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इन पंक्तियों का हिंदी रूपांतर इस प्रकार है । इसलिए संत और प्रबुद्ध अपनी शासन व्यवस्था में उनके उधर को भरते किं तु उनके वृद्धियों को शून्य करते हैं
। वे उनकी हड्डियों को बनाते हैं परंतु उनकी इच्छा शक्ति को निर्बल करते हैं । लाओ से की सभी बातें उल्टी उल्टी हमें दिखाई पडती है और कारण ऐसा
नहीं है कि लाओ से की बात उल्टी है । कारण ऐसा है कि हम सब उलटे खडे हैं । लाॅस चौदह से मरने के करीब था । अंतिम क्षणों में उसके मित्रों
ने पूछा तुम्हारी कोई इच्छा है तो उसने कहा एक ही इच्छा है मेरी कि इस पृथ्वी पर कि इस पृथ्वी पर मैं पैरों के बल खडा था । उस परलोक ने मैं
सिर के बल खडा होना चाहता हूँ । शिष्य बहुत परेशान हुए और उन्होंने कहा हमारी कु छ समझ में नहीं आता । क्या परलोक में उल्टे खडे होना चाहते
हैं तो मैंने कहा जिसे तुम सीधा खडा होना कहते हो उसे इतना उल्टा पाया की आने वाले जीवन में उल्टा खडे होके प्रयोग करना चाहता हूँ । शायद
वही सीधा हो । मुँह की ये बात कि जो जानते हैं जो जागे हुए हैं वे अपनी शासन व्यवस्था में लोगों के बेटों को तो भरते । उधर को तो भरते हैं,
उनकी भूख को तो पूरा करते हैं लेकिन उनके मन को शून्य करते हैं । उनकी शरीर की तो सारी जरूरतें पूरी हो इसका ध्यान रखते हैं लेकिन उनका
मन महत्वकांक्षी ना बने इस दिशा में प्रयास करते हैं । साधारण का हम शरीर कितना ही कटेगा कट जाए, गले गल जाये, शरीर को कु र्बान करना पडे
कर हो जाए लेकिन मन की आकांक्षा पूरी हो, मन की वासनाएँ पूरी हो । अब मान की वासनाओं की वेदी पर हम शरीर को चढाने को सदा तत्पर है,
चढाते हैं हमारा पूरा जीवन मन की वासनाओं को पूरा करने में शरीर किए की हत्या है और साधारण का ऐसे ही हम बुद्धिमानी कहेंगे लेकिन लव से कहता
है कि पेट तो लोगों के भरे हुए हो लेकिन मन खाली मान के खाली होने का क्या अर्थ है और पेट के भरे होने का क्या? लोग शरीर से तो स्वस्थ हो
। शरीर तो उनका भरा पूरा हो । शरीर तो उनका बलशाली हो लेकिन मान उनका बिल्कु ल कोरा खाली शून्य ऍम पीती हो और परम स्वास्थ्य की अवस्था
वही है जब शरीर भरा होता है और मान खाली होता है । लेकिन हम सब मन को बहुत भर लेते हैं । हमारी पूरी जिंदगी मन को भरने की कोशिश
विचारों से, वासनाओं से, महत्वाकांक्षाओं से, मन को हम भर के चले जाते हैं धीरे धीरे शरीर तो हमारा बहुत छोटा रह जाता है मन बहुत बडा हो
जाता है शरीर तो सिर्फ घसीटता है मान के पीछे लव से कहता है मन तो हो खाली उस जगह जगह जो उदाहरण लिए है वो ऐसे लव उसमें कहता है
कि जैसे बर्तन होता खाली किस चीज को आप बर्तन कहते हैं लव से बार बार पूछता किस चीज को बर्तन कहते हैं बर्तन की दिवाल को या उसके भीतर
के खालीपन को । आम तौर से हम बर्तन के दीवाल को बर्तन कहते हैं । लव से कहता है दिवाली तो बिलकु ल बेकार है वो जो भीतर खाली जगह है
वही काम में आते हैं । भरे हुए बर्तन को तो कोई ना खरीदेगा मकान आप दीवाल को कहते हैं की दिवाल के भीतर जो खाली जगह है उसको हम आम
तौर से मकान दी वालों को कहते हैं । और जब हम मकान बनाने की सोचते हैं तो दिवाले बनाने की सोचते ऍसे कहता है बडी उल्टी तुम्हारी समझ है
मकान तो वो है जो दीवारों के भीतर खाली जगह क्योंकि कोई आदमी दीवालों में नहीं रहता है । खाली जगह में रहता है और ये खाली जगह अगर भरी
हो तो मकान बेकार है तो शरीर तो दिवार है, वो तो मजबूत होनी चाहिए । भीतर जो मन है वही महल है वो खाली होना चाहिए और उस महल के
भीतर भी जो मनुष्य की चेतना है, आत्मा है वो निवासी है । अगर मान खाली हो तो ही वो निवासी ठीक से रह पाए तो स्पेस और जगह होती है ।
मान अगर बहुत भर जाता है तो अकसर हालत ऐसी होती है कि मकान तो आपके पास है लेकिन इतना कबार से भरा है कि आप मकान के बाहर ही
सोते हैं, बाहर ही रहते हैं क्योंकि भीतर जगह नहीं है । अगर हम एक ऐसे आदमी की कल्पना करे जिसके पास बडा महल है लेकिन सामान इतना ही
के भीतर जाने का उपाय नहीं तो बाहर में ही निवास करता है । हम सब वैसे ही आदमी है । मन तो इतना भरा है कि वहाँ आत्मा के रहने की जगह
नहीं हो सकती । बाहर ही भटकना पडता है । जब भी भीतर जाएंगे तो आत्मा नहीं मिलेगी । मान ही मिलेगा कोई विचार, कोई व्यक्ति कोई वासना
मिलेगी क्योंकि इतना बडा है सब घर के भीतर जाते हैं तो फर्निचर तो मिलता है मालिक नहीं मिलता है । हाँ उससे कहता है जो ज्ञानी है वो कहते हैं
शरीर तो भरा पूरा हो, पुष्ट हो, मन खाली हो । मन ऐसा हो जैसे है ही नहीं । से कहता है मान के खाली होने का अर्थ है अमन होनो माइंड हो
जिससे है ही नहीं, जैसे मान की कोई बात ही नहीं है । अभी तक उस खाली मन में ही जीवन की परम कला का अविर्भाव होता है और जीवन के
परम दर्शन होने शुरू होते हैं । वे उनकी हड्डियों को दफ्तर बनाते हैं, परंतु उनकी इच्छा शक्ति को निर्बल करते हैं, हड्डियों को मजबूत बनाते हैं, लेकिन
उनके विल्को उनके संकल्प को कमजोर करते हैं, छीन करते हैं हम सब तो संकल्प को मजबूत करते हैं । हम तो किसी व्यक्ति से कहते हैं कि क्या तुम
में कोई विल पवर ही नहीं, तुम्हें कोई संकल्प की शक्ति नहीं अगर संकल्प की शक्ति नहीं तुम बिना रीड के आदमी हो । तुम आदमी ही नहीं से कहता
है ज्ञानी संकल्प की शक्ति को छीन करते हैं । अजीब बात है, हम तो एक एक बच्चे को सिखा रहे हैं कि विल बढनी चाहिए । इस सदी के जो बहुत
बुद्धिमान लोग है, उन सभी का ख्याल है कि आदमी में संकल्प बढना चाहिए । बहुत अद्भुत किताब लिखी है । विल टोप अार उन्नीस से का ख्याल है
कि आदमी के पूरे जीवन का एक ही लक्ष्य की शक्ति का संकल्प शक्ति कै से मिले? इसका संकल्प और जो आदमी जितना संकल्पवान है उतना महान
कर्लाइल या इमर्शन इस सारे के सारे पश्चिम के विचारक संकल्प पर जोर देते हैं कि संकल्प मजबूत हो । तुम्हारी इच्छा शक्ति ऐसी होनी चाहिए कि अटल
पत्थर की दीवार जगत हिल जाए लेकिन तुम नहीं लो, टू ट जाओ जाओ न । उसमें कहता है कि हड्डियों को मजबूत संकल्पशक्ति बिलकु ल अच्छी होगी,
नहीं चलो क्योंकि मनुष्य के बीच दो चीजों के सामने चुनाव है या तो संकल्प या जो संकल्प करेगा उसका अहंकार मजबूत होगा । जो समर्पण करेगा उसका
अहंकार गले गा मिटेगा । जो संकल्प के रास्ते से चलेगा वो अपने पर पहुँचेगा और जो समर्पण के रास्ते से चलेगा वो परमाणु पर पहुँचता है । परमात्मा
तक पहुँचना हो तो छोड देना पडेगा अपने को और स्वयं के मैं को मजबूत करना हो तो फिर पकड लेना पडेगा अपने को तो शरीर चाहे मिट जाए,
हड्डियाँ चाहे टू ट जाए संकल्प ना टू टे । ऐसा हम सब की व्यवस्था है । इसको हम सीधी व्यवस्था कहते हैं क्योंकि हम कहते हैं कै से कमजोर आदमी हो
लड नहीं सकते, जूझ नहीं सकते । शक्ति नहीं तुम्हें कोई फॅ से कहता है ये सकती होनी ही नहीं चाहिए । नहीं ऐसा नहीं कि तुम टू ट जाओ लेकिन झुको
मत लाओ से कहता है तुम ऐसे हो कि तुम्हें पता ही ना चले की तुम कब झुक गए । हवा को पता भी ना चले की तुमने रेसिस्ट किया तुमने थोडा भी
प्रतिरोध क्या हवा आए कि तुम पहले ही झुक जाओ जैसे घास के छोटे छोटे तिनके झुक जाते हैं । अडियल बृक्ष अकड के खडे रह जाते हैं तो से टक्कर
लेते हैं । छोटे पौधे झुक जाते हैं और बडा मजा ये कि छोटे पौधे को जीत लेते हैं और बडे पौधे से मर जाते हैं । लॉस से कहता है अगर तुम लडोगे
तो हारोगे क्योंकि जिससे तुम लड रहे हो तुम्हें पता नहीं वो कौन है । एक एक व्यक्ति जब भी लड रहा है तो अनंत शक्ति से लड रहा है हमारे चारों
ओर जो अनंत निवास कर रहा है हम उससे ही लड रहे हैं । फॅ से कहता है मत लडो ही मत लडने का सवाल ही ना उठे तुम अपने को इतना अलग
ही मत मानो की तुम्हे लडना भी है । तुम गिर जाओ तुम के साथ ही हो जाओ कोअपरेटिव उसका सहयोग करो । पता ही नहीं चलेगा कि तुम्हारे पास
से कै से गुजर गया और के गुजर जाने के बाद तुम पाओगे कि तुम्हें ने छु आ भी नहीं और तुम पाओगे । तुम्हारी शक्ति का इंचभर भी नष्ट नहीं हुआ
क्योंकि तुम लडे ही नहीं और हारने का कोई सवाल नहीं है क्योंकि जिसका है उसी के तुम हो । वो जो लडने आया था तुम्हें लगा था कि लडने आया
है वो लडने आया नहीं था । तुम्हारे संकल्प की वजह से तुम्हें लगा था कि लडने आया तुम लडने को सुख थे इसलिए तुमने उसे शत्रु की तरह व्याख्या
कर ली अन्यथा कोई व्याख्या की जरूरत नहीं ऐसे थोडा समझे । सच में कोई शत्रु होता है या हम व्याख्या करते हैं कि वो शत्रु है और व्याख्या हम
क्यों करते हैं । हम व्याख्या इसलिए करते हैं कि हम लडना चाहते हैं । अगर मैं लडना ही नहीं चाहता तो एक बात निश्चित है कि मैं शत्रु की व्याख्या
नहीं करूँ गा कि कोई शत्रु लडना चाहता हूँ तो शत्रु को निर्मित करूँ गा । सब शत्रुता संकल्प से निर्मित होती । सब संघर्ष संकल्प से निर्मित होता है । फॅ सा
तुम तो ऐसे हो जाओ जैसे हो ही नहीं जैसे हवा तलवार से निकल जाती । तलवार हवा से निकल जाती है । हवा कहीं कटती नहीं क्योंकि हवा नहीं
करते । पानी से तलवार गुजार देते हो, पानी कटता नहीं । तलवार काट भी नहीं पाती कि पानी जाता है क्योंकि पानी ॅ नहीं करता, वो प्रतिरोध नहीं
करता, तुम भी लडो मत लाओ उससे कहता तुम भी हवा पानी जैसे हो जाओ काटने वाली सकती को गुजर जाने दो । तुम अगर न लडोगे तुम उस से
गुजरते ही पाओगे कि जुड गए हो । तुम टू टे ही नहीं तुम खंडित ही नहीं हुए अगर तुम लडे तो तुम टू ट जाओगे । संकल्प को हम जैसा आदर देते हैं
लाल से ठीक उससे विपरीत उसकी व्याख्या करता है । हम आदर देंगे क्योंकि हमारा सारा सारा जीवन का ढांचा अहंकार पर निर्मित महत्वकांक्षा पर खडा
है । दौडना है कहीं पहुँचना है कु छ पाने, धन यश, पद मर्यादा कु छ उपलब्ध करने किन्ही से कु छ छीनना किन्ही इसको कु छ हमसे ना छीन ले इससे
रोकना जीवन हमारा एक संघर्ष थे हमारे देखने का ढंग, संघर्ष का ढंग झुकना नहीं झुके तो भारी गिलानी होगी । हाँ लाॅस से कहता है ये ये जीवन के
सोचने का ढंग बीमारी में ले जाता है जो गुनता में ले जाता है । तुम ऐसे हो जाओ जैसे हो ही नहीं । ये जो ना होने जैसा होना है वहाँ संकल्पना
होगा । जापान में जून दो या जलदस्यु की पूरी ऍसे के इसी सूत्र पर खडी उससे थोडा समझ लेना उपयोगी उस से समझ में आ जाएगा कि लाओ से
क्या कहता है । अगर मैं आपको घुसा मारूँ तो जो स्वाभाविक प्रतिक्रिया मालूम होती है वो ये है कि आप मेरे घुसे का विरोध करें । विरोध दो तरह का
होगा । अगर आपको मौका मिला तो आप मेरे घुसे को रोकें गे । घुसे के जवाब में घुसा उठाएँगे अगर मौका नहीं मिला फिर भी घुसा जवाब के शरीर पडेगा
तो आपके शरीर के रंग रस्ते से प्रतिरोध उठेगा । आपकी मांसपेशियां, आपके स्माइल सब सख्त होकर घुसे को रोकें गे के भीतर तक चोट ना पहुँच जाए ।
आप की हड्डियाँ खडी हो जाएगी । आपका शरीर बित जाएगा फिर जाएगा ताकि सख्ती से आप दीवाल बना ले और घुसे की चोट भीतर ना पहुँच पाए ।
जुडो की कला इससे बिल्कु ल उल्टी और जुडो की कला से बडी कोई काला नहीं है । युद्ध के मामले में और जूतों का थोडा सा जानकार भी आपके बडे
से बडे पहलवान को छत भर में चित कर देगा और चित्रा कर देगा । इस तरकीब से की लगेगा । नहीं जूतों की कला ये कहती है कि जब तुम्हें कोई
घुसा मारे तो तुम घुसे को पी जाओ । हाँ पर एट वित तो मुझसे लडो मत । जब तुम पर कोई घुसा मारे तो तुम ऐसे हो जाओ जैसे कि तुम एक
तकिये जैसे हो । घुसा तुम पर लग गया और तुम भी गए । समझ ले घुसे के विरोध में प्रतिरोध और घुसे को पी जाने का घुसा आपके ऊपर मारा गया
है । आप सहयोग करो और घुसे को पी जाओ उससे कहीं भी लडो मत किसी तल पर भी और जो वो कहता है घुसे मारने वाले का हाथ टू ट जाएगा ।
घुसे मारने वाले का हाथ टू ट जाए क्योंकि घुसना मारने वाला बहुत शक्ति और बहुत संकल्प से मार रहा है । और अगर आपने बिल्कु ल जगह दे दी तो
उसकी हालत ठीक वैसी हो जाएगी जैसे एक रस्सी को पकड के आप खींच रहे हो । मैं खींच रहा हूँ मैंने रस्सी छोड दी । मैंने खींचा ही नहीं । मैंने
प्रतिरोध किया । मैंने कहा आप खींचते हो ले
जाओ तो आप गिर पढोगे जूतों की कला कहती है मारो मत, जब कोई मारे तो उसके सहयोगी हो । जहाँ उसको दुश्मन मत मानना मानो कि जैसे वो
अपने ही शरीर का एक हिस्सा है और तब थोडी देर में मारने वाला थक जाएगा और परेशान हो जाएगा । उस की शक्ति छीन होगी क्योंकि हर गुस्से में
सकती बाहर फें की जा रही है और आप की शक्ति छीन नहीं होगी । बल्कि जूतो कहता है कि उसके घुसने से जो सकती निकल रही है वो भी आप पी
जाओगे वो भी आपको मिल जाएगी । पांच मिनट के भीतर जूतों का ठीक से जानने वाला आदमी किसी भी तरह के आदमी को परास्त कर देता है ।
परास्त करना नहीं पडता वो प्राप्त हो जाता है । बहुत प्रसिद्ध खता है जूतों की एक बहुत बडा तलवारबाज, बडा स्पॉट्स में कोई इतना बडा आवाज है
कि जापान में उसका कोई मुकाबला नहीं । एक रात वो अपने घर लौटा है दो बजे है । जब वो अपने बिस्तर पर लेटने लगा तो उसने देखा एक बडा
चूहा निकला है । दीवान से उसे बडा क्रोध आया । उसने चूहे को डराने धमकाने की कोशिश की अपने बिस्तर पर से लेकिन चूहा अपनी जगह पर बैठा
रहा । बडी हैरानी हुई वो बडे बडे लोगों को धमका दे तो भाग खडे होते चूहा उसको क्रोध इतना आ गया कि उसके पास नहीं उसकी सीखने की लकडी
की तलवार पडी थी । उसने उठा के जोर से चूहे पर हमला किया । हमला उसने इतने क्रोध में क्या चूहा जरा इंचभर सरक गया । उसकी तलवार जमीन
पर पडी और टुकडे टुकडे हो गई और चूहा अपनी जगह बैठा रहा । तब जरा उसे घबराहट पैदा हो गयी । चूहा कोई साधारण नहीं मालूम होता उसके
वार को छु प जाना, उसका वार चूक जाए इसकी कल्पना भी नहीं । वो अपनी असली तलवार लेके आ गया । लेकिन जब चूहे को मारने के लिए कोई
असली तलवार लेके आता है तो उसकी हार निश्चित असली तलवार लेकर आ गया । जब वो तभी हार निश्चित हो गई । चूहे को मारने के लिए असली
तलवार एक योद्धा को लानी पडे । चूहे से डर तो गया वो बहुत और चूहा साधारण हाथ उसका कपडे लगा और उसे लगा कि अगर असली तलवार टू ट
गई तो फिर इस अपमान को सुधारने का कोई उपाय नहीं रह जाए । उसने बहुत संभाल के मारा और जो जानते हैं वो कहते हैं जितना संभाल के आप
निशाना लगाएंगे उतना ही चुप जाएगा क्योंकि संभालने का मतलब है कि भीतर डर है, टीचर का है । कं पनी अगर भीतर कोई डर नहीं, घबराहट नहीं तो
आदमी संभाल के काम नहीं करता, काम करता है और हो जाता है । उसने तलवार मारी, उसे जिंदगी में उसने बहुत बार तलवार उठाई और चलाई
और वो कभी चूका नहीं था । अच्छा उसका हाथ बीच में कपा और जब तलवार नीचे पडी तो टुकडे टुकडे हो गयी । चूहे जरा सा हट गया । उस
तलवार वाज की समझ के बाहर हो गयी बात उसने होश खो दिया । कहानी कहती है कि उसने गाँव में खबर की किसी के पास कोई जानदार बिल्ली हो
तो ले आओ और दूसरे दिन गाँव में जो बडे से बडा धनपति था, उसने अपनी बिल्ली भेजी । वो कई चूहों को मार चुकी थी । लेकिन तलवारबाज डरा
हुआ था और जिस धनपति ने अपनी बिल्ली भेजी थी वो भी डरा हुआ था । क्योंकि जब तलवारबाज की तलवार टू ट गई हो तो दिल्ली कहाँ तक सफल
होगी? ये भय और बिल्ली को भी खबर मिल गई थी और तलवारबाज बहुत बडा । दिल्ली में बहुत चूहे मारे थे लेकिन इस चूहे से आतंकित हो गई । रात
भर सोना पाई । सुबह जब चली तो पूरी तैयारी से चली । रास्ते में पच्चीस योजनाएं बनाई । कभी कभी उसके मन को भी हुआ । मैं ये क्या कर रही हूँ
। चूहे तो मुझे देखते ही भाग जाते हैं । मैं योजना कर रही हूँ लेकिन योजना कर लेनी उचित चूहा असाधारण मालूम होता है । दिल्ली दरवाजे पर आयी
एक्शन उसने भीतर देखा । चूहे को देखकर कब गई? चूहा बैठा था तलवार टुकडे टुकडे पडोस में पडी थी इसके पहले की दिल्ली आगे बढे चूहा आगे बढा
दिल्ली में बहुत चूहे देखे थे लेकिन कोई चूहा बिल्ली को देख के आगे बढेगा । दिल्ली एकदम बाहर हो गई । तलवारबाज की हिम्मत बिलकु ल टू ट गई । अब
क्या होगा? सम्राट को खबर की गई आपके राज महल की दिल्ली भेज दी जाए । अब कोई और उपाय नहीं । सम्राट के पास जो बिल्ली थी वो निश्चित
ही देश की श्रेष्ठ कु शल बिल्ली थी लेकिन वही हुआ जो होना था । सम्राट की बिल्ली नहीं चलते । सम्राट से कहा आपको शर्म आनी चाहिए । ऐसे छोटे
मोटे चूहों को मारने को मुझे भेजते हैं । मैं कोई साधारण दिल्ली नहीं लेकिन ये भी उसने अपनी रक्षा के लिए कहा था । खबरें पहुँच गई थी की चूहा
आगे बढा कि बिल्ली वापस लौट गई की तलवार टू ट गयी । योद्धा हार गया कि चूहे का आतंक पूरे गाँव पर छाया हुआ । चूहा साधारण नहीं लेकिन बचाव
के लिए उस ने राजा से कहा कि साधारण से चूहे को मुझे भेजते । सम्राट का चूहा साधारण नहीं और आतंकित मैं भी हूँ तू लौट तो नहीं आएगी । जो
होना था वही हुआ । बिल्ली गई । उसने जोर से झपट्टा मारा लेकिन छू ट गयी । दिवार से उसका मुँह टकराया, लहूलुहान होकर वापस लौट गई । क्यों
अपनी जगह गाँव में एक के पास और एक बिल्ली थी इस सम्राट की दिल्ली नहीं कहा कि अब और कु छ रास्ता नहीं है । सिर्फ उस फकीर के पास एक
दिल्ली है जो हम सबकी गुरु और जिस से हमने कला सीखी शायद उसे कु छ पता हो । वो मॅन थी, उस दिल्ली को बुलाया गया । सारे गाँव की बिल्लियाँ
इकट्ठी हो गई । कोई पाँच सौ बिल्लियों ने भी लगा ली मकान के आसपास क्योँकि चमत्कार का मामला और अगर की बिल्ली हारती है तो फिर बिल्ली सदा
के लिए चूहों से हार जाएगी जो अपनी जगह बैठा था । फकीर की बिल्ली जब भीतर जाने लगी तो सभी बिल्लियों ने सलाह दी कि देखो ऐसा करना कि
देखो ऐसा करना कु छ ऐसा कर लेना । उस फकीर की बिल्ली ने कहा ना समझो अगर योजना बनाओगी चूहे को पकडने की तो चूहे को कभी ना पकड
पाओगे । क्योंकि जिस बिल्ली ने योजना बनाई वो हार गई । योजना बनाने का मतलब ये है कि चूहे से डर गए तो चूहे है ना पकड लेंगे कोई पकडने में
कला की जरूरत नहीं है । दिल्ली होना ही हमारी कला है । हम पकड ले योजना में नहीं बनाऊँ गी । योद्धा ने भी कहा कि थोडा सोच लो क्योंकि ये
आखिरी मामला है । अगर तू भी लौट गई तो मुझे घर छोड के भाग जाना पडेगा क्योंकि भीतर इस कमरे के मैं नहीं जा सकता हूँ । चूहे को देखना भी
ठीक नहीं है आपको वो वहीं बैठा है अपनी जगह पर उस बिल्ली ने कहा ये भी कोई बात है सब शांत रहे । वो बिल्ली भीतर गयी और चूहे को पकड के
बाहर आ गई । बिल्लियों की भी लग गई । उन सब ने पूछा कि चूहे को तूने पकडा कै से? क्या है तरक्की? उस बिल्ली ने कहा मेरा बिल्ली होना काफी ।
मैं दिल्ली हूं और ये चूहा है और चूहा सादा से कोऑपरेट करते रहे । सादा से सहयोग करते रहे । बिल्लियाँ सादा से पकडती रही ये हम दोनों का स्वभाव
है कि मैं दिल्ली हूँ और ये चूहा ये पकडा जाएगा । मैं पकड लूँ । तुम ने योजना बनाई इसी से भूल हो गई । तुम बुद्धि को बीच में लाये । इसी से
परेशान हुए जिन इस कहानी को सौं साल से कहते रहे ये बिल्ली गरीब फकीर की बिल्ली थी सम्राट की दिल्ली के बराबर इसके पास शरीर भी ना था ।
ताकत भी ना इसके हाथ में तलवार भी ना साथ बिल्ली थी । पर उस बिल्ली ने कहा कि मेरा स्वभाव, ये चूहे का स्वभाव इसमें कोई अनहोनी नहीं हुआ
है । जिस या जुडो सिखाने वाले लोग कहते हैं की प्रकृ ति का एक नियम और एक सभा अगर कोई घुसा आपकी तरफ मारा जाए । अगर आप प्रतिरोध
करे तो दोनों शक्तियां लडती और दोनों शक्तियों में संघर्ष होता है । दोनों शक्तियां छीन होती है । अगर आप प्रतिरोध ना करें तो एक ही तरफ से सकती
आती है । दूसरी तरफ खाली गड्ढा बन जाता है । शक्ति आत्मसात हो जाती है । दूसरा व्यक्ति परेशान हो जाता है । वो योजना करके हमला करता है
और आप अनियोजित बिना किसी प्लानिंग के चुपचाप हमले को पी जाते हैं । अगर ऐसा शून्य भीतर बन जाए कि किसी हमले का कोई प्रतिरोध ना हो
क्योंकि भीतर कोई प्रतिरोध करने वाला संकल्प ही ना रहा तो उस शून्य में जगत कि महानतम शक्ति का विभाव होता है । फॅ से कहता है संकल्प छीन हो
उसका अर्थ है कि संकल्प शून्य हो, भीतर शून्य हो जाओ, कु छ होने की कोशिश मत करो । उस बिल्ली ने कहा कि तुम सब बिल्लियां बिल्ली होने की
कोशिश कर रही हो । दिल्ली होने की कोई कोशिश करनी पडती, तुम बिल्ली हो, तुम्हारी कोशिश ही तुम्हें तकलीफ में डाल रही । तुम हमला बनाने की
योजना में पढी जो तू का शिक्षक सिखाता है कि हमला मत करना सिर्फ हमले की प्रतीक्षा करना और जब हमला आया तो तुम एक ही बात का ध्यान
रखना कि तुम उसे आत्मसात कर जाओ और अगर कोई गाली दे और आप गाली को आत्मसात कर जाए तो जिसने गाली दी है वो कमजोर हो जाता है
। करें और देखें और जिसने गाली चुपचाप पीली, पीली दवाई नहीं दबाना नहीं है । पी ली जैसे कोई नहीं प्रेम का उपहार दिया । ऐसा पीली आत्मसात
कर ली संभाली अपने में अब मुँह कर ली । गड्ढा बन गया तो गाली देने में जितनी शक्ति उस व्यक्ति की, वही उतनी सकती । उस व्यक्ति को मिल गई
। और जब गाली देने वाला पाता है कि विरोध में गाली नहीं उठी तो इतना परेशान हो जाता है जिसका कोई हिसाब नहीं । जब आप विरोध में गाली दे
देते हैं तो परेशान नहीं होता क्योंकि ठीक है अपेक्षा यही थी कि आप गाली देंगे उत्तर में लेकिन जब आप गाली नहीं देते हैं तब परेशान हो जाता है और
दुगने भजन की गाली खोज के नाता और जोर से हमला करता है । लेकिन अगर आपको कला है पीने की तो आप उसके हमले को पीते चले जाते हैं
और उसे निर्बल करते चले जाते हैं । वो अपनी ही निर्बलता से गिरता है । जुडो कहता है कि दुश्मन अपनी निर्बलता से गिर जाता है तुम्हे गिराने की
कोई जरूरत ही नहीं है । लाओ से के इन्हीं सूत्रों से जूतों का विकास हुआ । इन्हीं सूत्रों से और बुद्ध के विचार के सम्मेलन से मुँह का जन्म हुआ ।
बुद्ध का विचार भारत से चीन पहुँचा और चीन लौट के विचार की पर वातावरण में थी । इन दोनों के संगम से बहुत ही नई तरह की चीज दुनिया में
पैदा हुई । उं बुद्ध ने भी कहा था, बहुत और अर्थों में किसी और तल पर की मैं अपने भीतर के शत्रुओं से लड लडके हार गया और ना जीत पाया ।
और जब मैंने भीतर के शत्रुओं से लडना ही बंद कर दिया और जितने का ख्याल ही छोड दिया तो मैंने पाया कि मैं जीता ही हुआ हूँ । और जब लाव
से के इन सूत्रों से बुद्ध के इन विचारों का तालमेल बना तो बिल्कु ल ही नया विज्ञान पैदा हुआ । वो विज्ञान है बिना लडे जितने का वो विज्ञान है लगता
ही नहीं और जीत जाना संघर्ष नहीं और विजय संकल्प नहीं और सफलता हम सोच ही नहीं सकते क्योंकि हम तो सोचते हैं जहाँ भी संकल्प होगा वही
सफलता है । जहाँ संघर्ष होगा वही विजय जहाँ युद्ध होगा वही तो उस पहाड पहनाए जाएँगे । जीत के लाल से उल्टा मालूम पडेगा । कहता हड्डियां तो
मजबूत हो लेकिन संकल्प शून्य क्यों? हड्डियों और संकल्प में क्यों फर्क कर रहा है? अगर आप के ऊपर में हमला करूँ तो हड्डियाँ इतनी मजबूत होनी
चाहिए कि हमले को पी सके । हड्डियों का मतलब है आप के पास जो भी पीने का संरचना है, स्ट्रक्चर है वो इतना मजबूत होना चाहिए कि पी जाए ।
लेकिन भीतर कोई प्रतिरोध करने वाला अहंकार नहीं होना चाहिए कि लड पडे ध्यान रहे लडने के लिए उतने मजबूत शरीर की जरूरत नहीं है जितना
लडाई पीने के लिए मजबूत शरीर की जरूरत है । कमजोर शरीर वाला भी सकता है और अक्सर ऐसा होता है कि कमजोर हो शरीर और दिमाग को
पागल तो खूब लड सकता है । कोई शरीर की कमजोरी से लडने में बाधा नहीं पडती । शरीर की कमजोरी लडने में बाधा नहीं बल्कि सच्चाई तो ये है
कमजोर शरीर लडने को बहुत आतुर होता है । सुना है मैंने कि हांगकांग में पहली दफा जो अमेरिकन उतरा उसने हांगकांग के बंदरगाह पर दो चीनियों को
लडते देखा । लाओ से की परंपरा से ही जुडे हुए अनेक परंपराएं चीन में विकसित हुई । वो दस मिनिट तक खडा हो के देखता रहा । वो बिल्कु ल एक
दूसरे के मुँह के पास मुँह ले आते हैं । घुसा उठाते एक दूसरे की नाक तक घुसा ले जाते हैं । बडी गालियाँ देते हैं । बडी चीज पुर मचाते लेकिन
हमला नहीं होता । दस मिनट लोगों को थोडा हैरान हुआ की किस प्रकार की लडाई उसने अपने गाइड को पूछा कि क्या हो रहा है क्योंकि उसको समझ
नहीं आया कि लडाई
हो रही क्योंकि लडाई कै से इतने निकट घुसे पहुँच जाते हैं और वापस लौट जाते हैं । ये कोई खेल हो रहा है । उस गाइड ने कहा कि ये चीनी ढंग
की लडाई चाइनीज मुँह फाइटिंग लेकिन फाइट तो हो ही नहीं रही । लडाई तो हो ही नहीं रही है । दस मिनट से मैं देख रहा हूँ इतने निकट दुश्मन हो
और घुसा इतने करीब आ जाता है फिर वापस लौट जाते हैं । तो उस गाइड ने कहा कि ढाई हजार साल से इस मुल्क में ख्याल है कि जो पहले
हमला करे वो कमजोर । वो हार गए तो ये दोनों प्रतीक्षा कर रहे हैं । जो पहले हमला करे वो कमजोर । वो हार गए, उसने काबू पहले खो दिया तो
कमजोरी का लक्षण है तो ये सब भी खडे होके ये देख रहे देखने कौन हारता है और हार का लक्षण होगा हमला हुआ हट जाएगी । बात हो गई साला
आदमी हार गया जिसने हमला किया पहले और ये दोनों एक दूसरे को उकसा रहे हैं कि हमला करो अब इसमें कौन हारता है ये देखना है और हार का
बडा अजीब सूत्र वो जो हमला करेगा वो हार गया से की धारणा है कि कमजोर हमला पहले कर देता है मैंने कल मैं क्या बोली का नाम लिया । आप
और फॅ मिली कहता है सुरक्षा का सबसे बडा उपाय पहले हमला कर देना । फॅ स अगर सुरक्षा चाहते हो तो पहले ही हमला कर दो । वो ठीक कह रहा है
वो ठीक इसलिए कह रहा है की इतनी देर मत करो, हमला पहले ही कर दो अगर कमजोर भी पहले हमला कर दे । मैं के वल के हिसाब से तो उसके
जीतने की संभावना बन जाएगी । वो आगे हो गया और जो संदेश दे रहा है वो कमजोरों के लिए दे रहा है । असल में सुरक्षा कमजोर के लिए चाल
लॉस से कहता है कि हमला आए तो पी जाओ हमला करने का तो सवाल ही नहीं । पहले क्या पीछे भी करने का सवाल नहीं । उसे आत्मा क्लीन कर
लेना । ऐसा हो सके कि शरीर को स्वस्थ मन हो । सुन हड्डियाँ मजबूत मकान की दीवार हो और भीतर मालिक हो जैसे नहीं तो लाओ से कहता ऍम
पूर्ण आदमी का जन्म होता है पूर्ण मनुष्य का जन्म होता है ये धारणा उल्टी हमारे सब के हिसाब ने ये धारणा उल्टी और ये उल्टी इसलिए दिखाई पडती
रहेगी की हमारे सोचने के सारे मापदंड मुँह बिल्कु ल बिक्री थे हम कहेंगे ये कमजोरी है कायरता है कि कोई हमला करे और तुम जवाब न दो हम कहेंगे ये
कायरता है, कोई हमला करे और तुम जवाब ना जिंदगी पुकारे लडाई के लिए और तुम खडे रह जाओ की चुनौती दे और तुम लेट जाओ की नदी बहाने
लगे तुम्हे और तुम बाहर जाओ और उल्टे ना बहुत नसरुद्दीन को खबर दी है उसके घर के आस पास के पडोसी होने की तो भाग जल्दी तेरी पत्नी नदी
में गिर पडी पूरा है तेज वर्ष के है । दिन धार है कडी और डर है की पत्नी शीघ्र ही सागर में पहुँच जाएगी तो भाग नसरुद्दीन भागा । तट पर बहुत
भीड इकट्ठी हो गयी । वो नदी में कू दा और उलटी धार की तरफ तैरने लगा । उल्टी तरफ सागर की तरफ रही है । नदी उल्टी तरफ नदी के उद्गम की
तरफ जोर से तैरने लगा । तेज है धार पैर भी नहीं पा रहा । लोगों ने चिल्लाया, पागल नसरुद्दीन कोई नदी में गिर जाए तो उल्टी तरफ नहीं रहता ।
मेरी पत्नी नीचे की तरफ गई होगी । उन्होंने कहा कि करो मेरी पत्नी को मैं तुमसे अच्छी तरह जानता हूँ । वो सादा उल्टे काम करती रही । वो कभी
नीचे की तरफ नहीं रह सकते । उससे मैं भलीभांति पहचानता हूँ । तीस साल का हमारा उसका सत्संग । अगर तुम ये कहते हो कि सभी लोग नदी में
कर के नीचे की तरफ रहते हैं तो मेरी पत्नी ऊपर की तरफ वही होगी लॉस और हमारे बीच ऐसे ही उल्टे नाते । इसलिए लाओत्से को समझना मुश्किल
हो जाता है । लाल को समझना मुश्किल हो जाता है क्योंकि हमारे तर्क की व्यवस्था में उसकी तरक्की व्यवस्था में बडा उल्टा पन है । हम कहते कायरता
फॅ से कहता है सकती । वो कहता है जितनी बडी शक्ति है उतनी ही लडने की आतुरता कम होगी । अगर शक्तिपूर्ण है तो लडाई होगी ही नहीं । ऐसा
समझे हम परमात्मा के द्वार पे जाके हम गाली दे रहे हैं । कोई उत्तर नहीं मिलता और नाश्ते हजारों साल से खंडन करते रहे हैं । एक भी बार ऐसा
नहीं हुआ कि परमात्मा एक बार बात तो कह देता है की मैं हूँ । इतने दिन से लंबा विवाद चलता है । एक आध बार तो उसको इतना तो ख्याल आ
जाना चाहिए था की बडी कायरता हो । एक दफा तो कह दूँ कि मैं हूँ नहीं । वो चुप लाओ से कहता है वो इसलिए चुप है कि वो परम शक्ति प्रतिरोध
वहाँ नहीं है । अगर नाश्ता कहता है तुम नहीं हो तो परमात्मा से भी प्रतिध्वनि आती है कि नहीं, कोऑपरेट कर जाता है, उसके साथ भी सहयोग कर
देता है । उससे भी विरोध नहीं । हाँ, जितनी बडी ऊर्जा उतना ही प्रतिरोध नहीं होता । सुना है मैंने एक स्कू ल में एक पादरी बच्चों को पैदल का पाँच
सिखा रहा है और उनसे कह रहा है कि कल मैंने तुम्हे क्षमा के लिए सारी बातें समझाई । अगर कोई तुम्हें मारे तो तुम उसे छमा कर सकोगे । एक
छोटे से लडके को उसने खडे करके पूछा कि तेरा क्या ख्याल है अगर कोई लडका तुझे घुसा मार दे तो उसे छमा कर सके गा । उस लडके ने कहा कर
तो सकूँ गा अगर वो मुझसे बडा हो ऍम कर तो सकूँ गा अगर वो मुझसे बडा हो छोटे को करना ज्यादा मुश्किल पड जाए । असल में हम सब की सब की
मनोदशा ऐसी ही है जिसको हम दबा सकते हम दबा देते हैं जिसको हम सत्ता सकते हैं उसे हम सत्ता देते हैं । जिसको हम चोट पहुँचा सकते हैं उसे
हम चोट पहुँचा ही देते जिसे हम नहीं पहुँचा सकते । तब हम सिद्धांतों की बात कर लेते हैं से कह रहा है तुम्हारे भीतर वो बिंदु ही ना रह जाए जो
छोटे बडे को सोचता है इसके साथ उसके साथ सोचता है इस स्थिति में क्या करूँ ? उस स्थिति में क्या करूँ ? सोचता है वो बिंदु ही ना रह जाए
तुम्हारे भीतर संकल्प ना रह जाए । अगर एक छोटा बच्चा भी चांटा मार दे तो अभी जवाब नहीं देगा और एक सम्राट भी हमला बोल दे तो भी जवाब
नहीं देगा । इससे अगर इस सूत्र को ठीक से लेने तो साधना का बडा सूत्र कभी छोटा सा प्रयोग करके देखो एक सात दिन के लिए । अब प्रतिरोध का,
नान रेसिस्टेंस का की कु छ भी होगा पी जायेंगे प्रयोगात्मक एक सात दिन के लिए कु छ भी होगा पी जायेंगे जिन जिन चीजों में कल प्रतिरोध किया था,
प्रतिरोध नहीं करेंगे । या जिन जिन चीजों में कल दबाना पडा था, दबाएंगे नहीं पी जायेंगे और एक सात दिन में आप पाएंगे । आप इतनी शक्ति अर्जित
कर लेते हैं जिसका कोई हिसाब लगाना मुश्किल है । आपके पास इतनी ऊर्जा, इतनी एनर्जी इकट्ठी हो जाती है जिसका हिसाब तब मुश्किल हो जाएगा ।
उसके बाद इस ऊर्जा को व्यर्थ डिस इफे क्ट करना हम सब डिस इफे क्ट कर रहे हैं । फें क रहे सडक से गुजर रहे एक छोटा सा बच्चा सडक के किनारे
खडे होके हंस दे और आप में प्रतिरोध शुरू हो गए । प्रतिरोध शुरू हो गया पर किसी ने गाँव में हमला कर दिया था । लाॅट के भी नहीं देखा के बाद
में कौन वो चलता ही गया । उस आदमी को बडी बेचे नहीं हुई । उसने लौट के भी नहीं देखा कि पीछे से लकडी किसने मारी । वहाँ आदमी भागा
हुआ आया उसने से करो का और कहाँ लौट के तो देख लो अनीता हमारा मारना बिलकु ल बेकार ही गए । कु छ तो कहो लाव सेना का कभी भूल चूक
से अपना ही नाखून हाथ में लग जाता है तो क्या करते हैं? कभी राह चलते अपनी भूल से गिर पडते है । घुटने टू ट जाते हैं तो क्या करते हैं? लाल
सिने का एक बार ऐसा हुआ कि मैं गाँव में बैठा था और एक खाली ना आके मेरी नाव से टकरा गई तो मैंने क्या किया । लेकिन अगर उस दूसरी नाव
में कोई मल्लाह बैठा होता तो तो झगडा हो जाता है तो झगडा हो जाता है । खाली नहीं थी तो कु छ क्या कोई मल्लाह बैठा होता तो झगडा हो जाता है
। लेकिन उसी दिन से मैंने समझ लिया कि जब खाली नाव को कु छ नहीं किया तो मल्लाह भी बैठा हो तो क्या फर्क पडता है । तुमने अपना काम कर
लिया । तुम जाओ मुझे मेरा काम करने । वो आदमी दूसरे दिन पुनः आए और उसने कहा मैं रात भर सो नहीं सका । तुम आदमी कै से हो? तुम कु छ
तो करो । तुम कु छ तो कहो ताकि मैं निश्चिंत हो जाऊँ स्वभाव था उसके मन में बहुत कु छ कठिनाई चलती रही हो । हम सब अपेक्षाओं में चलते हैं ।
अगर मैं गाली देता हूँ तो मैं मान के चलता हूँ की गाली लौटेगी । लौट आती है तो नियमानुसार सब हो रहा है । नहीं लौटती है तो बच्चे नहीं होती
बेचेनी उतनी हो जाती है कि मैं अगर प्रेम करता हूँ तो मान के चलता हूँ की प्रेम लौटेगा नहीं लौटता है तो जैसे ही बेचैनी हो जाती है हम सबके लेन
देन की सिक्के ते फॅ से कहता है ये सिक्कों को बदल डालो, भीतर हो जाओ, शून्य संकल्प को हटा दो और जो होता है होने दो हम कहेंगे तब तो मौत
आ जाएगी, बीमारी आ जाएगी, कोई लूट ही लेगा, सब बर्बाद ही हो जायेगा हम हजार दलीलें खोज लेंगे जरूर लेकिन हमारी दलीलों का बहुत मूल्य नहीं
है क्योंकि जिन चीजों को बचाने के लिए हम दलीलें खोज रहे हैं उनमें से हम कु छ भी नहीं बचा पाते । सभी छू ट जाता है । ना तो मौत रूकती, ना
बीमारी रूकती, कु छ रुकता नहीं, सभी नष्ट हो जाता है और उसको बचाने की चेष्टा में हम कभी उसे पा ही नहीं पाते । जो ऐसा था कु छ की मिल
जाता तो कभी नष्ट नहीं होता है । एक बार सात दिन का छोटा सा प्रयोग कर के देखिए मेरे लिए तो संन्यास का अर्थ यही से कह रहा है । यही अर्थ
है संन्यास का कि ऐसा व्यक्ति जिसने संकल्प छोड दिया जिसने समर्पण स्वीकार कर लिया जिसने इस जगत के साथ संघर्ष छोड दिया और सहयोगी हो गए
। जो कहता है मेरी शत्रुता नहीं हवाई जान हवाई जहाँ ले जाये मैं चला जाऊँ गा जो कहता मेरी अपनी कोई आग्रह की बात नहीं ऐसा हो जो हो जाएगा
वही मुझे स्वीकार ऐसी कोई मंजिल नहीं जहाँ मुझे पहुँचना जहाँ पहुँच जाऊँ गा कहूँगा यही मेरी मंजिल, ऐसा व्यक्ति सन्यासी और ऐसी संन्यास की भावना
जीवन का जो परम धन है उसका द्वार उस खजाने का द्वार खुल जाता है । लव से कहता है संत जो जानते हैं वे प्रज्ञावान पुरुष अपने शासन में ये भी
शब्द सोचने जैसा है क्योंकि संत का कोई शासन नहीं होता । संत की क्या गवर्न्मेंट होती है मुँह इन देर गवर्न्मेंट संत अपने शासन सन्तो की तो कोई
सरकार दिखाई पडती नहीं लेकिन ये बात पुराना सब बडा पुराना सब और था ऐसा जबकि संत का ही शासन था, कोई गवर्मेंट नहीं थी उसकी कोई
शासन व्यवस्था ना कोई स्ट्रक्चर न लेकिन शासन उसी का जैन परंपरा में अभी भी महावीर का शासन ऐसा ही सब प्रयोग किया जाता है । जो शासन दे
उसको सस्ता कहा जाता है । इसलिए महावीर को या बुद्ध को शास्ता कहते । शास्ता जिसने शासन दिया और वो शास्ता ने जो कहा जहाँ संगीत हो
उसको शास्त्र कहा जाता है । शासन का अर्थ है ऐसे नियम जिनसे आदमी चल सके और पहुँच सके । फॅ से कहता है संत अपने शासन में अपनी सूचनाओं
में मनुष्य को चलाने के लिए जो शास्त्र निर्मित करते हैं उसमें आदमी के मन को तो खाली करने की कोशिश करते हैं, शरीर को भरने की कोशिश करते
हैं । संकल्प को तोडते हड्डियों को मजबूत कर देते हैं । सारे हठयोग की पूरी प्रक्रिया, हड्डी को मजबूत करने की प्रक्रिया, भीतर से संकल्प को हटा के
समर्पण को ये ख्याल में आ जाए तो व्यक्तित्व का एक दूसरा ही रूप जैसे हम है । फिर वैसे नहीं देखने का और ही ढंग एक दूसरा गॅाड और जैसा हम
देखना शुरू करते हैं वैसे ही चीजें दिखाई पडनी शुरू हो जाती है । अगर आप ने तय कर रखा है सजग रहने है हर वक्त हमला हो तो हमले से उत्तर
देना है । हमला ना हो तो पहले से तैयारी रखनी तो आप रोज दुश्मन को खोज लेंगे । जगत बहुत बडा है और हर आदमी की जरूरतें पूरी कर देता है
। अगर आप दुश्मन को खोजने निकले हैं तो आप दुश्मन को प्रतिपल खोज लेंगे । ये खोज करीब करीब वैसी है जैसे कभी पैर में चोट लग जाए तो फिर
दिनभर पैर में उसी जगह चोट लगती मालूम पडती है । कभी कभी हैरानी भी होती है । मामला क्या है? इतना बडा शरीर है, कहीं चोट नहीं लगती ।
वही चोट लगती है । जहाँ चोट लगी । चोट तो रोज वही लगती थी, पता नहीं चलती थी । आज वहाँ चोट लगी है इसलिए पता चलता है आप का
वो हिस्सा संवेदनशील है, सेंसिटिव है इसलिए पता चलता है दूसरे हिस्से पर पता नहीं चल रहा वो संवेदनशील नहीं तो हम जिस जिस चीज के लिए
संवेदनशील हो जाते हैं, वही वही हमें पता चलता अगर हम आगमन के प्रति संवेदनशील है । अगर हमें लग
रहा है कि सारा जीवन एक संघर्ष युद्ध है तो फिर हम रोज हर उन लोगों को खोज लेंगे जो शत्रु उन स्थितियों को खोज लेंगे जो संघर्ष में ले जाए ।
लॅा देखने का दूसरा ढंग दूसरी सेंसिटिविटी दे रहा है । वो दूसरी संवेदनशीलता दे रहा है । वो कह रहा है की सहयोग को खोजो और जो आदमी उस
भाव से खोजने निकलेगा उसे मित्र मिलने शुरू हो जाती है । उसकी संवेदनशीलता दूसरी हो जाती है । वो मित्र को खोजने लगता है और हम जो खोजते
हैं वो हमें मिल जाता है या हम ऐसा कहे कि जो भी हमें मिलता है वो हमारी ही खोज इस जगत में हमें वो नहीं मिलता जो हमने नहीं खो जाए ।
इसलिए जब भी आप को कु छ मिले तो आप समझ लेना है की आपकी अपनी ही खोज लेकिन हम ऐसा कभी नहीं मानते । अगर दुश्मन मिलता है तो
हम सोचते हैं हमारी क्या खोज दुश्मन है इसलिए मिल गया नहीं दुश्मन होने के लिए आप संवेदनशील है आप तैयार खोज ही रहे सहयोग की ये व्यवस्था
कहाँ पर एशिन कनफ्लिक्ट कितने किताब लिखी है और कृ पा लेकिन इस सदी में कनफ्लिक्ट की साडी है हमारी तो हमारा तो पूरा युग संघर्ष का जहाँ आँख
से लेकर और माँ तक सारा विचार संघर्ष और कलर का है वहाँ एक आदमी जरूर उसमें ही हुआ । वो आदमी भी क्राॅस वो कहाँ पर एशिन सहयोग संघर्ष
नहीं और उसने बहुत बडी कीमती बात प्रस्तावित की । हालांकि ये साडी में सुनी नहीं गई क्योंकि ये साडी उसके लिए संवेदनशील नहीं । डार्विन ने सिद्ध
करने की कोशिश की कि सारा जगत जीवन के लिए संघर्ष, स्ट्रगल, स्ट्रगल तो सर्वाइव अपने अपने को बचाने के लिए हर एक लड रहा है और उसने
यह भी सिद्ध किया कि इसमें वही बच जाता है जो फिट इस्ट और फिट । इसका मतलब ये जो युद्ध में सर्वाधिक कु शल है वही बच जाता है । डार्विन
से लेके फिर इन तीन सौ सालों ने सारे जगत में संघर्ष का विचार परिपक्क होता चला गया और मजे की बात है कि संघर्ष के परिपक् विचार ने हमें
संघर्ष के लिए और उन्मुख बनाया और जब सिद्धांत को हमने स्वीकार कर लिया कि जीवन एक संघर्ष से हर एक लड रहा है बाप बेटे से लड रहा है
बेटा बाप से लड रहा है पति पत्नी से लड रहा सब लड रहे । ऐसा नहीं है कि नौकर मालिक से लड रहा संघर्ष ही चल रहा है । पूरे समय ये सारा
जीवन में एक संघर्ष का ही रूप है । ये डार्विन से लेकर माओ तक सारा ख्याल संघर्ष का कल है । वर्ग कल फिर कल बढती चली जाती है तो सभी
तलों में प्रवेश कर जाते हैं । फिर एक एक आदमी अके ला है और सारी दुनिया से लड रहा है कृ पा कितने कहाँ की संघर्ष आधार नहीं है । सहयोग
आधार और मजे की बात उसने ये कही कि संघर्ष भी करना हो तो भी सहयोग जरूरी है । जिस से लडना है उसका भी सहयोग चाहिए लडाई के लिए
भी अगर वो लडने में भी असहयोगी हो जाये, नान कोऑपरेटिव हो जाए और कहते कि नहीं लगते तो लडने का भी कोई उपाय नहीं है । ये बहुत मजे
की बात करू पाठ करने कही कि संघर्ष के लिए सहयोग अनिवार्य है लेकिन सहयोग के लिए संघर्ष अनिवार्य नहीं फाउंडेश िनल बुनियादी सहयोग है क्योंकि
संघर्ष भी बिना सहयोग के नहीं हो सकता है । अगर मैं आप से लडना भी चाहूँ तो किसी ना किसी रूप में आपके सहयोग की जरूरत है । अगर आप
बिल्कु ल वहाँ पर एक ही ना करे तो लडाई भी नहीं चल सकता । लडाई भी बडा सहयोग और दो आदमी जब लडते हैं तो बहुत बहुत ढंगों से एक दूसरे
का सहयोग करते हैं लेकिन सहयोग के लिए किसी संघर्ष की जरूरत नहीं है । इसका अर्थ यह होता है कि सहयोग ज्यादा गहरे में । लेकिन ने कहा कि
डार्विन ने जाके देख लिया जंगल में फिर इस जानवर को खा रहा है वो जानवर उस जानवर को खा रहा है । लेकिन क्रो पाठक का कहना है कि
चौबीस घंटे में अगर एक बार फिर एक जानवर पे हमला करता है तो बाकी तेईस घंटों में हजारों जानवरों के साथ सहयोग कर रहा है । उसे कभी डार्विन
ने देखा नहीं । जंगल के जानवर चौबीस घंटे लड नहीं रहे हैं । सच बात ये है कि आदमी से ज्यादा लडने वाला कोई भी जानवर जंगल में नहीं एक
सूफी फकीर हुआ है । जलालुद्दीन वो आपने ध्यान में बैठा है और उसके एक सिस्टर ने आके उससे कहा कि उठिए उठिए बडी मुश्किल हो गई । एक
बंदर के हाथ में तलवार पड गई । कु छ ना कु छ खतरा हो के रहेगा । जलालुद्दीन ने कहा बहुत परेशान मत हो आदमी के हाथ में तो नहीं पडी है ना
फिर कोई की बात फिर कोई चिंता की बात आदमी के हाथ में पड गई हो तो फिर उठना पडेगा फिर कु छ उपद्रव होकर रहेगा । जंगल में इतना संघर्ष
नहीं जैसा हमें ख्याल है और हम सबको ख्याल है कि जंगल एक संघर्ष कनफ्लिक्ट है । हिंसा है बडा सहयोग लेकिन आदमी ने जो जंगल बनाया है
जिसका नाम सभ्यता है समाज वो बिल्कु ल संघर्ष और दिखाई बिल्कु ल नहीं पडता है और पूरे समय एक दूसरे की दुश्मनी में सारा का सारा जाल फै लता
चला जाता है । हाँ वही कह रहा है जो किसी दूसरे तल पर और गहरे तल पर कहा से कहता है सहयोग लेकिन सहयोग वही लोग कर सकते हैं ।
जिनके भीतर संकल्प छीन हो । कलह वही लोग कर सकते हैं जिनके भीतर संकल्प मजबूत हो । संकल्प जितना ज्यादा होगा कल है उतनी ज्यादा होगी
संकल्प कलह का सूत्र संकल्प छीन होगा, शून्य होगा कल है विदा हो जाएगी, लडने वाला तत्व ही नहीं रह जाएगा जो लड सकता था इससे थोडा
प्रयोग कर के देखें की सारी चीजें प्रयोग करने जैसी है और प्रयोग करेंगे तो ख्याल में ज्यादा गहरा आएगा । मुझे सुन लेंगे उतने से बात बहुत साफ नहीं
होगी मुझे सुनके लगेगा भी की समझ गए तो भी समझ में नहीं आएगा ये समझ ऐसी ही होगी जैसे अंधेरे में छोटी सी बिजली कौन जाए । एक्शन को
लगे कि सब दिखाई पडने लगा फिर क्षण भर बाद अंधेरा हो जाए क्योंकि आपका जो अपना तर्क है वो तर्क लंबा है वो जन्मों जन्मों का है । जन्मों
जन्मों का जो तर्क है वो तो कलह का संघर्ष का है । इस संघर्ष के तरक्की लंबी यात्रा में जरा सी बिजली कौन जाए कभी सहयोग की किसी की बात से
तो कितने दिन टिके गी जब तक की आप सहयोग के लिए भी कोई प्रयोग ना करें । जब की जब तक कि आपके संघर्ष के अनुभव के विपरीत सहयोग का
अनुभव भी खडा ना हो जाए । उसे थोडा प्रयोग करें । एक सात दिन का नियम किसी भी किसी भी सूत्र को समझने के लिए कम से कम सात दिन
का नियम ले ले कि कल सुबह से सात दिन तक सहयोग करूँ गा । चाहे कु छ भी हो जाए । जहाँ जहाँ संघर्ष की स्थिति बनेगी वहां वहां सहयोग करूँ गा
और इस सूत्र का राज खुल जाए । इन सब सूत्रों का राज्य व्याख्या से नहीं प्रतिदि से खुलता है । व्याख्या से समझ में आ जाए इतना ही कि प्रयोग
करने जैसा है उतना जिस से लडे थे उससे सहयोग कर ले जिस से लडे होते उससे सहयोग कर ले । जिस परिस्थिति में अकड के खडे हो गए होते हैं
उस परिस्थिति में लेट जाएं । बहुत और देखिए सात दिन में आप मीठे या बने देखिए सात दिन में आप कमजोर हुए की शक्तिशाली हुए देखिए सात दिन
में आप खो गए कि बच्चे देखिए सात दिन के आप बिना है या स्वस्थ और एक बिलकु ल ही नए तरह के स्वास्थ्य का गुड अनुभव में आना शुरू हो
सकता है । आज इतना ही फिर कल

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