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कारक व उपपद ववभक्तियााँ

कक्षा – 9 के विये
कारक व उपपद ववभक्तियााँ
• जब अव्यय या वकसी ववशेष कारण से वकसी ववभक्ति का प्रयोग होता है तो
उसे “उपपद विभक्ति” कहते हैं जैसे-
• सह के योग में तृतीया-

• बािकााः मोहनेन सह पठक्ति ।


वितीया ववभक्ति – प्रवत, पररताः, उभयताः, ववना, अवभताः

• 1. प्रवत – ( की ओर ) – वृद्ध: उदयानम प्रवत गच्छवत ।

• 2. उभयत: - ( दोनोों ओर ) – नगरम् उभयत: वृक्षा: सक्ति ।

• 3. पररत: - ( चारोों ओर ) – कृष्णम् परितः गोपााः सक्ति ।

• 4. ववना – ( बगैर ) – सीता रामों विना वनों न गच्छवत ।


तृतीया विभक्ति - सह , साकं , सार्धम् , विना , हीन तथा अलम्

• 1. सह , साकों , सार्धम्- ( साथ - साथ ) –


पुत्राः जनकेन सह ( साकं सार्म्ध ) भ्रमवत ।
• 2. ववना- ( बगैर ) - सीता रामेण विना वनों न गच्छवत ।
• 3. हीन- ( रवहत ) - साः र्नेन हीनः अक्ति ।
• 4. अिम् - ( मत / बस ) अलम् कोिाहिेन ।

( इसके अवतररि सदृशों , समम् , तुल्य तथा अोंग ववकार बताने वािे शब्ोों के योग में भी
तृतीया होती है )
चतुथी विभक्ति- नमः , स्वक्ति , स्वाहा , अलम् , रुच् तथा क्रुर््

• 1. नमाः- ( नमस्कार ) - नमः वशवाय ।


• 2. स्वक्ति- ( कल्याण हो ) प्रजाभ्याः स्वक्ति ।
• 3. स्वाहा- ( दे वताओों की आहुवत ) अग्नये स्वाहा ।
• 4. अिम्- ( काफी , पयाध प्त ) एतद् दु ग्ध बािकाय अलम् ।
• 5. रुच्- ( अच्छा िगना ) - मह्यम् मोदकों िोचते ।
• 6. क्रुर्् - ( क्रोर् करना ) - वपता पुत्राय क्रुध्यवत ।

• ( इसके अवतररि स्पृह तथा स्वर्ा में भी चतुथी होती है । )


पंचमी विभक्ति - ऋते , बवह , अनन्तिम् , पूिधम् , प्रभृवत , प्र + भू औि भी

• 1. ॠते- ( वबना ) - ववद्यायााः ऋते न ज्ञानम् ।


• 2. बवह : - ( बाहर ) छात्र : कक्षायााः बवहः वतष्ठवत ।
• 3. अनिरम्- ( के बाद ) - सायोंकािात् अनन्तिम् अन्धकाराः भववत ।
• 4. पूवधम्- ( पूवध वदशा ) - नगरात् पूिधम् नदी वहवत ।
• 5. प्रभृवत- ( से िेकर ) - स : शैशवात् प्रभृवत चतुराः ।
• 6. प्र + भू- ( पैदा होना ) - गोंगा वहमाियात् प्रभिवत ।
• 7. भी- ( डरना ) - बाि: वसोंहात् वबभेवत ।
षष्ठी विभक्ति - वनर्ाधिण में , उपरि , अर्ः , पृष्ठतः , पुितः , पश्चात्

• 1. वनर्ाध रण में - ( बहुतोों में से एक को कम या अवर्क बताना ) रामाः बािकेषु / बािकानाम्


श्रेष्ठाः ।
( तुलनात्मक-िणधन के कारण षष्ठी या सप्तमी ववभक्ति प्रयुि होती है । )
• 2. उपरर - ( ऊपर ) – पुिकों पटिस्य उपरि अक्ति ।
• 3. अर्: - ( नीचे ) - भूमेाः अर्: जिम् अक्ति ।
• 4. पृष्ठताः- ( पीछे से ) - तस्य पुत्राः गृहस्य पृ ष्ठतः अर्ावत् ।
• 5. पुरताः- ( सामने से ) - मम पु ितः मा वतष्ठ ।
• 6. पश्चात् - ( बाद में ) - भोजनस्य पश्चात् साः ववश्रामों करोवत । योग में
सप्तमी विभक्ति - वनपुण , कुशल , प्रिीण , विश्वास औि स्नेह

• 1. वनपुण- ( चतुर ) - साः अध्ययने वनपु णः अक्ति ।


• 2. कुशि- ( चतुर , प्रवीण ) -अजुधनाः युद्धे कुशलः आसीत् ।
• 3. प्रवीण : - ( होवशयार ) -रमेश : वीणावादने प्रिीणः ।
• 4. वव + श्वस्- ( ववश्वास करना ) -गुरु : वशष्ये विश्ववसवत ।
• 5. विह् - ( िेह करना ) - पुत्रे वस्नह्यवत माता । वपता पुत्रे वस्नह्यवत ।

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