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रहीम के दोहे
रहीम के दोहे
कक्षा कायय
रहीम दास जी कहते हैं कक जब हमारे पास संपत्ति होती है तो लोग अपने आप हमारे सगे,
ररश्तेदार और ममत्र बनने का प्रयास करते हैं लेककन सच्चे ममत्र वो ही होते हैं , जो त्तवपत्ति या
त्तवपदा आने पर भी हमारे साथ बने रहते हैं और उनका साथ हमें कभी नहीं छोड़ना चाहहए।
शब्द र्थ:- कहि – कहना, संपति – धन, सगे – ररश्तेदार (अपने), बनि – बनते है , रीि
– तरीका, बबपति – संकट (कहिनाई), कसौटी जे कसे – बुरे समय में जो साथ में, िेई – वे
ही, स ाँचे – सच्चे, मीि – ममत्र (अपने)।
रहीम दास जी कहते हैं कक जब मछली पकड़ने के मलए जल में जाल डाला जाता है तो जल
बहकर बाहर ननकल जाता है । वह मछली के प्रनत अपना मोह त्याग दे ता है लेककन मछली का
प्रेम जल के प्रनत इतना अधधक होता है कक वो जल से अलग होते ही अपने प्राण त्याग दे ती है ,
यही सच्चा प्रेम है ।
शब्द र्थ:- परे – पड़ने पर, जल – पानी, ज ि- जाता, बहि – बहना, िजज – छोड़ना, मीनन
– मछमलयााँ, मोि – लगाव, मछरी – मछली. नीर – जल, िऊ – तब भी, न – नहीं, छ ाँड़ति
– छोड़ती, छोि- प्रेम (प्यार)।
3. िरूवर फल नहिं ख ि िै , सरवर पपयि न प न।
कहि रिीम परक ज हिि, संपति-सचहिं सुज न ।
रहीम दास जी कहते हैं कक जजस प्रकार आजश्वन के महीने में जो बादल आते हैं वो थोथे होते
हैं । वे केवल गरजते हैं लेककन बरसते नहीं हैं िीक उसी प्रकार धनी परु
ु ष ननधयन होने पर
अपने सख ु में बबताए हुए हदनों की बातें करता रहता है जजसका वतयमान में कोई मतलब नहीं
होता है । वह अपने सख ु में बबताए हुए पलों को याद करते रहते हैं लेककन अपनी वतयमान
जथथनत में कोई सुधार नहीं करते है ।
रहीम दास जी कहते हैं कक जजस प्रकार हमारी धरती सदी, गमी, बरसात के मौसम को एक
समान भाव से झेल लेती है । उसी प्रकार हमारे शरीर में भी वैसे ही क्षमता होनी चाहहए कक हम
जीवन में आने वाले पररवतयन और सुख-दख
ु को सहज रूप से थवीकार कर सकें।
शब्द र्थ:- रीि- ढं ग, सीि- सदी (िं ड), घ म – धूप, औ- और, मेि- बाररश, परे
– पड़ना, सो- सारा, सहि- सहना, त्यों – वैसे, दे ि- शरीर।
कहिन शब्दाथय
शब्द अथय
1. संपनत धन – दौलत
2. बबपनत मुजश्कल / कहिनाई
3. कसौटी बुरा समय
4. सााँचे सच्चा
5. तजज छोड़ना
6. छोह प्यार
7. तरुवर वक्ष
ृ
8. सरवर तालाब
9. परकाज दस
ू रों के काम
10. सुजान सज्जन व्यजक्त
11. थोथे खोखले
12. घहरात गजयना
13. सहह सहन करना
14. दे ह शरीर
गह
ृ कायय
प्रश्न 1: प ठ में हदए गए दोिों की कोई पंजक्ि कर्न िै और कोई कर्न को प्रम णिि करने
व ल उद िरि। इन दोनों प्रक र की पंजक्ियों को पिच न कर अलग - अलग ललणखए |
बुरे वक्त में जो व्यजक्त हमारी मदद करे , वही हमारा असली ममत्र होता है ।
जजस तरह पेड़ अपने फल थवयं नहीं खाते, नदी-तालाब अपना जल खुद नहीं पीते, उसी प्रकार
सज्जन मनुष्य अपने मलए धन नहीं जोड़ते। वो उस धन से दस
ू रों का ननिःथवाथय भला करते हैं |
प्रश्न 2: रिीम ने क्व र के म स में गरजने व ले ब दलों की िुलन ऐसे तनधथन व्यजक्ियों से क्यों
की िै जो पिले कभी धनी र्े और बीिी ब िों को बि कर दस
ू रों को प्रभ पवि करन च ििे िैं?
दोिे के आध र पर आप स वन के बरसने और गरजनेव ले ब दलों के पवषय में क्य किन
च िें गे?
उत्तर : रहीम जी ने क्वार महीने में आसमान में गरजने वाले बादलों को ननधयन हो चक
ु े धनी
व्यजक्त इसमलए कहा है क्योंकक अब उनके पास धन नहीं है , केवल धन की बातें हैं। खाली होने
के बाद बादल बरस नहीं सकते, इसी तरह खत्म होने के बाद अमीर व्यजक्त का धन भी लौटकर
नहीं आता है । वो अपने सुख के हदनों की बातें करते रहते हैं, जो वतयमान में ककसी काम की
नहीं होती। रहीम के दोहे के आधार पर हम गरजने वाले बादल को गरीब और बरसने वाले
बादल को अमीर कह सकते हैं।