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Lakshman Nishad Samvad PDF
Lakshman Nishad Samvad PDF
ील ण-िनषाद संवाद
तब ल णजी ान, वैरा और भ के रस से सनी ई मीठी और कोमल वाणी बोले- हे भाई! कोई
िकसी को सुख-दु ःख का दे ने वाला नहीं है । सब अपने ही िकए ए कम का फल भोगते ह॥
संयोग (िमलना), िवयोग (िबछु ड़ना), भले-बुरे भोग, श ु, िम और उदासीन- ये सभी म के फंदे ह।
ज -मृ ु, स ि -िवपि , कम और काल- जहाँ तक जगत के जंजाल ह,!!!
धरती, घर, धन, नगर, प रवार, ग और नरक आिद जहाँ तक वहार ह, जो दे खने, सुनने और मन के
अंदर िवचारने म आते ह, इन सबका मूल मोह (अ ान) ही है । परमाथतः ये नहीं ह॥
जैसे म राजा िभखारी हो जाए या कंगाल ग का ामी इ हो जाए, तो जागने पर लाभ या हािन
कुछ भी नहीं है , वैसे ही इस - पंच को दय से दे खना चािहए..