Professional Documents
Culture Documents
Class 8 Hindi
Class 8 Hindi
Summative Assessment-II
(2021-22)
Hindi
Subjective Paper
Date: 7 March 2022 M.M.- 40
Time: 2 hrs
General Instructions:
• Do all the answers on paper
• Please ensure that you write your Name, Class, Section and Admission Number, Subject,
and Date along with Question Number clearly on the right side corner of each sheet.
• Click the pictures of each page and convert them into a PDF file
• Remember to rename your PDF with your Name, Class and Section.
• A Google Form is sent along with the paper. Upload ONLY One PDF for all answers in
the Google Form.
• Incase due to any reason you are not able to submit your responses, you may immediately
send the PDF to your NODAL Teacher’s WhatsApp number given.
जब मैं वैयक्तिक और सामाजजक व्यवहार में अपनी भाषा के प्रयोग पर बल दे ता हूँ तब जनश्चय ही मेरा तात्पयय
यह नहीीं है जक व्यक्ति को दू सरी अथवा जवदे शी भाषाएूँ सीखनी नहीीं चाजहए l हमें आवश्यकता, अनुकूलता
और शक्ति के अनुसार अनेक भाषाएूँ सीखनी चाजहए तथा उनमें से एकाजिक में जवशेष दक्षता भी प्राप्त
करनी चाजहए, द्वे ष जकसी भी भाषा से नहीीं करना चाजहए; क्ोींजक जकसी भी प्रकार के ज्ञान की उपेक्षा करना
उजचत नहीीं है ; जकींतु प्रिानता सदै व अपनी ही भाषा और अपने साजहत्य को दे ना चाजहए।अपनी सींस्कृजत,
अपने समाज और अपने दे श का सच्चा जवकास और कल्याण केवल अपनी भाषा के व्यवहार द्वारा ही सींभव
है । ध्यान रक्तखए – ज्ञान- जवज्ञान, िमय - राजनीजत तथा लोकव्यवहार के जलए सदा लोक भाषा का प्रयोग ही
अभीष्ट है । अपने दे श, अपने समाज और अपनी भाषा की सेवा तथा वृक्ति करना सभी तरह से हमारा परम
कतयव्य है ।
ख) जनम्नजलक्तखत में से जकसी एक पद्ाीं श का सरलाथय अपने शब्ोीं में जलक्तखए l (5)
ऐसे बेहाल जबवाइन सोीं, पग कींटक जाल लगे पुजन जोए।
हाय! महादु ख पायो सखा, तुम आए इतै न जकतै जदन खोए ll
दे क्तख सुदामा की दीन दसा, करुना कररकै करुनाजनजि रोए।
पानी परात को हाथ छु यो नजहीं , नैनन के जल सोीं पग िोए ll
या
मैया, कबजहीं बढ़ै गी चोटी?
जकती बार मोजहीं दू ि जपयत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहजत बल की बेनी ज्यीं, ह्वै है लाूँ बी-मोटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नाजगनी सी भुइूँ लोटी।
काूँ चय दू ि जपयावत पजच-पजच, दे जत न माखन-रोटी।
सूर जचरजीवय दोउ भैया, हरर-हलिर की जोटी।
घ)जदए गए गद्ाीं श को ध्यानपूवयक पढ़कर उन पर आिाररत प्रश्ोीं के उत्तर सीं क्षेप में जलक्तखए l (1+1+1+2)
उनके जसर पर टोपी जकतनी अच्छी लगती है ।” गवरइया बोली, “मेरा भी मन टोपी पहनने का करता है ।”
“टोपी तू पाएगी कहाूँ से?” गवरा बोला, “टोपी तो आदजमयोीं का राजा पहनता है । जानती है , एक टोपी के
जलए जकतनोीं का टाट उलट जाता है । जरा-सी चूक हुई नहीीं जक टोपी उछलते दे र नहीीं लगती। अपनी टोपी
सलामत रहे , इसी जिकर में जकतनोीं को टोपी पहनानी पड़ती है । … मेरी मान तो तू इस चक्कर में पड़ ही
मत।”
गवरा था तजनक समझदार, इसजलए शक्की। जबजक गवरइया थी जजद्दी और िुन की पक्की। ठान जलया सो
ठान जलया, उसको ही जीवन का लक्ष्य मान जलया। कहा गया है -जहाूँ चाह, वहीीं राह। मामूल के मुताजबक
अगले जदन दानोीं घूरे पर चुगने जनकले। चुगते - चुगते उसे रूई का एक िाहा जमला।
अथवा
प्रिानाचायय को सींध्याकालीन खेल की उजचत व्यवस्था के जलए प्राथयना करते हुए पत्र जलक्तखए l