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उच्च शिक्षा शिभाग, मध्यप्रदेि िासन

द्ववर्य / Subject आधार पाठ्यक्रम

कक्षा एिं वर्ष / Class and Year बी.ए./बी.कॉम/बी.एससी./बी. एच.एससी/

बी.सी.ए./बी.बी.ए.द्वितीय वर्ष

कोसष कोड एवं शीर्षक / Course Code and Title X2 -FCEA1T,आधार पाठ्यक्रम-2/2

काययक्रम / Program Diploma / डिप्लोमा

प्रश्न पत्र / Paper प्रथम, हिंदी भार्ा - भार्ा और संस्कृ द्वत

मॉड्यूल शीर्षक / Module Title मध्यप्रदेश का लोक साद्वित्य [संकद्वलत ]

कं टेंट लेखक / Content Writer डॉ. अपषणा बादल, सिायक प्राध्यापक, हिंदी
स्वामी द्वववेकानंद शासकीय मिाद्ववद्यालय,
बैरद्वसया, भोपाल (मध्य प्रदेश)
मुख्य शब्द / Key Words लोक संस्कृ द्वत,लोक गीत, लोकगाथा,लोक कथा,

लोकोद्वि

बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


बी.एच.एससी.,बी.सी.ए., बी.बी. ए. द्वितीय मध्यप्रदेश का लोकसाद्वित्य [संकद्वलत ]इकाई-2 मॉड्यूल क्र.: 2. 3
वर्ष
1. शैक्षद्वणक उद्देश्य / Learning Objectives

इस मॉड्यूल के अध्ययन के उपरांत द्ववद्याथी -

1. इसके अध्ययन से द्ववद्याथी मध्य प्रदेश की लोक साद्वित्य से पररद्वचत िो सकें गे।

2.द्ववद्याथी मध्यप्रदेश लोकसंस्कृ द्वत को जानेंगे।

3. द्ववद्याथी मध्यप्रदेश प्रमुख लोकगाथाओं से पररद्वचत िोंगे।

4. मध्यप्रदेश की लोक द्वशल्पकला को जान सकें गे।

5.लोकगीतों की द्ववद्ववध शैद्वलयों से पररद्वचत िोंगे।

6.लोककथा के स्वरूप से पररद्वचत िोंगे।

मध्य प्रदेश का संस्कृ द्वतक पररचय


मध्य प्रदेश भारत की हृदयस्थली िोने के साथ-साथ कलास्थली भी िै। प्राचीन काल से िी यिां की गौरवशाली
परंपरा रिी िै। यिां की लोककला, लोकगीत, लोकनाट्य, लोकद्वचत्रकला, लोक नृत्य कला अत्यंत समृद्ध और
द्ववद्ववधता से भरे हुए िैं। प्रकृ द्वत के साथ से गिराई से जुडे हुए िोने के कारण मध्य प्रदेश की लोक संस्कृ द्वत मूल्यों
से अनुप्राद्वणत िै और अपनी द्ववद्वशष्टता बनाए हुए िै। प्रदेश की सांस्कृ द्वतक द्ववद्ववधता और लोक कला की बहुरंगी
द्ववशेर्ता के कारण यि अपने आप में अद्वितीय राज्य िै। मध्यप्रदेश की लोक संस्कृ द्वत में मालवी, बुंदेली, बघेली,
और द्वनमाडी संस्कृ द्वत के द्ववद्ववध रंग िैं। प्रत्येक अंचल का एक अलग जीवंत लोक जीवन बोली और पररवेश िै।
यिां द्ववद्वभन्न लोक और जनजातीय संस्कृ द्वतयों का समागम िै। यिां की कोई एक लोक संस्कृ द्वत निीं िै।यिां पााँच
लोक संस्कृ द्वतयों के अद्वतररि अनेक जनजाद्वतयों की संस्कृ द्वत का द्ववस्तृत फलक पसरा िै।

मध्य प्रदेश का लोक साद्वित्य

साद्वित्य मानव संस्कृ द्वत का अद्वभन्न अंग िै । संस्कृ त के आचायों ने साद्वित्य की व्युत्पद्वि द्वित या कल्याण के अथष
में प्रद्वतपाददत की िै; द्वजसमें साद्वित्य का पयाषय 'काव्यशास्त्र' माना गया िै। किा भी गया िै- 'द्वितेन सि सद्वितं

तस्य भावः साद्वित्य।' मानव की मौद्वखक अथवा द्वलद्वखत साथषक अद्वभव्यद्वि साद्वित्य के अंतगषत आती िै।भले िी
उस का द्ववभाजन द्वशष्ट साद्वित्य अथवा लोक साद्वित्य में क्यों ना कर ददया जावे।

लोक साद्वित्य मौद्वखक परंपरा का साद्वित्य एवं राष्ट्र के िर जनपद की लोक भार्ा में लोक प्रचद्वलत लोक का
साद्वित्य िै। लोक साद्वित्य व्यद्वि की एकांद्वतक कल्पना निीं वरन समस्त लोक की अनुभूद्वत िै। इसमें समद्वष्ट के

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दुख, ददष, उल्लास और व्यवस्था को वाणी देने का प्रयास दकया जाता िै। डॉ. नमषदा प्रसाद गुप्त के अनुसार- "लोक
साद्वित्य लोक भार्ा का वि साद्वित्य िै जो अपने अंतर्नषद्वित लोकतत्व के कारण लोक िारा गृिीत िो गया िो और
लोग मुख में जीद्ववत िो। लोक साद्वित्य का "लोकत्त्व" रचनाकार के मन या मानस में बैठकर सहृदय के रूप में
उसकी अनुभूद्वत को लोकानुभद्वू त में रूपांतररत करता िै।"

लोक साद्वित्य में भार्ागत द्ववद्वभन्नता िोते हुए भी भावों में एकरूपता िोती िै। कन्या चािे गुजरात की वि चािे
राजस्थान की द्वनमाड की िो या मालवा की बेटी की द्ववदाई के के गीतों में द्वपता का एक समान ददष व्यि हुआ िै।
इनके गीतों में द्वपता के रोने से गंगा में बाढ़ आ जाती िै, मां के रोने से धरती पर अंधेरा छा जाता िै, भाई के रोने

से उसकी धोती पांव तक भीग जाती िै, लेदकन भोजाई की आंखों में आंसू तक निीं आते। उदािरण के द्वलए बुंदेली
बेटी की द्ववदाई का गीत-

माई के रोए नददया बित िै।

बाबुल के रोए गंगा ताल मोरे लाल।

वीरन के रोए छद्वतया फटक िै।

भौजी के द्वजयरा कठोर मोरे लाल।

लोक साद्वित्य में देवता मानव स्वरूप में अवतररत िोकर मनुष्य के दुख ददष के साथी िो उठते िैं। इसमें दकसी के
भी घर में पुत्र के जन्म िोने पर बधाई नंद के घर िी भेजी जाती िै। लोक साद्वित्य में समद्वष्ट के दुख ददष और
उल्लास और व्यवस्था को वाणी देने का प्रयास दकया जाता िै। लोक साद्वित्य का कायष मिज लोक गीत लोक कथा
और लोक किावतों का संकलन मात्र निीं वरन आददकाल से अनंत काल तक मानव की जीवन यात्रा का प्रवाि
िै।लोक साद्वित्य में सुंदर अमंगल के द्वलए कोई स्थान निीं िोता। उसके गीतों में चंदन के चौक, सोने के कलश,
िीरे एवं मोती के थाल सजाए जाते िैं। रेशम की डोर से बंधे सोने के घडों में पानी भरा जाता िै। उनके गीतों में
रंगीन कल्पनाएं िोती िै। सुंदर सपने सजाए जाते िैं। उदािरण के द्वलए घर में आई खुद्वशयों में चािे शादी द्वववाि

िो चािे बच्चे का जन्म इस प्रकार गीत गाए जाते िैं-

आज ददन सोने को मिाराज ।

सोने के सब ददन, सोने की रातें ।

सोने के कलश घराओ मिाराज ।।

लोक साद्वित्य की संपदा को द्वनम्न प्रकार से वगीकृ त दकया जा सकता िै-

1.लोक काव्य द्वजसमें लोकगीत और लोक गाथाएाँ दोनों सद्वममद्वलत िोती िैं।

2.लोक कथा
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3.लोक नाट्य

4.लोकोद्वि, द्वजसमें पिेद्वलयां और किावतें सद्वममद्वलत िैं।

लोक साद्वित्य का मित्व

राहुल सांकृत्यायन द्वलखा िै- "हिंदी साद्वित्य के द्वनमाषण में लोक साद्वित्य ने आधारद्वशला का कायष दकया िै। लोक
साद्वित्य का सूक्ष्म द्वनरीक्षण करने पर इसकी द्ववशाल गुरूता और गिराई का अनुमान लगाया जा सकता िै। लोक
साद्वित्य में भूगोल, इद्वतिास और पुरातत्व का भी घद्वनष्ठ संबंध िै। लोक साद्वित्य की कथा उद्वियााँ मुिावरे , गीत,
गाथा आदद अनेक स्थल ऐसे िैं द्वजनसे पुरातत्व और इद्वतिास की झांकी झलकती िै। उदािरण के द्वलए-

भैंस बंधी िै औरछा, पडा िोशंगाबाद।

लगवैया िै सागरे चद्वपया रेवा पार

उपरोि पंद्वियों में लोक साद्वित्य के बुझौवल ने बुंदेलखंड की भौगोद्वलक सीमारेखा खींचकर संक्षेप में

समझा ददया िै। डॉ कृ ष्ण देव उपाध्याय के अनुसार- "दकसी देश के जीवन में लोक साद्वित्य का द्ववद्वशष्ट मित्व िै।
सच तो यि िै दक लोक की वास्तद्ववक संस्कृ द्वत उसके मौद्वखक साद्वित्य में द्वनद्वित िोती िै।"

सामाद्वजक और सांस्कृ द्वतक घटकों पर भी लोक साद्वित्य का प्रभाव पडता िै। जन्म, द्वववाि, मृत्यु के समय के
संस्कार व द्ववद्वधयों का ज्ञान व अन्य रीद्वत ररवाज लोक साद्वित्य के माध्यम से दी जाती िै। इसी भााँद्वत द्ववद्वभन्न
राष्ट्रों में पाए जाने वाले द्ववशेर् तत्वों, नैद्वतक आचार-द्ववचार, व्यविार की प्रद्वतदक्रया भी लोक साद्वित्य के माध्यम
से प्रकट िोती िै। लोक संस्कृ द्वत और देश की मूल संस्कृ द्वत का चोली दामन का साथ िै ।

लोकगीत

लोकगीत संवेदनशील मानव के अंतःकरण की अद्वभव्यद्वि िै। लोकगीत पारंपररक मौद्वखक की तथा समस्त लोक
की अमानत िोती िै।इसका माद्वलक कोइ व्यद्वि द्ववशेर् निीं िोता। यि लोकमानस की आडंबर िीन रचना िोती
िै। लोक गीत लोक-भावना और लोक-रुद्वच की पूणष प्रद्वतद्वनद्वधत्व करते िैं। द्ववद्वभन्न प्रदेशों की संस्कृ द्वत परंपरा

एवं दक्रयाकलाप, सामाद्वजक िंद, मनोदशा, भौगोद्वलक एवं ऐद्वतिाद्वसक वणषन इन गीतों में संभाद्ववत रिता िै।

देवेंद्र सत्याथी के अनुसार 'लोकगीत दकसी संस्कृ द्वत के मुंि बोलते द्वचत्र िैं। लोकगीत प्रकृ द्वत के उद्गार िैं।प्रकृ द्वत जब

तरंग में आती िै, गान करती िै।'

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https://www.womensweb.in/hi/2020/06/ladies-sangeet-12-lok-geet-junwk1/

वृंदावन लाल वमाष के अनुसार- 'साधारण जनमानस प्रकृ द्वत की िररयाली, लताओं, कद्वलयों, फू लों, पतझड, श्रंगार

और करूणा के अद्वधक द्वनकट रिा। पक्षी, अपने भीतर की दकसी गुदगुदी या पुकार सुनकर द्वजस प्रकार से चिकने

लगते िैं, लगभग उसी प्रकार जनमानस के भीतर से लोकगीत उभरते िैं, झरते िैं। बसंत द्वनगुषण के अनुसार 'लोक

गीत लोक कं ठ की धरोिर िैं। एक कं ठ से दूसरे कं ठ, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचने वाले लोकगीत शब्द और

स्वर के दोिराव से संचररत िोते िैं।'

https://prarang.in/meerut/posts/4520/Folk-songs-of-Uttar-Pradesh-are-lost-somewhere

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लोक गाथा

उप कथानक के साथ चाररद्वत्रक गुणों से युि वि देश काल आदद गुणों को लेकर जीवन पर प्रकाश डालता िै।

डॉ. सत्यव्रत द्वसन्िा किते िैं- "लोकगाथा एक सामाद्वजक संस्था िै द्वजसकी अंतरात्मा में व्यद्वि बैठा हुआ िै। उस
व्यद्वि की अविेलना िम कदाद्वप निीं कर सकते। लोक गाथा गद्य-पद्य युि प्रबंधात्मक कथा िै, जो दकसी व्यद्वि

अथवा घटना पर कें दद्रत िोती िै। लोक-गीत छोटे िोते िैं और उनमें घटना या चररत्र सीद्वमत रिता जबदक

लोकगीत जीवन की दकसी घटना परएक आधाररत िोता िै।लोक गाथा गद्य-पद्य युि प्रबंधात्मक कथा िै, जो

दकसी व्यद्वि अथवा घटना पर कें दद्रत िोती िै। लोक-गीत छोटे िोते िैं और उनमें घटना या चररत्र सीद्वमत रिता
िै। जबदक लोक-गाथा का क्षेत्र बडा रिता िै। लोक-गाथा नायक या नाद्वयका प्रधान कथानक व

https://prarang.in/meerut/posts/4520/Folk-songs-of-Uttar-Pradesh-are-lost-somewhere

लोक कथा

लोककथा वि िै जो लोक िारा लोक के द्वलए लोक से किी जाती िै। लोक कथा लोक मुख में रिती िै और इसके
द्वलए विा और श्रोता दोनों िी अद्वनवायष िोते िैं। विा एक िोता िै पर श्रोता कई िो सकते िैं ।गांव की अथाई में

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नीम या बरगद के नीचे रात की ब्यारी अथाषत खाने के बाद लोककथा किने सुनने का चलन िोता िै ।

https://motivationalstoryinhindi.com/lok-katha-folk-tale-in-hindi/

एनसाइक्लोपीद्वडया द्विटाद्वनका के अनुसार प्रचद्वलत किाद्वनयों को प्रमुख तीन भागों में द्ववभाद्वजत दकया िै-

धमषगाथा(Myths)लोकगाथा(Legend) लोक कथा(Folk tales)।

लोक कथाओं का लोक अत्यंत व्यापक िोता िै। लोक की समृद्वद्ध सांस्कृ द्वतक परंपरा, लोक कथाओं िारा रूपाद्वयत
िोती िै। लोक कथाएं िमारी संस्कृ द्वत के संवािक िोती िैं।

समूचा लोक, लोककथाओं की द्ववर्य वस्तु बनता िै।

लोक जीवन की आस्था- अनाथा, राग-िेर्, त्याग-भोग, कौतूिल-द्वजज्ञासा, संघर्ष,सुख-दुख,तमाम मनोवृद्वियााँ


लोक कथाओं में एकाकार िोती िैं। लोक कथाओं का मूल उद्देश्य मनोरंजन रिा िै लेदकन ये कथाएाँ मनोरंजन के

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साथ साथ संद्वचत ज्ञान की गंगा िै। लोकमानस िर नए ज्ञान को सरल कथा या किानी के माध्यम से िी द्वलखने
का आकांक्षी रिता िै

tps://www.thehindistory.in/2021/01/andhra-pradesh-ki-lok-katha-bhagya-khul.html

लोक कथा में अद्वभप्राय बीच में िोता िै और लोक कथा का अंत सुखद िोता िै लोक कथा के अंत में किने वाला

'जैसे उनके ददन दफरे वैसे िी भगवान सबके ददन दफरें।' किता िै। द्वजसमें मंगल भावना की आकांक्षा रिती िै।

कथाओं में धार्मषक, सामाद्वजक, नैद्वतक, ऐद्वतिाद्वसक, आर्थषक द्वचत्रण देखने को द्वमलते िैं। बच्चों से लेकर बडे बूढ़ों

तक के द्वलए कथाओं की अपनी अपनी शैली िोती िै। लोक कथाओं में प्रकृ द्वत, जड, चेतन और मनुष्य का संबंध
बहुत गिरा िोता िै। इनमें द्वमथक और द्वमथ कथाओं का प्रयोग तो िो सकता िै लेदकन द्वमथ कथाओं में लोक
कथाओं के तत्वों का इस्तेमाल निीं िोता। लोक कथाओं में पशु-पक्षी मनुष्य का रूप धारण कर सकते िैं, पररयााँ

स्वगष लोक से उतरकर जमीन पर आ सकती िैं और मनुष्य की सिायता कर सकती िैं, पेड पौधे बात कर सकते िैं,

अदृश्य शद्वियां थोडे से अनुष्ठान से मनुष्य के सिायक िो सकते िैं। मानवीय ररश्तों पर आधाररत कई लोक कथाएं

लोक समाज में प्रचद्वलत िोती िैं जो िमारी वाद्वचक परंपरा की अमूल्य धरोिर िैं। नानी दादी की वाणी में सुनी
लोक कथाओं का आस्वाद िी द्वभन्न िोता िै।

लोकोद्वि

• लोकोद्वि लोक अनुभव का साद्वित्य िै। मानव मद्वस्तष्क इद्वतिास, परंपरा और संस्कृ द्वत से द्वनरंतर कु छ
ना कु छ ग्रिण करता रिता िै। और वि उसे अपने अनुभव में संद्वचत करता रिता िै। अपने ददन
प्रद्वतददन के जीवन में अपने पूवष ज्ञान के अनुभवों को कम से कम शब्दों और साथषक शैली में अनुकूल
अवसर आने पर प्रकट करता िै। यिी सरल, सुबोध, जीवन उपयोगी उद्वियााँ लोकोद्वि साद्वित्य
किलाती िै। लोकोद्वि साद्वित्य की परंपरा अत्यंत प्राचीन िै। लोक साद्वित्य की समस्त द्ववधाएं
लोकोद्वि से िी समृद्ध हुई िैं। लोक गीत लोक कथा, लोक गाथाओं में लोकोद्वियों की समृद्ध परंपरा
मौजूद िै। हिंदी साद्वित्य कोश में लोकोद्वि साद्वित्य को दो भागों में बांटा गया िै- किावतें और पिेली।

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• किावतें लोक संस्कृ द्वत के संवािक िोती िैं। मनुष्य की द्वनष्ठा, बौद्वद्धक क्षमता, सामाद्वजक बोध का ज्ञान
किावतों में मुखर िोता िै। किावतें सावषभौद्वमक और सवषयुगीन िोती िैं। पिेली वाद्वचक परमपराओं
अथषवान धरोिर िै। डॉ.द्ववक्रमाददत्य द्वमश्र के अनुसार, "पिेद्वलयां सूत्रबद्ध शैली में द्वनबद्ध अनाददकाल से

चले आ रिे गिरे हचंतन-मनन का पररणाम िै, जो अत्यंत व्यापक िै तथा द्वजन्िें उपाख्यान गल्प, लोक

कथा, लोकोद्वि आदद की श्रेणी में रखा जाता िै। कू टपद, मुकररयां, बुझौवल, अटका, ढकोसला आदद
पिेली के द्ववद्वभन्न नाम िैं।

बुद
ं ेलखंड का लोकसाद्वित्य
बुंदेली पद्विमी हिंदी की पांच बोद्वलयों में से एक िै। यि िज भार्ा तथा कन्नौजी के साथ द्वमलकर पद्विमी हिंदी
बोद्वलयों का एक वगष बनाती िै। बुंदेली बुंदेलखंड की बोली िै। इसका शुद्ध रूप उिर प्रदेश के झांसी, जालौन,

िमीरपुर तथा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर आदद द्वजलों में देखने को द्वमलता िै। बुंदेलखंडी का

द्ववशुद्ध रूप आज भी उसके प्राचीन लोक साद्वित्य, लोकगीतों, लोक किावतों, लोकगाथाओं,लोककथाओं में
पाया जाता िै ।

https://www.mpgkpdf.com/2020/02/madhyapradesh-ka-bhautik-vibhaajan.html

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बुद
ं ल
े खंड के लोकगीत

बुंदेलखंड के लोकगीतों में द्ववद्ववधता द्वमलती िै। बुंदेलखंड में सामान्यतः दो अवसरों पर गाए जाने वाले गीत आते
िैं- पिले उत्सव एवं त्योिारों पर गाए जाने वाले लोकगीत। दूसरे जीवन के द्ववद्वभन्न संस्कारों से संबंद्वधत लोकगीत।
बुंदेलखंड के लोकगीत में यिां की संस्कृ द्वत, प्रथाएाँ -परंपराएाँ, आचार-व्यविार, हचंतन, स्वभाव, जनमानस की
संवेदनाएं स्पष्ट रूप से पररलद्वक्षत िोती िैं।यिां के संस्कार गीतों में जन्म के अवसर पर गाए जाने वाले गीत द्वजनमें
से सोिरे , बधाई, सररया, कु आं पूजन, झूला गीत, पासनी, मुंडन द्वववाि के सभी रीद्वत-ररवाजों के द्वलए यथा-

बनरा-बनरी, िल्दी-तेल के गीत, मातृका पूजन, देवी देवताओं के द्वनमंत्रण गीत, चीकट गीत,िारचार गीत, चढाव

गीत, चीकट गीत भांवर गीत, कं गन छोडने के गीत, द्ववदाई गीत आदद। उत्सवों एवं तीज त्योिारों त्योिारों पर

गाए जाने वाले गीतों में कार्तषक गीत, पवष गीत, ऋतु गीत, बारिमासा, देवी भिें , दादरा, कजरी, िरदौल चररत,

लांगुररया, खेल गीत (नौरता, मामुद्वलया एवं टेसु खेलने के गीत) फाग, सावन गीत, पनघट गीत, जाद्वत
गीत(दढमरयाई गीत कनाडा गीत) आदद यिां द्ववद्वभन्न प्रकार के गीत गाए जाते िैं बेटी के द्ववदाई के गीत यिां की
अत्यंत मार्मषक िोते िैं एक उदािरण-

कच्ची ईंट बाबुल देिरी न धररयो।

बेटी न दइयो परदेस मोरे लाल।

उत्सवों एवं तीज त्योिारों त्योिारों पर गाए जाने वाले गीतों में कार्तषक गीत (यिां मद्विलाएं पूरे कार्तषक मास में
नदी या सरोवर में जाकर स्नान करके कृ ष्ण की आराधना करती िैं। और गीतों को गाकर राधा कृ ष्ण लीला पर
स्वांग भी खेलती िैं) पवष गीत, ऋतु गीत, बारिमासा, देवी भिें , दादरा, कजरी, िरदौल चररत, लांगुररया, खेल

गीत (नौरता, मामुद्वलया एवं टेसु खेलने के गीत) फाग, सावन गीत, पनघट गीत, जाद्वत गीत(दढमरयाई गीत,
कनाडा गीत) आदद यिां द्ववद्वभन्न प्रकार के गीत गाए जाते िैं।

https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/others/navratri-2022-the-wonderful-tradition-of-celebrating-navratri-festival-in-bundelkhand/articleshow/90724328.cms

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े खंड के लोक भजन- बुंदेलखंड में द्वनगुषण भजनों की अपेक्षा सगुण भजनों का बाहुल्य िै। इस अंचल में
आदद देव मिादेव, पावषती, राधाकृ ष्ण, सीताराम, िनुमान, श्री गणेश, गंगा, तुलसी आदद के भजन अद्वधक प्रचद्वलत

िैं। देवी के द्ववद्ववध रूपों की आराधना के द्वलए यिा भिें गाई जाती िैं।यिां की कु छ भजनों में 'चंद्र सखी' तथा

'तुलसीदास आस रघुवर की' का प्रयोग भजन के अंद्वतम पदों में द्वमलता िै। यिां के द्वनगुषण लोक भजनों में

गोरखनाथ, मछंदर नाथ, कबीर,रैदास, भरथरी जैसे साधु पुरुर्ों की संतवाणी का प्रभाव ददखाई देता िै। कबीर
के आध्यात्मवाद का

द्वनगुषण भजनों पर प्रभाव सवाषद्वधक ददखाई देता िै। यिां मंडद्वलयों िारा गाए जाने वाले भजनों में सामान्य रूप

से ढोलक, मृदंग, झांझ, मंजीरा, करताल, खडताल तथा लोटे का प्रयोग िोता िै।

बुद
ं ल
े खंडी ऋतु गीत- बुंदल
े ी लोकगीत में द्ववद्वभन्न मैं द्ववद्वभन्न ऋतुओं में द्ववद्वभन्न गीत गाए जाते िैं। इन गीतों
में मामूद्वलया के गीत नारे सूअटा (नौरता) दीवारी गीत आदद प्रमुख िैं।

श्रम संबध
ं ी गीत- बुंदेलखंड में कृ र्क जाद्वतयों में िोली गीत, द्वबरिा गीत, चरवािों एवं गडेररयों के गीत फसल
बोने और काटने के गीत। इसके अद्वतररि द्वस्त्रयां चक्की पीसते समय भी गीत गाती िैं। और द्वस्त्रयां पनघट के गीत
(पानी भरते समय के गीत) बहुत िी भावमय ढंग से गाती िैं।

बुद
ं ल
े खंड की लोक गाथा

बुंदेलखंड लोक गाथाओं की खान िै। मिोबा नगर में जन्मा आल्िा खंड के अलावा राछरे , पंवारे , और पौराद्वणक

गाथाएं इस लोक अंचल में गाई जाती िैं। राजा भरथरी, नल, सरवन (श्रवण कु मार) िरदौल, अमान हसंि, कारस

देव गाथा, ढोला -मारू गाथा, प्रवीण राय की गाथा, मदषन हसंि की गाथा, धन हसंि की गाथा रानी लक्ष्मीबाई

से लेकर गांधीजी और भगत हसंि तक उनके नायक िैं। इनमें युद्ध प्रेम लोक व्यविार आध्याद्वत्मक और चमत्कारों
की बहुरंगी छटा िै। द्वपतृभद्वि का संदेश देती सरवन (श्रवण कु मार) की गाथा बुंदेली जनता का भरपूर मनोरंजन
करती िै। उदािरण स्वरूप कु छ पंद्वियां-

सुनो सुनो मोरे जजमान- िर गंगा।

उठो देव गंगा को दान- िर गंगा।

पााँच बरस के सरवन भए- िर गंगा ।

लै पाटी पााँडे को गए- िर गंगा।

बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


बी.एच.एससी.,बी.सी.ए., बी.बी. ए. द्वितीय मध्यप्रदेश का लोकसाद्वित्य [संकद्वलत ]इकाई-2 मॉड्यूल क्र.: 2. 3
वर्ष
बुद
ं ल
े खंड की लोककथा

बुंदेलखंड की लोक कथाओं की भार्ा लच्छेदार िोती िै। कथाओं के बीच में दोिा और काव्य पंद्वियां पात्रों के
संवाद के रूप में आते िैं जो कथा के भाव सौंदयष को बढ़ाते िैं कथा दकसी द्वशक्षा को लेकर चलती िै यिां दादी या
नानी की कथाओं में बाल मनोद्ववज्ञान की दृद्वष्ट िोती िै चरवािा गडररया दकसान आदद जंगल में बैठकर श्रम
पररिार के द्वलए कथाएं सुनाते िैं िर कथा का अपना उद्देश्य िोता िै बुंदेलखंड अंचल की रीद्वत ररवाज, संस्कार,

लोक मूल्य, लोक द्ववश्वास आदद की भी कथाएं िोती िैं। यिां प्रमुख धार्मषक कथाएं िैं- िरताद्वलका तीज की

कथा, भैया दूज की कथा, संकटा माता की कथा, गणेश चतुथी की कथा, अवसान देवी की कथा, दशामाता की

कथा, देवशयनी एकादशी, सोमवती अमावस्या, तुलसी द्वववाि, सुिागलों की कथाएं आदद लोक कथाएं िैं।

https://bundelkhand.troopel.com/2021/06/blog-post_60.html

बुद
ं ल
े खंड का लोकोद्वि

बुंदेलखंड का लोकोद्वि साद्वित्य बहुत समृद्ध िै। बुंदेली लोकोद्वियां मानवीय जनजीवन में व्याप्त सुख-दुख की मनः
द्वस्थद्वत को समझने का बैरोमीटर किी जा सकती िैं। इसमें राग-िेर्, मान -अपमान, प्रेम-अिंकार िर्ष-द्ववर्ाद
आदद की किावतें व्यविाररक जीवन में जीवन प्रयुि िोती िैं।

स्वाद्वभमान को व्यि करने के द्वलए किी किावत-

नााँऊ नााँऊ की बारात। रटपारो को लेत।

िम भी रानी तुम भी रानी कौन भरे घर को पानी।


बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)
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बुंदेली किावतें लोक-जीवन में मनोद्ववकारों की खूद्वबयों और खाद्वमयों का जीवंत प्रमाण देती िैं। जैसे हृदय से
अनुदार वृद्वि वाले के द्वलए कु छ इस तरि से-

1.दाता देय भंडारी को पेट द्वपराय।।

2.सड जाये कु टुम ने खाय।

कु टम के खायें भसम िो जाय।।

3. लोभी को धन लावरो खाव।

4.बूढ़ों खाय गांठ िो जाए।

किावतें लोक जीवन की सच्चाई एवं मनोदशाओं सच्चा आंकलन प्रस्तुत करती िै -

1.गुड खाने गुलगुले से परिेज।

2.पढ़ै फारसी बेचे तेल जे देखो कमषन के खेल।

3.िाथ ने मुट्ठी खुनखुना उठी ।

4.मन भावे मूड द्विलावे ।

5.कम खाने, गमम खाने न िकीम के जाने ने िकीम के ।

इस तरि बुंदेली लोकोद्वियां कालातीत प्रभाव का द्विस्सा िैं। वि प्रत्येक देश काल में संस्कारों, आदतों और सूक्ष्म
संवेदनाओं का समावेशी चररत्र द्वलए िोती िैं।

http://lakheraharish.com/2017/04/01/%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%9c%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%97-

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बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


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बघेलखंड का लोक साद्वित्य
बघेलखंड मध्य प्रदेश का एक सांस्कृ द्वतक व अंचल िै।द्वजसका संबंध द्वचरकाल से अवधपुरी से रिा िै। और यिी
कारण िै दक यिां की बोली भार्ा में अवध का सांस्कृ द्वतक प्रभाव प्रतीत िोता िै। बघेलखंड हवंध्याचल पवषत श्रेणी
में द्वस्थत प्राकृ द्वतक सौंदयष का धनी िै। बघेलखंड की आध्याद्वत्मक भावनाओं से ओतप्रोत िै।द्वशव पावषती की
आराधना यिां के लोग जीवन की प्रमुखता िै। द्वजसका प्रमाण िै दक अंचल के प्रत्येक गांव आंगन-आंगन में तुलसी
के द्वबरवा के नीचे द्वशव का प्रतीक गोल-बटइया अवश्य पाई जाती िै। बघेलखंड की सांस्कृ द्वतक परंपरा में यिां की
जनसाधारण दक अपनी द्ववशेर् अद्वभव्यद्वि एवं आंचद्वलकता का समावेश द्वमलता िै।यिां गाए जाने वाले द्वववाि
गीत अपनी कलात्मक अद्वभरुद्वच, सौंदयष एवं सामाद्वजक लोकाचारों की सुंदर झांकी प्रस्तुत करते िैं।

बघेलखंड के लोकगीत

यिां बघेलखंड में बच्चे के जन्म के उत्सव पर सोिर गीत, प्रसव पूवष के गीत, प्रसव के बाद के गीत, मुंडन गीत,

यज्ञोपवीत संस्कार के गीत, आदद अवसरों पर गीत गाए जाते िैं।यिां के वैवाद्विक गीत कलात्मक अद्वभरुद्वच एवं

सामाद्वजक लोका चारों की सुंदर झांकी प्रस्तुत करते िैं। वैवाद्विक अवसरों पर माटी-मााँगर गीत,माँडवा के गीत,

न्योताने के गीत (देवी देवताओं को द्वववाि पर द्वनमंद्वत्रत करना) िल्दी-तेल के गीत, िारचार के गीत (दूल्िे के
आगमन पर गाए जाने वाले गीत)

चढ़ाव के गीत (कन्या को ससुराल से आए वस्त्र आभूर्ण पद्विनाए जाते िैं) भांवर के गीत, कन्यादान के गीत, जेव

नार की गारी (मंडप, िारचार,चढ़ाव चढ़ने, कोिबर तथा जेवनार के समय यिां की मद्विलाओं िारा गारी गाई
जाती िै गारी अथाषत गाद्वलयां देना द्वजसमें यिां मद्विलाएं खुलकर अश्लीलता भरे शब्दों का प्रयोग करती िैं) बेटी
की द्ववदाई के गीत, परछन के गीत (बरात गाजे-बाजे के साथ दुल्िन लेकर जब वापस आती िै तो सुिागन द्वस्त्रयां

मंगल-कलश और आरती लेकर िार पर खडी िोती िै इसी को 'परछन' किते िैं।) इस खुशी के अवसर पर गाए

जाने वाले गीत "परछन गीत" किलाते िैं।1 उदािरण के द्वलए

द्वबआद्वि-लाये रघुवर, जानकी का आपहुाँ ल्याये सुंदर रानी ।

िमको लै आए बहुररया द्वबआद्वि लाये रघुवर, जानकी का।।

बघेलखंड के भजन- बघेलखंड के हिंदओं


ु का सनातन धमष एक समय तक शैव था और इनके आराध्य मिादेव
शंकर रिे। वैष्णव धमष की परंपरा भी यिां रिी। बघेलखंड में सगुण भजन के अंतगषत मुख्यतः द्वशव,राम तथा गौण
रूप से कृ ष्ण से संबंद्वधत भजन द्वमलते िैं। बघेलखंड में सगुण भजनों की अपेक्षा नाथपंथी योद्वगयों तथा संत मतों
से प्रभाद्ववत लोक भजन अद्वधक प्रचद्वलत िैं।

बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


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बघेलखंडी ऋतु गीत- बघेलखंड में वर्ाष गीत, बारिमासा गीत, फगुआ, चैती, कजरी, झूला-गीत, हिंडोली
गीत आदद प्रमुख िैं।

https://www.patrika.com/agra-news/sawan-2017-jhula-good-for-health-news-in-hindi-1-1694050/

बघेली जातीय गीत- किार-कोली गीत,कोली- कोरी गीत,चमार गीत, अिीर गीत, नाऊ-बारी गीत, धोबी
गीत आदद यिां द्ववद्वभन्न उत्सवों पर गाए जाते िैं।

बघेली लोक गाथा

बघेलखंड में पारंपररक गाथा गायक िैं जो श्रवण कु मार की गाथा,मोरध्वज की गाथा, गोपचंद्र गाथा, भरथरी

गाथा, भोले बाबा की गाथा का गायन करते िैं ।भरतरी राजा की गाथा में भरथरी और रानी हपंगला की गाथा
का गायन िोता िै। इसके अद्वतररि अन्य जातीय लोक गाथाओं में लोरकी अिीरों की जातीय लोकगाथा िै।
बघेलखंड में लोक गाथा में 'आल्िा उदल' की गाथा सबसे अद्वधक लोकद्वप्रय िै।

https://freehindipustak.com/pratapi-alha-aur-udal-swami-vishvanath-acharya-pdf-in-hindi-free-download/

बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


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बघेली लोक कथाएाँ

बघेली में लोककथा का का स्वरूप अत्यंत प्राचीन िै।इनमें पशुओं की कथाएाँ, परीकथाएाँ, धार्मषक

कथाएाँ, सािद्वसक कथाएाँ, पौराद्वणक कथाएाँ, अनुष्ठाद्वनक कथाएाँ आदद प्रद्वसद्ध िैं।बघेली लोक कथाओं का
प्रमुख उद्देश्य लोकरंजन और उपदेश िोता िै। बघेली लोक कथाएं चंपू शैली में िोती िैं।इसमें गद्य और पद्य दोनों
िी तत्व मौजूद िोते िैं। इन लोक कथाओं में मनुष्य पशु पक्षी देवता दानव भूत-प्रेत जड चेतन तमाम प्रकार के
पात्र इन लोक कथाओं में सदक्रय िोते िैं। बघेली लोक कथाएं सुखांत िोती िैं। बघेली लोक समाज में िर वगष के

पात्र गरीब-अमीर, उच्च वगष-द्वनम्न वगष, साधु-संत, फकीर आदद इन लोक कथाओं में रेखांदकत दकए गए िैं।

https://www.youtube.com/watch?v=wckhiChoRv8

बघेलखंड का लोकोद्वि साद्वित्य


बघेलखंडी किावतों से एक और िमें इस प्रदेश की संस्कृ द्वत का ज्ञान िोता िै तो दूसरी ओर िमें यिां की जनता की
द्वनष्ठा एवं मानद्वसक उवषरता का भी पररचय द्वमलता िै। यिां जन-जन की प्रवृद्वतयां किावतों में बडी सरलता से
द्वचद्वत्रत हुई िैं। उदािरण के द्वलए

राजा नल पर द्ववपद्वि परी,

भुजीं मेरी दि मा परी ।

(अथाषत् राजकु मार ने कई ददनों से भूखे थे। कु छ मछद्वलयां भून कर उन्िें खाने को दी गई। जैसे िी राजकु मार नल
भुनी हुई मछद्वलयों को उठाकर खाना लगे मछद्वलयां उछलकर पानी में तैरने लगी।)

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इसी प्रकार कोई व्यद्वि पिली बार कु छ कायष प्रारंभ करें तो उसे सफलता निीं द्वमलती इस परअनुभव संपन्न व्यद्वि
बोल पडता िै-

पद्विले मुद्वडया मूड मुडाइन,

पद्विले पररगा पाथर पानी।

इसी प्रकार कु छ और तुकबंदी युि किावतें-

* जेकर खाई तेकर गाईष , * कमाय का िसर-िसर, नापै का पसर-पसर।

* सेमी के तरकारी, मैभा मितारी।

* आशीवाषद स्वरूप लोकोद्वियााँ-

सेर भर पीसे सबा सेर िोई,

राम करै भउजी के बेटवा िोई।

बघेलखंड मानव प्रकृ द्वत संबध


ं ी किावतें, नीद्वत संबंधी, पशु-पक्षी, पुष्प संबंधी, जाद्वत संबंधी, व्यवसाय संबंधी,

स्वास््य संबंधी,यात्रा द्ववर्य संबंधी अनेक प्रकार की किावतें अद्वभव्यि हुई िै।

https://bestlokkathayen.blogspot.com/2018/05/blog-post_28.html

बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


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मालवा का लोक साद्वित्य

मालवा अंचल मध्य प्रदेश का हृदय स्थल िै। यिां की प्राकृ द्वतक, सांस्कृ द्वतक, साद्विद्वत्यक एवं सामाद्वजक वातावरण
के साथ िी यिां की लोक संस्कृ द्वत लोक साद्वित्य और लोक संगीत भी समृद्ध िै। मालवा अंचल अपनी सांस्कृ द्वतक
संपन्नता के कारण प्रद्वसद्ध िै अपने आचार द्ववचार, रिन-सिन एवं मयाषदा की दृद्वष्ट से मालवा अंचल अपनी उत्कृ ष्ट

पिचान बनाए हुए िै। मालवा में िर धमष, दशषन, संप्रदाय और लोग द्ववश्वास के लोग आते रिे, यिां फले फू ले और
द्ववकद्वसत हुए। मालवा में भौगोद्वलक एवं सांस्कृ द्वतक द्ववद्ववधता के कारण अलग-अलग छटाएं यिां के लोक जीवन
में ददखाई देती िैं। इन्िीं से मालवी के अलग-अलग क्षेत्रीय रूप और बोद्वलयां अद्वस्तत्व में आईं।यिां के संबंध में एक
प्रद्वसद्ध उद्वि िै-

"बारि कोस पर वाणी बदले,

पााँच कोस पर पाणी।"

मालवा के लोकगीत
मालवा के लोक गीतों में भी वीररस एवं पुरुर्त्व प्रभाव का अभाव पाया जाता िै। यिां के लोकगीतों में उदार
मनोवृद्वत और नैद्वतक आदशों की छाप देखी जाती िै। मालवी गीतों की सामान्य प्रवृद्वि मुख्य रूप से राजस्थानी
संस्कारों और गुजराती मान्यताओं से प्रभाद्ववत िोती िै। मालवा का जनमानस प्रकृ द्वत से िी समारोि द्वप्रय िोता
िै। यिां पर बच्चों के जन्म, द्वववाि के आयोजन आदद बडी धूमधाम से दकए जाते िैं। द्वववाि के प्रत्येक रीद्वत-ररवाजों
के अनुसार मद्विलाओं के मुंि से सुमधुर लोकगीत द्वमलते िैं। मालवी द्वववाि के लोकगीतों में मानव मन की कोमल
भावनाओं का सूक्ष्म वणषन पाया जाता िै। वैवाद्विक शुभ कायों में सगाई, माता पूजन, चाक पूजन( गणेश वंदना

के गीत) परभाद्वतया (अनाज साफ करने, बीनने,फटकने के के समय गाए जाने वाले गीत)

द्वचकला (िल्दी तेल चढ़ाने पर मद्विलाएं गाती िैं) बीरा-मामेरा( वर वधु के के मामा की ओर से वस्त्रा वस्त्र आभूर्ण
लाने की प्रथा उसे पैरावनी भी किते िैं। मंडप के नीचे सममान के साथ सभी को कपडे ददए जाते िैं।इस अवसर
पर मद्विलाएं बीरा मामेरा गीत गाती िैं) मांगद्वलक िल्दी तेल के पिात मांगद्वलक स्नान के गीत "खद्वलयल"गाए
जाते िैं ।मालवा के सुदरू अंचलों में बारात प्रस्थान के पूवष कु छ ददनों पूवष प्रद्वतददन बनडे को घोडी पर बैठा कर
गाजे-बाजे के साथ गांव मोिल्ले में घुमाया जाता िै। इस अवसर पर गाए जाने वाले गीतों को "बनोला" किते िैं।

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घोडी सेवेर (वर द्वनकासी के गीत) िथलेवा गीत सुिाग कामण (दुल्िन को सुिाग कामण बांधने की प्रथा) और
बेटी की द्ववदाई के गीत आदद वैवाद्विक रस्मों के गीत िैं।

https://www.youtube.com/watch?v=k687nFLnm0g

मालवा के लोक भजन-

मालवी लोक मानस को नाथपंथी, जोद्वगयों तथा संतों की गुरुवाणी ने सदा से िी प्रभाद्ववत दकया िै। यिां संत

हसंगा जी के गीत प्रचद्वलत िैं। इसी के साथ नाथ जोगीणों के प्रभाव के कारण भरथरी, गोरखनाथ, मछंदर नाथ,

और गोपीचंद के गीत भी सुने जा सकते िैं। मालवी लोक गीतों में देवी -देवताओं एवं पूवषजों के प्रद्वत अपार श्रद्धा

पाई जाती िै,क्योंदक देवी देवता भिों को मनोवांद्वछत फल देते िैं। यिां के लोक भजनों में द्वचकारा, तंबूरा तथा
इकतारा प्रयोग पारंपररक रूप से दकया जाता िै।

मौसम संबंधी गीत द्ववद्वभन्न ऋतुओं सावन-भादो, फाल्गुनी पर लोक गीत गाए जाते िैं।

ररश्ते नाते संबंधी गीत-के अंतगषत पद्वत-पत्नी, भाई-बिन,बहू-सास, देवर -भाभी, देवरानी-जेठानी आदद पर गीत
गाए जाते िैं।

मालवा के लोक गाथा मालवा में लोक गाथाओं का अक्षय भंडार िै यिां की प्रद्वसद्ध लोक गाथाओं में िी ढोला-
मारवाड, तेजा धोल्या,ग्यारस माता, नागजी-दूलजी,ग्यारस-माता, सोरठी कुाँ वरी, राजा द्ववक्रमाददत्य, रानी

रूपमती, गोपी चंद्र, एवं भरथरी की गाथाएं आज भी बुजग


ु ों की मुंि से सुनी जाती िैं।

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मालवा के लोक गाथा

मालवा में लोक गाथाओं का अक्षय भंडार िै यिां की प्रद्वसद्ध लोक गाथाओं में िी ढोला-मारवाड, तेजा

धोल्या,ग्यारस माता, नागजी-दूलजी,ग्यारस-माता, सोरठी कुाँ वरी, राजा द्ववक्रमाददत्य, रानी रूपमती, गोपी

चंद्र, एवं भरथरी की गाथाएं आज भी बुजुगों की मुि


ं से सुनी जाती िैं।

https://www.bundeliijhalak.com/dhola-maru-ko-rachhro/

मालवी लोक कथाएाँ

मालवी लोक कथाएाँ लोक मन के मनोरंजन का सरल साधन िैं। मालवी लोक कथाएाँ प्रेम, द्वशक्षा, मनोरंजन,

चतुराई, पशु-पक्षी, व्रत-त्योिार कृ द्वर् आदद ।

संबंद्वधत िैं। इसके अद्वतररि यिां ऐद्वतिाद्वसक पात्रों की कथा राजा द्ववक्रमाददत्य, राजा भरथरी एवं रानी हपंगला
की अनेक लोक कथाएं लोक में व्याप्त िै। ।

यिां की दशा रानी की किानी और कलगी तुराष की किानी भी बुजुगों के मुंि से सुनी जाती िै

मालवी लोकोद्वि साद्वित्य


मालवी में लोकोद्वियों को ओखाणा किते िैं। मालवी लोकोद्वियों में लोक मानस के संस्कारों को बडी गिराई से
मिसूस दकया जा सकता िै। इसमें प्रमुख लोकोद्वियां िै-

ऊंट-बेल को जोतणो

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(बेमेल जोडी पर किी किावत िै)

राम दे तो रामलाल नी खावा दे

(दकसी का िक छीनना)

मरी गाय को गोबरज सई (थोडे लाभ से संतुष्ट िोना)

द्वनमाड का लोकसाद्वित्य
हवंध्याचल सतपुडा एवं नमषदा की पावन गोद में द्वस्थत द्वनमाड अंचल सददयों से लोक संस्कृ द्वत की उत्सभूद्वम रिा
िै यिां के लोक जीवन की सांस्कृ द्वतक अद्वभव्यद्वि सदैव मार्मषक और ह्रदय ग्रािी रिी िै। भौगोद्वलक दृद्वष्ट से
द्वनमाड मालवा के समीप िै ककं तु दोनों की सांस्कृ द्वतक जीवन में मूलभूत द्वभन्नता िै। यदद मालवा की आत्मीयता
राजस्थान से िै तो द्वनमाड का अंतसंबंध गुजरात से।

https://www.mpgkpdf.com/2020/02/madhyapradesh-ka-bhautik-vibhaajan.html

द्वनमाड के लोकगीत

द्वनमाड में द्वववाि से संबंद्वधत गणेश पूजन, द्वतलक के गीत, बधाई गीत,कु कडा गीत जोली माल की मद्विलाएं मंगल

ददनचयाष प्रारंभ िोने पर गाती िैं,सााँजुली गीत शुभ संध्या के समय वैवाद्विक मांगद्वलक कामना के द्वलए मद्विलाएं

इकट्ठे िोकर गाती िैं। बन्ना गीत, बाना गीत (बन्ना बन्नी को िल्दी लगने के बाद पिात पूरे ग्राम में सज धज कर
घोडी पर बैठा कर बाना द्वनकाला जाता िै और पूरे गांव में भ्रमण करवाया जाता िै तब मद्विलाएं बाना गीत गाती
िैं।) स्मृद्वत गीत (द्वववाि के शुभ मुहूतष पर अपने पूवषजों को स्मरण करने की सांस्कृ द्वतक प्रथा)मंडप के गीत, मायरा

गीत, द्वनमाडी भात गीत, द्ववदा गीत शादी द्वववाि के गीत िै ।

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द्वनमाडी के लोक भजन-

द्वनमाड में सगुण गीतों की अपेक्षा द्वनगुषण द्ववचारधारा वाले भजन ज्यादा प्रचद्वलत िैं। इन भजनों में भरथरी,

गोरखनाथ, मछंदर नाथ, गोपी चंद्र आदद संतों की वाणी का प्रभाव स्पष्ट ददखाई देता िै।कबीर के आध्यात्म से

प्रभाद्ववत "कबीरा" द्वनगुषण लोक भजन द्वनमाड में बहुत प्रचद्वलत िैं।द्वनमाड के 'मसाण्या' द्वनगुषण लोक भजनों का
आध्याद्वत्मक सौंदयष अनूठा िै।

ऋतु गीत-

द्वनमाड में सावन कार्तषक फागुन सेट आसान और बारिमासा गीत गाए जाते िैं ।

श्रम गीत-

िल जोतने, फसल बोंने फसल हनंदाई, नाव खेन,े व्यवसाय आदद के गीत गाए जाते िैं ।

अन्य गीतों के अंतगषत यिां तीथष यात्रा गीत, भीलट देव गीत, भैरूदेव, शीतला माता गीत, पौराद्वणक आख्यान

पर आधाररत गीत, गणगौर के गीत, हसंगाजी के भजन, रामदेव के भजन, देवी देवताओं के गीत आदद गाए जाते
िैं।

द्वनमाडी लोक गाथा


द्वनमाड अंचल अपनी लोक गाथाओं के द्वलए समृद्वद्ध रिा िै। यिां पौराद्वणक आख्यान ऊपर आधाररत गाथाएं जैसे
िररिंद्र आठवां लक्ष्मण शद्वि गाथा सुभद्रा द्वववाि गाथा मिाभारत कथा श्रवण कु मार गाथा आदद प्रद्वसद्ध िै इसके
अद्वतररि यिां ऐद्वतिाद्वसक पात्रों को लेकर भी लोग गाथाएं िैं- अद्विल्या गाथा, राजा खंडेराव की गाथा, यशवंत

राव िोल्कर की गाथा, राजा चैनहसंि रांगडा की गाथा, रायसल गाथा आदद इसके अद्वतररि द्ववशुद्ध लोक की

लोक गाथाएाँ जैसे ढोला-मारू गाथा, काजल रानी गाथा, भीलट देव गाथा, गोंडेन नार गाथा आदद प्रमुख िैं।

बीए, बी.एससी, बीकॉम, आधार पाठ्यक्रम (भार्ा और संस्कृ द्वत)


बी.एच.एससी.,बी.सी.ए., बी.बी. ए. द्वितीय मध्यप्रदेश का लोकसाद्वित्य [संकद्वलत ]इकाई-2 मॉड्यूल क्र.: 2. 3
वर्ष
https://www.patrika.com/ajmer-news/innovation-daily-college-students-prepare-film-on-devi-ahilya-7152454

द्वनमाडी लोक कथा


लोक कथा को लोक वाताष भी किते िैं द्वनमाडी लोक कथा के वल मनोरंजन निीं अद्वपतु उद्वचत संदेश को लेकर भी
चली िै द्वनमाडी लोक कलाओं में पाप-पुण्य से लेकर स्वगष-नरक तक की द्ववर्य वस्तु को लेकर चली िैं।इनमें
धार्मषक कथाएं, पशु पक्षी संबंधी कथाएं, पररयों की और अप्सराओं की कथाएं, जादू टोने की कथाएं, वीरता परक

कथाएं, साधु-फकीरों की कथाएं, ऐद्वतिाद्वसक कथाएं और अन्य कथाएं आदद सद्वममद्वलत िैं। द्वनमाड में कु छ लोक

कथाओं के शीर्कष जैसे जादू की अंगूठी, ऋद्वर् पंचमी, िरताद्वलका की कथा, भोला का भगवान, आदद कु छ नाम िैं।

https://www.achhikhabar.com/2016/10/03/pauranik-kathayen-in-hindi-%

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द्वनमाडी लोकोद्वि साद्वित्य

द्वनमाडी लोक साद्वित्य में पौराद्वणक कथाओं, मिाभारत कथा, श्रवण कु मार गाथा, यशवंत राव िोल्कर की गाथा,
अद्विल्या गाथा आदद अनेक रूपों में किावतें लोक जीवन की संपदा के रूप में आज भी जीवंत िैं। द्वनमाडी किावतें
लोक जीवन में मनोद्ववकारों की खूद्वबयों और खाद्वमयों का जीवंत प्रमाण देती िैं-

1.देनों न,मंढ़ो लडानो।

2.करी द्वलयो सो काम, द्वलयो सो राम।

3.एक तवा की रोटी, काई छोटी काई मोटी।

4.दया को मूल धमष, पाप को मूल भरम।

5.एक बेटी माथा ठोकी।

3. सारांश / Summary

मध्य प्रदेश भारत की हृदयस्थली िोने के साथ-साथ कलास्थली भी िै। प्राचीन काल से िी यिां की गौरवशाली
परंपरा रिी िै। यिां की लोक कला, लोकगीत, लोकनाट्य, लोकगाथा, लोककथा,लोकोद्वियााँ, लोक द्वचत्रकला,
लोक नृत्य कला अत्यंत समृद्ध और द्ववद्ववधता से भरे हुए िैं। प्रकृ द्वत के साथ से गिराई से जुडे हुए िोने के कारण
मध्य प्रदेश की लोक संस्कृ द्वत मूल्यों से अनुप्राद्वणत िै। और अपनी द्ववद्वशष्टता बनाए हुए िै। प्रदेश की सांस्कृ द्वतक
द्ववद्ववधता और लोक कला की बहुरंगी द्ववशेर्ता के कारण यि अपने आप में अद्वितीय राज्य िै। मध्यप्रदेश की कोई
एक संस्कृ द्वत निीं िै यिां मालवी, बुंदेली, बघेली, और द्वनमाडी संस्कृ द्वत के द्ववद्ववध रंग िैं। प्रत्येक अंचल का एक
अलग जीवंत लोक जीवन बोली और पररवेश िै। यिां द्ववद्वभन्न लोक और जनजातीय संस्कृ द्वतयों का समागम िै।
यिां की कोई एक लोक संस्कृ द्वत निीं िै।यिां पााँच लोक संस्कृ द्वतयों के अद्वतररि अनेक जनजाद्वतयों की संस्कृ द्वत का
द्ववस्तृत फलक पसरा िै।

4. संदभष / References

1.पटेररया, द्वशवअनुराग, मध्य प्रदेश अतीत और आज, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी, भोपाल ।

2.द्वनगुषणे वसंत, लोक संस्कृ द्वत, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी,भोपाल ।

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बी.एच.एससी.,बी.सी.ए., बी.बी. ए. द्वितीय मध्यप्रदेश का लोकसाद्वित्य [संकद्वलत ]इकाई-2 मॉड्यूल क्र.: 2. 3
वर्ष
3.मुखजी रवींद्रनाथ, भारतीय समाज व संस्कृ द्वत, द्वववेक प्रकाशन ।

5.पांडे आनंद कु मार, मध्य प्रदेश सामान्य ज्ञान संदभष, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी,भोपाल ।

6.गुप्त नमषदा प्रसाद, बुंदेली लोक साद्वित्य परंपरा और इद्वतिास, मध्य प्रदेश आददवासी लोक कला पररर्द,भोपाल

7.उपाध्याय रामनारायण, द्वनमाड का लोक साद्वित्य और संस्कृ द्वत, द्ववश्व भारती प्रकाशन, नागपुर ।

8. परमार (डॉ) श्याम, मालवी और उसका लोक साद्वित्य, हिंदस्ु तानी अकै डमी, इलािाबाद ।

9 .द्ववकल गोमती प्रसाद ,बघेली संस्कृ द्वतऔर साद्वित्य,के .ए.कबीर,राजभार्ा एवं संस्कृ द्वतसंचालनालय,भोपाल ।

10.शरीफ मोिममद,मध्यप्रदेश का लोकसंगीत,मध्यप्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी,भोपाल ।

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