म अगर पूछा जाये, तो ब चा ब चा भी यही बोलेगा आतंकवाद. आतंकवाद ने हमारे दे श समाज को इस तरह जकड रखा है क लाख को शश के बाद भी ये जड़ से अलग नह हो रहा है. जतना हम इसे दबाते है, उतना ही वकराल प लेकर ये सामने आ जाता है.
आतंकवाद एक अ यंत ही घनौनी काय है, जसका
मकसद आम लोग के अंदर हसा का डर पैदा करना है. आतंकवाद एक श द मा नह है, यह मानव जा त के लए नया का सबसे बड़ा खतरा है, जसे मानव ने खुद न मत कया है. कोई भी एक इ सान या समूह मलकर य द कसी जगह हसा फैलाये, दं गे फसाद , चोरी, बला कार, अपहरण, लड़ाई-झगड़ा, बम ला ट करता है, तो ये सब आतंकवाद है.
आंतकवाद क सम या के कुछ मु य कारण
ब क, मशीन गन, तोप, एटम बोम, हाई ोजन बम,
परमाणु ह थयार, मसाइल आ द का अ धक मा ा म नमाण होना. आबाद का तेजी से बढ़ना राजनै तक, सामा जक, अथ व था दे श क व था के त असंतु श ा क कमी गलत संग त बहकावे म आना आतंकवाद के इसके अलावा ब त से कारण हो सकते है. आजकल अपनी बात को मनवाने व सही सा बत करने के लए आतंकवाद को ही पहला ह थयार बनाया जाता है. आतंकवाद के अंदर समाज, दे श के त व ोह, असंतोष होता है. ाचार, जा तवाद, आ थक वषमता, भाषा का मतभेद ये सब आतंकवाद के मूल त व है, इ ही के बाद आतंकवाद पनपता है.
आतंकवाद से लोग म डर पैदा हो जाता है, वे अपने रा य,
दे श म असुर त महसूस करते है. आतंकवाद के सामने कई बार सरकार भी कमजोर दखाई दे ती है, जससे लोग का सरकार पर से भरोसा उठते जा रहा है. आतंकवाद को मु ा बनाकर कसी भी सरकार को गराया जा सकता है आतंकवाद के चलते लाख क स प त न हो जाती है, हजार लाख मासूम क जान चली जाती है. जीव-जंतु भी मारे जाते है. मानवजा त का एक सरे से भरोसा उठ जाता है. एक आतंकवाद ग त व ध दे खने के बाद सरा आतंकवाद भी पैदा होने लगता है. दे श- वदे श के व भ े म आतंकवाद के प
आतंकवाद क सम या का नदान
धम को सही ढं ग से समझना होगा. मानवजा त धम,
जा तवाद के भंवर म इस कदर फंस गई है, क धम के उपर इंसा नयत के बारे म सोचती ही नह है. धम हमारी सु वधा के लए है, धम अ छ श ा, ान क बात इंसा नयत सखाता. हम धम, जा त के उपर इंसा नयत को रखना चा हए. नया म यार से बड़ी कोई चीज नह है, कहते है ‘भगवान् यार है, यार ही भगवान् है’. गॉड ने हम अपने आस पास अपने पड़ोसी से यार करने क श ा द है, वो हम कहता है “ सर क गलती माफ़ करो जैसे म करता ँ”. अगर हम भगवान क बात का सही मतलब समझग, तो दे श नया से आतंकवाद जैसी कुरी थयां नकल जाएगी और चार तरफ यार होगा. आतंकवाद को र करने के लए अ छ श ा क ब त ज रत है. अनुकूल श ा मलने पर इ सान क सोच बदलेगी, उसक सोचने समझने क श म बदलाव आएगा और वो सही दशा म ही सोचेगा. श त अपना अ छा बुरा जानता है, उसको गलत श ा दे कर बहलाया नह जा सकता. आतंकवाद से नपटने के लए दे श नया को मल कर काम करना होगा, इस सम या से लड़ने के लए एक अकेला दे श कुछ नह कर सकता, यूं क ये व ापी सम या है.