आज की जप टॉक, चैत च रतामृत, आिद लीला के आठव अ ाय के सोलहव ोक म,
ील भु पाद ारा िदये गये ता य का एक अंश है । इसे ही आज पढ़गे । ील भु पाद जी बताते ह - मनु को यह जान ले ना चािहए, िक भगव नाम तथा यं भगवान अिभ ह । पिव नाम के कीतन म अपराध रिहत ए िबना, इस िन ष तक नहीं प ंचा जा सकता । हम अपनी भौितक ि के अनुसार, नाम तथा व ुओं म अंतर दे खते ह। िकंतु आ ा क जगत म, परम त सदै व पूण होता है । परम त के नाम, प, गुण तथा लीलाएं , यं परम त के समान होते ह । इस तरह, यिद कोई अपने आप को, पिव नाम का िन दास मानता है , और इसी भाव से, पिव नाम का िवतरण सारे संसार म करता है , तो उसे भगवान का िन दास माना जाता है । जो इस भाव से, अपराध रिहत होकर कीतन करता है , वह िन य ही समझ जाता है , िक भगवान का पिव नाम तथा भगवान अिभ ह। पिव नाम का संग करना, और पिव नाम का कीतन करना, भगवान से संग करने के बराबर है ।
भ -रस-अमृत-िस ु म कहा गया है , जब मनु पिव नाम की सेवा म लगता
है, तो पिव नाम कट होता है। िवनीत भाव म ऐसी सेवा जीभ से आरं भ होती है । मनु को चािहए, िक अपनी जीभ को पिव नाम की सेवा म लगाए । हमारा कृ भावना अमृत आं दोलन, इसी िस ांत पर आधा रत है । हम कृ भावना अमृत आं दोलन के सारे सद ों को पिव नाम की सेवा म लगाने का य करते ह । पिव नाम तथा कृ अिभ है । इसिलए कृ भावना अमृत आं दोलन के अनुयाई, ना केवल िनरपराध भाव से भगवान के पिव नाम का कीतन करते ह, अिपतु, अपनी जीभ को कोई ऐसी व ु नहीं खाने दे ते, जो पहले पूण पु षो म भगवान को अिपत ना ई हो। अपनी आ ा क तुि के िलए, हम पिव नाम का उ ारण िनरपराध भाव से कर सक, इस ाथना के साथ, आज की जब टॉक को समा िकया जाता है ।
हरे कृ हरे कृ , कृ कृ हरे हरे । हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ।