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भारतीय वन अधिननयम, 1927

वन व्यवस्थापन की प्रक्रिया
उद्दे श्य

भारतीय वन अधिननयम, 1927 का उद्दे श्यः-


1. वनो पर राज्य का ननयंत्रण स्थापपत करना तथा वन उपज पर अधिरोपपत
शुल्क को पवननयममत करना था।

2. ककसी क्षेत्र को आरक्षक्षत वन, संरक्षक्षत वन या ग्राम वन घोपित करने के


मिए अपनाई जाने वािी प्रकिया को पररभापित करना।
आरक्षक्षत एवं संरक्षक्षत वन

 आरक्षक्षत वनों और संरक्षक्षत वनों के बीच अंतर यह है कक आरक्षक्षत वनों पर


सरकार का पण ू ण ननयंत्रण होता है और संरक्षक्षत वनों में केवि संपपि का अधिकार
होता है । आरक्षक्षत वनों को उनमें मौजद ू प्रचुर संसािनों की सरु क्षा के मिए
परररक्षक्षत ककया जाता है । दस ू री ओर, संरक्षक्षत वनों को प्राकृनतक संसािनों की
कमी से बचाने के मिए घोपित ककया जाता है ।
 जब तक सरकार द्वारा पवशेि रूप से अनम ु नत नहीं दी जाती है , तब तक आरक्षक्षत
वनों में चराई, िकडी काटने और मशकार जैसी अधिकांश गनतपवधियों पर प्रनतबंि
िगा ददया जाता है ।स्थानीय समद ु ायों को अक्सर संरक्षक्षत वनों में मशकार और
अवैि मशकार जैसी गनतपवधियों को करने का अधिकार होता है ।
 आरक्षक्षत वन अक्सर राष्ट्रीय उद्यानों या वन्यजीव अभ्यारण्यों में पररवनतणत नहीं
होते हैं। पवि पोिण के साथ, संरक्षक्षत वनों को अक्सर राष्ट्रीय उद्यानों और
वन्यजीव अभ्यारण्यों में पररवनतणत कर ददया जाता है ।उनमें मौजद ू प्रचरु संसािनों
की सरु क्षा के मिए आरक्षक्षत वनों का रखरखाव ककया जाता है ।प्राकृनतक संसािनों
के क्षरण को रोकने के मिए संरक्षक्षत वनों की घोिणा की जाती है ।
 आिे से अधिक वन क्षेत्र भारत की आरक्षक्षत वन श्रेणी के अंतगणत है ।
संरक्षक्षत वन भारत में कुि वन क्षेत्र का कम से कम एक नतहाई दहस्सा बनाते
हैं।
वन व्यवस्थापन क्यों ?

भारतीय वन अधिननयम 1927 की िारा 4 में अधिसूधचत भूमम के अंदर यदद कोई अधिकार मौजद
ू है तो उसकी जांच
कर उसे सेटि करना । अधिकार अधिसच
ू ना के पव
ू ण का होना चादहए ।

अधिकार की प्रकृनतः- 1- भूमम पर अधिकार


2- वनोपज पर अधिकार
3- मागण पर अधिकार
4-चराई का अधिकार
5- जिमागण संबंिी अधिकार
जब राज्य सरकार भारतीय वन अधिननयम 1927 की िारा 3 में प्राप्त शक्क्तयों का प्रयोग
करके क्रकसी भमू म को आरक्षित वन बनाए जाने का ननर्णय करती है तो इस ननर्णय को
क्रियात्मक रूप प्रदान करने के मिए अधिननयम की िारा 4 के अंतगणत अधिसच ू ना का
प्रकाशन क्रकया जाता है ।
इस अधिसच
ू ना में प्रमख
ु रूप से दो बबन्द ु सक्न्नववष्ट होते है ैः-
1. ननमाणर्ािीन आरक्षित वन िेत्र की चतस
ु ीमा ।
2. वन व्यवस्थापन अधिकारी की ननयुक्क्त।
क्रकसी भी वन अधिकारी को वन व्यवस्थापन अधिकारी के रूप में अधिसधू चत नहीं
क्रकया जा सकता । वन व्यवस्थापन अधिकारी वतणमान में अनुववभागीय अधिकारी राजस्व को
पदे न ननयुक्त क्रकया गया है । क्रकसी एक िेत्र के मिए अधिकतम 3 वन व्यवस्थापन
अधिकारी की ननयक्ु क्त की जा सकती है । ऐसी क्स्थनत में एक वन व्यवस्थापन अधिकारी वन
अधिकारी भी हो सकता है ।
िारा 6. वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा उद्घोषर्ा-
िारा 6 उद्घोिणा - आरक्षक्षत वन बनाने संबंिी अधिसच ू ना जारी होने के
पश्चात वन व्यवस्थापन अधिकारी अधिसधू चत आरक्षक्षत वन क्षेत्र के आसपास के
गांवों / क्षेत्र में एक उद्घोिणा प्रकामशत करे गा जजसमें मख्
ु य तौर पर उस क्षेत्र की
सीमाएं क्या होगी ? आरक्षक्षत वन बनने के उपरांत उस क्षेत्र में दहत रखने वािे िोगों
पर क्या प्रभाव पडेगा ? आदद तथ्य समापवष्ट्ट होंगे । उद्घोिणा प्रकाशन की अवधि
3 माह तक की होती है । इस 3 माह की अवधि में उस अधिसधू चत आरक्षक्षत वन क्षेत्र
में ककसी भी प्रकार का दहत रखने वािे व्यजक्त वन व्यवस्थापन अधिकारी के समक्ष
अपना दावा प्रस्तत ु कर सकते हैं।
िारा 7. वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा जांच-

इसमें अधिकार पवियक दावों की जांच ककए जाने का प्राविान है ।दावा


ननयत समय में ककया जाना चादहए । यदद ककसी व्यजक्त के द्वारा ननयत अवधि में
दावा नहीं ककया गया है परं न्तु भू अमभिेख में उस व्यजक्त का कोई अधिकार
पवद्यमान हैं तो उसको स्वीकार करते हुए उसके अधिकारों को सेटि ककया जाना
चादहए । यदद कोई दावा प्रस्तुत करने से छूट जाता है तो िारा २० की अधिसच ू ना
प्रकाशन के पवू ण समािान कारक जबाब के साथ दावा प्रस्तत
ु ककया जा सकता है । दावे
में अधिकार की प्रकृनत स्पष्ट्ट करना अननवायण है ।
िारा 8. वन व्यवस्थापन अधिकारी की शक्क्तयां-

भारतीय वन अधिननयम 1927 की िारा 08 के अनस ु ार व्यवस्थापन


अधिकारी को वादों के पवचारण के मिए मसपवि न्यायािय की शजक्तयां
प्रदान की गई है । इसके अनतररक्त वन व्यवस्थापन अधिकारी को ककसी
भी भमू म पर सवेक्षण करने, सीमांकन करने या उस भमू म के नक्शा बनाने
हे तु ककसी अन्य व्यजक्त को प्राधिकृत करने की भी अधिकाररता इस िारा
में प्रदान की गई है ।
िारा 9 अधिकारों का ननवाणपनैः-
वे अधिकार जजनका दावा िारा 6 के अिीन नही ककया जा सकता है ,
और जजनके अजस्तत्व की कोई जानकारी िारा 7 के अिीन की गई जााँच द्वारा
नही ममिी है , जब तक कक उन अधिकारों का दावा करने वािे व्यजक्त, वन
व्यवस्थापन अधिकारी का यह समािान कक िारा 6 के अिीन ननयत कािावधि
के अन्दर ऐसा दावा न करने के मिए उसके पास पयाणप्त कारण था, िारा 20 के
अिीन अधिसच ू ना के प्रकामशत होने से पव
ू ण नही कर दे ता, ननवाणपपत हो जायेगें।
िारा 10. स्थानान्तरी खेती की पद्िनत सम्बन्िी दावों का ननराकरर्ैः-
यदद वन व्यवस्थापन अधिकारी के समक्ष व्यवस्थापनािीन अधिसधू चत आरक्षक्षत
वन क्षेत्र की सीमा के अंदर स्थानांतरणीय कृपि या मशज्टं ग कल्टीवेशन के संबंि में कोई
दावा प्राप्त होता है तो वन व्यवस्थापन अधिकारी उस दावे को प्रस्तुत करने वािे दावेदारों
का कथन व सम्पण ू ण वाद का पववरण मिपपबद्ि करे गा तथा जजस ननयम या आदे श के
तहत उस क्षेत्र में स्थानांतरणीय कृपि प्रचमित है उस आदे श या ननयम का उल्िेख करते
हुए भारतीय वन अधिननयम 1927 की िारा 10 के अंतगणत एक प्रपत्र तैयार करता है
जजसमें यह अनुशंसा की जाती है कक उस क्षेत्र में मशज्टं ग कल्टीवेशन को प्रचमित रखना
है या आंमशक प्रनतबंधित ककया जाना है या पण ू ण प्रनतबजन्ित ककया जाना है । इस प्रकार यह
प्रपत्र अपने अमभमत के साथ वन व्यवस्थापन अधिकारी राज्य सरकार की मंजरू ी के मिए
प्रेपित करे गा । राज्य सरकार का यह पवशेिाधिकार है कक वह स्थानांतरण कृपि प्रनतबंधित
करने अथवा उसे पूणण या आंमशक रूप से प्रचमित रखने के संबंि में ननणणय िे। यदद राज्य
सरकार स्थानांतरण कृपि को उस क्षेत्र में पूणण या आंमशक रूप से प्रचमित रखे जाने का
ननणणय िेती है तो वन व्यवस्थापन अधिकारी उस स्थानांतरणीय कृपि वािे पररक्षेत्र का
सीमांकन कराने के उपरान्त उसे आरक्षक्षत वन क्षेत्र के नक्शे में पथृ क करता है तथा ऐसी
कृपि पद्िनत के दावेदारों को अनुज्ञा दे कर उनके अनुप्रयोग का समधु चत प्रबंि करता है ।
धारा11. ऐसी भूमम को अक्जणत करने की शक्क्त क्जस पर अधिकार का दावा
क्रकया गया है ैः-
वन व्यवस्थापन अधिकारी के समक्ष जो दावे प्रस्तत ु ककए जाते हैं
उनमें से चार प्रकार के दावे- मागण का अधिकार ,चराई का अधिकार, वनोपज
का अधिकार एवं जिमागण का अधिकार को छोडकर, शेि अधिकारों पर (
जजसमें भमू म संबंिी अधिकार प्रमख ु है ) वन व्यवस्थापन अधिकारी दावे की
जांच करने के बाद उसको पण ू त
ण ः या अंशतः स्वीकार करे गा या ननरस्त
करता है - यदद वन व्यवस्थापन अधिकारी के द्वारा दावे को पण ू त
ण ः या
आंमशक रूप से स्वीकार ककया जाता है तो १- वन व्यवस्थापन अधिकारी
उस दावे के अिीन आने वािी भमू म को आरक्षक्षत वन की सीमाओं से अप
वजजणत करे गा । या २ -अधिकार को समपपणत करने के मिए भस् ू वामी से
एग्रीमें ट करे गा । या३- दावे के अिीन आने वािी अधिकार से संबंधित भमू म
को भू अजणन के तहत अजजणत करे गा। यहां पर ध्यातव्य है कक वन
व्यवस्थापन अधिकारी को भू अजणन के संबंि में वही शजक्तयां प्राप्त होती हैं
जो जजिा किेक्टर को प्राप्त होती हैं ।
भू अजणन होने की दशा में वन व्यवस्थापन अधिकारी मआ ु वजा भमू म
के बदिे भमू म या आंमशक भमू म और आंमशक िनरामश या परू ी िनरामश का
संदाय दावेदारों और पक्षकारों की सहमनत से करता है ।
िारा 12. चरागाह या वन-उपज पर के अधिकारों के दावों पर आदे श-चरागाह या वन-
उपज पर के अधिकारों से सम्बद्ि दावे की दशा में वन व्यवस्थापन अधिकारी उन्हें पू
णणतः या भागतः मंजरू या खाररज करने वािा आदे श पाररत करे गा ।
िारा 13. वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा तैयार क्रकए जाने वािे अमभिेख-
वन व्यवस्थापन अधिकारी िारा 12 के अिीन कोई आदे श पाररत करते समय ननम्न
मिखखत को यावत्साध्य अमभमिखखत करे गा-
(क) अधिकार का दावा करने वािे व्यजक्त का नाम, उसके पपता का नाम,
जानत, ननवास और उपजीपवका, और
(ख) उन सब खेतों या खेतों के समह ू ों (यदद कोई हों) का नाम, जस्थनत और
क्षेत्रफि और उन सब भवनों के (यदद कोई हों) नाम और जस्थनत, जजनके पविय में ऐ
से अधिकारों के प्रयोग का दावा ककया गया है ।
िारा 14. जहां वह दावा मंजूर करता है वहां अमभिेख-
यदद वन व्यवस्थापन अधिकारी िारा 12 के अिीन ककसी दावे को पू
णणतः या भागतः मंजरू कर िेता है , तो वह उन ढोरों की संख्या और व
णणन, जजन्हें दावेदार समय-
समय पर वन में चराने के मिए हकदार हैं, वह ऋतु जजसके दौरान ऐ
सा चराना अनुज्ञात है , उस इमारती िकडी और अन्य वन-
उपज का पररमाण जजसे वह समय-
समय पर िेने या प्राप्त करने के मिए प्राधिकृत है , और ऐसी अन्य पव
मशजष्ट्टयां, जैसी उस मामिे में अपेक्षक्षत हों, पवननददण ष्ट्ट करके यह भी
अमभमिखखत करे गा कक कहां तक वह दावा इस प्रकार मंजरू ककया ग
या है । वह यह भी अमभमिखखत करे गा कक दावाकृत अधिकारों के प्रयो
ग द्वारा अमभप्राप्त इमारती िकडी या अन्य वन-
उपज बेची जा सकेगी या वस्त-ु पवननयममत की जा सकेगी या नहीं ।
िारा15. मंजरू क्रकए गए अधिकारों का प्रयोग-
(1) वन व्यवस्थापन अधिकारी, ऐसे अमभिेख तैयार करने के पश्चात ् अपनी सवोिम यो
ग्यता के अनुसार और जजस आरक्षक्षत वन के सम्बन्ि में दावा ककया गया है , उसको बनाए
रखने का सम्यक् ध्यान करते हुए, ऐसे आदे श पाररत करे गा, जजनसे इस प्रकार मंजरू कक
ए गए अधिकारों का ननरं तर प्रयोग सुननजश्चत हो जाएगा ।
(2) वन व्यवस्थापन अधिकारी इस प्रयोजन के मिए-
(क) पयाणप्त पवस्तार वािे और यजु क्तयक्
ु त रूप से सपु विाजनक स्थान में के ककसी अन्य
वन खण्ड को ऐसे दावेदारों के प्रयोजन के मिए उपवखणणत कर सकेगा और उन्हें इस प्रकार
मंजरू ककए गए पवस्तार तक (यथाजस्थनत) चरागाह या वन-
उपज का अधिकार प्रदान करने वािा आदे श अमभमिखखत कर सकेगा; या
(ख) प्रस्थापपत वन की सीमाओं को इस प्रकार बदि सकेगा कक दावेदारों के प्रयोजनों के
मिए पयाणप्त पवस्तार की और युजक्तयुक्त रूप से सुपविाजनक स्थान में की वन भूमम अप
वजजणत हो जाए;
(ग) ऐसे दावेदारों को, यथाजस्थनत, चरागाह या वन-
उपज के अधिकार ऐसे मंजरू ककए गए पवस्तार तक, ऐसी ऋतु में , प्रस्थापपत वन के ऐसे
प्रभागों के अन्दर और ऐसे ननयमों के अिीन, जो राज्य सरकार द्वारा इस ननममि बनाए
जाएं, चािू रखने वािा आदे श अमभमिखखत कर सकेगा ।
िारा 16. अधिकारों का रूपांतरर्-
यदद वन व्यस्थापन अधिकारी आरक्षक्षत वन को बनाए रखने का स
म्यक् ध्यान रखकर िारा 15 के अिीन ऐसा व्यवस्थापन करना असं
भव पाता है , जजससे इस प्रकार मंजरू ककए गए पवस्तार तक उक्त अ
धिकारों का ननरं तर प्रयोग सनु नजश्चत हो जाता है , तो वह ऐसे ननयमों
के अिीन रहते हुए, जजन्हें राज्य सरकार इस ननममि बनाए, उसके ब
दिे में ऐसे व्यजक्तयों को िन रामश के संदाय द्वारा या भूमम के अनु
दान द्वारा या ककसी अन्य रीनत से, जजसे वह ठीक समझता है , ऐसे अ
धिकारों का रूपान्तरण कर सकेगा ।
 भारतीय वन अधिननयम 1927 की िारा 12 के अंतगणत उन अधिकारों को सेटि ककया
जाता है जो अधिकार िारा 11 के अंतगणत समापवष्ट्ट नहीं हो सके थे। जैसे यदद चराई
या वनोपज संग्रहण के अधिकार सम्बन्िी कोई दावा प्राप्त होता है तो वन व्यवस्थापन
अधिकारी द्वारा उसे पण ू त
ण ः या अंशतः मंजरू या खाररज कर िारा 12 के अिीन
आदे श पाररत ककया जाता है । िारा १३ में अधिकार का दावा करने वािे व्यजक्त
का नाम, उसके पपता का नाम, जानत, ननवास उसकी जीपवका आदद का अमभिेख तैयार
ककया जाता है । इस अमभिेख में दावे के अिीन आने वािी भमू म का नाम , जस्थनत ,
क्षेत्रफि आदद का भी पवस्तत ृ पववरण उजल्िखखत ककया जाता है । यदद वन
व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा दावे को मंजरू करते हुए िारा 12 के अिीन आदे श पाररत
कर ददया गया है तो उसका पवस्तत ृ पववरण िारा 14 के अन्तगणत तैयार ककए जाने
वािे अमभिेख में दे ना होता है । जैसे यदद चराई का अधिकार सम्बन्िी दावा स्वीकार
कर मिया जाता है तो उसमें पशओ ु ं की संख्या , उनका पववरण, दावेदार को ककस ऋतु
व ककस-ककस समय में पशु चारण का हक होगा ? इसी प्रकार यदद वनोपज का दावा
मंजरू ककया जाता है तो दावेदार कौन कौन सी िकडी ककतनी मात्रा में प्राप्त करने के
मिए अधिकृत है , जो िकडी दावेदार को प्राप्त होगी वह िकडी बेची जा सकेगी या
उसका मसफण वस्तु पवननमय ककया जाएगा आदद तथ्यों का उल्िेख ककया जाता है
भारतीय वन अधिननयम 1927 की िारा 15 पूवोक्त िारा 12 - 14 का पवस्तार है ।
इसमें यह उपबजन्ित ककया गया है कक यदद वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा कोई चराई,वनोपज
आदद पवियक दावा स्वीकार कर आदे श पाररत ककया जाता है तो उस आदे श के पररणाम स्वरूप
दावेदार अपने अधिकारों का प्रयोग कैसे करे गा ? इसका पवस्तत ृ पववरण िारा 15 में मिया गया
है जैसे ककसी व्यजक्त को यदद चराई का अधिकार का आदे श ददया गया या वनोपज संग्रह के
अधिकार को स्वीकृनत प्रदान करने सम्बन्िी आदे श प्रदान ककया गया तो वह व्यजक्त / दावेदार
क्या उसी आरक्षक्षत वन क्षेत्र की अंदर चराई या वनोपज संग्रहण करे गा या ककसी अन्य स्थान
पर जो आरक्षक्षत वनक्षेत्र के बाहर है , उक्त कायण करे गा। यदद दावेदार को ननमाणणािीन
आरक्षक्षत वन क्षेत्र के अंदर अपने अधिकारों का प्रयोग करने की अनुज्ञा प्राप्त हो जाती है तो वन
व्यवस्थापन अधिकारी इस क्षेत्र को आरक्षक्षत वन क्षेत्र से अपवजजणत करता है । परं तु यदद
वन व्यवस्थापन अधिकारी प्रस्तापवत आरक्षक्षत वन क्षेत्र के बाहर ककसी दस ू रे स्थान को दावेदार
के अधिकार प्रयोग हे तु उधचत पाता है तो उसका आदे श भी इसी िारा १५ के अिीन ककया
जाता है ।
 यदद वन व्यवस्थापन अधिकारी िारा 15 की अिीन दावेदार के अधिकारों के अनुप्रयोग हे तु
स्थान का पवननश्चय नहीं कर पाता तो वह दावेदार को उपयुक्त िनरामश, भूमम अनुदान या
ऐसी अन्य कोई रीनत जो वह ठीक समझता है का प्रयोग करके दावेदार के अधिकारों का
रूपांतरण कर सकता है ।
िारा17. िारा 11, िारा 12, िारा 15 या िारा 16 के अिीन पाररत आदे श के ववरुद्ि अपीि-
ऐसा कोई व्यजक्त, जजसने इस अधिननयम के अिीन दावा ककया है या कोई वन अधिकारी या रा
ज्य सरकार द्वारा इस ननममि सािारण या पवशेितः सशक्त अन्य व्यजक्त ऐसे दावे पर िारा 11
, िारा 12, िारा 15 या िारा 16 के अिीन वन व्यस्थापन अधिकारी द्वारा पाररत आदे श की ता
रीख से तीन मास के अन्दर ऐसे आदे श की अपीि राजस्व पवभाग के किक्टर से अननम्न पंजक्त
के ऐसे अधिकारी के समक्ष उपजस्थत कर सकेगा जजसे राज्य सरकार ऐसे आदे श के पवरुद्ि अपी
ि की सन ु वाई करने के मिए राजपत्र में अधिसच
ू ना द्वारा ननयक्
ु त करे ः
परन्तु राज्य सरकार एक न्यायािय (जजसे इसमें इसके पश्चात ् वन न्यायािय कहा ग
या है ) स्थापपत कर सकेगी जो राज्य सरकार द्वारा ननयक्
ु त ककए जाने वािे तीन व्यजक्तयों से
ममिकर गदठत होगा, और जब इस प्रकार वन न्यायािय स्थापपत हो जाए तब वैसी सब अपीिें उ
सके समक्ष उपजस्थत की जाएंगी ।
िारा 17 में अपीि का प्राविान है अपीिीय अधिकारी जजिा स्तर पर जजिा
किेक्टर तथा राज्य स्तर पर फॉरे स्ट कोटण (3 सदस्य वन न्यायािय) होता है । िारा 18
के अंतगणत अपीि की प्रकिया उजल्िखखत है इसके अंतगणत अपीि में जो भी आदे श पाररत
होगा और आदे श की पवरुद्ि राज्य शासन को पुनरीक्षण के मिए आवेदन ददया जा
सकता है अन्यथा यह ननणणय अंनतम होगा।
18. िारा 17 के अिीन अपीि-
(1) िारा 17 के अिीन हर अपीि मिखखत अजी द्वारा की जाएगी औ
र वन व्यवस्थापन अधिकारी को दी जा सकेगी जो उसे सुनवाई के मि
ए सक्षम प्राधिकारी को अपविम्ब भेज दे गा ।
(2) यदद अपीि, िारा 17 के अिीन ननयुक्त अधिकारी के समक्ष की
जाए, तो भू-
राजस्व से सम्बद्ि मामिों में अपीि की सन
ु वाई के मिए तत्समय
पवदहत रीनत से उसकी सुनवाई की जाएगी ।
(3) यदद अपीि वन न्यायािय के समक्ष की जाए, तो न्यायािय अपी
ि की सन ु वाई के मिए कोई ददन और प्रस्थापपत वन के आस-
पास में ऐसा सुपविाजनक स्थान ननयत करे गा और उसकी सूचना प
क्षकारों को दे गा और तदनस
ु ार ऐसी अपीि की सन

वाई करे गा ।
(4) अपीि पर, यथाजस्थनत, ऐसे अधिकारी द्वारा या न्यायािय द्वा
रा या ऐसे न्यायािय के सदस्यों के बहुमत द्वारा पाररत आदे श, केव
ि राज्य सरकार के पुनरीक्षण के अिीन रहते हुए अंनतम होगा ।
19. प्िीडर-
राज्य सरकार या कोई व्यजक्त, जजसने इस अधिननयम के अिीन दा
वा ककया है , इस अधिननयम के अिीन जांच या अपीि के दौरान वन
व्यवस्थापन अधिकारी या अपीि अधिकारी या न्यायािय के समक्ष
हाजजर होने, अमभवचन करने और अपनी ओर से कायण करने के मिए
ककसी व्यजक्त को ननयुक्त कर सकेगा ।
20.वन को आरक्षित वन घोवषत करने की अधिसूचना-(1) जबकक ननम्नमिखखत घटनाएं घदटत हो गई हों, अथाणत ्ः-
(क) जबकक दावा करने के मिए िारा 6 के अिीन ननयत कािावधि बीत गई हो और उस िारा या िारा 9 के अिीन सब दावों
का, यदद कोई हों, वन व्यवस्थापन अधिकारी द्वारा ननपटारा कर ददया गया हो;
(ख) यदद कोई ऐसे दावे ककए गए हों, तो जब कक ऐसे दावों पर पाररत आदे शों की अपीि करने के मिए िारा 17 द्वारा पररसीमम
त कािावधि बीत गई हो, और यदद ऐसी कािावधि के अन्दर उपजस्थत की गई सभी अपीिों का (यदद कोई हों) ननपटारा अपीि
अधिकारी या न्यायािय ने कर ददया हो; और
(ग) जबकक प्रस्थापपत वन में सजम्ममित की जाने वािी सब भमू मयां (यदद कोई हों) जजन्हें िारा 11 के अन्तगणत वन व्यवस्थाप
न अधिकारी ने भूमम अजणन अधिननयम, 1894
(1894 का 1) के अिीन अजजणत करने के मिए चन ु ा है , उस अधिननयम की िारा 16 के अिीन सरकार में ननदहत हो गई हों,
तब राज्य सरकार पररननममणत सीमा धचह्नों के अनस ु ार या अन्यथा उस वन की, जजसे आरक्षक्षत ककया जाना है , सीमाओं को प
ररननजश्चत रूप से पवननददण ष्ट्ट करने वािी और अधिसचू ना द्वारा ननयत तारीख से उसे आरक्षक्षत वन घोपित करने वािी अधिसू
चना राजपत्र में प्रकामशत करे गी ।
(2) ऐसा वन इस प्रकार ननयत तारीख से आरक्षक्षत वन समझा जाएगा ।
27. यह घोवषत करने की शक्क्त क्रक वन आरक्षित वन नहीं रहा है -
(1) राज्य सरकार 1॥। राजपत्र में अधिसच
ू ना द्वारा ननदे श
दे सकेगी कक इस अधिननयम के अिीन आरक्षक्षत कोई वन या उसका प्रभाग, ऐसी अधिसच
ू ना
द्वारा ननयत तारीख से, आरक्षक्षत वन नहीं रह जाएगा ।
(2) इस प्रकार ननयत तारीख से, ऐसा वन या उसका प्रभाग आरक्षक्षत नहीं रह जाएगा
, ककन्तु उसमें वे अधिकार (यदद कोई हों), जो ननवाणपपत हो गए हैं, ऐसे न रहने के पररणामस्वरूप
पुनरुज्जीपवत नहीं हो जाएंगे ।
िारा 34 A. वनों को असंरक्षित घोवषत करने की शक्क्त—
(1) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा यह ननदे श दे सकती है कक
इस तरह की अधिसच ू ना द्वारा ननिाणररत नतधथ से, इस
अधिननयम के तहत संरक्षक्षत कोई भी वन या उसका दहस्सा
संरक्षक्षत वन नहीं रहे गा।

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