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है । संप्रेषण द्वारा ही मानव समाि की संचालन प्रक्रिया संभव बनती है । इसके अभाव
में मानव समाि की कल्पना करना संभव नहीं। आि तकनीक के तीव्रगामी ववकास
के युग में ज्ञान, ववज्ञान और सूचना को लोगों तक पहुुँचाने में संप्रेषण की उपयोगगता
को सरल, सग
ु म और कम से कम समय में िन सल
ु भ बनाया िाये। क्योंक्रक पररवार
इनतहास कदागचत इससे भी पुराना है । पश-ु पक्षी आदद सिीव अपनी आवश्यकता
अनुसार संप्रेषण करते रहे हैं। इस प्रकार संप्रेषण की प्रक्रिया बहुत पुरानी है । आदद-
मानव इशारों और ध्वननयों के माध्यम से संप्रेषण करता था, आगे चलकर मनुष्य ने
भाषा और उसे असभ्यक्त करने वाले संकेत-गचह्नों को अपना साधन बनाया। समय
के साथ तकनीकी ववकास हुआ, संप्रेषण की प्रक्रिया में पररवतयन आया और संप्रेषण
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इतना ही नहीं बीसवीं शती के पूवायधय में रािनीनतशास्र, मनोववज्ञान, समािशास्र से
दस
ू री इकाई तक पहुुँचाना और प्रनतक्रिया प्राप्त करना। दहन्दी में प्रयक्
ु त ‘संप्रेषण’
्यजक्त दस
ू रे ्यजक्त के ववचारों, भावनाओं ँवं मनोवजृ त्तयों में सहभागी होता है । इस
प्रभाववत करता है । इसी प्रकार ववचारों, भावनाओं ँवं असभ्यजक्तयों के उन सभी रूपों
प.ृ 4)
सलखित या संकेत में हो।i (ड. श. ससंह से उद्धृत प.ृ 6) संप्रेषण की समझ बढ़ाने के सलँ
ववचारों को दस
ू रे ्यजक्त के मजस्तष्क में डालने के सलँ अथवा उसे समझाने
िाई को पाटने वाला सेतु है । इसके अंतगयत कहने, सुनने तथा समझने की
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2. सूचना, ववचारों और असभ्यजक्तयों को ँक ्यजक्त से दस
ू रे ्यजक्त तक
संप्रेवषत करने की कला का नाम संचार है ।iii (ड. श. ससंह से उद्धृत प.ृ 6)
प्रथम पररभाषा में संप्रेषण का संबंध उससे संबंगधत साधनों से िो़बते हुँ उसे
संप्रेषक और प्रापक के बीच संदेश का वहन करने वाली ँक वैज्ञाननक प्रक्रिया के रूप
(2) संप्रेषण करने वाले को संप्रेषक कहा िाता है और उसे प्राप्त करने वाले को
आदद तक पहुुँचाता है ।
(4) यह संदेश भाव, ववचार, मनोवजृ त्त, सूचना आदद के रूप में संप्रेवषत होता है ।
(5) संप्रेषण की प्रक्रिया में संप्रेषक, संदेश, संचार माध्यम, प्रापक, प्रनतक्रिया िैसे
भारतीय का्यशास्र में रस ससद्धांत सबसे परु ाना और ववसशष्ट है । इसके अंतगयत
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ऐसी सामाजिक प्रक्रिया मानते हैं िो केवल सहृदयी लोगों के बीच ही संपन्न हो
सकती है । बाद में आचायय भरतमुनन प्रदत्त रस सूर के चार ्याख्याताओं में से तीसरे
हैं। अथायत ् साधारणीकरण के कारण शकंु तला आदद ववशेष पार का ववशेषत्व समाप्त
हो िाता है और वह कासमनी आदद सामान्य पार के रूप में प्रतीत होने लगती है ।
वस्तत
ु ः भट्ट नायक के यह तीन ्यापार साधारणीकरण की प्रक्रिया के तीन सोपान
माने िा सकते हैं। जिसमें असभधा ्यापार से सहृदय सामाजिक नाटकादद के पारों के
संवादों से अथय ग्रहण करता है । भावकत्व ्यापार से ववभावादद सामान्य प्रतीत होने
है ।
मानी गयी है। सहृदय में संदेश को ग्रहण करने की क्षमता होनी चादहँ क्योंक्रक इसके
अभाव में साधारणीकरण स्थावपत नहीं हो सकता। सहृदय अपनी सामाजिक जस्थनत,
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संदेश से साधारणीकृत हो सकता है । रसानुभूनत का सहृदय ही आि की संप्रेषण
अपने-अपने मत प्रकट क्रकँ हैं। इनमें से तीन महत्वपूणय मत सामने आये हैं क्रक 1)
तीन का्य ्यापारों को संप्रेषण के संदभय में इस तरह समझा िा सकता है । नाटकादद
में पारों के संवाद अथायत ् भाषा पािक तक संदेश प्रेवषत करती है , भावकत्व ्यापार से
में पािक द्वारा अथय का ग्रहण क्रकया िाना है । इस तरह भट्ट नायक प्रदत्त
सुदीघय परं परा रही है । इस समग्र परं परा में का्य से संबंगधत ववववध ववचार और
ससद्धांत उपलब्ध होते हैं। लेक्रकन संप्रेषण पर सबसे पहले ्यवजस्थत रूप में ववचार
करने का श्रेय आई. ँ. ररचर्डयस को ही ददया िाँगा। ररचर्डयस से पहले प्रायः क्रकसी ने
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सामान्य प्रक्रिया मार मानता है िो पािक के मजस्तष्क में लेिक असभप्रेत समान
हैं। अथायत ् सियक ने कुछ ववसशष्ट पररजस्थनतयों में जिस भावभूसम पर पहुुँचकर का्य
सियन क्रकया था, उन ववसशष्ट पररजस्थनतयों में पहुुँचकर पािक भी यदद उसी भावभसू म
प्रस्तत
ु ीकरण और पािक की ग्रहण क्षमता में दे िता है । ररचर्डयस इस बात पर बल
नहीं करना चादहँ क्योंक्रक संप्रेषण ँक सहि और स्वाभाववक क्रिया है जिसमें क्रकसी
कला का धमय माना और इस बात को स्थावपत क्रकया क्रक जिसकी रचना जितनी
अगधक संप्रेषणीय होगी वह उतना ही ब़बा कवव अथवा कलाकार माना िाँगा।
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कुल समलाकर भारतीय का्यशास्र में साधारणीकरण के रूप में संप्रेषण प्रक्रिया
महत्वपण
ू य भसू मका रही है वहीं पाश्चात्य का्यशास्र के ररचर्डयस के संप्रेषण ससद्धांत में
ररचडयसय का संप्रेषण ससद्धांत आगे चलकर उत्तर-आधनु नकता के सलँ पष्ृ िभसू म तैयार
करता है ।
‘संप्रेषण’ िैसे दो शब्दों का प्रयोग क्रकया िाता है । दहन्दी में यह दोनों शब्द सभन्न
अथय को असभ्यक्त करते हैं। ्युत्पजत्त की दृजष्ट से ‘संचार’ शब्द संस्कृत के ‘चर’
धातु से बना है , जिसका अथय है ‘चलना’। अथायत ् इसमें संदेश संचरण करता है ।
संचरण क्रकसी माध्यम के द्वारा ही संभव होता है , िैसे - गचर आदद दृश्य, ध्वनन,
संगीत आदद श्र्य माध्यम से। संचार ँक ‘फॉमय’ है , स्वरूप है , जिसके माध्यम से
संदेश ँक स्थान से दस
ू रे स्थान तक संचररत होता है , पहुुँचता है । संदेश को ँक
स्थान से दस
ू रे स्थान तक पहुुँचने के सलँ जिन माध्यमों का उपयोग क्रकया िाता है
उन्हें संचार माध्यम कहा िाता हैं। संचार माध्यम संप्रेषक द्वारा प्रेवषत संदेश को
दस
ू रे ्यजक्त तक पहुुँचाते हैं।
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संप्रेषण की प्रक्रिया के संघटक तत्व हैं , िो संप्रेषक द्वारा ननसमयत संदेश को दस
ू रे
स्थान तक ले िाने का कायय करते हैं। िबक्रक संप्रेषण में प्रेवषत संदेश को प्राप्त करने
प्रनतपुजष्ट करता है । संप्रेषण में मानससक प्रक्रिया होती है जिसका ँक पक्ष संप्रेषक से
ि़ब
ु ा है और दस
ू रा पक्ष ग्रहीता से। इस प्रक्रिया की ग्रहीता द्वारा प्रनतक्रिया भी होती
अब-तक संदेश का संचरण करने वाला माध्यम मानी िाती थी, वह स्वयं ववसभन्न
माध्यमों िैसे चलभाष, रे डडयो, दरू दशयन आदद श्र्य माध्यमों द्वारा संचररत हो रही
स्थान से दस
ू रे स्थान तक पहुुँचता है । इसी िम में अनुवाद भी संप्रेषण है ।
संदेश प्रापक तक पहुुँचाता है । अथायत ् यहाुँ तीन तत्व महत्वपूणय है – संप्रेषक, संदेश
और प्रापक। संप्रेषण अध्ययन ववकससत होने के साथ संप्रेषण प्रक्रिया के अन्य तत्व
प्रतीकों, गचह्नों का कूट भी बनाता है , जिसे प्रापक डडकोड करके संदेश ग्रहण करता
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है ।
संप्रेषण प्रक्रिया के प्रमुि सात संघटक तत्व माने गँ हैं, िो संप्रेषण को साथयक
भाव, ववचार, सूचना आदद समाववष्ट होते हैं। संदेश को लक्षक्षत समूह तक पहुुँचाने के
सलँ अनुकूल माध्यम का चयन क्रकया िाता है । यह प्रक्रिया संचार माध्यम द्वारा
संपन्न की िाती है । इसी सलँ संचार उद्योग के ववकास के समय ‘माध्यम ही संदेश
है ’ की बात को स्वीकार क्रकया गया था। क्रकंतु आि संदेश और माध्यम का भेद सवय
बबंब, प्रतीक, संगीत आदद को संकेत रूप में उपयोग में लाता है , इसे संकेतीकृत करना
(Encoding) कहते हैं। संदेश संकेतीकृत करने की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान
रिना आवश्यक है क्रक संकेत सही रूप में ववचार को असभ्यक्त करने योग्य हो।
इसके सलँ आवश्यक है क्रक संदेश इस प्रकार संकेतीकृत क्रकया िाँ जिसकी
पररकल्पना संप्रेषक और प्रापक दोनों के मजस्तष्क में समान रूप से संरगचत हो। इसमें
िगत आदद कारक महत्वपूणय भूसमका ननभाते हैं। प्रापक इसी समझ-बोध से संदेश को
कहा िाता है । संप्रेषण प्रक्रिया में यह बात ध्यान दे ने योग्य है क्रक संकेतवाचन करते
हुँ प्रापक सामान्य रूप से अपनी असभरुगच के अनुसार ही संदेश को ग्रहण करता है ।
सच
ू ना प्रौद्योगगकी के ववकास से संप्रेषण प्रक्रिया में बहु-मि
ु ी पररवतयन आँ तो साथ
ही प्रापक द्वारा संदेश ग्रहण करने की प्रक्रिया में भी बदलाव आया। संदेश का बोध
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स्पष्ट होता है क्रक संप्रेषण साथयक हो पाया है या नहीं।
संप्रेषण प्रक्रिया में यह बात महत्वपूणय है क्रक संप्रेषक द्वारा प्रेवषत संदेश को
प्रापक अपनी समझ अनुसार ग्रहण करता है । कहने का तात्पयय है क्रक प्रापक पर
और भाषा से भी प्रभाववत होता है । अतः संदेश को पूणय रूप से असभ्यक्त करने में
सक्षम माध्यम और लक्षक्षत समूह के अनुकूल भाषा का प्रयोग करने पर ववशेष ध्यान
ववशेषज्ञों ने संप्रेषण के प्रकार ननधायररत क्रकँ हैं। इसमें ननम्न तीन आधार पर क्रकया
2. अंतवैयजक्तक संप्रेषण
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3. समूह संप्रेषण
4. िनसमूह संप्रेषण
1. शाजब्दक संप्रेषण
2. अशाजब्दक संप्रेषण
1. मुदरत माध्यम
2. श्र्य संप्रेषण
3. दृश्य संप्रेषण
4. श्र्य-दृश्य संप्रेषण
संप्रेषक और ग्रहीता के रूप में ँक ही ्यजक्त होता है । इसमें ्यजक्त स्वयं ववचार
प्रक्रिया है , जिसमें ्यजक्त स्वयं के अनुभव, ववचार, भाव, प्रभाव आदद का मूल्यांकन
करता है । सादहत्य में प्रयुक्त ँकालाप की प्रववगध इसी प्रकार के संप्रेषण का उदाहरण
है ।
दस
ू रा ्यजक्त ग्रहण करता है और प्रत्युत्तर दे ता है । इसमें पररजस्थनत के अनुसार
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संप्रेषण बात-चीत, लेिन-पिन, कथन-श्रवण द्वारा संपन्न होता है । इसके अनतररक्त
इस प्रकार के संप्रेषण में स्पशय, संकेत, प्रतीक आदद को भी उपयोग में लाया िाता है ।
िैसे क्रक नाम से ही बोध होता है , समूह संप्रेषण में ्यजक्तयों का समूह (संप्रेषक
सामाजिक पररवेश िैसे क्रक पािशाला, कॉलेि, प्रसशक्षण केन्र आदद में भी इस प्रकार
समह
ू का प्रत्येक ्यजक्त अपनी बात प्रस्तत
ु कर सकता है । इसमें प्रनतपजु ष्ट के
अंत’। समह
ू की भाुँनत िन-समह
ू ननजश्चत स्थान पर ँकबरत न होकर बबिरा हुआ
ँक ही स्थान से संदेश को प्रेवषत क्रकया िाता है और ववशाल क्षेर में बबिरे िन-
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कभी भी न तो सीधा िु़बता है और न ही संप्रेषक सभी श्रोता से िु़ब पाता है । इसमें
लग िाता है ।
भाषा को केन्र में रिकर संप्रेषण के यह प्रकार क्रकँ गँ हैं। संप्रेषण में शब्दों
उसे शाजब्दक संप्रेषण कहते हैं। क्रफर चाहे उसका मौखिक रूप संभाषण, टे लीफोन आदद
संकेत रूप में स्पशय, स्वाद, रं ग, श्रवण आदद द्वारा असभ्यक्त करते हैं तो उसे
गचर, संगीत, नत्ृ य, सशल्प िैसी कलाँुँ इसका उदाहरण है । ्यजक्त अपने दै ननक
िीवन में इन दोनों प्रकार के संप्रेषण का समश्रण करते हुँ संदेश प्रभावशाली रूप से
संप्रेवषत करता है ।
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िाता है । इस प्रकार का संप्रेषण दै ननक, साप्तादहक, माससक आदद पर-पबरकाँुँ,
पुस्तकों, परचों, पोस्टरों आदद के द्वारा क्रकया िाता है । ग्रहीता पढ़कर और दे िकर
संदेश ग्रहण करता है । आधनु नक तकनीक का उपयोग करते हुँ इसके ले-आउट और
मुरण को अगधक रुगचकर बनाकर प्रस्तुत क्रकया िा रहा है । आधनु नक माध्यमों में यह
श्र्य संप्रेषण उसे कहते हैं जिसमें संप्रेषक द्वारा प्रेवषत संदेश को श्रोता
आदद श्र्य संचार माध्यमों द्वारा क्रकया िाता है । श्रोता अपना काम करने के साथ
संदेश का संप्रेषण क्रकया िाता है तब उसे दृश्य संप्रेषण कहते हैं। इस प्रकार के
रं गमंच, दरू दशयन, क्रफल्म, इंटरनेट आदद माध्यमों से इस प्रकार का संप्रेषण क्रकया
होता है ।
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3.4 संप्रेषण की ववधियााँ
होती रही है । अपने िीवन को अगधक सरल, सुववधािनक बनाने के सलँ संप्रेषण की
साथ अनगगनत लोगों तक संदेश संप्रेवषत क्रकँ िाने लगे। इस दौर में संप्रेषण में आने
वाली स्थान की दरू ी और समय की सीमा िैसी बाधाओं से मुजक्त समल गई। लेक्रकन
इस युग का ग्रहीता, संदेश प्राप्त करने वाला ँक ब़बा वगय, संदेश प्राप्त तो कर
सकता था क्रकंतु संप्रेषण प्रक्रिया में अपनी सक्रिय भूसमका अदा नहीं कर सकता था।
िा सकता है :
संप्रेषण की परं परागत ववगधयों में संचार के उन परं परागत माध्यमों का उपयोग
होता रहा है िो प्रारं सभक रूप में प्रायः ग्रामीण परं पराओं और संगदित िानतयों से िु़बे
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आि भी ँक पीढ़ी दस
ू री पीढ़ी को अपने सामाजिक-सांस्कृनतक अनुभवों को स्वर,
प्रववगध से संप्रेवषत होने वाले संदेश की ववषयवस्तु िन सामान्य की परं परा, उत्सव,
रोचकता से प्रस्तत
ु क्रकया िाता है । संप्रेषण की परं परागत ववगधयों में किपत
ु ली का
समावेश होता है ।
असभ्यजक्तयों का परू ा ख्याल रिा िाता है । राष्रीय ँकता, दे शप्रेम, स्वास्थ्य, कृवष,
संप्रेवषत करती है उसमें प्राचीनता के दशयन होते हैं, कुटुंब भावना प्रवादहत होती है और
गेयता मुिररत होती है। लोकनाट्य में क्षेर ववशेष की ववसभन्न शैसलयों में ब़बी
कुल समलाकर ग्रामीण पररवेश और संगदित िानतयों में संप्रेषण की परं परागत
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ववगधयाुँ ्यजक्तगत और समूह संप्रेषण करने में कारगर साबबत होती है । आि संप्रेषण
जिससे नये माध्यमों की सवु वधा के साथ संदेश संप्रेवषत क्रकया िाता रहा है । संप्रेषण
की परं परागत ववगधयों की सीमाओं - िैसे क्रक किपुतली के िेल में भाव अनुसार
सीमा आदद के कारण भाव-ववचार के संप्रेषण में आने वाली बाधाओं को संप्रेषण की
्यजक्त द्वारा ँक िगह से संदेश को दरू -दरू फैले अनेक लोगों तक पहुुँचाया नहीं िा
सफल बनाया है । इसमें समाचार पर िैसे मुदरत माध्यम, रे डडयो आदद श्र्य माध्यम
संप्रेषण में मुदरत माध्यम का योगदान लगभग 550 वषय से है । सन ् 1450 में
िॉन गुटेनबगय ने मुरण कला का आववष्कार करके संदेश को ँक साथ अनेक लोगों
तक संप्रेवषत करने का मागय बनाया। भारत में इसका आगमन सन ् 1780 के आस-
करने का कायय मदु रत माध्यम करते आ रहे हैं। इस प्रकार से क्रकया गया संप्रेषण ँक
गई। मुदरत माध्यम की तुलना में और अगधक दरू -दराि के क्षेरों तक रे डडयो की पहुुँच
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बन गई। इस माध्यम से श्रोता अपना काम करते हुँ भी रे डडयो द्वारा प्रसाररत संदेश
का लाभ उिा सकते थे। इसके साथ ही यह सस्ता और पोटे बल माध्यम है िो गाुँवों
भी िनता रे डडयो सुनकर प्रसाररत संदेश को ग्रहण कर सकता है । ववद्युत रदहत क्षेर
में भी इसका उपयोग क्रकया िा सकता है । रे डडयो पर प्रसाररत समाचार, गीत, संगीत,
ँफ. ँम. के ववसभन्न रे डडयो स्टे शन ने रे डडयो को पुनः आकषयक बनाया। आि रे डडयो
दरू दशयन प्रकाश, रं ग और ध्वनन के माध्यम से संदेश को अगधक िीवंत रूप में
संप्रेवषत करने वाला संचार माध्यम है । इसमें ध्वनन के साथ-साथ िीवंत दृश्यों की
संदेश यथा तथ्य रूप में ग्रहण करने की सुववधा प्रदान करता है । दृश्य-श्र्यता के
कारण ग्रहीता भावनात्मक अपील को अगधक प्रभावशाली रूप में ग्रहण करता है ।
ब़बी सीमा थी - संचार का इकहरा होना। ग्रहीता संदेश प्राप्त कर सकता था क्रकंतु
संप्रेषक तक उसकी पहुुँच न के बराबर थी। इन माध्यमों से संदेश ग्रहण करने वाले
के सलँ अपनी प्रनतक्रिया दे ना प्रायः असंभव-सा था, वह संप्रेषण प्रक्रिया में सहभागी
संपादक, प्रयोक्ता की कैंची चल िाती थी। इससे कई बार संदेश अपने मूल रूप से
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हट कर प्रस्तुत होता और गलत संप्रेषण हो िाता था।
गुना बढ़ा भी ददया। इससे अजस्तत्व में आया हुआ नया मीडडया अंतवैयजक्तक और
संवाददाता का ननयंरण नहीं है । नये मीडडया में असभ्यजक्त में समलावट बबल्कुल नहीं
औद्योगगक िांनत के दौर में िन संचार माध्यम में आये िांनतकारी पररवतयन के
आर. अनुराधा संप्रेषण के नये माध्यम में ब्लॉग और ववकी सदहत सभी
(वीडडयो का प्रसारण) हाइपरटे क्स सादहत्य यानी सलंक्रकत सामग्री आदद को समाववष्ट
पूणय ननयंरण होता था, प्रापक की उसमें कोई सहभागगता नहीं हो सकती थी। क्रकंतु
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(कस्टमाइि) संस्करण के साथ। िबक्रक आधनु नक माध्यम में ँक साथ कई लोगों
तक पहुुँचा िा सकता था, क्रकंतु संदेश का रूप सभी प्रापक के सलँ समान होता था।
की तकनीक इतनी उन्नत है क्रक इसके द्वारा आसानी से दरू बैिे श्रोता तक संदेश
तकनीकी ज्ञान की कोई अननवाययता नहीं है। संप्रेषक ध्वनन, गचर, शब्दों आदद के
प्रकाशन और प्रसारण संबंधी रोक लगने की आशंका बनी रहती थी क्रकंतु अब संदेश
अपनी प्रकृनत में ववसशष्ट और पहुुँच में उत्कृष्ट नये माध्यम समाि में क्रकसी
कुछ वषय पहले भारत में रं ग-बबरं गी तारों (ऑजप्टक फाइबर) का ऐसा िाल
बनाया गया जिसने नये माध्यम को वास्तववक रूप प्रदान करने में महत्वपूणय भूसमका
अदा की। टे लीफोन, टीवी, इंटरनेट सब इसी के द्वारा चलाये िाने का मानव िानत ने
सपना दे िा। दरू -दराि रहते ्यजक्तयों से शब्द, ध्वनन, गचर, तस्वीर, वीडडयो आदद
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क्रक इन ववववध रूप के संदेशों की ब़बी साइि- स्पेस को छोटा करके डडजिटल रूप
अथायत ् आभासी दनु नया में सुरक्षक्षत रिा िा सकता है । इसे संप्रेषक और ग्रहीता कभी
भी क्रकसी भी िगह पन
ु ः प्राप्त कर सकते हैं। कुल समलाकर प्रौद्योगगकी ववकास ने
बना ददया।
इंटरनेट का उपयोग करते हुँ कोई ्यजक्त या संस्था अपनी वेबसाइट, ब्लॉग
आदद बनाकर मुदरत ँवं दृश्य-श्र्य सामग्री अनेक लोगों तक पहुुँचा सकते हैं, साथ ही
उनकी प्रनतक्रिया भी प्राप्त कर सकते हैं। ऑरकुट, फेसबुक, ट्ववटर िैसे सोशल
करने वाला कोई नहीं है , ्यजक्त स्वयं ही लेिक और प्रसारक के रूप में होता है ।
गूगल, स्काइप, वाइबर, फेसबुक की वीडडयो कॉसलंग सेवा से िु़बकर ्यजक्त कभी भी
क्रकसी के आमने-सामने बात कर सकता है । सचय इंिन की सवु वधा से ्यजक्त इंटरनेट
वाले अनेक िोि पररणाम कुछ ही क्षण में उपलब्ध हो िाते हैं। इसी प्रकार गचर,
वीडडयो आदद भी िोिा िा सकता है। ्यजक्त अपनी इजच्छत साइट पर िाकर
सामग्री प्राप्त कर सकता है । इतना ही नहीं स्वयं या अन्य द्वारा ननसमयत सामग्री की
livejournal.com (1998) का उपयोग करके इतने ब्लॉग िोले गँ क्रक उसकी स्पेस
सिाया मंच उपलब्ध करवाया था। ब्लॉग को ई-कंटें ट बनाने की पहली िोरदार
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नये माध्यम में सबसे महत्वपूणय है इसका नया होना। प्रौद्योगगकी ववकास के
साथ नया मीडडया लगातार पररवनतयत हो रहा है । इस पररवतयन की गनत भी बढ़ रही
है । कुछ समय पहले िो ब्लॉग नयी मीडडया िांनत के झंडाबदार थे, वह अब ट्ववटर,
फेसबुक िैसे छोटे , आसान और अगधक इंटरँजक्टव सोशल माध्यमों के सामने बौने
प़बते िा रहे हैं। नये मीडडया की नयी पहचान अब ससफय ब्लॉग नहीं है , बजल्क
अपनी पहचान भी नछपाई िा सकती है । पारं पररक माध्यमों के मुकाबले नये माध्यम
हो पायी है । इस का लाभ भी अंग्रेिी के ज्ञान के अभाव में िनता परु ी तरह नहीं उिा
पा रही है । तकनीक और अंग्रेिी भाषा में प्रसशक्षक्षत शहरी िनसंख्या इसका महत्तम
मोबाइल - स्माटय फोन, टे बलेट िैसे छोटे उपकरण कंप्यूटर का ववकल्प बनकर प्रस्तुत
रह सकता है । ननंबि
ू , वाइबर, वोट्स-ऐप, वी-चेट, लाइन, हाइक आदद ऐसी ही ऐप्स
जितना पहले कभी नहीं था। प्रौद्योगगकी के संदभय में संप्रेषण की यही सबसे महती
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उपलजब्ध है ।
हैं। सामग्री प्रेवषत करने वाले सभी लोग ववषय-ववशेषज्ञ न होने के कारण इंटरनेट पर
रिी सामग्री का स्तर कमतर होता िा रहा है। इस प्रकार की सामग्री के बीच सही
की पहुुँच से इसकी दरू ी बनी रहे गी। प्रौद्योगगकी के ववकास के बाविूद भारतीय
आि भी अनेक बाधाँुँ आ रही हैं। कंप्यूटर की तकनीक का ववकास पजश्चम में होने
ववदे शी वविेता ऐसे आधारभूत सॉफ्टवेर दहन्दी में भी उपलब्ध करवा रहे हैं, लेक्रकन
समगथयत करने वाले आई-लीप और लीप-ऑक्रफस िैसे सॉफ्टवेर बनाँ, साथ ही स्पेल
चेक वतयनी शोधन, शब्दकोश और मारा (मशीन अससस्टे ड रांसलेशन टूल) ँवं
अनुसारक िैसे अंग्रेिी से भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के साधन भी उपलब्ध
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समस्या क्रफर भी बनी हुई है । यूननकॉड फॉन्ट ववकससत क्रकँ िाने पर इन बाधाओं से
सॉफ्टवेर में यनू नकॉड आधाररत फॉन्ट में काम करने की समस्या का कोई हल प्रस्तत
ु
नहीं हो पाया है ।
क्रक आगथयक रूप से संपन्न ँवं प्रसशक्षक्षत वगय इसका अगधक उपयोग कर सकता है,
अथायत ् इस पर उच्च वगय का प्रभुत्व बना रहे गा; पररगध पर ि़बे लोग प्रौद्योगगकी के
लाभ से वंगचत ही रह िायेंगे। मानो क्रक इन्हें साधन उपलब्ध हो भी िाते हैं तो भी
समय और स्थान की सीमाओं को लांघते हुँ अपने भाव, ववचार या संदेश को बहु-
प्रदान क्रकया है । सोशल मीडडया के उपयोग से ्यजक्त अपनी राय बना सकता है , राय
प्रभावी संप्रेषण के सलँ चार अंग महत्वपूणय माने िाते हैं। क्या कहना है , कब
कहना है , क्रकससे कहना है और क्रकस प्रकार कहना है । संप्रेषण में संप्रेषक संदेश को
संप्रेषण को सफल बनाने के सलँ श्रोता में संदेश की ँक समझ स्थावपत होना
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आवश्यक है । मन में ववचार प्रकट होना या उसे संप्रेवषत कर दे ने भर से यह प्रक्रिया
संपन्न नहीं हो िाती। इसके सलँ आवश्यक है क्रक संप्रेषक संदेश को सही पररप्रेक्ष्य में
िन-िन तक सच
ु ारु रूप से पहुुँचाये और श्रोता की अनक
ु ू ल प्रनतक्रिया सुननजश्चत करें ।
यदद संप्रेषक संदेश का उगचत रूप में संकेतीकरण नहीं कर पाता या ववचारों की सही
असभ्यजक्त नहीं हो पाती तो श्रोता पर उसका लक्षक्षत प्रभाव नहीं प़बेगा और श्रोता की
उगचत प्रनतक्रिया के अभाव में संप्रेषण अपनी उद्देश्य प्राजप्त में असफल हो िायेगा।
इस प्रकार संप्रेषण करना कोई सरल कायय नहीं है। संप्रेषक अपनी ओर से ववचारों को
सवायगधक उत्कृष्ट रूप में प्रस्तुत करें , सवायगधक अनुकूल माध्यम से संदेश की
प्रकार संप्रेषण प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में ननदे सशत तत्व का संदेश के अनरू
ु प लक्षक्षत
योगदान होना आवश्यक है । इसके अभाव में संप्रेषण में अवरोध आ सकता है और
िा सकता है ।
ऐसी संप्रेषक संबंधी समस्याँुँ उत्पन्न होने के सलँ ननम्न जस्थनतयाुँ जिम्मेदार हो
सकती हैं :
उपयुक्त माध्यम का चन
ु ाव न होने से।
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जस्थनत।
आदद का सदृ
ु ढ़ पव
ू ायनम
ु ान लगाने में क्षनत हो िाने की जस्थनत।
संदेश ननमायण और उसके संप्रेषण में आने वाली बाधाओं के कारण इस प्रकार
की समस्याँुँ सामने आती हैं। इन समस्याओं को उत्पन्न करने वाली प्रमुि जस्थनतयाुँ
ननम्नानुसार हैं :
अनरू
ु प न होने से।
संदेश ननमायण में ग्रहीता की मनोवजृ त्त, ववचार और भावनाओं को निरं दाि
करने से।
दे ने से।
आवश्यक है , इसमें असावधानी बरतने से संप्रेषण में माध्यम संबंधी समस्याँुँ ि़बी हो
माध्यम से संदेश भेिना। या क्रफर दरू -दराि के क्षेर में डीश टीवी उपलब्ध
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होने से इलैक्रोननक माध्यम सफल हो सकते हैं पर मुदरत माध्यम नहीं
पहुुँच सकते।
उद्देश्य के अनरू
ु प माध्यम का चयन न होना।
माध्यम में तकनीकी बाधा का आ िाना। िैसे अस्पष्ट मुरण या प्रसारण में
करना आदद।
मुजश्कल हो िाये।
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3.5.5 ग्रहीता या श्रोता संबंिी समस्याएाँ
अतः ग्रहीता या श्रोता को संप्रेषण प्रक्रिया का सबसे महत्वपूणय तत्व माना गया है ।
करता है । इस संदभय में संदेश को प्रेवषत करने वाला संप्रेषक और संदेश को संचररत
यदद ग्रहीता संप्रेवषत संदेश को सही प्रकार से ग्रहण करने में असफल होता है
अववश्वास।
अनभ
ु व में सभन्नता आदद।
प्रनतक्रिया द्वारा संप्रेषक यह िान सकता है क्रक सफल संप्रेषण हुआ है या नहीं।
सफल संप्रेषण न होने की जस्थनत में संप्रेषक संप्रेषण प्रक्रिया में उगचत पररवतयन करके
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प्रायः ऐसा दे िा गया है क्रक श्रोता अपनी कमिोरी नछपाने के सलँ गलत प्रनतक्रिया
प्रकट करता है ।
समझने में अंतर आ िाता है । इसके अनतररक्त ्यजक्त के सामाजिक अनुभव ँवं
परु
ु ष और स्री प्रायः अलग-अलग ढं ग से ग्रहण करते हैं। ्यजक्त पर क्षेरीयता,
उपयक्
ुय त अध्ययन से इतना स्पष्ट हो िाता है क्रक संप्रेषण िदटल और
चन
ु ौतीपूणय प्रक्रिया है । संप्रेषण प्रक्रिया के प्रत्येक संघटक-तत्व में क्रकसी भी प्रकार की
समस्या ि़बी करता है । अतः सफल संप्रेषण के सलँ यह आवश्यक है क्रक उपयक्
ुय त
सभी बाधाओं और समस्याओं का ननवारण करने के सलँ पूरी सावधानी बरती िाँ
तथा संपूणय संप्रेषण प्रक्रिया के केन्र में लक्षक्षत समूह को रिकर सवायगधक ध्यान ददया
िाँ।
i
The importing conveying of exchange of idea knowledge etc. whether by speech, writing or
signs.
ii
Communication is the sum of the things one person does when he want to create understanding
in the mind of another. It is a bridge of meaning. It involves a systematic and continuous process of
telling, listening and understanding.
iii
Communication is the art of transmitting information ideas and attitudes from one person to
another.
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