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आपदा एवं इसका प्रबंधन

क्र.सं. विषय सूची पृष्ठ संख्या


1 आपदा एिं संकट 2
2 आपदाओं का िर्गीकरण, प्राकृविक संकट एिं उनका प्रबंधन 4
3 भारि में आपदा प्रबं धन 43
4 आपदा प्रबंधन एिं प्रौद्योवर्गकी 53
5 आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीवि, 2009 56
6 िितमान विकास 57

1
अध्याय-1 आपदा एवं सं कट
आपदा जोखिम न्यूनीकरण संयुक्त राष्ट्र कायात लय (UNISDR) ने
'आपदा' को कुछ इस िरह से पररभावषि वकया है वक, “वकसी
समुदाय या समाज के सुचारु रूप से कायत करने में एक ऐसी र्गंभीर
बाधा जो व्यापक भौविक, आवथतक, सामावजक या पयात िरणीय क्षवि
उत्पन्न करिी है और वजसके प्रभािों से वनपटना, समाज द्वारा अपने संसाधनों का उपयोर्ग करिे
हुए संभि नहीं होिा है ।” आपदा प्रबंधन अवधवनयम, 2005 के अनुसार आपदा की वनम्न पररभाषा
है :"आपदा का अथत वकसी भी क्षेत्र में होने िाली िबाही, दु र्तटना, या र्गंभीर र्टना से है , जो
प्राकृविक उथल-पुथल या मानिीय र्गविविवधयों के कारण उत्पन्न होिी है , वजसके
पररणामस्वरूप जान- माल की अत्यवधक हावन होिी है अथिा पयात िरण का क्षरण होिा है ।
आपदा की प्रकृवि अथिा उसके हावनकारक प्रभाि का पररमाण इिना अवधक होिा है वक
उसका सामना करना मानि समुदाय की क्षमिा से परे होिा है ।"

संकट :
भविष्य में वकसी स्रोि द्वारा होने िाले विनाश की संभािना को 'संकट' कहा जा सकिा है , जो
वनम्नवलखिि पर प्रभाि डालिा है :
• लोर्ग: मौि, चोट, बीमारी और िनाि
• संपवि: संपवि को नुकसान, आवथतक नुकसान, आजीविका का नाश
• पयात िरण: िनस्पवियों और जीिों की हावन, प्रदू षण, जैि विविधिा पर हावनकारक प्रभाि ।

आपदा और संकट में अंतर:

आपदा संकट
आपदा एक ऐसी र्टना है जो ज्यादािर मामलों में संकट एक ऐसी र्टना है वजससे क्षवि
अचानक / अप्रत्यावशि रूप से होिी है एिं प्रभाविि / जीिनरूपी हावन अथिा संपवि /
क्षेत्रों में जीिन की सामान्य खथथवि को नुकसान पहुुँ चािे पयात िरण को नुकसान पहुुँ चिा है ।

2
हैं । इससे जीिन, संपवि या पयात िरण को नुकसान या
क्षवि होिी है । थथानीय समुदाय /समाज पर इसका
प्रभाि अत्यवधक विनाशकारी होिा है , अिः इसका
सामना करने के वलए बाहरी मदद की आिश्यकिा
होिी है ।

आपदा प्रबंधन में प्रयुक्त महत्वपूर्ण शब्दावली:


1. संकट: यह एक ऐसी र्टना होिी है जो जीिन ,संपवि ,सामावजक एिं आवथतक व्यिथथा अथिा
पयात िरणीय क्षवि का कारण बन सकिी है ।
2. सुभेद्यिा: यह एक आपदा द्वारा वकसी व्यखक्त ,समुदाय अथिा थथान पर संभाविि विनाश को
दशात िा है , जो भौर्गोवलक और साथ ही सामावजक पररखथथवियों को भी प्रभाविि करिा है ।
3. समुदाय: िे लोर्ग जो वकसी र्गाुँ ि अथिा शहरी क्षेत्रों में एक साथ रहिे हैं , उन्हें थथानीय समूह
के रूप में पहचाना जािा है ।
4. प्रथम अनुवक्रयाकिात ओं (first responders): यह लोर्गों का िह समूह होिा है जो आपदा के
समय सितप्रथम अनुवक्रया दे िे हैं l यह सरकार अथिा राहि एजेंवसयों के पहुुँ चने से पहले
आपदा प्रभाविि व्यखक्तयों अथिा समुदायों को सहायिा प्रदान करिे हैं ।

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अध्याय-2 आपदा एवं प्राकृ ततक सं कट ं के प्रकार एवं
वर्गीकरर्

आपदाओं का वर्गीकरर्:
आपदाओं को दो भार्गों में िर्गीकृि वकया जा सकिा है :

आपदाओं का वर्गीकरण

प्राकृतिक आपदा मानव-तनतमिि आपदा

भारत में प्राकृततक आपदाएँ :

प्राकृतिक आपदाएँ

जं र्गल की
भूकंप सुनामी बाढ़ सूखा भूस्खलन भीड़ प्रबं धन िे ल ररसाव
आर्ग

1. भूकंप:

4
• भूकंप सभी प्राकृविक आपदाओं में सबसे
अप्रत्यावशि और अत्यवधक विनाशकारी आपदा है ।
वििितवनक मूल (tectonic origin) के भूकंप
सिात वधक विनाशकारी वसद्ध हुए हैं एिं इनका प्रभाि
क्षेत्र भी बहुि अवधक होिा है ।
• इस प्रकार के भूकंप, पृथ्वी की ऊपरी सिह में
वििितवनक र्गविविवधयों के दौरान होने िाले संचरणों
के कारण उत्पन्न ऊजात के पररणामस्वरूप आिे हैं ।
• राष्ट्रीय भूभौविकीय प्रयोर्गशाला (National
Geophysical Laboratory), भारि का भूर्गभीय
सिेक्षण (Geological Survey of India) िथा
मौसम विज्ञान विभार्ग के साथ-साथ हाल ही में र्गविि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संथथान (National
Institute of Disaster Management) ने वपछले वदनों भारि में आए 1200 से अवधक
भूकंपों का र्गहन विश्लेषण करके इसी आधार पर भारि को वनम्नवलखिि 5 भूकं पीय क्षेत्रों में
विभावजि वकया है :

भारत में भूकंपीय क्षेत्र:


• भारि में चार भूकंपीय क्षेत्र (II, III, IV, और V) हैं , जो भूकंपीय र्गविविवधयों से संबंवधि िैज्ञावनक
इनपुट, अिीि में आए भूकंप के आधार पर एिं क्षेत्र की वििितवनक संरचना को ध्यान में रििे
हुए विभावजि वकए र्गए हैं ।
• इससे पूित भूकंपीय क्षे त्रों को भूकंप की र्गंभीरिा के आधार पर पाुँ च क्षेत्रों में विभावजि वकया
र्गया था, लेवकन भारिीय मानक ब्यूरो (BIS) ने पहले दो क्षेत्रों को एकजुट करके दे श को चार
भूकंपीय क्षेत्रों में िर्गीकृि कर वदया है ।
• भारिीय मानक ब्यूरो भूकंपीय ििरे के नक्शे और कोड को प्रकावशि करने के वलए
आवधकाररक एजेंसी है ।

भूकंपीय क्षेत्र II: मामूली क्षवि के साथ V से VI MM पैमाने (MM-मॉवडफाइड मकेली


इं टेंवसटी स्केल(Modified Mercalli Intensity scale)) की िीव्रिा होिी
है ।
5
भूकंपीय क्षेत्र III: VII MM पै माने की िु लना में मध्यम क्षतत ।

भूकंपीय क्षेत्र IV: VII MM पै माने की िु लना में अवधक क्षवि एिं उच्च MM पैमाना
भूकंपीय क्षेत्र V: • कुछ प्रमुि वििित वनक भ्रंश प्रणावलयों द्वारा वनधात ररि भूकंपीय क्षेत्र एिं
भूकंपीय रूप से सबसे अवधक सवक्रय ।
• भूकंप क्षेत्र V सबसे अवधक असुरवक्षि है इससे पहले भी यहां पर दे श
के कुछ सबसे शखक्तशाली भूकंप आए हैं ।
• इन क्षेत्रों में 7.0 से अवधक पररमाण िाले भूकंप आए हैं , और वजनकी
िीव्रिा IX पैमाने से अवधक थी ।

भूकंप: भारि का 59% भूभार्ग भूकंप प्रभाविि क्षेत्रों में अविसंिेदनशील है ।

भूकंप ं के सामातिक एवं पयाणवरर्ीय प्रभाव:


• भूकंप वबना वकसी भेदभाि के पूरी पृथ्वी की सिह पर एक समान रूप से प्रसाररि होिा है ,
साथ ही भूकंप के पैमाने, पररमाण एिं अचानक आने के कारण यह प्रायः डरािना होिा है ।
• यवद यह उच्च जनसं ख्या र्नत्व िाले क्षेत्रों में आिा है िो यह एक विनाशकारी आपदा का रूप
ले लेिा है ।
• यह न केिल बुवनयादी ढाुँ चे, पररिहन और संचार नेटिकत, उद्योर्गों एिं अन्य विकासात्मक
र्गविविवधयों को बावधि करिा है बखि उनकी सामग्री और सामावजक सां स्कृविक िानेबाने
को भी नष्ट् कर दे िा है , वजसे उन्होंने पीढी दर पीढी संरवक्षि वकया है l यह लोर्गों को बेर्र कर
दे िा है वजससे विकासशील दे शों की कमजोर अथतव्यिथथा पर अविररक्त दबाि पड़िा है ।

भूकंप के प्रभाव:

1.सतह पर:
दरारें (Fissures): • भूकंप, पृथ्वी की ऊपरी सिह में दरारें बना सकिा है वजससे कई
संभाविि श्ृंिला प्रभाविि हो सकिे हैं ।

6
• भूकंप के कारण विवभन्न बखस्तयाुँ नष्ट् हो जािी हैं वजससे लोर्गों की जान
बस्ती
भी चली जािी है पररणामस्वरूप इन लोर्गों का पलायन सुरवक्षि क्षेत्रों
(Settlements):
की ओर होिा है ।

• अत्यवधक ढलान िाले क्षेत्रों में भू स्खलन का ििरा सबसे अवधक होिा
भूस्खलन है । सर्न चराई, िनों की कटाई और उच्च िषात जैसी प्राकृविक एिं
(Landslides) मानिीय र्गविविवधयाुँ भूस्खलन का कारण बन सकिी हैं ।
• उदाहरण के वलए, वहमालय के आसपास उच्च ढलान िाले क्षेत्र जो
भारि के उच्च जोखिम क्षेत्र कहलािे हैं ।

2. मानव तनतमणत संरचनाओं पर:


दरार: भूकंप इमारिों, सड़कों और अन्य बुवनयादी ढाुँ चे में दरार उत्पन्न कर
सकिा है । र्गौरिलब है वक लंबे समय के बाद ये दरारें संरचनाओं को
और अवधक नुकसान पहुुँ चा सकिी हैं ।
स्लाइवडं र्ग भूकंप कुछ संरचनाओं को, उनकी बुवनयाद से स्खवलि कर सकिा है ।
(सरकना): जब एक वििितवनक प्लेट दू सरे पर स्लाइड करिी है िो जमीन की सिह
पर विवभन्न प्रकार की असमानिा उत्पन्न हो सकिी है । यह इमारिों,
सड़कों और अन्य बु वनयादी संरचनाओं को भी स्खवलि कर सकिा है ।
नष्ट् होना: यवद वकसी संरचना का वनमात ण, क्षेत्र की भूर्गभीय और भू-आकृविक
खथथवियों के अनु सार न वकया जाए िो भूकंप के दौरान इन पर र्गंभीर
भूर्गभीय संकट आने की संभािना होिी है । इस प्रकार की इमारिों का
भूकंप के दौरान नष्ट् होना स्वाभाविक है ।

3.िल पर:
लहरें : भूकंप प्रायः जल वनकायों में सामान्य से अवधक लहरें उत्पन्न कर सकिा
है ,इिनी ऊुँची लहरें मानि बखस्तयों ,कृवष इत्यावद को नष्ट् कर सकिी हैं

हाइडरोडायनावमक जल वनकाय, दाब में होने िाले पररिितन के प्रवि अत्यवधक संिेदनशील
दाब: होिे हैं । यवद भूकंप के कारण पयात प्त दाब उत्पन्न होिा है िो बां ध टू ट
सकिे हैं ।
7
सुनामी: • वििितवनक प्लेटों के आपस में प्रविथथापन के कारण भूकंप आ सकिा
है और यह सामान्य िरं र्गों को उच्च िरं र्गदै ध्यत में पररिवित ि कर सकिा
है । ऐसी िरं र्गें अवधक विनाशकारी होिी हैं ।
• उदाहरण: सुनामी (2004), इं डोनेवशया में सु नामी लहरें (2018) ।

भूकंप के खतरे से बचाव:


भूकंप क र कना संभव नही ं है अतः दू सरा तवकल्प यह है तक इसे र कने
के बिाय इस आपदा की तैयाररय ं और इससे तनपटने पर ि र तदया िाए
िैसे:
• भूकंप प्रभाविि क्षेत्रों में वनयवमि वनर्गरानी एिं सूचना के प्रसार हे िु भू कंप वनर्गरानी केंद्र थथावपि
करनी चावहए l वििितवनक प्लेटों के संचरण पर वनर्गरानी रिने हे िु ग्लोबल पोवजशवनंर्ग वसस्टम
(GPS) का उपयोर्ग अत्यवधक प्रभािी होर्गा।
• दे श का सुभेद्य मानवचत्र िैयार करना एिं लोर्गों को इन आपदा प्रभाविि क्षेत्रों की जानकारी
प्रदान करिे हुए इन आपदाओं के प्रविकूल प्रभािों को कम करने हे िु लोर्गों को इसके उपायों
एिं साधनों के बारे में वशवक्षि करना।
• सुभेद्य क्षेत्रों में र्र के प्रकार एिं भिनों के वनमात ण की प्रवक्रया में संशोधन करना ।
• भूकंप प्रविरोधी संरचना का विकास एिं भू कंप प्रभाविि क्षेत्रों में प्रमुि वनमात ण र्गविविवधयों हे िु
हिी सामग्री का उपयोर्ग अवनिायत होना चावहए।
हातलया घटनाक्रम:
• इं तिया क्वेक ऐप- पृ थ्वी तवज्ञान मंत्रालय ने ल र्ग ं क भूतम अथवा िल से संबंतधत
प्राकृततक संकट ं की िानकारी प्राप्त करने के तलए ‘India Quake’ app लॉन्च तकया
है । भूकंप की घटना के पश्चात स्थान एवं समय के आधार पर भूकंप पैरामीटर के
स्वचातलत प्रसार हे तु राष्ट्रीय भूकंप तवज्ञान केंद्र ने इस ऐप क तवकतसत तकया है तिसके
माध्यम से भूकंप से संबंतधत िानकाररयाँ समय पर प्रसाररत की िा सकेर्गी ।

• 2 . सुनामी: सुनामी (िापान में इसे "हाबणर वेव" कहा िाता है ), तिसे भूकंपीय समुद्री
लहर के रूप में भी िाना िाता है । यह िल में उठने वाली तरं र्गे हैं तिनकी तरं र्गदै ध्यण
8
बहुत ही अतधक ह ती है । र्गहरे समुद्र में इनकी ऊँचाई लर्गभर्ग 100 तकल मीटर से
भी अतधक ह सकती है ।

• यह प्रायः भूकंप, भूस्खलन या ज्वालामुिी र्गविविवध के कारण समुद्र िल में अचानक


हुए विथथापन द्वारा उत्पन्न होिा है ।
• अवधकां श विनाशकारी सुनामी भयंकर भूकंप से उत्पन्न होिी हैं जो प्रायः भूर्गभीय प्लेटों के
टकराने के थथान पर अथिा भ्रंश रे िा (fault-lines) के पास र्वटि होिी हैं ।
• समुद्र िल में हुई आकखिक ऊर्ध्ात धर विकृवि के कारण समुद्र के विशाल भार्ग में कुछ
पररिितन होिे हैं वजससे जल िरं र्गें उत्पन्न होिी हैं । इन िरं र्गों की ऊुँचाई र्गहरे समु द्र में
केिल कुछ डे सीमीटर अथिा इससे कम होर्गी जो जहाजों द्वारा भी महसूस नहीं की जा
सकिी है ।
• ना ही उन्हें िुले समुद्र में ऊपर से दे िा जा सकिा है ।
• परं िु यही िरं र्गें वटर र्गररं र्ग स्रोि से काफी लंबी दू री पर 800 वकलोमीटर प्रवि र्ंटा की र्गवि
से पहुुँ च सकिी हैं ।
• ये िरं र्गें जब िट पर पहुुँ चिी हैं िो काफी ििरनाक हो जािी हैं और क्षवि पहुुँ चािी हैं
क्ोंवक जब सुनामी िटीय क्षेत्रों के उथले जल में पहुुँ चिी है िो लहरों की ऊुँचाई में िृ खद्ध
िथा िेर्ग में कमी आिी है ।
• उथले पानी में एक बड़ी सुनामी की लहरों की ऊुँचाई 30 मीटर से अवधक हो सकिी है जो
बहुि ही कम समय में िटीय क्षेत्रों का विनाश कर सकिी है ।
• वदसंबर 2004 में वहं द महासार्गर के िटों पर ऐसी ही एक र्टना र्वटि हुई थी वजसमें बड़ी
संख्या में लोर्गों की जान र्गई थी साथ ही साथ भारी जानमाल का भी नुकसान हुआ था ।
• वटर र्गररं र्ग स्रोि में उत्पन्न हुई िरं र्गें िटीय क्षेत्र पर पहुुँ चकर भयािह रूप ले ले िी हैं और इन्हें
इस स्रोि से िट िक पहुुँ चने में लर्गभर्ग 10 वमनट से भी कम समय लर्गिा है ।
• 26 वदसंबर 2004 को वहं द महासार्गर में भूकंप के पररणामस्वरूप आई सुनामी ने भारि
पर विनाशकारी प्रभाि डाला था । अनेक लोर्गों की मृत्यु हुईं और लािों लोर्ग विथथावपि हो
र्गएl इस सुनामी का सबसे अवधक प्रभाि भारि के दवक्षणी िट एिं अंडमान और वनकोबार
दीपसमूह पर पड़ा था ।
• सुनामी में संपवि की क्षवि, बड़े पैमाने पर बुवनयादी ढाुँ चे की क्षवि, जान-माल की क्षवि और
आवथतक रूप से दीर्तकावलक नकारात्मक प्रभाि पड़ने की संभािना होिी है । सुनामी की
चपेट में आने िाले लोर्गों एिं िस्तुओं के बचने की संभािना अत्यवधक कम होिी है । ध्यान
9
दे ने िाली बाि यह है वक लोर्ग या िो डूबकर या िो मलबे में दबकर मर जािे हैं ।
• सुनामी द्वारा होने िाली क्षवि को कम करने के वलए विवभन्न राज्यों एिं केंद्र सरकार को
अपनी क्षमिा में िृ खद्ध करनी चावहए । अि: अंिरात ष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रयास इन
आपदाओं से वनपटने के संभाविि िरीके हैं । भारि ने वदसंबर 2004 की सुनामी आपदा के
बाद अंिरात ष्ट्रीय सुनामी चेिािनी प्रणाली (ITWS) में शावमल होकर आिश्यक सुधारों का
कायात न्वयन वकया है ।

सुनामी: क्षमता तनमाणर्


1. अनुसंधान और तवकास:
• सुनामी द्वारा ह ने वाले ि खखम मूल्ां कन एवं पररदृश्य तवकास हे तु मानकीकृत तवतधय ं
के तवकास क प्र त्सातहत करना तथा िाटा एकत्र करने एवं िानकाररय ं क िुटाने के
तलए अध्ययन करना चातहए ।
• अतीत में हुए सुनामी घटनाओं के आधार पर सुनामी के खतरे के संकेतक हे तु बडे
पैमाने पर तितिटल मानतचत्रर् तवकतसत करना चातहए।
• राज्यों को आपदा प्रबं धन र्गविविवध योजना एिं समन्वय के वलए भूकंप प्रभाविि क्षेत्रों के
विस्तृ ि कंप्यूटरीकृि नक्शे और डाटा बेस िैयार करना चावहए।

2. ज तनंर्ग या मैतपंर्ग:
• तूफानी लहर ,ं उच्च िे स, स्थानीय स्नानार्गार आतद की िानकारी के साथ तटीय क्षेत्र ं
में सुनामी ि खखम एवं वैधता का िे टाबेस तैयार करना चातहए।
• राज् ं क केंद्र सरकार की एिेंतसय ं क ज तनंर्ग या मैतपं र्ग हे तु समथणन करना चातहए
और अपने स्तर पर इसमें आवश्यक सुधार करने चातहए।

3.अवल कन नेटवकण, सूचना प्रर्ाली, तनर्गरानी, अनुसंधान, पूवाणनुमान और प्रारं तभक


चेतावनी:
• सुनामी का सामना करने के तलए तटीय क्षेत्र ं में मौिूदा महत्वपूर्ण प्रततष्ठान ं की खस्थतत
का आकलन करें
• महत्वपूर्ण उपकरर् ं के तबना 'फेल सेफ 'कायाणन्वयन (fail-safe functioning)
सुतनतश्चत करने हे तु इनका रखरखाव एवं संरक्षर् करना चातहए ।
10
• राज् ं क िे टा संग्रह और अपिे ट करने के तलए सहय र्ग करना चातहए।

4.चेतावनी, िे टा और सूचना का प्रसार:


• भूकंपीय र्गतततवतध की तनर्गरानी करना, भूकंपीय मॉिल के आधार पर चेतावनी दे ना
और समय-समय पर आवश्यक िानकारी का प्रसारर् करना ।
• सभी आवश्यक चेतावनी का प्रसारर् दू रस्थ ग्रामीर् व शहरी ि खखम क्षेत्र ं तक
तनयतमत रूप से ह ना चातहए ।

5.केंद्र और राज् तनम्नतलखखत मामल ं पर समन्वय कर सकते हैं :


• िीवनरे खा संरचनाओं और उच्च प्राथतमकता वाली इमारत ं का सुदृढीकरर्
• तूफान ं एवं सुनामी की खस्थतत में ल र्ग ं के तलए आश्रय तनमाण र्
• बडे पैमाने पर िलमग्न सैंिबार (रे ती ) का तनमाणर्
• समय-समय पर इनलेट्स और संबंतधत िल तनकाय ं के माध्यम से सुनामी के दौरान
आने वाले िल प्रवाह क अवश तित करना
• िलमग्न िाइक्स (submerged dykes) का तनमाणर् (तट के खखंचाव के साथ एक या
द पंखक्तय )ं तिससे भतवष्य में आने वाली सुनामी का प्रभाव कम करके महत्वपूर्ण
प्रततष्ठान ं की सुरक्षा की िा सके l
• सभी महत्वपूर्ण सं रचनाओं एवं बुतनयादी ढांच ं क 'संकट प्रततर धी तनमाणर्
सुदृढीकरर्’ एवं ररटर तफतटं र्ग तकया िाना चातहएl

हातलया घटनाक्रम:

सार्गर वार्ी ऐप (Sagar Vani App):


• यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंिर्गति, भारिीय राष्ट्रीय महासार्गर सूचना सेिा केंद्र (Indian
National Centre for Ocean Information Services - INCOIS) द्वारा विकवसि
वकया र्गया है ।
• यह एक सॉफ्टिेयर प्लेटफॉमत है जो समुद्री जानकारी के प्रसार और संभाविि मत्स्य पालन क्षेत्र
(PFZ) एडिाइजरी, महासार्गर राज्य पू िात नुमान (OSF), राज्य मार्गत चेिािनी एिं सु नामी
चेिािवनयों के वलए अत्याधुवनक िकनीक का उपयोर्ग करिा है ।
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3. उष्णकतटबंधीय चक्रवात:
• भारत की लर्गभर्ग 7500 तकल मीटर लंबी तट रे खा
का 5400 तकल मीटर मुख्य भू तम में, 132
तकल मीटर लक्षदीप में एवं 1900 तकल मीटर
अंिमान और तनक बार दीप समूह में है ।
• भारि के अवधकां श िू फान बंर्गाल की िाड़ी में प्रारं भ
होिे हैं एिं पू िी भारिीय िटों को सिात वधक प्रभाविि
करिे हैं ।
• प्रत्येक िषत, औसिन पाुँ च से छह उष्णकवटबंधीय
चक्रिाि आिे हैं , वजनमें से दो या िीन र्गंभीर हो सकिे
हैं ।
• प्रायः पविमी िटों में अरब सार्गर के अंिर्गति एिं पू िी िटों में बंर्गाल की िाड़ी के पास ज्यादािर
चक्रिाि आिे हैं ।
• अरब सार्गर की िुलना में बं र्गाल की िाड़ी में अवधक चक्रिाि आिे हैं ।
• भारि के पू िी और पविमी िटों पर चक्रिािों की आिृवियों के विश्लेषण से पिा चलिा है वक
लर्गभर्ग 308 चक्रिाि (वजनमें से 103 र्गंभीर थे) ने पूिी
िटों को सबसे अवधक प्रभाविि वकया था ।
• भारि में मई-जून और अक्टू बर-निंबर के माह में
उष्णकवटबंधीय चक्रिाि आिे हैं ।
• वहं द महासार्गर के उिरी भार्ग में अत्यवधक िीव्रिा और
आिृवि के चक्रिाि आिे हैं l निंबर और मई महीने में
इनकी िीव्रिा अवधक होिी हैं ।
• विनाशकारी हिा, िू फान और मूसलाधार िषात के
कारण वहं द महासार्गर (बंर्गाल की िाड़ी और अरब
सार्गर) के उिरी भार्ग में भूस्खलन जैसी आपदाओं की
संभािना सबसे अवधक होिी है । इसके अविररक्त
अत्यवधक िूफान ि चक्रिाि आवद आिे हैं वजसके कारण वनचले िटीय क्षेत्रों में समुद्र का पानी
भारी बाढ लािा है जो समुद्री िटों एिं िनस्पवियों को नष्ट् कर दे िा है साथ ही वमट्टी की उित रिा
को भी कम करिा है ।
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• दे श के 30 राज्यों और केंद्रशावसि प्रदे शों को वमलाकर कुल 84 वजले उष्णकवटबंधीय चक्रिाि
से प्रभाविि हैं ।
• पूिी िट पर चार राज्य (िवमलनाडु , आं ध्र प्रदे श, ओवडशा और पविम बंर्गाल) और एक
केंद्रशावसि प्रदे श (पु दुचेरी) िथा पविमी िट पर एक राज्य (र्गुजराि) चक्रिाि आपदा से
सिात वधक प्रभाविि हैं ।

उष्णकतटबंधीय चक्रवात ं के उद्भव के तलए प्रारं तभक पररखस्थततयाँ:


अत्यवधक मात्रा में वनरं िर र्गमत और आद्रत िायु अत्यवधक र्गुप्त ऊष्मा का उत्पादन कर सकिी
है ।
• मजबूि कोररओवलस बल केंद्र में दाब को कम नहीं होने दे िा है {र्गौरिलब है वक भूमध्य रे िा
के पास कोररओवलस बल की अनुपखथथवि (0-5 वडग्री अक्षां श के बीच) के कारण
उष्णकवटबंधीय चक्रिाि यहां उत्पन्न नहीं होिी है } ।
• क्षोभमंडल में अखथथर खथथवि का उत्पन्न होना वजसके चारों ओर ही चक्रिाि विकवसि होिा है

• िेज ऊर्ध्ात धर िायु की अनुपखथथवि र्गुप्त ऊष्मा के ऊर्ध्ात धर चाल को अखथथर करिी है ।

चक्रवात: दे श के 84 समुद्र तटीय तिले चक्रवात की चपेट में हैं । दु तनया के उष्णकतटबंधीय चक्रवात ं का
10% भारतीय तट ं क प्रभातवत करता है ।

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उष्णकतटबंधीय चक्रवात: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रातधकरर् (NDMA) के तदशातनदे श
1. अवल कन नेटवकण, सूचना प्रर्ाली, तनर्गरानी, अनुसंधान, पूवाणनुमान और प्रारं तभक
चेतावनी:
• अनुसंधान और अध्ययन को बढािा दे ना - शोधकिात ओं और संथथानों को अनुसंधान हे िु
अनुदान प्रदान करके आं िररक एिं बाहरी अनुसंधान को बढािा दे ना l
• पाररखस्थततकी तंत्र और तटरे खा में पररवतणन पर अध्ययन करना
• साितजवनक पटल पर चक्रिाि और उसके पूिात नुमान से जुड़े डे टाबेस की उपलब्धता
सुतनतश्चत करना।
• अिलोकन नेटिकत स्टे शनों (ONS) का संवर्द्ण न करना
• तनय तित स्वचातलत मौसम स्टे शन ं (AWS) और रे न-र्गेज नेटिकत (RGN) की स्थापना
करना
• िटीय क्षेत्रों पर एक डॉपलर मौसम रडार ने टिकत का सं िद्धत न करना
• एिब्लूएस (AWS) और आरिीएन ( RGN) के साथ सभी ओएनएस (ONS) का
एकीकरर् करना
• अिलोकन (observation) नेटिकत, उपकरण, प्रणाली और प्रौद्योवर्गकी का
आधुतनकीकरर् करना ।

2. ज तनंर्ग या प्रतततचत्रर् :
• सितश्ेष्ठ साधनों, क्षेत्रों का अध्ययन और उपग्रह से प्राप्त डे टा का उपयोर्ग करके िटीय जै ि-
ढाल के वलए तटीय आद्रण भूतम, मैंग्र व और वातर धी (shelterbelt) और संबंतधत
भूभार्ग की तवस्तृत रूपरे खा तैयार करना।

3. चेतावनी, िे टा और सूचना का प्रसार:


• केंद्रीय और राज्य सरकार की एजेंवसयों के बीच त्वररत, स्पष्ट्, प्रभावी प्रसार करना ।
• संचार उपकरर् ं की उपलब्धता सुतनतश्चत करना ।
• सभी प्रकार के तवकल्प ,ं प्रौद्योवर्गवकयों के प्रकार और माध्यमों का उपयोर्ग करके
चेतावनी उपलब्ध कराना।
• मोबाइल नेटिकत से िा के साथ ऑनलाइन, ऑफलाइन मौसम की िानकारी प्रदान
करना।
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• रे तिय , टीवी और से लफ न पर चेतावनी प्रदान करना।
4. अंतर-एिेंसी समन्वय:
o चेिािनी, सूचना और डे टा के त्वररि, सुरवक्षि, प्रभािी प्रसार को सुवनविि करने के वलए
केंद्रीय और राज्य सरकार की एजेंवसयों के बीच प्रभावी समन्वय और वनबात ध संचार करना

5. संरचनात्मक उपाय:
o सभी महत्वपूणत संरचनाओं और महत्वपूणत बुवनयादी ढाुँ चे का ि खखम प्रततर धी वनमात ण,
सुदृढीकरण और पुनः संयोजन करना ।
6. िार्गरूकता पैदा करना:
• बडे पैमाने पर मीतिया के द्वारा अतभयान चलाना ।
• जार्गरूकिा अवभयानों में व्यिहाररक पररिित न को बढािा दे ना ।
• आपदा ि खखम तनवारर्, शमन और ि खखम प्रबंधन की संस्कृतत को बढािा दे ना ।
• बीमा/ि खखम हस्तां तरर् को बढािा दे ना ।
• सामुदातयक रे तिय को बढािा दे ना ।
• आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) और आपदा प्रबंधन (DM) के बारे में जार्गरूकिा पै दा
करने के वलए तसतवल स साइटी (civil society ) संर्गठन के नेटवकण को मजबूि करना

7. मॉक अभ्यास (mock drill):


• सभी मंत्रालयों और सभी राज्यों/केंद्रशावसि प्रदे शों द्वारा आपािकालीन अभ्यासों की
योजना और वनष्पादन को बढािा दे ना ।
8. व्यावसातयक प्रतशक्षर्/कौशल तवकास:
o विवभन्न प्रकार के आिास और बु वनयादी ढाुँ चे के वलए बाढ प्रिण क्षेत्रों में बहु-जोखिम
प्रविरोधी वनमात ण के वलए कौशल तवकास को बढािा दे ना।
9. मतहलाओं, सीमांत समुदाय और तदव्यांर्ग ं क सशक्त बनाना:
• आपदा प्रबंधन के सभी पहलुओं को ध्यान में रििे हुए क्षमिा विकास में लैं तर्गक
संवेदनशीलता और न्यायसंर्गत दृतष्ट्क र् क शातमल करना।
10. समुदाय-आधाररत आपदा प्रबंधन
• पीआरआई, एसएचजी, एनसीसी, एनएसएस, युिा, थथानीय सामुदावयक संर्गिनों को
प्रवशक्षण दे ना ।

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• समुदायों की आपदा प्रबंधन क्षमिा को मजबूि करना, जो वक बहु- संकट (multi-hazard)
िाले दृवष्ट्कोण पर आधाररि होना चावहए।
हाल की घटनाएँ :
‘राष्ट्रीय तटीय आपदा ि खखम न्यूनीकरर् और ल चशीलता (CDRR&R) पर प्रथम
सम्मेलन -2020 ’
इस सम्मेलन का आयोजन नई वदल्ली में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) द्वारा
वकया र्गया था।
इस सम्मेलन के िहि प्रधानमंत्री के 10- सू त्री एिेंिा और आपदा ि खखम न्यूनीकरर् के
तलए सेंदाई फ्रेमवकण क लार्गू कर के िटीय आपदा जोखिमों और प्रभािी सहयोर्गी कायों के
बारे में बे हतर समझ के मामले में मानव क्षमता क बढाने पर ध्यान केंतद्रत तकया र्गया।
एनआईडीएम, र्गृह मं त्रालय के अंिर्गति आपदा प्रबंधन अवधवनयम 2005 के िहि र्गविि वकया
र्गया था।
इसे आपदा प्रबं धन के क्षेत्र में मानि सं साधन विकास, क्षमिा वनमात ण, प्रवशक्षण, अनु संधान,
प्रलेिन और नीवियों की सहायिा के वलए राष्ट्रीय न िल के िौर पर तिम्मेदारी सौंपी र्गई
है ।
4. शीतलहरें :
• शीिलहर और पाला, मौसमी एवं स्थानीयकृत संकट हैं , जो केिल अत्यवधक सवदत यों िाले
क्षेत्रों में आिे हैं । लंबे समय िक िं ड और शीिलहर, सुभेद्य पौधों को नुकसान पहुुँ चा सकिी
है , वजससे फसलों को नुकसान होिा है । िं ड के प्रवि सुभेद्यिा फसलों में व्यापक रूप से वभन्न
होिी है ।
• शीिलहर से होने िाली क्षवि की मात्रा तापमान, उद्भासन काल (Length of exposure),
आद्रण ता का स्तर और तहमकारी तापमान तक पहुँ चने की अवतध पर तनभणर ह ती है ।
तवतदत ह तक उस वनविि िापीय स्तर का अनुमान लर्गाना कविन है वक वकस िापमान पर
फसलें, शीिलहर/िं ड को सहन कर सकिी हैं क्ोंवक कई अन्य कारक भी इसे प्रभाविि
करिे हैं ।
• शीिलहर से मनुष्य ,ं पशुओ ं और वन्यिीव ं की मृत्यु और आकखिक आघात ह सकता
है । सभी जानिरों और मनुष्यों को िं ड से लड़ने के वलए उच्च कैलोरी की आिश्यकिा होिी
है और अत्यतधक ठं ि की खस्थतत में खराब प िर् घातक सातबत ह सकता है ।

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• यवद शीिलहर लर्गािार और भारी बफतबारी के साथ पड़िी है , िो चरने िाले जानिर अपेवक्षि
भोजन प्राप्त करने में असमथत हो सकिे हैं । लंबे समय िक भोजन ना प्राप्त करने या
हाइपोथवमतया से उनकी मृत्यु हो सकिी हैं ।

आईएमिी द्वारा शीतलहर और शीत तदवस की पररभािा:


1) हिा की र्गवि के आधार पर िास्तविक न्यूनिम िापमान को कम करने में िं डी हिा महत्वपूणत
भूवमका वनभािी है । डब्लूएमओ (WMO) के मानदं ड का उपयोर्ग करिे हुए विंड वचल फैक्टर
के आधार पर वकसी जर्गह के िास्तविक न्यूनिम िापमान को "विंड वचल इफेक्ट वमवनमम
टे म्परे चर (WCTn)" िक कम वकया जाना चावहए।
2) "शीिलहर" और "शीि वदिस" की र्ोषणा के वलए WCTn का ही उपयोर्ग वकया जाना चावहए।
यवद WCTn 10°C या उससे कम है , िो हीं शीिलहर माना जाना चावहए। शीिलहर िब होिी
है :
• जब सामान्य न्यूनिम िापमान 10 °C या उससे अवधक के बराबर होिा है ; यवद शीिलहर
का विचलन सामान्य से -5°C से -6° C है , और र्गंभीर शीिलहर का तवचलन सामान्य से
-7°C या उससे अतधक ह ।
• जब सामान्य न्यूनिम िापमान 10°C से कम है , ‘शीिलहर’- यवद विचलन सामान्य से -
4°C से -5°C हो, और र्गंभीर शीिलहर- विचलन सामान्य से -6 ° C या उससे कम ह ।
• जब WCTn 0°C या उस से कम है , िो स्टे शन के सामान्य न्यू निम िापमान के बािजूद
शीिलहर को र्ोवषि वकया जाना चावहए। हालां वक, यह मानदं ड उन स्टे शनों के वलए लार्गू
नहीं है , वजनका सामान्य न्यूनिम िापमान 0°C से नीचे है ।

तटीय स्टे शन ं के तलए शीतलहर की खस्थतत:


• िटीय स्टे शनों में शायद ही कभी 10°C न्यूनिम िापमान पहुुँ चा होर्गा। हालाुँ वक, थथानीय लोर्गों
को विंड वचल फैक्टर के कारण असुविधा महसूस होिी है , जो िायु की र्गवि के आधार पर
न्यूनिम िापमान को कुछ वडग्री कम कर दे िा है । िटीय स्टे शनों के वलए, "कोल्ड डे " की
अिधारणा का उपयोर्ग वनम्नवलखिि मानदं डों के आधार पर वकया जा सकिा है :
(क) एक स्टे शन के िास्तविक न्यूनिम िापमान को WCTn िक कम वकया जाना चावहए।
(ि)इस WCTn का उपयोर्ग "शीिलहर" या "शीिवदिस" र्ोवषि करने के वलए वकया जाना
चावहए।
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(र्ग )जब न्यूनिम िापमान विचलन -5°C या उससे कम ह , िो 10°C के सीमा मान के
बािजूद "शीि वदिस" र्ोवषि वकया जा सकिा है ।
(र् )हालां वक, 10 तिग्री की सीमा तक पहुँ चने पर शीतलहर घ तित कर तदया िाना
चातहए ।
(ङ )जब कोई स्टे शन शीिलहर और शीिवदिस, दोनों मानदं डों को पूरा करिा है , िो
शीिलहर र्ोवषि कर दी जानी चावहए।

एनिीएमए द्वारा तदशा तनदे श:

दिशा-
दििे श

शीि लहरें : फसलों और जानवरों के तलए


शीि लहरें : लोर्गों के तलए शमन उपाय
शमन उपाय

शीि लहरें : राज् सरकार ं क भारतीय मौसम विज्ञान विभार्ग (IMD) के साथ र्वनष्ठ
लोर्गों के वलए समन्वय बनाए रखना चातहए, और शीतलहर की खस्थतत की बारीकी से
शमन/राहि तनर्गरानी करनी चातहए। तनयतमत आधार पर उपयुक्त मं च ं (स्थानीय
उपाय समाचार पत्र ं और रे तिय स्टे शन ं सतहत) के माध्यम से िनता क
चेतावनी प्रसाररत की िानी चातहए। तनम्नतलखखत शमन उपाय ं में से कुछ
नीचे तदये र्गए हैं :
• तितना ह सके घर के अंदर रहें ।
• मौसम की तनयतमत िानकारी के तलए स्थानीय रे तिय स्टे शन ं क सुनें

• शरीर क र्गमी प्रदान करने के तलए स्वस्थ खाद्द्य पदाथों का सेवन करें
और तनिणलीकरर् से बचने के तलए र्गैर-मादक पे य का से िन करें ।
• भारी कपड ं की एक परत के बिाए, हल्के और र्गमण कपड ं की कई
परतें पहनें। बाहरी कपड ं क कस कर बुना िाना चातहए और िल-
र धक ह ना चातहए।

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• स्वयं क सूखा रखें व शरीर में र्गमी बनी रहे इसके तलए अक्सर र्गीले
कपड़े बदलें।
• िहरीले धुएं से बचने के तलए तमट्टी के तेल, हीटर या क यले के भट्ठी का
उपय र्ग करते समय उतचत िें वटलेशन बनाए रिें।
• ताप व्यवस्था की अनु पलब्धता के मामले में , सावणितनक स्थान ं पर िाएं
िहां प्रशासन द्वारा हीवटं र्ग की व्यिथथा की जािी है ।
• अपने तसर क ढँ क लें, क् तं क शरीर की अतधकांश र्गमी तसर के ऊपर
से ह कर र्गुजरती है और अपने फेफड ं क बचाने के तलए अपने मुँ ह
क ढुँ क लें।
• अतधक काम करने से बचें क् तं क अतधक पररश्रम करने से तदल की
धड़कन बढ सकिी है ।
• शीि दं श के संकेिों पर ध्यान दें :हाथ व पैर की उं र्गतलय ,ं कान की ल ब
और नाक की न क पर सफेद और पीला तदखाई दे ना।
• हाइप थतमणया (शरीर के असामान्य तापमान) के संकेत ं के तलए दे खें:
अतनयंतत्रत कंप-कंपी, याददाश्त की कमी, भटकाव, असावधानी,
भािर्, उनी ंदापन और थकावट, यतद ह त तुरंत तचतकत्सा के तलए
निदीकी अस्पताल ले िाएं ।
• शीतलहर से पहले भ िन, पानी और अन्य आवश्यकताओं का भंडारण
कर लेना चावहए ।
• पशुधन के तलए शीतलहर ं से पहले उपयु क्त चारा का भंडारण कर लेना
चावहए ।
• शीतदं श और हाइप थतमणया के पीतडत ं के तलए अस्पिालों िक त्वररि
पहुुँ च की सुविधा होनी चावहए ।
• वकसानों को जरूरि के अनुसार हल्की तसंचाई करनी चावहए , नुकसान
पहुं चाने िाली शािाओं की िुरंि काट-छां ट कर दे नी चावहए, वडरप वसंचाई
करने के सुझाि वदए जाने चावहए, धु आुँ उत्पन्न करने िाले पवियों/अपवशष्ट्
शीि लहरें : पदाथों को बर्गीचे में जलाएं और स्प्रे के माध्यम से उितरक की अविररक्त
फसलों और िुराक दे ना, मृि सामग्री की छं टाई के माध्यम से क्षविग्रस्त फसलों के
जानिरों के वलए कायाकल्प का प्रबं धन वकया जाना।

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शमन/राहि • कमजोर फसलों पर पानी का वछड़काि वकया जा सकिा है , जो िं ड के
उपाय
प्रविकूल आसपास की हिा से िं ड को अिशोवषि कर के पौधों की रक्षा
करे र्गा।
• जानिरों की दे िभाल में विशेषज्ञिा रिने िाली एजेंवसयों को जानिरों की
दे िभाल और सुरक्षा के वलए आवश्यक सलाह और सहायता प्रदान
करनी चातहए।
• शीिलहर की खथथवि में पशुओं को मृत्यु से बचाने के वलए उवचि चारा दे ना
चावहए। पशुओं को खिलाने के वलए शीिलहर से पहले उपयु क्त चारा
भंडारण करना चावहए।
• अत्यतधक ठं ि में िानवर ं को नही ं छ डना चातहए।

5. ग्रीष्म लहर:
• ग्रीष्म लहर असामान्य रूप से उच्च तापमान की वह खस्थतत है , जो शारीररक दबाि का
कारण बनकर कभी-कभी जानलेिा भी सावबि हो सकिा है ।
• तवश्व मौसम तवज्ञान संर्गठन एक ग्रीष्म लहर को पां च वदन या लर्गािार उससे अवधक वदनों
के रूप में पररभावषि करिा है , वजसमें अवधकिम दै वनक िापमान औसि 5 वडग्री सेखियस
से अवधक होिा है ।
• ग्रीष्म लहरें आमिौर पर माचत और जून के बीच में चलिी हैं और कभी-कभी जुलाई िक भी
चलिी हैं । भारि में र्गं र्गा के मैदानी इलाकों में ग्रीष्म लहरें अवधक चलिी हैं ।
• दे श के उिरी भार्गों में हर साल औसतन 5-6 ग्रीष्म लहर की घटनाएं ह ती हैं । दे श के
उिरी मैदानी इलाकों में धूल-कण कई वदनों िक रहिें हैं , वजससे न्यूनिम िापमान सामान्य
से बहुि अवधक हो जािा है और अवधकिम िापमान सामान्य से अवधक या आसपास रहिा
है ।
• आईएमिी के अनुसार, भारि में यवद वकसी क्षेत्र का अवधकिम िापमान मैदानी इलाकों में
कम से कम 40°C या उससे अवधक, तटीय क्षेत्र ं में 37°C या इससे अतधक तक पहुँ च िाए
और पहाडी क्षेत्र ं में 30°C या इससे अतधक पहुं च िाए, त इसे ग्रीष्म लहर के रूप में
माना िाएर्गा।
• उच्च दै वनक अवधकिम िापमान और ग्रीष्म लहरें जलिायु पररिित न के कारण िैविक स्तर पर
लर्गािार बढिी जा रही हैं , भारि भी ग्रीष्म लहरों के संदभत में जलिायु पररिितन के प्रभाि को
महसूस कर रहा है , जो साल दर साल काफी भयािह रूप ले िी जा रही हैं , और मानि स्वास्थ्य
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पर विनाशकारी प्रभाि डाल रही हैं , वजससे ग्रीष्म लहर द्वारा होने िाली आपदाओं की संख्या
में बढोिरी होिी हैं ।
• आमिौर पर ग्रीष्म लहर से स्वास्थ्य पर प्रभािों में तनिणलीकरर्, ऐंठन, थकावट या
ऊष्माघात (हीटस्टर क) शातमल ह ते हैं ।
संकेत और लक्षर् तनम्नतलखखत हैं :
• र्गमी से ऐंठन (Heat Cramps): इसमें बुिार के साथ – साथ सूजन और बेहोशी हो जािी
है ।
• र्गमी से थकान (Heat Exhaustion): थकान, कमजोरी, चक्कर आना, वसरददत , मिली,
उल्टी, मां सपे वशयों में ऐंिन और पसीना आना ।
• हीटस्टर क: शरीर का िापमान 40°C या उससे अवधक हो जाना साथ ही अचेिन या कोमा में
चले जाना, जो संभिि: जानले िा हो सकिा है ।
ग्रीष्म लहर: क्षमता तनमाणर्
1. पयणवेक्षर् नेटवकण, सूचना प्रर्ाली, तनर्गरानी, अनुसंधान, पूवाणनुमान, प्रारं तभक
चेतावनी और ज तनंर्ग/मैतपंर्ग:
• सुभेद्यता का आकलन करना और वहट हे ल्थ थ्रेशोल्ड िापमान की थथापना।
• ग्रीष्म लहर चेिािनी के वलए थ्रेसहोल्ड हे िु आिश्यक िापमान, आद्रत िा आवद के वलए
वनर्गरानी और डे टा लॉवर्गंर्ग वसस्टम को बनाए रखना और मिबू त करना ।
• चेिािनी साझा करने के वलए समुदाय-आधाररत नेटवकण की स्थापना और रख-रखाव।
• राज्य/संर्राज्य क्षेत्र के वलए उपयुक्त थ्रेसहोल्ड के अनुसार चेतावनी क संश तधत या
अपने अनुसार बनाना।
2. चेतावनी, िे टा और सूचना का प्रसार:
• िार्गरूकता, वनिारक उपाय बनाएुँ जाये।
• वप्रंट, इलेक्टरॉवनक और सोशल मीवडया के माध्यम से जार्गरूकिा फैलाने के वलए व्यापक
सूचना, वशक्षा और सं चार (IEC) अतभयान चलाना ।
• बुजुर्गत, छोटे बच्चों, बाहरी श्वमकों और झुग्गी वनिावसयों, जैसे अत्यवधक कमजोर समूहों पर
तवशेि ध्यान दे ना।
3. अंतर-एिेंसी समन्वय:

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• यह सुतनतश्चत करना वक थथानीय प्रशासन (शहर/वजला) केंद्र और राज्य की विवभन्न
एजेंवसयों और स्वास्थ्य अवधकाररयों से ग्रीष्म लहर संबंधी सभी जानकाररयों को समझकर
उसका साथतक रूप से उपयोर्ग करें ।
• टीम का र्गठन और समन्वय – यह सुवनविि करें वक अवधकारी और एजेंवसयां ग्रीष्म-
लहर िाले मौसम से वनपटने के वलए अच्छी िरह से िैयार हैं या नहीं ।
• सूिे की र्गंभीरिा के आधार पर पू िात नुमान, पूित चेिािनी और चेिािनी प्रणाली के बारे में
आईएमडी (IMD) के साथ समन्वय थथावपि करना ।
• एक राज् स्तरीय न िल एिेंसी और अतधकारी तनयुक्त करना ।
• ग्रीष्म लहर एक्शन प्लान तैयार करना/अपनाना ।
• राज्य में विवशष्ट् पररखथथवियों के अनुसार कायत करना ।
• प्रमुि थथानों में प्राथवमक वचवकत्सा (first-aid)/वचवकत्सा सहायिा सुविधाओं की स्थापना
करना ।
• सुभेद्य स्थान ं की पहचान करना और उन थथानों और कायतथथलों पर (ORS) र्ोल के
साथ पीने योग्य पानी की सुविधा प्रदान करना ।
• र्र से बाहर िेले जाने िाले िेलों या िेल र्गविविवधयों से बचना ।
• र्गमत मौसम के दौरान मिेवशयों की सु रक्षा की िैयारी – यह सुवनविि करना वक र्गमत वदनों
में मिे वशयों को पयात प्त छाया और पानी उपलब्ध कराया जा सके ।
4. चेतावनी, सूचना, िे टा:
• चेिािनी का प्रसार करिे हुए, दू रथथ ग्रामीण या शहरी जोखिम िाले क्षेत्रों में लोर्गों को
वनयवमि रूप से जानकारी दे ना ।
• ग्रीष्म लहर के दौरान "क्ा करें और क्ा नही ं” थथानीय भाषाओं में उपलब्ध होना चावहए
और मीवडया के माध्यम से प्रसाररि वकया जाना चावहए ।
5. ग्रीष्म लहर (heat wave) के तलए आश्रय और अन्य उपाय:
• वचवकत्सा सहायिा सु विधाओं के नेटिकत को मिबूत करना और मुख्यधारा में लाना ।
• तापमान का पूवाणनुमान करना और मोबाइल फोन ि थथानीय इलेक्टरॉवनक मीवडया पर
बि संदेशों के रूप में हीट अलटत भेजे जाने चावहए ।
• व्यस्त टर ै वफक चौराहों और बाजार में कुछ थथानों पर इलेक्ट्रॉतनक स्क्रीन लर्गाना ।
• पररवहन की प्रभावी व्यवस्था ह नी चातहए ।

22
• एकीकृत तवकास हे तु ताप क कम करने के तलए ठं िी छत ं क बढावा दे ना चातहए

6. िार्गरूकता पैदा करना:


• िार्गरूकता, सिकतिा और िैयाररयों को बढािा दे ना ।
• लोर्गों, पंचायिी राज संथथानों /शहरी थथानीय वनकायों के वलए प्रतशक्षर् कायतक्रम शु रू
करना ।
• हीट-िे ि प्रिण क्षेत्रों में बडे पैमाने पर मीतिया द्वारा अतभयान चलाना ।
• र्गमी की लहरों के साथ मु काबला करने के बारे में िार्गरूकता पैदा करना ।
7. मतहलाओं, सीमांत समुदाय, एससी /एसटी और तदव्यांर्ग िन ं क सशक्त बनाना:
• ग्रीष्म लहर से संबंवधि आपाि खथथवियों का मुकाबला करने के वलए क्षमिा विकास में
लैंवर्गक संिेदनशीलिा और न्यायसंर्गि दृवष्ट्कोण को शावमल करना।

6.बाढ:
• बाढ की र्टना अपेक्षाकृि कम होिी है और यह प्रायः वनधात ररि क्षेत्रों में और एक िषत में
अपेवक्षि समय के भीिर हीं होिी है ।
• बाढ की र्टना आमिौर पर िब होिी है , िब पानी, नदी की वहन क्षमता से अतधक ह
िाती है और सतही अपवाह के रूप में प्रवातहत ह ती है िथा समीप के वनचले इलाकों में
प्रिावहि होने लर्गिी है ।
• कभी-कभी यह झीलों और अंिः थथलीय जल वनकायों की क्षमिा से भी अवधक हो जािी है ,
वजसमें िह प्रिावहि होिी है ।

23
• बाढ- िूफान, अतधक समय के तलए उच्च तीव्रता वाली
बाररश, बफण के तपघलने से, ररसने की दर में कमी और
वमट्टी के कटाि की उच्च दर के कारण पानी में अपरवदि
पदाथों की उपखथथवि के कारर् भी ह सकता है ।
• अन्य प्राकृविक आपदाओं के विपरीि, मानव बाढ की
उत्पवि और प्रसार में महत्वपूर्ण भूतमका तनभाता है ।
अंधाधुंध वन ं की कटाई, अवैज्ञातनक कृति पर्द्तत,
प्राकृततक िल तनकासी चैनल ं के साथ
र्गडबडी/छे डछाड और बाढ-क्षेत्र तथा नदी-तल ं के
उपतनवेशर् (colonisation), कुछ मानिीय र्गविविवधयां
हैं , जो बाढ की भयािहिा और िीव्रिा को बढाने में
महत्वपूणत भूवमका वनभािी हैं ।
• भारि के विवभन्न राज्यों में आििी बाढ के कारण जान-माल की भारी हावन होिी है ।
• राष्ट्रीय बाढ आय र्ग ने भारत में 40 तमतलयन हे क्ट्ेयर भूतम क बाढ प्रभातवत भू तम के
रूप में तचखित तकया है ।
• असम, पविम बंर्गाल और वबहार उच्च बाढ प्रभाविि राज्यों में से हैं ।
• इनके अलािा, उिर प्रदे श और पंजाब जैसे उिरी राज्यों
की अवधकां श नवदयाुँ भी लर्गािार बाढ की चपेट में हैं ।
• राजथथान, र्गुजराि, हररयाणा और पंजाब जैसे राज्य भी
हाल के िषों में बाढ की िजह से जलमग्न हो रहे हैं । यह
आं वशक रूप से मानसून के पैटनत के कारण और मानि
र्गविविवधयों द्वारा अवधकां श धाराओं और नवदयों के
अिरुद्ध होने के कारण हो रहा है ।
• मानसून के वनिितन के कारण कभी-कभी िवमलनाडु में
निंबर-जनिरी के माह में बाढ आिी है ।

बाढ: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रातधकरर् (NDMA) द्वारा तदए र्गए तदशा तनदे श
1.अवल कन नेटवकण, सूचना प्रर्ाली, तनर्गरानी, अनुसंधान, पूवाणनुमान और प्रारं तभक
चेतावनी:
24
• एक सटीक रूपरे खा और बाढ सुभेद्यता मानतचत्र तैयार करना ।
• नदी बेवसन के आधार पर बाढ-पू िात नुमान और चेिािनी प्रणाली का
आधुतनकीकरर् करना ।
• प्राथवमक बाढ सुरक्षा और जल-वनकासी सुधार कायों की पहचान में
राज् /ं केंद्रशातसत प्रदे श ं की सहायता करना ।
• बाढ से जुड़ी िैयारी, नदी बेवसन और जलाशय प्रबंधन य िनाओं की तनर्गरानी
करना ।
• पड़ोसी दे शों से बहने िाली नवदयों का अध्ययन और तनर्गरानी करना ।
• पूिात नुमान और सीमा पार मुद्ों के वलए अं तराणष्ट्रीय सहय र्ग से संबंवधि अध्ययन
करना ।
• नेपाल, भूटान और चीन से बहने िाली महत्वपूणत नवदयों पर जल-मौसम संबंधी
आं कड़ों के ररयल-टाईम संग्रह के तलए य िनाओं का कायाणन्वयन करना ।
• विवभन्न प्रकार की बाढ और बाढ के कारणों के वलए तवशेि प्रयास करना, वजसमें
बादल फटने की र्टना भी शावमल हैं ।
• बां धों के प्रिाह और भंडारण की मात्रा के पररमाण के वलए पूिात नुमान विवधयों का
विकास / सुधार और अद्यिन करना ।

2.बाढ प्रवर् क्षेत्र ं की ज तनंर्ग, प्रतततचत्रर् और वर्गीकरर्:


• बाढ प्रवर् क्षेत्र ं का संकट संबंतधत नक्शा तैयार करना और उच्च सुभेद्यिा िाले क्षेत्रों
की पहचान करना ।

3.अनुसंधान और तवकास:
• बाढ प्रिण क्षेत्रों में लोर्गों के वलए सहायता/समथणन प्रर्ातलय ं पर अध्ययन करना ।
• बाढ प्रिण क्षेत्रों में आश्रय ं के तलए तििाइन तैयार करना ।
• बाढ का सामातिक-आतथणक प्रभाव ।
• नदी बेतसन का अध्ययन करना ।
• नवदयों में बाढ, िलछट का क्षरण, नदी के प्रिाह में पररिितन और िटबंधों के अनुवचि
उपयोर्ग के कारण बाढ संबंधी समस्याओं पर अध्ययन करना ।

25
• अनुसंधान और अध्ययन क बढावा दे ना - शोधकिात ओं और संथथानों को, आं िररक
(in-house) और बाह्य दोनों के वलए अनु संधान हे िु अनुदान प्रदान करना ।
• बाढ वनयंत्रण या रोकथाम के उपाय करने से पहले िलतवज्ञान (हाइिर लॉतिकल) और
रूपात्मक/आकृविक अध्ययन करना ।

4.चेतावनी, िे टा और सूचना का प्रसार:


• केंद्रीय और राज्य एजें वसयों के बीच त्वररि, स्पष्ट् और प्रभािी प्रसार सुवनविि करना ।
• आिश्यक संचार उपकरणों के वििरण, कनेखक्टविटी और आपदा जोखिम की जानकारी
िक पहुं च को सुर्गम बनाना ।
• पड़ोसी दे शों से बहने िाली नवदयों के बारे में चेिािनी साझा करने के वलए अंतराणष्ट्रीय
सहय र्ग ।
• केंद्रीय और राज्य एजेंवसयों के बीच डे टा और सूचना साझा करने के वलए तवश्वसनीय
नेटवतकिंर्ग प्रर्ाली को बढािा दे ना .
• नवदयों में रूकािटों और भूस्खलन की वनर्गरानी करना ।
• चेतावनी प्रणाली को सशक्त करना ।
• सभी संभव तरीक ं और सभी प्रकार के माध्यमों का उपयोर्ग करके िानकारी प्रदान
करना ।
• चेिािनी के वलए मोबाइल नेटिकत सेिा प्रदािाओं के साथ समन्वय कायम करना ।
5.अंतर-एिेंसी समन्वय:
• चेिािनी, सूचना और डे टा के त्वररि, स्पष्ट् और प्रभािी प्रसार को सुवनविि करने के वलए
केंद्रीय और राज्य एजें वसयों के बीच प्रभािी समन्वय और वनबात ध संचार थथावपि करना ।
6.संरचनात्मक उपाय:
• बाढ वनयंत्रण के उपाय, जैसे सेिु और तटबंध ं का वनमात ण करना ।
• सड़कों, राजमार्गों और एक्सप्रेसिे के वलए जलमार्गत और िल तनकासी प्रर्ातलय ं का
उतचत संरेखर् और अतभकल्पन करना ।
• बां धों और जलाशयों की सुरक्षा बढाना ।
• जल के प्रिाह को बेहिर बनाने के वलए नवदयों से र्गाद तनकालना;जल वनकासी में सु धार
करना ; मौजूदा या नए चैनलों के माध्यम से बाढ के पानी का व्यपिितन करना ।

26
• सभी महत्वपूणत संरचनाओं और महत्वपूणत बुवनयादी ढां चे का ि खखम प्रततर धी वनमात ण,
सुदृढीकरण और पुनः संयोजन करना ।
7.िार्गरूकता पैदा करना:
• बडे पैमाने पर मीतिया अतभयान चलाना ।
• आपदा ि खखम तनवारर्, शमन और ि खखम प्रबंधन की संस्कृतत को बढािा दे ना ।
• जार्गरूकिा अवभयानों/IEC में व्यिहाररक पररिितन को बढािा दे ना ।
• आपदा जोखिम न्यूनीकरण और आपदा प्रबंधन के बारे में जार्गरूकिा पैदा करने के वलए
तसतवल स साइटी सं र्गठन के नेटवकण को मजबूि करना ।
• बीमा/ि खखम हस्तां तरर् को बढािा दे ना ।
• सामुदातयक रे तिय को बढािा दे ना ।
8.मॉक अभ्यास (mock drill):
• सभी मंत्रालयों और सभी राज्यों/केंद्र-शावसि प्रदे शों द्वारा आपािकालीन अभ्यासों की
योजना और वनष्पादन को बढािा दे ना ।

9.व्यावसातयक प्रतशक्षर्/कौशल तवकास:


• विवभन्न प्रकार के आिास और बु वनयादी ढां चे के वलए बाढ प्रिण क्षेत्रों में बहु-जोखिम
प्रविरोधी वनमात ण के वलए कौशल विकास को बढािा दे ना ।
10.मतहलाओं, सीमां त समुदाय और तदव्यांर्ग िन ं क सशक्त बनाना:
• आपदा प्रबंधन के सभी पहलुओं को ध्यान में रििे हुए क्षमिा विकास में लैं वर्गक
संिेदनशीलिा और न्यायसंर्गि दृवष्ट्कोण को शावमल करना ।

11.समुदाय-आधाररत आपदा प्रबंधन:


• पीआरआई , एसएचजी, एनसीसी, एनएसएस, युिा, थथानीय सामुदावयक संर्गिनों को
प्रवशक्षण दे ना ।
• समुदायों की आपदाओं का प्रबंधन और सामना करने की क्षमिा को मजबूि करना, जो
वक बहु-ििरे (multi-hazard) िाले दृवष्ट्कोण पर आधाररि होने चावहए।

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7.सू खा:

• सूिे के वलए िै विक रूप से अपनाई जाने िाली


कोई प्रचवलि पररभाषा नहीं है , जो सभी संदभों
पर लार्गू होिी हों ।
• इस बाि का प्राथवमक कारण यह है वक नीवि
वनमात िा, संसाधन वनयोजक और अन्य वनणतय लेने
िालों के साथ-साथ प्रशासकों को भी अन्य
आपदाओं की िुलना में सूिे की पहचान करने
और योजना बनाने में काफी कविनाई होिी है ।
• वैतश्वक आकलन ररप टण (GAR) 2015 के
अनुसार, कृति सूखा सभी आपदा ि खखम ं
(UNISDR 2015) में संभििः सबसे अवधक
"सामावजक रूप से वनवमत ि" जोखिम है और
ररपोटत यह भी चेिािनी दे िी है वक िैविक जलिायु
पररिितन के कारण इसकी आिृ वि में अत्यवधक पररिितन होने की उम्मीद है ।
• सूिे की शुरूआि के बारे में वनधात ररि करने हे िु प्रचवलि पररभाषाएं कुछ इस िरह से हैं -
औसि िषात या कुछ अन्य जलिायु चर से लंबी अिवध (आमिौर पर कम से कम 30 साल) की
विचलन की खथथवि ।
• मोटे िौर पर सूिे को पानी की कमी के रूप में िाना िाता है , ि प्राकृततक िल-मौसम
संबंधी कारक ,ं कृति-पाररखस्थततक खस्थततय ं और वतणमान फसल प्रारूप ं (पैटनण) के
तहत फसल ं की नमी की आवश्यकताओं में तभन्नता के कारर् ह ती है ।
• िब्लूएमओ (WMO) सूिे को एक प्राकृविक ििरे के रूप में मानिा है , जो प्राकृविक रूप
से जलिायु में पररिित न के कारण िंडों में घतटत ह ता है ।
• हाल के िषों में, दु वनयाभर में यह वचंिा बढी है वक जलिायु पररिितन के कारण सूिे की आिृवि
में संभाविि िृखद्ध हो रही है ।
• संकट प्रबंधन के संदभत में , दु वनया के अवधकां श वहस्ों में सूिा से वनपटने की योजनाएं उिनी
बेहिर नहीं है । िैचाररक रूप से , सूिे को लं बी अिवध के वलए िषात की कमी के रूप में जाना
जािा है , वजसके पररणामस्वरूप पानी की कमी, बड़े पैमाने पर फसलों की क्षवि होिी है और
उपज का नुकसान भी होिा है ।
28
• हालां वक सूिा दे श के विवभन्न क्षेत्रों (विवभन्न राज्यों में) को प्रभाविि करिा है । दे श का एक-
ततहाई तहस्सा सूखा से प्रभातवत है । लोर्गों की आजीविका और छोटे बच्चों के पोषण पर
इसका व्यापक असर पड़िा है ।
• यह राजथथान के कुछ वहस्ों, र्गुजराि, महाराष्ट्र, मध्य प्रदे श, उिर प्रदे श, छिीसर्गढ, झारिंड
और आं ध्र प्रदे श को भी प्रभाविि करिा है ।
• सूिा प्रभाविि क्षेत्रों में विवभन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होिी हैं ।
• सूिा को क्रीवपंर्ग आपदा के रूप में संदवभति वकया जािा है वजसके प्रभाि काफी लंबे समय
िक बने रहिे हैं ।
• सूिे के पररणाम धीरे -धीरे सामने आिे हैं और लंबे समय िक आपदा के रूप में बने रहिे हैं ।
• इसके प्रभाि प्राकृविक खथथवि, सामावजक ि आवथतक खथथवि एिं भूवम और जल संसाधनों की
उपलब्धिा पर वनभतर करिे हैं ।
• सामान्यि: सूिा प्राकृविक जलिायिीय कारकों पर वनभतर करिा है और इसकी उपखथथवि के
विवभन्न प्रारूप होिे हैं ।
• सामान्यिया सूिा, शु ष्क एिं अद्धत शु ष्क क्षेत्रों में बार बार दे िने को वमलिा है ले वकन यह
पयात प्त िषात िाले नमी क्षेत्रों में भी हो सकिा है ।
• इसके प्रभाि से वनपटने की क्षमिा िकनीकी, संथथार्गि, राजनीविक एिं सामावजक प्रणाली के
साथ-साथ जल की उपलब्धिा एिं सूिे की खथथवि पर वनभतर करिी है ।
• सूिे को भुिमरी की खथथवि में िब्दील होने से बचाने के वलए प्रभािी रोकथाम उपाय अपनाना
आिश्यक होिा है क्ोंवक इससे जल एिं िाद्य पदाथों का संकट आ जािा है । सूिा काफी
लंबे समय िक रहने िाले शुष्क मौसम का पररणाम होिा है ।

भारत में राष्ट्रीय कृति आय र्ग ने तीन प्रकार के सूखा की व्याख्या की है :

मौसमी सूिा वकसी क्षेत्र में लंबे समय िक औसि िावषतक िषात में 25% से अवधक
(Meteorological drought)
की कमी आना।
कृवष सूिा फसलों की सामान्य िृ खद्ध हे िु अपयात प्त िषात एिं मृदा में नमी की
(Agricultural अपयात प्त मात्रा।
drought)

29
जलीय सूिा लंबे समय िक मौसमी सूिा रहने के पररणामस्वरूप सिह एिं भूवम
(Hydrological के जल संसाधनों में जल की कमी हो जाना। औसि िषात में कमी आने
drought) एिं सिही जल धारण करने की क्षमिा में कमी आने से इस प्रकार की
खथथवि होिी है ।

आइएमिी ने पाँच सू खा खस्थततय ं की पहचान की है :


• सूखा सप्ताह (Drought Week)-जब साप्तावहक िषात , सामान्य िषात से आधे से भी कम
होिी है ।
• कृति सूखा (Agricultural Drought)-मध्य जून से वसिंबर के बीच जब लर्गािार चार
सप्ताह िक सूिा की खथथवि बनी रहिी है ।
• मौसमी सूखा (Seasonal Drought)- जब मौसमी िषात , सामान्य िषात से वनधात ररि मानदं डों
से भी काफी कम होिी है ।
• सूखा विण (Drought Year)-जब िावषतक िषात सामान्य िषात से 20% या इससे भी कम होिी
है ।
• भयंकर सूखा विण (Severe Drought Year)-जब िावषतक िषात सामान्य िषात से 25% से
40% िक कम होिी है ।

सूिे के प्रबंधन पर एनडीएमए द्वारा वनधात ररि वदशावनदे शों में इस बाि पर जोर वदया र्गया है वक
कई कारकों के आधार पर सूिे को िर्गीकृि करने के वलए एक बहु-मानदं ड सूचकां क विकवसि
करने की आिश्यकिा है :
• मौसमी (िषात एिं िापमान इत्यावद) ।
• मृदा खस्थतत (र्गहराई, प्रकार एिं उपलब्ध जल की मात्रा इत्यावद) ।
• सतही िल उपय र्ग (वसंवचि क्षेत्र का अनुपाि ि सिही जल की आपूवित इत्यावद) ।
• भूतमर्गत िल (उपलब्धिा एिं उपयोर्ग इत्यावद) ।
• फसल (फसल प्रविरूप में पररिितन, भूवम उपयोर्ग, फसल खथथवि एिं फसल खथथवि में बदलाि
इत्यावद) ।
• सामातिक-आतथणक रूप से (कमजोर समुदाय का अनुपाि, र्गरीबी एिं भूवम जोि का आकार
इत्यावद) ।

30
सूखा : भारत में कृति भूतम का 68% और कुल भूतम का 30% सूखा प्रवर् क्षेत्र है

सूखा: एनिीएमए के तदशा तनदे श

1.सुभेद्यता मैतपंर्ग:
• मानसून की वनणात यक खथथवि (उदाहरण के वलए- प्रारं भ, मध्य एिं अंि में) पर दवक्षण–
पविम (SW) और उिर -पूिी (NE) मानसून के वलए अलर्ग-अलर्ग प्रासंवर्गक क्षेत्रों में िषात
की कमी िाले क्षेत्रों की मैवपंर्ग करना ।
• दवक्षण–पविम (SW) और उिर -पूिी (NE) मानसून के अंि में प्रत्येक िषत शुष्क भूवम कृवष,
िषात आधाररि कृवष एिं सूिा सं िेदनशील क्षेत्र में जल की कमी का समग्र आकलन करना

• दवक्षण–पविम (SW) और उिर -पूिी (NE) मानसून के अंि में प्रासं वर्गक क्षेत्रों के वलए
पृथक रूप से कृवष जलिायु क्षेत्र आधाररि जल की कमी का आकलन करना ।
• संिेदनशीलिा मैप को िैयार करने में राज्य सरकार को िकनीकी सहायिा प्रदान करना

2.आकलन, तनर्गरानी, पूवाणनुमान, पूवण चेतावनी :


• शुष्क, अधत शुष्क, सूिा संिेदनशील एिं शुष्क कृवष भूवम क्षेत्रों में जल की कमी का
आकलन (उपलब्धिा एिं आिश्यकिा के बीच अंिर का पिा लर्गाना) करना ।
• प्रत्येक राज्य एिं संर् शावसि क्षेत्र में जल की कमी एिं सूिा की खथथवि के आधार पर
विशेषज्ञों से सलाह ले कर जल संरक्षण एिं फसल प्रबंधन उपायों पर विस्तृि वनदे श िैयार
करना ।
• सूिा प्रबंधन पर राष्ट्रीय मैनुअल के अनुसार राष्ट्रीय एिं राज्य स्तर पर प्रमुि सूिा
सूचकां कों की मॉवनटररं र्ग करना ।
• प्रत्येक कृवष जलिायु क्षेत्र के वलए प्रासं वर्गक सूिा सूचकों का समग्र सूचकां क विकवसि
करना ।
• कृवष-जलिायु क्षेत्रों पर विचार करिे हुए सू िे के पूिात नुमान हे िु मानकीकृि ढां चे के रूप
में विवभन्न सूचकां कों (िनस्पवि, वमट्टी ि पानी की उपलब्धिा आवद) के आधार पर एक
बहु-मापदं ड विवध विकवसि करना ।
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3.सूखा की घ िर्ा:
• उपयुक्त एजेंसी की निीनिम वसफाररशों के अनुसार, सूिे की खथथवि और प्रमुि संकेिकों
के मूल्ां कन के वलए निीनिम (सबसे अद्यिन) मानदं ड और िरीके लार्गू करना ।
• सूिे की मॉवनटररं र्ग एिं र्ोषणा के वलए राज्य सरकार एिं इसकी एजेंवसयों के साथ विचार-
विमशत करना ।
• यवद आिश्यक हो िो SW और NE मानसून के अंि में , SW मानसून िाले राज्यों के वलए
अक्टू बर के अंि में एिं NE मानसून के अंिर्गति शावमल राज्यों के वलए माचत के अंि में
,सूिा से संबंवधि वदशा वनदे श प्रदान करने चावहए।

4.अनुसंधान:
• शुष्क, अधत शुष्क एिं शुष्क भूवम कृवष क्षेत्र में कृवष अनुसंधान को बढािा दे ना चावहए ।
• जल संरक्षण एिं प्रबंधन से संबंवधि अनुसंधान को बढािा दे ना ।

5.अंतर एिेंसी समन्वय:


• चेिािनी, जानकारी एिं डाटा के िीव्र एिं प्रभािी उपयोर्ग को सुवनविि करने हे िु राज्य एिं
केंद्र की एजेंवसयों के बीच समन्वय होना आिश्यक है ।

6.संरचनात्मक उपाय:
• सूिा प्रभाविि क्षेत्रों में जल संरक्षण संरचनाओं, एकीकृि जल सं साधन प्रबंधन और पेयजल
भंडारण, िषात जल सं चयन और भंडारण सुवनविि करने के साथ वििरण सुविधाओं को
मजबूि बनाना ।

7.र्गैर संरचनात्मक उपाय:


• जल दक्षिा िाली वसंचाई प्रणाली को प्रोत्सावहि करना ( खस्प्रंकलर एिं वडरप वसंचाई इत्यावद)

• सूक्ष्म वसंचाई प्रणाली के अंिर्गति संरक्षण वसं चाई को प्रोत्सावहि करना ।
• सूिा की खथथवि में वकसानों को प्रभािी जल प्रबंधन िथा फसल प्रबंधन इत्यावद के सं दभत
में सलाह प्रदान करना ।

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• जल एिं मृदा नमी संरक्षण में प्रवशक्षण प्रदान करना ।
• प्राकृविक संसाधन प्रबं धन के वलए र्गां ि आधाररि सूचना प्रणाली को प्रोत्सावहि करना ।

8.कृति ऋर्, कृति आर्गत, तवत्त, बािार एवं फसल बीमा:


• सूिा संिेदनशील क्षेत्रों के वलए प्रासंवर्गक ऋण एिं विि सुविधा प्रदान करना ।
• कृवष बीमा कायतक्रमों को प्रोत्सावहि करने के साथ-साथ वकसानों को कृवष बीमा उत्पादों
के बारे में जानकारी उपलब्ध कराना ।
• शुष्क-भूवम / िषात आधाररि वकसानों के वलए जोखिम आच्छादन सुवनविि करना, जो बहुि
अवधक िषात की अवनविििा का सामना करिे हैं ।

9.सूखा प्रबंधन य िना:


• कृवष जलिायु क्षेत्रों को ध्यान में रििे हुए सूिा संिेदनशील क्षेत्रों के वलए सूिा प्रबंधन
योजना िैयार करना ।
• सूिा एिं जल की कमी का सामना करने िाले राज्य के वलए वदशा वनदे श प्रदान करना ।

10.िार्गरूकता अतभयान:
• व्यापक स्तर पर मीवडया द्वारा अवभयान चलाया जाना चावहए।
• आपदा जोखिम वनिारण, शमन और जोखिम प्रबंधन की संस्कृवि को बढािा दे ना चावहए

• जार्गरूकिा अवभयानों के माध्यम से प्रिृ वि एिं व्यिहार में पररिित न को प्रोत्सावहि करना
चावहए।
• आपदा जोखिम न्यूनीकरण और आपदा प्रबंधन के बारे में जार्गरूकिा का प्रसार करने के
वलए वसविल सोसाइटी संर्गिन को मजबूि करना चावहए ।
• बीमा/जोखिम हस्तां िरण के उपयोर्ग को प्रोत्साहन दे ना चावहए ।
• साथ ही सामुदावयक रे वडयो को भी प्रोत्साहन दे ना चावहए ।

11.मतहलाओं, सीमां त समुदाय ं एवं तदव्यांर्गिन ं क सशक्त बनाना:


• आपदा प्रबंधन के सभी आयामों में क्षमिा विकास हे िु वलंर्ग सं िेदनशीलिा एिं समान
दृवष्ट्कोण को ध्यान में रिना चावहए ।
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8.भूस्खलन (Landslides):
• भूस्खलन की र्टना प्रायः भारि के वहमालय और उिर पूिी राज्यों, नीलवर्गरी पहावड़यों, पूिी
र्ाट एिं पविमी र्ाट में दे िने को वमलिी है ।
• विि की लर्गभर्ग 30% भूस्खलन की र्टनाएं वहमालय क्षेत्र में होिी हैं ।
• युिा वहमालय पिति एकल स्तरीय नहीं है बखि इसमें 7 समानां िर फोल्ड लर्गभर्ग 3,400
वकलोमीटर िक फैले हुए हैं ।
• पविमी र्ाट में भूस्खलन एक सामान्य र्टना है । 1978 में नीलवर्गरी पहावड़यों में अवनविि िषात
के कारण होने िाली भूस्खलन की र्टना के कारण संचार िारों, चाय के बार्गानों के साथ
फसलों का व्यापक स्तर पर नुकसान हुआ ।
• वहमालय क्षेत्र में उिरी वसखक्कम एिं र्गढिाल क्षेत्र में वकए र्गए िै ज्ञावनक सिेक्षण के अनुसार
इस क्षेत्र में प्रवि िर्गत वकलोमीटर में औसिन दो भूस्खलन दे िने को वमलिे हैं ।
• भूवम के नुकसान की औसि दर 120 मीटर प्रवि वकमी
प्रवि िषत है और िावषतक वमट्टी का नुकसान लर्गभर्ग
2500 टन प्रवि िर्गत वकमी है ।
• भूस्खलन एक प्रमुि एिं विस्तृ ि प्राकृविक आपदा है
वजससे व्यापक स्तर पर जन-धन की हावन होिी है ।
• एक अनुमान के अनु सार विवभन्न विकासशील दे शों में
भूस्खलन से कुल सकल राष्ट्रीय उत्पाद में 1% से 2%
िक की हावन होिी है ।
• विकासशील दे शों में भूस्खलन से होने िाले नुकसान
को रोकना नीवि वनमात िाओं एिं टे क्नीवशयन के वलए
चुनौिीपूणत बना हुआ है ।

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• भारि में लर्गभर्ग 0.42 वमवलयन िर्गत वकमी या 12.6% भूवम क्षे त्र (बफत से ढके क्षेत्र को छोड़कर)
भूस्खलन के ििरे से ग्रस्त है । इसमें से 0.18 वमवलयन िर्गत वकमी क्षेत्र उिर पूिी वहमालय में
वजसमें दावजतवलंर्ग एिं वसखक्कम वहमालय शावमल है , 0.14 वमवलयन िर्गत वकमी क्षेत्र उिर पविमी
वहमालय (उिरािं ड, वहमाचल प्रदे श और जम्मू एिं
कश्मीर) में, 0.09 वमवलयन िर्गत वकमी क्षेत्र पविमी र्ाट
एिं कोंकण पहावड़यों (िवमलनाडु , केरल, कनात टक,
र्गोिा एिं महाराष्ट्र) एिं 0.01 वमवलयन िर्गत वकमी क्षेत्र
आं ध्र प्रदे श में अराकु क्षेत्र के पूिी र्ाट के अंिर्गति
शावमल हैं ।
• भूस्खलन के प्रवि संिेदनशील वहमालय का िराई क्षेत्र
सिात वधक भूकंप प्रिण क्षेत्र (जोन-IV और V; BIS
2002) के अंिर्गत ि आिा है । यहां पर मरकेली स्केल
पर VIII से IX िीव्रिा के भूकंप आ सकिे हैं । इसका
सबसे निीन उदाहरण, 18 वसिंबर 2011 के बाद वसखक्कम-दावजतवलंर्ग वहमालय क्षेत्र में आने
िाला भूकंप है ।

विि की 30% भूस्खलन की र्टनाएं वहमालय पिति श्ृंिला में होिी हैं।

भूतमका एवं उत्तरदातयत्व:


• भारिीय भूिैज्ञावनक सिेक्षण - भूस्खलन अध्ययन हे िु नोडल एजेंसी है ।
• भारतीय भूवैज्ञातनक सवेक्षर् तनम्नतलखखत के तलए उत्तरदायी है :
• भूस्खलन के ििरे को कम करने के वलए भूिैज्ञावनक अध्ययन का समन्वय और वक्रयान्वयन
करना ।
• भूस्खलन ििरे िाले क्षेत्रों की पहचान करना ।
• भूस्खलन और वहमस्खलन की वनर्गरानी करना ।
• भूस्खलन के वलए उिरदायी कारकों का अध्ययन करना और जीएसआई (GSI) एिं अन्य
संर्गिनों द्वारा प्रदान वकए जाने िाले वदशावनदे शों के अनुसार रोकथाम के उपाय विकवसि
करना ।
कायण य िना की मु ख्य तवशेिताएँ :

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1. मैक्रो स्केल एिं मीजो स्केल पर भूस्खलन संकट िाले क्षेत्रों (LHZ) की पहचान करने के वलए
समान विवध का उपयोर्ग करना ।
2. मैक्रो स्केल पर भूस्खलन संकट िाले क्षेत्रों की पहचान करना :
• 10,000 वकमी संचार मार्गत को मैक्रो स्केल के अंिर्गति आच्छावदि करना ।
• विस्तृ ि अध्ययन के वलए प्राथवमक क्षेत्रों एिं वनणात यक ढाल िाले क्षेत्रों की पहचान करना ।
• इस वक्रयाकलाप हे िु राज्य सरकारें वदशा वनदे श प्रदान करिी हैं और जीएसआई (GSI)
द्वारा सिेक्षण वकया जािा है ।
3. मीि स्केल पर तचतित क्षेत्र ं के भूस्खलन खतरे की पहचान करना:
➢ संरचनात्मक विकास के वलए आबादी िाली या प्रस्ताविि साइटों को आच्छावदि
करना ।
➢ प्रारं वभक स्तर पर 20-25 थथलों को शावमल करना वजसमें 10 थथलों को जीएसआई
द्वारा एिं अन्य का, दू सरी एजेंवसयों द्वारा चुना जाना।
➢ एक सवमवि वजसमें आईआईटी रुड़की, सीबीआरआई, एनआईआरएम,
सीआरआरआई, सीडब्लूसी, आईएमडी, टीएचडीसी आवद शावमल हैं , जो
समयबद्ध िरीके से वचखन्हि क्षेत्रों में काम करने के इच्छु क लोर्गों को काम वििररि
करे र्गी ।
4. भूस्खलन की तनर्गरानी करना:
• भूस्खलन से होने िाले संचार मार्गत एिं वसंचाई मार्गत की क्षवि को वनयवमि रूप से वनर्गरानी
करना चावहए ।
5. पूवण चेतावनी प्रर्ाली क तवकतसत करना:
• भूस्खलन िाले क्षेत्रों में पूित चेिािनी प्रणाली को विकवसि करने की आिश्यकिा है । विवभन्न
एजेंवसयों द्वारा इस क्षेत्र में कायत वकया जा रहा है लेवकन इस वदशा में पयात प्त अनुसंधान एिं
विकास करने की आिश्यकिा है , क्ोंवक भू स्खलन के व्यखक्तर्गि, प्रत्यक्ष िथा अप्रत्यक्ष एिं
अन्य कारक होिे हैं ।
6. LHZ पर इन्वेंटरी/ िे टाबेस तैयार करना:
➢ पूित चेिािनी प्रणाली के वकसी भी मॉडल की सफलिा के वलए भूस्खलन इन्वेंटरी आिश्यक
है । जीएसआई ने एक प्रारूप विकवसि वकया है और इसे राज्य एिं बीआरओ,
सीपीडब्लूडी आवद एजेंवसयों को भूस्खलन की र्टनाओं के बारे में सूवचि करने के वलए
पररचावलि वकया है । जीएसआई ने उिर-पविमी वहमालय, पूिी वहमालय एिं उिर-पू िी
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वहमालय से संबंवधि 1000 भूस्खलन र्टनाओं को शावमल करिे हुए एक इन्वेंटरी को
विकवसि एिं प्रकावशि वकया है । इस सूची का वनयवमि रूप से अद्यिन वकया जाना है
और इसके वलए बीआरओ, सीपीडब्लू डी, सशस्त्र बलों िथा बुवनयादी ढां चे के विकास में
लर्गी एजेंवसयों जैसे राज्य सरकार के िन और पीडब्लूडी विभार्गों से सहयोर्ग की
आिश्यकिा है ।
7. िार्गरूकता अतभयान:
• जीएसआई के पास जार्गरूकिा रणनीवि को विकवसि करने और राज्य सरकारों के साथ
विचार-विमशत करके संिेदनशील क्षेत्रों में जार्गरूकिा अवभयान संचावलि करने की
वजम्मेदारी है ।
• जीएसआई को दी र्गई एक अन्य वजम्मेदारी, जीएसआई के दृवष्ट्कोण को प्रस्तु ि करने के
उद्े श्य से एक वदन की कायतशाला की व्यिथथा करना और भूस्खलन के क्षेत्र में सवक्रय
राज्य सरकारों और अन्य एजेंवसयों के साथ बािचीि करना शावमल है ।
• इसका उद्े श्य मीवडया अवभयान, पत्र और पोस्टर, बैिक और कायतथथल आवद के विकास
और प्रसार के माध्यम से विवभन्न स्तरों पर जार्गरूकिा बढाना है ।
8. समन्वय:
• भूस्खलन के शमन हेिु प्रविबद्ध वकसी भी एजेंसी को जीएसआई से अनुमवि प्राप्त करना
आिश्यक है वजससे (क) कायत के दोहरे पन को रोका जा सके (ि) यह सुवनविि हो सके
वक शमन कायत वनधात ररि मानदं डों के अनुसार हो रहे हैं । कायत पू णत होने के बाद कायत की
ररपोटत की एक प्रवि जीएसआई को सौंपी जािी है । जीएसआई विवभन्न कायों पर हुई प्रर्गवि
के संबंध में समय-समय पर संयुक्त सवचि और केंद्रीय राहि आयुक्त के माध्यम से भारि
सरकार के र्गृह मंत्रालय (MHA) के अंिर्गति नेशनल कोर ग्रुप को ररपोटत करे र्गा ।

राष्ट्रीय भूस्खलन ि खखम प्रबंधन रर्नीतत:


राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रावधकरण (NDMA) ने राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीवि की
शुरुआि की है ।
इस रर्नीतत के प्रमुख तबंदु :
• भूस्खलन ि खखम क्षेत्र ं की पहचान करना: इसमें मैक्रो एिं मीजो स्तर (macro scale and
meso level) पर भू स्खलन जोखिम मैप को िैयार करने की अनुशंसा की र्गई है । यह मानि रवहि

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हिाई िाहन (UAV), थथलीय लेजर स्कैनर और बहुि ही उच्च-ररजॉल्ूशन िाले पृथ्वी अिलोकन
(EO) डे टा जैसे अत्याधुवनक उपकरणों का उपयोर्ग करने पर केंवद्रि है ।
• भूस्खलन तनर्गरानी एवं पूवण चेतावनी प्रर्ाली: िषात थ्रेसहोल्ड, न्यूमेररकल िेदर प्रोडक्शन
(NWP), स्वचावलि िषात र्गेज आवद को विकवसि करने और कायात खन्वि करने की िकनीकी
वसफाररशों को शावमल वकया र्गया है ।
• िार्गरूकता कायणक्रम: इसमें सहभार्गी दृवष्ट्कोण को पररभावषि वकया र्गया है िावक समुदाय का
प्रत्येक िर्गत जार्गरूकिा अवभयान में शावमल हो सके। चूंवक वकसी भी सहायिा के पहुं चने से पहले
सबसे पहले समुदाय द्वारा आपदा का सामना वकया जािा है इसीवलए समुदाय को इसमें शावमल
करने और वशवक्षि करने हे िु जार्गरूकिा िं त्र विकवसि वकया र्गया है ।
• तहतधारक ं का प्रतशक्षर् एवं क्षमता तनमाणर्: दे श में विशेषज्ञिा का िकनीकी-िैज्ञावनक पूल
बनाने के वलए भूस्खलन शोध अध्ययन एिं प्रबंधन के वलए केंद्र (CLRSM) की थथापना की र्गई
है ।

मानव तनतमणत आपदाएँ :

मानव तनतमिि आपदाएँ

नातभकीय और
रासायतनक जैतवक जलवायु
भीड़-भाड़ जं र्गली आर्ग
आपदा आपािकाल
तवतकरणीय
आपािकाल
शहरी बाढ़
आपािकाल

1. व्यापक स्तर पर ल र्ग ं के एकत्र ह ने से उत्पन्न आपातकालीन चुनौती


• दे शभर में समय-समय पर ऐसी र्गविविवधयां होिी रहिी हैं वजसमें एक साथ व्यापक स्तर पर
लोर्ग एकत्र हो जािे हैं ।
• लोर्गों के व्यापक स्तर पर इकट्ठे होने से उत्पन्न होने िाली संभाविि चुनौवियां काफी भयािह
भी हो जािी हैं ।
• इस समस्या से वनपटने हे िु अपयात प्त योजना के कारण विवभन्न जोखिम बने रहिे हैं ।
• इसमें व्यापक स्तर पर चोटें लर्गना एिं मृत्यु होना िक शावमल है ।
• लोर्गों के व्यापक स्तर पर इकट्ठा होने से आपािकालीन खथथवि का बन जाना एक िै विक र्टना
है ।
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• त्योहारों या समारोहों के दौरान बड़े पैमाने पर रे लिे , सड़कमार्गत और िायुमार्गत आवद थथानों
पर लोर्गों की संख्या में अप्रत्यावशि िृखद्ध को दे िा जा सकिा है ।
• ऐसी जर्गहों पर संचालन और प्रबंधन के वलए वजम्मेदार एजेंवसयों को साितजवनक सु रक्षा के
वलए रणनीविक योजना िैयार करिे समय “भीड़” और “भीड़ के द्वारा वकया जाने िाला
व्यिहार” को ििरे के रूप में शावमल करना आिश्यक होिा है ।
• “भीड़” और “भीड़ के द्वारा वकया जाने िाला व्यिहार” के अनुसार, प्रबंधन के वलए आिश्यक
विशेष व्यिथथा को लार्गू करने पर ध्यान दे ना आिश्यक होिा है ।
• राज्य सरकारों, थथानीय अवधकाररयों और अन्य एजेंवसयों के लाभ के वलए एनडीएमए ने लोर्गों
की भीड़ के इकट्ठा होने पर वदशावनदे श जारी वकया है ।
• र्टना के आधार पर रे लिे स्टे शनों, बस टवमत नलों और हिाई अड्ों पर लोर्गों की संख्या में िृ खद्ध
हो सकिी है ।
• एनडीएमए के वदशावनदे श रे लिे , बस पररिहन और िायुमार्गत के वलए साितजवनक सुरक्षा
योजना िैयार करने का मार्गत प्रशस्त करिे हैं ।
• ये योजनाएं थथानीय प्रावधकरण एिं प्रशासकों की सलाह पर िैयार की जािी हैं ।
• चूंवक भीड़ से संबंवधि समस्याएं थथानीय र्टनाएुँ होिी हैं , इसीवलए इन समस्याओं के प्रबंधन
की वजम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य और केन्द्रीय अवधकाररयों के वदशावनदे शों के साथ थथानीय
/ वजला प्रशासन की होिी है ।
• समारोह की योजना बनािे समय आयोजक संभाविि आपाि खथथवियों की अनदे िी करिे हैं
जो प्रमुि आपाि खथथवियों और सबसे िराब खथथवियों को जन्म दे िी है ।
• यह आिश्यक होिा है वक इन र्टनाओं से संबंवधि जोखिमों की पहचान करके योजना बनाई
जाए ।
• लोक समारोह के आयोजन में आयोजकों एिं सरकार, वनजी और सामुदावयक संर्गिन के बीच
सहयोर्ग एिं समन्वय आिश्यक होिा है ।
• एक पाटी का वनणतय दू सरे को प्रभाविि कर सकिा है इसीवलए समारोह के दौरान सू चनाओं
को साझा करना आिश्यक होिा है ।
• कोई भी र्टना की वजम्मेदारी आयोजकों या प्रबंधकों की होिी है लेवकन पूित-वनयोजन चरण
में स्वास्थ्य पेशेिरों और आपािकालीन प्रबं धकों की भार्गीदारी से काफी जोखिमों से बचा जा
सकिा है ।

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एनिीएमए ने भीड आपदाओं के छह प्रमुख कारर् ं क सूचीबर्द् तकया है , तििें नीचे
संक्षेप में प्रस्तुत तकया र्गया है :
कायतक्रम थथल पर आधारभूि संरचना, खथथवियाुँ और व्यिथथाओं का पयात प्त
संरचनात्मक न होना (बैररकेड् स एिं फेंवसंर्ग का अपयात प्त होना, अथथायी संरचनाएं ,
अपयात प्त वनकास, जवटल इलाका, वफसलन / कीचड़ यु क्त सड़कें इत्यावद)

अवग्न/विद् युि ििरनाक वक्रयाकलापों वजनमें दु कानों में िाना पकाने एिं आसानी से
ज्वलनशील सामग्री के उपयोर्ग में लापरिाही, आर्ग बुझाने िाली मशीन का
ना होना, अिैध वबजली कनेक्शन और ऐसी कई संभािनाओं से ले कर आर्ग
और वबजली से जुड़े जोखिमयुक्त वक्रयाकलापों का वकया जाना ।
भीड़ वनयंत्रण कायतक्रम थथल की क्षमिा से अवधक भीड़, िराब प्रबंधन (वजसके कारण
भ्रम पैदा होिा है ) और सभी आदे शों की विफलिा, पयात प्त आपािकालीन
वनकास नहीं होना, भीड़ और इसी िरह की समस्याओं के साथ प्रभािी ढं र्ग
से वनपटने में वसस्टम अपयात प्त होना ।
भीड़ के द्वारा भीड़ के द्वारा वकया जाने िाला व्यिहार से जु ड़े कई मुद्ों को दे िा जा सकिा
वकया जाने है वजसमें लोर्गों की अवनयंवत्रि, र्गैर वजम्मे दारना और उग्र प्रविवक्रयाएं ही
िाला व्यिहार आपािकालीन खथथवि में पररिविति हो जािी हैं ।
सुरक्षा भीड़ को वनयंवत्रि करने के वलए सुरक्षा कवमतयों की िैनािी के िहि,सुरक्षा
व्यिथथा की योजना में िावमयां ।
वहिधारकों के समारोह से संबंवधि एजेंवसयों एिं अवधकाररयों के बीच समन्वय का अभाि
बीच समन्वय ।
का अभाि

भर्गदड के कुछ प्रमुख उदाहरर् :

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प्रमुख ररप ट्ण स :
• नेशनल क्राइम ररकॉडत ब्यूरो के अनुसार, िषत 2000 से 2013 के बीच , भर्गदड़ के कारण लर्गभर्ग 2000 लोर्गों की
जान र्गईं।
• इं टरनेशनल जनतल ऑफ वडजास्टर ररस्क ररडक्शन के अनुसार, भारि में होने िाली भर्गदड़ की 78% र्टनाएुँ ,
िीथत थथलों एिं धावमतक आयोजनों के मौके पर होिी हैं ।

भीड प्रबंधन पर एनिीएमए के तदशा तनदे श:


1. समारोह एिं त्योहारों के दौरान एक जर्गह पर इकट्ठे होने िाली भीड़ के प्रबंधन हे िु राष्ट्रीय
आपदा प्रबंधन प्रावधकरण ने कुछ वदशा वनदे श जारी वकए हैं :

1. तहतधारक ,ं आर्गंतुक ं और समार ह स्थल क समझना :


• समारोह थथल में विवभन्न वहिधारकों और आर्गंिुकों के आने िाले मार्गत को समझना, भीड़
प्रबंधन के प्रमुि र्टक हैं ।
• इसमें र्टना के प्रकार की समझ (जैसे धावमतक, स्कूल / वििविद्यालय, िेल आयोजन,
संर्गीि कायतक्रम, राजनीविक र्टना, उत्पाद प्रचार आवद) ,अपेवक्षि भीड़ (आयु , वलंर्ग,
आवथतक स्तर), भीड़ के उद्े श्य (जैसे सामावजक, शैक्षवणक, धावमतक, मनोरं जन, आवथत क
आवद), थथान (थथान, क्षेत्र की थथलाकृवि, लौवकक या थथायी, िुला या बंद), और अन्य
वहिधारकों (जैसे र्गैर सरकारी संर्गिन, र्टना थथल के पड़ोसी, थथानीय प्रशासक आवद)
की भूवमका के प्रवि समझ आिश्यक है ।
2. भीड से तनपटना :
• भीड़ के चारों ओर िाहनों की र्गविविवधयों को वनयंवत्रि करना चावहए ।
• समारोह के वलए आपािकालीन वनकास व्यिथथा के साथ रूट मैप बनाना चावहए ।
• भीड़ को वनयंवत्रि करने के वलए बैररकेड की समुवचि व्यिथथा होनी चावहए ।
• अत्यवधक भीड़ िाली किारों में स्नेक लाइन दृवष्ट्कोण का पालन वकया जाना चावहए ।
• भीड़ िाले कायतक्रमों में आयोजन प्रबंधकों के द्वारा सामान्य प्रिे श को रोका जाना चावहए
और जब VIP आर्गंिुकों के प्रबंधन के साथ सुरक्षा वचंिाएुँ जुड़ी हों िब इन्हें भी रोका जाना
चावहए ।

3. बचाव और सुरक्षा :
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• र्गौरिलब है वक कायत क्रम के आयोजकों को सुरक्षा वदशावनदे शों के अनुसार वबजली,
अवग्नशमन और अन्य व्यिथथाओं का अवधकृि उपयोर्ग सु वनविि करना चावहए।
• भीड़ पर नजर रिने के वलए CCTV कैमरों का उपयोर्ग करना चावहए।

4. संचार:
• भीड़ के साथ सं िाद करने के वलए सभी भीड़-भाड़ िाली जर्गहों पर लाउडस्पीकरों की
व्यिथथा करनी चावहए ।

5. तचतकत्सा एवं आपातकालीन दे खभाल:


• आपदा के बाद की आपाि खथथवियों से वनपटने के वलए प्राथवमक वचवकत्सा कक्ष और
आपािकालीन संचालन केंद्र थथावपि वकए जाने चावहए ।

6. समार ह प्रबं धक ं की भूतमका:


• कायतक्रम के आयोजकों और थथल प्रबं धकों को थथानीय प्रशासन और पुवलस सवहि अन्य
के साथ समन्वय द्वारा आपदा प्रबंधन योजना का विकास, कायात न्वयन, समीक्षा और
संशोधन करना चावहए।

7. तसतवल स साइटी की भूतमका:


• र्टना / थथल प्रबंधक, यािायाि वनयंत्रण में र्गैर सरकारी संर्गिन और नार्गररक सुरक्षा का
सहारा ले सकिे हैं । आपदा के मामले में लोर्गों का वनयंत्रण, वचवकत्सा सहायिा, स्वच्छिा
और थथानीय संसाधनों पर ध्यान दे ना आिश्यक है ।

8. पुतलस की भू तमका:
• पुवलस को समारोह थथल का मूल्ां कन करने के साथ-साथ िैयाररयों का जायजा लेना
चावहए और भीड़ ि यािायाि पररचालन को सुवनविि करना चावहए ।

9. क्षमता तनमाणर्:
• क्षमिा वनमात ण, मॉक अभ्यास, सुरक्षा कवमतयों के प्रवशक्षण के आिवधक मूल्ां कन के साथ-
साथ भीड़ आपदाओं को रोकने के वलए पु वलस की भूवमका वनणात यक होिी है ।

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अध्याय-3: भारत में आपदा प्रबं धन

भारत में आपदा प्रबंधन :


आपदा प्रबंधन के चरर् :

िैयारी : यह ऐसी अिवध है वजसमें संभाविि ििरे , जोखिमों और कमजोररयों का


आकलन वकया जािा है और इसे रोकने के वलए वनम्न कदम उिाए जा सकिे हैं :
• आपदा/संकट क र कना और कम करना, और
चरर् 1:
• वास्ततवक आपदा/संकट की तैयारी।
आपदा/संकट से पहले (ररस्क में
आपदा/संकट को विवभन्न अल्पकावलक (शॉटत टमत) उपायों के माध्यम से कम
कटौती)
वकया जा सकिा है । ऐसे उपाय या िो ििरे के पैमाने और िीव्रिा को कम
करिे हैं या ििरों के अियिों(एवलमेंट्स) के थथावयत्व और क्षमिा में सुधार
करिे हैं। उदाहरण के वलए , वबखल्डं र्ग कोड् स और जोवनंर्ग के वनयमों का बेहिर
िरीके से प्रिितन , डर े नेज वसस्टमों का उवचि िरीके से रिरिाि ,ििरों के
जोखिमों को कम करने के वलए बेहिर जार्गरूकिा िथा साितजवनक वशक्षा,
इत्यावद उपाय अत्यवधक क्षवि होने से रोकने में मदद करिे हैं ।
चरर् 2: आपातकालीन प्रतततक्रया (इमरिेंसी ररस्पॉन्स) : िास्ति में जब कोई
आपदा/संकट आिी है, िो इससे प्रभाविि लोर्गों को कष्ट्/पीड़ा िथा नुकसान को
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आपदा/संकट के दौरान कम करने के वलए एक त्वररि प्रविवक्रया(खिक ररस्पॉन्स) की आिश्यकिा होिी
(प्रतततक्रया) है । अिः इस चरण में, कुछ 'प्राथवमक र्गविविवधयाुँ' अविआिश्यक हो जािी हैं ।
ये र्गविविवधयां हैं :
1. तनकास (ईवैक्ूएशन) / खाली करना
2. ख ि तथा बचाव, और
3. बुतनयादी िरूरतें/मौतलक आवश्यकताएं जैसे भोजन, कपड़े , र्र/मकान,
दिाइयां और अन्य आिश्यकिाओं को पूरा करना । ये सभी प्रभाविि समुदाय के
जीिन की दशा को सामान्य खथथवि में लाने के वलए आिश्यक हैं ।
• ररकवरी : इस चरण में जल्दी ररकिरी हावसल करने, संिेदनशीलिा
(vulnerability) और भविष्य के जोखिमों को कम करने के प्रयास वकए जािे
हैं । इसमें ऐसी र्गविविवधयाुँ शावमल हैं जो पुनिातस और पुनवनतमातण दो चरणों
चरर् 3:
के इदत वर्गदत रहिी हैं ।
आपदा/संकट के बाद (ररकवरी)
• पुनवाणस (ररहैतबतलटे शन) : लॉन्र्ग टमत ररकिरी में सहायिा के वलए अंिररम
उपायों के रूप में अथथायी साितजवनक उपयोर्गी सेिाओं िथा आिास का
प्रािधान शावमल है ।
• पुनतनणमाणर् : इसमें क्षविग्रस्त( डै मेज्ड) बुवनयादी ढां चे और आिासों का
वनमातण िथा थथायी आजीविका ( सस्टे नेबल लाइिलीहुड् स ) प्रदान करना
शावमल है ।

आपदा प्रबंधन के तत्व (एतलमेंट्स) :

ररस्क में कमी लाना (प्रततर धक क्षमता बढाना)


• आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीवियों ( वडजास्टर ररस्क ररडक्शन स्टर ै टजी) में, सरल तनवारक उपाय ं
(preventing measures) को अपनाकर , हजारों लोर्गों की जान बचायी जा सकिी है । आपदाओं के कारण
हिाहि होने की प्रमुि िजहें आपदा के दौरान जोखिमों में कटौिी करने िाली रणनीवियों में कमी और आपदा के
रोकथाम के वलये उपायों की अनुपखथथवि हैं। ऐसी आपदाएं जो पूरे समाज या सिि विकास को प्रभाविि करिी हैं,
उन्हें नीवियों, रणनीवियों िथा प्रथाओ द्वारा उसकी भेद्यिा में कमी लाना आपदा जोखिम में कमी को दशातिा है ।
• आपदा में कमी लाने िाली रणनीवियों में, खतरे की संभावना और समुदाय में भेद्यता (वल्नरे तबतलटीज) के
तवश्लेिर् (analysis) का मूल्ांकन शावमल है । इसके बाद के अर्गले चरण में संथथार्गि क्षमिाओं और सामुदावयक
िैयाररयों का वनमात ण शावमल है। हालांवक , इन सभी प्रयासों के वलए समाजों में एक 'सुरक्षा संस्कृवि (सेफ कल्चर)
का होना महत्वपूणत है । इन सभी कायों के वलए वशक्षा, प्रवशक्षण और क्षमिा वनमातण जैसे इनपुट बहुि महत्वपूणत
भूवमका वनभािे हैं। हमें यह समझने की जरूरि है वक इस िरह की िैयाररयां 'एक बार' का प्रयास नहीं हो सकिी
हैं , बखि यह एक सिि प्रवक्रया है।
• आपदा में कमी लाने में ज्ञान(नॉलेि) महत्वपूणत भूवमका वनभािा है। समुदायों(कम्युवनटीज) के पास उपलब्ध
पारं पररक ज्ञान का उपयोर्ग , अनुसंधान और वपछले अनुभिों के माध्यम से प्राप्त ज्ञान के साथ वकया जाना चावहए ।

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आपदा ि खखम में कमी की रूपरे खा (तििास्टर ररस्क ररिक्शन फ्रेमवकण) में तनम्न एक्शन शातमल हैं :
1. ररस्क मैनेजमेंट (जोखिम प्रबंधन) की वदशा में नीततयां
2. ऐसे ि खखम ं (ररस्क )ं का आकलन वजसमें जोखिम विश्लेषण (हैजडत एनावलवसस) और भेद्यिा (िल्नेरेवबवलटी)
शावमल है।
3. मास मीवडया और सोशल मीवडया की मदद से ि खखम िार्गरूकता (ररस्क अवेयरनेस) पैदा करना ।
4. जोखिमों में कमी लाने वलए योजना तैयार करना ।
5. योजनाओं का कायाणन्वयन ।
6. डे टा कैप्चर टर ांसवमशन, विश्लेषण और प्रसार से संबंवधि निीनिम िकनीक की मदद से प्रारं तभक चेतावनी
प्रर्ाली (अली वातनिंर्ग तसस्टम) ।
7. आपदा के बारे में सम्बंवधि ज्ञान (नॉलेि) का उपयोर्ग ।
8. सूचना : प्रभािी आपदा जोखिम प्रबंधन (वडजास्टर ररस्क मैनेजमेंट) सभी वहिधारकों की भार्गीदारी पर वनभतर
करिा है। सूचना का आदान-प्रदान और सुलभ संचार इसमें महत्वपूणत भूवमका वनभािे हैं । अनुसंधान, राष्ट्रीय
योजना, ििरों की वनर्गरानी और जोखिमों के आकलन के वलए डाटा की महत्वपूणत भूवमका होिी है। िितमान और
सटीक डाटा की व्यापक और वनरं िर उपलब्धिा आपदा जोखिम में कमी के सभी पहलुओं के वलए बुवनयादी
आधार है ।

आपदा न्यूनीकरर् (तमतटर्गेशन) :

आपदा न्यूनीकरर् (तमतटर्गेशन) में शातमल हैं :


• आपदाओं के प्रभािों को कम करने के उद्े श्य से वकये र्गए उपाय
• विपवियों/संकट को पूरी िरह से आपदाओं में विकवसि होने से रोकने के वलए वकए र्गए प्रयास
• यह दू सरे चरणों से अलर्ग है , क्ोंवक यह जोखिम को कम करने या ित्म करने के दीघणकातलक उपाय ं पर केंतद्रत
होिा है ।
• यह एक समुदाय पर आपदा के प्रभािों को कम करने के वलए , आपदा से पहले की र्गई कारत िाइयों पर आधाररि
है।

आपदा न्यूनीकरर् (तमतटर्गेशन) का महत्व :


• प्राकृविक आपदाओं के प्रभािों को कम करने के वलए कई विशेष कायतक्रम चल रहे हैं िथा थथानीय समुदायों ने भी
अपने स्वदे शी िंत्रों को विकवसि वकया है।
• आपािकाल की खथथवि में, र्गैर-सरकारी संर्गिनों द्वारा समवथति सामुदातयक कारण वाई राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क्षमिा
को मजबूि करिी है।
• विवभन्न आपदा न्यूनीकरण उपायों को शुरू करने के बािजूद, थोड़ा सा ही सुधार दे िने को वमला है। इसी के अनुसार
, भारि सरकार ने विकास योजनाओं के साथ आपदा न्यूनीकरण को वलंक करने िथा प्रभािी संचार प्रणावलयों और
सूचना प्रौद्योवर्गकी, बीमा, व्यापक साितजवनक जार्गरूकिा और वशक्षा अवभयानों (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) के प्रचार
को बढािा दे ने, वनजी क्षेत्र को शावमल करने और संथथार्गि िंत्र और अंिरातष्ट्रीय सामुदावयक सहयोर्ग को मजबूि करने
के वलए पहल की है।

त्वररत प्रतततक्रया (खक्वक ररस्पांस) :


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➢ त्वररि प्रविवक्रया(खिक ररस्पांस) से जान बचायी जा सकिी है, संपवि की रक्षा की जा सकिी है और आपदाजवनि
संकटों के कारण उपजे व्यिधानों को कम वकया जा सकिा है। त्वररि कायतिाही एक प्रभािी प्रविवक्रया है, जो
नार्गररकों समाजों के साथ-साथ पूरे सरकारी िंत्र की समखन्वि प्रविवक्रया के रूप में होिी है ।
➢ प्रविवक्रया (ररस्पांस) में न वसफत पारम्पररक िरीके से डट कर मुकाबला करना शावमल हैं , जो सवदयों से विकवसि हुए
हैं, बखि सािधानीपूितक योजना और समन्वय भी शावमल हैं । संकट प्रबंधन ,एक समग्र और प्रभािी प्रविवक्रया िंत्र
को लार्गू करने की ित्काल आिश्यकिा की ओर इशारा करिा है जो वक पेशेिर, पररणाम-उन्मुि(ररजल्ट ओररएं टे ड),
इनोिेवटि और जन-केंवद्रि हो ।

त्वररत प्रतततक्रया में तनम्नतलखखत बात ं पर ि र तदया िाता है :


• इस खिक ररस्पांस के चरण में आपदा क्षेत्र में आिश्यक आपािकालीन सेिाओं और उिरदावयत्व (ररस्पांवसवबवलवटज)
को पूरा करना शावमल है । इसमें कोर इमरजेंसी सेिाओं जैसे अवग्नशमन, पुवलस और एम्बुलेंस दल इत्यावद भी शावमल
होिे है । उन्हें सपोटत करने के वलए कई आपािकालीन सेिाओं जैसे विशेषज्ञ बचाि दल इत्यावद भी होिे हैं ।
• यह भौततक सुतवधाओं क बहाल करने, प्रभातवत पररवार ं / आबादी के पुनवाणस, ख ई हुई आिीतवका की
बहाली और पुनतनणमाणर् के प्रयास ं क पूरा करता है ।
• बुवनयादी संरचनाओं, सामावजक योजना, आवद के संबंध में नीवि और वनयोजन में उपखथथि िावमयों को यह उजार्गर
करिा है।

महत्व :
• इससे आपदा न्यूनीकरण पर ित्काल प्रभाि पड़िा है और नुकसान को अवधक से अवधक स्तर िक कम वकया जा
सकिा है । बीमा (इं श्योरें स) उद्योर्ग के अनुमान के अनुसार, प्राकृविक आपदाएं , कुल आपदा के 85 प्रविशि भार्ग का
प्रविवनवधत्व करिी हैं ।
• आपदाओं के प्रभािों को कम करने िाले उपायों में वनिेश करने के वलए लोर्गों और डोनसत की ओर से अवनच्छा के
कारण हर साल हजारों लोर्गों की जान चली जािी है और लािों लोर्ग इसकी भयािहिा के वशकार हो जािे हैं । (विि
आपदा ररपोटत 2002)
• भेद्य/कमजोर समुदायों का दीर्तकावलक लचीलापन

मुद्दे / तववाद :
• सरकार, नार्गररक समाज (वसविल सोसाइटीज) और अंिरातष्ट्रीय डोनसत संथथान के बीच समन्वय का अभाव।
• हावलया उदाहरण उत्तराखंि में आई हुई बाढ (जून 2013) है जहां अंिरराष्ट्रीय संर्गिनों को काम शुरू करने के
वलए सरकार की िुरंि मंजूरी वमलने में मुखिलें हुयीं ।
• थथानीय स्तर पर आपदा प्रविवक्रया संरचना हेिु एक संथथान का वनमातण करना।

ररकवरी :
• आपदा के लंबे समय के बाद में , जब वनयवमि सेिाओं के अलािा पुनथथातपना के प्रयास होिे हैं िो उसमें सिि
पुनवितकास (पुनवनतमातण, पुनिातस) को बढािा दे ने िाले कायों का कायातन्वयन भी शावमल होिा है िथा इसमें प्रविवक्रया
चरण से अलर्ग चीजें शावमल होिी है ; ररकिरी प्रयासों का संबंध उन मुद्ों और फैसलों से है, वजन्हें ित्काल जरूरिों

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को पूरा करने के बाद वकया जाना चावहए । ररकवरी प्रयास मुख्य रूप से उन कायों से संबंतधत है, तिनमें नष्ट्
हुयी संपतत्तय ं के पुनतनणमाणर्, और अन्य आवश्यक बुतनयादी ढांचे की मरम्मत शातमल हैं।
• ररकिरी चरण िब शुरू होिा है जब मानि जीिन के वलए ित्काल ििरा कम हो जािा है । पुनवनतमातण में, संपवि के
थथान या वनमातण सामग्री पर पुनवितचार करना जरूरी और सही होिा है।
• आपदा ररकिरी में सामुदातयक लचीलापन (कम्युतनटी रे तसतलएन्स) एक प्रमुि फैक्टर होिा है ।

इस चरर् में 3 R के अंतर्गणत तीन ओवरलैतपंर्ग चरर् शातमल हैं :


राहत (ररलीफ) : यह आपदा के िुरंि बाद की अिवध है वजसमें
बचे हुए लोर्गों की आिश्यकिा को पूरा करने
के वलए कदम उिाए जािे हैं।
पुनवाणस ये पीवड़िों की सामान्य खथथवि और
(ररहैतबतलटे शन): पुन:एकीकरण के वलए सहायिा प्रदान करने के
वलए की जाने िाली र्गविविवधयाुँ हैं । इसमें
अथथायी रोजर्गार और आजीविका की बहाली
का प्रािधान शावमल है ।
पुनतनणमाणर् यह समुदायों को आपदा के पहले जैसी खथथवि
(ररकंस्टर क्शन) : में िापस लाने का एक प्रयास है ।

संस्थार्गत ढाँचा :

राष्ट्रीय स्तर :
आपदा प्रबंधन का समग्र समन्वय र्गृह मंत्रालय करिा है । आपदा प्रबंधन के बारे में शीषत स्तर पर वनणतय लेने िाली
प्रमुि सवमवियों में सुरक्षा पर कैतबनेट सतमतत और राष्ट्रीय संकट प्रबंधन सतमतत शावमल हैं। राष्ट्रीय आपदा
प्रबंधन योजना के अप्रूिल और इसके कायातन्वयन के वलए वजम्मेदार एजेंसी NDMA है ।

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राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रातधकरर् (NDMA) :
• भारि सरकार ने 2005 में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में NDMA की थथापना की । आपदा प्रबंधन अवधवनयम 2005
के िहि, NDMA को आपदा प्रबंधन के वलए शीषत वनकाय के रूप में, आपदा प्रबंधन हे िु समय पर प्रभािी ढं र्ग से
प्रविवक्रया सुवनविि करने के वलए नीवियों और वदशावनदे शों को वनधातररि करने की वजम्मेदारी होर्गी।
• NDMA के वदशावनदे श केंद्रीय मंत्रालयों, विभार्गों और राज्यों को उनकी वडजास्टर मैनेजमेंट योजनाओं को िैयार
करने में सहायिा करें र्गे।
• यह, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन य िना और केंद्रीय मंत्रालय ं / तवभार्ग ं की तििास्टर मैनेिमेंट य िनाओं क
मंिूरी दे र्गा।
• एक ििरनाक आपदा की खथथवि या आपदा से वनपटने के वलए यह, इसी िरह के अन्य उपायों जैसे वक आपदाओं की
रोकथाम, या न्यूनीकरण , या िैयारी और क्षमिा वनमातण जो उस समय अवनिायत हो िो कदम उिा सकिा है ।
• केंद्रीय मंत्रालय / विभार्ग और राज्य सरकारें NDMA को आिश्यक सहयोर्ग और सहायिा प्रदान करें र्गी।
• NDMA के पास संबंतधत तवभार्ग ं या प्रातधकाररय ं क अतधकृत करने की शखक्त है, वजससे वकसी संकटपूणत
आपदा की खथथवि या आपदा में बचाि और राहि के वलए प्रािधानों या सामवग्रयों की आपािकालीन िरीद को
सुवनविि वकया जा सके ।
• NDMA के द्वारा ही राष्ट्रीय आपदा प्रविवक्रया बल (NDRF) का सामान्य अधीक्षण, वनदे शन और वनयंत्रण िथा समय
पड़ने पर इसका उपयोर्ग वकया जािा है । राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संथथान (NIDM) NDMA के द्वारा वनधातररि व्यापक
नीवियों और वदशावनदे शों के ढांचे के भीिर काम करिा है।
• NDMA के पास सभी प्रकार की आपदाओं से तनपटने का मैंिेट है – चाहे िो प्राकृविक आपदा हो या मानि
जवनि आपदा । हालांवक, अन्य आपाि खथथवि जैसे आिंकिाद (आिंकिाद-रोधी), कानून और व्यिथथा की खथथवि,
अपहरण, हिाई दु र्तटना, CBRN हवथयार प्रणाली, वजसमें सुरक्षा बलों और/या िुवफया एजेंवसयों की करीबी भार्गीदारी

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की आिश्यकिा होिी है, और िदान आपदाओं जैसी अन्य र्टनाएं , बंदरर्गाह और बंदरर्गाह आपाि खथथवि, जंर्गल
की आर्ग, िेल क्षेत्र की आर्ग जैसी आपदाओं को राष्ट्रीय संकट प्रबंधन सवमवि (NCMC) द्वारा वनयंवत्रि वकया जािा है

• वफर भी NDMA, डीएई के विशेषज्ञों से प्राप्त िकनीकी सलाह और इनपुट के साथ वदशावनदे श िैयार कर सकिा है
और रासायवनक, जैविक, रे वडयोलॉवजकल और परमाणु आपदा से उत्पन्न हुई आपाि खथथवियों के जिाब में प्रवशक्षण
और िैयाररयों की र्गविविवधयां उपलब्ध करािा है ।

NDMA में कतमयां और चुनौततयां :


• 2013 में उत्तराखंि बाढ के दौरान NDMA की भूवमका पर िब सिाल िड़े हुए, जब यह लोर्गों को बाढ और
भूस्खलन के बारे में समय पर सूतचत करने में तवफल रहा। यहां िक वक आपदा के बाद की प्रविवक्रया भी NDMA
के द्वारा वनधातररि वकए र्गए स्तर की नहीं थी। विशेषज्ञों ने NDMA द्वारा शुरू की र्गयी बाढ और भूस्खलन क कम
करने वाली अधूरी और खराब पररय िनाओं को इसके वलए दोषी िहराया ।
• कैर्ग की एक ररपोटत में पाया र्गया वक बाढ प्रबंधन कायतक्रमों के िहि पररयोजनाओं को पूरा करने में दे री हुई। यह
भी कहा र्गया वक पररयोजनाओं को एकीकृि िरीके से नहीं पूरा वकया र्गया िथा िराब बाढ प्रबंधन के वलए संथथार्गि
विफलिाओं के वलए NDMA को दोषी िहराया र्गया ।
o सीमा क्षेत्र ं की पररय िनाओं से संबंतधत नदी प्रबंधन र्गतततवतधय ं और कायों क पूरा करने में बहुत दे री
हुई, जो असम, उिर वबहार और पूिी उिर प्रदे श की बाढ की समस्याओं के वलए दीर्तकावलक समाधान थे।
• 2018 में केरल में बाढ और 2015 में चेन्नई में बाढ के कारण हुई िबाही ने आपदा की खथथवि से वनपटने में संथथानों
की िैयाररयों में कवमयों को वदिाया।
• कैर्ग की ररपोटत ने 2015 चेन्नई फ्लि् स को "मानि वनवमति आपदा" करार वदया और िबाही के वलए िवमलनाडु
सरकार को वजम्मेदार िहराया।
• एनिीआरएफ (NDRAF) के पास संकट की खस्थतत से सही तरीके से तनपटने के तलए पयाणप्त प्रतशक्षर्,
उपकरर्, सुतवधाएं और आवास ं का अभाव है।
• तनतधय ं का दु रुपय र्ग -
o ऑवडट से यह पिा चलिा है वक कुछ राज्यों ने व्यय के वलये िैसी तनतधय ं का दु रूपय र्ग वकया जो आपदा प्रबंधन
के वलए अवधकृि नहीं थे ।
o धन जारी करने में काफी दे री की जािी है । इसके अविररक्त, कुछ राज्यों ने बहुि अवधक ब्याज हावन के कारण
धन का वनिेश नहीं वकया। यह धन के प्रबंधन के बारे में राज्यों में वििीय अनुशासनहीनिा को दशात िा है।

आर्गे का रास्ता :
• क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन और विकास योजनाओं की िैयारी और कायातन्वयन को सूवचि करने और मार्गतदशतन करने के
वलए मैक्र स्तर पर नीतत तदशातनदे श ं की आिश्यकिा होिी है।
• आपदा प्रबंधन प्रथाओं को विकास में एकीकृि करने के वलए खुले तदशातनदे श बनाए जाने चावहए।
• वजला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रभािी प्रविवक्रया योजनाओं के साथ युखिि(coupled) कुशल प्रारं तभक चेतावनी
प्रर्ाली समय की आिश्यकिा है।
• आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में समुदाय, र्गैर सरकारी संर्गठन ,ं सीएसओ और मीतिया को शावमल करना होर्गा

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• िलवायु ि खखम प्रबंधन को अनुकूलन और आपदा के रोकथाम के माध्यम से सुलझाया जाना चावहए।
9. अनुसंधान में उवचि वनिेश के माध्यम से आपदा के प्रवि लचीले बुवनयादी ढांचे को विकवसि करने के वलए एक
र्गविशील नीवि की आिश्यकिा होिी है। इसरो, NRSA, IMD और अन्य संथथानों को सामूवहक रूप से आपदाओं
से वनपटने की क्षमिाओं को बढाने के वलए िकनीकी समाधान प्रदान करना होर्गा ।
• भारि को सवणश्रेष्ठ वैतश्वक प्रथाओं से सीिना चावहए।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) :


a) भारि सरकार ने वडजास्टर मैनेजमेंट अवधवनयम के अध्याय- VII के प्रािधानों के अनुसार, भारि में आपदा प्रबंधन
के वलए एक प्रमुि संथथान बनाने िथा क्षमिा विकास के वलए संसद के एक अवधवनयम के िहि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन
संथथान (NIDM) का र्गिन वकया।
b) NIDM का कायत आपदा रोकथाम और िैयाररयों के वलए सभी स्तरों पर क्षमिा वनमातण करके भारि को आपदा के
प्रवि िैयार करना है।
c) NIDM को आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में मानव संसाधन तवकास, क्षमता तनमाणर्, प्रतशक्षर्, अनुसंधान, प्रलेखन
और नीतत वकालत के तलए न िल तिम्मेदाररयां सौंपी र्गई हैं।
d) NIDM ने भारि में केंद्र, राज्य और थथानीय सरकारों, शैक्षवणक संथथानों, अनुसंधान और तकनीकी संर्गठन ं के
तवतभन्न मंत्रालय ं और तवभार्ग ं के साथ िथा विदे शों में अन्य वद्वपक्षीय और बहुपक्षीय अंिरराष्ट्रीय एजेंवसयों के साथ
वमलकर रर्नीततक साझेदारी का तनमाणर् वकया है।
e) यह राज्यों और केंद्र शावसि प्रदे शों के प्रशासतनक प्रतशक्षर् संस्थान ं (ATI) में आपदा प्रबंधन केंद्रों (DMCs) के
माध्यम से राज्य सरकारों को िकनीकी सहायिा प्रदान करिा है।
f) उनमें से कुछ जोखिम प्रबंधन के विशेष क्षेत्रों जैसे - बाढ, भूकंप, चक्रिाि, सूिा, भूस्खलन और औद्योवर्गक आपदाएं
इत्यावद में उत्कृष्ट्ता के केंद्र के रूप में उभर रहे हैं ।
राष्ट्रीय आपदा प्रतततक्रया बल (NDRF)
• NDRF का र्गिन वडजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के अध्याय-VIII के अनुसार एक विशेष प्रविवक्रया बल के रूप में
वकया र्गया है, वजसे एक विपविपूणत आपदा खथथवि या आपदा में िैनाि वकया जा सकिा है।
• आपदा प्रबंधन अवधवनयम के अनुसार, एनडीआरएफ का सामान्य अधीक्षर्, तनदे शन और तनयंत्रर् NDMI के
द्वारा वकया जाएर्गा।
• एनिीआरएफ की कमान और पयणवेक्षर् भारि सरकार द्वारा वनयुक्त महावनदे शक के पास होर्गी।
• NDRF प्रभावी प्रतततक्रया के तलए आवश्यक तवतभन्न स्थान ं पर अपनी बटातलयन ं क तनयुक्त करे र्गा।
• NDRF यूवनट् स सम्बंतधत राज् सरकार ं के साथ घतनष्ठ संबंध बनाए रखेंर्गी और वकसी भी र्गंभीर आपदा की
खथथवि में उनकी मदद करें र्गी ।
• प्राकृविक आपदाओं और रासायवनक, जैविक, रे वडयोलॉवजकल और परमाणु (CBRN) आपदा के कारण उत्पन्न हुई
आपाि खथथवियों का िवाब दे ने के तलए NDRF प्रवशवक्षि होिी है ।
• NDRF इकाइयां अपने संबंवधि थथानों में राज्य सरकारों द्वारा वचखन्हि सभी तहतधारक ं क बुतनयादी प्रतशक्षर् भी
प्रदान करिी है ।
• नार्गपुर में एक राष्ट्रीय आपदा प्रतततक्रया अकादमी को शुरू वकया जा चुका है और आपदा प्रबंधन के वलए राष्ट्रीय
और अंिरातष्ट्रीय प्रवशक्षण कायतक्रमों को पूरा करने हेिु नए बुवनयादी ढांचे की थथापना की जा रही है।

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• यह भी वनणतय वलया र्गया है वक चार सीएपीएफ (बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और सीआईएसएफ) के
आपदा प्रबंधन प्रवशक्षण विंर्ग को इस अकादमी के साथ वमला वदया जाएर्गा।
• प्रमुि आपदाओं में प्राप्त हुए पहले के अनुभि से हमे यह स्पष्ट् रूप से पिा चलिा है वक उच्च ऊंचाई िाले क्षेत्रों सवहि
कुछ महत्वपूणत थथानों पर संसाधनों को बढाने के वलए कुछ प्रविवक्रया बलों को िहां पहले से ही रिने की आिश्यकिा
होिी है।

राज् स्तर :
• 2005 के वडजास्टर मैनेजमेंट अवधवनयम के अनुसार, केंद्रशावसि प्रदे श (UT) िथा प्रत्येक राज्य में आपदा प्रबंधन के
वलए अपना संथथार्गि ढांचा होना चावहए । प्रत्येक राज्य / केन्द्र शावसि प्रदे श में आपदा प्रबंधन के समन्वय के वलए
एक नोडल विभार्ग होिा है, वजसे आपदा प्रबंधन विभार्ग कहा जािा है ।हालांवक प्रत्येक राज्य / केन्द्र शावसि प्रदे श
में नाम और विभार्ग समान नहीं होिे हैं ।

• इन सब के अलािा, आपदा प्रबंधन अवधवनयम यह बिािा है वक प्रत्येक राज्य/केन्द्र शावसि प्रदे श अपने राज्य/केन्द्र
शावसि प्रदे शों की योजनाओं की िैयारी के वलए आिश्यक कदम उिाएर्गे िथा आपदाओं की रोकथाम के वलए विवभन्न
उपायों का एकीकरण और राज्य/संर् शावसि क्षेत्रों के विकास पररयोजनाओं में धनरावशयों का आिंटन, और पूित
चेिािनी प्रणाली की थथापना भी करे र्गा । विवशष्ट् खथथवियों और जरूरिों के आधार पर, राज्य / केंद्रशावसि प्रदे श

51
वडजास्टर मैनेजमेंट के विवभन्न पहलुओं पर केंद्र सरकार और केंद्रीय एजेंवसयों की सहायिा करें र्गे। .प्रत्येक राज्य
अपनी स्वयं की राज्य आपदा प्रबंधन योजना िैयार करे र्गा ।

राज् आपदा प्रबंधन प्रातधकरर् (SMDA) :


• आपदा प्रबंधन अवधवनयम के अध्याय- III के प्रािधानों के अनुसार, प्रत्येक राज्य सरकार एक राज् आपदा प्रबंधन
प्रातधकरर् (SDMA) या इसके समकक्ष एजेंसी थथावपि करे र्गी वजसका अध्यक्ष मुख्यमंत्री होर्गा । अन्य संर् शावसि
प्रदे शों के मामले में, उपराज्यपाल या प्रशासक उस प्रावधकरण के अध्यक्ष होंर्गे।
• केंद्र शावसि प्रदे श वदल्ली के वलए, उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री राज्य प्रावधकरण के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होंर्गे।
• संर् शावसि प्रदे श में विधान सभा होने पर, वदल्ली को छोड़कर, मुख्यमंत्री प्रावधकरण के अध्यक्ष होंर्गे।
• SDMA राज् में आपदा प्रबंधन के तलए नीततयां और य िनाएं िैयार करे र्गा।
• SDMA विवभन्न विभार्गों द्वारा िैयार आपदा प्रबंधन य िनाओं क मंिूरी दे र्गा
• यह NDMA द्वारा वनधातररि वदशावनदे शों के अनुसार, राज् की य िना क मंिूरी दे ता है, राज्य योजना के
कायाणन्वयन का समन्वय करता है, और उसकी तैयाररय ं के तलए धन का प्रावधान और राज् के तवतभन्न
तवभार्ग ं की तवकासात्मक य िनाओं की समीक्षा करता है तथा र कथाम, तैयारी और ि खखम में कमी लाने
वाले उपाय ं के एकीकरर् क सुतनतश्चत करिा है ।
• राज्य सरकार अपने कायों के संचालन में SDMA की सहायता के तलए एक राज् कायणकारी सतमतत (SEC) का
र्गठन करे र्गी । SEC की अध्यक्षिा राज्य सरकार के मुख्य सवचि करें र्गे।
• SEC राष्ट्रीय नीतत, राष्ट्रीय य िना और राज् य िना के कायाणन्वयन का समन्वय और तनर्गरानी करे र्गा । SEC
वडजास्टर मैनेजमेंट के विवभन्न पहलुओं से संबंवधि जानकारी NDMI को भी प्रदान करे र्गा।

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अध्याय 4. आपदा प्रबं धन व प्रौद्य तर्गकी: आपदा प्रबं धन में
प्रौद्य तर्गकी की भू तमका

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन सेवाएँ (NDMS):


• 2015-16 में एनिीएमए की पररकल्पना र्गृह मंत्रालय, एनिीएमए, एनिीआरएफ, सभी राज् / केन्द्र शातसत
प्रदे श ं के मुख्यालय और 81 संवेदनशील तिल ं में अतत लघु एपचणर टतमणनल नेटवकण कनेखक्ट्ं र्ग मंत्रालय की
स्थापना के तलए एनिीएमए द्वारा की र्गई है।
• इस पररय िना का कायणन्वयन बीएसएनएल द्वारा तकया िायेर्गा ।
• इस पायलट पररय िना का उद्दे श्य दे श भर में आपातकालीन पररचालन केंद्र के संचालन के तलए असफल
संचार अवसंरचना और तकनीकी सहायता प्रदान करना है।
• इस पररय िना में संचार उपकरर् के उपय र्ग पर कायणकाररय ं के क्षमता तनमाणर् के तलए कायणशालाओं का
आय िन और प्रतशक्षर् प्रदान करना शातमल है।

भूकंप आपदा ि खखम अनुक्रमर्:


• एनडीएमए ने 50 महत्वपूणत शहरों और 1 वजले भूकंपीय क्षेत्र IV और V के वलए यह पहल की है।
• इस पररयोजना को अंिरातष्ट्रीय सूचना प्रौद्योवर्गकी संथथान द्वारा कायातखन्वि वकया जाएर्गा। अनुक्रमण उपयुक्त आपदा
शमन उपायों को लार्गू करने के वलए बड़ी संख्या में शहरों में समग्र जोखिम की िुलना और शहरों की प्राथवमकिा में
िुलना के वलए उपयोर्गी होर्गा।

प्रारं तभक चेतावनी प्रसार प्रर्ाली:


• यह प्रणाली वडवजटल मोबाइल रे वडयो, थथान आधाररि अलटत वसस्टम, दू र से संचावलि सायरन वसस्टम और यूवनिसतल
र्गेटिे जैसी प्रौद्योवर्गवकयों को एकीकृि करिी है।
• वसस्टम राज्य, वजला और ब्लॉक स्तरों से एक साथ चेिािनी संचार को प्रसाररि करने में मदद करिा है , जैसे संदेश,
आिाज, सायरन , आवद।

केस स्टिी : ओतिशा


• ओतिशा राज् आपदा शमन प्रातधकरर् (OSDMA) ने क्षेत्रीय एकीकृत मल्टी-हििण अली वातनिंर्ग तसस्टम
(RIMES) के साथ तमलकर “SATARK” नामक एक वेब और िाटण फ न-आधाररत प्लेटफॉमण तवकतसत
तकया है (िायनातमक ररस्क नॉलेि पर आधाररत आपदा ि खखम सूचना का आकलन, टर ै तकंर्ग और अलटण
करने की प्रर्ाली । ि बेहतर आपदा प्रबंधन के तलए हीट वेव, लाइटतनंर्ग, एग्रीकल्चर ररस्क (सूखा), बाढ
तनर्गरानी, समुद्र की राज् सूचना और सुनामी ि खखम, भूकंप की तनर्गरानी, चक्रवात / तूफान िैसी तवतभन्न
खतर ं के तलए वास्ततवक समय की घडी, अलटण और चेतावनी की िानकारी प्रदान करने के तलए एखप्लकेशन
क तवकतसत तकया र्गया है।
• ओतिशा दे श का पहला राज् है तिसने अली वातनिंर्ग तिसेतमनेशन तसस्टम (EWDS) लार्गू तकया है। इसका
उद्दे श्य राज्, तिला और ब्लॉक स्तर ं से समुदाय ं क आपदा चेतावनी के प्रसार की मौिूदा असमानता क

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दू र करने के तलए एक फुलप्रूफ संचार प्रर्ाली की स्थापना करना है। यह राज् के छह तटीय तिल ं के 22
ब्लॉक ं में 1205 र्गांव ं क शातमल करता है , ि चक्रवात, बाढ और सुनामी िैसी िल-मौसम संबंधी आपदाओं
से ग्रस्त हैं।

उपग्रह:
• भारि ने विवभन्न पृथ्वी अिलोकन उपग्रहों, आपदा विवशष्ट् उपग्रहों को लॉन्च करके उपग्रह प्रौद्योवर्गवकयों में अपनी
क्षमिाओं को सावबि वकया है।
• इन उपग्रहों का उपयोर्ग चक्रिाि, र्गमी की लहरों, शीि लहरों जैसी आपदाओं के शुरुआिी विकास के वलए वकया
जािा है।
• आपदाओं के दौरान भी उपग्रह आपदा प्रभाविि क्षेत्रों, संचार नेटिकत, संभाविि आश्य क्षेत्रों की पहचान आवद का
प्रत्यक्ष दृश्य प्रदान करने में सहायिा प्रदान करिे हैं।

उदाहरर्:
ररस सणसैट, साउथ एतशया सैटेलाइट, ररसैट, इनसैट 3 िी। भारत RISAT के साथ िंर्गल की आर्ग का पता लर्गाने
के तलए नासा के टे रा और एक्वा उपग्रह ं का भी उपय र्ग करता है।

िर न और स शल मीतिया
• 2015 में, सोशल मीवडया प्लेटफॉमत, विटर का उपयोर्ग कई सरकारी समूहों और लोर्गों द्वारा विटर पर चेन्नई बाढ के
बारे में महत्वपूणत जानकारी (हेल्पलाइन फोन नंबर, टर े न शेड्यूल, राहि काउं टर, मौसम पूिातनुमान आवद) साझा करने
के वलए वकया र्गया था।
• यह विटर के वलए एक परीक्षण मामला बन र्गया, और सरकारी एजेंवसयों को वदिाया वक प्राकृविक आपदाओं से
संबंवधि प्रभािी संचार के वलए सोशल मीवडया प्लेटफामों का लाभ कैसे उिाया जा सकिा है।
• 2013 के उिरािंड में बाढ के दौरान, डर ोन का उपयोर्ग लापिा लोर्गों का पिा लर्गाने और इलाके को स्कैन करने के
वलए वकया र्गया िावक अवधकाररयों को प्रासंवर्गक अद्यिन जानकारी प्रदान की जा सके।
• हाल ही में, IIT मद्रास के छात्रों ने एक एआई-सक्षम डर ोन विकवसि वकया, जो अवधकाररयों को आपदा प्रभाविि क्षेत्रों
में फंसे लोर्गों की महत्वपूणत जानकारी प्रदान करने में मदद कर सकिा है।
• फेसबुक, विटर, इं स्टाग्राम जैसे सोशल मीवडया प्लेटफॉमत लोर्गों की मावकिंर्ग सेफ्टी, सुरवक्षि क्षेत्रों की पहचान, फंसे
हुए लोर्गों की ओर इशारा करिे हैं।

िीआईएस और िीपीएस:
• ततमलनािु ने TNSMART नामक एक वेब GIS आधाररत प्रर्ाली का तनमाणर् तकया है। ISRO के सहय र्ग
से तवकतसत इस एखप्लकेशन में थ्रेसह ल्ड, खतर ं के पूवाणनुमान, आपदा प्रभाव के पूवाणनुमान, सलाहकार,
प्रतततक्रया, आतद से संबंतधत मॉड्यूल हैं।
• इसी तरह, कनाणटक में राज् में वास्ततवक समय की तनर्गरानी और आपदाओं के संचार के तलए एक िीपीएस
सक्षम प्रर्ाली तवकतसत की र्गई है। भारत में, सरकार ने आपदाओं के दौरान मदद सुतनतश्चत करने के तलए
तितिटल प्रौद्य तर्गतकय ं के उपय र्ग क प्र त्सातहत तकया है। उदाहरर् के तलए, तितिटल इं तिया एक्शन ग्रुप
(DIAG) ने हाल ही में प्रभावी आपदा प्रबंधन के तलए IoT का उपय र्ग करने पर एक श्वेत पत्र िारी तकया है ।

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इं टरनेट :
• इं टरनेट की क्षमिा काफी कम समय के भीिर दे श के दू रथथ कोने में भी लािों लोर्गों िक पहुंचने की है। आजकल
इं टरनेट उपग्रह प्रौद्योवर्गकी के माध्यम से प्रदान वकया जािा है , इस प्रकार यह आपदाओं के दौरान भी समय की
कनेखक्टविटी प्रदान करिा है।
• इं टरनेट के पहुंच का उपयोर्ग फंसे हुए लोर्गों, सबसे अवधक प्रभाविि क्षेत्रों, सूचना के प्रसार, जार्गरूकिा सृजन, भीड़-
भाड़ आवद की पहचान करने के वलए वकया जा सकिा है।

केस स्टिी : केरल


केरल राज्य के आईटी वमशन ने एक आपदा प्रबंधन मंच विकवसि वकया है और इसे होस्ट वकया र्गया है और उपलब्ध
कराया र्गया है जो वक URL www.keralarescue.in पर उपलब्ध है। यह 2018 में बाढ के पहले वदन से 12 र्ंटे िक बना
रहा था।
इस स्टडी आधाररि बचाि अनुरोधों को स्वचावलि रूप से भू-वनदे शांक को शावमल करने के वलए बनाया र्गया था और
इस पोटत ल में लोर्गों द्वारा प्रदान की र्गई भू-टै र्ग जानकारी बचाि कायों के दौरान बचाि टीमों के वलए काम भी आई।
प्रत्येक आपदा के साथ, कई सबक सीिने को वमलिे हैं। भारि को प्रत्येक आपदा के दौरान दे िी जाने िाली सिोिम
िरीको का दस्तािेजीकरण करने और यह सुवनविि करने की आिश्यकिा है वक इन्हें आधुवनक ई-लवनिंर्ग टू ल के साथ
वमलकर ज्ञान प्रबंधन मंच के रूप में कैप्चर वकया जाए, िावक प्रत्येक राज्य एक-दू सरे से सीि सकें और उन थथानों पर
उवचि व्यिथथा कर सकें भविष्य की आपदाओं से वनपटने के वलए िैयार भी हो सके ।

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अध्याय- 5 आपदा प्रबं धन पर राष्ट्रीय नीति 2009

आपिा प्रबंधि पर राष्ट्रीय िीदि 2009:


दृतष्ट्क र् :
विवभन्न स्तरों पर रणनीविक भार्गीदारी के वनमात ण पर जोर दे ने के साथ आपदा प्रबंधन के वलए एक समग्र और एकीकृि
दृवष्ट्कोण विकवसि वकया जाएर्गा। नीवि को रे िांवकि करने िाले विषय हैं :
• नीवि, योजनाओं और वनष्पादन के अंविम मील एकीकरण सवहि समुदाय आधाररि डी एम।
• सभी क्षेत्रों में क्षमिा विकास वनमातण ।
• वपछली पहल और सिोिम प्रथाओं का समेकन।
• राष्ट्रीय और अंिरातष्ट्रीय स्तर पर एजेंवसयों के साथ सहयोर्ग।
• बहु-क्षेत्रीय िालमेल थथावपि करना ।

उद्दे श्य :
आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीवि के उद्े श्य हैं:
• ज्ञान, निाचार और वशक्षा के माध्यम से सभी स्तरों पर रोकथाम, िैयारी और सुव्यिखथथि संस्कृवि को बढािा दे ना।
• प्रौद्योवर्गकी, पारं पररक ज्ञान और पयातिरणीय खथथरिा के आधार पर शमन उपायों को प्रोत्सावहि करना।
विकास की योजना बनाने की प्रवक्रया में मुख्य आपदा प्रबंधन।
• एक सक्षम वनयामक िािािरण और एक अनुपालन शासन बनाने के वलए संथथार्गि और िकनीकी-कानूनी ढांचे की
थथापना।
• आपदा जोखिमों की पहचान, मूल्ांकन और वनर्गरानी के वलए कुशल िंत्र सुवनविि करना।
• सूचना प्रौद्योवर्गकी समथतन के साथ उिरदायी और असफल-सुरवक्षि संचार द्वारा समवथति समकालीन पूिात नुमान और
प्रारं वभक चेिािनी प्रणाली विकवसि करना।
• समाज के कमजोर िर्गों की जरूरिों के प्रवि दे िभाल के साथ कुशल प्रविवक्रया और राहि सुवनविि करना।
• सुरवक्षि रहने को सुवनविि करने के वलए आपदा लचीला संरचनाओं और वनिास थथान के वनमातण के अिसर के रूप
में पुनवनतमातण का काम करना।
• आपदा प्रबंधन के वलए मीवडया के साथ एक उत्पादक और सवक्रय भार्गीदारी को बढािा दे ना।

मुद्दे :
• अद्यिन की कमी और प्रकृवि में निीनिा का ना होना ।
• नीवि वनमातण में समखन्वि और सुसंर्गि दृवष्ट्कोण का अभाि होना ।
• नीवि 2009 में िैयार की र्गई थी, इसवलए यह हाल की और उभरिी आपदाओं जैसे शीि लहरों और र्गमी की लहरों
को शावमल नहीं करिी है ।
• नीवि उन जलिायु आपदाओं को नहीं शावमल करिी है जो जलिायु पररिितन से उत्पन्न होिे हैं।

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अध्याय-6 आपदाओ ं के सं द भण में हुए वतण मान तवकास

तवश्व आपदा ि खखम सूचकांक


• भारि को विि ि खखम सूचकांक में 77िां थथान प्राप्त हुआ है , द्वीप राज्य िानुअिु (Island state of Vanuatu) का
इस सूचकांक में प्रथम थथान है ।

ररप टण के बारे में


• विि जोखिम ररपोटत , दे श के आपदा जोखिम के संदभत में बुवनयादी ढांचे की भूवमका का विश्लेषण करिी है ।
• इस सूचकांक की र्गणना स्टु टर्गाटत वििविद्यालय (University of Stuttgart) द्वारा की जािी है जो 171 दे शों को
प्राकृविक ििरों के प्रवि संिेदनशीलिा के अनुसार रैं क दे िा है ।

आपदा प्रततर धी संरचना:


भारत सरकार ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के आपदा ि खखम न्यूनीकरर् कायाणलय (United Nations Office for
Disaster Risk Reduction- UNISDR) के सहय र्ग से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रातधकरर् (NDMA) के अंतर्गणत
आपदा प्रततर धक संरचना (Disaster Resilient Infrastructure -DRI) पर द तदवसीय अंतराणष्ट्रीय कायणशाला
आय तित की।
पृष्ठभूतम:
• आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के वलए सेंदई फ्रेमिकत (Sendai Framework ) (2015-2030) DRR में वनिेश
और "वबल्ड बैक बेटर" (“build back better” ) हेिु प्राथवमकिा के आधार पर पुनवनतमातण करिा है ।
• भारि आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेिु सेंडाइ फ्रेमिकत के आधार पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन पर योजना बनाने िाला
प्रथम दे श है ।
• संयुक्त राष्ट्र कायातलय के आपदा जोखिम न्यूनीकरण (UNISDR) ररपोटत के अनुसार भारि को, वनिावसयों के विथथापन
के आधार पर विि का सबसे अवधक आपदा संिेदनशील दे श र्ोवषि वकया र्गया है ।

• आपदा जोखिम न्यूनीकरण के वलए िैविक मंच(Global Platform for Disaster Risk Reduction GPDRR):

• सेंडाइ फ्रेमिकत कायातन्वयन ,रणनीविक सलाह, समन्वय और प्रर्गवि की समीक्षा के वलए एक िैविक मंच है।
• भारि ने मैखक्सको के कैनकन(Cancun, Mexico) में आयोवजि पांच वदिसीय GPDRR वशिर सम्मेलन में भार्ग वलया।
इसमें राज्यों के प्रमुि प्रविवनवध, मंवत्रयों, मुख्य कायतकारी अवधकाररयों, विशेषज्ञों आवद ने भार्ग वलया।

संयुक्त राष्ट्र सासाकावा पुरस्कार (UN SASAKAWA Award):
• यह 2017 में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के िैविक मंच द्वारा जारी वकया र्गया था; यह पुरस्कार वद्विावषतक रूप से उन
योजनाओं को प्रदान वकया जािा है वजन्होंने जीिन की रक्षा एिं िैविक आपदा के दौरान मृत्यु दर को कम करने की
वदशा में महत्वपूणत योर्गदान वदया है ।

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राष्ट्रीय आपदा ि खखम सूचकांक (National Disaster Risk Index) :
• भारि के केंद्रीय र्गृह मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र विकास कायतक्रम(United Nations Development Programme
UNDP) के समथतन से पहली बार राष्ट्रीय आपदा जोखिम सूचकांक िैयार वकया र्गया है ।
• इस सूचकांक ने 640 वजलो एिं UT में राज्यों की आवथतक कवमयों सवहि संकट का भी मानवचत्रण वकया है ।
• इस सूचकांक के प्रमुि कारक जनसंख्या ,कृवष ,पशुधन एिं पयातिरण जोखिम है ।
• इसका उपयोर्ग समग्र आपदा स्कोरकाडत (composite disaster scorecard DSC) िैयार करने के वलए वकया जाएर्गा।
• यह सूचकांक भारि के सें दाइ फ्रेमिकत के प्रवि प्रविबद्धिा के अनुरूप है।

• उत्तर 24 परर्गना
• उच्च ि खखम वाले तिले: • पुर्े
• दतक्षर् 24 परर्गना

• महाराष्ट्र
• उच्च जोखिम िाले राज्य: • पविम बंर्गाल
• उिर प्रदे श

वैतश्वक मूल्ांकन ररप टण (Global Assessment Report GAR):


• आपदा जोखिम न्यूनीकरण (GAR) पर िैविक मूल्ांकन ररपोटत लांच की र्गई है।
• यह ररपोटत वद्विावषतक रूप से संयुक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम न्यूनीकरण (UNDRR) कायात लय द्वारा प्रकावशि की
जािी है, यह राष्ट्रों के आपदा जोखिम से संबंवधि साितजवनक और वनजी विज्ञान एिं अनुसंधान के योर्गदान का
पररणाम है।

पररर्ाम:
• िैविक आवथतक हावन का 40% भार्ग एवशया प्रशांि क्षेत्र के चरम जलिायु पररिितन के कारण होिा है वजसमें मुख्यिया
जापान ,चीन ,कोररया एिं भारि जैसी कुछ सबसे बड़ी अथतव्यिथथा सखम्मवलि है।
• यतद दे श वातिणक रूप से DRR में तनवेश ना करें त सकल घरे लू उत्पाद में 4% तक का आतथणक नुकसान
अनुमातनत है।

सेन्दई फ्रेमवकण (2015-30)

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• आपदा ि खखम न्यूनीकरर् के तलए सेंदाइ फ्रेमवकण (2015-2030) क 18
माचण, 2015 में िापान के सेंिाइ में हुए तीसरे संयुक्त राष्ट्र तवश्व सम्मेलन में
अपनाया र्गया था।
• यह संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुरोध पर सं युक्त राष्ट्र के आपदा जोखिम
न्यूनीकरण कायातलय द्वारा समवथति माचत 2012 से प्रारं भ हुई वहिधारक परामशों
और जुलाई 2014 से माचत 2015 िक अंिर-सरकारी िािातओं का पररणाम है ।
• सेंिाइ फ्रेमवकण के अग्रदू त ने इसे ह्य र्ग फ्रेमवकण फॉर एक्शन (Hyogo
Framework for Action HFA) 2005-2015 के तलए "उत्तरातधकारी साधन"
के रूप में वतर्णत तकया है : ि राष्ट्र और समुदाय ं की आपदाओं की खस्थतत हेतु सामर्थ्णवान बनाएर्गा।
• िषत 2015 के बाद विकास के संदभत में सेंदाई फ्रेमिकत, DRR (SFDRR या Sendai Framework) द्वारा अपनाया र्गया
प्रथम अंिरराष्ट्रीय समझौिा है , वजसका उद्े श्य आपदा में कमी एिं आपदा को दू र करने हेिु व्यापक आपदा जोखिम
प्रबंधन के संदभत में विि स्तर पर वनविि बदलाि के संकेि प्रदान करना है।
• यह दृवष्ट्कोण एकीकृि उपायों के कायातन्वयन के आधार पर आने िाली आपदाओं से बचने िथा उपखथथि आपदा
संकट को कम करने हे िु समग्र लक्ष्य वनधातररि करने के वलए समथतन करिा है। DRR के लक्ष्यों से अपेवक्षि पररणाम-
नई आपदाओं को आने से रोकने के वलए लक्ष्य वनधात ररि करना, मौजूदा आपदाओं को वनयंवत्रि करना । इसके
अविररक्त DRR का कायत क्षेत्र संबंवधि विवभन्न पयातिरणीय िकनीकी और जैविक संकटों, जोखिमों सवहि प्राकृविक
एिं मानि जवनि ििरो पर ध्यान केंवद्रि करने हेिु व्यापक वकया र्गया है।
• सेंदइ फ्रेमिकत, जलिायु पररिितन और आपदा जोखिमों के बीच अंिर-संबंधों को स्वीकार करिा है। जलिायु पररिितन
से उत्पन्न होने िाली आपदाएं आिृवि और िीव्रिा दोनों में बढ रही है।

सेंदाई फ्रेमिकत 2030 के पिाि आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में आर्गे का मार्गत प्रशस्त करिा है ।

सेंिई फ्रेमवकण द्वारा तकए र्गए कुछ प्रमुख कायण :


• पहली बार लक्ष् ं क र्गतततवतधय ं और कायों के आधार पर नही ं अतपतु लक्ष् ं के पररर्ाम के आधार पर
पररभातित तकया र्गया।
• आपदा जोखिम को कम करने के वलए यह मुख्य रूप से सरकारों पर ध्यान केंवद्रि करिा है वजसमें मुख्य रुप से
आपदा जोखिम शासन को मजबूि करने के सुझाि पर ध्यान वदया जािा है ।
• यह पूित की भांवि आपदा प्रबंधन पर नहीं अवपिु आपदा जोखिम प्रबंधन पर जोर दे िा है वजसके अंिर्गति जोखिम के
अंिवनतवहि चालकों पर ध्यान केंवद्रि करके आपदा जोखिम प्रबंधन को संबोवधि वकया जािा है।
• यह सभी आपदाओं को लर्गभर्ग समान महत्त्व दे िा है और केिल प्राकृविक ििरों को ही नहीं अन्य ििरों को भी
महत्त्व दे िा है ।
• सामावजक सुविधा के अविररक्त यह मान्यिाओं के आधार पर पयातिरणीय पहलुओं पर भी ध्यान दे िा है जो यह बिािा
है वक आपदा को कम करने के वलए एकीकृि पयातिरण और प्राकृविक संसाधन प्रबंधन दृवष्ट्कोण के कायातन्वयन की
आिश्यकिा है
• आपदा ि खखम पहले की तुलना में अतधक नीततर्गत तचंता के रूप में उभरा है ि स्वास्थ्य, तशक्षा सतहत अन्य
क्षेत्र ं में कटौती का कारर् है ।

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सेंदई फ्रेमवकण के तहत चार प्राथतमकताएं और सात लक्ष्
1. आपदा जोखिम को समझना
2. आपदा जोखिम प्रबंधन के वलए आपदा जोखिम शासन को मजबूि करना
3. आपदा जोखिम को कम करने के क्षेत्र में वनिेश
4. प्रभािी प्रविवक्रया हेिु िैयारी एिं “वबल्ड बैक बेटर” (“Build Back Better”) के अंिर्गति पुनवनतमातण द्वारा आपदा संबंधी
व्यिथथाओं को बेहिर करने का प्रयास करना

भारि, सेंदई फ्रेमिकत का 15 िषत के वलए हस्ताक्षरकिात है जो एक स्वैखच्छक र्गैर बाध्यकारी समझौिा है | वजसका यह
मानना है वक आपदा जोखिम को कम करने में राज्य की भूवमका प्राथवमक होिी है परं िु इस वजम्मेदारी को थथानीय
सरकार, वनजी क्षेत्र सवहि अन्य वहिधारकों द्वारा साझा वकया जाना आिश्यक है | भारि सेंदई फ्रेमिकत द्वारा वनधातररि
साि िैविक लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूणत योर्गदान दे र्गा ।

सेंदाइ फ्रेमिकत के साि लक्ष्य:


1) आं वशक रूप से िैविक आपदा मृत्यु दर को 2030 िक कम करना ; 2020-30 के दशक में प्रवि 100,000 व्यखक्तयों
में होने िाली िैविक आिश्यक आपदा मृत्युदर को 2005-15 के दशक की िुलना में कम करने का लक्ष्य वनधातररि
वकया र्गया
2) 2005-2015 की अिवध की िुलना में 2020-2030 के दशक में िैविक स्तर पर प्रवि एक लाि व्यखक्तयों की संख्या
में आपदा प्रभाविि लोर्गों के औसि आं कड़े को कम करने का लक्ष्य रिा र्गया है ;
3) वैतश्वक सकल घरे लू उत्पाद (GDP) के संबंध में 2030 तक प्रत्यक्ष आपदा आतथणक नुकसान क कम करना;
4) महत्वपूणत बुवनयादी ढांचे एिं बुवनयादी सेिाओं की सुविधा पहुंचाने के साथ-साथ स्वास्थ्य एिं शैवक्षक सुविधाओं की
आपदा क्षवि को कम करना।
5) 2020 तक राष्ट्रीय एवं स्थानीय आपदा ि खखम न्यूनीकरर् के संदभण में रर्नीतत तैयार करने वाले दे श ं की
संख्या में वृखर्द्;
6) 2030 िक िितमान फ्रेमिकत के कायातन्वयन के वलए विकासशील दे शों के राष्ट्रीय कायों को पूणत करने हेिु थथाई समथतन
के माध्यम से अंिरातष्ट्रीय सहयोर्ग प्रदान करना;
7) 2030 िक आपदा संकट की चेिािनी प्रणाली में विकास करना।

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सेंदई फ्रेमवकण पर भारत की कारण वाई:
• जून 2016 में, भारि के प्रधानमंत्री ने सेंदई प्राथवमकिाओं को ध्यान में रिकर “राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना” शुरू
की है।
• क्षेत्रीय स्तर पर, भारि ने निंबर 2016 में सेंदई फ्रेमिकत को अपनाने के बाद आपदा जोखिम न्यूनीकरण में प्रथम
एवशयाई मंवत्रस्तरीय सम्मेलन की अध्यक्षिा की वजसने एवशया प्रांि के 50 से अवधक दे शों को एक साथ एकीकृि
वकया एिं सेंदई फ्रेमिकत के कायातन्वयन हेिु एवशयाई क्षेत्रीय योजना का समथतन वकया र्गया ।
• टारर्गेट ए (Target A) के संदभत में भारि विवभन्न संकट के अंिर्गत ि होने िाले थथावनक और अथथाई आपदा मृत्यु दर
के पैटनत का विश्लेषण कर रहा है और इन आपदाओं से होने िाली मौिों को कम करने के वलए ित्कावलक प्रयास भी
कर रहा है ।
• भारि 2020 िक योजनाओं और रणनीवियों के विकास के माध्यम से सेंदई फ्रेमिकत के टारर्गेट E को प्राप्त करने की
वदशा में है । 7 मई 2017 को, भारि ने संचार, मौसम पूिातनुमान, प्राकृविक समथतन और सुधार करने के उद्े श्य से
दवक्षण एवशया भूखथथर संचार उपग्रह लॉन्च वकया था । टारर्गेट F और G के प्रवि प्रविबद्धिा की भािना को प्रदवशति
करने हेिु भारि में दवक्षण एवशयाई दे शों के साथ संसाधन मानवचत्रण, आपदा सूचना हस्तांिरण आवद कायत वकए र्गये
हैं ।
• भारि सेंदई वसद्धांिों को राष्ट्रीय फ्लैर्गवशप कायतक्रम की मुख्यधारा में शावमल कर रहा है।
• DRR प्रर्गवि पर है और इस के संदभत में हमने अन्य दे शों के साथ सहयोर्ग और अनुभिों के माध्यम से जो कुछ भी
सीिा है उसे अन्य दे शों के साथ साझा करने हेिु अिसरों की िलाश कर रहे हैं ।

सतत तवकास लक्ष् (Sustainable Development Goals -SDGs) और आपदा लचीलापन:


• 25 वसिंबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा SDG के 17 िैविक लक्ष्यों और आपदा संबंवधि 169 टारर्गेट को
एकीकृि करके पृथ्वी पर र्गरीबी समाप्त करने , आपदाओं से रक्षा करने एिं सभी लोर्गों के वलए शां विपूणत,
समृखद्धपूणत एिं आनंदमई जीिन यापन हेिु एक साितभौवमक आहृिान हुआ।
• 17 लक्ष्य, सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (Millennium Development Goals -MDGs) की सफलिाओं को सुवनविि
करिे हैं वजसके अंिर्गति जलिायु पररिितन, आवथतक असमानिा, निाचार, संिुवलि िपि, शांवि और न्याय जैसे अन्य
क्षेत्र भी सखम्मवलि है ।

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• सभी लक्ष्य आपस में जुड़े हैं और एक लक्ष्य की पूवित दू सरे लक्ष्य से पूणतिा से जुड़ी हुई है ।
• सिि विकास (Sustainable Development) और आपदा संकट न्यूनीकरण (DRR) एक दू सरे से कुछ हद िक
संबंवधि है । एक बड़ी आपदा र्टना (भूकंप, िूफान, सुनामी या भूस्खलन) िषों की कड़ी मेहनि से वकए र्गए विकास
को एक झटके में नष्ट् कर सकिी है ।
• एक "िनािपूणत" र्टना (अथाति सूिा, समुद्र के स्तर में िृखद्ध, और भूर्गभत जल में लिणिा जैसी आपदा) भी दीर्तकावलक
सामावजक-आवथतक विनाश का कारण बन सकिी है ।
• प्राकृविक संकट एिं मानि जवनि भेद्यिा के पररणाम स्वरूप जलिायु पररिितन आपदा संभािनाओं के र्गुणक के रूप
में कायत करिा है ।
• जलिायु पररिितन से चरम मौसम की र्टनाओं की आिृवि और र्गंभीरिा में िृखद्ध होिी है (िूफान, सूिा, र्गमी की
लहरें और िं ड "स्नैप्स" इत्यावद)। इस िरह की सभी र्टनाओं का प्रभाि उन आपदाओं के साथ आिा है जो उस क्षेत्र
में रहने िाले लोर्गों को पहले से प्रभाविि कर रही है ।
• SDG लक्ष्य प्राप्त होने की संभािनाएं कम है क्ोंवक आपदाएं आवथतक विकास और सामावजक प्रर्गवि को कमजोर कर
रही हैं ।
• कोई भी दे श या क्षेत्र प्राकृविक ििरो के प्रभािों से प्रविरवक्षि नहीं है वजसमें से कुछ दे श अथिा क्षेत्र जल- मौसम-
जलिायु पररिितन की आिृवि और िीव्रिा के प्रभािों से पीवड़ि हैं ।
• आपदाओं के संदभत में आिश्यक एिं महत्वपूणत िैयाररयां अभी पयात प्त नहीं है अिः सभी वहिधारकों का यह मानना
है वक SDG के लक्ष्यों में पररिितनकारी बदलाि हेिु DRR को इसका अवभन्न अंर्ग बनाने की आिश्यकिा है ।

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• सेंदाइ फ्रेमिकत को लार्गू करने पर यह SDG के अन्य लक्ष्यों की प्रर्गवि में योर्गदान दे िा है बदले में SDG में होने िाली
प्रर्गवि आपदाओं का सामना करने की क्षमिा विकवसि करने में सहायिा प्रदान करे र्गा ।
• 17 लक्ष्यों के अविररक्त अनेक अन्य लक्ष्य भी है जो DRR से संबंवधि हैं । अिः सें दइ फ्रेमिकत के अंिर्गति DRR के
साथ िैविक लक्ष्यों की पूवित SDG लक्ष्यों की प्राखप्त हेिु अत्यंि आिश्यक है ।

इमारत ं की रे टर तफतटं र्ग-द की इि टू लेट इट खस्वंर्ग:

• िितमान में व्यापक रूप से भूकंप रोधी इमारिें ही विकवसि की जा रही हैं जो भूकंप के झटकों के प्रवि इिनी
संिेदनशील नहीं होिी हैं िथा भूकंप की खथथवि में इन पर ज्यादा प्रभाि नहीं पड़िा है l यह भूकंपीय क्षेत्र में भूकंप
का सामना करने हेिु वनवमत ि की जािी है परं िु भूकंप रोधी का अथत भूकंप प्रविरक्षी नहीं है अथाति उच्च पररमाण के
भूकंप की खथथवि में यह इमारिें भी र्ध्स्त हो सकिी हैं ।
• एक इमारि को भूकंप प्रविरोधी बनाने के पीछे महत्वपूणत िकनीकी यह है वक इसे क्षैविज विचलन के प्रवि िन्य एिं
लचीला बनाया जाए । भूकंप की खथथवि में जो इमारिें दृढ संरचना पर बनी होंर्गी उनके ढहने की संभािना अवधक
होर्गी जबवक यवद यह क्षैविज झटकों के प्रवि लचीली होंर्गी िो मामूली भूकंप के पिाि यह अपनी मूल खथथवि में िापस
आ जाएर्गी । इस िकनीक में भूकंप के प्रभाि को कम करने हेिु भूकंपीय ऊजात को अिशोवषि वकया जािा है ।
• इन वदनों शहरों में बनने िाली अवधकांश ऊंची इमारिें विशेष रूप से उच्च भूकंप के क्षेत्रों में एक वनविि पररमाण के
भूकंप का सामना करने के वलए प्रविरक्षी होिी हैं ।
• धन और समय के वनिेश के साथ पहले से बनी इमारिों को भी भूकंप रोधी बनाने हेिु प्रौद्योवर्गवकयों के साथ ररटर ोवफट
वकया जा सकिा है । क्ा भूकंप रोधी इमारि बनाना एक समझदारी है ?-- विश्लेषकों का कहना है वक नए भिनों की
कुल लार्गि का 15 से 25% इमारिों को भूकंप रोधी बनाने में लर्ग सकिा है दू सरी ओर ररटर ोवफवटं र्ग इससे अवधक
महंर्गा हो सकिा है ।

आपदा प्रततरक्षी शहर ं का तवकास:

• अप्रैल 2015 में भारत और नेपाल में आए भूकंप में लर्गभर्ग 10000 ल र्ग मारे र्गए थे और अत्यतधक मात्रा में
शहर की बुतनयादी संरचना नष्ट् हुई थी ।
• यह भारि के वनिावसयों के वलए एक चेिािनी है, मुख्य रूप से उिरी भार्ग के अवधक विकवसि शहरों के वलए क्ोंवक
यह वनिास क्षेत्र भूकंपीय जोन 3,4 या 5 में से वकसी एक में आिे थे, जोन 5 में भूकंप का सबसे अवधक ििरा होिा है

• भारि सरकार के अनुसार कम से कम 38 शहर उच्च भूकंप जोखिम िाले क्षेत्रों में उपखथथि हैं और उपमहाद्वीप का
60% वहस्ा भूस्खलन, भूकंप एिं अन्य प्राकृविक आपदाओं के प्रवि अत्यंि संिेदनशील है ।
• अिः िथ्ों के अनुसार भारिीय जनसंख्या का एक बड़ा िर्गत र्गरीब है और शहरों में जल्दबाजी से बने र्रों में रहिा है
जोवक जावहर है वक भूकंप प्रविरोधी नहीं होिे है इसवलए वकसी भी आपदा की खथथवि में यह क्षेत्र सबसे अवधक प्रभाविि
होंर्गे ।
• इसके अविररक्त ऐसी पररखथथवियों में सरकारी प्रविवक्रया की कमी के कारण भी अवधक प्रभाि दे िा जा सकिा है ।

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• जबवक भारि ने संपूणत दे श में शहरी बुवनयादी ढांचे का वनमातण वकया है और आने िाले कुछ िषों में 100 िाटत शहरों
का भी विकास वकया जाएर्गा िो यह आिश्यक है वक वजन शहरों अथिा बुवनयादी संरचनाओं का वनमातण वकया जा
रहा है िह क्षेत्र की थथलाकृवि , भेद्यिा और विवभन्न संकटों को ध्यान में रििे हुए वकया जाए ।
• दवक्षण एवशया में शहरीकरण पर विि बैंक द्वारा िैयार की र्गई ररपोटत के अनुसार शहरों में िीव्र जनसंख्या िृखद्ध के
कारण संकट अवधक है वजसके वलए सरकार को सुदृढ शहरी ढांचा बनाने की आिश्यकिा है और आने िाली वकसी
भी पररखथथवि के वलए नीवि वनमातिाओं को एक समग्र योजना िैयार कर लेनी चावहए ।
• यह ररपोटत उन 4 सुझािों को प्रस्ताविि करिी है वजन्हें वकसी भी दे श के नीवि वनमात िाओं को ध्यान में रिना चावहए ।
1. शहरी संकट मूल्ांकन का उपयोर्ग करके जोखिम क्षेत्रों की पहचान करें
2. महत्वपूणत और बहुउद्े शीय सुरवक्षि और लचीला बुवनयादी ढांचे की योजना बनाकर जोखिम को कम करें
3. आपदाओं के पिाि ित्काल सहायिा एिं वििीय लचीलापन प्राप्त करने हे िु एक जोखिम विि पोषण योजना
विकवसि करनी चावहए
4. कुछ ऐसे संथथानों का वनमात ण करना चावहए जो आपदा डे टा एकत्र करें साझा करें एिं उसे वििररि भी करें ।

ि खखम की पहचान करना और उसे कम करना


• आपदा प्रबंधन हेिु रणनीवि विकवसि करने में पहला कदम राष्ट्रीय और शहरी स्तर पर जोखिमों की पहचान करना
है। समुदायों की कवमयों और आपदाओं के संभाविि जोखिम की पहचान करना भी अत्यंि आिश्यक है । शहरी
जोखिम मूल्ांकन(Urban risk assessments) का उद्े श्य महत्वपूणत बुवनयादी ढां चे की पहचान करना और शुरुआिी
चेिािनी प्रणाली विकवसि करना है।
• संरचनात्मक और र्गैर संरचनात्मक उपायों को विकवसि करने के वलए कायों में जोखिम को कम करने की आिश्यकिा
है । संरचनात्मक उपायों में बांध ,नहर ,इमारिों की ररटर ोवफवटं र्ग आवद सखम्मवलि है जबवक र्गैर संरचनात्मक उपायों
में नीवियां ,कानून ,प्रथाओं ,वनमातण कोड, भूवम उपयोर्ग योजना ,साितजवनक जार्गरूकिा और जानकारी आवद
सखम्मवलि है ।
• भारि सरकार को शहरों में बुवनयादी ढांचे को पुनः विकवसि करने के वलए िैयार होने के साथ-साथ पररिहन, पानी
,स्वच्छिा और वबजली की बुवनयादी संरचना के वनमातण में कुशलिापूितक कायत करना होर्गा और केिल सीमांि लार्गिो
को बचाने हेिु उन्हें अनदे िा करने से बचना होर्गा ।
• यद्यवप कई शहरों की आबादी अत्यंि र्नी है इसवलए लािों लोर्गों को उनके र्रों और नौकररयों से दू र थथानांिररि
करना यथाथतिादी नहीं है l शहरों को पुनः वडजाइन करना होर्गा और वबखल्डं र्ग कोड को कम करने या रोकने के वलए
वबखल्डं र्ग कोड और भूवम उपयोर्ग योजना के प्रिितन को सुवनविि करना होर्गा । जोखिम िाले क्षेत्रों में संरचनाओं को
सुदृढ करने हेिु इन्हें विवभन्न ििरों के प्रवि प्रविरक्षी बनाना होर्गा ।
• तनमाणर् की पुरानी प्रथाओं क र कना ह र्गा ,शहर के अतधकाररय ं क तबखल्डं र्ग क ि लार्गू करने हेतु प्र त्साहन
प्रदान करना ह र्गा क् तं क यही आपदा के पश्चात लार्गत क कम करने में सहायता प्रदान कर सकता है ।
• योजना का वनधातरण करिे समय हमारे प्रविवनवधयों को विशाल बुवनयादी ढांचे के अंिराल को कम करना चावहए,
भविष्य के जोखिमों और ििरों पर विचार करना चावहए, और यह सुवनविि करना चावहए वक नया बुवनयादी ढांचा
आपदा प्रभाविि क्षेत्रों में नहीं बनाया र्गया है और यह समुदायों के वलए अविररक्त संकट का कारण नहीं बनेर्गा ।

ि खखम का तवत्तप िर्:

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• सरकारों एिं थथानीय अवधकाररयों को आपदा के पिाि बचाि एिं अन्य कायों के वलए विि वनमातण की आिश्यकिा
होिी है ।
• एक अवग्रम वििपोषण योजना में भंडार, आपदा वनवध, बजट आकखिकिाएं , आकखिक ऋण सुविधा और जोखिम
हस्तांिरण िंत्र सखम्मवलि होना चावहए ।
• बीमा ह ने के दौरान, पुनबीमा और पैरामीतटर क बीमा महत्वपूर्ण है , वैकखल्पक ि खखम हस्तांतरर् उपकरर् ं में
दु घणटना अनुबंध (catastrophe bonds) भी सखम्मतलत है ।
• राष्ट्रीय विनाश संकट की रणनीवि िैयार करने के वलए एक विस्तृि जोखिम मूल्ांकन आिश्यक है ।
• कई दवक्षण एवशयाई दे शों में आपदाओं के विि पोषण हेिु विवभन्न कायतक्रम विकवसि वकए र्गए हैं वजसमें से श्ीलंका
में सबसे व्यापक जोखिम वििपोषण कायतक्रम िैयार वकया र्गया है l यह विि का पहला दे श है वजसने विकास नीवि
के अंिर्गति विि बैंक के माध्यम से एक " दु र्तटना डर ा डाउन विकल्प" (“catastrophe draw down option” )विकवसि
वकया है।

आपदा ि खखम बीमा


• आपदा जोखिम बीमा एक वििीय विवध है वजसका उपयोर्ग दमनकारी उपाय के रूप में वकया जािा है।
• यह बाढ अथिा सूिा जैसी आपदाओं की खथथवि में बीमा कंपवनयों को भुर्गिान (pay-out ) हेिु बाध्य करिा है ।
• आपदा ि खखम बीमा में भूर्गभीय, मौसम संबंधी, िल तवज्ञान, िलवायु तवज्ञान, महासार्गरीय, िैतवक और
तकनीकी / मानव तनतमणत घटनाओं, या उनमें से तकसी के संय िन से उत्पन्न ह ने वाले संकट सखम्मतलत ह ते
हैं ।

आपदा ि खखम बीमा में तहतधारक

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आपदा ि खखम बीमा की आवश्यकता क् ं है?
• बीमा आजीविका और पुनवनतमातण हेिु वििसनीय और समय पर वििीय सहायिा प्रदान करिा है जो आपदा के पिाि
की अिवध में सुरक्षा को सुवनविि करिा है । पररणाम स्वरूप आपदा की खथथवि में यह लोर्गों को र्गरीबी और विनाश
की खथथवि में पहुंचने से बचािा है िथा आजीविका को चलािे हुए आिश्यक िरलिा प्रदान करिा है ।
• बीमा व्यखक्त, संथथानों और सरकार के वलए वनविििा और खथथरिा सुवनविि करने में सहायिा प्रदान करिा है ।
• िकनीकी निाचार, जैसे वक उपग्रह इमेवजंर्ग और मोबाइल फोन, एिं डर ोन ने दू रथथ और र्गरीब क्षेत्रों में होने िाले दािों
के मूल्ांकन की लार्गि को अत्यवधक कम कर वदया है वजसके कारण बीमा उत्पादों के दामों में भी कमी आई है ।
• एक विस्तृि भौर्गोवलक क्षेत्र में जोखिम को कम करने से जोखिम विविधीकरण की अनुमवि प्राप्त होिी है यह जोखिम
प्रीवमयम को कम करने में सहायिा प्रदान करिा है इस प्रकार कई दे शों के वलए इसे अपनाना आसान हो जािा है ।
• आपदा जोखिम बीमा - विशेष रूप से जमा िंत्र - दे शों को कर राजस्व की हावन और व्यय में अकिाि होने िाली िृखद्ध
से वनपटने में सहायिा प्रदान करिा है । इस प्रकार यह राजकोषीय मानकों को बनाए रिने में मदद करे र्गा।

आपदा ि खखम बीमा का तवपक्षी तकण


• बीमा न िो जोखिमों को रोक सकिा है और न ही जान-माल की हावन को रोक सकिा है।
• केिल बीमा ही पयातप्त नहीं है बीमा योजनाओं को अन्य आपदा जोखिम रणनीवियों के साथ पूरक के रूप में उपयोर्ग
करने की आिश्यकिा है , जैसे वक आपदा जोखिमों को विकास योजना में शावमल करना, शुरुआिी चेिािनी प्रणाली
थथावपि करना, जार्गरूकिा बढाना आवद।
• यह अन्य आपदा जोखिम न्यूनीकरण उपायों की िुलना में महंर्गा हो सकिा है।
• कुछ मामल ं में, र्गरीब या सबसे र्गरीब दे श ं के तलए बीमा प्रीतमयम सामथण से अतधक तनधाणररत तकया िा सकता
है।
• उपलब्धिा को सामथत के अनुसार उपखथथि साितजवनक प्रोत्साहन के माध्यम से वनधात ररि वकया जािा है ।

आपदा संकट बीमा से िुडे ि खखम


• तवश्वसनीय िानकारी तक पहुंच : जोखिम मूल्ांकन के वलए वििसनीय डे टा और संथथार्गि जोखिम मूल्ांकन
क्षमिाओं की आिश्यकिा होिी है, जो अभी भी भारि जैसे कई दे शों में सीवमि है ।

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• अतभर्गम्यता: दे श के सभी क्षेत्रों में लोर्ग कुशल िरीके से बीमा का उपयोर्ग करने में सक्षम होने चावहए।
• सामर्थ्ण: कम आय िाले र्रों के वलए प्रीवमयम सस्ती नहीं हो सकिी है।
• य िना की तवत्तीय खस्थरता: प्रत्यक्ष बीमा योजनाएं केिल व्यािसावयक रूप से व्यिहायत हो सकिी हैं अवपिु वनयवमि
रूप से प्रीवमयम भरा र्गया हो ।
• चरम मौसम की र्टनाओं की बढिी आिृवि और पररमाण के साथ जुडी असंिेदनशीलिा: जैसे-जैसे आपदाओं की
आिृवि बढ रही है बीमा कंपवनयों को बीमा उत्पादों को लॉन्च करने में अत्यवधक र्ाटे का सामना करना पड़ रहा है ।

आर्गे की राह (Way Forward)


• आपदा प्रबंधन के दृतष्ट्क र् क मन सामातिक हस्तक्षेप के अततररक्त प्रशासतनक सहायता और तचतकत्सा
हस्तक्षेप की आवश्यकता ह ती है।
• जोखिम को बेहिर ढं र्ग से प्रबंवधि करने , आवथतक और सामावजक लार्गिों को कम करने के वलए सरकारी नीविर्गि
ढांचे में सुधार सबसे महत्वपूणत आिश्यकिा है।
• हमें इस प्रकार की संभािनाओं का अनुमान लर्गाने और थथानीय कवमयों की पहचान करने में सक्षम होना चावहए और
इन सभी को आकखिकिाओं को योजना में शावमल करना चावहए, जोखिम को कम करने िाले बीमा, स्व-बीमा और
आपदा प्रविवक्रया में वनिेश करना चावहए।
• आपािकालीन व्यय के वलए बजट में एक प्रािधान होना चावहए जो आपदा की खथथवि में शमन, संकल्प और बीमा
किरे ज में सहायिा प्रदान करे र्गा ।
• जोखिम को कम करने के क्षेत्र में साितजवनक वनिेश होना चावहए । कर और व्यय की नीवियों को लचीला करने की
जरूरि है, वजससे जरूरि पड़ने पर िेजी से पुनवितिरण की अनुमवि दी जा सके।
• आपदा से पूित विदे शी वहि धारकों के साथ समन्वय ,जोखिम की खथथवि में बाहरी सहायिा प्रदान कर सकिा है साथ
ही यह आपािकालीन सहायिा की िुलना में अवधक ररटनत प्रदान करे र्गा ।

आपदा: समाचार की समसामतयकी

भारतीय सुनामी प्रारं तभक चेतावनी प्रर्ाली:


o भारिीय सुनामी प्रारं वभक चेिािनी प्रणाली (Indian Tsunami Early Warning System -ITEWS) 2007 में थथावपि
की र्गई थी और यह INCOIS, हैदराबाद द्वारा संचावलि की जािी है ।
o यह अंिररक्ष विभार्ग (Department of Space- DOS), विज्ञान और प्रौद्योवर्गकी विभार्ग (Department of Science and
Technology- DST), िैज्ञावनक और औद्योवर्गक अनुसंधान पररषद (Council of Scientific and Industrial Research
-CSIR), भारि के सिेक्षण (Survey of India -SOI) और राष्ट्रीय महासार्गर प्रौद्योवर्गकी संथथान सवहि विवभन्न संर्गिनों
(National Institute of Ocean Technology- NIOT) का एक एकीकृि प्रयास है।
o ITEWS में भूकंपीय स्टे शन, ज्वार र्गेज और 24X7 पररचालन सुनामी चेिािनी केंद्र शावमल हैं , जो सूनामी भूकंपों का
पिा लर्गाने, सुनामी की वनर्गरानी करने और सबसे संिेदनशील क्षेत्रों को समय पर सूचना प्रदान करने में सहायिा
करिा है।

दतक्षर् एतशयाई बाढ मार्गणदशणन प्रर्ाली (South Asian Flash Flood Guidance System FFGS)

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• भारि मौसम विज्ञान विभार्ग (India Meteorological Department -IMD) ने दवक्षण एवशयाई बाढ मार्गतदशतन प्रणाली
(FFGS) लॉन्च वकया है , वजसका उद्े श्य आपदा प्रबंधन टीमों और सरकारों को बाढ की िास्तविक र्टना से पहले
समय पर वनकासी योजना बनाने में मदद करना है।
• एक FFGS केंद्र नई वदल्ली में थथावपि वकया जाएर्गा, जहां मौसम मॉडवलंर्ग और सदस्य दे शों से िषात डे टा का विश्लेषण
वकया जाएर्गा।

1. वन अतग्न और तनर्गरानी:
• पयातिरण और िन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forests MoEF&CC) और विि बैंक ने जून 2018 में
“भारि में सुदृढ िन अवग्न प्रबंधन” शीषतक की एक संयुक्त अध्ययन ररपोटत प्रस्तुि की वजसमें यह बिाया र्गया वक िषत
2000 में भारि में 3% भूवम का एिं 16% कुल िन क्षेत्रफल िाले 20 वजलों के कुल िन क्षेत्र का 44% क्षेत्रफल आर्ग की
चपेट में आ चुका हैं ।
• िनावग्न चेिािनी प्रणाली (FAST 3.0) का उन्नि संस्करण जनिरी, 2019 में विशेष रूप से बड़े िन क्षेत्र में लर्गने िाली
आर्ग से संबंवधि र्गविविवध की वनर्गरानी हेिु जारी वकया र्गया था।
• यह दे िा र्गया है वक अवधकांश अवग्न प्रिण िन क्षेत्र उिर-पूिी क्षेत्र दे श के मध्य भार्ग में पाए जािे हैं।

दवक्षण एवशया क्षेत्र में क्षेत्रीय आपदा राहि िंत्र की आिश्यकिा


• दवक्षण एवशया क्षेत्र की भू-जलिायु , विवभन्न प्रकार के ििरों के संपकत में है।
• इस प्रकार के संकटों में वहमालय में आने िाले भूकंप ,मैदानी इलाकों में बाढ ,बं र्गाल की िाड़ी में और अरब सार्गर
में उत्पन्न होने िाले चक्रिाि इत्यावद सखम्मवलि हैं।परं िु इससे भी महत्वपूणत बाि यह है वक इन दे शों में से अनेक दे शों
की भौर्गोवलक संरचनाएं (भारिीय उप-महाद्वीप) नदी ,र्ावटयां इत्यावद एक समान है अथिा एक दू सरे में वमली हुई है
अिः प्राकृविक संकट प्रायः राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर जािे हैं ।

सुनामी के वलए िैयार समुदाय


• UNESCO के अंिर सरकारी महासार्गरीय आयोर्ग (Intergovernmental Oceanographic Commission ICO) (वजसे
यूनेस्को-ICO के रूप में भी जाना जािा है ) ने ओवडशा के दो समुदायों, िेंकटराहीपुर और नोवलयासाही (Venkatraipur
and Noliasahi) को सुनामी समुदाय के रूप में मान्यिा दी है।
• इस मान्यिा के साथ, भारि यूनेस्को-ICO से सम्मान हावसल करने िाला वहंद महासार्गर क्षेत्र में पहला दे श बन र्गया है।
• ओवडशा भारि का पहला राज्य है , वजसके पास ऐसे मान्यिा प्राप्त समुदाय हैं।

सुनामी के वलए िैयार:


• यह UNESCO के अंिरसरकारी महासार्गरीय आयोर्ग (IOC) द्वारा साितजवनक सामुदावयक प्रविवनवधयों एिं राष्ट्रीय
और थथानीय आपािकालीन प्रबंधन एजेंवसयों के सवक्रय सहयोर्ग के माध्यम से सुनामी के वलए पहले से िैयार होने
को बढािा दे ने हेिु प्रारं भ वकया र्गया एक सामुदावयक प्रदशतन आधाररि कायतक्रम है ।
• इस कायतक्रम का मुख्य उद्े श्य सूनामी आपाि खथथवियों के वलए िटीय समुदायों को िैयार करना एिं आिश्यक सुधार
करना है, वजससे जीिन और संपवि की हावन को कम वकया जा सके िथा UNESCO-IOC के अंिर सरकारी समन्वय

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समूह ,वहंद महासार्गर सुनामी चेिािनी और शमन प्रणाली(ICG / IOTWMS) द्वारा वनधातररि अभ्यास संकेि को
बढािा दे ने के साथ सामुदावयक िैयाररयों में एक संरचनात्मक और व्यखक्तर्गि दृवष्ट्कोण सुवनविि वकया जा सके ।
सूखा उपकरर् बॉक्स
• मरुथथलीकरण से वनपटने के वलए संयुक्त राष्ट्र सम्मे लन (United Nations Convention to Combat
Desertification UNCCD) िितमान में एक सूिा संबंवधि टू लबॉक्स का परीक्षण कर रहा है जो वकसी विशेष
भौर्गोवलक क्षेत्र के सूिा जोखिम एिं भेद्यिा का आकलन करने हेिु कुल 15 से 30 विवभन्न मापदं डों का उपयोर्ग करिा
है ।

केरल का पहला प्रततर धी कायणक्रम


• भारि सरकार, केरल सरकार और विि बैंक ने प्राकृविक आपदाओं और जलिायु पररिितन के प्रभािों से वनपटने हेिु
राज्य को आपदाओं से बचाने के वलए केरल के प्रथम प्रविरोधी कायतक्रम हेिु 250 वमवलयन अमरीकी डालर के ऋण
समझौिे पर हस्ताक्षर वकए हैं।

आिास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने दो पहल शुरू की हैं : अंर्गीकार(Angikaar), व्यिहार पररिितन के वलए एक
अवभयान और “भारि भेद्यिा एटलस” पर ई कोसत ।

• “भेद्यिा एटलस पर ई-कोसत” -- यह एक अलर्ग प्रकार का कोसत है जो प्राकृविक संकट के संबंध में जार्गरूकिा और
समझ प्रदान करिा है साथ ही विवभन्न ििरो के संबंध में उच्च भेद्यिा िाले क्षेत्रों की पहचान करने में सहायिा प्रदान
करिा है और वनिासी क्षेत्रों में विवभन्न वजलों को जोखिम स्तर के आधार पर विभावजि करिा है ।
• यह ई-कोसत आवकतटे क्चर, वसविल इं जीवनयररं र्ग, शहरी और क्षेत्रीय योजना, आिास और बुवनयादी ढांचा योजना, वनमातण
इं जीवनयररं र्ग और प्रबंधन और भिन और सामग्री अनुसंधान के क्षेत्र में प्रभािी और कुशल आपदा न्यूनीकरण और
प्रबंधन के वलए एक उपकरण होर्गा।

राष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रर्ाली (‘National Migrant Information System - NMIS)


• राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रातधकरर् (NDMA) ने राष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रर्ाली (NMIS) नामक एक ऑनलाइन
िै शब िण तवकतसत तकया है
• यह ऑनलाइन पोटत ल प्रिासी श्वमकों के संपूणत डे टा का केंद्रीय भंडारण करे र्गा िथा प्रिासी श्वमकों के सुर्गम
आिार्गमन हेिु मूल थथानों से आने जाने के वलए त्वररि अंिर राज्य संचार में सहायिा प्रदान करे र्गा ।

आपदा प्रततर धी संरचना के तलए र्गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure CDRI)
• प्रत्येक बार जब भी विि में कहीं भी प्राकृविक आपदा आिी है िो संबंवधि दे श ित्काल ही राहि प्रदान करने का पूणत
प्रयास करिे हैं परं िु आपदा रोधी बुवनयादी संरचना के वनमातण पर कोई भी ध्यान नहीं दे िा है ।
• इसी संदभत में भारि के प्रधानमंत्री ने CDRI का प्रस्ताि रिा जो एक संयोजक वनकाय के रूप में कायत करे र्गा िथा
वनमातण ,पररिहन ,ऊजात ,दू रसंचार ,एिं जल पुनरुत्थान के वलए विि भर के सिोिम अभ्यास और संसाधनों को एक
साथ एकवत्रि करे र्गा l वजससे इस प्रकार के मुख्य अिसंरचना क्षेत्रों में भिन को प्राकृविक रूप से वनवमति वकया जा
सके ।

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• सेंदई फ्रेमिकत अनुसार आपदा जोखिम न्यूनीकरण के क्षेत्र में िचत वकया र्गया प्रत्ये क $1 लर्गभर्ग $7 का लाभ दे िा है
परं िु विकासशील दे शों को विकास और आपदा न्यूनीकरण बुवनयादी ढांचे के बीच संिुलन बनाने हेिु आवथतक वनिेश
की दु विधा का सामना करना होिा है ।

• CDRI धन और प्रौद्य तर्गकी के इस अंतर क कम कर सकता है और तवकासशील दे श ं की, आपदा-र धी


इन्फ्फ्रास्टर क्चर के तनमाणर् में मदद कर सकता है।
• उदाहरण के वलए, आपदाओं के कारण होने िाली मानि मौिों को रोकने में भारि विि में अग्रणी है। संयुक्त राष्ट्र
आपदा जोखिम न्यूनीकरण (UNISDR) के कायातलय ने भारि के शून्य आकखिक दृवष्ट्कोण और प्रविवक्रयाओं की
प्रशंसा की है

तपछले विण का प्रश्न

1. भारि में सूिे के कारणों पर संवक्षप्त लेि वलिें । (UPSC 2005/2 Marks)
2. 1987-88 के भीषण सूिे से भारि के कौन से वहस्े मुख्य रूप से प्रभाविि हुए थे? इसके प्रमुि पररणाम क्ा थे ?
(88/II/6b/20)
3. भारि में बाढ की र्टनाएं अवधक क्ों होिी है ? सरकारी बाढ वनयंत्रण द्वारा वकए र्गए उपायों पर चचात करें । (85 / II
/6c / 20)
4. पूित-आपदा प्रबंधन के वलए भेद्यिा और जोखिम मूल्ांकन वकिना महत्वपूणत है ? एक प्रशासक के रूप में, िे कौन से
प्रमुि क्षेत्र हैं वजन्हें आप एक आपदा प्रबंधन में केंवद्रि करें र्गे। (UPSC mains-2013)
5. सूिे को िचत, अथथायी अिवध, धीमी शुरुआि और विवभन्न कमजोर िर्गों पर थथायी प्रभाि को दे ििे हुए आपदा की
मान्यिा दी र्गई है । राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रावधकरण के वसिंबर 2010 के वदशावनदे शों पर ध्यान दे ने के साथ, भारि में
एल नीनो और ला नीना के निीजों से वनपटने के वलए िैयाररयों के िंत्र पर चचात करें । (UPSC mains-2014)
6. भारिीय उपमहाद्वीप में भूकंपों की आिृवि बढी हुई प्रिीि होिी है। अवपिु, उनके प्रभाि को कम करने के वलए भारि
की िैयाररयों में महत्वपूणत अंिराल है। विवभन्न पहलुओं पर चचात करें (UPSC mains-2015)
7. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रावधकरण (NDMA) के वदशा-वनदे शों के संदभत में, उिरािंड के कई थथानों में बादल फटने
की र्टनाओं के प्रभाि को कम करने के वलए अपनाए जाने िाले उपायों पर चचात करें ।(UPSC mains-2016)
8. अत्यवधक िषात के कारण शहरों में आने िाली बाढ की आिृवि लर्गािार बढ रही है । ऐसी र्टनाओं के दौरान जोखिम
को कम करने के वलए िैयाररयों के वलए िंत्र को उजार्गर करें । (UPSC mains-2016)
9. वदसंबर 2004 में, सुनामी भारि सवहि 14 दे शों पर कहर लेकर आई। सुनामी की र्टना और जीिन एिं अथतव्यिथथा
पर इसके प्रभािों के वलए वजम्मेदार कारकों पर चचात करें । NDMA (2010) के वदशावनदे शों पर प्रकाश डालें । ऐसी
र्टनाओं के दौरान जोखिम को कम करने के वलए िैयाररयों के वलए िंत्र का िणतन करें । (UPSC mains-2017)
10. DRR (2015-2030) के वलए सेंदाई फ्रेमिकत पर हस्ताक्षर करने से पहले और बाद में आपदा जोखिम न्यूनीकरण
(डीआरआर) के वलए भारि द्वारा वकए र्गए विवभन्न उपायों का िणतन करें । यह ढांचा “हयोर्गो फ्रेमिकत फॉर
एक्शन”(‘Hyogo Framework for Action), 2005 से अलर्ग कैसे है ? (UPSC mains 2018)
11. लोर्गों पर आपदा के प्रभाि एिं इसके ििरे को पररभावषि करने के वलए भेद्यिा एक आिश्यक ित्व है। कैसे और
वकन िरीकों से हम आपदाओं की चपेट में आ सकिे हैं ? आपदाओं के संदभत में विवभन्न प्रकार की भेद्यिा पर चचात
करें । (UPSC mains-2019)

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12. आपदा िैयारी वकसी भी आपदा प्रबंधन प्रवक्रया में पहला कदम है। बिाएं वक जोवनंर्ग और मैवपंर्ग भूस्खलन के मामले
में कैसे आपदा न्यूनीकरण में सहायिा प्रदान करे र्गा? (UPSC mains-2019)

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