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मुहावरे
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• कंगाली मेँ आटा गीला – केवल सलखा–पढ़ी करते रहना/बहुत पत्र व्यवहार
– गरीबी मेँ और अचधक हातन होना। करना।
• कंधे से कंधा समलाना • कानोँ मेँ उाँ गली दे ना
– पूरा सहयोग करना। – कोई आश्चयथकारी बात सुनकर दं ग रहना।
• कच्चा चचट्ठा खोलना • खून का प्यासा
– भेद खोलना, तछपे हुए दोष बताना। – भयंकर दश्ु मनी/शत्रु।
• कच्ची गोली खेलना • खून का घूाँट पीना
– अनुभवी न होना। – क्रोध को अंदर ही अंदर सहना।
• कलेजा टूक टूक होना • खून सूखना
– शोक में दख
ु ी होना। – डर जाना।
• कटी पतंग होना • खून खौलना
– तनराचश्रत होना। – जोश मेँ आना।
• कलेजा ठण्डा होना • खून–पसीना एक करना
– संतोष होना। – बहुत पररश्रम करना।
• कलेजे का टुकड़ा • खून सफेद हो जाना
– अत्यचधक वप्रय होना। – दया न रह जाना।
• कलेजे पर पत्र्र रखना • खेत रहना
– चुपचाप सहन करना। – मारा जाना।
• कलेजे पर सााँप लोटना • गंगा नहाना
– ईष्याथ से जलना। – बड़ा कायथ कर दे ना।
• कसौटी पर कसना • गज भर की छाती होना
– परखना/परीक्षा लेना। – साहसी होना।
• कटे पर नमक तछड़कना • गााँठ बााँधना
– दुःु खी को और दुःु खी करना। – अच्छी तरह याद रखना।
• कााँटे बबछाना • गाल बजाना
– मागथ मेँ बाधा उत्पन्न करना। – डीीँग मारना।
• कानोँ मेँ तेल/रुई डालना • गागर मेँ सागर भरना
– ध्यान न दे ना। – र्ोड़े मेँ बहुत कुछ कहना।
• काम आना • गाजर मूली समझना
– यद्
ु ध मेँ मरना। – तच्
ु छ समझना।
• काया पलट होना • चगरचगट की तरह रं ग बदलना
– बबल्कुल बदल जाना। – बहुत जल्दी अपनी बात से बदलना।
• कासलख पोतना • गुदड़ी मेँ लाल होना
– बदनाम करना। – गरीबी मेँ भी गुर्वान होना।
• कागज की नाव • गल
ू र का फूल
– अस्र्ायी/क्षर् भंगुर। – दल
ु भ
थ का व्यक्क्त या वस्तु।
• कान कतरना • गेहूाँ के सार् घुन वपसना
– मात करना/बहुत चतुर होना। – दोषी के सार् तनदोष पर भी संकट आना।
• कान का कच्चा • गोबर गर्ेश
– हर ककसी बात पर ववश्वास करने वाला। – बबल्कुल बद्
ु ध/ू तनरा मख
ू ।थ
• कागजी घोड़े दौड़ाना • घर फूाँककर तमाशा दे खना
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– घर्
ृ ा या असन्तोष प्रकट करना। – अपने ऊपर र्ोड़ा खचथ करना।
• तनन्यानवेँ के फेर मेँ पड़ना • पेट मेँ चूहे दौड़ना/कूदना
– पैसा जोड़ने के चक्कर मेँ पड़ना। – भूख लगना।
• नीला–पीला होना • पेट बााँधकर रहना
– गस्
ु से होना। – भख
ू े रहना।
• नौ दो ग्यारह होना • प्रार् हर्ेली पर सलए कफरना
– भाग जाना। – जीवन की परवाह न करना।
• नौ ददन चले ढाई कोस • फट पड़ना
– बहुत धीमी गतत से कायथ करना। – एकदम गुस्से मेँ हो जाना।
• पगड़ी उछालना • फाँू क–फाँू ककर कदम रखना
– बेइजजत करना। – सावधानी बरतना।
• पगड़ी रखना • फूटी आाँख न सुहाना
– इजजत रखना। – अच्छा न लगना।
• पसीना–पसीना होना • फूला न समाना
– बहुत र्क जाना। – अत्यचधक खश
ु होना।
• पहाड़ टूट पड़ना • फूलकर कूप्पा होना
– भारी ववपवत्त आ जाना। – बहुत खुश या बहुत नाराज होना।
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• कहााँ राम–राम, कहााँ टााँय–टााँय • ककया चाहे चाकरी राखा चाहे मान
– असमान चीजों की तुलना नहीं हो सकती। – नौकरी करके स्वासभमान की रक्षा नहीं हो
• कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा सकती।
– असम्बक्न्धत वस्तुओं का एक स्र्ान पर संग्रह। • ककस खेत की मूली है
• कहे खेत की, सुने खसलहान की – महत्व न दे ना।
– कुछ कहने पर कुछ समझना। • ककसी का घर जले कोई तापे
• का वषाथ जब कृषी सख
ु ाने – ककसी की हातन पर ककसी अन्य का लाभाक्न्वत
–अवसर तनकलने जाने पर सहायता भी व्यर्थ होती होना।
है । • कंु जड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता
• कागज़ की नाव नहीं चलती – अपनी चीज को कोई खराब नहीं कहता।
– बेईमानी या धोखेबाज़ी जयादा ददन नहीं चल • कुाँए की समट्टी कुाँए में ही लगती है
सकती। – कुछ भी बचत न होना।
• काजल की कौठरी में कैसेहु सयानो जाय एक • कुततया चोरों से समल जाए तो पहरा कौन दे य
लीक काजल की लचगहै सो लाचगहै – भरोसेमन्द व्यक्क्त का बेईमान हो जाना।
– बुरी संगत होने पर कलंक अवश्य ही लगता है । • कुत्ता भी दम
ु दहलाकर बैठता है
• काज़ी जी दब
ु ले क्यों? शहर के अंदेशे से – कुत्ता भी बैठने के पहले बैठने के स्र्ान को साफ
– दस
ू रों की चचन्ता में घल
ु ना। करता है ।
• काठ की हााँडी एक बार ही चढ़ती है • कुत्ते की दम
ु बारह बरस नली में रखो तो भी टे ढ़ी
– धोखा केवल एक बार ही ददया जा सकता है , बार की टे ढ़ी
बार नहीं। – लाख कोसशश करने पर भी दष्ु ट अपनी दष्ु टता
• कान में तेल डाल कर बैठना नहीं त्यागता।
– आवश्यक चचन्ताओं से भी दरू रहना। • कुत्ते को घी नहीं पचता
• काबुल में क्या गधे नहीं होते – नीच आदमी ऊाँचा पद पाकर इतराने लगता है ।
– अच्छाई के सार्–सार् बुराई भी रहती है । • कुत्ता भूाँके हजार, हार्ी चले बजार
• काम का न काज का, दश्ु मन अनाज का – समर्थ व्यक्क्त को ककसी का डर नहीं होता।
– खाना खाने के अलावा और कोई भी काम न • कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है
करने वाला व्यक्क्त। – अपनी ही वस्तु की प्रशंसा करना।
• काम को काम ससखाता है • कै हं सा मोती चुगे कै भूखा मर जाय
– अभ्यास करते रहने से आदमी होसशयार हो जाता – सम्मातनत व्युक्क्त अपनी मयाथदा में रहता है ।
है । • कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त
• काल के हार् कमान, बूढ़ा बचे न जवान – कोई अमीरी से संतुष्ट तो कोई गरीबी से।
– मत्ृ यु एक शाश्वत सत्य है , वह सभी को ग्रसती • कोठी वाला रोवें, छप्पर वाला सोवे
है । – धनवान की अपेक्षा गरीब अचधक तनक्श्चंत रहता
• काल न छोड़े राजा, न छोड़े रं क है ।
– मत्ृ यु एक शाश्वत सत्य है , वह सभी को ग्रसती • कोयल होय न उजली सौ मन साबन
ु लाइ
है । – स्वभाव नहीं बदलता।
• काला अक्षर भैंस बराबर • कोयले की दलाली में मुाँह काला
– अनपढ़ होना। – बुरी संगत से कलंक लगता ही है ।
• काली के ब्याह मेँ सौ जोखखम • कौड़ी नहीं गााँठ चले बाग की सैर
– एक दोष होने पर लोगोँ द्वारा अनेक दोष – अपनी सामर्थयथ से अचधक की सोचना।
तनकाल ददए जाते हैं।
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• मानो तो दे वता नहीं तो पत्र्र • राम राम जपना पराया माल अपना
– माने तो आदर, नहीं तो उपेक्षा। – ऊपर से भक्त, असल में ठग।
• माया से माया समले कर-कर लंबे हार् • रोज कुआाँ खोदना, रोज पानी पीना
– धन ही धन को खींचता है । – रोज कमाना रोज खाना।
• माया बादल की छाया • रोगी से बैद
– धन-दौलत का कोई भरोसा नहीं। – भुक्तभोगी अनुभवी हो जाता है ।
• मार के आगे भूत भागे • लड़े ससपाही नाम सरदार का
– मार से सब डरते हैँ। – काम का श्रेय अगुवा को ही समलता है ।
• समयााँ की जूती समयााँ का ससर • लड्डू कहे मुाँह मीठा नहीं होता
– दश्ु मन को दश्ु मन के हचर्यार से मारना। – केवल कहने से काम नहीं बन जाता।
• समस्सों से पेट भरता है ककस्सों से नहीं • लातों के भूत बातों से नहीं मानते
– बातों से पेट नहीं भरता। – मार खाकर ही काम करने वाला।
• मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा र्ू-र्ू • लाल गुदड़ी में नहीं तछपते
– मतलबी होना। – गुर् नहीं तछपते।
• माँह
ु में राम बगल में छुरी • सलखे ईसा पढ़े मस
ू ा
– ऊपर से समत्र भीतर से शत्र।ु – गंदी सलखावट।
• मुाँह मााँगी मौत नहीं समलती • लेना एक न दे ना दो
– अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता। – कुछ मतलब न रखना।
• मुफ्त की शराब काज़ी को भी हलाल • लोहा लोहे को काटता है
– मफ्
ु त का माल सभी ले लेते हैं। – प्रत्येक वस्तु का सदप
ु योग होता है ।
• मुल्ला की दौड़ मक्स्जद तक • वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है
– सीसमत दायरा। – वहम सबसे बुरा रोग है ।
• मोरी की ईंट चौबारे पर • ववष को सोने के बरतन में रखने से अमत
ृ नहीं
– छोटी चीज का बड़े काम में लाना। हो जाता
• म्याऊाँ के ठोर को कौन पकड़े – ककसी चीज़ का प्रभाव बदल नहीं सकता।
– कदठन काम कोई नहीं करना चाहता। • शौकीन बुदढया मलमल का लहाँगा
• यह मुाँह और मसूर की दाल – अजीब शौक करना।
– औकात का न होना। • शक्करखोरे को शक्कर समल ही जाता है
• रं ग लाती है दहना पत्र्र पे तघसने के बाद – जुगाड़ कर लेना।
– द:ु ख झेलकर ही आदमी का अनभ
ु व और सम्मान • सकल तीर्थ कर आई तम
ु ड़ड़या तौ भी न गयी
बढ़ता है । ततताई
• रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई – स्वाभाव नहीं बदलता।
– घमण्ड का खत्म न होना। • सखी से सूम भला जो तुरन्त दे जवाब
• राजा के घर मोततयों का अकाल? – लटका कर रखने वाले से तरु न्त इंकार कर दे ने
– समर्थ को अभाव नहीं होता। वाला अच्छा।
• रानी रूठे गी तो अपना सुहाग लेगी • सच्चा जाय रोता आय, झूठा जाय हाँसता आय
– रूठने से अपना ही नुकसान होता है । – सच्चा दख
ु ी, झूठा सुखी।
• राम की माया कहीं धूप कहीं छाया • सबेरे का भूला सांझ को घर आ जाए तो भूला
– कहीं सुख है तो कहीं दुःु ख है । नहीं कहलाता
• राम समलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी – गलती सध
ु र जाए तो दोष नहीं कहलाता।
– बराबर का मेल हो जाना।
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• समय पाइ तरूवर फले केततक सीखे नीर • सेर को सवा सेर
– काम अपने समय पर ही होता है । – बढ़कर टक्कर दे ना।
• समरर् को नदहं दोष गोसाई • सौ ददन चोर के, एक ददन साहूकार का
– समर्थ आदमी का दोष नहीं दे खा जाता। – चोरी एक न एक ददन खुल ही जाती है ।
• ससरु ाल सख
ु की सार जो रहे ददना दो चार • सौ सन
ु ार की एक लोहार की
– ररश्तेदारी में दो चार ददन ठहरना ही अच्छा होता – सुनार की हर्ौड़ी के सौ मार से भी अचधक लुहार
है । के घन का एक मार होता है ।
• सहज पके सो मीठा होय • हजजाम के आगे सबका ससर झुकता है
– धैयथ से ककया गया काम सुखकर होता है । – गरज पर सबको झुकना पड़ता है ।
• सााँच को आाँच नहीं • हर्ेली पर दही नहीीँ जमता
– सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता। – कायथ होने मेँ समय लगता है ।
• सााँप के मुाँह में छछूाँदर • हड्डी खाना आसान पर पचाना मुक्श्कल
– कहावत दवु वधा में पड़ना। – ररश्वत कभी न कभी पकड़ी ही जाती है ।
• सााँप तनकलने पर लकीर पीटना • हर मजथ की दवा होती है
– अवसर बीत जाने पर प्रयास व्यर्थ होता है । – हर बात का उपाय है ।
• सारी उम्र भाड़ ही झोँका • हराम की कमाई हराम में गाँवाई
– कुछ भी न सीख पाना। – बेईमानी का पैसा बुरे कामों में जाता है ।
• सारी दे ग में एक ही चावल टटोला जाता है • हवन करते हार् जलना
– जााँच के सलए र्ोड़ा-सा नमूना ले सलया जाता है । – भलाई के बदले कष्ट पाना।
• सावन के अंधे को हरा ही हरा सझ
ू ता है • हल्दी लगे न कफटकरी रं ग आए चोखा
– पररक्स्र्तत को न समझना। – बबना कुछ खचथ ककए काम बनाना।
• सावन हरे न भादों सूखे • हार् सुमरनी पेट/बगल कतरनी
– सदा एक सी दशा। – ऊपर से अच्छा भीतर से बरु ा।
• ससंह के वंश में उपजा स्यार • हार् कंगन को आरसी क्या, पढ़े सलखे को फारसी
– बहादरु ों की कायर सन्तान। क्या
• ससर कफरना – प्रत्यक्ष को प्रमार् की आवश्यकता नहीीँ।
– उल्टी-सीधी बातें करना। • हार्ी के दााँत खाने के और ददखाने के और
• सीधे का मुाँह कुत्ता चाटे – भीतर और बाहर में अंतर होना।
– सीधेपन का लोग अनुचचत लाभ उठाते हैं। • हार्ी तनकल गया दम
ु रह गई
• सन
ु ते-सन
ु ते कान पकना – र्ोड़े से के सलए काम अटकना।
– बार-बार सुनकर तंग आ जाना। • दहजड़े के घर बेटा होना
• सूत न कपास जुलाहे से लठालठी – असंभव बात।
– अकारर् वववाद। • हीरे की परख जौहरी जानता है
• सूरज धूल डालने से नहीं तछपता – गुर्वान ही गुर्ी को पहचान सकता है ।
– गर्
ु नहीं तछपता। • होनहार बबरवान के होत चीकने पात
• सूरदास की काली कमरी चढ़े न दज
ू ो रं ग – अच्छे गुर् आरम्भ में ही ददखाई दे ने लगते हैं।
– स्वभाव नहीं बदलता। • होनी हो सो होय
– जो होनहार है , वह होगा ही।
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