम। वसनेर्म लेिन कम िकनीकी ज्ञमन उनको बिबू ी थम। िह समवहत्य के वसनेर्मई रूिमंिरण
की समरी जमनकमररयों से िणू ा थे।
वसनेर्म एक ऐसी कलम है वजसर्ें कई कलमओ ं कम सर्न्िय िी होिम है। अच्छी कहमनी, सिर् िमत्र,
प्रिमिी वफल्र्मंकन, र्नोरर् और अथािणू ा गीि-संगीि, संिमदन आवद से ही एक अच्छी वफल्र् कम वनर्माण
होिम है। वसनेर्म अिने िकनीकी-कौशल और दृश्य-विधमन के कमरण ही अन्य जनर्मध्यर्ों से अलग है और
लोकवप्रय िी है। आरभि से ही वफल्र्ों र्ें दृश्यों के र्मध्यर् और चररत्रों के शमरीररक हलचल से व्यक्त वकयम
जमिम रहम है। वसनेर्म र्ें वसफा शब्दों की शवक्त नहीं बवल्क वचत्रों कम िी प्रिमि िड़िम है। यह प्रिमि ही वसनेर्म
को एक समथ सैकड़ों लोगों को अिने समथ जोड़ने की िर्िम रििम है।
वफल्र् और समवहत्य आलोचक विजय अग्रिमल ने अिनी वकिमब ‘वसनेर्म की सिं ेदनम’ र्ें वसनेर्म
के प्रतिवु िकरण को िीन वबदं ओ
ु ं द्वमरम सटीक ढगं से सर्झमने कम प्रयमस वकयम है-
(क) हमलमंवक वसनेर्म र्ूलिः वफल्र् वनदेशन की विधम है, वफर िी एक ‘समर्ूवहक विधम है। इसे र्ूिारूि देने
र्ें संिमद-लेिक, संगीि-वनदेशक, गीिकमर, छमयमकमर यहमाँ िक की संिमदक की िी अिनी िवू र्कमएाँ
होिी है बमिजदू इसके वक ये सिी वनदेशक की इच्छम के अनक ु ु ल ही अिनम-अिनम कमर् करिे हैं।
के िल इिनम ही नहीं बवल्क नमयक-नमवयकम की अिनी समर्मवजक-समंतकृ विक िृष्ठिवू र् िी अविनीि-
चररत्र िर अिने अप्रत्यि प्रिमि डमलिी है।
(ि) कलम की अन्य सिी विधमओ ं कम एक वनवश्चि दशाक िगा होिम है, जबवक वसनेर्म कम नहीं। िह एक
समथ सबकी विधम होिी है-यिु म-िृद्ध, वशविि-अवशविि, ग्रमर्ीण-शहरी आवद। वसनेर्म को यह देिनम
होिम है वक िह एक समथ इन विविन्न िृष्ठिवू र् िमले बैठे हुए दशकों को रूवचकर लग सके ।
(ग) यह सबसे र्हगं ी कलमत्र्क विधम है। इस िर इिनी अवधक लमगि लगिी है वक वकसी िी सजानमत्र्क
प्रवििम िमले वफल्र्कमर के वलए यह संिि ही नहीं होगम वक िह लगमिमर ऐसी वफल्र्ें बनमिम रहे जो
बहुि घमटम दे रही हो। उसे इिनम िो देिनम ही होिम है वक अन्ििः उसकी लमगि िो िमिस आ ही
जमए।
इन सब बहसों के बमद एक सिमल यह िी उठिम है वक क्यम वसनेर्म के िल व्यमिसमवयक ही होिम है?
क्यम िह अिने सर्य और सर्मज की संिेदनम को यथमथा रूि र्ें प्रतििु नहीं कर िमिम? यह सिमल उिनम ही
ज्िलंि है वजिनम सनु ने र्ें आसमन है।दरअसल वसनेर्म के अिने कुछ वनयर् िी हैं जो वनर्माण की प्रवियम र्ें
लमगू होिे ही हैं।

113
प्रश्नों का जाँच स्वयां करना
प्रश्न (क) वनभनवलविि कथनों िर सही/गलि के वनशमन लगमइए–
1. वसनेर्म बवु नयमदी रूिी से सर्मज से अलग नहीं होिम। (सही/गलि)
2. वसनेर्म को कलम के रूि र्ें प्रविवष्ठि करने र्ें िवश्चर् और िूिा के वर्ले-जल
ु े प्रयमसों की बड़ी
िवू र्कम है।
प्रश्न (ि) सही शब्द के चनु मि द्वमरम ररक्ि तथमन की िवू िा कीवजए–
1. वसनेर्म व्यमिमर और व्यिसमय समर्मवजक सर्तयमओ ं और संिेदनमओ ं को …………… ढंग
से व्यक्ि करने र्ें सिर् है। (बेहिर, बदिर)
2. वसनेर्म एक ………………. है। (कलम, व्यमिमर, र्नोरंजन कम र्मध्यर्, समर्मवजक यथमथा
कम आइनम)

1.6 िामासजक यथाथथ और सिनेमा


बोलिी वफल्र्ों के समथ ही व्यमिसमवयक और अव्यमिसमवयक वफल्र्ों की बहस शुरू हो गई। विश्ि
वसनेर्म के िररदृश्य िर वहदं ी वसनेर्म की छवि अिी उिनी र्जबिू नहीं है लेवकन सर्मंिर वसनेर्म वजसे कलम
वसनेर्म यम यथमथािमदी वसनेर्म िी कहम गयम, ने कुछ अथािणू ा वफल्र्ों द् िमरम िमरिीय वसनेर्म की छवि को
तथमविि करने कम प्रयमस वकयम। बहुचवचाि िवत्रकम ‘र्मधरु ी’ के संिमदक अरविंद कुर्मर ने समर्ंिर वसनेर्म कम
नमर्करण वकयम। व्यमिसमवयक और र्नोरंजन प्रधमन वफल्र्ों के सर्मंिर वकसी समर्मवजक र्ुद्दे िर बनी वफल्र्ों
को सर्मंिर वसनेर्म कहम गयम।
वहदं ी वसनेर्म कम आरंविक इविहमस देिें िो वफल्र् के प्रवि सर्मज कम सभर्ोहन जमदईु थम। लोग
िमगिे-दौड़िे वचत्रों को उत्सक ु िम से देििे थे। धमवर्ाक, िौरमवणक िमत्रों को लेकर बनी यह वफल्र्ें सर्मज को
प्रिमविि करिी थीं क्योंवक उस दौर र्ें यही एक ऐसम कलम र्मध्यर् थम वजसे िैसे देकर लोग आसनी से देि
िमिे थे। आज़मदी के बमद बनी वफल्र्ें आर् आदर्ी की िीड़म कहिी थीं। ‘दो बीघम ज़र्ीन’, ‘धरिी के लमल’,
‘आिमरम’, ‘वबरमजबह’, ‘नयम दौर’, ‘अिरमवजिम’, ‘अिरू संसमर’, ‘िीन कन्यम औरि’, ‘र्दर इवं डयम’, ‘वजस
देश र्ें गगं म बहिी है’, ‘रोटी किड़म और र्कमन’ जैसी वफल्र्ें समर्मवजक सरोकमर के कमरण लबं े सर्य िक
दशाकों को प्रिमविि करिी रहीं।
सर्मंिर वसनेर्म की शरुु आि आंदोलन के रूि र्ें सत्तर के दशक र्ें हुई। वहदं ी और बमंगलम के
विल्र्कमरों ने वर्लकर सर्मंिर वसनेर्म को वदशम दी। सत्यजीि रे , ऋवत्िक घटक, र्ृणमल सेन, र्वण कौल,
श्यमर् बेनेगल जैसे विल्र्कमरों ने सर्मंिर वसनेर्म को तथमविि वकयम। अथािूणा वसनेर्म कम आरंि िो िचमस के
दशक र्ें ही हो चक ु म थम लेवकन उसे ‘सर्मंिर वसनेर्म’ के समाँचे र्ें ढमलने र्ें दो दशक कम सर्य लग गयम।
सत्तर के दशक र्ें उिरम ‘सर्मंिर’ वसनेर्म र्नोरंजन के नमर् िर िरोसे जम रहे वहसं म, अश्लीलिम और िौंडेिन
114
के विलमफ एक आंदोलन थम। दवलि, विछड़म और सर्मज से वनकमल फे के गए सर्मज के अंदर के प्रविरोध
को र्ि
ु र करने र्ें ‘सर्मंिर’ वसनेर्म ने र्हत्त्ििणू ा िवू र्कम वनिमई।
फ्मंस के न्यू िेि वसनेर्म से क्लमद शैबरमल, जॉ रे नआ
ु , अले रे ने, फ्मंकुआ त्रफ
ु ो और गोदमदा जैसे
सर्मज को बदलने िमले विल्र्कमर समर्ने आए। िमरि र्ें अथािणू ा वसनेर्म की शरुु आि बंगमल से र्मनी जमिी
है। बंगमल िमरि कम िह वहतसम है जहमाँ के लोग कलम, समवहत्य और संतकृ वि के प्रवि अवधक जमगरूक हैं।
कोलकमिम कम कॉफी हमउस वसनेर्म और समवहत्य से जड़ु े लोगों कम कें द्र हुआ करिम थम। यहमाँ लोग इकट्ठम
होकर यथमथािमदी वसनेर्म िर बहस वकयम करिे थे। र्ृणमल सेन, ऋििु णमा घोष, वचदमनंद दमसगप्तु म, सत्यजीि रे ,
आवद ने वफल्र् सोसमइटी कम वनर्माण कर वसनेर्म की नई धमरम को शरू ु कर रहे थे। दविण के वफल्र्कमर
वसनेर्म को समर्मवजक िररििान कम जररयम र्मनिे थे। िहमाँ के विल्र्कमर िी वफल्र् सोसमयटी बनमकर वसनेर्म
को समर्मवजक आंदोलन से जोड़ने कम कमया कर रहे थे। वफल्र् को र्मत्र र्नोरंजन िमले देश र्ें इन्हीं वफल्र्कमरों
ने नई ऊजमा दी इनकम र्मननम थम वसनेर्म समर्मवजक बदलमि र्ें िवू र्कम वनिम सकिम है। िहली बमर वसनेर्म को
वशिम से जोड़ने की िहल हुई वजसके िररणमर्तिरूि 1960 र्ें िणु े र्ें देश कम िहलम वफल्र् वशिण संतथमन
बनम । बमंगलम और वहदं ी के कई र्हत्त्ििणू ा वनदेशक इस संतथमन से जड़ु कर वफल्र् र्ें रुवच रिने िमले यिु मओ ं
को िैयमर वकयम। धीरे -धीरे कई वफल्र् वशिण संतथमन सरकमर और वनजी िौर िर िोले गए।
यिु म िीढ़ी वहदं ी वसनेर्म के कें द्र र्ें रही। वसनेर्म की कहमनी र्ें िी और देिने िमलों र्ें िी। चवंू क
विल्र्कमर इस सच्चमई से अिगि हैं इसवलए उन्होंने यिु मओ ं के प्रवि ईर्मनदमरी बरिी। आज जो लोग वफल्र्ें
बनम रहे हैं उनके कें द्र र्ें िी यिु म िीढ़ी है। यिु म, थ्री इवडयट्स, रंग दे बसिं ी, तटूडेंट ऑफ द ईयर, वदल दोतिी
एक्सट्रम आवद वफल्र्ें यिु म र्न को छूने िमली हैं। यिु मओ ं को कें वद्रि कर हर िषा दजानों वफल्र्ों कम वनर्माण
होिम है। आने िमले सर्य र्ें वसनेर्म यिु मओ ं के वलए कुछ बेहिर ही करे गम।
प्रश्नों का जाँच स्वयां करना
प्रश्न (क) वनभनवलविि कथनों िर सही/गलि के वनशमन लगमइए–
1. क्यम वसनेर्म अिने सर्य और सर्मज की संिेदनम को यथमथा रूि र्ें प्रतििु कर िमिम है?
(सही/गलि)
2. क्यम वसनेर्म कम एक वनवश्चि दशाक-िगा होिम है? (सही/गलि)
प्रश्न (ि) सही शब्द के चनु मि द्वमरम ररक्ि तथमन की िवू िा कीवजए–
1. वसनेर्म एक सबसे …………. कलमत्र्क विधम है। (सतिी, र्हगं ी)
2. …………. ने ही वसनेर्म विधम को जन्र् वदयम। (फ्मंस, जर्ानी, जमिमन)

115
1.7 सिनेमा की भाषा का िमाजशास्त्र
वसनेर्म की िमषम कम अिनम सर्मजशमस्त्र होिम है। जो आरंविक दौर र्ें वफल्र्ों की िमषम लोक से
जड़ु ी हुई थी क्योंवक िमरि र्ें अवधकिर लोग अवशविि थे। अवशिम के कमरण वफल्र्ें आर् िमषम र्ें ही बनिी
थी वजससे आसमनी से उसे दशाकों िक िहुचाँ मयम जम सके ।
वकसी िी कलम की िमषम उसके विकमस और विनमश कम रमतिम िय करिी है। सर्मज जैसे-जैसे
बदलिम है सर्मज की िमषम िी बदलिी है। विछले दो दशकों र्ें वसनेर्म की िमषम र्ें अििू ििू ा िररििान हुआ
है। इस िमषम को बमज़मर की िमषम कह सकिे हैं। वसनेर्म जैसे कलम र्मध्यर् र्ें बहुि गररर्मर्यी होकर बहुि
वदन िक नहीं वटकम जम सकिम है। िूर्ंडलीकरण के दौर र्ें एक ऐसी िमषम िैयमर हुई जो र्मके ट की िमषम है।
अथमाि जो वबकमऊ है। िमरि बहु-समंतकृ विक और बहुिमषी देश है जहमाँ विविन्न धर्ों और संप्रदमयों के लोग
रहिे हैं। समंझी-समंतकृ विक विरमसि को यहमाँ जीिंि रूि र्ें देिम जम सकिम है। सैकड़ों िषा र्गु लों कम यहमाँ
शमसन रहम वजससे उदाू और फमरसी िमषम यहमाँ के जन सर्दु मय र्ें रह गई। अंग्रेजों ने यहमाँ अाँग्रेजी कम विकमस
वकयम। िमरि र्ें तियं दो हज़मर िमषमएाँ बोली जमिी थीं वजनर्ें से सोलह सौ िमषमएाँ अिी िी दज़ा हैं, र्िलब
प्रयोग र्ें हैं। हर िमषम की अिनी अवतर्िम होिी है। सिी िमषमएाँ अिने अवतित्ि को बचमने के वलए संघषा
करिी हैं। वहदं ी कम दिु मागय यही है वक उसकी प्रवियोवगिम अिने ही देश की िमषमओ ं से है। जो वहदं ी वसनेर्म
िरू ी दवु नयम र्ें वहदं ी के दर् िर लमिों करोड़ कम व्यमिमर करिम है उसकी िी िमषम वहंदी नहीं है बवल्क
वहदं तु िमनी है वजसे सर्मज कम प्रत्येक िगा सर्झ िमए। िूर्ण्डलीकरण ने िमरि की समंतकृ विक चेिनम को बड़े
तिर िर प्रिमविि वकयम। िाँजू ीिमद कम नयम रूि इसी के द्वमरम समर्ने आयम। िर्ू ण्डलीकरण के आगर्न से
आवथाक संिन्निम िो आयी लेवकन िमरंिररक चीजों के वलए चनु ौिी बन गई। िर्ू ण्डलीकरण ने िरु मिन चीजों
को चनु ौिी देिे हुए अिनी बनमयी चीजों की ब्मंवडंग की। िमषम की दवु नयम र्ें ही विश्व को ग्रमर् बनमने की
कल्िनम की गई वजसर्ें हर् फोन िर अिनों की आिमज़ सनु सकिे हैं लेवकन उससे जो िमिनमत्र्क दरू ी बढ़ी
है उसकम कोई उिमय अब हर्मरे िमस नहीं है। यह सर्झनम बहुि जरूरी है वक िमषम द् िमरम ही बमज़मर अिने
उत्िमद को हर् िक िहुचाँ मिम है। िह बिमिम है वक ‘ठंडम र्िलब कोकम कोलम’ होिम है और ‘कै डबरी कम
र्िलब ‘कुछ र्ीठम हो जमय’ है। गौर से देिें िो िहले ‘कुछ र्ीठम हो जमए’ कहिे ही िमरि की िमरंिररक
वर्ठमई लड्डू कम चेहरम समर्ने आिम है िर नई िीढ़ी उसे कै डबरी के रूि र्ें देििी है। बमज़मर की यह संतकृ वि
हर्मरे जीिन र्ें इस र्जबिू ी से प्रिेश कर गई है हर् उससे बमहर वनकलने की कल्िनम से ही अिने आिको
सर्मज से कटम र्हसूस करने लगिे हैं। वचंिम की बमि यह है वक यह बमजमरू संतकृ वि हर्मरी िैचमररक और
अवतर्िम की िमषम को ित्र् कर एक ऐसी िमषम को जन्र् दे रही है वजसकम कोई व्यमकरण नहीं है यमनी की
वनयर् नहीं है। यही कमरण है वक िमषमओ ं से संिन्न इस देश की िमषमएाँ ििरे र्ें हैं।
िर्ू ंडलीकरण के दौर र्ें िमषमओ ं की बंवदश ित्र् हुई। अनुिमद के द्िमरम विविन्न िमरिीय िमषमओ ं
की वफल्र्ें दसू री िमषमओ ं र्ें डब होकर एक दसू रे िक िहुचाँ िी है। उदमरीकरण के कमरण अब वफल्र्ें विदेशों र्ें
िी ररलीज होिी हैं और विदेशी वफल्र्ें िमरि र्ें बड़ी र्मत्रम र्ें प्रदवशाि हो रही हैं। िकनीकी र्मध्यर्ों द्वमरम

116
वसनेर्म नई िमषम को गढ़ रहम है। िेलगु ,ु िवर्ल, र्रमठी, असवर्यम, अाँग्रेजी वफल्र्ें वहदं ी िमषम र्ें डब होकर
प्रदवशाि हो रही हैं।
इधर कुछ िषों र्ें िोजिरु ी, िंजमबी, िवर्ल, िेलगु ु आवद िमषमओ ं कम बमज़मर बढ़म है। वसनेर्म िी उन
िमषमओ ं को चनु कर वफल्र् र्ें तिमद र्ें नर्क वजिनम लोकल िमषम डमलिम है। िोजिरु ी इधर के कुछ िषों र्ें
आंदोलन और र्नोरंजन दोनों की िमषम बनकर उिरी है। देििे ही देििे िोजिरु ी वसनेर्म की वबकमऊ िमषम
बन गई। िीके वफल्र् कम िह दृश्य वजसर्ें आवर्र िमन रमजतथमन र्ें एक लड़की कम हमथ िकड़ वजस िमषम को
अिने अंदर तथमनमन्िरण करिे हैं िह िोजिरु ी है। यह अनमयमस नहीं हुआ है। क्योंवक िोजिरु ी इस दौर र्ें
लोकवप्रयिम कम नयम र्मनदडं तथमविि करने िमली िमषम बनी है वलहमज़म वसनेर्म ने उसकम फमयदम उठमने के
वलए वफल्र् बनम दी। आि सोवचए अगर िीके वफल्र् कम नमयक एवलयन के रूि र्ें रमजतथमनी िमषम कम चनु मि
करिम िो दशाकों से वकिनम कनेक्ट कर िमिम? िोजिरु ी के समथ एक चीज और िी है िह वहदं ी व्यमकरण के
िी करीब है इसवलए ठे ठ िोजिरु ी न बोलकर टोन िी िोजिरु ी िमली रिी जमए िब िी दशाक उसे िोजिरु ी ही
सर्झेगम। इस संदिा र्ें जरम अतसी के दशक र्ें जमकर वफल्र् ‘नवदयम के िमर’ कम व्यमिसमवयक व्यमकरण
सर्झनम होगम। अतसी के दशक र्ें वजन वफल्र्ों को देिने लोग बमर-बमर वसनेर्मघरों र्ें गए उनर्ें ‘नवदयम के
िमर’ ने समरे ररकॉडा िोड़ वदए। आज िी उसकी लोकवप्रयिम कर् नहीं हुई है। सेंसर बोडा ने उसे वहन्दी वसनेर्म
के अंिगाि िमस वकयम है लेवकन उसे िोजिरु ी कम वसनेर्म कहकर प्रचमररि वकयम। उस वफल्र् की लोकवप्रयिम
वहदं ी और िोजिरु ी दोनों िमषमओ ं के लोगों र्ें हैं। वनर्मािम और वनदेशक ने बड़ी चमलमकी से वफल्र् की िमषम
िो वहदं ी रिी लेवकन टोन िोजिरु ी रि दी। यह वसनेर्म के सर्मजशमस्त्र कम िमषमयी हवथयमर है। िर्ू ंडलीकरण
के बमद यह प्रवियम और िेजी से बढ़ी है। वनदेशक और वनर्मािम बड़ी चमलमकी से वहदं ी को कें द्र र्ें रिकर
लोकल िमषमओ ं कम सवभर्श्रण कर वफल्र् वनर्माण करिे हैं। हमलमंवक इसे िर्ू ंडलीकरण की िमकि के रूि र्ें
देिनम चमवहए वजसने कुछ िमषमओ ं को बड़ी िहचमन दी। नक ु समन यह है वक इससे वहदं ी ही अिनी जर्ीन
कर्जोर होिी जम रही है।
िर्ू डं लीकरण के इस दौर र्ें लोकल िमषम कम अिनम र्हत्त्ि है। वनदेशक दशाकों को वफल्र् की
संिेदनम िक ले जमने के वलए िहीं की िमषम चनु िे हैं जहमाँ की कहमनी है। आजकल उन लोकल िमषमओ ं को
वफल्र्ों र्ें विशेष र्हत्त्ि वदयम जम रहम है जो वहदं ी के अलमिम अन्य िमषम सर्मज के लोग िी सर्झिे हैं।
समवहत्य और वसनेर्म की िमषम र्ें एक फका यह होिम है वक समवहत्य उसी िमषम को प्रमर्मवणक र्मनिम
है जो र्मनि र्िु से उच्चररि हो और वजसकम एक ध्िवन प्रिीक हो। लेवकन वसनेर्म र्ें समंकेविक िमषम कम िी
अिनम र्हत्त्ि होिम है। वसनेर्म की िमषम चररत्रों की चप्ु िी र्ें िी बहुि कुछ कह जमने की िमकि रििी है। िह
इशमरों इशमरों र्ें वदल की समरी बमि कह जमिम है। आज वजन वफल्र्ों कम वनर्माण हो रहम है उसर्ें िमषम के प्रवि
प्रयोगधर्ी नज़ररयम अिनमने कम एक कमरण यह िी है वक उसी के वहसमब से वफर वबंबों और प्रिीकों कम प्रयोग
करने की छूट िी वर्ल जमिी है। कई बमर यह छूट वद्वअथी बमि कहने र्ें सहमयक हो जमिी है। वफल्र् ‘डेल्ही

117
िेल्ही’ कम ‘िमग डीके बोस डीके ’ जैसे गीि इसी संदिा र्ें देिे जम सकिे हैं। ऐसी वफल्र्ों को यिु म िीढ़ी
िमंविकमरी िररििान के रूि र्ें देििी है।
वसनेर्म तियं र्ें एक ‘िमषम’ है। एक ऐसी िमषम जो सर्मज के उन लोगों से िी संिमद करिी है जो
िमषम कम र्र्ा िी नहीं सर्झिे। वसनेर्म की िहुचाँ सर्मज के प्रत्येक िगा िक है। ‘िरे ििन र्ें होि है नैनन ही
सो बमि’ की उवक्त इसी वफल्र् द्िमरम चररिमथा होिी है। वसनेर्म र्ौविक और समंकेविक िमषम दोनों को प्रश्रय
देिम है इसीवलए उसकम जुड़मि अवधक लोगों से है। वसनेर्म की िमषम कम असर है वक िह अिने सर्मज के उस
िगा से िी संिमद करिम है जो लोग िमषम कम र्र्ा नहीं जमनिे। इसकम प्रयोग वकसी िी संिेदनम की अविव्यवक्त
के वलए वकयम जम सकिम है। वसनेर्मई िमई और वसनेर्म को िमषम कम फका वनदेशकों को सर्झनम होगम।
विल्र्कमर एक िरफ र्मके ट की िमषम को िकड़िम है िो दसू री ओर र्मके ट के वलए एक िमषम िी िैयमर करिम
है जो वबकमऊ हो।
प्रत्येक कलम विधम की अिनी एक िमषम होिी है और अिनम र्हु मिरम होिम है। वचत्र की िमषम है- रंग
और रे िमएाँ िो नृत्य की िमषम है– िदचमि और र्द्रु मएाँ। ये िमषम के िे िमयिीय रूि हैं वजन्हें ग्रहण करने के
वलए एक विशेष हृदय और विशेष सर्झ की जरूरि होिी है। जबवक समवहत्य की िमषम एक ऐसी वलविि
िमषम होिी है जो प्रत्यि होिी है और वजसे जमनने सर्झने के वलए विशेष प्रवशिण आिश्यक होिम है। िमषम
ही िह र्मध्यर् है जो वफल्र्ों को सीधम दशाकों से जोड़िी है। अगर वफल्र् की िमषम दशाकों से सीधम सबं धं
तथमविि नहीं कर िमिी है िो अच्छी िटकथम और वनदेशन होने के बमिजदू िी वफल्र् विट जमिी है। इसकम
सबसे अच्छम उदमहरण है ‘रवजयम सल्ु िमन। ‘रवजयम सल्ु िमन’ कर्मल अर्रोही द्वमरम वनदेवशि लमिों की लमगि
से बनी वफल्र् थी वजसर्ें दृश्यों की प्रमर्मवणकिम और चररत्रों कम प्रिमिी ढ़गं से प्रतििु करने के वलए ऊदाू और
फमरसी के शब्दों कम बहुि अवधक प्रयोग हुआ। िमषम की जवटलिम से ‘रवजयम सल्ु िमन’ जैसी र्हत्त्ििणू ा
वफल्र् आर् दशाकों िक िहुचाँ ने र्ें असफल हो जमिी है िहीं ‘र्गु ले आज़र्’ जैसी वफल्र् ऊदाू और फमरसी के
शब्दों के प्रयोग के बमिजदू िी सफलिम के आसर्मन िक िहुचाँ जमिी है। कमरण तिि नज़र आिम है वक इस
वफल्र् र्ें कर्मल अर्रोही ने वहन्दतु िमनी िमषम कम प्रयोग वकयम जो िमरिीय जनर्मनस को अिनी िमषम से
आसमनी से जोड़ देिी है। िमषमओ ं की जवटलिम ने कई अच्छी वफल्र्ों को दशाकों से दरू कर वदयम। इसकम एक
उदमहरण हर्ें हमल की ही वफल्र् ‘कमईट्स’र्ें देिने को वर्लिम है। ऋविक रोशन और एक विदेशी बमलम की
प्रेर् कहमनी िर बनी यह वफल्र् दो अलग-अलग िमषमओ ं के प्रेवर्यों के बीच िनिे प्यमर की दमतिमन है। इस
वफल्र् र्ें दोनों िमत्रों के आिसी िमिमालमि के वलए वकए गए संिमद दशाकों को िटकने लगिे हैं। इसवलए एक
अच्छी र्नोरंजक वफल्र् िी असफल हो जमिी है। ितिुिः हर् देििे हैं वक िमषम की इस शमवब्दक सीर्म से
उिर उठ जमनम ही वसनेर्म की सबसे बड़ी शवक्त है और वजस वफल्र् र्ें यह शवक्त वजिनी अवधक होिी है। िह
वफल्र् उिनी ही समिािौवर्क औैर समिाकमवलक बन जमिी है। कमलजयी सजानम ििी होिी है जब उसकी
संिेदनम िमषम-विचमर और समंकृविक िररिेश के विविजों को िोड़कर शद्ध ु िः र्मनि र्मत्र की संिेदनम बन
जमिी है। इस संिेदनम को हर् वफल्र् ‘लगे रहो र्न्ु नम िमई’ के ‘जमदू की झप्िी’ के र्मध्यर् से सर्झ सकिे हैं।

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िमतिि र्ें जब िी ऐसी वफल्र् हर्मरे समर्ने आिी है िो उसकी संिेदनम को आत्र्समि करने के वलए सहृदय
को िमषम जैसे र्मध्यर् िर वनिार नहीं रहनम िड़िम है। यही वसनेर्म की िमषम की िमकि है वक िह अिनी बमि
आर् जनिम िक िहुचाँ मने के वलए वकसी िी िमषम के शब्दों कम इतिेर्मल कर लेिम है। आज कम वसनेर्म
अिनी र्मके ट िैल्यू बढ़मने के वलए अाँग्रेजी की िरफ बढ़ रहम है। यह बहुि ध्यमन देने िमली बमि है वक अाँग्रेजी
के कंधे िर सिमर होकर वसनेर्म लोकल िमषमओ ं को अिनी ओर आकवषाि कर रहम है। यह आज के वसनेर्म
की िमषम की िहली शिा है वक वकिनी वबकमऊ है। वसनेर्म वजस िमषम कम वनर्माण कर रहम है िह लोकवप्रय
िमषम है। व्यमकरवणक शदु ् धिम और समवहवत्यक िटु देने की वज़भर्ेदमरी से कहीं न कहीं िमग रहम है। वसनेर्मई
सर्ीकरण के वलए िो यह ठीक है लेवकन िमषम को विकवसि करने की दृवि से यह ठीक नहीं है। अगर ऐसम
ही रहम है िो कुछ िषों बमद वहदं ी वसनेर्म की िमषम वहदं ी नहीं रहेगी।
वसनेर्म र्ें कई िरह के लोग एक समथ कमर् कर रहे हैं। एक िरफ करण जौहर और यश िररिमर है जो
बड़े बैनर और बड़े तटमर के समथ विदेशों र्ें वफल्र्ें शटू करिे हैं वजनके हीरो-वहरोइन ठीक से वहदं ी बोलनम िक
नहीं जमनिे। दसू री अनरु मग कश्यि, विगर्मंशु धवू लयम, वदिमकर बनजी, शजु ीि सरकमर जैसे लोग हैं जो अथािणू ा
लेवकन व्यमिसमवयक वसनेर्म बनम रहे हैं। उनके वसनेर्म की िमषम वहदं तु िमनी िमषम है कुछ-कुछ अाँग्रेजी िी।
दरससल िर्ू ंडलीकरण ने िमषम को समंतकृ विक िररििान कम हिमलम देकर िमषमओ ं िर अिनम िचाति
तथमविि कर वलयम। ऐसी वफल्र्ों र्ें लोकल िमषम न के बरमबर होिी है। ऐसी वफल्र्ों कम वनर्माण इसवलए
वकयम जमिम है वजससे उसे िरू े िमरि र्ें वदिमयम जम सके । ऐसी वफल्र्ों के न िमत्र लोकल होिे हैं न िमषम। िह
कहमाँ के होिे हैं यह िी नहीं बिमयम जमिम है। जैसे बमहुबली, बजरंगी िमई जमन, कृ ष, रोबोट जैसी वफल्र्ों की
िमषम सभ्मंि सर्मज के वलए होिी है जो अिनी विषय-ितिु की रोचकिम के कमरण प्रत्येक िगा को आकवषाि
िो करिी है। यह आकषाण जब बढ़ जमिम है िो िमरिीय िमषमओ ं के िोने कम ििरम बनम रहिम है। कलमओ ं
की वज़भर्ेदमरी है वक िह अिने देश की िमषम के विकमस र्ें अिनी िवू र्कम वनिमएाँ। वफल्र्ें वजस िरह से
वर्लमिटी िमषम कम प्रयोग कर रही हैं उसर्ें वकसी एक िमषम की र्हक नहीं रह गई है। वसनेर्म को वहदं तु िमनी
िमषम की िररवध र्ें रहकर ही उवचि प्रयोग करनम होगम।
विश्ि वसनेर्म के विख्यमि हमतय अविनेिम चमली चैिवलन ने वबनम संिमदों के ही अिनी शमरीररक
वियमओ ं से िषों िक लोगों के वदलों िर रमज वकयम जो आज िी बरकरमर है। िमरिीय वसनेर्म कम आरंि ही
र्कू वफल्र्ों से होिम है वजसर्ें तियं को व्यक्त करने के वलए समंकेविक िमषम के वसिमय कोई र्मध्यर् नहीं थम।
बमद र्ें वहदं ी वसनेर्म र्ें ‘िष्ु कर’ जैसी प्रयोगिमदी वफल्र्ें िी बनी वजसर्ें संिमद वबलकुल थे ही नहीं वफर िी
िरू ी वफल्र् र्ें दशाक तियं को हसं ने से रोक नहीं सके ।
अिनी विछली वफल्र्ों के लेिन से जो प्रवसवद्ध अनरु मग कश्यि को वर्ली है उसके आधमर िर िह
िमषमवसद्ध वनदेशक और लेिक कहे जम सकिे हैं। िह अिनी वफल्र्ों र्ें विषयमनक ु ू ल और िमत्रमनक
ु ू ल िमषम
कम सटीक प्रयोग करिे हैं। िमषम कम अनठू म प्रयोग ही उनकी वफल्र्ों को उनके सर्कमलीन अन्य वनदेशकों की
वफल्र्ों से अलग करिम है। अिनी िहली ही वफल्र् ‘सत्यम’ के िटकथम लेिन के वलए उन्हें कई िरु तकमर प्रमप्त

119
हुए। कहनम गलि न होगम वक ‘सत्यम’ र्ें अनरु मग कश्यि ने चररत्रों की िमषम को वजस िरह िकड़म है उसे उसी
सलीके से प्रतििु िी वकयम है।
वसनेर्म िमषम के बढ़िे िचाति के वहसमब से वसनेर्म की िमषम चनु िम है। इधर कुछ िषों र्ें िोजिरु ी,
िंजमबी, िवर्ल, िेलगु ु आवद िमषमओ ं कम बमज़मर बढ़म है। वसनेर्म िी उन िमषमओ ं को चनु कर वफल्र् र्ें तिमद
र्ें नर्क वजिनम लोकल िमषम डमलिम है। िोजिरु ी इधर के कुछ िषों र्ें आंदोलन और र्नोरंजन दोनों की
िमषम बनकर उिरी है। देििे ही देििे िोजिरु ी वसनेर्म की वबकमऊ िमषम बन गई। िीके वफल्र् कम िह दृश्य
वजसर्ें आवर्र िमन रमजतथमन र्ें एक लड़की कम हमथ िकड़ वजस िमषम को अिने अंदर तथमनमन्िरण करिे हैं
िह िोजिरु ी है। यह तथमनमंिरण अनमयमस नहीं हुआ है। क्योंवक िोजिरु ी इस दौर र्ें लोकवप्रयिम कम नयम
र्मनदडं तथमविि करने िमली िमषम बनी है वलहमज़म वसनेर्म ने उसकम फमयदम उठमने के वलए वफल्र् बनम दी।
आि सोवचए अगर िीके वफल्र् कम नमयक एवलयन के रूि र्ें रमजतथमनी िमषम कम चनु मि करिम िो दशाकों से
वकिनम कनेक्ट कर िमिम? िोजिरु ी के समथ एक चीज और िी है िह वहदं ी व्यमकरण के िी करीब है इसवलए
ठे ठ िोजिरु ी न बोलकर टोन िी िोजिरु ी िमली रिी जमए िब िी दशाक उसे िोजिरु ी ही सर्झेगम। इस संदिा
र्ें जरम अतसी के दशक र्ें जमकर वफल्र् ‘नवदयम के िमर’ कम व्यमिसमवयक व्यमकरण सर्झनम होगम। अतसी के
दशक र्ें वजन वफल्र्ों को देिने लोग बमर-बमर वसनेर्मघरों र्ें गए उनर्ें ‘नवदयम के िमर’ ने समरे ररकॉडा िोड़
वदए। आज िी उसकी लोकवप्रयिम कर् नहीं हुई है। सेंसर बोडा ने उसे वहदं ी वसनेर्म के अंिगाि िमस वकयम है
लेवकन उसे िोजिरु ी कम वसनेर्म कहकर प्रचमररि वकयम। उस वफल्र् की लोकवप्रयिम वहदं ी और िोजिरु ी दोनों
िमषमओ ं के लोगों र्ें हैं। वनर्मािम और वनदेशक ने बड़ी चमलमकी से वफल्र् की िमषम िो वहदं ी रिी लेवकन टोन
िोजिरु ी रि दी। यह वसनेर्म के सर्मजशमस्त्र कम िमषमयी हवथयमर है। िूर्ंडलीकरण के बमद यह प्रवियम और
िेजी से बढ़ी है। वनदेशक और वनर्मािम बड़ी चमलमकी से वहदं ी को कें द्र र्ें रिकर लोकल िमषमओ ं कम
सवभर्श्रण कर वफल्र् वनर्माण करिे हैं। हमलमंवक इसे िर्ू ंडलीकरण की िमकि के रूि र्ें देिनम चमवहए वजसने
कुछ िमषमओ ं को बड़ी िहचमन दी।
1.7.1 प्रश्नों का जाँच स्वयां करना
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों कम उत्तर एक-दो िंवक्तयों र्ें दीवजए-
1. वसनेर्म र्ल
ू ि: वकसकी विधम है?
2. वसनेर्म तियं र्ें क्यम है?
प्रश्न (ि) वनभनवलविि कथनों िर सही गलि के वनशमन लगमइए-
1. िर्ू ंडलीकरण के इस दौर र्ें लोकल िमषम कम अिनम र्हत्त्ि है। (सही/गलि)
2. िमषमओ ं की जवटलिम ने कई अच्छी वफल्र्ों को दशाकों को िमस लमकर िड़म कर वदयम।
(सही/गलि)

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3. समवहत्य उसी िमषम को प्रमर्मवणक र्मनिम है जो र्मनि र्ि
ु से उच्चररि हो और वजसकम एक
ध्िवन प्रिीक हो। (सही/गलि)
प्रश्न (ग) सही शब्द के चनु मि द्वमरम ररक्त तथमनों की िवू िा कीवजए-
1. विल्र्कमर एक िरफ र्मके ट की िमषम को िकड़िम है िो दसू री ओर र्मके ट के वलए एक
.......िी िैयमर करिम है जो वबकमऊ हो। (िैसम, दशाक, िमषम)
2. िमरिीय वसनेर्म कम आरंि ही ..... वफल्र्ों से होिम है (रंगीन, र्क
ू , बोलिी)
3. ‘रवजयम सल्ु िमन’ कर्मल अर्रोही द्वमरम .......... लमिों की लमगि से बनी वफल्र् थी।
(वलविि, अविनीि, वनदेवशि)
1.8 अभ्याि के सलए प्रश्न
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों के उत्तर दीवजए
1. समवहत्य और वसनेर्म र्ें क्यम संबंध है ?
2. वसनेर्म की िमषम और सर्मज कम क्यम सबं धं है ?
3. कलम के रूि र्ें वसनेर्म की व्यमख्यम कीवजए ?
4. अनरु मग कश्यि की िमषम कै सी है?
5. समवहत्य और वसनेर्म की िमषम र्ें क्यम अंिर है?
प्रश्न (ि) वनभनवलविि शब्दों के अथा बिमइए-
विधम, वनदेशन, सीर्म, समिाकमवलक, चररिमथा
प्रश्न (ग) वनभनवलविि िमक्यों कम िदिर् ठीक कीवजए
1. वसनेर्म को उवचि प्रयोग वहदं तु िमनी िमषम की िररवध र्ें रहकर ही होगम करनम ।
2. वसनेर्म र्ें कई िरह के लोग समथ एक कमर् कर रहे हैं।
3. िमषम ही िह र्मध्यर् है सीधम जो वफल्र्ों को दशाकों से जोड़िी है।
4. िोजिरु ी इधर के कुछ िषों र्ें िमषम आंदोलन और र्नोरंजन दोनों की बनकर उिरी है।
5. सर्मज की धड़कने समफ वसनेर्म र्ें सनु ी जम सकिी है।

121
2. सिनेमा अध्ययन की सिशाएँ – भाग-2
(सहांिी की कुछ महत्‍त्‍वपूर्थ सिल्मों की व्यावहाररक िमीक्षा)
डॉ. महेंद्र प्रजापसि
हसं रमज कॉलेज, वदल्ली

2.1 प्रस्िावना
वफल्र्ें हर्मरे सर्मज कम अविन्न वहतसम हैं। किी र्नोरंजन िो किी के िल संिेदनमत्र्क ढंग से जीिन
के वकसी अहर् िहल,ू यथमथा को िदे िक लमनम विल्र्कमर कम उद् देश्य होिम है। वफल्र्ें अिने सर्य कम
दतिमिेज़ होिी हैं। वफल्र्ों को देिकर यह सर्झम जम सकिम है वक उस दौर कम सर्मज कै सम रहम होगम।
वनभनवलविि वफल्र्ें अिनी विशेष विषय-ितिु और अविव्यवक्त के कमरण सर्मज र्ें लोकवप्रय हुई।ं इन
वफल्र्ों र्ें िमरिीय सर्मज की विविन्न छवियमाँ कै द हैं। वफल्र्ें र्मनिीय जीिन की उिलवब्धयों और चनु ौवियों
को कलमत्र्क ढंग से प्रतििु करिी हैं।
2.2 असिगम का उि् िेश्य
इस िमठ को िढ़कर आि वनभनवलविि कमया कर सकने र्ें सिर् हो जमएंगे–
(1) वसनेर्म की समर्मवजक िवू र्कम को सर्झ िमएंगे।
(2) िमरिीय सर्मज की विविन्न छवियों को वफल्र्ों के र्मध्यर् से देि िमएगं े।
(3) वफल्र् र्ें र्नोरंजन और संिेदनम के सर्न्िय को सर्झ िमएंगे।
(4) स्त्री, दवलि-विर्शा की सर्झ विकवसि होगी।
(5) वफल्र्ों र्ें वचवत्रि िमरिीय संतकृ वि को सर्झ िमएंगे।

2.3 चयसनि सिल्मों की व्यावहाररक िमीक्षा


2.3.1 'अछूि कन्या'
1936 र्ें बनी 'अछूि कन्यम' िमरिीय सर्मज र्ें फै ले छूआछूि और स्त्री की वतथवि िर करमरम प्रहमर
है। बॉभबे टॉकीज़ के बैनर िले वनवर्ाि अछूि कन्यम वहदं ी िमषम र्ें बनी िमंविकमरी विचमरों िमली वफल्र् है।
इस वफल्र् र्ें उच्च जमवि के नए विचमरों िमले यिु क (अशोक कुर्मर) िथम दवलि जमवि की यिु िी (देविकम
रमनी) की प्रेर्-कहमनी कें द्रीय िवू र्कम र्ें है। समवहवत्यक सर्य के वहसमब से देिें िो यह वफल्र् गमाँधीिमदी
विचमरधमरम से प्रिमविि समर्मवजक सधु मर की वफल्र् है वजसर्ें समर्मवजक विषर्िम िर सिमल उठमयम गयम है।
अछूि कन्यम कई र्मयनों र्ें वहंदी वसनेर्म की उिलवब्ध है। ऐसम िहली बमर हुआ जब कोई स्त्री इिनी उन्र्क्त ु

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होकर प्रेर् करने कम वनणाय लेिी है। अछूि कन्यम की कहमनी के िल समर्मवजक विषर्िम की कहमनी नहीं है
बवल्क स्त्री के अवतर्िम के अवधकमर और र्मनवसक र्वु क्त की िी कहमनी है।
2.3.2 ‘मिर इसडडया’
‘र्दर इवण्डयम’ सिं िि: िमरि की िहली ऐसी वफल्र् है वजसने िमरिीय सर्मज र्ें वनवर्ाि स्त्री की
िमरंिररक छवि को िोड़ने र्ें सफल हुई, वजसर्ें स्त्री को नमयक के रूि र्ें प्रतििु वकयम गयम। विख्यमि वनर्मािम,
वनदेशक र्हबबू खमन द् िमरम वनदेवशि ‘र्दर इवण्डयम’ ने िमरि ही नहीं विदेशों र्ें िी ख्यमवि प्रमप्त की। अिने
सर्य की बहुचवचाि अविनेत्री नवगास ने अिने जीिन कम सिाश्रेष्ठ अविनय वकयम। रमजकुर्मर, सनु ील दत्त,
रमजेंद्र कुर्मर जैसे अविनेिमओ ं के अविनय से सजी इस वफल्र् की कहमनी जर्ीदमरी प्रथम और गमाँि र्ें लमलम
द्वमरम ‘कर’ के रूि गरीबों-शोवषिों कम शोषण है। र्हबबू िमन आधवु नक विचमरों से यक्त ु विल्र्कमर र्मने जमिे
हैं। उनकी वफल्र्ों र्ें स्त्री कम िमंविकमरी रूि देिने को वर्लिम है। र्वहलमएाँ अिने अवधकमरों और अवतर्िम के
वलए आिमज़ उठमिी हैं। र्हबूब िमन 1940 र्ें ‘औरत’ वफल्र् कम वनर्माण कर चक ु े थे जो स्त्री-प्रधमन वफल्र्
है। कुछ लोग ‘र्दर इवं डयम’ को ‘औरि’ कम रीर्ेक िी र्मनिे हैं। हमलमंवक दोनों की कहमनी और विचमरधमरम
अलग-अलग है।
‘र्दर इवण्डयम’ गमाँि र्ें रहने िमली ऐसी औरि ‘रमधम’ की कहमनी है वजसकम िरू म जीिन संघषा और
िनमि र्ें गजु रिम है। वििमह के कुछ िषा बमद ही िेि र्ें कमर् करिे हुए िवि कम हमथ ित्थर के नीचे दबकर
कट जमिम है। रमि वदन र्ेहनि करने िमलम तिमविर्मनी िवि जब िररिमर के वलए कुछ नहीं कर ििम िो
आत्र्गलमवन से िर जमिम है और एक वदन घर छोडकर चलम जमिम है। िवि की अनिु वतथवि र्ें िमरि की वस्त्रयों
की जो ददु श ा म होिी है िह इस वफल्र् र्ें बिबू ी वदिमयम गयम है। िरू े सर्मज की नज़र उस िर है। गमाँि कम
लमलम वजससे रमधम के िवि ने कुछ उधमर वलयम है के बदले िह उसको िोगनम चमहिम है लेवकन रमधम वहभर्ि
से उसकम समर्नम करिी है। िह िाँजू ीिमदी वनर्ार् व्यितथम से डरिी नहीं हैं। बवल्क उसकम विरोध करिी है।
रमधम कम छोटम बेटम वबरजू आरंि से ही िमंविकमरी है। िह बचिन से अिनी र्माँ कम शोषण देि रहम
है। अिनी र्माँ के सोने के कंगन को लमलम की बेटी के हमथ र्ें देिकर उसे बहुि कि होिम है। िह बमर-बमर उस
कंगन को प्रमप्त करनम चमहिम है क्योंवक िह जनिम है यह कंगन उसकी र्माँ से जबदातिी वलयम गयम है। िह यह
नहीं सर्झ िमिम वक लमलम कौन सम वहसमब लगमिम है वजससे िीढ़ी-दर-िीढ़ी लोग उबर नहीं िमिे हैं। गमाँि की
ही एक लड़की गंगम, जो वबरजू से प्रेर् करिी है। गंगम बच्चों को िढ़मिी है। वबरजू उससे कहिम है वक गंगम र्झु े
बस इिनम वहसमब िढ़म दे वक र्ैं लमलम कम समरम वहसमब जमन जमऊाँ । वबरजू लमलम के अत्यमचमरों के कमरण
डमकू बन जमिम है। िह अिने गमाँि के लोगों और अिनी र्माँ को िश ु देिनम चमहिम है। लमलम की बेटी के
वििमह के वदन िहुचाँ कर िह लमलम कम समरम बही-िमिम जलम देिम है और सबकुछ ित्र् कर देिम है। लमलम
की बेटी के हमथों र्ें कंगन देिकर उसे वछनने कम प्रयमस करिम है और जब िह नहीं वछन िमिम िो गमाँि के
बमहर लेकर िमगने लगिम है जहमाँ रमधम बंदक ू वलए रमतिे र्ें िड़ी है। वबरजू को विश्िमस नहीं वक उसकी अिनी
र्माँ इस रूि र्ें उसके समर्ने आ जमएगी यह दृश्य ऐसी छवि को समर्ने लमिम है जो िमरंिररक िो है लेवकन रूढ़

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नहीं है। यह वफल्र् िमरिीय ग्रमर्ीण जीिन र्ें व्यमप्त समर्ंिी-व्यितथम के विलमफ िड़े एक वजद्दी और
जमगरूक नमयक की कहमनी है वजसे िररवतथवि के कमरण हवथयमर उठमनम िड़म। नमयक की र्माँ अिनी िरंिरम
और सतं कृ वि को बचमए रिने के िि र्ें है वलहमज़म िह अिने ही बेटे को र्मर कर अिने गमाँि की अवतर्िम को
बचमए रिने कम उििर् करिी है।
2.3.3 काबुलीवाला
विश्िविख्यमि समवहत्यकमर, र्नीषी एिं वचंिक रिीद्र नमथ टैगोर िमरिीय समवहत्य के िहले ऐसे
व्यवक्त हैं वजन्हें नोबल िरु तकमर से सभर्मवनि वकयम गयम। 'कमबल ु ीिमलम' अफगमनी िठमन और बंगमली लड़की
वर्नी की अंिका थम है। िठमन र्ेिम कम व्यमिमरी है। अिनी व्यमिमररक यमत्रमओ ं के िहि िह बंगमल िहुचाँ िम है।
जहमाँ िह बंगमली बच्ची वर्नी से वर्लिम है। उसे उस बच्ची र्ें अिनी बेटी वदििी है। वजसके कमरण िह उससे
घलु -वर्ल जमिम है। वर्नी की र्माँ को वर्नी और कमबल ु ीिमलम की यह नजदीकी बरु ी लगिी है। कहमनी िब
र्ोड़ लेिी है जब एक झठू े के स र्ें कमबल ु ीिमलम को जेल जमनम िड़िम है। वसनेर्म की दृवि से वहदं ी और बंगलम
के समवहत्यकमरों और विल्र्कमरों र्ें अच्छी िमलर्ेल देिी जम सकिी है। कमबल ु ीिमलम जैसी कहमवनयमाँ
वफल्र्ों के वलए उियक्त ु होिी हैं। वनदेशक किी-किी समर्मन्य कहमनी िर असमधमरण वफल्र् बनम देिम है
लेवकन कमबल ु ीिमलम िमलम कहमनी ही संिेदनम कम चरर् है। इस वफल्र् ने िमरि की समंतकृ विक चेिनम को
विश्ि तिर िर प्रदवशाि वकयम । ऐसी वफल्र्ें वकसी िी सर्य प्रमसंवगक होिी हैं, क्योंवक संिेदनम और प्रेर्
हर्ेशम प्रमसंवगक होिे हैं।
2.3.4 ‘शोले’
‘शोले’ वहदं ी वसनेर्म की िहली ऐसी वफल्र् है वजसकी लोकवप्रयिम ने समरे प्रविर्मन िोड़ डमले समथ
ही कुछ ऐसे प्रविर्मन तथमविि वकए वजन्हें आज िक िोड़म नहीं जम सकम। गोिमल दमस वसप्िी द्वमरम वनवर्ाि
िथम सलीर्-जमिेद अख़्िर द् िमरम वलविि शोले ने िमरिीय जनर्मनस को गहरमई से प्रिमविि वकयम। शोले
कम वनदेशन रर्ेश वसप्िी ने वकयम है। वफल्र् की कहमनी दो अिरमवधयों जय (अवर्िमि बच्चन) और िीरू
(धर्ेन्द्र) से शरूु होिी है। वफल्र् ििू ा िवु लस अवधकमरी ठमकुर बलदेि वसंह (संजीि कुर्मर) की कुख्यमि डमकू
गब्बर वसहं (अर्जद खमन) से दश्ु र्नी है। कुछ िषा ििू ा ठमकुर बलदेि वसहं ने गब्बर वसंह को उसके अिरमधों
के कमरण जेल र्ें बंद कर वदयम थम वजसके कमरण गब्बर वसंह ने ठमकुर के िरू े िररिमर की हत्यम कर दी और
ठमकुर कम दोनों हमथ कमट वलयम। ठमकुर गब्बर से बदलम लेने के वलए जय-िीरू को जेल से छुड़िमकर अिने
गमाँि रमगर्ढ़ लमिम है। रमर्गढ़ गमाँि र्ें जयम िमदरु ी और हेर्म र्मवलनी कम वकरदमर िी है। िवु लस ने गब्बर वसहं
िर िचमस हज़मर रुिये इनमर् रिम है लेवकन ठमकुर, गब्बर को जीविि िकड़कर लमने िर 20000 अविररक्त
इनमर् को रििम है।
रमर्गढ़ के नमगररक गब्बर वसहं के अत्यमचमरों से िीवड़ि हैं। गब्बर के आदर्ी प्रत्येक फसल िर गमाँि
िमलों से कर के रूि र्ें अनमज लेने आिे हैं। गरीबों और र्जदरू ों द् िमरम फसल नहीं वदए जमने िर गब्बर के
आदर्ी उन्हें र्मरिे िीटिे हैं। जय और िीरु के आ जमने से गब्बर वसहं के आदर्ी र्मरे जमिे हैं। वजसके विरोध

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र्ें गब्बर वसंह गमाँि के लोगों को र्मरनम शुरू कर देिम है। गमाँि िमले िहले िो घबरम कर जय-िीरू को गमाँि
छोड़ने को कहिे हैं लेवकन जब िह सर्झ जमिे हैं वक यही दोनों गब्बर वसंह से िीछम छुड़िम सकिे हैं िो िह
उन्हें िसंद करने लगिे हैं। जय ठमकुर की विधिम बह ‘रमधम’ (जयम िमदरु ी) से प्रेर् करने लगिम है और िीरु
िमंगम चलमने िमली बसन्िी (हेर्म र्मवलनी) से प्रेर् करने लगिम है। एक वदन धोिे से गब्बर के आदर्ी बसन्िी
और िीरु को िकड़ ले जमिे हैं। जय उनको बचमने जमिम है। गब्बर वसंह के आदर्ी और जय-िीरू आिस र्ें
लड़िे हैं जहमाँ जय की गोली लगने से र्ृत्यु हो जमिी है। जय की र्ृत्यु से िीरु िोध िमगल होकर गब्बर वसंह से
अके ले विड़ जमिम है। अंि र्ें िह गब्बर वसंह को र्मरने ही िमलम होिम है वक ठमकुर िहमाँ िहुचाँ जमिम है। िीरू
को गब्बर वसंह के वजंदम िकड़िमने कम िमदम यमद वदलमिम है। अंि र्ें ठमकुर गब्बर को र्मरिम है। यही वफल्र्
कम अंि है।
प्रश्नों की स्वयां जाँच करना
1. वनभनवलविि प्रश्नों के उत्तर ‘हमाँ’ यम ‘नम’ र्ें दीवजए–
(i) वफल्र्ें अिने सर्य कम दतिमिेज़ होिी हैं (......)
(ii) ‘अछूि कन्यम’ दवलि स्त्री और सभ्ं मिं िरुु ष की प्रेर् कहमनी नहीं है (......)
2. कोष्ठक र्ें वदए गए शब्दों र्ें से सही शब्द चनु कर ररक्त तथमनों की िवू िा कीवजए-
(i) र्हबबू िमन ...... र्ें ‘औरि’ वफल्र् कम वनर्माण कर चक ु े थे। (1940, 1930, 1943,)
(ii) रमधम कम ........ बेटम वबरजू आरंि से ही िमवं िकमरी है। (छोटम, र्झं लम, बड़म)
(iii) शोले कम …….. रर्ेश वसप्िी ने वकयम है। (गमयन, लेिन, वनदेशन)
(iv) जय-िीरू वकस वफल्र् के िमत्र हैं (र्धर्ु वि, शोले, िीकू)
2.3.5 'िद्िनत'
विख्यमि बंगलम वफल्र्कमर सत्यजीि रे ने वहदं ी िमषम र्ें वजिनी िी वफल्र्ें बनमयीं सिी वफल्र्ों ने
आर् जनिम को गहरमई से प्रिमविि वकयम। सत्यजीि रे द्वमरम वनदेवशि ‘सद्गनत’ वहदं ी वसनेर्म की र्हत्त्ििणू ा
वफल्र् है वजसर्ें दवलि जीिन की विसंगवियों को र्मवर्ाकिम से वदिमयम गयम है। ििार्मन दवलि-विर्शा की
संिेदनम और करुणम को इस वफल्र् र्ें देिम जम सकिम है। ‘सद्गनत’ एक ऐसे दवलि व्यवक्त दक्ु िी (ओर्िरु ी)
की कहमनी है वजसकी र्ृत्यु एक ब्मह्मण द् िमरम शोवषि वकए जमने से हो जमिी है। दक्ु िी िमरिीय िरंिरम से
बंधम हुआ है। अिनी बेटी के वििमह के वलए िंवडि जी (र्ोहन अगमसे) के यहमाँ सगनु की िमरीि वनकलिमने
जमिम है। जब िह िंवडि जी के घर िहुचाँ िम है िो उसकी बमि सनु कर िहले उसे िरू म द्वमर समफ करने और िषू म
ढोने कम कमर् दे देिे हैं। सबु ह से कमर् कर रहम िूिम दक्ु िी कमर् करके थक जमिम है। िंवडि जी िम िीकर
आरमर् करने चले जमिे हैं और झरु ी को लकड़ी कम एक र्ोटम टुकड़म चीरने के वलए कह जमिे हैं। िह वफर से
वबनम कुछ िमए विए लकड़ी चीरने लगिम है। लकड़ी की गमाँठ इिनी र्जबूि है वक बहुि ज़ोर लगमने िर िी
फट नहीं सकी। दक्ु िी ज़ोर-ज़ोर से उसकम अिनम बल लगमिे-लगमिे िहीं वगर जमिम है और उसकी र्ृत्यु हो
जमिी है। दक्ु िी के समथ हो रहे इस अत्यमचमर को एक दवलि लगमिमर देि रहम थम। दक्ु िी की र्ृत्यु से िवं डि

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घबरम जमिम है। डरिे हुए दवलि बतिी र्ें जमकर दक्ु िी की लमश उठमने को कहिम है और कहिम है ऐसम नहीं
वकयम गयम िो िरू े गमाँि को िमि लगेगम। लेवकन दवलि इस िमिंड को सर्झ चक ु े हैं। िह अिने शोषण के प्रवि
सचेि हो चक ु े हैं। एक दवलि कहिम िी है वक िवं डि ने इिनम कमर् करिमयम िो िमनम क्यों नहीं वदयम। दवलि
दक्ु िी की लमश उठमने से र्नम कर देिे हैं वजससे िंवडि और घबरम जमिम है। अंि र्ें जब लमश सड़ने लगिी है
िब िंवडि दक्ु िी के िैर र्ें रतसी बमंध कर जमनिरों की िरह िींचिे हुए ले जमिम है। यह दृश्य इिनम िीित्स
और करुणम से िरम हुआ है वक दशाक कम र्न िीग जमिम है। एक ही सर्मज र्ें िैदम होने िमले व्यवक्त के इिनम
अंिर देिकर कै से हो जमिम है? समर्ंिी सोच और वनरंकुश विचमरधमरम के लोगों ने दवलिों और हमवशए के
सर्मज कम इिनम र्मनवसक और शमरीररक शोषण वकयम है वक उन्हें उबरने र्ें िषों लग जमएंगे। ‘सद् गवि’
िमरिीय सर्मज र्ें दवलि सर्मज की वतथवि को ईर्मनदमरी से व्यक्त करिम है। वतर्िम िमवटल ने इस वफल्र् र्ें
अिने जीिन कम सिाश्रेष्ठ अविनय वकयम है।
2.3.6 ‘पार’
वहन्दी वसनेर्म र्ें दवलि और हमवशए िर िड़े सर्मज को कें वद्रि कर वफल्र्ों कम वनर्माण होिम रहम
है। इन वफल्र्ों र्ें उनकी सर्तयमओ ं को िो उठमयम जमिम है लेवकन उनके अदं र के प्रविरोध को नहीं। उिेविि
सर्मज के वलए वफल्र् बनमनम बड़ी चनु ौिी है। क्योंवक जब िी वकसी विशेष िगा िर वफल्र् कम वनर्माण होिम है
िो उसकी िमषम-बोली, रहन-सहन, िररिेश आवद कम िी ध्यमन रिनम होिम है। वबनम उनकी समंतकृ विक
अविव्यवक्त के वफल्र् असफल र्मनी जमिी है। वहदं ी वसनेर्म र्ें दवलि विल्र्कमरों कम अिमि रहम है। यही
कमरण है वक वफल्र्ों र्ें अनुिवू ि की प्रमर्मवणकिम कम अिमि वदििम है। वफल्र् की कहमनी र्ें जर्ींदमर (उत्िल
दत्त) ग्रमर्ीण लोगों कम शोषण करिम है। अिने आदवर्यों से ग्रमर्ीणों कम शोषण करिमिम है। गमाँि र्ें रहने िमले
एक िले तकूलर्मतटर (अवनल चटजी) को िी र्मरिे हैं क्योंवक िह ग्रमर्ीणों के वलए िलम सोचिम है। वफल्र्
कम र्ख्ु य नमयक नौरंवगयम (नसीरुद्दीन शमह) र्जदरू है। िह जर्ीदमर द्िमरम होने िमले शोषण कम विरोध करिम
है और जर्ींदमर के िमई की हत्यम कर देिम है। कमननू की नज़र र्ें नौरंवगयम और उसकी ित्नी अिरमधी समवबि
हो जमिे हैं िो दोनों गमाँि छोड़कर िमग जमिे हैं। दवलि जीिन की त्रमसदी िर वजिनी वफल्र्ों कम वनर्माण हुआ है
उनर्ें 'िमर' यथमथा के सबसे करीब है। एक दवलि दिं वत्त जो जीविकम के समधन हेिु शहर र्ें आिम है लेवकन
दवलि होने के कमरण उन्हें कोई कमर् नहीं वर्लिम। उनके वलए िि ू और नींद सबसे बड़ी चीज है। िवि-ित्नी
वदन रमि रोटी, किड़म के वलए जद्दोजहद करिे हैं। र्कमन उनके वलए दरू की कौड़ी है। यह वफल्र् र्ूलिः गमाँिों
र्ें हमवशए िर फे क वदए गए सर्मज के समथ होने िमले शोषण को वदिमने कम प्रयमस करिम है। दोनों िमग-िमग
कर थक चक ु े हैं। अंििः घर लौटने कम फै सलम करिे हैं लेवकन िमिसी के वलए िैसम नहीं है। घर िक िहुचाँ ने के
वलए वकरमयम चमवहए। कमर् के अिमि र्ें इधर-उधर िटकिे नौरंवगयम को एक कमर् वर्लिम है वजसर्ें उसे कुछ
सअ ू रों को नदी ‘िमर’ करिमनम है। नौरंवगयम और उसकी ित्नी सअ ू रों को नहीं िमर करमिे हैं। वफल्र् के अिं र्ें
नौरंवगयम की ित्नी को गिाििी वदिमयम गयम है जो आने िमली िीढ़ी कम संकेि देिी है। िह उस बच्चे को नयम

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जीिन देनम चमहिी है। इसवलए गमाँि लौटनम चमहिी है। यह वफल्र् के िल नदी िमर करमने िक नहीं है बवल्क
जीिन की विसंगवियों से िमर होने के िमिनम से िरी है।
2.3.7 ‘भसू मका’
‘िवू र्कम’ वहदं ी वसनेर्म र्ें बनने िमली स्त्री प्रधमन वफल्र्ों र्ें र्ील कम ित्थर है। र्रमठी िृष्ठिवू र् िर
बनी ‘िवू र्कम’ वतर्िम िमवटल, अर्ोल िमलेकर और अनंि नमग द्िमरम अविनीि वफल्र् है। ‘हसं म िमडकर’ की
प्रवसद्ध कहमनी िर आधमररि यह वफल्र् एक र्रमठी िररिमर की लड़की ऊषम (वतर्िम िमवटल) की कहमनी है।
उषम जीिन के रंगर्ंच िर िरह-िरह के अविनय करिी है। उषम विख्यमि नृत्यमंगनम और अविनेत्री है।
िररवतथवि ऐसी बनिी है वक उसे अिने से कर् उम्र के व्यवक्त के शि (अर्ोल िमलेकर) से वििमह करनम िड़िम
है। उषम कलमकमर है। उसके तििमि ि रहन-सहन र्ें उन्र्क्त ु िम है लेवकन तििमि र्ें समदगी है। उसकी कर्मई
िर वनिार उसकम िवि उसिर शक करिम है। उषम उन्र्क्त ु विचमरों िमली लेवकन अिनी िमररिमररक वजभर्ेदमररयमाँ
उठमिे हुए थक चक ु ी है। िह अिनम जीिन बहुि समधमरण स्त्री की िरह वबिमनम चमहिी है। गृवहणी कम समदम
जीिन वबिमनम चमहिी है। घर र्ें रहकर आर् स्त्री कम सुि िमनम चमहिी है लेवकन उसकम िवि उसे कमर् नहीं
छोड़ने नहीं देिम। उषम प्रवसद्ध अविनेत्री है। र्ीवडयम उसकी हर बमि िर नज़र रििी है। वफल्र् अविनेिम रमजन
(अनंि नमग) के समथ ऊषम के प्रेर् की िबरों को र्समलम लगमकर िेश वकयम जमिम है वजससे के शि कम शक
और बढ़ जमिम है। के शि के घर िमले उषम कम शोषण िी करिे हैं। उषम के िल प्यमर चमहिी है जो उसे के शि
से नहीं वर्लिम। अिं िः िह अविनेत्री जीिन को त्यमगकर रईस व्यमिमरी विनमयक कमले (अर्रीश िरु ी) के
समथ रहने लगिी है। लेवकन यहमाँ िी िह िुश नहीं रह िमिी। िह िी उसे गल ु मर्ी नज़र आिी है। कुल
वर्लमकर देिें िो उषम िरह-िरह की िवू र्कम वनिमिे-वनिमिे अिनी िवू र्कम िल ू गई है यम यों कहें उसे उसकी
िवू र्कम से िंवचि कर वदयम जमिम है। एक स्त्री जीिन िर के िल िरुु ष कम प्रेर् और िररिमर-सर्मज की इज्ज़ि
चमहिी है जो उसे नहीं वर्लिम। यह जीिन की बवु नयमदी जरूरि है लेवकन उसके वलए िी उसे संघषा करनम
िड़िम है। स्त्री कम जीिन समर्मवजक वबसंगवियों से टकरमिे हुए बीििम है चमहे िह वकिनम िी िैचमररक ि
आवथाक रूि से संिन्न क्यों न हो। उषम हर िरह से संिन्न है वफर िी अिने िवि के प्यमर और सर्मज की इज़्ज़ि
के वलए उसे संघषा करनम िड़म।
2.3.8 ‘जुबैिा’
बहुचवचाि वफल्र् वनदेशक श्यमर् बेनेगल द्वमरम वनदेवशि िमवलद र्ोहभर्द द् िमरम वलविि कहमनी िर
के वन्द्रि वफल्र् ‘ज़बु ैदम’ स्त्री अवतर्िम और सभर्मन की कहमनी है। कररश्र्म किरू , रे िम, र्नोज िमजिेयी, सरु े िम
सीकरी, रजि किरू , वललेट दबु े, अर्रीश िरु ी, फरीदम ज़लमल और शवक्त किरू जैसे र्ंझे हुए कलमकमरों के
अविनय से सजी यह वफल्र् बहुि चवचाि हुई। ‘ज़बु ैदम’ ररयमज (रवजि किरू ) की कहमनी है वजसकम िमलन
िोषण उसकी दमदी ने वकयम है। ररयमज़ की र्माँ कम नमर् ज़बु ैदम (कररश्र्म किरू ) है। ज़बु ैदम सल ु ेर्मन सेठ
(अर्रीश िरु ी) की एकलौिी बेटी है। सल ु ेर्मन सेठ वफल्र् वनर्मािम है लेवकन उसे िसंद नहीं वक उसकी बेटी

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वफल्र्ों र्ें कमर् करे इसवलए ज़ुबैदम उससे छुिम कर कुछ वफल्र्ों र्ें कमर् करिी है। जब ज़बु ैदम के वििम को यह
ििम चलिम है िो िह उसकी शमदी र्ेहबबू आलर् (विनोद शमरिि) से कर देिे हैं, वजससे िह ररयमज को जन्र्
देिी है। र्ेहबबू आलर् ररयमज़ के जन्र् के कुछ वदन बमद ही जबु ेदम को िलमक दे देिम है। ज़बु ैदम फिेहिरु के
र्हमरमजम विजयेंद्र वसंह (र्नोज िमजिेयी) से वर्लिी है। विजयेंद्र र्हमरमनी र्ंवदरम देिी (रे िम) कम िवि है और
उसके दो बच्चे िी हैं। विजयेन्द्र वसंह जुबैदम से प्यमर करिम है और शमदी कर लेिम है। लेवकन उनकम िैिमवहक
ठीक से नहीं चलिम है। ररयमज को जबु ैदम की डमयरी से ििम चलिम है वक िह विजयेंद्र से बहुि प्यमर करिी
थी, लेवकन र्हल के कठोर रीवि-ररिमजों के कमरण किी तिीकमर नहीं सकी न कह सकी। ‘ज़बु ैदम’ र्ूलि: स्त्री
तििन्त्रिम की िोज है वजसर्ें एक स्त्री अिने अवतित्ि के वलए लड़िी है। अिने प्रेर् और िररिमर के बीच
उलझी हुई है। उसकम बेटम िी अिनी र्माँ को सर्झ नहीं िमिम। वजससे ज़बु ैदम प्रेर् करिी है िह वकसी और कम
िवि बन चक ु म है और वजसकम उसकम वििमह हुआ है िह उसे चमहिी नहीं। विजयेंद्र वसहं कम िमई िी ‘ज़बु ैदम’
िर बरु ी नज़र रििम है। िह ‘ज़बु ैदम’ को रिैल कहिम है। इस िरह से देिें िो ‘ज़बु ैदम’ स्त्री की अवतर्िम और
िहचमन कम सिमल िी उठमिी है।
2.3.9 ‘अमर अकबर अ‍ॅन्थनी’
विख्यमि वनदेशक र्नर्ोहन देसमई द्वमरम वनदेवशि-वनवर्ाि वफल्र् अर्र अकबर अ‍ॅन्थनी अिने सर्य
की बहुि चवचाि वफल्र् है। बचिन र्ें वबछड़े िमइयों की कहमनी िर आधमररि यह वफल्र् वहन्द,ू र्वु तलर् और
ईसमई धर्ा की एकिम से प्रेररि है। इन िीनों धर्ों को वफल्र् र्ें िमइयों के र्मध्यर् से एकिम के रूि से वदिमने
कम अथा वफल्र् के व्यमिमर से िी जड़ु म हुआ है। ऐसम इसवलए वकयम गयम वजससे सिी धर्ों के लोग इस वफल्र्
को देिें और वफल्र् िैसम कर्म सके । अवर्िमि बच्चन, विनोद िन्नम, और ऋवष किरू द्वमरम अविनीि इस
वफल्र् र्ें शबमनम आज़र्ी, िरिीन बॉबी और नीिू वसंह नमवयकम के रूि र्ें बहुि चवचाि हुई।ं
वफल्र् की कहमनी बचिन र्ें वबछड़े िीन िमइयों की है। इन िीनों िमइयों को िीन िररिमर वहदं ,ू
र्वु तलर् और ईसमई िमलिे-िोसिे हैं। इन िीनों र्ें एक िवु लस, एक गमयक और एक बमर कम र्मवलक होिम है।
अर्र अकबर अन्‍ॅ थनी र्ूलि: र्समलम वफल्र् है। वफल्र् कहमनी वकशनलमल (प्रमण) से शरू ु होिी है। जो िषों
बमद जेल से बमहर आिम है। वकशनलमल रोबटा (जीिन) के यहमाँ ड्रमइिर थम। रोबटा की गमड़ी से दघु ाटनम हो
जमिी है वजसकम इल्ज़मर् वकशनलमल अिने सर िर ले लेिम है। रॉबटा उसे विश्िमस वदलमिम है वक उसके
िररिमर की िरू ी वज़भर्ेदमरी िह उठमएगम लेवकन जब वकशनलमल जेल से बमहर आिम है िो उसे ििम चलिम है
वक उसकी ित्नी, िमरिी (वनरूिम रॉय) और उसके िीन बच्चों कम बरु म हमल है। वकशनलमल रोबटा से र्दद
र्माँगने जमिम है िर िहमाँ उसे बेइज्जि करके वनकमल वदयम जमिम है। अिनी जमन बचमने के वलए वकशन िहमाँ से
कमर लेकर िमग जमिम है वजसर्ें सोनम िरम हुआ है। कुछ घटनमओ ं के बमद वकशनलमल के िीनों बच्चे अलग
हो जमिे हैं। ित्नी िो जम जमिी है। कई नमटकीय घटनमओ ं को जोड़िी हुई यह वफल्र् अिं र्ें रमबटा के गनु महों
की उसको सज़म वदलिमिी है। सत्तर के दशक र्ें वहदं ी वसनेर्म र्ें इसी िरह की कहमवनयों िर बनी वफल्र्ों कम

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िचाति थम। आज िी यह वफल्र् अिनी लोकवप्रयिम के वलए देिी जमिी है। इस वफल्र् र्ें वनदेशक ने समाँ झी
समंतकृ विक विरमसि की लोकवप्रय छवि प्रतििु की है। ड्रमर्म, एक्शन, हमतय, करुणम और प्रेर् सिी को
वर्लमकर यह वफल्र् िमरिीय जनर्मनस को प्रिमविि करिी है।
2.3.10 ‘गुलाब गैंग’
इक्कीसिीं सदी र्ें कई र्वहलम प्रधमन वफल्र्ों कम वनर्माण हुआ वजसर्ें ‘गुलमब गैंग’ र्हत्त्ििणू ा है।
'गल ु मब गैंग' र्वहलमओ ं के समथ होने िमली र्मनवसक, शमरीररक, रमजनैविक असर्मनिम और शोषण के
विलमफ एक र्वु हर् है। ‘गुलमब गैंग’ कुछ िमंविकमरी र्वहलमओ ं कम एक ऐसम ग्रिु है वजसकी र्वु ियम ‘संिि
िमल’ है। िमतिविक घटनम से प्रेररि ‘गल ु मब गैंग’ की नमवयकम रज्जो औरिों के समथ होने िमले अत्यमचमरों के
विलमफ िड़ी होिी है। अिने समथ हुए अत्यमचमर के विलमफ िड़ी होने िमली रज्जो ने अिनी एक अलग
दवु नयम बनम ली है, वजसकम नमर् है ‘गल ु मग गैंग’। इसर्ें सर्मज की सिमयी लेवकन विद्रोही र्वहलमएाँ शमवर्ल
होिी हैं और जैसे ही िह ‘गुलमग गैंग’ र्ें प्रिेश करिी हैं उन्हें गल ु मबी रंग की समड़ी िहननम िड़िम है। रज्जो
एक छोटे से गमाँि ‘र्मधििरु ’ र्ें रहिी है वजसके समथ ऐसी र्वहलमएाँ हैं जो अिने िररिमर यम सर्मज द्वमरम
सिमयी गई हैं। यह सिी र्वहलमएाँ अिने अवधकमर और अवतर्िम के प्रवि सचेि हैं। िवियों द्वमरम प्रिमवड़ि की
जमने िमली र्वहलमएाँ ‘गल ु मग गैंग’ से वर्लकर उन्हें सजम देिी हैं। उस इलमके के आस-िमस के िरुु ष िी गुलमब
गैंग से िय िमिे हैं। सौवर्क सेन ने बड़ी सर्झदमरी से इस वफल्र् कम वनदेशन वकयम है। र्मधुरी दीविि िहली
बमर एक्शन करिी नज़र आयी हैं। यह वफल्र् र्ल ू ि: स्त्री-र्वु क्त कम नयम िमठ है, जहमाँ वस्त्रयमाँ अिने समथ होने
िमले अत्यमचमर के विलमफ िुद िड़ी होिी है, वकसी िरुु ष कम र्ाँहु नहीं देििी हैं। रज्जो एक दबंग र्वहलम है।
बवल्क यह कहें वक िररवतथवियों ने उसे दबंग बनम वदयम है। उसकी बढ़िी िमकि देिकर रमजनीवि र्ें िी
उसकी दिल बढ़िी है। वफल्र् र्ें ‘गुलमग गैंग’ र्वहलम अवधकमरों के वलए लड़ने िमलम एक संगठन है वजसकी
बमगडोर िी र्वहलमओ ं के ही हमथ र्ें है। जहू ी चमिलम ने िहली बमर इस वफल्र् र्ें िलनमवयकम की िवू र्कम
अदम की है। वफल्र् की कहमनी के कई र्ोड़ हैं लेवकन सिी र्ोड़ स्त्री-र्वु क्त के चौरमहे िर एक हो जमिे हैं।
र्मधरु ी दीविि और जहु ी चमिलम ने अच्छम कमर् वकयम है।
2.3.11 ‘पीकू’
इक्कीसिीं सदी र्ें वसनेर्म की बदलिी िवू र्कम िर बमि हो िो उसर्ें ‘िीकू’ कम नमर् सबसे िहले
वलयम जम सकिम है। इस दौर की वफल्र्ों की सबसे बड़ी विशेषिम यह है वक इनकम विषय जीिन के बहुि
करीब है। ‘िीकू’ एक ऐसे लड़की की कहमनी है जो अिने वििम के समथ रहिी है। बगं मल की िीकू बनजी
(दीविकम िमदक ु ोण) अिने सत्तर िषीय वििम िमतकर (अवर्िमि बच्चन) के समथ वदल्ली र्ें रहिी है। िमतकर
आर् िमरिीय बीर्मरी से िीवड़ि है। उसे बहुि िरु मनी कब्ज की सर्तयम है। िेट समफ न होने और अिच के
कमरण उसकम तििमि िी अजीब सम हो गयम है वजसके कमरण नौकरों के समथ अनबन रहिी है। डॉक्टर द्िमरम
उन्हें तितथ बिमयम जमिम है लेवकन उनके अंदर िरी हुई गैस उन्हें वचड़वचड़म बनम देिी है। अिनी इस बीर्मरी से

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उबरने के वलए िह हर िरह कम इलमज़ करिे हैं। कोई िी इससे जड़ु म हुआ इलमज़ िमतकर को बिमिम है िह
उसे करने को िैयमर हो जमिे हैं क्योंवक इससे उबरनम चमहिे हैं। वफल्र् र्ें एक आर् बीर्मरी से उिजने िमली
िर्मर् सर्तयम को बहुि गहरमई से वदिमयम गयम है। अिं र्ें एक वदन सोिे हुए ही िमतकर की र्ृत्यु हो जमिी है।
िीकू अिने वििम से बेहद प्यमर करिी है क्योंवक उसकी र्मं की र्ृत्यु बहुि िहले हो चक ु ी है। िीकू िढ़ी-वलिी
सर्झदमर और वििम को चमहने िमली बवल्क उनकी सिी निरों को बदमाति करने िमली लड़की है। अिने वििम
की देििमल करनम और उन्हें िश ु रिनम उसकी िहली प्रमथवर्किम है। वफल्र् र्ें इरिमन खमन ट्रैिल एजेंसी
कम र्मवलक है और िीकू के करीबी दोति है। इस वफल्र् की िबू सरू िी यह है वक यह िमरिीय रूढ़ िरंिरम को
िी िोड़िी है। अक्सर वफल्र्ें वििम-ित्रु के ररश्िों िर बनिी हैं लेवकन इसर्ें वििम और ित्रु ी हैं। ित्रु ी िी ऐसी जो
नौकरी करिी और अिने वििम की िरू ी वज़भर्ेदमरी िी उठमिी है। शजु ीि सरकमर की विशेषिम यही है वक िह
नए विषयों िर वफल्र् बनमिे हैं। विकी डोनर, र्द्रमस जैसी उनकी वफल्र्ें वहदं ी वसनेर्म के लीक को िोड़िी हैं।
कई घटनमओ ं से गजु रिी हुई वफल्र् यह बिमने कम प्रयमस करिी है वक बेवटयमाँ िी बेटे जैसे ही वििम की
देििमल कर सकिी है। वफल्र् र्ें िीकू अिने वििम की देििमल और अिने जीविकम के कमर् र्ें इिनम व्यति
है वक उसे अिने वलए िक्त नहीं वर्लिम। िह अिनी व्यवक्तगि जीिन को िल ू जमिी है क्योंवक उसके वििम की
िवु शयमाँ उसके वलए र्हत्त्ििूणा हैं। वििम कम तििमि िी समर्मन्य नहीं है। उनकी आदिें िीकू को बहुि िरे शमन
करिी हैं लेवकन िह सब बदमाति करिी है क्योंवक िह उनसे बहुि प्रेर् करिी है। िमतकर कम तििमि कई बमर
चवकि करिम है। एक बढ़ू े वििम र्ें जो असरु िम की िमिनम होिी है वक उनकम ियमल कौन रिेगम? िह इस
वफल्र् र्ें िी वदििम है। िमतकर को जैसे ही ििम चलिम है वक िीकू से कोई लड़कम प्रेर् करिम िो िह अिनी
बेटी के समर्ने कहिम है- ‘िीकू िवजान नहीं है।’ वहदं ी वसनेर्म र्ें वििम और ित्रु ी के बीच इिनम िल ु म संिमद
नहीं वर्लिम है। िमतकर कम र्मननम है वक लड़की की वबनम उद् देश्य शमदी नहीं करनी चमवहए। वसफा िवि की
सेिम और सेक्स करनम ही िो शमदी की जरूरि नहीं है। इससे अच्छम है वक िवि के बजमय बेटी र्मिम-वििम की
सेिम करे । आज के सर्य के वहसमब से देिें िो यह वफल्र् अिने िररिमरों से दरू होिे यिु मओ ं के वलए एक
सीि है। अिने आि की िुवशयों र्ें उलझे युिमओ ं के वलए अब बढ़ू े र्मिम-वििम के वलए सर्य नहीं है। िह
उन्हें िैसे देकर यम उनके वलए अच्छी व्यितथम करिम कर ही तियं को वज़भर्ेदमरी से र्क्त ु सर्झिे हैं। संिेदनमएाँ
ित्र् हो चक ु ी हैं। यह वफल्र् उन्हीं संिेदनमओ ं को बचमए रिने की सीि देिी है। िीकू की लेविकम जहू ी
चििु ेदी ने बहुि र्जबिू िटकथम वलिी है। इस वफल्र् र्ें वििम और बेटी के बीच के ररश्िे को नई िररिमषम दी
गई है। स्त्री तििन्त्रिम और तिमविर्मन की झलक ‘िीकू’ र्ें बहुि ही ईर्मनदमरी से वदिमयम गयम है। वफल्र् र्ें
बंगमली िररिमर की जो िृष्ठिवू र् िैयमर की गई है उसर्ें िी िमतिविकिम देिने को वर्लिी है। वफल्र् कहीं से
िी कर्जोर नहीं है। अवर्िमि बच्चन, इरफमन िमन और दीविकम िमदक ु ोण ने तिमिमविक लेवकन यमदगमर
अविनय वकयम है।

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2.3.12 ‘मिुमिी’
‘र्धर्ु िी’ वहदं ी वसनेर्म के क्लमवसकल वफल्र्ों श्रेणी र्ें आिी है वजसे वफल्र् उद्योग र्ें उिलवब्ध की
िरह यमद वकयम जमिम है। सिं िि: इस वफल्र् र्ें िहली बमर ऐसम हुआ जब िैजयन्िी र्मलम ने िीन िवू र्कमओ ं
र्ें अविनय वकयम। वबर्ल रॉय द्िमरम वनदेवशि र्धुर्िी ने सफलिम के कई प्रविर्मन तथमविि वकए।
र्धर्ु िी की कहमनी ििू ाजन्र् िर आधमररि है। वहदं ी वसनेर्म र्ें वबछड़ने-वर्लने और ििू ाजन्र् िर
आधमररि कई वफल्र्ों कम वनर्माण हुआ है, लेवकन ‘कुदरि’, ‘बीस समल बमद’, और ‘ओर् शमंवि ओर्’ जैसी
सफल वफल्र्ें र्धर्ु िी की ही ररर्ेक हैं। वबर्ल रमय िमरिीय वसनेर्म के ऐसे विल्र्कमर हैं वजनकी वफल्र्ें आर्
जन-जीिन की िमिनमओ ं को बहुि गहरमई से व्यक्त करिी हैं। वफल्र् की कहमनी देिेंद्र (वदलीि कुर्मर) से शुरू
होिी है—अिने डॉक्टर दोति (िरुण बोस) के समथ ियमनक बमररश और िफ ू मनी रमि र्ें अिनी ित्नी और
बच्चे को लेने िहमवड़यों के रमतिे होिे हुए रे लिे तटेशन जम रहम है। जर्ीन विसक जमने से रमतिम बंद हो जमिम
है। िह अिने दोति और ड्रमइिर के समथ रमतिे र्ें एक हिेली र्ें ठहरिम है। जहमाँ उस देिेन्द्र को हिेली जमनी
िहचमनी लगिी है। यहमाँ उसे अिने ििू ाजन्र् की बमिे यमद आने लगिी हैं। िूिाजन्र् र्ें उसकम नमर् आनंद थम।
जो श्यमर्नगर वटभबर ऍतटेट र्ें र्ैनेजर के िद िर कमया करिम है और िेड़ कटमई के वसलवसले र्ें जंगलों र्ें
जमिम है जहमाँ उसकी र्क ु मलि र्धर्ु िी (िैजयन्िी र्मलम) से होिी है। दोनों एक दसू रे से प्रेर् करने लगिे हैं।
आनंद वचत्रकमर िी है। िह र्धर्ु िी कम वचत्र बनमिम है। वफल्र् र्ें िलनमयक की िवू र्कम दमदम समहब फमल्के
से िरु तकृ ि तिगीय विख्यमि अविनेिम (प्रमण) ने रमजम उग्रनमरमयण नर्क व्यमिमरी के रूि र्ें की है। उग्रनमरमयण
र्धर्ु िी को वकसी िी शिा िर अिनम बनमनम चमहिम है। उसे जब आनंद और र्धर्ु िी के प्रेर् कम ििम चलिम
है िो िह आनंद को वकसी कमर् से बमहर िेज देिम है और र्धर्ु िी को धोिे से हिेली बुलम लेिम है। इधर
िमिसी र्ें जब आनंद र्धर्ु िी को नहीं िमिम है िो िरे शमन हो जमिम है। जंगल र्ें ही आनंद कम नौकर चरनदमस
(जॉनी िॉकर) उग्रनमरमयण की सच्चमई उसे बिमिम है। आनंद जब िहमाँ िहुचाँ िम है िो उसे उग्रनमरमयण कम
नौकर बीर वसंह उसे बरु ी िरह िीटिम हैं। उसकम रमतिम र्धर्ु िी कम वििम ििन रमजम (जयन्ि) रोकिम है और
दोनों लड़िे हैं वजसर्ें बीर वसंह और ििन रमजम दोनों की र्ृत्यु हो जमिी है। आनंद कम नौकर चरनदमस आनन्द
को िहमाँ से लेकर िमग जमिम है। उग्रनमरमयण र्धर्ु िी की िी हत्यम कर देिम है। इधर आनंद र्धर्ु िी के प्रेर् र्ें
िमगल सम उसकम वचत्र लेकर जंगलों र्ें उसे ढूाँढिम है। इसी बीच उसकी र्ुलमक़मि र्धुर्िी की हर्शक्ल
र्मधिी से होिी है। आनंद उसे ही र्धर्ु िी सर्झकर उसकम िीछम करिम है जहमाँ र्मधिी के समथी आनंद को
िीटिे हैं। िह र्मधिी के िीछे -िीछे जमिम है। इसी बीच र्मधिी को आनदं द्वमरम बनमयम हुआ र्धर्ु िी कम वचत्र
वर्ल जमिम है वजससे िह समरम र्मजरम सर्झ जमिी है। िह सर्झ जमिी है वक आनन्द अिनी जगह सही है।
जब आनदं को िी र्मधिी की सच्चमई कम ििम चलिम है िो िह उग्रनमरमयण से सच उगलिमने कम नमटक
रचिम है। िह र्मधिी को र्धर्ु िी के ड्रेस र्ें िैयमर कर उग्रनमरमयण के िमस आने को कहिम है। घटनमिर् र्ें
र्मधिी सर्य से नहीं िहुचाँ िमिी लेवकन र्धर्ु िी की आत्र्म िहुचाँ कर उग्रनमरमयण से अिनी हत्यम कम सच
उगलिम लेिी है क्योंवक उसे ििम होिम है वक िह उसकी लमश कहमाँ छुिमकर रिम है। इधर आनदं सर्झिम है
वक यह सब र्मधिी कर रही है लेवकन रमज़ िल ु िे ही िह सर्झ जमिम है वक यह सब र्धर्ु मलिी की रूह कर

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रह रही है। उग्रनमरमयण िवु लस के समर्ने सच कुबल ू कर लेिम है। ििू ाजन्र् की कहमनी यही ित्र् होिी है। देिेंद्र
को एहसमस हो जमिम है वक उसकी ििार्मन ित्नी िी र्धर्ु िी ही है। अचमनक कमर कम ड्रमइिर बिमिम है वक
वजस ट्रेन र्ें रमधम आ रही थी, िह दघु ाटनमग्रति हो गई है। जब सब िहमाँ िहुचाँ िे हैं िो रमधम (िैजयन्िी र्मलम)
और उसकम बच्चम सरु विि हैं। देिेन्द्र रमधम से कहिम है- ‘उनकम समथ इसी जन्र् कम नहीं बवल्क कई जन्र्ों कम
है।’ र्धर्ु िी र्लू ि: प्रेर् कहमनी है वजसर्ें ििू ाजन्र् को आधमर बनमकर दो जन्र्ों के प्रेवर्यों के प्रवि जन्र्-
जन्र्मंिर कम ररश्िम वदिमयम गयम है।
2.3.13 ‘माइ नेम इज खान’
‘र्मइ नेर् इज़ खमन’ शमहरुि िमन के तटमरडर् से अलग अविनय की उिलवब्ध है। करन जौहर द्
िमरम वनदेवशि इस वफल्र् से शमहरुि िमन ने र्वु तलर् सरु िम को लेकर कई सिमल िी िड़े वकए। वफल्र् र्ें
र्वु तलर् लड़कम ररजिमन िमन (शमहरुि िमन) अिने िमई ज़मवकर (वजभर्ी शेरवगल) और अिनी र्माँ रवज़यम
िमन (ज़रीनम िहमबी) के समथ र्ंबु ई र्ें रहिम है। र्ध्यिगी िररिमर कम ररजिमन बचिन से ही अन्य बच्चों से
जरम अलग है। र्शीनों को ठीक करने कम प्रकृ विक गणु उसके अंदर है। िह समर्मन्य से थोड़म हटकर है
इसवलए र्माँ को उसकम ज्यमदम ध्यमन रिनम िड़िम है। र्माँ कम ज्यमदम प्यमर ररजिमन र्ें देिकर ज़मवकर को जलन
होिी और िह अर्ेररकम रहने चलम जमिम है। र्माँ की र्ृत्यु के बमद ज़मवकर ररजिमन को सेन फ्मवं सतको अिने
िमस बल ु म लेिम है। ज़मवकर की ित्नी हसीनम (सोवनयम जेहन) को एक जमाँच से ििम चलिम है वक ररजिमन को
Asperger syndrome बीर्मरी। ररजिमन सीधम-समधम है। अिनी जीविकम के वलए अिने िमई के वलए कमर्
करिम है। ररजिमन वहदं ू र्वहलम र्वं दरम (कमजोल) से वर्लिम है। वजसकम एक बेटम िी है। दोनों र्ें प्रेर् हो जमिम
है और शमदी कर लेिे हैं। 11 वसिभबर को न्ययू मका र्ें बड़म हर्लम होिम है। यह िही दौर थम जब िरू े िमरि र्ें
र्सु लर्मनों की छवि आिक ं िमदी के रूि र्ें की जमने लगी थी। 11 वसिबं र के हर्ले के बमद न्ययू मका र्वु तलर्
विरोधी हो जमिम है। र्वं दरम के बेटे को र्सु लर्मन और आिंकिमदी कम बेटम कहकर उसे िरे शमन वकयम जमिम
है। एक घटनम र्ें र्वं दरम कम बेटम र्मरम जमिम है। र्वं दरम इस घटनम से आहि है। िह ररजिमन से िदु को अलग
करनम चमहिी है, जो ररजिमन नहीं चमहिम। र्वं दरम कहिी है वक अगर ररजिमन अर्ेररकम के लोगों और
रमष्ट्रिवि को बिम दे वक िह आिंकिमदी नहीं है, ििी उसके समथ रहेगी। र्ंवदरम की बमि र्मनकर ररजिमन
रमष्ट्रिवि से वर्लने विल्हमवर्नम, जॉवजायम िहुचाँ जमिम है। बहुि समरी नमटकीय घटनमओ ं से वफल्र् आगे बढ़िी
है। र्सु लर्मन होने को लेकर अिने समथ होने िमले िेद-िमि से दि ु ी ररजिमन िहमाँ की िीड़ र्ें िड़म होकर
लगमिमर ज़ोर-ज़ोर से कहिम है वक-My Name is khan but I am not a tourist (‘र्ेरम नमर् िमन है और
र्ैं आिंकिमदी नहीं ह।ाँ ) उिवतथि सरु िमकर्ी उसे िकड़ लेिे हैं। उन्हें लगिम है वक उसने कहम वक िह एक
आिंकिमदी है। जेल र्ें ररजिमन से आिंकिमदी की िरह िछू िमछ की जमिी है। बरु म व्यिहमर वकयम जमिम है।
िहमाँ उसे र्नोवचवकत्सक रमधम (शीिल र्ेनन) वर्लिी है। रमधम सर्झ जमिी है वक िह वनदोष है। ररजिमन की
सच्चमई जब र्ीवडयम को ििम चलिी है िो ररजिमन के िि र्ें एक अवियमन चलमयम जमिम है वजससे िह छूट
जमिम है। जेल से छूटने के बमद बमद िह अिने र्मर्म जेनी की र्दद करने के वलए चलम जमिम है। र्ीवडयम और
िहमाँ की जनिम के सहयोग से ररजिमन अिरमधी को िकड़िमिम है और र्ंवदरम को उसकी गलिी कम एहसमस

132
करिमिम है वक कोई जमवि से आिंकिमदी नहीं होिम है। र्ंवदरम को िी इसकम एहसमस हो जमिम है। अंि र्ें
ररजिमन अर्ेररकम के ित्कमलीन रमष्ट्रिवि ओबमर्म से वर्लिम है जो िदु िमन हैं। ओबमर्म कहिे हैं- िह िमन
हैं लेवकन आिंकिमदी नहीं है। इस वफल्र् की कहमनी र्ें नयम ट्रीटर्ेंट है।
प्रश्नों की जाँच स्वयां करें–
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों कम उत्तर एक-दो िंवक्तयों र्ें दीवजए-
(1) वसनेर्म कम उद्देश्य र्नोरंजन होनम चमवहए यम समर्मवजक यथमथा की अविव्यवक्त?
(2) वफल्र्ें जीिन कम र्हत्त्ििूणा वहतसम कै से हैं?
प्रश्न (ि) वनभनवलविि कथनों िर सही गलि के वनशमन लगमइए-
(4) ‘र्धर्ु िी’ की कहमनी ििू ाजन्र् िर आधमररि है। (सही/गलि)
(5) वफल्र् र्मइ नेर् इज िमन के वनदेशक शमहरुि िमन हैं (सही/गलि)
(6) ‘सद्गवि’ दवलि जीिन िर आधमररि वफल्र् है। (सही/गलि)
प्रश्न (ग) सही शब्द के चनु मि द्िमरम ररक्त तथमनों की िवू िा कीवजए-
(4) ‘िीकू’ एक ऐसे लड़की की कहमनी है जो अिने ..............के समथ रहिी है। (दमदम,
िमई, वििम)
(5) ‘िवू र्कम’ .......... वसनेर्म र्ें बनने िमली स्त्री प्रधमन वफल्र्ों र्ें र्ील कम ित्थर है। (वहदं ी,
बगं लम, र्रमठी)
(6) ‘कमबल ु ीिमलम’.............िठमन और बगं मली लड़की वर्नी की अिं का थम
है।(िमवकतिमनी, वहदं तु िमनी, अफगमनी)
2.4 अभ्याि के सलए प्रश्न
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों के उत्तर दीवजए–
(1) िीकू वफल्र् की कहमनी क्यम है?
(2) ििू ा जन्र् आधमररि वहदं ी वफल्र्ों की चचमा करिे हुए र्धर्ु वि की व्यमख्यम कीवजए ?
(3) शोले की लोकवप्रयिम कम कमरण क्यम है?
(4) दवलि जीिन िर आधमररि वफल्र्ों के बमरे र्ें वलविए।
(5) स्त्री प्रदमन दो वफल्र्ों कम वितिमर से िररचय दीवजए।
प्रश्न (ि) वनभनवलविि शब्दों के अथा बिमइए-
यथमथा, जीिंि, दतिमिेज़, प्रविर्मन, व्यमिमररक
प्रश्न (ग) वनभनवलविि िमक्यों कम िदिर् ठीक कीवजए
(5) गमाँि ‘र्दर इवण्डयम’ र्ें रहने िमली ऐसी औरि ‘रमधम’ की कहमनी है
(6) वहदं ी वसनेर्म की िहली शोले ऐसी वफल्र् है वजसकी प्रविर्मन लोकवप्रयिम ने समरे िोड़ डमले
(7) दक्ु िी िमरिीय बधं म हुआ िरंिरम के वनयर्ों से है।

133
(8) वफल्र् ‘ज़बु ैदम’ सभर्मन स्त्री अवतर्िम और की कहमनी है।
(9) ड्रमर्म, एक्शन, हमतय, करुणम और वर्लमकर प्रेर् सिी को यह वफल्र् िमरिीय को प्रिमविि
जनर्मनस करिी है।

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3. सिनेमा अध्ययन की सिशाएँ : भाग-3
(सिनेमा के दृश्य, िकनीक, कहानी, स्पेशल इिे क्ट, आइटम, गीि, िगां ीि आसि की िमीक्षा)
डॉ. महेंद्र प्रजापसि
हसं रमज कॉलेज, वदल्ली

3.1 प्रस्िावना
िमरिीय कलमओ ं र्ें वसनेर्म सबसे लोकवप्रय कलम है। सर्मज कम प्रत्येक िगा वसनेर्म से जड़ु म हुआ है।
िदे िर िर जो सच हर्ें वदिमयम जमिम है िह िरू म सच नहीं होिम। चंवू क वसनेर्म कई कलमओ ं कम सर्न्िय है
इसवलए उसको प्रिमिी बनमने के वलए कई िरह के प्रयोग िी वकए जमिे हैं। वफल्र् र्ें दृश्य, कहमनी, िकनीकी,
तिेशल इिे क्ट्स, गीि-संगीि आवद कम र्हत्त्ििूणा तथमन होिम है। वफल्र्ें इनके वबनम बन ही नहीं सकिी हैं।
वफल्र् के वनर्माण र्ें जहमाँ बेहिर कहमनी और िकनीकी की आिश्यकिम होिी है िहीं अच्छे लेिक और
अविनेिम की िी आिश्यकिम होिी है। यह सब वर्लकर अच्छे वसनेर्म कम वनर्माण करिे हैं।

3.2 असिगम का उि्िेश्य


इस िमठ को िढ़कर आि वनभनवलविि कमया कर सकने र्ें सिर् हो जमएगं े:
(1) वहदं ी वसनेर्म के िकनीकी िि को जमन िमएगं े।
(2) वसनेर्म र्ें तिेशल इिे क्ट्स को सर्झ िमएंगे।
(3) वफल्र् र्ें दृश्य और कहमनी की प्रवियम को सर्झेंगे।
(4) वहदं ी वसनेर्म के आरंविक विषयों को सर्झ सकें गे।
(5) वफल्र्ों के व्यमिसमवयक िि को जमनने र्ें र्दद वर्लेगी।
(6) वफल्र् की कहमनी के बदलिे इविहमस को सर्झ िमएंगे।
(7) वहदं ी वसनेर्म के कुछ नए विषयों िर बनी वफल्र्ों की जमनकमरी वर्लेगी।

3.3 सिनेमा के दृश्य


िटकथम वफल्र् कम र्हत्त्ििणू ा वहतसम है। कहमनी को दृश्यों र्ें वििमवजि करनम ही िटकथम कहलमिम
है। दृश्यों द्िमरम ही वफल्र् की कहमनी कम वितिमर होिम है। िटकथम लेिक को वफल्र् की बमरीवकयों कम ज्ञमन
होनम चमवहए। वनदेशक सबसे िहले एक अच्छी कहमनी कम चनु मि करिम है वफर उसकी िटकथम वलिी जमिी
है। वसनेर्म के दृश्यों को वलिने के वलए उसकी िकनीकी को सर्झनम बहुि जरूरी है। जो इसकी िकनीकी को
नहीं जमनिे हैं िह अच्छे दृश्य िी नहीं वलि सकिे हैं। कई बमर बहुि िरमब कहमनी की िटकथम इिनी अच्छी
हो जमिी है वक वफल्र् सफल हो जमिी है। र्न्नू िंडमरी वहदं ी की विख्यमि समवहत्यकमर हैं। उनकी ितु िक कथा-

135
पटकथा बहुि चवचाि है। िह वलििी हैं- “इस विधम के सैद् धमंविक िि की ए.बी.सी.डी. जमने वबनम ही र्ैंने
अिनम यह कमर् वकयम (किी जरूरि हुई िो आगे िी इसी िरह करूंगी) और इसवलए हो सकिम है वक र्ेरी ये
िटकथमएाँ इसके िकनीकी और सैद्धमवं िक िि िर िरी ही न उिरें । वफर र्ैंने किी यह सोचम िी नहीं थम वक
र्झु े इन िटकथमओ ं को प्रकमवशि िी करनम होगम। र्ैंने िो इन्हें वसफा बमसदु म के वलए वलिम थम और उनकी
जरूरि (वजसे र्ैं जमनिी थी) के वहसमब से वलिम थम, सैद् धमंविक िि के अनरू ु ि नहीं... (वजसे र्ैं जमनिी ही
नहीं थी)।"4
3.3.1 कहानी को दृश्य में प्रस्िुि करने की कुछ शिें हैं–
सनरांिरिा
कहमनी को दृश्यों र्ें बमंधने की िहली शिा यही है वक उसर्ें वनरंिरिम होनी चमवहए। कई बमर कहमनी
ििू ादीवप्त योजनम के अनसु मर वलिी जमिी है िो दृश्यों र्ें िर्बद्धिम नहीं आ िमिी है। िटकथम लेिक कहमनी
के अनसु मर दृश्यों को बमाँट लेिम है। एक समथ वफल्र् र्ें कई कहमवनयमाँ चलिी है िो लेिक उन कहमवनयों को
कई िमगों र्ें बमटं कर उनके दृश्य िैयमर करिम है।
िकनीकी पक्ष
दृश्य वलििे सर्य यह ध्यमन रिनम चमवहए वक िह Visual हो। दसू रम यह ध्यमन रिनम चमवहए वक
उसर्ें ध्िवन Audio ध्िवन होनी चमवहए। वबनम ध्िवन के कोई दृश्य िैयमर नहीं हो सकिम है।
रचनात्‍मकिा
यह दृश्य लेिन की सबसे बवु नयमदी चीज है। कहमनी कहने िमलम कहमनी र्ें अिनी बमि कह चक ु म
होिम है। अब उसे दृश्यों र्ें बमाँधने िमले के वलए यह चनु ौिी है वक िह सर्मज िक उसे कै से ले जमए क्योंवक
कहमनी कम दृश्यमकं न ही बेहिर वफल्र् कम वनर्माण कर सकिम है।
िमय िीमा
दृश्य लेिन की सबसे र्हत्त्ििणू ा वज़भर्ेदमरी है- सर्य सीर्म। अगर लेिक सर्य सीर्म कम प्रबंधन
नहीं जमनिम है िो िरू ी वफल्र् को िरमब कर सकिम है। दृश्य लेिक को यह सर्झनम बहुि जरूरी है वक दृश्यों
की अिनी सर्य सीर्म होिी है। दृश्यों कम फमलिू लंबम होनम वफल्र् को िरमब कर सकिम है।
िामसयकिा
दृश्यों को वलिने के वलए बहुि आिश्यक है वक उसर्ें समर्वयकिम होनी चमवहए। िरु मनी कहमनी यम
बमर-बमर दहु रमई गई कहमनी को कोई नहीं देिनम चमहेगम। कहमनी वकिनी िी िरु मनी हो िटकथम लेिक उसे
इस िरह से विकवसि करे वक िह अिने सर्य से जड़ु म हुआ प्रिीि हो।

4
कथा-पिकथा, प.ृ 11

136
िप्रां ेषर्ीयिा
दृश्यों र्ें सप्रं ेषणीयिम कम होनम बहुि आिश्यक है। कई बमर बहुि अच्छे विषय िर बनी र्हत्त्ििणू ा
वफल्र् िी िटकथम इिनी िरमब होिी है वक उसकी आलोचनम शरू ु हो जमिी है। संप्रेषणीयिम होनम बहुि
आिश्यक है। क्योंवक वबनम संप्रेषण के समवहत्य असंिि है।

3.4 िकनीकी
वसनेर्म और िकनीकी कम संबंध आरंविक सर्य से ही है। जब वफल्र्ों कम वनर्माण आरंि हुआ
िकनीकी उसके समथ जड़ु ी हुई थीं। आरंविक सर्य की बमि करें िो वफल्र्ें िकनीक से जड़ु ी होकर िर
िकनीक िर वनिार नहीं थी। वफल्र्ों र्ें दृश्य और कहमनी िमतिविकिम को बनमए रिने के वलए िकनीकी कम
प्रयोग उिनम ही वकयम जमिम थम वजिने र्ें उसकी जीिंििम बनी रहे। िमरिीय वसनेर्म कम सफर सौ िषों से
अवधक कम है। 7 जल ु मई 1896 को िमरिीय वसनेर्म कम सत्रू िमि हुआ। िकनीकी र्मध्यर्ों द् िमरम र्नष्ु य की
िमगिे-दौड़िे देिनम िमरिीय सर्मज के वलए बेहद रोर्मंचक थम। आदेवशर ईरमनी द् िमरम 1931 वनवर्ाि वफल्र्
'आलर् आरम' िरू ी िरह िकनीकी िर ही आधमररि थी। वफल्र्कमरों ने वफल्र् को प्रिमिी बनमने के वलए बहुि
समरे प्रयोग वकयम। ये प्रयोग वसनेर्म को आर् जनिम से जोड़ने र्ें सहमयक िी हुए। जैसे बमदल, बमररश,
जमनिरों आवद की आिमज, डबल रोल के वलए कई िरह के िकनीवकयों कम प्रयोग वफल्र्ों र्ें िबू हुआ।
1870 र्ें जन्र्ें वहदं ी वसनेर्म के जनक फमल्के को वसनेर्म बनमने के वलए िकनीकी ज्ञमन की आिश्यकिम िड़ी।
वचत्रकलम और िमतिक ु लम र्ें वनिणु फमल्के को वफल्र् बनमने के वलए वनर्माण कम िकनीकी ज्ञमन सीिने के
वलए इगं लैंड गए। लंदन र्ें उन्होंने िोल्टन तटुवडयो र्ें िरू ी िरह से वफल्र् बनमने कम िकनीकी ज्ञमन अवजाि
वकयम। फमल्के अगर वफल्र् की बमरीवकयों को नहीं सर्झिे िो िह वफल्र् वनर्माण र्ें किी नहीं आ िमिे। इस
आधमर िर कहम जम सकिम है वक िकनीकी और वफल्र् वनर्माण कम नमिम आरंि से ही है।
आज के वसनेर्म की बमि करें िो उसर्ें सत्तर प्रविशि िकनीक ही है। आजकल की वफल्र्ों र्ें
तिेशल इफे क्ट कम प्रयोग इिनम ज्यमदम बढ़ गयम है वक कहमनी और संिेदनम शन्ू य हो गई है। दशाक सब
सर्झिम है वक उसे जो वदिमयम जम रहम है िह झठू है। बमहुबली जैसी वफल्र्ें िो िरू ी िरह िकनीकी िर ही
आधमररि हैं। इस वफल्र् कम एक एक दृश्य बनमिटी है। नमयक कम िहमड़ों िम िेड़ो िर कूदनम, वशिवलंग कम
उठमनम और यदु ् ध र्ें जमनिरो से लड़नम, सब आिमसी है। वहंदी वसनेर्म र्ें िकनीकी कम सबसे अवधक प्रिमि
व्यमिसमवयक वफल्र्ों िर हुआ।
सन् 2000 के बमद िकनीकी के नए संसमधनों ने वसनेर्म की रमह िो आसमन बनमई लेवकन संिेदनम
को हमवशए के बमहर फें क वदयम। बहुचवचाि वनदेशक, वनर्मािम रमके श रोशन ने अिने बेटे ऋविक रौशन को
लेकर वजिनी िी वफल्र्ों कम वनर्माण वकयम, िह समरी वफल्र्ें िकनीकी िर आधमररि हैं। इनर्ें िकनीकी और
संिेदनम कम अद्भुि सर्न्िय है। ििार्मन सर्य र्ें शॉटा वफल्र्ों की लोकवप्रयिम ने आर् आदर्ी को िी वसनेर्म
बनमने के वलए प्रेररि वकयम। शॉटा वफल्र्ें आज िरू ी दवु नयम र्ें छमयी हुई ं है। यह वफल्र्ें िरू ी िरह से िकनीकी
िर ही कें वद्रि हैं। र्ोबमइल और छोटे कै र्रे से िी आजकल बड़ी र्मत्रम र्ें वफल्र्ों कम वनर्माण हो रहम है। इससे

137
गली र्हु ल्ले से लोग वनकलकर वफल्र्ें बनम रहे हैं। िकनीकी के अवधक प्रिमि से वफल्र् की र्ल ू आत्र्म से
विलिमड़ िो हुए लेवकन वबनम िकनीकी के ज्ञमन और विज्ञमन के नए संदिा और समधन को वदिमनम िी कवठन
हैं। आज वजस िरह से वफल्र्ों की विषय ितिु बदली है, िकनीक उसकी जरूरि बन गई है।
एवनर्ेशन कम उियोग िी आजकल वसनेर्म र्ें िबू वकयम जम रहम है। विवकिीवडयम िर इसके संबंध र्ें
वलिम गयम है वक- ‘2D एिं 3D कलमकृ वि को एक समथ एक वनधमाररि वदशम र्ें प्रदवशाि करने को ऐनीर्ेशन
कहिे हैं। ऐनीर्ेशन एक प्रकमर कम दृवि भ्र् िी हो सकिम है, क्यों की ये समर्मन्य र्मनि नेत्र की दृवि िर्िम के
कमरण र्हससू होिम है। आि ऐनीर्ेशन को कई प्रकमर से कर एिं र्हससू कर सकिे हैं। सबसे समधमरण िरीकम
ये है वक आि इसे चलवचत्र द्िमरम प्रतििु करें ।’5
एवनर्ेशन वफल्र्ों कम र्मके ट बहुि िेजी से बढ़म है। िौरमवणक और ऐविहमवसक कथमओ ं िर आधमररि
एनीर्ेशन वफल्र्ों ने सर्मज र्ें अिनी नई छवि विकवसि की है। बच्चों के वलए गणेश, हनर्ु मन, श्रीकृ ष्ण,
श्रीरमर् और िरशरु मर् जैसे िौरमवणक और बदु ् ध, वशिमजी आवद ऐविहमवसक िमत्रों िर एनीर्ेशन वफल्र्ें बनी
और सफल रही िी हुई।ं
3.4.1 प्रश्नों की स्वयां जाँच करना
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों के उत्तर ‘हमाँ’ यम ‘नम’ र्ें दीवजए-
(i) िटकथम वफल्र् कम र्हत्त्ििणू ा वहतसम है (......)
(ii) 'आलर् आरम' िरू ी िरह िकनीकी िर आधमररि नहीं थी। (......)
प्रश्न (ि) कोष्ठक र्ें वदए गए शब्दों र्ें से सही शब्द चनु कर ररक्त तथमनों की िवू िा कीवजए-
(i) दमदम समहब फमल्के वसनेर्म कम िकनीकी ज्ञमन सीिने ............गए (अर्ेररकम, लदं न, जमिमन)
(ii) आज के वसनेर्म की बमि करें िो उसर्ें ........ प्रविशि िकनीक ही है। (सत्तर, िचमसी, नब्बे)
(iii) वहदं ी वसनेर्म र्ें िकनीकी कम सबसे अवधक प्रिमि……वफल्र्ों िर हुआ। (कलम, व्यमिसमवयक,
सर्मिं र)
(iv) ......कम उियोग िी आजकल वसनेर्म र्ें िूब वकयम जम रहम है। (गमने, एवनर्ेशन, गीिों)

3.5 कहानी
वफल्र् र्ें कहमनी सबसे र्हत्त्ििणू ा हैं बवल्क िहली कड़ी है। वबनम कहमनी के वफल्र् कम वनर्माण
सिं ि नहीं है। कहमनी कम ही वितिमर वसनेर्म है। िमरिीय सर्मज र्ें वकतसम सनु मने की िरंिरम िरु मनी है।
आरंविक सर्य र्ें कहमवनयमाँ हर्मरे जीिन कम वहतसम थीं। व्यवक्त किी आाँिों देिम िो कल्िनम आधमररि
कहमवनयमाँ सनु मकर आनदं की प्रमवप्त करिम थम। जब हर्मरे िमस र्नोरंजन के समधन नहीं थे, िब कहमवनयमाँ ही
हर्मरे तर्ृवि के िरु मक थीं। प्रमचीन सर्य र्ें ऐविहमवसक और िौरमवणक कथमओ ं को लोकिमषम और
लोककथमओ ं र्ें सनु मयम जमिम थम।

5
ववककपीडडया

138
वसनेर्म िमरिीय सर्मज कम ऐसम विषय है वजसके वलए कई िरह की र्मन्यिमएाँ हैं। कुछ लोग वसनेर्म
को समर्मवजक िररििान कम आधमर र्मनिे हैं िो कुछ लोग के िल र्नोरंजन कम समधन। एक सर्य र्ें कहम
जमिम थम वक वसनेर्म सभ्य सर्मज के वलए नहीं है। गौर से देिें िो आरंि के वसनेर्म की कहमवनयमाँ िमरिीय
सर्मज र्ें रचे बसे धमवर्ाक और ऐविहमस िमत्रों िर कें वद्रि थीं वफर िी वसनेर्म उिेविि थम। दरअसल यह यगु
स्त्री को िल ु ेआर् नमचिे-गमिे यम सर्मज से संिमद करने के िि र्ें नहीं थम। जबवक वफल्र्ों र्ें स्त्री िल ु ेआर्
सर्मज अिनम िि रििी थी। रमर्चंद्र गोिमल टोने द् िमरम बनमई गई "िंडु लीक"(1912 ) कमफी सफल हुई।
र्हमरमष्ट्र के वहदं ू संि के जीिन िर आधमररि इस वफल्र् र्ें उन्हीं के जीिन की कहमनी वदिमई गई थी।
र्हमरमष्ट्र के रहने िमले ढूंदीरमज गोविंद फमल्के ने वहदं ी वसनेर्म को आर् जनर्मनस से जोड़ने कम िरू म
प्रयमस वकयम। फमल्के की वफल्र्ें िमरिीय सर्मज को गहरमई से इसवलए प्रिमविि कर सकीं क्योंवक उनकी
कहमवनयमाँ उनकी आतथम और विश्वमस से जड़ु ी हुई थीं। फमल्के िहली वफल्र् कृ ष्ण के जीिन िर बनमनम चमहिे
थे। इससे हर् ये सर्झ सकिे हैं वक वनर्मािम और वनदेशक जब वकसी वफल्र् कम वनर्माण करिे हैं िो उन्हें ऐसी
कहमनी चमवहए होिी है जो सर्मज र्ें प्रचवलि हो। बमद र्ें उन्होंने रमजम हररश्चंद्र वफल्र् कम वनर्माण वकयम। रमजम
हररश्चद्रं कम जीिन िमरिीय सर्मज र्ें आतथम कम विषय है। फमल्के यह बिबू ी जमनिे थे।
ऐविहमवसक कहमनी कम आधमर लेकर बनमयी गई वफल्र् ‘र्गु ले आज़र्’ ने बड़ी लोकवप्रयिम प्रमप्त
की। इस वफल्र् की र्ल ू सिं ेदनम प्रेर् थी। 1960 र्ें बहुचवचाि वनर्मािम-वनदेशक के आवसफ ने र्ग़ु ले आज़र् के
र्मध्यर् से िमरिीय जनर्मनस को प्रेर् और नफरि कम ऐसम िमिनमत्र्क ज्िमर िैदम वकयम वजसर्ें प्रत्येक व्यवक्त
बह गयम। इस वफल्र् की कहमनी ने प्रेर् की नई व्यमख्यम की। ‘िदमा नहीं जब कोई िदु म से, बदं ों से िदमा करनम
क्यम। जब प्यमर वकयम िो डरनम क्यम’ गीि ने अिमर लोकवप्रयिम प्रमप्त की। इस वफल्र् की कहमनी के कई वहतसे
थे लेवकन अनमरकली और सलीर् की प्रेर्कथम ने सिी को िमि-वििोर वकयम। इस वफल्र् के बमद दजानों प्रेर्
आधमररि वफल्र्ों कम वनर्माण हुआ। बहुचवचाि वफल्र् वनर्मािम, लेिक ि वनदेशक वबर्ल रॉय कम र्मननम थम
वक, ‘वसनेर्म व्यवक्त की वजभर्ेदमररयों और सिं मिनमओ ं को सर्झने के वलए सबसे र्हत्ििणू ा समधन है।’
कहमनी वकसी िी वफल्र् कम प्रमण ित्त्ि है। ऐसम कई बमर होिम है जब िषों की देिी गयी वघसी-विटी
कहमनी िर बनी वफल्र् िी सुिरवहट हो जमिी है। ऐसम ििी संिि होिम है जब कहमनी सुदृढ़ और कसी हुई
होिी है। किी-किी वबलकुल नए विषय िर बनी वफल्र्ें िी र्जबूि कहमनी के अिमि र्ें दशाकों र्ें अिनम
तथमन नहीं बनम िमिी। वफल्र् कम आरंि ही कहमनी िमठ से होिम है। कहमनी ही वकसी वफल्र् के वनर्माण की
िहली सीढ़ी होिी है–िमतिि र्ें कहम जम सकिम है वक कहमनी ही वसनेर्म की िह धरु ी होिी है वजसके चमरों
ओर वनदेशक, वनर्मािम और कलमकमर और अन्य सिी वफल्र् से जड़ु े लोग घूर्िे हैं। जहमाँ वनदेशक के वलए
कहमनी ही वफल्र् कम आधमरितिु होिी है िही वनर्मािम अच्छी कहमनी िर ही िैसम लगमने को िैयमर होिम है।
अविनेिम के अविनय कम दमरोर्दमर कहमनी िर ही वटकम होिम है। कहमनी कर्जोर हो िो अविनेिम अिनी
अविनय िर्िम को प्रतििु कर िमने र्ें असफल र्हससू करिम है। इसी िजह से वनर्मािम और वनदेशक वकसी
वफल्र् र्ें िैसम लगमने से िहले कहमनी को सर्झने की कोवशश करिम है। किी-किी कहमनी कर्जोर होने िर
र्झे हुए वनदेशक िी वफल्र् को सफलिम नहीं वदलम िमिे। विख्यमि विल्र्कमर अकीरम कुरोसोिम कम र्मननम

139
थम–‘वतिप्ट यवद दर्दमर हो िो एक अच्छम वनदेशक बेहिरीन वफल्र् बनम सकिम है, जबवक यही वतिप्ट
वकसी समधमरण वनदेशक के िमस िहुचाँ म जमए िो िह समधमरण वफल्र् बनम देगम। लेवकन वतिप्ट ही यवद िरमब
हो िो बवढ़यम वनदेशक िी संिििः एक अच्छी वफल्र् नहीं बनम सकिम।”
सत्तर और अतसी के दशक र्ें जमिेद और सलीर् की जोड़ी ने वजन वफल्र्ों की कहमनी िैयमर की
िहीं से वसनेर्म की एक नयी धमरम कम आरंि होिम है। अवर्िमि के शमन्ि चेहरे के िीछे वछिे गतु से और
आिोश को जमिेद-सलीर् ने अिनी कहमनी के दर् िर िषो कै श वकयम। इस जोड़ी ने अवर्िमि बच्चन को
शीषा िर िहुचाँ म वदयम। सलीर्-जमिेद की लेिनी ने दशाकों को इिनम प्रिमविि वकयम वक लोग बमर-बमर वसनेर्म
की िरफ लौटे। कहनम गलि न होगम वक इस जोड़ी ने एक ही विषय को अलग-अलग फ्लेिर र्ें बनमकर िषों
अिनी सफलिम को दोहरमयम दशाकों ने इस दोहरमि को तिीकमर िी वकयम। इसकी िजह वसफा र्जबूि कहमनी
ही थी।अिनी कहमनी र्ें इस नमयमब जोड़ी ने िमली विटमऊ सिं मद और वदल र्ें बस जमने िमले दृश्यों को अिनी
वफल्र्ों र्ें िरू म तिेस वदयम। िमवलयों की गड़गड़महट और िमत्रों के संिमदों ने वसनेर्म को ऐसी कलम के रूि र्ें
िहचमन दे वदयम जो र्मनि जीिन के सि ु और दि ु कम समथी बन गयम। ‘हर् जहमाँ से िड़े होिे हैं लमईन िहीं
से शरू
ु होिी है’, ‘जब िक बैठने के वलए न कहम जमए िड़े रहो, ये िवु लस तटेशन है िभु हमरे बमि कम घर नहीं’,
‘डॉन को िकड़नम र्वु श्कल ही नहीं नमर्र्ु वकन है’ जैसे सिं मदों ने अवर्िमि को एक ऐसे नमयक के रूि प्रदवशाि
वकयम जो िमरिीय नौजिमनों की र्मनवसक चेिनम के सबं ल बन गए।
सर्य के समथ वफल्र् की दशम और वदशम र्ें िी िमरी िररििान हुआ। आज के यिु म वनदेशक अिनी
वफल्र्ों र्ें नयम विषय लेकर आ रहे हैं। सतं कृ वि और आदशा के नमर् िर वजन विषयों को छुिम वलयम जमिम थम,
आज के वनदेशक उसी िर वफल्र्ें बनम रहे हैं। ‘विक्की डोनर’ ‘तिर्ा’ डोनेशन िर बनी िहली वफल्र् है। वहदं ी
वसनेर्म र्ें िहली बमर ऐसम हुआ जब इस िरह के विषय िर वफल्र् बनी। वफल्र् की कहमनी के कें द्र र्ें डॉक्टर
बलदेि चड्डम (अन्नू किरू ) हैं। वदल्ली के दररयमगजं र्ें अिनम क्लीवनक चलमिे हैं। िैिमवहक जीिन जीने िमले
लोगों निसंु किम और बमझं िन की बढ़िी सर्तयम के वनिमरण हेिु यिु मओ ं को शि ु मणु दमन के वलए प्रेररि करने
िमले बलदेि उन्र्क्त ु विचमरधमरम के व्यवक्त हैं। िह यिु मओ ं को तिर्ा डोनेशन के प्रेररि करिे हैं। ‘र्समन’ एक
ऐसी कहमनी िर बनी वफल्र् है वजसकम नमयक र्दु मा जलमने कम कमर् करिम है। िह अिनी इस वज़ंदगी से ऊिर
उठनम चमहिम है। िढ़-वलि कर एक नौकरी िमनम चमहिम है। प्रेर् कहमनी िर आधमररि यह वफल्र् यह बिमिी
है वक हमवशए िर िड़म उिेविि सर्मज िी अब अिने जीिन को बेहिर बनमनम चमहिम है। बहुि कर् बजट र्ें
बनी इस वफल्र् की कहमनी ने अच्छम वसनेर्म देिने िमलों को प्रिमविि वकयम। बेहद समधमरण लोके शन िर
बनी इस वफल्र् को ‘कमन’ सर्मरोह र्ें िी र्हत्ििणू ा वफल्र् से सभर्मवनि वकयम गयम। नए वनदेशक र्ें अनरु मग
कश्यि की ब्लैक फ्मइडे, देि डी, गल ु मल, गैंगस ऑफ िमसेिुर, वदबमकर बनजी की िोसलम कम घोंसलम, ए
िेडनेस डे, शंघमई, विगर्मंशु धवू लयम की हमवसल, िमन वसंह िोर्र ररिेश बत्रम की लंचबॉक्स जैसी वफल्र्ों ने
वसनेर्म र्ें कहमनी की िवू र्कम बदल दी। इन वफल्र्ों की कहमवनयों ने यह विश्िमस वदलमयम वक वसनेर्म िरू ी
िरह व्यमिसमवयक नहीं हुआ है। उसकम समर्मवजक सरोकमर िी है।

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3.6 स्पेशल एफ़े क्ट्ि
वफल्र् के दृश्यों को प्रिमिशमली बनमने के वलए िकनीकी द्िमरम तिेशल प्रिमि डमलने की प्रवियम
को ‘तिेशल एिे क्ट्स’ कहम जमिम है। वफल्र्ों र्ें ‘तिेशल एिे क्ट्स’ कम प्रयोग सबसे िहले विदेशी वफल्र्ों र्ें
आरंि हुआ। यह सच िी है वक विदेशी वसनेर्म िमरिीय वसनेर्म से बहुि आगे है। तटमटा ट्रेक (1982), द बड्ास
(1963), वकंग कमंग, एवलयंस (1986), टवर्ानेटर 3, जरु मवसक िमका जैसी वफल्र्ें िरू ी िरह ‘तिेशल एिे क्ट्स’
िर ही आधमररि है।
हॉलीिडु र्ें तिेशल इफे क्ट्स कम प्रयोग विछले सौ िषों से है। िमरिीय वसनेर्म के सौ िषों र्ें
‘तिेशल एिे क्ट्स’ ने वसनेर्म के विकमस र्ें र्हत्त्ििणू ा िवू र्कम वनिमई है। ‘तिेशल एिे क्ट्स’ के प्रयोग से
वफल्र्ों कम रोर्मचं बढ़ जमिम है।
वहदं ी वसनेर्म र्ें जमदईु , फाँ समिी और समर्मन्य विषय से हटकर बनी वफल्र्ों र्ें ‘तिेशल एिे क्ट्स’ कम
प्रयोग बहुि हुआ है। सिी, संिणू ा रमर्मयण, प्रेर् िजु मरी, र्हमिमरि, जगु न,ू नमवगन, र्हमिमरि, जमनी दश्ु र्न,
िरु मनी हिेली, हमविर् िमई, आंटी नंबर िन, कृ ष, कोई वर्ल गयम जैसी वफल्र्ों र्ें ‘तिेशल एिे क्ट्स’ कम प्रयोग
हुआ है। वहदं ी वसनेर्म र्ें िकनीक द् िमरम बढ़िे तिेशल इफे क्ट्स से वफल्र् वनर्माण की प्रवियम र्ें िी िररििान
आयम है। वफल्र् बनमने िमलों और देिने िमलों दोनों र्ें िररििान आयम है। वफल्र्ों र्ें शवू टंग कम िरीकम िी
बदलम है। अगर कहमनी र्ें वकसी िमत्र को िहमड़ िर चलिे हुए वदिमनम है यम वकसी ऊाँ चमई से कूदिे हुए
वदिमनम है िो उसे कहीं जमने की जरूरि नहीं है के िल िहमड़ िर चलने और ऊाँ चमई से कूदने कम दृश्य कहीं िी
दे देनम है। ‘तिेशल एिे क्ट्स’ से िहमड़ और ऊाँ चमई वदिम दी जमिी है। तिेशल एिे क्ट्स द्िमरम वफल्र् को िव्य
और शमनदमर बनमयम जम सकिम है। वफल्र् र्ें रमजम-र्हमरमजम कम जीिन, जंगल र्ें जमनिरों कम जीिन आवद
तिेशल एिे क्ट्स द् िमरम ही संिि है। समउथ की वफल्र्ों र्ें िीएफएक्स कम इतिेर्मल बड़ी वकयम जमिम है जो
दशाकों को हैरि र्ें डमल देिे हैं। हमल र्ें प्रदवशाि 'टोटल धर्मल' र्ें तिेशल इफे क्ट्स कम िरिरू प्रयोग हुआ है।
इस वफल्र् र्ें अजीबो-गरीब जमनिरों कम िरू म एक जंगल बनमयम गयम है। इस जंगल के जमनिरों द्िमरम वफल्र्
की कहमनी आगे बढ़िी है।
प्रश्नों की जाँच स्वयां करना–
प्रश्न (क) वनभनवलविि कथनों िर सही गलि के वनशमन लगमइए-
(1) कहमनी वकसी िी वफल्र् कम प्रमण ित्त्ि है। (सही/गलि)
(2) दमदम समहब फमल्के ने रमजम हररश्चंद्र वफल्र् कम वनर्माण वकयम (सही/गलि)
(3) र्गु ले आजर् की कहमनी धमवर्ाक है (सही/गलि)
प्रश्न (ि) सही शब्द के चनु मि द्िमरम ररक्ि तथमनों की िवू िा कीवजए–
1. तिेशल एफे क्टस कम प्रयोग ……………… वफल्र्ों र्ें आरंि हुआ। (देशी िमषम, विदेशी िमषम)

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2. वहदं ी वसनेर्म र्ें िकनीक द् िमरम बढ़िे तिेशल इफे क्टस से वफल्र् ………….. आिम है। (रोर्मंच,
िररििान)
3. तिेशल एफे क्ट दिमरम ् …………. और शमनदमर बनमयम जम सकिम है। (आकषाक, िव्य)

3.7 आइटम गीि


उििोक्तम सतं कृ वि ने कलमओ ं को बमजमरू िो बनमयम ही विकृ ि िी वकयम। सन् 2000 के बमद वहदं ी
वसनेर्म के िमि, वशल्ि, सिं ेदनम र्ें िमरी बदलमि आयम। दशाकों को अिनी ओर िींचने के वलए वसनेर्म हर
िरह कम प्रयोग करिम है वजसर्ें एक आइटर् गीि िी है। आइटर् गीि र्ूलिः दशाकों को अिनी ओर
आकवषाि करने के वलए वफल्र् र्ें जबरन डमलम गयम ऐसम गीि होिम है वजसकम वफल्र् की कहमनी से कोई
लेनम देनम नहीं होिम। उसकम उद्देश्य के िल सतिी लोकवप्रयिम को बेचनम होिम है। िरु मनी वफल्र्ों र्ें इस िरह
के गीिों कम प्रयोग वकयम जमिम थम लेवकन उसर्ें नगनिम नहीं होिी थी। आजकल िो वफल्र्ों र्ें आइटर् गीि
के नमर् िर एकदर् कर् किड़े र्ें नमचिी नमवयकमओ ं और उसके आगे-िीछे अश्लील शोर और इशमरे करिे
िर्मर् कलमकमर इिने िद्दे और असभ्य लगिे हैं वक उन्हें िररिमर के समथ बैठकर देिम ही नहीं जम सकिम है।
वफल्र् शोले र्ें र्हबबू म, र्हबूबम गीि िी एक िरह से आइटर् गीि ही थम जो हेलेन िर वफल्र्मयम गयम थम।
हेलेन अिने सर्य की बहुचवचाि नमवयकम थीं वजन्हें वफल्र्ों र्ें र्समलम डमलने के वलए समइन वकयम जमिम थम।
शलू जैसी संिेदनशील वफल्र् कम गीि "र्ैं आई हाँ यिू ी वबहमर लटू ने" वफल्र् से अवधक चवचाि हुआ। वशल्िम

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शेट्टी िर वफल्र्मयम गयम यह गीि आज िी सनु ने को वर्लिम है। हमलमंवक है आइटर् गीि-कहमनी से जड़ु म हुआ
है। इस वफल्र् र्ें वबहमर के र्मवफयमओ ं की कहमनी वदिमई गई, जहमाँ िवु लस ऑवफसर की कोई इज्जि नहीं
होिी है। र्नोरंजन के वलए िहमाँ के संभ्मंि िररिमरों के लोग लड़वकयों को बुलमकर उनके समथ नृत्य करिे हैं।
िहमाँ कम सर्मज इसे अिनी संतकृ वि कम वहतसम र्मनिे हैं।
वहदं ी वसनेर्म की बमि करें िो इसी गीिसे आइटर् गीि अवधक प्रचवलि हुए। िलनमयक वफल्र् कम
चोली के िीछे क्यम है, करण अजानु कम छि िर सोयम थम बहनोई जैसे गीिों ने इस िरह के प्रचलन को और
अवधक बढ़मिम वदयम। दशाक के िल इन गीिों को देिने के वलए बमर-बमर वसनेर्म हॉल र्ें लौटे।
इन गीिों की लोकवप्रयिम देिकर वनदेशकों ने जबरन वफल्र्ों र्ें आइटर् गीि डमलनम शरू ु कर वदयम।
वचकनी चर्ेली, शीलम की जिमनी, वचिकम ले सैंयम फे विकोल से जैसे आइटर् गीिने के िल अश्लीलिम कम
वितिमर वकयम। इन गीिों र्ें नमचिी नमवयकमएाँ यिु मओ ं को गहरमई से प्रिमविि करिी हैं। इसकम िररणमर् यह
होिम है वक समर्मवजक कमयािर्ों र्ें िी िुलेआर् इन गमनों र्ें नमचिे-झर्ू िे हैं और शोर सरमबम करिे हैं।

3.8 गीि-िांगीि
िमरिीय सर्मज र्ें गीिों की तथमई र्हत्तम है। सर्मज कम प्रत्येक िगा वकसी ने वकसी गीि से बधम हुआ
है। गीि संगीि िमरिीय सर्मज की। संगीि िो जीिन की आत्र्म है। वबनम संगीि के र्मनिीय सभ्यिम कम
विकमस ही संिि नहीं है। िमरि र्ें गीि-संगीि प्रमचीन कमल से ही र्मनि के समथ जुड़े हुए हैं। ऐसम र्मनम जमिम
है वक गीि-सगं ीि कम जन्र् िैवदक कमल से िी िहले हुआ है। गीि और सगं ीि आधमर िेदों को ही र्मनम
जमिम है। बड़े-बड़े कवि अिनी रचनमओ ं को गीिों के र्मध्यर् से ही व्यक्त करिे थे। गीि र्नष्ु य किी अिने
िमकि के वलए गमिम है िो किी गमकर वकसी को िमकि देिम है। वफल्र्ों र्ें गीि संगीि आरंि से ही देिने को
वर्लिम है। वसनेर्म के इविहमस को देिें िो ििम चलिम है वक र्क ू वफल्र्ों के प्रदशान के सर्य लोक कलमकमर
िदे के िीछे से िमद्य यत्रं ों को बजमकर िदे िर चल रही कथम को जीििं बनमए रििे थे। िे ित्रों के हमििमि से
संगीि व्यक्त करिे थे यम आिमज वनकमलिे थे। र्क ू वफल्र्ों के बमद जब बोलिी हुई वफल्र्ें बननी शरूु हुई ंिब
कहमनी के वहसमब से वफल्र्ों र्ें गीिों कम प्रचलन बढ़म। कई बमर गीि ही कहमनी को आगे बढ़मिे थे। हीर रमंझम
वफल्र् कम हर गीि उसकी कहमनी से ही जड़ु म हुआ है। नब्बे के दशक आवशक़ी वफल्र् को भयवू जक्त वहट कहम
गयम क्योंवक कहमनी िो समर्मन्य थी लेवकन उसके गीिों और संगीि से आवशक़ी को बहुि बड़ी सफलिम
वर्ली।
समठ के दशक र्ें वफल्र्ें गीिों से आगे बढ़िी थीं। समर्मवजक सरं चनम ऐसी थी वक नमयक-नमवयकम
अिनी बमि एक-दसू रे से कह नहीं सकिे थे वलहमजम गीिों र्ें ही अिी अविव्यवक्त करिे थे। इस दौर के
गीिकमर समवहत्य से गहरमई से जड़ु े हुए थे। समवहत्यकमरों को वसनेर्म र्ें कर् सभर्मन वर्लम। समठ और सत्तर के
दशक र्ें वहदं ी वफल्र्ों र्ें िमरिीय लोकजीिन जीिन को बहुि करीब से देिम जम सकिम है। इस दौर की
वफल्र्ों र्ें लोकसंतकमर और लोकिमषम कम प्रयोग बहुि गहरमई से वकयम जमिम थम। एक बंगलम बने न्यमरम, र्ैं

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उस देश कम िमसी ह,ाँ वजस देश र्ें गंगम बहिी है, नदी नमरे न जमओ तयमर्, रमधे रमनी दे डमरो नम बमाँसरु ी र्ेरी,
वदन नीके बीिि जमि है, सजनिम बैरी हो गए हर्मर, अिसर बीिो जमए, रघिु वि रमघि रमजम रमर्म, आई बहमर
आई बहमर, ये कौन आज आयम सिेरे सिेरे, चलें ििन की चमल, ऐ कमविबे िकदीर र्झु े इिनम बिम दे' जैसे
गीिों ने िमरिीय जनमर्नस की िमिनम को अविव्यक्त वकयम। इन गीिों से िमरिीय सर्मज की र्मसर्ू िमिनमएाँ
सर्झी जम सकिी हैं।
अतसी और नब्बे के दशक र्ें वफल्र्ी गीिों कम तिरूि िेजी से बदलम। इस दशक की वफल्र्ों र्ें
गीि-संगीि की िरर्मर है। वफल्र्ें कहमनी से ज्यमदम गीिों के वलए देिी जमने लगी। इसी सर्य र्ें गल ु जमर,
सर्ीर, विशमल िमरद्वमज जैसे गीिकमरों ने कई िरह के गीि वलिे। नब्बे के दशक र्ें सर्ीर कम नमर् सबसे
अवधक चवचाि रहम। उस दौर की लगिग हर सफल वफल्र् र्ें सर्ीर ने गीि वलिे। ‘वदल', 'आवशकी',
'दीिमनम', 'हर् हैं रमही प्यमर के ', 'बेटम', 'समजन', 'सड़क', 'जर्ु ा', 'बोल रमधम बोल', 'दीिमनम', 'आंिें', 'शोलम
और शबनर्', 'कुली नंबर 1', 'हीरो नंबर 1', 'बीिी नंबर 1', 'वदल है वक र्मनिम नहीं', 'रमजम वहन्दतु िमनी',
'वफजम', 'धड़कन', 'कुछ कुछ होिम है', 'किी िश ु ी किी गर्', 'देिदमस', 'िेरे नमर्', 'धर्ू ', 'समंिररयम', 'कृ ष',
'हमउसफुल 2', रमउडी रमठौड़', 'दबगं -2' जैसी वफल्र्ों र्ें उन्होंने सैकड़ों गीि वलिे। सर्ीर के गीिों को कुर्मर
शमन,ू उवदि नमरमयण, सोनू वनगर् जैसे बहुचवचाि गमयकों ने गयम।
नए वनदेशकों के वफल्र्ों र्ें गीिों के बदलिे िमि और प्रतिवु ि को वहदं ी वसनेर्म कम ऐविहमवसक र्ोड़
र्मनम जम सकिम है। अनरु मग एक प्रयोगशील वफल्र्कमर हैं। उन्होंने अिनी वफल्र्ों र्ें गीिों की प्रतिवु ि को वजस
िरह बदलम है िह िर्मर् वनदेशकों के वलए एक बड़ी सीि है जो अिनी वफल्र्ों र्ें गमने कम प्रयोग वसफा वफल्र्
की लबं मई बढ़मने और दृश्यों को िटकमने के वलए करिे हैं। अनरु मग कश्यि की सिी वफल्र्ों र्ें गीि की नयी
िनक है जो गमाँि-देहमि और आर् आदर्ी के उद्िेवलि होिी िमिनमओ ं से वनकलम है। वफल्र् ‘ब्लैक फ्मयडे
र्ें गीिों कम प्रयोग इस िरह से हुआ है वक िह गीि न लगकर कहमनी से लगिे हैं। वफल्र् र्ें गीिों के प्रयोग के
वलहमज से अनरु मग कश्यि इसवलए िी र्हत्त्ििणू ा हैं वक िह वफल्र् की र्ल ू कथम र्ें गीिों को जोड़ देिे हैं।
िह गीि कहमनी को आगे बढ़मने र्ें सहमयक हो जमिे हैं। ‘गल ु मल’ वफल्र् की वफल्र् की िटकथम वजिनी
बोल्ड है गीिों कम चयन उससे अवधक बोल्ड है। गीिों को कहीं-कहीं िरू म न गम कर टुकड़ो र्ें कह वदयम गयम
है। िीयषू वर्श्रम अिनी हर कवििम र्ें दशाकों को चौकम देिे हैं। दशाकों को िरू ी वफल्र् र्ें िीयषू वर्श्रम के कुछ
कहने कम जैसे इिं जमर रहिम है। िह गीिों के एक-एक अंिरे को जब दशाकों िर उछमलिे हैं िो समर्मन्य दशाकों
को आनंद वर्लिम है लेवकन बौद् वधकिम िगा और वफल्र् के सर्ीिकों को कचोटिम है।एक जगह िह कहिे
हैं- “इस देश र्ें वजस शक्स को कमर् थम सौंिम, उस शक्स ने उस कमर् की र्मवचस जलमकर जलम के छोड़
दी।”
अनरु मग कश्यि की वफल्र्ों र्ें प्रयोग के वलहमज से ‘गैंगस ऑफ िमसेिरु ’ र्ील कम ित्थर समवबि हो
सकिी है। इस वफल्र् के गीिों र्ें लोकगीिों और लोक-संतकृ वियों कम िरिरू प्रयोग हुआ है। गीिों र्ें
िमिनमओ ं को चरर् िक ले जमने के वलए गीिकमर ने िोजिरु ी और अंग्रेजी के शब्दों कम बहुि ही संदु र ढंग से
प्रयोग वकयम है। ‘ओ रे बर्ु वनयम’, ‘िमर वबजली से ििले हर्मरे वियम’, ‘कमलम रे वियम कमलम रे ,’ ‘वजयम हो

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वबहमर के लमलम’ जैसे गीि वहन्दी वसनेर्म के लीक िीटिे गीिों के वलए एक सीि की िरह है। इन गीिों ने इस
वफल्र् के सिी िमत्रों के र्नोविज्ञमन को वजस िरह से िकड़म है बहुि ही कर् वफल्र्ों र्ें देिने को वर्लिम है–
िरू ी वफल्र् के गीि अिने नयी बनु मिट और प्रतिवु ि के कमरण बमर-बमर गनु गनु मए जमएगें। अिने वफल्र्ों र्ें
अनरु मग कश्यय ने वजन गीिों कम प्रयोग वकयम िह इसवलए िी यथमथािमद कम सर्थान करिे हैं वक उनर्ें वकसी
िरह कम बमजमरू प्रिमि नही है। इनकी वफल्र्ों के गमने अिने संप्रेषणीयिम के वलए हर्ेशम यमद रिे जमएंगे। इन
गीिों की र्मरक झर्िम दशाकों और श्रोिमओ ं को हर्ेशम अिनी ओर अकवषाि करने र्ें सफल रहेंगे। एक बमि
और वक अिने वफल्र्ों र्ें अनरु मग कश्यि ने ‘लोक गीिों’ को तथमन देकर उन्हें अंिररमष्ट्रीय तिर िर प्रसमररि
िी वकयम है। सन 2000 के बमद वहदं ी वसनेर्म र्ें गीि और संगीि की िवू र्कम बदल गई। एक िरफ जहमाँ डीजे
िर नमचने िमले गीिों कम वनर्माण हुआ िहीं दसू री ओर संिेदनशील और िमिनमत्र्क गीिों कम िी वनर्माण
हुआ। र्नोज र्ंिु वशर, रमजशेिर, प्रसनू जोशी, इरशमद कमवर्ल, अवर्िमि िट्टमचमया जैसे र्ंझे हुए गीिकमर-
संगीिकमर वहदं ी वसनेर्म र्ें र्हत्त्ििणू ा योगदमन दे रहे हैं। िमरि र्ें वहन्दी वफल्र्ों वहदं ी-उद,ाू अाँग्रेजी की वर्वश्रि
कम प्रयोग होिम है। इनके वर्श्रण हो ही वहदं तु िमनी िमषम कहम जमिम है।
वहदं ी वसनेर्म के गीिों कम इविहमस बहुरंगी है। सर्य के अनसु मर वफल्र्ों के गीिों कम तिमद बदलिम
रहम। किी देशिवक्त िो किी रोर्मवं टक गीिों कम गौर रहम। सन 2000 के आस-िमस ही रीवर्क्स गीिों कम दौर
शरू ु हुआ। िरु मने गीिों को नए ढगं से गमने कम प्रचलन बढ़म वजसे िबू िसदं िी वकयम गयम। वसनेर्म से जड़ु े
गीिकमरो ि संगीिकमरों ने सर्य-सर्य िर दशाकों और श्रोिमओ ं के र्न की बमि को सर्झिे हुए अिने गीिों
और सगं ीि र्ें िररििान वकयम। ‘वजनके सर को इश्क की छमिं , िमाँि के नीचे जन्नि होगी’ कहने िमलम
गीिकमर ‘इश्क कर्ीनम है’ वलिने लगम’। ‘ठहरे हुए िमनी र्ें कंकड़ नम र्मर समिं रे , र्न र्ें हलचल िी र्च
जमएगी बमिं रे ’ वलिने िमले सर्ीर ने ‘चमर बज गए लेवकन िमटी अिी बमकी है वलिम’। गल ु जमर के गीि िो
सीधे आत्र्म से सिं मद करिे हैं। उनके गीिों की कसक िमरिीय जनर्मनस को गहरमई से प्रिमविि करिी है।
गल ु जमर हर िरह कम गीि वलिम। उनके गीि सिं ेदनशील होिे हैं लेवकन जब बमज़मर की वडर्मडं होिी है िो
गल ु जमर ‘कजरमरे , कजरमरे ’ िी वलििे हैं।
3.8.1 प्रश्नों का जाँच स्वयां करना
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों कम उत्तर एक-दो िंवक्तयों र्ें दीवजए–
(1) वफल्र् र्ें कहमनी के र्हत्त्ि को तिि कीवजए?
(2) तिेशल इिे क्ट्स क्यम है?
प्रश्न (ि) सही शब्द के चनु मि दिमरम
् ररक्त तथमनों की िवू िा कीवजए–
(1) अविनेिम के ........ कम दमरोर्दमर कहमनी िर ही वटकम होिम है। (अविनय, किड़े, हमि-िमि )
(2) ....... के समथ वफल्र् की दशम और वदशम र्ें िी िमरी िररििान हुआ। (सर्य, सर्मज, व्यवक्त)
(3) ‘र्समन’ एक ऐसी कहमनी िर बनी वफल्र् है वजसकम नमयक र्दु मा जलमने कम कमर् करिम है। (नमयक,
नमयक कम वििम, नमयक कम िमई)

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3.8.2 अभ्याि के सलए प्रश्न–
प्रश्न (क) वनभनवलविि प्रश्नों के उत्तर दीवजए
(1) वसनेर्म र्ें िकनीकी के प्रयोग कम फमयदम और नक ु समन क्यम है ?
(2) वफल्र् की कहमनी कै सी होनी चमवहए ?
(3) आइटर् गीि कम प्रयोग सर्मज को कै से प्रिमविि करिम है ?
(4) वसनेर्म र्ें नए विषयों िर बनने िमली दो वफल्र्ों के बमरे र्ें वलविए?
(5) वफल्र्ों र्ें गीिों कम क्यम र्हत्त्ि है?
प्रश्न (ि) वनभनवलविि शब्दों के अथा बिमइए–
वनिमरण, वदशम, विकृ ि, बमजमरू, उििोक्तम
प्रश्न (ग) वनभनवलविि िमक्यों कम िदिर् ठीक कीवजए–
(1) उििोक्तम संतकृ वि ने कलमओ ं को विकृ ि बमजमरू िो बनमयम ही िी वकयम।
(2) हेलेन जैसी नमवयकमओ ं को र्ें र्समलम वफल्र्ों डमलने के वलए समइन वकयम जमिम थम।
(3) िमरिीय सर्मज र्ें तथमई गीिों की र्हत्तम है।
(4) वफल्र् ‘ब्लैक फ्मयडे’ र्ें कम प्रयोग इस िरह गीिों से हुआ है वक िह गीि न लगकर कहमनी से
लगिे हैं।
(5) दशाकों को िरू ी वफल्र् र्ें के कुछ कहने कम िीयषू वर्श्रम जैसे इिं जमर रहिम है।

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