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अध्याय 3

संप्रेषण : स्वरूप से समस्या तक

संप्रेषण मनुष्य की अननवायय आवश्यकता है । यह सामाजिक िीवन का आधार

है । संप्रेषण द्वारा ही मानव समाि की संचालन प्रक्रिया संभव बनती है । इसके अभाव

में मानव समाि की कल्पना करना संभव नहीं। आि तकनीक के तीव्रगामी ववकास

के युग में ज्ञान, ववज्ञान और सूचना को लोगों तक पहुुँचाने में संप्रेषण की उपयोगगता

स्वयं ससद्ध है । साथ ही इसके समक्ष यह चन


ु ौती भी है क्रक ज्ञान, ववज्ञान और सूचना

को सरल, सग
ु म और कम से कम समय में िन सल
ु भ बनाया िाये। क्योंक्रक पररवार

से लेकर िनसमूह, राष्र या ववश्व तक के सुचारु संचालन में सफल संप्रेषण की

आवश्यकता है , इसके अभाव में सारी ्यवस्थाँुँ ग़बब़बा िाती है ।

संप्रेषण का प्रारं भ मानव िीवन के आववभायव के साथ होता है । संप्रेषण का

इनतहास कदागचत इससे भी पुराना है । पश-ु पक्षी आदद सिीव अपनी आवश्यकता

अनुसार संप्रेषण करते रहे हैं। इस प्रकार संप्रेषण की प्रक्रिया बहुत पुरानी है । आदद-

मानव इशारों और ध्वननयों के माध्यम से संप्रेषण करता था, आगे चलकर मनुष्य ने

भाषा और उसे असभ्यक्त करने वाले संकेत-गचह्नों को अपना साधन बनाया। समय

के साथ तकनीकी ववकास हुआ, संप्रेषण की प्रक्रिया में पररवतयन आया और संप्रेषण

माध्यम भी अद्यनतकृत हुँ। मनष्ु य ने संप्रेषण की प्रक्रिया अंतवैयजक्तक संप्रेषण से

प्रारं भ की, वह समूह संप्रष


े ण से आगे बढ़ती हुई आि वप्रंट, इलैक्रोननक िैसे माध्यम

से ‘ँक से अनेक तक संप्रेषण’ करने में सक्षम िन संप्रेषण तक ववकससत हो गई है ।

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इतना ही नहीं बीसवीं शती के पूवायधय में रािनीनतशास्र, मनोववज्ञान, समािशास्र से

िु़बे ववद्वानों ने अपनी आवश्यकता के अनुरूप संप्रेषण पर ्यापक कायय क्रकया

पररणाम स्वरूप आि संप्रेषण भी ँक अनश


ु ासन के रूप स्वीकृनत प्राप्त कर चक
ु ा है ।

3.1 संप्रेषण का अर्थ

संप्रेषण से तात्पयय है - भाव, ववचार, सूचना, संदेश आदद को ँक इकाई से

दस
ू री इकाई तक पहुुँचाना और प्रनतक्रिया प्राप्त करना। दहन्दी में प्रयक्
ु त ‘संप्रेषण’

शब्द अंग्रेिी के ‘Communication’ का अनुवाद है । अंग्रेिी का ‘Communication’ शब्द

लैदटन भाषा के ‘Communis’ से बना है , जिसका अथय है – सामान्य भागीदारी यक्


ु त

सूचना और उसका संप्रेषण। अथायत ् संप्रेषण ँक ऐसा प्रयास है जिसके माध्यम से ँक

्यजक्त दस
ू रे ्यजक्त के ववचारों, भावनाओं ँवं मनोवजृ त्तयों में सहभागी होता है । इस

प्रकार वे समस्त ववगधयाुँ संप्रेषण है जिसके माध्यम से ँक ्यजक्त दस


ू रे ्यजक्त को

प्रभाववत करता है । इसी प्रकार ववचारों, भावनाओं ँवं असभ्यजक्तयों के उन सभी रूपों

को संप्रेषण कहते है िो परस्पर साझेदारी के उद्देश्य की पूनतय करते है । (ड. श. ससंह

प.ृ 4)

ऑक्सफोडय डडक्शनरी में संप्रेषण का अथय इस प्रकार बताया गया है - ववचारों,

िानकाररयों आदद का ववननमय, दस


ू रों तक पहुुँचाना या बाुँटना चाहे वे मौखिक,

सलखित या संकेत में हो।i (ड. श. ससंह से उद्धृत प.ृ 6) संप्रेषण की समझ बढ़ाने के सलँ

ववद्वानों के ववचारों और पररभाषाओं का अध्ययन करना लाभप्रद होगा।

1. संप्रेषण से आशय उन समस्त साधनों से है जिसके द्वारा ँक ्यजक्त अपने

ववचारों को दस
ू रे ्यजक्त के मजस्तष्क में डालने के सलँ अथवा उसे समझाने

के सलँ अपनाता है । यह वास्तव में दो ्यजक्तयों के मजस्तष्क के बीच की

िाई को पाटने वाला सेतु है । इसके अंतगयत कहने, सुनने तथा समझने की

ँक वैज्ञाननक प्रक्रिया सदै व चालू रहती है ।ii (Allen प.ृ 144)

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2. सूचना, ववचारों और असभ्यजक्तयों को ँक ्यजक्त से दस
ू रे ्यजक्त तक

संप्रेवषत करने की कला का नाम संचार है ।iii (ड. श. ससंह से उद्धृत प.ृ 6)

प्रथम पररभाषा में संप्रेषण का संबंध उससे संबंगधत साधनों से िो़बते हुँ उसे

संप्रेषक और प्रापक के बीच संदेश का वहन करने वाली ँक वैज्ञाननक प्रक्रिया के रूप

में पररभावषत क्रकया है । दस


ू री पररभाषा में संप्रेषण को कला का दिाय ददया गया है ,

िो संप्रेषक द्वारा प्रयुक्त संप्रेषण के ववववध रूप की ओर भी इंगगत करता है ।

संक्षेप में , उपयक्


ुय त अध्ययन से यह ननष्कषय ननकलता है क्रक

(1) संप्रेषण में संप्रेषक और प्रापक के बीच अंतःक्रिया होती है ।

(2) संप्रेषण करने वाले को संप्रेषक कहा िाता है और उसे प्राप्त करने वाले को

प्रापक, ग्रहीता या श्रोता कहा िाता है ।

(3) संप्रेषण करके ँक ्यजक्त, समूह आदद अपना संदेश दस


ू रे ्यजक्त, समूह

आदद तक पहुुँचाता है ।

(4) यह संदेश भाव, ववचार, मनोवजृ त्त, सूचना आदद के रूप में संप्रेवषत होता है ।

(5) संप्रेषण की प्रक्रिया में संप्रेषक, संदेश, संचार माध्यम, प्रापक, प्रनतक्रिया िैसे

संघटक तत्व कायय करते हैं।

(6) संप्रेषण का उद्देश्य ग्रहीता के ववचार-्यवहार में पररवतयन करना है ।

3.1.1 काव्यशास्र में संप्रेषण

दहन्दी सादहत्य में भारतीय का्यशास्र के अंतगयत साधारणीकरण और पाश्चात्य

का्यशास्र में आई. ँ. ररचर्डयस के संप्रेषण ससद्धांत में संप्रेषण का का्यशास्रीय

गचंतन उपलब्ध होता है ।

भारतीय का्यशास्र में रस ससद्धांत सबसे परु ाना और ववसशष्ट है । इसके अंतगयत

साधारणीकरण की प्रक्रिया पर ववशेष बल ददया गया है । सबसे पहले ‘साधारणीकरण’

शब्द का प्रयोग भरतमुनन के नाट्यशास्र में हुआ है । भरतमुनन साधारणीकरण को ँक

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ऐसी सामाजिक प्रक्रिया मानते हैं िो केवल सहृदयी लोगों के बीच ही संपन्न हो

सकती है । बाद में आचायय भरतमुनन प्रदत्त रस सूर के चार ्याख्याताओं में से तीसरे

्याख्याता आचायय भट्ट नायक ने साधारणीकरण के ससद्धांत को प्रनतजष्ित क्रकया है ।

साधारणीकरण का अथय है सामान्यीकरण। अथायत ् साधारणीकरण की इस प्रक्रिया में

ववभावादद का ववशेषत्व समाप्त हो िाता है और ववभावादद सामान्य प्रतीत होने लगते

हैं। अथायत ् साधारणीकरण के कारण शकंु तला आदद ववशेष पार का ववशेषत्व समाप्त

हो िाता है और वह कासमनी आदद सामान्य पार के रूप में प्रतीत होने लगती है ।

भट्ट नायक साधारणीकरण को इस प्रकार पररभावषत करते हैं, “भावकत्वं

साधारणीकरणं। तेन दह ्यापारे ण ववभावादयः स्थायी च साधारणी क्रियन्ते।” अथायत ्

भावकत्व ही साधारणीकरण है । इस ्यापार से ववभावादद और स्थायी भावों का

साधारणीकरण होता है । भट्ट नायक ववभावादद के सामान्य होने को ही साधारणीकरण

मानता है । वह का्य के तीन ्यापार मानते हैं, 1) असभधा ्यापार, 2) भावकत्व

्यापार और 3) भोिकत्व ्यापार। इनमें से भावकत्व ्यापार ही साधारणीकरण है ।

वस्तत
ु ः भट्ट नायक के यह तीन ्यापार साधारणीकरण की प्रक्रिया के तीन सोपान

माने िा सकते हैं। जिसमें असभधा ्यापार से सहृदय सामाजिक नाटकादद के पारों के

संवादों से अथय ग्रहण करता है । भावकत्व ्यापार से ववभावादद सामान्य प्रतीत होने

लगते हैं और सामान्यीकृत हुँ इन ववभावादद का सहृदय सामाजिक भोिकत्व ्यापार

से रस रूप में भोग करता है । यहाुँ सहृदय के गचत्त का भी साधारणीकरण हो िाता

है ।

रसानुभूनत की इस प्रक्रिया में सहृदय (समान हृदय वाला) की भूसमका महत्वपूणय

मानी गयी है। सहृदय में संदेश को ग्रहण करने की क्षमता होनी चादहँ क्योंक्रक इसके

अभाव में साधारणीकरण स्थावपत नहीं हो सकता। सहृदय अपनी सामाजिक जस्थनत,

ज्ञान और ग्रहण करने की क्षमता से प्रभाववत रहता है । इसी के आधार पर वह प्रेवषत

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संदेश से साधारणीकृत हो सकता है । रसानुभूनत का सहृदय ही आि की संप्रेषण

प्रक्रिया का प्रापक, ग्रहीता या पािक है ।

भट्ट नायक द्वारा प्रनतजष्ित साधारणीकरण के संबंध में दहन्दी के ववद्वानों ने

अपने-अपने मत प्रकट क्रकँ हैं। इनमें से तीन महत्वपूणय मत सामने आये हैं क्रक 1)

साधारणीकरण आलंबन धमय का होता है , 2) साधारणीकरण सहृदय, पािक या श्रोता

के गचत्त का होता है और 3) साधारणीकरण कवव की अनुभूनत का होता है ।

समग्र रूप से दे िा िाँ तो साधारणीकरण की यह प्रक्रिया वस्तुतः कथ्य के

संप्रेषण पर बल दे ती है । नाटकादद में असभ्यक्त भाव, ववचार, रस आदद

साधारणीकरण की प्रक्रिया से सहृदय या पािक तक संप्रेवषत होते हैं। भट्ट नायक के

तीन का्य ्यापारों को संप्रेषण के संदभय में इस तरह समझा िा सकता है । नाटकादद

में पारों के संवाद अथायत ् भाषा पािक तक संदेश प्रेवषत करती है , भावकत्व ्यापार से

ववभावादद का सामान्यीकृत होना पािक में संदेश की समझ ननसमयत करता है और

सामान्यीकृत हुँ ववभावादद का भोिकत्व ्यापार से रस का भोग क्रकया िाना संप्रेषण

में पािक द्वारा अथय का ग्रहण क्रकया िाना है । इस तरह भट्ट नायक प्रदत्त

साधारणीकरण के तीन ्यापार वस्तुतः संप्रेषण के ही तीन चरण है , जिसके द्वारा

संदेश पािक या ग्रहीता तक पहुुँचाया िाता है ।

पजश्चम में प्लेटो, अरस्तू से लेकर उत्तर-आधनु नक युग तक का्यशास्र की

सुदीघय परं परा रही है । इस समग्र परं परा में का्य से संबंगधत ववववध ववचार और

ससद्धांत उपलब्ध होते हैं। लेक्रकन संप्रेषण पर सबसे पहले ्यवजस्थत रूप में ववचार

करने का श्रेय आई. ँ. ररचर्डयस को ही ददया िाँगा। ररचर्डयस से पहले प्रायः क्रकसी ने

का्य के संप्रेषणीय पक्ष पर ववशेष गचंतन-अध्ययन नहीं क्रकया है ।

ररचर्डयस का्य प्रेषणीयता की सरल ्याख्या प्रस्तुत करता है । वह का्य

प्रेषणीयता को कोई रहस्यमय अथवा अद्भत


ु प्रक्रिया नहीं मानता, वह इसे मन की

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सामान्य प्रक्रिया मार मानता है िो पािक के मजस्तष्क में लेिक असभप्रेत समान

अवस्था को स्थावपत करती है । ररचर्डयस के अनुसार कुछ ववशेष प्रकार की पररजस्थनतयों

में पहुुँचने पर मानव मजस्तष्क प्रायः ँक समान अनभ


ु व या भावदशा को प्राप्त करते

हैं। अथायत ् सियक ने कुछ ववसशष्ट पररजस्थनतयों में जिस भावभूसम पर पहुुँचकर का्य

सियन क्रकया था, उन ववसशष्ट पररजस्थनतयों में पहुुँचकर पािक भी यदद उसी भावभसू म

को प्राप्त करता है तो अनुभव की यह क्रिया प्रषणीयता कहलाती है । संक्षेप में ,

ररचर्डयस का मानना है क्रक कवव, कलाकार या सियक की अनुभूनतयों का भावक द्वारा

अनुभूत क्रकया िाना ही संप्रेषण हैं।

ररचर्डयस का्य की प्रेषणीयता की सफलता का आधार सियक द्वारा का्य का

प्रस्तत
ु ीकरण और पािक की ग्रहण क्षमता में दे िता है । ररचर्डयस इस बात पर बल

दे ता है क्रक का्य को संप्रेषणीय बनाने के सलँ सियक को क्रकसी भी प्रकार का प्रयत्न

नहीं करना चादहँ क्योंक्रक संप्रेषण ँक सहि और स्वाभाववक क्रिया है जिसमें क्रकसी

भी प्रकार की प्रयत्नसाध्यता रचना के सलँ घातक ससद्ध हो सकती है िबक्रक सहिता

का ननवायह पािक में समान भावदशा उपजस्थत कर सकती है । इससे रचना

अगधकागधक संप्रेषणीय बनेगी।

ररचर्डयस ने संप्रेषण के सलँ तीन बातों को अनत महत्वपूणय माना है :

1) कलाकृनत की प्रनतक्रियाँुँ ँक-सी हों,

2) वे पयायप्त रूप से ववववध प्रकार की हों और

3) वे अपनी उत्तेिनाओं द्वारा प्रेररत होने योग्य हों।

वस्तुतः पाश्चात्य का्यशास्र में ररचर्डयस ने ही पहली बार का्य की

संप्रेषणीयता को कवव-कलाकार की कसौटी का आधार माना। ररचर्डयस ने संप्रेषण को

कला का धमय माना और इस बात को स्थावपत क्रकया क्रक जिसकी रचना जितनी

अगधक संप्रेषणीय होगी वह उतना ही ब़बा कवव अथवा कलाकार माना िाँगा।

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कुल समलाकर भारतीय का्यशास्र में साधारणीकरण के रूप में संप्रेषण प्रक्रिया

का वववेचन हुआ है । भारतीय का्यशास्र के साधारणीकरण में सहृदय (पािक) की

महत्वपण
ू य भसू मका रही है वहीं पाश्चात्य का्यशास्र के ररचर्डयस के संप्रेषण ससद्धांत में

रचनाकार की प्रेषणीयता का अगधक महत्व रहा है । इस प्रकार भारतीय का्यशास्र में

संप्रेषण का वववेचन बहुत प्राचीन है वहीं पाश्चात्य का्यशास्र में यह वववेचन

आधनु नक युग की दे न है । रसानुभूनत (पाि ग्रहण) में सवायगधक महत्वपूणय सहृदय की

तुलना उत्तर-आधनु नक युग के पािक के साथ की िा सकती है । ररचर्डयस कववता /

रचना को संप्रेषण कहता है । उत्तर-आधनु नक युग में अनुवाद को रचना के समकक्ष

रिा गया है । अतः इस दृजष्ट से अनुवाद भी संप्रेषण है । इस प्रकार आधनु नकतावादी

ररचडयसय का संप्रेषण ससद्धांत आगे चलकर उत्तर-आधनु नकता के सलँ पष्ृ िभसू म तैयार

करता है ।

3.1.2 संप्रेषण और संचार में अंतर

अंग्रेिी के ‘Communication’ शब्द के पयायय रूप दहन्दी में प्रायः ‘संचार’ और

‘संप्रेषण’ िैसे दो शब्दों का प्रयोग क्रकया िाता है । दहन्दी में यह दोनों शब्द सभन्न

अथय को असभ्यक्त करते हैं। ्युत्पजत्त की दृजष्ट से ‘संचार’ शब्द संस्कृत के ‘चर’

धातु से बना है , जिसका अथय है ‘चलना’। अथायत ् इसमें संदेश संचरण करता है ।

संचरण क्रकसी माध्यम के द्वारा ही संभव होता है , िैसे - गचर आदद दृश्य, ध्वनन,

संगीत आदद श्र्य माध्यम से। संचार ँक ‘फॉमय’ है , स्वरूप है , जिसके माध्यम से

संदेश ँक स्थान से दस
ू रे स्थान तक संचररत होता है , पहुुँचता है । संदेश को ँक

स्थान से दस
ू रे स्थान तक पहुुँचने के सलँ जिन माध्यमों का उपयोग क्रकया िाता है

उन्हें संचार माध्यम कहा िाता हैं। संचार माध्यम संप्रेषक द्वारा प्रेवषत संदेश को

दस
ू रे ्यजक्त तक पहुुँचाते हैं।

संप्रेषण की प्रक्रिया संचार से पहले शुरु हो िाती है । संचार व संचार माध्यम

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संप्रेषण की प्रक्रिया के संघटक तत्व हैं , िो संप्रेषक द्वारा ननसमयत संदेश को दस
ू रे

स्थान तक ले िाने का कायय करते हैं। िबक्रक संप्रेषण में प्रेवषत संदेश को प्राप्त करने

वाला (ग्रहीता) अपनी समझ अनस


ु ार संदेश ग्रहण करता है और आवश्यकता अनस
ु ार

प्रनतपुजष्ट करता है । संप्रेषण में मानससक प्रक्रिया होती है जिसका ँक पक्ष संप्रेषक से

ि़ब
ु ा है और दस
ू रा पक्ष ग्रहीता से। इस प्रक्रिया की ग्रहीता द्वारा प्रनतक्रिया भी होती

है , जिसे उसके वतयन पररवतयन में दे िा िा सकता है और तब संप्रेषण पूणय होता है ।

संप्रेषण और संचार के अंतर की भेद रे िा तब और भी सूक्ष्म हो िाती है िब

भाषा भी संप्रेषण का रूप ले लेती है । आि का केन्रीय शब्द है - संप्रेषण। भाषा िो

अब-तक संदेश का संचरण करने वाला माध्यम मानी िाती थी, वह स्वयं ववसभन्न

माध्यमों िैसे चलभाष, रे डडयो, दरू दशयन आदद श्र्य माध्यमों द्वारा संचररत हो रही

है । इस प्रकार भाषा अब संप्रेषण है । इसी प्रकार सादहत्य संप्रेषण है , गचर, संगीत

आदद कला भी संप्रेषण है । यह सब कंटें ट है , अथायत ् ँक प्रकार का संदेश है िो ँक

स्थान से दस
ू रे स्थान तक पहुुँचता है । इसी िम में अनुवाद भी संप्रेषण है ।

3.2 संप्रेषण प्रक्रिया

संप्रेषण प्रक्रिया में संप्रेषण के माध्यम और ग्रहीता या लक्षक्षत समह


ू की

महत्वपूणय भूसमका रहती है । यदद इनमें पररवतयन होता है तो संप्रेषण की प्रक्रिया भी

पररवनतयत होती है । संप्रष


े ण प्रक्रिया का सरलतम रूप वह है जिसमें संप्रेषक अपना

संदेश प्रापक तक पहुुँचाता है । अथायत ् यहाुँ तीन तत्व महत्वपूणय है – संप्रेषक, संदेश

और प्रापक। संप्रेषण अध्ययन ववकससत होने के साथ संप्रेषण प्रक्रिया के अन्य तत्व

भी सामने आँ। अब संप्रेषण की प्रक्रिया तभी पूणय समझी िाती है िब उसकी

प्रनतक्रिया या प्रनतपुजष्ट होती है । माध्यमों में हो रहे बहु-मुिी पररवतयनों के कारण अब

संप्रेषक संदेश की सीधी असभ्यजक्त के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृनतक-भाषाई

प्रतीकों, गचह्नों का कूट भी बनाता है , जिसे प्रापक डडकोड करके संदेश ग्रहण करता

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है ।

संप्रेषण प्रक्रिया के प्रमुि सात संघटक तत्व माने गँ हैं, िो संप्रेषण को साथयक

बनाते हैं। संप्रेषण प्रक्रिया का प्रमि


ु संघटक तत्व है संप्रेषक और उसे प्राप्त करने

वाला प्रापक, ग्रहीता या श्रोता। संप्रेषक आवश्यकता अनुसार संदेश-संकेत का चन


ु ाव

करता है , ववषयवस्तु का संकलन करता है और संदेश प्रनतपाददत करता है । संदेश में

भाव, ववचार, सूचना आदद समाववष्ट होते हैं। संदेश को लक्षक्षत समूह तक पहुुँचाने के

सलँ अनुकूल माध्यम का चयन क्रकया िाता है । यह प्रक्रिया संचार माध्यम द्वारा

संपन्न की िाती है । इसी सलँ संचार उद्योग के ववकास के समय ‘माध्यम ही संदेश

है ’ की बात को स्वीकार क्रकया गया था। क्रकंतु आि संदेश और माध्यम का भेद सवय

ववददत है । संप्रेषक अपने भाव, ववचार, सच


ू ना को संप्रेवषत करने के सलँ भाषा, दृश्य,

बबंब, प्रतीक, संगीत आदद को संकेत रूप में उपयोग में लाता है , इसे संकेतीकृत करना

(Encoding) कहते हैं। संदेश संकेतीकृत करने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान

रिना आवश्यक है क्रक संकेत सही रूप में ववचार को असभ्यक्त करने योग्य हो।

इसके सलँ आवश्यक है क्रक संदेश इस प्रकार संकेतीकृत क्रकया िाँ जिसकी

पररकल्पना संप्रेषक और प्रापक दोनों के मजस्तष्क में समान रूप से संरगचत हो। इसमें

प्रापक की सामाजिक-सांस्कृनतक पष्ृ िभूसम, भाषा बोध की क्षमता, उसका अनुभव-

िगत आदद कारक महत्वपूणय भूसमका ननभाते हैं। प्रापक इसी समझ-बोध से संदेश को

अपने तरीके से पढ़ता-सुनता-समझता है । इस प्रक्रिया को संकेतवाचन (Decoding)

कहा िाता है । संप्रेषण प्रक्रिया में यह बात ध्यान दे ने योग्य है क्रक संकेतवाचन करते

हुँ प्रापक सामान्य रूप से अपनी असभरुगच के अनुसार ही संदेश को ग्रहण करता है ।

सच
ू ना प्रौद्योगगकी के ववकास से संप्रेषण प्रक्रिया में बहु-मि
ु ी पररवतयन आँ तो साथ

ही प्रापक द्वारा संदेश ग्रहण करने की प्रक्रिया में भी बदलाव आया। संदेश का बोध

हो िाने पर प्रापक प्रनतक्रिया करता है । प्रापक की प्रततक्रिया या प्रततपुष्टि से यह

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स्पष्ट होता है क्रक संप्रेषण साथयक हो पाया है या नहीं।

संप्रेषण प्रक्रिया को इस प्रकार सरलता पूवक


य समझ सकते है :

संप्रेषण प्रक्रिया में यह बात महत्वपूणय है क्रक संप्रेषक द्वारा प्रेवषत संदेश को

प्रापक अपनी समझ अनुसार ग्रहण करता है । कहने का तात्पयय है क्रक प्रापक पर

उसके ज्ञान, बौवद्धकता, समाि-संस्कृनत का प्रभाव ददिाई दे ता है । इस प्रकार संप्रेषण

प्रक्रिया भी सामाजिक-सांस्कृनतक संदभों का अनुसार करते हुँ चलती है । अतः साथयक

संप्रेषण करने के सलँ इन सभी को ध्यान में रिना आवश्यक है ।

संप्रेषण ँक सहभागी अनुभव है । इसमें प्रापक संप्रेषक के साथ संप्रेषण माध्यम

और भाषा से भी प्रभाववत होता है । अतः संदेश को पूणय रूप से असभ्यक्त करने में

सक्षम माध्यम और लक्षक्षत समूह के अनुकूल भाषा का प्रयोग करने पर ववशेष ध्यान

ददया िाना चादहँ।

3.3 संप्रेषण के प्रकार

संप्रेषण प्रक्रिया, संघटक तत्वों और माध्यम को ध्यान में रिकर संप्रेषण

ववशेषज्ञों ने संप्रेषण के प्रकार ननधायररत क्रकँ हैं। इसमें ननम्न तीन आधार पर क्रकया

गया वगीकरण सवायगधक प्रचसलत है :

 संप्रेषण प्रक्रिया में सहभागी ्यजक्तयों की संख्या के आधार पर

1. अंतः वैयजक्तक संप्रेषण

2. अंतवैयजक्तक संप्रेषण

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3. समूह संप्रेषण

4. िनसमूह संप्रेषण

 संप्रेषण की भाषा के आधार पर

1. शाजब्दक संप्रेषण

2. अशाजब्दक संप्रेषण

 संप्रेषण माध्यम के आधार पर

1. मुदरत माध्यम

2. श्र्य संप्रेषण

3. दृश्य संप्रेषण

4. श्र्य-दृश्य संप्रेषण

इनका संक्षक्षप्त पररचय ननम्न प्रकार है :

3.3.1 अंतः वैयष्ततक संप्रेषण

संप्रेषण के इस प्रकार की पररगध ँक ्यजक्त तक सीसमत है । अथायत ् यहाुँ

संप्रेषक और ग्रहीता के रूप में ँक ही ्यजक्त होता है । इसमें ्यजक्त स्वयं ववचार

करता है और उसके पररणाम प्राप्त करता है । कुल समलाकर यह ँक मनोवैज्ञाननक

प्रक्रिया है , जिसमें ्यजक्त स्वयं के अनुभव, ववचार, भाव, प्रभाव आदद का मूल्यांकन

करता है । सादहत्य में प्रयुक्त ँकालाप की प्रववगध इसी प्रकार के संप्रेषण का उदाहरण

है ।

3.3.2 अंतवैयष्ततक संप्रेषण

अंतवैयजक्तक संप्रेषण में दो ्यजक्त के बीच ववचार, भावनाओं या सूचनाओं आदद

का आदान-प्रदान प्रायः आमने-सामने होता है । ँक ्यजक्त द्वारा प्रेवषत संदेश को

दस
ू रा ्यजक्त ग्रहण करता है और प्रत्युत्तर दे ता है । इसमें पररजस्थनत के अनुसार

संप्रेषक ग्रहीता की और ग्रहीता संप्रेषक की भूसमका अदा करता है । इस प्रकार का

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संप्रेषण बात-चीत, लेिन-पिन, कथन-श्रवण द्वारा संपन्न होता है । इसके अनतररक्त

इस प्रकार के संप्रेषण में स्पशय, संकेत, प्रतीक आदद को भी उपयोग में लाया िाता है ।

3.3.3 समूह संप्रेषण

िैसे क्रक नाम से ही बोध होता है , समूह संप्रेषण में ्यजक्तयों का समूह (संप्रेषक

और श्रोता) प्रत्यक्षतः ववचारों ँवं अनुभवों का संप्रेषण करता है । समूह का ननधायरण

सामान्य दहतों, समान मल्


ू यों के आधार पर होता है । पूरा समूह पूवय ननजश्चत स्थान

और समय पर ँकबरत होता है । इस प्रकार का संप्रेषण सभा, गोष्िी, वाद-वववाद,

ववचार-ववमशय, पररचचाय, नाटक आदद के माध्यम से होता है । ्यजक्त के ववववध

सामाजिक पररवेश िैसे क्रक पािशाला, कॉलेि, प्रसशक्षण केन्र आदद में भी इस प्रकार

का संप्रेषण होता है । इसमें सूचना ँक स्थान पर ँक समय में प्रेवषत की िाती है ।

समह
ू का प्रत्येक ्यजक्त अपनी बात प्रस्तत
ु कर सकता है । इसमें प्रनतपजु ष्ट के

अवसर उपलब्ध होते हैं।

3.3.4 जन-समूह संप्रेषण

‘िन-समूह’ शब्द में िन और समूह िैसे दो शब्दों का योग है । ‘िन’ शब्द

अंग्रेिी के ‘mass’ शब्द का दहन्दी रूपांतर है , यह भी़ब, समह


ू और िनता से सभन्न

है । ऑक्सफोडय डडक्शनरी के अनुसार इसका अथय है - ‘पूणय रूप से ्यजक्तवाददता का

अंत’। समह
ू की भाुँनत िन-समह
ू ननजश्चत स्थान पर ँकबरत न होकर बबिरा हुआ

होता है । िन-समूह संप्रेषण से असभप्राय है बबिरे हुँ ववशाल समूह तक संचार

माध्यमों से सूचना प्रेवषत करना।

िन-समूह संप्रेषण के सलँ पबरकाओं, पुस्तकों, रे डडयो, टे लीवविन, मोबाइल,

इंटरनेट आदद िन-संचार माध्यमों का उपयोग क्रकया िाता है । इन माध्यमों द्वारा

ँक ही स्थान से संदेश को प्रेवषत क्रकया िाता है और ववशाल क्षेर में बबिरे िन-

समूहों तक शीघ्रता से पहुुँचा िाता है । इस प्रकार के संप्रेषण में श्रोता संप्रेषक-वक्ता से

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कभी भी न तो सीधा िु़बता है और न ही संप्रेषक सभी श्रोता से िु़ब पाता है । इसमें

संप्रेषण ँक-मागीय होता है । प्रनतपुजष्ट के अवसर कम रहते हैं और उसमें भी समय

लग िाता है ।

िन-समूह संप्रेषण के ग्रहीता की आयु, सशक्षा, असभरुगच, वगय, िीवन-स्तर,

पसंदीदा माध्यम आदद में सभन्नता होती है । इनमें सामाजिक-सांस्कृनतक, आगथयक,

भौगोसलक आदद सभन्नता होती है । क्रफर भी िन-समूह संप्रेषण सामाजिक ्यवहार और

संस्कृनत को न केवल प्रभाववत करता है वरन ् ननयंबरत भी करता है । आि िन-समूह

संप्रेषण समाि की अननवायय आवश्यकता बन गया है । िन संचार माध्यमों के द्वारा

यह समाि में सहमनत और ँकरूपता लाने में सहायक होता है ।

3.3.5 शाष्ददक और अशाष्ददक संप्रेषण

भाषा को केन्र में रिकर संप्रेषण के यह प्रकार क्रकँ गँ हैं। संप्रेषण में शब्दों

का सवायगधक उपयोग होता है । िब शब्दों के माध्यम से संप्रेषण क्रकया िाता है तब

उसे शाजब्दक संप्रेषण कहते हैं। क्रफर चाहे उसका मौखिक रूप संभाषण, टे लीफोन आदद

हो या सलखित रूप पुस्तकें, डायररयाुँ, समाचार पर-पबरकाँुँ, बुलेदटन, होडडिंग्स आदद।

िब भाव, ववचार या सूचना आदद को शब्दों के माध्यम से असभ्यक्त न करते हुँ

संकेत रूप में स्पशय, स्वाद, रं ग, श्रवण आदद द्वारा असभ्यक्त करते हैं तो उसे

अशाजब्दक संप्रेषण कहते हैं। प्राचीन काल से ही मनुष्य अपनी ववसशष्ट

भावासभ्यजक्तयों के सलँ कला और ववसभन्न भंगगमाओं को उपयोग में लाता रहा है ।

गचर, संगीत, नत्ृ य, सशल्प िैसी कलाँुँ इसका उदाहरण है । ्यजक्त अपने दै ननक

िीवन में इन दोनों प्रकार के संप्रेषण का समश्रण करते हुँ संदेश प्रभावशाली रूप से

संप्रेवषत करता है ।

3.3.6 मुद्रित संप्रेषण

िब मुदरत माध्यम से संदेश ग्रहीता तक पहुुँचता है तब उसे मुदरत संप्रेषण कहा

153
िाता है । इस प्रकार का संप्रेषण दै ननक, साप्तादहक, माससक आदद पर-पबरकाँुँ,

पुस्तकों, परचों, पोस्टरों आदद के द्वारा क्रकया िाता है । ग्रहीता पढ़कर और दे िकर

संदेश ग्रहण करता है । आधनु नक तकनीक का उपयोग करते हुँ इसके ले-आउट और

मुरण को अगधक रुगचकर बनाकर प्रस्तुत क्रकया िा रहा है । आधनु नक माध्यमों में यह

जितना परु ाना है उतना ही ववस्तत


ृ क्षेर तक इसकी पहुुँच भी है । दे श की सभी

भाषाओं में मुदरत माध्यम से संदेश संप्रेवषत क्रकया िाता है ।

3.3.7 श्रव्य संप्रेषण

श्र्य संप्रेषण उसे कहते हैं जिसमें संप्रेषक द्वारा प्रेवषत संदेश को श्रोता

श्रवणेन्रीय द्वारा ग्रहण करता है । श्र्य संप्रेषण का संबंध ग्रहीता की श्रवणेन्री से है ।

इस प्रकार का संप्रेषण संभाषण के अनतररक्त रे डडयो, स्पीकर, टे लीफोन, मोबाइल,

आदद श्र्य संचार माध्यमों द्वारा क्रकया िाता है । श्रोता अपना काम करने के साथ

श्र्य संदेश प्राप्त कर सकता है । इसमें श्रोता सशक्षक्षत हो यह भी आवश्यक नहीं है ।

3.3.8 दृश्य संप्रेषण

िब गचर, दृश्य, तस्वीर, अंग-भंगगमा, होडडिंग्स या अन्य गचबरत माध्यम द्वारा

संदेश का संप्रेषण क्रकया िाता है तब उसे दृश्य संप्रेषण कहते हैं। इस प्रकार के

संप्रेषण का संबंध ग्रहीता की आुँिों से होता है ।

3.3.9 दृश्य-श्रव्य संप्रेषण

िब दृश्य और श्रवण दोनों द्वारा संप्रेषण क्रकया िाता है तब वह दृश्य-श्र्य

संप्रेषण कहलाता है । इस प्रकार का संप्रेषण चक्षुररजन्रय और कणेदरय द्वारा होता है।

रं गमंच, दरू दशयन, क्रफल्म, इंटरनेट आदद माध्यमों से इस प्रकार का संप्रेषण क्रकया

िाता है । यह वतयमान समय का सवायगधक लोकवप्रय और प्रभावशाली संप्रेषण है।

सशक्षा, समाचार, सूचना, मनोरं िन आदद के सलँ इस माध्यम का सवायगधक उपयोग

होता है ।

154
3.4 संप्रेषण की ववधियााँ

मनुष्य िानत अपने अनभ


ु वों से ननरं तर सीिती रही है , समय के साथ पररवनतयत

होती रही है । अपने िीवन को अगधक सरल, सुववधािनक बनाने के सलँ संप्रेषण की

ववववध ववगधयों को ववकससत क्रकया है । संप्रष


े ण के प्रारं सभक दौर में मनुष्य

अंतःवैयजक्तक और अंतवैयजक्तक संप्रेषण से अपना काम चलाता था। संप्रेषण की

परं परागत ववगधयों ने मनष्ु य को समह


ू संप्रेषण से िो़ब ददया। आधनु नक यग
ु में

ववकससत उपकरणों ने संप्रेषण की ्यापकता को बढ़ाया। िन संचार के रूप में ँक

साथ अनगगनत लोगों तक संदेश संप्रेवषत क्रकँ िाने लगे। इस दौर में संप्रेषण में आने

वाली स्थान की दरू ी और समय की सीमा िैसी बाधाओं से मुजक्त समल गई। लेक्रकन

इस युग का ग्रहीता, संदेश प्राप्त करने वाला ँक ब़बा वगय, संदेश प्राप्त तो कर

सकता था क्रकंतु संप्रेषण प्रक्रिया में अपनी सक्रिय भूसमका अदा नहीं कर सकता था।

उत्तर-आधनु नक युग में प्रौद्योगगकी के ववकास ने संप्रेषण प्रक्रिया में ग्रहीता की

सहभागगता को संभव बनाया; प्रत्येक ग्रहीता अपने ववचार प्रस्तुत कर सकता है और

बबना काट-छाुँट के प्रकासशत भी कर सकता है ।

संप्रेषण के क्षेर में आये महत्वपण


ू य पररवतयनों को ननम्न तीन प्रकार से समझा

िा सकता है :

3.4.1 संप्रेषण की परं परागत ववगधयाुँ

3.4.2 संप्रेषण की आधनु नक ववगधयाुँ

3.4.3 प्रौद्योगगकी के संदभय में संप्रेषण

3.4.1 संप्रेषण की परं परागत ववधियााँ

संप्रेषण की परं परागत ववगधयों में संचार के उन परं परागत माध्यमों का उपयोग

होता रहा है िो प्रारं सभक रूप में प्रायः ग्रामीण परं पराओं और संगदित िानतयों से िु़बे

हुँ होते हैं। परं परागत संप्रेषण की सबसे प्रमि


ु प्रववगध लोक परं परा है । इसके द्वारा

155
आि भी ँक पीढ़ी दस
ू री पीढ़ी को अपने सामाजिक-सांस्कृनतक अनुभवों को स्वर,

गीत-संगीत, नत्ृ य, असभनय कला आदद के माध्यम से संप्रेवषत करती आ रही है । इस

प्रववगध से संप्रेवषत होने वाले संदेश की ववषयवस्तु िन सामान्य की परं परा, उत्सव,

रीनत-ररवाि ँवं सामाजिक रीनतयों से संबद्ध होती है , जिसे ब़बी कलात्मकता और

रोचकता से प्रस्तत
ु क्रकया िाता है । संप्रेषण की परं परागत ववगधयों में किपत
ु ली का

िेल, लोककथा, लोकगाथा, लोकगीत, लोकनाट्य, समुदाय ववशेष के नत्ृ य आदद का

समावेश होता है ।

संप्रेषण की परं परागत ववगधयों का ग्रामीण िीवन से घननष्ि संबंध है । इनके

द्वारा ँक तरफ िन सामान्य मनोरं िन करता है , वहीं दस


ू री तरफ सामाजिक रूदढ़यों

व कुरीनतयों; धासमयक आडंबर व अंधववश्वास के ववरुद्ध िागनृ त लाने का संदेश रोचक

ढं ग से प्रस्तुत क्रकया िाता है । इस तरह से संदेश संप्रेवषत करते हुँ सांस्कृनतक

असभ्यजक्तयों का परू ा ख्याल रिा िाता है । राष्रीय ँकता, दे शप्रेम, स्वास्थ्य, कृवष,

साक्षरता, सांप्रदानयक सौहादय िैसे ववषयों को परं परागत ववगधयों से िन-सामान्य तक

सफलता से पहुुँचाया िा सकता है ।

शादी-ब्याह, उत्सव आदद के लोकगीतों द्वारा ँक पीढ़ी दस


ू री पीढ़ी को िो संदेश

संप्रेवषत करती है उसमें प्राचीनता के दशयन होते हैं, कुटुंब भावना प्रवादहत होती है और

गेयता मुिररत होती है। लोकनाट्य में क्षेर ववशेष की ववसभन्न शैसलयों में ब़बी

कलात्मकता के साथ भाव-ववचारों का संप्रेषण क्रकया िाता है । भारत में प्रससद्ध

रामलीला, स्वांग, कथकली, कुचीपड


ु ी आदद लोकनाट्य क्षेर ववशेष की सांस्कृनतक

ववसशष्टता और कलात्मकता को भी संप्रेवषत करते हैं। किपत


ु ली का िेल मनोरं िन के

साथ ही सामाजिक बरु ाइयों, धासमयक आडंबरों, राष्रीय प्रश्नों को िन सामान्य तक

कुशलता से संप्रेवषत करता है ।

कुल समलाकर ग्रामीण पररवेश और संगदित िानतयों में संप्रेषण की परं परागत

156
ववगधयाुँ ्यजक्तगत और समूह संप्रेषण करने में कारगर साबबत होती है । आि संप्रेषण

के आधनु नक माध्यम और प्रौद्योगगकी भी दरू -दराि के क्षेरों तक पहुुँच गयी है ,

जिससे नये माध्यमों की सवु वधा के साथ संदेश संप्रेवषत क्रकया िाता रहा है । संप्रेषण

की परं परागत ववगधयों की सीमाओं - िैसे क्रक किपुतली के िेल में भाव अनुसार

चेहरा न बदल सकना, लोक सादहत्य के मर


ु ण के अभाव में स्थानगत और समयगत

सीमा आदद के कारण भाव-ववचार के संप्रेषण में आने वाली बाधाओं को संप्रेषण की

आधनु नक ववधाओं ने दरू क्रकया है ।

3.4.2 संप्रेषण की आितु नक ववधियााँ

औद्योगगक िांनत ने मनष्ु य की संप्रेषण प्रक्रिया को गनत प्रदान की। संप्रष


े ण की

पारं पररक ववगधयाुँ अंतवैयजक्तक संप्रेषण और समूह संप्रेषण तक िीक थी क्रकंतु ँक

्यजक्त द्वारा ँक िगह से संदेश को दरू -दरू फैले अनेक लोगों तक पहुुँचाया नहीं िा

सकता था। यह कायय संप्रेषण की आधनु नक ववगध ने क्रकया। इसी ने िन संचार को

सफल बनाया है । इसमें समाचार पर िैसे मुदरत माध्यम, रे डडयो आदद श्र्य माध्यम

और टे लीवविन िैसे दृश्य-श्र्य माध्यम का महत्वपूणय स्थान है ।

संप्रेषण में मुदरत माध्यम का योगदान लगभग 550 वषय से है । सन ् 1450 में

िॉन गुटेनबगय ने मुरण कला का आववष्कार करके संदेश को ँक साथ अनेक लोगों

तक संप्रेवषत करने का मागय बनाया। भारत में इसका आगमन सन ् 1780 के आस-

पास हुआ। तब से दे श-ववदे श की रािनीनत, अथय्यवस्था, कला, िेल, क्रफल्म से लेकर

स्वदे श प्रेम, सामाजिक सुधार, सांस्कृनतक चेतना और मूल्यों को स्थावपत-पररवनतयत

करने का कायय मदु रत माध्यम करते आ रहे हैं। इस प्रकार से क्रकया गया संप्रेषण ँक

्यजक्त के ववचार से लेकर दे श के महत्वपूणय संदेशों को लोगों तक पहुुँचाता है ।

रे डडयो का आववष्कार होने से संदेश संप्रेषण में कुछ और सुववधाँुँ उपलब्ध हो

गई। मुदरत माध्यम की तुलना में और अगधक दरू -दराि के क्षेरों तक रे डडयो की पहुुँच

157
बन गई। इस माध्यम से श्रोता अपना काम करते हुँ भी रे डडयो द्वारा प्रसाररत संदेश

का लाभ उिा सकते थे। इसके साथ ही यह सस्ता और पोटे बल माध्यम है िो गाुँवों

में बसी भारतीय िनता के सलँ अगधक अनक


ु ू ल भी रहा है । अक्षर ज्ञान के अभाव में

भी िनता रे डडयो सुनकर प्रसाररत संदेश को ग्रहण कर सकता है । ववद्युत रदहत क्षेर

में भी इसका उपयोग क्रकया िा सकता है । रे डडयो पर प्रसाररत समाचार, गीत, संगीत,

नाटक, रे डडयो रूपक आदद ने बाल-वद्ध


ृ तक सभी को आकवषयत क्रकया। इस संचार-

माध्यम से िनदहत के अनेक संदेशों का प्रेषण दे श के कोने -कोने तक क्रकया गया।

ँफ. ँम. के ववसभन्न रे डडयो स्टे शन ने रे डडयो को पुनः आकषयक बनाया। आि रे डडयो

मनोरं िन के साथ-साथ ववज्ञापन संदेश भी श्रोता तक पहुुँचाता है । संक्षेप में रे डडयो

कई सारी सवु वधाओं के कारण संदेश संप्रेषण करने वाला ँक महत्वपण


ू य संचार माध्यम

के रूप में स्वीकृत हो चुका है ।

दरू दशयन प्रकाश, रं ग और ध्वनन के माध्यम से संदेश को अगधक िीवंत रूप में

संप्रेवषत करने वाला संचार माध्यम है । इसमें ध्वनन के साथ-साथ िीवंत दृश्यों की

असभ्यजक्त संदेश को और भी संप्रेषणीय बना दे ती है । ध्वनन और दृश्य के संयोिन

से संदेश अगधक प्रभावशाली बनकर प्रस्तुत होता है । इतना ही नहीं यह ग्रहीता को

संदेश यथा तथ्य रूप में ग्रहण करने की सुववधा प्रदान करता है । दृश्य-श्र्यता के

कारण ग्रहीता भावनात्मक अपील को अगधक प्रभावशाली रूप में ग्रहण करता है ।

संप्रेषण की आधनु नक ववगधयों ने जिन माध्यमों का उपयोग क्रकया उनकी सबसे

ब़बी सीमा थी - संचार का इकहरा होना। ग्रहीता संदेश प्राप्त कर सकता था क्रकंतु

संप्रेषक तक उसकी पहुुँच न के बराबर थी। इन माध्यमों से संदेश ग्रहण करने वाले

के सलँ अपनी प्रनतक्रिया दे ना प्रायः असंभव-सा था, वह संप्रेषण प्रक्रिया में सहभागी

नहीं हो सकता था। अपनी बात लोगों तक पहुुँचाने के इच्छुक के संदेश पर भी

संपादक, प्रयोक्ता की कैंची चल िाती थी। इससे कई बार संदेश अपने मूल रूप से

158
हट कर प्रस्तुत होता और गलत संप्रेषण हो िाता था।

3.4.3 प्रौद्योधगकी के संदर्थ में संप्रेषण

प्रौद्योगगकी के ववकास के साथ कई संचार तकनीकों का समश्रण करके ऐसे नये

माध्यम ववकससत क्रकँ गँ हैं, जिसमें कई संचार माध्यमों का संयोिन हैं। इन

माध्यमों ने संप्रेषण प्रक्रिया में पररवतयन भी क्रकया और संदेश की संप्रेषणीयता को कई

गुना बढ़ा भी ददया। इससे अजस्तत्व में आया हुआ नया मीडडया अंतवैयजक्तक और

िन संप्रेषण की ववशेषताओं से युक्त है।

नया मीडडया यानी आम आदमी की दे श-काल की सीमाओं को तो़बती हुई

डडजिटल माध्यम से की गई इंटरँजक्टव असभ्यजक्त। कंटें ट पर क्रकसी संपादक या

संवाददाता का ननयंरण नहीं है । नये मीडडया में असभ्यजक्त में समलावट बबल्कुल नहीं

है । (अनरु ाधा प.ृ 15)

औद्योगगक िांनत के दौर में िन संचार माध्यम में आये िांनतकारी पररवतयन के

कारण माशयल मैक्लुहान ने ‘माध्यम ही संदेश है ’ कहा था। क्रकंतु अब प्रौद्योगगकी के

ववकास ने माध्यम की सीमाँुँ समाप्त कर दी है । अब संदेश महत्वपूणय है ।

आर. अनुराधा संप्रेषण के नये माध्यम में ब्लॉग और ववकी सदहत सभी

वेबसाइट, ई-मेल, सीडी-डीवीडी, इलैक्रोननक क्रकयोस्क, इंटरँजक्टव टे लीववज़न, इंटरनेट

टे लीफोनी, मोबाइल फोन, पॉडकास्ट (इंटरनेट के िररँ ध्वनन का प्रसारण), वेबकास्ट

(वीडडयो का प्रसारण) हाइपरटे क्स सादहत्य यानी सलंक्रकत सामग्री आदद को समाववष्ट

करती हैं। (अनुराधा प.ृ 18)

संचार के पारं पररक माध्यम का क्षेर सीसमत था और उस पर संप्रेषक का ही

पूणय ननयंरण होता था, प्रापक की उसमें कोई सहभागगता नहीं हो सकती थी। क्रकंतु

नये माध्यम उन ऊुँचाइयों तक पहुुँच चक


ु े है िहाुँ संप्रेवषत होने वाले संदेश को ँक

साथ कई लोगों तक तुरंत पहुुँचाया िा सकता है और वह भी प्रापक के वैयजक्तकृत

159
(कस्टमाइि) संस्करण के साथ। िबक्रक आधनु नक माध्यम में ँक साथ कई लोगों

तक पहुुँचा िा सकता था, क्रकंतु संदेश का रूप सभी प्रापक के सलँ समान होता था।

नये माध्यम से संदेश प्रेवषत करना और भी आसान हो गया है । नये माध्यम

की तकनीक इतनी उन्नत है क्रक इसके द्वारा आसानी से दरू बैिे श्रोता तक संदेश

संप्रेवषत क्रकया िा सकता है । अच्छी बात यह है क्रक इस समग्र प्रक्रिया के सलँ

तकनीकी ज्ञान की कोई अननवाययता नहीं है। संप्रेषक ध्वनन, गचर, शब्दों आदद के

द्वारा तत्काल संदेश भेि सकता है िो और भी अगधक संप्रेषणीय होता है ।

नये माध्यम ने ्यजक्त को असभ्यजक्त की वह आिादी दी है जिस पर अब

कोई रोक-टोक या काट-छाुँट नहीं होती। पहले ्यजक्त की प्रनतक्रिया और ववचारों पर

प्रकाशन और प्रसारण संबंधी रोक लगने की आशंका बनी रहती थी क्रकंतु अब संदेश

को आसानी से प्रकासशत या प्रसाररत क्रकया िाता है । यह बात अलग है क्रक प्रापक

उसे स्वीकृत करें या नहीं।

अपनी प्रकृनत में ववसशष्ट और पहुुँच में उत्कृष्ट नये माध्यम समाि में क्रकसी

भी प्रकार का िनमत बनाने ँवं उसे प्रभाववत करने का महत्वपण


ू य साधन है । लोकतंर

के आधार माने िाने वाली समानता और असभ्यजक्त की स्वतंरता नये माध्यम ने

प्रत्येक ्यजक्त को उपलब्ध करवाई है ।

कुछ वषय पहले भारत में रं ग-बबरं गी तारों (ऑजप्टक फाइबर) का ऐसा िाल

बनाया गया जिसने नये माध्यम को वास्तववक रूप प्रदान करने में महत्वपूणय भूसमका

अदा की। टे लीफोन, टीवी, इंटरनेट सब इसी के द्वारा चलाये िाने का मानव िानत ने

सपना दे िा। दरू -दराि रहते ्यजक्तयों से शब्द, ध्वनन, गचर, तस्वीर, वीडडयो आदद

ववववध रूप में संदेश का संप्रेषण बबना रुकावट और बबना धध


ंु ले हुँ तत्काल होने

लगा। इतना ही नहीं यह संप्रेषण द्वव-मागी है । इसका प्रापक अपनी अनुकूलता

अनुसार संदेश को कभी भी और कहीं भी दे ि सकता है । महत्वपूणय बात यह भी है

160
क्रक इन ववववध रूप के संदेशों की ब़बी साइि- स्पेस को छोटा करके डडजिटल रूप

अथायत ् आभासी दनु नया में सुरक्षक्षत रिा िा सकता है । इसे संप्रेषक और ग्रहीता कभी

भी क्रकसी भी िगह पन
ु ः प्राप्त कर सकते हैं। कुल समलाकर प्रौद्योगगकी ववकास ने

संप्रेषण की समय और स्थानबद्ध होने की सीमाओं को समाप्त करते हुँ द्वव-मागी

बना ददया।

इंटरनेट का उपयोग करते हुँ कोई ्यजक्त या संस्था अपनी वेबसाइट, ब्लॉग

आदद बनाकर मुदरत ँवं दृश्य-श्र्य सामग्री अनेक लोगों तक पहुुँचा सकते हैं, साथ ही

उनकी प्रनतक्रिया भी प्राप्त कर सकते हैं। ऑरकुट, फेसबुक, ट्ववटर िैसे सोशल

मीडडया ्यजक्त को अपने मन की बात करने की असीम छूट दे ता है । इसमें काट-छाुँट

करने वाला कोई नहीं है , ्यजक्त स्वयं ही लेिक और प्रसारक के रूप में होता है ।

गूगल, स्काइप, वाइबर, फेसबुक की वीडडयो कॉसलंग सेवा से िु़बकर ्यजक्त कभी भी

क्रकसी के आमने-सामने बात कर सकता है । सचय इंिन की सवु वधा से ्यजक्त इंटरनेट

पर रिी कोई भी सामग्री िोि सकता है । शब्द सलिते ही उस शब्द या शब्द-समूह

वाले अनेक िोि पररणाम कुछ ही क्षण में उपलब्ध हो िाते हैं। इसी प्रकार गचर,

वीडडयो आदद भी िोिा िा सकता है। ्यजक्त अपनी इजच्छत साइट पर िाकर

सामग्री प्राप्त कर सकता है । इतना ही नहीं स्वयं या अन्य द्वारा ननसमयत सामग्री की

िाुँच भी उपलब्ध उपकरणों के द्वारा कर सकता है ।

नये माध्यम की पहचान बने ब्लॉग के ववकास ने मनुष्य के संप्रेषण का तरीका

ही बदल ददया। मफ्


ु त और सरल इंटरफेस की सवु वधा उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट

livejournal.com (1998) का उपयोग करके इतने ब्लॉग िोले गँ क्रक उसकी स्पेस

कम प़ब गई। इसका मख्


ु य कारण यह था क्रक ब्लॉग ने असभ्यजक्त के सलँ सिा-

सिाया मंच उपलब्ध करवाया था। ब्लॉग को ई-कंटें ट बनाने की पहली िोरदार

कोसशश के रूप में भी याद क्रकया िाता है ।

161
नये माध्यम में सबसे महत्वपूणय है इसका नया होना। प्रौद्योगगकी ववकास के

साथ नया मीडडया लगातार पररवनतयत हो रहा है । इस पररवतयन की गनत भी बढ़ रही

है । कुछ समय पहले िो ब्लॉग नयी मीडडया िांनत के झंडाबदार थे, वह अब ट्ववटर,

फेसबुक िैसे छोटे , आसान और अगधक इंटरँजक्टव सोशल माध्यमों के सामने बौने

प़बते िा रहे हैं। नये मीडडया की नयी पहचान अब ससफय ब्लॉग नहीं है , बजल्क

माइिो-ब्लॉगगंग के ट्ववटर, फेसबुक और इसकी तरह के अन्य साधन भी हैं। इस

प्रकार की सोशल नेटवक्रकिंग साइट पर अपररगचतों से संवाद क्रकया िा सकता है और

अपनी पहचान भी नछपाई िा सकती है । पारं पररक माध्यमों के मुकाबले नये माध्यम

भागीदारी की बेदहसाब सुववधा दे ते हैं। (अनुराधा प.ृ 18)

प्रौद्योगगकी के ववकास ने संदेश संप्रेषण की कई ददशाँुँ िोल दी है । लेक्रकन

भारत िैसे ववकासशील दे श में 1990 के बाद ही इंटरनेट-कंप्यूटर की सुववधा उपलब्ध

हो पायी है । इस का लाभ भी अंग्रेिी के ज्ञान के अभाव में िनता परु ी तरह नहीं उिा

पा रही है । तकनीक और अंग्रेिी भाषा में प्रसशक्षक्षत शहरी िनसंख्या इसका महत्तम

उपयोग करती है । कंप्यट


ू र को िरीदने की क्षमता सामान्य लोगों में नहीं है , वहाुँ अब

मोबाइल - स्माटय फोन, टे बलेट िैसे छोटे उपकरण कंप्यूटर का ववकल्प बनकर प्रस्तुत

हो रहे हैं। आि आसानी से मोबाइल पर इंटरनेट उपलब्ध हो सकता है और ्यजक्त

मोबाइल के माध्यम से संदेश का संप्रेषण कर सकता है । मोबाइल के सलँ ववववध

प्रकार की ऐप्स ववकससत की गई है जिसके द्वारा ्यजक्त ननरं तर दस


ू रों के संपकय में

रह सकता है । ननंबि
ू , वाइबर, वोट्स-ऐप, वी-चेट, लाइन, हाइक आदद ऐसी ही ऐप्स

हैं, िो इंटरनेट के िररँ दस


ू रे ्यजक्त तक ध्वनन, गचर, वीडडयो या फाइल के माध्यम

से संवाद स्थावपत कर सकता है और वह भी बहुत ही कम लागत पर। प्रत्येक ्यजक्त

के पास उपलब्ध इस तकनीक ने संप्रेषण को इतना सरल और िन-सुलभ बनाया है

जितना पहले कभी नहीं था। प्रौद्योगगकी के संदभय में संप्रेषण की यही सबसे महती

162
उपलजब्ध है ।

असभ्यजक्त की असीम आिादी के कारण इंटरनेट पर सामग्री के ढे र लग रहे

हैं। सामग्री प्रेवषत करने वाले सभी लोग ववषय-ववशेषज्ञ न होने के कारण इंटरनेट पर

रिी सामग्री का स्तर कमतर होता िा रहा है। इस प्रकार की सामग्री के बीच सही

सामग्री िोिना ँक समस्या बनती िा रही है । दहन्दी का ई-कंटें ट कम होने की

समस्या तो िहाुँ की तहाुँ ि़बी ही है ।

प्रौद्योगगकीय पररवतयन ने संवाद स्थावपत करने की अनेक अपूवय सुववधाँुँ प्रदान

की हैं, क्रकंतु िब तक यह भारतीय पररवेश के अनुकूल नहीं बन पाती तब तक िनता

की पहुुँच से इसकी दरू ी बनी रहे गी। प्रौद्योगगकी के ववकास के बाविूद भारतीय

भाषाओं में इसकी अनक


ु ू लता ँवं उपलब्धता के अभाव में सफल संप्रेषण करने में

आि भी अनेक बाधाँुँ आ रही हैं। कंप्यूटर की तकनीक का ववकास पजश्चम में होने

के कारण इसके आधारभत


ू सॉफ्टवेर अंग्रेिी भाषा में उपलब्ध होते हैं। भारत में

अंग्रेिी न िानने वाला ँक ब़बा वगय है , िो इस समस्या से िूझ रहा है । भारतीय

बाज़ार में सॉफ्टवेर उत्पाद की िपत और मन


ु ाफे की अनंत संभावनाओं के कारण

ववदे शी वविेता ऐसे आधारभूत सॉफ्टवेर दहन्दी में भी उपलब्ध करवा रहे हैं, लेक्रकन

दहन्दी फॉन्ट के ववववध रूप, अलग-अलग ले-आउट अब भी उपयोगकताय का ससरददय

बने हुँ हैं।

दे श की िनता प्रौद्योगगकी ववकास का लाभ उिा सके और रािभाषा दहन्दी को

बढ़ावा समल सके इस उद्देश्य से सी-डैक िैसी सरकारी संस्था ने कंप्यट


ू र को दहन्दी

समगथयत करने वाले आई-लीप और लीप-ऑक्रफस िैसे सॉफ्टवेर बनाँ, साथ ही स्पेल

चेक वतयनी शोधन, शब्दकोश और मारा (मशीन अससस्टे ड रांसलेशन टूल) ँवं

अनुसारक िैसे अंग्रेिी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के साधन भी उपलब्ध

करवाये हैं। क्रकंतु फॉन्ट और की-बोडय ले-आउट के ँकीकरण और मानकीकरण की

163
समस्या क्रफर भी बनी हुई है । यूननकॉड फॉन्ट ववकससत क्रकँ िाने पर इन बाधाओं से

मुजक्त समली है , क्रकंतु आि भी ँडोबी के पेिमेकर और फॉटोशोप िैसे कुछ महत्वपूणय

सॉफ्टवेर में यनू नकॉड आधाररत फॉन्ट में काम करने की समस्या का कोई हल प्रस्तत

नहीं हो पाया है ।

प्रौद्योगगकी के संबंध में ववचार करने पर ँक ववमशयगत बात समाने आती है

क्रक आगथयक रूप से संपन्न ँवं प्रसशक्षक्षत वगय इसका अगधक उपयोग कर सकता है,

अथायत ् इस पर उच्च वगय का प्रभुत्व बना रहे गा; पररगध पर ि़बे लोग प्रौद्योगगकी के

लाभ से वंगचत ही रह िायेंगे। मानो क्रक इन्हें साधन उपलब्ध हो भी िाते हैं तो भी

तकनीक व िानकारी में वपछ़ब िाँंगे और प्राप्त असभ्यजक्त की आिादी का लाभ

नहीं उिा पाँंगे।

प्रौद्योगगकी के ववकास से अजस्तत्व में आये नये संचार माध्यम ने ्यजक्त की

असभ्यजक्त बागधत करने वाली सीमाओं को दरू कर ददया है । अब प्रत्येक ्यजक्त

समय और स्थान की सीमाओं को लांघते हुँ अपने भाव, ववचार या संदेश को बहु-

माध्यम के उपयोग से अगधक प्रभावशाली, िीवंत बनाकर सफल संप्रेषण कर सकता

है । नये माध्यमों ने ्यजक्त की संप्रेषण सुववधा को अगधक सक्षम और स्वतंर रूप

प्रदान क्रकया है । सोशल मीडडया के उपयोग से ्यजक्त अपनी राय बना सकता है , राय

दे सकता है , िनमत बना सकता है , िनमत के रुि को प्रभाववत कर सकता है और

उसे पररवनतयत कर सकता है ।

3.5 संप्रेषण की समस्याएाँ

प्रभावी संप्रेषण के सलँ चार अंग महत्वपूणय माने िाते हैं। क्या कहना है , कब

कहना है , क्रकससे कहना है और क्रकस प्रकार कहना है । संप्रेषण में संप्रेषक संदेश को

श्रोता तक पहुुँचाता है । संदेश प्रेवषत कर दे ने से संप्रेषण पूणय नहीं हो िाता, बजल्क

संप्रेषण को सफल बनाने के सलँ श्रोता में संदेश की ँक समझ स्थावपत होना

164
आवश्यक है । मन में ववचार प्रकट होना या उसे संप्रेवषत कर दे ने भर से यह प्रक्रिया

संपन्न नहीं हो िाती। इसके सलँ आवश्यक है क्रक संप्रेषक संदेश को सही पररप्रेक्ष्य में

िन-िन तक सच
ु ारु रूप से पहुुँचाये और श्रोता की अनक
ु ू ल प्रनतक्रिया सुननजश्चत करें ।

यदद संप्रेषक संदेश का उगचत रूप में संकेतीकरण नहीं कर पाता या ववचारों की सही

असभ्यजक्त नहीं हो पाती तो श्रोता पर उसका लक्षक्षत प्रभाव नहीं प़बेगा और श्रोता की

उगचत प्रनतक्रिया के अभाव में संप्रेषण अपनी उद्देश्य प्राजप्त में असफल हो िायेगा।

इस प्रकार संप्रेषण करना कोई सरल कायय नहीं है। संप्रेषक अपनी ओर से ववचारों को

सवायगधक उत्कृष्ट रूप में प्रस्तुत करें , सवायगधक अनुकूल माध्यम से संदेश की

असभ्यजक्त करें तब भी श्रोता की समझ को ननयंबरत नहीं क्रकया िा सकता। इस

प्रकार संप्रेषण प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में ननदे सशत तत्व का संदेश के अनरू
ु प लक्षक्षत

योगदान होना आवश्यक है । इसके अभाव में संप्रेषण में अवरोध आ सकता है और

समग्रतः संप्रेषण में समस्याँुँ ्याप्त हो िाँगी। इन समस्याओं को ननम्नानस


ु ार दे िा

िा सकता है ।

3.5.1 संप्रेषक संबंिी समस्याएाँ

संप्रेषक की असावधानी से उत्पन्न बाधाँुँ संप्रेषण में समस्याँुँ पैदा कर दे ती है ।

ऐसी संप्रेषक संबंधी समस्याँुँ उत्पन्न होने के सलँ ननम्न जस्थनतयाुँ जिम्मेदार हो

सकती हैं :

 अनतववश्वास या अल्पववश्वास के कारण संप्रेषक द्वारा अपने भाव-ववचारों की

्यवजस्थत असभ्यजक्त न कर पाने की जस्थनत।

 प्रेवषत क्रकँ िाने वाले संदेश की सम्यक िानकारी का अभाव।

 संदेश में भाषागत और उच्चारणगत गलनतयों की जस्थनत।

 उपयुक्त माध्यम का चन
ु ाव न होने से।

 ग्रहीता सरलता से समझ सके इस प्रकार संदेश का संकेतीकरण न होने की

165
जस्थनत।

 ग्रहीता की समझ, ज्ञान, सामाजिक धारणाओं, संस्कृनत, परं पराओं, मनोदशा

आदद का सदृ
ु ढ़ पव
ू ायनम
ु ान लगाने में क्षनत हो िाने की जस्थनत।

3.5.2 संदेश संबंिी समस्याएाँ

संदेश ननमायण और उसके संप्रेषण में आने वाली बाधाओं के कारण इस प्रकार

की समस्याँुँ सामने आती हैं। इन समस्याओं को उत्पन्न करने वाली प्रमुि जस्थनतयाुँ

ननम्नानुसार हैं :

 संदेश की ववषय वस्तु का चयन मूल प्रयोिन, दे श-काल, पररजस्थनत के

अनरू
ु प न होने से।

 संदेश ननमायण में ग्रहीता की मनोवजृ त्त, ववचार और भावनाओं को निरं दाि

करने से।

 संदेश ननमायण करते समय लेिन शैली या बोलने की शैली पर कम ध्यान

दे ने से।

 संदेश को सही समय और माध्यम से िमानुसार संप्रेवषत करने में

असावधानी रिने से।

 संदेश का अस्पष्ट और उलझन भरा होने से।

3.5.3 माध्यम संबंिी समस्याएाँ

संदेश का सफल संप्रेषण करने के सलँ उपयुक्त माध्यम का चयन करना

आवश्यक है , इसमें असावधानी बरतने से संप्रेषण में माध्यम संबंधी समस्याँुँ ि़बी हो

िाती हैं। कोई भी माध्यम तभी प्रभावशाली बन सकता है िब वह संदेश के प्रयोिन

के अनुरूप हो और श्रोता की िरूरत के अनुसार सही समय पर उपलब्ध होता हो :

 लक्षक्षत श्रोता के अनुरूप माध्यम का चयन न होना। िैसे अनपढ़ को सलखित

माध्यम से संदेश भेिना। या क्रफर दरू -दराि के क्षेर में डीश टीवी उपलब्ध

166
होने से इलैक्रोननक माध्यम सफल हो सकते हैं पर मुदरत माध्यम नहीं

पहुुँच सकते।

 उद्देश्य के अनरू
ु प माध्यम का चयन न होना।

 उपयुक्त माध्यम का चयन करने पर भी कुशलतापूवक


य उपयोग में न लाना।

 माध्यम में तकनीकी बाधा का आ िाना। िैसे अस्पष्ट मुरण या प्रसारण में

यांबरक िराबी से ्यवधान।

 ग्रहीता तक पहुुँच सुदृढ़ बनाने के सलँ माध्यमों का समानांतर उपयोग न

करना आदद।

3.5.4 संकेतीकरण संबंिी समस्याएाँ

सूचना का उगचत संकेतीकरण संदेश को सबल बनाता है और संकेतीकरण में

असावधानी और क्षनत संप्रेषण प्रक्रिया को ददशाहीन बना दे ती है और अंततः गलत

संदेश प्रेवषत होता है । इसीसलँ संदेश का संकेतीकरण करते समय यह सुननजश्चत

करना आवश्यक बन िाता है क्रक वह इस प्रकार सरल और स्पष्ट हो क्रक लक्षक्षत

श्रोता आसानी से समझकर ग्रहण कर सके। संकेतीकरण संबंधी समस्याँुँ ननम्न

जस्थनतयों में उत्पन्न होती हैं :

 शब्द, संकेत या भाषा-शैली का ऐसा प्रयोग जिससे श्रोता कम पररगचत हो।

 अनेकाथी शब्दों या संकेतों का प्रयोग।

 लंबे वाक्य और िदटल वाक्य-रचना का उपयोग जिससे अथय ग्रहण करना

मुजश्कल हो िाये।

 संदेश में भावासभ्यजक्तयों और ननष्कषय की क्षनत।

 अनुवाद में मूल कथ्य को सही-सही अनूददत न कर पाने से।

इन जस्थनतयों में सावधानी रिने पर प्रापक संदेश के संकेतीकरण को आसानी

से डडकोड कर संदेश ग्रहण कर सकता है ।

167
3.5.5 ग्रहीता या श्रोता संबंिी समस्याएाँ

संप्रेषण का उद्देश्य ग्रहीता के ववचार-्यवहार में अपेक्षक्षत पररवतयन लाना है।

अतः ग्रहीता या श्रोता को संप्रेषण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूणय तत्व माना गया है ।

उत्तर-आधनु नक युग ने लेिक की मत्ृ यु घोवषत कर दी है । इतना ही नहीं लेिन भी

मूल्यहीन करार दे ददया गया है । अब िो है वह पािक ही है , वही अथय को ननजश्चत

करता है । इस संदभय में संदेश को प्रेवषत करने वाला संप्रेषक और संदेश को संचररत

करने वाले माध्यम, इन दोनों से अगधक महत्वपूणय है ग्रहीता, िो संदेश को प्राप्त

करता है , ग्रहण करता है ।

यदद ग्रहीता संप्रेवषत संदेश को सही प्रकार से ग्रहण करने में असफल होता है

तो संप्रेषण भी असफल हो िायेगा। ग्रहीता की प्रायः ननम्न जस्थनतयाुँ संप्रेषण में

ग्रहीता या श्रोता संबंधी समस्याँुँ उत्पन्न करती हैं :

 ग्रहीता की संप्रेषण प्रक्रिया से संबंगधत शारीररक अक्षमताँुँ।

 ग्रहीता की समझ, रुगच, ज्ञान आदद की कमी।

 ग्रहीता का संप्रेषक के प्रनत क्रकसी भी प्रकार का उपेक्षा भाव या उसमें

अववश्वास।

 ग्रहीता द्वारा संदेश को अथयहीन या मूल्यहीन समझना।

 संदेश में प्रस्तुत सांस्कृनतक असभ्यजक्तयाुँ और ग्रहीता की सांस्कृनतक

अनभ
ु व में सभन्नता आदद।

3.5.6 प्रततक्रिया संबंिी समस्याएाँ

प्रनतक्रिया द्वारा संप्रेषक यह िान सकता है क्रक सफल संप्रेषण हुआ है या नहीं।

सफल संप्रेषण न होने की जस्थनत में संप्रेषक संप्रेषण प्रक्रिया में उगचत पररवतयन करके

संप्रेषण की बाधा दरू कर सकता है । यह तभी संभव है िब ग्रहीता की ओर से

प्रनतपुजष्ट समले। इस प्रकार यह संप्रेषण प्रक्रिया का अंनतम क्रकंतु महत्वपूणय तत्व है ।

168
प्रायः ऐसा दे िा गया है क्रक श्रोता अपनी कमिोरी नछपाने के सलँ गलत प्रनतक्रिया

करता है । इतना ही नहीं संदेश के प्रनत नकारात्मक होने पर भी सकारात्मक रवैया

प्रकट करता है ।

3.5.7 वैयष्ततक भर्न्नता और संप्रेषण की समस्याएाँ

प्रत्येक ्यजक्त का मानससक स्तर, सशक्षा, अनुभव, मान्यताँुँ, ग्रहण क्षमता ँक

िैसी नहीं होती। अतः ्यजक्त-्यजक्त का कोई ँक ही चीि को दे िने, सुनने और

समझने में अंतर आ िाता है । इसके अनतररक्त ्यजक्त के सामाजिक अनुभव ँवं

सांस्कृनतक परं पराँुँ उसके दृजष्टकोण को अलग करती है । क्रकसी ँक ही संदेश को

परु
ु ष और स्री प्रायः अलग-अलग ढं ग से ग्रहण करते हैं। ्यजक्त पर क्षेरीयता,

धासमयक और वैचाररक मान्यता का प्रभाव भी रहता है वहीं उसके ननिी तौर-तरीके,

रुगच-अरुगच भी संप्रेषण को प्रभाववत कर सकते हैं।

इसके अनतररक्त आगथयक अभाव और समय संबंधी बाधाँुँ भी संप्रेषण में

समस्याँुँ उत्पन्न करते हैं।

उपयक्
ुय त अध्ययन से इतना स्पष्ट हो िाता है क्रक संप्रेषण िदटल और

चन
ु ौतीपूणय प्रक्रिया है । संप्रेषण प्रक्रिया के प्रत्येक संघटक-तत्व में क्रकसी भी प्रकार की

असावधानी से संप्रेषण में अवरोध उत्पन्न हो िाता है िो संप्रेषण की सफलता में

समस्या ि़बी करता है । अतः सफल संप्रेषण के सलँ यह आवश्यक है क्रक उपयक्
ुय त

सभी बाधाओं और समस्याओं का ननवारण करने के सलँ पूरी सावधानी बरती िाँ

तथा संपूणय संप्रेषण प्रक्रिया के केन्र में लक्षक्षत समूह को रिकर सवायगधक ध्यान ददया

िाँ।

i
The importing conveying of exchange of idea knowledge etc. whether by speech, writing or
signs.
ii
Communication is the sum of the things one person does when he want to create understanding
in the mind of another. It is a bridge of meaning. It involves a systematic and continuous process of
telling, listening and understanding.
iii
Communication is the art of transmitting information ideas and attitudes from one person to
another.

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