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IX SL NOTES - रहीम के दोहे PDF
IX SL NOTES - रहीम के दोहे PDF
पाठ का साराांश
रहीम ने अनुभव के आधार पर दोहे की रचना की है l इसमें उन्होंने मानव जीवन केलिए उपयोगी
सभी बातों का बड़ा मालमिक वर्िन ककया है l प्रेम –संबंधों को कभी न तोड़ने की प्रेरर्ा दी है l अपने
मन की पीड़ा को मन में ही छिपाकर रखने की प्रेरर्ा दी गई है l एक परमात्मा का ध्यान करने से
अन्य सब कायि भी ठीक – से संपन्न हो जाते हैं l ववपवि से ग्रस्त श्री रामचंद्र को चचत्रकूट में शरर्
िेनी पड़ी l दोहे के थोड़े से अक्षरों में गहरा अथि छिपा जाता है l ववपवि के समय अपनी पूँज
ू ी ही
सहायक होती है l पानी ,चमक और सम्मान इन तीनों का जीवन में महत्त्व सवोपरी है l
उिर – प्रेम आपसी िगाव और ववश्वास के कारर् होता है l यदद एक बार यह िगाव या ववश्वास टूट जाए
तो किर उसमें पहिे जैसा भाव नहीं रहता l एक दरार मन में आ जाती है l जजस प्रकार सामान्य धागा
टूटने पर उसे जब जोड़ते हैं तो उसमें गाूँठ पड़ जाती है l इसी प्रकार प्रेम का धागा भी टूटने पर पहिे के
उिर – कवव रहीम कहते हैं कक अपने मन की व्यथा को अपने मन में ही रखना चादहए l इसे िोगों के
को कोई नहीं बाूँटेगा इसलिए ऎसे िोगों के सामने अपना दुःु ख नहीं कहना चादहए l
उिर – रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जि को धन्य कहा है क्योंकक पंक जि थोड़ा होते हुए भी उसे
बझ
ु ा पाता l
उिर - रहीम कहते हैं कक ईश्वर एक ही है l एक परमात्मा को साधने से अन्य सारे काम अपने - आप हो
उिर – कमि की मि
ू संपवि है - जि l उसी के कारर् ही कमि जीववत रहता है l कमि को खखिाने
वािा सय
ू ि ही तो है ,पर कमि का पानी में होना आवश्यक है l यदद पानी नहीं रहे तो सय
ू ि भी कमि
को जीवन नहीं दे सकता l ववपवि के समय हमारी ही संपवि काम आती है और कोई हमारी मदद नहीं
करता l
उिर – अवध नरे श को चचत्रकूट इसलिए जाना पड़ा क्योंकक उन्हें माता –वपता की आज्ञा का पािन करने
केलिए चौदह वर्षों तक वनवास भोगना था l उसी वनवास के दौरान उन्हें चचत्रकूट जैसे रमर्ीय वन में
उिर – ‘नट’ कंु डिी ववद्या में लसद्ध होने के कारर् ऊपर चढ़ जाता है l वह कंु डिी को समेटकर
संतलु ित करके कूदकर रस्सी या तार पर चढ़ जाता है और तरह तरह के करतब ददखाने में कामयाब
होता है l
ज) ‘मोती, मानर्ष
ु ,चून’ के संदभि में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजजए l
उिर – पानी का महत्त्व बताते हुए कवव कहते हैं कक पानी के बबना सारा संसार सन
ू ा है l इस दोहे में
मोती ,मनष्ु य और आटे के संदभि में पानी के ववलभन्न अथि है l मोती के संदभि में पानी का अथि है
बबना समाज में मनष्ु य का कोई स्थान नहीं है l आटे के संदभि में पानी का अथि है जि l बबना पानी के
आटा व्यथि है l
प्रेम धागे के समान है , जो एक बार टूटने पर किर नहीं लमिता | यदद वह लमि भी जाए तो उसमें
गाूँठ अवश्य पड़ जाती है | आशय यह है कक प्रेम भाव नष्ट हो जाए तो किर प्रयास करने पर भी संबध
ं
उिर :- मनष्ु य को अपना दुःु ख सबके सामने प्रकट नहीं करना चादहए बजल्क उन्हें अपने मन में
नहीं होते |
ग) रदहमन मि
ू दहं सींचचबो ,िूिे ििै अघाय l
उिर – रहीम कहते हैं कक यदद जड़ को ही सींचा जाए तो िि –िूि अपने आप खखि उठते हैं lउसी
उिर – दोहा ऐसा िं द है जजसमें अक्षर तो बहुत कम होते हैं परं तु उनका अथि बहुत गहरा और व्यापक
होता है l
ङ) नाद रीखझ तन दे त मग
ृ ,नर धन हे त समेत l
वस्तओ
ु ं का स्थान भी बड़ी वस्तओ
ु ं से कम नहीं है l इसी प्रकार िोटे िोगों का स्थान बड़े िोगों से
उिर -पानी के बबना आटा काम नहीं आ सकता l चमक के बबना मोती बेकार है और आत्म सम्मान
के बबना मनष्ु य का जीवन व्यथि है l मोती की चमक ,मनष्ु य का आत्मा सम्मान व आटे की गूँध
ू ना