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शक्ति और क्षम

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल


सबका ललया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहााँ , कब हारा?

क्षमाशील हो ररपु-समक्ष
तुम हुये लिनत लितना ही
दु ष्ट कौरिोों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का


कुफल यही होता है
पौरुष का आतोंक मनुि
कोमल होकर खोता है ।

क्षमा शोभती उस भुिोंग को


लिसके पास गरल हो
उसको क्या िो दों तहीन
लिषरलहत, लिनीत, सरल हो।

तीन लदिस तक पोंथ माों गते


रघुपलत लसन्धु लकनारे ,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे -प्यारे ।

उत्तर में िब एक नाद भी


उठा नहीों सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।

लसन्धु दे ह धर त्रालह-त्रालह
करता आ लगरा शरण में
चरण पूि दासता ग्रहण की
बाँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति लिनय की
सप्तन्ध-िचन सोंपूज्य उसी का
लिसमें शप्ति लििय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को


तभी पूिता िग है
बल का दपप चमकता उसके
पीछे िब िगमग है ।

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