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(लग्न) प्रथम भाव में सूर्य का प्रभाव

(लग्न) प्रथम भाव में सूर्य का प्रभाव

कुंडली-के प्रथम भाव (लग्न) से हमे जातक के रं ग-रूप, सु ख-दुख, कद-काठी, जातक का स्वभाव एवं उसकी
सोच व व्यवहार के बारे में जानकारी प्राप्त होती है ।

सूर्य आत्मा, पिता, धर्म, प्रशासन सरकारी, अग्नि एवं मु ख्य व्यक्ति जै से आफिस में मालिक व घर के बड़े
बु जु र्ग व्यक्ति का कारक है ।

स्वभावः
सूर्य के लग्न में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक का शरीर बलवान होगा। सूर्य सबसे अधिक शक्तिशाली
ग्रह माना गया है इसलिये लग्न में सूर्य के स्थित होने से जातक में भी सूर्य का प्रभाव रहने से वह भी
शक्तिशाली रहे गा। सूर्य सं पर्ण ू सूर्य माला का ने तृत्व करता हैं एवं हमारा ने तृत्व करने वाला ने ता कहलाता हैं
सूर्य के इस कारकत्व के कारण सूर्य के लग्न में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक में भी ने तृत्व करने के गु ण आ
जाते हैं । सूर्य आत्मा का कारक होने से सूर्य के लग्न में स्थित प्रभाव से जातक का आत्मबल और जीवन
शक्ति बहुत अधिक होती है । सूर्य अपने ते ज व ऊर्जा से सभी जीवों को जीवन शक्ति प्रदान करता है ।
लग्न में सूर्य स्थित हो तो ऐसा जातक कठिन समय में सबके आगे रहकर ने तृत्व करता है । सूर्य स्थित हो तो
जातक को स्वतं तर् रूप से अपना कार्य करना अच्छा लगता हैं । ऐसा जातक धार्मिक विचारों वाला होता है ।
सूर्य ग्रह धर्म का कारक होने से लग्न में सूर्य के होने से व्यक्ति पर भी सूर्य का प्रभाव होने से वह धार्मिक
विचारोंवाला होता है । लग्न में सूर्य के होने से जातक आत्मविश्वासी तथा उदार स्वभाव का बनता है । सूर्य
ग्रह भू-मं डल के सभी पे ड़-पौधों तथा मनु ष्य व सभी सजीव प्राणियों पर निस्वार्थ भाव से अपनी ऊर्जा
प्रदान करता हैं । सूर्य की इस उदारता के कारण जातक में भी सूर्य की उदारता का प्रभाव शामिल होता है ।
सूर्य के कारकत्व में अधिकार वृ त्ति होने से लग्न में सूर्य स्थित होने से सूर्य के प्रभाव के कारण जातक का
स्वभाव भी स्वाभिमानी रहता है । सूर्य के लग्न में होने से जातक क् रोधी व गु स्से वाला रहता है क्योंकि सूर्य
अग्नि का कारक है । सूर्य आग के गोले की तरह हमे शा उर्जावान रहता है । व सूर्य के प्रभाव से सं पर्क में
आने वाले व्यक्ति को भी उर्जावान बनाता हैं इसलिये सूर्य के प्रभाव से जातक में भी अधिक ऊर्जा होती है
सूर्य लग्न में होने से जातक ऊँचे विचारोवाला व न्याय करने वाला होता है । सूर्य के ब्रह्मांड में सर्वोच्च राजा
का स्थान प्राप्त होने से जातक पर भी सूर्य का प्रभाव रहता है एवं जातक के उच्च विचार होते हैं ।

सप्तम दृष्टि
सूर्य ग्रह की एक ही पूर्ण दृष्टि होती है । जिस भाव में स्थित हो उस स्थान से सप्तम स्थान पर पूर्ण दृष्टि से
दे खता है ।
सूर्य लग्न में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि सप्तम भाव पर पड़ती है । सप्तम भाव व्यक्ति की पत्नी का
होता है । सप्तम भाव व्यापार व साझे दारी का भी होता है । सूर्य की सप्तम भाव पर दृष्टि होने से जातक के
अपनी पत्नी से कुछ मतभे द पै दा होते है । सूर्य लग्न में अपनी शत्रु राशि में होने से उसका शु भ फल नहीं
मिलता तथा जातक को अपयश मिलता है एव वह दुःखी होता है ।

सूर्य की लग्न में उच्च, स्वराशि, मित्र और नीच राशि का प्रभावः


सूर्य लग्न में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से व्यक्ति में सूर्य के ते ज का प्रभाव दिखाई दे ता है । जातक
पु रूषार्थी व उत्साही रहता है । सूर्य लग्न में अपनी सिं ह राशि में स्थित होने से प्रथम भाव सं बंधी शु भ फल
प्राप्त होते हैं ।
सूर्य लग्न में अपनी उच्चराशि मे ष में स्थित होने से सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति स्वाभिमानी व प्रतापी होता
है । वह चतु र व साहसी होता हैं तथा ऐसे व्यक्ति में पित्त की अधिकता रहती है । सूर्य के उच्च के प्रभाव से
व्यक्ति यशस्वी रहता है ।
सूर्य लग्न में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित होने से जातक का स्वभाव ईर्ष्यालू होता है । ऐसे व्यक्ति का
मनोबल कमजोर होता है । ऐसा व्यक्ति आलसी व बीमार रहता है ।


दविताय भाव में सूर्य
द्विताय भाव में सूर्य
कुंडली के द्वितीय (धन) भाव का प्रभाव से हमे दाहिनी आँ ख, वाणी, सं चित धन, सोना-चाँदी, मणिक,
भोजन तथा परिवार के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । सूर्य आँ ख, सोना एवं खाद्य पदार्थ का कारक हैं ।

द्वितीय भाव में सूर्य स्थित होने से जातक का स्वभाव होने की सं भावना रहती है । सूर्य सं पर्ण
ू जगत को
रोशनी प्रदान करता है । इसके प्रकाश में हम दे ख पाते है सूर्य हमें दे खने की क्षमता प्रदान करता हैं । दे खने
की क्षमता आँ खो में होती हैं । इसलिये आँ ख का कारक सूर्य होने से एवं द्वितीय भाव में सूर्य स्थित होने से
जातक को आँ खों के थोड़े बहुत रोग हो सकता है । सूर्य की द्वितीय भाव में होने से जातक धन सं चय नहीं
कर पाता। सूर्य को सभी ग्रहों में बड़ा व उच्च का स्थान प्राप्त होने से द्वितीय भाव में सूर्य के होने से
जातक का परिवार बड़ा होता है ।
सूर्य जावनदायक है व हमें अन्न व घरे लू राश सामाग्री अनाज आदि सूर्य की ऊर्जा से प्राप्त होने से राशन
सामग्री व खाद्यान्न भी सूर्य के अधिकार में है । द्वितीय भाव से व्यक्ति के खानपान बं धी अरूचि भी दे खी
जाती है । सूर्य द्वितीय भाव में होने से जातक की भोजन में विशिष्ट रूचि होती है । द्वितीय भाव में सूर्य
होने से सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति के आवाज में भारीपन होता है । सूर्य का कारकत्व में सोना होने से तथा सूर्य
द्वितीय भाव में होने से सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति को सोने के आभूषणों को धारण करने से व सोने का
उपयोग करने से द्वितीय भाव सं बंधी शु भ फल प्राप्त होंगे । सु बह सूर्य उदय होते समय लालिमा लिये
रहता है इसलिए सूर्य के द्वितीय भाव में स्थित होने से जातक की आँ खे भी हल्की लाल दिखायी दे सकती
है । सूर्य द्वितीय भाव में होने से जातक के अपने कुंटु ब के लोगों के साथ कलह होने की सं भावना रहती है ।

सप्तम दृष्टिः-
सूर्य के द्वितीय भाव में उच्च, स्वराशि मित्रराशि तथा शत्रुराशि में स्थित होने से फसकी सप्तम दृष्टि
(अष्टम भाव) पर पडती है । सूर्य की अष्टम भाव पर दृष्टि होने से यह आयु की रक्षा करता है व जातक को
दीर्घायु बनाता है । सूर्य की अष्टम भाव पर दृष्टि होने से किसी व्यक्ति का घर या सं पत्ति मिलने की सं भावना
होती है ।

सूर्य की द्वितीय भाव में मित्रराशि में स्थिति का प्रभावः


सूर्य द्वितीय भाव में अपनी मित्रराशि में स्थित होने से सूर्य के प्रभाव से जातक को धन व परिवार का
सु ख प्राप्त होता है तथा वह कुछ मु श्किलो से धन सं चय भी करता है । द्वितीय धन एवं कुटु ं ब के भाव में
सूर्य अपने शत्रु राशि में स्थित होने से कुटु ं ब के लोगों के साथ मतभे द होते है तथा धन सं चय में कठिनाईयाँ
आती है ।

सूर्य के द्वितीय भाव में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक को धन तथा परिवार का पूर्ण सु ख
प्राप्त होता है । सूर्य के द्वितीय भाव में उच्च राशि मे ष में स्थित होने से जातक अपनी मे हनत से धन की
् करता है तथा उसे परिवार का भी पूर्ण सु ख मिलता है ।
वृ दधि

सूर्य के द्वितीय भाव में अपनी नीच राशि तु ला में होने से जातक को धन तथा पारिवारिक सु ख में हानि
उठानीपड़ती है ।

तृ तीय भाव में सूर्य का प्रभाव


तृ तीय भाव में सूर्य का प्रभाव

कुंडली के तृ तीय भाव व्यक्ति के पराक् रम, भाई, साहस नौकर-चाकर तथा गायन का होता हैं । तृ तीय भाव से
गला, कान और छोटे भाई, बहन इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं । छोटी यात्राएं , हस्ताक्षर,
औषधि, इच्छा आदि के बारे में भी तृ तीय भाव से जानते हैं ।
तृ तीय भाव में सूर्य जातक को पराक् रमी और प्रतापी बनाता है । सूर्य के प्रभाव से जातक यशस्वी होता है ।
सूर्य निःस्वार्थ भावना से बिना किसी भे दभाव से सभी पर अपनी ऊर्जा का प्रभाव छोड़ता है । सूर्य के इस
प्रभाव से तृ तीय भाव में सूर्य होने से यह जातक भी सूर्य के प्रभाव से साहसी भाव व पराक् रमी होता है ।
जातक के अपने भाइयों से मदभे द होने से जातक भी सूर्य के प्रभाव से साहसी भाव व पराक् रमी होता है ।
जातक के अपने भाइयों से मदभे द होने की सं भावना होती है । ऐसा जातक छोटी-छोटी यात्राये करता है
क्योकिं तीसरा भाव छोटी यात्राओं का होता है । तृ तीय भाव में सूर्य होने से ऐसे जातक की बु द्धि
रचनात्मक काम करने की तरफ होती है । वह ले खन या चित्रकला के क्षे तर् में सफलता प्राप्त करता है ।
तृ तीय भाव में सूर्य होने से जातक परिवार में या तो सबसे बड़ा होता है या सबसे छोटा होता है ।

सप्तम दृष्टि
सूर्य के तीसरे (तृ तीय) भाव में होने से सूर्य की सप्तम दृष्टि नवम भाव पर पड़ती है । सूर्य के प्रभाव नवम
भाव पर दृष्टि से व्यक्ति भाग्यशाली व धार्मिक होता हैं तथा वह तीर्थयांतर् ाए करता है ।

सूर्य का तृ तीय भाव में मित्रराशि में प्रभाव


सूर्य तृ तीय भाव में यदि मित्रराशि में स्थित हो तो जातक को भाई-बहनों का सु ख मिलता है । जातक अपने
बाहुबल पर भरोसा रखने वाला होता है तथा वह पराक् रम से धन कमाता है ।

सूर्य का तृ तीय भाव में उच्च, स्वराशि व नीचराशि का प्रभाव

सूर्य का तृ तीय भाव में स्वराशि सिं ह में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक अत्यं त पराक् रमी होता है । उसे
भाई-बहनों से सु ख व सहयोग प्राप्त होता है ।

सूर्य का तृ तीय भाव में अपनी उच्च राशि मे ष मे होने से जातक में उच्च के सूर्य के प्रभाव से पु रूषार्थ में
अत्याधिक वृ दधि ् होती है । जातक अपने बल पर व्यवसाय तथा अन्य क्षे तर् ों में सफलता प्राप्त करता है ।
जातक को भाई बहनों का भी सु ख प्राप्त होता है ।

सूर्य का तृ तीय भाव में शत्रु तथा नीच राशि में प्रभाव

तृ तीय भाव में सूर्य शत्रु राशि में होने से व्यक्ति को भाई-बहनों के सु ख में कुछ बनी रहती कमी बनी रहती
है सूर्य का तृ तीय भाव में अपनी नीच राशि तु ला में होने से सूर्य के प्रभाव से व्यक्ति को भाई-बहनों से सु ख
नही मिलता तथा उनसे जातक की नहीं बन पाती। जातक के पराक् रम में भी कमी आती है ।

सूर्य का चतु र्थ भाव में प्रभाव


सूर्य का चतु र्थ भाव में प्रभाव

कुंडली के चतु र्थ भाव से माता का सु ख, मन की स्थिति, मकान, वाहन, सं पत्ति के बारे में चतु र्थ भाव से
जानकारी प्राप्त होती है ।
सूर्य के चतु र्थ भाव में होने से जातक प्रसिद्ध तथा बु द्धिमान होता है । उसकी स्मरण शक्ति अच्छी होती है ।
सूर्य में सं पर्क में आने वाली चीजों का जलाने की शक्ति सूर्य में होती है । व चतु र्थ भाव से व्यक्ति की
मनस्थिति के बारे में जाना जाता है । सूर्य चतु र्थ भाव में होने से सूर्य की इस ताप से व्यक्ति के मन में सं ताप व
उद्वे ग निर्माण होते है । तथा उसे सु ख में भी कभी आने की सं भावना रहती है । जातक के मन में असं तोष रहता
है । उसके विचार अस्थिर रहते हैं । चतु र्थ भाव में सूर्य होने से व्यक्ति को घर एवं वाहन सु ख मिलता है जातक
की गु प्त विद्याओं में रूचि होती है । चतु र्थ भाव में सूर्य के होने से बचपन में दुःख मिलने की सं भावना होती
है । चतु र्थ भाव में सूर्य होने से ऐसा जातक दे श-विदे श में घूमता फिरता है । उसे घर का सु ख नहीं मिल पाता।
सूर्य को सरकार या प्रशासन (राजा) का कारक माना जाता है इसलिये चतु र्थ भाव में सूर्य स्थित होने से सूर्य
के प्रभाव से ऐसे जातक को सरकार से उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है । सूर्य के चतु र्थ भाव में होने से
माता के सु ख में कमी होने की सं भावना रहती है । चतु र्थ भाव में सूर्य होने से जातक को हृदयरोग होने की
सं भावना रही है ।

सप्त दृष्टि
सूर्य चतु र्थ भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि (पूर्ण) दशम भाव पर पड़ती है । सूर्य के प्रभाव से
जातक को सरकार की ओर पद प्राप्ति होती है तथा जातक अपने कार्यक्षे तर् में सफलता प्राप्त करता है ।
सूर्य की चतु र्थ भाव में मित्रराशि में प्रभाव
सूर्य के चतु र्थ भाव में मित्रराशि में होने से जातक को माता व घर का सु ख मिलता है । सूर्य के चतु र्थ भाव में
मित्रराशि में होने से जातक को माता व घर का सु ख मिलता है ।

सूर्य की चतु र्थ भाव में शत्रुराशि का प्रभाव


सूर्य के चतु र्थ भाव में शत्रुराशि में स्थित होने से जातक को मानसिक चिं ताये रहे गी तथा भूमि भवन का
लाभ प्राप्त नहीं होगा।

सूर्य के चतु र्थ भाव में उच्च, स्वग्रही व नीच राशि में प्रभाव सूर्य के चतु र्थ भाव में उच्च, स्वग्रही व नीच
राशि में प्रभाव

सूर्य के चतु र्थ भाव में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक को अपनी माता तथा भूमि, मकान,
सं पत्ति का पूर्ण सु ख प्राप्त होगा।

सूर्य के चतु र्थ भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक को माता का अच्छा सु ख
मिलता है । मकान आदि का भी लाभ होता है । उसका घरे लू वातावरण भी सूखपूर्ण रहता है ।

सूर्य के चतु र्थ भाव में अपनी नीच राशि तु ला में होने से जातक को माता व भूमि तथा मकान के सु ख की
प्राप्ति नहीं होती।

सूर्य का पं चम भाव में प्रभाव


सूर्य का पं चम भाव में प्रभाव

कुंडली के पं चम भाव से हम सं तान बु द्धि, प्रबं ध विद्या, दे वभक्ति, दत्तक पु त्र याददाश्त, मं तर् सिद्ध,
चातु र्यता, विचार करने की शक्ति, ले खनशक्ति, सट् टा तथा लाटरी से लाभ व हानि, गर्भ आकस्मिक
धनलाभ तथा प्रेम सं बंधी जानकारी मिलती है ।

सूर्य पं चम भाव में होने से जातक की बु द्धि बहुत ते ज होती है । ब्रह्मांड में सूर्य सबसे ते जस्वी ग्रह माना
जाता हैं । सूर्य के इस प्रभाव से पं चम भाव का सूर्य जातक को प्रखर बु द्धि का बनाता है । ऐसे जातक के
दिमागी कार्यो का मु काबला कोई नहीं कर सकता। सूर्य के पं चम भाव में होने से ऐसा जातक मं तर् शास्त्र में
प्रवीण होता है । पं चम भाव में सूर्य होने से जातक पढ़ने में अच्छा होता है व उसकी स्मरण शक्ति भी ते ज
होती है । पं चम भाव में सूर्य होने से जातक को सट् टा, शे यर व लाटरी से धनलाभ होने की सं भावना रहती है ।
ऐसे जातक को सं तान का सु ख कम प्राप्त होता है । पं चम भाव में सूर्य के होने से जातक बहुत जल्दी आवे श
में आने वाला होता है । दस ू रों के प्रति जातक का आचरण अच्छा होता है । पं चम भाव में सूर्य स्थित होने से
जातक को हृदयरोग की सं भावना रहती है ।

सूर्य पं चम भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि एकादश (लाभ) भाव पर होती हैं । सूर्य के प्रभाव से
जातक को धन लाभ होता है ।

सूर्य की पं चम भाव में मित्रराशि में प्रभाव


सूर्य पं चम भाव में अपने मित्रराशि में स्थित होने से जातक को विद्या एवं बु द्धि की शक्ति प्राप्त होती हैं ।
सं तान से सु ख मिलता हैं तथा वह साहसी होता है ।

सूर्य की पं चम भाव में शत्रुराशि में प्रभाव


सूर्य पं चम भाव में शत्रुराशि में होने से जातक के विद्या अध्ययन में बाधाएँ आती है तथा सं तान से कष्ट
मिलता है ।

सूर्य की पं चम भाव में स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक अत्यं त विद्वान एवं प्रभावशाली होता है ।
सं तान पक्ष से उसे सहयोग प्राप्त होता है । जातक में भविष्य के सं बंध में दरू दर्शिता रहती है ।
सूर्य पं चम भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में स्थित होने से सूर्य के उच्च के प्रभाव से जातक को सं तान सु ख
एवं विद्या तथा बु द्धि का लाभ प्राप्त होता है । सूर्य पं चम भाव में अपनी नीच राशि लु ला में स्थित बोने से
जातक को सं तान से कष्ट होता हैं तथा बु द्धि व अध्ययन के क्षे तर् में कमी बनी रहती है ।

सूर्य का छठे भाव में प्रभाव


सूर्य का छठे भाव में प्रभाव

कुंडली के छठे भाव से रोग, स्वजनों का विरोध, शत्रु, ननिहाल पक्ष, कर्ज तथा मामा की स्थिति की
जानकारी प्राप्त करते हैं ।

सूर्य छठे भाव में स्थित होने से जातक के शत्रु नहीं होते सूर्य छठे भाव में शत्रुनाशक होता हैं । सूर्य
ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली व ते जस्वी ग्रह है । सूर्य के इस प्रभाव से शत्रु कितने भी शक्तिशाली क्यों
न हो, छठे भाव में सूर्य होने से जातक को शत्रु हानि नहीं पहुँचा पाते सूर्य के प्रभाव से जातक बलवान व
ते जस्वी होता है । जातक में साहस एवं पराक् रम की अधिकता रहती है । वह निडर होता है उसे शत्रु का भय
नही रहता। सूर्य छठे भाव में होने से जातक के ननिहाल पक्ष को कष्ट होता है । छठे भाव का सूर्य जातक के
धन का अपव्यय कराता हैं । जातक के अधिक खर्च करने से उस पर कर्ज होने की सं भावना रहती है । सं पर्ण ू
औषधि व चिकित्सा शास्त्र व इससे जु डे लोग सूर्य ग्रह के कारकत्व में शामिल होने से अगर जातक को
रोग होते है तो सूर्य के छठे भाव में होने से जातक को भूख अधिक लगती है क्योंकि सूर्य ग्रह जठराग्नि का
कारक है । सूर्य छठे भाव में होने से उसके शु भ व अशु भ दोनो प्रकार के फल मिलते हैं छठे भाव में स्थित सूर्य
से जातक पर मित्रों के कारण कर्ज होने की सं भावना रहती है ।

सप्तम दृष्टि
सूर्य छठे भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम दृष्टि बारहवे (व्यय) भाव में पड़ती है । सूर्य के प्रभाव से
व्यक्ति अधिक खर्च करने वाला होता है व धन कमाने में उसे बाधायें आती है ।

सूर्य का छठे भाव में मित्रराशि में प्रभाव


सूर्य छठे भाव में अपने मित्रराशि में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त
करता है तथा ऐसा जातक परिश्रमी व साहसी होता है ।

सूर्य का छठे म भाव में शत्रुराशि में प्रभाव


सूर्य छठे भाव में शत्रुराशि में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक की मान हानि होती है । जातक के कई शत्रु
व्यर्थ ही बन जाते हैं ।

सूर्य का छठे भाव में अपनी सिं ह राशि में होने से जातक शं तरु
् ओं पर विजय प्राप्त करता है । तथा वह रोगो
से भी सु रक्षित रहता है ।

सूर्य छठे भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में होने से ऐसा जातक मे हनती एवं प्रभावशाली रहता हैं तथा वह
अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है ।

सूर्य छठे भाव में अपनी नीच राशि तु ला में होने से जातक को शत्रुओं के कारण परे शानी उठानी पड़ती है
तथा उसकी मान-हानि होती है । जातक धन खर्च करने वाला व कुसं गी होता है ।

सूर्य का सप्तम भाव में प्रभाव


सूर्य का सप्तम भाव में प्रभाव
कुंडली के सप्तम भाव से स्त्री, विवाह, व्यापार, साझे दारी पति पत्नी का रं ग रूप गु ण स्वभाव, दीवानी
सु कदमे , प्रेम विचार पद्धति , चरित्र इन सब बातों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है ।

सूर्य सप्तम भाव में होने से जातक को स्त्रियों के माध्यम से हानि और बदनामी उठाने की सं भावना होती है ।
जातक के विवाह में विलं ब होता है व वै वाहिक जावन में परे शानी होती हैं । सूर्य सप्तम भाव में अच्छी
स्थिति में होने से पत्नी को पति का प्यार व सहयोग प्राप्त होता है । सूर्य सप्तम भाव में अच्छी स्थिति में
होने से पत्नी को पति का प्यार व सहयोग प्राप्त होता है । सूर्य सप्तम में अशु भ स्थिति में होने से पति-पत्नी
में टकराव व विवाद उत्पन्न होते हैं । सूर्य के सप्तम भाव में स्थित प्रभाव से पति पत्नी में अलगाव व
अनबन होने की सं भावना रहती है । सूर्य सप्तम भाव में होने से जातक को व्यापार में साझे दारी से लाभ नहीं
मिलता व साझे दारों से धन की हानि की सं भावना रहती है । सूर्य सप्तम भाव में होने से जातक स्वाभिमानी व
कठोर से मन में चिं ता व उद्वे ग निर्माण होते हैं । सूर्य के सप्तम में होने से जातक स्वाभिमानी व कठोर होता है ।
सूर्य के प्रभाव से जातक का व्यक्तित्व प्रभावशाली एवं तीक्ष्ण स्वभाववाला होता है ।

सप्तम दृष्टिः
सूर्य सप्तम भाव में होने से सूर्य की सप्तम (पूर्ण) दृष्टि प्रथम (लग्न) भाव पर पडती हैं । सूर्य के प्रभाव से
जातक प्रतिभाशाली, राजमान्य व सफल होता है । वह किसी प्रकार का दबाव सहन नहीं करता उसका
स्वभाव अहं कारी होता है ।

सूर्य के सप्तम भाव में मित्रराशि में प्रभाव


सूर्य सप्तम भाव में अपनी मित्रराशि में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक को व्यवसाय तथा पति-पत्नी से
सु ख व सफलता प्राप्त होती है ।

सूर्य का सप्तम भाव में शत्रुराशि में प्रभाव


सूर्य सप्तम भाव में शत्रुराशि में होने से जातक का वै वाहिक जीवन सु खी नहीं रहे गा। सप्तम भाव सं बंधी
अशु भ फल प्राप्त होते हैं ।

सूर्य सप्तम भाव में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक को अपनी पत्नी से सु ख मिलता है । जातक
ईमानदार व धनी होता है ।

सूर्य का सप्तम भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में स्थित होने से जातक का सूर्य प्रबल होने से व उच्च के सूर्य
के प्रभाव से स्त्री एवं व्यवसाय से लाभ होता है । जातक जीवन के सु खों का आनं द उठाता है । जातक की
पत्नी अतिथि सत्कार में कुशल होती है । सूर्य का सप्तम भाव में अपनी नीच राशि तु ला में होने से जातक के
वै वाहिक जावन पर बु रा असर पड़ता है । पत्नी से तनावपूर्ण सं बंध होते हैं । जातक अपमानित होता है ।

सूर्य का अष्टम भाव में प्रभाव


सूर्य का अष्टम भाव में प्रभाव

कुंडली के अष्टम भाव से मृ त्यु , पु रातत्व वस्तु , आयु , व्याधि, मानसिक चिं ता, मृ त्यु के कारण समु दर् -यात्रा,
लिं ग, योनि, अण्डकोष आदि से ग, अपघात, सं कट तथा मृ त्यु तु ल्य कष्ट सं बंधी बातों की जानकारी प्राप्त
होती है ।

सूर्य अष्टम भाव में होने से जातक झगडालू स्वभाव का तथा खर्च अधिक करने वाला होता है । जातक कामी,
अस्थिर विचारोवाला एवं बातूनी होता है । अष्टम भाव में सूर्य होने से जातक को वृ दधि ् वस्था में दरिद्रता
अन की सं भावना होती है । अष्टम भावको विदे श का भाव भी समझा जाता है । क्योंकि पु राने समय में विदे श
जाने के लिये समु दर् यात्रा की जाती थी, इसलिये अष्टम भाव को विदे श का कारक होता है एवं जातक
विदे श यात्राएँ करता है व मृ त्यु तु ल्य कष्ट भी हो सकते है । अष्टम भाव में सूर्य होने से जातक प्रसिद्ध
रहता है । लड़ने झगड़ने में विशे ष चतु र होता है । यह कभी भी सं तुष्ट नहीं होता है । ज्योतिष में अष्टम भाव
को नाश-स्थान माना गया है । इसलिये अष्टम स्थान में सूर्य स्थित होने से भाव सं बंधी बातों में अशु भ फल
मिलते है । ऐसा माना जातक है ।
सप्तम दृष्टि
सूर्य अष्टम भाव में होने से सूर्य की सप्तम (पूर्ण) दृष्टि द्वितीय (धन) भाव पर पड़ती है । सूर्य के प्रभाव से
जातक को आँ ख के रोग होते है । कुटु ं ब के सु ख में न्यूनता होती है । सं चित धन का नाश होता है ।

सूर्य की अष्टम भाव में मित्र राशि में प्रभाव


् होती है ।
सूर्य के अष्टम भाव में अपनी मित्रराशि में स्थित होने से जातक की आयु मे वृ दधि

सूर्य का अष्टम भाव में शत्रराशि में प्रभाव


सूर्य का अष्टम भाव में शत्रुराशि में स्थित होने से सूर्य के प्रभाव से आयु पर सं कट आने की सं भावना
होती है । ऐसा जातक चिं ता करता है ।

सूर्य का अष्टम भाव में स्वराशि उच्च व नीच राशि में प्रभाव
् होती है तथा जातक निडर,
सूर्य के अष्टम भाव में अपना स्वराशि सिं ह में स्थित होने से आयु में वृ दधि
बहादुर व स्वाभिमानी होता है ।

सूर्य के अष्टम भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में स्थित होने से उच्च के सूर्य के प्रभाव से जातक को आयु के
विषय में कुछ परे शानीयों के साथ सफलता मिलती है । खर्च अधिक रहता है । विदे शी स्थानों से लाभ होता
है ।

सूर्य अष्टम भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में स्थित होने से उच्च के सूर्य के प्रभाव से जातक को आयु के
विषय में कुछ परे शानियों के साथ सफलता मिलती है । खर्च अधिक रहता है । विदे शी स्थानों से लाभ होता
है ।

सूर्य अष्टम भाव में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित होने से कठिनाईयों सं घर्ष का सामना करना पड़ता है
तथा जातक की आयु पर सं कट आने की सं भावना रहती है ।

सूर्य का नवम भाव में प्रभाव


सूर्य का नवम भाव में प्रभाव

कुंडली के नवम भाव से भाग्योदय, शील, धर्म, प्रवास, तार्थयात्रा, दान गु रू, पु ण्यकर्म, तप धार्मिक वृ त्ति
तथा ईश्वर भक्ति इन सब बातों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है ।

सूर्य नवम भाव (भाग्य) भाव में स्थित होने से जातक योगी व तपस्वी होता है । जातक साहसी होता है । सूर्य
नवम भाव में होने से सूर्य के प्रभाव से जातक सच बोलने वाला व दस ू रों की सहायता के लिये हमे शा तत्पर
रहता है । सूर्य को तपस्या का कारक माना गया है इसलिये नवम भाव के सूर्य के प्रभाव से जातक ईश्वर और
साधु ओं का भक्त होता है । जातक योगी, तपस्वी तथा ध्यान करने वाला होता है । नवम भाव में सूर्य के
स्थित होने से जातक को धन का सु ख मिलता है और ऐसा जातक दे वताओं और ब्राह्मणों का आदर करता
है । सूर्य के नवम भाव के प्रभाव से जातक गु रूजनों का आदर करने वाला व उनमें श्रद्धा रखने वाला होता है ।
नवम में स्थित सूर्य जातक को प्रसिद्धी जरूर दे ता हैं । सूर्य धर्म का कारक है । सूर्य के नवम भाव में स्थित
होने से सूर्य के प्रभाव से जातक धार्मिक वृ त्ति का होता है । वह तीर्थयात्राये करने वाला होता है । नवम भाव
में सूर्य स्थित होने से जातक गं भीर व दीर्घायु होता है । नवमस्थ सूर्य के प्रभाव से जातक सामाजिक
सं स्थाओं से जु ड़ा होता है । मं दिर निर्माण में जातक बढ़-चढ़कर हिस्सा ले ता है । नवम भाव में स्थित सूर्य के
प्रभाव से जातक ज्योतिष होता है ।

सप्तम दृष्टि
सूर्य नवम भाव में स्थित होने से उसकी सप्तम (पूर्ण) दृष्टि तृ तीय भाव पर पड़ती हैं सूर्य के प्रभाव से जातक
को अपने भाईयों से कष्ट प्राप्त होता है । जातक पराक् रमी होता है ।
सूर्य का नवम भाव में मित्र राशि में प्रभाव
सूर्य नवम भाव में अपनी मित्र राशि में स्थित होने से जातक धर्मात्मा, भाग्यशाली, न्यायी, दयालू तथा
दानी होता है ।

सूर्य का नवम भाव में अपनी शत्रु राशि में प्रभाव


सूर्य नवम भाव में स्थित होने से जातक के भाग्य की उन्नति कठिन परिश्रम से प्राप्त होती है । वह धर्म का
पालन नहीं करता। उसे भाग्योदय के लिये सं घर्ष का सामना करना पड़ता है ।

सूर्य का नवम भाव में अपनी स्वराशि, उच्च व नीच राशि में प्रभाव
सूर्य नवम भाव में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक को भाग्यशाली होता है ष वह धर्म का पालन
करने वाला होता है । उसे लोग भाग्यवान समझते हैं ।
सूर्य का नवम भाव में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित होने से नीच के सूर्य के प्रभाव से जातक के भाग्य में
कमी रहती हैं । वह धर्म का पालन नहीं करता।

सूर्य का दशम भाव में प्रभाव


सूर्य का दशम भाव में प्रभाव

कुंडली के दशम भाव से पिता का स्वभाव, अधिकार प्राप्ति, राज्य, मान प्रतिष्ठा, नौकरी पिता, कीर्ति,
ऐश्वर्य, भोग एवं ने तृत्व इन सब बातों के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है ।

सूर्य दशम भाव में स्थित होने से सूर्य के प्रभाव से जातक राजमान्य या राजमन्त्री होता है । किसी भी दे श
के सभी लोग सरकार के द्वारा बनाये गे तं तर् में जीवन यापन करते हैं । सरकार के द्वारा दिये निर्दे श का पालन
सबके लिये अनिवार्य होता है । सरकार दे श के सभी अं ग अर्थव्यवस्था, कानून दं ड, सु रक्षा आदि को सु चारू
रूप से क्रियान्वित करती है । ग्रह, नक्षत्रों, तारों के मं डल को सौर मं डल कहा जाता हैं इसलिये दशम
भाव में सूर्य स्थित होने से जातक को प्रशासनिक (सरकारी) नौकरी में आते हैं इसलिये दशम भाव में सूर्य
स्थित होने से जातक को प्रशासनिक (सरकारी) नौकरी में अधिकारी पद प्राप्त होता हैं सूर्य जिस प्रकार
सं पर्ण
ू भचक् र को ऊर्जा प्रदान करता हैं व भचक् र को सं चालित करने में अहम भूमिका निभाता है उसी अतः
सूर्य पिता का कारक है । दशम भाव में सूर्य स्थित होने से जातक को पिता का सु ख मिलता है । सूर्य की दशम
भाव में शु भ स्थिति होने से सरकारी तं तर् से सहयोग प्राप्त होता है । अशु भ स्थिति होने पर परे शानी का
सामना करना पड़ता है सूर्य दशम भाव में स्थित होने से जातक राजा समान ऐश्वर्यशाली रहता है । ऐसे
व्यक्ति का आचरण शु द्ध होता है तथा वह सम्मान प्राप्त करता है । सूर्य के प्रभाव से जातक विद्वान यशस्वी
तथा बलवान होता है । यह जिस काम को करना चाहता है , उसमें उसे सफलता मिलती है ।
सप्तम दृष्टि

सूर्य दशम भाव में स्थित होने से सूर्य की सप्तम (पूर्ण) दृष्टि चतु र्थ भाव पर पड़ती है जिससे जातक को माता
का सु ख कम या सामान्य (कम) मिलता हैं ।

सूर्य का दशम भाव में अपनी मित्र राशि में प्रभाव


सूर्य दशम भाव में अपनी मित्र राशि में स्थित होने से सूर्य के प्रभाव से जातक को राज्य से लाभ व
सम्मान प्राप्त होता है तथा पिता से भी सु ख प्राप्तहोता है ।

सूर्य का दशम भाव में शत्रु राशि में प्रभाव


सूर्य दशम भाव में शत्रु राशि में स्थित होने से सरकारी क्षे तर् व पिता के सं बंध में कठिनाइयों के साथ
सफलता लती है ।

सूर्य का दशम भाव में स्वराशि उच्च व नीच राशि में प्रभाव
सूर्य दशम भाव में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक को पिता का सु ख व राज्य से मान सम्मान
प्राप्त होता है । सूर्य का दशम भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में स्थित होने से जातक उच्च पदाधिकारी
होता है एवं उसे प्रतिष्ठा व प्रभाव की प्राप्ति होती है । वह धनी और सम्मानित होता हैं ।
सूर्य का दशम भाव में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित होने से जातक को राज्य से व कर्मक्षे तर् में कठिनाइयों
का सामना करना पड़ता है । पिता से भी सं बंध अच्छे नहीं होते

सूर्य का एकादश (लाभ) भाव में प्रभाव


सूर्य का एकादश (लाभ) भाव में प्रभाव

कुंडली के एकादश भाव को लाभ स्थान भी कहा जाता है । एकादश भाव से मित्र, बड़ा भाई, वस्त्र,
अलं कार, वाहन आदि से लाभ, सं पत्ति, ऐश्वर्य, ईच्छा तथा महत्वाकां क्षा इन सब बातों की जानकारी प्राप्त
होती है । यह आय का भी भाव होता हैं ।

सूर्य एकादश भाव में स्थित होने से जातक धनवान व सु खी होता है । सूर्य के एकादश भाव में स्थित होने से
जातक की आमदानी अच्छी रहती है तथा शारीरिक तौर पर ऐसा जातक बलवान होता है । जातक को कई
प्रकार से धन का लाभ होता है । सूर्य को सभी ग्रहों में उच्च का स्थान प्राप्त है । सूर्य के एकादश भाव में
स्थित होने से जातक के मित्र भी ज्यादातर ऊँची पदवी के होते हैं । ऐसे जातक के मित्र अधिक होते हैं तथा
जातक मित्रों से अपने जीवन में लाभ प्राप्त करता है तथा जातक भी अपने मित्रों की पूर्ण रूप से
सहायता करता है । एकादश भाव में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक में अच्छे बु रे मनु ष्य की पहचान करने
की शक्ति होती है । सूर्य के एकादश में स्थित होने से जातक स्वाभिमानी, योगी व सदाचारी होता है ।
ज्योतिष में सूर्य का एकादश भाव में होना अच्छा माना गया है । एकादश भाव ईच्छापूर्ती व बड़े भाई का भी
है । सूर्य शु भ स्थिति में हो तो जातक की इच्छाये पूर्ण होती है एवं बड़े भाईयों से सहयोग प्राप्त होता है ।
सप्तम दृष्टि
सूर्य एकादश भाव में स्थित होने से सूर्य की सप्तम पूर्ण दृष्टि पं चम भाव पर पड़ती हैं । पं चम स्थान बु द्धि का
होने से सूर्य के प्रभाव से जातक मं तर् शास्त्र में प्रवीण होता है तथा वह विद्या के क्षे तर् में प्रगति करता
हैं । पं चम स्थान बु द्धि का होने सें सूर्य के प्रभाव से जातक विद्वान होता है । परं तु जातक को सं तान की चिं ता
होती है ।

सूर्य एकादश भाव में अपनी मित्र राशि में प्रभाव


सूर्य एकादश भाव में अपनी मित्र राशि में स्थित होने से जातक को आमदानी के क्षे तर् में विशे ष लाभ
प्राप्त होता है । जातक को सु ख व सम्मान की प्राप्ति होती है ।

सूर्य एकादश भाव में अपनी शत्रु राशि में स्थित होने से जातक को कठिन परिश्रम से आमदनी व धन का
लाभ होता है ।

सूर्य का एकादश भाव में स्वराशि, उच्च व नीच राशि में प्रभाव
सूर्य एकादश भाव में अपनी स्वराशि सिं ह में स्थित होने से जातक को सूर्य के प्रभाव से आय में विशे ष
् होती है तथा जातक प्रभावशाली व धनी होता है ।
वृ दधि

सूर्य एकादश भाव में अपनी उच्चराशि मे ष में स्थित होने से जातक सूर्य के उच्च के प्रभाव से पराक् रमी
् करता है । सूर्य एकादश भाव में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित
होता है । वह अपने मे हनत से धन की वृ दधि
होने से जातक को कठिनाईयों से आय प्राप्त होती है । धन लाभ में भी उसे बाधाएँ आती है ।

सूर्य का बाहरवे (व्यय) भाव में प्रभाव


सूर्य का बाहरवे (व्यय) भाव में प्रभाव

कुंडली के बारहवे (व्यय) भाव से हानि, दं ड, व्यसन, शारीरिक सु ख-दुख, ने तर् रोग कैद दुष्ट लोगों की
मित्रता, विश्वासघात, धन का नाश, मु कदमे मे अपयश तथा सभी तरह के खर्चे (व्यय) की जानकारी बारहवें
भाव से प्राप्त होती है ।
सूर्य बारहवे (व्यय) भाव में स्थित होने से जातक झगड़ालू स्वभाव का होता है । बारहवाँ भाव खर्च का होने से
वह अधिक खर्च करने वाला होता है । सूर्य के बारहवे भाव के प्रभाव से बै ठने से जातक को ने तर् रोग होते है
या उसे चश्मा लग सकता है । सूर्य के बारहवे भाव में स्थित होने से जातक को यात्रा में अकस्मात धनहानि
होने की सं भावना रहती हैं । ऐसे जातक को धर्म के प्रति आस्था नहीं रहती वह धर्मभ्रष्ट होता है । सूर्य के
बारहवे भाव में होने से जातक कई बार समाज विरोधी होता है । जातक की सं गति बु रे लोगों के साथ होती है
तथा उसके मित्र भी बु रे ही होते हैं । ऐसा जातक छोटी-छटी बातो पर गु स्सा होता है । सूर्य सरकार का
कारक ग्रह हैं । उसके व्यय को स्थान में बै ठने से जातक सरकारी राजनीति में भी सफल नहीं होता। उसे
सरकार से लाभ प्राप्त नहीं होता। ऐसा जातक राजनीति में भी सफलता हासिल नहीं कर पाता। जातक को
विदे श में रहने की सं भावना होती है । सूर्य बारहवें भाव में अशु भ स्थित में होने से अधिकारियों से परे शानी या
कैद की सजा होने की सं भावना रहती है । सूर्य के बारहवे भाव में स्थित होने से जातक आलसी होता हैं व
अपने मित्रों से द्वे षभावना रखता है । सूर्य के व्यय भाव अशु भ फल ही अधिक मिलते हैं ।

सप्तम दृष्टि
सूर्य बारहवे भाव में स्थित होने से सूर्य की सप्तम पूर्ण दृष्टि छठे स्थान पर पडती है । सूर्य के प्रभाव से
जातक के शत्रु उससे डरते हैं । उनका नाश होता है तथा जातक ऋणी होता है । उसके ननिहाल पक्ष को कष्ट
पहुचाँने वाला होता है ।

सूर्य का बारहवे भाव में अपनी मित्र राशि में प्रभाव


सूर्य का बारहवे भाव में अपनी मित्र राशि में होने से जातक को विदे श से लाभ प्राप्त होता है तथा वह खर्च
नियं तर् ण रखता है ।

सूर्य का बारहवे भाव में अपनी शत्रुराशि में प्रभाव


सूर्य का बारहवे भाव में अपनी शत्रुराशि में स्थित होने से जातक को अधिक खर्च के कारण कठिनाई उठानी
पडती है । बाहरी स्थानों के सं बंध में भी परे शानी आती है ।

सूर्य का बारहवे भाव में स्वराशि उच्च व नीच राशि में प्रभाव
सूर्य का बारहवे भाव में अपनी सिं ह राशि में स्थित होने से जातक धै र्यवान तथा अभिमानी होता है ।

सूर्य का बारहवे भाव में अपनी उच्च राशि मे ष में स्थित होने से जातक धै र्यवान होता है एवं उसकी
सहनशक्ति अधिक होती। वह अभिमानी होता है । जातक को नींद अच्छी आती है ।

सूर्य का बारहवे भाव में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित होने से जातक को नींद अच्छी आती है ।

सूर्य का बारहवे भाव में अपनी नीच राशि तु ला में स्थित होने से जातक अधिक खर्च करने वाला होता है ।
समाज में उसे बदनामी मिलती है ।

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