You are on page 1of 108

कें द्रीय विद्यालय संगठन, जयपुर संभाग

KENDRIYA VIDYALAYA SANGATHAN, JAIPUR REGION

विद्यार्थी सहायक सामग्री


सत्र
हिन्दी – पाठ्यक्रम-‘अ’(002) 2023-24

कक्षा दसव ीं

िाच्य अलंकार

िाक्य भेद
(रचना के
आधार पर) पद
पररचय

(केन्द्रीय माध्यममक मिक्षा बोर्ड द्वारा जारी नमूने पर आधाररत)

निज भाषा उन्िनि अिै , सब उन्िनि को मल


ू ।
बबि निज भाषा-ज्ञाि के, ममटि ि हिय को सूल।।
मख्
ु य सींरक्षक
CHIEF PATRON

श्र ब .एल.मोरोड़िया
उपायुक्ि / DEPUTY COMMISSIONER
जयपुर सींभाग / JAIPUR REGION

सींरक्षक सींरक्षक सींरक्षक


PATRON PATRON PATRON

श्र हदग्गराज म णा श्र ज . एस. मेििा श्र माधो मसींि


सिायक आयक्
ु ि सिायक आयुक्ि सिायक आयुक्ि
ASSISTANT COMMISSIONER ASSISTANT COMMISSIONER ASSISTANT COMMISSIONER
जयपुर सींभाग / JAIPUR REGION जयपुर सींभाग / JAIPUR REGION जयपुर सींभाग / JAIPUR REGION

सींरक्षक समन्वयक
PATRON COORDINATOR

श्र ववकास गुप्िा डॉ. राकेश व्यास


सिायक आयुक्ि प्राचायय / PRINCIPAL
ASSISTANT COMMISSIONER
प एम श्र के.वव. स .स.ु बल जोधपुर
जयपुर सींभाग / JAIPUR REGION
PMSHRI KV BSF JODHPUR
पाठ्य सामग्री पुनर्निर्मिण समममत

क्र. सं. सदस्य का नाम पद के. वि. का नाम

01 श्री मक
ु े श मेघवाल स्नातकोत्तर शिक्षक -हिन्दी सी.सु.बल जोधपरु

02 श्रीमती सम
ु न शमाा प्र.स्ना.शिक्षक -हिन्दी क्रमाांक 1 वायस
ु ेना जोधपुर

03 श्री भवानी ससिंह प्र.स्ना.शिक्षक -हिन्दी बनाड़ जोधपुर

04 श्री ओमप्रकाि वैष्णव प्र.स्ना.शिक्षक -हिन्दी सी.सु.बल जोधपुर

05 श्री मुरलीधर प्र.स्ना.शिक्षक -हिन्दी क्रमाांक 2 वायुसेना जोधपुर

06 श्रीमती प्रततभा स्वर्ाकार प्र.स्ना.शिक्षक -हिन्दी क्रमाांक 1 सेना जोधपुर

3
विषय-सूची

क्र.सं. विषय

मुख्य पष्ृ ठ

प्रततदशा प्रश्न-पत्र

1. (1) अपहठत गदयाांि

(2) अपहठत कावयािंश


2. व्याकरण
(1) वाक्य भेद (रचना के आधार)
(2) वाच्य
(3) पद-पररचय
(4) अलांकार (शब्दालिंकार-श्लेष, अर्ाालिंकार- उत्प्प्रेक्षा, अततशयोक्तत,
मानवीकरर्)
3. क्षक्षततज भाग-2
(1) गदय खांड
(2) कावय खांड
4. कृततका भाग-2

5. रचनात्मक लेखन
(1) अनच्
ु छे द लेखन
(2) पत्र लेखन (औपचाररक एविं अनौपचाररक)
(3) स्ववत
ृ लेखन
(4) ई-मेल (औपचाररक)
(5) ववज्ञापन लेखन
(6) सन्दे ि लेखन

4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
17
18
अपठित गदयांश

अपठित गदयांश में ध्यान दे ने योग्य ब द


ं -ु
इस तरि के प्रश्नों को पूछने का उददे श्य छात्रों की समझ, अशभव्यक्क्त कौिल और भाविक योग्यता
की परख करना िोता िै। अपहठत गदयाांि प्रश्न-पत्र का वि अांि िोता िै जो पाठ्यक्रम में तनधााररत
पुस्तकों से निीां पूछा जाता िै। यि अांि साहिक्त्यक पुस्तकों, पत्र-पत्रत्रकाओां या समाचार-पत्रों से
शलया जाता िै। ऐसा अांि भले िी तनधााररत पस्
ु तकों से िटकर शलया जाता िै परां तु, उसका स्तर,
वविय वस्तु और भािा-िैली पाठ्यपुस्तकों जैसी िी िोती िै। प्रायः छात्रों को अपहठत अांि कहठन
लगता िै और वे प्रश्नों का सिी उत्तर निीां दे पाते िैं। इसका कारण अभ्यास की कमी िै।
अपठित गदयांश के प्रश्नों को हल करते समय ध्यान दे ने योग्य महत्िपूर्ण ब द
ं ु -
1. गदयाांि को भली प्रकार पढ़कर उसका मूल भाव समझने का प्रयास ककया जाना चाहिए।
2. पूछे गए प्रश्नों का उत्तर गदयाांि में से िी हदया जाना चाहिए।
3. क्जन प्रश्नों के उत्तर स्पष्ट ना िो उनके उत्तर जानने िे तु गदयाांि को पुनः ध्यान से पढ़ना
चाहिए। गदयाांि का मूलभाव अवश्य समझना चाहिए।
4. गदयाांि में आए ववशिष्ट स्थलों और व्याकरण की दृक्ष्ट से मित्त्वपूणा िब्दों को रे खाांककत
कर लेना चाहिए।
5. िीिाक का चयन करते समय गदयाांि के केंद्रीय भाव को ध्यान में रखना चाहिए।
6. प्रतीकात्मक िब्दों एवां रे खाांककत अांिों की व्याख्या करते समय वविेि ध्यान दे ना चाहिए।
7. मल
ू भाव या सांदेि सांबांधी प्रश्नों का जवाब परू े गदयाांि पर आधाररत िोना चाहिए।

अपठित गदयांश-1

प्रश्न-1 ननम्नललखित गदयांशों को ध्यानपि


ू क
ण पढ़कर इनसे सं धित पछ
ू े गए हुविकल्पीय प्रश्नों
के ललए सही विकल्प चनु नएI
“शिक्षा ककसी भी समाज की ववकास प्रकक्रया का एक अशभन्न अांग िै,इसशलए मानव समाज
में इसे उच्च प्राथशमकता दी गई िै। शिक्षा से तात्पया िै -शिक्षा को ग्रिण कर मनष्ु य दवारा सिी
अथा में अपनी क्षमताओां का प्रयोग करना सीखना, अज्ञान के अांधकार से तनकलकर ज्ञान के प्रकाि
की ओर बढ़ना। शिक्षा दवारा िी ज्ञान और अज्ञान के मध्य अांतर को समझकर मनुष्य सिी हदिा
की ओर बढ़ता िै तथा सम्यक ज्ञान के प्रकाि में जीवन का सवाांगीण ववकास कर पाता िै, परां तु
जब समुचचत ववकास का मागा अवरुदध िोता प्रतीत िोता िै ,तब ऐसा समझा जाना तकापूणा िै कक
प्रचशलत शिक्षा प्रणाली दोिपूणा िै।
ऐसी क्स्थतत में शिक्षा नीतत में सुधार करना अतनवाया िो जाता िै। पाश्चात्य शिक्षा
पदधतत का अनुकरण करने के कारण िम अपनी शिक्षा और सांस्कृतत को भूल रिे िैं और नैततकता

19
के पतन की ओर अग्रसर िैं। प्राचीन भारतीय शिक्षा पदधतत की सबसे मित्वपण
ू ा वविेिता यि
मानी जाती थी कक वि नीततयों से पररपूणा थी।
नीतत अथाात सिी हदिा तनदे ि,यि मनुष्य के ऊपर उठने का व आगे बढ़ने का सबसे बडा
माध्यम िोते िैं। शिक्षा मनुष्य का सम्यक उत्थान करती िै। नीतत भी मूल रूप से शिष्ट आचरण
का िी हदिा-तनदे ि करती िै। इस प्रकार शिक्षा और नीतत का मुख्य उददे श्य एक िी िै।“

प्रश्न-1 समाज की विकास की प्रक्रक्रया का अलिन्न अंग क्या है ?


(1) शिक्षा (2) िक्क्त
(3) क्षमता (4) इनमे से कोई निीां

प्रश्न-2 “अनक
ु रर्” शब्द में उपसगण ताओ?
(1) अ (2) अनु
(3) करण (4) उपयक्
ुा त में से कोई निीां

प्रश्न-3 गदयांश के आिार पर ताइए क्रक पाश्चात्य लशक्षा पदिनत ने मनष्ु य में क्रकसे ढ़ािा ठदया
है?
(1) अनुकरण की आदत को (2) पतन को
(3) अनुकरण की आदत और पतन दोनों (4) उपयक्
ुा त में से कोई निीां

प्रश्न-4 प्राचीन िारतीय लशक्षा पदिनत की विशेषता क्या है ?


(1) अनुकरणीय (2) अज्ञान की ओर ले जाने वाली
(3) नीततयों से पररपूणा (4) उपयक्
ुा त में से कोई निीां

प्रश्न-5 प्रस्तत
ु गदयांश के आिार पर कौन-कौन से कथन सही हैं?
कथन i. पाश्चात्य शिक्षा पदधतत का अनुकरण करने के कारण िम अपनी शिक्षा और
सांस्कृतत को भूल रिे िैं
ii. लेखक ने भारतीय एवां पाश्चात्य शिक्षा पदधतत के वविय में बताया िै
iii. मनुष्य के आगे बढ़ने का माध्यम नीतत अथाात सिी हदिा तनदे ि िैं
iv. अज्ञान के अांधकार से तनकलकर ज्ञान के प्रकाि की ओर बढ़ना।
विकल्प –
(1) केवल कथनIv सिी िै (2) सभी कथन सिी िैं
(3) कोई भी कथन सिी निीां िै (4) केवल कथनI सिी िै

20
अपठित गदयांश-2

”श्रम की मित्ता के सांदभा में गााँधी जी से उत्कृष्ट उदािरण और ककसका हदया जा सकता िै ,
क्जन्िोंने अपने िर काया को गररमामय मानते िुए ककयाI वे अपने सियोचगयों को श्रम की गररमा
की सीख हदया करते थेI दक्षक्षण अफ्रीका में भारतीय लोगों के शलए सांघिा करते िुए भी उन्िोंने
सफाई जैसे काया को भी कभी नीचा निीां समझा और इसी कारण स्वयां उनकी पत्नी कस्तूरबा से
भी मतभेद िो गए थेI
बाबा आमटे ने समाज दवारा ततरस्कृत कुष्ठरोचगयों की सेवा में अपना समस्त जीवन
समवपात कर हदयाI सुांदरलाल बिुगुणा ने अपने प्रशसदध ‘चचपको आांदोलन’ के माध्यम से पेडों को
सांरक्षण प्रदान ककया। फादर डेशमयन, माहटा न लथ
ू र ककां ग और मदर टे रेसा जैसी मिान आत्माओां
ने इसी सत्य को ग्रिण ककया। इनमें से ककसी ने भी कोई सत्ता प्राप्त निीीँ की, बक्कक अपने जन
ककयाणकारी कायों से लोगों के हदलों पर िासन ककया। गााँधी जी का स्वतांत्रता के शलए सांघिा
उनके जीवन का एक पिलू िै, ककां तु उनका मानशसक क्षक्षततज वास्तव में एक राष्र की सीमाओां में
बांधा िुआ निीां था। उन्िोंने सभी लोगों में ईश्वर के दिान ककए। यिी कारण था कक कभी ककसी
पांचायत तक के सदस्य निीां बनने वाले गााँधी जी की जब मत्ृ यु िुई तो अमेररका का राष्रध्वज
भी झुका हदया गया थाI”

प्रश्न 1 गााँिी जी अपने सहयोधगयों को क्रकसकी सीि ठदया करते थे?


(1) काया को गररमामय बनाने की (2) श्रम की गररमा की
(3) सांघिा करने की (4) अपना काम स्वयां करने की।

प्रश्न 2 गााँिी जी का अपनी पत्नी से मतिेद क्यों हो गया था?


(1) सफाई जैसे काम को भी नीचा न मानने के कारण
(2) सफाई का काम नौकरों से न करवाने के कारण
(3) सफाई के काम को मित्त्व न दे ने के कारण
(4) इनमें से कोई निीां।

प्रश्न 3 ा ा आमटे और सुन्दरलाल हुगुर्ा क्रकन महत्त्िपूर्ण कायों के ललए जाने जाते हैं?
(1) सफाई करने तथा अपना काम स्वयां करने के कारण
(2) सफाई के काम को छोटा न मानने तथा गााँधीजी के शसदधाांतों का पालन के कारण
(3) कुष्ठ रोचगयों की सेवा करने तथा पेडों को काटने से बचाने के कारण
(4) कुष्ठ रोचगयों के प्रतत सिानुभूतत रखने तथा नए पेड लगाने के कारण

प्रश्न 4 अमेररका ने गााँिी जी की मत्ृ यु पर अपना ध्िज क्यों झक


ु ा ठदया?
(1) दःु ख प्रकट करने के शलए (2) ििा प्रकट करने के शलए
(3) समवपात िोने के शलए (4) इनमें से कोई निीां
21
प्रश्न 5 ‘नतरस्कृत’ शब्द का विपरीताथणक शब्द इनमें से कौन-सा है?
(1) चचचात (2) सम्मातनत (3) पररचचत (4) कृत

उत्तर संकेत-

अपठित गदयांश-1 अपठित गदयांश-2


1. (1) शिक्षा 1. (1) श्रम की गररमा की
2. (2) अनु 2. (1) सफाई जैसे काम को भी नीचा न मानने के
3. (3) अनुकरण की आदत और पतन कारण
दोनों 3. (3) कुष्ठ रोचगयों की सेवा करने तथा पेडों को
4. (4) नीततयों से पररपण
ू ा काटने से बचाने के कारण
5. (5) सभी कथन सिी िैं 4. (1) दःु ख प्रकट करने के शलए
5. (2) सम्मातनत

अपठित पदयांश
अपठित पदयांश के प्रश्नों को हल करते समय ध्यान दे ने योग्य महत्िपूर्ण ब द
ं ु -
1. अपहठत पदयाांि को दो तीन बार एकाग्रचचत्त िोकर पढ़ना चाहिए और मल
ू भाव समझने
का प्रयास ककया जाना चाहिए।
2. पूछे गए प्रश्नों का उत्तर पदयाांि में से िी हदया जाना चाहिए।
3. पिली बार में समझ में न आए अांिों, िब्दों, वाक्यों को गिनतापूवक
ा पढ़ना चाहिए।
4. अलांकार,रस आहद को समझकर िी उचचत ववककप का चयन करना चाहिए।

5. पदयाांि में आए ववशिष्ट स्थलों और व्याकरण की दृक्ष्ट से मित्त्वपूणा िब्दों को रे खाांककत


कर लेना चाहिए।
6. िीिाक का चयन करते समय पदयाांि के केंद्रीय भाव को ध्यान में रखना चाहिए।
7. प्रतीकात्मक िब्दों एवां रे खाांककत अांिों की व्याख्या करते समय वविेि ध्यान दे ना चाहिए।
8. सूक्क्तयों, मुिावरों, लोकोक्क्तयों का अथा जानने का प्रयास करना चाहिए।

अपठित कावयांश -1
अग्रमलखिि अपहठत काव्याांिों को ध्यानपव
ू क
ा पढ़कर तनदे िानस
ु ार सिी ववककप का चयन कीक्जए-

22
सच िम निीां सच तुम निीां जो भी पररक्स्थततयााँ शमलें ।
सच िै मिज़ सांघिा िी। कााँटे चुभे कशलयााँ खखलें।
सांघिा से िटकर क्जए तो क्या क्जए िम या कक िारे निीां इांसान िै , सांदेि जीवन का यिी।
तुम। सच िम निीां सच तुम निीां।
जो नत िुआ वि मत ृ िुआ ज्यों वांत
ृ से झरकर िमने रचा आओ िमीां अब, तोड दें इस प्यार को।
कुसुम यि क्या शमलन शमलना विी,जो मोड दे मझधार
जो लक्ष्य भूल रुका निीां,जो िार दे ख झुका निीां। को।
क्जसने प्रणय पाथेय माना जीत उसकी िी रिी। जो साथ फूलों के चले।
सच िम निीां सच तुम निीां। जो ढाल पाते िी ढले।
ऐसा करो क्जससे ना, प्राणों में किीां जडता रिे । वि क्जांदगी क्या क्जांदगी जो शसफा पानी सी बिी।
जो िै जिााँ चुपचाप, अपने आपसे लडता रिे। सच िम निीां सच तुम निीां।

प्रश्न 1. आिय स्पष्ट कीक्जए - “यि क्जांदगी क्या क्ज़ांदगी जो शसफा पानी सी बिी”
(1) आराम और सख
ु की क्जांदगी बेकार िै। (2) िाांतत और वैराग्य की क्ज़ांदगी बेकार िै।
(3) आनांद और मौज की क्ज़ांदगी बेकार िै। (4) तनक्ष्क्रय क्जांदगी बेकार िै।
प्रश्न 2. 'अपने आपसे लडने' का तात्पया िै –
(1) सांघिा की आदत डाले रिना। (2) अपने लोगों को जझ
ु ारू बनाना।
(3) अपनी कशमयों को साँवारना। (4) अपनी कशमयों के ववरुदध सांघिा करना।
प्रश्न 3. ‘कााँटे और कशलयााँ’ ककसके प्रतीक िैं?
(1) सांकट और बाधाओां (2) आिा और तनरािा (3) सुख और आराम (4) दख
ु और सुख
प्रश्न 4. कवव के शलए सबसे मित्वपूणा क्या िै ?
(1) क्ज़ांदगी (2) सांघिा (3) शमलन (4) लक्ष्य
प्रश्न 5. ‘जो नत िुआ वि मतृ िुआ ज्यों वांत
ृ से झरकर कुसुम’ पांक्क्त में कौनसा अलांकार िै ?
(1) श्लेि (2) अततियोक्क्त (3) उत्प्रेक्षा (4) अनुप्रास

अपठित कावयांश -2
छोडो मत अपनी आन, िीि कट जाए नत िुए त्रबना जो अितन -घात सिती िै ,
मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए स्वाधीन जगत में विी जातत रिती िै
दो बार निीां यमराज कांठ धरता िै वीरत्व छोड, मत पर का चरण गिो रे
मरता िै जो, एक बार िी मरता िैI जो पडे आन, खद
ु िी सब आन सिो रे
तम
ु स्वयां मरण के मख
ु पर, चरण धरो रे दासत्व जिााँ िै, विीां स्तब्ध जीवन िै,
जीना िो तो मरने से निीां डरो रे स्वातांत्र्य तनरां तर समर, सनातन रण िै ।
स्वातांत्र्य जातत की लगन, व्यक्क्त की धन
ु िै,
बािरी वस्तु यि निीां, भीतरी गण
ु िै
23
प्रश्न-1. उपयक्
ुा त पांक्क्तयों के माध्यम से कवव क्या प्रेरणा दे ना चािता िै ?
(1) अत्याचारी बनने की (2) स्वाशभमानी बनने की
(3) अन्यायी बनने की (4) आलसी बनने की
प्रश्न-2. मरने से क्यों निीां डरना चाहिए?
(1) मरने के बाद सख
ु शमलता िै (2) मरने के बाद कुछ मिसस
ू निीां िोता
(3) िर प्राणी को एक न एक हदन मरना िै (4) तनडर िोने से मत्ृ यु निीां आती
प्रश्न-3. सांसार में कौन सी जातत स्वतांत्र रिती िै?
(1) क्जसे कोई पकड निीां सकता (2) क्जसकी धुन स्वतांत्र रिना िो
(3) जो जातत डर कर रिती िै (4) जो जातत दस
ू रों पर अत्याचार करती िै
प्रश्न-4.'अन्याय ' और 'आकाि ' के शलए कववता में कौन -कौन से िब्द प्रयुक्त िुए िैं?
(1) आन और अितन (2) अनय और व्योम
(3) वीरत्व और आन (4) दासत्व और व्योम
प्रश्न-5. काव्याांि का उपयक्
ु त िीिाक िो सकता िै -
(1) स्वतांत्र जीवन (2) अन्यायी जीवन
(3) डरपोक जीवन (4) परतांत्र जीवन
उत्तर संकेत
अपठित कावयािंश-1 अपहठत काव्याांि-2
1. (4) तनक्रिय क् िंदगी बेकार है। 1. (2) स्वाशभमानी बनने की,
2. (4) अपनी कसमयों के ववरुद्ध सिंघषा करना। 2. (3) िर प्राणी को एक न एक हदन मरना िै ,
3. (4) दख
ु और सुख के 3. (2) क्जसकी धुन स्वतांत्र रिना िो,
4. (2) सिंघषा 4. (2) अनय और व्योम,
5. (3) उत्प्प्रेक्षा 5. (1) स्वतांत्र जीवन

िाक्य (रचना के आिार पर)


पररिाषा – साथाक िब्दों का ऐसा समूि जो व्यवक्स्थत िो तथा उचचत अथा प्रकट करता िो, वाक्य किलाता िै।
वाक्य में प्रयोग ककए जाने वाले िब्द व्याकरण में पद किलाते िैं।
िाक्य के दो मुख्य अंग – (क) – उददे श्य - वाक्य में क्जसके बारे में किा जाए या जानकारी दी जाए, उसे उददे श्य
किते िै। (कताा, कताा का ववस्तार)
उदाहरर् – प्रज्ञा ने घर की सफाई की। (प्रज्ञा – उददे श्य)
(ख) वििेय – वाक्य में उददे श्य/कताा के बारे में जो कुछ किा जाए उसे ववधेय किते िै ।
उदािरण – मोिन पुस्तक पढ़ रिा िै। (पुस्तक पढ़ रिा िै- ववधेय)
िाक्य के प्रकार – रचना के आिार पर िाक्य तीन प्रकार के होते हैं –
1.सरल या सािारर् िाक्य 2. संयुक्त िाक्य 3. लमश्र िाक्य

24
1. सरल िाक्य – क्जस वाक्य में एक उददे श्य एवां एक ववधेय िो अथाात क्जन वाक्यों में एक िी मख्
ु य
कक्रया िोती िै , उसे सरल वाक्य किा जाता िै।
जैस-े अभय पत्र पढ़ता िै। (इस वाक्य में एक कताा एवां एक िी मुख्य कक्रया िै अतःयि सरल वाक्य िै )
2. संयुक्त िाक्य – क्जस वाक्य में एक से अचधक सरल वाक्य या उपवाक्य ककसी समुच्चयबोधक (योजक)
अव्ययों से जुडें िों, उसे सांयुक्त वाक्य किा जाता िै । जैसे –
• राम खेल रिा िै और श्याम पुस्तक पढ़ रिा िै ।
• आप चाय लेना पसांद करें गे या कॉफी।
⮚ संयुक्त वाक्य के उपवाक्य आपस में योजक िब्दों जैसे – और, या, अथवा, ककन्त,ु परां त,ु तथा,
एवां, लेककन,इसशलए आहद से जुडे िोते िैं।
3. लमश्र िाक्य – क्जस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य िो तथा उस पर आचश्रत एकाचधक अन्य उपवाक्य
िो जो समुच्चयबोधक अव्यय से जुडे िो, उन्िें शमश्र वाक्य किते िै। इसमें प्रधान उपवाक्य अपना अथा
स्वतांत्र रूप से प्रकट करता िै जबकक आचश्रत उपवाक्य अपने अथा के शलए प्रधान उपवाक्य पर
तनभार(आचश्रत) िोते िै । ये उपवाक्य योजक यग्ु म जैसे – क्रक, क्योंक्रक, ताक्रक, यदयवप, अगर, जो,
जजसका, जैसा-िैसा, जो-सो, ज्यों-त्यों, जहां-िहााँ, यठद-तो, ज -त , जैसी–िैसी, आठद से जुड़े होते है ।
⮚ प्रिान उपिाक्य – शमश्र वाक्य में जो उपवाक्य अथा ग्रिण के शलए ककसी अन्य वाक्य पर तनभार
न िोकर पूणा अथा प्रदान करें , उसे प्रधान उपवाक्य किते िै ।
⮚ आधश्रत उपिाक्य – शमश्र वाक्य में जो उपवाक्य अथा ग्रिण के शलए ककसी अन्य वाक्य पर तनभार
िोता िै अथाात जो प्रधान उपवाक्य के साथ जुडकर िी पूणा अथा प्रदान करता िै उसे आचश्रत
उपवाक्य किते िै ।
उदाहरर् - ज गहरे काले ादल आए तब मैं स्कूल में िी था।

आधश्रत उपिाक्य प्रधान उपवाक्य


आचश्रत उपवाक्य तीन प्रकार के िोते िै –
1) संज्ञा आधश्रत उपिाक्य – जो आचश्रत उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की सांज्ञा के शलए आता िै , उसे
सांज्ञा आचश्रत उपवाक्य किते िै। जैसे – गीता में शलखा िै क्रक कमण करते रहो। रे खािंककत पद सांज्ञा
आचश्रत उपवाक्य है ।
2) विशेषर् आधश्रत उपिाक्य – जो आचश्रत उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की सांज्ञा या सवानाम की वविेिता
बताने का काया करते िै , उसे वविेिण आचश्रत उपवाक्य किते िै।
जैसे – जो पररश्रम करे गा विी सफल िोगा। रे खािंककत पद वविेिण आचश्रत उपवाक्य है ।
3) क्रक्रया विशेषर् आधश्रत उपिाक्य – जो आचश्रत उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की कक्रया की वविेिता
बताने का काया करते िै उसे कक्रया वविेिण आचश्रत उपवाक्य किते िै।
➢ ज िह घर पहुंचा तो मामाजी गााँव जा चुके थे। रे खािंककत पद कक्रया वविेिण आचश्रत उपवाक्य िै ।

25
िाक्य से सं जन्ित महत्त्िपूर्ण उदाहरर् –
प्रश्न-1. ‘ज ालगोब न िगत िेतों में रोपनी कर रहे थे तब लोग उन्िें कनखखयों से दे ख रिे थे। ’ रे खाांककत
उपवाक्य का प्रकार बताइए –
1) सांज्ञा आचश्रत उपवाक्य 2) वविेिण आचश्रत उपवाक्य
3) कक्रया वविेिण आचश्रत उपवाक्य 4) प्रधान उपवाक्य
प्रश्न-2. ‘उन्िोने जेब से चाकू तनकाला और खीरा काटने लगे। ’ सरल वाक्य में बदशलए।
1) उन्िोने जब जेब से चाकू तनकाला तब खीरा काटने लगे।
2)वे जेब से चाकू तनकालकर खीरा काटने लगे।
3) उन्िोने जेब से चाकू तनकाला तथा खीरा काटने लगे।
4) कोई निीां।
प्रश्न-3 ‘वे छात्र, जो कल निीां आए थे, खडे िो जाएाँ। ’ (सरल वाक्य में बदशलए)
1) जो छात्र कल निीां आए थे वे खडे िो जाएाँ। 2) कल निीां आने वाले छात्र खडे िो जाएाँ।
3) दोनों वाक्य सिी िै 4) कोई निीां।
प्रश्न-4 मीना के जाते िी सीमा आ गई। वाक्य का प्रकार बताइए।
1) सरल वाक्य 2) सांयक्
ु त वाक्य 3) शमश्र वाक्य 4) कोई निीां
प्रश्न-5 ‘पान वाले के शलए यि बात मजेदार बात थी लेककन िालदार सािब के शलए चककत कर दे ने वाली। ’ वाक्य
का प्रकार बताइए।
1) सरल वाक्य 2) सांयक्
ु त वाक्य 3) शमश्र वाक्य 4) कोई निीां।
प्रश्न-6 माताजी पज
ू ा करने के शलए मांहदर चली गई। सांयक्
ु त वाक्य में बदशलए।
1)माताजी मांहदर गई और पूजा की। 2) जैसे िी माताजी मांहदर गई वैसे िी पूजा की।
3) पूजा करने के शलए माताजी मांहदर गई। 4) कोई निीां।
प्रश्न-7 सांयक्
ु त वाक्य का उदािरण बताइए।
1) विाा िुई और बच्चे निाने लगे। 2) शिक्षक के आते िी ववदयाथी चुप िो गए।
3) जो गाना गा रिी िै वि मेरी बहिन िै । 4) िम िमेिा व्यायाम करते िै।
प्रश्न – 8 रचना के आधार पर वाक्य के ककतने भेद िै ?
1) दो 2) तीन 3) चार 4) आठ
प्रश्न-9 आचश्रत उपवाक्य के प्रकार बताइए –
1) सांज्ञा आचश्रत उपवाक्य 2) वविेिण आचश्रत उपवाक्य
3) कक्रया वविेिण आचश्रत उपवाक्य 4) सभी सिी िै
प्रश्न –10 वपताजी ने किा कक उन्हें ाजार नहीं जाना है । ’ रे खाांककत उपवाक्य का प्रकार बताइए –
1) सांज्ञा आचश्रत उपवाक्य 2) वविेिण आचश्रत उपवाक्य
3) कक्रया वविेिण आचश्रत उपवाक्य 4) कोई निीां

26
उत्तर सींकेि –
1 (3) कक्रया वविेिण आचश्रत उपवाक्य 6 (1) माता मांहदर गई और पूजा की।
2 (2) वे जेब से चाकू तनकालकर खीरा काटने लगे। 7 (1) विाा िुई और बच्चे निाने लगे।
3 (2) कल निीां आने वाले छात्र खडे िो जाएाँ। 8 (2) तीन
4 (1) सरल वाक्य 9 (4) सभी सिी िै
5 (2) सांयुक्त वाक्य 10 (1) सांज्ञा आचश्रत उपवाक्य

िाच्य
िाच्य का शाजब्दक अथण:- वाच्य का िाक्ब्दक अथा िोता िै – बोलने का वविय।
पररिाषा – कक्रया के क्जस रूप से िमें यि पता चलता िै कक उसके प्रयोग का केंद्र त्रबांद ु कताा, कमा या भाव िै ,
उसे वाच्य किते िै। जैसे – आहदत्य नाच रिा िै ।
(आहदत्य कक्रया का केंद्र त्रबांद ु िै अथाात कक्रया का प्रयोग कताा के आधार पर िुआ िै )
िाच्य के िेद – वाच्य के तीन भेद स्वीकार ककए गए िै –
1. कतण ृ िाच्य 2. कमण िाच्य 3. िाििाच्य
1. कतणृ िाच्य – क्जन वाक्यों में कताा की प्रधानता िोती िै अथाात कक्रया के क्जस रूप से िमें यि पता
चलता िै कक उसका प्रयोग कताा के आधार पर िुआ िै, उसे कता ृ वाच्य किते िै । जैसे –
1.मोिन पुस्तक पढ़ रिा िै। 2. बच्चा रो रिा िै। 3. वि िमेिा सुबि घूमने जाता िै ।
(इसमें सकमाक और अकमाक दोनों प्रकार की कक्रया का प्रयोग िोता िै )
2. कमण िाच्य – कक्रया के क्जस रूप से िमें यि पता चलता िै कक उसका प्रयोग कमा के शलांग,वचन के
आधार पर िुआ िै उसे कमा वाच्य किते िै ।
जैसे – 1. मोिन के दवारा पुस्तक पढ़ी जा रिी िै । 2.विाा के दवारा एक किानी सुनाई गई।
(इसमें िमेिा सकमाक कक्रया का प्रयोग िोता िै तथा वाच्य रूपान्तरण में कताा के साथ से/ के
दवारा जोड हदया जाता िै । मुख्य किया के सार् काल के अनुरूप जाना किया का प्रयोग होता है।)
3. िाि िाच्य – कक्रया के क्जस रूप से िमें यि पता चलता िै कक उसका प्रयोग कताा या कमा के आधार
पर न िोकर कक्रया के भाव के आधार पर िुआ िै , उसे भाव वाच्य किते िै ।
जैसे – मोिन से चला निीां जाता िै ।
(इसमें कक्रया िमेिा अकमाक - एकवचन, पुक्कलांग, अन्य पुरुि िोती िै तथा वाच्य रूपान्तरण
में कताा के साथ से/ के दवारा जोड हदया जाता िै )
िाच्य पररितणन -

कतणृ िाच्य कमणिाच्य


छात्रा पत्र शलखती िै । छात्रा के दवारा पत्र शलखा जाता िै ।
मैंने तनबिंध सलखा। मझ
ु से तनबिंध सलखा गया।
27
बालक फूल तोड रिा िै । बालक के दवारा फूल तोडा जा रिा िै ।
कतणृ िाच्य िाििाच्य
आओ चलें। आओ चला जाए।
वप्रया सुबि जकदी निीां उठ सकती। वप्रया से सुबि जकदी निीां उठा जाता।

िम इतना कष्ट निीां सि सकते। िमसे इतने कष्ट निीां सिे जाते।

िाच्य से सं जन्ित महत्त्िपूर्ण उदाहरर् –


प्रश्न-1 ‘मैंने हिमालय को सलामी दे नी चाही। ’ वाच्य का भेद बताइए –
1) कताृ वाच्य 2) कमा वाच्य 3) भाववाच्य 4) कोई निीां
प्रश्न-2 ‘गााँधी जी द्वारा सत्य और अहिांसा का सांदेि हदया गया।’ वाच्य का भेद बताइए –
1) कताृ वाच्य 2) कमा वाच्य 3) भाववाच्य 4) कोई निीां
प्रश्न-3 ‘दादाजी से प्रततहदन पाका में टिला जाता िै।’ वाच्य का भेद बताइए –
1) कताृ वाच्य 2) कमा वाच्य 3) भाववाच्य 4) कोई निीां
प्रश्न-4 ‘िम िाँसते िै।- भाववाच्य में बदशलए –
1) िम िाँस सकते िै 2) िमसे िाँसा जाता िै 3) िमसे िाँस हदया जाता िै 4) कोई निीां
प्रश्न-5 नवाब सािब दवारा खीरे को धोकर पोंछ शलया गया। कता ृ वाच्य में बदशलए –
1) नवाब सािब के दवारा खीरे को धोया गया 2) नवाब सािब ने खीरे को धोकर पोंछ शलया।
3) नवाब सािब ने खीरे को धो शलया 4) सभी सिी िै।
प्रश्न-6 ‘सोया जा रिा िै क्या? कताृ वाच्य में बदशलए –
1) क्या सोया जा रिा िै? 2) सो रिे िो क्या?
3) सोया जा रिा िै? 4) सो रिे िो या निीां?
प्रश्न-7 ‘यि चगलास मुझसे टूट गया’ वाच्य का भेद बताइए –
1) कताृ वाच्य 2) कमा वाच्य 3) भाववाच्य 4) कोई निीां
प्रश्न-8. पानवाला नया पान खा रिा था? वाच्य का भेद बताइए –
1) कताृ वाच्य 2) कमा वाच्य 3) भाववाच्य 4) कोई निीां
प्रश्न-9 ‘मझ
ु से बैिा नहीिं जाता। ’ वाच्य का भेद बताइए –
1) कताृ वाच्य 2) कमा वाच्य 3) भाववाच्य 4) कोई निीां
उत्तर –

1. 1) कताृ वाच्य 4. 2) िमसे िाँसा जाता िै। 7. 2) कमा वाच्य


2. 2) कमा वाच्य 5. 2) नवाब सािब ने खीरे को धोकर पोंछ शलया। 8. 1) कता ृ वाच्य
3. 3) भाववाच्य 6. 2) सो रिे िो क्या? 9. 3) भाववाच्य

28
पद पररचय
पद पररचय – जब ककसी िब्द को व्याकरण के तनयमों के अनुसार वाक्य में प्रयोग ककया जाता िै, तो वि पद
किलाता िै। वाक्य में प्रयुक्त इन पदों का व्याकरखणक पररचय दे ना िी पद-पररचय किलाता िै । अथाात वाक्यों
में प्रयुक्त प्रद व्याकरण की दृक्ष्ट से क्या िै (सांज्ञा, सवानाम, कक्रया, वविेिण, अव्यय, प्रयुक्त पद का शलांग, वचन
तथा वाक्य में प्रयुक्त अन्य पदों से सांबांध) वाक्य में उनकी क्स्थतत की ववस्तत
ृ जानकारी दे ना िी पद-पररचय िै ।
पद पररचय से सम् ंधित सूचनाएं –
विकारी पद
1. संज्ञा – सांज्ञा का भेद, शलांग, वचन, कारक एवां कक्रया के साथ सम्बन्ध।
उदाहरर् – सोहन पस्
ु तक पढ़ता िै
सोहन– पद-पररचय :- सांज्ञा – व्यक्क्तवाचक सांज्ञा, शलांग – पक्ु कलांग, वचन – एकवचन, कारक – कताा
कारक, पढ़ता िै कक्रया का कताा।
संज्ञा का पररचय – ककसी व्यक्क्त, वस्तु, स्थान एवां भाव के नाम को सांज्ञा किते िै ।
संज्ञा के िेद – 1. व्यक्क्तवाचक सांज्ञा – (भारत, जयपरु , ताजमिल, रामायण)
2. जाततवाचक सांज्ञा – (दे ि, ििर, पस्
ु तक, पिु, पेड)
3. भाववाचक सांज्ञा – (बचपन, ईमानदार, सांद
ु रता, क्रोध)
2. सिणनाम –सवानाम का भेद, शलांग, वचन, कारक एवां कक्रया के साथ सम्बन्ध।
उदाहरर् - तुम किााँ जा रिी िो?
तुम – पद पररचय :- सवानाम – पुरुिवाचक सवानाम, शलांग-स्त्रीशलांग, वचन-एकवचन,कारक – कताा कारक
(‘जा रिी िो’ कक्रया का कताा)
सिणनाम का पररचय - सांज्ञा के स्थान पर प्रयक्
ु त िोने वाले िब्दों को सवानाम किते िै ।
सिणनाम के िेद - 1. पुरूिवाचक सवानाम
❖ उत्तम पुरुि – (मैं, िम, मुझ,े िमारा, हमें , मैंने)
❖ मध्यम पुरुि – (तुम, तुम्हें , तुझे, तुम्िारा, आप, आपका, आपको)
❖ अन्य पुरुि - (वे, वि, उनको, उन्हें , उसको)
2. तनश्चय वाचक सवानाम – यि, वि
3. अतनश्चय वाचक सवानाम – कोई, कुछ
4. सांबांध बोधक सवानाम - जो, सो,
5. प्रश्नवाचक सवानाम - कौन, क्या, ककसने, किााँ
6. तनजवाचक सवानाम - अपना, स्वयां, खुद, तनज
3. विशेषर् – वविेिण का भेद, शलांग, वचन, वविेष्य।
उदाहरर् - राम सन्
ु दर चचत्र बनाता िै।
सुन्दर – पद पररचय :- गुणवाचक वविेिण, शलांग – पुक्कलांग, वचन – एकवचन, वविेष्य – चचत्र
विशेषर् का पररचय – सांज्ञा या सवानाम की वविेिता बताने वाले िब्दों को वविेिण किते िै।

29
विशेषर् के िेद - 1. गुणवाचक वविेिण – (सफ़ेद, काला, गोरा, िरा, ईमानदार, बुरा, अच्छा)
2. सांख्यावाचक वविेिण-
❖ तनक्श्चत सांख्यावाचक – (एक व्यक्क्त, दस कमरे , पााँच पेन, एक दजान केले)
❖ अतनक्श्चत सांख्यावाचक – (कुछ आदमी, कई पेड)
3. पररमाण वाचक वविेिण -
❖ तनक्श्चत पररमाण वाचक – (चार मीटर, एक लीटर, दो ककलो,)
❖ अतनक्श्चत पररमाण वाचक – (थोडा, कम, ज्यादा)
4. सावानाशमक या सांकेत वाचक वविेिण – सांज्ञा के पिले आकर उसकी वविेिता
बताने वाले सवानाम िब्द जैसे – मेरे वपताजी, उसका घर, ये लडके आहद)
4. क्रक्रया – कक्रया का भेद, शलांग, वचन, वाच्य, काल एवां कताा या कमा के साथ सम्बन्ध।
उदािरण - सीता चचत्र नाि थी।
नाि थी - पद पररचय - कक्रया – सकमाक कक्रया, शलांग- स्त्रीशलांग, वचन – एकवचन, वाच्य- कता ृ
वाच्य, काल – भूतकाल, कक्रया का कताा – सीता

क्रक्रया का पररचय – क्जन िब्दों से ककसी काया का िोना या करना पाया जाता िै उन्िें कक्रया किते िै।
क्रक्रया के िेद – मुख्य रूप से कक्रया दो प्रकार की िोती िै –
1. सकमाक कक्रया – क्जस कक्रया के साथ कमा िोता िै और कक्रया का फल कमा पर
पडता िै। जैसे – राम िॉकी खेल रिा िै ।
2. अकमाक कक्रया – क्जस कक्रया के साथ कमा निीां िोता िै और कक्रया का फल
कताा पर पडता िै। जैसे – बालक सो रिा िै ।
अविकारी पद
5. अवयय – भेद, वाक्य में सम्बन्ध।
1. क्रक्रया विशेषर् का पररचय – जो िब्द कक्रया की वविेिता बताते िै , उसे कक्रया वविेिण किते िै ।
क्रक्रया विशेषर् के िेद – कक्रया-वविेिण के चार भेद िोते िै ।
1. रीततवाचक कक्रया-वविेिण- क्जन िब्दों से कक्रया के िोने के तरीके का पता चलता िै।
जैस-े धीरे -धीरे , जकदी से, तेजी से।
2. काल वाचक वविेिण – क्जन िब्दों से कक्रया के िोने के समय का पता चलता िै । जैस-े
आज, कल, अभी-अभी, िमेिा आहद।
3. स्थान वाचक कक्रया-वविेिण – क्जन िब्दों से कक्रया के िोने के स्थान पता चलता िै ।
जैसे – यिााँ, विााँ, ऊपर, नीचे, इधर, उधर आहद।
4. पररमाण वाचक कक्रया-वविेिण – क्जन िब्द से कक्रया की मात्र का पता चलता िै । जैसे
– बिुत, कम, ज्यादा आहद।

30
2. सं ंि ोिक अवयय – के कारण, के सामने, के साथ, के शलए, के िे तु, की जगि, की तुलना, की जगि,
के त्रबना, के अततररक्त, के बदले आहद।
3. समुच्चय ोिक अवयय – तथा, ककन्त,ु लेककन, और, या, अथवा, इसशलए, यहद, ताकक, क्जसमें आहद।
4. विस्मयाठद ोिक अवयय – अरे !, वाि !, ओि !, िाबाि ! आहद।
5. ननपात – जो ककसी पद या पदबांध के बाद लगकर उसके अथा में वविेि प्रकार का ‘बल’ दे ते िैं। जैसे –
िी, भी, तो, मात्र आहद।
उदािरण - वि िीरे -िीरे चलता िै।
िीरे -िीरे - पद पररचय - रीततवाचक कक्रयावविेिण, चलता िै कक्रया की रीतत से सम्बांचधत वविेिता बता
रिा िै।

उदािरण - अरे ! आप आ गए।


अरे ! – पद पररचय - अव्यय – ववस्मयाहदबोधक अव्यय, आश्चया का भाव प्रकट िो रिा िै ।
पद-पररचय से सं जन्ित महत्त्िपूर्ण उदाहरर् -
प्रश्न-1 ‘ड्राइवर ने ज़ोर से ब्रेक मारे । ’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-
1) रीततवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य कक्रया-मारे
2) स्थानवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया मारे
3) कालवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया मारे
4) पररमाण वाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया मारे
प्रश्न-2 ‘वि आज चला जाएगा’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-
1) रीततवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य कक्रया- चला जाएगा
2) स्थानवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया चला जाएगा
3) कालवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया चला जाएगा
4) पररमाण वाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया चला जाएगा
प्रश्न-3. ‘वि रामायर् पढ़ रिा िै। रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-

1) व्यक्क्तवाचक सांज्ञा, स्त्रीशलांग, एकवचन, कमा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा


2) जाततवाचक सांज्ञा, स्त्रीशलांग, एकवचन, कमा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा
3) भाववाचक सांज्ञा, पुक्कलांग, एकवचन, कमा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा
4) व्यक्क्तवाचक सांज्ञा, पुक्कलांग, एकवचन, अचधकरण कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा
प्रश्न-4. ‘िे जयपुर जा रिे िैं। रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-

1) पुरूिवाचक सवानाम, पुक्कलांग, एकवचन, कताा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा


2) सांकेतवाचक सवानाम, पुक्कलांग, एकवचन, कमा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा
3) पुरूिवाचक सवानाम, पुक्कलांग, बिुवचन, कताा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा
4) पुरूिवाचक सवानाम, पुक्कलांग, एकवचन, अचधकरण कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा
31
प्रश्न-5. ‘आनांद हुत भाग्यिाली िै।’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-
1) सावानाशमक वविेिण, पुक्कलांग, एकवचन, कताा की वविेिता
2) गुणवाचक वविेिण, पुक्कलांग, एकवचन, कताा की वविेिता
3) गुणवाचक वविेिण, पुक्कलांग, बिुवचन, कताा की वविेिता
4) पररणाम वाचक वविेिण, पुक्कलांग, एकवचन, कताा की वविेिता
प्रश्न- 6. ‘उसने बाजार से दो मीटर कपडा खरीद शलया िै । ’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-

1) पररणाम वाचक वविेिण, पक्ु कलांग, बिुवचन, कमा की वविेिता


2) सांख्यावाचक वविेिण, पक्ु कलांग, एकवचन, कमा की वविेिता
3) सांख्यावाचक वविेिण, पक्ु कलांग, बिुवचन, कमा की वविेिता
4) पररणाम वाचक वविेिण, पक्ु कलांग, एकवचन, कमा की वविेिता
प्रश्न-7. ‘नरें द्र पतांग उड़ाता है । ’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-

1) अकमाक कक्रया, पुक्कलांग, एकवचन, वतामान काल, कमा वाच्य, कताा- नरें द्र
2) सकमाक कक्रया, स्त्रीशलांग, एकवचन, वतामान काल, कमा वाच्य, कताा- नरें द्र
3) सकमाक कक्रया, पुक्कलांग, एकवचन, वतामान काल, कता ृ वाच्य, कताा- नरें द्र
4) अकमाक कक्रया, पुक्कलांग, एकवचन, वतामान काल, कता ृ वाच्य, कताा- नरें द्र
प्रश्न-8. ‘िाह! तुमने बिुत अच्छा काम ककया िै। ’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-
1) कक्रया वविेिण अव्यय, ििा सूचक 2) ववस्मयहद बोधक अव्यय, ििा सूचक
3) समुच्चयबोधक अव्यय, ििा सूचक 4) कोई निीां
प्रश्न- 9. ‘घर के साथ िी एक बगीचा िै । ’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-
1) सांबांधबोधक अव्यय, घर और बगीचे के बीच सांबांध दिाा रिा िै।
2) सांबांधबोधक अव्यय, घर और मागा के बीच सांबांध दिाा रिा िै ।
3) समुच्चयबोधक अव्यय, घर और बगीचे के बीच सांबांध दिाा रिा िै ।
4) ववस्मयाबोधक अव्यय, घर और बगीचे के बीच सांबांध दिाा रिा िै ।
प्रश्न-10. ‘मैं कल बीमार था इसललए ववदयालय निीां आया।’ रे खाांककत अांि का पद-पररचय िोगा-
1) सांबांधबोधक अव्यय, दो वाक्य को जोडने का काया
2) समुच्चयबोधक अव्यय, दो वाक्य को जोडने का काया
3) ववस्मयाबोधक अव्यय, दो वाक्य को जोडने का काया
4) कोई निीां
उत्तर सिंकेत-

प्रश्न-1. 1) रीततवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य कक्रया-मारे


प्रश्न-2. 3) कालवाचक कक्रयावविेिण, वविेष्य- कक्रया चला जाएगा
प्रश्न-3. 1) व्यक्क्तवाचक सांज्ञा, स्त्रीशलांग, एकवचन, कमा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा

32
प्रश्न-4. 3) पुरूिवाचक सवानाम, पुक्कलांग, बिुवचन, कताा कारक, पढ़ रिा िै कक्रया का कमा

प्रश्न-5. 2) गुणवाचक वविेिण, पुक्कलांग, एकवचन, कताा की वविेिता

प्रश्न- 6. 1) पररणाम वाचक वविेिण, पक्ु कलांग, बिुवचन, कमा की वविेिता

प्रश्न-7. 3) सकमाक कक्रया, पुक्कलांग, एकवचन, वतामान काल, कता ृ वाच्य, कताा- नरें द्र

प्रश्न- 8. 2) ववस्मयहद बोधक अव्यय, ििा सच


ू क

प्रश्न- 9. 1) सांबांधबोधक अव्यय, घर और बगीचे के बीच सांबांध दिाा रिा िै ।


प्रश्न- 10. 2) समुच्चयबोधक अव्यय, दो वाक्य को जोडने का काया

अलंकार

पररभािा :- अलांकार िब्द की रचना दो िब्दों के मेल से िुई िै - 'अलां' तथा 'कार'। 'अलां' का अथा िै -'िोभा' या
सौन्दया'। 'कार' िब्द 'कर्' धातु से बना रूप िै , क्जसका अथा िै-'करनेवाला'। इस तरि अलांकार िब्द का अथा
''िोभा करने वाले'।

अलांकार िब्द का प्रयोग िम सजावट, शिंगार, आभूिण, गिना आहद के शलए करते िैं। साहित्य में अलांकार िब्द

का प्रयोग काव्य-सौंदया के शलए िोता िै। सांस्कृत के ववदवानों के अनुसार- 'अलांकरोतत इतत अलांकार:' अथाात ् जो
अलांकृत करे या िोभा बढ़ाए, उसे अलांकार किते िैं। दस
ू रे िब्दों में , काव्य की सुांदरता बढ़ाने वाले गुण-धमा
अलांकार किलाते िैं।
अलांकार के दो भेद िै- िब्दालांकार और अथाालांकार
1-िब्दालांकार :- जिााँ कववता में िब्दों के माध्यम से चमत्कार उत्पन्न करते िैं अथाात कववता का सौंदया “िब्द”
पर आचश्रत िोता िै विाां िब्दालांकार िोता िै। कुछ िब्दालांकार जैस-े अनुप्रास, यमक,श्लेि आहद।
2. अथाालांकार :- जिााँ कववता में सौंदया भाव से सांबांचधत िोता िै, िब्दों से निीां। अथाालांकार में चमत्कार “भाव
की अनुभूतत” से उत्पन्न िोता िै। कुछ अथाालांकार जैस-े उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, अततशयोक्क्त आहद।
िमारे पाठ्यक्रम में तनम्नशलखखत अलांकार िैं –
शब्दालंकार
1. श्लेष :- श्लेि' का िाक्ब्दक अथा िै-'चचपकना'। अतः जिााँ एक िब्द से दो या दो से अचधक अथा प्रकट िोते िैं,
विााँ श्लेि अलांकार िोता िै। अर्ाात ् शब्द एक और अर्ा अनेक। उदाहरण :
(क) रठहमन पानी राखिए, ब न पानी स सन
ू ।
पानी गए न ऊ रे , मोती मानष
ु चन
ू ।।

33
यिााँ दस
ू री पांक्क्त में आए 'पानी' िब्द के तीन अथा(i) 'मोती' के सांदभा में 'चमक'(ii) मानुि/मनुष्य के सांदभा
में 'इज्जत' (iii) चून के सांदभा में 'जल'
(ि) 'सु रन को ढूाँढ़त क्रिरत, कवि, वयलिचारी, चोर'
पांक्क्त का अथा िै कक कवव, व्यशभचारी तथा चोर तीनों िी 'सुबरन' अथाात 'सुवणा' को ढूाँढ़ते कफरते िैं। यिााँ 'सुबरन'
(सव
ु णा) िब्द पर श्लेि अलांकार िै और इसके तीन अथा इस प्रकार िैं (i) कवव के सांदभा में = सब
ु रन अथाात सद
ु र
वणा/ अक्षर(ii) व्यशभचारी के सांदभा में= सुबरन अथाात सुांदर वणा/रां गवाली सुांदररयााँ (iii) चोर के सांदभा में सुबरन
अथाता सुवणा या सोना।

अथाणलंकार
1. उत्प्रेक्षा :- जिााँ उपमेय (सामान्य वस्त)ु में उपमान (प्रशसदध वस्तु)की सांभावना की जाए, विााँ उत्प्रेक्षा अलांकार
िोता िै। उत्प्रेक्षा के वाचक िब्द िैं जैसे :- मानो, मनो, मन,ु मनिुाँ, जानो, जनु, ज्यों आहद।
उदािरण : (क) सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मानो नीलमखर् सैल पर, आतप परयो प्रिात। ।

प्रस्तत
ु दोिे में 'पीत पट' में 'नीलमखण सैल पर प्रभात के आतप' के आरोप की 'मानो' िब्द दवारा
सांभावना की गई िै । अतः उत्प्रेक्षा अलांकार िै।
(ि) पाहुन ज्यों आए हों गााँि में शहर के।

मेघ आए ड़े न-िन के सींवर के।।


प्रस्तुत पांक्क्त में “मेघ” में “पािुन” के आरोप की “ज्यों” िब्द दवारा सांभावना की गई िै। अतः उत्प्रेक्षा
अलांकार िै।
2. मानिीकरर् :- जिााँ ककसी जड प्रकृतत या तनजीव वस्तु पर मानवीय भावनाओां या कक्रयाओां का आरोप िोता
िै विाां मानवीकरण अलांकार िोता िै। िम यि भी कि सकतें हैं कक जिााँ ककसी अचेतन वस्तु में कवव मानव की
तरि गततववचध या भावनाओां को दिााते िैं वहााँ मानवीकरण अलांकार िोता िै ।
उदाहरर् :
(1) तनकर भाला यि बोल उठा, राणा मुझको ववश्राम न दे
मुझको िोखणत की प्यास लगी, बढ़ने दे , िोखणत पीने दे ।
प्रस्तुत पांक्क्तयों में भाला एक तनजीव वस्तु िै जो राणा से बात कर रिा िै और उसे प्यास लगी िै। “प्यास
लगना” “बात करना” दोनों मानवीय कक्रयाएां िैं, जो तनजीव भाले में दिााई गई िैं। इस प्रकार यिााँ मानवीकरण
अलांकार िै।
(ि) ‘ठदिािसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही

34
संध्या-सुंदरी परी-सी िीरे -िीरे ’

यिााँ सांध्या को एक सांुदरी के रूप से धीरे -धीरे आसमान से उतरता िुआ हदखाया गया िै। अत: यिााँ मानवीकरण

अलांकार िै।

3. अनतशयोजक्त :- जिााँ वर्णया वस्तु (उपमेय) की लोक सीमा से बढ़कर प्रिांसा की जाए, विााँ अततियोक्क्त
अलांकार िोता िै। अततियोक्क्त का िाक्ब्दक अथा िोता िै-बढ़ा-चढ़ाकर किी गई उक्क्त। इसमें ककसी वस्तु का
आवश्यकता से अचधक बढ़ा-चढ़ाकर वणान िोता िै। उदािरण-
(1) आगे नठदया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
रार्ा ने सोचा इस पार, त तक चेतक था उस पार। ।

राणा अभी सोच िी रिे थे कक घोडा नदी के पार िो गया। यि यथाथा में असांभव िै। काव्य की इन पांक्क्तयों में
राणा प्रताप के घोडे की िक्क्त और स्फूतता का वणान बढ़ा-चढ़ाकर ककया गया िै , अतः अततियोक्क्त अलांकार िै।
(ि) हनम
ु ान की पाँछ
ू में , लग न पाई आग।
लंका लसगरी जल गई, गए ननसाचर िाग। ।

िनुमान की पाँछ
ू में आग लगने से पूवा िी सारी लांका के जलने की बात अत्यचधक बढ़ा-चढ़ाकर किी गई िै , अतः
अततियोक्क्त अलांकार िै।
__________________________________________________________________
पाि - नेताजी का चश्मा
लेिक – स्ियं प्रकाश
पाठ का साराांि
चारों और सीमाओां से तघरे भभ
ू ाग का नाम िी दे ि निीां िोता। दे ि, उसमें रिने वाले सभी नागररकों,
नहदयों, पेड-पौधों, नहदयों, वनस्पततयों और पि-ु पक्षक्षयों के योग से बनता िै। इन सब से प्रेम करना और इन सब
की समद
ृ चध और उन्नतत के शलए प्रयास करना िी दे िभक्क्त िै। ‘नेताजी का चश्मा’ िीिाक किानी कैप्टन चश्मे
वाले के माध्यम से दे ि के करोडों नागररकों दवारा दे ि के तनमााण में अपने तरीके से ककए गए योगदान को प्रकट
करती िै । यि किानी बताती िै कक बडे िी निीां बच्चे भी दे िसेवा में िाशमल िैं।
िालदार सािब कांपनी के काम से पन्द्रिवें हदन उस कस्बे से गुजरते थे और पान की दक
ु ान पर पान खाते
थे। कस्बे के बाजार में मुख्य चौरािे पर नेताजी सुभाि चांद्र बोस की सांगमरमर की कमर तक की 2 फीट ऊाँची
मूतता (बस्ट) लगी थी। मतू ता बिुत सुांदर थी परां तु नेताजी की आाँखों पर सांगमरमर का चश्मा न लगा कर काला
चौडे फ्रेम वाला चश्मा लगा हदया गया था। दस ू री बार विााँ से गुजरने पर मूतता पर मोटे चौकोर फ्रेम के स्थान पर
तार के फ्रेम का गोल चश्मा दे खकर िालदार सािब िैरान िुए। उन्िोंने जब पान वाले से इसका कारण पूछा तो
पान वाले ने बताया कक कैप्टन नामक चश्मे वाला यि काम करता िै। िालदार सािब ने जानना चािा – क्या
कैप्टन चश्मे वाला नेता जी का साथी िै या आजाद हिन्द फ़ौज का भूतपूवा शसपािी िै ? पानवाला मुस्कुरा कर
बोला - निीां सािब! वि लांगडा फ़ौज में कैसे िो सकता िै? वि पागल िै । इस तरि पानवाले के दवारा एक दे िभक्त

35
का मजाक उडाना िालदार सािब को अच्छा निीां लगा। उन्िोंने दे खा कक कैप्टन एक बूढ़ा और मररयल-सा आदमी
था। शसर पर गााँधी टोपी और आाँखों पर काला चश्मा लगाए था। कैप्टन चश्मे वाला फेरी लगाकर चश्मा बेचने का
काया करता था।
एक हदन िालदार सािब विााँ से गुजरे तो उन्िें यि दे खकर आश्चया िुआ कक नेता जी की मूतता की आाँखों
पर कोई चश्मा निीां लगा था। पान की दक
ु ान और अन्य सभी दक ु ानें भी बांद थी। बाद में पान वाले से पता चला
कक कैप्टन चश्मे वाले की मत्ृ यु िो गई थी। इस घटना के लगभग पांद्रि हदन बाद िालदार सािब विााँ से गज
ु रे तो
उन्िोंने ड्राइवर से किा कक वि जीप चौरािे पर न रोके वि पान किीां और खा लेंगे। वि त्रबना चश्मा के नेता जी
को निीां दे खना चािते थे। परां तु चौरािे पर पिुाँचते िी उन्िोंने ड्राइवर से गाडी रोकने को किा और जीप के रुकते
िी कूदकर तेज क़दमों से मतू ता के सामने पिुाँचे और सावधान की मद्र
ु ा में खडे िो गए। मतू ता की आाँखों पर ककसी
ने सरकांडे से बना चश्मा लगा हदया था। यि दे खकर भावुकता के कारण िालदार सािब की आाँखें भर आईं।

पाठ्यपुस्तक अभ्यास प्रश्न


प्रश्न 1. सेनानी न िोते िुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों किते थे?
उत्तर : चश्मेवाला कद-काठी, वेिभूिा और चाल-ढाल ककसी से भी सेनानी (कैप्टन) जैसा प्रतीत िोता था, लेककन
नेता जी सुभािचांद्र बोस के प्रतत उसका अत्यांत सम्मान भाव दे खकर लोगों ने आदर या व्यांग्य से उसे कैप्टन
किना िुरू कर हदया िोगा। उनके अांदर अपने दे ि के शलए दे िभक्क्त कूट-कूट कर भरी िुई थी।

प्रश्न 2. िालदार सािब ने ड्राइवर को पिले चौरािे पर गाडी रोकने के शलए मना ककया था लेककन बाद में तुरांत
रोकने को किा –
I. िालदार सािब पिले मायूस क्यों िो गए थे?
उत्तर - िालदार सािब नेता जी की मूतता पर कोई न कोई चश्मा लगा िुआ दे खने के आदी िो गए थे। नेताजी

की त्रबना चश्मे वाली मूतता को दे खने की सम्भावना ने उन्िें मायूस का हदया था।

II. मूतता पर सरकांडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता िै ?


उत्तर - मूतता पर सरकांडे का चश्मा यि उम्मीद जगाता िै कक अभी भी अपने दे ि के लोगों के अांदर दे िभक्क्त
की भावना जीववत िै। सरकांडे का चश्मा लगाने वाला कोई बच्चा िी िोगा। अत: बच्चों में दे िभक्क्त और

स्वतांत्रता सेनातनयों के प्रतत सम्मान भाव आिा और उम्मीद जगाता िै कक आगामी पीढ़ी दे ि को अवश्य
आगे ले जाएगी।

III. िालदार सािब इतनी सी बात पर भावुक क्यों िो उठे ?


उत्तर – िालदार सािब एक सांवेदनिील एवां भावनात्मक व्यक्क्त थे। जब िालदार सािब ने सुभाि चांद्र बोस की

मूतता पर सरकांडे का बना चश्मा लगा िुआ दे खा तब उनकी आाँखें नम िो गई और वि बिुत भावुक िो गए।

बच्चों में दे िभक्क्त और स्वतांत्रता सेनातनयों के प्रतत सम्मान भाव िी भावुकता का प्रमुख कारण था।

36
प्रश्न 3. आिय स्पष्ट कीक्जए- “बार-बार सोचते, क्या िोगा उस कौम का जो अपने दे ि की खाततर घर गि
ृ स्थी-
जवानी-क्जांदगी सब कुछ िोम दे नेवालों पर भी िाँसती िै और अपने शलए त्रबकने के मौके ढूाँढ़ती िै।”
उत्तर : “बार-बार सोचते, क्या िोगा उस कौम का जो अपने दे ि की खाततर घर गि
ृ स्थी-जवानी-क्जांदगी सब कुछ
िोम दे नेवालों पर भी िाँसती िै और अपने शलए त्रबकने के मौके ढूाँढ़ती िै।” का आिय यि िै कक िालदार सािब
यि सोच रिे िैं कक उन लोगों का क्या िोगा जो अपने दे ि पर सब कुछ न्यौछावर करने वालों पर िाँसते िैं। िमारा

समाज किााँ से किााँ पिुाँच गया िै , जो िमारे शलए जान िथेली पर रखकर लडते िैं, िम उन्िीां की िांसी उडाते िैं।
जब दे ि में दे िभक्क्त मजाक का वविय बन गई िो और दे िभक्तों के प्रतत सम्मान का हदखावा मात्र ककया जाता
िो, तो इस भारतीय कौम का भववष्य उज्ज्वल कैसे िो सकता िै । िालदार सािब को भारतीय नागररकों की दे ि

और दे िभक्तों के प्रतत उदासीनता और उपेक्षा की भावना को दे खकर घोर तनरािा िुई।

प्रश्न 4. पानवाले का एक रे खाचचत्र प्रस्तत


ु कीक्जए।
उत्तर : पानवाला स्थूलकाय और िाँसमुख स्वभाव का आदमी िै । उसकी दृक्ष्ट में दे िभक्क्त और दे िभक्तों के प्रतत

सम्मान प्रदिान का कोई मित्त्व निीां िै। पान बेचना और खाना उसकी हदनचयाा थी। कुछ बोलने से पिले मुडकर

पीक थक
ू ना और कफर तनरां तर लाल-काली बत्तीसी हदखाते िुए उत्तर दे ना, यिी उसकी चचरपररचचत िैली थी। िाँसते
समय उसकी तोंद भी चथरकती थी। व्यांग्य-ववनोद से पण
ू ा उसकी बातें ग्रािकों का अच्छा मनोरां जन करती थीां।
प्रश्न 5. “वो लाँ गडा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल िै पागल!”कैप्टन के प्रतत पानवाले की इस हटप्पणी पर अपनी
प्रततकक्रया शलखखए।
उत्तर : कैप्टन के प्रतत पानवाले की हटप्पणी “वि लाँ गडा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल िै पागल !” बिुत िी
अिोभनीय थी। वास्तव में कैप्टन इस तरि की उपेक्षा का पात्र निीां िै। वास्तव में कैप्टन उपिास का निीां सम्मान

का पात्र िै जो अपने अतत सीशमत सांसाधनों से नेताजी की मूतता पर चश्मा लगाकर दे िप्रेम का प्रदिान करता
िै।इससे उसकी सांवेदन िून्यता और दे िभक्तों के प्रतत उपेक्षा और उदासीनता की भावना उजागर िोती िै ।

प्रश्न 6. जब तक िालदार सािब ने कैप्टन को साक्षात निीां दे खा था तब तक उनके मानस पटल पर उसका
कौन-सा चचत्र रिा िोगा अपनी ककपना से शलखखए।
उत्तर: जब तक िालदार सािब ने कैप्टन को साक्षात निीां दे खा था। तब तक उनके मानस पटल पर कैप्टन की
छवव एक लांब-े चौडे मजबूत िरीर वाला लांबी और घनी मूछों वाले व्यक्क्त की रिी िोगी। कैप्टन चश्मे वाला सेना

से सेवातनवत
ृ व्यक्क्त िोगा और उसकी वेिभि
ू ा एक कैप्टन से शमलती जल
ु ती िोगी। उन्िें लगता था कक फौज में
िोने के कारण लोग उन्िें कैप्टन किते िैं। उन्िोंने यि भी अनम
ु ान लगाया िोगा कक वि नेता जी का कोई साथी
या आजाद हिन्द फ़ौज का कोई भूतपूवा शसपािी रिा िोगा।

प्रश्न 7. कस्बों, ििरों, मिानगरों के चौरािों पर प्रशसदध व्यक्क्त की मतू ता लगाने के क्या उददे श्य िो सकते िैं?
आप अपने इलाके के चौरािे पर ककस व्यक्क्त की मूतता स्थावपत करवाना चािें गे और क्यों?

37
उत्तर: दे ि सेवा और अन्य ऐसे िी उत्कृष्ट काया को करने वाले व्यक्क्तयों की मूततायााँ इसशलए लगाई जाती िैं
ताकक उस मिान व्यक्क्त की समतृ त िमेिा िमारे मन में बनी रिे । िम और िमारा समाज उन लोगों के कायों से
प्रेररत िों और उनके जैसे काया करने के पथ पर अग्रसर िोते रिे । मैं अपने इलाके के चौरािे पर ऐसे व्यक्क्त की
प्रततमा स्थावपत करना चािूाँगा क्जसने दे ि और समाज के हित के शलए कोई उकलेखनीय काया ककया िोI उनके
दवारा ककए गए काया मझ
ु े प्रेररत करते िैं मझ
ु े अपने समाज और दे ि के शलए कुछ अच्छा करने की प्रेरणा शमलती
िै। िमारे युवाओां को जरूर जाना चाहिए कक िमें आजादी ककतनी कुबाातनयों के बाद शमली थी। क्जससे कक िमारे

यव
ु ाओां को भी अपने दे ि के शलए कुछ कर गज
ु रने की प्रेरणा शमले।
प्रश्न 8. कस्बों, ििरों, मिानगरों के चौरािों पर लगी प्रशसदध व्यक्क्तयों की मूतता के प्रतत आपके क्या उत्तरदातयत्व
िोने चाहिए?
उत्तर - उस मूतता के प्रतत िमारे और दस
ू रों के उत्तरदातयत्व तनम्नशलखखत िोने चाहिए:
I. िम ना तो स्वयां उस मतू ता का अपमान करें और ना दस
ू रों को करने दे । उस मतू ता की गररमा का ख्याल
रखना िम सब का कताव्य िोना चाहिए।
II. उस मूतता की साफ-सफाई समय-समय पर करवाई जाए।
III. मिीने में कम से कम एक बार उस मूतता के पास सभी लोग एकत्रत्रत िो और उनके दवारा ककए गए कायों
पर चचाा की जाए। क्जससे कक िमें भी उनके जैसे काया करने की प्रेरणा शमले।
IV. इनकी जयांती आहद के अवसर पर इनको माकयापाण करना तथा इनकी सरु क्षा का ध्यान रखना िार नागररक
का दातयत्व िै ।

गदयाांि आधाररत प्रश्न


पहठत गदयाांि-1
तनम्नशलखखत पहठत गदयाांिों को पढ़कर पछ
ू े गए प्रश्नों के सिी ववककप चन
ु कर उत्तर शलखखए –
सािब! कैप्टन मर गया। और कुछ निीां पछ
ू पाए िालदार सािब। कुछ पल चप
ु चाप खडे रिे , कफर पान के पैसे
चक
ु ाकर जीप में आ बैठे और रवाना िो गए। बार-बार सोचते, क्या िोगा उस कौम का जो अपने दे ि की खाततर
घर-गि
ृ स्थी–जवानी–क्जन्दगी सब कुछ िोम दे ने वालों पर भी िाँसती िै और अपने शलए त्रबकने के मौके ढूाँढती िै ।
दख
ु ी िो गए। पांद्रि हदन बाद कफर उसी कस्बे से गज
ु रे । कस्बे में घस
ु ने से पिले िी खयाल आया कक कस्बे की
ह्रदयस्थली में सभ
ु ाि की प्रततमा अवश्य िी प्रततष्ठावपत िोगी, लेककन सभ
ु ाि की आाँखों पर चश्मा निीां िोगा।..क्योंकक
मास्टर बनाना भूल गया।..और कैप्टन मर गया। सोचा, आज विााँ रूकेंगे निीां पान भी निीां खाएाँगे, मूतता की
तरफ दे खेंगे भी निीां, सीधे तनकल जाएाँगे। ड्राइवर से कि हदया, चौरािे पर रुकना निीां, आज बिुत काम िै , पान
आगे किीां खा लेंगे। लेककन आदत से मजबूर आाँखें चौरािा आते िी मूतता की तरफ उठ गई। कुछ ऐसा दे खा कक
चीखे, रोको! जीप स्पीड में थी, ड्राइवर ने जोर से ब्रेक मारे । रास्ता चलते लोग दे खने लगे जीप रुकते न रुकते
िालदार सािब जीप से कूदकर तेज-तेज क़दमों से मूतता की तरफ लपके और उसके ठीक सामने जाकर अटें िन

38
में खडे िो गए। मूतता की आाँखों पर सरकांडे से बना छोटा सा चश्मा रखा िुआ था, जैसा बच्चे बना लेते िैं।
िालदार सािब भावकु िैं। इतनी-सी बात पर उनकी आाँखे भर आई।
प्रश्न.1 हालदार साह चौराहे पर रुकना नहीं चाहते थे, क्योंक्रक-
(1) विााँ सडक टूटी िुई थी (2) विााँ आगे सडक बांद का बोडा लगा था
(3) वि नेताजी की त्रबना चश्मे वाली मतू ता को दे खना निीां चािते थे
(4) उस हदन चौरािे पर पान की दक
ु ान बांद थी
प्रश्न.2 ‘पान आगे कहीं िा लेंगे’ यह कथन क्रकसका है?
(1) पानवाले का (2) मास्टर मोतीलाल का (3) िालदार सािब का (4) ड्राइवर का
प्रश्न.3 ‘कस् े की ह्रदयस्थली में सुिाष की प्रनतमा’-पंजक्त में ‘ह्रदयस्थली” शब्द का क्या अथण है ?
(1) केन्द्रीय स्थल (2) प्रशसदध स्थान (3) प्रशसदध बाजार (4) उपयक्
ुा त में से कोई निीां
प्रश्न.4 हालदार साह की आाँिे क्यों िर आई?
(1) उन्िोंने मूतता की आाँखों पर पत्थर का बना चश्मा लगा िुआ दे खा
(2) मूतता की आाँखों पर नया काला चश्मा लगा था
(3) मूतता की आाँखों पर चश्मा निीां लगा था
(4) मूतता की आाँखों पर सरकांडे से बना छोटा सा चश्मा रखा था
प्रश्न.5 ‘लेक्रकन आदत से मज ूर आाँिें चौराहा आते ही मूनतण की तरि उि गई क्योंक्रक
(1) उनको सुभाि की मूतता अच्छी लगती थी (2) वि आदत से मजबूर थे
(3) भीड के कारण जीप को चौरािे पर रुकना पडा (4) िालदार सािब सुभाि का बिुत आदर करते थे

उत्तर संकेत

1)-3) वह नेताजी की बबना चश्मे वाली मूतता को दे खना 3)-3) केन्रीय स्र्ल
नहीिं चाहते र्े 4)-4) मूतता की आाँखों पर सरकिंडे से बना छोटा
2)-3) हालदार साहब का सा चश्मा रखा र्ा
5)-2) वह आदत से मजबूर र्े

अन्य हुविकल्पीय प्रश्नोत्तर


प्रश्न-1 हालदार साह क्रकसे दे िकर मायस
ू हो गए?
(1) कस्बे को दे खकर (2) मतू ता को त्रबना चश्मे के दे ख कर
(3) पानवाले को दे खकर (4) लांगडे व्यक्क्त को दे खकर
प्रश्न-2. कैप्टन जैसे दे शिक्त के ललए पानिाले की ठटप्पर्ी कैसी थी?
(1) तनांदनीय (2) विंदनीय (3) प्रिांसनीय (4) अनक
ु रणीय
प्रश्न-3. हालदार साह की िािक
ु ता का क्या कारर् था?
(1) मूतता पर रां ग तछडकना (2) मूतता पर तोडफोड करना
(3) मूतता पर सरकांडे का चश्मा दे खना (4) मूतता पर पॉशलि दे खना

39
प्रश्न-4. “ नाकर पटक दे ने” का क्या अथण है?
(1) सोच-समझकर गढ़ा गया (2) बारीककयों पर ध्यान निीां हदया गया
(3) गण
ु वत्ता पर ध्यान केंहद्रत ककया गया (4) सभी ववककप सिी िै
प्रश्न-5. हालदार साह की नजरों में मनू तण कैसी थी?
(1) सांद
ु र (2) मासम
ू (3) कमशसन (4) सभी सही है
प्रश्न-6. कस् े में कवि सम्मेलन का आयोजन कौन करिाती थी?
(1) नगर पाशलका (2) नगर पररिद (3) सांसद (4) ववधानसभा
प्रश्न-7. कैप्टन चश्मे वाले के वविय में कौनसा कर्न असत्य िै ?
कर्न- (अ) दे िभक्त था (ब) बूढ़ा था (स) मररयल था (द) िट्टा- कट्टा था
ववकल्प - (1) केवल अ (2) केवल द (3) ब और स दोनों (4) सभी
प्रश्न-8. नगरपाललका को चौराहे में मूनतण लगाने की हड़ ड़ाहट क्यों थी?
(1) िासनावचध समाप्त िो रही थी ( 2) दे ि के नामी नेताओां को आना था
(3) सौंदया फीका िो रिा था (4) कोई बडा पवा आने वाला था
प्रश्न-9. कैप्टन नेताजी की मूनतण में असली चश्मा क्यों लगाता था?
(1) उसके पास बिुत सारे चश्मे थे (2) वि चश्मा का व्यापार करता था
(3) त्रबना चश्मेवाली नेताजी की मतू ता उसे आित करती थी
(4) नेताजी पर रोज चश्मा लगाने की उसकी क्जम्मेदारी थी
प्रश्न-10. हालदार साह कस् े से क्रकतने ठदनों में गुजरा करते थे?
(1) पांद्रि हदन (2) तेरि हदन (3) बारि हदन (4) चौदि हदन

उत्तर-सींकेि

प्रश्न-1 (2) मूतता को त्रबना चश्मे के दे ख कर प्रश्न-6. (1) नगर पाशलका


प्रश्न-2. (1) तनांदनीय प्रश्न-7. (2) केवल द
प्रश्न-3. (3) मूतता पर सरकांडे का चश्मा दे खना प्रश्न-8. (1) िासनावचध समाप्त िो रही थी
प्रश्न-4. (2) बारीककयों पर ध्यान निीां हदया गया प्रश्न-9. (3) त्रबना चश्मेवाली नेताजी की मूतता .....
प्रश्न-5. (4) सभी सही है प्रश्न-10. (1) पांद्रि हदन

40
पाि का नाम - ालगोब न िगत
लेिक – रामिक्ष
ृ ेनीपुरी
पाि का सारांश - बालगोत्रबन भगत लगभग साठ विा के एक माँझोले (मध्यम) कद के गोरे चचट्टे
व्यक्क्त थे। उनके सारे बाल सफेद िो चुके थे। वे बिुत कम कपडे पिनते थे। कमर में एक लांगोटी-
मात्र और शसर में कबीरपांचथयों के जैसी कनफटी। बस सहदायों में एक काली कमली ऊपर से औढ
लेते थे। उनके मस्तक पर िमेिा एक रामानांदी चांदन का टीका लगा रिता था और गले में तुलसी
की जडों की एक बेडौल-सी माला पड़ी रिती थी।
वो खेती-बाडी करते थे। वे अपने बेटे और बिू के साथ रिते थे लेककन आचार, ववचार,
व्यविार व स्वभाव से साधु थे। वो सांत कबीर को अपना आदिा मानते थे। कबीर के उपदे िों को
उन्िोंने परू ी तरि से अपने जीवन में उतार शलया था। वो कबीर को “सािब” किते थे और उन्िीां
के गीतों को गाया करते थे। वो कभी झूठ निीां बोलते थे। सबसे खरा व्यविार रखते थे। दो टूक
बात किने में सांकोच निीां करते थे लेककन ककसी से खामखाि झगडा मोल भी निीां लेते थे। ककसी
की चीज को कभी निीां छूते थे और ना िी त्रबना पूछे व्यविार में लाते।
वो कबीर के पदों को इतने मधुर स्वर में गाते थे कक सुनने वाला मांत्रमुग्ध िो जाता था।
कबीर के सीधे साधे पद भी उनके कांठ से तनकलकर सजीव िो उठते थे। आिाढ़ के माि में जब
ररमखझम बाररि िोती थी। पूरा गाांव धान की रोपाई के शलए खेतों पर रिता था।जब आसमान
बादलों से तघरा रिता था और ठां डी ठां डी िवाएां चल रिी िोती थी। ऐसे में भगत के गीतों के मधुर
स्वर कान में पडते थे। उनका मधुर गान सुनकर खेलते िुए बच्चे भी उनके गानों में झूम उठते
थे। औरतें गुनगुनाने लगती थी। िल चलाने वाले लोगों के पैर भी अब ताल से उठने लगते थे
और रोपनी करने वालों की अांगशु लयाां एक अजीब क्रम से चलने लगती थी। सच में बालगोत्रबन
भगत के सांगीत में जाद ू था जाद।ू
बाल गोववांद भगत की सांगीत साधना का चरम उत्किा उस हदन दे खा गया क्जस हदन उनके
इकलौते बेटे की मत्ृ यु िो गई। इकलौते बेटे की मत्ृ यु के बाद उन्िोंने अपने मत
ृ बेटे की दे ि को
आांगन में एक चटाई पर सलटा कर उसे एक सफेद कपडे से ढाँ क हदया और उसके ऊपर कुछ फूल
और तल
ु सीदल त्रबखरा हदए और शसर के सामने एक दीपक जला हदया। कफर उसके सामने िी
जमीन पर आसन लगा गीत गाते रिे, वि भी पूरी तकलीनता के साथ। बालगोत्रबन भगत पूरी
तकलीनता के साथ गाना गाए जा रिे थे और अपनी बिू को भी रोने के बजाय उत्सव मनाने को
कि रिे थे। वो कि रिे थे कक त्रबरहिनी आत्मा आज परमात्मा से जा शमली िै और यि सब आनांद
की बात िै। इसीशलए रोने के बजाय उत्सव मनाना चाहिए।

41
बेटे की चचता को आग भी उन्िोंने अपनी बिू से िी लगवाई और श्रादध की अवचध परू ी
िोते िी बिू के भाई को बुलाकर बिू को उसके साथ भेज हदया और साथ में यि भी आदे ि हदया
कक बिू की दस
ू री िादी कर दे ना। बिू भगत को छोड कर जाना निीां चािती थी क्योंकक वि जानती
थी कक बेटे की मत्ृ यु के बाद विी उनका एकमात्र सिारा िै। वि उनकी सेवा करना चािती थी।
लेककन भगत अपने तनणाय पर अटल रिे और उन्िोंने अपनी बिू को भाई के साथ जाने के शलए
वववि कर हदया।
बालगोत्रबन भगत की मत्ृ यु उन्िीां के अनुरूप िुई। वो िर विा अपने गाांव से लगभग 30 कोस दरू
गांगा स्नान करने पैदल िी जाते थे। घर से खाना खाकर जाते और कफर घर लौट कर िी खाना
खाते। रास्ते भर गाते बजाते रिते और प्यास लगती तो पानी पी लेते िैं। अब बुढ़ापा उन पर िावी
था। तबीयत खराब िोने पर लोगों ने उन्िें आराम करने को किा ककां तु वि अपने नेम व्रत को किाां
छोडने वाले थे। घर लौट कर उन्िोंने अपनी विी पुरानी हदनचयाा जारी रखी। उस हदन भी उन्िोंने
सांध्या में गीत गाया था। लेककन सुबि के वक्त लोगों ने उनका गीत निीां सुना। जाकर दे खा तो
पता चला कक बालगोववांद भगत निीां रिे, शसफा उनका पांजर (बेजान िरीर) पडा िै।
पाि के प्रश्नोत्तर –
1. िेती ारी से जड़
ु े गह
ृ स्थ ालगोब न िगत अपनी क्रकन चाररबिक विशेषताओं के कारर् सािु
कहलाते थे?
उत्तर- बालगोत्रबन भगत एक गि
ृ स्थ थे परन्तु तनम्नशलखखत चाररत्रत्रक वविेिताओां के कारण
वे साधु किलाते थे –
क) कबीर को अपना भगवान मानते थे तथा उनके आदिो पर चलते थे, उन्िीां के गीत
गाते थे।
ख) भगत जी सत्यवादी, खरा बोलने वाले तथा ववनम्र स्वभाव के थे।
ग) ककसी से भी दो-टूक बात करने में सांकोच निीां करते, न ककसी से झगडा करते थे।
घ) ककसी की चीज़ निीां छूते थे न िी त्रबना पूछे व्यविार में लाते थे।
ङ) जो कुछ खेत में पैदा िोता, शसर पर लादकर पिले उसे कबीरपांथी मठ में ले जाते, विााँ
से जो कुछ भी भेंट स्वरुप शमलता था उसे प्रसाद स्वरुप घर ले आते थे।
2. िगत की पुिििू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी?
उत्तर- पुत्र की मत्ृ यु के बाद भगत अकेले पड गए थे। भगत की पुत्रवधू उन्िें अकेले छोडकर
निीां जाना चािती थी क्योंकक वि जानती थी भगत के बुढ़ापे का वि एकमात्र सिारा थी।
उसके चले जाने के बाद भगत की दे खभाल करने वाला और कोई निीां था। उन्िें भगत जी
की चचांता िोने लगी थी।
3. िगत ने अपने ेटे की मत्ृ यु पर अपनी िािनाएाँ क्रकस तरह वयक्त कीं?

42
उत्तर- भगत ने अपने बेटे की मत्ृ यु को ईश्वर की इच्छा मान उसे स्वीकार ककया। उन्िोने
मत्ृ यु को आत्मा-परमात्मा का शमलन माना। बेटे की मत्ृ यु पर भगत ने पत्रु के िरीर को एक
े़
चटाई पर शलटा हदया, उसे सफेद चादर से ढक हदया, तल ु सीदल त्रबखरा हदए और शसर के
सामने एक दीपक जला हदया तथा परु ी तकलीनता के साथ गीत गाकर अपनी भावनाएाँ व्यक्त
कर रिे थे। उनके अनस
ु ार आत्मा परमात्मा के पास चली गई, ववरितन अपने प्रेमी से जा
शमली। गाते-गाते अपनी पतोिू के पास जाकर उसे उत्सव मनाने के शलए किा।
4. िगत के वयजक्तत्ि और उनकी िेशिूषा का अपने शब्दों में धचि प्रस्तुत कीजजए।
उत्तर- बालगोत्रबन भगत एक गि
ृ स्थ थे लेककन उनमें साधु सांन्याशसयों के गुण भी थे। वे
अपने ककसी काम के शलए दस
ू रों को कष्ट निीां दे ना चािते थे। त्रबना अनुमतत के ककसी की
वस्तु को िाथ निीां लगाते थे। कबीर के आदािों का पालन करते थे। सहदायों में अाँधेरे में भी
पैदल जाकर गांगा स्नान करके आते थे तथा कबीर के तनगण
ुा भजन गाते थे। वेिभूिा से वे
े़ े़
साधु लगते थे। उनके मुख पर सफेद दाढ़ी तथा शसर पर सफेद बाल थे, गले में तुलसी-जड
की माला पिनते थे, शसर पर कबीर पांचथयों की तरि टोपी पिनते थे, िरीर पर कपडे बस
नाम मात्र के थे।
5. ालगोब न िगत की ठदनचयाण लोगों के अचरज का कारर् क्यों थी?
उत्तर- बालगोत्रबन भगत की हदनचयाा लोगों के शलए अचरज का कारण इसशलए थी क्योंकक
उनकी हदनचयाा एक तनक्श्चत तनयम-व्रत पर चलती थी। वद ृ ध िोते िुए भी उनकी स्फूतता में
कोई कमी निीां थी। सदी के मौसम में भी, भरे बादलों वाले भादों की आधी रात में भी वे
भोर में सबसे पिले उठकर गााँव से दो मील दरू क्स्थत गांगा स्नान करने जाते थे, खेतों में
अकेले िी खेती करते तथा गीत गाते रिते। ववपरीत पररक्स्थतत िोने के बाद भी उनकी
हदनचयाा में कोई पररवतान निीां आता था। एक वद
ृ ध में अपने काया के प्रतत इतनी सजगता
को दे खकर लोग दां ग रि जाते थे।
6. पाि के आिर पर ालगोब न िगत के मिुर गायन की विशेषताएाँ ललखिए।
उत्तर- बालगोत्रबन भगत कबीर के पद बडे िी श्रदधा एवां ववश्वास के साथ गाते थे। उनके
गीतों में एक वविेि प्रकार का आकिाण था। कबीर के पदों को इतने मधुर स्वर में गाते थे
कक सन ु ने वाला मांत्रमग्ु ध िो जाता था। उनका मधरु गान सनु कर खेलते िुए बच्चे भी उनके
गानों में झमू उठते थे, औरतें गन ु गन
ु ाने लगती थी। िल चलाने वाले लोगों के पैर भी ताल
से उठने लगते थे और रोपनी करने वालों की अांगशु लयाां एक अजीब क्रम से चलने लगती
थी। गशमायों की िाम में उनके गीत वातावरण में िीतलता भर दे ते थे। सांध्या समय जब वे
अपनी मांडली समेत गाने बैठते तो उनके दवारा गाए पदों को उनकी मांडली दोिराया करती
थी और वे नाचने-झम
ू ने लगते थे। सच में बालगोत्रबन भगत के सांगीत में जाद ू था जाद।ू
7. कुछ मालमणक प्रसंगों के आिार पर यह ठदिाई दे ता है क्रक ालगोब न िगत प्रचललत सामाजजक
मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाि के आिार पर उन प्रसंगों का उल्लेि कीजजए।

43
उत्तर- बालगोत्रबन भगत प्रचशलत सामाक्जक मान्यताओां को निीां मानते थे तनम्नशलखखत कुछ
उदािरण इस बात को प्रमाखणत करते िैं -
क) जब बालगोत्रबन भगत के बेटे की मत्ृ यु िुई उस समय सामान्य लोगों की तरि िोक
मनाने की बजाए भगत ने उसकी िैया के समक्ष गीत गाकर अपने भाव प्रकट ककए
—“आत्मा का परमात्मा से शमलन िो गया िै। यि आनांद मनाने का समय िै , द:ु खी
िोने का निीां।“
ख) बेटे के कक्रया-कमा में भी उन्िोंने सामाक्जक रीतत-ररवाजों की परवाि न करते िुए अपनी
पुत्रवधू से िी दाि- सांस्कार सांपन्न कराया।
ग) समाज में ववधवा वववाि का प्रचलन न िोने के बावजूद भी उन्िोंने अपनी पुत्रवधू के
भाई को बुलाकर उसकी दस
ू री िादी कर दे ने को किा।
घ) गि
ृ स्थ िोते िुए भी साधुओां जैसी वेि-भूिा तथा रिन-सिन था लेककन अन्य साधुओां
की तरि शभक्षा मााँगकर खाने के ववरोधी थे।
8. पाि के आिार पर ताएाँ क्रक ालगोब न िगत की क ीर पर श्रदिा क्रकन-क्रकन रूपों में प्रकट
हुई है?
उत्तर- बालगोत्रबन भगत दवारा कबीर पर श्रदधा तनम्नशलखखत रुपों में प्रकट िुई िै -
क) बालगोत्रबन भगत कबीर को ‘सािब’ मानते थे और उनके आदिों पर चलते थे।
ख) कबीर गि
ृ स्थ िोकर भी साांसाररक मोि-माया से मुक्त थे।
ग) कबीर के अनुसार मत्ृ यु के पश्चात ् जीवात्मा का परमात्मा से शमलन िोता िै।
घ) बालगोत्रबन भगत खेती दवारा प्राप्त अनाज की राशि को कबीर मठ में भेंट दे दे ते थे
और जो प्रसाद स्वरुप शमलता उससे अपना गुज़र-बसर करते थे।
ङ) कबीर की तरि बालगोत्रबन भगत भी कनफटी टोपी पिनते थे, रामानांदी चांदन लगाते
थे तथा गले में तुलसी- माला पिनते थे।
9. आपकी दृजष्ट में िगत की क ीर पर अगाि श्रदिा के क्या कारर् रहे होंगे?
उत्तर- बालगोत्रबन भगत कबीर पर अगाध श्रदधा रखते थे क्योंकक कबीर अपने समय के एक
सच्चे समाज-सुधारक थे और उन्िोने सामाक्जक कुप्रथाओां का ववरोध कर समाज को एक नई
दृक्ष्ट प्रदान की, उन्िोंने मतू तापज
ू ा का खांडन ककया तथा समाज में व्याप्त ऊाँच-नीच के भेद-
भाव का ववरोध कर समाज को एक नई हदिा की ओर अग्रसर ककया। कबीर की इन्िीां
वविेिताओां ने बालगोत्रबन भगत के मन को प्रभाववत ककया तथा कबीर उनके शलए ‘सािब’
िो गए।
10. गााँि का सामाजजक-सांस्कृनतक पररिेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों िर जाता है ?
उत्तर- आिाढ़ मिीने में खब
ू विाा िोती िै। ग्रामीण लोगों का जीवनाधार खेत िी िोते िै
इसशलए ग्रामीण सामाक्जक-साांस्कृततक पररवेि में आिाढ़ मिीने का वविेि मित्त्व िोता िै ।
सारा गााँव खेतों में आ जाता िै। आिाढ़ की ररमखझम बाररि में भगत जी अपने मधुर गीतों
को गुनगुनाकर खेती करते िैं। उनके इन गीतों के प्रभाव से सांपूणा सक्ृ ष्ट रम जाती िै, क्स्त्रयोँ

44
भी इससे प्रभाववत िोकर गाने लगती िैं। इसीशलए गााँव का पररवेि उत्साि और उकलास से
भर जाता िै।
11. "ऊपर की तसिीर से यह नहीं माना जाए क्रक ालगोब न िगत सािु थे।" क्या 'साि'ु की
पहचान पहनािे के आिार पर की जानी चाठहए? आप क्रकन आिारों पर यह सनु नजश्चत करें गे
क्रक अमक
ु वयजक्त 'सािु' है?
उत्तर- एक साधु की पिचान उसके पिनावे से निीां बक्कक उसके आचार-व्यविार तथा उसके
कमा पर आधाररत िोती िै। साधु को िमेिा दस
ू रों की सिायता करनी चाहिए, मोि-माया,
लोभ से स्वयां को मुक्त रखना चाहिए। साधु का जीवन साक्त्वक िोता िै । उसका जीवन
भोग-ववलास की छाया से भी दरू िोता िै। उसके मन में केवल ईश्वर के प्रतत सच्ची भक्क्त
िोती िै।
12. मोह और प्रेम में अंतर होता है। िगत के जीिन की क्रकस घटना के आिार पर इस कथन
का सच लसदि करें गे?
उत्तर- मोि और प्रेम में अांतर िोता िै। मोि में अांधता िोती िै, स्वाथा-भावना के कारण
व्यक्क्त भला-बुरा निीां दे खता। प्रेम िुदध और साक्त्वक भावना िै, उसमें स्वाथा निीां िोता।
भगत को अपने पुत्र तथा अपनी पुत्रवधू से अगाध प्रेम था परन्तु उसके इस प्रेम ने प्रेम की
सीमा को पार कर कभी मोि का रुप धारण निीां ककया। जब भगत के पुत्र की मत्ृ यु िो जाती
िै तो पुत्र मोि में पड कर वो रोते त्रबलखते निीां िैं बक्कक पुत्र की आत्मा के परमात्मा से
शमलने से खुि िोते िैं।
अततररक्त प्रश्न –
1. ालगोब न िगत अपनी पतोहू के पुनविणिाह के रूप में समाज को क्रकस समस्या का समािान
प्रस्तुत करना चाहते थे? स्पष्ट कीजजए।
उत्तर- बालगोत्रबन भगत कबीर की तरि एक सच्चे समाज-सुधारक तथा आधुतनक सोच के
व्यक्क्त थे। वे अपनी पतोिू के पुनववावाि के माध्यम से समाज में व्याप्त नारी अत्याचार,
सती-प्रथा जैसी समस्या का समाधान करते िुए ववधवा-वववाि का समथान करना चािते थे
क्योंकक उस समय समाज में ववधवा वववाि को स्वीकृतत निीां शमली थी।
गदयांश-1
ननम्नललखित गदयांश को ध्यानपि
ू क
ण पढकर पछ
ू े गए प्रश्नों के उत्तर दीजजए -
बालगोत्रबन भगत की मौत उन्िीां के अनरू
ु प िुई। वि िर विा गांगा-स्नान करने जाते। स्नान पर
उतनी आस्था निीां रखते, क्जतना सांत-समागम और लोक-दिान पर। पैदल िी जाते। करीब तीस
कोस पर गांगा थी। साधु को सांबल लेने का क्या िक? और, गि
ृ स्थ ककसी से शभक्षा क्यों मााँगे
अतः घर से खाकर चलते, तो कफर घर पर िी लौटकर खाते। रास्ते भर खांजडी बजाते, गाते जिााँ
प्यास लगती, पानी पी लेते। चार – पााँच हदन आने जाने में लगते; ककन्त,ु इस लम्बे उपवास में
भी विी मस्ती ! अब बुढ़ापा आ गया था, ककन्तु तक विी जवानी वाली। इस बार लौटे , तो तबीयत
कुछ सुस्त थी। खाने-पीने के बाद भी तबीयत निीां सुधरी, थोडा बुखार आने लगा, ककन्तु नेम-व्रत

45
तो छोडने वाले निीां थे। विी दोनों जन
ू गीत, स्नान-ध्यान,खेतीबाडी दे खना। हदन-हदन छीजने लगे।
लोगो ने निाने धोने से मना ककया, आराम करने को किा। ककन्त,ु िाँसकर टाल दे ते रिे । उस हदन
भी सांध्या में गीत गाए, ककन्तु मालम
ू िोता जैसे तागा टूट गया िो, माला का एक-एक दाना
त्रबखरा िुआ। भोर में लोगों ने गीत निीां सन
ु ा, जाकर दे खा तो बालगोत्रबन भगत निीां रिे शसफा
उनका पांजर पडा िै !
1) भगत ककतनी दरू चलकर गांगा स्नान के शलए पिुाँचते थे?
1) 10 मील 2) 30 कोस 3) 30 मील 4) 20 कोस
2) ‘हदन-हदन छीजना’ से क्या तात्पया िै ?

1) िरीर कमजोर िोना 2) मत्ृ यु का उत्सव मनाया 3) कबीर के गीत गाना 4) सभी सिी
3) भगत के अनुसार ककसको सिारा लेने का िक निीां िै ?
1) परमात्मा को 2) साधु को 3) साथी को 4) नारी को
4) भगत की मत्ृ यु ककसके अनुरूप िुई?
1) भगत के अनरू
ु प 2) पत्र
ु के अनरू
ु प 3) परमात्मा के अनरू
ु प 4) कबीर के अनरू
ु प
5) पाठ के लेखक कौन िै?
1) स्वयां प्रकाि 2) रामवक्ष
ृ बेनीपुरी 3) यिपाल 4) मन्नू भर्णडारी

उत्तर सींकेि

1) 2) 30 कोस 4) 1) भगत के अनुरूप


2) 2) िरीर कमजोर िोना 5) 2) रामवक्ष
ृ बेनीपुरी
3) 2) साधु को
लिनिी अंदाज (यशपाल)
कहानी का सार - लखनवी अांदाज’ एक व्यांग्यात्मक किानी िैI प्रस्तत
ु किानी इस बात को प्रमाखणत
करने शलए शलखी गयी िै कक त्रबना ककसी ववचार के किानी निीां शलखी जा सकती लेककन इसे
अवश्य िी एक स्वतांत्र एवां मौशलक रचना के रूप में पढ़ा जा सकता िैI साथ िी यि किानी िान
िौकत वाली बनावटी जीवन िैली पर कटाक्ष करती िैI लेखक िमें बताना चािते िैं कक ककस प्रकार
आज भी लोगों में हदखावा और सामांतवादी प्रववृ त्त जस की तस िै जो सहदयों पिले थीI रे ल में
यात्रा करने वाले नवाब सािब उस सामांतवादी और हदखावे की प्रववृ त्त के जीते जागते उदािरण िै I
लेखक िमें अप्रत्यक्ष रूप से यि शिक्षा भी दे ता िै कक िमें इस प्रकार का हदखावा निीां करना चाहिए
क्योंकक समय बदल गया िै और इस प्रकार की सांकुचचत मानशसकता और हदखावे की आज के
समाज में कोई अिशमयत निीां रि गईI

46
लेखक यिपाल ने ज्यादा ककराया िोने पर भी सेकांड क्लास के डडब्बे का हटकट खरीदा
ताकक वि कम भीड वाले डडब्बे में अपनी नई किानी के बारे में सोच सके और प्राकृततक दृश्यों का
आनांद भी ले सकें। लेखक को अनुमान था कक डडब्बा खाली िोगा परां तु डडब्बे में एक नवाब सािब
बैठे थे। क्जनके सामने दो खीरे रखे थे। नवाब सािब लेखक के डडब्बे में प्रवेि करने पर छोडे
असांतष्ु ट हदखाई हदए। लेखक के प्रतत उन्िोंने सांगतत के शलए कोई उत्साि निीां हदखाया। प्रततकक्रया
स्वरूप लेखक ने भी आत्मसम्मान का प्रदिान करते िुए उनसे नजरे चरु ा ली। लेखक अपने स्वभाव
के अनुसार नवाब सािब की असुववधा और सांकोच के बारे में अनुमान लगाने लगे कक िायद
उन्िोंने पैसे बचाने के शलए सेकांड क्लास का हटकट खरीदा िोगा और अब ििर का कोई सभ्य
व्यक्क्त उन्िें सेकांड क्लास में सफर करते दे खे तो यि उनकी िान के खखलाफ िोगा। उन्िोंने वक्त
काटने के शलए खीरे खरीदे िोंगे और अब लेखक के सामने खीरा खाने में सांकोच मिसस
ू िो रिा
िोगा। अचानक से नवाब सािब लेखक से खीरा खाने के शलए पछ
ु तें िैं। लेखक ने भी आत्मसम्मान
के कारण ना कर हदया। नवाब सािब ने खीरे को धोया, पोंछा, शसर काटकर झाग तनकाला और
बडी िी सावधानी से फााँकें काटकर उन्िें एक-एक कर तौशलए पर सजा हदया कफर जीरा शमला नमक
- शमचा बुरका। नवाब सािब पूणा तन्मयता से यि काया कर रिे थे। खीरे के रसास्वादन की
ककपना से उनके मांि
ु में पानी आ रिा था। नवाब सािब ने पन
ु ः नवाबी िान हदखाते िुए लेखक
से खाने के शलए पूछा परां तु मुांि में पानी आने पर भी लेखक ने आत्मसम्मान तनभाना जरूरी
समझा और खीरे के शलए मना कर हदया। नवाब सािब ने एक-एक करके खीरे की फााँकों को को
उठाया, तष्ृ णा से उन्िें दे खा मानो आाँखों से िी वे खीरे का रसास्वादन कर रिे िैं। कफर अपने िोठों
के पास ले जाकर उन्िें सुांधा और एक-एक कर सारे खीरे की फााँकों को खखडकी से बािर फेंक
हदया।लेखक की तरफ गुलाबी और गवा से भरी आांखों से दे खा मानो कि रिे िों कक यि िै “नवाबी
िान”। इस सारी तैयारी से थक कर नवाब सािब लेट गए और तक्ृ प्त की डकार ली मानो उनका
पेट भरा िो। लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए। लेखक ने सोचा कक अगर त्रबना खाए पेट भर सकता
िै तो क्या त्रबना ववचार, त्रबना घटना और त्रबना पात्रों के नई किानी निीां बन सकती?
प्रश्न -अभ्यास
प्रश्न:-1 लेखक को नवाब सािब के ककन िाव भावों से मिसस
ू िुआ कक वे उनसे बातचीत करने
के शलए ततनक भी उत्सुक निीां िै?
उत्तर- लेखक को डडब्बे में आया दे खकर नवाब सािब की आांखों में असांतोि छा गयाI ऐसा लगा
मानो लेखक के आने से उनके एकाांत में बाधा पड गई िोI नवाब सािब ने उनकी तरफ दे खा भी
निीांI नवाब सािब ने लेखक की सांगतत के शलए भी उत्साि निीां हदखायाI नवाब सािब खखडकी से

47
बािर दे खने का नाटक करने लगे, साथ िी डडब्बे की क्स्थतत पर गौर करने लगे क्जससे यि लग
रिा था कक वे उससे बातचीत करने के शलए ततनक भी उत्सुक निीां िैI
प्रश्न:-2 नवाब सािब ने बिुत िी यत्न से खीरा काांटा नमक-शमचा बुरका, अांततः सूाँघकर िी खखडकी
से बािर फेंक हदयाI उन्िोंने ऐसा क्यों ककया िोगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को
इांचगत करता िै?
उत्तर- नवाब सािब दवारा बिुत िी यत्न से काटे गए खीरों को साँघ
ू कर िी खखडकी से बािर फेंकने
से वि अपने नवाबी अांदाज को हदखाना चािते थेI नवाब सािब अकेले में बैठे-बैठे खीरे खाने की
तैयारी कर रिे थे परां तु लेखक को सामने दे खकर उन्िें अपना नवाबीपन हदखाने का अवसर शमल
गयाI उनका यि बतााव स्वयां को खास हदखाने और लेखक पर अपना नवाबीपन का रोब झाडने के
शलए थाI उनका ऐसा करना दां भ, शमथ्या –आडांबर, प्रदिान वप्रयता एवां उनके व्यविाररक खोखलेपन
की ओर इांचगत करता िैI
प्रश्न:-3 त्रबना ववचार घटना और पात्रों के भी क्या किानी शलखी जा सकती िै ? लेखक के इस
ववचार से आप किाां तक सिमत िै?
उत्तर- इस व्यांग्य के माध्यम से लेखक स्पष्ट करना चािते िैं कक कोई भी किानी ववचार,घटना
व पात्रों के अभाव में उसी प्रकार निीां शलखी जा सकती क्जस प्रकार का खादय सामग्री को खाए
त्रबना उसका रसास्वादन निीां ककया जा सकता,केवल खाने का अशभनय ककया जा सकता िैI ववचार
किानी लेखन के शलए लेखक को प्रेररत करते िैं,घटनाएां कथावस्तु को आगे बढ़ाने का काया करती
िै और पात्र किानी में प्राणों का सांचार करते िैं। यि किानी के आवश्यक तत्व िैं इनके त्रबना
शलखी रचना को एक स्वतांत्र रचना किा जा सकता िै लेककन किानी निीां। अतः िम उनके ववचार
से सिमत िैंI
प्रश्न:-4 आप इस तनबांध को और क्या नाम दे ना चािें गे और क्यों?
उत्तर- िम इस तनबांध को इनमें से कोई एक नाम दे सकते िैं - ‘प्राण जाए पर िान न जाए’,
“नवाबी सनक”या “िवाई भोज”। उपयक्
ुा त किानी में नवाब सािब के माध्यम से यि हदखाया गया
िै कक नवाब सािब जैसे लोग चािे कैसी भी पररक्स्थतत का सामना करना पडे लेककन वि अपना
नवाबीपन हदखाने से निीां चक
ू ें गेI उन्िें भख
ू ा िी रिना पडे लेककन वि अपना हदखावे की प्रववृ त्त को
निीां छोडेंगेI
प्रश्न:-5 क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप िो सकता िै? सकारात्मक सनक की जीवन में क्या
भूशमका िो सकती िै ? सटीक उदािरणों दवारा अपने ववचार प्रकट कीक्जएI
उत्तर -ऐसा निीां िै कक सनक िमेिा नकारात्मक िी िोती िैI अच्छे उददे श्य के शलए की गई सनक
िमेिा सकारात्मक िी िोती िैI यहद वैज्ञातनकों को क्जज्ञासा की सनक न िोती तो आज िम ववज्ञान

48
के आववष्कारों का उपभोग न कर पातेI यहद िमारे स्वतन्त्रता सेनातनयों को आज़ादी पाने का जन
ु न

न िोता, तो िम आज स्वतांत्र िवा में सााँस न ले पातेI यहद अध्यात्म के क्षेत्र में भी बात की जाए
तो ईश्वर को विी प्राप्त कर सकता िै क्जसे ईश्वर प्राक्प्त की सनक िो और यिी सनक उसे ज्ञानी
भी बना दे ती िैI
अततररक्त प्रश्न
प्रश्न:-1 लखनवी अांदाज िीिाक की साथाकता तका सहित शसदध कीक्जएI
उत्तर - लखनवी अांदाज िीिाक व्यांग्य से भरपूर िैI इसमें सूक्ष्मता,कोमलता और िान-बान के नाम
पर जीवन की सिजता को नकारने का ववरोध ककया गया िै I लेखक किना चािता िै कक यि
लखनवी नवाब खीरे के भोग के नाम पर केवल उसकी गांध और स्वाद लेते िैं इसी में अपनी िान
और ववशिष्टता मानते िैं परां तु उनका यि अांदाज अिरीरी,अवास्तववक िै और जीवन ववरोधी िै I
इस ववरोध को प्रकट करने के शलए लखनवी अांदाज िीिाक साथाक प्रतीत िोता िै ।
प्रश्न:-2 खीरा खाने की इच्छा िोने पर भी नवाब सािब के पुछने पर लेखक ने खीरा खाने से मना
क्यों ककया?
उत्तर- लेखक को अचानक से नवाब सािब का बदला िुआ व्यविार अच्छा निीां लगा। उन्िोंने डडब्बे
में चढ़ते समय लेखक के प्रतत अरुचच प्रदशिात की थी इसशलए लेखक ने खीरा खाने से इांकार कर
हदयाI नवाब सािब ने एक बार कफर लेखक से खीरा खाने के शलए किा परां तु लेखक ने आत्मसम्मान
को बचाए रखने की खाततर एक बार कफर मना कर हदयाI
पठित गदयांश
ठाली बैठे ककपना करते रिने की पुरानी आदत िै।नवाब सािब की असुववधा और सांकोच के कारण
का अनम
ु ान लगाने लगे।सांभव िै नवाब सािब ने त्रबककुल अकेले यात्रा कर सकने के अनम
ु ान में
ककफायत के ववचार से सेकांड क्लास का हटकट खरीद शलया िो और अब गवारा ना िो कक ििर
का कोई सफेदपोि उन्िें मांझले दजे में सफर करता दे खे। अकेले सफर का वक्त काटने के शलए
िी खीरे खरीदे िोंगे और अब ककसी सफेदपोि के सामने खीरा कैसे खाएां? िम कनखखयों से नवाब
सािब की ओर दे ख रिे थे। नवाब सािब कुछ दे र गाडी की खखडकी से बािर क्स्थतत पर गौर करते
रिे । “ओिो” नवाब सािब ने सिसा िमें सांबोधन ककया “आदाब-अजा” िै खीरे का िौक फरमाएांगे?
नवाब सािब का सिसा भाव पररवतान अच्छा निीां लगा। भााँप शलया। आप िराफत का गुमान रखा
बनाए रखने के शलए िमें मामूली लोगों की िरकतों में लथेड लेना चािते िैं। जवाब हदया। “िुकक्रया
ककबला िौक फरमाएां।

49
क) िाली ैिे कल्पना करते रहना क्रकसकी आदत थी?
(1)नवाब सािब की (2) लेखक की (3) यात्रत्रयों की (4) इनमें से कोई निीां
(ि) निा साह ने सेकंड क्लास का ठटक्रकट क्यों िरीदा होगा?
(1) ककफायत के शलए (2) अकेले सफ़र कर सकने के शलए
(3) लेखक से शमलने के शलए (4) 1 और 2 दोनों सिी िैं
(ग “सिेदपोश” शब्द का प्रयोग इस गदयांश में क्रकसके ललए क्रकया गया है ?
(1) नवाब सािब के शलए (2) लेखक के शलए
(3) अन्य यात्रत्रयों के शलए (4) उपयक्
ुा त सभी
(घ) निा साह ने िीरे क्यों िरीदें होगे?
(1) बाांटने के शलए (2) फेंकने के शलए (3) लेखक के शलए (4) खाने के शलए
(ङ) लेिक को क्या अच्छा नहीं लगा?
(1) सेकेंड क्लास का डडब्बा (2) नवाब सािब का भाव पररवतान
(3) खीरे का स्वाद (4) नवाब सािब का रूप

उत्तर सिंकेत

क) (2)लेखक की (घ) (4) खाने के शलए


(ि) (4) 1 और 2 दोनों सिी िैं (ङ) (2) नवाब सािब का भाव पररवतान
(ग) (2) लेखक के शलए

‘एक कहानी यह भी’ (लेखखका- मन्नू भांडारी)


पाठ का साराांि- मन्नू भांडारी दवारा शलखखत अपने आत्मकथ्य ‘एक किानी यि भी’ में उन्िोंने उन
व्यक्क्तयों और घटनाओां के बारे में शलखा िै जो उनके लेखकीय जीवन से जुडे िुए िै । मन्नू भांडारी
का जन्म सन 1931 में भानपुरा गााँव,क्जला मांदसौर (मध्यप्रदे ि) में िुआ लेककन इनकी शिक्षा -
दीक्षा राजस्थान के अजमेर ििर में िुई।
उनकी साहिक्त्यक रचनाओ के शलए हिांदी अकादशमक के शिखर सम्मान सहित उन्िें अनेक पुरस्कार
प्राप्त िो चुके िै। उनकी भािा में शिकप की सादगी और स्त्री मन की प्रामाखणक अनुभूतत शमलती
िै।
‘एक किानी यि भी’ में मन्नू भांडारी के वपताजी का इांदौर में बिुत बडा व्यवसाय था,उनकी बडी
प्रततष्ठा थी,सम्मान था,नाम था।काांग्रेस के साथ -साथ वे समाज सुधार के कामों से भी जड
ु े थे।
उनके वपताजी एक ओर बेिद कोमल और सांवेदनिील व्यक्क्त थे तो दस
ू री ओर बेिद क्रोधी और
अांिवादी थे। जब उनका व्यवसाय इांदौर में डूब गया तो वे अजमेर आ गए।
मन्नू पाांच भाई-बिनों में सबसे छोटी थी एवां बचपन में दब
ु ली-पतली,मररयल और काले रां ग की
थी। वपताजी मझ
ु से दो साल बडी बहिन सि
ु ीला जो खब
ू गोरी,स्वस्थ एवां िाँसमख
ु थी उसका मान
सम्मान बिुत रखते थे। मेरी मााँ अनपढ़ एवां धरती से ज्यादा िी धैया और सिनिक्क्त वाली थी

50
जो वपताजी एवां बच्चों की उचचत -अनचु चत आदे िों एवां क्ज़द को अपना फ़जा समझकर सिज भाव
से परू ा कराती थी। लेखखका बचपन में सतोशलया,लांगडी -टाांग,पकडम -पकडाई,काली टीलों,गड्
ु डे -
गड्
ु डडयों के ब्याि एवां पतांग उडाना आहद खेल खेलती थी क्जसका दायरा घर की सीमओां के बािर
अचधक था। लेखखका को अपनी क्जांदगी स्वांय जीने के इस आधतु नक दबाव ने मिानगरों के फ्लैट
में रिने वालों को िमारे इस परम्परागत ‘पडोस-ककचर’ से ववक्च्छन्न करके िमें ककतना
सांकुचचत,असिाय,और असुरक्षक्षत बना हदया िै।
दोनों बडी बिनों की िादी एवां दोनों बडे भाइयों को आगे की पढाई के शलए बािर जाना पडा
अत;वपताजी का ध्यान भी पिली बार मुझ पर केक्न्द्रत िुआ। वपताजी रसोईघर को भहटयारखाना
किते थे उनका मानना िै कक विााँ बाशलकाए अपनी क्षमताओां एवां प्रततभाओां को भट्टी में झोंकती
िै इसशलए मुझें रसोई से दरू रखने के आदे ि थे घर में राजनैततक पाहटा यों के जमावडों एवां बिसों
के चलते मेरा रुझान अब धीरे धीरे दे ि की समस्याओां की तरफ िोने लगा।। सन 1942 के
आन्दोलन ने मुझमे क्राांततकारी एवां दे ि भक्क्त की भावना प्रबल की क्जसमें हिांदी की प्राध्यावपका
िीला अग्रवाल की वविेि भूशमका रिी। सन 1946-47 के कॉलेज के हदनों में आज़ादी के शलए
प्रभात-फेररयााँ,िडतालों,जुलस
ू ों एवां भािणों में पूरे दमखम और जोि-खरोि के साथ सक्रीय भाग
शलया। िमारे एक इिारे पर कॉलेज बांद िो जाता था।
वपताजी को मेरा यि व्यविार त्रबलकुल भी पसांद निीां था। एक बार कॉलेज के वप्रांशसपल के पत्र ने
वपताजी के कोप का शिकार बनाया लेककन उनके मुाँि से जब सुना कक यि तो पुरे दे ि की पुकार
िै ...इस पर कोई कैसे रोक लगा सकता िै भला? यि सब सुनकर मैं दां ग रि गई,मुझे मेरी आाँखों
पर एवां कानों पर ववश्वास निीां िो रिा था लेककन यि िकीकत था।
एक अन्य घटना आजाद हिन्द फौज के मुकदमे का शसलशसला था। िम िडताल करवाकर सभी
स्कूल, कॉलेज एवां दक
ु ानें बांद करावा रिे थे। मैं वविाल युवा जन समूि का नेतत्ृ व कर भािण दे
रिी थी। वपताजी के एक तनिायत दककयानूसी शमत्र ने घर आकर आखों दे खा िाल सुना हदया एवां
सलाि दी कक िमारे -आपके घरों की लडककयों को यि सब िोभा निीां दे ता िै, कोई मान-
मयाादा,इज्ज़त-आबरू का ख्याल िमें रखना चाहिए,निीां तो लोग घर आकर थू-थू कर चले जाएगे,अब
बांद करो इस मन्नू का घर से बािर तनकलना। रात में घर लौटी तो वपताजी के बेिद अांतरां ग शमत्र
एवां अजमेर के सबसे प्रततक्ष्ठत और सम्मातनत डा.अांबालाल जी ने बडी गमाजोिी से मेरा स्वागत
ककया। उन्िोंने वपताजी से मेरी खब
ू तारीफ़ की। कॉलेज प्रिासन को भी मन्नू के आन्दोलन के
आगे झक
ु ना पडा क्जस थडा इयर को बांद ककया था उसे वापस िरू
ु करना पडा। वपताजी को जिााँ
मझ
ु पर गवा व अशभमान था विीां मैं अपनी जीत की ख़ि
ु ी से गद-गद थी उसके बाद शमली सबसे
बडी चचर-प्रतीक्षक्षत ख़ि
ु ी, िताब्दी की उपलक्ब्ध ...15 अगस्त 1947
प्रश्नोत्तर :-
1. लेखिका के वयजक्तत्ि पर क्रकन -क्रकन वयजक्तयों का क्रकस रूप में प्रिाि पड़ा?
उत्तर- लेखखका के व्यक्क्तत्व पर मुख्यतया दो लोगों(वपता जी व प्राध्यावपका िीला अग्रवाल)
का प्रभाव पडा, क्जन्िोंने उसके व्यक्क्तत्व को गिराई तक प्रभाववत ककया। ये दोनों लोग िैं -

51
● वपता का प्रभाव : लेखखका के व्यक्क्तत्व पर उसके वपता जी का काफी प्रभाव था उनसे उसने
दे िप्रेम, राष्रीय आन्दोलन में भाग लेना,अन्याय का ववरोध,अिांकारी बने रिना जैसे गण

सीखे।
● प्राध्यावपका िीला अग्रवाल का प्रभाव : लेखखका के व्यक्क्तत्व को उभारने में िीला अग्रवाल
का मित्त्वपण
ू ा योगदान था। उन्िोंने लेखखका की साहिक्त्यक समझ का दायरा बढ़ाया और
अच्छी पुस्तकों को चुनकर पढ़ने में मदद की। इसके अलावा उन्िोंने लेखखका में वि सािस
एवां आत्मववश्वास भर हदया क्जससे उसकी रगों में बिता खून लावे में बदल गया।

2. इस आत्मकथ्य में लेखिका के वपता ने रसोई को ‘िठटयारिाना’ कहकर क्यों सं ोधित


क्रकया है?
उत्तर- इस आत्मकथ्य में लेखखका के वपता ने रसोई को ‘भहटयारखाना’ किकर इसशलए
सांबोचधत ककया िै क्योंकक उसके वपता का मानना था कक रसोई में काम करने से लडककयााँ
चूकिे -चौके तक सीशमत रि जाती िैं। उनकी नैसचगाक प्रततभा उसी चूकिे में जलकर नष्ट
िो जाती िै अथाात ् वे अपनी प्रततभा का पूणा सदप
ु योग निीां कर पाती।

3. िह कौनसी घटना थी जजसके ारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आाँिों पर विश्िास
हो पाया और न अपने कानों पर?
उत्तर- लेखखका राजनैततक कायाक्रमों में बढ़-चढ़कर भाग ले रिी थी। इस कारण लेखखका के
कॉलेज की वप्रांशसपल ने उसके वपता के पास पत्र भेजा क्जसमें अनुिासनात्मक कायावािी
करने की बात शलखी थी। यि पढ़कर वपता जी गुस्से में आ गए। कॉलेज की वप्रांशसपल ने
जब बताया कक मन्नू के एक इिारे पर लडककयााँ बािर आ जाती िैं और नारे लगाती िुई
प्रदिान करने लगती िैं तो वपता जी ने किा कक यि तो दे ि की मााँग िै। वे ििा से गद-
गद िोकर जब यिी बात लेखखका की मााँ को बता रिे थे तो इस बात पर लेखखका को
ववश्वास निीां िो पाया।
4. लेखिका की अपने वपता से िैचाररक टकराहट को अपने शब्दों में ललिों?
उत्तर- लेखखका और उसके वपता के ववचारों में कुछ समानता के साथ-साथ असमानता भी
थी। लेखखका के वपता में ववशिष्ट बनने और बनाने की चाि थी पर वे चािते थे कक यि
सब घर की चारदीवारी में रिकर िो, जो सांभव निीां था। वे निीां चािते। थे कक लेखखका
सडकों पर लडकों के साथ िाथ उठा-उठाकर नारे लगाए, जल
ु स
ू तनकालकर िडताल करे ।
दस
ू री ओर लेखखका को अपनी घर की चारदीवारी तक सीशमत आज़ादी पसांद निीां थी। यिी
दोनों के मध्य टकराव का कारण था।
5. मनुष्य के जीिन में आस-पड़ोस का हुत महत्त्ि होता है। परन्तु महानगरों में रहने िाले
लोग प्राय: ‘पड़ोस कल्चर’ से िंधचत रह जाते है। इस ारे में अपने विचार ललखिए।

52
उत्तर- मनष्ु य के सामाक्जक ववकास में ‘पडोस ककचर’ का वविेि योगदान िोता िै। यिी
पडोस ककचर िमें उचचत व्यविार की सीख दे ता िै क्जससे िम सामाक्जक मापदां ड अपनाते
िुए मयााहदत जीवन जीते िैं। यिीां से व्यक्क्त में पारस्पररकता, सियोग, सिानभ
ु तू त जैसे
मकू यों का पष्ु पन-पकलवन िोता िै। पडोस ककचर के कारण अकेला व्यक्क्त भी कभी
अकेलेपन का शिकार निीां िो पाता िै। फ़्लैट ककचर की सांस्कृतत के कारण लोग अपने
फ्लैट तक िी शसमटकर रि गए िैं। वे पास-पडोस से वविेि अशभप्राय निीां रखते िैं। लोगों
में आत्मकेंहद्रत इस तरि बढ़ रिी िै कक उन्िें एक-दस
ू रे के सुख-दख
ु से कोई लेना-दे ना निीां
रि जा रिा िै। इससे सामाक्जक भावना एवां मानवीय मूकयों को गिरा धक्का लग रिा िै।

6. लेखिका अपने ही घर में हीनिािना का लशकार क्यों हो गई?


उत्तर- लेखखका बचपन में काली, दब
ु ली-पतली और मररयल-सी थी। इसके ववपरीत उसकी
दो साल बडी बिन सुिीला खूब गोरी, स्वस्थ और िाँसमुख थी। लेखखका के वपता को गोरा
रां ग पसांद था। वे बात-बात में लेखखका की तुलना उसकी बिन से करते और उसे िीन शसदध
करते। इससे लेखखका के मन में धीरे -धीरे िीनता की ग्रांचथ पनपने लगी और वि िीन भावना
का शिकार िो गई।

पठित गदयांश
‘उस समय तक िमारे पररवार में लडकी के वववाि के शलए अतनवाया योग्यता थी -उम्र में सोलि
विा और शिक्षा में मैहरक सन 1944 में सुिीला ने यि योग्यता प्राप्त की और िादी करके कलकत्ता
चली गई। दोनों बडे भाई भी आगे की पढाई के शलए बािर चले गए। इन लोगों की छत्र-छाया के
िटते िी पिली बार मुझे नए शसरे से अपने वजूद का एिसास िुआ। वपताजी का ध्यान भी पिली
बार मुझ पर केक्न्द्रत िुआ। लडककयों को क्जस उम्र में स्कूली शिक्षा के साथ -साथ सुघड गहृ िणी
और कुिल पाक-िास्त्री बनाने के नुस्खे जुटाए जाते थे,वपताजी का आग्रि रिता था कक मैं रसोई
से दरू िी रिूाँ। रसोई को वे भहटयारखाना किते थे और उनके हिसाब से विाां रिना अपनी क्षमता
और प्रततभा को भट्टी में झोंकना था। घर में आए हदन ववशभन्न राजनैततक पाहटा यों के जमावडे
िोते थे और जमकर बिसें िोती थी। बिस करना वपताजी का वप्रय िगल था। चाय-पानी या नाश्ता
दे ने जाती तो वपताजी मुझें भी विीीँ बैठेने को किते। वे चािते थे कक मैं भी विी बैठूां,सन
ु ाँू और जानाँू
कक दे ि में चारों ओर क्या कुछ िो रिा िै । सन ् 1942 के आन्दोलन के बाद से तो दे श जैसे खौल
रहा र्ा। िााँ, क्राांततकाररयों और दे िभक्त ििीदों के रोमानी आकषार्, उनकी कुबाातनयों से जरुर मन
आक्राांत रिता था।
(1) लेखखका के पररवार के शलए वववाि की अतनवाया योग्यता क्या थी?
(1) चौदह विा और मैहरक (2) अठारि विा और मैहरक
(3) सोलि विा और मैहरक (4) इक्कीस विा और अठारि विा
(2) लेखखका के वपताजी ने भहटयारखाना ककसको किा िै ?

53
(1) राजनैततक पाटी को (2) सघ
ु ड गहृ िणी को (3)पाक-िास्त्री को (4) रसोईघर को
(3) इस गदयाांि में कौनसे विा के आन्दोलन का क्जक्र ककया गया िै ?
(1) सन 1857 (2) सन 1919 (3) सन 1942 (4) सन 1947
(4) ‘पाक-िास्त्री’ िब्द का तात्पया क्या िै?
(1) भोजन बनाने की कला (2)पढ़ने में िोशियार (3) क्राांततकारी (4) िास्त्रों का ज्ञाता
(5) लेखखका के वपताजी की लेखखका के बारे में क्या इच्छा निीां थी?
(1) वि राजनैततक बिसों को सुनें। (2) वि राजनैततक जमावडो में बैठें।
(3) वि कुिल पाक-िास्त्री बने। (4) वि रसोईघर से दरू रिे ।

उत्तर सिंकेत

1. (3) सोलि विा और मैहरक 2. (4) रसोई को, 3. (3) सन 1942


4. (1) भोजन बनाने की कला 5. (3) वि कुिल पाक-िास्त्री बने।

पाि - नौ तिाने में इ ादत (लेिक - यतींद्र लमश्र)


पाि का सारांश- ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ प्रशसदध ििनाई वादक त्रबक्स्मकला खााँ के जीवन पर
आधाररत एक रे खाचचत्र िै I इसमें लेखक ने त्रबक्स्मकला खााँ की रुचचयों, यादों और मन के भावों को
अशभव्यक्त ककया िैI उनकी सांगीत- साधना और लगन के बारे में बात करते िुए लेखक ने कािी
की सांस्कृतत को भी सिज भािा में िाशमल ककया िै I लेखक ने ििनाई वादन के क्षेत्र में उस्ताद
की सफलता की पष्ृ ठभूशम का रोचक वणान प्रस्तुत ककया िै। वाराणसी के सांकटमोचन मांहदर में
ििनाई बजाना उनके पूवज
ा ों के समय से िी चलता आया था तथा यि उनकी रोजी-रोटी भी थी।
इस कारण बचपन से िी त्रबक्स्मकला खााँ की रुचच ििनाई वादन में थी। धैया और तन्मयता से
उस्ताद अपने गुरु के हदखाए मागा पर चलकर तनरन्तर अभ्यास करके सफलता के शिखर पर पिुाँचे
थे।
उस्ताद त्रबक्स्मकला खााँ एक श्रेष्ठ सांगीतकार िी निीां थे, बक्कक वि एक मिान ् मानव भी
थे। कािी, गांगा तथा सांकटमोचन और बाबा ववश्वनाथ मक्न्दर के त्रबना त्रबक्स्मकला खााँ का व्यक्क्तत्व
अधूरा िै और त्रबना त्रबक्स्मकला खााँ के वाराणसी अपूणा िै। दोनों एक-दस
ू रे के पूरक िैं। अपने धमा
में अकाट्य ववश्वास रखने वाले उस्ताद की गांगा और बाबा ववश्वनाथ में अपार श्रदधा शभन्न-शभन्न
सम्प्रदायों वाले लोगों को भाईचारे तथा मेल-शमलाप का सांदेि दे ने वाली िै। अपने धमा में ववश्वास
रखकर भी दस
ू रे धमा का आदर कैसे िोता िै, यि उस्ताद त्रबक्स्मकला खााँ के जीवन से सीखा जा
सकता िै।
त्रबक्स्मकला खााँ को बचपन में अमीरुददीन नाम से पुकारा जाता थाI छि विा की अवस्था
में वि अपने से तीन साल बडे भाई िमसुददीन के साथ अपने नतनिाल कािी आ गए थेI विााँ
अपने दोनों मामा अलीबख्ि और साहदक िुसैन जैसे प्रशसदध ििनाई वादकों के साथ रिकर ििनाई
वादन का अभ्यास करने लगेI

54
डुमरााँव, अमीरुददीन की जन्म स्थली िैI यिााँ सोन नदी के ककनारे नरकट नाम की घास
शमलती िै I नरकट का प्रयोग ििनाई की पोली रीड बनाने में ककया जाता िै I अपने साक्षात्कारों में
त्रबक्स्मकला खााँ ने बताया िै कक सांगीत के प्रतत उनका झक
ु ाव रसल
ू न बाई और बतल
ू न बाई नामक
दो गातयका बिनों के दादर-ठुमरी को सन ु कर िुआI ििनाई को सवु िर वादयों की श्रेणी में रखा
जाता िै I फाँू क मारकर बजाए जाने वाले वादयों को सवु िर वादय किा जाता िैI अरब दे िों में इन्िें
‘नय’ किा जाता िैI ििनाई को ‘िािे -नय’ की उपाचध दी गई िै I यि दक्षक्षण भारत के मांगलवादय
‘नागस्वरम’ की तरि िी मांगलध्वनी का सांपूरक िै I
अस्सी विा की आयु में भी त्रबक्स्मकला खााँ अपनी पााँचों वक्त की नमाज़ में खुदा से दआ

मााँगते थे कक उनके सुर को इतना प्रभाविाली बना दे कक सुनने वालों की आाँखें नम िो जाएाँI
त्रबक्स्मकला खााँ बताते िैं कक कुलसुम िलवाई जब कचौडी को कढ़ाई डालती थी तो उन्िें उसमें भी
सांगीत का आरोि-अवरोि सुनाई दे ता थाI उन्िोंने अपनी पसांदीदा हिरोइन ‘सुलोचना’ की कोई भी
कफकम त्रबना दे खे निीां छोडीI
एक हदन एक शिष्या ने डरते-डरते किा कक, “बाबा ! आप भारत रत्न पा चक
ु े िैंI यि फटी
तिमद न पिना करें I” इस पर त्रबक्स्मकला खााँ ने किा कक ‘भारतरत्न’ मझ
ु े ििनाई पर शमला िै
लुांगी पर निीांI पक्का मिल से मलाई बफा बेचने वाले गायब िो चुके िैंI गायक अब सांगतकारों को
आदर की दृक्ष्ट से निीां दे खतेI कजली, चैती का ज़माना अब निीां रिा पर कािी कफर भी दो कौमों
को एक साथ भाईचारे का सांदेि दे ती िै I कािी में िोने वाले पररवतान से त्रबक्स्मकला खााँ व्यचथत
िैंI
‘भारतरत्न’ से लेकर ढ़े रों ववश्वववदयालयों की मानद उपाचधयों से अलांकृत, सांगीत नाटक
अकादमी पुरस्कार, पदमववभूिण जैसे सम्मानों से िी निीां बक्कक अपनी अजय सांगीत यात्रा के
शलए त्रबक्स्मकला खााँ िमेिा सांगीत के नायक रिें गेI नब्बे विा की आयु में 21 अगस्त,2006 को
ििनाई की दतु नया के नायक ने इस दतु नया से अांततम ववदा लीI

अभ्यास प्रश्न-उत्तर
प्रश्न 1 ििनाई की दतु नया में डुमराव को क्यों याद ककया जाता िै ?
उत्तर - डुमराव प्रशसदध ििनाई वादक त्रबक्स्मकला खााँ की जन्मभूशम िै और यिााँ की सोन नदी के
तट पर नरकट घास शमलती िै क्जससे ििनाई की रीड बनाई जाती िै । यिी कारण िै कक ििनाई
की दतु नया में डुमराव को याद ककया जाता िै।
प्रश्न-2 त्रबक्स्मकला खान की ििनाई की मांगलध्वतन का नायक क्यों किा गया िै ?
उत्तर - ििनाई मांगलमय अवसर पर बजाया जाने वाला वादय यांत्र िै। त्रबक्स्मकला खााँ दे ि के
मिानतम ििनाई वादक रिे िैं। उनकी जोड का कोई दस
ू रा ििनाई वादक निीां िै इसीशलए
त्रबक्स्मकला को ििनाई की मांगल ध्वतन का नायक किा गया िै ।
प्रश्न 3. ििनाई को 'सुविर वादयों में िाि' की उपाचध क्यों दी गई िोगी?

55
उत्तर - सांगीत िास्त्र के अनस
ु ार फाँू ककर बजाए जाने वाले वादयों को सवु िर वादय किा जाता िै।
ििनाई अरब दे िों की दे न मानी जाती िै। विााँ नाडी या रीड से यक्
ु त वादयों को 'नय' किा जाता
िै। ििनाई की ध्वतन सबसे मधरु िोने के कारण उसे 'िािे नय' अथाात 'सवु िर वादयों में िाि' किा
गया िै। िािे नय िब्द िी कालाांतर में ििनाई िो गया।
प्रश्न 4. 'फटा सरु न बख्िें। लांचु गया का क्या िै , आज फटी िै तो कल सीां जाएगी' पांक्क्त का
आिय स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर - फटी लुांगी पिनने पर अपने शिष्या दवारा टोके जाने पर त्रबक्स्मकला खााँ ने यि बात किीI
उन्िोंने ईश्वर से यिी दआ
ु मााँगी कक उनकी ििनाई से कभी कोई बेसुरी धुन न तनकलेI फटी लुांगी
तो शसली जा सकती िै लेककन फटे सुर से शमली बदनामी को शमटाना मुक्श्कल िोगाI त्रबक्स्मकला
खााँ को शमली पिचान और सारे सम्मान उनके सुरीले ििनाई वादन के कारण थे ना कक उनकी
वेिभूिा के कारण।
प्रश्न 5. कािी में िो रिे कौन-कौन से पररवतान त्रबक्स्मकला खााँ को व्यचथत करते थे?
उत्तर - खान सािब दे ख रिे थे कक बाजार से मलाई बफा बेचने वाले गायब िो गएI दे सी घी से
बनी कचौडी-जलेबी में पिले वाला स्वाद निीां रिाI गायक, सांगतकार का उचचत सम्मान निीां करतेI
घांटों ररयाज करने वाले सांगीतकारों की पूछ निीां रिी और कािी से सांगीत साहित्य और अदब की
अनेक भव्य परम्पराएाँ भी लुप्त िो गईI इन्िीां पररवतानों को दे खकर उनके मन को व्यथा िोती थीI
प्रि 6. त्रबक्स्मकला खााँ को समली-जुली सांस्कृतत का प्रतीक क्यों किा जाता िै?
उत्तर- त्रबक्स्मकला खााँ हिांद ू और मुक्स्लम सांस्कृततयों के मेलजोल के प्रत्यक्ष उदािरण थेI मुसलमानों
के सभी धाशमाक आयोजनों त्यौिारों और पवों में परू ी श्रदधा से भाग लेते थेI पााँचों वक्त की नमाज
अदा करते थेI दस
ू री और वि हिांदओ
ु ां की आस्था के प्रतीकों को भी पूरा सम्मान दे ते थेI वि कािी
में तनवास करना अपना सौभाग्य समझते थेI बाबा ववश्वनाथ और बालाजी के मांहदरों में वि ििनाई
बजाते थेI गांगा भी उनके शलए मैया समान थीI हिांद ू सांस्कृतत से उनका यि लगाव श्रदधा और
सम्मान से प्रेररत था हदखावे से निीांI अपना ििनाई वादन आरां भ करने से पूवा वि बालाजी मांहदर
की हदिा में मुाँि करके कुछ समय ििनाई बजाते थेI इस प्रकार वि शमली-जुली सांस्कृतत के जीते
जागते प्रतीक थेI
प्रश्न-7. त्रबक्स्मकला खााँ के व्यक्क्तत्व की कौन-कौन सी वविेिताओां ने आपको प्रभाववत ककया?
उत्तर- त्रबक्स्मकला खााँ एक मिान कलाकार िोने के साथ-साथ एक सच्चे इांसान भी थेI त्रबक्स्मकला
खााँ की ईश्वर की कृपा में दृढ़ आस्था थीI उनका हृदय िर प्रकार के कट्टरपांथी और पव
ू ााग्रि से
मक्
ु त थाI भारतरत्न जैसा सवोच्च सम्मान पाकर भी उनका जीवन सादगी और सांवेदनिीलता से
पण
ू ा थाI उन्िोंने अपनी कला को लोगों को आनांहदत करने का साधन माना और ईश्वर से केवल
कला में तनखार की प्राथाना की धन-वैभव की निीांI
प्रश्न-8. नौबतखाने में इबादत नामक पाठ में लेखक ने क्या सांदेि हदया िै ?
उत्तर - यि पाठ कािी के जन-जीवन के धाशमाक भाईचारे ,कला-प्रेम, यिााँ के कला साधकों की
ख्यातत आहद का स्मरण कराता िैI यि अनेकता में एकता का सांदेि दे ता िै I इस पाठ से िमें

56
साधना के प्रतत पण
ू ा समपाण की प्रेरणा शमलती िै I यि पाठ प्रशसदचध के शिखर पर पिुाँच कर भी
तनरशभमानी और सादगी भरा जीवन जीने का आदिा प्रस्तत ु करता िै I
गदयांश आिाररत प्रश्न-उत्तर
कािी सांस्कृतत की पाठिाला िैI िास्त्रों में आनांदकानन के नाम से प्रशसदधI कािी में कलाधर
िनम
ु ान व नत्ृ य ववश्वनाथ िैंI कािी में त्रबक्स्मकला खााँ िैंI कािी में िजारों सालों का इततिास िै
क्जसमें पांडडत कांठे मिाराज िैं, ववदयाधरी िैं, बडे रामदास जी िैं, मौजुददीन खााँ िैं व इन रशसकों
से उपकृत िोने वाला अपार जनसमूि िैI यि एक अलग कािी िै क्जसकी अलग तिजीब िै,अपनी
बोली और अपने ववशिष्ट लोग िैंI इनके अपने उत्सव िैं, अपना गमI अपना सेिरा-बन्ना और
अपना नौिाI आप यिााँ सांगीत को भक्क्त से, भक्क्त को ककसी भी धमा के कलाकार से, कजरी को
चैती से, ववश्वनाथ को वविालाक्षी से, त्रबक्स्मकला खााँ को गांगादवार से अलग करके निीां दे ख सकतेI
(1) कजरी और चैती क्या िैं?
(i) रागों के नाम (ii) फलों के नाम (iii) फूलों के नाम (iv) सक्ब्जयों के नाम
(2) कािी को ककसकी पाठिाला किा गया िै ?
(i) ववदयाचथायों की (ii) सांगीत की (iii) सांस्कृतत की (iv) त्रबक्स्मकला खााँ की
(3) िास्त्रों में कािी ककस नाम से ववख्यात िै?
(i) आनांदकानन (ii) सांस्कृतत (iii) कजरी (iv) चैती
(4) कािी को ककन मांहदरों के कारण याद ककया जाता िै ?
(i) गणेि मांहदर (ii) िनुमान व नत्ृ य ववश्वनाथ (iii) गोरखनाथ मांहदर (iv) कोई निीां
(5) कािी में ककसको ककस से अलग करके निीां दे खा जाता?
कथन - (क) सांगीत को भक्क्त से (ख) त्रबक्स्मकला खााँ को गांगादवार से
(ग) कजरी को चैती से (घ) ववश्वनाथ को वविालाक्षी से
(i) केवल (क) (ii) (ख) और (ग) (iii) कोई निीां (iv) उपयत
ुा त सभी

उत्तर – सींकेि
(1) (i) रागों के नाम (2) (iii) सांस्कृतत की (3) (i) आनांदकानन
(4) (ii) िनुमान व नत्ृ य ववश्वनाथ (5) (iv) उपयत
ुा त सभी

अन्य प्रश्न-उत्तर
प्रश्न-1.सांगीत के ररयाज के शलए त्रबक्स्मकला खााँ किााँ जाते थे?
उत्तर – बालाजी के मांहदरI
प्रश्न-2.मुिरा म में त्रबक्स्मकला खााँ ककतने हदन का िोक मनाते थे?
उत्तर – दस हदन काI
प्रश्न-3.कािी में प्राचीन और अदभुत परम्परा ककसे किा गया िै?
उत्तर – सांगीत के आयोजन कोI
प्रश्न-4.’सुविर वादय ककसे किते िैं?

57
उत्तर- फाँू क मारकर बजाए जाने वाले वादय यांत्र कोI
प्रश्न- 5. “जीने की उत्कट इच्छा” वाक्याांि के शलए एक िब्द शलखखएI
उत्तर – क्जजीवविाI
प्रश्न-6. त्रबक्स्मकला खााँ को कौन-कौन से परु स्कार प्राप्त िुए?
उत्तर – भारतरत्न, पदमववभि ू ण परु स्कार,सांगीत नाटक अकादमी परु स्कार, ववश्वववदयालय की मानद
उपाचधयााँ आहदI
प्रश्न-7. ‘नागस्वरम’ क्या िै?
दक्षक्षण भारत का मांगल के अवसरों पर बजाया जाने वाला वादय िैI
प्रश्न-8. ‘सच्चा सुर’ से लेखक का क्या तात्पया िै?
उत्तर – श्रोताओां को मन्त्र-मुग्ध करने वाला सुरI
प्रश्न-9. कािी ववश्वनाथ से लगे िुए क्षेत्र को ककस नाम से जाना जाता िै ?
उत्तर – पक्का मिालI

काव्य खंड
सूरदास के पद
पाि का सार :- सूरदास दवारा रचचत सूरसागर के भ्रमरगीत से चार पद शलए गए िैं। कृष्ण के
मथुरा जाने के बाद वे स्वयां निीां लौट कर आते उदधव के जररए गोवपयों के पास एक योग सांदेि
भेजते िैं। उदधव गोवपयों को तनगण
ुा ब्रह्म एवां योग का उपदे ि दे ते िैं। इससे गोवपयों की ववरि
वेदना िाांत िोने की बजाय और अचधक बढ़ जाती िै । गोवपयाां ज्ञान के मागा की बजाय प्रेम के
मागा को श्रेष्ट मानती िैं इसशलए उन्िें उदधव का नीरस योग सांदेि पसांद निीां आता। तभी विाां
एक भाँवरा पिुांचता िै और यिीां से भ्रमरगीत पद प्रारां भ िोते िैं। भ्रमर के बिाने गोवपयाां उदधव पर
पर व्यांग्य बाण छोडती िैं। पिले पद गोवपयााँ उदधव से शिकायत करती िैं कक वि कभी कृष्ण प्रेम
के बांधन में बांधे निीां इसीशलए उन्िें ववरि की वेदना की अनभ
ु तू त निीां िै। गोवपयाां स्वयां को चीांटी
बताती िैं जो कृष्ण रूपी गुड के पीछे पागल िैं। दस
ू रे पद में गोवपया यि स्वीकार करती िैं कक
उनके मन की अशभलािा मन में रि गई। कृष्ण के प्रतत उनके प्रेम की गिराई को अशभव्यक्त
करते िुए वे अपने मन के भावों को प्रकट करना चािती िैं परां तु प्रकट निीां कर पाटी िैं। तीसरे
पद में गोवपयों की अनन्य भक्क्त प्रगट िोती िै गोवपयों का प्रेम एकतनष्ट िै । योग उनके शलए
कडवी ककडी के समान िै । वि सोते,जागते स्वप्न में , काया में िर समय कृष्ण को समवपात रिती
िैं। चौथे पद में वे उदधव को ताना मारती िैं कक कृष्ण ने अब राजनीतत सीख ली िै इसीशलए तो
उन्िोंने स्वयां ना कर अपना सांदेिवािक भेजा िै । गोवपयाां कृष्ण को राजधमा की याद हदलाती िैं।
यि सूरदास की लोक- धशमाता को दिााता िै।

58
अभ्यास -प्रश्न

प्रश्न-1. गोवपयों दवारा उदधव को भाग्यवान किने में क्या व्यांग्य तनहित िै?
उत्तर: गोवपयों दवारा उदधव को भाग्यवान किने में यि व्यांग्य तनहित िै कक उदधव वास्तव में
भाग्यवान न िोकर अतत भाग्यिीन िै। क्योंकक वे श्रीकृष्ण के समीप रिते िुए भी उनके प्रेम के
बांधन से सवाथा मुक्त िैं। सगुण साकार कृष्ण के साथ रिकर भी वे तनगुण
ा की बातें करते िैं।
प्रश्न-2 उदिि के वयिहार की तुलना क्रकस-क्रकस से की गई है ?
उत्तर: गोवपयों ने उदधव के व्यविार की तुलना तनम्न स्वरूप में की िै:
I. गोवपयों ने उदधव के व्यविार की तुलना कमल के पत्ते से की िै जो जल में रिते िुए भी
उससे प्रभाववत निीां िोता।
II. उदधव जल के मध्य में रखे तेल के मटकी की तरि िै क्जस पर जल की एक बूांद भी निीां
हटक पाती। इसशलए उदधव श्री कृष्ण के समीप रिते िुए भी उनके रूप के आकिाण तथा प्रेम-
बांधन से सवाथा मुक्त िैं।
प्रश्न 3. गोवपयों ने क्रकन-क्रकन उदाहरर्ों के माध्यम से उदिि को उलाहने ठदए हैं?
उत्तर: गोवपयाां उदधव को उलिाना दे ते िुए किती िैं कक िे उदधव,तुमने प्रेम रुपी नदी में पैर निी
डुबोए िैं इसशलए आप प्रेम की गिराईयों को निीां समझाते। आप अपना राजधमा भल ू गए िैं।
प्रश्न 4. उदिि दिारा ठदए गए योग के संदेश ने गोवपयों की विरहाजग्न में घी का काम कैसे
क्रकया?
उत्तर: गोवपयाां कृष्ण के प्रेम रस में डूबी िुई उनके आगमन की आिा में जीववत रिी थी। वि इसी
इांतजार में बैठी थी, कक श्रीकृष्ण उनके ववरि को समझकर अपने दिान से उन्िें तप्ृ त करें गे। परां तु
यिाां सब उकटा िोता िै कृष्ण योग का सांदेि दे ने के शलए उदधव को भेजते िैं। क्जसने उनकी
ववरिाक्ग्न में घी का काम ककया और उनके ववरि को और भी बढ़ा दे ता िै ।
प्रश्न 5. ‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मयाणदा न रहने की ात की जा रही है?
उत्तर: ‘मरजादा न लिी’ के माध्यम से प्रेम की मयाादा ना रिने की बात की जा रिी िै। श्रीकृष्ण
ने योग का सांदेि उदधव के माध्यम से भेज कर प्रेम की मयाादा को तोडा िै । अब गोवपयााँ
सामाक्जक मयाादा छोडकर बोलने पर आतुर िो गई क्योंकक प्रेम के बदले प्रेम का प्रततदान िी प्रेम
की मयाादा िै।
प्रश्न 6. कृष्र् के प्रनत अपने अनन्य प्रेम को गोवपयों ने क्रकस प्रकार अलिवयक्त क्रकया है ?
उत्तर: गोवपयों ने कृष्ण के प्रतत अपने अनन्य प्रेम को ववशभन्न प्रकार से अशभव्यक्त ककया िै :
I. जैसे चीहटयााँ गुड के प्रतत आसक्त िोकर उससे चचपट जाती िै और छुडाने पर प्राण त्याग
दे ती िै।
II. क्जस प्रकार िाररल पक्षी सदै व अपने पांजे में पकडी लकडी को ककसी भी दिा में उसे निीां
छोडता। उसी प्रकार गोवपयों ने मन, वचन और कमा से श्री कृष्ण के प्रेम रूपी लकडी को
दृढ़ता पूवक
ा पकड रखा िै ।

59
III. वे जागते, सोते या स्वप्न अवस्था में भी हदन-रात श्रीकृष्ण की िी रट लगाती रिती िै।
प्रश्न 7. गोवपयों ने उदिि से योग की लशक्षा कैसे लोगों को दे ने की ात कही है ?
उत्तर: गोवपयों ने उदधव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को दे ने की बात किी िै क्जनका मन चांचल
िै और अक्स्थर िै। क्जनकी इांहद्रयाां व मन उनके बस में निी,उन्िीां लोगों को योग की शिक्षा दे नी
चाहिए। गोवपयाां अपने मन व इांहद्रयों से कृष्ण के प्रतत एकाग्रचचत िै। उनको योग की शिक्षा की
आवश्यकता निीां िै।
प्रश्न 8. सूरदास के पदों के आिार पर भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएं ताइए।
उत्तर: भ्रमरगीत की तनम्नशलखखत वविेिताएां:
I. भ्रमरगीत में सांगीत्तात्मक्ता का गुण ववदयमान िै।
II. इसमें तनगण
ुा से ज्यादा सगुण और साकार भक्क्त को मित्व हदया गया िै।
III. गोवपयों की अनन्य भक्क्त प्रकट िुई िै।
IV. भ्रमरगीत में उपालांभ की प्रधानता िै।
V. ‘भ्रमरगीत’ में िुदध साहिक्त्यक ब्रज भािा का प्रयोग िुआ िै।
प्रश्न 9. गोवपयों के अनस ु ार राजा का िमण क्या होना चाठहए?
उत्तर: गोवपयों के अनुसार राजा का धमा प्रजा को अन्याय से बचाना, राजधमा का पालन करते िुए
प्रजा का हित चचांतन करना और उनके सुखों का ख्याल रखना।
प्रश्न 10. गोवपयों को कृष्र् में ऐसे कौन-से पररितणन ठदिाई ठदए जजनके कारर् िें अपना मन
िापस लेने की ात कहती है?
उत्तर: गोवपयों को लगता िै कक कृष्ण दवारका जाकर राजनीतत सीख गए िैं। उनके अनुसार श्रीकृष्ण
पिले से िी चतुर थे, अब छल-कपट उनके स्वभाव का अांग बन गया िै। कृष्ण पिले दस
ू रों के
ककयाण के शलए समवपात रिते थे परां तु अब अपना िी भला दे ख रिे िैं। श्री कृष्ण योग सन्दे ि
भेज कर गोवपयों के हृदय को आिात ककया िै । कृष्ण में आए इन्िीां पररवतानों को दे खकर गोवपयाां
अपने मन को श्रीकृष्ण के अनुराग से वापस लेना चािती िै।
प्रश्न 11. गोवपयों ने अपने िाक्चातुयण के आिार पर ज्ञानी उदिि को परास्त कर ठदया, उनके
िाक्चातुयण की विशेषताएं ललखिए?
उत्तर: गोवपयों में व्यांग्य करने की अदभत
ु क्षमता िै । उदधव का ज्ञान पस्
ु तकीय ज्ञान था और
गोवपयों का ज्ञान व्याविाररक ज्ञान था। गोवपयाां उदधव को अपने तानों के दवारा चप
ु करा दे ती िै
और अपनी तका क्षमता से बात-बात पर उदधव को तनरूत्तर कर दे ती िै।

पठित पदयांश-1

ऊधौ, तुम िो अतत बडभागी।


अपरस रित सनेि तगा तै,नाहिन मन अनुरागी।
पुरइतन पात रित जल भीतर,ता रस दे ि न दागी।
ज्यौं जल मािाँ तेल की गागरी, बूाँद ना ताकौं लागी।

60
प्रीतत-नदी मैं पाऊाँ न बोरयौ,दृक्ष्ट न रूप परागी।
‘सरू दास’ अबला िम भोरी, गरु चााँटी ज्यौं पागी॥
प्रश्न 1. उदधव को बडभागी ककसके दवारा किा गया िैं?
(क) कृष्ण के दवारा (ख) मथरु ावाशसयों के दवारा (ग) गोवपयों के दवारा (घ) ऊधौ दवारा
प्रश्न 2. गोवपयों ने उदधव के व्यविार की तल
ु ना ककससे की िैं?
(क) कमल के पत्तों से (ख) तेल की गागर से (ग) क और ख दोनों (घ) सूखी नदी से
प्रश्न 3. ‘प्रीतत-नदी’ में कौन-सा अलांकार िैं?
(क) रूपक (ख) उपमा (ग) उत्प्रेक्षा (घ) यमक
प्रश्न 4. गोवपयों ने स्वयां को ‘भोरी’ क्यों किा िैं?
(क) वे मूखा थी (ख) वे छलकपट और चतुराई से दरू थी
(ग) वे उदधव की बातों मे आ गयी थी (घ) वे ककसी का किना निीां मानती थी
प्रश्न 5. “दृक्ष्ट न रूप परागी” में गोवपयााँ ककसके रूप की बात कर रिीां िैं?
(क) उदधव के (ख) गोवपयों के (ग) राधा के (घ) कृष्ण के

उत्तर सिंकेत

1. (ग) गोवपयों के दवारा 2. (ग) क और ख दोनों 3. (क) रूपक


4. (ख) वे छलकपट और चतरु ाई से दरू थी 5. (घ) कृष्ण के

राम-लक्ष्मर्-परशुराम संिाद (तुलसीदास)


पाि का सारांश- प्रस्तुत पाठ हदया गया अांि रामचररतमानस के बाल काांड से शलया िैं। इसके कवव
तुलसीदास जी िैं। इनमें वणान ककया गया िै कक सीता स्वयांवर में श्री राम जी के दवारा शिव
धनुि तोडे जाने के कारण जब परिुराम जी क्रोचधत िो जाते िैं तब उनके क्रोध को दे खकर जब
जनक के दरबार में सभी लोग भयभीत िो गए तो श्री राम ने आगे बढ़कर परिुराम जी से किा
कक भगवान शिव के धनुि को तोडने वाला उनका िी कोई एक दास िोगा। श्री राम के वचन
सुनकर क्रोचधत परिुराम जी उनसे बोले कक सेवक वि किलाता िै , जो सेवा का काया करता िै।
ित्रुता का काम करके तो लडाई िी मोल ली जाती िै। क्जसने भगवान शिव जी के इस धनुि को
तोडा िै, वि सिस्रबािु के समान उनका ित्रु िै। कफर वे राजसभा की तरफ दे खते िुए किते िैं कक
क्जसने भी शिव धनि ु तोडा िै वि व्यक्क्त खुद बखुद इस समाज से अलग िो जाए, निीां तो सभा
में उपक्स्थत सभी राजा मारे जाएाँगे।
परिरु ाम जी के इन क्रोधपण
ू ा वचनों को सन
ु कर लक्ष्मण जी मस्
ु कुराए और परिरु ाम जी
का अपमान करते िुए बोले कक बचपन में उन्िोंने ऐसे छोटे -छोटे बिुत से धनिु तोड डाले थे, ककां तु
ऐसा क्रोध तो कभी ककसी ने निीां ककया। लक्ष्मण जी की व्यांग्य भरी बातें सनु कर परिरु ाम जी
क्रोचधत स्वर में बोले कक मत्ृ यु के वि में िोने से तझ
ु े यि भी िोि निीां कक तू क्या बोल रिा िै?
समस्त ववश्व में ववख्यात भगवान शिव का यि धनि
ु क्या तझ
ु े बचपन में तोडे िुए धनि
ु ों के
61
समान िी हदखाई दे ता िै? लक्ष्मण श्रीराम की ओर दे खकर बोले कक इस धनि
ु के टूटने से क्या
लाभ िै तथा क्या िातन, यि बात मेरी समझ में निीां आ रिी िै। श्री राम जी ने तो इसे केवल
छुआ था, लेककन यि धनुि तो छूते िी टूट गया। कफर इसमें श्री राम जी का क्या दोि िै? लक्ष्मण
जी की व्यांग्य भरी बातों को सन
ु कर परिरु ाम जी का क्रोध और बढ़ गया और वि अपने फरसे की
ओर दे खकर बोले कक क्या लक्ष्मण जी उनके स्वभाव के वविय में निीां जानते? मैं केवल बालक
समझकर तुम्िारा वध निीां कर रिा िूाँ। वे पूरे ववश्व में क्षत्रत्रय कुल के घोर ित्रु के रूप में प्रशसदध
िैं। उनका फरसा बिुत भयांकर िै। किने का तात्पया यि िै कक परिुराम जी लक्ष्मण जी को
समझाने का प्रयास कर रिे िैं कक उन्िें जब क्रोध आता िै तो वे ककसी बालक को भी मारने से
निीां हिचककचाते।
परिुराम जी के क्रोध से भरे वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी बिुत िी अचधक कोमल वाणी
में िाँसकर उनसे बोले कक आप तो अपने आप को बिुत बडा योदधा समझते िैं और बार-बार मुझे
अपना फरसा हदखाते िैं। जनेऊ से तो वे एक भग
ृ ुवांिी ब्राह्मण जान पडते िैं और इन्िें दे खकर िी,
जो कुछ भी उन्िोंने किा उसे लक्ष्मण जी सिन कर अपने क्रोध को रोक रिे िैं। साथ िी लक्ष्मण
जी परिुराम जी के एक एक वचन को करोडों वज्रों के समान कठोर बताते िै। और किते िैं कक
उन्िोंने व्यथा में िी फरसा और धनुि बाण धारण ककया िुआ िै।

प्रश्नोत्तर
1. परशुराम के क्रोि करने पर लक्ष्मर् ने िनुष के टूट जाने के ललए कौन-कौन से तकण ठदए?
उत्तर- परशुराम के क्रोध करने पर लक्ष्मण ने धनुि के टूट जाने पर तनम्नशलखखत तका हदए -
● िमें तो यि असाधारण शिव धुनि साधारण धनुि की भााँतत लगा। बचपन में िमने कई
धनुिी तोडे परां तु तब तो आपने कभी ऐसा क्रोध निीां हदखाया।
● श्री राम ने इसे नया और मजबूत समझ कर शसफा छुआ था परां तु यि धनुि पुराना और
कमजोर िोने कारण छूते िी टूट गया। इस पुराने धनुि के टूटने पर उन्िें कोई लाभ-हातन
निीां हदखती।
2. परशुराम के क्रोि करने पर राम और लक्ष्मर् की जो प्रनतक्रक्रयाएाँ हुईं उनके आिार पर दोनों
के स्ििाि की विशेषताएाँ अपने शब्दों में ललखिए।
उत्तर- राम बिुत िाांत और धैयव
ा ान िैं। परिुराम के क्रोध करने पर श्री राम ववनम्रता के साथ
किते िै कक शिव धनुि तोडने वाला आपका एक सेवक िी िै। वे मद ृ भ
ु ािी िोने का िुए अपनी
मधरु वाणी से परिरु ाम के क्रोध को िाांत करने का प्रयास करते िै। इसके ववपरीत लक्ष्मण
तनडर एवां उग्र स्वभाव के थे इसशलए परिरु ाम का फरसा व क्रोध उनमें भय उत्पन्न निीां कर
पाता। लक्ष्मण परिरु ाम जी के क्रोध को न्यायपण
ू ा निीां मानते और व्यांग्यपण
ू ा वचनों का सिारा
लेकर अपनी बात को उनके समक्ष प्रस्तत
ु करते िै।
3. लक्ष्मर् ने िीर योदिा की क्या-क्या विशेषताएाँ ताई?
उत्तर- लक्ष्मर् ने वीर योदधा की तनम्नशलखखत वविेिताएाँ बताई िै -

62
(1) िीर परु
ु ि स्वयां अपनी वीरता का बखान निीां करते अवपतु वीरता पण
ू ा काया स्वयां वीरों का
बखान करते िैं।
(2) वीरता का व्रत धारण करने वाले वीर िाांत, ववनम्र, धैयव
ा ान और क्षोभरहित िोते िैं।
(3) वीर परु
ु ि ककसी के ववरुदध गलत िब्दों का प्रयोग निीां करते तथा दस
ू रों का आदर करते
िैं।
(4) वीर पुरुष दीन-िीन, ब्राह्मण, गाय एवां दब
ु ल
ा व्यक्क्तयों पर अपनी वीरता का प्रदिान निीां
करते िैं।
4. साहस और शजक्त के साथ विनम्रता हो तो ेहतर है। इस कथन पर अपने विचार ललखिए।
उत्तर- साहस और िक्क्त ये दो गुण एक व्यक्क्त को (वीर) श्रेष्ठ बनाते िैं। यहद ववन्रमता इन
गुणों के साथ आकर शमल जाती िै तो वि उस व्यक्क्त को श्रेष्ठतम वीरों की श्रेणी में ला दे ती
िै। ववनम्रता िमें सांयशमत बनाती िै क्जससे व्यक्क्त को आांतररक खुिी शमलती िै। जिााँ
परिुराम जी सािस व िक्क्त का सांगम िै। विीां राम ववनम्रता, सािस व िक्क्त का सांगम िै।
उनकी ववनम्रता के आगे परिुराम जी के अिांकार को भी नतमस्तक िोना पडा निीां तो लक्ष्मण
जी के दवारा परिुराम जी को िाांत करना सम्भव निीां था।
5. 'इहााँ कुम्हड़ नतया कोउ नाही। जे तरजनी दे खि मरर जाही।।' िािाथण स्पष्ट कीजजए।
उत्तर- प्रस्तुत पांक्क्त रामचररतमानस के राम-लक्ष्मण-परिुराम सांवाद से ली गई िै । इसमें
परिुराम जी के अपिब्दों के प्रत्युत्तर में लक्ष्मण अपनी वीरता और अशभमान का पररचय दे ते
िुए किते िै कक िम कोई कुम्िडबततया निीां िै जो आपकी तजानी को दे खकर डर जाएांगे। िम
बालक अवश्य िै लेककन नादान निीां जो आपकी कुकिाडी और धनुि को दे खकर कमजोर पड़
जाएाँगे।
6. परशुराम की स्ििािगत विशेषताएाँ क्या हैं? पाि के आिार पर ललखिए।
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के आधार पर परिुराम जी की वविेिताएाँ तनम्नशलखखत िै-
● वे बाल ब्रह्मचारी एवां अत्यांत क्रोधी स्वभाव के िैं।
● वे माता-वपता के आज्ञाकारी और भगवान शिव के भक्त िै ।
● वे क्षत्रत्रयों के ववरोधी थे।
● उन्िोने अनेक बार इस धरती को जीतकर ब्राह्मणों को दान में दे हदया था इससे शसदध
िोता िै कक वे वीर, सािसी और दानवीर भी थे।
7. राम-लक्ष्मर्-परशरु ाम संिाद कहााँ से उदित है तथा क्रकस संदिण में है ?
उत्तर- यि सांवाद तुलसीदास जी दवारा रचचत रामचररतमानस के बाल काांड के सीता-स्वयांवर से
उदधत िै । प्रसांग यि िै कक राजा जनक ने सीता के स्वयांवर के शलए शिव धनुि को तोडने कक
िता राखी थी। श्रीराम ने धनुि को तोडकर सीता का वरण कर शलया। उसी समय परिुराम जी
सभा में आते िै और शिव-धनि ु को टूटा िुआ दे खकर क्रोध करते िै क्योंकक शिव-धनि
ु पर
परिरु ाम िी गिरी ममता थी।

63
पदयाींश

ननम्नललखित कावयांश को ध्यानपि


ू क
ण पढकर पछ
ू े गए प्रश्नों के उत्तर दीजजए -
त्रबिशस लखनु बोले मद
ृ ु बानी। अिो मन
ु ीसु मिाभट मानी।।
पतु न पतु न मोहि दे खाव कुठारु। चित उडावन फाँू कक पिारू॥
इिााँ कुम्िडबततया कोऊ नािीां। जे तरजनी दे खख मरर जािीां॥
दे खख कुठारु सरासन बाना। मैं कछु किा सहित अशभमाना॥
भग ृ स
ु त
ु समखु झ जनेउ त्रबलोकी। जो कछु कििु सिौं ररस रोकी॥
सरु महिसरु िररजन अरु गाई। िमरे कुल इन्ि पर न सरु ाई॥
बधें पापु अपकीरतत िारें । मारतिू पा पररअ तुम्िारें ।।
कोहट कुशलस सम बचनु तुम्िारा। ब्यथा धरिु धनु बान कुठारा॥
जो त्रबलोकक अनुचचत किे उाँ छमिु मिामुतन धीर।
सुतन सरोि भगृ ुबांसमतन बोले चगरा गांभीर।
(क) परिुराम जी बार लक्ष्मण को क्या हदखाकर डरा रिे िैं?
(1)जनेऊ (2) फरसा (3) तलवार (4) धनुि
(ख) रघुवांिी ककन पर अपनी वीरता निीां हदखाते?
(1) ब्राह्मण (2) गाय (3) भक्त (4) सभी सिी िै ।
(ग) लक्ष्मण के अनुसार परिुराम जी के वचन कैसे िै ?
(1) िीतल (2) मधुर (3) ववनम्र (4) कठोर
(घ) भगृ ब
ु ांसमतन ककसके शलए प्रयुक्त िुआ िै?
(1) परिुराम के शलए (2) श्रीराम के शलए (3) ववश्वाशमत्र के शलए (4) लक्ष्मण के शलए
(ङ) काव्याांि के कवव कौन िै?
(1) सरू दास (2) तुलसीदास (3) कबीरदास (4) रसखान

उत्तर-सिंकेत

क) 2- फरसा, ख) 4- सभी सिी िै, ग- (4) कठोर, घ) 1- परिुराम के शलए, ङ) 2- तुलसीदास

आत्मकथ्य – (जयिांकर प्रसाद)


सारािंश- छायावाद के चार आधार स्तम्भ पन्त, प्रसाद, तनराला और मिादे वी रिे िैं। प्रसाद का
काव्य अपनी भावाशभव्यक्क्त के कारण पाठकों को वविेि लगता िै । प्रेमचांद के सांपादन में िांस
(पत्रत्रका) का एक आत्मकथा वविेिाांक तनकलना तय िुआ था। प्रसाद जी के शमत्रों ने आग्रि ककया
कक वे भी आत्मकथा शलखें। प्रसाद जी इससे सिमत न थे। इसी असिमतत के तका से पैदा िुई
कववता िै-आत्मकथ्य। यि कववता पिली बार 1932 में िांस के आत्मकथा वविेिाांक में प्रकाशित
िुई थी। छायावादी िैली में शलखी गई इस कववता में जयिांकर प्रसाद ने जीवन के यथाथा एवां

64
अभाव पक्ष की माशमाक अशभव्यक्क्त की िै। छायावादी सक्ष्
ू मता के अनरू
ु प िी अपने मनोभावों को
अशभव्यक्त करने के शलए जयिांकर प्रसाद ने लशलत, सुांदर एवां नवीन िब्दों और त्रबांबों का प्रयोग
ककया िै। इन्िीां िब्दों एवां त्रबांबों के सिारे उन्िोंने बताया िै कक उनके जीवन की कथा एक सामान्य
व्यक्क्त के जीवन की कथा िै। इसमें ऐसा कुछ भी निीां िै, क्जसे मिान और रोचक मानकर लोग
वाि-वाि करें गे। कुल शमलाकर इस कववता में एक तरफ कवव दवारा यथाथा की स्वीकृतत िै तो
दस
ू री तरफ़ एक मिान कवव की ववनम्रता भी।

लघु उत्तरीय प्रश्न -


प्रश्न 1. ‘मुरझाकर धगर रहीं पवत्तयााँ’ क्रकसका प्रतीक हैं? ये क्रकसका ोि करा रही हैं?
उत्तर-‘मुरझाकर चगर रिीां पवत्तयााँ’ मानव जीवन में आए दख
ु ,पीडा और तनरािाओां का प्रतीक िैं।
कवव के जीवन में आए दख
ु वक्ष
ृ की पवत्तयों के समान चगरकर, एक-एक कर क्रमिः याद आ रिे
िैं। इससे कवव को जीवन की नश्वरता का बोध भी िो रिा िै।
प्रश्न 2. ‘असंख्य जीिन-इनतहास’ कहकर कवि क्रकस ओर संकेत करना चाहता है ?
उत्तर- ‘असांख्य जीवन-इततिास’ किकर कवव उन असांख्य कववयों,साहित्यकारों की ओर सांकेत करना
चािता िै क्जन्िोंने अपनी-अपनी आत्मकथा शलखी। अपनी इन आत्मकथाओां में उन्िोंने तनज जीवन
की दब
ु ल
ा ताओां का उकलेख ककया और उन्िें लोगों के व्यांग्य मशलन उपिास का सामना करना पडा।
प्रश्न 3. उन तथ्यों का उल्लेि कीजजए जजनका उल्लेि कवि अपनी आत्मकथा में नहीं करना
चाहता है ?
उत्तर- कवव अपनी आत्मकथा में तनम्नशलखखत तथ्यों का उकलेख निीां करना चािता िै वि अपने
सिज,सरल जीवन को निीां हदखाना चािता। वि अपने जीवन में की गई भूलों को भी निीां हदखाना
चािता िै और न दस
ू रों के छल-कपट को बताना चािता। वि अपनी प्रेयसी के साथ त्रबताए तनजी
सुखमय पलों को सबसे निीां किना चािता िै। वि अपने जीवन के दब
ु ल
ा पक्षों का भी उकलेख निीां
करना चािता िै।
प्रश्न 4. ‘अनुराचगनी उिा लेती थी, तनज सुिाग मधुमाया में ’ के आलोक में कवव ने अपनी पत्नी
के वविय में क्या किना चािता िै?
उत्तर- ‘अनरु ाचगनी उिा लेती थी, तनज सि
ु ाग मधम
ु ाया में ’ के माध्यम से कवव ने यि किना चािा
िै कक उसकी पत्नी अत्यांत सुांदर थी। उसके कपोल इतने लाल और सुांदर थे कक प्रात:कालीन उिा
भी उससे लाशलमा लेकर अपने सौंदया में वद
ृ चध करती थी अथाात ् कवव की पत्नी उिा से भी अचधक
सुांदर थी।
प्रश्न 5.‘तुम िी खाली करने वाले’ के माध्यम से कवव ककनसे, क्या किना चािता िै?

65
उत्तर- ‘तम
ु िी खाली करने वाले’ के माध्यम से कवव अपने उन शमत्रों से किना चािता िै जो उससे
आत्मकथा शलखने का आग्रि कर रिे िैं।कवव उनसे यि किना चािता िै कक मेरी आत्मकथा में
मेरे जीवन के कटु अनुभवों को सुनकर तुम यि न समझ बैठो कक मेरे जीवन को रसिीन बनाकर
सूनापन भरने वाले तुम्िीां स्वयां िो।

पदयाींश
ननम्नललखित कावयांश को ध्यानपूिक
ण पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजजए -
यि ववडांबना ! अरी सरलते तेरी िाँसी उडाऊाँ मैं।
भूलें अपनी या प्रवांचना औरों की हदखलाऊाँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊाँ, मधुर चााँदनी रातों की।
अरे खखल–खखला कर िाँसते िोने वाली उन बातों की।
समला कहााँ वह सुख क्जसका मैं स्वप्न दे खकर जाग गया।
आशलांगन में आते–आते मस
ु क्या कर जो भाग गया।

प्रश्न 1. कवव ककसकी िांसी निीां उडाना चािता िै ।


(क) अपने सांग के कववयों से समले सुख की (ख) अपने सिज,सरल जीवन की
(ग) अपनी पत्नी की (घ) अपनी पस्
ु तकों की
प्रश्न 2. कवव दस
ू रों को क्या निीां बताना चािता िै ?
(क) अपने आस पडोस की बातें (ख) अपनी सम्पतत और आमदनी
(ग) अपने जीवन की भूलें (घ) अपने भववष्य की योजना
प्रश्न 3. ‘गाथा’ िब्द का अथा क्या िै
(क) गांज
ू ायमान (ख) किानी (ग) गानपन (घ) घम
ू ना
प्रश्न 4. ‘शमला किााँ वि सुख’- कवव ककस ‘सुख’ की बात कर रिा िै ?

(क) धन दौलत के सुख की (ख) मान, सम्मान, अपनेपन के सुख की


(ग) मौज मस्ती के सुख की (घ) पत्नी के सुख की
प्रश्न 5 प्रस्तुत अांि आपकी पाठ्य पुस्तक के ककस अध्याय से शलया गया िै?
(क) सांगतकार (ख) सूरदास (ग) आत्मकथ्य (घ) तुलसीदास

उत्तर सींकेि

1 (ख) अपने सिज,सरल जीवन की. 2 (ग) अपने जीवन की भूलें, 3 (ख) किानी,
4 (ख) मान, सम्मान, अपनेपन के सख
ु की, 5 (ग) आत्मकथ्य
.

66
कविता : उत्साह (सूयणकांत बिपािी ‘ननराला’)

िािाथण - ‘उत्साि’ आह्वान गीत िै। इसमें कवव ने बादलों को सांबोचधत करते िुए सांसार में नवीन
चेतना जगाने का आह्वान ककया िै I कवव का मानना िै कक ककसी भी काया को करने के शलए
उत्साि की आवश्यकता िोती िैI तनराला जी भी समाज में नई परम्परा की स्थापना के शलए नई
पीढ़ी में उत्साि एवां पौरुि जगाना चािते िैंI समाज में एक नया बदलाव लाना चािते िैं और इस
बदलाव के शलए यव
ु ा पीढ़ी में उत्साि का िोना अत्यांत आवश्यक िै I कवव बादलों के लशलत-लशलत
(सन्
ु दर-सन्
ु दर) और बालकों की ककपना जैसे स्वरुप की सरािना करता िै। इस कववता में बादल
के माध्यम से यव
ु ा पीढ़ी का आह्वान ककया गया िै, क्जसमें जोि, ऊजाा और उत्साि भरपरू मात्रा
में िो क्योंकक इसके त्रबना क्राांतत के बीज निीां बोए जा सकते एवां समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार का
अांत निीां िो सकताI नई चेतना का केंद्र त्रबांद ु भी उत्साि िी िै I कवव चािता िै कक बादल इतने
जोर से बरसें कक सांसार के सभी लोगों और तप्त धरती को िीतलता का आभास िोI

‘उत्साह’ कविता के प्रश्नोत्तर


प्रश्न 1. उत्साह कविता में कवि ादल को गरजने के ललए क्यों कहता है?
उत्तर- बादल क्राांतत के सूत्रधार िैं और त्रबना गजाना के क्राांतत सांभव निीां िै । कवव बादलों से पौरुि
हदखाने की कामना भी करता िै इसशलए वि बादलों को बार-बार गरजने का आह्वान करता िै ना
कक फुिार छोडने का, ररमखझम बरसने को या केवल बरसने के शलए निीां। कवव दख
ु ों को दरू करने
के शलए क्राांततकारी िक्क्त की अपेक्षा करता िै इसशलए कवव बादलों से गरजने के शलए किता िै ।
क्राांततकारी िक्क्त से िी ताप, दख
ु ों एवां पीडाओां को दरू ककया जा सकता िै , ऐसा कवव का मानना
िै।
प्रश्न 2. उत्साह कविता का शीषणक साथणक है - क्या आप सहमत हैं?
उत्तर - तनसांदेि, उत्साहित व्यक्क्त भी बादलों की तरि गजान करता िै और बादलों की िी तरि
ववचारों की उमडन-घुमडन से गुजरता िै । यातन यि बादलों की गजान और उमडन-घुमडन से मेल
खाता िुआ िीिाक िै। बादलों में गतत िोती िै और ऐसी िी गतत, भावना एवां िक्क्त की अपेक्षा
कवव मनुष्यों से भी करता िै ताकक वे जनमानस की पीडा एवां दःु ख-ददा को िर सकें।
प्रश्न 3. उत्साह कविता में ादल क्रकन-क्रकन अथों की ओर संकेत करता है?
उत्तर - प्यासी धरती पर करुणा जल बरसाने वाली िक्क्त के रूप में। नव उमांग, वज्र िक्क्त,
उत्साि और सांघिा के भाव भरने वाले कवव के रूप में । ककपनाओां के समान घने काले, सुांदर और
घुांघराले बालों के रूप में। जनमानस की पीडाओां को िरने वाली आनांदकारी िक्क्त के रूप में।
प्रश्न 4. उत्साह कविता में निजीिन िाले क्रकसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर - उत्साि कववता में नवजीवन वाले वविेिण का प्रयोग बादलों के साथ-साथ कवव के शलए भी
ककया गया िै। बादलों के शलए इसशलए क्योंकक वे विाा करके मुरझाई-सी धरती में नया जीवन फाँू क
दे ते िैं, उपजाऊ बना दे ते िैं और गमी से भी मुक्क्त हदला दे ते िैं तथा कवव को नवजीवन वाले

67
इसशलए किा गया िै क्योंकक वि उत्साि का सांचार करके तनराि-िताि लोगों के जीवन में नई
उमांग भरता िै।
प्रश्न 5. ‘उत्साह’ कविता की अंनतम पंजक्तयों ‘विकल-विकल .........शीतल कर दो’ का सांकेनतक
अथण क्या है ?
उत्तर - इस कववता की अांततम पांक्क्तयों का साांकेततक अथा यि िै कक सांसार में चारों ओर हिांसा
थी, कष्ट थे, दख
ु थे। लोग जडता और तनरािा पूणा जीवन जी रिे थे। पूरे ववश्व के लोग दख
ु ों
और समस्याओां के सांताप से व्याकुल थे, परे िान थे, अनमने थे और बेचैन थे। तब न जाने कौन
छाया- सा बन कर आया और दख
ु से पीडडत धरती के शलए ककयाण और मांगल की विाा कर
गया। कवव बादलों से यिी प्राथाना करता िै कक िे बादलो ! तुम खूब गरजो, बरसो और दख
ु पीडडत
जनता को िाांतत और धैया प्रदान करके उनके मानशसक सांताप(पीडा) को दरू करो।

अन्य प्रश्न-उत्तर

प्र.1 उत्साि कववता ककस िैली में शलखी गई िै? उत्तर – सांबोधन िैली में I
प्र.2 ‘तप्त धरा’ का साांकेततक अथा क्या िै? उत्तर – दःु ख से पीडडत धरतीवासीI
प्र.3 बादलों को ककसके समान सुन्दर माना गया िै ? उत्तर - काले घुांघराले बालों वालेI
प्र.4 ‘बाल ककपना के-से पाले’ में कौन-सा अलांकार िै ? उत्तर – उपमा अलांकारI
प्र.5 इस कववता में ककस ऋतु का वणान िै? उत्तर – विाा ऋतु काI

अट नहीं रही है (सूयक


ा ाांत त्रत्रपाठी ‘तनराला’)
सार – प्रस्तुत कववता में छायावादी कवव सूयक
ा ाांत त्रत्रपाठी ‘तनराला’ ने फागुन का मानवीकरण कर
इसके सौन्दया का मनमोिक चचत्रण ककया िै। फागन
ु यातन फ़रवरी-माचा (िोली के आस-पास) के
मिीने में वसांत ऋतु का आगमन िोता िै । इस ऋतु में बाग़-बगीचों, वन-उपवनों के सभी पेड-पौधे
लाल और िरे रां ग के नए-नए पत्तों से लद जाते िैं। रां ग-त्रबरां गे फूलों की बिार छा जाती िै, उनकी
सग
ु ांध से सारा वातावरण मिक उठता िै और कवव को ऐसा लगता िै मानों फागन
ु के साांस लेने
पर सब जगि सग
ु ांध फ़ैल गई िो एवां जान पडता िै मानों प्रकृतत दे वी ने अपने गले में रां ग-त्रबरां गे
और सग
ु क्न्धत फूलों की माला पिन रखी िो। इस सवाव्यापी सन्
ु दरता का कवव को किीां ओर-छोर
नजर निीां आ रिा िै इसशलए कवव किते िैं कक फागुन की सुन्दरता हृदय में समा निीां रिी िै
और वि उससे नजरें निीां िटा पा रिा िै ।
कविता के प्रश्नोत्तर
प्रश्न- 1. कवि ने िागुन की आिा की क्रकस विशेषता का िर्णन क्रकया है?
उत्तर - यिााँ कवव सूयक
ा ाांत त्रत्रपाठी तनराला ने फागुन मास की प्राकृततक िोभा का वणान ककया िै ।
यि िोभा इतनी अचधक िै कक प्रकृतत में समा निीां पा रिी िै। इस कववता में फागुनी वातावरण
प्रकृतत के अांग-अांग से झलक रिा िै। कवव ने सग
ु क्न्धत पवन (िवा) के बिने को फागुन का सााँस
लेना माना िै ।

68
प्रश्न 2. कवि की आाँि िागन
ु की संद
ु रता से क्यों नहीं हट रही है ?
उत्तर- फागन
ु का सौंदया ववववधता पण
ू ा एवां मन को िरने वाला िै । घर-घर को मिकाती िवा,
आकाि में अठखेशलयााँ करते पक्षी, पत्तों से लदी डाशलयााँ कवव की आाँखों को मांत्रमग्ु ध कर दे ती िैं।
कवव का मन इस सौंदया को तनरां तर दे खते रिना चािता िै। अत: कवव की आाँख फागन
ु की सांद
ु रता
से िट निीां पा रिी िै ।
प्रश्न 3. िागुन में ऐसा क्या होता है जो ाकी ऋतुओं से लिन्न होता है ?
उत्तर- ‘फागुन’ विा की सबसे मधुर, प्राकृततक िोभा से भरपूर वसांत ऋतु का अांग िै । वसांत ऋतु
को ऋतुराज किा जाता िै। वसांत में प्रकृतत में नवजीवन का सांचार, वक्ष
ृ और वनस्पततयों का
मनमोिक श्रांग
ृ ार, कोयल की कूक, मांद- सुगांध से पूणा पवन और सारे जीव जगत को मस्ती और
उकलास से भर दे ने वाली मादकता समाई िुई िोती िै, जो अन्य ऋतुओां में दे खने को निीां शमलती
िै।
प्रश्न 4. "अट नहीं रही है" कविता से क्या प्रेरर्ा लमलती है ?
उत्तर- आज की इस भाग दौड की क्जांदगी से दरू यि कववता िमारे शलए प्रकृतत के मनमोिक दृश्य
प्रस्तुत करती िै। कवव दवारा प्रस्तुत प्रकृतत का यि व्यापक रूप न केवल बािर के जगत तक
सीशमत िै बक्कक िमारे मन के अन्दर भी समाया िुआ िै । इस कववता में वखणात ये प्राकृततक
दृश्य िमारे मन में प्रकृतत प्रेम को जगाते िैं। अत: यि कववता िमें प्रकृतत से सच्चा प्रेम करने
एवां प्रकृतत के नजदीक जाने की प्रेरणा दे ती िै।
प्रश्न 5. ‘अट नहीं रही है’ कविता की अंनतम पंजक्तयों (पत्तों से लदी डाल....पाट-पाट शोिा श्री, पट
नहीं रही है) के आिार पर ललखिए क्रक प्रकृनत की शोिा श्री (सुन्दरता) िागुन में कैसे अपना रं ग-
रूप दलती है? अथिा
िसंत ऋतु में प्रकृनत में ऐसा क्या पररितणन होता है जो अन्य ऋतुओं में दे िने को नहीं लमलता?
उत्तर - फागुन में प्रकृतत की िोभा (सुन्दरता) तनत्य अपना रां ग-रूप साँवार लेती िै । िवा सुगांचधत
िो बिती िै , रां ग त्रबरां गे फूल खखल उठते िैं, वातावरण की मादकता के कारण पक्षी पांख फडफडाकर
उडने लगते िैं, वक्ष
ृ ों में नए-नए रां ग-त्रबरां गे पत्ते और फल फूल उग आते िैं। फागुन मास में बादल
तघर आते िैं, िवा सर- सर करके बिती िै और चारों ओर मस्ती छा जाती िै ।

पदयाींश
ननम्नललखित कावयांश को ध्यानपूिक
ण पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजजए –
अट निीां रिी िै उडने को नभ में तुम
आभा फागुन की तन पर-पर कर दे ते िो,
सट निीां रिी िै। आाँख िटाता िूाँ तो
किीां सााँस लेते िो, िट निीां रिी िै।
घर-घर भर दे ते िो,

69
प्र.1 ककसकी आभा िट निीां रिी िै?
(i) उडने वाले पक्षक्षयों की (ii) फागन
ु की (iii) घर की (iv) नातयका की
प्र.2. कवव ने ककसकी सन्
ु दरता का वणान ककया िै?
(i) बादलों की (ii) नातयका की (iii) नहदयों की (iv) फागुन की
प्र.3 आकाि में पांख फैलाकर कौन उडना चािता िै?
(i) चचडडया (ii) कवव का पक्षी रूपी मन (iii) बादल (iv) पेडों के पत्ते
प्र.4 ‘नभ’ शब्द का पयाायवाची शब्द नहीिं है ?
(i) वयोम (ii) गगन (iii) वसुधा (iv) अम्बर
प्र.5 ‘किीां सााँस लेते िो, घर-घर भर दे ते िो’ पांक्क्त का क्या अथा िै ?
(i) बादलों का सााँस लेना (ii) कवव फागुन की िररयाली को मिसूस करता िै
(iii) पेडों पर नए पत्ते आए िैं (iv) सुगांचधत िवा का झोंका वातावरण को सुगक्न्धत करता िै

उत्तर सिंकेत

1. (ii) फागन
ु की, 2. (iv) फागुन की, 3. (ii) कवव का पक्षी रूपी मन,
4. (iii) वसुधा, 5. (ii) सुगक्न्धत हवा का झोंका वातावरर् को सुगक्न्धत करता है

कविता :- यह दं तुररत मस
ु कान (कवि :- नागाजुन
ण )

सारांश- प्रस्तुत कववता ‘यि दां तुररत मुसकान’ में छोटे बच्चों की मनोिारी मुसकान दे खकर कवव
के मन में जो भाव उमडते िैं उन्िें कववता में अनेक त्रबांबों के माध्यम से प्रकट ककया गया िै ।
कवव का मानना िै कक सन्
ु दरता िी जीवन का पयााय िै। बालक की सांुदरता कठोर से कठोर मन
को भी वपघला सकती िै अथाता मत
ृ क में भी जान डाल सकती िै । बालक की दां तुररत मुसकान
ऐसी प्रतीत िोती िै जैसे कक तालाब को छोड कर मेरे गरीब की झोपडी में कमल खखल गए िै ।
इस दां तुररत मुसकान की मोिकता तब और बढ़ जाती िै जब उसके साथ नज़रों का बााँकपन जुड
जाता िै। कवव किता िै कक बालक तुम धन्य िो और तुम्िें जन्म दे ने वाली तुम्िारी मााँ भी धन्य
िै। तम्
ु िारी यि दां तरु रत मस
ु कान तम्
ु िारी छवव में चार चााँद लगा रिी िै क्जससे नज़रें िटाने का
मन िी निीां कर रिा िै।
प्रश्नोत्तर :- 1. च्चें की दं तुररत मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रिाि पड़ता है?
उत्तर- कवव अपने बच्चे की दां तुररत मुसकान को दे ख कर अांदर तक अत्यचधक प्रसन्न िो जाता िै।
उसे लगता िै उस मुसकान ने कवव में एक नए जीवन का सांचार कर हदया िै। कवव उस छोटे
बच्चे की मस्
ु करािट को इतना प्रभाविाली बताते िैं कक अगर कोई कठोर हृदय वाला व्यक्क्त भी
उसकी मुस्करािट को दे ख ले तो वि भी अपने आप को मुस्कुराने से निीां रोक पाएगा। मत
ृ क
अथाात तनराि िुए मानव में भी जान यातन जीवन जीने की लालचा आ जाती िै।

70
2. च्चें की मस
ु कान और एक ड़े वयजक्त की मस
ु कान में क्या अंतर है ?
उत्तर- बच्चे की मुसकान िमेिा तनश्छल िोती िै। अथाात बच्चे ककसी भी प्रकार का छल – कपट
निीां जानते, उनकी मुस्करािट को दे ख कर िर ककसी का मन खुशियों से भर उठता िै। इसके
ववपरीत बडों की मुसकान में कई अथा तछपे िो सकते िैं। कभी – कभी यि मुसकान कुहटल िो
सकती िै , तो कभी ककसी उम्मीद से भरी िो सकती िै। ऐसा बिुत कम िोता िै कक ककसी वयस्क
की मस
ु कान उतनी तनश्छल िो क्जतनी कक ककसी बच्चे की।
3. कवि ने च्चें की मुसकान के सौंदयण को क्रकन-क्रकन ब ं ों के माध्यम से वयक्त क्रकया है ?
उत्तर- * कवव को लगता िै कक कमल तालाब छोडकर इसकी झोपडी में खखल गये िैं।
* ऐसा लगता िै जैसे पत्थर वपघलकर जलधारा के रूप में बि रिे िों।
* बााँस या बबल
ू से िेफाशलका के फूल झरने लगे िों।

कविता :- िसल (कवि :- नागाजुन


ण )

सारािंश- कवव नागाजुन


ा दवारा रचचत दस
ू रा काव्याांि फ़सल िै क्जसमे कवव ने ववज्ञान को
साहित्य से जोडने एवां उसमें समेटने का अदभूत समावेि ककया िै। फ़सल िब्द का नाम सुनते
िी खेतों में लिलिाती फ़सल आाँखों के सामने आ जाती िै । लेककन फ़सल क्या िै? और उसे
पैदा करने में ककन-ककन तत्वों का योगदान िोता िै क्जसको बताया गया िै । दसवीां के ववदयाथी
ववज्ञान वविय दवारा यि जानकारी रखते िै क्जसकों वे पुन: स्मरण कर आत्मसात कर सकेगे।
फ़सल-- पानी का जाद,ू िाथों के स्पिा की गररमा,खेतों की शमट्टी का गुणधमा,सूरज की ककरणों
का रूपाांतरण एवां िवा की चथरकन का समग्र समावेि िै । फ़सल की सांरचना एवां उसकी प्रकृतत
को समझाया गया िै। फ़सल के माध्यम से कवव ककसानों के वजूद से भी पररचय करवाकर
अन्नदाता की खोई प्रततष्ठता को पन
ु : याद कराता िै । यि कववता िमें प्रत्यक्ष एवां परोक्ष रूप
से पयाावरण को बचाने का भी सन्दे ि दे ता िै। फ़सल का सज
ृ न प्रकृतत एवां मनुष्य के सियोग
से िी सांभव िै । फ़सल कववता उपभोक्तावाद की सांस्कृतत के दौर से िमें कृवि-सांस्कृतत के
तनकट जाने के शलए प्रोत्साहित कराती िै ।

प्रश्नोत्तर :- 1. कवि के अनुसार फ़सल क्या है ?


उत्तर- कवव के अनुसार फसल करोडों ककसानों की लगन व मेिनत का नतीजा, नहदयों के पानी
का जाद,ू शमट्टी में पाए जाने वाले जरूरी अवयव,गुण-धमा, सूया की ककरणें व िवा में पायी जाने
वाली काबान डाइऑक्साइड गैस के शमलन का नतीजा िै।
2. कववता में फ़सल उगने के ललए क्रकन-क्रकन आिश्यक तत्िों की ात की गई है ?

71
उत्तर- िवा, पानी, शमट्टी में उपक्स्थत पोिक तत्व व सय
ू ा की ककरणें। ये सभी आवश्यक तत्व
फसल उगाने के शलए बिुत आवश्यक िैं।
3. फ़सल को ‘हाथों के स्पशण की गररमा’ और ‘मठहमा’ कहकर कवि क्या वयक्त करना चाहता है?
उत्तर- “िाथों के स्पिा की गररमा” और “महिमा” किकर कवव ककसान की अथक मेिनत को
सम्मातनत करते िैं। क्योंकक ककसान की लगन व कहठन पररश्रम के त्रबना खेतों में फसल निीां उग
सकती िैं। फसल के फलने-फूलने में एक या दो निीां बक्कक लाखों-करोडों ककसानों के िाथों के स्पिा
की गररमा ववदयमान िोती िै। कवव किते िैं कक शमट्टी और पानी के पोिक तत्व तथा सूरज की
उजाा भी तभी साथाक िोती िै जब ककसानों के िाथों का स्पिा इसे गररमा प्रदान करता िैं।
4. लमट्टी का गुर्िमण क्या होता है जजसको ढ़ाने में हमारी क्या िूलमका हो सकती है?
उत्तर- शमट्टी के गुण धमा से तात्पया शमट्टी में पाए जाने वाले पोिक तत्व जो फसल को ववकशसत
करने में सिायक िोते िै । शमट्टी के गुण-धमा को पोवित करने में िमारी तनम्नशलखखत भूशमका िो
सकती िै :
1. अचधक से अचधक वक्ष
ृ ों को लगाए।
2. कारखानों को सीशमत कर उनसे तनकलने वाले गांदे पदाथों से नहदयों को बचाया जाए।
3. प्लाक्स्टक का कम से कम उपयोग करें ।
4. फसलों को उगाने के शलए िातनकारक रसायतनक तत्वों का उपयोग ना करें ।
पदयाींश
ननम्नललखित कावयांश को ध्यानपूिक
ण पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजजए –
फसल क्या िै?
और तो कुछ निीां िै वि
नहदयों के पानी का जाद ू िै वि
िाथों के स्पिा की महिमा िै
भरू ी-काली-सांदली शमट्टी का गण
ु धमा िै
रूपाांतर िै सरू ज की ककरणों का
शसमटा िुआ सांकोच िै िवा की चथरकन का !

1. कववता के आधार पर फ़सल में ककस-ककस का पानी समाया िोता िै?


(क) झरनों का (2) तालाबों का (3) एक नदी का (4) ढे र सारी नहदयों का
2. ‘भूरी-काली-सांदली शमट्टी’ में वविेिण क्या िै ?
(1) भरू ी (2) काली (3) सांदली (4) सभी सही है
3. सरू ज की ककरणों का रूपाांतरण ककसमें िुआ िै ?
(1) नदी में (2) िवा में (3) फ़सल में (4) िाथों में
4. फ़सल उगने में ककन-ककन तत्वों का योगदान रिता िै ?

72
(1) िवा और पानी का (2) सरू ज की ककरणों एवां शमट्टी का गण
ु धमा का
(3) िाथों की मेिनत और िवा का (4) उपरोक्त सभी का
5. शमट्टी का गुणधमा से क्या अशभप्राय िै ?
(1) शमट्टी का उपजाऊपन (2) शमट्टी का रां ग
(3) शमट्टी का प्रकार (4) इनमे से कोई निीां
उत्तर सिंकेत –
1. (4) ढे र सारी नहदयों का, 2. (4) उपरोक्त सभी, 3. (3) फ़सल में
4. (4) उपरोक्त सभी का, 5. (1) शमट्टी का उपजाऊपन

संगतकार (कवव- मांगलेि डबराल)


साराींश :- सांगतकार कववता गायन में मख्
ु य गायक का साथ दे नेवाले सांगतकार की भशू मका के
मित्त्व पर ववचार करती िै। दृश्य माध्यम की प्रस्ततु तयों; जैस-े नाटक, कफ़कम, सांगीत, नत्ृ य के बारे
में तो यि सिी िै िी; िम समाज और इततिास में भी ऐसे अनेक प्रसांगों को दे ख सकते िैं जिााँ
नायक की सफलता में अनेक लोगों ने मित्त्वपूणा भूशमका तनभाई। कववता िममें यि सांवेदनिीलता
ववकशसत करती िैं कक उनमें से प्रत्येक का अपना-अपना मित्त्व िै और उनका सामने न आना
उनकी कमज़ोरी निीां मानवीयता िै। िमारे जीवन में भी अनेक ऐसे सांगतकार िैं जो िमारे प्रेरणा
स्रोत्र िैं। ये िमें अपने लक्ष्य तक पिुांचाने में िमारे सिायक िोते िैं पर कभी भी िमारी सफलता
का श्रेय निी लेते । ये िमारे माता-वपता,िमारे शिक्षक,शमत्र या ररश्तेदार कोई भी िो सकतें िै ।

प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. सांगतकार के माध्यम से कवव ककन व्यक्क्तयों की ओर सांकेत करना चाि रिा िै?
उत्तर- सांगतकार के माध्यम से कवव ककसी भी काया अथवा कला में लगे सिायक कमाचाररयों और
कलाकारों की और सांकेत कर रिा िै। ये सिायक कलाकार खुद को पीछे रखकर मुख्य कलाकार
को आगे बढाने में योगदान दे तें िैं। यि बात जीवन के िर क्षेत्र में लागू िोती िै ।
प्रश्न 2. सांगतकार जैसे व्यक्क्त सांगीत के अलावा और ककन-ककन क्षेत्रों में हदखाई दे ते िैं?
उत्तर- सांगतकार जैसे व्यक्क्त सांगीत के अलावा राजनीतत,अशभनय,तनमााण काया,शिक्षा जगत और
खेल आहद क्षेत्रों में इसी प्रकार सियोग करते िैं।जैसे एक खखलाडी की प्रशसदचध और सफलता के
पीछे प्रशिक्षक, साथी खखलाडी,उसके माता -वपता,शमत्र,चचककत्सा टीम आहद सांगतकार की भूशमका
िी तनभाते िैं।
प्रश्न 3. सांगतकार ककन-ककन रूपों में मख्
ु य गायक-गातयकाओां की मदद करते िैं?
उत्तर :- सांगतकार तनम्नशलखखत रूपों में मुख्य गायक-गातयकाओां की मदद करते िैं

73
• वे अपनी आवाज़ और गाँज
ू को मख्
ु य गायक की आवाज़ में शमलाकर उनकी आवाज़ का बल
बढ़ाते िैं।
• वे गायक दवारा और किीां गिरे चले जाने पर उनकी स्थायी पांक्क्त को पकडे रखते िैं तथा मुख्य
गायक को वापस मूल स्वर पर ले आते िैं।
• वे मख्
ु य गायक की थकी िुई, टूटती-त्रबखरती आवाज़ को बल दे कर सियोग दे ते िैं। उन्िें अकेला
निीां पडने दे ते, त्रबखरने निीां दे ते।
प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीक्जए-
“और उसकी आवाज़ में

जो एक हिचक साफ़ सुनाई दे ती िै


या अपने स्वर को
ऊाँचा न उठाने की जो कोशिि िै
उसे ववफलता निीां
उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।“

उत्तर:- कवव का किने का भाव िै कक सांगतकार की आवाज िमेिा मख्


ु य गायक की आवाज से
धीमी िोती िै । वि अपनी आवाज को ऊपर उठने निीां दे ता। इसका मतलब यि निीां िै कक वि
एक सफल गायक निीां िै बक्कक वि एक उसकी मनुष्यता िै कक वि स्वयां को पीछे रखकर मुख्य
गायक को आगे बढ़ने का मौका दे रिा िै।
प्रश्न :-5 कभी- -कभी तारसप्तक की ऊाँचाई पर पिुाँचकर मख्
ु य गायक का स्वर त्रबखरता नज़र
आता िै उस समय सांगतकार उसे त्रबखरने से बचा लेता िै। इस कथन के आलोक में सांगतकार
की वविेि भूशमका को स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर :- जब मुख्य गायक गीत गाते-गाते अपने स्वर को बिुत ऊाँचाई पर ले जाता िै , तो कभी-
कभी उसका स्वर त्रबखरने लगता िै। उत्साि मांद पडने लगता िै। रुचच और िक्क्त समाप्त िोने
लगती िै। तब सांगतकार उसके पीछे मख्
ु य धन
ु को दोिराता चलता िै। वि अपनी आवाज़ से उसके
त्रबखराव को साँभाल लेता िै। उसके उत्साि को वापस लौटा लाता िै। इस प्रकार सांगतकार की
भूशमका बिुत मित्त्वपूणा िै। वि मुख्य गायक का सिायक िी निीां, सांरक्षक, बलवदाधक और
आनांददायक साथी िै।
प्रश्न :-6 सफलता के चरम शिखर पर पिुाँचने के दौरान यहद व्यक्क्त लडखडाता िै तब उसे सियोगी
ककस तरि सम्भालते िैं?

74
उत्तर :- जब कोई व्यक्क्त सफलता के चरम शिखर पर पिुाँचकर अचानक लडखडा जाता िै तो
उसके सियोगी िी उसे बल, उत्साि, िाबासी और साथ दे कर साँभालते िैं। वे उसकी कमी को पूरा
करने का भरसक प्रयास करते िैं।वे उसे उसकी सफलताओां की याद हदलाकर उसमें नयी स्फूतता
भरतें िैं।
अनतररक्त प्रश्न
प्रश्न 1. सांगतकार कववता में कवव क्या सन्दे ि दे ना चािते िैं?
उत्तर :- कवव सांगतकार का मित्त्व प्रकाशित करना चाितें िै । यदयवप मुख्य गायक के त्रबना
सांगतकार का अक्स्तत्व निीां िै। ककन्तु मुख्य गायक की सफलता अचधकाांितः सांगतकार के सफल
सियोग पर तनभार िै। मख्
ु य गायक के तनराि िोने पर, ववश्वास लडखडाने पर, स्वर त्रबगडने पर
उसके तारसप्तक में चले जाने पर सांगतकार िी उसे सांभालता िै। िमारे जीवन में भी अनेक ऐसे
सांगतकार िैं जो िमारे प्रेरणा स्रोत्र िैं। ये िमें अपने लक्ष्य तक पिुांचाने में िमारे सिायक िोते िैं
पर कभी भी िमारी सफलता का श्रेय निी लेते । ये िमारे माता-वपता,िमारे शिक्षक,शमत्र या ररश्तेदार
कोई भी िो सकतें िै।
प्रश्न 2. सांगतकार की आवाज में एक हिचक क्यों सुनाई दे ती िै ?
उत्तर - सांगतकार की आवाज में एक हिचक साफ सन
ु ाई दे ती िै क्योंकक वि जान बझ
ू कर अपनी
आवाज को मुख्य गायक से ऊपर निीां उठने दे ता। क्योंकक उसका कताव्य मख्
ु य कलाकार को सिारा
प्रदान करना िै, अपनी कला का प्रदिान करना निीां। यि हिचक उसकी असफलता निी अवपतु
उसके सियोग और समपाण का प्रतीक िै
प्रश्न 3. सांगतकार' कववता में मुख्य गायक के सांदभा में 'नौशसखखया' का प्रयोग क्यों िुआ िै?
उत्तर—मख्
ु य गायक बचपन में नौशसखखया था। वि नया-नया सांगीत सीखने आया था। तब भी
सांगतकार तबला-िारमोतनयम आहद बजाकर तथा उसके सुस्त पडते स्वरों को साँभालकर उसके
व्यक्क्तत्व को बढ़ावा हदया था। लेखक किना चािता िै कक गुरू के रूप में सांगतकार मुख्य गायक
को आरां भ से अांत तक बढ़ाते िुए उसकी गलततयों को सुधारता चाला गया।

पदयाींश
ननम्नललखित कावयांश को ध्यानपूिक
ण पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजजए –
“गायक जब अांतरे की जहटल तानों के जांगल में

खो चुका िोता िै
या अपने िी सरगम को लााँघकर
चला जाता िै भटकता िुआ एक अनिद में
तब सांगतकार िी स्थायी को साँभाले रिता िै

75
जैसे समेटता िो मख्
ु य गायक का पीछे छूटा िुआ सामान
जैसे उसे याद हदलाता िो उसका बचपन
जब वि नौशसखखया था”

प्रश्न 1 :- मुख्य गायक कैसे भटक जाता िै ?


(क) गाते-गाते मुख्य लय भूल जाता िै (ख) गाते-गाते लय सोचने लगता िै
(ग) अचानक नया राग याद आ जाता िै (घ) गाते -गाते वि रास्ता भूल जाता िै
प्रश्न 2 :- “अांतरे की जहटल तानों के जांगल में” पांक्क्त में कौनसा अलांकार िै?
(क) उपमा (ख) उत्प्रेक्षा (ग) रूपक (घ) मानवीकरण
प्रश्न 3 :- “अनहद” से क्या आिय िै?
(क) अतत (ख) ब्रह्म ज्ञान (ग) समाचध अवस्था (घ) लय की मयाादा से दरू
प्रश्न 4 :- “स्थायी”ककसे किते िै?
(क) मूल भाव को (ख) कोरस को (ग) गीत की टे क पांक्क्त की लय (घ) सरगम को
प्रश्न 5.:- कवव एवां कववता का नाम क्या िै ?
(क) सांगतकार और कवव ऋतुराज (ख) छाया मत छूना और कवव चगररजाकुमार माथुर
(ग) उत्साि और कवव सुयक
ा ाांत त्रत्रपाठी तनराला (घ) सांगतकार और कवव मांगलेि डबराल

उत्तर सींकेि

1. (1) गाते-गाते मख्


ु य लय भल
ू जाता िै 2. (ग) रूपक
3. (घ) लय की मयाादा से दरू 4. (ग) गीत की टे क पांक्क्त की लय
5. (घ) सांगतकार और कवव मांगलेि डबराल

पूरक पुस्िक- कृततका-2


माता का अाँचल (लेिक लशिपूजन सहाय)

साराींश - ‘माता का अाँचल’, शिवपज


ू न सिाय दवारा शलखा गया िै, क्जसमें लेखक ने अपने माता-
वपता के साथ बचपन के आत्मीय जुडाव को पूणा आत्मीयता से व्यक्त ककया िै। इस पाठ में
ग्रामीण सांस्कृतत का चचत्रण भी लोकोक्क्तयों के साथ माशमाक ढां ग से चचत्रत्रत ककया िै । जैसे -
"जिााँ लडकों का सांग, तिााँ बाजे मद
ृ ां ग, बुड्ढों का सांग, तिााँ खरचे का तांग। "
ऐसी और भी कई लोकोक्क्तयााँ इस पाठ में मौजूद िैं।
लेखक के बचपन का नाम 'ताडकेश्वरनाथ' िोता िै , क्जसे उनके वपताजी प्यार से 'भोलानाथ' किके
सांबोचधत ककया करते थे। लेखक भी अपने वपता को 'बाबू जी' और माता को 'मइयााँ' किके पुकारा
करते थे।

76
बचपन में लेखक अचधकाांि समय अपने बाबू जी के सातनध्य में गज
ु ारा करते थे। वे अपने वपता
के साथ िी सोते, सुबि उनके साथ िी उठते वपताजी िी भोलेनाथ को निलाते–धुलाते थे वपता जी
उनके ललाट में त्रत्रपुांड कर दे ते थे। शसर में लांबी-लांबी जटाएाँ थी उनमें भभूत रमजाने पर लेखक
खासे बम भोला बन जाते थे और वपता जी कफर प्यार से ताडकेश्वर को भोलानाथ किते थे। जब
लेखक के वपताजी रामायण का पाठ करते, तब वे उनके बगल में बैठकर आईने में अपना मि
ाँु
तनिारा करते थे वपता की नज़र जब लेखक पर पडती तो वे लजाकर आइना नीचे कर दे ते थे। इस
बात पर लेखक के वपताजी मुस्कुरा दे ते थे लेखक अपने माथे पर ततलक लगवाकर खुि िो जाते
थे। पूजा के बाद वपता जी उसे कांधे पर त्रबठाकर गांगा में मछशलयों को दाना खखलाने के शलए ले
जाते थे और रामनाम शलखी पचचायों में शलपटी आटे की गोशलयााँ गांगा में डालते थे। लौटते िुए उसे
रास्ते में पडने वाले पेडों की डालों पर झल
ु ाते।
घर आकर जब वे उसे अपने साथ खाना खखलाते, तो मााँ को कौर छोटे लगते थे।लेखक की मााँ
उनके वपताजी को खाना खखलाने के नाम पर डाांटती िुये किती थी –
‘जब खाएगा बडे –बडे कौर,तब पाएगा दतु नया में ठौर’ लेखक की मााँ जब पक्षक्षयों के नाम के
तनवाले'कौर' बनाकर उनके उडने का डर बतातीां, तो लेखक बडे चाव से उस तनवाले को अपने मुाँि
में ले लेते थे। कफर लेखक की मााँ अचानक उसे पकड के अपने आगोि में भरती और माता का
आाँचल उसके शसर पर कडवा तेल (सरसों तेल) डाल दे ती थीां। लेखक रोने लगते तो उसके वपता
जी लेखक की मााँ पर गुस्सा िो जाते। रोने के बावजूद भी मााँ बालों में तेल डाल कांघी कर दे तीां
थीां। कुरता टोपी पिनाकर चोटी गाँथ
ू कर फूलदार लट्टू लगा दे ती थीां। लेखक रोते-रोते बाबूजी की
गोद में बािर आते बािर आते िी वे बालकों के झुांड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे वे चबूतरे
पर बैठकर तमािे और नाटक ककया करते थे। शमठाइयों की दक
ु ान लगाया करते थे। कभी-कभी
भोलानाथ व उनके साथी बारात का भी जुलूस तनकालते थे। कनस्तर का तम्बूरा बजता,अमोले को
तघसकर ििनाई बजायी जाती,टूटी चूिेदानी की पालकी बनती,खेती का खेल खेलती िुए गाते –ऊाँच
नीच में बई ककयारी,जो उपजी सो भई िमारी।
जब कभी लेखक साचथयों के साथ ददरी के मेले में जाने वालों के झुांड को दे खते तब कूद-कूदकर
चचकलाने लगते थे-चलो भाइयो ददरी,सातू वपसान की मोटरी।
लेखक से उनके वपता जी का बेिद लगाव था। वे कभी उसके िाथों को चूम लेते, तो कभी दाढ़ी-
मूाँछ गडाकर मस्ती करते। कुश्ती खेलते और बार-बार िार जाते थे। लेखक अपने दोस्तों के साथ
आस-पास के छोटे -मोटे सामान को जुटाकर इतनी रुचच से खेलते कक उन खेलों को दे खकर सभी
खुि िो जाते थे।

77
एक बार रास्ते में आते िुए लडकों की टोली ने मस
ू न ततवारी को "बढ़
ु वा बेईमान मााँगे करै ला का
चोखा" किकर चचढ़ा हदया। मूसन ततवारी ने उनको खूब खदे डा। जब वे लोग भाग गए तो मूसन
ततवारी पाठिाला पिुाँच गए। अध्यापक ने लेखक की खूब वपटाई की। यि सुनकर वपताजी पाठिाला
दौडे-दौडे आए अध्यापक से ववनती कर वपताजी उन्िें घर ले आए। कफर वे रोना-धोना भुलकर अपने
शमत्र मांडली के साथ िो गए और खेतों में चचडडयों को पकडने की कोशिि करने लगे चचडडयों के
उड जाने पर जब एक टीले पर आगे बढ़कर चि
ू े के त्रबल में उसने आस-पास का भरा पानी डाला,
तो उसमें से एक सााँप तनकल आया। डर के मारे लुढ़ककर चगरते-पडते िुए लेखक लिूलुिान क्स्थतत
में जब घर पिुाँचा, तो सामने वपता को बैठकर िुक्के गुडगुडाते िुए दे खा वपता के साथ सदा अचधक
समय त्रबताने के बाद भी उसे अांदर जाकर मााँ से चचपटने में सुरक्षा मिसूस िुई। मााँ ने घबराते
िुए और चचांततत अवस्था में आाँचल से उसकी धल
ू साफ की और िकदी लगाई।
बेिक, लेखक को तब मााँ की ममता, वपता के प्यार-दल
ु ार से ज्यादा मजबत
ू और प्रगाढ़ लगी।
िायद उस वक़्त मााँ का आाँचल लेखक के शलए ककसी मिफ़ूज आशियाने से कम न था।
प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यि किा जा सकता िै कक बच्चे का अपने वपता से अचधक
जुडाव था, कफर भी ववपदा के समय वि वपता के पास न जाकर मााँ की िरण लेता िै। आपकी
समझ से इसकी क्या वजि िो सकती िै? अथवा
मााँ के प्रतत अचधक लगाव न िोते िुए भी ववपवत्त के समय भोलानाथ मााँ के अांचल में िी
प्रेम और िाांतत पाता िै। इसका आप क्या कारण मानते िैं?
उत्तर - भोलानाथ अपना अचधकाांि समय वपता के साथ िी गुजारा करते थे वपता के साथ िी उनका
सोना,खेलना,घूमना,पूजा हदनचयाा के समस्त काया िोते थे क्जसके कारण वपता के प्रतत उनका
लगाव अचधक था। ककां तु मााँ का स्नेि हृदयस्पिी िोता िै वपता की बजाय विी उन्िें खाना
खखलाती,निलाती दल
ु राती थी । तनश्छल हृदय शििु के हृदयस्पिी स्नेि की पिचान िोती िै। यिी
कारण िै ववपदा के समय जब शििुको सााँप का डर भयभीत करता िै तो वपता के पास न जाकर
मााँ के पास जाता िै।
प्रश्न 2. आपके ववचार से भोलानाथ अपने साचथयों को दे खकर शससकना क्यों भूल जाता िै ?
उत्तर –बालकों का स्वभाव िोता िै कक वे अपनी िमउम्र के बच्चों के साथ अचधक सिजता मिसूस
करते िैं। बालक अपनी उम्र के बच्चों के साथ क्जस रुचच से खेलता िै वि रुचच बडों के साथ निीां
िोती िै। साथ िी बालक भोलानाथ अपने साचथयों को दे खकर खेलने के मनोभाव से आनांहदत िो
जाता िै और शससकना भूल जाता िै।

78
प्रश्न 3. भोलानाय और उसके साचथयों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की
सामग्री से ककस प्रकार शभन्न िै?
उत्तर- भोलानाथ और उसके साचथयों के खेल और खेलने की सामग्री से िमारे खेल और खेल
सामचग्रयों में अत्यचधक पररवतान आ गया िै भोलानाथ घर में शमट्टी के टूटे बतानों से, शमठाइयों
की काकपतनक दक
ु ान,बारात तनकालना जैसे खेल खेला करते थे क्जनमें बच्चे की सजानात्मकता
िोती थी आज के खेल सांसाधनों के खेल िैं आज बच्चे कक्रकेट,फुटबॉल,बैडशमन्टन जैसे खेल खेलते
िैं साथ िी इलेक्रॉतनक सांसाधनों से भी बांद कमरों में खेलते िैं जो बच्चों के िारीररक व मानशसक
ववकाि को भी रोकते िैं।
प्रश्न 4. माता का अाँचल' पाठ में माता-वपता का बच्चे के प्रतत जो वात्सकय प्रकट िुआ िै , उससे
बच्चे में ककन-ककन मक
ू यों का ववकास िोगा?
उत्तर - माता-वपता दवारा बच्चे के प्रतत प्रकट ककए गए वात्सकय से बच्चे में तनम्नशलखखत मक
ू यों
का ववकास िोगा-
(i) पाररवाररक जुडाव - माता-वपता दवारा प्रकट ककए गए वात्सकय से बच्चे में पररवार के
प्रतत जड
ु ाव बढ़ता िै। उसकी यि भावना बढ़कर उसमें राष्र से जड
ु ाव उत्पन्न करती िै।
(ii) माता-वपता से अटूट लगाव - माता-वपता का वात्सकय बच्चे में माता-वपता और पररवार
के सदस्यों के प्रतत अटूट लगाव पैदा करता िै , जो बच्चे के नकारात्मक मूकयों में कमी
लाता िै।
(iii) सकक्रय सिभाचगता - माता-वपता का वात्सकय बच्चे में सकक्रय सिभाचगता की भावना पैदा
करता िै , क्जससे सामाक्जक व राष्रीय सदभाव में वद
ृ चध िोती िै।
(iv) सांकुचचत से व्यापक दृक्ष्टकोण - माता-वपता का वात्सकय बच्चों के सांकुचचत दृक्ष्टकोण
को व्यापक दृक्ष्टकोण में बदल दे ता िै , क्जससे उनमें परहित की भावना पैदा िोती िै।
प्रश्न 5. भोलानाथ और उसके साचथयों के खेल, आज के खेल और खेल-सामग्री की अपेक्षा मूकयों
का ववकास करने में अचधक समथा थे। 'माता का अाँचल' पाठ के आधार पर स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर- आज बच्चे अचधकाांि खेल कमरों में रिकर अकेले खेलना चािते िैं। इन खेलों में प्रयक्
ु त
सामग्री मिीन तनशमात िोती िै। इसके ववपरीत भोलानाथ के खेल खुले मैदानों में खेले जाते थे।
इनमें पक्षक्षयों को उडाना, खेती-बाडी करना, बारात तनकालना, भोज का प्रबांध करना आहद मुख्य
थे। ये खेल साचथयों के साथ खेले जाते थे, क्जनसे सिभाचगता, सदभाव, मेल-जोल (शमत्रता) आहद
मूकय ववकशसत िोते थे। इसके अलावा इन खेलों की सामग्री में प्राकृततक वस्तुएाँ िाशमल िोती थीां,
क्जनसे प्रकृतत से जड
ु ाव और उसे सांरक्षक्षत करने के अलावा, समाज के साथ राष्र-प्रेम का उदय
एवां ववकास िोता था।

79
प्रश्न 6 बच्चे माता-वपता के प्रतत अपने प्रेम को कैसे अशभव्यक्त करते िैं?
उत्तर- बच्चे माता-वपता के साथ समय व्यतीत करते िुये उनके कामों में अपनी रूची हदखाते िैं
जैसे भोलानाथ वपता के साथ पूजा में भाग लेता िै , मछशलयों को दाना डालता िै ये काया बच्चे
का माता वपता से जुडाव बढ़ाते िैं।
प्रश्न 7. भोलानाथ के वपताजी की पज
ू ा के ककतने व कौन कौन से अांग थे?
उत्तर - भोलानाथ के वपताजी की पज
ू ा के चार अांग थे-
1- भगवान िांकर की ववचधवत पूजा करना।
2- रामायण का पाठ करना।
3- 'रामनामा बिी' पर राम-राम शलखना।
4- इसके अततररक्त छोटे -छोटे कागज पर रामनाम शलखकर उन कागजों के आटे की गोली बनाकर
उन गोशलयों को गांगा में फेंककर मछशलयों को खखलाना।
प्रश्न 8. लेखक के वपताजी भोलानाथ को पूजा में अपने साथ त्रबठाते थे इसके पीछे वपताजी का
क्या उददे श्य था?
उत्तर- लेखक के वपताजी धाशमाक प्रववृ त्त के थे। उनकी यिी इच्छा रिी िोगी कक भोलानाथ भी
धाशमाक प्रवतृ त का बने साथ िी शििु भोलानाथ पर ईश्वर की कृपा बरसती रिे । बच्चे के सामाक्जक
व नैततक सांस्कारों का ववकाि िोता रिे जो उसके आजन्म काम आएांगे।
प्रश्न 9. भोलानाथ के वपता भोलानाथ को पूजा पाठ में िाशमल करते, उसे गांगा तट पर ले जाकर
लौटते िुए पेड की डाल पर झुलाते, उनका ऐसा करना ककन मूकयों को उभारने में सिायक िै ?
उत्तर- भोले नाथ के वपता उसको अपने पज
ू ा पाठ पर बैठाते। पज
ू ा के बाद आटे की गोशलयाां शलए
िुए गांगा घाट जाते। मछशलयों को आटे की गोशलयाां खखलाते, विााँ से लौटते िुए उसे पेड की झुकी
डाली पर झुलाते। उनके इस कायाव्यविार से भोलानाथ में कई मानवीय मूकयों का उदय एवां ववकास
िोगा। ये मानवीय मूकय िैं –
1- भोलानाथ दवारा अपने वपता के साथ पूजा पाठ में िाशमल िोने से उसमें धाशमाक भावना का
उदय िोगा?
2- प्रकृतत से लगाव उत्पन्न िोने के शलये प्रकृतत का सातनध्य आवश्यक िै। भोलेनाथ को अपने
वपता के साथ प्रकृतत के तनकट आने का अवसर शमलता िै। ऐसे में उसमें प्रकृतत से लगाव की
भावना उत्पन्न िोगी।
3- मछशलयों को तनकट से दे खना एवां उन्िें आटे की गोशलयाां खखलाने से भोलानाथ में जीव जांतुओां
के प्रतत लगाव एवां दया भाव उत्पन्न िोगा।
4- नहदयों के तनकट जाने से भोलानाथ के मन में नहदयों को प्रदि
ू ण मुक्त रखने की भावना का
उदय एवम ् ववकास िोगा।

80
5- वक्ष
ृ ों से तनकटता िोने तथा उनकी िाखाओां पर झल
ू ा झल
ू ने से भोलानाथ में पेडों के सांरक्षण
की भावना ववकशसत िोगी।
प्रश्न 10. लेखक और उसके साथी खेती का खेल ककस प्रकार खेलते थे?
उत्तर - लेखक और उसके साथी चबत
ू रे के एक छोर पर तघरनी गाड दे ते थे। नीचे की गली को
कुआाँ बना लेते थे। माँज
ू की बटी िुई पतली रस्सी में एक चक्
ु कड डालकर कुएाँ से पानी तनकालते
कफर खेती करने का खेल खेलते थे।
साना-साना हाथ जोड़ड़...(लेखिका-मिु कांकररया)
साराींश- ‘साना-साना िाथ जोडड’ लेखखका मधु काांकररया जी दवारा शलखा गया यात्रावत
ृ ाांत िै। लेखखका
ने शसक्क्कम की राजधानी गांतोक और यूमथाांग तक हिमालय यात्रा का वणान बिुत रोचकता के
साथ ककया। लेखखका जब इस ििर में उतरी वि िैरान िो गई। उसका िैरान िोने का कारण शसतारों
की खझलशमलािट में जगमगाता इततिास और वतामान के सांचध स्थल पर खडा मेिनतकि बादिािों
का ििर गांतोक की सुांदरता थी।
इस सांद
ु रता ने लेखखका के मन में भीतर-बािर िन्
ू य स्थावपत कर हदया था। उन्िोंने इस यात्रा के
दौरान एक नेपाली युवती से प्राथाना के बोल “साना-साना िाथ जोडड गदा िु प्राथाना” सीखें क्जसका
अथा था छोटे -छोटे िाथ जोडकर प्राथाना कर रिी िूाँ कक मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समवपात
िो। लेखखका ने अगले हदन यूमथाांग जाने का तनश्चय ककया था। जैसे प्रातःकाल में उनकी नीांद
खुली वि बालकनी की ओर दौडी क्योंकक विाां के लोगों ने उन्िें बताया था कक मौसम साफ िोने
पर कांचनजांघा (शसक्क्कम में हिमालय की सबसे ऊाँची चोटी)साफ हदखाई दे ती िै। कांचनजांगा तू ना
हदखे परां तु इतने सारे फूल दे खे कक वि शलखती िैं “मानो ऐसा लगा कक फूलों के बाग में आ गई
िूां।” जोकक गांगटोक से 149 ककलोमीटर की दरू ी पर था विााँ जाने के शलए ड्राइवर कम गाइड क्जतेन
नागे के साथ तनकलती िैं।
लेखखका को अपनी यात्रा के प्रथम पडाव पर िी हिमालय के अदभत
ु सौन्दया के दिान िुए गदराए
पाईन, नक
ु ीले पेड, पिाड हदखे क्जन्िें दे खकर लेखखका किती िैं-मेरे नगपतत मेरे वविाल।
इसके साथ िी हदखी सफेद बौदध पताकाएां जोकक िाांतत व अहिांसा के प्रतीक िोती िैं और बुध की
मान्यता के अनुसार जब ककसी बुदचधस्ट की मत्ृ यु िोती िै तब 108 श्वेत पताकाएां लिराई जाती
िै क्जन पर मांत्र शलखे िोते िैं। कई बार िुभ काया के प्रारां भ में भी पताकाएां फिरा दी जाती िै परां तु
वि रां गीन िोती िै। अब गाइड नॉवे के साथ लेखखका की जीप उस जगि पिुांची जिाां गाइड कफकम
की िहू टांग िुई थी यि जगि थी- कवी लॉन्ग स्टॉक। उन्िीां रास्तों के भीतर लेखखका मधु जी की
एक कुहटया की तरफ नजर पडी जिााँ उन्िोंने धमा चक्र को घूमते दे खा।

81
इस प्रेयर व्िील के बारे में नावे ने बताया कक इसको घम
ु ाने से पाप धल
ु जाते िैं ऐसा माना जाता
िै। अब पवातों, घाहटयों, नहदयों की सुांदरता से आगे बढ़कर लेखखका ने फेन उगलता झरना दे खा
क्जसका नाम- सेवेन शसस्टसा वॉटरफॉल था। लेखखका शलखती िै- पिली बार एिसास िुआ…. जीवन
का आनांद िै यिी चलायमान सौंदया। विाां उन्िोंने पिाड तोडती तथा बच्चे को पीठ पर बाांधकर पत्ते
बीनती महिलाओां को दे खा।क्जनका जीवन अनेक कहठनाइयों से भरा िै कफरभी वे जबन िाँसती िैं
तो उनका सारा खांडिर ताजमिल बन गया। वापस लौटते समय भी जीप में नॉवे ने कई जानकाररयाां
दी। उसने गुरु नानक के फुटवप्रांट और खेदम
ु एक पववत्र स्थल के बारे में बताया। तभी लेखखका ने
किा गांगटोक बिुत सुांदर िै तब नॉवे ने किा मैडम गांतोक कहिए क्जसका अथा पिाड िोता िै।
दे ि के शसपािी ककन वविम पररक्स्तचथयों में दे ि सेवा कर रिे िैं इसका उत्तर जब लेखखका एक
फ़ौजी से किती िैं – इतनी कडकडाती ठर्णड में आप लोगों को बिुत तकलीफ िोती िोगी। वि िाँस
हदया और जवाब हदया-आप चैन की नीांद सो सकें,इसशलए तो िम यिााँ पिरा दे रिे िैं।
कटाओ कक बफा का वणान करते िुए लेखखका हिमालय पर बढ़ते प्रदि
ू ण की समस्या पर सबका
ध्यान आकविात करना चािती िै।
प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. खझललमलाते लसतारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को क्रकस तरह सम्मोठहत कर
रहा था?
उत्तर- खझलशमलाते शसतारों की रोिनी में निाया गांतोक कुछ इस तरि सम्मोहित कर रिा था कक
क्जसे दे खकर लेखखका िैरान थी। उसे लग रिा था कक आसमान उलट पडा िो और सारे तारे नीचे
त्रबखर कर हटमहटमा रिे िों। दरू ढलान लेती तराई पर शसतारों के गुच्छे रोितनयों की झालर-सी
बना रिे िों।

2. गंतोक को मेहनतकश ादशाहों का शहर' क्यों कहा गया है ?


उत्तर - गांतोक एक ऐसा पवातीय स्थल िै क्जसे विााँ के मेिनतकि लोगों ने अपनी मेिनत से
सरु म्य बना हदया िै। विााँ सब
ु ि, िाम रात सब कुछ सांद
ु र प्रतीत िोता िैl यिााँ के तनवासी भरपरू
पररश्रम करते िैं इसशलए गांतोक को मेिनतकि बादिािों का ििर किा गया िै l

3. जजतेन नागे ने लेखिका को लसजक्कम की प्रकृनत, िहााँ की िौगोललक जस्थनत एिं जन-जीिन के
ारे में क्या महत्त्िपूर्ण जानकाररयााँ दीं; ललखिए।
उत्तर- क्जतेन ने लेखखका को एक अच्छे गाइड की तरि शसक्क्कम की मनोिारी प्राकृततक छटा,
शसक्क्कम की भौगोशलक क्स्थतत और विााँ के जनजीवन की जानकाररयााँ इस प्रकार दीां
1. शसक्क्कम में गांतोक से लेकर यूमथाांग तक तरि-तरि के फूल िै। फूलों से लदी वाहदयााँ िैं।

82
2. िाांत और अहिांसा के मांत्र शलखे थे ये श्वेत पताकाएाँ जब यिााँ ककसी बुदध के अनय
ु ायी की
मौत िोती िै तो लगाई जाती िैं। ये 108 िोती िैं।
3. रां गीन पताकाएाँ ककस नए काया के िुरू िोने पर लगाई जाती िैं।
4. यिााँ 'गाइड' कफकम की िूहटांग िुई थी।
5. यि धमाचक्र िै अथाात प्रेअर व्िील। इसको घम
ु ाने से सारे पाप धल
ु जाते िैं
6. यि पिाडी इलाका िै। यिााँ कोई भी चचकना-चबीला आदमी निीां शमलता िै।
7. नागे ने उत्साहित िोकर 'कटाओ' के बारे में बताया कक ‘कटाओ हिांदस्
ु तान का क्स्वट्जरलैंड।”
8. यूमथाांग की घाहटयों के बारे में बताया कक बस पांद्रि हदनों में िी दे खखएगा पूरी घाटी फूलों
से इस कदर भर जाएगीकक लगेगा फूलों की सेज रखी िो।
4. जजतेन नागे की गाइड की िलू मका के ारे में विचार करते हुए ललखिए क्रक एक कुशल गाइड
में क्या गर्
ु होते हैं?
उत्तर - क्जतेन नागे लेखखका का ड्राइवर कम गाइड था। वि नेपाल से कुछ हदन पिले आया था
क्जसे नेपाल और शसक्क्कम की jअच्छी जानकारी थी। क्षेत्र से सुपररचचत था। वि ड्राइवर के साथ-
साथ गाइड का काया कर रिा था। उसमें प्रायः गाइड के वे सभी गुण ववदयमान थे जो अपेक्षक्षत
िोते िैं-
I. एक कुशल गाइड में उस स्थान की िौगोललक, प्राकृनतक और सामाजजक जानकारी होनी
चाठहए, िह नागे में सम्यक रूप से थी।
II. गाइड के साथ-साथ नागे ड्राइिर िी था अतः कहााँ रुकना है यह ननर्णय िह स्ियं ही करने
में समथण था। उसे कुछ सलाह दे ने की आिश्यकता नहीं होती है।
III. गाइड में सैलाननयों को प्रिावित करने की रोचक शैली होनी चाठहए जो उसमें थी। िह अपनी
IV. िाकपटुता से लेखिका को प्रिावित करता था। जैस–े 'मैडम, यह िमण चक्र है। प्रेअर वहील
इसको घुमाने से सारे पाप िुल जाते हैं।
V. एक सुयोग्य गाइड क्षेि के जन-जीिन की गनतविधियों की िी जानकारी रिता है और
संिेदनशील िी होता है।
VI. िह पयणटकों में इतना घल
ु -लमल जाता है क्रक स्ियं गाने के साथ नाच उिता है और सैलानी
िी नाच उिते हैं। इस तरह आत्मीय सं ंि ना लेता है l
5. “क्रकतना कम लेकर ये समाज को क्रकतना अधिक िापस लौटा दे ती हैं।” इस कथन में ननठहत
जीिन-मूल्यों को स्पष्ट कीजजए और ताइए क्रक दे श की प्रगनत में नागररक की क्या िूलमका है ?
उत्तर - एक स्थान पर पिाडडने सडकें बनाने के शलए पत्थर तोड रिी थीां। पिाडों पर रास्ता बनाना
ककतना दस्
ु साध्य िै, जरा सी चक
ू और सीधे पाताल में प्रवेि, पीठ पर बच्चे को बााँधकर पत्तों की
83
तलाि में वन-वन डोलती आहदवासी यव
ु ततयााँ। उन आहदवाशसयों के फूले िुए पााँव और इन पत्थर
तोडती पिाडडनों के िाथों में पडे गााँठ, ये दे ि की आम जनता िी निीां, जीवन का सांतुलन भी िैं।
'वेस्ट एट ररपेईंग' िै। इस आधार पर किा जा सकता िै कक दे ि की प्रगतत का आधार यिी आम
जनता िै क्जसके प्रतत सकारात्मक, भावना भी निीां िोती िै। यहद यिी जनता अपने िाथ खडे कर
दे तो दे ि की प्रगतत का पहिया एक दम ब्रेक लगने जैसे रुक जाएगा। दस
ू री ओर इन्िें िी इतना
कम शमलता िै कक अपनी दै तनक आवश्यकताओां की पतू ता निीां कर पाते िैं।
6. 'कटाओ' पर क्रकसी िी दक
ु ान का न होना उसके ललए िरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी
राय वयक्त कीजजए।
उत्तर - ‘कटाओ' को अपनी स्वच्छता और सुांदरता के कारण हिांदस्
ु तान का क्स्वट्जरलैंड किा जाता
िै या उससे भी अचधक सांद
ु र। यि सांद
ु रता आज इसशलए ववदयमान िै कक यिााँ कोई दक
ु ान आहद
निीां िै। यहद यिााँ भी दक
ु ानें खल
ु जाएाँ, व्यवसायीकरण िो जाए तो इस स्थान की सांद
ु रता जाती
रिे गी, इसशलए कटाओां में दक
ु ान का न िोना उसके शलए वरदान िै l
मनुष्य सुांदरता को दे खकर प्रसन्न िोता िै तो मनुष्य िी सुांदरता को त्रबगाडता िै। अपनी क्जम्मेदारी
और कताव्य का पालन न कर प्रयुक्त चीजों के अवशिष्ट को जिााँ-तिााँ फेंक सौंदया को ठे स पिुाँचाए
त्रबना निीां रिता िै। ‘कटाओ' में दक
ु ान न िोने से व्यवसायीकरण निीां िुआ िै क्जससे आने-जाने
वाले लोगों की सांख्या सीशमत रिती िै, क्जससे यिााँ की सुांदरता बची िै। जैसे दक
ु ानें आहद खुल
जाने से अन्य पववत्र स्थानों की सुांदरता जाती रिी िै वैसे िी कटाव की सुांदरता भी मटमैली िो
जाएगी।
7. दे श की सीमा पर ैिे िौजी क्रकस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रनत हमारा क्या
उत्तरदानयत्ि होना चाठहए?
उत्तर - दे ि की सीमाओां पर बैठे फौजी उन सभी वविमताओां में जूझते िैं जो सामान्य जनजीवन
के शलए अतत कहठन िै कडकडाती ठां ड जिााँ तापमान माइनस में चला जाता िै, जिााँ पेरोल को
छोड सब कुछ जम जाता िै , विााँ भी फौजी जवान तैनात रिते िैं। इसी तरि वे िरीर को तपा दे ने
वाली गशमायों के हदनों में रे चगस्तान में रिते िुए िााँफ-िााँफ कर अनेक वविमताओां से जूझते िुए
कहठनाइयों का सामना करते िैं। उनके प्रतत िमारा दातयत्व िै कक िम उनका सम्मान करें , उन्िें
दे ि की प्रततष्ठा और गौरव को अक्षुर्णण रखने वाले मिारथी के रूप में आदर दें । उनके और उनके
पररवारों के प्रतत सम्माननीय भाव तथा आत्मीय सांबांध बनाए रखें। सैतनकों के दरू रिते िुए उनके
िर काया में सियोगी बनें। उन्िें अकेलेपन का एिसास न िोने दें तथा उन्िें तनरािा से बचाएाँ।
सैतनकों के जीवन से तनम्नशलखखत जीवन-मूकयों को अपनाया जा सकता िै-
1. कमा के प्रतत तनष्ठा एवां ईमानदारी। 2. दे िभक्क्त की भावना।

84
3. ववपरीत पररक्स्थततयों में भी जझ
ू ते रिने की प्रकृतत 4. दृढ़ इच्छािक्क्त।
5. दे िहित को सवोपरर मानने की भावना। 6. ईमानदारीपूवक
ा कमा के प्रतत समपाण।
8 ‘साना-साना हाथ जोड़ड़ ‘ पाि के आिार पर गंतोक के मागण के उस प्राकृनतक सौंदयण का िर्णन
कीजजए, जजसे दे िकर लेखिका को अनुिि हुआ – “जीिन का आनंद है यही चलायमान सौंदयण”।
उत्तर - प्रकृतत के उस अनांत और ववराट स्वरूप को दे खकर लेखखका को असीम आत्मीय नैसचगाक
सुख की अनुभूतत िोती िै। ये दृश्य िाांत थे। इन दृश्यों की िाांतत समूचे पररदृश्य को सांजोए िुई
थी। ये दृश्य लेखखका को रोमाांचचत व पुलककत करते थे। गांतोक के मागा के इन अदभुत व अनठ
ू े
दृश्यों ने लेखखका में जीवनी िक्क्त का अनभ
ु व करा हदया था। लेखखका को ऐसा अनभ
ु व िुआ मानो
वि दे ि और काल से परे धारा बनकर बि रिी िो। उसे ऐसा लगने लगा कक उसके अन्तमान की
समस्त तामशसकताएाँ व वासनाएाँ उसके बिाव के साथ िी नष्ट िो गई िों। वि चािती िै कक वि
चचरकाल तक इसी तरि बिते िुए असीम आत्मीय आनांद का अनुभव करती रिे ।
9. किी श्िेत तो किी रं गीन पताकाओं का िहराना क्रकन अलग - अिसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर- ककसी बौदध की मत्ृ यु िोती िै, तो उसकी आत्मा की िाांतत के शलए 108 श्वेत पताकाएाँ फिराई जाती
िैं। कई बार ककसी नए काया अथवा िुभ अथवा माांगशलक काया के अवसर पर रां गीन पताकाएाँ फिराई जाती िैं।
श्वेत पताकाएाँ जिााँ िोक की द्योतक िैं, विीां रां गीन पताकाएाँ िुभ अवसर की ओर सांकेत करती िैं।
10. लसजक्कमी नियुिक ने लसजक्कम में ‘स्नोिॉल’ की कमी का क्या कारर् ताया?
उत्तर- लसजक्कमी नवयुवक ने लेखखका को जानकारी दी कक धीरे -धीरे यिााँ ‘स्नोफ़ॉल’ कम िोता जा
रिा िै, क्जसका कारण बढ़ता िुआ प्रदि ू ण िै। प्रदि
ू ण के अन्य बुरे प्रभाव भी यिााँ मिसूस ककए
जा रिे िैं। बढ़ते वायु-प्रदि
ू ण के कारण लोगों को श्वास लेने में कहठनाई िो रिी िै। स्वच्छ वायु
न शमलने से लोग बीमार पड रिे िैं। यिााँ पर वाय-ु प्रदि
ू ण के साथ साथ जल-प्रदि
ू ण भी बढ़ता जा
रिा िै। िीतल और पववत्र नहदयााँ प्रदवू ित िो गई िैं। पररणामस्वरूप पेट की अनेक बीमाररयााँ फैल
रिी िैं।
11. लसजक्कमी नियुिक ने ‘कटाओ’ के विषय में क्या जानकारी दी?
उत्तर- लसजक्कमी नवयुवक ने बताया कक ‘कटाओ’ ‘टूररस्ट प्लेस’ निीां िै। इस कारण विााँ का
प्राकृततक सौंदया अछूता िै और ‘कटाओ’ का व्यवसायीकरण निीां िो पाया िै। यि क्स्वटज़रलैंड की
तरि सुांदर िै। यिााँ कोई दक
ु ान भी निीां खुली िै । फलतः प्रदि
ू ण की न्यूनता िै। अतः यिााँ के
प्राकृततक सौंदया को एक तरि से सौंदया का वरदान प्राप्त िुआ िै।

मैं क्यों ललिता हूाँ (लेिक-सजच्चदानंद हीरानंद िात्स्यायन ‘अज्ञेय’)

पाि का सारांश- इस पाठ के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट ककया िै कक शलखने के शलए प्रेरणा कैसे
उत्पन्न िोती िै? लेखक उस पक्ष को अचधक स्पष्टता और ईमानदारी से शलख पाता िै क्जसे वि
स्वयां प्रत्यक्ष रूप से दे ख सकता िै। मैं क्यों शलखता िूाँ? यि प्रश्न बडा सरल जान पडता िै पर
बडा कहठन भी िै। क्योंकक इसका सच्चा उत्तर लेखक के आांतररक जीवन के स्तरों से सांबांध रखता

85
िै। लेखक- ‘मैं क्यों शलखता िूाँ’ का उत्तर दे ते िुए किते िै कक मैं इसशलए शलखता िूाँ क्योंकक मैं
स्वयां को जानना चािता िूाँ। त्रबना शलखे मैं इस प्रश्न का उत्तर निीां जान सकता िूाँ। लेखक का
मानना िै कक शलखकर िी लेखक अपने अभ्यन्तर ववविता को पिचान सकता िै और शलखकर िी
उससे मक्
ु त िो सकता िै, इसशलए वि शलखता िै। शलखने के पीछे सभी लेखकों के शलए कोई न
कोई कारण िोता िैं। कुछ ख्यातत शमल जाने के बाद, कुछ बािर की ववविता से शलखते िैं, जैसे
- सम्पादकों के आग्रि से, प्रकािक के तकाजे से, आचथाक आवश्यकता से। कुछ अभ्यन्तर प्रेरणा
से शलखते िैं। िर एक रचनाकार या लेखक यि भेद बनाए रखता िै कक कौन सी कृतत भीतरी
प्रेरणा का फल िै और कौन सी कृतत बािरी दबाव की। इनमें से कुछ ऐसे आलसी जीव भी िोते िैं
कक त्रबना ककसी बािरी दबाव के शलख िी निीां सकते। यि कुछ उसी प्रकार िै कक जैस-े सुबि नीांद
खुल जाने पर भी त्रबस्तर पर तब तक पडा रिे जब तक घडी का अलामा बज न जाए। इस प्रकार
कृततकार बािर के दबाव के प्रतत समवपात िुए त्रबना उसे सिायक यन्त्र की तरि काम में लाता िै
क्जससे भौततक यथाथा से सम्बन्ध जुडा रिे । लेखक किता िै कक उसे इस सिारे की जरूरत निीां
पडती िै। वि अपने आप िी उठ जाता िै। अलामा भी बज जाए तो कोई िातन निीां।
भीतरी ववविता क्या िोती िै? इसका वणान करना कहठन िै। इसे समझाने के शलए लेखक उदािरण
दे ते िै कक मैं ववज्ञान का ववदयाथी रिा िूाँ इसीशलए रे डडयोधशमाता के क्या प्रभाव िोते िैं-इन सबका
मझ
ु े पस्
ु तकीय और सैदधाक्न्तक ज्ञान िै । जब हिरोशिमा पर अणब
ु म चगरा तो उन्िोंने समाचार में
पढ़ा। उसके प्रभावों का प्रमाण भी सामने आ गया। ववज्ञान के इस अनुचचत प्रयोग के प्रतत बुदचध
का ववद्रोि िुआ और लेखक ने शलखा भी, पर लेख में अनुभूतत के स्तर पर जो यथाथाता िोती िै
वि बौदचधक पकड से आगे की बात िोती िै , इसशलए मैंने इस वविय पर कववता निीां शलखी।
लेखक बताते िै कक युदधकाल में ब्रह्मपुत्र नदी में बम फेंककर िजारों मछशलयों को मार दे ते थे।
जीव के इस उपव्यय से जो व्यथा भीतर उमडी थी, उससे एक सीमा तक अणब
ु म दवारा व्यथा
जीव-नाि का कुछ-कुछ अनुभव कर सका था। लेखक किते िै कक अनुभव घटनाओां को अनुभूतत,
सांवेदना और ककपना के सिारे आत्मसात कर लेती िै। जापान जाकर जब हिरोशिमा के अस्पतालों
में रे डडयम-पदाथा से आित और कष्ट पा रिे लोगों को दे खा और सब दे खकर तत्काल कुछ
निीां शलख सका था, क्योंकक प्रत्यक्ष अनुभव तो िुआ परां तु अनुभव से अनभ
ु ूतत गिरी चीज िै, कम
से कम एक कृततकर के शलए।
एक हदन लेखक सडक पर घूम रिे थे, तभी उन्िोंने जले िुए पत्थर पर एक लम्बी सी
उजली छाया दे खी। उस छाया को दे खकर थप्पड सा लगा। उन्िें लगा कक भीतर किीां सिसा जलते
िुए सूया सा उग आया िै और डूब गया िै। लेखक बताते िै कक उस समय जैसे अणु ववस्फोट मेरे
अनुभूतत पक्ष में आ गया और एक अथा में वि खुद हिरोशिमा के ववस्फोट का भोक्ता बन गए।
इसी से यि सिज ववविता जागी। भीतर की आकुलता बद
ु चध के क्षेत्र से बढ़कर सांवेदना के क्षेत्र

86
में आ गई और एक हदन अचानक उन्िोंने हिरोशिमा पर कववता शलख डाली। इस कववता को
उन्िोंने जापान में निीां, बक्कक भारत लौटकर रै लगाडी में बैठे-बैठे शलखी।
पाि के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेिक के अनुसार प्रत्यक्ष अनुिि की अपेक्षा अनुिूनत उनके लेिन में कहीं अधिक मदद
करती है , क्यों?
उत्तर: लेखक की मान्यता िै कक सच्चा लेखन भीतरी ववविता से पैदा िोता िै। यि ववविता मन
के अांदर से उपजी अनभ
ु ूतत से जागती िै, बािर की घटनाओां को दे खकर निीां जागती। जब तक
कवव का हृदय ककसी अनभ
ु व के कारण परू ी तरि सांवेहदत निीां िोता और उसमें अशभव्यक्त िोने
की पीडा निीां अकुलाती, तब तक वि कुछ शलख निीां पाता। अनभ
ु तू त एक ऐसी चीज िोती िै जो
अांदर से मन को झकझोड के रख दे ती िै और वि शलखने के शलए आांदोशलत िो उठता िै साथ िी
नई रचना का तनमााण करता िै।
प्रश्न 2. लेिक ने अपने आपको ठहरोलशमा के विस्िोट का िोक्ता क और क्रकस तरह महसूस
क्रकया?
उत्तर- लेखक हिरोशिमा के बम ववस्फोट के पररणामों को अखबारों में पढ़ चुका था। जापान जाकर
उसने हिरोशिमा के अस्पतालों में आित लोगों को भी दे खा था। अणु-बम के प्रभाव को प्रत्यक्ष दे खा
था, और दे खकर भी अनुभूतत न िुई इसशलए भोक्ता निीां बन सका। कफर एक हदन विीां सडक पर
घूमते िुए एक जले िुए पत्थर पर एक लांबी उजली छाया दे खी। उसे दे खकर ववज्ञान का छात्र रिा
लेखक सोचने लगा कक ववस्फोट के समय कोई विााँ खडा रिा िोगा और ववस्फोट से त्रबखरे िुए
रे डडयोधमी पदाथा की ककरणें उसमें रुदध िो गई िोंगी और जो आसपास से आगे बढ़ गईं पत्थर
को झुलसा हदया, अवरुदध ककरणों ने आदमी को भाप बनाकर उडा हदया िोगा। इस प्रकार समूची
रे जडी जैसे पत्थर पर शलखी गई िै। इस प्रकार लेखक हिरोशिमा के ववस्फोट का भोक्ता बन गया।
प्रश्न 3. कुछ रचनाकारों के ललए आत्मानुिूनत/स्ियं के अनुिि के साथ-साथ ाह्य द ाि िी
महत्त्िपूर्ण होता है। ये ाह्य द ाि कौन-कौन से हो सकते हैं?
उत्तर- कुछ रचनाकारों की रचनाओां में स्वयां की अनुभूतत से उत्पन्न ववचार िोते िैं और कुछ
अनुभवों से प्राप्त ववचारों को शलखा जाता िै। इसके साथ ऐसे कारण (बाह्य दबाव) भी उपक्स्थत
िो जाते िैं क्जससे लेखक शलखने के शलए प्रेररत िो जाता िै। ये बाह्य-दबाव तनम्नशलखखत िैं-
1. सामाक्जक पररक्स्थततयों का दबाव ।
2. आचथाक लाभ की आकाांक्षा का दबाव ।
3. प्रकािकों और सम्पादकों का बार-बार आग्रि का दबाव ।
4. ववशिष्ट के पक्ष में ववचारों को प्रस्तुत करने का दबाव ।
प्रश्न 4 . क्या ाह्य द ाि केिल लेिन से जड़
ु े रचनाकारों को ही प्रिावित करते हैं या अन्य क्षेिों
से जड़
ु े कलाकारों को िी प्रिावित करते हैं, कैसे?

87
उत्तर : बाह्य-दबाव केवल रचनाकारों को िी प्रभाववत निीां करते अतः अन्य क्षेत्रों से जड
ु े कलाकार
भी बाह्य-दबावों से प्रभाववत िोते िैं। िायद िी कोई ऐसा क्षेत्र िो जो बाह्य-दबाव से मक्
ु त िो। जैस-े
1. गातयकाओां के ऊपर भी आयोजकों और श्रोताओां का दबाव बना रिता िै।
2. शसनेमा-जगत से सम्बक्न्धत कलाकार पर भी तनदे िक का दबाव साथ िी आचथाक दबाव भी
रिता िै।
3. चचत्रकार और मूतताकार पर भी बनवाने वाले ग्रािकों की इच्छाओां का दबाव रिता िै।
प्रश्न 5. ठहरोलशमा पर ललिी कविता लेिक के अन्तः ि ाह्य दोनों द ाि का पररर्ाम है यह
आप कैसे कह सकते हैं?
उत्तर : हिरोशिमा पर लेखक दवारा शलखी कववता लेखक के हृदय की अनुभूतत, भावों और िब्दों
में जीवांत िो उठी िै। कवव ने हिरोशिमा के भयांकर रूप को दे खा था और विााँ के आित लोगों को
भी दे खा था। उस दृश्य को दे खकर लेखक के मन में उन लोगों के प्रतत सिानुभूतत तो उत्पन्न िुई
िोगी ककन्तु उनकी व्यक्क्तगत त्रासदी निीां बनी। जब लेखक ने पत्थर पर मनुष्य की उस काली
छाया को दे खा तो उन्िें उनके हृदय से अणु बम के ववस्फोट का प्रततरूप त्रासदी बनकर समाने
आया और विी त्रासदी जीवांत िुई और कववता के रूप में पररवततात िो गई। इस तरि हिरोशिमा
पर शलखी कववता अन्तः दबाव का पररणाम थी।
प्रश्न 7. ठहरोलशमा की घटना विज्ञान का ियानकतम दरु
ु पयोग है। आपकी दृजष्ट में विज्ञान का
दरु
ु पयोग कहााँ-कहााँ और क्रकस तरह से हो रहा है?
उत्तर : हिरोशिमा पर अणुबम का चगरना एक ऐसी घटना थी क्जसने सम्पूणा मानवता को हिलाकर
रख हदया, यि ववज्ञान का बिुत िी भयानक दरू ु पयोग था। यहद इस अणुबम का ववज्ञान दवारा
पुनः प्रयोग िोता िै तो सम्पूणा सक्ृ ष्ट के नष्ट िोने की सम्भावना बनी रिे गी। ववज्ञान ने दरु
ु पयोग
के क्षेत्रों का ववस्तार कर शलया िै अब यि केवल सुख-सुववधाओां का आधार निीां रि गया िै। जैस-े
(1) समाज में ववज्ञान के बढ़ते िुए दरु
ु पयोग से भ्रूण ित्याएाँ भी बढ़ रिी िै।
(2) कांप्यूटर में वायरस जैसा कुछ गलत काया भी ववज्ञान के बढ़ते सुख-सुववधाओां का प्रभाव िै।
(3) दे ि की सुरक्षा के तनशमात िचथयारों का आतांकवाहदयों दवारा बेगुनािों की ित्या के शलए प्रयोग
में लाना।
4) ववज्ञान के दरु
ु पयोग से ककसान कीटनािक और जिरीले रसायन तछडककर अपनी फसलों को
बढ़ा रिे इससे लोगों को स्वास्थ्य खराब िो रिा िै।
प्रश्न 8. एक संिेदनशील युिा नागररक की हैलसयत से विज्ञान का दरु
ु पयोग रोकने में आपकी क्या
िूलमका है?
उत्तर- एक सांवेदनिील युवा नागररक िोने के कारण ववज्ञान का दरु
ु पयोग रोकने के शलए िमारी
भूशमका अत्यांत मित्त्वपूणा िै। इसके शलए तनम्नशलखखत काया करते िुए मैं अपनी सकक्रय भूशमका
तनभा सकता िूाँ-

88
1. प्रदि
ू ण फैलाने तथा बढ़ाने वाले उत्तरदायी कारकों प्लाक्स्टक, कूडा-कचरा आहद के बारे में लोगों
को जागरूक बनाने के साथ-साथ लोगों से अनुरोध करूाँगा कक पयाावरण के शलए िातनकारक
वस्तुओां का उपयोग न करें ।
2. ववज्ञान के बनाए िचथयारों का प्रयोग यथासांभव मानवता की भलाई के शलए िी करें , मनुष्यों
के ववनाि के शलए निीां।
3. ववज्ञान की चचककत्सीय खोज का दरु
ु पयोग कर लोग प्रसवपण
ू ा सांतान के शलांग की जानकारी
कर लेते िैं और कन्या शििु की भ्रूण-ित्या कर दे ते िैं क्जससे सामाक्जक वविमता तथा
शलांगानुपात में असमानता आती िै। इस बारे में आम जनता का जागरूक करने का प्रयास
करूांगा।
4. टी.वी. पर प्रसाररत अश्लील कायाक्रमों का खल
ु कर ववरोध करूाँगा और समाजोपयोगी कायाक्रमों
के प्रसारण का अनरु ोध करूाँगा।
5. ववज्ञान अच्छा सेवक ककां तु बुरा स्वामी िै। यि बात लोगों तक फैलाकर इसके दरु
ु पयोग के
पररणामों को बताने का प्रयत्न करूांगा।
प्रश्न-9. प्रत्यक्ष अनुभव और अनुभूतत में क्या अांतर िोता िै?
प्रत्यक्ष अनुभव सामने घहटत वास्तववक घटना का िोता िै। यि आवश्यक निीां कक वि अनुभव
दे खने वाले के मन में गिरी अनुभूतत जग जाए। अनुभूतत आांतररक िोती िै जब ककसी के मन में
ककसी भाव की गिरी व्याकुलता जाग उठती िै तो वि अनुभूतत किलाती िै । अनुभूतत से िी शलखने
की प्रेरणा जागती िै। एक सच्चे कृततकार के शलए अनुभूतत िी प्रेरणा का श्रोत बन पाती िै।
________________________________________________________

अनुच्छे द लेिन
एक अनुच्छे द अच्छे तालमेल वाले वाक्यों का एक समूि िोता िै। इन वाक्यों की सिायता से वविय
को ववकशसत ककया जाता िै। ककसी एक भाव या ववचार को व्यक्त करने के शलए शलखे गए
सांबांचधत और छोटे वाक्य समि
ू को अनच्
ु छे द किते िैं। अनच्
ु छे द के तीन भाग िैं- उचचत
प्रस्ततु तकरण, ववकास तथा ववश्वसनीय तनष्किा। अनच्
ु छे द आपकी लेखन िैली व भावाशभव्यक्क्त
को दिााता िै अत अपनी बात सिज,सरल,सटीक व सांक्षक्षप्त रूप में रखें।
➢ एक अच्छे अनच्
ु छे द में तनम्न बातों का ध्यान रखें।
● पिले पेज के बीच में अनच्
ु छे द का वविय शलखें। यथा सांभव वाक्य छोटे बनाएाँ।
● िब्दों व पांक्क्तयों के बीच उचचत ररक्त स्थान रखें और सन्
ु दर तरीके से शलखें।
● परीक्षा में अनुच्छे द का प्रश्न सम्बक्न्धत वविय पर सिायता के शलए कुछ िब्द दे कर अथवा
कुछ प्रश्न दे कर उनके उत्तरों की सिायता से पूछा जा सकता िै। अनुच्छे द शलखते समय
उन िब्दों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

89
● अनच्
ु छे द लेखन में छात्र को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कक वि अपनी बात को उतने
िी िब्दों में बाांधने का प्रयत्न करें क्जतने िब्द प्रश्न पत्र में बताएां गए िैं।
● अब परीक्षा में सांकेत त्रबांदओ
ु ां के आधार पर अनच्
ु छे द लेखन करने को किा जाता िै अतः
परीक्षाचथायों को चाहिए कक पिले वि सांकेत त्रबांदओ
ु ां के भाव व अथा को समझें उनमें सांबांध
बनाए मन िी मन एक क्रम और लय बनाने के बाद उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर
अनुच्छे द शलखें।
● अनुच्छे द लेखन करते समय हदए गये वविय से इतर न जायें तथा न िी व्यथा के िब्दों
का प्रयोग करें ।
● अनुच्छे द लेखन में भािा सरल, स्पष्ट और प्रभाविाली िोनी चाहिए।
● एक िी बात को बार-बार न दोिराएाँ।
● अनुच्छे द लेखन करते समय िब्द-सीमा को ध्यान में रखना चाहिए।
● पूरे अनुच्छे द में एकरूपता िोनी अत्यांत आवश्यक िै।
● वविय से सांबांचधत सूक्क्त अथवा कववता शलख सकते िैं।

➢ आपके शलए कुछ आदिा अनच्


ु छे द हदए जा रिें िैं क्जन्िें पढ़कर आप नीचे हदए गए वविय पर
अनच्
ु छे द शलखने का अभ्यास करें । िब्द-सीमा—120

1. इांटरनेट : एक सांचार क्राांतत 2. आदिा ववदयाथी

इंटरनेट : एक संचार क्रांनत

संकेत-ब द
ं –ु *अथा *सांचार-जगत में क्राांतत *ज्ञान का भांडार *शिक्षा में सिायक *दोि एवां प्रभाव

इांटरनेट उस ताने-बाने को किते िैं जो ववश्व-भर के कांप्यट


ू रों को आपस में जोडता िै।
इांटरनेट से सभी कांप्यट
ू रों की जानकाररयााँ सभी को उपलब्ध िो जाती िैं। इस सांचार-तांत्र से सांचार-
जगत में सचमच
ु एक क्राांतत घहटत िो गई िै। लोगों के सामने जानकाररयों का अांबार लग गया
िै। एक प्रकार से यि ज्ञान का ववस्फोट िै। इांटरनेट पर ज्ञान की अनांत सामग्री उपलब्ध िो गई
िै। क्जतनी ताजा खबरें , क्जतने आधतु नक लेख इांटरनेट पर उपलब्ध िो जाते िैं, उतने तो रोज-रोज
छपने वाले अखबारों में भी निीां शमल पाते। वास्तव में इांटरनेट पल-प्रततपल बदलता रिता िै।
इांटरनेट के सिारे रे लवे और िवाई जिाज की हटकटें शमल सकती िैं। बुककां ग की क्स्थतत का ज्ञान
िो सकता िै। बच्चों को अपने पाठ्यक्रम की सारी जानकारी इसके माध्यम से शमल सकती िै।
एक प्रकार से यि शिक्षक की भूशमका भी अदा करता िै। इांटरनेट में उपलब्ध पाठ्य-सामग्री को
बार-बार पढ़ा जा सकता िै। घर बैठे-बैठे ववश्व-भर के समाचार- पत्र पढ़े जा सकते िैं। इांटरनेट की
इतनी खूत्रबयााँ िोते िुए भी इसकी कहठनाइयााँ अनेक िैं। इसका ज्ञान भांडार इतना ववपुल िै कक
ठीक जानकारी उपलब्ध करने के शलए बिुत अचधक समय, ऊजाा तथा त्रबजली खचा करनी पडती
िै। त्रबजली न िो तो मनष्ु य पांगु िो जाता िै। इांटरनेट िाततर अपराचधयों के शलए स्वगा बन गया

90
िै। कुिल अपराधी लोगों के बैंक खातों तथा अन्य कागजातों में छे डछाड करके उन्िें घर बैठे-बैठे
लट
ू लेते िैं। अभी इन साइबर अपराधों से बचने के उपाय लोकवप्रय निीां िैं। धीरे धीरे लोग इन्िें
जान जाएाँगे। तभी इसके दष्ु प्रभावों से बचा जा सकेगा।

2. आदशय ववदयार्थी

संकेत ब द
ं -ु *सच्चे ववदयाथी का लक्षण *क्जज्ञासा और श्रदधा-आवश्यक गुण
*तपस्वी जीवन *अनुिासन *सादा जीवन उच्च ववचार *उपसांिार
ववदयाथी का अथा िै-ववदया पाने वाला। आदिा ववदयाथी विी िै जो सीखने की इच्छा से
ओतप्रोत िो, क्जसमें ज्ञान पाने िै- कचिरी ललक िो। ववदयाथी का सबसे पिला गुण िै – क्जज्ञासा।
वि नए-नए ववियों के बारे में तनत नई जानकारी चािता िै। वि केवल पुस्तकों और अध्यापकों
के भरोसे िी निीां रिता, अवपतु स्वयां मेिनत करके ज्ञान प्राप्त करता िै । सच्चा छात्र श्रदधावान
िोता िै। सच्चा छात्र कठोर जीवन जीकर तपस्या का आनांद प्राप्त करता िै। आदिा छात्र अपनी
तनक्श्चत हदनचयाा बनाता िै और उसका कठोरता से पालन करता िै। वि अपनी पढ़ाई, खेल-कूद,
व्यायाम, मनोरां जन तथा अन्य गततववचधयों में तालमेल बैठाता िै। आदिा छात्र फैिन और ग्लैमर
की दतु नया से दरू रिता िै। वि सादा जीवन जीता िै और उच्च ववचार मन में धारण करता िै।
वि केवल पाठ्यक्रम तक िी सीशमत निीां रिता। वि ववदयालय में िोने वाली अन्य गततववचधयों
में भी बढ़ – चढ़कर हिस्सा लेता िै। गाना, अशभनय, एन.सी.सी., स्काउट, खेलकूद, भािण आहद
में से ककसी न-ककसी में वि अवश्य भाग लेता िै ।

पि लेिन
पत्र दो प्रकार के िोते िैं : –
(क) औपचाररक पि (ि) अनौपचाररक पि
(क) औपचाररक पि – अद्ाध-सरकारी या सरकारी कायाालय में जो भी पत्र शलखे जाते िैं
(ख) अनौपचाररक पत्र- जो पत्र तनजी, व्यक्क्तगत अथवा पाररवाररकजनों को शलखे जाते हैं।
➢ पि ललिते समय ननम्नललखित ातें अिश्य ध्यान में रिें –
1. सरलता- पत्र सरल भािा में शलखना चाहिए। भािा सीधी, स्वाभाववक व स्पष्ट िोनी चाहिए।
2. स्पष्टता- जो भी िमें पत्र में शलखना िै यहद स्पष्ट, सुमधुर िोगा तो पत्र प्रभाविाली िोगा।
सरल भािा-िैली, िब्दों का चयन, वाक्य रचना की सरलता पत्र को प्रभाविाली बनाने में िमारी
सिायता करती िै।
3. संक्षक्षप्तता- पत्र में िमें अनावश्यक ववस्तार से बचना चाहिए।
4. लशष्टाचार- पत्र प्रेिक और पत्र पाने वाले के बीच कोई न कोई सांबांध िोता िै। आयु और पद
में बडे व्यक्क्त को आदरपूवक
ा , शमत्रों को सौिादा से और छोटों को स्नेिपूवाक पत्र शलखना चाहिए।

91
5. उददे श्य पर्
ू तण ा- कोई भी पत्र अपने कथन या मांतव्य में स्वतः सांपण
ू ा िोना चाहिए। उसे पढ़ने
के बाद तदववियक ककसी प्रकार की क्जज्ञासा, िांका या स्पष्टीकरण की आवश्यकता िेि निीां रिनी
चाहिए। पत्र का कथ्य अपने आप में पण
ू ा तथा उददे श्य की पतू ता करने वाला िो।

पि के अंग – 1. पत्र शलखने वाले का पता तथा ततचथ – आजकल ये दोनों पत्र के ऊपर बाएाँ कोने
में शलखे जाते िैं। ववदयाचथायों को यि ध्यान रिे कक परीक्षा में पत्र शलखते समय उन्िें भी ऐसा
कुछ भी निीां शलखना चाहिए क्जससे उनके तनवास स्थान, ववदयालय आहद की जानकारी शमले।
सामान्यतः प्रेिक के पते के स्थान पर ‘परीक्षा भवन’ शलखना िी उचचत िोता िै।
2. पाने वाले का नाम व पता-प्रेिक के बाद पष्ृ ठ की बाईं ओर िी पत्र पाने वाले का नाम व पता
शलखा जाता िै ।
3. वविय-सांकेत – औपचाररक पत्रों में यि आवश्यक िोता िै कक क्जस वविय में पत्र शलखा जा
सकता िै उस वविय को अत्यांत सांक्षेप में पाने वाले के नाम और पते के पश्चात ् बाईं ओर से
वविय िीिाक दे कर शलखें। इससे पत्र दे खते िी पता चल जाता िै कक मूल रूप में पत्र का वविय
क्या िै।
4. सांबोधन – पत्र प्रारां भ करने से पिले पत्र के बाईं ओर हदनाांक के नीचे वाली पांक्क्त में िाशिए के
पास क्जसे पत्र शलखा जा रिा िै, उसे पत्र शलखने वाले के सांबांध के अनस
ु ार उपयक्
ु त सांबोधन िब्द
का प्रयोग ककया जाता िै।
5. अशभवादन – तनजी पत्रों में बाईं ओर शलखे सांबोधन िब्दों के नीचे थोडा िटकर सांबांध के अनस
ु ार
उपयक्
ु त अशभवादन िब्द सादर प्रणाम, नमस्ते, नमस्कार आहद शलखा जाता िै। व्यावसातयक एवां
कायाालयी पत्रों में अशभवादन िब्द निीां शलखे जाते।
6. पत्र की वविय वस्तु – अशभवादन से अगली पांक्क्त में ठीक अशभवादन के नीचे बाईं ओर से मूल
पत्र का प्रारां भ ककया जाता िै तथा पत्र के मूल उददे श्य को शलखा जाता िै।
7. पत्र की समाक्प्त -पत्र के बाईं ओर शलखने वाले के सांबांध सूचक िब्द तथा नाम आहद शलखे
जाते िैं। इनका प्रयोग पत्र प्राप्त करने वाले के सांबांध के अनुसार ककया जाता िै; जैस-े औपचाररक-
भवदीय, आपका आज्ञाकारी। अनौपचाररक-तुम्िारा, आपका, आपका वप्रय, स्नेििील, स्नेिी आहद।
8. िस्ताक्षर और नाम – समापन िब्द के ठीक नीचे भेजने वाले के िस्ताक्षर िोते िैं। िस्ताक्षर के
ठीक नीचे कोष्ठक में भेजने वाले का पूरा नाम अवश्य हदया जाना चाहिए। यहद पत्र के आरां भ में
िी पता न शलख हदया गया िो तो व्यावसातयक व सरकारी पत्रों में नाम के नीचे पता भी अवश्य
शलख दे ना चाहिए। परीक्षा में पूछे गए पत्रों में नाम के स्थान पर प्रायः क, ख, ग आहद शलखा
जाता िै। यहद प्रश्न-पत्र में कोई नाम हदया गया िो, तो पत्र में उसी नाम का उकलेख करना
चाहिए।

92
अनौपचाररक पिों का प्रारूप

छोटे िाई को पि

प्रश्न- आपका छोटा भाई दसवीां की परीक्षा में अच्छा ग्रेड लाने पर मोटरसाइककल उपिार स्वरूप
वपताजी से लेना चािता िै उसे समझाते िुए पत्र शलखखए कक इस उम्र में मोटरसाइककल लेना
उचचत निीां िै।
उत्तर- स्वामी वववेकानांद छात्रावास
झाांलाना डूग
ां री,टोंक रोड
जयपुर (राजस्थान)
19 अक्टूबर, 2023
वप्रय उमेि,
िुभािीि।
मैं सकुिल रिकर आिा करता िूाँ कक तुम भी सकुिल िोगे। यि जानकर काफ़ी खुिी िुई कक इस
विा तुमने अद्ाधवावषाक परीक्षा में 80 प्रततित से अचधक अांक प्राप्त ककए िै।
वप्रय भाई, वपताजी के पत्र से ज्ञात िुआ कक दसवीां में अच्छा ग्रेड लाने के फलस्वरूप तुम
वपताजी से मोटरसाइककल लेना चािते िो, पर तुम्िारी यि मााँग पूणत ा या अनुचचत िै। अभी तुम्िारी
उम्र 18 विा निीां िोने के कारण तुम्िारा ड्राइववांग लाइसेंस निीां बनता िै और लाइसेंस के त्रबना
मोटरसाइककल चलाना कानूनी अपराध िै। इसके अलावा वपताजी पररवार के अन्य खचों की व्यवस्था
अपनी सीशमत आय से कर रिे िैं। मोटरसाइककल की मााँग कर उनको आचथाक सांकट में डालना
िोगा। इसके शलए आवश्यक िै कक तुम सबसे पिले दसवीां और बारिवीां परीक्षा की पढ़ाई मन
लगाकर करो और वयस्क िोने पर मोटर साइककल अवश्य लेना।
आिा िै कक तम
ु मेरी बात पर पन
ु ववाचार करोगे तथा मोटरसाइककल की अनचु चत मााँग को छोड
दोगे। िेि सब ठीक िै। अपनी पढ़ाई और स्वास्थ्य पर ध्यान दे ना।

तुम्िारा बडा भाई


आलोक कुमार

93
अभ्यास के ललए :-
(1) ‘सामाक्जक सेवा कायाक्रम’ के अांतगात ककसी ग्राम में सफाई अशभयान के अनभ
ु वों का
उकलेख करते िुए अपने शमत्र को पत्र शलखखए।
(2) नए ववदयालय में दाखखला हदलाने के बाद आपकी माता जी आपके ववदयालय के
छात्रावास में शमलने वाले भोजन और अन्य बातों को लेकर चचांततत रिती िैं। उनकी
चचांता दरू करते िुए एक पत्र दवारा क्स्थतत को बताइए।

औपचाररक पिों का प्रारूप

संपादकीय-पि का उदाहरर्
आप 29/5 सांस्कार अपाटा मेंट, सेक्टर-14 प्रताप नगर,जोधपरु के तनवासी िैं। आप चािते िैं कक
लोग दीपावली में पटाखों का कम से कम प्रयोग करें । पटाखों से िोने वाली िातनयों से अवगत
कराते िुए नवभारत टाइम्स के सांपादक को पत्र शलखखए।

94
उत्तर- सेवा में
सांपादक मिोदय
नवभारत टाइम्स
सेक्टर 14,प्रताप नगर
जोधपरु ।

वविय-पटाखों से िोने वाली िातन से अवगत कराने के सांबांध में ।

मिोदय,
मैं आपके सम्मातनत पत्र के माध्यम से लोगों का ध्यान पटाखों से िोने वाली िातनयों की ओर
आकविात कराना चािता िूाँ। खुशियों के ववशभन्न मौकों एवां दीपावली के त्योिार पर लोग पटाखों
का जमकर प्रयोग करते िैं। पटाखों में प्रयक्
ु त बारूद, और फॉस्फोरस,फॉस्फोरस पेंटा ऑक्साइड
गैस जो बच्चों और स्वाांस के रोचगयों के शलए अत्यचधक िातनकारक िोती िै। इनकी आवाज से
ध्वतन प्रदि
ू ण िोता िै क्जससे सााँस लेने में परे िानी िोती िै। इसके अलावा पटाखों से पैसों का भी
अपव्यय िोता िै। पटाखों के प्रयोग से बच्चों के जलने की घटनाएाँ प्रायः सुनने को शमलती िैं,
इसशलए पटाखों का प्रयोग न करें ताकक मनुष्य और पयाावरण दोनों िी स्वस्थ रिें ।
आपसे प्राथाना िै कक जनहित को ध्यान में रखते िुए इसे अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करने
की कृपा करें ताकक लोग पटाखें और उससे िोने वाली िातनयों के प्रतत सजग िो सकें।
सधन्यवाद
भवदीय
अनुभव वमाा
29/5 सांस्कार अपाटा मेंट
सेक्टर-14प्रताप नगर, जोधपुर
हदनाांक-19 अक्टूबर 2022

अभ्यास के ललए :-
(1) आप केंदीय ववदयालय जयशसांधर में दसवीां ‘ब’ की छात्रा चाांदनी िै । अपने पस्
ु तकालय में
हिांदी की पत्रत्रकाओां की कमी की ओर ध्यान आकविात करते िुए अपने ववदयालय की प्रधानाचायाा
को प्राथाना-पत्र शलखखए।
(2) आप 123 दामोदर भवन,शिवाजी मागा,कोटा(राजस्थान) तनवासी रामप्रताप िै । क्जला
चचककत्सा अचधकारी को मलेररया की रोकथाम िे तु प्राथाना पत्र शलखों।

95
प्राचायण को ललिा जाने िाले प्राथणना पि का प्रारूप

स्िित्त
ृ लेिन

स्ववत्त
ृ लेखन से अशभप्राय अपने वववरण से िै। यि एक बना बनाया प्रारूप िोता िै क्जसे ववज्ञापन
के प्रत्युत्तर में आवेदन पत्र के साथ भेजा जाता िै।
नौकरी के सांदभा में स्ववत्त
ृ की तुलना एक उम्मीदवार के दत
ू या प्रतततनचध से की जाती िै। स्ववत्त

का प्रारूप उसके व्यक्क्तत्व को प्रभाविाली बनाता िै।
एक अच्छे स्ववत्त
ृ तनयुक्क्तकताा के मन में उम्मीदवार के प्रतत अच्छी और सकारात्मक धारणा
उत्पन्न करता िै। नौकरी में सफलता के शलए योग्यता और व्यक्क्त के साथ-साथ स्ववत्त
ृ तनमााण

96
की कला में तनपण
ु ता भी आवश्यक िै। स्ववत्त
ृ में ककसी वविेि प्रयोजन को ध्यान में रखकर
शसलशसलेवार ढां ग से सच
ू नाएां सांकशलत की जाती िै।
स्िित्त
ृ में दो पक्ष होते हैं:-
● पिला पक्ष वि व्यक्क्त िै क्जसको केंद्र में रखकर सच
ू नाएाँ सांकशलत की जाती िैं।
● दस
ू रा पक्ष तनयोजन का िै।
स्ववत्त
ृ में ईमानदारी व सत्यतनष्ठा िोनी चाहिए। ककसी भी प्रकार के झूठे दावे या अततियोक्क्त से
बचना चाहिए।
अपने व्यक्क्तत्व, ज्ञान और अनुभव के सबल पिलुओां पर जोर दे ना चाहिए।
स्ववत्त
ृ का आकार अतत सांक्षक्षप्त अथवा जरूरत से ज्यादा लांबा निीां िोना चाहिए। स्ववत्त
ृ साफ-
सुथरे ढां ग से टां ककत या कांप्यूटर मुहद्रत अथवा सुांदर-लेखन में िोना चाहिए। स्ववत्त
ृ में सूचनाओां को
अनुिाशसत क्रम में शलखना चाहिए तथा व्यक्क्तगत पररचय, िैक्षखणक योग्यता, अनुभव, प्रशिक्षण,
उपलक्ब्धयाां, कायेत्तर गततववचधयाां इत्याहद ववस्तत
ृ ब्यौरा िोना चाहिए।
पररचय में
● नाम,
● जन्मततचथ,
● उम्र,
● पत्र व्यविार का पता,
● टे लीफोन नांबर,
● ईमेल
इत्याहद शलखे जाने चाहिए।
िैक्षखणक योग्यता में ववदयालय का नाम, बोडा या ववश्वववदयालय का नाम, परीक्षा का विा,
प्राप्ताांक, प्रततित तथा श्रेणी का उकलेख करना चाहिए।
कायेत्तर गततववचधयों का उकलेख अन्य उम्मीदवारों से अलग पिचान हदलाने में समथा िोता िै।
स्ववत्त
ृ में ववज्ञापन में वखणात योग्यताओां और आवश्यकताओां को ध्यान में रखते िुए थोडा-बिुत
पररवतान ककया जा सकता िै।

प्रश्न- केन्द्रीय ववदयालय सांगठन जयपुर सांभाग में प्राथशमक कक्षाओां में अध्यापन िे तु अनुबांध के
आधार पर कुछ शिक्षकों की आवश्यकता िै। अपनी योग्यताओां का स्ववत
ृ तैयार करे ।
पररचय
नाम – राजेि वमाा
वपता का नाम – श्री रामरूप िमाा
जन्म ततचथ – 19 नवांबर, 1994
पत्र-व्यविार का पता – 205/3 बी, मिावीर एन्क्लेव, जयपुर।

97
सांपका सत्र
ू – 981155………..
ईमेल......@gmail
शैक्षखर्क योग्यताएं

अन्य योग्यताएं -
1. कांप्यूटर में 1 विा का डडप्लोमा।
2. हिांदी, अांग्रेजी एवां जमानी भािा की जानकारी।
3. योगा के क्षेत्र में 6 माि का प्रशिक्षण।
उपलजब्ियां –
1. ववदयालय स्तर पर एनसीसी में उच्च प्रशिक्षण।
2. स्वच्छ भारत:स्वस्थ भारत प्रततयोचगता में राज्य स्तर पर दववतीय परु स्कार
3. गणतांत्र हदवस पर परे ड में भाग लेने पर परु स्कार
कायेत्तर गनतविधियां और अलिरुधचयां –
1. योगाभ्यास, कक्रकेट,िास्त्रीय सांगीत गायन एवां वादन में वविेि रूचच।
2. साांस्कृततक कायाक्रम के आयोजन करने का अनुभव तथा रुचच
3. आधुतनक तकनीकों का प्रयोग सीखना तथा समाज के शलए उपयोगी बनाना।

उदघोषर्ा
मेरे दवारा प्रस्तुत की गई सभी जानकारी सत्य एवां प्रमाखणत िैं।

हदनाांक 21-10-2022 आवेदक के िस्ताक्षर


स्थान जयपुर
अभ्यास के ललए :-
(1) सीमा सुरक्षा बल में काांस्टे बल के कुछ पद ररक्त िैं। इस पद पर भती के शलए एक
स्ववत्त
ृ तैयार करें ।
(2) भारतीय स्टे ट बैंक ऑफ इांडडया क्षेत्रीय कायाालय-झालामांड,जोधपुर को कुछ कांप्यूटर
आपरे टसा की आवश्यकता िै। अपनी योग्यताओां का एक स्ववत्त
ृ तैयार करे ।

98
औपचाररक ई-मेल लेिि

ई-मेल का मतलब होता है इलेतरॉतनक मेल। इिंटरनेट के माध्यम से, हम कुछ ही समनटों में

जानकारी दे सकते हैं। ई-मेल लेखन में इलेतरॉतनक सिंचार प्रर्ाली पर सिंदेश सलखना, भेजना, सिंग्रह

करना और प्राप्त करना शासमल है।

ई-मेल के प्रकार – ई-मेल तीन प्रकार की होती है :

1. औपचाररक ईमेल (Formal email)

2. अनौपचाररक ईमेल (Informal email)

3. अद्ाध औपचाररक ई-मेल (Semi-Formal email)

औपचाररक ईमेल (Formal email): हम ककसी भी प्रकार के वयापाररक वाताालाप के सलए एक ई-

मेल सलख रहे हैं या रचना कर रहे हैं। यह औपचाररक ई-मेल की श्रेर्ी में आएगा। औपचाररक ई-

मेल लेखन किंपतनयों, सरकारी ववभागों, स्कूल प्राचधकरर्ों या ककसी अन्य अचधकाररयों को सलखा

गया ई-मेल होगा।

औपचाररक ई-मेल मलििे समय ककि-ककि बािों का ध्याि रििा चाहिए

ई-मेल का ववषय स्पष्ट िोिा चाहिए : – ई-मेल को सलखते समय उसका ववषय स्परट रखा जाना

चाठहए तयोंकक क्जस काया के सलए आप ई-मेल सलख रहे हैं या जो मेल में सलखा हुआ है , उसके

बारे में ववषय में ही पता लग जाए अर्वा ई-मेल ककस बारे में है , इसकी जानकारी ववषय से ही

हो जानी चाठहए। आपकी ई-मेल का ववषय आकषाक होगा तो मेल प्राप्त करने वाले वयक्तत को

आपके काम की गिंभीरता के बारे में पता चलेगा।

औपचाररक ई-मेल पिा मलिें : – आप ककसी किंपनी के सलए काम कर रहे हैं तो उस किंपनी के

ई-मेल पते का प्रयोग करें । ककसी भी किंपनी के सलए या कोई भी औपचाररक काया के सलए

औपचाररक ई-मेल का ही प्रयोग करें व इस बात का ध्यान अवश्य रखें कक मेल करते समय

आप अपने या किंपनी के नाम का ही प्रयोग करें क्जससे मेल प्राप्त करने वाले वयक्तत को समझ

में आ सके कक मेल ककसके द्वारा भेजा गया है।

अल्प शब्दों को मलििे से बचें : – जब भी आप कोई औपचाररक ई-मेल सलख रहे हैं तो अल्प

शब्दों को (शॉटा फॉमा) सलखने से बचना चाठहए तयोंकक अल्प शब्द ई-मेल पढ़ने वाले पर आपका

गलत प्रभाव डाल सकता है। अल्प शब्दों का प्रयोग करने से ई-मेल पढ़ने वाले को लग सकता है

99
कक आप काया को लेकर ज्यादा गिंभीर नहीिं है या कफर आप के द्वारा सलखे गए अल्प शब्दों का

वह गलत मतलब भी समझ सकता है।

उदािरण के मलए : – आप सलखना Please Find Attachment चाहते हैं उसे PFA नहीिं

सलखना चाठहए।

कोई भ हटप्पण अपमािजिक िा िो : – ई-मेल अनौपचाररक हो या औपचाररक हो ध्यान रखें

कक आपकी भाषा अपमानजनक नहीिं होनी चाठहए और यठद आप इस तरह की ई-मेल प्राप्त

करते हैं तो ना उस ई-मेल का जवाब दें और ना ही अगले वयक्तत को उसे भेजें तयोंकक इस

तरह की ई-मेल का आप के खखलाफ इस्तेमाल ककया जा सकता है।

सन्दे श को एड़डट करें : – मेल भेजते समय अपनी ई-मेल को अवश्य एडडट करें इससे ई-मेल में

गलती की सिंभावना कम हो जाती है वयापाररक मेल में इन बातों का ववशेष ध्यान रखा जाता है

यठद आप औपचाररक ई-मेल सलख रहे हैं तो ध्यान रहे कक कोई भी वयाकरर् से सम्बिंचधत

गलती ना हो।

िुरींि जवाब दें : – बहुत बार ऐसा होता है कक ई-मेल प्राप्त होने पर आप उसको दे ख या पढ़

लेते हैं लेककन उसका जवाब दे ना भूल जाते हैं। जवाब ना दे ने से उसका मतलब नकारना ही

होता है। अगर मेल ऐसी है क्जसका आप टाइम ना होने के कारर् या अन्य कारर्ों से तुरिंत

जवाब नहीिं दे पाए तो उस ई-मेल का जनाल मैसेज डाल दीक्जए

उदाहरर् : – हमें आपकी मेल प्राप्त हो गई है हम जल्द ही इसका जवाब दें गे धन्यवाद। इसके

बाद भी अगर आप ई-मेल का जवाब करना भूल गए तो सामने वाला आपको याद ठदला दे ता है।

ई-मेल मलििे समय निम्िमलखिि बािों का ध्याि रििा आवश्यक िै


(i) सबसे पहले मेल को लॉग-इन करते हैं,तो एक नया पे खुलता है। उसमें कम्पो (+) बाईं
ओर ऊपर ठदखाई दे ता है।
(ii) कम्पो (+) पर क्तलक करने पर एक नया पे दाईं तरफ खल
ु ता है।
(iii) दाएाँ पे पर सबसे ऊपर फ्रॉम (from), कफर to उसके नीचे subject, उसके नीचे सन्दे श
सलखने का स्र्ान रहता है।
(iv) एक से अचधक लोगों को मेल भेजने के सलए अल्पववराम (,) दे कर उसकी आई.डी. टाइप
करके भेज सकते हैं।
(v) सब्जेतट में ई-मेल का ववषय सिंक्षेप में सलखते हैं।

100
(vi) cc का अर्ा है काबान कॉपी। आप क्जतने लोगों को ई-मेल भेजेंगे, उनको जब ई-मेल प्राप्त
होगा, तब उनमें से ककस-ककस को वह मेल भेजा गया है उसकी सच
ू ी ठदखाई दे गी।
(vii) bcc का अर्ा है ब्लाइिंड काबान कॉपी। इसमें आप एक से अचधक लोगो को मेल भेज सकते
हो, ककन्तु bcc ककसे भेजी गई, उनकी सलस्ट नहीिं ठदखाई दे गी।
(viii) मेल सेंड होने पर भेजने वाले को मैसेज सतसेसफुली सेंड ठदखाई दे गा।
(ix) अगर आपको मैसज, पीडीऍफ़ फाइल, पावरपॉइिंट एविं वीडडयो को भेजना है तो उसके सलए
अटे चमें ट फाइल पर क्तलक करके भेज सकते हैं।

ई-मेल लेिि का प्रारूप


प्रेषक (From) : मेल भेजने वाले का ई-मेल पता।
प्रेवषि (To) : मेल प्राप्त करने वाले का ई-मेल पता।
CC : काबान कॉपी
BCC : Blind Carbon Copy
ववषय : यहााँ ई-मेल का ववषय सिंक्षेप में सलखते हैं।
अमभवादि : क्जसे ई-मेल सलखा जा रहा है उसके आदर स्वरूप शब्द सलखा जाता है। जैसे वप्रय,
महोदय आठद।
मुख्य ववषय वस्िु : ववषय से सिंबिंचधत ववस्तार से ववषय सलखा जाता है।
समापि : कर्न समाप्त करना
अटै चमें ट ज्वाइि करें : पीडीएफ, इमेज जैसी फाइल अटै च करना
िस्िाक्षर : प्रेषक का नाम, सिंकेत, आठद

प्रेषक : यहााँ आपको अपना ई-मेल पता दजा करना होता है। अर्ाात जो ई-मेल भेजने वाला है
उसका ई-मेल पता यहााँ भरना होता है।
प्रेवषि : यहााँ आपको ई-मेल प्राप्त करने वाले का ई-मेल एड्रेस डालना होगा। अगर आप ककसी
किंपनी को ई-मेल करना चाहते हैं, तो आपको उस किंपनी का ई-मेल एड्रेस भरना होगा।
CC (काबयि कॉप ) : जब आप एक ही ई-मेल दो या दो से अचधक ई-मेल पते पर भेजना चाहते
हैं तो काबान कॉपी का उपयोग ककया जाता है। मतलब आप एक से अचधक ररसीवर को एक ही
सिंदेश भेजने के सलए काबान कॉपी का उपयोग कर सकते हैं।
BCC (ब्लाइींड काबयि कॉप ) : BCC का मतलब होता है – ब्लाइिंड काबान कॉपी। काबान कॉपी
की तरह ही इसका भी उपयोग एक से ज्यादा लोगो के मेल भेजने के सलए ककया जाता है।
लेककन ब्लाइिंड काबान कॉपी में सलखा हुआ ई-मेल एड्रेस, प्रेवषती (to) में और काबान कॉपी द्वारा
ई-मेल प्राप्त करने वाले ब्लाइिंड काबान कॉपी का ई-मेल एड्रेस नहीिं दे ख सकते।

101
साधारण शब्दों में – आप एक सार् तीन ई-मेल भेज रहे है लेककन ककसी एक पसान के ई-मेल
को छुपाना है तो उसका ई-मेल ब्लाइिंड काबान कॉपी बॉतस में सलखे। ताकक प्रेवषती (To) में और
काबान कॉपी ई-मेल प्राप्तकताा ब्लाइिंड काबान कॉपी का ई-मेल एड्रेस नहीिं दे ख पाएिंगे।
Subject (ववषय) : आप ई-मेल तयों सलख रहे हैं, आपको उसका ववषय सलखना होगा। ताकक
प्राप्त कताा पहले यह समझ लें कक आपने ई-मेल तयों भेजा है।
अमभवादि : एक अनौपचाररक पत्र में, असभवादन का अचधक उपयोग ककया जाता है। अगर आप
अपनी बहन को ई-मेल सलख रहे हैं तो आप प्यारी बहन सलख सकते हैं।
मुख्य ववषय : मुख्य ववषय में , आपको एक ववस्तत ववषय सलखना होगा। पररचय, बात और
तनरकषा मुख्य ववषय में शासमल हैं।
फाइल जोिें (Attachment) : यहााँ आप पीडीएफ फाइल, चचत्र, या अन्य दस्तावेज सिंलग्न कर
सकते हैं। उदाहरर् के सलए, यठद आपने ककसी पाठ्यिम की पीडीएफ फाइल डाउनलोड की है ,
तो आप इसे ई-मेल में सिंलग्न कर सकते हैं और इसे अपने समत्र को भेज सकते हैं।
िस्िाक्षर : आखखरी में , हस्ताक्षर लाइन सलखना आवश्यक है। अर्वा आप अपना नाम सलख
सकते हैं।
ई-मेल लेिि के कुछ उदािरण–
(1) अपिे ममत्र को अपि जन्महदि की पाटी के मलए निमींत्रण दे िे िे िु लगभग 100 शब्दों में
ई-मेल मलखिए।

प्रेषक (From) : xyz@abc.com


प्रेवषि (To) : def@gmail.com
CC : आवश्यकता अनुसार
BCC : आवश्यकता अनस
ु ार
ववषय : पाटी का तनमिंत्रर्
अमभवादि : वप्रय राकेश
मुख्य ववषय वस्िु : मुझे लगता है कक आपको मेरा जन्मठदन याद होगा। इससलए मुझे आपको
यह बताते हुए बहुत खश
ु ी हो रही है कक 10 जलु ाई की तारीख स्टार हॉल में जन्मठदन की पाटी
है। क्जसका समय रात में 7 से 9 बजे तक है।
समापि : आपको इस बर्ाडे पाटी में जरूर आना है।
अटै चमें ट ज्वाइि करें : आवश्यकतानस
ु ार
िस्िाक्षर : मक
ु ेश
➢ Send- प्रेषर्
(2) शमाय सोसाइटी के मुख्य स वर की मुरम्मि िे िु लगभग 100 शब्दों में ई-मेल मलखिए।
प्रेषक (From) : mukesh@gmail.com
प्रेवषि (To) : abc@gmail.com

102
CC : आवश्यकता अनस
ु ार
BCC : आवश्यकता अनस
ु ार
ववषय : सीवर मरम्मत के सलए अनरु ोध हे तु
अमभवादि : महोदय जी

मुख्य ववषय वस्िु : शमाा सोसाइटी का मुख्य सीवर टूट गया है , क्जसके कारर् नाले का गिंदा
पानी सड़क पर आ गया है। बहुत ज्यादा गिंदगी और बदबू फैल रही है। इससलए मैं आपसे
अनुरोध करता हूाँ कक कपया इस नाले की मरम्मत करवाएिं।
समापि : मुझे आशा है कक आप इस मरम्मत को जल्द से जल्द पूरा कर लेंगे।
अटै चमें ट ज्वाइि करें : आवश्यकतानुसार
िस्िाक्षर : सुरेश
विज्ञापन लेिन

ववज्ञापन एक ऐसा माध्यम क्जसके दवारा िम ककसी सामग्री या व्यक्क्त वविेि के प्रतत जन
सामान्य को आकविात करने का प्रयास करते िैंI
ववज्ञापन िब्द 'ज्ञापन' में 'वव' उपसगा लगाने से बना िै, 'वव' का अथा िै - 'वविेि' तथा 'ज्ञापन' का
अथा िै- 'जानकारी दे ना' अथाात उत्पाहदत वस्तओ
ु ां,सेवाओां आहद की वविेि जानकारी दे ना।
विज्ञापन का उददे श्य :-
ववज्ञापन का मख्
ु य उददे श्य िोता िै, जन सामान्य तक जानकारी पिुाँचाना। ववज्ञापन एक ऐसा
माध्यम िै क्जसकी सिायता से कम से कम खचा में अचधक से अचधक लोगों तक अपनी बात
पिुाँचाई जा सकती िै। ववज्ञापन के अनेक उददे श्य माने गए िैं, जैस-े ववज्ञापन दवारा अपना पररचय
दे ना, ध्यान आकिाण करना, ववश्वसनीयता जगाना, जनमत जागत
ृ करना आहद।
विज्ञापन के कायण :-
1. नवीन वस्तुओां और सेवाओां की सूचना प्रदान करना।
2. वविेि छूट आहद की जानकारी दे ना।
3. उपभोक्ताओां में वस्तओ
ु ां के प्रतत रुचच तथा ववश्वास उत्पन्न करना, जागरूकता बढ़ाना।
4. ववज्ञापन का काया िै, नए ग्रािक बनाना।
विज्ञापन तैयार करते समय ध्यान रिने योग्य ातें :-
1. ववज्ञापन को एक बॉक्स में तथा आकिाक बनाना चाहिए।
2. क्जस वस्तु का ववज्ञापन करना िै उससे सांबांचधत चचत्र बनाकर उसे आकिाक बनाया जा सकता
िै।
3. कम से कम िब्दों का प्रयोग करके ज्यादा बातें बताई जाएाँ।
4. ववज्ञापन को यादगार व आकिाक बनाने के शलए 'स्लोगन/नारा' का प्रयोग कर सकते िैं।
जैस:े -

103
* आज िी खरीदें । * पिले आओ,पिले पाओ। * 30% की छूट।

* मौके का लाभ उठाएाँ। * सुनिरा मौका /अवसर * मजबूत और हटकाऊ

* सस्ता सुांदर व अचधक चलने वाला * आपके ििर में पिली बार।

5. ववज्ञापन की िब्द सीमा लगभग 60 िब्द िोनी चाहिए।


6. ववज्ञापन की भािा सरस, रोचक तथा काव्यात्मक िो तो बेितर रिता िै।
7. परीक्षा में भौततक वस्तुओां के अलावा सामाक्जक ववियों या जागरूकता बढाने वाले ववियों पर
भी ववज्ञापन पूछे जाते िैं।
विज्ञापन के प्रारूप/उदाहरर्
❖ जल सांरक्षण के प्रतत जागरूकता बढ़ाने के शलए एक ववज्ञापन तैयार कीक्जए –

❖ महिला व बाल ववकास मांत्रालय दवारा 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' वविय पर लगभग 60
िब्दों में एक ववज्ञापन तैयार कीक्जए

ेठटयााँ तो हैं ईश्िर का उपहार,


मत छीनों इनसे जीने का अधिकार।

बेटी बचाओ
बेटी पढाओ
बेटी पढाओ
और

दे श को आगे िुशिाली
बढाओ
बढाओ

बेटी भार निीां, िै आधार। जीवन िै उसका अचधकार।।


शिक्षा िै उसका िचथयार। बढ़ाओ कदम करो स्वीकार।।
महिला व बाल ववकास मांत्रालय दवारा जनहित में जारी।

104
विज्ञापन के अन्य अभ्यास प्रश्न
⮚ पयाावरण सांरक्षण के शलए जागरूकता बढ़ाने के शलए लगभग 60 िब्दों में एक ववज्ञापन
तैयार कीक्जए।
⮚ मतदान जागरूकता के शलए लगभग 60 िब्दों के शलए एक ववज्ञापन तैयार कीक्जए।

संदेश लेिन

संदेश का तात्पयण (अथण) :- सांदेि को अांग्रेजी में ‘मैसेज’ किा जाता िै I सांदेि िब्द का अथा िै
खबर या समाचार प्राप्त करना और दस
ू रे व्यक्क्तयों तक पिुाँचाना। जब ककसी पररक्स्थतत में कोई
व्यक्क्त अपनी कोई बात या जानकारी ककसी दस
ू रे व्यक्क्त तक सीधे निीां पिुाँचा सकता तब वि
अपनी बात या जानकारी को सांदेि के माध्यम से दस
ू रे व्यक्क्त तक पिुाँचाता िै।
सांदेि एक ऐसा साधन िै क्जसके माध्यम से जानकारी को ककसी व्यक्क्त या समूि दवारा
ककसी अन्य व्यक्क्त या समूि तक पिुाँचाया जा सकता िै। सांदेि दख
ु द और सुखद दोनों तरि के
िो सकते िैं, सांदेि व्यक्क्तगत व सामूहिक दोनों प्रकार के िो सकते िैं।
संदेश लेिन के प्रकार:- सांदेि लेखन के भी पत्र की तरि दो प्रकार प्रचशलत िै।
क. औपचाररक ि. अनौपचाररक
औपचाररक संदेश :-
औपचाररक सांदेि उन सांदेिों को किते िैं क्जन्िें ककसी अचधकारी या ककसी ऑकफस के
कमाचारी या आम जनमानस के शलए सावाजतनक रूप से शलखा जाता िै।
अनौपचाररक संदेश :-
अनौपचाररक सांदेि शमत्र,पररवार तथा िुभचचांतकों को शलखा जाता िैI क्जसमें जन्महदन,
ककसी िुभ अवसर, वववाि, बधाई, धन्यवाद आहद के रूप में अनौपचाररक सांदेि शलखा जाता िै।
संदेश लेिन के अंग:-
* िीिाक
* हदनाांक
* समय
* अशभवादन
* मख्
ु य वविय
* प्रेिक
संदेश ललिते समय ध्यान रिने योग्य ातें :-
⮚ सांदेि लेखन की िब्द सीमा 60-70 िब्दों के बीच में रखेंI
⮚ सांदेि लेखन ककसी सीमा रे खा (बॉक्स) के अांदर शलखा जाना चाहिए।
⮚ सांदेि के प्रारां भ में सांदेि का िीिाक' जैस:े - िुभकामना सांदेि, बधाई सांदेि, िोक सांदेि
इत्याहद अवश्य शलखे जाने चाहिए, उसके बाद हदनाांक, समय, अशभवादन आहद शलखे जाने
चाहिए।

105
⮚ व्याकरण एवां वतानी सांबांधी अिद
ु चधयों से बचें ।
⮚ सांदेि लेखन की भािा सरल व सांक्षक्षप्त िोनी चाहिए।
⮚ सांदेि शलख लेने के बाद अांत में सांदेि शलखने वाले का नाम अवश्य िोना चाहिए।

संदेश लेिन का प्रारूप

संदेश (शीषणक/विषय)
ठदनांक ........... समय .............
सं ोिन
अलििादन
विशेष(जजस विषय हे तु संदेश दे रहे हैं)..............................................................
........................................................................................................
........................................................................................................

प्रेषक का नाम
क ख ग

अनौपचाररक संदेश लेिन का उदाहरर् :-


नव विा के िुभ अवसर पर नई हदकली तनवासी अपने शमत्र रोिन को लगभग 60 िब्दों में एक
िुभकामना सांदेि शलखखए।

शुिकामना संदेश

हदनाांक : 19 अक्टूबर,2023 समय : 7:00 बजे

वप्रय शमत्र,
रोिनI
नव विा की िाहदाक िुभकामनाएाँ। नया विा तुम्िारे जीवन में खुशियााँ और उत्साि
लेकर आए। वपछले विा की तरि इस विा भी तुम सफलता प्राप्त कर प्रगतत के पथ पर
अग्रसर रिो। नव विा की इन्िीां मांगलमय िुभकामनाओां के साथ पुनः नव विा की िाहदाक
िुभकामनाएाँI

तुम्िारा शमत्र,
क ख ग

106
औपचाररक संदेश का उदाहरर्

िारत के प्रिानमंिी की तरफ़ से स्ितंिता ठदिस पर दे शिालसयों के नाम एक शुिकामना संदेश


ललखिएI

शुिकामना संदेश
हदनाांक – 15 अगस्त, 2023 समय :- 7:30 बजे
वप्रय दे िवाशसयो,
76 वें स्वतांत्रता हदवस की िाहदाक िुभकामनाएाँI इस अवसर पर िमें अपने प्यारे
भारत दे ि के शलए कुछ करने का सांककप लेना चाहिएI िम सभी सांववधान के मूलभूत आदिों की
रक्षा के शलए सांककपबदध िों। साथ िी इन सांकटकालीन पररक्स्थततयों का एक साथ शमलकर मुकाबला
करें ।
एक बार पुनः स्वतांत्रता हदवस की बिुत-बिुत बधाई एवां िुभकामनाएाँ।
प्रधानमांत्री

'लशक्षक ठदिस' के अिसर पर अपने लशक्षक के ललए लगिग 60 शब्दों में एक संदेश तैयार कीजजएI

लशक्षक ठदिस की हाठदण क शि


ु कामनाएाँ
हदनाांक:- 5 शसतांबर, 2023 समय:-10:00 बजे
परम श्रदधेय गुरुजी,
शिक्षक हदवस की िाहदाक िुभकामनाएाँ |
जो बनाएाँ िमें अच्छा और सच्चा इांसान, दें सिी गलत की पिचान |
आप सभी शिक्षकों को कोहट-कोहट प्रणाम।
आपने अपने असीशमत ज्ञान से सदै व िमारा मागा प्रदशिात ककया िै। िम सदै व आपके स्नेि एवां
मागादिान के शलए आपके ऋणी रिें गे। आप सभी को पुन: शिक्षक हदवस की िाहदाक िुभकामनाएाँ
आपका शिष्य
क-ख-गI

अभ्यास हे तु संदेश -
* प्राचाया की ओर से बालहदवस की िुभकामनाएाँ दे ते िुए लगभग 60 िब्दों में एक सांदेि शलखखएI
*अपनी छोटी बिन को उसके जन्महदन की बधाई के शलए लगभग 60 िब्दों में एक सांदेि शलखखएI
*सािशसक काया के शलए वीरता पुरस्कार से सम्मातनत िोने वाले अपने शमत्र वपयूि गोयल को
लगभग 60 िब्दों में एक बधाई सांदेि शलखखएI

107
108

You might also like