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प्रा.

अशोक ढोले
एम.ए.बी.एड.

सिंबायोसिस कॉलेज ऑफ
आर्ट्स अँड कॉमर्स,
सेनापती बापट रोड,
पणु े- 04
हिंदी व्याकरण
   रस
परिभाषाएँ-
 “साहित्यिक 'आनंद' को रस कहा जाता है।’’
 “साहित्य एवं काव्य की आत्मा ही 'रस' है।”
 आचार्य विश्वनाथ की परिभाषा- "वाक्यं रसात्मकं काव्यम्"
 रस साहित्य के 'भाव से उत्पन्न ना आनंद है' इसलिए यह 'भावात्मक' है। 
 रस का सर्वप्रथम प्रयोग  'तैत्तिरीयोपनिषद'  में किया गया था।
 यहाँ पर रस का प्रयोग 'स्वाद' के अर्थ में किया था।
 भरतमुनि ने अपनी रचना "नाट्यशास्त्र" में रस पर चर्चा की है।
 यहां पर 'आनंद' के अर्थ में रस की चर्चा की है। 
रस के तत्व/अवयव-
रस के तत्व चार हैं-

अभिनव गुप्त-    

1. स्थायी भाव 2. विभाव 3. अनुभाव 4. व्यभिचारी/संचारी /क्षणिक भाव

9 + 2 = 11           2         4            33

 
रस श्रृंगार पुनि हास्य अरु, करुना, रौद्र, सुजान। 
वीर, भयरु, वीभत्स,पुनि अद्भुत ,शांत ।। 
2. विभाव – “मन के अंदर के स्थायी भावों जगाने का कारण(वस्तु, साधन, भाव) विभाव है।”
3. अनुभाव – “स्थायी भावों को व्यक्त करनेवाली आश्रय (व्यक्ति) की चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती है।”
इससे सूचना मिलती है की आश्रय (व्यक्ति)की हृदय में विशेष अनुभूति क्रियाशील हो चुकी है.
4.
भावार्थ — प्रस्तुत पंक्‍तियों में तुलसीदास जी कहते हैं कि सीता प्रभु श्रीराम का रूप निहार रही हैं
क्योंकि दूल्हे के वेश श्रीराम अत्यन्त मनमोहक दिख रहे हैं। जब अपने हाथ में पहने कं गन में जड़ित
नग में प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि की परछाई देखती हैं तो वो स्वयं को रोक नही पातीं हैं और
एकटक प्रभु श्रीराम की मनमोहक छवि को निहारती रह जाती हैं।
3.

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