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Complete Notes for Class-XII According to New Syllabus – 2019-20


कुटज : डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी
लघू त्तरीय प्रश्न ( 1 अंक के द्वलए):- उत्तर: हदर्े दी जी के अिुसार सु खी र्ह है हजिका मि अपिे र्श में
1. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने द्वकसे शोभा द्वनकेतन कहा है ? है तथा दु ुःखी र्ह है हजिका मि परर्श है ।
उत्तर: पर्व त ों क । 15. रहीम ने कुटज के प्रद्वत बे रुखी क्यों द्वदखायी?
2. कुटज क्या है ? उत्तर: रहीम िे अपिे प्रहत ल ग ों की बे रुखी और बे कद्रदािीके
उत्तर: कुटज एक पेड़ है , ज हहमालय के उपत्यकाओों पर उगता है । कारण कुटज के प्रहत बे रुखी हदखाई।
3. हजारी प्रसाद द्विवेदी जी द्वकस उपनाम से जाने जाते हैं ? 16. संस्कृत को द्वकस प्रकार की भाषा बताया गया है ?
उत्तर: मुकेश शास्त्री । उत्तर: सों स्करत क सर्व ग्रासी भाषा कहा गया है ।
4. हजारी प्रसाद जी द्वकस काल के ले खक है ? 17. याज्ञवल्क ने अपनी पत्नी को क्या समझाया िा?
उत्तर: आधु हिक काल। उत्तर: याज्ञर्ल्क िे अपिी पत्नी क समझाया था हक दु हिया में सब
5. द्वशवाद्वलक कहां स्थित है ? कुछ स्वाथव के हलए ह ता है ।
उत्तर: हशर्ाहलक हहमालय के पाद प्रदे श में फैली हुई श्रोंखला है । 18. “जीना भी एक कला है ” - यह द्वकस ले खक के द्वकस पाठ
6. नाम बडा क्यों है ? से द्वलया गया है ?
उत्तर: िाम बड़ा ह ता है क् हों क िाम पर समाज की मुहर लगी हुई उत्तर: यह हजारी प्रसाद हिर्े दी जी िारा रहचत कुटज िामक पाठ
ह ती है । से ली गई है ?
7. द्विवेदी जी का जन्म कहां हुआ िा? 19. द्वकस मु द्वन को कुटज नाम से जाना जाता है ?
उत्तर: उत्तर प्रदे श के बहलया हजले के दु बे छपरा ग्राम में । उत्तर: अगस्त्य मुहि क
8. ले खक के अनु सार द्वशवाद्वलक क्या है ? 20. याज्ञवल्क्य कौन िे ?
उत्तर: हशर् के जटा जुट का हिचला हहस्सा। उत्तर: याज्ञर्ल्क्य बहुत बड़े ब्रह्मर्ादी ऋहष थे।
9. “इज्जत तो नसीब की बात है।“ - द्वकसकी इज्जत की बात कही 21. संस्कृत में दासी को क्या कहते हैं ?
गई है ? उत्तर: कुटहाररका या कुटकाररका ।
उत्तर: अब्दु ल रहीम खािखािा की । 22. कुद्वपत यमराज के दारुण द्वनिःस्वास के समान धधकती लू
10. ले खक के अनु सार कुटज का पेड कैसा जान पडता है ? में कौन हारा भरा है ?
उत्तर: लेखक के अिुसार कुटज का पौधा बड़ा अजीब है , र्ह हमे शा उत्तर: कुटज।
मुस्कुराता हुआ जाि पड़ता है । 23. “जनक की भां द्वत यह घोषणा करता है ।“ – कौन क्या
11. “मानस्वी द्वमत्र तुम धन्य हो” – ‘मनस्वी द्वमत्र’ से कौन सं केद्वतत घोषणा करता है ?
है ? उत्तर: कुटज जिक की भाों हत घ षणा करता है हक मिुष्य क र्ाशी
उत्तर: कुटज । ह िा चाहहए।
12. ले खक के अनु सार अबोध कौन हैं ? 24. “धन्य हो कुटज तुम गाढ़े के सािी हो” - कुटज को गाढ़े
उत्तर: लेखक के अिुसार ज समझता है हक र्ह दू सर ों का उपकार का सािी क्यों कहा गया है ?
कर रहा है , र्ह अब ध है । उत्तर: क् हों क जब क ई फूल उपलब्ध िही ों ह ता तब कुटज का
13. ले खक ने बु स्िहीन द्वकसे कहा है ? फूल ह ता है ।
उत्तर: लेखक के अिुसार ज यह समझता है हक दू सरे उसका अपकार 25. द्वकस वृक्ष को द्वगररकूट द्वबहारी कहा है ?
कर रहे हैं , र्ह बु द्धिहीि है । उत्तर: कुटज क
14. द्विवेदी जी के अनुसार सु खी और दु खी कौन है ?

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26. “बद्वलहारी है इस मादक शोभा की” - प्रस्तुत अं श में
उत्तर: कुटज के श भा की । द्वकसके शोभा की बात की गई है ?
27. द्विवेदी जी ने द्वकसे बे हया और मस्त मौला कहा है ? उसे त इज्जत हमलिी ही चाहहए। इसी सों दभव में लेखक क अब्दु ल
उत्तर: कुटज क । रहीम खािखािा की याद आती है।
28. ले खक ने पृथ्वी का मापदं ड द्वकसे कहा है ? व्याख्या: लेखक कहते हैं हक इज्जत िसीब र्ाल ों क हमलती है ।
उत्तर: हहमालय क । इस दे श में बहुत से ऐसे ल ग हुए ज इज्जत पािे के अहधकारी थे,
29. कौन इस सं सार में रहकर संपूणण भोगों को भोग कर भी उनसे हकोंतु उन्हें र्ह िही ों हमली। रहीम भी उन्ही में से एक थे। र्ह बहुत
मु क्त रहा है ? ही दािी स्वभार् के व्यद्धि थे लेहकि यह दु हिया बड़ी मतलबी है ।
उत्तर: राजा जिक। यहााँ ल ग रस चूस लेते हैं और हछलका एर्ों गु ठली फेंक दे ते हैं ।
30. यक्ष रामद्वगरर पर क्यों गया िा? रहीम दास क चूस कर फेंक हदया था। मुगल बादशाह अकबर िे
उत्तर: अहभशाप के कारण। रहीम क बु लाकर उन्हें सम्माि हदया लेहकि अकबर के पुत्र सलीम
दीघण उत्तरीय प्रश्न (5 अंकों के द्वलए): िे उन्हें अपमाहित करके दरबार से हिकाल हदया। इससे रहीम की
1. कुटज द्वनबं ध की समीक्षा कीद्वजए। महािता में कमी िही ों आई। रहीम िे बे रुखी के कारण कुटज की
उत्तर: ‘कुटज’ हहों दी साहहत्य के महाि हिबों धकार डॉ. हजारी प्रसाद हिोंदा कर दी।
हिर्े दी जी िारा रहचत एक लहलत हिबों ध है । यह प्रथम पुरुष में हलखा द्ववशेष: i)प्रस्तु त अोंश में रहीम के गु ण ों का बखाि है ।
गया है । हिबों ध का हर्षय अहत साधारण है हकोंतु इसमें लेखक के उच्च ii) रहीम क अपिे जीर्ि में सम्माि और अपमाि द ि ों हमला।
हर्चार प्रकट हकए गए हैं । हिबों ध का प्रारों भ अहत साधारण है हकोंतु आगे iii) इस जगत की बे रुखी के कारण ही रहीम िे कुटज क खरी
चलकर इसमें अिेक पौराहणक घटिाओों का उल्ले ख है । ख टी सु िाई।
‘कुटज’ शब्द की उत्पहत्त के हर्षय में हलखते समय ले खक iv) यह खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
सर्व प्रथम उसके िाम पर भी हचोंति करते हैं । उसके बाद उसके िाम 3. उसने उनके संतप्त द्वचत्त को सहारा द्वदया। बडभागी फूल है
की उत्पहत्त पर हर्चार करते है । इस सों बोंध में लेखक कुटहाररका, यह। धन्य हो कुटज तुम गाढ़े के सािी हो।“
कुटकाररका, कुहटया, कुटीर आहद अिेक िाम ों पर हर्चार करता है । प्रसंग: लेखक हजारी प्रसाद हिर्ेदी हशर्ाहलक पर्व त श्रोंखला पर
र्ह भाषा पर भी हर्चार करता है । कुटज क दे खकर चहकत रह जाते हैं । उन्हें यक्ष से जुड़े एक हमथक
कुटज का जीर्ि मािर् के हलए अिुकरणीय हैं । गमी में भी की याद आ जाती है । इसी सों दभव में उन्हें महाकहर् काहलदास की
फूल ों से लदकर कुटज मािर् क जीर्ि जीिे की कला हसखाता है । पोंद्धियाों याद आती है ।
सु ख ह या दु :ख र्ह हकसी भी पररद्धथथहत में हर्चहलत िही ों ह ता, बद्धल्क व्याख्या: महाकहर् काहलदास के मे घदू त िामक काव्य में इसका
द्धथथर भार् से रहकर जीर्ि की अजेयता का मोंत्र प्रसाररत करता है । र्णव ि है । अहभशाप के कारण यक्ष क अलकापुरी से दू र रामहगरर
मिुष्य क भी कुटज से कुछ हशक्षा लेिी चाहहए। जीर्ि में सु ख और पर्व त पर रहिा पड़ा था। आषाढ़ के महीिे में आकाश में उमड़ते
दु ख का क्रम लगा ही रहता है । व्यद्धि क सु ख-दु ख की हचोंता िा करते बादल क दे खकर र्ह हर्रह की आग में जलिे लगता है । उसे
हुए सहज भार् से जीर्ि व्यतीत करिा चाहहए। उसे पररद्धथथहतय ों के बादल ों क दू त बिाकर अपिा सों देश भे जिा था। इसीहलए उसिे
बस में िहाकर पररद्धथथहतय ों क अपिे अिुकूल बिािा चाहहए। मेघ दे र्ता की पूजा करिी थी, हकोंतु उस पर्व त पर क ई भी फूल
प्रस्तु त हिबों ध में हास्य और व्यों ग्य भी है । मुहार्र ों के माध्यम मौजूद िही ों था। इसीहलए इस कुटज के फूल ों से ही मेघ की पूजा
से लेखक िे चाटु कार ों पर व्यों ग हकया है , ज अपिे स्वाथव हसद्धि हे तु करिी पड़ी। इसहलए ले खक िे कुटज क गाढ़े का साथी कहा है ।
आडों बर करते हैं तथा दू सर ों क फसािे के हलए जाल हबछाते हैं । अपिे कुटज बड़ा ही ों भाग्यर्ाि भी है क् हों क र्ह महाकहर् काहलदास के
लाभ के हलए दू सर ों की खुशामद करते हैं और उसके सामिे दाों त काम आ गया।
हिप रते हैं । द्ववशेष: i) इस अोंश में पौराहणक कथा की झलक हदखती है ।
कुटज हिबों ध हर्र्े चिात्मक शैली में हलखा गया है । इसकी ii) मेघ क दू त बिाकर भे जिा अथाव त मेघ का मािर्ीकरण है ।
भाषा खड़ी ब ली हहों दी है , हजसमें सों स्करत के शब्द ों का समार्ेश है । iii) इसमें यक्ष की हर्रह र्े दिा का भार् दे खिे क हमलता है ।
सों स्करत के तत्सम शब्द ों की बहुलता के कारण इसकी भाषा कहठि ह iv) यह खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
गई है , ज सामान्य पाठक ों के हलए ब धगम्य िही ों है । 4. “नाम इसद्वलए बडा नही ं है द्वक वह नाम है । वह इसद्वलए
2. “रहीम को मैं बडे आदर के साि स्मरण करता हं । दररयाद्वदल बडा होता है द्वक उसे सामाद्वजक स्वीकृद्वत द्वमली होती है । रूप
आदमी िे, पाया सो लु टाया ले द्वकन दु द्वनया है द्वक मतलब से मतलब व्यस्क्त सत्य है , नाम समाज सत्य। नाम उस पद को कहते हैं
है । रस चूस ले ती है , द्विलका और गुठली फेंक दे ती है ।“ द्वजस पर समाज की मु हर लगी होती है ।“
संदभण: प्रस्तु त अोंश हमारी पाठ्य पुद्धस्तका ‘द्वहन्दी पाठ-संचयन’ के प्रसंग: ले खक हिर्े दी जी भीषण गमी में हहमालय की हशर्ाहलक
‘कुटज’ िामक हिबों ध से अर्तररत है । इसके रचहयता ‘आचायण हजारी श्रोंखला पर एक छ टा सा र्र क्ष दे खते हैं । आसपास सभी छ टे -बड़े
प्रसाद द्विवेदी जी’ हैं । र्र क्ष लू के प्रहार से झुलस गए है हकोंतु यह र्र क्ष हरा-भरा और फल ों
प्रसंग: कुटज सम्माि पािे र्ाला र्र क्ष है , हकोंतु र्ह कहर्य ों िारा से लदा हुआ है । लेखक क उस र्र क्ष का िाम याद िही ों आता और
अपमाहित है । यह हठों गिा सा र्र क्ष है और छायादार िही ों ह ता है । िया िाम दे िा उिके हलए सों भर् िही ों है क् हों क उसके हलए समाज
की स्वीकरहत चाहहए।

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कहर्य ों िे इसके छ टे ह िे पर ध्याि हदया है हकोंतु इसके फूल ों पर व्याख्या: हशर्ाहलक की पर्व त श्रोंखला पर द्धथथत हठों गिे से र्र क्ष क
कहर्य ों का ध्याि कभी िही ों गया। ज पुष्प काहलदास के काम आया ह लेखक दे खता है । इस र्र क्ष क लेखक पहले भी दे ख चुका है हकोंतु
हदया जा सकता है , लेहकि लेखक उस िाम की तलाश करिे लगता है उसे उसके िाम का स्मरण िही ों है । इस र्र क्ष का िाम त कुछ भी
की जीर्ि रक्षा हे तु अपिे प्राण दार् पर लगा दे ता है । कई ल ग समाज
ज िाम समाज िारा हदया गया है । पदाथव सामिे है हकोंतु उसका पद
कल्याण के हलए अपिा सारा जीर्ि व्यतीत कर दे ते हैं । दु हिया में
िही ों सू झ रहा। स्मरहतय ों के पोंख फैलाकर जब र्ह अतीत के गभव में
ऐसे भी मिुष्य ह ते हैं ज दे श के उिार के हलए अपिे जीर्ि का
झाों कता है त भी उसे उस र्र क्ष के िाम का पता िही ों चलता।
बहलदाि कर दे ते हैं । जगह-जगह साहहत्य और कला की महहमा गाई
िाम इसहलए अहिर्ायव ह ता है क् हों क उस पर समाज की
जाती है । अतुः मिुष्य में केर्ल जीहर्त रहिे की इच्छा ही िही ों बद्धल्क
मुहर लगी ह ती है । रूप की तु लिा में िाम ज्यादा बड़ा ह ता है क् हक
सत्कमव करिे की प्रबल इच्छा भी ह ती है । अतुः याज्ञर्ल्क्य यही कही
के िाम से व्यद्धि की पहचाि जुडी ह ती है । इस र्र क्ष के िाम क जाििे
हुई बात सर्व मान्य िही ों ह सकती।
के हलए लेखक का मि व्याकुल ह उठता है । ध्याि दे िे पर उसे याद
द्ववशेष: i) स्वाथव से बढ़कर परमाथव क मािा गया है ।
आता है हक सों स्करत में इस र्र क्ष का िाम कुटज है ।
ii) लेखक िे याज्ञर्ल्क्य की बात का खोंडि हकया है ।
द्ववशेष: i) िाम क रूप से बड़ा बताया गया है ।
iii) इसमें ले खक का हचोंति भार् स्पष्ट हुआ है ।
ii) हकसी भी पहचाि के हलए िाम अहिर्ायव है ।
iv) यह खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
iii) िाम क समाज की स्वीकरहत प्राप्त ह ती है ।
7. “दु :ख और सुख तो मन के द्ववकल्प है । सुखी वह है द्वजसका
iv) इसमें लेखक का हचोंताशील स्वभार् दशविीय है ।
मन वश मे न है , दु खी वह है द्वजसका मन परवश है ।“
v) यह खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
प्रसंग: प्रस्तु त अोंश के माध्यम से हिर्े दी जी िे कुटज िामक र्रक्ष के
5. “जो यह समझता है द्वक वह दू सरों का उपकार कर रहा है वह
गु ण ों का र्णव ि हकया है । कुटज पर्व तीय प्रदे श ों में उगिे र्ाला र्र क्ष है ।
अबोध है । जो यह समझता है द्वक दू सरे उसका अपकार कर रहे
र्ह भीषण गमी में भी फूल ों से लद जाता है । लेखक हमे कुटज से
हैं , वह भी बु स्िहीन है ।“
बहुत कुछ सीखिे क कहता है ।
प्रसंग: प्रस्तु त गद्ाों श के माध्यम से हजारी प्रसाद हिर्े दी जी िे हसि
व्याख्या: हिबों धकार हजारी प्रसाद हिर्े दी जी कहते हैं हक सु ख और
हकया है हक सु ख-दु ख तथा लाभ-हािी सभी ईश्वर की इच्छा पर हिभव र
दु ख की अिुभूहत मािर् मि की स च है । ज व्यद्धि अपिे जीर्ि से
करते हैं । हियहत के कालचक्र के आगे हर मिुष्य हर्र्श और लाचार
सों तुष्ट है र्ह सु खी है और ज अपिे जीर्ि से असों तुष्ट है , र्ह दु हिया
है । इसीहलए मािर् ज भी करता है र्ह ईश्वर की प्रेरणा से प्रेररत ह कर
का सबसे दु खी आदमी है । मािर् की इों हद्रयाों उिके मि की दास
करता है । व्याख्या: लेखक हजारी प्रसाद हिर्े दी जी के अिुसार हकसी
ह ती है । इच्छाओों क सीहमत करिे से जीर्ि में कम उपकरण ों की
का उपकार या अपकार करिा मिुष्य के र्श में िही ों है । यहद क ई
जरूरत ह ती है । यहद मािर् की इच्छाएों बढ़ती है त इच्छाओों की
मिुष्य समझता है हक र्ह हकसी का उपकार कर सकता है त र्ह
पूहतव के हलए साधि की जरूरत ह ती है । उि साधि ों क जुटािे के
अब ध और बुद्धिहीि है । यहद क ई हकसी का उपकार करता है त
हलए मिुष्य क बहुत से प्रयास करिे पड़ते हैं । कभी-कभी उसे
ईश्वर की प्रेरणा से प्रेररत ह कर करता है । ज भी मिुष्य इस धरती पर
दु ष्कमव का भी सहारा लेिा पड़ता है । इसीहलए सु खी र्ही है हजसका
जी रहा है र्ह भी ईश्वर की इच्छा है । यहद हमारे कारण हकसी क सु ख
मि उसके र्श में है । दु खी र्ह है हजसका मि उसके र्श में िही।ों
की प्राद्धप्त ह ती है त यह अच्छा है हकोंतु हमारे मि में अहों कार की
परर्श परर्श ह िे का अथव है दू सर ों की चाटु काररता और जी हुजूरी
भार्िा उत्पन्न िही ों ह िी चाहहए। सु ख पहुों चािे का अहभमाि यहद गलत
करिा। हजसका मि र्श में है र्ह हकसी की परर्ाह िही ों करता।
है त हकसी क दु ख पहुों चािे का अहभमाि उससे भी गलत है ।
हजसका मि र्श में िही ों र्ह अपिी कहमय ों क छु पािे के हलए
द्ववशेष: i) इस अोंश में हियहतर्ाद है ।
आडों बर करता है ।
ii) उपकार या अपकार करिा ईश्वर की इच्छा के अधीि है ।
द्ववशेष: i) जीर्ि में सु खी ह िे के हलए मि पर र्श करिा अहिर्ायव
iii) मिुष्य में हकसी भी प्रकार का अहभमाि गलत है ।
है ।
iv) यह शुि खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
ii) हजिके मि पर र्श िही ों र्ह सब से लाचार और असहाय है ।
6. दु द्वनया में त्याग नही ं है , प्रेम नही ं है , परमािण नही ं है - केवल
iii) यह खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
प्रचंड स्वािण, भीतर की द्वजजीद्ववषा, जीते रहने की प्रचंड इच्छा
iv) इस पोंद्धि में सु ख और दु ख की पररभाषा जीर्ि क दृहष्ट में
अगर बडी बात हो तो द्वफर यह बडी-बडी बे द्वलयां द्वजनके बल पर
रखकर की गई है ।
दल बनाए जाते हैं , शत्रु मदण न का अद्वभनय द्वकया जाता है , दे शोिार
द्ववशेष: i)प्रस्तु त अोंश में रहीम के गु ण ों का बखाि है ।
का नारा लगाया जाता है , साद्वहत्य और कला की मद्वहमा गाई जाती
ii) रहीम क अपिे जीर्ि में सम्माि और अपमाि द ि ों हमला।
है , झूठी है ।“
iii) इस जगत की बे रुखी के कारण ही रहीम िे कुटज क खरी ख टी
प्रसंग: ले खक हिर्े दी जी िे प्रस्तु त गद्ाों श में याज्ञर्ल्क्य के कथि का
सु िाई।
हर्र ध हकया है । याज्ञर्ल्क्य बहुत बड़े ब्रह्मर्ाद ऋहष थे। उन्ह ि
ों े अपिी
iv) यह खड़ी ब ली हहों दी में रहचत है ।
पत्नी क समझाते हुए कहा था हक इस जगत में सब कुछ स्वाथव के हलए
=======
ह ता है । पूत्र के हलए पूत्र हप्रय िही ों ह ता तथा पत्नी के हलए पत्नी हप्रय
िही ों ह ती, बद्धल्क सब अपिे मतलब के ररश्ते हिभाते हैं ।
 अन्य प्रश्नो की चचाण कक्षा मे होगी।

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व्याख्या: लेखक कहते हैं हक यहद दु हिया में सब कुछ स्वाथव के हलए
ह ता त त्याग, प्रेम और परमाथव जैसे शब्द ही िही ों ह ते । इस जगत में
बहुत सी ऐसी चीजें हैं ज स्वाथव के परे हैं । एक मिुष्य हकसी दू सरे मिुष्य

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