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Ramdhari Singh Dinkar
Ramdhari Singh Dinkar
क्षमाशील हो ररपु-समक्ष
तुम हुये लिनत लितना ही
दु ष्ट कौरिोों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
लसन्धु दे ह धर त्रालह-त्रालह
करता आ लगरा शरण में
चरण पूि दासता ग्रहण की
बाँधा मूढ़ बन्धन में।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति लिनय की
सप्तन्ध-िचन सोंपूज्य उसी का
लिसमें शप्ति लििय की।