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कबीर की साखी अर्थ सहित
कबीर की साखी अर्थ सहित
कबीर की साखी प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तिय ाँ हम री लहंदी प ठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस ‘स खी’ के कलि संत कबीरद स जी है। इस स खी में कबीरद स जी ने मीठी बोिी बोिने और दू सरों
को दु ुः ख न दे ने की ब त कही है ।
कबीर की साखी प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तिय ाँ हम री लहंदी प ठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस ‘स खी’ के कलि संत कबीरद स जी है। इस स खी में कबीर जी कहते हैं लक िोग कस्तूरी लहरण की
तरह हो गए है लजस प्रक र लहरण कस्तूरी को प्र प्त करने के लिए इिर-उिर भटक रह है उसी तरह
िोग भी ईश्वर को प्र प्त करने के लिए इिर-उिर भटक रहे हैं ।
कबीर की साखी भावार्थ : लजस प्रक र लहरण की न लभ में कस्तूरी रहती है , परन्तु लहरण इस ब त से
अनज न उसकी खुर्बू के क रण उसे पूरे जंगि में इिर-उिर ढू ं ढ़त रहत है। ठीक इसी प्रक र ईश्वर को
प्र प्त करने के लिए हम उन्हें मंलदर-मक्तिद, पूज -प ठ में ढू ं ढ़ते हैं। जबलक ईश्वर तो स्वयं कण-कण में बसे
हुए हैं, उन्हें कहीं ढू ं ढ़ने की ज़रूरत नहीं। बस ज़रूरत है , तो खुद को पहच नने की।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत प ठ कबीर की स खी की इन पंक्तियों में कबीर जी कह रहे हैं लक जब
तक मनुष्य में अहं क र (मैं) रहत है, तब तक िह ईश्वर की भक्ति में िीन नहीं हो सकत और एक ब र जो
मनुष्य ईश्वर-भक्ति में पूणश रुप से िीन हो ज त है , उस मनुष्य के अंदर कोई अहंक र र्ेष नहीं रहत । िह
खुद को नगण्य समझत है। लजस प्रक र दीपक के जिते ही पूर अंिक र लमट ज त है और च रों तरफ
प्रक र् फ़ैि ज त है, ठीक उसी प्रक र, भक्ति के म गश पर चिने से ही मनुष्य के अंदर व्य प्त अहं क र
लमट ज त है।
कबीर की साखी प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तिय ाँ हम री लहंदी प ठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस स खी के कलि कबीरद स जी है। इसमें कबीर जी अज्ञ न रूपी अंिक र में सोये हुए मनुष्यों को
दे खकर दु ुः खी होकर रो रहे है हैं।
कबीर की साखी प्रसंग : प्रस्तुत स खी हम री लहंदी प ठ्यपुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस स खी के कलि कबीरद स जी है। इस स खी में कबीरजी कहते हैं लक ईश्वर के लियोग के मनुष्य
जीलित नहीं रह सकत और अगर जीलित रह भी ज त है तो प गि हो ज त है ।
कबीर की साखी भावार्थ : लजस प्रक र अपने प्रेमी से लबछड़े हुए व्यक्ति की पीड़ लकसी मंत्र य दि से
ठीक नहीं हो सकती, ठीक उसी प्रक र, अपने प्रभु से लबछड़ हुआ कोई भि जी नहीं सकत । उसमें प्रभु-
भक्ति के अि ि कुछ र्ेष बचत ही नहीं। अपने प्रभु से लबछड़ अगर िो जीलित रह भी ज ते हैं , तो अपने
प्रभु की य द में िो प गि हो ज ते हैं।
कबीर की साखी प्रसंग : प्रस्तुत स खी हम री लहं दी प ठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस स खी के कलि कबीरद स जी है। इस स खी में कबीरद स जी लनंद करने ि िे िोगों को अपने लनकट
रखने की सि ह दे ते हैं त लक आपके स्वभ ि से उनमें स क र त्मक पररितशन आ सके।
कबीर की साखी प्रसंग: प्रस्तुत स खी हम री लहंदी प ठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस स खी के कलि कबीरद स जी है। इस स खी में कबीरद स जी लकत बी ज्ञ न को महत्त्व न दे कर ईश्वर
प्रेम को अलिक महत्त्व दे ते हैं।
कबीर की साखी भावार्थ : प्रस्तुत प ठ कबीर की स खी की इन पंक्तियों में कबीर के अनुस र लसफ़श
मोटी-मोटी लकत बों को पढ़कर लकत बी ज्ञ न प्र प्त कर िेने से भी कोई पंलित नहीं बन सकत । जबलक
ईश्वर-भक्ति क एक अक्षर पढ़कर भी िोग पंलित बन ज ते हैं। अथ शत लकत बी ज्ञ न के स थ-स थ
व्यिह ररक ज्ञ न भी होन आिश्यक है, नहीं तो कोई व्यक्ति ज्ञ नी नहीं बन सकत ।
कबीर की साखी प्रसंग: प्रस्तुत स खी हम री लहंदी प ठ्य पुस्तक ‘स्पर्श’ प ठ-1 ‘स खी’ से िी गई है।
इस स खी के कलि कबीरद स जी है। इस स खी में कबीरद स जी कहते हैं लक यलद ज्ञ न को प्र प्त करन
है तो मोह- म य क त्य ग करन पड़े ग ।
कबीर की साखी भावार्थ : सच्च ज्ञ न प्र प्त करने के लिए, हमें अपनी मोह-म य क त्य ग करन होग ।
तभी हम सच्चे ज्ञ न की प्र क्तप्त कर सकते हैं। कबीर के अनुस र, उन्होंने खुद ही अपने मोह-म य रूपी घर
को ज्ञ न रूपी मर् ि से जि य है। अगर कोई उनके स थ भक्ति की र ह पर चिन च हत है , तो कबीर
अपनी इस मर् ि से उसक घर भी रोर्न करें गे अथ शत अपने ज्ञ न से उसे मोह-म य के बंिन से मुि
करें गे।
2016
हिबंधात्मक प्रश्न
Question 1.
Answer:
Question 2.
Answer:
2015
अहतलघुत्तरात्मक प्रश्न
Question 3.
Answer:
हिबंधात्मक प्रश्न
Question 4.
Answer:
2014
अहतलघुत्तरात्मक प्रश्न
Question 5.
Answer:
लघुत्तरात्मक प्रसि
Question 6.
Answer:
2013
लघुत्तरात्मक प्रसि
Question 7.
Answer:
2012
लघुत्तरात्मक प्रसि
Question 8.
Answer:
Question 9.
Answer:
2011
अहतलघुत्तरात्मक प्रश्न
Question 10.
Answer:
2010
लघुत्तरात्मक प्रसि
Question 11.
Answer:
2009
लघुत्तरात्मक प्रसि
Question 12.
Answer:
Question 13.
Answer:
Question 14.
Answer:
Question 15.
Answer: