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पंज

ू ीवादी अर्थव्यवस्था

776 में छपी प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ की किताब ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’

को पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था की मल
ू स्रोत कहा जाता हैं. स्काटिश अर्थाशास्त्री

एडम स्मिथ को ही इस विचारधारा का जनक माना जाता हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ

ग्लासगो के प्रोसेफरों के साथ मिलकर स्मिथ ने एक विचार को जन्म दिया जो

अमेरिका और यूरोपीय दे शों में तेजी से लोकप्रिय हुआ.

यह पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विचार था. यह वह दौर था जब पश्चिम के दे शों

में व्यापार आदि पर राज्य के हस्तक्षेप के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. एडम

स्मिथ के अनस
ु ार आर्थिक विकास दर को ऊपर उठाने के लिए श्रम विभाजन

जरूरी है साथ ही अर्थव्यवस्था को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखा जाना चाहिए.

उनके विचार में एक अर्थव्यवस्था तभी लोकहितकारी हो सकती है जब उसमें


पर्याप्त प्रतिस्पर्धा का स्थान हो. अमेरिका की स्वतंत्रता के बाद दे श की विकास

नीति में इस अर्थशास्त्री के सुझावों को महत्व दिया गया.

वेल्थ ऑफ नेशन्स के प्रकाशन के बाद कई यूरोपीय दे शों में यह विचार तेजी से

लोकप्रिय हुआ और सन 1800 आते एक नई प्रकार की विचारधारा का चलन

पश्चिम से हुआ जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था कहलाई. इस प्रणाली में उत्पादन

क्या और कितना करना है तथा किन दरों पर इसे बेचना है इसका निर्धारण कोई

सरकार या राज्य न करके स्वतंत्र बाजार प्रणाली करती हैं. जिसमें आपूर्ति और

मांग के अनुरूप वस्तुओं के मूल्य निर्धारित होते हैं.


पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था का इतिहास

पँज
ू ीवाद का प्रभाव एवं इसकी प्रतिक्रिया

औद्योगिक क्रांति के आरं भिक दिनों में इंग्लैंड में ऐडम स्मिथ का अहस्तक्षेप

का सिद्धांत (Laissez-Faire) वैयक्तिक स्वतंत्रता और अनियंत्रित आर्थिक

व्यवस्था का आधार बन गया। किंतु इस औद्योगिक परिवर्तन से उत्पन्न

परिस्थितियों ने सरकार को उद्योगपतियों और श्रमिकों की समस्याओं में

हस्तक्षेप करने को बाध्य कर दिया। इन्हीं दिनों समाजवाद (सोशलिज्म) शब्द

का प्रयोग प्रथम बार हुआ (कोआपरे टिव मैगज़ीन, १९२७)। इस स्थिति में

तथाकथित स्वतंत्र उद्योग, १८ वीं सदी के उदारतावाद और आज के समाजवादी

नियंत्रण का समन्वित रूप होगा। अमेरीकी पँज


ू ीवाद, व्यापार में व्यक्तिगत

आधिपत्य और राजकीय संचालन का मिश्रित रूप है । यद्यपि बहुक्षेत्रीय

प्रतिद्वंद्विता उद्योग का मुख्य आधार है तथापि पिछले वर्षों वाणिज्य और


श्रमिक संगठनों में एकाधिकारिक नियंत्रण की स्थिति द्रत
ु गति से बढ़ी है ।

संपत्ति और आय के अव्यवस्थित वितवरण से लोगों का सामाजिक स्तर बहुत

नीचे गया है । कंपनी ट्रस्टीशिप और पब्लिक एजेंसी जैसे अनेक संगठनों ने

प्रतिद्वंद्विता के सिद्धांत को विकृत कर दिया है ।

राष्ट्रीयकरण की योजनाओं से नियंत्रण की मात्रा में वद्धि


ृ हुई और स्वतंत्र

अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त धक्का लगा। प्रत्येक राष्ट्र के सम्मख


ु यह समस्या

रहती है , कि वह अपनी आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार व्यवस्थाएँ करे ।

व्यवस्था के निर्णय, उपलब्ध श्रमशक्ति और आर्थिक स्रोतों पर निर्भर करते हैं।

राज्य प्रतिनिधियों और योजनाविदों के सम्मुख उत्पादन के रूप, मात्रा और

तरीके आदि के प्रश्न रहते हैं। समाजवादी व्यवस्था के अंतर्गत इसके लिए

सरकारों और सरकार द्वारा नियक्


ु त योजनासमितियों द्वारा निर्णय किए जाते
हैं। पँज
ू ीवादी व्यवस्था के अंतर्गत एक व्यक्ति या समह
ू को अपने आर्थिक

नियोजन का स्वतंत्र अधिकार रहता है ।

मिस्र, कार्थेज, रोम, बेबिलोनिया और यूनान में भी पूंजीवाद के पद

चिह्न मिलते है . अथवा यूँ कहे कि जब से मानव संस्कृतियों का विकास

आरम्भ हुआ तब से भिन्न भिन्न स्थानों पर इस विचारधारा का प्रभाव

रहा, दास प्रथा जैसी परम्पराएं इस मॉडल के प्राचीन होने का साक्ष्य रही

हैं.I

वानिज्यवाद तथा सामन्तवाद के रूप में पूंजीवादी विचारधारा का सर्वाधिक

प्रचार अठारवी शदी में यूरोप के दे शो में हुआ. विश्व में औद्योगिक क्रांति के

जन्म में पूजीवाद का बड़ा योगदान था. इसे Mass Production Capitalism भी

कहा जाने लगा. वैसे तो संस्थागत रूप से सोलहवीं सदी में ही पूंजीवाद ने यूरोप

में स्वयं को प्रस्तत


ु कर दिया था.
आर्थिक स्वतंत्रता का सर्वप्रथम उल्लेख एडम स्मिथ की द वेल्थ ऑफ नेशंस में

लिया गया. हालांकि स्मिथ ने अपनी किताब में पंज


ू ीवाद शब्द का प्रयोग नहीं

किया था. ऐडम स्मिथ का यह व्यक्तिगत पँज


ू ी और स्वतंत्र उद्योग का

उदारवादी मत आधुनिक पँज


ू ीवाद का मेरुदं ड हैं.

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में यह मत प्रमुखता से रहा कि यदि आर्थिक व्यापार को

नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाए तो उत्पादन क्षमता को कई गुना तक बढाया

जा सकता हैं. बीसवीं सदी के आरं भ में मैक्स वेबर ने इसे सही ढं ग से परिभाषित

कर सबके समक्ष रखा.


पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं

पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के घटक जैसे भमि
ू , खानें , कारखाने, मशीनें

आदि पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है . इन साधनों के स्वामी अपनी

इच्छानस
ु ार इनका प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र होते है . व्यक्तियों की सम्पति

रखने, उसे बढ़ाने व उसे प्रयोग करने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है .

 उपभोक्ताओं को चयन की स्वतंत्रता (Freedom of choice of

consumers) पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता प्रभस
ु ता सम्पन्न होते

है . अर्थात उपभोक्ता के खर्च व उसकी इच्छा के अनुरूप ही उत्पादक

वस्तुओं का उत्पादन करते है . इसे ही उपभोक्ता की संप्रभुता कहते है . यह

आर्थिक प्रणाली ,में उपभोक्ता अपनी आय को इच्छानुसार व्यय करने के

लिए स्वतंत्र होता है . उपभोक्ता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होने के कारण ही


इस आर्थिक प्रणाली (economic system) में उपभोक्ता को बाजार का

राजा कहा जाता है .

 उद्यम की स्वतंत्रता (Enterprise independence)– प्रत्येक व्यक्ति

अपनी इच्छानुसार किसी भी आर्थिक गतिविधि का संचालन कर सकता

है . उत्पादन करने की तकनीक के चयन करने की, उद्योग स्थापित करने

की पूर्ण स्वतंत्रता होती है . सरकार का कोई हस्तक्षेप नही होने के कारण

पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र उद्यम वाली अर्थव्यवस्था भी कहा

जाता है .

 प्रतिस्पर्धा (Competition)– पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में विक्रेताओं के बिच

अपने अपने उत्पाद तथा वस्तुओं को बेचने के लिए तथा क्रेताओं के बिच

अपनी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं को खरीदने

के लिए प्रतियोगिता चलती रहती है . इससे बाजार में कुशलता बढ़ती है .


विज्ञापन दे ना, उपहार दे ना, मल्
ू य में कमी कर दे ना आदि तरीके

प्रतिस्पर्धा हे तु अपनाएँ जाते है .

 निजी हित एवं लाभ का उद्देश्य (Purpose of personal interest and

profit)-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किसी भी कार्य

का निर्णय अथवा किसी वस्तु का उत्पादन का निर्णय मख्


ु य रूप से लाभ

की भावना के आधार पर ही लिया जाता है . अर्थात काम करने में क्या व

कितना लाभ प्राप्त होग? इसी प्रकार उपभोक्ता भी वस्तओ


ु ं का उपयोग

निजी हित के लिए करते है .

 वर्ग संघर्ष (class struggle) – पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में समाज दो वर्गों में

विभाजित हो जाता है . एक ओर साधन सम्पन्न वर्ग होता है . जो पूंजीपति

कहलाता है . तथा दस
ू री ओर साधन विहीन वर्ग होता है . जो श्रमिक
कहलाता है . पंज
ू ीपतियों में लाभ बढ़ाने का उद्देश्य व श्रमिकों के शोषण से

बचने का उद्देश्य वर्ग संघर्ष को जन्म दे ते है .

 आय की असमानता (Income inequality)- सम्पति के असमान वितरण

के कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में गरीब व अमीर के बिच विषमता की

खाई बढ़ती जाती है . पंज


ू ीवादी अर्थव्यवस्था का विश्लेष्ण इस प्रकार कर

सकते है .
पंज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था के गण

 उत्पादन क्षमता व कुशलता का बढ़ना

 उपभोक्ताओं को अधिक संतुष्टि

 साधनों का अनक
ु ू लतम प्रयोग

 तकनिकी विकास

 रहन सहन का स्तर ऊँचा होना

 आर्थिक स्वतंत्रता

 शोध, अनुसंधान का विकास


बाज़ार

बाज़ार ऐसी जगह को कहते हैं जहाँ पर किसी भी चीज़ का व्यापार होता है । आम

बाज़ार और ख़ास चीज़ों के बाज़ार दोनों तरह के बाज़ार अस्तित्व में हैं। बाज़ार में

कई बेचने वाले एक जगह पर होतें हैं ताकि जो उन चीज़ों को खरीदना चाहें वे

उन्हें आसानी से ढूँढ सकें। बाजार जहां पर वस्तुओं और सेवाओं का क्रय व

विक्रय होता है उसे बाजार कहते हैं . सामान्यतः बाजार का अर्थ उस स्थान से

लगाया जाता है , जहाँ भौतिक रूप से उपस्थित क्रेताओं द्वारा वस्तुओं को

खरीदा तथा बेचा जाता है | उदाहरण के लिए: सर्राफा बाजार में सोने-चाँदी का

क्रय-विक्रय(खरीदना- बेचना) होता है ,अनाज मण्डी में खाद्धान्नों का क्रय-विक्रय

होता है तथा वस्त्र बाजार में वस्त्रों का होता है | अर्थशास्त्र के अंतर्गत बाजार

शब्द से अभिप्राय उस समस्त छे त्र से है , जहाँ किसी वस्तु के क्रेता-विक्रेता

आपस में स्वतन्त्रतापूर्वक प्रतिस्पर्द्धा करते है


पँज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था की निम्नांकित विशेषताएँ हैं-

1. बड़ी मात्रा में उत्पादन- पँज


ू ीवादी अर्थव्यवस्था में बड़े-बड़े उद्योगों की

स्थापना की जाती है जिनमें विशाल मात्रा में तीव्र गति से उत्पादन होता है । बड़ी

मात्रा में उत्पादन होने पर ही पँज


ू ीपति को लाभ होता है ।

2. अधिकाधिक लाभ-पँज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था में अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने

का प्रयत्न किया जाता है और उन्हीं वस्तओ


ु ं का उत्पादन किया जाता है जो

अधिक मुनाफा दें ।

3. एकाधिकार- पँज
ू ीवादी व्यवस्था में उद्योगों एवं उत्पादित माल पर कुछ मुट्ठी

भर लोगों का एकाधिकार होता है । अतः वे वस्तुओं को मनमाने भाव पर बेचते

हैं। इससे पँज


ू ी का भी कुछ ही लोगों के हाथ में केन्द्रीयकरण हो जाता है ।
4. प्रतियोगिता – खल
ु ी आर्थिक प्रतियोगिता पँज
ू ीवाद की विशेषता है । इससे

उत्पादन बढ़ता है , किन्तु जब गला काट प्रतियोगिता होती है तो छोटे -उत्पादकों

के समक्ष टिक नहीं सकते। उन्हें अपना उत्पादन बन्द करना होता है । वे या तो

बेकार हो जाते हैं या श्रमिकों के रूप में काम करने लगते हैं।

5. शोषण- पँज
ू ीवादी अर्थव्यवस्था में पूंजीपति श्रमिकों को कम से कम दे ना

चाहता है और स्वयं अधिकाधिक प्राप्त करना चाहता है । अतः है । अतः वह

श्रमिकों का शोषण करता हैं।

6. व्यक्तिगत सम्पत्ति- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्तिगत सम्पत्ति पर

व्यक्ति का पूर्ण अधिकार होता है जिसका उपयोग व मनमाने ढं ग से करता है ।

7. बैकिंग- पूंजीवादी व्यवस्था में मुद्रा की व्यवस्था एवं लेन-दे ने हे तु बैंक

व्यवस्था पायी जाती है ।


8. केन्द्र एवं साख– वस्तओ
ु ं के विनिमय के लिए पंज
ू ीवाद में द्रव्य एवं साख की

व्यवस्था की जाती है । मुद्रा धातु की एवं कागज की भी हो सकती है ।

9. आश्रम विभाजन- फैक्टरी प्रणाली से उत्पादन करने के लिए काम को कई

छोटे -छोटे टुकड़ों में बांट दिया जाता है , इसमें श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण को

प्रोत्साहन मिलता है ।

10. वर्ग-संघर्ष- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में हमें प्रमुख रूप से दो वर्ग- पूंजीपति एवं

श्रमिक वर्ग दिखायी दे ते हैं। दोनों वर्ग अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए संगठन

बनाते एवं संघर्ष करते हैं। श्रमिक संगठनों दे ते हैं। दोनों लोग तोड़-फोड़ हड़ताल,

घेराव, आदि के द्वारा अपनी वेतन वद्धि


ृ , बोनस, काम के घण्टे कम द्वारा

श्रमिक कराने एवं अनन्य सुविधाएं प्राप्त करने के लिए पूंजीपतियों से संघर्ष

करते हैं।

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