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Aryabhatt
Aryabhatt
अभ्र्ासः (Exercise)
प्रश्न 1.
एकपदे न उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)
(क) सूर्यः कसर्यां ददशयर्यम् उदे तत? ………………………………..
(ख) आर्यभटसर् वेधशयलय कुत्र आसीत्? ………………………………..
(ग) महयन् गणितज्ञः ज्र्ोततर्विच्च कः अस्सत? ………………………………..
(घ) आर्यभटे न कः ग्रन्थः रचित:? ………………………………..
(ङ) असमयकां प्रथमोपग्रहसर् नयम तकम् अस्सत? ………………………………..
उत्तरम्:
(क) पूवयददशयर्यम् (पूवयसर्यम्)
(ख) उपपयटचलपुत्रम् (पयटचलपुत्रे)
(ग) आर्यभट: (घ) आर्यभटीर्म्
(ङ) आर्यभटः
प्रश्न 2.
पूियवयक्र्ेन उत्तरत-(पूिय वयक्र् में उत्तर दीजिए-)
(क) कः सुस्थयतपत: चसद्यांत? ………………………………..
(ख) िन्द्रग्रहिां कथां भवतत? ………………………………..
(ग) सूर्यग्रहिां कथां दृश्र्ते? ………………………………..
(घ) आर्यभटसर् तवरोधः तकमथयमभवत्? ………………………………..
(ङ) प्रथमोपग्रहसर् नयम आर्यभटः इतत कथां कृतम्? ………………………………..
उत्तरम्:
(क) सूर्ययिलः पृचथवी ि िलय र्य सवकीर्े अक्षे घूियतत इतत सम्प्रतां सुस्थयतपत: चसद्यन्द्तः।
(ख) सूर्य पररतः भ्रमन्द्तर्यः पृचथव्यः िन्द्रसर् पररक्रमयपथेन सांर्ोगयद् ग्रहिां भवतत।
(ग) पुथ्वीसूर्यर्ोः मध्र्े समयगतसर् िन्द्रसर् छयर्यपयतेन सूर्यग्रहिां दृश्र्ते।।
(घ) समयिे नूतनयनयां तवियरयियां सवीकयरिे प्रयर्: सयमयन्द्र्िनय: कयदिन्द्र्मनुभवन्न्द्त।
(ङ) आधुतनकः वज्ञयतनकः तस्समन्, तसर् ि चसद्यन्द्ते समयदरः प्रकदटतः। असमयदे व कयरियद् असमयकां प्रथमोपग्रहसर्
नयम आर्यभट इतत कृतम्।
प्रश्न 3.
रेखयांतकतपदयतन आधृतर् प्रश्नतनमययिां कुरुत-(रेखयांतकत पदों के आधयर पर प्रश्न तनमययि कीजिए-)
(क) सूर्यः पणिमयर्यां ददशयर्यम् असतां गच्छतत।
(ख) पृचथवी स्थस्थरय वतयते इतत परम्परर्य प्रिचलतय रूद ः।
(ग) आर्यभटसर् र्ोगदयनां गणितज्र्ोततषय सांबद्ः वतयते।
(घ) समयिे नूतनतवियरयियम् सवीकरिे प्रयर्ः सयमयन्द्र्िनयः कयदिन्द्र्मनुभवन्न्द्त।
(ङ) पृथ्वीसूर्यर्ो: मध्र्े िन्द्रसर् छयर्य पयतेन सूर्य ग्रहिां भवतत?
उत्तरम्:
(क) सूर्य कसर्यम् ददशयर्यम् असतां गच्छतत?
(ख) पृचथवी स्थस्थरय वतयते इतत कर्ो प्रिचलतय रूद :?
(ग) आर्यभटसर् र्ोगदयन केन सांबद्ः वतयन्द्ते?
(घ) समयिे नूतनतवियरयियम् सवीकरिे प्रयर्ः के कयदिन्द्र्मनुभवन्न्द्त?
(ङ) कर्ो: मध्र्े िन्द्रसर् छयर्य पयतेन सूर्य ग्रहि भवतत?
प्रश्न 4.
मिूषयतः पदयतन चितवय ररक्तस्थयनयतन पूरर्त-(मांिूषय से पदों को लेकर ररक्त स्थयनों की पूर्ति कीजिए-)
प्रश्न 6.
(अ) अधोचलखखतपदयनयां तवपरीतयथयकपदयतन चलखत
(तनम्नचलखखत पदों के तवपरीतयथयक पद चलखखए-)
उद्यः ……………………….
अिलः ……………………….
अन्धकयरः ……………………….
स्थस्थरः ……………………….
समयदर: ……………………….
आकयशसर्……………………….
उत्तरम्:
उदर्ः – असतः
अिलः – गततशीलः ( िलः )
अन्धकयरः – प्रकयशः
स्थस्थरः – गततशीलः
समयदरः – तनरयदरः ( उपहयसः)
आकयशसर् – पयतयलयसर्
शब्दार्य : उदे तत-उदर् होतय ह। असतां गच्छतत-असत हो ियतय ह। लोके -सांसयर में। अवबोध्र्म्-समझने र्ोग्र्, ियनने
र्ोग्र्, ियननय ियतहए। अिलः-स्थस्थर, गततहीन। िलय-अस्थस्थर, गततशील। सवकीर्े-अपने। अक्षे- धुरी पर। घूियतत-
घूमती ह। सयम्प्रतम्-इस समर्। सुस्थयतपतः- भली-भयाँतत स्थयतपत। प्रयथम्र्ेन-सवयप्रथम प्रवर्तितः-प्रयरम्भ तकर्य गर्य।
ज्र्ोततर्विद-् ज्र्ोततषी। प्रिचलतय-िलने वयली। रूद ः-प्रिचलत प्रथय, ररवयि। प्रतर्यददष्टय-खण्डन तकर्य। उदयहृतम्-
उदयहरि ददर्य। उपतवष्ट:-बिय हुआ। अवगच्छतत-समझतय ह। वेणत्त-ियनतय ह।
सिलार्य : सांसयर में र्ह ददखयई दे तय ह तक सूर्य पूवय ददशय में उदर् होतय ह और पणिम ददशय में असत होतय ह परन्द्तु
इससे र्ह नहीं ियनय ियतय ह तक सूर्य गततशील ह। सूर्य अिल ह और पृथ्वी िलयर्मयन ह। िो अपनी धुरी पर घूमती
ह र्ह इस समर् भली-भयाँतत स्थयतपत चसद्यन्द्त ह। इस चसद्यन्द्त को सवयप्रथम जिन्द्होंने प्रयरम्भ तकर्य, वह महयन्
गणित के ज्ञयतय और ज्र्ोततषी आर्यभट थे। पृथ्वी स्थस्थर ह, परम्परय से िली आ रही इस प्रथय (धयरिय) कय उन्द्होंने
खण्डन तकर्य। उन्द्होंने उदयहरि ददर्य तक िलती हुई नयव में बिय हुआ मनुष्र् नयव को रुकी हुई अनुभव करतय ह
और दूसरे पदयथों (वसतुओं) को गततशील समझतय ह। इसी तरह ही गतत र्ुक्त पृथ्वी पर स्थस्थत मनुष्र् पृथ्वी को स्थस्थर
अनुभव करतय ह और सूर्य आदद ग्रहों को गततशील ियनतय ह।
(ख) 476 तमे खिसतयब्दे (षट् सप्ततर्धधकितुःशततमे वषे) आर्यभटः िन्द्म लब्धवयतनतत तेनव तवरचिते ‘आर्यभटीर्म्’
इतर्स्समन् ग्रन्थे उस्थल्लखखतम्। ग्रन्थोऽर्ां तेन त्रर्ोवविशतततमे वर्चस तवरचितः। ऐततहयचसकस्रोतोणभः ज्ञयर्ते र्त्
पयटचलपुत्रां तनकषय आर्यभटसर् वेधशयलय आसीत्। अनेन इदम् अनुमीर्ते र्त् तसर् कमयभूधमः पयटचलपुत्रमेव आसीत्।
शब्दार्य : खिसतयब्दे -ईसवी में। षट् सप्तततः-चछहत्तर। लब्धवयन्-चलर्य। तवरचिते-रिे हुए। इतर्स्समन्-(इतत+ अस्समन्)
इस (में)। उस्थल्लखखतम्-उल्लेख तकर्य ह। वर्चस-आर्ु में, अवस्थय में। तवरचितः-रिय ह। स्रोतोणभः-स्रोतों से। ज्ञयर्ते-
ियनय ियतय ह। तनकषय-तनकट। वेधशयलय-ग्रह, नक्षत्रों को ियनने की प्रर्ोगशयलय। अनुमीर्ते-अनुमयन तकर्य ह।
कमयभूधमः-कमय क्षेत्र। आसीत्-थी।
सिलार्य : सन् 476वें ईसवीर् वषय में (ियर सौ चछहत्तरवें वषय में) आर्यभट ने िन्द्म चलर्य, र्ह उन्द्होंने अपने द्वयरय ही
चलखे ‘आर्यभटीर्म्’ नयमक इस ग्रन्थ में उल्लेख तकर्य ह। र्ह ग्रन्थ उन्द्होंने तेईसवें वषय की आर्ु में रिय थय।
ऐततहयचसक स्रोतों से ियनय ियतय ह (पतय िलतय ह) तक पयटचलपुत्र (पटनय) के तनकट आर्यभट की नक्षत्रों को ियनने
की प्रर्ोगशयलय थी। इससे र्ह अनुमयन तकर्य ियतय ह तक उनकय कयर्यक्षेत्र पयटचलपुत्र (पटनय) ही थय।
(ग) आर्यभटसर् र्ोगदयनां गणितज्र्ोततषय सम्बद्ां वतयते र्त्र सांख्र्यनयम् आकलनां महत्त्वम् आदधयतत। आर्यभटः
फचलतज्र्ोततषशयसत्रे न तवश्वचसतत सम। गणितीर्पद्तर्य कृ तम् आकलनमयधृतर् एव तेन प्रततपयददतां र्द् ग्रहिे
रयहुकेतुनयमको दयनवौ नयस्सत कयरिम्। तत्र तु सूर्यिन्द्रपृचथवी इतत त्रीणि एव कयरियतन। सूर्य पररतः भ्रमन्द्तर्यः
पृचथव्यः, िन्द्रसर् पररक्रमयपथेन सांर्ोगयद् ग्रहिां भवतत। र्दय पृचथव्यः छयर्यपयतेन िन्द्रसर् प्रकयशः अवरुध्र्ते तदय
िन्द्रग्रहिां भवतत। तथव पृथ्वीसूर्यर्ोः मध्र्े समयगतसर् िन्द्रसर् छयर्यपयतेन सूर्यग्रहिां दृश्र्ते।
सिलार्य : आर्यभट कय र्ोगदयन (सहर्ोग) गणितज्र्ोततष से सम्बन्ध रखतय ह िहयाँ सांख्र्यओं की गिनय महत्त्व
रखती ह। आर्यभट फचलत ज्र्ोततषशयसत्र में तवश्वयस नहीं करते थे। गणित शयसत्र की पद्तत (तरीके ) से तकए गए
आकलन (गिनय) पर आधयररत करके ही उन्द्होंने कहय (प्रततपयददत तकर्य) तक ग्रहि (लगने) में रयहु और के तु नयमक
रयक्षस कयरि नहीं हैं। वहयाँ पर सूर्य, िन्द्रमय और पृथ्वी र्े तीनों ही कयरि हैं। सूर्य के ियरों ओर घूमती हुई पृथ्वी कय
िन्द्रमय के घूमने के मयगय के सांर्ोग (कयरि) से ग्रहि होतय ह। िब पृथ्वी की छयर्य पडने से िन्द्रमय कय प्रकयश रुक
ियतय ह तब िन्द्रग्रहि होतय ह। वसे ही पृथ्वी और सूर्य के बीि में आए हुए िन्द्रमय की परछयई से सूर्यग्रहि ददखयई
पडतय ह (दे तय ह)।
(घ) समयिे नूतनयनयां तवियरयियां सवीकयरेि प्रयर्ः सयमयन्द्र्िनयः कयदिन्द्र्मनुभवन्न्द्त। भयरतीर्ज्र्ोततःशयसत्रे तथव
आर्यभटसर्यतप तवरोधः अभवत्। तसर् चसद्यन्द्तयः उपेणक्षतयः। स पस्थण्डतम्मन्द्र्यनयम् उपहयसपयत्रां ियतः। पुनरतप तसर्
दृधष्टः कयलयततगयधमनी दृष्टय। आधुतनकः वज्ञयतनकः तस्समन्, तसर् ि चसद्यन्द्ते समयदरः प्रकदटतः। असमयदे व कयरियद्
असमयकां प्रथमोपग्रहसर् नयम आर्यभट इतत कृतम्। वसतुतः भयरतीर्यर्यः गणितपरम्परयर्यः अथ ि तवज्ञयनपरम्परयर्यः
असौ एकः चशखरपुरुषः आसीत्।
शब्दार्य : नूतनयनयम्-नए (के )। सवीकयरेि-सवीकयर करने (मयनने) में। कयदिन्द्र्म्-कदिनयई (को)। उपेणक्षतयः-उपेणक्षत
(अनसुने) कर ददए गए। पस्थण्डतम्मन्द्र्यनयम्-सवर्ां को भयरी तवद्वयन् मयनने वयलों कय। उपहयसपयत्रम्-हाँसी के पयत्र।
दृधष्टः-तवियरधयरय। कयलयततगयधमनी-समर् को लयाँघने वयली। समयदरः-सम्मयन। प्रकदटतः-व्क्त तकर्य। वसतुतः-वयसतव
में। चशखर पुरुषः-सवोच्च व्स्थक्त।
सिलार्य : समयि में नए तवियरों को सवीकयर करने (मयनने) में अधधकतर सयमयन्द्र् लोग कदिनयई को अनुभव करते
हैं। भयरतीर् ज्र्ोततष शयसत्र में वसे ही आर्यभट कय तवरोध हुआ। उनके चसद्यन्द्त अनसुने कर ददए गए (नहीं मयने
गए)। वह सवर्ां को भयरी तवद्वयन मयनने वयलों की हाँसी कय पयत्र (तवषर्) बन गए। तफर भी उनकी दृधष्ट (तवियरधयरय)
समर् को लयाँघने वयली दे खी गई (ददखयई पडी)। तकन्द्तु आधुतनक वज्ञयतनकों ने उनमें, और उनके चसद्यन्द्त में आदर
(तवश्वयस) प्रकट तकर्य। इसी कयरि से हमयरे पहले उपग्रह कय नयम आर्यभट रखय गर्य।
वयसतव में भयरत की गणित परम्परय के और तवज्ञयन की परम्परय के वह एक चशखर पुरुष (सवोच्च व्स्थक्त ) थे।