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मध्यकालीन भारत pooja (1) acvn
मध्यकालीन भारत pooja (1) acvn
महमूद गजनवी
गजनी के शासक सु बुक्तगीन के पु तर् महमूद गजनवी का जन्म 1 नवम्बर, 971 ई. में हुआ था।
महमूद गजनवी 27 वर्ष की उम्र में 998 ई. में गजनी की गद्दी पर बै ठा सु बुक्तगीन के बाद महमूद गजनवी ने भारत पर
1000 ई. से 1027 ई. तक कुल 17 बार आक् रमण किया।
महमूद गजनवी के भारतीय आक् रमण का मु ख्य उद्दे श्य धन की प्राप्ति था। यहाँ उसका साम्राज्य विस्तार का कोई
इरादा नहीं था।
बगदाद के खलीफा अल कादिर बिल्लाह ने महमूद गजनवी के पद को मान्यता प्रदान करते हुए उसे यमीन-उद्-दौला
तथा यमीन-उल-मिल्लाह की उपाधि दी।
महमूद के दरबारी इतिहासकार उतबी ने उसके आक् रमणों को जिहाद माना है जिसका मूल उद्दे श्य इस्लाम का प्रसार
और बु तपरस्ती (मूर्ति पूजा) को समाप्त करना था।
महमूद ने अपनी से ना की कमान तिलक तथा से वंदराय नामक हिन्दुओं को सौंपी थी।
महमूद के साथ भारत आने वाले विद्वानों में अलबरूनी, फिरदौसी,फरूखी और उतबी प्रमु ख थे । अलबरूनी की पु स्तक
किताबु ल हिन्द' तत्कालीन इतिहास को जानने का एक प्रमु ख स्रोत है । अलबरूनी ही पु राणों का अध्ययन करने
वाला प्रथम मु स्लिम था ।
महममूद गजनबी ने एक तरफ सं स्कृत मु दर् ाले ख के साथ चाँदी के सिक्के जारी किए।
महमूद गजनवी की 1030 ई. में मृ त्यु हो गई।
सु ल्तान की उपाधि धारण करने वाला प्रथम शासक महमूद गजनवी था।
मु हम्मद गोरी
मु ईजु द्दीन मु हम्मद बिन साम को ही मु हम्मद गोरी कहा जाता था। वह 1173 ई. में गौर राज्य का शासक बना था।
मु हम्मद गोरी का प्रथम आक् रमण 1178 ई. में मु ल्तान पर हुआ उस समय मु ल्तान पर करमाथी जाति का शासक था।
1178 ई. में गोरी ने गु जरात पर आक् रमण किया, किन्तु भीम द्वितीय (मूलराज द्वितीय) ने उसे आबू पर्वत के पास
पराजित किया था। भारत में यह मु हम्मद गोरी की पहली पराजय थी।
तराइन के प्रथम यु द्ध 1191 ई. में मु हम्मद गोरी को पृ थ्वीराज चौहान ने परास्त किया था।
तराइन के द्वितीय यु द्ध 1192 ई. में मु हम्मद गोरी ने पृ थ्वीराज चौहान को परास्त किया था।
चं दावर के यु द्ध 1194 ई. में मु हम्मद गोरी ने जयचन्द को पराजित में चन्दावर किया था।
तराइन के प्रथम यु द्ध में पृ थ्वीराज चौहान का से नापति स्कन्द था।
मु हम्मद गोरी की मु ख्य सफलता उसकी उत्तर भारत की विजय थी।
वास्तव में भारत में तु र्की राज्य की नींव उसी ने डाली थी।
1206 ई. में गोरी की मृ त्यु के बाद कुतु बुद्दीन ऐबक ने भारत में नये वं श की नींव डाली थी। जिसे गु लाम वं श कहा गया
है ।
मु हम्मद गोरी ने भारत में प्रथम इक्ता कुतु बुद्दीन ऐबक को (1203-04 ई. में ) प्रदान किया था।
ू री ओर लक्ष्मी की आकृति अं कित रहती थी।
मु हम्मद गोरी के सिक्कों पर एक ओर कलमा खु दा था तथा दस
मु हम्मद गोरी, जिसने बं गाल एवं बिहार पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने गु लाम व से नापति बख्तियार खिलजी
को भे जा।
बख्तियार खिलजी ने बिहार विजय के दौरान नालं दा एवं विक् रमशिला विश्व विद्यालय को नष्ट किया ।
' 1204-05 में बख्तियार खिलजी द्वारा बं गाल पर आक् रमण के दौरान लक्ष्मणसे न वहाँ का शासक था। अचानक
आक् रमण से भयभीत होकर लक्ष्मणसे न बिना यु द्ध किये ही भाग गया, फलतः बख्तियार खिलजी ने
बं गाल व बिहार पर अधिकार कर लिया। उसने लखनौती को अपनी राजधानी बनाया।
दिल्ली सल्तनत (1206-1526 ई.)
गु लाम वं श (1206-1290 ई.)
खिलजी वं श (1290-1320 ई. )
फिरोज तु गलक ने सै न्य व्यवस्था के अन्तर्गत सै निकों के पदों को वं शानु गत बना दिया तथा सै निकों को पु नः जागीर के
रूप में वे तन दे ना शु रू किया | इससे सै निकों की योग्यता पर असर पड़ा, से ना दुर्बल हो चली। फिरोशाज का
शासनकाल मध्य-कालीन भारत में सबसे भ्रष्ट शासनकाल कहा जाता है ।
फिरोज तु गलक ने बहराइच के सै य्यद सालार मसूद गाजी की यात्रा की |
' दिल्ली सल्तनत में सर्वाधिक विस्तृ त साम्राज्य तु गलक वं श का था।
फिरोज तु गलक ने टोपरा (सहारनपु र) एवं मे रठ से अशोक के स्तम्भों को लाकर दिल्ली में स्थापित करवाया था।
फिरोज ने धार्मिक वर्ग से प्रशं सा प्राप्त करने के लिए जगन्नाथ मन्दिर (उड़ीसा) तथा ज्वालामु खी मन्दिर
(नगरकोट) को तु ड़वाया तथा सं स्कृत के कुछ दस्तावे ज दिल्ली लाया ।
' हे नरी इलिएट और एलफिन्स्टन ने फिरोज को 'सल्तनत यु ग का अकबर कहा है ।
तु गलक वं श का अन्तिम शासक नासिरुद्दीन महमूद था। इसके समय में ही 1398 ई. में मं गोल आक् रमणकारी तै मरू
लं ग ने आक् रमण किया |
तै मरू के बाद भारत में सै यद वं श की स्थापना हुई थी।
फिरोज तु गलक दिल्ली सल्तनत का ऐसा शासक था जिसने शिक्षा में व्यावसायिक पाठ्यक् रम लागू किया था।
हे नरी इलियत व एल्फिस्टन ने फिरोजशाह को सल्तनत यु ग का अकबर, जबकि वूल्जे ल हे ग ने राज्य का
अपहरणकर्ता कहा है ।
जियाउद्दीन बरनी के अनु सार फिरोजशाह दिल्ली का आदर्श सु ल्तान था। बरनी ने उसे पहला सच्चा मु सलमान शासक
भी कहा है ।
फिरोजशाह ने तास घड़ियाल (जल घड़ी) का आविष्कार किया | उसने दिल्ली में नक्षत्र घड़ियाँ , एक धूप घड़ी तथा
एक जल घड़ी लगवाई।
राज्य के खर्च पर हज यात्रा की व्यवस्था कराने वाला वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम सु ल्तान था।
सै यद वं श (1414-51 ई.)
सै यद वं श का सं स्थापक खिजखाँ था ।
क्खिजखाँ ने सु ल्तान की उपाधि धारण न कर रै यत-ए-आला की उपाध धारण की थी।
खिजखाँ सु ल्तान न बनकर तै मरू के पु त्र शाहरुख के सूबेदार के रूप में शासन करता रहा।
खिज्रखाँ के समय में इटावा, कटे हर, कन्नौज, पटियाली और काम्पिल के हिन्द ू जमींदारों ने विद्रोह किये , जिन्हें
उनके मन्त्री 'ताज-उल-मु ल्क' ने दबा दिया था।
खिजखाँ ने अपने जीवन काल में ही मु बारकशाह को उत्तराधिकारी घोषित किया था।
मु बारकशाह ने शाह की उपाधि धारण कर अपने नाम के सिक्के ढलवाये तथा अपने नाम से खु तबा पढ़वाया।
याहिया बिन अहमद सरहिन्दी ने 'तारीख-ए-मु बारकशाही' नामक ग्रन्थ फारसी में लिखा था।
मु बारकशाह को मारकर वजीर सरवर-उल-मु ल्क ने मु हम्मदशाह को सिं हासन पर बै ठाया।
मु हम्मदशाह ने बहलोल लोदी का सम्मान किया तथा उसे अपना पु तर् कहकर पु कारा और ‘खान-ए-खाना' की उपाधि
प्रदान की।
मृ त्यु के पश्चात् 1445 ई. में उसका पु त्र अलाउद्दीन आलमशाह के नाम से दिल्ली का सु ल्तान बना। यह सै यद वं श का
अन्तिम शासक था ।
बहलोल लोदी
लोदी वं श का सं स्थापक बहलोल लोदी था। उसने प्रथम अफगान साम्राज्य की नींव डाली थी।
बहलोल लोदी अफगानी की एक महत्वपूर्ण शाखा शाहख
ू े ल से सम्बन्धित मु हम्मदशाह की था।
बहलोल लोदी अपने सरदारों का बड़ा सम्मान करता था अपने सरदारों को ‘मकसद-ए-अली' कहकर पु कारता था।
सु ल्तान ने 'बहलोली सिक्के को चलवाया था।
सल्तनतकालीन अर्थव्यवस्था
(1) इक्ता—सु ल्तान द्वारा विशे ष शर्तों पर व्यक्ति विशे ष की भूमि या भूमि का लगान आबण्टित करना।
(2) इक्तादार, मु क्ता या मु क्ताई—जिसे इक्ता प्रदान की गयी हो ।
(3) ख्वाजा—ख्वाजा का पद गवर्नर के लिए प्रयोग किया गया।बलबन ने प्रत्ये क प्रान्त में गवर्नर पद पर अपने पु त्रों
को नियु क्त किया, जिन्हें ख्वाजा कहा गया।
(4) खालसा–जो भूमि, केन्द्रीय सरकार के सीधे नियन्त्रण में होती थी तथा जिसके वसूले गये लगान को सीधे केन्द्रीय
राजकोष में जमा किया जाता था।
(5) जकात—एक प्रकार का धार्मिक कर जो सम्पत्ति का 2.5 प्रतिशत होता था।
(6) जजिया-गै र-मु सलमानों से जीवन एवं सम्पत्ति की रक्षा की एवज में वसूल किये जाने वाला कर।
(7) खराज- -भूमिकर, जो उपज का 1/3 भाग होता था।
(8) खु म्स यु द्ध में लूटे गये धन, जिसका 4/5 भाग सै निकों में बाँट दिया जाता था।
(9) मसाहत-उपज निर्धारण के लिए भूमि पै माइश का तरीका, इसे अलाउद्दीन खिलजी ने प्रचलित किया था ।
(10 ) आमिल—राजस्व वसूली करने वाला अधिकारी।
(11) हक्क-ए-शर्ब—नहरों द्वारा सिं चाई भूमि पर लगाया जाने वाला सिं चाई कर।
(12) सल्तनत काल में ऊँचे धार्मिक और न्यायिक पदों पर बै ठे व्यक्तियों (उले मा) को सामूहिक रूप से ‘दस्तार बन्दान'
(पगड़ी पहनने वाले ) कहा जाता था।
(13) पीटर जै क्सन को दिल्ली सल्तनत का विशे षज्ञ माना जाता है ।
मु गल साम्राज्य
जहीरुद्दीन मु हम्मद बाबर (1526-30 ई.)
भारत में मु गल साम्राज्य के सं स्थापक जहीरुद्दीन मु हम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 ई. को फरगना में हुआ
था।
मु गल शासक वास्तव में तु र्कों की चगताई नामक शाखा के थे । यह तै मरू का पाँचवां और माता की ओर से चं गेज का
चौदहवां वं शज था।
मु गल वं श
नोट-1540 ई. से 1545 ई. तक शे रशाह सूरी ने भारत पर शासन किया। 1540 ई. से 1555 ई. तक हुमायूँ ने निर्वासित जीवन
व्यतीत किया।
बाबर ने 1507 ई. में ‘पादशाह' की उपाधि धारण की, इससे पूर्व के शासक सु ल्तान की उपाधि धारण करते थे ।
बाबर को उसकी उदारता के लिए 'कलन्दर' की उपाधि दी गई।
बाबर के चार पु त्र–हुमायूँ , कामरान, अस्करी तथा हिन्दाल थे । हुमायूँ बाबर का ज्ये ष्ठ पु तर् था।
1514-19 ई. के मध्य बाबर ने उस्ताद अली और मु स्तफा खाँ नामक दो तु र्क तोपचियों की से वाएँ प्राप्त की तथा उन्हें
तोपखाने का अध्यक्ष नियु क्त हुआ।
पानीपत का प्रथम यु द्ध (21 अप्रैल, 1526 ई.) में बाबर ने उजबे कों की यु द्ध नीति तु गलमा यु द्ध पद्धति तथा उस्मानी
विधि अपनाकर इब्राहिम लोदी को पराजित किया था। भारत में पानीपत के इस यु द्ध में पहली बार तोपों का प्रयोग
ू चियों का ने तृत्व मु स्तफा ने किया था। के यु द्ध (17
किया गया। बाबर की तोपों का सं चालन उस्ताद अली तथा बन्दक
मार्च, 1527 ई.) में बाबर द्वारा राजपूत राणा सां गा पराजित हुआ।
बाबर ने खानवा के यु द्ध में 'जे हाद' का नारा दिया तथा विजयोपरान्त गाजी' की उपाधि धारण की ।
चन्दे री के यु द्ध (29 जनवरी, 1928) में बाबर ने मे दिनी राय को पराजित किया।
घाघरा के यु द्ध में (1529 ई.) में बाबर ने अफगानों को हराया था।
बाबर की मृ त्यु 26 सितम्बर, 1530 ई. को आगरा में हुई थी।
सर्वप्रथम बाबर को आगरा के रामबाग में दफनाया गया परन्तु बाद में उसे उसकी इच्छानु सार काबु ल में दफनाया गया
था।
बाबर 'मु बाइयाँ ' नामक पद्य शै ली का जन्मदाता था।
मु गल बादशाह बाबर के से नानायक मीर बाकी ने अयोध्या में बाबर मस्जिद का निर्माण कराया था।
बाबर ने अपनी आत्मकथा तु र्की भाषा में 'बाबरनामा' लिखी|बाबर ने अपनी आत्मकथा में दो हिन्द ू राज्यों में एक
ू रे मे वाड़ का उल्ले ख किया है ।
विजयनगर तथा दस
सूरी वं श
शे रशाह सूरी
शे रशाह का जन्म 1472 ई. में फिरोजा हिसार में हुआ था। इनके पिता हसन खाँ सासाराम के जागीरदार थे ।
फरीद खाँ अपनी सौते ली माँ व पिता से तं ग आकर 22 वर्ष की अवस्था में 1494 ई. में घर से भागकर जौनपु र चला
गया । वहाँ उसने अरबी, फारसी और व्याकरण का अध्ययन किया तथा कुछ समय बिहार के शासक मु हम्मद शाह
नु हानी के यहाँ नौकरी कर ली।
1529 ई. में बं गाल के शासक नु सरत शाह को पराजित करके शे र खाँ (शे रशाह सूरी) ने हजरते आला' की उपाधि धारण
की। 1539 ई. में चौसा के यु द्ध में हुमायूँ को पराजित करके उसने 'शे रशाह' की उपाधि धारण की तथा अपने नाम का
खु तबा पढ़वाया और सिक्के जारी किये ।
चौसा के यु द्ध के बाद शे रखाँ ने अपने नाम के सिक्के चलवाये तथा शे रशाह की उपाधि धारण की तथा पट् टा एवं
काबूलियत की व्यवस्था प्रारम्भ की थी।
शे रशाह सूरी ने हुमायूँ को हराकर 1540 ई. से 1545 ई. तक भारत पर राज किया था।
शे रशाह का असली नाम फरीद था । उसे खे रखान की उपाधि बिहार के गवर्नर मु हम्मद शाह नु हानी ने दी थी।
1540 ई. में कन्नौज की लड़ाई शे रशाह और मु गलों के बीच निर्णायक सिद्ध हुई । हुमायूँ अब राज्यविहीन था क्योंकि
काबु ल और कन्धार कामरान के पास था । वह ढाई वर्ष तक सिन्ध व पड़ोसी राज्यों में घूमता रहा।
शे रशाह 67 वर्ष की अवस्था में 1540 ई. में दिल्ली की गद्दी पर बै ठा, उसने 1553 ई. तक शासन किया।
शे रशाह के लिए कहा जाता है कि “मात्र मु ट्ठी भर बाजरे के चक्कर में मैं ने अपना साम्राज्य खो दिया होता।"
कालिं जर का अभियान, शे रशाह का 1545 ई. में अन्तिम सै न्य अभियान था। इसमें उक्का नामक आग्ने यास्त्र के एक
गोले के विस्फोट से शे रशाह की मृ त्यु हो गयी थी । यहाँ का शासक कीरत सिं ह था।
ू रा पु तर् इस्लाम शाह गद्दी पर बै ठा ।
शे रशाह की मृ त्यु के बाद उसका दस
इसकी भी यु वावस्था में मृ त्यु के बाद उत्तराधिकारियों में गृ ह यु द्ध छिड़ गया जिसका फायदा उठाकर हुमायूँ ने 15 वर्ष
बाद पु नः दिल्ली की गद्दी प्राप्त कर ली थी। शे रशाह के काल में मलिक मोहम्मद जायसी ने हिन्दी में 'पद्मावत' की
रचना की थी।
शे रशाह सूरी ने सिन्धु नदी से बं गाल तक शे रशाह सूरी मार्ग (ग्राण्ड ट् रंक रोड) का निर्माण करवाया था।
शे रशाह द्वारा बनावाई गईं 4 सड़कें प्रसिद्ध हैं -
(1) बं गाल में सोनार गाँ व से शु रू होकर दिल्ली, लाहौर होती हुई अटक तक।
(2) आगरा से बु रहानपु र तक।
(3) आगरा से जोधपु र होती हुई चित्तौड़ तक।
(4) लाहौर से मु ल्तान तक।
शे रशाह ने सड़कों के किनारे 1700 सरायों का निर्माण कराया जिनमें हिन्दुओं और मु सलमानों के ठहरने के लिए अलग-
अलग व्यवस्था होती थी। प्रत्ये क सराय की दे खभाल 'शिकदार' नामक अधिकारी करता था।
शे रशाह का मकबरा सासाराम (बिहार) में स्थित है ।
उसने चाँदी का 'रुपया' (180 ग्रेन) व ताँबे का 'दाम' (390 ग्रेन) सिक्कों को प्रचलित किया । इसकी 23 टकसालें थीं।
शे रशाह ने भूमि की माप के लिए 32 अं क वाला सिकन्दरी गज एवं सन की डण्डी का प्रयोग किया था ।
शे रशाह ने 1541 ई. में पाटलिपु तर् को ‘पटना' नाम से पु नः स्थापित किया।
शे रशाह ने रोहतासगढ़ का किला, दिल्ली में किला-ए-कुहना मस्जिद का निर्माण करावाया।
अब्बास खाँ ने शे रशाह की प्रशं सा करते हुए कहा कि "बु दधि ू रा है दर था।"
् मत्ता और अनु भव में वह दस
विविध तथ्य
मु गलकाल में पहला हिन्दी विद्वान 'मु ल्ला वाझी' था ।
मु गलकाल में जनपद को सरकार के नाम से जाना जाता था।
मु गल से ना का सै न्य विभाग का प्रधान मीरबख्शी था।
निकोलाओ मनूची को मु गल से ना में चिकित्सक नियु क्त किया गया था।
मु गलकाल में 'माल' भूराज्य से सम्बन्धित था ।
मु गल प्रशासन में विद्वानों एवं धार्मिक लोगों को दी जाने वाली भूराजस्व मु क्त अनु दान भूमि को मदद-ए-माश' कहा
जाता था। इसे 'सयूरगल' भी कहा जाता था।
मु गल प्रशासन में मु हतसिब जन आचरण के निरीक्षण विभाग का प्रधान था।
माहम अनगा ने दिल्ली के पु राने किले में ‘खै रूल मनजिल' अथवा "खै र-उल-मनजिल' नामक मदरसे की स्थापना की,
जिसे 'मदरसा-ए-बे गम' कहा जाता था।
मु गलकालीन दरबारी भाषा फारसी थी।
अब्दुर्रहीम ने खाने खाना का मकबरा दिल्ली में है ।
शिवाजी के उत्तराधिकारी
शिवाजी की मृ त्यु के पश्चात् उनका पु त्र शम्भाजी मराठा राज्य की गद्दी पर बै ठा। औरं गजे ब ने अचानक आक् रमण
करके शम्भाजी तथा उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया और फिर उनका वध करवा दिया तथा पु त्र शाहू और
पत्नी ये सब
ू ाई को गिरफ्तार कर रायगढ़ के किले में कैद करवा दिया था।
शम्भाजी ने उज्जै न के हिन्दी एवं सं स्कृत के प्रकाण्ड विद्वान कवि कलश को अपना सलाहकार नियु क्त किया था।
शम्भाजी की निर्मम हत्या के बाद उसके सौतले छोटे भाई राजाराम को राज्य के सिं हासन पर बै ठाया गया और उसके
ने तृत्व में मु गलों के विरुद्ध मराठों ने अपना सं घर्ष जारी रखा।
1689 ई. तक राजाराम मु गलों के आक् रमण की आशं का से रायगढ़ छोड़कर जिं जी भाग आया, जो मराठा साम्राज्य
की राजधानी रही थी।
जिं जी के बाद राजाराम ने 1699 ई. में सतारा को मराठों की राजधानी बनाया तथा मृ त्यु पर्यन्त (1700 ई. तक) मु गलों
से सं घर्ष जारी रखा।
राजाराम की मृ त्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई अपने 4 वर्षीय पु तर् शिवाजी-II का राज्याभिषे क करवाकर
मराठा साम्राज्य की वास्तविक सं रक्षिका बन गई तथा उसने भी मु गलों से सं घर्ष जारी रखा । उसने रायगढ़, सतारा
तथा सिं हगढ़ आदि किलों को जीत लिया था।
औरं गजे ब की मृ त्यु के बाद उसके पु तर् आजमशाह ने 8 मई, 1707 ई. को शाहू को कैद से मु क्त कर दिया था।
17 अक्टू बर, 1707 ई. में शाहू तथा ताराबाई के मध्य खे ड़ा का यु द्ध हुआ, जिसमें शाह,ू बालाजी विश्वनाथ की मदद से
विजयी हुआ।
शाहू ने 22 जनवरी, 1708 ई. को सतारा में अपना राज्याभिषे क करवाया।
शाहू के ने तृत्व में नवीन मराठा साम्राज्यवाद के प्रवर्तक पे शवा लोग ही थे , जो शाहू के पै तृक प्रधानमन्त्री थे ।
पे शवा पद पहले पे शवा के साथ ही वं शानु गत हो गया था।
बाजीराव प्रथम को मराठा साम्राज्य का द्वितीय सं स्थापक माना जाता है ।
1713 ई. में शाहू ने बालाजी विश्वनाथ को अपना पे शवा नियु क्त किया।
बालाजी विश्वनाथ को मराठा साम्राज्य का द्वितीय सं स्थापक माना जाता है ।
1719 ई. में बालाजी विश्वनाथ एवं सै यद हुसै न अली के बीच हुई सन्धि का मु ख्य कारण फर्रुखसियर को गद्दी से हटाना
था।
1719 ई. में बालाजी विश्वनाथ मराठों की एक से ना ले कर सै यद बन्धु ओं की मदद के लिए दिल्ली पहुंचे जहाँ उन्होंने
बादशाह फर्रुखसियर को हटाने में सै यद बन्धु की मदद की और मु गल साम्राज्य की कमजोरी को प्रत्यक्षतः दे खा।
इतिहासकार रिचर्ड टे म्पे ल ने मु गल सूबेदार हुसै न अली तथा बालाजी विश्वनाथ के बीच 1719 ई. में हुई मु गल-मराठा
सन्धि को मराठा साम्राज्य के मै ग्नाकार्टा की सं ज्ञा दी।
बालाजी विश्वनाथ की मृ त्यु के बाद शाहू ने उनके पु तर् बाजीराव प्रथम को पे शवा नियु क्त किया। इस प्रकार
बालाजी विश्वनाथ के परिवार में पे शवा का पद वं शानु गत हो गया था।
मु गल साम्राज्य के प्रति अपनी नीति की घोषणा करते हुए बाजीराव प्रथम ने कहा, “हमें इस जर्जर वृ क्ष के तने पर
आक् रमण करना चाहिए, शाखाएँ तो स्वयं ही गिर जायें गी।"
बाजीराव प्रथम को लड़ाकू पे शवा के रूप में स्मरण किया जाता है । वह शिवाजी के बाद गु रिल्ला यु द्ध का सबसे बड़ा
प्रतिपादक था।
7 मार्च, 1728 ई. में 'पालखे ड़ा का यु द्ध’ बाजीराव प्रथम एवं निजामु ल मु ल्क के बीच हुआ जिसमें निजाम की हार हुई।
निजाम के साथ मुं शी शिव गाँ व की सन्धि हुई जिसमें निजाम ने मराठों को चौथ और
सरदे शमु खी दे ना स्वीकार कर लिया था।
29 मार्च, 1737 ई. में पे शवा बाजीराव प्रथम ने दिल्ली पर आक् रमण किया । उस समय मु गल बादशाह मु हम्मदशाह
था, जो दिल्ली छोड़ने के लिए तै यार हो गया था। बाजीराव प्रथम दिल्ली पर आक् रमण करने वाला प्रथम पे शवा
था।
बाजीराव प्रथम मस्तानी नामक महिला से सम्बन्ध होने के कारण चर्चित रहा था।
1740 ई. में बाजीराव प्रथम की मृ त्यु के बाद अगला पे शवा बालाजी बाजीराव को बनाया गया । बालाजी बाजीराव के
समय तक पे शवा पद पै तृक बन गया था।
बालाजी बाजीराव को नाना साहब के नाम से जाना जाता था।
1750 ई. में रघु जी भोंसले की मध्यस्थता के कारण राजाराम तथा पे शवा के बीच सं गोला की सन्धि हुई थी।
1752 ई. में झलकी की सन्धि में निजाम ने मराठों को बरार का आधा क्षे तर् दे दिया था।
1754 ई. में मराठे रघु नाथराव के ने तृत्व में दिल्ली पहुंचे और वजीर गाजीउद्दीन की सहायता करते हुए उन्होंने
अहमदशाह को सिं हासन से हटाकर आलमगीर द्वितीय को मु गल बादशाह बना दिया था।
पानीपत का तृ तीय यु द्ध 14 जनवरी, 1761 ई. में हुआ। इसमें अफगान से नापति अहमदशाह अब्दाली ने मराठों को
पराजित किया । पानीपतके तृ तीय यु द्ध में मराठा से ना के तोपखाने का ने तृत्व इब्राहिम खाँ गर्दी कर रहा था।
इस यु द्ध में पे शवा बालाजी बाजीराव ने अपने नाबालिग बे टे विश्वास राव के ने तृत्व में एक शक्तिशाली से ना भे जी
किन्तु वास्तविक से नापति उसका चचे रा भाई सदाशिव राव भाऊ था ।
पानीपत के तृ तीय यु द्ध के प्रत्यक्षदर्शी काशीराज पण्डित के शब्दों में , “पानीपत का तृ तीय यु द्ध मराठों के लिए
प्रलयकारी सिद्ध हुआ।”
इतिहासकार जे . एन. सरकार के अनु सार, “महाराष्ट् र में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने कोई न कोई
सम्बन्धी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश ही हो गया ।
पानीपत के तृ तीय यु द्ध (1761 ई.) में मराठों के पराजय की सूचना बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कू ट सन्दे श
के रूप में पहुँचायी गयी, जिसमें कहा गया कि “दो मोती विलीन हो गये , बाइस सोने की मु हरें लु प्त हो गईं और चाँदी
तथा ताँबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।"
पानीपत के तृ तीय यु द्ध में मराठों की हार तथा बालाजी की अकस्मात् मृ त्यु (23 जून, 1761 ई.) के बाद उसका पु तर्
माधव राव प्रथम पे शवा बना। उसने मराठों की खोयी हुई प्रतिष्ठा पु नः प्राप्त करने का प्रयास किया।
माधवराव प्रथम के सरदार महादजी सिन्धिया ने निर्वासित मु गल बादशाह शाह आलम-II को पु नः दिल्ली की गद्दी
पर बै ठाया । मु गल बादशाह अब मराठों का पें शनभोगी बन गया था ।
पे शवा नारायण राव की हत्या उसके चाचा रघु नाथ राव द्वारा की गई।
पे शवा माधवराव नारायण-II की अल्पायु के कारण राज्य की दे खभाल बारहभाई सभा नाम की 12 सदस्यों की एक
परिषद् करती थी। इस परिषद् में महादजी सिन्धिया एवं नाना फड़नबीस दो महत्वपूर्ण सदस्य थे ।
माधवराव नारायण-II के शासनकाल में प्रथम आं ग्ल-मराठा यु द्ध हुआ था।
अन्तिम पे शवा राघोवा का पु तर् बाजीराव-II था, जो अं गर् े जों की सहायता से पे शवा बना था। मराठों के पतन में
सर्वाधिक योगदान इसी का था।
यह सहायक सन्धि को स्वीकार करने वाला प्रथम मराठा सरदार था।
आं ग्ल-मराठा सं घर्ष
विविध तथ्य
बं गाल के गवर्नर मीर कासिम ने अपनी राजधानी मु र्शिदाबाद से स्थानान्तरित कर मुं गेर बनायी थी।
मु गल सम्राट् द्वारा नियु क्त अन्तिम गवर्नर जनरल मु र्शीद कुली खाँ था।
सन्त तु काराम को दक्षिण का कबीर कहा जाता है ।