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राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
तुलसीदास जी ने १५७४ से अपना लेखन कार्य आरम्भ किया, और कई साहित्यिक कृ तियाँ लिखी, हालांकि उनकी सबसे महान कृ ति ‘रामचरितमानस’ (राम के कर्यों का विवरण)
नामक महाकाव्य है, इसमें सुन्दर कविताएं लिखी हुई हैं, जिनको ‘चौपाई’ के नाम से जाना जाता है, यह कविताएं के वल भगवान राम को समर्पित हैं। तुलसीदास जी ने अपने आप को
भगवान को समर्पित करके उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर बल दिया।
रचनाएँ :-
तुलसीदास द्वारा रचित कु छ अन्य महान साहित्यिक कृ तियों में दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृ ष्णावली, विनयपत्रिका और देव हनुमान की स्तुति की गई बहुत सम्मानित कविता
हनुमान चालीसा शामिल है। इनकी लघु रचनाओं में वैराग्य संदीपनी, बरवै रामायण, जानकी मंगल, रामलला नहछू , पार्वती मंगल और संकट मोचन शामिल हैं।
साहित्यिक कृ तियां
भाषा-शैली :-
तुलसी को ब्रज तथा अवधी पर समान अधिकार प्राप्त है। उन्होंने रामचरितमानस की रचना अवधी में की है और विनयपत्रिका ब्रज में उनकी भाषा इतनी सरस है कि आज भी उनकी कविता
पाठकों का कं ठहार बनी हुई है। उन्होंने महाकाव्य भी लिखा और मुक्तक छंद भी लिखे। उनके गीत संगीत की कसौटी पर खरे उतरते हैं। तभी ये गायकों को प्रिय हैं।
अनुप्रास तो उनकी प्रत्येक पंक्ति में बिखरा पड़ा है। दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित्त और सवैया उनके प्रिय छंद हैं।
काव्यांश (१)
इन पंक्तियों में श्री राम परशुराम जी से कह रहे हैं कि – हे नाथ! शिवजी के धनुष को तोड़ने की शक्ति तो के वल आपके दास में ही हो सकती है। इसलिए वह आपका कोई दास
ही होगा, जिसने इस धनुष को तोडा है। क्या आज्ञा है? मुझे आदेश दें। यह सुनकर परशुराम जी और क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि सेवक वही हो सकता है, जो सेवकों
जैसा काम करे। यह धनुष तोड़कर उसने शत्रुता का काम किया है और इसका परिणाम युद्ध ही है। उसने इस धनुष को तोड़कर मुझे युद्ध के लिए ललकारा है, इसलिए वो मेरे
सामनेआए।
परशुराम जी श्री राम से कहते हैं,जिसने भी शिवजी के धनुष को तोडा है, वह इस स्वयंवर को छोड़कर अलग खड़ा हो जाए, नहीं तो इस दरबार में उपस्थित सारे राजाओं को
अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है। परशुराम के क्रोध से भरे स्वर को सुनकर लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं कि हे मुनिवर! हम बचपन में खेल-खेल में ऐसे
कई धनुष तोड़ चुके हैं, तब तो आप क्रोधित नहीं हुए। परन्तु यह धनुष आपको इतना प्रिय क्यों है? जो इसके टू ट जाने पर आप इतना क्रोधित हो उठे हैं और जिसने यह
धनुष तोडा है, उससे युद्ध करने के लिए तैयार हो गए हैं। परशुराम जी कहते हैं, हे राजपूत (राजा के बेटे) तुम काल के वश में हो, अर्थात तुम में अहंकार समाया हुआ है और
इसी कारणवश तुम्हें यह नहीं पता चल पा रहा है कि तुम क्या बोल रहे हो। क्या तुम्हें बचपन में तोड़े गए धनुष एवं शिवजी के इस धनुष में कोई अंतर नहीं दिख रहा? जो तुम
इनकी तुलना आपस में कर रहे हो?
काव्यांश (२)
परशुराम की बात सुनने के उपरांत लक्ष्मण मुस्कु राते हुए व्यंगपूर्वक उनसे कहते हैं कि, हमें तो सारे धनुष एक जैसे ही दिखाई देते हैं, किसी में कोई फर्क नजर नहीं आता।
फिर इस पुराने धनुष के टू ट जाने पर ऐसी क्या आफ़त आ गई है? जो आप इतना क्रोधित हो उठे हैं। जब लक्ष्मण परशुराम जी से यह बात कह रहे थे, तब उन्हें श्री राम
तिरछी आँखों से चुप रहने का इशारा कर रहे थे। आगे लक्ष्मण कहते हैं, इस धनुष के टू टने में श्री राम का कोई दोष नहीं है, क्योंकि इस धनुष को श्री राम ने के वल छु आ मात्र
था और यह टू ट गया। आप व्यर्थ ही क्रोधित हो रहे हैं।
परशुराम, लक्ष्मण जी की इन व्यंग से भरी बातों को सुनकर और भी ज्यादा क्रोधित हो जाते हैं। वे अपने फ़रसे की तरफ देखते हुए बोलते हैं, हे मूर्ख लक्ष्मण! लगता है, तुझे
मेरे व्यक्तित्व के बारे में नहीं पता। मैं अभी तक बालक समझकर तुझे क्षमा कर रहा था। परन्तु तू मुझे एक साधारण मुनी समझ बैठा है।
मैं बचपन से ही ब्रह्मचारी हूँ। सारा संसार मेरे क्रोध को अच्छी तरह से पहचानता है। मैं क्षत्रियों का सबसे बड़ा शत्रु हूँ। अपने बाजुओं के बल पर मैंने कई बार इस पृथ्वी से
क्षत्रियों का सर्वनाश किया है और इस पृथ्वी को जीतकर ब्राह्मणों को दान में दिया है। इसलिए हे राजकु मार लक्ष्मण! मेरे फरसे को तुम ध्यान से देख लो, यही वह फरसा है,
जिससे मैंने सहस्त्रबाहु का संहार किया था।हे राजकु मार बालक! तुम मुझसे भिड़कर अपने माता-पिता को चिंता में मत डालो, अर्थात अपनी मृत्यु को न्यौता मत दो। मेरे हाथ
में वही फरसा है, जिसकी गर्जना सुनकर गर्भ में पल रहे बच्चे का भी नाश हो जाता है।
सारांश
यह अंश रामचरितमानस के बाल कांड से लिया गया है। सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिवधनुष भंग के बाद मुनि परशुराम को जब यह
समाचार मिला तो वे क्रोधित होकर यहाँ आते हैं। शिव धनुष को खडित देखकर वे आपे से बाहर हो जाते हैं। राम के विनय और
विश्वामित्र के समझाने पर तथा राम की शक्ति की परीक्षा लेकर अंततः उनका गुस्सा शांत होता है। इस बीच राम, लक्ष्मण और
परशुराम के बीच जो संवाद हुआ उस प्रसंग को यहाँ प्रस्तुत किया गया है। परशुराम के क्रोध भरे वाक्यों का उत्तर लक्ष्मण व्यंग्य
वचनों से देते हैं। इस प्रसंग की विशेषता है लक्ष्मण की वीर रस से पग व्यंग्योक्तियाँ और व्यंजना शैली की सरस अभिव्यक्ति।