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पाठ-भिखारिन प्रश्न उत्तर
पाठ-भिखारिन प्रश्न उत्तर
प्रश्न -उत्ति
उत्ति -अंधी भिखारिन ने अपनी झोपडी में एक हंडिया गाड िखी थी। उसे िीख में जो अनाज भमलता था
उससे वह अपना औि बच्चे का पेट िि लेती औि जो पैसे भमलते उन्हें उस हंडिया में इकट्ठा किती थी।इस
प्रकाि धीिे -धीिे उसके पास काफी धन इकट्ठा हो गया।
उत्ति- मोहन िॉक्टिों की दवाइयों औि भिखारिन के लाि प्याि से औि उसके ममता ििे उपचाि से ठीक हुआ ।
प्रश्न -अंधी ने सेठ जी के पास िहने से इंकाि क्यों ककया ? उत्ति- अंधी ने सेठ जी के पास िहने से इंकाि
इसभलए ककया क्योंकक वह बढ
ू ़ी भिखारिन थी। तब िी वह बहुत ह़ी स्वाभिमानी थी । स्वाभिमानी होने के
कािण उसने सेठ जी के पास िहने से इंकाि कि ददया ।
उत्ति -भिखाि़ी वह होता है जो अपनी आवश्यकताओं को पूि ़ी किने के भलए ककसी के सामने याचक बन
जाता है।अपने पुत्र की जान बचाने के भलए सेठ को अंधी भिखारिन से याचना किनी पडी ।इसभलए सेठ जी
भिखाि़ी बन गए ।इसके ववपि़ीत अंधी भिखारिन ने सेठ जी को उनका बेटा दान कि ददया औि वह दाता बन
गई ।
उत्ति- अंधी अपना जीवन ननवााह िीख मााँग कि किती थी। प्रनतददन वह एक मंददि के दिवाजे के समक्ष खडी
िहती औि दर्ानार्थायों के सामने हाथ फैला कि नम्रता से कहती- ‘बाबूजी अंधी पि िी कृपा हो जाए’ पैसे दे ने
वाले लोगों को दआ
ु एाँ दे ती औि उसकी मानवता को सिाहती। भमले हुए पैसों से वह अपने औि एक अनाथ
बच्चे का पालन पोषण किती ।इस प्रकाि वह अपना जीवन ननवााह कि िह़ी थी ।
प्रश्न -अंधी ने अपनी जमा पूाँजी सेठ जी के पास क्यों जमा कि द़ी?
उत्ति -अंधी ने सेठ जी की बहुत प्रर्ंसा सुनी हुई थी औि उसे हि समय यह िय सताता था कक कोई उसके
धन को चुिा ना ले इसभलए उसने अपनी जमा पूाँजी सेठ जी के पास जमा कि द़ी ।
उत्ति- बेटे के इलाज के भलए जब अंधी ने सेठ जी से रुपए मााँ गे तब पहले तो उन्होंने उसे बिु ़ी तिह से
दत्ु काि ददया औि इस बात से साफ इंकाि कि ददया कक अंधी ने उनके पास कोई पैसे जमा ककए हैं । अंधी के
बहुत अनुनय ववनय किने पि सेठ जी ने उस पि दया ददखाते हुए अपने मुनीम से कहा- मुनीम जी जिा दे खना
तो उसके नाम की कोई िकम जमा है क्या ? तेिा नाम क्या है ि़ी?यह कहने के साथ ह़ी उन्होंने मुनीम को यह
इर्ािा िी कि ददया । जजसके कािण मुनीमजी ने िी पैसा जमा होने से इनकाि कि ददया ।
प्रश्न -सेठ जी के रुपए दे ने से इनकाि किने पि अंधी ने क्या ककया ?
उत्ति - सेठ जी के रुपए दे ने से इनकाि किने पि अंधी पहले तो बहुत िोई र्गड र्गडाई ककं तु इसका सेठ जी पि
कोई प्रिाव नह़ीं पडा औि अंधी को ननिार् होकि घि जाना पडा । तब उसने बहुत सोच ववचाि कि एक ननणाय
भलया ।अपने बीमाि बेटे को लेकि वह सेठ जी के घि के मुख्य दिवाजे पि धिना दे कि बैठ गई ।
उत्ति- बच्चे को दे खकि सेठ जी को बहुत अचंिा हुआ क्योंकक अंधी के बच्चे की र्क्ल सिू त सेठ जी के बच्चे
मोहन से भमलती जुलती थी। जो मेले में खो गया था ।अचानक सेठ जी को याद आया कक मोहन की जांघ पि
एक लाल िं ग का ननर्ान था।इस ववचाि के आते ह़ी उन्होंने अंधी की गोद में लेटे बच्चे की जांघ दे खी ननर्ान
जरूि था लेककन पहले से कुछ बडा इस प्रकाि से सेठ जी ने मोहन को पहचाना ।
उत्ति- अंधी की झोपडी पि पहुाँचकि सेठ ने उससे कहा- कक बुदढया तेिा बच्चा मि िहा है ,िॉक्टि िी मायूस हो
गए हैं िह- िह कि वह तुझे ह़ी पुकािता है ।अब तू ह़ी उसकी जान बचा सकती है ।चल औि मेिे नह़ीं ,नह़ीं तेिे
बच्चे की जान बचा ले ।
उत्ति- दख
ु औि दरिद्रता की जस्थनत में िी मानवता का त्याग ना किना मनुष्य को श्रेष्ठ बनाता है ।अंधी के
चरित्र में हमें यह ववर्ेषता ददखाई दे ती है । सेठ जी धनवान होते हुए िी स्वाथी हैं जब तक उन्हें यह पता नह़ीं
चलता कक अंधी भिखारिन का बेटा उनका अपना खोया हुआ पुत्र मोहन है ।तब तक वह उसके इलाज पि पैसे
खचा किना व्यथा समझते हैं औि इसी कािण वे अंधी को दत्ु काि दे ते हैं सेठ जी के व्यवहाि से दख
ु ी भिखारिन
सेठ जी के अनुनय ववनय किने पि उन्हें क्षमा कि दे ती है औि अंत में उन्हें उनका बेटा िी लौटा दे ती है ।
उत्ति -सेठ जी का चरित्र अच्छाइयों औि बुिाइयों का भमश्रण था। वह एक बडे दे र्िक्त औि धमाात्मा थे । धमा
में उनकी गहि़ी रुर्च थी । वह लोगों की जमा पूाँजी अपने पास जमा किते थे औि वक्त आने पि उनकी
सहायता किते थे व्यापाि़ी होने के कािण वे लालची होते जा िहे थे औि इसी कािण वे अंधी भिखारिन की
जमा पूाँजी िी हडप लेना चाहते थे ककं तु जब उनके सामने उनके पुत्र का प्रेम औि अंधी भिखारिन का ममता
पण
ू ा व्यवहाि आता है ।तो उनका हृदय परिवतान हो जाता है औि वे अपना घमंि छोड कि अंधी भिखारिन से
िी माफी मााँगने में िी संकोच नह़ीं किते । इस प्रकाि सेठ जी का चरित्र एक साधािण मानव की तिह
अच्छाइयों औि बिु ाइयों से ििा हुआ है ।