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भारतीय समाज

2019
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नगरीकरण

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विषय सूची
1. पररचय (Introduction) _______________________________________________________________________ 3

2. नगरीकरण और संबवं धत पररघटनाएँ _______________________________________________________________ 3

2.1. नगरीय संकुल (Urban Agglomeration)________________________________________________________ 4

2.2 ऄवत-नगरीकरण (Over-Urbanization) _________________________________________________________ 4

2.3 ईप-नगरीकरण (Sub-Urbanization) __________________________________________________________ 4

2.4 प्रवत-नगरीकरण (Counter-Urbanization) ______________________________________________________ 4

2.5 जनगणना नगर (Census Town) ______________________________________________________________ 5

3. नगरीकरण की प्रक्रिया (Process of Urbanization) __________________________________________________ 5

4. भारत में नगरीकरण (Urbanization in India) _______________________________________________________ 6

5. नगरीकरण के सामावजक प्रभाि ___________________________________________________________________ 8

5.1 पररिार और नातेदारी (Family and Kinship) ____________________________________________________ 8

5.2 नगरीकरण और जावत _______________________________________________________________________ 8

5.3 नगरीकरण और मवहलाओं की वथथवत _____________________________________________________________ 9

6. नगरीकरण की समथयाएँ ________________________________________________________________________ 9

6.1 अिास एिं भूवम के बढ़े हुए मूल्य ________________________________________________________________ 9

6.2. अिास तथा मवलन बवथतयां (Housing and Slums) ______________________________________________ 11

6.3. ऄत्यवधक भीड़-भाड़ (Overcrowding) _________________________________________________________ 11

6.4. जल अपूर्तत, जल वनकासी एिं थिच्छता _________________________________________________________ 11

6.5. पररिहन एिं यातायात व्यिथथा ______________________________________________________________ 11

6.6. प्रदूषण (Pollution) ______________________________________________________________________ 12

7. नगरीकरण और ऄवभशासन _____________________________________________________________________ 12

8. शहरी विकास के क्षेत्र में िततमान प्रमुख कायतिम _______________________________________________________ 14

9. अगे की राह (Way forward) __________________________________________________________________ 15

9.1. समािेशी शहर (Inclusive Cities) ___________________________________________________________ 15

9.2. वित्तीयन (Financing) ____________________________________________________________________ 15

9.3. वनयोजन (Planning) _____________________________________________________________________ 15

9.4. थथानीय क्षमता वनमातण ____________________________________________________________________ 16

10. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेथट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 16

11. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 28
1. पररचय (Introduction)
नगरीकरण, िाथति में शहर बनने, शहरों की ओर प्रिास करने, कृ वष के थथान पर शहरों में प्रचवलत
ऄन्य सामान्य व्यिसाय जैसे क्रक व्यापार, विवनमातण, ईद्योग और प्रबंधन को ऄपनाने तथा आन्हीं के
ऄनुरूप व्यिहार प्रवतमानों में पररिततन लाने की प्रक्रिया है। यह ऄंतसंबंधों की सम्पूणत व्यिथथा में
विथतार की प्रक्रिया है, वजसके द्वारा जनसंख्या थियं को िास थथान में बनाए रखती है।
कथबों और नगरों के अकार में िृवि के पररणामथिरूप नगरीय जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होना, नगरीकरण
का ऄत्यंत महत्िपूणत अयाम है। प्राचीन काल में रोम और बगदाद जैसे कइ प्रमुख नगर रहे हैं, क्रकन्तु
जब से औद्योगीकरण तथा औद्योवगक ईत्पादन में िृवि हुइ है, नगरों का ऄसाधारण रूप से विकास हुअ
है। ऄत: कहा जा सकता है क्रक िततमान में नगरीकरण हमारे समकालीन जीिन का एक ऄत्यंत
महत्िपूणत ऄंग बन गया है।

िैविक नगरीय जनसंख्या

िल्डत ऄबतनाआजेशन प्रॉथपेक्ट्स, 2014 के ऄनुसार विि की नगरीय जनसंख्या का अधा भाग कु छ ही
देशों में वनिास करता है। विि में सिातवधक नगरीय जनसंख्या (758 वमवलयन) चीन में िास करती है
तथा ईसके पश्चात् भारत (410 वमवलयन) का थथान अता है। आन दो देशों में विि की नगरीय
जनसंख्या का लगभग 30 प्रवतशत वनिास करता है। आन दोनों देशों के साथ यक्रद संयुक्त राज्य ऄमेररका
(263 वमवलयन), ब्राज़ील (173 वमवलयन), आं डोनेवशया (134 वमवलयन), जापान (118 वमवलयन)
तथा रूस (105 वमवलयन) की नगरीय जनसंख्या को वमला दें तो ये सवम्मवलत रूप से विि की नगरीय
जनसंख्या के अधे से ऄवधक भाग का प्रवतवनवधत्ि करते हैं।

भारत में नगरीकरण मुख्यत: थितंत्रता पश्चात् की पररघटना है। आसका मुख्य कारण भारत द्वारा
ऄथतव्यिथथा की वमवित प्रणाली का ऄपनाया जाना है वजसने वनजी क्षेत्र के विकास को बढ़ािा क्रदया।
भारत में नगरीकरण बहुत तीव्र गवत से जारी है। 1901 की जनगणना के ऄनुसार भारत की नगरीय
जनसंख्या 11.4% थी। यह 2001 की जनगणना में बढ़कर 28.53% तथा 2011 की जनगणना में
30% के पार पहुँच गइ। िततमान में भारत की नगरीय जनसंख्या 31.16% है।

2. नगरीकरण और सं बं वधत पररघटनाएँ


(Urbanization and Associated phenomenon)
एक नगरीय बथती की वनमातण प्रक्रिया की कोइ सितवनष्ठ िैविक पररभाषा नहीं है। विवभन्न देशों में ईनके
राष्ट्रीय सांवख्यकीय कायातलयों द्वारा प्रयुक्त नगर की पररभाषा वभन्न-वभन्न होती है तथा कु छ मामलों में
कइ देशों में आसमें समय के साथ पररिततन भी देखा गया है। क्रकसी क्षेत्र को नगर के रूप में िगीकृ त करने
का मानदंड एक वनधातररत न्यूनतम जनसंख्या; जनसंख्या घनत्ि; गैर-कृ वष क्षेत्रक में वनयोवजत जनसंख्या
का ऄनुपात; पक्की सड़कों, विद्युत,् जलापूर्तत और जलवनकासी जैसी ऄिसंरचनाओं तथा वशक्षा एिं
थिाथ्य सेिाओं की ईपवथथवत जैसी क्रकसी एक विशेषता ऄथिा विशेषताओं के संयोजन पर अधाररत
होता है।
आस खंड में, हम नगरीय क्षेत्रों से संबंवधत विवभन्न पररभाषाओं तथा पररघटनाओं पर चचात करें गे। आसमें
नगरीय क्षेत्रों की जनगणना संबंधी पररभाषा, नगरीय संकुलन (Urban Agglomeration), ऄवत-
नगरीकरण (Over-Urbanization), ईप-नगरीकरण (Sub Urbanization), प्रवत-नगरीकरण
(Counter Urbanization) तथा जनगणना नगर (Census towns) शावमल हैं।

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1961 की जनगणना में ‘नगर (टाईन)’ को विवभन्न अनुभविक परीक्षणों के अधार पर पररभावषत तथा
वनधातररत क्रकया गया था। आस हेतु ऄवनिायत शतें वनम्नवलवखत थीं:
 5000 की न्यूनतम जनसंख्या,
 जनसंख्या घनत्ि कम से कम 1000 व्यवक्त प्रवत िगत मील,
 कायतशील जनसंख्या का तीन-चौथाइ भाग गैर-कृ वष कायों में संलग्न हो,
 आस क्षेत्र में नगरों की कु छ विशेषताएं एिं सुविधाएँ ऄिश्य हों जैसे क्रक हाल ही में थथावपत
औद्योवगक क्षेत्र, िृहद् अिासीय बवथतयां तथा पयतटन महत्ि और नागररक सुविधाओं के
थथल।

2.1. नगरीय सं कु ल (Urban Agglomeration)

आस शब्द का प्रयोग पहली बार 1971 की जनगणना में क्रकया गया था। प्राय: बड़ी रे लिे कॉलोवनयाँ,
वििविद्यालय पररसर, बन्दरगाह क्षेत्र, सैन्य पररसर आत्याक्रद क्रकसी नगर या कथबे की सांविवधक सीमा
के दायरे में नहीं अते परन्तु आनसे संलग्न क्षेत्र होते हैं। ऐसे क्षेत्र थियं में नगरीय क्षेत्र के रूप में मान्यता
प्राप्त करने के योग्य नहीं होते, परन्तु यक्रद िे संलग्न नगर या कथबे के साथ वनरं तर विथताररत होते हैं तो
ईन्हें नगरीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देना यथाथतिादी वसि हो सकता है। ऐसी बवथतयां अईटग्रोथ
(बवहबति) के रूप में पररभावषत की जाती हैं तथा एक सम्पूणत गाँि ऄथिा गाँि के एक भाग को
समावहत कर सकती हैं। ऐसे नगर ऄपनी अईटग्रोथ के साथ एक नगरीय आकाइ के रूप में माने जाते हैं
तथा ‘नगरीय संकुल’ कहलाते हैं।

2.2 ऄवत-नगरीकरण (Over-Urbanization)

यह क्रकसी नगर में या आसके अस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीकरण की विशेषताओं के ऄत्यवधक
विथतार को संदर्तभत करता है। यह नगरीय विवशष्टताओं के ऄत्यवधक विकास का पररणाम है। नगरीय
गवतविवधयों और व्यिसायों के दायरे में विथतार, ईद्योगों जैसे वद्वतीयक कायों के ऄत्यवधक ऄन्तिातह,
एक जरटल नौकरशाही के वन्ित प्रशासवनक नेटिकत के िृविशील एिं व्यापक विकास, जीिन की बढ़ती
कृ वत्रमता ि यंत्रीकरण तथा वनकटिती ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय लक्षणों के प्रिेश के कारण, ऄवत-
नगरीकरण धीरे -धीरे क्रकसी समुदाय के रीवत-ररिाजों एिं परम्परािादी गुणों को प्रवतथथावपत कर देता
है। मुंबइ तथा कोलकाता ऐसे नगरों के प्रमुख ईदाहरण हैं।

2.3 ईप-नगरीकरण (Sub-Urbanization)

यह क्रकसी नगर के ऄवत-नगरीकरण से घवनष्ठ रूप से संबंवधत है। जब क्रकसी नगर की जनसंख्या में
ऄत्यवधक िृवि (ओिर िाईडडग) होती है तो आसके पररणामथिरूप ईप-नगरीकरण की घटना घरटत
होती है। क्रदल्ली आसका प्रतीकात्मक ईदाहरण है। ईप-नगरीकरण से तात्पयत क्रकसी नगर के वनकटिती
ग्रामीण क्षेत्र का नगरीकरण है। यह वनम्नवलवखत विशेषताओं को प्रकट करता है-
 भूवम के ‘नगरीय (गैर-कृ वषगत) ईपयोग’ में तीव्र िृवि,
 नगर के अस-पास के क्षेत्रों का ईसकी नगरपावलका की सीमा में समािेशन तथा
 नगर तथा ईसके वनकटिती क्षेत्रों के मध्य सभी प्रकार के गहन संचार साधन।

2.4 प्रवत-नगरीकरण (Counter-Urbanization)

यह एक जनांक्रककीय तथा सामावजक प्रक्रिया है वजसमें लोग नगरीय क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र की ओर
प्रथथान करते हैं। पहली बार यह अंतररक शहर में संसाधनों के ऄभाि तथा ऄत्यवधक भीड़-भाड़ (ओिर
िाईडडग) की प्रवतक्रिया के पररणामथिरूप घरटत हुअ था। प्रवत नगरीकरण तब घरटत होता है जब
कु छ बड़े नगर ऐसी ऄिथथा में पहुँच जाते हैं, वजसमें ईनकी िृवि रुक जाती है या िाथति में ईनके

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अकार में ह्रास प्रारम्भ हो जाता है, क्टयोंक्रक ईनकी जनसंख्या ईपनगरीय क्षेत्रों या छोटे शहरों की ओर
प्रिास करने लगती है। आस प्रकार यह ग्राम-नगर ईपांत (rural-urban fringe) में होने िाली
ऄकथमात िृवि है। ऐसे कइ ईदाहरण हैं जो यह दशातते हैं क्रक भारत में प्रवत-नगरीकरण घरटत हो रहा
है।

2.5 जनगणना नगर (Census Town)

2011 में जनगणना नगर की एक निीन पररभाषा विकवसत हुइ है। ‘जनगणना नगरों’ िाला यह
नगरीय िगीकरण भारत के छोटी कृ षक बवथतयों तथा बड़े क़थबाइ बाजार के जैसी बवथतयों (वजनमें
तीव्र और ऄकथमात िृवि हो रही है) के मध्य ऄंतर थथावपत करने में सहायक है।
एक जनगणना नगर के रूप में िगीकृ त होने के वलए क्रकसी गाँि को वनम्नवलवखत तीन मानदंडों को पूरा
करना ऄवनिायत है:
 ईसकी न्यूनतम जनसंख्या 5000 हो,
 न्यूनतम जनसंख्या घनत्ि 400 व्यवक्त प्रवत िगत क्रकमी हो, और
 पुरुष कायतशील जनसंख्या का कम से कम 75 प्रवतशत गैर-कृ वष गवतविवधयों में संलग्न हो।

नगरीकरण की िैविक प्रिृवत (Global Trends In Urbanization)


िैविक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में नगरीय क्षेत्रों में ऄवधक जनसंख्या वनिास करती है। आवतहास में
पहली बार 2007 में, िैविक नगरीय जनसंख्या िैविक ग्रामीण जनसंख्या से ऄवधक हुइ थी। तत्पश्चात
विि की जनसंख्या मुख्य रूप से नगरीय बनी हुइ है। विगत छह दशकों से विि, तीव्र नगरीकरण प्रक्रिया
से गुजर रहा है। आस प्रकार नगरीय जनसंख्या में वनरं तर िृवि होने की ऄपेक्षा की जा रही है। ऄत: यह
ऄनुमान लगाया गया है क्रक विि 2050 तक एक वतहाइ ग्रामीण (34%) तथा दो-वतहाइ (66%)
नगरीय हो जाएगा।

विि की नगरीय और ग्रामीण जनसंख्या, 1950-2050


(िल्डत ऄबतनाइजेशन प्रॉथपेक्ट्स: 2014 संशोवधत)

3. नगरीकरण की प्रक्रिया (Process of Urbanization)


पररिततन की संरचनात्मक प्रक्रिया के रूप में नगरीकरण, सामान्यतः औद्योगीकरण से संबंवधत है क्रकन्तु
यह सदैि औद्योगीकरण का पररणाम नहीं होता। नगरीकरण शहरों में िृहद् और लघु थतर पर
औद्योवगक, िावणवज्यक, वित्तीय और प्रशासवनक संरचनाओं की थथापना; पररिहन और संचार में
तकनीकी विकास, सांथकृ वतक तथा मनोरं जन गवतविवधयों अक्रद के संकेंिण का पररणाम होता है।
िथतुतः औद्योगीकरण नगरीय क्षेत्रों में अने िाले सभी व्यवक्तयों के वलए रोजगार प्रदान करना संभि

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बनाता है परन्तु कु छ पररवथथवतयों में यह ऄवत नगरीकरण की वथथवत ईत्पन्न करता है। आस सम्बन्ध में
भारत में एक विवशष्ट घटना देखी जा सकती है: भारत में औद्योवगक संिृवि तो हो रही है क्रकन्तु
जनसंख्या का कृ वष से ईद्योग की ओर ईल्लेखनीय थथानान्तरण नहीं हो रहा है, साथ ही नगरीय
जनसंख्या में िृवि हो रही है क्रकन्तु कु ल जनसंख्या के सापेक्ष नगरीय जनसंख्या के ऄनुपात में
ईल्लेखनीय िृवि नहीं हो रही है। यद्यवप अनुपावतक रूप से, ग्रामीण से नगरीय गवतविवधयों की ओर
ऄवधक पररिततन नहीं हुअ है, क्रकन्तु ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों की ओर जनसंख्या का बड़े थतर पर
प्रिसन वनरं तर जारी है। यह नगरीय क्षेत्रों के विकास को ऄिरुि करता है तथा साथ ही वनरं तर बढ़ती
जनसंख्या की अिश्यकताओं की पूर्तत हेतु अधारभूत सुविधाओं का ऄभाि भी ईत्पन्न करता है।
भारतीय संदभत में, नगरीकरण को एक सामावजक-सांथकृ वतक प्रक्रिया, अर्तथक प्रक्रिया और भौगोवलक
प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है।
 एक सामावजक-सांथकृ वतक प्रक्रिया के रूप में, यह विवभन्न नृजातीय, भाषाइ और धार्तमक पृष्ठभूवम
के व्यवक्तयों का सवम्मलन थथल (मेडल्टग-पॉट) है।
 अर्तथक प्रक्रिया के रूप में शहर, ईत्पादक गवतविवधयों के कें ि डबदु हैं। आनका ऄवथतत्ि और विकास
आनमें ऄन्तर्तनवहत अर्तथक गवतविवधयों की क्षमता पर वनभतर करता है।
 भौगोवलक प्रक्रिया के ऄंतगतत, यह व्यवक्तयों के प्रिास ऄथिा अिासों के थथानांतरण से संबंवधत है
और आसमें लोगों का एक थथान से दूसरे थथान पर संचरण सवम्मवलत है।
आस प्रकार नगरीकरण की प्रक्रिया महत्िपूणत अर्तथक और सामावजक रूपांतरण से संबंवधत है, वजसने
िृहत्तर भौगोवलक गवतशीलता, वनम्न प्रजनन क्षमता, ईच्च जीिन प्रत्याशा और िृि लोगों की संख्या में
िृवि जैसी प्रिृवत्तयों को ईत्पन्न क्रकया है।

विथतारशील नगर (Expanding Cities)


 ऄवधकांश मेगावसटी और बड़े शहर ग्लोबल साईथ (तृतीय विि के देशों, विकासशील एिं
ऄल्पविकवसत देशों तथा ऄल्पविकवसत क्षेत्रों को सामूवहक रूप से ग्लोबल साईथ कहा जाता है) में
वथथत हैं। भारत के सात शहरों को 2030 तक मेगावसटी के रूप में विकवसत करना प्रथतावित क्रकया
गया है। आनमें से चार शहर (ऄहमदाबाद, बैंगलोर, चेन्नइ और हैदराबाद) िततमान के 5 -10
वमवलयन जनसंख्या के साथ अगामी िषों में मेगावसटी का थतर प्राप्त कर लेंगे।
 टोक्टयो 38 वमवलयन जनसंख्या संकुल िाला विि का सबसे बड़ा शहर है। आसके बाद क्रदल्ली का
थथान है वजसकी जनसंख्या 25 वमवलयन है।
 कइ दशक पूित विि के सबसे बड़े नगरीय संकुल ऄवधकांशतः विकवसत क्षेत्रों में विद्यमान थे, क्रकन्तु
अज के बड़े शहर ग्लोबल साईथ में संकेंक्रित हैं।
 हाल के िषों में कु छ शहरों की जनसंख्या में वगरािट देखी गयी है। आनमें से ऄवधकांशतः एवशया और
यूरोप के वनम्न प्रजनन क्षमता िाले देशों में वथथत हैं जहां की समग्र अबादी वथथर है ऄथिा वगरािट
के दौर में है। अर्तथक मंदी और प्राकृ वतक अपदाओं ने कु छ शहरों में जनसंख्या की वगरािट में
योगदान क्रकया है।
(िल्डत ऄबतनाआज़ेशन प्रॉथपेक्ट्स: 2014 ररिीजन)

4. भारत में नगरीकरण (Urbanization in India)


भारत में नगरीकरण का लंबा आवतहास रहा है जो थथावनक और सामवयक ऄसम्बिताओं से युक्त है। यह
सतत प्रक्रिया है जो ऄपने प्रारम्भ के बाद से ऄनिरत जारी है तथा शायद ही कभी मंद हुइ हो। भारत में
नगरीकरण को विवभन्न चरणों में विभावजत क्रकया जा सकता है। यह वसन्धु सभ्यता से प्रारम्भ होकर
मुग़ल काल के दौरान ईल्लेखनीय थतर तक पहुँच गया। तत्पश्चात आस प्रक्रिया में वब्ररटश शासन का भी

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विवशष्ट योगदान रहा। थितंत्रता पश्चात् नगरीकरण के थतर में तीव्र एिं ऄभूतपूित िृवि देखी गइ।
थितन्त्रता के पश्चात् भारत में नगरीय पररदृश्य में वनम्नवलवखत प्रमुख पररिततन हुए हैं:
 नए प्रशासवनक नगरों का वनमातण, बड़े नगरों के सवन्नकट नए औद्योवगक नगरों और टाईनवशप का
वनमातण, एक लाख और दस लाख की जनसंख्या िाले नगरों में तीव्र िृवि, मवलन बवथतयों और
ग्राम-नगर ईपांत क्षेत्रों (संिमणशील क्षेत्र) में व्यापक िृवि, नगर वनयोजन की शुरुअत और
नागररक सुविधाओं में सामान्य सुधार अक्रद।
भारत के तीव्र अर्तथक विकास के पररणामथिरूप िततमान में नगरीकरण की प्रक्रिया का त्िररत होना
ऄपररहायत है। अर्तथक सुधार ने वनिेश और संिृवि को प्रेररत क्रकया है जो नागररकों को अगे बढ़ने के
समृि ऄिसर प्रदान कर रहे हैं। शहरों में विकास और रोजगार की िृवि आस सन्दभत में एक शवक्तशाली
चुम्बकीय कारक वसि होगा। हालांक्रक, यक्रद आसे ऄनुकूल ढंग से प्रबंवधत नहीं क्रकया गया तो भारत की
नगरीय जनसंख्या में होने िाली ऄपररहायत िृवि संपूणत व्यिथथा पर भारी दबाि डालेगी।
भारत को ऄवधक समािेशी होने के वलए, यह ऄवनिायत है क्रक अर्तथक विकास और नगरीय जनसंख्या
दोनों को ऄवधक समान रूप से वितररत क्रकया जाए। ऄतः, भारत के वलए भविष्य के शहरों (cities of

tomorrow) हेतु एक वनयोवजत दृवष्टकोण के वबना कोइ भी ऄथतपण


ू त दीघतकावलक लक्ष्य ऄधूरा ही रहेगा।
िततमान नगरीय भारत संपण
ू त देश में विथताररत बड़े और छोटे शहरों की एक विथतृत िृंखला के साथ
‘वितररत (distributed)’ थिरूप में पररलवक्षत होता है। भारत में नगरीकरण के आसी वडथरीब्यूटेड
मॉडल के प्रचवलत रहने की संभािना है क्टयोंक्रक यह देश के संघीय ढांचे के ऄनुरू प है तथा यह सुवनवश्चत
करने में सहायक है क्रक प्रिसन प्रिाह (Migration Flow) क्रकसी विशेष शहर या शहरों की ओर न हो।
जैस-े जैसे नगरीय जनसंख्या और अय में िृवि होती जाती है िैसे- िैसे प्रत्येक अकार और प्रकार के
शहरों में, सभी महत्िपूणत सेिाओं जैसे जल, पररिहन, सीिेज रीटमेंट तथा वनम्न अय िगत हेतु अिास
की मांग, पांच से सात गुना बढ़ जाती है। ऄतः यक्रद भारत की िततमान वथथवत वनरं तर जारी रहती है तो
अने िाले समय में शहरों को समृि बनाए रखने के वलए अिश्यक नगरीय अधारभूत संरचना का
गंभीर ऄभाि हो सकता है।
संभितः राज्य सरकारों की ऄवनच्छा के कारण, वनिातवचत वनकायों को 74 िें संविधान संशोधन

ऄवधवनयम द्वारा प्रदत्त ऄवधकारों का ऄपूणत हथतांतरण हुअ है। आसके ऄवतररक्त, के िल कु छ ही शहरों
द्वारा 2030 माथटर प्लान को ऄपनाया गया है। आस माथटर प्लान के तहत ईच्चतम पररिहन भार,
वनम्न अय िगत हेतु सथते अिास की अिश्यकताओं और जलिायु पररिततन संबंधी प्रािधान क्रकए गए हैं।
सामान्यतः, ऐवतहावसक रूप से नगरपावलका और राज्य थतर पर नगरीय सुधारों और पररयोजनाओं को
वनष्पाक्रदत करने की क्षमता ऄपयातप्त रही है।

2011 की जनगणना के ऄनुसार, भारत की कु ल जनसंख्या का 31.1% भाग ऄथातत 377 वमवलयन लोग

नगरीय क्षेत्रों में वनिास करते हैं। यूनाआटेड नेशंस हैवबटैट िल्डत वसटी 2016, ररपोटत का ऄनुमान है क्रक
2015 में भारत की नगरीय जनसंख्या 420 वमवलयन तक पहुंच चुकी थी।
1981-2001 की ऄिवध में, भारत में नगरीकरण मुख्यतः शहरों की जनसंख्या में प्राकृ वतक िृवि

(लगभग 60%) से प्रेररत था। आसके पश्चात् ग्रामीण शहरी प्रिास, शहरों की सीमाओं का विथतार और
ग्रामीण क्षेत्रों का शहरी क्षेत्रों के रूप में पुनितगीकरण अक्रद कारकों का थथान था।
परन्तु, 2001 से 2011 के मध्य, शहरों की जनसंख्या में प्राकृ वतक िृवि का ऄंश कम होकर 44% हो
गया, जबक्रक ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों के रूप में पुनितगीकरण के वहथसे में िृवि के साथ ग्रामीण शहरी

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प्रिास का वहथसा बढ़ कर 24% हो गया।
यह िृवि सराहनीय है, क्रकन्तु भारत में नगरीकरण का विथतार ऄन्य प्रमुख विकासशील देशों से काफी
कम है। विि बैंक के ऄनुसार, 2015 में कु ल जनसंख्या के ऄनुपात में शहरी जनसंख्या ब्राजील में 86%,

चीन में 56%, आं डोनेवशया में 54%, मेवक्टसको में 79% और दवक्षण कोररया में 82% है।

5. नगरीकरण के सामावजक प्रभाि


(Social effects of Urbanization)
नगरीकरण िृहद सामावजक प्रक्रियाओं और संरचनाओं को व्यापक रूप से प्रभावित करता है। आनमें से
कु छ प्रमुख क्षेत्र वनम्नवलवखत हैं-

5.1 पररिार और नाते दारी (Family and Kinship)

नगरीकरण न के िल पररिार की संरचना को बवल्क ऄन्तः पाररिाररक एिं ऄंतर-पाररिाररक संबंधों


तथा पररिार द्वारा क्रकए जाने िाले कायों को भी प्रभावित करता है। नगरीकरण के कारण, सामुदावयक
संबंधों में व्यिधान ईत्पन्न होता है तथा प्रिावसयों को पुराने संबध
ं ों को नए संबंधों से प्रवतथथावपत करने
एिं पुराने संबंधों को संतोषजनक तरीके से वनभाने में समथयाओं का सामना करना पड़ता है।
अइ. पी. देसाइ (1964) ने ईल्लेख क्रकया है क्रक यद्यवप नगरीय पररिारों की संरचना पररिर्ततत हो रही
है, तथावप पररिारों में व्यवक्तिाद (individualism) की भािना में ऄवधक िृवि नहीं हुइ है। आन्होंने
ऄपने ऄध्ययन में पाया क्रक 74 प्रवतशत पररिार अिासीय रूप से एकल (Nuclear) परन्तु दावयत्िों
और संपवत्त के सन्दभत में संयुक्त थे, 21 प्रवतशत पररिार संपवत्त सवहत अिासीय एिं कायातत्मक रूप में
संयुक्त थे तथा के िल 5 प्रवतशत पररिार एकल थे।
एवलन रॉस (1962) ने बैंगलोर में मध्यम और ईच्च िगों के 157 डहदू पररिारों का ऄध्ययन क्रकया।
ईन्होंने पाया क्रक-
 लगभग 60 प्रवतशत पररिार एकल हैं।
 िततमान प्रिृवत्त, पारं पररक संयुक्त पररिारों की संरचना को खंवडत कर एकल पाररिाररक संरचना
की ओर और ऄंततः एकल पाररिाररक आकाइ की ओर अगे बढने की है।
 िततमान में नगरीय भारत में छोटे संयुक्त पररिार, पाररिाररक जीिन का सिातवधक विवशष्ट रूप
हैं।
 दूरी के कारण पारथपररक सम्बन्ध कमजोर हो रहे हैं या टू ट रहे हैं।

5.2 नगरीकरण और जावत

(Urbanization and caste)


 सामान्य रूप से यह माना जाता है क्रक जावतयां ग्रामीण भारत की जबक्रक िगत नगरीय भारत की
विशेषता है तथा नगरीकरण के कारण जावत का िगत में रूपांतरण हो रहा है। परन्तु यह ध्यान
रखना अिश्यक है क्रक जावत व्यिथथा शहरों और गांिों में लगभग एकसमान रूप से व्याप्त है।
हालांक्रक आनमें महत्िपूणत संगठनात्मक वभन्नताएँ विद्यमान हैं।
 िथतुतः जावतगत पहचान नगरीकरण, वशक्षा तथा व्यवक्तगत ईपलवब्ध एिं अधुवनक थटेटस
वसम्बल की ओर ऄवभविन्यास के विकास के साथ कम हो जाती है। यह वचवननत क्रकया गया है क्रक
पवश्चमीकृ त ऄवभजात िगत के मध्य जावत अधाररत संबध
ं ों से िगत अधाररत संबध
ं ऄवधक महत्िपूणत
होते हैं।

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 हालांक्रक जावत व्यिथथा वनरं तर विद्यमान है और शहरी सामावजक जीिन के कु छ क्षेत्रों को
प्रभावित कर रही है, जबक्रक कु छ ऄन्य क्षेत्रों में आसने ऄपने थिरूप को पररिर्ततत कर वलया है।
ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में जावतगत संबिता या जावतगत एकता ईतनी सुदढ़ृ नहीं
है। शहरों में जावत पंचायत बेहद कमजोर हैं। यहाँ कायतथथल और घरे लू पररवथथवत के मध्य एक द्वैत
की वथथवत विद्यमान है तथा जावत और िगत वथथवत, दोनों ही सह-ऄवथतत्ि में बने हुए हैं।

5.3 नगरीकरण और मवहलाओं की वथथवत

(urbanization and status of women)


 मवहलाएं ग्रामीण-शहरी प्रिावसयों के एक महत्िपूणत िगत का वनमातण करती हैं। िे वििाह के समय
भी प्रिास करती हैं और ईस समय भी जब िे ऄपने गंतव्य थथल में सम्भाव्य कमतचारी होती हैं।
जहाँ मध्यमिगीय मवहलाएं व्हाआट कॉलर नौकररयों और व्यिसायों में वनयोवजत होती हैं िहीं
वनचले िगत की मवहलाओं को ऄनौपचाररक क्षेत्र में रोजगार के ऄिसर प्राप्त होते हैं। आसके साथ ही
मवहलाएं औपचाररक क्षेत्र में भी औद्योवगक कमतचाररयों के रूप में कायतरत होती हैं।
 मवहलाओं की एक बड़ी संख्या व्हाआट कॉलर नौकररयां प्राप्त कर विवभन्न व्यिसायों में प्रिेश कर
रही है। आन व्यिसायों ने मवहलाओं के सामावजक और अर्तथक थतर को बढ़ाने में महत्िपूणत भूवमका
वनभाइ है। आसके पररणामथिरूप थिायत्तता में िृवि के साथ-साथ कायत के िमसाध्य ि बढ़े हुए
घंटों एिं व्यािसावयक वनष्ठा में भी िृवि देखने को वमली है। हालाँक्रक परं परागत और सांथकृ वतक
संथथानों की वथथवत पूितित बनी हुइ है, वजसके पररणामथिरूप ऄंततः मूल्यों का संकट और मानकों
के सन्दभत में दुविधा की समथयाएँ ईत्पन्न होती हैं। सामावजक और व्यवक्तगत रूप से प्रबुि मवहलाएँ
सामावजक और पेशेिर जीिन की दोहरी भूवमकाएं वनभाने के वलए बाध्य हैं।
 तुलनात्मक रूप से वशवक्षत और ईदार होने के कारण नगरीय मवहलाओं की वथथवत ग्रामीण
मवहलाओं की तुलना में ईच्च है। हालांक्रक िम बाजार में, ऄभी भी मवहलाओं के वलए एक प्रवतकू ल
वथथवत विद्यमान है।

6. नगरीकरण की समथयाएँ
(Problems of Urbanization)

भारत में नगरीकरण के प्रवतरूप को क्षेत्रीय एिं ऄंतरराज्यीय विविधता, िृहत पैमाने पर ग्रामीण-शहरी

प्रिासन, ऄपयातप्त ऄिसंरचना सुविधाओं, मवलन बवथतयों में िृवि तथा ऄन्य संबि समथयाओं द्वारा
वचवननत क्रकया जाता है। भारत के विवभन्न भागों में नगरीकरण में व्याप्त प्रमुख समथयाएँ वनम्नवलवखत
हैं:

6.1 अिास एिं भू वम के बढ़े हुए मू ल्य

(Housing and Inflated Land Prices)


भारत में भूवम के मूल्यों में ऄत्यवधक िृवि का मुख्य कारण ररयल एथटेट में ऄिैध धन का प्रिाह है।
आसवलए, काले धन पर वनयंत्रण का एक लाभकारी पाित प्रभाि यह होगा क्रक कम अय िाले पररिारों
हेतु अिास ऄवधक िहनीय मूल्य पर ईपलब्ध होंगे। भूवम में काले धन के प्रिाह को प्रोत्सावहत करने का
एक महत्त्िपूणत कारक ईच्च थटाम्प शुल्क है। आस शुल्क को कम करने हेतु राज्यों के साथ वमलकर कायत
करना भूवम के मूल्यों में कमी करने में सहायक वसि होगा।
आसके ऄवतररक्त भारत में कृ वत्रम रूप से ईच्च शहरी संपवत्त मूल्यों में कम से कम चार अपूर्तत पक्षीय
कारकों ने भी योगदान क्रदया है। ये कारक वनम्नवलवखत हैं:

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 पहला, नगर भूवम (ऄवधकतम सीमा और विवनयमन) ऄवधवनयम, 1976 के पररणामथिरूप, ररक्त
भूवम के बड़े भाग शहरी भूवम बाजारों से गायब हो गए हैं।
 दूसरा, कइ रुग्ण साितजवनक क्षेत्र के ईद्यमों (PSEs) के पास प्रमुख शहरी क्षेत्रों में िृहद ऄप्रयुक्त
भूखंड हैं। आन आकाआयों को बंद करने से बाजार में पयातप्त भूवम ईपलब्ध कराने में सहायता प्राप्त
होगी।
 तीसरा, कें िीय और राज्य सरकारों के पास पयातप्त मात्रा में ऐसी शहरी भूवम ईपलब्ध होती है जो

प्रायः ऄप्रयुक्त रहती है ऄथिा वजसके ऄवतिमण की संभािना होती है। ईदाहरणाथत, कें ि सरकार
के रे लिे, रक्षा एिं नागररक ईड्डयन मंत्रालयों के पास मूल्यिान ऄप्रयुक्त शहरी भूवम मौजूद है। आसे
ऄिसंरचना तथा ऄन्य महत्िपूणत व्ययों के वित्तपोषण के साथ-साथ अिास एिं ऄन्य ईपयोगों हेतु
भूवम ईपलब्ध कराने के वलए मौिीकृ त क्रकया जा सकता है।
 ऄंततः, भूवम ऄवधग्रहण ऄवधवनयम, 2013 ऄवधगृहीत भूवम हेतु मुअिजे की ईच्च दर को सुवनवश्चत
करता है। आसके पररणामथिरूप िहनीय अिास हेतु ऄवधगृहीत भूवम के मूल्य में िृवि होती है और
लागत ईच्च हो जाती है। िहनीय अिास के वलए भूवम ऄवधग्रहण हेतु भूवम ऄवधग्रहण ऄवधवनयम
2013 में संशोधन करने के ऄवतररक्त, भूवम के ईच्च मूल्य के आस कारण से वनपटने का कोइ सुगम
समाधान ईपलब्ध नहीं है।
भूवम रूपांतरण (लैंड कन्िज़तन) वनयमों की जरटलता शहरी भूवम की अपूर्तत में एक प्रमुख व्यिधान
है। शहरों की बाह्य पररवध में मौजूद भूवम के विशाल खंड शहरी विथतार हेतु संभावित रूप से
ईपलब्ध हैं, परन्तु आसके वलए भूभागों को कृ वष-योग्य से गैर-कृ वष ईपयोग योग्य भूखंडों में
रूपांतररत करने की अिश्यकता है। ऐवतहावसक कारणों से, आस प्रकार के रूपांतरण की शवक्त
के िल राज्य के राजथि विभागों में वनवहत की गइ है, जो भूवम रूपांतरण की ऄनुमवत देने में प्रायः
ऄवनच्छु क होते हैं। आस शवक्त को नगरीकरण संबंधी प्रभारी एजेंवसयों को थथानांतररत करना और
रूपांतरण को पारदशी एिं लचीला बनाना, भारतीय शहरों में जीिंत भूवम बाजारों के वनमातण की
क्रदशा में दीघतकावलक एिं सकारात्मक कदम होगा।
क्षैवतज थथान की कमी को, उँची आमारतों के वनमातण के माध्यम से थथान का विथतार करके समाप्त
क्रकया जा सकता है। आस ईपाय की ईपलब्धता ऄनुमत फ्लोर थपेस आं डक्ट
े स (Floor Space
Index: FSI) पर वनभतर करती है, वजसमें आमारत के फ्लोर-थपेस का मापन भूखंड (वजस पर

आमारत वथथत है) के क्षेत्रफल के ऄनुपात में क्रकया जाता है। दुभातग्यिश, भारतीय शहरों में
ऄनुमत/थिीकृ त FSI रें ज बहुत ही कम (1 से 1.5 तक) है, वजसके पररणामथिरूप उँची आमारतें
भारतीय शहरों में लगभग ऄनुपवथथत हैं। मुंबइ की सांवथथवत (Topology) मैनहट्टन एिं डसगापुर
से काफी वमलती-जुलती है, परं तु दोनों शहरों की तुलना में मुब
ं इ में उंची आमारतों की संख्या बहुत

कम है। ऄनुमत FSI में छू ट प्रदान करके ईपलब्ध शहरी थथान को कइ गुना विथताररत क्रकया जा
सकता है।
परं परागत क्रकराया वनयंत्रण कानूनों द्वारा ऄसंगत रूप से क्रकरायेदार को संरक्षण प्रदान क्रकया जाता
है। िथतुतः क्रकराये के अिास की मांग और अपूर्तत में ऄत्यवधक ऄसंतुलन की वथथवत विद्यमान है।
आसके फलथिरूप एक विरोधाभासी वथथवत ईत्पन्न हुइ है वजसमें क्रकराये के मकानों की मांग बहुत
ऄवधक है क्रकन्तु क्रफर भी ऄनेक अिासीय इकाआयाँ ररक्त हैं। आस प्रकार िततमान क्रकराया वनयंत्रण
कानूनों को एक ऐसे अधुवनक क्रकरायेदारी कानून से प्रवतथथावपत करने की थपष्ट रूप से
अिश्यकता है जो क्रकराए के साथ ही क्रकराये पर रहने की ऄिवध के विषय में समझौता िातात हेतु
क्रकरायेदार एिं मकान मावलक को पूणत थितंत्रता प्रदान करे ।

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6.2. अिास तथा मवलन बवथतयां (Housing and Slums)

शहरी क्षेत्रों में अिास की ऄत्यवधक कमी है और ईपलब्ध अिासों में से भी ऄवधकांश वनम्न-थतरीय
गुणित्ता के हैं। जनसंख्या में तीव्रता से िृवि, नगरीकरण की ईच्च दर तथा अिासों की संख्या में
अनुपावतक रूप से ऄपयातप्त िृवि जैसे कारणों से विगत कु छ िषों के दौरान यह समथया और
ऄवधक गंभीर हो गइ है।
िृहत् पैमाने पर शहरी क्षेत्रों में प्रिास के कारण लोगों के पास मवलन बवथतयों में रहने के ऄवतररक्त
ऄन्य विकल्प ईपलब्ध नहीं है। वनम्न-थतरीय अिास, ऄत्यवधक भीड़-भाड़ तथा विद्युतीकरण, िायु-
संचरण (िेंरटलेशन), थिच्छता तथा सड़कों एिं पेयजल जैसी सुविधाओं का ऄभाि मवलन बवथतयों
की प्रमुख विशेषताएं हैं। ये बवथतयाँ रोगों, पयातिरण प्रदूषण, नैवतक पतन तथा कइ ऄन्य
सामावजक तनािों का ईद्गम थथल भी रही हैं।

6.3. ऄत्यवधक भीड़-भाड़ (Overcrowding)

भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबइ, कोलकाता, पुणे और कानपुर अक्रद में 85% से 90% के मध्य
पररिार एक ऄथिा दो कमरों में वनिास करते हैं। यहाँ तक क्रक कु छ अिासों में पांच से छह व्यवक्त
एक ही कमरे में रहते हैं। ऄत्यवधक भीड़-भाड़ विकृ त व्यिहार को प्रोत्सावहत करता है, रोगों का
प्रसार करता है तथा मानवसक रोग, शराब और दंगों से सम्बंवधत पररवथथवतयां ईत्पन्न करता है।
घनी शहरी बवथतयों के जीिन के प्रभािों में से एक लोगों का ईदासीन एिं वनष्ठु र होना भी है।

6.4. जल अपू र्तत, जल वनकासी एिं थिच्छता

(Water supply, Drainage and Sanitation)


भारत के क्रकसी भी शहर में 24 घंटे जल की अपूर्तत ईपलब्ध नहीं है। ऄथथायी अपूर्तत के कारण
खाली पाआप लाआनों में िैक्टयूम ईत्पन्न हो जाता है जो प्रायः लीके ज पॉआं ्स से प्रदूषकों को
ऄिशोवषत कर लेता है। ऄनेक छोटे शहरों में कोइ प्रमुख जल अपूर्तत विद्यमान नहीं है तथा यहाँ
वनिास करने िाले लोग कु ओं पर वनभतर हैं। शहरों में जल वनकासी की वथथवत भी सामान्य रूप से
दयनीय होती है। जल वनकासी व्यिथथा के मौजूद न होने के कारण शहरों में ऄिरुि जल बड़े
पैमाने पर (यहाँ तक क्रक ग्रीष्म ऊतु में भी) देखा जा सकता है।
भारतीय शहरों में कचरा हटाना, नावलयों एिं बंद सीिरों की सफाइ आत्याक्रद नगर पावलकाओं
तथा नगर वनगमों के प्रमुख कत्ततव्य हैं। शहरों की थिच्छता संबंधी बुवनयादी अिश्यकताओं की पूर्तत
हेतु प्रेरणा का पूणत
त ः ऄभाि है। आन भीड़ भरे शहरी क्षेत्रों में मवलन बवथतयों के विथतार और यहाँ
के वनिावसयों के मध्य नागररक मूल्यों की कमी ने गंदगी और रोगों की िृवि को प्रोत्साहन क्रदया है।

6.5. पररिहन एिं यातायात व्यिथथा

(Transportation and Traffic)


भारत के शहरी कें िों में पररिहन एिं यातायात हेतु योजनाबि और पयातप्त व्यिथथा की
ऄनुपवथथवत एक ऄन्य गंभीर समथया है। ऄवधकांश लोग बसों और टेम्पो का ईपयोग करते हैं,
जबक्रक कु छ ही लोगों के द्वारा रांवजट प्रणाली के रूप में रे ल का प्रयोग क्रकया जाता है। दोपवहया
िाहनों तथा गावड़यों की बढ़ती संख्या ने यातायात की समथया को और ऄवधक गंभीर बना क्रदया
है। आसके साथ ही ये िायु प्रदूषण भी ईत्पन्न करते हैं। आसके ऄवतररक्त मेरोपॉवलटन शहरों में चलने
िाली बसों की संख्या ऄपयातप्त है और यावत्रयों को यात्रा हेतु ऄवधक समय व्यय करना पड़ता है।

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भारतीय शहरों में सड़कों की वडजाआन और ईनका रख-रखाि एक बड़ी चुनौती है। सड़कें पैदल
यावत्रयों के वलए प्रवतकू ल होने के साथ ईबड़-खाबड़, भीड़-भाड़ भरी एिं लगातार खुदाइ हेतु
कु ख्यात हैं। आन चुनौवतयों का समाधान करने हेतु महत्िपूणत और तत्काल पररिततनकारी सुधार के
तौर पर, शहर की सड़कों के वलए राष्ट्रीय वडजाआन मानकों तथा ऄनुबंध मानकों को तैयार क्रकया
जाना चावहए।

भारतीय शहरों में यातायात के प्रिाह पर भी विवशष्ट ध्यान देने की अिश्यकता है। पवश्चमी देशों
के शहरों के विपरीत, भारत में मोटर िाहन ऄवधक बार तथा ऄप्रत्यावशत तरीकों से लेन बदलते हैं
जो ऄनािश्यक यातायात जाम एिं विलंब का कारण बनता है।

कइ शहरों में मेरो रे ल साितजवनक पररिहन का एक प्रभािी स्रोत हो सकती है। कु छ प्रारं वभक मेरो
पररयोजनाओं की सफलता ने ऄन्य शहरों में भी मेरो की मांग का मागत प्रशथत क्रकया है।

6.6. प्रदू ष ण (Pollution)

हमारे कथबे और शहर पयातिरण के प्रमुख प्रदूषक हैं। कइ शहर ऄपने सम्पूणत सीिेज तथा ईद्योगों के
ऄनुपचाररत ऄपवशष्ट का 40 से 60 प्रवतशत अस-पास की नक्रदयों में प्रिावहत कर देते हैं। शहरी
ईद्योग ऄपनी वचमवनयों से वनकलने िाले धुंए और विषाक्त गैसों से िायुमंडल को प्रदूवषत करते हैं।
ईपयुतक्त सभी प्रदूषक शहरी कें िों में वनिास करने िाले लोगों में रोगों की संभािना में िृवि करते
हैं। यूवनसेफ के ऄनुसार, वनम्न थतरीय थिच्छता संबंधी वथथवतयों और जल संदष
ू ण के कारण लाखों
शहरी बच्चे डायररया (दथत), रटटनेस, खसरा अक्रद से ग्रवसत हो जाते हैं ऄथिा ईनकी मृत्यु हो
जाती है। दीघतकावलक ईपाय के रूप में, ऄपवशष्ट के संग्रहण एिं वनपटान संबंधी नइ तकनीकों को
ऄपनाना और शहरी ऄिसंरचना तथा भूवम ईपयोग योजना में मौवलक पररिततन करने की
अिश्यकता है।

ईपयुतक्त समथयाएँ नगरीकरण की समथयाओं की पूणत सूची नहीं है। ऄन्य समथयाओं जैसे शहरों में
ऄपराधों की बढ़ती दर, िृि जनसंख्या में िृवि और ईनके वलए सामावजक सुरक्षा की ऄनुपवथथवत
तथा बाज़ार के क्षेत्र एिं आसकी विथताररत भूवमका के कारण वनधतन एिं वपछड़े िगों का सिातवधक
पीवड़त होने अक्रद का भी ऄवथतत्ि है। ऄध्ययनों द्वारा यह भी ज्ञात हुअ है क्रक शहरों में तनाि का
ईच्च थतर व्याप्त है जो लोगों के थिाथ्य पर हावनकारक प्रभाि डालता है।

7. नगरीकरण और ऄवभशासन
(Urbanization and Governance)
ऄवभशासन (गिनेंस) नगरीकरण का एक ऄवभन्न वहथसा है। यह नगरीकरण के सन्दभत में िततमान में
सबसे कमज़ोर क्रकन्तु सिातवधक महत्िपूणत कड़ी है और भारत में शहरी क्षेत्रों के रूपांतरण के वलए आसमें
तत्काल सुधार की अिश्यकता है। शहरी ऄिसंरचना में वनिेश अिश्यकताओं को पूरा करने के वलए
अिश्यक पूज
ं ी की बड़ी मात्रा का वित्तपोषण, महत्िपूणत रूप से संथथानों के सुधार तथा ईन लोगों की
क्षमता पर वनभतर करता है जो सेिा वितरण एिं राजथि सृजन की संथथाओं का संचालन करते हैं। ऐसा
माना जाता है क्रक भारतीय शहरों और कथबों पर होने िाले व्यय को बेहतर प्रशासवनक संरचनाओं, कर
एिं प्रयोक्ता शुल्क को संग्रवहत करने में सुधार हेतु मजबूत राजनीवतक एिं प्रशासवनक आच्छा शवक्त तथा
बेहतर कायातन्ियन क्षमता से सम्बि क्रकया जाना चावहए। शहरों को ईनके नागररकों की अिश्यकताओं
को पूरा करने और विकास की गवत में योगदान देने के वलए सशक्त बनाने, वित्तीय रूप से सुदढ़ृ करने
और कु शलता से शावसत करने की अिश्यकता है।

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नगर पावलका वनकायों को ईनके ‘थियं के ’ राजथि स्रोतों के साथ राज्य सरकारों से पूिातनुमय
े फॉमूल
त ा-
अधाररत हथतान्तरणों (predictable formula-based transfers) तथा भारत सरकार ि राज्य
सरकारों के ऄन्य हथतांतरणों द्वारा थथानीय सरकारों के रूप में सुदढ़ृ क्रकया जाना चावहए। आससे 74िें
संिैधावनक संशोधन के ऄंतगतत वनधातररत िृहद ईत्तरदावयत्िों के वनितहन में ईनकी सहायता की जा
सके गी। तकत संगत प्रयोक्ता शुल्क सवहत संशोवधत संयुक्त कर राजथि, शहरों को ऊण लेने और
साितजवनक वनजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से वित्त पोषण के नए रूपों तक पहुंच बनाने हेतु ऄपने
थियं के संसाधनों का लाभ ईठाने में सक्षम बनाएगा। आन ईपायों के पश्चात् ही नगर पावलका वनकाय
शहरी ऄिसंरचना के अधार को विथतार, ऄपने वनिावसयों को सतत अधार पर सेिाओं की बेहतर
गुणित्ता तथा भारतीय ऄथतव्यिथथा की विकास गवत में योगदान दे पाएँगे।
प्रशासवनक सुधार अयोग ने ऄपनी छठिीं ररपोटत में शहरी शासन को मजबूत करने हेतु ईपायों का
ईल्लेख क्रकया। आसकी कु छ महत्िपूणत ऄनुशंसाएँ वनम्नवलवखत हैं-
 शहरी थथानीय वनकायों (ULBs) को ऄपने ऄवधकार क्षेत्र में जल अपूर्तत और वितरण का
ईत्तरदावयत्ि क्रदया जाना चावहए। यह ईनके थियं के स्रोतों ऄथिा ऄन्य सेिा प्रदाताओं के साथ
सहयोगी व्यिथथा पर अधाररत हो सकते हैं।
 अरोग्य (hygiene) और साितजवनक थिाथ्य के महत्िपूणत विषय के रूप में सभी शहरी क्षेत्रों में
थिच्छता को प्राथवमकता दी जानी चावहए। आसके साथ ही सभी शहरों में, सेिाओं की ऄपयातप्तता
से बचने के वलए पयातप्त ऄिसंरचना थथावपत करने हेतु ऄवग्रम कारत िाइ की जानी चावहए।
 नगर वनगम वनकायों द्वारा सामुदावयक भागीदारी और सेिाओं के सह-ईत्पादन को प्रोत्सावहत
क्रकया जाना चावहए। साथ ही आसमें सहयोग देने के वलए जागरुकता का प्रसार क्रकया जाना
चावहए।
 एक लाख से ऄवधक जनसंख्या िाले सभी कथबों और शहरों में, ऄपवशष्टों के संग्रहण एिं वनपटान के
वलए PPP पररयोजनाओं को लागू करने की संभािनाओं का पता लगाया जा सकता है।
 नगर वनगम वनकायों को ऄपने क्षेत्र में विद्युत वितरण का ईत्तरदावयत्ि थिीकार करने हेतु
प्रोत्सावहत क्रकया जाना चावहए।
 साितजवनक पररिहन को ऄवधभािी प्राथवमकता देते हुए शहरी पररिहन समाधानों के समवन्ित
अयोजन एिं क्रियान्ियन हेतु 10 लाख से ऄवधक जनसंख्या िाले शहरों में एक िषत के भीतर
शहरी पररिहन प्रावधकरणों (Urban Transport Authorities) की थथापना की जानी चावहए।
महानगरों में आन प्रावधकरणों को एकीकृ त महानगर पररिहन प्रावधकरण (Unified

Metropolitan Transport Authorities) कहा जाएगा।


नीवत अयोग के ऄनुसार, सुसच
ं ावलत ULBs को म्युवनवसपल बॉन््स समेत विवभन्न माध्यमों से वित्तीय
संसाधनों में िृवि करने में सक्षम होना चावहए। ULBs में मानकीकृ त, समयबि ि ऑवडटेड बैलेंस शीट
का अरम्भ वित्तीय प्रबंधन में सुधार करने के साथ-साथ आस क्षेत्र से सम्बंवधत ऄन्य सुधारों में भी
सहायक होगा। भारतीय शहरों द्वारा ऄपने नगर वनगम कमतचाररयों में व्यापक थतर पर सुधार लाने
और प्रशासवनक दक्षता में िृवि करने के वलए ईन्हें ईवचत कौशल प्रदान क्रकये जाने की भी अिश्यकता
है।
आसी प्रकार, शहरी ठोस ऄपवशष्ट की सफाइ की प्रक्रिया को तीव्र करने के वलए, नीवत ऄयोग ने उजात
संयंत्रों में ऄपवशष्ट ईपयोग के प्रसार के वलए कें ि में एक प्रावधकरण के वनमातण का सुझाि क्रदया है। आस
प्रावधकरण को िेथट टू एनजी कारपोरे शन ऑफ़ आवडडया (WECI) का नाम क्रदया जा सकता है तथा आसे
अिासन और शहरी कायत मंत्रालय के ऄधीन रखा जा सकता है। WECI देश भर में PPP के माध्यम से

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विि थतरीय ऄपवशष्ट अधाररत उजात संयंत्रों को थथावपत कर सकता है। आसके साथ ही यह 2019 तक
100 थमाटत शहरों में ऄपवशष्ट अधाररत उजात संयंत्रों को शीघ्रता से थथावपत करने में महत्िपूणत भूवमका
वनभा सकता है। आसके ऄवधदेश में मानक वनविदा दथतािेजों की तैयारी, वििे ताओं की पात्रता का पूि-त

वनधातरण करना और ईन्हें ULBs ि ULBs के क्टलथटसत के वलए ऄनुमोक्रदत करना तथा पात्र वििे ताओं
के वलए प्राथवमकता के अधार पर मंजूरी सुवनवश्चत करने जैसे महत्िपूणत कायत शावमल हो सकते हैं।
आसके ऄवतररक्त यातायात वनयमों के ईल्लंघन की वथथवत में ऄथतदड
ं अरोवपत करने के वनयमों के सख्त
प्रिततन द्वारा व्यिहार पररिततन को प्रेररत क्रकया जा सकता है। यह यात्रा के समय ि प्रदूषण दोनों में
ईल्लेखनीय कमी ला सकता है। आसके ऄवतररक्त ओला (Ola) और ईबर (Uber) जैसी िाहन साझा
करने की व्यिथथाओं को बढ़ािा देने के वलए प्रोत्साहन प्रदान क्रकए जा सकते हैं। यह सड़क पर िाहनों
की संख्या को कम करे गा, वजससे भीड़ और प्रदूषण दोनों ही कम होंगे। आसके ऄवतररक्त, राष्ट्रीय मेरो रे ल
नीवत की अिश्यकता है जो यह सुवनवश्चत करे गी क्रक मेरो पररयोजनाओं को पृथक पररयोजना के रूप में
देखने के थथान पर आसे समग्र साितजवनक पररिहन की व्यापक योजना के एक वहथसे के रूप में देखा
जाए। आसके ऄवतररक्त, नीवत में मेरो पररयोजनाओं के विवभन्न पहलुओं, जैसे वनयोजन, वित्तपोषण,
PPP आत्याक्रद पर थपष्ट क्रदशा-वनदेश प्रदान क्रकए जाने चावहए।

8. शहरी विकास के क्षे त्र में ितत मान प्रमु ख कायत ि म


(Major programmes currently in the area of urban development)
 प्रधानमंत्री अिास योजना: सभी के वलए अिास (शहरी) कायतिम जून 2015 में प्रारम्भ क्रकया
गया। आसका लक्ष्य िषत 2022 तक नगरीय क्षेत्र में सभी लोगों को अिास ईपलब्ध कराना है।

 ऄटल कायाकल्प एिं शहरी रूपांतरण वमशन (ऄमृत/AMRUT): यह कायतिम पेयजल अपूर्तत,
सीिरे ज तथा हररत क्षेत्रों एिं ईद्यानों के साितभौवमक किरे ज हेतु सुदढ़ृ ऄिसंरचना ईपलब्ध कराने
के ईद्देश्य के साथ प्रारम्भ क्रकया गया था। यह नगरों में ऄवभशासन संबंधी सुधारों को भी
प्रोत्सावहत करता है।
 थमाटत शहरों का विकास: 2015 में प्रारम्भ हुए थमाटत वसटी वमशन का ईद्देश्य क्षेत्र अधाररत
विकास और शहर के थतर पर थमाटत समाधान तंत्र के माध्यम से जीिन की गुणित्ता में सुधार एिं
अर्तथक संिृवि को प्रोत्सावहत करना है। यह कायतिम मौजूदा 100 शहरों को थमाटत शहरों के रूप
में पररिर्ततत करे गा।
 थिच्छ भारत वमशन (शहरी): आसे नगरों के थिच्छता थतर में सुधार करने हेतु 2 ऄक्टटू बर 2014
को प्रारं भ क्रकया गया था। आसका लक्ष्य 2 ऄक्टटू बर 2019 तक सभी सांविवधक नगरों को खुले में
शौच से मुक्त बनाना है। यह वमशन हाथ से मैला ढोने की ऄशोभनीय प्रथा को समाप्त करने,
अधुवनक एिं िैज्ञावनक ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन को प्रारं भ करने, थिथथ थिच्छता व्यिहारों के संबंध
में व्यिहारिादी पररिततन को प्रेररत करने, थिच्छता और साितजवनक थिाथ्य से आसके संबंधों के
बारे में जागरूकता ईत्पन्न करने, नगरीय थथानीय वनकायों (ULBs) की क्षमता में िृवि करने तथा
ऄपवशष्ट प्रबंधन में वनजी क्षेत्रक हेतु समथतकारी पररिेश का सृजन करने का भी प्रािधान करता है।
 दीनदयाल ऄंत्योदय योजना- राष्ट्रीय शहरी अजीविका वमशन (DAY-NULM): आसका लक्ष्य
बाजार अधाररत रोजगार सृजन हेतु ऄग्रणी कौशल विकास के वलए ऄिसरों का सृजन करना तथा
थि-रोजगार ईपिमों की थथापना में वनधतन व्यवक्तयों की सहायता करना है। आस योजना के तहत
वनर्ददष्ट हथतक्षेपों को पांच प्रमुख घटकों के माध्यम से क्रियावन्ित क्रकया जाएगा यथा-

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1) सामावजक एकजुटता और संथथागत विकास (SMID),
2) थि-रोजगार कायतिम (SEFs),
3) कौशल, प्रवशक्षण एिं वनयोजन के माध्यम से रोजगार (EST&P),
4) शहरी बेघरों हेतु अिय (SUH) तथा
5) शहरी थरीट िेंडसत को समथतन (SUSV)।
 राष्ट्रीय धरोहर विकास एिं संिितन योजना (हृदय / HRIDAY): यह योजना जनिरी 2015 में
प्रारम्भ की गइ थी। आस योजना का लक्ष्य थिच्छता, पयतटन तथा अजीविका जैसे ऄन्य मुद्दों पर
विशेष ध्यान के वन्ित करने के साथ धरोहर शहरों का पुनरुिार करना है। आस योजना को निम्बर
2018 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। हृदय वमशन के अरम्भ होने पर प्रथतुत की गइ
विथतृत पररयोजना ररपोटत के ऄनुसार आसमें 12 धरोहर शहरों को शावमल क्रकया गया है।

9. अगे की राह (Way forward)


भारत को नगरीकरण के प्रबंधन के वलए विवभन्न क्षेत्रों पर कायत करने की अिश्यकता है। आनमें से
संभावित रूप से सिातवधक महत्िपूणत हैं: समािेशी शहर, वित्तीयन, वनयोजन, क्षमता वनमातण और
िहनीय अिास। आसके साथ ही भारत द्वारा एक राजनीवतक प्रक्रिया प्रारं भ की जानी चावहए जहां
नगरीय मुद्दों के विकास परक समाधान पर ऄथतपण
ू त बहस हो सके ।

9.1. समािे शी शहर (Inclusive Cities)

शहरों में वपछड़े और वनम्न अय िाले समूहों को मुख्यधारा में लाया जाना चावहए। नगरीय सघनता का
प्रबंधन करने और प्रिास को हतोत्सावहत करने से संबवं धत विवनयमन भूवम की अपूर्तत को सीवमत करते
हैं और साथ ही कइ पररिारों को ईनकी थिेच्छा से ऄवधक भूवम का ईपभोग करना पड़ता है। आससे
नगर के ऄवनयवमत प्रसार में िृवि के साथ-साथ सभी के वलए सेिा वितरण और भूवम के मूल्य में िृवि
होती है। पार्ककग, किरे ज सीमा, सेटबैक, वलफ्ट, सड़क की चौड़ाइ, थिाथ्य कें िों, थकू लों आत्याक्रद के ईच्च
मापदंड (वजनका प्राय: ऄनुपालन नहीं क्रकया जाता है) वनधतन िगत को अिास संबंधी ऄपनी मूलभूत
अिश्यकता हेतु महंगे संसाधन (शहरी भूवम) के ईपभोग का चयन करने और कानूनी अिश्यकताओं के
ऄनुपालन से िंवचत करते हैं।

9.2. वित्तीयन (Financing)

नगरीय वित्तीयन में और ऄवधक सुधार करके अर्तथक विके न्िीकरण के समथतन की अिश्यकता है। आससे
शहरों की कें ि और राज्यों पर वनभतरता में कमी अएगी तथा अंतररक राजथि के स्रोतों में िृवि होगी।
ऄनेक ऄंतरातष्ट्रीय ईदाहरणों के ऄनुरूप, भारतीय शहरों के पास िततमान समय में वित्तीयन हेतु ऄनेक
स्रोत ईपलब्ध हैं वजनका िे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आनमें मुख्यतः भू-संपवत्तयों का मुिीकरण, संपवत्त
करों का ईच्च संग्रहण; लागत को ध्यान में रखते हुए ईपभोक्ता शुल्क का वनधातरण; ऊण एिं साितजवनक-
वनजी साझेदारी (PPPs); और कें ि/राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त वित्तपोषण आत्याक्रद शावमल हैं। यद्यवप,
के िल अंतररक वित्तपोषण (यहाँ तक क्रक बड़े शहरों में भी) पयातप्त नहीं होगा। नगरीय विकास हेतु
कें िीय और राज्य सरकारों द्वारा भी पयातप्त वित्त की अिश्यकता होगी।

9.3. वनयोजन (Planning)

भारत के नगरीय वनयोजन को कें िीय एिं प्राथवमक कायत के रूप में समझे जाने तथा दक्ष लोगों, अँकड़ों
के ठोस अधार और ऄवभनि शहरी थिरूप में वनिेश करने की अिश्यकता है। आसे एक "काथके डेड"
योजना ढांचे के माध्यम से संपन्न क्रकया जा सकता है वजसमें बड़े शहरों के पास महानगरीय थतर पर 40

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िषीय और 20 िषीय योजनाएँ होंगी वजनका ऄनुसरण करना नगर विकास योजनाओं के वलए
बाध्यकारी होगा। क्रकसी शहर में वनयोजन हेतु सिातवधक महत्िपूणत कायत थथान का आष्टतम अिंटन,
विशेष रूप से भूवम ईपयोग और फ्लोर एररया रे वशयो (FAR) वनयोजन होता है। आन दोनों के ऄंतगतत
साितजवनक पररिहन को वनम्न अय िाले समूहों के वलए िहनीय अिासों हेतु क्षेत्र वनधातरण से संबि
करने पर ध्यान कें क्रित क्रकया जाना चावहए। आन योजनाओं को विथतृत, व्यापक और प्रिततनीय बनाए
जाने की अिश्यकता है।

9.4. थथानीय क्षमता वनमात ण

(Local capacity building)

नगरीय थथानीय वनकायों की क्षमता और विशेषज्ञता में िाथतविक सुधार, शवक्तयों के हथतांतरण एिं
सेिा वितरण के ईन्नयन के वलए ऄत्यवधक महत्िपूणत है। आन सुधारों के ऄंतगतत नगरीय प्रबंधन कायों के
वलए पेशेिर प्रबंधकों के विकास पर ध्यान कें क्रित करना होगा। आनकी अपूर्तत अिश्यकता के ऄनुपात में
कम है। वनजी और सामावजक क्षेत्रों में ईपलब्ध विशेषज्ञों का लाभ प्राप्त करने के वलए निीन एिं ईन्नत
दृवष्टकोणों को खोजे जाने की अिश्यकता है।
ऄपने नगरों को 21िीं शताब्दी के नगरों में पररिर्ततत करने के वलए भारत को और ऄवधक बुवनयादी
पररिततनों की शुरुअत करने की अिश्यकता है। एक ऐसी थथावनक योजना प्रारं भ करने की अिश्यकता
है जो एक साथ महानगर, नगरपावलका और िाडत-थतरीय क्षेत्रों की विकास संबंधी अिश्यकताओं को
पूणत कर सके । आसके साथ ही शहरी थथानीय वनकायों को ऄवधक शवक्तयां हथतांतररत करना और
वित्तीय रूप से ईन्हें सशक्त बनाना भी अिश्यक है।
संयुक्त राष्ट्र सतत विकास सम्मेलन (ररयो+20) के वनष्कषत, "द फ्यूचर िी िांट", के तहत शहरी वनधतनों
की दुदश
त ा और संधारणीय शहरों की अिश्यकता को संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंडे के ऄविलंबनीय मुद्दे के
रूप में मान्यता दी गइ है। ऄतः िततमान समय में नगरीय विकास का एक नया मॉडल तैयार करने की
अिश्यकता है जो नगरीकृ त पररिेश में समानता, कल्याण और साझा समृवि को बढ़ािा देने के वलए
संधारणीय विकास के सभी पहलुओं को एकीकृ त करे ।

10. विगत िषों में Vision IAS GS में स टे थट सीरीज में पू छे


गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. "पारं पररक शहरी विथतार के विपरीत, नि शहरीकरण तेजी से गांिों को थियं में समाविष्ट

कर रहा है।" 2011 की जनगणना में जनगणना नगरों (census towns) के विकास के संदभत
में आस कथन को विथतृत िणतन कीवजए।
दृवष्टकोण:
 सितप्रथम, जनगणना से कु छ त्यों/अँकड़ों को यह प्रदर्तशत करने के वलए प्रथतुत कीवजए क्रक
प्रश्न में क्रदया गया कथन िाथति में सही है।
 आसके पश्चात् िणतन कीवजए क्रक जनगणना नगर 'क्टया' हैं और ईन्हें कै से िगीकृ त क्रकया जाता
है।
 आसके पश्चात्, संक्षेप में समझाएँ क्रक जनगणना नगरों में िाथति में तेजी से िृवि 'क्टयों' हो रही
है।

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 प्रश्न जनगणना नगरों के समक्ष अने िाली बाधाओं के बारे में प्रवतक्रिया की मांग नहीं करता
है, आसवलए ईस पहलू में जाने की कोइ अिश्यकता नहीं है।
ईत्तर-
 2001 और 2011 की दो जनगणनाओं के मध्य भारत की शहरी जनसंख्या में 33 प्रवतशत की
िृवि हुइ।
 आस ऄिवध के दौरान, भारत के छह सबसे बड़े शहरी कें िों (मेरो वसटीज) की संयुक्त जनसंख्या
िृवि, भारत की समग्र जनसंख्या िृवि के काफी वनकट थी। आस प्रकार, आन शहरी कें िों का
विकास यहाँ की शहरी जनसँख्या में िृवि का मुख्य कारण नहीं था। छोटे शहरों और ईभरती
हुइ राज्य राजधावनयों की जनसंख्या िृवि ने भी आस नगरीकरण को प्रेररत नहीं क्रकया है।
 संख्या में 54 प्रवतशत की यह नाटकीय िृवि शहर कहे जाने िाले अिास थथलों से हुइ -
लगभग यह समग्र िृवि संख्या में तीन गुना बढ़ने िाले "जनगणना नगरों" से अयी है, जो
लगभग 1300 से बढ़कर 3900 हो गए हैं।
 के िल जनगणना दथतािेज़ पर मौजूद 'जनगणना नगरों' का यह शहरी िगीकरण, भारत के
लघु कृ षक समुदायों और बृहद बाजार कथबों के मध्य विभेद करने में सहायता करता है जो
ऄत्यवधक तीव्र और ऄवनयोवजत विकास कर रहे हैं।
 एक जनगणना नगर बनने हेतु क्रकसी गांि को तीन मानदंडों को पूरा करना होता है-
o आसके वनिावसयों की संख्या कम से कम 5,000 होनी चावहए,
o आसका घनत्ि 400 व्यवक्त प्रवत िगत क्रकमी होना चावहए,
o कायतशील पुरुष जनसंख्या का कम से कम तीन चौथाइ भाग "गैर-कृ वष कायों में संलग्न"
होना चावहए।
 सामान्य शब्दों में जनगणना नगर िह जनसंख्या थथल है जहाँ ऄब खेती व्यिहायत नहीं है और
लोग ऄन्य व्यिसायों में संलग्न हो गए हैं।
 जनगणना नगर को ग्रामीण-शहरी विभाजन की सीमा पर थथावपत क्रकया गया है। हालांक्रक, िे
ऄित शहरी हो सकते हैं, जनगणना कथबों को ऄभी भी पंचायतों द्वारा संचावलत क्रकया जाता
है और सभी अवधकाररक ईद्देश्यों के वलए ग्रामीण के रूप में िगीकृ त क्रकया जाता है। आससे
ईन्हें कें ि सरकार की विकास योजनाओं में सवम्मवलत होने और संपवत्त करों से मुक्त होने की
थिीकृ वत वमलती है।
 ऄध्ययनों से ज्ञात होता है क्रक विगत कु छ िषों में कृ वष क्षेत्र में पुरुष वनयोजन में तीव्र कमी
अइ है। यह कमी मुख्यतः कृ वष हेतु ईपलब्ध मशीन आनपुट और विवनमातण एिं सेिा क्षेत्रों में
बेहतर वनयोजन के ऄिसरों के सृजन के कारण हुइ है।
 ग्रामीण भारत में ररयल थटेट की कम कीमतों, वशक्षा सुविधाओं में सुधार और सड़क, विद्युत्
आत्याक्रद जैसी ऄिसंरचनाओं में सुधार जैसे कारकों के कारण विगत दशक के दौरान ग्रामीण
भारत में 75 प्रवतशत से ऄवधक नए कारखाने थथावपत हुए हैं। ग्रामीण भारत में विवनमातण
िततमान में भारत के विवनमातण GDP का 55 प्रवतशत है। ग्रामीण भारत में सेिाओं में िृवि
समान रूप से सुदढ़ृ है।
आस प्रकार हम जनगणना नगरों को व्यिहायत ईत्पादन और ईपभोग आकाआयों के वनमातण हेतु
एक साथ अने िाले ग्राम समूहों की िर्तधत संख्या के रूप में देख सकते हैं।

2. भारतीय सन्दभत में ‘‘प्रवत-नगरीकरण’’ एिं ‘‘ईप-नगरीकरण’’ की व्याख्या कीवजए। 2014-


8(a)-408
दृवष्टकोणः
 प्रवत-नगरीकरण एिं ईप-नगरीकरण दोनों को पररभावषत कीवजए।

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 तत्पश्चात यह आंवगत कीवजए क्रक ये क्रकस प्रकार भारत में प्रदर्तशत हो रहे हैं।
ईत्तरः
 प्रवत-नगरीकरण एक जनांक्रककीय एिं सामावजक प्रक्रिया है, वजसमें लोग ऄन्तः-शहरी गरीबी,
प्रदूषण ि ऄत्यवधक भीड़ के कारण प्रवतक्रिया थिरूप नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर
चले जाते हैं।
 ईप-नगरीकरण शहरों के समीपथथ के आलाकों के विकास को कहा जाता है। यह नगरीय प्रसार
में िृवि के कइ कारणों में से एक महत्िपूणत कारण है। कइ महानगरीय क्षेत्रों के वनिासी जो
कायत तो महानगर के ऄन्दर करते हैं एिं ईप-नगरीय क्षेत्रों में रहते हैं तथा ऄपने िाहनों ि
साितजवनक साधनों द्वारा काम पर अते- जाते हैं। बहुत से लोग तकनीकी प्रगवत का लाभ
ईठाते हुए ऄपने घरों से ही कायत करते हैं। जमीन की असमान छू ती कीमतें भी आस ईप-
नगरीकरण की प्रक्रिया का एक कारण है।
 भारत में ईप-नगरीकरण एक प्रक्रिया है, जो महानगरों के असपास के क्षेत्रों में देखी जा रही
है। यह प्रक्रिया क्रदल्ली जैसे शहरों में ऄवधक प्रभािी रूप से क्रदखती है, जहाँ एक ऄवधक कु शल
पररिहन तंत्र, लोगों को शहरों के बाहर ईपनगरों में रहने को बढ़ािा देता है।
 सही ऄथों में प्रवत-नगरीकरण विवशष्ट ग्रामीण व्यिसायों द्वारा वचवन्हत होते हैं, जो क्रक भारत
में लगभग न के बराबर है, आसके बािजूद शहरी आलाकों के बाहर फामत-हाउस बढ़ रहे हैं।
ऐसी वथथवत जो ऄवथतत्ि में है आसे ईप-नगरीकरण ि प्रवत-नगरीकरण का सवम्मवलत रूप कहा
जा है।

3. नगरीकरण एिं प्रिासन ने भारत में िृिों को ऄपेक्षाकृ त ऄवधक सुभद्य


े बना क्रदया है। रटप्पणी
कीवजए। साथ ही, ईन ईपायों पर चचात कीवजए वजन्हें ईनकी सुभद्य
े ता को समाप्त करने हेतु
ऄपनाए जाने चावहए। 2015-3-623
दृवष्टकोण :
आस प्रश्न का मूलभूत विषय िथतु है सुभेद्यता, वजसका िृिों को ईन सामावजक पररिततनों के
कारण सामना करना पड़ता है, वजन्हें बढ़ते शहरीकरण और प्रिासन ने पैदा क्रकया है। ईत्तर
को वनम्नवलवखत रूप में संरवचत क्रकया जा सकता है:
 यह थपष्ट कीवजए क्रक शहरीकरण और प्रिासन के कारण कै से भारतीय जनसांवख्यकी में
िृि लोग सुभेद्य हो गए हैं।
 िृिों द्वारा सामना क्रकये जाने िाले समथयाओं के वनदान हेतु कु छ ईपायों का सुझाि
दीवजए।
ईत्तर :
भारत में िृिों (60 िषत या ईससे ऄवधक) की बढ़ती संख्या (2001 में कु ल जनसँख्या का
7.4%) और ईनके समक्ष अने िाली विविध सुभेद्यता नीवत वनमातताओं और समाज का ध्यान
ऄविलम्ब अकर्तषत करने की मांग कर रही है। िृिों की ऄपनी थिाथ्य सेिा, अजीविका और
सुरक्षा जैसी समथयाओं के प्रवत संिेदनशीलता बढ़ती जा रही है। िृिों की सुभेद्यता का दोष
मुख्यतः प्रिासन और शहरीकरण के त्यों पर वनम्नवलवखत रूप से क्रदया जा सकता है:

 प्रिासन और शहरीकरण िमशः ईन परं परागत पाररिाररक थिरूप को वनबतल बना रही
है जो िृिों को के न्िीयता और सामावजक भूवमका प्रदान करते हैं।
 ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी के न्िों की ओर प्रिाह ने न के िल ईच्च बेरोजगारी दर को बढ़ािा
क्रदया है ऄवपतु यह ऄन्य कइ सामावजक और अर्तथक समथयाओं के साथ शहरों की भीड़
में भी िृवि कर रहा है। साथ ही यह ग्रामीण क्षेत्रों में वनिास करने िाले िृिों के

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ऄके लेपन में िृवि कर रहा है और ईन्हें सामान्य सामावजक और अर्तथक पोषण के स्रोतों
से भी िंवचत कर रहा है।
 खेतों (जैसे रोपण कृ वष प्रिासन, पंजाब-हररयाणा अक्रद राज्यों के खेतों में प्रिासन),
खदानों और कारखानों की ओर लोगों के प्रिासन ने पररिार के सदथयों को भौवतक रूप
से प्रायः ऄवधक दूरी पर खड़ा कर पृथक कर क्रदया है और आस प्रकार परं परागत
पाररिाररक बंधनों को कमजोर कर क्रदया है।
 अधुवनक पररिारों द्वारा ऄपने पररिार के िृि सदथयों की सेिा करने की क्षमता को
शहरी सन्दभत में भीड़-भाड़ भरे घर और सीवमत वित्तीय संसाधनों ने गंभीर रूप से
बावधत कर क्रदया है। िहीं मवहलाएं वजन पर िृिों की देखभाल का दावयत्ि होता है, ईसे
बढ़ती मवहला वशक्षा और रोजगार ने बावधत कर क्रदया है।
 शहरी अिास में एक थथान पर रहने िाले लोगों की संख्या मुख्यतः पररिारों पर मकान
मावलक के वनणतय के दबाि पर वनभतर करती है, विशेषकर ईन वथथवतयों में जहाँ पररिार
का अकार बड़ा है, वजस कारण पररिार का छोटी-छोटी ईप आकाआयों (ग्रामीण/शहरी) में
विभाजन हो जाता है।
वनम्नवलवखत संथतुवतयां आस ईद्देश्य से दी जा रही हैं ताक्रक भारत में वनिास करने िाले िृिों
का जीिन थतर ईन्नत हो सके और िे थियं को प्रभावित करने िाले शहरीकरण और प्रिासन
की समथयाओं का सामना कर सकें ।

 चूंक्रक िृि लोग ग्रामीण कृ वष िवमक शवक्त का एक वहथसा होते हैं, आसवलए ईनकी कृ वष क्षमता
बढ़ाने के ईद्देश्य से नीवतयों का वनमातण क्रकया जाना चावहए।
 ईनको ऊण एिं विथतार सेिाओं तथा ऄपने साम्यत के ऄनुसार ईन्नत कृ वष कायत प्रणाली ि
प्रौद्योवगकी ऄनुकूलन हेतु सहायता की अिश्यकता होगी।
 िृि लोगों को थि-रोजगार हेतु प्रोत्साहन देना चावहए, वजससे िे न के िल ऄपनी गवत से कायत
कर सकें गे बवल्क लाभ और ईत्पादकता बढ़ाने हेतु यह ईन्हें निोन्मेष के वलए भी प्रोत्सावहत
करे गी।
 ग्रामीण विकास में िृिों द्वारा योगदान करने के क्षमता बढ़ाने हेतु सहकाररता ईपिम प्रमुख
भूवमका वनभा सकते हैं।
 यद्यवप िृिािथथा का ऄवभप्राय थिाथ्य सेिाओं की अिश्यकता में िृवि होता है, क्रफर भी
थिाथ्य सेिा के न्िों का िृि लोगों द्वारा न्यूनतम ईपयोग क्रकया जाता है। प्राथवमक सेिा के न्िों
को ग्रामीण िृिों का ध्यान ईसी प्रकार से रखना चावहए जैसे िे बच्चों का रखते हैं।
 सभी सामावजक योजनाओं का ईपयोग बहुत कम होता है, आसवलए आनके द्वारा वमलने िाले
ऄनुदान और लाभों के बारे में विवभन्न संचार माध्यमों के द्वारा जानकारी प्रदान की जानी
चावहए और नीवतयों को सशक्त बनाया जाना चावहए।

अय की ऄसुरक्षा, वनरक्षरता, अयु से सम्बवन्धत रुग्णता, अर्तथक और शारीररक वनभतरता ऐसे


कारक हैं जो भारतीय िृिों को सुभेद्य बनाते हैं। आसवलए व्यवक्तगत, पाररिाररक, सामुदावयक,
सरकारी एिं गैर-सरकारी थतरों पर पूणत
त ािादी और बहुअयामी दृवष्टकोण की अिश्यकता
है।

4. थिातंत्रयोत्तर भारत में शहरों से सामावजक पररिततन के िाहक बनने की ऄपेक्षा की गइ थी,
लेक्रकन िे भी ईन्हीं विसंगवतयों के पररचायक बन गए वजससे ग्रामीण क्षेत्र लंबे समय से त्रथत
हैं। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोण :
आस प्रश्न की मूलभूत विषय-िथतु भारत के सन्दभत में शहरों द्वारा अधुवनकता के लक्ष्य प्रावप्त में
ऄसफलता है। ईत्तर की सरं चना वनम्नवलवखत प्रकार से की जा सकती है:

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 यह थपष्ट कीवजए क्रक कै से अधुवनक शहरों की थथापना को सामावजक पररिततन का िाहक
और भारतीय समाज को त्रथत करने िाली प्रत्येक सामावजक समथया का रामबाण मान वलया
गया था।
 विथतृत रूप से यह थपष्ट कीवजए क्रक कै से भारतीय शहरों को ग्रामीण भारत में पायी जाने
िाली सामावजक-अर्तथक ऄसमानताओं की पुनरुत्पवत्त के वलए जाना जाता है।
ईत्तर :
थिातंत्रयोत्तर काल में, राष्ट्र ने अधुवनक शहरों पर भारतीय समाज को संविधान में थथावपत
मूल्यों के अधार पर विकवसत करने का मूलभूत ईत्तरदावयत्ि सौंप क्रदया था।

परन्तु, भारत में शहरों का विकास देखने से यह प्रतीत होता है क्रक शहर ईस वििास को पूरा
करने में ऄसमथत रहे हैं, जो ईनमें जताया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त सामावजक
समथयाओं में सुधार के थथान पर ईन्होंने सामावजक ऄसमानताओं को वनम्नवलवखत प्रकार से
जन्म क्रदया है:

 भारत: शहरी वनधतनता ररपोटत 2009 (UNDP) के ऄनुसार भारत में वनधतनता का
शहरीकरण हो गया है और यह बड़े शहरों में विथतृत रूप से विद्यमान है। समग्र रूप से
यह 25 प्रवतशत से ऄवधक है, शहरों में रहने िाले लगभग 81 वमवलयन लोग वजस अय
पर वनभतर करते हैं, िह थतर वनधतनता रे खा से बहुत नीचे है।
 बड़े शहरों जैसे क्रक मुम्बइ में 41.3%, विशाखापत्तनम में 44%, कोलकता में 30%,
चेन्नइ में 29% और क्रदल्ली में 15% के ईच्च ऄनुपात से झुवग्गयों में रहने िाले पररिार
हैं। शहरों में ईवचत अिास और मूलभूत सुविधाओं जैसे- थिाथ्य और वशक्षा के अभाि
से ऐसी ऄवनवश्चत वथथवतयां पुनः ईत्पन्न हुइ हैं, जो अज भी गािों में वनधतनों के वलए
ऄलगाि का कारण बनी हुइ हैं।
 अर्तथक विकास की प्रक्रिया में यह माना जाता था क्रक शहर, ऄवधकांशतः ईन कामकाजी
वनधतन लोगों को सम्मानजनक रोजगार के ऄिसर प्रदान करें गे जो ग्रामीण ऄथतव्यिथथा
में अिश्यकता से ऄवधक हो गये थे। परन्तु भारतीय शहर, गांिों के ही समान, वनिातह
योग्य रोजगार प्रदान करने िाले िृहत ऄनौपचाररक क्षेत्र का अियथथल बन गए हैं।
 गाँिों में मवहला सुरक्षा एक प्रमुख समथया है क्टयोंक्रक गाँि ईनके प्रवत प्रवतगामी ऄवभिृवत्त
हेतु जाने जाते हैं। आसके ऄवतररक्त अधुवनक शहर, वजनसे यह ऄपेक्षा की जाती है क्रक िे
ईन्हें सुरवक्षत िातािरण प्रदान करें गें, िे थियं ही ईनके वलए सिातवधक ऄसुरवक्षत थथान
बन गए हैं, ईदाहरण के वलए कु छ ही समय पहले क्रदल्ली में घरटत बलात्कार की घटना।
 जातीय/नृजातीय/धार्तमक पहचान अधाररत राजनैवतक एकजुटता ग्रामीणों क्षेत्रों की
भांवत शहरों में भी व्यापक रूप से प्रचवलत है।

आस पररदृश्य में, ऄब एक महत्िपूणत अिश्यकता यह है क्रक शहरों द्वारा सामावजक विकास में
वनभाइ गयी भूवमका पर पुनः विचार क्रकया जाए। शहरों को नगर-विषयक और हमारे
संविधान द्वारा प्रोत्सावहत क्रकये गये मूल्यों के अधार पर और ऄवधक विथतृत क्षेत्र बनाना
चावहये। क्टयोंक्रक डॉ.ऄम्बेडकर ने भी शहरों को सामावजक पररिततन का महत्िपूणत पररचायक
समझा था।

5. वनधतनों हेतु सामावजक-अर्तथक एिं विवधक सहायता के ऄभाि में तीव्र शहरी विकास, मवलन
बवथतयों के व्यापक फै लाि का एक ऄपररहायत कारण है। भारत के सन्दभत में आसकी चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
प्रश्न का के न्िीय भाि समकालीन भारत में मवलन बवथतयों की बढ़ती जनसंख्या के वनधातरकों
के बारे में है। ईत्तर की संरचना वनम्नवलवखत प्रकार से की जा सकती है:

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 संक्षेप में िणतन कीवजए क्रक क्रकस प्रकार मवलन बवथतयों की जनसंख्या के साथ शहरों की
जनसंख्या भी बढ़ रही है।
 विथतार से आस बात की चचात कीवजए क्रक क्रकस प्रकार सामावजक-अर्तथक सहायता (घर,
सुविधाएं आत्याक्रद) का ऄभाि, विवधक सहायता का ऄभाि (सामावजक सुरक्षा हेतु कानूनों का
ऄभाि) तथा बढ़ती हुइ नगरीय जनसंख्या भारत में मवलन बवथतयों की बढ़ती हुइ जनसंख्या
के और बड़े दृष्टांत वनर्तमत कर रहे हैं।
ईत्तर:
2011 की जनगणना के ऄनुसार, थितन्त्रता के पश्चात प्रथम बार, शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या
की सकल िृवि ग्रामीण क्षेत्रों की जनसंख्या में हुइ िृवि से ऄवधक है। दस लाख से ऄवधक की
जनसंख्या िाले शहरों की संख्या 23 (1991) से 35 (2001) और ऄब 63 (2015) हो गयी
है। हालांक्रक ऄत्यवधक शहरी िृवि के साथ ही मवलन बवथतयों की जनसंख्या में ईच्च िृवि हो
रही है। 2011 की जनगणना के ऄनुसार, शहरी पाररिाररक आकाआयों का लगभग 17.4%
मवलन बवथतयों में रह रहा था।
भारत में शहरी िृवि से सम्बंवधत मुद्दों में से एक त्य यह है क्रक यह िृवि अधारभूत
सुविधाओं यथा घर, थिाथ्य, वशक्षा तथा वनधतनों हेतु सामावजक सुरक्षा के ऄभाि के बीच हो
रही है। पररणामथिरूप, सकारात्मक सामावजक गवतविवधयों के थथान पर शहरी िृवि ईन
लोगों के वलए कु थिप्न बनती जा रही है जो अजीविका की तलाश में देहाती क्षेत्रों से शहरों में
एकवत्रत हुए हैं तथा वनम्नवलवखत कारणों से िहाँ रह रहे हैं:
 कृ वष क्षेत्र में मंद विकास तथा संतप्त ग्रामीण क्षेत्र लोगों को गैर-कृ वष क्षेत्रों में अजीविका
की खोज में शहरी क्षेत्रों की ओर धके ल रहा है। ऄवधकाँश लोग या तो वनधतन/सीमान्त
क्रकसान हैं या भूवमहीन िवमक या कारीगर जो तब तक शहरों में रहने में समथत नहीं
होते, जब तक सरकार ईन्हें क्रकसी तरह की सामावजक सहायता न प्रदान करे । भारत में
शहरी क्षेत्रों में ऐसी सुविधाओं का घोर ऄभाि है, पररणामथिरूप शहरी क्षेत्र के वनधतन
लोगों को मवलन बवथतयों में ऄपना ऄवथतत्ि बचाना पड़ता है।
 भारतीय शहरों के वनयोजक वनधतनों के वलए कम लागत िाले घरों की अिश्यकता की
और भी ऄवधक ऄनदेखी कर रहे हैं वजस कारण वनधतन लोग मवलन बवथतयों में एकवत्रत
हो रहे हैं।
 ऄवधकाँश प्रिावसयों के पास िैधावनक पहचान नहीं होता आसवलए िे शहरी क्षेत्रों में
ईपलब्ध सुविधाओं का लाभ नहीं ईठा सकते, फलथिरूप ईन्हें अजीविका हेतु मवलन
बवथतयों में रहना पड़ता है।
 िवमकों के रूप में प्रिावसयों के ऄवधकारों के प्रिततन का ऄभाि है। पुनः सरकारी
सामावजक सुरक्षा कायतिमों के ऄंतगतत वनधतनों को वलया जाता है, आसने भी बड़ी खाइ
ईत्पन्न की है। ऐसी वथथवतयां वनधतनों को वनधतनता पाश में धके ल कर मवलन बवथतयों की
रहन-सहन की दयनीय दशा की ओर ले जाती हैं।
 शहरी क्षेत्रों के औपचाररक क्षेत्र में रोज़गार न्यूनता प्रिावसयों को जीिन-यापन हेतु
ऄनौपचाररक क्षेत्रों की ओर धके लती है। कम मजदूरी तथा सामावजक सहायता के ऄभाि
के कारण ऄनौपचाररक क्षेत्र के िवमकों को ऄनौपचाररक बवथतयों में रहने को बाध्य
होना पड़ता है।

6. ऄत्यवधक जनसंख्या िाले शहरों एिं ईनकी दबािपूणत ऄिसंरचना के कारण, भारत एक
शहरी संकट से जूझ रहा है। देश में िततमान शहरों के ईन्नयन में थमाटत वसटी वमशन क्रकतना
सहयोग प्रदान कर सकता है। आस वमशन के संबध
ं में थथानीय वनकायों की पूिातपक्ष
े ाएँ क्टया हैं?
2016-16-749

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दृवष्टकोण :
 ऄवनयोवजत शहरों के मुद्दे का संक्षेप में िणतन कीवजए एिं बताआए क्रक आस मामले की िततमान
वथथवत क्रकस प्रकार शहरी संकट के तौर पर प्रतीत होती है।
 थमाटत वसटी की विशेषताओं का ईल्लेख कीवजए, जैसे अइ.सी.टी. सक्षम विशेषताएँ, थिाथ्य
संबंधी देखभाल, सुरक्षा या कानून व्यिथथा आत्याक्रद। यह िततमान शहरों में ईपयुतक्त समथयाओं
पर विजय प्राप्त करने में क्रकस प्रकार सहयोग करें गी?
 ऄंततः, आस वमशन की विशेषताओं के संदभत में थथानीय वनकायों की पूिातपेक्षाओं का ईल्लेख
कीवजए। आन मुद्दों को संबोवधत करने हेतु कु छ सुझाि देते हुए ईत्तर समाप्त कीवजए।
ईत्तर :
ऄवधकतर भारतीय शहर ऄवनयोवजत शहरीकरण के ईदाहरण हैं। भौवतक ऄिसंरचना जैसे
साितजवनक पररिहन, अिास, ऄथपताल और विद्यालय अक्रद बढ़ते जनसंख्या दबाि को
मात्रात्मक एिं गुणात्मक दोनों रूपों में िहन करने के संदभत में ऄपयातप्त हैं। पररणामथिरूप
शहरी थिप्न, भयािह शहरी दुःथिप्न बन जाते हैं।
थमाटत वसटी वमशन, िततमान ऄिसंरचना को ईन्नत करने के साथ-साथ संधारणीय एिं
समािेशी विकास पर ध्यान के वन्ित करते हुए संधारणीय विकास को सुवनवश्चत करने का
प्रयास है। यह िततमान शहरों के कु छ सुवनवश्चत क्षेत्रों को शहर विकास (पुनःसंयोजन), शहर
निीनीकरण (पुनर्तिकास) या शहर विथतार (ग्रीनफील्ड विकास) के माध्यम से ''थमाटत वसटी''
में बदलने से संबंवधत है। आसके ईद्देश्य ऄपने नागररकों की सुरक्षा के साथ-साथ, सुवनवश्चत
जल एिं उजात अपूर्तत, थिच्छता एिं ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन, कु शल शहरी गवतशीलता और
साितजवनक पररिहन, मजबूत अइ.टी. कनेवक्टटविटी, इ-शासन एिं नागररकों की भागीदारी
सुवनवश्चत करना है।
यक्रद आस वमशन को सरकार द्वारा क्रकए गए िादे के ऄनुसार विश्िसनीय वित्तीय बैंंकग
समथतन के साथ गम्भीरतापूितक कायातवन्ित क्रकया जाता है तो आसमें शहरी पररदृश्य को
रूपांतररत कर देने की क्षमता है।

यह वमशन थमाटत वसटी हेतु रोडमैप प्रदान करने की वजम्मेदारी शहरी थथानीय वनकायों
(ULBs) पर डालता है। हालांक्रक के न्ि ने प्रत्येक शहर में आस वमशन को कायातवन्ित करने की
क्षमता से संपन्न थपेशल पपतज व्हीकल (SPV) प्रथतावित क्रकया है। यह थमाटत वसटी विकास
पररयोजनाओं का योजना वनमातण, मूल्य वनरूपण, ऄनुमोदन, तदथत वनवध जारी करने,
कायातन्ियन, प्रबंधन, संचालन, वनगरानी और मूल्यांकन के कायत करे गा।

कइ नगर वनगमों को भय है क्रक SPV के कारण ईन्हें दरक्रकनार कर क्रदया जाएगा और ईनकी
थिायत्तता संकटग्रथत हो जाएगी। ULBs द्वारा SPV में भागीदारी की जाएगी, क्रकन्तु SPV
भी PPP पररयोजनाओं में सवम्मवलत होने हेतु सक्षम है।

यह वमशन राज्य सरकार और शहरी थथानीय वनकायों को, पररयोजना के संबध में नगर
पावलका पररषद के ऄवधकारों और दावयत्िों का वनितहन करने के वलए, SPV को कायतभार
सौंपने हेतु प्रोत्सावहत करता है। आसवलए थमाटत शहरों के विकास के साथ, शहरी शासन में
वनजी वनिेशकों एिं परामशतदाता संथथाओं का प्रभाि बढ़ने की संभािना है और यह शहरी
थथानीय वनकायों (ULBs) के वलए डचता का विषय है।
थथानीय वनकायों की थिायत्तता और लोकतंत्र की भािना को व्यवथत करने संबंधी डचताएँ
िैध हैं, क्टयोंक्रक लोकतांवत्रक रूप से वनिातवचत थथानीय शासन के थथान पर कें िीय नीवत द्वारा

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ऄवनिायत वनधातररत SPV थमाटत वसटी को ऄवधचावलत करे गा। आससे थथानीय वनकायों की
भूवमका पर ऄसर पड़ने की संभािना है।

यह सही है क्रक हमारी थथानीय सरकारें सिातवधक कु शल या ईत्तरदायी नहीं हैं, क्रकन्तु SPV
चावलत थमाटत वसटी, नगर प्रशासन के दोषों का दीघत थथाइ समाधान नहीं हैं।

संधारणीय शहरी भविष्य हेतु व्यापक प्रशासवनक सुधारों की अिश्यकता है जो थथानीय


वनकायों को ऄवधक प्रशासवनक एिं वित्तीय शवक्तयां प्रदान करें गे एिं सच्ची लोकतांवत्रक
भािना से नगरीय प्रशासन के ऄन्तगतत कायों की वजम्मेदारी वनचली आकाआयों को हथतांतररत
करें गे।

7. ईन कारकों का वििरण प्रथतुत कीवजए जो लोगों को ग्रामीण आलाकों से शहरी क्षेत्रों में प्रिास
करने वलए प्रेररत करते हैं, भले ही आसके पररणामथिरूप ईन्हें मवलन बवथतयों में ही क्टयों न
रहना पड़ता हो। भारत की मवलन बवथतयों के संदभत में विवशष्ट त्यों पर प्रकाश डावलए।
साथ ही ईन रणनीवतयों की चचात कीवजए जो भारत में मवलन बवथतयों की दशा को सुधारने
के वलए ऄपनाइ जा सकती हैं। 2016-13-757
दृवष्टकोण:
 भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रिास और मवलन बवथतयों के पररणामी विकास पर
पररचय दीवजए।
 ईन कारकों की चचात कीवजए वजनके कारण लोग शहरों की ओर पलायन करने और झुग्गी
झोपवड़यों में वनिास करने को वििश हैं।
 भारत में विद्यमान मवलन बवथतयों के बारे में महत्िपूणत त्यों पर चचात कीवजए।
 भारत की मवलन बवथतयों के सुधार हेतु रणनीवतयों पर चचात कीवजए।
ईत्तर:
शहरीकरण और बड़ी मात्रा में नगरों की ओर प्रिास ने मवलन बवथतयों की संख्या में बेतहाशा
िृवि की है। िषत 2017 में भारत की कु ल ऄनुमावनत थलम अबादी 1.28 ऄरब होगी जो क्रक
राष्ट्रीय जनसंख्या का लगभग 9% है।

ईत्तरदायी कारक
 ईच्च और ऄवधक वथथर अय: शहरी कें ि में ईपलब्ध ईत्पादक रोजगार के ऄिसरों तथा ईच्च
और ऄवधक सुसंगत व्यवक्तगत प्रयोज्य अय की संभािना क्रकसी कृ वष अधाररत ग्रामीण क्षेत्र
की तुलना में बेहतर होती है।
 ऄगली पीढ़ी के वलए सामावजक गवतशीलता: शहरी पररिेश में बच्चों की परिररश ऄगली
पीढ़ी के वलए एक ईच्च "विकल्प मान" (“option value”) बनाता है। अमतौर पर, शहर
वशक्षा और रोजगार के ऄिसर के व्यापक विकल्प प्रदान करते हैं।
 अपदागत प्रिास: राजनीवतक ऄशांवत और ऄंतर-जातीय संघषत लोगों को ईनके घरों से दूर
जाने पर मजबूर करते हैं। कइ बार बड़ी प्राकृ वतक अपदाओं के बाद भी लोग शहरी क्षेत्रों की
ओर पलायन कर जाते हैं।
 मवलन बवथतयों के ऄलािा क्रकसी ऄन्य विकल्प का ऄभाि: गरीब प्रिासी पररिार ऄच्छे
अिास और पररिहन लागत िहन करने में ऄसमथत होते हैं जो ईन्हें ऄपने काम के थथान के
वनकट के शहर में थलम क्षेत्रों में बसने के वलए मजबूर करता है।
विवशष्ट त्य

 ऄभूतपूित संख्या: भारत के ऄवतररक्त कोइ और ऐसा देश नहीं है जो मवलन बवथतयों की आतनी
बड़ी संख्या से प्रभावित रहा हो। 2017 तक भारत में 100 वमवलयन से ऄवधक लोग मवलन
बवथतयों में रहने लगेंगे तथा दूसरे 10 लाख प्रिासी दूसरे शहरों की ओर बढ़ रहे होंगे।

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 राजनीवतक रसूख का दोहरा नुकसान: भारत की झुग्गी बथती में रहने िाले लोग मतावधकार
धारण करते हैं और राष्ट्रीय और थथानीय नेताओं के प्रवत ऄपने सरोकारों की पूर्तत की ऄपेक्षा
से िोट भी करते हैं। िततमान समय में आन बवथतयों में रहने िाले लोगों को पता है क्रक िो एक
मज़बूत और प्रभािी िोट बैंक बन चुके हैं और राजनेताओं को ये जानकारी है क्रक आन बवथतयों
में रहने िाले लोगों को मूल्यिान िथतुएँ देकर िे ऄपने चुनाि क्षेत्र में आनके िोट पाने में समथत
हो सकते हैं।
 वनयंत्रण का ऄभाि: कु छ ऄन्य विकासशील देश के शहरों की ओर पलायन को वनयंवत्रत करने
के वलए ऄवधक प्रभािी राजनीवतक ईपकरण प्रयोग में लाते हैं। हालांक्रक भारत एक लोकतंत्र
होने के नाते ऄपने वनिावसयों को कहीं भी रहने-बसने या अने-जाने की थितंत्रता प्रदान
करता है तथा आससे प्रिास पर क्रकसी प्रवतबन्ध का मागत बावधत हो जाता है।
पररिततन के वलए रणनीवतयाँ
मवलन बवथतयों को बदलने के वलए एक व्यिहायत समाधान के वलए आसे भारत की ऄन्य बड़ी
चुनौवतयों के साथ समग्र रूप से देखना होगा। आसके समाधान के वलए वनम्नवलवखत
रणनीवतयों को सवम्मवलत करना चावहए-
 ग्रामीण पुनरािलोकन एिं वनिेश: ऄन्य शहरों को काईं टर मैग्नट े की तरह प्रयोग क्रकया
जा सकता है ताक्रक मुम्बइ जैसे शहरों में अने िाले व्यवक्तयों की संख्या में कमी लायी जा
सके । भारत के छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में आंफ्राथरक्टचर, रोजगार के ऄिसर और
जीिन की समग्र गुणित्ता में सुधार क्रकया जाना चावहए।
 औद्योवगक िांवत और वनरं तर विकास: मवलन बवथतयों की समथयाओं का समाधान
विऔद्योगीकरण या शहरीकरण के रोकने में नहीं है ऄवपतु हमें और तेजी से आन दोनों को
अगे बढ़ाना होगा ताक्रक प्राआिेट कम्पवनयाँ आन झुग्गी झोपडी के वनिावसयों को रोजगार
प्रदान कर सकें और ईन्हें बेहतर अय की प्रावप्त सुवनवश्चत हो सके ।
 झुग्गी बवथतयों की ऄिसंरचना में सुधार: िततमान थलम क्षेत्रों में ईच्च गुणित्ता, कम
लागत तथा विविध थिरूपों की बहु-मंवजला आमारतों के वनमातण द्वारा आन्हें शहर के बाकी
वहथसों के साथ एकीकृ त क्रकया जाना चावहए।
 सतत गवतशील ऄिसंरचना का प्रािधान: सरकार को झुग्गी झोपवड़यों के बुवनयादी ढांचे
के िवमक और सतत ईन्नयन के वलए एक रूपरे खा बनाने की जरूरत है।

8. यद्यवप संयक्त
ु राष्ट्र हैवबटैट ररपोटत (संयक्त
ु राष्ट्र पयातिास ररपोटत) में नगरों को "मानि वनमातण
की सिोच्च पराकाष्ठाओं'' के रूप में िर्तणत क्रकया गया है, लेक्रकन बहस का प्रश्न यह है क्रक
विकासशील देशों के नगरों को क्रकस प्रकार का रूप लेना चावहए। आस कथन के संदभत में,
भारत के संबध
ं में शहरीकरण की परथपर विरोधी रणनीवतयों का परीक्षण कीवजए।
दृवष्टकोण:
 पररचय में संक्षेप में कथन में वनवहत संदभत की व्याख्याऺ कीवजए और ईस थिरुप के सतकत
वििेचन के वलए कारण प्रदान कीवजए, जो विकासशील विि में नगर ग्रहण करें गे।
 आसके ऄवतररक्त शहरीकरण के प्रवतमान (मॉडल) के रूप में बड़े और छोटे शहरों को सवम्मवलत
करने िाली रणनीवतयों का िणतन कीवजए।
 भविष्य में शहरी विकास के वलए अिश्यक आष्टतम संयोजन को रे खांक्रकत करते हुए ईत्तर
समाप्त कीवजए।
ईत्तर:
नगरों को ईनकी ऐवतहावसक भूवमका और मानिीय सहयोग थथल, विकास आंजन और
सामावजक गवतशीलता के िाहन के रूप में भािी क्षमता के कारण ‘मानि वनमातण की सिोच्च
पराकाष्ठा’ कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र हैवबटेट ररपोटत का ऄनुमान है क्रक 2050 तक विि की
2/3 अबादी शहरों में वनिास कर रही होगी। विि बैंक के ऄनुसार 90 प्रवतशत शहरी

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विकास विकासशील देशों में होगा। आस प्रकार, विकासशील देशों के नगरों में शहरीकरण की
ऄवनिायतता और संधारणीयता की डचताओं पर ऄवधक ध्यान देने की अिश्यकता है।
आस संदभत में, भारत में नगर मुख्यतः संघरटत रूप से और ऄवनयोवजत तरीके से विकवसत हुए
हैं, आससे व्यिथथापन में संसाधनों पर दबाि पड़ा है। आसी प्रकार वद्वतीय िेणी के नगरों का
भविष्य में विथतार होगा। आस प्रकार, भारत के वलए परं परागत शहरी कें िों के साथ ही
भविष्य के शहरी कें िों के वलए ईपयुक्त रणनीवत की अिश्यकता है:
 मेगा वसटी (Megacities) और कें क्रित शहरीकरण: मुंबइ या क्रदल्ली जैसे नगर मेगा
वसटी (1 करोड़ या ऄवधक अबादी) और कें क्रित शहरीकरण के ईदाहरण हैं। आन नगरों
की ओर बड़ी संख्या में ऄप्रिासी अकर्तषत हुए हैं तथा वपछले कइ िषों के दौरान ये नगर
विकास के आंजन वसि हुए हैं। हालांक्रक, ये नगर ईत्तरोतर बाहरी संसाधनों पर वनभतर
होते गए हैं तथा भूवम संसाधनों, अिास और साितजवनक सुविधाओं पर सघनता के
दबाि का सामना कर रहे हैं। आस प्रकार आन्हें शहरी निीनीकरण और कायाकल्प की
रणनीवतयों की अिश्यकता होगी।
 छोटे नगर और वितररत शहरीकरण: भारत के वलए वद्वतीय िेणी के कइ नगरों का
विकास भविष्य की प्रिृवत्त है। आसके वलए वितररत शहरीकरण की अिश्यकता होगी
जहां एक साथ बड़ी संख्या में शहरों का विकास होता है। संयुक्त राज्य ऄमेररका में 1.5
से 5 वमवलयन अबादी िाले कइ मध्यम-अकार के नगर हैं। ये सरलतापूिक
त प्रबंधनीय
होते हैं, बड़े शहरों की समथयाएं कम करते हैं और साथ ही असपास के ग्रामीण क्षेत्रों को
भी सेिाएं प्रदान करते हैं। विवशष्ट 'हब एंड थपोक' मॉडल के ऄनुसार कायत करके ये नगर
सेिाओं और संसाधनों के संदभत में एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। सही संसाधनों के साथ,
ये नगर ऄपने वनिावसयों के वलए बेहतर सेिाएं और पयातिरण प्रदान कर सकते हैं। 12िीं
योजना भी आस प्रिृवत्त की ओर झुकाि रखती है जो साथ ही भारत की संघीय संरचना
भी प्रवतडबवबत करती है।
ऄंतरातष्ट्रीय ऄनुभि से सीखकर, हांगकांग जैसे उंचे भिनों िाले सघन मुख्य क्षेत्रों में पररिहन
ईन्मुख विकास (TOD) जैसे मॉडल ऄपनाए जा सकते हैं। आसी प्रकार, कइ लोगों का तकत है
क्रक नयूथटन या ऄटलांटा मॉडल ऄथातत, कोर से दूर विथतृत होने िाली अबादी से बचा जाना
चावहए।
छोटे और बड़े दोनों नगरों के ऄनुकूल रणनीवतयां विद्यमान हैं। तेजी से शहरीकृ त हो रहे
भारत के वलए ऐसे नगरों की अिश्यकता है जो क्रक पयातप्त वित्तीय संसाधनों और संथथागत
विकें िीकरण के साथ वनयोवजत और समािेशी कें ि हों।

9. तेजी से बढ़ती ऄथतव्यिथथाओं की एक संिमणकावलक (ऄथथायी) पररघटना होने के बजाय


अजकल की मवलन बवथतयाँ (थलम्स) गंभीर एिं दीघतथथायी संरचनात्मक समथयाएँ खड़ी
करती हैं और प्रमुख नीवतगत चुनौवतयों का प्रवतवनवधत्ि करती हैं। भारत के संदभत में चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
 मवलन बवथतयां (slums) क्रकस प्रकार थथायी समथया बन गइ हैं, चचात कीवजए।
 आस संदभत में नीवतगत चुनौवतयों का िणतन कीवजए।
 सरकारी प्रयासों, SDG 11 और ऄन्य ऄनुशस
ं ाओं के साथ ईत्तर समाप्त कीवजए।
ईत्तर:
विकासात्मक वसिांतों द्वारा मवलन बवथतयों को प्राय: तेजी से बढ़ती ऄथतव्यिथथाओं की
संिमणकालीन विशेषता के रूप में पररभावषत क्रकया गया है। लेक्रकन ये वसिांत गलत वसि

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हो रहे हैं क्टयोंक्रक मवलन बवथतयां थथायी समथया बन गइ हैं। लाखों पररिार पीक्रढ़यों तक
मवलन बवथतयों में ऄपने अप को फं से हुए पाते हैं। 2011 की जनगणना के ऄनुसार, करीब
17.4% शहरी भारतीय पररिार मवलन बवथतयों में रहते हैं। (मवलन बथती अबादी का
2001 में 93.1 वमवलयन से बढ़कर 2017 में 104.7 वमवलयन हो जाने का ऄनुमान है)
अज की मवलन बवथतयां एकावधक बाजार और नीवतगत विफलताओं, घरटया प्रशासन और
प्रबंधन में बाधा डालने िाले वनिेशों तथा वनकृ ष्ट और ऄथिच्छकर वनिास वथथवतयों के कारण
पैदा होने िाली गंभीर, सतत संरचनात्मक समथया ईत्पन्न करती हैं। वनवहत मुद्दे हैं:
 मवलन बथती क्षेत्र को रहने हेतु पयातप्त थथान की कमी, साितजवनक िथतुओं की ऄपयातप्त
व्यिथथा और थिच्छ पेयजल और थिच्छता जैसे मूलभूत सुविधाओं की घरटया गुणित्ता
द्वारा वचवन्हत क्रकया गया है। आनमें से सभी बातें न के िल मवलन बथती वनिावसयों को ही
बवल्क वनकट पड़ोस को भी ऄत्यवधक घरटया थिाथ्य और निासोन्मुख मानि पूज ं ी की
क्रदशा में ले जाती हैं।
 भीड़भाड़, पयातिरणीय कु प्रबंधन, प्राकृ वतक संसाधनों का वनम्नीकरण।
 वनकृ ष़् वशक्षा और ऄिसर, ऄपराध की बढ़ी हुइ घटनाएं, मवहलाओं की सुभेद्यता, मादक
िव्यों का सेिन, भीड़भाड़ और ऄिैयवक्तकरण तथा ऄन्य सामावजक एिं मानिीय
समथयाएं।
 बवथतयों से अबादी के विथथापन, क्रदल्ली में कठपुतली कॉलोनी जैसे ऄवनयवमत
ऄवतिमण प्रकरणों से संबंवधत ऄन्य समथयाएं।
नीवतगत चुनौवतयां

 ग्रामीण-शहरी प्रिास से वनपटना - यह िैिीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों में अय के ऄिसरों


की कमी जैसे कारकों से घवनष्ठतापूितक संबवं धत है। विशेषज्ञों का ऄनुमान है क्रक 2050
तक लगभग 60% जनसंख्या शहरों में वनिास कर रही होगी। यह वथथवत थमाटत शहरों
की तजत पर थमाटत गांिों का विकास करने के वलए वथथर रूप से पूरक योजनाओं की मांग
करती है।
 शहरों में मवलन बथती वनिावसयों के वलए सामावजक सुरक्षा जाल का विकास करना।
 संधारणीय शहरी विकास - शहरों को सुरवक्षत और संधारणीय बनाने का तात्पयत है -
सुरवक्षत और क्रकफायती अिास तक पहुंच सुवनवश्चत करना, मवलन बवथतयों का ईन्नयन
करना, थिच्छ पेयजल, थिाथ्य क्टलीवनक और शौचालय जैसी मूलभूत अिश्यकताएं
सुवनवश्चत करना। आसमें मवहलाओं और बुजुगों की सुभेद्यता कम करना भी सवम्मवलत है।
 रोजगार सृजन- प्रिावसयों के वलए ऄिसर और कौशल विकास के ऄिसर सृवजत करने
की अिश्यकता है।
 शहरी थथानीय वनकायों में क्षमता वनमातण - आसमें प्रावधकार का वितरण, धन की
ईपलब्धता सुवनवश्चत करना (ईदाहरण के तौर पर नगर वनगम बंधपत्रों, मनोरं जन कर
अक्रद जैसे करों का वितरण करने के माध्यम से) और मानि संसाधनों का विकास करना
सवम्मवलत होगा।
 क्रकफायती अिास - भूवम की बढ़ती कीमत के साथ मवलन बथती वनिावसयों के वलए
क्रकफायती अिास विकवसत करने की तत्काल अिश्यकता है। "2022 तक सबके वलए
अिास" का एक प्रमुख घटक यथाित मवलन बथती पुनिातस का ईपयोग करना है। आसके
माध्यम से सरकार ने संसाधन के रूप में भूवम का ईपयोग करने के वलए वनजी
विकासकतातओं को प्रोत्सावहत करने के वलए रणनीवत तैयार की है। आस नीवत में मवलन
बथती ईन्नयन घटक भी सवम्मवलत है।

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चूँक्रक SDG-11 शहरों को संधारणीय बनाने के संबंध में विचार करता है, ऄत: यह ऄवनिायत
हो गया है क्रक AMRUT, SMART (थमाटत) शहर अक्रद जैसी सरकारी पहलों को आन पहलों
के लाभों का मवलन बथती िावसयों तक विथतार करना चावहए, जो िततमान में सामावजक और
अर्तथक सुरक्षा के लाभों से बवहष्कृ त हैं।

10. यद्यवप ईपनगरीकरण नगरीकृ त हो रहे ऄवधकांश देशों में एक सामान्य पररघटना है, क्रकन्तु
भारत के शहरी विकास के संदभत में यह ऄपेक्षाकृ त प्रारं वभक चरण पर हो रही है। आस विकास
के ऄंतर्तनवहत कारणों को सूचीबि करते हुए भारतीय शहरों के वलए आसके द्वारा ईत्पन्न की
जा रही चुनौवतयों पर प्रकाश डावलए।
दृवष्टकोण :
 ऄवधकांश नगरीकृ त देशों में ईपनगरीकरण पररघटनाओं के बारे में संवक्षप्त पररचय दीवजए।
 भारत के शहरी विकास के सन्दभत में आसके ऄपेक्षाकृ त प्रारं वभक चरण पर होने के कारणों को
सूचीबि कीवजए।
 भारतीय शहरों के समक्ष आसके द्वारा ईत्पन्न चुनौवतयों तथा आनसे वनपटने के तरीके को थपष्ट
कीवजए।
ईत्तर:
2013 में विि बैंक की ररपोटत "ऄबतनाइजेशन वबयॉन्ड म्युवनवसपल बाईं ड्रीज” के ऄनुसार
ईपनगरीय क्षेत्र, शहरों की तुलना में ईच्च अर्तथक विकास और रोजगार के ऄिसर सृवजत कर
रहे हैं। यद्यवप "ईपनगरीकरण" एक वििव्यापी घटना है। सामान्यतः यह विकास के ईन्नत
चरणों में घरटत होती है। भारत में ईपनगरीकरण ऄपेक्षा से ऄवधक तीव्रता से हो रहा है।
कारण:
 कम जनसंख्या घनत्ि, कम ऄपराध और ऄवधक वथथर जनसंख्या के कारण ईपनगरों को
रहने और पररिार के पालन पोषण हेतु एक सुरवक्षत और सुलभ थथान के रूप में देखा
जाता है।
 भूवम की बढती हुइ कीमतों और कायातलयों के क्रकराये ने कं पवनयों को ईपनगरीय क्षेत्रों में
जाने के वलए वििश कर क्रदया है।
 िर्तित (Increased) अय के साथ, लोगों की यात्रा और काम करने के वलए ऄवधक दूरी
तय करने ि घर िापस अने के वलए ऄवधक भुगतान करने की क्षमताओं में िृवि हुइ है।
 भारतीय शहरों द्वारा ऄत्यवधक कठोर भूवम ईपयोग वनयमों को लागू करना, क्रकराया
वनयंत्रण प्रणाली तथा शहरों में आमारतों की उंचाइ पर प्रवतबंध लगाने के पररणामथिरूप
ऄत्यवधक ईपनगरीकरण हो रहा है।
 ईपनगरीय नगरपावलकाओं द्वारा औद्योवगक भूवम ईपयोगकतातओं को ऄपने क्षेत्र में
अकर्तषत करने के वलए कर छू ट और विवनयामकों को प्रोत्साहन प्रदान क्रकया जा रहा है।
 मजबूत और पररष्कृ त ऄिसंरचना का विकास शहर के ईपनगरों में ही संभि है, जहां
भूवम पयातप्त मात्रा में ईपलब्ध हो तथा ऄवधग्रहण की लागत भी कम हो।
शहरी समुदायों के विकास ने कइ अर्तथक, पाररवथथवतक और संथथागत चुनौवतयां ईत्पन्न की
हैं जो वनम्नवलवखत हैं:
 गुणित्तायुक्त जल, थिच्छता, और वबजली तक पहुँच, शहरी कें ि की तुलना में ईपनगरों
में ऄवधक दयनीय है।
 िहनीय एिं गुणित्तापूणत थिाथ्य ि् वशक्षा सेिाओं तक पहुंच।
 कृ वष भूवम के व्यिसायीकरण और िन क्षेत्र के ऄवतिमण से पाररवथथवतकी तंत्र को भी
हावन पहुँच रही है।
 ऄवनयोवजत शहरीकरण और प्राकृ वतक जल संग्रहण एिं जल वनकासी प्रणावलयों का
ऄवनयंवत्रत ऄवतिमण, अपदा के वलए ईत्तरदायी है।

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 ईपनगरीकरण के पररणामथिरूप राजकोषीय घाटा बढ़ रहा है, वजसका मुख्य कारण कम
जनसंख्या घनत्ि िाले क्षेत्रों में संपवत्त कर का कम होना है।
 ईपनगरीकरण के समथतकों का तकत है क्रक यह शहरी पतन एिं शहर के अतंररक क्षेत्रों में
वनम्न अय िगत के वनिावसयों के संकेन्िण को बढ़ािा देता है।
 तीसरी और पांचिीं पंचिषीय योजना में शहरी वनयोजन का क्षेत्रीय दृवष्टकोण ऄपनाने
और प्रशासवनक शहरी सीमा के बाहर बढ़ते क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए महानगरीय
वनयोजन क्षेत्रों के वनमातण पर बल क्रदया गया।
अगे की राह:
 िततमान ग्रामीण-शहरी िगीकरण प्रणाली में कवमयों का पता लगाया जाए। वजसके माध्यम से
यह सुवनवश्चत क्रकया जा सके क्रक नए क्षेत्र नगरपावलका की सीमा के दायरे में अएं तथा
आसकी सेिाओं को प्राप्त कर सकें ।
 भूवम के दक्षतापूणत ईपयोग द्वारा पहले से विकवसत क्षेत्र में िहनीय एिं अधुवनक अिास।
 समग्र अर्तथक विकास को बढ़ािा देने के वलए कु शल सेिाएं प्रदान की जाए तथा प्रशासवनक
व्यिथथा में सुधार क्रकए जाएँ।
 क्षेत्रीकरण और ऄन्य भूवम ईपयोग के वनयमों के प्रयोग द्वारा विकास पिवत का वनमातण क्रकया
जाना चावहए। वजसके द्वारा पैदल चलने ि साआक्रकडलग के रूप में सक्रिय पररिहन का विकास
क्रकया जा सके , जो यात्राओं में लगने िाले समय को कम करने के वलए व्यािहाररक हो।
 यह सुवनवश्चत क्रकया जाना चावहए की शहर के सभी क्षेत्रों का समान रूप से विकास हो वजससे
अिास और काम तक पहुंच से संबंवधत समथया ईत्पन्न न हो।
 यह सुवनवश्चत क्रकया जाये क्रक क्रकसी ईपनगर द्वारा क्रदए गए कर प्रोत्साहन, ऄन्य ईपनगर या
कें िीय शहरों के विकास को हतोत्सावहत ना करें ।
िहनीय एिं गुणित्तापूणत सेिाओं का विकल्प प्रदान करने की शहरों की ऄक्षमता के पररणामथिरूप
ईपशहरीकरण को बढ़ािा वमला है आसवलए विद्यमान शहरी सुविधाओं में सुधार की अिश्यकता
है, साथ ही साथ ईपनगरीय क्षेत्रों की समथयाओं को भी हल क्रकया जाना चावहए।

11. विगत िषों में सं घ लोक से िा अयोग (UPSC) द्वारा पू छे


गए प्रश्न
(Past Year UPSC Questions)
1. भारत में तीव्र शहरीकरण प्रक्रिया ने वजन विवभन्न सामवजक समथयाओं को जन्म क्रदया, ईनकी
वििेचना कीवजये। (2013)
2. ‘भारत में थमाटत नगर थमाटत गांिों के वबना जीवित नहीं रह सकते हैं।’ ग्रामीण नगरीय एकीकरण
की पृष्ठभूवम में आस कथन पर चचात कीवजये। (2015)
3. भारत में नगरीय जीिन की गुणता की संवक्षप्त पृष्ठभूवम के साथ, ‘थमाटत नगर कायतिम’ के ईद्देश्य
और रणनीवत बताइये। (2016)

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Classroom Study Material

भारतीय समाज
भारतीय समाज की प्रमुख विशेषताएं

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विषय सूची
1. पररचय ____________________________________________________________________________________ 3

2. भारतीय समाज के ऄवभलक्षण ____________________________________________________________________ 3

3. भारतीय समाज की विशेषताएं____________________________________________________________________ 4

3.1 जावत व्यिस्था (Caste System) ______________________________________________________________ 4


3.1.1. जावत व्यिस्था में पररिततन _______________________________________________________________ 5
3.1.2. जावत व्यिस्था में पररिततन को प्रभावित करने िाले कारक__________________________________________ 5

3.2 धार्ममक बहुलिाद __________________________________________________________________________ 6


3.2.1. भारत में विवभन्न धार्ममक समूह ____________________________________________________________ 6

3.3 नातेदारी, वििाह और पररिार _________________________________________________________________ 6


3.3.1. नातेदारी (Kinship) ___________________________________________________________________ 6
3.3.2. वििाह (Marriage)____________________________________________________________________ 7
3.3.3. भारतीय समाज में पररिार _______________________________________________________________ 8

3.4. भारत में विविधता ________________________________________________________________________ 12


3.4.1. भारत में विविधता के विवभन्न रूप _________________________________________________________ 12
3.4.2. भारत में विविधता के मध्य एकता बढ़ाने िाले कारक ____________________________________________ 13
3.4.3. भारत की एकता के समक्ष खतरा ईत्पन्न करने िाले कारक _________________________________________ 14

4. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न___________________________________________ 16

5. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 31
1. पररचय
(Introduction)
 भारतीय समाज बहु-सांस्कृ वतक, बहु-नृजातीय और बहु-िैचाररक संरचनाओं के सह-ऄवस्तत्ि का
प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह एक विवशष्ट ईदाहरण है वजसमें ये संरचनाएँ पारस्पररक सौहार्द्त स्थावपत
करने का प्रयास करते हुए भी ऄपनी िैयविकता को बनाये रखती हैं।
 िसुधैि कु टु म्बकम (सम्पूणत विश्व एक पररिार है) की ईदार ऄिधारणा भारतीय समाज की एक
महान सांस्कृ वतक विरासत है। आसके ईत्तरोतर विकास के दौरान, आसने समय-समय पर विवभन्न
समुदायों और ईनकी जीिन शैवलयों को समायोवजत और एकीकृ त ककया है।

2. भारतीय समाज के ऄवभलक्षण


(Characteristics of Indian Society)
 बहु-नृजातीय समाज- भारत में विविध नस्लीय समूहों के सह-ऄवस्तत्ि के कारण भारतीय समाज
की प्रकृ वत बहु-नृजातीय है। भारत विश्व में विद्यमान लगभग सभी नृजातीय समूहों का िास-स्थान
है।
 बहुभाषी समाज- संपूणत भारत में 1600 से भी ऄवधक भाषाएँ बोली जाती हैं। आनमें प्रमुख भाषाएँ
हहदी, तेलग
ु ,ू तवमल, कन्नड़, मलयालम, बंगाली अकद हैं।
 बहु-िगीय समाज- भारतीय समाज विवभन्न िगों में विभावजत है। यह विभाजन जन्म के अधार
पर तथा साथ ही ककसी व्यवि के जीिनकाल के दौरान ईसकी वित्तीय और सामावजक ईपलवधधयों
के अधार पर भी हो सकता है।
 वपतृसत्तात्मक समाज- भारतीय समाज मुख्य रूप से एक वपतृसत्तात्मक समाज है, वजसमें पुरुषों को
मवहलाओं की तुलना में ईच्च प्रवस्थवत प्राप्त है। हालांकक, कु छ जनजातीय समाज मातृसत्तात्मक
समाज हैं, वजनमें वनणतय वनमातण में मवहलाओं की भूवमका मुख्य होती है।
 विविधता में एकता- यह भारतीय समाज की एक मूल विशेषता है। भारत में विविधता विवभन्न
स्तरों पर, विवभन्न रूपों में विद्यमान है। हालांकक, आस विविधता के होते हुए भी सामावजक
संस्थाओं और कायतप्रणावलयों में मूलभूत एकता विद्यमान है।
 परं परािाद और अधुवनकता का सह-ऄवस्तत्ि- परं परािाद का अशय मूलभूत मूल्यों को बनाये
रखना ऄथिा ईनका संरक्षण करना है। जबकक अधुवनकता का अशय परं परा पर प्रश्नवचह्न
लगाना और तकत संगत सोच, सामावजक, िैज्ञावनक एिं तकनीकी प्रगवत की ओर ऄग्रसररत होना है।
तकनीकी प्रगवत और वशक्षा के प्रसार के कारण भारतीयों के मध्य अधुवनक सोच का विस्तार हुअ
है। हालांकक पाररिाररक जीिन ऄभी भी पारं पररक मूल्यों और विश्वास प्रणाली से बंधा हुअ है।
 ऄध्यात्मिाद और भौवतकिाद के मध्य संतल ु न- ऄध्यात्मिाद मुख्यत: ककसी व्यवि के इश्वर से
संबंवधत ऄनुभि पर कें कर्द्त होता है। जबकक भौवतकिाद भौवतक पररसंपवत्त और शारीररक सुख को
अध्यावत्मक मूल्यों से ऄवधक महत्िपूणत मानने की एक प्रिृवत्त है। हालांकक, पविमीकरण में िृवि के
कारण भौवतकिादी प्रिृवत्तयों को भी ऄत्यवधक प्रोत्साहन वमला है।
 व्यवििाद और समूहिाद के मध्य संतल
ु न- व्यवििाद एक नैवतक, राजनीवतक या सामावजक
दृवष्टकोण है जो मानिीय स्ितंत्रता, अत्मवनभतरता और स्ितंत्रता पर बल देता है। जबकक
समूहिाद, ककसी समूह के प्रत्येक सदस्य पर समूह को प्राथवमकता प्रदान करता है। भारतीय समाज
में आनके मध्य एक ईवचत संतल
ु न विद्यमान है।
 रि और नातेदारी संबध ं - रि संबंध और नातेदारी संबंध ऄन्य सामावजक संबंधों की तुलना में
ऄवधक सुदढ़ृ होते हैं। िे जीिन के राजनीवतक और अर्मथक पहलुओं को वनयंवत्रत करते हैं।

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3. भारतीय समाज की विशे ष ताएं
(Features of Indian Society)

3.1 जावत व्यिस्था (Caste System)

 जावत को एक ऐसे िंशानुगत ऄंतर्मििाही (endogamous) समूह के रूप में पररभावषत ककया जा
सकता है जो एक सजातीय समुदाय का वनमातण करता है। आसका एक सामान्य नाम होता है; एक
समान पारं पररक व्यिसाय होता है; एक समान संस्कृ वत होती है; यह गवतशीलता के संबंध में
ऄपेक्षाकृ त कठोर होती है; और आसकी एक विवशष्ट प्रवस्थवत होती है।
 भारत में जावत व्यिस्था का मुख्य रूप से हहदू धमत से संबि है और यह हजारों िषों से हहदू समाज
को संचावलत कर रही है। भारत में जावत व्यिस्था की विशेषताओं में वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
o समाज का खंडीय विभाजन: आसका ऄथत है कक सामावजक स्तरीकरण मुख्य रूप से जावत पर
अधाररत होता है। भारतीय समाज में ककसी व्यवि को एक जावत समूह की सदस्यता जन्म से
प्राप्त होती है तथा आसके अधार पर ईसे ऄन्य जावत समूहों के सापेक्ष स्थान प्रदान ककया जाता
है।
o पदानुक्रम: यह आं वगत करता है कक विवभन्न जावतयां, ईनके व्यिसाय की पवित्रता और
ऄपवित्रता के अधार पर िगीकृ त की जाती हैं। आन जावतयों को एक सीढ़ी के समान संरचना
में ईच्च से वनम्न स्थान प्रदान ककया जाता है। पवित्र मानी जाने िाली जावत को ईच्च स्थान और
ऄपवित्र मानी जाने िाली जावत को वनम्न स्थान प्रदान ककया जाता है।
o नागररक और धार्ममक ऄक्षमता: आसके ऄंतगतत संपकत , पोशाक, भाषा, रीवत-ररिाजों आत्याकद
पर अधाररत प्रवतबंध सवम्मवलत होते हैं तथा ये प्रवतबंध प्रत्येक जावत समूह पर अरोवपत
होते हैं। ये प्रवतबंध विवशष्ट जावत समूहों की पवित्रता बनाए रखने के ईद्देश्य से अरोवपत ककए
गए थे। ईदाहरणस्िरूप वनम्न जातीय िगों को कु ओं तक पहुंच प्रदान न करना, ईनके मंकदरों
में प्रिेश करने पर प्रवतबंध लगाया जाना आत्याकद।
o सजातीय वििाह (Endogamy): ककसी विशेष जावत के सदस्यों को के िल ऄपनी जावत में ही
वििाह करने की ऄनुमवत होती है। ऄंतरजातीय वििाह वनवषि हैं। हालाँकक, शहरी क्षेत्रों में
ऄंतरजातीय वििाहों की संख्या में िृवि हो रही है।
o ऄस्पृश्यता: यह ककसी समूह को सामावजक प्रथाओं द्वारा मुख्य धारा से पृथक करके बवहष्कृ त
करने की प्रथा है। ऄस्पृश्यता जावत व्यिस्था का एक स्िाभाविक पररणाम था तथा आसके
तहत ऄस्पृश्यों (जो वनम्नतम जावत समूहों से संबंवधत थे) को ऄपवित्र और मवलन माना जाता
था।
o हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनऄ
ु ल स्कै िेंहजग): हाथ से मैला ढोने की प्रथा, ऄंततः एक जावत
अधाररत पेशा बन गया। आसके ऄंतगतत बाल्टीयुि शौचालयों (Bucket Toilets) या गड्ढे
िाले शौचालयों ( Pit Latrines) में से ऄनुपचाररत मानि मल की सफाइ करना सवम्मवलत
है। आसे हाथ से मैला ढोने िाले कर्ममयों के वनयोजन का प्रवतषेध एिं ईनका पुनिातस
ऄवधवनयम, 2013 द्वारा अवधकाररक रूप से समाप्त कर कदया गया है।
o भारत में जावत अधाररत हहसा: जावत अधाररत हहसा की बढ़ती प्रिृवत्त ऄंतरजातीय वििाह
की घटनाओं तथा दवलतों के भूवम ऄवधकारों, ईनकी ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता, वशक्षा ि न्याय
तक पहुंच सवहत मूलभूत ऄवधकारों के दािों से संबंवधत है। ईदाहरण के वलए, गुजरात के
उना में भू-स्िावमत्ि की मांग के वलए एक अंदोलन में भाग लेने पर दवलतों के एक समूह पर
हमला ककया गया।

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o जावत अधाररत अरक्षण की नीवत: भारत में जावत-अधाररत अरक्षण व्यिस्था में विवभन्न
विधानमंडलों, सरकारी नौकररयों और ईच्च वशक्षण संस्थानों में प्रिेश हेतु सीटों को अरवक्षत
करने जैसी ऄनेक सकारात्मक कायतिावहयां शावमल हैं। ईदाहरण के वलए, ऄनुसूवचत जावत
समूहों को सरकारी सेिाओं और शैक्षवणक संस्थानों में 15% अरक्षण कदया जाता है।

3.1.1. जावत व्यिस्था में पररितत न

(Changes in the Caste system)


 ऄंतरजातीय वििाह की प्रिृवत्तयां: रि की पवित्रता जावत व्यिस्था के मुख्य ईद्देश्यों में से एक थी।
यही कारण था कक ऄंतरजातीय वििाह सामावजक रूप से वनवषि था। िततमान में अर्मथक और
सामावजक अिश्यकताओं के कारण ऄंतरजातीय वििाह की प्रिृवत में िृवि हुइ है।
 रूकढ़िाकदता को चुनौती: बढ़ते शहरीकरण के पररणामस्िरूप जावत व्यिस्था की रुकढ़िादी प्रथाओं,
जैसे बाल वििाह, विधिा पुनर्मििाह पर प्रवतबंध, धमत-पररिततन पर प्रवतबंध, वनम्न जावत के लोगों
के प्रवत ईच्च िगत की ऄसंिेदनशीलता अकद को चुनौती दी जा रही है।
 खान-पान की अदतों में पररिततन: बैठकों, सम्मेलनों, संगोवियों अकद में लोगों के वनरं तर मेल-
वमलाप के कारण, खान-पान की अदतों में पररिततन हुअ है। आसके ऄवतररि, लोगों ने एक ही मेज
पर खाने, वनम्न जावत के लोगों द्वारा वनर्ममत भोजन को वबना ककसी दुराग्रह के स्िीकार ककए जाने
जैसे नए सामावजक मानदंडों को ऄपनाया है।
 व्यिसाय में पररिततन: व्यािसावयक गवतशीलता समाज की एक नइ विशेषता बन गइ है।
ईदाहरणस्िरूप, ऄपनी पारं पररक भूवमकाओं को पीछे छोड़कर ब्राह्मण व्यापारी बन गए हैं जबकक
िैश्य वशक्षण कायों में संलग्न हो गए हैं, अकद।
 वनम्न जावतयों की वस्थवत में सुधार: सरकार द्वारा प्रारं भ ककए गए प्रयासों के कारण वनम्न जावतयों
की वस्थवत में अर्मथक के साथ-साथ सामावजक रूप से भी सुधार हुअ है।

3.1.2. जावत व्यिस्था में पररितत न को प्रभावित करने िाले कारक

(Factors affecting the changes in caste system)


 संस्कृ वतकरण (Sanskritisation): पररिततन की एक प्रकक्रया के रूप में संस्कृ वतकरण, जावत
व्यिस्था के भीतर वस्थवत संबध ं ी पररिततन की गवतशीलता है। शाकाहार और मद्यत्याग को
ऄपनाने अकद जैसी परम्पराओं और कमतकांडों में पररिततन के माध्यम से वनम्न जावत से संबंवधत
लोग, जावत पदानुक्रम में ऄपने वलए ईच्च प्रवस्थवत का दािा कर रहे हैं।

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 पविमीकरण (Westernisation): वशक्षा, खान-पान संबंधी अदतों, पहनािे की शैवलयों, भोजन
करने के तरीकों, वशष्टाचार आत्याकद क्षेत्रों में बदलाि लाकर पविमीकरण ने जावतगत बाधाओं को
दूर करते हुए परं परागत व्यिसायों सम्बन्धी पररिततनों को प्रेररत ककया है।
 अधुवनकीकरण (Modernisation): यह एक ऐसी प्रकक्रया है जो प्राथवमक रूप से िैज्ञावनक
दृवष्टकोण, तार्ककक ऄवभिृवत्त, ईच्च सामावजक गवतशीलता, जन लामबंदी और कायत-विशेषज्ञता पर
अधाररत होती है। आसने जावत व्यिस्था को और ऄवधक लचीला बना कदया है। ईदाहरण के वलए
शहरी क्षेत्रों में जावतयां धीरे -धीरे िगों में पररिर्मतत होती जा रही हैं। तार्ककक एिं लक्ष्योन्मुखी
दृवष्टकोण िाले मध्य िगत का ईदय आस तथ्य का साक्ष्य है।
 औद्योगीकरण और शहरीकरण: औद्योवगक कस्बों और शहरों के विकास के साथ ही प्रिास में िृवि
हुइ है। प्रिास के ईद्गम क्षेत्रों के विपरीत, गंतव्य क्षेत्रों में जावत संबंधी वनयमों का ऄनुपालन
ऄपेक्षाकृ त कम ककया जाता है। आससे आन क्षेत्रों में जातीय संरचना सापेक्षतः कम कठोर हो जाती
है।
 लोकतांवत्रक विके न्र्द्ीकरण: पंचायती राज व्यिस्था में प्रदत्त अरक्षण ने वनम्न जावतयों को स्ियं को
सशि बनाने का ऄिसर प्रदान ककया है।
 जावत और राजनीवत: ये दोनों परस्पर घवनिता से संबि हैं। िास्ति में, आस संबिता के
पररणामस्िरूप वनम्न जावतयों का सशविकरण हुअ है क्योंकक िे ऄपनी भािनाओं को चुनाि और
सत्ता के माध्यम से व्यि कर सकते हैं। आस प्रकार का एक ईदाहरण दवलत राजनीवत है वजसके
द्वारा दवलत ऄपनी पहचान स्थावपत करने का प्रयास कर रहे हैं और विवभन्न राज्यों में सत्ता
स्थावपत करने में सफल रहे हैं।
 विधायी ईपाय: स्ितंत्रता के पिात् विवभन्न सामावजक कानून लागू ककए गए, वजनका ईद्देश्य
दवलतों के वहतों की रक्षा, ऄस्पृश्यता का ईन्मूलन और िंवचत जावतयों को सामावजक एिं अर्मथक
विकास की सुविधा प्रदान करना है। ईदाहरण के वलए, ऄस्पृश्यता (ऄपराध) ऄवधवनयम, 1955,
ऄस्पृश्यता की प्रथा के विरुि दंड का प्रािधान करता है।

3.2 धार्ममक बहुलिाद

(Religious Pluralism):

3.2.1. भारत में विवभन्न धार्ममक समू ह

(Different Religious Groups in India)


भारत एक धमतवनरपेक्ष राष्ट्र है, जहाँ विश्व के विवभन्न धमों को अश्रय प्राप्त है। ये धमत विवभन्न सम्प्रदायों
एिं पंथों में ईप-विभावजत हैं। धार्ममक विश्वासों एिं प्रथाओं की विविधता भारतीय धमों की विशेषता
है। भारतीय ईपमहाद्वीप, विश्व के चार प्रमुख धमों ऄथातत् वहन्दू, बौि, जैन एिं वसख धमत का
ईद्गमस्थल है।
आसके ऄवतररि, वहन्दू धमत में विवभन्न सम्प्रदाय जैसे िैष्णििाद, शैििाद अकद भी विद्यमान हैं। आस्लाम
भी वशया एिं सुन्नी जैसे कइ सम्प्रदायों में बँटा हुअ है। जनजातीय समूहों द्वारा जीििादी (Animistic)
एिं प्रकृ वतिादी (Naturistic) धमों का भी पालन ककया जाता है। आस प्रकार भारत में धार्ममक बहुलता
विद्यमान है तथा प्रत्येक धमत के ऄपने पृथक-पृथक सम्प्रदाय तथा त्यौहार एिं परम्पराएं हैं।

3.3 नाते दारी, वििाह और पररिार

(Kinship, Marriage And Family)

3.3.1. नाते दारी (Kinship)

नातेदारी व्यिस्था से तात्पयत व्यवियों के ईस समूह से है वजन्हें रि संबंधों ऄथिा वििाह संबंधों के
अधार पर ररश्तेदारों के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। ‘वडक्शनरी ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजी’ के ऄनुसार,

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नातेदारी व्यिस्था में कवल्पत तथा िास्तविक िंशानुगत बंधनों पर अधाररत, समाज सम्मत सम्बन्ध
शावमल होते हैं। ये संबंध सामावजक ऄंतःकक्रया का पररणाम हैं तथा समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं।
नातेदारी व्यिस्था, मूलभूत सामावजक संस्थाओं में से एक है। नातेदारी साितभौवमक है तथा ऄवधकांश
समाजों में व्यवियों के समाजीकरण तथा समूह की एकजुटता को बनाए रखने में महत्िपूणत भूवमका
वनभाती है। अकदम समाजों में आस व्यिस्था का ऄत्यंत महत्िपूणत स्थान है तथा यह ईनकी लगभग सभी
गवतविवधयों यथा- सामावजक, अर्मथक, राजनीवतक, धार्ममक आत्याकद को प्रभावित करती है।
नातेदारी के प्रकार (Types of Kinship)
 िैिावहक (Affinal) नातेदारी: वििाह का बंधन िैिावहक नातेदारी कहलाता है। कोइ पुरुष वििाह
करता है तो िह ईस मवहला के साथ-साथ मवहला के पररिार के ऄन्य सदस्यों से भी संबंध
स्थावपत करता है। आसी प्रकार ईस व्यवि के पररिार के सदस्य भी मवहला एिं ईसके पररिार के
सदस्यों के साथ संबंध स्थावपत करते हैं। ऄत: वििाह के संपन्न होते ही संबंधों के एक समूह का
वनमातण हो जाता है।
 रि संबध
ं ी (Consanguineous) नातेदारी: रि संबंधों का बंधन रि संबंधी नातेदारी कहलाता
है। माता-वपता एिं ईनके बच्चों तथा सहोदरों (भाइ-बहनों) के मध्य का संबंध, रि संबंधी
नातेदारी है।
ईत्तर और दवक्षण भारत में नातेदारी व्यिस्था एिं वििाह के संदभत में क्षेत्रीय विवभन्नताएं:
 ईत्तरी भारत: ईत्तर भारत में, ऄवधकांशत: वपता से पुत्र तक पुरुष क्रम में पाए जाने िाली िंश
परम्परा िाले वपतृिंशीय समूह विद्यमान हैं। एक वपतृिंशीय परम्परा के सदस्य कमतकांड एिं
अर्मथक गवतविवधयों में सहयोग करते हैं। सजातीय वििाह का दृढ़ता से पालन ककया जाता है।
आसके ऄवतररि समान गोत्र या कु ल के भीतर वििाह वनवषि होते हैं तथा सामान्यत: ग्राम
बवहर्मििाह को प्राथवमकता दी जाती है। आस प्रकार वििाह सम्बन्धी वनषेध, नातेदारी और स्थान
के संदभत में एक विस्तृत दायरे में वििाह पर प्रवतबंध लगाते हैं।
 दवक्षणी भारत: दवक्षणी क्षेत्र नातेदारी व्यिस्था तथा पररिार संस्था के एक ऄत्यंत जरटल प्रवतरूप
को प्रस्तुत करता है। यद्यवप यहाँ वपतृिंशीय एिं वपतृस्थावनक (Patrilocal) परम्परा का प्रभुत्ि है
ककन्तु साथ ही मातृिंशीय (मातृ परम्परा अधाररत िंश) और मातृस्थावनक (Matrilocal)
व्यिस्थाएँ भी विद्यमान हैं। दवक्षण भारत में वििाह के वनयम भी वभन्न-वभन्न होते हैं।

3.3.2. वििाह (Marriage)

वििाह एक महत्िपूणत सामावजक संस्था है। यह सामावजक रूप से ऄनुमोकदत तथा रीवत-ररिाजों और
विवध द्वारा स्िीकृ त एक संबंध है। आसके साथ ही यह सांस्कृ वतक प्रकक्रयाओं का एक समूह भी है जो
पररिार की वनरं तरता को सुवनवित करता है। यह भारत में लगभग एक साितभौवमक सामावजक संस्था
है।
वििाह व्यिस्था में संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन
वििाह प्रणाली में, विशेषत: स्ितंत्रता के पिात्, ऄनेक महत्िपूणत पररिततन हुए हैं। हालांकक वििाह से
संबंवधत मूलभूत धार्ममक विश्वास कमज़ोर नहीं हुए हैं परन्तु ऄनेक प्रथाएँ, रीवत-ररिाज तथा तरीके
पररिर्मतत हो गए हैं। वििाह व्यिस्था में हुए हावलया पररिततन वनम्नवलवखत हैं:
 वििाह के ईद्देश्य एिं लक्ष्य में पररिततन: परं परागत समाजों में, विशेष रूप से वहन्दुओं में, वििाह
का प्राथवमक ईद्देश्य ‘धमत’ या कततव्य होता है। परन्तु िततमान समय में वििाह का ईद्देश्य धमत की
तुलना में पवत और पत्नी के मध्य ‘अजीिन साहचयत’ से ऄवधक संबवं धत हो गया है।
 वििाह के स्िरूप में पररिततन: भारत में वििाहों के परं परागत रूप जैसे कक बहुवििाह, बहुपत्नी
वििाह अकद विवधक रूप से प्रवतबंवधत कर कदए गए हैं। िततमान में एकपत्नी वििाह ही ऄवधक
प्रचवलत है।

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 वििाह की अयु में पररिततन: विवधक मानकों के ऄनुसार लड़के और लड़ककयों हेतु वििाह योग्य
अयु क्रमशः 21 और 18 िषत वनधातररत की गइ है। वििाह की औसत अयु में िृवि कर दी गइ है
तथा यौिनारम्भ (pre-puberty) के दौरान होने िाले वििाहों का स्थान यौिनािस्था के पिात्
(post-puberty) होने िाले वििाहों ने ग्रहण कर वलया है।
 तलाक एिं पररत्याग की दरों में िृवि: तलाक हेतु वशवथल विधायी प्रािधानों ने िास्तविक रूप से,
विशेष रूप से शहरों में, वििाह के स्थावयत्ि को प्रभावित ककया है। आसके मुख्य कारण अर्मथक
समृवि तथा आं टरनेट कनेवक्टविटी हैं। आं टरनेट ने लोगों को सम्पूणत विश्व में प्रचवलत विवभन्न
सामावजक प्रिृवत्तयों की ओर ईन्मुख ककया है तथा ईनसे वभन्न, एक रूकढ़िादी भारतीय समाज में
विद्यमान वििाह संस्था को क्रांवतकारी रूप से पररिर्मतत कर कदया है।
 वलि-आन ररलेशनवशप: भारत में विशेषत: महानगरों में युिाओं के मध्य आस प्रकार के संबंधों में
वनरं तर िृवि हो रही है। वलि आन ररलेशनवशप को विवधक रूप से भी मान्यता प्राप्त है क्योंकक
2010 में ईच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह माना था कक एक पुरुष और
मवहला का वििाह के वबना एक साथ रहना ऄपराध के रूप में स्िीकार नहीं ककया जा सकता तथा
यह भी वनणतय कदया कक आस प्रकार एक साथ रहना जीिन एिं स्ितंत्रता के ऄवधकार (ऄनुच्छेद
21) के तहत एक मौवलक ऄवधकार है। ईच्चतम न्यायालय ने यह भी स्िीकार ककया कक ऐसे संबंधों
से ईत्पन्न सन्तान िैध है तथा वहन्दू वििाह ऄवधवनयम,1955 के धारा 16 के तहत ईसे ऄपने
माता-वपता की सम्पवत्त पर ऄवधकार प्राप्त होगा।

3.3.3. भारतीय समाज में पररिार

(Family in Indian Society)


 पररिार, समाज की मूल आकाइ है। यह प्रथम और सबसे वनकटतम सामावजक पररिेश होता है,
वजसमें एक बच्चा ऄपना जीिन प्रारम्भ करता है। ऄपनी बाल्यािस्था में, एक बच्चा पररिार में ही
भाषा, व्यिहार प्रवतरूपों तथा सामावजक मानदंडों को सीखता है।
 पररिार एक ऐसा समूह है जो ककसी न ककसी रूप में साितभौवमक रूप से पाया जाता है। यह
जनजातीय, ग्रामीण और नगरीय समुदायों तथा सभी धार्ममक एिं सांस्कृ वतक ऄनुयावययों के मध्य
विद्यमान होता है। साथ ही यह ककसी न ककसी रूप में ऄत्यंत स्थायी संबंध ईपलधध कराता है।
पररिार की विशेषताएं

 पररिार एक मूलभूत, वनवित तथा स्थायी समूह होता है।


 पररिार, पवत और पत्नी (जो संतानोत्पवत्त करते हैं) के ऄपेक्षाकृ त स्थायी साहचयत द्वारा वनर्ममत
होता है।
 एक पररिार पवत-पत्नी या के िल वपता और ईसके बच्चों ऄथिा के िल माता और ईसके बच्चों तक
सीवमत हो सकता है।
 सामान्य रूप से पररिार ऄन्य सामावजक समूहों, संगठनों तथा संस्थाओं से अकार में छोटा होता
है।
 पररिार अकार में बड़ा भी हो सकता है वजसमें कइ पीकढ़यों से संबंवधत व्यवि एक साथ रह सकते
हैं।
पररिारों के प्रकार
1. वििाह के अधार पर :

 बहुवििाही (Polygamous) पररिारों को ऐसे पररिारों के रूप में िर्मणत ककया जा सकता है
वजसमें पवत या पत्नी को एक साथ एक से ऄवधक पवत या पत्नी रखने की ऄनुमवत होती है।
 एक पत्नीक (Monogamous) पररिार िे पररिार होते हैं जहाँ वििाह के िल एक जीिनसाथी
तक ही सीवमत होता है।

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2. अिास के अधार पर :

 वपतृस्थान (Patrilocal) पररिार: ऐसे पररिारों में लड़की वििाह के पिात् ऄपने पवत के पररिार
के साथ रहती है। वपतृस्थान पररिार स्िभाि में वपतृसत्तात्मक और वपतृिंशीय भी होता है।
 मातृस्थान (Matrilocal) पररिार: ऐसे पररिारों में लड़का वििाह के पिात् ऄपनी पत्नी के
पररिार के साथ रहता है। यह के िल वपतृस्थान पररिार के विपरीत है। आस प्रकार के पररिार
स्िभाि में मातृसत्तात्मक तथा मातृिंशीय भी होते हैं।
 वद्वस्थान (Bilocal) पररिार: आस प्रकार के पररिारों में वििावहत दम्पवत ऄपने वनिासों में
िैकवल्पक रूप से पररिततन लाते हैं। कभी पत्नी पवत के पररिार में रहती है तो कभी पवत पत्नी के
पररिार में रहता है। आसी कारण आस प्रकार के पररिार बदलते अिासों के पररिार भी कहलाते हैं।
 निस्थान (Neolocal) पररिार: वििाह के पिात् जब एक नि वििावहत दम्पवत ऄपने
ऄवभभािकों से स्ितंत्र एक नए पररिार की स्थापना करते हैं तथा एक नए स्थान पर वनिास करते
हैं तो ऐसा पररिार निस्थान पररिार कहलाता है।
3. अकार और संरचना के अधार पर :
 एकांकी पररिार: आस प्रकार के पररिार में पवत-पत्नी तथा ईनके बच्चे रहते हैं। एकांकी पररिारों का
अकार बहुत छोटा होता है। यह एक स्िायत्त आकाइ है। यहाँ बड़ों का कोइ वनयंत्रण नहीं होता
क्योंकक निवििावहत ऄपने वलए एक पृथक वनिास का सृजन करते हैं जो बड़ों से स्ितंत्र होता है।
आसे प्राथवमक पररिार भी कहते हैं।
 संयिु और विस्तृत पररिार: यह तीन से चार पीकढ़यों को शावमल करता है। यह माता-वपता तथा
ईनके बच्चों के संबंधों का विस्तार है। यह पररिार घवनि रि संबंधों पर अधाररत होता है। यह
वहन्दू समाज के संयुि पररिार की भांवत होता है।
o पररिार का मुवखया ज्येि पुरुष सदस्य होता है। आस पररिार की प्रमुख विशेषताएं होती हैं
यथा- साझा अिास, साझी पाकशाला, साथ-साथ भोजन करना, सम्पवत्त का सहभाजन,
अनुिावनक बन्धनों का वनष्पदान, पारस्पररक दावयत्ि तथा भािनाएं।
o विस्तृत पररिार वपता, माता, ईनके पुत्र और ईनकी पवत्नयों, ऄवििावहत पुवत्रयों, पौत्र-
पौवत्रयों, दादा, दादी, चाचा-चाची, ईनेक बच्चों आत्याकद को सवम्मवलत करता है। आस प्रकार के
पररिार ग्रामीण समुदायों या कृ षक ऄथतव्यिस्थाओं में पाए जाते हैं।
4. प्रावधकार के अधार पर :

 वपतृसत्तात्मक (Patriarchal) पररिार: िह पररिार वजसमें सभी ऄवधकार कु लपवत या वपता के


हाथों में सकें कर्द्त होते हैं वपतृसत्तात्मक पररिार कहलाते हैं। ऄन्य शधदों में आस प्रकार के पररिार में
शवियाँ या प्रावधकार पररिार के ज्येि पुरुष सदस्य के हाथों में वनवहत होते हैं जो तथाकवथत
वपता होता है। िह पररिार के ऄन्य सदस्यों पर वनरपेक्ष शवियों या प्रावधकारों का प्रयोग करता
है। िह पाररिाररक सम्पवत्त का स्िामी भी होता है।
o ईसकी मृत्यु के पिात् पररिार के ज्येि पुत्र को प्रावधकारों का हस्तांतरण हो जाता है। आस
प्रकार के पररिार में िंश परम्परा वपतृिंशीय होती है। पत्नी पवत के पररिार के साथ रहती है।
वहन्दुओं के मध्य संयुि पररिार व्यिस्था वपतृसत्तात्मक पररिार का ईत्तम ईदाहरण है।
 मातृिश
ं ीय (Matriarchal) पररिार: आस प्रकार का पररिार के िल वपतृसत्तात्मक पररिार का
विलोम होता है। आस पररिार में शवि और प्रावधकार पररिार की ज्येि मवहला सदस्य विशेषतया
पत्नी या माता को प्राप्त होते हैं। िह पररिार के ऄन्य सदस्यों पर वनरपेक्ष शवि और प्रावधकार का
प्रयोग करती है। िह सभी पाररिाररक संपवत्तयों की स्िामी होती है। ऐसे पररिार में िंश परम्परा
माता के माध्यम से जानी जाती है।
o प्रभार माता से ज्येि पुत्री को हस्तांतररत हो जाता है। एक मातृसत्तात्मक पररिार में पवत
पत्नी के ऄधीनस्थ रहता है। आस प्रकार के पररिार के रल के नायरों तथा ऄसम की गारो तथा
खासी जनजावतयों में पाए जाते हैं।

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5. िंश परम्परा के अधार पर :

 वपतृिश
ं ीय (Patrilineal) पररिार: िह पररिार वजसमें िंश परम्परा या िंशािली वपता िंश के
माध्यम से वनधातररत होती है तथा वपता के माध्यम से ही जारी रहती है वपतृ िंशीय पररिार
कहलाता है। सम्पवत्त और पररिार का नाम भी वपता िंश के माध्यम से दायागत होते हैं।
वपतृिंशीय पररिार स्िभाि में वपतृस्थावनक तथा वपतृसत्तात्मक होता है।
 मातृिश
ं ीय (Matrilineal) पररिार: मातृिंशीय पररिार मात्र वपतृिंशीय पररिार का विलोम
होता है। िह पररिार वजसमें िंश परम्परा या िंशािली मातृ िंश के माध्यम से वनधातररत होती है
तथा माता के माध्यम से ही जारी रहती है मातृिंशीय पररिार कहलाता है। सम्पवत्त और पररिार
का नाम भी मातृ िंश के माध्यम से दायागत होते हैं। ये ऄवधकार माता से पुत्री को हस्तांतररत
होते हैं। एक मवहला ही पररिार की पूिज त होती है। मातृिंशीय पररिार स्िभाि में मातृस्थावनक
तथा मातृसत्तात्मक होता है। आस प्रकार के पररिार के रल के नायरों तथा ऄसम की गारो तथा
खासी जनजावतयों में पाए जाते हैं।
पररिार के कायत
प्राथवमक कायत- पररिार के स्थायी ऄवस्तत्ि हेतु आसके कु छ मूलभूत कायत होते हैं:
o संतानोत्पवत्त एिं ईनका पालन-पोषण।
o घर का प्रबंधन करना।
o सांस्कृ वतक हस्तांतरण का साधन।
o समाजीकरण का ऄवभकतात।
o प्रवस्थवत वनधातरण संबंधी कायत।
वद्वतीयक कायत
o अर्मथक कायत: अर्मथक प्रगवत के साथ पररिार एक ईत्पादक की तुलना में ईपभोग आकाइ
ऄवधक बन गया है। पररिार के सदस्य, आसके सामावजक-अर्मथक कल्याण हेतु अय ऄजतन में
संलग्न रहते हैं।
o शैक्षवणक कायत: पररिार, बच्चे की औपचाररक वशक्षा हेतु अधार प्रदान करता है। प्रमुख
पररिततनों के बािजूद पररिार ऄभी भी बच्चे को सामावजक ऄवभिृवत्त एिं व्यिहार हेतु
मूलभूत प्रवशक्षण प्रदान करता है। यह प्रवशक्षण सामावजक जीिन में एक ियस्क के रूप में
ईसकी सहभावगता हेतु महत्िपूणत होता है।
o धार्ममक कायत: पररिार, बच्चों के धार्ममक प्रवशक्षण का एक कें र्द् है। बच्चे ऄपने माता-वपता से
विवभन्न धार्ममक सद्गुणों को सीखते हैं।
o मनोरं जनात्मक कायत: पररिार, ऄवभभािकों और बच्चों को विवभन्न मनोरं जन संबंधी
गवतविवधयों जैसे कक घरे लू खेलों, नृत्य, गायन, पठन आत्याकद में भाग लेने हेतु ऄिसर प्रदान
करता है।
भारतीय पररिार प्रणाली में संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन
(Structural and functional changes in the Indian family system)
अधुवनक प्रौद्योवगकी के साथ औद्योवगक सभ्यता के ईद्भि ने भारतीय पररिार प्रणाली में वनरं तर
संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन ककए हैं। िततमान में पररिार की ऄवधकांश पारं पररक
गवतविवधयों को बाह्य संस्थाओं को स्थानांतररत कर कदया गया है; यह ईन संबंधों को और ऄवधक
कमजोर बना देता है जो ऄतीत में पररिार को एक साथ बांधे रखते थे। आसके साथ ही पररिार के
शैवक्षक, मनोरं जक, धार्ममक और सुरक्षात्मक कायों में कमी अइ है, वजन्हें आस ईद्देश्य के वलए वनर्ममत
विवभन्न संस्थाओं ने करना प्रारम्भ कर कदया है।
भारतीय पररिार प्रणाली में होने िाले कु छ प्रमुख पररिततन वनम्नवलवखत हैं:
o पररिार में पररिततन: पररिार जो ईत्पादन की एक प्रमुख आकाइ थी, िह ईपभोग की आकाइ
के रूप में पररिर्मतत हो गइ है। पररिार के सभी सदस्यों द्वारा ककसी एकीकृ त अर्मथक ईद्यम में
एक साथ कायत ककये जाने के स्थान पर, ऄब सामान्यतः के िल कु छ पुरुष सदस्य पररिार हेतु

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अजीविका ऄर्मजत करने के वलए घर से बाहर कायत करते हैं। आन कारकों ने पाररिाररक संबंधों
को प्रभावित ककया है।
o कारखानों से संबवं धत रोजगार: आसने नि ियस्कों की ऄपने पररिारों पर प्रत्यक्ष वनभतरता को
कम ककया है। नि ियस्कों की आस कायातत्मक स्ितंत्रता ने अय ऄर्मजत करने िाले सदस्यों पर
घर के मुवखया के प्रभुत्ि को कमजोर बना कदया है। कइ शहरों में पुरुषों के साथ-साथ
मवहलाएं भी घर के बाहर कायत कर रही हैं।
o नगरीकरण का प्रभाि: विवभन्न समाजशावत्रिययों के ऄनुसार बड़े संयुि पररिारों की तुलना में
छोटे एकल पररिारों के वलए शहरी जीिन ऄवधक ऄनुकूल होता है। आस प्रकार, शहरी जीिन
संयुि पररिार व्यिस्था को कमजोर करता है और एकल पररिार व्यिस्था को सुदढ़ृ बनाता
है।
o िैधावनक ईपाय: बाल वििाह वनषेध ऄवधवनयम,1929 और हहदू वििाह ऄवधवनयम,1955
द्वारा कम अयु में वििाह का वनषेध और वििाह की न्यूनतम अयु का वनधातरण करने से वशक्षा
की ऄिवध में िृवि हुइ है। आसके ऄवतररि विधिा पुनर्मििाह ऄवधवनयम, 1856, हहदू वििाह
ऄवधवनयम,1955 तथा हहदू ईत्तरावधकार ऄवधवनयम,1956 जैसे ऄन्य कानूनों से भी पररिार
के भीतर ऄंतिैयविक संबंधों, पररिार की संरचना तथा संयुि पररिारों में स्थावयत्ि अकद में
पररिततन हुए हैं।
o वििाह प्रणाली में पररिततन: वििाह की अयु में पररिततन, जीिन साथी के चयन की स्ितंत्रता
और वििाह के प्रवत दृवष्टकोण में पररिततन हुअ है। ऄब वििाह को धार्ममक कततव्य के स्थान पर
सामावजक समारोह माना जाता है। अधुवनक वििाहों के ऄंतगतत ऄन्य सदस्यों पर पररिार के
मुवखया के प्रभुत्ि को महत्ि प्रदान नहीं ककया जाता है।
o पविमी मूल्यों का प्रभाि: अधुवनक विज्ञान, तकत िाद, व्यवििाद, समानता, स्ितन्त्र जीिन,
लोकतंत्र, मवहलाओं की स्ितंत्रता अकद से संबंवधत मूल्यों ने भारत में संयुि पररिार प्रणाली
में अियतजनक रूप से पररिततन ककये हैं।
o मवहलाओं की प्रवस्थवत में पररिततन: भारतीय समाज में मवहलाओं की वस्थवत में पररिततन का
मुख्य कारक मवहलाओं की पररिर्मतत अर्मथक भूवमका है। मवहलाओं की नइ अर्मथक भूवमका ने
समाज में ईन्हें पुरुषों के समान एक नइ प्रवस्थवत प्रदान की है।
िततमान वस्थवत
विगत कु छ िषों में, विवभन्न समाजशावत्रिययों ने ऄपने ऄध्ययनों में पुवष्ट की है कक बढ़ते हुए
नगरीकरण के साथ-साथ एकल पररिारों (वजसमें एक दम्पवत्त और ईनके ऄवििावहत बच्चे
शावमल होते हैं) की संख्या तीव्र गवत से बढ़ रही है।
2001 की जनगणना के ऄनुसार, 19.31 करोड़ पररिारों में से 9.98 करोड़ (51.7%) एकल
पररिार थे। 2011 की जनगणना में, एकल पररिारों की संख्या में िृवि हुइ है, यह भाग
बढ़कर 24.18 करोड़ पररिारों में से 12.97 करोड़ (52.1%) हो गया। हालांकक, नगरीय
क्षेत्रों में एकल पररिारों के अनुपावतक वहस्से में वगरािट हुइ है। नगरीय पररिारों में एकल
पररिारों का प्रवतशत 54.3% (2001 में) से घटकर कु ल नगरीय पररिारों का 52.3% रह
गया है। आसके विपरीत, ग्रामीण क्षेत्रों में एकल पररिारों का भाग 50.7% से बढ़कर 52.1%
हो गया है।
आस ऄिवध में संयुि पररिारों का वहस्सा सम्पूणत भारत में 19.1% (3.69 करोड़) से घटकर
16.1% (4 करोड़) हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह वगरािट (20.1% से 16.8%) नगरीय
क्षेत्रों की तुलना (16.5% से 14.6% ) में ऄवधक तीव्र थी। नगरीय पररिारों में एकल
पररिारों के घटते हुए भाग का कारण नगरों में अिास की कमी के साथ-साथ बढ़ते प्रिासन
को माना जाता है।

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3.4. भारत में विविधता

(Diversity In India)
भारत सैिावन्तक और व्यािहाररक, दोनों रूपों में एक बहुल समाज है। ऄपनी एकता और विविधता के
वलए पहचाना जाना आसके वलए ईपयुि ही है। विवभन्न जावतयों और समुदायों के लोगों की संस्कृ वतयों,
धमों और भाषाओं के व्यापक समन्िय ने कइ विदेशी अक्रमणों के बािजूद आसकी एकता और सामंजस्य
को बनाए रखा है।
यहाँ भारी अर्मथक और सामावजक ऄसमानताओं द्वारा समतािादी सामावजक संबंधों के ईद्भि में बाधा
ईत्पन्न ककए जाने के बािजूद, राष्ट्रीय एकता और ऄखंडता सशि रूप से स्थावपत है। आस समन्िय ने
भारत को विवभन्न संस्कृ वतयों का एक ऄवद्वतीय गढ़ बना कदया है। आस प्रकार, भारत समग्र रूप से एक
एकीकृ त सांस्कृ वतक ढांचे के ऄंतगतत बहुसांस्कृ वतक वस्थवत को प्रदर्मशत करता है।
विविधता में एकता का िास्तविक अशय "एकरूपता के वबना एकता" और "विखंडन के वबना
विविधता" से है। यह आस धारणा पर अधाररत है कक विविधता मानिीय ऄंतःकक्रया को समृि बनाती
है।
'विविधता' शधद ऄसमानताओं के बजाय वभन्नता (differences) पर बल देता है। आसका तात्पयत
सामूवहक वभन्नता से है, ऄथातत ऐसे ऄंतर जो ककसी एक समूह के लोगों को ककसी दूसरे समूह से ऄलग
करते हैं। यह वभन्नता जैविक, धार्ममक, भाषाइ अकद ककसी भी प्रकार की हो सकती है। आस प्रकार,
विविधता का ऄवभप्राय नृजावतयों, धमों, भाषाओं, जावतयों और संस्कृ वतयों की विविधता से है।
एकता का अशय एकीकरण से है। यह एक सामावजक मनोिैज्ञावनक वस्थवत है। यह ‘एकत्ि’ तथा ‘हम’
की भािना को प्रदर्मशत करती है। आसका तात्पयत ईस ऄपनेपन से है, जो ककसी समाज के सदस्यों को एक
साथ बांधे रखता है।
विविधता में एकता का ऄथत ऄवनिायत रूप से "समानता के वबना एकता" और "विखंडन के वबना
विविधता" है। यह आस धारणा पर अधाररत है कक विविधता मानि ऄंतर्कक्रया को समृि करती है।
जब हम कहते हैं कक भारत एक महान सांस्कृ वतक विविधता िाला देश है तो आसका तात्पयत यह होता है
कक यहाँ ऄनेक प्रकार के सामावजक समूह और समुदाय वनिास करते हैं। आन समुदायों को आनके
सांस्कृ वतक प्रतीकों जैस,े भाषा, धमत, पंथ, प्रजावत या जावत के अधार पर पररभावषत ककया जाता है।

3.4.1. भारत में विविधता के विवभन्न रूप

(Various forms of diversity in India)


 धार्ममक विविधता: भारत विवभन्न धमों की भूवम है। जीिात्मिाद (animism) और जादू-टोने की
पूि-त धार्ममक ऄिस्था में रहने िाले जनजातीय समाजों के ऄवतररि, भारतीय जनसंख्या में वहन्दू
(79.8%), मुवस्लम (14.2%), इसाइ (2.3%), वसख (1.7%), बौि (0.7%) और जैन (0.4%)
धमत के ऄनुयायी शावमल हैं। वहन्दू िैष्णि, शैि, शाि, स्मातत जैसे कइ संप्रदायों में विभावजत हैं।
आसी प्रकार, मुवस्लम वशया, सुन्नी, ऄहमकदया अकद संप्रदायों में विभावजत हैं।
 भाषाइ विविधता: भारत में बोली जाने िाली भाषाएं विवभन्न भाषाइ पररिारों से संबंवधत हैं।
यहाँ 75% भारतीयों द्वारा आं डो-अयतन भाषाएँ तथा 20% भारतीयों द्वारा र्द्विड़ भाषाएँ बोली
जाती हैं। ऄन्य भाषाएं ऑस्रो-एवशयाइ, साआनो-वतधबतन, ताइ-कादाइ और कु छ ऄन्य लघु भाषा
पररिारों एिं एकाकी समूहों से संबंवधत हैं। भाषाओं की संख्या के सन्दभत में भारत का पापुअ न्यू
वगनी के बाद विश्व में दूसरा स्थान है।

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 नृजातीय विविधता: 1931 की जनगणना के तहत भारत की नृजातीय विविधता को वनम्नवलवखत
समूहों में िगीकृ त ककया गया है- वनवग्रटो, प्रोटो-अस्रेलॉयड, मंगोलॉयड, मेवडटेरेवनयन, िेस्टनत
ब्रैवचसफल्स और नॉर्मडक। विश्व की 3 प्रमुख प्रजावतयां ऄथातत् कॉके शॉयड, मंगोलॉयड और
वनग्रॉयड भारत में पायी जाती हैं।
 जातीय विविधता: भारत जावतगत विविधता िाला देश है। जावत शधद का प्रयोग िणत और जावत
दोनों को संदर्मभत करने के वलए ककया जाता रहा है। िणत व्यिस्था में कायातत्मक वभन्नता के अधार
पर समाज को मुख्यतः चार िणों में विभावजत ककया गया है। आन चार िणों में ब्राह्मण, क्षवत्रय,
िैश्य तथा शूर्द् और एक बवहष्कृ त समूह शावमल हैं। जबकक जावत ककसी ऐसे िंशानुगत प्रवस्थवत
समूह को संदर्मभत करती है वजसकी कोइ विवशष्ट परं परागत व्यिसाय िृवत्त हो और ईसमें
ऄंतर्मििाह की परं परा पायी जाती हो। भारत में 3000 से ऄवधक जावतयां हैं तथा क्रम और
प्रवस्थवत के ऄनुसार ईनकी रैं ककग हेतु कोइ ऄवखल भारतीय प्रणाली विद्यमान नहीं है। जावत
व्यिस्था पूणत
त ः स्थैवतक संकल्पना नहीं है और आसमें गवतशीलता विद्यमान है, वजसके माध्यम से
जावतयों ने समय के साथ ऄपनी वस्थवत को पररिर्मतत ककया है। वनम्न जावतयों द्वारा ईच्च जावतयों
की जीिन शैली को ऄपनाकर जावतगत पदानुक्रम में उपर की ओर गवतशील होने की आस प्रकक्रया
को एम. एन. श्रीवनिास ने "संस्कृ वतकरण" कहा है।
 सांस्कृ वतक विविधता: सांस्कृ वतक प्रवतमान क्षेत्रीय विविधता को दशातते हैं। जनसांवख्यकीय
विविधता के कारण भारतीय संस्कृ वत में ऄत्यवधक िैविध्य विद्यमान है। िस्तुतः भारतीय संस्कृ वत
विवभन्न संस्कृ वतयों का वमश्रण है। विवभन्न धमत, जावत और क्षेत्र ऄपनी परं परा एिं संस्कृ वत का
पालन करते हैं। ऄतः, कला, िास्तुवशल्प, नृत्य शैली, नाट्य शैली, संगीत आत्याकद में वभन्नता पाइ
जाती है।
 भौगोवलक विविधता: 3.28 वमवलयन िगत ककलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत, भारत एक विशाल देश
है वजसमें शुष्क मरुस्थल, सदाबहार िन, उंचे पितत, बारहमासी और गैर-बारहमासी नदी
प्रणावलयां, लंबे तट और ईपजाउ मैदानों जैसी भौवतक विशेषताओं की महान विविधता विद्यमान
है।
ईपयुति िर्मणत विविधता के प्रमुख रूपों के ऄवतररि, भारत में कइ ऄन्य प्रकार की विविधता जैसे,
बस्ती प्रवतरूप- जनजातीय, ग्रामीण एिं नगरीय; धार्ममक और क्षेत्रीय अधार पर वभन्न-वभन्न वििाह
और नातेदारी प्रवतरूप आत्याकद पाए जाते हैं।

3.4.2. भारत में विविधता के मध्य एकता बढ़ाने िाले कारक

(Factors leading to unity amidst diversity in India)


 संिध
ै ावनक पहचान: सम्पूणत देश एक ही संविधान द्वारा प्रशावसत ककया जाता है। साथ ही,
ऄवधकांश राज्यों द्वारा सरकार की वत्र-स्तरीय संरचना की एक सामान्यीकृ त योजना का ऄनुसरण
ककया जाता है, जोकक राष्ट्रीय प्रशासवनक संरचना को एकरूपता प्रदान करती है। आसके ऄवतररि,
संविधान सभी नागररकों को, ईनकी अयु, हलग, िगत, जावत, धमत आत्याकद के अधार पर भेदभाि
ककए वबना, कु छ मूल ऄवधकारों की गारं टी प्रदान करता है।
 धार्ममक सह-ऄवस्तत्ि: धार्ममक सवहष्णुता भारत में धमों की ऄवद्वतीय विशेषता है, वजसके कारण
भारत में विवभन्न धमत सह-ऄवस्तत्ि में हैं। संविधान द्वारा ऄंतःकरण की और धमत को ऄबाध रूप से
मानने, ईसका अचरण करने और प्रचार करने की स्ितंत्रता प्रदान की गइ है। आसके ऄवतररि,
राज्य का ऄपना कोइ धमत नहीं है तथा राज्यों द्वारा सभी धमों को समान प्राथवमकता प्रदान की
जाती है।

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 ऄंतरराज्यीय संचरण: संविधान के ऄनुच्छेद 19(1)(d) के तहत नागररकों को भारत के राज्यक्षेत्र
में सितत्र ऄबाध संचरण की स्ितंत्रता है। यह लोगों के मध्य एकता और बंधुत्ि की भािना को
बढ़ािा देता है।
 आसके ऄवतररि विवध का एकसमान प्रारूप, दंड संवहता, प्रशासवनक कायत (ईदाहरणस्िरुप,
ऄवखल भारतीय सेिाएं) जैसे ऄन्य कारक अपरावधक न्याय प्रणाली तथा नीवतयों के कायातन्ियन
अकद सन्दभत में एकरूपता प्रदान करते हैं। आससे देश के विवभन्न भागों में प्रशासवनक एकता
स्थावपत होती है।
 अर्मथक एकीकरण: भारतीय संविधान का ऄनुच्छेद 301 भारत के राज्यक्षेत्र में सितत्र व्यापार,

िावणज्य और समागम की ऄबाध स्ितंत्रता प्रदान करता है। आसके ऄवतररि, िस्तु एिं सेिा कर

(GST) ने 'एक देश, एक कर, एक राष्ट्रीय बाजार' का मागत प्रशस्त ककया है। आस प्रकार यह विवभन्न
क्षेत्रों के मध्य एकता को सुगम बनाता है।
 तीथतयात्रा और धार्ममक प्रथाओं से संबवं धत स्थल: भारत में, धमत और अध्यावत्मकता का ऄत्यवधक

महत्ि है। ईत्तर में बर्द्ीनाथ और के दारनाथ से दवक्षण में रामेश्वरम तक, पूित में जगन्नाथ पुरी से
पविम में द्वारका तक धार्ममक मंकदर एिं पवित्र नकदयां देश भर में विस्तृत हैं। तीथतयात्रा की
पुरातन संस्कृ वत आन स्थलों से वनकटता से संबंवधत है, वजसके कारण लोग हमेशा देश के विवभन्न
भागों की यात्राएं करते रहते हैं। आससे लोगों में भू-सांस्कृ वतक एकता की भािना को बढ़ािा वमलता
है।
 मेले और त्यौहार: मेले और त्यौहार भी एकीकृ त करने िाले कारक के रूप में कायत करते हैं। ये देश
के सभी भागों में लोगों द्वारा ऄपने स्थानीय रीवत-ररिाजों के ऄनुसार मनाये जाते हैं। ईदाहरण के
वलए, दीिाली देश भर में हहदुओं द्वारा मनाइ जाती है, आसी प्रकार मुवस्लम और इसाइयों द्वारा
क्रमशः इद और कक्रसमस मनाया जाता है। भारत में ऄंतर-धार्ममक त्यौहार भी मनाए जाते हैं।
 मानसून के माध्यम से जलिायिीय एकीकरण: सम्पूणत भारतीय ईपमहाद्वीप में जीि एिं
िनस्पवतयाँ, कृ वष प्रथाएँ, लोगों का जीिन एिं ईनके त्यौहार भारत के मानसून काल पर के वन्र्द्त
हैं।
 खेल और वसनेमा: देश के करोड़ों लोगों आनमें रुवच रखते हैं और आस प्रकार ये सम्पूणत देश को जोड़ने
का कायत करते हैं।

3.4.3. भारत की एकता के समक्ष खतरा ईत्पन्न करने िाले कारक

(Factors that threaten India’s unity)


 क्षेत्रिाद: क्षेत्रिाद से तात्पयत राष्ट्रीय वहतों पर ककसी विशेष क्षेत्र/क्षेत्रों के वहतों को िरीयता प्रदान
करना है। आसका राष्ट्रीय एकीकरण पर प्रवतकू ल प्रभाि हो सकता है। क्षेत्रीय मांगों और ईनके
फलस्िरूप घरटत होने िाले अन्दोलनों के कारण कानून व्यिस्था बावधत होती है।
 विभाजनकारी राजनीवत: कभी-कभी राजनेताओं द्वारा िोट के वलए जावत और धमत जैसी पहचानों
को ईत्तेवजत ककया जाता है। आस प्रकार की विभाजनकारी राजनीवत हहसा तथा ऄल्पसंख्यकों के
मध्य ऄविश्वास और संदह
े की भािना ईत्पन्न कर सकती है।
 ऄसंतवु लत विकास: सामावजक-अर्मथक विकास का ऄसमान प्रवतरूप, ऄपयातप्त अर्मथक नीवतयां
और ईनके फलस्िरूप ईत्पन्न अर्मथक ऄसमानता ककसी क्षेत्र के वपछड़ेपन का कारण बन सकते हैं।
आसके पररणामस्िरूप हहसा, तीव्र गवत से प्रिासन और यहाँ तक कक ऄलगाििाद की मांग में भी

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तीव्रता अ सकती है। ईदाहरण के वलए, पूिोत्तर क्षेत्र के अर्मथक वपछड़ेपन के कारण आस क्षेत्र में
ऄलगाििादी मांगें और पृथकतािादी प्रिृवत्तयाँ ईभरती रही हैं।
 नृजातीय अधार पर भेदभाि और स्थानीयतािाद (nativism): नृजातीय भेदभाि को लेकर प्रायः
विवभन्न नृजातीय समूहों के मध्य संघषत ईत्पन्न होता है। ऐसा विशेष रूप से रोजगार संबंधी
प्रवतस्पिात, सीवमत संसाधनों, पहचान के संकट अकद कारकों के कारण होता है। ईदाहरण के वलए,
ऄसम में बंगाली बोलने िाले मुवस्लमों और बोडो जनजावत के मध्य वनरं तर संघषत जारी है। आसे
भूवम पुत्र के वसिांत (सन ऑफ द सॉआल डॉवक्रन) द्वारा बढ़ािा कदया जाता है। यह वसिांत लोगों
को ईनके जन्म स्थान से जोड़ता है और ईन्हें कु छ ऐसे लाभ, ऄवधकार, भूवमकाएँ एिं ईत्तरदावयत्ि
प्रदान करता है जो ऄन्य लोगों पर लागू नहीं हो सकते हैं।
 भौगोवलक ऄलगाि: भौगोवलक ऄलगाि भी पहचान संबंधी मुद्दों और ऄलगाििादी मांगों का
कारण बन सकता है। पूिोत्तर क्षेत्र देश के शेष भाग से भौगोवलक रूप से पृथक है क्योंकक यह के िल
एक संकीणत गवलयारे ऄथातत् वसलीगुड़ी गवलयारे (वचकन नेक) के माध्यम से देश के शेष भाग से
जुड़ा हुअ है। आस क्षेत्र में ऄपयातप्त ऄिसंरचनात्मक विकास हुअ है और यह क्षेत्र देश के शेष भागों
की ऄपेक्षा अर्मथक रूप से ऄवधक वपछड़ा हुअ है। पररणामस्िरूप, यह क्षेत्र ऄलगाििाद और
सीमा-पार अतंकिाद जैसी विवभन्न समस्याओं से ग्रवसत है।
 ऄंतर-धार्ममक संघषत: ऄंतर-धार्ममक संघषत भय और ऄविश्वास का प्रसार करके न के िल दो समुदायों
के अपसी संबंधों को बावधत करते हैं बवल्क देश के धमतवनरपेक्ष ढांचे को भी नुकसान पहुँचाते हैं।
 ऄंतरराज्यीय संघषत: आससे क्षेत्रिाद से संबंवधत भािनाओं का ईदय हो सकता है। यह परस्पर
विरोधी राज्यों के मध्य व्यापार और संचार को भी प्रभावित कर सकता है। ईदाहरणस्िरुप,
कनातटक और तवमलनाडु के मध्य कािेरी नदी जल वििाद।
 बाह्य कारकों का प्रभाि: कभी-कभी बाह्य कारक यथा विदेशी संगठन, अतंकिादी समूह,
चरमपंथी समूह अकद हहसा को ईत्तेवजत कर सकते हैं और आसके पररणामस्िरूप ऄलगाििाद की
भािना ईत्पन्न हो सकती है। ईदाहरण के वलए, आं टर सर्मिसेज आं टेवलजेंस (ISI) को जम्मू-कश्मीर में
ऄशांवत फै लाने हेतु मुजावहदीन को समथतन और प्रवशक्षण प्रदान करने तथा यहाँ के लोगों के मध्य
ऄलगाििादी प्रिृवत्तयों को बढ़ाने का प्रयास करने में संलग्न पाया गया है।

विविधता से ईत्पन्न चुनौवतयों के बािजूद, भारतीय समाज को बनाए रखने और विकवसत करने में
सामावजक-सांस्कृ वतक विविधता द्वारा वनभाइ गइ भूवमका पर कोइ संदह
े नहीं ककया जा सकता है।

समस्या िास्ति में विविधता नहीं है, बवल्क भारत समाज में विविधता का प्रबंधन है। क्षेत्रिाद,

सांप्रदावयकता, नृजातीय संघषत अकद की समस्याएं ईत्पन्न हुइ हैं क्योंकक विकास का लाभ समान
रूप से वितररत नहीं ककया गया है या कु छ समूहों की संस्कृ वतयों को ईवचत मान्यता प्रदान नहीं की
गइ है।

आसवलए, संविधान और ईसके मूल्यों को हमारे समाज के मागतदशतक वसिांतों का वनमातण करना

चावहए। ककसी भी समाज, वजसने स्ियं को एकरूपता में ढालने का प्रयास ककया है, ने वनवित रूप
से ठहराि देखा है और ऄंततः वगरािट अइ है। आस सन्दभत में सबसे महत्िपूणत ईदाहरण पाककस्तान
का है वजसने पूिी-पाककस्तान पर संस्कृ वत को थोपने का प्रयास ककया और िह ऄंततः बांग्लादेश के
वनमातण का कारण बना।

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4. विगत िषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे
गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. भारत के बहु-सांस्कृ वतक समाज के प्रकाश में, क्या यह कहा जा सकता हैं कक बहु-सांस्कृ वतिाद
और बहुलिाद "विविधता में एकता" एक ही वसक्के के दो पहलू हैं?
दृवष्टकोण:
 सितप्रथम आन दोनों शधदों को समझाआये और ईनके बीच की समानताएं/ऄंतर को स्पष्ट
कीवजए।
 तत्पिात आनका िणतन भारत के विवशष्ट संदभत में कीवजए। ईत्तर देते समय "विविधता में
एकता" के विषय को ध्यान में रवखए।

 अप आस कथन के या तो पक्ष में या विपक्ष में तकत दे सकते हैं,ऄथातत िे एक ही वसक्के के दो


पहलू हैं या पूरी तरह वभन्न हैं .. हालांकक,आन दोनों दृवष्टकोण को तार्ककक और सुसंगत तकों के
साथ समर्मथत करने की अिश्यकता है। आस कथन के विरुि तकत देने से पूित ,अप प्रदर्मशत करें
कक बहुसंस्कृ वतिाद बहुलिाद से वभन्न कै से है और कै से आसकी (बहुसंस्कृ वतिाद) कु छ
वििेचनाओं की ऄपनी पररभाषा में से बहुलिाद लुप्त हो चुका है। आसके पक्ष में तकत देते समय
अप कदखाआए कक दोनों ईद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयास में दोनों ऄवनिायत रूप से एक समान
कै से हैं। वनम्नवलवखत ईत्तर परिती दृवष्टकोण की वििेचना करता है।
ईत्तर :
सितप्रथम हम बहुलिाद और बहुसंस्कृ वतिाद के बीच समानता और ऄंतर को देखेंगे :

बहुलिाद बहुसंस्कृ वतिाद

साितजवनक क्षेत्र लोक जीिन में सभी व्यवियों के साितजवनक क्षेत्र सांस्कृ वतक रूप
साथ (वनष्पक्ष रूप में) एकसमान से तटस्थ नहीं होता है।
व्यिहार ककया जाता है। साितजवनक क्षेत्र सांस्कृ वतक
ऄंतर्कक्रया का क्षेत्र है। ऐसा कोइ
भी समूह हािी नहीं हो सकता
जो ऄन्य सांस्कृ वतक समूहों को
सवम्मवलत नहीं करता हो।
सांस्कृ वतक विविधता विवभन्न सांस्कृ वतक क्षेत्र में विवभन्न संस्कृ वतयों को
विवभन्न संस्कृ वतयों को ऄनुमवत प्रोत्साहन कदया जाता है।
प्राप्त है, परन्तु समाज िैकवल्पक व्यवियों को समूह का वहस्सा
सांस्कृ वतक रूपों को स्िीकृ त या माना जाता है जो ईनके जीिन
समथतन देने के वलए बाध्य नहीं है। को ऄथत प्रदान करता हैं।
बहुसंस्कृ वतिाद आन सामूहों का
आस प्रकार, बहुलिाद भी
समथतन विवभन्न तरीकों से करने
सांस्कृ वतक गठन के विघटन की
का प्रयास करता है।
ऄनुमवत देता है
प्रमुख वसिांत 1. ऄिसर की समानता 1. संबिता

2. संघ बनाने की स्ितंत्रता 2. सांस्कृ वतक पहचान

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भारत की बहुसंस्कृ वतिाद की सफलता के विषय में बहुत कु छ कहा गया है। भारत में सभी धमत और
संप्रदाय हहदू, मुवस्लम, वसख, इसाइ, जैन, बौि, पारसी अकद जीिंत समुदाय है जो सभी अपस में
वमवश्रत हो चुके हैं और आन्होंने भारत की प्रगवत में ऄपना योगदान कदया है। सांस्कृ वतक, धार्ममक और
भाषाइ विविधता के अधार पर हम दुवनया के विविधतम देशों में से एक हैं। और यह विविधता मुख्य
रूप से हमारी विशाल भौगोवलक सीमा और वनरं तर होने िाले िैवश्वक प्रिासन का ऊणी है।
एक राष्ट्र के वलए विविध सामावजक-सांस्कृ वतक वस्थवतयों में एकता और विविधता या एकता के प्रबंधन
के बीच संतल
ु न को बनाए रखना, हमेशा एक चुनौती का विषय रहता है। बहुलिाद और
बहुसांस्कृ वतिाद आन दो तरीकों से एक साथ आस समस्या को प्रबंवधत ककया जा सकता हैं।
भारत में, बहुलिाद सांस्कृ वतक विविधता का िास्तविक िणतन करता है। यह एक ऐसे समाज के वनमातण
का प्रयास करता है वजसमें सभी वनविवष्टयां वनरं तर एकीकृ त हो। यह कइ ऄलग-ऄलग समूहों को बनाने
की ऄनुमवत देता है परन्तु ईन सभी पर एक समान शतत अरोवपत करने की कोवशश नहीं करता है।
िही ँ दूसरी ओर, बहुसंस्कृ वतिाद का ऄथत है कक ऄन्य संस्कृ वतयों और विश्वासों के प्रवत सम्मान और
सवहष्णुता कदखाना। आसके अधार पर सभी ऄल्पसंख्को का महत्ि बहुसंख्यको के मूल्यों के बराबर रहता
है। यह जीिन के सभी क्षेत्रों में विवभन्न पहचानों को सुवनवित करने की ऄनुमवत प्रदान करता है।
भारतीय संविधान द्वारा भी आस प्रकार के संरक्षण हेतु मौवलक ऄवधकार प्रदान ककया गया है।
राज्यों के भाषाइ पुनगतठन, राजनीवतक प्रवतवनवधत्ि, ऄल्पसंख्यको से संबंवधत ऄवधकारों, स्िदेशी
ऄवधकारों, हहदी विरोधी अंदोलन अकद विविधता के दािों को आनके माध्यम से देखा जा सकता है। आन
दािों ने अंकलन से संबंवधत नए अयाम को प्रस्तुत ककया है जहां ककसी राष्ट्र राज्य में विवभन्न समुदायों
को स्ियं से संबंवधत स्थान की प्रावप्त होती हैं। विविधता से पररपूणत राष्ट्र के वनमातण में कोइ समुदाय
पीछे नहीं हटेगा। बहुसंस्कृ वतिाद और बहुलिाद वस्थरता हेतु एक नया प्रवतमान प्रदान करता है जो देश
की एकता और ऄखंडता को बनाने में मदद करता है।
आस प्रकार ईपयुति चचात के अधार पर हम कह सकते हैं कक बहुलिाद ककसी भी प्रकार की ऄनेकता हेतु
ऄवधक सामान्य शधद है, जबकक बहुसंस्कृ वतिाद सामान्य रूप से समाज में विविधता और विषमता को
बनाए रखने और सामंजस्य बनाने हेतु बहुलता के सकक्रय रूप से ऄनुप्रयोग को दशातता है।

2. क्या भारत की भाषायी विविधता राष्ट्रीय ऄखंडता के वलए चुनौती है?


दृवष्टकोणः
 भाषायी विविधता की प्रकृ वत का संवक्षप्त िणतन कीवजए।
 आसके बाद ईन समस्याओं का िणतन कीवजए, वजनका आस विविधता के कारण से सामना
करना पड़ सकता है।
 ऄंत में एक सकारात्मक रटप्पणी के साथ प्रश्न का वनष्कषत वलखें कक आतनी भाषायी विविधता
के बािजूद भी भारत एक है।
ईत्तरः
भारत में भाषायी विविधता की प्रकृ वतः
भारत में विवभन्न समूहों द्वारा 200 से ऄवधक भाषाएं बोली जाती हैं। भारत में भाषायी
बहुिाद है। आसमें समीपस्थ स्थानों में ऄनेक भाषाएं पारस्पररक सहऄवस्तत्ि के साथ विद्यमान
हैं। भाषाओं की ऄनेकता के कारण आवतहास में कइ भाषायी समस्याएंँँ खड़ी हुइ हैं। ये
समस्याएं है- (i) भारत में राज्यों का भाषा के अधार पर पुनगतठन, (ii)राज्यों में ऄल्पसंख्यक
भाषाओं की वस्थवत (iii) राजभाषा का मुद्दा।
भाषायी समस्याऐं ि राष्ट्रीय ऄखंडताः
 राज्यों का भाषा के अधार पर पुनगतठन, प्रारं भ में प्रशासवनक सुविधाओं को ध्यान में
रखकर ककया गया था। यह भारत में राष्ट्रीय एकता को वबना नुकसान पहुँचाये विवभन्न
भाषायी समूहों की अंकाक्षाओं को संतुष्ट करने में सहायक हुइ।

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 विवभन्न राज्यों में भाषायी ऄल्पसंख्यकों के विरूि भेदभािपूणत व्यिहार ऄथिा नीवतयाँ
दीघतकाल में राष्ट्रीय ऄखण्डता के वलए खतरा ईत्पन्न कर सकती है। भाषायी ऄल्पसंख्यक
के विरूि पक्षपातपूणत व्यिहार ‘ऄलगाििाद’ को ईत्पन्न कर सकता है। जैसे - ऄसम में
बांग्ला भाषी लोग, अन्र प्रदेश में कन्नड ि मलयालम भाषी लोग के साथ, संविधान में
ऄनुच्छेद 29, 30, 347, 350 में भाषायी ऄल्पसंख्यकों के वहतों की सुरक्षा के वलए कइ
प्रािधान ककये गये हैं।
 वहन्दी तथा ऄंग्रज
े ी, संघ की राजभाषा है। राज्यों में क्षेत्रीय भाषाएं भी राजभाषा हैं।
1960 के दशक में दवक्षणी राज्यों (र्द्विड़ पररिार की भाषाएं बोलने िाले राज्यों) में
“वहन्दी विरोधी” अंदोलन ककये गये। वहन्दी के “राष्ट्रीय भाषा” बन जाने का भय ईत्पन्न
ककया गया वजसके कारण ऄंग्रज े ी को राजभाषा के रूप में जारी रखा गया। शैक्षवणक
पाठ्यक्रमों में विवभन्न भाषाओं को जगह देने के वलए वत्रभाषा सूत्र को बनाया गया।
भाषायी एकता ि राष्ट्रीय ऄखंडताः
 कफर भी भाषायी विजातीयता हमेशा राष्ट्रीय एकता के वलए घातक नहीं होती है।
भाषायी विविधता के साथ-साथ एक भाषा है, वजसमें ‘ऄवखल भारतीय सामान्य
शधदकोष’ का विकास हुअ है, जैस-े संस्कृ त, वजसने न के िल भारतीय-अयत भाषाओं के
बीच में बवल्क अयत ि र्द्विड भाषाओं के मध्य भी सेतु का कायत ककया है। जैसे- िततमान
समय में “हहवग्लश” जो कक वहन्दी ि ऄन्य भारतीय भाषाओं का ऄंगेजी भाषा के साथ
वमश्रण (घालमेल) है।
 मुख्यधारा के वसनेमा “बालीिुड” ने की ऄवखल भारतीय सामान्य शधदकोष के विकास में
काफी योगदान कदया है।
 ऄनेक महाकाव्य ि काल्पवनक ि ऄकाल्पवनक सावहत्य की लोकवप्रयता के कारण ऄनेक
भाषाओं में ईनका ऄनुिाद हुअ है, आसने भी भारत में भाषायी एकता में योगदान कदया
है।

3. भारत की एकता में ऄनेकता की व्याख्या कीवजए। लोगों के सामावजक सांस्कृ वतक जीिन के
अधार पर आसकी व्याख्या कीवजए।
दृवष्टकोणः
 भारत धमत, जावत, भाषा, संस्कृ वत, विरासत आत्याकद में व्यापक विविधता िाला एक वमवश्रत
समाज ककस प्रकार है बताआए।
 प्रत्येक से संबंवधत कु छ ईदाहरण दीवजए।
ईत्तर:
भारत की एकता में ऄनेकता
भारत की एकता में ऄनेकता वमवश्रत -नृजातीय िगों के ऄवस्तत्ि, नस्लीय, धार्ममक और
भाषाइ संस्कृ वत का पूरे भारत में एक साथ, आसके ऄवस्तत्ि को प्रदर्मशत करता है।
भारत के राष्ट्र राज्य की भू-राजनीवतक संकल्पना यह सूवचत करती है की ऄपने एकीकृ त साँचे
के भीतर कइ विविध संस्कृ वतयों को शावमल ककया गया है।
भारत के लोगों की सामावजक -सांस्कृ वतक जीिन के ईदाहरणों से ‘एकता में विविधता’ का
परीक्षण वनम्नवलवखत रूप से रे खांककत ककया जा सकता है।
भारतीय त्यौहार पूरे विश्व में ऄपनी जीिंतता के वलए जाने जाते हैं। आसमें सबसे महत्िपूणत
ईदाहरण, कदिाली का त्यौहार है वजसे सभी के द्वारा मनाया जाता है। हालांकक, विवभन्न धमों
और क्षेत्रीय समुदायों में ईत्सि का ऄथत और आससे संबंवधत रस्मों-ररिाज बदलते रहते हैं।

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स्थापत्य - संबंधी विरासत भारत के ऐवतहावसक ऄतीत और मवहमा का प्रतीक है। ताजमहल
सभी लोगों के बीच प्यार और समपतण के प्रतीक के रूप में प्रवसि है। बड़े स्तर पर, आस तरह
के विरासत स्मारकों का दौरा करने िाली विवभन्न संस्कृ वतयों के लोगों को देखना; ईनके द्वारा
ऄपनी सामान्य विरासत के रूप में आसे स्िीकार करना अनंकदत करता है।
बहुराष्ट्रीय वनगमों (multi-national corporations) द्वारा िैश्वीकरण के माध्यम से भारत में
एक नइ 'विश्वव्यापी' संस्कृ वत लाइ गइ है; ये कं पवनयां विवभन्न जावतयों और िगों के लोगों को
रोजगार प्रदान करती हैं, वजससे एक विविध लेककन एकीकृ त िातािरण का वनमातण हुअ हैं।
भारत में पदानुक्रम प्रणाली के रूप में जावत व्यिस्था समाज का एक प्रमुख ऄंग है। यह
प्रणाली ऄपने भीतर विवभन्न जावतयों, समुदायों और धमों के लोगों को समावहत करती है।
‘वपतृसत्ता' भारत में प्रचवलत सामावजक मूल्य का एक और अयाम है, जो सम्पूणत देश के
सामावजक जीिन में व्याप्त है।
कक्रके ट और बॉलीिुड जैसी लोकवप्रय घटनाएं ऐसी है, वजनको विवभन्न संस्कृ वतयों द्वारा ईत्साह
से देखा जाता हैं। आं वडयन प्रीवमयर लीग आसका एक ऄच्छा ईदाहरण है।

4. लोकतांवत्रक संस्थाओं ने भारत की जावतगत सरं चना में पररिततन ककये हैं, परन्तु आन
पररिततनों ने वपछड़ी जावतयों के वलए के िल अंवशक पुनर्मितरक के रूप में ही पररणाम ही
कदए हैं। चचात करें ।
दृवष्टकोण:
संक्षेप में जावत-संरचना की पररभाषा देते हुए ईत्तर अरं भ करें । तत्पिात पररिततनों की
विस्तृत व्याख्या करते हुए जावत संरचना में पररिततन लाने िाले कारणों पर प्रकाश डालें।
आसके ऄवतररि, आस प्रकार के पररिततनों के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को दशातते
हुए तदनुसार ईत्तर का समापन करें ।
ईत्तर:
एक सामावजक संस्था के रूप में जावत, ऐवतहावसक स्तर पर ऄवस्तत्ि में बनी रही है तथा आसे
विवभन्न सामावजक समूहों के बीच श्रेणीक्रम में विभावजत करने िाले संबंधों के रूप में वचवत्रत
ककया गया है। यद्यवप सामावजक क्रम को श्रेणीक्रम में बांटने िाली यह प्रकृ वत संविधान में
स्थावपत तथा अंबेडकर के शधदों “एक व्यवि एक मत तथा एक मत एक मूल्य” में ऄवभज्ञात
स्ितन्त्रता, समानता और सम्मान के तीन वसिांतों का ईल्लंघन करती है।
स्ितन्त्रता पिात के भारत में, साितभौवमक ियस्क मतावधकार के लोकतंत्रात्मक प्रभाि के
साथ-साथ विधावयका, सरकारी सेिाओं और वशक्षा में ऄनुसूवचत जावत और जनजावत हेतु
स्िीकारात्मक नीवतयों के दोहरे प्रभाि के ऄंतगतत ऐवतहावसक ऄन्याय को सुधारने तथा राज्य
के वलए पुनर्मितरक एजेंडा को लागू करने तथा आस प्रकार से लोगों के सामावजक जीिन में
जावत श्रेणीकरण संबंधी अधार को दुबतल करने की ऄपेक्षा की गयी थी।
साितभौवमक ियस्क मतावधकार का लोकतंत्रात्मक प्रभाि ईत्तर भारत के कृ वष की दृवष्ट से
समृि क्षेत्रों में प्रभािी जावतयों के ईदय का कारण बना वजसका पररणाम ईनके द्वारा राज्य
की सत्ता पर वनयंत्रण के रूप में हुअ। आसका ऄथत था कक जावत श्रेणीक्रम में ऄपनी वस्थवत से
आतर कु छ जावतगत समूह ऄपना प्रभाि डालने तथा प्राधान्य और सामावजक पहचान स्थावपत
करने में सक्षम रहे थे।
आसके पिात 1980 तथा 90 के दशकों में वपछड़ी जावत के अन्दोलन ऄवस्तत्ि में अये
वजन्होंने ईत्तर भारत में जावत समूहों के द्वारा समर्मथत राजनीवतक दलों यथा बी.एस.पी.,
एस.पी. आत्याकद के ईदय में योगदान ककया। दूसरी ओर ये दल सामावजक लामबंदी का
माध्यम बनने में तथा राज्य में सत्ता में भागीदारी में ऄपनी ईपवस्थवत दशातने में सक्षम रहे।

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1990 के बाद भारत में राजनीवत के मण्डलीकरण ने सामाज विज्ञावनयों की आस ऄपेक्षा को
वमथ्या वसि कर कदया कक राज्य का विकास संबंधी एजेंडा जावत जैसी सामावजक संस्थाओं को
वमटा देगा, जबकक एम. एन. श्रीवनिास जैसे ऄन्य लोगों ने यह तकत प्रस्तुत ककया है कक एक
लोकतांवत्रक राज्य-व्यिस्था के संरक्षण में जावत अधाररत सामावजक समूहों की सीधी
िगतिादी प्रकृ वत को पवित्रता तथा प्रदूषण के कलंक से मुि प्रवतस्पिी जावतगत समूहों की
समस्थावनक व्यिस्था द्वारा प्रवतस्थावपत कर कदया गया है तथा आसे जावत के अधुवनक
ऄितार की संज्ञा दी गयी है।
यद्यवप हाल के ऄध्ययनों से आस बात का संकेत वमलता है कक राज्य की स्िीकारात्मक नीवतयों
के लाभ को ओ.बी.सी. तथा एस.सी. श्रेणी के भीतर के प्रभािी समूहों के द्वारा प्रायः ककनारे
धके ल कदया गया है, जो एक लोकतांवत्रक संस्था की ऄधूरी अशाओं की ऄवभव्यवि हैं।
ईच्च िगत की आस पकड़ तथा जावत के भीतर िगत तत्ि के अरं भ– वजसे हाल के िषों में पूित से
ऄवस्तत्ि में रही वपछड़ी जावत में ईपिगों के वनमातण हेतु ऄनुभि की गयी अिश्यकताओं में
देखा जा सकता है– ने वबहार में दवलत पहचान को महादवलत तथा ऄवतदवलत, वपछड़ा िगत
तथा ऄवत वपछड़ा िगत जैसे प्रिगों में तोड़ कदया है।
आसके ऄवतररि, यह भी कहा जा रहा है कक जावतगत चेतना को दुबतल करने के स्थान पर
लोकतंत्र ने आसे सशि ही ककया है तथा कु छ लोगों ने आसे राज्य की प्रजा के बीच बंधुत्ि को
बढ़ािा देने के मागत में एक ऄड़चन के रूप में देखा है।
कदावचत यह ईदाहरण आस मान्यता का समथतन करता है कक भारत में लोकतांवत्रक संस्थाएं
यद्यवप जावतगत संरचना में कु छ पररिततन को साकार कर पाने में सफल रही हैं, ककन्तु जहां
तक वपछड़ी जावत समूहों का प्रश्न है, ये पररिततन अंवशक पुनर्मितरक पररणाम तक ही सीवमत
रहे हैं।

5. "भारत में जातीय-राष्ट्रीय पहचान की ईत्पवत्त में, धमत की तुलना में, भाषाइ, प्रांतीय और
जनजातीय पहचान ही सबसे महत्िपूणत अधार रहे हैं।” स्पष्ट करें ।
दृवष्टकोण:
 संक्षेप में ककसी समुदाय की पहचान के अधार के रूप में विवभन्न अधारों जैसे भाषा, क्षेत्र
और धमत की व्याख्या कीवजए। ईसके बाद आसका परीक्षण कीवजए कक आन पहचानों ने देश में
पहचान वनधातररत करने के संिाद में ककस प्रकार भूवमका वनभाइ है।
 आससे सहमत भी हो सकते हैं और ऄसहमत भी या आस दृवष्टकोण पर एक मध्य मागत ग्रहण कर
सकते हैं कक धमत ने देश की राष्रीय-सांस्कृ वतक पहचान को अकार देने में ईतनी महत्िपूणत
भूवमका नहीं वनभाइ है।
 जहाँ भी अिश्यक हो प्रासंवगक ईदाहरणों के दृष्टान्त दीवजए।
ईत्तर :
जातीय पहचान धन, प्रवतष्ठा और शवि जैसे सामावजक प्रवतफलों के वितरण का अधार है।
ऄवधकांश समाजों में एक या ऄवधक जातीय समूहों का ऄन्यों की ऄपेक्षा अवथक, राजनैवतक
तथा सांस्कृ वतक मामलों में िचतस्ि होता है। जातीय राजनीवत आसीवलए जातीय स्तरीकरण
का रूप ले सकती है जो ‘जातीय-राष्रिाद’ की ईत्पवत्त में पररणत होता है।
राष्र तब वनर्ममत होते हैं जब बहु-जातीय राज्य में नृजातीय समूह स्ि-चैतन्य राजनीवतक
सत्ताओं में रूपांतररत हो जाते हैं। ‘संप्रभुता और स्ि-संकल्प’ के लक्ष्य जातीय राष्ट्रिाद की ओर
ऄग्रसर करते हैं।
बहु-जातीय समाज में बहुधा ऄल्पसंख्यक समूह स्ियं के वलए एक बेहतर व्यिहार सुवनवित
करने हेतु जातीय काडत का प्रयोग करने का प्रयास करते हैं। जब परावजत समूह प्रभािी समूह

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द्वारा स्थावपत मानदण्डों के ऄनुसार पर सफलता प्राप्त करने में ऄसफल रहते हैं, तो ईनकी
ऄनुकक्रया की प्रकृ वत ‘जातीय विरोध’ की होने लगती है जो वनम्नवलवखत रूप ले सकती है:
 ऄपनी भूवम और संस्कृ वत के वलए मूल वनिावसयों का संघषत।
 जातीय समूहों द्वारा ऄल्प मात्रा में ईपलब्ध संसाधनों की प्रावप्त के वलए प्रवतस्पधात।
 एक पृथक देश के वलए अंदोलन।
भारत भाषाओं, क्षेत्रीय ऄसमानताओं, संस्कृ वतयों, नस्ल और धमों के मामले में दुवनया में
सबसे विविध देशों में से एक है। जब एक ऐसा िैविध्यपूणत देश राष्रीय पहचान वनर्ममत कर
राष्र वनमातण में संलग्न है, तो छोटी पहचान िाले समूह जब यह ऄनुभि करते हैं कक िे ऄपनी
पहचान खोने िाले हैं तो िे विपरीत कदशा में चलने लग जाते हैं। आसवलए भारत में जातीय-
राष्रीय पहचान ने क्षेत्रीय रूप से िंवचत ककए जाने के भाि से संगरठत आन कारकों के
अपेवक्षक संकेंर्द्ण से अकार ग्रहण ककया है।
ईदाहरण के वलए; नागा, वमजो, मवणपुर के नस्लीय राष्रिाद की घटनाएँ, 1980 के दशक
का खावलस्तान अंदोलन अकद।
भारत में, स्ितंत्रता के बाद, वजन कारकों ने जातीय लामबंदी के ईद्भि हेतु योगदान कदया है,
िे थे:
 राष्ट्र वनमातण की प्रकक्रया में समावहत कवमयाँ,
 दोषपूणत अधुवनकीकरण प्रकक्रया, और
 राष्ट्र-राज्य की प्रकृ वत।
पहचान वनमातण का सिातवधक महत्िपूणत अधार भाषा थी। समुदाय की अकांक्षाओं को
प्रकटीकरण का तब ऄिसर वमला जब भाषायी अधार पर राज्यों के वनमातण की मांग की गइ
वजसने ऄंतत: भाषा के अधार पर अंतररक सीमाओं के िृहत पुनर्मनधातरण की ओर ऄग्रसर
ककया।
दूसरी बात यह कक, औपवनिेवशक काल के बाद की विकास प्रकक्रया ने जातीय समुदायों को
ईनकी सांस्कृ वतक और अर्मथक विवशष्टताओं को ईपेवक्षत करते हुए मुख्यधारा की विकास
प्रकक्रया में एकीकृ त करने और समावहत करने का प्रयास ककया। के न्र्द्ीयकृ त योजना वनमातण
एिं पूज ं ीिादी अधुवनकीकरण ने ऄनेकों जनजातीय समुदायों को मुख्यधारा से और दूर होने
की ओर ऄग्रसर ककया। आसने जनजावतयों को विकास के अनुपावतक लाभों को ईन्हें प्रदान
ककए वबना ईनकी ऐवतहावसक और पारं पररक भूवम से भारी मात्रा में विस्थापन की ओर
बढ़ाया।
पररणामस्िरूप, जनजातीय पहचान, भाषा, क्षेत्रीय िंचन और पाररवस्थवतकी के अधार पर
जातीयता के एक संयोजन ने तीव्र क्षेत्रिाद को अधार प्रदान ककया जो झारखण्ड, छत्तीसगढ़,
ईत्तराखण्ड और हाल ही के तेलग
ं ाना अकद जैसे राज्यों के वनमातण में पररणावमत हुअ।
आसी प्रकार, गृहभूवम हेतु नृजातीय मांग ने ईत्तर-पूित में ऄनेक छोटे राज्य वनर्ममत कर कदए।
ईदाहरण के वलए, िृहत्तर ऄसम को आन नृजातीय समूहों की मांगों को पूरा करने के वलए
नागालैंड, मेघालय, ऄरुणाचल प्रदेश और वमजोरम में विभि कर कदया गया। हालांकक के िल
क्षेत्रीय सीमा के वनमातण ने समस्या का समाधान नहीं ककया; आसके विपरीत, आसने आसे और
बढ़ा कदया। यह तकत कदए जाते हैं कक पृथक राज्य के वनमातण ने आस विचार को तब और हिा
दी जब “ऄनेकों छोटे और बड़े समुदायों ने और ऄवधक राज्यों की स्थापना की मांग अरम्भ
कर दी; दूसरी ओर, राज्यों ने मूलभूत सामवग्रयाँ ईपलधध कराने में ऄपनी ऄसमथतता व्यक्त
की।“
हालांकक, स्ितंत्रता के बाद के काल में कु छ ऐसी घटनाएं हुं वजसमें धमत पहचान का अधार
बन गया, मुख्यतः मुवस्लमों और वसक्खों के बीच। ईदाहरण के वलए; खावलस्तान के वनमातण
की माँग धमत के पहचान का अधार बन जाने का एक प्रमाण है।

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हालांकक, मुवस्लमों द्वारा की गइ माँगें ईनके अपेवक्षक वपछड़नेपन और वनधतनता एिं सुरक्षा
की भािना से ऄवधक संबवं धत हैं। ककन्तु धार्ममक दािों की आस प्रकार की घटनाएँ भाषा,
क्षेत्रीय िंचन अकद की तुलना में थोड़ी हैं।
आसवलए, यह कहा जा सकता है कक धमत ने भारत की जातीय-राष्रीय पहचानों को वनधातररत
करने में तुलनात्मक रूप से यद्यवप नगण्य तो नहीं ककन्तु गौण भूवमका ही वनभाइ है।
हालांकक, आस बात पर ऄिश्य ही जोर कदया जाना चावहए कक िततमान दौर में देश में
दवक्षणपंथी राजनैवतक बलों के विकास के साथ, धमत ने राष्रीय पहचान के अधार के रूप में
पुन: प्रमुखता प्राप्त कर ली है जहाँ राष्रीयता को बहुधा बहुसंख्यकों की धार्ममक और
सांस्कृ वतक परं पराओं के प्रवत प्रवतबिता से प्रवतस्थावपत कर कदया जाता है। आसका पररणाम
बहुसंख्यकों के दवक्षणपंथी भाग का प्रवतरोध करने के वलए ऄल्पसंख्यकों के दवक्षणपंथी बलों
द्वारा ऄपनी धार्ममक पहचान को दृढ़ करने में जुट जाना हो सकता है। यह एक ऐसे पररदृश्य
की ओर बढ़ाता है, वजसमें धमत, समुदायों की पहचान को वनधातररत करने में एक प्रभािी
कारक हो जाएगा, जबकक ऄभी यह एक गौण कारक ही है। आसे ऄवधक प्रसन्नतादायक नहीं
कहा जा सकता।

6. हाल के कदनों में, भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 44 को लागू करने के वलए काफी प्रयास ककये
जा रहे है। भारत की सामावजक-सांस्कृ वतक विविधता को देखते हुए, आस तरह की मांग ककस
सीमा तक ईवचत है।
दृवष्टकोणः
ऄनुच्छेद-44 क्या है, आसे संदर्मभत करते हुए ईत्तर का पररचय दें। भारत के सामावजक-
सांस्कृ वतक विविधताओं पर विचार करते हुए ईत्तर में आस ऄनुच्छेद को लागू करने के
सम्भािनाओं पर चचात होनी चावहए।
ईत्तरः
भाग-IV का ऄनुच्छेद-44, भारतीय राज्यों को देश में समान नागररक संवहता लागू करने हेतु
वनदवशत करता है। समान नागररक संवहता का ऄवभप्राय प्रत्येक धार्ममक समुदाय के शात्रिय और
प्रथा अधाररत वनजी कानून को सभी नागररकों के वलए वनयंत्रण करने िाले एक समान
नागररक संवहता से पररिर्मतत करना है। ये कानून वििाह, तलाक, ऄवधग्रहण, गोद लेना और
भरण-पोषण को सवम्मवलत करते हैं।
धमत और भाषा अकद के संदभत में, सामावजक और सांस्कृ वतक रूप में भारतीय-राज्य विश्व में
सिातवधक विविध देशों में से एक हैं। ऐवतहावसक रूप से ऄवधसंख्य राज्यों को यह भय रहा कक
राजनैवतक पहचान, सामावजक मतभेद की मान्यता, राज्य की एकता के वलए खतरा है। आस
प्रकार के संदभत में समय-समय पर भारत में समान नागररक संवहता लागू करने की वनरन्तर
मांग रही है। स्पेन, श्रीलंका और तत्कालीन पूिी पाककस्तान के ईदाहरण को देखते हुए आस
तकत में कु छ िास्तविकता वनवहत जान पड़ती है।
आसके ऄवतररि, विवभन्न समुदायों के ईनके पृथक वनजी कानून हैं जो कानून के वनयमों,
बुवनयादी मानिीय और तकत संगत कानून के ईल्लंघन के ऄवतररि देश के कानून के विरूि
जाते हैं। आसवलए भारत में वनिास करने िाले सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होने
िाली एक ईभयवनष्ट कानूनी प्रणाली िांवक्षत हो सकती है।
हालांकक गूढ़ विश्लेषण से यह प्रकट होता है कक यह बहुसंख्यिाद संस्कृ वत का ऄवधरोपण था
और साथ ही साथ ऄल्पसंख्यकों की प्रथा और सामावजक प्रतीकों की ईपेक्षा थी वजसने
ईपरोि िर्मणत देशों में सामावजक ऄशांवत को बढ़ािा कदया। आसके ऄवतररि सांस्कृ वतक
विविवधताओं को दबा देना ऄल्पसंख्यकों के ऄलगाि के संदभत में बहुत महंगा सावबत हो
सकता है वजनकी संस्कृ वत को ‘गैर-राष्ट्रीय’ के रूप में व्यिहार ककया जाता है। आसके ऄवतररि

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ऄवधक्रमण का यह कायत सामुदावयक पहचान के विपरीत प्रभाि और सामावजक ऄशांवत को
ईत्तेवजत कर सकता है, जैसा कक कु छ पड़ोसी राज्यों में हुअ।
ईपरोि के विपरीत, संपूणत विश्व के प्रकरणों के ऄध्ययन ने यह प्रदर्मशत ककया है कक
बहुसांस्कृ वतक राजव्यिस्था में स्थायी लोकतंत्र को स्थावपत ककया जा सकता है। विवभन्न
समूहों के सांस्कृ वतक बवहष्कार को समाप्त करने हेतु और विवभन्न एिं पूरक पहचान के वनमातण
के वलए स्पष्ट प्रयासों की अिश्यकता है। आस प्रकार की कक्रयाशील नीवतयाँ विविधता में एक
एकता की भािना के वनमातण के वलए प्रोत्साहन प्रदान करतीं हैं। भारतीय संविधान आस
धारणा का सही प्रवतवनवधत्ि करता है। यद्यवप भारत सांस्कृ वतक रूप से विविध है, तथावप
पुराने लोकतंत्रों का तुलनात्मक सिक्षण यह दशातता है कक ऄपनी विविधता के बाद भी भारत
बहुत एकजुट रहा है।
आस प्रकार, राष्ट्रीय संशवि को एकल पहचान के ऄवधरोपण और विविधता की भत्सतना की
अिश्यकता नहीं है। राज्य-देश का वनमातण करने हेतु सफल रणनीवतयाँ, सांस्कृ वतक मान्यता
के वलए ऄनुकक्रयात्मक नीवतयां बना कर विविधता को रचनात्मक रूप से समायोवजत कर
सकती हैं और करती हैं। राजनैवतक वस्थरता और सामावजक सद्भाि के दीघतकालीन ईिेश्यों
को सुवनवित करने हेतु ये समय द्वारा प्रमावणत समाधान हैं। आसवलए, ऄनुच्छेद 44 को लागू
करने का कोइ भी प्रयास जनवप्रय अम सहमवत पर अधाररत होना चावहए।

7. भारत में वििाह और पररिार की विशेषता वनरं तरता के साथ ही पररिततन भी हैं। भारत में
वपछले कु छ दशकों के दौरान वनर्ममत कानूनों और सामावजक-अर्मथक पररिततनों के संदभत में
आसकी चचात करें ।
दृवष्टकोण :
 सितप्रथम ईत्तर में आस बात का संवक्षप्त पररचय दें कक भारत में वििाह तथा
पररिार/पाररिाररक संस्था ककस प्रकार महत्िपूणत है।
 वद्वतीय, आन संस्थाओं में पररिततन के कारणों, यथा सामावजक-अर्मथक कारण तथा कानूनों के
आन पर प्रभाि (मुख्य रूप से ऄपेक्षाकृ त ऄवधक हाल के क़ानून) पर ऄलग से प्रकाश डालें।
 ऄंततः, आस बात को ईजागर करते हुए ईत्तर समाप्त करें कक पररिततनों के बािजूद ककस प्रकार
वििाह तथा पाररिाररक संबंधों के मूल ऄब भी यथाित हैं।
ईत्तर :
वििाह तथा पाररिाररक संस्थाएं भारतीय समाज के मूल मूल्यों के धरोहर हैं। आन संस्थाओं
को ऄब भी संतानोत्पवत्त के सामावजक रूप से मान्यताप्राप्त माध्यम के रूप में देखा जाता है।
हम आन संस्थाओं में वपतृसत्तात्मक मूल्यों तथा सामंतिादी पूिातग्रहों का प्रभाि देख सकते हैं।
तथावप, सामावजक-अर्मथक पररिततनों तथा कानूनों के प्रभाि के कारण आन सस्थाओं में भी
बहुत से पररिततन देखने को वमल रहे हैं।
वििाह तथा पाररिाररक संस्थाओं में पररिततन लाने िाले कारक
 अर्मथक पररिततन
o औद्योगीकरण तथा शहरीकरण: शहरों तथा नगरीय संस्कृ वत का पररिार तथा
वििाह की संस्था पर प्रत्यक्ष प्रभाि पड़ता है।
 अधुवनक ईद्योगों ने पररिार के अर्मथक कायत-ऄवधकार को कम कर कदया है
तथा संयुि पाररिाररक संरचना को एकल पाररिाररक संरचना से
प्रवतस्थावपत करने में सहायता की है।
 ऄवधक वशवक्षत होने तथा कायत करना अरम्भ करने के कारण पररिार में
मवहलाओं की दशा में सुधार अया है। आस प्रकार, पररिार में ऄन्य पुरुष
सदस्यों की भांवत पाररिाररक मुद्दों पर ईनकी भी बात को महत्ि प्रदान ककया
जाता है।

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 साथी के चयन में काम तथा िेतन को पाररिाररक पृिभूवम, जावत या धमत की
ऄपेक्षा ऄवधक महत्ि प्रदान ककया जाता है। आसके ऄवतररि, ऑनलाआन
िैिावहक साइट भी ऄवस्तत्ि में अ गए हैं वजन्होंने पररिार में बड़े-बुजुगों की
भूवमका को कम कर कदया है।
 कररयर तथा व्यविगत महत्िाकांक्षाओं को पूरा करने के वलए “विलंवबत
वििाह” तथा “लॉंग वडस्टेंस मैररज” (ऄंतरातज्यीय/ऄंतदशीय) सामान्य बातें हो
गयी हैं।
 शहरों में प्रायः वििाह को धार्ममक समारोह के स्थान पर एक सामावजक या
नागररक समारोह के रूप में ऄवधक देखा जाता है। नगरों में वििाह समारोह में
लगने िाले समय को भी कम कर कदया गया है। विस्तृत ररिाज़ों को या तो
टाल कदया जाता है या ईन्हें छोटा कर कदया जाता है; न्यायालयीन-वििाहों को
ऄवधक प्राथवमकता दी जाती है।
 शहरों में, तलाक, साथी को छोड़ कर चले जाने, ऄलगाि की घटनाओं, टू टे-
पररिारों के साथ-साथ वििाह-पूित या वििाहेतर यौन सम्बन्ध देखने को वमलते
हैं।
 सामावजक पररिततन
o अधुवनक वशक्षा, मूल्य तथा पािात्य विचारधारा यथा तकत िाद, व्यवििाद, लैंवगक
समानता, लोकतंत्र, ियविक स्ितन्त्रता, पंथ-वनरपेक्षता आत्याकद ने वशवक्षत युिकों
तथा युिवतयों के दृवष्टकोण को प्रभावित ककया है। आसवलए, िे ऄपने वनणतय स्ियं
करना चाहते हैं तथा ऄपने जीिन की महत्िपूणत घटनाओं यथा वशक्षा, नौकरी तथा
वििाह के सम्बन्ध में विकल्प स्ियं तय करने की आच्छा रखते हैं।
 वििाह से सम्बंवधत कानूनों का प्रभाि
o दहेज़ वनषेध ऄवधवनयम, 1996, घरे लू हहसा ऄवधवनयम (DVA), 2005 आत्याकद ने
मवहलाओं की वस्थवत को सशि बनाया है। ऄब मवहलाओं को घर पर होने िाली
“ऄदृश्य हहसा”-शारीररक तथा मौवखक ईत्पीड़न आत्याकद, जो ईन्हें दहेज़ की मांग या
ऄन्य कारणों से सहन करना पड़ता था, ईसके विरुि न्याय प्रदान ककया जाता है।
DVA, 2005 की पररवध में वलि-आन साथी भी अते हैं तथा यह संबंधों के बदलते
अयामों की अिश्यकता को पूरा करता है।
o वहन्दू वििाह ऄवधवनयम, 1955 में 1986 में हुए संशोधन के पिात आसमें पूित से
चले अ रहे कारणों यथा व्यवभचार, धमत पररिततन आत्याकद के साथ-साथ
ऄसामंजस्य तथा अपसी सहमवत जैसे अधारों को जोड़ कर तलाक क़ानून को
ऄवधक लचीला बना कदया गया है। आस कारण वििाह नामक संस्था वििाह तथा
पररिार को बचाने हेतु समझौते के वलए ऄपेक्षाकृ त कम संभािना, समय तथा
प्रयास कदए जाने के कारण वििादों, झगड़ों, के प्रवत ऄवतसंिेदनशील हो गयी है।
ककन्तु, दूसरी ओर आसने पुरुष तथा त्रियी दोनों को एक “बुरे वििाह” से बाहर वनकलने
के विकल्प प्रदान ककये हैं, वजसे िे पूित में के िल सामावजक दावयत्िों की पूर्मत हेतु
ढोया करते थे।
o वहन्दू ईत्तरावधकार ऄवधवनयम, 1956 में 2005 में संशोधन के पिात मवहलाओं
को पैवत्रक संपवत्त में ऄवधकार प्रदत्त हैं तथा ईन्हें पुरुष सदस्यों के साथ-साथ संपवत्त
को साझा करने का कानूनी ऄवधकार भी प्राप्त है। आससे मवहलाओं की अर्मथक
वस्थवत पहले से ऄवधक सशि हुइ है।

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हालांकक आन पररिततनों के बािजूद वििाह तथा पररिार की संस्थाओं के मूल मूल्य ऄब भी
सुरवक्षत हैं। अपसी ऄनुराग तथा वनिा तथा समपतण को अज भी सम्मान की दृवष्ट से देखा
जाता है।

8. स्ितंत्रता के ऄनेक िषों पिात् एिं अधुवनक कानून के ऄवस्तत्ि में होने के बाद भी, बाल
वििाह की प्राचीन प्रथा ऄब भी कु छ िगों में विद्यमान है। भारत में बाल वििाह की प्रथा के
विद्यमान रहने के क्या कारण हैं? यह प्रथा हमारे समाज को ककस प्रकार प्रभावित करती है?
आस प्रथा के ईन्मूलन हेतु क्या ककया जा सकता है?
दृवष्टकोण:
 बाल वििाहों के संबंध में सामावजक, सांस्कृ वतक और अर्मथक मुद्दों को सवम्मवलत करते हुए,
आसके कारण बताआए। ये कारण ऄवधक विवशष्ट रूप से बाल वििाह की विद्यमानता से
संबंवधत होने चावहए।
 आसके बाद, अधुवनक संदभत में सम्पूणत समाज पर बाल वििाह के कारण पड़ने िाले प्रभाि का
ईल्लेख कीवजए।
 ऄंत में आस बुराइ के ईन्मूलन हेतु कु छ ईपायों का सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
बाल वििाह एक पारं पररक प्रथा है वजसे कइ स्थानों पर सामान्यत: पीढ़ी दर पीढ़ी चले अने
के कारण सम्पन्न ककया जाता है और परं परा का पालन न करने से समुदाय से वनष्कावसत
ककये जाने का डर रहता है। आन सब के उपर, ऄवधकाररयों की क्षमता सीवमत है एिं ईनमें
समुदाय के वनणतयों के विरुि जाने की आच्छाशवि की कमी है क्योंकक ऄवधकारी स्ियं भी
समुदाय का भाग है।
ऐसे समुदायों में जहां दहेज या 'िधू-मूल्य' का भुगतान ककया जाता है, वनधतन पररिारों के
वलए यह प्रायः स्िागतयोग्य अय वसि होता है; िधू के पररिार द्वारा िर को दहेज कदए जाने
के मामलों में, यकद िधू कम ईम्र की और ऄवशवक्षत होती है तो ईन्हें कम धन देना पड़ता है।
ऄनेक माता-वपता कम अयु में ही ऄपनी बेटी का वििाह कर देते हैं, क्योंकक ऐसे क्षेत्रों में जहाँ
लड़ककयाँ शारीररक और यौन हमले के ईच्च जोवखम में जी रही होती हैं, प्रायः ईसकी सुरक्षा
को सुवनवित करने हेतु िे ऐसा करना ईसके वहत के वलए सिोत्तम समझते हैं। वशक्षा के
सीवमत ऄिसर, वशक्षा में गुणित्ता की कमी, ऄपयातप्त ऄिसंरचना, पररिहन की कमी एिं आस
कारण विद्यालय जाने के दौरान लड़की की सुरक्षा संबंधी हचताएँ, लड़ककयों को विद्यालय न
भेजने के संबंध में महत्िपूणत योगदान करती हैं और बाल वििाह की प्रिृवत्त को प्रश्रय देती हैं।
लड़ककयों को प्रायः सीवमत अर्मथक भूवमका के साथ एक दावयत्ि के रूप में देखा जाता है।
मवहलाओं का कायत घर-पररिार तक ही सीवमत होता है और आसे ऄवधक महत्ता नहीं दी
जाती। पुरातन कानून, जैसे कक मुवस्लम पसतनल लॉ, 15 से 18 के अयु िगत की लड़ककयों के
वििाह की ऄनुमवत देते हैं।
बाल वििाह के पररणामस्िरूप, वनधतनता का दुष्चक्र अरम्भ होता है। वशक्षा और अर्मथक
ऄिसरों की कम ईपलधधता के कारण ईनके और ईनके पररिार के वनधतनता में जीिन व्यतीत
करने हेतु वििश होने की संभािनाएँ ऄवधक होती हैं। बाल-िधुएँ ऄवधकतर ऄवधकारविहीन,
ऄपने पवतयों पर वनभतर एिं स्िास्थ्य, वशक्षा और सुरक्षा जैसे ऄपने मूल ऄवधकारों से िंवचत
होती हैं। युिा मवहलाओं के योगदान का मूल्य कम अंकने िाला तंत्र स्ियं ऄपनी संभािनाओं
को सीवमत कर देता है। आस प्रकार, बाल वििाह देश से ऐसे निोन्मेष और क्षमता का ऄपिाह
कर देता है जो ईन्हें समृि बनने में सक्षम कर सकता था।

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आस बुराइ के ईन्मूलन हेतु वनम्नवलवखत वबन्दुओं को सवम्मवलत करने िाली एक कें र्द्ावभमुख
रणनीवत विकवसत करने की अिश्यकता है:
 विवध (कानून) प्रिततन: कानून, सहयोगी प्रणावलयों जैसे बाल वििाह टेलीफोन हॉटलाआन
आत्याकद संबंधी क्षमता का विकास।
 बावलका सशवक्तकरण: जीिन कौशल, संरक्षण कौशल।
 सामुदावयक लामबंदी: प्रभािशाली नेताओं के साथ कायत, शपथ और संकल्प, परामशत,
लोक एिं पारं पररक मीवडया।
 ऄवभसरण को प्रोत्साहन: सभी स्तरों पर, विशेष रूप से वशक्षा और सामावजक सुरक्षा
योजनाओं और कायतक्रमों के संबंध में, विवभन्न क्षेत्रकों के ऄवभसरण को प्रोत्सावहत करना।
 बचपन बचाओ अन्दोलन की तजत पर एक सामावजक अन्दोलन का वनमातण करना जो
अइ.इ.सी. (सूचना, वशक्षा और संचार) ऄवभयान एिं ऐसी प्रथाओं के विरुि सामावजक
समथतन विकवसत करने पर जोर देगा।

9. पसतनल लॉ बोडत क्या हैं? क्या ईनके वनणतय नागररकों पर बाध्यकारी हैं? ईनके द्वारा
ऄनुपालन ककए जाने िाले एिं सामान्य कानूनी ऄदालतों के वसिांतों के मध्य विसंगवत की
वस्थवत में ककस प्रकार सामंजस्य स्थावपत ककया जा सकता है। चचात कीवजए।
दृवष्टकोण:
 पसतनल लॉ के संबंध में संवक्षप्त रूपरे खा प्रदान कीवजए।
 पसतनल लॉ बोडों को पररभावषत कीवजए।
 भूतकाल में ककए गए कु छ ईपायों एिं साथ ही विसंगवत का वनराकरण करने हेतु समाधान
योग्य समस्याओं को स्पष्ट कवजए।
ईत्तर:
भारत में विवभन्न धमत ऄपने वनजी कानूनों (पसतनल लॉ) द्वारा वनयंवत्रत ककए जाते हैं। प्रत्येक
धमत वििाह, गोद लेन,े ईत्तरावधकारों आत्याकद से संबंवधत मामलों में ऄपने स्ियं के कानून का
पालन करता है। आन सभी मामलों पर धमत का प्रवतवनवधत्ि करने िाले विवभन्न पसतनल लॉ
बोडत द्वारा वनणतय ककया जाता है और लामबंदी की जाती है।
पसतनल लॉ बोडत भारत में पसतनल लॉ के संरक्षण और वनरं तर प्रयोज्यता हेतु ईवचत
रणनीवतयाँ बनाने/ऄपनाने हेतु गैर-सरकारी संगठन हैं। ये बोडत स्ियं को भारत में धार्ममक
समूह की राय के ऄग्रणी वनकाय के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ये बोडत सरकार से संबंध स्थावपत
कर और ईसे प्रभावित कर कायत करते हैं, और सामान्य जनता को महत्िपूणत मुद्दों पर
मागतदशतन प्रदान करते हैं। िे मुख्य रूप से ऐसे ककसी ऄन्य कानूनों या विधान से पसतनल लॉ
का बचाि करते हैं जो ईनके विचार से पसतनल लॉ का ईल्लंघन करता हो।
हहदू कानून ऄवधवनयम (1955-56), मुवस्लम पसतनल लॉ (शरीयत) ऄनुप्रयोग ऄवधवनयम,
सन् 1937 अकद जैसे विधानों द्वारा समर्मथत आन बोडों के वनणतय नागररकों पर बाध्यकारी
होते हैं। हालांकक, नागररकों के मौवलक ऄवधकारों का ईल्लंघन करने िाले वनणतय बाध्यकारी
नहीं होते हैं, यद्यवप ईनका ऄनुपालन न करने से सामावजक बवहष्कार या व्यविगत हमलों
जैसे पररणाम हो सकते हैं।
ईनके द्वारा ऄनुपावलत वसिांतों एिं सामान्य कानूनी न्यायालयों के वसिांतों में विसंगवतयों
का वनराकरण ईनके एिं न्यायाधीशों, कानून-वनमातताओं, धार्ममक नेताओं और समुदाय के
बीच ऄवधक ऄन्योन्यकक्रया के माध्यम से ककया जा सकता है। यह पसतनल लॉ के मामलों के
संबंध में विवधक राय में मतभेदों का समाप्त करने में सहयोग प्रदान करे गी। ऄभी तक आस
प्रकार की ऄन्योन्यकक्रयाओं हेतु कोइ फोरम शायद ही विद्यमान है। आस तरह के मुद्दों की
विभाजनकारी और संिेदनशील प्रकृ वत के कारण से आसे तात्कावलक रूप से हल ककया जाना
चावहए। कु छ ऄन्य ईपाय हो सकते हैं:

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 ऄनुच्छेद 44 के संबंध में ऄनुच्छेद 25 की स्पष्ट रूप से व्याख्या करना।
 वनयवमत कानूनी ऄदालतों के भाग बन चुके और पयातप्त प्रगवतशील वसि हुए वहन्दू
कानूनों का ईदाहरण देते हुए ऄल्पसंख्यकों के भयों को संबोवधत करना।
 सिातवधक सुभेद्य और पीवड़त िगत ऄथातत् मवहलाओं को आन बोडों में लाए जाने की
अिश्यकता है एिं ईनकी दुदश
त ाओं को ध्यान में रखते हुए वनयम बनाए जाने चावहए।
 अधुवनक प्रगवतशील लोकाचार के ऄनुसार संरेवखत करने के ईद्देश्य से पसतनल लॉ की
व्यापक समीक्षा ।

10. बवहष्कार, ऄपमानजनक-पराधीनता और शोषण ये तीनों िस्तुतः ऄस्पृश्यता के पररदृश्य को


पररभावषत करने में समान रूप से महत्िपूणत हैं। व्याख्या कीवजए। ऄतीत एिं िततमान के
जावतगत भेदभािों की क्षवतपूर्मत करने के वलए भारतीय संविधान में ईवल्लवखत प्रािधानों एिं
सरकार द्वारा ईठाए गए कदमों का वििरण प्रस्तुत कीवजए।
दृवष्टकोण:
 बवहष्कार, ऄपमानजनक-पराधीनता और शोषण के अयामों पर ऄस्पृश्यता की संकल्पना को
पररभावषत कीवजए।
 तत्पिात आस कु रीवत की समावप्त हेतु भारतीय संविधान के प्रािधानों का वििरण दीवजए।
 ऄंततः आस समय ऄिवध में सरकार द्वारा ईठाए गए कदमों तथा राज्य द्वारा ऄतीत और
िततमान में व्याप्त जावतगत भेदभािों के वलए क्षवतपूर्मत के प्रयासों का िणतन कीवजए।
ईत्तर:
ऄस्पृश्यता समाज का एक कठोर एिं हनदनीय पहलू है जो समाज के ‘शुिता’ (शुवचता) -
‘ऄशुिता’ के पैमाने पर सबसे वनचले स्तर पर ऄिवस्थत सदस्यों के वखलाफ़ कड़े सामावजक
प्रवतबंधों का प्रािधान करता है। यह जीिन के सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचवलत है तथा
समय के साथ विकवसत होते हुए यह बवहष्कार, ऄपमान-ऄधीनता और शोषण के रूपों में
स्ियं को विस्तार दे चुका है और ऄब जावतगत कारकों से बढ़कर आसने धमत, गरीबी,
नृजातीयता जैसे ऄन्य कारकों को भी ऄपने दायरे में शावमल कर वलया है।
ऄपमानजनक-पराधीनता के साितजवनक रूप से कदखाइ देने िाले सामान्य कृ त्यों में, सम्मान के
सूचक वचह्नों यथा सर से टोपी/पगड़ी को जबरन ईतारने को कहना, जूते चप्पलों को हाथ में
लेना, सर झुका कर खड़े होना, साफ़ या ईज्जिल कपड़े पहनने की ऄनुमवत न देना आत्याकद,
शावमल हैं ।
साथ ही ऄस्पृश्यता विवभन्न प्रकार के अर्मथक शोषण यथा जबरन ऄिैतवनक श्रम के
ऄवधरोपण, या संपवत्त की जधती से भी सम्बंवधत है।
बवहष्कार के संदभत में, धार्ममक बवहष्कार, विकलांग लोगों के बवहष्कार, जावत अधाररत
बवहष्कार अकद ऄस्पृश्यता को नया अयाम दे रहे हैं।
ऄस्पृश्यता के वखलाफ लड़ने के वलए भारतीय संविधान के कु छ प्रािधान:
 संविधान के ऄनुच्छेद 17 के तहत, ककसी भी अधार पर ऄस्पृश्यता को वनवषि कर कदया
गया है।
 ऄनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता प्रदान करता है तथा ऄनुच्छेद 15 साितजवनक
स्थानों पर समानता और समान पहुंच ईपलधध कराता है।
 DPSP के तहत ऄनुच्छेद 46 के ऄनुसार राज्य ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत
जनजावतयों के शैवक्षक और अर्मथक वहतों को प्रोत्सावहत करे गा तथा सामावजक ऄन्याय
और शोषण से ईनकी रक्षा करे गा।

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कु छ सरकारी प्रयास-
 संसद ने 1955 में ऄस्पृश्यता (ऄपराध) ऄवधवनयम पाररत ककया वजसे 1976 में
नागररक ऄवधकारों का संरक्षण ऄवधवनयम, 1955 के रूप में संशोवधत और पुननातवमत
ककया गया।
 संविधान के ऄनुच्छेद 17 का विस्तार करते हुए ऄनुसूवचत जावत और ऄनुसूवचत
जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) ऄवधवनयम, 1989 पाररत ककया गया वजसे 2005 में
संशोवधत कर ऄवधक प्रभािशाली बनाया गया।
 ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसवू चत जनजावतयों के वलए राष्ट्रीय अयोग की स्थापना तथा
राष्ट्रीय मानि ऄवधकार अयोग (NHRC) की स्थापना।
ऄतीत में हुए और िततमान में हो रहे भेदभािों की क्षवतपूर्मत करने के वलए सरकार ने वनम्न
कदम ईठाए हैं:
 अरक्षण का प्रािधान, जो साितजवनक जीिन के विवभन्न क्षेत्रों में ऄनुसूवचत जावत के
सदस्यों के वलए कु छ स्थानों या 'सीटों' को अरवक्षत करता है।
 पंचायत स्तर पर चुनाि लड़ने के वलए 73 िें और 74 िें संशोधन के माध्यम से
ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए अरक्षणl

11. भले ही हाल के कदनों में जावत व्यिस्था कमजोर हो गयी है, लेककन भारत में लोकतांवत्रक
राजनीवत के पररणामस्िरूप जावत अधाररत पहचान सुदढ़ृ हुइ है। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोण:
 भारतीय समाज में जावत व्यिस्था का संवक्षप्त वििरण प्रदान कीवजए।
 समाज में जावत व्यिस्था को कमजोर करने िाले कारकों का ईल्लेख कीवजए।
 साथ ही, लोकतांवत्रक राजनीवत पर ध्यान के वन्र्द्त करते हुए जावत अधाररत पहचान सुदढ़ृ
होने के कारणों को सूचीबि कीवजए।
 जावत अधाररत पहचान को कमजोर करने के वलए कु छ ईपायों का सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
जावत व्यिस्था, शुवि और ऄशुवि के विचारों पर अधाररत सामावजक और व्यािसावयक
पृथक्करण की िंशानुगत प्रणाली है। आसने सामावजक ऄसमानता की मौजूदा संरचना को
तकत संगत ठहराया एिं ईसे सुदढ़ृ भी ककया है। िततमान समय विरोधाभासी वस्थवत को दशातता
है क्योंकक एक ओर जावत व्यिस्था कमजोर हो गइ है, िहीं दूसरी ओर राजनीवतक लामबंदी
के कारण जावत-अधाररत पहचान मजबूत हुइ हैं।
जावत व्यिस्था को कमजोर करने िाले कारक
 पदानुक्रवमक संरचना में पररिततन: शुवि और ऄशुवि पर अधाररत जावत पदानुक्रम
धमतवनरपेक्षतािाद के कारण कमजोर हुअ है। आसके ऄवतररक्त, सामावजक प्रवतिा का
अधार जन्म के स्थान पर पररिर्मतत होकर संवपत्त होता जा रहा है।
 जजमानी प्रणाली नष्ट होना: जजमानी प्रणाली में िस्तुओं और सेिाओं का अदान-प्रदान
सवम्मवलत होता था वजसमें प्रत्येक जावत व्यािसावयक विशेषता के अधार पर ऄपने
भाग का योगदान करती थी। लेककन, पारं पररक व्यिसायों के नष्ट होने एिं
औद्योगीकरण के कारण यह प्रणाली समाप्त होती जा रही है।
 संस्कृ वतकरण: यह वनम्न िणत के वहन्दू जावत समूहों/ जनजावतयों द्वारा ईच्च स्तर प्राप्त
करने के वलए ईच्च जावत समूह का ऄनुकरण करते हुए ऄपनी प्रथाओं और रीवतयों को
पररिर्मतत करने की प्रकक्रया है।
 िैश्वीकरण एिं सेिा क्षेत्रकों के ईदय के कारण परं परागत रूप से वनयत व्यािसावयक
प्रणाली का भंग होना।

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 ऄस्पष्ट शहरी जीिन: बढ़ते प्रिसन के कारण शहरी जीिन जावतगत पहचान की दृवष्ट से
ऄस्पष्ट स्िरुप ले रहा है जहां साथ रहने िाले लोगों की जावतगत पहचान संबंधी
जानकारी कभी-कभी ही ज्ञात होती है।
 वशक्षा और कानूनी प्रणाली का अधुवनकीकरण।
जावत अधाररत पहचान को मजबूत करने िाले कारक
 जावत अधाररत राजनीवत: राजनीवतक दल िोट के वलए जावत अधाररत पहचान को
मजबूत बनाकर, जावत समूहों को ऄवधकावधक लामबंद करने में संलग्न हैं। ऄनेक क्षेत्रीय
दलों के ईद्भि से आसका प्रमाण प्राप्त होता है।
 जावत अधाररत सकारात्मक गवतविवधयाँ: वशक्षा और रोजगार में जावत अधाररत
अरक्षण के प्रािधान ने जावतगत पहचानों को मजबूत ककया है। ईदाहरण के वलए, कु छ
जावत समूहों द्वारा हाल ही में ऄन्य वपछड़े िगत की प्रवस्थवत प्रदान करने की मांग।
 सामूवहक लामबंदी: जावतयां समूह लामबंदी भी कर रही हैं एिं दवलतों पर ऄत्याचारों
की घटनाओं को देखते हुए सामूवहक रूप से समानता और गैर-भेदभाि की मांग कर रही
हैं।
 "प्रभुत्िशाली जावत" पररघटना: विशुि रूप से संख्या में ऄवधक होने के कारण भूवम-
ऄवधकार धारण करने िाले िगत भी ईत्तर प्रदेश और वबहार जैसे कु छ राज्यों में
राजनीवतक सत्ता का ईपयोग करने हेतु ईभर अए हैं।
कु छ विशेषज्ञों ने आस पररघटना को ''जावतिाद'' कहा है। ऄल्पािवधक रूप से यह ठीक है
क्योंकक यह अधुवनक लोकतंत्र को जावत अधाररत राजनीवतक लामबंदी एिं भागीदारी के
माध्यम से जनता के साथ जोड़ती है। ककन्तु यह एकल राष्रीय पहचान के ईद्भि को जोवखम
में डाल सकती है।
कु छ समाधान:
 मुि बाजार में लोगों की भागीदारी को ऄवधकावधक प्रोत्सावहत करना: बढ़ी हुइ समृवि
जावतगत पहचानों को और ऄवधक कमजोर करे गी।
 लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम 1951 की धारा 123 को और ऄवधक सशि करना:
राजनीवतक दलों को के िल जावत के अधार पर िोट की मांग करने से रोकने हेतु।
 अरक्षण प्रणाली को युविसंगत बनाना: के िल योग्य ईम्मीदिारों को लाभ प्रदान करने के
वलए लवक्षत करने हेतु अरक्षण प्रणाली को युविसंगत बनाना ताकक समतािादी समाज का
सूत्रपात हो।

12. एक संस्था के रूप में जावतव्यिस्था के िततमान रूप को औपवनिेवशक काल के दौरान हुए
घटनाक्रमों के साथ-साथ स्ितंत्र भारत में हुए पररिततनों द्वारा अकार कदया गया है। चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
 जावत व्यिस्था की ईत्पवत्त और ईसके विकास का संवक्षप्त वििरण दीवजए।
 चचात कीवजए कक वब्ररटश शासन के दौरान मौजूद जावत व्यिस्था का स्िरुप क्या था तथा
वब्ररटश शासन ने ककस प्रकार आसकी संरचना को प्रभावित ककया।
 स्ितंत्रता के पिात् आसके सुधार के वलए ककये गए ईपायों की संक्षप
े में चचात कीवजए तथा आन
ईपायों ने जावत व्यिस्था को कै से प्रभावित ककया, स्पष्ट कीवजए।
 आसके ऄवतररि ऄन्य अिश्यक ईपायों के सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
जावत एक ऐसी संस्था है जो विवशष्ट रूप से भारतीय ईपमहाद्वीप से सम्बंवधत है। ऄंग्रज
े ी का
शधद 'caste' िास्ति में पुततगाली शधद ‘casta’ से वलया गया है, वजसका शावधदक ऄथत है
शुि नस्ल। आस शधद से अशय एक व्यापक संस्थागत व्यिस्था से है। भारतीय भाषाओं

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(प्राचीन संस्कृ त के साथ अरम्भ) में आस संस्थागत व्यिस्था को दो शधदों जावत और िणत से
जाना जाता है। अम तौर पर यह अम सहमवत है कक चार िणों का िगीकरण लगभग तीन
हजार िषत पुराना है। हालांकक, 'जावत व्यिस्था' का स्िरुप ऄलग-ऄलग कालखंडों में ऄलग-
ऄलग रहा है।
एक संस्था के तौर पर जावत व्यिस्था ने वब्ररटश औपवनिेवशक काल के पिात् के भारत को
ऄत्यवधक प्रभावित ककया है।
वब्ररटश शासन / औपवनिेवशक काल के दौरान हुए पररिततन

 ऄंग्रेजों ने पूरे देश में विवभन्न जावतयों और जनजावतयों के 'रीवत-ररिाजों और अचार-


विचार' के विवधित और व्यापक सि ककए तथा ईनके अधार पर ररपोटत तैयार की ताकक
ईन पर प्रभािी ढंग से शासन ककया जा सके । 1901 की जनगणना में जावत के सामावजक
पदानुक्रम के ऄनुसार जानकारी एकत्र करने का प्रयास ककया गया। आस प्रकार जावत की
गणना करने तथा अवधकाररक तौर पर जावत की प्रवस्थवत दजत करने हेतु ककए गए प्रयास
द्वारा जावत व्यिस्था को एक संस्था का दजात प्रदान ककया गया।
 भू-राजस्ि व्यिस्था और आससे सम्बंवधत व्यिस्था से जुड़े कानूनों ने ईच्च जावतयों के
प्रचवलत (जावत अधाररत) ऄवधकारों को कानूनी मान्यता प्रदान की। दूसरी ओर,
औपवनिेवशक काल की समावप्त के पिात् तत्कालीन प्रशासन ने भी ‘िंवचत िगत’ के
कल्याण में रुवच कदखाइ। दवलत जावतयों को ईस समय ‘िंवचत िगत’ कहा जाता था।
ईदाहरण के वलए भारत सरकार ऄवधवनयम, 1935 में ‘ऄनुसूवचत’ जावतयों और
जनजावतयों की सूवचयों को कानूनी मान्यता प्रदान की गइ तथा राज्यों को ईनके विशेष
ईपचार हेतु वनदश कदए गए।
राष्ट्रिादी अंदोलन के जनसंचार में जावत संबंधी विचारों ने ऄवनिायत रूप से एक भूवमका
वनभाइ। राष्ट्रिादी अंदोलन के प्रमुख विचारों में जावत को एक सामावजक बुराइ के रूप में
प्रस्तुत ककया गया तथा भारतीयों को विभावजत करने के वलए आसे ऄंग्रज े ों की एक चाल के
रूप में देखा गया।
स्ितंत्रता प्रावप्त के पिात् का समय

 स्ितंत्रता के बाद, देश जावत अधाररत ऄसमानता को कम करने के वलए प्रवतबि था


तथा स्पष्टतया आस ईद्देश्य को संविधान में सवम्मवलत भी कर वलया गया। संविधान की
आस राजनीवतक प्रवतबिता के साथ तीव्र गवत से अर्मथक पररिततन भी हुए। अर्मथक क्षेत्र
में समानता को बढ़ािा देने संबंधी ईपायों की ऄपयातप्तता के कारण जावतगत
ऄसमानताएं मजबूत ही बनी रहीं।
 राज्य की विकास गवतविवधयों तथा वनजी ईद्योग के विकास ने भी अर्मथक पररिततन की
गवत और तीव्रता को बढ़ाकर ऄप्रत्यक्ष रूप से जावत व्यिस्था को प्रभावित ककया।
अधुवनक ईद्योगों के तहत सभी प्रकार की नइ नौकररयों का सृजन ककया गया, वजनके
वलए ककसी प्रकार के जावत संबंधी वनयम नहीं थे।
 शहरीकरण और शहरों में सामूवहक जीिन की वस्थवतयों ने सामावजक ऄंतकक्रया के जावत
अधाररत भेदभाि के प्रवतरूपों के ऄनुसरण को करठन बना कदया।
 सांस्कृ वतक एिं पाररिाररक क्षेत्रों में जावत व्यिस्था सिातवधक सशि वसि हुइ।
अधुवनकता के दौर में भी सगोत्र वििाह (एंडोगैमी) बड़े पैमाने पर ऄप्रभावित ही रहा
है।
 भारत की लोकतांवत्रक राजनीवत जावत व्यिस्था द्वारा ऄत्यवधक प्रभावित है, आसीवलये
चुनािी राजनीवत में जावत संबंधी विचार ऄत्यंत महत्िपूणत हैं। दरऄसल, 1980 के दशक
में जावत अधाररत राजनीवतक दलों का ईद्भि आस बात का प्रमाण है।
 नौकररयों और वशक्षा में अरक्षण ने जातीय चेतना में योगदान ककया है तथा अरक्षण की
मांग हेतु जावत अधाररत अंदोलनों को सशि ककया है।

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5. विगत िषों में सं घ लोक से िा अयोग (UPSC) द्वारा पू छे
गए प्रश्न
(Past Year UPSC Questions)
1. संयुि पररिार का जीिन चक्र सामावजक मूल्यों के बजाय अर्मथक कारकों पर वनभतर करता है।
चचात कीवजए।
2. भारत में विविधता के ककसी भी चार सांस्कृ वतक तत्िों का िणतन कीवजये और एक राष्ट्रीय पहचान
के वनमातण में ईनके सापेक्ष महत्ि का मूल्य वनधातरण कीवजएl
3. भारत की विविधता के संदभत में, क्या यह कहा जा सकता है कक राज्यों की ऄपेक्षा प्रदेश सांस्कृ वतक
आकाआयों को रूप प्रदान करते हैं? ऄपने दृवष्टकोण के वलये ईदाहरणों सवहत कारण प्रस्तुत करें ।
4. सवहष्णुता और प्रेम की भािना न के िल ऄवत प्राचीन समय से ही भारतीय समाज का एक रोचक

ऄवभलक्षण रही है, ऄवपतु िततमान में भी यह एक महत्िपूणत भूवमका वनभा रही है। सविस्तार स्पष्ट
कीवजए।

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भारतीय समाज
जनसंख्या एवं संबधं धत मुद्दे

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धवषय सूची
1. जनसंख्या का ऄध्ययन क्यों अवश्यक है? ____________________________________________________________ 4

2. जनसांधख्यकी क्या है? __________________________________________________________________________ 4

3. जनसंख्या की प्रवृधियों का धनधाारण कै से करें ? _________________________________________________________ 5

4. जनसंख्या अंकड़ों को ककस प्रकार समझें? ____________________________________________________________ 5

4.1 जनसंख्या का धवतरण और घनत्व _______________________________________________________________ 5


4.1.1 जनसंख्या का वैधिक धवतरण ______________________________________________________________ 6
4.1.2 भारत में जनसंख्या का धवतरण _____________________________________________________________ 7

4.2 जनसंख्या धवतरण को प्रभाधवत करने वाले कारक_____________________________________________________ 8


4.2.1 भौगोधलक कारक (Geographical Factors) __________________________________________________ 8
4.2.2 अर्थथक कारक (Economic Factors) _______________________________________________________ 8
4.2.3 सामाधजक और सांस्कृ धतक कारक ___________________________________________________________ 9

4.3 जनसंख्या पररवतान के धनधाारक _________________________________________________________________ 9


4.3.1. प्रजननता (Fertility) __________________________________________________________________ 10
4.3.1.1 ईच्च प्रजननता के धनधहताथा ___________________________________________________________ 11
4.3.2. मृत्यु दर (Mortality) __________________________________________________________________ 13
4.3.3. प्रवासन (Migration)__________________________________________________________________ 14

4.4 जनसंख्या वृधि की प्रवृधियााँ __________________________________________________________________ 15


4.4.1. वैधिक जनसंख्या में ऄनुमाधनत वृधि _______________________________________________________ 15
4.4.2. भारत में जनसंख्या वृधि की प्रवृधि _________________________________________________________ 18

5. जनसांधख्यकीय संक्रमण धसिांत __________________________________________________________________ 19

5.1 जनसांधख्यकीय लाभांश (Demographic Dividend) _______________________________________________ 20

5.2 ऄनुकूलतम जनसंख्या (Optimum Population) ___________________________________________________ 22

6. जनसंख्या संघटन (Population Composition) _____________________________________________________ 22

6.1 अयु संघटन (Age Composition) ____________________________________________________________ 22


6.1.1. पराधितता ऄनुपात या धनभारता ऄनुपात ____________________________________________________ 23

6.2 ललग संघटन (Sex composition) ____________________________________________________________ 23

6.3 ट्ांसजेंडर संघटन (Transgender composition) _________________________________________________ 24

6.4 कदव्ांग संघटन (Divyang composition)_______________________________________________________ 24

6.5 साक्षरता संघटन (Literacy composition) ______________________________________________________ 24

6.6 कायाशील जनसंख्या संघटन __________________________________________________________________ 25

6.7 ककशोर (Adolescents) ____________________________________________________________________ 27

6.8. युवाओं से संबंधधत मुद्दे _____________________________________________________________________ 28


6.9. राष्ट्रीय युवा नीधत_________________________________________________________________________ 29

7. जनसंख्या धपराधमड (अयु-ललग धपराधमड) ___________________________________________________________ 32

7.1. धवस्तारशील जनसंख्या (Expanding Population) ________________________________________________ 32

7.2. धस्थर जनसंख्या (Constant Population) ______________________________________________________ 32

7.3. ह्रासमान जनसंख्या (Declining Population) ___________________________________________________ 33

7.4. अयु-संरचना धपराधमड में क्षेत्रीय धभन्नताएं _______________________________________________________ 34

8. जनसंख्या संबध
ं ी मुद्दे__________________________________________________________________________ 35

8.1 ऄल्पधवकधसत देशों की जनसंख्या संबंधी समस्याएाँ ___________________________________________________ 35


8.1.1. ऄधत-जनसंख्या की समस्याएं _____________________________________________________________ 35
8.1.2.ऄल्प-जनसंख्या संबंधी समस्याएं ___________________________________________________________ 36

8.2 धवकधसत देशों की जनसंख्या संबंधी समस्याएं ______________________________________________________ 37

8.3 भारत में धगरता ललगानुपात __________________________________________________________________ 38

9. भारत में जनसंख्या नीधतयााँ _____________________________________________________________________ 39

9.1 राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 ________________________________________________________________ 40

10. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 का मूल्यांकन ________________________________________________________ 43

11. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (NPP) 2000: अगे की राह __________________________________________________ 43

11.1 भारत में जनसंख्या वृधि को धनयंधत्रत करने हेतु ककए गए ईपाय _________________________________________ 44

12. पररधशष्ट (जनसंख्या मानधचत्र एवं ताधलकाएाँ) _______________________________________________________ 47

13.धवगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 61

14. धवगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 68
एक धशधक्षत, प्रबुि और जागरूक जनसंख्या ककसी लोकतंत्र की सुदढ़ृ ता को बढ़ावा देने हेतु सवााधधक
धविसनीय साधनों में से एक है - नेल्सन मंडल
े ा

1. जनसं ख्या का ऄध्ययन क्यों अवश्यक है ?


(Why to study population?)
 यह सम्भावना व्क्त की गयी है कक अगामी कु छ दशकों में ही भारतीय जनसंख्या, चीन की
जनसंख्या से ऄधधक हो जाएगी तथा ऄंततः भारत धवि में सवााधधक जनसंख्या वाला देश बन
जाएगा। आस प्रकार जनसंख्या को प्रायः बोझ तथा लोगों के गुणविापूणा जीवन एवं धवकास में एक
प्रमुख बाधा माना जाता है। यह धवशाल जनसंख्या देश के सीधमत संसाधनों पर दबाव डालती है
और देश में धवधभन्न सामाधजक-अर्थथक समस्याओं के धलए ईिरदायी है। ककतु क्या यह सच है?
अआए आस संबंध में धवचार करते हैं कक क्या जनसंख्या देश के धलए एक पररसंपधि और संसाधन
नहीं है?
 अज, भारत को मानव शधक्त के संदभा में धवि का ऄग्रणी राष्ट्र माना जाता है। भारत की युवा,
धशधक्षत और ईत्पादक जनसंख्या देश की आस वैधिक धस्थधत हेतु ईिरदायी प्रमुख कारकों में से एक
है। ये युवा न के वल भारत बधल्क धवि के कइ ऄन्य देशों के धवकास में भी योगदान कर रहे हैं। आस
संदभा में, जनसंख्या ऄथाव्वस्था के धलए एक पररसंपधि है। ऄत: यह बोझ न होकर देश का ऄत्यंत
महत्वपूणा संसाधन है। अआए आस संसाधन का जनसंख्या धवज्ञान 'जनसांधख्यकी' के माध्यम से
मूल्यांकन करें ।
2. जनसां धख्यकी क्या है ?
(What is demography?)
 जनसांधख्यकी या जनांकककी जनसंख्या का सुव्वधस्थत ऄध्ययन है। आस शब्द की ईत्पधि ग्रीक
भाषा से हुइ है तथा यह दो शब्दों, 'डेमोस' ऄथाात् जन (लोग) और 'ग्राफीन' ऄथाात् वणान से
धमलकर बना है, धजसका तात्पया है- ‘लोगों का वणान’। जनसांधख्यकी के ऄंतगात जनसंख्या से
संबंधधत धवधभन्न प्रवृधियों और प्रकक्रयाओं का ऄध्ययन ककया जाता है, धजसमें जनसंख्या के अकार
में पररवतान, जन्म, मृत्यु एवं प्रवसन के प्रधतरूप तथा जनसंख्या की संरचना एवं संघटन (ऄथाात्
ईसमें धियों, पुरुषों और धवधभन्न अयु वगा के लोगों का क्या ऄनुपात है?) को सधम्मधलत ककया
जाता है। जनसांधख्यकी के धवधभन्न प्रकार होते हैं जैसे, अकाररक जनसांधख्यकी (formal
demography) धजसमें ऄधधकतर जनसंख्या के अकार ऄथाात् मात्रा का ऄध्ययन ककया जाता है
और सामाधजक जनसांधख्यकी धजसमें जनसंख्या के सामाधजक, अर्थथक या राजनीधतक पक्षों पर
धवचार ककया जाता है।
 अकाररक जनसांधख्यकी प्रमुख रूप से जनसंख्या पररवतान के संघटकों के धवश्लेषण और मापन से
संबंध रखती है। आसके ऄंतगात मात्रात्मक धवश्लेषण पर धवशेष रूप से ध्यान के धन्ित ककया जाता है
धजसके धलए ऄत्यंत धवकधसत गधणतीय धवधध का प्रयोग ककया जाता है। यह धवधध जनसंख्या की
वृधि और ईसके गठन में होने वाले पररवतानों का पूवाानुमान लगाने के धलए ईपयुक्त होती है।
दूसरी ओर, जनसंख्या ऄध्ययन या सामाधजक जनसांधख्यकी के ऄंतगात जनसंख्या की संरचनाओं
और पररवतान के व्ापक कारणों और पररणामों का ऄध्ययन ककया जाता है। सामाधजक
जनसांधख्यकीधवदों का मानना है कक सामाधजक प्रकक्रयाएं और संरचनाएं जनसांधख्यकीय प्रकक्रयाओं
को धनयंधत्रत करती हैं। समाजशाधियों के समान वे ईन सामाधजक कारणों का पता लगाने का
प्रयास करते हैं जो जनसंख्या की प्रवृधियों को धनधााररत करते हैं।

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3. जनसं ख्या की प्रवृ धियों का धनधाा र ण कै से करें ?
(How to determine population trends?)
आस प्रकार के अंकड़ों का/के प्राथधमक स्रोत क्या है/हैं?
सभी जनसांधख्यकीय ऄध्ययन, गणना या पररगणना की प्रकक्रयाओं यथा- जनगणना या सवेक्षण पर
अधाररत होते हैं। आसके ऄंतगात ककसी धनर्ददष्ट क्षेत्र के भीतर रहने वाले लोगों से संबंधधत अंकड़ों का
व्वधस्थत संकलन ककया जाता है।
 जनगणना: यह ककसी दी गइ जनसंख्या के सदस्यों से सम्बंधधत सूचना को व्वधस्थत रूप से प्राप्त
करने तथा ईसके ऄधभलेखन की प्रकक्रया है। आस शब्द का ईपयोग ऄधधकांशतः प्रत्येक 10 वषा में की
जाने वाली राष्ट्रीय जनगणना या 'नेशनल पापुलेशन एंड डोर टू डोर सेन्सस' हेतु ककया जाता है।
ईदाहरण के धलए, भारत में अर्थथक जनगणना एक कें िीय क्षेत्र की योजना है। यह 100% कें िीय
सहायता प्राप्त योजना है तथा आसे देश के सभी राज्यों और कें ि शाधसत प्रदेशों में राज्य/कें ि शाधसत
प्रदेशों की सरकारों के सहयोग से अयोधजत ककया जाता है। कइ वषों से अर्थथक जनगणना के
अाँकड़ों ने धवधभन्न औद्योधगक क्षेत्रों और ईनके योगदान की संरचना एवं संघटन का ऄध्ययन करने
हेतु राष्ट्रीय प्रधतदशा सवेक्षण कायाालय (NSSO) और ऄन्य सरकारी एवं गैर-सरकारी एजेंधसयों
द्वारा अयोधजत ऄनुवती सवेक्षणों को अधार प्रदान ककया है।
 सवेक्षण: भारत में राष्ट्रीय प्रधतदशा सवेक्षण कायाालय (NSSO), गााँवों एवं कस्बों में धस्थत
पररवारों एवं ईद्यमों से अाँकड़े एकधत्रत करने के धलए सामाधजक-अर्थथक, जनसांधख्यकीय, कृ धष
और औद्योधगक धवषयों से संबंधधत सवेक्षण करने वाला एक धवधशष्ट संगठन है। यह भारत सरकार
[नवगरठत सांधख्यकी और कायाक्रम कायाान्वयन मंत्रालय (MOSPI) के तहत] की एक कें िीय
एजेंसी है धजसका काया धवकासात्मक धनयोजन हेतु महत्वपूणा क्षेत्रों में सांधख्यकीय अाँकड़े एकधत्रत
करना है।
4. जनसं ख्या अं क ड़ों को ककस प्रकार समझें ?
(How to make sense of such population data?)
धनम्नधलधखत तीन प्रश्न जनसंख्या के अाँकड़ों से संबंधधत हमारी लचताओं का समग्र रूप से समाधान कर
सकते हैं।
प्रश्न.1 ककसी क्षेत्र में ककतने लोग हैं और वे कहााँ ऄवधस्थत हैं?
प्रश्न.2 समय के साथ जनसंख्या में वृधि और पररवतान कै से हुअ है?
प्रश्न.3 लोगों की अयु, ललग संघटन, साक्षरता स्तर, व्ावसाधयक संरचना और स्वास््य धस्थधतयों अकद
से संबंधधत जानकारी।
अआये ईपयुाक्त प्रश्नों पर एक एक करके धवचार करते हैं।

4.1 जनसं ख्या का धवतरण और घनत्व

(Distribution and density of population)


 जनसंख्या के धवतरण और घनत्व का प्रधतरूप हमें ककसी भी क्षेत्र की जनसांधख्यकीय धवशेषताओं
को समझने में सहायता करता है। जनसंख्या धवतरण से अशय भूभाग पर लोगों की ऄवधस्थधत के
धवतरण से है। सामान्यतः धवि जनसंख्या का 90 प्रधतशत के वल 10 प्रधतशत भूभाग पर धनवास
करता है। माचा 2011 तक भारत की जनसंख्या 1.21 धबधलयन थी, जो धवि की कु ल जनसंख्या
का लगभग 17% है। यह 1.21 धबधलयन जनसंख्या देश के 3.28 धमधलयन वगा ककलोमीटर के
धवशाल क्षेत्र पर ऄसमान रूप से धवतररत है। दृष्टव् है कक भारत का क्षेत्रफल, धवि के कु ल क्षेत्रफल
का 2.4 प्रधतशत है।

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4.1.1 जनसं ख्या का वै धिक धवतरण

(World Distribution of Population)


 वल्डा पॉप्यूलेशन प्रॉस्पेक्टस: 2015 के ऄनुसार, 2015 के मध्य तक धवि की जनसंख्या 7.3
धबधलयन तक पहुंच गयी। वैधिक जनसंख्या का 60 प्रधतशत एधशया (4.4 धबधलयन), 16 प्रधतशत
ऄफ्रीका (1.2 धबधलयन), 10 प्रधतशत यूरोप (738 धमधलयन), 9 प्रधतशत लैरटन ऄमेररका और
कै रीधबयाइ देशों (634 धमधलयन) तथा शेष 5 प्रधतशत ईिरी ऄमेररका (358 धमधलयन) और
ओशीधनया (39 धमधलयन) में धनवास करता है। चीन (1.4 धबधलयन) और भारत (1.3 धबधलयन)
दोनों धवि के सवााधधक जनसंख्या वाले देश बने हुए हैं धजनकी जनसंख्या एक धबधलयन से भी
ऄधधक है। दोनों देश क्रमशः धवि की जनसंख्या के लगभग 19 प्रधतशत और 18 प्रधतशत भाग का
प्रधतधनधधत्व करते हैं।

धवि जनसंख्या मानधचत्र (2013)


2015 में, धवि की कु ल जनसंख्या के ऄंतगात 50.4 प्रधतशत पुरुष और 49.6 प्रधतशत मधहलाएं थीं।
वैधिक जनसंख्या की औसत अयु 29.6 वषा है। औसत अयु वह अयु होती है धजसकी तुलना में अधी
जनसंख्या की अयु ऄधधक और अधी की अयु कम होती है। वैधिक जनसंख्या का लगभग एक-चौथाइ
(26 प्रधतशत) भाग 15 वषा से कम अयु वगा में है; 62 प्रधतशत जनसंख्या 15-59 वषा अयु वगा में है

तथा 12 प्रधतशत जनसंख्या 60 या आससे ऄधधक अयु वगा में है।

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4.1.2 भारत में जनसं ख्या का धवतरण

(Distribution of Population in India)

घनत्व के अधार पर
भारतीय जनसंख्या का
धवतरण:
 जनसंख्या घनत्व को
प्रधत आकाइ क्षेत्र में
व्धक्तयों की संख्या के
रूप में ऄधभव्क्त ककया
जाता है। यह ककसी क्षेत्र
धवशेष के संबंध में
जनसंख्या के स्थाधनक
धवतरण की बेहतर
समझ धवकधसत करने में
सहायता करता है। कु ल
जनसंख्या की तुलना में
जनसंख्या घनत्व ककसी
क्षेत्र की बेहतर तस्वीर
प्रस्तुत करता है
धवशेषकर ईस धस्थधत में
जब जनसंख्या ऄसमान रूप से धवतररत हो।
 2011 की जनगणना के ऄनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्धक्त प्रधत वगा ककमी है। धवगत
60 वषों में आसमें लगभग 265 व्धक्त प्रधत वगा ककमी की धनयधमत वृधि हुइ है तथा जनसंख्या
घनत्व 1951 के 117 व्धक्त प्रधत वगा ककमी के स्तर से बढ़कर 2011 में 382 व्धक्त प्रधत वगा
ककमी हो गया है।

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4.2 जनसं ख्या धवतरण को प्रभाधवत करने वाले कारक

(Factors Influencing the Distribution of Population)

4.2.1 भौगोधलक कारक (Geographical Factors)

 जल की ईपलब्धता: जल जीवन का सवााधधक महत्वपूणा कारक है। ऄतः लोग ईन क्षेत्रों में धनवास
को प्राथधमकता देते हैं, जहां मीठा एवं स्वच्छ जल सरलता से ईपलब्ध होता है। जल का ईपयोग
पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं, फसलों, ईद्योगों तथा नौसंचालन हेतु ककया
जाता है। यही कारण है कक नदी घारटयां धवि के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्रों में सधम्मधलत हैं। आसमें
कोइ अश्चया नहीं है कक लसधु और मेसोपोटाधमया जैसी सभ्यताएं नकदयों के ककनारे ही धवकधसत
हुइ थीं, क्योंकक नकदयां आन क्षेत्रों में बधस्तयों के धलए जल की पयााप्त एवं धनधश्चत मात्रा सुधनधश्चत
करती थीं। मरुस्थलीय क्षेत्रों में जल की ऄपयााप्तता के कारण जनसंख्या घनत्व कम होता है।
मरुस्थलीय क्षेत्रों में के वल मरु ईद्यान (oasis) ही सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं और यहां भी जल
की ईपलब्धता जनसंख्या को सीधमत करती है।
 भू-अकृ धत (ईच्चावच): लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसना पसंद करते हैं। आसका कारण
यह है कक ऐसे क्षेत्र फसल ईत्पादन, सड़क धनमााण और ईद्योगों के धलए ऄनुकूल होते हैं। पवातीय
और पहाड़ी क्षेत्र पररवहन-तंत्र के धवकास में ऄवरोधक होते हैं, आसधलए ये क्षेत्र कृ धष एवं
औद्योधगक धवकास के धलए ऄनुकूल नहीं होते हैं। ऄतः आन क्षेत्रों में ऄल्प जनसंख्या पाइ जाती है।
गंगा का मैदान धवि के सवााधधक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है जबकक धहमालय के
पवातीय क्षेत्र धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। 4000 मीटर से ऄधधक की उाँचाइ पर वायुमंडल की
धवरलता के कारण सााँस लेना करठन और िम करना थका देने वाला होता है। आसधलए के वल ईन
ईच्च पठारी क्षेत्रों में जहां कृ धष और संचार कक्रया ऄपेक्षाकृ त सरल होती है, मानवीय बधस्तयां पायी
जाती हैं ऄन्यथा ऄन्य सभी पठारी क्षेत्रों में मानवीय बधस्तयां घारटयों में ही संकेंकित होती हैं।
 जलवायु: ऄधत ईष्ण और शीत मरुस्थलों की चरम जलवायवीय दशाएाँ मानवीय ऄधधवासों के
धलए कष्टकारी होती हैं। सुखद जलवायु वाले क्षेत्र जहां पर ऄधधक मौसमी पररवतान नहीं होते हैं,
लोगों को ऄधधक अकर्थषत करते हैं। आसी प्रकार ऄत्यधधक वषाा ऄथवा चरम एवं कठोर जलवायु
वाले क्षेत्रों में ऄल्प जनसंख्या पायी जाती है।
 मृदाएं: कृ धष और आससे संबंधधत गधतधवधधयों के धलए ईपजाउ मृदाएं महत्वपूणा होती हैं। ऄतः
ईपजाउ दोमट मृदा युक्त क्षेत्रों में ऄधधक लोग धनवास करते हैं क्योंकक ये मृदाएं गहन कृ धष के धलए
ऄनुकूल होती हैं।

4.2.2 अर्थथक कारक (Economic Factors)

 खधनज: खधनज धनक्षेपों से युक्त क्षेत्र ईद्योगों को बढ़ावा देते हैं तथा खनन और औद्योधगक
गधतधवधधयां रोजगार का सृजन करती हैं। ऄतः कु शल एवं ऄिा कु शल िधमक आन क्षेत्रों की ओर
पलायन करते हैं और ऐसे क्षेत्रों को सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र बना देते हैं।
 नगरीकरण: नगर रोजगार के बेहतर ऄवसर, शैक्षधणक एवं धचककत्सा सुधवधाएं तथा पररवहन एवं
संचार के बेहतर साधन प्रदान करते हैं। बेहतर जन सुधवधाएं और नगरीय जीवन के प्रधत अकषाण
लोगों को नगरों की ओर अकर्थषत करता है। आसके पररणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों
की ओर प्रवास होता है और नगरों के अकार में वृधि होती है। धवि के महानगर प्रत्येक वषा बड़ी
संख्या में प्रवाधसयों को अकर्थषत कर रहे हैं।
 औद्योगीकरण: औद्योधगक क्षेत्र, रोजगार के ऄवसर प्रदान करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों को
अकर्थषत करते हैं। आसमें के वल कारखानों के िधमक ही नहीं बधल्क ट्ांसपोटा संचालक, दुकानदार,
बैंक कमाचारी, डॉक्टर, ऄध्यापक तथा ऄन्य सेवा प्रदाता भी सधम्मधलत होते हैं।

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4.2.3 सामाधजक और सां स्कृ धतक कारक

(Social and Cultural Factors)


 कु छ स्थान धार्थमक और सांस्कृ धतक महत्त्व के कारण ऄपेक्षाकृ त ऄधधक लोगों को अकर्थषत करते हैं।
आसी प्रकार सामाधजक और राजनीधतक दृधष्ट से ऄशांत क्षेत्रों से लोग धवस्थाधपत हो जाते हैं। कइ
बार सरकारें धवधभन्न योजनाओं के माध्यम से लोगों को धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसने या
ऄत्यधधक भीड़-भाड़ वाले स्थानों से ऄन्य स्थानों पर स्थानांतरण के धलए प्रोत्साहन प्रदान करती
हैं।

जनसंख्या वृधि (Population growth)


 जनसंख्या वृधि ऄथवा जनसंख्या पररवतान से ऄधभप्राय ककसी धवधशष्ट समयावधध के दौरान ककसी
क्षेत्र में धनवाधसयों की संख्या में पररवतान से है। यह पररवतान धनात्मक भी हो सकता है और
ऊणात्मक भी। आसे या तो धनरपेक्ष संख्या या कफर प्रधतशत के रूप में ऄधभव्क्त ककया जा सकता है।
ककसी क्षेत्र में जनसंख्या पररवतान ईस क्षेत्र की अर्थथक प्रगधत, सामाधजक ईत्थान तथा ऐधतहाधसक
एवं सांस्कृ धतक पृष्ठभूधम का एक महत्वपूणा सूचक होता है।
 जनसंख्या की वृधि (Growth of Population): ककसी धवधशष्ट क्षेत्र में दो समय लबदुओं के मध्य
जनसंख्या में होने वाले पररवतान को जनसंख्या की वृधि के रूप में जाना जाता है। ईदाहरण के धलए,
यकद हम 2001 की भारत की जनसंख्या (102.70 करोड़) में से 1991 की जनसंख्या (84.63
करोड़) को घटाते हैं तो हमें वास्तधवक संख्या में जनसंख्या में वृधि (18.07 करोड़) प्राप्त होगी।
 जनसंख्या की वृधि दर (Growth Rate of Population): आससे अशय प्रधतशत के रूप में व्क्त
जनसंख्या पररवतान से है।

4.3 जनसं ख्या पररवता न के धनधाा र क

(Determinants of Population Change)


 ककसी भी देश की जनसंख्या के अकार में पररवतान तीन कारकों द्वारा धनधााररत होता है: ककतने
व्धक्तयों का जन्म हुअ है; ककतने व्धक्तयों की मृत्यु हुइ है; तथा देश छोड़ने वाले व्धक्तयों की
संख्या एवं देश में अने वाले व्धक्तयों की संख्या के अधार पर ककतने व्धक्त जनसंख्या में शाधमल
हुए हैं। आनमें से ऄंधतम कारक ऄथाात् प्रवासन, राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या वृधि के धनधाारण में मुख्य
भूधमका नहीं धनभाता है। हालााँकक, स्थानीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर आसका प्रभाव होता है। ऄतः,
जनसंख्या पररवतान के संबंध में ऄन्य दो कारकों ऄथाात् प्रजननता एवं मृत्यु दर पर ऄधधक धवस्तार
से धवचार ककया जाना अवश्यक हो जाता है।

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4.3.1. प्रजननता (Fertility)

प्रजननता, जनसंख्या वृधि का महत्वपूणा धनधाारक है। आस खंड में, ईच्च प्रजननता के मापक, स्तर एवं
प्रवृधियों तथा धनधहताथों पर चचाा की जाएगी।
प्रजननता का मापन (Measurement of Fertility)
 सवाप्रथम, संतानोत्पादकता (fecundity) एवं प्रजननता (Fertility) के मध्य ऄंतर करना अवश्यक
है। संतानोत्पादकता से अशय संतानोत्पधि हेतु शारीररक क्षमता से है जबकक प्रजननता ककसी
व्धक्त या एक समूह के वास्तधवक प्रजनन धनष्पादन से संबंधधत है। आसके साथ ही संतानोत्पादकता
की कोइ प्रत्यक्ष माप ईपलब्ध नहीं हैं जबकक प्रजननता का ऄध्ययन जन्म संबंधी सांधख्यकीय
अाँकड़ों से ककया जा सकता है। ऄशोधधत जन्म दर (Crude Birth Rate) प्रजननता की एक
महत्वपूणा माप है धजसमें के वल जीधवत जन्मों ऄथाात् जीधवत जन्मे बच्चों की गणना की जाती है।
ऄशोधधत जन्म दर की गणना ककसी धनर्ददष्ट क्षेत्र में एक कै लेंडर वषा के दौरान जन्मे जीधवत बच्चों
की संख्या को ईस वषा के मध्य की कु ल जनसंख्या से धवभाधजत कर की जाती है। ऄशोधधत जन्म
दर को सामान्यतः प्रधत 1000 जनसंख्या पर ऄधभव्क्त ककया जाता है।
 ऄशोधधत जन्म दर जनसंख्या वृधि दर में प्रजननता के योगदान को प्रत्यक्ष रूप से आं धगत करती है।
आसकी भी कु छ सीमाएं हैं, क्योंकक हर (denominator) के रुप में कु ल जनसंख्या को धलया जाता
है धजसके ऄंतगात पुरुषों, बहुत कम अयु की बाधलकाओं और ऄधत वृि मधहलाओं (जैधवक रूप से
रूप से प्रजनन के धलए ऄक्षम) को भी शाधमल कर धलया जाता है।
 आन सीमाओं को दूर करने के धलए सामान्य प्रजनन दर, अयु-धवधशष्ट प्रजनन दर आत्याकद जैसे ऄन्य
ऄधधक पररष्कृ त प्रजननता मापकों का प्रयोग ककया जाता है।
o सामान्य प्रजनन दर (General Fertility Rate): यह ककसी दी गइ ऄवधध में 15-49 अयु वगा
(गभाधारण योग्य अयु समूह) की प्रधत 1000 मधहलाओं द्वारा जन्म कदए गए जीधवत बच्चों की
संख्या है।
o अयु-धवधशष्ट प्रजनन दर (Age-Specific Fertility Rate): यह कदए गए ककसी वषा या संदभा
ऄवधध के दौरान ककसी धवधशष्ट प्रजनन योग्य अयु-समूह की 1000 मधहलाओं द्वारा जन्म कदए गए
जीधवत बच्चों की संख्या है।
o सकल प्रजनन दर (Total Fertility Rate: TFR): प्रजनन दर से तात्पया है ऐसे जीधवत जन्म लेने
वाले बच्चों की कु ल संख्या है धजन्हें कोइ एक िी जन्म देती यकद वह प्रजनन अयु वगा की पूरी
ऄवधध के दौरान जीधवत रहती और आस अयु वगा के प्रत्येक खंड में औसतन ईतने ही बच्चों को जन्म
देती धजतने ईस क्षेत्र में अयु धवधशष्ट प्रजनन दरों के ऄनुसार होने चाधहए। दूसरे शब्दों में, सकल
प्रजनन दर धियों के एक धवशेष वगा द्वारा ईनकी प्रजनन अयु की ऄवधध के ऄंत तक पैदा ककए गए
बच्चों की औसत संख्या के बराबर होती है।
ईच्च प्रजननता के धनधाारक (Determinants of High Fertility)
भारतीय मधहलाओं में ईच्च प्रजननता हेतु धनम्नधलधखत कारक ईिरदायी हैं:
 धार्थमक धवचारधाराएाँ
 धववाह संस्था का सावाभौमीकरण
 शीघ्र धववाह एवं शीघ्र गभाधारण
 भारतीय संस्कृ धत में पुत्रों को वरीयता देने की प्रथा का गहराइ से व्ाप्त होना।
 मधहलाओं में प्रजनन के संबंध में अत्मधनणायन के ऄधधकार का न होना।
 ईच्च धशशु एवं बाल मृत्यु दर - (स्वास््य का धनम्न स्तर, धनम्न पोषण स्तर तथा धनधानता) भी
पररवार के अकार को बढ़ाने में योगदान करती है।
 भारतीय समाज में बच्चों का अर्थथक, सामाधजक, सांस्कृ धतक के साथ-साथ धार्थमक महत्व होना।
 गभाधारण को धनयधन्त्रत करने के तरीकों को न ऄपनाया जाना।

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हालााँकक आनमें से ककसी भी कारक को पृथक रूप से नहीं देखा जाना चाधहए। धन:संदह
े , भारत में ईच्च

प्रजनन दर के धलए ऄनेक कारक ईिरदायी हैं।


हालांकक, ईच्च प्रजनन क्षमता हेतु ईिरदायी कारकों के साथ-साथ भारत में कु छ ऐसे पारं पररक मानक

भी धवद्यमान हैं जो ककसी दंपधि के प्रजनन व्वहार को धवधनयधमत करते हैं। स्तनपान भारतीय
ईपमहाद्वीप में सवात्र प्रचधलत है और आसका गभााधान पर एक ऄवरोधक प्रभाव होता है। आसके साथ ही
प्रसवोिर ऄवधध के दौरान कु छ वजानाओं को भी व्वहार में लाया जाता है एवं दंपधि से यौन
गधतधवधधयों से दूर रहने की ऄपेक्षा की जाती है। ऄपने प्रथम धशशु के प्रसव के समय मधहला के ऄपने
पैतक
ृ घर जाने की प्रथा भी देश के कु छ भागों में सामान्य रूप से प्रचधलत है। आस प्रथा के कारण भी
धशशु जन्म के ईपरांत दंपधि यौन गधतधवधधयों से दूर रहते हैं धजसके पररणामस्वरूप ऄगले गभाधारण
की प्रकक्रया भी स्थधगत हो जाती है। महीने के कु छ धवधशष्ट कदनों के धलए यौन गधतधवधधयां भी
प्रधतबंधधत होती हैं। आसके ऄधतररक्त यह भी सवाधवकदत है कक यकद कोइ मधहला दादी बनने के बाद भी
गभाधारण करे तो ईसे ईपहास का पात्र बनना पड़ता है।

4.3.1.1 ईच्च प्रजननता के धनधहताथा

(Implications of high fertility)

ईच्च प्रजननता, देश की जनसंख्या समस्या में महत्वपूणा योगदान करने के ऄधतररक्त पररवार के साथ-

साथ समाज को भी ऄनेक प्रकार से प्रभाधवत करती है।


 मधहलाएं ऄपने प्रजनन काल के सवोिम वषों में संतानोत्पधि एवं ईनके पालन-पोषण से बंधी हुइ
होती हैं। आस प्रकार वे अत्म-ऄधभव्धक्त और अत्म-धवकास से संबंधधत ऄवसरों से वंधचत कर दी
जाती हैं। आससे ईनमें धनराशा का भाव ईत्पन्न हो सकता है। ऄत्यधधक संतानोत्पधि ईनके स्वास््य
तथा ईनके बच्चों के स्वास््य को प्रभाधवत करती है। आसके ऄधतररक्त ऄधधक बच्चों की देखभाल ऐसी
मधहलाओं के दुबल
ा शारीररक एवं भावनात्मक साम्या पर और ऄधधक दबाव डालती है।
 एक बड़े पररवार का पालन-पोषण पररवार के पालनकताा पर ऄत्यधधक दबाव डालता है। पररवार
के एक धनवााह स्तर को बनाए रखने के धलए धनरं तर संघषा करना करठन हो जाता है। ऐसे में वह
जीवन की प्रधतकदन की समस्याओं से बचने के धलए मद्यपान अरम्भ कर सकता है, धजससे पररवार

के अर्थथक एवं भावनात्मक कल्याण में और धगरावट अने लगती है।


 ऐसे में वे बच्चे जो प्रायः ऄवांधछत, ऄधप्रय और ईपेधक्षत होते हैं, ईन्हें जीवन धनवााह के धलए ऄके ला

छोड़ कदया जाता है। बड़े अकार के पररवारों के बच्चे पररवार के कमज़ोर धविीय संसाधनों की पूर्थत
हेतु प्राय: ऄल्प अयु में ही काया करना अरम्भ कर देते हैं। यहााँ तक कक वे अपराधधक गधतधवधधयों
में धलप्त हो जाते हैं और आस प्रकार वे धवद्यालय जाने एवं धशक्षा प्राप्त करने के ऄवसरों से वंधचत हो
जाते हैं।
 आन पररधस्थधतयों में बाधलकाएं सवााधधक पीधड़त होती हैं। ईन्हें प्रायः धवद्यालय नहीं भेजा जाता या
कम ईम्र में ही धवद्यालय जाना बंद करवा कदया जाता है ताकक वे घरे लू कायों में ऄपनी माता की
सहायता कर सकें तथा माता के घर से बाहर काया करने जाने पर ऄपने छोटे भाइ-बहनों की
देखभाल कर सकें । तत्पश्चात् शीघ्र धववाह ईन्हें संतानोत्पधि के धलए धववश करता है और यह
दुष्चक्र धनरं तर जारी रहता है। एक बड़े पररवार में बच्चे (लड़का और लड़की दोनों) ऄपने बचपन
का अनंद लेने से वंधचत हो जाते हैं तथा ऄल्पायु में ईन्हें वयस्कों की भूधमका का धनवाहन करना
पड़ता है।

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भारत में प्रजनन दर
प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली के ऄनुसार सकल प्रजनन दर (TFR) 2011 और 2012 के 2.4 से कम होकर
2013 में 2.3 हो गइ जो 2016 तक धस्थर बनी रही। 24 राज्य एवं के न्िशाधसत प्रदेश 2.1 के प्रजनन
प्रधतस्थापन स्तर को प्राप्त कर चुके हैं।
ध्यातव् है कक सहस्राधब्द धवकास लक्ष्यों (MDG) के ऄंतगात सकल प्रजनन दर (TFR) हेतु कोइ भी लक्ष्य
धनधााररत नहीं ककया गया था।

भारत और बड़े राज्य सकल प्रजनन दर (TFR)

2011 2012 2013

भारत 2.4 2.4 2.3

अंध्र प्रदेश 1.8 1.8 1.8

ऄसम 2.4 2.4 2.3

धबहार 3.6 3.5 3.4

छिीसगढ़ 2.7 2.7 2.6

कदल्ली 1.8 1.8 1.7

गुजरात 2.4 2.3 2.3

हररयाणा 2.3 2.3 2.2

धहमाचल प्रदेश 1.8 1.7 1.7

जम्मू कश्मीर 1.9 1.9 1.9

झारखण्ड 2.9 2.8 2.7

कनााटक 1.9 1.9 1.9

के रल 1.8 1.8 1.8

मध्यप्रदेश 3.1 2.9 2.9

महाराष्ट्र 1.8 1.8 1.8

ओधडशा 2.2 2.1 2.1

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पंजाब 1.8 1.7 1.7

राजस्थान 3.0 2.9 2.8

तधमलनाडु 1.7 1.7 1.7

ईिर प्रदेश 3.4 3.3 3.1

पधश्चम बंगाल 1.7 1.7 1.6

4.3.2. मृ त्यु दर (Mortality)

मृत्यु दर का मापन
मृत्यु दर के धवधभन्न मापकों में से, तीन अधारभूत मापकों यथा: ऄशोधधत मृत्यु दर, जन्म के समय
जीवन प्रत्याशा तथा धशशु मृत्यु दर का वणान करना पयााप्त होगा।
 ऄशोधधत मृत्यु दर (Crude Death Rate): यह ककसी एक धवधशष्ट कै लेंडर वषा में ककसी क्षेत्र की
ऄनुमाधनत जनसंख्या के अधार पर प्रधत 1000 व्धक्तयों पर होने वाली पंजीकृ त मृत्युओं की
संख्या होती है।
 जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (Expectation of Life at Birth): जन्म के समय औसत जीवन
प्रत्याशा मृत्यु दर के स्तर की एक बेहतर मापक है क्योंकक यह जनसंख्या की अयु संरचना से
प्रभाधवत नहीं होती है। “जीवन की औसत प्रत्याशा” या ‘जीवन प्रत्याशा’ नवजात धशशुओं के
जीधवत रहने के संभाधवत वषों की औसत संख्या होती है (जबकक आस ऄवधध के दौरान देश में
प्रचधलत अयु-धवधशष्ट मृत्यु दरों के ऄनुरूप मृत्यु का जोधखम भी मौजूद रहता है)। यह मापक
गणना करने में जरटल है परन्तु समझने में असान है।

भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा


वषा 1950 में जन्म से समय जीवन प्रत्याशा 37 वषा थी जबकक वतामान में जीवन प्रत्याशा बढ़कर
लगभग दो गुनी (68 वषा) हो गइ है, धजसके 2050 तक 76 वषा होने की संभावना व्क्त की गइ है।

आसके पररणामस्वरूप भारत की जनसंख्या वतामान की 1.3 धबधलयन से बढ़कर 2050 तक लगभग 1.7
धबधलयन हो जाएगी, धजसमें वयोवृिों की संख्या लगभग 340 धमधलयन होगी। सेवाधनवृधि से पूवा की
ऄवस्था (ऄथाात् 45 वषा से ऄधधक अयु की जनसंख्या) की जनसंख्या को शाधमल करने पर आस ऄनुपात

में 30% से ऄधधक की वृधि हो जाएगी ऄथाात् वृिों की संख्या लगभग 600 धमधलयन हो जाएगी। आस
प्रकार 2011 और 2050 के मध्य 75 वषा या ईससे ऄधधक अयु वगा के वयोवृि व्धक्तयों की संख्या में
340% की वृधि होने की संभावना है।

 धशशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate): जनसांधख्यकी में ईन सभी बच्चों को धशशु के रूप में
पररभाधषत ककया गया है जो ऄपने जीवनकाल के प्रथम वषा में हैं ऄथाात् धजनकी अयु एक वषा से
कम है। भारत जैसे देशों में जहााँ स्वास््य धस्थधतयां धनम्नस्तरीय हैं, कु ल मृत्युओं में धशशु मृत्यु का
योगदान ऄत्यधधक है। आसीधलए प्राय: धशशु मृत्यु दर का ईपयोग ककसी देश की सामाधजक-अर्थथक
धस्थधत तथा जीवन की गुणविा के धनधाारण के एक संकेतक के रूप में ककया जाता है।

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भारत में धशशु मृत्यु दर
रधजस्ट्ार जनरल ऑफ़ आं धडया द्वारा प्रकाधशत प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली ररपोटा के ऄनुसार देश में
धशशु मृत्यु दर (IMR) 2010 के प्रधत 1000 जीधवत जन्मों पर 47 से घटकर 2016 में प्रधत 1000
जीधवत जन्म पर 34 हो गइ थी।
सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य (MDG) 4 के तहत 1990 और 2015 के मध्य बाल मृत्यु (Child Mortality)
को घटाकर दो-धतहाइ करने का लक्ष्य रखा गया था। भारत के मामले में यह लक्ष्य धशशु मृत्यु दर
(Infant mortality rate) को 1990 के 88 से घटाकर 2015 में 29 करना था।
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र ने सतत धवकास लक्ष्य और ईद्देश्य धनधााररत ककए हैं। भारत के धलए लक्ष्य
2030 तक पांच वषा से कम अयु के बच्चों की मृत्यु दर को 25 तक लाना है।

 मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate): मातृ मृत्यु ऄनुपात का ऄधभप्राय प्रत्येक गभाावस्था
के साथ संबि जोधखम ऄथाात् प्रसूधत संबंधी जोधखम (obstetric risk) से है। मातृ मृत्यु वह होती
है धजसमें एक मधहला की गभाावस्था के दौरान या गभाावस्था की समाधप्त के 42 कदनों के भीतर
मृत्यु हो जाती है (आसकी गणना गभाावस्था की ऄवधध एवं स्थल को ध्यान में रखे धबना की जाती
है)। आसके ऄंतगात गभाावस्था या ईसके प्रबंधन से संबंधधत ककसी भी कारण से हुइ मृत्यु को
सधम्मधलत ककया जाता है तथा दुघाटना या अकधस्मक कारणों से हुइ मृत्यु को सधम्मधलत नहीं
ककया जाता है। आसे प्रधत 1,00,000 जीधवत धशशु जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्युओं की संख्या के
रूप में मापा जाता है।

भारत में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality rate in India)

प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली की 2011-13 की ररपोटा के ऄनुसार, देश में मातृ मृत्यु दर (MMR) 167 प्रधत
1,00,000 जीधवत जन्म है।
सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य (Millennium Development Goal: MDG) 5 के ऄंतगात, 1990 से 2015
के मध्य मातृ मृत्यु दर (MMR) को तीन चौथाइ कम करने का लक्ष्य रखा गया था। आसके पररणामस्वरूप
MMR को 1990 के 560 से घटाकर 2015 में 140 करना था।

4.3.3. प्रवासन (Migration)

जन्म और मृत्यु के ऄधतररक्त एक ऄन्य कारक भी है धजसके कारण जनसंख्या के अकार में पररवतान
होता है। जब लोग एक ईद्गम स्थान से ऄन्यत्र धस्थत गंतव् स्थान की ओर प्रवास करते हैं तो ईद्गम
स्थान की जनसंख्या में कमी होती है और गंतव् स्थान की जनसंख्या में वृधि हो जाती है।
प्रवासन को संसाधनों और जनसंख्या के मध्य बेहतर संतल ु न प्राप्त करने के एक स्वाभाधवक प्रयास के
रूप में देखा जा सकता है। प्रवासन स्थायी, ऄस्थायी या मौसमी हो सकता है। प्रवासन ग्रामीण से
ग्रामीण क्षेत्रों, ग्रामीण से नगरीय क्षेत्रों, नगरीय से नगरीय क्षेत्रों तथा नगरीय से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर
हो सकता है।
अप्रवासन (Immigration): ककसी नए स्थान में अने वाले प्रवाधसयों को ‘अप्रवासी’ कहा जाता है।
ईत्प्रवास (Emigration): ककसी स्थान से बाहर पलायन करने वाले प्रवाधसयों को ‘ईत्प्रवासी’ कहा
जाता है।
लोग बेहतर अर्थथक और सामाधजक जीवन के ईद्देश्य से प्रवास करते हैं। प्रवासन को प्रभाधवत करने
वाले कारकों को दो भागों में धवभाधजत ककया जाता है।

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प्रधतकषा कारक (Push factors) यथा बेरोजगारी, रहन-सहन की धनम्नस्तरीय दशाएं, राजनीधतक
ऄधस्थरता, प्रधतकू ल जलवायु, प्राकृ धतक अपदाएं, महामाररयां और सामाधजक-अर्थथक धपछड़ापन
ईद्गम स्थान को कम अकषाक बनाते हैं।
ऄपकषा कारक (Pull factors) यथा बेहतर रोज़गार के ऄवसर और रहन-सहन की बेहतर दशाएाँ,
शांधत एवं धस्थरता, जीवन एवं संपधि की सुरक्षा तथा ऄनुकूल जलवायु गंतव् स्थान को ईद्गम स्थान
की तुलना में ऄधधक अकषाक बनाते हैं।
प्रवासन, अंतररक (देश के भीतर) या ऄंतरााष्ट्रीय (एक देश से दूसरे देश को) हो सकता है। अंतररक
प्रवासन, देश के जनसंख्या के अकार को पररवर्थतत नहीं करता है, परन्तु देश के भीतर जनसंख्या के
धवतरण को प्रभाधवत करता है। प्रवासन, जनसंख्या की संघटन और धवतरण को पररवर्थतत करने में
महत्वपूणा भूधमका धनभाता है।
(प्रवासन पर ऄधधक जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रवासन संबध
ं ी पाठ्य सामग्री का संदभा लें)

जनसंख्या की प्राकृ धतक वृधि (Natural Growth of Population): जनसंख्या की प्राकृ धतक वृधि से
अशय ककसी क्षेत्र धवशेष में दो समय ऄंतरालों के मध्य जन्म और मृत्यु के ऄंतर के कारण जनसंख्या में
होने वाली वृधि से है।
प्राकृ धतक वृधि = जन्म - मृत्यु
जनसंख्या की वास्तधवक वृधि = जन्म - मृत्यु + अप्रवास - ईत्प्रवास
जनसंख्या की धनात्मक वृधि (Positive Growth of Population): यह तब होती है जब दो समय
लबदुओं के मध्य जन्म दर, मृत्यु दर से ऄधधक हो या जब लोग स्थायी रूप से ऄन्य देशों से एक क्षेत्र में
प्रवास करते हैं।
जनसंख्या की ऊणात्मक वृधि (Negative Growth of Population): यकद दो समय लबदुओं के मध्य
जनसंख्या कम हो जाए तो ईसे जनसंख्या की ऊणात्मक वृधि कहते हैं। यह तब होता है जब जन्म दर,
मृत्यु दर से कम हो जाए या लोग ऄन्य देशों में प्रवास कर जाएाँ।

4.4 जनसं ख्या वृ धि की प्रवृ धियााँ

(Trends in Population Growth)

4.4.1. वै धिक जनसं ख्या में ऄनु माधनत वृ धि

(Projected growth in the world population)


वतामान में, धवि की जनसंख्या में धवगत कु छ वषों की तुलना में मंद गधत से वृधि हो रही है। दस वषा
पूव,ा धवि जनसंख्या में प्रधत वषा 1.24 प्रधतशत की दर से वृधि हो रही थी। परन्तु वतामान में आसमें
प्रधत वषा 1.18 प्रधतशत की दर से वृधि हो रही है ऄथाात् लगभग 83 धमधलयन की अबादी प्रधतवषा
धवि की जनसंख्या में शाधमल हो रही है। ऐसा ऄनुमान है कक अगामी 15 वषों में धवि की जनसंख्या
में एक धबधलयन से ऄधधक लोग बढ़ जाएाँगे तथा वषा 2030 तक धवि जनसंख्या 8.5 धबधलयन, 2050
तक 9.7 धबधलयन तथा 2100 तक 11.2 धबधलयन हो जाएगी।
 ऄफ्रीका सबसे तीव्र वृधि करने वाला प्रमुख क्षेत्र है: ऐसा ऄनुमान है कक वतामान से लेकर वषा
2050 तक वैधिक जनसंख्या में होने वाली कु ल वृधि की लगभग अधे से ऄधधक ऄफ्रीकी महाद्वीप
में दजा की जाएगी। ऄफ्रीका की जनसंख्या वृधि दर ऄन्य प्रमुख क्षेत्रों की तुलना में सवाा धधक है,
2010-2015 के मध्य आसकी वार्थषक वृधि दर 2.55 प्रधतशत रही। आसके पररणामस्वरूप 2015
से 2050 के मध्य वैधिक जनसंख्या में होने वाली 2.4 धबधलयन की ऄनुमाधनत वृधि में 1.3

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धबधलयन की वृधि ऄके ले ऄफ्रीका में होगी। आसी ऄवधध के दौरान 0.9 धबधलयन की जनसंख्या
वृधि के साथ एधशया के वैधिक जनसंख्या वृधि में दूसरे सबसे बड़े योगदानकताा होने का ऄनुमान
है। आसके पश्चात ईिरी ऄमेररका, लैरटन ऄमेररका एवं कै रीधबयाइ देशों और ओशीधनया का स्थान
अता है जहााँ जनसंख्या में बहुत कम वृधि होने का ऄनुमान है। ईल्लेखनीय है कक 2015 की तुलना
में 2050 में यूरोप में जनसंख्या में कमी होने का ऄनुमान है। वहीं धनकट भधवष्य में प्रजनन स्तर में
पयााप्त कमी होने के बावजूद ऄफ्रीका की जनसंख्या में तीव्र गधत से वृधि होने की संभावना व्क्त
की गयी है।
 ऄल्प धवकधसत देशों (Least Developed Countries:LDCs) में ईच्च जनसंख्या वृधि- संयुक्त
राष्ट्र द्वारा नाधमत 48 ऄल्प धवकधसत देशों (LDCs) में ईच्च जनसंख्या वृधि होगी। आन LDCs में
से 27 ऄफ्रीका में ऄवधस्थत हैं। हालांकक LDCs की जनसंख्या वृधि दर, आनकी वतामान वार्थषक
वृधि दर (2.4 प्रधतशत) से कम रहने का ऄनुमान है। वषा 2015 से 2100 के मध्य 33 देशों,
धजनमें से ऄधधकांश LDCs हैं, की जनसंख्या में कम से कम तीन गुना वृधि होने की ऄत्यधधक
संभावना है। आनमें शाधमल ऄंगोला, बुरुंडी, डेमोक्रेरटक ररपधब्लक ऑफ़ कांगो, मलावी, माली,
नाआजर, सोमाधलया, युगांडा, यूनाआटेड ररपधब्लक ऑफ़ तंजाधनया तथा जाधम्बया की जनसंख्या में
वषा 2100 तक कम से कम पांच गुना वृधि होने का ऄनुमान है।
 यूरोप की जनसंख्या में कमी का ऄनुमान: 2015 से 2050 के मध्य 48 यूरोपीय देशों ऄथवा धवि
के ऄन्य क्षेत्रों की जनसंख्या में कमी होने का ऄनुमान है। बोधिया और हजेगोधवना, बुल्गाररया,
क्रोएधशया, हंगरी, जापान, लातधवया, धलथुअधनया, ररपधब्लक ऑफ़ माल्डोवा, रोमाधनया,
सर्थबया तथा यूक्रेन सधहत ऄधधकांश देशों में 2050 तक जनसंख्या में 15 प्रधतशत तक कमी होने
की संभावना व्क्त की गयी है। सभी यूरोपीय देशों में प्रजनन दर दीघाावधध में जनसंख्या के पूणा
प्रधतस्थापन हेतु अवश्यक स्तर से कम (औसतन, 2.1 बच्चे प्रधत मधहला) है तथा ऄधधकांश मामलों
में प्रजनन दर कइ दशकों से प्रधतस्थापन स्तर से कम बनी हुइ है। संपण
ू ा यूरोप में प्रजनन दर के
2010-2015 में 1.6 बच्चे प्रधत मधहला से बढ़कर 2045-2050 में 1.8 बच्चे प्रधत मधहला तक होने
की संभावना है, परन्तु यह वृधि जनसंख्या के अकार के संभाधवत संकुचन को रोकने हेतु पयााप्त
नहीं होगी।
 वैधिक जनसंख्या में ऄधधकांश वृधि के धलए कु छ देशों को ईिरदायी ठहराया जा सकता है:
वतामान से लेकर 2050 तक होने वाली कु ल वृधि के ऄधधकांश भाग हेतु या तो ईच्च प्रजनन दर
वाले देशों (मुख्यतः ऄफ्रीकी देश) ऄथवा ऄधधक जनसंख्या वाले देशों के ईिरदायी होने का
ऄनुमान है। 2015-2050 की ऄवधध के दौरान धवि की अधी जनसंख्या वृधि के धनम्नधलधखत नौ
देशों में कें कित होने का ऄनुमान है: भारत, नाआजीररया, पाककस्तान, डेमोक्रेरटक ररपधब्लक ऑफ़
कांगो, आधथयोधपया, यूनाआटेड ररपधब्लक ऑफ़ तंज़ाधनया, संयुक्त राज्य ऄमेररका, आं डोनेधशया तथा
युगांडा (कु ल वैधिक जनसंख्या वृधि में आनके योगदान के अकार के अधार पर क्रमबि)।
 धवि भर में दीघाायत
ु ा में वृधि; प्रमुख चुनौधतयों के धवरुि प्रगधत: हाल के वषों में, जीवन प्रत्याशा
में महत्वपूणा वृधि हुइ है। वैधिक स्तर पर, 2000-2005 तथा 2010-2015 के मध्य जन्म के
समय जीवन प्रत्याशा में 3 वषा (67 से 70 वषा) की वृधि हुइ है। आस ऄवधध के दौरान सभी प्रमुख
क्षेत्रों में जीवन प्रत्याशा में वृधि हुइ है, परन्तु ऄफ्रीका में सवााधधक वृधि दजा की गइ। 2000 के
दशक में ऄफ्रीका में जीवन प्रत्याशा में 6 वषा की वृधि हुइ, जबकक आससे पूवा के दशक में के वल 2
वषों की ही वृधि हुइ थी।
 पांच वषा से कम अयु वगा में मृत्यु दर (Under-five mortality) का अशय धशशु के जन्म से पांचवें
जन्मकदन के मध्य मृत्यु की संभावना से है। यह दर बच्चों के धवकास एवं कल्याण की एक महत्वपूणा

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सूचक है। वैधिक स्तर पर, 2000-2005 के दौरान पांच वषा से कम अयु के बच्चों की औसत मृत्यु
दर प्रधत 1000 जीधवत जन्मों पर 71 थी जो 2010-2015 में घटकर लगभग 50 प्रधत 1000 तक
हो गयी। धवशेषतः ईप-सहारा ऄफ्रीका (प्रधत 1000 पर 142 से घटकर 99) एवं ऄल्प धवकधसत

देशों (प्रधत 1000 पर 125 से घटकर 86) में सवााधधक कमी देखी गइ। पांच वषा से कम अयु वगा
में मृत्यु दर की कमी को सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य- 4 में सधम्मधलत ककए जाने से आसकी ओर वैधिक
ध्यान अकृ ष्ट हुअ है।
 जनसांधख्यकीय लाभांश के धलए ऄवसर: धवि के कइ भागों की जनसंख्या ऄभी भी युवा है। वषा
2015 में ऄफ्रीका महाद्वीप में 15 वषा से कम अयु के बच्चों की जनसंख्या कु ल जनसंख्या का 41
प्रधतशत तथा 15 से 24 वषा के युवाओं की संख्या कु ल जनसंख्या का 19 प्रधतशत थी। वहीं लैरटन
ऄमेररका एवं कै रे धबयाइ देशों तथा एधशया में प्रजनन दर में ऄत्यधधक धगरावट दजा की गइ है।
आनकी कु ल जनसंख्या में बच्चों (क्रमशः 26 और 24) और युवाओं (क्रमशः 17 और 16 प्रधतशत) की

जनसंख्या का प्रधतशत ऄत्यंत कम है। समग्र रूप से, 2015 तक आन तीनों क्षेत्रों की जनसंख्या में
बच्चों एवं युवाओं की संख्या क्रमशः 1.7 धबधलयन और 1.1 धबधलयन थी।

आन क्षेत्रों के कइ देशों की जनसंख्या में बच्चों के ऄनुपात में धनकट भधवष्य में और ऄधधक धगरावट का
ऄनुमान है, जबकक युवा कायाशील जनसंख्या के अकार एवं ऄनुपात में वृधि होने की संभावना है।

अधित जनसंख्या की तुलना में कायाशील जनसंख्या के ईच्च ऄनुपात वाले देशों के "जनसांधख्यकीय
लाभांश" से लाभाधन्वत होने की ऄधधक संभावना है। हालांकक जनसांधख्यकीय लाभांश की प्राधप्त ईधचत
िम बाजार और ऄन्य नीधतगत पहलों के माध्यम से कायाशील जनसंख्या की ईत्पादक क्षमता का ईधचत
दोहन कर तथा बच्चों एवं युवा मानव संसाधन में धनवेश में वृधि करके ही की जा सकती है।

 वैधिक स्तर पर 60 वषा या आससे ऄधधक अयु की जनसंख्या में तीव्रता से वृधि हो रही है: वह
पररघटना, धजसके ऄंतगात प्रजनन दर में कमी एवं जीवन प्रत्याशा में वृधि होती है और
पररणामस्वरूप एक धनधश्चत अयु से ऄधधक की जनसंख्या के ऄनुपात में वृधि होती है; पॉपुलश
े न

एलजग (जनसंख्या में वृिों की बढ़ती संख्या) के रूप में जानी जाती है। वतामान में यह वैधिक स्तर
पर घरटत हो रही है। वस्तुतः वषा 2050 तक ऄफ्रीका के ऄधतररक्त, धवि के सभी प्रमुख क्षेत्रों में
60 या ईससे ऄधधक अयु वगा की जनसंख्या कु ल जनसंख्या की 25 प्रधतशत या ईससे ऄधधक
होगी।

ऐसा माना जाता है कक धवधभन्न देशों में पापुलेशन एलजग का िधमकों एवं सेवाधनवृत िधमकों के
ऄनुपात पर गहरा प्रभाव पड़ता है, धजसे संभाधवत पराधितता ऄनुपात (Potential Support Ratio:

PSR) के रूप में मापा जाता है। आसके ऄंतगात 20 से 64 वषा की अयु के लोगों की संख्या को 65 वषा
या ईससे ऄधधक अयु के लोगों की संख्या से धवभाधजत ककया जाता है। वतामान में, ऄफ्रीकी देशों में
प्रत्येक 65 वषा या ईससे ऄधधक अयु के व्धक्त पर 20 से 64 वषा के औसतन 12.9 व्धक्त मौजूद हैं,

जबकक एधशयाइ देशों में PSR 8.0 तथा यूरोप एवं ईिरी ऄमेररका में यह 4 या ईससे भी कम है।
जापान में PSR 2.1 है जो की संपूणा धवि में सबसे कम है (हालांकक सात यूरोपीय देशों में भी PSR 3
से कम है)। आससे धनकट भधवष्य में कइ देशों की स्वास््य देखभाल प्रणाली के साथ-साथ वृिावस्था एवं
सामाधजक सुरक्षा प्रणाधलयों पर राजकोषीय और राजनीधतक दबाव में वृधि होगी।

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4.4.2. भारत में जनसं ख्या वृ धि की प्रवृ धि

(Trend in Growth of Indian Population)


यह महत्वपूणा है कक स्वतंत्रता के पश्चात् से ऄब तक की ऄवधध में, 2001-11 के दौरान जनसंख्या की
दशकीय वृधि के प्रधतशत में सवााधधक धगरावट दजा की गइ है। यह वृधि 1981-1991 के 23.87% से
घटकर 1991-2001 में 21.54% हो गयी थी ऄथाात आस दौरान 2.33 प्रधतशत की कमी दजा की गयी
थी। तत्पश्चात् 2001-2011 की दशकीय वृधि दर में 3.90 प्रधतशत की कमी के साथ यह 17.64% हो
गइ।
आसी प्रकार, 2001-2011 के दौरान औसत वार्थषक चरघातांकी वृधि दर 1991-2001 के दशक की
1.97% से घटकर 1.64% पहुाँच गइ थी। वहीं 1981-1991 के दशक की औसत वार्थषक चरघातांकी
वृधि दर 2.16 थी।
आस प्रवृधि की पहचान ककस प्रकार की जा सकती है?

धवगत एक शताब्दी के दौरान भारत में जनसंख्या वृधि, वार्थषक जन्म दर, मृत्यु दर तथा प्रवास की दर
के कारण हुइ है और आसधलए यह वृधि धवधभन्न प्रवृधियों को दशााती है। वस्तुतः आस ऄवधध के दौरान
जनसंख्या वृधि के चार धवधशष्ट चरणों की पहचान की गइ है:

चरण 1: 1901 से 1921 की ऄवधध को भारत की जनसंख्या की धीमी ऄथवा धस्थर वृधि का चरण
कहा जाता है क्योंकक आस ऄवधध में वृधि दर ऄत्यंत धनम्न थी, यहााँ तक की 1911-1921 के दौरान
ऊणात्मक वृधि दर दजा की गइ थी। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों के ईच्च होने के कारण वृधि दर धनम्न
बनी रही। आसके ऄधतररक्त धनम्नस्तरीय स्वास््य एवं धचककत्सा सेवाएं, लोगों में व्ापक स्तर पर
धनरक्षरता, भोजन और ऄन्य अधारभूत अवश्यकताओं की ऄकु शल धवतरण प्रणाली आस ऄवधध दौरान
ईच्च जन्म और मृत्यु दर के धलए मुख्य रूप से ईिरदायी थे।

चरण 2: 1921-1951 के दशक को जनसंख्या की धनरं तर वृधि की ऄवधध के रूप में जाना जाता है।
देश-भर में स्वास््य और स्वच्छता में सुधारों के पररणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी हुइ। साथ ही साथ
बेहतर पररवहन और संचार तंत्र के कारण धवतरण प्रणाली में सुधार हुअ। आस ऄवधध के दौरान
ऄशोधधत जन्म दर ईच्च बनी रही फलस्वरूप चरण 1 की तुलना में वृधि दर ईच्चतर बनी रही। 1920 के
दशक की महान अर्थथक मंदी और धद्वतीय धवि युि की पृष्ठभूधम में यह वृधि दर प्रभावशाली थी।

चरण 3: 1951-1981 के दशकों को भारत में जनसंख्या धवस्फोट की ऄवधध के रूप में जाना जाता है।
यह धस्थधत देश में मृत्यु दर में तीव्र कमी और जनसंख्या की ईच्च प्रजनन दर के कारण ईत्पन्न हुइ थी।
जनसंख्या की औसत वार्थषक वृधि दर 2.2 प्रधतशत तक ईच्च बनी रही। स्वतंत्रता प्राधप्त के पश्चात् आसी
समयावधध के दौरान एक कें िीकृ त धनयोजन प्रकक्रया के माध्यम से धवकासात्मक कायों को अरम्भ ककया
गया। आन प्रयासों के कारण ऄथाव्वस्था में सुधार हुअ धजससे लोगों के जीवन स्तर में व्ापक सुधार
हुअ। आसका पररणाम यह हुअ कक जनसंख्या में ईच्च प्राकृ धतक वृधि तथा ईच्चतर वृधि दर बनी रही।
आसके ऄधतररक्त पड़ोसी देशों से बढ़ते ऄंतरााष्ट्रीय प्रवासन ने भी ईच्च वृधि दर में योगदान कदया।

चरण 4: यद्यधप 1981 से वतामान तक देश की जनसंख्या की वृधि दर ईच्च बनी हुयी है लेककन आस

ईिरोिर धगरावट होना अरं भ हो गयी है। जनसंख्या वृधि की आस धवधशष्टता के धलए ऄशोधधत जन्म
दर की ऄधोमुखी प्रवृधि ईिरदायी है। आसके धलए देश में धववाह करने की अयु में वृधि, जीवन की
गुणविा में सुधार धवशेष रूप से मधहलाओं की धशक्षा अकद प्रमुख ईिरदायी कारक हैं। देश में जनसंख्या
की वृधि दर ऄभी भी ईच्च बनी हुइ है और वल्डा डेवलपमेंट ररपोटा के ऄनुसार वषा 2025 तक भारत की
जनसंख्या के 1.35 धबधलयन तक पहुाँचने का ऄनुमान है।
ईपयुाक्त धवश्लेषण औसत वृधि दर को दशााता है, ककतु देश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वृधि दर में
धवस्तृत धभन्नताएाँ धवद्यमान हैं। धचत्र S4 और S5 का संदभा लेकर आसे स्पष्ट ककया जा सकता है।

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5. जनसां धख्यकीय सं क्र मण धसिां त
(Theory of Demographic Transition)

जनसांधख्यकीय संक्रमण धसिांत, समाज के एक जनसांधख्यकीय ऄवस्था से दूसरी ऄवस्था में प्रवेश के

दौरान मृत्यु दर, प्रजननता और वृधि दर के बदलते प्रधतरूप का एक सामान्य वणान प्रस्तुत करता है।
यह ऄवधारणा सवाप्रथम बीसवीं शताब्दी के मध्य में ऄमेररकी जनसांधख्यकी धवशेषज्ञ फ्रैंक डब्ल्यू
नेटोस्टीन द्वारा दी गइ थी। परन्तु बाद में कइ ऄन्य जनसांधख्यकी धवशेषज्ञों द्वारा आसकी व्ाख्या एवं
धवस्तार ककया गया।
यह धसिांत प्रस्ताधवत करता है कक जनसंख्या वृधि अर्थथक धवकास के समग्र स्तरों से जुड़ी हुइ है तथा
प्रत्येक समाज धवकास-सम्बन्धी जनसंख्या वृधि के एक धवधशष्ट प्रधतरूप को दशााता है।
पारं पररक जनसांधख्यकीय संक्रमण मॉडल के ऄंतगात चार चरण होते हैं:
चरण 1: पूव-ा संक्रमण ऄवस्था (Pre-transition)
यह चरण ऄल्पधवकधसत और तकनीकी रूप से धपछड़े समाजों में धीमी जनसंख्या वृधि को दशााता है।
आस ऄवस्था में मृत्यु दर और जन्म दर, दोनों ही ऄत्यधधक ईच्च होती हैं तथा दोनों के मध्य ऄंतर कम
होता है। आस प्रकार कु ल वृधि दर कम होती है। ईच्च जन्म दर और ईच्च ऄधस्थर मृत्यु दर आस ऄवस्था की
प्रमुख पहचान होती है।
चरण 2: प्रारं धभक संक्रमण ऄवस्था (Early transition)

संक्रमण के प्रारं धभक चरणों के दौरान, मृत्यु दर में कमी होने लगती है जबकक जन्म दर ईच्च बनी रहती

है। आससे जनसंख्या में तीव्र गधत से वृधि होने लगती है। यह 'जनसंख्या धवस्फोट' की ऄवस्था होती है

क्योंकक रोग धनयंत्रण, जन स्वास््य और बेहतर पोषण के ईन्नत साधनों के कारण मृत्यु दर सापेधक्षक

रूप से तेजी से कम होने लगती है। हालांकक, समाज को आस पररवतान के प्रधत संयोधजत होने में और
सापेधक्षक रूप से ऄधधक समृधि और बढ़ती जीवन प्रत्याशा की आन नइ पररधस्थधतयों के ऄनुरूप ऄपने
प्रजनन व्वहार (जो धनधानता और ईच्च मृत्यु दर की ऄवधध के दौरान धवकधसत हुअ था) को पररवर्थतत
करने में ऄधधक समय लगता है। भारत में भी ऄभी तक जनसांधख्यकीय संक्रमण पूणा नहीं हुअ है क्योंकक
मृत्यु दर तो कम हुइ है परन्तु जन्म दर में ईस स्तर तक कमी नहीं अयी है (वस्तुतः भारत में एक
जनसांधख्यकीय धवभाजन धवद्यमान है धजसमें दधक्षणी राज्यों ने जनसांधख्यकीय संक्रमण के ईन्नत स्तर
को प्राप्त कर धलया है)।
चरण 3: ईिरवती संक्रमण ऄवस्था (Late transition)

आस चरण में, जन्म दर घटकर मृत्यु दर के समान होने लगती है। प्रजनन को प्रभाधवत करने वाले

धवधभन्न कारकों, जैस-े गभाधनरोधक तक पहुाँच, मजदूरी में वृधि, नगरीकरण आत्याकद के कारण जन्म दर
में कमी अती है। आसके पररणामस्वरूप जनसंख्या वृधि दर कम होने लगती है।
चरण 4: संक्रमण-पश्चात् की ऄवस्था (Post-transition)

जन्म दर और मृत्यु दर, दोनों का ऄत्यंत कम होना आस चरण में पहुाँच चुके समाजों की पहचान होती है।

वास्तव में, आस ऄवस्था में जन्म दर प्रधतस्थापन स्तर से भी कम हो सकती है। ऄतः आस ऄवस्था में
जनसंख्या वृधि नगण्य होती है ऄथवा यह ऊणात्मक भी हो सकती है। आससे जनसंख्या में कमी अने की
पररधस्थधतयां भी ईत्पन्न हो सकती हैं (ईदाहरण: जापान और जमानी)।

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5.1 जनसां धख्यकीय लाभां श (Demographic Dividend)

जनसांधख्यकीय लाभांश (जनांकककीय लाभांश) की धस्थधत तब ईत्पन्न होती है जब कु ल जनसंख्या में


कायाशील लोगों का ऄनुपात ऄधधक होता है। जनसांधख्यकीय लाभांश ऄधधक लोगों के ईत्पादक होने की
संभावना और ईनके द्वारा ऄथाव्वस्था के धवकास में योगदान देने की ओर संकेत करता है।
भारत में 63% से ऄधधक जनसंख्या 15-59 वषा के अयु वगा की है, धजसे सामान्य रूप से भारत का
जनसांधख्यकीय लाभांश कहा जाता है।
जनसंख्या के कायाशील अयु वगा को स्वयं के साथ-साथ आस अयु वगा से बाहर धस्थत लोगों (ऄथाात् बच्चों
और वृिजनों) का भी समथान करना होता है, क्योंकक वे काया करने में ऄसमथा होने के कारण ऄन्य
लोगों पर अधित होते हैं। जनसांधख्यकीय लाभांश के दौरान जनसांधख्यकीय संक्रमण के कारण अयु
संरचना में होने वाला पररवतान 'पराधितता ऄनुपात' ऄथाात् ‘जनसंख्या के गैर-कायाशील अयु वगा और
कायाशील अयु वगा के बीच के ऄनुपात’ को कम कर देता है। आस प्रकार यह धस्थधत संवृधि की संभावना
में वृधि करती है।

 प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली (2013) के अंकड़ों के ऄनुसार, 1991 से 2013 के दौरान अर्थथक रूप से
सकक्रय जनसंख्या (15-59 वषा) या भारत के 'जनसांधख्यकीय लाभांश' का भाग 57.7 से बढ़कर 63.3
प्रधतशत हो गया है। आसी ऄवधध में बेहतर धशक्षा, स्वास््य सुधवधाओं और जीवन प्रत्याशा में वृधि के
कारण वृि लोगों (60 वषा से ऄधधक अयु) का प्रधतशत 6.0 से बढ़कर 8.3 प्रधतशत हो गया है।
 2021 तक िम बल की वृधि दर जनसंख्या की वृधि की तुलना में धनरं तर ईच्च बनी रहेगी। आं धडयन
लेबर ररपोटा (टाआम लीज, 2007) के ऄनुसार, 2025 तक 300 धमधलयन युवा िम बल में प्रवेश करें गे
और अगामी तीन वषों में धवि के कु ल कामगारों का 25 प्रधतशत भारतीय होंगे।
 यह ऄनुमान लगाया गया है कक 2020 तक भारत की जनसंख्या की औसत अयु धवि में सबसे कम
होगी। यह लगभग 29 वषा होगी जबकक चीन और संयुक्त राज्य ऄमेररका की औसत अयु 37 वषा,
पधश्चम यूरोप की 45 वषा और जापान की 48 वषा होगी। पररणामस्वरूप, ऐसे में जब कक 2020 तक
वैधिक ऄथाव्वस्था में युवा जनसंख्या में 56 धमधलयन की कमी हो सकती है, भारत एकमात्र ऐसा
देश होगा जहां 47 धमधलयन युवाओं की ऄधधशेष संख्या धवद्यमान होगी [धशक्षा, कौशल धवकास और
िम बल पर ररपोटा (2013-14) खंड - III, िम ब्यूरो]

लेककन आस संभावना को वास्तधवक संवृधि में तभी पररवर्थतत ककया जा सकता है, जब कायाशील अयु
वगा में धशक्षा और रोजगार के स्तर में भी तदनुरूप वृधि की जाए। यकद िम बल में शाधमल नए लोग
धशधक्षत नहीं हैं तो ईनकी ईत्पादकता कम रहती है। यकद वे बेरोजगार रहते हैं तो वे अय ऄर्थजत करने

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में ऄसमथा रहेंगे और ऄजाक की तुलना में पराधित बन जायेंगे। ऄतः अयु संरचना में पररवतान से स्वतः
ही लाभ प्राप्त नहीं होंगे, जब तक कक योजनाबि धवकास के माध्यम से आसका ईधचत ईपयोग न ककया
जाए। वतामान में भारत के पास जनसांधख्यकीय लाभांश के ऄवसरों का दोहन करने के धलए रणनीधतयां
धवद्यमान हैं। लेककन भारत के हाधलया ऄनुभव से ज्ञात होता है कक बाजार की शधक्तयााँ स्वतः ही आन
रणनीधतयों को कायााधन्वत नहीं कर पाएंगी। यकद आसका कोइ ईपयुक्त समाधान नहीं खोजा जाता है तो
यह संभव है कक हम ईन संभाधवत लाभों से वंधचत हो जाएं धजन्हें देश की पररवर्थतत हो रही अयु
संरचना ऄस्थायी रूप से प्रदान कर सकती है।

क्या अप जानते हैं ?


मानव पूज
ं ी: धपछले कु छ वषों में, व्वसायों से संबंधधत कमाचाररयों और स्टाफ के धलए प्रयुक्त होने वाले
शब्दों में पररवतान अया है। वतामान में हम ‘कमाचारी वगा’ से ‘मानव संसाधन’ और ईससे ‘मानव पूज
ं ी’
की ओर ईन्मुख हो गए हैं। मानव पूज
ं ी, व्धक्त के ऐसे गुणों को व्क्त करती है जो अर्थथक संदभा में
ईत्पादक होते हैं। यह िम में धनधहत ईत्पादक कौशल और तकनीकी ज्ञान की पूज
ं ी को संदर्थभत करता है।

यूनाआटेड नेशन्स पॉपुलेशन ररसचा के ऄनुसार, धपछले चार दशकों में एधशया और लैरटन ऄमेररका के देश
जनसांधख्यकीय लाभांश से धमलने वाले लाभों के मुख्य प्राप्तकताा रहे हैं। धनम्न जन्म दर और धनम्न मृत्यु दर
के कारण यूरोप, जापान और संयुक्त राज्य ऄमेररका जैसे धवकधसत देशों में वृि जनसंख्या ऄधधक है।
यूनाआटेड नेशन्स पॉपुलेशन धडवीज़न द्वारा ककए गए शोध के ऄनुसार, ऄभी तक ऄल्प धवकधसत देशों और
ऄफ्रीका के देशों ने ऄनुकूल जनसांधख्यकीय धस्थधतयों का ऄनुभव नहीं ककया है। धवि बैंक की ग्लोबल
डेवलपमेंट ररपोटा के ऄनुसार चीन की ‘वन चाआल्ड पॉधलसी’ ने 1960 के दशक के मध्य से प्राप्त हो रहे
जनसांधख्यकीय लाभांश को ईलट कदया है।

भारत का धवधशष्ट जनसांधख्यकीय लाभांश (India’s distinctive demographic dividend)


भारत में कायाशील अयु की जनसंख्या के गैर-कायाशील अयु की जनसंख्या से ऄनुपात में वृधि का सवोच्च
स्तर देर से प्राप्त होगा। यह वृधि ऄन्य देशों की तुलना में धनम्न स्तर पर रहेगी, परन्तु दीघाकाल तक बनी
रहेगी। जनसांधख्यकीय लाभांश के कारण संवृधि में वृधि का सवोच्च स्तर तेज़ी से धनकट अ रहा है, यह
संवृधि प्रायद्वीपीय राज्यों में तीव्र गधत से हो रही है जबकक अंतररक राज्यों में धीमी गधत से हो रही है।
भारतीय राज्यों और ऄन्य ईभरती ऄथाव्वस्थाओं का जनसांधख्यकीय लाभांश (Demographic
Dividend in Indian States and Other Emerging Economies)

अर्थथक समीक्षा - 2016-17

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5.2 ऄनु कू लतम जनसं ख्या (Optimum Population)

देश के ऄंदर जनसंख्या के अकार, धवतरण और संरचना को आसके प्राकृ धतक संसाधनों और आसके लोगों
द्वारा ईपयोग की जाने वाली ईत्पादन की तकनीक के संदभा में देखा जाना चाधहए। संसाधनों के ईपयोग
की सीमा और ईनके ईपयोग की तकनीक, जनसंख्या के आष्टतम से कम या ज़्यादा होने के स्तर को
प्रधतधबधम्बत करती है। यकद लोगों की संख्या और ईपलब्ध संसाधनों के मध्य संतुलन स्थाधपत हो तो
ईस देश को आष्टतम जनसंख्या वाला माना जाता है। आष्टतम धस्थधतयों को के वल तभी बनाए रखा जा
सकता है जब नये संसाधनों की खोज या रोजगार के नये रूपों का धवकास बढ़ती जनसंख्या के ऄनुरूप
गधत बनाए रखे।
यकद जनसंख्या बहुत ऄधधक हो जाती है तो "ह्रासमान प्रधतफल का धनयम (law of diminishing
returns)” कायारत हो जाता है। आसका तात्पया है कक एक धनधश्चत लबदु तक ककसी क्षेत्र में काया करने
वाले लोगों की संख्या में वृधि से ईत्पादन में ईल्लेखनीय वृधि होती है। आष्टतम जनसंख्या के स्तर पर
पहुंचने के पश्चात् और ऄधधक वृधि होने से ईत्पादन में वृधि हो सकती है लेककन ह्रासमान दर से और
आस प्रकार प्रधत व्धक्त ईत्पादन कम हो जाएगा। एक ही संसाधन अधार पर जैसे-जैसे पहले से ऄधधक
व्धक्त धनभार होते जाएाँग,े प्रत्येक संबंधधत व्धक्त धनधान होता जाएगा (प्रत्येक को प्राप्त होने वाले ऄंश में
पूवा की तुलना में कमी होने के कारण)। दूसरी ओर, यकद क्षेत्र के सभी संसाधनों को धवकधसत करने के
धलए पयााप्त जनसंख्या नहीं हैं, तो ईस क्षेत्र के व्धक्तयों का जीवन स्तर आन संसाधनों के पूणा ईपयोग से
प्राप्त होने वाले जीवन स्तर से नीचे रह सकता है।
ईदाहरण के धलए वतामान तकनीक के संदभा में, मध्य एधशया को क्षमता से कम जनसंख्या युक्त क्षेत्र के
रूप में माना जा सकता है। ककतु ऄतीत में, मध्य एधशया में ऄधधकतर चरवाहे (pastoralists) धनवास
करते थे जो अधुधनक तकनीकों से ऄनधभज्ञ थे। धजन संसाधनों के दोहन में वे सक्षम थे, वे प्रायः
ऄत्यधधक दबावग्रस्त थे। आस कारण मध्य एधशयाइ लोगों ने भूधम की खोज में समीपवती क्षेत्रों पर
अक्रमण ककया और पूवी यूरोप, भारत और ईिरी चीन तक फ़ै ल गये। आस प्रकार, ईस ऄवधध के दौरान
आस क्षेत्र की जनसंख्या आसकी क्षमता से ऄधधक थी।
ऄतः, क्षमता से कम जनसंख्या और क्षमता से ऄधधक जनसंख्या को मुख्य रूप से संबंधधत देश के धवकास
की ऄवस्था के संदभा में देखा जाना चाधहए। यकद ककसी देश की कृ धष दक्ष हो, ईद्योग, संचार, व्ापार
एवं वाधणज्य तथा सामाधजक सेवाएं धवकधसत ऄवस्था में हों और देश के संसाधनों का पूणा रूप से
ईपयोग ककया जाता हो, तो ईस देश को धवकधसत देश के रूप में माना जा सकता है। आसके ऄधतररक्त
ईस देश में िम ईपलब्धता की कोइ वास्तधवक कमी नहीं होती है, साथ ही बेरोजगारी भी कम होती है।

6. जनसं ख्या सं घ टन (Population Composition)


जनसंख्या संघटन से अशय अयु एवं ललग, धनवास स्थान, नृजातीय धवशेषताओं, जनजाधतयों, भाषा,
धमा, वैवाधहक धस्थधत, साक्षरता और धशक्षा, व्ावसाधयक धवशेषताओं अकद ऄधभलक्षणों के अधार पर
पररभाधषत की गयी जनसंख्या के धववरण से है।

6.1 अयु सं घ टन (Age Composition)

जनसंख्या का अयु संघटन कु ल जनसंख्या के सापेक्ष धवधभन्न अयु वगा के व्धक्तयों के ऄनुपात को
संदर्थभत करता है। धवकास के स्तर और औसत जीवन प्रत्याशा में पररवतान की प्रधतकक्रया स्वरुप अयु
संघटन भी एक पररवतान से गुजरता है। प्रारं भ में, धनम्न स्तरीय धचककत्सा सुधवधाओं, रोगों के प्रसार
और ऄन्य कारकों के कारण औसत जीवनकाल ऄपेक्षाकृ त कम होता है। आसके ऄधतररक्त, ईच्च धशशु और
मातृ मृत्यु दर भी अयु संघटन पर प्रभाव डालते हैं।

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धवकास के साथ, जीवन की गुणविा में सुधार होता है और ईसके साथ जीवन प्रत्याशा में भी वृधि
होती है। आससे अयु संघटन में पररवतान होता है। पररणामस्वरूप, जनसंख्या में युवा अयु वगा का
ऄनुपात कम और वृि अयु वगा का ऄनुपात ऄधधक पाया जाता है। आसे ‘पॉपुलेशन एलजग’ के रूप में भी
जाना जाता है।
एक राष्ट्र की जनसंख्या को सामान्यतः तीन व्ापक वगों में बांटा जाता है:
बच्चे (सामान्यतः 15 वषा से कम): ये अर्थथक रूप से ऄनुत्पादक होते हैं और आन्हें भोजन, कपड़े, धशक्षा
और स्वास््य संबंधी सुधवधाएं प्रदान ककये जाने की अवश्यकता होती है।
कायाशील अयु (15-59 वषा): ये अर्थथक रूप से ईत्पादक और जैधवक रूप से प्रजननशील होते हैं। यह
जनसंख्या का कायाशील वगा होता है।
वृि (59 वषा से ऄधधक): ये अर्थथक रूप से ईत्पादनशील या सेवाधनवृि, दोनों हो सकते हैं। ये स्वैधच्छक
रूप से काया कर सकते हैं ककतु सामान्यतः आन्हें भती प्रकक्रया के माध्यम से धनयुक्त नहीं ककया जाता है।
भारत में अयु संरचना सम्बन्धी प्रवृधियााँ: ताधलका T2 और धचत्र S7 का ऄवलोकन कीधजए।

6.1.1. पराधितता ऄनु पात या धनभा र ता ऄनु पात

(Dependency Ratio)
पराधितता ऄनुपात (धनभारता ऄनुपात), धनभार वगा (यानी वृिजन और बच्चे, जो काया करने में ऄक्षम
हैं) तथा जनसंख्या के कायाशील वगा (15 से 59 वषा अयु वगा) का ऄनुपात है। पराधितता ऄनुपात 15
वषा से कम या 60 वषा से ऄधधक अयु वगा की जनसंख्या को 15-59 वषा के अयु वगा की जनसंख्या द्वारा
धवभाधजत करके प्राप्त ककया जाता है। आसे सामान्यतः प्रधतशत के रूप में व्क्त ककया जाता है।
पराधितता ऄनुपात में वृधि, ईन देशों के धलए लचता का कारण है धजनकी जनसंख्या में वृिजनों की
संख्या ऄधधक है क्योंकक एक ऄपेक्षाकृ त छोटे कायाशील वगा द्वारा बड़े धनभार वगा का भार वहन करना
करठन हो जाता है। दूसरी ओर, ऄनुत्पादक वगा के सापेक्ष कायाशील व्धक्तयों के ऄधधक ऄनुपात के
कारण घटता हुअ पराधितता ऄनुपात अर्थथक धवकास और समृधि का स्रोत हो सकता है। यह कभी-
कभी 'जनसांधख्यकीय लाभांश' या पररवर्थतत होती अयु संरचना से प्राप्त होने वाले लाभ के रूप में
जाना जाता है। हालांकक, यह लाभ ऄस्थायी होता है क्योंकक कायाशील अयु की धवशाल जनसंख्या
ऄंततः गैर-कायाशील वृि व्धक्तयों में पररवर्थतत हो जाएगी।

6.2 ललग सं घ टन (Sex composition)


एक मानव संसाधन के रूप में देश की जनसंख्या की गुणविा के धलए ललग संघटन ऄत्यंत महत्वपूणा
संकेतक है। वस्तुतः, प्राथधमक रुप से आसे ललगानुपात के अधार पर समझा जाता है।
ललगानुपात ककसी धवधशष्ट समयावधध में ककसी क्षेत्र धवशेष में प्रधत 1000 पुरुषों पर धियों की संख्या
को संदर्थभत करता है।
धशशु ललगानुपात ककसी धवधशष्ट समयावधध में ककसी क्षेत्र धवशेष में 0-6 वषा (बच्चे) की अयु वगा का
ललगानुपात होता है।
प्राकृ धतक लाभ बनाम सामाधजक प्रधतकू लताएाँ (Natural Advantage v/s Social
Disadvantage)
मधहलाओं को पुरुषों की ऄपेक्षा ऄधधक जैधवक लाभ प्राप्त होता है क्योंकक ईनकी प्रत्यास्थता
(resiliency) पुरुषों की तुलना में ऄधधक होती है, तथाधप यह लाभ ईनके द्वारा ऄनुभव की जाने वाली
सामाधजक प्रधतकू लताओं एवं भेदभाव के कारण समाप्त हो जाता है।
भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा
यह 2011-2015 के दौरान पुरुषों के धलए 67.3 वषा और मधहलाओं के धलए 69.6 वषा थी।
भारत में ललगानुपात सम्बन्धी प्रवृधियााँ: धचत्र S8-S12 का ऄवलोकन कीधजए।

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6.3 ट्ां स जें ड र सं घ टन (Transgender composition)

जनगणना 2011 की गणना के दौरान, पहली बार तीन कोड प्रदान ककए गए थे: पुरुष-1, मधहला-2
और ऄन्य-3। प्रगणक को धनदेश कदया गया था कक यकद कोइ व्धक्त स्वयं को कोड 1 या 2 में दजा न

करवाना चाहे तो ललग को ‘ऄन्य’ के रूप में दज़ा करे एवं आसे कोड 3 प्रदान करे । यद्यधप यह ध्यान रखना
महत्वपूणा है कक भारत की जनगणना के ऄंतगात 'ट्ांसजेंडरों' पर धवधशष्ट रूप से कोइ अंकड़े एकत्र नहीं
ककये जाते हैं। आस प्रकार, 'ऄन्य' िेणी में न के वल 'ट्ांसजेंडर' बधल्क ऄपनी ललग सम्बन्धी सूचना को
'ऄन्य' िेणी के ऄंतगात दजा कराने का आच्छु क कोइ भी व्धक्त सधम्मधलत हो सकता है। यह भी संभव है
कक कु छ ट्ांसजेंडर ऄपनी पसंद के अधार पर स्वयं को मधहला या पुरुष के रूप में दज़ा करवाया हो।
जनगणना 2011 के ऄनुसार देश में 'ऄन्य' िेणी की जनसंख्या 4,87,803 है।

6.4 कदव्ां ग सं घ टन (Divyang composition)

जनगणना 2011 से प्रदर्थशत होता है कक देश में 207.8 लाख पररवारों में कदव्ांग व्धक्त हैं। ये पररवार

कु ल पररवारों की संख्या का 8.3 प्रधतशत हैं। 2011 की जनगणना में कदव्ांग व्धक्तयों वाले कु ल
पररवारों की संख्या में 2001 की जनगणना की तुलना में 20.5 लाख की वृधि हइ है।
जनगणना 2011 के ऄनुसार 2.68 करोड़ की कु ल कदव्ांग जनसंख्या में से 1.46 करोड़ (54.5%)

साक्षर और शेष 1.22 करोड़ (45.5%) धनरक्षर हैं। वहीं एक दशक पूवा, कदव्ांग व्धक्तयों की साक्षरता
का प्रधतशत 49.3% था और शेष 50.7% धनरक्षर थे।

6.5 साक्षरता सं घ टन (Literacy composition)

साक्षरता, धशक्षा का अधार तथा सशधक्तकरण का एक साधन है। धजतनी ऄधधक साक्षर जनसंख्या
होगी, कै ररयर धवकल्पों के धवषय में ईतनी ही ऄधधक जागरूकता होगी तथा साथ ही ज्ञान अधाररत
ऄथाव्वस्था में भी ईतनी ऄधधक भागीदारी देखने को धमलेगी। आसके ऄधतररक्त, साक्षरता समुदाय की
स्वास््य संबंधी जागरूकता में वृधि करती है तथा सांस्कृ धतक और अर्थथक कल्याण के धलए पूणा
भागीदारी को प्रेररत करती है। स्वतंत्रता के पश्चात् साक्षरता स्तर में काफी सुधार हुअ है और वतामान
में हमारी जनसंख्या का लगभग दो-धतहाइ धहस्सा साक्षर है। ककतु, साक्षरता दर भारतीय जनसंख्या की

वृधि दर के साथ सामंजस्य स्थाधपत करने में सक्षम नहीं रही है। आसमें लैंधगक स्तर पर, क्षेत्रीय स्तर पर
तथा सामाधजक समूहों के स्तर पर काफी धभन्नता धवद्यमान है। जैसा कक देखा जा सकता है, मधहला
साक्षरता में पुरुष साक्षरता की तुलना में तीव्रता से वृधि हो रही है। हालााँकक अंधशक रूप से ऐसा
आसधलए भी हुअ है क्योंकक यह वृधि ऄपेक्षाकृ त धनचले स्तरों से अरं भ हुइ थी।
धवधभन्न सामाधजक समूहों के मध्य भी साक्षरता दर धभन्न-धभन्न होती है; ईदाहरण के धलए, ऄनुसधू चत
जाधतयों और ऄनुसूधचत जनजाधतयों जैसे ऐधतहाधसक रूप से वंधचत समुदायों में साक्षरता दर कम है
और आन समूहों में मधहला साक्षरता दर और भी कम है। क्षेत्रीय धभन्नताएं ऄभी भी व्ापक रूप से व्ाप्त
हैं, जैस-े के रल जैसे राज्य पूणा साक्षरता की ओर ऄग्रसर हैं जबकक धबहार जैसे राज्य ऄभी बहुत पीछे हैं।
साक्षरता दर में ऄसमानता धवशेष रूप से महत्वपूणा है क्योंकक वह भावी पीकढ़यों में ऄसमानता को पुन:
ईत्पन्न करने की प्रवृधि रखती है। धनरक्षर माता-धपता को ऄपने बच्चों को बेहतर धशक्षा प्रदान करने हेतु
ऄत्यधधक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आस प्रकार मौजूदा ऄसमानताएं धनरं तर बनी रहती हैं।
धचत्र S13 और S14 देधखए।

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धशक्षा संबध
ं ी चुनौधतयां

 यद्यधप जनगणना 2011 के ऄनुसार के वल 74.04 प्रधतशत साक्षरता प्राप्त की गइ है, ककतु मधहला
साक्षरता में ईल्लेखनीय सुधार हुअ है। पुरुष साक्षरता (82.14%) मधहला साक्षरता (65.46%) की
तुलना में ऄभी भी ऄधधक है लेककन मधहला साक्षरता में (11.79 प्रधतशत ऄंक) पुरुष साक्षरता
(6.88 प्रधतशत ऄंक) की तुलना में ऄधधक वृधि हुइ है।
 धजला धशक्षा सूचना प्रणाली (District Information System for Education: DISE) के
ऄनुसार, प्राथधमक धवद्यालयों में कु ल नामांकन 2011-12 में 134 धमधलयन से बढ़कर 137
धमधलयन हो गया और बाद में 2013-14 में घटकर 132 धमधलयन हो गया जबकक ईच्च प्राथधमक
नामांकन 51 धमधलयन से बढ़कर 67 धमधलयन हो गया। यह पररवर्थतत होती जनसांधख्यकीय अयु
संरचना के ऄनुरूप है।
 भारत ने लगभग सावाभौधमक नामांकन प्राप्त कर धलया है तथा हाडा एवं सॉफ्ट आं फ्रास्ट्क्चर
(धवद्यालय, धशक्षक और ऄकादधमक सहायक स्टाफ) में वृधि हुइ है।
 हालााँकक, धशक्षा का समग्र स्तर वैधिक स्तरों से काफी नीचे है। ऄंतरााष्ट्रीय छात्र अकलन कायाक्रम
(Programme for International Student Assessment: PISA) 2009 के पररणामों में 74
प्रधतभाधगयों में से तधमलनाडु और धहमाचल प्रदेश को क्रमशः 72वां और 73वां स्थान प्रदान ककया
गया तथा आनके बाद के वल ककर्थगस्तान का स्थान था। यह हमारी धशक्षा प्रणाली में धवद्यमान ऄंतराल
को प्रकट करता है। PISA, 15 वषा के बच्चों के ज्ञान और कौशल को ईनकी समस्या-समाधान करने
की क्षमताओं का अकलन करने के धलए तैयार ककए गए प्रश्नों के अधार पर मापता है। PISA ने आन
दोनों राज्यों को गधणत और धवज्ञान में OECD (अर्थथक सहयोग और धवकास संगठन) के औसत से
बहुत कम ऄंकों के साथ धनम्नतम स्थान प्रदान ककया था। भारत ने PISA 2012 में भाग नहीं धलया।
 ASER (एनुऄल स्टेटस ऑफ एजुकेशनल ररपोटा) के धनष्कषों के अधार पर यह पाया गया है कक
2005 से ग्रामीण भारत के 5 से 16 वषा के अयु वगा के बच्चों के मध्य सीखने का स्तर धनम्न है।
लचताजनक त्य यह है कक आस अकलन का अधार फ्लोर लेवल टेस्ट [साधारण 2-ऄंक के हाधसल
वाले (कै री-फॉरवडा) घटाव और धवभाजन संबंधी कौशल वाले] थे, धजनके धबना कोइ भी धवद्याथी
धवद्यालय में प्रगधत नहीं कर सकता है।
 धशक्षा नीधत के धलए बेहतर यह होगा कक आसमें आनपुट के स्थान पर पररणामों पर ध्यान कदया जाए
तथा साथ ही यह गुणविापूणा धशक्षा एवं कौशल धवकास संबंधी अधारभूत संरचना के धनमााण पर
के धन्ित हो।
 पररवर्थतत होती जनसांधख्यकी और घटती बाल जनसंख्या सधहत धपराधमड के अधार स्तर पर मानव
पूंजी की ऄपयााप्तता के कारण बुधनयादी कौशल में एक व्ापक बैकलॉग की धस्थधत बनेगी जो भारत
की संवृधि में एक बड़ा ऄवरोध बन सकती है।

6.6 काया शील जनसं ख्या सं घ टन

(Working Population Composition)


काम की ऄवधध के अधार पर भारत की जनसंख्या को तीन वगों में वगीकृ त ककया जाता है - मुख्य
कामगार, सीमांत कामगार और गैर-कामगार।
मानक जनगणना पररभाषा
मुख्य कामगार वह व्धक्त होता है जो एक वषा में कम से कम 183 कदन काया करता है।
सीमान्त कामगार वह व्धक्त होता है जो एक वषा में 183 कदनों (ऄथवा छः माह) से कम कदन काया
करता है।
काया भागीदारी दर को कु ल जनसंख्या पर कु ल कामगारों (मुख्य एवं सीमांत) के प्रधतशत के रूप में
पररभाधषत ककया जाता है।

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व्ावसाधयक िेणी
वषा 2001की जनगणना के ऄंतगात भारत की कायाशील जनसंख्या को चार प्रमुख िेधणयों में वगीकृ त ककया
गया है:
1. कृ षक
2. कृ धष िधमक
3. घरे लू औद्योधगक कामगार
4. ऄन्य कामगार

ऐसा देखा गया है कक भारत में कामगारों (मुख्य और सीमांत दोनों) का धहस्सा मात्र 39 प्रधतशत है
जबकक 61 प्रधतशत की धवशाल संख्या गैर-कामगारों की है। यह एक ऐसे अर्थथक स्तर को आं धगत करता
है धजसमें एक बड़ा ऄनुपात अधित जनसंख्या का है। साथ ही यह बेरोजगार और ऄल्प बेरोजगार लोगों
की बड़ी संख्या के होने की संभावना की ओर संकेत करता है।
राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों में कायाशील जनसंख्या के ऄनुपात में कु छ धभन्नता कदखाइ पड़ती है, जैस-े
जहां गोवा में यह ऄनुपात लगभग 25 प्रधतशत है वहीं धमज़ोरम में 53 प्रधतशत है। कामगारों के
ऄपेक्षाकृ त ऄधधक प्रधतशत वाले राज्यों में धहमाचल प्रदेश, धसकिम, छिीसगढ़, अंध्र प्रदेश, कनााटक,
ऄरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मधणपुर और मेघालय सधम्मधलत हैं। आसके ऄधतररक्त संघ राज्यक्षेत्रों में
दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव में कामगारों की भागीदारी दर ईच्च है।
भारत जैसे देश के सन्दभा में यह सवाधवकदत है कक धनम्न अर्थथक धवकास वाले क्षेत्रों में ईच्च िम
भागीदारी दर पायी जाती है क्योंकक धनवााह ऄथवा लगभग धनवााह की अर्थथक कक्रयाओं के धनष्पादन के
धलए शारीररक िम करने वाले कामगारों की अवश्यकता होती है।
भारत की जनसंख्या का व्ावसाधयक संघटन (ऄथाात् कृ धष, धवधनमााण, व्ापार, सेवाओं ऄथवा ककसी
भी प्रकार की व्ावसाधयक कक्रया में संलग्न होने के अधार पर व्धक्तयों का संघटन) धद्वतीयक और
तृतीयक क्षेत्रकों की तुलना में प्राथधमक क्षेत्रक के कामगारों के एक बड़े ऄनुपात को दशााता है। कु ल
कायाशील जनसंख्या का लगभग 58.2% भाग कृ षक और कृ धष मजदूर हैं, जबकक के वल 4.2% कामगार
ही घरे लू ईद्योगों में संलग्न हैं। ऄन्य कामगारों की धहस्सेदारी 37.6% है जो गैर-घरे लू ईद्योगों, व्ापार,
वाधणज्य, धवधनमााण एवं मरम्मत तथा ऄन्य सेवाओं में कायारत हैं। जहााँ तक देश में पुरुष और मधहला
जनसंख्या के व्वसाय का प्रश्न है, तो तीनों ही क्षेत्रकों में पुरुष िधमकों की संख्या मधहला िधमकों की
संख्या से ऄधधक है।
मधहला िधमकों की संख्या प्राथधमक क्षेत्रक में ऄपेक्षाकृ त ऄधधक है, यद्यधप धवगत कु छ वषों में धद्वतीयक
और तृतीयक क्षेत्रकों में भी मधहलाओं की भागीदारी में सुधार हुअ है। आस सन्दभा में यह समझना
अवश्यक है कक धवगत कु छ दशकों में भारत में कृ धष क्षेत्रक में कामगारों की धहस्सेदारी में धगरावट दजा
की गयी है (1991 में 66.85% से 2001 में 58.2%)। आसके पररणामस्वरूप, धद्वतीयक और तृतीयक
क्षेत्रक में भागीदारी दर में वृधि हुइ है। यह कामगारों की धनभारता का कृ धष-अधाररत रोजगारों से गैर-
कृ धष अधाररत रोजगारों की ओर स्थानान्तरण प्रदर्थशत करता है। साथ ही यह देश की ऄथाव्वस्था में
क्षेत्रकीय पररवतान (sectoral shift) को भी दशााता है।
देश के धवधभन्न क्षेत्रकों में काया भागीदारी दर की स्थाधनक धभन्नता ऄत्यधधक व्ापक है। ईदाहरणस्वरूप
धहमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्यों में कृ षकों की धहस्सेदारी बहुत ऄधधक है। दूसरी ओर अंध्र
प्रदेश, छिीसगढ़, ओधडशा, झारखण्ड, पधश्चम बंगाल तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कृ धष कामगारों की
धहस्सेदारी सवााधधक है। कदल्ली, चंडीगढ़ और पुडुचरे ी जैसे ऄत्यधधक नगरीकृ त क्षेत्रों में कामगारों का
बहुत बड़ा भाग ऄन्य सेवाओं में संलग्न है। यह न के वल कृ धष भूधम की सीधमत ईपलब्धता को बधल्क
व्ापक स्तर पर होने वाले नगरीकरण और औद्योधगकीकरण के कारण गैर-कृ धष क्षेत्रकों में और ऄधधक
कामगारों की अवश्यकता को भी आं धगत करता है। (ताधलका T4 और धचत्र S-15 का सन्दभा लीधजए।)

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भारत में िम बल भागीदारी

अर्थथक सवेक्षण (2015-16) में ईल्लेख ककया गया है कक 2013 के प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली (Sample
registration System: SRS) अंकड़ों के ऄनुसार, 1991 से 2013 की ऄवधध के दौरान कु ल
जनसंख्या में अर्थथक रूप से सकक्रय जनसंख्या (15-59 वषा) का भाग 57.7 प्रधतशत से बढ़कर 63.3
प्रधतशत हो गया है।
 वषा 2014 में जनवरी से जुलाइ के मध्य िम ब्यूरो द्वारा अयोधजत चौथा वार्थषक रोजगार-
बेरोजगारी सवेक्षण दशााता है कक सभी व्धक्तयों के धलए िम बल भागीदारी दर (LFPR) 52.5%
है।
 हालााँकक, ग्रामीण क्षेत्रों में LFPR 54.7% है जो शहरी क्षेत्रों के 47.2% की तुलना में ऄधधक है।
 मधहलाओं का LFPR ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में ईल्लेखनीय रूप से कम
है।
 सवेक्षण के ऄनुसार, बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 4.7% है जबकक शहरी क्षेत्रों में 5.5% है। िम
ब्यूरो के सवेक्षण के ऄंतगात कु ल बेरोजगारी दर को 4.9% माना गया है। ये अंकड़े राष्ट्ीय प्रधतदशा
सवेक्षण कायाालय (NSSO, 2011-12) के ऄधखल भारतीय बेरोजगारी दरों की तुलना में काफी
ऄधधक है। NSSO के सवेक्षण के ऄंतगात ग्रामीण क्षेत्रों में 2.3 प्रधतशत, शहरी क्षेत्रों में 3.8 प्रधतशत
तथा ऄधखल भारतीय स्तर पर 2.7 प्रधतशत बेरोजगारी दर ऄंककत की गयी थी।
राज्यवार िम भागीदारी दर से संबंधधत अंकड़ों के धलए ताधलका - T8 का संदभा लीधजए।

6.7 ककशोर (Adolescents)


भारत में जनसंख्या वृधि का एक महत्वपूणा पहलू ककशोरों की संख्या में वृधि है। वतामान में ककशोर वगा
ऄथाात् 10-19 वषा के अयु वगा का धहस्सा कु ल जनसंख्या में लगभग 21 प्रधतशत (2011 की जनगणना
के ऄनुसार) है। ककशोर जनसंख्या को युवा जनसंख्या के रूप में ईच्च क्षमता से युक्त माना जाता है,
लेककन यकद ईन्हें ईधचत मागादशान और धनदेशन न प्रदान ककया जाए तो ये ऄत्यधधक सुभेद्य भी हो
सकते हैं। आन ककशोरों के सन्दभा में समाज के समक्ष ऄनेक चुनौधतयां धवद्यमान हैं। आनमें से कु छ आस
प्रकार हैं- कम ईम्र में ही धववाह हो जाना (बाल धववाह), धनरक्षरता (धवशेषतः मधहला धनरक्षरता),
पढ़ाइ का बीच में छू ट जाना, पोषक तत्वों की कम मात्रा का सेवन, ककशोर माताओं में ईच्च मातृ मृत्यु
दर, HIV/AIDS संक्रमण की ईच्च दर, शारीररक एवं मानधसक धनःशक्तता ऄथवा ऄक्षमता, नशीली
दवाओं तथा शराब का सेवन, ककशोरावस्था में अपराधधक प्रवृधि और ऄपराधों में संधलप्त होना
आत्याकद। (ताधलका T5 देधखए)

ककशोर का अशय क्या है?


 संयुक्त राष्ट्र के कु छ संगठन जैसे-UNICEF, WHO, UNFPA अकद 10-19 वषीय व्धक्तयों को
ककशोर (Adolescent) के रूप में पररभाधषत करते हैं।
 परं तु जनसंख्या समूह के रूप में ककशोरावस्था को अयु वगा के ककसी दृढ पैमाने के संदभा में नहीं देखा
जाना चाधहए, क्योंकक आसकी अवधधकता एक व्धक्त से दूसरे व्धक्त में धभन्न हो सकती है।
ककशोरावस्था "एक धवकासात्मक ऄवधध है जो बाल्यावस्था के ऄंत और वयस्कता के अरं भ तक की
ऄवस्था होती है।"
 ककशोरावस्था को, बाल्यावस्था से वयस्कता की ओर शारीररक, मनोवैज्ञाधनक और सामाधजक
पररपक्वता की ऄवधध के रूप में पररभाधषत ककया गया है। यह ऄवधध यौवनारम्भ (puberty) से पूणा
प्रजनन क्षमता की प्राधप्त के मध्य की होती है।

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आस संदभा में, भारत सरकार ने ककशोर वगा को ईधचत धशक्षा प्रदान करने हेतु कु छ अवश्यक नीधतयााँ
ऄपनायी हैं, ताकक ईनकी प्रधतभा का बेहतर मागादशान एवं ईधचत ईपयोग ककया जा सके ।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 द्वारा आन्हें "ऄल्प-सेधवत जनसंख्या समूह" के रूप में धचधननत ककया गया
है, क्योंकक ऄभी तक आनकी अवश्यकताओं को धवधशष्ट रूप से पूरा नहीं ककया जा सका है। यह नीधत
ककशोरों की धवधभन्न अवश्यकताओं की पूर्थत हेतु धवधभन्न रणनीधतयों का वणान करती है। ये धनम्नधलधखत
हैं:
 ककशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीररक, मनोवैज्ञाधनक, सामाधजक और शरीर-कक्रयाधवज्ञान
सम्बन्धी पररवतानों तथा धवकास के संबंध में सटीक जानकारी प्रदान करना;
 जोधखमपूणा पररधस्थधतयों से बचाव करने तथा बेहतर शारीररक, मानधसक एवं सामाधजक स्वास््य
प्राप्त करने हेतु ईन्हें सशक्त बनाने के धलए अवश्यक जीवन कौशल धवकधसत करना;
 पूरक अहार और पोषण सेवाएं प्रदान करना; तथा
 ईन्हें अवश्यक स्वास््य और परामशा सेवाएं ईपलब्ध कराना।

6.8. यु वाओं से सं बं धधत मु द्दे

(Issues related to Youth)


राष्ट्रीय युवा नीधत-2014 के ऄंतगात 15-29 वषा के अयु वगा वाले व्धक्तयों को युवाओं के रूप में
पररभाधषत ककया गया है। वतामान में भारतीय युवा रोजगार, मादक पदाथों के सेवन, अत्महत्या की
प्रवृधि, मीधडया एवं सोशल मीधडया के दुष्प्रभाव और धवशेष रूप से एकल पररवारों के ईद्भव के कारण
सामाधजक संरचना में अए बदलाव से ईत्पन्न तनाव से संबंधधत धवधभन्न चुनौधतयों का सामना कर रहे
हैं।
रोजगार संबध
ं ी चुनौधतयााँ (Employability Challenge) - भारत में 15-29 अयु वगा के 30% से
ऄधधक युवा रोजगार, धशक्षण या प्रधशक्षण ककसी में संलग्न नहीं हैं। यह संख्या OECD देशों के औसत के
दोगुने से भी ऄधधक है और चीन का लगभग तीन गुना है। युवाओं की यह धस्थधत, पयााप्त गुणविापूणा
रोज़गार का सृजन न होने तथा युवाओं को धशक्षण एवं प्रधशक्षण प्रणाधलयों में बहुत कम प्रोत्साहन प्राप्त
होने या ईनके समक्ष बहुत सी बाधाओं के प्रकट होने का पररणाम है।
मादक पदाथों का सेवन (Drug Abuse) - धवि के कु छ मुख्य ऄफीम कृ धष क्षेत्रों के साथ भारत की
धनकटता के कारण, भारत को मादक पदाथों की तस्करी संबंधी गंभीर खतरे का सामना करना पड़ रहा
है तथा लोगों और धवशेषकर युवाओं द्वारा मादक पदाथों का सेवन लचता का धवषय बना हुअ है। संयुक्त
राष्ट्र के तीनों सम्मेलनों और साका सम्मेलन का हस्ताक्षरकताा देश होने के नाते, भारत ने नारकोरटक्स
ड्रग्स एंड साआकोट्ॉधपक सब्सटैंस एक्ट, 1985 और द धप्रवेंशन ऑफ़ आधलधसट ट्ैकफककग नारकोरटक्स
ड्रग्स एंड साआकोट्ॉधपक सब्सटैंस एक्ट, 1988 पाररत ककए हैं, धजनके माध्यम से देश में मादक पदाथों
की समस्या के धवधभन्न पहलुओं का समाधान ककया जा रहा है।
अत्महत्या की प्रवृधियां (Suicidal Tendencies) - यद्यधप भारत, धवि में अत्महत्या दर के मामले
में 12वें स्थान पर है, तथाधप दुभााग्यवश 15-29 अयु वगा के अत्महत्या करने वाले व्धक्तयों की संख्या
भारत में सवााधधक- प्रधत 100,000 व्धक्तयों पर 35.5 है। यह महत्वपूणा है कक ईच्च साक्षरता दर वाले
राज्यों में अत्महत्या के मामले ऄत्यधधक संख्या में दजा ककए गए हैं। देश में अत्महत्या के कु ल मामलों में
से 53 प्रधतशत से ऄधधक महाराष्ट्र, तधमलनाडु , पधश्चम बंगाल, के रल और कनााटक राज्यों में दजा ककए
गए हैं।

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कट्टरवाद (Radicalization)- ISIS में शाधमल होने वाले भारतीयों के एक समूह के संदभा में हाधलया
ररपोटों ने वैधिक धजहादी समूहों में शाधमल युवा पेशेवरों की बढ़ती संख्या की संभावनाओं के संदभा में
लचता व्क्त की है। लचता का दूसरा पहलू भारत की घरे लू राजनीधत में ईत्पन्न हाधलया प्रवृधि है, जहां
कट्टरपंथी समूहों और धवचारधाराओं को बढ़ावा कदया जा रहा है, धजससे समुदायों के मध्य ऄधधकाधधक
ध्रुवीकरण की प्रवृधि बढ़ रही है।
राजनीधतक ऄपवजान (Political exclusion)- युवाओं को धवकास कायाक्रमों और धवधभन्न प्रकार की
गधतधवधधयों से वंधचत रखा गया है। अर्थथक, राजनीधतक और प्रकक्रयात्मक बाधाओं के पररणामस्वरूप
एक अयु वगा के रूप में, युवाओं की भागीदारी कम होने के कारण प्रशासन एवं धनणाय-धनमााण की
प्रकक्रयाओं में ईनके शाधमल होने की संभावना कम हो जाती है। ऄपवर्थजत जनसांधख्यकीय समूहों में
शाधमल होने के कारण युवाओं को सेवाओं के लाभार्थथयों के रूप में महत्त्वहीनता का सामना करना पड़
सकता है। राजनीधतक रूप से ऄपवर्थजत समूहों में मधहलाएं, स्थानीय लोग, कदव्ांग, LGBTQI,
शरणाथी, नृजातीय ऄल्पसंख्यक, प्रवासी और अर्थथक रूप से धनधान भी सधम्मधलत होते हैं। सामान्यतः
स्थानीय और राष्ट्रीय धवकास के लाभ से वंधचत युवा धवशेष रूप से अर्थथक अघातों (economic
shocks), सामाधजक ऄधस्थरता और संघषों के प्रधत सुभेद्य होते हैं।
1995 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वल्डा प्रोग्राम ऑफ़ एक्शन फॉर यूथ (WPAY) को ऄंगीकृ त ककया
गया। WPAY, समस्त धवि में युवाओं की धस्थधत में सुधार हेतु राष्ट्रीय कारा वाइ और ऄंतरााष्ट्रीय
सहायता के धलए नीधतगत फ्रेमवका एवं व्ावहाररक कदशा-धनदेश प्रदान करता है।

6.9. राष्ट्रीय यु वा नीधत

(National Youth Policy)


राष्ट्रीय युवा नीधत-2014 का धवज़न “देश के युवाओं को ऄपनी पूणा क्षमताओं को धवकधसत करने के धलए
सशक्त बनाना तथा ईनके माध्यम से भारत को ऄंतरााष्ट्रीय समुदाय में ईधचत स्थान प्राप्त करने हेतु
सक्षम बनाना” है। आस लक्ष्य को प्राप्त करने के धलए आस नीधत में पांच सुपररभाधषत ईद्देश्यों और 11
प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्रों की पहचान की गइ है तथा प्रत्येक प्राथधमकता प्राप्त क्षे त्र के धलए नीधतगत
हस्तक्षेपों का भी सुझाव कदया गया है। प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्रों के ऄंतगात धशक्षा, रोजगार एवं कौशल
धवकास, ईद्यमशीलता, स्वास््य और स्वस्थ जीवन शैली, खेल, सामाधजक मूल्यों को बढ़ावा देना,
सामुदाधयक सहभाधगता, राजनीधत और शासन में भागीदारी, युवा सहभाधगता, समावेशन और
सामाधजक न्याय सधम्मधलत हैं।
राष्ट्रीय युवा नीधत-2014 में प्रस्ताधवत ककया गया है कक सभी धहतधारकों सधहत युवा धवकास एवं
सशधक्तकरण पर के धन्ित दृधष्टकोण के पररणामस्वरूप धशधक्षत एवं स्वस्थ युवा जनसंख्या का धवकास
ककया जा सके गा, जो न के वल अर्थथक रूप से ईत्पादक हो बधल्क राष्ट्रीय धनमााण में योगदान करने वाले
सामाधजक रूप से ईिरदायी नागररक भी हों।
यह नीधत, 15-29 वषा की अयु समूह के सभी युवाओं की अवश्यकताओं की पूर्थत कर समग्र देश को
कवर करे गी। 2011 की जनगणना के ऄनुसार यह अयु समूह कु ल जनसंख्या का 27. 5 प्रधतशत यानी
33 करोड़ हैं। 2003 के पश्चात् धवकास को बढ़ावा देने तथा भधवष्य की नीधतगत अवश्यकताओं को
पूरा करने हेतु यह NYP-2003 नीधत को प्रधतस्थाधपत करे गी।
NYP-2014, 12वीं योजना की प्राथधमकताओं के ऄनुरूप युवाओं के धलए व्ापक नीधतगत हस्तक्षेप
प्रस्ताधवत करती है तथा धविीय प्रभावों वाले ककसी भी धवधशष्ट कायाक्रम/योजना को प्रस्ताधवत नहीं
करती है। आसके ऄंतगात सभी संबंधधत मंत्रालयों/धवभाग से ईनकी योजनाओं/कायाक्रमों अकद के फ्रेमवका
में युवाओं से संबंधधत मुद्दों पर ध्यान कें कित करने हेतु ऄनुरोध ककया जाएगा।

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राष्ट्रीय युवा नीधत- 2014 के ईद्देश्य, प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्र और भावी अवश्यकताओं का वणान

ईद्देश्य प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्र भावी अवश्यकताएं

1. एक ईत्पादक कायाबल का धशक्षा  धशक्षण प्रणाली की क्षमता


एवं गुणविा का धवकास
धनमााण करना, जो भारतीय
करना
ऄथाव्वस्था के धवकास में कौशल धवकास और
स्थायी योगदान कर सके । जीवनपयान्त सीखने की प्रवृधत
को प्रोत्साहन देना।
रोजगार एवं कौशल धवकास  युवाओं तक लधक्षत पहुाँच
और जागरूकता;
 प्रणाधलयों और धहतधारकों
के मध्य परस्पर संपका को
बढ़ाना
 सरकार के साथ-साथ ऄन्य
धहतधारकों की भूधमका
धनधााररत करना
ईद्यमशीलता  लधक्षत युवा पहुाँच कायाक्रम
 क्षमता धनमााण संबंधी
प्रभावी कायाक्रमों को ईन्नत
बनाना
 युवा ईद्यधमयों के धलए
धवधशष्ट रूप से संरधचत
कायाक्रमों का धनमााण करना
 व्ापक धनगरानी एवं
मूल्यांकन प्रणाली का
कक्रयान्वयन
2. भावी चुनौधतयों का सामना स्वास््य एवं स्वस्थ जीवन शैली  सेवा प्रदायगी की धस्थधत
को बेहतर बनाना
करने के धलए सशक्त और स्वस्थ
पीढ़ी का धवकास करना।  स्वास््य, पोषण और
धनवारक ईपायों के संबंध
में जागरूकता
 युवाओं के धलए लधक्षत
रोग धनयंत्रण कायाक्रम
खेल-कू द  खेल-कू द सुधवधाओं और
प्रधशक्षण की बेहतर
ईपलब्धता सुधनधश्चत करना
 युवाओं में खेल भावना को
बढ़ावा देना
 प्रधतभाशाली धखलाधडयों
की सहायता एवं ईनका
धवकास करना
3. राष्ट्रीय प्रभुत्व को बढ़ावा देने सामाधजक मूल्यों का संवधान  मूल्य अधाररत धशक्षण
प्रणाली को औपचाररकता

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हेतु सामाधजक मूल्यों का प्रदान करना
समावेशन करना और  युवाओं के धलए सहभाधगता
सामुदाधयक सेवा को प्रोत्साधहत कायाक्रमों को सुदढ़ृ बनाना
करना।  मूल्यों और समरसता को
बढ़ावा देने की कदशा में
कायारत NGOs और
लाभकारी संगठनों को
सहायता प्रदान करना
सामुदाधयक सहभाधगता  धवद्यमान सामुदाधयक
धवकास संगठनों से लाभ
ईठाना
 सामाधजक ईद्यमशीलता
को बढ़ावा देना
4. शासन के सभी स्तरों पर राजनीधत और शासन में  राजनीधतक व्वस्था के
सहभाधगता एवं नागररकों की सहभाधगता बाहर धस्थत युवाओं को
भागीदारी को सुगम बनाना। शाधमल करना
 युवाओं को लाभाधन्वत
करने हेतु शासन तंत्र का
धनमााण करना
नगरीय ऄधभशासन में युवा
सहभाधगता को बढ़ावा देना
युवाओं की सहभाधगता  युवा धवकास योजनाओं के
प्रभावी कायाान्वयन की
धनगरानी एवं ईपाय
 युवाओं की सहभाधगता को
बढ़ाने हेतु एक मंच का
धनमााण करना
5. जोधखमग्रस्त युवाओं की समावेशन  लाभ से वंधचत युवाओं को
सक्षम बनाना एवं ईनका
सहायता करना और लाभ से
क्षमता धनमााण करना
वंधचत एवं हाधशये पर धस्थत  संघषा-रत क्षेत्रों में युवाओं
युवाओं के धलए न्यायोधचत के धलए अर्थथक ऄवसरों की
ऄवसरों का सृजन करना। ईपलब्धता सुधनधश्चत करना
 कदव्ांग युवाओं की
सहायता के धलए एक बहु-
अयामी दृधष्टकोण को
ऄपनाना
युवाओं की जोधखम से सुरक्षा
करने हेतु जागरूकता एवं
ऄवसरों का सृजन करना
सामाधजक न्याय  ऄनुधचत सामाधजक प्रथाओं
को समाधप्त में युवाओं का
सहयोग प्राप्त करना
सभी स्तरों पर न्याय तक पहुाँच
को सुदढ़ृ करना

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7. जनसं ख्या धपराधमड (अयु - ललग धपराधमड)
[The population pyramid (The age-sex pyramid)]
जनसंख्या की अयु-ललग संरचना धवधभन्न अयु वगों में मधहलाओं और पुरुषों की संख्या को संदर्थभत
करती है। जनसंख्या धपराधमड का ईपयोग जनसंख्या की अयु-ललग संरचना को प्रदर्थशत करने के धलए
ककया जाता है। जनसंख्या धपराधमड की अकृ धत जनसंख्या की धवशेषताओं को प्रधतलबधबत करती है।
धपराधमड का बायां पक्ष प्रत्येक अयु वगा में पुरुषों के प्रधतशत को जबकक दायां पक्ष प्रत्येक अयु वगा में
मधहलाओं के प्रधतशत को दशााता है। धनम्नधलधखत तीन धचत्र जनसंख्या धपराधमड के धवधभन्न प्रकारों को
प्रदर्थशत करते हैं:

7.1. धवस्तारशील जनसं ख्या (Expanding Population)

आस धस्थधत में अयु-ललग धपराधमड एक धवस्तृत अधार के साथ धत्रभुजाकार अकृ धत का होता है। यह
मुख्यतः ऄल्प धवकधसत देशों में पाया जाता है क्योंकक यहााँ ईच्च जन्म दर के कारण धनम्न अयु वगों की
जनसंख्या ऄधधक होती है।

7.2. धस्थर जनसं ख्या (Constant Population)

आसमें अयु-ललग धपराधमड घंटी के अकार का होता है जो शीषा की ओर शुण्डाकार (tapered) होता
जाता है। यह दशााता है कक जन्म दर और मृत्यु दर लगभग समान है धजसके पररणामस्वरूप जनसंख्या
धस्थर हो जाती है।

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7.3. ह्रासमान जनसं ख्या (Declining Population)

आस धपराधमड का एक संकीणा अधार और शुंडाकार शीषा होता है जो धनम्न जन्म और मृत्यु दरों को
दशााता है। धवकधसत देशों में जनसंख्या वृधि सामान्यतः शून्य ऄथवा ऊणात्मक होती है।

वषावार भारत के जनसंख्या धपराधमड

ये धपराधमड जन्म दर में क्रधमक धगरावट और जीवन प्रत्याशा में वृधि का प्रभाव दशााते हैं। वृि
जनसंख्या में वृधि के साथ-साथ धपराधमड का शीषा चौड़ा और जन्म दर में कमी (जीधवत जन्मों में कमी)
के साथ-साथ धपराधमड का अधार संकीणा होता जा रहा है। चूाँकक जन्म दर में धगरावट धीमी रही है,
आसधलए 1961 और 1981 के मध्य अधार में ऄधधक पररवतान नहीं हुअ है। कु ल जनसंख्या में मध्य

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अयुवगों की धहस्सेदारी में वृधि के साथ-साथ धपराधमड का मध्य भाग ईिरोिर ऄधधक चौड़ा होता जा
रहा है। यह मध्य अयु वगा में एक 'ईभार' का धनमााण करता है जो 2026 की ऄनुमाधनत धस्थधत को
प्रदर्थशत करने वाले धपराधमड में स्पष्ट रूप से कदखाइ देता है। आसे 'जनसांधख्यकीय लाभांश' के रूप में
जाना जाता है।

7.4. अयु - सं र चना धपराधमड में क्षे त्रीय धभन्नताएं

(Regional variations in age-structure pyramid)


प्रजनन दर के साथ-साथ अयु संरचना में भी व्ापक क्षेत्रीय धभन्नताएं धवद्यमान हैं। जहां एक ओर के रल
जैसे राज्यों ने धवकधसत देशों के समान अयु संरचना प्राप्त करनी अरम्भ कर दी है, वहीं दूसरी ओर
ईिर प्रदेश राज्य एक ऄलग ही तस्वीर प्रस्तुत करता है। यहााँ युवा अयु समूहों का ईच्च ऄनुपात और
वृि जनसंख्या का ऄपेक्षाकृ त कम ऄनुपात पाया जाता है। समग्र भारत की धस्थधत आसके मध्य की है
क्योंकक आसमें ईिर प्रदेश जैसे राज्यों के साथ-साथ के रल जैसे राज्य भी शाधमल हैं।

ईपयुाक्त धचत्र वषा 2026 में ईिर प्रदेश और के रल के ऄनुमाधनत जनसंख्या धपराधमड को दशााता है।
के रल और ईिर प्रदेश के धपराधमड के सवााधधक चौड़े भागों में धवद्यमान ऄंतर पर ध्यान दीधजए। अयु
संरचना में युवा अयु वगा की ओर झुकाव देखने को धमलता है जो भारत के धलए लाभप्रद माना जा रहा
है। धवगत दशक में पूवी एधशयाइ ऄथाव्वस्थाओं और वतामान में अयरलैंड की भांधत, भारत के
“जनसांधख्यकीय लाभांश” से लाभाधन्वत होने की सम्भावना व्क्त की गइ है। यह लाभांश आस त्य से
स्पष्ट होता है कक कायाशील अयु वगा की वतामान जनसंख्या ऄपेक्षाकृ त ऄधधक है और अधित वृि लोगों
की जनसंख्या ऄपेक्षाकृ त कम है। ककतु आस लाभांश के सकारात्मक पररणाम स्वतः ही प्राप्त नहीं होंगे ;
ईसके धलए आस लाभांश का ईपयोग ईधचत नीधतयों के माध्यम से सुधनयोधजत तरीके से ककये जाने की
अवश्यकता है।

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8. जनसं ख्या सं बं धी मु द्दे
(Population Issues)

8.1 ऄल्पधवकधसत दे शों की जनसं ख्या सं बं धी समस्याएाँ

(Population Problems of Underdeveloped Countries)


ऄल्पधवकधसत देशों में संसाधनों के धवद्यमान होने के बावजूद तकनीकी धवकास का धनम्न स्तर, कृ धष
दक्षता और ईद्योगों की स्थापना को बाधधत करता है। ऐसे देश यकद भारत और चीन की भांधत
ऄत्यधधक जनसंख्या की धस्थधत में हों तो ईन्हें ऄधतररक्त समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आन देशों
में अधुधनक औद्योधगक ऄथाव्वस्था को पारं पररक कृ धष ऄथाव्वस्था के साथ धवकधसत ककया गया है,
लेककन दोनों में ईधचत संतल
ु न स्थाधपत नहीं ककया गया है। ऄल्पधवकधसत देशों का एक ऄन्य समूह ऐसा
भी है धजनमें जनसंख्या कम होती है। हालााँकक, ऐसे देशों में कभी-कभी ईन्नत समाज धवद्यमान होते हैं

और वे अधुधनक तकनीकी पिधतयों का ईपयोग भी करते हैं। आन देशों में ब्राजील, कोलंधबया, पेरू,
जायरे , रूस अकद सधम्मधलत हैं। ये देश संसाधन संपन्न देश हैं परन्तु जनसंख्या की कमी के कारण आन
संसाधनों का पूणा रूप से ईपयोग नहीं हो सका है। आनकी समस्याएं प्रायः प्रधतकू ल जलवायु दशाओं के
कारण बढ़ जाती हैं।

8.1.1. ऄधत-जनसं ख्या की समस्याएं

(Problems of Over-population)
 तीव्र जनसंख्या वृधि: धवशेष रूप से पररवार धनयोजन प्रथाओं के ऄभाव में जनसंख्या तीव्र गधत से
बढ़ती है। आससे ऄपेक्षाकृ त छोटे कायाशील वगा पर अधित बच्चों की संख्या में वृधि होती है। यह
अधित जनसंख्या सामाधजक सेवाओं पर ऄधतररक्त दवाब डालती है।
 बेरोजगारी: ऄनेक ऄल्पधवकधसत देशों में औद्योधगक क्षेत्र पूणातः धवकधसत नहीं हैं। ऄतः ऄकु शल
िधमकों के धलए रोजगार के कम ऄवसर ईपलब्ध होने के कारण बेरोजगारी की ईच्च धस्थधत बनी
रहती है। दूसरी ओर, पयााप्त प्रधशक्षण सुधवधाओं के ऄभाव के कारण कु शल िधमकों का ऄभाव
होता है। ऄत्यधधक जनसंख्या वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी या ऄल्प रोज़गार भी एक प्रमुख
समस्या है। ऐसे में लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं जहां प्रायः रोजगार के ऄवसरों को प्राप्त
करना और भी करठन होता है। आसके ऄधतररक्त, नगर ऄधत भीड़-भाड़ युक्त हो जाते हैं। पररणामतः
जीवन धनवााह हेतु पररधस्थधतयााँ और ऄधधक धनम्नस्तरीय हो जाती हैं।
 धनम्न जीवन स्तर: स्वास््य, स्वच्छता और अवास के मानक धनम्न स्तरीय होने के कारण स्वास््य

संबंधी समस्याओं, कु पोषण एवं रोगों के प्रसार को बढ़ावा धमलता है। लोगों में ऄज्ञानता और
धविीय संसाधनों की कमी से धस्थधत और ऄधधक गंभीर हो जाती है।

 कृ धष संसाधनों का ऄल्प ईपयोग: कृ धष की परं परागत पिधतयााँ, पुराने एवं ऄपयााप्त ईपकरण,
खेतों में सुधार करने हेतु धविीय संसाधनों की कमी, सीमांत कृ धष क्षेत्रों (जैसे ईच्चभूधमयों) का
ईपयोग न ककये जाने या दुरुपयोग ककये जाने आत्याकद कारणों से कृ धष ईत्पादन आसकी संभाधवत
क्षमता से बहुत धनम्न स्तर पर बना हुअ है। पूंजी की कमी तथा कृ षकों के पारं पररक दृधष्टकोण के
कारण नवाचारों को ऄपनाने की धीमी प्रकक्रया से कृ धष तकनीकों को तार्दकक बनाने और अर्थथक
रूप से बड़े एवं लाभदायक खेतों के धलए भू-स्वाधमत्व में सुधार करने में अने वाली करठनाआयों में
वृधि होती है।

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 ईद्योगों की धीमी वृधि: पूंजी की कमी के ऄधतररक्त, संसाधनों के ईधचत दोहन को बाधधत करने में
जनसंख्या संबंधी कारक भी महत्वपूणा भूधमका धनभाते हैं। हालांकक िम बल बड़ी संख्या में
ईपलब्ध होता है परन्तु यह ऄकु शल और औद्योधगक रोजगार हेतु ऄनुभवहीन होता है। आसी प्रकार,
यद्यधप धवशाल जनसंख्या द्वारा धनर्थमत वस्तुओं को एक बेहतर बाजार प्रदान ककया जाना चाधहए,
लेककन ऄधधकांश लोग धनधान होने के कारण ईत्पादों को खरीदने में समथा नहीं होते हैं। एक छोटे
बाजार के धलए कम लागत पर वस्तुओं का ईत्पादन करने के धलए मशीनीकृ त धवधनमााण सबसे
ककफायती होता है परं तु यह बहुत कम िधमकों को रोजगार प्रदान करता है और आससे बेरोजगारी
की समस्या का समाधान नहीं हो पाता है।
 पारम्पररक दृधष्टकोण का पररवतान धवरोधी होना: परं परागत या धार्थमक दृधष्टकोण पररवतान के
धवरुि हो सकते हैं और धस्थधत को और ऄधधक गंभीर बना सकते हैं। ईदाहरण के धलए, कै थोधलक
चचा द्वारा जन्म धनयंत्रण को प्रधतबंधधत ककया गया है और भारत में व्वसायों पर जाधतगत
प्रधतबंध भी धवकास की गधत को धीमा करने के धलए ईिरदायी हैं। कृ धष पिधतयों और नइ फसलों
(ईदाहरण के धलए अनुवंधशक रूप से संशोधधत फसलों) को ऄपनाने के संदभा में ग्रामीण लोगों की
रूकढ़वाकदता भी ऄन्य महत्वपूणा कारण है, लेककन यह धार्थमक रूकढ़यों धजतना गंभीर नहीं है। कृ धष
पिधतयों और नइ फसलों को ऄपनाने सम्बन्धी दृधष्टकोण को धशक्षा द्वारा पररवर्थतत ककया जा
सकता है परं तु धार्थमक दृधष्टकोणों को पररवर्थतत करना प्रायः करठन होता है।

8.1.2.ऄल्प-जनसं ख्या सं बं धी समस्याएं

 जनसंख्या का ऄसमान धवतरण: ऄल्प-जनसंख्या वाले देशों में औसत जनसंख्या घनत्व कम पाया
जाता है। प्रायः जन्म दर के ऄधधक होने पर भी जनसंख्या में धनम्न गधत से ही वृधि होती है।
जनसंख्या वृधि का एक महत्वपूणा कारण अप्रवासन है परं तु यह सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों के स्थान
पर कस्बों और नगरों की ओर ऄधधक होता है। साथ ही साथ बेहतर जीवन धनवााह पररधस्थधतयों के
कारण नगर पहले से ही धवरल रूप से बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों से और लोगों को अकर्थषत करते रहते
हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और नगरों के मध्य ऄसंतुलन ऄल्प जनसंख्या वाले देशों की एक प्रमुख समस्या है।
 दूरस्थता (Remoteness): धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ऄधधवास में वृधि करना करठन होता है
क्योंकक लोग शहर की सुधवधाओं से दूर जाने के आच्छु क नहीं होते हैं। बेहद कम जनसंख्या के धलए
व्ापक स्तर पर संचार, स्वास््य, धशक्षा या ऄन्य सुधवधाएं प्रदान करने हेतु ऄत्यधधक पूज
ं ी व्य
करनी पड़ती है ऄतः प्रायः ऐसे क्षेत्रों में सुधवधाओं का ऄभाव होता है। आससे लोगों की ऐसे क्षेत्रों
(कम सुधवधा युक्त) में बसने की ऄधनच्छा में वृधि होती है।
 संसाधनों का ऄल्प ईपयोग: ककसी देश की कम जनसंख्या ईसके संसाधनों के पूणा दोहन को करठन
बनाती है। आन क्षेत्रों में सामान्यतः खधनजों, धवशेष रूप से बहुमूल्य धातुओं और पेट्ोधलयम का
धनष्कषाण ककया जाता है क्योंकक धन की आच्छा ऄन्य प्रकार के लाभों के महत्त्व को कम कर देती है।
कृ धष संसाधनों को धवकधसत करना ऄधधक करठन होता है क्योंकक ईनसे एक बेहतर प्रधतफल
(ररटना) प्राप्त करने से पूव,ा दीघाावधध तक ऄत्यधधक पररिम की अवश्यकता होती है।
 मंद औद्योधगक वृधि: यह धस्थधत िम, धवशेष रूप से ऄल्प जनसंख्या वाले क्षेत्रों में कु शल िम की
कमी के कारण ईत्पन्न होती है; ईदाहरण के धलए दधक्षण ऄमेररकी और ऄफ्रीकी देशों में। ऐसे में
अयाधतत कु शल िम औद्योधगक धवकास की लागत में वृधि करता है। आसके ऄधतररक्त जीवन स्तर
के मानक ईच्च होने के बावजूद कम जनसंख्या पयााप्त स्तर का बाजार ईपलब्ध कराने में सक्षम नहीं
होती है।
 जलवायु संबध
ं ी समस्याएं: प्रधतकू ल जलवायु या ईच्चावच दशाएाँ, ऄधधवास को करठन बनाती हैं।
ऐसी दशाएाँ धवकास में बाधा ईत्पन्न करती हैं और आन पर पूणा रूप से धवजय प्राप्त करना संभव नहीं
है।

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ऄल्प जनसंख्या वाले देशों में जनसंख्या में वृधि की अवश्यकता है ककतु यह के वल तभी लाभप्रद होगा
जब अप्रवाधसयों के पास ईधचत कौशल हो और वे धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्र में रहने के धलए तैयार
हों। प्रारं भ में संयुक्त राज्य ऄमेररका में बसने वाले लोगों ने भूधम को धवकधसत ककया क्योंकक ईनमें से
ऄनेक भूधमहीन ककसान थे, ककतु वतामान में ऄल्प जनसंख्या वाले देशों में प्रवास करने वाले लोग
सामान्यतः नगरीय जीवन को प्राथधमकता देते हैं। ऄल्प जनसंख्या वाले क्षेत्रों की ओर प्रवास प्रोत्साधहत
करना करठन और ऄधधक लागत वाला होता है और आसमें ऄत्यधधक पूज ाँ ी धनवेश की अवश्यकता होती
है।

8.2 धवकधसत दे शों की जनसं ख्या सं बं धी समस्याएं

(Population Problems of Advanced Countries)


 वृि जनसंख्या में वृधि: धनम्न जन्म दर के कारण जनसंख्या में युवा वगा का ऄनुपात ऄपेक्षाकृ त कम
होता है। धनम्न मृत्यु दर और ईच्च जीवन प्रत्याशा का ऄथा यह है कक जनसंख्या में वृि व्धक्तयों के
ऄनुपात में धनरं तर वृधि होती रहती है। ऄधधकांश व्धक्त 60 वषा की अयु तक सेवाधनवृि हो कर
कायाशील जनसंख्या पर धनभार हो जाते हैं। वृि व्धक्तयों को पेंशन एवं स्वास््य संबंधी सेवाएाँ
अकद ऄन्य सुधवधाएाँ ईपलब्ध कराने हेतु धविीय चुनौधतयां ईत्पन्न होती हैं।
 िम बल में कमी: शैक्षधणक मानकों में सुधार होने के साथ ही बच्चे धवद्यालयों में दीघाावधध तक
धशक्षा ग्रहण करते हैं और आसके पश्चात् ही िम बल में सधम्मधलत होते हैं। ईपयुाक्त कारक एवं धनम्न
जन्म दर के पररणामस्वरूप िम बल में मंद गधत से वृधि होती है जबकक औद्योधगक एवं ऄन्य क्षेत्रों
में रोजगार के ऄवसरों में धनरं तर तीव्र दर से वृधि होती है। ऄधधकांश ईद्योगों के ईच्च मशीनीकरण
के बावजूद कइ देशों में िधमकों का ऄभाव रहता है। सामान्यतः िम बल के पूणा रूप से धशधक्षत
तथा कु शल होने से ऄकु शल िधमकों की कमी ईत्पन्न होना एक ऄन्य समस्या है। ऄधधकांश लोगों के
कु शल होने और कायाबल के ऄपेक्षाकृ त कम होने के कारण वेतन बहुत ऄधधक होते हैं।
 ग्रामीण जनसंख्या में कमी: नगरीय जीवन के ऄपकषा कारकों (पुल फ़ै क्टसा) के पररणामस्वरुप
ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर जनसंख्या का धनयधमत प्रवास होता है। जनसंख्या में कमी, ग्रामीण
क्षेत्रों को सेवाएाँ प्रदान करने या व्वसाय करने हेतु ऄपेक्षाकृ त कम लाभप्रद बनाती है। आससे नगरों
और ग्रामीण क्षेत्रों के मध्य ऄसमानता भी ईत्पन्न होती है।
 नगरीकरण: नगरों के धवस्तार के साथ-साथ पररवहन, जल अपूर्थत, सीवेज और ऄपधशष्ट धनपटान
पर दबाव में भी वृधि होती है। आसके कारण ऄनेक समस्याएं ईत्पन्न हो जाती हैं। कारखानों से
धनकलने वाले धुएं और रासायधनक बधहःस्राव के कारण वायु एवं जल प्रदूषण में वृधि होती है।
ऄन्य समस्याओं में यातायात संबध
ं ी भीड़भाड़ और ध्वधन प्रदूषण सधम्मधलत हैं। आन देशों में नगरीय
जीवन से ईत्पन्न तनाव के कारण ऄधवकधसत देशों की तुलना में मानधसक रोगों की ऄधधक घटनाएं
दजा की जाती हैं। आसके ऄधतररक्त नगरीय प्रसार एक ऄन्य समस्या है; कइ देशों में धवस्तृत होते
नगर प्रायः कृ धष हेतु ईपयुक्त भूधम का ऄधधग्रहण कर लेते हैं, धजसके कारण कृ धषगत अत्मधनभारता
में भी कमी अ जाती है।
ऄधधकांश धवकधसत देशों में ऐसे क्षेत्र भी मौजूद हैं जहां कृ धष या ईद्योग में सुधार की सम्भावना है या
जहां धवशाल जनसंख्या धनवास करती है। आसी प्रकार ऄल्प धवकधसत देशों के महानगरों में व्ाप्त
समस्याएाँ भी ऄन्य देशों के नगरीकृ त समाजों के समान ही होती हैं। ऄल्प धवकधसत देशों के मध्य
धवद्यमान धभन्नताओं को भी ध्यान में रखा जाना महत्वपूणा है। बेहतर संसाधन अधार या कम जनसंख्या
वाले देश जैसे - ऄजेंटीना, मेधक्सको और मलेधशया अकद सीधमत संसाधनों और स्थायी पारं पररक
धवचारों वाली धवशाल जनसंख्या वाले देशों की तुलना में समस्याओं का समाधान करने में ऄधधक सक्षम
होते हैं।
जनसंख्या वृधि को प्रभाधवत करने वाले कारक
जनसंख्या वृधि को प्रभाधवत करने वाला सवााधधक महत्वपूणा कारक धनम्न स्तरीय सामाधजक-अर्थथक
धवकास है।
 ईदाहरण के धलए, ईिर प्रदेश में साक्षरता दर 67.68% है और के वल 14% मधहलाओं को ही
पूणारूप से प्रसवपूवा देखभाल प्राप्त होती है। राज्य में प्रधत दम्पधत औसतन चार बच्चे हैं।
 आसके धवपरीत, के रल में लगभग प्रत्येक व्धक्त साक्षर है। साथ ही प्रत्येक मधहला को प्रसवपूवा
देखभाल प्राप्त होती है। यहााँ प्रधत दम्पधत औसतन दो बच्चे जन्म लेते हैं।

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ऄन्य कारक
 धशशु मृत्यु दर
o 1961 में, धशशु मृत्यु दर (IMR) प्रधत 1000 जीधवत जन्मों पर 115 थी, जबकक वतामान में
राष्ट्रीय स्तर पर यह औसत 34 (2016 के ऄनुसार) है। हालांकक, ऄधधकांश धवकधसत देशों में
यह 5 से भी कम है।
o IMR सबसे कम गोवा में 8 है जबकक सवााधधक मध्य प्रदेश में 47 है (2016 के ऄनुसार)।
ऄनुभवजन्य धवश्लेषण से यह ज्ञात होता है कक ईच्च IMR, ऄधधक संतानोत्पधत की आच्छा को
प्रबल बनाती है।
 कम अयु में धववाह
o राष्ट्रीय स्तर पर 20-24 अयु वगा की लगभग 43% धववाधहत मधहलाओं का धववाह 18 वषा
से कम अयु में हुअ था। यह अंकड़ा धबहार में 68% है। कम अयु में धववाह न के वल ऄधधक
बच्चों के जन्म की संभावना में वृधि करता है बधल्क यह मधहलाओं की स्वास््य संबंधी
समस्याओं में भी वृधि करता है।
 धशक्षा का स्तर
o सामान्यतः मधहलाओं के धशक्षा स्तर में वृधि के साथ प्रजनन दर में कमी दजा की जाती है।
 गभा धनरोधक ईपायों का ईपयोग
o ऄस्थायी बनाम स्थायी ईपाय- राष्ट्रीय पररवार स्वास््य सवेक्षण-III (2005-06) के ऄनुसार
भारत में के वल 56% धववाधहत मधहलाओं द्वारा ही पररवार धनयोजन संबंधधत ईपायों का
ईपयोग ककया जाता है। ईनमें से ऄधधकांश (37%) ने नसबंदी या बंध्याकरण
(sterilization) जैसे स्थायी ईपायों को ऄपनाया है।
 ऄन्य सामाधजक-अर्थथक कारक
o बड़े पररवारों की धवशेष रूप से पुत्र प्राधप्त की आच्छा भी ईच्च जन्म दर में वृधि का कारण
बनती है। एक ऄनुमान के ऄनुसार पुत्रों को वरीयता कदया जाना एवं ईच्च धशशु मृत्यु दर देश
में होने वाले कु ल जन्मों के 20% के धलए ईिरदायी है।

8.3 भारत में धगरता ललगानु पात

(Declining sex ratio in India)


ललगानुपात, जनसंख्या में लैंधगक समानता का एक महत्वपूणा सूचक है।

भारत में ललगानुपात की प्रवृधियााँ

धवगत वषों में देश के ललगानुपात में सुधार हुअ है। जनगणना के ऄनुसार, ललगानुपात 2001 के प्रधत
1000 पुरुषों पर 933 मधहलाओं से बढ़कर 2011 में प्रधत 1000 पुरुषों पर 943 मधहलाएाँ हो गया है।
राज्यों/कें ि शाधसत प्रदेशों के ललगानुपात संबंधधत अंकड़ों को ताधलका में प्रदर्थशत ककया गया हैl
2011 की जनगणना के ऄनुसार, बाल ललगानुपात (0-6 वषा) में कमी दजा की गइ। यह 2001 के प्रधत
1000 बालकों पर 927 बाधलकाएाँ से घटकर 2011 में 919 हो गया है।
आस कम होते बाल ललगानुपात और बाधलकाओं की ईपेक्षा का मुख्य कारण पुत्र को वरीयता देना और
आससे संबंधी ऄन्य धविास हैं जैसे- के वल पुत्र ही ऄंधतम संस्कार पूणा कर सकता है; के वल पुरुष द्वारा ही
वंश को अगे बढ़ाया जा सकता है; वही ईिराधधकारी बन सकता है; वृिावस्था में माता-धपता की देख-
भाल के वल पुत्र ही कर सकता है और पुरुष ही ऄपने पररवार का भरण-पोषण कर सकता है, अकद।
ऄत्यधधक दहेज की मांग बाधलका भ्रूण हत्या/धशशु हत्या हेतु ईिरदायी ऄन्य कारण है। छोटे पररवार

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संबंधी मानक के साथ-साथ ललग चयन परीक्षणों की सुगम ईपलब्धता धशशु ललगानुपात में कमी के धलए
प्रेरक हो सकते हैं। आसके ऄधतररक्त, पूवा-गभाधारण ललग चयन सुधवधाओं की सुगम ईपलब्धता से आसे और
ऄधधक बढ़ावा धमलता है।
संदभा के रूप में ताधलका T5 और T6 देख।ें

बाल ललगानुपात में धगरावट हेतु ईिरदायी प्रमुख कारक हैं:


 बाल्यावस्था में बाधलका धशशुओं की गंभीर ईपेक्षा जो ईनकी ईच्च मृत्यु दर का कारण बनती है;
 ललग धवधशष्ट गभापात, बाधलका धशशुओं के जन्म में ऄवरोध ईत्पन्न करता है; तथा
 बाधलका धशशु हत्या (या धार्थमक ऄथवा सांस्कृ धतक मान्यताओं के कारण बाधलका धशशु की हत्या)।
ये सभी कारण गंभीर सामाधजक समस्या की ओर संकेत करते हैं। भारत में आन प्रथाओं के प्रचधलत होने
के पयााप्त साक्ष्य धवद्यमान हैं। बाधलका धशशु हत्या की प्रथा पूवा में भी कइ क्षेत्रों में मौजूद थी, परं तु
वतामान में अधुधनक धचककत्सा तकनीकों के कारण आससे संबंधधत मामलों की संख्या में वृधि हुइ है,
चूंकक आन अधुधनक धचककत्सा तकनीकों के माध्यम से गभाावस्था के शुरुअती चरणों में ही धशशु के ललग
का धनधाारण संभव है। सोनोग्राम, ऄल्ट्ा-साईं ड टेक्नोलॉजी पर अधाररत एक्स-रे के समान एक
डायग्नोधस्टक धडवाआस है, धजसे मूलतः भ्रूण में अनुवांधशक ऄथवा ऄन्य धवकारों की पहचान के धलए
धवकधसत ककया गया था। परन्तु धवडंबना यह है कक आसका ईपयोग बाधलका कन्या भ्रूण की पहचान
करने एवं ईसके गभापात हेतु ककया जा रहा है।
धनम्न बाल ललगानुपात का क्षेत्रीय प्रधतरूप भी आस तका का समथान करता प्रतीत होता है। यह
धवचारणीय त्य है कक भारत के सबसे समृि क्षेत्रों में सबसे कम बाल ललगानुपात पाया जाता है।
पंजाब, हररयाणा, चंडीगढ़, कदल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र प्रधत व्धक्त अय के मामले में देश के सबसे
समृि राज्यों में से हैं तथा साथ ही ये न्यूनतम बाल ललगानुपात वाले राज्य भी हैं। ऄतः चयनात्मक
गभापात की समस्या का कारण के वल गरीबी या ऄज्ञानता ऄथवा संसाधनों का ऄभाव नहीं है।
ईदाहरण के धलए यकद दहेज जैसी प्रथाओं का ऄथा यह है कक माता-धपता को ऄपनी पुधत्रयों के धववाह के
धलए ऄधधक दहेज देना पड़ता है, तो ईस पररधस्थधत में समृि माता-धपता आस खचा को वहन करने में
सवााधधक सक्षम होंगे।
हालांकक, सबसे समृि क्षेत्रों में न्यूनतम ललगानुपात दजा ककया गया है। यह भी संभव है (हालांकक आस
मुद्दे पर ऄभी भी शोध ककया जा रहा है) कक अर्थथक रूप से समृि पररवार कम बच्चे पैदा (सामान्यतः वे
के वल एक या दो बच्चे) करने का धनणाय करें । ऄतः वे ऄपने बच्चे के ललग का चयन भी कर सकते हैं।
ऄल्ट्ा-साईं ड टेक्नोलॉजी की ईपलब्धता के कारण ऐसा संभव हो जाता है, यद्यधप सरकार द्वारा आस
प्रकार की गधतधवधधयों पर प्रधतबंध लगाने हेतु और सज़ा के रूप में भारी जुमााना एवं कारावास से
संबंधधत कठोर कानून पाररत ककए गए हैं। पूवा गभााधान और प्रसव पूवा धनदान तकनीक (ललग चयन का
प्रधतषेध) ऄधधधनयम, 1994, नामक ऄधधधनयम 1996 से लागू है और आसे 2003 में और ऄधधक सुदढ़ृ
बना कदया गया है। हालांकक, ऄंततः बाधलका धशशु के प्रधत पक्षपात जैसी समस्याओं का समाधान
कानूनों और धनयमों के ऄधतररक्त सामाधजक दृधष्टकोण पर भी धनभार करता है।
9. भारत में जनसं ख्या नीधतयााँ
(Population Policies in India)
जनसंख्या गधतकी ककसी राष्ट्र की धवकासात्मक संभावनाओं के साथ-साथ जन सामान्य के स्वास््य एवं
कल्याण को भी प्रभाधवत करती है। यह वास्तधवकता है कक धवकासशील देशों को आस संदभा में धवशेष
चुनौधतयों का सामना करना पड़ता है।
क्या अप जानते हैं कक स्वतंत्रता पूवा से ही भारत में जनसंख्या वृधि तथा जनसंख्या नीधत ऄपनाने की
अवश्यकता पर धवमशा अरं भ हो गया था? 1938 में ऄंतररम सरकार द्वारा धनयुक्त राष्ट्रीय धनयोजन
सधमधत द्वारा जनसंख्या पर एक ईप-सधमधत का गठन ककया गया था। आस सधमधत के 1940 के प्रस्ताव

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में कहा गया था कक “सामाधजक ऄथाव्वस्था, पाररवाररक प्रसन्नता तथा राष्ट्रीय धनयोजन के धहत में
पररवार धनयोजन एवं संतानोत्पधि पर धनयंत्रण ऄधनवाया है।”
वस्तुतः 1952 में भारत ऐसी नीधत की स्पष्ट रूप से घोषणा करने वाला संभवतः प्रथम देश था। आस
नीधत का ईद्देश्य “राष्ट्रीय ऄथाव्वस्था की अवश्यकता के ऄनुरूप जनसंख्या को एक स्तर पर धस्थर
करने हेत”ु जन्म दर में कमी लाना था।
जनसंख्या नीधत ने राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम का मूता रूप धारण ककया। आस कायाक्रम का
व्ापक ईद्देश्य समान ही रहा है यथा - सामाधजक रूप से वांछनीय स्तर पर जनसंख्या वृधि की दर एवं
प्रवृधि को प्रभाधवत करने का प्रयास करना। शुरूअती कदनों में, सबसे महत्वपूणा ईद्देश्य धवधभन्न जन्म
धनयंत्रण ईपायों के प्रोत्साहन, जन स्वास््य मानकों में सुधार तथा जनसंख्या एवं स्वास््य संबंधधत मुद्दों
के संदभा में जन जागरूकता में वृधि के माध्यम से जनसंख्या वृधि दर को धीमा करना था।
राष्ट्रीय अपातकाल (1975-76) के दौरान पररवार धनयोजन कायाक्रम ऄवरुि हो गया था। आस
समयावधध के दौरान संसदीय एवं धवधायी प्रकक्रयाएं धनलंधबत थीं तथा सरकार द्वारा (संसद द्वारा
पाररत ककए धबना) प्रत्यक्ष रूप से जारी ककए गए कानून एवं ऄध्यादेश प्रभावी थे। आस ऄवधध के दौरान
सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर लोगों के बलपूवक
ा बंध्याकरण का कायाक्रम चलाया गया तथा जनसंख्या की
वृधि दर को कम करने का प्रयास ककया गया। यहां बंध्याकरण से अशय पुरुष नसबंदी (vasectomy)
तथा मधहला नसबंदी (tubectomy) जैसी धचककत्सीय प्रकक्रयाओं से है, जो गभाधारण एवं संतानोत्पधि
को प्रधतबंधधत करती हैं।
मुख्य रूप से धनधान एवं कमजोर वगा के व्धक्तयों का ऄत्यधधक संख्या में जबरन बंध्याकरण ककया गया
तथा लोगों को बंध्याकरण हेतु लगाए गए धशधवरों में लाने के धलए धनचले स्तर के ऄधधकाररयों (जैसे कक
धवद्यालय ऄध्यापक या कायाालय कमाचारी) पर ऄत्यधधक दबाव डाला गया था। धवपक्षी दलों ने व्ापक
रूप से आस कायाक्रम की अलोचना की तथा अपातकाल के पश्चात् नव-धनवााधचत सरकार ने आस
कायाक्रम को समाप्त कर कदया।
अपातकाल के पश्चात् राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम का नाम पररवर्थतत कर राष्ट्रीय पररवार
कल्याण कायाक्रम कर कदया गया तथा बलपूवक ा ऄपनाइ जाने वाली धवधधयों का त्याग कर कदया गया।
वतामान में आस कायाक्रम के तहत व्ापक सामाधजक-जनांकककीय ईद्देश्यों को समाधहत ककया गया है।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 के एक भाग के रूप में कदशा-धनदेशों के नए समुच्चय का धनमााण ककया
गया।

9.1 राष्ट्रीय जनसं ख्या नीधत, 2000

(National Population Policy, 2000)


राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 में जनसंख्या के मुद्दों से संबंधधत दृधष्टकोण में एक गुणात्मक बदलाव
(departure) लाया गया। यह नीधत जनसंख्या धनयंत्रण पर प्रत्यक्ष रूप से बल नहीं देती है। आसमें स्पष्ट
ककया गया है कक सामाधजक और अर्थथक धवकास का ईद्देश्य लोगों के जीवन की गुणविा में सुधार एवं
ईनके कल्याण में वृधि करना तथा ईन्हें समाज में ईत्पादक संसाधन बनने हेतु ऄवसर एवं धवकल्प
ईपलब्ध करवाना है। सतत धवकास को प्रोत्साहन देने हेतु जनसंख्या धस्थरीकरण ऄत्यंत अवश्यक है।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 का तात्काधलक ईद्देश्य गभाधनरोधक, स्वास््य देखभाल संबंधी
ऄवसंरचना एवं स्वास््य कर्थमयों की ऄपूणा अवश्यकताओं को सम्बोधधत करना तथा अधारभूत प्रजनन
एवं धशशु स्वास््य देखभाल हेतु एकीकृ त सेवा प्रदायगी सुधनधश्चत करना है। राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत
2000 का मध्यम ऄवधध का ईद्देश्य 2010 तक ऄंतर-क्षेत्रकीय प्रचालन रणनीधतयों के त्वररत
कक्रयान्वयन द्वारा सकल प्रजनन दर (TFR) को प्रधतस्थापन स्तरों तक लाना तथा दीघाावधधक ईद्देश्य
2045 तक सतत अर्थथक संवृधि, सामाधजक धवकास तथा पयाावरण संरक्षण सधहत एक धस्थर जनसंख्या
का लक्ष्य प्राप्त करना है।

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राष्ट्रीय सामाधजक-जनांकककीय लक्ष्य-2010

 अधारभूत प्रजनन और धशशु स्वास््य सेवाओं, अपूर्थतयों तथा ऄवसंरचना की ऄपूररत


अवश्यकताओं को सम्बोधधत करना।
 14 वषा तक के सभी बच्चों के धलए स्कू ली धशक्षा को धन:शुल्क एवं ऄधनवाया बनाना; तथा प्राथधमक

एवं माध्यधमक स्तर पर बालक और बाधलकाओं दोनों की स्कू ल छोड़ने की दर को 20 प्रधतशत से


नीचे लाना।
 धशशु मृत्यु दर को प्रधत 1000 जीधवत जन्मों पर 30 तक कम करना।
 मातृ मृत्यु दर को प्रधत 1000 जीधवत जन्मों पर 100 तक लाना।
 बच्चों में सभी टीके से धनयंधत्रत होने वाले रोगों के धवरुि सावाभौधमक टीकाकरण प्राप्त करना।
 लड़ककयों को देरी से ऄथाात 18 वषा से पूवा नहीं बधल्क 20 वषा के पश्चात् धववाह करने हेतु प्रोत्साधहत
करना।
 80 प्रधतशत संस्थागत प्रसव; तथा प्रधशधक्षत व्धक्तयों द्वारा 100 प्रधतशत प्रसव कराने के लक्ष्य को
प्राप्त करना।
 धवकल्पों की व्ापक ईपलब्धता सधहत प्रजनन धनयंत्रण संबंधी सेवाओं और गभाधनरोधक से संबंधधत
सूचनाओं/परामशों तक सावाभौधमक पहुाँच प्राप्त करना।
 जन्म, मृत्यु, धववाह तथा गभाावस्था का 100 प्रधतशत पंजीकरण प्राप्त करना।
 एक्वायडा आम्यूनो डेकफधशयन्सी लसड्रोम (AIDS) के प्रसार को रोकना तथा रीप्रोडधक्टव ट्ैक्ट

आन्फे क्शन (RTI) एवं यौन संचाररत संक्रमण (Sexually Transmitted Infections) और राष्ट्रीय
एड्स धनयंत्रण संयक्र
ा मों को एक जन-के धन्ित कायाक्रम बनाने हेतु संगठन के प्रबंधन के मध्य
ऄधधकाधधक एकीकरण को प्रोत्साधहत करना।
 संचारी रोगों की रोकथाम एवं धनयंत्रण।
 प्रजनन एवं धशशु स्वास््य सेवाओं की ईपलब्धता तथा पररवारों तक पहुाँच बनाने हेतु भारतीय
धचककत्सा प्रणाधलयों का एकीकरण करना।
 सकल प्रजनन दर के प्रधतस्थापन स्तर को प्राप्त करने हेतु छोटे पररवार के अदशा को प्रबलता से
प्रोत्साधहत करना।
 पररवार कल्याण काबंधधत सामाधजक क्षेत्रक कायाक्रमों के कक्रयान्वयन को एकीकृ त करना।

िोत: जनसंख्या पर राष्ट्रीय अयोग

प्रधतस्थापन स्तर पर सकल प्रजनन दर: यह वह सकल प्रजनन दर है धजस पर प्रत्येक नवजात बाधलका
के ईसके जीवनकाल में औसतन के वल एक बेटी होगी। प्रत्येक मधहला ईतने ही बच्चों को जन्म देगी
धजतने ईसके प्रधतस्थापन हेतु अवश्यक हैं। आस प्रकार आसका पररणाम शून्य जनसंख्या वृधि के रूप में
पररलधक्षत होता है।
धस्थर जनसंख्या: ऐसी जनसंख्या जहााँ जन्म दर एवं मृत्यु दर एक दीघाावधध में धस्थर बनी हुइ है। आस
प्रकार की जनसंख्या एक ऄपररवतानशील अयु धवतरण को प्रदर्थशत करे गी तथा एक धस्थर दर पर वृधि
करे गी। जहााँ प्रजनन दर और मृत्यु दर एक समान होती हैं वहां धस्थर जनसंख्या स्थायी बनी रहती है।
भारत के राष्ट्रीय पररवार कल्याण कायाक्रम का आधतहास स्पष्ट करता है कक राष्ट्र जनांकककीय पररवतान
हेतु पररधस्थधतयों के सृजन के धलए ऄत्यधधक प्रयास कर सकता है परन्तु ऄधधकााँश जनांकककीय चर
(धवशेष रूप से वे जो मानव प्रजनन से संबंधधत हैं) ऄंततोगत्वा अर्थथक, सामाधजक तथा सांस्कृ धतक
पररवतान के धवषय हैं।

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भारत में पररवार धनयोजन नीधत का धवकास-क्रम

स्वतंत्रता पूवा ऄधभजात वगा के मध्य जनसंख्या धनयंत्रण को प्रोत्साधहत करने हेतु
ईिरदायी सामान्य कारक
 जन सामान्य के मध्य जागरूकता का ऄभाव।
 राजनीधतक और बौधिक ऄधभजात वगा के मध्य जनसंख्या नीधत के
पक्ष में तका ।
 धचककत्सालयों की स्थापना हेतु एवं लोगों को सूचना ईपलब्ध
करवाने हेतु ऄलग-थलग प्रयास।
 जन्म धनयंत्रण के साधनों हेतु जनसंख्या गधतकी तथा ईपागमों की
समझ में मतभेद होने के बावजूद गााँधी और नेहरु द्वारा जनसंख्या
धनयंत्रण का प्रबल समथान ककया गया।
1952 गााँधीवादी दृधष्टकोण के साथ पररवार धनयोजन की शुरुअत
 राज्य प्रायोधजत पररवार धनयोजन कायाक्रम प्रारम्भ ककया गया।
 मुख्य धवधधयों के रूप में संयम और सामंजस्य के साथ गााँधीवादी
दृधष्टकोण।
1950-60 नैदाधनक दृधष्टकोण
 अर्थथक मॉडल जनसंख्या वृधि और धवकास के मध्य एक
नकारात्मक संबंध को प्रदर्थशत करता है।
 जनांकककीय दरों एवं ऄनुपातों का ऄनुमान।
 ज्ञान, मनोवृधत तथा व्वहार का ऄध्ययन।
 प्रजनन से संबंधधत शोध।
 नैदाधनक दृधष्टकोण।
1960-70 धवस्ताररत दृधष्टकोण तथा परीक्षण
 धवस्तृत कायाक्रम।
 ऄंतगाभााशयी गभाधनरोधक ईपकरण (intrauterine
contraceptive device: IUCD) कायाक्रम।
 लक्ष्य ऄधभमुखीकरण (तृतीय पंचवषीय योजना)।
 संगठनात्मक पररवतान।
1970-80 धशधवर अधाररत दृधष्टकोण (Camp approach)
 सतत धवकास की ऄवधारणा।
 सामूधहक नसबंदी (Vasectomy) धशधवर।
 पररवार धनयोजन का राष्ट्र स्तरीय ऄध्ययन।
 प्रथम जनसंख्या नीधत वक्तव् की घोषणा।
 स्वैधच्छकता पर बल देते हुए जनता सरकार के ऄधीन नीधत।
1980-90 कै फे टेररया अधाररत दृधष्टकोण
 गभाधनरोधक के स्थान पर पररवार के अकार धनयंत्रण पर बल देना
और कै फे टेररया दृधष्टकोण ऄपनाना।
 धनवल जनन दर (Net Reproductive Rate:NRR) के संदभा में
धनयोजन (1996 तक NRR को आकाइ करने के लक्ष्य की प्राधप्त)।

1990-2000 लक्ष्य मुक्त दृधष्टकोण


 जनसंख्या, धवकास और कल्याण से संबंधधत धवस्तृत राष्ट्रीय एवं

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क्षेत्र स्तरीय अंकड़ों का संग्रहण।
 लक्ष्यों का ईन्मूलन।
 राष्ट्रीय धवधशष्ट से क्षेत्र धवधशष्ट दृधष्टकोण की ओर स्थानान्तरण।
2000 राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000
 राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत।
 ऄपूररत अवश्यकताओं की ऄवधारणा।
 ऄधधकार-अधाररत दृधष्टकोण।
 एचअइवी/एड्स।
 भागीदारी दृधष्टकोण।

10. राष्ट्रीय जनसं ख्या नीधत, 2000 का मू ल्यां क न


(Appraisal of National Population Policy 2000)
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 का ऄनुसरण करते हुए सरकार ने पररवार धनयोजन कायाक्रम के तहत
कइ ईपाय ककए हैं धजसके पररणामस्वरूप भारत में जनसंख्या वृधि दर में काफी कमी अइ है। यह
धनम्नधलधखत त्यों से स्पष्ट होता है:
(a) देश की दशकीय वृधि दर 1991-2001 की ऄवधध के दौरान 21.34% से घटकर 2001-2011 के
दौरान 17.64% हो गयी है।
(b) जब राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत, 2000 को ऄंगीकृ त ककया गया था तो ईस समय सकल प्रजनन दर
(TFR) 3.2 थी। भारत के रधजस्ट्ार जनरल द्वारा अयोधजत प्रधतदशा पंजीकरण सवेक्षण
(Sample Registration Survey:SRS) 2016 के ऄनुसार यह घटकर 2.3 हो गइ है।
1991 में सकल प्रजनन दर (TFR) के 3.6 के स्तर से 2016 में 2.3.के स्तर तक सुस्पष्ट धगरावट होने के
बावजूद भारत द्वारा ऄभी भी 2.1% का प्रधतस्थापन स्तर प्राप्त करना शेष है। 24 राज्यों/कें ि शाधसत
प्रदेशों द्वारा पहले ही 2013 तक TFR का प्रधतस्थापन स्तर प्राप्त कर धलया गया था, जबकक ईिर
प्रदेश और धबहार जैसे धवशाल जनसंख्या अधार वाले राज्यों में TFR क्रमशः 3.1 और 3.4 है। झारखंड
(TFR 2.7), राजस्थान (TFR 2.8), मध्य प्रदेश (TFR 2.9), छिीसगढ़ (TFR 2.6) जैसे ऄन्य
राज्यों में प्रजनन का ईच्च स्तर बना हुअ है और वे जनसंख्या वृधि में योगदान कर रहें हैं।
11. राष्ट्रीय जनसं ख्या नीधत (NPP) 2000: अगे की राह
(NPP-2000: The Way Forward)
NPP-2000 की सफलता या ऄसफलता का मूल्यांकन के वल प्रजनन दर के अधार पर नहीं ककया जा
सकता है। सकल प्रजनन दर NPP-2000 के व्ापक ईद्देश्य ऄथाात् ईच्च गुणविा युक्त प्रजनन स्वास््य
देखभाल की ईपेक्षा करती है। जहााँ एक ओर के रल और अंध्र प्रदेश जैसे दधक्षणी राज्य आसके ईधचत
कायाान्वयन और मधहलाओं के स्वास््य को सफलतापूवक
ा प्राथधमकता दे रहे हैं, वहीं ऄधधकांश राज्य
धनम्न स्तरीय सेवा के साथ प्रजनन स्वास््य की धनरं तर ईपेक्षा कर रहे हैं।
खराब कक्रयान्वयन के समाधान हेतु राज्य सरकारों और NPP-2000 के ऄन्य प्रशासकों द्वारा पररवार
धनयोजन कायाक्रम के प्रत्येक स्तर पर प्रजनन स्वास््य को प्राथधमकता देने की अवश्यकता है।
आसके धलए, पररवार धनयोजन कायाक्रम का धवस्तार ककया जाना चाधहए धजसके धलए एक व्ापक
नेटवका का धनमााण ककया जाना अवश्यक है। पंचायतों, गैर-सरकारी संगठनों, जमीनी स्तर के संगठनों
और राज्य ऄधधकाररयों के मध्य संबंधों को औपचाररकता प्रदान करने से पररवार धनयोजन कायाक्रम को
संभवतः ऄधधक समथान प्राप्त होगा और पारदर्थशता में वृधि होगी। स्वास््य एवं पररवार कल्याण
मंत्रालय को पररवार धनयोजन के क्षेत्र में स्वास््य देखभाल कर्थमयों एवं धचककत्सकों को अकर्थषत करने
के धलए कदम ईठाने चाधहए। आसके ऄधतररक्त, कमाचाररयों को ईधचत रूप से प्रधशधक्षत और ऄपने काया

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के प्रधत जवाबदेह होना चाधहए। पररवार धनयोजन के पेशेवरों को प्रधतस्पधाात्मक वेतन कदया जाना
चाधहए धजससे वे दीघाकाल तक ईच्च गुणविा युक्त सेवाएाँ प्रदान करें ।
आसके ऄधतररक्त, वंधचत जनसंख्या (ऄथाात् मधलन बधस्तयों के धनवासी, जनजातीय समुदाय और ग्रामीण
धनवासी) के पुरुषों या मधहलाओं तक पहुाँच सुधनधश्चत करने के धलए पररवहन संबंधी बाधाओं का
समाधान ककया जाना चाधहए। ऄंततः, पररवार धनयोजन कायाप्रणाली से संबंधधत पररचचाा में पुरुषों को
भी शाधमल ककया जाना चाधहए। कइ साक्ष्यों से पता चलता है कक पररवार धनयोजन और स्वास््य
देखभाल से संबंधधत धनणाय पधतयों द्वारा ही धलए जाते हैं, परं तु हाल के जनसांधख्यकीय और स्वास््य
सवेक्षण (2005) के अंकड़ों से ज्ञात होता है कक पुरुष को ऄपनी पधियों की ऄपेक्षा गभाधनरोधक ईपायों
के संबंध में कम जानकारी होती है। यकद पुरुष और मधहला द्वारा पररवार धनयोजन संबंधी धनणाय संयुक्त
रूप से धलए जाएं तो आससे दोनों को संतुधष्ट प्रदान करने वाले प्रजनन संबंधी पररणाम प्राप्त हो सकते हैं।
आस प्रकार, राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (2000) के प्रशासकों को पररवार धनयोजन के लाभों के बारे में
पुरुषों को धशधक्षत करने हेतु कदम ईठाए जाने चाधहए।
वस्तुतः पररवारों में धशक्षा, सूचना और गभा धनरोधकों तक पयााप्त पहुंच का ऄभाव देखा जाता है। यकद
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (2000) का ईद्देश्य सभी भारतीयों की गभाधनरोधक अवश्यकताओं की पूर्थत
करना है तो पररवार धनयोजन कायाक्रम के कायाान्वयन को पाररवाररक वरीयताओं से जोड़ा जाना
चाधहये और आसमें ईच्च गुणविायुक्त स्वास््य देखभाल के मानकों का समावेश ककया जाना चाधहए।
भावी जनसंख्या नीधत में ककन मुद्दों का समाधान ककया जाना चाधहए?
मूलभूत जनांकककीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के ऄधतररक्त, भावी जनसंख्या नीधत को प्रधतकू ल मधहला और
बाल ललगानुपात का समाधान करना चाधहए, जो कक शहरों एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में धवद्यमान है।
भूधम और संपधि पर मधहलाओं के स्वाधमत्व संबंधी ऄधधकारों की ऄनुपधस्थधत जैसी धवभेदकारी
सामाधजक बाधाएं पुत्रों को वरीयता देने हेतु ईिरदायी कारक हैं।
एक ऄन्य महत्वपूणा धवषय प्रवासन है, धजसका भावी जनसंख्या नीधत में समाधान ककया जाना चाधहए।
2011 की जनगणना के ऄंतगात रोजगार, व्वसाय, धशक्षा, धववाह और ऄन्य कारकों द्वारा प्रेररत
ऄंतरााज्यीय और ऄन्तःराज्यीय प्रवास में वृधि की चचाा की गयी है। महानगरों और बड़े शहरों में होने
वाले ऄधनयोधजत प्रवास के कारण ऄवसंरचना, अवास और जल की ईपलब्धता पर दबाव में वृधि होने
के साथ-साथ स्थानीय-बाहरी लोगों से संबंधधत तनाव भी ईत्पन्न होते हैं। जनसंख्या नीधत में आन
कारकों को सधम्मधलत करने से दूरदर्थशता और समन्वय में ऄपेक्षाकृ त ऄधधक वृधि होगी और मधलन
बधस्तयों के ऄत्यधधक धवस्तार एवं ऄधनयोधजत अवास के ऄपररहाया पररणामों से सुरक्षा प्राप्त होगी।
एक ऄन्य प्रमुख धवषय वृिावस्था से संबंधधत है। वृिजनों की बढ़ती जनसंख्या और स्थायी रोगों के
साथ जीवन प्रत्याशा में वृधि के कारण धशक्षा एवं कौशल धवकास प्रदान करने के प्राथधमक काया हेतु
प्रयुक्त संसाधन धवक्षेधपत हो सकते हैं। संयुक्त पररवार प्रणाली का धवघटन होने के कारण धनभारता
ऄनुपात में तीव्रता से वृधि हो रही है। वतामान में देखभाल सुधवधा प्रदाता से संबंधधत बाजार (market
of caregivers) ऄधवधनयधमत, महंगा और गैर भरोसेमंद है। वृिजनों की बढ़ती ऄसमथाता के कारण
आस जनसंख्या समूह की बढ़ती अवश्यकताओं पूर्थत के धलए व्ावसाधयक ऄवसरों को जनसंख्या नीधत
का भाग होना चाधहए।
भधवष्य में ईत्पन्न होने वाली चुनौधतयों से धनपटने की तैयारी के साथ हमारी जनांकककीय पररसंपधियों
की रक्षा करने वाली जनसंख्या नीधत धवनाशकारी पररणामों से भावी पीकढ़यों की रक्षा करे गी।

11.1 भारत में जनसं ख्या वृ धि को धनयं धत्रत करने हे तु ककए गए ईपाय

(Measures to control population growth in India)


ककए जा रहे ईपाय:
 प्रसवोिर ऄंतगाभााशयी गभाधनरोधक ईपकरण (IUCD) जैसी जन्म ऄंतराल पिधतयों (Spacing
methods) पर ऄधधक बल।
 सभी सुधवधा कें िों पर धनयत कदवस हेतु स्थाइ सेवाओं (Fixed Day Static Services) की
ईपलब्धता।

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 राज्य और धजला स्तर पर गुणविा अिासन सधमधतयों की स्थापना करके पररवार धनयोजन
सेवाओं में गुणविायुक्त देखभाल सुधनधश्चत करना।
 दूर दराज के क्षेत्रों में धस्थत स्वास््य के न्िों तक गभाधनरोधकों की अपूर्थत के प्रबंधन में सुधार।
 धवधभन्न सुधवधाओं के धवज्ञापनों, सूचना-पट्टों (billboards) और ऄन्य दृश्य-िव् साधनों के प्रदशान
के माध्यम से मांग सृजन करने वाली गधतधवधधयों का संचालन।
 नसबंदी या बंध्याकरण कराने वाले व्धक्त के धलए राष्ट्रीय पररवार धनयोजन बीमा योजना
(NFPIS) धजसके ऄंतगात बीमा धारक की मृत्यु, जरटलताएं और धवफलता की संभाधवत घटनाओं
के धलए बीमा कवर प्रदान ककया जाता है तथा प्रदाता/ऄधधकृ त संस्थाओं को ईन संभाधवत घटनाओं
में मुकदमेबाज़ी के धवरुि क्षधतपूर्थत बीमा कवर प्रदान ककया जाता है।
 नसबंदी स्वीकारकतााओं हेतु क्षधतपूर्थत योजना- आस योजना के तहत स्वास््य एवं पररवार कल्याण

मंत्रालय (MoHFW) लाभाथी को होने वाली पाररिधमक हाधन और नसबंदी करने वाले सेवा
प्रदाता (और धचककत्सक दल) को क्षधतपूर्थत प्रदान करता है।
 पुरुष भागीदारी को बढ़ाना और नॉन-स्के लपल वेसक्टॉमी (Non Scalpel Vasectomy) को
प्रोत्साधहत करना। नॉन-स्के लपल वेसक्टॉमी में कोइ चीरा नहीं बधल्क के वल सुराख ककया जाता है
आसधलए कोइ टांके नहीं लगाये जाते।

 धमनीलैप ट्यूबक्
े टोमी (Minlap Tubectomy) सेवाओं पर ऄधधक बल देना क्योंकक ये ऄधधक

सरल होती हैं और आनके धलए के वल MBBS डॉक्टर की अवश्यकता होती है, न कक ककसी
िातकोिर िी रोग धवशेषज्ञ या सजान की।
 सावाजधनक-धनजी भागीदारी (PPP) के तहत पररवार धनयोजन सेवाओं के धलए सेवा प्रदाताओं के
अधार में वृधि करने के धलए ऄपेक्षाकृ त ऄधधक धनजी/गैर-सरकारी संगठनों को मान्यता प्रदान
करना।
पररवार धनयोजन कायाक्रम के ऄंतगात की गयी नवीन पहलें
 अशा (ASHA) कायाकतााओं द्वारा लाभार्थथयों के घर तक गभाधनरोधकों की अपूर्थत करने की

योजना: सरकार द्वारा लाभार्थथयों के घरों तक गभाधनरोधकों की अपूर्थत करने हेतु अशा

कायाकतााओं की सहायता प्राप्त करने के धलए एक योजना प्रारम्भ की गयी है।


 अशा कायाकतााओं द्वारा बच्चों के जन्म में ऄंतराल सुधनधश्चत करने की योजना: आस योजना के तहत
अशा कायाकतााओं द्वारा नव दम्पधतयों को धववाह के पश्चात् बच्चे के जन्म में दो वषों के धवलंब तथा
एक बच्चे के बाद दूसरे बच्चे के जन्म में तीन वषों का ऄन्तराल रखने का परामशा कदया जाता है।
 प्रसवोिर ऄंतगाभााशयी गभाधनरोधक ईपकरण (Post-Partum Intrauterine Contraceptive

device: PPIUCD) की नइ धवधध की शुरुअत द्वारा ऄंतराल बढ़ाने वाली धवधधयों को प्रोत्साहन।

 Cu IUCD 375 नामक एक नए ईपकरण का प्रारं भ, जो पांच वषों तक प्रभावशाली रहता है।

 PPIUCD की शुरुअत के साथ प्रसवोिर पररवार धनयोजन (PPFP) पर जोर तथा जननी सुरक्षा

योजना (JSY) के तहत संस्थागत प्रसव हेतु अने वाले ऄधधक मामलों के पूज
ं ीकरण के धलए
प्रसवोिर नसबंदी के रूप में नसबंदी करने के धलए मुख्य धवधध के रूप में धमनी लैपरोटॉमी
(Minilaprotomy) या धमनी लैप (Minilap) को बढ़ावा देना।

 ईच्च सकल प्रजनन दर (TFR) वाले 11 राज्यों के धलए नसबंदी के स्वीकारकतााओं हेतु क्षधतपूर्थत में
वृधि।

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 गभाावस्था के पररणाम की प्रारं धभक पहचान और धनणाय लेने की सुधवधा के धलए ईप-कें िों के साथ-
साथ समुदायों हेतु ईपयोग में ली जाने वाली अशा के न्िों की दवा ककटों में गभाावस्था परीक्षण
ककटों को शाधमल करने के प्रावधान के धलए योजना।
 ऐसे कें िों पर जहााँ ऄधधक मामले अते हैं वहां लोगों के धलए परामशी सेवाओं को सुधनधश्चत करने
हेतु प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल एवं ककशोर स्वास््य (RMNCH) परामशादाताओं की
ईपलब्धता।
 पररवार धनयोजन (FP) 2020 - आसके लक्ष्यों की प्राधप्त हेतु पररवार धनयोजन धवभाग राष्ट्रीय एवं

राज्यवार काया योजनाओं पर कायारि है। FP-2020 की मूल प्रधतबिताएाँ धनम्नधलधखत हैं:

o पररवार धनयोजन पर बढ़ती धविीय प्रधतबिता धजसके तहत भारत ने 2012 से 2020 तक 2
धबधलयन ऄमेररकी डॉलर के अवंटन की प्रधतबिता व्क्त की है।
o 2020 तक 48 धमधलयन (4.8 करोड़) ऄधतररक्त मधहलाओं की पररवार धनयोजन सेवाओं तक

पहुंच सुधनधश्चत करना ( FP-2020 के कु ल लक्ष्यों का 40%)।

o वतामान में गभाधनरोधकों का प्रयोग करने वाली 100 धमधलयन (10 करोड़) मधहलाओं के
कवरे ज को बनाए रखना।
स्वैधच्छक पररवार धनयोजन संबध
ं ी सेवाओं, अपूर्थतयों एवं सूचनाओं तक बेहतर पहुंच के माध्यम से
ऄपूररत अवश्यकताओं में कमी करना। ईपयुाक्त कारकों के ऄधतररक्त जनसंख्या धस्थरता कोष
(National Population Stablization Fund) द्वारा जनसंख्या धनयंत्रण ईपायों के रूप में
धनम्नधलधखत रणनीधतयों को ऄपनाया गया है:
o प्रेरणा रणनीधत: जनसंख्या धस्थरता कोष (JSK) द्वारा युवा माताओं और धशशु के स्वास््य के

धहत में, लड़ककयों की धववाह की अयु में वृधि करने और प्रथम बच्चे में धवलम्ब तथा पहले एवं
दूसरे बच्चे में ऄन्तराल को बढ़ाने में सहायता करने हेतु आस रणनीधत को प्रारम्भ ककया गया।
आस रणनीधत को ऄपनाने वाले दम्पधतयों को सम्माधनत ककया जाएगा। यह रणनीधत समुदाय
की मानधसकता को पररवर्थतत करने में सहायता करे गी।
o संतधु ष्ट रणनीधत: आस रणनीधत के तहत जनसंख्या धस्थरता कोष, सावाजधनक-धनजी भागीदारी
के तहत नसबंदी ऑपरे शन के संचालन हेतु धनजी क्षेत्र के िीरोग धवशेषज्ञों एवं नसबंदी शल्य-
धचककत्सकों को अमंधत्रत करता है। 10 या आससे ऄधधक (नसबंदी) के लक्ष्य को प्राप्त करने
वाले धनजी ऄस्पतालों/नर्ससग होम को रणनीधत के ऄनुसार ईधचत रूप से पुरस्कृ त ककया जाता
है।
o राष्ट्रीय हेल्पलाआन: JSK, प्रजनन स्वास््य, पररवार धनयोजन, मातृ एवं धशशु स्वास््य
आत्याकद पर धन:शुल्क परामशा ईपलब्ध करवाने हेतु कॉल सेंटसा का संचालन भी कर रहा है।
o समथानकारी तथा सूचना, धशक्षा एवं संचार (IEC) गधतधवधधयां: जनसंख्या धस्थरीकरण के
संदभा में जागरूकता एवं समथान संबंधी ऄपने प्रयासों के एक भाग के रूप में जनसंख्या
धस्थरता कोष द्वारा आलेक्ट्ॉधनक मीधडया, लप्रट मीधडया, कायाशालाओं, वॉकाथन तथा ऄन्य

बहु-स्तरीय गधतधवधधयों के माध्यम से राष्ट्रीय, राज्य, धजला और ब्लॉक स्तर पर ऄपनी

गधतधवधधयों के प्रसार हेतु ऄन्य मंत्रालयों, धवकास भागीदारों, धनजी क्षेत्रों, कॉपोरे ट और

पेशेवर धनकायों के साथ नेटवका एवं भागीदारी स्थाधपत की गयी है।

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12. पररधशष्ट (जनसं ख्या मानधचत्र एवं ताधलकाएाँ )
Appendix (Population map and tables)

Fig. - S1

Fig. - S2

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Fig. - S3

Fig. - S4

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Fig. - S5

Fig S6

Trivia: Population Doubling Time: Population doubling time is the time taken by
any population to double itself at its current annual growth rate.

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Fig. - S7 – Age Structure in India 2011

Fig. – S8

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Fig. - S9

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Fig. - S 10

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Fig. - S 11

Fig. S 12

Fig. - S 13

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Fig. - S 14 – Literacy Rate – India 2011

Fig S 15

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Fig. S16

Table T1

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Table T2

Table T3

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Table T4

Table T5

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TABLE T6-CHILD SEX RATIO in DIFFERENT STATES

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TABLE T7-ADULT SEX RATIO IN DIFERENT STATES

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TABLE T8: State/UT-wise usual status (adjusted), Workforce Participation Rates
(%) in the rural and urban areas in the country during 2011-12.

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13.धवगत वषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे
गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)
1. जनगणना 2011 से भारत में चल रहे जनसांधख्यकीय पररवतान के संबध
ं में एक पूणा या
धनतांत ईिर-दधक्षण धवभाजन स्पष्ट होता है। आस पररघटना की व्ाख्या कीधजए तथा ईिरी
एवं दधक्षणी राज्यों के धलये आसके धनधहताथा नीधत की चचाा कीधजए।
दृधष्टकोणः
 ईिरी व दधक्षणी राज्यों में हो रहे जनसांधख्यकीय पररवतानों के बीच ऄंतर को स्पष्ट करें ।
ईदाहरण के धलए ताजा अंकड़ों के ऄनुसार 0-14 वषा के प्रत्येक तीन बच्चों में से एक यूपी व
धबहार से है। दूसरी तरफ दधक्षण भारतीय राज्यों ने ऄपनी जनसंख्या को लम्बे समय से धस्थर
ककया है तथा ऄभी ईनकी प्रौढ़ जनसंख्या में काफी वृधि देखने को धमल रही है।
 नीधत कक्रयान्वयन जैस-े ईिरी राज्यों को धशक्षा पर ऄधधक धनवेश करने की अवश्यकता है,
जबकक दधक्षणी राज्यों का ईनकी ईम्रदराज जनसंख्या के स्वास््य, पेंशन, बीमा अकद पर
धनवेश की अवश्यकता है।
ईिर
 2011 की जनगणना में भारत में जनसांधख्यकीय पररवतानों में ईिर-दधक्षणी राज्यों के बीच
एक स्पष्ट धवभाजन कदखाइ देता है।
 दधक्षणी राज्यों ने ईिरी राज्यों की तुलना में ऄपनी जनसंख्या वृधि दर में तेजी से कमी की है।
ईदाहरण के धलए ताजा अंकड़ों के ऄनुसार 0-14 वषा के प्रत्येक तीन बच्चों मे से 1 बच्चा यूपी-
धबहार का है। दूसरी तरफ दधक्षणी भारतीय राज्यों ने ऄपनी जनसंख्या को लम्बे समय से
धस्थर ककया है तथा ईनकी ईम्रदराज जनसंख्या में काफी वृधि देखने को धमली है।
 आसके पररणामस्वरूप दधक्षण में ऄकु शल िम की कमी है धजसे देश के दूसरे भागों से होने वाले
पलायन से पूरा ककया जा रहा है।
 भारत में सभी राज्यों की मध्य जनांकककीय की सरं चना पयााप्त धभन्नता धलये हुए है। कु छ
राज्यों में जनसंख्या की अयु सरं चना व्स्क के धन्ित होगी तथा जो धनकट भधवष्य में वृृृ
ृ ि

जनसंख्या में पररवर्थतत हो जायेगी तथा कु छ ऄन्य राज्यों में जनसंख्या की अयु सरं चना में
बच्चे व युवा ऄधधक है। यह दशााता है कक सरकारों को आस मुद्दे को संभालने के धलए पूरी तरह
से धभन्न नीधतयों की अवश्यकता होगी।
 आसका ऄथा यह है कक ईिरी राज्यों को धशक्षा, कौशल धनमााण आत्याकद पर धनवेश की ऄधधक
अवश्यकता है जबकक ऄपनी ईम्रदराज जनसंख्या के कारण दधक्षणी राज्यों को स्वास््य पेंशन,
बीमा अकद पर धनवेश की अवश्यकता है।

2. प्रजनन स्वास््य क्या है? यह ककस प्रकार वतामान पररवार धनयोजन तथा मातृ एवं धशशु

स्वास््य कायाक्रमों से धभन्न है?


दृधष्टकोणः
ईिर में प्रजनन स्वास््य के धवचार को स्पष्टता से समझाया जाना चाधहए। आसमें वतामान में
चल रहे पररवार धनयोजन व मातृत्व तथा बाल स्वास््य के मूलभूत धवचारों, दृधष्टकोण को
ईजागर कीधजए तथा आसमें प्रजनन स्वास््य कायाक्रम के प्रवातक धवचारों पर भी प्रकाश
डाधलए।

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ईिर:
 WHO के ऄनुसार, प्रजनन स्वास््य यह दशााता है कक लोग एक धजम्मेदार, संतोषजनक व
सुरधक्षत यौन जीवन जीने में समथा हो तथा वे प्रजनन की क्षमता रखते हो साथ ही ईनके पास
यह स्वतंत्रता हो कक वे आसे कब प्रयोग में लायेगें। आसका धनधहताथा यह है कक पुरुष व मधहला
को ऄपने धलए प्रजनन के सुरधक्षत, प्रभावी, वहनीय व स्वीकाया तरीकों को, ऄपनाने संबंधी
ऄधधकारों से ऄवगत करवाना तथा ईन समुधचत स्वास््य रक्षक सेवाओं को प्राप्त करना जो
मधहला को सुरधक्षत गभा व धशशु-जन्म तथा युगल को एक स्वस््य बच्चे को जन्म देने का
सुनहरा ऄवसर ईपलब्ध करवायें।
 प्रजनन स्वास््य, प्रजनन में अने वाली बाधाओं, पररवार धनयोजन के मुद्दों तथा मातृत्व व
धशशु मृत्युदर (प्रसवकालीन) एवं रूग्णता के साथ ही प्रजनन स्वास््य कु छ ऄन्य धवषयों के
बारे में भी सूधचत करता है, जैस-े हाधनकारक प्रथाएाँ, ऄनचाहा गभा, ऄसुरधक्षत गभापात,
प्रजनन संबधधत संक्रमण-जैसे यौन संक्रधमत बीमाररयााँ एवं एड्स को समाधहत करते हुए भ्रूण
हत्या, बााँझपन, कु पोषण व एधनधमया तथा प्रजनन संबधी कैं सर आत्याकद।
यह संकल्पना कै से धभन्न है?
 पररवार धनयोजन कायाक्रम का ईद्देश्य, ढााँचा व मूल्यांकन में जनांकककीय ऄधनवायाता के स्तर
पर चलाये जा रहे स्वास््य संबध ं ी मुद्दों धजनमें ककसी प्रकार की देर नहीं जा सकती। जैसे-
मातृ-संबंधी स्वास््य तथा या यौन-संक्रधमत बीमाररयों की रोकथाम एवं स्वास््य प्रबंधन पर
जोर कदया जाए।
 सामान्यतः कु छ कायाक्रम पूणातः मधहला के धन्ित हैं तथा ईनके प्रजनन स्वास््य व धनणायन
क्षमता के सामाधजक, सांस्कृ धतक व अन्तररक वा वास्तधवकता का लेखा-जोखा रखते हैं।
 यह संकल्पना के वल शादीशुदा लोगों के संदभा में है, धवशेष रूप से ऄन्य जवान लोग आससे
बाहर हैं।
 आसमें पुरूषों के धलए सेवाएं बमुधश्कल ही बनाइ गइ हैं, जबकक ईनमें भी प्रजनन स्वास््य
संबंधी धवशेषतः यौन-संक्रधमत बीमाररयों से जुड़ा हुअ।
 प्रजनन स्वास््य का दृधष्टकोण कइ तरीकों में छोटे पररवार की संकल्पना से ऄलग है।

प्रजनन व बाल स्वास््य कायाक्रमः

प्रजनन व बाल स्वास््य कायाक्रम 1997 में शुरू हुअ। आसमें ऄनचाहे गभा की रोकथाम एवं
प्रंबधन, जच्चा-बच्चा की सुरक्षा को बढ़ावा तथा प्रजनन संबंधी संक्रमण एवं यौन संक्रमण अकद
की रोकथाम के धलए धवधभन्न सेवाएाँ एकीकृ त रूप से ईपलब्ध हैं। कायाक्रम का लक्ष्य है - ईन
लोगों तक आन सेवाओं का धवस्तार करना जो ऄभी तक आन सेवाओं से वंधचत रहे हैं। ईपेधक्षत
जनसमूह को धजसमें ककशोर तथा अर्थथक व सामाधजक रूप से धपछडेऺ लोग जैसे- शहरी झुग्गी
वाले व अकदवासी जनसंख्या अकद को सधम्मधलत ककया जाता है।

3. यकद जनसांधख्यकीय लाभांश को ईधचत रूप से पोधषत नहीं ककया जाता तो यह


जनसांधख्यकीय अपदा बन जाता है। भारतीय सन्दभा में आसकी व्ाख्या कीधजए।
दृधष्टकोणः
 वृहत् जननांकककी लांभाश के ईधचत दोहन हेतु सरकार द्वारा की गइ पहलों तथा ईससे ऄब
तक हुये लाभ पर जोर दीधजए।
 वृहत् जननांकककी लाभांश के ईधचत दोहन न कर पाने के दुष्प्रभावों, जो कक कौशल व
रोजगार के ऄभाव में लोगों (धवशेषकर युवाओं में) नकारात्मक भाव ला सकती है, की भी
चचाा करें ।
 जननांकककी लांभाश के बारे में कु छ त्य बताआये।

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ईिरः
 भारत में औसत अयु 39 वषा है जबकक ऄन्य देशों जैसे जापान में 47 वषा, चीन में 40, यूरोप
में 46 व ऄमरीका में औसत अयु 40 वषा है।
 अज भारत में युवा, ईत्पादक व धवधवधतापूणा जनसंख्या है, जो काम के धलए तैयार है तथा
पररवतान लाने में सक्षम है। ऄन्तरााष्ट्रीय िम संगठन के ऄनुसार, 2020 में भारत में 20-24
अयु वगा के 116 धमधलयन लोगों की तुलना में चीन में के वल 94 धमधलयन लोग रह जायेगें।
 यकद हम आन युवाओं को धशक्षा दें व कौशल धवकधसत करें तो हम ना के वल हमारी
ऄथाव्वस्था व समाज को बदल पायेगें बधल्क वैधिक स्तर पर ऐसा पररवतान कर सकते हैं।
 परन्तु दूसरी तरफ, युवाओं को ईनके अदशावाद व उजाा के धलए जाना जाता है। यकद ईधचत
कौशल व प्रधशक्षण देकर ईनकी क्षमता व उजाा का ईधचत ईपयोग नहीं ककया गया तो आससे
युवाओं में ऄसुरक्षा की भावना अएगी। साथ ही आससे माओवाद जैसी धारणाएं पनपेंगीं,
धजनमें बेरोजगार, कुं रठत व कम धशधक्षत युवा शाधमल होते हैं।
 अइ-टी सॉफ्टवेयर, गैर-कायाालयी काया तथा शोध व धवकास काया में जबरदस्त ईछाल का
दौर है। आनमें से ककसी भी क्षेत्र में धवकलांग, कम-धशधक्षत, कम कु शल लोगों के धलए रोजगार
के ऄवसर नहीं हैं।
 अज भारतीय ऄथाव्वस्था में रोजगार कम हो रहे है तथा रोजगार-सृजन ही भारत की बढ़ती
वृधि दर को बनाए रखने हेतु प्रमुख तत्व है। भारत को बड़े स्तर पर रोजगार-सृजन तथा िम-
गहन धवधनमााण की अवश्यकता है, धजससे ऄधतवादी अंदोलनों को गंभीर होने से रोका जा
सके ।
 आसे प्राप्त करने हेतु वतामान सरकारी िम कानूनों को लचीला बनाने की अवश्यकता है,
धजससे िम गहन धवधनमााण को बढ़ाया जा सके ।
 आसके धलए सरकार को मानव पूंजी, स्वास््य व धशक्षा में भारी धनवेश की अवश्यकता है,
धजससे भारत के युवाओं की क्षमता का पूरा ईपयोग ककया जा सके ।
 आसके धलए भौधतक, अधारभूत ढााँचे एवं, ऄन्य संरचनात्मक ढााँचे में भारी धनवेश की
अवश्यकता है, धजससे सकल घरे लू ईत्पाद को 4.6 प्रधतशत से 7-8 प्रधतशत ककया जा सके ।
यकद भारत तेजी से काया करता है, तो यह धनकट भधवष्य में वैधिक अर्थथक शधक्त बन सकता
है और यकद ऐसा नहीं हुअ तो सभी अशाएंृाँ धूधमल हो जायेंगींl

4. क्या कारण हैं कक राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत भारत में जनसंख्या वृधि रोकने में धवफल रही है?
दृधष्टकोणः
 सीधा स्पष्ट प्रश्न। कु छ कारणों को धलखें।
 कु छ सुझावों के साथ धनष्कषा दें।
ईिरः
जहााँ एक ओर जन्मदर को कम करने के धलए कोइ प्रभावी संस्थागत कक्रयाधवधध (मैकेधनज्म)
नहीं रही है वहीं दूसरी ओर मृत्युदर को कम करने में संतोषजनक सफलता धमली है। स्वास््य
एवं स्वच्छता की धस्थधत में सुधार से मृत्यु दर में काफी कमी अयी है। ऄतः धवकास और
बढ़ती जनसंख्या के बीच ऄसन्तुलन की धस्थधत में पररवार धनयोजन का राष्ट्रीय स्तर पर
महत्व बढ़ गया है।
भारत में जन्मदर को कम करने के धलए ‘पररवार धनयोजन कायाक्रम’ ऄपनाया गया। स्वास््य
मंत्रालय के ऄन्तगात पररवार धनयोजन के धलए एक धवभाग बनाया गया, धजसने ऄप्रैल 1976
में ‘राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत’ बनायी और 1981 में आसे संशोधधत ककया गया।

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आस राष्ट्रीय नीधत का ईद्देश्य लोगों को, ईनके और ईनके बच्चों के धवकास के धलए, धनयोधजत
पररवार की अवश्यकता और ईसके महत्व पर बल देना था। बीस सूत्रीय कायाक्रम के ऄन्तगात
पररवार धनयोजन स्वैधच्छक अधार पर एक जनअंदोलन बना। ‘छोटे पररवार’ के महत्व के
संदभा में लोगों को मीधडया और मौधखक संचार के द्वारा जागरूक करने की अवश्यकता है।
जनसंख्या दर को कम करने में मधहला साक्षरता भी प्रमुख भूधमका धनभा सकती है।
बढ़ती जनसंख्या को धनयंधत्रत करने के धलए धनम्नधलधखत सुझाव कदये गये हैं-
 छोटे पररवार की सामूधहक स्वीकृ धत।
 पररवार धनयोजन की धवधधयों का व्धक्तगत ज्ञान।
 जन्म धनयंत्रण संबंधी सेवाओं की ईपलब्धता को सुधनधश्चत करना।
आस तरह से जनसंख्या नीधत का के न्ि धबन्दु धबना ककसी सामाधजक, अर्थथक और सांस्कृ धतक
भेदभाव के राष्ट्रीय जन्म दर को कम करना है। जनसंख्या धनयंत्रण के धलए लोगों पर दबाव
डालना ईतना सफल नहीं रहा है आसधलए जागरुकता के द्वारा ही आस पर धनयंत्रण पाया जा
सकता है।

5. अर्थथक धवकास ककसी समाज की जनसांधख्यकीय को ककस प्रकार प्रभाधवत करता है? भारत
के सन्दभा में आसकी चचाा करें ।
दृधष्टकोण:
प्रश्न का मूल धवषय अर्थथक धवकास और जनसांधख्यकीय पररवतान के बीच संबंध है। ईिर को
धनम्नधलधखत तरीके से प्रस्तुत ककया जा सकता है:
 भारत में अर्थथक धवकास के संबंध में संक्षेप में सामान्य जनसांधख्यकी प्रवृधि को
समझाएं।
 तत्पश्चात् धवस्तार से चचाा करें कक भारतीय समाज के अर्थथक धवकास द्वारा क्या
जनसांधख्यकीय पररवतान हुए हैं। ईदाहरण: जनन दर में कमी, ललगानुपात अकद ।
ईिर:
अर्थथक धवकास और जनसांधख्यकीय पररवतान घधनष्ठ रूप से एक-दूसरे से संबंधधत हैं।
अर्थथक धवकास के ईच्च स्तर के पररणामस्वरूप जनन दर, जनसंख्या वृधि, मृत्यु दर में
धगरावट एवं जीवन प्रत्याशा व साक्षरता दर में वृधि होती है। आसी प्रकार, धपछले कु छ वषों के
दौरान भारत ने अर्थथक धवकास की प्रकक्रया में जनसंख्या वृधि दर, जनन दर, जीवन प्रत्याशा
और अयु संरचना में मौधलक पररवतान ऄनुभव ककए हैं। आन पररवतानों की प्रकृ धत आस प्रकार
है:
 कु छ धवशेष क्षेत्रों के पक्ष में धपछले दो दशकों के दौरान अर्थथक धवकास (6-8%) के ईच्च
स्तर के पररणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या संकेन्िण में वृधि हुइ है। शहरी
जनसंख्या का ऄनुपात जनसंख्या घनत्व में वृधि के साथ धनरं तर बढ़ते हुए 2011 में 31
प्रधतशत तक हो गया।
 कु ल जनसंख्या वृधि दर में 1981 में 24.5% से 2011 में 17.6% तक तीव्र धगरावट
अइ है। यह धगरावट अर्थथक धवकास के बढ़ते स्तर और सेवा क्षेत्र की वृधि के ऄनुरूप है।
 साक्षरता दर, जो 1991 में 54% थी, आसके 2011 में 74% तक पहुंचने हेतु बढ़ते
अर्थथक धवकास को ईत्तरदायी ठहराया जा सकता है क्योंकक कौशल शधक्त की मांग और
रोजगार के ऄवसरों में वृधि हो रही है।
 हाल के दशकों में ग्रामीण ऄथाव्वस्था के धीमी अर्थथक धवकास के पररणामस्वरूप बड़े
पैमाने पर पलायन हुअ है धजसके फलस्वरूप शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के जनसांधख्यकीय
संरचना में पररवतान अया है ।

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 अर्थथक धवकास के बढ़ते स्तर और स्वास््य सेवाओं के धवकास, भोजन के पररवतानशील
प्रधतरूप के साथ ही भारत में जनसंख्या की जीवन प्रत्याशा धनरं तर बढ़ रही है।
 भारत जनसांधख्यकीय लाभांश कहलाने वाली कायाशील अयु की जनसंख्या (15-64) के
ऄनुपात में वृधि का साक्षी है धजसे समाज की अर्थथक ऄवस्था का पररणाम माना जाता
है और धजसका अर्थथक धवकास के धलए धनधहताथा भी होता है।
 धपछले कु छ वषों के दौरान सेवा क्षेत्र के सदृश ऄथाव्वस्था के नए क्षेत्रों के धवकास के
साथ िम बाजार में िधमकों की भागीदारी में वृधि हुइ है।

6. भारत में जनसंख्या का ऄसमान स्थाधनक धवतरण आसके भौधतक, सामाधजक और ऐधतहाधसक
कारकों के साथ घधनष्ठ संबध
ं को बतलाता है। वणान करें ।
दृधष्टकोण:
 भारत में जनसंख्या के ऄसमान स्थाधनक धवतरण की संक्षप
े में चचाा करें ।
 भौधतक, सामाधजक और ऐधतहाधसक कारकों से से ये घधनष्ट रूप से कै से जुड़े हैं, चचाा करें ।
ईिर :
 भारत की जनसंख्या का स्थाधनक धवतरण एक समान नहीं है। भारत में जनसंख्या का ऄसमान
घनत्व आस त्य से स्पष्ट है कक ऄरुणाचल प्रदेश में प्रधत वगा ककलोमीटर जनसंख्या का औसत
के वल 17 व्धक्त है, जबकक वषा 2011 की जनगणना के ऄनुसार कदल्ली में प्रधत वगा
ककलोमीटर में लोगों का औसत 11,297 व्धक्त है।

धचत्र : वषा 2011 में जनसंख्या घनत्व

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 भारत में जनसंख्या के स्थाधनक धवतरण में भारी धवधभन्नता है। भारत में जनसंख्या का
ऄसमान स्थाधनक धवतरण आस बात की ओर संकेत करता है कक भौधतक, सामाधजक-अर्थथक
और ऐधतहाधसक कारकों से आसका घधनष्ठ सम्बन्ध है।
भौधतक कारक:
 जहााँ तक भौधतक कारणों का प्रश्न है, यह स्पष्ट है कक मुख्यतः मौसम और आसके साथ स्थान,
जल की ईपलब्धता से ही स्थाधनक धवतरण के स्वरूप का धनधाारण होता है। ईिर भारत के
मैदानी भागों, डेल्टाइ क्षेत्रों और समुितटीय मैदानों में जनसंख्या का ऄनुपात दधक्षण भारतीय
राज्यों के अतंररक धजलों और भारत के मध्यवती राज्यों, धहमालय, ईिर-पूवा और कु छ
पधश्चमी राज्यों की तुलना में ऄधधक है।
 कफर भी लसचाइ के साधनों में धवकास (राजस्थान), खधनज और उजाा के स्रोतों की ईपलब्धता
(झारखंड) और यातायात संजाल के धवकास (प्रायद्वीपीय राज्य) के पररणामस्वरूप आन क्षेत्रों
में जहााँ पहले जनसंख्या घनत्व कम था, वहां ऄब मध्यम से ईच्च स्तर पर घनत्व बढ़ा है।

सामाधजक-अर्थथक और ऐधतहाधसक कारक:


 जनसंख्या के स्थाधनक धवतरण के सामाधजक-अर्थथक और ऐधतहाधसक कारकों में जो महत्वपूणा
कारक हैं, वे हैं- स्थाधपत कृ धष का क्रधमक धवकास और कृ धष संबंधी धवकास, मानवीय बधस्तयों
के स्वरूप, यातायात संजाल का धवकास, औद्योगीकरण और शहरीकरण।
 ऐसा देखा गया है कक जो क्षेत्र भारत की नदी-मैदानों और समुितट पर धस्थत हैं, वहााँ
जनसंख्या की सघनता ऄधधक रहती है। भले ही आन क्षेत्रों में भूधम और जल के ईपयोग में
धगरावट के संकेत धमलते हैं, परन्तु मानव बधस्तयों के प्राचीन आधतहास के ऄनुसार और
यातायात संजाल का धवकास होने से जनसंख्या की सघनता बहुत ऄधधक ही रही है।
 दूसरी ओर, मुम्बइ, कोलकता, बंगलोर, पुण,े ऄहमदाबाद, चेन्नइ और जयपुर जैसे शहरी क्षेत्रों
में औद्योधगक धवकास और शहरीकरण के कारण जनसंख्या की सघनता ऄधधक रही है, और
बहुत ऄधधक संख्या में ग्रामीण-शहरी प्रवासी आन क्षेत्रों की ओर अकर्थषत होते रहे हैं।

हम आससे यह धनष्कषा धनकाल सकते हैं कक ककसी भी क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व एक से ऄधधक
कारकों पर धनभार करती है। ईदाहरण के धलए भारत के ईिर-पूवा क्षेत्र को ही लें। यहााँ
जनसंख्या के धनम्न घनत्व के धलए कइ कारक ईिरदायी हैं। ये कारक हैं- ऄत्याधधक वषाा,
ईबड़खाबड़ भू-भाग, सघन वन, कम ईवार भूधम के साथ कइ ऄन्य सामाधजक-अर्थथक और
ऐतहाधसक कारक।

7. 952 में ऄपनी जनसंख्या नीधत की घोषणा करने के साथ ही भारत ईन चुधनन्दा देशों के समूह
में सधम्मधलत हो गया धजनकी ऄपनी ऄधधकाररक जनसंख्या नीधत थी। आसके पश्चात के वषों
के दौरान देश की जनसंख्या नीधत के धवधभन्न पहलुओें का अलोचनात्मक धवश्लेषण कीधजए।

दृधष्टकोण:
 ईिर की भूधमका में जनसंख्या नीधत को संधक्षप्त रूप में पररभाधषत करना चाधहए। आसके
ऄलावा, संक्षेप में 1952 के राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम के बारे में बतलाते हुए
जनसंख्या नीधत के धवकास के सन्दभा में ईल्लेख करें ।
 जनसंख्या नीधत की धवशेषताएं बताएं चूकं क यह धवधभन्न दृधष्टकोणों और महत्वपूणा नीधतगत
दस्तावेज जैसे राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 को ऄपनाने के क्रम में कइ वषों में धवकधसत हुइ
है। बीते वषों में क्रमागत नीधतयों की ईपलधब्धयों और धवफलताओं के माध्यम से
अलोचनात्मक धवश्लेषण प्रस्तुत ककया जा सकता है।

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 आसके द्वारा हुइ प्रगधत के साथ ही ककये गए प्रयासों का ईल्लेख करते हुए एक सकारात्मक
रटप्पणी करते हुए ईिर समाप्त कीधजए।
ईिर:
जनसंख्या नीधत वह नीधत होती है जो धवधभन्न जनसांधख्यकीय चर जैसे धवकास की दर और
पैटना, जन्म-दर, मृत्यु-दर अकद को प्रभाधवत करने का प्रयास करती है। स्वतंत्र भारत में
धवकास योजना के एक महत्वपूणा घटक के रूप में जनसंख्या की पहचान की गइ थी। धजसने
1952 में राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम की शुरूअत का मागा प्रशस्त ककया, जो मुख्य
रूप से जन्म धनयंत्रण करने वाले तरीकों के माध्यम से जनसंख्या वृधि की दर को धनयंधत्रत
करने के ईद्देश्य से की गइ थी।
 राष्ट्रीय अपातकाल के दौरान, जनसंख्या को धनयंधत्रत करने के प्रयासों में तीव्रता अयी।

दुभााग्य से, बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी जैसे बलात तरीके प्रयुक्त ककये गए जो
जनसंख्या नीधत के प्रधत लोगों के बीच ऄसंतोष का कारण बना।
 आसके बाद कायाक्रम को राष्ट्रीय पररवार कल्याण कायाक्रम के रूप में पुन: नाधमत ककया
गया, धजसमें लोगों के कल्याण के माध्यम से जनसंख्या को धनयंधत्रत करने पर फोकस
ककया गया। जनसंख्या धनयंत्रण के जबरन तरीकों का पररत्याग ककया गया और ईनके
बजाय व्ापक अधार के सामाधजक जनसांधख्यकीय ईद्देश्यों को ऄपनाया गया।
 राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (NPP), 2000 के भाग के रूप में कदशा-धनदेशों का एक नया

सेट तैयार ककया गया, ये लक्ष्य ऄपनी प्रकृ धत में समग्र थे तथा 2010 तक हाधसल ककया

जाने थे, आनमें व्ापक क्षेत्रों को कवर ककया गया धजससे सावाजधनक स्वास््य और
जनसंख्या पररवतान के पैटना प्रभाधवत हुए।
 कायाान्वयन एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के सन्दभा में समग्र प्रदशान तुलनात्मक रूप से
संतोषजनक से थोड़ा कम रहा। प्रारं भ में, फोकस क्षेत्र बहुत संकीणा थे जैसे गभाधनरोधक
और नसबंदी द्वारा जनसंख्या धनयंत्रण। जबकक मुख्य फोकस ईन सामाधजक-अर्थथक
कारकों पर होना चाधहए था जो जनसंख्या वृधि की ईच्च दर के प्रमुख कारण हैं। NPP

2000 के लक्ष्य, 2015 में भी प्राप्त नही ककये जा सके ।


 आन सबके बावजूद पहली नीधत के धनमााण के बाद से पचास वषों में कइ महत्वपूणा
ईपलधब्धयााँ हाधसल की गइ हैं। ऄशोधधत मृत्यु दर, धशशु मृत्यु दर (IMR) में कमी हुइ है
तथा जीवन प्रत्याशा में महत्वपूणा सुधार देखा गया है। जनसंख्या धस्थर हो गइ है क्योंकक
कु ल प्रजनन दर (TFR) 3 से कम हो गयी है, लेककन आस लक्ष्य को हाधसल करने के धलए
भी काफी समय लग गया।
 कइ दशकों में, जनसंख्या नीधत में नीधतगत एवं वास्तधवक कायाक्रम के कायाान्वयन के
संदभा में पररवतान अये हैं तथा वतामान में नीधत में न के वल जनसंख्या धस्थरीकरण के
लक्ष्यों को प्राप्त करने के धलए बधल्क प्रजनन स्वास््य को बढ़ावा देने और मातृ, धशशु एवं
बाल मृत्यु दर एवं रुग्णता को कम करने के धलए पररवतान ककये जा रहे हैं।
हाल ही में ईठाये गए कदमों जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास््य धमशन, से धनधश्चत रूप से लक्ष्यों को
प्राप्त करने के हमारे प्रदशान में सुधार होगा। भारत को अबादी के मानकों पर बेहतर ररकॉडा
के सम्बन्ध में िीलंका जैसे पड़ोसी देशों से प्रेरणा लेनी चाधहए।

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14. धवगत वषों में सं घ लोक से वा अयोग (UPSC) द्वारा पू छे
गए प्रश्न
(Past Year UPSC Questions)

1. प्रमुख धवशेषताओं को बताते हुए भारत सरकार की जनसंख्या नीधत की समीक्षा कीधजए।

(2001)
2. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 में तय ककए गए मुख्य लक्ष्यों को रे खांककत कीधजए। आस नीधत
हेतु ककन ईपायों का ऄनुशरण ककया गया। (2002)
3. भारत की जनसंख्या में ललगानुपात को पररभाधषत कीधजए।आसकी वतामान धस्थधत क्या है ?

(2002)
4. अलोचनत्मक परीक्षण कीधजए कक क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी
भारत में बढ़ती जनसंख्या का मुख्य कारण है। (2013)

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Classroom Study Material

भारतीय समाज
साांप्रदाययकता

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यिषय सूची
1. साांप्रदाययकता की पररभाषा ______________________________________________________________________ 3

1.1. साांप्रदाययकता के तत्ि _______________________________________________________________________ 3

1.2. साांप्रदाययकता की यिशेषताएां __________________________________________________________________ 3

2. भारत में साांप्रदाययकता को बढ़ािा देने िाले कारक ______________________________________________________ 4

3. भारत में साांप्रदाययकता का यिकास _________________________________________________________________ 4

3.1.स्ितांत्रता पूिव (Pre-Independence) ___________________________________________________________ 4

3.2. साांप्रदाययकता के पररणाम ____________________________________________________________________ 6

3.3. स्ितांत्रता-पश्चात् (Post-Independence) _______________________________________________________ 6

4. साांप्रदाययकता से सांबयां धत सामययक मुद्दे ______________________________________________________________ 7

5. साांप्रदाययकता का सामना करने हेतु ाईपाय ____________________________________________________________ 8

6. यिगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न____________________________________________ 9

7. यिगत िषों में सांघ लोक सेिा ाअयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 12
भारत यियभन्न ाअस्थाओं और धमों की भूयम है। ये यियभन्न धमव एिां ाअस्था प्रायाः लोगों के मध्य हहसा
और घृणा का कारण बनते हैं। धार्ममक हहसा के समथवक, धमव को नैयतक ाअदेश के रूप में नहीं मानते
बयकक ाआसका ाईपयोग ाऄपनी राजनीयतक महत्िाकाांक्षाओं की पूर्मत हेतु एक साधन या ाईपकरण के रूप में
करते हैं। परस्पर धार्ममक घृणा पर ाअधाररत होने के कारण साांप्रदाययकता िस्तुताः हहसा का कारण
बनती है। धार्ममक घृणा के प्रसार की गयतयियधयों के ाअधार पर साांप्रदाययक सांगठन और धार्ममक सांगठन
के मध्य यिभेद ककया जा सकता है।

1. साां प्र दाययकता की पररभाषा


(Definition of Communalism):
भारत के सन्दभव में, साम्प्प्रदाययकता यियभन्न िगों के बीच होने िाले धार्ममक यििादों का सबसे सामान्य
रूप माना जाता है। ाआसके कारण प्रायाः ाआन िगों के मध्य तनाि ाईत्पन्न होता है और यही तनाि काइ बार
दांगों का रूप ले लेते हैं। साम्प्प्रदाययकता की कम हहसक ाऄयभव्ययि में रोजगार या यशक्षा जैसे मामलों में
धार्ममक समूहों के यखलाफ भेदभाि होता है।
साम्प्प्रदाययक हहसा का कारण ाऄपने मौयलक चररत्र में (िास्तयिक रूप में) शायद ही कभी धार्ममक होता
है। भारत में जब धमव का प्रयोग यियभन्न समुदायों के बीच सामायजक-ाअर्मथक ाऄसांतुलन को कदखाने के
यलए ककया जाता है, तो ाआससे साम्प्प्रदाययकता को बढ़ािा यमलता है और ररयायतों के यलए की जाने
िाली माांगों को बल यमलता है।
एक धार्ममक व्ययि साम्प्प्रदाययक नहीं होता परन्तु कोाइ व्ययि जो धमव से जोड़कर राजनीयतक कायव
करता है िह साम्प्प्रदाययक होता है। ाआस प्रकार हम “धमव में राजनीयतक सांयलप्तता” के रूप में

साम्प्प्रदाययकता को पररभायषत कर सकते हैं।

1.1. साां प्र दाययकता के तत्ि

(Elements of Communalism)
साांप्रदाययकता या साांप्रदाययक यिचारधारा में तीन मूल तत्ि या ाऄिस्थाएां होती हैं- जो परस्पर एक-
दूसरे का ाऄनुसरण करती हैं:
1. मन्द (Mild): यह माना जाता है कक जो लोग एक ही धमव का पालन करते हैं, ाईनके धमवयनरपेक्ष
यहत ाऄथावत् राजनीयतक, सामायजक और साांस्कृ यतक यहत समान होते हैं।
2. मध्यम (Moderate): भारत जैसे बहु-धार्ममक समाज में, एक धमव के ाऄनुयायययों के धमवयनरपेक्ष
यहत दूसरे धमव के ाऄनुयायययों के यहतों से ाऄसमान और यभन्न होते हैं।
3. चरम (Extreme): यियभन्न धार्ममक समुदायों के यहतों को परस्पर ाऄसांगत, यिरोधी और प्रयतकू ल
माना जाता है।

1.2. साां प्र दाययकता की यिशे ष ताएां

(Features of Communalism)
 यह धार्ममक रूकढ़िाकदता और ाऄसयहष्णुता पर ाअधाररत बहुाअयामी प्रकिया है।
 यह ाऄन्य धमों के प्रयत ाऄत्ययधक घृणा का भी प्रचार करती है।
 यह ाऄन्य धमों और ाईसके मूकयों को समाप्त करने के यिचार को प्रेररत करती है।
 यह ाऄन्य लोगों के यिरुद्ध हहसा के ाईपयोग सयहत ाऄन्य ाऄयतिादी युयियााँ ाऄपनाती है।
 ाआसका दृयिकोण यियशि होता है, एक साांप्रदाययक व्ययि ाऄपने धमव को ाऄन्य धमों से श्रेष्ठ मानता
है।

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2. भारत में साां प्र दाययकता को बढ़ािा दे ने िाले कारक
(Factors aiding Communalism in India):
 राजनीयतक कारक: ‘फू ट डालो और राज करो’ की नीयत के तहत ाऄांग्रेजों ने भारत के यिभाजन हेतु
धमव का प्रयोग ककया। ाआस नीयत के तहत मुयस्लमों के यलए पृथक यनिावचन का प्रािधान ककया गया
तथा ाआस पृथक यनिावचन व्यिस्था को बाद में यसख और ाअांग्ल-भारतीयों तक यिस्ताररत ककया
गया। ाऄन्य राजनीयतक कारकों में धमव ाअधाररत राजनीयत, राजनीयतक नेताओं द्वारा ाऄपने
समुदायों की तरफदारी ाअकद सयम्प्मयलत हैं।
 ाअर्मथक कारक: भारत में साम्प्प्रदाययकता की शुरुाअत ाऄांग्रज
े ों की ‘बाटों और राज करो’ की नीयत से
हुाइ। ाआस नीयत को बढ़ािा यमलने का प्रमुख कारण यह था कक मुयस्लम मध्यम िगव यशक्षा के मामलें
में यहन्दुओं से यपछड़ा था यजसके कारण सरकारी नौकररयों में ाईनकी भागीदारी कम थी। ाईस समय
पयावप्त ाअर्मथक ाऄिसरों का ाऄभाि था यजसके कारण सरकारी नौकरी को मध्यम िगव के बीच काफी
प्रयतयष्ठत माना जाता था। सामायजक-ाअर्मथक सांकेतकों एिां राजनीयतक प्रयतयनयधत्ि में ाऄसमानता
के कारण एक ाऄलग राज्य के रूप में पाककस्तान की माांग को भी बल यमला।
तथाकयथत पहला साम्प्प्रदाययक यििाद मोपला यिद्रोह भी साम्प्प्रदाययक यििाद की जगह भू-
स्िायमयों के यिरूद्ध सिवहारा द्वारा कृ त एक हड़ताल थी। ऐसा ाआसयलए हुाअ था क्योंकक भू-स्िामी
यहन्दू थे और कृ षक/मजदूर मुसलमान थे। ाऄिसरिाकदता की राजनीयत भारत में साम्प्प्रदाययकता
का सबसे बड़ा कारण है, जो मध्यम/ाईच्च िगव द्वारा धमवयनरपेक्षता के लाभों के यलए सांचायलत की
जाती है।
 ऐयतहायसक कारक: यिरटश ाआयतहासकारों ने प्राचीन भारत को यहन्दू शासकों के शासन काल और
मध्यकालीन भारत को मुयस्लम शासकों के शासन काल के रूप में प्रस्तुत ककया। साथ ही ाईन्होंने
यह भी प्रस्तुत ककया कक मध्यकाल में हहदुओं का शोषण ककया गया और ाईन्हें प्रतायड़त ककया गया।
कु छ प्रभािशाली भारतीयों ने भी ाआस प्रस्तुयतकरण का समथवन ककया।
 सामायजक कारक: गोमाांस सेिन, हहदी/ाईदूव भाषा सांबांधी बाध्यता, धार्ममक समूहों द्वारा धमाांतरण
के प्रयास ाआत्याकद ने यहन्दू और मुयस्लमों के मध्य की दूररयों को और ाऄयधक बढ़ा कदया है।
3. भारत में साां प्र दाययकता का यिकास
(Evolution of Communalism in India):

3.1.स्ितां त्र ता पू िव (Pre-Independence)

भारतीय राष्ट्रीय ाअांदोलन के दौरान व्ययि, दल या ाअांदोलन में साांप्रदाययक यिचारधारा का यिकास
ाउपर ाईयकलयखत तीन ाऄिस्थाओं और दो चरणों (नरमपांथी और ाईग्रिादी) के माध्यम से हुाअ और
ाऄांतताः ाआसकी पररणयत भारत के यिभाजन और पाककस्तान के यनमावण के रूप में हुाइ।
 नरमपांथी चरण (Liberal Phase)
o 1857 के यिद्रोह के पश्चात, ाऄांग्रज
े ों ने रोजगार, यशक्षा ाअकद के मामलों में मुयस्लमों की ाऄपेक्षा
हहदुओं को प्राथयमकता दी। मुयस्लम बुयद्धजीयियों ने भी यह ाऄनुभि ककया कक यशक्षा,
सरकारी नौकररयों ाआत्याकद के मामले में मुयस्लम ाऄपने हहदू समकक्षों से यपछड़े हुए हैं। ाआस
कारण से, एक मुयस्लम बुयद्धजीिी, सैय्यद ाऄहमद खान ने मुयस्लमों में ाअधुयनक यशक्षा के
यिरुद्ध व्याप्त पूिावग्रह को समाप्त करने के यलए ाऄलीगढ़ कॉलेज की स्थापना की। ाआन्होंने 1860
के दशक में काइ िैज्ञायनक सांस्थाओं की भी स्थापना की, यजसमें हहदू और मुयस्लम दोनों ने
भाग यलया।
o भारत में साांप्रदाययकता की शुरुाअत 1880 के दशक में हुाइ, जब सैय्यद ाऄहमद खान ने
भारतीय राष्ट्रीय काांग्रेस द्वारा प्रारां भ राष्ट्रीय ाअांदोलन का यिरोध ककया। ाईन्होंने ाऄांग्रेजों के

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कायों का समथवन करने और भारतीय राष्ट्रीय काांग्रस
े की कायव पद्धयत का यिरोध करने का
यनणवय यलया। ाईनके ाऄनुसार काांग्रेस मुयस्लम यहतों के यिरुद्ध एक हहदू समथवक दल था।
o ाऄांतताः, ाअगा खाां, निाब मोहयसन-ाईल-मुकक ाअकद जैसे प्रख्यात मुयस्लम बुयद्धजीयियों ने
मुयस्लम यहतों को सांगरठत करने हेतु ाऄयखल भारतीय मुयस्लम लीग की स्थापना की। ाआसके
प्रमुख ाईद्देश्यों में से एक मुयस्लम िगव के ाईभरते बुयद्धजीयियों को काांग्रेस में शायमल से रोकना
था।
o ाआसके साथ ही हहदू साांप्रदाययकता का भी यिकास हो रहा था। ाआसके तहत हहदू नेताओं ने
मुयस्लम शासकों के ाऄत्याचारी होने की धारणा का प्रचार ककया, साथ ही ाईन्होंने भाषा
सांबांधी मुद्दे को बढ़ािा देते हुए ाआसे एक साांप्रदाययक स्िरूप प्रदान ककया । ाईन्होंने ाईदूव को
मुयस्लमों और हहदी को यहन्दुओं की भाषा के रूप घोयषत ककया। ाआसके ाऄयतररि, 1890 में गौ
हत्या यिरोधी प्रचार ककया गया और ाआसे मुख्य रूप से मुयस्लमों के यिरुद्ध यनदेयशत ककया
गया।
o फलताः पांजाब हहदू सभा (1909), ाऄयखल भारतीय हहदू महासभा (प्रथम सत्र 1915 में
ाअयोयजत हुाअ) ाअकद जैसे सांगठन स्थायपत ककए गए।
o ाअयव समाज, शुयद्ध ाअांदोलन (हहदुओं के मध्य); िहाबी ाअांदोलन, तांजीम और तबलीग
ाअांदोलन (मुयस्लमों के मध्य) ाअकद जैसे धार्ममक पुनरुत्थानिादी ाअांदोलनों ने साांप्रदाययक
प्रिृयियों को और ाऄयधक बढ़ािा कदया।
o ाआस चरण में सैय्यद ाऄहमद खान, लाला लाजपत राय, मोहम्प्मद ाऄली यजन्ना, मदन मोहन
मालिीय ाअकद जैसे नेताओं के दृयिकोण में साांप्रदाययकता का समािेश हुाअ।
o ाऄांग्रेजों ने ाऄपने प्रशासयनक यनणवयों और नीयतयों, जैस-े बांगाल यिभाजन, माले-हमटो सुधार

(1909), साांप्रदाययक पांचाट (1932) ाअकद के माध्यम से साांप्रदाययक यिभाजन को गयत


प्रदान की।
 ाईग्रिादी चरण (Extremist Phase)
o 1937 के पश्चात् भारत में भय, मनोयिकृ यत और तकव हीनता की राजनीयत के ाअधार पर
ाऄत्ययधक साांप्रदाययकता देखी गाइ। ाआस चरण के दौरान यह स्िीकार कर यलया गया कक
हहदुओं और मुयस्लमों के यहतों के मध्य स्थायी ाऄांतर्मिरोध है।
o भारत के शहरी यनम्न-मध्यम िगव समूहों तथा ाअिामक एिां गरमपांथी साांप्रदाययक राजनीयत
के तहत यिकयसत जन ाअांदोलनों के मध्य साांप्रदाययकता का ाऄत्ययधक यिकास हुाअ।
o साांप्रदाययकता, यिरटश ाऄयधकाररयों और ाईनकी फू ट डालो-राज करो की नीयत का एकमात्र
राजनीयतक साधन बन गया।
o ाआस ाऄियध के दौरान मोहम्प्मद ाऄली यजन्ना ने घोषणा की कक 'मुयस्लमों को स्ियां को सांगरठत
एिां एकजुट करना चायहए और ाईन्हें ाऄपने समुदाय की सुरक्षा हेतु प्रत्येक ाईयचत हबदु पर बल
देना चायहए।' ाईन्होंने कहा कक ाऄांग्रेजों के भारत छोड़कर जाने के पश्चात् मुयस्लमों को हहदू
प्रभुत्ि िाली काांग्रेस के ाऄधीन कर कदया जाएगा। ाऄताः मुयस्लमों के यलए पृथक राज्य ाऄथावत्
पाककस्तान का सृजन ही एकमात्र ाईपाय है।
o हालााँकक ाआसके साथ ही हहदू साांप्रदाययकता का भी यिकास होता रहा। हहदू महासभा और
राष्ट्रीय स्ियांसेिक सांघ (RSS) ने चरम साांप्रदाययकता को प्रचाररत ककया। ाईनके द्वारा माांग
की गाइ कक भारत के गैर-हहदू समूह यहन्दू सांस्कृ यत और भाषा को ाऄपनाएां तथा हहदू धमव के
प्रयत सम्प्मान बनाए रखें। ाईनके ाऄनुसार हहदू और मुयस्लम, दो ाऄलग-ाऄलग सामायजक और
राजनीयतक िास्तयिकताएां हैं यजनके यहत परस्पर यिरोधी हैं।

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3.2. साां प्र दाययकता के पररणाम

(Consequences of Communalism):
साांप्रदाययक हत्याओं और ाऄशाांयत का चरम स्िरुप कलकिा हत्याकाण्ड (1946) के रूप में ाऄयभव्यि
हुाअ, यजसमें 5 कदन की ाऄियध में ही हजारों लोगों की मृत्यु हो गाइ। ाआस दौरान बांगाल के नोाअखली में
हहदुओं और यबहार में मुयस्लमों का सामूयहक नरसांहार, भारत के यियभन्न भागों में यिभाजन के कारण
दांगे और एक हहदू कट्टरपांथी द्वारा गाांधीजी की हत्या ाअकद प्रमुख घटनाएाँ घरटत हुईं। साांप्रदाययकता के
पररणामस्िरुप भारत यिभाजन और पाककस्तान का यनमावण हुाअ।

3.3. स्ितां त्र ता-पश्चात् (Post-Independence)

ाईपयनिेशिाद, भारत में साांप्रदाययकता के ाईभरने के प्रमुख कारक के रूप में माना जाता है। हालाांकक,
औपयनिेयशक शासन को खत्म करना साांप्रदाययकता से लड़ने के यलए के िल एक ाअिश्यक शतव सायबत
हुाइ, पयावप्त नहीं। क्योंकक स्ितांत्रता के बाद भी, साांप्रदाययकता बनी रही और हमारे देश के धमवयनरपेक्ष
ताने-बाने के यलए सबसे बड़ा खतरा रही है।
स्िातांत्रयोिर काल में साांप्रदाययकता की सातत्यता के कारण
 ाऄथवव्यिस्था का धीमा यिकास
 ाऄनुयचत साांस्कृ यतक सांश्लष े ण
 ाऄनुमायनत या सापेयक्षक िांचन
 यिकास में क्षेत्रीय या सामायजक ाऄसांतुलन
 लोकताांयत्रक युग में राजनीयतक लामबांदी ने साम्प्प्रदाययक चेतना के एकीकरण को प्रेररत ककया है।

स्ितांत्रता के पश्चात् घरटत साांप्रदाययक हहसा की प्रमुख घटनाएां यनम्नयलयखत हैं:

 यसख यिरोधी दांगे (1984): तत्कालीन प्रधानमांत्री श्रीमती ाआां कदरा गाांधी की हत्या के पश्चात् बड़े
पैमाने पर यसखों की हत्या की गाइ।
 कश्मीरी हहदू पांयडतों का मुद्दा (1989): कश्मीर घाटी में ाआस्लायमक कट्टरतािाद और ाअतांकिाद के
फै लने से 1989-90 के दौरान कश्मीरी पांयडतों की सामूयहक हत्या और िृहद स्तर पर पलायन
हुाअ। ाआस क्षेत्र में साांप्रदाययक हहसा का खतरा बना रहता है।
 बाबरी मयस्जद घटना (1992): कदसांबर 1992 में हहदू कारसेिकों की यिशाल भीड़ ने ाईिरप्रदेश
के ाऄयोध्या में 16िीं शताब्दी में यनर्ममत बाबरी मयस्जद को ध्िस्त कर कदया और यह दािा ककया
कक यह स्थल राम जन्म भूयम (राम का जन्म स्थल) है। ाआसके कारण हहदुओं और मुयस्लमों के मध्य
काइ महीनों तक ाऄांतर-साांप्रदाययक दांगे हुए, यजसके पररणामस्िरूप सैकड़ों लोगों की मृत्यु हुाइ।
 गोधरा दांगे (2002): फरिरी 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के चार यडब्बों में ाअग लगा दी गाइ।
यायत्रयों में ाऄयधकाांशत: हहदू तीथवयात्री थे जो ध्िस्त बाबरी मयस्जद स्थल पर ाअयोयजत एक
धार्ममक समारोह में सयम्प्मयलत होने के पश्चात् ाऄयोध्या से लौट रहे थे। ाआस हमले के पश्चात् काइ
हहदू समूहों ने गुजरात में राज्यव्यापी बांद की घोषणा की और मुयस्लम बयस्तयों पर िू रता से हमला
करना प्रारां भ कर कदया। ऐसी घटनाएाँ गोधरा काांड के पश्चात् काइ महीनों तक जारी रहीं, यजसके
पररणामस्िरूप हजारों सांख्या में मुयस्लमों की मृत्यु हुाइ और ाईनका व्यापक स्तर पर यिस्थापन
हुाअ।
 ाऄसम हहसा (2012): ाअजीयिका, भूयम और राजनीयतक शयि के यलए बढ़ती प्रयतस्पधाव के कारण
बोडो और बांगाली भाषी मुयस्लमों के मध्य लगातार सांघषव होते रहते थे। 2012 में ाऄज्ञात लोगों
द्वारा जॉयपुर में चार बोडो युिाओं की हत्या के पररणामस्िरूप, कोकराझार में एक व्यापक दांगा
भड़क गया। ाआसके पश्चात् स्थानीय मुयस्लमों पर ककए गए प्रयतशोधपूणव हमलों में दो लोगों की मृत्यु
हो गाइ और काइ लोग घायल हो गए। ाआस दांगें में लगभग 80 लोगों की मृत्यु हुाइ, यजनमें से

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ाऄयधकतर बांगाली मुयस्लम और कु छ बोडो थे। लगभग 4,00,000 लोग ाऄस्थायी यशयिरों में
यिस्थायपत हुए।
 मुजफ्फरनगर दांगे (2013): 2013 में, ाईिरप्रदेश के मुजफ्फरनगर में हहदू जाटों और मुयस्लम

समुदायों के बीच सांघषव हुाअ। ाआसमें कम से कम 62 लोगों की मृत्यु हुाइ और 93 लोग घायल हुए।
ाआसके साथ ही 50,000 से ाऄयधक लोग यिस्थायपत हुए। यिगत 20 िषों में पहली बार राज्य में
सैन्य बल को तैनात ककया गया। साथ ही ाआन दांगों को "हाल के ाआयतहास में ाईिर प्रदेश में हुाइ सबसे

व्यापक हहसा" के रूप में िर्मणत ककया गया।

4. साां प्र दाययकता से सां बां यधत सामययक मु द्दे


(Current issues regarding communalism):

हाल ही में भारत में साांप्रदाययकता की ाऄयभव्ययि यियिध रूपों में हुाइ है, यजसमें शायमल हैं-

 हकदया प्रकरण: ाऄयखला नाम की एक 24 िषीय यहन्दू मयहला ने ाआस्लाम धमव स्िीकार कर नया
नाम हकदया रख यलया था। हकदया ‘लि यजहाद’ यििाद के कें द्र में थी। हालाांकक ाऄयखला (हकदया)
ने कहा कक ाईसने स्िेच्छा से ाआस्लाम धमव ग्रहण ककया है तथा ाऄपनी ाआच्छा से यििाह ककया है।
परन्तु ाईसके यपता ने बांदी प्रत्यक्षीकरण यायचका दायर करते हुए यह दािा ककया कक ाईसका बलात्
धमाांतरण करिाया गया है और ाईसे ISIS का सदस्य बनाने हेतु लयक्षत ककया गया है। के रल ाईच्च
न्यायालय ने ाईसके यििाह को ाऄिैध घोयषत कर कदया और हकदया को ाईसके माता-यपता के घर
िापस भेजे जाने का यनणवय कदया। न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कक, “िह एक कमजोर और

सुभेद्य लड़की है यजसका सरलता से शोषण ककया जा सकता है।” यद्ययप ाईच्चतम न्यायालय ने ाईसके
धमव का चयन करने तथा ाऄबाध सांचरण की स्ितांत्रता को सांरक्षण प्रदान ककया और ाईसे ाऄपनी
यशक्षा जारी करने हेतु कॉलेज िापस जाने का यनणवय कदया।
 गोमाांस सेिन एिां पररणामस्िरूप होने िाली मृत्यु: गोमाांस सेिन एिां पररिहन का मुद्दा भारत में
एक यििादास्पद मुद्दा बन चुका है तथा यह देश के यियभन्न भागों में साांप्रदाययक हहसा भड़कने का
कारण बना है। ाआां यडयास्पेंड कां टेंट एनायलयसस के ाऄनुसार लगभग ाअठ िषों (2010-17) में
गौहत्या के कारण घरटत 51% हहसात्मक घटनाओं में मुयस्लम िगव को लयक्षत ककया गया था तथा
63 हहसक घटनाओं में मारे गए 28 भारतीयों में 86% मुयस्लम थे।
 घर िापसी कायविम: यह गैर-यहन्दुओं के यहन्दू धमव में धमाांतरण को सुगम बनाने हेतु राष्ट्रीय स्ियां
सेिक सांघ तथा यिश्व यहन्दू पररषद् जैसे भारतीय यहन्दू सांगठनों द्वारा सांचायलत धमव पररितवन
गयतयियधयों की एक श्रृांखला है। हालाांकक ाआन ाअयोजक समूहों द्वारा यह दािा ककया जाता है कक
लोग स्िेच्छा से यहन्दू धमव को स्िीकार करने हेतु ाअगे ाअए हैं, परन्तु कु छ लोगों ने ाअरोप लगाया
है कक ाईन्हें ऐसा करने के यलए बाध्य ककया गया है।
 युिाओं के मध्य धार्ममक कट्टरिाद: यह भारतीय युिा िगव में यिद्यमान मुख्य चुनौयतयों में से एक है।
कश्मीरी युिाओं के मध्य कट्टरपांथी यिचारधारा के प्रसार का ख़तरा व्याप्त है। यह पहले से यिद्यमान
ाऄलगाििादी प्रिृयियों को बढ़ािा दे सकता है। ाआसके ाऄयतररि ISIS जैसे ाअतांकिादी समूहों की
कट्टरपांथी प्रिृयियों ने युिाओं को ाऄपना यशकार बनाया है यजसके पररणामस्िरूप ाऄनेक भारतीय
कट्टरपांथी युिाओं ने ऐसे समूहों की सदस्यता ग्रहण की है। गृह मांत्रालय के ाऄनुमान के ाऄनुसार 75
भारतीय ISIS में शायमल हो चुके हैं। ाआस ाअतांकिादी सांगठन की यिशेष रूप से सोशल मीयडया के
माध्यम से भारत में पहुाँच में िृयद्ध हो रही है।

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5. साां प्र दाययकता का सामना करने हे तु ाईपाय
(Measures to Counter Communalism)
भारत में साांप्रदाययकता की समस्या ाऄत्यांत गांभीर है, यजसके दूरगामी पररणाम हो सकते हैं। ाऄत: ाआसके
प्रसार को रोकने हेतु प्रेरक के साथ-साथ दांडात्मक ाईपाय ककए जाने की ाअिश्यकता है।
भारत में साांप्रदाययकता का सामना करने हेतु यनम्नयलयखत ाईपाए ककए जा सकते हैं:

 सामायजक-कायवस्थल, ाअस-पड़ोस ाअकद यियभन्न स्तरों पर यियिध धार्ममक समूहों के मध्य


एकजुटता और समन्िय की स्थापना करना। ाआसके यलए धमवयनरपेक्ष सांस्कृ यत को बढ़ािा देने िाली
गयतयियधयों जैस,े एक दूसरे के त्यौहार में सयम्प्मयलत होने ाअकद को प्रोत्सायहत ककया जाना
चायहए।
 सोशल मीयडया पर ककसी ाअतांकिादी समूह द्वारा कट्टरता के प्रसार को रोकने के यलए पुयलस
कायविाही के माध्यम से तीव्र एिां तात्कायलक ाऄनुकिया करना तथा कट्टरपांयथयों यिशेषत: ककशोरों
हेतु परामशव सत्रों ाअयोयजत करना।
 यनिावचन ाअयोग, मीयडया, यसयिल सोसााआटी ाअकद जैसी सांस्थागत प्रणायलयों द्वारा कठोर सतकव ता
के माध्यम से राजनीयतक दलों को मत प्राप्त करने हेतु धमव या धार्ममक यिचारधारा का प्रयोग करने
से रोकना।
 दो ियस्कों की ाअपसी सहमयत से हुए ाऄांतर-धार्ममक यििाह को “लि यजहाद” का मुद्दा नहीं माना
जाना चायहए तथा ाआसे मीयडया में प्रचाररत होने से रोका जाना चायहए। ाऄत: ाआस मुद्दे के सांदभव में
मीयडया से सांबद्ध लोगों को ाऄयधक सांिेदनशील बनाया जाना चायहए।
 भीड़ जयनत साांप्रदाययक दांगो को यनयांयत्रत ककया जाना चायहए तथा यनिारक ाईपाय के रूप में
ाईनके यिरुद्ध सख्त कारव िााइ की जानी चायहए।
 सांसद द्वारा साांप्रदाययक हहसा के यिरुद्ध कठोर कानूनों का यनमावण ककया जाना चायहए। कानूनों में
व्याप्त कयमयों के कारण साांप्रदाययक हहसा को ाईकसाने में प्रत्यक्ष रूप से सां यलप्त राजनेता एिां
प्रभािशाली लोग सरलता से बच जाते हैं।
 CBI या ककसी यिशेष जााँच ाआकााइ द्वारा साम्प्प्रदाययक दांगो से सांबांयधत यिषयों की एक यनधावररत

समय-सीमा के भीतर जाांच की जानी चायहए। ाआसके ाऄयतररि, पीयड़त को त्िररत न्याय प्रदान
करने हेतु यिशेष न्यायालयों में ऐसे मामलों की सुनिााइ की जानी चायहए।
 पुयलस तथा कानून एिां व्यिस्था बनाए रखने िाले ाऄन्य यनकायों को ाईिरदायी बनाया जाना
चायहए क्योंकक कु छ ाऄिसरों पर पुयलस द्वारा राजनेताओं के दबाि में कायव करने की प्रिृयत भी
देखी गयी है तथा पुयलस साम्प्प्रदाययक हहसा एिां ाआसकी ाऄनुिती कायविायहयों ाऄथावत् प्राथयमकी
(FIRs) दजव करने, ाऄयभयुि को यगरफ्तार करने, ाअरोप पत्र दायखल करने ाअकद के दौरान भी
यनयष्िय बनी रहती है। ाआस प्रकार त्िररत कायविाही हेतु ाआन्हें ाईिरदायी बनाने के यलए यियधक
सुधारों को ाऄयनिायव रूप से लागू ककया जाना चायहए।

 चूांकक धार्ममक पृथक्करण, साम्प्प्रदाययक पहचान को सुदढ़ृ बनाता है तथा ाऄन्य धार्ममक समूहों के प्रयत
नकारात्मक रूकढ़यों को बल प्रदान करता है, ाऄताः बहुलिादी बयस्तयों (जहााँ यियभन्न समुदायों के
सदस्य एक साथ रहते हैं) के समक्ष यिद्यमान ाऄिरोधों का यनराकरण कर ाईन्हें प्रोत्सायहत ककया
जाना चायहए, जैस-े मुयस्लम, दयलत, पूिोिर के नागररक ाआत्याकद को ाईनकी पहचान के कारण
ाअिास से िांयचत कर देने जैसी ाऄसयहष्णुता की घटनाओं के मामलों में कारव िााइ करना। भारतीय
मुयस्लम समुदाय की यस्थयत पर सच्चर सयमयत की ररपोटव में ाऄसयहष्णुता तथा बयहष्करण की
यशकायतों से यनपटने हेतु एक समान ाऄिसर ाअयोग के गठन की ाऄनुशस
ां ा की गाइ।

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 सभी शैक्षयणक सांस्थानों में धमवयनरपेक्षता से सांबांयधत यशक्षा दी जानी चायहए, ाआससे यियभन्न
समुदायों के सदस्यों के मध्य सामांजस्य तथा सहयोग का यिकास होगा।
 ाआयतहास सांबांधी यशक्षा को गैर साांप्रदाययक बनाया जाना चायहए, क्योंकक भारतीय ाआयतहास का
प्राचीन, मध्यकालीन और ाअधुयनक काल में ितवमान िगीकरण साांप्रदाययक सोच को बढ़ािा देता

है। ाईकलेखनीय है कक यह िगीकरण ाआयतहास को प्रभािी रूप से िमशाः यहन्दू युग, मुयस्लम युग
तथा ाइसााइ युग में यिभायजत करता है। यह ाआस मत का समथवन करता है कक भारत एक यहन्दू देश
था, यजस पर मुसलमानों एिां ाइसााइयों द्वारा ‘ाअिमण’ ककया गया।
 ाऄकपसांख्यकों हेतु रोजगार के ाऄिसरों में िृयद्ध करने से साांप्रदाययक मतभेदों में कमी ाअ सकती
है। ाआस प्रकार यियभन्न कायविमों एिां पहलों के माध्यम से ाऄकपसांख्यक िगव के सदस्यों के
कौशल यिकास पर ध्यान के यन्द्रत ककया जाना चायहए।
 धार्ममक प्रमुख धमव, यिश्वास ाअकद के यियिधतापूणव यिचारों के प्रसार में महत्िपूणव भूयमका
यनभा सकते हैं, यजससे यियभन्न समुदायों के मध्य शाांयत स्थायपत करने में सहायता प्राप्त हो
सकती है।
 सरकार को बहुसांख्यक समूह को तुि करने हेतु ाऄकपसांख्यक प्रथाओं पर प्रयतबन्ध नहीं लगाना
चायहए। ाईदाहरण के यलए राज्य को शाकाहार हेतु िरीयता प्रदर्मशत नहीं करनी चायहए।
 समान नागररक सांयहता का यनमावण एिां कायावन्ियन सभी धार्ममक समुदायों की सिवसम्प्मयत से
ककया जाना चायहए यजससे पसवनल लॉ (personal laws) में एकरूपता स्थायपत हो सके ।
 धार्ममक सामांजस्य तथा शाांयत को बढ़ािा देने हेतु मीयडया, कफकमों और ाऄन्य प्रभािशाली
कारकों का ाईपयोग ककया जाना चायहए।

6. यिगत िषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे


गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. भारत में साम्प्प्रदाययकता की िृयद्ध के यलए यजम्प्मद


े ार सामायजक-ाअर्मथक कारकों की चचाव
कीयजए।
दृयिकोणाः
 भारत में साम्प्प्रदाययकता की िृयद्ध के यलए यजम्प्मेदार सामायजक-ाअर्मथक कारकों को ाईयचत
ाईदाहरण देते हुए स्पि कीयजए। यहााँ दाशवयनक या धार्ममक कारणों की व्याख्या ाअिश्यक नहीं
है।
ाईिराः
 साांप्रदाययकता "एक यिश्वास या यिचारधारा को सांदर्मभत करती है यजसके ाऄनुसार एक धमव के
सभी लोगों के समान ाअर्मथक, सामायजक और राजनीयतक यहत होते हैं और ये यहत ककसी
ाऄन्य धमव के लोगों के यहतों के यिपरीत होते हैं।" साांप्रदाययकता के यिकास में स्पि तीन चरणों
(यडग्री) हैं:
साांप्रदाययकता या साांप्रदाययक यिचारधारा में तीन मूल तत्ि या ाऄिस्थाएां होती हैं- जो
परस्पर एक-दूसरे का ाऄनुसरण करती हैं:
 मन्द (Mild): यह माना जाता है कक जो लोग एक ही धमव का पालन करते हैं, ाईनके
धमवयनरपेक्ष यहत ाऄथावत् राजनीयतक, सामायजक और साांस्कृ यतक यहत समान होते हैं।

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 मध्यम (Moderate): भारत जैसे बहु-धार्ममक समाज में, एक धमव के ाऄनुयायययों के
धमवयनरपेक्ष यहत दूसरे धमव के ाऄनुयायययों के यहतों से ाऄसमान और यभन्न होते हैं।
 चरम (Extreme): यियभन्न धार्ममक समुदायों के यहतों को परस्पर ाऄसांगत, यिरोधी और
प्रयतकू ल माना जाता है।
 भारत के सन्दभव में, साम्प्प्रदाययकता यियभन्न िगों के बीच होने िाले धार्ममक यििादों का सबसे
सामान्य रूप माना जाता है। ाआसके कारण प्रायाः ाआन िगों के बीच तनाि बना रहता है और
यही तनाि काइ बार दांगों का रूप ले लेते हैं।
 साम्प्प्रदाययकता की कम हहसक ाऄयभव्ययि में रोजगार या यशक्षा जैसे मामलों में धार्ममक
समूहों के यखलाफ भेदभाि होता है।
 साम्प्प्रदाययक हहसा का कारण ाऄपने मौयलक चररत्र में (िास्तयिक रूप में) शायद ही कभी
धार्ममक होता है। भारत में जब धमव का प्रयोग यियभन्न समुदायों के बीच सामायजक-ाअर्मथक
ाऄसांतुलन को कदखाने के यलए ककया जाता है, तो ाआससे साम्प्प्रदाययकता को बढ़ािा यमलता है
और ररयायतों के यलए की जाने िाली माांगों को बल यमलता है।
 ाऄनुयचत साांस्कृ यतक सांश्लष
े ण, सापेयक्षक ाऄसमानता, यिकास में क्षेत्रीय या सामायजक ाऄसांतल
ु न
तथा ाऄिसरों की कमी ाअकद को साम्प्प्रदाययकता की ाईत्पयि का कारण माना जा सकता है।
लोकताांयत्रक युग में राजनीयतक लामबांदी (ध्रुिीकरण) के कारण ाआन ाअांदोलनों को मजबूती
यमलती है।
 भारत में साम्प्प्रदाययकता की शुरुाअत ाऄांग्रेजों की ‘बाटों और राज करो’ की नीयत से हुाइ। ाआस
नीयत को बढ़ािा यमलने का प्रमुख कारण यह था कक मुयस्लम मध्यम िगव यशक्षा के मामलें में
यहन्दुओं से यपछड़ा था यजसके कारण सरकारी नौकररयों में ाईनकी भागीदारी कम थी। ाईस
समय पयावप्त ाअर्मथक ाऄिसरों का ाऄभाि था यजसके कारण सरकारी नौकरी को मध्यम िगव के
बीच काफी प्रयतयष्ठत माना जाता था। ाआसके ाऄलािा, 1857 के बाद यिरटशों के मुयस्लम
यिरोधी पूिावग्रह ने भी हहदुओं को थोड़ी सी प्राथयमकता दी, यजन्होंने ाअधुयनक ाईद्यमों /
व्यिसायों को बड़ी तीव्रता से ाऄपनाया। सामायजक-ाअर्मथक सांकेतकों में ाऄसमानता के कारण
एक ाऄलग राज्य के रूप में पाककस्तान की माांग को भी बल यमला।
 तथाकयथत पहला साम्प्प्रदाययक यििाद मोपला यिद्रोह भी साम्प्प्रदाययक यििाद की जगह भू-
स्िायमयों के यिरूद्ध सिवहारा द्वारा कृ त एक हड़ताल थी। ऐसा ाआसयलए हुाअ था क्योंकक भू-
स्िामी यहन्दू थे और कृ षक/मजदूर मुसलमान थे।
 ाआसयलए एक यस्थर धमवयनरपेक्षता प्रकिया (यजसमें धमव और राजनीयत को ाऄलग करना
शायमल है) के स्थान पर : (1) ाऄथवव्यिस्था के धीमे यिकास, (2) हहदू और मुयस्लम ाऄयभजात
िगव के बीच प्रयतस्पधाव (3) सामांती जमींदारों की तुलना में कमजोर व्यापाररक मध्यिगव, (4)
बाांटो और राज करो की यिरटश नीयत ने स्ितांत्रता पूिव काल में साम्प्प्रदाययकता के यिकास को
प्रोत्सायहत ककया।
 स्ितांत्रता के बाद भी मुसलमानों के यलए िस्तुयस्थयत ज्यादा नहीं बदली, जोकक सच्चर सयमयत
की ररपोटव के यनष्कषों से ाऄच्छी तरह सायबत होती है। ाआस ररपोटव के ाऄनुसार:
o मुसलमानों के मध्य साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है और यह ाऄांतर शहरी
क्षेत्रों और मयहलाओं में ज्यादा है।
o ककसी ाऄन्य सामायजक-धार्ममक समुदाय की तुलना में मुसलमानों के यलए कायवरत
जनसांख्या ाऄनुपात कम है और यह ग्रामीण ाआलाकों में भी और भी कम है।
o ाआसके ाऄलािा, शहरी सांघषव और हहसा के कारण व्यिधान और क्षयत के ाऄयधक जोयखम
के कारण मुयस्लम श्रयमक स्ि-रोजगार- छोटे व्यापारों, ाईद्यमों ाअकद में कें कद्रत हैं।
o मुयस्लमों की बैंक ाऊण तक पहुाँच शोचनीय है। ाऄन्य सामायजक-धार्ममक समूहों की तुलना
में ाऊण का औसत ाअकार सांकुयचत और ाऄत्यकप है।

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 ाआसयलए, सभी सामायजक-धार्ममक समुदायों में, मुयस्लम सबसे ज्यादा ाअर्मथक रूप से कमजोर,
शैक्षयणक रूप से यपछड़े और यििीय रूप से िांयचत हैं।
 ाआस समस्या से यनपटने की काइ नीयतयों के बािजूद िषों से राज्य यनरक्षरता-बेरोजगारी-
गरीबी के ाआस दुष्चि को दूर करने में ाऄसफल रहा है।
 नतीजतन युिा यनराश, ाऄसांतुि और कुां रठत हो रहे हैं और दबाि डालने के तरीके के रूप में
चरम साांप्रदाययकता की तरफ ाऄग्रसर हो रहे हैं।
 ाआसयलए, समय की माांग है कक सच्चर सयमयत की यसफाररशों पर तेजी से कायव ककया जाए और
मुयस्लम समुदाय के समग्र यिकास के यलए एक ाऄनुकूल माहौल बनाया जाए। युिाओं के बीच
जागरूकता ाईत्पन्न की जाए ताकक िे ाऄिसरिादी राजनीयत के जाल में न ाअएां, जहाां लोग
ाऄपने धमवयनरपेक्ष छयि के यलए ाआनकी दुदश
व ा का ाऄनुयचत लाभ ाईठाते हैं।

2. ाअांतररक सुरक्षा के महत्िपूणव खतरे के रूप में साम्प्प्रदाययकता के लगातार बने रहने की जड़ें,
पहचानिादी राजनीयत, यिकास के ाऄभाि और ाआस तरह के खतरों को सांभालने में राज्य की
क्षमता में प्रणालीगत कमी ाआत्याकद के घातक यमश्रण में यनयहत हैं। रट्पणी कीयजए।
दृयिकोण :
ाईिर की शुरुाअत साम्प्प्रदाययकता के द्वारा ाईत्पन्न होने िाली समस्याओं के सांयक्षप्त पररचय के
साथ की जा सकती है। यिद्यार्मथयों को स्पि करना चायहए कक ककस प्रकार सम्प्प्रदायिाद की
जड मुख्यताः तीन बुरााआयों- पहचान पर ाअधाररत राजनीयत, यिकास का ाऄभाि और प्रणाली
सांबांधी कमी-में यनयहत है। ाईन यिद्यार्मथयों को ाऄांक कदए जाने चायहए जो ाआस बात की पहचान
कर पाने में सफल होते हैं कक ाआन तीन बुरााआयों में, पहचानिादी राजनीयत सम्प्प्रदायिाद की
जड़ में है। ाआसके यबना, ाऄन्य दो कारक सम्प्प्रदायिाद को बढ़ािा नहीं दे सकते। नक्सल-पांथ
और ऐसे ाऄन्य दूसरों मुद्दों की तरफ भटकने के यलए कोाइ ाऄांक नहीं कदए जाने चायहए।
ाईिर :
बृहत रूप में देखें तो सम्प्प्रदायिाद का ाऄथव है बृहिर समाज या सम्प्पूणव राष्ट्र के स्थान पर ाऄपने
साांप्रदाययक समूह, चाहे िह धार्ममक, भाषा सम्प्बन्धी या नस्ल-गत क्यों न हो, के प्रयत ाऄांध
ाअस्था रखना। ाऄपने ाऄयतिादी रूप में, एक साांप्रदाययक व्ययि को दूसरे समुदायों के द्वारा
ाऄपने समुदाय के यहतों में बाधा पहुाँचती कदखााइ देती है। ाआसी कारण, िह शत्रुित समझे जाने
िाले समूहों के प्रयत घृणा की भािना ाऄयभव्यि करता है, जो ाऄांतताः दूसरे समुदायों पर हहसक
हमले का रूप ले लेती है। (यसफव समझने के ाईद्देश्य से)
सांप्रदायिाद हमारे देश के समक्ष एक ाअतांररक सुरक्षा सांबांधी खतरा है। यह सामायजक सौहाद्रव
को खत्म करता है, सामायजक तनाि, ाअपसी ाऄयिश्वास ाईत्पन्न करता है, ाऄन्य सामायजक
समूहों को हमसे दूर ले जाता है तथा भारतीय यहतों के यिरुद्ध खड़ी ताकतों के द्वारा और
ाऄयधक हहसा तथा ाऄसांतोष को बढ़ािा देने के ाईद्देश्य से ाईपजााउ जमीन तैयार करता है।
सम्प्प्रदायिाद के यनम्नयलयखत मूल कारण हैं -
प्रणालीगत समस्याएां
 यििाद के समाधान हेतु बनाए गए तांत्र ाऄप्रभािी हैं।
 एकयत्रत की गयी खुकफया जानकाररयााँ सटीक, सही समय पर तथा कारिााइ योग्य नहीं
होतीं,
 खराब कार्ममक नीयतयााँ, जैसे ाऄयधकाररयों का त्रुरटपूणव चयन और ाईनकी ाऄकप कायावियध
के कारण स्थानीय पररयस्थयतयों पर ाईनकी पकड़ ाऄपयावप्त होती है।
 प्रशासन व्यिस्था और पुयलस ाईन सांकेतों का पूिावनम
ु ान कर पाने तथा ाईन्हें पढ़ पाने में
नाकाम रहती हैं यजनके कारण पूिव में हहसा भड़की थी।

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 पहला सांकेत यमल जाने के बािजूद भी प्रशासन और पुयलस कारव िााइ करने में सुस्त नजर
ाअते हैं।
 कायवक्षत्र
े में तैनात ाऄयधकारी ाऄपने िरीय ाऄयधकाररयों के ाऄनुदश े ों को प्राप्त करने की
ाआच्छा से तथा ाईनके ाऄनुदश
े ों की प्रतीक्षा में प्रिृि रहते हैं और िरीय ाऄयधकारी स्थानीय
प्रयासों और प्रायधकार को कमतर ाअांकते हुए स्थानीय मुद्दों में हस्तक्षेप करते रहते हैं।
 कभी-कभी प्रशासन और पुयलस के कायों में खुद सामांजस्य नहीं होता,
 कभी-कभी नेतृत्ि, और यहााँ तक कक लोक व्यिस्था को बनाए रखने की यजम्प्मेदारी
सांभालने िाले लोग भी ाऄपने दाययत्ि से पलायन कर जाते हैं।
 ाऄक्सर पुनिावस को ाईपेयक्षत ककया जाता है यजससे ाऄसांतोष और दबा हुाअ गुस्सा पुनाः
पनपने लगता है,
 ाऄयधकाररयों को ाईनकी नाकायमयों के यलए ाईिरदायी नहीं बनाया जाता यजससे सुस्ती
तथा ाऄयोग्यता को बढ़ािा यमलता है।
यिकास का ाऄभाि
 ाऄयधकााँश मामलों में, ाऄपयावप्त यिकास ककसी भी समुदाय की िास्तयिक नाराजगी का
कारण बनता है। और ाईनकी यशकायतों का ाईपयोग ाऄिसरिादी साम्प्प्रदाययक तत्िों द्वारा
ाऄन्य समूहों के प्रयत शत्रुता का बीज बोने में ककया जाता है।
पहचानिादी या व्ययिपरक राजनीयत
ाआसका ाऄथव लोगों की साम्प्प्रदाययक ाअधार पर की जाने िाली लाम-बांदी से है। हालाांकक ाऄन्य
कारक हमारे देश में काइ जगहों पर ाईपयस्थत रह सकते हैं, ककन्तु िे यस्थयतयों को साम्प्प्रदाययक
रां ग दे पाने में तभी सफल हो पाते हैं जब साम्प्प्रदाययक ाअधार पर राजनीयतक लामबांदी की
जाती है।
ाआसयलए प्रणालीगत त्रुरटयों और यिकास की कमी पर ध्यान देते समय हमें राजनीयतक
ाऄांतप्रविाहों पर भी ध्यान देने की जरूरत होती है। ाआस पररप्रेक्ष्य में, राष्ट्रीय एकता पररषद
जैसी सांस्थाओं का बेहतर ाआस्तेमाल ककया जाना चायहए।

7. यिगत िषों में सां घ लोक से िा ाअयोग (UPSC) द्वारा पू छे


गए प्रश्न
(Past Year UPSC Questions)
1. स्ितांत्र भारत में धार्ममकता ककस प्रकार साम्प्प्रदाययकता में रूपाांतररत हो गयी, ाआसका एक
ाईदहारण प्रस्तुत करते हुए धार्ममकता एिां साम्प्प्रदाययकता के मध्य यिभेदन कीयजये।

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भारतीय समाज
भारतीय समाज पर वैश्वीकरण का प्रभाव

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ववषय सूची
1. पररचय (Introduction) _______________________________________________________________________ 3

2. भारतीय संस्कृ वत पर वैश्वीकरण का प्रभाव ____________________________________________________________ 3

2.1. सजातीयकरण बनाम संस्कृ वत का वैश्वीकरण _______________________________________________________ 4

2.2. संस्कृ वत का पुनरुत्थान (Revival of culture) _____________________________________________________ 5

3. भारत में मवहलाओं पर वैश्वीकरण का प्रभाव __________________________________________________________ 5

3.1. वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव________________________________________________________________ 6

3.2. वैश्वीकरण के नकारात्मक पहलू ________________________________________________________________ 6

4. भारत में युवाओं पर वैश्वीकरण का प्रभाव ____________________________________________________________ 7

5. पररवार पर वैश्वीकरण का प्रभाव __________________________________________________________________ 8

6. जावत व्यवस्था पर प्रभाव (Impact on Caste System) ________________________________________________ 9

7. वैश्वीकरण के सामावजक-अर्थथक प्रभाव _____________________________________________________________ 10

7.1. भारत में रोजगार पर वैश्वीकरण का प्रभाव _______________________________________________________ 11

7.2. ऄनौपचाररक क्षेत्रक पर वैश्वीकरण का प्रभाव ______________________________________________________ 13

7.3. कृ वष पर वैश्वीकरण का प्रभाव ________________________________________________________________ 13

8. वैश्वीकरण और पयाावरण _______________________________________________________________________ 14

8.1. वैश्वीकरण द्वारा पयाावरण को प्रभाववत करने के अयाम _______________________________________________ 15

8.2. पयाावरण द्वारा वैश्वीकरण को प्रभाववत करने के अयाम _______________________________________________ 15

9. अगे की राह (Way Forward) __________________________________________________________________ 16

10. ववगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 16

11. ववगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न ________________________________________ 25
वैश्वीकरण - “ भौगोवलक पुनर्थवन्यास की एक प्रक्रिया वजसके पररणामस्वरूप सामावजक पररवेश को
ऄब प्रादेवशक स्थलों, प्रादेवशक दूररयों और प्रादेवशक सीमाओं के संदभा में पररसीवमत नहीं क्रकया जा
सकता।"

1. पररचय (Introduction)
वैश्वीकरण, वववभन्न ऄथाव्यवस्थाओं एवं समाजों के मध्य पारस्पररक वनभारता, ऄंतरसंबद्धता और
एकीकरण में ऐसे स्तर तक वृवद्ध करने की प्रक्रिया है क्रक ववश्व के क्रकसी एक वहस्से में घरटत कोइ घटना
ववश्व के ऄन्य वहस्सों के व्यवियों को प्रभाववत करने लगे।
वैश्वीकरण का प्रभाव ऄत्यवधक व्यापक होता है। यह प्रत्येक व्यवि को वभन्न-वभन्न प्रकार से प्रभाववत
करता है। जहााँ कु छ व्यवियों के वलए यह नए ऄवसर प्रदान करने में सहायक हो सकता है वहीं कु छ
ऄन्य के वलए यह अजीववका की हावन का कारण बन सकता है। यथा, बाज़ार में चीन और कोररया के
रे शम के धागों के प्रवेश के कारण वबहार की रे शम कातने वाली एवं धागा बनाने वाली ऄनेक मवहलाओं
का धंधा चौपट हो गया। बुनकरों एवं ईपभोिाओं द्वारा आन धागों के कम मूल्य व ऄवधक चमक के
कारण आन्हें वरीयता दी गयी। आसी प्रकार भारतीय समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने के बड़े जहाजों के
प्रवेश के कारण भी व्यापक ववस्थापन देखने को वमला। आन जहाजों की ईपवस्थवत के कारण भारत में
मछली पकड़ने वाले परम्परागत छोटे जहाजों के वलए ईपलब्ध मछवलयों की मात्रा सीवमत हो गयी।
आससे मछवलयााँ छांटने, सुखाने, बेचने और जाल बुनने वाली मवहलाओं की अजीववका नकारात्मक रूप
से प्रभाववत हुइ है। आसी प्रकार सूडान से सस्ते गोंद के अयात के कारण 'जुवलफे रा' (बावल वृक्ष) से गोंद
एकवत्रत करने वाली गुजरात की मवहलाओं को ऄपना रोजगार खोना पड़ा। साथ ही ववकवसत देशों से
रद्दी कागज़ के अयात के कारण भारत के लगभग सभी शहरों में कू ड़ा बीनने वालों को ऄपना रोजगार
खोना पड़ा है।
आस प्रकार यह स्पष्ट है क्रक वैश्वीकरण का सामावजक महत्व ऄत्यवधक व्यापक है, परन्तु समाज के
वववभन्न वगों पर आसका प्रभाव बहुत ही वभन्न-वभन्न होता है। आसवलए, वैश्वीकरण के प्रभावों से संबवं धत
दृवष्टकोणों में स्पष्ट ववभाजन ववद्यमान हैं। कु छ ववद्वानों का मानना है क्रक एक बेहतर ववश्व के वनमााण
हेतु यह एक अवश्यक प्रक्रिया है; जबक्रक कु छ ऄन्य ववद्वान वैश्वीकरण के वववभन्न वगों पर पड़ने वाले
वभन्न-वभन्न प्रभावों को भयावह मानते हैं। वे तका देते हैं क्रक आससे ववशेषावधकार प्राप्त वगा के कु छ व्यवि
लाभ प्राप्त कर सकते हैं जबक्रक पहले से ही ऄपवर्थजत एक बड़े वगा की वस्थवत और ऄवधक दयनीय हो
सकती है। आसके ऄवतररि कु छ ववद्वान यह तका भी देते हैं क्रक वैश्वीकरण कोइ नइ ऄवधारणा नहीं है।

2. भारतीय सं स्कृ वत पर वै श्वीकरण का प्रभाव


(Impact of Globalization on Indian Culture)
वैश्वीकरण स्थानीय संस्कृ वत को वववभन्न तरीकों से प्रभाववत करता है। प्राचीन काल से ही भारत का
संस्कृ वतक प्रभावों के प्रवत ईदारवादी दृवष्टकोण रहा है और वह आसके कारण सांस्कृ वतक रूप से समृद्ध
भी हुअ है। ववगत कु छ दशकों में ऄनेक बड़े सांस्कृ वतक पररवतान हुए हैं वजससे यह भय भी ईत्पन्न हुअ
है क्रक वैश्वीकरण के प्रभाव से भारतीय स्थानीय संस्कृ वतयााँ नष्ट हो जाएाँगी। ऄतः वैश्वीकरण के सन्दभा में
हमारे समाज में न के वल राजनीवतक और अर्थथक मुद्दों, बवल्क वस्त्रों, शैवलयों, संगीत, क्रफल्मों,
भाषाओं, शारीररक भाषा अक्रद में पररवतान के सम्बन्ध में भी व्यापक वाद-वववाद होते रहते हैं।
हालांक्रक ये वाद-वववाद नए नहीं हैं, 19वीं शताब्दी के सुधारकों और प्रारं वभक राष्ट्रवाक्रदयों ने भी
संस्कृ वत और परं परा पर वाद-वववाद क्रकए थे। आस प्रकार वतामान मुद्दे कु छ हद तक समान हैं और कु छ
हद तक वभन्न भी हैं। यह वभन्नता ऄवधकांशतः पररवतान के पैमाने एवं तीव्रता के सन्दभा में है।

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2.1. सजातीयकरण बनाम सं स्कृ वत का वै श्वीकरण

(Homogenization versus Globalization of culture)


वैश्वीकरण के कारण जहााँ एक पक्ष सजातीयकरण ऄथाात् सभी संस्कृ वतयों के समान हो जाने की
सम्भावना व्यि करता है वहीं कु छ ववद्वान यह तका देते हैं क्रक वतामान प्रवृवि वस्तुतः संस्कृ वत के
ग्लोकलाआज़ेशन (Glocalisation) या भूस्थानीकरण की क्रदशा में बढ़ने की है। ‘ग्लोकलाआज़ेशन’ वैवश्वक
और स्थानीय (ग्लोबल और लोकल) के वमश्रण को संदर्थभत करता है। यह पूणातः स्वतःस्फू ता नहीं है और
न ही यह वैश्वीकरण के वावणवययक वहतों से पूणत ा ः पृथक है। यह स्थानीय परं पराओं को ध्यान में रखते
हुए ऄपनी वविय क्षमता में वृवद्ध करने हेतु ववदेशी फमों द्वारा ऄपनायी जाने वाली रणनीवत है। भारत
में, हम देखते हैं क्रक स्टार, एमटीवी (MTV), चैनल वी और काटूान नेटवका जैसे सभी ववदेशी टेलीववजन
चैनल भारतीय भाषाओं का ईपयोग करते हैं। यहााँ तक क्रक मैकडॉनल््स भी भारत में के वल शाकाहारी
और वचकन ईत्पाद बेचता है तथा गोमांस के ईत्पाद नहीं बेचता, भले ही वे ववदेशों में ऄत्यंत लोकवप्रय
हैं। नवरात्रों के दौरान मैकडॉनल््स के वल शाकाहारी ईत्पादों की वबिी करता है। संगीत के क्षेत्र में,
'भांगड़ा पॉप', 'आं डी पॉप', फ्यूज़न म्यूवजक और यहां तक क्रक रीवमक्स की लोकवप्रयता में वृवद्ध का
ईदाहरण हमारे सामने है।
आस सन्दभा में ररट्जर (2004) द्वारा एक ऄन्य शब्द, ग्रोबलाआजेशन (grobalization) भी क्रदया गया
है। यह शब्द ‘ऐसे बड़े एवं महत्वाकांक्षी संगठनों या देशों के क्रियाकलापों को संदर्थभत करता है, जो
वैवश्वक स्तर पर ऄपने प्रभाव और लाभ में वृवद्ध के ईद्देश्य से स्वयं को स्थानीय पररवेश पर थोपने का
प्रयास करते हैं।’ ररट्जर के दृवष्टकोण से, वैश्वीकरण 'ग्लोकलाआजेशन' और 'ग्रोबलाआजेशन' का कु ल योग
है।

संस्कृ वत का सजातीयकरण (Homogenization of Culture)


 पाररवाररक संरचना: वैश्वीकरण से संयुि पररवार प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत हुए हैं तथा एकल
पररवारों में वृवद्ध हुइ है। यह वतामान समय में वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट रूप से पररलवक्षत
होता है। पाररवाररक स्वरूपों में ववववधता के स्थान पर ऄब एकल पररवार की प्रवृवि में वृवद्ध का
मागा प्रशस्त हुअ है।
 भोजन: पूरे देश में मैकडॉनल््स, KFC जैसे रे स्टोरें ट खुलने के कारण भोजन के सजातीयकरण के
साथ-साथ आसका ववववधीकरण भी हुअ है। पुराने रे स्टोरें ट ऄब मैकडॉनल््स द्वारा प्रवतस्थावपत कर
क्रदए गए हैं। फास्ट फू ड और चीनी व्यंजनों ने जूस की दुकानों और पराठों का स्थान ले वलया है।
 पहले की तुलना में ऄब धन ईधार लेना ऄवधक स्वीकाया हो गया है। वविीय संस्थानों तक पहुंच
बढ़ने के कारण ऊण लेना ऄब ऄत्यंत सामान्य प्रवृवि हो चुकी है।
 वतामान में पुराने वसनेमाघरों के स्थान पर मल्टीप्लेक्स वथएटर अ गए हैं।
 शहरी क्षेत्रों में ऄंग्रज
े ी का ईपयोग कइ गुना बढ़ गया है। आससे सम्पूणा देश में भाषा का सजातीयकरण
हुअ है, क्रकन्तु ग्रामीण क्षेत्र आससे कम प्रभाववत हुए हैं।

संस्कृ वत का वैश्वीकरण (Globalization of Culture)


 भोजन: भारत की खाद्य शैली ऄत्यवधक वववशष्ट है, क्रकन्तु ऄब ववदेशी व्यंजन भी ऄवधक सुगमता से
और भारतीय स्वादानुसार (जैसे मैकडॉनल््स का पनीर रटक्का बगार) ईपलब्ध हैं। आससे व्यंजनों के
वववभन्न प्रकारों की ईपलब्धता में वृवद्ध हुइ है, पररणामस्वरूप भोजन का ववववधीकरण हुअ है।
 स्कू ली स्तर से ववद्यार्थथयों को फ्रेंच, जमान और स्पेवनश भाषा का ज्ञान प्रदान करना भाषा पर
वैश्वीकरण के प्रभाव को प्रदर्थशत करता है।
 वसनेमा: ववदेशी क्रफल्मों की लोकवप्रयता में वृवद्ध हुइ है। हॉलीवुड, चाआनीज, फ्रेंच और कोररयन

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क्रफल्में शहरी युवाओं में ऄत्यवधक लोकवप्रय हैं। आसके साथ-साथ आन ववदेशी क्रफल्मों को स्थानीय
भाषाओं में डब करना बढ़ते ग्लोकलाआजेशन का साक्ष्य है।
 त्यौहार: वैलेंटाआन्स डे, फ्रेंडवशप डे का प्रचलन ईत्सवों से संबंवधत सांस्कृ वतक मूल्यों में पररवतान को
दशााता है। हालााँक्रक आन नवीन पररवतानों के साथ पारं पररक त्योहार समान ईत्साह के साथ मनाए
जाते हैं।
 वववाह: वववाह के महत्व में कमी तथा तलाक संबंधी घटनाओं, वलव-आन ररलेशनवशप एवं एकल
ऄवभभावकत्व (ससगल पैरेंटटग) संबंधी प्रवृवि में वृवद्ध देखने को वमली है। पूवा में वववाह को
अत्माओं के बंधन के रूप में माना जाता था; क्रकन्तु वतामान समय में वववाह एक संववदात्मक एवं
व्यावहाररक स्वरूप ग्रहण कर रहा है।यद्यवप वववाह के स्वरूपों में पररवतान के बावजूद आसका
संस्थागत स्वरूप अज भी ववद्यमान है।

2.2. सं स्कृ वत का पु न रुत्थान (Revival of culture)

 देश के साथ-साथ ऄंतरााष्ट्रीय स्तर पर योग का पुनरुद्धार। यह रववशंकर के 'अटा ऑफ वलसवग'


कायािम की लोकवप्रयता, सम्पूणा ववश्व में ऄंतरााष्ट्रीय योग क्रदवस के अयोजन अक्रद से पररलवक्षत
होता है।
 भारत के साथ-साथ ऄन्य देशों में भी अयुवेक्रदक दवाओं के प्रयोग में वृवद्ध हुइ है।
 ऄन्य देशों के साथ ऄंतःक्रिया से ऄवनवितता में हुइ वृवद्ध के कारण धार्थमक भावनाओं का
पुनरुत्थान हुअ है। यह धमा का ईपयोग कर मतदाताओं को अकर्थषत करने या धमा के अधार पर
लोगों को संगरठत करने के सन्दभा में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
 वैवश्वक बाजार में वचकनकारी और बंधनी जैसे स्थानीय हस्तवशल्प ईत्पादों की बढ़ती मांग।
 वैवश्वक पयाटन में वृवद्ध के कारण स्थानीय लोग ऄपनी ववववधता को संरवक्षत करने और ऄपनी
परं पराओं को पुनजीववत करने के प्रयास कर रहे हैं।
आन सभी के पररणामस्वरूप भारतीय संस्कृ वत में व्यापक पररवतान हुए हैं। हालांक्रक आनमें से ऄवधकांश
पररवतान क्रफलहाल शहरी क्षेत्रों तक ही सीवमत हैं, क्रकन्तु ऄब ग्रामीण क्षेत्रों में भी आनमें तेजी से वृवद्ध हो
रही है। हम देख सकते हैं क्रक पविमी संस्कृ वत द्वारा भारतीय संस्कृ वत को प्रभाववत क्रकया जा रहा है,
क्रकन्तु वह आसे प्रवतस्थावपत नहीं कर रही है। वस्तुतः दोनों संस्कृ वतयों के वमश्रण की प्रवृवि देखी जा
सकती है।
यह ध्यान क्रदया जाना चावहए क्रक संस्कृ वत को एक ऐसी ऄपररवतानीय स्थायी व्यवस्था के रूप में नहीं
देखा जा सकता है जो सामावजक पररवतान का सामना करते हुए नष्ट हो जाये या ऄपररवर्थतत रहे।
वतामान में भी ऄवधक सम्भावना यही है क्रक वैश्वीकरण न के वल नइ स्थानीय ऄवपतु वैवश्वक परं पराओं
के वनमााण को भी प्रोत्सावहत करे गा।

3. भारत में मवहलाओं पर वै श्वीकरण का प्रभाव


(Impact of Globalization on Women in India)
वैश्वीकरण वववभन्न स्थानों पर मवहलाओं के वववभन्न समूहों को वभन्न-वभन्न तरीकों से प्रभाववत करता है।
एक ओर तो यह मवहलाओं के वलए नए ऄवसर ईत्पन्न कर सकता है ताक्रक वे अर्थथक और सामावजक
प्रगवत की ऄग्रदूत बन सकें , वहीं दूसरी ओर यह ऄसेंबली लाआन ईत्पादन या अईटसोर्ससग के रूप में
ईत्पादकों को सस्ता ववकल्प प्रदान कर रोज़गार के ऄवसरों को कम भी कर सकता है।
वैवश्वक संचार नेटवका और ववववध संस्कृ वतयों के मध्य होने वाले सांस्कृ वतक वववनमय के ईदय के साथ
मवहलाओं की वस्थवत में बदलाव अया है (हालांक्रक यह कोइ बड़ा बदलाव नहीं है)। वास्तव में
वैश्वीकरण ने मवहलाओं के वलए समानता के ववचारों और मानदंडों को प्रोत्सावहत क्रकया है वजससे
जागरूकता में वृवद्ध हुइ है। साथ ही समान ऄवधकारों तथा ऄवसरों के वलए मवहलाओं के संघषा में आसने
ईत्प्रेरक का काया क्रकया है।

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हालााँक्रक वैश्वीकरण क्रकसी वपतृसिात्मक समाज में (ववशेष रूप से ववकासशील देशों में) लैंवगक
ऄसमानता को बढ़ा सकता है। अर्थथक क्षेत्र में यह ऄनौपचाररक श्रम क्षेत्र में मवहलाओं को और भी
हावशये पर पहुाँचा सकता है या अय के पारं पररक स्रोतों को कम कर ईन्हें ऄवधक वंवचत दशा में पहुाँचा
सकता है। यूनाआटेड नेशस
ं डेवलपमेंट फण्ड फॉर वीमेन की ररपोटा के ऄनुसार, ववगत दो दशकों में
वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने देशों के भीतर तथा ईनके मध्य ऄसमानता को बढ़ाने में योगदान क्रदया है।

3.1. वै श्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव

(Positives of globalization)
 वैश्वीकरण के कारण व्यापक संचार लाआनें खुली हैं तथा वववभन्न कं पवनयों के साथ-साथ वववभन्न
ववश्वव्यापी संगठनों का भी भारत में प्रवेश हुअ है। ये सभी कायाबल का एक बड़ा वहस्सा बन रहीं
मवहलाओं के वलए और ऄवधक ऄवसर प्रदान कर रहे हैं।
 मवहलाओं के वलए बढ़ती नइ नौकररयां ईनको ईच्च वेतन के ऄवसर ईपलब्ध कराती हैं। ऄच्छा
वेतन ईनके अत्मववश्वास में वृवद्ध करने के साथ ही ईन्हें स्वतंत्रता प्रदान करता है।
 नगरीकरण की दर में वृवद्ध हुइ है। शहरी क्षेत्रों में मवहलाएं ऄवधक स्वतंत्र और अत्मवनभार हो गइ
हैं।
 वनचले मध्यम वगा के पाररवाररक संबंधों के तरीके में बदलाव अया है। परं परागत रूप से मवहला
घर पर घरे लू अवश्यकताओं और बच्चों की देखभाल करती रही है। ऄब ऄवधकांश मवहलाएं
अजीववका के वलए ऄपने घरों से बाहर वनकल रही हैं। ईदाहरण के वलए: भारत में स्व-वनयोवजत
मवहला संघ (SEWA) कठोर पररश्रम एवं काया के ऄवसरों को स्वीकार करने की आच्छु क
मवहलाओं का एक संघ है।
 वैश्वीकरण के कारण भारत में नारीवादी अंदोलन का ववस्तार हुअ है। आसने मवहलाओं को ईनके
ववचारों के संबंध में ऄवधक मुखर बना क्रदया है।
 वैश्वीकरण के कारण मवहला वशक्षा में वृवद्ध हुइ है। साथ ही स्वास््य देखभाल सुववधाओं में सुधार
हुअ है, वजससे मातृ मृत्यु दर और वशशु मृत्यु दर में कमी अइ है।
 ववश्व भर के वववभन्न गैर-लाभकारी संगठन भारत में भी स्थावपत हुए हैं। आन संगठनों द्वारा
मवहलाओं को ईनकी ईन्नवत के वलए अवश्यक साक्षरता और व्यावसावयक दक्षता जैसे कौशल
प्रदान क्रकए गए हैं।
 आससे मवहलाओं की स्वतंत्रता में (ववशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) वृवद्ध हुइ है। यह स्वतंत्रता ऄंतर
जातीय वववाह, ससगल मदर, वलव आन ररलेशनवशप के दृष्टांतों के माध्यम से ऄवभव्यि हुइ है।
 वैश्वीकरण ने ग्रामीण क्षेत्र में मवहलाओं को मीवडया तथा कइ ऄन्य हस्तक्षेप कायािमों, जैस-े ग़ैर-
लाभकारी संगठनों द्वारा मवहलाओं के अत्मववश्वास में वृवद्ध और ईन्हें ईनके ऄवधकारों के वलए
संघषा करने हेतु प्रेररत करने अक्रद, के माध्यम से प्रभाववत क्रकया है।
 मवहलाओं के दृवष्टकोण में पररवतान- शहरी क्षेत्रों में पविमी वस्त्रों की ऄवधक स्वीकृ वत, डेटटग का
सामान्य प्रवृवि के रूप में प्रचलन, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गभावनरोधक का बढ़ता ईपयोग अक्रद
आसके ईदाहरण हैं।

3.2. वै श्वीकरण के नकारात्मक पहलू

(Negative aspects of globalization)


 यद्यवप मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसर बढ़ रहे हैं, परन्तु वे ऄवधकांशतः कम वेतन की
नौकररयों में संलग्न हैं तथा ईन्हें कम सामावजक सुरक्षा प्राप्त है।
 मवहलाएं दोहरी वज़म्मेदारी से पीवड़त हो रही हैं। ववकासशील देशों में मवहलाएं जब कायाबल का
वहस्सा बनती हैं, तो भी ईनकी घरे लू वज़म्मेदाररयां कम नहीं होतीं। ऄतः वे दो पूणाकावलक
नौकररयां करती हैं।

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 कायास्थल में मवहलाओं का शोषण एक नए मुद्दे के रूप में ईभरा है।
 वैश्वीकरण के साथ-साथ भारतीयों की वपतृसिात्मक मानवसकता की हठधर्थमता भी बनी रही है।
आससे मवहलाओं के वस्तुकरण (commodification), मवहलाओं के ईत्पीड़न के वलए सोशल
मीवडया के ईपयोग तथा मवहलाओं के ववरुद्ध सहसा अक्रद में वृवद्ध हुइ है।
 ईपभोिाओं के रूप में मवहलाओं को ईपभोिावादी संस्कृ वत का सामना करना पड़ रहा है जो
ईनकी वस्थवत को वनम्नतर कर ईन्हें एक वस्तु के रूप में स्थावपत करती है। साथ ही ईत्पादकों के
रूप में मवहलाओं को काया संबंधी शोषण और व्यावसावयक खतरों का सामना करना पड़ता है।
 आसके ऄवतररि, वैश्वीकरण के बावजूद वेश्यावृवि, दुव्यावहार और दहेज से संबंवधत अत्महत्याओं
की घटनाएाँ बढ़ रही है।

4. भारत में यु वाओं पर वै श्वीकरण का प्रभाव


(Impact of Globalization on youth in India)
वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप स्पष्ट रूप से अर्थथक ऄवसरों और लाभों में वृवद्ध होती है क्रकन्तु आसकी
कु छ महत्त्वपूणा सामावजक लागतें भी होती हैं। ये लागतें वैवश्वक संदभा में ऄवनवित और तीव्र रूप से
ववकवसत होते युवाओं की कमजोर संिमणशील वस्थवत को देखते हुए ईन्हें ऄसमान रूप से प्रभाववत
करती हैं।
भारत की ऄवधकांश जनसंख्या युवा है। भारत में युवाओं की जनसंख्या वृवद्ध, आसके द्वारा वैश्वीकरण की
प्रवतक्रिया के मागा में महत्वपूणा कारकों में से एक है। भारतीय यु वा वैश्वीकरण के सकारात्मक एवं
नकारात्मक दोनों धारणाओं बढ़ावा दे रहे हैं। वे वैश्वीकरण को आस प्रकार से ऄंगीकार कर रहे हैं ,
वजसकी पूवव
ा ती पीढ़ी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
अर्थथक वैश्वीकरण नगरीय वनधानता में वृवद्ध का कारण बना है ,क्योंक्रक लोग ऄवसरों की तलाश में
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में प्रवास करते हैं। नगरीय प्रवावसयों का एक बड़ा भाग युवाओं का है। युवा
शहरों में ऄवसरों की खोज करने के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के परं परागत पाररवाररक मानदंडों और
प्रथाओं के बंधनों से मुि होकर ईत्साह और स्वतंत्रता का ऄनुभव कर रहे हैं।
क्रकन्तु युवा नगरीय के न्द्रों में बेरोजगारी के ईच्च स्तर का सामना करते हैं। युवा प्रवावसयों का शहरों की
ओर अकषाण एवं प्रवतकषाण तनावग्रस्त स्थानीय ऄथाव्यवस्था की वस्थवत द्वारा वनधााररत होता है।
महत्वपूणा ऄवसंरचना की ऄनुपवस्थवत में ऄनेक युवा ऄल्प संसाधनों के कु प्रबंधन एवं भ्रष्टाचार तथा
कभी-कभी प्राकृ वतक अपदाओं (जो ऄत्यावधक अबाद क्षेत्रों को वनजान बना देती हैं) से पीवड़त है।
धार्थमक, नागररक तथा नृजातीय संघषा भी शहरों में ववद्यमान अर्थथक समृवद्ध (जो संघषों में प्राय:
प्रत्यक्ष रूप से शावमल होती हैं) को क्षवत पहुंचाते हैं।
युवा वगा (Youth Group)
एक ऄत्यंत छोटे गााँव से ऄत्यवधक बड़े शहरों के भारतीय युवाओं की प्राथवमक महत्वाकांक्षा 'ऄमीर
बनना' है। युवा वगा ईद्यम और वशक्षा के माध्यम से आस लक्ष्य को प्राप्त करने की ईम्मीद करते हैं।
वसववल सेवा, आंजीवनयटरग तथा वचक्रकत्सा जैसे सम्मावनत कररयर ईच्च तकनीक और मीवडया में ईच्च
वेतन की नौकररयों हेतु मागा प्रदान कर रहे हैं।
वतामान में युवा ऄपनी ऄवधक भौवतकवादी महत्वाकांक्षाओं और ऄवधक वैवश्वक रूप से ऄवगत तकों के
साथ सख्त तरीकों तथा प्रवतबंवधत परं परागत भारतीय बाजार को धीरे -धीरे त्याग रहे हैं। युवा एक
ऄवधक कॉस्मोपॉवलटन समाज की मांग करते हैं जो वैवश्वक ऄथाव्यवस्था का पूणा ववकवसत भाग है।

भारत को प्रभाववत करने वाले गवतशील, वैवश्वक और अर्थथक बलों के ऄवतररि वैश्वीकरण ने भारत की
समृद्ध संस्कृ वत में पररवतान क्रकया है। युवा स्वयं को वैवश्वक क्रकशोरों के रूप में देखते हैं। ईन्होंने वजस
समुदाय में जन्म वलया था ईसके स्थान पर वे ऄवधक बड़े समुदाय से संबंध रखते हैं। युवा पीढ़ी पविमी
लोकवप्रय संस्कृ वत को स्वीकार कर रही है तथा आसे ऄपनी भारतीय पहचान में समाववष्ट कर रही है।

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पविमी एवं भारतीय मूल्यों का एक जरटल तथा शविशाली सवम्मश्रण हो रहा है, जो ववशेषतया
भारतीय युवाओं के मध्य स्पष्ट रूप से पररलवक्षत है।
ईपभोिावाद, भारतीय लोगों की परम्परागत मान्यताओं एवं प्रथाओं में समाववष्ट हो गया है तथा आसने
ईनमें पररवतान भी क्रकया है। पविम के नए फै शन के प्रभाव में ववशेषकर नगरीय युवाओं के मध्य
परम्परागत भारतीय पररधानों के ईपयोग में वगरावट अइ है। नवीनतम कारें , टेलीववज़न, एलेक्रोवनक
ईपकरण तथा प्रचवलत वस्त्रों की खरीद ऄत्यंत लोकवप्रय हो गइ है। वनधान युवा जनसंख्या ववज्ञापनों में
प्रदर्थशत महंगे ईत्पादों के प्रलोभन हेतु ववशेष रूप से ऄवतसंवद
े नशील है और जब वे आन ववज्ञापनों के
ऄनुरूप ऄपनी आच्छाओं की पूर्थत नही कर पाते है तो वे कुं ठाग्रस्त हो जाते हैं। ईनकी आस वनराशा का
पररणाम ऄपराध में संवलप्त होना हो सकता है।
वैश्वीकरण पाररवाररक संस्थाओं में भी पररवतान कर रहा है तथा एकाकी पररवार तीव्रता से मानक
बनते जा रहे हैं। वतामान में युवा पूवावती पीढ़ी के ऄनुरूप ऄपने दादा-दादी के करीब नहीं है तथा वे
बड़े-बुजुगों के साथ बहुत कम समय व्यतीत करते हैं। वजसके पररणामस्वरूप एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
को हस्तांतररत ज्ञान में कमी अ रही है।
वैश्वीकरण ने युवाओं के मध्य ऄवनवितता मे वृवद्ध की है। यह ऄंतर्थनवहत ऄवस्थरता तनाव और वनयंत्रण
के ऄभाव में वृवद्ध का काया कर सकती है वजसका युवा वगा द्वारा प्रवतक्रदन ऄनुभव क्रकया जाता है।
ऄवनवितता परं परागत मानदंडों के भंग होने, पररवार और वववाह जैसे सामावजक संबंधों के कमजोर
होने तथा बाजार ऄथाव्यवस्था के कारण कररयर में ऄवनवितता के कारण व्याप्त है।
ऄवधकांश धार्थमक क्रियाकलाप युवाओं हेतु ऄप्रासंवगक होते जा रहे हैं। वे धमा में पररवतान देखना चाहते
हैं। वे पारं पररक ववचारों का अत्मसातीकरण नहीं कर रहे हैं बवल्क ईन्हें के वल सहन कर रहे हैं। यद्यवप
वे धमा के साथ कु छ ऄप्रत्यक्ष मूल्यों की खोज भी करते हैं।
वैश्वीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन ऄच्छे और बुरे दोनों एक वमश्रण है। अर्थथक वैश्वीकरण ने वशक्षा और
नौकररयों के ऄवसरों में सुधार क्रकया है तथा ऄत्यवधक रोजगार ऄवसरों को प्रदान क्रकया हैं। लेक्रकन
आसने वनधान को और ऄवधक वनधान बना क्रदया है। ककतु महत्वपूणा त्य यह है क्रक वैश्वीकरण की ईपेक्षा
नही की जा सकती है। युवा वगा अधुवनक, प्रगवतशील तथा आसके एक भाग बनने के ऄवसर का लाभ
ईठा रहे हैं।

5. पररवार पर वै श्वीकरण का प्रभाव


(Impact of Globalization on Family)
परं परागत रूप से, भारतीय समाज की मूल आकाइ व्यवि नहीं बवल्क संयुि पररवार रहा है। स्वतंत्रता
प्रावप्त के पिात् से, भारतीय सामावजक जीवन का प्रत्येक पहलू व्यापक पररवतान के दौर से गुज़रा है
और यह वसलवसला वनरं तर जारी है। वैश्वीकरण के कारण पाररवाररक संस्था का महत्व तीव्र गवत से
कम होता जा रहा है एवं व्यविवाद तीव्रता से बढ़ रहा है।
पररवार की संरचना (Structure of the family)
 नए रोजगार और शैवक्षक ऄवसरों की तलाश में युवा पीढ़ी की बढ़ती गवतशीलता ने पाररवाररक
संबंधों को कमजोर बना क्रदया है। पाररवाररक बंधन और संबंध भौवतक दूरी के कारण वशवथल हो
गये हैं, क्योंक्रक पहले की भांवत पररवार के सदस्यों के वलए साथ रहना ऄव्यावहाररक हो गया है।
 पररवार के नए स्वरूप ईभर रहे हैं: ईदाहरण के वलए एकल ऄवभभावक पररवार, वलव आन
ररलेशनवशप, मवहला मुवखया वाले पररवार, ड्यूल-कररयर पररवार (ऐसा पररवार वजसमें पवत
और पत्नी दोनों कामकाजी हैं) आत्याक्रद।
पररवार के प्रकाया (Functions of the family)
 भौवतक दूरी के कारण पाररवाररक बंधन और संबंध कमजोर हो रहे है ,क्योंक्रक यह पररवार के
सदस्यों के वलए पहले की तुलना में एक साथ अने को ऄव्यावहाररक बनाता है। आसने बच्चों, बीमार

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व्यवियों और बुजुगों के वलए देखभाल एवं पोषण की आकाइ के रूप में 'पररवार' के प्रारवम्भक
अदशा को प्रभाववत क्रकया।
 कायाबल में मवहलाओं के शावमल होने के कारण पररवार में बुजुगों लोगों की देखभाल में कमी अइ
है।
 जीवनसाथी का चयन: युवा पीक्रढ़यााँ 'shadi.com, Bharat Matrimony ' जैसी मैरीमोनी
साआटों पर वनभार रहने लगी हैं। वर/वधू के चयन में पाररवाररक भागीदारी कम हो रही है।
हालांक्रक, माता-वपता द्वारा तय क्रकए गए वववाह (ऄरें यड मैररज) की परं परा ऄभी भी भारतीय
समाज में प्रासंवगक है।
 पारं पररक रूप से पररवार युवा पीढ़ी को वशक्षा प्रदान करने की भूवमका वनभाता है। यद्यवप बढ़ते
श्रम-ववभाजन और काया के वववशष्टता के कारण ववशेषज्ञ संस्थाओं ने आस भूवमका का ऄवधग्रहण कर
वलया है।
 हालांक्रक पररवार के कायों में पररवतान के बावजूद अज भी कु छ काया पररवार हेतु वववशष्ट हैं यथा-
i) बच्चों का प्राथवमक सामावजकरण तथा ii) सामावजक वनयंत्रण की एजेंसी।
ऄंतर-व्यविगत संबध
ं (Inter-personal relations)
 वस्तुतः पारं पररक ऄवधकाररता संबंधी संरचना में बदलाव अया है। पररवार के मुवखया -
वपता/दादा, पररवार के अय ऄजाक के समक्ष ऄपने ऄवधकार खोने लगे हैं।
o एकल पररवारों में, वैवावहक वनयमों और शवियों के ववतरण में बदलाव अया है।
o पुरुषों के प्रवत मवहलाओं की ऄधीनता और बच्चों के प्रवत वपता की सख्त ऄनुशासनात्मक
भूवमका पररवर्थतत हो रही है।
o युवा पीढ़ी में व्यविवाद बढ़ रहा है। ईनमें से कइ पाररवाररक वहतों के वलए ऄपने व्यविगत
वहतों के बवलदान में ववश्वास नहीं करते हैं।
o यद्यवप प्रौद्योवगकी की पहुाँच के कारण दूरस्थ ररश्तेदारों के साथ संपकों में सुधार हुअ है।

6. जावत व्यवस्था पर प्रभाव (Impact on Caste System)


परं परागत जावत व्यवस्था शुद्धता और ऄशुद्धता के वसद्धांतों पर अधाररत है। आसमें वनम्नवलवखत
ववशेषताएं थीं:
 पदसोपान ।
 संपकों//संबंधों का पृथक्करण।
 व्यावसावयक स्तर पर श्रम-ववभाजन।
वैश्वीकरण के कारण, परं परागत जावत व्यवस्था में वनम्नवलवखत तरीकों से पररवतान अए हैं:
 वैश्वीकरण के कारण, अर्थथक ऄवसरों, वशक्षा और ईदार ववचारों का ववस्तार हुअ है, वजसके
पररणामस्वरूप जावत व्यवस्था कमजोर हुइ है।
 ऄंतर-जातीय वववाह ऄत्यवधक प्रचवलत हो रहे हैं और धीरे -धीरे आसे स्वीकृ त क्रकया जा रहा हैं।
 औद्योवगकीकरण के कारण श्रम का पारं पररक ववभाजन ववखंवडत हो रहा है; आसे वैश्वीकरण द्वारा
बढ़ावा क्रदया गया।
 अधुवनक संचार सुववधाओं के बढ़ते ईपयोग, वववभन्न जावतयों के लोगों के मध्य बढ़ते समन्वय के
कारण जावतवाद की भावना में कमी अइ है।
 वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप शहरीकरण में वृवद्ध हो रही है, वजसने जीवन के धमावनरपेक्ष स्वरूप
को सुववधाजनक बनाया है और आसी कारण जावत व्यवस्था के "संपकों के पृथक्करण" के पक्ष को
प्रभाववत क्रकया है।
 हालांक्रक, आन पररवतानों के बावजूद, जावत व्यवस्था ने ऄत्यवधक प्रवतरोध प्रदर्थशत क्रकया है और
यह ऄभी भी भारतीय समाज की एक महत्वपूणा ववशेषता के रूप में ववद्यमान है।

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7. वै श्वीकरण के सामावजक-अर्थथक प्रभाव
(Socio-economic Impact of Globalization)
वैश्वीकरण ने ववश्व बाजार में वववभन्न ऄथाव्यवस्थाओं के मध्य पारस्पररक वनभारता और प्रवतस्पधाा में
वृवद्ध की है। यह व्यापार के संदभा में वस्तुओं एवं सेवाओं तथा पूंजी के संचलन में परस्पर वनभारता के
रूप में पररलवक्षत होता है। आसके पररणामस्वरूप घरे लू अर्थथक ववकास पूणत ा ः घरे लू नीवतयों और
बाजार वस्थवतयों द्वारा वनधााररत न होकर घरे लू एवं ऄंतरराष्ट्रीय नीवतयों और अर्थथक वस्थवतयों से
प्रभाववत होते हैं। वतामान में भारत की सभी अर्थथक गवतवववधयों की क्रदशा और गहनता व्यापक रूप से
वैवश्वक ऄथाव्यवस्था द्वारा प्रबंवधत होती है।
सकारात्मक प्रभाव
 वैश्वीकरण की प्रक्रिया के साथ ऄथाव्यवस्था के ईदारीकरण और वनजीकरण संबंधी नीवतयों ने
भारतीय ऄथाव्यवस्था को व्यापक रूप से प्रभाववत क्रकया है। भारतीय ऄथाव्यवस्था ने आन
नीवतयों के प्रवत तीव्र और सकारात्मक प्रवतक्रिया प्रदर्थशत की है। भारतीय ऄथाव्यवस्था की
वृवद्ध दर 1980 के दशक की प्रवत वषा 5.29 प्रवतशत से बढ़कर 1991-92 से 2005-06 के
दौरान 6.06 प्रवतशत तक पहुाँच गयी। 2003-04 के बाद के कु छ वषों में भारतीय
ऄथाव्यवस्था की वार्थषक दर 8-9 प्रवतशत भी रही है।
 वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप ऄथाव्यवस्था में नवाचारों में वृवद्ध हुइ है और देश में स्टाटा-ऄप
संस्कृ वत को प्रोत्साहन वमला है।
 शेयर बाजार और ऄंतरााष्ट्रीय ऊण के माध्यम से वैवश्वक पूज ं ीगत संसाधनों तक पहुंच में वृवद्ध
हुइ है। वैवश्वक पूंजीगत संसाधनों तक पहुाँच राष्ट्रों और ईनके बाजारों की अर्थथक क्षमता पर
वनभार होती है।
 सावाजवनक क्षेत्र हेतु पूणा रूप से अरवक्षत ईद्योगों की संख्या में तीव्र गवत से कमी अइ है।
 सावाजवनक क्षेत्र के ईद्यमों में वववनवेश के वनणाय के पररणामस्वरूप दक्षता और योग्यता में
वृवद्ध हुइ है।
 भारत में पयाटन में वृवद्ध एवं पयाटन स्थलों के ववकास के पररणामस्वरूप ववदेशी भंडार में वृवद्ध हुइ
है।
 नगरीकरण और औद्योगीकरण में वृवद्ध हुइ है, वजसके पररणामस्वरूप नगरीय कें द्रों के ऄवनयोवजत
ववकास को बढ़ावा वमला है, साथ ही मवलन बवस्तयों के ववकास में भी वृवद्ध हुइ है।
 अइटी, दूरसंचार और ववमानन जैसे क्षेत्रों का ऄत्यवधक ववस्तार हुअ है। दूरसंचार क्षेत्र में एक
ईल्लेखनीय िांवत घरटत हुइ है। सुधार से पूवा के काल में, यह पूणत
ा ः कें द्र सरकार के वनयंत्रण में था
और प्रवतस्पधाा की कमी के कारण ‘कॉल चाजेज़’ भी बहुत ऄवधक थे। आसके ऄलावा, ववि की कमी
के कारण, सरकार कभी भी टेलीफोन की मांग को पूरा नहीं कर सकती थी। वस्तुतः, एक टेलीफोन
कनेक्शन की मांग करने वाले व्यवि को टेलीफोन कनेक्शन प्राप्त करने से पहले वषों तक प्रतीक्षा
करनी पड़ती थी।
 वैश्वीकरण का सबसे बड़ा योगदान भारतीयों की रूवच के ऄनुरूप वववभन्न ववशेषताओं वाले
ईत्पादों का ववकास और ईनकी गुणविा सुवनवित करना रहा है। वतामान में, क्रकसी वस्तु के चयन
हेतु ववस्तृत ववकल्प ईपलब्ध हैं वजसके फलस्वरूप ऄवधक प्रवतस्पधाा के कारण ईत्पादों की गुणविा
बेहतर हो गइ है।
 राष्ट्रों और ईनके बाजारों की अर्थथक क्षमता के अधार पर शेयर बाजार और ऄंतरराष्ट्रीय ऊण के
माध्यम से वैवश्वक पूज
ं ी संसाधनों तक पहुंच।
 वैश्वीकरण के कारण स्वास््य प्रौद्योवगकी (औषवधयों, वैक्सीन और वचक्रकत्सा ईपकरणों एवं
तकनीकी जानकाररयों) तक पहुंच में वृवद्ध हुइ है। वजसके फलस्वरूप स्वास््य देखभाल प्रणाली में
सुधार हुअ है। हालााँक्रक वैश्वीकरण ने आबोला जैसी संिामक बीमाररयों के प्रसार का बड़ा खतरा
भी ईत्पन्न क्रकया है।
 वैश्वीकरण ने भारत में वशक्षा क्षेत्रक को भी प्रभाववत क्रकया है। वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप
ववज्ञान अधाररत वैवश्वक ज्ञान के बेहतर अर्थथक प्रवतफल के कारण ईच्च वशक्षा की मांग में भी वृवद्ध

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हुइ है। भूमंडलीकृ त ववश्व में बेहतर रोजगार प्रावप्त के वलए ववश्वववद्यालय प्रवशक्षण की ऄत्यवधक
अवश्यकता हो गइ है। आसके ऄवतररि, सामावजक-राजनीवतक, जनसांवख्यकीय और लोकतांवत्रक
अदशा, पारं पररक रूप से ववश्वववद्यालयी वशक्षा से वंवचत समूहों को ईच्च वशक्षा तक पहुंच प्रदान
करने हेतु ववश्वववद्यालयों पर दबाव में वृवद्ध करते हैं। भारतीय ईच्च वशक्षा क्षेत्रक को ववदेशी
प्रवतस्पधाा के वलए खोलने से वशक्षा क्षेत्रक को और ऄवधक लाभ प्राप्त होने की संभावना है।
 सैद्धावन्तक रूप में, वैश्वीकरण द्वारा ववकासशील देशों में अर्थथक ववकास को बढ़ावा देने के कारण,
वनधानता को कम क्रकया जा सकता है। कु छ ववद्वानों ने तका क्रदया है क्रक 'व्यापार, ववकास हेतु
वहतकर है, ववकास वनधानों के वलए वहतकर है, ऄतः व्यापार, वनधानों के वलए वहतकर है (डॉलर
और िे , 2001)।’
ववकासशील देशों का ऄनुभव सामान्यतः आस ऄवधारणा का समथान करता है क्योंक्रक चीन, भारत
और ववयतनाम जैसे कइ तीव्र संवृवद्ध दर वाले देशों में वनधानता के स्तर में ईल्लेखनीय कमी अइ
है। हालांक्रक, कु छ अलोचकों ने तका क्रदया है क्रक चीन में वनधानता में कमी के वल ईसकी
ऄथाव्यवस्था की ऄसाधारण वृवद्ध के कारण थी। वास्तव में, ईप-सहारा ऄफ्रीका में वनरपेक्ष
वनधानता में एवं ऄन्य ऄवधकांश देशों में सापेक्ष वनधानता में वृवद्ध हुइ है।
 वैश्वीकरण ने हमारे दृवष्टकोण को ईदार बनाया है तथा ववश्व में लोगों, पररवस्थवतयों और समुदायों
से सम्बंवधत हमारी प्रवृवियों और पूवााग्रहों को कम क्रकया है।
नकारात्मक प्रभाव
 वैश्वीकरण के प्रभावस्वरूप भारतीय ऄथाव्यवस्था पूवी एवशयाइ संकट (1997), यूरोपीय संकट,
वैवश्वक वविीय संकट (2007-08) आत्याक्रद जैसे वैवश्वक संकटों के प्रवत ऄवधक सुभेद्य हो गइ।
 वैश्वीकरण ने कइ प्रवतवित कं पवनयों (एम्बेसडर कार ऄथवा क्रफएट कार अक्रद का वनमााण करने
वाले ईद्यम) को प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत क्रकया है, ये कं पवनयााँ स्थावपत वैवश्वक कं पवनयों से
प्रवतस्पधाा का सामना करने में ऄसफल रहीं।
 सीमा शुल्क में ऄत्यवधक एवं तीव्र कटौती ने भारतीय ईद्योगों के दायरे में वस्थत घरे लू बाजार के
एक बड़े भाग को छीनकर ईसे स्थावपत वैवश्वक अयातकों को हस्तांतररत कर क्रदया है।
 वैवश्वक प्रवतस्पधाा के समक्ष ऄपने ऄवस्तत्व के वलए संघषा करने हेतु भारतीय ईद्योगों ने वैवश्वक
प्रौद्योवगक्रकयों और स्वचावलत मशीनरी को ऄपनाकर स्वयं को श्रम गहन व्यवस्था से पूज ं ी गहन
व्यवस्था की ओर ववस्थावपत क्रकया है। आसके पररणामस्वरूप भारत में बेरोजगारी दर में ईच्च वृवद्ध
हुइ है। वतामान में, यह भारत सरकार के वलए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुइ है।
 वस्तुओं एवं सेवाओं के ईपभोिावाद में अियाजनक रूप से वृवद्ध हुइ है।
वस्तुतः वैश्वीकरण को सवोतम रूप से एक दोधारी तलवार के रूप में पररभावषत क्रकया जा सकता है।
आसके प्रभावस्वरूप भारतीय ईपभोिा सभी ईच्च गुणविा युि वैवश्वक ब्ांड प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं।
आसके ऄवतररि आसने भारत सरकार को ववश्व बैंक से ऊण प्राप्त करने में सक्षम बनाकर आसकी ववदेशी
मुद्रा संबंधी समस्या से भी वनपटने (हालांक्रक ऄस्थायी रूप से) में सहायता की है। हालांक्रक अलोचकों ने
भारतीय ऄथाव्यवस्था पर सरकारी वनयंत्रण में अइ ऄत्यवधक कमी तथा घरे लू ईद्योग को हुए नुकसान
को वैश्वीकरण की ऄसफलताओं के रूप में ईवल्लवखत क्रकया है।

7.1. भारत में रोजगार पर वै श्वीकरण का प्रभाव

(Impact of Globalization on Employment in India)


वैश्वीकरण व्यापार ईदारीकरण के माध्यम से, वनयाात एवं अयात को प्रोत्सावहत करने तथा वनवेश एवं
नवाचार हेतु बढ़ते प्रोत्साहनों के माध्यम से रोजगार की वस्थवत को प्रभाववत करता है। यह घरे लू वनवेश
के पूरक के रूप में प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश (FDI) को प्रोत्सावहत कर ऄथाव्यवस्था की वृवद्ध दर को गवत
प्रदान करता है। वैश्वीकरण को प्रायः घरे लू ईदारीकरण के साथ संबद्ध क्रकया जाता है, आसके

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पररणामस्वरूप रेड यूवनयनों की शवि में कमी अती है तथा यह ऄनौपचाररक संववदाकरण एवं
तालाबंदी (lock out) को प्रोत्सावहत करता है।
वैश्वीकरण के समथाकों का सदैव यही दृढ़ ववचार रहा है क्रक वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप श्रम गहन
वनयाात में महत्वपूणा वृवद्ध होगी वजससे ववकासशील देशों में रोजगार एवं अय सृजन को बढ़ावा
वमलेगा। आसके साथ ही, FDI के ऄत्यवधक प्रवाह के पररणामस्वरूप ग्रीनफील्ड क्षेत्रों में वनवेश में वृवद्ध
के साथ-साथ ववकासशील देशों में प्रत्यक्ष तथा ऄप्रत्यक्ष रोजगार और अय में भी त्वररत वृवद्ध होगी।
भारतीय संदभा में अर्थथक सुधारों के पिात ऄथाव्यवस्था और रोजगार के ववकास की दर में बढ़ोिरी
हुइ है, परं तु ऄभी भी दोनों क्षेत्रों में ववववधीकरण का ऄभाव है। ऄंतवैयविक अय और ऄंतर-क्षेत्रीय
अय, दोनों में ऄसमानताएं ईच्च रहने के साथ-साथ बढ़ी भी हैं। श्रवमकों के एक बड़े वगा के वलए रोजगार
की गुणविा की वस्थवत ऄत्यवधक वनम्नस्तरीय बनी हुइ है।
भारतीय संदभा में वनम्नवलवखत सबदु ईल्लेखनीय हैं:
 वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप श्रम के ऄनौपचारीकरण में वृवद्ध हुइ है। वैवश्वक प्रवतस्पद्धाा,
औपचाररक फमों को औपचाररक वैतवनक श्रवमकों को न्यूनतम वेतन एवं अश्वावसत काया या लाभ
के वबना ऄनौपचाररक रोजगार व्यवस्था में स्थानांतररत करने हेतु प्रोत्सावहत करती है। आसके साथ
ही आससे ऄनौपचाररक आकाआयों को भी श्रवमकों को न्यूनतम वेतन ऄथवा वबना क्रकसी ऄन्य लाभ
के पीस-रे ट (श्रवमकों द्वारा ईत्पाक्रदत प्रवत आकाइ के अधार पर भुगतान) या ऄनौपचाररक काया
व्यवस्था में स्थानांतररत करने हेतु बढ़ावा वमलता है।
 कृ वष और औद्योवगक क्षेत्रों में ऄनौपचाररक श्रवमकों की वास्तववक मज़दूरी पूवा की तुलना में तीव्र
गवत से बढ़ी है।
 सामान्यतः तथा ऄवधक महत्वपूणा रूप से ऄनौपचाररक क्षेत्र में, कु शल श्रवमकों के पक्ष में श्रम बल
की संरचना में बदलाव अया है। आसके पररणामस्वरुप संगरठत एवं ऄसंगरठत दोनों क्षेत्रों में श्रम
ईत्पादकता में तीव्र सुधार के संकेत प्राप्त हुए।
 श्रवमकों की ऄंतरााष्ट्रीय गवतशीलता: ऄंतरााष्ट्रीय सीमाओं से परे सम्पूणा ववश्व में श्रवमकों का प्रवास,
वैश्वीकरण की सबसे महत्वपूणा ववशेषताओं में से एक है।
o स्वतंत्रता प्रावप्त के पिात् से, भारत से प्रवास की दो प्रकार की प्रवृवि रही है। जहााँ तकनीकी
कौशल और व्यावसावयक ववशेषज्ञता प्राप्त व्यवियों ने औद्योगीकृ त देशों की ओर प्रवास क्रकया
है वहीं ऄकु शल एवं ऄद्धा कु शल श्रवमकों का मध्य-पूवा के तेल वनयाातक देशों की ओर प्रवाह
देखने को वमला है।
o हालांक्रक, 1990 के दशक के दौरान, मध्य पूवा में ऄकु शल और ऄद्धा कु शल श्रवमकों के स्थान
पर सेवा, संचालन (operations) और रखरखाव हेतु ईच्च कौशल प्राप्त श्रवमकों की
अवश्यकता के साथ श्रम मांग प्रवतरूप में एक स्पष्ट बदलाव देखा गया है।
o आसके ऄवतररि भारत से अइ.टी. एवं सॉफ्टवेयर सेवाओं के वनयाात में भारी वृवद्ध हुइ है।
o आन सभी ने भारतीय श्रम हेतु रोजगार के ऄवसरों में वृवद्ध की है, ववशेषत: तब जब देश में
ऄंग्रेजी भाषी लोगों का एक बड़ा समूह ववद्यमान है।
o आस प्रक्रिया में, भारतीय डायस्पोरा (जोक्रक ववश्व में सबसे बड़ा है) के वनरं तर ववप्रेषण ने देश
के भुगतान संतुलन में वस्थरता प्रदान की है।
 मवहला श्रम: ईदारीकरण के पिात कायाबल में मवहलाओं के ऄनुपात में ईल्लेखनीय वृवद्ध हुइ है।
 बाल श्रम: ऄवांछनीय होने के बावजूद सामावजक-अर्थथक वववशता के कारण बाल श्रम मुख्यतः
ग्रामीण एवं कृ वष गवतवववधयों में ऄभी भी ववद्यमान है। परन्तु कायाबल में 5 से 14 वषा की अयु के
बच्चों की भागीदारी में वगरावट अइ है। आस सन्दभा में प्रवतस्थापन प्रभाव (substitution effect)
को देखा जा सकता है, जो वयस्क मवहलाओं की वनयोजनीयता (employability) के पक्ष में
दृवष्टगोचर होता है।
 औद्योवगक संबध
ं : दबाव और टकराव के स्थान पर परामशा, सहयोग तथा सवासम्मवत का प्रयोग
बढ़ रहा है। यह श्रम क्रदवसों की हावन में अयी कमी के रूप में सामने अया है।

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7.2. ऄनौपचाररक क्षे त्र क पर वै श्वीकरण का प्रभाव

(Impact of Globalization on Informal sector)


ऄनौपचाररक क्षेत्रक में पुरुषों और मवहलाओं का ववशाल समूह सवम्मवलत है। यह समूह वनयवमत वेतन
और नौकरी की सुरक्षा के ऄभाव में जीवन यापन करता है। आसके ऄंतगात स्व-वनयोवजत एवं दैवनक
मजदूरी करने वाले श्रवमकों के साथ-साथ ऐसे वेतनभोगी कमाचारी भी शावमल हैं वजन्हें नौकरी की
सुरक्षा, पाररश्रवमक में संशोधन तथा ऄन्य लाभ ईपलब्ध नहीं हैं।

 वैश्वीकरण प्रायः सुरवक्षत स्व-रोज़गार को ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ऄवनवित स्व-रोज़गार की ओर


ववस्थावपत करता है, क्योंक्रक वनमााता और व्यापारी ऄपने सम्बद्ध बाज़ार क्षेत्रों को खो देते हैं।
 वववभन्न देशों में तीव्रता एवं सरलता से संचालन एवं काया करने में सक्षम बहुराष्ट्रीय कं पवनयां
वैश्वीकरण से लाभावन्वत होती हैं परन्तु यह सरलता से प्रवावसत होने में ऄक्षम श्रवमकों, ववशेषतः
ऄद्धा कु शल श्रवमकों को नकारात्मक रूप से प्रभाववत करती है। वैश्वीकरण, ऄद्धा कु शल श्रवमकों एवं
छोटे ईत्पादकों की सौदेबाजी क्षमता को कम कर तथा ऄत्यवधक प्रवतस्पधाा के माध्यम से दबाव में
वृवद्ध करता है।
 देश में कौशल/वशक्षा के ऄभाव के कारण औपचाररक क्षेत्रक में ऄवसरों की कमी तथा रोजगार
सृजन की धीमी गवत के कारण लोग रोजगार के वलए ऄनौपचाररक क्षेत्र की ओर जाने हेतु बाध्य
होते हैं।
 जैस-े जैसे ऄनौपचाररक ऄथाव्यवस्था में पुरुषों का प्रवेश बढ़ता है, मवहलाओं को आसके न्यूनतम
पाररश्रवमक वाले कायों की ओर धके ले जाने की प्रवृवि क्रदखती है।
 आस प्रकार, ऄथाव्यवस्था का वैश्वीकरण वनधानता, ऄनौपचाररकता तथा लैंवगकता के मध्य संबंधों
को मजबूत बनाता है।
 परन्तु वैश्वीकरण ऄनौपचाररक ऄथाव्यवस्था में कायारत वैतवनक श्रवमकों एवं स्व-वनयोवजत
पेशेवरों के वलए भी िमशः नइ नौकररयों एवं नए बाजारों के रूप में नए ऄवसरों का सृजन कर
सकता है।
 ग्लोबल कमोवडटी चेन के माध्यम से अईटसोर्ससग या सब-कं रैसक्टग करने वाले कइ प्रमुख ईद्योगों
की ईत्पादन तथा ववतरण प्रणाली का पूणत ा : पुनगाठन क्रकया गया है। आसका पररणाम यह है क्रक
ऄवधकावधक श्रवमकों को बहुत कम वेतन का भुगतान क्रकया जा रहा है तथा ईनमें से ऄवधकांश को
ईत्पादन की गैर-वेतन लागत को भी स्वीकार करना पड़ता है।

हालांक्रक, समाज के सबसे कमजोर वगों को आन ऄवसरों की प्रावप्त के वलए सक्षम बनाने हेतु गैर -
सरकारी, ऄनुसंधान संबंधी, सरकारी, वनजी क्षेत्र और ऄंतरााष्ट्रीय ववकास संगठनों में संलग्न संवेदनशील
प्रवतवनवधयों तथा ऄनौपचाररक ऄथाव्यवस्था में कायारत लोगों के मूलभूत संगठनों के मध्य सहयोगात्मक
प्रयास की अवश्यकता है।

7.3. कृ वष पर वै श्वीकरण का प्रभाव

(Impact of Globalization on agriculture)

कृ वष क्षेत्र के ईदारीकरण तथा मुि और वनष्पक्ष व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु भारत ने ववश्व व्यापार
संगठन (WTO) के एक सदस्य राष्ट्र के रूप में 1 जनवरी 1995 को ईरुग्वे दौर के समझौते पर हस्ताक्षर
क्रकया। WTO के तत्वाधान में हस्ताक्षररत ‘एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर’, कृ वष व्यापार में ऄनुवचत प्रथाओं
को रोकने और कृ वष क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को अरम्भ करने के वलए प्रथम बहुपक्षीय समझौता था।
भारतीय कृ वष की औसत वार्थषक वृवद्ध दर मंद रही है। ऄथाव्यवस्था के ईदारीकरण से पूवा 1980-1990
के दशक में यह वृवद्ध दर 3.1% थी। क्रकन्तु ईस समय से जनसंख्या की वार्थषक वृवद्ध दर के सापेक्ष कृ वष
की वार्थषक वृवद्ध दर में लगातार वगरावट अइ है। वृवद्ध दर में आस वगरावट के वलए कइ कारक
ईिरदायी थे जैसे - साख की कमी, ऄपयााप्त ससचाइ व्यवस्था और ऊणग्रस्तता, ऄप्रचवलत प्रौद्योवगकी
का वनरं तर ईपयोग, अगतों का ऄनुवचत ईपयोग और सावाजवनक वनवेश में वगरावट अक्रद।

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कृ वष क्षेत्र की तुलना में ऄथाव्यवस्था के गैर-कृ वष क्षेत्रों में हुइ तीव्र वृवद्ध के पररणामस्वरूप सकल घरे लू
ईत्पाद (GDP) में कृ वष के ऄंश में वगरावट अइ है। हालांक्रक GDP में कृ वष के योगदान में तीव्र वगरावट
दजा की गइ है परन्तु रोजगार में कृ वष के योगदान में ऄत्यंत मंद दर से वगरावट दजा की गइ है।
भारतीय कृ वष पर वैश्वीकरण के वनम्नवलवखत ईल्लेखनीय प्रभाव हैं:
 वैश्वीकरण के कारण क्रकसानों को परं परागत फसलों से कपास और तंबाकू जैसी वनयाात ईन्मुख
'नकदी फसलों' की कृ वष हेतु प्रोत्सावहत क्रकया गया। आन नकदी फसलों के वलए ईवारकों,
कीटनाशकों और ससचाइ के रूप में ऄपेक्षाकृ त ऄवधक अगत (आनपुट) की अवश्यकता होती है।
 फसलों और कृ वष क्षेत्र के ऄनुकूल कृ वष ईपकरणों का ईवचत ईपयोग, कृ वष को अर्थथक रूप से
व्यवहाया और लाभदायक बनाते हुए कृ वष अगतों के कु शल ईपयोग को प्रोत्सावहत करता है।
यद्यवप कृ वष मशीनीकरण में ऄत्यंत प्रगवत हुइ है तथावप सम्पूणा देश में आसके प्रसार में ऄभी भी
ऄसमानता व्याप्त है।
 भारत में विप ससचाइ जैसी कइ नवीन जल संरक्षक वववधयों को ऄपनाया गया।
 वनवााह कृ वष से पूज
ं ीवादी कृ वष और ऄनुबंध कृ वष की ओर िवमक पररवतान हुअ है।
 ववकवसत देश के बाजारों तक पहुंच का ववस्तार हुअ है। हालांक्रक भारतीय कृ षक के वलए ऄपने
ईत्पादों को वनम्न तकनीक और ववदेशी ईपभोिाओं द्वारा अरोवपत कठोर गुणविा मानकों के
कारण ववकवसत देशों में वनयाात करना करठन होता है (ईदाहरण के वलए 2014 में यूरोपीय संघ
द्वारा सैवनटरी और फाआटोसैनटे री अवश्यकताओं के कारण अम पर ऄस्थायी प्रवतबंध का
अरोपण)।
 मोनसेंटो और कारवगल (Cargill) जैसी बीज ईत्पादक बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों के प्रवेश के कारण
बीज की कीमतों में वृवद्ध हुइ है। बीज के पेटेंट ऄवधकारों से संबंवधत वववभन्न वववाद भी ववद्यमान
हैं। ऄत्यवधक ऊण ग्रस्तता के कारण कनााटक, पंजाब और हररयाणा के क्रकसानों द्वारा बड़े पैमाने

पर की गइ अत्महत्या, अगतों की बढ़ती लागत और लाभ पर वनम्न मार्थजन को प्रदर्थशत करती है।
 कृ वष वस्तुओं के व्यापार में वृवद्ध के कारण आनकी कीमतों में ईतार-चढ़ाव हुअ है।
 आससे कृ वष के मवहलाकरण (feminization of agriculture) ऄथाात कृ वष गवतवववधयों में
मवहलाओं की संलग्नता में वृवद्ध को प्रोत्साहन वमला है।

8. वै श्वीकरण और पयाा व रण
(Globalization and Environment)

वैश्वीकरण के प्रणेताओं ने ऄपने द्वारा सृवजत व्यवस्था के समक्ष ईत्पन्न सामावजक, जैववक और भौवतक
ऄवरोधों की ऄवहेलना की है। वैश्वीकरण के अलोचकों ने आस बात पर बल क्रदया है क्रक वैवश्वक मुि
व्यापार ईन सामावजक और अर्थथक पररवस्थवतयों को बढ़ावा देता है जो संभवतः ईसके स्वयं के
ऄवस्तत्व को कमजोर कर सकती हैं। जैववक और भौवतक सीमाकारी कारकों के बारे में भी यही कहा जा
सकता है - ववशेषकर, ऄल्पाववध में क्रकफ़ायती उजाा की घटती अपूर्थत के बारे में।
पयाावरण पर वैश्वीकरण के प्रभावों के ऄंतगात कृ वष में अनुवांवशक ववववधता की कमी (फसल की
क्रकस्मों और पशु नस्लों की हावन), जंगली प्रजावतयों का नष्ट होना, ववदेशज प्रजावतयों (exotic

species) का प्रसार, वायु, जल और मृदा प्रदूषण, त्वररत जलवायु पररवतान, संसाधनों का क्षय तथा
सामावजक एवं अध्यावत्मक व्यवधान शावमल हैं। परन्तु पयाावरण पर यह प्रभाव के वल ईपयुाि कारकों
तक ही सीवमत नहीं है।

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8.1. वै श्वीकरण द्वारा पयाा व रण को प्रभाववत करने के अयाम

(Ways in which Globalization affects environment)


 वैश्वीकरण ने ईत्पादों की खपत में वृवद्ध की है, वजसने पाररवस्थवतकीय चि को प्रभाववत क्रकया है।
बढ़ता ईपभोग वस्तुओं के ईत्पादन में वृवद्ध करता है, पररणामस्वरूप, पयाावरण पर दबाव में वृवद्ध
होती है।
 वैश्वीकरण ने कच्चे माल और खाद्य पदाथों के एक स्थान से दूसरे स्थान तक पररवहन में भी वृवद्ध
की है। आन ईत्पादों के पररवहन में ईंधन की बढ़ती खपत ने पयाावरण में प्रदूषण के स्तर में वृवद्ध की
है। आसके पररणामस्वरूप ध्ववन प्रदूषण और भूवम ऄवतिमण जैसी कइ ऄन्य पयाावरणीय समस्याएाँ
भी ईत्पन्न हुइ है। आसके ऄवतररि पररवहन से उजाा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर दबाव में भी
वृवद्ध होती है।
 ओजोन परत क्षरण और ग्रीनहाईस प्रभाव में वृवद्ध से ऄवतररि समस्याएाँ ईत्पन्न होती हैं।
 ईत्पादन के पररणामस्वरूप ईत्पन्न औद्योवगक ऄपवशष्टों को महासागरों में डंप (dump) कर क्रदया
जाता है। वजसके पररणामस्वरुप कइ ऄन्तजालीय जीवों की मृत्यु हो जाती है और समुद्र में ऄनेक
हावनकारक रसायनों का संकेन्द्रण हो जाता है। तेल टैंकरों से होने वाले तेल ररसाव (Oil spills) से
समुद्री पयाावरण के समक्ष खतरा ईत्पन्न होता है।
 वैश्वीकरण और औद्योगीकरण के कारण, मृदा में वववभन्न रसायनों का प्रवेश हुअ है। आन ववषाि
ऄपवशष्टों ने पौधों की ऄनुवांवशकी में पररवतान कर पौधों को ऄत्यवधक क्षवत पहुंचाइ है। आसके
फलस्वरूप भूवम पर ईपलब्ध संसाधनों पर दबाव में वृवद्ध हुइ है।
 ववश्व के वववभन्न भागों से गुजरने वाली सुरंग या राजमागा के वलए रास्ता बनाने के वलए पहाड़ों को
काटा जा रहा है। नए भवनों के वनमााण हेतु मागा प्रशस्त करने के वलए ववशाल बंजर भूवम का
ऄवतिमण क्रकया गया है।
 वैश्वीकरण से पाररवस्थवतक तंत्र एवं समाज की सुभेद्यता में वृवद्ध होती है तथा पाररवस्थवतक तंत्र
की प्रत्यास्थता में कमी अती है। वजसके फलस्वरूप ऄत्यवधक वनधान समुदायों की अजीववका खतरे
में पड़ गयी है।
यह रे खांक्रकत करना महत्वपूणा है क्रक वैश्वीकरण न के वल पयाावरण को प्रभाववत करता है बवल्क
पयाावरण भी वैश्वीकरण की गवत, क्रदशा और गुणविा को प्रभाववत करता है। जैसे: पयाावरणीय
संसाधन, अर्थथक वैश्वीकरण को बढ़ावा देते हैं। आसी प्रकार, वैवश्वक पयाावरणीय चुनौवतयों के प्रवत
सामावजक एवं नीवतगत ऄनुक्रियाएं ईन पररवस्थवतयों को सीवमत और प्रभाववत करती हैं वजनके
पररणामस्वरूप वैश्वीकरण होता है।

8.2. पयाा व रण द्वारा वै श्वीकरण को प्रभाववत करने के अयाम

(Ways in which Environment affects Globalization)


 प्राकृ वतक संसाधनों की कमी या/और प्रचुरता वैश्वीकरण के संचालक हैं, क्योंक्रक ये वैवश्वक बाजारों
में अपूर्थत और मांग के कारकों को प्रेररत करते हैं।
 पयाावरणीय सुधार के वलए अवश्यक लागत की पूर्थत हेतु ववकास के वलए अवश्यक अर्थथक
संसाधनों का ऄभाव ईत्पन्न हो सकता है।
 पयाावरणीय दबाव वैसे वैकवल्पक तकनीकी मागों को सक्रिय कर सकता है जो ऄन्यथा प्रकट नहीं
हो सकते, जैसे: वडमैटेररयलाआजेशन (संसाधन दक्षता), वैकवल्पक उजाा आत्याक्रद।
 राष्ट्रीय और ऄंतरराष्ट्रीय स्तर पर, पयाावरण संबंधी मानक व्यापार और वनवेश के पैटना को
प्रभाववत करते हैं।
वैश्वीकरण पर वतामान वाद-वववाद आसके पयाावरणीय अधार और संदभों से वभन्न हो गयी है।
पयाावरण और वैश्वीकरण के मध्य आन संबंधों के पुनः पररक्षण और पहचान की अवश्यकता है। आन
संबंधों की ईपेक्षा करना, वैश्वीकरण के पूणा ववस्तार एवं प्रकृ वत को गलत समझना तथा मानवता के
समक्ष अने वाली सवाावधक दवाबकारी पयाावरणीय चुनौवतयों के समाधान हेतु महत्वपूणा ऄवसरों पर
ध्यान न देने के समान है।

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9. अगे की राह (Way Forward)
वस्तुओं और ववचारों का ऄंतरााष्ट्रीय प्रवाह जारी रहेगा और आसे जारी रखना भी चावहए। क्रकन्तु
वैश्वीकरण का एकमात्र स्वीकाया रूप वही हो सकता है जो वैवश्वक खतरों के शमन तथा पयाावरण
संरक्षण, जीवन रूपों एवं सभ्यताओं को संरवक्षत करने के वलए सभी राष्ट्रों को एकजुट करता है।

10. ववगत वषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे
गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. वैश्वीकरण ने क्रकस प्रकार भारतीय संस्कृ वत को प्रभाववत क्रकया है? क्या आसे हमारे स्वदेशी
वशल्प एवं ज्ञान प्रणाली के समक्ष चुनौती ईत्पन्न कर दी है?
दृवष्टकोणः
 पहले भाग में संस्कृ वत क्या है, आसे संवक्षप्त में समझाआए। एक छोटी सी पररभाषा जैसे- “जीने
का तरीका” पयााप्त हो सकती है। आसके बाद यह समझायें क्रक यह वैश्वीकरण के कारण
प्रांरवभक तौर पर, तीन तरीकों से प्रभाववत हुइ है- संस्कृ वत का कु छ वहस्से पूणातयः नष्ट हो
गये, कु छ नये तत्व जैसे नये त्यौहार अक्रद आसके भाग बन गये तथा कु छ ववद्यमान (मौजूद)
तत्व संमृद्ध हो गये।
 दूसरा भाग बौवद्धक सम्पदा की चोरी, जैव चोरी (बायो पायरे सी) तथा स्थानीय कलाओं के
शोषण (बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों द्वारा सस्ते में खरीदकर मंहगा बेचना) के बारे में होगा।
 ऄंत में आस समस्या का सामना करने के वलए कु छ ईपाय जैसे पांरपररक ज्ञान की वडवजटल
लाआब्ेरी बनाना आत्याक्रद की चचाा करें ।
ईिर:
 वैश्वीकरण के संदभा में हुए सुधारों के सांस्कृ वतक अयामों पर वववभन्न मत हैं। वैश्वीकरण के
युग में भारतीय संदभा में हुए सांस्कृ वतक पररवतानों के तीन ववरोधी ववचारों को वचवन्हत क्रकया
गया है।
 समांगीकरण: आसका ऄथा वैवश्वक स्तर पर परस्पर वनभारता और परस्पर सम्बद्धता को बढ़ाने
के संदभा में है वजससे बढ़ते सांस्कृ वतक मापदंडो और समरूपता में वृवद्ध होगी, ईदाहरण के

वलए वैवश्वक मूल्यों (बाजार प्रवतस्पधाा, मानवावधकार, कमोवडक्रफके शन) की एकरूपता में
वृवद्ध; कोकोलाआजेशन (कोका कोला का ऄत्यवधक प्रचलन), वॉलमार्टटज़ेशन (वालमाटा का
ऄत्यवधक ववस्तार), कॉरपोरे ट संस्कृ वत, फास्ट फू ड चेन, इ-मनी आत्याक्रद की ऄवधारणा का
प्रसार होना।
 सांस्कृ वतक संघषा: बाजार-कें क्रद्रत वैश्वीकरण स्थानीय और क्षेत्रीय संस्कृ वतयों में ऄपनी जड़ें
मजबूत कर रहा है, वजसे वववभन्न लोगों द्वारा खतरें के रूप में देखा जाता है। पररणामस्वरूप,
वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव से बचाव के वलए पहचानों की दृढ़ता में वृवद्ध हुइ है, ईदाहरण के
वलए: बड़ों के द्वारा पविमी संस्कृ वत से प्रभाववत वलव-आन संबंधों या स्नेह के सावाजवनक
प्रदशान के ववरुद्ध दृढ़ता जैसी प्रवतक्रियायें।
 ग्लोकलाआजेशन: यह ऄंतर-स्थावनक संस्कृ वत के वमश्रण पर बल देता है, सांस्कृ वतक
ववषमांगता और संकरण को ऄवभव्यि करता है जैसे: मैकडोनलाइजेशन (मैकडॉनल््स द्वारा

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नवरावत्र अक्रद के समय दौरान शाकाहारी व्यंजन ईपलब्ध कराया जाना); एलोपैवथक और
होम्योपैवथक ईपचार दोनों को प्रयोग में लाना; ज्ञान अधाररत ऄथाव्यवस्था अक्रद।
 आसके ऄवतररि, हाल ही में भारतीय समाज लंबे समय से लुप्त संस्कृ वत के पुनप्राचालन का भी

साक्षी रहा है: जैसे योग, भावातीत ध्यान अक्रद।


 वैश्वीकरण को सामान्यतः सांस्कृ वतक साम्राययवाद स्थावपत करने के प्रयास के रूप में माना
जाता है और आस कारण आसे स्वदेशी वशल्प और ज्ञान प्रणावलयों के वलए एक खतरे के रूप में
देखा जाता है।
 ईदाहरणस्वरुप ऄनेक रं गमंच समूह वनवष्िय हो चुके है, पारं पररक बुनकर और वशल्पकार
प्रौद्योवगकी वनवेश में ईनकी ऄक्षमता के कारण ग्राहकों के पररवर्थतत प्रवृवत को ऄनुकूवलत
करने में ऄसफल रहे हैं।
तथावप ज्ञान तंत्र के क्षेत्र में वैश्वीकरण ने वास्तव में चुनौती पेश की है। भारत में वववभन्न रुपों में
पारं पररक ज्ञान तंत्र, ववशेष रूप से वचक्रकत्सा व कृ वष के क्षेत्र से संबंवधत ज्ञानी पीढ़ी दर पीढ़ी
स्थानांतररत होता था और आस प्रकार यह सुरवक्षत रहता एवं आसे ऄगली पीक्रढ़यों में स्थानांतररत
क्रकया जाता था। हाल ही में कु छ बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों के द्वारा तुलसी, हल्दी, रूद्राक्ष व बासमती
चावल के पेटेन्ट के प्रयासों ने हमें ऄपने पारं पररक ज्ञान तंत्र को सुरवक्षत रखने की अवश्यकता को
समझा क्रदया है। ऄपने स्थायी कलाओं व ज्ञान तंत्र को सुरवक्षत रखने के वलए भारत सरकार ने
समस्त पारं पररक ज्ञान को पहचानने व आसे वडवजटल रूप में पररवर्थतत करने की योजना शुरू की
है।
ऄतः वैश्वीकरण भारतीय संस्कृ वत, कला व ज्ञान के वलए सहायक होने के साथ ही ऄवहतकर भी है।
सरकार का यह किाव्य है क्रक वह ऐसी नीवत बनाए, जो ऄपने नागररकों के वलए वैश्वीकरण के
लाभों को बढ़ाए व दुष्प्रभावों को कम करे ।

2. तीव्र वैश्वीकरण ने भारतीय युवा पीढ़ी को रूपांतररत कर क्रदया है। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोणः
 ईिर, वैश्वीकरण का युवाओं के उपर प्रभाव पर के वन्द्रत होना चावहए न क्रक वैश्वीकरण के
सामान्य ववषय पर।
 वववरण देते समय सभी पहलुओं को शावमल क्रकया जाना चावहए, जैसे क्रक सांस्कृ वतक,
सामावजक के साथ-साथ अर्थथक पहलुओं की भी।
ईिर :

(नोट : आस मुद्दे के प्रमुख वबन्दुओं पर चचाा करने के वलए ईिर को ववस्तृत रूप में वलखा गया
है)
 भारत की कु ल अबादी में युवाओं की बहुलता है। आसवलए वैश्वीकरण के प्रवत भारत की
प्रवतक्रिया का महत्वपूणा कारण युवाओं की बढ़ती जनसंख्या है। भारतीय युवा वैश्वीकरण
के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही धारणाओं के वलए एक उजाा स्रोत के रूप में
काया करता है। वे वैश्वीकरण को आस प्रकार गले लगा रहे हैं, वजसकी वपछली पीढ़ी ने
कल्पना भी नहीं की थी।
 वविीय वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप शहरी गरीबी बढ़ रही है। शहरों में स्थानांतररत
लोगों में युवाओं की ऄवधकता है। युवा, पररवार की परम्परागत धारणाओं तथा ग्रामीण
क्षेत्रों से शहरां की ओर स्थानांतररत हो रहे हैं, वजसके पररणामस्वरुप शहरी गरीबी बढ़

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रही है। शहरों में स्थानांतररत लोगों में युवाओं की ऄवधकता है। युवा पररवार की
परम्परागत धारणाओं तथा ग्रामीण क्षेत्र के रोजगार के ऄवसरों को छोड़कर शहरी
रोजगार के ऄवसरों के प्रवत अकर्थषत हैं, आसमें वे ऄपनी रोजगार चुनाव के प्रवत अजादी
भी महसूस करते हैं।
 युवाओं को शहरों में भी ईच्च बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है, क्योंक्रक आन
ऄप्रवासी युवाओं में क्षेत्रीय या स्थानीय ऄथाव्यवस्था के तनाव के कारण अकषाण और
प्रवतकषाण की अन्तररक वस्थवत बनी रहती है। अधारभूत संरचनाओं की ऄनुपवस्थवत,
सीवमत संसाधनों के ऄप्रबंधन, भ्रष्टाचार और प्राकृ वतक अपदा की वस्थवत में समस्या और
ऄवधक गम्भीर हो जाती है। अपदा के दौरान ये सघन बसे क्षेत्र लगभग पूरी तरह से
वनजान क्षेत्रों में पररवर्थतत हो जाते हैं। धार्थमक, नागररक और नृजातीय वववाद भी शहरों
की अर्थथक संपदा को प्रभाववत करते हैं जो प्रत्यक्षतः युवाओं से संबवं धत है।
 भारत के छोटे से छोटे गााँव से लेकर बड़े शहरों तक के युवाओं की पहली महत्वाकांक्षा
धनी बनने की होती है। युवक आस लक्ष्य को वशक्षा और ईद्यमों के माध्यम से ऄर्थजत
करना चाहते हैं। आसमें लोकसेवा, ऄवभयांवत्रकी और वचक्रकत्सा जैसे ईच्च वेतनमान
रोजगार सबसे ययादा पंसद क्रकये जाते हैं।
 वतामान युवा पीढ़ी भौवतक महत्वकांक्षाओं के प्रवत ययादा अकर्थषत है जो क्रक वैवश्वक
ववचारों का पररणाम है और वे धीरे -धीरे पारम्पररक भारतीय बाजार और सादगी भरे
चलन और ववचारों का त्याग कर रहे हैं। ऄब युवा एक ऐसे वैवश्वक समाज की मांग करते
हैं, जो वैवश्वक ऄथाव्यवस्था का पूणा रुप से प्रवतवनवधत्व करता हो।
 गवतशील वैवश्वक अर्थथक ताकतों के प्रभाव के साथ-साथ वैश्वीकरण ने भारत की धनी
सांस्कृ वतक परम्परा में भी बदलाव ला क्रदया है। युवा ऄपने अपको वैवश्वक युवाओं के रूप
में देखता है एवं ऄपने अपको ऄपने जन्म समुदाय से ऄवधक वैवश्वक समुदाय का भाग
मानता है। प्रचवलत पािात्य संस्कृ वत को ऄपनाते हुए भारतीय समाज में भी ईसका
समावेशन हो रहा है। आससे पािात्य और भारतीय मान्यताओं का एक मजबूत संस्करण
तैयार हो रहा है, जो क्रक भारतीय युवाओं में स्पष्ट रूप से दृश्यमान हो रहा है।
 ईपभोिावाद ने सांस्कृ वतक ववश्वास और ररवाजों में बदलाव ला क्रदया है। पारम्पररक
भारतीय वस्त्र और पररधान युवाओं में कम लोकवप्रय है तथा ईनका झुकाव पािात्य
रीवत-ररवाजों की ओर हो रहा है। नवीनतम कारें , टेलीववजन, वबजली यंत्र, वस्त्रों अक्रद
का चलन काफी बढ़ चुका है। गरीब युवक आन प्रचारों से अकर्थषत होता है और आन्हें प्राप्त
न कर पाने की वस्थवत में कुं रठत हो जाता है। आस कुं ठा के पररणामस्वरुप युवाओं में
अपरावधक प्रवृवि बढ़ रही है।
 वैश्वीकरण के प्रभाव से पाररवाररक संस्थाएाँ भी ऄछू ती नहीं रही, आसके प्रभाव से
एकाकी या एकल पररवार का चलन बढ़ा है। युवा ऄब ऄपने दादा-दादी के ईतने करीबी
नहीं रहे वजतनी की हमारी वपछली पीढ़ी थी। आसके पररणामस्वरुप वह आनके साथ कम
समय वबताते हैं वजससे वे वंशानुगत सामावजक और पाररवाररक ज्ञान से वंवचत हो रहे
हैं।
 ऄवधकांश धार्थमक क्रिया-कलाप भी युवाओं के बीच महत्वहीन हो रहे हैं। वे धमा में
बदलावों को देखना पसंद करते हैं। पारम्पररक ववचारों को ऄपनाने के बजाय वे ईन्हें
ऄस्वीकार कर रहे हैं, क्योंक्रक ईन्हें आसमें कोइ मूल्य नजर नहीं अता ।
 आस प्रकार हम कह सकते हैं क्रक वैश्वीकरण के प्रभावों का मूल्यांकन ऄच्छे और बुरे प्रभाव
का वमश्रण है। अर्थथक वैश्वीकरण ने वशक्षा और रोजगार के ऄवसरों को काफी बढ़ाया है

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पर वहीं दूसरी तरफ गरीबों को गरीबी को ओर भी बढ़ाया है। पर यह कहना महत्वपूणा
है क्रक वैश्वीकरण को हम त्याग नहीं सकते। युवा अधुवनक प्रगवतशील ऄवसरों से
अनंक्रदत होता है और हो रहे ववकास का भागीदार बनना चाहता है। भारतीयों में
ऄवशक्षा को समाप्त करने, वशक्षण सुववधाओं का ववकास करने तथा व्यवसावयक प्रवशक्षण
आत्याक्रद को नवीन पद्धवत के अधार पर ईपलब्ध कराने के वलए प्रभावी रणनीवत बनाने
की अवश्यकता है।

3. क्या वैश्वीकरण “सामावजक ऄसमानताओं” को “अर्थथक ऄसमानताओं” में पररवर्थतत कर रहा

है? अलोचनात्मक मूल्यांकन कीवजए।


दृवष्टकोण:
 ईिर में सामावजक ऄसमानताओं तथा ईनके वैश्वीकरण के साथ संबंधों को पररभावषत
कीवजये ।
 तत्पिात ववद्याथी द्वारा अलोचनात्मक मूल्यांकन भी क्रकया जाना चावहए क्रक क्या वैश्वीकरण
वास्तव में सामावजक ऄसमानताओं को अर्थथक ऄसमानताओं में पररवर्थतत कर रहा है।
 ऄपने ईिर के समथान हेतु वैवश्वक और भारतीय संदभा में वववशष्ट ईदाहरण भी क्रदए जा सकते
हैं।
ईिर:
 सामावजक ऄसमानताएं ईन तरीकों को संदर्थभत करती है वजसमें सामावजक रूप से
पररभावषत श्रेवणयों (सलग, अयु, वगा तथा नृजातीयता जैसी ववशेषताओं के ऄनुसार) को

सामावजक ‘सुववधाओं’ जैसे क्रक श्रम बाजार तथा ऄन्य अय के स्त्रोतो, वशक्षा एवं स्वास््य सेवा
व्यवस्थाओं और राजनीवतक प्रवतवनवधत्व व सहभावगता तक पहुाँच के संबंध में वभन्न-वभन्न
ऄववस्थवतयों में रखा गया है।
 वैश्वीकरण की वतामान प्रक्रिया के पररणामस्वरूप राष्ट्रीय सरकारों की राष्ट्रीय नीवतयों तथा
नीवत-वनमााण प्रणाली का वैश्वीकरण हुअ है। ऄंतरााष्ट्रीय संगठनों तथा बहुराष्ट्रीय वनगमों के
दबाव में राष्ट्रीय सरकारों को ऄपनी ऄथाव्यवस्थाओं को पुनगारठत करना पड़ा है, जो मुि
व्यापार और सामावजक क्षेत्र के ऄल्प व्यय पर ऄवधक बल देने की मांग करते हैं। सरकारों को
वशक्षा, स्वास््य सेवा, स्वच्छता, पररवहन आत्याक्रद जैसे सामावजक क्षेत्रों पर व्यय में कटौती
करनी पड़ी है। ऄत: सामावजक ऄसमानताएं ववशेष रूप से ववकासशील ऄथाव्यवस्थाओं में
तीव्र वृवद्ध हो रही हैं, क्योंक्रक सामावजक न्याय सुवनवित करने में सरकार की भूवमका में कमी

अइ है।
 दूसरी तरफ वैश्वीकरण और आसकी ईदारीकरण एवं वनजीकरण की अनुषंवगक प्रक्रियाओं के
पररणामस्वरूप कु छ ही लोगों के पास धन का सके न्द्रण हो रहा है, क्योंक्रक अर्थथक
ऄसमानता ववकवसत तथा ववकासशील दोनों ववश्वों में ववस्ताररत है।
 साथ ही, यह वर्थद्धत अर्थथक ऄसमानता सलग, अयु, वगा तथा नृजावतयता पर अधाररत
सामावजक ऄसमानताओं के साथ सकारात्मक रूप से सहसंबंवधत है। आस पररघटना के
वनम्नवलवखत ईदाहरण हैं:
o श्रम बल का मवहलाकरण ऄथाात् वनम्न-वेतन नौकररयों, वस्त्र, शू-मेककग (shoe-

making), ऄद्धाचालक ऄसेम्बसलग जैसी नौकररयों तथा अवत्य क्षेत्र जैसी श्रम-कें क्रद्रत
या सेवा-गहन नौकररयों में मवहलाओं का सके न्द्रण।

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o श्रमबल का ऄस्थायीकरण या ऄनौपोचाररकरण श्रवमकों हेतु वनम्न वेतनों तथा ऄल्प
रोजगार सुरक्षा का कारण बना है।
o वृद्धजनों हेतु पेंशन और सामावजक सहायता के ऄन्य प्रकारों में कटौती।
o ववशेषतया पविमी देशों में प्रमुख नस्लीय समूहों तथा ऄल्पसंख्यक नस्लीय समूहों /
प्रवावसयों की अय मध्य ऄत्यवधक ऄंतर।
 वनष्कषा में यह तका क्रदया जा सकता है क्रक वैश्वीकरण न तो सामावजक ऄसमानताओं के
समावप्त का कारण बना है तथा न ही आसके रूपांतरण का। बवल्क वैश्वीकरण ने ऐसी वस्थवत
ईत्पन्न की है जहााँ एक सामावजक रूप से वंवचत व्यवि की अर्थथक रूप से वंवचत होने की
सम्भावना ऄवधक हो जाती है।

4. एक वगाववहीन समाज देने के बदले वैश्वीकरण ने वस्तुतः वववशष्ट वगा ववभाजन पैदा क्रकया है
एवं भारत में जावतगत पद्धवत को मजबूत क्रकया है। अलोचनात्मक ववश्लेषण करें ।
दृवष्टकोणः वनम्न ईप-प्रश्नों का ईिर देने की अवश्यकता हैः
 वैश्वीकरण क्या है?

 यह वगा ववभाजन क्रकस प्रकार ईत्पन्न करता है?


 वैश्वीकरण के युग में जावत प्रथा कहां तक पहुंची है या सफल है ?
ईिरः
वैश्वीकरण के ऄंतगात वस्तुओं, सेवाओं और पूज
ं ी का सीमाअेेें के अर-पार मुि प्रवाह होता
है। यह एक वनरं तर प्रक्रिया है और ववद्वानों और अंदोलनकतााओं के कु छ समूह वैश्वीकरण को
अर्थथक ईदारीकरण की एक सैद्धांवतक पररयोजना के रूप में देखते हैं जो रायय और व्यवियों
को और ऄवधक तीव्र बाजार बलों के सम्मुख प्रस्तुत कर देती है।
वैश्वीकरण के समथाकों का यह कहना है क्रक लोगों को और ऄवधक ऄवसर प्रदान कर,
वैश्वीकरण लोगों के बीच सामावजक और अर्थथक ऄसमानता घटाता है, और गरीबी व भूख
की समस्यायों को समाप्त करता है। यद्यवप आसके ववपरीत प्रभाव भी हुए हैं वजन्हें वनम्न रूप से
सूचीबद्ध क्रकया जा सकता है :
 जैसा क्रक भारत के वगनी सूचकांक द्वारा मापा गया है क्रक, वैश्वीकरण ने बढ़ती हुइ अय
ऄसमानताओं की ओर ऄग्रसर क्रकया है। आसने भारत में वगा संस्कृ वत को दृढ़ करने में
योगदान क्रदया है।
 वैश्वीकरण ने श्रम के ऄनौपचारीकरण/संववदात्मक स्वरूप को पैदा क्रकया वजसने
वेतनभागी (मध्यवगा), पूज
ाँ ीवादी (ईच्च वगा) और वनम्न वगों के मध्य ऄन्तर को बढ़ा क्रदया
है।
 ग्रामीण क्षेत्रों में पूज
ाँ ीवादी कृ वष में वृवद्ध हुइ है, वजसने पूज
ाँ ीवादी कृ षकों और खेवतहरों के
बीच और साथ ही भारत के वववभन्न क्षेत्रों के मध्य ऄसमानता को बढ़ा क्रदया है।
 वैश्वीकरण के कारण वववशष्ट मध्य वगा का ववकास हुअ वजसमें पेशेवरों (सूचना
प्रौद्योवगकी, बीपीओ अक्रद क्षेत्रों), ऄपेक्षाकृ त छोटे पूाँजीपवतयों और व्यापाररयों की संख्या
सवम्मवलत है। आस वगा ने स्वयं की ईपसंस्कृ वत ववकवसत कर ली है वजसमें ईपलवब्ध-
ईन्मुखता, ईच्च वशक्षा और ईपभोिावाद पर ध्यान क्रदया जाता है।

 भारत में जावत प्रथा, वगा संस्कृ वत के साथ वनवित समानताएं रखती है। आसवलए ईच्च वगा
या पूज
ाँ ीपवत क्रकसान पंजाब, हररयाणा और पविमी ईिर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पहले के

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मध्य वगा हैं। आसी प्रकार शहरी मध्य वगा पर पारं पररक ईच्च जावतयों जैसे ब्ाह्मणों और
वैश्यों का प्रभुत्व है जो वैश्वीकरण द्वारा वनम्न जावतयों (ऄनुसूवचत जावतयों) और
जनजावतयों के की कीमत पर पोवषत हो रही हैं।
 वैश्वीकरण ने सूचना प्रौद्योवगकी और आं टरनेट का भी ववकास क्रकया है वजसने यद्यवप
ऄप्रत्यक्ष रूप से जावत एकता को बढ़ाने और दृढ़ करने का काया क्रकया है, ईदाहरण के
वलए वैवावहक बेबसाआटें देश के वववभन्न भागों में समान जावत के दूल्हे खोजने में सहयोग
करती हैं। आसी प्रकार, जावत अधाररत फोरम, बेब और सामावजक मीवडया पर
कु कु रमुिों की भांवत बढ़ रहे हैं।
यद्यवप वैश्वीकरण ने कु छ हद तक समानता, स्वतंत्रता और हर मनुष्य की स्वाधीनता के मूल्यों
को बढ़ाया है। एक प्रकार से ये मूल्य भारत के जावतगत ढााँचे का ववरोध करते हैं जो परं परा,
ऄनुिम और ऄसमानता के वसद्धान्तों पर अधाररत है। साथ ही, जजमानी प्रणाली जो जावत
प्रथा का एक महत्वपूणा ऄवयव था, ईसने जनसंख्या के सभी प्रभागों के वलए रोजगार की
ईपलब्धता के साथ ऄपनी कु छ शवि को खो क्रदया है। आस प्रकार वैश्वीकरण का कु ल प्रभाव
जावत और वगा ववभाजन पर वमवश्रत रहा है।

5. “वैश्वीकरण का पररणाम सभी संस्कृ वतयों की समरूपता होगी।” भारत के समावजक-


सांस्कृ वतक एवं अर्थथक जीवन से ईदाहरण देते हुए कथऩ की अलोचनात्मक रूप से जांच करें ।
दृवष्टकोण :
यह प्रश्न, वैश्वीकरण की ववववध ऄनुक्रियाओं ऄथवा पररणामों की समझ के साथ-साथ
सांस्कृ वतक समरूपता/मानकीकरण से लेकर संकरण/ वैश्वीकरण तक का वववरण प्रस्तुत करने
एवं वैश्वीकरण की समझ प्रकट करने की मांग करता है।
 वैश्वीकरण की प्रक्रिया की चचाा करते हुए ईिर की भूवमका प्रस्तुत करें और यह समझाएं
क्रक कै से यह सांस्कृ वतक एकरूपता या समरूपता के प्रसार में सहायता करता है।
 आसके पिात यह चचाा करें क्रक वैश्वीकरण के आस प्रक्रिया से कै से कइ तरह के
पररणाम/ऄनुक्रियायें सामने अये हैं, ऄथाात (i) समरूपता (ii) वैश्वीकरण (iii) भारतीय
संस्कृ वत का पविमी देशों में प्रसार।
 ऄंत में संक्षेप में चचाा करें क्रक कै से वैश्वीकरण ने भारत की संस्कृ वत को नकारात्मक रूप से
प्रभाववत क्रकया है (क्योंक्रक प्रश्न अलोचनात्मक व्याख्या की मांग करता है) और तत्पिात्
ईिर का समापन करें ।
ईिर :
अर्थथक ईदारीकरण और वैश्वीकरण से, संसार एक “वैवश्वक गााँव” बन गया है। जैस-े जैसे
वैवश्वक संजाल के सृजन एवं समुदायों द्वारा सामावजक संबंधों का वैवश्वक स्तर पर प्रसार होता
है, संचार प्रौद्योवगकी और यातायात के साधन वैवश्वक दशाकों या ईपभोिाओं को मानकीकृ त
ईत्पादों की व्यापक श्रृंखला ईपलब्ध कराते हैं। समाज और ऄवधक समरूप हो जाते हैं। सब
एक जैसे बन जाते हैं।
भारत में, वैश्वीकरण के कारण अइ सांस्कृ वतक समरूपता को दो स्तरों पर देखा जा सकता है:

(i) सामावजक-सांस्कृ वतक स्तर: वैश्वीकरण के कु छ सामूवहक मूल्य, जैसे अधुवनकीकरण,


लोकतंत्र का प्रचार, ऄंग्रेजी का प्रचार, भोजन की अदतें (मैकडोनाल्ड संस्कृ वत, वपज़्ज़ा
संस्कृ वत), ईपभोिावाद (मॉल संस्कृ वत, भारत में वववभन्न ऄंतरााष्ट्रीय ब्ांडों की मजबूत
ईपवस्थवत) आत्याक्रद से एकरूपता अ गयी है और सभी जगहों पर ऄमेररकी संस्कृ वत और जीने

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का ढंग थोप क्रदया है। बहुत-से भारतीय रे स्तरां में ववश्व के वववभन्न भागों के भोजन ईपलब्ध
रहते हैं।
(ii) अर्थथक स्तर: बहुराष्ट्रीय कं पवनयों के प्रसार से, भारतीय अर्थथक जीवन और काया
संस्कृ वत में कॉरपोरे ट संस्कृ वत प्रवेश कर गयी है। प्रौद्योवगकी िांवत ने नये ऄवसरों के द्वार
खोल क्रदये हैं, वजससे भारत के मेरोपोवलटन शहरों में एक नये और उंचे वगा का जन्म हुअ जो
सॉफ्टवेयर कं पवनयों, बहुराष्ट्रीय बैंकों, स्टाक मार्ककट और ऄन्य सम्बद्ध क्षेत्रों में कायारि है।
वैश्वीकरण से न के वल पविमी और अधुवनक ववचारों को भारत में थोपने का काया हुअ है,
ऄवपतु आससे ग्लोकलाआजेशन (ववश्व और स्थानीय का वमश्रण) भी हुअ है। हम देख सकते हैं
क्रक सभी ववदेशी टेलीववजन चैनल, जैसे स्टार, MTV, चैनल V और काटूान नेटवका भी
भारतीय भाषाओाँ का प्रयोग कर रहे हैं। यहााँ तक की मैकडोनाल्ड भी भारत में के वल
शाकाहारी और वचकन ईत्पाद की ही वबिी कर रहा है। ईनके पास कोइ भी गौ-मांस का
ईत्पाद नहीं है जो ववदेश में बहुत लोकवप्रय है। नवरावत्र के क्रदनों में मैकडोनाल्ड शाकाहारी
व्यंजन प्रस्तुत करता है। संगीत के क्षेत्र में भी, ‘भांगड़ा पॉप’, आं डी-पॉप’ फ्यूजन संगीत और री-
वमक्स का ववकास और लोकवप्रयता देखी जा सकती है। बहुत-से ऄंग्रेजी वसनेमा को सहदी में
डब क्रकया जा रहा है ताक्रक ईनकी ववपणन क्षमता को बढ़ा कर ऄवधक से ऄवधक संख्या में
दशाकों तक पहुंचाया जा सके ।
वैश्वीकरण की प्रक्रकया से स्थानीय संस्कृ वतयों को समझने और ईसे सुरवक्षत रखने की प्रेरणा
भी बढ़ी है, वजससे भारतीय संस्कृ वत के पविम में प्रसार में सहायता भी वमली है। वैवश्वक

पयाटन भी पयाटकों की मांग पर ववववधता बनाये रखने के साथ, संस्कृ वतक पुनजाागरण और
समरूपता को प्रोत्साहन दे रहा है। भारतीय अध्यावत्मक और सांस्कृ वतक शवि जैसे योग,
अयुवेद, ध्यान, अध्यावत्मकता आत्याक्रद का भी प्रसार हो रहा है और आनका भी वैश्वीकरण हो
गया है। ईदाहरण के वलए श्री श्री रववशंकर, रामदेव ऄब “वैवश्वक-गुरु” हो गये हैं और

अध्यावत्मक ववचारों, प्राकृ वतक वचक्रकत्सा, योग आत्याक्रद के प्रसार में सहायता कर रहे हैं,
वजनकी लोकवप्रयता बढ़ती ही जा रही है और ववश्व भर से लोग आन्हें ऄपना रहे हैं।
परन्तु, वैश्वीकरण के पररणाम स्वरूप, भारतीय समाज और संस्कृ वत में ईग्र पररवतान अ रहे
हैं, वजनके कारण हैं– समकालीन पररवतान, जैसे संयुि पररवारों से एकल पररवार। ऄब एकल

पररवारों का चलन अम हो गया है, युवा वगा ऄत्यवधक संख्या में पविमी सभ्यता में रं गता
जा रहा है और ईनकी सोच में ऄब ईपभोिावाद हावी हो रहा है। पररवार के बड़े सदस्यों में
मूल्य अधाररत टकराव ऄब ईन्हें जेनरे शन गैप की ओर ले जा रहा है। कइ कारणों से वववाह
टू ट रहे हैं, जैसे अधुवनक जीवनशैली, व्यवसाय संबंधी अंकक्षाएं और ऄवास्तववक ऄपेक्षाएं।
संचार माध्यम, टेलीवजन चैनल या मास मीवडया, आं टरनेट, FTV-MTV संस्कृ वत आत्याक्रद पर
प्रायः यह अरोप लगता रहा है क्रक वे भारतीय समाज, ववशेषकर युवा वगा को सांस्कृ वतक
ववकृ वत की ओर ले जा रहे हैं।
आस प्रकार, भारतीय संस्कृ वत पर वैश्वीकरण के नकारात्मक पररणाम होने पर भी हम यह कह
सकते हैं क्रक संस्कृ वत को एक वस्थर या स्थायी संस्था के रूप में नहीं देखा जा सकता है ऄन्यथा
यह लड़खड़ा कर वगर जाएगी या सामावजक पररवतानों में दौर में भी स्थावर बनी रहेगी।
वतामान में भी वजसकी ऄवधक सम्भावना है, वह यह क्रक वैश्वीकरण से न के वल नइ परम्पराओं
का वनमााण होगा ऄवपतु वैवश्वक परम्पराओं का भी वनमााण होगा।

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6. भारत में मास मीवडया पर वैश्वीकरण के प्रभाव की चचाा कीवजए। साथ ही परीक्षण कीवजए
क्रक क्या वसनेमा समाज को प्रभाववत करता है या क्रफर क्या समाज से वसनेमा प्रभाववत होता
है।
दृवष्टकोण:
 सवाप्रथम, वैश्वीकरण का पररचय दीवजए और भारत में आसके ववकास को संक्षप
े में बताइए।
 तत्पिात ववश्लेषण कीवजए क्रक आसने क्रकस तरह मास मीवडया के वववभन्न रूपों को प्रभाववत
क्रकया है।
 ऄंत में समाज पर वसनेमा के प्रभावों और वसनेमा पर समाज के प्रभावों का ववश्लेषण कीवजए।
ईिर:
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है वजसके द्वारा वववभन्न संस्कृ वतयां, समाज और ऄथाव्यवस्थाएाँ
व्यापार और संचार के एक वैवश्वक नेटवका में एकीकृ त हो जाती हैं। भारत में वैश्वीकरण 1990
के दशक में ऄथाव्यवस्था के ईदारीकरण के साथ अया। आसने ईपभोग के वलए ईपलब्ध
मीवडया सामग्री की गुणविा और मात्रा में भारी वृवद्ध द्वारा मीवडया पररदृश्य को बड़े पैमाने
पर बदल क्रदया।
मास मीवडया के वववभन्न रूप ऄलग ऄलग तरीकों से वैश्वीकरण से प्रभाववत हुए हैं:
 सप्रट मीवडया - दुवनया भर की सप्रट मीवडया जैसे समाचार पत्र, पवत्रकाओं, और पुस्तकों की
असान ईपलब्धता ने जानकारी के प्रसार में बेहद मदद की है। आसमें कॉपीराआट ईल्लंघन,
पत्रकाररता के मानकों के मुद्दे, प्रकाशन गृहों के ईद्योगपवतयों और राजनेताओं द्वारा स्वावमत्व
अक्रद संबंवधत मुद्दे शावमल हैं।
 प्रसारण मीवडया - ऄथाव्यवस्था के ईदारीकरण और वैवश्वक प्रवतस्पर्थधयों की संख्या में
ऄनुषंगी वृवद्ध ने ईपभोिाओं को और ऄवधक ववकल्प देते हुए भारतीय और ववदेशी दोनों
प्रकार के टेलीववजन चैनलों की संख्या में चर-घातांकी वृवद्ध की है।
o भारतीय वसनेमा संस्कृ वत, वशक्षा, मनोरं जन और प्रचार का एक शविशाली वाहक बन
गया है।
o वैश्वीकरण के स्थानीय लोकाचार के साथ वमश्रण ऄथाात ग्लोकलाआज़ेशन
(glocalisation) के कारण भारतीय टेलीववजन ईद्योग को बढ़ावा वमलना।
o ऄन्य देशों के वनवावसयों तक पहुाँचने में ऑल आं वडया रे वडयो की भूवमका। ईदाहरण के
वलए "अकाशवाणी मैत्री"
प्रसारण मीवडया की चुनौवतयों में पत्रकाररता और खोजी ररपोर्टटग की बहुतायत, सांस्कृ वतक
साम्राययवाद और कु छ मीवडया घरानों में शवि का के न्द्रीकरण शावमल हैं।
 वडवजटल मीवडया आं टरनेट और मोबाआल मास मीवडया - भारत में आं टरनेट तेजी से मास
मीवडया का कें द्र बनता जा रहा है। आं टरनेट ने फे सबुक, वट्वटर, आन्स्टाग्राम, जैसी सोशल
वेबसाआटों के माध्यम से सोशल स्पेस पर कब्जा करके सामावजक संपका के पारं पररक
तरीकों को प्रभाववत क्रकया है, और साथ ही साथ साआबर ऄपराध और धोखाधड़ी अक्रद
खतरों को भी बढ़ा क्रदया है।
वसनेमा का समाज पर प्रभाव या समाज पर वसनेमा का प्रभाव
वनस्संदह
े वसनेमा समाज को स्वयं पर प्रवतसबवबत करता है। क्षेत्र और समय के साथ वसनेमा के
ववषय पररवर्थतत होते हैं। ईदाहरण के वलए, अजादी के बाद भारतीय क्रफल्में लोकतंत्र की
शैशवावस्था के बढ़ते ददा को प्रदर्थशत करती थीं जबक्रक 1970-80 के दशक में तंत्र के ववरुद्ध
अम अदमी के संघषा को क्रदखाती थीं।
दूसरी तरफ वसनेमा संस्कृ वत के ववस्तार द्वारा और ऄवशक्षा, भ्रष्टाचार, सलग ऄसमानता,
पयाावरण क्षरण, सांप्रदावयकता अक्रद संवेदनशील और वववादास्पद ववषयों के बारे में

जागरूकता पैदा करके समाज को प्रभाववत भी करती हैं। हालांक्रक कभी कभी आससे ऄपराध,

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ववशेष रूप से बाल ऄपराध को बढ़ावा वमलता है, आसवलए संदश
े सही तरीके से लवक्षत दशाकों
को ही पहुाँचे , ऐसे माध्यम के रूप में आसे क्रफल्टर करने की अवश्यकता है।

7. यद्यवप वैश्वीकरण के कारण मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसरों में वृवद्ध हुइ है, लेक्रकन
आसने मवहला कर्थमयों के वलए चुनौवतयों की एक नयी श्रेणी भी ईत्पन्न की हैं। ईदाहरणों
सवहत चचाा कीवजए।
दृवष्टकोण:
 वैश्वीकरण की पररभाषा और समग्र रुप से भारतीय समाज पर आसके प्रभाव का संक्षेप में
वणान कीवजए।
 मुख्य भाग में, वैश्वीकरण के बाद मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसरों की वस्थवत और
ववकास की चचाा कीवजए।
 प्रासंवगक ईदाहरणों के साथ बदलते अर्थथक पररदृश्य में मवहला कर्थमयों के समक्ष अने वाली
चुनौवतयों के वववभन्न रूपों पर प्रकाश डावलए।
 आन चुनौवतयों को दूर करने के वलए कु छ ईपाय सुझाएं, ताक्रक अने वाले भववष्य में
वैश्वीकरण द्वारा प्रदान क्रकए गए लाभों का लाभ ईठाने के वलए मवहलाओं को सक्षम बनाया
जा सके ।
ईिर:
 वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है वजसमें लोग और देश, व्यापार, श्रम, सूचना-प्रौद्योवगकी,
यात्रा, सांस्कृ वतक अदान-प्रदान और संचार माध्यमों द्वारा अर्थथक और सांस्कृ वतक रूप से
एकीकृ त हो रहे हैं। भारतीय समाज के ऄन्य वगों के ऄलावा, वैश्वीकरण की लहर ने मवहलाओं
के अर्थथक और सामावजक जीवन को गहराइ से प्रभाववत क्रकया है। आसने मवहला कर्थमयों के
वलए ऄवसर के कइ द्वार खोल क्रदए हैं-
o औपचाररक क्षेत्र- वववभन्न बहुराष्ट्रीय कं पवनयों ने मवहलाओं के वलए कइ अर्थथक द्वार
खोल क्रदए हैं, वजसने ईन्हें ऄपेक्षाकृ त ऄवधक वस्थर और अर्थथक रुप से स्वतंत्र बना क्रदया
है।
o ऄनौपचाररक क्षेत्र- सुदढ़ृ व्यापार और वनयाात प्रवाह के कारण मुख्य अर्थथक गवतवववधयों
में मवहलाओं के समावेशन में महत्वपूणा ढंग से वृवद्ध हुइ है। कच्छिाफ्ट (kutchcraft)
110 से ऄवधक मवहला वशल्पकारों का संगठन है, वजसने 6000 नौकरी के ऄवसर पैदा
क्रकए हैं, क्योंक्रक भारत ने वैश्वीकरण के रास्ते पर चलना प्रारं भ कर क्रदया है।
o नइ नौकररयों और ईच्च भुगतान ने ईच्च अत्म-ववश्वास, अर्थथक स्वतंत्रता और वनणायन
क्षमता, पररवार और ववि के सामंजस्य को स्थावपत क्रकया है। आसने सलगों के बीच
समानता को प्रोत्सावहत क्रकया है और सलग रुक्रढ़वाक्रदता को चुनौती दी है।
 वैश्वीकरण का एक ऄन्य स्याह पक्ष भी है और साथ ही आसके कारण वनम्नवलवखत चुनौवतयों
को भी देखा गया है-
o पाररश्रवमक में ऄंतर और ऄथाव्यवस्था के ऄनौपचाररक क्षेत्र में कै ररयर के अगे बढ़ने की
कम गवतशीलता अक्रद के रूप में व्याप्त सलग ऄसमानता। पुरुषों की तुलना में मवहलाओं
में बेरोजगारी, न्यून बेरोजगारी और ऄस्थायी काम ऄवधक है।
o स्वास््य खतरे - चूंक्रक काम की ईपलब्धता ववशेष रूप से और ऄसंगरठत क्षेत्र में कम है,
आसवलए मवहलाओं को 12 घंटे तक काम करने के वलए मजबूर क्रकया जाता है, वजससे
ईनमें श्वसन समस्याएं, पैवल्वक सूजन, अक्रद बीमाररयां ईत्पन्न होती हैं।
o वपतृसिात्मक रवैया और सांस्कृ वतक मानदंड- वैश्वीकरण द्वारा ऄन्य चुनौवतयां प्रायः
सहसा, यौन-ऄपराध, घरे लू और कायास्थल ईत्पीड़न अक्रद के रूप में प्रकट हुइ हैं।

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o सलग ऄसंवद
े नशीलता- मातृत्व लाभ और न्यूनतम मजदूरी प्रावधान शायद ही कभी लागू
होते हैं।
o रावत्र में काम करना- ऄपयााप्त पररवहन सुववधाओं और कॉल सेंटरों और EPZs में काम
करने वाली मवहलाओं के प्रवत सुरक्षा की कमी ईन्हें ऄपराधों के प्रवत ऄवधक संवेदनशील
बना देती है।
o यंत्रीकरण- कइ पारं पररक ईद्योग जहां मवहलाएं बड़ी संख्या में काम करती हैं, जैस-े
हथकरघा और खाद्य प्रसंस्करण अक्रद क्षेत्रों में मशीनों की शुरुअत और ववद्युत् से चलने
वाला करघा अक्रद के कारण रोजगार की संख्या में कमी अइ है।
o ऄनौपचारीकरण: 95 प्रवतशत मवहला श्रवमक ऄसंगरठत क्षेत्र में काम करती हैं।
वैश्वीकरण ने कइ बहुराष्ट्रीय कं पवनयों को भारत जैसे सस्ते श्रवमक प्रधान देशों से
ईत्पादन अईटसोर्ससग के वलए प्रेररत क्रकया है। ईदाहरण के वलए- खेल, वस्त्र अक्रद। आन
मवहलाओं को श्रम कानूनों या यूवनयनों के तहत ईनकी समस्याओं को सुलझाने के वलए
कोइ सुरक्षा नहीं है।
भारत में सकल घरे लू ईत्पाद 8 % तक बढ़ सकता है, यक्रद श्रवमकों के मवहला/ पुरुष ऄनुपात

को 10% तक बढ़ा क्रदया जाए। लंबे समय में जोवखमों को कम करने के वलए मवहलाओं के
कौशल, नवाचारों, नीवतयों, बीमा ईत्पादों को ववकवसत करके वैश्वीकरण के नकारात्मक
प्रभावों को कम करना अवश्यक है, ताक्रक ईनके अर्थथक और सामावजक सशविकरण के वलए
एक स्थायी वातावरण तैयार क्रकया जा सके ।

11. ववगत वषों में सं घ लोक से वा अयोग (UPSC) द्वारा पू छे


गए प्रश्न
(Past Year UPSC Questions)
1. भारत की वृद्ध जनसंख्या पर वैश्वीकरण के प्रभावों की गहनता से जांच कीवजए।

2. भारत में मवहलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की चचाा कीवजए?


3. क्रकस सीमा तक वैश्वीकरण ने भारत की सांस्कृ वतक ववववधता के मूल संरचना को प्रभाववत
क्रकया है?ववश्लेषण कीवजए।

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