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मुहावरे और लोकोक्तियााँ •अंगारोँ पर पैर रखना


मुहावरा- मुहावरे का अर्थ है बातचीत या अभ्यास। – जोखखम मोल लेना।
यह अरबी भाषा का शब्द है । जब कोई वाक्य का • अाँगूठे पर मारना
अंश मूल अर्थ से हट कर ककसी ववशेष अर्थ को – परवाह न करना।
दशाथता है , उसे मह
ु ावरा कहते हैं। मह
ु ावरा भाषा को • अाँगठ
ू ा ददखाना
सुन्दर बनाता है । मुहावरे का प्रयोग वाक्य के बीच – तनराश करना या ततरस्कारपूवक
थ मना करना।
में होता है । • अंगूर खट्टे होना
लोकोक्ति- लोकोक्क्तयााँ लोक-अनुभव से बनती हैं। – प्राप्त न होने पर उस वस्तु को रद्दी बताना।
ककसी समाज ने जो कुछ अपने लंबे अनुभव से • अंजर–पंजर ढीला होना
सीखा है उसे एक वाक्य में बााँध ददया है । ऐसे – अंग–अंग ढीला होना।
वाक्यों को ही लोकोक्क्त कहते हैं। इसे कहावत, • अंडा फूट जाना
जनश्रुतत आदद भी कहते हैं। – भेद खुल जाना।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंिर- मुहावरा वाक्यांश • अंधा बनाना
है और इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं ककया जा – ठगना।
सकता। लोकोक्क्त संपर्
ू थ वाक्य है और इसका • अाँधे की लकड़ी/लाठी
प्रयोग स्वतंत्र रूप से ककया जा सकता है । – एकमात्र सहारा।
जैसे-‘अंधा बनाना’ मुहावरा है । ‘ओखली में ससर • अंधे को चचराग ददखाना
ददया तो मूसलों से क्या डरना’ लोकोक्क्त है । – मूखथ को उपदे श दे ना।

• अंग–अंग खखल उठना • अंधाधंुध


- प्रसन्न हो जाना। – बबना सोचे–ववचारे ।
• अंग छूना • अंधानुकरर् करना
- कसम खाना। – बबना ववचारे अनुकरर् करना।
• अंग–अंग टूटना • अंधेर खाता
– सारे बदन में ददथ होना। – अव्यवस्र्ा।
• अंग–अंग ढीला होना • अंधेर नगरी
– बहुत र्क जाना। – वह स्र्ान जहााँ कोई तनयम व्यवस्र्ा न हो।
• अंग–अंग मुसकाना • अंधे के हार् बटे र लगना
– बहुत प्रसन्न होना। – बबना प्रयास भारी चीज पा लेना।
• अंग–अंग फूले न समाना • अंधोँ मेँ काना राजा
– बहुत आनंददत होना। – अयोग्य व्यक्क्तयोँ के बीच कम योग्य भी बहुत
• अंगड़ाना योग्य होता है ।
– अंगड़ाई लेना, जबरन पहन लेना। • अाँधेरे घर का उजाला
• अंकुश रखना – अतत सुन्दर/इकलौती सन्तान।
– तनयंत्रर् रखना। • अाँधेरे मेँ रखना
•अंग लगाना – भेद तछपाना।
– सलपटाना। • अाँधेरे मुाँह
• अंगारा होना – पौ फटते।
– क्रोध मेँ लाल हो जाना। • अंधेरे–उजाले
• अंगारा उगलना – समय–कुसमय।
– जली–कटी सुनाना। • अकड़ना

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– घमण्ड करना। • अपना सा मुाँह लेकर रहना


• अक्ल का दश्ु मन – लक्जजत होना।
– मूख।थ • अरमान तनकालना
• अक्ल चकराना – मन का गुबार पूरा करना।
– कुछ समझ में न आना। • अपने माँुह समयााँ समट्ठू बनना
• अक्ल का अंधा होना – अपनी बड़ाई आप करना।
– बेअक्ल होना। • अपने पााँव पर कुल्हाड़ी मारना
• अक्ल आना – जानबूझकर अपना नुकसान करना।
– समझ आना। • अपना राग अलापना
• अक्ल का कसरू – अपनी ही बातोँ पर बल दे ना।
– बुद्चध दोष। • अगर–मगर करना
• अक्ल काम न करना – बहाना करना।
– कुछ समझ न आना। • अडंगा करना
• अक्ल के घोड़े दौड़ाना – होते कायथ मेँ बाधा डालना।
– तरह–तरह की कल्पना करना। • अड़ पकड़ना
• अक्ल के तोते उड़ना – क्जद करना/पनाह मेँ आना।
– होश दठकाने न रहना। • अता होना
• अक्ल के बखखए उधेड़ना – समलना।
– बुद्चध नष्ट कर दे ना। • आाँख मारना
• अक्ल जाती रहना – इशारा करना।
– घबरा जाना। • आाँख तरसना
• अक्ल दठकाने होना – दे खने के लालातयत होना।
– होश मेँ आना। • आाँख फेर लेना
• अक्ल दठकाने ला दे ना – प्रततकूल होना।
– समझा दे ना। • आाँख बबछाना
• अक्ल से दरू /बाहर होना – प्रतीक्षा करना।
– समझ मेँ न आना। • आाँखें सेंकना
• अक्ल का पूरा – सुंदर वस्तु को दे खते रहना।
– मूख।थ • आाँख उठाना
• अक्ल पर पत्र्र पड़ना – दे खने का साहस करना।
– बुद्चध से काम न लेना। • आाँख खुलना
• अक्ल चरने जाना – होश आना।
– बुद्चध का न होना। • आाँख लगना
• अक्ल का पुतला – नींद आना अर्वा प्यार होना।
– बद्
ु चधमान। • आाँखों पर परदा पड़ना
• अक्ल के पीछे लठ सलए कफरना – लोभ के कारर् सच्चाई न दीखना।
– मूखत
थ ा का काम करना। • आाँसू पीकर रह जाना
• अपनी खखचड़ी खुद पकाना – भीतर ही भीतर दुःु खी होना।
– समलजुल कर न रहना। • आकाश के तारे तोड़ना
• अपना उल्लू सीधा करना – असम्भव कायथ करना।
– स्वार्थ ससद्ध करना। • आकाश–पाताल एक करना

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– कदठन प्रयत्न करना। – हाक्जर करना/अगुआ करना/आड़ लेना।


• आग मेँ घी डालना • आगे–वपछे कफरना
– क्रोध और अचधक बढ़ाना। – खुशामद करना।
• आग से खेलना • आगे होकर कफरना
– जानबझ
ू कर मस
ु ीबत मेँ फाँसना। – आगे बढ़कर स्वागत करना।
• आग पर पानी डालना • आज–कल करना
– उत्तेक्जत व्यक्क्त को शान्त करना। – टालमटोल करना।
• आटे –दाल का भाव मालूम होना • ईँट का जवाब पत्र्र से दे ना
– कदठनाई मेँ पड़ जाना। – ककसी के आरोप का करारा जवाब दे ना/कड़ाई से
• आसमान से बातेँ करना पेश आना।
– ऊाँची कल्पना करना। • ईँट से ईँट बजाना
• आड़े हार् लेना – नष्ट–भ्रष्ट कर दे ना/ववनाश करना।
– खरी–खरी सुनाना। • इधर–उधर की लगाना
• आसमान ससर पर उठाना – चुगली करना।
– बहुत शोर करना। • इधर–उधर की हााँकना
• आाँचल पसारना – व्यर्थ की गप्पे मारना।
– भीख मााँगना। • ईद का चााँद होना
– बहुत ददनोँ बाद ददखाई दे ना।
• आाँधी के आम होना • उाँ गली उठाना
– बहुत सस्ती वस्तु समलना। – लााँछन लगाना/दोष तनकालना।
• आाँसू पोँछना जाना।
– धीरज दे ना। • उड़ती चचड़ड़या पहचानना
• आग–पानी का बैर – ककसी की गुप्त बात जान लेना।
– स्वाभाववक शत्रुता। • उल्टी माला फेरना
• आसमान पर चढ़ना – बरु ा सोचना।
– बहुत अचधक असभमान करना। • उल्टे उस्तरे से मूाँडना
• आग–बबूला होना – धष्ृ टतापूवक
थ ठगना।
– बहुत क्रोध करना। • उठा न रखना
• आपे से बाहर होना – कमी न छोड़ना।
– अत्यचधक क्रोध से काबू मेँ न रहना। • उल्टी पट्टी पढ़ाना
• आकाश का फूल – और का और कहकर बहकाना।
– अप्राप्य वस्तु। • एक आाँख से दे खना
• आसमान पर उड़ना – सबको बराबर समझना।
– असभमानी होना। • एक और एक ग्यारह होना
• आग मेँ झोँकना – मेल मेँ शक्क्त होना।
– अतनष्ट मेँ डाल दे ना। • एड़ी–चोटी का जोर लगाना
• आग से पानी होना – पूरी शक्क्त लगाकर कायथ करना।
– क्रोधावस्र्ा से एकदम शान्त हो जाना। • ओखली मेँ ससर दे ना
• आगे–पीछे की सोचना – जानबूझकर ववपवत्त मेँ फाँसना।
– भावी पररर्ाम पर दृक्ष्ट रखना। • कंठ का हार होना
• आगे करना – अत्यंत वप्रय होना।

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• कंगाली मेँ आटा गीला – केवल सलखा–पढ़ी करते रहना/बहुत पत्र व्यवहार
– गरीबी मेँ और अचधक हातन होना। करना।
• कंधे से कंधा समलाना • कानोँ मेँ उाँ गली दे ना
– पूरा सहयोग करना। – कोई आश्चयथकारी बात सुनकर दं ग रहना।
• कच्चा चचट्ठा खोलना • खून का प्यासा
– भेद खोलना, तछपे हुए दोष बताना। – भयंकर दश्ु मनी/शत्रु।
• कच्ची गोली खेलना • खून का घूाँट पीना
– अनुभवी न होना। – क्रोध को अंदर ही अंदर सहना।
• कलेजा टूक टूक होना • खून सूखना
– शोक में दख
ु ी होना। – डर जाना।
• कटी पतंग होना • खून खौलना
– तनराचश्रत होना। – जोश मेँ आना।
• कलेजा ठण्डा होना • खून–पसीना एक करना
– संतोष होना। – बहुत पररश्रम करना।
• कलेजे का टुकड़ा • खून सफेद हो जाना
– अत्यचधक वप्रय होना। – दया न रह जाना।
• कलेजे पर पत्र्र रखना • खेत रहना
– चुपचाप सहन करना। – मारा जाना।
• कलेजे पर सााँप लोटना • गंगा नहाना
– ईष्याथ से जलना। – बड़ा कायथ कर दे ना।
• कसौटी पर कसना • गज भर की छाती होना
– परखना/परीक्षा लेना। – साहसी होना।
• कटे पर नमक तछड़कना • गााँठ बााँधना
– दुःु खी को और दुःु खी करना। – अच्छी तरह याद रखना।
• कााँटे बबछाना • गाल बजाना
– मागथ मेँ बाधा उत्पन्न करना। – डीीँग मारना।
• कानोँ मेँ तेल/रुई डालना • गागर मेँ सागर भरना
– ध्यान न दे ना। – र्ोड़े मेँ बहुत कुछ कहना।
• काम आना • गाजर मूली समझना
– यद्
ु ध मेँ मरना। – तच्
ु छ समझना।
• काया पलट होना • चगरचगट की तरह रं ग बदलना
– बबल्कुल बदल जाना। – बहुत जल्दी अपनी बात से बदलना।
• कासलख पोतना • गुदड़ी मेँ लाल होना
– बदनाम करना। – गरीबी मेँ भी गुर्वान होना।
• कागज की नाव • गल
ू र का फूल
– अस्र्ायी/क्षर् भंगुर। – दल
ु भ
थ का व्यक्क्त या वस्तु।
• कान कतरना • गेहूाँ के सार् घुन वपसना
– मात करना/बहुत चतुर होना। – दोषी के सार् तनदोष पर भी संकट आना।
• कान का कच्चा • गोबर गर्ेश
– हर ककसी बात पर ववश्वास करने वाला। – बबल्कुल बद्
ु ध/ू तनरा मख
ू ।थ
• कागजी घोड़े दौड़ाना • घर फूाँककर तमाशा दे खना

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– अपनी हातन करके मौज उड़ाना। – बुरी तरह हरा दे ना।


• घड़ोँ पानी पड़ना • छठी का दध
ू याद आना
– बहुत लक्जजत होना। – घोर संकट मेँ पड़ना/संकट मेँ वपछले सुख की
• घड़ी मेँ तोला घड़ी मेँ माशा याद आना।
– अक्स्र्र चचत्त वाला व्यक्क्त। • छप्पर फाड़कर दे ना
• घर मेँ गंगा बहाना – अचानक लाभ होना/बबना प्रयास के सम्पवत्त
– बबना कदठनाई के कोई अच्छी वस्तु पास मेँ ही समलना।
समल जाना। • छाती पर पत्र्र रखना
• घास खोदना – चुपचाप दुःु ख सहन करना।
– व्यर्थ समय गाँवाना। • छाती पर सााँप लोटना
• चप्पा–चप्पा छान मारना – बहुत ईष्याथ करना।
– हर जगह ढूाँढ लेना। • छाती पर माँगू दलना
• चााँदी का जूता – बहुत परे शान करना/कष्ट दे ना।
– घूस का धन। • छूमन्तर होना
• चााँदी का जत
ू ा दे ना – गायब हो जाना।
– ररश्वत दे ना। • छोटे मुाँह बड़ी बात करना
• चााँदी होना – अपनी है ससयत से जयादा बात कहना।
– लाभ ही लाभ होना।
• चादर से बाहर पैर पसारना • जंगल मेँ मंगल होना

– आमदनी से अचधक खचथ करना। – उजाड़ मेँ चहल–पहल होना।

• चादर तानकर सोना • जमीन पर पैर न रखना

– तनक्श्चाँत होना। – अचधक घमण्ड करना।

• चार चााँद लगाना • जहर का घूाँट पीना

– शोभा बढ़ाना। – असह्य बात सहन कर लेना।

• चार ददन की चााँदनी • जलती आग मेँ कूदना

– र्ोड़े ददनोँ का सुख/अस्र्ायी वैभव। – ववपवत्त मेँ पड़ना।

• चचकना घड़ा • जबान पर चढ़ना

– बेशमथ। – याद आना।

• चचकना घड़ा होना • जबान मेँ लगाम न होना

– कोई प्रभाव न पड़ना। – बेमतलब बोलते जाना।

• चेहरे पर हवाईयााँ उड़ना • जमीन आसमान एक करना

– घबरा जाना। – सब उपाय कर डालना।

• चैन की बंशी बजाना • जमीन आसमान का फकथ

– सुख से रहना। – बहुत भारी अंतर।

• चोटी का पसीना एड़ी तक आना • जलती आग मेँ तेल डालना

– कड़ा पररश्रम करना। – और भड़काना।

• चोली दामन का सार् • जहर उगलना

– घतनष्ठ सम्बन्ध। – कड़वी बातेँ करना।

• चौदहवीीँ का चााँद • जान के लाले पड़ना

– बहुत सन् – गम्भीर संकट मेँ पड़ना।


ु दर।
• छक्के छुड़ाना • जान पर खेलना

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– मुसीबत मेँ रहकर काम करना। – तनधथन व्यक्क्त/खोखला।


• जान हर्ेली पर रखना • दठकाने आना
– प्रार्ोँ की परवाह न करना। – ठीक स्र्ान पर आना।
• जी चुराना • ठीकरा फोड़ना
– ककसी काम से दरू भागना। – दोष लगाना।
• जी का जंजाल • ठोकर खाना
– व्यर्थ का झंझट। – हातन उठाना।
• जी भर जाना • डंका बजाना
– हृदय द्रववत होना। – ख्यातत होना/प्रभाव जमाना/घोषर्ा करना।
• जीती मक्खी तनगलना • डंके की चोट कहना
– जानबूझकर बेईमानी करना। – स्पष्ट कहना।
• जी पर आ बनना • डकार जाना
– मुसीबत मेँ आ फाँसना। – ककसी की चीज को लेकर न दे ना/माल पचा
• जी चुराना जाना।
– काम करने से कतराना। • डोरी ढीली छोड़ना
• जूततयााँ चटकाना/तोड़ना – तनयन्त्रर् मेँ ढील दे ना।
– मारे –मारे कफरना। • डोरे डालना
– प्रेम मेँ फाँसाना।
• जूततयााँ/जूते चाटना • ढपोरशंख होना
– चापलस
ू ी करना। – झठ
ू ा या गप्पी आदमी।
• जूततयोँ मेँ दाल बााँटना • ढाई ददन की बादशाहत
– लड़ाई झगड़ा हो जाना। – र्ोड़े ददन की मौज–बहार।
• जोड़–तोड़ करना • दढाँ ढोरा पीटना
– उपाय करना। – अतत प्रचाररत करना/सबको बताना।
• झक मारना • ढोल मेँ पोल होना
– व्यर्थ पररश्रम करना। – र्ोर्ा या सारहीन।
• झाडू कफराना • तलवे चाटना
– सब कुछ बबाथद कर दे ना। – खुशामद करना।
• झोली भरना • तार–तार होना
– अपेक्षा से अचधक दे ना। – परू ी तरह फट जाना।
• टे ढ़ी उाँ गली से घी तनकालना • तारे चगनना
– शक्क्त से कायथ ससद्ध करना। – रात को नीीँद न आना/व्यग्रता से प्रतीक्षा करना।
• टे ढ़ी खीर • ततल का ताड़ करना
– कदठन काम। – बढ़ा चढ़ाकर बातेँ करना।
• टूट पड़ना • तततर–बबतर होना
– सहसा आक्रमर् कर दे ना। – बबखर कर भाग जाना।
• टोपी उछालना • तीन का तेरह होना
– अपमान करना। – अलग–अलग होना।
• ठं डा पड़ना • तूती बोलना
– क्रोध शान्त होना। – खब
ू प्रभाव होना।
• ठन–ठन गोपाल • तेल की कचौड़ड़योँ पर गवाही दे ना

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– सस्ते मेँ काम करना। – जगह छोड़ना।


• तेली का बैल होना • ददन कफरना
– हर समय काम मेँ लगे रहना। – भाग्य पलटना।
• तेवर चढ़ाना • ददन मेँ तारे ददखाई दे ना
– गस्
ु सा होना। – घबरा जाना/अजीब हालत होना।
• र्ाह लेना • ददन–रात एक करना
– पता लगाना। – खूब पररश्रम करना।
• र्ाली का बैँगन • ददन दन
ू ी रात चौगुनी होना
– लाभ–हातन दे खकर पक्ष बदलने वाला व्यक्क्त/ – बहुत जल्दी–जल्दी होना।
ससद्धान्तहीन व्यक्क्त। • ददमाग आसमान पर चढ़ना
• र्ूककर चाटना – बहुत घमण्ड होना।
– बात कहकर बदल जाना। • दो नावोँ पर पैर रखना
• दबे पााँव चलना – दोनोँ तरफ रहना/एक सार् दो लक्ष्योँ को पाने की
– ऐसे चलना क्जससे चलने की कोई आहट न हो। चेष्टा करना।
• दमड़ी के सलए चमड़ी उधेड़ना • दो टूक जवाब दे ना
– मामूली सी बात के सलए भारी दण्ड दे ना। – साफ–साफ उत्तर दे ना।
• दम तोड़ दे ना • दौड़–धूप करना
– मत्ृ यु को प्राप्त होना। – कठोर श्रम करना।
• दााँतोँ तले उाँ गली दबाना • दृक्ष्ट फेरना
– आश्चयथ करना/है रान होना। – अप्रसन्न होना।
• दााँत पीसना • धक्जजयााँ उड़ाना
– क्रोध करना। – नष्ट–भ्रष्ट करना।
• दााँत पीसकर रहना • धरती पर पााँव न पड़ना
– क्रोध पीकर चुप रहना। – असभमान मेँ रहना।
• दााँत काटी रोटी होना • धल
ू फााँकना
– घतनष्ठ समत्रता। – व्यर्थ मेँ भटकना।
• दााँत उखाड़ना • धूप मेँ बाल सफेद करना
– कड़ा दण्ड दे ना। – अनुभवहीन होना।
• दााँत खट्टे करना • धूल मेँ समल जाना
– परास्त करना/नीचा ददखाना। – नष्ट हो जाना।
• दाने–दाने को तरसना • नकेल हार् मेँ होना
– अत्यंत गरीब होना। – वश मेँ होना।
• दाल मेँ काला होना • नमक समचथ लगाना
– सन्दे हपूर्थ होना/गड़बड़ होना। – बात बढ़ा–चढ़ाकर कहना।
• दाल न गलना • नाक कटना
– वश नहीीँ चलना/सफल न होना। – बदनामी होना।
• दादहना हार् होना • नाक काटना
– अत्यन्त ववश्वासपात्र बनना/बहुत बड़ा सहायक। – अपमातनत करना।
• दामन पकड़ना • नाक चोटी काटकर हार् मेँ दे ना
– सहारा लेना। – दद
ु थ शा करना।
• दाना–पानी उठना • नाक भौँ चढ़ाना

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– घर्
ृ ा या असन्तोष प्रकट करना। – अपने ऊपर र्ोड़ा खचथ करना।
• तनन्यानवेँ के फेर मेँ पड़ना • पेट मेँ चूहे दौड़ना/कूदना
– पैसा जोड़ने के चक्कर मेँ पड़ना। – भूख लगना।
• नीला–पीला होना • पेट बााँधकर रहना
– गस्
ु से होना। – भख
ू े रहना।
• नौ दो ग्यारह होना • प्रार् हर्ेली पर सलए कफरना
– भाग जाना। – जीवन की परवाह न करना।
• नौ ददन चले ढाई कोस • फट पड़ना
– बहुत धीमी गतत से कायथ करना। – एकदम गुस्से मेँ हो जाना।
• पगड़ी उछालना • फाँू क–फाँू ककर कदम रखना
– बेइजजत करना। – सावधानी बरतना।
• पगड़ी रखना • फूटी आाँख न सुहाना
– इजजत रखना। – अच्छा न लगना।
• पसीना–पसीना होना • फूला न समाना
– बहुत र्क जाना। – अत्यचधक खश
ु होना।
• पहाड़ टूट पड़ना • फूलकर कूप्पा होना
– भारी ववपवत्त आ जाना। – बहुत खुश या बहुत नाराज होना।

• पााँचोँ उाँ गसलयााँ घी मेँ होना • बंदर घुड़की/भभकी


– सब ओर से लाभ होना। – प्रभावहीन धमकी।
• पााँव उखड़ना • बखखया उधेड़ना
– हारकर भाग जाना। – भेद खोलना।
• पााँव फूाँक–फूाँक कर रखना • बतछया का ताऊ
– सावधानी से कायथ करना। – मूख।थ
• पानी-पानी होना • बट्टा लगना
– अत्यचधक लक्जजत होना। – कलंक लगना।
• पानी में आग लगाना • बड़े घर की हवा खाना
– शांतत भंगकर दे ना। – जेल जाना।
• पानी फेर दे ना • बरस पड़ना
– तनराश कर दे ना। – अतत क्रुद्ध होकर डााँटना।
• पानी भरना • बक्ल्लयोँ उछलना
– तुच्छ लगना। – बहुत प्रसन्न होना।
• पानी पी–पीकर कोसना • बााँए हार् का खेल
– गासलयााँ बकते जाना। – बहुत सरल काम।
• पानी का मोल होना • बााँछे खखल जाना
– बहुत सस्ता। – अत्यंत प्रसन्न होना।
• पापड़ बेलना • बाजार गमथ होना
– बेकार जीवन बबताना। – काम–धंधा तेज होना।
• पीठ ददखाना • बात का धनी होना
– कायरता का आचरर् करना। – वचन का पक्का होना।
• पेट काटना • बाल की खाल तनकालना

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– नुकता–चीनी करना/बहुत तकथ–ववतकथ करना। – ररश्वत दे ना।


• बाल बााँका न होना/कर सकना • मोहर लगा दे ना
– कुछ भी नुकसान न होना/कर सकना। – पुक्ष्ट करना।
• बाल–बाल बचना • मौत ससर पर खेलना
– बड़ी कदठनाई से बचना। – मत्ृ यु समीप होना।
• बासी कढ़ी मेँ उबाल आना • रं ग उड़ना
– समय बीत जाने पर इच्छा जागना। – घबरा जाना।
• बबल्ली के गल्ले मेँ घंटी बााँधना • रं ग मेँ भंग पड़ना
– अपने को संकट मेँ डालना। – आनन्दपूर्थ कायथ मेँ बाधा पड़ना।
• मार्ा ठनकना • रं ग बदलना
– संदेह होना। – पररवतथन होना।
• समट्टी का माधो • रं गा ससयार होना
– बबल्कुल बुद्धू। – धोखा दे ने वाला।
• समट्टी खराब करना • रफूचक्कर होना
– बरु ा हाल करना। – भाग जाना।
• समट्टी मेँ समल जाना • राई का पहाड़ बनाना
– बबाथद होना। – जरा–सी बात को बढ़ा–चढ़ाकर प्रस्तुत करना।

• मुाँहतोड़ जवाब दे ना • रोँगटे खड़े होना


– बदले मेँ करारी चोट करना। – डर से रोमांचचत होना।
• मुाँह की खाना • रोड़ा अटकाना
– हार मानना। – बाधा डालना।
• मुाँह में पानी भर आना • रोम–रोम खखल उठना
– खाने को जी ललचाना। – प्रसन्न होना।
• माँह
ु खून लगना • लाँ गोटी मेँ फाग खेलना
– ररश्वत लेने की आदत पड़ जाना। – गरीबी मेँ आनन्द लूटना।
• मुाँह तछपाना • लकीर पीटना
– लक्जजत होना। – पुरानी रीतत पर चलना।
• मुाँह रखना • लकीर का फकीर होना
– मान रखना। – प्राचीन परम्पराओीँ को सख्ती से मानने वाला।
• मुाँह पर कासलख पोतना • लड़ाई मोल लेना
– कलंक लगाना। – झगड़ा पैदा करना।
• मुाँह उतरना • लट्टू होना
– उदास होना। – मस्त होना/मोदहत होना।
• माँह
ु ताकना • ललाट मेँ सलखा होना
– दस
ू रे पर आचश्रत होना। – भाग्य मेँ बदा होना।
• मुाँह बंद करना • लहू का घूाँट पीना
– चुप कर दे ना। – अपमान सहन करना।
• मुट्ठी मेँ होना • लाख का घर राख
– वश मेँ होना। – धनी का तनधथन हो जाना।
• मुट्ठी गमथ करना • लाल–पीला होना

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– क्रोचधत होना। – समय बदल जाना।


• लदु टया डुबोना • हवा का रुख पहचानना
– काम बबगाड़ना। – अवसर की आवश्यकता को पहचानना।
• लेने के दे ने पड़ना • हार् का मैल
– लाभ के स्र्ान पर हातन होना। – साधारर् चीज।
• लोहा मानना • हार् कट जाना
– ककसी की शक्क्त स्वीकार करना। – परवश होना।
• लोहे के चने चबाना • हार् मेँ करना
– कदठन काम करना/बहुत संघषथ करना। – अपने वश मेँ करना।
• ववष उगलना • हार् को हार् न सझ
ू ना
– द्वेषपर्
ू थ बातेँ करना/बरु ा–भला कहना। – घना अन्धकार होना।
• शहद लगाकर चाटना • हार् खाली होना
– तच्
ु छ वस्तु को महत्त्व दे ना। – रुपया-पैसा न होना।
• सशकार हार् लगना • हार् खींचना
– आसामी समलना। – सार् न दे ना।
• शैतान की आाँत • हार् पे हार् धरकर बैठना
– लम्बी बात। – तनकम्मा होना/बबना कायथ के बैठे रहना।
• शैतान के कान कतरना • हार्ों के तोते उड़ना
– बहुत चालाक होना। – दुःु ख से है रान होना/अचानक घबरा जाना।
• श्रीगर्ेश करना • हार्ोंहार्
– शुरु करना। – बहुत जल्दी/तत्काल।
• सब्ज बाग ददखाना • हार् मलते रह जाना
– कोरा लोभ दे कर बहकाना। – पछताना।
• सााँप को दध
ू वपलाना • हार् साफ करना
– दष्ु ट की रक्षा करना। – चुरा लेना/बेईमानी से लेना।
• सााँप–छछूंदर की गतत होना • हार्–पााँव मारना
– असंमजस या दवु वधा की दशा होना। – प्रयास करना।
• सााँप सूाँघ जाना • हार्–पााँव फूलना
– गुप–चुप हो जाना। – घबरा जाना।
• हर्ेली पर सरसोँ उगना • हार् डालना
– कम समय मेँ अचधक कायथ करना। – शुरू करना।
• हजामत बनाना • हार् फैलाना
– लूटना/ठगना। – मााँगना।
• हर्ेली पर जान सलए कफरना • हार् धोकर पीछे पड़ना
– मरने की परवाह न करना। – बुरी तरह पीछे पड़ना/पीछा न छोड़ना।
• हवा लगना • दहन्दी की चचन्दी तनकालना
– असर पड़ना। – बात की तह तक पहुाँचना।
• हवा से बातें करना • हुक्का–पानी बन्द कर दे ना
– बहुत तेज दौड़ना। – जातत से बाहर कर दे ना।
• हवा हो जाना • हुसलया बबगाड़ना
– गायब हो जाना/भाग जाना। – दगु त
थ करना।
• हवा पलटना

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प्रमुख लोकोक्तियााँ व उनका अर्थ


• अंडा ससखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर • अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना
– छोटे के द्वारा बड़े को उपदे श दे ना। – ककसी दस
ू रे के भरोसे नहीं रहना।
• अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई • अपना मकान कोट समान
– पररश्रम कोई करे लाभ ककसी और को समले। – अपना घर सबसे सुरक्षक्षत स्र्ान होता है ।
• अंत भले का भला • अपना रख पराया चख
– भलाई करने वाले का भला ही होता है । – अपनी वस्तु बचाकर रखना और दस
ू रों की वस्तुएाँ
• अंधा बााँटे रे वड़ी कफर-कफर अपनोँ को दे य इस्तेमाल करना।
– अपने अचधकार का लाभ अपने लोगों को ही • अपना लाल गाँवाय के दर-दर मााँगे भीख
पहुाँचाना। – अपनी बहुमूल्य वस्तु को गवााँ दे ने से आदमी
• अंधा क्या चाहे , दो आाँखें दस
ू रों का मोहताज हो जाता है ।
– मनचाही वस्तु प्राप्त होना। • अपना ही सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष
• अंधा क्या जाने बसंत बहार – अपनी ही वस्तु खराब हो तो दस
ू रों को दोष दे ना
– जो वस्तु दे खी ही नहीं गई, उसका आनंद कैसे उचचत नहीं है ।
जाना जा सकता है । • अपनी- अपनी खाल में सब मस्त
• अंधे अंधा ठे सलया दोनों कूप पड़ंत – अपनी पररक्स्र्तत से संतुष्ट रहना।
– दो मूखथ एक दस
ू रे की सहायता करें तो भी दोनों • अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग
को हातन ही होती है । – सभी का अलग-अलग मत होना।
• अंधे की लाठी • अपनी करनी पार उतरनी
– बेसहारे का सहारा। – अच्छा पररर्ाम पाने के सलए स्वयं काम करना
• अंधे के आगे रोये, अपनी आाँखें खोये पड़ता है ।
– मूखथ को ज्ञान दे ना बेकार है । • अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है
• अंधे के हार् बटे र लगना – अपने घर में आदमी शक्क्तशाली होता है ।
– अनायास ही मनचाही वस्तु समल जाना। • अपनी गाँठ पैसा तो पराया आसरा कैसा
• अंधेर नगरी चौपट राजा , टके सेर भाजी टके सेर – समर्थ व्यक्क्त को दस
ू रे के आसरे की आवश्यकता
खाजा नहीं होती।
– जहााँ मुखखया मूखथ हो और न्याय अन्याय का • आदमी की दवा आदमी है
ख्याल न रखता हो। – मनष्ु य ही मनष्ु य की सहायता करते हैं।
• अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता • आदमी को ढाई गज कफन काफी है
– अकेला व्यक्क्त ककसी बड़े काम को सम्पन्न – अपनी हालत पर संतुष्ट रहना।
करने में समर्थ नहीं हो सकता। • आदमी जाने बसे सोना जाने कसे
• अकेला हाँसता भला न रोता भला – आदमी की पहचान नजदीकी से और सोने की
– सख
ु हो या द:ु ख सार्ी की जरूरत पड़ती ही है । पहचान सोना कसौटी से होती है ।
• अक्ल बड़ी या भैंस • आम के आम गुठसलयों के दाम
– शारीररक शक्क्त की अपेक्षा बुद्चध का अचधक – दोहरा लाभ होना।
महत्व होता है । • आधा तीतर आधा बटे र
• अधजल गगरी छलकत जाए – बेमेल वस्तु।
– ओछा आदमी र्ोड़ा गर्
ु या धन होने पर इतराने • आधी छोड़ परू ी को धावै, आधी समले न परू ी पावै
लगता है । – लालच करने से हातन होती है ।
• अब पछताए होत क्या जब चचड़ड़या चुग गई खेत • आप काज़ महा काज़
– नुकसान हो जाने के बाद पछताना बेकार है । – अपने उद्दे श्य की पूततथ करना चादहए।

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• आप भला तो जग भला • एक ही लकड़ी से सबको हााँकना


– भले आदमी को सब लोग भले ही प्रतीत होते हैं। – छोटे -बड़े का ध्यान न रखना।
• आपा तजे तो हरर को भजे • एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
– परमार्थ करने के सलए स्वार्थ को त्यागना पड़ता – एक सार् अनेक कायथ करने से कोई भी कायथ
है । परू ा नहीं होता।
• आम खाने से काम, पेड़ चगनने से क्या मतलब • ओखली में ससर ददया तो मस
ू लों से क्या डरना
– तनरुद्दे श्य कायथ न करना। – कदठनाइयों न डरना।
• आए की खुशी न गए का गम • कभी के ददन बड़े कभी की रात
– अपनी हालात में संतुष्ट रहना। – सब ददन एक समान नहीं होते।
• आए र्े हरर भजन को ओटन लगे कपास • कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर
– लक्ष्य को भूलकर अन्य कायथ करना। – पररक्स्र्ततयााँ बदलती रहती हैं।
• आसमान से चगरा खजूर पर अटका • कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता
– सफलता पाने में अनेक बाधाओं का आना। – ऊपरी वेशभूषा से ककसी के अवगुर् नहीं तछप
• इतना खाए क्जतना पावे जाते।
– अपनी औकात को ध्यान में रखकर खचथ करना। • कमान से तनकला तीर और माँह
ु से तनकली बात
• इतनी सी जान, गज भर की ज़बान वापस नहीं आती
– अपनी उम्र के दहसाब से अचधक बोलना। – सोच-समझकर ही बात करनी चादहए।
• ऊाँची दक
ु ान फीका पकवान • करत-करत अभ्यास के जड़मतत होत सुजान
– तड़क-भड़क करके स्तरहीन चीजों को खपाना। – अभ्यास करते रहने से सफलता अवश्य ही प्राप्त
• ऊाँट ककस करवट बैठता है होती है ।
– सन्दे ह की क्स्र्तत में होना। • करम के बसलया, पकाई खीर हो गया दसलया
• ऊाँट के मुाँह में जीरा – काम बबगड़ना।
– अत्यन्त अपयाथप्त। • करमहीन खेती करे , बैल मरे या सूखा पड़े
• ऊधो का लेना न माधो का दे ना – दभ
ु ाथग्य हो तो कोई न कोई काम खराब होता
– ककसी के तीन-पााँच में न रहना, स्वयं में सलप्त रहता है ।
होना। • कर सलया सो काम, भज सलया सो राम
• एक अंडा वह भी गंदा – अधूरे काम का कुछ भी मतलब नहीं होता।
– बेकार की वस्तु। • कर सेवा तो खा मेवा
• एक तवे की रोटी, क्या छोटी क्या मोटी – अच्छे कायथ का पररर्ाम अच्छा ही होता है ।
– ककसी प्रकार का भेदभाव न रखना। • करे कोई भरे कोई
• एक तो चोरी ऊपर से सीना-जोरी – ककसी की करनी का फल ककसी अन्य द्वारा
– स्वयं के दोषी होने पर भी रोब गााँठना। भोगना।
• एक ही र्ैली के चट्टे -बट्टे • करे दाढ़ी वाला, पकड़ा जाए जाए मुाँछों वाला
– एक जैसे दग
ु र्
ुथ वाले। – प्रभावशाली व्यक्क्त के अपराध के सलए ककसी
• एक माँह
ु दो बात छोटे आदमी को दोषी ठहराया जाना।
– अपनी बात से पलटना। • कल ककसने दे खा है
• एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती – आज का काम आज ही करना चादहए।
– समान अचधकार वाले दो व्यक्क्त एक क्षेत्र में • कलार की दक
ु ान पर पानी वपयो तो भी शराब का
नहीं रह सकते। शक होता है
• एक हार् से ताली नहीं बजती – बरु ी संगत होने पर कलंक लगता ही है ।
– झगड़े के सलए दोनों पक्ष क्जम्मेदार होते हैं।

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• कहााँ राम–राम, कहााँ टााँय–टााँय • ककया चाहे चाकरी राखा चाहे मान
– असमान चीजों की तुलना नहीं हो सकती। – नौकरी करके स्वासभमान की रक्षा नहीं हो
• कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा सकती।
– असम्बक्न्धत वस्तुओं का एक स्र्ान पर संग्रह। • ककस खेत की मूली है
• कहे खेत की, सुने खसलहान की – महत्व न दे ना।
– कुछ कहने पर कुछ समझना। • ककसी का घर जले कोई तापे
• का वषाथ जब कृषी सख
ु ाने – ककसी की हातन पर ककसी अन्य का लाभाक्न्वत
–अवसर तनकलने जाने पर सहायता भी व्यर्थ होती होना।
है । • कंु जड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता
• कागज़ की नाव नहीं चलती – अपनी चीज को कोई खराब नहीं कहता।
– बेईमानी या धोखेबाज़ी जयादा ददन नहीं चल • कुाँए की समट्टी कुाँए में ही लगती है
सकती। – कुछ भी बचत न होना।
• काजल की कौठरी में कैसेहु सयानो जाय एक • कुततया चोरों से समल जाए तो पहरा कौन दे य
लीक काजल की लचगहै सो लाचगहै – भरोसेमन्द व्यक्क्त का बेईमान हो जाना।
– बुरी संगत होने पर कलंक अवश्य ही लगता है । • कुत्ता भी दम
ु दहलाकर बैठता है
• काज़ी जी दब
ु ले क्यों? शहर के अंदेशे से – कुत्ता भी बैठने के पहले बैठने के स्र्ान को साफ
– दस
ू रों की चचन्ता में घल
ु ना। करता है ।
• काठ की हााँडी एक बार ही चढ़ती है • कुत्ते की दम
ु बारह बरस नली में रखो तो भी टे ढ़ी
– धोखा केवल एक बार ही ददया जा सकता है , बार की टे ढ़ी
बार नहीं। – लाख कोसशश करने पर भी दष्ु ट अपनी दष्ु टता
• कान में तेल डाल कर बैठना नहीं त्यागता।
– आवश्यक चचन्ताओं से भी दरू रहना। • कुत्ते को घी नहीं पचता
• काबुल में क्या गधे नहीं होते – नीच आदमी ऊाँचा पद पाकर इतराने लगता है ।
– अच्छाई के सार्–सार् बुराई भी रहती है । • कुत्ता भूाँके हजार, हार्ी चले बजार
• काम का न काज का, दश्ु मन अनाज का – समर्थ व्यक्क्त को ककसी का डर नहीं होता।
– खाना खाने के अलावा और कोई भी काम न • कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है
करने वाला व्यक्क्त। – अपनी ही वस्तु की प्रशंसा करना।
• काम को काम ससखाता है • कै हं सा मोती चुगे कै भूखा मर जाय
– अभ्यास करते रहने से आदमी होसशयार हो जाता – सम्मातनत व्युक्क्त अपनी मयाथदा में रहता है ।
है । • कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त
• काल के हार् कमान, बूढ़ा बचे न जवान – कोई अमीरी से संतुष्ट तो कोई गरीबी से।
– मत्ृ यु एक शाश्वत सत्य है , वह सभी को ग्रसती • कोठी वाला रोवें, छप्पर वाला सोवे
है । – धनवान की अपेक्षा गरीब अचधक तनक्श्चंत रहता
• काल न छोड़े राजा, न छोड़े रं क है ।
– मत्ृ यु एक शाश्वत सत्य है , वह सभी को ग्रसती • कोयल होय न उजली सौ मन साबन
ु लाइ
है । – स्वभाव नहीं बदलता।
• काला अक्षर भैंस बराबर • कोयले की दलाली में मुाँह काला
– अनपढ़ होना। – बुरी संगत से कलंक लगता ही है ।
• काली के ब्याह मेँ सौ जोखखम • कौड़ी नहीं गााँठ चले बाग की सैर
– एक दोष होने पर लोगोँ द्वारा अनेक दोष – अपनी सामर्थयथ से अचधक की सोचना।
तनकाल ददए जाते हैं।

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• मानो तो दे वता नहीं तो पत्र्र • राम राम जपना पराया माल अपना
– माने तो आदर, नहीं तो उपेक्षा। – ऊपर से भक्त, असल में ठग।
• माया से माया समले कर-कर लंबे हार् • रोज कुआाँ खोदना, रोज पानी पीना
– धन ही धन को खींचता है । – रोज कमाना रोज खाना।
• माया बादल की छाया • रोगी से बैद
– धन-दौलत का कोई भरोसा नहीं। – भुक्तभोगी अनुभवी हो जाता है ।
• मार के आगे भूत भागे • लड़े ससपाही नाम सरदार का
– मार से सब डरते हैँ। – काम का श्रेय अगुवा को ही समलता है ।
• समयााँ की जूती समयााँ का ससर • लड्डू कहे मुाँह मीठा नहीं होता
– दश्ु मन को दश्ु मन के हचर्यार से मारना। – केवल कहने से काम नहीं बन जाता।
• समस्सों से पेट भरता है ककस्सों से नहीं • लातों के भूत बातों से नहीं मानते
– बातों से पेट नहीं भरता। – मार खाकर ही काम करने वाला।
• मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा र्ू-र्ू • लाल गुदड़ी में नहीं तछपते
– मतलबी होना। – गुर् नहीं तछपते।
• माँह
ु में राम बगल में छुरी • सलखे ईसा पढ़े मस
ू ा
– ऊपर से समत्र भीतर से शत्र।ु – गंदी सलखावट।
• मुाँह मााँगी मौत नहीं समलती • लेना एक न दे ना दो
– अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता। – कुछ मतलब न रखना।
• मुफ्त की शराब काज़ी को भी हलाल • लोहा लोहे को काटता है
– मफ्
ु त का माल सभी ले लेते हैं। – प्रत्येक वस्तु का सदप
ु योग होता है ।
• मुल्ला की दौड़ मक्स्जद तक • वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है
– सीसमत दायरा। – वहम सबसे बुरा रोग है ।
• मोरी की ईंट चौबारे पर • ववष को सोने के बरतन में रखने से अमत
ृ नहीं
– छोटी चीज का बड़े काम में लाना। हो जाता
• म्याऊाँ के ठोर को कौन पकड़े – ककसी चीज़ का प्रभाव बदल नहीं सकता।
– कदठन काम कोई नहीं करना चाहता। • शौकीन बुदढया मलमल का लहाँगा
• यह मुाँह और मसूर की दाल – अजीब शौक करना।
– औकात का न होना। • शक्करखोरे को शक्कर समल ही जाता है
• रं ग लाती है दहना पत्र्र पे तघसने के बाद – जुगाड़ कर लेना।
– द:ु ख झेलकर ही आदमी का अनभ
ु व और सम्मान • सकल तीर्थ कर आई तम
ु ड़ड़या तौ भी न गयी
बढ़ता है । ततताई
• रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई – स्वाभाव नहीं बदलता।
– घमण्ड का खत्म न होना। • सखी से सूम भला जो तुरन्त दे जवाब
• राजा के घर मोततयों का अकाल? – लटका कर रखने वाले से तरु न्त इंकार कर दे ने
– समर्थ को अभाव नहीं होता। वाला अच्छा।
• रानी रूठे गी तो अपना सुहाग लेगी • सच्चा जाय रोता आय, झूठा जाय हाँसता आय
– रूठने से अपना ही नुकसान होता है । – सच्चा दख
ु ी, झूठा सुखी।
• राम की माया कहीं धूप कहीं छाया • सबेरे का भूला सांझ को घर आ जाए तो भूला
– कहीं सुख है तो कहीं दुःु ख है । नहीं कहलाता
• राम समलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी – गलती सध
ु र जाए तो दोष नहीं कहलाता।
– बराबर का मेल हो जाना।

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• समय पाइ तरूवर फले केततक सीखे नीर • सेर को सवा सेर
– काम अपने समय पर ही होता है । – बढ़कर टक्कर दे ना।
• समरर् को नदहं दोष गोसाई • सौ ददन चोर के, एक ददन साहूकार का
– समर्थ आदमी का दोष नहीं दे खा जाता। – चोरी एक न एक ददन खुल ही जाती है ।
• ससरु ाल सख
ु की सार जो रहे ददना दो चार • सौ सन
ु ार की एक लोहार की
– ररश्तेदारी में दो चार ददन ठहरना ही अच्छा होता – सुनार की हर्ौड़ी के सौ मार से भी अचधक लुहार
है । के घन का एक मार होता है ।
• सहज पके सो मीठा होय • हजजाम के आगे सबका ससर झुकता है
– धैयथ से ककया गया काम सुखकर होता है । – गरज पर सबको झुकना पड़ता है ।
• सााँच को आाँच नहीं • हर्ेली पर दही नहीीँ जमता
– सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता। – कायथ होने मेँ समय लगता है ।
• सााँप के मुाँह में छछूाँदर • हड्डी खाना आसान पर पचाना मुक्श्कल
– कहावत दवु वधा में पड़ना। – ररश्वत कभी न कभी पकड़ी ही जाती है ।
• सााँप तनकलने पर लकीर पीटना • हर मजथ की दवा होती है
– अवसर बीत जाने पर प्रयास व्यर्थ होता है । – हर बात का उपाय है ।
• सारी उम्र भाड़ ही झोँका • हराम की कमाई हराम में गाँवाई
– कुछ भी न सीख पाना। – बेईमानी का पैसा बुरे कामों में जाता है ।
• सारी दे ग में एक ही चावल टटोला जाता है • हवन करते हार् जलना
– जााँच के सलए र्ोड़ा-सा नमूना ले सलया जाता है । – भलाई के बदले कष्ट पाना।
• सावन के अंधे को हरा ही हरा सझ
ू ता है • हल्दी लगे न कफटकरी रं ग आए चोखा
– पररक्स्र्तत को न समझना। – बबना कुछ खचथ ककए काम बनाना।
• सावन हरे न भादों सूखे • हार् सुमरनी पेट/बगल कतरनी
– सदा एक सी दशा। – ऊपर से अच्छा भीतर से बरु ा।
• ससंह के वंश में उपजा स्यार • हार् कंगन को आरसी क्या, पढ़े सलखे को फारसी
– बहादरु ों की कायर सन्तान। क्या
• ससर कफरना – प्रत्यक्ष को प्रमार् की आवश्यकता नहीीँ।
– उल्टी-सीधी बातें करना। • हार्ी के दााँत खाने के और ददखाने के और
• सीधे का मुाँह कुत्ता चाटे – भीतर और बाहर में अंतर होना।
– सीधेपन का लोग अनुचचत लाभ उठाते हैं। • हार्ी तनकल गया दम
ु रह गई
• सन
ु ते-सन
ु ते कान पकना – र्ोड़े से के सलए काम अटकना।
– बार-बार सुनकर तंग आ जाना। • दहजड़े के घर बेटा होना
• सूत न कपास जुलाहे से लठालठी – असंभव बात।
– अकारर् वववाद। • हीरे की परख जौहरी जानता है
• सूरज धूल डालने से नहीं तछपता – गुर्वान ही गुर्ी को पहचान सकता है ।
– गर्
ु नहीं तछपता। • होनहार बबरवान के होत चीकने पात
• सूरदास की काली कमरी चढ़े न दज
ू ो रं ग – अच्छे गुर् आरम्भ में ही ददखाई दे ने लगते हैं।
– स्वभाव नहीं बदलता। • होनी हो सो होय
– जो होनहार है , वह होगा ही।

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