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Khbs 109
Khbs 109
सीखने के उद्देश्य
इस अध्याय को पढ़ने के बाद आपको सक्षम होना चाहिए—
yy भारत में सक्ू ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यम (MSME) के अर्थ और प्रकृ ति को समझाने में;
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उद्यम देश में औद्योगिक परिदृश्य पर श्रम बल के राष्ट्रीय विकास के लिए इस क्षेत्र की क्षमता को
काफी बड़े अनपु ात और ज़बरदस्त निर्यात क्षमता के पहचानते हुए, उद्योग के इस भाग को आत्मनिर्भरता
साथ छा गया है। और ग्रामीण औद्योगीकरण के उद्देश्य को परू ा करने के
सक्ू ष्म, लघु और मध्यम उद्यम आर्थिक वृद्धि में लिए सधु ार-पर्वू और सधु ार-पश्चात् दोनों अवधिओ ं
महत्वपर्णू भमि ू का निभाते हैं और सकल घरे लू उत्पाद में प्रोत्साहित किया जाता है।
के 29.7 प्रतिशत और निर्यात में 49.66 प्रतिशत भारत में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम में
योगदान करते हैं। यह क्षेत्र कृ षि क्षेत्र के बाद 28.5 ‘पारंपरिक’ और ‘आधुनिक’ दोनों प्रकार के छोटे
मिलियन उद्यमों के माध्यम से लगभग 60 मिलियन उद्योग शामिल हैं। इस क्षेत्र में आठ उपसमूह हैं। ये
लोगों को रोज़गार देता है। सक्ू ष्म, लघु और मध्यम हथकरघा, हस्तशिल्प, नारियल-जटा (कॉइअर),
उद्यम सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के परू क रे शम-उत्पादन, खादी और ग्रामोद्योग, लघु उद्योग
हैं और स्वदेशी कौशलों, आधारिक नवाचारों और और पावरलू म हैं। एम.एस.एम.ई. के विकास
उद्यमिता विकास के लिए अनक ु ू ल वातावरण बनाने में खादी और ग्रामोद्योग तथा नारियल-जटा
के लिए मलू ्य �ृंखला का एक अभिन्न अगं बनाते (कॉइअर) खं ड अन्य प्रमुख योगदाता हैं। कई
हैं। यह क्षेत्र साधारण उपभोक्ता वस्तुओ ं से लेकर वै श्वि क कं पनियाँ कम लागत वाले विनिर्माण
उच्च-परिशद्ध ु ता, परिष्कृ त तैयार उत्पादों तक की और स्थानीय कौशलों और क्षमताओ ं के साथ
एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन करता है। नवाचारी क्षमताओ ं के कारण आपसी लाभ की
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ग्रामीण उद्योग
ग्राम उद्योग को ग्रामीण क्षेत्र में स्थित किसी भी उद्योग के रूप में परिभाषित किया गया है जो ऊर्जा के उपयोग के
साथ या उसके बिना किसी भी माल का उत्पादन करता है, कोई सेवा देता है और जिसमें प्रति मखिया ु या कारीगर
या श्रमिक के निश्चित पँजू ी निवेश का कें द्र सरकार द्वारा समय-समय पर उल्लेख किया जाता है।
कुटीर उद्योग
कुटीर उद्योगों को ग्रामीण उद्योगों या पारंपरिक उद्योगों के रूप में भी जाना जाता है। वे अन्य लघु उद्योगों की तरह
पँजू ी निवेश मानदडं ों से परिभाषित नहीं होते हैं।
मध्यम उद्यम पर हमेशा भारत की औद्योगिक रणनीति (ii) कृ षि के बाद, सक्ू ष्म, लघु और मध्यम उद्यम
का एक अभिन्न अंग बनने के लिए ज़ोर रहा है। मानव ससं ाधन का दसू रा सबसे बड़ा नियोक्ता
एम.एस.एम.ई. का विकास रोज़गार की तलाश में है। वे बड़े उद्योगों की तल
ु ना में निवेश की गई
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास को रोकता है पँजू ी की प्रति इकाई, रोज़गार के अवसरों की
और अन्य सामाजिक-आर्थिक पहलओ ु ,ं जैसे कि अधिक संख्या उत्पन्न करते हैं। इसलिए, उन्हें
आय असमानताओ,ं उद्योगों के बिखरे विकास में अधिक गहन श्रम और कम गहन पँजू ी माना
कमी लाने और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ जाता है। यह भारत जैसे श्रमिक अधिशेष देश
जड़ाव
ु में योगदान देता है। के लिए एक वरदान है।
वास्तव में सक्ू ष्म, लघु और मध्यम उद्यम और (iii) हमारे देश में सक्ू ष्म, लघु और मध्यम उद्यम,
ग्रामीण औद्योगिकीकरण को भारत सरकार ने “त्वरित उत्पादों की एक विशाल विविधता की
औद्योगिक विकास और ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में आपूर्ति करते हैं, जिसमें बड़े पै म ाने पर
अतिरिक्त उत्पादक रोज़गार की संभावनाएँ उत्पन्न उपभोग का सामान, बने-बनाए वस्त्र, होज़री
करने” के दोहरे उद्देश्यों को साकार करने के लिए एक की वस्तुएँ, स्टेशनरी की वस्तुएँ, साबनु और
शक्तिशाली साधन के रूप में माना है। डिटर्जेंट, घरे लू बर्तन, चमड़े, प्लास्टिक और
निम्नलिखित बिंदु उनके योगदान को उजागर रबर से बनी वस्तुएँ, तैयार खाद्य पदार्थ और
करते हैं। सब्जि़याँ, लकड़ी और स्टील फ़र्नीचर, पेंट,
(i) हमारे देश के संतलि ु त क्षेत्रीय विकास में इन वार्निश, माचिस इत्यादि शामिल हैं। निर्मित
उद्योगों का योगदान उल्लेखनीय है। भारत में जटिल वस्तुओ ं में टेलीविज़न, कै लकुलेटर,
छोटे उद्योग देश की औद्योगिक इकाइयों का इले क्ट्रो -मेड िकल उपकरण, इले क्ट्रॉनिक
95 प्रतिशत हिस्सा हैं। शिक्षण सहायक उपकरण जैसे ओवरहेड
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पारं प रिक प्रौद्योगिकी और वित्त की अपर्याप्त सामग्री उपलब्ध नहीं है, तो उन्हें गणु वत्ता
उपलब्धता शामिल हैं। निर्यात करने वाली छोटी पर समझौता करना होगा या अच्छी गणु वत्ता
इकाइयों की समस्याओ ं में विदेशी बाज़ारों पर पर्याप्त वाली सामग्री प्राप्त करने के लिए उच्च कीमत
आँकड़ों की कमी, बाज़ार की खफिया ु जानकारी की चक ु ानी होगी। उनके द्वारा की गई कम मात्रा की
कमी, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव, गणु वत्ता मानकों खरीद के कारण उनकी सौदेबाज़ी का सामर्थ्य
और लदान-पर्वू वित्त शामिल हैं। सामान्य तौर पर छोटे अपेक्षाकृ त कम होता है। इसके अलावा, वे
व्यवसायों को निम्नलिखित समस्याओ ं का सामना थोक में खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते
करना पड़ता है— क्योंकि उनके पास सामग्रियों को रखने की
(i) अर्थ-व्यवस्था— सक्ू ष्म, लघु और मध्यम कोई सवि ु धा नहीं होती है। अर्थव्यवस्था में
उद्यमों के सामने आने वाली गभं ीर समस्याओ ं धातओ ु ,ं रसायनों और निकाले जाने वाले
में से एक अपने संचालन के लिए पर्याप्त कच्चे माल की सामान्य कमी के कारण, लघु
वित्त की अनपु लब्धता होती है। सामान्यता क्षेत्र सबसे अधिक नक ु सान उठाते हैं। इसका
ये व्यवसाय एक छोटे पँजू ी आधार के साथ अर्थ अर्थव्यवस्था के लिए उत्पादन क्षमता की
शरू ु होते हैं। छोटे क्षेत्र की कई इकाइयों में बर्बादी और आगे की इकाइयों की क्षति भी है।
पँजू ी बाज़ारों से पँजू ी के रूप में जटु ाने के लिए (iii) प्रबंधकीय कौशल— इन व्यवसायों को
आवश्यक साख योग्यता का अभाव होता है। सामान्यता एक व्यक्ति द्वारा आगे बढ़ाया और
परिणामस्वरूप, वे स्थानीय वित्तीय संसाधनों चलाया जाता है, जिनके पास हो सकता है
पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं और अक्सर कि व्यवसाय चलाने के लिए आवश्यक सभी
साहूकारों द्वारा शोषण का शिकार होती हैं। ये प्रबधं कीय कौशल न हों। कई छोटे व्यवसाय
इकाइयाँ या तो उन पर बकाया भगु तान में देरी उद्यमियों के पास अच्छा तकनीकी ज्ञान तो
के कारण या बिना बिके माल में अपनी पजँू ी के होता है, लेकिन उत्पाद के विपणन में कम
फँ सने के कारण अक्सर पर्याप्त कार्यशील पजँू ी सफल होते हैं। इसके अलावा, हो सकता है
की कमी से पीड़ित होती हैं। बैंक भी पर्याप्त कि उन्हें सभी कार्यों सबं धं ी गतिविधियों की
समर्थक प्रतिभति ू या गारंटी और सीमातं धन देखभाल करने के लिए पर्याप्त समय नहीं
के बिना पैसा उधार नहीं देते हैं, जो उनमें से मिलता हो। साथ ही वे व्यावसायिक प्रबधं कों
कई देने की स्थिति में नहीं होते हैं। का वित्तीय भार वहन करने की स्थिति में नहीं
(ii) कच्चा माल— सूक्ष्म, लघु और मध्यम होते हैं।
उद्यम की एक और बड़ी समस्या कच्चे (iv) विपणन (क्रय-विक्रय)— विपणन सबसे
माल की अधिप्राप्ति होती है। यदि अपेक्षित महत्वपर्णू गतिविधियों में से एक है क्योंकि
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विकसित देश को इसे बनाए रखने के लिए उद्यमिता बनाने की कोशिश कर सकता है, इस आधार
की आवश्यकता होती है। वर्तमान भारतीय संदर्भ पर कि क्योंकि जिस तरह उद्यमिता जोखिम
में, जहाँ एक ओर, सार्वजनिक क्षेत्र और बड़े क्षेत्र में उठाती है, वैसा ही जोखिम अवैध कारोबार
रोज़गार के अवसर कम होते जा रहे हैं और दसू री ओर, उठाते हैं। उद्यमिता का उद्देश्य व्यक्तिगत
वैश्वीकरण से उत्पन्न होने वाले विशाल अवसर लाभ लाभ और सामाजिक प्राप्ति के लिए मलू ्य
देने की प्रतीक्षा में हैं; उद्यमिता वास्तव में भारत को का निर्माण है।
एक सपु र आर्थिक शक्ति बनने की ऊँचाइयों पर ले जा
(iii) नवाचार— फर्म के दृष्टिकोण से, नवाचार
सकती है। इस प्रकार, उद्यमिता की आवश्यकता उन
कार्यों से उत्पन्न होती है जो उद्यमी आर्थिक विकास लागत कम करने वाला या राजस्व बढ़ाने
की प्रक्रिया के संबंध में और व्यावसायिक उद्यम के वाला हो सकता है। यदि यह दोनों करता है तो
संबंध में करते हैं। यह अत्तयं स्वागत योग्य है। अगर यह कोई भी
उद्यमिता की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं— नहीं करता है, तब भी स्वागत योग्य है क्योंकि
(i) व्यवस्थित गतिविधि— उद्यमिता एक नवाचार एक आदत बन जाना चाहिए।
रहस्यमय उपहार या आकर्षण और कुछ उद्यमिता इस अर्थ में रचनात्मक है कि
ऐसा नहीं है जो संयोग से होता है! यह एक इसमें मलू ्य का सर्जन शामिल है। उत्पादन
व्यवस्थित, चरण-दर-चरण और उद्देश्यपर्णू के विभिन्न कारकों को मिलाकर, उद्यमी
गतिविधि है । इसकी कु छ स्वाभाविक वस्तुओ ं और सेवाओ ं का उत्पादन करते हैं
कौशलों और अन्य ज्ञान और क्षमताओ ं जो समाज की ज़रूरतों और माँगों को परू ा
की आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें औपचारिक करते हैं। प्रत्येक उद्यमी कार्य आय और धन
शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण दोनों के कमाने में परिणित होता है। उद्यमिता इस अर्थ
साथ-साथ अवलोकन और कार्य अनुभव में भी रचनात्मक है कि इसमें नवाचार शामिल
द्वारा प्राप्त किया, सीखा और विकसित है— नए उत्पादों को बाज़ार में लाना, नए
किया जा सकता है। उद्यमिता की प्रक्रिया बाज़ारों की खोज और निवेशों की आपर्ति ू के
की ऐसी समझ उस मिथक को दरू करने के स्त्रोतों, तकनीकी सफलताएँ और साथ ही नए
लिए महत्वपर्णू है कि उद्यमी पैदा होते हैं न संगठनात्मक रूपों को शामिल करें जो काम
कि बनाए जाते हैं। को बेहतर, सस्ता, तेज़ और वर्तमान सदं र्भ में,
(ii) वैध और उद्देश्यपर्ण ू गतिविधि— उद्यमिता इस तरह से जो पारिस्थितिकी/ पर्यावरण को
का उद्देश्य वैध व्यवसाय है। इसका ध्यान कम से कम नक ु सान पहुचँ ाते हैं।
रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई व्यक्ति (iv) उत्पादन प्रबंध— उत्पादन, रूप, स्थान,
गैरकाननू ी कार्यों को उद्यमिता के रूप में वैध समय, व्यक्तिगत उपयोगिता के लिए उत्पादन,
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आविष्कार, पसु ्तकें , पेंटिंग, गीत, प्रतीक, नाम, चित्र आविष्कार, साहित्यिक और कलात्मक कार्य,
या व्यवसाय में उपयोग किए जाने वाले डिज़ाइन, प्रतीक, नाम, चित्र और व्यवसाय में उपयोग किए
आदि। सभी रचनाओ ं का आविष्कार एक ‘विचार’से गए डिज़ाइन।
शरूु होता है। एक बार जब विचार एक वास्तविक बौद्धिक सपं दा दो व्यापक वर्गों में विभाजित है—
उत्पाद अर्थात् बौद्धिक सपं दा बन जाता है, तो व्यक्ति औद्योगिक सपं दा, जिसमें आविष्कार (पेटटें ), व्यापार
भारत सरकार के सबं ंधित प्राधिकरण को सरं क्षण के चिह्न (ट्रेडमार्क ), औद्योगिक डिज़ाइन और भौगोलिक
लिए आवेदन कर सकता है। ऐसे उत्पादों पर प्रदत्त
सक ं े त शामिल हैं, जबकि दसू रा कॉपीराइट है, जिसमें
काननू ी अधिकारों को ‘बौद्धिक संपदा अधिकार’
साहित्यिक और कलात्मक कार्य, जैस— े उपन्यास,
(IPR) कहते हैं। इसलिए बौद्धिक संपदा (आई.पी.)
मानव मन के उत्पादों से सबं ंध रखता है, इसलिए, कविता, नाटक, फि़ल्में, सगं ीत कलाकृ तियाँ, कलात्मक
अन्य प्रकार की संपत्ति की तरह, बौद्धिक संपदा के कार्य, जैस— े पेंटिगं , चित्र, फ़ोटोग्राफ़ और मर्तिया
ू ँ तथा
मालिक इसे अन्य लोगों को किराए पर दे सकते हैं, वास्तुशिल्प डिज़ाइन शामिल हैं।
दे या बेच सकते हैं। बौद्धिक संपदा और अन्य प्रकार की संपदा के
विशेष रूप से, बौद्धिक संपदा (आई.पी.) बीच सबसे अधिक ध्यान देने योग्य अतं र यह है कि
मानव दिमाग की कृ तियों से संबंिधत होती है, जैसे बौद्धिक संपदा अमर्तू है यानी इसे अपने स्वयं के
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प्रक्रिया) की रक्षा करता है और पहले से ज्ञात उत्पादों पेटेंट के वल किसी आविष्कार पर अधिकार
पर तकनीकी प्रगति दिखाता है। एक ‘पेटेंट’ सरकार पाने के लिए दायर किया जा सकता है, किसी खोज
द्वारा दिया गया एक विशिष्ट अधिकार है जो अन्य के लिए नहीं। न्टयू न ने सेब को गिरते देखा और
सभी को ‘बाहर करने का अधिकार’ देता है और गरुु त्वाकर्षण का पता लगाया, जिसे एक खोज माना
उन्हें आविष्कार को बनाने, उपयोग करने, बिक्री के जाता है। दसू री ओर, टेलीफ़ोन के जनक अलेक्जेंडर
लिए प्रस्तुत करने, बेचने या आयात करने का अनन्य ग्राहम बेल ने टे लीफ़ोन का आविष्कार किया।
‘अधिकार’ प्रदान करता है। इस प्रकार जब हम किसी नवीन, या अद्वितीय को
एक आविष्कार के लिए पेटेंट योग्य होने के लिए, अस्तित्व में लाने के लिए अपनी क्षमता का उपयोग
वह किसी भी व्यक्ति के लिए नया, अस्पष्ट होना करते हैं, तो इसे एक आविष्कार कहते हैं, जबकि
चाहिए, जो प्रौद्योगिकी के प्रासंगिक क्षेत्र में कुशल पहले से मौजदू चीज़ के अस्तित्व को उजागर करने
है और उसे औद्योगिक अनप्रु योग के लिए सक्षम की प्रक्रिया को खोज कहा जाता है।
होना चाहिए। पेटेंट का उद्देश्य वैज्ञानिक क्षेत्र में नवाचार को
(i) यह नया होना चाहिए, अर्थात् यह दनिया ु में प्रोत्साहित करना है। पेटेंट एक आविष्कारक को
कहीं भी वर्तमान जानकारी में पहले से मौजदू 20 वर्ष की अवधि के लिए विशेष अधिकार प्रदान
नहीं होना चाहिए, करता है, जिसके दौरान कोई अन्य व्यक्ति जो पेटेंट
(ii) यह किसी भी व्यक्ति, जो प्रौद्योगिकी के विषयवस्तु का उपयोग करना चाहता है, तो उसे इस
प्रासगि
ं क क्षेत्र में कुशल हो, के लिए अस्पष्ट तरह के आविष्कार के व्यावसायिक उपयोग के लिए
होना चाहिए। अर्थात,् मानक ऐसा व्यक्ति है कुछ लागत का भगु तान करके , पेटेंटकर्ता से अनमु ति
जो अध्ययन के ऐसे क्षेत्र (आविष्कारी चरण) लेने की आवश्यकता होती है। शलु ्क देकर पेटेंटकर्ता
में काफी कुशल है। के विशेष अधिकार प्राप्त करने की इस प्रक्रिया को
(iii) अत ं में, यह औद्योगिक अनप्रु योग के योग्य लाइसेंसिंग (अनज्ु ञापत्र प्राप्ति) कहते हैं।
होना चाहिए, अर्थात् उद्योग में उपयोग या पेटेंट एक अस्थायी एकाधिकार बनाता है। एक
विनिर्मित होने के योग्य होना चाहिए। बार जब एक पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है,
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और नवप्रवर्तन से लाभ उठाता है। आज स्टार्ट-अप है, नौकरी-चाहने वालों का नहीं, नौकरियाँ उत्पन्न
कई विघटनकारी तकनीकों के लिए जि़म्मेदार हैं, करने वालों का एक राष्ट्र बनाती है। बौद्धिक संपदा
जिन्होंने हमारे सोचने और जीने के तरीके को बदल अधिकार नए उद्यमों को उनके अपने विचारों के
दिया है। 20,000+ स्टार्ट-अप के साथ, भारत को मद्री
ु करण करने में सहायता प्रदान हेतु महत्वपर्णू हो
दनिया
ु में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी सकते हैं और बौद्धिक संपदा अधिकार द्वारा दी जाने
तंत्र कहा जाता है। स्टार्ट-अप इडं िया पहल भारतीयों वाली सरु क्षात्मक छाया को बढ़ाकर बाज़ार में अपनी
में उद्यमिता की लकीर को पकड़ने का प्रयास करती प्रतिस्पर्धा स्थापित कर सकते हैं।
मुख्य शब्द
लघु उद्योग कुटीर उद्योग छोटे उद्योग
सक्ू ष्म व्यवसाय उद्योग खादी उद्योग
उद्यमिता
सारांश
भारत में छोटे व्यवसाय की भूमिका— लघु उद्योग देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में बहुत महत्वपर्णू भमि ू का
निभाते हैं। इन उद्योगों में 95 प्रतिशत औद्योगिक इकाइयाँ होती हैं, जो सकल औद्योगिक मलू ्य में 40 प्रतिशत तक और
कुल निर्यात का 45 प्रतिशत योगदान करती हैं। लघु उद्योग कृ षि के बाद मानव संसाधन के दसू रे सबसे बड़े नियोक्ता
हैं, और अर्थव्यवस्था के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओ ं का उत्पादन करते हैं। ये इकाइयाँ स्थानीय रूप से उपलब्ध
सामग्री और स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके देश के सतं लि ु त क्षेत्रीय विकास में योगदान करती हैं। ये उद्यमिता के
लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती हैं; उत्पादन की कम लागत के लाभ उठाती हैं, इनमें त्वरित निर्णय लेने, और त्वरित
अनक ु ू लन की क्षमता होती है और अनक ु ू लित उत्पादन के लिए सबसे उपयक्त ु होती हैं।
ग्रामीण भारत में लघु व्यवसाय की भूमिका— लघु व्यवसाय इकाइयाँ गैर-कृ षि गतिविधियों की एक विस्तृत
�ृंखला में आय के कई स्त्रोत प्रदान करती हैं, और विशेष रूप से पारंपरिक कारीगरों और समाज के कमज़ोर वर्गों के
लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर प्रदान करती हैं।
उद्यमी— शब्द ‘उद्यमी’, ‘उद्यमिता’ और ‘उपक्रम’ को अग्ं रेज़ी भाषा में वाक्य की सरं चना के साथ सादृश्य बनाकर
समझा जा सकता है। उद्यमी एक व्यक्ति (विषय) है, उद्यमिता एक प्रक्रिया (क्रिया) है और उपक्रम व्यक्ति का सर्जन
और प्रक्रिया का उत्पादन (वस्तु) है।
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(iii) सक्ू ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के मालिक के सामने आने वाली वास्तविक समस्याएँ— इस पर
एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें ।
(iv) उत्पादों और सेवाओ ं का विपणन।
2. अपने साथी के लिए जी.आई. टैग(गों) का पता लगाएँ। एक चार्ट तैयार करें जो इसकी अनठू ी विशेषताओ ं
को दर्शाता है। कक्षा में चर्चा करें कि उत्पाद के लिए जी.आई. टैग ने क्षेत्रीय विकास को कै से आगे बढ़ाया।
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