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Indian Society Hindi Vision
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भारतीय समाज
नगरीकरण
10. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेथट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 16
11. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 28
1. पररचय (Introduction)
नगरीकरण, िाथति में शहर बनने, शहरों की ओर प्रिास करने, कृ वष के थथान पर शहरों में प्रचवलत
ऄन्य सामान्य व्यिसाय जैसे क्रक व्यापार, विवनमातण, ईद्योग और प्रबंधन को ऄपनाने तथा आन्हीं के
ऄनुरूप व्यिहार प्रवतमानों में पररिततन लाने की प्रक्रिया है। यह ऄंतसंबंधों की सम्पूणत व्यिथथा में
विथतार की प्रक्रिया है, वजसके द्वारा जनसंख्या थियं को िास थथान में बनाए रखती है।
कथबों और नगरों के अकार में िृवि के पररणामथिरूप नगरीय जनसंख्या में बढ़ोत्तरी होना, नगरीकरण
का ऄत्यंत महत्िपूणत अयाम है। प्राचीन काल में रोम और बगदाद जैसे कइ प्रमुख नगर रहे हैं, क्रकन्तु
जब से औद्योगीकरण तथा औद्योवगक ईत्पादन में िृवि हुइ है, नगरों का ऄसाधारण रूप से विकास हुअ
है। ऄत: कहा जा सकता है क्रक िततमान में नगरीकरण हमारे समकालीन जीिन का एक ऄत्यंत
महत्िपूणत ऄंग बन गया है।
िल्डत ऄबतनाआजेशन प्रॉथपेक्ट्स, 2014 के ऄनुसार विि की नगरीय जनसंख्या का अधा भाग कु छ ही
देशों में वनिास करता है। विि में सिातवधक नगरीय जनसंख्या (758 वमवलयन) चीन में िास करती है
तथा ईसके पश्चात् भारत (410 वमवलयन) का थथान अता है। आन दो देशों में विि की नगरीय
जनसंख्या का लगभग 30 प्रवतशत वनिास करता है। आन दोनों देशों के साथ यक्रद संयुक्त राज्य ऄमेररका
(263 वमवलयन), ब्राज़ील (173 वमवलयन), आं डोनेवशया (134 वमवलयन), जापान (118 वमवलयन)
तथा रूस (105 वमवलयन) की नगरीय जनसंख्या को वमला दें तो ये सवम्मवलत रूप से विि की नगरीय
जनसंख्या के अधे से ऄवधक भाग का प्रवतवनवधत्ि करते हैं।
भारत में नगरीकरण मुख्यत: थितंत्रता पश्चात् की पररघटना है। आसका मुख्य कारण भारत द्वारा
ऄथतव्यिथथा की वमवित प्रणाली का ऄपनाया जाना है वजसने वनजी क्षेत्र के विकास को बढ़ािा क्रदया।
भारत में नगरीकरण बहुत तीव्र गवत से जारी है। 1901 की जनगणना के ऄनुसार भारत की नगरीय
जनसंख्या 11.4% थी। यह 2001 की जनगणना में बढ़कर 28.53% तथा 2011 की जनगणना में
30% के पार पहुँच गइ। िततमान में भारत की नगरीय जनसंख्या 31.16% है।
आस शब्द का प्रयोग पहली बार 1971 की जनगणना में क्रकया गया था। प्राय: बड़ी रे लिे कॉलोवनयाँ,
वििविद्यालय पररसर, बन्दरगाह क्षेत्र, सैन्य पररसर आत्याक्रद क्रकसी नगर या कथबे की सांविवधक सीमा
के दायरे में नहीं अते परन्तु आनसे संलग्न क्षेत्र होते हैं। ऐसे क्षेत्र थियं में नगरीय क्षेत्र के रूप में मान्यता
प्राप्त करने के योग्य नहीं होते, परन्तु यक्रद िे संलग्न नगर या कथबे के साथ वनरं तर विथताररत होते हैं तो
ईन्हें नगरीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देना यथाथतिादी वसि हो सकता है। ऐसी बवथतयां अईटग्रोथ
(बवहबति) के रूप में पररभावषत की जाती हैं तथा एक सम्पूणत गाँि ऄथिा गाँि के एक भाग को
समावहत कर सकती हैं। ऐसे नगर ऄपनी अईटग्रोथ के साथ एक नगरीय आकाइ के रूप में माने जाते हैं
तथा ‘नगरीय संकुल’ कहलाते हैं।
यह क्रकसी नगर में या आसके अस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीकरण की विशेषताओं के ऄत्यवधक
विथतार को संदर्तभत करता है। यह नगरीय विवशष्टताओं के ऄत्यवधक विकास का पररणाम है। नगरीय
गवतविवधयों और व्यिसायों के दायरे में विथतार, ईद्योगों जैसे वद्वतीयक कायों के ऄत्यवधक ऄन्तिातह,
एक जरटल नौकरशाही के वन्ित प्रशासवनक नेटिकत के िृविशील एिं व्यापक विकास, जीिन की बढ़ती
कृ वत्रमता ि यंत्रीकरण तथा वनकटिती ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय लक्षणों के प्रिेश के कारण, ऄवत-
नगरीकरण धीरे -धीरे क्रकसी समुदाय के रीवत-ररिाजों एिं परम्परािादी गुणों को प्रवतथथावपत कर देता
है। मुंबइ तथा कोलकाता ऐसे नगरों के प्रमुख ईदाहरण हैं।
यह क्रकसी नगर के ऄवत-नगरीकरण से घवनष्ठ रूप से संबंवधत है। जब क्रकसी नगर की जनसंख्या में
ऄत्यवधक िृवि (ओिर िाईडडग) होती है तो आसके पररणामथिरूप ईप-नगरीकरण की घटना घरटत
होती है। क्रदल्ली आसका प्रतीकात्मक ईदाहरण है। ईप-नगरीकरण से तात्पयत क्रकसी नगर के वनकटिती
ग्रामीण क्षेत्र का नगरीकरण है। यह वनम्नवलवखत विशेषताओं को प्रकट करता है-
भूवम के ‘नगरीय (गैर-कृ वषगत) ईपयोग’ में तीव्र िृवि,
नगर के अस-पास के क्षेत्रों का ईसकी नगरपावलका की सीमा में समािेशन तथा
नगर तथा ईसके वनकटिती क्षेत्रों के मध्य सभी प्रकार के गहन संचार साधन।
यह एक जनांक्रककीय तथा सामावजक प्रक्रिया है वजसमें लोग नगरीय क्षेत्र से ग्रामीण क्षेत्र की ओर
प्रथथान करते हैं। पहली बार यह अंतररक शहर में संसाधनों के ऄभाि तथा ऄत्यवधक भीड़-भाड़ (ओिर
िाईडडग) की प्रवतक्रिया के पररणामथिरूप घरटत हुअ था। प्रवत नगरीकरण तब घरटत होता है जब
कु छ बड़े नगर ऐसी ऄिथथा में पहुँच जाते हैं, वजसमें ईनकी िृवि रुक जाती है या िाथति में ईनके
2011 में जनगणना नगर की एक निीन पररभाषा विकवसत हुइ है। ‘जनगणना नगरों’ िाला यह
नगरीय िगीकरण भारत के छोटी कृ षक बवथतयों तथा बड़े क़थबाइ बाजार के जैसी बवथतयों (वजनमें
तीव्र और ऄकथमात िृवि हो रही है) के मध्य ऄंतर थथावपत करने में सहायक है।
एक जनगणना नगर के रूप में िगीकृ त होने के वलए क्रकसी गाँि को वनम्नवलवखत तीन मानदंडों को पूरा
करना ऄवनिायत है:
ईसकी न्यूनतम जनसंख्या 5000 हो,
न्यूनतम जनसंख्या घनत्ि 400 व्यवक्त प्रवत िगत क्रकमी हो, और
पुरुष कायतशील जनसंख्या का कम से कम 75 प्रवतशत गैर-कृ वष गवतविवधयों में संलग्न हो।
ऄवधवनयम द्वारा प्रदत्त ऄवधकारों का ऄपूणत हथतांतरण हुअ है। आसके ऄवतररक्त, के िल कु छ ही शहरों
द्वारा 2030 माथटर प्लान को ऄपनाया गया है। आस माथटर प्लान के तहत ईच्चतम पररिहन भार,
वनम्न अय िगत हेतु सथते अिास की अिश्यकताओं और जलिायु पररिततन संबंधी प्रािधान क्रकए गए हैं।
सामान्यतः, ऐवतहावसक रूप से नगरपावलका और राज्य थतर पर नगरीय सुधारों और पररयोजनाओं को
वनष्पाक्रदत करने की क्षमता ऄपयातप्त रही है।
2011 की जनगणना के ऄनुसार, भारत की कु ल जनसंख्या का 31.1% भाग ऄथातत 377 वमवलयन लोग
नगरीय क्षेत्रों में वनिास करते हैं। यूनाआटेड नेशंस हैवबटैट िल्डत वसटी 2016, ररपोटत का ऄनुमान है क्रक
2015 में भारत की नगरीय जनसंख्या 420 वमवलयन तक पहुंच चुकी थी।
1981-2001 की ऄिवध में, भारत में नगरीकरण मुख्यतः शहरों की जनसंख्या में प्राकृ वतक िृवि
(लगभग 60%) से प्रेररत था। आसके पश्चात् ग्रामीण शहरी प्रिास, शहरों की सीमाओं का विथतार और
ग्रामीण क्षेत्रों का शहरी क्षेत्रों के रूप में पुनितगीकरण अक्रद कारकों का थथान था।
परन्तु, 2001 से 2011 के मध्य, शहरों की जनसंख्या में प्राकृ वतक िृवि का ऄंश कम होकर 44% हो
गया, जबक्रक ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों के रूप में पुनितगीकरण के वहथसे में िृवि के साथ ग्रामीण शहरी
चीन में 56%, आं डोनेवशया में 54%, मेवक्टसको में 79% और दवक्षण कोररया में 82% है।
6. नगरीकरण की समथयाएँ
(Problems of Urbanization)
भारत में नगरीकरण के प्रवतरूप को क्षेत्रीय एिं ऄंतरराज्यीय विविधता, िृहत पैमाने पर ग्रामीण-शहरी
प्रिासन, ऄपयातप्त ऄिसंरचना सुविधाओं, मवलन बवथतयों में िृवि तथा ऄन्य संबि समथयाओं द्वारा
वचवननत क्रकया जाता है। भारत के विवभन्न भागों में नगरीकरण में व्याप्त प्रमुख समथयाएँ वनम्नवलवखत
हैं:
प्रायः ऄप्रयुक्त रहती है ऄथिा वजसके ऄवतिमण की संभािना होती है। ईदाहरणाथत, कें ि सरकार
के रे लिे, रक्षा एिं नागररक ईड्डयन मंत्रालयों के पास मूल्यिान ऄप्रयुक्त शहरी भूवम मौजूद है। आसे
ऄिसंरचना तथा ऄन्य महत्िपूणत व्ययों के वित्तपोषण के साथ-साथ अिास एिं ऄन्य ईपयोगों हेतु
भूवम ईपलब्ध कराने के वलए मौिीकृ त क्रकया जा सकता है।
ऄंततः, भूवम ऄवधग्रहण ऄवधवनयम, 2013 ऄवधगृहीत भूवम हेतु मुअिजे की ईच्च दर को सुवनवश्चत
करता है। आसके पररणामथिरूप िहनीय अिास हेतु ऄवधगृहीत भूवम के मूल्य में िृवि होती है और
लागत ईच्च हो जाती है। िहनीय अिास के वलए भूवम ऄवधग्रहण हेतु भूवम ऄवधग्रहण ऄवधवनयम
2013 में संशोधन करने के ऄवतररक्त, भूवम के ईच्च मूल्य के आस कारण से वनपटने का कोइ सुगम
समाधान ईपलब्ध नहीं है।
भूवम रूपांतरण (लैंड कन्िज़तन) वनयमों की जरटलता शहरी भूवम की अपूर्तत में एक प्रमुख व्यिधान
है। शहरों की बाह्य पररवध में मौजूद भूवम के विशाल खंड शहरी विथतार हेतु संभावित रूप से
ईपलब्ध हैं, परन्तु आसके वलए भूभागों को कृ वष-योग्य से गैर-कृ वष ईपयोग योग्य भूखंडों में
रूपांतररत करने की अिश्यकता है। ऐवतहावसक कारणों से, आस प्रकार के रूपांतरण की शवक्त
के िल राज्य के राजथि विभागों में वनवहत की गइ है, जो भूवम रूपांतरण की ऄनुमवत देने में प्रायः
ऄवनच्छु क होते हैं। आस शवक्त को नगरीकरण संबंधी प्रभारी एजेंवसयों को थथानांतररत करना और
रूपांतरण को पारदशी एिं लचीला बनाना, भारतीय शहरों में जीिंत भूवम बाजारों के वनमातण की
क्रदशा में दीघतकावलक एिं सकारात्मक कदम होगा।
क्षैवतज थथान की कमी को, उँची आमारतों के वनमातण के माध्यम से थथान का विथतार करके समाप्त
क्रकया जा सकता है। आस ईपाय की ईपलब्धता ऄनुमत फ्लोर थपेस आं डक्ट
े स (Floor Space
Index: FSI) पर वनभतर करती है, वजसमें आमारत के फ्लोर-थपेस का मापन भूखंड (वजस पर
आमारत वथथत है) के क्षेत्रफल के ऄनुपात में क्रकया जाता है। दुभातग्यिश, भारतीय शहरों में
ऄनुमत/थिीकृ त FSI रें ज बहुत ही कम (1 से 1.5 तक) है, वजसके पररणामथिरूप उँची आमारतें
भारतीय शहरों में लगभग ऄनुपवथथत हैं। मुंबइ की सांवथथवत (Topology) मैनहट्टन एिं डसगापुर
से काफी वमलती-जुलती है, परं तु दोनों शहरों की तुलना में मुब
ं इ में उंची आमारतों की संख्या बहुत
कम है। ऄनुमत FSI में छू ट प्रदान करके ईपलब्ध शहरी थथान को कइ गुना विथताररत क्रकया जा
सकता है।
परं परागत क्रकराया वनयंत्रण कानूनों द्वारा ऄसंगत रूप से क्रकरायेदार को संरक्षण प्रदान क्रकया जाता
है। िथतुतः क्रकराये के अिास की मांग और अपूर्तत में ऄत्यवधक ऄसंतुलन की वथथवत विद्यमान है।
आसके फलथिरूप एक विरोधाभासी वथथवत ईत्पन्न हुइ है वजसमें क्रकराये के मकानों की मांग बहुत
ऄवधक है क्रकन्तु क्रफर भी ऄनेक अिासीय इकाआयाँ ररक्त हैं। आस प्रकार िततमान क्रकराया वनयंत्रण
कानूनों को एक ऐसे अधुवनक क्रकरायेदारी कानून से प्रवतथथावपत करने की थपष्ट रूप से
अिश्यकता है जो क्रकराए के साथ ही क्रकराये पर रहने की ऄिवध के विषय में समझौता िातात हेतु
क्रकरायेदार एिं मकान मावलक को पूणत थितंत्रता प्रदान करे ।
शहरी क्षेत्रों में अिास की ऄत्यवधक कमी है और ईपलब्ध अिासों में से भी ऄवधकांश वनम्न-थतरीय
गुणित्ता के हैं। जनसंख्या में तीव्रता से िृवि, नगरीकरण की ईच्च दर तथा अिासों की संख्या में
अनुपावतक रूप से ऄपयातप्त िृवि जैसे कारणों से विगत कु छ िषों के दौरान यह समथया और
ऄवधक गंभीर हो गइ है।
िृहत् पैमाने पर शहरी क्षेत्रों में प्रिास के कारण लोगों के पास मवलन बवथतयों में रहने के ऄवतररक्त
ऄन्य विकल्प ईपलब्ध नहीं है। वनम्न-थतरीय अिास, ऄत्यवधक भीड़-भाड़ तथा विद्युतीकरण, िायु-
संचरण (िेंरटलेशन), थिच्छता तथा सड़कों एिं पेयजल जैसी सुविधाओं का ऄभाि मवलन बवथतयों
की प्रमुख विशेषताएं हैं। ये बवथतयाँ रोगों, पयातिरण प्रदूषण, नैवतक पतन तथा कइ ऄन्य
सामावजक तनािों का ईद्गम थथल भी रही हैं।
भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबइ, कोलकाता, पुणे और कानपुर अक्रद में 85% से 90% के मध्य
पररिार एक ऄथिा दो कमरों में वनिास करते हैं। यहाँ तक क्रक कु छ अिासों में पांच से छह व्यवक्त
एक ही कमरे में रहते हैं। ऄत्यवधक भीड़-भाड़ विकृ त व्यिहार को प्रोत्सावहत करता है, रोगों का
प्रसार करता है तथा मानवसक रोग, शराब और दंगों से सम्बंवधत पररवथथवतयां ईत्पन्न करता है।
घनी शहरी बवथतयों के जीिन के प्रभािों में से एक लोगों का ईदासीन एिं वनष्ठु र होना भी है।
भारतीय शहरों में यातायात के प्रिाह पर भी विवशष्ट ध्यान देने की अिश्यकता है। पवश्चमी देशों
के शहरों के विपरीत, भारत में मोटर िाहन ऄवधक बार तथा ऄप्रत्यावशत तरीकों से लेन बदलते हैं
जो ऄनािश्यक यातायात जाम एिं विलंब का कारण बनता है।
कइ शहरों में मेरो रे ल साितजवनक पररिहन का एक प्रभािी स्रोत हो सकती है। कु छ प्रारं वभक मेरो
पररयोजनाओं की सफलता ने ऄन्य शहरों में भी मेरो की मांग का मागत प्रशथत क्रकया है।
हमारे कथबे और शहर पयातिरण के प्रमुख प्रदूषक हैं। कइ शहर ऄपने सम्पूणत सीिेज तथा ईद्योगों के
ऄनुपचाररत ऄपवशष्ट का 40 से 60 प्रवतशत अस-पास की नक्रदयों में प्रिावहत कर देते हैं। शहरी
ईद्योग ऄपनी वचमवनयों से वनकलने िाले धुंए और विषाक्त गैसों से िायुमंडल को प्रदूवषत करते हैं।
ईपयुतक्त सभी प्रदूषक शहरी कें िों में वनिास करने िाले लोगों में रोगों की संभािना में िृवि करते
हैं। यूवनसेफ के ऄनुसार, वनम्न थतरीय थिच्छता संबंधी वथथवतयों और जल संदष
ू ण के कारण लाखों
शहरी बच्चे डायररया (दथत), रटटनेस, खसरा अक्रद से ग्रवसत हो जाते हैं ऄथिा ईनकी मृत्यु हो
जाती है। दीघतकावलक ईपाय के रूप में, ऄपवशष्ट के संग्रहण एिं वनपटान संबंधी नइ तकनीकों को
ऄपनाना और शहरी ऄिसंरचना तथा भूवम ईपयोग योजना में मौवलक पररिततन करने की
अिश्यकता है।
ईपयुतक्त समथयाएँ नगरीकरण की समथयाओं की पूणत सूची नहीं है। ऄन्य समथयाओं जैसे शहरों में
ऄपराधों की बढ़ती दर, िृि जनसंख्या में िृवि और ईनके वलए सामावजक सुरक्षा की ऄनुपवथथवत
तथा बाज़ार के क्षेत्र एिं आसकी विथताररत भूवमका के कारण वनधतन एिं वपछड़े िगों का सिातवधक
पीवड़त होने अक्रद का भी ऄवथतत्ि है। ऄध्ययनों द्वारा यह भी ज्ञात हुअ है क्रक शहरों में तनाि का
ईच्च थतर व्याप्त है जो लोगों के थिाथ्य पर हावनकारक प्रभाि डालता है।
7. नगरीकरण और ऄवभशासन
(Urbanization and Governance)
ऄवभशासन (गिनेंस) नगरीकरण का एक ऄवभन्न वहथसा है। यह नगरीकरण के सन्दभत में िततमान में
सबसे कमज़ोर क्रकन्तु सिातवधक महत्िपूणत कड़ी है और भारत में शहरी क्षेत्रों के रूपांतरण के वलए आसमें
तत्काल सुधार की अिश्यकता है। शहरी ऄिसंरचना में वनिेश अिश्यकताओं को पूरा करने के वलए
अिश्यक पूज
ं ी की बड़ी मात्रा का वित्तपोषण, महत्िपूणत रूप से संथथानों के सुधार तथा ईन लोगों की
क्षमता पर वनभतर करता है जो सेिा वितरण एिं राजथि सृजन की संथथाओं का संचालन करते हैं। ऐसा
माना जाता है क्रक भारतीय शहरों और कथबों पर होने िाले व्यय को बेहतर प्रशासवनक संरचनाओं, कर
एिं प्रयोक्ता शुल्क को संग्रवहत करने में सुधार हेतु मजबूत राजनीवतक एिं प्रशासवनक आच्छा शवक्त तथा
बेहतर कायातन्ियन क्षमता से सम्बि क्रकया जाना चावहए। शहरों को ईनके नागररकों की अिश्यकताओं
को पूरा करने और विकास की गवत में योगदान देने के वलए सशक्त बनाने, वित्तीय रूप से सुदढ़ृ करने
और कु शलता से शावसत करने की अिश्यकता है।
वनधातरण करना और ईन्हें ULBs ि ULBs के क्टलथटसत के वलए ऄनुमोक्रदत करना तथा पात्र वििे ताओं
के वलए प्राथवमकता के अधार पर मंजूरी सुवनवश्चत करने जैसे महत्िपूणत कायत शावमल हो सकते हैं।
आसके ऄवतररक्त यातायात वनयमों के ईल्लंघन की वथथवत में ऄथतदड
ं अरोवपत करने के वनयमों के सख्त
प्रिततन द्वारा व्यिहार पररिततन को प्रेररत क्रकया जा सकता है। यह यात्रा के समय ि प्रदूषण दोनों में
ईल्लेखनीय कमी ला सकता है। आसके ऄवतररक्त ओला (Ola) और ईबर (Uber) जैसी िाहन साझा
करने की व्यिथथाओं को बढ़ािा देने के वलए प्रोत्साहन प्रदान क्रकए जा सकते हैं। यह सड़क पर िाहनों
की संख्या को कम करे गा, वजससे भीड़ और प्रदूषण दोनों ही कम होंगे। आसके ऄवतररक्त, राष्ट्रीय मेरो रे ल
नीवत की अिश्यकता है जो यह सुवनवश्चत करे गी क्रक मेरो पररयोजनाओं को पृथक पररयोजना के रूप में
देखने के थथान पर आसे समग्र साितजवनक पररिहन की व्यापक योजना के एक वहथसे के रूप में देखा
जाए। आसके ऄवतररक्त, नीवत में मेरो पररयोजनाओं के विवभन्न पहलुओं, जैसे वनयोजन, वित्तपोषण,
PPP आत्याक्रद पर थपष्ट क्रदशा-वनदेश प्रदान क्रकए जाने चावहए।
ऄटल कायाकल्प एिं शहरी रूपांतरण वमशन (ऄमृत/AMRUT): यह कायतिम पेयजल अपूर्तत,
सीिरे ज तथा हररत क्षेत्रों एिं ईद्यानों के साितभौवमक किरे ज हेतु सुदढ़ृ ऄिसंरचना ईपलब्ध कराने
के ईद्देश्य के साथ प्रारम्भ क्रकया गया था। यह नगरों में ऄवभशासन संबंधी सुधारों को भी
प्रोत्सावहत करता है।
थमाटत शहरों का विकास: 2015 में प्रारम्भ हुए थमाटत वसटी वमशन का ईद्देश्य क्षेत्र अधाररत
विकास और शहर के थतर पर थमाटत समाधान तंत्र के माध्यम से जीिन की गुणित्ता में सुधार एिं
अर्तथक संिृवि को प्रोत्सावहत करना है। यह कायतिम मौजूदा 100 शहरों को थमाटत शहरों के रूप
में पररिर्ततत करे गा।
थिच्छ भारत वमशन (शहरी): आसे नगरों के थिच्छता थतर में सुधार करने हेतु 2 ऄक्टटू बर 2014
को प्रारं भ क्रकया गया था। आसका लक्ष्य 2 ऄक्टटू बर 2019 तक सभी सांविवधक नगरों को खुले में
शौच से मुक्त बनाना है। यह वमशन हाथ से मैला ढोने की ऄशोभनीय प्रथा को समाप्त करने,
अधुवनक एिं िैज्ञावनक ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन को प्रारं भ करने, थिथथ थिच्छता व्यिहारों के संबंध
में व्यिहारिादी पररिततन को प्रेररत करने, थिच्छता और साितजवनक थिाथ्य से आसके संबंधों के
बारे में जागरूकता ईत्पन्न करने, नगरीय थथानीय वनकायों (ULBs) की क्षमता में िृवि करने तथा
ऄपवशष्ट प्रबंधन में वनजी क्षेत्रक हेतु समथतकारी पररिेश का सृजन करने का भी प्रािधान करता है।
दीनदयाल ऄंत्योदय योजना- राष्ट्रीय शहरी अजीविका वमशन (DAY-NULM): आसका लक्ष्य
बाजार अधाररत रोजगार सृजन हेतु ऄग्रणी कौशल विकास के वलए ऄिसरों का सृजन करना तथा
थि-रोजगार ईपिमों की थथापना में वनधतन व्यवक्तयों की सहायता करना है। आस योजना के तहत
वनर्ददष्ट हथतक्षेपों को पांच प्रमुख घटकों के माध्यम से क्रियावन्ित क्रकया जाएगा यथा-
शहरों में वपछड़े और वनम्न अय िाले समूहों को मुख्यधारा में लाया जाना चावहए। नगरीय सघनता का
प्रबंधन करने और प्रिास को हतोत्सावहत करने से संबवं धत विवनयमन भूवम की अपूर्तत को सीवमत करते
हैं और साथ ही कइ पररिारों को ईनकी थिेच्छा से ऄवधक भूवम का ईपभोग करना पड़ता है। आससे
नगर के ऄवनयवमत प्रसार में िृवि के साथ-साथ सभी के वलए सेिा वितरण और भूवम के मूल्य में िृवि
होती है। पार्ककग, किरे ज सीमा, सेटबैक, वलफ्ट, सड़क की चौड़ाइ, थिाथ्य कें िों, थकू लों आत्याक्रद के ईच्च
मापदंड (वजनका प्राय: ऄनुपालन नहीं क्रकया जाता है) वनधतन िगत को अिास संबंधी ऄपनी मूलभूत
अिश्यकता हेतु महंगे संसाधन (शहरी भूवम) के ईपभोग का चयन करने और कानूनी अिश्यकताओं के
ऄनुपालन से िंवचत करते हैं।
नगरीय वित्तीयन में और ऄवधक सुधार करके अर्तथक विके न्िीकरण के समथतन की अिश्यकता है। आससे
शहरों की कें ि और राज्यों पर वनभतरता में कमी अएगी तथा अंतररक राजथि के स्रोतों में िृवि होगी।
ऄनेक ऄंतरातष्ट्रीय ईदाहरणों के ऄनुरूप, भारतीय शहरों के पास िततमान समय में वित्तीयन हेतु ऄनेक
स्रोत ईपलब्ध हैं वजनका िे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आनमें मुख्यतः भू-संपवत्तयों का मुिीकरण, संपवत्त
करों का ईच्च संग्रहण; लागत को ध्यान में रखते हुए ईपभोक्ता शुल्क का वनधातरण; ऊण एिं साितजवनक-
वनजी साझेदारी (PPPs); और कें ि/राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त वित्तपोषण आत्याक्रद शावमल हैं। यद्यवप,
के िल अंतररक वित्तपोषण (यहाँ तक क्रक बड़े शहरों में भी) पयातप्त नहीं होगा। नगरीय विकास हेतु
कें िीय और राज्य सरकारों द्वारा भी पयातप्त वित्त की अिश्यकता होगी।
भारत के नगरीय वनयोजन को कें िीय एिं प्राथवमक कायत के रूप में समझे जाने तथा दक्ष लोगों, अँकड़ों
के ठोस अधार और ऄवभनि शहरी थिरूप में वनिेश करने की अिश्यकता है। आसे एक "काथके डेड"
योजना ढांचे के माध्यम से संपन्न क्रकया जा सकता है वजसमें बड़े शहरों के पास महानगरीय थतर पर 40
नगरीय थथानीय वनकायों की क्षमता और विशेषज्ञता में िाथतविक सुधार, शवक्तयों के हथतांतरण एिं
सेिा वितरण के ईन्नयन के वलए ऄत्यवधक महत्िपूणत है। आन सुधारों के ऄंतगतत नगरीय प्रबंधन कायों के
वलए पेशेिर प्रबंधकों के विकास पर ध्यान कें क्रित करना होगा। आनकी अपूर्तत अिश्यकता के ऄनुपात में
कम है। वनजी और सामावजक क्षेत्रों में ईपलब्ध विशेषज्ञों का लाभ प्राप्त करने के वलए निीन एिं ईन्नत
दृवष्टकोणों को खोजे जाने की अिश्यकता है।
ऄपने नगरों को 21िीं शताब्दी के नगरों में पररिर्ततत करने के वलए भारत को और ऄवधक बुवनयादी
पररिततनों की शुरुअत करने की अिश्यकता है। एक ऐसी थथावनक योजना प्रारं भ करने की अिश्यकता
है जो एक साथ महानगर, नगरपावलका और िाडत-थतरीय क्षेत्रों की विकास संबंधी अिश्यकताओं को
पूणत कर सके । आसके साथ ही शहरी थथानीय वनकायों को ऄवधक शवक्तयां हथतांतररत करना और
वित्तीय रूप से ईन्हें सशक्त बनाना भी अिश्यक है।
संयुक्त राष्ट्र सतत विकास सम्मेलन (ररयो+20) के वनष्कषत, "द फ्यूचर िी िांट", के तहत शहरी वनधतनों
की दुदश
त ा और संधारणीय शहरों की अिश्यकता को संयुक्त राष्ट्र विकास एजेंडे के ऄविलंबनीय मुद्दे के
रूप में मान्यता दी गइ है। ऄतः िततमान समय में नगरीय विकास का एक नया मॉडल तैयार करने की
अिश्यकता है जो नगरीकृ त पररिेश में समानता, कल्याण और साझा समृवि को बढ़ािा देने के वलए
संधारणीय विकास के सभी पहलुओं को एकीकृ त करे ।
1. "पारं पररक शहरी विथतार के विपरीत, नि शहरीकरण तेजी से गांिों को थियं में समाविष्ट
कर रहा है।" 2011 की जनगणना में जनगणना नगरों (census towns) के विकास के संदभत
में आस कथन को विथतृत िणतन कीवजए।
दृवष्टकोण:
सितप्रथम, जनगणना से कु छ त्यों/अँकड़ों को यह प्रदर्तशत करने के वलए प्रथतुत कीवजए क्रक
प्रश्न में क्रदया गया कथन िाथति में सही है।
आसके पश्चात् िणतन कीवजए क्रक जनगणना नगर 'क्टया' हैं और ईन्हें कै से िगीकृ त क्रकया जाता
है।
आसके पश्चात्, संक्षेप में समझाएँ क्रक जनगणना नगरों में िाथति में तेजी से िृवि 'क्टयों' हो रही
है।
प्रिासन और शहरीकरण िमशः ईन परं परागत पाररिाररक थिरूप को वनबतल बना रही
है जो िृिों को के न्िीयता और सामावजक भूवमका प्रदान करते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी के न्िों की ओर प्रिाह ने न के िल ईच्च बेरोजगारी दर को बढ़ािा
क्रदया है ऄवपतु यह ऄन्य कइ सामावजक और अर्तथक समथयाओं के साथ शहरों की भीड़
में भी िृवि कर रहा है। साथ ही यह ग्रामीण क्षेत्रों में वनिास करने िाले िृिों के
चूंक्रक िृि लोग ग्रामीण कृ वष िवमक शवक्त का एक वहथसा होते हैं, आसवलए ईनकी कृ वष क्षमता
बढ़ाने के ईद्देश्य से नीवतयों का वनमातण क्रकया जाना चावहए।
ईनको ऊण एिं विथतार सेिाओं तथा ऄपने साम्यत के ऄनुसार ईन्नत कृ वष कायत प्रणाली ि
प्रौद्योवगकी ऄनुकूलन हेतु सहायता की अिश्यकता होगी।
िृि लोगों को थि-रोजगार हेतु प्रोत्साहन देना चावहए, वजससे िे न के िल ऄपनी गवत से कायत
कर सकें गे बवल्क लाभ और ईत्पादकता बढ़ाने हेतु यह ईन्हें निोन्मेष के वलए भी प्रोत्सावहत
करे गी।
ग्रामीण विकास में िृिों द्वारा योगदान करने के क्षमता बढ़ाने हेतु सहकाररता ईपिम प्रमुख
भूवमका वनभा सकते हैं।
यद्यवप िृिािथथा का ऄवभप्राय थिाथ्य सेिाओं की अिश्यकता में िृवि होता है, क्रफर भी
थिाथ्य सेिा के न्िों का िृि लोगों द्वारा न्यूनतम ईपयोग क्रकया जाता है। प्राथवमक सेिा के न्िों
को ग्रामीण िृिों का ध्यान ईसी प्रकार से रखना चावहए जैसे िे बच्चों का रखते हैं।
सभी सामावजक योजनाओं का ईपयोग बहुत कम होता है, आसवलए आनके द्वारा वमलने िाले
ऄनुदान और लाभों के बारे में विवभन्न संचार माध्यमों के द्वारा जानकारी प्रदान की जानी
चावहए और नीवतयों को सशक्त बनाया जाना चावहए।
4. थिातंत्रयोत्तर भारत में शहरों से सामावजक पररिततन के िाहक बनने की ऄपेक्षा की गइ थी,
लेक्रकन िे भी ईन्हीं विसंगवतयों के पररचायक बन गए वजससे ग्रामीण क्षेत्र लंबे समय से त्रथत
हैं। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोण :
आस प्रश्न की मूलभूत विषय-िथतु भारत के सन्दभत में शहरों द्वारा अधुवनकता के लक्ष्य प्रावप्त में
ऄसफलता है। ईत्तर की सरं चना वनम्नवलवखत प्रकार से की जा सकती है:
परन्तु, भारत में शहरों का विकास देखने से यह प्रतीत होता है क्रक शहर ईस वििास को पूरा
करने में ऄसमथत रहे हैं, जो ईनमें जताया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त सामावजक
समथयाओं में सुधार के थथान पर ईन्होंने सामावजक ऄसमानताओं को वनम्नवलवखत प्रकार से
जन्म क्रदया है:
भारत: शहरी वनधतनता ररपोटत 2009 (UNDP) के ऄनुसार भारत में वनधतनता का
शहरीकरण हो गया है और यह बड़े शहरों में विथतृत रूप से विद्यमान है। समग्र रूप से
यह 25 प्रवतशत से ऄवधक है, शहरों में रहने िाले लगभग 81 वमवलयन लोग वजस अय
पर वनभतर करते हैं, िह थतर वनधतनता रे खा से बहुत नीचे है।
बड़े शहरों जैसे क्रक मुम्बइ में 41.3%, विशाखापत्तनम में 44%, कोलकता में 30%,
चेन्नइ में 29% और क्रदल्ली में 15% के ईच्च ऄनुपात से झुवग्गयों में रहने िाले पररिार
हैं। शहरों में ईवचत अिास और मूलभूत सुविधाओं जैसे- थिाथ्य और वशक्षा के अभाि
से ऐसी ऄवनवश्चत वथथवतयां पुनः ईत्पन्न हुइ हैं, जो अज भी गािों में वनधतनों के वलए
ऄलगाि का कारण बनी हुइ हैं।
अर्तथक विकास की प्रक्रिया में यह माना जाता था क्रक शहर, ऄवधकांशतः ईन कामकाजी
वनधतन लोगों को सम्मानजनक रोजगार के ऄिसर प्रदान करें गे जो ग्रामीण ऄथतव्यिथथा
में अिश्यकता से ऄवधक हो गये थे। परन्तु भारतीय शहर, गांिों के ही समान, वनिातह
योग्य रोजगार प्रदान करने िाले िृहत ऄनौपचाररक क्षेत्र का अियथथल बन गए हैं।
गाँिों में मवहला सुरक्षा एक प्रमुख समथया है क्टयोंक्रक गाँि ईनके प्रवत प्रवतगामी ऄवभिृवत्त
हेतु जाने जाते हैं। आसके ऄवतररक्त अधुवनक शहर, वजनसे यह ऄपेक्षा की जाती है क्रक िे
ईन्हें सुरवक्षत िातािरण प्रदान करें गें, िे थियं ही ईनके वलए सिातवधक ऄसुरवक्षत थथान
बन गए हैं, ईदाहरण के वलए कु छ ही समय पहले क्रदल्ली में घरटत बलात्कार की घटना।
जातीय/नृजातीय/धार्तमक पहचान अधाररत राजनैवतक एकजुटता ग्रामीणों क्षेत्रों की
भांवत शहरों में भी व्यापक रूप से प्रचवलत है।
आस पररदृश्य में, ऄब एक महत्िपूणत अिश्यकता यह है क्रक शहरों द्वारा सामावजक विकास में
वनभाइ गयी भूवमका पर पुनः विचार क्रकया जाए। शहरों को नगर-विषयक और हमारे
संविधान द्वारा प्रोत्सावहत क्रकये गये मूल्यों के अधार पर और ऄवधक विथतृत क्षेत्र बनाना
चावहये। क्टयोंक्रक डॉ.ऄम्बेडकर ने भी शहरों को सामावजक पररिततन का महत्िपूणत पररचायक
समझा था।
5. वनधतनों हेतु सामावजक-अर्तथक एिं विवधक सहायता के ऄभाि में तीव्र शहरी विकास, मवलन
बवथतयों के व्यापक फै लाि का एक ऄपररहायत कारण है। भारत के सन्दभत में आसकी चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
प्रश्न का के न्िीय भाि समकालीन भारत में मवलन बवथतयों की बढ़ती जनसंख्या के वनधातरकों
के बारे में है। ईत्तर की संरचना वनम्नवलवखत प्रकार से की जा सकती है:
6. ऄत्यवधक जनसंख्या िाले शहरों एिं ईनकी दबािपूणत ऄिसंरचना के कारण, भारत एक
शहरी संकट से जूझ रहा है। देश में िततमान शहरों के ईन्नयन में थमाटत वसटी वमशन क्रकतना
सहयोग प्रदान कर सकता है। आस वमशन के संबध
ं में थथानीय वनकायों की पूिातपक्ष
े ाएँ क्टया हैं?
2016-16-749
यह वमशन थमाटत वसटी हेतु रोडमैप प्रदान करने की वजम्मेदारी शहरी थथानीय वनकायों
(ULBs) पर डालता है। हालांक्रक के न्ि ने प्रत्येक शहर में आस वमशन को कायातवन्ित करने की
क्षमता से संपन्न थपेशल पपतज व्हीकल (SPV) प्रथतावित क्रकया है। यह थमाटत वसटी विकास
पररयोजनाओं का योजना वनमातण, मूल्य वनरूपण, ऄनुमोदन, तदथत वनवध जारी करने,
कायातन्ियन, प्रबंधन, संचालन, वनगरानी और मूल्यांकन के कायत करे गा।
कइ नगर वनगमों को भय है क्रक SPV के कारण ईन्हें दरक्रकनार कर क्रदया जाएगा और ईनकी
थिायत्तता संकटग्रथत हो जाएगी। ULBs द्वारा SPV में भागीदारी की जाएगी, क्रकन्तु SPV
भी PPP पररयोजनाओं में सवम्मवलत होने हेतु सक्षम है।
यह वमशन राज्य सरकार और शहरी थथानीय वनकायों को, पररयोजना के संबध में नगर
पावलका पररषद के ऄवधकारों और दावयत्िों का वनितहन करने के वलए, SPV को कायतभार
सौंपने हेतु प्रोत्सावहत करता है। आसवलए थमाटत शहरों के विकास के साथ, शहरी शासन में
वनजी वनिेशकों एिं परामशतदाता संथथाओं का प्रभाि बढ़ने की संभािना है और यह शहरी
थथानीय वनकायों (ULBs) के वलए डचता का विषय है।
थथानीय वनकायों की थिायत्तता और लोकतंत्र की भािना को व्यवथत करने संबंधी डचताएँ
िैध हैं, क्टयोंक्रक लोकतांवत्रक रूप से वनिातवचत थथानीय शासन के थथान पर कें िीय नीवत द्वारा
यह सही है क्रक हमारी थथानीय सरकारें सिातवधक कु शल या ईत्तरदायी नहीं हैं, क्रकन्तु SPV
चावलत थमाटत वसटी, नगर प्रशासन के दोषों का दीघत थथाइ समाधान नहीं हैं।
7. ईन कारकों का वििरण प्रथतुत कीवजए जो लोगों को ग्रामीण आलाकों से शहरी क्षेत्रों में प्रिास
करने वलए प्रेररत करते हैं, भले ही आसके पररणामथिरूप ईन्हें मवलन बवथतयों में ही क्टयों न
रहना पड़ता हो। भारत की मवलन बवथतयों के संदभत में विवशष्ट त्यों पर प्रकाश डावलए।
साथ ही ईन रणनीवतयों की चचात कीवजए जो भारत में मवलन बवथतयों की दशा को सुधारने
के वलए ऄपनाइ जा सकती हैं। 2016-13-757
दृवष्टकोण:
भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रिास और मवलन बवथतयों के पररणामी विकास पर
पररचय दीवजए।
ईन कारकों की चचात कीवजए वजनके कारण लोग शहरों की ओर पलायन करने और झुग्गी
झोपवड़यों में वनिास करने को वििश हैं।
भारत में विद्यमान मवलन बवथतयों के बारे में महत्िपूणत त्यों पर चचात कीवजए।
भारत की मवलन बवथतयों के सुधार हेतु रणनीवतयों पर चचात कीवजए।
ईत्तर:
शहरीकरण और बड़ी मात्रा में नगरों की ओर प्रिास ने मवलन बवथतयों की संख्या में बेतहाशा
िृवि की है। िषत 2017 में भारत की कु ल ऄनुमावनत थलम अबादी 1.28 ऄरब होगी जो क्रक
राष्ट्रीय जनसंख्या का लगभग 9% है।
ईत्तरदायी कारक
ईच्च और ऄवधक वथथर अय: शहरी कें ि में ईपलब्ध ईत्पादक रोजगार के ऄिसरों तथा ईच्च
और ऄवधक सुसंगत व्यवक्तगत प्रयोज्य अय की संभािना क्रकसी कृ वष अधाररत ग्रामीण क्षेत्र
की तुलना में बेहतर होती है।
ऄगली पीढ़ी के वलए सामावजक गवतशीलता: शहरी पररिेश में बच्चों की परिररश ऄगली
पीढ़ी के वलए एक ईच्च "विकल्प मान" (“option value”) बनाता है। अमतौर पर, शहर
वशक्षा और रोजगार के ऄिसर के व्यापक विकल्प प्रदान करते हैं।
अपदागत प्रिास: राजनीवतक ऄशांवत और ऄंतर-जातीय संघषत लोगों को ईनके घरों से दूर
जाने पर मजबूर करते हैं। कइ बार बड़ी प्राकृ वतक अपदाओं के बाद भी लोग शहरी क्षेत्रों की
ओर पलायन कर जाते हैं।
मवलन बवथतयों के ऄलािा क्रकसी ऄन्य विकल्प का ऄभाि: गरीब प्रिासी पररिार ऄच्छे
अिास और पररिहन लागत िहन करने में ऄसमथत होते हैं जो ईन्हें ऄपने काम के थथान के
वनकट के शहर में थलम क्षेत्रों में बसने के वलए मजबूर करता है।
विवशष्ट त्य
ऄभूतपूित संख्या: भारत के ऄवतररक्त कोइ और ऐसा देश नहीं है जो मवलन बवथतयों की आतनी
बड़ी संख्या से प्रभावित रहा हो। 2017 तक भारत में 100 वमवलयन से ऄवधक लोग मवलन
बवथतयों में रहने लगेंगे तथा दूसरे 10 लाख प्रिासी दूसरे शहरों की ओर बढ़ रहे होंगे।
8. यद्यवप संयक्त
ु राष्ट्र हैवबटैट ररपोटत (संयक्त
ु राष्ट्र पयातिास ररपोटत) में नगरों को "मानि वनमातण
की सिोच्च पराकाष्ठाओं'' के रूप में िर्तणत क्रकया गया है, लेक्रकन बहस का प्रश्न यह है क्रक
विकासशील देशों के नगरों को क्रकस प्रकार का रूप लेना चावहए। आस कथन के संदभत में,
भारत के संबध
ं में शहरीकरण की परथपर विरोधी रणनीवतयों का परीक्षण कीवजए।
दृवष्टकोण:
पररचय में संक्षेप में कथन में वनवहत संदभत की व्याख्याऺ कीवजए और ईस थिरुप के सतकत
वििेचन के वलए कारण प्रदान कीवजए, जो विकासशील विि में नगर ग्रहण करें गे।
आसके ऄवतररक्त शहरीकरण के प्रवतमान (मॉडल) के रूप में बड़े और छोटे शहरों को सवम्मवलत
करने िाली रणनीवतयों का िणतन कीवजए।
भविष्य में शहरी विकास के वलए अिश्यक आष्टतम संयोजन को रे खांक्रकत करते हुए ईत्तर
समाप्त कीवजए।
ईत्तर:
नगरों को ईनकी ऐवतहावसक भूवमका और मानिीय सहयोग थथल, विकास आंजन और
सामावजक गवतशीलता के िाहन के रूप में भािी क्षमता के कारण ‘मानि वनमातण की सिोच्च
पराकाष्ठा’ कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र हैवबटेट ररपोटत का ऄनुमान है क्रक 2050 तक विि की
2/3 अबादी शहरों में वनिास कर रही होगी। विि बैंक के ऄनुसार 90 प्रवतशत शहरी
10. यद्यवप ईपनगरीकरण नगरीकृ त हो रहे ऄवधकांश देशों में एक सामान्य पररघटना है, क्रकन्तु
भारत के शहरी विकास के संदभत में यह ऄपेक्षाकृ त प्रारं वभक चरण पर हो रही है। आस विकास
के ऄंतर्तनवहत कारणों को सूचीबि करते हुए भारतीय शहरों के वलए आसके द्वारा ईत्पन्न की
जा रही चुनौवतयों पर प्रकाश डावलए।
दृवष्टकोण :
ऄवधकांश नगरीकृ त देशों में ईपनगरीकरण पररघटनाओं के बारे में संवक्षप्त पररचय दीवजए।
भारत के शहरी विकास के सन्दभत में आसके ऄपेक्षाकृ त प्रारं वभक चरण पर होने के कारणों को
सूचीबि कीवजए।
भारतीय शहरों के समक्ष आसके द्वारा ईत्पन्न चुनौवतयों तथा आनसे वनपटने के तरीके को थपष्ट
कीवजए।
ईत्तर:
2013 में विि बैंक की ररपोटत "ऄबतनाइजेशन वबयॉन्ड म्युवनवसपल बाईं ड्रीज” के ऄनुसार
ईपनगरीय क्षेत्र, शहरों की तुलना में ईच्च अर्तथक विकास और रोजगार के ऄिसर सृवजत कर
रहे हैं। यद्यवप "ईपनगरीकरण" एक वििव्यापी घटना है। सामान्यतः यह विकास के ईन्नत
चरणों में घरटत होती है। भारत में ईपनगरीकरण ऄपेक्षा से ऄवधक तीव्रता से हो रहा है।
कारण:
कम जनसंख्या घनत्ि, कम ऄपराध और ऄवधक वथथर जनसंख्या के कारण ईपनगरों को
रहने और पररिार के पालन पोषण हेतु एक सुरवक्षत और सुलभ थथान के रूप में देखा
जाता है।
भूवम की बढती हुइ कीमतों और कायातलयों के क्रकराये ने कं पवनयों को ईपनगरीय क्षेत्रों में
जाने के वलए वििश कर क्रदया है।
िर्तित (Increased) अय के साथ, लोगों की यात्रा और काम करने के वलए ऄवधक दूरी
तय करने ि घर िापस अने के वलए ऄवधक भुगतान करने की क्षमताओं में िृवि हुइ है।
भारतीय शहरों द्वारा ऄत्यवधक कठोर भूवम ईपयोग वनयमों को लागू करना, क्रकराया
वनयंत्रण प्रणाली तथा शहरों में आमारतों की उंचाइ पर प्रवतबंध लगाने के पररणामथिरूप
ऄत्यवधक ईपनगरीकरण हो रहा है।
ईपनगरीय नगरपावलकाओं द्वारा औद्योवगक भूवम ईपयोगकतातओं को ऄपने क्षेत्र में
अकर्तषत करने के वलए कर छू ट और विवनयामकों को प्रोत्साहन प्रदान क्रकया जा रहा है।
मजबूत और पररष्कृ त ऄिसंरचना का विकास शहर के ईपनगरों में ही संभि है, जहां
भूवम पयातप्त मात्रा में ईपलब्ध हो तथा ऄवधग्रहण की लागत भी कम हो।
शहरी समुदायों के विकास ने कइ अर्तथक, पाररवथथवतक और संथथागत चुनौवतयां ईत्पन्न की
हैं जो वनम्नवलवखत हैं:
गुणित्तायुक्त जल, थिच्छता, और वबजली तक पहुँच, शहरी कें ि की तुलना में ईपनगरों
में ऄवधक दयनीय है।
िहनीय एिं गुणित्तापूणत थिाथ्य ि् वशक्षा सेिाओं तक पहुंच।
कृ वष भूवम के व्यिसायीकरण और िन क्षेत्र के ऄवतिमण से पाररवथथवतकी तंत्र को भी
हावन पहुँच रही है।
ऄवनयोवजत शहरीकरण और प्राकृ वतक जल संग्रहण एिं जल वनकासी प्रणावलयों का
ऄवनयंवत्रत ऄवतिमण, अपदा के वलए ईत्तरदायी है।
भारतीय समाज
भारतीय समाज की प्रमुख विशेषताएं
4. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न___________________________________________ 16
5. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 31
1. पररचय
(Introduction)
भारतीय समाज बहु-सांस्कृ वतक, बहु-नृजातीय और बहु-िैचाररक संरचनाओं के सह-ऄवस्तत्ि का
प्रत्यक्ष प्रमाण है। यह एक विवशष्ट ईदाहरण है वजसमें ये संरचनाएँ पारस्पररक सौहार्द्त स्थावपत
करने का प्रयास करते हुए भी ऄपनी िैयविकता को बनाये रखती हैं।
िसुधैि कु टु म्बकम (सम्पूणत विश्व एक पररिार है) की ईदार ऄिधारणा भारतीय समाज की एक
महान सांस्कृ वतक विरासत है। आसके ईत्तरोतर विकास के दौरान, आसने समय-समय पर विवभन्न
समुदायों और ईनकी जीिन शैवलयों को समायोवजत और एकीकृ त ककया है।
जावत को एक ऐसे िंशानुगत ऄंतर्मििाही (endogamous) समूह के रूप में पररभावषत ककया जा
सकता है जो एक सजातीय समुदाय का वनमातण करता है। आसका एक सामान्य नाम होता है; एक
समान पारं पररक व्यिसाय होता है; एक समान संस्कृ वत होती है; यह गवतशीलता के संबंध में
ऄपेक्षाकृ त कठोर होती है; और आसकी एक विवशष्ट प्रवस्थवत होती है।
भारत में जावत व्यिस्था का मुख्य रूप से हहदू धमत से संबि है और यह हजारों िषों से हहदू समाज
को संचावलत कर रही है। भारत में जावत व्यिस्था की विशेषताओं में वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
o समाज का खंडीय विभाजन: आसका ऄथत है कक सामावजक स्तरीकरण मुख्य रूप से जावत पर
अधाररत होता है। भारतीय समाज में ककसी व्यवि को एक जावत समूह की सदस्यता जन्म से
प्राप्त होती है तथा आसके अधार पर ईसे ऄन्य जावत समूहों के सापेक्ष स्थान प्रदान ककया जाता
है।
o पदानुक्रम: यह आं वगत करता है कक विवभन्न जावतयां, ईनके व्यिसाय की पवित्रता और
ऄपवित्रता के अधार पर िगीकृ त की जाती हैं। आन जावतयों को एक सीढ़ी के समान संरचना
में ईच्च से वनम्न स्थान प्रदान ककया जाता है। पवित्र मानी जाने िाली जावत को ईच्च स्थान और
ऄपवित्र मानी जाने िाली जावत को वनम्न स्थान प्रदान ककया जाता है।
o नागररक और धार्ममक ऄक्षमता: आसके ऄंतगतत संपकत , पोशाक, भाषा, रीवत-ररिाजों आत्याकद
पर अधाररत प्रवतबंध सवम्मवलत होते हैं तथा ये प्रवतबंध प्रत्येक जावत समूह पर अरोवपत
होते हैं। ये प्रवतबंध विवशष्ट जावत समूहों की पवित्रता बनाए रखने के ईद्देश्य से अरोवपत ककए
गए थे। ईदाहरणस्िरूप वनम्न जातीय िगों को कु ओं तक पहुंच प्रदान न करना, ईनके मंकदरों
में प्रिेश करने पर प्रवतबंध लगाया जाना आत्याकद।
o सजातीय वििाह (Endogamy): ककसी विशेष जावत के सदस्यों को के िल ऄपनी जावत में ही
वििाह करने की ऄनुमवत होती है। ऄंतरजातीय वििाह वनवषि हैं। हालाँकक, शहरी क्षेत्रों में
ऄंतरजातीय वििाहों की संख्या में िृवि हो रही है।
o ऄस्पृश्यता: यह ककसी समूह को सामावजक प्रथाओं द्वारा मुख्य धारा से पृथक करके बवहष्कृ त
करने की प्रथा है। ऄस्पृश्यता जावत व्यिस्था का एक स्िाभाविक पररणाम था तथा आसके
तहत ऄस्पृश्यों (जो वनम्नतम जावत समूहों से संबंवधत थे) को ऄपवित्र और मवलन माना जाता
था।
o हाथ से मैला ढोने की प्रथा (मैनऄ
ु ल स्कै िेंहजग): हाथ से मैला ढोने की प्रथा, ऄंततः एक जावत
अधाररत पेशा बन गया। आसके ऄंतगतत बाल्टीयुि शौचालयों (Bucket Toilets) या गड्ढे
िाले शौचालयों ( Pit Latrines) में से ऄनुपचाररत मानि मल की सफाइ करना सवम्मवलत
है। आसे हाथ से मैला ढोने िाले कर्ममयों के वनयोजन का प्रवतषेध एिं ईनका पुनिातस
ऄवधवनयम, 2013 द्वारा अवधकाररक रूप से समाप्त कर कदया गया है।
o भारत में जावत अधाररत हहसा: जावत अधाररत हहसा की बढ़ती प्रिृवत्त ऄंतरजातीय वििाह
की घटनाओं तथा दवलतों के भूवम ऄवधकारों, ईनकी ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता, वशक्षा ि न्याय
तक पहुंच सवहत मूलभूत ऄवधकारों के दािों से संबंवधत है। ईदाहरण के वलए, गुजरात के
उना में भू-स्िावमत्ि की मांग के वलए एक अंदोलन में भाग लेने पर दवलतों के एक समूह पर
हमला ककया गया।
(Religious Pluralism):
नातेदारी व्यिस्था से तात्पयत व्यवियों के ईस समूह से है वजन्हें रि संबंधों ऄथिा वििाह संबंधों के
अधार पर ररश्तेदारों के रूप में मान्यता प्राप्त होती है। ‘वडक्शनरी ऑफ़ एंथ्रोपोलॉजी’ के ऄनुसार,
वििाह एक महत्िपूणत सामावजक संस्था है। यह सामावजक रूप से ऄनुमोकदत तथा रीवत-ररिाजों और
विवध द्वारा स्िीकृ त एक संबंध है। आसके साथ ही यह सांस्कृ वतक प्रकक्रयाओं का एक समूह भी है जो
पररिार की वनरं तरता को सुवनवित करता है। यह भारत में लगभग एक साितभौवमक सामावजक संस्था
है।
वििाह व्यिस्था में संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन
वििाह प्रणाली में, विशेषत: स्ितंत्रता के पिात्, ऄनेक महत्िपूणत पररिततन हुए हैं। हालांकक वििाह से
संबंवधत मूलभूत धार्ममक विश्वास कमज़ोर नहीं हुए हैं परन्तु ऄनेक प्रथाएँ, रीवत-ररिाज तथा तरीके
पररिर्मतत हो गए हैं। वििाह व्यिस्था में हुए हावलया पररिततन वनम्नवलवखत हैं:
वििाह के ईद्देश्य एिं लक्ष्य में पररिततन: परं परागत समाजों में, विशेष रूप से वहन्दुओं में, वििाह
का प्राथवमक ईद्देश्य ‘धमत’ या कततव्य होता है। परन्तु िततमान समय में वििाह का ईद्देश्य धमत की
तुलना में पवत और पत्नी के मध्य ‘अजीिन साहचयत’ से ऄवधक संबवं धत हो गया है।
वििाह के स्िरूप में पररिततन: भारत में वििाहों के परं परागत रूप जैसे कक बहुवििाह, बहुपत्नी
वििाह अकद विवधक रूप से प्रवतबंवधत कर कदए गए हैं। िततमान में एकपत्नी वििाह ही ऄवधक
प्रचवलत है।
बहुवििाही (Polygamous) पररिारों को ऐसे पररिारों के रूप में िर्मणत ककया जा सकता है
वजसमें पवत या पत्नी को एक साथ एक से ऄवधक पवत या पत्नी रखने की ऄनुमवत होती है।
एक पत्नीक (Monogamous) पररिार िे पररिार होते हैं जहाँ वििाह के िल एक जीिनसाथी
तक ही सीवमत होता है।
वपतृस्थान (Patrilocal) पररिार: ऐसे पररिारों में लड़की वििाह के पिात् ऄपने पवत के पररिार
के साथ रहती है। वपतृस्थान पररिार स्िभाि में वपतृसत्तात्मक और वपतृिंशीय भी होता है।
मातृस्थान (Matrilocal) पररिार: ऐसे पररिारों में लड़का वििाह के पिात् ऄपनी पत्नी के
पररिार के साथ रहता है। यह के िल वपतृस्थान पररिार के विपरीत है। आस प्रकार के पररिार
स्िभाि में मातृसत्तात्मक तथा मातृिंशीय भी होते हैं।
वद्वस्थान (Bilocal) पररिार: आस प्रकार के पररिारों में वििावहत दम्पवत ऄपने वनिासों में
िैकवल्पक रूप से पररिततन लाते हैं। कभी पत्नी पवत के पररिार में रहती है तो कभी पवत पत्नी के
पररिार में रहता है। आसी कारण आस प्रकार के पररिार बदलते अिासों के पररिार भी कहलाते हैं।
निस्थान (Neolocal) पररिार: वििाह के पिात् जब एक नि वििावहत दम्पवत ऄपने
ऄवभभािकों से स्ितंत्र एक नए पररिार की स्थापना करते हैं तथा एक नए स्थान पर वनिास करते
हैं तो ऐसा पररिार निस्थान पररिार कहलाता है।
3. अकार और संरचना के अधार पर :
एकांकी पररिार: आस प्रकार के पररिार में पवत-पत्नी तथा ईनके बच्चे रहते हैं। एकांकी पररिारों का
अकार बहुत छोटा होता है। यह एक स्िायत्त आकाइ है। यहाँ बड़ों का कोइ वनयंत्रण नहीं होता
क्योंकक निवििावहत ऄपने वलए एक पृथक वनिास का सृजन करते हैं जो बड़ों से स्ितंत्र होता है।
आसे प्राथवमक पररिार भी कहते हैं।
संयिु और विस्तृत पररिार: यह तीन से चार पीकढ़यों को शावमल करता है। यह माता-वपता तथा
ईनके बच्चों के संबंधों का विस्तार है। यह पररिार घवनि रि संबंधों पर अधाररत होता है। यह
वहन्दू समाज के संयुि पररिार की भांवत होता है।
o पररिार का मुवखया ज्येि पुरुष सदस्य होता है। आस पररिार की प्रमुख विशेषताएं होती हैं
यथा- साझा अिास, साझी पाकशाला, साथ-साथ भोजन करना, सम्पवत्त का सहभाजन,
अनुिावनक बन्धनों का वनष्पदान, पारस्पररक दावयत्ि तथा भािनाएं।
o विस्तृत पररिार वपता, माता, ईनके पुत्र और ईनकी पवत्नयों, ऄवििावहत पुवत्रयों, पौत्र-
पौवत्रयों, दादा, दादी, चाचा-चाची, ईनेक बच्चों आत्याकद को सवम्मवलत करता है। आस प्रकार के
पररिार ग्रामीण समुदायों या कृ षक ऄथतव्यिस्थाओं में पाए जाते हैं।
4. प्रावधकार के अधार पर :
वपतृिश
ं ीय (Patrilineal) पररिार: िह पररिार वजसमें िंश परम्परा या िंशािली वपता िंश के
माध्यम से वनधातररत होती है तथा वपता के माध्यम से ही जारी रहती है वपतृ िंशीय पररिार
कहलाता है। सम्पवत्त और पररिार का नाम भी वपता िंश के माध्यम से दायागत होते हैं।
वपतृिंशीय पररिार स्िभाि में वपतृस्थावनक तथा वपतृसत्तात्मक होता है।
मातृिश
ं ीय (Matrilineal) पररिार: मातृिंशीय पररिार मात्र वपतृिंशीय पररिार का विलोम
होता है। िह पररिार वजसमें िंश परम्परा या िंशािली मातृ िंश के माध्यम से वनधातररत होती है
तथा माता के माध्यम से ही जारी रहती है मातृिंशीय पररिार कहलाता है। सम्पवत्त और पररिार
का नाम भी मातृ िंश के माध्यम से दायागत होते हैं। ये ऄवधकार माता से पुत्री को हस्तांतररत
होते हैं। एक मवहला ही पररिार की पूिज त होती है। मातृिंशीय पररिार स्िभाि में मातृस्थावनक
तथा मातृसत्तात्मक होता है। आस प्रकार के पररिार के रल के नायरों तथा ऄसम की गारो तथा
खासी जनजावतयों में पाए जाते हैं।
पररिार के कायत
प्राथवमक कायत- पररिार के स्थायी ऄवस्तत्ि हेतु आसके कु छ मूलभूत कायत होते हैं:
o संतानोत्पवत्त एिं ईनका पालन-पोषण।
o घर का प्रबंधन करना।
o सांस्कृ वतक हस्तांतरण का साधन।
o समाजीकरण का ऄवभकतात।
o प्रवस्थवत वनधातरण संबंधी कायत।
वद्वतीयक कायत
o अर्मथक कायत: अर्मथक प्रगवत के साथ पररिार एक ईत्पादक की तुलना में ईपभोग आकाइ
ऄवधक बन गया है। पररिार के सदस्य, आसके सामावजक-अर्मथक कल्याण हेतु अय ऄजतन में
संलग्न रहते हैं।
o शैक्षवणक कायत: पररिार, बच्चे की औपचाररक वशक्षा हेतु अधार प्रदान करता है। प्रमुख
पररिततनों के बािजूद पररिार ऄभी भी बच्चे को सामावजक ऄवभिृवत्त एिं व्यिहार हेतु
मूलभूत प्रवशक्षण प्रदान करता है। यह प्रवशक्षण सामावजक जीिन में एक ियस्क के रूप में
ईसकी सहभावगता हेतु महत्िपूणत होता है।
o धार्ममक कायत: पररिार, बच्चों के धार्ममक प्रवशक्षण का एक कें र्द् है। बच्चे ऄपने माता-वपता से
विवभन्न धार्ममक सद्गुणों को सीखते हैं।
o मनोरं जनात्मक कायत: पररिार, ऄवभभािकों और बच्चों को विवभन्न मनोरं जन संबंधी
गवतविवधयों जैसे कक घरे लू खेलों, नृत्य, गायन, पठन आत्याकद में भाग लेने हेतु ऄिसर प्रदान
करता है।
भारतीय पररिार प्रणाली में संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन
(Structural and functional changes in the Indian family system)
अधुवनक प्रौद्योवगकी के साथ औद्योवगक सभ्यता के ईद्भि ने भारतीय पररिार प्रणाली में वनरं तर
संरचनात्मक और कायातत्मक पररिततन ककए हैं। िततमान में पररिार की ऄवधकांश पारं पररक
गवतविवधयों को बाह्य संस्थाओं को स्थानांतररत कर कदया गया है; यह ईन संबंधों को और ऄवधक
कमजोर बना देता है जो ऄतीत में पररिार को एक साथ बांधे रखते थे। आसके साथ ही पररिार के
शैवक्षक, मनोरं जक, धार्ममक और सुरक्षात्मक कायों में कमी अइ है, वजन्हें आस ईद्देश्य के वलए वनर्ममत
विवभन्न संस्थाओं ने करना प्रारम्भ कर कदया है।
भारतीय पररिार प्रणाली में होने िाले कु छ प्रमुख पररिततन वनम्नवलवखत हैं:
o पररिार में पररिततन: पररिार जो ईत्पादन की एक प्रमुख आकाइ थी, िह ईपभोग की आकाइ
के रूप में पररिर्मतत हो गइ है। पररिार के सभी सदस्यों द्वारा ककसी एकीकृ त अर्मथक ईद्यम में
एक साथ कायत ककये जाने के स्थान पर, ऄब सामान्यतः के िल कु छ पुरुष सदस्य पररिार हेतु
(Diversity In India)
भारत सैिावन्तक और व्यािहाररक, दोनों रूपों में एक बहुल समाज है। ऄपनी एकता और विविधता के
वलए पहचाना जाना आसके वलए ईपयुि ही है। विवभन्न जावतयों और समुदायों के लोगों की संस्कृ वतयों,
धमों और भाषाओं के व्यापक समन्िय ने कइ विदेशी अक्रमणों के बािजूद आसकी एकता और सामंजस्य
को बनाए रखा है।
यहाँ भारी अर्मथक और सामावजक ऄसमानताओं द्वारा समतािादी सामावजक संबंधों के ईद्भि में बाधा
ईत्पन्न ककए जाने के बािजूद, राष्ट्रीय एकता और ऄखंडता सशि रूप से स्थावपत है। आस समन्िय ने
भारत को विवभन्न संस्कृ वतयों का एक ऄवद्वतीय गढ़ बना कदया है। आस प्रकार, भारत समग्र रूप से एक
एकीकृ त सांस्कृ वतक ढांचे के ऄंतगतत बहुसांस्कृ वतक वस्थवत को प्रदर्मशत करता है।
विविधता में एकता का िास्तविक अशय "एकरूपता के वबना एकता" और "विखंडन के वबना
विविधता" से है। यह आस धारणा पर अधाररत है कक विविधता मानिीय ऄंतःकक्रया को समृि बनाती
है।
'विविधता' शधद ऄसमानताओं के बजाय वभन्नता (differences) पर बल देता है। आसका तात्पयत
सामूवहक वभन्नता से है, ऄथातत ऐसे ऄंतर जो ककसी एक समूह के लोगों को ककसी दूसरे समूह से ऄलग
करते हैं। यह वभन्नता जैविक, धार्ममक, भाषाइ अकद ककसी भी प्रकार की हो सकती है। आस प्रकार,
विविधता का ऄवभप्राय नृजावतयों, धमों, भाषाओं, जावतयों और संस्कृ वतयों की विविधता से है।
एकता का अशय एकीकरण से है। यह एक सामावजक मनोिैज्ञावनक वस्थवत है। यह ‘एकत्ि’ तथा ‘हम’
की भािना को प्रदर्मशत करती है। आसका तात्पयत ईस ऄपनेपन से है, जो ककसी समाज के सदस्यों को एक
साथ बांधे रखता है।
विविधता में एकता का ऄथत ऄवनिायत रूप से "समानता के वबना एकता" और "विखंडन के वबना
विविधता" है। यह आस धारणा पर अधाररत है कक विविधता मानि ऄंतर्कक्रया को समृि करती है।
जब हम कहते हैं कक भारत एक महान सांस्कृ वतक विविधता िाला देश है तो आसका तात्पयत यह होता है
कक यहाँ ऄनेक प्रकार के सामावजक समूह और समुदाय वनिास करते हैं। आन समुदायों को आनके
सांस्कृ वतक प्रतीकों जैस,े भाषा, धमत, पंथ, प्रजावत या जावत के अधार पर पररभावषत ककया जाता है।
िावणज्य और समागम की ऄबाध स्ितंत्रता प्रदान करता है। आसके ऄवतररि, िस्तु एिं सेिा कर
(GST) ने 'एक देश, एक कर, एक राष्ट्रीय बाजार' का मागत प्रशस्त ककया है। आस प्रकार यह विवभन्न
क्षेत्रों के मध्य एकता को सुगम बनाता है।
तीथतयात्रा और धार्ममक प्रथाओं से संबवं धत स्थल: भारत में, धमत और अध्यावत्मकता का ऄत्यवधक
महत्ि है। ईत्तर में बर्द्ीनाथ और के दारनाथ से दवक्षण में रामेश्वरम तक, पूित में जगन्नाथ पुरी से
पविम में द्वारका तक धार्ममक मंकदर एिं पवित्र नकदयां देश भर में विस्तृत हैं। तीथतयात्रा की
पुरातन संस्कृ वत आन स्थलों से वनकटता से संबंवधत है, वजसके कारण लोग हमेशा देश के विवभन्न
भागों की यात्राएं करते रहते हैं। आससे लोगों में भू-सांस्कृ वतक एकता की भािना को बढ़ािा वमलता
है।
मेले और त्यौहार: मेले और त्यौहार भी एकीकृ त करने िाले कारक के रूप में कायत करते हैं। ये देश
के सभी भागों में लोगों द्वारा ऄपने स्थानीय रीवत-ररिाजों के ऄनुसार मनाये जाते हैं। ईदाहरण के
वलए, दीिाली देश भर में हहदुओं द्वारा मनाइ जाती है, आसी प्रकार मुवस्लम और इसाइयों द्वारा
क्रमशः इद और कक्रसमस मनाया जाता है। भारत में ऄंतर-धार्ममक त्यौहार भी मनाए जाते हैं।
मानसून के माध्यम से जलिायिीय एकीकरण: सम्पूणत भारतीय ईपमहाद्वीप में जीि एिं
िनस्पवतयाँ, कृ वष प्रथाएँ, लोगों का जीिन एिं ईनके त्यौहार भारत के मानसून काल पर के वन्र्द्त
हैं।
खेल और वसनेमा: देश के करोड़ों लोगों आनमें रुवच रखते हैं और आस प्रकार ये सम्पूणत देश को जोड़ने
का कायत करते हैं।
विविधता से ईत्पन्न चुनौवतयों के बािजूद, भारतीय समाज को बनाए रखने और विकवसत करने में
सामावजक-सांस्कृ वतक विविधता द्वारा वनभाइ गइ भूवमका पर कोइ संदह
े नहीं ककया जा सकता है।
समस्या िास्ति में विविधता नहीं है, बवल्क भारत समाज में विविधता का प्रबंधन है। क्षेत्रिाद,
सांप्रदावयकता, नृजातीय संघषत अकद की समस्याएं ईत्पन्न हुइ हैं क्योंकक विकास का लाभ समान
रूप से वितररत नहीं ककया गया है या कु छ समूहों की संस्कृ वतयों को ईवचत मान्यता प्रदान नहीं की
गइ है।
आसवलए, संविधान और ईसके मूल्यों को हमारे समाज के मागतदशतक वसिांतों का वनमातण करना
चावहए। ककसी भी समाज, वजसने स्ियं को एकरूपता में ढालने का प्रयास ककया है, ने वनवित रूप
से ठहराि देखा है और ऄंततः वगरािट अइ है। आस सन्दभत में सबसे महत्िपूणत ईदाहरण पाककस्तान
का है वजसने पूिी-पाककस्तान पर संस्कृ वत को थोपने का प्रयास ककया और िह ऄंततः बांग्लादेश के
वनमातण का कारण बना।
1. भारत के बहु-सांस्कृ वतक समाज के प्रकाश में, क्या यह कहा जा सकता हैं कक बहु-सांस्कृ वतिाद
और बहुलिाद "विविधता में एकता" एक ही वसक्के के दो पहलू हैं?
दृवष्टकोण:
सितप्रथम आन दोनों शधदों को समझाआये और ईनके बीच की समानताएं/ऄंतर को स्पष्ट
कीवजए।
तत्पिात आनका िणतन भारत के विवशष्ट संदभत में कीवजए। ईत्तर देते समय "विविधता में
एकता" के विषय को ध्यान में रवखए।
साितजवनक क्षेत्र लोक जीिन में सभी व्यवियों के साितजवनक क्षेत्र सांस्कृ वतक रूप
साथ (वनष्पक्ष रूप में) एकसमान से तटस्थ नहीं होता है।
व्यिहार ककया जाता है। साितजवनक क्षेत्र सांस्कृ वतक
ऄंतर्कक्रया का क्षेत्र है। ऐसा कोइ
भी समूह हािी नहीं हो सकता
जो ऄन्य सांस्कृ वतक समूहों को
सवम्मवलत नहीं करता हो।
सांस्कृ वतक विविधता विवभन्न सांस्कृ वतक क्षेत्र में विवभन्न संस्कृ वतयों को
विवभन्न संस्कृ वतयों को ऄनुमवत प्रोत्साहन कदया जाता है।
प्राप्त है, परन्तु समाज िैकवल्पक व्यवियों को समूह का वहस्सा
सांस्कृ वतक रूपों को स्िीकृ त या माना जाता है जो ईनके जीिन
समथतन देने के वलए बाध्य नहीं है। को ऄथत प्रदान करता हैं।
बहुसंस्कृ वतिाद आन सामूहों का
आस प्रकार, बहुलिाद भी
समथतन विवभन्न तरीकों से करने
सांस्कृ वतक गठन के विघटन की
का प्रयास करता है।
ऄनुमवत देता है
प्रमुख वसिांत 1. ऄिसर की समानता 1. संबिता
3. भारत की एकता में ऄनेकता की व्याख्या कीवजए। लोगों के सामावजक सांस्कृ वतक जीिन के
अधार पर आसकी व्याख्या कीवजए।
दृवष्टकोणः
भारत धमत, जावत, भाषा, संस्कृ वत, विरासत आत्याकद में व्यापक विविधता िाला एक वमवश्रत
समाज ककस प्रकार है बताआए।
प्रत्येक से संबंवधत कु छ ईदाहरण दीवजए।
ईत्तर:
भारत की एकता में ऄनेकता
भारत की एकता में ऄनेकता वमवश्रत -नृजातीय िगों के ऄवस्तत्ि, नस्लीय, धार्ममक और
भाषाइ संस्कृ वत का पूरे भारत में एक साथ, आसके ऄवस्तत्ि को प्रदर्मशत करता है।
भारत के राष्ट्र राज्य की भू-राजनीवतक संकल्पना यह सूवचत करती है की ऄपने एकीकृ त साँचे
के भीतर कइ विविध संस्कृ वतयों को शावमल ककया गया है।
भारत के लोगों की सामावजक -सांस्कृ वतक जीिन के ईदाहरणों से ‘एकता में विविधता’ का
परीक्षण वनम्नवलवखत रूप से रे खांककत ककया जा सकता है।
भारतीय त्यौहार पूरे विश्व में ऄपनी जीिंतता के वलए जाने जाते हैं। आसमें सबसे महत्िपूणत
ईदाहरण, कदिाली का त्यौहार है वजसे सभी के द्वारा मनाया जाता है। हालांकक, विवभन्न धमों
और क्षेत्रीय समुदायों में ईत्सि का ऄथत और आससे संबंवधत रस्मों-ररिाज बदलते रहते हैं।
4. लोकतांवत्रक संस्थाओं ने भारत की जावतगत सरं चना में पररिततन ककये हैं, परन्तु आन
पररिततनों ने वपछड़ी जावतयों के वलए के िल अंवशक पुनर्मितरक के रूप में ही पररणाम ही
कदए हैं। चचात करें ।
दृवष्टकोण:
संक्षेप में जावत-संरचना की पररभाषा देते हुए ईत्तर अरं भ करें । तत्पिात पररिततनों की
विस्तृत व्याख्या करते हुए जावत संरचना में पररिततन लाने िाले कारणों पर प्रकाश डालें।
आसके ऄवतररि, आस प्रकार के पररिततनों के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को दशातते
हुए तदनुसार ईत्तर का समापन करें ।
ईत्तर:
एक सामावजक संस्था के रूप में जावत, ऐवतहावसक स्तर पर ऄवस्तत्ि में बनी रही है तथा आसे
विवभन्न सामावजक समूहों के बीच श्रेणीक्रम में विभावजत करने िाले संबंधों के रूप में वचवत्रत
ककया गया है। यद्यवप सामावजक क्रम को श्रेणीक्रम में बांटने िाली यह प्रकृ वत संविधान में
स्थावपत तथा अंबेडकर के शधदों “एक व्यवि एक मत तथा एक मत एक मूल्य” में ऄवभज्ञात
स्ितन्त्रता, समानता और सम्मान के तीन वसिांतों का ईल्लंघन करती है।
स्ितन्त्रता पिात के भारत में, साितभौवमक ियस्क मतावधकार के लोकतंत्रात्मक प्रभाि के
साथ-साथ विधावयका, सरकारी सेिाओं और वशक्षा में ऄनुसूवचत जावत और जनजावत हेतु
स्िीकारात्मक नीवतयों के दोहरे प्रभाि के ऄंतगतत ऐवतहावसक ऄन्याय को सुधारने तथा राज्य
के वलए पुनर्मितरक एजेंडा को लागू करने तथा आस प्रकार से लोगों के सामावजक जीिन में
जावत श्रेणीकरण संबंधी अधार को दुबतल करने की ऄपेक्षा की गयी थी।
साितभौवमक ियस्क मतावधकार का लोकतंत्रात्मक प्रभाि ईत्तर भारत के कृ वष की दृवष्ट से
समृि क्षेत्रों में प्रभािी जावतयों के ईदय का कारण बना वजसका पररणाम ईनके द्वारा राज्य
की सत्ता पर वनयंत्रण के रूप में हुअ। आसका ऄथत था कक जावत श्रेणीक्रम में ऄपनी वस्थवत से
आतर कु छ जावतगत समूह ऄपना प्रभाि डालने तथा प्राधान्य और सामावजक पहचान स्थावपत
करने में सक्षम रहे थे।
आसके पिात 1980 तथा 90 के दशकों में वपछड़ी जावत के अन्दोलन ऄवस्तत्ि में अये
वजन्होंने ईत्तर भारत में जावत समूहों के द्वारा समर्मथत राजनीवतक दलों यथा बी.एस.पी.,
एस.पी. आत्याकद के ईदय में योगदान ककया। दूसरी ओर ये दल सामावजक लामबंदी का
माध्यम बनने में तथा राज्य में सत्ता में भागीदारी में ऄपनी ईपवस्थवत दशातने में सक्षम रहे।
5. "भारत में जातीय-राष्ट्रीय पहचान की ईत्पवत्त में, धमत की तुलना में, भाषाइ, प्रांतीय और
जनजातीय पहचान ही सबसे महत्िपूणत अधार रहे हैं।” स्पष्ट करें ।
दृवष्टकोण:
संक्षेप में ककसी समुदाय की पहचान के अधार के रूप में विवभन्न अधारों जैसे भाषा, क्षेत्र
और धमत की व्याख्या कीवजए। ईसके बाद आसका परीक्षण कीवजए कक आन पहचानों ने देश में
पहचान वनधातररत करने के संिाद में ककस प्रकार भूवमका वनभाइ है।
आससे सहमत भी हो सकते हैं और ऄसहमत भी या आस दृवष्टकोण पर एक मध्य मागत ग्रहण कर
सकते हैं कक धमत ने देश की राष्रीय-सांस्कृ वतक पहचान को अकार देने में ईतनी महत्िपूणत
भूवमका नहीं वनभाइ है।
जहाँ भी अिश्यक हो प्रासंवगक ईदाहरणों के दृष्टान्त दीवजए।
ईत्तर :
जातीय पहचान धन, प्रवतष्ठा और शवि जैसे सामावजक प्रवतफलों के वितरण का अधार है।
ऄवधकांश समाजों में एक या ऄवधक जातीय समूहों का ऄन्यों की ऄपेक्षा अवथक, राजनैवतक
तथा सांस्कृ वतक मामलों में िचतस्ि होता है। जातीय राजनीवत आसीवलए जातीय स्तरीकरण
का रूप ले सकती है जो ‘जातीय-राष्रिाद’ की ईत्पवत्त में पररणत होता है।
राष्र तब वनर्ममत होते हैं जब बहु-जातीय राज्य में नृजातीय समूह स्ि-चैतन्य राजनीवतक
सत्ताओं में रूपांतररत हो जाते हैं। ‘संप्रभुता और स्ि-संकल्प’ के लक्ष्य जातीय राष्ट्रिाद की ओर
ऄग्रसर करते हैं।
बहु-जातीय समाज में बहुधा ऄल्पसंख्यक समूह स्ियं के वलए एक बेहतर व्यिहार सुवनवित
करने हेतु जातीय काडत का प्रयोग करने का प्रयास करते हैं। जब परावजत समूह प्रभािी समूह
6. हाल के कदनों में, भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 44 को लागू करने के वलए काफी प्रयास ककये
जा रहे है। भारत की सामावजक-सांस्कृ वतक विविधता को देखते हुए, आस तरह की मांग ककस
सीमा तक ईवचत है।
दृवष्टकोणः
ऄनुच्छेद-44 क्या है, आसे संदर्मभत करते हुए ईत्तर का पररचय दें। भारत के सामावजक-
सांस्कृ वतक विविधताओं पर विचार करते हुए ईत्तर में आस ऄनुच्छेद को लागू करने के
सम्भािनाओं पर चचात होनी चावहए।
ईत्तरः
भाग-IV का ऄनुच्छेद-44, भारतीय राज्यों को देश में समान नागररक संवहता लागू करने हेतु
वनदवशत करता है। समान नागररक संवहता का ऄवभप्राय प्रत्येक धार्ममक समुदाय के शात्रिय और
प्रथा अधाररत वनजी कानून को सभी नागररकों के वलए वनयंत्रण करने िाले एक समान
नागररक संवहता से पररिर्मतत करना है। ये कानून वििाह, तलाक, ऄवधग्रहण, गोद लेना और
भरण-पोषण को सवम्मवलत करते हैं।
धमत और भाषा अकद के संदभत में, सामावजक और सांस्कृ वतक रूप में भारतीय-राज्य विश्व में
सिातवधक विविध देशों में से एक हैं। ऐवतहावसक रूप से ऄवधसंख्य राज्यों को यह भय रहा कक
राजनैवतक पहचान, सामावजक मतभेद की मान्यता, राज्य की एकता के वलए खतरा है। आस
प्रकार के संदभत में समय-समय पर भारत में समान नागररक संवहता लागू करने की वनरन्तर
मांग रही है। स्पेन, श्रीलंका और तत्कालीन पूिी पाककस्तान के ईदाहरण को देखते हुए आस
तकत में कु छ िास्तविकता वनवहत जान पड़ती है।
आसके ऄवतररि, विवभन्न समुदायों के ईनके पृथक वनजी कानून हैं जो कानून के वनयमों,
बुवनयादी मानिीय और तकत संगत कानून के ईल्लंघन के ऄवतररि देश के कानून के विरूि
जाते हैं। आसवलए भारत में वनिास करने िाले सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होने
िाली एक ईभयवनष्ट कानूनी प्रणाली िांवक्षत हो सकती है।
हालांकक गूढ़ विश्लेषण से यह प्रकट होता है कक यह बहुसंख्यिाद संस्कृ वत का ऄवधरोपण था
और साथ ही साथ ऄल्पसंख्यकों की प्रथा और सामावजक प्रतीकों की ईपेक्षा थी वजसने
ईपरोि िर्मणत देशों में सामावजक ऄशांवत को बढ़ािा कदया। आसके ऄवतररि सांस्कृ वतक
विविवधताओं को दबा देना ऄल्पसंख्यकों के ऄलगाि के संदभत में बहुत महंगा सावबत हो
सकता है वजनकी संस्कृ वत को ‘गैर-राष्ट्रीय’ के रूप में व्यिहार ककया जाता है। आसके ऄवतररि
7. भारत में वििाह और पररिार की विशेषता वनरं तरता के साथ ही पररिततन भी हैं। भारत में
वपछले कु छ दशकों के दौरान वनर्ममत कानूनों और सामावजक-अर्मथक पररिततनों के संदभत में
आसकी चचात करें ।
दृवष्टकोण :
सितप्रथम ईत्तर में आस बात का संवक्षप्त पररचय दें कक भारत में वििाह तथा
पररिार/पाररिाररक संस्था ककस प्रकार महत्िपूणत है।
वद्वतीय, आन संस्थाओं में पररिततन के कारणों, यथा सामावजक-अर्मथक कारण तथा कानूनों के
आन पर प्रभाि (मुख्य रूप से ऄपेक्षाकृ त ऄवधक हाल के क़ानून) पर ऄलग से प्रकाश डालें।
ऄंततः, आस बात को ईजागर करते हुए ईत्तर समाप्त करें कक पररिततनों के बािजूद ककस प्रकार
वििाह तथा पाररिाररक संबंधों के मूल ऄब भी यथाित हैं।
ईत्तर :
वििाह तथा पाररिाररक संस्थाएं भारतीय समाज के मूल मूल्यों के धरोहर हैं। आन संस्थाओं
को ऄब भी संतानोत्पवत्त के सामावजक रूप से मान्यताप्राप्त माध्यम के रूप में देखा जाता है।
हम आन संस्थाओं में वपतृसत्तात्मक मूल्यों तथा सामंतिादी पूिातग्रहों का प्रभाि देख सकते हैं।
तथावप, सामावजक-अर्मथक पररिततनों तथा कानूनों के प्रभाि के कारण आन सस्थाओं में भी
बहुत से पररिततन देखने को वमल रहे हैं।
वििाह तथा पाररिाररक संस्थाओं में पररिततन लाने िाले कारक
अर्मथक पररिततन
o औद्योगीकरण तथा शहरीकरण: शहरों तथा नगरीय संस्कृ वत का पररिार तथा
वििाह की संस्था पर प्रत्यक्ष प्रभाि पड़ता है।
अधुवनक ईद्योगों ने पररिार के अर्मथक कायत-ऄवधकार को कम कर कदया है
तथा संयुि पाररिाररक संरचना को एकल पाररिाररक संरचना से
प्रवतस्थावपत करने में सहायता की है।
ऄवधक वशवक्षत होने तथा कायत करना अरम्भ करने के कारण पररिार में
मवहलाओं की दशा में सुधार अया है। आस प्रकार, पररिार में ऄन्य पुरुष
सदस्यों की भांवत पाररिाररक मुद्दों पर ईनकी भी बात को महत्ि प्रदान ककया
जाता है।
8. स्ितंत्रता के ऄनेक िषों पिात् एिं अधुवनक कानून के ऄवस्तत्ि में होने के बाद भी, बाल
वििाह की प्राचीन प्रथा ऄब भी कु छ िगों में विद्यमान है। भारत में बाल वििाह की प्रथा के
विद्यमान रहने के क्या कारण हैं? यह प्रथा हमारे समाज को ककस प्रकार प्रभावित करती है?
आस प्रथा के ईन्मूलन हेतु क्या ककया जा सकता है?
दृवष्टकोण:
बाल वििाहों के संबंध में सामावजक, सांस्कृ वतक और अर्मथक मुद्दों को सवम्मवलत करते हुए,
आसके कारण बताआए। ये कारण ऄवधक विवशष्ट रूप से बाल वििाह की विद्यमानता से
संबंवधत होने चावहए।
आसके बाद, अधुवनक संदभत में सम्पूणत समाज पर बाल वििाह के कारण पड़ने िाले प्रभाि का
ईल्लेख कीवजए।
ऄंत में आस बुराइ के ईन्मूलन हेतु कु छ ईपायों का सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
बाल वििाह एक पारं पररक प्रथा है वजसे कइ स्थानों पर सामान्यत: पीढ़ी दर पीढ़ी चले अने
के कारण सम्पन्न ककया जाता है और परं परा का पालन न करने से समुदाय से वनष्कावसत
ककये जाने का डर रहता है। आन सब के उपर, ऄवधकाररयों की क्षमता सीवमत है एिं ईनमें
समुदाय के वनणतयों के विरुि जाने की आच्छाशवि की कमी है क्योंकक ऄवधकारी स्ियं भी
समुदाय का भाग है।
ऐसे समुदायों में जहां दहेज या 'िधू-मूल्य' का भुगतान ककया जाता है, वनधतन पररिारों के
वलए यह प्रायः स्िागतयोग्य अय वसि होता है; िधू के पररिार द्वारा िर को दहेज कदए जाने
के मामलों में, यकद िधू कम ईम्र की और ऄवशवक्षत होती है तो ईन्हें कम धन देना पड़ता है।
ऄनेक माता-वपता कम अयु में ही ऄपनी बेटी का वििाह कर देते हैं, क्योंकक ऐसे क्षेत्रों में जहाँ
लड़ककयाँ शारीररक और यौन हमले के ईच्च जोवखम में जी रही होती हैं, प्रायः ईसकी सुरक्षा
को सुवनवित करने हेतु िे ऐसा करना ईसके वहत के वलए सिोत्तम समझते हैं। वशक्षा के
सीवमत ऄिसर, वशक्षा में गुणित्ता की कमी, ऄपयातप्त ऄिसंरचना, पररिहन की कमी एिं आस
कारण विद्यालय जाने के दौरान लड़की की सुरक्षा संबंधी हचताएँ, लड़ककयों को विद्यालय न
भेजने के संबंध में महत्िपूणत योगदान करती हैं और बाल वििाह की प्रिृवत्त को प्रश्रय देती हैं।
लड़ककयों को प्रायः सीवमत अर्मथक भूवमका के साथ एक दावयत्ि के रूप में देखा जाता है।
मवहलाओं का कायत घर-पररिार तक ही सीवमत होता है और आसे ऄवधक महत्ता नहीं दी
जाती। पुरातन कानून, जैसे कक मुवस्लम पसतनल लॉ, 15 से 18 के अयु िगत की लड़ककयों के
वििाह की ऄनुमवत देते हैं।
बाल वििाह के पररणामस्िरूप, वनधतनता का दुष्चक्र अरम्भ होता है। वशक्षा और अर्मथक
ऄिसरों की कम ईपलधधता के कारण ईनके और ईनके पररिार के वनधतनता में जीिन व्यतीत
करने हेतु वििश होने की संभािनाएँ ऄवधक होती हैं। बाल-िधुएँ ऄवधकतर ऄवधकारविहीन,
ऄपने पवतयों पर वनभतर एिं स्िास्थ्य, वशक्षा और सुरक्षा जैसे ऄपने मूल ऄवधकारों से िंवचत
होती हैं। युिा मवहलाओं के योगदान का मूल्य कम अंकने िाला तंत्र स्ियं ऄपनी संभािनाओं
को सीवमत कर देता है। आस प्रकार, बाल वििाह देश से ऐसे निोन्मेष और क्षमता का ऄपिाह
कर देता है जो ईन्हें समृि बनने में सक्षम कर सकता था।
9. पसतनल लॉ बोडत क्या हैं? क्या ईनके वनणतय नागररकों पर बाध्यकारी हैं? ईनके द्वारा
ऄनुपालन ककए जाने िाले एिं सामान्य कानूनी ऄदालतों के वसिांतों के मध्य विसंगवत की
वस्थवत में ककस प्रकार सामंजस्य स्थावपत ककया जा सकता है। चचात कीवजए।
दृवष्टकोण:
पसतनल लॉ के संबंध में संवक्षप्त रूपरे खा प्रदान कीवजए।
पसतनल लॉ बोडों को पररभावषत कीवजए।
भूतकाल में ककए गए कु छ ईपायों एिं साथ ही विसंगवत का वनराकरण करने हेतु समाधान
योग्य समस्याओं को स्पष्ट कवजए।
ईत्तर:
भारत में विवभन्न धमत ऄपने वनजी कानूनों (पसतनल लॉ) द्वारा वनयंवत्रत ककए जाते हैं। प्रत्येक
धमत वििाह, गोद लेन,े ईत्तरावधकारों आत्याकद से संबंवधत मामलों में ऄपने स्ियं के कानून का
पालन करता है। आन सभी मामलों पर धमत का प्रवतवनवधत्ि करने िाले विवभन्न पसतनल लॉ
बोडत द्वारा वनणतय ककया जाता है और लामबंदी की जाती है।
पसतनल लॉ बोडत भारत में पसतनल लॉ के संरक्षण और वनरं तर प्रयोज्यता हेतु ईवचत
रणनीवतयाँ बनाने/ऄपनाने हेतु गैर-सरकारी संगठन हैं। ये बोडत स्ियं को भारत में धार्ममक
समूह की राय के ऄग्रणी वनकाय के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ये बोडत सरकार से संबंध स्थावपत
कर और ईसे प्रभावित कर कायत करते हैं, और सामान्य जनता को महत्िपूणत मुद्दों पर
मागतदशतन प्रदान करते हैं। िे मुख्य रूप से ऐसे ककसी ऄन्य कानूनों या विधान से पसतनल लॉ
का बचाि करते हैं जो ईनके विचार से पसतनल लॉ का ईल्लंघन करता हो।
हहदू कानून ऄवधवनयम (1955-56), मुवस्लम पसतनल लॉ (शरीयत) ऄनुप्रयोग ऄवधवनयम,
सन् 1937 अकद जैसे विधानों द्वारा समर्मथत आन बोडों के वनणतय नागररकों पर बाध्यकारी
होते हैं। हालांकक, नागररकों के मौवलक ऄवधकारों का ईल्लंघन करने िाले वनणतय बाध्यकारी
नहीं होते हैं, यद्यवप ईनका ऄनुपालन न करने से सामावजक बवहष्कार या व्यविगत हमलों
जैसे पररणाम हो सकते हैं।
ईनके द्वारा ऄनुपावलत वसिांतों एिं सामान्य कानूनी न्यायालयों के वसिांतों में विसंगवतयों
का वनराकरण ईनके एिं न्यायाधीशों, कानून-वनमातताओं, धार्ममक नेताओं और समुदाय के
बीच ऄवधक ऄन्योन्यकक्रया के माध्यम से ककया जा सकता है। यह पसतनल लॉ के मामलों के
संबंध में विवधक राय में मतभेदों का समाप्त करने में सहयोग प्रदान करे गी। ऄभी तक आस
प्रकार की ऄन्योन्यकक्रयाओं हेतु कोइ फोरम शायद ही विद्यमान है। आस तरह के मुद्दों की
विभाजनकारी और संिेदनशील प्रकृ वत के कारण से आसे तात्कावलक रूप से हल ककया जाना
चावहए। कु छ ऄन्य ईपाय हो सकते हैं:
11. भले ही हाल के कदनों में जावत व्यिस्था कमजोर हो गयी है, लेककन भारत में लोकतांवत्रक
राजनीवत के पररणामस्िरूप जावत अधाररत पहचान सुदढ़ृ हुइ है। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोण:
भारतीय समाज में जावत व्यिस्था का संवक्षप्त वििरण प्रदान कीवजए।
समाज में जावत व्यिस्था को कमजोर करने िाले कारकों का ईल्लेख कीवजए।
साथ ही, लोकतांवत्रक राजनीवत पर ध्यान के वन्र्द्त करते हुए जावत अधाररत पहचान सुदढ़ृ
होने के कारणों को सूचीबि कीवजए।
जावत अधाररत पहचान को कमजोर करने के वलए कु छ ईपायों का सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
जावत व्यिस्था, शुवि और ऄशुवि के विचारों पर अधाररत सामावजक और व्यािसावयक
पृथक्करण की िंशानुगत प्रणाली है। आसने सामावजक ऄसमानता की मौजूदा संरचना को
तकत संगत ठहराया एिं ईसे सुदढ़ृ भी ककया है। िततमान समय विरोधाभासी वस्थवत को दशातता
है क्योंकक एक ओर जावत व्यिस्था कमजोर हो गइ है, िहीं दूसरी ओर राजनीवतक लामबंदी
के कारण जावत-अधाररत पहचान मजबूत हुइ हैं।
जावत व्यिस्था को कमजोर करने िाले कारक
पदानुक्रवमक संरचना में पररिततन: शुवि और ऄशुवि पर अधाररत जावत पदानुक्रम
धमतवनरपेक्षतािाद के कारण कमजोर हुअ है। आसके ऄवतररक्त, सामावजक प्रवतिा का
अधार जन्म के स्थान पर पररिर्मतत होकर संवपत्त होता जा रहा है।
जजमानी प्रणाली नष्ट होना: जजमानी प्रणाली में िस्तुओं और सेिाओं का अदान-प्रदान
सवम्मवलत होता था वजसमें प्रत्येक जावत व्यािसावयक विशेषता के अधार पर ऄपने
भाग का योगदान करती थी। लेककन, पारं पररक व्यिसायों के नष्ट होने एिं
औद्योगीकरण के कारण यह प्रणाली समाप्त होती जा रही है।
संस्कृ वतकरण: यह वनम्न िणत के वहन्दू जावत समूहों/ जनजावतयों द्वारा ईच्च स्तर प्राप्त
करने के वलए ईच्च जावत समूह का ऄनुकरण करते हुए ऄपनी प्रथाओं और रीवतयों को
पररिर्मतत करने की प्रकक्रया है।
िैश्वीकरण एिं सेिा क्षेत्रकों के ईदय के कारण परं परागत रूप से वनयत व्यािसावयक
प्रणाली का भंग होना।
12. एक संस्था के रूप में जावतव्यिस्था के िततमान रूप को औपवनिेवशक काल के दौरान हुए
घटनाक्रमों के साथ-साथ स्ितंत्र भारत में हुए पररिततनों द्वारा अकार कदया गया है। चचात
कीवजए।
दृवष्टकोण:
जावत व्यिस्था की ईत्पवत्त और ईसके विकास का संवक्षप्त वििरण दीवजए।
चचात कीवजए कक वब्ररटश शासन के दौरान मौजूद जावत व्यिस्था का स्िरुप क्या था तथा
वब्ररटश शासन ने ककस प्रकार आसकी संरचना को प्रभावित ककया।
स्ितंत्रता के पिात् आसके सुधार के वलए ककये गए ईपायों की संक्षप
े में चचात कीवजए तथा आन
ईपायों ने जावत व्यिस्था को कै से प्रभावित ककया, स्पष्ट कीवजए।
आसके ऄवतररि ऄन्य अिश्यक ईपायों के सुझाि दीवजए।
ईत्तर:
जावत एक ऐसी संस्था है जो विवशष्ट रूप से भारतीय ईपमहाद्वीप से सम्बंवधत है। ऄंग्रज
े ी का
शधद 'caste' िास्ति में पुततगाली शधद ‘casta’ से वलया गया है, वजसका शावधदक ऄथत है
शुि नस्ल। आस शधद से अशय एक व्यापक संस्थागत व्यिस्था से है। भारतीय भाषाओं
ऄवभलक्षण रही है, ऄवपतु िततमान में भी यह एक महत्िपूणत भूवमका वनभा रही है। सविस्तार स्पष्ट
कीवजए।
भारतीय समाज
जनसंख्या एवं संबधं धत मुद्दे
8. जनसंख्या संबध
ं ी मुद्दे__________________________________________________________________________ 35
11.1 भारत में जनसंख्या वृधि को धनयंधत्रत करने हेतु ककए गए ईपाय _________________________________________ 44
13.धवगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 61
14. धवगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 68
एक धशधक्षत, प्रबुि और जागरूक जनसंख्या ककसी लोकतंत्र की सुदढ़ृ ता को बढ़ावा देने हेतु सवााधधक
धविसनीय साधनों में से एक है - नेल्सन मंडल
े ा
घनत्व के अधार पर
भारतीय जनसंख्या का
धवतरण:
जनसंख्या घनत्व को
प्रधत आकाइ क्षेत्र में
व्धक्तयों की संख्या के
रूप में ऄधभव्क्त ककया
जाता है। यह ककसी क्षेत्र
धवशेष के संबंध में
जनसंख्या के स्थाधनक
धवतरण की बेहतर
समझ धवकधसत करने में
सहायता करता है। कु ल
जनसंख्या की तुलना में
जनसंख्या घनत्व ककसी
क्षेत्र की बेहतर तस्वीर
प्रस्तुत करता है
धवशेषकर ईस धस्थधत में
जब जनसंख्या ऄसमान रूप से धवतररत हो।
2011 की जनगणना के ऄनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्धक्त प्रधत वगा ककमी है। धवगत
60 वषों में आसमें लगभग 265 व्धक्त प्रधत वगा ककमी की धनयधमत वृधि हुइ है तथा जनसंख्या
घनत्व 1951 के 117 व्धक्त प्रधत वगा ककमी के स्तर से बढ़कर 2011 में 382 व्धक्त प्रधत वगा
ककमी हो गया है।
जल की ईपलब्धता: जल जीवन का सवााधधक महत्वपूणा कारक है। ऄतः लोग ईन क्षेत्रों में धनवास
को प्राथधमकता देते हैं, जहां मीठा एवं स्वच्छ जल सरलता से ईपलब्ध होता है। जल का ईपयोग
पीने, नहाने और भोजन बनाने के साथ-साथ पशुओं, फसलों, ईद्योगों तथा नौसंचालन हेतु ककया
जाता है। यही कारण है कक नदी घारटयां धवि के सबसे सघन बसे हुए क्षेत्रों में सधम्मधलत हैं। आसमें
कोइ अश्चया नहीं है कक लसधु और मेसोपोटाधमया जैसी सभ्यताएं नकदयों के ककनारे ही धवकधसत
हुइ थीं, क्योंकक नकदयां आन क्षेत्रों में बधस्तयों के धलए जल की पयााप्त एवं धनधश्चत मात्रा सुधनधश्चत
करती थीं। मरुस्थलीय क्षेत्रों में जल की ऄपयााप्तता के कारण जनसंख्या घनत्व कम होता है।
मरुस्थलीय क्षेत्रों में के वल मरु ईद्यान (oasis) ही सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं और यहां भी जल
की ईपलब्धता जनसंख्या को सीधमत करती है।
भू-अकृ धत (ईच्चावच): लोग समतल मैदानों और मंद ढालों पर बसना पसंद करते हैं। आसका कारण
यह है कक ऐसे क्षेत्र फसल ईत्पादन, सड़क धनमााण और ईद्योगों के धलए ऄनुकूल होते हैं। पवातीय
और पहाड़ी क्षेत्र पररवहन-तंत्र के धवकास में ऄवरोधक होते हैं, आसधलए ये क्षेत्र कृ धष एवं
औद्योधगक धवकास के धलए ऄनुकूल नहीं होते हैं। ऄतः आन क्षेत्रों में ऄल्प जनसंख्या पाइ जाती है।
गंगा का मैदान धवि के सवााधधक सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में से एक है जबकक धहमालय के
पवातीय क्षेत्र धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। 4000 मीटर से ऄधधक की उाँचाइ पर वायुमंडल की
धवरलता के कारण सााँस लेना करठन और िम करना थका देने वाला होता है। आसधलए के वल ईन
ईच्च पठारी क्षेत्रों में जहां कृ धष और संचार कक्रया ऄपेक्षाकृ त सरल होती है, मानवीय बधस्तयां पायी
जाती हैं ऄन्यथा ऄन्य सभी पठारी क्षेत्रों में मानवीय बधस्तयां घारटयों में ही संकेंकित होती हैं।
जलवायु: ऄधत ईष्ण और शीत मरुस्थलों की चरम जलवायवीय दशाएाँ मानवीय ऄधधवासों के
धलए कष्टकारी होती हैं। सुखद जलवायु वाले क्षेत्र जहां पर ऄधधक मौसमी पररवतान नहीं होते हैं,
लोगों को ऄधधक अकर्थषत करते हैं। आसी प्रकार ऄत्यधधक वषाा ऄथवा चरम एवं कठोर जलवायु
वाले क्षेत्रों में ऄल्प जनसंख्या पायी जाती है।
मृदाएं: कृ धष और आससे संबंधधत गधतधवधधयों के धलए ईपजाउ मृदाएं महत्वपूणा होती हैं। ऄतः
ईपजाउ दोमट मृदा युक्त क्षेत्रों में ऄधधक लोग धनवास करते हैं क्योंकक ये मृदाएं गहन कृ धष के धलए
ऄनुकूल होती हैं।
खधनज: खधनज धनक्षेपों से युक्त क्षेत्र ईद्योगों को बढ़ावा देते हैं तथा खनन और औद्योधगक
गधतधवधधयां रोजगार का सृजन करती हैं। ऄतः कु शल एवं ऄिा कु शल िधमक आन क्षेत्रों की ओर
पलायन करते हैं और ऐसे क्षेत्रों को सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र बना देते हैं।
नगरीकरण: नगर रोजगार के बेहतर ऄवसर, शैक्षधणक एवं धचककत्सा सुधवधाएं तथा पररवहन एवं
संचार के बेहतर साधन प्रदान करते हैं। बेहतर जन सुधवधाएं और नगरीय जीवन के प्रधत अकषाण
लोगों को नगरों की ओर अकर्थषत करता है। आसके पररणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों
की ओर प्रवास होता है और नगरों के अकार में वृधि होती है। धवि के महानगर प्रत्येक वषा बड़ी
संख्या में प्रवाधसयों को अकर्थषत कर रहे हैं।
औद्योगीकरण: औद्योधगक क्षेत्र, रोजगार के ऄवसर प्रदान करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों को
अकर्थषत करते हैं। आसमें के वल कारखानों के िधमक ही नहीं बधल्क ट्ांसपोटा संचालक, दुकानदार,
बैंक कमाचारी, डॉक्टर, ऄध्यापक तथा ऄन्य सेवा प्रदाता भी सधम्मधलत होते हैं।
प्रजननता, जनसंख्या वृधि का महत्वपूणा धनधाारक है। आस खंड में, ईच्च प्रजननता के मापक, स्तर एवं
प्रवृधियों तथा धनधहताथों पर चचाा की जाएगी।
प्रजननता का मापन (Measurement of Fertility)
सवाप्रथम, संतानोत्पादकता (fecundity) एवं प्रजननता (Fertility) के मध्य ऄंतर करना अवश्यक
है। संतानोत्पादकता से अशय संतानोत्पधि हेतु शारीररक क्षमता से है जबकक प्रजननता ककसी
व्धक्त या एक समूह के वास्तधवक प्रजनन धनष्पादन से संबंधधत है। आसके साथ ही संतानोत्पादकता
की कोइ प्रत्यक्ष माप ईपलब्ध नहीं हैं जबकक प्रजननता का ऄध्ययन जन्म संबंधी सांधख्यकीय
अाँकड़ों से ककया जा सकता है। ऄशोधधत जन्म दर (Crude Birth Rate) प्रजननता की एक
महत्वपूणा माप है धजसमें के वल जीधवत जन्मों ऄथाात् जीधवत जन्मे बच्चों की गणना की जाती है।
ऄशोधधत जन्म दर की गणना ककसी धनर्ददष्ट क्षेत्र में एक कै लेंडर वषा के दौरान जन्मे जीधवत बच्चों
की संख्या को ईस वषा के मध्य की कु ल जनसंख्या से धवभाधजत कर की जाती है। ऄशोधधत जन्म
दर को सामान्यतः प्रधत 1000 जनसंख्या पर ऄधभव्क्त ककया जाता है।
ऄशोधधत जन्म दर जनसंख्या वृधि दर में प्रजननता के योगदान को प्रत्यक्ष रूप से आं धगत करती है।
आसकी भी कु छ सीमाएं हैं, क्योंकक हर (denominator) के रुप में कु ल जनसंख्या को धलया जाता
है धजसके ऄंतगात पुरुषों, बहुत कम अयु की बाधलकाओं और ऄधत वृि मधहलाओं (जैधवक रूप से
रूप से प्रजनन के धलए ऄक्षम) को भी शाधमल कर धलया जाता है।
आन सीमाओं को दूर करने के धलए सामान्य प्रजनन दर, अयु-धवधशष्ट प्रजनन दर आत्याकद जैसे ऄन्य
ऄधधक पररष्कृ त प्रजननता मापकों का प्रयोग ककया जाता है।
o सामान्य प्रजनन दर (General Fertility Rate): यह ककसी दी गइ ऄवधध में 15-49 अयु वगा
(गभाधारण योग्य अयु समूह) की प्रधत 1000 मधहलाओं द्वारा जन्म कदए गए जीधवत बच्चों की
संख्या है।
o अयु-धवधशष्ट प्रजनन दर (Age-Specific Fertility Rate): यह कदए गए ककसी वषा या संदभा
ऄवधध के दौरान ककसी धवधशष्ट प्रजनन योग्य अयु-समूह की 1000 मधहलाओं द्वारा जन्म कदए गए
जीधवत बच्चों की संख्या है।
o सकल प्रजनन दर (Total Fertility Rate: TFR): प्रजनन दर से तात्पया है ऐसे जीधवत जन्म लेने
वाले बच्चों की कु ल संख्या है धजन्हें कोइ एक िी जन्म देती यकद वह प्रजनन अयु वगा की पूरी
ऄवधध के दौरान जीधवत रहती और आस अयु वगा के प्रत्येक खंड में औसतन ईतने ही बच्चों को जन्म
देती धजतने ईस क्षेत्र में अयु धवधशष्ट प्रजनन दरों के ऄनुसार होने चाधहए। दूसरे शब्दों में, सकल
प्रजनन दर धियों के एक धवशेष वगा द्वारा ईनकी प्रजनन अयु की ऄवधध के ऄंत तक पैदा ककए गए
बच्चों की औसत संख्या के बराबर होती है।
ईच्च प्रजननता के धनधाारक (Determinants of High Fertility)
भारतीय मधहलाओं में ईच्च प्रजननता हेतु धनम्नधलधखत कारक ईिरदायी हैं:
धार्थमक धवचारधाराएाँ
धववाह संस्था का सावाभौमीकरण
शीघ्र धववाह एवं शीघ्र गभाधारण
भारतीय संस्कृ धत में पुत्रों को वरीयता देने की प्रथा का गहराइ से व्ाप्त होना।
मधहलाओं में प्रजनन के संबंध में अत्मधनणायन के ऄधधकार का न होना।
ईच्च धशशु एवं बाल मृत्यु दर - (स्वास््य का धनम्न स्तर, धनम्न पोषण स्तर तथा धनधानता) भी
पररवार के अकार को बढ़ाने में योगदान करती है।
भारतीय समाज में बच्चों का अर्थथक, सामाधजक, सांस्कृ धतक के साथ-साथ धार्थमक महत्व होना।
गभाधारण को धनयधन्त्रत करने के तरीकों को न ऄपनाया जाना।
भी धवद्यमान हैं जो ककसी दंपधि के प्रजनन व्वहार को धवधनयधमत करते हैं। स्तनपान भारतीय
ईपमहाद्वीप में सवात्र प्रचधलत है और आसका गभााधान पर एक ऄवरोधक प्रभाव होता है। आसके साथ ही
प्रसवोिर ऄवधध के दौरान कु छ वजानाओं को भी व्वहार में लाया जाता है एवं दंपधि से यौन
गधतधवधधयों से दूर रहने की ऄपेक्षा की जाती है। ऄपने प्रथम धशशु के प्रसव के समय मधहला के ऄपने
पैतक
ृ घर जाने की प्रथा भी देश के कु छ भागों में सामान्य रूप से प्रचधलत है। आस प्रथा के कारण भी
धशशु जन्म के ईपरांत दंपधि यौन गधतधवधधयों से दूर रहते हैं धजसके पररणामस्वरूप ऄगले गभाधारण
की प्रकक्रया भी स्थधगत हो जाती है। महीने के कु छ धवधशष्ट कदनों के धलए यौन गधतधवधधयां भी
प्रधतबंधधत होती हैं। आसके ऄधतररक्त यह भी सवाधवकदत है कक यकद कोइ मधहला दादी बनने के बाद भी
गभाधारण करे तो ईसे ईपहास का पात्र बनना पड़ता है।
ईच्च प्रजननता, देश की जनसंख्या समस्या में महत्वपूणा योगदान करने के ऄधतररक्त पररवार के साथ-
छोड़ कदया जाता है। बड़े अकार के पररवारों के बच्चे पररवार के कमज़ोर धविीय संसाधनों की पूर्थत
हेतु प्राय: ऄल्प अयु में ही काया करना अरम्भ कर देते हैं। यहााँ तक कक वे अपराधधक गधतधवधधयों
में धलप्त हो जाते हैं और आस प्रकार वे धवद्यालय जाने एवं धशक्षा प्राप्त करने के ऄवसरों से वंधचत हो
जाते हैं।
आन पररधस्थधतयों में बाधलकाएं सवााधधक पीधड़त होती हैं। ईन्हें प्रायः धवद्यालय नहीं भेजा जाता या
कम ईम्र में ही धवद्यालय जाना बंद करवा कदया जाता है ताकक वे घरे लू कायों में ऄपनी माता की
सहायता कर सकें तथा माता के घर से बाहर काया करने जाने पर ऄपने छोटे भाइ-बहनों की
देखभाल कर सकें । तत्पश्चात् शीघ्र धववाह ईन्हें संतानोत्पधि के धलए धववश करता है और यह
दुष्चक्र धनरं तर जारी रहता है। एक बड़े पररवार में बच्चे (लड़का और लड़की दोनों) ऄपने बचपन
का अनंद लेने से वंधचत हो जाते हैं तथा ऄल्पायु में ईन्हें वयस्कों की भूधमका का धनवाहन करना
पड़ता है।
मृत्यु दर का मापन
मृत्यु दर के धवधभन्न मापकों में से, तीन अधारभूत मापकों यथा: ऄशोधधत मृत्यु दर, जन्म के समय
जीवन प्रत्याशा तथा धशशु मृत्यु दर का वणान करना पयााप्त होगा।
ऄशोधधत मृत्यु दर (Crude Death Rate): यह ककसी एक धवधशष्ट कै लेंडर वषा में ककसी क्षेत्र की
ऄनुमाधनत जनसंख्या के अधार पर प्रधत 1000 व्धक्तयों पर होने वाली पंजीकृ त मृत्युओं की
संख्या होती है।
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (Expectation of Life at Birth): जन्म के समय औसत जीवन
प्रत्याशा मृत्यु दर के स्तर की एक बेहतर मापक है क्योंकक यह जनसंख्या की अयु संरचना से
प्रभाधवत नहीं होती है। “जीवन की औसत प्रत्याशा” या ‘जीवन प्रत्याशा’ नवजात धशशुओं के
जीधवत रहने के संभाधवत वषों की औसत संख्या होती है (जबकक आस ऄवधध के दौरान देश में
प्रचधलत अयु-धवधशष्ट मृत्यु दरों के ऄनुरूप मृत्यु का जोधखम भी मौजूद रहता है)। यह मापक
गणना करने में जरटल है परन्तु समझने में असान है।
आसके पररणामस्वरूप भारत की जनसंख्या वतामान की 1.3 धबधलयन से बढ़कर 2050 तक लगभग 1.7
धबधलयन हो जाएगी, धजसमें वयोवृिों की संख्या लगभग 340 धमधलयन होगी। सेवाधनवृधि से पूवा की
ऄवस्था (ऄथाात् 45 वषा से ऄधधक अयु की जनसंख्या) की जनसंख्या को शाधमल करने पर आस ऄनुपात
में 30% से ऄधधक की वृधि हो जाएगी ऄथाात् वृिों की संख्या लगभग 600 धमधलयन हो जाएगी। आस
प्रकार 2011 और 2050 के मध्य 75 वषा या ईससे ऄधधक अयु वगा के वयोवृि व्धक्तयों की संख्या में
340% की वृधि होने की संभावना है।
धशशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate): जनसांधख्यकी में ईन सभी बच्चों को धशशु के रूप में
पररभाधषत ककया गया है जो ऄपने जीवनकाल के प्रथम वषा में हैं ऄथाात् धजनकी अयु एक वषा से
कम है। भारत जैसे देशों में जहााँ स्वास््य धस्थधतयां धनम्नस्तरीय हैं, कु ल मृत्युओं में धशशु मृत्यु का
योगदान ऄत्यधधक है। आसीधलए प्राय: धशशु मृत्यु दर का ईपयोग ककसी देश की सामाधजक-अर्थथक
धस्थधत तथा जीवन की गुणविा के धनधाारण के एक संकेतक के रूप में ककया जाता है।
मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate): मातृ मृत्यु ऄनुपात का ऄधभप्राय प्रत्येक गभाावस्था
के साथ संबि जोधखम ऄथाात् प्रसूधत संबंधी जोधखम (obstetric risk) से है। मातृ मृत्यु वह होती
है धजसमें एक मधहला की गभाावस्था के दौरान या गभाावस्था की समाधप्त के 42 कदनों के भीतर
मृत्यु हो जाती है (आसकी गणना गभाावस्था की ऄवधध एवं स्थल को ध्यान में रखे धबना की जाती
है)। आसके ऄंतगात गभाावस्था या ईसके प्रबंधन से संबंधधत ककसी भी कारण से हुइ मृत्यु को
सधम्मधलत ककया जाता है तथा दुघाटना या अकधस्मक कारणों से हुइ मृत्यु को सधम्मधलत नहीं
ककया जाता है। आसे प्रधत 1,00,000 जीधवत धशशु जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्युओं की संख्या के
रूप में मापा जाता है।
प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली की 2011-13 की ररपोटा के ऄनुसार, देश में मातृ मृत्यु दर (MMR) 167 प्रधत
1,00,000 जीधवत जन्म है।
सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य (Millennium Development Goal: MDG) 5 के ऄंतगात, 1990 से 2015
के मध्य मातृ मृत्यु दर (MMR) को तीन चौथाइ कम करने का लक्ष्य रखा गया था। आसके पररणामस्वरूप
MMR को 1990 के 560 से घटाकर 2015 में 140 करना था।
जन्म और मृत्यु के ऄधतररक्त एक ऄन्य कारक भी है धजसके कारण जनसंख्या के अकार में पररवतान
होता है। जब लोग एक ईद्गम स्थान से ऄन्यत्र धस्थत गंतव् स्थान की ओर प्रवास करते हैं तो ईद्गम
स्थान की जनसंख्या में कमी होती है और गंतव् स्थान की जनसंख्या में वृधि हो जाती है।
प्रवासन को संसाधनों और जनसंख्या के मध्य बेहतर संतल ु न प्राप्त करने के एक स्वाभाधवक प्रयास के
रूप में देखा जा सकता है। प्रवासन स्थायी, ऄस्थायी या मौसमी हो सकता है। प्रवासन ग्रामीण से
ग्रामीण क्षेत्रों, ग्रामीण से नगरीय क्षेत्रों, नगरीय से नगरीय क्षेत्रों तथा नगरीय से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर
हो सकता है।
अप्रवासन (Immigration): ककसी नए स्थान में अने वाले प्रवाधसयों को ‘अप्रवासी’ कहा जाता है।
ईत्प्रवास (Emigration): ककसी स्थान से बाहर पलायन करने वाले प्रवाधसयों को ‘ईत्प्रवासी’ कहा
जाता है।
लोग बेहतर अर्थथक और सामाधजक जीवन के ईद्देश्य से प्रवास करते हैं। प्रवासन को प्रभाधवत करने
वाले कारकों को दो भागों में धवभाधजत ककया जाता है।
जनसंख्या की प्राकृ धतक वृधि (Natural Growth of Population): जनसंख्या की प्राकृ धतक वृधि से
अशय ककसी क्षेत्र धवशेष में दो समय ऄंतरालों के मध्य जन्म और मृत्यु के ऄंतर के कारण जनसंख्या में
होने वाली वृधि से है।
प्राकृ धतक वृधि = जन्म - मृत्यु
जनसंख्या की वास्तधवक वृधि = जन्म - मृत्यु + अप्रवास - ईत्प्रवास
जनसंख्या की धनात्मक वृधि (Positive Growth of Population): यह तब होती है जब दो समय
लबदुओं के मध्य जन्म दर, मृत्यु दर से ऄधधक हो या जब लोग स्थायी रूप से ऄन्य देशों से एक क्षेत्र में
प्रवास करते हैं।
जनसंख्या की ऊणात्मक वृधि (Negative Growth of Population): यकद दो समय लबदुओं के मध्य
जनसंख्या कम हो जाए तो ईसे जनसंख्या की ऊणात्मक वृधि कहते हैं। यह तब होता है जब जन्म दर,
मृत्यु दर से कम हो जाए या लोग ऄन्य देशों में प्रवास कर जाएाँ।
देशों (प्रधत 1000 पर 125 से घटकर 86) में सवााधधक कमी देखी गइ। पांच वषा से कम अयु वगा
में मृत्यु दर की कमी को सहस्राधब्द धवकास लक्ष्य- 4 में सधम्मधलत ककए जाने से आसकी ओर वैधिक
ध्यान अकृ ष्ट हुअ है।
जनसांधख्यकीय लाभांश के धलए ऄवसर: धवि के कइ भागों की जनसंख्या ऄभी भी युवा है। वषा
2015 में ऄफ्रीका महाद्वीप में 15 वषा से कम अयु के बच्चों की जनसंख्या कु ल जनसंख्या का 41
प्रधतशत तथा 15 से 24 वषा के युवाओं की संख्या कु ल जनसंख्या का 19 प्रधतशत थी। वहीं लैरटन
ऄमेररका एवं कै रे धबयाइ देशों तथा एधशया में प्रजनन दर में ऄत्यधधक धगरावट दजा की गइ है।
आनकी कु ल जनसंख्या में बच्चों (क्रमशः 26 और 24) और युवाओं (क्रमशः 17 और 16 प्रधतशत) की
जनसंख्या का प्रधतशत ऄत्यंत कम है। समग्र रूप से, 2015 तक आन तीनों क्षेत्रों की जनसंख्या में
बच्चों एवं युवाओं की संख्या क्रमशः 1.7 धबधलयन और 1.1 धबधलयन थी।
आन क्षेत्रों के कइ देशों की जनसंख्या में बच्चों के ऄनुपात में धनकट भधवष्य में और ऄधधक धगरावट का
ऄनुमान है, जबकक युवा कायाशील जनसंख्या के अकार एवं ऄनुपात में वृधि होने की संभावना है।
अधित जनसंख्या की तुलना में कायाशील जनसंख्या के ईच्च ऄनुपात वाले देशों के "जनसांधख्यकीय
लाभांश" से लाभाधन्वत होने की ऄधधक संभावना है। हालांकक जनसांधख्यकीय लाभांश की प्राधप्त ईधचत
िम बाजार और ऄन्य नीधतगत पहलों के माध्यम से कायाशील जनसंख्या की ईत्पादक क्षमता का ईधचत
दोहन कर तथा बच्चों एवं युवा मानव संसाधन में धनवेश में वृधि करके ही की जा सकती है।
वैधिक स्तर पर 60 वषा या आससे ऄधधक अयु की जनसंख्या में तीव्रता से वृधि हो रही है: वह
पररघटना, धजसके ऄंतगात प्रजनन दर में कमी एवं जीवन प्रत्याशा में वृधि होती है और
पररणामस्वरूप एक धनधश्चत अयु से ऄधधक की जनसंख्या के ऄनुपात में वृधि होती है; पॉपुलश
े न
एलजग (जनसंख्या में वृिों की बढ़ती संख्या) के रूप में जानी जाती है। वतामान में यह वैधिक स्तर
पर घरटत हो रही है। वस्तुतः वषा 2050 तक ऄफ्रीका के ऄधतररक्त, धवि के सभी प्रमुख क्षेत्रों में
60 या ईससे ऄधधक अयु वगा की जनसंख्या कु ल जनसंख्या की 25 प्रधतशत या ईससे ऄधधक
होगी।
ऐसा माना जाता है कक धवधभन्न देशों में पापुलेशन एलजग का िधमकों एवं सेवाधनवृत िधमकों के
ऄनुपात पर गहरा प्रभाव पड़ता है, धजसे संभाधवत पराधितता ऄनुपात (Potential Support Ratio:
PSR) के रूप में मापा जाता है। आसके ऄंतगात 20 से 64 वषा की अयु के लोगों की संख्या को 65 वषा
या ईससे ऄधधक अयु के लोगों की संख्या से धवभाधजत ककया जाता है। वतामान में, ऄफ्रीकी देशों में
प्रत्येक 65 वषा या ईससे ऄधधक अयु के व्धक्त पर 20 से 64 वषा के औसतन 12.9 व्धक्त मौजूद हैं,
जबकक एधशयाइ देशों में PSR 8.0 तथा यूरोप एवं ईिरी ऄमेररका में यह 4 या ईससे भी कम है।
जापान में PSR 2.1 है जो की संपूणा धवि में सबसे कम है (हालांकक सात यूरोपीय देशों में भी PSR 3
से कम है)। आससे धनकट भधवष्य में कइ देशों की स्वास््य देखभाल प्रणाली के साथ-साथ वृिावस्था एवं
सामाधजक सुरक्षा प्रणाधलयों पर राजकोषीय और राजनीधतक दबाव में वृधि होगी।
धवगत एक शताब्दी के दौरान भारत में जनसंख्या वृधि, वार्थषक जन्म दर, मृत्यु दर तथा प्रवास की दर
के कारण हुइ है और आसधलए यह वृधि धवधभन्न प्रवृधियों को दशााती है। वस्तुतः आस ऄवधध के दौरान
जनसंख्या वृधि के चार धवधशष्ट चरणों की पहचान की गइ है:
चरण 1: 1901 से 1921 की ऄवधध को भारत की जनसंख्या की धीमी ऄथवा धस्थर वृधि का चरण
कहा जाता है क्योंकक आस ऄवधध में वृधि दर ऄत्यंत धनम्न थी, यहााँ तक की 1911-1921 के दौरान
ऊणात्मक वृधि दर दजा की गइ थी। जन्म दर और मृत्यु दर दोनों के ईच्च होने के कारण वृधि दर धनम्न
बनी रही। आसके ऄधतररक्त धनम्नस्तरीय स्वास््य एवं धचककत्सा सेवाएं, लोगों में व्ापक स्तर पर
धनरक्षरता, भोजन और ऄन्य अधारभूत अवश्यकताओं की ऄकु शल धवतरण प्रणाली आस ऄवधध दौरान
ईच्च जन्म और मृत्यु दर के धलए मुख्य रूप से ईिरदायी थे।
चरण 2: 1921-1951 के दशक को जनसंख्या की धनरं तर वृधि की ऄवधध के रूप में जाना जाता है।
देश-भर में स्वास््य और स्वच्छता में सुधारों के पररणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी हुइ। साथ ही साथ
बेहतर पररवहन और संचार तंत्र के कारण धवतरण प्रणाली में सुधार हुअ। आस ऄवधध के दौरान
ऄशोधधत जन्म दर ईच्च बनी रही फलस्वरूप चरण 1 की तुलना में वृधि दर ईच्चतर बनी रही। 1920 के
दशक की महान अर्थथक मंदी और धद्वतीय धवि युि की पृष्ठभूधम में यह वृधि दर प्रभावशाली थी।
चरण 3: 1951-1981 के दशकों को भारत में जनसंख्या धवस्फोट की ऄवधध के रूप में जाना जाता है।
यह धस्थधत देश में मृत्यु दर में तीव्र कमी और जनसंख्या की ईच्च प्रजनन दर के कारण ईत्पन्न हुइ थी।
जनसंख्या की औसत वार्थषक वृधि दर 2.2 प्रधतशत तक ईच्च बनी रही। स्वतंत्रता प्राधप्त के पश्चात् आसी
समयावधध के दौरान एक कें िीकृ त धनयोजन प्रकक्रया के माध्यम से धवकासात्मक कायों को अरम्भ ककया
गया। आन प्रयासों के कारण ऄथाव्वस्था में सुधार हुअ धजससे लोगों के जीवन स्तर में व्ापक सुधार
हुअ। आसका पररणाम यह हुअ कक जनसंख्या में ईच्च प्राकृ धतक वृधि तथा ईच्चतर वृधि दर बनी रही।
आसके ऄधतररक्त पड़ोसी देशों से बढ़ते ऄंतरााष्ट्रीय प्रवासन ने भी ईच्च वृधि दर में योगदान कदया।
चरण 4: यद्यधप 1981 से वतामान तक देश की जनसंख्या की वृधि दर ईच्च बनी हुयी है लेककन आस
ईिरोिर धगरावट होना अरं भ हो गयी है। जनसंख्या वृधि की आस धवधशष्टता के धलए ऄशोधधत जन्म
दर की ऄधोमुखी प्रवृधि ईिरदायी है। आसके धलए देश में धववाह करने की अयु में वृधि, जीवन की
गुणविा में सुधार धवशेष रूप से मधहलाओं की धशक्षा अकद प्रमुख ईिरदायी कारक हैं। देश में जनसंख्या
की वृधि दर ऄभी भी ईच्च बनी हुइ है और वल्डा डेवलपमेंट ररपोटा के ऄनुसार वषा 2025 तक भारत की
जनसंख्या के 1.35 धबधलयन तक पहुाँचने का ऄनुमान है।
ईपयुाक्त धवश्लेषण औसत वृधि दर को दशााता है, ककतु देश में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वृधि दर में
धवस्तृत धभन्नताएाँ धवद्यमान हैं। धचत्र S4 और S5 का संदभा लेकर आसे स्पष्ट ककया जा सकता है।
जनसांधख्यकीय संक्रमण धसिांत, समाज के एक जनसांधख्यकीय ऄवस्था से दूसरी ऄवस्था में प्रवेश के
दौरान मृत्यु दर, प्रजननता और वृधि दर के बदलते प्रधतरूप का एक सामान्य वणान प्रस्तुत करता है।
यह ऄवधारणा सवाप्रथम बीसवीं शताब्दी के मध्य में ऄमेररकी जनसांधख्यकी धवशेषज्ञ फ्रैंक डब्ल्यू
नेटोस्टीन द्वारा दी गइ थी। परन्तु बाद में कइ ऄन्य जनसांधख्यकी धवशेषज्ञों द्वारा आसकी व्ाख्या एवं
धवस्तार ककया गया।
यह धसिांत प्रस्ताधवत करता है कक जनसंख्या वृधि अर्थथक धवकास के समग्र स्तरों से जुड़ी हुइ है तथा
प्रत्येक समाज धवकास-सम्बन्धी जनसंख्या वृधि के एक धवधशष्ट प्रधतरूप को दशााता है।
पारं पररक जनसांधख्यकीय संक्रमण मॉडल के ऄंतगात चार चरण होते हैं:
चरण 1: पूव-ा संक्रमण ऄवस्था (Pre-transition)
यह चरण ऄल्पधवकधसत और तकनीकी रूप से धपछड़े समाजों में धीमी जनसंख्या वृधि को दशााता है।
आस ऄवस्था में मृत्यु दर और जन्म दर, दोनों ही ऄत्यधधक ईच्च होती हैं तथा दोनों के मध्य ऄंतर कम
होता है। आस प्रकार कु ल वृधि दर कम होती है। ईच्च जन्म दर और ईच्च ऄधस्थर मृत्यु दर आस ऄवस्था की
प्रमुख पहचान होती है।
चरण 2: प्रारं धभक संक्रमण ऄवस्था (Early transition)
संक्रमण के प्रारं धभक चरणों के दौरान, मृत्यु दर में कमी होने लगती है जबकक जन्म दर ईच्च बनी रहती
है। आससे जनसंख्या में तीव्र गधत से वृधि होने लगती है। यह 'जनसंख्या धवस्फोट' की ऄवस्था होती है
क्योंकक रोग धनयंत्रण, जन स्वास््य और बेहतर पोषण के ईन्नत साधनों के कारण मृत्यु दर सापेधक्षक
रूप से तेजी से कम होने लगती है। हालांकक, समाज को आस पररवतान के प्रधत संयोधजत होने में और
सापेधक्षक रूप से ऄधधक समृधि और बढ़ती जीवन प्रत्याशा की आन नइ पररधस्थधतयों के ऄनुरूप ऄपने
प्रजनन व्वहार (जो धनधानता और ईच्च मृत्यु दर की ऄवधध के दौरान धवकधसत हुअ था) को पररवर्थतत
करने में ऄधधक समय लगता है। भारत में भी ऄभी तक जनसांधख्यकीय संक्रमण पूणा नहीं हुअ है क्योंकक
मृत्यु दर तो कम हुइ है परन्तु जन्म दर में ईस स्तर तक कमी नहीं अयी है (वस्तुतः भारत में एक
जनसांधख्यकीय धवभाजन धवद्यमान है धजसमें दधक्षणी राज्यों ने जनसांधख्यकीय संक्रमण के ईन्नत स्तर
को प्राप्त कर धलया है)।
चरण 3: ईिरवती संक्रमण ऄवस्था (Late transition)
आस चरण में, जन्म दर घटकर मृत्यु दर के समान होने लगती है। प्रजनन को प्रभाधवत करने वाले
धवधभन्न कारकों, जैस-े गभाधनरोधक तक पहुाँच, मजदूरी में वृधि, नगरीकरण आत्याकद के कारण जन्म दर
में कमी अती है। आसके पररणामस्वरूप जनसंख्या वृधि दर कम होने लगती है।
चरण 4: संक्रमण-पश्चात् की ऄवस्था (Post-transition)
जन्म दर और मृत्यु दर, दोनों का ऄत्यंत कम होना आस चरण में पहुाँच चुके समाजों की पहचान होती है।
वास्तव में, आस ऄवस्था में जन्म दर प्रधतस्थापन स्तर से भी कम हो सकती है। ऄतः आस ऄवस्था में
जनसंख्या वृधि नगण्य होती है ऄथवा यह ऊणात्मक भी हो सकती है। आससे जनसंख्या में कमी अने की
पररधस्थधतयां भी ईत्पन्न हो सकती हैं (ईदाहरण: जापान और जमानी)।
प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली (2013) के अंकड़ों के ऄनुसार, 1991 से 2013 के दौरान अर्थथक रूप से
सकक्रय जनसंख्या (15-59 वषा) या भारत के 'जनसांधख्यकीय लाभांश' का भाग 57.7 से बढ़कर 63.3
प्रधतशत हो गया है। आसी ऄवधध में बेहतर धशक्षा, स्वास््य सुधवधाओं और जीवन प्रत्याशा में वृधि के
कारण वृि लोगों (60 वषा से ऄधधक अयु) का प्रधतशत 6.0 से बढ़कर 8.3 प्रधतशत हो गया है।
2021 तक िम बल की वृधि दर जनसंख्या की वृधि की तुलना में धनरं तर ईच्च बनी रहेगी। आं धडयन
लेबर ररपोटा (टाआम लीज, 2007) के ऄनुसार, 2025 तक 300 धमधलयन युवा िम बल में प्रवेश करें गे
और अगामी तीन वषों में धवि के कु ल कामगारों का 25 प्रधतशत भारतीय होंगे।
यह ऄनुमान लगाया गया है कक 2020 तक भारत की जनसंख्या की औसत अयु धवि में सबसे कम
होगी। यह लगभग 29 वषा होगी जबकक चीन और संयुक्त राज्य ऄमेररका की औसत अयु 37 वषा,
पधश्चम यूरोप की 45 वषा और जापान की 48 वषा होगी। पररणामस्वरूप, ऐसे में जब कक 2020 तक
वैधिक ऄथाव्वस्था में युवा जनसंख्या में 56 धमधलयन की कमी हो सकती है, भारत एकमात्र ऐसा
देश होगा जहां 47 धमधलयन युवाओं की ऄधधशेष संख्या धवद्यमान होगी [धशक्षा, कौशल धवकास और
िम बल पर ररपोटा (2013-14) खंड - III, िम ब्यूरो]
लेककन आस संभावना को वास्तधवक संवृधि में तभी पररवर्थतत ककया जा सकता है, जब कायाशील अयु
वगा में धशक्षा और रोजगार के स्तर में भी तदनुरूप वृधि की जाए। यकद िम बल में शाधमल नए लोग
धशधक्षत नहीं हैं तो ईनकी ईत्पादकता कम रहती है। यकद वे बेरोजगार रहते हैं तो वे अय ऄर्थजत करने
यूनाआटेड नेशन्स पॉपुलेशन ररसचा के ऄनुसार, धपछले चार दशकों में एधशया और लैरटन ऄमेररका के देश
जनसांधख्यकीय लाभांश से धमलने वाले लाभों के मुख्य प्राप्तकताा रहे हैं। धनम्न जन्म दर और धनम्न मृत्यु दर
के कारण यूरोप, जापान और संयुक्त राज्य ऄमेररका जैसे धवकधसत देशों में वृि जनसंख्या ऄधधक है।
यूनाआटेड नेशन्स पॉपुलेशन धडवीज़न द्वारा ककए गए शोध के ऄनुसार, ऄभी तक ऄल्प धवकधसत देशों और
ऄफ्रीका के देशों ने ऄनुकूल जनसांधख्यकीय धस्थधतयों का ऄनुभव नहीं ककया है। धवि बैंक की ग्लोबल
डेवलपमेंट ररपोटा के ऄनुसार चीन की ‘वन चाआल्ड पॉधलसी’ ने 1960 के दशक के मध्य से प्राप्त हो रहे
जनसांधख्यकीय लाभांश को ईलट कदया है।
देश के ऄंदर जनसंख्या के अकार, धवतरण और संरचना को आसके प्राकृ धतक संसाधनों और आसके लोगों
द्वारा ईपयोग की जाने वाली ईत्पादन की तकनीक के संदभा में देखा जाना चाधहए। संसाधनों के ईपयोग
की सीमा और ईनके ईपयोग की तकनीक, जनसंख्या के आष्टतम से कम या ज़्यादा होने के स्तर को
प्रधतधबधम्बत करती है। यकद लोगों की संख्या और ईपलब्ध संसाधनों के मध्य संतुलन स्थाधपत हो तो
ईस देश को आष्टतम जनसंख्या वाला माना जाता है। आष्टतम धस्थधतयों को के वल तभी बनाए रखा जा
सकता है जब नये संसाधनों की खोज या रोजगार के नये रूपों का धवकास बढ़ती जनसंख्या के ऄनुरूप
गधत बनाए रखे।
यकद जनसंख्या बहुत ऄधधक हो जाती है तो "ह्रासमान प्रधतफल का धनयम (law of diminishing
returns)” कायारत हो जाता है। आसका तात्पया है कक एक धनधश्चत लबदु तक ककसी क्षेत्र में काया करने
वाले लोगों की संख्या में वृधि से ईत्पादन में ईल्लेखनीय वृधि होती है। आष्टतम जनसंख्या के स्तर पर
पहुंचने के पश्चात् और ऄधधक वृधि होने से ईत्पादन में वृधि हो सकती है लेककन ह्रासमान दर से और
आस प्रकार प्रधत व्धक्त ईत्पादन कम हो जाएगा। एक ही संसाधन अधार पर जैसे-जैसे पहले से ऄधधक
व्धक्त धनभार होते जाएाँग,े प्रत्येक संबंधधत व्धक्त धनधान होता जाएगा (प्रत्येक को प्राप्त होने वाले ऄंश में
पूवा की तुलना में कमी होने के कारण)। दूसरी ओर, यकद क्षेत्र के सभी संसाधनों को धवकधसत करने के
धलए पयााप्त जनसंख्या नहीं हैं, तो ईस क्षेत्र के व्धक्तयों का जीवन स्तर आन संसाधनों के पूणा ईपयोग से
प्राप्त होने वाले जीवन स्तर से नीचे रह सकता है।
ईदाहरण के धलए वतामान तकनीक के संदभा में, मध्य एधशया को क्षमता से कम जनसंख्या युक्त क्षेत्र के
रूप में माना जा सकता है। ककतु ऄतीत में, मध्य एधशया में ऄधधकतर चरवाहे (pastoralists) धनवास
करते थे जो अधुधनक तकनीकों से ऄनधभज्ञ थे। धजन संसाधनों के दोहन में वे सक्षम थे, वे प्रायः
ऄत्यधधक दबावग्रस्त थे। आस कारण मध्य एधशयाइ लोगों ने भूधम की खोज में समीपवती क्षेत्रों पर
अक्रमण ककया और पूवी यूरोप, भारत और ईिरी चीन तक फ़ै ल गये। आस प्रकार, ईस ऄवधध के दौरान
आस क्षेत्र की जनसंख्या आसकी क्षमता से ऄधधक थी।
ऄतः, क्षमता से कम जनसंख्या और क्षमता से ऄधधक जनसंख्या को मुख्य रूप से संबंधधत देश के धवकास
की ऄवस्था के संदभा में देखा जाना चाधहए। यकद ककसी देश की कृ धष दक्ष हो, ईद्योग, संचार, व्ापार
एवं वाधणज्य तथा सामाधजक सेवाएं धवकधसत ऄवस्था में हों और देश के संसाधनों का पूणा रूप से
ईपयोग ककया जाता हो, तो ईस देश को धवकधसत देश के रूप में माना जा सकता है। आसके ऄधतररक्त
ईस देश में िम ईपलब्धता की कोइ वास्तधवक कमी नहीं होती है, साथ ही बेरोजगारी भी कम होती है।
जनसंख्या का अयु संघटन कु ल जनसंख्या के सापेक्ष धवधभन्न अयु वगा के व्धक्तयों के ऄनुपात को
संदर्थभत करता है। धवकास के स्तर और औसत जीवन प्रत्याशा में पररवतान की प्रधतकक्रया स्वरुप अयु
संघटन भी एक पररवतान से गुजरता है। प्रारं भ में, धनम्न स्तरीय धचककत्सा सुधवधाओं, रोगों के प्रसार
और ऄन्य कारकों के कारण औसत जीवनकाल ऄपेक्षाकृ त कम होता है। आसके ऄधतररक्त, ईच्च धशशु और
मातृ मृत्यु दर भी अयु संघटन पर प्रभाव डालते हैं।
(Dependency Ratio)
पराधितता ऄनुपात (धनभारता ऄनुपात), धनभार वगा (यानी वृिजन और बच्चे, जो काया करने में ऄक्षम
हैं) तथा जनसंख्या के कायाशील वगा (15 से 59 वषा अयु वगा) का ऄनुपात है। पराधितता ऄनुपात 15
वषा से कम या 60 वषा से ऄधधक अयु वगा की जनसंख्या को 15-59 वषा के अयु वगा की जनसंख्या द्वारा
धवभाधजत करके प्राप्त ककया जाता है। आसे सामान्यतः प्रधतशत के रूप में व्क्त ककया जाता है।
पराधितता ऄनुपात में वृधि, ईन देशों के धलए लचता का कारण है धजनकी जनसंख्या में वृिजनों की
संख्या ऄधधक है क्योंकक एक ऄपेक्षाकृ त छोटे कायाशील वगा द्वारा बड़े धनभार वगा का भार वहन करना
करठन हो जाता है। दूसरी ओर, ऄनुत्पादक वगा के सापेक्ष कायाशील व्धक्तयों के ऄधधक ऄनुपात के
कारण घटता हुअ पराधितता ऄनुपात अर्थथक धवकास और समृधि का स्रोत हो सकता है। यह कभी-
कभी 'जनसांधख्यकीय लाभांश' या पररवर्थतत होती अयु संरचना से प्राप्त होने वाले लाभ के रूप में
जाना जाता है। हालांकक, यह लाभ ऄस्थायी होता है क्योंकक कायाशील अयु की धवशाल जनसंख्या
ऄंततः गैर-कायाशील वृि व्धक्तयों में पररवर्थतत हो जाएगी।
जनगणना 2011 की गणना के दौरान, पहली बार तीन कोड प्रदान ककए गए थे: पुरुष-1, मधहला-2
और ऄन्य-3। प्रगणक को धनदेश कदया गया था कक यकद कोइ व्धक्त स्वयं को कोड 1 या 2 में दजा न
करवाना चाहे तो ललग को ‘ऄन्य’ के रूप में दज़ा करे एवं आसे कोड 3 प्रदान करे । यद्यधप यह ध्यान रखना
महत्वपूणा है कक भारत की जनगणना के ऄंतगात 'ट्ांसजेंडरों' पर धवधशष्ट रूप से कोइ अंकड़े एकत्र नहीं
ककये जाते हैं। आस प्रकार, 'ऄन्य' िेणी में न के वल 'ट्ांसजेंडर' बधल्क ऄपनी ललग सम्बन्धी सूचना को
'ऄन्य' िेणी के ऄंतगात दजा कराने का आच्छु क कोइ भी व्धक्त सधम्मधलत हो सकता है। यह भी संभव है
कक कु छ ट्ांसजेंडर ऄपनी पसंद के अधार पर स्वयं को मधहला या पुरुष के रूप में दज़ा करवाया हो।
जनगणना 2011 के ऄनुसार देश में 'ऄन्य' िेणी की जनसंख्या 4,87,803 है।
जनगणना 2011 से प्रदर्थशत होता है कक देश में 207.8 लाख पररवारों में कदव्ांग व्धक्त हैं। ये पररवार
कु ल पररवारों की संख्या का 8.3 प्रधतशत हैं। 2011 की जनगणना में कदव्ांग व्धक्तयों वाले कु ल
पररवारों की संख्या में 2001 की जनगणना की तुलना में 20.5 लाख की वृधि हइ है।
जनगणना 2011 के ऄनुसार 2.68 करोड़ की कु ल कदव्ांग जनसंख्या में से 1.46 करोड़ (54.5%)
साक्षर और शेष 1.22 करोड़ (45.5%) धनरक्षर हैं। वहीं एक दशक पूवा, कदव्ांग व्धक्तयों की साक्षरता
का प्रधतशत 49.3% था और शेष 50.7% धनरक्षर थे।
साक्षरता, धशक्षा का अधार तथा सशधक्तकरण का एक साधन है। धजतनी ऄधधक साक्षर जनसंख्या
होगी, कै ररयर धवकल्पों के धवषय में ईतनी ही ऄधधक जागरूकता होगी तथा साथ ही ज्ञान अधाररत
ऄथाव्वस्था में भी ईतनी ऄधधक भागीदारी देखने को धमलेगी। आसके ऄधतररक्त, साक्षरता समुदाय की
स्वास््य संबंधी जागरूकता में वृधि करती है तथा सांस्कृ धतक और अर्थथक कल्याण के धलए पूणा
भागीदारी को प्रेररत करती है। स्वतंत्रता के पश्चात् साक्षरता स्तर में काफी सुधार हुअ है और वतामान
में हमारी जनसंख्या का लगभग दो-धतहाइ धहस्सा साक्षर है। ककतु, साक्षरता दर भारतीय जनसंख्या की
वृधि दर के साथ सामंजस्य स्थाधपत करने में सक्षम नहीं रही है। आसमें लैंधगक स्तर पर, क्षेत्रीय स्तर पर
तथा सामाधजक समूहों के स्तर पर काफी धभन्नता धवद्यमान है। जैसा कक देखा जा सकता है, मधहला
साक्षरता में पुरुष साक्षरता की तुलना में तीव्रता से वृधि हो रही है। हालााँकक अंधशक रूप से ऐसा
आसधलए भी हुअ है क्योंकक यह वृधि ऄपेक्षाकृ त धनचले स्तरों से अरं भ हुइ थी।
धवधभन्न सामाधजक समूहों के मध्य भी साक्षरता दर धभन्न-धभन्न होती है; ईदाहरण के धलए, ऄनुसधू चत
जाधतयों और ऄनुसूधचत जनजाधतयों जैसे ऐधतहाधसक रूप से वंधचत समुदायों में साक्षरता दर कम है
और आन समूहों में मधहला साक्षरता दर और भी कम है। क्षेत्रीय धभन्नताएं ऄभी भी व्ापक रूप से व्ाप्त
हैं, जैस-े के रल जैसे राज्य पूणा साक्षरता की ओर ऄग्रसर हैं जबकक धबहार जैसे राज्य ऄभी बहुत पीछे हैं।
साक्षरता दर में ऄसमानता धवशेष रूप से महत्वपूणा है क्योंकक वह भावी पीकढ़यों में ऄसमानता को पुन:
ईत्पन्न करने की प्रवृधि रखती है। धनरक्षर माता-धपता को ऄपने बच्चों को बेहतर धशक्षा प्रदान करने हेतु
ऄत्यधधक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आस प्रकार मौजूदा ऄसमानताएं धनरं तर बनी रहती हैं।
धचत्र S13 और S14 देधखए।
यद्यधप जनगणना 2011 के ऄनुसार के वल 74.04 प्रधतशत साक्षरता प्राप्त की गइ है, ककतु मधहला
साक्षरता में ईल्लेखनीय सुधार हुअ है। पुरुष साक्षरता (82.14%) मधहला साक्षरता (65.46%) की
तुलना में ऄभी भी ऄधधक है लेककन मधहला साक्षरता में (11.79 प्रधतशत ऄंक) पुरुष साक्षरता
(6.88 प्रधतशत ऄंक) की तुलना में ऄधधक वृधि हुइ है।
धजला धशक्षा सूचना प्रणाली (District Information System for Education: DISE) के
ऄनुसार, प्राथधमक धवद्यालयों में कु ल नामांकन 2011-12 में 134 धमधलयन से बढ़कर 137
धमधलयन हो गया और बाद में 2013-14 में घटकर 132 धमधलयन हो गया जबकक ईच्च प्राथधमक
नामांकन 51 धमधलयन से बढ़कर 67 धमधलयन हो गया। यह पररवर्थतत होती जनसांधख्यकीय अयु
संरचना के ऄनुरूप है।
भारत ने लगभग सावाभौधमक नामांकन प्राप्त कर धलया है तथा हाडा एवं सॉफ्ट आं फ्रास्ट्क्चर
(धवद्यालय, धशक्षक और ऄकादधमक सहायक स्टाफ) में वृधि हुइ है।
हालााँकक, धशक्षा का समग्र स्तर वैधिक स्तरों से काफी नीचे है। ऄंतरााष्ट्रीय छात्र अकलन कायाक्रम
(Programme for International Student Assessment: PISA) 2009 के पररणामों में 74
प्रधतभाधगयों में से तधमलनाडु और धहमाचल प्रदेश को क्रमशः 72वां और 73वां स्थान प्रदान ककया
गया तथा आनके बाद के वल ककर्थगस्तान का स्थान था। यह हमारी धशक्षा प्रणाली में धवद्यमान ऄंतराल
को प्रकट करता है। PISA, 15 वषा के बच्चों के ज्ञान और कौशल को ईनकी समस्या-समाधान करने
की क्षमताओं का अकलन करने के धलए तैयार ककए गए प्रश्नों के अधार पर मापता है। PISA ने आन
दोनों राज्यों को गधणत और धवज्ञान में OECD (अर्थथक सहयोग और धवकास संगठन) के औसत से
बहुत कम ऄंकों के साथ धनम्नतम स्थान प्रदान ककया था। भारत ने PISA 2012 में भाग नहीं धलया।
ASER (एनुऄल स्टेटस ऑफ एजुकेशनल ररपोटा) के धनष्कषों के अधार पर यह पाया गया है कक
2005 से ग्रामीण भारत के 5 से 16 वषा के अयु वगा के बच्चों के मध्य सीखने का स्तर धनम्न है।
लचताजनक त्य यह है कक आस अकलन का अधार फ्लोर लेवल टेस्ट [साधारण 2-ऄंक के हाधसल
वाले (कै री-फॉरवडा) घटाव और धवभाजन संबंधी कौशल वाले] थे, धजनके धबना कोइ भी धवद्याथी
धवद्यालय में प्रगधत नहीं कर सकता है।
धशक्षा नीधत के धलए बेहतर यह होगा कक आसमें आनपुट के स्थान पर पररणामों पर ध्यान कदया जाए
तथा साथ ही यह गुणविापूणा धशक्षा एवं कौशल धवकास संबंधी अधारभूत संरचना के धनमााण पर
के धन्ित हो।
पररवर्थतत होती जनसांधख्यकी और घटती बाल जनसंख्या सधहत धपराधमड के अधार स्तर पर मानव
पूंजी की ऄपयााप्तता के कारण बुधनयादी कौशल में एक व्ापक बैकलॉग की धस्थधत बनेगी जो भारत
की संवृधि में एक बड़ा ऄवरोध बन सकती है।
ऐसा देखा गया है कक भारत में कामगारों (मुख्य और सीमांत दोनों) का धहस्सा मात्र 39 प्रधतशत है
जबकक 61 प्रधतशत की धवशाल संख्या गैर-कामगारों की है। यह एक ऐसे अर्थथक स्तर को आं धगत करता
है धजसमें एक बड़ा ऄनुपात अधित जनसंख्या का है। साथ ही यह बेरोजगार और ऄल्प बेरोजगार लोगों
की बड़ी संख्या के होने की संभावना की ओर संकेत करता है।
राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों में कायाशील जनसंख्या के ऄनुपात में कु छ धभन्नता कदखाइ पड़ती है, जैस-े
जहां गोवा में यह ऄनुपात लगभग 25 प्रधतशत है वहीं धमज़ोरम में 53 प्रधतशत है। कामगारों के
ऄपेक्षाकृ त ऄधधक प्रधतशत वाले राज्यों में धहमाचल प्रदेश, धसकिम, छिीसगढ़, अंध्र प्रदेश, कनााटक,
ऄरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मधणपुर और मेघालय सधम्मधलत हैं। आसके ऄधतररक्त संघ राज्यक्षेत्रों में
दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव में कामगारों की भागीदारी दर ईच्च है।
भारत जैसे देश के सन्दभा में यह सवाधवकदत है कक धनम्न अर्थथक धवकास वाले क्षेत्रों में ईच्च िम
भागीदारी दर पायी जाती है क्योंकक धनवााह ऄथवा लगभग धनवााह की अर्थथक कक्रयाओं के धनष्पादन के
धलए शारीररक िम करने वाले कामगारों की अवश्यकता होती है।
भारत की जनसंख्या का व्ावसाधयक संघटन (ऄथाात् कृ धष, धवधनमााण, व्ापार, सेवाओं ऄथवा ककसी
भी प्रकार की व्ावसाधयक कक्रया में संलग्न होने के अधार पर व्धक्तयों का संघटन) धद्वतीयक और
तृतीयक क्षेत्रकों की तुलना में प्राथधमक क्षेत्रक के कामगारों के एक बड़े ऄनुपात को दशााता है। कु ल
कायाशील जनसंख्या का लगभग 58.2% भाग कृ षक और कृ धष मजदूर हैं, जबकक के वल 4.2% कामगार
ही घरे लू ईद्योगों में संलग्न हैं। ऄन्य कामगारों की धहस्सेदारी 37.6% है जो गैर-घरे लू ईद्योगों, व्ापार,
वाधणज्य, धवधनमााण एवं मरम्मत तथा ऄन्य सेवाओं में कायारत हैं। जहााँ तक देश में पुरुष और मधहला
जनसंख्या के व्वसाय का प्रश्न है, तो तीनों ही क्षेत्रकों में पुरुष िधमकों की संख्या मधहला िधमकों की
संख्या से ऄधधक है।
मधहला िधमकों की संख्या प्राथधमक क्षेत्रक में ऄपेक्षाकृ त ऄधधक है, यद्यधप धवगत कु छ वषों में धद्वतीयक
और तृतीयक क्षेत्रकों में भी मधहलाओं की भागीदारी में सुधार हुअ है। आस सन्दभा में यह समझना
अवश्यक है कक धवगत कु छ दशकों में भारत में कृ धष क्षेत्रक में कामगारों की धहस्सेदारी में धगरावट दजा
की गयी है (1991 में 66.85% से 2001 में 58.2%)। आसके पररणामस्वरूप, धद्वतीयक और तृतीयक
क्षेत्रक में भागीदारी दर में वृधि हुइ है। यह कामगारों की धनभारता का कृ धष-अधाररत रोजगारों से गैर-
कृ धष अधाररत रोजगारों की ओर स्थानान्तरण प्रदर्थशत करता है। साथ ही यह देश की ऄथाव्वस्था में
क्षेत्रकीय पररवतान (sectoral shift) को भी दशााता है।
देश के धवधभन्न क्षेत्रकों में काया भागीदारी दर की स्थाधनक धभन्नता ऄत्यधधक व्ापक है। ईदाहरणस्वरूप
धहमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्यों में कृ षकों की धहस्सेदारी बहुत ऄधधक है। दूसरी ओर अंध्र
प्रदेश, छिीसगढ़, ओधडशा, झारखण्ड, पधश्चम बंगाल तथा मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में कृ धष कामगारों की
धहस्सेदारी सवााधधक है। कदल्ली, चंडीगढ़ और पुडुचरे ी जैसे ऄत्यधधक नगरीकृ त क्षेत्रों में कामगारों का
बहुत बड़ा भाग ऄन्य सेवाओं में संलग्न है। यह न के वल कृ धष भूधम की सीधमत ईपलब्धता को बधल्क
व्ापक स्तर पर होने वाले नगरीकरण और औद्योधगकीकरण के कारण गैर-कृ धष क्षेत्रकों में और ऄधधक
कामगारों की अवश्यकता को भी आं धगत करता है। (ताधलका T4 और धचत्र S-15 का सन्दभा लीधजए।)
अर्थथक सवेक्षण (2015-16) में ईल्लेख ककया गया है कक 2013 के प्रधतदशा पंजीकरण प्रणाली (Sample
registration System: SRS) अंकड़ों के ऄनुसार, 1991 से 2013 की ऄवधध के दौरान कु ल
जनसंख्या में अर्थथक रूप से सकक्रय जनसंख्या (15-59 वषा) का भाग 57.7 प्रधतशत से बढ़कर 63.3
प्रधतशत हो गया है।
वषा 2014 में जनवरी से जुलाइ के मध्य िम ब्यूरो द्वारा अयोधजत चौथा वार्थषक रोजगार-
बेरोजगारी सवेक्षण दशााता है कक सभी व्धक्तयों के धलए िम बल भागीदारी दर (LFPR) 52.5%
है।
हालााँकक, ग्रामीण क्षेत्रों में LFPR 54.7% है जो शहरी क्षेत्रों के 47.2% की तुलना में ऄधधक है।
मधहलाओं का LFPR ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में ईल्लेखनीय रूप से कम
है।
सवेक्षण के ऄनुसार, बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 4.7% है जबकक शहरी क्षेत्रों में 5.5% है। िम
ब्यूरो के सवेक्षण के ऄंतगात कु ल बेरोजगारी दर को 4.9% माना गया है। ये अंकड़े राष्ट्ीय प्रधतदशा
सवेक्षण कायाालय (NSSO, 2011-12) के ऄधखल भारतीय बेरोजगारी दरों की तुलना में काफी
ऄधधक है। NSSO के सवेक्षण के ऄंतगात ग्रामीण क्षेत्रों में 2.3 प्रधतशत, शहरी क्षेत्रों में 3.8 प्रधतशत
तथा ऄधखल भारतीय स्तर पर 2.7 प्रधतशत बेरोजगारी दर ऄंककत की गयी थी।
राज्यवार िम भागीदारी दर से संबंधधत अंकड़ों के धलए ताधलका - T8 का संदभा लीधजए।
आस धस्थधत में अयु-ललग धपराधमड एक धवस्तृत अधार के साथ धत्रभुजाकार अकृ धत का होता है। यह
मुख्यतः ऄल्प धवकधसत देशों में पाया जाता है क्योंकक यहााँ ईच्च जन्म दर के कारण धनम्न अयु वगों की
जनसंख्या ऄधधक होती है।
आसमें अयु-ललग धपराधमड घंटी के अकार का होता है जो शीषा की ओर शुण्डाकार (tapered) होता
जाता है। यह दशााता है कक जन्म दर और मृत्यु दर लगभग समान है धजसके पररणामस्वरूप जनसंख्या
धस्थर हो जाती है।
आस धपराधमड का एक संकीणा अधार और शुंडाकार शीषा होता है जो धनम्न जन्म और मृत्यु दरों को
दशााता है। धवकधसत देशों में जनसंख्या वृधि सामान्यतः शून्य ऄथवा ऊणात्मक होती है।
ये धपराधमड जन्म दर में क्रधमक धगरावट और जीवन प्रत्याशा में वृधि का प्रभाव दशााते हैं। वृि
जनसंख्या में वृधि के साथ-साथ धपराधमड का शीषा चौड़ा और जन्म दर में कमी (जीधवत जन्मों में कमी)
के साथ-साथ धपराधमड का अधार संकीणा होता जा रहा है। चूाँकक जन्म दर में धगरावट धीमी रही है,
आसधलए 1961 और 1981 के मध्य अधार में ऄधधक पररवतान नहीं हुअ है। कु ल जनसंख्या में मध्य
ईपयुाक्त धचत्र वषा 2026 में ईिर प्रदेश और के रल के ऄनुमाधनत जनसंख्या धपराधमड को दशााता है।
के रल और ईिर प्रदेश के धपराधमड के सवााधधक चौड़े भागों में धवद्यमान ऄंतर पर ध्यान दीधजए। अयु
संरचना में युवा अयु वगा की ओर झुकाव देखने को धमलता है जो भारत के धलए लाभप्रद माना जा रहा
है। धवगत दशक में पूवी एधशयाइ ऄथाव्वस्थाओं और वतामान में अयरलैंड की भांधत, भारत के
“जनसांधख्यकीय लाभांश” से लाभाधन्वत होने की सम्भावना व्क्त की गइ है। यह लाभांश आस त्य से
स्पष्ट होता है कक कायाशील अयु वगा की वतामान जनसंख्या ऄपेक्षाकृ त ऄधधक है और अधित वृि लोगों
की जनसंख्या ऄपेक्षाकृ त कम है। ककतु आस लाभांश के सकारात्मक पररणाम स्वतः ही प्राप्त नहीं होंगे ;
ईसके धलए आस लाभांश का ईपयोग ईधचत नीधतयों के माध्यम से सुधनयोधजत तरीके से ककये जाने की
अवश्यकता है।
और वे अधुधनक तकनीकी पिधतयों का ईपयोग भी करते हैं। आन देशों में ब्राजील, कोलंधबया, पेरू,
जायरे , रूस अकद सधम्मधलत हैं। ये देश संसाधन संपन्न देश हैं परन्तु जनसंख्या की कमी के कारण आन
संसाधनों का पूणा रूप से ईपयोग नहीं हो सका है। आनकी समस्याएं प्रायः प्रधतकू ल जलवायु दशाओं के
कारण बढ़ जाती हैं।
(Problems of Over-population)
तीव्र जनसंख्या वृधि: धवशेष रूप से पररवार धनयोजन प्रथाओं के ऄभाव में जनसंख्या तीव्र गधत से
बढ़ती है। आससे ऄपेक्षाकृ त छोटे कायाशील वगा पर अधित बच्चों की संख्या में वृधि होती है। यह
अधित जनसंख्या सामाधजक सेवाओं पर ऄधतररक्त दवाब डालती है।
बेरोजगारी: ऄनेक ऄल्पधवकधसत देशों में औद्योधगक क्षेत्र पूणातः धवकधसत नहीं हैं। ऄतः ऄकु शल
िधमकों के धलए रोजगार के कम ऄवसर ईपलब्ध होने के कारण बेरोजगारी की ईच्च धस्थधत बनी
रहती है। दूसरी ओर, पयााप्त प्रधशक्षण सुधवधाओं के ऄभाव के कारण कु शल िधमकों का ऄभाव
होता है। ऄत्यधधक जनसंख्या वाले ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी या ऄल्प रोज़गार भी एक प्रमुख
समस्या है। ऐसे में लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं जहां प्रायः रोजगार के ऄवसरों को प्राप्त
करना और भी करठन होता है। आसके ऄधतररक्त, नगर ऄधत भीड़-भाड़ युक्त हो जाते हैं। पररणामतः
जीवन धनवााह हेतु पररधस्थधतयााँ और ऄधधक धनम्नस्तरीय हो जाती हैं।
धनम्न जीवन स्तर: स्वास््य, स्वच्छता और अवास के मानक धनम्न स्तरीय होने के कारण स्वास््य
संबंधी समस्याओं, कु पोषण एवं रोगों के प्रसार को बढ़ावा धमलता है। लोगों में ऄज्ञानता और
धविीय संसाधनों की कमी से धस्थधत और ऄधधक गंभीर हो जाती है।
कृ धष संसाधनों का ऄल्प ईपयोग: कृ धष की परं परागत पिधतयााँ, पुराने एवं ऄपयााप्त ईपकरण,
खेतों में सुधार करने हेतु धविीय संसाधनों की कमी, सीमांत कृ धष क्षेत्रों (जैसे ईच्चभूधमयों) का
ईपयोग न ककये जाने या दुरुपयोग ककये जाने आत्याकद कारणों से कृ धष ईत्पादन आसकी संभाधवत
क्षमता से बहुत धनम्न स्तर पर बना हुअ है। पूंजी की कमी तथा कृ षकों के पारं पररक दृधष्टकोण के
कारण नवाचारों को ऄपनाने की धीमी प्रकक्रया से कृ धष तकनीकों को तार्दकक बनाने और अर्थथक
रूप से बड़े एवं लाभदायक खेतों के धलए भू-स्वाधमत्व में सुधार करने में अने वाली करठनाआयों में
वृधि होती है।
जनसंख्या का ऄसमान धवतरण: ऄल्प-जनसंख्या वाले देशों में औसत जनसंख्या घनत्व कम पाया
जाता है। प्रायः जन्म दर के ऄधधक होने पर भी जनसंख्या में धनम्न गधत से ही वृधि होती है।
जनसंख्या वृधि का एक महत्वपूणा कारण अप्रवासन है परं तु यह सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों के स्थान
पर कस्बों और नगरों की ओर ऄधधक होता है। साथ ही साथ बेहतर जीवन धनवााह पररधस्थधतयों के
कारण नगर पहले से ही धवरल रूप से बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों से और लोगों को अकर्थषत करते रहते
हैं। ग्रामीण क्षेत्रों और नगरों के मध्य ऄसंतुलन ऄल्प जनसंख्या वाले देशों की एक प्रमुख समस्या है।
दूरस्थता (Remoteness): धवरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ऄधधवास में वृधि करना करठन होता है
क्योंकक लोग शहर की सुधवधाओं से दूर जाने के आच्छु क नहीं होते हैं। बेहद कम जनसंख्या के धलए
व्ापक स्तर पर संचार, स्वास््य, धशक्षा या ऄन्य सुधवधाएं प्रदान करने हेतु ऄत्यधधक पूज
ं ी व्य
करनी पड़ती है ऄतः प्रायः ऐसे क्षेत्रों में सुधवधाओं का ऄभाव होता है। आससे लोगों की ऐसे क्षेत्रों
(कम सुधवधा युक्त) में बसने की ऄधनच्छा में वृधि होती है।
संसाधनों का ऄल्प ईपयोग: ककसी देश की कम जनसंख्या ईसके संसाधनों के पूणा दोहन को करठन
बनाती है। आन क्षेत्रों में सामान्यतः खधनजों, धवशेष रूप से बहुमूल्य धातुओं और पेट्ोधलयम का
धनष्कषाण ककया जाता है क्योंकक धन की आच्छा ऄन्य प्रकार के लाभों के महत्त्व को कम कर देती है।
कृ धष संसाधनों को धवकधसत करना ऄधधक करठन होता है क्योंकक ईनसे एक बेहतर प्रधतफल
(ररटना) प्राप्त करने से पूव,ा दीघाावधध तक ऄत्यधधक पररिम की अवश्यकता होती है।
मंद औद्योधगक वृधि: यह धस्थधत िम, धवशेष रूप से ऄल्प जनसंख्या वाले क्षेत्रों में कु शल िम की
कमी के कारण ईत्पन्न होती है; ईदाहरण के धलए दधक्षण ऄमेररकी और ऄफ्रीकी देशों में। ऐसे में
अयाधतत कु शल िम औद्योधगक धवकास की लागत में वृधि करता है। आसके ऄधतररक्त जीवन स्तर
के मानक ईच्च होने के बावजूद कम जनसंख्या पयााप्त स्तर का बाजार ईपलब्ध कराने में सक्षम नहीं
होती है।
जलवायु संबध
ं ी समस्याएं: प्रधतकू ल जलवायु या ईच्चावच दशाएाँ, ऄधधवास को करठन बनाती हैं।
ऐसी दशाएाँ धवकास में बाधा ईत्पन्न करती हैं और आन पर पूणा रूप से धवजय प्राप्त करना संभव नहीं
है।
धवगत वषों में देश के ललगानुपात में सुधार हुअ है। जनगणना के ऄनुसार, ललगानुपात 2001 के प्रधत
1000 पुरुषों पर 933 मधहलाओं से बढ़कर 2011 में प्रधत 1000 पुरुषों पर 943 मधहलाएाँ हो गया है।
राज्यों/कें ि शाधसत प्रदेशों के ललगानुपात संबंधधत अंकड़ों को ताधलका में प्रदर्थशत ककया गया हैl
2011 की जनगणना के ऄनुसार, बाल ललगानुपात (0-6 वषा) में कमी दजा की गइ। यह 2001 के प्रधत
1000 बालकों पर 927 बाधलकाएाँ से घटकर 2011 में 919 हो गया है।
आस कम होते बाल ललगानुपात और बाधलकाओं की ईपेक्षा का मुख्य कारण पुत्र को वरीयता देना और
आससे संबंधी ऄन्य धविास हैं जैसे- के वल पुत्र ही ऄंधतम संस्कार पूणा कर सकता है; के वल पुरुष द्वारा ही
वंश को अगे बढ़ाया जा सकता है; वही ईिराधधकारी बन सकता है; वृिावस्था में माता-धपता की देख-
भाल के वल पुत्र ही कर सकता है और पुरुष ही ऄपने पररवार का भरण-पोषण कर सकता है, अकद।
ऄत्यधधक दहेज की मांग बाधलका भ्रूण हत्या/धशशु हत्या हेतु ईिरदायी ऄन्य कारण है। छोटे पररवार
आन्फे क्शन (RTI) एवं यौन संचाररत संक्रमण (Sexually Transmitted Infections) और राष्ट्रीय
एड्स धनयंत्रण संयक्र
ा मों को एक जन-के धन्ित कायाक्रम बनाने हेतु संगठन के प्रबंधन के मध्य
ऄधधकाधधक एकीकरण को प्रोत्साधहत करना।
संचारी रोगों की रोकथाम एवं धनयंत्रण।
प्रजनन एवं धशशु स्वास््य सेवाओं की ईपलब्धता तथा पररवारों तक पहुाँच बनाने हेतु भारतीय
धचककत्सा प्रणाधलयों का एकीकरण करना।
सकल प्रजनन दर के प्रधतस्थापन स्तर को प्राप्त करने हेतु छोटे पररवार के अदशा को प्रबलता से
प्रोत्साधहत करना।
पररवार कल्याण काबंधधत सामाधजक क्षेत्रक कायाक्रमों के कक्रयान्वयन को एकीकृ त करना।
प्रधतस्थापन स्तर पर सकल प्रजनन दर: यह वह सकल प्रजनन दर है धजस पर प्रत्येक नवजात बाधलका
के ईसके जीवनकाल में औसतन के वल एक बेटी होगी। प्रत्येक मधहला ईतने ही बच्चों को जन्म देगी
धजतने ईसके प्रधतस्थापन हेतु अवश्यक हैं। आस प्रकार आसका पररणाम शून्य जनसंख्या वृधि के रूप में
पररलधक्षत होता है।
धस्थर जनसंख्या: ऐसी जनसंख्या जहााँ जन्म दर एवं मृत्यु दर एक दीघाावधध में धस्थर बनी हुइ है। आस
प्रकार की जनसंख्या एक ऄपररवतानशील अयु धवतरण को प्रदर्थशत करे गी तथा एक धस्थर दर पर वृधि
करे गी। जहााँ प्रजनन दर और मृत्यु दर एक समान होती हैं वहां धस्थर जनसंख्या स्थायी बनी रहती है।
भारत के राष्ट्रीय पररवार कल्याण कायाक्रम का आधतहास स्पष्ट करता है कक राष्ट्र जनांकककीय पररवतान
हेतु पररधस्थधतयों के सृजन के धलए ऄत्यधधक प्रयास कर सकता है परन्तु ऄधधकााँश जनांकककीय चर
(धवशेष रूप से वे जो मानव प्रजनन से संबंधधत हैं) ऄंततोगत्वा अर्थथक, सामाधजक तथा सांस्कृ धतक
पररवतान के धवषय हैं।
स्वतंत्रता पूवा ऄधभजात वगा के मध्य जनसंख्या धनयंत्रण को प्रोत्साधहत करने हेतु
ईिरदायी सामान्य कारक
जन सामान्य के मध्य जागरूकता का ऄभाव।
राजनीधतक और बौधिक ऄधभजात वगा के मध्य जनसंख्या नीधत के
पक्ष में तका ।
धचककत्सालयों की स्थापना हेतु एवं लोगों को सूचना ईपलब्ध
करवाने हेतु ऄलग-थलग प्रयास।
जन्म धनयंत्रण के साधनों हेतु जनसंख्या गधतकी तथा ईपागमों की
समझ में मतभेद होने के बावजूद गााँधी और नेहरु द्वारा जनसंख्या
धनयंत्रण का प्रबल समथान ककया गया।
1952 गााँधीवादी दृधष्टकोण के साथ पररवार धनयोजन की शुरुअत
राज्य प्रायोधजत पररवार धनयोजन कायाक्रम प्रारम्भ ककया गया।
मुख्य धवधधयों के रूप में संयम और सामंजस्य के साथ गााँधीवादी
दृधष्टकोण।
1950-60 नैदाधनक दृधष्टकोण
अर्थथक मॉडल जनसंख्या वृधि और धवकास के मध्य एक
नकारात्मक संबंध को प्रदर्थशत करता है।
जनांकककीय दरों एवं ऄनुपातों का ऄनुमान।
ज्ञान, मनोवृधत तथा व्वहार का ऄध्ययन।
प्रजनन से संबंधधत शोध।
नैदाधनक दृधष्टकोण।
1960-70 धवस्ताररत दृधष्टकोण तथा परीक्षण
धवस्तृत कायाक्रम।
ऄंतगाभााशयी गभाधनरोधक ईपकरण (intrauterine
contraceptive device: IUCD) कायाक्रम।
लक्ष्य ऄधभमुखीकरण (तृतीय पंचवषीय योजना)।
संगठनात्मक पररवतान।
1970-80 धशधवर अधाररत दृधष्टकोण (Camp approach)
सतत धवकास की ऄवधारणा।
सामूधहक नसबंदी (Vasectomy) धशधवर।
पररवार धनयोजन का राष्ट्र स्तरीय ऄध्ययन।
प्रथम जनसंख्या नीधत वक्तव् की घोषणा।
स्वैधच्छकता पर बल देते हुए जनता सरकार के ऄधीन नीधत।
1980-90 कै फे टेररया अधाररत दृधष्टकोण
गभाधनरोधक के स्थान पर पररवार के अकार धनयंत्रण पर बल देना
और कै फे टेररया दृधष्टकोण ऄपनाना।
धनवल जनन दर (Net Reproductive Rate:NRR) के संदभा में
धनयोजन (1996 तक NRR को आकाइ करने के लक्ष्य की प्राधप्त)।
11.1 भारत में जनसं ख्या वृ धि को धनयं धत्रत करने हे तु ककए गए ईपाय
मंत्रालय (MoHFW) लाभाथी को होने वाली पाररिधमक हाधन और नसबंदी करने वाले सेवा
प्रदाता (और धचककत्सक दल) को क्षधतपूर्थत प्रदान करता है।
पुरुष भागीदारी को बढ़ाना और नॉन-स्के लपल वेसक्टॉमी (Non Scalpel Vasectomy) को
प्रोत्साधहत करना। नॉन-स्के लपल वेसक्टॉमी में कोइ चीरा नहीं बधल्क के वल सुराख ककया जाता है
आसधलए कोइ टांके नहीं लगाये जाते।
धमनीलैप ट्यूबक्
े टोमी (Minlap Tubectomy) सेवाओं पर ऄधधक बल देना क्योंकक ये ऄधधक
सरल होती हैं और आनके धलए के वल MBBS डॉक्टर की अवश्यकता होती है, न कक ककसी
िातकोिर िी रोग धवशेषज्ञ या सजान की।
सावाजधनक-धनजी भागीदारी (PPP) के तहत पररवार धनयोजन सेवाओं के धलए सेवा प्रदाताओं के
अधार में वृधि करने के धलए ऄपेक्षाकृ त ऄधधक धनजी/गैर-सरकारी संगठनों को मान्यता प्रदान
करना।
पररवार धनयोजन कायाक्रम के ऄंतगात की गयी नवीन पहलें
अशा (ASHA) कायाकतााओं द्वारा लाभार्थथयों के घर तक गभाधनरोधकों की अपूर्थत करने की
योजना: सरकार द्वारा लाभार्थथयों के घरों तक गभाधनरोधकों की अपूर्थत करने हेतु अशा
device: PPIUCD) की नइ धवधध की शुरुअत द्वारा ऄंतराल बढ़ाने वाली धवधधयों को प्रोत्साहन।
Cu IUCD 375 नामक एक नए ईपकरण का प्रारं भ, जो पांच वषों तक प्रभावशाली रहता है।
PPIUCD की शुरुअत के साथ प्रसवोिर पररवार धनयोजन (PPFP) पर जोर तथा जननी सुरक्षा
योजना (JSY) के तहत संस्थागत प्रसव हेतु अने वाले ऄधधक मामलों के पूज
ं ीकरण के धलए
प्रसवोिर नसबंदी के रूप में नसबंदी करने के धलए मुख्य धवधध के रूप में धमनी लैपरोटॉमी
(Minilaprotomy) या धमनी लैप (Minilap) को बढ़ावा देना।
ईच्च सकल प्रजनन दर (TFR) वाले 11 राज्यों के धलए नसबंदी के स्वीकारकतााओं हेतु क्षधतपूर्थत में
वृधि।
राज्यवार काया योजनाओं पर कायारि है। FP-2020 की मूल प्रधतबिताएाँ धनम्नधलधखत हैं:
o पररवार धनयोजन पर बढ़ती धविीय प्रधतबिता धजसके तहत भारत ने 2012 से 2020 तक 2
धबधलयन ऄमेररकी डॉलर के अवंटन की प्रधतबिता व्क्त की है।
o 2020 तक 48 धमधलयन (4.8 करोड़) ऄधतररक्त मधहलाओं की पररवार धनयोजन सेवाओं तक
o वतामान में गभाधनरोधकों का प्रयोग करने वाली 100 धमधलयन (10 करोड़) मधहलाओं के
कवरे ज को बनाए रखना।
स्वैधच्छक पररवार धनयोजन संबध
ं ी सेवाओं, अपूर्थतयों एवं सूचनाओं तक बेहतर पहुंच के माध्यम से
ऄपूररत अवश्यकताओं में कमी करना। ईपयुाक्त कारकों के ऄधतररक्त जनसंख्या धस्थरता कोष
(National Population Stablization Fund) द्वारा जनसंख्या धनयंत्रण ईपायों के रूप में
धनम्नधलधखत रणनीधतयों को ऄपनाया गया है:
o प्रेरणा रणनीधत: जनसंख्या धस्थरता कोष (JSK) द्वारा युवा माताओं और धशशु के स्वास््य के
धहत में, लड़ककयों की धववाह की अयु में वृधि करने और प्रथम बच्चे में धवलम्ब तथा पहले एवं
दूसरे बच्चे में ऄन्तराल को बढ़ाने में सहायता करने हेतु आस रणनीधत को प्रारम्भ ककया गया।
आस रणनीधत को ऄपनाने वाले दम्पधतयों को सम्माधनत ककया जाएगा। यह रणनीधत समुदाय
की मानधसकता को पररवर्थतत करने में सहायता करे गी।
o संतधु ष्ट रणनीधत: आस रणनीधत के तहत जनसंख्या धस्थरता कोष, सावाजधनक-धनजी भागीदारी
के तहत नसबंदी ऑपरे शन के संचालन हेतु धनजी क्षेत्र के िीरोग धवशेषज्ञों एवं नसबंदी शल्य-
धचककत्सकों को अमंधत्रत करता है। 10 या आससे ऄधधक (नसबंदी) के लक्ष्य को प्राप्त करने
वाले धनजी ऄस्पतालों/नर्ससग होम को रणनीधत के ऄनुसार ईधचत रूप से पुरस्कृ त ककया जाता
है।
o राष्ट्रीय हेल्पलाआन: JSK, प्रजनन स्वास््य, पररवार धनयोजन, मातृ एवं धशशु स्वास््य
आत्याकद पर धन:शुल्क परामशा ईपलब्ध करवाने हेतु कॉल सेंटसा का संचालन भी कर रहा है।
o समथानकारी तथा सूचना, धशक्षा एवं संचार (IEC) गधतधवधधयां: जनसंख्या धस्थरीकरण के
संदभा में जागरूकता एवं समथान संबंधी ऄपने प्रयासों के एक भाग के रूप में जनसंख्या
धस्थरता कोष द्वारा आलेक्ट्ॉधनक मीधडया, लप्रट मीधडया, कायाशालाओं, वॉकाथन तथा ऄन्य
गधतधवधधयों के प्रसार हेतु ऄन्य मंत्रालयों, धवकास भागीदारों, धनजी क्षेत्रों, कॉपोरे ट और
Fig. - S1
Fig. - S2
Fig. - S4
Fig S6
Trivia: Population Doubling Time: Population doubling time is the time taken by
any population to double itself at its current annual growth rate.
Fig. – S8
Fig. S 12
Fig. - S 13
Fig S 15
Table T1
Table T3
Table T5
2. प्रजनन स्वास््य क्या है? यह ककस प्रकार वतामान पररवार धनयोजन तथा मातृ एवं धशशु
प्रजनन व बाल स्वास््य कायाक्रम 1997 में शुरू हुअ। आसमें ऄनचाहे गभा की रोकथाम एवं
प्रंबधन, जच्चा-बच्चा की सुरक्षा को बढ़ावा तथा प्रजनन संबंधी संक्रमण एवं यौन संक्रमण अकद
की रोकथाम के धलए धवधभन्न सेवाएाँ एकीकृ त रूप से ईपलब्ध हैं। कायाक्रम का लक्ष्य है - ईन
लोगों तक आन सेवाओं का धवस्तार करना जो ऄभी तक आन सेवाओं से वंधचत रहे हैं। ईपेधक्षत
जनसमूह को धजसमें ककशोर तथा अर्थथक व सामाधजक रूप से धपछडेऺ लोग जैसे- शहरी झुग्गी
वाले व अकदवासी जनसंख्या अकद को सधम्मधलत ककया जाता है।
4. क्या कारण हैं कक राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत भारत में जनसंख्या वृधि रोकने में धवफल रही है?
दृधष्टकोणः
सीधा स्पष्ट प्रश्न। कु छ कारणों को धलखें।
कु छ सुझावों के साथ धनष्कषा दें।
ईिरः
जहााँ एक ओर जन्मदर को कम करने के धलए कोइ प्रभावी संस्थागत कक्रयाधवधध (मैकेधनज्म)
नहीं रही है वहीं दूसरी ओर मृत्युदर को कम करने में संतोषजनक सफलता धमली है। स्वास््य
एवं स्वच्छता की धस्थधत में सुधार से मृत्यु दर में काफी कमी अयी है। ऄतः धवकास और
बढ़ती जनसंख्या के बीच ऄसन्तुलन की धस्थधत में पररवार धनयोजन का राष्ट्रीय स्तर पर
महत्व बढ़ गया है।
भारत में जन्मदर को कम करने के धलए ‘पररवार धनयोजन कायाक्रम’ ऄपनाया गया। स्वास््य
मंत्रालय के ऄन्तगात पररवार धनयोजन के धलए एक धवभाग बनाया गया, धजसने ऄप्रैल 1976
में ‘राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत’ बनायी और 1981 में आसे संशोधधत ककया गया।
5. अर्थथक धवकास ककसी समाज की जनसांधख्यकीय को ककस प्रकार प्रभाधवत करता है? भारत
के सन्दभा में आसकी चचाा करें ।
दृधष्टकोण:
प्रश्न का मूल धवषय अर्थथक धवकास और जनसांधख्यकीय पररवतान के बीच संबंध है। ईिर को
धनम्नधलधखत तरीके से प्रस्तुत ककया जा सकता है:
भारत में अर्थथक धवकास के संबंध में संक्षेप में सामान्य जनसांधख्यकी प्रवृधि को
समझाएं।
तत्पश्चात् धवस्तार से चचाा करें कक भारतीय समाज के अर्थथक धवकास द्वारा क्या
जनसांधख्यकीय पररवतान हुए हैं। ईदाहरण: जनन दर में कमी, ललगानुपात अकद ।
ईिर:
अर्थथक धवकास और जनसांधख्यकीय पररवतान घधनष्ठ रूप से एक-दूसरे से संबंधधत हैं।
अर्थथक धवकास के ईच्च स्तर के पररणामस्वरूप जनन दर, जनसंख्या वृधि, मृत्यु दर में
धगरावट एवं जीवन प्रत्याशा व साक्षरता दर में वृधि होती है। आसी प्रकार, धपछले कु छ वषों के
दौरान भारत ने अर्थथक धवकास की प्रकक्रया में जनसंख्या वृधि दर, जनन दर, जीवन प्रत्याशा
और अयु संरचना में मौधलक पररवतान ऄनुभव ककए हैं। आन पररवतानों की प्रकृ धत आस प्रकार
है:
कु छ धवशेष क्षेत्रों के पक्ष में धपछले दो दशकों के दौरान अर्थथक धवकास (6-8%) के ईच्च
स्तर के पररणामस्वरूप शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या संकेन्िण में वृधि हुइ है। शहरी
जनसंख्या का ऄनुपात जनसंख्या घनत्व में वृधि के साथ धनरं तर बढ़ते हुए 2011 में 31
प्रधतशत तक हो गया।
कु ल जनसंख्या वृधि दर में 1981 में 24.5% से 2011 में 17.6% तक तीव्र धगरावट
अइ है। यह धगरावट अर्थथक धवकास के बढ़ते स्तर और सेवा क्षेत्र की वृधि के ऄनुरूप है।
साक्षरता दर, जो 1991 में 54% थी, आसके 2011 में 74% तक पहुंचने हेतु बढ़ते
अर्थथक धवकास को ईत्तरदायी ठहराया जा सकता है क्योंकक कौशल शधक्त की मांग और
रोजगार के ऄवसरों में वृधि हो रही है।
हाल के दशकों में ग्रामीण ऄथाव्वस्था के धीमी अर्थथक धवकास के पररणामस्वरूप बड़े
पैमाने पर पलायन हुअ है धजसके फलस्वरूप शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के जनसांधख्यकीय
संरचना में पररवतान अया है ।
6. भारत में जनसंख्या का ऄसमान स्थाधनक धवतरण आसके भौधतक, सामाधजक और ऐधतहाधसक
कारकों के साथ घधनष्ठ संबध
ं को बतलाता है। वणान करें ।
दृधष्टकोण:
भारत में जनसंख्या के ऄसमान स्थाधनक धवतरण की संक्षप
े में चचाा करें ।
भौधतक, सामाधजक और ऐधतहाधसक कारकों से से ये घधनष्ट रूप से कै से जुड़े हैं, चचाा करें ।
ईिर :
भारत की जनसंख्या का स्थाधनक धवतरण एक समान नहीं है। भारत में जनसंख्या का ऄसमान
घनत्व आस त्य से स्पष्ट है कक ऄरुणाचल प्रदेश में प्रधत वगा ककलोमीटर जनसंख्या का औसत
के वल 17 व्धक्त है, जबकक वषा 2011 की जनगणना के ऄनुसार कदल्ली में प्रधत वगा
ककलोमीटर में लोगों का औसत 11,297 व्धक्त है।
हम आससे यह धनष्कषा धनकाल सकते हैं कक ककसी भी क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व एक से ऄधधक
कारकों पर धनभार करती है। ईदाहरण के धलए भारत के ईिर-पूवा क्षेत्र को ही लें। यहााँ
जनसंख्या के धनम्न घनत्व के धलए कइ कारक ईिरदायी हैं। ये कारक हैं- ऄत्याधधक वषाा,
ईबड़खाबड़ भू-भाग, सघन वन, कम ईवार भूधम के साथ कइ ऄन्य सामाधजक-अर्थथक और
ऐतहाधसक कारक।
7. 952 में ऄपनी जनसंख्या नीधत की घोषणा करने के साथ ही भारत ईन चुधनन्दा देशों के समूह
में सधम्मधलत हो गया धजनकी ऄपनी ऄधधकाररक जनसंख्या नीधत थी। आसके पश्चात के वषों
के दौरान देश की जनसंख्या नीधत के धवधभन्न पहलुओें का अलोचनात्मक धवश्लेषण कीधजए।
दृधष्टकोण:
ईिर की भूधमका में जनसंख्या नीधत को संधक्षप्त रूप में पररभाधषत करना चाधहए। आसके
ऄलावा, संक्षेप में 1952 के राष्ट्रीय पररवार धनयोजन कायाक्रम के बारे में बतलाते हुए
जनसंख्या नीधत के धवकास के सन्दभा में ईल्लेख करें ।
जनसंख्या नीधत की धवशेषताएं बताएं चूकं क यह धवधभन्न दृधष्टकोणों और महत्वपूणा नीधतगत
दस्तावेज जैसे राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 को ऄपनाने के क्रम में कइ वषों में धवकधसत हुइ
है। बीते वषों में क्रमागत नीधतयों की ईपलधब्धयों और धवफलताओं के माध्यम से
अलोचनात्मक धवश्लेषण प्रस्तुत ककया जा सकता है।
दुभााग्य से, बड़े पैमाने पर जबरन नसबंदी जैसे बलात तरीके प्रयुक्त ककये गए जो
जनसंख्या नीधत के प्रधत लोगों के बीच ऄसंतोष का कारण बना।
आसके बाद कायाक्रम को राष्ट्रीय पररवार कल्याण कायाक्रम के रूप में पुन: नाधमत ककया
गया, धजसमें लोगों के कल्याण के माध्यम से जनसंख्या को धनयंधत्रत करने पर फोकस
ककया गया। जनसंख्या धनयंत्रण के जबरन तरीकों का पररत्याग ककया गया और ईनके
बजाय व्ापक अधार के सामाधजक जनसांधख्यकीय ईद्देश्यों को ऄपनाया गया।
राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत (NPP), 2000 के भाग के रूप में कदशा-धनदेशों का एक नया
सेट तैयार ककया गया, ये लक्ष्य ऄपनी प्रकृ धत में समग्र थे तथा 2010 तक हाधसल ककया
जाने थे, आनमें व्ापक क्षेत्रों को कवर ककया गया धजससे सावाजधनक स्वास््य और
जनसंख्या पररवतान के पैटना प्रभाधवत हुए।
कायाान्वयन एवं लक्ष्यों को प्राप्त करने के सन्दभा में समग्र प्रदशान तुलनात्मक रूप से
संतोषजनक से थोड़ा कम रहा। प्रारं भ में, फोकस क्षेत्र बहुत संकीणा थे जैसे गभाधनरोधक
और नसबंदी द्वारा जनसंख्या धनयंत्रण। जबकक मुख्य फोकस ईन सामाधजक-अर्थथक
कारकों पर होना चाधहए था जो जनसंख्या वृधि की ईच्च दर के प्रमुख कारण हैं। NPP
1. प्रमुख धवशेषताओं को बताते हुए भारत सरकार की जनसंख्या नीधत की समीक्षा कीधजए।
(2001)
2. राष्ट्रीय जनसंख्या नीधत 2000 में तय ककए गए मुख्य लक्ष्यों को रे खांककत कीधजए। आस नीधत
हेतु ककन ईपायों का ऄनुशरण ककया गया। (2002)
3. भारत की जनसंख्या में ललगानुपात को पररभाधषत कीधजए।आसकी वतामान धस्थधत क्या है ?
(2002)
4. अलोचनत्मक परीक्षण कीधजए कक क्या बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है या गरीबी
भारत में बढ़ती जनसंख्या का मुख्य कारण है। (2013)
भारतीय समाज
साांप्रदाययकता
6. यिगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न____________________________________________ 9
7. यिगत िषों में सांघ लोक सेिा ाअयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न __________________________________________ 12
भारत यियभन्न ाअस्थाओं और धमों की भूयम है। ये यियभन्न धमव एिां ाअस्था प्रायाः लोगों के मध्य हहसा
और घृणा का कारण बनते हैं। धार्ममक हहसा के समथवक, धमव को नैयतक ाअदेश के रूप में नहीं मानते
बयकक ाआसका ाईपयोग ाऄपनी राजनीयतक महत्िाकाांक्षाओं की पूर्मत हेतु एक साधन या ाईपकरण के रूप में
करते हैं। परस्पर धार्ममक घृणा पर ाअधाररत होने के कारण साांप्रदाययकता िस्तुताः हहसा का कारण
बनती है। धार्ममक घृणा के प्रसार की गयतयियधयों के ाअधार पर साांप्रदाययक सांगठन और धार्ममक सांगठन
के मध्य यिभेद ककया जा सकता है।
(Elements of Communalism)
साांप्रदाययकता या साांप्रदाययक यिचारधारा में तीन मूल तत्ि या ाऄिस्थाएां होती हैं- जो परस्पर एक-
दूसरे का ाऄनुसरण करती हैं:
1. मन्द (Mild): यह माना जाता है कक जो लोग एक ही धमव का पालन करते हैं, ाईनके धमवयनरपेक्ष
यहत ाऄथावत् राजनीयतक, सामायजक और साांस्कृ यतक यहत समान होते हैं।
2. मध्यम (Moderate): भारत जैसे बहु-धार्ममक समाज में, एक धमव के ाऄनुयायययों के धमवयनरपेक्ष
यहत दूसरे धमव के ाऄनुयायययों के यहतों से ाऄसमान और यभन्न होते हैं।
3. चरम (Extreme): यियभन्न धार्ममक समुदायों के यहतों को परस्पर ाऄसांगत, यिरोधी और प्रयतकू ल
माना जाता है।
(Features of Communalism)
यह धार्ममक रूकढ़िाकदता और ाऄसयहष्णुता पर ाअधाररत बहुाअयामी प्रकिया है।
यह ाऄन्य धमों के प्रयत ाऄत्ययधक घृणा का भी प्रचार करती है।
यह ाऄन्य धमों और ाईसके मूकयों को समाप्त करने के यिचार को प्रेररत करती है।
यह ाऄन्य लोगों के यिरुद्ध हहसा के ाईपयोग सयहत ाऄन्य ाऄयतिादी युयियााँ ाऄपनाती है।
ाआसका दृयिकोण यियशि होता है, एक साांप्रदाययक व्ययि ाऄपने धमव को ाऄन्य धमों से श्रेष्ठ मानता
है।
भारतीय राष्ट्रीय ाअांदोलन के दौरान व्ययि, दल या ाअांदोलन में साांप्रदाययक यिचारधारा का यिकास
ाउपर ाईयकलयखत तीन ाऄिस्थाओं और दो चरणों (नरमपांथी और ाईग्रिादी) के माध्यम से हुाअ और
ाऄांतताः ाआसकी पररणयत भारत के यिभाजन और पाककस्तान के यनमावण के रूप में हुाइ।
नरमपांथी चरण (Liberal Phase)
o 1857 के यिद्रोह के पश्चात, ाऄांग्रज
े ों ने रोजगार, यशक्षा ाअकद के मामलों में मुयस्लमों की ाऄपेक्षा
हहदुओं को प्राथयमकता दी। मुयस्लम बुयद्धजीयियों ने भी यह ाऄनुभि ककया कक यशक्षा,
सरकारी नौकररयों ाआत्याकद के मामले में मुयस्लम ाऄपने हहदू समकक्षों से यपछड़े हुए हैं। ाआस
कारण से, एक मुयस्लम बुयद्धजीिी, सैय्यद ाऄहमद खान ने मुयस्लमों में ाअधुयनक यशक्षा के
यिरुद्ध व्याप्त पूिावग्रह को समाप्त करने के यलए ाऄलीगढ़ कॉलेज की स्थापना की। ाआन्होंने 1860
के दशक में काइ िैज्ञायनक सांस्थाओं की भी स्थापना की, यजसमें हहदू और मुयस्लम दोनों ने
भाग यलया।
o भारत में साांप्रदाययकता की शुरुाअत 1880 के दशक में हुाइ, जब सैय्यद ाऄहमद खान ने
भारतीय राष्ट्रीय काांग्रेस द्वारा प्रारां भ राष्ट्रीय ाअांदोलन का यिरोध ककया। ाईन्होंने ाऄांग्रेजों के
(Consequences of Communalism):
साांप्रदाययक हत्याओं और ाऄशाांयत का चरम स्िरुप कलकिा हत्याकाण्ड (1946) के रूप में ाऄयभव्यि
हुाअ, यजसमें 5 कदन की ाऄियध में ही हजारों लोगों की मृत्यु हो गाइ। ाआस दौरान बांगाल के नोाअखली में
हहदुओं और यबहार में मुयस्लमों का सामूयहक नरसांहार, भारत के यियभन्न भागों में यिभाजन के कारण
दांगे और एक हहदू कट्टरपांथी द्वारा गाांधीजी की हत्या ाअकद प्रमुख घटनाएाँ घरटत हुईं। साांप्रदाययकता के
पररणामस्िरुप भारत यिभाजन और पाककस्तान का यनमावण हुाअ।
ाईपयनिेशिाद, भारत में साांप्रदाययकता के ाईभरने के प्रमुख कारक के रूप में माना जाता है। हालाांकक,
औपयनिेयशक शासन को खत्म करना साांप्रदाययकता से लड़ने के यलए के िल एक ाअिश्यक शतव सायबत
हुाइ, पयावप्त नहीं। क्योंकक स्ितांत्रता के बाद भी, साांप्रदाययकता बनी रही और हमारे देश के धमवयनरपेक्ष
ताने-बाने के यलए सबसे बड़ा खतरा रही है।
स्िातांत्रयोिर काल में साांप्रदाययकता की सातत्यता के कारण
ाऄथवव्यिस्था का धीमा यिकास
ाऄनुयचत साांस्कृ यतक सांश्लष े ण
ाऄनुमायनत या सापेयक्षक िांचन
यिकास में क्षेत्रीय या सामायजक ाऄसांतुलन
लोकताांयत्रक युग में राजनीयतक लामबांदी ने साम्प्प्रदाययक चेतना के एकीकरण को प्रेररत ककया है।
यसख यिरोधी दांगे (1984): तत्कालीन प्रधानमांत्री श्रीमती ाआां कदरा गाांधी की हत्या के पश्चात् बड़े
पैमाने पर यसखों की हत्या की गाइ।
कश्मीरी हहदू पांयडतों का मुद्दा (1989): कश्मीर घाटी में ाआस्लायमक कट्टरतािाद और ाअतांकिाद के
फै लने से 1989-90 के दौरान कश्मीरी पांयडतों की सामूयहक हत्या और िृहद स्तर पर पलायन
हुाअ। ाआस क्षेत्र में साांप्रदाययक हहसा का खतरा बना रहता है।
बाबरी मयस्जद घटना (1992): कदसांबर 1992 में हहदू कारसेिकों की यिशाल भीड़ ने ाईिरप्रदेश
के ाऄयोध्या में 16िीं शताब्दी में यनर्ममत बाबरी मयस्जद को ध्िस्त कर कदया और यह दािा ककया
कक यह स्थल राम जन्म भूयम (राम का जन्म स्थल) है। ाआसके कारण हहदुओं और मुयस्लमों के मध्य
काइ महीनों तक ाऄांतर-साांप्रदाययक दांगे हुए, यजसके पररणामस्िरूप सैकड़ों लोगों की मृत्यु हुाइ।
गोधरा दांगे (2002): फरिरी 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के चार यडब्बों में ाअग लगा दी गाइ।
यायत्रयों में ाऄयधकाांशत: हहदू तीथवयात्री थे जो ध्िस्त बाबरी मयस्जद स्थल पर ाअयोयजत एक
धार्ममक समारोह में सयम्प्मयलत होने के पश्चात् ाऄयोध्या से लौट रहे थे। ाआस हमले के पश्चात् काइ
हहदू समूहों ने गुजरात में राज्यव्यापी बांद की घोषणा की और मुयस्लम बयस्तयों पर िू रता से हमला
करना प्रारां भ कर कदया। ऐसी घटनाएाँ गोधरा काांड के पश्चात् काइ महीनों तक जारी रहीं, यजसके
पररणामस्िरूप हजारों सांख्या में मुयस्लमों की मृत्यु हुाइ और ाईनका व्यापक स्तर पर यिस्थापन
हुाअ।
ाऄसम हहसा (2012): ाअजीयिका, भूयम और राजनीयतक शयि के यलए बढ़ती प्रयतस्पधाव के कारण
बोडो और बांगाली भाषी मुयस्लमों के मध्य लगातार सांघषव होते रहते थे। 2012 में ाऄज्ञात लोगों
द्वारा जॉयपुर में चार बोडो युिाओं की हत्या के पररणामस्िरूप, कोकराझार में एक व्यापक दांगा
भड़क गया। ाआसके पश्चात् स्थानीय मुयस्लमों पर ककए गए प्रयतशोधपूणव हमलों में दो लोगों की मृत्यु
हो गाइ और काइ लोग घायल हो गए। ाआस दांगें में लगभग 80 लोगों की मृत्यु हुाइ, यजनमें से
समुदायों के बीच सांघषव हुाअ। ाआसमें कम से कम 62 लोगों की मृत्यु हुाइ और 93 लोग घायल हुए।
ाआसके साथ ही 50,000 से ाऄयधक लोग यिस्थायपत हुए। यिगत 20 िषों में पहली बार राज्य में
सैन्य बल को तैनात ककया गया। साथ ही ाआन दांगों को "हाल के ाआयतहास में ाईिर प्रदेश में हुाइ सबसे
हाल ही में भारत में साांप्रदाययकता की ाऄयभव्ययि यियिध रूपों में हुाइ है, यजसमें शायमल हैं-
हकदया प्रकरण: ाऄयखला नाम की एक 24 िषीय यहन्दू मयहला ने ाआस्लाम धमव स्िीकार कर नया
नाम हकदया रख यलया था। हकदया ‘लि यजहाद’ यििाद के कें द्र में थी। हालाांकक ाऄयखला (हकदया)
ने कहा कक ाईसने स्िेच्छा से ाआस्लाम धमव ग्रहण ककया है तथा ाऄपनी ाआच्छा से यििाह ककया है।
परन्तु ाईसके यपता ने बांदी प्रत्यक्षीकरण यायचका दायर करते हुए यह दािा ककया कक ाईसका बलात्
धमाांतरण करिाया गया है और ाईसे ISIS का सदस्य बनाने हेतु लयक्षत ककया गया है। के रल ाईच्च
न्यायालय ने ाईसके यििाह को ाऄिैध घोयषत कर कदया और हकदया को ाईसके माता-यपता के घर
िापस भेजे जाने का यनणवय कदया। न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कक, “िह एक कमजोर और
सुभेद्य लड़की है यजसका सरलता से शोषण ककया जा सकता है।” यद्ययप ाईच्चतम न्यायालय ने ाईसके
धमव का चयन करने तथा ाऄबाध सांचरण की स्ितांत्रता को सांरक्षण प्रदान ककया और ाईसे ाऄपनी
यशक्षा जारी करने हेतु कॉलेज िापस जाने का यनणवय कदया।
गोमाांस सेिन एिां पररणामस्िरूप होने िाली मृत्यु: गोमाांस सेिन एिां पररिहन का मुद्दा भारत में
एक यििादास्पद मुद्दा बन चुका है तथा यह देश के यियभन्न भागों में साांप्रदाययक हहसा भड़कने का
कारण बना है। ाआां यडयास्पेंड कां टेंट एनायलयसस के ाऄनुसार लगभग ाअठ िषों (2010-17) में
गौहत्या के कारण घरटत 51% हहसात्मक घटनाओं में मुयस्लम िगव को लयक्षत ककया गया था तथा
63 हहसक घटनाओं में मारे गए 28 भारतीयों में 86% मुयस्लम थे।
घर िापसी कायविम: यह गैर-यहन्दुओं के यहन्दू धमव में धमाांतरण को सुगम बनाने हेतु राष्ट्रीय स्ियां
सेिक सांघ तथा यिश्व यहन्दू पररषद् जैसे भारतीय यहन्दू सांगठनों द्वारा सांचायलत धमव पररितवन
गयतयियधयों की एक श्रृांखला है। हालाांकक ाआन ाअयोजक समूहों द्वारा यह दािा ककया जाता है कक
लोग स्िेच्छा से यहन्दू धमव को स्िीकार करने हेतु ाअगे ाअए हैं, परन्तु कु छ लोगों ने ाअरोप लगाया
है कक ाईन्हें ऐसा करने के यलए बाध्य ककया गया है।
युिाओं के मध्य धार्ममक कट्टरिाद: यह भारतीय युिा िगव में यिद्यमान मुख्य चुनौयतयों में से एक है।
कश्मीरी युिाओं के मध्य कट्टरपांथी यिचारधारा के प्रसार का ख़तरा व्याप्त है। यह पहले से यिद्यमान
ाऄलगाििादी प्रिृयियों को बढ़ािा दे सकता है। ाआसके ाऄयतररि ISIS जैसे ाअतांकिादी समूहों की
कट्टरपांथी प्रिृयियों ने युिाओं को ाऄपना यशकार बनाया है यजसके पररणामस्िरूप ाऄनेक भारतीय
कट्टरपांथी युिाओं ने ऐसे समूहों की सदस्यता ग्रहण की है। गृह मांत्रालय के ाऄनुमान के ाऄनुसार 75
भारतीय ISIS में शायमल हो चुके हैं। ाआस ाअतांकिादी सांगठन की यिशेष रूप से सोशल मीयडया के
माध्यम से भारत में पहुाँच में िृयद्ध हो रही है।
समय-सीमा के भीतर जाांच की जानी चायहए। ाआसके ाऄयतररि, पीयड़त को त्िररत न्याय प्रदान
करने हेतु यिशेष न्यायालयों में ऐसे मामलों की सुनिााइ की जानी चायहए।
पुयलस तथा कानून एिां व्यिस्था बनाए रखने िाले ाऄन्य यनकायों को ाईिरदायी बनाया जाना
चायहए क्योंकक कु छ ाऄिसरों पर पुयलस द्वारा राजनेताओं के दबाि में कायव करने की प्रिृयत भी
देखी गयी है तथा पुयलस साम्प्प्रदाययक हहसा एिां ाआसकी ाऄनुिती कायविायहयों ाऄथावत् प्राथयमकी
(FIRs) दजव करने, ाऄयभयुि को यगरफ्तार करने, ाअरोप पत्र दायखल करने ाअकद के दौरान भी
यनयष्िय बनी रहती है। ाआस प्रकार त्िररत कायविाही हेतु ाआन्हें ाईिरदायी बनाने के यलए यियधक
सुधारों को ाऄयनिायव रूप से लागू ककया जाना चायहए।
चूांकक धार्ममक पृथक्करण, साम्प्प्रदाययक पहचान को सुदढ़ृ बनाता है तथा ाऄन्य धार्ममक समूहों के प्रयत
नकारात्मक रूकढ़यों को बल प्रदान करता है, ाऄताः बहुलिादी बयस्तयों (जहााँ यियभन्न समुदायों के
सदस्य एक साथ रहते हैं) के समक्ष यिद्यमान ाऄिरोधों का यनराकरण कर ाईन्हें प्रोत्सायहत ककया
जाना चायहए, जैस-े मुयस्लम, दयलत, पूिोिर के नागररक ाआत्याकद को ाईनकी पहचान के कारण
ाअिास से िांयचत कर देने जैसी ाऄसयहष्णुता की घटनाओं के मामलों में कारव िााइ करना। भारतीय
मुयस्लम समुदाय की यस्थयत पर सच्चर सयमयत की ररपोटव में ाऄसयहष्णुता तथा बयहष्करण की
यशकायतों से यनपटने हेतु एक समान ाऄिसर ाअयोग के गठन की ाऄनुशस
ां ा की गाइ।
है। ाईकलेखनीय है कक यह िगीकरण ाआयतहास को प्रभािी रूप से िमशाः यहन्दू युग, मुयस्लम युग
तथा ाइसााइ युग में यिभायजत करता है। यह ाआस मत का समथवन करता है कक भारत एक यहन्दू देश
था, यजस पर मुसलमानों एिां ाइसााइयों द्वारा ‘ाअिमण’ ककया गया।
ाऄकपसांख्यकों हेतु रोजगार के ाऄिसरों में िृयद्ध करने से साांप्रदाययक मतभेदों में कमी ाअ सकती
है। ाआस प्रकार यियभन्न कायविमों एिां पहलों के माध्यम से ाऄकपसांख्यक िगव के सदस्यों के
कौशल यिकास पर ध्यान के यन्द्रत ककया जाना चायहए।
धार्ममक प्रमुख धमव, यिश्वास ाअकद के यियिधतापूणव यिचारों के प्रसार में महत्िपूणव भूयमका
यनभा सकते हैं, यजससे यियभन्न समुदायों के मध्य शाांयत स्थायपत करने में सहायता प्राप्त हो
सकती है।
सरकार को बहुसांख्यक समूह को तुि करने हेतु ाऄकपसांख्यक प्रथाओं पर प्रयतबन्ध नहीं लगाना
चायहए। ाईदाहरण के यलए राज्य को शाकाहार हेतु िरीयता प्रदर्मशत नहीं करनी चायहए।
समान नागररक सांयहता का यनमावण एिां कायावन्ियन सभी धार्ममक समुदायों की सिवसम्प्मयत से
ककया जाना चायहए यजससे पसवनल लॉ (personal laws) में एकरूपता स्थायपत हो सके ।
धार्ममक सामांजस्य तथा शाांयत को बढ़ािा देने हेतु मीयडया, कफकमों और ाऄन्य प्रभािशाली
कारकों का ाईपयोग ककया जाना चायहए।
2. ाअांतररक सुरक्षा के महत्िपूणव खतरे के रूप में साम्प्प्रदाययकता के लगातार बने रहने की जड़ें,
पहचानिादी राजनीयत, यिकास के ाऄभाि और ाआस तरह के खतरों को सांभालने में राज्य की
क्षमता में प्रणालीगत कमी ाआत्याकद के घातक यमश्रण में यनयहत हैं। रट्पणी कीयजए।
दृयिकोण :
ाईिर की शुरुाअत साम्प्प्रदाययकता के द्वारा ाईत्पन्न होने िाली समस्याओं के सांयक्षप्त पररचय के
साथ की जा सकती है। यिद्यार्मथयों को स्पि करना चायहए कक ककस प्रकार सम्प्प्रदायिाद की
जड मुख्यताः तीन बुरााआयों- पहचान पर ाअधाररत राजनीयत, यिकास का ाऄभाि और प्रणाली
सांबांधी कमी-में यनयहत है। ाईन यिद्यार्मथयों को ाऄांक कदए जाने चायहए जो ाआस बात की पहचान
कर पाने में सफल होते हैं कक ाआन तीन बुरााआयों में, पहचानिादी राजनीयत सम्प्प्रदायिाद की
जड़ में है। ाआसके यबना, ाऄन्य दो कारक सम्प्प्रदायिाद को बढ़ािा नहीं दे सकते। नक्सल-पांथ
और ऐसे ाऄन्य दूसरों मुद्दों की तरफ भटकने के यलए कोाइ ाऄांक नहीं कदए जाने चायहए।
ाईिर :
बृहत रूप में देखें तो सम्प्प्रदायिाद का ाऄथव है बृहिर समाज या सम्प्पूणव राष्ट्र के स्थान पर ाऄपने
साांप्रदाययक समूह, चाहे िह धार्ममक, भाषा सम्प्बन्धी या नस्ल-गत क्यों न हो, के प्रयत ाऄांध
ाअस्था रखना। ाऄपने ाऄयतिादी रूप में, एक साांप्रदाययक व्ययि को दूसरे समुदायों के द्वारा
ाऄपने समुदाय के यहतों में बाधा पहुाँचती कदखााइ देती है। ाआसी कारण, िह शत्रुित समझे जाने
िाले समूहों के प्रयत घृणा की भािना ाऄयभव्यि करता है, जो ाऄांतताः दूसरे समुदायों पर हहसक
हमले का रूप ले लेती है। (यसफव समझने के ाईद्देश्य से)
सांप्रदायिाद हमारे देश के समक्ष एक ाअतांररक सुरक्षा सांबांधी खतरा है। यह सामायजक सौहाद्रव
को खत्म करता है, सामायजक तनाि, ाअपसी ाऄयिश्वास ाईत्पन्न करता है, ाऄन्य सामायजक
समूहों को हमसे दूर ले जाता है तथा भारतीय यहतों के यिरुद्ध खड़ी ताकतों के द्वारा और
ाऄयधक हहसा तथा ाऄसांतोष को बढ़ािा देने के ाईद्देश्य से ाईपजााउ जमीन तैयार करता है।
सम्प्प्रदायिाद के यनम्नयलयखत मूल कारण हैं -
प्रणालीगत समस्याएां
यििाद के समाधान हेतु बनाए गए तांत्र ाऄप्रभािी हैं।
एकयत्रत की गयी खुकफया जानकाररयााँ सटीक, सही समय पर तथा कारिााइ योग्य नहीं
होतीं,
खराब कार्ममक नीयतयााँ, जैसे ाऄयधकाररयों का त्रुरटपूणव चयन और ाईनकी ाऄकप कायावियध
के कारण स्थानीय पररयस्थयतयों पर ाईनकी पकड़ ाऄपयावप्त होती है।
प्रशासन व्यिस्था और पुयलस ाईन सांकेतों का पूिावनम
ु ान कर पाने तथा ाईन्हें पढ़ पाने में
नाकाम रहती हैं यजनके कारण पूिव में हहसा भड़की थी।
भारतीय समाज
भारतीय समाज पर वैश्वीकरण का प्रभाव
10. ववगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 16
11. ववगत वषों में संघ लोक सेवा अयोग (UPSC) द्वारा पूछे गए प्रश्न ________________________________________ 25
वैश्वीकरण - “ भौगोवलक पुनर्थवन्यास की एक प्रक्रिया वजसके पररणामस्वरूप सामावजक पररवेश को
ऄब प्रादेवशक स्थलों, प्रादेवशक दूररयों और प्रादेवशक सीमाओं के संदभा में पररसीवमत नहीं क्रकया जा
सकता।"
1. पररचय (Introduction)
वैश्वीकरण, वववभन्न ऄथाव्यवस्थाओं एवं समाजों के मध्य पारस्पररक वनभारता, ऄंतरसंबद्धता और
एकीकरण में ऐसे स्तर तक वृवद्ध करने की प्रक्रिया है क्रक ववश्व के क्रकसी एक वहस्से में घरटत कोइ घटना
ववश्व के ऄन्य वहस्सों के व्यवियों को प्रभाववत करने लगे।
वैश्वीकरण का प्रभाव ऄत्यवधक व्यापक होता है। यह प्रत्येक व्यवि को वभन्न-वभन्न प्रकार से प्रभाववत
करता है। जहााँ कु छ व्यवियों के वलए यह नए ऄवसर प्रदान करने में सहायक हो सकता है वहीं कु छ
ऄन्य के वलए यह अजीववका की हावन का कारण बन सकता है। यथा, बाज़ार में चीन और कोररया के
रे शम के धागों के प्रवेश के कारण वबहार की रे शम कातने वाली एवं धागा बनाने वाली ऄनेक मवहलाओं
का धंधा चौपट हो गया। बुनकरों एवं ईपभोिाओं द्वारा आन धागों के कम मूल्य व ऄवधक चमक के
कारण आन्हें वरीयता दी गयी। आसी प्रकार भारतीय समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने के बड़े जहाजों के
प्रवेश के कारण भी व्यापक ववस्थापन देखने को वमला। आन जहाजों की ईपवस्थवत के कारण भारत में
मछली पकड़ने वाले परम्परागत छोटे जहाजों के वलए ईपलब्ध मछवलयों की मात्रा सीवमत हो गयी।
आससे मछवलयााँ छांटने, सुखाने, बेचने और जाल बुनने वाली मवहलाओं की अजीववका नकारात्मक रूप
से प्रभाववत हुइ है। आसी प्रकार सूडान से सस्ते गोंद के अयात के कारण 'जुवलफे रा' (बावल वृक्ष) से गोंद
एकवत्रत करने वाली गुजरात की मवहलाओं को ऄपना रोजगार खोना पड़ा। साथ ही ववकवसत देशों से
रद्दी कागज़ के अयात के कारण भारत के लगभग सभी शहरों में कू ड़ा बीनने वालों को ऄपना रोजगार
खोना पड़ा है।
आस प्रकार यह स्पष्ट है क्रक वैश्वीकरण का सामावजक महत्व ऄत्यवधक व्यापक है, परन्तु समाज के
वववभन्न वगों पर आसका प्रभाव बहुत ही वभन्न-वभन्न होता है। आसवलए, वैश्वीकरण के प्रभावों से संबवं धत
दृवष्टकोणों में स्पष्ट ववभाजन ववद्यमान हैं। कु छ ववद्वानों का मानना है क्रक एक बेहतर ववश्व के वनमााण
हेतु यह एक अवश्यक प्रक्रिया है; जबक्रक कु छ ऄन्य ववद्वान वैश्वीकरण के वववभन्न वगों पर पड़ने वाले
वभन्न-वभन्न प्रभावों को भयावह मानते हैं। वे तका देते हैं क्रक आससे ववशेषावधकार प्राप्त वगा के कु छ व्यवि
लाभ प्राप्त कर सकते हैं जबक्रक पहले से ही ऄपवर्थजत एक बड़े वगा की वस्थवत और ऄवधक दयनीय हो
सकती है। आसके ऄवतररि कु छ ववद्वान यह तका भी देते हैं क्रक वैश्वीकरण कोइ नइ ऄवधारणा नहीं है।
(Positives of globalization)
वैश्वीकरण के कारण व्यापक संचार लाआनें खुली हैं तथा वववभन्न कं पवनयों के साथ-साथ वववभन्न
ववश्वव्यापी संगठनों का भी भारत में प्रवेश हुअ है। ये सभी कायाबल का एक बड़ा वहस्सा बन रहीं
मवहलाओं के वलए और ऄवधक ऄवसर प्रदान कर रहे हैं।
मवहलाओं के वलए बढ़ती नइ नौकररयां ईनको ईच्च वेतन के ऄवसर ईपलब्ध कराती हैं। ऄच्छा
वेतन ईनके अत्मववश्वास में वृवद्ध करने के साथ ही ईन्हें स्वतंत्रता प्रदान करता है।
नगरीकरण की दर में वृवद्ध हुइ है। शहरी क्षेत्रों में मवहलाएं ऄवधक स्वतंत्र और अत्मवनभार हो गइ
हैं।
वनचले मध्यम वगा के पाररवाररक संबंधों के तरीके में बदलाव अया है। परं परागत रूप से मवहला
घर पर घरे लू अवश्यकताओं और बच्चों की देखभाल करती रही है। ऄब ऄवधकांश मवहलाएं
अजीववका के वलए ऄपने घरों से बाहर वनकल रही हैं। ईदाहरण के वलए: भारत में स्व-वनयोवजत
मवहला संघ (SEWA) कठोर पररश्रम एवं काया के ऄवसरों को स्वीकार करने की आच्छु क
मवहलाओं का एक संघ है।
वैश्वीकरण के कारण भारत में नारीवादी अंदोलन का ववस्तार हुअ है। आसने मवहलाओं को ईनके
ववचारों के संबंध में ऄवधक मुखर बना क्रदया है।
वैश्वीकरण के कारण मवहला वशक्षा में वृवद्ध हुइ है। साथ ही स्वास््य देखभाल सुववधाओं में सुधार
हुअ है, वजससे मातृ मृत्यु दर और वशशु मृत्यु दर में कमी अइ है।
ववश्व भर के वववभन्न गैर-लाभकारी संगठन भारत में भी स्थावपत हुए हैं। आन संगठनों द्वारा
मवहलाओं को ईनकी ईन्नवत के वलए अवश्यक साक्षरता और व्यावसावयक दक्षता जैसे कौशल
प्रदान क्रकए गए हैं।
आससे मवहलाओं की स्वतंत्रता में (ववशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में) वृवद्ध हुइ है। यह स्वतंत्रता ऄंतर
जातीय वववाह, ससगल मदर, वलव आन ररलेशनवशप के दृष्टांतों के माध्यम से ऄवभव्यि हुइ है।
वैश्वीकरण ने ग्रामीण क्षेत्र में मवहलाओं को मीवडया तथा कइ ऄन्य हस्तक्षेप कायािमों, जैस-े ग़ैर-
लाभकारी संगठनों द्वारा मवहलाओं के अत्मववश्वास में वृवद्ध और ईन्हें ईनके ऄवधकारों के वलए
संघषा करने हेतु प्रेररत करने अक्रद, के माध्यम से प्रभाववत क्रकया है।
मवहलाओं के दृवष्टकोण में पररवतान- शहरी क्षेत्रों में पविमी वस्त्रों की ऄवधक स्वीकृ वत, डेटटग का
सामान्य प्रवृवि के रूप में प्रचलन, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गभावनरोधक का बढ़ता ईपयोग अक्रद
आसके ईदाहरण हैं।
भारत को प्रभाववत करने वाले गवतशील, वैवश्वक और अर्थथक बलों के ऄवतररि वैश्वीकरण ने भारत की
समृद्ध संस्कृ वत में पररवतान क्रकया है। युवा स्वयं को वैवश्वक क्रकशोरों के रूप में देखते हैं। ईन्होंने वजस
समुदाय में जन्म वलया था ईसके स्थान पर वे ऄवधक बड़े समुदाय से संबंध रखते हैं। युवा पीढ़ी पविमी
लोकवप्रय संस्कृ वत को स्वीकार कर रही है तथा आसे ऄपनी भारतीय पहचान में समाववष्ट कर रही है।
हालांक्रक, समाज के सबसे कमजोर वगों को आन ऄवसरों की प्रावप्त के वलए सक्षम बनाने हेतु गैर -
सरकारी, ऄनुसंधान संबंधी, सरकारी, वनजी क्षेत्र और ऄंतरााष्ट्रीय ववकास संगठनों में संलग्न संवेदनशील
प्रवतवनवधयों तथा ऄनौपचाररक ऄथाव्यवस्था में कायारत लोगों के मूलभूत संगठनों के मध्य सहयोगात्मक
प्रयास की अवश्यकता है।
कृ वष क्षेत्र के ईदारीकरण तथा मुि और वनष्पक्ष व्यापार को प्रोत्साहन देने हेतु भारत ने ववश्व व्यापार
संगठन (WTO) के एक सदस्य राष्ट्र के रूप में 1 जनवरी 1995 को ईरुग्वे दौर के समझौते पर हस्ताक्षर
क्रकया। WTO के तत्वाधान में हस्ताक्षररत ‘एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर’, कृ वष व्यापार में ऄनुवचत प्रथाओं
को रोकने और कृ वष क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को अरम्भ करने के वलए प्रथम बहुपक्षीय समझौता था।
भारतीय कृ वष की औसत वार्थषक वृवद्ध दर मंद रही है। ऄथाव्यवस्था के ईदारीकरण से पूवा 1980-1990
के दशक में यह वृवद्ध दर 3.1% थी। क्रकन्तु ईस समय से जनसंख्या की वार्थषक वृवद्ध दर के सापेक्ष कृ वष
की वार्थषक वृवद्ध दर में लगातार वगरावट अइ है। वृवद्ध दर में आस वगरावट के वलए कइ कारक
ईिरदायी थे जैसे - साख की कमी, ऄपयााप्त ससचाइ व्यवस्था और ऊणग्रस्तता, ऄप्रचवलत प्रौद्योवगकी
का वनरं तर ईपयोग, अगतों का ऄनुवचत ईपयोग और सावाजवनक वनवेश में वगरावट अक्रद।
पर की गइ अत्महत्या, अगतों की बढ़ती लागत और लाभ पर वनम्न मार्थजन को प्रदर्थशत करती है।
कृ वष वस्तुओं के व्यापार में वृवद्ध के कारण आनकी कीमतों में ईतार-चढ़ाव हुअ है।
आससे कृ वष के मवहलाकरण (feminization of agriculture) ऄथाात कृ वष गवतवववधयों में
मवहलाओं की संलग्नता में वृवद्ध को प्रोत्साहन वमला है।
8. वै श्वीकरण और पयाा व रण
(Globalization and Environment)
वैश्वीकरण के प्रणेताओं ने ऄपने द्वारा सृवजत व्यवस्था के समक्ष ईत्पन्न सामावजक, जैववक और भौवतक
ऄवरोधों की ऄवहेलना की है। वैश्वीकरण के अलोचकों ने आस बात पर बल क्रदया है क्रक वैवश्वक मुि
व्यापार ईन सामावजक और अर्थथक पररवस्थवतयों को बढ़ावा देता है जो संभवतः ईसके स्वयं के
ऄवस्तत्व को कमजोर कर सकती हैं। जैववक और भौवतक सीमाकारी कारकों के बारे में भी यही कहा जा
सकता है - ववशेषकर, ऄल्पाववध में क्रकफ़ायती उजाा की घटती अपूर्थत के बारे में।
पयाावरण पर वैश्वीकरण के प्रभावों के ऄंतगात कृ वष में अनुवांवशक ववववधता की कमी (फसल की
क्रकस्मों और पशु नस्लों की हावन), जंगली प्रजावतयों का नष्ट होना, ववदेशज प्रजावतयों (exotic
species) का प्रसार, वायु, जल और मृदा प्रदूषण, त्वररत जलवायु पररवतान, संसाधनों का क्षय तथा
सामावजक एवं अध्यावत्मक व्यवधान शावमल हैं। परन्तु पयाावरण पर यह प्रभाव के वल ईपयुाि कारकों
तक ही सीवमत नहीं है।
10. ववगत वषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे
गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)
1. वैश्वीकरण ने क्रकस प्रकार भारतीय संस्कृ वत को प्रभाववत क्रकया है? क्या आसे हमारे स्वदेशी
वशल्प एवं ज्ञान प्रणाली के समक्ष चुनौती ईत्पन्न कर दी है?
दृवष्टकोणः
पहले भाग में संस्कृ वत क्या है, आसे संवक्षप्त में समझाआए। एक छोटी सी पररभाषा जैसे- “जीने
का तरीका” पयााप्त हो सकती है। आसके बाद यह समझायें क्रक यह वैश्वीकरण के कारण
प्रांरवभक तौर पर, तीन तरीकों से प्रभाववत हुइ है- संस्कृ वत का कु छ वहस्से पूणातयः नष्ट हो
गये, कु छ नये तत्व जैसे नये त्यौहार अक्रद आसके भाग बन गये तथा कु छ ववद्यमान (मौजूद)
तत्व संमृद्ध हो गये।
दूसरा भाग बौवद्धक सम्पदा की चोरी, जैव चोरी (बायो पायरे सी) तथा स्थानीय कलाओं के
शोषण (बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों द्वारा सस्ते में खरीदकर मंहगा बेचना) के बारे में होगा।
ऄंत में आस समस्या का सामना करने के वलए कु छ ईपाय जैसे पांरपररक ज्ञान की वडवजटल
लाआब्ेरी बनाना आत्याक्रद की चचाा करें ।
ईिर:
वैश्वीकरण के संदभा में हुए सुधारों के सांस्कृ वतक अयामों पर वववभन्न मत हैं। वैश्वीकरण के
युग में भारतीय संदभा में हुए सांस्कृ वतक पररवतानों के तीन ववरोधी ववचारों को वचवन्हत क्रकया
गया है।
समांगीकरण: आसका ऄथा वैवश्वक स्तर पर परस्पर वनभारता और परस्पर सम्बद्धता को बढ़ाने
के संदभा में है वजससे बढ़ते सांस्कृ वतक मापदंडो और समरूपता में वृवद्ध होगी, ईदाहरण के
वलए वैवश्वक मूल्यों (बाजार प्रवतस्पधाा, मानवावधकार, कमोवडक्रफके शन) की एकरूपता में
वृवद्ध; कोकोलाआजेशन (कोका कोला का ऄत्यवधक प्रचलन), वॉलमार्टटज़ेशन (वालमाटा का
ऄत्यवधक ववस्तार), कॉरपोरे ट संस्कृ वत, फास्ट फू ड चेन, इ-मनी आत्याक्रद की ऄवधारणा का
प्रसार होना।
सांस्कृ वतक संघषा: बाजार-कें क्रद्रत वैश्वीकरण स्थानीय और क्षेत्रीय संस्कृ वतयों में ऄपनी जड़ें
मजबूत कर रहा है, वजसे वववभन्न लोगों द्वारा खतरें के रूप में देखा जाता है। पररणामस्वरूप,
वैश्वीकरण के बढ़ते प्रभाव से बचाव के वलए पहचानों की दृढ़ता में वृवद्ध हुइ है, ईदाहरण के
वलए: बड़ों के द्वारा पविमी संस्कृ वत से प्रभाववत वलव-आन संबंधों या स्नेह के सावाजवनक
प्रदशान के ववरुद्ध दृढ़ता जैसी प्रवतक्रियायें।
ग्लोकलाआजेशन: यह ऄंतर-स्थावनक संस्कृ वत के वमश्रण पर बल देता है, सांस्कृ वतक
ववषमांगता और संकरण को ऄवभव्यि करता है जैसे: मैकडोनलाइजेशन (मैकडॉनल््स द्वारा
2. तीव्र वैश्वीकरण ने भारतीय युवा पीढ़ी को रूपांतररत कर क्रदया है। रटप्पणी कीवजए।
दृवष्टकोणः
ईिर, वैश्वीकरण का युवाओं के उपर प्रभाव पर के वन्द्रत होना चावहए न क्रक वैश्वीकरण के
सामान्य ववषय पर।
वववरण देते समय सभी पहलुओं को शावमल क्रकया जाना चावहए, जैसे क्रक सांस्कृ वतक,
सामावजक के साथ-साथ अर्थथक पहलुओं की भी।
ईिर :
(नोट : आस मुद्दे के प्रमुख वबन्दुओं पर चचाा करने के वलए ईिर को ववस्तृत रूप में वलखा गया
है)
भारत की कु ल अबादी में युवाओं की बहुलता है। आसवलए वैश्वीकरण के प्रवत भारत की
प्रवतक्रिया का महत्वपूणा कारण युवाओं की बढ़ती जनसंख्या है। भारतीय युवा वैश्वीकरण
के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही धारणाओं के वलए एक उजाा स्रोत के रूप में
काया करता है। वे वैश्वीकरण को आस प्रकार गले लगा रहे हैं, वजसकी वपछली पीढ़ी ने
कल्पना भी नहीं की थी।
वविीय वैश्वीकरण के पररणामस्वरूप शहरी गरीबी बढ़ रही है। शहरों में स्थानांतररत
लोगों में युवाओं की ऄवधकता है। युवा, पररवार की परम्परागत धारणाओं तथा ग्रामीण
क्षेत्रों से शहरां की ओर स्थानांतररत हो रहे हैं, वजसके पररणामस्वरुप शहरी गरीबी बढ़
सामावजक ‘सुववधाओं’ जैसे क्रक श्रम बाजार तथा ऄन्य अय के स्त्रोतो, वशक्षा एवं स्वास््य सेवा
व्यवस्थाओं और राजनीवतक प्रवतवनवधत्व व सहभावगता तक पहुाँच के संबंध में वभन्न-वभन्न
ऄववस्थवतयों में रखा गया है।
वैश्वीकरण की वतामान प्रक्रिया के पररणामस्वरूप राष्ट्रीय सरकारों की राष्ट्रीय नीवतयों तथा
नीवत-वनमााण प्रणाली का वैश्वीकरण हुअ है। ऄंतरााष्ट्रीय संगठनों तथा बहुराष्ट्रीय वनगमों के
दबाव में राष्ट्रीय सरकारों को ऄपनी ऄथाव्यवस्थाओं को पुनगारठत करना पड़ा है, जो मुि
व्यापार और सामावजक क्षेत्र के ऄल्प व्यय पर ऄवधक बल देने की मांग करते हैं। सरकारों को
वशक्षा, स्वास््य सेवा, स्वच्छता, पररवहन आत्याक्रद जैसे सामावजक क्षेत्रों पर व्यय में कटौती
करनी पड़ी है। ऄत: सामावजक ऄसमानताएं ववशेष रूप से ववकासशील ऄथाव्यवस्थाओं में
तीव्र वृवद्ध हो रही हैं, क्योंक्रक सामावजक न्याय सुवनवित करने में सरकार की भूवमका में कमी
अइ है।
दूसरी तरफ वैश्वीकरण और आसकी ईदारीकरण एवं वनजीकरण की अनुषंवगक प्रक्रियाओं के
पररणामस्वरूप कु छ ही लोगों के पास धन का सके न्द्रण हो रहा है, क्योंक्रक अर्थथक
ऄसमानता ववकवसत तथा ववकासशील दोनों ववश्वों में ववस्ताररत है।
साथ ही, यह वर्थद्धत अर्थथक ऄसमानता सलग, अयु, वगा तथा नृजावतयता पर अधाररत
सामावजक ऄसमानताओं के साथ सकारात्मक रूप से सहसंबंवधत है। आस पररघटना के
वनम्नवलवखत ईदाहरण हैं:
o श्रम बल का मवहलाकरण ऄथाात् वनम्न-वेतन नौकररयों, वस्त्र, शू-मेककग (shoe-
making), ऄद्धाचालक ऄसेम्बसलग जैसी नौकररयों तथा अवत्य क्षेत्र जैसी श्रम-कें क्रद्रत
या सेवा-गहन नौकररयों में मवहलाओं का सके न्द्रण।
4. एक वगाववहीन समाज देने के बदले वैश्वीकरण ने वस्तुतः वववशष्ट वगा ववभाजन पैदा क्रकया है
एवं भारत में जावतगत पद्धवत को मजबूत क्रकया है। अलोचनात्मक ववश्लेषण करें ।
दृवष्टकोणः वनम्न ईप-प्रश्नों का ईिर देने की अवश्यकता हैः
वैश्वीकरण क्या है?
भारत में जावत प्रथा, वगा संस्कृ वत के साथ वनवित समानताएं रखती है। आसवलए ईच्च वगा
या पूज
ाँ ीपवत क्रकसान पंजाब, हररयाणा और पविमी ईिर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पहले के
पयाटन भी पयाटकों की मांग पर ववववधता बनाये रखने के साथ, संस्कृ वतक पुनजाागरण और
समरूपता को प्रोत्साहन दे रहा है। भारतीय अध्यावत्मक और सांस्कृ वतक शवि जैसे योग,
अयुवेद, ध्यान, अध्यावत्मकता आत्याक्रद का भी प्रसार हो रहा है और आनका भी वैश्वीकरण हो
गया है। ईदाहरण के वलए श्री श्री रववशंकर, रामदेव ऄब “वैवश्वक-गुरु” हो गये हैं और
अध्यावत्मक ववचारों, प्राकृ वतक वचक्रकत्सा, योग आत्याक्रद के प्रसार में सहायता कर रहे हैं,
वजनकी लोकवप्रयता बढ़ती ही जा रही है और ववश्व भर से लोग आन्हें ऄपना रहे हैं।
परन्तु, वैश्वीकरण के पररणाम स्वरूप, भारतीय समाज और संस्कृ वत में ईग्र पररवतान अ रहे
हैं, वजनके कारण हैं– समकालीन पररवतान, जैसे संयुि पररवारों से एकल पररवार। ऄब एकल
पररवारों का चलन अम हो गया है, युवा वगा ऄत्यवधक संख्या में पविमी सभ्यता में रं गता
जा रहा है और ईनकी सोच में ऄब ईपभोिावाद हावी हो रहा है। पररवार के बड़े सदस्यों में
मूल्य अधाररत टकराव ऄब ईन्हें जेनरे शन गैप की ओर ले जा रहा है। कइ कारणों से वववाह
टू ट रहे हैं, जैसे अधुवनक जीवनशैली, व्यवसाय संबंधी अंकक्षाएं और ऄवास्तववक ऄपेक्षाएं।
संचार माध्यम, टेलीवजन चैनल या मास मीवडया, आं टरनेट, FTV-MTV संस्कृ वत आत्याक्रद पर
प्रायः यह अरोप लगता रहा है क्रक वे भारतीय समाज, ववशेषकर युवा वगा को सांस्कृ वतक
ववकृ वत की ओर ले जा रहे हैं।
आस प्रकार, भारतीय संस्कृ वत पर वैश्वीकरण के नकारात्मक पररणाम होने पर भी हम यह कह
सकते हैं क्रक संस्कृ वत को एक वस्थर या स्थायी संस्था के रूप में नहीं देखा जा सकता है ऄन्यथा
यह लड़खड़ा कर वगर जाएगी या सामावजक पररवतानों में दौर में भी स्थावर बनी रहेगी।
वतामान में भी वजसकी ऄवधक सम्भावना है, वह यह क्रक वैश्वीकरण से न के वल नइ परम्पराओं
का वनमााण होगा ऄवपतु वैवश्वक परम्पराओं का भी वनमााण होगा।
जागरूकता पैदा करके समाज को प्रभाववत भी करती हैं। हालांक्रक कभी कभी आससे ऄपराध,
7. यद्यवप वैश्वीकरण के कारण मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसरों में वृवद्ध हुइ है, लेक्रकन
आसने मवहला कर्थमयों के वलए चुनौवतयों की एक नयी श्रेणी भी ईत्पन्न की हैं। ईदाहरणों
सवहत चचाा कीवजए।
दृवष्टकोण:
वैश्वीकरण की पररभाषा और समग्र रुप से भारतीय समाज पर आसके प्रभाव का संक्षेप में
वणान कीवजए।
मुख्य भाग में, वैश्वीकरण के बाद मवहलाओं के वलए रोजगार के ऄवसरों की वस्थवत और
ववकास की चचाा कीवजए।
प्रासंवगक ईदाहरणों के साथ बदलते अर्थथक पररदृश्य में मवहला कर्थमयों के समक्ष अने वाली
चुनौवतयों के वववभन्न रूपों पर प्रकाश डावलए।
आन चुनौवतयों को दूर करने के वलए कु छ ईपाय सुझाएं, ताक्रक अने वाले भववष्य में
वैश्वीकरण द्वारा प्रदान क्रकए गए लाभों का लाभ ईठाने के वलए मवहलाओं को सक्षम बनाया
जा सके ।
ईिर:
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है वजसमें लोग और देश, व्यापार, श्रम, सूचना-प्रौद्योवगकी,
यात्रा, सांस्कृ वतक अदान-प्रदान और संचार माध्यमों द्वारा अर्थथक और सांस्कृ वतक रूप से
एकीकृ त हो रहे हैं। भारतीय समाज के ऄन्य वगों के ऄलावा, वैश्वीकरण की लहर ने मवहलाओं
के अर्थथक और सामावजक जीवन को गहराइ से प्रभाववत क्रकया है। आसने मवहला कर्थमयों के
वलए ऄवसर के कइ द्वार खोल क्रदए हैं-
o औपचाररक क्षेत्र- वववभन्न बहुराष्ट्रीय कं पवनयों ने मवहलाओं के वलए कइ अर्थथक द्वार
खोल क्रदए हैं, वजसने ईन्हें ऄपेक्षाकृ त ऄवधक वस्थर और अर्थथक रुप से स्वतंत्र बना क्रदया
है।
o ऄनौपचाररक क्षेत्र- सुदढ़ृ व्यापार और वनयाात प्रवाह के कारण मुख्य अर्थथक गवतवववधयों
में मवहलाओं के समावेशन में महत्वपूणा ढंग से वृवद्ध हुइ है। कच्छिाफ्ट (kutchcraft)
110 से ऄवधक मवहला वशल्पकारों का संगठन है, वजसने 6000 नौकरी के ऄवसर पैदा
क्रकए हैं, क्योंक्रक भारत ने वैश्वीकरण के रास्ते पर चलना प्रारं भ कर क्रदया है।
o नइ नौकररयों और ईच्च भुगतान ने ईच्च अत्म-ववश्वास, अर्थथक स्वतंत्रता और वनणायन
क्षमता, पररवार और ववि के सामंजस्य को स्थावपत क्रकया है। आसने सलगों के बीच
समानता को प्रोत्सावहत क्रकया है और सलग रुक्रढ़वाक्रदता को चुनौती दी है।
वैश्वीकरण का एक ऄन्य स्याह पक्ष भी है और साथ ही आसके कारण वनम्नवलवखत चुनौवतयों
को भी देखा गया है-
o पाररश्रवमक में ऄंतर और ऄथाव्यवस्था के ऄनौपचाररक क्षेत्र में कै ररयर के अगे बढ़ने की
कम गवतशीलता अक्रद के रूप में व्याप्त सलग ऄसमानता। पुरुषों की तुलना में मवहलाओं
में बेरोजगारी, न्यून बेरोजगारी और ऄस्थायी काम ऄवधक है।
o स्वास््य खतरे - चूंक्रक काम की ईपलब्धता ववशेष रूप से और ऄसंगरठत क्षेत्र में कम है,
आसवलए मवहलाओं को 12 घंटे तक काम करने के वलए मजबूर क्रकया जाता है, वजससे
ईनमें श्वसन समस्याएं, पैवल्वक सूजन, अक्रद बीमाररयां ईत्पन्न होती हैं।
o वपतृसिात्मक रवैया और सांस्कृ वतक मानदंड- वैश्वीकरण द्वारा ऄन्य चुनौवतयां प्रायः
सहसा, यौन-ऄपराध, घरे लू और कायास्थल ईत्पीड़न अक्रद के रूप में प्रकट हुइ हैं।
को 10% तक बढ़ा क्रदया जाए। लंबे समय में जोवखमों को कम करने के वलए मवहलाओं के
कौशल, नवाचारों, नीवतयों, बीमा ईत्पादों को ववकवसत करके वैश्वीकरण के नकारात्मक
प्रभावों को कम करना अवश्यक है, ताक्रक ईनके अर्थथक और सामावजक सशविकरण के वलए
एक स्थायी वातावरण तैयार क्रकया जा सके ।