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अध््ययाय 3 : वैदिक सभ््यता

5. आर्ययों के नाम हित्ती शिलालेख (अनातोलिया), कासिट शिलालेख


प�रचय �ारंदभक वैदिक या
(इराक) और मित्तानी शिलालेख (सीरिया) मेें मिलते हैैं।
उत्तर वैदिक काल
ऋग्वैदिक युग 6. एक ईरानी ग्रंथ, ज़ेंड अवेस््तता, इंद्र, वरुण जैसे आर््य देवताओं के नामोों के
(1500 ईसा पूव-र् (1000 ईसा पूवर् -
1000 ईसा पूवर्) 600 ईसा पूवर्)
बारे मेें बात करता है
7. उनकी पहली बस््ततियाँ उत्तर-पश््चचिमी निचले इलाकोों और पंजाब के
मैदानोों मेें थीीं। बाद मेें वे सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकोों मेें फैल गए।

3.1) परिचय
1. वैदिक काल - प्रारंभिक वैदिक या ऋग््ववैदिक (1500 ईसा पूर््व-1000
ईसा पूर््व) और उत्तर वैदिक (1000 ईसा पूर््व-600 ईसा पूर््व)
2. ऋग््ववेद से भारत मेें आर्ययों के बारे मेें जानकारी मिलती है। इस ग्रन््थ मेें
‘आर््य’ शब््द 36 बार आया है।
3. ‘आर््यन’ शब््द का शाब््ददिक अर््थ है ‘सर््वश्ष्रे ्ठ’ या ‘प्रख््ययात’। यह स््पष््ट नहीीं है
कि सभी आरंभिक आर््य एक ही जाति के थे, परंतु उनकी संस््ककृति एक ही प्रकार
की थी। वे अपनी सामान््य भाषा से भिन्न थे। वे इंडो-यूरोपीय भाषाएँ बोलते थे।
4. ऐसा प्रतीत होता है कि मूलतः आर््य दक्षिणी रूस से लेकर मध््य एशिया
तक के क्षेत्ररों मेें रहते थे। आर््य कई चरणोों मेें भारत आये

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3.2) प्रारभं िक वैदिक या ऋग््ववैदिक युग (1500 ईसा पूर्-्व 1000 ईसा पूर्)्व नदियाँ और उनके प्राचीन नाम
B) राजनीदतक �णाली D) ऋग्वैदिक अर्थर्व्यवस्र्था प्राचीन नाम आधुनिक
वितस््तता झेलम
अस््ककिनी चिनाब
पौरूशिम रवि
विपासा ब््ययास
सुतुद्री सतलज
गोमती गोमल
A) भौगोदलक ज्ञान
कुभा काबुल
C) ऋग्वैदिक समाज E) ऋग्वैदिक धादमर्क जीवन
सदानीरा गंडक
A) भौगोलिक ज्ञान सरस््वती घग््गर
1. सबसे पहले आर््य उत्तर-पश््चचिम सीमांत प््राांत, पंजाब और पश््चचिमी उत्तर B) राजनीतिक प्रणाली
प्रदेश के कुछ हिस््सोों मेें रहते थे। Janas-
Rajan
2. सिंधु आर्ययों की सर्वोत््ककृष््ट नदी है और इसका उल््ललेख ऋग््ववेद मेें बार-बार 1. घुमतं ू शासन व््यवस््थथा - केेंद्र
मिलता है। मेें आदिवासी मुखिया (राजन)
3. एक अन््य नदी, सरस््वती, को नदीतमा या ऋग््वदवे मेें सर््वश्ष्रे ्ठ नदी कहा जाता है। राजन - गोप जनस््य या Vis-
Vishayapati

इसकी पहचान हरियाणा और राजस््थथान मेें घग््गर-हकरा चैनल से की जाती है। गोपाल जनस््य
4. भारतीय उपमहाद्वीप मेें वह संपर््णू क्षेत्र जिसमेें आर््य सबसे पहले बसे, सात राजा का पद वंशानुगत हो Grama -
नदियोों की भूमि कहलाती है - सिंध,ु सरस््वती, वितस््तता (झेलम), अस््ककिनी गया था। Gramini

(चेनाब), पुरुष््णणी (रावी/ इरावदी), शतुद्री (सतलज), विपासा (व््ययास) राजा असीमित शक््तति का
5. समुद्र शब््द का उल््ललेख ऋग््ववेद मेें मिलता है लेकिन यह मुख््य रूप से जल प्रयोग नहीीं करता था। Kula -
Kulpati
के संग्रह को दर््शशाता है राजा को अपने कबीले
का रक्षक कहा जाता
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था। उसने उसके मवेशियोों की रक्षा की, यु द्ध लड़़े और उसकी महत््वपूर््ण अधिकारी
ओर से देवताओं से प्रार््थना की। अधिकारी विवरण
जन का नेतृत््व एक ‘राजन’ करता था जिसकी सहायता पुरोहित, संगृहीत्री कोषाध््यक्ष
सेनानी और ‘सभा’, ‘समिति’, ‘विधाता’, ‘गण’ और ‘सारधा’ जैसी
महिषी मुख््य रानी
लोकप्रिय संस््थथाएं करती थीीं।
2. समिति (लोगोों की आम सभा) और सभा (बड़ों की परिषद)। विधाता सुता सारथी
सबसे बड़़े थे। गोविनार््तताना खेल और वनोों के रक्षक
3. दो महत््वपूर््ण पुजारी :- वसिष््ठ और विश््ववामित्र (गायत्री मंत्र की रचना की) पलागला मैसेेंजर
4. चोरी और सेेंधमारी और विशेषकर गायोों की चोरी के मामले थे।
क्षत्री चैमबलेन
5. वह अधिकारी जिसका बड़़े चरागाह पर अधिकार था - व्रजपति।
6. ‘गविष््ठठि’ - गायोों की खोज या युद्ध।
अक्षवापा मुनीम
7. ‘राणा’ के पास कोई स््थथायी सेना और नौकरशाही नहीीं थी। सैन््य कार््य स््थथापति मुख््य न््ययायाधीश
जनजातीय समूहोों द्वारा किये जाते थे जिन््हेें कहा जाता था - व्रत, गण, तक्षण बढ़ई
ग्राम, सारधा। C) ऋग््ववैदिक समाज
8. “दस राजाओं की लड़़ाई” रावी नदी के तट पर लड़़ी गई थी। 1. ऋग््ववैदिक समाज पितृसत्तात््मक समाज था। पुत्र के जन््म की कामना की
9. संभवतः, मुखियाओं को बाली नामक लोगोों से स््ववैच््छछिक भेेंट प्राप््त होती जाती थी और लोग देवताओं से विशेष रूप से युद्ध लड़ने के लिए बहादुर
थी। पुत्ररों के लिए प्रार््थना करते थे।
दस राजा या दशराजन युद्ध 2. समाज आर्ययों और अनार्ययों मेें विभाजित था, अनार्ययों को ‘दास’ और
आर्ययों को पाँच जनजातियोों मेें विभाजित किया गया था जिन््हेें पंचजन ‘दस््ययु’ कहा जाता था।
कहा जाता था। 3. यह एक समतावादी समाज था, सामाजिक भेदभाव तीव्र नहीीं थे।
दस राजाओं की प्रसिद्ध लड़़ाई या दशराजन युद्ध राजा सुदास के नेतत्ृ ्व 4. दासोों का उपयोग घरेलू उद्देश््योों के लिए किया जाता था न कि कृषि के लिए।
वाली जनजाति भरत और अन््य जनजातियोों - पुरु, यदु, तुर्स्व ा, अनु, 5. 4-स््तरीय वर््ण व््यवस््थथा और कठोर जाति-व््यवस््थथा अभी तक पूरी तरह
द्रुह्,यु अलीना, पकथा, भालानस, शिव और विशनिन के संघ के बीच से विकसित नहीीं हुई थी। वर््ण शब््द का प्रयोग ऋग््ववेद मेें केवल आर्ययों और
लड़़ी गई थी। दासोों के संदर््भ मेें किया गया था, जिनका रंग क्रमशः गोरा और गहरा था।
पूर््व पाँच को आर््य जनजातियाँ कहा जाता है। 6. दो पेय - सोम (धर््म) और सुरा।
परुष््णणी नदी (वर््तमान रावी) के तट पर लड़़े गए युद्ध मेें भरत विजयी 7. औरत :-
हुए। महिलाओं को बौद्धिक और आध््ययात््ममिक विकास की वही संभावनाएँ
ऋग््वदवे मेें दस््ययु मूल निवासियोों का प्रतिनिधित््व करते हैैं और एक आर््य प्रमुख प्राप््त थीीं जो पुरुषोों को प्राप््त थीीं। महिला कवियोों मेें अपाला, विश््ववारा,
जिन््होोंने उन पर कब््ज़़ा कर लिया था, उन््हेें त्रसदस््ययु कहा जाता था। ऋग््वदवे मेें घोषा और लोपामुद्रा शामिल थीीं।
दिवोदास द्वारा सांभर की हार का उल््ललेख है, जो भरत कबीले से थे। बाल विवाह और सती प्रथा अनुपस््थथित थी। व््ययापक रूप से उपस््थथित
आर््य मुखिया दासोों के प्रति नरम थे, लेकिन ऋग््ववेद मेें दस््ययुहर््तता शब््द होने वाली सभाएँ महिलाओं के लिए खुली थीीं।
(दस््ययुओं का वध) का बार-बार उल््ललेख किया गया है। एक विशेष विधवा-पुनर््वविवाह, जिसे ‘नियोग’ (लेविरेट) कहा जाता
महत््वपूर््ण अधिकारी था, प्रचलित था।
D) ऋग््ववैदिक अर््थव््यवस््थथा
अधिकारी आधिकारिक विवरण 1. ऋग््ववैदिक समाज ग्रामीण, देहाती था और कृषि गौण व््यवसाय था।
पुरोहित मुख््य पुजारी (रस्तत्रगोपा) 2. कृषि उत््पपादन केवल उपभोग के लिए था
सेनानी सेना के सर्वोच्च कमांडर घोड़़े ने उनके जीवन मेें महत््वपूर््ण भूमिका निभाई।
व्रजपति चारागाह भूमि का प्रभारी अधिकारी ऋग््ववेद मेें लकड़़ी के फाल का उल््ललेख है।
‘यवा’ किसी भी अनाज का सामान््य नाम था
जीवगृह पुलिस अधिकारी
3. आर््थथिक गतिविधियाँ - शिकार, बढ़ईगीरी, चर््मशोधन, बुनाई, रथ-
दूत जासूस, जो कभी-कभी दूत के रूप मेें भी काम करते थे निर््ममाण, धातु गलाने का काम
ग्रामणी गाँव का मुखिया 4. न तो कर लगाया गया और न ही राजकोष का रखरखाव किया गया
कुलपति परिवार के मुखिया ‘बाली’ निर््ममाताओं की ओर से ‘राजाना’ को स््ववैच््छछिक उपहार था।
मध््यमासी विवादोों का मध््यस््थ 5. मुद्रा या सिक््कोों की सूचना नहीीं दी गई है
वस््ततु विनिमय प्रणाली प्रचलित थी और गायेें विनिमय का सबसे
भगदुघा राजस््व संग्रहकर््तता
पसंदीदा माध््यम थीीं।
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एक सोने के टुकड़़े ‘निस््कका’ का उल््ललेख मिलता है लेकिन मुद्रा की A) परिचय
तुलना मेें इसका सजावटी मूल््य अधिक है 1. 1000 ईसा पूर््व के आसपास, वैदिक समाज पूरी तरह से स््थथापित कृषि
6. ‘अयास’ किसी भी धातु के लिए इस््ततेमाल किया जाने वाला सामान््य व््यवसायियोों मेें बदल गया.
नाम है घोड़ों की माँग पूरी नहीीं हो सकी
सोने को हिरण््य कहा जाता था। लोहा वे नहीीं जानते थे। 2. घने वन क्षेत्र के कारण, वैदिक जनजातियाँ गंगा के मैदानोों तक पहुँचने
इस यु ग के तां बे के उपकरण पं ज ाब और हरियाणा से प्राप््त मेें असमर््थ थीीं
होते हैैं। 1000 ईसा पूर््व के बाद, लोहे की कुल््हहाड़़ियोों और हलोों का व््ययापक
7. मिट्टी के बर््तनोों का प्रकार : गेरू रंग के मिट्टी के बर््तन और चित्रित भूरे रूप से उपयोग किया जाने लगा, जिससे वर््षषावनोों को साफ़ करना
बर््तन (पीजीडब््ल्ययू)। आर््यन ने स््पपोक व््हहील पेश किए। आसान हो गया।
E) ऋग््ववैदिक धार््ममिक जीवन इसके कारण, वैदिक आर््य गंगा-यमुना दोआब के पश््चचिमी क्षेत्र मेें
अपनी बस््ततियोों का विस््ततार करने मेें सक्षम हुए
1. उन््होोंने इन प्राकृतिक शक््ततियोों से देवताओं की रचना की और उनकी 3. शक््ततिशाली राजनीतिक संस््थथाओं का उदय
पूजा की। 4. अरब सागर और हिंद महासागर, कई हिमालय चोटियोों और विंध््य पर््वतोों
2. पूजा करने का तरीका - प्रार््थना और बलिदान देना। का (अप्रत््यक्ष रूप से) उल््ललेख किया गया है।
3. उन््होोंने अपने आध््ययात््ममिक उत््थथान या अस््ततित््व के दुखोों को समाप््त करने
के लिए देवताओं की पूजा नहीीं की। उन््होोंने मुख््यतः प्रजा (बच्चे), पशु
(मवेशी), भोजन, धन, स््ववास््थ््य आदि माँगा।
4. कोई मूर््तति पूजा या मंदिर नहीीं देखा गया।
5. महत््वपूर््ण वैदिक देवता
सबसे महत््वपूर््ण - इंद्र (250 भजन)
3 पुरंदर (किलोों को तोड़ने वाला) कहा जाता है
3 उन््हेें वर््षषा का देवता माना जाता है
दूसरा महत््वपूर््ण - अग्नि (अग्नि देवता)
3 200 भजन - भगवान और लोगोों के बीच मध््यस््थ
तीसरा महत््वपूर््ण – वरुण
3 वह आकाश क्षेत्र का शासक और ब्रह््माांडीय और नैतिक कानून
का धारक है
सोमा - पौधोों और नशीले पेय का देवता।
मरुत - तूफ़़ान के देवता।
कुछ महिला देवियाँ - अदिति और उषा
3 लेकिन ऋग््ववेद के समय मेें ये प्रमुख नहीीं थे। पितृसत्तात््मक
व््यवस््थथा मेें, पुरुष देवता महिला देवियोों की तुलना मेें कहीीं
अधिक महत््वपूर््ण थे।
3.3) उत्तर वैदिक काल (1000 ई.पू.- 600 ई.पू.)

उत्तर वैदिक काल - उत्तर वैदिक काल - उत्तर वैदिक काल -


प�रचय समाज अर्थर्व्यवस्र्था

700 ईसा पूवर्

1000 ईसा पूवर् 900 ईसा पूवर् 600 ईसा पूवर्


B) राजनीतिक प्रणाली
1. जन - जनपद – राष्टट्र
उत्तरवैदिक- उत्तर वैदिक काल - उदाहरण - कुरु जनपद
राजनीदतक व्यवस्र्था धमर्
उनके बीच अक््सर लड़़ाई होती रहती है
2. ‘राजन’ का अधिकार अधिक स््पष््ट हो गया।

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‘राजन ने सम्राट, एकराट, सर््वभूमि, विराट जैसी उपाधियाँ धारण कीीं। मुक््तति यानी मुक््तति/मोक्ष के लिए संन््ययास (त््ययाग)।
12 रत्निन या 12 रत्न - राजा की सहायता के लिए D) उत्तर वैदिक काल - धर््म
‘राजन’ ने ‘राजसूय’ (राज््ययाभिषेक), ‘अश््वमेध’ (सभी दिशाओं
का शासक यानी ‘चक्रवर्ती’ बनने के लिए) और ‘वाजपेय’ (बूढ़़े 1. ऋग््ववैदिक युग के सबसे महत््वपूर््ण देवता वरुण और इंद्र ने बाद के वैदिक
‘राजन’ को पुनर्जीवित करना) जैसे विभिन्न बलिदान शुरू किए। चरण मेें प्रमुखता खो दी।
3. फिर भी, वहाँ कोई स््थथायी सेना नहीीं थी। 2. उत्तर वैदिक काल मेें प्रजापति या आदिपुरुष सर्वोच्च देवता बन गये।
4. ‘सभा’ और ‘समिति’ पर निर््भरता कम हुई. 3. रूद्र पहली बार प्रकट हुए शिव मेें विलीन हो गए।
इन सभाओं मेें महिलाओं को भाग लेने की अनुमति नहीीं थी. 4. अनुष््ठठानोों, बलिदानोों और पर््यवेक्षण पुजारी (पुरोहित) की आवश््यकता
5. विधाता पूरी तरह से गायब हो गई। ने धार््ममिक जीवन को जटिल बना दिया।
5. मूर््तति पूजा के कुछ उदाहरण सामने आए हैैं। जादू और शकुन ने
सामाजिक-धार््ममिक जीवन मेें प्रवेश किया।
6. उत्तर वैदिक काल के अंत मेें उपनिषदिक दार््शनिकोों ने धार््ममिक प्रथाओं
को सरल बनाने के प्रयास किये।
7. बाद के वैदिक चरण मेें, जनक और विश््ववामित्र जैसे कुछ क्षत्रिय सर्वोच्च
यानी ‘ब्रह्मा’ को जानने मेें सफल रहे।
8. धर््म का अर््थ था स््वयं के प्रति और दूसरोों के प्रति कर््तव््य, लेकिन ऋत
मौलिक कानून था जो सृष््टटि (ब्रह््माांड) के कामकाज को नियंत्रित करता
था।
E) उत्तर वैदिक काल - अर््थव््यवस््थथा
1. लोहे (कृष््णणा/श््ययामा अयस) की खोज की गई और खेती के लिए जंगल
साफ़ करने के लिए आग का उपयोग किया गया।
2. अनेक फसलोों की कृषि ने खानाबदोश प्रकृति पर प्रतिबंध लगा दिया;
C) सामाजिक व््यवस््थथा पशुपालन जारी रहा.
1. वर््ण व््यवस््थथा एवं जातियाँ पूर््ण रूप से गठित हो गयीीं 3. गे हूं , जौ, चावल, सेम, मूं ग उड़द और तिल की खे त ी की जाती
2. अस््पपृश््यता प्रकट हुई-निषद, चांडाल और शबर अछूतोों का उल््ललेख थी।
किया गया है। 4. अधिशेष उपज से बाली और भागा (1/6वां या 1/12वां) प्राप््त होता था,
3. महिलाओं की स््थथिति मेें गिरावट आई क््योोंकि उन््हेें अब औपचारिक शिक्षा अर््थथात राजा के खजाने मेें मामूली कर।
नहीीं मिली। ‘नियोग’ को भी एक नकारात््मक क्रिया माना जाता था। बाल 5. कोषाध््यक्ष को ‘संग्रहीत्री’ कहा जाता था और ‘भगदुखा’ कर एकत्र करता
विवाह आम होते जा रहे थे। था और वैश््य केवल करदाता थे।
4. गोत्र वह स््थथान था जहां मवेशी ‘जन’ के साथ रहते थे और बाद मेें ‘जन’ 6. इसमेें धन उधार देने का संदर््भ है (शतपथ ब्राह्मण सूदखोर को
के लिए एक पहचान के रूप मेें विकसित हुए। ‘कुसिडिन’ के रूप मेें वर््णणित करता है)।
5. ऊपरी तीन वर्णणों के पुरुष सदस््योों को ‘द्विज’ या दो बार जन््ममे कहा जाता था। 7. विभिन्न कलाओं और शिल््पोों जैसे गलाना, लोहाराई या बढ़ईगीरी, बुनाई,
6. गार्गी और मैत्रेयी जैसी महिलाएं ज्ञान के क्षेत्र मेें निपुण हुईं; गार्गी ने चमड़़े का काम, आभूषण बनाना, रंगाई और मिट्टी के बर््तन बनाना, कांच
दार््शनिक प्रवचन मेें याज्ञवल््क््य को पछाड़ दिया। के भंडार और चूड़़ियोों का भी उल््ललेख मिलता है।
7. 4 पुरुषार्थथों के लिए 4 गुना आश्रम : 8. समुद्री यात्राओं के उल््ललेख से वाणिज््य एवं व््ययापार का संकेत मिलता है।
ज्ञान अर््थथात धर््म के लिए ब्रह्मचर््य। 9. सिक््कके: “निष््क” के अलावा, सोने के सिक््कके जिन््हेें “सतमना” कहा जाता
गृहस््थ (गृहस््थ) धन और संतान के लिए अर््थथात ‘अर््थ’ और ‘काम’। था और चांदी के सिक््कके जिन््हेें “कृष््णला” कहा जाता था, का भी लेन-देन
आध््ययात््ममिक ज्ञान के लिए वानप्रस््थ (एकांतवास मेें साधु)। के साधन के रूप मेें उपयोग किया जाता था।

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