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M.E.

S INDIAN SCHOOL, DOHA -QATAR


Notes- 2020- 2021

Section: Boys’/Girls’ Date : 29 -6 -2020

Class & Div.: IX (All Divisions) Subject: Hindi (S.L)

Lesson / Topic: 10 रहीम के दोहे


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पाठ का साराांश
रहीम ने अनुभव के आधार पर दोहे की रचना की है l इसमें उन्होंने मानव जीवन केलिए उपयोगी
सभी बातों का बड़ा मालमिक वर्िन ककया है l प्रेम –संबंधों को कभी न तोड़ने की प्रेरर्ा दी है l अपने
मन की पीड़ा को मन में ही छिपाकर रखने की प्रेरर्ा दी गई है l एक परमात्मा का ध्यान करने से
अन्य सब कायि भी ठीक – से संपन्न हो जाते हैं l ववपवि से ग्रस्त श्री रामचंद्र को चचत्रकूट में शरर्
िेनी पड़ी l दोहे के थोड़े से अक्षरों में गहरा अथि छिपा जाता है l ववपवि के समय अपनी पूँज
ू ी ही
सहायक होती है l पानी ,चमक और सम्मान इन तीनों का जीवन में महत्त्व सवोपरी है l

निम्िलिखित प्रश्िों के उत्तर दीजिए-

क) प्रेम का धागा टूटने पर पहिे की भाूँछत क्यों नहीं हो पाता ?

उिर – प्रेम आपसी िगाव और ववश्वास के कारर् होता है l यदद एक बार यह िगाव या ववश्वास टूट जाए

तो किर उसमें पहिे जैसा भाव नहीं रहता l एक दरार मन में आ जाती है l जजस प्रकार सामान्य धागा

टूटने पर उसे जब जोड़ते हैं तो उसमें गाूँठ पड़ जाती है l इसी प्रकार प्रेम का धागा भी टूटने पर पहिे के

समान नहीं हो पाता l

ख) हमें अपना दुःु ख दस


ू रों पर क्यों नहीं प्रकट करना चादहए ?अपने मन की व्यथा दस
ू रों से कहने पर

उनका व्यवहार कैसा हो जाता है ?

उिर – कवव रहीम कहते हैं कक अपने मन की व्यथा को अपने मन में ही रखना चादहए l इसे िोगों के

सामने कहने से कोई िाभ नहीं है lतम्


ु हारे दुःु ख को सन
ु कर िोग तम्
ु हारा मज़ाक उड़ाएूँगे l तम्
ु हारे दुःु ख

को कोई नहीं बाूँटेगा इसलिए ऎसे िोगों के सामने अपना दुःु ख नहीं कहना चादहए l

ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जि को धन्य क्यों कहा है ?

उिर – रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जि को धन्य कहा है क्योंकक पंक जि थोड़ा होते हुए भी उसे

पीकर िोटे िोटे जीवों की प्यास बझ


ु ती है l सागर का जि खारा होता है l वह ककसी की प्यास नहीं

बझ
ु ा पाता l

F 061, Rev 01, dtd10th March 2020


घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है ?

उिर - रहीम कहते हैं कक ईश्वर एक ही है l एक परमात्मा को साधने से अन्य सारे काम अपने - आप हो

जाते हैं l परमात्मा ही सबका मि


ू है l जैसे पेड़ –पौधों के मि
ू या जड़ को सींचने िि –िूि अपने –आप

उग जाते हैं , उसी प्रकार परमात्मा को साधने से अन्य सब कायि कुशितापव


ू क
ि संपन्न हो जाते हैं l हमारा

भववष्य मंगिमय हो जाते हैं l

ङ) जिहीन कमि की रक्षा सय


ू ि भी क्यों नहीं कर पाता ?

उिर – कमि की मि
ू संपवि है - जि l उसी के कारर् ही कमि जीववत रहता है l कमि को खखिाने

वािा सय
ू ि ही तो है ,पर कमि का पानी में होना आवश्यक है l यदद पानी नहीं रहे तो सय
ू ि भी कमि

को जीवन नहीं दे सकता l ववपवि के समय हमारी ही संपवि काम आती है और कोई हमारी मदद नहीं

करता l

च) अवध नरे श को चचत्रकूट क्यों जाना पड़ा ?

उिर – अवध नरे श को चचत्रकूट इसलिए जाना पड़ा क्योंकक उन्हें माता –वपता की आज्ञा का पािन करने

केलिए चौदह वर्षों तक वनवास भोगना था l उसी वनवास के दौरान उन्हें चचत्रकूट जैसे रमर्ीय वन में

रुकने का अवसर लमिा l

ि) ‘नट’ ककस किा में लसद्ध होने के कारर् ऊपर चढ़ जाता है ?

उिर – ‘नट’ कंु डिी ववद्या में लसद्ध होने के कारर् ऊपर चढ़ जाता है l वह कंु डिी को समेटकर

संतलु ित करके कूदकर रस्सी या तार पर चढ़ जाता है और तरह तरह के करतब ददखाने में कामयाब

होता है l

ज) ‘मोती, मानर्ष
ु ,चून’ के संदभि में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजजए l

उिर – पानी का महत्त्व बताते हुए कवव कहते हैं कक पानी के बबना सारा संसार सन
ू ा है l इस दोहे में

मोती ,मनष्ु य और आटे के संदभि में पानी के ववलभन्न अथि है l मोती के संदभि में पानी का अथि है

चमक l चमक के बबना मोती मल्


ू यहीन है l मनष्ु य के संदभि में पानी का अथि है आत्मसम्मान l इसके

बबना समाज में मनष्ु य का कोई स्थान नहीं है l आटे के संदभि में पानी का अथि है जि l बबना पानी के

आटा व्यथि है l

F 061, Rev 01, dtd10th March 2020


निम्िलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

क)टूटे से किर ना लमिे ,लमिे गाूँठ परर जाय l

प्रेम धागे के समान है , जो एक बार टूटने पर किर नहीं लमिता | यदद वह लमि भी जाए तो उसमें

गाूँठ अवश्य पड़ जाती है | आशय यह है कक प्रेम भाव नष्ट हो जाए तो किर प्रयास करने पर भी संबध

मधुर नहीं हो पाते | मन में अववश्वास बना रहता है |

ख) सछु न अदठिैहैं िोग सब, बाूँदट न िैहैं कोय |

उिर :- मनष्ु य को अपना दुःु ख सबके सामने प्रकट नहीं करना चादहए बजल्क उन्हें अपने मन में

छिपाकर रखना चादहए | िोग दस


ू रों के कष्ट सन
ु कर प्रसन्न ही होते हैं | वे कष्टों को बाूँटने को तैयार

नहीं होते |

ग) रदहमन मि
ू दहं सींचचबो ,िूिे ििै अघाय l

उिर – रहीम कहते हैं कक यदद जड़ को ही सींचा जाए तो िि –िूि अपने आप खखि उठते हैं lउसी

भाूँछत यदद मनष्ु य परमात्मा का ध्यान कर िें तो सांसाररक सख


ु अपने आप प्राप्त हो जाते हैं l

घ) दीरघ दोहा अरथ के ,आखर थोरे आदहं l

उिर – दोहा ऐसा िं द है जजसमें अक्षर तो बहुत कम होते हैं परं तु उनका अथि बहुत गहरा और व्यापक

होता है l

ङ) नाद रीखझ तन दे त मग
ृ ,नर धन हे त समेत l

उिर –दहरर् संगीत पर मक्


ु त होकर लशकाररयों को अपना जीवन तक दे दे ते हैं तथा मनष्ु य प्रेम सदहत

धन का दान कर दे ता है l आशय यह है कक प्रसन्न मनोदशा में मनष्ु य उदार हो जाता है l

च)जहाूँ काम आवे सई


ु ,कहा करे तरवारर l

उिर –प्रत्येक मनष्ु य का अपना महत्व होता है l कवव ने सई


ु और तिवार के उदाहरर् द्वारा यह तथ्य

लसद्ध ककया है l जहाूँ सई


ु काम आती है ,वहाूँ तिवार कुि नहीं कर सकती l आशय यह है कक िोटी

वस्तओ
ु ं का स्थान भी बड़ी वस्तओ
ु ं से कम नहीं है l इसी प्रकार िोटे िोगों का स्थान बड़े िोगों से

ककसी प्रकार भी कम नहीं है l

ि) पानी गए न ऊबरै ,मोती ,मानर्ष


ु ,चन
ू l

उिर -पानी के बबना आटा काम नहीं आ सकता l चमक के बबना मोती बेकार है और आत्म सम्मान

के बबना मनष्ु य का जीवन व्यथि है l मोती की चमक ,मनष्ु य का आत्मा सम्मान व आटे की गूँध
ू ना

सभी पानी के माध्यम से ही संभव है l

F 061, Rev 01, dtd10th March 2020

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