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लैगिंक अपराधों से बालकों का संरक्षण 2012
लैगिंक अपराधों से बालकों का संरक्षण 2012
अिधिनयम, 2012
(2012 का अिधिनयम संख्यांक 32)
[19 जून, 2012]
लिगक हमला, लिगक उत्पीड़न और अश्लील सािहत्य के अपराध से बालक का
संरक्षण करने और ऐसे अपराध का िवचारण करने के िलए
िवशेष न्यायालय की स्थापना तथा उनसे संबिं धत या
आनुषिं गक िवषय के िलए उपबंध
करने के िलए
अिधिनयम
संिवधान के अनुच्छेद 15 का खंड (3), अन्य बात के साथ राज्य को बालक के िलए िवशेष उपबंध करने के िलए सशक्त
करता है;
संयुक्त राष्टर् की महासभा ारा अंगीकृ त बालक के अिधकार से संबंिधत अिभसमय को, जो बालक के सव म िहत को
सुरिक्षत करने के िलए सभी राज्य पक्षकार ारा पालन िकए जाने वाले मानक को िविहत करता है, भारत सरकार ने तारीख
11 िदसम्बर, 1992 को अंगीकृ त िकया है;
बालक के उिचत िवकास के िलए यह आवश्यक है िक पर्त्येक व्यिक्त ारा उसकी िनजता और गोपनीयता के अिधकार का
सभी पर्कार से तथा बालक को अंतवर्िलत करने वाली न्याियक पर्िकर्या के सभी पर्कर्म के माध्यम से संरिक्षत और सम्मािनत िकया जाए;
यह अिनवायर् है िक िविध ऐसी रीित से पर्वितत हो िक बालक के अच्छे शारीिरक, भावात्मक, बौि क और सामािजक िवकास
को सुिनिश्चत करने के िलए पर्त्येक पर्कर्म पर बालक के सव म िहत और कल्याण पर सव पिर महत्व के रूप म ध्यान िदया जाए;
बालक के अिधकार से संबंिधत अिभसमय के राज्य पक्षकार से िनम्निलिखत का िनवारण करने के िलए सभी समुिचत
राष्टर्ीय, ि पक्षीय या बहुपक्षीय उपाय करना अपेिक्षत है,––
(क) िकसी िविधिवरु लिगक िकर्याकलाप म लगाने के िलए िकसी बालक को उत्पर्ेिरत या पर्पीड़न करना;
(ख) वेश्यावृि या अन्य िविधिवरु लिगक व्यवसाय म बालक का शोषणात्मक उपयोग करना;
(ग) अश्लील गितिविधय और सामिगर्य म बालक का शोषणात्मक उपयोग करना;
बालक के लिगक शोषण और लिगक दुरुपयोग जघन्य अपराध ह, और उन पर पर्भावी रूप से कारर् वाई करने की आवश्यकता
है;
भारत गणराज्य के ितरसठव वषर् म संसद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत हो :––
अध्याय 1
पर्ारं िभक
1. संिक्षप्त नाम, िवस्तार और पर्ारम्भ––(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम लिगक अपराध से बालक का संरक्षण
अिधिनयम, 2012 है ।
(2) इसका िवस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के िसवाय संपूणर् भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को पर्वृ होगा जो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनयत करे ।
2. पिरभाषाएं––(1) इस अिधिनयम म, जब तक िक संदभर् से अन्यथा अपेिक्षत न हो,––
(क) “गुरुतर पर्वेशन लिगक हमला” का वही अथर् है जो धारा 5 म है;
(ख) “गुरुतर लिगक हमला” का वही अथर् है जो धारा 9 म है;
(ग) “सशस्तर् बल या सुरक्षा बल” से संघ के सशस्तर् बल या अनुसूची म यथािविनिदष्ट सुरक्षा बल या पुिलस बल
अिभपर्ेत है;
(घ) “बालक” से ऐसा कोई व्यिक्त अिभपर्ेत है िजसकी आयु अठारह वषर् से कम है;
2
(ङ) “घरे लू संबंध” का वह अथर् होगा जो घरे लू िहसा से मिहला संरक्षण अिधिनयम, 2005 (2005 का 43) की धारा
2 के खण्ड (च) म है;
(च) “पर्वेशन लिगक हमला” का वही अथर् है जो धारा 3 म है;
(छ) “िविहत” से इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िनयम ारा िविहत अिभपर्ेत है;
(ज) “धािमक संस्था” का वह अथर् होगा जो धािमक संस्था (दुरुपयोग िनवारण) अिधिनयम, 1988 (1988 का 41)
म है;
(झ) “लिगक हमला” का वही अथर् है जो धारा 7 म है;
(ञ) “लिगक उत्पीड़न” का वही अथर् है जो धारा 11 म है;
(ट) “साझी गृहस्थी” से ऐसी गृहस्थी अिभपर्ेत है जहां अपराध से आरोिपत व्यिक्त, बालक के साथ घरे लू नातेदारी
म रहता है या िकसी समय पर रह चुका है;
(ठ) “िवशेष न्यायालय” से धारा 28 के अधीन उस रूप म अिभिहत कोई न्यायालय अिभपर्ेत है;
(ड) “िवशेष लोक अिभयोजक” से धारा 32 के अधीन िनयुक्त कोई अिभयोजक अिभपर्ेत है ।
(2) उन शब्द और पद के , जो इसम पर्युक्त ह, और पिरभािषत नह ह िकन्तु भारतीय दंड संिहता (1860 का 45), दंड
पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2), िकशोर न्याय (बालक की देखरे ख और संरक्षण) अिधिनयम, 2000 (2000 का 56) और सूचना
पर्ौ ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) म पिरभािषत ह, वही अथर् ह गे जो उक्त संिहता या अिधिनयम म ह ।
अध्याय 2
(प) जो कोई, बालक पर पर्वेशन लिगक हमला करता है और बालक को सावर्जिनक रूप से िववस्तर् करता है या नग्न करके
पर्दशर्न करता है,
वह गुरुतर पर्वेशन लिगक हमला करता है, यह कहा जाता है ।
6. गुरुतर पर्वेशन लिगक हमले के िलए दंड––जो कोई, गुरुतर पर्वेशन लिगक हमला करे गा वह कठोर कारावास से िजसकी
अविध दस वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय
होगा ।
ग.––लिगक हमला और उसके िलए दंड
7. लिगक हमला––जो कोई, लिगक आशय से बालक की योिन, िलग, गुदा या स्तन को स्पशर् करता है या बालक से ऐसे
व्यिक्त या िकसी अन्य व्यिक्त की योिन, िलग, गुदा या स्तन का स्पशर् कराता है या लिगक आशय से कोई अन्य कायर् करता है िजसम
पर्वेशन िकए िबना शारीिरक संपकर् अंतगर्र्स्त होता है, लिगक हमला करता है, यह कहा जाता है ।
8. लिगक हमले के िलए दंड––जो कोई, लिगक हमला करे गा वह दोन म से िकसी भांित के कारावास से िजसकी अविध तीन
वषर् से कम की नह होगी िकन्तु जो पांच वषर् तक की हो सके गी, दंिडत िकया जाएगा और जुमार्ने से भी दंडनीय होगा ।
घ.––गुरुतर लिगक हमला और उसके िलए दंड
9. गुरुतर लिगक हमला––(क) जो कोई, पुिलस अिधकारी होते हुए, िकसी बालक पर––
(i) पुिलस थाने या ऐसे पिरसर की सीमा के भीतर जहां उसकी िनयुिक्त की गई है; या
(ii) िकसी थाने के पिरसर म चाहे उस पुिलस थाने म अविस्थत ह या नह िजसम उसकी िनयुिक्त की गई है; या
(iii) अपने कतर्व्य के अनुकर्म म या अन्यथा; या
(iv) जहां वह, पुिलस अिधकारी के रूप म ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,
पर्वेशन लिगक हमला करता है; या
(ख) जो कोई, सशस्तर् बल या सुरक्षा बल का सदस्य होते हुए बालक पर,––
(i) ऐसे क्षेतर् की सीमा के भीतर िजसम वह व्यिक्त तैनात है; या
(ii) सुरक्षा या सशस्तर् बल की कमान के अधीन िकन्ह क्षेतर् म; या
(iii) अपने कतर्व्य के अनुकर्म म या अन्यथा; या
(iv) जहां वह, सुरक्षा या सशस्तर् बल के सदस्य के रूप म ज्ञात हो या उसकी पहचान की गई हो,
लिगक हमला करता है; या
(ग) जो कोई लोक सेवक होते हुए, िकसी बालक पर लिगक हमला करता है; या
(घ) जो कोई, िकसी जेल, पर्ितपर्ेषण गृह या संरक्षण गृह या संपर्ेक्षण गृह या तत्समय पर्वृ िकसी िविध ारा या उसके अधीन
स्थािपत अिभरक्षा या देखरे ख और संरक्षण के िकसी अन्य स्थान का पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए, ऐसे जेल या पर्ितपर्ेषण गृह या
संपर्ेक्षण गृह या अिभरक्षा या देखरे ख और संरक्षण के अन्य स्थान पर रह रहे िकसी बालक पर लिगक हमला करता है; या
(ङ) जो कोई, िकसी अस्पताल, चाहे सरकारी या पर्ाइवेट हो, का पर्बंध या कमर्चािरवृंद होते हुए उस अस्पताल म िकसी
बालक पर लिगक हमला करता है; या
(च) जो कोई, िकसी शैक्षिणक संस्था या धािमक संस्था का पर्बंध तंतर् या कमर्चािरवृंद होते हुए उस संस्था म के िकसी बालक
पर लिगक हमला करता है; या
(छ) जो कोई, िकसी बालक पर सामूिहक लिगक हमला करता है ।
स्पष्टीकरण––जहां िकसी बालक पर, िकसी समूह के एक या अिधक व्यिक्तय ारा उनके सामान्य आशय को अगर्सर करने म
लिगक हमला िकया गया है वहां ऐसे पर्त्येक व्यिक्त ारा इस खंड के अथार्न्तगर्त सामूिहक लिगक हमला िकया जाना समझा जाएगा
और ऐसा पर्त्येक व्यिक्त उस कृ त्य के िलए वैसी ही रीित से दायी होगा मानो वह उसके ारा अके ले िकया गया था; या
(ज) जो कोई, िकसी बालक पर घातक आयुध, अग्न्यायुध, गमर् पदाथर् या संक्षारक पदाथर् का पर्योग करते हुए लिगक हमला
करता है; या
(झ) जो कोई, िकसी बालक को घोर उपहित कािरत करते हुए या शारीिरक रूप से नुकसान और क्षित करते हुए या
उसके /उसकी जननिदर्य को क्षित करते हुए पर्वेशन लिगक हमला करता है; या
5
स्पष्टीकरण 1––कोई व्यिक्त जो जानबूझकर दुव्यर्पदेशन ारा या ताित्त्वक तथ्य, िजसे पर्कट करने के िलए वह
आब है, जानबूझकर िछपाने ारा, स्वेच्छया िकसी अपराध का िकया जाना कािरत या उपाप्त करता है अथवा कािरत या
उपाप्त करने का पर्यत्न करता है, वह उस अपराध का िकया जाना उकसाता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण 2––जो कोई या तो िकसी कायर् के िकए जाने से पूवर् या िकए जाने के समय, उस कायर् के िकए जाने को
सुकर बनाने के िलए कोई कायर् करता है और त रा उसके िकए जाने को सुकर बनाता है, वह उस कायर् के करने म सहायता
करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण 3––जो कोई िकसी बालक को इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के पर्योजन के िलए धमकी या
बल पर्योग या पर्पीड़न के अन्य रूप, अपहरण, कपट, पर्वंचना, शिक्त या िस्थित के दुरुपयोग, भे ता या संदाय को देने या
पर्ाप्त करने या अन्य व्यिक्त पर िनयंतर्ण रखने वाले िकसी व्यिक्त की सहमित पर्ाप्त करने के िलए फायद के माध्यम से
िनयोिजत करता है, आशर्य देता है या उसे पर्ाप्त या पिरवािहत करता है, उस कायर् के करने म सहायता है, यह कहा
जाता है ।
17. दुष्पर्ेरण के िलए दंड––जो कोई इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध का दुष्पर्ेरण करता है, यिद दुष्पर्ेिरत कायर् दुष्पर्ेरण
के पिरणामस्वरूप िकया जाता है, तो वह उस दंड से दंिडत िकया जाएगा जो उस अपराध के िलए उपबंिधत है ।
स्पष्टीकरण––कोई कायर् या अपराध दुष्पर्ेरण के पिरणामस्वरूप िकया गया तब कहा जाता है, जब वह उस उकसाहट के
पिरणामस्वरूप या उस ष ंतर् के अनुसरण म या उस सहायता से िकया जाता है, िजससे दुष्पर्रे ण गिठत होता है ।
18. िकसी अपराध को करने के पर्यत्न के िलए दंड––जो कोई इस अिधिनयम के अधीन दंडनीय िकसी अपराध को करने का
पर्यत्न करे गा या िकसी अपराध को करवाएगा और ऐसे पर्यत्न म अपराध करने हेतु कोई कायर् करे गा वह अपराध के िलए उपबंिधत
िकसी भांित के ऐसे कारावास से, यथािस्थित, िजसकी अविध आजीवन कारावास के आधे तक की या उस अपराध के िलए उपबंिधत
कारावास से िजसकी अविध दीघर्तम अविध के आधे तक की हो सके गी या जुमार्ने से या दोन से दंडनीय होगा ।
अध्याय 5
(7) उपधारा (1) के पर्योजन के िलए स ावपूवर्क दी गई जानकारी के िलए िकसी व्यिक्त ारा िसिवल या दांिडक कोई
दाियत्व उपगत नह होगा ।
20. मामले को िरपोटर् करने के िलए मीिडया, स्टूिडयो और फोटो िचतर्ण सुिवधा की बाध्यता––मीिडया या होटल या लॉज
या अस्पताल या क्लब या स्टूिडयो या फोटो िचतर्ण संबंधी सुिवधा का कोई कािमक, चाहे िजस नाम से ज्ञात हो, उनम िनयोिजत
व्यिक्तय की संख्या को दृिष्ट म लाए िबना िकसी ऐसी सामगर्ी या वस्तु की िकसी माध्यम से, जो िकसी बालक के लिगक शोषण संबंधी
है, (िजसके अंतगर्त अश्लील सािहत्य, िलग संबंधी या बालक या बालक का अश्लील पर्दशर्न करना भी है), यथािस्थित, िवशेष िकशोर
पुिलस यूिनट या स्थानीय पुिलस को ऐसी जानकारी उपलब्ध कराएगा ।
21. मामले की िरपोटर् करने या अिभिलिखत करने म िवफल रहने के िलए दंड––(1) कोई व्यिक्त जो धारा 19 की उपधारा
(1) या धारा 20 के अधीन िकसी अपराध के िकए जाने की िरपोटर् करने म िवफल रहेगा या जो धारा 19 की उपधारा (2) के अधीन ऐसे
अपराध को अिभिलिखत करने म िवफल रहेगा, वह िकसी भी भांित के कारावास से, जो छह मास तक का हो सके गा या जुमार्ने से या
दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
(2) िकसी कं पनी या िकसी संस्था (चाहे िजस नाम से ज्ञात हो) का भारसाधक कोई व्यिक्त जो अपने िनयंतर्णाधीन िकसी
अधीनस्थ के संबंध म धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन िकसी अपराध के िकए जाने की िरपोटर् करने म िवफल रहेगा, वह ऐसी अविध
के कारावास से, जो एक वषर् तक का हो सके गा और जुमार्ने से दंिडत िकया जाएगा ।
(3) उपधारा (1) के उपबंध इस अिधिनयम के अधीन िकसी बालक को लागू नह ह गे ।
22. िमथ्या पिरवाद या िमथ्या सूचना के िलए दंड––(1) कोई व्यिक्त जो धारा 3, धारा 5, धारा 7 और धारा 9 के अधीन
िकए गए िकसी अपराध के संबंध म िकसी व्यिक्त के िवरु उसको अपमािनत करने, उ ािपत करने या धमकाने या उसकी मानहािन
करने के एकमातर् आशय से िमथ्या पिरवाद करे गा या िमथ्या सूचना उपलब्ध कराएगा, वह ऐसे कारावास से, जो छह मास तक का हो
सके गा या जुमार्ने से या दोन से, दंिडत िकया जाएगा ।
(2) जहां िकसी बालक ारा कोई िमथ्या पिरवाद िकया गया है या िमथ्या सूचना उपलब्ध कराई गई है, वहां ऐसे बालक पर
कोई दंड अिधरोिपत नह िकया जाएगा ।
(3) जो कोई, बालक नह होते हुए, िकसी बालक के िवरु कोई िमथ्या पिरवाद करे गा या िमथ्या सूचना उसको िमथ्या
जानते हुए उपलब्ध कराएगा िजसके ारा ऐसा बालक इस अिधिनयम के अधीन िकन्ह अपराध के िलए उत्पीिड़त हो, वह ऐसे
कारावास से, जो एक वषर् तक का हो सके गा या जुमार्ने से या दोन से दंिडत िकया जाएगा ।
23. मीिडया के िलए पर्िकर्या––(1) कोई व्यिक्त, िकसी भी पर्कार के मीिडया या स्टूिडयो या फोटो िचतर्ण संबंधी सुिवधा
से, कोई पूणर् या अिधपर्मािणत सूचना रखे िबना, िकसी बालक के संबंध म कोई ऐसी िरपोटर् नह करे गा या उस पर कोई ऐसी टीका-
िटप्पणी नह करे गा िजससे उसकी ख्याित का हनन या उसकी िनजता का अितलंघन होना पर्भािवत होता हो ।
(2) िकसी मीिडया म कोई िरपोटर्, बालक की पहचान को, िजसके अंतगर्त उसका नाम, पता, फोटोिचतर्, पिरवार के ब्यौरे ,
िव ालय, पड़ोस या कोई ऐसी अन्य िविशिष्टयां भी ह, िजनसे बालक की पहचान का पर्कटन होता हो, पर्कट नह करे गी :
परन्तु ऐसे कारण से जो अिभिलिखत िकए जाएंगे, अिधिनयम के अधीन मामले का िवचारण करने के िलए सक्षम िवशेष
न्यायालय ऐसे पर्कटन के िलए अनुज्ञात कर सके गा यिद उसकी राय म ऐसा पर्कटन, बालक के िहत म है ।
(3) मीिडया या स्टूिडयो या फोटो िचतर्ण संबंधी सुिवधा का कोई पर्काशक या स्वामी, संयुक्त रूप से और पृथक् रूप से
अपने कमर्चारी के काय और लोप के िलए दाियत्वाधीन होगा ।
(4) कोई व्यिक्त जो उपधारा (1) या उपधारा (2) के उपबंध का उल्लंघन करे गा, िकसी भांित के कारावास से, िजसकी
अविध छह मास से कम की नह होगी िकन्तु जो एक वषर् तक की हो सके गी या जुमार्ने से या दोन से, दंिडत िकए जाने के िलए दायी
होगा ।
अध्याय 6
(5) पुिलस अिधकारी यह सुिनिश्चत करगे िक बालक की पहचान पिब्लक मीिडया से तब तक संरिक्षत की है जब तक िक
बालक के िहत म िवशेष न्यायालय ारा अन्यथा िनदेिशत न िकया गया हो ।
25. मिजस्टर्ेट ारा बालक के कथन का अिभलेखन––(1) यिद बालक का कथन, दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2)
(िजसे इसम इसके पश्चात् संिहता कहा गया है) की धारा 164 के अधीन अिभिलिखत िकया जाता है तो उसम अंतिवष्ट िकसी बात के
होते हुए भी, ऐसे कथन को अिभिलिखत करने वाला मिजस्टर्ेट, बालक ारा बोले गए अनुसार कथन को अिभिलिखत करे गा :
परं तु संिहता की धारा 164 की उपधारा (1) के पर्थम पंरतुक म अंतिवष्ट उपबंध, जहां तक वह अिभयुक्त के अिधवक्ता की
उपिस्थित अनुज्ञात करता है, इस मामले म लागू नह होगा ।
(2) मिजस्टर्ेट, उस संिहता की धारा 173 के अधीन पुिलस ारा अंितम िरपोटर् फाइल िकए जाने पर, बालक और उसके
माता-िपता या उसके पर्ितिनिध को संिहता की धारा 207 के अधीन िविनिदष्ट दस्तावेज की एक पर्ित, पर्दान करे गा ।
26. अिभिलिखत िकए जाने वाले कथन के संबध ं म अितिरक्त उपबंध––(1) यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी,
बालक के माता-िपता या ऐसे िकसी अन्य व्यिक्त, िजसम बालक का भरोसा या िवश्वास है, उपिस्थित म बालक ारा बोले गए अनुसार
कथन अिभिलिखत करे गा ।
(2) जहां आवश्यक है, वहां, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी, बालक का कथन अिभिलिखत करते समय िकसी
अनुवादक या िकसी दुभािषए की, जो ऐसी अहर्ताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो िविहत की जाए, सहायता ले
सके गा ।
(3) यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी िकसी बालक का कथन अिभिलिखत करने के िलए मानिसक या शारीिरक
िन:शक्तता वाले बालक के मामले म िकसी िवशेष िशक्षक या बालक से संपकर् की रीित से सुपिरिचत िकसी व्यिक्त या उस क्षेतर् म िकसी
िवशेषज्ञ की, जो ऐसी अहर्ताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो िविहत की जाए, की सहायता ले सके गा ।
(4) जहां संभव है, वहां, यथािस्थित, मिजस्टर्ेट या पुिलस अिधकारी यह सुिनिश्चत करे गा िक बालक का कथन शर्व्य-दृश्य
इलेक्टर्ािनक माध्यम से भी अिभिलिखत िकया जाए ।
27. बालक की िचिकत्सीय परीक्षा––(1) उस बालक की िचिकत्सीय परीक्षा, िजसके संबंध म इस अिधिनयम के अधीन कोई
अपराध िकया गया है, इस बात के होते हुए भी िक इस अिधिनयम के अधीन अपराध के िलए कोई पर्थम सूचना िरपोटर् या पिरवाद
रिजस्टर्ीकृ त नह िकया गया है, दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 164क के अनुसार की जाएगी ।
(2) यिद पीिड़त कोई बािलका है तो िचिकत्सीय परीक्षा िकसी मिहला डॉक्टर ारा की जाएगी ।
(3) िचिकत्सीय परीक्षा बालक के माता-िपता या िकसी अन्य व्यिक्त की उपिस्थित म की जाएगी िजसम बालक भरोसा या
िवश्वास रखता हो ।
(4) जहां उपधारा (3) म िनिदष्ट बालक के माता-िपता या अन्य व्यिक्त, बालक की िचिकत्सीय परीक्षा के दौरान िकसी
कारण से उपिस्थत नह हो सकता है तो िचिकत्सीय परीक्षा, िचिकत्सा संस्था के पर्मुख ारा नामिनिदष्ट िकसी मिहला की उपिस्थित म
की जाएगी ।
अध्याय 7
िवशेष न्यायालय
28. िवशेष न्यायालय को अिभिहत िकया जाना––(1) त्विरत िवचारण उपलब्ध कराने के पर्योजन के िलए राज्य सरकार,
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायामूित के परामशर् से, राजपतर् म अिधसूचना ारा पर्त्येक िजला के िलए इस अिधिनयम के अधीन अपराध
का िवचारण करने के िलए िकसी सेशन न्यायालय को एक िवशेष न्यायालय होने के िलए, अिभिहत करे गी :
परन्तु यिद िकसी सेशन न्यायालय को, बालक अिधकार सरं क्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006 का 4) या तत्समय पर्वृ
िकसी अन्य िविध के अधीन उन्ह पर्योजन के िलए अिभिहत िकसी िवशेष न्यायालय को, बालक न्यायालय के रूप म अिधसूिचत कर
िदया है, तो ऐसा न्यायालय इस धारा के अधीन िवशेष न्यायालय समझा जाएगा ।
(2) इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध का िवचारण करते समय कोई िवशेष न्यायालय िकसी ऐसे अपराध का [उपधारा
(1) म िनिदष्ट िकसी अपराध से िभन्न] िवचारण भी करे गा िजसके साथ अिभयुक्त को दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) के
अधीन उसी िवचारण म आरोिपत िकया जा सके गा ।
(3) इस अिधिनयम के अधीन गिठत िवशेष न्यायालय को, सूचना पर्ौ ोिगकी अिधिनयम, 2000 (2000 का 21) म िकसी बात
के होते हुए भी, उस अिधिनयम की धारा 67ख के अधीन अपराध का, जहां तक िक वे िकसी कृ त्य या व्यवहार या रीित म बालक को
िचितर्त करने वाली लिगक पर्कटन सामगर्ी के पर्काशन या पारे षण से संबंिधत ह, या बालक का आन-लाईन दुरुपयोग सुकर बनाते ह,
िवचारण करने की अिधकािरता होगी ।
10
29. कितपय अपराध के बारे म उपधारणा––जहां िकसी व्यिक्त को इस अिधिनयम की धारा 3, धारा 5, धारा 7 और
धारा 9 के अधीन िकसी अपराध को करने या दुष्पर्रे ण करने या उसको करने का पर्यत्न करने के िलए अिभयोिजत िकया गया है वहां
िवशेष न्यायालय तब तक यह उपधारणा करे गा िक ऐसे व्यिक्त ने, यथािस्थित, वह अपराध िकया है, दुष्पर्ेरण िकया है या उसको करने
का पर्यत्न िकया है जब तक िक इसके िवरु सािबत नह कर िदया जाता है ।
30. आपरािधक मानिसक दशा की उपधारणा––(1) इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के िलए िकसी अिभयोजन म, जो
अिभयुक्त की ओर से आपरािधक मानिसक िस्थित की अपेक्षा करता है, िवशेष न्यायालय ऐसी मानिसक दशा की िव मानता की
उपधारणा करे गा, िकन्तु अिभयुक्त के िलए यह तथ्य सािबत करने के िलए पर्ितरक्षा होगी िक उस अिभयोजन म िकसी अपराध के रूप
म आरोिपत कृ त्य के संबंध म उसकी ऐसी मानिसक दशा नह थी ।
(2) इस धारा के पर्योजन के िलए िकसी तथ्य का सािबत िकया जाना के वल तभी कहा जाएगा जब िवशेष न्यायालय उसके
युिक्तयुक्त संदह
े से परे िव मान होने पर िवश्वास करता है और के वल तब नह जब इसकी िव मानता संभाव्यता की पर्बलता ारा
स्थािपत होती है ।
स्पष्टीकरण––इस धारा म “आपरािधक मानिसक दशा” के अंतगर्त आशय, हेतुक, िकसी तथ्य का ज्ञान और िकसी तथ्य म
िवश्वास या िवश्वास िकए जाने का कारण भी है ।
31. िवशेष न्यायालय के समक्ष कायर्वािहय को दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 का लागू होना––इस अिधिनयम म अन्यथा
उपबंिधत के िसवाय दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध (जमानत और बंधपतर् िवषयक उपबंध सिहत) िकसी िवशेष
न्यायालय के समक्ष कायर्वािहय को लागू ह गे और उक्त उपबंध के पर्योजन के िलए िवशेष न्यायालय को सेशन न्यायालय समझा
जाएगा तथा िवशेष न्यायालय के समक्ष अिभयोजन का संचालन करने वाले व्यिक्त को, लोक अिभयोजक समझा जाएगा ।
32. िवशेष लोक अिभयोजक––(1) राज्य सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, के वल इस अिधिनयम के उपबंध के अधीन
मामल का संचालन करने के िलए पर्त्येक िवशेष न्यायालय के िलए एक िवशेष लोक अिभयोजक की, िनयुिक्त करे गी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन िवशेष लोक अिभयोजक के रूप म िनयुक्त िकए जाने के िलए कोई व्यिक्त के वल तभी पातर् होगा
यिद उसने सात वषर् से अन्यून अविध के िलए अिधवक्ता के रूप म िविध व्यवसाय िकया हो ।
(3) इस धारा के अधीन िवशेष लोक अिभयोजक के रूप म िनयुक्त पर्त्येक व्यिक्त, दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2)
की धारा 2 के खंड (प) के अथार्ंतगर्त एक लोक अिभयोजक समझा जाएगा और उस संिहता के उपबंध तद्नुसार पर्भावी ह गे ।
अध्याय 8
(8) समुिचत मामल म िवशेष न्यायालय, दंड के अितिरक्त, बालक को कािरत िकसी शारीिरक या मानिसक आघात के िलए
या ऐसे बालक के तुरंत पुनवार्स के िलए उसको ऐसे पर्ितकर के संदाय का िनदेश दे सके गा जो िविहत िकया जाए ।
(9) इस अिधिनयम के उपबंध के अधीन रहते हुए िवशेष न्यायालय को इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के िवचारण
के पर्योजन के िलए सेशन न्यायालय की सभी शिक्तयां ह गी और ऐसे अपराध का िवचारण ऐसे करे गा, मानो वह सेशन न्यायालय हो,
और यथाशक्य सेशन न्यायालय के समक्ष िवचारण के िलए दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) म िविनिदष्ट पर्िकर्या का अनुसरण
करे गा ।
34. बालक ारा अपराध िकए जाने और िवशेष न्यायालय ारा आयु का अवधारण करने के मामले म पर्िकर्या––(1) जहां इस
अिधिनयम के अधीन कोई अपराध, िकसी बालक ारा िकया जाता है, वहां ऐसे बालक पर िकशोर न्याय (बालक की देखरे ख और
संरक्षण) अिधिनयम, 2000 (2000 का 56) के उपबंध के अधीन कारर् वाई की जाएगी ।
(2) यिद िवशेष न्यायालय के समक्ष िकसी कायर्वाही म इस संबंध म कोई पर्श्न उठता है िक कोई व्यिक्त बालक है या नह तो
ऐसे पर्श्न का अवधारण िवशेष न्यायालय ारा ऐसे व्यिक्त की आयु के बारे म स्वयं का समाधान करने के पश्चात् िकया जाएगा और
वह ऐसे अवधारण के िलए उसके कारण को लेखब करे गा ।
(3) िवशेष न्यायालय ारा िकया गया कोई आदेश के वल पश्चात्वत सबूत के कारण अिविधमान्य नह समझा जाएगा िक
उपधारा (2) के अधीन उसके ारा यथा अवधािरत िकसी व्यिक्त की आयु उस व्यिक्त की सही आयु नह थी ।
35. बालक के सा य को अिभिलिखत और मामले का िनपटारा करने के िलए अविध––(1) बालक के सा य को िवशेष
न्यायालय ारा अपराध का संज्ञान िलए जाने के तीस िदन के भीतर अिभिलिखत िकया जाएगा और िवलंब के िलए कारण, यिद कोई
ह , िवशेष न्यायालय ारा अिभिलिखत िकए जाएंगे ।
(2) िवशेष न्यायालय, यथासंभव, अपराध का संज्ञान िलए जाने की तारीख से एक वषर् की अविध के भीतर िवचारण पूरा
करे गा ।
36. सा य देते समय बालक का अिभयुक्त को न िदखना––(1) िवशेष न्यायालय यह सुिनिश्चत करे गा िक बालक िकसी भी
पर्कार से सा य को अिभिलिखत करते समय अिभयुक्त के सामने अिभदिशत नह िकया गया है, जब िक उसी समय यह सुिनिश्चत
करे गा िक अिभयुक्त उस बालक का कथन सुनने और अपने अिधवक्ता के संपकर् म है ।
(2) उपधारा (1) के पर्योजन के िलए िवशेष न्यायालय, बालक का कथन वीिडयो कांफर्िसग के माध्यम से या एकल दृश्य
दपर्ण या पदार् या ऐसी ही अन्य युिक्त का उपयोग करके अिभिलिखत कर सके गा ।
37. िवचारण का बंद कमरे म संचालन––िवशेष न्यायालय, मामल का िवचारण बंद कमरे म और बालक के माता-िपता या
िकसी ऐसे अन्य व्यिक्त की उपिस्थित म करे गा, िजसम बालक का िवश्वास या भरोसा है :
परं तु जहां िवशेष न्यायालय की यह राय है िक बालक की परीक्षा न्यायालय से िभन्न िकसी अन्य स्थान पर िकए जाने की
आवश्यकता है, वहां वह दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 284 के उपबंध के अनुसरण म कमीशन िनकालने के िलए
कायर्वाही करे गा ।
38. बालक का सा य अिभिलिखत करते समय िकसी दुभािषए या िवशेषज्ञ की सहायता लेना––(1) जब कभी आवश्यक हो,
न्यायालय बालक का सा य अिभिलिखत करते समय िकसी ऐसे अनुवादक या दुभािषए, जो ऐसी अहर्ताएं, अनुभव रखता हो और ऐसी
फीस के संदाय पर, जो िविहत की जाए, की सहायता ले सके गा ।
(2) यिद बालक मानिसक या शारीिरक रूप से िन:शक्त है तो िवशेष न्यायालय, बालक का सा य अिभिलिखत करने के िलए
िकसी िवशेष िशक्षक या बालक से संपकर् की रीित से सुपिरिचत िकसी व्यिक्त या उस क्षेतर् म िकसी िवशेषज्ञ, जो ऐसी अहर्ताएं, अनुभव
रखता हो और ऐसी फीस के संदाय पर जो िविहत की जाए, की सहायता ले सके गा ।
अध्याय 9
पर्कीणर्
39. िवशेषज्ञ आिद की सहायता लेने के िलए बालक के िलए मागर्िनदश––राज्य सरकार, ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए जो
इस िनिम बनाए जाएं, गैर-सरकारी संगठन , वृि क और िवशेषज्ञ या ऐसे व्यिक्तय िजनके पास मनोिवज्ञान, सामािजक कायर्,
िचिकत्सीय स्वास्थ्य, मानिसक स्वास्थ्य और बाल िवकास म ज्ञान है, बालक की सहायता करने के िलए पूवर् िवचारण और िवचारण
पर्कर्म पर सहयोिजत करने के िलए मागर्िनदश तैयार करे गी ।
40. िविधक काउन्सेल की सहायता लेने का बालक का अिधकार––दंड पर्िकर्या संिहता, 1973 (1974 का 2) की धारा 301 के
परं तुक के अधीन रहते हुए बालक का कु टुंब या संरक्षक इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध के िलए अपनी पंसद के िविधक काउं सेल
की सहायता लेने के िलए हकदार ह ग :
12
परं तु यिद बालक का कु टुंब या संरक्षक िविधक का काउं सेल का व्यय वहन करने म असमथर् है तो िविधक सेवा पर्ािधकरण
उसको वकील उपलब्ध कराएगा ।
41. कितपय मामल म धारा 3 से धारा 13 तक के उपबंध का लागू न होना––धारा 3 से धारा 13 (िजसम दोन सिम्मिलत
ह) तक के उपबंध बालक की िचिकत्सीय परीक्षा या िचिकत्सीय उपचार की दशा म तब लागू नह ह गे जब ऐसी िचिकत्सीय परीक्षा या
िचिकत्सीय उपचार उसके माता-िपता या संरक्षक की सहमित से िकए जा रहे ह ।
[42. आनुकिल्पक दंड––जहां िकसी कायर् या लोप से इस अिधिनयम के अधीन और भारतीय दंड संिहता (1860 का 45) की
1
धारा 166क, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 370, धारा 370क, धारा 375, धारा 376, धारा 376क, धारा
376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, 376ङ या धारा 509 के अधीन भी दंडनीय कोई अपराध गिठत होता है वहां, तत्समय पर्वृ िकसी
िविध म अंतिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी, ऐसे अपराध का दोषी पाया गया अपराधी उस दंड का भागी होगा, जो इस अिधिनयम के
अधीन या भारतीय दंड संिहता के अधीन मातर्ा म गुरुतर है ।
42क. अिधिनयम का िकसी अन्य िविध के अल्पीकरण म न होना––इस अिधिनयम के उपबंध तत्समय पर्वृ िकसी अन्य िविध
के उपबंध के अितिरक्त ह गे न िक उनके अल्पीकरण म और िकसी असंगित की दशा म इस अिधिनयम के उपबंध का उस असंगित की
सीमा तक ऐसी िकसी िविध के उपबंध पर अध्यारोही पर्भाव होगा ।]
43. अिधिनयम के बारे म लोक जागरुकता––के न्दर्ीय सरकार और पर्त्येक राज्य सरकार यह सुिनिश्चत करने के िलए सभी
उपाय करगी िक––
(क) साधारण जनता, बालक के साथ ही उनके माता-िपता और संरक्षक को इस अिधिनयम के उपबंध के पर्ित
जागरुक बनाने के िलए इस अिधिनयम के उपबंध का मीिडया, िजसके अंतगर्त टेलीिवजन, रे िडयो और िपर्ट मीिडया भी
सिम्मिलत है, के माध्यम से िनयिमत अंतराल पर व्यापक पर्चार िकया जाता है;
(ख) के न्दर्ीय सरकार और राज्य सरकार के अिधकािरय और अन्य संब व्यिक्तय (िजसके अन्तगर्त पुिलस
अिधकारी भी ह) को अिधिनयम के उपबंध के कायार्न्वयन से संबंिधत िवषय पर आविधक पर्िशक्षण पर्दान िकया जाता है ।
44. अिधिनयम के िकर्यान्वयन की मानीटरी––(1) यथािस्थित, बालक अिधकार संरक्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006 का
4) की धारा 3 के अधीन गिठत बालक अिधकार संरक्षण के िलए राष्टर्ीय आयोग या धारा 17 के अधीन गिठत बालक अिधकार संरक्षण
के िलए राज्य आयोग, उस अिधिनयम के अधीन उनको समनुदिे शत कृ त्य के अितिरक्त इस अिधिनयम के उपबंध के िकर्यान्वयन की
मानीटरी ऐसी रीित से, जो िविहत की जाए, करगे ।
(2) उपधारा (1) म िनिदष्ट, यथािस्थित, राष्टर्ीय आयोग या राज्य आयोग को इस अिधिनयम के अधीन िकसी अपराध से
संबंिधत िकसी मामले की जांच करते समय वही शिक्तयां ह गी जो उनको बालक अिधकार संरक्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006
का 4) के अधीन िनिहत की गई ह ।
(3) उपधारा (1) म िनिदष्ट, यथािस्थित, राष्टर्ीय आयोग या राज्य आयोग इस धारा के अधीन उनके कायर्कलाप को, बालक
अिधकार संरक्षण आयोग अिधिनयम, 2005 (2006 का 4) की धारा 16 म िनिदष्ट िरपोटर् म भी सिम्मिलत करगे ।
45. िनयम बनाने की शिक्त—(1) के न्दर्ीय सरकार इस अिधिनयम के पर्योजन को कायार्िन्वत करने के िलए राजपतर् म
अिधसूचना ारा िनयम बना सके गी ।
(2) िविशष्टतया और पूवर्गामी शिक्त की व्यापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम िनम्निलिखत सभी या िकन्ह
िवषय के िलए उपबंध कर सकगे, अथार्त्:—
(क) धारा 19 की उपधारा (4), धारा 26 की उपधारा (2) और उपधारा (3) तथा धारा 38 के अधीन िकसी
अनुवादक या दुभािषए, िकसी िवशेष िशक्षक या बालक से संपकर् करने की रीित से सुपिरिचत िकसी व्यिक्त या उस क्षेतर् के
िकसी िवशेषज्ञ की अहर्ताएं और अनुभव तथा संदय
े फीस;
(ख) धारा 19 की उपधारा (5) के अधीन बालक की देखभाल और संरक्षण तथा आपात िचिकत्सीय उपचार;
(ग) धारा 33 की उपधारा (8) के अधीन पर्ितकर का संदाय;
(घ) धारा 44 की उपधारा (1) के अधीन अिधिनयम के उपबंध की आविधक मानीटरी की रीित ।
(3) इस धारा के अधीन बनाया गया पर्त्येक िनयम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघर् संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष जब वह
सतर् म हो, कु ल तीस िदन की अविध के िलए रखा जाएगा । यह अविध एक सतर् म अथवा दो या अिधक आनुकर्िमक सतर् म पूरी हो
सके गी । यिद उस सतर् के या पूव क्त आनुकर्िमक सतर् के ठीक बाद के सतर् के अवसान के पूवर् दोन सदन उस िनयम म कोई पिरवतर्न
करने के िलए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे पिरवितत रूप म ही पर्भावी होगा । यिद उक्त अवसान के पूवर् दोन सदन सहमत
1
2013 के अिधिनयम सं० 13 की धारा 29 ारा पर्ितस्थािपत ।
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हो जाएं िक वह िनयम नह बनाया जाना चािहए तो तत्पश्चात् वह िनष्पर्भाव हो जाएगा िकन्तु िनयम के ऐसे पिरवितत या िनष्पर्भाव
होने से उसके अधीन पहले की गई िकसी बात की िविधमान्यता पर पर्ितकू ल पर्भाव नह पड़ेगा ।
46. किठनाइय को दूर करने की शिक्त—(1) यिद इस अिधिनयम के उपबंध को पर्भावी करने म कोई किठनाई उत्पन्न होती
है तो के न्दर्ीय सरकार, राजपतर् म पर्कािशत आदेश ारा, ऐसे उपबंध कर सके गी, जो उसे किठनाइयां दूर करने के िलए आवश्यक या
समीचीन पर्तीत ह और जो इस अिधिनयम के उपबंध से असंगत न ह :
परं तु कोई आदेश इस धारा के अधीन इस अिधिनयम के पर्ारं भ से दो वषर् की अविध की समािप्त के पश्चात् नह िकया
जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन िकया गया पर्त्येक आदेश िकए जाने के पश्चात्, यथाशीघर्, संसद् के पर्त्येक सदन के समक्ष रखा
जाएगा ।
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अनुसूची
[धारा 2 (ग) देिखए]
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