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सप्तमांश कंु डली

मित्रों संन्तान सुख के लिय ज्योतिष में लग्न कंु डली के साथ सप्तमांश कंु डली का भी विचार किया
जाता है | एक राशी का सातवां भाग उसका सप्तमांश कहलाता है | विषम राशि में सप्तमांश उसी राशि
से सुरु होता है जबकि सम राशि में उस राशि से सप्तम राशि से सप्त्मासं लग्न कंु डली का आरम्भ
होता है |
सप्तमांश विषम राशि का हो और उसमे शुभ ग्रह हो या पुरुष ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो पुत्र सुख प्राप्त
होता है |
यदि सप्तमांश सम राशि में हो और स्त्री ग्रह से युक्त या द्रिस्ट हो तो पत्र
ु ी का सुख मिलता है | यदि
दोनों परकार के ग्रह हो किसी भी राशि में तो पत्र
ु और पत्र
ु ी दोनों का सख
ु प्राप्त होता है |
सप्तमांश लग्न में पापी ग्रह हो या पापी ग्रह का प्रभाव हो तो संतान सुख प्राप्त करने में बाधा आती है
या संतान से सम्बन्धित चिंताए लगी रहती है |
यदि सप्तमांश बली हो और शुभ ग्रह से युक्त या द्रिस्ट हो तो उतम संतान सुख मिलता है |
यदि बुध गुरु या शक्र
ु सप्तमांश पति होकर लग्न में ही शुभ ग्रह से युक्त या द्रिस्ट हो तो संतान उच्च
सिक्षा प्राप्त धनवान गुनी प्रतिस्थित होती है |
लेकिन यदि सप्तमांश पति निर्बल हो या अस्थ्गंत हो या पाप प्रभाव में ६ ८ १२ भाव में हो तो लग्न
कंु डली में तो संतान सुख में कमी होती है |
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सप्तमांश पति यदि बलि होकर दस
ु रे भाव में हो तो संतान धनवान पंचम में हो तो उच्च शिक्षा प्राप्त
करने वाली नवम में हो तो भाग्यशाली और दसम भाव में हो तो सभी पत्रिक गुणों से युक्त संतान की
प्राप्ति होती है |
जन्म लग्नेश और सप्तमांश पति यदि मित्र ग्रह हो तो भी उचित संतान सुख के योग बनते है यदि
दोनों शत्रु हो तो संतान से सुख कम प्राप्त होता है |
बाकी संतान सुख के लिय जन्म लग्न कंु डली का लग्न दस
ू रा भाव पंचम भाव और नवम भाव का
अध्ययन अवश्य किया जाना चाहे ये इन सबका अध्ययन करने के बाद ही अंतिम रूप से कुछ निष्कर्ष
पर पहुंचा जा सकता है

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