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महात्मा गााँधी के न्द्रीय विश्ववियालय,मोवतहारी,वबहार

मानविकी एिं भाषा संकाय


संस्कृ त-विभाग
एम.फिल्./ पी-एच.डी
प्रश्न पत्र- प्रथम
पाठ्यशीषषक- संस्कृ त शोध प्रविवध
कोड-SNKT ५००१

प्रस्तुत कताष
डॉ.बबलू पाल
सहायक आचायष
संस्कृ त विभाग
महात्मा गााँधी के न्द्रीय विश्ववियालय,
मोवतहारी,वबहार
समस्यामूलक शोध के स्रोत

व्यविगत व्यािहाररक पूिषकृतशोध सावहत्य सामाविक


अनुभि अनुभि कायष समीक्षा मुद्दे
 विषय-क्षेत्र की पहचान
 समस्या पररभाषा एिं पहचान
 सावहत्यक सिेक्षण
 सामग्री-संकलन
 शोध का आनुप्रायोवगक पररणाम
 विषय एिं दत्त-सामाग्री चयन की तकनीकी
 प्रकाशन एिं सम्प्प्रेषण पररणाम
संस्कृ त में शोध समस्या

प्रमातागत प्रमाणगत प्रमेयगत प्रवमवतगत


शोध समस्या शोध समस्या शोध समस्या शोध समस्या
(क). प्रमातागत शोध समस्या

अन्द्िेषक पाठक

भाषागतसमस्या शैलीगतसमस्या पृष्ठभूवमगत


संिाद अिबोधन की
समस्या पृष्ठभूवमगत समस्या
समस्या
(ख). प्रमाणगत समस्या

१. आगमनात्मक
२. वनगमनात्मक

सामग्री संकलन का अभाि

सामग्री के िैज्ञावनक विश्लेषण का अभाि

अन्द्तर्िषषयक वचन्द्तन पद्धवत का अभाि

बहुविषयक वचन्द्तन पद्धवत का अभाि


२. वनगमनात्मक-
यथाथषज्ञान के वलए पराथाषनुमान के पञ्चाियि को वनगमनात्मक शोध पद्धवत में रखा िा सकता
है। क्योंफक इस पद्धवत में सामान्द्य के आधार पर विशेष का प्रवतपादन फकया िाता है।

प्रवतज्ञा- पिषतोऽविमान् अथाषत् पिषत अविमान है।

हेतु- धूमित्िात्

उदाहरण- यो यो धूमिान् सो सोऽविमान्। यथा- महानस।

उपनय- तथा चायम्।िवननव्याप्य-धूमिांश्चायम्

इसवलए यह भी िैसा ही है,अथाषत् अविमान् है।


संस्कृ त में वनगमनात्मक शोध प्रविवध से
उत्पन्न शोध का स्िरूप

िस्तुत: संस्कृ त के परम्प्परागत क्षेत्रों में वनगमनात्मक शोध पद्धवत की ही प्रधानता विसका है
विसका स्िरूप वनम्न प्रकार से है-

सूत्र – अल्पाक्षरमसवन्द्दग्धं सारिवत्िश्वतोमुखम्।


अस्तोभमनियं च सूत्रं सूत्रविदो विदु:॥

िृवत्त- सकलसारवििरणनं िृवत्त:

भाष्य- भाषणाद्भाष्यम्

टीका- यथासम्प्भिमथषस्य टीकनं टीका

प्रकरण-शास्त्रैकदेशसम्प्बद्धं शास्त्रकायाषन्द्तरे वस्थतम्।


आहु: प्रकरणं नाम ग्रंथभेदं विपवश्चत:॥
आगमनात्म शोध वनगमनात्मक शोध

गत्यात्मक शोध क्षेत्र के सिेक्षण पर


स्थैवतक शोध क्षेत्र के सिेक्षण पर
आधाररत तथ्यों के संकलन एिं उसके
आधाररत तथ्यों के संकलन एिं
िैज्ञावनक विश्लेषण के आधार पर वनयमों या
उसके िैज्ञावनक विश्लेषण के
वनद्धान्द्तों का प्रवतपादन फकया िाता है िो
आधार पर वनयमों या वनद्धान्द्तों
आवधभौवतक विकास के वलए उपादेय है।
का प्रवतपादन फकया िाता है िो
अमेररक,चीन,िमषनी आफद पाश्चात्य देशों में
आध्यावत्मक विकास के वलए
इस प्रकार की प्रविवध का प्रयोग फकया िाता
उपादेय है।
है।
प्रमेयगत शोध समस्या

विषय

स्वतन्त्रग्रंथविषय अन्तविि षयक शोध बहुविषयक शोध समस्या


क शोध समस्या समस्या
प्रवमवतगत शोधसमस्या

तत्त्िान्द्िेषणगत फियात्मक शोध अनुप्रायोवगक शोध


शोध समस्या समस्या समस्या
वनष्कषष :
संस्कृ त में समस्यामूलक शोध को उि चार प्रकार –प्रमाता,प्रमाण,प्रमेय एिं प्रवमवत के आधार पर संस्कृ त िाङ्मय
के प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं का अध्ययन करते हुए निीन दृवि से विषयों का यथाथषज्ञानपूिषक प्रकाश में लाया िा
सकता है। आगमनात्मक एिं वनगमनात्मक ये दो प्रमुख शोध प्रविवधयां समस्यामूलक शोध के वलए अत्यन्द्त ही
उपादेय हैं। िहां गत्यात्मक शोध क्षेत्र के सिेक्षण पर आधाररत तथ्यों के संकलन एिं उसके िैज्ञावनक विश्लेषण के
आधार पर वनयमों या वनद्धान्द्तों का प्रवतपादन फकया िाता है िो आवधभौवतक विकास के वलए उपादेय है। िहीं
वनगमनात्मक प्रविवध के आधार पर आध्यावत्मक िगत् की समस्याओं का भी नूतन दृवि उपस्थावपत हो सकती है।
भारत में इस प्रविवध की प्रधानता अवधक है। दोनों प्रकार की प्रविवधयां आधुवनक िगत् के वलए उपादेय हैं क्योंफक
भौवतक विकास के साथ-साथ आत्मज्ञान भी परम आिश्यक है।
सन्दर्भग्रंथ-सूची
Murty,Srimannarayana,Methodology in Indological,Delhi: Bharatiya
Vidya Prakashan,1990
Katre, S.M.(with P.K.Gode), Introduction to Indian Textual Criticism,
Poona: Deccan College,1954
The Vālmīki Rāmāyana(critical Edition),Oriental Institute of Baroda,1958
Critical Edition of Māhābhārata,BORI,Poona,1966
िैविक-शोध प्रविवध,डॉ.कृष्ण लाल,विल्ली
तकिभाषा,गजानन शास्त्री,मुसलगााँ िकर् ,चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन,िाराणसी,२०१७
काव्यमीमां सा, डॉ.गंगासागर राय,चौखम्बा विद्याभिन िाराणसी

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