Professional Documents
Culture Documents
स्नेहन
स्नेहन
परिचय:
स्नेह का सामान्य अर्थ है – स्निग्ध तथा वह प्रक्रिया जिसके द्वारा
स्निग्ध किया जाता है वह स्नेहन कहलाती है |
परिभाषा
आहार के ठीक प्रकार से पाचन हेतु तथा जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाली
औषधियों द्वारा यह पाचन कर्म किया जाता है।
जैसे- पंचकोल चूर्ण, हिंग्वादि वटी, अग्नितुण्डी वटी, चित्रकादि वटी।
क्योंकि पंचकर्म हेतु निराम अवस्था आवश्यक है जिससे आम दोष को
पाचन द्वारा नष्ट करते है तथा अगले कर्म स्नेहन हेतु उपयुक्त अग्नि
प्रदीप्ती एवं पाचन शक्ति बढ़ सके ।
स्नेहन
जिस क्रिया द्वारा शरीर से स्वेद (पसीना) निकाला जाता है। वह स्वेदन है।
इससे शरीर में जकड़न, भारीपन तथा शीतता दूर होती है।
स्नेहन से जो दोष उत्क्लिष्ट होते है उन्हे स्वेदन द्वारा पृथक कर प्रधान
कर्म के द्वारा शरीर से बहार निकाल देते हैं।
प्रधान कर्म
अभ्यंग हेतु आसन - प्रत्येक अंग/अवयव पर अभ्यंग अच्छी प्रकार से
हो इसलिए अभ्यंग तथा अभ्यंग जैसीअन्य क्रिया विधियों को
निम्नोक्त सात अवस्थाओं में या आसन में आतुर को रखकर
अभ्यंग करना चाहिये।
1. पाँव सीधा रखकर बैठाकर (Sitting with legs Extended)
2. पीठ के बल लिटाकर (Supine position or Lying)
3. वामपार्श्व पर लिटाकर (Left lateral)
4. वक्ष उदर के बल लिटाकर (Prone)
5. दक्षिण पार्श्व पर लिटाकर (Right lateral)
6. पुनः पीठ के बल लिटाकर (Again Supine)
7. पुनः बैठाकर (Again Sitting with leg extened)
अभ्यंग विधि
1. स्नेहपान का अनुपान –
घृत पीने के बाद गरम जल, तेल पीने के बाद यूष, वसा और मजा पीने के बाद मंड
पीना चाहिए | अभाव में सभी स्नेहो के पीने के बाद गरम जल पीना चाहिए |
स्नेह की मात्रा तथा मान - प्रमाण