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CH.

03 विविन्न माध्यमों के विए िेखन


प्रमुख जनसंचार प्रमुख माध्यम
जनसंचार के प्रमख ु माध्यम हैं-
1.प्प्रटं या मप्ु ित माध्यम 2.रे प्िओ 3.टी.वी. 4.इटं रनेट
• अखबार पढ़ने के प्िए है।

• रे प्ियो सन ु ने के प्िए है।


• टी०वी० देखने के प्िए है।

• इट ं रनेट पर पढ़ने, सनु ने और देखने, तीनों की ही सुप्वधा है।


1. वप्रटं (मवु ित) माध्यम
• प्प्रटं यानी मप्ु ित माध्यम जनसचं ार के आधप्ु नक माध्यमों में सबसे परु ाना है। असि में
आधप्ु नक यगु की शरुु आत ही मिु ण यानी छपाई के आप्वष्कार से हुई। हािााँप्क मिु ण की
शरुु आत चीन से हुई, िेप्कन आज हम प्जस छापेखाने को देखते हैं, उसके आप्वष्कार का
श्रेय जममनी के गटु ेनबगम को जाता है। छापाखाना यानी प्रेस के आप्वष्कार ने दप्ु नया की
तसवीर बदि दी।
• यरू ोप में पन ु जामगरण ‘रे नेसााँ’ की शरुु आत में छापेखाने की अह भप्ू मका थी। भारत में पहिा
छापाखाना सन 1556 में गोवा में खि ु ा। इसे प्मशनररयों ने धमम-प्रचार की पस्ु तकें छापने के
प्िए खोिा था।
वप्रंट (मुवित) माध्यमों की विशेषताएँ
प्प्रंट माध्यमों के वगम में अखबारों, पप्िकाओ,ं पस्ु तकों आप्द को शाप्मि प्कया जाता है। हमारे दैप्नक
जीवन में इनका प्वशेष महत्व है। प्प्रटं माध्यमों की प्वशेषताएाँ प्नम्नप्िप्खत हैं-
1. प्प्रंट माध्यमों के छपे शब्दों में स्थाप्यत्व होता है।
2. हम उन्हें अपनी रुप्च और इच्छा के अनसु ार धीरे -धीरे पढ़ सकते हैं।
3. पढ़ते-पढ़ते कहीं भी रुककर सोच-प्वचार कर सकते हैं।
4. इन्हें बार-बार पढ़ा जा सकता है।
5. इसे पढ़ने की शरुु आत प्कसी भी पृष्ठ से की जा सकती है।
6. इन्हें िंबे समय तक सरु प्ित रखकर सदं भम की भााँप्त प्रयक्त ु प्कया जा सकता है।
7. यह प्िप्खत भाषा का प्वस्तार है, प्जसमें प्िप्खत भाषा की सभी प्वशेषताएाँ प्नप्हत हैं।
वप्रंट (मुवित) माध्यमों की सीमाएँ या कवमयाँ
मप्ु ित माध्यमों की कप्मयााँ प्नम्नप्िप्खत हैं-
1. प्नरिरों के प्िए मप्ु ित माध्यम प्कसी काम के नहीं हैं।
2. मप्ु ित माध्यमों के प्िए िेखन करने वािों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-
साथ उनके शैप्िक ज्ञान और योग्यता का प्वशेष ध्यान रखना पड़ता है।
3. पाठकों की रुप्चयों और जरूरतों का भी परू ा ध्यान रखना पड़ता है।
4. ये रे प्ियो, टी०वी० या इटं रनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओ ं को संचाप्ित नहीं कर
सकते। ये एक प्नप्ित अवप्ध पर प्रकाप्शत होते हैं। जैसे अखबार 24 घंटे में एक बार
या साप्ताप्हक पप्िका सप्ताह में एक बार प्रकाप्शत होती है।
5. अखबार या पप्िका में समाचारों या ररपोटम को प्रकाशन के प्िए स्वीकार करने की एक
प्नप्ित समय-सीमा होती है इसप्िए मप्ु ित माध्यमों के िेखकों और पिकारों को
प्रकाशन की समय-सीमा का परू ा ध्यान रखना पड़ता है।
वप्रंट (मुवित) माध्यम में िेखन के विए ध्यान रखने योग्य बातें
1. मप्ु ित माध्यमों में िेखक को जगह (स्पेस) का भी परू ा ध्यान रखना चाप्हए। जैसे प्कसी
अखबार या पप्िका के संपादक ने अगर 250 शब्दों में ररपोटम या फीचर प्िखने को
कहा है तो उस शब्द-सीमा का ध्यान रखना पड़ेगा। इसकी वजह यह है प्क अखबार या
पप्िका में असीप्मत जगह नहीं होती।
2. मप्ु ित माध्यम के िेखक या पिकार को इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है प्क
छपने से पहिे आिेख में मौजदू सभी गिप्तयों और अशद्ध ु यों को दरू कर प्दया जाए
क्योंप्क एक बार प्रकाशन के बाद वह गिती या अशद्ध ु वहीं प्चपक जाएगी। उसे
सधु ारने के प्िए अखबार या पप्िका के अगिे अंक का इतं जार करना पड़ेगा।
3. भाषा सरि, सहज तथा बोधगम्य होनी चाप्हए।
4. शैिी रोचक होनी चाप्हए।
5. प्वचारों में प्रवाहमयता एवं तारतम्यता होनी चाप्हए।
2. रेवियो
रे प्ियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वप्न, स्वर और शब्दों का खेि है। इन सब वजहों से रे प्ियो
को श्रोताओ ं से संचाप्ित माध्यम माना जाता है।
इस तरह स्पष्ट है प्क-
1. रे प्ियो में अखबार की तरह पीछे िौटकर सुनने की सुप्वधा नहीं है।
2. अगर रे प्ियो बि ु ेप्टन में कुछ भी भ्रामक या अरुप्चकर है, तो सभं व है प्क श्रोता तरु ं त
स्टेशन बंद कर दे।
3. दरअसि, रे प्ियो मि ू त: एकरे खीय (िीप्नयर) माध्यम है और रे प्ियो समाचार बुिेप्टन
का स्वरूप, ढााँचा और शैिी इस आधार पर ही तय होती है।
4. रे प्ियो की तरह टेिीप्वजन भी एकरे खीय माध्यम है, िेप्कन वहााँ शब्दों और ध्वप्नयों
की ति ु ना में दृश्यों/तस्वीरों का महत्व सवामप्धक होता है। टी०वी० में शब्द दृश्यों के
अनसु ार और उनके सहयोगी के रूप में चिते हैं। िेप्कन रे प्ियो में शब्द और आवाज
ही सब कुछ हैं।
रेवियो समाचार की संरचना
रे प्ियो के प्िए समाचार-िेखन अखबारों से कई मामिों में प्भन्न है। चाँप्ू क दोनों माध्यमों की प्रकृ प्त
अिग-अिग है,
इसप्िए समाचार-िेखन करते हुए उसका ध्यान जरूर रखा जाना चाप्हए।
रे प्ियो समाचार की संरचना अखबारों या टी०वी० की तरह उिटा प्पराप्मि (इवं टेंि
प्पराप्मि) शैिी पर आधाररत होती है। चाहे आप प्कसी भी माध्यम के प्िए समाचार प्िख
रहे हों, समाचार-िेखन की सबसे प्रचप्ित, प्रभावी और िोकप्प्रय शैिी उिटा प्पराप्मड़
शैिी ही है।
रेवियो के विए समाचार-िेखन संबंधी बुवनयादी बातें
रे प्ियो के प्िए समाचार-कॉपी तैयार करते हुए कुछ बप्ु नयादी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
1. प्रसारण के प्िए तैयार की जा रही समाचार-कॉपी को कंप्यटू र पर प्िपि स्पेस में टाइप
प्कया जाना चाप्हए।
2. साफ-सथु री और टाइप्ि कॉपी- चाप्हए।
3. कॉपी के दोनों ओर पयामप्त हाप्शया छोड़ा जाना चाप्हए।
4. एक िाइन में अप्धकतम 12-13 शब्द होने चाप्हए।
5. पंप्क्त के आप्खर में कोई शब्द प्वभाप्जत नहीं होना चाप्हए।
6. पृष्ठ के आप्खर में कोई िाइन अधरू ी नहीं होनी चाप्हए।
7. समाचार-कॉपी में ऐसे जप्टि और उच्चारण में कप्ठन शब्द, सप्ं िप्तािर
(एब्रीप्वयेशन्स), अंक आप्द नहीं प्िखने चाप्हए, प्जन्हें पढ़ने में जबान िड़खड़ाने
िगे।
रेवियो समाचार िेखन में अंक कै से विखें?
इसमें अक ं ों को प्िखने के मामिे में खास सावधानी रखनी चाप्हए; जैसे-
1. एक से दस तक के अक ं ों को शब्दों में और 11 से 999 तक अक ं ों में प्िखा जाना
चाप्हए।
2. 2837550 प्िखने की बजाय ‘अट्ठाइस िाख सैंतीस हजार पााँच सौ पचास’ प्िखा
जाना चाप्हए अन्यथा वाचक/वाप्चका को पढ़ने में बहुत मप्ु श्कि होगी।
3. वैसे रे प्ियो समाचार में आाँकड़ों और संख्याओ ं का अत्यप्धक इस्तेमाि नहीं करना
चाप्हए क्योंप्क श्रोताओ ं के प्िए उन्हें समझ पाना काफी कप्ठन होता है।
4. रे प्ियो समाचार कभी भी संख्या से नहीं शरू ु होना चाप्हए। इसी तरह प्तप्थयों को उसी
तरह प्िखना चाप्हए जैसे हम बोिचाि में इस्तेमाि करते हैं-‘ 15 अगस्त उन्नीस सौ
पचासी’ न प्क ‘अगस्त 15, 1985’।
3. टेिीविजन
टेिीप्वजन में दृश्यों की महत्ता सबसे ज्यादा है। यह कहने की जरूरत नहीं प्क टेिीप्वजन देखने और
सनु ने का माध्यम है और इसके प्िए समाचार या आिेख (प्स्िप्ट) प्िखते समय इस बात पर खास
ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है-
1. हमारे शब्द परदे पर प्दखने वािे दृश्य के अनुकूि हों।
2. टेिीप्वजन िेखन प्प्रंट और रे प्ियो दोनों ही माध्यमों से काफी अिग है। इसमें कम-से-
कम शब्दों में ज्यादा-से-ज्यादा खबर बताने की किा का इस्तेमाि होता है।
3. टी०वी० के प्िए खबर प्िखने की बप्ु नयादी शतम दृश्य के साथ िेखन है।
टी०िी० खबरों के विविन्न चरण
1. फ़्िैश या ब्रेवकंग न्यूज-सबसे पहिे कोई बड़ी खबर फ़्िैश या ब्रेप्कंग न्यजू के रूप में
तत्काि दशमकों तक पहुचाँ ाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज सचू ना दी जाती है।
2. ड्राई एक ं र-इसमें एक
ं र खबर के बारे में दशमकों को सीधे-सीधे बताता है प्क कहााँ, क्या, कब
और कै से हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते तब तक एंकर दशमकों को ररपोटमर से प्मिी
जानकाररयों के आधार पर सचू नाएाँ पहुचाँ ाता है।
3. फोन-इन-इसके बाद खबर का प्वस्तार होता है और एंकर ररपोटमर से फोन पर बात करके
सचू नाएाँ दशमकों तक पहुचाँ ाता है। इसमें ररपोटमर घटना वािी जगह पर मौजदू होता है और वहााँ
से उसे प्जतनी ज्यादा-से-ज्यादा जानकाररयााँ प्मिती हैं, वह दशमकों को बताता है।
4. एक ं र-विजअ ु ि-जब घटना के दृश्य या प्वजअ ु ि प्मि जाते हैं, तब उन दृश्यों के आधार पर
खबर प्िखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शरुु आत भी प्रारंप्भक सचू ना से होती
है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य प्दखाए जाते हैं।
5. एक ं र-बाइट-बाइट यानी कथन। टेिीप्वजन पिकाररता में बाइट का काफी महत्व है।
टेिीप्वजन में प्कसी भी खबर को पष्टु करने के प्िए इससे सबं प्ं धत बाइट प्दखाई जाती है।
प्कसी घटना की सचू ना देने और उसके दृश्य प्दखाने के साथ ही उस घटना के बारे में
प्रत्यिदप्शमयों या संबंप्धत व्यप्क्तयों का कथन प्दखा और सनु ाकर खबर को प्रामाप्णकता
प्रदान की जाती है।
6. िाइि-िाइव यानी प्कसी खबर का घटनास्थि से सीधा प्रसारण। सभी टी०वी० चैनि
कोप्शश करते हैं प्क प्कसी बड़ी घटना के दृश्य तत्काि दशमकों तक सीधे पहुचाँ ाए जा सकें ।
इसके प्िए मौके पर मौजदू ररपोटमर और कै मरामैन ओ०बी० वैन के जररये घटना के बारे में
सीधे दशमकों को प्दखाते और बताते हैं।
7. एक ं र-पैकेज-एंकर-पैकेज प्कसी भी खबर को संपणू मता के साथ पेश करने का एक जररया है।
इसमें संबंप्धत घटना के दृश्य, उससे जड़ु े िोगों की बाइट, ग्राप्फक के जररये जरूरी सचू नाएाँ
आप्द होती हैं। टेिीप्वजन िेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर प्कया जाता है। जहााँ
जैसी जरूरत होती है, वहााँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाि होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे िे
जाना है ताप्क वह दसू रे दृश्यों से जड़ु सके , उसमें प्नप्हत अथम को सामने िाए, ताप्क खबर के
सारे आशय खुि सकें ।
रेवियो और टेिीविज़न के समाचारों में आपसी बोिचाि की सरि िाषा का प्रयोग करना
चाविए। इसके विए-
1. वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट प्िखे जाएाँ।
2. जब भी कोई खबर प्िखनी हो तो पहिे उसकी प्रमख ु बातों को ठीक से समझ िेना
चाप्हए।
3. हम प्कतनी सरि, संप्रेषणीय और प्रभावी भाषा प्िख रहे हैं, यह जााँचने का एक बेहतर
तरीका यह है प्क हम समाचार प्िखने के बाद उसे बोि-बोिकर पढ़ िें।
4. भाषा प्रवाहमयी होनी चाप्हए।
सािधावनयाँ
रे प्ियो और टी०वी० समाचार में भाषा और शैिी के स्तर पर काफी सावधानी बरतनी पड़ती है-
1. ऐसे कई शब्द हैं, प्जनका अखबारों में धिल्िे से इस्तेमाि होता है िेप्कन रे प्ियो और
टी०वी० में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे-प्नम्नप्िप्खत, उपयक्तु , अधोहस्तािररत
और िमाक आप्द शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में प्बिकुि मना है। इसी तरह ‘ द्वारा
‘शब्द के इस्तेमाि से भी बचने की कोप्शश की जाती है क्योंप्क इसका प्रयोग कई बार
बहुत भ्रामक अथम देने िगता है; जैसे-‘पप्ु िस दवारा चोरी करते हुए दो व्यप्क्तयों को
पकड़ प्िया गया।’ इसकी बजाय ‘पप्ु िस ने दो व्यप्क्तयों को चोरी करते हुए पकड़
प्िया।’ ज्यादा स्पष्ट है।
2. तथा, एव, अथवा, व, प्कंतु, परत,ु यथा आप्द शब्दों के प्रयोग से बचना चाप्हए और
उनकी जगह और, या, िेप्कन आप्द शब्दों का इस्तेमाि करना चाप्हए।
3. साफ-सथु री और सरि भाषा प्िखने के प्िए गैरजरूरी प्वशेषणों, सामाप्सक और
तत्सम शब्दों, अप्तरंप्जत उपमाओ ं आप्द से बचना चाप्हए। इनसे भाषा कई बार
बोप्झि होने िगती है।
4. महु ावरों के इस्तेमाि से भाषा आकषमक और प्रभावी बनती है, इसप्िए उनका प्रयोग
होना चाप्हए। िेप्कन महु ावरों का इस्तेमाि स्वाभाप्वक रूप से और जहााँ जरूरी हो,
वहीं होना चाप्हए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाप्वक प्रवाह को बाप्धत करते हैं।
5. वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहनी चाप्हए।
6. वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो प्क कुछ टूटता या छूटता हुआ न िगे।
7. शब्द प्रचप्ित हों और उनका उच्चारण सहजता से प्कया जा सके । िय-प्विय की
जगह खरीदारी-प्बिी, स्थानांतरण की जगह तबादिा और पंप्क्त की जगह कतार
टी०वी० में सहज माने जाते हैं।
इटं रनेट
इटं रनेट की दीवानी नई पीढ़ी को अब समाचार पि पर छपे समाचार पढ़ने में आनदं नहीं आता। उन्हें
स्वयं को घटं े -दो घटं े में अपिेट रहने की आदत सी बन गई है। इटं रनेट पिकाररता , ऑनिाइन
पिकाररता , साइबर पिकाररता या वेब पिकाररता इसे कुछ भी कह सकते हैं।
इसके द्वारा जहां हम सचू ना , मनोरंजन , ज्ञान तथा प्नजी व सावमजप्नक सवं ादों का आदान – प्रदान
कर सकते हैं। वहीं इसे अश्लीि , दष्ु प्रचार एवं गंदगी फै िाने का माध्यम भी बनाया जा रहा है।
इटं रनेट का प्रयोग समाचारों के संप्रेषण संकिन तथा सत्यापन एवं पप्ु ष्टकरण में भी प्कया जा रहा है।
टेिीप्प्रंटर के जमाने में जहां 1 प्मनट में के वि 80 शब्द एक स्थान से दसू रे स्थान पर भेजे जा सकते
थे। वही आज एक सेकंि में िगभग 70000 शब्द भेजे जा सकते हैं।
महत्वपणू म प्बंदु
• इटं रनेट पर समाचार पि का प्रकाशन अथवा खबर का आदान-प्रदान ही वास्तव में इटं रनेट
पिकाररता है।
• इटं रनेट पर यप्द हम प्कसी भी रूप में समाचारों िेखों चचाम – पररचचाम , बहसों , फीचर ,
झिप्कयों के माध्यम से अपने समय की धड़कनों को अनभु व कर दजम करने का कायम करते हैं
तो वही इटं रनेट पिकाररता है।
• इसी पिकाररता को वेब पिकाररता भी कहा जाता है।
• इस समय प्वश्व स्तर पर इटं रनेट पिकाररता का तीसरा दौर चि रहा है , जबप्क भारत में दसू रा
दौर माना जाता है।
• भारत के प्िए प्रथम दौर 1993 से प्रारंभ माना जाता है और दसू रा दौर 2003 से माना जाता
है।
• भारत में सच्चे अथों में यप्द कोई भी पिकाररता कर रहा है तो वह rediff.com , इप्ं िया
इन्फोिाइन , तथा सीफी जैसी कुछ साइट हैं।
• रे प्िफ को भारत की पहिी साइट कहा जा सकता है।
• वेबसाइट पर प्वशद्ध
ु पिकाररता करने का श्रेय तहिका िॉट कॉम को जाता है।
• प्हदं ी में नेट पिकाररता वेबदप्ु नया के साथ प्रारंभ हुई।
• इदं ौर के नई दप्ु नया समहू से प्रारंभ हुआ यह पोटमि प्हदं ी का संपणू म पोटमि है। जागरण , अमर
उजािा , नई दप्ु नया , प्हदं स्ु तान , भास्कर , राजस्थान पप्िका , नवभारत टाइम्स , प्रभात
खबर एवं राष्िीय सहारा के वेब सस्ं करण प्रारंभ हुए।
• प्रभासािी नाम से प्रारंभ हुआ अखबार प्प्रंट रूप में ना होकर के वि इटं रनेट पर उपिब्ध है।
• आज पिकाररता के अनसु ार श्रेष्ठ साइि बी.बी.सी. है
• प्हदं ी वेब जगत में आज अनेक साप्हप्त्यक पप्िकाएं चि रही है।
• कुि प्मिाकर प्हदं ी की वेब पिकाररता अभी अपने शैशव काि में ही है।
• सबसे बड़ी समस्या प्हदं ी के फॉन्ट की है अभी हमारे पास प्हदं ी की कोई कीबोिम नहीं है।
• जब तक प्हदं ी के कीबोिम का मानकीकरण नहीं हो जाता तब तक इस समस्या को दरू नहीं
प्कया जा सकता।

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