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ी िश%ा'कम्
॥1॥
चेतोदप(णमाज(नं भव-महादावाि3न-िनवा(पणं
4ेयःकै रवचि:;कािवतरणं िव<ावधू-जीवनम् ।
आनंदाCबुिध-वध(नं Fितपदं पूणा(मृताHवादनं
सवा(JमHनपनं परं िवजयते 4ीकृKण-सक ं ीत(नं ।।
अनुवाद: !ीकृ%ण-सक ं ीत+न की परम िवजय हो जो 6दय म8 वष: से सिं चत मल का
माज+न करने वाला तथा बारAबार जBम-मCृ यु Eपी दावानल को शांत करने वाला है । यह
संकीत+न यI मानवता के िलए परम कKयाणकारी है LयMिक चBN-िकरणM की तरह
शीतलता Oदान करता है। समPत अOाकृत िवRा Eपी वधु का यही जीवन है । यह
आनंद के सागर की विृ V करने वाला है और िनCय अमतृ का आPवादन कराने वाला है
॥2॥
नाCनामकािर बहुधा िनज सव( शिPHत-
Qािप(ता िनयिमतः Hमरणे न कालः।
एताTशी तव कृपा भगव:ममािप
दुदVवमीTशिमहाजिन नानुरागः ।।
अनुवाद: हे भगवन ! आपका मा/ नाम ही जीव2 का सब 5कार से मंगल करने वाला
है-कृ;ण, गोिव?द जैसे आपके लाख2 नाम हA। आपने इन नाम2 मD अपनी समEत
अ5ाकृत शिHयां अिपJत कर दी हA । इन नाम2 का Eमरण एवं कीतJन करने मD देश-काल
आिद का कोई भी िनयम नहN है । 5भु ! आपने अपनी कृपा के कारण हमD भगव?नाम
के Oारा अPयंत ही सरलता से भगवत-5ािQ कर लेने मD समथJ बना िदया है, िक?तु मA
इतना दुभाJSयशाली हूँ िक आपके नाम मD अब भी मेरा अनुराग उPप?न नहN हो पाया
॥3॥
तृणादिप सनु ीचेन
तरोरिप सिह2णुना ।
अमािनना मानदेन
कीत8नीयः सदा हिरः ॥
अनुवाद: 'वयं को माग. म/ पड़े हुए तृण से भी अिधक
नीच मानकर, व@ ृ के समान सहनशील होकर, िमCया
मान की कामना नकरके दुसरो को सदैव मान देकर हम/
सदा ही Fी हिरनाम कीत.न िवनH भाव से करना चािहए
॥4॥
न धनं न जनं न स?ु दर@
किवतां वा जगदीश कामये ।
मम ज?मिन ज?मनीDरे
भवताद् भिGरहैतुकी Iविय ॥
अनुवाद: हे सव. समथ. जगदीश ! मुझे धन एकL करने की कोई
कामना नहN है, न मO अनुयािययP, सQु दर Rी अथवा Sशंनीय
काTयP का इVछुक नहN हूँ । मेरी तो एकमाL यही कामना है िक
जQम-जQमाQतर मO आपकी अहैतुकी भि\ कर सकूँ
॥5॥
अिय न?दतनुज िकंकरं
पिततं मां िवषमे भवाKबुधौ।
कृपया तव पादपंकज-
िNथतधूिलसRशं िविच?तय ॥
अनुवाद: हे नQदतनुज ! मO आपका िन^य दास हूँ िकQतु
िकसी कारणवश मO जQम-मृ^यु _पी इस सागर म/ िगर
पड़ा हू।ँ कृपया मुझे अपने चरणकमलP की धूिल बनाकर
मुझे इस िवषम मृ^युसागर से मु\ किरये
॥6॥
नयनं गलदSुधारया
वदनं गदगदTUया िगरा ।
पुलकै िन8िचतं वपुः कदा
तव नाम-Vहणे भिव2यित ॥
अनुवाद: हे Sभु ! आपका नाम कीत.न करते हुए कब
मेरे नेLP से अFुओ ं की धारा बहेगी, कब आपका
नामोcचारण माL से ही मेरा कंठ गeद होकर अवfg
हो जायेगा और मेरा शरीर रोमांिचत हो उठे गा
॥7॥
युगाियतं िनमेषेण
चWषु ा Xावषृ ाियतम् ।
शू?याियतं जगत् सवY
गोिव?द िवरहेण मे ॥
अनुवाद: हे गोिवQद ! आपके िवरह म/ मुझे एक @ण भी
एक युग के बराबर Sतीत हो रहा है । नेLP से मूसलाधार
वषा. के समान िनरंतर अFु-Sवाह हो रहा है तथा सम'त
जगत एक शूQय के समान िदख रहा है
॥8॥
आि[2य वा पादरतां िपन\ु माम
अदश8नान-् मम8हतां करोतु वा ।
यथा तथा वा िवदधातु लKपटो
मIXाणनाथस-् तु स एव नापरः ॥
अनुवाद: एकमाL Fीकृkण के अितिर\ मेरे कोई Sाणनाथ हO ही नहN
और वे ही सदैव बने रह/गे, चाहे वे मेरा आिलंगन कर/ अथवा दश.न न
देकर मुझे आहत कर/। वे नटखट कुछ भी VयP न कर/ -वे सभी कुछ
करने के िलए 'वतंL हO VयPिक वे मेरे िन^य आराmय Sाणनाथ हO
हरे कृ&ण हरे कृ&ण
कृ&ण कृ&ण हरे हरे
हरे राम हरे राम
राम राम हरे हरे
भगवान के नाम जप म+
होने वाले दस-नाम अपराध
॥1॥
सतां िन:दा नाCनः परममपराधं िवतनुते
यतः Wयाितं यातं कथमु सहते तिYगहा(म्
अनुवाद : भगवा?नाम
के Xचार म`
सKपूण8 जीवन समिप8त करने
वाले महाभागवतa की िन?दा
करना।
॥2॥
िशवHय 4ीिवKणोय( इह गुणनामािदसकलं
िधया िभ:नं प[येJस खलु हिरनामािहतकरः
िशव, $%ा आिद देव*
अनुवाद:
के नाम को भगवा1नाम के
समान अथवा उससे 6वत18
समझना।
॥3॥
गुरोरवbा
अनुवाद: गुT की अवbा
करना अथवा उ?ह` साधारण
मनु2य समझना।
॥4॥
*ुित-शा/-िन1दनम्
अनुवाद: वैिदक शा/7
अथवा 9माण7 का
ख;डन करना।
॥5॥
हिरनाि?न-क@पनम्
अनुवाद: हरे कृ,ण महाम/0
के जप की मिहमा को
का6पिनक समझना।
॥6॥
तदथBवादः
अनुवाद: पिव0 भगवन-्
नाम म= अथ?वाद का
आरोप करना।
॥7॥
ना<नो बलाद् य6य िह पापबुिD ।
न िवEयते त6य यमैहG शुिDः ॥
अनुवाद: नाम के बल
पर पाप करना।
॥8॥
धमJKतLयागहुतािदसवJ
शुभिNयासा<यमिप Oमादः
अनुवाद: हरे कृRण महाम18 के जप
को वेद* मU विणJत एक शुभ सकाम
कमJ (कमJकाWड) के समान
समझना।
॥9॥
अYDाने िवमुखेअिप अYु1वित
य[ोपदेशः िशवनामापराधः
अनुवाद: अSUालु
eयिfg को हिरनाम की
मिहमा का उपदेश करना।
॥10॥
(ु)वािप नाम माहा).यं
यः 2ीित रिहतो-अधम ।
अहं-ममािद-परमो नाि.न
सोs:यापराध-कृत ॥
अनुवाद: भगव:नाम के जप म^ पूण(
िव_ास न होना और इसकी इतनी
अगाध मिहमा 4वण करने पर भी
भौितक आसिP बनाये रखना ।
भगव1नाम का जप करते समय पूणJ ]प
से सावधान न रहना भी अपराध है ।
FJयेक वैKणव भP को चािहए िक इन
दस Fकार के अपराधb से सदा बच कर
रहे, तािक 4ीकृKण के चरण कमलb म^
Fेम शीcाितशीc Fाd हो, जो मनुKय
जीवन का परम लeय है।
वै#णव %णाम
वाAछा-क6पतDEयG
कृपािस/धुEय एव च ।
पिततानां पावनेEयो
वै,णवेEयो नमो नमः ॥

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