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स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 1

स ूर्ण क्रान्त
अन्त म कार्ण र्ोजना

“वि शा ” से क्त

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 2


स ूर्ण क्रान्त
अन्त म कार्ण र्ोजना

“वि शा ” से क्त

लि कुश वसिंह “वि मानि”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 3


अन ब्र ाਔ
के
अनविनत सौर मਔल
में से एक
इस सौरमਔल
के आकार में पााँचिें सबसे बड़े ग्रह पृ ी
के मानिोिं को
पूर्ण
एििं
स -वशि-सु र
बनाने हे तु
विचारार्ण
समवपणत

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 4


भारतीर् सिंविधान के धारा-51 (ए)
नािररक का मौवलक कतण के अनुसार

01. संविधान के प्रवि प्रविब िा, इसके आदर्शों, धाराओं, रा र ीय ज ि रा र ीय गान का


आदर करना
02. िं त्रिा के विए संघर्ष हे िु प्रेररि करने िािे सुआदर्शों का अनुकरण करना ि उ ें
विर थायी बनाना
03. भारि की सिोৡिा, एकिा और अखਔिा की रक्षा करना िथा समथषन करना
04. जब भी आि किा पड़े दे र्श की रक्षा करना ि रा र ीय सेिाओं हे िु समवपषि होना
05. समाज में भाई-िारें की भािना का वि ार करना, मािृ भाि, धावमषक, भार्ावयक,
क्षेत्रीय विवभ िाओं में एकिा कायम करना िथा नारी स ान आवद का ान दे ना
06. अपने वमविि सं ृ वि का मू ां कन करना उसको थावय दे ना और इसकी पर रा
को कायम रखना
07. प्राकृविक स दा की रक्षा करना वजसमें जििायु, जं गि, झीि, नवदयां, जं गिी जीिों ि
सम जीिों के प्रवि दया का भाि सम्म विि है
08. िै৯ावनक भािना को प्रो ावहि करना, मानिीय भािनाओं के रूप की परख करिे
रहना
09. जन स व की सुरक्षा करना और वहं सा आवद का परर ाग करना
10. म्मिगि, सामूवहक गविविवधयों के प्र ेक क्षेत्र में सिोৡिा हावसि करना, वजससे रा र
र्शिि उ ान, प्रय ि प्राम्म की ओर अग्रसर होिा रहे
11. जो वक मािा-वपिा या अवभभािक हो, िे अपने 6 साि से 14 साि के बৡों को वर्शक्षा या
अ ऐसे सुअिसरों का िाभ उ ें मुहैया करािें

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 5


भूवमका
(र्र्ार्ण समझ के वलए ररक्त मन्त की आि कता)
ििषमान समय में भारि को पुनः और अम्म म कायष से युि ऐसे महापुरूर् की आि किा थी जो न
िो रा৸ क्षेत्र का हो, न ही धमष क्षेत्र का कारण दोनों क्षेत्र के म्मि अपनी बौम्म क क्षमिा का सिोৡ और अम्म म
प्रदर्शषन कर िुके हैं वजसमें स को यथारूप आवि ृ ि कर प्र ुि करने, उसे भारिभूवम से प्रसाररि करने , अ ै ि
िेदा को अपने ৯ान बुम्म से थावपि करने, दर्शष नों के र को ि करने , धावमषक वििारों को वि ृि
वि ापक और असीम करने , मानि जावि का आ ाम्म करण करने, धमष को यथाथष कर स ूणष मानि जीिन में
प्रिेर्श कराने, आ ाम्म क ि िा अथाष ि् मुम्मि का मागष वदखाने , सभी धमों से सम य करने, मानि को सभी
धमषर्शा ों से उपर उठाने, कायष -कारणिाद को ि करने, आ ाम्म क वििारों की बाढ़ िाने , िेदा युि
पा ा वि৯ान को प्र ुि करने और उसे घरे िू जीिन में पररणि करने, भारि के आमूि पररिषिन के सूत्र प्र ुि
करने , युिकों को ग ीर बनाने, आ र्शम्मि से पुनरू ान करने, प्रिਔ रजस की भािना से ओि-प्रोि और प्राणों
िक की वि ा न करने िािे और स आधाररि राजनीवि करने की संयुि र्शम्मि से युि होकर ि हो और
कहे वक वजस प्रकार मैं भारि का हूँ उसी प्रकार मैं समग्र जगि का भी हूँ
उपरोि सम कायों से यु ि हमारी िरह ही भौविक र्शरीर से युि वि धमष, सािषभौम धमष, एका
৯ान, एका कमष , एका ान, कमषिेद: प्रथम, अम्म म िथा पंिमिेद (धमषयुि र्शा ) अथाष ि् वि मानक र्शू
िृंखिा-मन की गुणि ा का वि मानक (धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि र्शा ), स मानक वर्शक्षा, पूणष मानि
वनमाष ण की िकनीकी -WCM-TLM-SHYAM.C, भारिीय आ ा एिं दर्शषन आधाररि दे र्शी विपणन प्रणािी 3-
एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel), विकास दर्शषन, वि ि था का ूनिम एिं अवधकिम साझा कायषक्रम, 21िी ं सदी
का कायषक्रम और पूणष वर्शक्षा प्रणािी, वििाद मुि ि ों पर आधाररि संविधान, वनमाष ण का आ ाम्म क ूट्रान बम
से युि भगिान वि ु के मुূ अििारों में दसिाूँ -अम्म म और कुि 24 अििारों में िौबीसिाूँ -अम्म म वन िंक
कम्म और भगिान र्शंकर के बाइसिें -अम्म म भोगे र अििार के संयुि पूणाष ििार िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“
( ामी वििेकानन्द की अगिी एिं पूणष ब्र की अम्म म कड़ी), प्रकावर्शि ि सािषभौम गुण से युि 8िें सािवणष
मनु , काि को पररभावर्ि करने के कारण काि रूप, युग को पररभावर्ि ि पररििषन के कारण युग पररििषक,
र्शा रिना के कारण ास के रूप में ि हैं जो ामी वििेकान के अधूरे कायष ि भारि की स
ि था को पूणष रूप से पू णष करिे हुये भारि के इविहास की पुनरािृव है वजस पर सदै ि भारिीयों को गिष रहे गा
उस अवनिषिनीय, सिष ापक, सिषर्शम्मिमान, मुि एिं ब वि ा ा के भारि में ि होने की प्रिीक्षा
भारििावसयों को रही है वजसमें सभी धमष, सिोৡ ৯ान, सिोৡ कमष , सािषभौम स -वस ा इ ावद स ूणष
सािषजवनक प्रमावणि ि रूप से मोवियों की भाूँवि गूथें हुये हैं
इस प्रकार भारि अपने र्शारीररक ि िा ि संविधान के िागू होने के उपरा ििषमान समय में
वजस किष और दावय का बोध कर रहा है भारिीय संसद अथाष ि् वि मन संसद वजस सािषभौम स या
सािषजवनक स की खोज करने के विए िोकि के रूप में ि हुआ है वजससे थ िोकिंत्र, थ समाज,
थ उ ोग और पूणष मानि की प्राम्म हो सकिी है , उस ৯ान से युि वि ा ा िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“
िैव क ि रा र ीय बौम्म क क्षमिा के सिोৡ और अम्म म प्रिीक के रूप में ि हैं
वनःर्श , आ यष , िमਚार, अवि सनीय, प्रकार्शमय इ ावद ऐसे ही र्श “वि र्शा ” और
“र्शा ाकार” के विए ि हो सकिे हैं वि के हजारों वि वि ािय वजस पूणष सकारा क, रिना क एिं
एकीकरण के वि रीय र्शोध को न कर पाये , िह एक ही म्मि ने पूणष कर वदखाया हो उसे कैसे -कैसे र्श ों से
ि वकया जाये, यह सोि पाना और उसे ि कर पाना वनःर्श होने के वसिाय कुछ नहीं है एका-एक
“वि र्शा ” प्र ुि कर वदया जाये िो इससे बड़ा आ यष क्या हो सकिा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 6


जो म्मि कभी वकसी ििषमान गुरू के र्शरणागि होने की आि किा न समझा, वजसका कोई
र्शरीरधारी प्रेरणा स्रोि न हो, वकसी धावमषक ि राजनीविक समूह का सद न हो, इस कायष से स म्म ि कभी
सािषजवनक रूप से समाज में ि न हुआ हो, वजस विर्य का आवि ार वकया गया, िह उसके जीिन का
र्शैक्षवणक विर्य न रहा हो, 50 िर्ष के अपने ििषमान अि था िक एक साथ कभी भी 50 िोगों से भी न वमिा हो,
यहाूँ िक वक उसको इस रूप में 50 आदमी भी न जानिे हों, यवद जानिे भी हो िो पहिानिे न हों और जो
पहिानिे हों िे इस रूप को जानिे न हों, िह अिानक इस “वि र्शा ” को प्र ुि कर दें िो इससे बडा िमਚार
क्या हो सकिा है वजस म्मि का जीिन, र्शैक्षवणक यो৓िा और कमषरूप यह र्शा िीनों का कोई स न हो
अथाष ि् िीनों, िीन म्मि का प्रविवनवध करिे हों, इससे बड़ी अवि सनीय म्म थवि क्या हो सकिी है
“वि र्शा ” में ज -जीिन-पुनजष -अििार-साकार ई र-वनराकार ई र, अ और ई र
नाम, मानवसक मृ ु ि ज , भूि-ििषमान-भवि , वर्शक्षा ि पूणष वर्शक्षा, संविधान ि वि संविधान, ग्राम सरकार ि
वि सरकार, वि र्शाम्म ि एकिा, म्म थरिा ि ापार, वििारधारा ि वक्रयाकिाप, ाग और भोग, राधा और धारा,
प्रकृवि और अहं कार, किष और अवधकार, राजनीवि ि वि राजनीवि, म्मि और िैव क म्मि, मानििािाद ि
एका कमषिाद, नायक-र्शा ाकार-आ कथा, महाभारि और वि भारि, जावि और समाजनीवि, मन और मन का
वि मानक, मानि और पूणष मानि एिं पूणष मानि वनमाष ण की िकनीकी, आकड़ा ि सूिना और वि ेर्ण, र्शा
और पुराण इ ावद अने कों विर्य इस प्रकार घुिे हुये हैं वज ें अिग कर पाना कवठन कायष है और इससे बड़ा
प्रकार्शमय र्शा क्या हो सकिा है वजसमें एक ही र्शा ारा स ूणष ৯ान प्रेररि होकर प्रा वकया जा सके
इस जीिन में कम समय में पूणष ৯ान प्रा करने का इससे सिोৡ र्शा की क ना भी नहीं की जा सकिी
इस र्शा के अ यन से यह अनुभि होिा है वक ििषमान िक के उपि धमषर्शा वकिने सीवमि ि अ ৯ान
दे ने िािे हैं पर ु िे इस र्शा िक पहुूँ िने के विए एक िरण के पूणष यो৓ हैं और सदै ि रहें गे
एक ही “वि र्शा ” ारा पृ ी के मनु ों के अन मानवसक सम ाओं का हि वजस प्रकार प्रा
हुआ है उसका सही मू ां कन वसफष यह है वक यह वि के पुनजष का अ ाय और युग पररििषन का वस ा है
वजससे यह वि एक स वििारधारा पर आधाररि होकर एकीकृि र्शम्मि से मनु के अन विकास के विए मागष
खोििा है और यह वि अन पथ पर ििने के विए नया जीिन ग्रहण करिा है “वि र्शा ” अ यन के उपरा
ऐसा अनुभि होिा है वक इसमें जो कुछ भी है िह िो पहिे से ही है बस उसे संगवठि रूप वदया गया है और एक
नई व दी गई है वजससे सभी को सब कुछ समझने की व प्रा होिी है युग पररििषन और ि था पररििषन
या स ीकरण के “वि र्शा ” में पाूँ ि संূा का मह पूणष योगदान है जैसे 5 अ ाय, 5 भाग, 5 उपभाग, 5 िेख, 5
वि मानक की िृंखिा, 5िां िेद, 5 जनवहि याविका इ ावद, जो वह दू धमष के अनुसार महादे ि वर्शिर्शंकर के वदि् य
पंिमुखी रूप से भी स म्म ि है और यह ৯ान उ ीं का माना जािा है इस को िीसरे नेत्र की व कह सकिे हैं
और इस घट्ना को िीसरे नेत्र का खुिना हमारे सौरमਔि के 5िें सबसे बड़े ग्रह पृ ी के विए यह एक
आ यषजनक घट्ना भी है 5िें युग - णषयुग में प्रिेर्श के विए यह ৯ानरूपी 5िां सूयष भी है वजसमें अन प्रकार्श
है “वि र्शा ” में नामों का अपने स अथष में प्रयोग और योग-माया का आव िीय प्रयोग है और उसकी समझ
अनेक वदर्शाओं से उसके अगिी कड़ी के रूप में है साथ ही एक र्श भी आिोिना या विरोध का नहीं है वसर् फ
सम य, ीकरण, रिना किा ि एका कमषिाद का वदर्शा बोध है और स ूणष कायष का अवधकिम कायष ि
रिना क्षेत्र “समाज” के ज दािा भगिान वि ु के पाूँ ििें िामन अििार के क्षेत्र िुनार (िरणाविगढ़) से ही ि
है
िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ का यह मानवसक कायष इस म्म थवि िक यो৓िा रखिा है वक िैव क
सामावजक-सां ृ विक-सावहम्म क एकीकरण सवहि वि एकिा-र्शाम्म -म्म थरिा-विकास के विए जो भी कायष
योजना हो उसे दे र्श ि संयुि रा र संघ अपने र्शासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्रा कर सकिा है
प्र ुि पु क ” स ू णष क्राम्म -अम्म म कायष योजना“, वि र्शा के आवि ारों का ािहाररक जीिन
( व और समव ) में उपयोवगिा का सारां र्श-अंर्श भाग है िूूँवक प्र ुि पु क वक्रया क है अथाष ि् भारि ि वि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 7


के नेिृ किाष ओं ारा ि वििार का र्शासवनक प्रणािी के अनुसार थापना की प्रवक्रया पर आधाररि है इसविए
समाज ि रा৸ के विवभ र के नेिृ किाष ओं जैसे - समाजसेिी, िेखक, वििारक, धमाष िायष , राजनीविक
नेिागण, विधायक, सां सद, वर्शक्षण क्षेत्र से जुड़े आिायष इ ावद सवहि आम नागररक को इस पु क का अ यन
अि करना िावहए वजससे उ ें अपने आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के स में आधारभूि व प्रा हो
और ”एक भारि - िे भारि“ िथा ”नया भारि (New India)“ के वििार को प्रा करने के इस अम्म म मागष पर
कायषिाही प्रार हो सके
अििारी पर रा के इविहास के अध् ययन से यह होिा है वक अििार गण मानक ब्र ाਔीय
गणि के अनुसार मानिीय ि था में उसके समरूप थापना करना, उनका उ े रहा है इस क्रम में
अििारों का मूि िশ और कायष का के वब दु मानि के मम्म के विकास ि ि था स ीकरण ही रहा है
कभी वकसी अििार ने कोई नया स दाय, जीिन प वि और उपासना प वि की थापना नहीं की अििारगण
ि िा के पक्षधर रहें हैं इसविए िे मनु के विए ब न रूप कोई वनयम नहीं वदये वनयम दे िे हुये भी ये
ि िा वदये ”जैसी िु ारी इৢा िैसा करो “ अििारगण के र्शरीर से मुि होने के बाद वनव ि रूप से ऐसा
हुआ है वक बाद के िोग उनके नाम पर नया स दाय, जीिन प वि और उपासना प वि की थापना कर वदये
प्र ुि पु क की उपयोवगिा पर वििार हो, वजससे वर्शक्षा के विए महान िै৯ावनक अ ट्ष आइ ट्ीन
का कथन- ”वर्शक्षा, ि ों को वसखना नहीं बम्म मम्म को विंिनयुि बनाने का प्रवर्शक्षण है (Education is
not the learning of facts, but the training of the mind to think)“ वस हो जाये पूिष रा र पवि 0
ए.पी.जे. अ ु ि किाम जी के कथन- ”निीनिा के ारा ही ৯ान को धन में बदिा जा सकिा है “ के यथाथष रूप हैं
िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“
स रूप में इस पु क में जो कुछ है उस पर र्ह कहा जा सकता है – “र्ही है भारत” और
“र्ह ही है रा र िाद की मुূधारा” और “र्ह ही है विकास की मुূधारा”

”वि र्शा “ के समीक्षक य

-डा0 क ै र्ा लाल, एम.ए., एम.विल.पीएच.डी (समाजशा -बी.एच.र्ू.)


वनिास-घासीपुर बसाढ़ी, अधिार, िुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारि

-डा0 राम ास वसिंह, एम.ए., पीएच.डी (र्ोि, आई.एम.एस-बी.एच.र्ू.)


वनिास-कोिना, िुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 8


विषर्- सूची
प्रार के पहिे वद - व
ि था के पररििषन या स ीकरण का पहिा प्रारूप और उसकी कायष विवध
वमिे सुर मेरा िु ारा, िो सुर बने हमारा

भाि-1 : तिं त्रता, रा र , और रा र िाद -------------------------------------------------19

िंत्रिा
रा र
स भु रा र
रा र िाद
भारिीय रा र िाद की प्रािीनिा
महवर्ष अरवि (15 अग , 1872 ई - 5 वदस र 1950 ई )
िैव क रा र िाद

भाि-2 : नीवत, क्रान्त और स ूर्ण क्रान्त ---------------------------------------------42

नीवि
रा र नीवि और राजनीवि
क्राम्म और स ूणष क्राम्म
र्शहीद भगि वसंह (19 अक्टू बर, 1907 ई - 23 मािष 1931 ई )
िोकनायक जय प्रकार्श नारायण (11 अक्टु बर, 1902 ई - 8 अक्टु बर, 1979 ई )
पं 0 िीराम र्शमाष आिायष (2 वसि र, 1911 - 2 जून, 1990)
यदु नाथ वसंह (6 जु िाई, 1945 ई – 30 मई, 2020 ई )

भाि-3 : समाजिाद ------------------------------------------------------------------58

समाज
समाजिाद
ामी वििेकान (12 जनिरी, 1863 ई -4 जुिाई, 1902 ई )
जावि, सं ृ वि और समाजिाद
समाज नीवि
भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब
मेरी समर नीवि
डा0 राम मनोहर िोवहया (23 मािष, 1910 ई - 12 अक्टु बर, 1967 ई )
दीनदयाि उपा ाय (25 वसि र, 1916 ई - 11 फरिरी, 1968 ई )

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 9


भाि-4 : एक सिेक्षर् ----------------------------------------------------------------76

सन् 2015 ई0 - सन् 2019 ई0


सन् 2020 ई0
इस िर्ष की मुূ विर्शेर्िा
अ घट्ना क्रम
िर्ष 2020 ई0 : सािषभौम एका िा-मानििा का स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का खगोविय स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का प्राकृविक स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का सािषभौम स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का अििारी स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का एं िोवनयो गुट्ेरेर्श (महासविि, संयुि रा र ) का स े र्श
आधुवनक जीिन में सिेक्षण का प्रयोग ि उपयोवगिा
म्मि की म्म थवि
म्मि और पररिार पर धमष की म्म थवि
म्मि पर ापार की म्म थवि
म्मि का पररणाम

भाि-5 : सम ा और समाधान -----------------------------------------------------106

सम ा
समाधान

भाि-6 : स ूर्ण क्रान्त -आ ान्त क एििं दाशणवनक आधार ---------------------------111

कमष िेदा और विकास दर्शषन


सािषभौम स -वस ा के अनुसार काि, युग बोध एिं अििार
“स ूणष मानक” का विकास भारिीय आ ा -दर्शषन का मूि और अम्म म िশ
भारि सरकार को अम्म म पत्र

भाि-7 : स ूर्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना ----------------------------------------135

भाि-8 : राजनैवतक क्रान्त --------------------------------------------------------140

िैव क स ूर्ण क्रान्त


एक वि - िे वि के वनमाष ण के विए आि क कायष
वि ापी थापना का मागष
नेिृ किाष ओं के स म्म ि वििार
वि राजनीविक पाट्ी संघ (World Political Party Organisation - WPPO)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 10


रा र ीय क्राम्म मोिाष
वि एकीकरण आ ोिन (सै ाम्म क)

भारत रीर् स ूर्ण क्रान्त


महा ा गाूँ धी (2 अक्टु बर, 1869 - 30 जनिरी, 1948)
नीवि आयोग (रा र ीय भारि पररििषन सं थान) www.niti.gov.in
एक भारि - िे भारि के वनमाष ण के विए आि क कायष
नेिृ किाष ओं के स म्म ि वििार
रा र ीय सहजीिन आ ोिन
राज-सुराज आ ोिन
रा र ीय नीवि आयोग (रा.नी.आ) www.rashtriyanitiayog.com

भाि-9 : सामावजक क्रान्त - ई रीर् समाज ----------------------------------------187

नये समाज के वनमाष ण का आधार


ई रीय समाज
पाूँ ििें युग - णषयुग में प्रिेर्श का आमंत्रण

भाि-10 : सािं ृ वतक क्रान्त – एका कमणिाद --------------------------------------191

भाि-11 : बौन्त क क्रािंवत - एक रा र ीर् शा – वि शा ----------------------------196

मैत्रेय बु
िि कुर्श वसंह “वि मानि” (16 अक्टु बर, 1967 ई - )
वि र्शा
वि र्शा : भूवमका
वि र्शा : र्शा -सावह समीक्षा
वि र्शा की थापना
वि र्शा की रिना क्यों?
वि र्शा के बाद का मनु , समाज और र्शासन
एक ही वि र्शा सावह के विवभ नाम
अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र िी िि कुर्श वसंह” वि मानि” का मानिों के नाम खुिा िुनौिी पत्र
अवनिषिनीय कम्म महाअििार का कार्शी-स कार्शी क्षेि्र से वि र्शाम्म का अम्म म स -स े र्श

भाि-12 : आ ान्त क क्रािंवत - मन (मानि सिंसाधन) का वि मानक (WS-0) श्ृिंखला -252

वि र्शाम्म
ई र का मम्म , मानि का मम्म और क ूट्र
वि का मूि म - ”जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 11


वि मानक-र्शू िृंखिा (वनमाष ण का आ ाम्म क ूट्रान बम)
भारि का संकट्, हि, वि नेिृ की अवहं सक नीवि, सिोৡ संकट् और वििर्शिा
गणरा৸-संघ को मागषदर्शषन
01. गणरा৸ों के संघ-भारि को स और अम्म म मागषदर्शषन
02. रा र ो के सं घ - सं युि रा र सं घ को स और अम्म म मागषदर्शषन
03. अििारी संविधान से वमिकर भारिीय संविधान बनायेगा वि सरकार का संविधान
04. ”भारि“ के वि रूप का नाम है -”इम्मਔया (INDIA)“
05. वि सरकार के विए पुनः भारि ारा र्शू आधाररि अम्म म आवि ार
- र्शू का प्रथम आवि ार का पररिय
- र्शू आधाररि अम्म म आवि ार का पररिय

भाि-13 : शैक्षवर्क क्रान्त -स मानक वशक्षा - पू र्ण ৯ान का पू रक पाਉक्रम ------297

एक नागररक - िे नागररक के वनमाष ण के विए आि क कायष


नेिृ किाष ओं के स म्म ि वििार
पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष www.moralrenew.com

भाि-14 : आवर्णक क्रान्त - मानक विपर्न प्रर्ाली : 3F (Fuel-Fire-Fuel) -----------318

क्या आपको ि ु खरीदने पर क नी राय ी दे िी है जबवक क नी आपके कारण हैं ?


3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी

भाि-15 : वडजीटल इन्तਔर्ा --------------------------------------------------------322

वडवजट्ि इम्मਔया
सरकारी वडवजट्िाइजेर्शन ि नीजी वडवजट्िाइजेर्शन
रा र वनमाष ण के विए वडवजट्िाइजेर्शन
वडवजट्ि ग्राम/नगर िाडष का अथष
स ूणष क्राम्म की अिधारणा में वडवजट्िाइजेर्शन
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स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 12


प्रार के पहले वद - व

मेरे इस जीिन की एक अिग यात्रा में ”वद “ र्श का जो दर्शषन हुआ िह इस प्रकार है ”वद “
र्श का प्रयोग िेदों के समय से ही हो रहा है और िह दू सरे र्श ों के साथ वमिकर ”वद व “, ”वद रूप“,
”वद वदन“, ”वद िर्ष“, ”वद युग“ इ ावद के रूप में हमारे सामने है अनेक वि ान ि ि ि ाओं ने इस वद
र्श का अनेक-अनेक प्रकार से अथष बिायें हैं यहाूँ वद र्श के प्रयोग ि उसके अथष को नीिे वदया जा रहा है
वजससे हम सभी को उसके अथष के प्रवि समझ बन सकें

01. ”महाभारि“ का यु और ”गीिा“ ৯ान का प्रार वजस र्श्य से होिा है , िह है -”संजय“ और ”धृिरा र “ के
बीि िािाष िाप वजसमें महवर्ष ास ारा यु को दे खने ि धृिरा र को उसका “जैसा हो रहा है िैसा ही हाि”
सुनाने के विए संजय को एक व दी जािी है वजसे हम सभी ”वद व “ के नाम से जानिे हैं

02. ”अम्मखि विर्श् ि गायत्री पररिार“ के सं थापक, ”युग वनमाष ण योजना“ के संिािक ि 3000 से भी अवधक
पु क-पुविकाओं के िेखक पं 0 िीराम र्शमाष आिायष (ज -20 वसि र, 1911, मृ ु-2 जून, 1990), वजनके
कई िाख समथषक-सद हैं , के अनुसार ”वद का अथष दे ििा नहीं हो सकिा ऋ৖ेद (2,164.46) में कहा
गया है -अव্ रूपी सूयष को इ वमत्र िरूण कहिे हैं िही वद सुपर गुरू ान है वनरूि दै िि काਔ
(7,18) में कहा गया है -जो वदवि में प्रकट् होिा है उसे वद कहिे हैं वदवि, को कहिे हैं नैघ਒ु क काਔ
में वदन के 12 नाम विखे हैं उनमें द् यु र्श भी वदन का िािक है अब वद का अथष हुआ वक-जो वदन में
प्रकट् होिा है और यह प्र क्ष है वक वदन में सूयष ही प्रकट् होिा है अिः वद सूयष का नाम है ऋ৖ेद
(1,16:3,10) के म में कहा गया है वक-आग का घोड़ा (सूयष) है इसमें भी सूयष का ही िणषन है िेद में वद
नाम सूयष का है , दे ििा को वद कदावप नहीं कहिे ाकरण से भी वद र्श का अथष दे ििा नहीं बनिा
वदि् धािु में ाथेयि प्र य िगाने से वद र्श बनिा है इसकी ु व यह हुई-वदि भिं वद न अथाष ि जो
वदवि में प्रकट् होिा है अिः वद केिि सूयष ही को कहिे हैं वदवि, द् यु को कहिे हैं और द् यु वदन का नाम
है दे ििा र्श दू सरें दे िािि आवद सूत्रों से बनिा है इस कारण भी वद और दे ििा र्श ों का आपस में
कोई स नहीं है “वद ” र्श और “दे ििा” र्श बनाने के रूप ही अिग-अिग हैं “

03. ”৯ान ि सं ृ वि“ और ”बाबा भोिेनाथ“ की नगरी कार्शी (िाराणसी, उ0प्र0, भारि) के बनारसी सं ृ वि में
वद र्श का अ र्श के साथ प्रयोग कर ”वद वनपट्ान“, ”वद ान“, ”वद आन “ की पर रा है
इस पर रा का िाहक कार्शी (िाराणसी) का अ ी मुह ा है वजस पर प्रो0 कार्शी नाथ वसंह ारा पु क
”कार्शी की अ ी“ भी विखा गया है और वफ भी बना है कार्शी ৯ान की नगरी है यहाूँ के िोगों का ज
ही ৯ान में होिा है और ৯ान में ही जीिन जीिे है , ৯ान ही बोििे हैं िथा ৯ान में ही र्शरीर ाग करिे हैं इनकी
जीिन र्शैिी और भार्ा में सारा र्शा समावहि होिा है इसके उदाहरण को केिि ”वद वनपट्ान“ के अथष से

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 13


ही जाना जा सकिा है सुबह हो या र्शाम, सामने गंगा बह रही हो, उपर खुिा आकार्श हो, भां ग को गोिा पेट्
में जा िुका हो, और जब वकनारे पर वनपट्ने (वन वक्रया) करने बैठिे हैं िो बनारसी उसे ”वद वनपट्ान“
कहिे हैं अथाष ि उस प्रकार से वक्रया वजसमें कुछ भी बनािट्ी न हो अथाष ि प्राकृविक हो उसे ”वद “ कहिे हैं
इस प्रकार आधुवनक सुविधाओं से युि र्शौिािय में वन वक्रया करना बनारसी ৯ान में वकसी भी म्म थवि में
”वद वनपट्ान“ नहीं हो सकिी इसी प्रकार कपड़े पहनकर नहाना ”वद ान“ नहीं और आधुवनक सुख-
सुविधाओं से आन में होना ”वद आन “ नहीं
सन् 1893 से सन् 1993 के 100 िर्ों के समय में वि के बौम्म क र्शम्मि को वज ोंने सबसे अवधक
हििि दी िे हैं -धमष की ओर से ामी वििेकान और धावमषकिा की ओर से आिायष रजनीर्श”ओर्शो“ व के
स में इनके वन वििार हैं ामी वििेकान के अनुसार-”अना ৯ पुरूर्ों की बुम्म एकदे र्श-दवर्शषनी होिी
है आ ৯ पुरूर्ों की बुम्म सिषग्रावसनी होिी है आ प्रकार्श होने से, दे खोगे वक दर्शषन, वि৯ान सब िु ारे अधीन
हो जायेंगे “ (राम कृ वमर्शन, वििेकान जी के संग में, पृ -118) आिायष रजनीर्श ”ओर्शो“ के अनुसार-”िीराम
वकिने ही बड़े हों, िेवकन इस मु के वि में िे पूणष अििार की िरह नहीं हैं , अंर्श हैं उनका अििार उपवनर्द्
के ऋवर् वकिने ही बड़े ৯ानी हों, िेवकन अििार नहीं हैं िीकृ पूणष अििार हैं परमा ा अगर पृ ी पर पूरा
उिरे िो करीब-करीब िीकृ जैसा होगा इसविए िीकृ इस मु के अवधकिम मन को छु पाये हैं ; बहुि
कारणों से एक िो पूणष अििार का अथष होिा है , म ी-डाइमें नि; जो मनु के सम म्मि को र्शष
करिा हो िीराम िन-डाइमें नि है अब िक िीकृ को पूरा प्रेम करने िािा आदमी नहीं हुआ क्योंवक पूरे
िीकृ को प्रेम करना िभी स ि है , जब िह आदमी भी म ी-डाइमें नि हो हम आम िौर पर एक आयामी
होिे हैं एक हमारा ट्र ै क होिा है म्मि का, एक रे ि की पट्री होिी है , उस पट्री पर हम िििे है जो एक गुरू
बोि रहा है , िह अन वस ों की िाणी है अवभ म्मि में भेद होगा, र्श अिग होंगे, प्रिीक अिग होंगे मगर जो
एक वस बोििा है , िह सभी वस ों की िाणी है इनसे अ था नहीं हो सकिा है इसविए वजसने एक वस को पा
विया, उसने सारे वस ों की पर रा को पा विया क्योंवक उनका सूत्र एक ही है कुंजी िो एक ही है , वजससे िािा
खुििा है अम्म का “
उपरोि वििारों से यह होिा है वक ”वद “ का अथष सीधा सा प्राकृविक रूप अथाष ि ”जैसा है
ठीक िैसा ही“ है िथा ”वद व “ का अथष सिषग्रावसनी या बहुआयामी (म ी-डाइमें नि) व होिा है इस
प्रकार ब्र ा का ”वद रूप“ िार वसर िािा, वि ु का ”वद रूप“ िार हाथ िािा और वर्शि-र्शंकर का ”वद
रूप“ पाूँ ि वसर िािा पुराणों में प्रक्षेवपि है वकसी भी ि ु को एक वदर्शा से दे खकर उसके िा विक रूप ि ाई,
िौड़ाई, ऊूँिाई इ ावद के साथ नहीं दे ख सकिे हम सभी अपनी आूँ खों से ही आूँ खों या पूरे र्शरीर को नहीं दे ख
सकिे उसके विए हमें दपषण की आि किा पड़िी है अथाष ि यं से बाहर आकर ही पूरे को दे खना स ि हो
पािा है इसी प्रकार पृ ी को दे खने के विए हमें पृ ी से बाहर जाना पड़िा है और सारी पृ ी के विकास के
वि न के विए मन को पृ ी से बाहर िे जाना पड़िा है ”वि र्शा “ ऐसे ही मन की म्म थवि का पररणाम है
ििषमान और भवि के समय के विए सबसे स व िो यही है -

“एक िुर् से दे खना व है ,


अनेक िुर्ोिं से एक सार् दे खना वद व है ,
वसिण वि ता को दे खना व दोष है ”
और
“जो मन कमण में न बदले , िह मन नही िं और न्तक्त का अपना रूप नही िं ”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 14


ि र्ा के पररितणन र्ा स ीकरर् का पहला प्रारूप
और उसकी कार्ण विवध
उदाहरण के रूप में, यवद वकसी वर्शवक्षि म्मि वजसे अंकगवणि का ৯ान हो, उसके समक्ष संূा 5
विख वदया जाये और उससे कहा जाये वक इस संূा के आगे और पीछे की संূा विखें िो िह आसानी से उसे
विख दे गा पर ु अंकगवणि का अ৯ानी ऐसा नहीं कर पायेगा उसका सारा ान केिि संূा 5 पर ही वट्का रह
जायेगा क्योंवक िह संূा प वि से अपररविि है अगर िह कुछ विख भी दे गा िो िह आि क नहीं वक स हो
और उसमें सुधार की पूरी स ािना बनी रहे गी समाज सुधार के क्षेत्र में भी यही बाि है हम एक सम ा दे खिे हैं
वफर उसमें कुछ सुधार कर दे िे हैं फि यह होिा है वक कुछ समय बाद पुनः उसमें सुधार की आि किा आ
जािी है
वजिने अवधक आकड़ों को वि ेवर्ि कर हम पररणाम को खोजेंगे उिने ही स पररणाम हमारे
सामने आयेंगे प्र ुि र्शा ि अवधकिम आकड़ों के िम्म थि प्र ुिीकरण का र्शा है दू सरे रूप में इसे
धमष ৯ान का बैिे सीट् भी कह सकिे है इन स ूणष आकड़ों पर आधाररि होकर म्मि, समाज और वि रा र
के विए विया गया वनणषय ही एक स वनणषय हो सकिा है समाज सुधार के स में ामी वििेकान का
कहना है वक-”िथाकवथि समाज-सुधार के विर्य में ह क्षेप न करना क्योंवक पहिे आ ाम्म क सुधार हुये वबना
अ वकसी भी प्रकार का सुधार हो नहीं सकिा (राम कृ वमर्शन, पत्राििी भाग-1, पृ -29), भारि के वर्शवक्षि
समाज से मैं इस बाि पर सहमि हूँ वक समाज का आमूि पररििषन करना आि क है पर यह वकया वकस िरह
जाये ? सुधारकों की सब कुछ न कर डािने की रीवि थष वस हो िुकी है मेरी योजना यह है , हमने अिीि में
कुछ बुरा नहीं वकया वन य ही नहीं वकया हमारा समाज खराब नहीं, बम्म अৢा है मैं केिि िाहिा हूँ वक िह
और भी अৢा हो हमें अस से स िक अथिा बुरे से अৢे िक पहुूँ िना नहीं है िरन् स से उৡिर स
िक, िे से िे िर और िे िम िक पहुूँ िना है मैं अपने दे र्शिावसयों से कहिा हूँ वक अब िक जो िुमने वकया, सो
अৢा ही वकया है , अब इस समय और भी अৢा करने का मौका आ गया है “-(राम कृ वमर्शन, वजिने मि उिने
पथ, पृ -46)
म्मि हो या ৯ानी, समाज हो या रा৸, दे र्श हो या वि , समाज नेिा हों या राजनेिा सभी को अब यह
जान िेना िावहए वक वि एक पररिार है और उस पररिार का र्शा -”वि र्शा “ है जब िक यह र्शा उपि
नहीं था िब िक इस वि पररिार के एकीकरण का मागष नहीं खुिा था, अब िह मागष वमि िुका है कोई भी समाज
वनमाष ण या युग पररििषन का कायष एक क्षण का कायष नहीं है यह एक ि ी अिवध की प्रवक्रया का कायष है इसे
हम उन समाज सुधारकों के सं थाओं के कायष को दे ख कर अनुभि कर सकिे हैं
ि था पररििषन, एक राजनीविक िुभािना िािा र्श है िह कैसे होगा, इसके विए एक प्रारूप की
आि किा होिी है अगर िह नहीं है िो ि था पररििषन वि ाने से नहीं होिा वफर ि था पररििषन वकस
बाि का? मानि समाज को संिाविि करने के विए िो वसफष दो ही मूि ि था है -एक राजि , वजसका युग जा
िुका है दू सरा-िोकि , वजसका युग िि रहा है और यही अम्म म ि था भी बनी रहे गी क्योंवक ब्र ाਔीय
ि था भी िोकि से ही िि रहा है और मनु के मम्म से अ िः िही ि हो रहा है िोकि से हम
राजि में नहीं जा सकिे इसविए ि था पररििषन का अथष ही वनरथषक है
आि किा है ििषमान िोकि ि था को ही स आधाररि करने की वजसे ि था स ीकरण
कहा जा सकिा है इस कायष में हमें मानकर्शा की आि किा है वजससे िोि कर यह दे ख सके वक इस
िोकि ि था में कहाूँ सुधार करने से स ीकरण हो जायेगा यह मानकर्शा ही ”वि र्शा “ है वसफष
मिदािा बनने ि िोट् डािने से ही िोकि थ नहीं हो सकिा उसके विए दे र्श ि वि के पूणष ৯ान की
आि किा होगी इसविए आि क है वक प्र ेक मिदािा ”वि र्शा “ के ৯ान से युि हो

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 15


अৢा होिा वक हमारे राजनेिागण कुछ वदनों के विए स ास िेकर थोड़ा कुछ अ यन-विंिन करिे
रहिे िावक उ ें बार-बार िশ के विए र्श ों का पररििषन न करना पड़िा एक ही म्म थवि में बहुि समय िक
रहने पर बुम्म , ब हो जािी है एक-एक सीढ़ी िढ़कर, पहुूँ ि गये -पहुूँ ि गये वि ाने से अৢा है वक अम्म म सीढ़ी
पर पर बैठकर वि ाना वक पहुूँ ि गये
िाहे कुछ हो यवद प्रारूप नहीं, िो न िो ि था पररििषन हो सकिा है , न ही ि था स ीकरण हो
सकिा है , न ही स ूणष क्राम्म भीड़ से क्राम्म नहीं वसफष हं गामा होिा है भीड़ में जोर्श होिा है , होर्श नहीं
इस मानक र्शा के प्र ुि हो जाने से ि था पररििषन की नहीं बम्म ि था के स ीकरण का
मागष खुि िुका है वजसका म्मि, समाज और वि रा र को आि किा भी है वकसी एक विर्य पर बहुि
अवधक पु क मम्म को भ्रवमि ही करिी है यह र्शा प्रार से अ िक के विकास को क्रमब प्र ुि
करिा है वजससे हम सभी एक स वनणषय करने में सक्षम हों और पूणष ৯ान से युि हो जायें और हमारा कोई भी
सुधार एक थायी, अৢा और दू रगामी पररणाम दे ने िािा हो
प्र यह भी उठिा है वक पररिार का मुम्मखया वजसके ारा पररिार का संिािन होिा है , यवद िह
पररिार के वहि ि विकास के विर्य में कमष न करिा हो िो क्या पररिार का सद उसमें ह क्षेप करने का
अवधकारी है या नहीं? यही बाि दे र्श को ििाने िािे संसद के विर्य में भी है यवद संसद यं दे र्शवहि ि जनवहि
के प्रवि उदासीन हो जाये िो क्या जनिा संसद को मागषदर्शषन दे ने का अवधकार नहीं रखिी? यवद नहीं िो संविधान
की धारा-51(ए) के अ गषि नागररक का मौविक किष की उपयोवगिा क्या है ? ान रखने यो৓ विर्य यह है वक
कोई भी िुना हुआ प्रविवनवध वसफष उिने ही बड़े क्षेत्र का प्रविवनवध होिा है वजस क्षेत्र से िह िुना जािा है भारि में
ऐसा कोई प्रविवनवध जनिा से नहीं िुना जािा जो भारि का प्रविवनवध करिा हो और जब िक भारि का
प्रविवनवध करने िािा िुनाि नहीं होिा या भारि की जनिा का रा र ीय मु ों पर वििार कर संसद के किष का
बोध कराने िािी ि सं था नहीं बन जािी, िब िक जनिा को संसद को संविधान की धारा-51(ए) के अ गषि
नागररक का मौविक किष के अनुसार ायािय ि संसद के मा म से सरकार को मागषदर्शषन दे ने का किष
करना िावहए जो उसका अवधकार भी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 16


वमले सुर मेरा तु ारा, तो सुर बने हमारा

”स ईर्शोऽवनिषिनीयप्रेम रुपः“- ई र अवनिषिनीय प्रेम रुप है नारद ारा िणषन वकया हुआ ई र
का यह िक्षण है और सब िोगों को ीकार है यह मेरे जीिन का ढ़ वि ास है बहुि से म्मियों के समूह
को समव कहिे हैं और प्र ेक म्मि, व कहिािा है आप और मैं दोनों व हैं , समाज समव है आप और मैं-
पर्शु , पक्षी, कीड़ा, कीड़े से भी िुक्ष प्राणी, िृक्ष, ििा, पृ ी, नक्षत्र और िारे यह प्र ेक व है और यह वि समव है
जो वक िेदा में विराट्, वहरण गभष या ई र कहिािा है और पुराणों में ब्र ा, वि ु, दे िी इ ावद व को
म्मिर्शः ि िा होिी है या नहीं, और यवद होिी है िो उसका नाम क्या होना िावहए व को समव के विए
अपनी इৢा और सुख का स ूणष ाग करना िावहए या नहीं, िे प्र ेक समाज के विए विर न सम ाएूँ हैं सब
थानों में समाज इन सम ाओं के समाधान में संि্ रहिा है ये बड़ी-बड़ी िरं गों के समान आधुवनक पव मी
समाज में हििि मिा रही हैं जो समाज के अवधप के विए म्मिगि ि िा का ाग िाहिा है िह वस ा
समाजिाद कहिािा है और जो म्मि के पक्ष का समथषन करिा है िह म्मििाद कहिािा है
सबका ामी (परमा ा) कोई म्मि विर्शेर् नहीं हो सकिा, िह िो सबकी समव रुप ही होगा
िैरा৓िान मनु आ ा र्श का अथष म्मिगि ”मैं“ न समझकर, उस सिष ापी ई र को समझिा है जो
अ याष मी होकर सबमें िास कर रहा हो िे समव के रुप में सब को प्रिीि हो सकिे हैं ऐसा होिे हुए जब जीि
और ई र रुपिः अवभ हैं , िब जीिों की सेिा और ई र से प्रेम करने का अथष एक ही है यहाूँ एक विर्शेर्िा है
जब जीि को जीि समझकर सेिा की जािी है िब िह दया है , वक ु प्रेम नहीं पर ु जब उसे आ ा समझकर
सेिा करो िब िह प्रेम कहिािा है आ ा ही एक मात्र प्रेम का पात्र है , यह िुवि, ृवि और अपरोक्षानुभूवि से
जाना जा सकिा है
सिे र कभी भी विर्शेर् म्मि नहीं बन सकिे जीि है व ; और सम जीिों की समव है , ई र
जीि में अवि ा प्रबि है ; ई र वि ा और अवि ा की समव रूपी माया को िर्शीभूि करके विराजमान है और
ाधीन भाि से उस थािर-जंगमा क जगि को अपने भीिर से बाहर वनकाि रहा है पर ु ब्र उस व -
समव से अथिा जीि-ई र से परे है ब्र का अ र्शां र्श भाग नहीं होिा
समव से प्रेम वकये वबना हम व से प्रेम कैसे कर सकिे हैं ? ई र ही िह समव है सारे वि का
यवद एक अखਔ रूप से वि न वकया जाय, िो िही ई र है , और उसे पृथक-पृथक रूप से दे खने पर िही यह
मान संसार है - व है समव िह इकाई है , वजसमें िाखों छोट्ी-छोट्ी इकाईयों का मेि है इस समव के
मा म से ही सारे वि को प्रेम करना स ि है ”
- ामी वििेकान

”मेरा“, व है ”िु ारा“, व है ”हमारा“, समव है ये ”मेरा“, ”िु ारा“, व ”मैं” है ”हमारा“,
समव ”मैं” है ” व “ म्मिगि होिा है जबवक ”समव “ सािषजवनक, ूनिम एिं अवधकिम साझा वजसे अंग्रेजी
में कामन (Common) कहिे हैं , होिा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 17


साकार आधाररि ि (राजि ) अथाष ि वबना विम्मखि संविधान िािे ि में जब िक म्मि प्रजा
( म्मिगि पद) होिा है िह ” व “ होिा है जैसे ही िह राजा (सािषजवनक पद) पर बैठेगा, िह ”समव ” हो जायेगा
राजा (सािषजवनक पद) पर बैठने के बाद भी िह अपने म्मिगि वििारों का संिािन कर सकिा था क्योंवक िहाूँ
कोई विम्मखि संविधान नहीं होिा है इसी कारण जो राजा म्मिगि वहि के वििारों का संिािन करने िगिे थे,
उ ें म्मििादी या असुर की िेणी में िथा जो राजा सािषजवनक वहि के वििारों का संिािन करिे थे उ ें
समाजिादी या सुर के िेणी में रखे जािे थे
ििषमान में हम सभी वनराकार आधाररि ि (िोकि ) अथाष ि विम्मखि संविधान िािे िोकि में
रहिे हैं और उसी से र्शावसि हैं और इस ि के अनुसार वजिने भी सािषजवनक पद हैं िे सब समव पद हैं उस
पद को संिाविि करने के विए एक विम्मखि मागषदर्शष न हैं वजसे हम सब संविधान-कानून कहिे हैं िह पद उससे
बाहर नहीं जा सकिा उससे बाहर जाने पर पीठासीन म्मि वििाद-विरोध का वर्शकार हो जायेगा संविधान-
कानून, एक मानिीय समव र्शा है अथाष ि एक मानि समूह को संिाविि करने के विए, उस समूह का समव
वििार है
यह अৢी प्रकार जान िेना िावहए वक अििारी िृंखिा, संि िृंखिा, दार्शषवनक िृंखिा, वस िृंखिा,
र्शा िृंखिा से आये अििार, संि, दार्शषवनक, वस , र्शा सब समव हैं , ये मानि जावि के विए कायष करिे हैं न
वक वकसी विर्शेर् मानि समूह के विए सरि र्श ों में जो वििार अवधकिम मानि समूह पर सरििा से िागू -
प्रभािी वकया जा सके िह उৡिर समव वििार है िथा जो वजिना उৡिर र्शम्मि से िागू-प्रभािी वकया जा सके
िह उिना ही उৡिर व वििार है
िर्ों से भारि के दू रदर्शषन के रा र ीय िैनि पर रा र ीय विवभ िाओं में एकिा और एकीकरण का भाि
जगाने िािे गीि ”वमिे सुर मेरा िु ारा िो सुर बने हमारा..................सुर की नवदयाूँ , हर वदर्शा से ििकर सागर में
वमि जाये “ का यह ”वि र्शा “ प्र क्ष रूप है और हमारा सुर ही है साथ ही यह भारि सवहि वि का प्रविवनवध
मानक र्शा भी है विवभ वििार की नवदयाूँ , इस ”वि र्शा “ नामक सागर में ही वििीन हो जािी हैं इसविए ही
”वि र्शा “ के विए कहा गया है - ”सभी सिोৡ वििार और सिोৡ कमष मेरी ओर ही आिे हैं “
व वििार हो या समव वििार, दोनों म्मि से ही ि होिे हैं इसविए यहाूँ भ्रम वक म्म थवि उ
होिी है और कोई म्मि बड़े ही सरि भाि से कह दे िा हैं वक - ये आपके अपने म्मिगि वििार हैं मानिीय
रूप से ”वि र्शा “ म्मिगि वििार का र्शा नहीं बम्म सािषजवनक वििार का र्शा है और ई रीय रूप में
सािषभौम स -वस ा का समव स र्शा है अथाषि वि के मानि समूह को संिाविि करने के विए, ई रीय
समव सािषभौम स -वस ा है स है , वर्शि है , सु र है वर्शि ৸ोवि है , प्रकार्श है , गुरू है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 18


भाि-1
तिंत्रता, रा र , और रा र िाद
तिं त्रता
रा र
स भु रा र
रा र िाद
भारतीर् रा र िाद की प्राचीनता
महवषण अरवि (15 अि , 1872 ई - 5 वदस र 1950 ई )
िैव क रा र िाद

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 19


तिंत्रता
िंत्रिा का अथष , . िंत्र होने का भाि ाधीनिा आजादी . मौविकिा, वनजिा . कामािार
ेৢािाररिा ৢं दिा िंत्रिा संग्राम, िह िड़ाई या संघर्ष जो दे र्श से वकसी अ दे र्श के अवधकार या र्शासन
को हट्ाने के विये वकया जाय
िंत्रिा आधुवनक काि का प्रमुख राजनैविक दर्शषन है यह उस दर्शा का बोध करािी है वजसमें कोई
रा र , दे र्श या रा৸ ारा अपनी इৢा के अनुसार कायष करने पर वकसी दू सरे म्मि/ समाज/ दे र्श का वकसी प्रकार
का प्रविब या मनाही नहीं होिी अथाष ि िंत्र दे र्श/ रा र / रा৸ के सद र्शासन (से -गिनषमे ) से र्शावसि
होिे हैं िंत्रिा का वििोम र्श “परिंत्रिा” है जरूरी नहीं वक “ िंत्रिा” का अथष “आजादी” (freedom) भी
हो
ाधीनिा या विबट्ी (Liberty) से आर्शय है वक म्मि ारा अपने वक्रयाकिापों का यं ारा
वनयंत्रण से है ाधीनिा के बहुि से दर्शषन वदये गये हैं वजनमें म्मि का समाज के साथ स ों को वभ -वभ
प्रकार से पाररभावर्ि वकया गया है यह आजादी से अिग करके दे खी जा सकिी है

तिं त्रता का शान्त क अर्ण (Liberty Meaning)

िंत्रिा र्श अंग्रेजी रूपां िरण “विबट्ी” (Liberty) िेवट्न भार्ा के िीबर (Liber) र्श से वनकिा है
वजसका अथष होिा है – “बंधनों का अभाि (Absence of Restraint)” इৢा अनुसार कायष करने की िंत्रिा है
परं िु िंत्रिा का यह अथष ठीक नहीं है '
अने बाकषर (Arnest barker के अनुसार - "वजस प्रकार बदसूरिी का न होना खूबसूरिी नहीं है
उसी प्रकार बंधनों का अभाि भी िंत्रिा नहीं है " अने बाकषर ने “parincipls of social and political
theory” (सामावजक और राजनीविक वस ां ि ि , 1951) के अंिगषि िंत्रिा के नैविक आधार पर विर्शेर् बि
वदया है उसने अपनी ििाष का आरं भ जमषन दार्शष वनक इमैनुएि कां ट् वक इस यं वसम्म से वकया है वक
“वििेकर्शीि प्रकृवि अपने आप में सा है ”
अर ु ने दास प्रथा का समथषन इस आधार पर वकया था वक कुछ मनु “वििेकर्शीि प्रकृवि” की िेणी
में नहीं आिे ; िे केिि जीिे जागिे उपकरण (Living Tools) होिे हैं , इसविए िे िंत्रिा के अवधकारी नहीं
यूरोपीय विंिन में र्शिाम्म यों िक यह मा िा प्रिविि रही
हॉ मानिे हैं वक रा৸ की स ा के सारे िाभ िभी उठाए जा सकिे हैं जब म्मि की िंत्रिा को
अ ंि सीवमि कर वदया जाए उसका मुূ सरोकार कानून और ि थापक रा৸ (Law and Order State) से
है ; उसने म्मि की िंत्रिा को गौण माना है यही कारण है वक हॉ (Hobbes) को पूणषस ािाद
(Absolutism) का प्रििषक माना जािा है इसके विपरीि जॉन िॉक और जे एस वमि जैसे दार्शषवनक यह िकष दे िे
हैं वक म्मि की िंत्रिा को साथषक बनाने के विए रा৸ की स ा को यथासंभि सीवमि करना जरूरी है
िंत्रिा का सारभूि अथष (Liberty Meaning) यह है वक वििेकर्शीि क ाष को जो कुछ सिो म
प्रिीि हो, िही कुछ करने में िह समथष हो और उसके कायषकिाप बाहर के वकसी प्रविबंध से न बंधे हो

तिं त्रता के अर्ण

01. औपिाररक व से वििेकर्शीि किाष के विए िंत्रिा की मां ग प्रविबंधों के अभाि के रुप में की जािी है
02. िोग अपनी रिना क और क्षमिाओं का विकास कर सकें

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 20


03. म्मि अपने वििेक और वनणषय की र्शम्मि का प्रयोग कर पािे हैं
04. म्मि अपने वहि संिधषन ूनिम प्रविबंधों के बीि ही करने में समथष होिा है
05. प्रविबंधों का न होना िंत्रिा का केिि एक पहिू है
06. िंत्रिा की रक्षा के विए िोकिां वत्रक सरकार जरूरी है
07. सामावजक ि आवथषक असमानिा के कारण िंत्रिा पर कुछ प्रविबंध हो सकिे हैं
08. िंत्रिा हमारे विक िुनने के साम ष और क्षमिाओं में छु पी होिी है
09. अनुविि वनयंत्रणों की अनुपम्म थवि
10. िंत्रिा स की प्राम्म का साधन नहीं िरन सिोৡ साधन है
11. उৢृं खििा की म्म थवि को िंत्रिा नहीं कहा जा सकिा है
12. बंधनों के अभाि का िा यष है - रा৸ का अपने कायष क्षेत्र से िापस मुड़ना और राजनीविक स ा के क्षेत्र में
कम से कम ह क्षेप करना
13. अनुविि प्रविबंधों के थान पर उविि प्रविबंधों की ि था
14. िंत्रिा में बंधनों का अभाि वनवहि नहीं है

तिं त्रता की पररभाषा Definition of Liberty

रूसो - "आम सहमवि का अथष ही िंत्रिा है ", "जो िोग िंत्र होने से इं कार करें गे उ ें बिपूिषक िंत्र वकया
जाएगा ", " िंत्रिा को छोड़ना मनु िा को छोड़ना है मनु िा के अवधकारों और किष ों को दे दे ना है ",
“सामा इৢा की अधीनिा को यथाथष िंत्रिा मानिा है उसके अनुसार "मनु िंत्र पैदा हुआ है वकंिु सिषत्र
जंजीरों से जकड़ा है "
पोलाडण - " िंत्रिा का वनिास समानिा में है "
मैकेंजी - "अनुविि थान पर उविि पाबंवदयों की थापना "
ला ी - " िंत्रिा उस िािािरण को बनाए रखना है , वजसमें म्मि को जीिन का सिो म विकास करने की
सुविधा प्रा हो "
पोलाडण - " िंत्रिा का केिि एक ही समाधान है और िह समानिा में वनवहि है िंत्रिा के वबना समानिा कुछ
िोगों की उৢृं खििा में बदि जािी है "
LT Hob House - "एक म्मि की वनरं कुर्श िंत्रिा का अथष होगा वक बाकी सब घोर पराधीनिा की बेवड़यों में
जकड़े जाएं ''
हॉ – “ िंत्रिा को बाहरी बाधाओं की अनुपम्म थवि” हॉ ने िेवियाथन (Leviathan) में िंत्रिा को “विरोध
की अनुपम्म थवि” के रूप में पररभावर्ि वकया है 1789 में फ्ां स की क्रां वि की मानिीय अवधकार घोर्णा में कहा
गया है वक िंत्रिा िह सब कुछ करने की र्शम्मि का नाम है वजससे दू सरे म्मियों को आघाि न पहुं िे
जे एस वमल - "अपनी भिाई के विए दू सरों को िंत्रिा से िंविि नहीं करना या बाधा नहीं डािना " जे एस वमि
(J.S.Mill) ने िंत्रिा को मानि जीिन का मूि आधार माना है
टी एच ग्रीन (T.H.Green) - "वजस प्रकार सौंदयष कुरूपिा के अभाि का ही नाम नहीं होिा उसी प्रकार िंत्रिा
प्रविबंधों के अभाि का ही नाम नहीं है "
लॉक (Locke) - िंत्रिा को ही संपव मानिा है
ला ी (Laski) - " िंत्रिा एक सकाराਚ ि ु है वजसका अथष केिि बंधनों का अभाि नहीं है "
बाकणर - "खोखिी िंत्रिा और सै ां विक म्मििाद का अग्रदू ि था "
कािंट (kant) - " आरोवपि किष भािना के परम आदे र्शों का पािन ही िंत्रिा है "
वसले (sile) - " िंत्रिा अवि र्शासन का वििोम है ''

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 21


सुकरात (Sukrat) - कानूनों का पािन करने को ही िंत्रिा मानिे थे
मोिंटे यू (Montesquieu) - िंत्रिा के अविररि र्शायद ही कोई ऐसा र्श हो वजसके इिने अवधक अथष होिे
हो और वजसने नागररकों के मम्म पर इिना अवधक प्रभाि डािा हो
म र्ुि (middle age) में िंत्रिा का अथष आ ा (soul) की िंत्रिा िथा मुम्मि को माना गया है इस युग में
यह मा िा प्रबि हुई वक धमष (religion) का पािन करने से ही मुम्मि संभि है
आधुवनक र्ुि (Modern Age) में िंत्रिा की धारणा बहुमुखी हो गई है एम्मिनास, मैवकयािेिी, हा ि िॉक
आवद वििारकों ने म्मिगि िंत्रिा पर बि वदया
िंत्रिा का सबसे ापक अथष यह होगा वक मनु केिि मूिष प्रविबंध से ही नहीं बम्म वकसी भी
िरह की ि था से ग्र नहीं हो िावक िह जो कुछ सिो म समझिा है उसे करने में कोई बाधा न अनुभि करें
िंत्रिा मानिीय प्राम्म और सामावजक जीिन के दो विरोधी ि ों (बंधनों का अभाि और वनयमों के पािन) में
सामंज का नाम है
उपयुि ि ों के आधार पर यह कहा जा सकिा है वक िंत्रिा म्मि को अपनी इৢा अनुसार
कायष करने की र्शम्मि (power) का नाम है बर्शिे वक इससे दू सरे म्मि की इसी प्रकार की िंत्रिा में कोई बाधा
नहीं पहुं िे
िंत्रिा वनयम और ि था की मां ग करिी है क्यों? िविए दे खिे हैं एक example के मा म से -
यवद िोर की िंत्रिा दू सरे का माि िुरा िेने में वनवहि हो िो इसे िंत्रिा कहना एक मजाक होगा यवद सड़क
पर गाड़ी ििाने िािे की िंत्रिा वजधर भी िाहे वजिनी र ार से गाड़ी ििाने या मोड़ दे ने में वनवहि हो िो अ
यावत्रयों की िंत्रिा ही नहीं वछन जाएगी, उनके जान माि को भी खिरा पैदा हो जाएगा
LT हॉबहाउस (the aliment of social justice सामावजक ाय के मूि ि 1922) के र्श ों में,
“एक म्मि की वनरं कुर्श िंत्रिा का अथष यह होगा वक बाकी सब घोर पराधीनिा की बेवड़यों से जकड़े जाएं गे
अिः दू सरी ओर दे खा जाए िो सबको िंत्रिा (liberty) िभी प्रा हो सकिी है जब सब पर कुछ न कुछ प्रविबंध
िगा वदए जाएं "
यही कारण है वक िंत्रिा वनयम (rule) और ि था (order) की मां ग करिी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 22


रा र
“राजृ-दी ो” अथाष ि “राजृ” धािु से कमष में “ र न्” प्र य करने से सं ृ ि में रा र र्श बनिा है अथाष ि
विविध संसाधनों से समृ सां ृ विक पहिान िािा दे र्श ही एक रा र होिा है | दे र्श र्श की उ व "वदर्श" यावन
वदर्शा या दे र्शां िर से हुआ वजसका अथष भूगोि और सीमाओं से है दे र्श विभाजनकारी अवभ म्मि है जबवक रा र ,
जीिंि, सािषभौवमक, युगां िकारी और हर विविधिाओं को समावहि करने की क्षमिा रखने िािा एक दर्शषन है
सामा अथों में रा र र्श दे र्श का पयाष यिािी बन जािा है , जहाूँ कुछ असािषभौवमक रा र , वज ोंने
अपनी पहिान जु ड़ने के बाद, पृथक सािषभौवमवकिा बनाए रखी है एक रा र कई रा৸ों में बूँट्ा हो सकिा है िथा िे
एक वनधाष ररि भौगोविक क्षेत्र में रहिे हैं , वजसे रा र कहा जािा है दे र्श को अपने रड़ने िािों का रक्षा करना है
रा र की पररभार्ा एक ऐसे जन समूह के रूप में की जा सकिी है जो वक एक भौगोविक सीमाओं में
एक वनव ि दे र्श में रहिा हो, समान पर रा, समान वहिों िथा समान भािनाओं से बूँधा हो और वजसमें एकिा के
सूत्र में बाूँ धने की उ ुकिा िथा समान राजनैविक मह ाकां क्षाएूँ पाई जािी हों रा र िाद के वनणाष यक ि ों में
रा र ीयिा की भािना सबसे अवधक मह पूणष है रा र ीयिा की भािना वकसी रा र के सद ों में पायी जाने िािी
सामुदावयक भािना है जो उनका संगठन सु ढ़ करिी है
रा र कहिे हैं , एक जन समूह को, वजनकी एक पहिान होिी है , जो वक उ ें उस रा र से जोड़िी है
इस पररभार्ा से िा यष है वक िह जन समूह साधारणिः समान भार्ा, धमष, इविहास, नैविक आिार, या मूि उ म
से होिा है

स भु रा र

अाँग्रेजी में नाम वह ी में नाम


01. Afghanistan अफ़गावन ान
02. Albania अ ावनया
03. Algeria अ ीररया
04. Andorra अਔोरा
05. Angola अंगोिा
06. Antigua and Barbuda अ਒ीगुआ और बारबूडा
07. Argentina अजे਒ीना
08. Armenia आमीवनया
09. Australia ऑ र े विया
10. Austria ऑम्म र या
11. Azerbaijan अजरबैजान
12. The Bahamas बहामास
13. Bahrain बहरीन
14. Bangladesh बां ৕ादे र्श
15. Barbados बारबाडोस
16. Belarus बेिारूस
17. Belgium बेम्म यम
18. Belize बेिीज

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 23


19. Benin बेवनन
20. Bhutan भूट्ान
21. Bolivia बोविविया
22. Bosnia and Herzegovina बॉव या और हजेगोविना
23. Botswana बो िाना
24. Brazil ब्राजीि
25. Brunei ब्रुनेई
26. Bulgaria बु ाररया
27. Burkina Faso बुवकषना फासो
28. Burundi बरਔी
29. Cambodia क ोवडया
30. Cameroon कैमरून
31. Canada कनाडा
32. Cape Verde केप िदे
33. Central African Republic म अफ़्रीकी गणरा৸
34. Chad िैड
35. Chile वििी
36. China (PRC) िीनी जनिादी गणरा৸
37. Colombia कोिोंवबया
38. Comoros कोमोरोज
39. Congo-Kinshasa कां गो िोकिाम्म क गणरा৸
40. Congo-Brazzaville कां गो गणरा৸
41. Costa Rica को ा रीका
42. Côte d'Ivoire कोि वद ार
43. Croatia क्रोएवर्शया
44. Cuba क्यूबा
45. Cyprus साइप्रस
46. Czech Republic िेक गणरा৸
47. Denmark डे नमाकष
48. Djibouti द् जीबाउिी
49. Dominica डोवमवनका
50. East Timor पूिी विमोर
51. Ecuador ईिाडोर
52. Egypt वमस्र
53. El Salvador अि सा ाडोर
54. Equatorial Guinea भूम रे खीय वगनी
55. Eritrea इररवत्रया
56. Estonia ए ोवनया
57. Ethiopia इवथयोवपया
58. Fiji वफ़जी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 24


59. Finland वफनिैंड
60. France फ़्रा
61. Gabon गबोन
62. The Gambia गाम्म या
63. Georgia जॉवजषया
64. Germany जमषनी
65. Ghana घाना
66. Greece यूनान
67. Grenada ग्रेनाडा
68. Guatemala ৖ाट्े मािा
69. Guinea वगनी
70. Guyana गयाना
71. Haiti है िी
72. Honduras होਔु रस
73. Hungary हं गरी
74. Iceland आइसिैਔ
75. India भारि / इम्मਔया
76. Indonesia इं डोनेवर्शया
77. Iran ईरान
78. Iraq इराक
79. Ireland आयरिैंड
80. Israel इजराइि
81. Italy इट्िी
82. Jamaica जमैका
83. Japan जापान
84. Jordan जाडष न
85. Kazakhstan कजाव़ि ान
86. Kenya के ा
87. Korea (North) उ र कोररया
88. Korea (South) दवक्षण कोररया
89. Kuwait कुिैि
90. Kyrgyzstan वकगी ान
91. Laos िाओस
92. Latvia िाट्विया
93. Lebanon िेबनान
94. Lesotho िेसोथो
95. Liberia िाइबेररया
96. Libya िीवबया
97. Liechtenstein वि ट्ें ाइन
98. Lithuania विथुआवनया

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 25


99. Luxembourg ि जमबगष
100. Macedonia (FYROM) मैवसडोवनया
101. Madagascar मेडागा र
102. Malawi मिािी
103. Malaysia मिेवर्शया
104. Maldives मािदीि
105. Mali मािी
106. Malta मा ा
107. Marshall Islands मार्शषि आइसिैਔ
108. Mauritania मॉरीिावनया
109. Mauritius मॉररर्शस
110. Mexico मेम्मসको
111. Micronesia माइक्रोनेवर्शया
112. Moldova मोिडोिा
113. Monaco मोनाको
114. Mongolia मंगोविया
115. Morocco मोरक्को
116. Mozambique मोजाा़ ीक
117. Myanmar ा ार
118. Namibia नामीवबया
119. Nauru नौरू
120. Nepal नेपाि
121. Netherlands नीदरिैंड
122. New Zealand ूजीिैंड
123. Nicaragua वनकारागुआ
124. Niger नाइजर
125. Nigeria नाईजीररया
126. Northern Cyprus उ री साइप्रस
127. Norway नािे
128. Oman ओमान
129. Pakistan पावक ान
130. Palestine पैिे ाइन
131. Panama पनामा
132. Papua New Guinea पापुआ ू गुयेना
133. Paraguay परा৖े
134. Peru पेरू
135. Philippines वफिीपी
136. Poland पोिैंड
137. Portugal पुिषगाि
138. Qatar क़िर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 26


139. Romania रोमावनया
140. Russia रूस
141. Rwanda रिां डा
142. Sahara (Western) सहारा (पव मी)
143. Saint Kitts and Nevis से वकट्् स एਔ नेविस
144. Saint Lucia से िूवसया
145. Saint Vincent and the Grenadines से वि े एਔ द ग्रेनाडाइ
146. Samoa समोआ
147. San Marino सैन मररनो
148. Sao Tomé and Príncipe साओ िोमे और वप्रम्म पी
149. Saudi Arabia सउदी अरब
150. Senegal सेनेगि
151. Serbia and Montenegro सवबषया एਔ मोवट् गो
152. Seychelles सेर्शे
153. Sierra Leone वसयेरा वियोन
154. Singapore वसंगापुर
155. Slovakia ोिावकया
156. Slovenia ोिेवनया
157. Solomon Islands सोिोमन आइसिैਔ
158. Somalia सोमाविया
159. Somaliland सोमािीिैਔ
160. South Africa दवक्षण अफ़्रीका
161. South Ossetia साउथ ओ ेवट्या
162. Spain ेन
163. Sri Lanka िीिंका
164. Sudan सूडान
165. Suriname सूरीनाम
166. Swaziland ाजीिैਔ
167. Sweden ीडन
168. Switzerland म्म ट्् जरिैंड
169. Syria सीररया
170. Taiwan (ROC) िाइिान
171. Tanzania िंजावनया
172. Thailand थाईिैਔ
173. Togo ट्ोगो
174. Tonga ट्ो गा
175. Transnistria ट्र ं सवनम्म र या
176. Trinidad and Tobago वत्रवननाद एਔ ट्ोबैगो
177. Tunisia ਅूवनवर्शया
178. Turkey िुकी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 27


179. Turkmenistan िुकषमेवन ान
180. Tuvalu ट्ू िािू
181. Uganda युगां डा
182. Ukraine युक्रेन
183. United Arab Emirates संयुि अरब अमीराि
184. United Kingdom यूनाइट्े ड वकंगडम
185. United States संयुि रा৸
186. Uruguay उरु৖े
187. Uzbekistan उ बेवक ान
188. Vanuatu िनुआट्ु
189. Vatican City िेवट्कन सीट्ी
190. Venezuela िे जुएिा
191. Vietnam वियिनाम
192. Yemen यमन
193. Zambia जाम्म या
194. Zimbabwe वज ािे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 28


रा र िाद
रा र िाद (nationalism) िोगों के वकसी समूह की उस आ था का नाम है वजसके िहि िे ़िुद को
साझा इविहास, पर रा, भार्ा, जािीयिा या जावििाद और सं ृ वि के आधार पर एकजुट् मानिे हैं इ ीं ब नों
के कारण िे इस वन र्ष पर पहुूँ ििे हैं वक उ ें आ -वनणषय के आधार पर अपने स भु राजनीविक समुदाय
अथाष ि् “रा र ” की थापना करने का आधार है हािाूँ वक दु वनया में ऐसा कोई रा र नहीं है जो इन कसौवट्यों पर पूरी
िरह से वफट् बैठिा हो, इसके बािजूद अगर वि की एट्िस (मानवित्र) उठा कर दे खी जाए िो धरिी की एक-एक
इं ि जमीन रा र ों की सीमाओं के बीि बूँट्ी हुई वमिेगी रा र िाद के आधार पर बना रा र उस समय िक क नाओं
में ही रहिा है जब िक उसे एक रा र -रा৸ का रूप नहीं दे वदया जािा
रा र िाद की पररभार्ा और अथष को िेकर ापक ििाष एूँ होिी रही हैं रा र िाद की सु और
सिषमा पररभार्ा करना आसान नहीं है प्रो. ाइडर िो मानिे हैं वक रा र िाद को पररभावर्ि करना अ
कवठन कायष है िेवकन वफर भी इस विर्य में उ ोनें जो पररभार्ा दी है िह रा र िाद को समझने में उपयोगी है
उनके मिानुसार, “इविहास के एक विर्शेर् िरण पर राजनीविक, आवथषक, सामावजक ि बौम्म क कारणों का एक
उ ाद - रा र िाद एक सु -पररभावर्ि भौगोविक क्षेत्र में वनिास करने िािे ऐसे म्मियों के समूह की एक
मनःम्म थवि, अनुभि या भािना है जो समान भार्ा बोििे हैं , वजनके पास एक ऐसा सावह है वजसमें रा र की
अवभिार्ाएूँ अवभ ि हो िुकी हैं , जो समान पर राओं ि समान रीवि ररिाजों से स है , जो अपने िीर पुरूर्ों
की पूजा करिे हैं और कुछ म्म थवियों में समान धमष िािे हैं “
यह एक आधुवनक संक ना है वजसका विकास पुनजाष गरण के बाद यूरोप में रा र रा৸ों के रूप में
हुआ रा र िाद का उदय अ਄ारहिीं और उ ीसिी ं सदी के युरोप में हुआ था, िेवकन अपने केिि दो-ढाई सौ साि
पुराने ৯ाि इविहास के बाद भी यह वििार बेहद र्शम्मिर्शािी और वट्काऊ सावबि हुआ है रा र िाद के प्रविपादक
जॉन गॉट्फ्ेड हडष र थे , वज ोंने 18िी ं सदी में पहिी बार इस र्श का प्रयोग करके जमषन रा र िाद की नींि डािी
उस समय यह वस ा वदया गया वक रा र केिि समान भार्ा, न , धमष या क्षेत्र से बनिा है वक ु, जब भी इस
आधार पर समरूपिा थावपि करने की कोवर्शर्श की गई िो िनाि एिं उग्रिा को बि वमिा जब रा र िाद की
सां ृ विक अिधारणा को जोर-जबरद ी से िागू करिाया जािा है िो यह “अविरा र िाद” या “अ रा र िाद”
कहिािा है इसका अथष हुआ वक रा र िाद जब िरम मू बन जािा है िो सां ृ विक विविधिा के न होने का
संकट् उठ खड़ा होिा है
रा र ीय सीमाओं के भीिर रहने िािे िोगों को अपने -अपने रा र का अम्म ाभाविक, प्रािीन,
विर न और म्म थर िगिा है इस वििार की िाकि का अंदाजा इस हकीकि से भी िगाया जा सकिा है वक इसके
आधार पर बने रा र ीय समुदाय िगीय, जाविगि और धावमषक विभाजनों को भी िाूँ घ जािे हैं रा र िाद के आधार पर
बने कायषक्रम और राजनीविक पररयोजना के वहसाब से जब वकसी रा र -रा৸ की थापना हो जािी है िो उसकी
सीमाओं में रहने िािों से अपेक्षा की जािी है वक िे अपनी विवभ अम्म िाओं के ऊपर रा र के प्रवि वन ा को ही
अहवमयि दें गे िे रा र के कानून का पािन करें गे और उसकी आं िररक और बा सुरक्षा के विए अपने प्राणों का
बविदान भी दे दें गे यहाूँ यह कर दे ना जरूरी है वक आपस में कई समानिाएूँ होने के बािजूद रा र िाद और
दे र्शभम्मि में अ र है रा र िाद अवनिायष िौर पर वकसी न वकसी कायषक्रम और पररयोजना का िाहक होिा है ,
जबवक दे र्शभम्मि की भािना ऐसी वकसी र्शिष की मोहिाज नहीं है
रा र िाद के आिोिकों की कमी नहीं है और न ही उसे ़िाररज करने िािों के िकष कम प्रभािर्शािी
हैं एक महाূान के िौर पर रा र िाद छोट्ी पहिानों को दबा कर पृ भूवम में धकेि दे िा है
रा र िाद के प्र के साथ कई सै ां विक उिझनें जुड़ी हुई हैं   मसिन, रा र िाद और आधुवनक सं ृ वि
ि पूूँजीिाद का आपसी संबंध क्या है ? पव मी और पूिी रा र िाद के बीि क्या फ़कष है ? एक राजनीविक पररघट्ना के
िौर पर रा र िाद प्रगविर्शीि है या प्रविगामी? हािाूँ वक धमष को रा र के बुवनयादी आधार के िौर पर मा िा प्रा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 29


नहीं है , वफर भी भार्ा के साथ-साथ धमष के आधार पर भी रा र ों की रिना होिी है सिाि यह है वक ये कारक रा र ों
को एकजुट् रखने में नाकाम क्यों हो जािे हैं ? सां ृ विक और राजनीविक रा र िाद को अिग-अिग कैसे समझा
जा सकिा है ? इन सिािों का जिाब दे ना आसान नहीं है , क्योंवक राजनीवि वि৯ान में एक वस ां ि के िौर पर
रा र िाद का सु िम्म थि और गहन अ यन मौजूद नहीं है विवभ रा र िादों का पररम्म थविज िररत्र भी इन
जवट्ििाओं को बढ़ािा है यह कहा जा सकिा है वक ऊपर िवणषि समझ के अिािा रा र िाद की कोई एक ऐसी
सािषभौम वस ा उपि नहीं है वजसे सभी पक्षों ारा मा िा दी जािी हो
रा र िाद का अ यन करना इसविए र्शरूरी है वक िैव क मामिों में यह बहुि ही मह पूणष भूवमका
वनभािा है वपछिी दो र्शिाम्म यों के दौरान रा र िाद एक ऐसे स ोहक राजनीविक वस ा के रूप में उभरा है
वजसने इविहास रिने में योगदान वकया है इसने उਚट् वन ाओं के साथ-साथ गहरे वि े र्ों को भी प्रेररि वकया है
इसने जनिा को जोड़ा है िो विभावजि भी वकया है इसने अ ािारी र्शासन से मुम्मि वदिाने में मदद की िो इसके
साथ यह विरोध, कट्ु िा और यु ों का कारण भी रहा है साम्रा৸ों और रा र ों के होने का यह भी एक कारण
रहा है रा र िादी संघर्ों ने रा र ों और साम्रा৸ों की सीमाओं के वनधाष रण-पुनवनषधाष रण में योगदान वकया है आज भी
दु वनया का एक बड़ा भाग विवभ रा र -रा৸ों में बंट्ा हुआ है हािाूँ वक रा र ों की सीमाओं के पुनसंयोजन की प्रवक्रया
अभी ख नहीं हुई है और मौजूदा रा ों के अ र भी अिगाििादी संघर्ष आम बाि है
रा र िाद कई िरणों से गुजर िुका है उदाहरण के विए, उ ीसिी ं र्शिा ी के यूरोप में इसने कई
छोट्ी-छोट्ी ररयासिों के एकीकरण से िृह र रा र -रा৸ों की थापना का मागष प्रर्श वकया आज के जमषनी और
इट्िी का गठन एकीकरण और सु ढ़ीकरण की इसी प्रवक्रया के जररए हुआ था िाविन अमेररका में बड़ी सं ূा में
नए रा৸ भी थावपि वकए गए थे रा৸ की सीमाओं के सु ढ़ीकरण के साथ थानीय वन ाएूँ और बोवियाूँ भी
उ रो र रा र ीय वन ाओं एिं सिषमा जनभार्ाओं के रूप में विकवसि हुईं नए रा र ों के िोगों ने एक नई
राजनीविक पहिान अवजषि की, जो रा र -रा৸ की सद िा पर आधाररि थी िेवकन रा र िाद बड़े -बड़े साम्रा৸ों के
पिन में भी सहभागी रहा है यूरोप में बीसिी ं र्शिा ी के आर में ऑम्म र याई-हं गेररयाई और रूसी साम्रा৸ िथा
इनके साथ एवर्शया और अफ्ीका में वब्रवट्र्श, फ्ां सीसी, डि और पुिषगािी साम्रा৸ों के विघट्न के मूि में रा र िाद ही
था भारि िथा अ भूिपूिष उपवनिेर्शों के औपवनिेवर्शक र्शासन से ि होने के संघर्ष भी रा र िादी संघर्ष थे ये
संघर्ष विदे र्शी वनयंत्रण से ि रा र -रा৸ थावपि करने की आकां क्षा से प्रेररि थे
आमिौर से यह माना जािा है वक रा र ों का वनमाष ण ऐसे समूह ारा वकया जािा है जो कुि या भार्ा
अथिा धमष या वफर जािीयिा जैसी कुछे क वनव ि पहिानों में समानिा हो िेवकन ऐसे वनव ि विवर्श गुण िा ि
में हैं ही नहीं जो सभी रा र ों में समान रूप से मौजूद हों कई रा र ों की अपनी कोई एकमात्र भार्ा नहीं है कनाडा
का उदाहरण सामने है कनाडा में अंग्रेजी और फ्ां सीसी भार्ा-भार्ी िोग साथ रहिे हैं बहुि से रा ों में उनको
जोड़ने िािा कोई एकमाि् र धमष भी नहीं है न या कुि जैसी अ विवर्श िाओं के विए भी यही कहा जा सकिा
है िब िह क्या है , जो रा र का वनमाष ण करिा है ? रा र बहुि हद िक एक “का वनक” समुदाय होिा है , जो अपने
सद ों के सामूवहक वि ास, आकां क्षाओं और क नाओं के सहारे एक सूत्र में बंधा होिा है यह कुछ खास
मा िाओं पर आधाररि होिा है वज ें िोग उस समग्र समुदाय के विए गढ़िे हैं , वजससे िे अपनी पहिान कायम
करिे हैं
माসषिाद भी रा र िाद से संबंवधि वस ा मुहैया कराने में नाकाम रहा है दु वनया भर के मजदू रों को
एक होने का नारा दे ने िािे माসष और एं गे मानिे थे वक मजदू रों का कोई दे र्श नहीं होिा अपने िेखन में
उ ोंने िगष-विभाजन के परे जाकर राजनीविक-सामावजक और सां ृ विक एकिा करने िािी वकसी पररघट्ना को
िरजीह नहीं दी अपने युग के कुछ रा र ीय संघर्ों के बारे में िो उनकी विर ारपूणष धारणा यह थी वक िे न हो
जाने के विए अवभर्श हैं रा र िाद का कोई मुक ि वस ां ि दे ने के बजाय उनकी रिनाएूँ अपने युग की
ािहाररक राजनीवि के िहि रा र ीय प्र पर वििार करिी हैं दू सरे और िीसरे इं ट्रनैर्शनि में रा र िाद पर काफ़ी
बहस हुई िेवनन ने एक विर्शाि बहुजािीय साम्रा৸ में क्रां वि करने की सम ाओं से जूझिे हुए राजनीविक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 30


िोकिंत्र की आि किा को अपने रा र िाद संबंधी वि ेर्ण के केंि में रखा उनका वन र्ष था वक रा र ों को
आ -वनणषय  का अवधकार वमिना िावहए इसके बाद ाविन की विূाि रिना माम्मসषजम ऐंड नैर्शनि िे न
सामने आयी वजसमें उ ोंने रा र िाद का वस ां ि दे ने की कोवर्शर्श की ाविन ने रा र के पाूँ ि मुূ ि बिाये :
एक म्म थर और नैरंियष से युि समुदाय, एक अिग भू -क्षेत्र, समान भार्ा, आवथषक सुसंगवि और सामूवहक िररत्र
िूूँ वक ाविन रा र ों के उभार को उ ोगीकरण की जरूरिों से जोड़ कर दे ख रहे थे इसविए उनका वस ां ि रा र िाद
की ऐविहावसक पृ भूवम और उससे उभरने िािे बहुि से प्र ों की उपेक्षा कर दे िा था कुि वमिा कर माসषिादी
मानिे रहे वक रा र िाद पूूँजीिाद के विकास में उसका सहयोगी बन कर उभरा है रा र िाद प्रभु र्शािी िगों को
एकजुट् करके राजनीविक समुदाय की एक भ्रां ि अनुभूवि पैदा करिा है िावक पूूँजीपवियों ारा वकये जाने िािे
अहवनषर्श र्शोर्ण और दररिीकरण के बािजूद आम िोग धनी िगष के साथ एकिा का एहसास करिे रहें माসष िादी
विमर्शष का एक विरोधाभास यह है वक रा र िाद को पूूँजीिादी िगष की वििारधारा मानने के बाद भी क्रां विकारी
राजनीवि के धरािि पर कई क ुवन पावट्ष यों ने रा र िाद को अपनी गोिबंदी का आधार बनाया है क्रां वि के
प ाि् समाजिादी समाज की रिना के विए भी रा र िादी भािनाओं का इ ेमाि वकया गया है
स र के दर्शक में होरे स बी. डे विस ने माসषिादी िकों का सार-संकिन करिे हुए रा र िाद के एक
रूप को ৯ानोदय से जोड़ कर बुम्म संगि करार वदया और दू सरे रूप को सं ृ वि और पर रा से जोड़ कर
भािना क बिाया िेवकन, डे विस ने भी रा र िाद को एक औजार से ादा अहवमयि नहीं दी और कहा वक हथौड़े
से ह ा भी की जा सकिी है और वनमाष ण भी रा र िाद के जररये जब उ ीवड़ि समुदाय अपनी आजादी के विए
संघर्ष करिे हैं िो िह एक सकारा क नैविक र्शम्मि बन जािा है और जब रा र के नाम पर आक्रमण की कारष िाई
की जािी है िो उसका नैविक बिाि नहीं वकया जा सकिा   रा र िाद की सभी माসषिादी ाূाओं में सिाष वधक
िमकदार वथयरी बेनेवडक्ट ऐंडरसन ारा प्रविपावदि “कम्म ि समुदाय” (इमैवज क ुवनट्ीज) की मानी जािी है
ऐंडरसन का मुূ सरोकार यह है वक एक-दू सरे से कभी न वमिने िािे और एक-दू सरे से पूरी िरह अपररविि
िोग रा र ीय एकिा में वकस िरह बूँधे रहिे हैं
दरअसि, रा र िाद से संबंवधि सभी ाূाएूँ थोड़ी दू र ििने के बाद पेिीदा हो जािी हैं इनमें एक
प्रमुख ाূा यह है वक आधुवनकीकरण की प्रवक्रया रा र िाद के जररये ़िुद को जमीन पर उिारिी है इस िरह
रा र िाद “आधुवनकीकरण के धमष” के िौर पर उभरिा है आधुवनकिा के कारण सामावजक जीिन में आयी
जबरद आवथषक और राजनीविक उथि-पुथि के बीि रा र िाद के जररये ही म्मि एक अम्म िा और संसम्मि के
सूत्र हावसि कर पाया दू सरी िरफ़ यह भी एक हकीकि है वक रा र िाद कई बार आधुवनकीकरण को रोकने या
सीवमि करने िािी िाकि भी सावबि हुआ है रा र िादी दिीिों के आधार पर ही ऐसे कई ापार समझौिों का
विरोध वकया जािा है वजनसे रा र ीय उ ोगीकरण और आवथषक समृम्म की प्रवक्रया को गवि वमि सकिी है रा र िाद
के धावमषक सं रण (जैसे, ईरान का इ ावमक रा र िाद या भारिीय राजनीवि के धावमषक पहिू ) सेकुिरीकरण की
प्रवक्रया को अगर पूरी िरह ठप नहीं कर पािे िो धीमा अि कर दे िे हैं दू सरे , िीसरी दु वनया के अवधकिर दे र्शों
में रा र िाद करीब आधी सदी बीि जाने के बाद भी उ ोगीकरण और खेविहर अथष ि था की ज ोजहद में फूँसा
हुआ है
पव मी और पूिी रा र िादों की िुिना करने के दौरान कुछ वि ानों ने पूिी रा र िाद को पव मी रा र िाद
के थ मू ों की कमी का वर्शकार बिाया है कुछ वि ान पव मी रा र िाद को राजनीविक और पूिी रा र िाद को
सां ृ विक की िेणी में रखिे हैं इन धारणाओं के विपरीि कुछ अ वि ान उ ी मा िा पेर्श करिे हैं : युरोवपयन
रा र िाद एक दे र्शज ऐविहावसक प्रवक्रया से वनकिने के कारण कहीं अवधक सां ृ विक है , जबवक पूिी रा र िाद
उपवनिेर्शिाद विरोधी राजनीविक आं दोिनों के हाथों गढ़े जाने के कारण मूििः राजनीविक है   दू सरे , अगर िीसरी
दु वनया के दे र्शों के रा र िाद पर प्रजािीय, जािीय और सां ृ विक पहिू हािी हैं िो उनके पीछे उपवनिेर्शिाद की
भूवमका है वजसकी वज ेदारी पव म पर ही डािी जानी िावहए उपवनिेर्शिावदयों ने मनमाने ढं ग से थानीय
जािीयिाओं की उपेक्षा की वजसके कारण अफ़्रीका में कई कबीिाई और जािायी समुदाय दो पर र संघर्षरि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 31


रा र ों में विभावजि हो गये हैं िीसरे , भारि समेि ऐसे कई समाज हैं जो पार ररक रूप से सां ृ विक, धावमषक और
भार्ाई विविधिा से स हैं ऐसे समाजों में रा र िाद का अनुभि पव मी अनुभि से वभ होना िाजमी है ऐसी
पररम्म थवियों में कभी िो रा र िाद बहुििाओं के बीि पर र संसम्मि के सूत्र का काम करिा है और कभी
उपरा र ीयिाओं के बीि वहं सक संघर् र् और प्रवियोवगिा में फूँस जािा है
पव मी रा र िाद के प्रर्शंसक पूिी रा र िाद के कई कुछ पहिुओं को िकषबुम्म से परे बिा कर उसके
मह को ़िाररज करिे हैं िेवकन कुछ वि ानों ने ान वदिाया है वक इस िरह के ि पव मी रा र िाद में भी
वनणाष यक रूप से मौजूद हैं उदाहरणिः, अगर भारिीय रा र िादी वकसी जमाने में कािी दे िी की आराधना करके
प्रेरणा प्रा करिे थे , िो युरोप के रोमानी रा र िादी भी इसी प्रकार के सामूवहकिािादी, वहं सक और आ ाम्म क
आयामों से प्रेररि होिे रहे हैं पव म के रा र िाद को उदार, समझदार और सािषदेवर्शक सावबि करना एक
ाূा क आदर्शष की उपिम्म िो करा सकिा है , पर ािहाररक रूप से ऐसा नहीं है   पव मी रा र िाद हो या
पूिी रा र िाद, दोनों ही पररम्म थवियों में सां ृ विक और राजनीविक रा र िाद एक-दू सरे से प्रवियोवगिा करिे हुए
एक-दू सरे को पु करिे िििे हैं
भूमਔिीकरण की प्रवक्रया ने रा र िाद को जबरद िुनौिी दी है बीसिी ं सदी के आव़िरी दो दर्शकों
और इक्कीसिी ं सदी के पहिे दर्शक के बाद कहा जा सकिा है वक कम से कम दु वनया का प्रभु िगष एक सी भार्ा
बोििा है , एक सी यात्राएूँ करिा है , एक सा ़िाना खािा है उसके विए रा र ीय सीमाओं के कोई ़िास मायने नहीं
रह गये हैं इसके अिािा आवथषक भूमਔिीकरण, बड़े पैमाने पर होने िािी िोगों की आिाजाही, इं ट्रनेट् और
मोबाइि फ़ोन जैसी प्रौ ोवगकीय प्रगवि ने दु वनया में फ़ासिों को बहुि कम कर वदया है ऐसे िोगों की संূा
बढ़िी जा रही है जो अपने दे र्श और सां ृ विक माहौि से दू र काम और जीिन की साथषकिा की ििार्श में जाना
िाहिे हैं युरोप की धरिी ने रा र िाद को ज वदया था और िहीं अब युरोपीय संघ का उदय रा र िाद का मह
कम कर रहा है इस नयी पररम्म थवि में कुछ वि ान कहने िगे हैं वक वजन िाकिों ने कभी रा र िाद को मजबूि
वकया था, िे ही उसके पिन का कारण बनने िािी हैं रा र ीय संरिनाओं के बजाय रा र ों से परे जाने िािे आवथषक
और राजनीविक गठजोड़ आने िािी सवदयों पर हािी रहें गे
इन दािों में सৡाई िो है , िेवकन केिि आं वर्शक वक की एक राजनीविक िाकि के रूप में
रा र िाद आज भी वनणाष यक बना हुआ है पूिष में िि रहे सां ृ विक पुनरु ानिादी आं दोिन, दु वनया भर में हो रही
न और आव्रजन संबंधी बहस और पव म का बी.पी.ओ. (वबजनेस प्रोसेस आउट्सोवसंग) संबंधी वििाद इसका
प्रमाण है आज भी वफ़वि ीवनयों ारा रा र ीय आ -वनणषय का आं दोिन जारी है ई विमूर इਔोनेवर्शया से हाि
ही में आजाद हो कर अिग रा र बना है
भूमਔिीकरण की प्रवक्रया ने रा र िाद के बोिबािे को कुछ संवद৊ अि कर वदया है , पर इस ि
से इनकार नहीं वकया जा सकिा वक उदारिािादी और िोकिां वत्रक रा৸ से गठजोड़ करके गरीबी और वपछड़े पन
के वर्शकार समाजों को आगे िे जाने में रा र िाद की ऐविहावसक भूवमका को नकारा नहीं जा सकिा सभी उ र-
औपवनिेवर्शक समाजों ने अपने िैकावसक िশों को िेधने के विए रा र िाद का सहारा विया है ़िास िौर से भारि
जैसे बहुििामूिक समाजों को एक राजनीविक समुदाय में विकवसि करने में रा र िाद एक प्रमुख कारक रहा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 32


भारतीर् रा र िाद की प्राचीनता
जब भारिीय सं ृ वि की बाि आिी है िब कई पव म के वि ान इस ाূा को भूिकर यह मानने
िगिे हैं वक वब्रवट्र्श िोगों के कारण ही भारि में रा र िाद की भािना ने ज विया; रा र ीयिा की िेिना वब्रवट्र्श
र्शासन की दे न है और उससे पहिे भारिीय इस िेिना से अनवभ৯ थे पर र्शायद यह स नहीं है
भारि के ि े इविहास में, आधुवनक काि में, भारि में अंग्रेजों के र्शासनकाि मे रा र ीयिा की भािना
का विर्शेर्रूप से विकास हुआ भारि में अंग्रेजी वर्शक्षा के प्रसार से एक ऐसे विवर्श िगष का वनमाष ण हुआ जो
ि िा को मूि अवधकार समझिा था और वजसमें अपने दे र्श को अ पा ा दे र्शों के समकक्ष िाने की प्रेरणा
थी पा ा दे र्शों का इविहास पढ़कर उसमें रा र िादी भािना का विकास हुआ इसका िा यष यह नहीं है वक
भारि के प्रािीन इविहास से नई पीढ़ी को रा र िादी प्रेरणा नहीं वमिी है
ि ुिः भारि की रा र ीय िेिना िेदकाि से अम्म मान है अथिषिेद के पृ ी सूि में धरिी मािा का
यर्शोगान वकया गया हैं मािा भूवमः पुत्रोऽहं पृवथ ाः (भूवम मािा है और मैं पृ ी का पुत्र हूँ ) वि ुपुराण में िो रा र
के प्रवि का ि ाभाि अपने िरमोਚर्ष पर वदखाई दे िा है इस में भारि का यर्शोगान “पृ ी पर गष ” के रूप में
वकया गया है
अत्रावप भारिं िे ं ज ू ीपे महागने
यिोवह कमष भूरेर्ा िोऽ ा भोग भूमयः
गायम्म दे िाः वकि गीिकावन ध ा ु िे भारि-भूवम भागे
गाष प गाष दमागे भूिे भिम्म भूयः पुरुर्ाः सुर ाि्
इसी प्रकार िायुपुराण में भारि को अव िीय कमषभूवम बिाया है भागििपुराण में िो भारिभूवम को
स ूणष वि में “सबसे पवित्र भूवम” कहा है इस पवित्र भारिभूवम पर िो दे ििा भी ज धारण करने की अवभिार्ा
रखिे हैं , िावक सਚमष करके िैकुਓधाम प्रा कर सकें
कदा ियं वह ि ामो ज भारि-भूििे
कदा पुਘेन महिा प्रा ामः परमं पदम्
महाभारि के भी पिष में भारििर्ष की मवहमा का गान इस प्रकार वकया गया है ;
अत्र िे कीविष ावम िर्ष भारि भारिम्
वप्रयवम दे ि मनोिैि ि
अ ेर्ां ि महाराजक्षवत्रयारणां बिीयसाम्
सिेर्ामेि राजे वप्रयं भारि भारिाम्
गरुड़ पुराण में रा र ीय ि िा की अवभिार्ा कुछ इस प्रकार ि हुई है -
ाधीन िृ ः साफ ं न पराधीनिृव िा
ये पराधीनकमाष णो जीि ोऽवप िे मृिाः
रामायण में रािणिध के प ाि राम, िक्ष्मण से कहिे हैं -
अवप णषमयी ि৛ा न मे िक्ष्मण रोििे
जननी ज भूवम गाष दवप गरीयसी
अथष : हे िक्ष्मण! य वप यह िंका णषमयी है , िथावप मुझे इसमें रुवि नहीं है (क्योंवक) जननी और ज भूवम गष
से भी महान हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 33


महवषण अरवि
(15 अि , 1872 ई - 5 वदस र 1950 ई )

पररचर्
भारिभूवम का वि यी - भारिमिा के रूप में दर्शषन कर, भारिीयों को निीन िेिना दे ने िािे,
रा र िादी महवर्ष अरवि घोर् का ज 15 अग , 1872 ई. में हुआ वपिा का नाम कृ धन घोर् और मािा का
नाम णषििा दे िी था प्रारम्म क वर्शक्षा दावजषविंग में हुई उৡ वर्शक्षा इ৕ैਔ के मानिेस्ट्र और कैम्म ज में प्रा
की इनके वपिा िाहिे थे वक पुत्र आई.सी.एस. करके उৡावधकारी बने , पर ु सन् 1890 में आई.सी.एस. की
अ ारोहण की परीक्षा में जानबूझकर असफि होने से उ ीणष न हो सके
इ৕ैਔ से िौट्कर, बड़ौदा रा৸ में अंग्रेजी के प्रा ापक बनें िहाूँ ब्र ान ि वि ु भा र िेिे
नाम के दो योवगयों के स कष में आये 29 िर्ष की आयु में भूपािि बसु की क ा मृणाविनी से इनका वििाह
हुआ सन् 1903 में भवगनी वनिेवदिा से भेंट् हुई 1906 ई. में किक ा िापस आये ”ि े मािरम्“ पत्र स ादन के
मा म से रा र से िा प्रार की अिीपुर बम काਔ में इ ें ब ी बनाकर, अिीपुर कारागृह में भेज वदया गया जेि
में इ ें आ साक्षाਚार प्रा हुआ जेि से मुम्मि के प ाि् अंग्रेजों ने अपने रा৸ की सीमा से बाहर कर वदया
आ ाम्म क िेिना इिनी प्रगाढ़ जागृि हुई वक 1910 ई. में स ासी होकर पां वडिेरी में रहने िगे 1914 ई. में
”आयष“ नामक अंग्रेजी मावसक प्रार वकया 1918 ई. में इनकी प ी का दे हािसान हुआ िीमिी मीरा ररिडष नाम
की फ्ां सीसी मवहिा ने प्रभाविि होकर इनका वर्श ग्रहण वकया बाद में िे िीमाूँ के नाम से जानी गईं 24
नि र, 1926 को इ ें वसम्म प्रा हुई वद िाइफ वडिाइन, योवगक साधना, ऐसेज आन गीिा आवद 15 ग्र
विखे उनका वि ास था वक भारि एक वदन अखਔ होकर रहे गा 5 वदस र 1950 को अपनी इहिीिा समा
कर परम ि में समा गये
िी अरवि की प्रमुख कृवियां द मदर, िेट्सष आन योगा, सावित्री, योग सम य, वद जीिन, ूिर
पोअट्र ी है प्रमुख वर्श ि क िाि, नविवन का गु , कैखुसरो दादा भाई सेठना, वनरोदबरन, एम.पी.पਔि,
प्रणब, इ सेन थे
िी अरवि के भारिीय वर्शक्षा वि न में मह पूणष योगदान वकया उ ोंने सिषप्रथम घोर्णा की वक -
मानि सां साररक जीिन में भी दै िी र्शम्मि प्रा कर सकिा है मानि भौविक जीिन िीि करिे हुए िथा अ
मानिों की सेिा करिे हुए अपने मानस को ”अवि मानस“ िथा यं को ”अवि मानि“ में पररिविषि कर सकिा है
िी अरवि के दर्शषन का िশ ”उदा स का ৯ान“ है जो ”समग्र जीिन व “ ारा प्रा होिा है समग्र जीिन
व मानि के ब्र में िीन या एकाकार होने पर विकवसि होिी है ई र के प्रवि पूणष समपषण ारा मानि ”अवि
मानि“ बन जािा है अथाष ि िह सि, रज ि िम की प्रिृव से ऊपर उठकर ৯ानी बन जािा है अविमानि की म्म थवि
में म्मि सभी प्रावणयों को अपना ही रूप समझिा है जब म्मि र्शारीररक, मानवसक िथा आम्म क व से
एकाकार हो जािा है िो उसमें दै िी र्शम्मि का प्रादु भाष ि होिा है समग्र जीिन- व हे िु अरवि ने योगा ास पर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 34


अवधक बि वदया है योग ारा मानवसक र्शाम्म एिं संिोर् प्रा होिा है अरवि की व में योग का अथष जीिन
को ागना नहीं है बम्म दै िी र्शम्मि पर वि ास रखिे हुए जीिन की सम ाओं एिं िुनौवियों का साहस से सामना
करना है अरवि की व में योग कवठन आसन ि प्राणायाम का अ ास करना भी नहीं है बम्म ई र के प्रवि
वन ाम भाि से आ समपषण करना िथा मानवसक वर्शक्षा ारा यं को दै िी रूप में पररवणि करना है
मम्म के वििार र वि , मनस, बुम्म िथा अन्र्ि৯ान होिे हैं वजनका क्रमर्शः विकास होिा है अन्र्ि৯ान में
म्मि को अ৯ान से संदेर्श प्रा होिे हैं जो ब्र ৯ान के आर का पररिायक है अन्र्ि৯ान ारा ही मानििा
प्रगवि के ििषमान दर्शा को पहुूँ ििी है िी अरवि की मम्म की धारणा की पररणि ”अविमानस“ की क ना ि
उसके अम्म में है अविमानस िेिना का उৡ र है िथा दै िी आ र्शम्मि का रूप है अविमानस की म्म थवि
िक र्शनैः र्शनैः पहुूँ िना ही वर्शक्षा का िশ होना िावहए भारिीय प्रविभा की िीन विर्शेर्िाएूँ हैं - आ ৯ान,
सजषना किा िथा बुम्म म ा भारिीय आ ाम्म क ৯ान जैसी उਚृ उपिम्म बगैर उৡ कोवट् के अनुर्शासन के
अभाि में संभि नहीं हो सकिी वजसमें वक आ ा ि मम्म की पूणष वर्शक्षा वनवहि है
प्र ेक दार्शषवनक अंििः एक वर्शक्षाविद् होिा है क्योंवक वर्शक्षा, दर्शषन का ग ा क पक्ष है िे ििषमान
वर्शक्षा-प वि से अस ु थे उनका कहना था- सूिना क ৯ान कुर्शाग्र बुम्म का आधार नहीं हो सकिा यह ৯ान
िो निीन अनुसंधान िथा भािी वक्रयाकिापों का आर मात्र होिा है अरवि इस प्रकार की वर्शक्षा प वि िाहिे
थे जो वि ाथी के ৯ान क्षेत्र का वि ार करे , जो वि ाथीयों की ृवि, वनणषयन र्शम्मि एिं सजषना क क्षमिा का
विकास करे िथा वजसका मा म मािृभार्ा हो वर्शक्षा ारा पुनजाष गरण िीन वदर्शाओं की ओर उ ुख होना िावहए
1. प्रािीन आ ा ৯ान की पुनष थापना,
2. इस आ ा ৯ान की दर्शषन, सावह , किा, वि৯ान ि वििेिना क ৯ान में प्रयोग िथा
3. ििषमान सम ाओं का भारिीय आ ৯ान की व से समाधान की खोज िथा आ ा प्रधान समाज की
थापना
िी अरवि के अनुसार- वर्शक्षा का प्रमुख िশ विकासर्शीि आ ा के सिां गीण विकास में सहायक
होना िथा उसे उৡ आदर्शों के विए प्रयोग हे िु सक्षम बनाना है अरवि के वििार महा ा गाूँ धी ारा प्रविपावदि
वर्शक्षा के िশों के समान है िी अरवि का वि ास था वक मानि दै िी र्शम्मि से समम्म ि है और वर्शक्षा का िশ
इस िेिना र्शम्मि का विकास करना है इसीविए िे मम्म को छठीं ৯ानेम्म य मानिे थे वर्शक्षा का प्रयोजन इन
छः ৯ानेम्म यों का सदु पयोग करना वसखाना होना िावहए मम्म का उৡिम सीमा िक पूणष प्रवर्शक्षण होना
िावहए अ था बािक अपूणष िथा एकां गी रह जायेगा अिः वर्शक्षा का िশ मानि म्मि के समेवकि विकास
हे िु अविमानस का उपयोग करना है वर्शक्षा के पाਉक्रम के विर्य में अरवि िाहिे थे वक अनेक विर्यों का
सिही ৯ान कराने की अपेक्षा वि ाथीयों को कुछ ियवनि विर्यों का ही गहन अ यन कराया जाये िे भारिीय
इविहास एिं सं ृ वि को पाਉक्रम का अवभ अंग मानिे थे क्योंवक उनका वििार था वक प्र ेक बािक में
इविहास बोध होिा है जो परकथाओं, खेि ि म्मखिौनों के मा म से प्रकट् होिा है अिः बािकों को अवभरूवि
अपने दे र्श के सावह एिं इविहास के प्रवि विकवसि करनी िावहए िी अरवि के अनुसार प्र ेक म्मि में
वज৯ासा, खोज, वि ेर्ण ि सं ेर्ण करने की प्रिृव होिी है अिः िे वि৯ान को पाਉक्रम में थान दे िे थे
वि৯ान ारा मानि प्राकृविक िािािरण को समझिा है िथा उसमें ि ुवन बुम्म के विकास हे िु अनुर्शासन आिा
है मम्म को प्रधानिा दे ने के कारण अरवि पाਉक्रम में मनोवि৯ान विर्य को भी सम्म विि करना िाहिे थे
वजससे वक ”समग्र जीिन व “ विकवसि हो सके इसी उ े से िे पाਉक्रम में दर्शषन एिं िकष र्शा को भी थान
दे िे थे
िी अरवि के अनुसार वर्शक्षण एक वि৯ान है वजसके ारा वि ाथीयों के िहार में पररििषन आना
अवनिायष है िा विक वर्शक्षण का प्रथम वस ा है वक कुछ भी पढ़ाना स ि नहीं अथाष ि बाहर से वर्शक्षाथी के
मम्म पर कोई िीज न थोपी जाये वर्शक्षण प्रवक्रया ारा वर्शक्षाथी के मम्म की वक्रया को ठीक वदर्शा दे नी
िावहए प्र ेक वि ाथी को म्मिगि अवभिृव एिं यो৓िा के अनुकूि वर्शक्षा दे नी िावहए वि ाथी को अपनी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 35


प्रिृवि अथाष ि ” धमष “ के अनुसार विकास के अिसर वमिने िावहए िी अरवि वर्शक्षक का मह प्रकट् करिे
हुए कहिे थे वक- वर्शक्षक प्रवर्शक्षक नहीं है , िह िो सहायक एिं पथप्रदर्शषक है िह केिि ৯ान ही नहीं दे िा बम्म
िह ৯ान प्रा करने की वदर्शा भी वदखिािा है वर्शक्षण-प वि की उਚृ िा उपयुि वर्शक्षक पर ही वनभषर होिी
है

महवषण अरवि की िार्ी


1. उ ीड़न आज िक धावमषक वन ा को न नहीं कर सका और आ िेिन भारि िो वकसी िानार्शाह की
दਔर्शिाका से दवमि होने के विए बहुि बड़ी िाकि है अ ािार कुिििे नहीं बम्म स य और
वि ास की मोिाष ब ी करिे है और धरिी पर ऐसी कोई र्शम्मि नहीं जो सৡे िोगों के रि में एक बार
अंकुररि हुये ि िा के बीज को उ ूविि कर सके
2. यह जनर्शम्मि ही है जो हमारी स ूणष आर्शा है ...... स ूणष आ ासन, भवि की हमारी स ूणष संभािना.....
इसे सामावजक और राजनीविक प्रभुिा प्रा करने के विए अपने पररणाम, प्रबििा और मह में
अन गुना होना है
3. एक िीज वजसे हमें सबसे पहिे प्रा करना है िह है र्शम्मि-र्शारीररक, मानवसक और नैविक र्शम्मि और
सिोपरर रूप से आ ाम्म क र्शम्मि, जो दू सरी सारी र्शम्मियों का अक्षय स्रोि है अगर हममें र्शम्मि है िो
दू सरी हर िीज बहुि आसानी और ाभाविकिा के साथ हमसे जुड़ जायेगी
4. वज ोंने अपने दे र्श को ि वकया है िे स ूणष आ ाग की यािना से गुजरे हैं जो भारि को ि
करने की उਚृ आकां क्षा से प्रेररि हैं , उ ें पहिे उस मू को अदा करना होगा, मािा वजसका माूँ ग
करिी है पुनरू ार का अथष है पुनजष - नया ज और यह बुम्म से नहीं वमििा, वकसी नीवि से नहीं
वमििा, न ही इसे यां वत्रक पररििषन से प्रा वकया जा सकिा है यह एक नया हृदय पाने से आिा है , सब
कुछ य৯ाव্ में झोंक दे ने से आिा है इसके विए ”मािा“ में पुनः ज िेना होिा है
5. भारि मािा जो आवद जननी हैं िह ि ुिः पुनजष िेने का प्रयास कर रही हैं िह अस िेदना और
आूँ खों में आूँ सू विए हैं उसे कवठनाई वकस बाि की है ? इिनी विर्शाि होिे हुए भी िह अर्शि क्यों हैं ?
अि ही हममें कोई भारी दोर् होगा हमारे पास बाकी सब िीजे हैं बस हम र्शम्मि र्शू हैं ऊजाष का
हममें अभाि है हमने र्शम्मि को ाग वदया है अथिा र्शम्मि ारा हम ाग वदये गये हैं हमारी मािा का
िास हमारे अ ः करण में, मम्म में है भुजाओं में नहीं है
6. िोग अपने दे र्श को एक जड़ पदाथष का ट्ु कड़ा समझिे है खेि, िन और पहावड़यों - नवदयों के रूप में,
िेवकन मैं अपने दे र्श को अपनी मािा मानिा हूँ मैं उसकी अराधना करिा हूँ मािा के रूप में उसकी पूजा
करिा हूँ यवद कोई राक्षस वकसी पुि्र की मािा की छािी पर िढ़कर उसका खून िूसने िगे िो िह पुत्र
क्या करे गा? मैं यह जानिा हूँ वक मुझमें इस वगरे हुए रा र को उबारने की र्शम्मि है मैं र्शारीररक र्शम्मि की
बाि नहीं कर रहा हूँ मैं कोई िििार या बंदूक उठाकर िड़ने नहीं जा रहा हूँ मैं ৯ान की र्शम्मि से विजय
प्रा करू ूँ गा
7. मािृभूवम में जीना गिष की बाि है और मािृभूवम के विए मरना सौभा৓ की
8. ”आ -वि ास, आ ৯ान, आ स ा के बोध से स अपनी सरकार“ यह िी अरवि के राज की
पररभार्ा थी वजिनी राजनीविक उिनी ही िेदाम्म क
9. हमारा दे र्श यह रा र ”प्रकृवि“ की कमषर्शािा की एक नयी और अनगढ़ या आधुवनक पररम्म थवियों ारा रिी
गयी जावि नहीं है , बम्म इस धरिी पर प्रािीनिम जावियों और सबसे महान स िाओं में से एक है िेज
और ओज में सबसे अवधक अद , मह ा में सबसे अवधक उिषर, जीिन में गहनिम और अ ः र्शम्मि में
असाधारण भारि की ि िा, एकिा और महानिा अब वि के विए आि क हो गयी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 36


10. हमें हर म्मिगि ाथष को बृह र रा र ीय स भष में वमट्ा दे ना सीखना है , िावक मानििा में ई र विकवसि
हो सके यह रा र ीयिा है जो इस समय युग-धमष, काि धमष है और ई र इसे हमारी, हम सबकी ”एक मािा“
के अ र अवभ ि कर रहा है
11. आओ, मािा की पुकार सुनों िह हमारे हृदय में हैं और अपने प्रकाਅ की प्रिीक्षा कर रही हैं उसकी सेिा
करो अपने र्शरीरों से या अपनी बुम्म से या िाणी या समृम्म से अथिा अपनी प्राथषना और आराधना से पीछे
मि हट्ो
12. हमारा उ े होगा मानििा के विए भारि के वनमाष ण में सहायक होना- यह रा र ीयिा की िेिना है वजसका
हम दािा करिे हैं और अनुसरण करिे हैं हम मानििा से कहिे हैं - िह समय आ गया है जब िु ें बड़ा
कदम उठाना है और भौविक स ा से वनकिकर एक उৡिर, गहनिर और विर्शाििर जीिन में उठना है
वजसकी ओर मानििा संिरण कर रही है
13. रा र वनमाष ण... इस महान कायष में राजनीवि िो केिि एक अंग है हम केिि राजनीवि को ही अवपषि नहीं
होंगे, न केिि सामावजक सम ाओं, न ई र-मीमां सा या दर्शषन या सावह या वि৯ान को बम्म हम इन
सबको एक ”स “ में एक अम्म में र्शावमि करें गे और हमें वि ास है वक यह सिाष वधक मह पूणष है
यही हमारा रा र ीय धमष है वजसके सािषभौम होने का वि ास भी हमें है
14. यह भारि है जो इस सिोৡ आगे महान वनयवि के विए वनयि है यह भारि है जो अपने अ र से वि के
भािी धर् म को उ वजषि करे गा- उस र्शा ि धमष को, जो स ूणष मानिजावि को ”एक आ ा“ के रूप में
वनवमषि कर सकिा है
15. एक रा र के रूप में हम अपने जीिन की पररपूणषिा िाहिे हैं .... हमारा उ े , हमारा दािा है वक हम एक
रा र के रूप में विनार्श को प्रा नहीं होंगे, बम्म एक रा र के रूप में वजयेंगे
16. भारि की रिना विधािा ने संयोग के बेिरिीब ईंट्ों से नहीं की है भारि की वनयवि का वनमाष ण करने िािा
दे ििा िक्षुहीन अथाष ि अंधा नहीं है इसकी योजना वकसी िैि र्शम्मि ने बनाई है जो इसके विपरीि कायष
करे गा िह मरे गा ही मरे गा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 37


िैव क रा र िाद
मानि स िा जंगि की गुफाओं से वनकि, मानि समूह, वफर ब ी, वफर/गाूँ ि, नगर, रा৸, रा৸ों
का समूह दे र्श और अब दे र्शों का समूह यह पृ ी (वि ), अब िक का यही विकास क्रम रहा है
प्रािीन भारिीय ऋृवर्-मुवन गण का विंिन (दर्शषन) सािषभौवमकिा के आधार पर हुआ करिा था और
मानि स िा के विकास के विए उनके ारा वदये गये सभी ि था ब्र ाਔीय प्रभाि और प्रकृवि के स ुिन को
ान में रख कर हुआ करिे थे विवभ काि क्रम में उ ोंने सािषभौम एक (मानक) को बनाये रखने के विए
विवभ प्रकार के मानक उपि कराये वजससे ब्र ाਔीय-प्राकृविक एका के साथ मानि विकास की अगिी
पीढ़ी का विकास और उदय सदै ि होिा रहे
ब्र ाਔीय वनयम और प्रकृवि के गुण एक समान रूप से सभी जीि-वनजीि पर प्रभािी होिे हैं
इसविए गुफा से प्रार हुआ मानि स िा के विकास की यात्रा दे र्श िक नहीं बम्म वि -ब्र ाਔ िक है और
“रा र िाद” की सीमा वकसी दे र्श िक नहीं बम्म वि िक जाकर “िैव क रा र िाद” िक है वकसी भी दे र्श का
रा र िाद अधूरा रा र िाद है स और मुূधारा का रा र िाद “िैव क रा र िाद” है क्योंवक अब मानि का
वक्रयाकिाप वि को प्रभाविि करने िगा है
“৕ोबिाई৲” व ही “वद व ” है वजसका मात्र विरोध हो सकिा है नकारा नहीं जा सकिा,
क्योंवक यह प्राकृविक बि के अधीन है जो मानि से वि मानि िक के विकास के विए अट्िनीय है व , अहं कार
है , अंधकार है , अपूणष मानि है िो वद व , वस ा है , प्रकार्श है , पूणषमानि-वि मानि है िु म मानि की अि था
से वि मानि की अि था में आने का प्रय करो न वक वि मानि का विरोध विरोध से िु ारी क्षवि ही होगी वजस
प्रकार “कृ ” नाम है “योगे र” अि था है , “गदाधर” नाम है “रामकृ परमहं स” अि था है , “वस ाथष ” नाम है
“बु ” अि था है , “नरे नाथ द ” नाम है “ ामी वििेकान ” अि था है , “रजनीर्श” नाम है “ओर्शो” अि था है
उसी प्रकार म्मियों के नाम, नाम है “भोगे र वि मानि” उसकी िरम विकवसि, सिोৡ और अम्म म अि था है
“ व ” से युि होकर वििार ि करना वनरथषक है , प्रभािहीन है , यहाूँ िक की विरोध करने का भी अवधकार नहीं
क्योंवक ििषमान और भवि के समय में इसका कोई मह नहीं, अथष नहीं क्योंवक िह म्मिगि वििार होगा न
वक सािषजवनक संयुि वििार यह सािषजवनक संयुि वििार ही “एका वििार” है और यही िह अम्म म स है ,
यही “सािषभौम स -वस ा ” है यही धमषवनपरपेक्ष और सिषधमषसमभाि नाम से वि मानक - र्शू िृंखिा: मन
की गुणि ा का वि मानक िथा धमष नाम से कमषिेद: प्रथम, अम्म म और पं िमिेदीय िृंखिा है वजसकी र्शाखाएं
स ूणष ब्र ाਔ में ा है और स ूणष ब्र ाਔ ि है वजसकी थापना िेिना के अम्म म रुप- स िेिना
के अधीन है यही “मैं” का रुप है यही “वि -ब ु ”, “िसुधैि-कुट्ु कम् ”, “बहुजनवहिाय-बहुजनसुखाय”,
“एका -मानििािाद”, “सिेभि ु-सुम्मखनः” की थापना का “एका कमषिाद” आधाररि अम्म म मागष है
युग के अनुसार स ीकरण का मागष उपि कराना ई र का किष है आवििों पर स ीकरण का
मागष प्रभाविि करना अवभभािक का किष है और स ीकरण के मागष के अनुसार जीना आवििों का किष है
जैसा वक हम सभी जानिे है वक अवभभािक, आवििों के समझने और समथषन की प्रविक्षा नहीं करिे अवभभािक
यवद वकसी विर्य को आि क समझिे हैं िब केिि र्शम्मि और र्शीघ्रिा से प्रभािी बनाना अम्म म मागष होिा है
वि के बৡों के विए यह अवधकार है वक पूणष ৯ान के ारा पूणष मानि अथाष ि् वि मानि के रुप में बनना हम सभी
वि के नागररक सभी र के अवभभािक जैसे - महासविि सं युि रा र सं घ, रा र ों के रा र पवि- प्रधानमंत्री, धमष,
समाज, राजनीवि, उ ोग, वर्शक्षा, प्रब , पत्रकाररिा इ ावद ारा अ समाना र आि क िশ के साथ इसे
जीिन का मुূ और मूि िশ वनधाष ररि कर प्रभािी बनाने की आर्शा करिे हैं क्योंवक िশ वनधाष रण िि का
सूयष नये सह ाम्म के साथ डूब िुका है और कायष योजना का सूयष उग िुका है इसविए धरिी को गष बनाने
का अम्म म मागष वसफष किष है और रहने िािे वसफष स -वस ा से युि संयुिमन आधाररि मानि है , न वक
संयुिमन या म्मिगिमन के युिमानि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 38


इस पृ ी का अब आगे का समय िैव क मानक आधाररि है वजसमें “वि मानक म्मि”, “वि मानक
वर्शक्षा”, “वि मानक संविधान”, “वि मानक प्रब ”, “वि मानक वक्रयाकिाप”, “वि मानक दे र्श”, “वि मानक
ग्राम”, “वि मानक नगर” इ ावद का है और सब आवि ृ ि वकया जा िुका है वजसका आधार ही िीक से हट्कर
नयी सोि है इसविए ही कहा गया है - “एक आइवडर्ा जो बदल दे पू री दु वनर्ा, जोश स का और तरक्की
के वलए नर्ा और अन्त म नजररर्ा” जो एक मात्र र्शेर् दसिें और अम्म म अििार - कम्म अििार ारा
अवहं सक और र्शाम्म रूप से इसविए ि वकया गया है क्योंवक ििषमान समाज में मनु को मानि बुम्म ि वि -
रा र के विकास की सभी उ ीद धमष गुरूओं और राजनेिाओं से ही है उ ें ई र और उनके अििारों की कोई
आि किा नहीं है
िे न ने कहा था, ”ब्र ाਔीय दर्शषन मनु के अनुरूप बैठने के विए नहीं, बम्म ब्र ाਔ के
अनुरूप बैठने के विए रिा गया है मनु के पास ठीक उसी िरह अपना एक नीजी धमष नहीं हो सकिा, वजस
िरह उसके पास एक वनजी सूयष और एक िंिमा नहीं हो सकिा “ अथाष ि मनु , मनु के साथ ापार करने के
विए अनेक प्रकार की प्रणािी का विकास िो कर सकिा है पर ु िह एक मानक प्रणािी नहीं हो सकिी मानक
प्रणािी िही हो सकिी है जो ब्र ाਔीय दर्शष न अथाष ि सािषभौम स -वस ा के अनुरूप होगा

ामी वििेकान के विचार


1. वह दू भािों को अंग्रेजी में ि करना, वफर र्शु दर्शषन, जवट्ि पौरावणक कथाएं और अनूठे आ यषजनक
मनोवि৯ान से ऐसे धमष का वनमाष ण करना, जो सरि, सहज और िोकवप्रय हो और उसके साथ ही उ ि
मम्म िािों को संिु कर सके- इस कायष की कवठनाइयों को िे ही समझ सकिे हैं , वज ोंने इसके विए
प्रय वकया हो अ ै ि के गुढ़ वस ा में वन प्रवि के जीिन के विए कवििा का रस और जीिनदावयनी
र्शम्मि उ करनी है अ उिझी हुई पौरावणक कथाओं में से जीिन प्रकृि िररत्रों के उदाहरण समूह
वनकािने हैं और बुम्म को भ्रम में डािने िािी योगवि ा से अ िै৯ावनक और वक्रया क मनोवि৯ान का
विकास करना है और इन सब को एक एै से रुप में िाना पड़े गा वक बৡा-बৡा इसे समझ सके (पत्राििी,
पृ -425)
2. वि৯ान एक की खोज के वसिा और कुछ नहीं है ৸ोंही कोई वि৯ान र्शा पूणष एकिा िक पहुूँ ि जायेगा,
ोंहीं उसका आगे बढ़ना रुक जायेगा क्योंवक िब िो िह अपने िশ को प्रा कर िुकेगा उदाहरणाथष
रसायनर्शा यवद एक बार उस एक मूि ि का पिा िगा िे, वजससे िह सब ि बन सकिे हैं िो वफर िह
और आगे नहीं बढ़ सकेगा पदाथष वि৯ान र्शा जब उस एक मूि र्शम्मि का पिा िगा िेगा वजससे अ
र्शम्मियां बाहर वनकिी हैं िब िह पूणषिा पर पहुूँ ि जायेगा िैसे ही धमष र्शा भी उस समय पूणषिा को प्रा
हो जायेगा जब िह उस मूि कारण को जान िेगा जो इस म िोक में एक मात्र अमृि रुप है जो इस वन
पररििषनर्शीि जगि का एक मात्र अट्ि अिि आधार है जो एक मात्र परमा ा हैं और अ सब आ ाएं
वजसके प्रविवब रुप हैं इस प्रकार अनेके रिाद, ै ििाद आवद में से होिे हुए इस अ ै ििाद की प्राम्म
होिी है धमषर्शा इससे आगे नहीं जा सकिा यही सारे वि৯ानों का िरम िশ है (वह दू धमष, पृ -16)
3. भारि और समाजिाद विर्यक अथिा राजवनविक वििारों से ाविि करने से पहिे यह आि क है वक
उसमें आ ाम्म क वििारों की बाढ़ िा दी जाये सिषप्रथम, हमारे उपवनर्दों, पुराणों और अ सब र्शा ों में
जो अपूिष स वनवहि है , उ ें इन सब ग्रंथों के पृ ों से बाहर िाकर, मठों की िहारवदिाररयाूँ भेदकर, िनों की
नीरििा से दू र िाकर, कुछ स दाय-विर्शेर्ों के हाथों से छीनकर दे र्श में सिषत्र वबखेर दे ना होगा, िावक ये स
दािानि के समान सारे दे र्श को िारो ओर से िपेट् िें- उ र से दवक्षण और पूरब से पव म िक सब जगह
फैि जायें- वहमािय से क ाकुमारी और वस ु से ब्र पुत्रा िक सिषत्र िे धधक उठे (वििेकान की िाणी,
पृ -56)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 39


4. अब ािहाररक जीिन में उसके प्रयोग का समय आया है अब और ‘रह ’ बनाये रखने से नहीं ििेगा अब
और िह वहमािय की गुहाओं में, िन-अरਘों में साधु-स ावसयों के पास न रहे गा, िोगों के दै नम्म न जीिन में
उसको कायषम्म ि करना होगा राजा के महि में, साधु-स ासी की गुफा में , मजदू र की झोपड़ी में, सिषत्र सब
अि थाओं में, यहाूँ िक वक राह के वभखारी ारा भी, िह कायष में िाया जा सकिा है
5. मैं अपने मन क्षुओं से दे ख रहा हूँ वक भािी सिां गपूणष भारि िैदाम्म क मम्म और इ ामी दे ह िेकर, इस
वििाद, वििृंखिा को िीरिे हुये , महामवहमाम्म ि और अपराजेय र्शम्मि से युि होकर जागृि हो रहा है
6. यवद कभी कोई सािषभौवमक धमष हो सकिा है , िो िह ऐसा ही होगा, जो दे र्श या काि से मयाष वदि न हो, जो
उस अन भगिान के समान ही अन हो, वजस भगिान के स में िह उपदे र्श दे िा है , वजसकी ৸ोवि
िीकृ के भिों पर और ईसा के प्रेवमयों पर, स ों पर और पावपयों पर समान रूप से प्रकावर्शि होिी हो, जो
न िो ब्रा णों का हो, न बौ ों का, न ईसाइयों का और न मुसिमानों का, िरन् इन सभी धमों का समव रूप
होिे हुए भी वजसमें उ वि का अन पथ खुिा रहे , जो इिना ापक हो वक अपनी असंূ प्रसाररि बाहुओं
ारा सृव के प्र ेक मनु का प्रेमपूिषक आविंगन करें ... िह वि धमष ऐसा होगा वक उसमें वकसी के प्रवि
वि े र् अथिा अ ािार के विए थान न रहे गा, िह प्र ेक ी और पुरूर् के ई रीय रूप को ीकार
करे गा और स ूणष बि मनु मात्र को अपनी सৡी, ई रीय प्रकृवि का साक्षाਚार करने के विए सहायिा दे ने
में ही केम्म ि रहे गा
7. ईसाई को वह दू अथिा बौ नहीं होना पडेा़ गा, और न वह दू या बौ को ईसाई ही, पर ु प्र ेक धमष दू सरे धमों
के सारभाग को आ साि् करके पुव िाभ करे गा और अपने िैवर्श ਅ की रक्षा करिे हुए अपनी वनजी प्रकृवि
के अनुसार िृम्म को प्रा होगा यवद इस सिषधमष पररर्द् ने जगि् के समक्ष कुछ प्रमावणि वकया है िो िह यह
वक उसने यह वस कर वदखाया है वक र्शु िा, पवित्रिा और दयार्शीििा वकसी स दाय-विर्शेर् की स व
नहीं है िथा प्र ेक धमष ने िे एिं अविर्शय उ ि-िररत्र ी पुरूर्ों को ज वदया है अब इन प्र क्ष प्रमाणों
के बािजुद भी यवद कोई ऐसा दे खे वक अ ा सारे धमष न हो जायेंगे और केिि उसका धमष ही अपना
सिषिे िा के कारण जीविि रहे गा, िो उस पर मैं अपने हृदय के अ थि से दया करिा हूँ और उसे
र्श ों में बििाये दे िा हूँ वक िह वदन दू र नहीं हैं , जब उस जैसे िोगों के अड़ं गों के बािजूद भी प्र ेक धमष की
पिाका पर यह णाष क्षरों में विखा रहे गा-‘सहयोग, न वक विरोध’, पर-भाि-ग्रहण न वक पर-भाि-विनार्श,
‘सम य और र्शाम्म , न वक मिभेद और किह’!
8. हम मनु जावि को उस थान पर पहुूँ िाना िाहिे हैं , जहाूँ न िेद है , न बाइवबि है , न कुरान है पर ु िेद,
बाइवबि और कुरान के सम य से ही ऐसा हो सकिा है मनु जावि को यह वर्शक्षा दे नी िावहए वक सब धमष
उस धमष के, उस एकमेिाव िीय के वभ -वभ रुप हैं , इसविए प्र ेक म्मि उन धमों में से अपना मनोनुकूि
मागष िुन सकिा है (वििेकान रा र को आ ान, पृ -32)
9. उसी मूि स की वफर से वर्शक्षा ग्रहण करनी होगी, जो केिि यहीं से , हमारी इसी मािृभूवम से प्रिाररि हुआ
था वफर एक बार भारि को संसार में इसी मूि ि का, इसी स का प्रिार करना होगा ऐसा क्यों है ?
इसविए नहीं वक यह स हमारे र्शा ों में विखा है िरन् हमारे रा र ीय सावह का प्र ेक विभाग और हमारा
रा र ीय जीिन उससे पूणषिः ओि-प्रोि है इस धावमषक सवह ुिा की िथा इस सहानुभूवि की, मािृभाि की
महान वर्शक्षा प्र ेक बािक, ी, पुरुर्, वर्शवक्षि, अवर्शवक्षि सब जावि और िणष िािे सीख सकिे हैं िुमको
अनेक नामों से पुकारा जािा है , पर िुम एक हो (वजिने मि उिने पथ, पृ -39)
10. ”समग्र संसारका अखਔ , वजसके ग्रहण करने के विए संसार प्रिीक्षा कर रहा है , हमारे उपवनर्दों का दू सरा
भाि है प्रािीन काि के हदब ी और पाथषक्य इस समय िेजी से कम होिे जा रहे हैं हमारे उपवनर्दों ने
ठीक ही कहा है - ”अ৯ान ही सिष प्रकार के दु ःखों का कारण है “ सामावजक अथिा आ ाम्म क जीिन की हो
वजस अि था में दे खो, यह वब ु ि सही उिरिा है अ৯ान से ही हम पर र घृणा करिे हैं , अ৯ान से ही एक
दू सरे को जानिे नहीं और इसविए ार नहीं करिे जब हम एक दू सरे को जान िेंगे, प्रेम का उदय हे ागा प्रे म

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 40


का उदय वनव ि है क्योंवक क्या हम सब एक नहीं हैं ? इसविए हम दे खिे हैं वक िे ा न करने पर भी हम सब
का एक भाि भाि से ही आ जािा है यहाूँ िक की राजनीवि और समाजनीवि के क्षेत्रो में भी जो सम ायें
बीस िर्ष पहिे केिि रा र ीय थी, इस समय उसकी मीमां सा केिि रा र ीयिा के आधार पर और विर्शाि आकार
धारण कर रही हैं केिि अ राष र ीय संगठन, अ राष र ीय विधान ये ही आजकि के मूिि रूप हैं “-
(वििेकान का मानििािाद, राम कृ वमर्शन प्रकार्शन, पृ -48)

हावमद अिंसारी

“वपछिी सदी में रा र िाद की अिधारणा काफी प्रबि रही यह अिग बाि है वक सदी के बीि में ही
पर र अंिर वनभषरिा ने वि ग्राम की िे िना को ज वदया इस िे िना ने रा र िाद की अिधारणा को काफी हद
िक बदि वदया है आज वनरपेक्ष ि स ूणष संप्रभुिा का युग समा हो गया है राजनीविक प्रभुिा को भी वि के
साथ जोड़ वदया है आज मामिे अ राष र ीय ायािय को सौंपे जा रहे हैं मानिावधकारों के नये मानक िागू हो रहे
हैं इन सबसे ऐसा िगिा है जै से रा৸ों का विरा र ीकरण हो रहा है आज सम ाएं रा र ीय सीमाओं के बाहर ििी
गई है महामारी, जििायु पररििषन, आवथषक सं कट् आवद पूरे वि को प्रभािी कर रहा है इनका हि िैव क र
पर बाििीि ि सहयोग से ही सं भि है इसको दे खिे हुए हमें रा र िाद ि अ राष र ीयिािाद के विर्य में गंभीरिा से
वििार करने की जरूरि है इन म्म थवियों को दे खिे हुए नई सदी में वि৯ान, प्रौ ोवगकी ि निप्रििष न रा र की
स िा के विए खासे मह पूणष सावबि होंगे छात्रों से इस वदर्शा में प्रयास करने ि िीक से हट्कर नया सोिने
का आ ान करिा हूँ “ (बी.एि.यू के 93िें दीक्षां ि समारोह ि कृ मूविष फाउਔे र्शन, िाराणसी में बोििे हुए)
- श्ी हावमद अिंसारी (पूिण उपरा र पवत, भारत)
साभार - दै वनक जािरर्, िारार्सी, वद0 13 माचण, 2011

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 41


भाि-2
नीवत, क्रान्त और स ूर्ण क्रान्त
नीवत
रा र नीवत और राजनीवत
क्रान्त और स ूर्ण क्रान्त
शहीद भित वसिंह (19 अक्टू बर, 1907 ई - 23 माचण 1931)
लोकनार्क जर् प्रकाश नारार्र् (11 अक्टु बर, 1902 - 8 अक्टु बर, 1979)
पिं0 श्ीराम शमाण आचार्ण (2 वसत र, 1911 - 2 जून, 1990)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 42


नीवत
उविि समय और उविि थान पर उविि कायष करने की किा को नीवि (Policy) कहिे हैं नीवि,
सोिसमझकर बनाये गये वस ा ों की प्रणािी है जो उविि वनणषय िेने और स क पररणाम पाने में मदद करिी
है नीवि में अवभप्राय का उ ेख होिा है नीवि को एक प्रवक्रया (procedure) या नयािार ( नय+आिार /
protocol) की िरह िागू वकया जािा है

नीवि का का उ ि वि सावह के प्रािीनिम ग्र ऋ৖ेद से माना गया है इसके साथ ही बा ण


ग्र ों , उपवनर्दों, रामायण, महाभारि में धमष और नीवि का सदु पदे र्श सम्म विि है इन नीवि ग्र ों में ि ৯ान
और िैरा৓ का सु र सव िेर्श है इनमें प्रायः सभी धावमषक वि ासों का उ ेख और उपदे र्श हे इन नीवि ग्र ों में
िोक जीिन के िहार में आने िािी बािों पर वििार करने के साथ ही साथ जीिन की असारिा का वनरूपण कर
मानि मात्र को ’मोक्ष’ के साधन का उपदे र्श भी है भारिीय नीवि के अ गषि धमष एिं दर्शषन भी समावहि हो जािे हैं
इसीविए नीवि का का उ ि ृवि ग्र ों से भी माना जािा है महाभारि के दो बड़े प्रसगों की िीम ागि ीिा
एिं विदु रनीवि िो यं ही नीवि का से सिषिे उदाहरण है भगि ीिा िो भारिीय सं ृ वि का अनमोि र है
वजसके मा म से हमें जीिन की असारिा, आ ा की अमरिा, वन ाम कमषिाद आवद की वर्शक्षा वमििी है इसी
प्रकार विदु र नीवि में भी कुि धमष , सिष धमष , राज धमष, वि धमष ि आ धमष के विविध रूपों को दे खा जा सकिा
हे

नीविर्शा (अंग्रेजी: ethics) वजसे िहारदर्शषन, नीविदर्शषन, नीविवि৯ान और आिारर्शा भी कहिे


हैं , दर्शषन की एक र्शाखा हैं य वप आिारर्शा की पररभार्ा िथा क्षेत्र प्र ेक युग में मिभेद के विर्य रहे हैं , वफर
भी ापक रूप से यह कहा जा सकिा है वक आिारर्शा में उन सामा वस ां िों का वििेिन होिा है वजनके
आधार पर मानिीय वक्रयाओं और उ े ों का मू ाूँ कन संभि हो सके अवधकिर िेखक और वििारक इस बाि
से भी सहमि हैं वक आिारर्शा का संबंध मुূि: मानंदडों और मू ों से है , न वक ि ुम्म थवियों के अ यन या
खोज से और इन मानदं डों का प्रयोग न केिि म्मिगि जीिन के वि ेर्ण में वकया जाना िावहए िरन् सामावजक
जीिन के वि ेर्ण में भी नीविर्शास्र मानि को सही वनणषय िेने की क्षमिा विकवसि करिा है

अৢा और बुरा, सही और गिि, गुण और दोर्, ाय और जुमष जैसी अिधारणाओं को पररभावर्ि
करके, नीविर्शा मानिीय नैविकिा के प्र ों को सुिझाने का प्रयास करिा हैं बौम्म क समीक्षा के क्षेत्र के रूप में ,
िह नैविक दर्शषन, िणाष क नीविर्शा , और मू वस ां ि के क्षेत्रों से भी संबंवधि हैं

रर्शिथष कीडर कहिे हैं वक ""नीविर्शा " की मानक पररभार्ाओं में 'आदर्शष मानि िररत्र का वि৯ान'
या 'नैविक किष का वि৯ान' जैसे िाक्यां र्श आम िौर पर र्शावमि रहे हैं "[1] ररिडष विवियम पॉि और विंडा
ए र की पररभार्ा के अनुसार, नीविर्शा "एक संक नाओं और वस ा ों का समुৡय हैं , जो, कौनसा िहार
संिेदन-समथष जीिों की मदद करिा हैं या उ ें नुक़सान पहुूँ ििा हैं , ये वनधाष ररि करने में हमारा मागषदर्शष न करिा
हैं " [2] कैम्म ज वडक्शनरी ऑफ़ वफिोवसफी यह कहिी हैं वक नीविर्शा र्श का "उपयोग सामा िः विवनवमयी
रूप से 'नैविकिा' के साथ होिा हैं ' और कभी-कभी वकसी विर्शेर् पर रा, समूह या म्मि के नैविक वस ा ों के
अथष हे िु इसका अवधक संकीणष उपयोग होिा हैं " [3] पॉि और ए र कहिे हैं वक ादािर िोग सामवजक
प्रथाओं, धावमषक आ थाओं और विवध इनके अनु सार िहार करने और नीविर्शा के म भ्रवमि हो जािे हैं और
नीविर्शा को अकेिी संक ना नहीं मानिे [2]

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 43


"नीविर्शा " र्श के कई अथष होिे हैं [4] इसका स भष दार्शषवनक नीविर्शा या नैविक दर्शषन (एक पररयोजना जो
कई िरह के नैविक प्र ों का उ र दे ने 'कारण' का उपयोग करिी हो) से हो सकिा हैं

मनु के िहार का अ यन अनेक र्शा ों में अनेक व यों से वकया जािा है मानि िहार,
प्रकृवि के ापारों की भां वि, कायष -कारण-शंखिा के रूप में होिा है और उसका कारणमूिक अ यन एिं
ाূा की जा सकिी है मनोवि৯ान यही करिा है वकंिु प्राकृविक ापारों को हम अৢा या बुरा कहकर
विर्शेवर्ि नहीं करिे रा े में अिानक िर्ाष आ जाने से भीगने पर हम बादिों को कुिा০ नहीं कहने िगिे इसके
विपरीि साथी मनु ों के कमों पर हम बराबर भिे-बुरे का वनणषय दे िे हैं इस प्रकार वनणषय दे ने की सािषभौम
मानिीय प्रिृव ही आिारदर्शषन की जननी है आिारर्शा में हम िम्म थि रूप से विंिन करिे हुए यह जानने
का प्रय करिे हैं वक हमारे अৢाई-बुराई के वनणषयों का बुम्म ग्रा आधार क्या है कहा जािा है , आिारर्शा
वनयामक अथिा आदर्शाष ेर्ी वि৯ान है , जबवक मनोवि৯ान याथाथाष ेर्ी र्शा है वन य ही र्शा ों के इस
िगीकरण में कुछ ि है , पर िह भ्रामक भी हो सकिा है उि िगीकरण यह धारणा उ कर सकिा है वक
आिारदर्शषन का काम नैविक िहार के वनयमों का अ ेर्ण िथा उद् घाट्न नहीं है , अवपिु कृवत्रम ढं ग से िैसे
वनयमों को मानि समाज पर िाद दे ना है वकंिु यह धारणा गिि है नीविर्शा वजन नैविक वनयमों की खोज
करिा है िे यं मनु की मूि िेिना में वनवहि हैं अि ही यह िेिना विवभ समाजों िथा युगों में विवभ रूप
धारण करिी वदखाई दे िी है इस अनेकरूपिा का प्रधान कारण मानि प्रकृवि की जवट्ििा िथा मानिीय िेय की
विविधरूपिा है विवभ दे र्शकािों के वििारक अपने समाजों के प्रिविि विवधवनर्ेधों में वनवहि नैविक पैमानों का
ही अ ेर्ण करिे हैं हमारे अपने युग में ही, अनेक नई पुरानी सं ृ वियों के सम्म िन के कारण, वििारकों के विए
यह संभि हो सकिा है वक िे अनवगनि रूवढ़यों िथा सापेশ मा िाओं से ऊपर उठकर ि ुि: सािषभौम नैविक
वस ां िों के उद् घाट्न की ओर अग्रसर हों

रा र नीवत और राजनीवत
उ ेरक, र्शासक और मागषदर्शषक आ ा सिष ापी है इसविए एका का अथष संयुि आ ा या
सािषजवनक आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा है िब िह समाज कहिािा है जब एका
का अथष म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है अििार, संयुि आ ा का साकार रुप होिा है
जबवक म्मि, म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन प्रणािी में समाज का समथषक दै िी प्रिृव िथा
र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या समाजि या जनि या बहुि या राज
कहिािा है और क्षेत्र गणरा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि का समथषक
असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸ कहिािा है ऐसी
ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि अपने -अपने
अवधप के विए संघर्ष होिा रहा है
सािषभौवमकिा, सािषभौम “मैं” है , समव है , समभाि है , संयुि है , रा र है , रा र नीवि है , समभाि
िोक/गण/जन क ाण समावहि है , ई रीय पक्ष है जबवक िैयम्मििा, म्मिगि “मैं ” है , व है , विर्मभाि है ,
अिगाि है , रा৸ है , रा৸नीवि है , विर्मभाि िोक/गण/जन क ाण समावहि है , आसुरी पक्ष है
केिि रा৸/स ा के विए राजनीवि, राजनीवि नही ं बम्म रा৸नीवि है जबवक रा र के विए राजनीवि,
राजनीवि है इस अ र को “सविि सरोज” ारा अपने छोट्े से कवििा के मा म से अৢी प्रकार ि वकया
गया है जो वन िि् है -

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 44


राजनीवत और रा र नीवत
दोनोिं एक दू सरे से जुदा
वब ु ल अलि ही पररपेশ हैं

राजनीवत की विसात
खोखले िार्दोिं पर
जनता के अरमानोिं का क
करके वबछाई जाती है
वजसमें सरकारोिं की
तमाम वििलताएाँ
चालाकी से छु पाई जाती हैं
कभी न्तक्तित आक्षेपोिं तो
कभी आडिं बरोिं के दम पर
बेतुके आदशण बाज़ार में
ऊाँचे दामोिं पे वबक़िार्े जाते हैं

रा र नीवत की शालीनता
आने िाले पीढ़ी का
भवि तर् कर दे ती है
वि पटल पर अपने मु की
वनत नई कामर्ाबी िढ़ दे ती है
समािेशी विकास और समाना र विचारोिं के
हर ार कदम-कदम पे खोल दे ती है

रा र वनमाणर्, रा र नीवत का अवभ अिंि है


और राजनीवत वनमाणर् करता काला भुजिंि है

या राजनीवत और रा र नीवत एक नही िं हो सकते


मतभेदोिं की वतलािंजवल दे कर नेक नही िं हो सकते

राजनीवत और रा र नीवत नेताओिं के बल बुन्त का पररचार्क है


वनर्त की झठू और सৡाई का ही ोतक है

वजस वदन वनर्त साि हो जाएाँ िी और राजनेता, रा र नेता बन जाएाँ िे


तब दोनोिं के बीच के सारे िासले भी ख हो जाएाँ िे
- सवलल सरोज

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 45


क्रान्त और स ूर्ण क्रान्त
क्रां वि, का अथष है - 1. िाूँ घना 2. पूणष पररििषन, उिट् वदया जाना जैसे—पूूँजीिादी या जनिादी क्रां वि,
समाजिादी क्रां वि
राजनीविक, आवथषक ि सामावजक पररम्म थवि में उसकी थिा के विए पररििषन ही क्राम्म है , और
यह िभी मानी जायेगी जब उसके मू ों, मा िाओं, प वियों और स ों की जगह नये मू , मा िा, प वि
और स थावपि हों अथाष ि क्राम्म के विए ििषमान ि था की थिा के विए नयी ि था थावपि करनी
होगी यवद ि था पररििषन के आ ोिन में वििेक नहीं हो, केिि भािना हो िो िह आ ोिन वहं सक हो जािा
है वहं सा से कभी ि था नहीं बदििी, केिि स ा पर बैठने िािे िोग बदििे हैं वहं सा में वििेक नहीं उ ाद
होिा है उ ाद से वििोह होिा है क्राम्म नहीं क्राम्म में नयी ि था का दर्शषन - र्शा होिा है अथाष ि क्राम्म का
िশ होिा है और उस िশ के अनुरुप उसे प्रा करने की योजना होिी है दर् र्शन के अभाि में क्राम्म का कोई
िশ नहीं होिा

शहीद भित वसिं ह


(19 अक्टू बर, 1907 ई - 23 माचण 1931)

पररचर्
भगि वसंह, भारि के एक महान िंत्रिा सेनानी क्रां विकारी थे ि र्शेखर आजाद ि पाट्ी के अ
सद ों के साथ वमिकर इ ोंने दे र्श की आजादी के विए अभूिपूिष साहस के साथ र्शम्मिर्शािी वब्रवट्र्श सरकार का
मुक़ाबिा वकया पहिे िाहौर में साਔसष की ह ा और उसके बाद वद ी की के ीय संसद (से਒रि असे िी) में
बम-वि ोट् करके वब्रवट्र्श साम्रा৸ के विरु खुिे वििोह को बुि ी प्रदान की इ ोंने असे िी में बम
फेंककर भी भागने से मना कर वदया वजसके फि रूप इ ें 23 मािष 1931 को इनके दो अ सावथयों, राजगुरु
िथा सुखदे ि के साथ फाूँ सी पर िट्का वदया गया सारे दे र्श ने उनके बविदान को बड़ी ग ीरिा से याद वकया
भगि वसंह संधु का ज 28 वसिंबर 1907 को प्रिविि है पर ु िਚािीन अनेक साশों के अनुसार
उनका ज 19 अक्टू बर 1907 ई को हुआ था उनके वपिा का नाम सरदार वकर्शन वसंह संधू और मािा का नाम
वि ाििी कौर था यह एक जाट् पररिार था अमृिसर में 13 अप्रैि 1919 को हुए जवियाूँ िािा बाग ह ाकाਔ ने
भगि वसंह की सोि पर गहरा प्रभाि डािा था िाहौर के नेर्शनि कॉिेज की पढ़ाई छोड़कर भगि वसंह ने भारि
की आजादी के विये नौजिान भारि सभा की थापना की थी काकोरी काਔ में राम प्रसाद “वबम्म ि” सवहि 4

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 46


क्राम्म काररयों को फाूँ सी ि 16 अ को कारािास की सजाओं से भगि वसं ह इिने अवधक उव ্ हुए वक पम्मਔि
ि र्शेखर आजाद के साथ उनकी पाट्ी “वह दु ान ररपम्म कन ऐसोवसएर्शन” से जु ड़ गये और उसे एक नया नाम
वदया “वह दु ान सोर्शवि ररपम्म कन एसोवसएर्शन” इस संगठन का उ े से िा, ाग और पीड़ा झेि सकने
िािे नियुिक िैयार करना था भगि वसंह ने राजगुरु के साथ वमिकर 17 वदस र 1928 को िाहौर में सहायक
पुविस अधीक्षक रहे अंग्रेज अवधकारी जे पी सां डसष को मारा था इस कारष िाई में क्राम्म कारी ि र्शेखर आजाद
ने उनकी पूरी सहायिा की थी क्राम्म कारी साथी बट्ु के र द के साथ वमिकर भगि वसंह ने ििष मान नई वद ी
म्म थि वब्रवट्र्श भारि की िਚािीन से਒रि एसे िी के सभागार संसद भिन में 8 अप्रैि 1929 को अंग्रेज सरकार
को जगाने के विये बम और पिे फेंके थे बम फेंकने के बाद िहीं पर दोनों ने अपनी वगर ारी भी दी
उस समय भगि वसंह करीब बारह िर्ष के थे जब जवियाूँ िािा बाग ह ाकाਔ हुआ था इसकी सूिना
वमििे ही भगि वसंह अपने ू ि से 12 मीि पैदि ििकर जवियाूँ िािा बाग पहुूँ ि गये इस उम्र में भगि वसंह
अपने िािाओं की क्राम्म कारी वकिाबें पढ़ कर सोििे थे वक इनका रा ा सही है वक नहीं? गां धी जी का असहयोग
आ ोिन वछड़ने के बाद िे गां धी जी के अवहं सा क िरीकों और क्राम्म काररयों के वहं सक आ ोिन में से अपने
विये रा ा िुनने िगे गां धी जी के असहयोग आ ोिन को र कर दे ने के कारण उनमें थोड़ा रोर् उ हुआ,
पर पूरे रा र की िरह िो भी महा ा गां धी का स ान करिे थे पर उ ोंने गां धी जी के अवहं सा क आ ोिन की
जगह दे र्श की ि िा के विये वहं सा क क्रां वि का मागष अपनाना अनुविि नहीं समझा उ ोंने जुिूसों में भाग
िेना प्रार वकया िथा कई क्राम्म कारी दिों के सद बने उनके दि के प्रमुख क्राम्म काररयों में ि र्शेखर
आजाद, सुखदे ि, राजगुरु इ ावद थे काकोरी काਔ में 4 क्राम्म काररयों को फाूँ सी ि 16 अ को कारािास की
सजाओं से भगि वसंह इिने अवधक उव ্ हुए वक उ ोंने 1928 में अपनी पाट्ी “नौजिान भारि सभा” का
“वह दु ान ररपम्म कन ऐसोवसएर्शन” में वििय कर वदया और उसे एक नया नाम वदया “वह दु ान सोर्शवि
ररपम्म कन एसोवसएर्शन”
जेि में भगि वसंह करीब 2 साि रहे इस दौरान िे िेख विखकर अपने क्राम्म कारी वििार ि
करिे रहिे थे जेि में रहिे हुए भी उनका अ यन िगािार जारी रहा उनके उस दौरान विखे गये िेख ि सगे
स म्म यों को विखे गये पत्र आज भी उनके वििारों के दपषण हैं अपने िेखों में उ ोंने कई िरह से पूूँजीपवियों को
अपना र्शत्रु बिाया है उ ोंने विखा वक मजदू रों का र्शोर्ण करने िािा िाहे एक भारिीय ही क्यों न हो, िह उनका
र्शत्रु है उ ोंने जेि में अं ग्रेजी में एक िेख भी विखा वजसका र्शीर्षक था “मैं नाम्म क क्यों हूँ ?” जेि में भगि वसंह ि
उनके सावथयों ने 64 वदनों िक भूख हडिाि की उनके एक साथी यिी नाथ दास ने िो भूख हड़िाि में अपने
प्राण ही ाग वदये थे
26 अग , 1930 को अदािि ने भगि वसंह को भारिीय दं ड संवहिा की धारा 129, 302 िथा
वि ोट्क पदाथष अवधवनयम की धारा 4 और 6एफ िथा आईपीसी की धारा 120 के अंिगषि अपराधी वस वकया
7 अिूबर, 1930 को अदािि के ारा 68 पृ ों का वनणषय वदया, वजसमें भगि वसंह, सुखदे ि िथा राजगुरु को
फां सी की सजा सुनाई गई फां सी की सजा सुनाए जाने के साथ ही िाहौर में धारा 144 िगा दी गई इसके बाद
भगि वसंह की फां सी की माफी के विए वप्रिी पररर्द में अपीि दायर की गई पर ु यह अपीि 10 जनिरी, 1931
को र कर दी गई इसके बाद िਚािीन कां ग्रेस अ क्ष पं. मदन मोहन माििीय ने िायसराय के सामने सजा
माफी के विए 14 फरिरी, 1931 को अपीि दायर की वक िह अपने विर्शेर्ावधकार का प्रयोग करिे हुए मानििा
के आधार पर फां सी की सजा माफ कर दें भगि वसं ह की फां सी की सजा माफ़ करिाने हे िु महा ा गां धी ने 17
फरिरी 1931 को िायसराय से बाि की वफर 18 फरिरी, 1931 को आम जनिा की ओर से भी िायसराय के
सामने विवभ िको के साथ सजा माफी के विए अपीि दायर की यह सब कुछ भगि वसंह की इৢा के म्मखिाफ
हो रहा था क्योंवक भगि वसं ह नहीं िाहिे थे वक उनकी सजा माफ की जाए
23 मािष 1931 को र्शाम में करीब 7 बजकर 33 वमनट् पर भगि वसंह िथा इनके दो सावथयों सुखदे ि
ि राजगुरु को फाूँ सी दे दी गई फाूँ सी पर जाने से पहिे िे िेवनन की जीिनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 47


आखरी इৢा पूछी गई िो उ ोंने कहा वक िह िेवनन की जीिनी पढ़ रहे थे और उ ें िह पूरी करने का समय
वदया जाए कहा जािा है वक जेि के अवधकाररयों ने जब उ ें यह सूिना दी वक उनके फाूँ सी का िि आ गया है
िो उ ोंने कहा था- "ठहररये! पहिे एक क्राम्म कारी दू सरे से वमि िो िे " वफर एक वमनट् बाद वकिाब छि की
ओर उछाि कर बोिे - "ठीक है अब ििो " फाूँ सी पर जािे समय िे िीनों म ी से गा रहे थे -
मेरा रूँ ग दे बस ी िोिा, मेरा रूँ ग दे
मेरा रूँ ग दे बस ी िोिा
माय रूँ ग दे बस ी िोिा
फाूँ सी के बाद कहीं कोई आ ोिन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहिे इनके मृि र्शरीर के
ट्ु कड़े वकये वफर इसे बोररयों में भरकर वफरोजपुर की ओर िे गये जहाूँ घी के बदिे वमਂी का िेि डािकर ही
इनको जिाया जाने िगा गाूँ ि के िोगों ने आग जििी दे खी िो करीब आये इससे डरकर अं ग्रेजों ने इनकी िार्श
के अधजिे ट्ु कड़ों को सििुज नदी में फेंका और भाग गये जब गाूँ ि िािे पास आये िब उ ोंने इनके मृि र्शरीर
के ट्ु कड़ो को एकवत्रि कर विवधिि दाह सं ार वकया और भगि वसंह हमेर्शा के विये अमर हो गये
भगि वसंह को 7 अक्टू बर 1930 को मौि की सजा सु नाई गई थी, वजसे उ ोंने साहस के साथ सुना
भगि वसंह को 24 मािष 1931 को फां सी दे ना िय वकया गया था, िेवकन अंग्रेज इिना डरे हुए थे वक उ ें 11 घंट्े
पहिे ही 23 मािष 1931 को उ ें 7:30 बजे फां सी पर िढ़ा वदया गया भगि वसंह ने जेि में 116 वदन का उपिास
वकया था आ यष की बाि है वक इस दौरान िह अपना सारा काम वनयवमि रूप से करिे थे, जैसे गाना, वकिाबें
पढ़ना, हर वदन कोट्ष जाना, आवद भगि वसंह ने एक र्शम्मिर्शािी नारा -इं किाब वजंदाबाद" गढ़ा, जो भारि के
सर्श संघर्ष का नारा बन गया
जेि के वदनों में उनके विखे खिों ि िेखों से उनके वििारों का अ ाजा िगिा है उ ोंने भारिीय
समाज में विवप (पंजाबी की गुरुमुखी ि र्शाहमुखी िथा वह ी और अरबी एिं उदू ष के स भष में विर्शेर् रूप से), जावि
और धमष के कारण आयी दू ररयों पर दु ःख ि वकया था उ ोंने समाज के कमजोर िगष पर वकसी भारिीय के
प्रहार को भी उसी सিी से सोिा वजिना वक वकसी अं ग्रेज के ारा वकये गये अ ािार को
भगि वसंह को वह ी, उदू ष , पंजाबी िथा अंग्रेजी के अिािा बां ৕ा भी आिी थी जो उ ोंने बट्ु के र द
से सीखी थी उनका वि ास था वक उनकी र्शहादि से भारिीय जनिा और उव ্ हो जाये गी और ऐसा उनके
वज ा रहने से र्शायद ही हो पाये इसी कारण उ ोंने मौि की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा विखने से साफ
मना कर वदया था पं राम प्रसाद “वबम्म ि” ने अपनी आ कथा में जो-जो वदर्शा-वनदे र्श वदये थे, भगि वसंह ने
उनका अक्षरर्श: पािन वकया उ ोंने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी विखा, वजसमें कहा गया था वक उ ें अंग्रेजी
सरकार के व़ििाफ़ भारिीयों के यु का प्रिीक एक यु ब ी समझा जाये िथा फाूँ सी दे ने के बजाय गोिी से उड़ा
वदया जाये फाूँ सी के पहिे 3 मािष को अपने भाई कुििार को भेजे एक पत्र में भगि वसंह ने विखा था -
उ ें यह वफ़क्र है हरदम, नयी िजष -ए-जफ़ा क्या है ?
हमें यह र्शौक है दे खें, वसिम की इ हा क्या है ?
दहर से क्यों ़िफ़ा रहें , िखष का क्या वगिा करें
सारा जहाूँ अदू सही, आओ! मुक़ाबिा करें
इन जोर्शीिी पंम्मियों से उनके र्शौयष का अनुमान िगाया जा सकिा है ि र्शेखर आजाद से पहिी
मुिाकाि के समय जििी हुई मोमबिी पर हाथ रखकर उ ोंने कसम खायी थी वक उनकी वज गी दे र्श पर ही
कुबाष न होगी और उ ोंने अपनी िह कसम पूरी कर वदखायी आज भी भारि और पावक ान की जनिा भगि वसंह
को आजादी के दीिाने के रूप में दे खिी है वजसने अपनी जिानी सवहि सारी वज गी दे र्श के विये समवपषि कर दी
उनके जीिन ने कई वह ी वफ़ ों के िररत्रों को प्रेररि वकया
01. सरफरोर्शी की िम ा अब हमारे वदि में है , दे खना है जोर वकिना बाजु -ए-काविि में है
02. राख का हर एक कण, मेरी गमी से गविमान है मैं एक ऐसा पागि हं , जो जे ि में भी आजाद है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 48


03. जो भी म्मि विकास के विए खड़ा है , उसे हर एक रुवढ़िादी िीज की आिोिना करनी होगी, उसमें
अवि ास करना होगा, िथा उसे िुनौिी दे नी होगी
04. वदि से वनकिेगी न मरकर भी ििन की उ ि, मेरी वमਂी से भी खु बू-ए-ििन आएगी
05. हम नौजिानों को बम और वप ौि उठाने की सिाह नहीं दे सकिे वि ावथषयों के विए और भी मह पूणष
काम हैं रा र ीय इविहास के नाजु क समय में नौजिानों पर बहुि बड़े दावय का भार है और सबसे ৸ादा
वि ाथी ही िो आजादी की िड़ाई में अगिी पां िों में िड़िे हुए र्शहीद हुए है क्या भारिीय नौजिान इस परीक्षा
के समय में िही संजीदा इरादा वदखाने में वझझक वदखाएं गे
06. इस कदर िावकफ है मेरी किम मेरे ज৶ािों से,अगर मैं इ विखना भी िाहं िो इं किाब विख जािा हं
07. क्रां वि मानि जावि का एक अपररहायष अवधकार है िंत्रिा सभी का एक कभी न ख होने िािा ज -वस
अवधकार है
08. िे मुझे मार सकिे हैं , िेवकन िे मेरे वििारों को नहीं मार सकिे िे मेरे र्शरीर को कुिि सकिे हैं , मेरी आ ा
को नहीं
09. मैं एक इं सान हं और जो भी िीजें इं सावनयि पर प्रभाि डाििी हैं , मुझे उनसे फकष पड़िा है
10. दे र्शभिों को अসर िोग पागि कहिे हैं , हमें पागि ही रहने दो हम, पागि ही अৢे हैं
11. वज गी िो अपने दम पर ही जी जािी है ,दू सरों के कंधों पर िो वसफष जनाजे उठाये जािे हैं
12. वकसी ने सि ही कहा है , सु धार बूढ़े आदमी नहीं कर सकिे िे िो बहुि ही बुम्म मान और समझदार होिे हैं
सुधार िो होिे हैं युिकों के पररिम, साहस, बविदान और वन ा से, वजनको भयभीि होना आिा ही नहीं और
जो वििार कम और अनुभि अवधक करिे हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 49


लोकनार्क जर् प्रकाश नारार्र्
(11 अक्टु बर, 1902 - 8 अक्टु बर, 1979)

पररचर्
जय प्रकार्श नारायण “जे.पी.” का ज 11 अक्टु बर, 1902 को ग्राम वसिाबवदयारा, बविया, उ र प्रदे र्श
में हुआ था उनका वििाह वबहार के मर्शहर गाूँ धीिादी बृज वकर्शोर प्रसाद की पुत्री प्रभाििी के साथ अक्टु बर,
1920 में हुआ प्रभाििी वििाह के उपरा क ुरबा गाूँ धी के साथ गाूँ धी आिम में रहीं िे भारिीय ि िा
सेनानी और राजनेिा थे उनहें 1970 में इम्म रा गाूँ धी के म्मखिाफ विपक्ष का नेिृ के विए जाना जािा है िे
समाज-सेिक थे, वज ें “िोकनायक” के नाम से भी जाना जािा है पट्ना में अपने वि ाथी जीिन में जय प्रकार्श
नारायण ने ि िा संग्राम में वह ा विया प्रविभार्शािी युिाओं को प्रेररि करने के विए डा0 राजे प्रसाद और
सुप्रवस गाूँ धीिादी डा0 अनुग्रह नारायण वस ा, जो गाूँ धी के एक वनकट् सहयोगी रहे ारा थावपि “वबहार
वि ापीठ” में जय प्रकार्श नारायण र्शावमि हो गए 1922 में िे उৡ वर्शक्षा के विए अमेररका गये, जहाूँ उ ोंने
1922-1929 के बीि कैविफोवनषया वि वि ािय, बरकिी, विसकां सन वि वि ािय में समाज र्शा का अ यन
वकया पढ़ाई के महं गे खिे को िहन करने के विए उ ोंने खेिों, क वनयों, रे ोरे ों में काम वकया िे माक्र्स के
समाजिाद से प्रभाविि हुए उ ोंने एम.ए. की वडग्री हावसि की उनकी मािाजी की िवबयि ठीक न होने की िजह
से िे भारि िापस आ गए और पीएि.डी. पूरी न कर सके
1929 में जब िे अमेररका से िौट्े , भारिीय ि िा संग्राम िेजी पर था उनका स कष गाूँ धी जी के
साथ काम कर रहे जिाहरिाि नेहरू से हुआ िे भारिीय ि िा संग्राम का वह ा बने 1932 में गाूँ धी, नेहरू
और अ मह पूणष कां ग्रेसी नेिाओं के जेि जाने के बाद, उ ोंने भारि के अिग-अिग वह ों में संग्राम का नेिृ
वकया अ िः उ ें भी मिास में वसि र, 1932 में वगर ार कर विया गया और नावसक के जेि में भे ज वदया
गया यहाूँ उनकी मुिाकाि एम.आर.मासानी, अ০ुि पट्िधषन, एन.सी.गोरे , अर्शोक मेहिा, एम.एि.दां ििािा, िा रस
मा ारे ास औा सी.के.नारायणर्शा ी जैसे उ ाही कां ग्रेसी नेिाओं से हुई जे ि में इनके ारा की गई ििाष ओं ने
कां ग्रेस सोसवि पाट्ी (सी.एस.पी.) को ज वदया सी.एस.पी. समाजिाद में वि ास रखिी थी जब कां ग्रेस ने
1934 में वह ा िेने का फैसिा वकया िो जेपी और सी.एस.पी. ने इसका विरोध वकया

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 50


1939 में उ ोंने व िीय वि यु के दौरान, अंग्रेज सरकार के म्मखिाफ िोक आ ोिन का नेिृ
वकया उ ोंने सरकार को वकराया और राज रोकने के अवभयान ििाए ट्ाट्ा ीि क नी में हड़िाि कराकर
यह प्रयास वकया वक अं ग्रेजों को इ ाि न पहुूँ िे उ ें वगर ार कर विया गया और 9 मवहने की कै द की सजा
सुनाई गई जेि से छूट्ने के बाद उ ोंने गाूँ धी और सुभार् ि बोस के बीि सुिह का प्रयास वकया 1942 के
भारि छोड़ो आ ोिन के दौरान िे आथषर जेि से फरार हो गये उ ोंने ि िा संग्राम के दौरान हवथयारों के
उपयोग को सही समझा उ ोंने नेपाि जाकर आजाद द े को गठन वकया और उसे प्रवर्शक्षण वदया उ ें एक
बार वफर पंजाब में िििी ट्र े न में वसि र 1943 को वगर ार कर विया गया 16 माह बाद जनिरी 1945 में उ ें
आगरा जेि में थाना ररि कर वदया गया इसके उपरा गाूँ धी जी ने साफ कर वदया था वक डा0 िोवहया और
जे पी की ररहाई के वबना अं ग्रेज सरकार से कोई समझौिा नामुमवकन है दोनों को अप्रैि 1946 को आजाद कर
वदया गया 1948 में उ ोंने कां ग्रेस के समाजिादी दि का नेिृ वकया, और बाद में गाूँ धीिादी दि के साथ
वमिकर समाजिादी सोर्शवि पाट्ी की थापना की 19 अप्रैि, 1954 में गया, वबहार में उ ोंने विनोबा भािे के
सिोदय आ ोिन के विए जीिन समवपषि करने की घोर्णा की 1957 में उ ोंने िोकवनवि के पक्ष में राजनीवि
छोड़ने का वनणषय विया 1960 के दर्शक के अम्म म भाग में िे राजनीवि में पुनः सवक्रय रहे 1974 में वकसानों के
वबहार आ ोिन में उ ोंने िਚािीन रा৸ सरकार से इ ीफे की मां ग की िे इम्म रा गाूँ धी की प्रर्शासवनक
नीवियों के विरू थे वगरिे ा के बािजूद उ ोंने वबहार में सरकारी भ्र ािार के म्मखिाफ आ ोिन वकया
उनके नेिृ में पीपुि फ्ंट् ने गुजराि रा৸ का िुनाि जीिा 1975 में इम्म रा गाूँ धी ने आपािकाि (इमरजेंसी) की
घोर्णा की वजसके अ गषि जेपी सवहि 600 से भी अवधक विरोधी नेिाओं को बंदी बनाया गया और प्रे स पर
सेंसरवर्शप िगा दी गई जे ि में जेपी की िबीयि और खराब हुई 7 महीने बाद उनको मुि कर वदया गया 1977
जेपी के प्रयासों से एकजुट् विरोधी पक्ष ने इम्म रा गाूँ धी को िुनाि हरा वदया जेपी का वनधन उनके वनिास थान
पट्ना में 8 अक्टु बर, 1979 को हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण हुआ उनके स ान में िਚािीन
प्रधानमंत्री िरण वसं ह ने 7 वदन के रा र ीय र्शोक की घोर्णा की उनके स ान में कई हजार िोग उनकी र्शि यात्रा
में र्शावमि हुए

जेपी का “स ूर्ण क्रान्त ”


पट्ना के गाूँ धी मैदान पर िगभग 5 िाख िोगों के अविउ ाही भीड़ भरी सभा में दे र्श की वगरिी
हािि, प्रर्शासवनक भ्र ािार, महं गाई, अनुपयोगी वर्शक्षा प वि और प्रधानमंत्री ारा अपने ऊपर िगाये गए आरोपों
का सवि ार उ र दे िे हुए 5 जून, 1975 की विर्शाि सभा में जे.पी. ने घोर्णा की- “भ्र ािार वमट्ाना, बेरोजगारी
दू र करना, वर्शक्षा में क्राम्म िाना आवद ऐसी िीजें हैं जो आज की ि था से पू री नहीं हो सकिी, क्योंवक िे इस
ि था की ही उपज हैं िे िभी पूरी हो सकिी है जब स ूणष ि था बदि दी जाए और, स ूणष ि था
पररििषन के विए क्राम्म - स ूणष क्राम्म आि क है यह क्राम्म है वमत्रों और स ूणष क्राम्म है विधान सभा का
विघट्न मात्र इसका उ े नहीं है यह िो महज मीि का प र है हमारी मंवजि िो बहुि दू र है और हमें अभी
बहुि दू र िक जाना है केिि मम्म मਔि का ाग पत्र या विधानसभा का विघट्न काफी नहीं है , आि किा
एक बेहिर राजनीविक ि था का वनमाष ण करने की है छात्रों की सीवमि मां गें जैसे भ्र ािार एिं बेरोजगारी का
वनराकरण, वर्शक्षा में क्राम्म कारी पररििषन आवद वबना स ूणष क्राम्म के पूरी नहीं की जा सकिी इस ि था ने जो
संकट् पैदा वकया है िह स ूणष और बहुमुखी (ट्ोट्ि एਔ म ीडायमे नि) है , इसविए इसका समाधान स ूणष
और बहुमुखी ही होगा म्मि का अपना जीिन बदिे, समाज की रिना बदिे, रा৸ की ि था बदिे, िब कहीं
बदिाि पूरा होगा, और मनु सुख और र्शाम्म का मुि जीिन जी सकेगा हमें स ूणष क्राम्म िावहए, इससे कम
नहीं ”
स ूणष क्राम्म जयप्रकार्श नारायण का वििार ि नारा था वजसका आ ान उ ोने इं वदरा गां धी की स ा
को उखाड़ फेकने के विये वकया था िोकनायक नें कहा वक स ूणष क्रां वि में साि क्रां वियाूँ र्शावमि है – 1.

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 51


राजनैविक, 2. आवथषक, 3. सामावजक, 4. सां ृ विक, 5. बौम्म क, 6. र्शैक्षवणक ि 7. आ ाम्म क क्रां वि इन सािों
क्रां वियों को वमिाकर स ूणष क्राम्म होिी है “स ूणष क्रां वि से मेरा िा यष समाज के सबसे अवधक दबे-कुििे
म्मि को स ा के वर्शखर पर दे खना है |”
पट्ना के ऐविहावसक गां धी मैदान में जयप्रकार्श नारायण ने संपूणष क्रां वि का आहिान वकया था मैदान
में उपम्म थि िाखों िोगों ने जाि-पाि, वििक, दहे ज और भेद-भाि छोड़ने का संक विया था उसी मैदान में
हजारों-हजार ने अपने जनेऊ िोड़ वदये थे नारा गूंजा था:
जाि-पाि िोड़ दो, वििक-दहे ज छोड़ दो
समाज के प्रिाह को नयी वदर्शा में मोड़ दो
स ूणष क्रां वि की िवपर्श इिनी भयानक थी वक के में कां ग्रेस को स ा से हाथ धोना पड़ गया था
जय प्रकार्श नारायण वजनकी हुं कार पर नौजिानों का ज ा सड़कों पर वनकि पड़िा था वबहार से उठी स ूणष
क्रां वि की विंगारी दे र्श के कोने -कोने में आग बनकर भड़क उठी थी जेपी के नाम से मर्शहर जयप्रकार्श नारायण
घर-घर में क्रां वि का पयाष य बन िुके थे िािू यादि, नीिीर्श कुमार, रामवििास पासिान और सुर्शीि कुमार मोदी,
आज के सारे नेिा उसी छात्र युिा संघर्ष िावहनी का वह ा थे

“िोकनायक जयप्रकार्श के स ूणष क्राम्म का नारा साकार नहीं हुआ, िे िोक सावह को वजविि
रखने का प्रयास कर रहे थे ” (िोकनायक जयप्रकार्श नारायण ज र्शिा ी समारोह, जय प्रकार्श नगर, बविया
(उ0 प्र0), 11 अक्टू बर’2001)
-च शेखर (पूिण प्रधानम ी, भारत)

“िोकनायक का स ूणष जीिन एक प्रयोगर्शािा था उ ोंने वििारों से अवधक मू ों को मह वदया ”


- श्ी अटल वबहारी िाजपेर्ी (पूिण प्रधानमिंत्री, भारत)

विर्शाि जनसभा में जे.पी. ने पहिी बार “स ूणष क्राम्म ” के दो र्श ों का उৡारण वकया क्राम्म र्श
नया नहीं था, िेवकन “स ूणष क्राम्म ” नया था गाूँ धी पर रा में “समग्र क्राम्म ” का प्रयोग होिा था जे.पी. का
“स ूणष”, गाूँ धी का “समग्र” है
आजीिन पद-प्रवि ा से दू र रहकर “स ूणष क्राम्म ” के उद् घोर्क और िोक सावह को वजविि रखने
के विए प्रय र्शीि महानिम म्मि इनकी वदर्शा से र्शेर् कायष यह है वक म्मि के पूणषिा के विए सावह िथा
स ूणष, सिोৡ और अम्म म ि था का सूत्र ि ाূा प्र ुि हो िावक िोक सावह िथा स ूणष क्राम्म का
इनका सपना पूणष हो जाये

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 52


पिं0 श्ीराम शमाण आचार्ण
(2 वसत र, 1911 - 2 जून, 1990)

पररचर्
पं. िी राम र्शमाष आिायष का ज बुधिार, 2 वसि र, 1911 (सं. 1968, आव न, कृ पक्ष, त्रयोदर्शी)
को आगरा (उ0प्र0) से जिेसर रोड 24 वक.मी. पर म्म थि आूँ ििखेड़ा में हुआ था आूँ ििखेड़ा का यह थान ििषमान
में एक यु गिीथष बन िुका है यहीं से उनकी सेिा-साधना प्रार हुई वर्शक्षा एिं ग्रामीण ाि न की कई
गविविवधयाूँ यहाूँ से उ ोंने ििाईं विरासि में वमिी प्रिुर भू -स दा का उपयोग अपने और अपने पररिार के विए
न करके उ ोंने समावजक गविविवधयों के विए वकया एक भाग से अपनी मािा जी की ृवि में दान कुूँिरर इ਒र
कािेज की थापना करायी, र्शेर् रावर्श बाद में गायत्री िपोभूवम हे िू समवपषि कर दी आप गायत्री के वस साधक,
3000 से अवधक पु क-पुम्म काओं के िेखक, िेद, पुराण, उपवनर्द् के भा कार, िै৯ावनक आ ा िाद के
जनक, ि िा संग्राम सेनानी, युग वनमाष ण योजना के सूत्रधार, वििार क्राम्म अवभयान के प्रणेिा और ऋवर्
पर रा के उ ायक के रूप में थावपि हैं और अम्मखि वि गायत्री पररिार की थापना की आप ापक कायष को
थावपि ि संिाविि करिे हुए 2 जून, 1990 में ब्र िीन हो गये

“स ूर्ण क्रान्त ” के प्रवत विचार


पररििषन सृव का र्शा ि वनयम है मनु , समाज, सं ृ वि और स िा को इस पररििषन प्रवक्रया से
होकर गुजरना पड़िा है समय-समय पर वकिनी ही निीन पर राओं, प्रििनों एिं प्रथाओं का दे र्श और समाज
की आि किा के अनुरूप प्रादु भाष ि होिा है एक समय की उपयोगी मा िायें एिं पर रायें दू सरे समय में
अनुपयोगी हो जािी हैं उनमें पररििषन सुधार की आि किा पड़िी है समाज ि था, र्शासन ि आवद में भी
समय-समय पर पररििषन होिे रहिे हैं एक ि था एक वनयम—एक कानून हर काि में उपयोगी नहीं वस हो
सकिे उनमें बदिी पररम्म थवियों की मां गों के अनुरूप हे र-फेर करिे रहने से ही समाज की सु ि था कायम रह
सकिी है समाज के सुवनयोवजि संिािन और विकास की व से पररििषन आि क और उपयोगी भी है
वकिनी ही प्रथायें , मा िायें एिं ि थाएं एक वनव ि अिवध के बाद जराजीणष हो जािी िथा ऐसी
रूवढ़यों का रूप ग्रहण कर िेिी हैं जो म्मि और समाज के विए हर व से हावनकारक हैं पर पुरािन के मोह
अथिा ाथों पर आघाि पहुं िाने के भय से मनु उ ें छोड़ना नहीं िाहिा उससे विपका रहिा है फििः एक
ऐसा अिरोध पैदा होिा है जो विकास प्रवक्रया का मागष अिरु करिा है अराजकिा, अ ि था िथा अिां छनीयिा
को ऐसी ही पररम्म थवियों में आिय वमििा है उनमें सुधार एिं पररििषन के विये जब म्मिगि विरोधा क प्रय
कारगर वस नहीं होिे िो ापक पररििषन करने िािी क्राम्म यों का ज होिा है जो आं धी-िूफान की भां वि आिी
हैं िथा अपने प्रिाह में उस किरे को बहा िे जािी हैं वजनके कारण समाज में अ ि था फैि रही थी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 53


प्रयास संघर्ाष क होिे हुए भी क्राम्म सृजन की एक ऐसी प्रवक्रया है जो उपयोगी मानिीय मू ों को
पुन थाष पना एिं सुवनयोजन के विये आि क है जनमानस में सं ा भ्राम्म यों में से एक यह है वक क्राम्म
पररििषन की वहं सा क प वि है िथा क्राम्म यों को ज दे ने में आवथषक विर्मिा ही प्रधान कारण होिी है ि ुिः
कािषमाসष की सा िादी वििारधारा के बढ़िे हुये प्रभाि ने उपरोि मा िा को ज वदया मानि जीिन के
अवनिायष पहिू—अथष और स म्म ि ि के ाূािा होने के कारण माসष इस वन र्ष पर पहुं िे थे वक समाज
में मूिभूि प्रेरक र्शम्मि अथष ही है आवथषक स ुिन ही समाज की विवभ सम ाओं को ज दे िा है यह
अस ुिन जब िरमसीमा पर जा पहुं ििा है िो क्राम्म यों का सूत्रपाि होिा है माসष के अनुसार वि की
अवधकां र्श क्राम्म यां आवथषक विर्मिा के कारण हुई हैं यह मा िा एकां गी और अपूणष है ि ुम्म थवि की गहराई
में पहुं िने के विये इविहास का पयषिेक्षण—अ यन करना होगा
प्रূाि फ्ां सीसी क्राम्म का इविहास यह बिािा है वक उन वदनों फ्ां स में वनरं कुर्श र्शासकों का प्रभाि
बढ़िा जा रहा था अ ािार, अ ाय की िक्की में जनिा वपस रही थी नागररकों की म्मिगि ि िा एिं
अवधकार िगभग समा हो गये थे फ्ां सीसी क्राम्म में समानिा का वििार अथष के आधार पर नहीं, बुम्म के
आधार पर मानििािादी वस ा ों के पररप्रेশ में वकया गया मौविक प्रेरणा यह थी वक मनु जब ज िेिा है िो
ि िा िथा प्राकृविक समानिा एक समान होिा है इस ि िा िथा प्राकृविक समानिा को जबरन
प्रविबम्म ि नहीं वकया जाना िावहये इस वििारणा ने फ्ां स की क्राम्म का सूत्रपाि वकया सूत्रधार बने िा े यर और
रूसो िब िक रूसो की सर्शि समाजिादी वििारधारा प्रभाि में आ िुकी थी वजसने फ्ां स के बौम्म क समुदाय
में प्रेरणा भर कर अनीवि और अ ािार के विरु उकसाया
इं ৕ैਔ की ूररट्न क्राम्म पर प्रभाि बाइवबि में प्रविपावदि समानिा के वििारों का था वजसे
राजनैविक समथषन भी वमि गया उन वदनों वब्रवट्र्श पाविषयामे िोकिाम्म क नहीं थी, अवधकार भी सीवमि थे
साम्रा৸िादी र्शासन का दे र्श पर प्रभु था असमानिा की खाई पाट्ने की िीव्र आिाज उठी धावमषक एिं
राजनैविक दोनों की मंिों से एक साथ साम्रा৸िाद के विरोध में िैिाररक िािािरण िैयार हुआ वजसने क्राम्म का
सूत्रपाि वकया
दास प्रथा के विरु अमेररका में वजस क्राम्म का ज हुआ िह मानिीय मू ों की पुनः थापना के
विए था कािे, गोरों के बीि भेद-भाि की प्रिृव िरम सीमा पर थी िणषभेद के पनपने विर् िृक्ष से समाज की उन
जड़ों को खोखिा बनाना आर कर वदया वजन पर मनु िा अििम्म ि है कािे नीग्रो पर गोरों का अ ािार
अनािार बढ़िा ही जा रहा था उ ीवड़ि मानििा के वथि र ने वििोह की आिाज फूंकी फि रूप सिषत्र
अमानिीय दास प्रथा के विरु आिाज उठी जो क्रमर्शः िीव्र होिी गयी दास प्रथा का अ हुआ
इविहास की ये मह पूणष क्राम्म यां अथष से अवभप्रेररि नहीं थी ं इनका िশ था म्मिगि ािं ,
राजनैविक िोकि िथा मानिीय मू ों की पुन थाष पना रूस की आधुवनक क्राम्म को माসष के िगष यु के
दर्शषन र्शा का आदर्शष रूप माना जािा है जबवक स दू सरा ही है रूसी क्राम्म का ज जार के अ ािारी,
भ्र र्शासन के विरोध में हुआ न वक िह िगष संघर्ष अथिा आवथषक असमानिा का प्रविफि था अ ु- आवथषक
विर्मिा को एक मात्र सभी सम ाओं का कारण मानना िथा क्राम्म यों का सूत्रधार कहना वििेक स ि नहीं है
क्राम्म का रूप वहं सा क भी नहीं है जैसी वक मा िा अवधकां र्श म्मियों के मन में बनी हुई है
क्राम्म का अथष है —िैिाररक पररििषन की एक ऐसी प्रवक्रया वजसमें जन िेिना अनौवि का विरोध करने -छोड़ने
िथा औवि को अपनाने के विए वििर्श हो जाय जो क्राम्म यां आर हुईं अवहं सा क िरीके से , पर आगे िि
कर वहं सा क रूप में बदि गयीं िे समाज में विर्शेर् पररििषन कर सकने में समथष न हो सकीं प्रमाण सामने हैं —
वि की भौविक एिं सामावजक क्राम्म यों का इविहास वि की अवधकां र्श क्राम्म यां वजन आदर्शों से प्रेररि होकर
र्शुरू हुईं िे आगे ििकर गौण हो गये और एकमात्र स ा का पररििषन ही प्रमुख िশ रह गया स ा के संकुविि
िশ िक केम्म ि हो जाने से क्राम्म का अभी िশ कभी पूरा न हो सका वनरं कुर्श िानार्शाही से िाਚाविक राहि
भिे ही वमि गयी हो पर क्राम्म का समग्र उ े अपूणष ही बना रहा क्राम्म का अथष है — म्मि के अ रं ग और

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 54


बवहरं ग का आमूििूि पररििषन एक ऐसा पररििषन जो मनु समुदाय को पर र एक दू सरे के वनकट् िािा िथा
बां धिा हो समाज की रूवढ़ग्र पर राओं और कुरीवियों को समा करिा िथा थ पर राओं के प्रििन के
विए साहस वदखािा हो वनःस े ह क्राम्म का थ रूप और महान िশ यही होना िावहये
है वक इस महान िশ की पूविष वहं सा क िरीके से नहीं वििार क्राम्म के अवहं सा क
आ ाम्म क प्रयोग उपिारों के ारा ही स ि है बु का धमष-िक्र प्रििषन क्राम्म का आदर्शष और समग्र रूप
था गां धी का रा৸ आ ोिन भी इ ीं आदर्शों से अवभप्रेररि था मात्र बा पररििषनों से समाज की अनेकानेक
सम ाओं का समाधान होना स ि रहा होिा िो कभी का हो गया होिा वि में वकिनी वहं सा क क्राम्म यां हुई
हैं स ा में पररििषन भी हुए हैं पर मानिजावि की मूि सम ा अपने थान पर यथािि् बनी हुई है फ्ा , इं ৕ैਔ,
अमेररका, रोम िथा रूस की प्रূाि क्राम्म यों के बािजूद यह नहीं कहा जा सकिा है वक इन दे र्शों में मानििािादी
ि था थावपि हो गयी है , असमानिा की खाई पट् गयी है और आपसी ेह सौहािष की मात्रा बढ़ी है स ा
पररििषन के सीवमि आिेग और आिेर्श िक सीवमि रह जाने िािी वहं सा क क्राम्म की प वि से वकसी भी
सम ा का थायी हि नहीं वनकि सकिा आये वदन िथाकवथि क्राम्म के नाम पर वकिने ही दे र्शों में स ा के
उिट् फेर की घट्नाएं दे खी और सुनी जािी हैं पर उनसे वकसी दे र्श में र्शाम्म और सु ि था की थापना में
सहयोग वमिा हो, ऐसा उदाहरण र्शायद ही कहीं दे खने में आया हो
यह ि भिी-भां वि हृदयंगम करना होगा वक पररििषन का के वब दु मनु है बा पररम्म थवियां िो
आ ररक पररििषन के अनुरूप बनिी-बदििी रहिी हैं क्राम्म की सफििा मनु के आ ररक पररििषन पर
अििम्म ि है समग्र क्राम्म भी मनु के भीिर ही स ि है समाज को िो यथा म्म थवि ही वप्रय है — उसकी यं
की म्मियों से अिग कोई स ा नहीं है बा पररम्म थवियों में पररििषन की उपे क्षा करिे रहने से कुछ थायी हि
नहीं वनकि सकिा इस स में प्रवस वििारक “िारें स हाइड” ने कुछ सारगवभषि प्र उठाये हैं जो वििारणीय
हैं उनका कहना है वक “क्या म्मि का पुनवनषमाष ण वकए वबना समाज का वनमाष ण स ि है ? मानि के भीिर बैठे
हुए ब र एिं िीिे को क्या मात्र बा दबािों से वनयम्म ि पररिविषि वकया जा सकिा है ? क्या वबना वकसी उৡ
आदर्शष अथिा र्शम्मि का आिय विए हम िह प्रेरणा प्रा कर सकिे हैं वजनकी उन सम ाओं के हि के विए
आि किा है जो समय-समय पर होिी रहने िािी क्राम्म यों के बािजूद यथािि् बनी रहिी हैं क्या मनु , मनु
के बीि पर र सघन आ ीयिा विकवसि वकये वबना सৡे समाजिाद की थापना स ि है ? क्या हम केिि
भौविक र्शम्मियों का आिय िेकर वबना आ ाम्म क जीिन का अिि न विए मानि जावि को थायी सुख र्शाम्म
प्रदान कर सकिे हैं ?’’ िारें स यं उ र दे िे हुए कहिे हैं —“ऐसा कदावप स ि नहीं है हमें थायी पररििषन के
विए एक ऐसी आ ाम्म क क्राम्म का िीगणेर्श करना होगा जो अवहं सा क हो, िैिाररक हो िथा वजसका िশ
स ूणष वि हो न वक सीवमि म्मियों अथिा एक समाज विर्शेर् का मात्र पररििषन “
कहना होगा वक आ ाम्म क क्राम्म ारा ही म्मि का बा ा र पररििषन िथा समाज का पुनवनषमाष ण
संभि है इसके विए एक ऐसे संर्शि िैिाररक िािािरण का सृजन करना होगा वक मनु उस पररिेर्श की
उਚृ िा में ढििा बनिा ििा जाय संगठन र्शम्मि की मह ा उपयोवगिा असंवद৊ है बड़े पररििषन संगठन के
वबना नहीं हो सकिे म्मि अकेिा वकिना भी समथष क्यों न हो—एकाकी कुछ नहीं कर सकिा संसार में जब भी
क्राम्म कारी पररििषन हुए हैं , संगवठि प्रयासों के बिबूिे आ ाम्म क क्राम्म की विनगारी भी उਚृ म्मियों की
आहुवि पाकर प्र৭विि होगी—दािानि का रूप ग्रहण करे गी सिषत्र सं ा , दु िृव यों, अिां छनीयिाओं,
कुरीवियों, मूढ़ मा िाओं, अ वि ासों का कूड़ा करकट् उस दािानि में ही जि सकेगा पर उस अव্ को प्रदी
करने के विए सिषप्रथम ऐसे भािनार्शीिों को आगे आना होगा जो यं के म्मि को सोने की भां वि िपा सके
और कु न बनकर समाज में आिोवकि हो सकें निसृजन के आ ाम्म क क्राम्म आयोजन में उ ें ही आगे
बढ़कर वह ा बंट्ाना होगा जो सम मानि जावि का भवि उ৭ि दे खने के इৢु क हैं िथा ंस में नहीं
सृजना क प्रयासों में वि ास रखिे हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 55


र्दु नार् वसिंह
(6 जुलाई, 1945 ई – 30 मई, 2020 ई )

पररचर्
स कार्शी क्षेत्र के िुनार क्षेत्र (वजिा मीरजापुर, उ र प्रदे र्श) के ग्राम-वनयामिपुर किाूँ में 6 जु िाई,
1945 को ज ें िी यदु नाथ वसंह, एक क्राम्म कारी, वि क, जन समथषक और जनवप्रय नेिा के रूप में जाने जािे हैं
इनके वपिा का नाम िी सहदे ि वसंह ि मािा का नाम िीमिी दु िेसरा दे िी था
कार्शी वह दू वि वि ािय से स कमৢा म्म थि से र ि वह दू ू ि से उस समय संिाविि प्री
यूवनिवसषट्ी कोसष (पी.यू.सी) करने के उपरा आप वि वि ािय में केवमकि इं वजवनयररं ग में प्रिेर्श विए छात्र
राजनीवि ि जन सम ाओं से िविि होकर आप राजनीवि में प्रिेर्श विये वजसका प्रभाि आपके वर्शक्षा पर भी पड़ा
और आप इं वजवनयररं ग की वडग्री पूणष नहीं कर पाये आप उ र प्रदे र्श के िुनार विधान सभा क्षेत्र से िार बार 1980,
1985, 1989, 1991 में विधायक िुने गये आप राजनीवि के दौरान कभी भी रा৸ समथषक नहीं रहे बम्म सदै ि
जन समथषक ही रहें और जन सम ाओं को सदै ि प्राथवमकिा में रखिे हुए रा৸ को वििर्श करिे रहे आपका
दु भाष ৓ था वक आप जब भी विधायक रहे , आपकी पाट्ी की सरकार नहीं रही और आप ऐसे दौर में विधायक रहे
जब विधायक वनवध जैसी कोई योजना िागू नहीं थी फि रूप आप सरकारी सहायिा के ारा क्षेत्र के भौविक
विकास में योगदान वििर्शिापूिषक नहीं दे पाये
आप िुनार क्षेत्र में िुनाि के दौरान जनिा के अवििोकवप्रय नेिा के रूप में अपने समय में थावपि थे
इसका प्र क्ष दर्शषन जनिा ने यं उस रै िी को दे खकर अनुभि वकया जो 10 वकिोमीट्र से भी ि ी भीड़ भरी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 56


थी क्षेत्र के म्मि, समाज और क्षे त्र का सू क्ष्म अ यन आपके पास गहराई से था वजसके कारण ही आपने “िू
जमाना बदि” और क्षेत्र को स कार्शी क्षेत्र के रूप में थावपि करने का िि वदया

“िू जमाना बदि”


- र्दु नार् वसिं ह, पूिण विधार्क, चुनार क्षेत्र

“रामनगर (िाराणसी) से वि ािि (मीरजापुर) िक का क्षेत्र पुराणों में िवणषि स कार्शी का क्षेत्र है ”
- र्दु नार् वसिं ह, पूिण विधार्क, चुनार क्षेत्र
साभार - रा र ीर् सहारा, लखनऊ, वद0 17 जून, 1998)

“ििषमान समय में दे र्श र पर ि था पररििषन की ििाष बहुि अवधक हो रही है इसमें मेरे वििार से
सिषप्रथम आरक्षण के मापदਔ पर पुनः वििार करने का समय आ गया है दे र्श के ि िा के समय जाविगि
आरक्षण की आि किा थी और िह सीवमि समय के विए ही िागू वकया गया था पर ु राजनीविक िाभ के
कारणों से िह ििषमान िक िागू है हम समाज से मनु िादी ि था को समा करने की बाि करिे हैं पर ु एक
िरफ आज समाज इससे धीरे -धीरे मुि हो रहा है और दू सरी िरफ संविधान ही इसका समथष क बनिा जा रहा है
ऐसी म्म थवि में आरक्षण ि था का मापदਔ जावि आधाररि से र्शारीररक, आवथषक और मानवसक आधाररि कर
दे नी िावहए जो धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि भी है और िोकि का धमष भी धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि
है
मेरे वििार में ि था पररििषन का दू सरा आधार युिाओं को अवधकिम अवधकार से युि करने पर
वििार करने का समय आ गया है दे र्श में 18 िर्ष के उम्र पर िोट् दे ने का अवधकार िथा वििाह का उम्र िड़कों के
विए 21 िर्ष िथा िड़वकयों के विए 18 िर्ष िो कर वदया गया है पर ु उ ें पैिृक स व स ी अवधकार अभी
िक नहीं वदया गया है इसविए उ रावधकार स ी अवधवनयम की भी आि किा आ गयी है वजसमें यह
प्राविधान हो वक 25 िर्ष की अि था में उसे पै िृक स व अथाष ि दादा की स व वजसमें वपिा की अवजषि स व
र्शावमि न रहें , उसके अवधकार में हो जाये
वकसी भी वििार पर वकया गया आदान-प्रदान ही ापार होिा है और यह वजिनी गवि से होिा है
उिनी ही गवि से ापार, विकास और विनार्श होिा है दे र्श के विकास के विए धन के आदान-प्रदान को िेज
करना पड़े गा और ऐसे सभी वब दु ओं का पहिान करना होगा जो धन के आदान-प्रदान में बाधा डाििी है इसविए
कािेधन का मु ा अहम मु ा है ऐसे प्राविधान की आि किा है वक वजससे यह धन दे र्श के विकास में िगे
विवभ प्रकार के अनेकों सावह ों से भरे इस संसार में यह भी एक सम ा है वक हम वकस सावह
को पढ़े वजससे हमें ৯ान की व र्शीघ्रिा से प्रा हो जाये वि र्शा इस सम ा को हि करिे हुए एक ही
संगवठि पु क के रूप में उपि हो िुका है यह इस स कार्शी क्षेत्र की एक महान और ऐविहावसक उपिम्म
है वजसके कारण यह क्षेत्र सदै ि याद वकया जाये गा ”
- र्दु नार् वसिंह, पूिण विधार्क, चुनार क्षेत्र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 57


भाि-3
समाजिाद

समाज
समाजिाद
ामी वििेकान (12 जनिरी, 1863-4 जुलाई, 1902)
जावत, सिं ृ वत और समाजिाद
समाज नीवत
भारत का ऐवतहावसक क्रम विकास और अ प्रब
मेरी समर नीवत
डा0 राम मनोहर लोवहर्ा (23 माचण, 1910 - 12 अक्टु बर, 1967)
दीनदर्ाल उपा ार् (25 वसत र, 1916 - 11 िरिरी, 1968)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 58


समाज
समाज (society) एक से अवधक िोगों के समुदायों से वमिकर बने एक िृहद समूह को कहिे हैं
वजसमें सभी म्मि मानिीय वक्रयाकिाप करिे हैं मानिीय वक्रयाकिाप में आिरण, सामावजक सुरक्षा और वनिाष ह
आवद की वक्रयाएं सम्म विि होिी हैं समाज िोगों का ऐसा समूह होिा है जो अपने अंदर के िोगों के मुकाबिे
अ समूहों से काफी कम मेिजोि रखिा है वकसी समाज के आने िािे म्मि एक दू सरे के प्रवि पर र ेह
िथा सहृदयिा का भाि रखिे हैं दु वनया के सभी समाज अपनी एक अिग पहिान बनािे हुए अिग-अिग र ों-
ररिाजों का पािन करिे हैं
म्मि का िहार कुछ वनव ि िশों की पूविष के प्रयास की अवभ म्मि है उसकी कुछ नैसवगषक
िथा अवजषि आि किाएूँ होिी हैं जैसे काम, क्षुधा, सुरक्षा आवद इन अि किाओं की पूविष के अभाि में म्मि
में कुंठा और मानवसक िनाि से ग्रवसि हो जािा है िह इनकी पूविष यं करने में सक्षम नहीं होिा है अि: इन
आि किाओं की स क् संिुव के विए अपने दीघष विकास क्रम में मनु ने एक समव गि ि था को
विकवसि वकया है इस ि था को ही हम समाज के नाम से स ोवधि करिे हैं यह म्मियों का ऐसा संकिन है
वजसमें िे वनव ि संबंध और विवर्श िहार ारा एक दू सरे से बूँधे होिे हैं म्मियों की िह संगवठि ि था
विवभ कायों के विए विवभ मानदं डों को विकवसि करिी है , वजनके कुछ िहार अनुम और कुछ वनवर्द् ध
होिे हैं
समाज में विवभ किाष ओं का समािेर्श होिा है , वजनमें अंि:वक्रया होिी है इस अंि:वक्रया का भौविक
और पयाष िरणा क आधार होिा है प्र ेक किाष अवधकिम संिुव की ओर उ ुख होिा है सािषभौवमक
आि किाओं की पूविष समाज के अम्म को अक्षुਖ बनाए रखने के विए अवनिायष है िादा जवनि
आि किाएूँ संरिना क ि ों के सहअम्म के क्षेत्र का वनयमन करिी हैं वक्रया के उ ेर् की प्रणािी िथा
म्म थविज ि , वजनकी ओर वक्रया उ ुख है , समाज की संरिना का वनधाष रण करिे हैं संयोजक ि अंि:वक्रया
की प्रवक्रया को संिुविि करिे हैं वियोजक ि सामावजक संिुिन में िधान उपम्म थि करिे हैं वियोजक ि ों
के वनयंत्रण हे िु सं थाकरण ारा किाष ओं के संबंधों िथा वक्रयाओं का समायोजन होिा है इससे पार ररक
सहयोग की िृम्म होिी है और अंिविषरोधों का र्शमन होिा है सामावजक प्रणािी में म्मि को कायष और पद, दं ड
और पुर र, यो৓िा िथा गुणों से संबंवधि सामा वनयमों और ीकृि मानदं डों के आधार पर प्रदान वकए जािे
हैं इन अिधारणाओं की विसंगवि की म्म थवि में म्मि समाज की मा िाओं और विधाओं के अनुसार अपना
ि थापन नहीं कर पािा और उसका सामावजक िहार विफि हो जािा है ऐसी म्म थवि उ होने पर उसके
िশ की वसम्म नहीं हो पािी है कारण यह वक उसे समाज के अ सद ों का सहयोग नहीं प्रा होिा
सामावजक दं ड के इसी भय से सामा िः म्मि समाज में प्रिविि मा परं पराओं की उपेक्षा नहीं कर पािा है
िह उनसे समायोजन का हर संभि प्रयास करिा है
िूूँवक समाज म्मियों के पार ररक संबंधों की एक ि था है इसविए इसका कोई मूिष रूप नहीं
होिा इसकी अिधारणा अनुभूविमूिक है पर इसके सद ों में एक दू सरे की स ा और अम्म की प्रिीवि होिी
है ৯ान और प्रिीवि के अभाि में सामावजक संबंधों का विकास संभि नहीं है पार ररक सहयोग एिं संबंध का
आधार समान ाथष होिा है समान ाथष की वसम्म समान आिरण से ही संभि होिी है इस प्रकार का सामूवहक
आिरण समाज ारा वनधाष ररि और वनदे वर्शि होिा है ििषमान सामावजक मा िाओं की समान िশों से संगवि के
संबंध में सहमवि अवनिायष होिी है यह सहमवि पार ररक विमर्शष िथा सामावजक प्रिीकों के आ ीकरण पर
आधाररि होिी है इसके अविररि प्र ेक सद को यह वि ास रहिा है वक िह वजन सामावजक विधाओं को
उविि मानिा और उनका पािन करिा है , उनका पािन दू सरे भी करिे हैं इस प्रकार की सहमवि, वि ास एिं
िदनुरूप आिरण सामावजक ि था को म्म थर रखिे हैं म्मियों ारा सीवमि आि किाओं की पूविष हे िु
थावपि विवभ सं थाएूँ इस प्रकार कायष करिी हैं , वजससे एक समिेि इकाई के रूप में समाज का संगठन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 59


अप्रभाविि रहिा है असहमवि की म्म थवि अंििैयम्मिक एिं अंि:सं था क संघर्ों को ज दे िी है जो समाज के
विघट्न के कारण बनिे हैं यह असहमवि उस म्म थवि में पैदा होिी है जब म्मि सामूवहकिा के साथ आ ीकरण
में असफि रहिा है आ ीकरण और वनयमों को ीकार करने में विफििा कुिगवि अवधकारों एिं सीवमि
सद ों के प्रभु के प्रवि मूिभूि अवभिृव यों से संब की जा सकिी है इसके अविररि ेय वनव ि हो जाने के
प ाि अिसर इस विफििा का कारण बनिा है सामावजक संगठन का रूप कभी र्शा ि नहीं रहिा समाज
म्मियों का समुৡय है यह विवभ िশों की प्राम्म के विए विवभ समूहों में विभि है अि: मानि मन और
समूह मन की गविर्शीििा उसे वनरं िर प्रभाविि करिी रहिी है पररणाम रूप समाज पररििषनर्शीि होिा है
उसकी यह गविर्शीििा ही उसके विकास का मूि है सामावजक विकास पररििषन की एक विरं िन प्रवक्रया है जो
सद ों की आकां क्षाओं और पुनवनषधाष ररि िশों की प्राम्म की वदर्शा में उ ुख रहिी है संक्रमण की वनरं िरिा में
सद ों का उपक्रम, उनकी सहमवि और नूिनिा से अनुकूिन की प्रिृव वक्रयार्शीि रहिी है समाज में होने िािे
वक्रयाकिाप ही समाज को बाूँ ध कर रखिी हैं

पररभाषा
विवभ वि ानों ने समाज की वभ -वभ पररभार्ा की है -
ग्रीन ने समाज की अिधारणा की जो ाূा की है उसके अनुसार समाज एक बहुि बड़ा समूह है वजसका कोई
भी म्मि सद हो सकिा है समाज जनसंূा, संगठन, समय, थान और ाथों से बना होिा है
एडम म्म थ- मनु ने पार ररक िाभ के वनवम जो कृवत्रम उपाय वकया है िह समाज है
डॉ0 जे - मनु के र्शाम्म पूणष स ों की अि था का नाम समाज है
प्रो0 वगवडं ৗ- समाज यं एक संघ है , यह एक संगठन है और िहारों का योग है , वजसमें सहयोग दे ने िािे
म्मि एक-दू सरे से स ंवधि है
प्रो0 मैकाइिर- समाज का अथष मानि ारा थावपि ऐसे स ंधों से है , वज ें थावपि करने के विये उसे वििर्श होना
पड़िा है
संक्षेप में यह कहा जा सकिा है , समाज एक उ े पू णष समूह होिा है , जो वकसी एक क्षेत्र में बनिा है ,
उसके सद एक एिं अपन में बंधे होिे हैं
समाज की विशेषताएाँ
समाज की कविपय विर्शेर्िाएूँ वन विम्मखि हैं वज ें सामा िया सभी समाजर्शा ी ीकार करिे हैं -
एक से अवधक सद
िृहद सं ृ वि
क्षेत्रीयिा
सामावजक संबंधों का दायरा
िम विभाजन
समाज के विवभ रूप
समाज के कुछ रूप वन विम्मखि हैं -
1. पूिी समाज िथा पव मी समाज
2. पूिष-औ ोवगक समाज (वर्शकारी समाज, पर्शुपािक समाज, उ ान-समाज, कृवर् समाज, साम िादी
समाज), औ ोवगक समाज, िथा उ र-औ ोवगक समाज
3. सूिना समाज िथा ৯ान समाज
4. कुछ र्शैक्षवणक, ािसावयक और िै৯ावनक संघ अपने आप को “समाज” (सोसायट्ी) कहिे हैं , जैसे
अमेररकी गवणिीय समाज (American Mathematical Society), रॉयि सोसायट्ी आवद
5. कुछ दे र्शों में, कभी-कभी ापाररक इकाइयों को भी “समाज” कहा जािा है , जैसे कॉ-ऑपरे वट्ि सोसायट्ी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 60


समाजिाद
र्शासक और मागषदर्शष क आ ा सिष ापी है इसविए एका का अथष संयुि आ ा या सािषजवनक
आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा है िब िह समाज कहिािा है जब एका का अथष
म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है म्मि (अििार) संयुि आ ा का साकार रुप होिा है
जबवक म्मि (पुनजष ) म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन प्रणािी में समाज का समथषक दै िी
प्रिृव िथा र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या समाजि या जनि या बहुि
या राज कहिािा है और क्षेत्र गण रा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि
का समथषक असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸
कहिािा है ऐसी ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि
अपने -अपने अवधप के विए संघर्ष होिा रहा है जब-जब समाज में एकि ा क या राजि ा क अवधप
होिा है िब-िब मानििा या समाज समथषक अििारों के ारा गणरा৸ की थापना की जािी है या यूूँ कहें
गणि या गणरा৸ की थापना- थिा ही अििार का मूि उ े अथाष ि् िশ होिा है र्शेर् सभी साधन अथाष ि्
मागष

ामी वििेकान
(12 जनिरी, 1863-4 जुलाई, 1902)

जावत, सिं ृ वत और समाजिाद

01. सं ृ ि में “जावि“ का अथष है िगष या िेणी विर्शेर् यह सृव के मूि में ही वि मान है विवित्रिा अथाष ि् जावि
का अथष ही सृव है “एकोऽहं बहु ाम् “-मैं एक हूँ अनेक हो जाऊूँ विवभ िेदों में इस प्रकार की बाि पायी
जािी है सृव के पूिष एक रहिा है , सृव हुई वक विवित्रिा र्शुरु हुई अिः यवद यह विवित्रिा ब हो जाय िो
सृव का ही िोप हो जायेगा जब िक कोई जावि र्शम्मिर्शािी और वक्रयार्शीि रहे गी, िब िक िह विवित्रिा
अि पैदा करे गी ৸ोंवह उसका ऐसी विवित्रिा उ ादन करना ब होिा है या ब कर वदया जािा है
ोंवह िह जावि न हो जािी है जावि का मूि अथष था एिं सैकडों िर्ष िक यही अथष प्रिविि था, प्र ेक म्मि
को अपनी प्रकृवि को, अपने विर्शेर् को प्रकावर्शि करने की ाधीनिा आधुवनक र्शा ग्र ों में भी जावियों
का आपस में खाना-पीना वनवर् नहीं हुआ है और न वकसी प्रािीन ग्र में उनका आपस में ाह-र्शादी
करना मना है िो वफर भारि के अधःपिन का कारण क्या था?-जावि स ी इस भाि का ाग जैसे गीिा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 61


कहिी है -जावि न हुई वक संसार भी न हुआ यह हमें स ही प्रिीि होिा है वक इस विवित्रिा का नार्श होिे
ही जगि का भी नार्श हो जायेगा आजकि का िणष विभाग यथाथष जावि नहीं है , बम्म जावि की प्रगवि में िह
एक रुकािट् ही है (पत्राििी भाग-1, पृ -269)
02. प्र ेक दास जावि का मुূ दोर् ईष्र्या होिी है ईष्र्या और मेि का अभाि ही पराधीनिा उ करिा है और
उसे थायी बनािा है वजिना ही कोई रा र वनबषि या कायर होगा, उिना ही यह अिगुण अवधक प्रकट् होगा
(पत्राििी भाग-1, पृ -239)
03. िुमने मां स खाने िािे क्षवत्रयों की बाि उठाई है क्षवत्रय िोग िाहे मां स खाये या ना खाये , िे ही वह दू धमष की
उन सब ि ुओं के ज दािा हैं वजनको िुम महि और सु र दे खिे हो उपवनर्द् वकसने विखे थे? राम कौन
थे? िीकृ कौन थे ? बु कौन थे ? जैनों के विथंकर कौन थे? जब कभी क्षवत्रयों ने धमष का उपदे र्श वदया,
उ ोंने सभी को धमष पर अवधकार वदया और जब कभी ब्रा णों ने कुछ विखा उ ोंने औरों को सब प्रकार के
अवधकारों से िंविि करने की िे ा की गीिा और ास सूत्र पढ़ो या वकसी से सुन िो गीिा में मुम्मि की राह
पर सभी नर-नाररयों, सभी जावियों और सभी िणों को अवधकार वदया गया है , पर ु ास गरीब र्शूिों को
िंविि करने के विए िेद की मनमानी ाূा कर रहे हैं क्या ई र िुम जैसा मूखष है वक एक ट्ु कड़े मां स से
उसकी दया रुपी नदी में बाधा खड़ी हो जायेगी? अगर िह ऐसा ही है िो उसका मोि एक फूट्ी कौड़ी भी नहीं
(पत्राििी भाग-1, पृ -115)
04. हमारी अपनी वभ -वभ जावियों के होिे हुए भी और एक जावि के अ गषि उपजावियों में ही वििाह करने की
हमारी ििषमान प्रथा के रहिे हुए भी (य वप यह प्रथा सिषत्र नहीं है ) हमारा यह मानििंर्श हर िरह से वमविि
िंर्श ही कहा जा सकिा है (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -5)
05. भारििर्ष में यवद कोई उৡिर जावि में उठना िाहिा है , िो उसे पहिे अपनी समग्र जावि को उ ि करना
होगा, और वफर उसकी उ वि के मागष में रोकने िािा कुछ भी नहीं रहिा भारििर्ष की सामावजक ि था
का आधार क्या है ? िह है जावि-वनयम, जावि के विए ज िेिा है और जावि के विए ही जीिा है जावि में
ज िेने पर जावि के वनयमों के अनुसार ही स ूणष जीिन वबिाना होगा या आधुवनक भार्ा में इसे हम यों
कह सकिे हैं वक. . . पा ा मनु मानों िैयम्मि रूप से ज िेिा है और वह दू सामावजक रूप में (जावि,
सं ृ वि और समाजिाद, पृ -6)
06. हमारी जावियां और हमारी सं थाएं हमें एक रा र के रूप में सुरवक्षि रखने के विए आि क रही हैं और जब
इस आ रक्षा की आि किा नहीं रहे गी, िब ये ाभाविक रूप से न हो जायेंगी (जावि, सं ृ वि और
समाजिाद, पृ -7)
07. ऊूँिी िेणी िािों को नीिे खींिने से सम ा हि नहीं हो सकिी, बम्म नीिे की िेणीिािों को उपर उठाने से
ही िह हि होगी और यही कायष प्रणािी हम अपने सभी ग्र ों में पािे हैं (जावि, सं ृ वि और समाजिाद,
पृ -8)
08. यहाूँ सह ों जावियां हैं , और कुछ जावियां िो ब्रा ण िगष में भी प्रिेर्श पा गयी हैं कारण, वकसी भी जावि िािों
को “हम ब्रा ण हैं “ ऐसी घोर्णा करने से कौन रोक सकिा है ? इस प्रकार अपनी सम कठोरिा के साथ,
जावि वनमाष ण इसी िरह होिा रहा है मान िो, यहाूँ ऐसी अनेक जावियां हैं , वजनमें प्र ेक में दस हजार मनु
हैं अगर ये िोग एकमि होकर कहें वक “हम अपने को ब्रा ण कहें गे“ िो उनके रोकने िािा कौन है ?
र्शंकरािायष आवद र्शम्मिमान युग प्रििषक गण महान जावि वनमाष िा थे ((जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -
9-10)
09. भारि की यही योजना है वक प्र ेक म्मि को ब्रा ण बनाया जाय; क्योंवक ब्रा ण ही मानििा का आदर्शष है
ऐसी जावियां हैं , जो ऊपर उठ िुकी हैं और बहुि सी जावियां ऊपर उठें गी, जब िक वक सभी ब्रा ण नहीं बन
जािी यही योजना है वकसी को नीिे वगराये वबना हमें उनको ऊपर उठाना है हमारे पूिषजों का आदर्शष पुरुर्
ब्रा ण था (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -10)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 62


10. भारििर्ष में. . . िु ारी जावि सब से ऊूँिी िब वगनी जायेगी, जब िुम वकसी ऋवर् से पूिषज का स जोड़
सको, अ था नहीं “ब्रा ण आदर्शष “ से मेरा मििब क्या है ? मेरा मििब है -आदर्शष ब्रा ण , वजसमें संसारी
भाि वब ु ि नहीं और यथाथष ৯ान प्रिुर मात्रा में हो ब्रा ण-जावि और ब्रा ण-गुण दो वभ बािें हैं भारििर्ष
में मनु अपनी जावि के कारण ब्रा ण माना जािा है पर पा ा दे र्शों में िो िह ब्रा ण गुणों के कारण ही
ब्रा ण माना जा सकेगा (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -11)
11. भारििर्ष में भी ब्रा ण है , पर उ ोंने अपने भयंकर अ ािार के कारण दे र्श को न प्राय कर वदया है और
फििः जो कुछ उनमें भाविक गुण थे, िे क्रमर्शः न होिे जा रहे हैं मेरे वर्श सब ब्रा ण हैं !. . . ब्रा ण का
पुत्र सदा ब्रा ण ही होिा है ऐसा नहीं य वप हर िरह स ािना िो यही है वक िह ब्रा ण ही हो, वफर भी हो
सकिा है वक िैसा न भी हो (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -13)
12. जब िह िेिन के विए दू सरे की सेिा करने में िगा है , िब िह र्शूि है ; जब िह अपने िाभ के विए कोई ापार
कर रहा है , िब िै है , अ ािार के विरू जब िह िड़ रहा है , िब उसमें क्षवत्रय के गुण प्रकट् होिे हैं ; और
जब िह परमे र का ान करिा है या अपना समय ई र स ी िािाष िाप में वबिािा है , िब िह ब्रा ण है ,
अिएि यह है वक एक जावि दू सरी जावि में पररिविषि हो जाना वब ु ि स ि है अ था वि ावमत्र,
ब्रा ण और परर्शुराम, क्षवत्रय कैसे हुए (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -13)
13. हम पढ़िे हैं वक स युग में केिि एक ही जावि थी िह थी ब्रा ण हम महाभारि में पढ़िे हैं , प्रार में सारे
संसार में केिि ब्रा ण ही बसिे थे और जैसे-जैसे उनकी अिनवि होिी गयी, उनकी वभ -वभ जावियां बनिी
गयी; और जब िक्र घुमेगा, िब िे पुनः मूि थान ब्रा ण को प्रा होंगे यह िक्र अब घूम रहा है , इसी बाि
की ओर मैं िु ारा ान आकवर्षि करना िाहिा हूँ (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -20)
14. आधुवनक प्रवि धाष के प्रिविि होने से दे खो, जावि का वकिना र्शीघ्र िोप हो रहा है अब उसे वमट्ाने के विए
वकसी धमष की आि किा नहीं है उ र भारि में ब्रा ण जावि के िोग दू कानदारी करिे हुए िथा जूिे और
र्शराब बनािे हुए अनेक पाये जािे हैं ऐसा क्यों हुआ? प्रवि धाष के कारण ििषमान राजर्शासन में वकसी भी
मनु की अपनी आजीविका के विए िह िाहे जो करे , िंत्रिा है (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -26)
15. जावि प्रथा िो िेदा धमष के विरू है जावि एक सामावजक रूढ़ी है और हमारे सभी महान आिायष उसे
िोड़ने का प्रय करिे आये हैं बौ धमष से िगाकर सभी पंथों ने जावि के विरू प्रिार वकया है , वक ु
प्र ेक समय िह िृंखिा ढ़ होिी है जावि िो केिि भारि िर्ष की राजनीविक सं थाओं से वनकिी हुई है ;
िह एक पर रागि ािसावयक सं था है धमष में कोई जावि नहीं होिी, जावि िो केिि एक सामावजक रूवढ़
है (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -32)
16. कोई भी म्मि, िाहे िह र्शूि हो या िाਔाि, ब्रा ण को भी ि ৯ान की वर्शक्षा दे सकिा है स की वर्शक्षा
अ नीि म्मि से भी िी जा सकिी है , िह म्मि वकसी भी जावि या प का क्यों न हो हमारे
अवधकां र्श उपवनर्द् क्षवत्रयों के विखे हुए हैं भारििर्ष में हमारे म आिायष अवधकिर क्षवत्रय ही थे और
उनके उपदे र्श सदा सािषभौवमक रहे हैं . . . राम, कृ , बु , वजनकी पूजा अििार मानकर की जािी है , ये सब
क्षवत्रय ही थे (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -33)
17. उन िोगों को समाज पुरोवहिों के अवधकार से िुर िंविि कर दे िा है उन िथाकवथि ब्रा णों के ब्रा ण
पर समाज की कोई ि ा नहीं है , जो वर्शखा रखने के बदिे बािों को संिारिे हैं , जो अपने पुरािन आिारों और
पूिषजों की रूवढ़यों को ागकर अधष-यूरोवपयन पोर्शाक पहनिे हैं िथा पररिम से आये हुए रीवि-ररिाजों का
दोगिे ढं ग से पािन करिे हैं (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -41)
18. जो िोग पुरोवहि िगष के अवधप को न करने की िे ा का दोर् अ वकसी एक म्मि या जनसमूह के माथे
मढ़ना िाहिे हैं , उ ें यह जान िेना िावहए वक प्रकृवि के अट्ि वनयम के िर्शीभूि होकर ही ब्रा ण जावि
अपने ही हाथों अपनी कब्र खोद रही है ; और यही होना भी िावहए उৡ घराने में ज िेने िािे और विर्शेर्

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 63


अवधकार रखने िािे प्र ेक जावि के िोग अपने ही हाथों अपनी वििा िैयार करना अपना मुূ किष बना
िें, यही अৢा और उपयु ि है (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -42)
19. पुरोवहिी दि भारििर्ष के विए अवभर्शाप रूप है क्या कोई मनु अपने भाई को नीिे वगराकर यं अपने
को नीिे वगरने से बिा सकिा है ? क्या कोई यं को िोट् पहुं िाये वबना दू सरे को िोट् पहुं िा सकिा है
ब्रा णों और क्षवत्रयों के अ ािार अब यं उ ीं के वसरों पर िक्रिृम्म ाज सवहि ट्ू ट् पड़े हैं और कमषफि
के अट्ि वनयमानु सार उ ें एक सह िर्ष िक दास और अधःपिन भोगना पड़ रहा है (जावि, सं ृ वि
और समाजिाद, पृ -40-42)
20. मुझे इस बाि का खेद है वक ििषमान काि में जावियों के बीि इिना वििाद (विरोध) है यह िो अि ब
होना िावहए यह दोनों ओर से वनरथषक है , विर्शेर्कर उৡ जावि िािों (ब्रा णों) की ओर से , क्योंवक अब इन
अवधकारों और विर्शेर् हकों के वदन बीि गये समाज के प्र ेक उৡ पदावधकारों का किष है वक िह अपने
विर्शेर्ावधकरों की कब्र आप ही खोदे और वजिना र्शीघ्र हो, उिना ही सब के विए बेहिर होगा वजिनी दे र
होगी, उिना ही िह सड़े गा और उिनी ही बुरी मौि िह मरे गा इसीविए भारििर्ष में ब्रा ण का यह किष है
वक िह र्शेर् मानि जावि की मुम्मि के विए कमषर्शीि बने यवद िह ऐसा करिा है और जब िक िह ऐसा
करिा है िभी िक िह ब्रा ण है ; पर जब िह केिि पैसा कमाने में िग जािा है िब िह ब्रा ण नहीं है
(जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -50)
21. रक्षा का एक ही उपाय, अपनी म्म थवि सुधारने का एक मात्र मागष, जो िुम वन जावििािों को मैं बििािा हूँ , िह
है सं ृ ि का अ यन उৡ जावियों के साथ िड़ना-वभड़ना, उनके विरू िेख विखना और कुड़कुड़ाना
सब थष है उसमें कोई भिाई नहीं, उससे िो िड़ाई-झगड़े ही पैदा होिे हैं ; और इस रा र में जहाूँ दु भाष ৓िर्श
पहिे से ही फूट् फैिी हुई है , और भी अवधक फूट् फैि जायेगी जावियों को समिि करने का एक ही मागष है ,
उस सं ृ वि को, उस वर्शक्षा को अपनाना, जो उৡिर जावियों का बि है इिना कर िेने पर िुम अपनी इ
ि ु को प्रा कर िोगे (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -69)
22. कोई भी म्मि, जो ब्रा ण होने का दािा करिा है , अपने इस दािे को, पहिे िो अपनी आ ाम्म किा प्रकट्
कर और ि ाि् दू सरों को भी उसी िेणी में उठाकर, प्रभाविि करें पर वदखायी यह दे िा है वक उनमें से
अवधकिर ऐसे हैं , जो केिि ज के कारण वम ा अवभमान कर रहे हैं ब्रा णों! सािधान! यह मृ ु के िक्षण
हैं ! उठकर खड़े हो जाओ और अपने आस-पास के अ-ब्रा णों को उ ि बनाकर अपना मनु , ब्रा ण
वदखाओ यह कायष न िो ामी भाि से करो, और न ही इस कायष में पूिष िथा पव म के अ वि ास एिं कपट्
िहार युि घृणा द अहं भाि ही हो; यह कायष िो केिि सेिा की भािना में वकया जाय कारण, यह वनव ि
स है वक जो सेिा करना जानिा है , िही र्शासन करना भी जानिा है यवद कोई ब्रा ण समझिा है वक उसमें
आ ाम्म क सं ृ वि के विए विर्शेर् यो৓िा है , िो उसे खुिे क्षेत्र में र्शूि के साथ उिर आने में क्या डर है ? क्या
बवढ़या घोड़ा अवड़यि ट्ट्् ट्ू के साथ घुड़दौड़ करने में डरे गा? (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -71-73)
23. यवद र्शूि जावि में कोई असाधारण बुम्म और यो৓िा िािा मनु पैदा हो जाय, िो समाज के प्रभािर्शािी उৡ
िगषिािे म्मि िुर उस पर पदवियों ारा स ान की िृव करके उसे यं अपने िगष में उठा िेिे थे इस
प्रकार उसकी स व और बुम्म की र्शम्मि का उपयोग अ जावि के िाभ के विए हो जािा है , जब वक
उसकी अपनी जावि िािे उसके गुणों से कोई िाभ नहीं उठा पािे थे िवर्श , नारद, स काम, जाबाि, ास,
कृप, िोण, कणष िथा अ दू सरे , वजनके मािा-वपिा के स में वनव ि जानकारी नहीं है , विर्शेर् वि ान या
पराक्रमी होने के कारण ब्रा ण या क्षवत्रय पद पर प्रविव ि कर वदये गये थे ; पर दे खना यह है वक इस प्रकार
उनके ऊपर िढ़ जाने से िे ा, दासी, ढीमर या सूि जावि को क्या िाभ हुआ? वफर, इसके विपरीि, ब्रा ण,
क्षवत्रय या िै िगों के पविि मनु सदै ि र्शूिों के पद पर नीिे उिार वदये जािे थे (जावि, सं ृ वि और
समाजिाद, पृ -79)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 64


24. ऐ भाइयों! सब िोग उठो! जागो! अब और वकिनी दे र िक सोिे रहोगे ?. . . अब िक ब्रा णों ने धमष पर
एकावधप कर रखा है ; पर िे जब काि के प्रबि िरं ग के विरू अपना एकावधप नहीं रख सकिे , िब
ििो, और ऐसे प्रय करो वक दे र्श भर में प्र ेक को िह धमष प्रा हो जाय उनके मन में यह बैठा दो वक
ब्रा णों के समान उनका भी धमष पर िही अवधकार है (जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -85)
25. भारि की उৡ जावििािों, िुम िाहे वजिना भी अपने को आयष पूिषजों की संिान कहने का प्रदर्शषन करो, िाहे
वजिना भी प्रािीन भारि के िैभि का राि वदन गुणगान करो और अपने ज के अवभमान में अकड़िे रहो, पर
क्या िुम ऐसा समझिे हो वक िुम सजीि हो? िुम िो दस सह िर्ों से सुरवक्षि रखे हुए मृि दे ह जैसे ही हो!
भारििर्ष में जो थोड़ी बहुि जीिन र्शम्मि अभी भी है , िह उ ीं में वमिेगी; वज ें िु ारे पू िषज “िििे -वफरिे,
सड़े -ग े , मां स वपਔ“ मानकर घृणा करिे थे और यथाथष में “िििे हुए मुदे“ िो िुम िोग हो िु ारे घर- ार,
िु ारे साज-समान ऐसे वनजीि और पुराने हैं वक िे अजायबघर के नमूनों के समान वदखाई दे िे हैं और िु ारे
रीवि-ररिाज, िाि-ढ़ाि और रहन-सहन को दे खकर कोई भी यही सोिेगा वक “नानी की कहानी“ सुन रहा है
(जावि, सं ृ वि और समाजिाद, पृ -85)
26. अब वब्रवट्र्श राज-र्शासन में प्रविब रवहि वर्शक्षा एिं ৯ान प्रसार के वदनों में, उन सब ि ुओं को अपने
उ रावधकाररयों को सौंप दो यह बाि यथा स ि र्शीघ्र कर डािो िुम अपने को र्शू में िीन करके अ
हो जाओ और अपने थान में “नि-भारि“ का उदय होने दो उसका उदय हि ििाने िािे वकसान की
कुवट्या से, मछु ए, मोवियों और मेहिरों की झोपवड़यों से हो बवनये की दु कान से, रोट्ी बेिने िािे की भਂी के
पास से िह प्रकट् हो कारखानों, हाट्ों और बाजारों से िह वनकिे िह “नि भारि“ अमराइयों और जंगिों से ,
पहाड़ों और पिषिों से प्रकट् हो ये साधारण िोग सह ों िर्ों से अ ािार सहिे आये हैं , वबना कुड़बुड़ाये
उ ोंने यह सब सहा है और पररिम में उ ोंने आ यषकारक धैयष र्शम्मि प्रा कर िी है िे सिि् विपव सहिे
रहे हैं , वजससे उ ें अविरि जीिन र्शम्मि प्रा हो गयी है मु਄ी भर अ से पेट् भरकर िे संसार को कूँपा
सकिे हैं उनमें “रिबीज“ की अक्षय जीिनर्शम्मि भरी है इसके अविररि उनमें पवित्र और नीवियुि
जीिन से आने िािा िह आ यषजनक बि है जो संसार में अ त्र नहीं वमििा ऐसी र्शम्मि, ऐसा संिोर्, ऐसा
प्रेम और िुपिाप सिि् कायष करने की ऐसी र्शम्मि और कायष के समय इस प्रकार वसंह बि प्रकट् करना, यह
सब िु ें अ त्र कहाूँ वमिेगा? भूिकाि के कंकाि! दे खो िु ारे सामने िु ारे उ रावधकारी खड़े हैं , भािी
भारि िर्ष खड़ा है अपने अ होिे ही िਚाि िुम पुनजाष ि भारििर्ष का िह प्रथम उद् घोर् सुनोगे , वजसकी
करोड़ों गजषनाओं से सारे वि में यही पुकार गूूँजिी रहे गी-“िाह गुरु की फिह!“ (जावि, सं ृ वि और
समाजिाद, पृ -86-87)

समाज नीवत

01. सभी कािों में प्रािीन ररवियों को नये ढं ग में पररिविषि करने से ही उ वि हुई है भारि में प्रिीन युग में भी धमष
प्रिारकों ने इसी प्रकार काम वकया था केिि बु दे ि के धमष ने ही प्रािीन ररवि और नीवियों का वि ंस
वकया था भारि से उसके वनमूषि हो जाने का यही कारण है (वििेकान जी के संग में , पृ -19)
02. िथाकवथि समाज सुधार के विर्य में ह क्षेप न करना क्योंवक पहिे आ ाम्म क सुधार हुये वबना अ वकसी
भी प्रकार का सुधार हो नहीं सकिा (पत्राििी भाग-1, पृ -296)
03. िोगों को यवद आ वनभषरर्शीि बनने की वर्शक्षा नहीं दी जाय िो जगि के स ूणष ऐ यष पूणष रुप से प्रदान करने
पर भी भारि के एक छोट्े से छोट्े गाूँ ि की भी सहायिा नहीं की जा सकिी वर्शक्षा प्रदान हमारा पहिा काम
होना िावहए, िररत्र एिं बुम्म दोनों के ही उਚर्ष साधन के विए वर्शक्षा वि ार आि क है (पत्राििी भाग-2,
पृ -125)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 65


04. मेरे भाई वबना अिरोध के कोई भी अৢा काम नहीं हो सकिा जो अ िक प्रय करिे हैं उ ें सफििा
प्रा होिी है मेरा वि ास है वक जब एक जावि, एक िेद, र्शाम्म और एकिा होगी िब सियुग आयेगा िह
सियुग का वििार ही भारि को पुनः जीिन प्रदान करे गा वि ास रखो (पत्राििी भाग-1, पृ -127)
05. वपछिे महापुरुर् अब कुछ प्रािीन हो ििे हैं अब निीन भारि है वजसमें निीन ई र, निीन धमष और निीन
िेद है हे भगिान भूिकाि पर वनर र ान िगा रखने की आदि से हमारा दे र्श कब मुि होगा? अৢा,
अपने मि में थोड़ी कਂरिा भी आि क है पर ु दू सरे की ओर हमें विरोध भाि नहीं रखना िावहए (पत्राििी
भाग-1, पृ -442)
06. हमेर्शा यूरोप से सामावजक िथा एवर्शया से आ ाम्म क र्शम्मियों का उ ि होिा रहा है एिं इन दोनों र्शम्मियों
के विवभ प्रकार के सम्म िण से ही जगि का इविहास बना है ििषमान मानिेविहास का एक और निीन पृ
धीरे -धीरे विकवसि हो रहा है एिं िारो ओर उसी का वि वदखाई दे रहा है वकिनी ही निीन योजनाओं का
उ ि िथा नार्श होगा, वक ु यो৓िम ि ु की प्रवि ा सुवनव ि है , स और वर्शि की अपेक्षा यो৓िम ि ु
और हो ही क्या सकिी है ? (पत्राििी भाग-1, पृ -310)
07. बौ धमष और नि वह दू धमष के स में मेरे वििारों में क्रां विकारी पररििषन हुआ है उन वििारों को वनव ि
रुप दे ने के विए कदाविि मैं वजविि न रहूँ पर ु उसकी कायषप्रणािी का संकेि मैं छोड़ जाऊूँगा और िु ें
और िु ारे भ्रािृगणों को उस पर काम करना होगा (पत्राििी भाग-2, पृ -310)

भारत का ऐवतहावसक क्रम विकास और अ प्रब

01. जावि सम ा का सूत्रपाि था एिं भारि में कमषकाਔ, दर्शषन िथा जड़िाद के म उस वत्रभुजा क संग्राम का
मूि भी यही था वजसका समाधान हमारे इस युग िक स ि नहीं हो पाया है इस सम ा के समाधान का
प्रथम प्रयास था-सिषसम य के वस ा का उपयोग, वजसने आवदकाि से ही मनु को अनेक में भी
विवभ रूपों में िवक्षि एक ही स के दर्शषन की वर्शक्षा दी इस स दाय के महान नेिा क्षवत्रय िगष के यं
िीकृ एिं उनकी उपदे र्शाििी गीिा ने, जैवनयों, बौ ों एिं इिर जन स दायों ारा िायी गयी उथि-पुथि
के फि रूप विविध क्राम्म यों के बाद भी अपने को भारि का “अििार“ एिं जीिन का यथाथषिम् दर्शषन वस
वकया य वप थोड़े समय के विए िनाि कम हो गया, िेवकन उसके मूि में वनवहि सामावजक अभािों का,
जावि पर रा में क्षवत्रयों ारा सिषप्रथम होने का दािा एिं पुरोवहिों के विर्शेर्ावधकार की सिषविवदि असवह ुिा
का, जो अनेक कारणों से दो थे , समाधान इससे नहीं हो सका जाविभेद एिं विंगभेद को ठु कराकर कृ ने
आ ৯ान एिं आ साक्षाਚार का ार सब के विए समान रूप से खोि वदया, िेवकन उ ोंने इस सम ा को
सामावजक र पर ৸ों का ों बना रहने वदया पुनः यह सम ा आज िक ििी आ रही है (भारि का
ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -6)
02. भारि के इविहास में साधारणिः दे खा गया है वक धावमषक उथि-पुथि के बाद सदा ही एक राजनीविक एकिा
थावपि हो जािी है , जो ूनावधक रूप से सम दे र्श में ा हो जािी है इस एकिा के फि रूप उसको
ज दे ने िािा धावमषक व कोण भी र्शम्मिर्शािी बनिा है (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ
प्रब , पृ -14)
03. भौविकीकरण की अथाष ि् याम्म क वक्रया-किाप के र की ओर अवधकावधक म्मखंििे जाने की इৢाएं , पर्शु
मानि की है इम्म यों के इन सम ब नों का वनराकरण कर दे ने की इৢा उ होने पर ही मनु के
हृदय में धमष का उदय होिा है इस प्रकार हम दे खिे हैं वक धमष का समग्र अवभप्राय मनु को इम्म यों के
ब नों में फंसने से बिाना और अपनी िंत्रिा को वस करने में उसकी सहायिा करना है उस िশ की
ओर वनिृव की इस र्शम्मि के प्रथम प्रयास को नैविकिा कहिे हैं समग्र नैविकिा का अवभप्राय इस अधःपिन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 66


को रोकना और इस ब न को िोड़ना है सम नैविकिा को विधायक और वनर्ेधा क ि ों में विभि
वकया जा सकिा है (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -18)
04. प्रकृवि िीन रूपों में प्रा होिी है - ई र, िेिन और अिेिन अथाष ि् ई र, म्मििायुि आ ाएं और अिेिन
प्राणी इन सब की िा विकिा ब्र है , य वप माया के कारण िह विविध प्रिीि होिा है वक ु ई र का
दर्शषन िा विकिा के वनकट्िम और उৡिम है ( म्मििायुि) सगुण ई र की धारणा मनु के विए
सिोৡ स ि वििार है ई र में आरोवपि सम गुण उसी अथष में स है , वजसमें प्रकृवि के गुण स है
वफर भी हमें यह कभी नहीं भूिना िावहए वक सगुण ई र माया के मा म से दे खा जाने िािा ब्र ही है
(भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -34)
05. वजस वकसी जावि में र्श -बि आिा है , िह क्षवत्रय हो जािी है ; वजस वकसी जावि में ৯ान-बि आिा है , िह
ब्रा ण हो जािी है और वजस वकसी जावि में धन-बि आिा है , िह िै हो जािी है (भारि का ऐविहावसक
क्रम विकास और अ प्रब , पृ -38)
06. क्षवत्रय , ब्रा ण बनने के विए यह सोपान पार करना होगा अिीि में कुछ ने पार कर विया होगा, पर ििषमान
के िोगों को िो प्र क्ष वदखाना होगा (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -56)
07. इसविए सब से बड़ी सम ा है इन विविध ि ों का वबना उनका विवर्श म्मि न वकये हुये , सम य
करना, उ ें एक सूत्र में बां ध दे ना (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -56)
08. यही अ ै ि दर्शषन की मवहमा है जो एक ि का उपदे र्श दे िा है , म्मि का नहीं; और वफर भी िौवकक और
अिौवकक, दोनों ही प्रकार के म्मियों को कायष करने का पूणष अिसर दे िा है (भारि का ऐविहावसक क्रम
विकास और अ प्रब , पृ -56)
09. भवि में यह होने जा रहा है यवद र्शेर् सम समुदायों के िम का उपयोग करने िािी एक जावि की र्शम्मि
की अवभ म्मि कम से कम एक विर्शेर् अिवध में आ यषजनक फि उ कर सकिी है िो वफर यहाूँ उन
सम जावियों का संियन और के ीकरण होने जा रहा है , वजनके वििारों का और रि का सम्म िण म
गवि से , पर अवनिायष रूप से होिा आ रहा है और मैं अपने मानस िৢु ओं से उस भािी विराट्-पुरुर् को
धीरे -धीरे पररपि होिा दे ख रहा हूँ , धरिी के सम रा र ों में कवन िम, सिाष वधक मवहमामम्मਔि और ৸े िम
भारि का भवि (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -57)
10. कवियुग में दान ही एकमात्र कमष है जब िक कमष ारा र्शु न हो िब िक वकसी को ৯ान की प्राम्म नहीं
होिी आ ाम्म क और िौवकक ৯ान का दान रा र की पुकार- ाग, ागी पु रुर् (भारि का ऐविहावसक
क्रम विकास और अ प्रब , पृ -57)
11. सुदूर भवि में दे ख सकने की वििार-र्शम्मि और ििषमान में अिीि पुनः प्र ुि कर सकने िािी रण र्शम्मि
हमारे विए वगषक जीिन सुिभ बना दे िी है ; िही हमें नरक का जीिन वबिाने को भी वििर्श कर दे िी है
(भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -67)
12. वनयम कभी घट्नािक्र से, वस ा कभी म्मि से वभ नहीं होिा अपनी सीमा के भीिर, पृथक पदाथष की,
वक्रया अथिा वनम्म य सम म्म थवि की विवध ही वनयम कही जािी है (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और
अ प्रब , पृ -68)
13. वनयम पदाथों की यथाम्म थवि में है , इस विवध से वक पदार् थ एक दू सरे के प्रवि कैसे वक्रयमान होिे हैं ; न वक कैसे
उ ें होना िावहए (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -68)
14. आ ाम्म क वनयम, नैविक वनयम, सामावजक वनयम, रा र ीय वनयम, िभी वनयम है जब िे प्र ुि आम्म क और
मानि इकाईयों के अंग हो और इन वनयमों से र्शावसि मानी जाने िािी प्र ेक इकाई को कमष की अवनिायष
अनुभूवि हो (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -68)
15. हमारा वनमाष ण वनयम ारा और हमारे ारा वनयम का वनमाष ण, यह िक्र िििा है कुछ विवर्श पररम्म थवियों में
मनु अवनिायषिः क्या करिा है , इस स में सामा वन र्ष, एक उन पररम्म थवियों के स में मनु पर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 67


िागू होने िािा वनयम है अिि, सािषभौम मानिीय ापार ही मनु का वनयम है , वजससे कोई भी म्मि बि
नहीं सकिा, वक ु यह भी स है वक अिग-अिग म्मियों के कायों का योग ही सािषभौम वनयम है पूणष
योग या सािषभौम अथिा असीम ही म्मि का वनमाष ण कर रहा है और म्मि अपने वक्रया से उस विधान को
सजीि बनाये हुए है इस अथष में वनयम सािषभौम का ही दू सरा नाम है सािषभौम, म्मि पर वनभषर है , म्मि,
सािषभौम पर वनभषर है यह अन र्शा अंर्शों से वनवमषि है (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ
प्रब , पृ -69)
16. आ ाम्म क और नैविक वनयम प्र ेक मनु की वक्रया प वि नहीं है र्शीिािार, नैविकिा, और रा र ीय
वनयमों के पािन की अपेक्षा इनका उ ंघन ही अवधक वकया जािा है यवद ये सब वनयम होिे िो भंग कैसे
वकये जा सकिे (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -70)
17. प्रकृवि के वनयमों के विपरीि जाने की साम य वकसी भी म्मि में नहीं है िो वफर ऐसा क्यों है वक हम सिषदा
मनु ारा नैविक और रा र ीय वनयमों के भंग वकये जाने की वर्शकायि सुनिे हैं ? (भारि का ऐविहावसक क्रम
विकास और अ प्रब , पृ -70)
18. रा र ीय वनयम, अपने सिोਚृ रूप में, रा र के बहुमि की इৢा के मूिष रूप है , सिषदा एक अ म्म थवि, न वक
यथाथष म्म थवि इस प्रकार प्राकृविक वनयमों के स में प्रयुि “वनयम“ र्श का अथष सामा िः नीविर्शा
और मानि वक्रयाओं की भूवमका में बहुि बदि जािा है (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब ,
पृ -70)
19. संसार के नैविक वनयमों का वि ेर्ण करने पर और यथाथष म्म थवि से उनकी िुिना करने पर दो वनयम
सिोपरर ठहरिे हैं एक है अपने से प्र ेक ि ु के विकर्षण का वनयम, हर म्मि से अपने को पृथक करना
वजसका पररणाम होिा है , अ िः दू सरों की सुख-सुविधा की बवि दे कर भी अपने अ ुदय की वसम्म दू सरा
है आ -बविदान का विधान, अपनी वि ा से सिषथा मुम्मि7सिषदा केिि दू सरों का ान करना संसार में
महान और स ुरुर् िे हैं वजनमें यह दू सरी क्षमिा प्रबि होिी है वफर भी ये दोनों र्शम्मियाूँ साथ-साथ संयुि
रूप से काम कर रही हैं ; प्रायः प्र ेक म्मि में िह वमिी हुई पायी जािी हैं , एक या दू सरी प्रमुख होिी है
िोर, िोरी करिा है ; पर र्शायद, वकसी दू सरे के विए वजसे िह ार करिा है (भारि का ऐविहावसक क्रम
विकास और अ प्रब , पृ -70)
20. मुम्मि ही वि की प्रेरक है और मुम्मि ही इसका िশ है प्रकृवि के वनयम में ऐसी प वियाूँ हैं वजनके ारा
हम जगद ा के वनदे र्शन में, उस मुम्मि िक पहुूँ िने का संघर्ष करिे हैं मुम्मि के विए इस वि ापी संघर्ष
की सिोৡ अवभ म्मि मनु में मुि होने की सजग अवभिार्ा के रूप में होिी है यह मुम्मि िीन प्रकार से
प्रा होिी है -कमष , उपासना और ৯ान से कमष-दू सरों की सहायिा करने और दू सरों को प्रेम करने का सिि
अविरि प्रय उपासना-प्राथषना-ि ना, गुणगान और ान ৯ान-जो ान से उ होिा है (भारि का
ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -73)

मेरी समर नीवत

01. जो मनु अपने जीिन के िौदह िर्ों िक िगािार उपिास का मुकाबिा करिा रहा हो, वजसे यह भी न
मािूम रहा हो वक दू सरे वदन का भोजन कहाूँ से आयेगा, सोने के विए थान कहाूँ वमिेगा, िह इिनी सरििा
से धमकाया नहीं जा सकिा जो मनु वबना कपड़ों के और वबना यह जाने वक दू सरे समय भोजन कहाूँ से
वमिेगा, उस थान पर रहा हो, जहाूँ का िापमान र्शू से भी िीस वडग्री कम हो, िह भारििर्ष में इिनी सरििा
से नहीं डराया जा सकिा यही पहिी बाि है जो में उनसे कहं गा, मुझमें अपनी थोड़ी ढ़िा है , मेरा थोड़ा वनज
का अनुभि भी है , और मुझे संसार को कुछ संदेर्श दे ना है और यह स े र्श मैं वबना वकसी डर के, वबना वकसी
प्रकार भवि की वि ा वकये सब के समक्ष घोवर्ि करू ं गा (मेरी समर नीवि, पृ -12)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 68


02. सुधारकों से मैं कहं गा वक मैं यं उनसे कहीं बढ़कर सुधारक हूँ िे िोग इधर-उधर थोड़ा सुधार करना िाहिे
हैं , और मैं िाहिा हूँ आमूि सुधार हम िोगों का मिभेद है केिि सुधार की प्रणािी में उनकी प्रणािी
विनार्शाि् मक है और मेरी संघट्ना क मैं सुधार में वि ास नहीं करिा, मैं वि ास करिा हूँ ाभाविक उ वि
में (मेरी समर नीवि, पृ -13)
03. सामावजक ावध का प्रविकार बाहरी उपायों ारा नहीं होगा; हमें उसके विए भीिरी उपायों का अिि न
करना होगा, मन पर कायष करने की िे ा करनी होगी िाहे हम वकिनी ही ि ी िौड़ी बािें क्यों न करें , हमें
जान िेना होगा वक समाज के दोर्ों को दू र करने के विए प्र क्ष रूप से नहीं िरन् वर्शक्षादान ारा परोक्ष रूप
से उसकी िे ा करनी होगी (मेरी समर नीवि, पृ -15)
04. हम मानिे हैं वक यहाूँ बुराईयाूँ हैं पर बुराई िो हर कोई वदखा सकिा है मानि समाज का सৡा वहिैर्ी िो िह
है , जो इन बुराईयों को दू र करने का उपाय बिाये कोई एक दार्शषवनक एक डु बिे हुए िड़के को गंभीर भाि से
उपदे र्श दे रहा था, िो िड़के ने कहा-“पहिे मुझे पानी से बाहर वनकाविए, वफर उपदे र्श दीवजए“ बस ठीक
इसी िरह भारििासी भी कहिे हैं , “हम िोगों ने बहुि ाূान सुन विए, बहुि सी सं थायें दे ख िी, बहुि से
पत्र पढ़ विये , अब िो हमें ऐसा मनु िावहए, जो अपने हाथ का सहारा दे , हमें इन दु ःखों के बाहर वनकाि दे
कहाूँ है िह मनु जो हमसे िा विक प्रेम करिा है , जो हमारे प्रवि सৡी सहानुभूवि रखिा है ?“ बस उसी
आदमी की हमें जरूरि है यहीं पर मेरा इन समाज सुधार आ ोिनों से सिषथा मिभेद है आज सौ िर्ष हो
गये , ये आ ोिन िि रहे हैं , पर वसिाय वन ा और वि े र्पूणष सावह की रिना के इनसे और क्या िाभ हुआ
है ? (मेरी समर नीवि, पृ -17)
05. प्र ेक भारिीय भार्ा में ऐसे सावह की रिना हो गयी है , जो जावि के विए, दे र्श के विए किंक रूप है
क्या यही सुधार है ! क्या इसी िरह दे र्श गौरि पथ पर बढ़े गा यह है वकसका दोर्? (मेरी समर नीवि, पृ -18)
06. भारििर्ष में हमारा र्शासन सदै ि राजाओं ारा हुआ है , राजाओं ने ही हमारे सब कानून बनाये हैं अब िे राजा
नहीं है , और इस विर्य में अग्रसर होने के विए हमें मागष वदखाने िािा अब कोई नहीं रहा सरकार साहस नहीं
करिी िह िो सिषसाधारण के वििारों की गवि दे खकर ही अपनी कायषप्रणािी वनव ि करिी है अपनी
सम ाओं को हि कर िेने िािा एक क ाणकारी और प्रबि िोकमि थावपि करने में समय िगिा है ,
काफी ि ा समय िगिा है , इस बीि हमें प्रिीक्षा करनी होगी अिएि सामावजक सुधार की स ूणष सम ा
यह रूप िेिी है , कहाूँ हैं िे िोग, जो सुधार िाहिे हैं (मेरी समर नीवि, पृ -18)
07. मु਄ी भर िोग, जो सोििे हैं वक कविपय बािें दोर्पूणष हैं , रा र को गवि नहीं दे सकिे रा र में आज गवि क्यों
नहीं है ? क्यों िह जड़भािाप है ? पहिे रा र को वर्शवक्षि करो, अपनी वनजी विधायक सं थाएं बनाओ, वफर िो
वनयम आप ही आप आ जायेंगे वजस र्शम्मि के बि से, वजसके अनुमोदन से विधान का गठन होगा, पहिे
उसकी सृव करो आज राजा नहीं रहे ; वजस नयी र्शम्मि से, वजस नये दि की स वि से नयी ि था गवठि
होगी, िह िोकर्शम्मि कहाूँ है ? (मेरी समर नीवि, पृ -19)
08. आजकि विर्शेर्िः दवक्षण में बौ धमष और उसके अ৯ेयिाद की आिोिना करने की एक प्रथा सी िि पड़ी
है यह उ ें में भी ान नहीं आिा वक जो विर्शेर् दोर् आजकि हमारे समाज में वि मान है , िे सब बौ
धमष ारा ही छोड़े गये हैं (मेरी समर नीवि, पृ -20)
09. बौ धमष के इिने वि ार का कारण था, गौिम बु ारा प्रिाररि अपूिष नीवि और उनका िोको र िररत्र
भगिान बु दे ि के प्रवि मेरी यथे ि ा-भम्मि है पर मेरे र्श ों पर गौर कीवजए बौ -धमष का वि ार उि
महापुरुर् के मि एिं अपूिष िररत्र के कारण उिना नहीं हुआ, वजिना बौ ों ारा वनमाष ण वकये गये बड़े -बड़े
मम्म रों एिं भ प्रविमाओं के कारण, समग्र दे र्श के स ुख वकये गये भड़कीिे उ िों के कारण पर अ में
इन सब वक्रयाकिापों में भारी अिनवि हो गयी ऐसी अिनवि वक उसका िणषन भी िोिाओं के सामने नहीं
वकया जा सकिा (मेरी समर नीवि, पृ -20)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 69


10. क्या भारििर्ष में कभी सुधारकों का अभाि था? क्या िुमने भारि का इविहास पढ़ा है ? रामानुज, र्शंकर, नानक,
िैि , कबीर और दादू कौन थे ? ये सब बड़े -बड़े धमाष िायष , जो भारि-गगन में अ उ৭ि नक्षत्रों की नाई
एक के बाद उवदि हुये , वफर अ हो गये, कौन थे ? क्या रामानुज के हृदय में नीि जावि के विए प्रेम नहीं था?
क्या उ ोंने अपने सारे जीिन भर िाਔाि िक को अपने स दाय में िे िेने का प्रय नहीं वकया? क्या
नानक ने मुसिमान और वह दू दोनों से समान भाि से परामर्शष कर समाज में एक नयी अि था िाने का प्रय
नहीं वकया? इन सभी िोगों ने प्रय वकया, और उनका काम आज भी िि रहा है भेद केिि इिना है वक िे
आज के समाज-सुधारकों की िरह दाम्म क नहीं थे; िे इनके समान अपने मुूँह से कभी अवभर्शाप नहीं उगििे
थे उनके मुूँह से केिि आर्शीिाष द ही वनकििा था उ ोंने यह नहीं कहा-“पहिे िुम दु थे , और अब िु ें
अৢा होना होगा “ उ ोंने यही कहा, “पहिे िुम अৢे थे, अब और अৢे बनो “ ये दो बािें जमीन आसमान
का फकष पैदा कर दे िी है (मेरी समर नीवि, पृ -25)
11. मेरी नीवि है -प्रािीन आिायों के उपदे र्शों का अनुसरण करना मैंने उनके कायष का अ यन वकया है , और
वजस प्रणािी से उ ोंने कायष वकया, उसके अवि ार करने का मुझे सौभा৓ वमिा िे सब महान समाज
सं थापक थे बि पवित्रिा और जीिन र्शम्मि के िे अद् भुि आधार थे उ ोंने सब से अद् भुि कायष वकया-
समाज में बि, पवित्रिा और जीिन र्शम्मि संिाररि की हमें भी सबसे अद् भुि कायष करना है आज अि था
कुछ बदि गयी है , इसविए कायष -प्रणािी में कुछ थोड़ा-सा पररििषन करना होगा; बस इिना ही, इससे अवधक
कुछ नहीं (मेरी समर नीवि, पृ -27)
12. वकसी दे र्श में जैसे इं ৕ैਔ में, राजनीविक स ा ही उसकी जीिन-र्शम्मि है किा कौर्शि की उ वि करना
वकसी दू सरे रा र का प्रधान िশ है ऐसे ही और दू सरे दे र्शों का भी समवझये वक ु भारििर्ष में धावमषक जीिन
ही रा र ीय जीिन का के है और िही रा र ीय जीिन रूपी संगीि का प्रधान र है (मेरी समर नीवि, पृ -28)
13. यवद िुम धमष को फेंककर राजनीवि, समाजनीवि अथिा अ वकसी दू सरी नीवि को अपनी जीिन-र्शम्मि का
के बनाने में सफि हो जाओ, िो उसका यह फि होगा वक िु ारा नामोवनर्शान िक न रह जाएगा यवद िुम
इससे बिना िाहो, िो अपनी जीिन-र्शम्मिरूपी धमष के भीिर से ही िु ें अपने सारे कायष करने होंगे, अपनी
प्र ेक वक्रया का के इस धमष को ही बनाना होगा (मेरी समर नीवि, पृ -28)
14. जो भी म्मि अपने र्शा के महान स ों को दू सरों को सुनाने में सहायिा पहुूँ िाएगा, िह आज एक ऐसा कमष
करे गा, वजसके समान दू सरे कोई कमष नहीं महवर्ष मनु ने कहा है -“इस कवियु ग में मनु ों के विए एक ही
कमष र्शेर् है आजकि य৯ और कठोर िप ाओं से कोई फि नहीं होिा इस समय दान ही अथाष ि् एकमात्र
कमष है “ और दानों में धमषदान, अथाष ि् आ ाम्म क ৯ान का दान ही सिषिे है दू सरा दान है वि ादान, िीसरा
प्राणदान और िौथा अ दान (मेरी समर नीवि, पृ -30)
15. राजनीवि स ी वि ा का वि ार रणभेररयों और सुसम्म৪ि सेनाओं के बि पर वकया जा सकिा है िौवकक
एिं समाज स ी वि ा का वि ार उगििी िोपों पर िमिमािी िििारों के बि पर हो सकिा है पर
आ ाम्म क वि ा का वि ार िो र्शाम्म ारा ही स ि है वजस प्रकार िक्षु-कणष गोिर न होिा हुआ भी मृदु
ओस-वब दु गुिाब की कवियों को विकवसि कर दे िा है , िह िैसा ही आ ाम्म क ৯ान के वि ार के स में
भी समवझए यही एक दान है , जो भारि दु वनया को बार-बार दे िा आया है जब कभी भी कोई वदम्म৖जयी
जावि उठी, वजसने संसार के विवभ दे र्शों को एक साथ िा वदया और आपस में िेन-दे न की सुविधा कर दी,
ोंवह भारि उठा और संसार की उ वि में अपना भी आ ाम्म क ৯ान का वह ा दे वदया (मेरी समर नीवि,
पृ -32)
16. आि किा है िीयषिान, िेज ी, ि ास और ढ़वि ासी, वन पट् नियुिकों की ऐसे सौ वमि जाय, िो
संसार का कायाक हो जाय! इৢार्शम्मि संसार में सब से अवधक बिििी है उसके सामने दु वनया की कोई
िीज नहीं ठहर सकिी, क्योंवक िह भगिान-साक्षाि् भगिान से आिी है विर्शु और ढ़ इৢार्शम्मि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 70


सिषर्शम्मिमान है क्या िुम इसमें वि ास नहीं करिे ? सब के समक्ष अपने धमष के महान स ों का प्रिार करो;
संसार इनकी प्रिीक्षा कर रहा है (मेरी समर नीवि, पृ -34)
17. हमें ऐसे धमष की आि किा है , वजससे हम मनु बन सकें हमें ऐसे वस ा ों की आि किा है , वजससे
हम मनु हो सकें हमें ऐसी सिां गस वर्शक्षा िावहए, जो हमें मनु बना सके और यह रही स की
कसौट्ी, जो भी िु ें र्शारीररक, मानवसक और आ ाम्म क दु बषििा िाए, उसे जहर की भां वि ाग दो; उसमें
जीिन-र्शम्मि नहीं है , िह कभी स नहीं हो सकिा स िो बिप्रद है , िह पवित्रिा रूप है , ৯ान रूप
है स िो िह है जो र्शम्मि दे , जो हृदय के अ कार को दू र कर दे , जो हृदय में ू विष भर दे (मेरी समर
नीवि, पृ -36)
18. मैं अपने दे र्श से प्रेम करिा हूँ ; मैं िु ें और अवधक पविि, और ৸ादा कमजोर नहीं दे ख सकिा अिएि
िु ारे कियाण के विए, स के विए और वजससे मेरी जावि और अवधक अिनि न हो जाए इसविए, मैं जोर
से वि ाकर कहने के विए बा हो रहा हूँ , बस ठहरो! अिनवि की ओर न बढ़ो जहाूँ िक गये हो, बस उिना
ही काफी हो िुका (मेरी समर नीवि, पृ -37)
19. स वजिना ही महान होिा है , उिना ही सहज, बोधग होिा है , यं अपने अम्म के समान सहज! जैसे
अपने अम्म को प्रमावणि करने के विए और वकसी की आि किा नहीं होिी, बस िैसा ही! उपवनर्द् के
स िु ारे सामने हैं इनका अिि न करो, इनकी उपिम्म कर इ ें कायष में पररणि करो, बस दे खोगे
भारि का उ ार वनव ि है (मेरी समर नीवि, पृ -37)
20. िोग दे र्श भम्मि की ििाष करिे हैं मैं भी दे र्श भम्मि में वि ास करिा हूँ और दे र्शभम्मि के स में मेरा भी
एक आदर्शष है बड़े काम करने के विए िीन बािों की आि किा होिी है पहिा है -हृदय-अनुभि की
र्शम्मि बुम्म या वििारर्शम्मि में क्या धरा है ? िह िो कुछ दू र जािी है और बस िहीं रूक जािी है पर हृदय,
हृदय िो महार्शम्मि का ार है ; अ ः ू विष िहीं से आिी है प्रेम अस ि को भी स ि कर दे िा है यह प्रेम
की जगि के सब रह ों का ार है अिएि, ऐ मेरे भािी सुधारकों, मेरे भािी दे र्शभिों, िुम हृदयिान बनो
(मेरी समर नीवि, पृ -38)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 71


डा0 राम मनोहर लोवहर्ा
(23 माचण, 1910 - 12 अक्टु बर, 1967)

िोवहया के समाजिादी आ ोिन की संक ना के मूि में अवनिायषिः “वििार और कमष ” की उभय
उपम्म थवि थी वजसके मूविषमंि रूप यं डा0 िोवहया थे और आज उ ोंने “वििार और कमष ” की इस सं युम्मि
को अपने आिरण से जीि उदाहरण भी प्र ुि वकया अं ग्रेजों के म्मखिाफ भारि के ाधीनिा आ ोिन में भाग
िेने िािे िमाम म्मियों की भाूँ वि िोवहया भी प्रभाविि थे िे जेि भी गये और िैसी ही यािनाएूँ भी सही आजादी
से पूिष ही कां ग्रेस के भीिर उनका सोर्शवि ग्रुप था, िेवकन 15 अग , 1947 को अं ग्रेजों से मुम्मि पाने पर िे
उ वसि िो थे िेवकन विभाजन की कीमि पर पाई गई इस ि िा के कारण नेहरू और नेहरू की कां ग्रेस से
उनका रा ा हमेर्शा के विए अिग हो गया ि िा के नाम पर स ा की वि ा का यह खुिा खेि िोवहया ने
अपनी नंगी आूँ खों से दे खा था और इसविए ि िा के बाद की कां ग्रेस पाट्ी और कां ग्रेवसयों के प्रवि उनमें इिना
रोर् और क्षोभ था वक उ ें धुर दवक्षणपंथी और बामपंवथयों को साथ िेना भी उ ें बेहिर विक ही प्रिीि हुआ
ि िा बाद के राजनेिाओं में िोवहया मौविक वििारक थे िोवहया के मन में भारिीय गणि को िेकर ठे ठ
दे सी सोि थी अपने इविहास, अपनी भार्ा के स भष में िे किई पव म से कई वस ा उधार िेकर ाূा करने
को राजी नहीं थे सन् 1932 में जमषनी से पीएि.डी. की उपावध प्रा करने िािे राममनोहर िोवहया ने साठ के
दर्शक में दे र्श से अंग्रेजी हट्ाने का जो आ ान वकया, िह अंग्रेजी हट्ाओ आ ोिन की गणना अब िक के कुछ इने
वगने आ ोिनों में की जा सकिी है उनके विए भार्ा राजनीवि का मु ा नहीं बम्म अपने ावभमान का प्र
और िाखों-करोड़ों को हीन ग्रम्म से उबारकर आ वि ास से भर दे ने का था- “मैं िाहूँ गा वक वह दु ान के
साधारण िोग अपने अंग्रेजी के अ৯ान पर िजाएूँ नहीं, बम्म गिष करें इस सामंिी भार्ा को उ ीं के विए छोड़ दें
वजनके माूँ -बाप अगर र्शरीर से नहीं िो आ ा से अं ग्रेज रहें हैं ”
हािां वक िोवहया भी जमषनी यानी विदे र्श से पढ़ाई कर के आये थे, िेवकन उ ें उन प्रिीकों का अहसास
था वजनसे इस दे र्श की पहिान है वर्शिरावत्र पर वित्रकूट् में “रामायण मेिा” उ ीं की संक ना थी, जो सौभा৓ से
अभी िक अनिरि ििा आ रहा है आज भी वित्रकूट् के उस मेिे में हजारों भूखे -नगें-वनधषन भारििासीयों की
भीड़ यंमेि जुट्िी है िो िगिा है वक ये ही हैं वजनकी विंिा िोवहया को थी, िेवकन आज इनकी विंिा करने के
विए िोवहया के िोग कहाूँ है ? िोवहया ही थे जो राजनीवि की गंदी गिी में र्शु आिरण की बाि करिे थे िे
एकमात्र ऐसे राजनेिा थे वज ोंने अपनी पाट्ी की सरकार से खुिेआम ागपत्र की माूँ ग की, क्योंवक उस सरकार
के र्शासन में आ ोिनकाररयों पर गोिी ििाई गई थी
ान रहे ाधीन भारि में वकसी रा৸ में यह पहिी गैर कां ग्रेसी सरकार थी- “वह दु ान की राजनीवि
में िब सफाई और भिाई आएगी जब वकसी पाट्ी के खराब काम की वन ा उसी पाट्ी के िोग करें और मैं यह
याद वदिा दू ूँ वक मुझे यह कहने का हक है वक हम ही वह दु ान में एक राजनीविक पाट्ी हैं वज ोंने अपनी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 72


सरकार की भी वन ा की थी और वसफष वन ा ही नहीं बम्म एक मायने में उसको इिना िंग वकया वक उसे हट्
जाना पड़ा ” गाूँ धी जी के साथ एक स ाह रहकर िोवहया ने गाूँ धी जी को िाइसराय के नाम पत्र विखने के विए
प्रेररि वकया वजसमें गाूँ धी जी ने विखा वक- “अवहं सावन सोर्शवि डा0 िोवहया ने भारिीय र्शहरों को वबना पुविस
ि फौज के र्शहर घोवर्ि करने की क ना वनकािी है ”
िोवहया जी के ारा दु वनया की सभी सरकारों को नई दु वनया की बुवनयाद बनाने की योजना की
क ना गाूँ धी जी के सामने रखी गई, वजसमें एक दे र्श की दू सरे दे र्श में जो पूूँजी िगी है उसे ज करना, सभी िोगों
को संसार में कहीं भी आने -जाने ि बसने का अवधकार दे ना, दु वनया के सभी रा र ों को राजनैविक आजादी िथा वि
नागररकिा की बाि कही गई थी गाूँ धी जी ने इसे “हररजन” में छापा और अपनी ओर से समथषन भी वकया िथा
अंग्रेजों के म्मखिाफ ज ी िड़ाई छे ड़ने को िेकर गाूँ धी जी ने दस वदन रूकने के विए िोवहया को कहा दस वदन
बाद 7 अग , 1942 को गाूँ धी जी ने िीन घंट्े िक भार्ण दे कर कहा, वक “हम अपनी आजादी िड़कर प्रा
करें गे ” अगिे वदन 8 अग , 1942 को “भारि छोड़ो” प्र ाि ब ई में बहुमि से ीकृि हुआ गाूँ धी जी ने “करो
या मरो” का स े र्श वदया
एक समाजिादी वििारक इनकी वदर्शा से र्शेर् कायष यह है वक समाजिाद कहने से नहीं बम्म
समाजिाद का बीज मानि के मन में विविधिाओं के एकीकरण से उगिा है इसविए मन के एकीकरण का
वस ा प्र ुि कर समाजिाद के इनके सपने को पूरा करें

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 73


दीनदर्ाल उपा ार्
(25 वसत र, 1916 - 11 िरिरी, 1968)

“ रा৸” और “एका मानििािाद” के उद् घोर्क वज ोंने “ ” के ि ों पर आधाररि होकर भारि


के वनमाष ण का सपना दे खा था इनकी वदर्शा से र्शेर् कायष यह है वक “ ” के िैव क, ब्र ाਔीय, सािषभौम रुप को
ि करें िभी “ रा৸”, “एका मानििािाद”, “ दे र्शी”, “ ि ” का थ रुप थावपि हो सकेगा अ था
नहीं इनके मुূ वििार वन िि् हैं -
1- मनु पर्शु नहीं है केिि पे ट् भर जाने से िह सुखी और संिु हो जायेगा उसकी जीिन यात्रा “पेट्” से आगे
“परमा ा” िक जािी है उसके मन उसकी बुम्म और उसकी आ ा का भी कुछ िकाजा है इस िकाजे को
ान में रखे वबना बनाई गई प्र ेक ि था अ काविक ही नही घािक भी होगी
2- पूंजीिादी और समाजिादी ि था पर र प्रेम और ममिा पर नहीं, ाथष, िोभ और कुिकष पर आधाररि
विखम्मਔि ि थायें है इनमें एका िा और पर र पूरकिा नहीं प्रवि म्म िा र्शोर्क िृव यों की प्रबििा
और प्रभाि है
3- क ुवन ों के नारे “कमाने िािा खायेगा” - यह नारा य वप क ुवन िगािे है वक ु पूंजीिादी भी इस नारे
के मूि में वनवहि वस ा से असहमि नहीं हैं यवद दोनों में झगड़ा है िो केिि इस बाि का वक कौन वकिना
कमािा है , कौन वकिना कमा सकिा है पूंजीिादी साहस और पूंजी को मह दे िे है िो क ुवन िम को
पूंजीिादी यं के विए अवधक वह ा माूँ गिे है और क ुवन अपने विए यह नारा अनुविि, अ ायपूणष और
समाजघािी है हमारा नारा होना िावहए- “कमाने िािा म्मखिायेगा और जो ज ा है िह खायेगा ” खाने का
अवधकार ज से प्रा होिा है कमाने की पात्रिा वर्शक्षा से आिी है यवद केिि कमाने िािा ही खायेगा िो
बৡों, बूढ़ों, रोवगयों और अपावहजों का क्या होगा? “कमाने िािा खाये गा” का व कोण आसुरी और “कमाने
िािा म्मखिायेगा” का वििार मानिीय है
4- समावजकिा और सं ृ वि का मापदਔ समाज में कमाने िािा ारा अपने किष के वनिाष ह की ि रिा है
अथष ि था का कायष इस किष के वनिाष ह की क्षमिा पैदा करना है मात्र धन कमाने के साधन िथा िरीके
बिाना-पढ़ाना ही अथष ि था का कायष नहीं है यह मानििा बढ़ाना भी उसका काम है वक किष भािना के

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 74


साथ कमाने िािा म्मखिाये भी यहाूँ यह समझ विया जाना िावहए वक िह कायष और दावय की भािना
से करें वक दान दे ने या िंदा दे ने की भािना से
5- पूंजीिादी ि था ने केिि अथषपरायण मानि का वििार वकया िथा अ क्षेत्रों से उसे ि छोड़ वदया िो
समाजिादी ि था केिि “जावि िािक मानि” का ही वििार करिी है उसमें म्मि की रूवि, प्रकृवि गुणों
की विविधिा और उसके आधार पर विकास करने के विए कोई थान नहीं है इन दोनों अि थाओं- ि थाओं
में मनु के स और उसकी पूणषिा को नहीं समझा गया एक ि था उसे ाथी, अथषपरायण, संघर्षर्शीि,
प्रवि धी, प्रवि ी और मा ाय प्रिण प्राणी मानिी है िो दू सरी उसे ि थाओं और पररम्म थवियों का
दास बेिारा और नाम्म क- अना थामय प्राणी र्शाम्मियों का केम्म करण दोनों ि थाओं में अवभप्रेि है
अिएि पूंजीिादी एिम् समाजिादी दोनों ही अमानिीय ि थाएूँ हैं
6- धन का अभाि मनु को वन रूण और क्रूर बना दे िा है िो धन का प्रभाि उसे र्शोर्क सामावजक दावय
वनरपेक्ष, द ी और दमनकारी
7- भारि और वि की सम ाओं का समाधान और प्र ों का उ र विदे र्शी राजनीविक नारों या िादों (समाजिादी,
पूंजीिादी आवद) में नहीं अवपिु यं भारि के सनािन वििार पर रा में से उपजे वह दू अथाष ि भारिीय
जीिन दर्शषन में है केिि यही एक ऐसा जीिन दर्शषन है जो मनु जीिन का वििार करिे समय उसे ट्ु कड़ों में
नही बाूँ ट्िा उसके स ूणष जीिन को इकाई मानकर उसका वििार करिा है
8- यह समझना भारी भूि होगी वक वह दू ििषमान िै ৯ावनक उ वि का विरोधी है आधुवनक वि৯ान और
प्रौ ोवगक का प्रयोग इस प वि से होना िावहए वक िे हमारे सामावजक और सां ृ विक जीिन प वि के
प्रविकूि नहीं, अनु कूि हो हमारा रा र ीय िশ धमषरा৸, वजसे गाूँ धी जी रामरा৸ कहा करिे थे , िोकि ,
सामावजक समरसिा और राजनीविक आवथषक र्शाम्मियों के विकेम्म यकरण का होना िावहए आप इसे
वह दू िाद, मानििा अथिा अ कोई भी नया “िाद” या वकसी भी नाम से पुकारें वक ु केिि यही ही भारि
की आ ा के अनु कूि होगा यही दे र्शिावसयों में निीन उ ाह संिाररि कर सकेगा विनार्श और विभ्रम्म के
िैराहे पर खड़े वि के विए भी यह मागषदर्शष क का काम करे गा
9- यवद धमष का आधार ाग वदया जाय िो अथष का अनथष हो सकिा है और धमष उसमें जोड़ वदया जायेगा िो
“अथष” हमारे “काम” की प्राम्म का भी साधन बन जाये गा धमष और अथष दोनों एक दु सरे के पोर्क और पूरक
हो सकिा है
10- अपने “ ” को वि ृि करें गे िो हम पुनः परि हो जायेंगे दे र्शी को भािा क रूप से समझ कर उसे ही
हमें अथष सृजन का आधार एिम् अिि बनाना िावहए
11- ग्रामों और िनां ििों में िास करने िािे मैिे-कुिैिे, अनपढ़ और वपछड़े ब ु हमारे दे ििा है हमें इनकी सेिा
करनी है यह हमारा सामावजक दावय अथाष ि धमष है वजस वदन हम इनके विए अৢे सुविधाजनक घर
बनाकर दें गे, वजस वदन इनके बৡों और म्म यों को जीिन दर्शषन का ৯ान दें गे वजस वदन हम इनके हाथ और
पाूँ ि के वििाइयों को भरें गे और वजस वदन इनको उ ोग ध ों की वर्शक्षा दे कर इनकी आय को उूँ िा उठा दे गें
उसी वदन हमारा मािृ भाि ि होगा आवथषक योजनाओं िथा आवथषक प्रगवि की माप समाज की उपर की
पीढ़ी पर पहुूँ िे म्मि से नहीं बम्म सबसे नीिे की सीढ़ी पर वि मान म्मि से होगी ग्रामों में जहाूँ समय
अिि खड़ा है जहाूँ मािा और वपिा अपने बৡों के भवि को बनाने में असमथष है , िहाूँ जब िक हम आर्शा
और पु रूर्ाथष का सं देर्श नहीं पहुूँ िायें गे िब िक रा र का िै ि जागृि नहीं होगा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 75


भाि-4
एक सिेक्षर्
सन् 2015 ई0 - सन् 2019 ई0
सन् 2020 ई0
इस िषण की मुূ विशेषता
अ घटना क्रम
िषण 2020 ई0 : सािणभौम एका ता-मानिता का स े श
िषण 2020 ई0 का खिोवलर् स े श
िषण 2020 ई0 का प्राकृवतक स े श
िषण 2020 ई0 का सािणभौम स े श
िषण 2020 ई0 का अितारी स े श
िषण 2020 ई0 का एिं तोवनर्ो िु टेरेश (महासवचि, सिंर्ुक्त रा र ) का स े श
आधु वनक जीिन में सिेक्षर् का प्रर्ोि ि उपर्ोविता
न्तक्त की न्त र्वत
न्तक्त और पररिार पर धमण की न्त र्वत
न्तक्त पर ापार की न्त र्वत
न्तक्त का पररर्ाम

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 76


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 77
विषर्- सूची
प्रार के पहिे वद - व

भाि-1: . धमण शा कर्न


सनािन / वह दू र्शा ि मा िा के अनुसार
अ. िेद ि पुराण के अनुसार
ब. महवर्षदयान के अनुसार
स. पं 0 िीराम र्शमाष आिायष के अनुसार
द. नाड़ी िाड़ प े (Nadi Palm Leaves) के अनुसार
य. अ के अनुसार
बौ धमष के अनुसार
यहदी र्शा के अनुसार
ईसाई र्शा के अनुसार
इ ाम र्शा के अनुसार
वसक्ख धमष के अनुसार
मायां कैिਔर के अनुसार

भाि-2 : भवि िक्ता कर्न


प्रवस भवि ििा ना ेदमस के अनुसार
৸ोविवर् िी बेजन दारूिािा के अनुसार
पु क- ”अमर भवि िावणयाूँ “ के अनुसार
पु क- ”वि की आ यषजनक भवि िावणयाूँ“ के अनुसार
पु क- ”दु िषभ भवि िावणयाूँ “ के अनुसार
अ भवि ििाओं के अनुसार
युग पररििष न और पररििष नकिाष का र्शा ि भवि िावणयों के आूँ कड़ों पर ाূा

भाि-3 : मनु और कन्त अितार


मनु और मनि र
काि और युग पररििषक कम्म अििार
कम्म अििार, महाअििार क्यों?
कम्म महाअििार एिं अ घोवर्ि कम्म अििार
कम्म अििार और िि कुर्श वसंह “वि मानि”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 78


भाि-4 : घटना-चक्र : एक आ र्णजनक समानता
काि का प्रथम रूप - अ काि
धमष ৯ान का प्रार
िीकृ ि महाभारि काि
िी राम कृ ि वििेकान काि (1836 ई.-1902 ई.)
भारि के ि िा का उৡ काि (1903 ई.-1946 ई.)
ि भारि ि िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ काि (1947 ई.-2015 ई.)
सन् 1947 से सन् 1980
सन् 1981 से सन् 1990
सन् 1991 से सन् 2000
सन् 2001 से सन् 2010
सन् 2011 से सन् 2015
काि का व िीय और अम्म म रूप - काि
धमष ৯ान का अ - ििषमान समय - इविहास िौट् िुका है
सन् 2016 ई0
सन् 2017 ई0
सन् 2018 ई0
सन् 2019 ई0
सन् 2020 ई0
िर्ष 2020 ई0 में खगोविय घट्ना
िर्ष 2020 ई0 में प्राकृविक घट्ना
िर्ष 2020 ई0 : सािषभौम एका िा-मानििा का स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का खगोविय स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का प्राकृविक स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का सािषभौम स े र्श
िर्ष 2020 ई0 का अििारी स े र्श

भाि-5 : समव धमण व

अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र िी िि कुर्श वसंह “वि मानि” का मानिों के नाम खुिा
िुनौिी पत्र

अवनिषिनीय कम्म महाअििार का कार्शी-स कार्शी क्षेत्र से वि र्शाम्म का अम्म म स -स े र्श

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 79


सन् 2015 ई0 - सन् 2019 ई0
ितणमान समर् - इवतहास लौट चुका है

मिंिलिार, 17 िरिरी, 2015 ई0


(महावशिरावत्र)
िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ ारा भारि सरकार को विखा गया पत्र वजसे पंजीकृि डाक ारा कार्शी
(िाराणसी), उ र प्रदे र्श, भारि से वदनां क - बुधिार, 25 फरिरी, 2015 को प्रेवर्ि वकया गया वजसका विर्य था –
”ििषमान समय में पूिष के सभी ई र के अििारों और र्शा ों, धमाष िायों, वस ों, संिों, महापुरूर्ों,
भवि ििाओं, िप ीयों, वि ानों, बुम्म वजिीयों, ापारीयों, ि अ वि৯ान के िै৯ावनकों, सहयोगीयों,
विरोधीयों, रि-रर ा-दे र्श स म्म यों, उन सभी मानिों, समाज ि रा৸ के नेिृ किाष ओं के वििारों के एकीकरण
ि समािेर्श ारा वि के सबसे बड़े िोकि के संविधान की पूणषिा और स ीकरण के विए ”सािषभौम
आ ाम्म क स “ आधाररि एक नई अन विकासर्शीि वदर्शा प्रा हो िुकी है वजसके कारण िे अधूरे थे जो
”कार्शी-स कार्शी“ को रा र गुरू और भारि को जगिगुरू बनाने सवहि नागररक ि िोकि की थिा ि पू णषिा
स म्म ि थापना र पर र्शासवनक प्रवक्रयानुसार अम्म म मागष है भवि िाणीयों के अनुसार ही ज , कायष
प्रार और पूणष करने का समय और जीिन है ऋवर् पर रानुसार रा৸ कायष में अनाि क ह क्षेप न करिे
हुये भारि सरकार को इस आवि ार - मन (मानि संसाधन) का वि मानक (WS-0) िृंखिा एिं पूणष मानि
वनमाष ण की िकनीकी – WCM-TLM-SHYAM.C की उपि िा की सूिना दे ना मेरा किष है वजससे जब भी रा र
को उसकी आि किा हो, उसे समवपषि वकया जा सके वजसका वि ृि वििरण िेबसाइट्
www.moralrenew.com पर उपि है
दे र्श के हजारों वि वि ािय और अ बुम्म र्शम्मि वजस वदर्शा की पहिान ि कायष को पूणष नहीं कर
पा रहे थे िह एक ही म्मि ारा यं के संसाधन, इৢा ि नागररक किष की भािना से पूणष वकया जा िुका है
जो अनेक पुर ारों के भी पूणषिः यो৓ है ऋवर् प्रणािी अनुसार इस आवि ार को पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का
रा र ीय िीव्र मागष (RENEW – Real Education National Express Way) कायषक्रम ारा सिषसाधारण िक
पहुूँ िाने का प्रय जारी है जो अपने िानप्र थ जीिन (उम्र 50 िर्ष पूणषिा के बाद) में प्रिेर्श करने के वदनां क 16
अक्टु बर 2017 िक ििेगा, उसके उपरा यह पूणषिः नागररकों ि रा र पर इसकी आि किा ि उपयोवगिा
वनभषर रहे गी क्योंवक िानप्र थ आिमानुसार वबना माूँ गे अपने वििार दे ने का प्राविधान नहीं है जब यं की र्शाम्म ,
इৢा ि आि किा बावधि हो िो आ ोिन की जा सकिी है पर ु ৯ान के इस युग की ऐसी म्म थवि में जब
नागररक और रा र की र्शाम्म , इৢा ि आि किा बावधि हो िब आवि ार और वदर्शा की उपि िा की सूिना
माि् र ही दी जा सकिी है वजसकी र्शाम्म , इৢा ि आि किा बावधि हो आ ोिन िही कर सकिा है मेरी
र्शाम्म , इৢा ि आि किा केिि इस आवि ार को उपि कराने में ही थी नागररकों को पूणष ৯ान िावहए िो
िे पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष ारा आयें और भारि को वि गुरू बनने की इৢा हो िब उसे
आवि ार की थापना पर कायष करना िावहए
इस क्रम में भारि सरकार के मा म से इस आवि ार - मन (मानि संसाधन) का वि मानक (WS-
0) िृंखिा एिं पूणष मानि वनमाष ण की िकनीकी – WCM-TLM-SHYAM.C पर दे र्श सवहि वि के बुम्म र्शम्मि का
ान केम्म ि कर उस पर वनणषय करना आि क है वजससे हम सभी आने िािी पीढ़ी को एक सुरवक्षि ि बौम्म क
विकासर्शीि वि दे सकें “ - लि कुश वसिंह ”वि मानि“

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 80


111 िर्ष पूिष 4 जुिाई, 1902 ई0 को आम आदमी के रूप में नरे नाथ द और वििार से सिोৡ
वि मानि के रूप में ामी वििेकान ब्र िीन हुये थे उ ोंने कहा था -”मन में ऐसे भाि उदय होिे हैं वक यवद
जगि् के दु ःख दू र करने के विए मुझे सह ों बार ज िेना पड़े िो भी मैं िैयार हूँ इससे यवद वकसी का िवनक भी
दु ःख दू र हो, िो िह मैं करू ं गा और ऐसा भी मन में आिा है वक केिि अपनी ही मुम्मि से क्या होगा सबको साथ
िेकर उस मागष पर जाना होगा “ (पृ0-67, वििेकान जी के संग में, राम कृ वमर्शन प्रकार्शन) ििषमान में उनके
िीन रूप ि हो िुके हैं जो वन विम्मखि हैं -
1. भारि के सिोৡ पद पर सुर्शोवभि िी प्रणि मुखजी, रा र पवि, भारि, उनके सं ृ वि को िेकर
2. भारि के सिोৡ अवधकार के पद पर सुर्शोवभि िी नरे मोदी, प्रधानमंत्री, भारि, उनके नाम को िेकर
3. भारि के आम आदमी के रूप में िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“, कार्शी-स कार्शी क्षेत्र, भारि, उनके
वििार ”वि -ब ु “ एिं ”िेदा की ािहाररकिा“ की थापना के विए र्शासवनक प्रणािी के अनुसार
थापना र िक की प्रवक्रया को िेकर
भारि सरकार ि उसके अनेक मंत्राियों ारा अ राष र ीय मानकीकरण संगठन के प्रमाण पत्र
आई.एस.ओ-9000 (ISO-9000) गुणि ा का प्रमाण पत्र प्रा करने की प्रवक्रया प्रार
िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ ारा नागररकों ि सं था ( व ि समव ) के गुणि ा का वि मानक - 0
(WS-0) िृंखिा आवि ृ ि
”भारि वि गुरू कभी हुआ करिा था िेवकन अब नहीं है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है वक भारि
िैव क वस ा ों से प्रभाविि है भारि उस वदन ििषमान युग में पुनः वि गुरू बन जायेगा जब िह अपने सािषभौम
वस ा ों से वि को प्रभाविि ि संिाविि करने िगेगा कार्शी-स कार्शी क्षेत्र इस काि में मिों (िोट्ों) से
नहीं बम्म वर्शि-ि के र्शा से वकसी का हो सकिा है सािषभौम स - आ ि के आवि ार से भारि वि
गुरू िो है ही पर ु काि में वि गुरू बनने के विए सािषभौम स -वस ा िावहए वजससे वि संविधान ि
िोकि को मागषदर्शषन वमि सके वर्शक्षा ारा मानि मन को सि्य से जोड़ने, कार्शी को रा र गुरू और भारि को
जगि गुरू बनाने और ৯ान को सबके ार पर पहुूँ िाने का कायष आप सभी की इৢानुसार प्रार वकया जा रहा है
आपने कहा हमने र्शुरू वकया “ - श्ी लि कुश वसिंह ”वि मानि“
पुत्र िी धीरज नारायण वसंह
रिनाकिाष - िक्ष् य पुनवनषमाष ण ि उसकी प्राम्म के विए पाਉक्रम ि कायष योजना
आवि ारकिाष - मन (मानि संसाधन) का वि मानक एिं पूणष मानि वनमाष ण की िकनीकी
दािेदार - भारि सरकार का सिोৡ नागररक स ान ”भारि र “

श्ी लि कुश वसिंह ”वि मानि“ के सिंवक्ष विचार

1. दो या दो से अवधक मा मों से उ ावदि एक ही उ ाद के गुणिा के मापां कन के विए मानक ही एक मात्र


उपाय है सिि् विकास के क्रम में मानकों का वनधाष रण अविआि क कायष है उ ादों के मानक के अिािा
सबसे जरुरी यह है वक मानि संसाधन की गुणिा का मानक वनधाष ररि हो क्योंवक रा र के आधुवनकीकरण के
विए प्र ेक म्मि के मन को भी आधुवनक अथाष ि् िैव क-ब्र ाਔीय करना पड़े गा िभी मनु िा के पूणष
उपयोग के साथ मनु ारा मनु के सही उपयोग का मागष प्रर्श होगा उਚृ उ ादों के िশ के साथ
हमारा िশ उਚृ मनु के उ ादन से भी होना िावहए वजससे हम िगािार विकास के विरु नकारा क
मनु ों की संূा कम कर सकें भूमਔिीकरण वसफष आवथषक क्षेत्र में कर दे ने से सम ा हि नहीं होिी
क्योंवक यवद मनु के मन का भूमਔिीकरण हम नहीं करिे िो इसके िाभों को हम नहीं समझ सकिे
आवथषक संसाधनों में सबसे बड़ा संसाधन मनु ही है मनु का भूमਔिीकरण िभी हो सकिा है जब मन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 81


के वि मानक का वनधाष रण हो ऐसा होने पर हम सभी को मनु ों की गुणिा के मापां कन का पैमाना प्रा
कर िेंगे, साथ ही यं म्मि भी अपना मापां कन भी कर सकेगा जो वि मानि समाज के विए सिाष वधक
मह का विर्य होगा वि मानक र्शू िृंखिा मन का वि मानक है वजसका वनधाष रण ि प्रकार्शन हो िुका है
जो यह वनव ि करिा है वक समाज इस र का हो िुका है या इस र का होना िावहए यवद यह सािषभौम
स -वस ा आधाररि होगा िो वनव ि ही अम्म म मानक होगा
2. भारि का प्र ेक नागररक अपने जीिकोपाजषन के मागष ि संघर्ष में अपने विर्य का जानकार ि अनुभि िो
प्रा कर रहा है पर ु कुछ पाने के क्रम में कुछ छूट् भी जािा है इसविए प्र ेक नागररक को अपने अहं कार
को भूिकर यह ीकार करना होगा वक िह अपने विर्य से हट्कर अ विर्य के विर्य में कम या नहीं
जानिा है अिः एक आदर्शष नागररक बनने के क्रम में ूनिम ৯ान सभी को एक समान रूप से िावहए,
पुनवनमाष ण िहीं कायष है
3. िुम पूरे जीिन कु े के पूूँछ को सीधी करने की कोवर्शर्श करो, नहीं हो पायेगी पर ु िुम पूूँछ सीधी करने का
रे काडष बनाकर वि में पहिा थान पा सकिे हो ऐसे रे काडष आजकि वगनीज बुक आफ ि रड रे काडष में विखे
जािे हैं यही बाि समाज के बारे में भी है समाज िहीं रहिा है सुधार कायष करने िािे महान हो जािे हैं
4. भारि को वि गुरू बनाना ि अৢे वदन िाना, यह फि है वजसका जड़ म्मि के मम्म और गाूँ ि में है
जड़ को मजबूि करने से भारि नामक िृक्ष से अपने आप फि वनकिने िगेंगे पुनवनषमाष ण म्मि के मम्म
को मजबूि करने का ही कायषक्रम है र्शेर् म्मि ि र्शासन वमिकर पूरा कर िेंगे इसका हमें वि ास है
5. जो मन कमष में न बदिे , िह मन नहीं और म्मि का अपना रूप नहीं
6. रा र वनमाष ण का हमारा कायष रा र पवि िी प्रणि मुखजी ारा प्र ुि वकये गये मागषदर्शषक वब दु ओं का सम्म विि
रूप है नये र्शहर के रूप में िाराणसी के दवक्षण थ्री इन िन ”स कार्शी नगर“ की योजना उस क्षेत्र के विकास
पर आधाररि है िो आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के आधार पर एक भारि-िे भारि के सपने को
साकार करने के विए पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष (RENEW-Real Education National
Express Way) के ारा भारि दे र्श के समाजिाद पर आधाररि आम आदमी के विए प्र ुि है वकसी म्मि
के बौम्म क विकास के विए आि क है वक उसे भोजन, ा और वनधाष ररि आवथषक आय को सुवनव ि
कर वदया जाय और यह यवद उसके र्शैवक्षक जीिन से ही कर वदया जाय िो र्शेर् सपने को िह यं पूरा कर
िेगा यवद िह नहीं कर पािा िो उसका वज ेदार भी िह यं होगा, न वक अवभभािक या ई र पुनवनषमाष ण,
इसी सुवनव िा पर आधाररि है
7. मानि एिं संयुि मानि (संगठन, सं था, ससंद, सरकार इ ावद) ारा उ ावदि उ ादों का धीरे -धीरे िैव क
र पर मानकीकरण हो रहा है ऐसे में संयुि रा र संघ को प्रब और वक्रयाकिाप का िैव क र पर
मानकीकरण करना िावहए वजस प्रकार औ ोवगक क्षेत्र अ राष र ीय मानकीकरण संगठन (ISO-
International Standardization Organisation) ारा संयुि मन (उ ोग, सं थान, उ ाद इ ावद) को
उ ाद, सं था, पयाष िरण की गुणि ा के विए ISO प्रमाणपत्र जैसे-ISO-9000, ISO-14000 िृंखिा इ ावद
प्रदान वकये जािे है उसी प्रकार संयुि रा र संघ को नये अवभकरण वि मानकीकरण संगठन (WSO-
Standardization Organisation) बनाकर या अ राष र ीय मानकीकरण संगठन को अपने अधीन िेकर
ISO/WSO का प्रमाण पत्र यो৓ म्मि और सं था को दे ना िावहए जो गुणि ा मानक के अनुरूप हों भारि
को यही कायष भारिीय मानक ूरो (BIS-Bureau of Indian Standard) के ारा IS िृंखिा ारा करना
िावहए भारि को यह कायष रा र ीय वर्शक्षा प्रणािी (NES-National Education System) ि वि को यह कायष
वि वर्शक्षा प्रणािी (WES-World Education System) ारा करना िावहए जब िक यह वर्शक्षा प्रणािी
भारि िथा संयुि रा र सं घ ारा जनसाधारण को उपि नहीं हो जािी िब िक यह ”पुनवनषमाष ण“ ारा
उपि करायी जा रही है जो और रा र वनमाष ण का प्रथम ि अम्म म ूवप्र है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 82


8. वि र्शा से आपको वमििा है मनोरं जन को छोड़ कर, आपके र्शारीररक-आवथषक-मानवसक विकास के विए
सभी साधन जहाूँ आप भारिीयिा के साथ पायेंगे आज के युग के अनुसार विकास करने का ूनिम
आि क ৯ान हम आपको, आपके विकास के मुূ-धारा में िाना िाहिे हैं क्योंवक सबके विए 24 घ਒े का
ही वदन है मौज कर िो या अपने िশ के विए काम कर िो
9. “र “ उसे कहिे हैं वजसका अपना म्मिगि वििक्षण गुण-धमष हो और िह गुण-धमष उसके न रहने पर भी
प्रेरक हो पद पर पीठासीन म्मि का गुण-धमष वमविि होिा है , िह उसके यं की उपिम्म नहीं रह
जािी भारि के र िही हो सकिे हैं जो ि भारि में संिैधावनक पद पर न रहिे हुये अपने वििक्षण गुण-
धमष ारा भारि को कुछ वदये हों और उनके न रहने पर भी भारिीय नागररक प्रेरणा प्रा करिा हो इस क्रम
में ”भारि र “ का अगिा दािेदार मैं हूँ और नहीं िो क्यों? इिना ही नहीं नोबेि पुर ार के सावह और
र्शाम्म के संयुि पुर ार के विए भी यो৓ है जो भारि के विए गिष का विर्य है
10. वकसी दे र्श का संविधान, उस दे र्श के ावभमान का र्शा िब िक नहीं हो सकिा जब िक उस दे र्श की मूि
भािना का वर्शक्षा पाਉक्रम उसका अंग न हो इस प्रकार भारि दे र्श का संविधान भारि दे र्श का र्शा नहीं
है संविधान को भारि का र्शा बनाने के विए भारि की मूि भािना के अनुरूप नागररक वनमाष ण के वर्शक्षा
पाਉक्रम को संविधान के अंग के रूप में र्शावमि करना होगा जबवक रा र ीय संविधान और रा र ीय र्शा के
विए हमें वि के र पर दे खना होगा क्योंवक दे र्श िो अनेक हैं रा र केिि एक वि है , यह धरिी है , यह पृ ी
है भारि को वि गुरू बनने का अम्म म रा ा यह है वक िह अपने संविधान को िैव क र पर वििार कर
उसमें वि वर्शक्षा पाਉक्रम को र्शावमि करे यह कायष उसी वदर्शा की ओर एक पहि है , एक मागष है और
उस उ ीद का एक हि है रा र ीयिा की पररभार्ा ि नागररक किष के वनधाष रण का मागष है वजस पर
वििार करने का मागष खुिा हुआ है

अपने-अपने धमण शा -उपवनषद् -पुरार् इ ावद का अ र्न करें कही िं ऐसा तो नही िं वक-

1. काि के प्रथम रूप अ काि से दू सरे और अम्म म काि का प्रार


इसविए वक अवधकिम म्मि ि समाज का मन विर्यों पर केम्म ि है
2. मनि र के ििषमान 7िें मनि र िैि ि मनु से 8िें मनि र सािवणष मनु का प्रार
इसविए वक सािवणष मनु के ”सािषभौम“ गुण का प्रयोग कर िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ ि हैं
3. अििार के निें बु से दसिें और अम्म म अििार-कम्म महाििार का प्रार
इसविए वक आधुवनक युग के विए एकीकरण ि मानकीकरण के सभी प्रणािी व ि समव के विए
संयुि एिं अम्म म रूप से ि हैं
4. युग के िौथे कवियु ग से पाूँ ििें युग णष युग का प्रार
इसविए वक युग पररििषन के विए कम्म अििार का आगमन हो िुका है
5. ास और ापर युग में आठिें अििार िीकृ ारा प्रार वकया गया कायष “निसृजन“ के प्रथम भाग
“सािषभौम ৯ान“ के र्शा ”गीिा“ से व िीय अम्म म भाग ”सािषभौम कमष৯ान“, पू णष৯ान का पूरक र्शा “,
िोकि का ”धमषवनरपेक्ष धमषर्शा “ और आम आदमी का ”समाजिादी र्शा “ ारा ि था स ीकरण
और मन के ब्र ाਔीयकरण और नये ास का प्रार
- इसविए वक नया और अम्म म र्शा ”वि र्शा “ प्रकावर्शि हो िुका है

र्वद ऐसा नही िं तो -

1. िु ारे र्शा ों में वदये ििन और र्शा झूठे हो जायेंगे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 83


2. िु ारे भवि ििाओं की भवि िाणीयाूँ झूठी हो जायेंगी
3. िु ारे युग और काि गणना झूठे हो जायेंगे
4. िु ारे अििार-ईर्शदू ि-ईर्शपुत्र-पुनजष वस ा झूठे हो जायेंगे
5. िु ारे ई रस ी अिधारणा झूठे हो जायेंगे
पी.एम. बना लो र्ा सी.एम र्ा डी.एम,
वशक्षा पाਉक्रम कैसे बनाओिे ?
नािररक को पूर्ण ৯ान कैसे वदलाओिे ?
रा र को एक झਔे की तरह,
एक रा र ीर् शा कैसे वदलाओिे ?

र्े पी.एम. सी.एम र्ा डी.एम नही िं करते,


रा र को एक दाशणवनक कैसे वदलाओिे ?
ितणमान भारत को जितिुरू कैसे बनाओिे ?
सरकार का तो मानकीकरर् (ISO-9000) करा लोिे ,
नािररक का मानक कहााँ से लाओिे ?
सोर्े को तो जिा लोिे,
मुदों में प्रार् कैसे डालोिे?
िोट से तो स ा पा लोिे,
नािररक में रा र ीर् सोच कैसे उपजाओिे ?
िेस बुक पर होकर भी पढ़ते नही िं सब,
भारत को महान कैसे बनाओिे ?

वनर्णर् आपके पास, एकता का प्रर्ास र्ा अनेकता का विकास


आ र्ा कही िं भी लिा लो ले वकन क्षमता से अवधक उ ीद मत करो
मानने से ि ु में िु र् नही िं आते ले वकन ापार विकवसत हो जाता है

क्या मनु का म्मिगि िশ के अिािा कोई सामूवहक िশ भी होिा है ? इस पर भी वििार करना


आि क है सनािन और पुनजष वस ा से इस संसार की सभी गवि िंरगाकार होिे हुए भी एक िक्र में िि
रहा है इस प्रकार उस िक्र में मनु का क्षवणक जीिन एक कड़ी मात्र है ये र्शरीर जो वदख रहा है उसे थूि
र्शरीर कहा जािा है और मृ ु के उपरा इৢा युि मन को सूक्ष्म र्शरीर िथा इৢा मुि मन को आ ीय र्शरीर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 84


कहिे हैं आ ीय र्शरीर के है और सूक्ष्म ि थूि उसके िक्र हैं मनु योवन का विकास उ ि गवि की ओर
हुआ है अथाष ि् जि से थि, थि से र्शरीर, वफर संसाधन/अथष , वफर मानवसक, और पूणष और अम्म म में आ ाम्म क
केम्म ि मन यही िह पैमाना है वजससे यं की िुिनाकर जाना जा सकिा है वक मैं वकिना सफि हुूँ ? ये िह मागष
है वजसे िय करने का सािषभौम वनयम है िाहे मनु को इसका ৯ान हो या न हो जो वजिना इस मागष में बढ़िा है
िह उिना ही सफि है और जो नीिे वगरिा है िह उिना ही असफि होिा है सफि होने से ही अৢे समाज का
विकास और असफि होने से खराब समाज का विकास होिा है क्योंवक पुनजष िो सूक्ष्म र्शरीर का ही होिा है
र्शरीर पािना और पीढ़ी आगे बढ़ाना िो सभी जीिों का काम है वफर उनमें और मनु में क्या अ र? अगर ऐसी
बाि नहीं िो पं 0 दीनदयाि उपा ाय जी के इस वििार - ”मनु पर्शु नहीं है केिि पेट् भर जाने से िह सुखी और
संिु हो जायेगा उसकी जीिन यात्रा ”पेट्“ से आगे ”परमा ा“ िक जािी है उसके मन उसकी बुम्म और उसकी
आ ा का भी कुछ िकाजा है “ का क्या अथष होगा?
वजस प्रकार ििषमान ािसावयक-समावजक-धावमषक इ ावद मानिीय संगठन में विवभ पद जैसे
प्रब वनदे र्शक, प्रब क, र्शाखा प्रब क, कमषिारी, मजदू र इ ावद होिे हैं और ये सब उस मानिीय संगठन के
एक वििार वजसके विए िह संिाविि होिा है , के अनुसार अपने -अपने र पर कायष करिे हैं और िे उसके
वज ेदार भी होिे हैं उसी प्रकार यह स ूणष ब्र ाਔ एक ई रीय संगठन है वजसमें सभी अपने -अपने र ि पद
पर होकर जाने-अनजाने कायष कर रहें हैं यवद मानिीय संगठन का कोई कमषिारी दु घषट्नाग्र होिा है िो उसका
वज ेदार उस मानिीय संगठन का िह वििार नहीं होिा बम्म िह कमषिारी यं होिा है इसी प्रकार ई रीय
संगठन में भी प्र ेक म्मि की अपनी बुम्म -৯ान-िेिना- ान इ ावद गुण ही उसके कायष का फि दे िी है
वजसका वज ेदार िह म्मि यं होिा है न वक ई रीय संगठन का िह सािषभौम स -वस ा मानिीय संगठन
का वििार हो या ई रीय संगठन का सािषभौम स -वस ा यह दोनों ही कमषिारी के विए मागषदर्शष क वनयम हैं
वजस प्रकार कोई मानिीय संगठन आपके पूरे जीिन का वज ेदार हो सकिा है उसी प्रकार ई रीय संगठन भी
आपके पूरे जीिन का वज ेदार हो सकिा है वजसका वनणषय आपके पूरे जीिन के उपरा ही हो सकिा है पर ु
आपके अपनी म्म थवि के वज ेदार आप यं हैं वजस प्रकार मानिीय संगठन में कमषिारी समवपषि मोहरे की भाूँ वि
कायष करिे हैं उसी प्रकार ई रीय संगठन में म्मि सवहि मानिीय संगठन भी समवपषि मोहरे की भाूँ वि कायष करिे
हैं , िाहे उसका ৯ान उ ें हो या न हो और ऐसा भाि हमें यह अनुभि करािा है वक हम सब जाने-अनजाने उसी
ई र के विए ही कायष कर रहें हैं वजसका िশ है - ई रीय मानि समाज का वनमाष ण वजसमें जो हो स हो, वर्शि हो,
सु र हो और इसी ओर विकास की गवि हो

सोमिार, 2 माचण, 2015 ई0


भारि पूरी दु वनया को र्शाम्म की राह वदखाने में संक्षम है र्श वि ंर्शकारी होिा है िो र्शा पर्शुिा
से मानििािाद की ओर िे जािा है आज आि किा केिि वर्शवक्षि होने की नहीं बम्म सुवर्शवक्षि हाने की है
केिि भौविक विकास को सिां वगण विकास नहीं कहा जा सकिा भारि की प्रकृवि ि यहाूँ के ৯ान के खजाने को
ढूढ़ने में पूरी दु वनया िगी है हमसे दु वनयाूँ ने बहुि कुछ वसखा है आज भी उसे र्शाम्म का रा ा भारि ही वदखा
सकिा है साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 2 मािष, 2015 -श्ीमती प्रवतभा पावटल पूिण रा र पवत, भारत

शुक्रिार, 20 माचण, 2015 ई0


सूयष ग्रहण है जो भारि में वदखाई नहीं दे गा

शवनिार, 4 अप्रैल, 2015 ई0


-िंिग्रहण

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 85


-वहं दू माह के अनुसार दोनों ग्रहण एक ही माह में पड़ रहे हैं सू यष ग्रहण अमाि ा को और िंि ग्रहण
पूवणषमा को है र्शा ों में कहा गया है वक एक माह में दो ग्रहण हों िो राजा को हावन होिी है इस ग्रहण से वकसी
र्शीर्ष नेिा या दे र्श की सेना को हावन हो सकिी है
सोमिार, 27 जुलाई 2015 ई0
ए.पी.जे. अ ु ि किाम की मृ ु (ब्र िीन)
इनके सािणभौम विचार
“अৢी वर्शक्षा ि था ही प्रबु नागररक पै दा करिी है , बৡों को नैविक वर्शक्षा प्रदान की जाय और
रोजगार के नये अिसर पै दा वकये जायें , रा र ीय र्शाम्म ि सािष भौवमक स ाि के विए सभी धमष आ ाम्म क
आ ोिन में र्शावमि हो जायें ” साभार - दै वनक जागरण, स ादकीय, िाराणसी, वद0 8 वदस र 2002
-श्ी ए.पी.जे , अ ु ल कलाम, पू िण रा र पवत, भारत

सोमिार, 28 वसतिंबर, 2015 ई0


िंि ग्रहण
मिंिलिार, 17 नि र 2015 ई0
अर्शोक वसंघि की मृ ु (ब्र िीन)
इनके सािणभौम विचार
“वह दू -बौ एकिा से वि में बढ़िे ईसाइयों और इ ाम के वि ारिादी मनोिृव को रोकने में
वनव ि रूप से सफििा” (िु ीनी में आयोवजि सभा में) साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी वद- 20-01-2000
- श्ी अशोक वसिं घल, अ राण र ीर् कार्ाण क्ष, वि वह दू पररषद

सन् 2016 ई0
बुधिार, 20 जनिरी, 2016 ई0
िैयार करें मू ों और उ ीदों पर आधाररि ूवप्र (विवडओ का फ्ेवसंग से छात्रों और वर्शक्षकों को
स े र्श - रा र वनमाष ण का आ ानं ) साभार -दै वनक जागरण, 20 जनिरी, 2016- श्ी प्रर्ि मुखजी, रा र पवत, भारत
मिंिलिार, 8– 9 माचण, 2016 ई0
पूणष सूयष ग्रहण 8-9 मािष को पूणष सू यष ग्रहण पड़े गा, जो सुमात्रा, बोरनेओ, सुिािेवसया से अৢी िरह
वदखाई दे गा आं वर्शक रूप से यह दवक्षण एिं पूिी एवर्शया और ऑ र े विया से वदखेगा भारि में यह ग्रहण 9 मािष
को सुबह 4 बजे वदखाई दे गा
बुधिार, 23 माचण, 2016 ई0
आं वर्शक िंि ग्रहण 23 मािष को यह िंि ग्रहण एवर्शया, ऑ र े विया, उ री अमेररका और दवक्ष ण
अमेररका के कुछ भागों में वदखाई दे गा आं वर्शक रूप से यह एवर्शया, ऑ र े विया, भारिीय महासागर,
आकषवट्क, अंट्ाकषवट्का से वदखेगा
ऐसी वर्शक्षा की जरूरि है जो समवपषि, वि सनीय और आ वि ास से ििरे ज युिा िैयार करे वर्शक्षा
ऐसी होनी िावहए जो न केिि कावबि पेर्शेिर दे बम्म िो समाज ि दे र्श के प्रवि जुड़ाि भी महसूस करे ( ामी
राम वहमाियन वि वि ािय के पहिे वदक्षां ि समारोह में बोििे हुएं ) - श्ी प्रर्ि मुखजी, रा र पवत, भारत
शुक्रिार, 26 अि , 2016 ई0
भारि को अब क्रवमक विकास की नहीं कायाक की जरूरि है यह िब िक संभि नहीं जब िक
प्रर्शासवनक प्रणािी में आमूि-िूि पररििषन न हो विहाजा नई सोि, नई सं थान और नई िकनीकी अपनानी
होगी 19िी ं सदी के प्रर्शासवनक प्रणािी के साथ 21िी ं सदी में नहीं प्रिेर्श वकया जा सकिा है र ी-र ी प्रगवि से

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 86


काम नहीं ििेगा यवद भारि को पररििषन की िुनौवियों से वनपट्ना है िो हमें हर र पर बदिाि िाना होगा हमें
कानूनों में बदिाि करना है , अनाि क औपिाररकिाओं को समा करना है , प्रवक्रयाओं को िेज करना है और
प्रौ ोवगकी अपनानी है मानवसकिा में भी बदिाि िानी है और यह िभी हो सकिा है जब वििार पररििषनकारी
हों (नीवि आयोग की ओर से आयोवजि ”भारि पररििषन ाূान” के र्शुभार में, नई वद ी में)
- श्ी नरे मोदी, प्रधानमिं त्री, भारत
बुधिार, 31 अि , 2016 ई0
प्रधानमंत्री ने भी भारि के कायाक के विए अंिरवनवहि वस ां िों को वकया है उ ोंने हजारों
िर्ों से ििी आ रही भारिीय परं पराओं से अनुभि हावसि करने िािे विर्शेर्৯ों, जनिा के सुझािों और विपरीि
वििारों को ानपूर्िक सुनने का सुझाि वदया है यवद हमने ऐसा कर वदया िो हम नीवियों और योजनाओं को न
वसफष विफि होने से बिा िेंगे, बम्म भवि के जोम्मखमों से भी इ ें सुरवक्षि कर दें गे इन सबका अथष है भवि
की योजनाओं और विकास के विए जरूरी बुवनयादी बािों को वफर से पररभावर्ि करना और उ ें नए रूप में
रिना इसके विए सोि के एक नए र की जरूरि होिी है यह वकस िरह होगा, यह बहुि कुछ आयोग की ट्ीम
की रूपरे खा और व कोण पर वनभषर करे गा प्रधानमंत्री ने नीवि आयोग की ट्ीम के विए मह पूणष वदर्शावनदे र्श
िय वकए हैं अब नीवि आयोग पर वनभषर करिा है वक िह आर्शाओं के अनुरूप आिरण करे और पररणाम दे
(”अगिी सदी की िैयारी“ र्शीर्षक से दै वनक जागरण में प्रकावर्शि िेख)
-मुरली मनोहर जोशी
बृह वतिार, 1 वसतिंबर, 2016 ई0
सूयष ग्रहण यह ग्रहण भारि, अफ्ीका, मडागा र, अट्िां वट्क महासागर और भारिीय महासागर से
वदखाई दे गा अफ्ीका में यह आं वर्शक रूप से ही वदखाई दे गा
शुक्रिार, 16-17 वसतिंबर, 2016 ई0
िंि ग्रहण यह ग्रहण एवर्शया, ऑ र े विया और पूिी अफ्ीका में वदखाई दे गा आं वर्शक रूप से यूरोप,
दवक्षण अमेररका, अट्िां वट्क और अंट्ाकषवट्का में वदखेगा

सन् 2017 ई0
रवििार, 26 िरिरी, 2017 ई0
साि का पहिा सूयषग्रहण
मई, 2017 ई0
रिना क आिोिना, िोकि को मजबूि बनािी है (के सरकार के िीन िर्ष पूरे होने पर समीक्षा
िि ं) - श्ी नरे मोदी, प्रधानमिंत्री, भारत
सोमिार, 7 अि , 2017 ई0
रक्षाबंधन िािे वदन खं डग्रास िंिग्रहण था
सोमिार, 21 अि , 2017 ई0
साि 2017 का दू सरा सूयषग्रहण भारिीय समय के मुिावबक यह ग्रहण राि में 9.15 वमनट् से र्शुरु होगा
और राि में 2.34 वमनट् पर ख होगा
वसत र, 2017 ई0
“वि र्शा - द नािेज आफ फाइनि नािेज” पु क का सारां र्श – “मैं स काशी से कन्त महाितार
बोल रहा हाँ” र्शीर्षक के रूप में प्रकावर्शि ISBN : 9781947752948 वन पिे पर भी पु क को भेजा गया
01- PRESIDENT OF INDIA, 02- PRIME MINISTER OF INDIA, 03- NITI AAYOG, 04. NCERT, 05.
BUREAU OF INDIAN STANDARD, 06. UNIVERSITY GRANTS COMMISSION (UGC), 07. MINISTRY

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 87


OF HUMAN RESOURCES DEVELOPMENT, 08. HON'BLE CHIEF JUSTICE, 09. THE GOVERNOR OF
UTTAR PRADESH, 10- THE CHIEF MINISTER OF UTTAR PRADESH, 11. THE EDITOR, DAINIK
JAGRAN, 12. THE EDITOR , AMAR UJALA 12. THE EDITOR , HINDUSTAN 13. SRI KALKI BAL
VATIKA, 14.K.K.BIRLA FOUNDATION, 15, WORLD RELIGIOUS PARLIAMENT, 16, BHARAT VIKASH
PARISHAD, 17. THE CHIEF MINISTER OF BIHAR, 18. TATA INSTITUTE OF SOCIAL SCIENCE, 19.
RAMKRISHNA MISSION 20. VICE CHANCELLOR, BHU, VARANASI, 21. VICE CHANCELLOR,
MGKV, VARANASI, 22. VICE CHANCELLOR, SSU, VARANASI, 23. PRINCIPAL, H PG COLLEGE,
VARANASI, 24. PRINCIPAL, PN GOVT. COLLEGE, RAMNAGAR, VARANASI, 25. DM, VARANASI,
26. DM, MIRZAPUR, 27. MEMBER OF PARLIAMENT, VARANASI

सन् 2018 ई0
13 जुिाई 2018, भारि में सुबह 7 बजकर 18 वमनट्, ख होने का समय 8 बजकर 13 वमनट् 5
सेकेंड इससे पहिे 31 जनिरी को साि का पहिा िंिग्रहण दे खा गया था इस िं िग्रहण के दौरान 152 साि बाद
बहुि दु िषभ सं योग बना था 27 जु िाई को होने िािा िंि ग्रहण भारि में वदखाई दे गा और सदी का सबसे िंबा
िंिग्रहण होगा

सन् 2019 ई0
6 जनिरी, का पहिा सूयषग्रहण भारिीय समयानुसार सुबह 5 बजकर 4 वमनट् से र्शुरू होकर 9
बजकर 18 वमनट् िक ििा हािां वक यह आं वर्शक सू यषग्रहण भारि और आसपास के दे र्शों में नहीं वदखाई वदया
जापान, कोररया, रूस समेि अ कुछ दे र्शों में यह नजर आया
साि का दू सरा सूयषग्रहण 2 जु िाई को पूणष ग्रहण, ये ग्रहण भी भारि में वदखाई नहीं वदया 2 जुिाई
को िगने िािा सूयष ग्रहण िार घंट्े 33 सेकेंड िक ििेगा अगर आप इस िर्ष के पूणष सूयषग्रहण को नहीं दे ख पािे
हैं िो आपको 14 वदसंबर, 2020 िक का इं िजार करना होगा
मिंिलिार, 25 जून 2019 ई0
ामी स वमत्रान वगरर ब्र िीन
आपके विचार आपके ”भारत माता मन्त र“ पु क से-
1. म्म प ामनु िरे म सूयषि मसाविि पुनदष दिा िा जानिा सं गमेमवह (ऋृ৖ेद-5/51/15) ”जैसे सूयष और
ि मा वनराि अ ररक्ष में वनरापद एिं राक्षसावद से अबावधि वनविषध्न यात्रा करिे हैं , वििरण करिे हैं , िैसे
ही हम अपने ब ु -बा िों के साथ िोक-यात्रा में ेहपूिषक, वनविष िििे रहें और हम सबका मागष मंगिमय
हो “ भगिान र्शंकर के रण मात्र से ऐसा स ि है , क्योंवक िे क ाण के दे ि हैं िे दे िावधदे ि महादे ि िो हैं
ही, वक ु भारिमािा का रूप- रण करने पर िो यह भाि जीि रूप से जाग्रि हो जािा है वक भारि का
समग्र दर्शषन भगिान र्शंकर में ही हो रहा है वििारपूिषक दे खें, िो भगिान र्शंकर स ूणष रा र के प्रिीक हैं ,
भगिान िीराम रा र की आदर्शष-मयाष दा के और गंगा रा र में प्रिावहि होने िािी सं ृ वि की उसके साथ उसमें
ब्र ि भी अ वनषवहि होना िावहए, क्योंवक ब्र ि से विवहन सं ृ वि दीघषकाि िक नहीं रह सकिी इस
ब्र ि के साक्षाि् रूप िीकृ हैं इसविए भारिीय सं ृ वि का सिां ग रूप राम, कृ , र्शंकर और गंगा
का समम्म ि रूप है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 88


2. केिि िेर्श ग्रहण मात्र से वकसी को साधु-संि नहीं कहा जा सकिा साधुिा और स िो एक िृव का नाम
है यह साधु-िृव कदाविि् ेि ि धारी में भी हो सकिी है और कदाविि् भगिा-धारी में नहीं यह
जट्ाजूट्धारी या मुम्मਔि केर्शों में भी हो सकिी है और नहीं भी अवनिायषिा केिि इिनी ही है वक जहाूँ जीिन
में सुवििा है , िहीं साधुिा है जब िक साधुिृव संसार में भ्रमण करिी रहे गी, िब िक भारिीय सं ृ वि का
विनार्श कोई नहीं कर सकिा
3. ट्हवनयाूँ और प ों को काट् दे ने से िृक्ष नहीं सूखिा उसका बीज यवद उिषरा भूवम में सुरवक्षि है , िो अनुकूि
अिसर-खाद, पानी, मािी आवद पाकर िह पुनः िहिहा उठे गा, हरा-भरा हो जायेगा यही म्म थवि भारिीय
सं ृ वि के बीज-जीिन मू ों की है भारिीय सं ृ वि का बीज वकसी एक म्मि के अ ःकरण में नहीं,
अवपिु करोड़ों म्मियों की हृदय भूवम में जीि रूप में म्म थि है इसी कारण साधु-संिों की िाणी रूपी
खाद, भम्मि रूपी पवित्र जिधारा और प्रभु -कृपा की अनुकूििा प्रा होने पर िह पुनः पुनः अंकुररि होिी
रहे गी इनकी छाया के नीिे बैठने िािे म्मियों को जीिन में र्शाम्म का स े र्श सिि् दे िी रहे गी
4. य वप प्र ेक थान की भूवम की अपनी वनजी विर्शेर्िाएूँ होिी हैं गुजराि की भूवम में रूई, वकसी अ जगह
हरी वमिष, माििा में गेहूँ आवद बहुिायि में िथा अৢे वक के होिे हैं , िो भी ये ि ुएूँ थोड़े बहुि अ र से
अ त्र भी उगाई जा सकिी हैं , वक ु यवद केर्शर को क ीर के अविररि अ त्र कहीं पर उ करने के
प्रयास वकये जायें, िो असफििा ही वमिेगी इसके विए िो क ीर की भूवम की ही र्शरण िेनी होगी इसी
भाूँ वि भौविकिाद के विकास के विए यूरोप ओर अमेररका की भूवम उपयुि है , पर ु आ ा िाद की केर्शर
यवद प्रा करना है , िो स ूणष वि को भारिीय भूवम से ही प्रेम करना होगा इसके अविररि कोई उपाय
नहीं है यवद इस धरिी का यह िैवर्श ਅ न होिा, िो भगिान िीराम और भगिान िीकृ यहीं पर ज क्यों
िेिे? िे कहीं पर भी आविभूषि हो सकिे थे, पर ु सरयू और यमुना िट् उ ें अৢा िगा और इसविए अपने
बाि-वमत्रों के साथ उ ोंने यहाूँ सहज बाि-वक्रड़ायें कीं, वजससे सभी िोग जान िें वक इस धरिी का मह
वकिना अवधक है
5. उ र भारि में भगिान ने अनेक रूपों में अििार ग्रहण वकया इसविए उस विराट्् एिं िरम वि ि ने
दवक्षण भारि में भी अंर्शाििार ग्रहण वकया िी र्शंकरािायष , िी रामानुजािायष, िी ि भािायष , िी म ािायष
आवद महान आिायों ने भारिीय समाज के उ यन के विए अििार ग्रहण वकया यवद उ र भारि में प्रभु के
अििारों के मा म से भगिद् र्शम्मि ारा संसार को प्रभाविि वकया गया, िो दवक्षण के आिायों ने साधना,
संयम, सदािार के उपदे र्श ारा, पुरूर्ाथष के ारा मानिों में ऐसी अनुभूवि उ की वक िे आिायष अंर्शाििार
न होकर पूरी र्शम्मि सवहि अििार ही वदखाई दे िे हैं
6. संसारी मानि दो प्रकार की विवभ पररम्म थवियों के वहं डोिे में झूििा हुआ अपनी दु बषििा प्रमावणि करिा है
वक यवद कोई अनुकूि ि ु वमि जाए, िो उसके प्रवि राग हो जािा है , और यवद वप्रय ि ु का वियोग हो जाए
िो रोर् होिा है कोई-कोई विरिे मनु होिे हैं , जो न राग में जीिे हैं , न रोर् में जीिे हैं , िे िो केिि अनुराग में
ही सदा आनम्म ि होिे हैं भगिान िीराम भी इसी प्रकार के महापुरूर् हैं , वजनको न राग है , न रोर्, अवपिु िे
अ ों को सभी प्रकार संिु करिे हैं उनका रण कर, उस वन आन मय परमा ा के प्रवि भम्मि
प्रदवर्शषि कर, भारिीय म्मि अपने जीिन को ध अनुभि करिा है
”भारत माता मन्त र“ के स में आपके विचार-
ऊूँ वि ावन दे ि सवििदुष ररिानी परासुि यद् भिं ि आ सुि
हमारे दे र्श के गाूँ ि-गाूँ ि, नगर-नगर में मम्म र वमििे हैं बुम्म िादी म्मि निीन मम्म रों के वनमाष ण को
वनरथषक मानिे हैं कई िोग इसे अथष का अप य भी कहिे हैं इविहास को जीविि रखना हमारा किष है
इविहास से हमें अपनी रा र ीय-सं ृ वि के गौरि का पिा िििा है पाठकों को इससे प्रेरणा वमििी है और भािी
पीढ़ी के सं ार जगाने में िेिना की र्शम्मि इसी पािन व कोण से , हरर ार में भारि मािा मम्म र का वनमाष ण
वकया गया है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 89


मुसिमान, ईसाई ब ुओं को अपने पूिषजों के स में पयाष जानकारी है , पर ु वकसी वह दू युिक
से उसके पूिषज ऋृवर्यों के नाम पूछे जायें िो बिा पाने में असमथषिा प्रकट् करे गा यवद म्मि अपने िे पूिषजों का
ही वि रण कर बैठे, िो उनके िे सं ारों को अपने जीिन में कैसे उिार सकिा है ?
भारि मािा मम्म र, मम्म र के रूप में अवधक जाना जाय, ऐसा वििार कम है िीथष -यात्री जो प्रवििर्ष
िाखों की संূा में हरर ार आिे हैं , िे इस मम्म र से दे र्श के संि, आिायष , बविदानी महापुरूर्ों, सा ी, सवियों
(मािृ र्शम्मि) के जीिन से प्रेरणा िेकर, व्रि और संक कर जा सके-यह इसका मुূ िশ है सा दावयक
उपासना प वियों में मानि पृथक-पृथक घेरों में बूँधिा जा रहा है ऐसे समय में रा र ीय एकिा को ान में रखकर,
सब स दायों के आिायों और संिों की एक ही थान पर प्रवि ा की गई है , इससे -”हम सब एक हैं “, ”हमारी मािा
भारि मािा है “-का वििार पररपि कर सकें यह वििार ढ़ होना िावहए, िभी म्मििाद से ऊपर उठकर
रा र िाद की ओर जा सकिे हैं
धमष और रा र एक-दू सरे के पूरक होने िावहए धमष सं ारों को बनािा है सं ारों का परर ार
करिा है और रा र -भाि धमष पर बविदान होने की प्रेरणा दे िा है वबना उ गष वकये इस संसार में कुछ नहीं
वमििा ाथष की बवि िढ़ाये वबना रा र का य৯ अधूरा रहिा है पर्शु -बवि की बािें आज वनरथषक हो गई हैं , वक ु
आ बविदान के अभाि में कोई महान् िশ प्रा हो जाये, यह स ि नहीं है भारि मािा मम्म र में विराजमान
संि, र्शूर, सिी-दे र्श के िाखों यावत्रयों में सम य, ि ा, पर र प्रेम, ाग, स ाि, ाथष ाग, समरसिा और
बविदान की भािना जगाने में समथष हो सकेंगे , ऐसा वि ास वकया जाना िावहए
हमारा यह वििार है वक मम्म र में दान-पात्र न रखें जाएूँ , पर ु दर्शषनावथषयों की उदार भािना के
स ानाथष , उनके ारा की जाने िािी िढ़ोिरी के सदु पयोग की व से , दान-पात्र रखे जाना युम्मिसंगि भी िगिा
है वफर भी भािना यह है वक, दर्शषनाथी इस मम्म र की ृवि संजोकर, अपने घरों को िौट्कर जाने िािे िोग ि ा
से जो कुछ हो, िहीं से प्रेवर्ि करें इस धनरावर्श को आवदिासी, वगररिासी, िनिासी, हररजन, दे र्श के उपेवक्षि िगष
और दररि नारायण की सेिा में िगाया जा सके साथ ही, आय का एक भाग ब्रा ण बािकों को कमषकाਔ, िेद,
हिन, य৯ आवद की वर्शक्षा दे ने के विए उपयोग में िाया जाए इस प्रकार यह मम्म र समाज की सिाष गीण सेिा का
प्रक बन सके, यह अपेक्षा है
इस मम्म र में जैन, वसक्ख, ईसाई, मुसिमान, पारसी मजहबों के िे संिों की मूविषयाूँ और उनके
जीिन का अंकन वकया गया है सभी प्रमुख धमों के मूि मंत्र रजि पਂीका पर अंवकि वकये गये हैं , वजससे
उपासकों, साधकों, नागररकों में यह भाि जाग सके वक सभी धमों का मूि ि एक है इस प्रकार, अपने दे र्श की
सं ृ वियों की सम धाराओं को हरर ार में बहने िािी गंगा की पािन धारा से जोड़ने का प्रय वकया है गंगा
पािनिा और गविर्शीििा का प्रिीक बन िुकी है वबना पािन और गविर्शीि हुए, दे र्श और रा र की िा विक सेिा
नहीं की जा सकिी
परमा ा की कृपा से, अपने रा र -रथ को अनैविकिा के पंक से उबार, जगद् गुरू के पूिष आसन पर
बैठा सकने में हम सब वनवम और परमा ा के हाथ का उपकरण बन सकें, ऐसी उनके िरणों में प्राथषना है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 90


सन् 2020 ई0

इस िषण की मुূ विशेषता

तकनीकी के आवि ार से दू रदशणन के अनेक चैनल और अवधक क्षमता के क ू टर


का भारत में ापक वि ार और जनता के स कण में आना
इ रनेट (INTERNET) का भारत में ापक वि ार और जनता के स कण में आना
मोबाइल (CELL PHONE) के र्ान पर अवधक क्षमता के ाटण मोबाइल (SMART
CELL PHONE) का भारत में ापक वि ार और जनता के स कण में आना
दू रदशणन और इ रनेट नेटिकण के ापक वि ार से समाचार (NEWS
CHANNEL), सामावजक स कण (SOCIAL MEDIA), र्ू ਅूब (YouTube.com), सचण
इिं जन (google.com) और विचार क्त करने और ৯ान-सूचना पाने का ापक त ता
का विकास
धावमणक, राजनीवतक, सामावजक और िैर्न्त ਚ िहार में उपरोक्त तकनीकी का
ापक प्रर्ोि
विचार क्त करने की ापक त ता के कारर् प्र ेक न्तक्त ही विचारक बन
िर्ा पर ु व ( न्तक्तित) विचार और समव (सिंर्ुक्त) विचार में अ र के ৯ान का
अभाि
सन् 2020 ई0 को लेकर अनेक भवि िक्ताओिं के विचार क्त होने लिें र्ें और र्ुि
पररितण न तर्ा कन्त महाअितार के प्रकट होने के समर् के रूप में दे खा जाने लिा र्ा
र्ुि का काल िर्ना भी विचार के के में आ िई र्ी कवलर्ुि के स में 4 लाख
32 हजार की अिवध की विचारधारा कमजोर पड़ने लिी र्ी योिंवक उसके बहुत से शा ीर्
और िै৯ावनक आधार क्त हाने लिें र्ें “आर्ण समाज” के सिं र्ापक ामी दर्ान
सर ती के अनुसार कवलर्ुि की आर्ु 4 लाख 32 हजार की र्ी तो “अन्तखल वि िार्त्री

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 91


पररिार” के सिं र्ापक और “विचार क्रान्त ” के सिंचालक पिं 0 श्ीराम शमाण आचार्ण के
अनुसार र्ह र्ुि पररितण न का सन्त काल र्ा
मनु अपने आप में इतना सिंकुवलत होकर र्िं में ार्ी हो चुका र्ा वक िह अपने
आप को इस सािणभौम सृव से अलि स ा का समझने लिा र्ा िह र्ह भूल चुका र्ा वक
शरीर की कोवशका से ले कर स ूर्ण ब्र ाਔ तक एक ही शरीर है और सभी एक-दू सरे को
प्रभावित करते हैं

अ घटना क्रम

िषण 2020 ई0 में खिोवलर् घटना : 6 ग्रहर् (4 चिंद्र ग्रहर्, 2 सूर्ण ग्रहर्)
10 जनिरी 2020 िंि ग्रहण - ग्रहण का ट्ाइम: राि 10 बजकर 37 वमनट् से 11 जनिरी को 2
बजकर 42 वमनट् कहां वदखाई दे गा: भारि, यूरोप, अफ्ीक, एवर्शया और आ र े विया
5 जून 2020 िंि ग्रहण - रावत्र को 11 बजकर 15 वमनट् से 6 जून को 2 बजकर 34 वमनट् िक कहां
वदखाई दे गा: भारि, यूरोप, अफ्ीक, एवर्शया और आ र े विया
21 जून 2020 सूयष ग्रहण - 21 जून की सुबह 9 बजकर 15 वमनट् से दोपहर 15 बजकर 03 वमनट्
िक भारि, दवक्षण पूिष यूरोप और एवर्शया इस साि के सूयष ग्रहण पर अवधकिर ৸ोविवर्यों की नजरें हैं क्योंवक
यह ग्रहण वमथुन रावर्श में िगेगा 21 जून को िगने िािे ग्रहण का सू िक काि 12 घंट्े पहिे ही िग जाएगा इस
साि पड़ने िािे ग्रहण बहुि मह पूणष माने जा रहे हैं क्योंवक ৸ोविवर्यों के अनु सार इन ग्रहण से वमथुन रावर्श के
जािकों पर विर्शेर् प्रभाि पड़े गा उस समय कुि छह ग्रह िक्री होंगे जो अৢा सं केि नहीं है कहा जा रहा है वक
ग्रहण के कारण ग्रहों की ऐसी म्म थवि वि भर के विए विंिाजनक मानी जा रही है
5 जुिाई 2020 िंि ग्रहण - सुबह 08 बजकर 37 वमनट् से 11 बजकर 22 वमनट् िक अमेररका,
दवक्षण पूिष यूरोप और अफ्ीका
30 निंबर 2020 िंि ग्रहण - दोपहर को 13 बजकर 02 वमनट् से र्शुरू होगा और र्शाम 17 बजकर
23 वमनट् िक भारि, अमेररका, प्रर्शां ि महासागर, एवर्शया और आ र े विया
14 वदसंबर 2020 सूयषग्रहण - र्शाम को 19 बजकर 03 वमनट् से 15 वदसं बर को 12 बजे सू यषग्रहण
भारि में नहीं वदखेगा, इसको प्रर्शां ि महासागर

िषण 2020 ई0 में प्राकृवतक घटना : कोरोना (COVID-19) िार्रस से िैव क महामारी

कोरोना िायरस िायरस (COVID-19) एक सं क्रामक रोग है जो एक नए खोजे गए कोरोना िायरस के


कारण होिा है
COVID-19 के साथ बीमार पड़ने िािे अवधकां र्श िोग ह े से म म िक्षणों का अनुभि करें गे और
विर्शेर् उपिार के वबना ठीक हो जाएं गे
COVID-19 का कारण बनने िािा िायरस मुূ रूप से एक सं क्रवमि म्मि के खां सने, छींकने या
बाहर वनकिने पर उ बूंदों के मा म से फैििा है ये बूंदें हिा में िट्कने के विए बहुि भारी हैं और ज ी से
फर्शष या सिहों पर वगर जािी हैं
आप िायरस में सां स िेने से संक्रवमि हो सकिे हैं यवद आप वकसी ऐसे म्मि के करीब हैं वजसके
पास COVID-19 है या दू वर्ि सिह को छूकर और वफर आपकी आं खें, नाक या मुंह से

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 92


िीन से र्शुरू हुआ यह महामारी COVID-19 ने जनिरी से अपना प्रभाि वदखाना र्शुरू वकया और
दे खिे ही दे खिे वि के 200 से उपर दे र्शों और व प पर पहुूँ ि गया आज वदनां क 10 जून, 2020 को संयुि रा৸
अमरीका 20,45,715 में िोग इससे प्रभाविि हो गये थे, घट्िे क्रम में दे र्शों और व प की सूिी इस प्रकार है -
ब्रावजि, रूसी संघ, ग्रेट् वब्रट्े न और उ री आयरिैंड का यूनाइट्े ड वकंगडम, ेन, भारि, इट्िी, पेरू,
जमषनी, ईरान, िुकी का गणिंत्र, फ्ां स, वििी, मेम्मসको, पावक ान, सऊदी अरब, कनाडा, िीन, किर, बां ৕ादे र्श,
बेम्म यम, दवक्षण अफ्ीका, बेिोरूस, नीदरिैंड, ीडन, इिेडोर, कोिम्म या, संयुि अरब अमीराि, वसं गापुर,
वमस्र, पुिषगाि, कुिैट्, इं डोनेवर्शया, म्म ट्् जरिैंड, यूक्रेन, पोिैंड, आयरिैंड, अजेंट्ीना, वफिीपींस, अफ़गावन ान,
रोमावनया, डोवमवनकन गणरा৸, इजराइि, ओमान, पनामा, जापान, ऑम्म र या, बहरीन, बोिीविया, इराक,
आमीवनया, नाइजीररया, कजाख ान, डे नमाकष, सवबषया, कोररया, एिजीररया, घाना, मोिदोिा, कैमरून, नॉिे,
मोरक्को, मिेवर्शया, आजरबाइजान, ৖ाट्े मािा, ऑ र े विया, वफनिैंड, होंडुरस, सू डान, िजावक ान, उ बेवक ान,
सेनेगि, वजबूिी, कां गो, वग ी, िসमबगष, हं गरी, कोट्े डी आइिर, है िी, गैबॉन, मैसेडोवनया, एि सा ाडोर,
थाईिैंड, यूनान, के ा, बु ाररया, बोव या और हजे गोविना, िेनेजुएिा, सोमाविया, इवथयोवपया, क्रोएवर्शया, क्यूबा,
मैयट्, वकवगषज ान, ए ोवनया, मािदीि, िी िंका, केंिीय अफ्ीकन गणरा৸, आइसिैंड , विथुआवनया, दवक्षण
सूडान, मािी, ोिावकया, ूजीिैंड, ोिेवनया, वनकारागुआ, वगनी-वबसाऊ, को ा ररका, िेबनान, भूम ििी
वगनी, अ ावनया, जाम्म या, परागुआ, मॉररट्ावनया, मेडागा र, हॉगकॉग, िािविया, ਅूनीवर्शया, वसयरा विओन,
नाइजर, साइप्रस, बुवकषना फासो, अंडोरा, उरु৖े, जॉडष न, िाड, जॉवजषया, फ्ेंि गयाना, कां गो, सैन मैरीनो, युगां डा,
मा ा, जमैका, काबो िडे , यमन, साओ ट्ोमे और वप्रंवसपे, िंजावनया, जाना, वफवि ीन, रिां डा, मिािी, मोजाम्म क,
िाइिान, िाइबेररया, इ ािीनी, िीवबया, मॉरीर्शस, मैन ीप, वियिनाम, मोंट्ेनेग्रो, वज ा े, बेवनन, ां मार,
माट्ीवनक, मंगोविया, केमैन ट्ापू, वजब्रा र, ৖ाडे िोप, गुयाना, सीररयाई, कोमोरोस, बरमूडा, ब्रुनेई दारु िाम,
सूरीनाम, कंबोवडया, वत्रवनदाद और ट्ोबैगो, बहामा, अरूबा, मोनाको, अंगोिा, बारबाडोस, बुस्र् ी, विकट्ें ीन,
वसंट् माट्े न (डि भाग), फ्ेंि पॉिीनेवर्शया, भूट्ान, मकाओ, बो िाना, संि मावट्ष न, इररवट्र या, नामीवबया, गाम्म या,
संि विंसेंट् अूँड थे ग्रेनडीनेस, अंविगुया और बाबूषडा, विमोर- िे े, ग्रेनेडा, ू कैिेडोवनया, बेिीज, सेंट् िूवसया,
िाओस, डोवमवनका, वफ़जी, सं ि वकਂ्स और नेविस, ग्रीनिैंड, िुসष और कैकोज ीपसमूह, पवित्र दे खो, मोंट्ेसेराट्,
सेर्शे , पव मी सहारा, पापु आ ू वगनी, विसोट्ो, एं गुइिा
प्र ेक दे र्श में इसका प्रभाि बढ़िा ही जा रहा था और मरने िािों की संূा बढ़िी ही जा रही थी
अभी िक इसे रोकने के विए कोई कारगर िैসीन नहीं खोजा गया था, खोज जारी थी सम ा को दे खिे हुए कई
दे र्शों ने अपने प्रभाविि र्शहरों को LOCKDOWN (अपने घरों में रहने और ापारीक गविविवध को ब रखने का
आदे र्श) दे ना पड़ा
भारि में भी 25 मािष से एका-एक 4 घंट्ें के समया राि में LOCKDOWN घोवर्ि कर वदया गया,
यािायाि के साधन रे ि, बस, हिाई जहाज के घरे िू और अ राष र ीय उड़ानें ब कर दी गईं जो भी नागररक जहाूँ
वजस कायष के गया विए था िो िहीं कैद हो गया दै वनक मजदू र (प्रविवदन कमाने -खाने िािे) काम ब होने से
भूखमरी के वर्शकार होने िगें िाखों मजदू र भारि के विवभ प्रदे र्शों से अपने गाूँ ि की ओर पै दि यात्रा पर ही
वनकि वियें वजसमें अनेकों की मौि भी हुयी रा े में वनिावसयों ने मानििा वदखािे हुये उनके भोजन-पानी को भी
उपि कराये

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 93


िषण 2020 ई0 : सािणभौम एका ता-मानिता का स े श

िषण 2020 ई0 का खिोवलर् स े श

ग्रहों के सम्म िन ि समय के योग से ৸ोविर् वि৯ान काि पररििषन और नये यु ग की र्शुरुआि िथा
ई र के अििरण की सूिना का प्रिीक मानिा है िो ििषमान, वि৯ान उसे मात्र एक ब्र ाਔीय घट्ना मानिा है
उपरोि घट्नाएं एिं संयोग वि , भारि, अ राष र ीय, रा৸, समाज, पररिार और म्मि सवहि वि৯ान
और धमष क्षेत्र के समक्ष ि थी पर ु िह एक-एक कर घवट्ि होिी गयी और िह इविहास बन गयी सभी
घट्नाएं अिग-अिग क्षेत्रों के समक्ष अिग-अिग रुप में ৯ान में थी, न वक एक साथ पररणाम रुप कोई भी
पररणाम वि , भारि, रा৸, अ राष र ीय, समाज, पररिार, म्मि, वि৯ान ि धमष क्षे त्र दे ने में सक्षम नही ं था अथाष ि् िह
इन घट्नाओं से पूणष मुि था
खिोल ि ৸ोवतष वि৯ान के अनुसार- उपरोि घट्नायें युग की समाम्म और भगिान के अििरण
के समय का सूिक होिी हैं ििषमान कवियुग की आयु 4,32,000 िर्ष मानी गयी है वजसका प्रार 18 फरिरी
3102 ई0 पू0 माना जािा है
सिण৯पीठम् कालीमठ, िारार्सी के ामी ब्र ान नार् सर ती के अनुसार- ग्रहण से
उ ावदि पुਘ से कवियु ग का 10,000 िर्ष आयु कम हो जािा है (दे खें -”अमर उजािा“ इिाहाबाद सं रण,
वदनां क-11-08-1999 पूणष सूयषग्रहण के अिसर पर प्रकावर्शि) और 821 िर्ष कवियुग का र्शेर् रहने पर कम्म
अििार का अििरण माना गया है इस प्रकार कवियुग का िीि कुि िर्ष 5102 िर्ष हुआ और यवद कम्म
अििार अभी होिा है िो कवियुग के कुि आयु 4,32,000 में से 5102+821 िर्ष घट्कर 4,26,071 िर्ष ग्रहण ारा
उ ावदि पुਘ से समा हो जाने िावहए वजसके विए 43 ग्रहण की आि किा है खगोि िै৯ावनकों का ऐसा
अनुमान है वक िर्ष में सूयषग्रहण की म्म थवि 2 से 5 बार िक आिी है कवियु ग के िीि िर्ष 5102 िर्ों में क्या 43
ग्रहण नहीं आये होंगे? जबवक 20 मािष 2015 िक 14 सूयषग्रहण हुये यवद यह माना जाय िो ग्रहण से उ पुਘ
वसफष भारि में ही होिा है िो क्या 5102 िर्ों के दौरान भारि में 43 ग्रहण नहीं हुये होंगे? जबवक ि ग्रहण से
उ ावदि पुਘ से कवियु ग की आयु कम होना अिग है इस प्रकार दे खने पर कवियुग की आयु िगभग समा हो
िुकी है
16 जुिाई 2000 गुरुपूवणषमा के वदन पूणष ि ग्रहण और 5 जुिाई 2001 को अंर्श ि ग्रहण गुरुओं के
विए प्रकार्शमय पूवणष मा नहीं बम्म अ कारमय अमाि ा था क्योंवक एक ओर यह पूणष ि ग्रहण 13 अग
1859 के बाद हुआ जो अब यह सन् 3000 के बाद ही होगा िो गुरु पूवणषमा के पािन अिसर पर ही हुआ जो मात्र
व गुरुओं के भरमार का प्राकृविक रुप से विरोध का सूिक था

िषण 2020 ई0 का प्राकृवतक स े श

कोरोना (COVID-19) िायरस से िैव क महामारी ने अपने-अपने दे र्शों के सरकार और समाज की


ि था को सािषजवनक रूप से ि करने का कायष वकया इस घट्ना ने म्मि और र्शासन को स े र्श वदया वक
मनु को प्रकृवि के सम य के साथ ििना िावहए जब भी प्रकृवि के िीन गुण – स , रज और िम में से रज
और िम की र्शम्मि अवधक हो जािी है िब प्रकृवि अपना स ुिन बनाने के विए स गुण से ह क्षेप करने में
सक्षम है और यह ह क्षेप वबना वकसी भेद-भाि के एक समान रूप से प्रभािी होिा है इस ह क्षेप में धमष -जावि,
रं ग, मवहिा-पुरूर्, उम्र इ ावद से कोई मििब नहीं होिा रूप से सािष भौम स -वस ा के अनुसार कायष
होिा है जो ई रीय वस ा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 94


िषण 2020 ई0 का सािणभौम स े श
भारिीय आ ा दर्शषन में वर्शि-र्शम्मि, प्रकृवि-पुरूर्, वक्रया-कारण का सिोৡ वििार है जो अम्म म
रूप से उৡिम भी है दे िी का थान प्रकृवि/ र्शम्मि/ वक्रया को प्रा है और दे ििा का थान वर्शि/ पुरूर्/ कारण
को प्रा है प्रकृवि/ र्शम्मि/ वक्रया के प्रभाि क्षे त्र के अनुसार अनेक दे िीयाूँ भारि में सिषत्र हैं प्रकृवि ारा प्रभािी
महामारी को भारिीय हमेर्शा दै िी प्रकोप और उनकी नाराजगी का ही पररणम मानिे हैं समय कम्म अििार के
अििरण का है िो उनकी र्शम्मि प्रकृवि के भी अििरण का समय है वज ें कम्म दे िी के रूप में जाना जािा है ,
भारिीय दर्शषन की व में कोरोना, कम्म दे िी का अ (कोरोना ) है वजससे मानि को स े र्श दे ने का प्रय है
इस मा म से िर्ष 2020 ई0 का सािषभौम स े र्श म्मि, समाज और सरकार को यह है वक-
1. म्मि यं को इस ब्र ाਔ का ि ईकाइ न समझें, िह एक ही सािषभौम स -वस ा से इस पृ ी पर
र्शरीर धारण वकया है और उसी वस ा से हार कर र्शरीर का ाग भी करे गा, इसके अिािा कोई रा ा
नहीं
2. समाज ( म्मियों का समूह) यं को धमष -जावि, रं ग, मवहिा-पुरूर्, उम्र इ ावद की भािना से मुि होकर
अ समूह को दे खें और आि किा पड़ने पर सहायिा के विए िैयार रहें रहन-सहन की प वि सं ृ वि है
जो थोपा नहीं जा सकिा, म्मि की ि िा है वक िो कैसे रहे , बस उसे यह ान रहना िावहए वक उसके
कारण अ को परे र्शानी िो नहीं हो रही है सं ृ वि को थोपना कਂरिा है
3. राजि में राजा और िोकि में स ा, प्रजा-जनिा का अवभभािक होिा है ना वक उस पर र्शासन करने
िािा, यवद ऐसा है िो वनव ि रूप से जानना िावहए वक िह राजा या स ा मानििािादी नहीं राजा या स ा को
सदै ि प्रजा-जनिा केम्म ि होना िावहए क्योंवक ये पाररिाररक, सामावजक, सां गठवनक, ापाररक, रा৸ और
स ा एक िृक्ष के समान हैं और िृक्ष के जड़ में खाद-पानी दे ने से सभी ि थायें सु ढ़ रहिी हैं
4. म्मि और सरकार को सािषभौम स -वस ा का ही मागष अपना कर अपने ि थाओं को सु ढ़ करना
िावहए िभी दोनों एक-दू सरे के विए सहयोगी बनकर रा र वनमाष ण में सहायक हो सकिे हैं
5. म्मि को िैव क ৯ान से युि करना आि क और “िैव क सोि- थानीय कायषिाही” की भािना से जीिन-
यापन के विए वनमाष ण की आि किा है

िषण 2020 ई0 का अितारी स े श

वकसी भी युग में अििार, महापुरूर्, संि या वकसी भी म्मि के गुण को सीधे दे खकर पहिानने की
क्षमिा वकसी भी म्मि के अ र नहीं रही है उस म्मि को, यं के अपने गुणों को ৯ान, कमष, जीिन के मा म
ारा ि करना होिा है उसके बाद ही कुछ िोग उ ें पहिानिे हैं और उनके साथ एक-दू सरे के सदु पयोग के
विए साथ आिे रहे हैं प्रािीन समय में यह कायष बहुि कवठन होिा था इसके विए िे अनेक प्रकार के आयोजन
करिे थे
ििषमान युग में भी अनेक प्रकार के आयोजन जैसे-सेवमनार, स ेिन, प्रदर्शष नी, मेिे, परीक्षाएूँ ,
प्रवि धाष इ ावद ारा अपनी यो৓िा प्रदवर्शषि वकये जािे हैं पर ु यह सब समय िेने िािा है और आम नागररक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 95


के यो৓िा को ि करने का मा म नहीं बन पािा दु वनया बहुि िेज हो िुकी है ऐसे में वकसी विर्शेर् कायष के
विए कोई भी सं था/ म्मि/योजना संिािक र्शीघ्रिा से अपने कायष के विए यो৓ म्मि से जुड़ना िाहिा है सीधे
म्मि से म्मि के स म्म ि होने , पररिय बनाने के कायष में मनु जीिन इिना छोट्ा है वक िह एक वसवमि
दायरे िक ही रह जािा है ापक दायरे िक जाने के विए म्मि का वनराकार रूप वििार-गुण-यो৓िा को ही
प्रकावर्शि करना होिा है

ई र (सािणभौम स -वस ा ) के स िुर् प्रधान (ब्र ा) के पूर्ाणितार


- श्ीराम (आदर्शष म्मिगि मानि) के धमष (आ ाम्म क स ) थापना का कारण र्शारीररक था,
ई र (सािणभौम स -वस ा ) के रज िुर् प्रधान (वि ु) के पूर्ाणितार

- श्ीकृ (आदर्शष सामावजक मानि) के धमष (आ ाम्म क स ) थापना का कारण आवथषक था,
ई र (सािणभौम स -वस ा ) के तम िुर् प्रधान (शिंकर) के पूर्ाणितार

- श्ीकन्त (आदर्शष िैव क मानि) के धमष (आ ाम्म क स ) थापना का कारण मानवसक था

गुरु के स में ामी वििेकान जी कहिे हैं -”हम गुरु के वबना कोई ৯ान प्रा नहीं कर सकिे
अब बाि यह है वक यवद मनु , दे ििा अथिा कोई गषदूि हमारे गुरु हो, िो िे भी िो ससीम हैं , वफर उनसे पहिे
उनके गुरु कौन थे? हमें मजबूर होकर यह िरम वस ा म्म थर करना ही होगा वक एक ऐसे गुरु हैं जो काि के
ारा सीमाब या अविम्मৢ नहीं हैं उ ीं अन ৯ान स गुरु को, वजनका आवद भी नहीं और अ भी नहीं,
ई र कहिे हैं (राजयोग, रामकृ वमर्शन, पृ -134)
ििषमान समय में म्मि ( व ) के गुरुओं की भरमार है पर ु समाज (समव ) के गुरु का पूणष अभाि
है िह िही है जो ििषमान और भवि की िैव क आि किा-ििषमान ि थानुसार वि -र्शाम्म -एकिा-म्म थरिा-
विकास-सुरक्षा के विए प्रब का माडि दे सकें, साथ ही पूणष मानि, थ समाज, थ िोकि और थ
उ ोग की प्राम्म का आधारवर्शिा रख फि रुप में वि ापी पूणष एका करें ििषमान समय और कुछ भी नहीं
अन ৯ान स गुरु वन िंक कम्म अििार का ही समय है वजसका रुप समव गुरु का ही रुप है उसका
सम कायष उपरोि सािाष वधक खगोिीय घट्नाओं की अिवध में ही स हुआ है वजसके स में सन् 1996
में ही हािैਔ वनिासी भवि ििा वम0 क्राइसे ने कहा था वक-”मैं भारि में एक महापुरुर् को रुप से
दे ख रहा हूँ जो वि के विए योजनाएूँ बना रहा है “ भारिीय आ ा के अनुसार भी पूणष ब्र ाििार पूणष स गुण
रूप िीराम िथा पूणष वि ु अििार पूणष रज गुण रूप िीकृ हो िुके हैं अभी जो र्शेर् थे िह हैं -पूणष वर्शि-र्शंकर
अििार पूणष िम गुण रूप यही अम्म म वन िंक कम्म अििार हैं वर्शिगुरु हैं , क ाण रुप हैं और जब िक
इनका आगमन नहीं हुआ था िब िक नेिा, ििष मान व गुरु, वि क इ ावद का भारि और वि का क ाण
कर दे ने का प्रय वन ि, भ्रमा क और समय गिाने िािा ही था हमें वर्शि-र्शंकर के पू णष प्रेरक पूणाष ििार के
रुप में ि िि कुर्श वसं ह ”वि मानि“ ारा ि कमों पर वि न और समपषण करना िावहए और समपषण
करना ही पड़े गा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 96


िषण 2020 ई0 का एिं तोवनर्ो िु टेरेश (महासवचि, सिंर्ुक्त रा र ) का स े श
Mr. Antonio Guterres
(30 April 1949 - .......................)

(Secretary-General's (Mr. Antonio Guterres) remarks to Annual General Assembly


Commemoration of Nelson Mandela International Day and United Nations Nelson Rolihlahla
Mandela Prize Laureate Recognition [as delivered)

I am pleased to join you to celebrate the life and achievements of Nelson Mandela - one of the
greatest leaders of our time, a moral giant whose legacy continues to guide us today.
Let me also express condolences to Madiba’s family and the people of South Africa on the
untimely passing of his daughter, Zindzi, this month.
On today’s commemoration of Nelson Mandela Day, I am delighted to extend my warmest
congratulations to the 2020 laureates of the United Nations Nelson Rolihlahla Mandela Prize:
Mrs. Marianna Vardinoyannis of Greece and Dr. Morissana Kouyate of Guinea.
Both are recognized for their long-standing commitment to the service of humanity in the
areas of human rights, access to health care, and the empowerment of women and girls and
the most vulnerable in society.
I commend them for advancing the United Nations’ mission and carrying on the extraordinary
legacy of Nelson Mandela.
As Madiba himself once said: “As long as poverty, injustice and gross inequality persist in our
world, none of us can truly rest.”
This message was the core of the Nelson Mandela lecture I delivered this weekend.
High and rising levels of inequality threaten our well-being and our future.
Inequality damages everyone.
It is a brake on human development and opportunities, and is associated with unfair
international relations, but also with economic instability, corruption, financial crises, increased
crime and poor physical and mental health.
The answer lies in a New Social Contract, to ensure economic and social justice and respect for
human rights.
A New Social Contract within societies will enable young people to live in dignity.
It will ensure women have the same prospects and opportunities as men.
And it will protect the sick, the vulnerable, and minorities of all kinds.

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 97


This year, we mark Nelson Mandela Day while COVID-19 continues to spread.
The pandemic endangers everyone, everywhere, especially the most vulnerable.
COVID-19 has been likened to an x-ray, revealing fractures in the fragile skeleton of our
societies, and it has laid bare risks we have ignored for decades: inadequate healthcare; gaps in
social protection; structural inequalities; environmental degradation; the climate crisis.
In response, we need world leaders to foster unity and solidarity.
First, to reduce the common threat of the pandemic and, second, to promote a recovery that
will build more sustainable, inclusive and gender-equal societies and economies.
Societies and economies that uphold the inherent dignity and worth of every person.
As we celebrate Madiba and his life-long struggle for justice and equality, we must recognize
that we still face the persistent plague of racism.
This abomination violates the Charter of the United Nations and insults our core values.
Every day, in our work across the world, we must strive to do our part to promote inclusion,
justice and dignity.
We must combat racism in all its manifestations.
As the United Nations marks its 75th anniversary in this fragile time, let us reflect on the life
and work of Nelson Mandela, who embodied the highest values of the United Nations and who
took action and inspired change.
Despite many years as a prisoner of conscience, Madiba retained his dignity and commitment
to his ideals.
Let his example convince any governments that keep such prisoners to release them.
There should be no prisoners of conscience in the 21st century.
On this Mandela Day, let us recall that we all have a part to play in the quest for a better future
of dignity, opportunity and prosperity for all people on a healthy planet.
Thank you.

https://www.un.org/sg/en/content/sg/statement/2020-07-20/secretary-generals-remarks-
annual-general-assembly-commemoration-of-nelson-mandela-international-day-and-united-
nations-nelson-rolihlahla-mandela-prize-laureate

वह ी भाषा रर्
(ने न मंडेिा अंिराष र ीय वदिस और संयुि रा र ने न रोिीहिा मंडेिा पुर ार पुर ार विजेिा [के
रूप में वििररि] महासविि की िावर्षक आमसभा की वट् णी)

मुझे ने न मंडेिा के जीिन और उपिम्म यों का ज मनाने के विए र्शावमि होने की कृपा है - हमारे
समय के सबसे महान नेिाओं में से एक, एक नैविक विर्शाि वजसकी विरासि आज भी हमारा मागषदर्शषन करिी है
मुझे इस महीने, मदीबा के पररिार और दवक्षण अफ्ीका के िोगों ारा अपनी बेट्ी, वजंजी के असामवयक वनधन पर
र्शोक संिेदना ि करें

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 98


ने न मंडेिा वदिस की आज की याद में, मैं संयुि रा र ने न रोिीहिा मंडेिा पुर ार: िीमिी
माररयाना िवनषनॉयनीस और ग्रीस की डॉ0 मोररसाना कुआिे के 2020 के पुर ारों के विए अपनी हावदष क बधाई
दे ने के विए बहुि खुर्श हूँ
दोनों को मानिावधकारों के क्षेत्र में मानििा की सेिा, ा दे खभाि िक पहुं ि और मवहिाओं और
िड़वकयों के सर्शम्मिकरण और समाज में सबसे कमजोर िोगों के प्रवि उनकी दीघषकाविक प्रविब िा के विए
पहिाना जािा है
मैं संयुि रा र के वमर्शन को आगे बढ़ाने और ने न मंडेिा की असाधारण विरासि को आगे बढ़ाने के
विए उनकी सराहना करिा हं
जैसा वक मदीबा ने खुद एक बार कहा था: "जब िक हमारी दु वनया में गरीबी, अ ाय और घोर असमानिा
बनी रहिी है , िब िक हममें से कोई भी आराम नहीं कर सकिा है "
यह संदेर्श ने न मंडेिा ाূान का मूि था वजसे मैंने इस स ाह के अंि में वदया था
असमानिा के उৡ और बढ़िे र हमारी भिाई और हमारे भवि को खिरा दे िे हैं
असमानिा सभी को नु कसान पहुं िािी है
यह मानि विकास और अिसरों पर एक ब्रेक है , और अनुविि अं िररा र ीय संबंधों के साथ जुड़ा हुआ है ,
िेवकन आवथषक अम्म थरिा, भ्र ािार, वि ीय संकट्, अपराध और खराब र्शारीररक और मानवसक ा के साथ
भी जुड़ा हुआ है
उ र एक नए सामावजक अनुबंध में वनवहि है , आवथषक और सामावजक ाय और मानि अवधकारों के विए
स ान सुवनव ि करने के विए
समाजों के भीिर एक नया सामावजक अनुबंध युिाओं को गररमा में जीने के विए सक्षम करे गा
यह सुवनव ि करे गा वक मवहिाओं में पुरुर्ों की िरह ही संभािनाएं और अिसर हों और यह बीमार,
कमजोर और सभी प्रकार के अ संূकों की रक्षा करे गा
इस िर्ष, हम ने न मंडेिा वदिस को विव ि करिे हैं जबवक COVID-19 का प्रसार जारी है
महामारी हर वकसी को खिरे में डाििी है , हर जगह, विर्शेर् रूप से सबसे कमजोर
COVID-19 की िुिना एक एস-रे से की गई है , वजससे हमारे समाजों के नाजुक कंकाि में फ्ैक्चर का
पिा िििा है , और इसने नंगे जोम्मखमों को रखा है वज ें हमने दर्शकों से अनदे खा वकया है : अपयाष ा
दे खभाि; सामावजक संरक्षण में अंिराि; संरिना क असमानिाएं ; पयाष िरणीय दु दषर्शा; जििायु संकट्
जिाब में , हमें वि नेिाओं को एकिा और एकजुट्िा को बढ़ािा दे ने की आि किा है
पहिा, महामारी के सामा खिरे को कम करने के विए और दू सरा, एक िसूिी को बढ़ािा दे ने के विए
जो अवधक वट्काऊ, समािेर्शी और िैंवगक-समान समाजों और अथष ि थाओं का वनमाष ण करे गा
समाज और अथष ि थाएं जो प्र ेक म्मि की अंिवनषवहि गररमा और मू को बनाए रखिी हैं
जैसा वक हम ाय और समानिा के विए मदीबा और उनके जीिन भर के संघर्ष का ज मनािे हैं , हमें यह
मानना िावहए वक हम अभी भी न िाद के िगािार ेग का सामना कर रहे हैं
यह घृणा संयुि रा र के िाट्ष र का उ ंघन करिी है और हमारे मूि मू ों का अपमान करिी है
हर वदन, दु वनया भर में हमारे काम में, हमें समािेर्श, ाय और गररमा को बढ़ािा दे ने के विए अपनी ओर
से प्रयास करना िावहए
हमें अपनी सभी अवभ म्मियों में न िाद का मुकाबिा करना िावहए
जैसा वक संयुि रा र ने इस नाजुक समय में अपनी 75 िी ं िर्षगां ठ मनाई है , आइए हम ने न मंडेिा के
जीिन और कायष को प्रविवबंवबि करिे हैं , वज ोंने संयुि रा र के उৡिम मू ों को अपनाया और वज ोंने कारष िाई
और प्रेररि पररििषन वकया

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 99


कई िर्ों िक वििेक के कैदी के रूप में, मदीबा ने अपने आदर्शों के विए अपनी गररमा और प्रविब िा
को बनाए रखा
उनका उदाहरण वकसी भी सरकारों को समझाएं जो ऐसे कैवदयों को ररहा करने के विए रखिी हैं
21 िी ं सदी में अंिरा ा का कोई कैदी नहीं होना िावहए
इस मंडेिा वदिस पर, हम याद करिे हैं वक हम सभी के पास एक थ ग्रह पर सभी िोगों के विए
स ान, अिसर और समृम्म के बेहिर भवि की ििार्श में खेिने का एक वह ा है

ध िाद

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 100


आधुवनक जीिन में सिेक्षर् का प्रर्ोि ि उपर्ोविता

मानि स िा के विकास के साथ जनसंূा में भी बढ़ो री होिी गई हम सभी पररिार, कुनबे -कबीिे
से होिे हुये गाूँ ि, रा৸, वजिा, प्रदे र्श, दे र्श और अब वि -रा र िक आ गये हैं ये र मानि के सामूवहक सोि के
क्षेत्र हैं प्र ेक सोि-क्षेत्र की अपनी आि किा और ि था संिािन है छोट्े र पर म्मि का म्मि से
स कष होिा है इसविए िहाूँ सिेक्षण की बहुि आि किा नहीं पड़िी क्योंवक िहाूँ स कष के ारा ही राय-मि-
वििार के आूँ कड़े वमि जािे हैं सोि के बड़े क्षेत्र में ि था संिािन के विए योजना बनानी पड़िी है ये योजनाएूँ
ििषमान के विए िथा साथ ही साथ भवि की आि किानुसार भी होिी हैं
ििषमान िथा भवि की आि किानुसार योजना बनाने के विए उस क्षेत्र के र के आूँ कड़ों की
आि किा होिी है ये आूँ कड़ें उस विर्य क्षेत्र के विए होिे हैं वजस क्षेत्र के विए ििषमान िथा भवि की
आि किानुसार योजना बनानी होिी है
आधुवनक जीिन में सिेक्षण के वबना कोई योजना बनानी मुम्म ि है क्योंवक हम सभी इिने विर्शाि
जनसंূा की ओर बढ़िे जा रहें वक उनकी ि था के विए वबना सिेक्षण से प्रा आूँ कड़ों के वबना ि था
स ािना अस ि है ििषमान समय में सिेक्षण और आूँ कड़ा हमारे जीिन का अंग है और व ( म्मिगि) रूप
से वजससे हम सभी संिाविि हैं िह अब ि होकर समव (संयुि) रूप से संिाविि हो रहे हैं जीिन के हर क्षेत्र
में सिेक्षण का प्रयोग ि उपयोवगिा प्रिेर्श कर िुकी है
ििषमान आधुवनक जीिन की अवधकिम योजनाएूँ िैव क व से अथाष ि् अपने मन को इस पृ ी से
बाहर म्म थि कर स ूणष पृ ी के विए सिेक्षण कर योजनाएूँ , कानून-वनयम इ ावद बन रहें हैं वजस प्रकार म्मि
यं और पररिार के विए ििषमान और भवि के विए योजना संकविि आूँ कड़े के आधार पर बनािा है उसी
प्रकार िैव क नेिृ पूरे पृ ी पर रहने िािे मनु , जीिन, पयाष िरण और पृ ी की सुरक्षा के विए योजना बनािे हैं
और यह सिेक्षण और संकविि आूँ कड़ों के वबना अस ि है
वजस प्रकार नदी में जि का सिि प्रिाह होिा रहिा है उसका उपयोग वसंिाईं में हो सकिा है पर ु
बाूँ ध बनाकर जि का उपयोग करने से वबजिी भी बनायी जा सकिी है उसी प्रकार मानि समाज में आूँ कड़ों
(डाट्ा) का सदै ि प्रिाह हो रहा है उसे अपने मम्म में रोककर इक਄ा करने से ही उसका वि ेर्ण हो सकिा
है वजिने अवधक आूँ कड़ों से वि ेर्ण होगा पररणाम उिना ही सट्ीक होगा यही बुम्म है क ूट्र में भी यवद
आूँ कड़े कम होंगे िो वि ेर्ण भी कम ही प्रा वकये जा सकिे हैं वजिने बड़े क्षेत्र के विए कायष करना हो उिने
बड़े क्षेत्र से स म्म ि आूँ कड़े जुट्ाये जािे हैं यही बुम्म है कोई भी कायष वसफष एक कारण से नहीं होिा अवधक से
अवधक कारणों को जानना, कमष की सट्ीक ाূा है
इस प्रकार हमारा संिािक इৢा नहीं बम्म आूँ कड़े हैं और मन से वकसी ि ु को दे खना स नहीं है
बम्म आूँ कड़ों की व से दे खना स है पृ ी के बाहर अपने मन को म्म थि कर स ूणष पृ ी के क ाण के विए
वक्रयाकिापों का सिेक्षण और आूँ कड़ों के प्रमाण के फि रूप ही िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ और उनका
र्शा ”वि र्शा “ ि हुआ है इसविए मनु जीिन में सिेक्षण और आूँ कड़ों का बहुि मह है भवि के
बौम्म क मनु का यही अ है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 101


एक सिेक्षर्
न्तक्त की न्त र्वत
म्मि की म्म थवि विवभ रों पर वन प्रकार थी
अ. वि र पर न्तक्त की न्त र्वत
बु ाििार (567-487 ई0 पू 0) से अम्म म अििार के अििरण िक ापक पररििषन िािे काि में
म्मि की वि र पर म्म थवि म्मि के र्शारीररक, आवथषक एिं मानवसक प्राथवमक क्षमिा के आधार पर थावपि
हो िुकी थी
र्शारीररक क्षमिा के विए ओिम्म क, वि कप, मैराथन जैसे आयोजन आयोवजि होने िगे थे वजसमें-
िीरं दाजी, एथिेवट्স, बैडवम न, बेसबाि, बा े ट्बाि, बाम्मসंग, कैनोइं ग, साइम्मलंग, घुड़सिारी, फेम्म ं ग,
फुट्बाि, वजमनाम्म क, है ਔबाि, हाकी, जूडो, पेंट्ाथिान, रोइं ग, र्शूवट्ं ग, सा बाि, िैराकी, ट्े बि ट्े वनस,
ट्र ायथिान, िाइिां डो, ट्े वनस, िािीिाि, भारो ोिन, याविंग, वक्रकेट्, दौड़, गो , िाट्र पोिो, पोिो, र्शिरं ज, गीि-
संगीि इ ावद थे
आवथषक क्षमिा के विए वि र पर अथष र्शम्मि से युि म्मियों की सूिी बनायी जाने िगी थी
वजसमें िीव्रिा का क्रम- र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक प्राथवमक आधार के रुप में ि हो िुका था
मानवसक क्षमिा के क्षेत्र में - सावह , राजनीवि, सामावजक कायष, वििार, ৯ान, वि৯ान, िकनीकी, सूिना
िकनीकी, योजना, पत्रकाररिा, वफ वनमाष ण इ ावद अनेक क्षेत्र थे
वि र पर म्मियों के क्षमिाओं के विए ”वगनीज / वि का बुक आफ ि रड रे काडष “ नामक पु क
िथा र्शारीररक क्षेत्र में अनेक वि रीय पुर ारों सवहि सावह , विवक ा, रसायन वि৯ान, भौविक वि৯ान,
अथषर्शा एिं र्शाम्म के क्षेत्र में वि का सिोৡ नोबेि पुर ार प्रदान वकया जाने िगा था संयुि रा र सं घ ारा
भी अनेक पुर ार विवभ क्षेत्रों में वि रीय कायों के विए प्रदान वकया जािा था

ब.भारत दे श र पर न्तक्त की न्त र्वत


भारि दे र्श र पर म्मि की म्म थवि भी वि र पर म्मि की म्म थवि की भाूँ वि र्शारीररक, आवथषक
एिं मानवसक प्राथवमक क्षमिा के आधार पर थावपि हो िुकी थी पर ु जीिन के प्र ेक क्षेत्र में राजनीवि के प्रिेर्श
से इन क्षमिाओं के साथ अिसर प्रदान करने के विए जावि, स दाय, पररिाररक, इविहास, भ्र ािार, स ि
स कष जैसी विर्यों का भी योगदान जुड़ िुका था पररणाम रुप यो৓ म्मि को अिसर प्रा करने में कवठनाई
िथा अयो৓ को अिसर वमिने पर क्षमिा का सफि प्रदर्शषन करने ि न कर पाने की म्म थवि पै दा हो िुकी थी
भारि से प्रविभा पिायन का कारण भी यो৓िा के साथ जुड़े ये विर्य बन िुके थे
भारि दे र्श र पर- वि৯ान, कृवर्, उ ोग, किा, सावह , पत्रकाररिा, संसदीय, मनोरं जन, ट्ी0 िी0 ि
वफ , समाजसेिा, रक्षा एिं खेि के क्षेत्र में अनेकों पुर ार सवहि दे र्श का सिोৡ भारि र पुर ार प्रदान वकया
जाने िगा था भारि के रा৸ों ारा भी इन क्षेत्रों में पुर ार प्रदान वकये जाने िगे थे

स.अ राण र ीर् र पर न्तक्त की न्त र्वत


अ राष र ीय र पर म्मि की म्म थवि भी वि र पर म्मि की म्म थवि की भाूँ वि र्शाररररक, आवथषक
एिं मानवसक प्राथवमक क्षमिा के आधार पर थावपि हो िुकी थी
अ राष र ीय र पर वि৯ान, कृवर्, उ ोग, किा, सावह , पत्रकाररिा, मनोरं जन ि ट्ी0 िी0, वफ ् ,
समाज सेिा, रक्षा एिं खेि के क्षेत्र में अनेको पुर ार प्रदान वकये जाने िगे थे खेि के क्षेत्र में रोइं ग, र्शूवट्ं ग, सा
बाि, िैराकी, ट्े बि ट्े वनस, ट्र ायथिान, िाइिां डो, ट्े वनस, िािीिाि, भारो ोिन, याविंग, वक्रकेट्, दौड़, गो , िाट्र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 102


पोिो, पोिो, र्शिरं ज के क्षेत्र में अनेकों अ राष र ीय प्रवियोवगिा सवहि एवर्शयाई खेि एिं रा र मਔि खेि प्रवियोवगिा
आयोवजि होने िगे थे

द.रा৸ र पर न्तक्त की न्त र्वत


रा৸ र पर म्मि की म्म थवि भी वि र पर म्मि की म्म थवि की भाूँ वि र्शारीररक, आवथषक एिं
मानवसक मूि विर्य पर आधाररि क्षमिा एिं िोकवप्रयिा, म्मि , िररत्र, कमषठिा, ायवप्रयिा, र्शासकीय गुण,
नेिृ गुण, बिन ब िा, इ ावद पर आधाररि हो गयी थी जो सभी म्मियों के विए िेर्शभूर्ा, सं ृ वि, भार्ा
इ ावद से मुि होकर समान अिसर उपि करािी थी

र्.भारतीर् समाज र पर न्तक्त की न्त र्वत


भारिीय समाज र पर म्मि की म्म थवि रा৸ र पर म्मि की म्म थवि की भाूँ वि र्शारीररक,
आवथषक एिं मानवसक मूि विर्य पर आधाररि क्षमिा एिं िोकवप्रयिा, म्मि , िररत्र, कमषठिा, ायवप्रयिा,
र्शासकीय गुण, नेिृ गुण, बिन ब िा, इ ावद पर आधाररि हो गयी थी जो सभी म्मियों के विए िेर्शभूर्ा,
सं ृ वि, भार्ा इ ावद से मुि होकर समान अिसर उपि करािी थी पर ु मू ां कन की व प्राथवमक रुप में
र्शारीररक, व िीयक रुप में आवथषक िथा िृिीय रुप में मानवसक एिं अ गुणों का मू ां कन सबसे अ में वकया
जाने िगा था

र.भारतीर् पररिार र पर न्तक्त की न्त र्वत


भारिीय पररिार र पर म्मि की म्म थवि रा৸ र पर म्मि की म्म थवि की भाूँ वि र्शारीररक,
आवथषक एिं मानवसक मूि विर्य पर आधाररि क्षमिा एिं िोकवप्रयिा, म्मि , िररत्र, कमषठिा, ायवप्रयिा,
र्शासकीय गुण, नेिृ गुण, बिन ब िा, इ ावद पर आधाररि हो गयी थी जो सभी म्मियों के विए िेर्शभूर्ा,
सं ृ वि, भार्ा इ ावद से मुि होकर समान अिसर उपि करािी थी पर ु मू ां कन की व प्राथवमक रुप में
र्शारीररक, व िीयक रुप में आवथषक िथा िृिीय रुप में मानवसक एिं अ गुणों का मू ां कन सबसे अ में वकया
जाने िगा था

ल.भारतीर् न्तक्त र पर न्तक्त की न्त र्वत


भारिीय म्मि स्िर पर म्मि की म्म थवि रा৸ र पर म्मि की म्म थवि की भाूँ वि र्शारीररक,
आवथषक एिं मानवसक मूि विर्य पर आधाररि क्षमिा एिं िोकवप्रयिा, म्मि , िररत्र, कमषठिा, ायवप्रयिा,
र्शासकीय गुण, नेिृ गुण, बिन ब िा, इ ावद पर आधाररि हो गयी थी जो सभी म्मियों के विए िेर्शभूर्ा,
सं ृ वि, भार्ा इ ावद से मुि होकर समान अिसर उपि करािी थी पर ु मू ां कन की व - ” म्मिगि व
एक, म्मि अनेक“ और ” म्मि एक, म्मिगि व अनेक“ पर आधाररि थी इसविए भारिीय म्मि का म्म थर
िररत्र िहार से जान पाना अस ि हो गया था इसे वसफष कमों से ही जाना जा सकिा था
भारिीय म्मि, म्मि के िा विक रुप अथाष ि् वि के ििषमान म्म थवि और पररणाम के ৯ान और
”सािषजवनक व एक, म्मि एक या अनेक“ युि म्मि से बहुि अवधक पीछे िि रहा था फि रुप िह यं
को ििषमान और िा विक म्मि को भवि का समझने िगा था जबवक िा विक म्मि, ििषमान का म्मि
और िह यं भूिकाि का म्मि हो िुका था इस म्म थवि में भारिीय म्मि जो थोड़ी सी सफििा प्रा कर िेिे
थे िे दू सरों से उिनी ही सफििा की उ ीद नहीं करिे थे िे सारे संसार को असफि होने का वनणषय सुना दे िे थे
िथा िे भारिीय म्मि जो सफििा-असफििा की दौड़ में र्शावमि भी नहीं होिे थे िे यं कों क्या करना िावहए
के बजाय दू सरों को ही दे खने में और मू ां कन करने में समय न कर रहे थे यं को दे खने में भारिीय म्मि
की व - प्रथम- र्शारीररक, व िीय- मानवसक, िृिीय- आवथषक िथा र्शेर् अ गुण अ में थी दू सरे म्मि को

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 103


दे खने में भारिीय म्मि की व - प्रथम- र्शारीररक, व िीय- आवथषक, िृिीय- मानवसक िथा र्शेर् अ गुण अ में
थे जबवक सफििा प्रा कर िुके म्मि को भा৓ की बाि कहकर छोड़ दे िे थे असफि म्मि के ৯ान और
कमष की ओर उसका ान ही नहीं जािा था पररणाम रुप ठीक िैसे ही संघर्ष कर रहे म्मि िाहें उसके साथ ही
क्यों न रहिा हो, को पहिानने की क्षमिा नहीं थी
जबवक िा विक म्मि अथाष ि् वि के ििषमान म्म थवि और पररणाम के ৯ान और ”सािषजवनक व
एक, म्मि एक या अनेक“ की व से युि म्मि की व - प्रथम-मानवसक एिं र्शेर् गुण, व िीय- र्शारीररक,
िृिीय- आवथषक होिे हैं

न्तक्त और पररिार पर धमण की न्त र्वत


भारतीर् पररिार पर धमण की न्त र्वत
भारिीय पररिार पर धमष एक आिरण, पर रा, औपिाररकिा, महो ि की भाूँ वि छाया हुआ था
पररिार का मुम्मखया वजस धमष -स दाय-मि-गुरू को िुनिा था, सामा िः पूरा पररिार उसी के अधीन हो जािा
था पररिार धमष को पूणष संरक्षण प्रदान कर रहा था पर ु धमष का प्रयोग िह पररिार, समाज, रा৸, दे र्श ि वि को
मागषदर्शषन दे ने में प्रयोग के विए सक्षम नहीं था क्योंवक धावमषक-आ ाम्म क ि ों से पररिार बहुि दू र हो िुका था
जबवक वबना आ ाम्म क ि ों के ৯ान के पररिार का गठन ि विकास अस ि था

भारतीर् न्तक्त पर धमण की न्त र्वत


भारिीय म्मि पर धमष एक आिरण, पर रा, औपिाररकिा, महो ि की भाूँ वि छाया हुआ था धमष
के ािहाररक रूप के उपि न होने के कारण म्मि को धमष से कोई िाभ नहीं वदखिा था फि रूप िह
धमष -आ ा से दू र हट्कर वि৯ान ि भौविकिा की ओर गवि कर रहा था और धावमषक आयोजन को िह महो ि
की भाूँ वि संिाविि कर रहा था वजससे धमष को िािािरण ि पूणष संरक्षण प्रा हो रहा था पररणाम रूप धमष-
आ ा का प्रयोग िह पररिार, समाज, रा৸, दे र्श ि वि को मागषदर्शषन दे ने में प्रयोग के विए सक्षम नहीं था
क्योंवक धावमषक-आ ाम्म क ि ों से म्मि बहुि दू र हो िुका था जबवक वबना आ ाम्म क ि ों के ৯ान के म्मि
का गठन ि विकास अस ि था

न्तक्त पर ापार की न्त र्वत


समाज अथाष ि् म्मि समूह की म्म थवि विवभ रों पर वन प्रकार थी
न्तक्त का पररर्ाम
म्मि का पररणाम विवभ रों पर वन रुप में ि हो िुका था

अ.वि र पर न्तक्त का पररर्ाम


वि र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि कर वदया था
1. म्मि की मह ा उसकी र्शारीररक, आवथषक, मानवसक, सामावजक, राजनैविक क्षमिा ही आधार न वक
िेर्श-भूर्ा, सं ृ वि, भार्ा इ ावद
2. वि र पर पहुूँ िने के विए र्शारीररक आधार ूनिम गवि िािा, आवथषक आधार म म गवि िािा िथा
मानवसक आधार सिाष वधक गवि िािा मा म

ब.भारत दे श र पर न्तक्त का पररर्ाम


भारि दे र्श र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि कर
वदया था

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 104


1. वि र पर म्मि के पररणामों के ि होने के बािजूद िे एक साथ भारि दे र्श र पर व में नहीं थी
2. यो৓ म्मियों को अिसर न प्रा होने के कारण भारि की र्शम्मि में एकिा नहीं और प्रविभा के पिायन का
कारण

स.अ राण र ीर् र पर न्तक्त का पररर्ाम


अ राष र ीय र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि कर
वदया था
1. वि र पर म्मि के पररणामों के ि होने के बािजूद िे एक साथ अ राष र ीय र पर व में नहीं थी
2. वि र के म्मि का पररणामों का प्रयोग कर म्मि अ राष र ीय र िक उठ सकिा है

द.रा৸ र पर न्तक्त का पररर्ाम


रा৸ र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि कर वदया था
1. वि र पर म्मि के पररणामों के ि होने के बािजूद िे एक साथ रा৸ र पर व में नहीं थी
2. वि र के म्मि के पररणामों का प्रयोग कर म्मि, वि ि रा৸ र िक उठ सकिा है

र्.भारतीर् समाज र पर न्तक्त का पररर्ाम


भारिीय समाज र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि कर
वदया था
1. वि र पर म्मि के पररणामों के ि होने के बािजूद िे एक साथ भारिीय समाज र पर व में नहीं
थी
2. वि र के म्मि के पररणामों का प्रयोग कर भारिीय समाज वि ि रा৸ र िक उठ सकिा है
3. समाज र पर म्मि के मू ां कन की व में दोर्

र.भारतीर् पररिार र पर न्तक्त का पररर्ाम


भारिीय पररिार र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि
कर वदया था
1. वि स् िर पर म्मि के पररणामों के ि होने के बािजूद िे एक साथ भारिीय पररिार र पर व में नहीं
थी
2. वि र के म्मि के पररणामों का प्रयोग कर भारिीय पररिार वि र िक उठ सकिा है
3. भारिीय पररिार र पर म्मि के मू ां कन की व में दोर्

ल. भारतीर् न्तक्त र पर न्तक्त का पररर्ाम


भारिीय म्मि र पर म्मि की म्म थवि ने वन पररणामों को सािषजवनक प्रमावणि रुप से ि कर
वदया था
1. वि र पर म्मि के पररणामों के ि होने के बािजूद िे एक साथ भारिीय म्मि र पर व में नहीं
थी
2. वि र के म्मि के पररणामों का प्रयोग कर भारिीय म्मि वि र िक उठ सकिा है
3. भारिीय म्मि र पर म्मि के मू ां कन की व में पूणष दोर्
4. भारिीय म्मि और म्मि के रुप में बहुि अवधक विपरीि ध्रुिीय अ र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 105


भाि-5

सम ा और समाधान
सम ा
समाधान

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 106


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 107
सम ा
21िीं सदी और भवि का समय अपने विराट् सम ाओं को िेकर कह रहा है -”आओ वि के
मानिों आओ, मेरी िुनौवि को ीकार करो या िो िु म सम ाओं, संकीणष वििारधाराओं, अ ि थाओं, अहं का रों
से ग्रवसि हो आपस में यु कर अपने ही विकास का नार्श कर पुनः विकास के विए संघर्ष करो या िो िुम सभी
सम ाओं का हि प्र ुि कर मुझे परा करो “ ऐसे िुनौवि पूणष समय में वि के अ दे र्शों के समक्ष कोई वि ा
का विर्य हो या न हो र्शाम्म दू ि अवहं सक िपोभूवम भारि के समक्ष वि ा का विर्य अि है और वसफष िही ऐसी
िुनौवि को ीकार करने में सक्षम भी है यह इसविए नहीं वक उसके अ र वि नेिृ , वि र्शाम्म और वि
र्शासक बनने की प्रबि इৢा है पर ु इसविए वक वि प्रेम, जीि ही वर्शि, वर्शि ही जीि उसका मुূ आधार है
वजस पर आधाररि होकर िह ब्र ाਔीय रक्षा, विकास, स ुिन, म्म थरिा, एकिा के विए अवहं सक और र्शाम्म मागष
से किष करिे हुये अ अपने भाइयों और बहनों के अवधकारों के विए प्रेम भाि से सेिा और क ाण करिा रहा
है पर ु उसके बदिे भारि को सदा ही अ ने उन वस ा ों को उसके म्मिगि वििारधारा से ही जोड़कर
दे खा पररणाम रूप िे अपने अवधकार और क ाण के मागष को भी पहिानने में असमथष रहे , बािजूद इसके
प्र ेक िैव क संकट् की घड़ी में भारि की ओर ही मुूँह कर उ ीद को दे खिे रहिे हैं
ऐसे समय में जब प्रकृवि समावहि मानि, पर्शु, पक्षी यहाूँ िक वक प्र ेक जीि मानिों के िहार से
संत्र हो िुके है , यं भारि भी आ ररक और बा दोनों संकट्ों से विम्म ि, असहाय, किष ों से विमुख और
भ्रवमि हो गया है जो भारिीय भाि के वििारक, ৯ानी बुम्म जीिी, राजनेिा इ ावद के अम्म म और पूणष उपि
৯ान र्शम्मि का पररिायक ही है वफर भी भारि वनव है क्योंवक िह जानिा है वक िपोभूवि भारि में स -आ ा
का वनिास है िह स -आ ा खुिी आूँ खों से दे खिे हुये ऐसे उविि समय की ही प्रिीक्षा करिा है जब िह यं को
थावपि और अम्म के प्रवि वि ास वदिाने के विए ि कर सके इस वनव िा के कारण ही सिषत्र दे र्शभम्मि
भाि के गीिों, वफ ों, पौरावणक कथाओं के -ि मा मों से उसके ागि की िैयारी करिा है और अपने
अपार प्रेम भाि से उसे कमष करिे हुये ि होने पर मजबूर कर दे िा है और यह भारि ”हमें वि ा नहीं उनकी
उ ें वि ा हमारी है , हमारे नाि के रक्षक सुदर्शषन िक्र धारी है “ कहिे हुये अपनी म्म थवि और पररम्म थवि पर
स ोर् की सां सें िेिा है वजसके स में महवर्ष अरवि के वद व से वनकिी िाणी- ”भारि की रिना विधािा
ने संयोग के बेिरिीब ईंट्ों से नहीं की है इसकी योजना वकसी िैि र्शम्मि ने बनाई है जो इसके विपरीि कायष
करे गा िह मरे गा ही मरे गा “ अक्षरर्शः पूणष स है
भारि का ििषमान और भवि का मूि आ ररक संकट्-कानून, संविधान, राजनैविक प्रणािी का
संकट्, अथष ि था का सं कट्, नागररक समाज का संकट्, रा र ीय सुरक्षा का सं कट् िथा मूि बा सं कट्- पहिान
और वििारधारा का संकट् िथा विदे र्शनीवि का संकट् है जो दे खने में िो आम जनिा से जुड़ा हुआ नहीं िगिा
पर ु यह संकट् आम जनिा के उपर पूणष रूप से प्रभािी है आम जनिा मूििः दो वििारों से संिाविि है -
एक-जो उसके जीिन से सीधे प्र क्ष रूप से जुड़ा दे र्श-काि ब ৯ान है जैसे- म्मिगि र्शारीररक,
आवथषक, मानवसक आधाररि विवक ीय, िकनीकी, वि৯ान, ापार, वििार एिं सावह आधाररि होकर यं का
अपना प्र क्ष जीिकोपाजषन करना
दू सरा-जो उसके जीिन से अप्र क्ष रूप से जुड़ा हैं जैसे- सािषजवनक या संयुि, र्शारीररक, आवथषक,
मानवसक आधाररि विवक ीय, िकनीकी, ৯ान, ापार, वििार एिं सावह आधाररि होकर यं का अपना सवहि
पररिार, दे र्श, समाज, वि का जीिकोपाजषन करिा है ये ही पररिार, समाज, दे र्श, वि की नीवियाूँ है
पहिे के बहुमि के कारण म्मि म्मिगि अथाष ि् भौविकिाद में म्म थि होकर पररिार, समाज, दे र्श,
वि पर आधाररि वििारों, ि थाओं और नीवियों की अिनवि करिा हैं पररणाम रूप उपरोि सं कट् सवहि
यं अपने दे र्श, वि के प्रवि भम्मिभाि समा कर दे िा है जबवक दू सरे के बहुमि के कारण यं अपने
जीिकोपाजषन सवहि जीिन और संयुि जीिन दोनों िम्म थि होिा है ििष मान समय में पहिे का पूणष बहुमि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 108


थावपि होकर अब दू सरे की बहुमि थावपि होने की ओर समय िक्र की गवि हैं वजसका उदाहरण ही 21िीं सदी
और भवि के प्रवि वि ा ि हो रही है और इसके विपरीि थावपि बहुमि इस वि ा से मुि भी होकर यं
अपनी स ा की वि ा में िगा हुआ है जबवक हमारा साथषक किष दे र्श -काि मुि वििारों की और बढ़िे समय
िक्र की ओर भी गवि प्रदान करना होना िावहए िभी उपरोि संकट् से मुम्मि पायी जा सकिी है

समाधान
यहाूँ हम भारि की आ ररक और बा संकट् के अम्म म हि और वि नेिृ की अवहं सक नीवि पर
अम्म म व प्र ुि कर रहे है जो स रूप में 21िीं सदी और भवि के स िेिना आधाररि वि के विए भारि
की ओर से किष िथा अ के विए अवधकार रूप आम्मखरी रा ा है
”सृव ” का अर्ण होता है - स ूणष ब्र ाਔ की रुकी म्म थवि के आगे एका िा के साथ निवनमाष ण
”सृव करने की म्म थवि“ में भूिकाि की ििाष की म्म थवि आ जाने पर उसे ”सृव रूकना“ कहिे हैं ऐसी ही म्म थवि
महाभारि यु के समय िीकृ के समक्ष आ गया था जब अजुषन ने यु से मना कर वदया था पररणाम रूप
िीकृ ”गीिा“ उपदे र्श के विए भूिकाि की ििाष में उिझ गये थे ”रचना” का अर्ण होता है- उपि िा पर
आधाररि एका िा के साथ निवनमाष ण ”विकास” का अर्ण होता है - उपि िा पर आधाररि निवनमाष ण
विकास का कोई िশ नहीं होिा जब विकास एका िा की ओर होिी है िो िह रिना बन जािी है विकास िশ
विवहन होिा है इसविए कािा र में िह विनार्श का रुप िे िेिी है
ििषमान में “पुनवनषमाष ण” के अ गषि िही कायष हैं जो सरकार के िैधावनक प्रवक्रया के अनुसार, उसके
सहयोग और उससे मुि अि था में रहकर म्मि यं सामावजक, आवथषक और मानवसक निवनमाष ण के विए कर
सकिा है क्योंवक इस संसार में कुछ भी सुधार के विए नहीं है , या िो िह पूणष है या िह विकवसि करने के विए है
िृक्ष की र्शाखा को पुनः िने में नहीं समेट्ा जा सकिा बम्म उसे विकवसि कर बीज िक अि पहुूँ िाया जा
सकिा है , वजससे पुनः िृक्ष का निवनमाष ण हो वकसी म्मि का सुधार नहीं होिा बम्म िह विकवसि होिा है और
िह नया मानि बनिा है सम सुधारों का एक मात्र रा ा है -निवनमाष ण इसविए िािािरण को बदिना
आि क है वजससे म्मि यं बदि जायेगा और यही एक मात्र उपाय है
सभी निवनमाष ण मुূिः िीन क्षेत्रों में होिे हैं -र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक वजस प्रकार वकसी
म्मि ( व ) का र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक निवनमाष ण होिा है उसी प्रकार म्मि-समूह या दे र्श (समव ) का
र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक निवनमाष ण होिा है “पुनवनषमाष ण” व ि समव दोनों के विए निवनमाष ण का एक
मात्र उपाय है
पौरावणक कथाओं में एिं आधाररि वफ या दू रदर्शष न के धारािावहकों में वदखाया जािा है वक नारद
जी दे ि िोक जािे हैं और पृ ी की सम ाओं को दे ििाओं के समक्ष रखिे हैं और उस अनुसार दे ििागण अपने
कायष क्षेत्रानुसार सम ा पर वि न करिे हैं एिं हि वनकािकर पृ ीिावसयों को उपि करािे हैं
वर्शक्षा में सुधार, सामावजक पररििषन या कोई अ सम ा पर स ेिन, सेवमनार, संिाद इ ावद केिि
सम ा विर्य पर वि न हैं जैसे पौरावणक कथाओं में दे ििाओं का सम ा पर वि न होिा है िेवकन सम ा का
हि ही ना वनकिे िो वि न केिि एक आयोजन मात्र बनकर रह जािा है हाूँ , दे र्श-विदे र्श में इस प्रकार के होने
िािे आयोजन से वनकिे वििार उनके विए मह पूणष जरूर बन जािा है जो कहीं दू र से इसे आकड़ें के रूप में
दे खिे हुये मनु ों के विए आि किा समझिे हुये हि पर कायष करने िािे होिे हैं इसविए ही िो कहा गया है -

भक्त िही, जो भििान को बेच सके,


चेला िही, जो िुरू से कुछ ले सके,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 109


सिंत िही, जो समाज को कुछ दे सके,
और
अितार िही, जो पृ ी की आिाज सुन सके

िो आिाज सुनी गयी और उसका हि िैयार वकया गया जो वन मूि वस ा पर आधाररि है यवद
यह सािषजवनक रूप से स है , ीकार है िो यह समझना िावहए वक सािषभौम सम ा समाधान के विए विकवसि
प्रणािी पूणषिया सािषभौम स सै ाम्म क है क्योंवक प्रणािी का विकास इन पर ही आधाररि है िाहे िह समव
समाधान के विए हो या व समाधान के विए ये वस ा हैं -
1. स ूर्ण ब्र ाਔ में कुछ भी न्त र्र नही िं है
2. सभी र्िं की न्त र्रता और शान्त के वलए िवतशील हैं
3. उस सािणभौम एका (सािणभौम आ ा) का कोई नाम नही िं हैं , उसका नाम मानिीर् भाषा
के केिल श हैं

राजनैवतक क्रान्त
िैव क स ूणष क्राम्म
भारि रीय स ूणष क्राम्म
सामावजक क्रान्त - ई रीय समाज
सािं ृ वतक क्रान्त – एका कमषिाद
बौन्त क क्रािंवत - एक रा र ीय र्शा - वि र्शा
आ ान्त क क्रािंवत - मन (मानि संसाधन) का वि मानक (WS-0) िृंखिा
शैक्षवर्क क्रान्त -स मानक वर्शक्षा - पूणष ৯ान का पूरक पाਉक्रम
आवर्णक क्रान्त - मानक विपणन प्रणािी : 3F (Fuel-Fire-Fuel)
भारि रीय - पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष
भारि रीय - वडवजट्ि प्रापट्ी और एजे नेट्िकष

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 110


भाि-6
स ूर्ण क्रान्त -आ ान्त क एििं दाशणवनक आधार

कमण िेदा और विकास दशणन


सािणभौम स -वस ा के अनुसार काल, र्ुि बोध एििं अितार
“स ूर्ण मानक” का विकास भारतीर् आ ा -दशणन का मूल और अन्त म लশ
भारत सरकार को अन्त म पत्र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 111


कमण िेदा और विकास दशणन
भारिीय आ ा दर्शषन के मूि वििार ”सभी ई र हैं ” िथा अ ै ि िेदा दर्शषन के अनुसार ”सभी
ई र के ही प्रकार्श हैं ” के अनुसार सभी में वि ा ा ही म्म थि हैं हम उन सभी को ई र का अंर्श या वि ा ा का
अंर्श इसविए कहिे हैं वक िे यं को अपने समय के सिोৡ क्षेत्र िक ि नहीं कर पािे यह ब्र ाਔ ई र से
ि है और उसमें ई र समावहि और ा है उसका प्रकाਅ सािषभौम स -वस ा का ही प्रकाਅ है
वि ा ा का सिोৡ प्रकाਅ पूणष सािषभौम स -वस ा का प्रकट्ीकरण है जो अम्म म हो
आ ा और वि ा ा, अिग-अिग नहीं एक ही है बस उसके प्रकट्ीकरण क्षेत्र अथाष ि प्रभाि क्षेत्र से
उसके नाम अिग हैं आ ा जो म्मिगि और सामावजक क्षेत्र के सीवमि भौगोविक क्षेत्र िक प्रभािी रहिा है िहीं
वि ा ा अपने समय के सिोৡ भौगोविक क्षेत्र िक को प्रभािी करिा है
िा यष यह है वक प्र ेक मनु ही वि ा ा है उसे सािषभौम एका के विए योजना बना कर प्रकट्
होने के विए उिना ही भौगोविक क्षेत्र प्रा है वजिना वक वकसी मनु या अििार को वजसका वजिना विर्शाि
हृदय होगा, उसका उिना विर्शाि प्रेम होगा और ठीक उिना ही विर्शाि उसका कमषक्षेत्र होगा यह ब्र ाਔ ई र
के विर्शाि हृदय से ि प्रेम का फि है और उसके विकास, संरक्षण, विनार्श, वनमाष ण, नि-वनमाष ण और
पुनवनषमाष ण के विए सदै ि कमषर्शीि है वि ा ा को जानने-समझने से ििषमान और भवि के मनु का मम्म
विर्शाििा की ओर प्रा करने का अिसर दे िा है वजससे हृदय की विर्शाििा भी बढ़िी है और कमष करने के विए
अन वदर्शाओं और ज ों के विए पररयोजना भी वमििी है पररयोजना का नाम होिा है -”स -वर्शि-सु र”
वनमाष ण
मन और मन का मानक मन- म्मिगि प्रमावणि अ स मन का मानक-सािषजवनक प्रमावणि
स अनासि मन अथाष ि् आ ा अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि अ आ ा अथाष ि् मन का अ मानक
मन का मानक अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि आ ा अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि अनासि मन मन का
मानक में मन समावहि है
सािषभौम आ ा का सािषजवनक प्रमावणि धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि रुप एका ৯ान,
एका ৯ान सवहि एका कमष िथा एका ৯ान और एका कमष सवहि एका ान के िीन ि होने के र
हैं जो क्रमर्शः एका िाणी, एका िाणी सवहि एका प्रेम िथा एका िाणी और एका प्रेम सवहि एका
समपषण ारा र्शम्मि प्रा करिा है वजनका धमषयुि अ रुप भारिीय सं ृ वि के पौरावणक कथाओं में ब्र ा,
वि ु, महे र्श (र्शंकर) के रुप में िथा सर िी, िक्ष्मी और पािषिी र्शम्मि के रुप में प्रक्षेवपि हैं वजनकी उपयोवगिा
क्रमर्शः म्मि, समाज और ब्र ाਔ को सं िुिन, म्म थरिा एिं विकास में है
वि के सिषप्रािीन अकाਅ सां ূ दर्शषन के वस ा से वि मन िीन मन - स , रज और िम में
विखम्मਔि होिा है वजससे सम वि ि होिा है अथाष ि वन विम्मखि मूि प्रकार के मन से युि आ ा ि
होकर अनेक अंर्श-अंर्शां स के रूप में मन से युि आ ाएूँ ि होिी रहिी हैं वफर इनका संियन और संयु৒न
होिा है िब ि होिा हैं - ”वि मन से युि आ ा - एक पूणष मानि ”

1. रज मन - ये मन सकारा क म्मिगि विकासर्शीि मन का रूप होिा है इसमें िे सभी मन आिे हैं जो


समाज ि दे र्श का र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक विकास करिे हैं मानि स िा के संसार में इस मन को
ही गृह थ कहिे हैं ये वक्रया यन दर्शषन (Operating Philosophy) अथाष ि् O के अ गषि आिा है

2. तम मन - ये मन नकारा क म्मिगि विकासर्शीि मन का रूप होिा है इसमें िे सभी मन आिे हैं जो


समाज ि दे र्श का र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक नकारा क विकास करिे हैं भारिीय धमषर्शा सावह

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 112


के पुराणों में इस मन को ही असुर या राक्षस कहा गया है ये वक्रया यन दर्शषन (Operating
Philosophy) अथाष ि् O के अ गषि आिा है

3. स मन - ये मन सािषभौम आ ा पर केम्म ि मन होिे हैं इसके वन विम्मखि दो प्रकार होिे हैं

अ. वनिृव मािी - सािषभौम आ ा पर केम्म ि इस प्रकार के मन समाज ि दे र्श के र्शारीररक, आवथषक ि


मानवसक आदान-प्रदान से उदासीन रहिे हैं िथा आन में ही रहिे हैं मानि स िा के संसार में इस मन को
ही साधु/स / वस / ऋृवर्/ िैव क दर्शषन आिायष / साकार गुरू इ ावद कहा गया है ये म्मिगि प्रमावणि
मागषदर्शष क दर्शषन (Guider Philosophy) अथाष ि् G के अ गषि आिे हैं

ब. प्रिृव मािी - सािषभौम आ ा पर केम्म ि इस प्रकार के मन समाज ि दे र्श के र्शारीररक, आवथषक ि


मानवसक आदान-प्रदान में भाग िेिे हैं िथा आन के साथ रहिे हैं भारिीय धमषर्शा सावह के पुराणों में
इस मन को ही दे ििा/राजा कहा गया है मानि स िा के संसार में इस मन को ही
क्राम्म कारी/पररििषनकिाष /विकासर्शीि कहा गया है ये सािषजवनक प्रमावणि विकास/ विनार्श दर्शषन
(Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D के अ गषि आिे हैं

अितारी मन
अििारी (पुरूर्), मन के िीनों गुण स , रज और िम का पूणष संियन का सािषभौम साकार रूप होिा है
पर ु िह िीनों गुणों से युि होिे हुये भी उससे मुि रहिा है और अपने पूिषििी मन के िीनों गुण से युि स ,
रज और िम मनों के सिोৡ अि था की अगिी कड़ी होिा है ये सािषभौम प्रमावणि मागषदर्शष क दर्शषन (Guider
Philosophy) अथाष ि् G, वक्रया यन दर्शषन (Operating Philosophy) अथाष ि् O और विकास/ विनार्श दर्शषन
(Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D का संयुि रूप होिा है

पूणष ৯ान अथाष ि् अपने माविक यं के में म्म थि मागषदर्शषक दर्शषन (Guider Philosophy) अथाष ि् G
एिं विकास दर्शषन (Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D है इसकी पररवध आदान-प्रदान या
ापार या वक्रयािक्र या वक्रया यन दर्शषन (Operating Philosophy) अथाष ि् O है यही आ ा अथाष ि् अथाष ि्
अ वि৯ान का सिोৡ एिं अम्म म आवि ार है िथा यहीं पदाथष अथाष ि् वि৯ान ारा आवि ृ ि परमाणु
की संरिना भी है वजसके के में G के रुप में प्रोट्ान P है िथा D के रुप में ूट्रान N है इसकी पररवध O के रुप
में इिेक्टरान E है प्रा০ अ आ ा वि৯ान िथा पा ा पदाथष वि৯ान में एकिा का यही सूत्र है वििाद
मात्र नाम के कारण है वजसके अनुसार इिेक्टरान या वक्रया यन दर्शषन में विवभ स दायों, संगठनों, दिों के
वििार सवहि म्मिगि वििार वजसके अनुसार अथाष ि् अपने मन या मन के समूहों के अनुसार िे समाज िथा रा৸
का नेिृ करना िाहिे हैं जबवक ये सािषजवनक स नहीं है इसविए ही इन वििारों की समथषन र्शम्मि कभी
म्म थर नहीं रहिी जबवक के या आ ा या एकिा में विकास दर्शषन म्म थि है के में प्रोट्ान की म्म थवि अ
मागषदर्शष क दर्शषन या अ विकास दर्शषन की म्म थवि, िूंवक यह सािषजवनक स विकास दर्शषन का अ रुप है
इसविए यह म्मिगि प्रमावणि है इसी कारण आ ा भी वििाद और व वििार के रुप में रहा जबवक यह
स था िेवकन ूट्रान की म्म थवि मागषदर्शष क दर्शषन या विकास दर्शषन की म्म थवि है इसविए यह
सािषजवनक स है स ू णष मानक है , समव स है , स वस ा है वजसकी थापना से म्मि मन उस िरम
म्म थवि में थावपि होकर उसी प्रकार िेजी से वि वनमाष ण कर सकिा है वजस प्रकार पदाथष वि৯ान ारा आवि ृ ि
ूट्रान बम इस वि का विनार्श कर सकिा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 113


G
मािण दशणक दशणन (Guider Philosophy) अर्ाणत् G
( न्तक्तित प्रमावर्त अ विकास दशणन (Development/Destroyer Philosophy) अर्ाणत् D की
अि र्ा)

सािषभौम आ ा ही प्रेरक है , मागषदर्शषक है और इसका दर्शषन ही मागषदर्शष क दर्शषन (Guider


Philosophy) अथाष ि् G ( म्मिगि प्रमावणि अ विकास दर्शषन (Development/Destroyer Philosophy)
अथाष ि् D की अि था) है
यह अि था ही म्मिगि प्रमावणि अ सािषभौम समभाि, एका , स , के (CENTRE), क्राम्म ,
अ ै ि, ऋृवर्, वस , धमष थापक, योगे र, धमष, धमष ৯ानी, अ ै ि िेदा -दर्शषन में ब्र , जगद् गुरू, अििार की
अि था है यही भारिीय आ ा -दर्शषन है प्रा০ दार्शषवनकों (Eastern Philosopher) का सािषभौम र और
सािषभौम व कोण है वजसमें सदै ि ब्र ाਔ और प्रकृवि के साथ सम य होिा है यह स ूणष मानि समाज पर
प्रभािी रहिी है

”वजिने वदनों से जगि है उिने वदनों से मन का अभाि-उस एक वि मन का अभाि कभी नहीं हुआ
प्र ेक मानि, प्र ेक प्राणी उस वि मन से ही वनवमषि हो रहा है क्योंवक िह सदा ही ििषमान है और उन सब के
वनमाष ण के विए आदान-प्रदान कर रहा है “ (धर् म वि৯ान, राम कृ वमर्शन, पृ -27)
- ामी वििेकान
“एक िरह का वस एक ही बार होिा है , दोबारा नहीं होिा क्योंवक जो वस हो गया, वफर नही
िौट्िा गया वफर िापस नहीं आिा एक ही बार िुम उसकी झिक पािे हो- बु की, महािीर की, क्राइ ही,
मुह द की, एक ही बार झिक पािे हो, वफर गये सो गये वफर विराट् में िीन हो गये वफर दोबारा उनके जैसा
आदमी नहीं होगा, नहीं हो सकिा मगर बहुि िोग नकििी होंगे उनको िुम साधु कहिे हो उन नकिीिी का
बड़ा स ान है क्योंवक िे िु ारे र्शा के अनुसार मािूम पड़िे हैं जब भी वसद् ध आयेगा सब अ कर
दे गा वस आिा ही है क्राम्म की िरह ! प्र ेक वस बगािि िेकर आिा है , एक क्राम्म का संदेर्श िेकर आिा है
एक आग की िरह आिा है - एक िुफान रोर्शनी का! िेवकन जो अूँधेरे में पड़े हैं उनकी आूँ खे अगर एकदम से
उिनी रोर्शनी न झेि सके और नाराज हो जाय िो कुछ आ यष नहीं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 114


जो एक गुरू बोि रहा है , िह अन वस ों की िाणी है अवभ म्मि में भेद होगा, र्श अिग होंगे,
प्रिीक अिग होंगे मगर जो एक वस बोििा है , िह सभी वस ों की िाणी है इनसे अ था नहीं हो सकिा है
इसविए वजसने एक वस को पा विया, उसने सारे वस ों की पर रा को पा विया क्योंवक उनका सूत्र एक ही है
कुंजी िो एक ही है , वजसमें िािा खुििा है अम्म का “
-आचार्ण रजनीश ”ओशो“

O
वक्रर्ा र्न दशणन (Operating Philosophy) अर्ाणत् O

यह अि था म्मिगि आ ा ही प्रेरक है , मागषदर्शष क है और इसका दर्शषन ही वक्रया यन दर्शषन


(Operating Philosophy) अथाष ि् O की अि था है
जब यह अि था मानि समाज में म्मिगि आ ा से योग कराने के विए ि होिी है िब यह
म्मिगि प्रमावणि विकास दर्शषन (Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D की अि था में आ
जािी है
यह अि था ही म्मिगि प्रमावणि अ म्मिगि समभाि, एका , स - वस ा , पररििषन,
आदान-प्रदान (TRADE), क्राम्म , अ ै ि, ऋृवर्, वस , धमष थापक, भोगे र, धमष, धमष ৯ानी, अ ै ि िेदा -दर्शषन में
ब्र , जगद् गुरू, अििार की अि था है यही सािषभौम से मुि अनेक प्रकार के स दायों, मि आधाररि संगठनों
का दर्शषन है पा ा दार्शषवनकों (Western Philosopher) का व कोण है वजसमें ब्र ाਔ और प्रकृवि के साथ
सम य नहीं होिा है और यह स ूणष मानि समाज के विए ना होकर अंर्श जन समूह पर ही प्रभािी रहिी है

D
विकास/ विनाश दशणन (Development/Destroyer Philosophy) अर्ाणत् D
(सािणजवनक प्रमावर्त विकास दशणन (Development/Destroyer Philosophy) अर्ाणत् D की
अि र्ा)

सािषभौम आ ा ही प्रेरक है , मागषदर्शषक है और इसका दर्शषन ही मागषदर्शष क दर्शषन (Guider


Philosophy) अथाष ि् G ( म्मिगि प्रमावणि अ विकास दर्शषन (Development/Destroyer Philosophy)
अथाष ि् D की अि था) है
जब यह अि था संसार में सािषभौम एका से योग कराने के विए ि होिी है िब यह सािषजवनक
प्रमावणि विकास दर्शष न (Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D की अि था में आ जािी है
ऐसी अि था में आने से पुराने दर्शषन अपनी सिोৡिा खो दे िे हैं इसविए विनार्श का अनुभि वदखिा है जबवक
पुराने दर्शषन विकास के िरण होिे हैं और िे भी प्रभािहीन होकर अम्म में सदै ि रहिे हैं
यह अि था ही सािषजवनक प्रमावणि सािषभौम समभाि, एका , स - वस ा , पररििषन,
आदान-प्रदान (TRADE), क्राम्म , अ ै ि, ऋृवर्, वस , धमष थापक, भोगे र, धमष, धमष ৯ानी, अ ै ि िेदा -दर्शषन में
ब्र , जगद् गुरू, अििार की अि था है यही भारिीय आ ा -दर्शषन है प्रा০ अििारी िृंखिा दार्शषवनकों का
सािषभौम र और सािषभौम व कोण है वजसमें सदै ि ब्र ाਔ और प्रकृवि के साथ सम य होिा है यह स ूणष

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 115


मानि समाज पर प्रभािी रहिी है और सािषभौम से युि वक्रया यन दर्शषन (Operating Philosophy) अथाष ि् O
है
सृव विकास क्रम की एक िृंखिा है सािषभौम स से सािषभौम स -वस ा का मनु र्शरीर से
प्रकट्ीकरण ई र का अििरण है , पर ु ई र नहीं विकास क्रम की िृंखिा से ही मानि समाज के एकीकरण के
विए ि सािषभौम स -वस ा ही अििारिाद के वििार के ज का कारण है अििारिाद के वििार का
ज िेदों और पुराणों से ि होिा है और िगभग सभी ििषमान धमों (या स दाय) के ारा माना जािा है
अििरण, स ूणष ब्र ाਔ में ा सािषभौम स -वस ा का होिा है इसविए िह मानिीय वनयमों से उৡ और
अट्िनीय-अपररििषनीय-सिोৡ होिा है ई र के अब िक नौ अििार हो िुके है , दसिां कम्म अििार होना
अभी बाकी है ऐसा कहा जािा है
मानि से पूणष मानि के विकास क्रम के आधुवनक वििार के अनुसार - मानि से पूणष मानि के विकास
क्रम के व के अनुसार अििार मानिों के सािषभौम मम्म , सािषभौम स -वस ा और एकीकरण के विए
मानकीकरण के विकास की कहानी कहिी है जो ािहाररक व से अवधक उपयोगी है अििारों के नामकरण में
उसके गुणों के िुिना के विए प्रार में समान गुणों के जीि के नाम पर िथा बाद में यं उनके म्मिगि गुण के
आधार पर रखे गये

मनु को अवधक पूणष बनाने और संिािन के विए अििार ारा आये मुূ आपरे वट्ं ग वस म
(Avatar’s Operating System- AOS) सं रण (Version) इस प्रकार हैं -

मानि-1 (AOS : Human-1)


मुূ-गुण वस ा - इसमें धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने का वििार-वस ा मानि
मम्म में डािा गया

मानि-2 (AOS : Human-2)


मुূ-गुण वस ा - इसमें सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि, दोनों पक्षों के बीि म थ की
भूवमका िािा गुण (सम य का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

मानि-3 (AOS : Human-3)


मुূ-गुण वस ा - इसमें सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि , सवक्रय,
र्शाकाहारी, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण (प्रेरणा का
वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

मानि-4 (AOS : Human-4)


मुূ-गुण वस ा - प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के विए ररि
कायषिाही का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

मानि-5 (AOS : Human-5)


मुূ-गुण वस ा - भवि ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूवम पर गणरा৸ ि था
की थापना ि ि था को वजविि करना, उसके सुख से प्रजा को पररविि कराने िािे गुण (समाज का वस ा )
का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 116


मानि-6 (AOS : Human-6)
मुূ-गुण वस ा - गणरा৸ ि था को ब्र ाਔ में ा ि था वस ा ों को आधार बनाने िािे
गुण और ि था के प्रसार के विए यो৓ म्मि को वनयुि करने िािे गुण (िोकि का वस ा और उसके
प्रसार के विए यो৓ उ रावधकारी वनयुि करने का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

मानि-7 (AOS : Human-7)


मुূ-गुण वस ा - आदर्शष िररत्र के गुण के साथ प्रसार करने िािा गुण ( म्मिगि आदर्शष िररत्र के
आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

मानि-8 (AOS : Human-8)


मुূ-गुण वस ा - आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मि-मिा र ि
वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे गुण (सामावजक आदर्शष म्मि
का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण का वस ा ) का वििार-वस ा मानि
मम्म में डािा गया

मानि-9 (AOS : Human-9)


मुূ-गुण वस ा - प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष , संघ और बुम्म के र्शरण में जाने का गुण (धमष,
संघ और बुम्म का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

मानि-10 (AOS : Human-10)


मुূ-गुण वस ा - आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक िैव क म्मि
िररत्र अथाष ि सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का वििार-वस ा मानि मम्म में
डािने का मानि-10 (AOS : Human-10) सं रण (Version) अभी िक का ििषमान है और िो अम्म म
सं रण भी है

उपरोि मुূ मूि सं रण के उपरा अनेक अ मनु ों (संि, गुरू, मािा-वपिा, वमत्र, सहयोगी,
दि, संगठन इ ावद) ारा मनु के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म सं रण आिे गये और मनु उससे
संिाविि होिे गये पर ु उ ें पिा ही नहीं िि पा रहा वक कौन सा सं रण उनके विए उपयोगी है
जैसे आपके आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) में अनके सुविधाएूँ हैं उसी प्रकार मानि-10
(AOS : Human-10) सं रण में भी अनेक सुविधाएूँ जैसे - काट्ना (Cut), विपकाना (Paste), नकि बनाना
(Copy), र करना (Delete), सुधारना (Edit), नाम बदिना (Rename), रिना करना (Create), भेजना (Send),
पढ़ना (Read), विखना (Write), िाइरस (Virus), ए਒ी-िाइरस (Anti-Virus) इ ावद हैं
वजस प्रकार एक रोबोट्, िैसे ही रोबोट् का वनमाष ण कर सकिा है जैसा वक उसमें सा िेयर डािा गया
है उसी प्रकार एक मनु , मनु , िैसे ही मनु का वनमाष ण कर सकिा है जैसा वक उसमें सा िेयर (वििार-
वस ा ) डािा गया है
कुछ भी हो सा िेयर में वजिनी अवधक सुविधा, उिना ही िह पररणाम दे ने में सक्षम सब कुछ
”माइक्रोप्रोसेसर/मम्म ” के सा िेयर पर ही वनभषर होिा है और सा िेयर उिना ही उৡ र का बन सकिा
है वजिना वििार का वि ार होिा है वजिना वििार का वि ार होिा है िह उिना ही ापाररक िाभ दे सकिा है
वजसके जीि उदाहरण आप हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 117


मनु के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म मानि-10 (AOS : Human-10) सं रण ही
”वि र्शा ”है आपके आपरे वट्ं ग वस म सा िेयर से क ूट्र िििा है मेरे आपरे वट्ं ग वस म मानि-10
(AOS : Human-10) सं रण से मनु और उसके संगठन ििेंगे यही योजना है
मानि-10 (AOS : Human-10) आपरे वट्ं ग वस म वन विम्मखि से युि है जो वि र्शाम्म का अम्म म मागष
भी है -
1- िैव क मानि वनमाष ण िकनीकी- WCM-TLM-SHYAM.C प्रणािी
S - SATYA ( स )
H- HEART ( हृदय )

Y- YOG ( योग )
A - ASHRAM ( आिम )
M - MEDITATION ( ान )
. - DOT ( वब दु या डाट् या दर्शमिि या पूणषविराम )
C - CONCIOUSNESS ( िेिना )
2- आदर्शष िैव क मानि/जन/गण/िोक/ /मैं /आ ा/ि ् र का स रूप
3- वि मानक-र्शू (WS-0) : मन की गुणि ा का वि मानक िृखंिा
1. ड ू.एस. (WS)-0 : वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-00 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानि (सूक्ष्म िथा थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
5. ड ू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना थि का वि मानक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 118


सािणभौम स -वस ा के अनुसार
काल, र्ुि बोध एििं अितार
सािषभौम स -वस ा के अनुसार काि और युग पररििषन और उसके मा म अम्म म अििार के
स में समय और रूप की ाূा वन िि् है
वि -ब्र ाਔ के सिोৡ और अन कायषक्षेत्र का सािषभौम , वििादमुि, सािषजवनक प्रमावणि
स -वस ा है - पररििषन वजसे आदान-प्रदान (TRANSACTION) या वक्रया या ापार (TRADE) भी कहा जा
सकिा है वजसे िैवदक सावह ने “वस ा ”, गीिा ने “पररििषन”, पुराण ने “र्शम्मि ”, कवपिमुवन ने “वक्रया” कहा
है इसे ही प्राकृविक- ब्र ाਔीय स , कमष, आदान-प्रदान, पररवध, ापार, काि, सिषर्शम्मिमान भी कहा गया इस
स की ाূा करने िािा र्शा -सावह सािषजवनक प्रमावणि समव िे द, उ नाम या र्श को समव
ई र नाम िथा नाम के अथष की ाূा करने िािे सावह को समव उपवनर्द् कहा जािा है
उपरोि पररििषन वजस उ ेरक की उपम्म थवि में संिाविि होिा है उसे ही िैवदक सावह ने “ब्र ” या
“आ ा”, गीिा ने “मैं”, पुराण ने “वर्शि “”, कवपि मुवन ने “कारण”, संिों ने “एक”, वह दु ओं ने “ई र”, वसखों ने “िाहे
गुरू”, इ ाम ने “अ ा” ईसाई ने “यीर्शु ” इ ावद कहा इसे ही पूणष, धमष, ৯ान, सम, सािषभौम, िौि , के ,
GOD, स , अ ै ि, सिष ापी, अन र, अज ा, र्शा ि, सनािन इ ावद भी कहा गया है इस स की ाূा
करने िािा र्शा -सावह म्मिगि प्रमावणि अ व िेद, उ नाम या र्श को व ई र नाम िथा नाम
के अथष की ाূा करने िािे सावह को व उपवनर्द् कहा जािा है इसी को सािषभौम स -वस ा में के
(CENTRE) कहा गया है
ििषमान पदाथष वि৯ान भी यह ीकार कर िुका है वक इस ब्र ाਔ में कही भी कुछ भी म्म थर नहीं है
सभी का पररििषन या आदान-प्रदान हो रहा है पदाथष वि৯ान के महान िै৯ावनक आइ ट्ाइन E=MC2 से इसे
वस भी वकये है
इस प्रकार वि -ब्र ाਔ को हम सिोৡ ापार के (TRADE CENTRE) भी कह सकिे हैं और
वि -ब्र ाਔ के पयाष यिािी नाम के रूप में प्रयोग कर सकिे हैं
सम पररििषन या आदान-प्रदान मुূिः िीन बिों ारा ही संिाविि होिा है - मानिीय बि,
प्राकृविक बि ि आ ीय बि और ये िीनों बि मूििः िीन क्षेत्र के मा म से पररििषन िािा है ये हैं - र्शारीररक,
आवथषक ि मानवसक इस प्रकार हम दे खिे हैं वक यवद सिषप्रथम मानिीय बि पररििषन िाने के विए सवक्रय होिा है
िब िह पहिे र्शारीररक, वफर आवथषक और अ में मानवसक कारण को मा म के रूप में प्रयोग करिा है इसी
प्रकार प्राकृविक बि और आ ीय बि भी इसी क्रम से मा मों का प्रयोग करिा है
जब मानिीय बि और प्राकृविक बि, आि क पररििषन िाने में असफि हो जािा है िब सािाष वधक
र्शम्मिर्शािी ि सिोৡ आ ीय बि के प्रयोग का समय आ जािा है िक्र रूप में मानिीय बि एक छोट्ा पररििषन,
प्राकृविक बि एक म म र का पररििषन िथा अम्म म आ ीय बि उस समय के सिोৡ र का पररििषन
िािा है वजस समय िह प्रभािी होिा है
यह आ ीय बि ही अििारों, पैग रों, गषदूिों, धमष प्रििषकों- थापकों के बि थे जो समयानुसार
अपने -अपने क्षेत्रों में प्रयोग वकये गये थे और वजसके कारण आज भी उनकी पहिान ििषमान है जब यह आ ीय
बि अंर्श रूप में अििारों, पैग रों, गषदूिों, धमष प्रििषकों- थापकों ारा प्रयोग वकये जािे हैं िब ये अंर्श अििार,
पैग र, गषदूि, धमष प्रििषक- थापक कहिािे हैं और जब यह आ ीय बि पूणष रूप में अििारों, पै ग रों,
गषदूिों, धमष प्रििषकों- थापकों ारा प्रयोग वकये जािे हैं िब ये पूणष अििार, पैग र, गषदूि, धमष प्रििषक -
थापक कहिािे हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 119


ििषमान समय में मानिीय बि ि प्राकृविक बि ारा पररििषन िाने के विए र्शारीररक, आवथषक ि
मानवसक मा म का प्रयोग वकया जा िुका है साथ ही आ ीय बि ारा भी पररििषन िाने के विए र्शारीररक ि
आवथषक मा म का प्रयोग वकया जा िुका है अब केिि एक ही मागष आ ीय बि ारा मानवसक मा म का
प्रयोग बिा है जो आने िािे समय में वनव ि रूप से होगा
काि अथाष ि् समय को समय से बां धा नहीं जा सकिा कोई भी म्मि समव के विए वकसी वनव ि
वदन का दािा नहीं कर सकिा वक इस वदन से वकसी यु ग का पररििषन, वकसी यु ग का अम्म म वदन या वकसी युग के
प्रार का वदन है क्योंवक हम वदन, वदनां क या कैिेਔर का वनधाष रण ब्र ाਔीय गविविवध अथाष ि् सूयष, िाूँ द, ग्रह
इ ावद के गवि को आधार बनाकर वनधाष ररि करिे है इसी प्रकार युग का वनधाष रण पूणषिया मानि मन की केम्म ि
म्म थवि से वनधाष ररि होिा है न वक वकसी वनधाष ररि अिवध के ारा मन की केम्म ि म्म थवि वन म्म थवियों में होिी है -

0 र्ा 5. न्त र्वत - अ मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि

1. न्त र्वत - म्मिगि प्रमावणि अ मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि
मा म ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि सियु ग की अम्म म म्म थवि है इस युग में कुि 6 अििार
म , कूमष, िाराह, नृंवसंह, िामन और परर्शुराम हुये

2. न्त र्वत -सािषजवनक प्रमावणि अ मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि
मा म - प्रकृवि ि ब्र ाਔ ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि त्रेिायुग की अम्म म म्म थवि है इस
युग में साििें अििार िी राम हुयें

3. न्त र्वत - म्मिगि प्रमावणि मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि
म्मि ि भौविक ि ु मा म ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि ापर यु ग की अम्म म म्म थवि है
इस युग में आूँ ठिें अििार िी कृ हुयें

4. न्त र्वत - सािषजवनक प्रमावणि मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि
म्मि ि भौविक ि ु मा म ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि कवियु ग की अम्म म म्म थवि है
इस युग में निें अििार बु हुये और दसिें और अम्म म अििार िी िि कुर्श वसं ह ”वि मानि“ ि हैं

0 र्ा 5. न्त र्वत - मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि

उपरोि म्म थवि में म्म थि मन से ही उस युग में र्शा -सावह ों की रिना होिी रही है और उस
अनुसार ही प्र ेक म्मि अपनी म्म थवि का पिा िगा सकिा है वक िह वकस युग में जी रहा है
उपरोि में से कोई भी म्म थवि जब म्मिगि होिी है िब िह म्मि उस युग में म्म थि होिा है िाहे
समाज या स ूणष वि वकसी भी युग में क्यों न हो इसी प्रकार जब उपरोि म्म थवि में से कोई भी म्म थवि में समाज
या स ूणष वि अथाष ि् अवधकिम म्मि उस म्म थवि में म्म थि होिे है िब समाज या स ूणष वि उस यु ग में म्म थि हो
जािा है
युग पररििषन सदै ि उस समय होिा है जब समाज के सिोৡ मानवसक र पर एक नया अ ाय या
कड़ी जुड़िा है और एक नये वििार से ि था या मानवसक पररििषन होिा है इस प्रकार यह आ साि् करना
िावहए वक स ूणष समाज इस समय िौथे युग-कवियु ग के अ में है और जैसे-जैसे “वि र्शा ” के ৯ान से युि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 120


होिा जाये गा िह पाूँ ििे युग- णष यु ग में प्रिेर्श करिा जायेगा और जब बहुमि हो जायेगा िब स ूणष समाज या
वि पाूँ ििे युग- णष युग में म्म थि हो जायेगा
स ूणष आ ाम्म क सूक्ष्म एिं थूि वस ा ों को ि करने का मा म मात्र मानि र्शरीर और कमष
क्षेत्र मात्र मानि समाज ही है साथ ही उसका मू ां कनकिाष मानि का अपना मन र ही है इसविए अििार
स ूणष वस ा ों को कािानुसार ि सगुण रूप मानि र्शरीर ही होिा है मूिरूप से अििार वर्शि-आ ा-ई र-
ब्र अथाष ि् सािषभौम स -वस ा के अििार होिे हैं पर ु एका ৯ान अथाष ि् ब्र ा और एका ान अथाष ि्
र्शंकर सािषजवनक प्रमावणि न हो सकने के कारण एका कमष -वि ु के ही अििार के रूप में जाना जािा है
क्योंवक एक मात्र कमष ही मानि समाज में सािषजवनक प्रमावणि होिा है इस एका कमष का कारण एका प्रेम
और एका प्रेम का कारण मात्र एका कमष होिा है
वि ु अथाष ि् एका कमष का अ ि रूप एका प्रेम अथाष ि् िक्ष्मी हैं एका कमष का कारण
एका प्रेम िथा एका प्रेम का कारण एका कमष होिा है िह कमष जो आ ा के विए हो और िह प्रेम जो
आ ा के विए हो अथाष ि् समभाि और कमष युि मानि र्शरीर ही वि ु का अििार है
भगिान वि ु के 24 अििार (1. िी सनकावद, 2. िाराह अििार, 3. नारद मुवन, 4. नर-नारायण, 5.
कवपि, 6. द ात्रेय, 7. य৯, 8. ऋर्भदे ि, 9. पृथु, 10. म ाििार, 11. कूमष अििार, 12. ध रर, 13. मोवहनी, 14.
हयग्रीि, 15. नृवसंह, 16. िामन, 17. गजे ोधाराििार, 18. परर्शुराम, 19. िेद ास, 20. ह ाििार, 21. राम, 22.
कृ , 23. बु , 24. कम्म ) का िणषन िी वि ु पुराण एिं िी भवि पुराण में उ ेख है वजनमें मुূ 10
अििार (1. म , 2. कूमष , 3. िाराह, 4. नृवसंह, 5. िामन, 6. परर्शुराम, 7. राम, 8. कृ , 9. बु , 10. कम्म ) ही
माने जािे हैं
ग्र ों में अििारों की कई कोवट् बिायी गई है जैसे अंर्शार्शाििार, अंर्शाििार, आिेर्शाििार, किाििार,
वन ाििार, युगाििार इ ावद, जो भी सािषभौम स -वस ा को ि करिा है िे सभी अििार कहिािे हैं
म्मि से िेकर समाज के सिोৡ र िक सािषभौम स -वस ा को ि करने के क्रम में ही विवभ कोवट् के
अििार रब होिे हैं अम्म म सािषभौम स -वस ा को ि करने िािा ही अम्म म अििार के रूप में
ि होगा अब िक हुये अििार, पैग र, ईर्शदू ि इ ावद को हम सभी उनके होने के बाद, उनके जीिन काि
की अिवध में या उनके र्शरीर ाग के बाद से ही जानिे हैं पर ु भवि अथाष ि् “आने िािे कि” के विए कम्म ि
एक मात्र महावि ु के अििार-कम्म के आने से पूिष ही जानने िगे हैं
अ स -वस ा से सािषजवनक या ब्र ाਔीय प्रमावणि स -वस ा िक के ि होने
की वक्रया में प्रयुि मानि र्शरीर ही अििारों का र्शरीर है इस क्रम में प्र ेक अगिा अििार अपने वपछिे अििार
का अगिा िरण अथाष ि् सामावजक आि किाओं की कािानुसार पूविषकिाष सवहि उसका पुनषज होिा है
क्योंवक स -वस ा को ि करने की इৢा िब िक अििारों में रहिी है जब िक स -वस ा पूणषरूप से
सािषजवनक या ब्र ाਔीय प्रमावणि रूप नहीं िे िेिा कोई भी मानि र्शरीर अििारी ৯ान, कमष और ान को
रखिे हुये भी यवद स ूणष सामावजक या ब्र ाਔीय आि किाओं का कािानु सार हि नहीं प्र ुि करिा िो िह
गुणों को रखिे हुये भी अििारी र्शरीर नहीं हो सकिा इस प्रकार प्र ेक अगिा अििार, अपने वपछिे अििार का
संग्रहणीय, संक्रमणीय, गुणा क रूप का प्रिीक होिा है अििारों का थूि र्शरीर वकसी भी थूि अट्िनीय,
अपररििषनीय, प्राकृविक वनयम-पररििषन या आदान-प्रदान से मुि नहीं होिा वसफष उनका सूक्ष्म र्शरीर और ि
स -वस ा ही उससे मुि और अप्रभािी होिा है वजसे दु ःख-सुख, ज -मृ ु इ ावद से मुि कहिे हैं
स से सािषभौम स -वस ा िक का मागष अििारों का मागष है सािषभौम स -वस ा की
अनुभूवि ही अििरण है इसके अंर्श अनुभूवि को अंर्श अििार िथा पूणष अनुभूवि को पूणष अििार कहिे हैं
अििार मानि मात्र के विए ही कमष करिे हैं न वक वकसी विर्शेर् मानि समूह या स दाय के विए अििार, धमष,
धमषवनरपेक्ष ि सिषधमषसमभाि से युि अथाष ि् एका से युि होिे हैं इस प्रकार अििार से उ र्शा मानि के
विए होिे हैं , न वक वकसी विर्शेर् मानि समूह के विए उ ेरक, र्शासक और मागषदर्शषक आ ा सिष ापी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 121


इसविए एका का अथष सं युि आ ा या सािषजवनक आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा
है िब िह समाज कहिािा है जब एका का अथष म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है
अििार, संयुि आ ा का साकार रुप होिा है जबवक म्मि, म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन
प्रणािी में समाज का समथष क दै िी प्रिृव िथा र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या
समाजि या जनि या बहुि या राज कहिािा है और क्षेत्र गणरा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज
कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि का समथषक असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या
एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸ कहिािा है ऐसी ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी
प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि अपने -अपने अवधप के विए सं घर्ष होिा रहा है जब-जब समाज में
एकि ा क या राजि ा क अवधप होिा है िब-िब मानििा या समाज समथषक अििारों के ारा गणरा৸
की थापना की जािी है या यूूँ कहें गणि या गणरा৸ की थापना ही अििार का मूि उ े अथाष ि् िশ होिा
है र्शेर् सभी साधन अथाष ि् मागष
अििारों के प्र क्ष और प्रेरक दो कायष विवध हैं प्र क्ष अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का
प्र क्ष प्रयोग कर समाज का स ीकरण करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग होिा है जब अधमष का
नेिृ एक या कुछ मानिों पर केम्म ि होिा है प्रेरक अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का अप्र क्ष प्रयोग
कर समाज का स ीकरण जनिा एिं नेिृ किाष के मा म से करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग
होिा है जब समाज में अधमष का नेिृ अनेक मानिों और नेिृ किाष ओं पर केम्म ि होिा है
इन विवधयों में से कुि दस अििारों में से प्रथम साि (म , कूमष, िाराह, नृवसंह, िामन, परर्शुराम, राम)
अििारों ने समाज का स ीकरण प्र क्ष विवध के प्रयोग ारा वकया था आठिें अििार (िीकृ ) ने दोनों विवधयों
प्र क्ष ओर प्रेरक का प्रयोग वकया था निें (भगिान बु ) और अम्म म दसिें अििार की कायष विवध प्रेरक ही है
जि- ािन (जहाूँ जि है िहाूँ थि और जहाूँ थि है िहाूँ जि) के समय मछिी से मागष दर्शषन (मछिी
के गिीर्शीििा से वस ा प्रा कर) पाकर मानि की रक्षा करने िािा ईर्श्िर (सािषभौम स -वस ा ) का पहिा
अंर्शाििार म ाििार के बाद मानि का पुनः विकास प्रार हुआ दू सरे कूमाष ििार (कछु ए के गुण का वस ा ),
िीसरे - िाराह अििार (सुअर के गुण का वस ा ), िौथे- नृवसंह (वसंह के गुण का वस ा ), िथा पाूँ ििें िामन
अििार (ब्रा ण के गुण का वस ा ) िक एक ही साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हुआ करिे थे और जब-
जब िे रा৸ समथषक या उसे बढ़ािा दे ने िािे इ ावद असुरी गुणों से युि हुए उ ें दू सरे से पाूँ ििें अंर्शाििार ने
साकार रुप में कािानुसार वभ -वभ मागों से गुणों का प्रयोग कर गणरा৸ का अवधप थावपि वकया
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के छठें अंर्श अििार परर्शुराम के समय िक मानि जावि का विकास
इिना हो गया था वक अिग-अिग रा৸ों के अनेक साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हो गये थे उनमें से जो भी
रा৸ समथषक असुरी गुणों से युि थे उन सबको परर्शुराम ने साकार रुप में िध कर डािा पर ु बार-बार िध की
सम ा का थाई हि वनकािने के विए उ ोंने रा৸ और गणरा৸ की वमविि ि था ारा एक ि था दी जो
आगे ििकर “परर्शुराम पर रा” कहिायी ि था वन प्रकार थी-
1. प्रकृवि में ाप् ि िीन गुण- स , रज और िम के प्रधानिा के अनुसार मनु का िार िणों में वनधाष रण
स गुण प्रधान - ब्रा ण, रज गुण प्रधान-क्षवत्रय, रज एिं िम गुण प्रधान-िै , िम गुण प्रधान-र्शूि
2. गणरा৸ का र्शासक राजा होगा जो क्षवत्रय होगा जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि जो रज गुण अथाष ि्
कमष अथाष ि् र्शम्मि प्रधान है
3. गणरा৸ में रा৸ सभा होगी वजसके अनेक सद होंगे जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि के स , रज
एिं िम गुणों से युि विवभ ि ु हैं
4. राजा का वनणषय रा৸सभा का ही वनणषय है जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि का वनणषय िही है जो स ,
रज एिं िम गुणों का सम्म विि वनणषय होिा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 122


5. राजा का िुनाि जनिा करे क्योंवक िह अपने गणरा৸ में सिष ापी और जनिा का सम्म विि रुप है जैसे-
ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि सिष ापी है और िह स , रज एिं िम गुणों का सम्म विि रुप है
6. राजा और उसकी सभा रा৸िादी न हो इसविए उस पर वनय ण के विए स गुण प्रधान ब्रा ण का
वनय ण होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि पर वनय ण के विए स गुण प्रधान आ ा का
वनय ण होिा है
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के साििें अंर्श अििार िीराम ारा इसी “परर्शुराम पर रा” का ही
प्रसार और थापना हुआ था
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के आठिें अििार िीकृ के समय िक म्म थवि यह हो गयी थी राजा
पर वनय ण के विए वनयुि ब्रा ण भी समाज और धमष की ाূा करने में असमथष हो गये क्योंवक अनेक धमष
सावह ों, मि-मिा र, िणष , जावियों में समाज विभावजि होने से म्मि संकीणष और वद भ्रवमि हो गया था और
रा৸ समथषकों की संূा अवधक हो गयी थी पररणाम रुप मात्र एक ही रा ा बिा था- “निमानि सृव ” इसके
विए उ ोंने स ूणष धमष -सावह ों और मि-मिा रों के एकीकरण के विए आ ा के सिष ापी म्मिगि प्रमावणि
वनराकार रुप का उपदे र्श ”गीिा“ ि वकये और गणरा৸ का उदाहरण “ ाररका नगर” का वनमाष ण कर वकये
उनकी गणरा৸ ि था उनके जीिन काि में ही न हो गयी पर ु “गीिा” आज भी प्रेरक बनी हुई है
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के निें अििार भगिान बु के समय पुनः रा৸ एकि ा क होकर
वहं सा क हो गया पररणाम रुप बु ने अवहं सा के उपदे र्श के साथ म्मियों को धमष, बुम्म और संघ के र्शरण में
जाने की वर्शक्षा दी संघ की वर्शक्षा गणरा৸ की वर्शक्षा थी धमष की वर्शक्षा आ ा की वर्शक्षा थी बुम्म की वर्शक्षा,
प्रब और संिािन की वर्शक्षा थी जो प्रजा के मा म से प्रेरणा ारा गणरा৸ के वनमाष ण की प्रेरणा थी
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के दसिें और अम्म म अििार के समय िक रा৸ और समाज िः
ही प्राकृविक बि के अधीन कमष करिे -करिे वस ा प्रा करिे हुए पूणष गणरा৸ की ओर बढ़ रहा था
पररणाम रुप गणरा৸ का रुप होिे हुए भी गणरा৸ वसफष रा৸ था और एकि ा क अथाष ि् म्मि समथषक
िथा समाज समथषक दोनों की ओर वििर्शिािर्श बढ़ रहा था
भारि में वनम्म िम्मखि रुप ि हो िुका था
1. ग्राम, विकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ और गणसंघ का रुप
2. वसफष ग्राम ि नगर र पर राजा (ग्राम ि नगर पंिायि अ क्ष) का िुनाि सीधे जनिा ारा
3. गणरा৸ को संिाविि करने के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान
4. गणरा৸ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप-वनयम और कानून
5. राजा पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप- रा र पवि, रा৸पाि, वजिावधकारी इ ावद
वि र पर वन विम्मखि रुप ि हो िुका था
1. गणरा৸ों के संघ के रुप में संयुि रा र संघ का रुप
2. संघ के संिािन के विए संिािक और संिािक का वनराकार रुप- संविधान
3. संघ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप- वनयम और कानून
4. संघ पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप-पाूँ ि िीट्ो पािर
5. प्र ाि पर वनणषय के विए सद ों की सभा
6. नेिृ के विए राजा- महासविि
वजस प्रकार आठिें अििार ारा ि आ ा के वनराकार रुप ”गीिा” के प्रसार के कारण आ ीय
प्राकृविक बि सवक्रय होकर गणरा৸ के रुप को वििर्शिािर्श समाज की ओर बढ़ा रहा था उसी प्रकार अम्म म
अििार ारा वन विम्मखि र्शेर् समव कायष पूणष कर प्र ुि कर दे ने मात्र से ही वििर्शिािर्श उसके अवधप की
थापना हो जाना है
1. गणरा৸ या िोकि के स रुप- गणरा৸ या िोकि के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 123


2. राजा और सभा सवहि गणरा৸ पर वनय ण के विए साकार ब्रा ण का वनराकार रुप- मन का अ राष र ीय/
वि मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रुप- प्रब का अ राष र ीय/ वि मानक
4. गणरा৸ के संिािन के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
5. साकार ब्रा ण वनमाष ण के विए वर्शक्षा का रुप- वर्शक्षा पाਉक्रम का अ राष र ीय/ वि मानक
इस समव कायष ारा ही काि ि युग पररििषन होगा न वक वसफष वि ाने से वक ”सियुग आयेगा”,
”सियुग आयेगा” से यह समव कायष वजस र्शरीर से स होगा िही अम्म म अििार के रूप में ि होगा धमष
में म्म थि िह अििार िाहे वजस स दाय (ििषमान अथष में धमष) का होगा उसका मूि िশ यही र्शेर् समव कायष
होगा और थापना का मा म उसके स दाय की पर रा ि सं ृ वि होगी
वजस प्रकार के में संविधान-संसद है , प्रदे र्श में संविधान-विधान सभा है उसी प्रकार ग्राम नगर में भी
संविधान होना िावहए वजस प्रकार के और प्रदे र्श के ायािय और पुविस ि था है उसी प्रकार ग्राम नगर के
भी होने िावहए, कहने का अथष ये है वक वजस प्रकार की ि थाये के और प्रदे र्श की अपनी हैं उसी प्रकार की
ि था छोट्े रुप में ग्राम नगर की भी होनी िावहए सं घ (रा৸) या महासंघ (के ) से स वसफष उस गणरा৸
से होिा है प्र ेक नागररक से नहीं संघ या महासंघ का कायष मात्र अपने गणरा৸ों में आपसी सम य ि स ुिन
करना होिा है उस पर र्शासन करना नहीं िभी िो सৡे अथों में गणरा৸ ि था या राज-सुराज ि था
कहिाये गी यही रा र वपिा महा ा गाूँ धी की प्रवस यु म्मि ”भारि ग्राम (नगर) गणरा৸ों का संघ हो“ और ”राम
रा৸“ का स अथष है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 124


काल का प्रर्म रूप
पूणष मनु के वनमाष ण प्रवक्रया में वन विम्मखि दस िरण पूरे हुए हैं अथाष ि् पूणषिा के विए इन दस िरण
में ि मुূ-गुण वस ा का संयुि म्मि ही पूणष मनु के रूप में वनवमषि होिा है वि ु के वन दस
अििार के मुূ-गुण वस ा वन प्रकार हैं -
अ काल
धमण ৯ान का प्रार
01. िैवदक धमष-ऋवर्-मुवन गण-ईसापूिष 6000-2500

पहलार्ुि : स र्ुि
02. ब्रा र् धमण -ब्रा र् िर्-ईसापूिण 6000-2500

अ. न्तक्तित प्रमावर्त पूर्ण प्र क्ष अितार


01. अ काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से युि
स आधाररि सियुग में वि ु के प्रर्म अितार - म अितार
मुূ-गुण वस ा - मछवियों के भाि जि की धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने से
৯ान (अथाष ि् राधा का वस ा ) प्रथम अििार म अििार का गुण था जो अगिे अििार में संिररि हुई
02. अ काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से युि
स आधाररि सियुग में वि ु के व तीर् अितार - कूमण र्ा कৢपाितार
मुূ-गुण वस ा - एक सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि, दोनों पक्षों के बीि म थ की
भूवमका िािा गुण (सम य का वस ा ) सवहि प्रथम अििार के गुण सवहि िािा गुण व िीय अििार कूमष
अििार का गुण था जो अगिे अििार में संिररि हुई
03. अ काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से युि
स आधाररि सियुग में वि ु के तृतीर् अितार - िाराह अितार
मुূ-गुण वस ा - एक मेधािी, सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि ,
सवक्रय, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण (प्रेरणा का
वस ा ) सवहि व िीय अििार के सम गुण से युि िािा गुण िृिीय अििार िाराह अििार का गुण था जो
अगिे अििार में संिररि हुई
04. अ काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से युि
स आधाररि सियुग में वि ु के चौर्े अितार - नृवसिंह अितार
मुূ-गुण वस ा - प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के विए ररि
कायषिाही का वस ा ) गुण सवहि िृिीय अििार के सम गुण से यु ि िािा गुण ििुथष अििार नरवसंह अििार
का गुण था जो अगिे अििार में संिररि हुई
05. अ काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से युि
स आधाररि सियुग में वि ु के पाचिें अितार - िामन अितार
मुূ-गुण वस ा - भवि ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूवम पर गणरा৸
ि था की थापना ि ि था को वजविि करना, उसके सुख से प्रजा को पररविि कराने िािे गुण (समाज का

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 125


वस ा ) सवहि ििुथष अििार के सम गुण से युि गुण पाूँ ििें अििार का गुण था जो अगिे अििार में संिररि
हुई

ब. सािणजवनक प्रमावर्त अिंश प्र क्ष अितार


06. अ काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से युि
स आधाररि सियुग में वि ु के छठिें अितार - परशुराम अितार
मुূ-गुण वस ा - गणरा৸ ि था को ब्र ाਔ में ा ि था वस ा ों को आधार बनाने
िािे गुण और ि था के प्रसार के विए यो৓ म्मि को वनयुि करने िािे गुण (िोकि का वस ा और
उसके प्रसार के विए यो৓ उ रावधकारी वनयुि करने का वस ा ) सवहि पाूँ ििें अििार के सम गुण से युि
िािा गुण छठें अििार परर्शुराम का गुण था जो अगिे अििार में संिररि हुई

दू सरार्ुि : त्रेतार्ुि
03. िैवदक धमण -श्ीराम-ईसापूिण 6000-2500

स. सािणजवनक प्रमावर्त पूर्ण प्र क्ष अितार


07. अ काि के सािषजवनक प्रमावणि काि में सािषजवनक प्रमावणि अ प्राकृविक िेिना से
युि य৯ (अ कमष ) आधाररि त्रेिा युग में वि ु के सातिें अितार - श्ी राम अितार- रामार्र् (मानक
न्तक्त चररत्र)
मुূ-गुण वस ा - आदर्शष िररत्र के गुण िथा छठें अििार िक के सम गुण को प्रसार करने
िािा गुण ( म्मिगि आदर्शष िररत्र के आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) साििें अििार िीराम का गुण था जो
अगिे अििार में संिररि हुई

तीसरार्ुि : ापरर्ुि
04. िेदा अ ै त धमण-श्ीकृ -ईसापूिण 3000

द. न्तक्तित प्रमावर्त पूर्ण प्रेरक अितार


08. काि के म्मिगि प्रमावणि काि में म्मिगि प्रमावणि पूणष स िेिना से युि
भम्मि और प्रेम आधाररि ापर युग में वि ु के आठिें अितार -र्ोिे र श्ी कृ अितार महाभारत (मानक
सामावजक न्तक्त चररत्र)
मुূ-गुण वस ा - आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मि-मिा र
ि वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे गुण (सामावजक आदर्शष
म्मि का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण का वस ा ) सवहि साििें अििार िक
के सम गुण आठिें अििार िीकृ का गुण था वजससे म्मि, म्मि पर वि ास न कर अपने बुम्म से यं
वनणषय करें और प्रेरणा प्रा करिा रहे जो अगिे अििार में संिररि हुई

चौर्ा र्ुि: कवलर्ुि


05. र्हदी धमण
06 .पारसी धमण -जरथ्रु -ईसापूिण 1700
07. बौ धमण-भििान बु -ईसापूिण 1567-487
08. क ूसी धमण -क ूवसर्श-ईसापूिण 551-479

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 126


09. टोई৷ धमण -लोओ े-ईसापूिण 604-518
10. जैन धमण-भििान महािीर-ईसापूिण 539-467
11. ईसाइ धमण-ईसा मसीह-सन् 33 ई0
12. इ ाम धमण -मुह द पैि र-सन् 670 ई0
13. वसक्ख धमण -िुरु नानक-सन् 1510 ई0

र्. सािणजवनक प्रमावर्त अिंश प्रेरक अितार


09. काि के म्मिगि प्रमावणि काि में सािषजवनक प्रमावणि अंर्श स िेिना से युि
संघ और योजना आधाररि कवियुग के प्रार में वि ु के निें अितार - बु अितार
मुূ-गुण वस ा - प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष, संघ और बुम्म के र्शरण में जाने की मूि
वर्शक्षा दे ना निें अििार भगिान बु का गुण (धमष, संघ और बुम्म का वस ा ) था जो अगिे अििार में संिररि
हुई

काल का व तीर् और अन्त म रूप


काल
धमण ৯ान का अ

पााँचिााँर्ुि : स र्ुि/ र्णर्ुि


14. वि /स /धमणवनरपेक्ष/लोकत धमण-लि कुश वसिंह ”वि मानि“-सन् 2012 ई0

र. सािणजवनक प्रमावर्त पूर्ण प्रेरक अितार


10. काि के सािषजवनक प्रमावणि काि में सािषजवनक प्रमावणि पूणष स िेिना से युि
संघ और योजना ( य৯ या कमष ) आधाररि कवियु ग के अ में वि ु के दसिााँ और अन्त म - भोिे र श्ी
लि कुश वसिंह ”वि मानि” वन लिंक कन्त अितार - वि भारत (मानक िैव क न्तक्त चररत्र)
आदर्शष िैव क म्मि िररत्र सवहि सभी अििारों का सम्म विि गुण ि मन वनमाष ण की प्रवक्रया से
वनवमषि अम्म म मन ामी वििेकान के मन के गुण वमिकर दसिें अम्म म अििार िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि”
में ि हुआ
मुূ-गुण वस ा - वि धमष / िेदा धमष / अ ै ि धमष / एकिा धमष / िोकि धमष / समव धमष /
प्राकृविक धमष / स धमष / संयुिमन धमष / ई र धमष / वह दू धमष / सािषजवनक धमष / धमष / मानि धमष /
धमषवनरपेक्ष धमष - िि कुर्श वसंह ”वि मानि” - सन् 2012 ई0 - पूिषििी सभी धमों ि मिों का सम य ि एकीकरण
करिे हुये वनराकार आधाररि िोकिं त्र ि था का िृक्ष र्शा वि -नागररक धमष का धमषयुि धमषर्शा -कमषिेद:
प् रथम, अम्म म िथा पंिम िेदीय िृंखिा वि -रा৸ धमष का धमषवनपेक्ष धमषर्शा - वि मानक-र्शू : मन की
गुणि ा का वि मानक िृंखिा, आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक िैव क म्मि
िररत्र अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का प्र ुिीकरण

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 127


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 128
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 129
“स ूर्ण मानक” का विकास भारतीर् आ ा -दशणन का मूल और
अन्त म लশ
अब मानक एिं मानकीकरण हमारे दै वनक जीिन के अवभ अंग बन िुके हैं अगर हम अपने दै वनक
जीिन की गविविवधयों का अििोकन करिे हैं िो यह दे खने को वमििा है वक हम जाने-अनजाने में ही वकिने ही
रूपों में मानकों और मानकीकृि प वियों को अपनायें हुये है दै वनक जीिन में सिषत्र ीकृि मानक के
उदाहरण हैं - करें सी नोट् एिं वसक्के, माप या िोि के साधन, यािायाि के संकेि, दे र्शों के झਔे , धावमषक प्रिीक
इ ावद िैिावहक एिं पूजा प वि, हमारी पर रा एिं आिार िहार आवद हमारी प्रािीन मानकीकृि प वियों
के उदाहरण है अब प्र ेक मनु के विए अपना जीिन सुखद बनाने हे िु दू सरों से सेिाएं प्रा करना एिं उन
पर वनभषर रहना अवनिायष हो गया है म्मियों के बीि आदान-प्रदान सुगम एिं सुिभ हो इसके विए सिष ीकृि
मानदਔों की आि किा महसूस की गई
मानकीकरण का मह समाज के उ ान के विए है जैसे सं ृ वि मानि समाज में अनुर्शासन एिं
सही वदर्शा में प्रगवि के विए मागषदर्शषन दे िी है उसी प्रकार उ ोगों को सही वदर्शा में िे जाने को मानकीकरण
मह पूणष भूवमका अदा करिा है अब दै वनक जीिन में मानकों की महिी योगदान को नकारा नहीं जा सकिा है
ये उपभोिा संरक्षण, ग्रामीण विकास, वि ापार प्रवि धाष , औ ोवगक क्राम्म , वर्शक्षा एिं ा का मूि ि
है वजनके ारा मानकीकरण से मानक के रूप में निीन िै৯ावनक िकनीकी ि किा क जानकारी से सिि्
उ वि का मागष प्रर्श होिा है जो समाज के सभी िगो के विए प्र क्ष ि अप्र क्ष रूप से दै वनक जीिन में काम
आिे है
मानकीकरण और मानक के मा क्षेत्रानुसार अनेक र हो सकिे है जो म्मि, पररिार, ग्राम,
विकास खਔ, जनपद, रा৸, दे र्श ि अ राष र ीय ि सिोৡ और अम्म म रूप से वि या ब्र ाਔीय र िक हो
सकिा है भारि में इसके उदाहरण- रा৸ों के मानक िथा दे र्श र पर आई.एस.आई. माकष (भारिीय मानक
ूरो) है वि या अ राष र ीय र पर उदाहरण आई.एस.ओ. (अ राष र ीय मानक संगठन) आई.ई.सी0,
आई.ट्ी.यू. इ ावद हैं
स ूणष वि में सा िा ापार स ों में एकरूपिा और सा िा िाने के उ े से यह
आि क था वक एक ही मात्रक प्रणािी स ूणष वि में िागू की जाए इस उ े की पूविष के विए सन् 1870 में
एकीकृि मीवट्र क मात्रक का विकास करने के विए विवभ दे र्शों का एक स े िन बुिाया गया सन् 1875 में
पेररस में मीट्र के समझौिे पर ह ाक्षर हुये इस समझौिे के पररणाम रूप अ राष र ीय माप िौि ूरो िागू
वकया गया साथ ही समय-समय पर वमिकर आि किानुसार नये मानकों के वन य के विए माप-िौि का
महास ेिन भी थावपि हुआ
1954 में आयोवजि माप-िौि महास ेिन ने मीवट्र क प्रणािी को अ राष र ीय रूप से अपनाया 1960
में इसे ”वस म इ਒रनेर्शनि डी यूवनट्् स“ अथाष ि् ”अ राष र ीय मात्रक प्रणािी“ के नाम से पररभावर्ि वकया गया
यह प्रणािी समय, िापमान, ि ाई और भार के िार ि बुवनयादी मात्रकों को आधार बनाकर
रखी गई ि ाई और भार के मात्रक क्रमर्शः मीट्र और वकिोग्राम है समय का मात्रक सेकेਔ है जो वक
परमाणु घड़ी के रूप में वनधाष ररि है िापमान का मात्रक सेम्म यस वडग्री (सेंट्ीग्रेड) को रखा गया है और इसके
ारा फारे नहाइट् वडग्री का प्रवि थापन हो गया है स ेिन ने समय मात्रक, वमनट्, घंट्ा आवद के साथ-साथ वडग्री
वमनट्, सेकਔ जैसे कोणीय मापों िथा नावट्कि मीि-नाट् आवद सुप्रविव ि मात्रकों को भी ीकार वकया
इस प्रकार स ूणष वि में ही प वि विकवसि करने के विए प्र ेक विर्य क्षेत्रों में जो ािहाररक
जीिन से वि र को प्रभाविि करिे है , की और वि गविर्शीि है उपरोि क्षेत्रों- ि ाई, क्षेत्रीय, भार, िि,
आयिन िथा घन माप के अिािा विवभ गवणिीय अंक और वि৯ान के क्षेत्रों के मात्रक भी वनधाष ररि कर वदये गये

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 130


वजससे वि के वकसी भी कोने से मात्रक की भार्ा में बोिने से वि के वकसी कोने में बैठा म्मि उसे उसी रूप
में समझ सकने में सक्षम हो गया जबवक ि ाई में- इं ि, फुट्, गज, क्षेत्र में- िगष इं ि, िगष फुट्, िगष गज (भारि में-
वि ा, बीघा), भार में - औंस, पौंड, िि आयिन में- वपंट्, गैिन, िैरि, का दे र्श र पर प्रििन था भारि में भार
के विए- र ी, मार्शा, िोिा, कुंिा, छट्ां क, सेर, पसेरी, मन िथा क्षेत्र के विए रा৸ों के अनुसार वभ -वभ मात्रक
और अर् थ प्रिविि थे
वि ापार में पूंजी िथा उपभोिा ि ुओं और सेिाओं का आदान-प्रदान सवदयों से होिा आ रहा
है यह आदान-प्रदान बहुि सी मुम्म िों को ज दे िा है , विर्शेर्िया औ ोवगक िथा विकासर्शीि दे र्शों में ापार
करने पर इस वदर्शा में व िीय वि यु के िु र बाद ापार को एक जैसा उदार बनाने के उ े से भौगोविक
व से मुि ापार क्षेत्र बनाए गये िकनीकी अिरोध, सीमा या अ अिरोधों की अपेक्षा अवधक घािक ि
बाधक वस हुए रा र ीय उ ाद, दू सरे दे र्शों को बाजारों में खरे नहीं उिरे क्योंवक िहाूँ िकनीकी वभ थे
उदाहरण-वबजिी के साकेट् को वभ -वभ दे र्शों में वभ -वभ पाये गये इसी प्रकार िो िा ि वफ्िेंर्शी इ ावद
इस पर वििार विमर्शष करने िािों ने ापार में आने िािे इस िकनीकी अिरोधों से वनपट्ने के विए बैठकें बुिाई,
िािाष िाप वकये , पररणाम रूप सन् 1995 में संयुि रा र संघ के अधीन वि ापार संगठन (ड ु.ट्ी.ओ.) का
ज हुआ, वजसमें ह ाक्षर करने िािे दे र्शों को र्शिो के पािन के विए कड़े वदर्शा वनदे र्श वदए गये वि मानकों
की मह ा को ीकार करिे हुये वि ापार संगठन ने समझौिे में एक पररवर्श ”मानक वनधाष रण, अवधग्रहण
और अनुप्रयोग की उपयुि रीवि संवहिा” जोड़ा और इस प्रकार वि मानकों पर आधाररि उ ादों का एक दे र्श
से दू सरे दे र्श में आदान-प्रदान होने िगा अ राष र ीय मानक पूरे वि में समान गुणि ा की िीजें उपि करािे
है इनके अपनाने से वि बाजार में साख बनिी है अ राष र ीय ापार करना आसान हो जािा है अिंिः यह
वि ास के साथ कहा जा सकिा है वक वि मानक ही वि ापार के आधार हैं
सभी स म्म ि विर्शेर्৯ों की सहमवि से वकसी ि ु पदाथष अथिा कायषर्शैिी के सभी िकनीकी एिं गैर
िकनीकी पहिुओं सवहि एक ऐसा वि ार पूिषक िैयार वकया गया वििरण जो सब स म्म ि जनों के वहि में एिं
िै৯ावनक गुणिा, सुरक्षा एिं आवथषक व से उ म हो, मानकीकरण कहिािा है मानक िे साधन है जो
मानकीकृि गविविवधयों के पररणामों को अवधक परर ृ ि और अभी बनािे है इस रूप में इनकी िगािार
समीक्षा की जािी है िावक िे िः पूणष सुवनव ि और , विरोधाभास िथा असुविधा से मुि हों इन सबसे
मह पूणष यह है वक िे समय से वपछड़े हुये न रहे इसके विए हमें सिि प्रय र्शीि रहना है
मानकीकरण एिं मानक उिने ही प्रािीन हैं वजिनी वक मानि स िा भारि में मानकीकरण का
इविहास बहुि पुराना है मोहन जोदड़ो एिं हड़ ा के उ नन से वमिी ि ुओं की जाूँ ि से यह वस होिा है वक
भारि 4000 ई0 सदी के पीछे के समय से मानकीकरण प वियों को अपनाये हुये हैं उ नन से वमिी इं ट्ों के
नाप एक जैसे थे ि िौड़ाई ि ि ाई 1:2 का अनुपाि था जो अब भी प्रिविि है पुरािन युग से ही भारििासी
मानक एिं मानकीकृि प वियों को अपनाकर विवभ कायों को पूिष वनधाष ररि योजना के अनुरूप वनयम्म ि कर
सूक्ष्मिा एिं यथाथषिा के साथ करना जानिे थे
जैसे-जैसे मानि स िाओं का वमिण होगा िैसे-िैसे मात्रक और मानक के ारा एकीकरण की
आि किा ही नहीं मनु की वििर्शिा भी होगी मानक के पररिय और उपयोवगिा इस प्रकार हो जािी
है
भारिीय आ ा -दर्शषन-सं ृ वि के विए यह एक नयी और आधुवनक सूक्ष्म व ही है वक मानि
समाज के एकीकरण के विए सदै ि अपने वििार-वस ा से मानकीकरण करना ही भारिीय आ ा -दर्शषन-
सं ृ वि का मूि उ े रहा है जबवक समाज के मानि उसे न अपनाकर मानकीकरण के आवि ारक और
उनके जीिन की ओर बढ़ गये इिना ही नहीं आवि ार के आधार पर अनेक आवि ार भी करिे ििे गये
पररणा रूप मानि समाज मानकीकरण के मूि उ े से इिना दू र आ िुका है वक इस मूि उ े को

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 131


ीकारना भी उ ें गिि िगेगा जबवक इस उ े के वबना उनका पूणषिा की ओर बढ़ना अस ि भी है और
अम्म म मागष भी है
सृव में साकार और वनराकार सृव के दो रूप हैं साकार सृव यह हमारा ब्र ाਔ है िो
वनराकार सृव सािषभौम स -वस ा है इसी प्रकार मानि के स में भी है वनराकार मानि, मानि का
अपना वििार है और साकार मानि, मानि का र्शरीर है भारिीय आ ा -दर्शषन इसे मानि स िा के
विकास के प्रार में ही समझ गया था इसविए िह सदै ि मानि समाज के एकीकरण के विए मानक का विकास
करिा रहा है वजसके वन विकास क्रम हैं -

अ. न्तक्तित प्रमावर्त अ वनराकार एििं साकार मानक


01. सािषभौम मानक - सािषभौम आ ा या ई र का आवि ार
02. सािषभौम मानक के पु क - िेद का आवि ार
03. सािषभौम मानक का नाम - ऊूँ का आवि ार
04. सािषभौम मानक के नाम के ाূा का पु क उपवनर्द् का आवि ार
05. सािषभौम म्मिगि म्मि का मानक - ब्र ा (स गुण) का आवि ार
06. सािषभौम सामावजक म्मि का मानक - वि ु (स -रज गुण) का आवि ार
07. सािषभौम िैव क म्मि का मानक - वर्शि-र्शंकर (स -रज-िम गुण) का आवि ार
08. सािषभौम म्मिगि म्मि के मानक के कृवि का पु क - ब्र ा आधाररि पुराण का आवि ार
09. सािषभौम सामावजक म्मि के मानक के कृवि का पु क - वि ु आधाररि पुराण का आवि ार
10. सािषभौम िैव क म्मि के मानक के कृवि का पु क-वर्शि-र्शंकर आधाररि पुराण का आवि ार

ब. सािणजवनक प्रमावर्त वनराकार एििं साकार मानक

01. शरीर की अि र्ा- आश्म के मानक का वन रूप है -


1. ब्र ियष आिम -5 से 25 िर्ष उम्र िक - ৯ान-वि৯ान-िकनीकी वर्शक्षा िथा िहार
2. गृह थ आिम -26 से 50 िर्ष उम्र िक - पाररिाररक जीिन में ৯ान युि किष और दावय
3. िानप्र थ आिम -51 से 75 िर्ष उम्र िक - मां गें जाने पर अपने अनुभि से पररिार ि समाज का मागषदर्शषन
4. स ास आिम -76 से र्शरीर ाग िक - आ ा में म्म थि होकर ब्र ाਔीय दावय ि किष

02. कमण की अि र्ा- िर्ण के मानक का वन रूप है-


1. ब्रा ण िणष - सूक्ष्म बुम्म ि आ ा में म्म थि हो धमष से कायष
2. क्षवत्रय िणष - भाि ि मन में म्म थि हो बि से कायष
3. िै िणष - इम्म य ि प्राण में म्म थि हो धन से कायष
4. र्शूि िणष - र्शरीर में म्म थि हो र्शरीर से कायष

03. मानि का मानक – अििारिाद


अििारिाद का मुূ उ े मानि समाज में मानि का मानक वनधाष ररि करना है वजसका विकास
क्रम वन प्रकार है -

01. म ाितार - इस अििार ारा धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने का मानक वििार-
वस ा थावपि हुआ

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 132


02. कৢप अितार - इस अििार ारा सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि, दोनों पक्षों के बीि
म थ की भूवमका िािा गुण (सम य का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

03. िाराह अितार - इस अििार ारा सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि ,
सवक्रय, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण
(प्रेरणा का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

04. नरवसिंह अितार - इस अििार ारा प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के
विए ररि कायषिाही का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

05. िामन अितार - इस अििार ारा भवि ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूवम पर
गणरा৸ ि था की थापना ि ि था को वजविि करना, उसके सुख से प्रजा को पररविि कराने
िािे गुण (समाज का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

06. परशुराम अितार - इस अििार ारा गणरा৸ ि था को ब्र ाਔ में ा ि था वस ा ों


को आधार बनाने िािे गुण और ि था के प्रसार के विए यो৓ म्मि को वनयुि करने िािे गुण
(िोकि का वस ा और उसके प्रसार के विए यो৓ उ रावधकारी वनयुि करने का वस ा )
का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

07. राम अितार - इस अििार ारा आदर्शष िररत्र के गुण के साथ प्रसार करने िािा गुण ( म्मिगि
आदर्शष िररत्र के आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

08. कृ अितार - इस अििार ारा आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक
मि-मिा र ि वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे
गुण (सामावजक आदर्शष म्मि का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण
का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

09. बु अितार - इस अििार ारा प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष , संघ और बुम्म के र्शरण में
जाने का गुण (धमष, संघ और बुम्म का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ

10. कन्त अितार- इस अििार ारा आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक
िैव क म्मि िररत्र अथाषि् सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का मानक
वििार-वस ा थावपि करने का काम ििषमान है और िो अम्म म भी है

उपरोि दस अििार ारा थावपि वििार-वस ा का संयुि रूप ही मानक पूणष मानि का रूप है
प्र ेक पूिष के अििार ारा थावपि वििार-वस ा अगिे अििार में िह संक्रवमि अथाष ि् वि मान रहिे हुये
अििरण होिा है इस प्रकार अम्म म अििार में पूिष के सभी अििार के गुण वि मान होंगे और अम्म म अििार
ही मानि समाज के विए मानक मानि होगा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 133


भारत सरकार को अन्त म पत्र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 134


भाि-7

स ूर्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 135


स ूर्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना
“समाजिाद”, एक राजनीविक र्श वजसका अथष है - एक समान भाि से रहन-सहन की प वि यह
फि है जब िक मानि के अ र एका क वििार का बीज नहीं बोया जाये गा, िह समाजिाद नामक फि नहीं दे
सकिा
समाज, म्मि के र्शारीररक-आवथषक-मानवसक विकास केम्म ि है जबवक राजनीवि, स ा प्राम्म
केम्म ि है उसके बाद िह विकास की बाि करे गी अब यह उस पर वनभषर है वक एक समान भाि से करिी है या
पक्षपािपूणष या केिि स ाधारी ंय के विए म्मििाद से बड़ा िक्र समाजिाद है समाजिाद से बड़ा िक्र
रा र िाद है रा र िाद (यवद दे र्श को रा र समझा जाय) से बड़ा िक्र वि रा र िाद है यह म्मि के अ र ापक
सोि और मम्म का वि ार भी है और ापक समाज का वनमाष ण भी बढ़िे बौम्म क-৯ान के इस यु ग में छोट्े
िक्र से वनकिना मनु की प्रकृवि है बड़े िশ के सामने हमेर्शा छोट्ा िक्र वििीन हो जािा है , यह प्राकृविक
वनयम है
स समाजिाद िाने की एक प्रवक्रया ही है हमारा - “मानक ग्राम” और “मानक नगर िाडष ” का
ािहाररक वस ा और उसका वक्रया यन
जब-जब म्मि अपने मन को एका िाद के सिोৡ र पर केम्म ि कर उसे स ाथष करने का
प्रय वकया िब-िब िह म्मि महापुरूर् के रूप में ि हुए जबवक और्वध आधाररि अथषििेद में इस
एका िाद की उपयोवगिा का ৯ान पहिे से ही वि मान है वजसके स में ामी वििेकान जी कहिे हैं -
‘‘अिः यवद भारि को महान बनाना है , िो इसके विए आि किा है संगठन की, र्शम्मि संग्रह की और वबखरी हुई
इৢार्शम्मि को एकत्र कर उसमें सम य िाने की अथिषिेद संवहिा की एक वििक्षण ऋिा याद आ गयी वजसमें
कहा गया है , ‘‘िुम सब िोग एक मन हो जाओ, सब िोग एक ही वििार के बन जाओ एक मन हो जाना ही समाज
गठन का रह है बस इৢार्शम्मि का संिय और उनका सम य कर उ ें एकमुखी करना ही सारा रह है ’’
(दे खें ‘‘नया भारि गढ़ो’’ पृ संূा-55) एका भाि के स में ामी वििे कान जी कहिे हैं - ‘‘यह भी न
भूिना िावहए वक हमारे बाद जो िोग आएं गे, िे उसी िरह हमारे धमष और ई र स ी धारणा पर हूँ सेंगे, वजस
िरह हम प्रािीन िोगों के धमष और ई र की धारणा पर हूँ सिे हैं यह सब होने पर भी, इन सब ई र स म्म ि
धारणाओं का संयोग करने िािा एक णष सूत्र है और िेदा का उ े है - इस सूत्र की खोज करना भगिान
कृ ने कहा है -‘‘वभ वभ मवणयाूँ वजस प्रकार एक सू त्र में वपरोयी जा सकिी हैं , उसी प्रकार इन सब विवभ भािों
के भीिर भी एक सूत्र वि मान है ’’ (दे खें ‘‘৯ानयोग’’, पृ संূा - 65) और णष सूत्र के स में ामी जी
कहिे हैं - एक र्श में िे दा का आदर्शष है - मनु के सৡे रूप को जानना ’’ (दे खें ‘‘वििे कान रा र को
आ ान’’, पृ सं0 - 48) पं0 दीनदयाि उपा ाय जी की अनुभूवि भी एका भाि के सिोৡ र पर केम्म ि थी
वजसे ‘‘एका मानििािाद’’ के रूप में जाना जािा है
“यवद िुम समग्र जगि के ৯ान से पूणष होना िाहिे हो िो पाूँ ि भाि- वििार एिं सावह , विर्य एिं
विर्शेर्৯, ब्र ाਔ ( थू ि एिं सूक्ष्म) के प्रब और वक्रयाकिाप, मानि ( थूि एिं सूक्ष्म) के प्रब और वक्रयाकिाप
िथा उपासना थि का सामंज कर एक मुखी कर िो यही समग्र जगि का ৯ान है , भवि है, रह है, पूणष
৯ान है , समाज गठन है , पु कािय के ৯ान से सिोৡ है ” वििार के स में कहा गया है - “यह अ ै ि (एक )
ही धमषवनरपेक्ष है , सिषधमषसमभाि है िेदा िथा मानि का सिोৡ दर्शषन है जहाूँ से मानि विवर्श ा ै ि, ै ि एिं
ििष मान में मििाद के मानवसक गुिामी में वगरा है पर ु मानि पुनः इसी के उ े क्रम से उठकर अ ै ि में थावपि
हो जायेगा िब िह धमष में थावपि एिं वि मन से यु ि होकर पूणष मानि अथाष ि् ई र थ मानि को उ करे गा ”
सावह के स में कहा गया है वक- “मानि एिं प्रकृवि के प्रवि वन क्ष, सं िुविि एिं क ाणाथष कमष ৯ान के
सावह से बढ़कर आम आदमी से जुड़ा सावह कभी भी आवि ृ ि नहीं वकया जा सकिा यही एक विर्य है
वजससे एकिा, पूणषिा एिं रिना किा एका भाि से िाई जा सकिी है सं ृ वि से रा৸ नहीं िििा कमष৯ान से

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 136


रा৸ िििा है सं ृ वि िभी िक थ बनी रहिी है जब िक पेट् में अ हो, ि थाएं सािषभौम स -वस ा
युि हों, व पूणष मानि वनमाष ण पर केम्म ि हो सं ृ वि कभी एका नहीं हो सकिी िेवकन रिना क व कोण
एका होिा है जो कािानु सार कमष ৯ान और कमष है अ काि में अनेका िथा काि में एका कमष
৯ान अथाष ि् एका रिना क व कोण होिा है यही कमष आधाररि भारिीय सं ृ वि है जो प्रार में भी था और
अ में पुनः हो रहा है यही सभी सं ृ वियों का मूि भी है ” काि के स में कहा गया है - “जब व मन
की र्शाम्म अ ः विर्यों जो वसफष अ विर्य मन ारा ही प्रमावणि होिा है , पर केम्म ि होिी है िो उसे व
अ काि कहिे हैं िथा जब व मन की र्शाम्म विर्यों अथाष ि् िा विर्यों, जो सािषजवनक रुप से
प्रमावणि है पर केम्म ि होिा है िो उसे व काि कहिे हैं इसी प्रकार स ूणष समाज का मन जब अ
विर्यों पर केम्म ि होिी है िो उसे समव अ काि कहिे हैं िथा जब स ूणष समाज का मन जब विर्यों
पर केम्म ि होिा है िो उसे समव काि कहिे हैं ” कमष৯ान के स में कहा गया है वक- “ म्मि जब स ूणष
समव अ काि में हो िो उसे अ कमष৯ान के अनुसार िथा जब स ूणष समव काि में हो िो उसे
कमष৯ान के अनुसार कमष करने िावहए िभी िह ब्र ाਔीय विकास के विए धमषयुि या एकिाब होकर
कायष करे गा ” णष सू त्र के स में कहा गया है वक- “मानक अथाष ि् आ ा अथाष ि् स -धमष-৯ान म्म थर रहिा है
िेवकन मन को इस ओर िाने िािे सूत्र वभ -वभ होंगे क्योंवक जो उ है िह म्म थर नहीं है अ काि में यह
सूत्र अनेक होंगे िेवकन काि के विए हमेर्शा एक ही होगा क्योंवक िह सािषजवनक प्रमावणि होगा ” णष सूत्र
के गुण के स में कहा गया है वक- “अिः यवद भारि को महान बनना है , वि गुरु बनाना है , भारिीय सं विधान
को वि संविधान में पररिविषि करना है िो एका कमष िाद पर आधाररि काि के विए एक र्श िावहए जो
पररविि हो, केिि उसकी र्शम्मि का पररिय कराना मात्र हो, भाि से हो, म्म थर हो, समव हो, हो, स ूणष
हो, वििादमुि हो, वि भार्ा में हो, आ ाम्म क एिं भौविक कारण युि हो, सभी वि मन के ि ों, म्मि से
संयुि रा र संघ के सৡे रुप एिं वि के ूनिम एिं अवधकिम साझा कायष क्रम को प्रक्षे वपि करने में सक्षम हो,
मानि एिं प्रकृवि के विकास में एक कड़ी के रुप में वनमाष ण के विए सक्षम हो, मानि एिं प्रकृवि के विकास के
क ाणाथष, वन क्ष, सिोৡ ৯ान ि कमष ৯ान का संगम हो अ काि के विकास के साि िक्रों (पाूँ ि
अ कमष िक्र एिं दो अ ৯ान कमष िक्र जो सभी स दायों और धमों का मूि है ) को काि के साि
िक्रों (पाूँ ि कमष िक्र, एक ৯ान कमष िक्र और एक अ ৯ान कमष िक्र) को प्रक्षेवपि करने में सक्षम
हो, को थावपि करना पड़े गा यह भारि सवहि नि वि वनमाष ण का सूत्र है , अम्म म रा ा है और उसका
प्र ुिीकरण प्रथम प्र ुिीकरण होगा ”
“जब सभी स दायों को धमष मानकर हम एक की खोज करिे हैं िब दो भाि उ होिे हैं पहिा-
यह वक सभी धमों को समान व से दे खें िब उस एक का नाम सिषधमषसमभाि होिा है दू सरा-यह वक सभी
धमों को छोड़कर उस एक को दे खें िब उसका नाम धमषवनरपेक्ष होिा है जब सभी स दायों को स दाय की
व से दे खिे हैं िब एक ही भाि उ होिा है और उस एक का नाम धमष होिा है इन सभी भािों में हम सभी
उस एक के ही विवभ नामों के कारण वििाद करिे हैं अथाष ि् सिषधमषसमभाि, धमषवनरपेक्ष एिं धमष विवभ मागों
से वभ -वभ नाम के ारा उसी एक की अवभ म्मि है दू सरे रुप में हम सभी सामा अि था में दो विर्यों पर
नहीं सोििे, पहिा- िह वजसे हम जानिे नहीं, दू सरा- िह वजसे हम पूणष रुप से जान जािे हैं यवद हम नहीं जानिे
िो उसे धमषवनरपेक्ष या सिषधमषसमभाि कहिे हैं जब जान जािे हैं िो धमष कहिे हैं इस प्रकार आई0 एस0
ओ0/ड ू0 एस0- र्शू िृं खिा उसी एक का धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि नाम िथा कमषिेद: प्रथम, अम्म म
िथा पंिमिेदीय िृंखिा उसी एक का धमषयुि नाम है िथा इन सम कायों को स ावदि करने के विए वजस
र्शरीर का प्रयोग वकया जा रहा है उसका धमषयुि नाम-िि कुर्श वसंह है िथा धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि सवहि
मन र का नाम वि मानि है जब वक मैं (आ ा) इन सभी नामों से मुि है ”
“वििार प्रसार एिं वििार थापना में एक मुূ अ र है वििार प्रसार, वििाराधीन होिा है िह स
हो भी सकिा है और नहीं भी हो सकिा पर ु वििार थापना स होिा है वििार थापना में नीवि प्रयोग की जािी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 137


है वजससे उसका प्रभाि स के पक्ष में बढ़िा रहिा है और यह वििार थापक एिं समाज पर वनभषर करिा है
जबवक वििार प्रसार में वकसी नीवि का प्रयोग नहीं होिा है वजससे उसका प्रभाि पक्ष पर एिं विपक्ष दोनों ओर हो
सकिा है और िह वसफष समाज के उपर वनभषर करिा है ”
इस प्रकार एका कमषिाद स अथों में प्रा০ एिं पा ा , समाज एिं रा৸, धमष, धमषवनरपेक्ष एिं
सिषधमषसमभाि की एकिा के साथ थ िोकि , थ समाज, थ उ ोग, नैविक उ ान, वि ि था,
वि एकिा, वि र्शाम्म , वि विकास, वि के भवि और उसके निवनमाष ण का प्रथम माडि है जो ििषमान समाज
की आि किा ही नहीं अम्म म मागष है
स ूणष क्राम्म के विए ही आवि ृ ि है वन आवि ार वजससे स ूणष क्राम्म का सपना पूरा हो सके
स ूणष ब्र ाਔ में ा एक ही स -वस ा ारा म्मिगि ि संयुि मन को एकमुखी कर
सिोৡ, मूि और अम्म म र पर थावपि करने के विए र्शू पर अम्म म आवि ार WS-0 िृंखिा की
वन विम्मखि पाूँ ि र्शाखाएूँ है
1. ड ू.एस. (WS)-0 : वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-000 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानि (सूक्ष्म िथा थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
5. ड ू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना थि का वि मानक
और पूणषमानि वनमाष ण की िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C है
और यह कायष भी पद-प्रवि ा से दू र रहकर एक आम नागररक का अपने दे र्श के प्रवि किष के
आधार पर स वकया गया है
स ूणष क्राम्म का अथष है - सभी विर्यों के नये और अम्म म अथों की थापना और यह मनु जावि
के जीिन में वसफष एक बार और अम्म म बार ही घवट्ि होिी है क्योंवक अिग-अिग विर्यों का नया अथष बार-बार
परर ृ ि हो सकिा है पर ु एक ही सािषजवनक प्रमावणि वस ा से सभी विर्यों का सिोৡ अम्म म स अथष
वसफष एक ही बार और अम्म म बार ही स ि है क्योंवक उसके बाद उसकी पररभार्ा परर ृ ि नहीं की जा
सकिी िोक सावह उसे कहिे हैं जो सिष ापी-सािषभौम हो और प्र ेक म्मि िाहे वजस जावि-धमष-दे र्श का हो,
से जुड़ा हो और उसके विए आि क हो यह सावह ही िोकि में से गायब िोक का साकार रुप होगा जो
र्शु ा ाओं के अ ः में म्म थि रहिा है और जो अब वि मानक र्शू : मन (मानि संसाधन) की गुणि ा का
वि मानक के वि ापी थानाथष आधुवनक नाम से ि हो िुका है
वज ें समाज को कुछ दे ना होिा है िे अपने जीिन को प्रयोगर्शािा की भाूँ वि ही संिाविि करिे
हैं और वज ें कुछ पाना होिा है िे ऐसे प्रयोगर्शािा से खोजे गये सूत्रों को िाभ उठाने के विए पकड़िे हैं न वक
उनके जीिन र्शैिी को और वज ें समाज को कुछ दे ना नहीं होिा िे आजीिन उसी विर्य क्षेत्र में रहकर भी कुछ
नहीं दे पािे हैं और अपने ाथष की पूविष करिे रहिे हैं वििार िो प्र ेक म्मि के हो सकिे हैं जैसे - ओसामा
वबन िादे न के, जाजष ड ू0 बुर्श के, कोफी अ ान के, िी0 एस0 नायपाि के और आपके भी, पर ु वकसी के
वििार को आिं किादी, वकसी को नोबेि पुर ार, वकसी को सही कदम िथा वकसी को ीयोविि कह वदया जािा
है क्योंवक वन िम र-वि ंसक वििार से सिोৡ र- सकारा क, रिना क, सम या क के वजिना करीब
होिा है उसमें उिना ही मू होिा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 138


स ूर्ण क्रान्त की र्ोजना

िोकनायक जयप्रकार्श नारायण के अनुसार स ूणष क्रां वि में साि क्रां वियाूँ र्शावमि है – 1. राजनैविक,
2. आवथषक, 3. सामावजक, 4. सां ृ विक, 5. बौम्म क, 6. र्शैक्षवणक ि 7. आ ाम्म क क्रां वि

राजनैवतक क्रान्त
िैव क स ूणष क्राम्म
भारि रीय स ूणष क्राम्म
सामावजक क्रान्त - ई रीय समाज
सािं ृ वतक क्रान्त – एका कमषिाद
बौन्त क क्रािंवत - एक रा र ीय र्शा - वि र्शा
आ ान्त क क्रािंवत - मन (मानि संसाधन) का वि मानक (WS-0) िृंखिा
शैक्षवर्क क्रान्त -स मानक वर्शक्षा - पूणष ৯ान का पूरक पाਉक्रम
आवर्णक क्रान्त - मानक विपणन प्रणािी : 3F (Fuel-Fire-Fuel)
भारि रीय - पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष
भारि रीय - वडवजट्ि प्रापट्ी और एजे नेट्िकष

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 139


भाि-8
राजनैवतक क्रान्त

िैव क स ूर्ण क्रान्त


एक वि - श्े वि के वनमाणर् के वलए आि क कार्ण
वि ापी र्ापना का मािण
नेतृ कताणओ िं के स न्त त विचार
वि राजनीवतक पाटी सिंघ (World Political Party Organisation - WPPO)
वि एकीकरर् आ ोलन (सै ान्त क)
रा र ीर् क्रान्त मोचाण
भारत रीर् स ूर्ण क्रान्त
महा ा िााँधी (2 अक्टु बर, 1869 - 30 जनिरी, 1948)
नीवत आर्ोि (रा र ीर् भारत पररितण न सिं र्ान) www.niti.gov.in
एक भारत - श्े भारत के वनमाणर् के वलए आि क कार्ण
नेतृ कताणओ िं के स न्त त विचार
रा र ीर् सहजीिन आ ोलन
राज-सुराज आ ोलन
रा र ीर् नीवत आर्ोि (रा.नी.आ) www.rashtriyanitiayog.com

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 140


एक वि - श्े वि के वनमाणर् के वलए आि क कार्ण

ISO-9000 और ISO-14000 िृंखिा की िरह “स ूणष मानक” अथाष ि वि मानक - र्शू (WS-0)
िंखिा की वि ापी थापना
प्रकावर्शि खुर्शमय िीसरी सह ाम्म के साथ यह एक सिोৡ समािार है वक नयी सह ाम्म केिि
बीिे सह ाम्म यों की िरह एक सह ाम्म नहीं है यह प्रकावर्शि और वि के विए नये अ ाय के प्रार का
सह ाम्म है केिि िि ों ारा िশ वनधाष रण का नहीं बम्म गीकरण के विए अवसमीि भूमਔिीय मनु
और सिोৡ अवभभािक सं युि रा र सं घ सवहि सभी र के अवभभािक के किष के साथ कायष योजना पर
आधाररि क्योंवक दू सरी सह ाम्म के अ िक वि की आि किा, जो वकसी के ारा प्रविवनवध नहीं हुई
उसे वििादमुि और सफििापूिषक प्र ु ि वकया जा िुका है जबवक विवभ विर्यों जैसे -वि৯ान, धमष, आ ा ,
समाज, रा৸, राजनीवि, अ राष र ीय स , पररिार, म्मि, विवभ सं गठनों के वक्रयाकिाप, प्राकृविक,
ब्र ाਔीय, दे र्श, सं युि रा र संघ इ ावद की म्म थवि और पररणाम सािषजवनक प्रमावणि रुप में थे
वि৯ान के सिोৡ आवि ार के आधार पर अब यह वििाद मुि हो िुका है वक मन केिि म्मि,
समाज, और रा৸ को ही नहीं प्रभाविि करिा बम्म यह प्रकृवि और ब्र ाਔ को भी प्रभाविि करिा है
के ीयकृि और ानीकृि मन विवभ र्शारीररक सामावजक और रा৸ के असमा िाओं के उपिार का अम्म म
मागष है थायी म्म थरिा, विकास, र्शाम्म , एकिा, समपष ण और सुरक्षा के विए प्र े क रा৸ के र्शासन प्रणािी के विए
आि क है वक रा৸ अपने उ े के विए नागररकों का वनमाष ण करें और यह वनधाष ररि हो िुका है वक क्रमब
थ मानि पीढ़ी के विए वि की सुरक्षा आि क है इसविए वि मानि के वनमाष ण की आि किा है , िेवकन
ऐसा नहीं है और विवभ अवनयम्म ि सम ा जैसे-जनसंূा, रोग, प्रदू र्ण, आिंकिाद, भ्र ािार, विके ीकृि मानि
र्शम्मि एिं कमष इ ावद िगािार बढ़ रहे है जबवक अ ररक्ष और ब्र ाਔ के क्षेत्र में मानि का ापक विकास
अभी र्शेर् है दू सरी िरफ िाभकारी भूमਔिीकरण विर्शेर्ीकृि मन के वनमाष ण के कारण विरोध और नासमझी से
संघर्ष कर रहा है और यह अस ि है वक विवभ विर्यों के प्रवि जागरण सम ाओं का हि उपि कराये गा
मानक के विकास के इविहास में उ ादों के मानकीकरण के बाद ििषमान में मानि, प्रवक्रया और
पयाष िरण का मानकीकरण िथा थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एिं आई0 एस0 ओ0-14000 िृंखिा के ारा
मानकीकरण के क्षे त्र में बढ़ रहा है िेवकन इस बढ़िे हुये िृंखिा में मनु की आि किा (जो मानि और
मानििा के विए आि क है ) का आधार “मानि संसाधन का मानकीकरण” है क्योंवक मनु सभी (जीि और
वनजीि) का वनमाष णकिाष और उसका वनय णकिाष है मानि संसाधन के मानकीकरण के बाद सभी विर्य
आसानी से िশ अथाष ि् वि रीय गुणि ा की ओर बढ़ जायेगी क्योंवक मानि संसाधन के मानक में सभी ि ों के
मूि वस ा का समािेर्श होगा
ििषमान समय में र्श - “वनमाष ण” भूमਔिीय रुप से पररविि हो िुका है इसविए हमें अपना िশ
मनु के वनमाष ण के विए वनधाष ररि करना िावहए और दू सरी िरफ वििादमुि, , प्रकावर्शि िथा ििषमान
सरकारी प्रवक्रया के अनुसार मानक प्रवक्रया उपि है जैसा वक हम सभी जानिे हैं वक मानक हमेर्शा स का
सािषजवनक प्रमावणि विर्य होिा है न वक वििारों का म्मिगि प्रमावणि विर्य अथाष ि् प्र ुि मानक विवभ
विर्यों जैसे-आ ा , वि৯ान, िकनीकी, समावजक, नीविक, सै ाम्म क, राजनीविक इ ावद के ापक समथषन के
साथ होगा “उपयोग के विए िैयार” िथा “प्रवक्रया के विए िैयार” के आधार पर प्र ुि मानि के वि रीय
वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class
Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousnesas) प्रणािी
आवि ृ ि है वजसमें स ूणष ि सहभावगिा (Total System Involvement-TSI) है और वि मानक र्शू : मन
की गुणि ा का वि मानक िृंखिा (WS-0 : World Standard of Mind Series) समावहि है जो वि मानि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 141


वनमाष ण प्रवक्रया की िकनीकी और मानि संसाधन की गुणि ा का वि मानक है जैसे -औ ोवगक क्षेत्र में इ ी০ूट्
आफ ा में ीने , जापान ारा उ ादों के वि रीय वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए उ ाद वनमाष ण
िकनीकी ड ू0 सी0 एम0-ट्ी0 पी0 एम0-5 एस (WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing - Total
Productive Maintenance -Siri (छूँ ट्ाई), Seton (सु िम्म थि), Sesaso ( ৢिा), Siketsu (अৢा र),
Shituke (अनुर्शासन) प्रणािी संिाविि है वजसमें स ूणष कमषिारी सहभावगिा (Total Employees
Involvement) है ) का प्रयोग उ ोगों में वि रीय वनमाष ण प्रवक्रया के विए होिा है और आई.एस.ओ.-
9000 (ISO-9000) िथा आई.एस.ओ.-14000 (ISO-14000) है
युग के अनुसार स ीकरण का मागष उपि कराना ई र का किष है आवििों पर स ीकरण का
मागष प्रभाविि करना अवभभािक का किष है और स ीकरण के मागष के अनुसार जीना आवििों का किष है
जैसा वक हम सभी जानिे है वक अवभभािक, आवििों के समझने और समथषन की प्रविक्षा नहीं करिे अवभभािक
यवद वकसी विर्य को आि क समझिे हैं िब केिि र्शम्मि और र्शीघ्रिा से प्रभािी बनाना अम्म म मागष होिा है
वि के बৡों के विए यह अवधकार है वक पूणष ৯ान के ारा पूणष मानि अथाष ि् वि मानि के रुप में बनना हम सभी
वि के नागररक सभी र के अवभभािक जैसे-महासविि सं युि रा र संघ, रा र ों के रा र पवि-प्रधानमंत्री, धमष,
समाज, राजनीवि, उ ोग, वर्शक्षा, प्रब , पत्रकाररिा इ ावद ारा अ समाना र आि क िশ के साथ इसे
जीिन का मुূ और मूि िশ वनधाष ररि कर प्रभािी बनाने की आर्शा करिे हैं क्योंवक िশ वनधाष रण िि का
सूयष नये सह ाम्म के साथ डूब िुका है और कायष योजना का सूयष उग िुका है इसविए धरिी को गष बनाने
का अम्म म मागष वसफष किष है और रहने िािे वसफष स -वस ा से युि संयुिमन आधाररि मानि है , न वक
संयुिमन या म्मिगिमन से युिमानि
आवि ार विर्य “ म्मिगि मन और सं युिमन का वि मानक और पू णषमानि वनमाष ण की िकनीकी
है वजसे धमष क्षेत्र से कमषिेद: प्रथम, अम्म म िथा पंिमिे दीय िृंखिा िथा र्शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की गुणि ा का
वि मानक िृंखिा िथा WCM-TLM-SHYAM.C िकनीकी कहिे है स ूणष आवि ार सािषभौम स -वस ा
अथाष ि स ूणष ब्र ाਔ में ा अट्िनीय, अपररििष नीय, र्शा ि ि सनािन वनयम पर आधाररि है , न वक मानिीय
वििार या मि पर आधाररि ” स ूणष ब्र ाਔ में ा एक ही स -वस ा ारा म्मिगि ि सं युि मन को
एकमुखी कर सिोৡ, मूि और अम्म म र पर थावपि करने के विए र्शू पर अम्म म आवि ार WS-0 िृंखिा
की वन विम्मखि पाूँ ि र्शाखाएूँ है
1. ड ू.एस. (WS)-0 : वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-000 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानि (सूक्ष्म िथा थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
5. ड ू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना थि का वि मानक
मानक का अथष है -”िह सिषमा पैमाना, वजससे हम उस विर्य का मू ां कन करिे हैं वजस विर्य
का िह पैमाना होिा है “ इस प्रकार मन की गुणि ा का मानक म्मि िथा संयुि म्मि (अथाष ि सं था, संघ,
सरकार इ ावद) के मू ाकंन का पैमाना है िूूँवक आवि ार का विर्य सिष ापी ब्र ाਔीय वनयम पर आधाररि
है इसविए िह प्र ेक विर्यों से स म्म ि है वजसकी उपयोवगिा प्र ेक विर्य के स रूप को जानने में है िूूँवक
मानि कमष करिे -करिे ৯ान प्रा करिे हुये प्रकृवि के वक्रयाकिापों को धीरे -धीरे अपने अधीन करने की ओर
अग्रसर है इसविए पूणषिः प्रकृवि के पद पर बैठने के विए प्रकृवि ारा धारण की गई स ुविि कायषप्रणािी को
मानि ारा अपनाना ही होगा अ था िह स ुविि कायष न कर अ ि था उ कर दे गा यह िैसे ही है जैसे
वकसी कमषिारी को प्रब क (मैंनेजर) के पद पर बैठा वदया जाये िो स ुविि कायष संिािन के विए प्रब क की
स ुविि कायषप्रणािी को उसे अपनाना ही होगा अ था िह स ुविि कायष न कर अ ि था उ कर दे गा
आवि ार की उपयोवगिा ापक होिे हुये भी मूि रूप से म्मि र से वि र िक के मन और संयुि मन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 142


के प्रब को ि करना एिम् एक कमष৯ान ारा िृंखिा ब करना है वजससे स ूणष र्शम्मि एक मुखी हो वि
विकास की वदर्शा में केम्म ि हो जाये पररणाम रूप एक दू सरे को विकास की ओर विकास करािे हुये यं को
भी विकास करने के विए पूणष ि िा प्रा हो जायेगी स ूणष वक्रयाकिापों को संिाविि करने िािे मूि दो
किाष -मानि (मन) और प्रकृवि (वि मन) दोनों का कमष৯ान एक होना आि क है प्रकृवि (वि मन) िो पूणष धारण
कर सफििापूिषक कायष कर ही रही है मानि जावि में जो भी सफििा प्रा कर रहे हैं िे अ৯ानिा में इसके
आं वर्शक धारण में िथा जो असफििा प्रा कर रहे हैं , िे पूणषिः धारण से युि है इसी कमष৯ान से प्रकृवि, मानि
और संयुि मन प्रभाविि और संिाविि है वकसी मानि का कमषक्षेत्र स ूणष ब्र ाਔ हो सकिा है और वकसी का
उसके र रूप में छोट्ा यहाूँ िक वक वसफष यं म्मि का अपना र पर ु कमष৯ान िो सभी का एक ही होगा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 143


वि ापी र्ापना का मािण

मन (मानि संसाधन) के अ राष र ीय/वि मानक िृंखिा के वि ापी थापना के वन विम्मखि


र्शासवनक प्रवक्रया ारा मागष है
1. जनता ारा - जनिा ि जन संगठन जनवहि के विए सिोৡ ायािय में यह याविका दायर की जा सकिी
है वक सभी प्रकार के संगठन जैसे- राजनीविक दि, औ ोवगक समूह, वर्शक्षण समूह जनिा को यह बिायें
वक िह वकस प्रकार के मन का वनमाष ण कर रहा है िथा उसका मानक क्या है ?
2. भारत सरकार ारा - भारि सरकार इस िृंखिा को थावपि करने के विए संसद में प्र ाि प्र ुि कर
अपने सं थान भारिीय मानक ूरो (BIS) के मा म से समकक्ष िृंखिा थावपि कर वि ापी थापना के
विए अ राष र ीय मानकीकरण संगठन (ISO) के समक्ष प्र ुि कर सकिा है साथ ही संयुि रा र संघ
(UNO) में भी प्र ुि कर संयुि रा र संघ के पुनषगठन ि पूणष िोकिंत्र की प्राम्म के विए मागष वदखा सकिा
है
3. राजनीवतक दल ारा - भारि का कोई एक रा र ीय राजनीविक दि वि राजनीविक पाट्ी संघ (WPPO)
का गठन कर प्र ेक दे र्श से एक राजनीविक दि को संघ में साथ िेिे हुए संयुि रा र संघ पर थापना के
विए दबाि बना सकिा है
4. सर्ुिंक्त रा र सिंघ (UNO) ारा - संयुि रा र संघ सीधे इस मानक िृंखिा को थापना के विए अपने
सद दे र्शो के महासभा के समक्ष प्र ुि कर अ राष र ीय मानकीकरण संगठन ि वि ापार संगठन के
मा म से सभी दे र्शों में थावपि करने के विए उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 ि
ISO-14000 िृंखिा का वि ापी थापना हो रहा है
5. अ राण र ीर् मानकीकरर् सिंिठन (ISO) ारा - अ राष र ीय मानकीकरण संगठन सीधे इस िृंखिा को
थावपि कर सभी दे र्शों के विए संयुि रा र संघ ि वि ापार संगठन के मा म से सभी दे र्शों में थावपि
करने के विए उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 या ISO-14000 िृंखिा का
वि ापी थापना हो रहा है

मानि एिं संयुि मानि (सं गठन, सं था, ससंद, सरकार इ ावद) ारा उ ावदि उ ादों को धीरे -धीरे
िैव क र पर मानकीकरण हो रहा है ऐसे में सं युि रा र संघ को प्रब और वक्रयाकिाप का िैव क र पर
मानकीकरण करना िावहए वजस प्रकार औ ोवगक क्षे त्र अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन (International
Standardisation Organisation-ISO) ारा संयुि मन (उ ोग, सं थान, उ ाद इ ावद) को उ ाद, सं था,
पयाष िरण की गुणि ा के विए ISO प्रमाणपत्र जैसे- ISO-9000, ISO-14000 िृं खिा इ ावद प्रदान वकये जािे है
उसी प्रकार सं युि रा र सं घ को नये अवभकरण वि मानकीकरण सं गठन (World Standardisation
Organisation-WSO) बनाकर या अन्र्िरा र ीय मानकीकरण सं गठन को अपने अधीन िेकर ISO-0/WSO-0 का
प्रमाण पत्र यो৓ म्मि और सं था को दे ना िावहए जो गुणि ा मानक के अनुरूप हों भारि को यही कायष
भारिीय मानक ूरो (Bureau of Indiand Standard-BIS) के ारा IS-0 िृंखिा ारा करना िावहए भारि को
यह कायष रा र ीय वर्शक्षा प्रणािी (National Education System-NES) ि वि को यह कायष वि वर्शक्षा प्रणािी
(World Education System-WES) ारा करना िावहए

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 144


नेतृ कताणओ िं के स न्त त विचार

“यवद हम संसार का मागष ग्रहण करें गे और संसार को और अवधक विभावजि करें गे िो र्शाम्म ,
सवह ुिा और ि िा के अपने उ े में सफि नहीं हो सकिे यवद हम इस यु -विवक्ष दु वनयाूँ को र्शाम्म
और स का प्रकार्श वदखाएं िो स ि है वक हम सं सार में कोई अৢा पररििष न कर सकें िोकि से मेरा
मििब सम ाओं को र्शाम्म पूिषक हि करने से है अगर हम सम ाओं को र्शाम्म पूिषक हि नहीं कर पािे िो
इसका मििब है वक िोकि को अपनाने में हम असफि रहें हैं ” - पिं0 जिाहर लाल नेहरू

हम अपनी योजनाओं को सवक्रय रुप से वक्रयाम्म ि करें , इसके विए मानकों का होना अ
आि क है िथा यह जरुरी है वक मानकों के वनधाष रण ि पािन हे िु प्रय र्शीि रहें
साभार - भारिीय मानक ूरो, त्रैमावसकी- ”मानक दू ि“, िर्ष-19, अंक-1, 1999
-पिं0 जिाहर लाल नेहरु

रा र के आधुवनकीकरण के विए मानकीकरण एिं गुणिा वनय ण अवनिायष है ये उ ाद को उसकी


सामग्री और मानिीय साधनों के पूणष उपभोग में सहायिा करिे हैं उपभोिा का बिाि करिे हैं और आं िररक
िहार िथा वनयाष ि का र ऊूँिा उठािे हैं इस प्रकार से ये आवथषक विकास में भागीदार बनिे हैं
साभार -भारिीय मानक ू रो, त्रैमावसकी- ”मानक दू ि“, िर्ष -19, अंक-1, 1999
-इन्त रा िााँधी

यह समय की माूँ ग है वक जीिन के सभी क्षेत्रों में गुणिा के प्रवि रा र ीय प्रविब िा हो हमारी सं िुव
वकसी भी प्रकार के उ ादन से नहीं अवपिु हमारे ारा उ ावदि उਚृ ि ुओं और दी जाने िािी उਚृ सेिाओं
से हो साभार - भारिीय मानक ूरो, त्रैमावसकी- ”मानक दू ि“, िर्ष-20, अंक-1-2, 2000
-राजीि िााँधी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 145


वकसी भी समाज का मानकीकरण प वि, इसे सृवजि करने िािे समाज से न िो बेहिर होगी और न
ही बदिर इसकी प्रथवमकिाएं , समाज के िশ हैं और इसके मू समाज के मू हैं
साभार -भारिीय मानक ू रो, त्रैमावसकी- ”मानक दू ि“,िर्ष-20, अंक- 1-2, 2000
-ड ू0.टी.कैबेनो

माचण, 1997 ई0
भारि, सं युि रा र सं घ के पु नगषठन में अपना योगदान दे -कौिी अ ान

बृह वतिार, 7 वसत र, 2000 ई0


.......... िेवकन भू मਔिीय वक्रया का प्रार कही ं वनवमष ि हो िुका है और यवद सं युि रा र संघ में नही ं
िो कहाूँ ? ......... मैं जानिा हूँ यं की एक घोर्णा कम मह रखिी है पर ु ढ़ प्रवि৯ा युि एक घोर्णा और
यथाथष िশ, सभी रा र ों के ने िाओं ारा वनव ि रुप से ीकारने यो৓, अपने स ाधारी की कुर्शििा का वनणष य के
विए एक पै माने के रुप में वि के म्मियों के विए अवि मह का हो सकिा है ........... और मैं आर्शा करिा हूँ
वक यह कैसे हुआ? दे खने के विए स ूणष वि पीछे होगा “
साभार-द ट्ाइ आफ इम्मਔया, नई वद ी, वद0 7 वसि र, 2000
- कौिी अ ान
https://www.nytimes.com/2000/09/05/opinion/IHT-now-lets-set-a-new-course-for-the-world-
no-less.html

शवनिार, 11 अप्रैल, 1998ई0


कुछ िोग कहिे हैं वक हमारी सरकार भूमਔिीकरण के म्मखिाफ है , िेवकन मैं आपको वि ास
वदिाना िाहिा हूँ वक मैं गीिा के संदेर्श को सारे भू मਔि में प्रसाररि करने का वहमायिी हूँ (वद ी के एक
सािषजवनक सभा में)
साभार - आज, िाराणसी, वद0-11-4-1998
-अटल वबहारी िाजपेर्ी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 146


सोमिार, 8 नि र, 1999 ई0
वि का रूपा रण िभी स ि है जब सभी रा र मान िें वक मानििा के सामने एक मात्र विक
र्शाम्म , पर र समभाि, प्रे म और एकजुट्िा है भारिीय धमों के प्रविवनवधयों से वमत्रिि् सूत्रपाि होगा िीसरी
सह ाम्म में एवर्शयाई भूवम पर ईसाइयि की जड़ें मजबूि होंगी इस सह ाम्म को मनाने का अৢा िरीका िही
होगा वक हम धमष के प्रकार्श की ओर अग्रसर हों और समाज के प्र ेक र पर ाय और समानिा के बहाि के
विए प्रयासरि हां ेे हम सबको वि का भवि सु रवक्षि रखने और उसे समृ करने के विए एकजुट् होना
िावहए वि৯ान और िकनीकी के क्षेत्र में प्रगवि के साथ-साथ आ ाम्म क उ वि भी उिनी ही आि क है धमष
को कदावप ट्कराि का बहाना नहीं बनाना िावहए-भारि को आर्शीिाष द (भारि यात्रा पर)
साभार - अमर उजािा, इिाहाबाद, वद0 08-11-1999
-जान पाल, व तीर्

शवनिार, 18 वदस र, 1999 ई0


दार्शषवनक आधार पर ििाष करने से ही अिगाि बढ़िा है जब िक ािहाररक रूप में धावमषकिा के
आधार पर वििारों का सामंज नहीं थावपि होगा, िब िक हम ऊपर नहीं उठ सकिे दार्शषवनक व से धमष में
अ र होिा है िेवकन धावमषक व से नहीं नई सदी में कायों को संपावदि करने िािे आप (नये पीढ़ी से) ही है ,
पुरानी पीढ़ी आपके पीछे है िेवकन सारा दावय आप के ऊपर ही है इसविए पहिे अৢी िरह से वर्शक्षा ग्रहण
करें (िाराणसी यात्रा में) साभार - अमर उजािा, इिाहाबाद वद0 18-12-1999
-दलाई लामा
जनिरी, 2011 ई0
पव म जगि ने भौविक जगि की सुख-सुविधाओं के विए वि को बहुि कुछ वदया है अब हमारी
बारी है उ ें इसके एिज में कुछ िुकाने का समय है हम उ ें र्शाम्म ि जीिन के िশ बारे में ৯ान दें र्शू
आ साि् करने से बोवधस की प्राम्म स ि भारि में आ ाम्म किा का बोिबािा हजारों सािों से है इसके
बािजूद भी यहाूँ वकसी भी धमष को छु ये वबना नैविक मू ों की वर्शक्षा धमष वनरपे क्ष रूप से विकवसि हुई है यह
आधुवनक युग में वि को भारि की सबसे बड़ी दे न है आज वि को ऐसे ही धमषवनरपेक्ष नैविक मू ों की वर्शक्षा
की सি जरूरि है बीसिी ं सदी रिपाि की सदी थी 21िीं सदी संिाद की सदी होनी िावहए इससे कई

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 147


सम ायें अपने आप समा हो जािी है दु वनया में ऐसे िोगों की सं ূा बहुि अवधक है जो वकसी धमष में वि ास
नहीं करिे हैं इसविए यह जरूरी है वक से क्यूिर इवथস (धमषवनरपेक्ष नै विकिा) को प्रमोट् (बढ़ाना) करें जो
िा विक और प्रैम्मक्टकि एप्रोि ( ािहाररक) पर आधाररि हो धावमषक कमषकाਔों के प्रवि वदखािे का कोई
मििब नहीं है आधुवनक वर्शक्षा ि था में मानि मू ों का अभाि है यह वसफष मम्म के विकास पर जोर दे िी
है हृदय की विर्शाििा पर नहीं करूणा िभी आये गी जब वदि बड़ा होगा दु वनया के कई दे र्शों ने इस पर ान
वदया है कई वि वि ाियों में इस पर प्रोजेक्ट िि रहा है (स ूणाष न सं ृ ि वि वि ािय, िाराणसी में ”21िीं
सदी में वर्शक्षा“ विर्य पर बोििे हुये इस कायष क्रम में कें ीय वि िी अ৚यन वि वि ािय, सारनाथ, िाराणसी के
कुिपवि प िी गेर्शे निां ग समिेन, प िी प्रो.रामर्शंकर वत्रपाठी, महा ा गाूँ धी कार्शी वि ापीठ, िाराणसी के
कुिपवि प्रो. अिधराम, दीन दयाि उपा ाय वि वि ािय, गोरखपुर के पूिष कुिपवि प्रो. िेणी माधि र्शुल ,
स ूणाष न सं ृ ि वि वि ािय, िाराणसी के पूिष कुिपवि प्रो. अवभराज राजे वमि और ििषमान कुिपवि प्रो.
िी.कुट्ु र्शा ी, प्रवि कुिपवि प्रो.नरे दे ि पाਔे य, प्रो. रमेर्श कुमार व िेदी, प्रो. यदु नाथ दू बे इ ावद उपम्म थि
थे ) साभार - दै वनक जागरण ि वह दु ान, िाराणसी, वद0 15, 17 ि 18-01-2011
-दलाई लामा

माचण, 2000 ई0
वि को िोकि , भारि का उपहार; ৯ान और सू िना आधाररि सहयोग; भारि और अमेररका
वमिकर वि को नई वदर्शा दे सकिा है ; भारि यवद र्शू और दर्शमिि न वदया होिा िो क ूट्र वि बनाना
अस ि होिा; प्र ेक दे र्श कहिा है हम महान हैं पर ु कैसे? यह वस करना एक िुनौवि है इ ावद
(भारि यात्रा पर वद0 20-24 मािष ’ 2000 के समय िि )
-वबल न्ति न

शवनिार, 27 जनिरी, 2001 ई0


ैक होि (सिोৡ गुरू ाकर्षण की ब्र ाਔीय अवि सघन ि ु) के पी-ब्रे माडि में पी-ब्रेन, थान
के िीन आयामों और अ साि आयामों में िििी है वजनके बारे में हमें कुछ पिा नहीं िििा यवद हम सभी बिों
के एकीकरण का एक सािषभौम समीकरण विकवसि करें िो हम ई र के मम्म को जान जायेंगे क्योंवक हम
भवि के कायष का वनधाष रण कर सकेंगे, और यह मनु के मम्म के ारा सिोৡ अवि ार होगी एक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 148


प्रभािपरक वस ा को बहुि ৸ादा इसके र्शाम्म क अथष में ग्रहण करने से बिा जाना िावहए, दर्शषन र्शा के
महान पर रा का अ (बीसिी ं र्शिा ी के सबसे बड़े दार्शषवनक विट्गें ीन के कहे र्श - दर्शषनर्शा के विए
एक मात्र र्शेर् कायष - भार्ा का वि ेर्ण करना ही बिा है पर िि ) भारि यात्रा पर
साभार -रा र ीय सहारा, ह क्षे प, 27 जनिरी ‘2001
-प्रो0 ीिेन हावकिंि (”समर् का सिंवक्ष इवतहास“)

रवििार, 11 अि , 2002 ई0
वि का कोई भी धमष िभी आगे बढ़िा है जब िह अपने आप में निीनिा िािा है सनािन धमष नयी
बािों को अपने आप में पिाने की क्षमिा रखिा है
साभार - स ागष, िाराणसी, वद0 11 अग 2002
-श्ीमती शीला दीवक्षत

मिंिलिार, 9 नि र, 2010 ई0
एवर्शया अथिा पूरी दु वनया में भारि एक उभरिा हुआ दे र्श भर नहीं है , बम्म यह पहिे से उभर िुका
है और मेरा यह ढ़ वि ास है वक भारि और अमेररका के बीि स , जो साझा वहिों और मू ों से बंधे हैं , 21िीं
र्शिा ी की सिाष वधक वनणाष यक साझोदारीयों में से एक है मैं इसी साझेदारी के वनमाष ण के विए यहाूँ आया हूँ यह
िह सपना है वजसे हम वमिकर साकार कर सकिे हैं साझा भवि के प्रवि मेरे वि ास का आधार भारि के समृ
अिीि के प्रवि मेरे स ान पर आधाररि है भारि िह स िा है जो हजारों िर्ों से दु वनया की वदर्शा िय कर रही
है भारि ने मानि र्शरीर के रह ों से परदा उठाया यह कहना अविर्शयोम्मि न होगी वक हमारे आज के सूिना
युग की जड़ें भारिीय प्रयोगों से संब है , वजनमें र्शू की खोज र्शावमि है भारि ने न केिि हमारे वदमाग को
खोिा बम्म हमारे नैविक क ना को भी वि ाररि वकया मैं संयुि रा र सुरक्षा पररर्द् का पु नगषठन िाहूँ गा,
वजसमें भारि थायी सद के रूप में मौजूद रहे
वि में भारि सही थान हावसि कर रहा है , ऐसे में हमें दोनों दे र्शों की साझेदारी को इस सदी की
मह पूणष साझेदारी में पररििषन करने का ऐविहावसक अिसर वमिा है िूूँवक 21िीं सदी में ৯ान ही मुिा है , इसविए
हम छात्रों, कािेजों और वि वि ाियों में विवनमय को बढ़ािा दें गे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 149


ापक रूप में भारि और अमेररका एवर्शया में साझे दार के िौर पर काम कर सकिे हैं दवक्षण पूिष
एवर्शया में आपके सहयोवगयों की िरह हम भारि को िुक ई की नीवि िक सीवमि नहीं रखना िाहिे, बम्म हम
िाहिे हैं वक भारि पूिी एवर्शया में सवक्रय भूवमका वनभाए यह भारि की कहानी है यही अमेररका की भी कहानी
है वक मिभेदों के बािजूद िोग वमिजु ि कर काम कर सकिे हैं इस साझेदारी ने ही हमें िैव क वि में अद् भुि
थान प्रदान वकया है , हम ीकार सकिे हैं वक हम एक साथ वमिकर क्या हावसि कर सकिे हैं , ध िाद, जय
वह , भारि ि अमेररका के बीि साझेदारी हमेर्शा बनी रहे “ (भारि यात्रा पर भारिीय संसद के सयुि सत्र में
स ोधन का अंर्श)
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 9 नि र 2010
-बराक ओबामा
बुधिार, 28 जनिरी 2015 ई0
सौ से ৸ादा साि पहिे अमेररका ने भारि के बेट्े ामी वििेकान का ागि वकया था उ ोंने
भार्ण र्शुरू करने से पहिे स ोवधि वकया था - मेरे ारे अमेररकी भाइयों और बहनों आज मैं कहिा हूँ - मेरे
ारे भारिीय भाइयों और बहनों गिष है वक अमेररका में 30 िाख भारिीय हैं जो हमें जोड़े रखिे हैं हमारी दो ी
सहज है हम आगे भी हर क्षेत्र में एक-दू सरे के साथ बढ़िे रहें गे हम भारि की ৢ ऊजाष की आि किाओं
को पूरा करने के मह ाकां क्षी िশों का ागि करिे हैं और इसमें मदद करने के विए िैयार हैं भारि ापक
विविधिा के साथ अपने िोकि को मजबूिी से आगे बढ़ािा है िो यह दु वनया के विए एक उदाहरण होगा भारि
िभी सफि होगा जब िह धावमषक आधार पर बूँट्ेगा नहीं धमष का गिि इ ेमाि नहीं होना िावहए हमें समाज
को बाूँ ट्ने िािे ि ों से सािधान रहना होगा भारिीय भाइयों और बहनों, हम परफेक्ट दे र्श नहीं हैं हमारे सामने
कई िुनौवियाूँ हैं हममे कई समानिाएूँ हैं हम क नार्शीि और जुझारू हैं हम सब एक ही बवगया के खुबसूरि
फूि हैं अमेररका को भारि पर भरोसा है हम आपके सपने साकार करने में आपके साथ हैं आपका पाट्ष नर होने
पर हमें गिष है , जय वह (भारि के गणि वदिस पर मुূ अविवथ के रूप में भारि यात्रा पर विवभ कायषक्रमों
में ि िि ों का अंर्श) साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 26-28 जनिरी 2015
-बराक ओबामा

रवििार, 26 वदस र, 2010 ई0

िैवदक काि से भारि के ৯ान-वि৯ान एिं स -अवहं सा के वस ा ों का पूरा वि िोहा मानिा आ रहा
है ििषमान में उৡ कोवट् के डाक्टर, इं वजवनयर और सूिना वि৯ान के विर्शेर्৯ पू रे वि में अपनी प्रविभा के दम पर
छाये हुये हैं आवथषक महार्शम्मि के रूप में भारि की पहिान बन रही है इ ीं खूवबयों के बूिे भारि और सनािन
धमष वफर से वि गुरू की पदिी हावसि करे गा (गाूँ धी वि ा सं थान, िाराणसी में)
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 26 वदस र, 2010
-विरधर मालिीर्

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 150


शवनिार, 17 मई 2014 ई0
कार्शी के रा र गुरू बने वबना भारि जगि गुरू नही ं बन सकिा दे र्श अिीि की िरह आ ाम्म क
ऊूँिाई पर पहुूँ िेगा िो िः आवथषक िैभि प्रा हो जायेगा इसी खावसयि की िजह से इविहास में कभी भारि
सोने की विवड़या थी “ (िाराणसी संसदीय क्षेत्र से िुने गये िी नरे मोदी, ििषमान प्रधानमंत्री (उस समय भािी) ने
िाराणसी में बाबा वि नाथ के पूजन के उपरा ि स वििार)
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 18 मई 2014
“ ामी वििेकान एक महान दू रदर्शी थे वज ोंने जगद् गुरू भारि का सपना दे खा था”
साभार - दै वनक जागरण ि कार्शी िािाष , िाराणसी सं रण, वद0 12-13 जनिरी, 2015

“युिाओं वि को एक करो” (“मन की बाि” रे वडयो कायषक्रम ारा िी बराक ओबामा के साथ)
साभार - दै वनक जागरण ि कार्शी िािाष , िाराणसी सं रण, वद0 28 जनिरी, 2015
- श्ी नरे मोदी, प्रधानमिं त्री, भारत

सोमिार, 12 जनिरी 2015 ई0


भारि के पहिे ৕ोबि यूथ थे ामी वििेकान
साभार - दै वनक जागरण ि कार्शी िािाष , िाराणसी सं रण, वद0 12-13 जनिरी, 2015
- श्ी राजनार् वसिंह, िृहमिंत्री, भारत

ररजिष बैंक से दस गुना वििार धन दे गये वििेकान ”


( ामी वििेकान के वर्शकागो िकृििा के 122 िर्षगाूँ ठ पर सन् 2015 में अिीगढ़ में)
- श्ी राम नाइक, रा৸पाल, उ र प्रदे श, भारत

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 151


सोमिार, 2 माचण, 2015 ई0
भारि पूरी दु वनया को र्शाम्म की राह वदखाने में संक्षम है र्श वि ंर्शकारी होिा है िो र्शा पर्शुिा
से मानििािाद की ओर िे जािा है आज आि किा केिि वर्शवक्षि होने की नहीं बम्म सुवर्शवक्षि हाने की है
केिि भौविक विकास को सिां वगण विकास नहीं कहा जा सकिा भारि की प्रकृवि ि यहाूँ के ৯ान के खजाने को
ढूढ़ने में पूरी दु वनया िगी है हमसे दु वनयाूँ ने बहुि कुछ वसखा है आज भी उसे र्शाम्म का रा ा भारि ही वदखा
सकिा है
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 2 मािष, 2015
-श्ीमती प्रवतभा पावटल

(उपरोक्त सभी नेतृ कताणओ िं के क्त विचार पर


व करर् के वलए ”वि शा ” अ ार् - पााँच दे खें)

वकसी दे र्श का संविधान, उस दे र्श के ावभमान का र्शा िब िक नहीं हो सकिा जब िक उस दे र्श


की मूि भािना का वर्शक्षा पाਉक्रम उसका अंग न हो इस प्रकार भारि दे र्श का संविधान भारि दे र्श का र्शा
नहीं है संविधान को भारि का र्शा बनाने के विए भारि की मूि भािना के अनुरूप नागररक वनमाष ण के वर्शक्षा
पाਉक्रम को सं विधान के अं ग के रूप में र्शावमि करना होगा जबवक रा र ीय संविधान और रा र ीय र्शा के विए
हमें वि के र पर दे खना होगा क्योंवक दे र्श िो अने क हैं रा र केिि एक वि है , यह धरिी है , यह पृ ी है भारि
को वि गुरू बनने का अम्म म रा ा यह है वक िह अपने संविधान को िैव क र पर वििार कर उसमें वि
वर्शक्षा पाਉक्रम को र्शावमि करे यह कायष उसी वदर्शा की ओर एक पहि है , एक मागष है और उस उ ीद का
एक हि है रा र ीयिा की पररभार्ा ि नागररक किष के वनधाष रण का मागष है वजस पर वििार करने का मागष खुिा
हुआ है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 152


भारि वि गुरू कभी हुआ करिा था िेवकन अब नहीं है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है वक भारि
िैव क वस ा ों से प्रभाविि है भारि उस वदन ििषमान युग में पुनः वि गुरू बन जायेगा जब िह अपने सािषभौम
वस ा ों से वि को प्रभाविि ि संिाविि करने िगेगा कार्शी-स कार्शी क्षेत्र इस काि में मिों (िोट्ों) से
नहीं बम्म वर्शि-ि के र्शा से वकसी का हो सकिा है सािषभौम स - आ ि के आवि ार से भारि वि
गुरू िो है ही पर ु काि में वि गुरू बनने के विए सािषभौम स -वस ा िावहए वजससे वि संविधान ि
िोकि को मागषदर्शषन वमि सके वर्शक्षा ारा मानि मन को स से जोड़ने, कार्शी को रा र गुरू और भारि को
जगि गुरू बनाने और ৯ान को सबके ार पर पहुूँ िाने का कायष आप सभी की इৢानुसार प्रार वकया जा रहा है
आपने कहा हमने र्शुरू वकया
पी.एम. बना लो र्ा सी.एम र्ा डी.एम,
वशक्षा पाਉक्रम कैसे बनाओिे ?
नािररक को पूर्ण ৯ान कैसे वदलाओिे ?
रा र को एक झਔे की तरह,
एक रा र ीर् शा कैसे वदलाओिे ?
र्े पी.एम. सी.एम र्ा डी.एम नही िं करते,
रा र को एक दाशणवनक कैसे वदलाओिे ?
ितणमान भारत को जितिुरू कैसे बनाओिे ?
सरकार का तो मानकीकरर् (ISO-9000) करा लोिे ,
नािररक का मानक कहााँ से लाओिे ?
सोर्े को तो जिा लोिे,
मुदों में प्रार् कैसे डालोिे?
िोट से तो स ा पा लोिे,
नािररक में रा र ीर् सोच कैसे उपजाओिे ?
िेस बुक पर होकर भी पढ़ते नही िं सब,
भारत को महान कैसे बनाओिे ?

वनर्णर् आपके पास, एकता का प्रर्ास र्ा अनेकता का विकास


आ र्ा कही िं भी लिा लो ले वकन क्षमता से अवधक उ ीद मत करो
मानने से ि ु में िु र् नही िं आते ले वकन ापार विकवसत हो जाता है

-लि कुश वसिंह ”वि मानि“

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 153


वि राजनीवतक पाटी सिंघ
(World Political Party Organisation - WPPO)

सिं र्ापक एििं सद


वि राजनीविक पाट्ी संघ का गठन भारि के वकसी एक रा र ीय राजनीविक पाट्ी ारा वकया जायेगा
भारि का यह पाट्ी ही वि राजनीविक पाट्ी संघ का सं थापक सद कहिायेगा संघ में प्र ेक िोकिंत्र
आधाररि दे र्श से एक राजनीविक पाट्ी को सद बनाया जायेगा

सिंघ का मुূालर्
वि राजनीविक पाट्ी संघ का मुূािय सं थापक सद के वनणयाष नुसार वकसी भी दे र्श में हो सकिा
है

सिंघ का झਔा एििं प्रतीक वच


संघ का झਔा सफेद रं ग का है वजसकी ि ाई ि िौड़ाई का अनुपाि 3:2 है उसके उपर मुविि प्रिीक
वि का रं ग िाि है

सिंघ की मुূ घोिंषर्ा


संघ का प्र ेक सद अपने -अपने दे र्श में वन विम्मखि घोर्णा करे गा

”धमण वनरपेक्ष एििं सिणधमणसमभाि भारतीर् सिंविधान जो अ तः विकवसत होकर वि सिंविधान


का रुप लेिा के अनुरुप दे श की एकता एििं अखਔता सवहत वि -ब ु के वलए मेरी पाटी का वस ा
दाशणवनक-नैवतक उ ान आधाररत WS-0 श्ृिंखला अर्ाणत मानि मन के अ ः विषर्ोिं के वि मानक श्ृिंखला
अर्ाणत् विचार एििं सावह , विषर् एििं विशेष৯, ब्र ाਔ ि मानि ( र्ू ल एििं सूक्ष्म) के प्रब और
वक्रर्ाकलाप तर्ा उपासना र्ल के वि मानक पर आधाररत होिा वजससे प्र ेक न्तक्त ब्र ाਔीर्
विकास की वदशा में होकर कार्ण ि विकास कर सके पररर्ाम रुप शीघ्रताशीघ्र वििादमुक्त नीवत एििं
दू रिामी पररर्ाम के रुप में एक ৢ एििं नैवतक समाज सवहत मानिता आधाररत पूर्ण लोकत की नी िंि
रखते हुए उसे प्रा वकर्ा जा सके “

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 154


सिंघ की दशणन शा -सावह

वि -रा र ीय-जन एजेਔा सावह 2012+: संघ का आधार सावह िह है जो सभी मानि की मूि
आि किा है , जो सभी मानि में एक है िह है - कमष और उसे कािानुसार करने का ৯ान-कमष৯ान अ राष र ीय
मानकीकरण संगठन ारा िा विर्यों अथाष ि् उ ोंगों के उ ाद के वनमाष ण की अ राष र ीय गुणि ा की िृंखिा
ISO-9000 की भाूँ वि, मानि, समाज और संगठन ारा अ ः विर्य मानि मन के वनमाष ण की वि गुणि ा की
िृंखिा WSO/ISO-0 जो धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि नाम है अथाष ि् वििार एिं सावह , विर्य एिं विर्शेर्৯,
ब्र ाਔ ( थूि एिं सूक्ष्म) के प्रब और वक्रयाकिाप िथा उपासना थि के अ राष र ीय/वि मानक है वजसकी
उपयोवगिा वि र्शाम्म , वि एकिा, एिं वि म्म थरिा में होना है इसे उस उ े से स -िेिना की ओर बढ़िे वि
के सामने रखा जा रहा है वजसकी थापना यथार्शीघ्र होनी है संघ एका कमषिाद का समथषक है न वक
एका सं ृ वििाद का ििषमान िथा भवि के विए वि की इसकी उपयोवगिा और आि किा ही संघ का
साख है

भारत में सिंघ के सिं र्ापक पाटी को सिंघ के िठन की घोषर्ा से लाभ

िंत्रिा प्राम्म से पहिे भारिीय जनिा के समक्ष मात्र एक ही सािषजवनक मु ा था वजस पर सभी
भारिीय एक जुट् हुए थे िह था - ” िंत्रिा“ वजसे प्रा कर िेने के बाद सभी अपनी-अपनी दु वनया में संकुविि
हो गये पररणाम रुप ििषमान में कोई भी रा र ीय मु ा र्शेर् नहीं है ऐसी म्म थवि में वमर्शन की कायष योजना ारा
सं थापक राजनीविक पाट्ी रा र ीय र पर एक मु े पर एक जुट् करने का िाभ प्रा होगा साथ ही वि
राजनीविक पाट्ी संघ की घोर्णा से पूरे वि के समक्ष अपनी गुरुिा वस करने का िाभ वमिेगा भारि में इसका
सीधा प्रभाि अ राजनीविक दिों को मु ा विवहन कर दे ना होगा वजसका सीधा िाभ रा र ीय र पर सं थापक
राजनीविक दि को होगा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 155


रा र ीर् क्रान्त मोचाण
संघ का प्र ेक सद अपने -अपने दे र्श में ”रा र ीय क्राम्म मोिाष “ का गठन अपने दे र्श के राजनीविक
पाट्ीयों के साथ वमिकर करे गा जो संघ के वििार से पूणष रुप से सहमि होंगे मोिाष की क्राम्म के प्रवि वििार यह
है वक- ”राजनीविक, आवथषक ि सामावजक पररम्म थवि में उसकी थिा के विए पररििषन ही क्राम्म है , और यह
िभी मानी जायेगी जब उसके मू ों, मा िाओं, प वियों और स ों की जगह नये मू , मा िा, प वि और
स थावपि हों अथाष ि क्राम्म के विए ििषमान ि था की थिा के विए नयी ि था थावपि करनी होगी
यवद ि था पररििषन के आ ोिन में वििेक नहीं हो, केिि भािना हो िो िह आ ोिन वहं सक हो जािा है वहं सा
से कभी ि था नहीं बदििी, केिि स ा पर बैठने िािे िोग बदििे हैं वहं सा में वििेक नहीं उ ाद होिा है
उ ाद से वििोह होिा है क्राम्म नहीं क्राम्म में नयी ि था का दर्शषन - र्शा होिा है अथाष ि क्राम्म का िশ
होिा है और उस िশ के अनुरुप उसे प्रा करने की योजना होिी है दर्शषन के अभाि में क्राम्म का कोई िশ
नहीं होिा “
मोिाष वन प्रको के ारा अपने -अपने दे र्श की जनिा ि राजनीविक पाट्ी के क ाण के विए उनसे
स कष बनाये रखेगी
1. राजनैवतक सिंिठन प्रको : राजनैविक संगठन प्रको में मोिाष में र्शावमि होने िािे राजनीविक दिों के
रा र ीय अ क्ष होंगे जो सद रा र ीय अ क्ष मਔि कहे जायेंगे इसी प्रकार प्रदे र्श र पर सद प्रदे र्श
अ क्ष मਔि होंगे

2. राजनैवतक छात्र सिंिठन प्रको : राजनैविक छात्र संगठन प्रको में एक रा र ीय अ क्ष होंगे इसी प्रकार
प्रदे र्श एिं जनपद र पर भी एक अ क्ष होंगे

3. अराजनैवतक वकसान सिंिठन प्रको : अराजनैविक वकसान संगठन प्रको में एक रा र ीय अ क्ष होंगे
इसी प्रकार प्रदे र्श एिं जनपद र पर भी एक अ क्ष होंगे

4. अराजनैवतक बुन्त जीिी सिंिठन प्रको : अराजनैविक बुव जीिी संगठन प्रको में एक रा र ीय अ क्ष
होंगे इसी प्रकार प्रदे र्श एिं जनपद र पर भी एक अ क्ष होंगे

5. अराजनैवतक धावमणक सिंिठन प्रको : अराजनैविक धावमषक संगठन प्रको में प्र ेक धमष से एक धमषगुरु
होंगे जो सद रा र ीय अ क्ष मਔि कहे जायेंगे प्रदे र्श र पर इस प्रको में कोई प्राविधान नहीं होगा
धावमषक प्रको ारा जारी िि संयुि िि होगा

6. अराजनैवतक जनसिंिठन प्रको : अराजनैविक जनसंगठन प्रको जन आ ोिनों का एक मोिाष है


वजसमें र्शावमि होने िािे आ ोिनों के रा र ीय अ क्ष होंगे जो सद रा र ीय अ क्ष मਔि कहे जायेंगे
प्रदे र्श र पर आ ोिनों के अपने अपने प्रदे र्श अ क्ष होंगे ििषमान में वन विम्मखि दो आ ोिन
आि क है
अ.रा र ीय सहजीिन आ ोिन और
ब. राज-सु राज आ ोिन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 156


वि एकीकरर् आ ोलन (सै ान्त क)
वि एकीकरण (सै ाम्म क) का संिािक कोई भी इৢु क नेिा या छात्र नेिा हो सकिा है
वि एकीकरण (सै ाम्म क) का अथष यह नहीं है वक सभी दे र्शों का अम्म समा कर वदया जाये
बम्म वि र्शाम्म , एकिा, म्म थरिा ि विकास के विए सभी स दायों का मूि विर्य (साझा विर्य) ৯ान ि कमष
अथाष ि एका कमषिाद (न वक एका सं ृ वििाद) मन की गुणि ा का वि मानक की िृंखिा WS-0 पर
आधाररि एकीकरण है
ििषमान समय में प्र ेक म्मि के वक्रयाकिापों से वि ि था और उसके स ुिन पर प्रभाि पड़ने
िगा है जो वनर र बढ़िा ही जा रहा है यवद म्मि के अ र यह िेिना नहीं आिी िो संकुविि एिं विर्शेर्ीकृि
होकर संयुि रा र संघ के र्शाम्म , म्म थरिा, एकिा एिं विकास के कायषक्रमों को कभी भी प्रभािी नहीं होने दे गा
ऐसी म्म थवि में यह आि क हो गया है वक मानि मन को वि मन से जोड़ने के विए अ ः विर्यों वििार एिं
सावह , विर्य एिं विर्शेर्৯, ब्र ाਔ (अ एिं ) के प्रब और वक्रयाकिाप, मानि (अ एिं ) के
प्रब और वक्रयाकिाप िथा उपासना थि का अ राष र ीय/वि मानकीकरण वकया जाय वजससे म्मि का मन
उस उৡ र पर थावपि हो जाय जहाूँ से िह यं के प्र ेक वक्रयाकिापों को वि र पर पड़ने िािे प्रभाि से
जोड़कर दे खे और उसके अनुसार ही कमष कर सकें 21 िी ं सदी के विए यह आि क भी है िथा प्र ेक मानि
का यह मानिावधकार भी है वक उसे समाज, संगठन, सरकार एिं म्मि ारा पूणष वर्शक्षा प्रणािी प्रा हो िावक िह
पूणष और ापक मानि के रुप में वनवमषि हो यह सदी जो मानि की स िेिना आधाररि सदी है उसमें वि के
भवि के वनवि वनमाष िाओं को अपने आने िािी पीवढ़यों के विए ऐसी ि था दे ना उनका किष है वजस प्रकार से
एक मािा-वपिा का अपने बৡों के प्रवि किष होिा है
संयुि रा र संघ के एक अंग वि ापार संगठन (WTO) के अम्म में आ जाने से यह आि क हो
गया था वक मानि ारा उ ावदि उ ादनों का अ राष र ीय मानकीकरण हो पररणाम रुप अ राष र ीय
मानकीकरण संगठन (ISO) ने गुणि ा का अ राष र ीय मानक की िृंखिा ISO-9000 की थापना की और उन
उ ादक उ ोगों को प्रदान करने िगा जो उसके अनुरुप हैं इसी प्रकार दे र्शों के बीि िैिाररक आदान-प्रदान से
यह आि क हो गया है वक मानि, समाज, संगठन और सरकार ारा उ ावदि मानि मन का अ राष र ीय/वि
मानकीकरण हो इस प्रकार यह आि क हो गया है वक अ राष र ीय मानकीकरण संगठन (ISO) मन की गुणि ा
का अ राष र ीय मानक की िृंखिा WSO/ISO-0 की थापना करे िथा उस रा৸ और दे र्श को प्रदान करे जो इसके
अनुरुप हों अथाष ि् िहाूँ के मानि मन को वि मन के रुप में उ ादन प्रारम्भ वकया जा िुका हो वजससे संयुि रा र
संघ के उ े ों के भवि के प्रवि समथषक मानि का वनमाष ण होना प्रार हो जाये
यह एक ऐसा कायष है वजसके प्रवि आ ोिन का कोई औवि नहीं है क्योंवक यह भारि की वज ेदारी
और संयुि रा र संघ का उ े वजसे ेৢा से थावपि करना िावहए ऐसा न करना भारि िथा संयुि रा र संघ
के प्रवि अवि सनीयिा सवहि ऐसे गैर वज ेदार होने के अवधकारी भी होंगे जैसे कोई मािा-वपिा अपने स ान के
भवि को ही न करना िाहिा हो वफर भी भारि िथा संयुि रा र संघ िक इस आिाज को पहुूँ िाने के विए
आ ोिन आि क है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 157


महा ा िााँधी
(2 अक्टु बर, 1869 - 30 जनिरी, 1948)

पररचर्
बापू ि रा र वपिा की उपावधयों से स ावनि महा ा गाूँ धी 19िी ं र्शिा ी के ऐसे महापु रूर् हुए, वज ोंने
स और अंवहसा के र्श से, वजनके रा৸ में कभी सू याष नहीं होिा था, उस महार्शम्मिर्शािी अं ग्रेजी र्शासन को
भारि से खदे ड़ वदया उ ोंने स को ही ई र माना और कहा वक ई र ही स है
आव न, कृ पक्ष, ादर्शी, सं.1926 िद् नुसार 2 अक्टु बर, 1869 ई0 को मोहनदास करमि गाूँ धी ने
ज िेकर, गुजराि रा৸ के पोरब र की धरिी को ध वकया साि िर्ष की उम्र में उ ें पाठर्शािा भेजा गया
अपनी स वन ा से अ ापक को प्रभाविि वकया रामायण, महाभारि का प्रभाि बिपन से ही जीिन पर पड़ा
गीिा और नरसी मेहिा के पदों की जीिन पर गहरी छाप िग गई नरसी जी का “िै िजण िो िेणे कवहये जे पीड़
पराई जाणे रे ”, यह भजन जीिन में समा गया और वन प्राथषना का अं ग बन गया उनके वपिा करमि गाूँ धी मोध
समुदाय से स रखिे थे और अंग्रेजों के अधीन िािे भारि के कवठयािाड़ एजे ी में एक छोट्ी सी ररयासि
पोरब र प्रां ि के दीिान अथाष ि प्रधान मंत्री थे परनामी िै ि वह दू समुदाय की उनकी मािा पुििीबाई, करमि
की िैथी प ी थी ं उनकी पहिी िीन पव यां प्रसि के समय मर गई थी ं छोट्ी उम्र में ही क ुरबा गाूँ धी के साथ
इनका वििाह हो गया बिपन में पढ़िे समय, बुरी सं गि के कारण कुछ बुरी आदिें पड़ गई 19 िर्ष की उम्र में
बैरर र बनने के विए इं ৕ैਔ गये और माूँ से की हुई प्रवि৯ा के कारण सदै ि कुसंग से बिे रहे बैरर र बनने के
बाद भारि आये यहाूँ बैरर र ी नहीं ििी, िो दवक्षण अफ्ीका ििे गये कािे -गोरे के भेद से उनका वदि दहि गया
और अंग्रेजों के विरू आिाज उठाई एक मुकदमें की पैरिी में उनको बड़ी ূावि वमिी अफ्ीका से िौट्ने पर
मु ई के अपोिो ब रगाह पर कवठयािाड़ िेर्शभूर्ा में दे खिे ही असंূ िोगों ने ागि वकया गाूँ धी जी, गोखिे
के साथ पूना आये बाद में रे ि के िीसरे दजे में बैठकर सारे दे र्श का भ्रमण कर िोगों को पास से दे ख-समझा
वबहार रा৸ के ि ारन वजिे में नीि की खेिी करने िािे वकसानों को स ाग्रह की प्रेरणा दे कर
अंग्रेजों से मुम्मि वदिाई “जवियाूँ िािा बाग” के नृर्शंस ह ाकाਔ से गाूँ धी जी का हृदय िविि हो गया और स ूणष
दे र्श में असहयोग आ ोिन की योजना वक्रयाम्म ि करने का संक विया जैसे ही आ ोिन ने जोर पकड़ा,
अंग्रेज सरकार ने गाूँ धी जी को पकड़कर ब करने की ठानी और “यंग इम्मਔया” में प्रकावर्शि िेख के आधार पर
ब ी बनाकर “यरिदा” जेि भेज वदया गया स िादी, वन ि भाि के कारण अंग्रेजों के वदि में गाूँ धी के प्रवि
स ान बढ़ रहा था जेि के वनयमों का गाूँ धी जी पू रा पािन करिे थे िरखा कािकर, महान िेखकों के ग्र
पढ़कर अपना समय िीि करिे थे िे अपनी छोट्ी भूि को भी वहमािय जैसी भूि मानिे थे हररजन उ ार,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 158


सादा और िमपूणष नैविक जीिन, अपने दोर् दे खकर दू सरों को क्षमा करने और सेिा करने के वस ा को
अपनाया जीिन पयष राम-नाम के जापक रहे
1924 ई0 में वह दू -मुसिमानों के सा दावयक सं घर्ष से उ ें आ ररक पीड़ा हुई वद ी में इक्कीस
वदन का उपिास करना पड़ा वह दू -मुसिमानों की ओर से वमिकर रहने का आ ासन वमिने पर उपिास िोड़ा
िरखा और खादी आ ोिन की प्रेरणा दे कर दे र्शी- ाि न का रा ा वदखाया और विदे र्शी ि ों का बवह ार
कर होिी जिाई 12 मािष, 1930 में नमक कानून िोड़ने के विए दाਔी यात्रा कर िाखों िोगों को आ ोिन से
जोड़ा अ िः सफििा प्रा की ि न सरकार के गोिमेज पररर्द् के आमंत्रण पर गाूँ धीजी अपने फकीरी दे र्श में
गये पररर्द् की बैठक के बाद गाूँ धी जी सम्राट् जाजष से वमिे और भारि के विर्य में अपनी बाि कही
भारि िौट्कर आने पर मािूम हुआ वक िाइसराय इरविन के थान पर िाडष विविंगट्न की वनयुम्मि
हुई है , जो गाूँ धी विरोघी हैं उसने गाूँ धी-इरविन समझौिे को िोड़ने की प्रवक्रया प्रार कर दी और 4 फरिरी,
1932 को वगर ार कर यरिदा जेि भेज वदया व िीय वि यु की घोर्णा होने पर कां ग्रेस ने अंग्रेज सरकार को
सहायिा दे ना अ ीकार कर वदया उस समय िविषि वब्रट्ीर्श सरकार के प्रधानमंत्री थे िथा ि िा आ ोिन के
विरोधी थे जापान की बढ़िी र्शम्मि को दे खकर गाूँ धी जी ने स ाग्रह आ ोिन करने का वन य वकया वक भारि
ाधीन हो जािा है , िो र्शत्रु का खुिकर मुकाबिा करे गें उ ोंने िविषि के औपवनिेर्शक रा৸ के प्र ाि को
ठु करा वदया
8 अग , 1942 को “भारि छोड़ो आ ोिन” का वबगुि बजा वदया गया गाूँ धी जी को पकड़कर
आगाखाूँ महि में रखा गया महादे ि भाई दे साई ओर क ूरबा की मृ ु के प ाि् गाूँ धी जी एकाकी रह गये
ा वगरने िगा, िो सरकार ने 7 मई, 1944 को जेि से ररहा कर वदया सन् 1945 में वि यु समा हो गया
िविषि िुनाि में हार गया और उसके थान पर मजदू र नेिा िाडष एट्िी की सरकार बनी एट्िी सरकार ने भारि
को ाधीन करने का वन य कर विया था और उ ोंने अपनी पाविषयामे में घोर्णा की वक जून, 1948 को अंग्रेज
भारि छोड़ दे गें िाडष माउ बेट्न को भारि का िायसराय बनाकर भेजा गया िाडष माउ बेट्न ने मुम्म म िीग
के नेिा वज ां और कां ग्रेसी नेिाओं से बाििीि की वज ा पावक ान की बाि पर अवडग रहे ाधीनिा की व से
एक िर्ष पूिष 15 अग , 1947 को भारि को ि करने की बाि ीकार की गई गाूँ धी जी कां ग्रेसी नेिाओं के
बाि से सहमि नहीं थे दु ःखी मन से वनयवि का विधान मानकर गाूँ धी जी मौन हो गये 2 अक्टु बर को उनके ज
वदन रा र ीय पिष “गाूँ धी जयं िी” के नाम से मनाया जािा है और दु वनयाभर में इस वदन अिंराष र ीय अवहं सा वदिस के
नाम से मनाया जािा है
वह दु ान-पावक ान के बूँट्िारे ने वह दू -मुम्म म में पर र झगड़े की आग भड़का दी और खून से
दे र्श की धरिी िाि हो गई गाूँ धी जी प्राथषना को बहुि मह दे िे थे उ ें पक्का वि ास था वक प्राथषना और राम-
राम से बड़ी से बड़ी सम ा का समाधान वमि सकिा है र्शुक्रिार, 30 जनिरी, 1948 का िह कािा वदन आया
वबड़िा हाउस में प्राथषना सभा में उपम्म थि भीड़ गाूँ धी जी की प्रिीक्षा कर रही थी गाूँ धी जी मंि पर िढ़ ही रहे थे
वक भीड़ में से वनकि कर एक युिक ने उनके सीने पर वप ौि दाग दी “हे राम” के साथ गाूँ धी जी की ास
अंिररक्ष में वििीन हो गई और िे अिौवकक ৸ोवि का प्रकार्श विकीणष कर अन ৸ोवि में समा गये
िााँधी का वि ास
गाूँ धी का ज वह दू धमष में हुआ, उनके पूरे जीिन में अवधकिर वस ा ों की उ व वह दू से हुआ
साधारण वह दू की िरह िे सारे धमों को समान रूप से मानिे थे और सारे प्रयास जो उ ें धमष पररििषन के विए
कोवर्शर्श वकये जा रहें थे, उसे अ ीकार कर वदया िे ब्र ৯ान के जानकार थे और सभी प्रमुख धमों को
वि ारपूिषक पढ़िे थे उ ोंने कहा वक वह दू धमष के बारे में मैं वजिना जानिा हूँ यह मेरी आ ा को स ु करिी
है और सारी कवमयों को पू रा करिी है जब मुझे स े ह घेर िेिी है जब वनरार्शा मुझे घूरने िगिी है और जब मुझे
आर्शा की कोई वकरण नजर नहीं आिी है िब मैं भगि ीिा को पढ़ िेिा हूँ और िब मेरे मन को असीम र्शाम्म
वमििी है और िुर ही मेरे िेहरे से वनरार्शा के बादि छं ट् जािे हैं और मैं खुर्श हो जािा हूँ मेरा पूरा जीिन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 159


त्रासवदयों से भरा है और यवद िो ा क और अवमट् प्रभाि मुझ पर नहीं छोड़िा, मैं इसके विए भगि ीिा के
उपदे र्शों का ऋणी हूँ
िााँधी के ले खन
गाूँ धी जी एक सफि िेखक थे कई दर्शकों िक िे अनेक पत्रों का संपादन कर िुके थे वजसमें
गुजरािी, वह ी और अंग्रेजी में हररजन, इम्मਔयन ओवपवनयन और यंग इम्मਔया जब िे भारि आये िब उ ोंने
निजीिन नामक मावसक पवत्रका वनकािी बाद में निजीिन का प्रकार्शन वह ी में भी हुआ इसके अिािा उ ोंने
िगभग हर रोज म्मियों और समािार पत्रों को पत्र विखा गाूँ धी का पूरा कायष महा ा गाूँ धी के संविि िेख नाम
से 1960 में भारि सरकार ारा प्रकावर्शि वकया गया है यह िेखन िगभग 50 हजार पृ ों में समावि है और
िकरीबन 100 खਔों में प्रकावर्शि है सन् 2000 में गाूँ धी के पूरे कायों का सं र्शोवधि सं रण वििादों के घेरे में आ
गया क्योंवक गाूँ धी के अनु यावययों ने सरकार पर राजनीविक उ े ों के विए पररििषन र्शावमि करने का आरोप
िगाया
िााँधी के वस ा
स - गाूँ धी जी ने अपना जीिन स या सৡाई की ापक खोज में समवपषि कर वदया उ ोंने इस
िশ को प्रा करने के विए अपनी यं की गिवियों और खुद पर प्रयोग करिे हुए सीखने की कोवर्शर्श की
उ ोंने अपनी आ कथा को “द ोरी आफ माइ एकसपे ररमे਒ विथ ू थ” का नाम वदया गाूँ धी जी ने कहा वक
सबसे मह पूणष िड़ाई िड़ने के विए अपने दु ा ाओं, भय और असुरक्षा जैसे ि ों पर विजय पाना है गाूँ धी जी ने
अपने वििारों को सबसे पहिे उस समय संक्षेप में ि वकया जब उ ोंने कहा “भगिान ही स है ”, बाद में
उ ोंने अपने इस कथन को “स ही भगिान है ” में बदि वदया इस प्रकार, स में गाूँ धी के दर्शषन हैं -परमे र
अवहं सा - हािां वक गाूँ धी जी अवहं सा के वस ा के प्रििषक वि ु ि नहीं थे वफर भी इसे बड़े पै माने पर
राजनैविक क्षेत्र में प्रयोग करने िािे पहिे म्मि थे अवहं सा और प्रविकार का भारिीय धावमषक वििारों में एक
ि ा इविहास है और इसके वह दू , बौ , यहदी और ईसाई समुदाय में बहुि सी अिधारणाएं हैं गाूँ धी जी ने अपनी
आ कथा में अपने दर्शषन और जीिन के मागष का िणषन वकया है वजसमें विखा है - जब मैं वनरार्श होिा हूँ िब मैं
याद करिा हूँ वक हािाूँ वक इविहास स का मागष होिा है वक ु प्रेम इसे सदै ि जीि िेिा है यहाूँ अ ािारी और
ह ारे भी हुए हैं और कुछ समय के विए िे अपराजेय िगिे थे वक ु अंि में उनका पिन ही होिा है , इसका सदै ि
वििार करें
िााँधी के विचार
1. वि৯ान का यु वकसी म्मि को िानार्शाही, र्शु और सरििा की ओर िे जािा है अवहं सा का वि৯ान
अकेिे ही वकसी म्मि को र्शु िोकि के मागष की ओर िे जा सकिा है प्रेम पर आधाररि र्शम्मि सजा
के डर से उ र्शम्मि से हजार गुना अवधक और थायी होिी है यह कहना वन ा करने जैसा होगा वक
अवहं सा का अ ास केिि म्मिगि िौर पर वकया जा सकिा है और म्मििावदिा िािे दे र्श इसका
कभी भी अ ास नहीं कर सकिे हैं र्शु अराजकिा का वनकट्िम व कोण अवहं सा पर आधाररि
िोकि होगा स ूणष अवहं सा के आधार पर सं गवठि और ििने िािा कोई समाज र्शु अराजकिा
िािा समाज होगा

2. मैंने भी ीकार वकया वक एक अवहं सक रा৸ में भी पुविस बि की जरूरि अवनिायष हो सकिी है पुविस
रैं कों का गठन अवहं सा में वि ास रखने िािों से वकया जायेगा िोग उनकी हर स ि मदद करें गे और
आपसी सहयोग के मा म से िे वकसी भी उपिि का आसानी से समाना कर िेंगे िम और पूंजी िथा
हड़िािों के बीि वहं सक झगड़ें बहुि कम होंगे और वहसंक रा৸ों में िो बहुि कम होंगे क्योंवक अवहं सक
समाज की बाहुििा का प्रभाि समाज में प्रमुख ि ों का स ान करने के विए महान होगा इसी प्रकार
सा दावयक अ ि था के विए कोई जगह नहीं होगी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 160


3. आ ाम्म क और िहाररक र्शु िा बड़े पै माने पर ब्र ियष और िैरा৓िाद से जुदा होिा है गाूँ धी जी ने
ब्र ियष को भगिान के करीब आने और अपने को पहिानने का प्राथवमक आधार के रूप में दे खा था
अपनी आ कथा में िे बिपन की दु न क ुरबा के साथ अपनी कामेৢा और इष्र्या के संघर्ों को बिािे
हैं उ ोंने महसूस वकया वक यह उनका म्मिगि दावय है वक उ ें ब्र ियष रहना है िावक िे बजाय
हिस के प्रेम को वसख पायें गाूँ धी के विए ब्र ियष का अथष था- इम्म यों के अ गषि वििारों, र्श और कमष
पर वनयंत्रण
4. गाूँ धी जी का मानना था वक अगर एक म्मि समाज से िा में कायषरि है िो उसे साधारण जीिन की ओर ही
बढ़ना िावहए वजसे िे ब्र ियष के विए आि क मानिे हैं उनकी सादगी ने पव मी जीिन र्शैिी को ागने
पर मजबूर करने िगा और िे दवक्षण अफ्ीका में फैिने िगे थे इसे िे - खुद को र्शू के म्म थवि में िाना,
कहिे हैं वजसमें अनाि क खिष, साधारण जीिन र्शैिी को अपनाना और अपने ि यं धोना
आि क है अपने साधारण जीिन को दर्शाष ने के विए उ ोंने बाद में अपनी बाकी जीिन में धोिी पहनी
5. गाूँ धी स ाह में एक वदन मौन धारण करिे थे उनका मानना था वक बोिने के परहे ज से उ ें आ ररक
र्शाम्म वमििी है उन पर यह प्रभाि वह दू मौन वस ा का है िैसे वदनों में िे कागज पर विखकर दू सरों
के साथ स कष करिे थे 37 िर्ष की आयु से साढ़े िीन िर्ों िक गाूँ धी जी ने अखबारों को पढ़ने से इ ार
कर वदया वजसके जबाब में उनका कहना था वक जगि की आज जो म्म थर अि था है , उसने अपनी यं का
आ ररक अर्शाम्म की िु िना में अवधक भ्रवमि वकया है
6. वनयम के रूप में गाूँ धी विभाजन की अिधारणा के म्मखिाफ थे क्योंवक उनके धावमषक एकिा के व कोण के
प्रविकूि थी 6 अक्टु बर, 1946 में हररजन में उ ोंने भारि का विभाजन, पावक ान बनाने के विए, के बारे
में विखा- पावक ान की मां ग जैसा वक मु ीम िीग ारा प्र ुि वकया गया है , गैर इ ामी है और मैं इसे
पापयुि कहने से नहीं वहिकूूँगा इ ाम मानि जावि के भाईिारे ओर एकिा के विए खड़ा है , न वक
मानि पररिार के एक्य का अिरोध करने के विए इस िजह से जो यह िाहिे हैं वक भारि दो यु समूहों
में बदि जाये, िे भारि और इ ाम दोनों के दु न हैं िे मुझे ट्ु कड़ों में काट् सकिे हैं , पर मुझे उस िीज
के विए राजी नहीं कर सकिे वजसे मैं गिि समझिा हूँ
भारि के ि िा सं ग्राम में वबना र्श , और सुरक्षा के अवहं सा का स के बि पर िहाररक
जीिन में प्र क्ष करने िािा महा ा वजसने रामरा৸ का सपना दे खा था वजसे स ूणष वि स ान करिा है िथा
भारि में रा र वपिा के रुप में थावपि हैं इनके नाम पर समथष न कर िथा समथषन मां ग कर िोग ाथष वसम्म इिनी
आसानी से करिे आए हैं वक जनिा भी अब इन ावथषयों को पहिानने िगी है इनकी वदर्शा से र्शेर् कायष यह है वक
जो अवहं सा का नाम बेििे हैं िे जरा अपने सुरक्षा घेरे से बाहर वनकिकर अवहं सा का प्रदर्शषन करें िथा रामरा৸
अथाष ि् “परर्शुराम पर रा” की थापना करें

श्ी लि कुश वसिंह “वि मानि” ारा ीकरर्


सािषभौम आ ि से साक्षाਚार या अनुभि कर िेने के बाद कोई भी म्मि एक , अवहं सा और
स का ही समथषक और िहार करने िािा बन जािा है और यह िही समझ सकिा है वजसने सािष भौम
आ ि से साक्षाਚार या अनुभि वकया हो ििषमान समाज में सम ा है वक वबना ऊूँिाई (सािष भौम आ ि से
साक्षाਚार या अनुभि) पर पहुूँ िे ही म्मि ऐसे ऊूँिाई पर पहुूँ िे म्मि के बारे में अपनी राय/मि को ि करने
से िवनक भी नहीं वहिकिे िे ये नहीं समझिे वक वकसी पिषि की िोट्ी पर जाकर ही अवधकिम दे खा जा सकिा है
न वक पिषि की ििहट्ी में खड़े होकर
ई र के आठिें अििार भगिान िीकृ के वहसां क काि के उपरा अवहं सा का मागष का ही
विकास प्रार हुआ उनके बाद आये ई र के आठिें अििार भगिान बु ने उस अवहं सा के ही मागष को आगे
बढ़ाया पर ु उनके उपरा भी हजारों िर्ों िक वहं सक काि ही रहा वनराकार संविधान आधाररि िोकि के

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 161


आने के बाद भी वि ने वि यु िक को दे खा है िेवकन इिने यु के बाद अब िः ही संसार ने अवहं सा के
मागष को उविि ठहराया है उसी दौर में आपका (गाूँ धी जी) स -अवहं सा का सफि प्रयोग, उसी अवहं सा के मागष
को ही विकास की ओर गवि प्रदान वकया अब म्म थवि यह है वक जहाूँ िक हो सके मानि यु से बिना ही िाहिा
है और उसी ओर उसके विकास की गवि भी है
जो ऊूँिाई (सािषभौम आ ि से साक्षाਚार या अनुभि) पर पहुूँ ि जािा है , उसके स में आिायष
रजनीर्श “ओर्शो” की िाणी है - “कृ र्शाम्म िादी नहीं हैं , कृ यु िादी नहीं है असि में िाद का मििब ही
होिा है वक दो में से हम एक िुनिे है एक अ िादी है कृ कहिे हैं , र्शाम्म में र्शुभ फविि होिा हो िो ागि
है , यु में र्शुभ फविि होिा हो िो ागि है कृ जैसे म्मि की वफर जरुरि है जो कहे वक र्शुभ को भी
िड़ना िावहए, र्शुभ को भी िििार हाथ में िेने की वह ि िावहए वनव ि ही र्शुभ जब हाथ में िििार िेिा है , िो
वकसी का अर्शुभ नहीं होिा अर्शुभ हो नहीं सकिा क्योंवक िड़ने के विए कोई िड़ाई नहीं है िेवकन अर्शुभ जीि
न पाये इसविए िड़ाई है िो धीरे -धीरे दो वह ा दु वनयाूँ के बट् जायेंगे, ज ी ही जहाूँ एक वह ा भौविकिादी होगा
और एक वह ा िंत्रिा, िोकि , म्मि और जीिन के और मू ों के विए होगा िेवकन क्या ऐसे दू सरे र्शुभ के
िगष को कृ वमि सकिे है ? वमि सकिे हैं क्योंवक जब भी मनु की म्म थवियाूँ इस जगह आ जािी है जहाूँ वक
कुछ वनणाष यक घट्ना घट्ने को होिी है , िो हमारी म्म थवियाूँ उस िेिना को भी पुकार िेिी हैं , उस िेिना को भी
ज दे दे िी है िह म्मि भी ज जािा है इसविए मैं कहिा हूँ वक कृ का भवि के विए बहुि अथष है ”
“रामरा৸”, का प्रारूप “परर्शुराम पर रा” है ई र के साििें अििार भगिान िीराम ने ई र के छठें
अििार भगिान परर्शुराम ारा दी गई ि था का ही प्रसार वकये थे
छठें अितार भििान परशुराम ारा दी िई ि र्ा इस प्रकार र्ी-
1. प्रकृवि में ा िीन गुण- स , रज और िम के प्रधानिा के अनुसार मनु का िार िणों में वनधाष रण स गुण
प्रधान - ब्रा ण, रज गुण प्रधान- क्षवत्रय, रज एिं िम गुण प्रधान- िै , िम गुण प्रधान- र्शूि
2. गणरा৸ का र्शासक राजा होगा जो क्षवत्रय होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि जो रज गुण अथाष ि् कमष
अथाष ि् र्शम्मि प्रधान है
3. गणरा৸ में रा৸ सभा होगी वजसके अनेक सद होंगे जैसे - ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि के स , रज एिं
िम गुणों से युि विवभ ि ु हैं
4. राजा का वनणषय राजसभा का ही वनणषय है जैसे - ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि का वनणष य िहीं है जो स , रज
एिं िम गुणों का सम्म विि वनणषय होिा है
5. राजा का िुनाि जनिा करे क्योंवक िह अपने गणरा৸ में सिष ापी और जनिा का सम्म विि रुप है जैसे -
ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि सिष ापी है और िह स , रज एिं िम गुणों का सम्म विि रुप है
6. राजा और उसकी सभा रा৸ िादी न हो इसविए उस पर वनय ण के विए स गुण प्रधान ब्रा ण का वनय ण
होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि पर वनय ण के विए स गुण प्रधान आ ा का वनय ण होिा है
यह ि था जब िक वनराकार आधाररि िोकि में संविधान का रूप ग्राम से िेकर वि िक
नहीं होिा िब िक रामरा৸ नहीं बन सकिा ििष मान में ई र के अम्म म और दसिें अििार ारा इसी को
अवहं सक मागष से ढ़िा प्रदान की जा रही है और मानक आधाररि समाज का वनमाष ण ही स रूप में ई रीय
ि था है
पू णष ई रीय कमष मागष है - पूणष प्र क्ष अििार से पूणष प्रेरक अििार िक प्र क्ष अििरण में र्शारीररक
र्शम्मि का प्रयोग होिा है जबवक पूणष प्रेरक अििरण में आ ाम्म क स ৯ान र्शम्मि का प्रयोग होिा है इस मागष
का म िीकृ थे वजनका जीिन आधा-आधा प्र क्ष और प्रेरक का था

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 162


(रा र ीर् भारत पररितणन सिंस्र्ान)
www.niti.gov.in
नए भारि की भािना और बदिे हुए डायनेवमস को प्रविवबंवबि करिे हुए, र्शासन और नीवि की
सं थाओं को नई िुनौवियों के अनुरूप बनाना होगा और उ ें हर हाि में भारि के संविधान के मूि वस ां िों,
हमारी स िा एिं इविहास से अवजषि ৯ान िथा आज के सामावजक-सां ृ विक-आवथषक संदभष पर वनवमषि करना
होगा भारि और इसके नागररकों की आकां क्षाओं को पूरा करने के विए र्शासन में सं थागि सुधार और
डायनेवमक नीविगि पररििषनों की आि किा है , जो अभूिपूिष पररििषन के बीज बो सकें और वफर उसे बनाए
रखें
इस बदििे समय को ान में रखिे हुए, भारि सरकार ने अब िक के योजना आयोग के थान पर
नीवि आयोग [NITI = National Institution for Transforming India) गवठि करने का वनणषय विया है , िावक
भारि के िोगों की आकां क्षाओं को बेहिर िरीके से पूरा वकया जा सके नीवि आयोग के गठन से पहिे ,
मुূमंवत्रयों, विर्शेर्৯ों, अथषर्शाम्म यों और आम जनिा के साथ MyGov के जररए ापक वििार-विमर्शष वकया गया
था
हम एक ऐसा भारि बनाने की यात्रा पर वनकिे हैं जो न केिि अपने िोगों की आकां क्षाओं को पूरा
करे , बम्म वि के मंि पर गिष के साथ खड़ा हो भारि के िोगों के मन में भागीदारी के जररए विकास को िेकर
और र्शासन में सुधार को िेकर बहुि बड़ी-बड़ी आर्शाएं हैं इस कायां िरण के दौरान, हािां वक कुछ पररििषन
प्र ावर्शि और योवजि हैं , उनमें से बहुि से बाजार की र्शम्मियों िथा बड़ी िैव क म्म थवियों के थान पररििषन का
पररणाम हैं क्योंवक हमारी सं थाएं और राजनीवि पररपि हो रही हैं और क्रवमक विकास हावसि कर रही हैं
इसविए यह जरूरी हो जािा है वक केंिीय र पर ावनंग की भूवमका धीरे -धीरे कम हो, वजसे वफर से पररभावर्ि
वकए जाने की आि किा है
हमें अपनी जनसंূा के रूप का जो िाभ हावसि है , उसका अगिे िंद दर्शकों में भरपूर फायदा
उठाना होगा हमारे युिाओं की क्षमिा को वर्शक्षा, कौर्शि विकास, विंग भेद की समाम्म , और रोजगार के जररए
उसके िरम पर पहुं िाना होगा हमें वि৯ान, ट्े क्नोिॉजी और ৯ान अथष ि था के क्षेत्रों में अपने युिाओं को
िाभकारी अिसर उपि कराने के विए कड़ी मेहनि करनी होगी समय के साथ ‘रा र ीय उ े ों’ को प्रा करने
में सरकार की भूवमका कम हो सकिी है , िेवकन यह मह पूणष हमेर्शा रहे गी दे र्श की जरूरिों के अनुसार,
सरकार ऐसी नीवियों को वनरं िर बनािी रहे गी जो नागररकों को अवधक से अवधक फायदा दे ने में सहायक हों वि
के साथ वनरं िर राजनैविक और आवथषक एकरूपिा को नीवियों के वनमाष ण में सरकार की कायषप्रणािी के साथ
र्शावमि वकया जाना िावहए भारि में प्रभािी र्शासन वन विम्मखि बािों पर प्रमुख िौर पर वनभषर करिा है ः
1. जनाधाररि एजेंडा जो समाज के साथ म्मि की अकां क्षाओं को पूरा करे , जो िोगों की जरूरिों के मुिावबक
प्रो-एम्मक्टि हो,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 163


2. सहभावगिा नागररकों की भागीदारी हो,
3. समाज के सभी समूहों का समािेर्श हो,
4. हमारे दे र्श के युिाओं को अिसरों की समानिा वमिे,
5. पयाष िरण को सुरवक्षि रखिे हुए वनरं िर विकास, और
6. पारदवर्शषिा – जो प्रौ ोवगकी के प्रयोग से सरकार को अवधक जिाबदे ह और पारदर्शी बनाए
िोगों के जीिन की गुणि ा में सुधार िाने से पहिे र्शासन में सुधार िाना होगा इसी िरह, इसे पम्म क,
प्राइिेट् सेक्टर और वसविि सोसाइट्ी सवहि े क हो सष के बीि इस रिना क, साम ज और िगािार
विकवसि होिी पाट्ष नरवर्शप के ारा प्रा वकया जा सकिा है सभी रों पर िोगों की भागीदारी के जररए सेिाओं
की वडवििरी में सुधार िाना होगा विगि िर्ों में सरकार के सं थागि ढां िे में पररििष न हुआ है आज वजस िीज
की आि किा है िह है डोमेन एসपट्ीज का विकास वजससे हमें सं थानों को वदए गए कायषकिापों की
विवर्श िा बढ़ाने का अिसर वमििा है केिि ावनंग प्रोसेस के संबंध में, र्शासन की विवर्श ‘प्रोसेस’ को बढ़ािा
दे ने की और र्शासन की “ र े ट्जी” से अिग रखने की आि किा है
र्शासन ढ़ां िे के संदभष में, हमारे दे र्श को वजस पररििषन की आि किा है िह है – एक ऐसा सं थान
की थापना करना जो सरकार के विए वथंक ट्ैं क का काम करे – डायरै क्शनि और पोविसी डायनेमो नीवि
आयोग इसी िশ को पूरा करिा है यह नीवि के प्रमुख ि ों के संबंध में केंिीय और रा৸ों सरकारों को संबंवधि
नीविगि और िकनीकी सिाह दे गा इसने आवथषक मोिे से संबंवधि रा र ीय और अं िराष र ीय मह के मामिे , अपने
दे र्श में और अ दे र्शों में सिो म प वियों का प्रसार करना, विवभ मु ों पर आधाररि नए नीविगि वििारों और
विवर्श जानकाररयों को समावहि करना र्शावमि है
इविहास के एक मह पूणष क्रां विकारी बदिाि के जररए संघ से रा৸ िक एकिरफा नीवि को बदिा
जाएगा और ऐसा रा৸ों के साथ िा विक और सिि पाट्ष नरवर्शप के जररए वकया जा सकिा है नीवि आयोग िीव्र
गवि से कायष करे गा िावक सरकारों को र ै ट्ेवजक पोविसी विजन उपि कराया जा सके और आपािकािीन मु ों
से वनपट्ा जा सके दु वनया के सकारा क प्रभािों को ग्रहण करिे हुए, भारिीय परर में कोई भी माडि कारगर
नही है विकास के विए हमें अपनी खुद की नीवियां ढूंढनी होंगी और यहां पर नीवि आयोग एक बड़ी भूवमका
वनभाएगा

नीवत आर्ोि के सरिं चना

नीवि आयोग का गठन इस प्रकार होगा-


भारत के प्रधानमिंत्री- अ क्ष
ििवनिंि काउिं वसल में रा৸ों के मुূमंत्री और के र्शावसि प्रदे र्शों(वजन के र्शावसि प्रदे र्शो में विधानसभा है िहां
के मुূमंत्री ) के उपरा৸पाि र्शावमि होंगे
विवर्श मु ों और ऐसे आकम्म क मामिे, वजनका संबंध एक से अवधक रा৸ या क्षेत्र से हो, को दे खने के विए
क्षेत्रीय पररर्द गवठि की जाएं गी ये पररर्दें विवर्श कायषकाि के विए बनाई जाएं गी भारि के प्रधानमंत्री के वनदे र्श
पर क्षेत्रीय पररर्दों की बैठक होगी और इनमें संबंवधि क्षेत्र के रा৸ों के मुূमंत्री और के र्शावसि प्रदे र्शों के
उपरा৸पाि र्शावमि होंगे (इनकी अ क्षिा नीवि आयोग के उपा क्ष करें गे )
संबंवधि कायष क्षेत्र की जानकारी रखने िािे विर्शेर्৯ और कायषरि िोग, विर्शेर् आमंवत्रि के रूप में प्रधानमंत्री ारा
नावमि वकए जाएं गे
पूणषकाविक संगठना क ढां िे में (प्रधानमंत्री अ क्ष होने के अिािा) वन होंगे
उपा क्षः प्रधानमंत्री ारा वनयुि
सद ः पूणषकाविक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 164


अिंशकावलक सद ः अग्रणी वि वि ािय र्शोध सं थानों और संबंवधि सं थानों से अवधकिम दो पदे न सद ,
अंर्शकाविक सद बारी के आधार पर होंगे
पदे न सद ः के ीय मंवत्रपररर्द से अवधकिम िार सद प्रधानमंत्री ारा नावमि होंगे यवद बारी के आधार को
प्राथवमकिा दी जािी है िो यह वनयुम्मि विवर्श कायषकाि के विए होंगी
मुূ कार्णकारी अवधकारीः भारि सरकार के सविि र के अवधकारी को वनव ि कायषकाि के विए प्रधानमंत्री
ारा वनयुि वकया जाएगा
सवचिालर् आि किा के अनुसार

नीवत आर्ोि के दो प्रमुख हब

1. ट्ीम इं वडया हब- रा৸ों और केंि के बीि इं ट्रफेस का काम करिा है


2. ৯ान और निो ेर् (Knowledge & Innovation) हब- नीवि आयोग के वथंक-ट्ैं क की भाूँ वि कायष करिा है
3. नीवि आयोग ने िीन द ािेज जारी वकये हैं , वजसमें 3 िर्ीय कायष एजेंडा, 7 िर्ीय म म अिवध की रणनीवि
का द ािेज और 15 िर्ीय िশ द ािेज र्शावमि हैं

नीवत आर्ोि के उ े

नीवि आयोग वन विम्मखि उ े ों के विए कायष करे गा –


1. रा र ीय उ े ों को व गि रखिे हुए रा৸ों की सवक्रय भागीदारी के साथ रा र ीय विकास प्राथवमकिाओं,
क्षेत्रों और रणनीवियों का एक साझा व कोण विकवसि करे गा नीवि आयोग का विजन बि प्रदान करने
के विए प्रधानमंत्री और मुূमंवत्रयों को ‘रा र ीय एजेंडा का प्रारूप उपि कराना है
2. सर्शि रा৸ ही सर्शि रा र का वनमाष ण कर सकिा है इस ि की मह ा को ीकार करिे हुए रा৸ों के
साथ सिि आधार पर संरिना क सहयोग की पहि और िंत्र के मा म से सहयोगपूणष संघिाद को
बढ़ािा दे गा
3. ग्राम र पर वि सनीय योजना िैयार करने के विए िंत्र विकवसि करे गा और इसे उ रो र उৡ र िक
पहुं िाएगा
4. आयोग यह सुवनव ि करे गा वक जो क्षेत्र विर्शेर् रूप से उसे सौंपे गए हैं उनकी आवथषक कायष नीवि और
नीवि में रा र ीय सुरक्षा के वहिों को र्शावमि वकया गया है
5. हमारे समाज के उन िगों पर विर्शेर् रूप से ान दे गा वजन िक आवथषक प्रगवि से उविि प्रकार से
िाभाम्म ि ना हो पाने का जोम्मखम होगा
6. रणनीविक और दीघाष िवध के विए नीवि िथा कायषक्रम का ढ़ां िा िैयार करे गा और पहि करे गा साथ ही
उनकी प्रगवि और क्षमिा की वनगरानी करे गा वनगरानी और प्रविवक्रया के आधार पर म ािवध संर्शोधन
सवहि निीन सुधार वकए जाएं गे
7. मह पूणष वहिधारकों िथा समान वििारधारा िािे रा र ीय और अंिराष र ीय वथंक ट्ैं क और साथ ही साथ
र्शैवक्षक और नीवि अनुसंधान सं थानों के बीि भागीदारी को परामर्शष और प्रो ाहन दे गा
8. रा र ीय और अं िराष र ीय विर्शेर्৯ों, प्रैम्मक्टर्शनरों िथा अ वहिधारकों के सहयोगा क समुदाय के जररए ৯ान,
निािार, उ मर्शीििा सहायक प्रणािी बनाएगा
9. विकास के एजेंडे के कायाष यन में िेजी िाने के क्रम में अंिर-क्षेत्रीय और अंिर-विभागीय मु ों के
समाधान के विए एक मंि प्रदान करे गा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 165


10. अ ाधुवनक किा संसाधन केंि बनाना जो सुर्शासन िथा सिि और ायसंगि विकास की सिषिे
कायषप्रणािी पर अनुसंधान करने के साथ-साथ वहिधारकों िक जानकारी पहुं िाने में भी मदद करे गा
11. आि क संसाधनों की पहिान करने सवहि कायषक्रमों और उपायों के कायाष यन के सवक्रय मू ां कन
और सवक्रय वनगरानी की जाएगी िावक सेिाएं प्रदान करने में सफििा की संभािनाओं को प्रबि बनाया
जा सके
12. कायषक्रमों और नीवियों के वक्रया यन के विए प्रौ ोवगकी उ यन और क्षमिा वनमाष ण पर जोर
13. रा र ीय विकास के एजेंडा और उपरोि उ े ों की पूविष के विए अ आि क गविविवधयां संपावदि
करना

नीवत आर्ोि के लশ वन वलन्तखत होिंिे

1. रा र ीय उ े ों को ान में रखिे हुए, सेक्टर और र ै ट्ेजीस के साथ रा৸ के सवक्रय सहयोग से दे र्श के
विकास से संबंवधि िশों की साझी पररक ना को प्राथवमकिा दे ना इस िरह नीवि आयोग प्रधानमंत्री और
मुূमंवत्रयों के ‘रा र ीय एजेंडा’ के फ्ेमिकष को गविर्शीििा प्रदान करे गा
2. मजबूि रा৸ से ही मजबूि रा र का वनमाष ण होिा है इस बाि को मानिे हुए ही रा৸ों के साथ वनरं िर ििने
िािे ढ़ां िागि सहयोग पहिों और मेकेवन৷ के मा म से साझे संघिाद का पोर्ण करना
3. ग्रामीण र से र्शुरू करिे हुए धीरे -धीरे उৡ रों िक वि सनीय योजनाओं के वनमाष ण के मैकेवन৷ को
विकवसि करना
4. आवथषक र ै ट्ेजी और नीवि में विर्शेर्रूप से ान वदए जाने िािे क्षेत्रों को सुवनव ि करना जहां रा र ीय सुरक्षा
वहि र्शावमि हैं
5. समाज के उन िगों पर विर्शेर् ान दे ना वज ें आवथषक विकास का पयाष िाभ नहीं वमिा है
6. र ै ट्ेवजक और दीघाष िवध नीवियों, पहिों और कायषक्रमों के फ्ेमिकष का वनमाष ण करना और उसकी दक्षिा
की प्रगवि की वनगरानी करना फीडबैक और वनगरानी से सीख िेकर उ ें जरूरि के अनुसार सुधार करिे
हुए म ािवध नई पहिों में प्रयोग में िाना
7. र्शैक्षवणक और नीवि अनुसंधान सं थान सवहि रा र ीय और अं िराष र ीय वथंक ट्ैं क के प्रमुख े क-हो सष के
बीि साझेदारी को बढ़ाना और सिाह दे ना
8. रा र ीय और अं िराष र ीय विर्शेर्৯ों, पेर्शेिरों और अ पाट्ष नरों के समूहों के मा म से उ म सहयोग ि था
के ৯ान को नया रूप दे ना
9. विकास एजेंडा के कायाष यन को गवि प्रदान करने के विए इं ट्र-सेक्टर और इं ट्र-वडपाट्ष मेंट्ि से जु ड़े मु ों
के समाधान के विए ेट्फामष मुहैया कराना
10. े ट्-आफ़-दा-आट््ष स ररसोसष सेंट्र का वनमाष ण करना जो सिि और समान विकास में े क-हो सष िक
इसका प्रसार करने में सिो म िरीकों और सुर्शासन में सहायिा करे
11. कायषक्रमों और पहिों के कायाष यन का सवक्रय मू ां कन और वनगरानी करना वजसमें जरूरि के संसाधनों
की पहिान इस िरह से की जाए जहां सफ़ििा और वडिीिरी के वि ार की संभािनाएं हों
12. कायषक्रमों और पहिों के कायाष यन में क्षमिा वनमाष ण और प्रौ ोवगकी के निीनीकरण पर ान दे ना
13. रा र ीय विकास एजेंडा के वन ादन और उम्म म्मखि उ े ों की पूविष में जरूरि की अ गविविवधयों को
र्शुरू करना
िूंवक सरकार ने एक सहयोगा क संघिाद, नागररकों की भागीदारी के वि ार, सबको समान
अिसर, र्शासन में भागीदारी और ििक विकास परक प्रौ ोवगकी का उ रो र प्रयोग के ारा सुर्शासन के विए

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 166


अपनी प्रविब िा की घोर्णा कर रखी है , अिएि इसी नीवि पर आगे बढिे हुए नीवि आयोग र्शासन की प्रवक्रया में
अपनी ओर से एक मह पूणष वदर्शावनदे र्शक और र ै ट्ेवजक सहायिा प्रदान करे गा
ाधीनिा के बाद हमारे दे र्श ने िਚािीन सोवियि संघ के समाजिादी र्शासन की संरिना को
अपनाया, वजसमें योजनाएूँ बनाकर काम वकया जािा था पंििर्ीय िथा एकिर्ीय योजनाएूँ काफी िंबे समय िक
दे र्श में िििी रहीं योजना आयोग ने वनयोजन इकाई के रूप दर्शकों िक योजनाएूँ बनाने के काम को अंजाम
वदया िेवकन केंि में स ा पररििषन होने के बाद 1 जनिरी, 2015 को योजना आयोग के थान पर केंिीय
मंवत्रमंडि के एक संक पर नीवि आयोग का गठन वकया गया इसमें सहकारी संघिाद की भािना को केंि में
रखिे हुए अवधकिम र्शासन, ूनिम सरकार के व कोण की पररक ना को थान वदया गया

बुधिार, 31 अि , 2016 ई0
प्रधानमंत्री ने भी भारि के कायाक के विए अंिरवनवहि वस ां िों को वकया है उ ोंने हजारों
िर्ों से ििी आ रही भारिीय परं पराओं से अनुभि हावसि करने िािे विर्शेर्৯ों, जनिा के सुझािों और विपरीि
वििारों को ानपूिषक सुनने का सुझाि वदया है यवद हमने ऐसा कर वदया िो हम नीवियों और योजनाओं को न
वसफष विफि होने से बिा िेंगे, बम्म भवि के जोम्मखमों से भी इ ें सुरवक्षि कर दें गे इन सबका अथष है भवि
की योजनाओं और विकास के विए जरूरी बुवनयादी बािों को वफर से पररभावर्ि करना और उ ें नए रूप में
रिना इसके विए सोि के एक नए र की जरूरि होिी है यह वकस िरह होगा, यह बहुि कुछ आयोग की ट्ीम
की रूपरे खा और व कोण पर वनभषर करे गा प्रधानमंत्री ने नीवि आयोग की ट्ीम के विए मह पूणष वदर्शावनदे र्श
िय वकए हैं अब नीवि आयोग पर वनभषर करिा है वक िह आर्शाओं के अनुरूप आिरण करे और पररणाम दे
(”अगिी सदी की िैयारी“ र्शीर्षक से दै वनक जागरण में प्रकावर्शि िेख)
-मुरली मनोहर जोशी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 167


एक भारत - श्े भारत के वनमाणर् के वलए आि क कार्ण

आिायष रजनीर्श “ओर्शो” की िाणी है - “इस दे र्श को कुछ बािे समझनी होगी एक िो इस दे र्श को
यह बाि समझनी होगी वक िु ारी परे र्शावनयों, िु ारी गरीबी, िु ारी मुसीबिों, िु ारी दीनिा के बहुि कुछ
कारण िु ारे अंध वि ासों में है , कम से कम डे ढ़ हजार साि वपछे वघसट् रहा है ये डे ढ़ हजार साि पूरे होने
जरूरी है भारि को म्मखंिकर आधुवनक बनाना जरूरी है मेरी उ ुकिा है वक इस दे र्श का सौभा৓ खुिे, यह दे र्श
भी खुर्शहाि हो, यह दे र्श भी समृ हो क्योंवक समृ हो यह दे र्श िो वफर राम की धुन गुंजे, समृ हो यह दे र्श िो
वफर िोग गीि गाूँ ये, प्रभु की प्राथषना करें समृ हो यह दे र्श िो मंवदर की घंवट्या वफर बजे, पूजा के थाि वफर
सजे समृद्ध हो यह दे र्श िो वफर बाूँ सुरी बजे कृ की, वफर रास रिे!”
भारि को स ूणष क्राम्म की जरूरि है क्राम्म के प्रवि वििार यह है वक- “राजनीविक, आवथषक ि
सामावजक पररम्म थवि में उसकी थिा के विए पररििषन ही क्राम्म है , और यह िभी मानी जायेगी जब उसके
मू ों, मा िाओं, प वियों और स ों की जगह नये मू , मा िा, प वि और स थावपि हों अथाष ि
क्राम्म के विए ििषमान ि था की थिा के विए नयी ि था थावपि करनी होगी यवद ि था पररििषन के
आ ोिन में वििेक नहीं हो, केिि भािना हो िो िह आ ोिन वहं सक हो जािा है वहं सा से कभी ि था नहीं
बदििी, केिि स ा पर बैठने िािे िोग बदििे है वहं सा में वििेक नहीं उ ाद होिा है उ ाद से वििोह होिा है
क्राम्म नहीं क्राम्म में नयी ि था का दर्शषन - र्शा होिा है अथाष ि क्राम्म का िশ होिा है और उस िশ के
अनुरुप उसे प्रा करने की योजना होिी है दर्शषन के अभाि में क्राम्म का कोई िশ नहीं होिा ”
स ूणष क्राम्म से हमारा िा यष सभी विर्यों के अपने स अथों में थापना से है जो आपके र्श ों में
“आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के आधार पर एक भारि - िे भारि” है िोकि से हम राजि में नहीं
जा सकिे इसविए ि था पररििषन का अथष ही वनरथषक है आि किा है ििषमान िोकि ि था को ही स
आधाररि करने की वजसे ि था स ीकरण कहा जा सकिा है इस कायष में हमें मानकर्शा की आि किा है
वजससे िोि कर यह दे ख सके वक इस िोकि ि था में कहाूँ सुधार करने से स ीकरण हो जायेगा यह
मानकर्शा ही “वि र्शा ” है जो भारि के िेज विकास सवहि कायाक का प्रारूप है िेज विकास िही दे र्श
कर सकिा है जहाूँ के नागररक अपने दे र्श के प्रवि समवपषि हों और कम से कम उनका मम्म दे र्श र िक
ापक हो संकुविि मम्म को ापक करने से ही िह ििषमान में आ पायेगा इन सब उ े ों की प्राम्म के
विए मूि रूप में वन विम्मखि कायष करने आि क हैं जो आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि का सािषभौम स -
वस ा रूप है -

अ. भारत के वि िुरू बनने के वलए

“स ूर्ण मानक” अर्ाणत वि मानक - शू श्िंखला (WS-0) की वि ापी र्ापना

अवधकतम प्रभािी लाभ – वि विकास की मुূधारा का वनधाष रण करिे हुये भारि का वि के प्रवि दावय - नि
वि वनमाष ण और मानििा की अगिी पीढ़ी के उदय को पूणष करिे हुये काि में भारि अपनी गुरूिा को वस
कर सकेगा साथ ही वि क ाण के अपने दावय को वनभा सकेगा वििार आधाररि वि से मानक आधाररि
वि का वनमाष ण, दे र्श आधाररि रा र िाद से िैव क रा र िाद का उदय, एका कमषिाद से मानि के र्शम्मि का वि
विकास की वदर्शा में एकीकरण, पािर और प्रावफट् के मूि उ े से मानि मम्म विकास और र्शासन प्रणािी
के िैव क मानकीकरण की वदर्शा में उदय, दे र्शों के वि ारिादी और वि र्शम्मि की नीवि से सम यिादी और

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 168


वि पररिारिाद का उदय, इ ावद जो कुछ इस मानि समाज और प्रकृवि के विए स -सु र-वर्शि हो सकिा है
उस वदर्शा में उदय

ूनतम प्रभािी हावन – िैव क र पर वििार आधाररि िानार्शाही समाज, िानार्शाही रा र िाद और िानार्शाही
दे र्श का वनधाष रण, नकारा क िररत्र के समाज और दे र्श का वनधाष रण

ब. सिंविधानानुसार पूर्ण िर्रा৸ोिं के सिंघ के वनमाणर् के वलए

1. सिंविधान को मानक िर्रा৸ (ब्र ाਔीर् िर्रा৸-अितारी पर रा) के अनुसार करना


वजससे भारत एक मानक िर्रा৸ और लोकत का उदाहरर् बने सके
“रामरा৸”, का प्रारूप “परर्शुराम पर रा” है ई र के साििें अििार भगिान िीराम ने ई र के छठें
अििार भगिान परर्शुराम ारा दी गई ि था का ही प्रसार वकये थे
छठें अितार भििान परशुराम ारा दी िई ि र्ा इस प्रकार र्ी-
1. प्रकृवि में ा िीन गुण- स , रज और िम के प्रधानिा के अनुसार मनु का िार िणों में वनधाष रण स गुण
प्रधान - ब्रा ण, रज गुण प्रधान- क्षवत्रय, रज एिं िम गुण प्रधान- िै , िम गुण प्रधान- र्शूि
2. गणरा৸ का र्शासक राजा होगा जो क्षवत्रय होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि जो रज गुण अथाष ि् कमष
अथाष ि् र्शम्मि प्रधान है
3. गणरा৸ में रा৸ सभा होगी वजसके अनेक सद होंगे जैसे - ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि के स , रज एिं
िम गुणों से युि विवभ ि ु हैं
4. राजा का वनणषय राजसभा का ही वनणषय है जैसे - ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि का वनणषय िही है जो स , रज
एिं िम गुणों का सम्म विि वनणषय होिा है
5. राजा का िुनाि जनिा करे क्योंवक िह अपने गणरा৸ में सिष ापी और जनिा का सम्म विि रुप है जैसे -
ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि सिष ापी है और िह स , रज एिं िम गुणों का सम्म विि रुप है
6. राजा और उसकी सभा रा৸ िादी न हो इसविए उस पर वनय ण के विए स गुण प्रधान ब्रा ण का वनय ण
होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि पर वनय ण के विए स गुण प्रधान आ ा का वनय ण होिा है
यह ि था जब िक वनराकार आधाररि िोकि में संविधान का रूप ग्राम से िेकर वि िक
नहीं होिा िब िक रामरा৸ नहीं बन सकिा
भारि में वनम्म िम्मखि रुप ि हो िुका था

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 169


1. ग्राम, विकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ और गणसंघ का रुप
2. वसफष ग्राम ि नगर र पर राजा (ग्राम ि नगर पंिायि अ क्ष) का िुनाि सीधे जनिा ारा
3. गणरा৸ को संिाविि करने के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान
4. गणरा৸ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप-वनयम और कानून
5. राजा पर वनय ्रण के विए ब्रा ण का साकार रुप- रा र पवि, रा৸पाि, वजिावधकारी इ ावद
वन विम्मखि र्शेर् समव कायष पूणष करना है
1. गणरा৸ या िोकि के स रुप- गणरा৸ या िोकि के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
2. राजा और सभा सवहि गणरा৸ पर वनय ण के विए साकार ब्रा ण का वनराकार रुप- मन का अ राष र ीय/
वि मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रुप- प्रब का अ राष र ीय/ वि मानक
4. गणरा৸ के संिािन के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
5. साकार ब्रा ण वनमाष ण के विए वर्शक्षा का रुप- वर्शक्षा पाਉक्रम का अ राष र ीय/ वि मानक

अवधकतम प्रभािी लाभ – अवधकिम अवधकार से युि मुূ/प्रधान संिािक (भारि में प्रधानमंत्री) के सीधे
जनिा ारा िुनाि होने पर िह सৡे अथों में जनिा का प्रविवनवध होगा और सरकार अपने कायषकाि िक म्म थर
रहे गी, सरकार के हट्ाने का रा ा ब हो िुका होगा वजससे विकास कायष में बाधा नहीं आयेगी सद ों के
खरीद-फरोি की अिोकिाम्म क रा ा हमेर्शा के विए ब हो जायेगा
ूनतम प्रभािी हावन – पाट्ी/दि ि का धीरे -धीरे अिनवि

2. पूर्ण िर्रा৸ के वलए निर ि ग्राम पिंचार्त को दे श के सिंविधान की भााँवत सिंविधान दे कर


िर्रा৸ बनाते हुर्े उसका स सीधे वजलावधकारी, के सरकार और स न्त त
म ालर् से करना

अवधकतम प्रभािी लाभ – “ यं का कमष और यं का पररणाम” के आधार पर पंिायि और वनिासी आ वनभषर


बनेंगे पंिायि की सभी ििषमान म्म थवि वजिावधकारी, के सरकार और स म्म ि म ािय के सामने होंगे
ूनतम प्रभािी हावन – पंिायि र के भ्र ािारीयों को नुकसान होगा

3. रा৸ोिं के विधानसभा को सदै ि के वलए समा करना

अवधकतम प्रभािी लाभ – जन प्रविवनवधयों पर बढ़िे खिष को कम वकया जा सकेगा और विकास कायष में बेिजह
बाधा नहीं आयेगी
ूनतम प्रभािी हावन – विधानसभा र पर राजनीवि को ापार बना िेने िािों को नुकसान होगा

4. सिंसदीर् क्षेत्र का पररसीमन करते हुर्े सािंसद की सिंূा कम से कम दो िुना करना

अवधकतम प्रभािी लाभ – संसदीय क्षेत्र में विकास कायष पर व रखने में सां सदों को आसानी होगी
ूनतम प्रभािी हावन – कुछ भी नहीं

5. सिंसदीर् क्षेत्र में सािंसद का कार्ाणलर्, सिंसद सत्र के दौरान वद ी केिल अ र्ार्ी वनिास
के वलए हा ल

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 170


अवधकतम प्रभािी लाभ – सां सद के अविररि खिष में कमी और अपने संसदीय क्षेत्र पर अवधक ान जन
स कष में सदै ि उपि रहने का अिसर
ूनतम प्रभािी हावन – अकमषठ सां सदों को

6. सािंसद प्र ाशी केिल उसी क्षेत्र का पैवत्रक वनिासी और एक चुनाि में केिल एक चुनाि
क्षेत्र से ही चुनाि प्र ाशी बनने की अनुमवत

अवधकतम प्रभािी लाभ – सां सद, जनिा से पूणषिया पररविि दो थानों से िुनाि में आने पर प्रविब अथाष ि
िुनाि खिष को बिाना
ूनतम प्रभािी हावन – कई थानों और कहीं से भी िुनाि में आ जाने िािों का रा ा ब

7. भारतीर् ऋवष आश्म प वतनुसार सरकारी सेिा का सेिावनिृव की उम्र 50 िषण (िृह र्
आश्म), विर 25 िषण स न्त त विभाि का मािणदशणक मਔल (िानप्र र् आश्म) में 50
प्रवतशत उपन्त र्वत अवनिार्ण और 50 प्रवतशत िेतन, विर जीिनपर्ण पेंशन और अ
सुविधाएाँ (स ास आश्म)

अवधकतम प्रभािी लाभ – कमषिारीयों की र्शारीररक कमषठिा और अनुभि के मागषदर्शषन पर आधाररि होने से
कायष कुर्शििा-पूणषिा में िेजी आयेगी और नये युिा िगष को सेिा के अिसर वमिने में भी अवधक अिसर प्रा
होगा 50 िर्ष के बाद समाज से जुड़ने का भी अिसर प्रा होगा अ था िे विर्शेर् प्रकार के बनकर घर-समाज में
अ ि था उ करिे हैं
ूनतम प्रभािी हावन – अकमषठ-वनक ें कमषिारीयों को नुकसान होगा

8. बढ़ती जनसिंূा और चुनाि एक बहुत बड़ी सम ा है एक नािररकता सिंূा


(इन्त਒ग्रेटेड सवकणट-वचप र्ुक्त आधार काडण ) से मतदाता सूची का बार-बार बनाना, चुनाि
खचण में अप्र ावशत रूप से कमी, मतदान प्रवतशत में अ वधक बढ़ो री, 100 प्रवतशत
स मतदाता इ ावद को मात्र एक सा िेर्र से वनर्िंवत्रत वकर्ा जा सकता है
ाटण िोन/इ रनेट से आनलाइन मत के सार् ही वडजीटल मत का प्रमार् पत्र वमले जो
विकेन्त त खुला िेबसाइट पर अपलोड करने की सुविधा हो वजससे दोनोिं (सरकार और
जनता) मत का पररर्ाम सामने हो

अवधकतम प्रभािी लाभ – िुनाि खिष में कमी, अवधकिम मिदािाओं की भागीदारी, पररणाम र्शीघ्र, पूणषिया
पारदर्शी, मिदािा सूिी हमेर्शा िैयार
ूनतम प्रभािी हावन – िुनाि में भ्र ािार करने िािों पर पूणष प्रविब

9. नािररक के सभी प्रकार के सबसीडी को समा कर सीधे एक ूनतम आवर्णक सहार्ता


उनके एक अलि बैंक खाते में मावसक रूप से दी जार्े वजसका उपर्ोि िे केिल दै वनक
जीिनर्ापन के खरीददारी में कर सकें खरीद की र्े ि ुऐ िं उसके अपने वजले में
वनवमणत/उ ावदत होती होिं (र्हााँ तक की राशन भी िे अपने पिंचार्त से वनधाणररत मू पर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 171


ही खरीदें ) वजससे “आ वनभणर भारत और लोकल-िोकल” के वस ा को ािहाररक
बनार्ा जा सके र्ो৓ नािररक की खोज बैंक में जमा धनरावश से की जा सकती है

अवधकतम प्रभािी लाभ – वजिा र पर उ ोगों का विकास, सरकारी रार्शन की दु कान का भ्र ािार पूणषिया
ब , केिि यो৓ नागररक को ही सबसीडी
ूनतम प्रभािी हावन –भ्र ािार करने िािों पर पूणष प्रविब

10. सरकारी विभािीर् र पर सिाई-सुधार (भ्र ाचार समा ) करने के वलए पहली िलती
पर 1000/-रुपर्े जुमाणना, दू सरी िलती वनव त समर् में होने पर 5 िुना (5000/-रुपर्े )
जुमाणना, तीसरी िलती पर 10 िुना (20000/-रुपर्े ) जुमाणना राजकोष में जमा करार्ें
इससे दे श की आवर्णक न्त र्वत ठीक होिी विभाि का हर कमणचारी ठीक चलने और
सुधार का ान रखेिा सार् ही िलती करने िाले के पररिार िाले भी सुधरें िे और
िलती करने िाले को, िलती न करने के वलर्े प्रेररत करें िे जबवक सारा पररिार
नमकहरामी के पैसे से मौज कर रहा र्ा, तो िह सजा का हकदार भी तो है जब कम
पिार आर्ेिी, तो परे शानी तो बढ़े िी ही वजससे आने िाला नेता भी पहले से सीखें
उसके घर के प्रार्ी, स ी भी िलती करने से रोकें समाज, जनता, उसकी िलती पर,
उसे निरत की वनिाह से दे खें (पु क – “विर्शाि ৯ान वि৯ान - सबका समाधान” में वि ृि
वििरण उपि )

अवधकतम प्रभािी लाभ – कमषिारीयों में कमषठिा बढ़े गी, समयानुसार कायष पूणष होगा, नागररक में सरकारी कामों
के प्रवि वनगरानी की प्रिृव बढ़े गी
ूनतम प्रभािी हावन –भ्र ािार करने िािों पर पूणष प्रविब

स. िर्रा৸ के सशक्तता के वलए

01. नगर ि ग्राम पंिायि कायाष िय में क ूट्र के


02. प्राथवमक वर्शक्षा (प्राथवमक वि ािय), नगर ि ग्राम पंिायि के अधीन करना और उसी क्षेत्र के वर्शक्षक का
दै वनक भुगिान के आधार पर भिी करना िावक वनिासी का बৡा और वनिासी वर्शक्षक, यं का कमष
और यं का पररणाम के अनुसार वनिासी में किष भािना का विकास हो सके
03. नगर ि ग्राम पंिायि के िाभ-हावन का ौरा सािषजवनक करना और उस अनुसार ही वपछड़े क्षेत्र पर
विर्शेर् ान दे ना
04. नगर ि ग्राम पंिायि से ही सीधे प्रविवदन सभी आकड़े के को वजससे जनगणना, पर्शुगणना या अ
आकड़ों के विए विर्शेर् अवभयान की जरूरि नहीं काडष , भूवम ि नागररक से स म्म ि सभी प्रमाण-पत्र
नगर ि ग्राम पंिायि से ही
05. कृवर् उ ाद का भਔारण (गोदाम) ग्राम पंिायि र पर पंिायि से ही सीधे नागररक, अ पंिायि और
भारि सरकार ारा खरीददारी एिं भਔारण
06. “अविवथ दे िो भिः” - नगर ि ग्राम पंिायि के ारा बाहरी आग ुक, खोजकिाष , आवि ारक, वनराविि के
विए “भोजन की गार਒ी” वजसे अ क्षेत्र कहिे हैं बाहरी का अथष कम से कम 50 वकिोमीट्र दू र का
वनिासी िगािार 2 भोजन से अवधक नहीं, वफर उस पं िायि या 50 वकिोमीट्र के दायरे के अ पंिायि
में 7 वदन बाद स ि)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 172


द. िर्रा৸: एक भारत - श्े भारत के न्त र्रता के वलए

01. नागररक के मम्म को आधुवनक, वि नर्शीि, पूणष, एकीकृि, समकक्षीकरण ि समझ से युि करने के
विए “स मानक वर्शक्षा” से युि करना वजसके विए रा र ीय िोकिाम्म क नागररक पात्रिा परीक्षा
(National Democratic Civilian Elegibility Test - NDCET) सरकारी सेिाओं के विए अवनिायष करना
साथ ही छात्र के विए अवनिायष रूप से कभी भी उ ीणष करना आि क िभी उनका र्शैवक्षक वडग्री मा
इस प्रकार वर्शक्षक पात्रिा परीक्षा (Teacher Elegibility Test - TET) अपने आप समा हो जाये गी
02. भारि के प्रवि समवपषि नागररक वनमाष ण का पाਉक्रम “स मानक वर्शक्षा” को संविधान का अंग बनाना
03. एक रा र - एक पाਉक्रम - एक वर्शक्षा बोडष की ि था क्योंवक वर्शक्षा का स रा र से है न वक रा र के
वकसी भाग से
04. वर्शक्षा और आि क ि ु के विपणन क्षेत्र में भारिीय आ ा एिं दर्शषन आधाररि दे र्शी विपणन
प्रणािी: 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) अवनिायष रूप से िागू करना वजससे उनका खिष ही उ ें आवथषक
िाभ दे फि रूप क्रय र्शम्मि में बढ़ो री
05. ाय क्षेत्र में समय सीमा में ब ाय और आवथषक अपराध का दਔ सिोৡ करना
06. आरक्षण का आधार र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक करना
07. नीजी क्षेत्र के वि ािय और विवक ािय के र्शु को वनयंवत्रि करना
08. भूवम विक्रय पंजीकरण, ब्रोकर को दजष कराये वबना न करना ब्रोकर को कानून के दायरे में िाना
09. एक रा र - एक वबक्री कर - एक आयकर सभी कर समा
10. एक रा र - एक रा र ीय िोकिाम्म क नागररक संवहिा, दਔ संवहिा जो मवहिा-पुरूर् में भेद ना करे
11. एक रा र - एक रा र ीय िोकिाम्म क धमष (समव धमष) वजसकी सीमा दे र्श र, अ प्रिविि धमष म्मिगि
धमष ( व धमष) वजसकी सीमा पररिार क्षेत्र
12. एक रा र - एक नागररकिा संূा (इम्म਒ग्रेट्ेड सवकषट्-विप युि आधार काडष ) - स ूणष र्शारीररक -
आवथषक/संसाधन - मानवसक - वक्रयाकिाप - उपि िा (नागररक डाट्ाबेस), वनगरानी अथाष ि यात्रा
स म्म ि वट्कट्, होट्ि ि थाने से भी जोड़ना
13. पद पर वनयुम्मि के समय ूनिम यो৓िा को ही अवधकिम यो৓िा वनधाष ररि करना अथाष ि वजस पद के
विए जो यो৓िा वनधाष ररि की जािी है , वनयुम्मि के समय उ ीदिार की अवधकिम यो৓िा भी िही होनी
िावहए अ था अयो৓ घोवर्ि वनयुम्मि उपरा वर्शक्षा ग्रहण करने की ि िा
14. भारिीय ऋवर् आिम प विनुसार उ रावधकार स ी अवधवनयम वजसमें यह प्राविधान हो वक 25 िर्ष की
अि था (गृह थ आिम में प्रिेर्श) में उसे पैिृक स व अथाष ि दादा की स व वजसमें वपिा की अवजषि
स व र्शावमि न रहें , पुत्र के अवधकार में हो जाये

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 173


नेतृ कताणओ िं के स न्त त विचार
“हमारे युग की दो प्रमुख विर्ेर्शिाएूँ वि৯ान और िोकिं त्र है ये दोनों वट्काऊ हैं हम वर्शवक्षि िोगों को
यह नहीं कह सकिे वक िे िावकषक प्रमाण के वबना धमष की मा िाओं को ीकार कर िें जो कुछ भी हमें मानने
के विए कहा जाए, उसे उविि और िकष के बि से पु होना िावहए अ था हमारे धावमषक वि ास इৢापूरक
वििार मात्र रह जाएं गे आधुवनक मानि को ऐसे धमष के अनुसार जीिन वबिाने की वर्शक्षा दे नी िावहए, जो उसकी
वििेक-बुम्म को जूँिे, वि৯ान की पर रा के अनुकूि हो इसके अविररि धमष को िोकि का पोर्शक होना
िावहए, जो वक िणष, मा िा, स दाय या जावि का वििार न करिे हुए प्र ेक मनु के बौम्म क और आ ाम्म क
विकास पर जोर दे िा हो कोई भी ऐसा धमष, जो मनु -मनु में भेद करिा है अथिा विर्शेर्ावधकार, र्शोर्ण या यु
का समथषन करिा है , आज के मानि को रूि नहीं सकिा ामी वििेकान ने यह वस वकया वक वह दू धमष
वि৯ान स ि भी है और िोकि का समथषक भी िह वह दू धमष नहीं, जो दोर्ों से भरपूर है , बम्म िह वह दू धमष,
जो हमारे महान प्रिारकों का अवभप्रेि था मात्र जानकाररयाूँ दे ना वर्शक्षा नहीं है य वप जानकारी का अपना मह
है और आधुवनक यु ग में िकनीकी की जानकारी मह पू णष भी है िथावप म्मि के बौम्म क झुकाि और उसकी
िोकिाम्म क भािना का भी बड़ा मह है ये बािें म्मि को एक उ रदायी नागररक बनािी है वर्शक्षा का िশ है
৯ान के प्रवि समपषण की भािना और वनर र सीखिे रहने की प्रिृवि िह एक ऐसी प्रवक्रया है जो म्मि को ৯ान ि
कौर्शि दोनों प्रदान करिी है िथा इनका जीिन में उपयोग करने का मागष प्रर्श करिी है करूणा, प्रेम और िे
पर राओं का विकास भी वर्शक्षा के उ े हैं जब िक वर्शक्षक वर्शक्षा के प्रवि समवपषि और प्रविब नहीं होिा
और वर्शक्षा को एक वमर्शन नहीं मानिा िब िक अৢी वर्शक्षा की क ना नहीं की जा सकिी वर्शक्षक उ ीं िोगों
को बनाया जाना िावहए जो सबसे अवधक बुम्म मान हों वर्शक्षक को मात्र अৢी िरह अ ापन करके संिु नहीं हो
जाना िावहए उसे अपने छात्रों का ेह और आदर अवजषि करना िावहए स ान वर्शक्षक होने भर से नहीं वमििा,
उसे अवजषि करना पड़िा है ”
- डा0 सिणप ी राधाकृ न

“र्शोवर्ि िगष की सुरक्षा उसके सरकार और कां ग्रेस दोनों से ि होने में है हमें अपना रा ा यं
बनाना होगा और यं राजनीविक र्शम्मि र्शोवर्िों की सम ाओं का वनिारण नहीं हो सकिी, उनका उ ार
समाज में उनका उविि थान पाने में वनवहि है उनको अपना रहने का बुरा िरीका बदिना होगा उनको वर्शवक्षि
होना िावहए एक बड़ी आि किा उनकी हीनिा की भािना को झकझोरने, और उनके अ र उस दै िीय
असंिोर् की थापना करने की है जो सभी ऊूँिाइयों का स्रोि है वर्शवक्षि बनो!!!, संगवठि रहो!!!, संघर्ष करो!!!
सामावजक क्राम्म साकार बनाने के विए वकसी महान विभूवि की आि किा है या नहीं यह प्र यवद एक िरफ
रख वदया जाय, िो भी सामावजक क्राम्म की वज ेदारी मूििः समाज के बुम्म मान िगष पर ही रहिी है , इसे िा ि
में कोई भी अ ीकार नहीं कर सकिा भवि काि की ओर व रखकर ििष मान समय में समाज को यो৓ मागष
वदखिाना यह बुम्म मान िगष का पवित्र किष है यह किष वनभाने की कुर्शििा वजस समाज के बुम्म मान िोग
वदखिािे हैं िही जीिन किह में वट्क सकिा है सही रा र िाद है , जावि भािना का परर ाग सामावजक िथा
आवथषक पुनवनषमाष ण के आमूि पररििषनिादी कायष क्रम के वबना अ ृ कभी भी अपनी दर्शा में सु धार नहीं कर
सकिे रा र िाद िभी औवि ग्रहण कर सकिा है जब िोगों के बीि जावि, न या रं ग का अ र भुिाकर उसमें
सामावजक समरसिा ि माि को सिोৡ थान वदया जाय रा र का स भष में रा र ीयिा का अथष होना िावहए-
सामावजक एकिा की ढ़ भािना, अ राष र ीय स भष में इसका अथष है -भाईिारा वर्शक्षा प्र ेक म्मि का
ज वस अवधकार है अिः वर्शक्षा के दरिाजे प्र ेक भारिीय नागररक के विए खुिे होने िावहए एक म्मि के
वर्शवक्षि होने का अथष है - एक म्मि का वर्शवक्षि होना िेवकन एक ी के वर्शवक्षि होने का अथष है वक एक पररिार
का वर्शवक्षि होना ” - बाबा साहेब भीम राि अ ेडकर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 174


मिंिलिार, 23 वसत र, 1997 ई0
हमारी सं ृ वि कभी एका नहीं रही भारिीय सं ृ वि की विर्शेर्िा विवभ सं ृ वियों को ीकार
करने और उनके प्रवि रिना क व कोण अपनाने की रही है साभार - आज, िाराणसी, वद0 23-9-1997
-के.आर.नारार्र्न
बृह वतिार, 25 वसत र, 1997ई0
आम आदमी से दू र हट्कर सावह िो रिा जा सकिा है , िेवकन िह वनव ि िौर पर भारिीय जन
जीिन का सावह नहीं हो सकिा आम आदमी से जुड़ा सावह ही समाज के विए क ाकाणकारी हो सकिा हैं
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0-25-9-1997
-शिंकर दर्ाल शमाण
मई, 1998 ई0
जय जिान, जय वकसान, जय वि৯ान (परमाणु बम परीक्षण मई, 1998 के बाद भारि के विए)
-अटल वबहारी िाजपेर्ी
सोमिार, 28 वसत र, 1998 ई0
वह दु महज धमष नहीं, जीिन र्शैिी है , आने िािी सदी में वह दु ही वि को रा ा वदखाएगा
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 28-9-98
-अटल वबहारी िाजपेर्ी
बुधिार, 30 जून, 1999 ई0
अकेिे राजर्शम्मि के सहारे समावजक बदिाि स ि नहीं
(30 जून, 1999 को िखनऊ में रा र ीय पुनषवनमाष ण िावहनी के र्शु भार में)
-अटल वबहारी िाजपेर्ी
शुक्रिार, 10 जुलाई, 1998 ई0
काि का बोध न रखने िािे रा र का आ बोध ि वदर्शाबोध भी समा हो जािा है
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 10-7-1998
-मुरली मनोहर जोशी
मिंिलिार, 11 अि , 1998 ई0
मैं आिाहन करिा हूँ -दे र्श की युिा पीढ़ी का, जो इस महान गौरिर्शािी दे र्श का नेिृ करे और
संकीणषिा, भय, आसमानिा, असवह ु िा से ऊपर उठकर रा र को ৯ान-वि৯ान के ऐसे धरािि पर थावपि करे वक
िोग कहें यही िो भारि महान है (वि৯ापन ारा प्रकावर्शि अपीि)
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 11-8-1998
-मुरली मनोहर जोशी
सोमिार, 13 जुलाई, 1998 ई0
भारि के विए फ्ां स की रा र पवि प्रणािी ৸ादा उपयु ि
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0-13-7-98
-आर. िेंकटरामन
शुक्रिार, 23 अक्टु बर, 1998 ई0
वर्शक्षा के भारिीयकरण, रा र ीयकरण और आ ाम्म किा से जोड़े जाने का प्र ाि है , उसका क्या अथष
है ? क्या वपछिे पिास िर्ों से िागू वर्शक्षा प्रणािी गैर भारिीय, विदे र्शी थी वजसमे भारि की भूि और ििषमान
िा विकिायें नहीं थी?ं ’’ (अट्ि विहारी िाजपेयी को विखे पत्र में )
साभार - आज, िाराणसी, वद0 23-10-1998
-श्ीमती सोवनर्ा िााँधी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 175


बृह वतिार, 16 माचण, 2000 ई0
वह दू वि न पर आधाररि नई आिार संवहिा बने
साभार-अमर उजािा, इिाहाबाद वद0 16-03-2000
-के. एस. सुदशणन
मिंिलिार, 31 अक्टु बर, 2000 ई0
भारि बौम्म क वि ोट् के मुहाने पर खड़ा है हर क्षेत्र में भारिीयों का दखि हो रहा है िह वदन
समय नहीं, जब भारि भी पूरी दु वनया में अपना िोहा मनिाएगा हािां वक इसका िाभ उठाने के विए भारि को
अिीि की पहे िीयों को सुिझाना होगा “
साभार - अमर उजािा, िाराणसी, वद0 31 अक्टू बर 2000
-िी. एस. नार्पाल (नोबेल पुर ार से स ावनत)
शुक्रिार, 26 अि , 2016 ई0
भारि को अब क्रवमक विकास की नहीं कायाक की जरूरि है यह िब िक संभि नहीं जब िक
प्रर्शासवनक प्रणािी में आमूि-िूि पररििषन न हो विहाजा नई सोि, नई सं थान और नई िकनीकी अपनानी
होगी 19िी ं सदी के प्रर्शासवनक प्रणािी के साथ 21िी ं सदी में नहीं प्रिेर्श वकया जा सकिा है र ी-र ी प्रगवि से
काम नहीं ििेगा यवद भारि को पररििषन की िुनौवियों से वनपट्ना है िो हमें हर र पर बदिाि िाना होगा हमें
कानूनों में बदिाि करना है , अनािर्श् यक औपिाररकिाओं को समा करना है , प्रवक्रयाओं को िेज करना है और
प्रौ ोवगकी अपनानी है मानवसकिा में भी बदिाि िानी है और यह िभी हो सकिा है जब वििार पररििषनकारी
हों (नीवि आयोग की ओर से आयोवजि ”भारि पररििषन ाূान” के र्शुभार में, नई वद ी में)
- श्ी नरे मोदी, प्रधानमिंत्री, भारत

(उपरोक्त सभी नेतृ कताणओ िं के क्त विचार पर


व करर् के वलए ”वि शा ” अ ार् - पााँच दे खें)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 176


रा र ीर् सहजीिन आ ोलन
“सहजीिन” का अथष है वनिावसयों के समूह ारा आपस में वमि-िुिकर रहना िथा सम ाओं को हि
करना वजससे समूह की सुरक्षा का कायष भी स हो जािा है ‘‘रक्षा’’ र्श का अथष होिा है वक वकसी दु घषट्ना
होने पर या होने की स ािना को वन भािी करना जबवक ‘‘सुरक्षा’’ र्श का अथष है वक वकसी दु घषट्ना होने या न
होने की स ािना के बािजूद ऐसी ि था करना वजससे दु घषट्ना की म्म थवि को बनने ही न वदया जाय ‘‘रक्षा’’
फि आधाररि है िो ‘‘सुरक्षा’’ कारण आधाररि ‘‘रक्षा’’ पररणाम ि होने पर होिी है िो ‘‘सुरक्षा’’ पररणाम
क्ि ही न हो इसके विए की जािी है व ( म्मि) हो या समव (संयुि म्मि या दे र्श) उसके मूििः
र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक दु घषट्ना होने की स ािना रहिी है अथाष ि् वजस प्रकार म्मि के विए र्शारीररक,
आवथषक ि मानवसक दु घषट्ना होने की स ािना होिी है ठीक उसी प्रकार म्मि समूह अथाष ि् दे र्श के विए
र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक दु घषट्ना की स ािना रहिी है रक्षा हो या सुरक्षा हो या र्शाम्म , एकिा, म्म थरिा
इसका अथष यह नहीं होिा वक यथािि् म्म थवि बनाये रखा जाय और उसके विए रक्षा, सुरक्षा, र्शाम्म , एकिा, म्म थरिा
के उपाय वकये जाय बम्म इन उपायों के साथ र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक विकास भी होिे रहना िावहए
रा र ीय सुरक्षा में व ि समव दोनों की सुरक्षा समावहि है प्रार में रा र ीय सहजीिन आ ोिन, म्मि के
र्शारीररक और आवथषक सुरक्षा का आ ोिन है रा र ीय रिना क आ ोिन व और समव के र्शारीररक,
आवथषक ि मानवसक विकास ि रिना का आ ोिन है जो रा र ीय सहजीिन आ ोिन के व मानवसक सुरक्षा
और समव आवथषक ि मानवसक सुरक्षा का कायष भी स करिा है र्शेर् सुरक्षा-समव के र्शारीररक सुरक्षा का
कायष सरकार के अधीन है
ििषमान समय में रा र ीय सहजीिन आ ोिन में िहीं कायष हैं जो सरकार से मुि ि था िथा
सरकार के िैधावनक प्रवक्रया के अनुसार म्मि यं अपनी उपि िा से सुरवक्षि रह और कर सकिा है अथाष ि्
व के र्शारीररक और आवथषक सुरक्षा का कायष जो ‘‘धमषदान’’ और ‘‘सहभावगिा’’ के स अथों िथा उसके मह
को ि करिा है
दान की आि किा सामावजक विर्मिा को कम करने के विए होिी है वजसका रुप र्शारीररक,
आवथषक ि मानवसक में से एक या दो या सभी हो सकिे हैं अपरावधक प्रिृव युि योजना और मागषदर्शषन इ ावद
का कारण सामावजक विर्मिा ही होिी है यह वनव ि िौर पर कहा जा सकिा है वक यवद वकसी मुह े में एक
भूख से पीवड़ि पररिार हो और एक स पररिार िो वनव ि रुप से यह विर्मिा स पररिार के विए र्शारीररक,
आवथषक ि मानवसक रुप से घािक होिी है या ऐसे मुह े की गिी, वबजिी, पानी, ৢिा, ि था की म्म थवि
ठीक न हो िो क्या स पररिार उसके प्रभाि से बि पायेगा? जबवक स पररिारों के आपसी सहयोग से , जो
उसके स ुिन पर कोई प्रभाि भी नहीं डाि सकिा क्योंवक उसके उस सहयोग से दू रगामी िाभ उसके ही खिष
को बिािा है मुह े की ि था सुधर सकिी है और यं उसके पड़ोसी भी उससे भिी-भाूँ वि आ ीय स
के आधार पर साथ ही साथ रहें गे वफर कौन अपरावधक योजना-मागषदर्शषन बनायेगा? वफर पूरा मुह ा ही एक
दू सरे के विए सुरक्षा प्रहरी ही बना रहे गा इसविए प्र ेक म्मि को अपने -अपने स ुिन के साथ कम से कम
मुह े की ि था को ही दे खने में उिनी रुवि िेनी िावहए वजिनी की िह अपनी ि था के विए रुवि रखिा है
साथ ही दे र्श िथा वि रीय सूिनाओं िथा ि थाओं का ৯ान भी रखने के विए प्रय र्शीि रहना िावहए वजससे
िह यं उৡ मन र का बने िथा दू सरों के विए जो अपने ही हैं , उनका मागषदर्शषन भी कर सकें ৯ान के विए
थोड़ा समय, अ यन, मनन और ििाष ही खिष होिा है जो उसका अपना है पर ु िह बहुि ही िाभकारी होिा है
जो वकसी धन के बदिे नहीं प्रा वकया जा सकिा ৯ान इसविए िाभकारी है क्योंवक िह प्र ेक क्षण म्मि के
विए अनेक मागष ि करिा है और यह सब कमष िििे -वफरिे, वमििे -जुििे ही हो जाने िािा कायष है और
सामावजक प्रणी मानि का भाि ही यही है बस उ े वनधाष ररि होना िावहए

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 177


रा र ीय सहजीिन आ ोिन कोई संगठन नहीं है इसकी प्रथम और सिोৡ इकाई मुह े र िक ही
है रा र ीय सहजीिन आ ोिन मात्र इस सुरक्षा उपाय की जानकारी आप िक पहुूँ िा रहा है जो आपके अपनों के
विए, आप ारा यं के विए िथा आपके वनिास थान के विए है और जो पूणषिः आप पर ही वनभषर है इसविए
गाूँ ि ि मुह ा र पर ৓ारह सद ों की कमेट्ी गवठि कर मुह े की सािषजवनक और म्मिगि सम ाओं को
सहभावगिा से हि करें वर्शि भाि से जीि सेिा करें अपने से नीिे के िोगों को साथ िेकर बढ़ना भारिीय सं ृ वि
और दै िी प्रिृव है जबवक दबाकर बढ़ना आसुरी प्रिृव है

राज-सुराज आ ोलन
र्शासक और मागषदर्शष क आ ा सिष ापी है इसविए एका का अथष संयुि आ ा या सािषजवनक
आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा है िब िह समाज कहिािा है जब एका का अथष
म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है म्मि (अििार) संयुि आ ा का साकार रुप होिा है
जबवक म्मि (पुनजष ) म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन प्रणािी में समाज का समथषक दै िी
प्रिृव िथा र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या समाजि या जनि या बहुि ् र
या राज कहिािा है और क्षेत्र गण रा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि
का समथषक असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸
कहिािा है ऐसी ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि
अपने -अपने अवधप के विए संघर्ष होिा रहा है जब-जब समाज में एकि ा क या राजि ा क अवधप
होिा है िब-िब मानििा या समाज समथषक अििारों के ारा गणरा৸ की थापना की जािी है या यूूँ कहें
गणि या गणरा৸ की थापना- थिा ही अििार का मूि उ े अथाष ि् िশ होिा है र्शेर् सभी साधन अथाष ि्
मागष
अििारों के प्र क्ष और प्रेरक दो कायष विवध हैं प्र क्ष अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का
प्र क्ष प्रयोग कर समाज का स ीकरण करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग होिा है जब अधमष का
नेिृ एक या कुछ मानिों पर केम्म ि होिा है प्रेरक अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का अप्र क्ष प्रयोग
कर समाज का स ीकरण जनिा एिं नेिृ किाष के मा म से करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग
होिा है जब समाज में अधमष का नेिृ अनेक मानिों और नेिृ किाष ओं पर केम्म ि होिा है
इन विवधयों में से कुि मुূ दस अििारों में से प्रथम साि (म , कूमष, िाराह, नृवसंह, िामन,
परर्शुराम, राम) अििारों ने समाज का स ीकरण प्र क्ष विवध के प्रयोग ारा वकया था आठिें अििार (िीकृ ) ने
दोनों विवधयों प्र क्ष ओर प्रेरक का प्रयोग वकया था निें (भगिान बु ) और अम्म म दसिें अििार की कायष विवध
प्रेरक ही है
जि- ािन (जहाूँ जि है िहाूँ थि और जहाूँ थि है िहाूँ जि) के समय मछिी से मागष दर्शषन (मछिी
के गिीर्शीििा से वस ा प्रा कर) पाकर मानि की रक्षा करने िािा ई र (सािषभौम स -वस ा ) का पहिा
अंर्शाििार म ाििार के बाद मानि का पुनः विकास प्रार हुआ दू सरे कूमाष ििार (कछु ए के गुण का वस ा ),
िीसरे - िाराह अििार (सुअर के गुण का वस ा ), िौथे- नृवसंह (वसंह के गुण का वस ा ), िथा पाूँ ििे िामन
अििार (ब्रा ण के गुण का वस ा ) िक एक ही साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हुआ करिे थे और जब-
जब िे रा৸ समथषक या उसे बढ़ािा दे ने िािे इ ावद असुरी गुणों से युि हुए उ ें दू सरे से पाूँ ििें अंर्शाििार ने
साकार रुप में कािानुसार वभ -वभ मागों से गुणों का प्रयोग कर गणरा৸ का अवधप थावपि वकया
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के छठें अंर्श अििार परर्शुराम के समय िक मानि जावि का विकास
इिना हो गया था वक अिग-अिग रा৸ों के अनेक साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हो गये थे उनमें से जो भी
रा৸ समथषक असुरी गुणों से युि थे उन सबको परर्शुराम ने साकार रुप में िध कर डािा पर ु बार-बार िध की

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 178


सम ा का थाई हि वनकािने के विए उ ोंने रा৸ और गणरा৸ की वमविि ि था ारा एक ि था दी जो
आगे ििकर “परर्शुराम पर रा” कहिायी ि था वन प्रकार थी-
1. प्रकृवि में ा िीन गुण- स , रज और िम के प्रधानिा के अनुसार मनु का िार िणों में वनधाष रण
स गुण प्रधान - ब्रा ण, रज गुण प्रधान-क्षवत्रय, रज एिं िम गुण प्रधान-िै , िम गुण प्रधान-र्शूि
2. गणरा৸ का र्शासक राजा होगा जो क्षवत्रय होगा जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि जो रज गुण अथाष ि्
कमष अथाष ि् र्शम्मि प्रधान है
3. गणरा৸ में रा৸ सभा होगी वजसके अनेक सद होंगे जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि के स , रज
एिं िम गुणों से युि विवभ ि ु हैं
4. राजा का वनणषय रा৸सभा का ही वनणषय है जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि का वनणषय िहीं है जो स ,
रज एिं िम गुणों का सम्म विि वनणषय होिा है
5. राजा का िुनाि जनिा करे क्योंवक िह अपने गणरा৸ में सिष ापी और जनिा का सम्म विि रुप है जैसे-
ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि सिष ापी है और िह स , रज एिं िम गुणों का सम्म विि रुप है
6. राजा और उसकी सभा रा৸िादी न हो इसविए उस पर वनय ण के विए स गुण प्रधान ब्रा ण का
वनय ण होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि पर वनय ण के विए स गुण प्रधान आ ा का
वनय ण होिा है
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के साििें अंर्श अििार िीराम ारा इसी परर्शुराम पर रा का ही
प्रसार और थापना हुआ था
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के आठिें अििार िीकृ के समय िक म्म थवि यह हो गयी थी राजा
पर वनय ण के विए वनयुि ब्रा ण भी समाज और धमष की ाূा करने में असमथष हो गये क्योंवक अनेक धमष
सावह ों, मि-मिा र, िणष , जावियों में समाज विभावजि होने से म्मि संकीणष और वद भ्रवमि हो गया था और
रा৸ समथषकों की संূा अवधक हो गयी थी पररणाम रुप मात्र एक ही रा ा बिा था- निमानि सृव इसके
विए उ ोंने स ूणष धमष -सावह ों और मि-मिा रों के एकीकरण के विए आ ा के सिष ापी म्मिगि प्रमावणि
वनराकार रुप का उपदे र्श ”गीिा“ ि वकये और गणरा৸ का उदाहरण ाररका नगर का वनमाष ण कर वकये
उनकी गणरा৸ ि था उनके जीिन काि में ही न हो गयी पर ु “गीिा” आज भी प्रेरक बनी हुई है
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के निें अििार भगिान बु के समय पुनः रा৸ एकि ा क होकर
वहं सा क हो गया पररणाम रुप बु ने अवहं सा के उपदे र्श के साथ म्मियों को धमष, बुम्म और संघ के र्शरण में
जाने की वर्शक्षा दी संघ की वर्शक्षा गणरा৸ की वर्शक्षा थी धमष की वर्शक्षा आ ा की वर्शक्षा थी बुम्म की वर्शक्षा,
प्रब और संिािन की वर्शक्षा थी जो प्रजा के मा म से प्रेरणा ारा गणराज्य के वनमाष ण की प्रेरणा थी
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के दसिें और अम्म म अििार के समय िक रा৸ और समाज िः
ही प्राकृविक बि के अधीन कमष करिे -करिे वस ा प्रा करिे हुए पूणष गणरा৸ की ओर बढ़ रहा था
पररणाम रुप गणरा৸ का रुप होिे हुए भी गणरा৸ वसफष रा৸ था और एकि ा क अथाष ि् म्मि समथषक
िथा समाज समथषक दोनों की ओर वििर्शिािर्श बढ़ रहा था
भारि में वनम्म िम्मखि रुप ि हो िुका था
1. ग्राम, विकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ और गणसंघ का रुप
2. वसफष ग्राम ि नगर र पर राजा (ग्राम ि नगर पंिायि अ क्ष) का िुनाि सीधे जनिा ारा
3. गणरा৸ को संिाविि करने के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान
4. गणरा৸ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप-वनयम और कानून
5. राजा पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप- रा र पवि, रा৸पाि, वजिावधकारी इ ावद
वि र पर वन विम्मखि रुप ि हो िुका था
1. गणरा৸ों के संघ के रुप में संयुि रा र संघ का रुप

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 179


2. संघ के संिािन के विए संिािक और संिािक का वनराकार रुप- संविधान
3. संघ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप- वनयम और कानून
4. संघ पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप-पाूँ ि िीट्ो पािर
5. प्र ाि पर वनणषय के विए सद ों की सभा
6. नेिृ के विए राजा- महासविि
वजस प्रकार आठिें अििार ारा ि आ ा के वनराकार रुप ”गीिा” के प्रसार के कारण आ ीय
प्राकृविक बि सवक्रय होकर गणरा৸ के रुप को वििर्शिािर्श समाज की ओर बढ़ा रहा था उसी प्रकार अम्म म
अििार ारा वन विम्मखि र्शेर् समव कायष पूणष कर प्र ुि कर दे ने मात्र से ही वििर्शिािर्श उसके अवधपि् य की
थापना हो जाना है
1. गणरा৸ या िोकि के स रुप- गणरा৸ या िोकि के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
2. राजा और सभा सवहि गणरा৸ पर वनय ण के विए साकार ब्रा ण का वनराकार रुप- मन का अ राष र ीय/
वि मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रुप- प्रब का अ राष र ीय/ वि मानक
4. गणरा৸ के संिािन के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
5. साकार ब्रा ण वनमाष ण के विए वर्शक्षा का रुप- वर्शक्षा पाਉक्रम का अ राष र ीय/ वि मानक
वजस प्रकार के में संविधान संसद है , प्रदे र्श में संविधान विधान सभा है उसी प्रकार ग्राम-नगर में भी
संविधान होना िावहए वजस प्रकार के और प्रदे र्श के ायािय और पुविस ि था है उसी प्रकार ग्राम-नगर के
भी होने िावहए कहने का अथष ये है वक वजस प्रकार की ि थायें के और प्रदे र्श की अपनी हैं उसी प्रकार की
ि था छोट्े रुप में ग्राम-नगर की भी होनी िावहए संघ (रा৸) या महासंघ (के ) से स वसफष उस गणरा৸
से होिा है , प्र ेक नागररक से नहीं संघ या महासंघ का कायष मात्र अपने गणरा৸ों में आपसी सम य ि स ुिन
करना होिा है उस पर र्शासन करना नहीं िभी िो सৡे अथों में गणरा৸ ि था या राज-सुराज ि था
कहिाये गी यहीं रा र वपिा महा ा गाूँ धी की प्रवस युम्मि ”भारि ग्राम (नगर) गणरा৸ों का संघ हो“ का स अथष
है
रा र ीर् नीवत आर्ोि (रा.नी.आ)
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स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 180


भारि के ि िा से अब िक भारि ने अनेकों उिार िढ़ाि को अपनी िेिना से स ाििे हुये वि
के सबसे बड़े िोकि की पर रा को यथािि् िथा सामवयक आि किाओं के अनुसार विकास कायों को
संिाविि करिे हुये प्र ेक क्षेत्र में अपनी एक वमसाि कायम की है जो ििषमान िक के महापुरूर्ों, िै৯ावनकों,
राजनेिाओं िथा सहनर्शीि जनिा के सम्म विि योगदान से ही स ि हुआ है वन य ही िे इस िेय के पात्र है
पर ु इसी बीि हमने यह भी दौर दे खा वक एक दिीय सरकार से बहुदिीय सरकार हो गयी है यह कोई विर्शेर्
दु भाष ৓ पूणष घट्ना नहीं बम्म िोकि से थ िोकि िक के विकास क्रम का ही एक िरण है पहिे
िोकि म्मिगि मन का संयुि रूप था अब संयुि मनों (दिों) का सं युि रूप है और इसके उपरा
सयुि मनों के वस ा सािषभौम स -वस ा की आि किा है जो िोकि की पूणष थिा के विए
आि क और अम्म म िरण है
यह वनव ि रूप से कहा जा सकिा है वक िोकि का ििषमान दौर एक ऐसे दौर से गुजर रहा है
जहाूँ जनिा की भािना इस िोकि ि था से उबने की ओर है िहीं संविधान के प्रवि समवपषि िोकि को
यथािि रखने के विए वििर्शिा भी है सभी राजनीविक दिों को िोकि की थिा के विए प्रय और ऐसे
वस ा का पूणष समथषन करना िावहए जो िोकि की पूणष थिा के विए सकारा क कदम हो क्योंवक
िोकि ि था रहे गी िभी दिों का अम्म रहे गा सां सद और विधायक रहें गे इससे पहिे वक िोकि
ि था के विरू जनिा की आिाज उठे , हमें उसके थिा के विए प्रय करना िावहए
िोकि के इस दौर में हमने यह भी दे खा वक म्मििाद के आधार और उसकी र्शम्मि का प्रयोग
कर दि विभावजि हुये िथा उसी पुरानी र्शैिी भूिकाि के महापुरूर्ों के नाम, वििार को मुূ वब दु , भ्र ािार
वमट्ाने, रोजगार वदिाने इ ावद का नारा दे कर वसफष म्मिगि प्रभाि का ही प्रयोग कर जनिा को धमष सं कट् में
डािने का कायष हुआ और पररणाम र्शू वमिा ”बहुजन वहिाय बहुजन सुखाय“, ”एका मानििािाद“, ”िसुधैि
कुट्ु कम“, ”वि ब ु “, ”भूमਔिीकरण“, ”धमष वनरपेक्ष“, ”सिषधमषस ाि“ र्श ों को वसफष कह दे ने से ही
उसके अथष की थापना नहीं हो जािी िरन् इन सभी की थापना का पूणष ािहाररक वस ा होिा है वजसे वबना
प्र ुि वकये सभी दिों में कोई भेद नहीं, न ही िे समाज का िा विक वहि ही कर सकिा है अथाष ि िे सभी एक
ही र के हैं जो िोकि के वसफष ि है िोक नहीं ”िोक“ अथाष ि ”जन“ अथाष ि ”समाज“ का ि जो सािषभौम
स -वस ा अथाष ि ििषमान ि था प्रणािी के अनुसार वि मानक र्शू - मन की गुणि ा का वि मानक
िृंखिा है वजसे रा र ीय र्शा या जन ऐजे ਔा या धमषवनरपेक्ष धमषर्शा या िोकि धमषर्शा -सावह ”वि र्शा “
के रूप में प्र ुि वकया जा िुका है 21 िी ं सदी और सह ाम्म के विए वि का माडि प्र ुि कर दे ने के बाद
”र्श ों“ से क ाण कर दे ने का िथा वसफष सद िा बनाकर राजनीवि करने की र्शैिी पुरानी पड़ िुकी है क्योंवक
अब ”वस ा और रिना क कायों“ से जोड़कर राजनीवि करने की स र्शै िी प्रार हो िुकी है ान रहे वक
समय का मोड़ िहाूँ पहुूँ ि िु का है , जहाूँ समाज और रा र के वहि का रिना क दर्शषन प्र ु ि करना और र्श ों के
अिािा िा विक विकास कायष करना राजनीविक दिों की वििर्शिा है
रा र ीय नीवि आयोग (रा.नी.आ), रा र के विए सािषभौम स -वस ा युि मु ों को समाज की ओर से
प्र ुि करने का एक िेबसाइट् आधाररि मंि है रा र ीय नीवि आयोग (रा.नी.आ), कोई संगठन/पाट्ी/दि इ ावद
नहीं है और ना ही भवि में ऐसा होगा इसविए इसका कोई पदावधकारी वकसी भी र पर नहीं है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 181


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 182
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 183
विषर्-सूची

हमारा स ान
भूवमका

भाि-1
विशाल ৯ान-वि৯ान
गुिाम
स ी
महान
स ों को सৡाई से वनभाओ
सबका सार
01.सरकारी प्राणी-जनिा का सेिक, सरकार का नौकर, दे र्श का िािक ि रक्षक
02.गैर सरकारी प्राणी-जनिा या प्रजा की एक इकाई
03.जनिा-गैर सरकारी प्राणी की भीड़
नेिा और िुनाि
हमारा दे र्श
घर और सৡाई
ब्र ा
परमान

भाि-2
भारत सरकार के विभाि ि सिाई-सुधार

नगरपाविका या महापाविका
डी. एम. साहब
डी. एस. ओ. ि डी. एस. ओ. विभाग
वर्शक्षा और वर्शक्षा विभाग
विद् युि और विद् युि विभाग
पुविस और पुविस विभाग
डाक और डाक विभाग
रे ि और रे ि विभाग
पररिहन और पररिहन विभाग

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 184


ट्ै স और ट्ै স विभाग
आर. ट्ी. ओ. ि आर. ट्ी. ओ. विभाग
अ िाि और ा विभाग
ए ायमेंट् और इ ायमेंट् विभाग
कृवर् और कृवर् विभाग
वसंिाई और वसंिाई विभाग
िन और िन विभाग
पी. ड ू. डी. विभाग
दू रभार् और दू रभार् विभाग
अखबार और मीवडया
दू रदर्शषन और दू रदर्शष न विभाग
ाय और ाय विभाग
समाज क ाण और विभाग
खेि और वक्रकेट्
सजा और सुधार
पूजा और इबादि
र्शु रूआि
भारि सरकार के विभाग के िेबसाइट्

भाि-3
सबका समाधान
(पु क: ”वि शा -द नालेज आि िाइनल नालेज“ से साभार)

अ ार्-1 : सम ा और समाधान

सम ा
समाधान
स ूणष क्राम्म -अम्म म कायष योजना
पुनवनषमाष ण (RENEW)-सम ा, समाधान और रा र वनमाष ण की योजना
पुनवनषमाण (RENEW)- ग्राम एिं नगर िाडष प्रेरक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 185


अ ार्-2 : स अर्ण और स -मािणदशणन

स अथष
स का स आधार
वसफष ৯ानी होना कािानुसार अयो৓िा ही नही सृव में बाधक भी
वनमाष ण के मागष और पूिी िथा पव मी दे र्शों के भाि
मैं भवि या िू भूि? और ििष मान का स अथष
आ था या मूखषिा? और आ था का स अथष
”वनमाष ण और उ ादन“ भािना की उपयोवगिा
वििोही या सािषजवनक प्रमावणि कृ किा समावहि वि मानि किा
भारि और संयुि रा र संघ को आ ान
ई र, दे ििा और वि৯ान
पहिे संविधान या मनु ?
नया, पुराना और ििषमान
मुझे (आ ा) को प्रा करने का मागष
प्राथवमकिा वकसकी- िररत्र की या सािषभौम स -वस ा की?
ि होने का कारण और ि होने में क
कािजयी, जीिन और थष सावह
भा৓ और कमष
सफििा की सरि और कािानुसार विवध
ान अ ास की कािानुसार विवध
अििार, महापुरूर् और साधारण मानि
मनु जीिन के प्रकार
गुरू के प्रकार
म्मििाद और मानििािाद
वि रूप एिं वद रूप
ऋवर् और ऋवर् पर रा
”बहुि पहुूँ िे हुये हैं “, ”दर्शष न“ और ”आर्शीिाष द“
जीिन जीने की विवध
आर्शीिाष द
इৢा और आकड़ा

स -मागषदर्शष न

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 186


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 187
भाि-9
सामावजक क्रान्त - ई रीर् समाज
नर्े समाज के वनमाणर् का आधार
ई रीर् समाज
पााँचिें र्ुि - र्णर्ुि में प्रिेश का आमिंत्रर्

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 188


नर्े समाज के वनमाणर् का आधार
”आकार्श र्श मंय“ अथाष ि आकार्श र्श रूप में है वििार ही आवि ार का ज दािा है वफर िही
ापार का मूि होिा है आ ा जगि हो या भौविक जगि वििार ारा ही आवि ार और ापार िि रहे हैं
आवि ारकों के साथ वन वििार अि जुड़ जािे हैं उनके स अथष को जानना आि क है -

1. ”बहुत पहुाँचे हुर्े हैं “ - इसका अथष होिा है - पहिा अ जषगि के स में - आ ाम्म क सािषभौम स -
वस ा ों का अनुभि, दू सरा बा जगि के स में - उৡ पीठासीन राजनेिा और धमाष िायष से स
वजससे क ाण ि ाथष का कायष स कर सकें िीसरा कोई अथष नहीं होिा

2. ”दशणन“ - इसका अथष होिा है - पहिा अ जषगि के स में - उनके स ूणष रूप जीिन, ৯ान ि कमष
को दे खना, दू सरा बा जगि के स में - केिि र्शरीर, संसाधन और मवहमामਔन को दे खना िीसरा
कोई अथष नहीं होिा दू सरे प्रकार के दर्शषन से दर्शषन करने िािे को कोई िाभ नहीं होिा

3. ”आशीिाणद“ - इसका अथष होिा है - पहिा अ जषगि के स में - उनसे अपने क ाणाथष र्श
सुनना , दू सरा बा जगि के स में - उनसे अपने क ाण के विए कायष िेना या उनके ৯ान को अपने
क ाण के विए जीिन में उपयोग करना िीसरा कोई अथष नहीं होिा पहिे प्रकार के आर्शीिाष द से
आर्शीिाष द िेने िािे को कोई िाभ नहीं होिा

अ. भौवतक जित ारा आवि ार और ापार


भौविक जगि में जैसे ही कोई आवि ार होिा है िह ापार बन जािा है पर ु आवि ारक का
जीिन ापार नहीं बन पािा है केिि आवि ारक का ৯ान और उ ाद ही ापार में पररिविषि होिा है पुनः
आवि ारक के ৯ान और उ ाद पर आधाररि अ आवि ार भी होने िगिे हैं जैसे- वबजिी का आवि ार हुआ
िो वबजिी का आवि ार वजस वस ा से हुआ िह और उस पर आधाररि अनेक आवि ार जैसे ब , मोट्र,
जेनरे ट्र, बैट्री इ ावद अनेक आवि ार हो गये और उस पर आधाररि अनकों प्रकार के ापार विकवसि हो
गये िेवकन आवि ारक का जीिन ापार नहीं बन पाया ििषमान समय में भौविक जगि ने इिने अवधक
आवि ार वदये हैं वक मनु के ज के पूिष से ही िह भौविक आवि ारों का उपभोिा बन िुका है और यह
क्रम जारी भी है भौविक आवि ारों से मनु को सं साधन प्रा होिा है

ब. आ ा जित ारा आवि ार और ापार


आ ा जगि में जैसे ही कोई आवि ार होिा है िह ापार बन जािा है जो आवि ारक के जीिन,
৯ान और कमष से जुड़ा होिा है पुनः आवि ारक के जीिन, ৯ान और कमष पर आधाररि अ आवि ार भी होने
िगिे हैं जैसे - िीराम, िीकृ , वर्शि-र्शंकर, बु , माूँ िै ों दे िी, सां ई बाबा, वि के िमाम धमष सं थापकों के
जीिन, ৯ान ि कमष पर अनेकों ापार विकवसि हो गये हैं भारिीय आ ा और दर्शषन जगि ऐसे उदाहरणों से
भरा हुआ है ििषमान समय में आ ा जगि ने इिने अवधक आवि ार वदये हैं वक मनु के ज के पूिष से ही
िह आ ाम्म क आवि ारों ारा ही संिाविि है और यह क्रम जारी भी है आ ाम्म क आवि ारों से मनु को
सुख ि ई र की ओर विकास प्रा होिा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 189


ई रीर् समाज
ई रीय समाज कोई संगठन नहीं है बम्म यह मानि जीिन के व ि समव क्षेत्र के अनेक विर्यों की ओर
से ई र (सािषभौम स -वस ा ) से योग कराने के विए प्रणािी का वि ार है वजससे िे वकसी भी सं थागि
धमष /समाज से जुड़े होने के बािजूद भी सीधे ई र (सािषभौम स -वस ा ) से जुड़ सकें ৯ान के इस युग और
उसी ओर बढ़िे काि क्रम में ৯ान-कमष৯ान मनु की वििर्शिा है ई रीय समाज पूरी ि िा के साथ मनु
को वसफष ”जानने के विए“ वस ा के विए कायष करिा है न वक ”मानने के विए“

पााँचिें र्ुि - र्णर्ुि में


प्रिेश का आमिंत्रर्
वजस प्रकार त्रेिायु ग से ापरयुग में पररििषन के विए िाम्म वक रविि ”रामायण” आया, वजस प्रकार
ापरयुग से कवियुग में पररििषन के विए महवर्ष ास रविि ”महाभारि” आया उसी प्रकार कवियु ग से पाूँ ििें युग-
णषयुग में पररििषन के विए ”वि र्शा ” स कार्शी क्षेत्र जो िाराणसी-वि ािि-वर्शि ार-सोनभि के बीि का
क्षेत्र है , से ि हुआ है प्र ेक अििार के समय र्शा ाकार अ होिे थे और र्शा में नायक अिग होिा था
पर ु ”वि र्शा ” का नायक और र्शा ाकार एक ही है इसविए अििार के होने न होने पर कोई वििाद नहीं होगा
क्योंवक यह सदै ि वस रहे गा वक यह र्शा है िो र्शा ाकार भी रहा होगा यही इस अम्म म अििार की किा थी
जो अििारों के अनेक किाओं में पहिी और अम्म म बार प्रयोग हुआ है अििारों के प्र क्ष से प्रेरक िक की यात्रा
में पूणष प्रेरक रूप का यह सिोৡ और अम्म म उदाहरण है वजस प्रकार प्र ेक ि ु में म्म थि आ ा प्रेरक है उसी
प्रकार मनु के विए यह र्शा पूणष प्रेरक के रूप में सदै ि मानि समाज के समक्ष रहे गा
इस ”वि र्शा ” को आप सभी को समवपषि करने के बाद ई र के पास कुछ भी र्शेर् नहीं है और ई र
अपने किष से मुि और मोक्ष को प्रा कर िुका है वनणषय आपके हाथ में है वक आप ৯ान-कमष৯ान का आस
करें गे या समय का पास यह पूणषिः आप पर ही वनभषर है ेै केिि मन से युि होकर पर्शु मानि जीिे है संयुि
मन से युि होकर जीना मानि का जीना है िथा सािषभौम स -वस ा से युि संयुि मन, ई रीय मानि की
अि था है यह ”वि र्शा ” ही आपका अपना यथाथष रूप और आपका क ाणकिाष है
हम ििषमान में ब्र ा के 58िें िर्ष में 7िें मनु -िैि ि मनु के र्शासन में ेििाराह क के व िीय पराधष
में, 28िें ििुयुषग का अम्म म युग-कवियुग के ब्र ा के प्रथम िर्ष के प्रथम वदिस में विक्रम स ि् 2096 (सन् 2012
ई0) में हैं ििषमान कवियु ग ग्रेगोररयन कैिेਔर के अनुसार वदनां क 17-18 फरिरी को 3102 ई.पू. में प्रार हुआ
था इस प्रकार अब िक 15 नीि, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 61 हजार, 624 िर्ष इस ब्र ा के सृवजि हुए हो
गये हैं
इस प्रकार वदनां क 21 वदस र, 2012 वदन र्शुक्रिार (मागषर्शीर्ष , र्शुल पक्ष, निमी, विक्रम संिि् 2069)
वजस वदन मायां स िा का कैिेਔर पूणषिा को प्रा वकया है , से दसिें और अम्म म महाििार िि कुर्श वसह
”वि मानि” की ओर से यु ग का िैथा और अम्म म युग- कवियु ग का समय िथा काि का पहिा अ काि
समा होकर युग का पाूँ ििाूँ और अम्म म युग - णषयुग िथा काि का दू सरा और अम्म म काि - काि
वदनां क 22 वदस र, 2012 वदन र्शवनिार (मागषर्शीर्ष , र्शुल पक्ष, दर्शमी, विक्रम संिि् 2069) से प्रार होिा है
और सम संसार के समक्ष और मनु जीि के अम्म िक र्शवनिर और र्शंकर रूपी ”वि र्शा “ उसके ৯ान
की परीक्षा िेने के विए सदै ि सामने ि रहे गा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 190


अब आप मेरे ई रीय समाज में आने के विए ि है वजसके विए आपको कहीं आना-जाना नहीं है
आप वजस समाज, धमष , स दाय, मि इ ावद में हैं , िहीं रहे वसफष ”वि र्शा ” को पढ़े और पूणषिा को प्रा करें
क्योंवक कोई भी वििारधारा िाहे उसकी उपयोवगिा कािानुसार समाज को हो या न हो, यवद िह संगठन का रूप
िेकर अपना आय यं संिाविि करने िगिी है िो उसके साथ म्मि जीिकोपाजषन, ि ा ि वि ास से जुड़िा है
न वक ৯ान के विए पाूँ ििें युग- णषयुग और ई रीय समाज में प्रिेर्श करने के विए आप सभी को मैं िि कुर्श वसंह
”वि मानि” हृदय से आमंवत्रि करिा हूँ

शवनिार, 22 वदस र, 2012 से प्रार हो चुका है -

1. काल के प्रर्म रूप अ काल से दू सरे और अन्त म काल का प्रार


- इसविए वक अवधकिम म्मि ि समाज का मन विर्यों पर केम्म ि है

2. मनि र के ितणमान 7िें मनि र िैि त मनु से 8िें मनि र सािं िवर्ण मनु का प्रार
- इसविए वक सां िवणष मनु के ”सािषभौम“ गुण का प्रयोग कर िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि” ि हैं

3. अितार के निें बु से दसिें और अन्त म अितार-कन्त महाितार का प्रार


- इसविए वक आधुवनक युग के विए एकीकरण ि मानकीकरण के सभी प्रणािी व ि समव के
विए संयुि एिं अम्म म रूप से कम्म अििार ारा ि है

4. र्ुि के चैर्े कवलर्ुि से पााँचिें र्ुि र्ण र्ुि का प्रार


- इसविए वक युग पररििषन के विए कम्म अििार का आगमन हो िुका है

5. ास और ापर र्ुि में आठिें अितार श्ीकृ ारा प्रार वकर्ा िर्ा कार्ण “निसृजन” के प्रर्म भाि
“सािणभौम ৯ान” के शा ”िीता” से व तीर् अन्त म भाि ”सािणभौम कमण৯ान”, ”पूर्ण৯ान का पूरक शा ”,
लोकत का ”धमण वनरपे क्ष धमण शा ” और आम आदमी का ”समाजिादी शा ” ारा ि र्ा स ीकरर्
और मन के ब्र ाਔीर्करर् और नर्े ास का प्रार
- इसविए वक नया और अम्म म र्शा ”वि र्शा ” प्रकावर्शि हो िुका है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 191


भाि-10
सािं ृ वतक क्रान्त – एका कमणिाद

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 192


एका कमणिाद और वि का भवि
वपछिे िर्ों में भारि के िोकसभा िुनाि में वि के सबसे बड़े िोकि के मिदािाओं ने ऐसी म्म थवि
उ कर दी वजससे फि रूप जनादे र्श वकसी भी राजनीविक दि को प्रा न हो सका राजनीविक
अम्म थारिा को दू र करने के विए कई दिों ने वमिकर सरकार का गठन वकया वजससे एक नई सं ृ वि की
र्शुरूआि हुई थी और कायषप्रणािी “ ूनिम साझा कायषक्रम” पर आधाररि हुई थी यह ूनिम साझा कायषक्रम
िही कायषक्रम था जो सरकार बनाने िािे दिों और समथषन करने िािे दिों के कायषक्रम में सामा था यह
ूनिम साझा कायषक्रम एका कमषिाद का क्रम सं कुविि अथाष ि् सू क्ष्म बीज था ूनिम साझा कायषक्रम जब
स ूणष मानि समाज अथाष ि् वि र िक उठकर आवि ृ ि वकया जा िो िह उसी एका कमषिाद के क्रम
संकुविि बीज का विकवसि अथाष ि् सिोৡ र होगा और िह “वि ि था का ूनिम एिम अवधकिम साझा
कायषक्रम कहिाएगा ”
जब िक म्मि अपने मन को एका िाद के सिोৡ र पर केम्म ि कर उसे स ाथष करने का
प्रय वकया िब-िब िह म्मि महापुरूर् के रूप में ि हुए जबवक और्वध आधाररि अथषििेद में इस
एका िाद की उपयोवगिा का ৯ान पहिे से ही वि मान है वजसके स में ामी वििेकान जी कहिे हैं -
”अि: यवद भारि को महान बनाना है , िो इसके विए आि किा है संगठन की, र्शम्मि संग्रह की और वबखरी हुई
इৢार्शम्मि को एकत्र कर उसमें सम य िाने की अथिषिेद संवहिा की एक वििक्षण ऋिा याद आ गयी वजसमें
कहा गया है , “िुम सब िोग एक मन हो जाओ, सब िोग एक ही वििार के बन जाओ एक मन हो जाना ही समाज
गठन का रह है बस इৢार्शम्मि का संिय और उनका सम य कर उ ें एकमुखी करना ही सारा रह है ”
(दे खें “नया भारि गढ़ो” पृ संূा-55) एका भाि के स में ामी जी कहिे हैं -“यह भी न भूिना िावहए वक
हमारे बाद जो िोग आएं गे, िे उसी िरह हमारे धमष और ई र स ी धारणा पर हूँ सेंगे, वजस िरह हम प्रािीन
िोगों के धमष और ई र की धारणा पर हूँ सिे हैं यह सब होने पर भी, इन सब ई र स म्म ि धारणाओं का संयोग
करने िािा एक णष सू त्र है और िेदा का उ े है -इस सूत्र की खोज करना भागिान कृ ने कहा है -“”वभ
वभ मवणयाूँ वजस प्रकार एक सू त्र में वपरोयी जा सकिी हैं , उसी प्रकार इन सब विवभ भािों के भीिर भी एक सू त्र
वि मान है “ (दे खें “৯ानयोग“, पृ संূा-65) और णष सू त्र के स में ामी जी कहिे हैं -“एक र्श में
िेदा का आदर्शष है -मनु के सৡे रूप को जानना “ (दे खें “वििे कान रा र को आ ान“, पृ सं0-48) पं 0
दीनदयाि उपा ाय जी की अनुभूवि भी एका भाि के सिोৡ र पर केम्म ि थी वजसे “एका मानििािाद“ के
रूप में जाना जािा है
वि र्शाम्म , एकिा एिम् विकास के विए गवठि अ राष र ीय संघ-सं युि रा र संघ के ारा धीरे -धीरे
ा , ापार, सं िार, पयाष िरण इ ावद को अ राष र ीय र पर वििार कर उसे थावपि वकया जा रहा है जो
ििषमान समय में मनु के भवि की आि किा है क्योंवक बढ़िे जनसंূा के कारण प्रियेक म्मि के
वक्रयाकिाप का प्रभाि वकसी न वकसी रूप में वि ि था पर भी पड़ रहा है पररणाम रूप यह आि क हो
गया है वक आने िािी सदी और उसके उपरा के समय के विए “वि ि था का ूनिम एिम् अवधकिम
साझा कायषक्रम“ का आवि ार एिम् थापना हो िभी मानि समाज ंय को िगािार विकास की ओर अग्रसर
करिा रह सकिा है
ििषमान समय में भारि अपने र्शारीररक ि िा और संविधान के पिासिें िर्ष को मना िुका है
वजसके स में उस िर्ष संसद में “पिास िर्ष की उपिम्म यां एिम् आि किा“ पर संसद सद ों ारा वििार
प्र ुि वकये गये हमारे सामने यह प्र है वक थ समाज और थ िोकि की प्राम्म वकस प्रकार हो? यह
िभी स ि हो पाएगा, जब “वि ि था का ूनिम एिम् अवधकिम साझा कायषक्रम को आवि ृ ि कर उसे
वि वर्शक्षा के रूप में थावपि वकया जाय, वजससे प्र ेक म्मि ही वि हो जाय ” वर्शक्षा के स में ामी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 193


वििेकान जी का कहना था वक “वर्शक्षा का मििब यह नहीं है वक िु ारे वदमाग में ऐसी बहुि सी बािें इस िरह
ठूूँस दी जाय जो आपस में िड़ने िगे और िु ारा वदमाग उ ें जीिन भर में हजम न कर सके वजस वर्शक्षा से हम
अपना जीिन वनमाष ण कर सकें, मनु बन सकें, िररत्र गठन कर सकें और वििारों का साम ज कर सकें, िही
िा ि में वर्शक्षा कहिाने यो৓ है यवद िुम पां ि ही भािों को हजम कर िदनुसार जीिन और िररत्र गठन कर सके
हो िो िु ारी वर्शक्षा उस आदमी की अपेक्षा िहुि अवधक है , वजसने एक पूरी की पूरी िाइब्रेरी ही कਓ थ कर िी
है ” (दे खें “भारि में वििेकान ”, पृ सं0-252)
भूमਔिीकरण या अ राष र ीयकरण के युग में वपछिे िर्ों गेट् समझौिा (वि ापार संगठन) ारा
बाजार का भी अ राष र ीयकरण वकया गया वजसके पररणाम रूप दे र्श के मानक (भारिीय मानक ू रो) से
उठकर वि मानक (अ राष र ीय मानकीकरण संगठन) में मानि ारा वनवमषि उ ादों का मानकीकरण होने िगा
इस प्रकार औ ोवगक इकाइयों को िा विर्यों के वनमाष ण की गुणि ा का आई0 एस0 ओ0-9000 िृंखिा िेजी से
प्रदान की जाने िगी इस िृंखिा की िेजी से सफििा एिं उ ादों के उपयोग की मानवसकिा िभी िक बनीं रह
सकिी है जब समाज, सं गठन एिं मानि ारा वनमाष ण वकये जा रहे मानि मन की गुणि ा की िृं खिा आई0 एस0
ओ0-र्शू िृंखिा को थावपि वकया जाय अथाष ि् अ -विर्य मानि मन में थावपि वकया जाय यह मन की
गुणि ा का मानक या वि मन या आई0 एस0 ओ0-र्शू िृंखिा ही “वि ि था का ूनिम एिं अवधकिम
साझा कायषक्रम“ होगा
प्र यह है वक सेक्युिर अथाष ि् धमष वनरपेक्ष या सिषधमषसमभाि भारिीय संविधान के समथषन में
“अथिषिेद का एकमन“,“कृ का एक सू त्र“,“िेदा का उ े - णष सूत्र“,“ ामी वििेकान का एक र्श एिं
पाूँ ि भाि“ एिं “पं0 दीनदयाि उपा ाय का एका मानििािाद“ को वकस प्रकार अवि ृ ि एिं स ाथष वकया
जाये क्योंवक ये सभी धमषयुि नाम हैं अथाष ि् भारिीय संविधान के अनुसार अयो৓ है अथाष ि् इस अवि ार का
प्र ेक नाम धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि नाम युि होना िावहए
िि कुर्श वसंह “वि मानि“ ारा इस स में अवधक कहा गया है -“यवद िुम समग्र जगि के
৯ान से पूणष होना िाहिे हो िो पाूँ ि भाि-वििार एिं सावह , विर्य एिं विर्शेर्৯, ब्र ाਔ ( थूि एिं सूक्ष्म) के प्रब
और वक्रयाकिाप, मानि ( थूि एिं सूक्ष्म) के प्रब और वक्रयाकिाप िथा उपासना थि का सामंज कर एक
मुखी कर िो यही समग्र जगि का ৯ान है , भवि है , रह है , पूणष ৯ान है , समाज गठन है , पु कािय के ৯ान से
सिोৡ है “ वििार के स में कहा गया है - “यह अ ै ि (एक ) ही धमषवनरपेक्ष है , सिष धमषसमभाि है िेदा
िथा मानि का सिोৡ दर्शष न है जहाूँ से मानि विवर्श ा ै ि, ै ि एिं ििषमान में मििाद के मानवसक गुिामी में वगरा
है पर ु मानि पुन: इसी के उ े क्रम से उठकर अ ै ि में थावपि हो जायेगा िब िह धमष में थावपि एिं वि मन
से युि होकर पूणष मानि अथाष ि् ई र थ मानि को उ करे गा “ सावह के स में कहा गया है वक-“मानि
एिं प्रकृवि के प्रवि वन क्ष, संिुविि एिं क ाणाथष कमष ৯ान के सावह से बढ़कर आम आदमी से जुड़ा सावह
कभी भी आवि ृ ि नहीं वकया जा सकिा यही एक विर्य है वजससे एकिा, पू णषिा एिं रिना किा एका भाि
से िाई जा सकिी है सं ृ वि से रा৸ नहीं िििा कमष৯ान से रा৸ िििा है सं ृ वि िभी िक थ बनी रहिी
है जब िक पेट् में अ हो, ि थाएं स -वस ा युि हों, व पूणष मानि वनमाष ण पर केम्म ि हो सं ृ वि कभी
एका नहीं हो सकिी िेवकन रिना क व कोण एका होिा है जो कािानुसार कमष৯ान और कमष है अ
काि में अनेका िथा काि में एका कमष ৯ान अथाष ि् एका रिना क व कोण होिा है यही कमष
आधाररि भारिीय सं ृ वि है जो प्रार में भी था और अ में पुन - हो रहा है यही सभी सं ृ वियों का मूि भी
है “ काि के स में कहा गया है - “जब व मन की र्शाम्म अ : विर्यों जो वसफष अ विर्य मन ारा ही
प्रमावणि होिा है , पर केम्म ि होिी है िो उसे व अ काि कहिे हैं िथा जब व मन की र्शाम्म
विर्यों अथाष ि् िा विर्यों, जो सािषजवनक रुप से प्रमावणि है पर केम्म ि होिा है िो उसे व काि कहिे हैं
इसी प्रकार स ूणष समाज का मन जब अ विर्यों पर केम्म ि होिी है िो उसे समव अ काि कहिे हैं िथा
जब स ूणष समाज का मन जब विर्यों पर केम्म ि होिा है िो उसे समव काि कहिे हैं “ कमष ৯ान के

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 194


स में कहा गया है वक-“ म्मि जब स ूणष समव अ काि में हो िो उसे अ कमष৯ान के अनुसार िथा
जब स ूणष समव काि में हो िो उसे कमष৯ान के अनुसार कमष करने िावहए िभी िह ब्र ाਔीय
विकास के विए धमषयुि या एकिा ब होकर कायष करे गा ” णष सूत्र के स में कहा गया है वक-“मानक
अथाष ि् आ ा अथाष ि् स -धमष -৯ान म्म थर रहिा है िेवकन मन को इस ओर िाने िािे सूत्र वभ -वभ होंगे क्योंवक
जो उ है िह म्म थर नहीं है अ काि में यह सू त्र अनेक होंगे िेवकन काि के विए हमेर्शा एक ही होगा
क्योंवक िह सािषजवनक प्रमावणि होगा ” णष सू त्र के गुण के स में कहा गया है वक- “अि: यवद भारि को
महान बनना है , वि गुरु बनाना है , भारिीय संविधान को वि संविधान में पररिविषि करना है िो एका कमषिाद पर
आधाररि काि के विए एक र्श िावहए जो पररविि हो, केिि उसकी र्शम्मि का पररिय कराना मात्र हो,
भाि से हो, म्म थर हो, समव हो, हो, स ूणष हो, वििादमुि हो, वि भार्ा में हो, आ ाम्म क एिं भौविक
कारण युि हो, सभी वि मन के ि ों, म्मि से संयुि रा र संघ के सৡे रुप एिं वि के ू निम एिं
अवधकिम साझा कायषक्रम को प्रक्षेवपि करने में सक्षम हो, मानि एिं प्रकृवि के विकास में एक कड़ी के रुप में
वनमाष ण के विए सक्षम हो, मानि एिं प्रकृवि के विकास के क ाणाथष, वन क्ष, सिोৡ ৯ान ि कमष ৯ान
का संगम हो अ काि के विकास के साि िक्रों (पाूँ ि अ कमष िक्र एिं दो अ ৯ान कमष िक्र जो सभी
स दायों और धमों का मूि है ) को काि के साि िक्रों (पाूँ ि कमष िक्र, एक ৯ान कमष िक्र और
एक अ ৯ान कमष िक्र) को प्रक्षेवपि करने में सक्षम हो, को थावपि करना पड़े गा यह भारि सवहि नि वि
वनमाष ण का सूत्र है , अम्म म रा ा है और उसका प्र ु िीकरण प्रथम प्र ुिीकरण होगा ” वजसके स में ामी
वििेकान जी ने कहा था वक “वह दू भािों को अं ग्रेजी में ि करना, वफर र्शु दर्शषन, जवट्ि पौरावणक कथाएूँ
और अनूठे आ यषजनक मनोवि৯ान से ऐसे धमष का वनमाष ण करना, जो सरि, सहज और िोकवप्रय हो और उसके
साथ ही उ ि मम्म िािों को संिु कर सके, इस कायष की कवठनाइयों को िे ही समझ सकिे हैं , वज ोंने इसके
विए प्रय वकया हो अ ै ि के गुढ़ वस ा में वन प्रवि के जीिन के विए कवििा का रस और जीिनदावयनी
र्शम्मि उ करनी है अ उिझी हुई पौरावणक कथाओं में से जीिन प्रकृि िररत्रों के उदाहरण समूह
वनकािने हैं और बुम्म को भ्रम में डािने िािी योगवि ा से अ िै৯ावनक और वक्रया क मनोवि৯ान का
विकास करना है और इन सब को एक ऐसे रुप में िाना पड़े गा वक बৡा-बৡा इसे समझ सके (पत्राििी, पृ -
425)” ििषमान समय में वििादा द र्श “सेक्युिर“ को करिे हुए िि कुर्श वसंह “वि मानि” ारा कहा
गया है वक-“जब सभी स दायों को धमष मानकर हम एक की खोज करिे हैं िब दो भाि उ होिे हैं पहिा-
यह वक सभी धमों को समान व से दे खें िब उस एक का नाम सिषधमषसमभाि होिा है दू सरा-यह वक सभी
धमों को छोड़कर उस एक को दे खें िब उसका नाम धमषवनरपेक्ष होिा है जब सभी स दायों को स दाय की
व से दे खिे हैं िब एक ही भाि उ होिा है और उस एक का नाम धमष होिा है इन सभी भािों में हम सभी
उस एक के ही विवभ नामों के कारण वििाद करिे हैं अथाष ि् सिषधमषसमभाि, धमषवनरपेक्ष एिं धमष विवभ मागों
से वभ -वभ नाम के ारा उसी एक की अवभ म्मि है दू सरे रुप में हम सभी सामा अि था में दो विर्यों पर
नहीं सोििे, पहिा-िह वजसे हम जानिे नहीं, दू सरा-िह वजसे हम पूणष रुप से जान जािे हैं यवद हम नहीं जानिे िो
उसे धमषवनरपेक्ष या सिष धमषसमभाि कहिे हैं जब जान जािे हैं िो धमष कहिे हैं इस प्रकार आई0 एस0 ओ0-र्शू
िृंखिा उसी एक का धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि नाम िथा कमषिेद -प्रथम, अम्म म िथा पंिमिेदीय िृंखिा
उसी एक का धमषयुि नाम है िथा इन सम कायों को स ावदि करने के विए वजस र्शरीर का प्रयोग वकया जा
रहा है उसका धमषयुि नाम-िि कुर्श वसं ह है िथा धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि सवहि मन र का नाम
वि मानि है जब वक मैं (आ ा) इन सभी नामों से मुि है ”
वििार प्रसार एिं वििार थापना के विए कहा गया है वक-“वििार प्रसार एिं वििार थापना में एक
मुূ अ र है वििार प्रसार, वििाराधीन होिा है िह स हो भी सकिा है और नहीं भी हो सकिा पर ु वििार
थापना स होिा है वििार थापना में नीवि प्रयोग की जािी है वजससे उसका प्रभाि स के पक्ष में बढ़िा रहिा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 195


है और यह वििार थापक एिं समाज पर वनभषर करिा है जबवक वििार प्रसार में वकसी नीवि का प्रयोग नहीं होिा
है वजससे उसका प्रभाि पक्ष पर एिं विपक्ष दोनों ओर हो सकिा है और िह वसफष समाज के उपर वनभषर करिा है “
इस प्रकार एका कमषिाद स अथों में प्रा০ एिं पा ा , समाज एिं रा৸, धमष, धमषवनरपेक्ष एिं
सिषधमषसमभाि की एकिा के साथ थ िोकि , थ समाज, थ उ ोग, नैविक उ ान, वि ि था,
वि एकिा, वि र्शाम्म , वि विकास, वि के भवि और उसके निवनमाष ण का प्रथम माडि है जो ििषमान समाज
की आि किा ही नहीं अम्म म मागष है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 196


भाि-11
बौन्त क क्रािंवत - एक रा र ीर् शा – वि शा

मैत्रेर् बु
लि कुश वसिंह “वि मानि” (16 अक्टु बर, 1967 - )
वि शा
वि शा : भूवमका
वि शा : शा -सावह समीक्षा
वि शा की र्ापना
वि शा की रचना योिं?
वि शा के बाद का मनु , समाज और शासन
एक ही वि शा सावह के विवभ नाम
अवनिणचनीर् कन्त महाअितार भोिे र श्ी लि कुश वसिंह” वि मानि” का मानिोिं के नाम
खुला चुनौती पत्र
अवनिणचनीर् कन्त महाअितार का काशी-स काशी क्षेत्र से वि शान्त का अन्त म स -
स ेश

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 197


मैत्रेर् बु
बौ धमष में बु को विवभ रूप में ि कर विवभ र्शम्मियों के प्रिीक के रूप में माना जािा है
जैसे- वि िा के बु - बु ा आफ विसडम या अििोवकिे र (वि िी में िेनरे वजंग), सवह ुिा के बु या मंजुिी
(वि िी में जामपाि यां ग), महाकाि के बु इ ावद बु के साथ डु मा यी ग्रीन िारा, िकदु र, छनदु ৪ी, िंडीज,
जां वबया या पीिी िारा, डु र या बेट् िारा आवद र्शम्मियों की पूजा होिी है िारा मुम्मि की दे िी हैं िारा के बहुि
सारे रूप हैं ग्रीन िारा दु ःख से मुम्मि ि रक्षा दे िी हैं सफेद िारा दीघाष यु दे िी हैं बु के महाकाि रूप में बु
नरमुਔों की मािा पहने हैं एक हाथ में पार्श, दू सरे में मुगदर, िीसरे में डमरू और िौथे में सपष यह परम र्शां ि,
ान थ बु का रौि रूप महाकाि हैं र्शम्मि ि भिों के विए अभय का प्रिीक यह बु प ासन में नहीं बैठे हैं
बम्म भीर्ण अव্ के बीि िां डि कर रहें हैं यह वि ि की िां वत्रक पर रा के बु हैं
बैठे हुए मैत्रेय बु , छठिी ं सदी की एक कां प्रविमा, यह मूविष कोररयाई ़िजाने का वह ा है

मैत्रेय (सं ृ ि), मे े (पावि), या मैथरर (वसंहिी), बौ मा िाओं के अनुसार भवि के बु हैं
कविपय बौ ग्र ों, जैसे अवमिाभ सूत्र और स मषपुਔरीक सूत्र में इनका नाम अवजि भी िवणषि है
बौ पर राओं के अनुसार, मैत्रेय एक बोवधस हैं जो पृ ी पर भवि में अििररि होंगे और बु
प्रा करें गे िथा विर्शु धमष की वर्शक्षा दें गे ग्र ों के अनुसार, मैत्रेय ििषमान बु , गौिम बु (वज ें र्शाक्यमुवन भी
कहा जािा है ) के उ रावधकारी होंगे मैत्रेय के आगमन की भवि िाणी एक ऐसे समय में इनके आने की बाि
कहिी है जब धरिी के िोग धमष को वि ृि कर िुके होंगे बौ पर रा की यह अिधारणा समय के साथ अ
कई मिाििम्म यों की कथाओं में भी थान प्रा कर िुकी है
"मैत्रेय" र्श सं ृ ि के "वमत्र" अथिा "वमत्रिा" से वनकिा है पावि भार्ा में यह "मे ेय" है और पावि
र्शाखा के दीघ वनकाय (अ ाय 26) और बु िंर्श (अ ाय 28) में इसका उ ेख वमििा है पावि र्शाखा के
अवधकिर वह े प्र ो र के रूप में वमििे हैं , हािाूँ वक, यह सु वबिकुि ही अिग स भों में वर्श ों से िािाष करिे
हुए वमििा है इसी कारण कविपय वि ानों का मि है वक यह बाद में जोड़ा हुआ अथिा कुछ पररिविषि वकया हुआ
हो सकिा है
उ री भारि में पहिी सदी के आसपास अपने उਚर्ष पर रही ग्रीक-बौ गां धार किा में मैत्रेय एक
बहुप्रिविि विर्य के रूप में वनरूवपि वकये गए हैं गौिम बु (र्शाक्यमुवन) के साथ मैत्रेय का वित्रण विविध रूपों
में हुआ है और इन किाकृवियों में गौिम और मैत्रेय में वभ िा का वनरूपण एक प्रमुख विर्य रहा है िौथी से छठीं
र्शिा ी के काि में िीन में गौिम बु और मैत्रेय बु के एक दू सरे के समानाथी के रूप में भी प्रयोग वमििे हैं
हािाूँ वक इन दोनों के िीनी वनरूपण की पूणष ূा और समीक्षा अभी िक नहीं हुई है मैत्रेय बु के वनरूपण का

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 198


एक उदाहरण वकंगझाऊ (र्शानडोंग) से प्रा हुआ है वजसका काि 529 ईसिी वनधाष ररि वकया गया है यह माना
जािा है वक मैत्रेय की धावमषक प्रवि ा िगभग उसी काि में हुई जब अवमिाभ बु की प्रवि ा, िगभग िीसरी सदी
में, हुई
आमिौर पर मैत्रेय बु को बैठी हुई अि था में वनरूवपि वकया जािा रहा है उ ें वसंहासन पर, या िो
दोनों पाूँ ि धरिी पर रखे हुए अथिा एक पाूँ ि घुट्ने से मुड़ा हुआ दू सरे पाूँ ि पर रखे हुए, अपने समय की प्रिीक्षा में
बैठा हुआ वनरूवपि वकया जािा है एक बोवधस के रूप में इ ें सीधा खड़ा रहने की मुिा में और आभूर्णों से
सुसम्म৪ि प्रदवर्शषि वकया जाना िावहए वक ु यह कुछ ही गां धार किा की मूविषयों में दीखिा है जहाूँ इ ें खड़ा
वनरूवपि वकया गया है वनरूपणों में इ ें सर पर ूपाकार मुकुट् धारण वकये हुए वदखाया जािा है माना जािा है
वक यह ूप गौिम बु के अिर्शेर्ों का वनरूपण करिा है वजनके ारा मैत्रेय अपने उ रावधकारी होने की पहिान
सावबि करें गे और ेि कमि पर रखे धमषिक्र को पुनः प्रा करें गे
ग्रीक-बौद् ध किा में उ ें अपने बायें हाथ में कुंभ (जिपात्र) धारण वकये हुए भी प्रदवर्शषि वकया गया है
वि िी परं परा इसे ৯ानपात्र के रूप में भी दे खिी है कुछ जगहों पर, उनके दोनों ओर असंग और िसुब ु को
वनरूवपि वकया गया है बौ पर रा में माना जािा है वक मैत्रेय ििषमान में िुवर्ि (पावि में "िुवसि") नामक गष
में वनिास करिे हैं और अपने प्राकਅ के समय की प्रिीक्षा में हैं यह भी माना जािा है वक गौिम बु भी अपने
ज से पहिे इस गष में वनिास कर िुके हैं सभी बोवधस धरिी पर अपने अििरण से पूिष इस गष में वनिास
करिे हैं
हािाूँ वक, बौ धमष की हीनयान और महायान र्शाखाओं में बोवधस की संक ना अिग-अिग है
थेरिाद (हीनयान) मानिा है वक बोवधस िे हैं जो बु की प्राम्म की और अग्रसर हैं जबवक महायान यह
मानिा है वक बोवधस पहिे ही बु की वदर्शा में काफी आगे बढ़ िुके हैं और उ ोंने अपने वनिाष ण को यं ही
रोक रखा है िावक धरिी के अ प्रावणयों की मदद कर सकें
महायान र्शाखा में, बु िोग पवित्र भूवमयों के ामी होिे हैं , जैसे अवमिाभ बु को सुखििी नामक
भूवम का ामी माना जािा है इसी प्रकार इस र्शाखा के अनुसार, मैत्रेय अपने समय में केिुमिी नामक भूवम के
ामी होंगे इस केिुमिी की भौविक अिम्म थवि ििषमान बनारस से भी जोड़ी जािी है

वथयोसोवफकि परं परा में, मैत्रेय के कई पहिू हैं , मात्र भवि के बु के रूप में ही नहीं अवपिु , इसमें
अ पराभौविक संक नाओं का समािेर्श वमििा है बीसिी ं सदी की र्शुरूआि में, वथयोसोफी के जिाहकों को
यह वि ास हो ििा था वक एक िैव क गुरु के रूप में मैत्रेय बु का आगमन अि ंभािी है "वजद् दु कृ मूविष "
नामक एक बािक को इसके विए अहष के रूप में भी ीकार वकया गया था
- वर्र्ोसोिी
अहमवदया धमष के िोगों का मानना रहा है वक उ ीसिी सदी के वमजाष गुिाम अहमद उन अपेक्षाओं पर
खरे उिरिे हैं और िे संभििः मैत्रेय बु हैं
- अहमवदर्ा

बहाई मि का मानना है वक बहाउ ाह उन सभी िक्षणों पर खरे उिरिे हैं जो मैत्रेय बु के आगमन की
भवि िाणी में हैं बहाई मि के िोग यह मानिे हैं वक मैत्रेय बु की भवि िाणी में सवह ुिा और प्रेम को फैिाने
िािे वजस मागषदर्शषक के आगमन की बाि कही गयी थी, बहाउ ाह के ारा वदए गए वि र्शां वि के संदेर्शों में िे
साफ़ िौर पर दे खी जा सकिी हैं
- बहाई स दार्

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 199


लि कुश वसिंह “वि मानि”
(16 अक्टु बर, 1967 - )


सोमिार, 16 अक्टु बर, 1967 (सिं. 2024, आव न, शुक्त पक्ष-त्रर्ोदशी, रे िती नक्षत्र)
-पं. िी राम र्शमाष आिायष का ज बुधिार, 2 वसि र, 1911 (सं. 1968, आव न, कृ पक्ष, त्रयोदर्शी)
-भारि का म म ि िा-आवथषक ि मानवसक ि िा का समय
-भारि में एकदिीय सरकार
- ामी वििेकान के विरर्शाम्म में िीन होने के 65 िर्ष 3 माह 11 वदन बाद का समय
-वियोवनड (वियो-वसंह रावर्श) उ ाओं का अमेररका में प्रथम बौछार के 10 माह 29 वदन बाद का समय
-अंक 7 (वदनां क 16 का 1 ि 6 जोड़ने पर)-एक ऐसा ज ां क जो र्शुभ माना जािा है
-वदनां क 16-एक ऐसा वदनां क जो माह के बीि में रहकर संिुिन थावपि करिा है
-िीराम की ज विवथ निमी (9) है , िीकृ की ज विवथ अ मी (8) है 9 के अंक का वकसी अंक से
गुणा करें , सारां र्श (अंको का योग) 9 ही रहिा है 8 का गुणा घट्िा-बढ़िा रहिा है अंक 8 िौवकक-संसारी है , 9
जवट्ि है जस का िस रहिा है डा0 िोवहया का कहना था-”राम मनु हैं , मयाष दा और आदर्शष पर िििे हुए दे ि
बनिे हैं , िेवकन कृ दे ििा हैं िे िोक संग्रह के विए मनु बनिे हैं , दे ि से नीिे उिरिे हैं राम और कृ ,
भारिीय प्र৯ा के सम्राट् हैं “ इसी क्रम में िि कुर्श वसंह का ज विवथ त्रयोदर्शी (13) है प्र ेक मास में कृ पक्ष
की िेरहिी ं विवथ की रावत्र मास वर्शिरावत्र िथा फा ुन मास की कृ पक्ष की िेरहिी ं विवथ की रावत्र महावर्शिरावत्र
कहिािी है वह दू धमष में मनु के ज के बारहिी ं विवथ के सं ार को बरही िथा र्शरीर से मुि होने के िेरहिी ं
विवथ के अम्म म सं ार को िेरहिीं कहिे हैं अथाष ि् िेरह का अंक वर्शिर्शंकर का प्रिीक और वदन सोमिार जो
वर्शि-र्शंकर का वदन माना जािा है
-माह अक्टु बर-एक ऐसा माह वजसमें सािाष वधक महापु रूर्ों और सािषजवनक जीिन में सफि म्मियों ने
ज ग्रहण वकया जैसे-डा0 एनी िुड बेसे , अग्रणी वथयोसोवफ , (1 अक्टु बर), रा र वपिा महा ा गाूँ धी (2
अक्टु बर), ”जय जिान-जय वकसान“ का नारा दे ने िािे ि कार्शी क्षेत्र के वनिासी भू िपूिष व िीय प्रधानमंत्री िाि
बहादु र र्शा ी (2 अक्टु बर), वफ अवभनेिा राजकुमार (8 अक्टु बर), वफ अवभनेत्री रे खा (10 अक्टु बर), ”स ूणष
क्राम्म “ के उद् घोर्क िोक नायक जय प्रकार्श नारायण (11 अक्टु बर), नानाजी दे र्शमुख ि महानायक वफ
अवभनेिा अवमिाभ बৡन (11 अक्टु बर), ”वमसाइि मैन“ के नाम से विূाि पूिष रा र पवि ए. पी. जे. अ ु ि किाम

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 200


(15 अक्टु बर), ”डरीम गिष “ के नाम से विূाि अवभनेत्री हे मामाविनी (16 अक्टु बर), र्शहीद भगि वसंह (19
अक्टू बर), अवभनेिा र्शमर्शेर राजकपूर उफष र्श ी कपू र (21 अक्टु बर), भारि के पूर्ि रा र पवि के. आर. नारायणन
(27 अक्टु बर), माइक्रोसा के सं थापक विवियम हे नरी गेट््स- (28 अक्टु बर), भारि के र्शारीररक एकीकरण
करने िािे िौहपुरूर् सरदार ब भ भाई पट्े ि (31 अक्टु बर) इ ावद
-माह अक्टु बर (वि र पर) एक ऐसा माह वजसमें सािाष वधक जीिन के विवभ क्षेत्रों से जुड़े वि
वदिसों का आयोजन ि वनधाष रण हो िुका था-वि प्रौढ़ वदिस एिं वि संगीि वदिस (1 अक्टू बर), महा ा गाूँ धी के
ज वदिस पर अ राष र ीय अवहं सा वदिस (2 अक्टू बर), वि प्राकृविक वदिस (3 अक्टू बर), वि आिास वदिस एिं
वि पर्शु क ाण वदिस (4 अक्टू बर), वि पाररम्म थविक वदिस (5 अक्टू बर), वि वर्शक्षक वदिस (5 अक्टू बर), वि
प्राणी वदिस (6 अक्टू बर), वि डाक वदिस (9 अक्टू बर), वि मानवसक ा वदिस (10 अक्टू बर), वि मानक
वदिस (14 अक्टू बर), वि खा वदिस (16 अक्टू बर), वि वमि वयिा वदिस (28 अक्टू बर)
-माह अक्टु बर (भारि दे र्श र पर) एक ऐसा माह वजसमें सािाष वधक जीिन के विवभ क्षेत्रों से जुड़े
रा र ीय वदिसों का आयोजन ि वनधाष रण हो िुका था जैसे-रा र ीय ैम्मৢक रिदान वदिस ि ियोबृ वदिस (1
अक्टू बर), रा र ीय अखਔिा वदिस (4 अक्टू बर), िायुसेना वदिस (8 अक्टू बर), प्रादे वर्शक सेना वदिस (9 अक्टू बर),
सफेद छड़ी वदिस (15 अक्टू बर), सीमा सुरक्षा वदिस ि पुविस रण वदिस (21 अक्टू बर), रा र ीय एकिा वदिस
(31 अक्टू बर) इ ावद
-वबहार के बेगूसराय वजिे के ररफाइनरी ट्ाउनवर्शप में म्म थि इम्मਔयन आयि कापोरे र्शन के अ िाि
में िि कुर्श वसंह का ज समय 02. 15 ए. एम. बजे इनकी मािा का नाम िीमिी िमेिी दे िी िथा वपिा का नाम
िी धीरज नारायण वसंह जो इम्मਔयन आयि कापाष रेर्शन वि0 (आई. ओ. सी. वि.) के बरौनी ररफाइनरी में कायषरि थे
और उ ादन अवभयं िा के पद से सन् 1995 में ैम्मৢक सेिावनिृि हो िुके हैं दादा का नाम . राजाराम ि दादी
का नाम िीमिी दौििी दे िी था ज के समय दादा गषिासी हो िुके थे
1870 ई ी में बेगूसराय, मुंगेर वजिे के सब-वडिीजन के रूप में थावपि हुआ 1972 (ििकुर्श वसंह
”वि मानि“ के ज के 5 िर्ष बाद) में बेगूसराय, वबहार रा৸ का ि वजिा बना जो म वबहार में म्म थि है
बेगूसराय, वबहार के औा़ ौवगक नगर के रूप में जाना जािा है यहाूँ मुূ रूप से िीन बड़े उ ोग हैं -इम्मਔयन
आयि कारपोरे र्शन विवमट्े ड का बरौनी िेिर्शोधक कारखाना, बरौनी थमषि पािर े र्शन और वह दु ान
फवट्ष िाइजर

पररचर्
अपने विर्शेर् किा के साथ ज िेने िािे म्मियों के ज माह अक्टु बर के सोमिार, 16 अक्टु बर
1967 (आव न, र्शुल पक्ष-त्रयोदर्शी, रे ििी नक्षत्र) समय 02.15 ए.एम. बजे को ररफाइनरी ट्ाउनवर्शप अ िाि
(सरकारी अ िाि), बेगूसराय (वबहार) में िी िि कुर्श वसंह का ज हुआ और ट्ाउनवर्शप के E1-53, E2-53,
D2F-76, D2F-45 और साइट् कािोनी के D-58, C-45 में रहें इनकी मािा का नाम िीमिी िमेिी दे िी िथा वपिा
का नाम िी धीरज नारायण वसंह जो इम्मਔयन आयि कापाष रेर्शन वि0 (आई.ओ.सी.वि.) के बरौनी ररफाइनरी में
कायषरि थे और उ ादन अवभयंिा के पद से सन् 1995 में ैम्मৢक सेिावनिृि हो िुके हैं जो वक ग्राम-वनयामिपुर
किाूँ , पुरूर्ो मपुर, मीरजापुर (उ0प्र0) वपन-231305 के वनिासी हैं दादा का नाम .राजाराम ि दादी का नाम
िीमिी दौििी दे िी था ज के समय दादा गषिासी हो िुके थे जो कभी क ीर के राजघराने में कुछ समय के
विए सेिारि भी थे मािष सन् 1991 में इनका वििाह िुनार क्षेत्र के धनैिा (मझरा) ग्राम में वर्शि कुमारी दे िी से हुआ
और जनिरी सन् 1994 में पुत्र का ज हुआ मई सन् 1994 में वर्शि कुमारी दे िी की मृ ु होने के उपरा िे
िगभग घर की वज ेदारीयों से मुि रह कर भारि दे र्श में भ्रमण करिे हुये विंिन ि वि र्शा के संकिन कायष में
िग गये वकसी भी म्मि का नाम उसके अबोध अि था में ही रखा जािा है अथाष ि् म्मि का प्रथम नाम प्रकृवि
प्रद ही होिा है िि कुर्श वसंह नाम उनकी दादी 0 िीमिी दौििी दे िी के ारा उ ें प्रा हुआ

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 201


भारि दे र्श के ग्रामीण क्षेत्र से एक सामा नागररक के रूप में सामा से वदखने िािे िी िि कुर्श
वसंह एक अद् भुि नाम-रूप-गुण-कमष के महासंगम हैं वजसकी पुनरािृ व अस ि है इनकी वर्शक्षा ू प्राइमरी
ू ि (प्राथवमक), ररफाइनरी ट्ाउनवर्शप, बेगूसराय (वबहार), माधि वि ा मम्म र इ਒रमीवडएट् कािेज,
पुरूर्ो मपुर, मीरजापुर, उ0प्र0 (दसिी-ं 1981, 13 िर्ष 6 माह में), प्रभु नारायण राजकीय इ਒र कािेज, रामनगर,
िाराणसी, उ0प्र0 (बारहिीं-1983, 15 िर्ष 6 माह में) और बी.एससी.(जीि वि৯ान) में 17 िर्ष 6 माह के उम्र में सन्
1985 ई0 में िਚाविन गोरखपुर वि वि ािय से स िी हरर ािको र महावि ािय, िाराणसी से पूणष
हुई िकनीकी वर्शक्षा में क ूट्र प्रोग्रावमंग एਔ वस म एनाविवसस में ािको र वड ोमा इम्मਔया एजुकेर्शन
से र, एम-92, कनाट् ेस, नई वद ी से सन् 1988 में पूणष हुई पर ु वजसका कोई प्रमाण पत्र नहीं है िह ৯ान
अद् भुि है अपने िीन भाई-बहनों ि एक पुत्र में िे सबसे बड़े ि सबसे कम प्रमावणि वर्शक्षा प्राप् ि हैं एक अजीब
पाररिाररक म्म थवि यह है वक प्रार वनरक्षर माूँ से होकर अ “वि र्शा ” को ि करने िािे िी िि कुर्श वसंह
िक एक ही पररिार में हैं
सभी धमषर्शा ों और भवि ििाओं के अनुसार और सभी को स रूप में ििषमान करने के विए
“वि र्शा ” को ि करने िािे िी िि कुर्श वसंह समय रूप से संसार के सिषप्रथम ििषमान में रहने िािे म्मि
हैं क्यूूँवक ििषमान की पररभार्ा है -पूणष ৯ान से युि होना और कायषर्शैिी की पररभार्ा है -भूिकाि का अनुभि,
भवि की आि किानुसार पूणष৯ान और पररणाम ৯ान से युि होकर ििषमान समय में कायष करना यं को
आ ৯ान होने पर प्रकृवि प्रद नाम के अिािा म्मि अपने मन र का वनधाष रण कर एक नाम यं रख िेिा
है वजस प्रकार “कृ ” नाम है “योगे र” मन की अि था है , “गदाधर” नाम है “रामकृ परमहं स” मन की अि था
है , “वस ाथष” नाम है “बु ” मन की अि था है , “नरे नाथ द ” नाम है “ ामी वििेकान ” मन की अि था है ,
“रजनीर्श” नाम है “ओर्शो” मन की अि था है उसी प्रकार िि कुर्श वसंह ने अपने नाम के साथ “वि मानि”
िागाकर मन की अि था को ि वकया है और उसे वस भी वकया है म्मियों के नाम, नाम है “भोगे र
वि मानि” उसकी िरम विकवसि, सिोৡ और अम्म म अि था है जहाूँ समय की धारा में िििे -िििे मनु िहाूँ
वििर्शिािर्श पहुूँ िेगा ऐसा उनका मानना है वजस प्रकार िीकृ के ज से पहिे ही ई र उन पर झोंक वदया
गया था अथाष ि् ज िेने िािा दे िकी का आठिाूँ पुत्र ई र ही होगा, यह िीकृ को ৯ाि होने पर जीिनभर िे
जनभािना को उस ई र के प्रवि वि ास बनाये रखने के विए संघर्ष करिे रहे , उसी प्रकार इस “िि-कुर्श” का
नाम उ ें ৯ाि होने पर िे भी इसे वस करने के विए जीिनभर संघर्ष करिे रहे वजसका पररणाम आपके समक्ष है
िी िि कुर्श वसंह “वि मानि”ने कभी वकसी पद पर सरकारी नौकरी नहीं की इस स में उनका
कहना था वक-“नौकरी करिा िो यह नहीं कर पािा पद पर रहिा िो केिि पद से स म्म ि ही विर्शेर्৯िा आ
पािी िैसे भी पत्र- िहार या पु क का स ৯ान और वििार से होिा हैं उसमें म्मि के र्शरीर से क्या
मििब? क्या कोई िंगड़ा या अंधा होगा िो उसका ৯ान-वििार भी िंगड़ा या अंधा होगा? क्या कोई वकसी पद पर
न हो िो उसकी स बाि गिि मानी जायेगी? वििारणीय विर्य है पर ु इिना िो जानिा हूँ वक यह आवि ार
यवद सीधे-सीधे प्र ुि कर वदया जािा िो सभी िोग यही कहिे वक इसकी प्रमावणकिा क्या है ? वफर मेरे विए
मुम्म ि हो जािा क्योंवक मैं न िो बहुि ही अवधक वर्शक्षा ग्रहण वकया था, न ही वकसी वि वि ािय का उৡ र का
र्शोधकिाष था पररणाम रूप मैंने ऐसे पद “कम्म अििार” को िुना जो समाज ने पहिे से ही वनधाष ररि कर रखा
था और पद िथा आवि ार के विए ापक आधार वदया वजसे समाज और रा৸ पहिे से मानिा और जानिा है ”
भारि अपने र्शारीररक ि िा ि संविधान के िागू होने के उपरा ििषमान समय में वजस किष
और दावय का बोध कर रहा है भारिीय संसद अथाष ि् वि मन संसद वजस सािषभौम स या सािषजवनक स की
खोज करने के विए िोकि के रूप में ि हुआ है वजससे थ िोकिंत्र, समाज थ, उ ोग और पूणष
मानि की प्राम्म हो सकिी है , उस ৯ान से युि वि ा ा िी िि कुर्श वसंह “वि मानि” िैव क ि रा र ीय बौम्म क
क्षमिा के सिोৡ और अम्म म प्रिीक के रूप में ि हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 202


वनःर्श , आ यष , िमਚार, अवि सनीय, प्रकार्शमय इ ावद ऐसे ही र्श उनके और उनके र्शा के
विए ि हो सकिे हैं वि के हजारों वि वि ािय वजस पूणष सकारा क एिं एकीकरण के वि रीय र्शोध को
न कर पाये, िह एक ही म्मि ने पूणष कर वदखाया हो उसे कैसे -कैसे र्श ों से ि वकया जाये, यह सोि पाना
और उसे ि कर पाना वनःर्श होने के वसिाय कुछ नहीं है
“वि र्शा ” के र्शा ाकार िी िि कुर्श वसंह “वि मानि” अपने पररवििों से केिि सदै ि इिना ही
कहिे रहे वक-“कुछ अৢा वकया जा रहा है ” के अिािा बहुि अवधक ाূा उ ोंने कभी नहीं की और अ में
कभी भी वबना इस र्शा की एक भी झिक वदखाये एकाएक यह र्शा प्र ुि कर वदया जाये िो इससे बड़ा
आ यष क्या हो सकिा है जो इस र पर है वक-“वि बुम्म बनाम एकि बुम्म और उसका पररणाम ये है वक
भारि को ििषमान काि में वि गुरू और संयुि रा र संघ िक के विए सािषभौम स -सै ाम्म क थापना यो৓
मागषदर्शषन अभी ही उपि हो िुका है वजससे भारि जब िाहे िब उसका उपयोग कर सके
जो म्मि कभी वकसी ििषमान गुरू के र्शरणागि होने की आि किा न समझा, वजसका कोई
र्शरीरधारी प्रेरणा स्रोि न हो, वकसी धावमषक ि राजनीविक समूह का सद न हो, इस कायष से स म्म ि कभी
सािषजवनक रूप से समाज में ि न हुआ हो, वजस विर्य का आवि ार वकया गया, िह उसके जीिन का
र्शैक्षवणक विर्य न रहा हो, 50 िर्ष के अपने ििषमान अि था िक एक साथ कभी भी 50 िोगों से भी न वमिा हो,
यहाूँ िक वक उनको इस रूप में 50 आदमी भी न जानिे हों, यवद जानिे भी हो िो पहिानिे न हों और जो
पहिानिे हों िे इस रूप को जानिे न हों, िह अिानक इस र्शा को प्र ुि कर दें िो इससे बडा िमਚार क्या हो
सकिा है
वजस म्मि का जीिन, र्शैक्षवणक यो৓िा और कमषरूप र्शा िीनों का कोई स न हो अथाष ि्
िीनों िीन म्मि का प्रविवनवध करिे हों, इससे बड़ी अवि सनीय म्म थवि क्या हो सकिी है
मूि पार्शुपि र्शैि दर्शषन सवहि अनेक मिों का सफि एकीकरण के रूप िी िि कुर्श वसह
“वि मानि” के जीिन, कमष और ৯ान के अनेक वदर्शाओं से दे खने पर अनेक दार्शषवनक, सं थापक, संि, ऋवर्,
अििार, मनु, ास, ापारी, रिनाकिाष , नेिा, समाज वनमाष िा, वर्शक्षाविद् , दू रदवर्शष िा इ ावद अनेक रूप वदखिे हैं
“आ ाम्म क स एिं दार्शषवनक विरासि” के आधार पर “काि, मनु ,युग, ास, र्शा पररििषन”, “मन
में अ र (मनि र) को समा करने ”, “मन के निीनीकरण” और "स ूणष क्राम्म " के सभी आयामों के कायषिाही
के विए “सािषभौम स -वस ा ” पर आधाररि “वि र्शा - द नािेज आफ फाइनि नािेज” र्शा को The
Knowledge Equalizer के रूप में वन विम्मखि र्शीर्षक में 64 भागों में प्रकावर्शि वकया कर वदया गया वजसमें
पररिय, ৯ान, कमष৯ान कायषिाही योजना इ ावद सभी कुछ हैं -

सारािंश के अनुसार
01. समव गीिा - यथाथष प्रकार्श
02. मैं स कार्शी से कम्म महाििार बोि रहा हूँ
भाि के अनुसार
03. वि र्शा - विर्य-प्रिेर्श
04. वि र्शा - अ ाय-एक : ई र
05. वि र्शा - अ ाय-दो : जीिन पररिय
06. वि र्शा - अ ाय-िीन : ৯ान पररिय
07. वि र्शा - अ ाय-िार : कमष पररिय (सािषजवनक प्रमावणि महाय৯)
08. वि र्शा - अ ाय-पाूँ ि (भाग - 01) : सािषजवनक प्रमावणि वि रूप
09. वि र्शा - अ ाय-पाूँ ि (भाग - 02) : सािषजवनक प्रमावणि वि रूप
10. वि र्शा - पररवर्श

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 203


शीषणक के अनुसार
11. वि र्शा द नािेज आफ फाइनि नािेज-पररिय
12. प्रारम्म क स - अम्म म व
13. ई र का संवक्ष इविहास
14. वि रीय वफ िेखन किा
15. स धमष - युग पररििषक व
16. स दार्शषवनक और दर्शषन
17. स र्शा एिं पुराण रह -महवर्ष ास किा
18. अििार - अम्म म स व
19. भवि िावणयाूँ और कम्म अििार
20. ामी वििेकान और कम्म अििार
21. बु਌ा कृ - कृ का भाग दो और अम्म म
22. कार्शी - मोक्षदावयनी और जीिनदावयनी
23. स कार्शी - णषयुग का िीथष
24. गणरा৸, संघ और मानकीकरण संगठन
25. मन का वि मानक और पू णष मानि वनमाष ण की िकनीकी (WCM-TLM-SHYAM.C)
26. वि मानि-भूिपूिष नेिृ किाष ओं का व करण
27. वि मानि-ििषमान नेिृ किाष ओं का व करण
28. वि मानि-िािाष , िि एिं िावणयाूँ
29. वि मानि-पत्राििी एिं प्रसारण
30. वि र्शाम्म - अम्म म स व
31. ापार के (TRADE CENTRE)- स
32. पुनवनषमाष ण (RENEW)-सम ा, समाधान और रा र वनमाष ण की योजना
33. स जनवहि आ ान
34. िसुधैि - कुट्ु कम्
35. मैं, म्मिगि या सािषभौम
36. सािषभौम एका - नि वि वनमाष ण
37. िि कुर्श वसंह (कम्म महाअििार)-जीिन, ৯ान, कमष और वि रूप
38. णषयुग का मानक आदर्शष नागररक - वदर्शा वनदे र्श
39. कमषिेद : प्रथम अम्म म िथा पंिम िेद
40. वि धमष : पररिय ( णषयुग का धमष)
41. मानक विपणन प्रणािी (3F-FUEL-FIRE-FUEL)
42. कम्म महाििार आ िुके हैं (ACTION PLAN)
43. आठिें अििार िीकृ के अनकहे संदेर्श
44. अयो ा नहीं, मुंगेर है राम ज भूवम
45. संि एिं गुरू और वि संि एिं गुरू
46. समाज और ई रीय समाज
47. स र्शा और वि र्शा
48. कृवि और वि कृवि
49. भारि मािा मम्म र और वि धमष मम्म र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 204


मनु, मनि र और कम्म
50. महाििार
ऋवर्, ऋवर् पर रा और कम्म
51. महाििार
52. ास, र्शा और कम्म महाििार
महाभारि और वि भारि
53.
िि कुर्श (त्रेिायुग) और ििकुर्श (कवियुग)
54.
दे िीयाूँ और सािषभौम दे िी माूँ कम्म
55.
56. ादर्श ৸ोविविंग और 13िां अम्म म ৸ोविविंग
2020 - मन का निीनीकरण
57.
िैव क बु - बु का भाग दो और अम्म म
58.
पुनवनषमाण (RENEW)- ग्राम एिं नगर िाडष प्रेरक
59.
दे ििा और सािषभौम दे ििा कम्म
60.
स ूणष क्राम्म -अम्म म कायष योजना
61.
संविधान और वि संविधान
62.
वर्शक्षा और पूणष वर्शक्षा
63.
राम, रािण और सािषभौम एका
64.
म्मि और विभागीय र पर सफाई-सुधार का पहिा प्रारूप की पु क – “विर्शाि ৯ान-वि৯ान -
सबका समाधान” डा0 रमेर्श कुमार ारा विम्मखि एिं िि कुर्श वसंह वि मानि ारा स ावदि है

”ििषमान में वि (WORLD) पृ ी की सीमा िक के अथों में अवधकिम प्रयोग होिा है पर ु


मानिीय म्मिगि व में प्र ेक मनु का वि , जगि् , संसार, सृव ि दु वनया उिना ही बड़ा होिा है वजिने
क्षेत्र िक का उसका ৯ान होिा है
इस प्रकार म्मि का अपने म्मिगि व से वि को दे खना उसका प्राथवमक वि िथा म्मि
का अपने सािषभौम व से वि को दे खना उसकी अम्म म ि पूणष व होिी है
संिेदना के अनुभि की सीमा ही म्मि का र्शरीर होिा है वजस म्मि की संिेदना उसके अपने
र्शरीर िक होिा है उसके र्शरीर की सीमा उसके अपने र्शरीर िक ही होिी है इसी प्रकार जो म्मि अपने
पररिार, मुह ा, गाूँ ि, वजिा, प्रदे र्श, दे र्श, पृ ी और ब्र ाਔ िक की संिेदना का अनुभि करिा है उस
म्मि का र्शरीर उस र का होिा है अन ब्र ाਔ िक के र्शरीर का अनुभि ही ”अंह ब्र ाम्म “ कहिािा
है और अपने र्शरीर के सुख-दु ःख का अनुभि करिे हुए अपने उस र्शारीररक सीमा के विए कमष करिा है
इस प्रकार मैं िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ अन ब्र ाਔ िक की संिेदना का अनुभि कर उसे
स , वर्शि और सु र की ओर वदर्शा दे ने के विए यह ”वि र्शा “ ि वकया हूँ “
- लि कुश वसिंह ”वि मानि“

”प्र ेक म्मि केिि अपने ही वि को दे खिा है , इसविए उस वि की उ व उसके ब न के


साथ होिी है और उसकी मुम्मि से िह वि मय हो जािा है िथावप िह औरों के विए, जो ब न में हैं , अिर्शेर्
रहिा है नाम और रुप से ही वि बना है समुि की िरं ग, उस हद िक ही िरं ग कहिा सकिी है , जब िक
वक नाम और रुप से िह सीवमि है यवद िरं ग िु हो जाये िो िह समुि ही है यह नाम और रुप माया
कहिािा है और पानी ब्र “
- ामी वििेकान

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 205


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 206
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 207
“वि शा ”: भूवमका
(शा के र्र्ार्ण समझ के वलए ररक्त मन्त की आि कता)

मनु का प्र ेक बৡा वन क्ष, पूणष, धमषयुि, धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि रूप में ही होिा है
जैसे-जैसे िह बड़ा होिा है , बৡे के पूिषििी सं ार, वििारधारा, धारणाएूँ ि मा िाएूँ उसे बाूँ धिे हुये अपूणष, पक्ष ि
स दाययुि बना दे िी है और िह जीिन पयष उस छवि में बूँधकर एक विर्शेर् प्रिृव के मनु के रूप में ि
होिा है यह उसी प्रकार होिा है वजस प्रकार एक नया क ूट्र वजसमें कोई भी ए ीकेर्शन सा िेयर न डािा
गया हो और वफर उसमें वकसी विर्शेर्-विर्शेर् कायष के विए ए ीकेर्शन सा िेयर डािना र्शुरू वकया जाय िो िह
क ूट्र उस विर्शेर् कायष ि प्रिृव िािा बन जािा है वजसका उसमें ए ीकेर्शन सा िेयर डािा गया है
प्र ुि “वि र्शा : द नािेज आफ फाइनि नािेज” मनु के मम्म के विए एक ऐसा सा िेयर है
जो उसे पूणष और सभी वििारों को समझने में सक्षम बनािा है यह र्शा एक मानक र्शा है वजसमें प्र ेक र
का मनु अपनी छवि दे ख सकिा है उदाहरण रूप वजस प्रकार हम वकसी ठोस पदाथष को वकिो से िोििे हैं
उसी प्रकार मनु के मम्म को िोिने का यह र्शा है कभी भी ठोस पदाथष से वकिो को नहीं िोिा जािा
हम यह नहीं कहिे वक इिना ठोस पदाथष बराबर एक वकिो बम्म हम यह कहिे हैं वक एक वकिो बराबर इिना
ठोस पदाथष
इस र्शा को पढ़ने ि समझने के पहिे पाठकगण अपने मम्म को नये क ूट्र की भाूँ वि ररि
कर िें , वजसका मैं वनिेदन भी करिा हूँ वकसी भी पू िाष ग्रह ि सं ार से ग्रवसि होकर पढ़ने पर र्शा समझ के
बाहर हो जायेगा क्योंवक र्शा बहुआयामी (म ी डायमें नि) है अथाष ि अनेक वदर्शाओं से एक साथ दे खने पर ही
इसके ৯ान का प्रकार्श आप में प्रकावर्शि होगा ऐसा न करने पर आप र्शा को वकसी विर्शेर् वििार, मि ि
स दाय का समझ बैठ जायेंगे जो आपका वििार हो सकिा है पर ु इस र्शा का नहीं र्शा के बहुि से र्श
इसके पाठकों को कवठन अथो िािे वदख सकिे हैं यह म्मि के अपने वि न र की सम ा से ही ि हो
रहा है म्मियों को इन कवठन र्श ों के अथों को सरि भार्ा में समझना इस र्शा के क्रवमक अ यन ि वि न
से ही स ि हो सकेगा ज से मनु वसखिा ही ििा जािा है म्मि को जहाूँ पहुूँ िना होिा है उसके विए
म्मि को ही प्रय करना होिा है पहुूँ ि का िह थान म्मि िक िि कर नहीं आिा इसविए यं को िहाूँ
पहुूँ िायें , यही िाभकारी होगा आज िक र्शा ों के प्रवि व यह रही है वक ये सब रह िाद का विर्य है ऐसा
नहीं है वसफष व की बाि है वक आप वकस व से उसे समझने का प्रय करिे हैं भार्ा के अक्षर ि र्श िो िही
होिे हैं वसफष वि न र और र्श ों का अथष ही उसे कवठन ि आसान भार्ा र्शैिी में विभावजि करिा है
प्र ुि र्शा वकसी धमष -स दाय विर्शेर् की सिोৡिा का र्शा नहीं है बम्म सभी को अपने -अपने
धमष -स दाय और एक दू सरे के धमष -स दाय के प्रवि समझ को विकवसि करिे हुये ৯ान ि कमष৯ान ारा
एकीकरण का र्शा है एक मात्र ৯ान ि कमष৯ान ही ऐसा विर्य है जो मनु को मनु से जोड़ सकिा है क्योंवक
इसका स सीधे मम्म से है और कौन नहीं िाहे गा वक उसका मम्म ৯ान-बुम्म के विए पूणषिा की ओर
बढ़े ৯ान-कमष৯ान के अिािा जो कुछ है िह सं ृ वि है और उस पर एकीकरण अस ि ही नहीं नामुमवकन है
मैं यह कभी नहीं िाहिा वक यह पृ ी एकरं गी हो जाये वजस प्रकार प्र ेक घर का माविक अपने बाग में अनेक
रं ग ि प्रकार का फूि इसविए उगािा है वक उसके बाग की सु रिा और वनखरे उसी प्रकार परमा ा ने इस पृ ी
पर समय-समय पर उ अनेक अििारों, पैग रों, दू िों इ ावद के मा म से धमष-स दाय उ कर मनु ों
को युगों-युगों से सं ाररि ि वनमाष ण की प्रवक्रया प्रार वकया है िावक उसकी यह पृ ी रूपी बाग सु र और
रं गवबरं गी िगे और अब िह समय आ िुका है वजसमें मनु को पूणष सं ाररि वकया जाये यह जानना आि क
है वक यह र्शा उस सिोৡ और अम्म म मन र पर जाकर मनु को पूणष सं ाररि करने के विए आवि ृ ि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 208


वकया गया है जैसे कोई म्मि िाूँ द पर बैठकर अपने इस पृ ी रूपी घर को संयुि पररिार का रूप दे ने और
वबखरे हुये पररिार के एकीकरण का प्रयास एक वििारधारा“सािषभौम सि् य-वस ा ” ारा वकया है
यह र्शा ििषमान िक के सभी अििारों, महापुरूर्ों, धमष-स दाय प्रििषकों, रा र ीय ि िैव क वििार
ि करने िािे सामावजक-धावमषक-राजनैविक नेिृ किाष ओं के सकारा क वििारों के सम य और उसके
रा र ीय ि िैव क र्शासन प्रणािी के अनुसार थापना के विए एिं मनु जीिन में उसके ािहारीकरण का र्शा
है वकसी भी एक अििार, महापुरूर्, धमष -स दाय प्रििषक, रा र ीय ि िैव क वििार ि करने िािे सामावजक-
धावमषक-राजनैविक नेिृ किाष के सकारा क वििार को िेकर समाज गठन ि “स ूणष क्राम्म ” घवट्ि नहीं हो
सकिी उसके विए िावहए सम य सम य का अथष ही है -“वजसमें सभी हों, और सभी में िो हो” र्शा में ऐसे
बहुि से वििार वमिेगें जो ििषमान में स ि समझ में न वदखाई दे िी हो पर ु िह मनु के अपने कमो के प्रयोग
और उससे प्रा ৯ान के फि रूप अ में स वस होगीं क्योंवक यह र्शा सािषभौम स -वस ा पर
आधाररि है वजससे मनु बाहर नहीं है इसी कारण से इस र्शा को “अम्म म ৯ान का ৯ान (The Knowledge
of final knowledge)” भी कहा गया है और यह भी कहा गया है “सभी सिोৡ वििार एिं सिोৡ कमष मेरी ओर
ही आिे है
वकसी भी अििार-महापुरूर् इ ावद का सािषभौम स ৯ान एक हो सकिा है पर ु उसके थापना
की किा उस अििार-महापुरूर् इ ावद के समय की समावजक ि र्शासवनक ि था के अनुसार अिग-अिग
होिी है , जो पुनः दु बारा प्रयोग में नहीं िायी जा सकिी ििषमान िक ऐसा कोई उदाहरण नहीं वमििा वजससे यह
वस होिा हो वक उस अििार-महापुरूर् इ ावद की किा को दु बारा प्रयोग कर कुछ सकारा क वकया गया हो
इस प्रकार पुनजष और अििार केिि मानवसक रूप से वस होिा है न वक र्शारीररक रूप से उस अििार-
महापुरूर् इ ावद की किा, िेर्श-भूर्ा की नकि करने िािे को समथषक या नकििी कहिे हैं जबवक उनके
मानवसक र को समझकर आगे काम करने िािे को उनका पुनजष और अििार कहिे हैं ामी वििेकान
के पुनजष या अििार को ामी वििेकान के काम को आगे बढ़ाना होगा िीकृ के पुनजष या अििार को
िीकृ के काम को आगे बढ़ाना होगा केिि उनके रूप को धारण करना िो नकि या समथषन करना ही कहा
जायेगा
वकसी भी अििार-महापुरूर् इ ावद के दर्शषन या वित्र से अवधकिम िाभ िभी प्रा हो सकिा है जब
उनकी वििार ि कृवि का ৯ान ि समझ हो उसी से मनु का विकास स ि है मैं यह िाहूँ गा वक मुझसे अवधक
मह इस “वि र्शा ” नामक कृवि को समाज दे क्योंवक इसी में उनका विकास है यह भौविक र्शरीर वजसके
मा म से यह कायष स हुआ िह िो एक वदन न हो जायेगा पर ु यह कृवि ििषमान समाज के संसाधनों ि
वि৯ान की िकनीकों के सहारे बहुि अवधक समय िक रहे गी इसे उसी प्रकार समझें वजस प्रकार ििषमान भौविक
वि৯ान से आवि ृ ि पंखा, ब , मोबाइि, क ूट्र इ ावद का समाज उपयोग करिा है न वक इसके
आवि ारकिाष का दर्शषन ि वित्र की पूजा अथाष ि यह र्शा ही गुरू है न वक इसके आवि ारक का र्शरीर इस
कारण से ही मैंने वजस र्शरीर का प्रयोग इस कायष के विए वकया है , उसका िह एकमात्र रूप ही र्शा में वदया हूँ जो
“৯ान, कािबोध िथा र्श ब्र ” प्राम्म की उम्र 28 िर्ष की अि था का है ििषमान में मैं इससे बहुि दू र आ िुका हूँ
जहाूँ पहिान ही अस ि है
प्र ेक मनु के विए 24 घंट्े का वदन और उस पर आधाररि समय का वनधाष रण है और यह पूणषिः
मनु पर ही वनभषर है वक िह इस समय का उपयोग वकस गवि से करिा है उसके समक्ष िीन बढ़िे मह के र
है -र्शरीर, धन/अर् थ और ৯ान इन िीनों के विकास की अपनी सीमा, र्शम्मि, गवि ि िाभ है वजसे यहाूँ
करना आि क समझिा हूँ -
01. शरीर आधाररत ापार- यह ापार की प्रथम ि मूि प्रणािी है वजसमें र्शरीर के प्र क्ष प्रयोग ारा
ापार होिा है इससे सबसे कम ि सबसे अवधक धन कमाया जा सकिा है पर ु यह कम धन कमाने के विए
अवधक िोगों को अिसर िथा अवधक धन कमाने के विए कम िोगों को अिसर प्रदान करिा है अथाष ि् र्शरीर का

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 209


प्र क्ष प्रयोग कर अवधक धन कमाने का अिसर कम ही िोगों को प्रा होिा है यह प्रकृवि ारा प्रा गुणों पर
अवधक आधाररि होिी है जो एक अिवध िक ही प्रयोग में िायी जा सकिी है क्योंवक र्शरीर की भी एक सीमा
होिी है उदाहरण रुप-वकसान, मजदू र, किाकार, म्मखिाड़ी, गायक, िादक, पहििान इ ावद वजसमें
अवधकिम संূा कम कमाने िािों की िथा ूनिम संূा अवधक कमाने िािों की है र्शरीर आधाररि ापारी
हमेंर्शा धन ि ৯ान आधाररि ापाररयों पर वनभषर रहिे हैं इस ापार में र्शरीर की उपयोवगिा अवधक िथा धन ि
৯ान की उपयोवगिा कम होिी है
02. धन/अर्ण आधाररत ापार- यह ापार की दू सरी ि म म प्रणािी है वजसमें धन के प्र क्ष प्रयोग ारा
ापार होिा है इससे अवधक धन कमाया जा सकिा है और उन सभी को अिसर प्रदान करिा है वजनके पास धन
होिा है उदाहरण रुप-दु कानदार, उ ोगपवि, ापारी इ ावद धन आधाररि ापारी हमेंर्शा र्शरीर ि ৯ान
आधाररि ापाररयों पर वनभषर रहिे हैं इस ापार में धन की उपयोवगिा अवधक िथा र्शरीर ि ৯ान की उपयोवगिा
कम होिी है
03. ৯ान आधाररत ापार- यह ापार की अम्म म ि मूि प्रणािी है वजसमें ৯ान के प्र क्ष प्रयोग ारा
ापार होिा है इससे सबसे अवधक धन कमाया जा सकिा है और उन सभी को अिसर प्रदान करिा है वजनके
पास ৯ान होिा है उदाहरण रुप-वि ािय, महावि ािय, वि वि ािय एिं अ वर्शक्षा ि वि ा अ यन सं थान,
र्शेयर कारोबारी, बीमा िसाय, प्रणािी िसाय, क े , ৯ान-भम्मि-आ था आधाररि ट्र -मठ इ ावद ৯ान
आधाररि ापारी हमेंर्शा र्शरीर ि धन आधाररि ापाररयों पर वनभषर रहिे हैं इस ापार में ৯ान की उपयोवगिा
अवधक िथा र्शरीर ि धन की उपयोवगिा कम होिी है
र्शरीर के विकास के उपरा मनु को धन के विकास की ओर, धन के विकास के उपरा मनु को
৯ान के विकास की ओर बढ़ना िावहए अ था िह अपने से उৡ र िािे का गुिाम हो जािा है बािजूद
उपरोि सवहि इस र्शा से अिग वििारधारा में होकर भी मनु जीने के विए ि है पर ु अ िः िह वजस
अट्िनीय वनयम-वस ा से हार जािा है उसी सािषभौम स -वस ा को ई र कहिे हैं और इसके अंर्श या पूणष
रूप को प्र क्ष या प्रेरक विवध का प्रयोग कर समाज में थावपि करने िािे र्शरीर को अििार कहिे हैं िथा इसकी
ाূा कर इसे म्मि में थावपि करने िािे र्शरीर को गुरू कहिे हैं मनु केिि प्रकृवि के अ वनयमों को
में पररििषन करने का मा म मात्र है इसविए मनु िाहे वजस भी वििार में हो िह ई र में ही र्शरीर धारण
करिा है और ई र में ही र्शरीर ाग दे िा है , इसे मानने या न मानने से ई र पर कोई प्रभाि नहीं पड़िा यह उसी
प्रकार है जैसे कोई वकसी दे र्श में रहे और िह यह न मानने पर अड़ा रहे वक िह उस दे र्श का नहीं है या कोई यं
को यह समझ बैठे वक मेरे जैसा कोई ৯ानी नहीं और यवद हो भी िो मैं नहीं मानिा
कोई अििार वकसी स दाय, जावि, नारी, पुरूर् इ ावद में भेद-भाि से युि होकर कायष नहीं करिे , िे
स ूणष मानि जावि को सािषभौम स -वस ा से जोड़ने के विए कायष करिे हैं जो मनु वििारर्शीि नहीं हैं िे
पर्शुमानि हैं , जो वििारर्शीि हैं िे मानि हैं मानिों में भी जो म्मििादी हैं िे असुर-मानि िथा जो समाजिादी हैं िे
दे ि-मानि हैं िे मानि जो सािषभौम स -वस ा से युि हैं िे ई र-मानि हैं अििारों का कायष पर्शुमानि और
मानि को ई र-मानि िक उठाना होिा है अििारों को वकसी स दाय या पूिषििी धमष से जोड़ दे ना यह मानिों
की अपनी व होिी है अििारों का िশ सदै ि समाज में सािषभौम स -वस ा की थापना रहा है उनका
िশ कभी भी ऐ यष युि जीिन या न र समावजक विर्य या रि-रर ा-धन स से िगाि नहीं रहा है र्शरीर
धारण के धमष के विए इन सबकी आि किा मात्र साधन रूप अि रहा है पर ु िশ या सा रूप कभी
नहीं रहा है िूूँवक अििार भी र्शरीरधारी ही होिे हैं इसविए समाज के मानि भी अपने -अपने वप्रय ि ु के िगाि
की भाूँ वि उ ें भी उसी में वि वदखाई पड़िे हैं
वनराकार वििार के समान सािषभौम स -वस ा का भी अपना कोई गुण नहीं होिा जब िह
पूणषरूपेण वकसी साकार र्शरीर से ि होिा है िब उसका गुण एका ৯ान, एका िाणी, एका प्रेम, एका
कमष , एका समपष ण और एका ान के सिोৡ संयुि रूप में ि होिा है िूूँवक पुनः इन गुणों का अिग-

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 210


अिग कोई रूप नहीं होिा इसविए इन गुणों से युि करिे हुये समाज के पररििषक और वनयंत्रक ऋृवर्-मुवन गणों
ने मानक िररत्रों का साकार वनरूपण या प्रक्षेपण वकये जैसे एका ৯ान ि एका िाणी से युि ब्र ा पररिार,
एका ৯ान-एका िाणी सवहि एका प्रेम ि एका कमष से युि वि ु पररिार, एका ৯ान-एका िाणी-
एका प्रेम-एका कमष सवहि एका समपषण ि एका ान से युि वर्शि-र्शंकर पररिार क्रमर्शः ये आदर्शष
मानक म्मि िररत्र, आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र ि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र के रूप में
प्र ुि वकये गये ये प्र ुिीकरण ि नहीं हैं बम्म एक दू सरे में समावहि और उ रो र, उৡिर म्म थवि के हैं
अथाष ि ब्र ा, वि ु में िथा वि ु, वर्शि-र्शं कर पररिार में समावहि हैं इस प्र ुिीकरण से ही सािषभौम स -
वस ा आधाररि अििारों का सनािन धमष, वह दू धमष के रूप में अिग हो नये पहिान को प्रा वकया
फि रूप अििारों को भी इ ीं मानक िररत्रों के अििार के रूप में जाना जाने िगा और अििारों का ििषमान में
अिनवि होकर केिि वह दू धमष का माना जाने िगा इस प्रकार अििारों ारा ि र्शा -सावह जो मानि
समाज के विए थी उसे वह दू धमष का समझा जाने िगा वजसका उदाहरण िीकृ ारा ि“गीिा” है उपरोि
मानक िररत्रों के क्रम में आदर्शष मानक म्मि िररत्र के पूणाष ििार िीराम िथा आदर्शष मानक सामावजक म्मि
िररत्र ( म्मिगि प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र) के पूणाष ििार िीकृ हो िुके हैं अब केिि
अम्म म सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र के पूणाष ििार ही र्शेर् हैं वजसका वि ृि वििरण
इस र्शा में प्र ुि वकया गया है “वि र्शा ” को “गीिा” का ही वि ार और िृक्ष र्शा कह सकिे हैं “गीिा” में
वित्र नहीं थे इसविए िोगों को रूविकर नहीं िगी इसविए “वि र्शा ” में वित्र भी िगाये गये हैं “गीिा” म्मिगि
प्रमावणि “वि र्शा ” है जबवक “वि र्शा ” सािषजवनक प्रमावणि “वि र्शा ” है सािषभौम स -वस ा की ओर
मनु को िे जाने िािे पु क को ही र्शा कहा जािा है
वजस प्रकार ििषमान ािसावयक-समावजक-धावमषक इ ावद मानिीय संगठन में विवभ पद जैसे प्रब
वनदे र्शक, प्रब क, र्शाखा प्रब क, कमषिारी, मजदू र इ ावद होिे हैं और ये सब उस मानिीय संगठन के एक
वििार वजसके विए िह संिाविि होिा है , के अनुसार अपने -अपने र पर कायष करिे हैं और िे उसके वज ेंदार
भी होिे हैं उसी प्रकार यह स ूणष ब्र ाਔ एक ई रीय संगठन है वजसमें सभी अपने -अपने र ि पद पर होकर
जाने -अनजाने कायष कर रहें हैं यवद मानिीय संगठन का कोई कमषिारी दु घषट्नाग्र होिा है िो उसका वज ेंदार
उस मानिीय संगठन का िह वििार नहीं होिा बम्म िह कमषिारी यं होिा है इसी प्रकार ई रीय संगठन में भी
प्र ेक म्मि की अपनी बुम्म -৯ान-िेिना- ान इ ावद गुण ही उसके कायष का फि दे िी है वजसका वज ेंदार
िह म्मि यं होिा है न वक ई रीय संगठन का िह सािषभौम स -वस ा मानिीय संगठन का वििार हो या
ई रीय संगठन का सािषभौम स -वस ा यह दोनों ही कमषिारी के विए मागषदर्शषक वनयम है वजस प्रकार कोई
मानिीय संगठन आपके पूरे जीिन का वज ेंदार हो सकिा है उसी प्रकार ई रीय संगठन भी आपके पूरे जीिन का
वज ेंदार हो सकिा है वजसका वनणषय आपके पूरे जीिन के उपरा ही हो सकिा है पर ु आपके अपनी म्म थवि
के वज ेंदार आप यं है वजस प्रकार मानिीय संगठन में कमषिारी समवपषि मोहरे की भाूँ वि कायष करिे हैं उसी
प्रकार ई रीय संगठन में म्मि सवहि मानिीय संगठन भी समवपषि मोहरे की भाूँ वि कायष करिे हैं , िाहे उसका
৯ान उ ें हो या न हो और ऐसा भाि हमें यह अनुभि करािा है वक हम सब जाने-अनजाने उसी ई र के विए ही
कायष कर रहें है वजसका िশ है -ई रीय मानि समाज का वनमाष ण वजसमें जो हो स हो, वर्शि हो, सु र हो और
इसी ओर विकास की गवि हो
ई र स म्म ि वििार और उस पर आधाररि पूजा थि, प्रििन इ ावद अब एक आयोजन ि मनु के
अपने यं के सामावजक छवि बदिने का रूप िे िुका है अब आि किा यह है वक उसे और भी ढ़िा प्रदान
करने के विए म्मि को पूणष ৯ान से युि कर वदया जाये जो ৯ान-कमष৯ान से ही आ सकिा है और इसी से सभी
धमष ि जावि का स क ाण हो सकिा है वजस िृक्ष से र्शाखाएूँ वनकि िुकी हों पुनः िने में िापस नहीं भेजी जा
सकिी आि किा यह है वक हम उसके िने को और मजबूिी प्रदान करें इसी प्रकार ई र स म्म ि ापार न
िो कभी ब हो सकिा है और न ही ब होिा है वजसके सामने सभी ापार छोट्े ि अम्म थर हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 211


यह युग आकड़ो (डाट्ा), सूिनाओं, आरे ख, ग्राफ ि इं वजवनयररं ग का युग है इसविए यह र्शा भी उसी
रूप में प्र ुि है क्योंवक युग का बहुमि मन (अवधकिम मन) वजस ओर बढ़ िुका होिा है ৯ान को गवि दे ने के
विए उसी किा का प्रयोग वकया जािा है इसविए उन िोगों से मैं क्षमा िाहिा हूँ जो यह उ ीद वकये होगें वक
र्शा सदै ि कवििाओं, छ ों, दोहों ि सं ृ ि भार्ा में ही हो सकिा है सं ृ ि भार्ा में र्शा ीय म ों के गायन
के उस र्शम्मि को मैं ीकार करिा हूँ वजसके सुनने पर रोम-रोम झंकररि हो उठिा है हो सकिा है ऐसा मुझे
इसविए िगिा हो वक अनेकों ज ों से यह मेरे पूिष सं ारों में समावहि हो भार्ा िो ৯ान को ि करने का
मा म मात्र है कई भार्ाओं का ৯ानी होना अৢी बाि है िेवकन उससे भी अৢी बाि ৯ान का ৯ानी होना है मैं
वकसी भी भार्ा का ৯ानी नहीं हूँ इसविए इस र्शा में ाकरण ि मात्रा क त्रुवट्याूँ वमिेगीं, उसे पकड़ने से आपके
भार्ा ৯ान की वि िा अि वस हो सकिी है पर ु र्शा वजस वदर्शा की ओर आपको वनदे र्श कर रहा है उसे
समझना अवधक उपयोगी है प्र ुि र्शा में ििषमान वि र्शासन ि था के अनुसार थापना र िक का
प्रवक्रया ि वि ेर्ण उपि है वजसके 90 प्रविर्शि भाग से सभी पररविि ही हैं र्शेर् 10 प्रविर्शि भाग व , काि
(समय), ान ि िेिना की म्म थवि और ৯ान-कमष৯ान का ििषमान वि र्शासन ि था के अनुसार रूपा रण है
और वबखरे हुये ৯ान सूत्रों को संगवठि रूप दे िे हुये कायष योजना की वदर्शा ि की गयी है यह ऐसे था वक घर
बनाने के विए सारा वनमाष ण कायष पहिे ही पूणष वकया जा िुका था वसफष छि डािना था, यह र्शा िही छि है जो
पूणष वकया गया है और अब इस छि के नीिे और भी सु रिा के विए स म्म ि विर्य के विर्शेर्৯ों के सहयोग के
विए सदा ही ागि रहे गा अपनी यात्रा ि िािाष के दौरान मेरे सामने यह भी प्र आया वक इस र्शा में अवधकिम
िो पहिे से ही वि मान विर्यों को ही वदया गया है िो वफर आपका अपना क्या है ? िो मैं उन िोगों से यह कहना
िाहिा हूँ वक मेरा इसमें “समझ ि एकत्रीकरण” नाम की किा ि विर्य है इसे आप सब इस प्रकार समझ सकिे
हैं आपकी जमीन थी, ईंट् था, बािू, सीमें਒, छड़ सब आपका था आप कुछ नहीं कर पा रहे थे एक म्मि
आया, उसने उसे संगवठि करने की योजना बनाया, एक रूप वदया और मकान बना वदया वफर घर वकसका हुआ?
घर भी िो आपका ही हुआ यह र्शा वि৯ान की भाूँ वि ৯ान-कमष৯ान का एक क्रवमक अ यन का र्शा है , जो
आपका ही है
समाज के म्मि यह भी कह सकिे हैं वक मैं “भारि” के सं ृ वि ि सं ारों के पूिाष ग्रह से ग्रवसि हूँ
िो मैं उन िोगों से यह कहना िाहिा हूँ वक मैं उस “भारि” के सं ृ वि ि सं ारों के पूिाष ग्रह से ग्रवसि हूँ वजसने
वि का सिषप्रथम, प्रािीन और ििषमान िक अकाਅ “वक्रया-कारण” दर्शषन कवपि मुवन के मा म से वदया वजसे
आज का वि৯ान (पदाथष या भौविक वि৯ान) ने भी आइ ट्ाइन के मा म से E=mc2 दे कर और ढ़िा ही
प्रदान की है मैं उस भारि के पूिाष ग्रह से ग्रवसि हूँ जहाूँ ऐसी प्र ेक ि ु वजससे मनु जीिन पािा है और ऐसी
प्र ेक ि ु वजससे मनु का जीिन संकट् में पड़ सकिा है उसे दे ििा माना जािा है इस प्रकार हमारे भारि में
33 करोड़ दे ििा पहिे से ही हैं इस प्रकार हमारा भारि स ूणष ब्र ाਔ को ही दे ििा और ई र के रूप में दे खिा
ि मानिा है और इसकी ि था ि विकास हे िु कमष करिा रहा है मैं उस “भारि” के पूिाष ग्रह से ग्रवसि हूँ वजसने
“र्शू ” ि “दर्शमिि” वदया वजस पर वि৯ान की भार्ा गवणि ट्ीकी हुई है मैं गिष से कहिा हूँ वक मैं उस“भारि” के
सं ृ वि ि सं ारों के पूिाष ग्रह से ग्रवसि हूँ वजसका अपनी भार्ा में नाम “भारि” है िथा वि भार्ा में नाम “INDIA”
है मैं “INDIA” का विरोध नहीं करिा बम्म भारि को वि भारि बनाकर नाम “INDIA” को पूणषिा प्रदान करना
िाहिा हूँ मैं संकुिन में नहीं बम्म ापकिा में वि ास करिा हूँ मैं अंर्श में नहीं बम्म पूणषिा, समग्रिा ि
सािषभौवमकिा में वि ास करिा हूँ समग्र ब्र ाਔ वनर र फैि रहा है मानि जावि को भी अपने मम्म और
हृदय को फैिा कर वि ृि करना होगा िभी विकास, र्शाम्म , एकिा ि म्म थरिा आयेगी िो मैं उन िोगों से कहना
िाहिा हूँ वक भारि को समझने के विए “भारि मािा” में ज िेना पड़िा है और “भारि मािा” आिीर्शान कोठीयों
में नहीं गाूँ िों, झोपवड़यों ि जंगिों में वमििी हैं और िहीं जाना पड़िा है इविहास साक्षी है ऐसा ही हुआ है केिि
पु कों को पढ़कर भारि को जानना अस ि है भारि की समझ कोई प्रापट्ी (धन-दौिि) नहीं जो विरासि में िे
िी जाये, यह अनेक ज ों का फि होिा है िोगों का ऐसा भी कहना है वक जब यह“वि र्शा ” है िो इसमें भारि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 212


के बाहर के दे र्शों के दार्शषवनकों को थान क्यों नहीं वदया गया? इस प्र के उ र में मैं यह कहना िाहिा हूँ वक
“वि र्शा ” एकीकृि सािषभौम स -वस ा का र्शा है न वक वििारों का मनु समाज में वििार आधाररि
िाहे वजिनी बड़ी क्राम्म या समथषन क्यों न प्रा कर विया जाये िह सािषभौम स -वस ा नहीं हो सकिा, िह
एक घट्ना अि हो सकिी है संसार के सभी दार्शषवनक यवद अपने दर्शषन को सािषभौम एकीकृि करें गे िो उ ें
भारिीय दर्शषन में ही अपना अम्म म सं ार करिाना पड़े गा वििारों की मृ ु ही स है अथाष ि स , एक वििार
नहीं बम्म आ साि् करने का विर्य है
सन् 1893 से सन् 1993 के 100 िर्ो के समय में वि के बौम्म क र्शम्मि को वज ोंने सबसे अवधक
हििि दी िे हैं -धमष की ओर से ामी वििेकान और धावमषकिा की ओर से आिायष रजनीर्श“ओर्शो” मनु
वजस प्रकार भौविक वि৯ान के निीन आवि ारों को आसानी से ग्रहण करिा है उसी प्रकार धमष-आ ा -दर्शषन
के निीन आवि ारों को भी मनु को ग्रहण करना िावहए, िभी मानवसक-आ ाम्म क ि िा का अनुभि हो
सकेगा अ था पूणष र्शारीररक गुिामी का समय बीि िुका, आवथषक गुिामी का काि िि रहा है और मानवसक
गुिामी के काि िक्र में मनुर््य फूँस जायेगा ामी वििेकान जी का कहना था-“उसी मूि स की वफर से
वर्शक्षा ग्रहण करनी होगी, जो केिि यहीं से, हमारी इसी मािृभूवम से प्रिाररि हुआ था वफर एक बार भारि को
संसार में इसी मूि ि का-इसी स का प्रिार करना होगा ऐसा क्यों है ? इसविए नहीं वक यह स हमारे र्शा ों
में विखा है िरन् हमारे रा र ीय सावह का प्र ेक विभाग और हमारा रा र ीय जीिन उससे पूणषिः ओि-प्रोि है इस
धावमषक सवह ुिा की िथा इस सहानुभूवि की, मािृ भाि की महान वर्शक्षा प्र ेक बािक, ी, पुरुर्, वर्शवक्षि,
अवर्शवक्षि सब जावि और िणष िािे सीख सकिे हैं िुमको अनेक नामों से पुकारा जािा है , पर िुम एक हो ”
(वजिने मि उिने पथ, िीरामिीकृ वमर्शन, पृ -39) आिायष रजनीर्श“ओर्शो” का कहना था-“िीकृ का मह
अिीि के विए कम भवि के विए ৸ादा है सि ऐसा है वक िीकृ अपने समय से कम से कम पाूँ ि हजाेार
िर्ष पहिे पैदा हुये सभी मह पूणष म्मि अपने समय से पहिे पैदा होिे हैं और सभी गैर मह पूणष म्मि अपने
समय के बाद पैदा होिे हैं बस मह पूणष और गैर मह पूणष में इिना फकष है और सभी साधारण म्मि अपने
समय के साथ पैदा होिे हैं मह पूणष म्मि को समझना आसान नहीं होिा उसका ििषमान और अिीि उसे
समझने में असमथषिा अनुभि करिा है जब हम समझने यो৓ नहीं हो पािे िब हम उसकी पूजा र्शुरु कर दे िे हैं या
िो हम उसका विरोध करिे हैं दोनों पूजाएं हैं एक वमत्र की एक र्शत्रु की ”, “इस दे र्श को कुछ बािे समझनी होगी
एक िो इस दे र्श को यह बाि समझनी होगी वक िु ारी परे र्शावनयों, िु ारी गरीबी, िु ारी मुसीबिों, िु ारी दीनिा
के बहुि कुछ कारण िु ारे अंध वि ासों में है , भारि कम से कम डे ढ़ हजार साि वपछे वघसट् रहा है ये डे ढ़
हजार साि पूरे होने जरूरी है भारि को म्मखंिकर आधुवनक बनाना जरूरी है मेरी उ ुकिा है वक इस दे र्श का
सौभा৓ खुिे, यह दे र्श भी खुर्शहाि हो, यह दे र्श भी समृ हो क्योंवक समृ हो यह दे र्श िो वफर िीराम की धुन
गुंजे, समृ हो यह दे र्श िो वफर िोग गीि गाूँ ये, प्रभु की प्राथषना करें समृ हो यह दे र्श िो मंवदर की घंवट्या वफर
बजे , पूजा के थाि वफर सजे समृ हो यह दे र्श िो वफर बाूँ सुरी बजे िीकृ की, वफर रास रिे! यह दीन दररि
दे र्श, अभी िुम इसमें िीकृ को भी िे आओंगे िो राधा कहाूँ पाओगे नािनेिािी? अभी िुम िीकृ को भी िे
आओगें, िो िीकृ बड़ी मुम्म ि में पड़ जायेंगे, माखन कहाूँ िुरायेगें? माखन है कहाूँ ? दू ध दही की मट्वकया कैसे
िोड़ोगे? दू ध दही की कहाूँ , पानी िक की मट्वकया मुम्म ि है निों पर इिनी भीड़ है ! और एक आध गोपी की
मट्की फोड़ दी, जो नि से पानी भरकर िौट् रही थी, िो पुविस में ररपोट्ष दजष करा दे गी िीकृर््ण की, िीन बजे राि
से पानी भरने खड़ी थी नौ बजिे बजिे पानी भर पायी और इन स৪न ने कंकड़ी मार दी धमष का ज होिा है जब
दे र्श समृ होिा है धमष समृ की सुिास है िो मैं जरूर िाहिा हूँ यह दे र्श सौभा৓र्शािी हो िेवकन सबसे बड़ी
अड़िन इसी दे र्श की मा िाएं है इसविए मैं िुमसे िड़ रहा हूँ िु ारे विए ”
ििषमान में जीने का अथष होिा है -वि ৯ान जहाूँ िक बढ़ िुका है िहाूँ िक के ৯ान से अपने मम्म को
युि करना िभी डे ढ़ हजार िर्ष पुराने हमारे मम्म का आधुवनकीकरण हो पायेगा वसफष ििषमान में िो पर्शु
रहकर कमष करिे हैं यह र्शा मनु के मम्म के आधुवनकीकरण का र्शा है या वि৯ान की भार्ा में कहें िो

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 213


मम्म के आधुवनकीकरण का सा िेयर या माइक्रो वि (Integrated Circuit-I.C) है ििषमान की अब
निीनिम पररभार्ा है -पूणष ৯ान से युि होना और कायषर्शैिी की पररभार्ा है -भूिकाि का अनुभि, भवि की
आि किानुसार पूणष৯ान और पररणाम ৯ान से युि होकर ििषमान समय में कायष करना
अपने स को ि समाज के म्मियों से मुझे यह भी सूिना प्रा हुई वक दु वनया बहुि िेज (फा ) हो
गई है 1500 पृ का पु क पढ़ने का समय वकसके पास है ? मुझे बहुि ही आ यष होिा है एक िरफ मनु के
पूरे मम्म को आधुवनक करना है वजसके न होने से िह अपने कमो का वज ेंदार ई र को बनािा है , दू सरी
िरफ उसे पढ़ने का समय नहीं है िो मैं उनसे कहिा हूँ मागष या रा ा बनाने िािा, मागष इसविए बनािा है वक
िोग उसपर ििकर अपनी मंवजि िय करे गें बस उसका इिना ही धमष होिा है ििने िािा अगर न ििे िो मागष
बनाने िािा दोर्ी नहीं होिा और िह अपनी वज ेंदारी से मुि भी होिा है मैंने वसफष मागष बनाया है जो इस र्शा
के रूप में आपके सामने है हाूँ इिना जरूर करू ूँ गा वक मागष बन गया है इसकी सूिना समाज में अवधकिम क्षेत्र
िक पहुूँ िाने की कोवर्शर्श करू ूँ गा मेरा यही कमष है वजसे मैं करू ूँ गा एक म्मि सामा िः यवद ािक
(ग्रेजुएर्शन) िक पढ़िा है िो िह वकिने पृ पढ़िा होगा और क्या पािा है ? वििारणीय है एक म्मि इं वजवनयर ि
डाक्टर बनने िक वकिना पृ पढ़िा है ? यह िो होिी है कैररयर की पढ़ाई इसके अिािा कहानी, कवििा, उप ास,
वफ इ ावद के पीछे भी मनु अपना समय मनोरं जन के विए िीि करिा है और सभी एक िमਚार के
आगे निम क हो जािे हैं िो पूणष मानवसक ि िा कहाूँ है ? वििारणीय विर्य है िैसे भी मैं यहाूँ कर दे ना
िाहिा हूँ वक यह र्शा िो ৯ान-कमष৯ान का र्शा है जो प्र ेक म्मि की ििषमान की आि किा है और
उसकी मह ा धीरे -धीरे ही सही पर ु भवि में बढ़िी ही जायेगी मैंने जहाूँ िक दे खा है वक ऐसे म्मि वजनका
धनोपाजषन िम्म थि िि रहा है िे ৯ान की आि किा या उसके प्राम्म की आि किा के प्रवि रूवि नहीं िेिे
पर ु िे भूि जािे हैं वक ৯ान की आि किा िो उ ें ৸ादा है वजनके सामने भवि पड़ा है और उ ें
आि किा है जो दे र्श-समाज-वि के नीवि का वनमाष ण करिे हैं मैंने एक आधार िैयार वकया है वजससे आने
िािी पीढ़ी और वि वनमाष ण-विकास-वि ार के वि क दोनों को एक वदर्शा प्रा हो सके िे जो मर्शीनिि् िग
गये हैं िे जहाूँ िगे हैं वसफष िहीं िगे रहें , आम्मखर में िे भी िो संसार के विकास में ही िगे है उ ें न सही उनके बৡों
को िो ৯ान की जरूरि होगी वजसके विए िे एक ि ा समय और धन उनके ऊपर खिष करिे हैं मेरा मानना है
वक गरीबी, बेरोजगारी इ ावद का बहुि कुछ कारण ৯ान, ान, िेिना जैसे विर्यों का मनु के अ र अभाि होने
से ही होिा है मनु जीिन पयष रोजी-रोट्ी, धनोपाजषन इ ावद के विए भागिा रहिा है पर ु यवद मात्र 6 महीने
िह ৯ान, ान, िेिना जैसे विर्यों पर पहिे ही प्रय कर िे िो उसके सामने विकास के अन मागष खुि जािे हैं
৯ान, ान, िेिना की यही उपयोगीिा है वजसे िोग वनरथषक समझिे हैं बिपन से अनेक िर्ो िक मािा-वपिा-
अवभभािक अपने बৡों के वि ािय में धन भेजिे हैं , बৡा िहाूँ से कौन सा सामान िािा है , वििारणीय विर्य है ?
िेज इिेक्टरावनक संिार मा म के मोबाइि ि इ रनेट् के इस दु वनया में यह भी दे खने को वमििा है
वक िड़के-िड़कीयाूँ अनेकां ेे िड़के-िड़कीयाूँ से बाि करिे हुये यं को िीकृ -गोपीयों के भाि में दे खने िगिे
हैं पर ु उ ें जानना िावहए वक िीकृ -गोवपयों का भाि वसफष यहीं िक सीवमि नहीं था िीकृ केिि गोवपयों
से बाि ही नहीं करिे थे बम्म उ ें एका की सिोৡ अनुभूवि का अनुभि भी करािे थें साथ ही िीकृ
म्मिगि रूप से योगे र अथाष ि सभी योगो की विवध से युि, वमत्र, प्रेमी, सम यी इ ावद िथा सामावजक रूप से
राजनीवि৯, कूट्नीवि৯, दार्शषवनक, निसृजन करने के विए स क कमष , स क ৯ान ि ान इ ावद गुणों से भी
युि थे इसविए उन िड़के-िड़कीयों से विर्शेर् वनिेदन हैं िीकृ के अपने विए उपयोगी एक अंर्श गुण को
धारण कर न बम्म स ूणष िीकृ बनने की ओर बढ़े िो उनके विए भी िथा रा र के विए भी उपयोगी होगा
इस छोट्े से कायष को स करने में सबसे आसान बाि यह थी वक प्र ेक मनु अपनी-अपनी
आि किाओं को प्रा करने के विए इिना अवधक था वक िह ापक सािषजवनक सोि से बहुि दू र हो
िुका था जो नौकरी पेर्शा थे िे कायष वकये , िेिन विए और र्शेर् समय िेिन िृम्म और उससे स म्म ि ििाष में ही
रहिे थे जो वि वि ाियों के प्रोफेसर-िेक्चरर थे िे केिि अपना किष वनिाष ह कर रहे थे िे वििारक थे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 214


पर ु खोज के विए ागी न थे जो वि ाथी थे िे उिना ही ৯ान प्रा इसविए कर रहे थे वजिने से िे एक अৢा
कैररयर प्रा कर अपने सुनहरे सपनों को साकार कर सकें जो धमाष िायष थे िे केिि िही पुराने र्शा ों पर ही
ाূान करने में थे जो राजनेिा थे उ ें वसफष िोट् बैंक ि पद की वि ा थी और आम जनिा िुपिाप सभी
को ढोने में थी, वजिना िजन िाद दो सब ढोने के विए िैयार और उ ीद सरकार से समय बदि िुका है
अब वि -भारि को नये महापुरूर् की आि किा है जो वजस विर्य के विए अपना समय खिष करिा है , समय
भी उसी विर्य में उसे फि दे िा है मेरे जीिन की यह एक अिग यात्रा इसी र्शा के पीछे समय खिष करने में
िगी और समय ने फिरूप से यह र्शा वदया है
यह पृ ी, मम्म र रूपी मेरा घर है जहाूँ सोने ि भोजन के विए गुरू ारा है , समय से जोड़ने के विए
मम्म द की पुकार है , प्रेम ि कमष करने के विए सारी पृ ी है और गििी हो िो प्रायव ि करने के विए वगरजाघर
(ििष) है ऐसे घर में कौन नहीं रहना िाहे गा? मैं िो इस घर में आने के विए हजारों िर्ो से प्रिीक्षा कर रहा था और
अब मैं आकर संिु , सुखी और मुम्मि की कामना के विए आ हूँ अब आने िािे समय में जब भी एक आदर्शष
िैव क समाज का वनमाष ण करना हो िो वकसी भी दे र्श या वि के विए रा र ीय-िैव क गीि या गान ऐसा होना िावहए
जो नागररकों में क ि और जोर्श की भािना का संिार करने िािी हो, न वक गुणगान, अवभन न, भम्मि, हीनिा,
भा৓िाद और अकमषਘिा की भािना भरने िािी अपरावधक कानून र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक अपराध के
बढ़िे क्रम में कड़े दਔ दे ने िािी और ाय समय सीमा में ब हो इसी आधार पर नागररकों के उनके विकास के
विए विर्शेर् अवधकार प्रा हो जो ी-पुरूर् के भेद-भाि से मुि हो साथ ही पूणष৯ान का ৯ानाजषन सबके विए
खुिा हो सभी जीिों की भाूँ वि मनु को भी भोजन का ज वस अवधकार प्रा हो साथ ही ऐसे िमाम वब दु ओं
को खोिा जाय जहाूँ धन के आदान-प्रदान की गवि बावधि हो रही हो या इक਄ा हो रहा हो क्योंवक आदान-प्रदान ही
विकास है , रूकना ही विनार्श है
“वि र्शा ”, विकास क्रम के उ रो र विकास के क्रवमक िरणों के अनुसार विम्मखि है वजससे एक
प्रणािी के अनुसार पृ ी पर हुये सभी ापार को समझा जा सके फि रूप मनु के समक्ष ापार के अन
मागष खुि जािे हैं वकसी भी वसनेमा अथाष ि वफ को बीि-बीि में से दे खकर डायिाग की भािना ि कहानी को
पूणषिया नहीं समझा जा सकिा मनु समाज में यही सबसे बड़ी सम ा है वक म्मि कहीं से कोई भी वििार या
िि या कथा उठा िेिा है और उस पर बहस र्शुरू कर दे िा है जबवक उसके प्रार और क्रवमक विकास को
जाने वबना समझ को विकवसि करना अस ि होिा है ৯ान सूत्रों का संकिन और उसे िार िेदों में विभाजन, उसे
समझने -समझाने के विए उपवनर्द् , पुराण इ ावद के िगीकरण ि क्रवमक विकास का कायष सदै ि िििा रहा है
काि और युग के अनुसार यह कायष सदै ि होिा रहा है वजससे समाज के स ीकरण का कायष होिा रहा है
सामावजक विकास के क्षेत्र में पररििषन, दे र्श-काि के पररम्म थवियों के अनुसार वकया जािा रहा है जबवक स ीकरण
मूि सािषभौम स -वस ा से जोड़कर वकया जाने िािा कायष है स ीकरण, अििारों की िथा पररििषन मनु ों
की कायष प्रणािी है इस क्रम में प्रयोग वकया गया र्शा , अपने सम वपछिे र्शा ों का समथषन ि आ साि्
करिे हुये ही होिा है , न वक विरोध वकसी भी विर्य की र्शम्मि सीमा वनधाष ररि करना, उसका विरोध नहीं होिा
बम्म उसे और आगे विकवसि करने के वब दु को वनधाष ररि करिा है
अवधकिम म्मि ऐसा सोििे हैं वक ৯ान का अ नहीं हो सकिा और म्मि ऐसा भी मानिे हैं वक
वजसका ज (प्रार ) हुआ है उसका मृ ु (अ ) भी होिा है इस प्रकार यवद ৯ान का प्रार हुआ है िो उसका
अ भी होगा इस स में ामी वििेकान जी का कहना है वक “वि৯ान एक की खोज के वसिा और कुछ
नहीं है ৸ोंही कोई वि৯ान र्शा पूणष एकिा िक पहुूँ ि जायेगा, ोंहीं उसका आगे बढ़ना रुक जायेगा क्योंवक िब
िो िह अपने िশ को प्रा कर िुकेगा उदाहरणाथष रसायनर्शा यवद एक बार उस एक मूि ि का पिा िगा
िे, वजससे िह सब ि बन सकिे हैं िो वफर िह और आगे नहीं बढ़ सकेगा पदाथष वि৯ान र्शा जब उस एक
मूि र्शम्मि का पिा िगा िेगा वजससे अ र्शम्मियां बाहर वनकिी हैं िब िह पूणषिा पर पहुूँ ि जायेगा िैसे ही धमष
र्शा भी उस समय पूणषिा को प्रा हो जायेगा जब िह उस मूि कारण को जान िेगा जो इस म िोक में एक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 215


मात्र अमृि रुप है जो इस वन पररििषनर्शीि जगि का एक मात्र अट्ि अिि आधार है जो एक मात्र परमा ा
है और अ सब आ ाएं वजसके प्रविवब रुप हैं इस प्रकार अनेके रिाद, ै ििाद आवद में से होिे हुये इस
अ ै ििाद की प्राम्म होिी है धमषर्शा इससे आगे नहीं जा सकिा यहीं सारे वि৯ानों का िरम िশ है (राम
कृ वमर्शन, वह दू धमष, पृ -16) यह समझना होगा वक धमष के स में अवधक और कुछ जानने को नहीं, सभी
कुछ जाना जा िुका है जगि के सभी धमष में, आप दे म्मखये गा वक उस धमष में अिि नकारी सदै ि कहिे हैं , हमारे
भीिर एक एक है अिएि ई र के सवहि आ ा के एक ৯ान की अपेक्षा और अवधक उ वि नहीं हो सकिी
৯ान का अथष इस एक का आवि ार ही है यवद हम पूणष एक का आवि ार कर सकें िो उससे अवधक
उ वि वफर नहीं हो सकिी (राम कृ वमर्शन, धमष वि৯ान, पृ -7) ” इस प्रकार हम पािे है वक ৯ान का अथष
वसफष सािषभौम एक है वजसका अ “सािषभौम स ” के रूप में “गीिा” ारा िथा “सािषभौम स -वस ा ” के
रूप में “वि र्शा ” ारा हो िुका है इस ৯ान के अिािा सभी ৯ान, वि৯ान, िकनीकी िथा समाज का ৯ान है
अभी ৯ान का अ हुआ है वफर वि৯ान के ৯ान का अ होगा और उसके बाद िकनीकी के ৯ान का भी अ हो
जायेगा वि৯ान के अ “गाड पाट्ीकीि” अथाष ि एक ऐसा कण जो ई र की िरह हर जगह है और उसे दे ख पाना
मुम्म ि है वजसके कारण कणों में भार होिा है , के खोज के विए ही जेनेिा (म्म ट्् जरिैਔ- फ्ां स सीमा पर) में
यूरोवपयन आगषनाइजेर्शन फार ूम्मलयर ररसिष (सनष) ारा रूपये 480 अरब के खिष से महामर्शीन िगाई गई है
वजसमें 15000 िै৯ावनक और 8000 ट्न की िु क िगी हुई है
विवभ स दाय (धमष ), जावि, मि, दर्शषन इ ावद में विभावजि इस मानि समाज में ििषमान िथा आने
िािे भवि के समय की मूि आि किा है -मानि के मनों का एकीकरण अथाष ि मानि मन का भूमਔिीकरण
एिं ब्र ाਔीयकरण इसकी आि किा इसविए भी है क्योंवक मानि अपने वि৯ान ि िकनीकी ৯ान से प्रा
संसाधनों का प्रयोग करिे हुये , एक िरफ िो ब्र ाਔ की ओर िि पड़ा है िो दू सरी िरफ वि ंस के विए अनेक
हवथयारों का भी वनमाष ण कर िुका है ऐसी म्म थवि में हमें वनव ि रूप से ऐसे एकीकरण की आि किा है वजससे
हम इस पृ ी से मानवसक र के वििादों को समा कर सकें
माया स िा के अनुसार वि के मानि समाज यह भी मान रहें थें वक 21 वदस र, 2012 को दु वनया
का अ हो जायेगा जबवक वह दू धमष र्शा वि ु पुराण, भागिि पुराण, अव্ पुराण, गरूड़ पुराण, प पुराण
इ ावद में भगिान के दसिें और महाअििार “कम्म ” का होना अभी र्शेर् है वजनसे कवियुग के अंधकार ि
विनार्श को समा करने का कायष स होगा, साथ ही स युग का आर होगा वसक्ख धमष के पवित्र ग्र
“दर्शम् ग्र ” में भी “कम्म अििार” का िणषन वमििा है सृजन और विनार्श का र र्शारीररक, आवथषक ि
मानवसक होिा है जो एक म्मि, समाज, दे र्श और वि रा र के विए होिा है म्मि पर हुये र्शारीररक, आवथषक ि
मानवसक सृजन और विनार्श को म्मि ही अनुभि करिा है पर ु समाज, दे र्श और वि रा र पर हुये र्शारीररक,
आवथषक ि मानवसक सृजन ि विनार्श को सािषजवनक रूप से सभी दे खिे है समाज, दे र्श और वि रा र पर
र्शारीररक ि आवथषक सृजन और विनार्श ििषमान में िो िि ही रहा है वजसे सािषजवनक रूप से मानि समाज दे ख
रहा है
भौविकिादी पव मी सं ृ वि वकसी भी सृजन ि विनार्श को मानवसक र पर सोि ही नहीं सकिा
क्योंवक िह सम वक्रयाकिाप को िा जगि में ही घवट्ि होिा समझिा ि समझािा है जबवक ििषमान समय
मानवसक र पर विनार्श ि सृजन का है इस आधार पर यह कहा जा सकिा है वक माया स िा के अनुसार 21
वदस र, 2012 को जो विनार्श ि सृजन होना था, िह मानवसक र का ही है वजसके पररणाम रूप सभी
स दाय, मि, दर्शषन एक उৡ र के वििार या स में वििीन अथाष ि विनार्श को “वि र्शा ” से प्रा कर िुका
है फि रूप उৡ र के वििार या स में थावपि होने से सृजन का मागष खुि िुका है कुि वमिाकर माया
स िा के कैिेਔर का अ विवथ 21 वदस र, 2012, दु वनया के अ की विवथ नहीं थी बम्म िह ििषमान युग के
अ की अम्म म विवथ और नये युग के आर की विवथ थी ई र भी इिना मूखष ि अ৯ानी नहीं है वक िह यं को
इस मानि र्शरीर में पूणष ि वकये वबना ही दु वनया को न कर दे इसके स में वह दू धमष र्शा ो में सृव के

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 216


प्रार के स में कहा गया है वक- “ई र ने इৢा ि की वक मैं एक हूँ , अनेक हो जाऊूँ” इस प्रकार जब
िही ई र सभी में है िब वनव ि रूप से जब िक सभी मानि ई र नहीं हो जािे िब िक दु वनया के अ होने का
कोई प्र ही नहीं उठिा और विकास क्रम िििा रहे गा 21 वदस र, 2012 के बाद का समय नये युग के प्रार
का समय है वजसमें ৯ान, ान, िेिना, भाि, जन, दे र्श, वि रा र , आ ाम्म क जागरण, मानििा इ ावद का
वि ापी विकास होगा पररणाम रूप सभी मानि को ई र रूप में थावपि होने का अिसर प्रा होगा और
यही वि मानि समाज की मूि आि किा है प्रािीन िैवदक काि में समाज को वनयंवत्रि करने के विए ৯ानाजषन
सबके विए खुिा नहीं था पर ु ििषमान और भवि की आि किा यह है वक समाज को वनयंवत्रि करने के विए
सभी को पूणष ৯ान से युि कर सभी के विए ৯ान को खोि वदया जाय यही कारण था वक िेद को प्रिीका क रूप
में विख कर गुरू-वर्श पर रा ारा उसकी ाূा की जािी रही थी वजससे राजा और समाज को वनयंत्रण में
रखा जा सके
ई र, अििार ि गुरू के स में समझ पैदा करने के विए ामी वििेकान जी का कहना है -“वजस
प्रकार मानिी र्शरीर एक म्मि है और उसका प्र ेक सूक्ष्म भाग वजसे हम“कोर्श” कहिे हैं एक अंर्श है उसी
प्रकार सारे म्मियों का समव ई र है , य वप िह यं भी एक म्मि है समव ही ई र है , व या अंर्श जीि
है इसविए ई र का अम्म जीिों के अम्म पर वनभषर है जैसे वक र्शरीर का उसके सूक्ष्म भाग पर और सूक्ष्म
भाग का र्शरीर पर इस प्रकार जीि और ई र पर रािि ी हैं जब िक एक का अम्म है िब िक दू सरे का
भी रहे गा और हमारी इस पृ ी को छोड़कर अ सब उूँ िे िोकों में र्शुभ की मात्रा अर्शुभ से अवधक होिी है
इसविए िह समव रुप ई र वर्शि रुप, सिषर्शम्मिमान और सिष৯ कहा जा सकिा है ये गुण प्र क्ष प्रिीि होिे
हैं ई र से स होने के कारण उ ें प्रमाण करने के विए िकष की आि किा नहीं होिी ब्र इन दोनों से परे
है और िह कोई विवर्श अि था नहीं है िह एक ऐसी ि ु है जो अनेकों की समव से नहीं बनी है िह एक ऐसी
स ा है जो सूक्ष्माविि-सूक्ष्म से िेकर ई र िक सब में ा है और उसके वबना वकसी का अम्म नहीं हो सकिा
सभी का अम्म उसी स ा या ब्र का प्रकार्श मात्र है जब मैं सोििा हूँ ”मैं ब्र हूँ ” िब मेरा यथाथष अम्म
होिा है ऐसा ही सबके बारे में है वि की प्र ेक ि ु रुपिः िही स ा है (पत्राििी भाग-2, पृ -18, राम कृ
वमर्शन) ”, “सबका ामी (परमा ा) कोई म्मि विर्शेर् नहीं हो सकिा, िह िो सबकी समव रुप ही होगा
िैरा৓िान मनु आ ा र्श का अथष म्मिगि“मैं” न समझकर, उस सिष ापी ई र को समझिा है जो
अ याष मी होकर सबमें िास कर रहा हो िे समव के रुप में सब को प्रिीि हो सकिे हैं ऐसा होिे हुये जब जीि
और ई र रुपिः अवभ हैं , िब जीिों की सेिा और ई र से प्रेम करने का अथष एक ही है यहाूँ एक विर्शेर्िा है
जब जीि को जीि समझकर सेिा की जािी है िब िह दया है , वक ु प्रेम नहीं पर ु जब उसे आ ा समझकर
सेिा करो िब िह प्रेम कहिािा है आ ा ही एक मात्र प्रेम का पात्र है , यह िुवि, ृवि और अपरोक्षानुभूवि से
जाना जा सकिा है (पत्राििी, भाग-2, पृ -109, राम कृ वमर्शन) ”, “स ईर्शोऽवनिषिनीयप्रेम रुपः “-ई र
अवनिषिनीय प्रेम रुप है नारद ारा िणषन वकया हुआ ई र का यह िक्षण है और सब िोगों को ीकार है
यह मेरे जीिन का ढ़ वि ास है बहुि से म्मियों के समूह को समव कहिे हैं और प्र ेक म्मि, व
कहिािा है आप और मैं दोनों व हैं , समाज समव है आप और मैं-पर्शु, पक्षी, कीड़ा, कीड़े से भी िुक्ष प्राणी, िृक्ष,
ििा, पृ ी, नक्षत्र और िारे यह प्र ेक व है और यह वि समव है जो वक िेदा में विराट्, वहरण गभष या ई र
कहिािा है और पुराणों में ब्र ा, वि ु, दे िी इ ावद व को म्मिर्शः ि िा होिी है या नहीं, और यवद
होिी है िो उसका नाम क्या होना िावहए व को समव के विए अपनी इৢा और सुख का स ूणष ाग करना
िावहए या नहीं, ये प्र ेक समाज के विए विर न सम ाएूँ हैं सब थानों में समाज इन सम ाओं के समाधान में
संि্ रहिा है ये बड़ी-बड़ी िरं गों के समान आधुवनक पव मी समाज में हििि मिा रही हैं जो समाज के अवधप
के विए म्मिगि ि िा का ाग िाहिा है िह वस ा समाजिाद कहिािा है और जो म्मि के पक्ष का
समथषन करिा है िह म्मििाद कहिािा है (पत्राििी, भाग-2, पृ -288, राम कृ वमर्शन) ”, “ई र उस वनरपेक्ष
स ा की उৡिम अवभ म्मि है , या यों कवहए, मानि मन के विए जहाूँ िक वनरपेक्ष स की धारणा करना स ि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 217


है , बस िहीं ई र है सृव अनावद है और उसी प्रकार ई र भी अनावद है (भम्मि योग, पृ -13, िाम कृ वमर्शन)”,
“यह सारा झगड़ा केिि इस “स ” र्श के उिट्फेर पर आधाररि है “स ” र्श से वजिने भाि सूविि होिे हैं
िे सम भाि “ई र भाि” में आ जािे हैं ई र उिना ही स है वजिनी वि की कोई अ ि ु और िा ि में,
“स ” र्श यहाूँ पर वजस अथष में प्रयुि हुआ है , उससे अवधक “स ” र्श का कोई अथष नहीं यहीं हमारी ई र
स ी दार्शषवनक धारणा है (भम्मि योग, पृ -21, िाम कृ वमर्शन)” , “गुरु के स में यह जान िेना
आि क है वक उ ें र्शा ो का ममष ৯ान हो िैसे िो सारा संसार ही बाइवबि, िेद, पुराण पढ़िा है , पर िे िो केिि
र्श रावर्श है धमष की सूखी ठठरी मात्र है जो गुरु र्श ाडं बर के िक्कर में पड़ जािे हैं , वजनका मन र्श ों की
र्शम्मि में बह जािा है , िे भीिर का ममष खो बैठिे हैं जो र्शा ों के िा विक ममष৯ हैं , िे ही असि में सৡे धावमषक
गुरु हैं (भम्मि योग, पृ -32, िाम कृ वमर्शन)”, “हम गुरु वबना कोई ৯ान प्रा नहीं कर सकिे अब बाि यह है
वक यवद मनु , दे ििा अथिा कोई गषदूि हमारे गुरु हो, िो िे भी िो ससीम है ; वफर उनसे पहिे उनके गुरु कौन
थे ? हमें मजबूर होकर यह िरम वस ा म्म थर करना ही होगा वक एक ऐसे गुरु हैं , जो काि के ारा सीमाब या
अविम्मৢ नहीं है उ ीं अन ৯ानस गुरु को, वजनका आवद भी नहीं और अ भी नहीं, ई र कहिे हैं
(राजयोग, पृ -134, िाम कृ वमर्शन)” , “संसार के प्रधान आिायों में से कोई भी र्शा ों की इस प्रकार नानाविध
ाূा करने के झमेंिे में नहीं पड़ा उ ोनें ोकों के अथष में खींिािानी नहीं की िे र्श ाथष और भािाथष के फेर
में नहीं पड़े वफर भी उ ोंने संसार को बड़ी सु र वर्शक्षा दी इसके विपरीि, उन िोगों ने वजनके पास वसखाने को
कुछ भी नहीं, कभी एकाध र्श को ही पकड़ विया और उस पर िीन भागों की एक मोट्ी पु क विख डािी,
वजसमें सब अनर् थक बािें भरी हैं ेे (भम्मि योग, पृ -33, िाम कृ वमर्शन)” , “साधारण गुरुओं से िे एक और
िेणी के गुरु होिे हैं , और िे हैं -इस संसार में ई र के अििार िे केिि र्शष से, यहाूँ िक वक इৢा मात्र से ही
आ ाम्म किा प्रदान कर सकिे हैं उनकी इৢा मात्र से पविि से पविि म्मि क्षण मात्र में साधु हो जािा है िे
गुरुओं के भी गुरु हैं -नरदे हधारी भगिान हैं (भम्मियोग, पृ -39, िाम कृ वमर्शन)” , “अििार का अथष है
जीिनमुि अथाष ि् वज ोंने ब्र प्रा वकया है अििार विर्यक और कोई विर्शेर्िा मेरी व में नहीं है
ब्र ावद पयष सभी प्राणी समय आने पर जीिनमुम्मि को प्रा करें गे, उस अि था विर्शेर् की प्राम्म में सहायक
बनना ही हमारा किष है इस सहायिा का नाम धमष है बाकी कुधमष है इस सहायिा का नाम कमष है बाकी
कुकमष है (पत्राििी भाग-1, पृर््ठ-328, िाम कृ वमर्शन) ” इस प्रकार यह अৢी प्रकार समझ िेना िावहए वक
अििार, गुरू, मािा-वपिा इ ावद ई र िु हो सकिे हैं पर ु ई र नहीं
मैं ही इस र्शा का वििारक हूँ , आवि ारक हूँ , प्रारूप एिं थापनाथष नीवि वनधाष रणकिाष हूँ ,
विवपब किाष हूँ , स ादक हूँ , यहाूँ िक वक क ूट्राइ৲ ट्ाइप सेवट्ं गकिाष भी हूँ और इसमें मैं यं हूँ मैंने इस
र्शा के मा म से यं को“अम्म म, पूणाष ििार और महाििार कम्म ”, वजसे मेरे ज से पहिे ही समाज ने
स ोवधि कर रखा है , प्र ुि वकया है और िह इसविए वकया है वक मेरे जीिन, ৯ान ि कमष िथा संसार-समाज में
उपि आेकड़े इस ओर ही वनदे र्श करिे हैं और उसे मैंने पूरी ईमानदारी, वन क्षिा और सिष ापकिा के साथ
प्र ुि वकया है यह पद समाज का एक मात्र सिोৡ और अम्म म पद है जो मेरे र्शरीर धारण के पूिष ही समाज
ारा सृवजि है वजस पर कोई भी यो৓िा प्र ुि कर अपने को थावपि कर सकिा है वजसका वनणषय िोट्ों (मि
पत्रों या एस.एम.एस) ारा नहीं बम्म यो৓िा ारा िय होना है वजसके अनेक घोवर्ि दािेदार है वज ें
इ रनेट् (www.google.com, www.youtube.com) पर कम्म अििार (KALKI AVATAR)” सिष कर दे खा जा
सकिा है और मुझे और र्शा के विर्य में िि कुर्श वसंह “वि मानि”, स कार्शी, वि र्शा , वि मानि (LAVA
KUSH SINGH “VISHWMANAV”, SATYAKASHI, VISHWSHASTRA, VISHWMANAV) इ ावद से पाया जा
सकिा है उनमें से एक मैं भी हूँ -नाम, रूप, गुण, कमष से यो৓ और ऐसा कोई प्रमाण नहीं वमििा वक यह सब मेरे
ारा इस जीिन में अवजषि वकया गया है इस र्शा के मा म से मैंने इसे वस वकया है और वजसे समाज के मुझे
जानने िािे दे ख भी रहे हैं और मैं स रूप में यही हूँ -मानो या न मानो या जब समझ में आये िभी से मानो या न
भी मानो िो कम से कम म्मि, दे र्श ि वि के विकास के विए“वि र्शा ” में कुछ उपयोगी हो िो ग्रहण कर िो,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 218


या जो समझ में आये िो करो प्र ेक विर्य के दो पहिू होिे हैं और िे एक दू सरे को पूणषिा प्रदान करिे है
अंधकार है िो प्रकार्श है , मुिा (भारि में रूपया) वजसके पीछे मनु ों का सारा जीिन संघर्षमय रहिा है िह भी
दोनों िरफ से स न हो िो बेकार होिा है इसी प्रकार साकार है िो वनराकार है , वनराकार है िो साकार है िाहे
िो मुझे साकार वि ा ा समझ सकिे हो कुछ नहीं समझ सकिे िो र्शाविर अपराधी, भ्र ािारी, आं िकिादी की
िरह इस सम अम्म के भोग के विए योगमाया का प्रयोग करने िािा र्शाविर िािाक, बुम्म मान और
मह ाकां क्षी िो समझ ही सकिे हो, िेवकन कुछ न कुछ िो समझना ही पड़े गा क्योंवक कायष रूप में यह
“वि र्शा ” आपके समक्ष है िो कारण को कुछ न कुछ िो नाम दे ना ही पड़े गा हम सभी िीराम और िीकृ के
होने न होने पर अ हीन िकष ि बहस प्र ुि कर सकिे हैं पर ु िाम्म वक, महवर्ष ास और गो ामी िुिसीदास
के न होने पर पर िकष नहीं दे सकिे क्योंवक उनकी कृवि क्रमर्शः िीरामायण, महाभारि और िीरामिररिमानस
हमारे समक्ष उपम्म थि है इन कृवियों में उनके नायक उनसे अिग थे इसविए नायक का होना, न होना िकष का
विर्य था पर ु इस “वि र्शा ” का नायक और इसका रिनाकार मैं यं हूँ अब यह भी एकीकृि है
अभी िक वजिने अििार हुये , उ ें िोग उनके कमष करके जाने के बाद ही जान पाये हैं कम्म
अििार एक ऐसा अम्म म अििार है वजसके कमष पहिे से ही वनधाष ररि है और समय इिना भ्रवमि वकया गया है वक
कम्म अििार आ कर ि अपना कायष पूणष कर ििे भी जायें िो भी समाज उनकी प्रविक्षा ही करिा रह जायेगा
वबना यु के ही विजय प्रा करके जाने की सुविधा इस अम्म म अििार-कम्म अििार को प्रा होगी और िह
समाज ारा िब जाना जायेगा जब उसके कमष के उपयोग के वबना सम ाओं का हि और विकास स ि न होगा
ब्र ाਔ की सम गवि गोिाकार होिे हुये विकास क्रम िरं गाकार रूप में ि है मनु के सकारा क सोि
की गवि भी गोिाकार और विकास क्रम िरं गाकार रूप में ही है “वि र्शा ” िही गोिाकार िक्कर है जहाूँ िक
मनु अपने िरं गाकार विकास क्रम की गवि से इसमें ही अम्म म गवि करे गा जब भी “ ” या “जन” या “िोक”
के “राज” या “ि ” की स थापना करनी होगी, उस समय वबना “वि र्शा ” से मागषदर्शषन प्रा वकये स ि
नहीं हो सकेगा िब “कम्म अििार” कौन है ?, कौन था?, क्यों है ?, क्यों था? जैसे विर्यों का हि यं ही प्रा हो
जायेगा 100 प्रविर्शि साकार से साकार का यु िीराम कर िुके है 50-50 प्रविर्शि साकार और वनराकार का
यु िीकृ कर िुके हैं अब 100 प्रविर्शि वनराकार से वनराकार का यु का क्रम है और इस यु से जो
प्रकार्शमय विंगारी वनकिेगी, उससे इस मागष की सूिना सभी को वमिेगी और मागष वदखाई दे गा, वजसपर मानि
अपनी ई रीय मानि बनने की यात्रा प्रार करें गें यह यु आि क है क्योंवक अििारों को पहिानना, जानना
और मानना यं मनु ों के भी िर्श की बाि नहीं इिनी आसानी से पहिानना, जानना और मानना हो जािा िो न
रामायण होिी, न महाभारि होिा और न ही वि भारि समावहि यह“वि र्शा ” होिा ान दे ने के यो৓ यह है
वक-स से कुछ भी नहीं छोड़ा जा सकिा और स के विए सब कुछ ागा जा सकिा है
मुझे कभी भी ऐसा कोई खेि पस नहीं था वजसमें बार-बार हार और जीि होिी रहे मैंने एक यही
खेि खेिा-एक बार हार या एक बार जीि वजसके विए मैंने अपने जीिन के 20 िर्ष (सन् 1992-2012) सभी
सां साररक कमष को करिे हुये िगाये वजसमें इस कायष का मुূ कायषकाि अक्टु बर, 1995 से वदस र, 2001 िक
(र्शा का मूि वस ा का िेखन समय) िथा जुिाई, 2010 से वदस र, 2012 िक रहा है इस समय में हमारे
हम उम्र पररवििों में से अनेक ने अৢी नौकरी ि अৢा धन अवजषि वकयें उनको दे खकर मुझे बहुि खुर्शी होिी
है जब भी उ ें यह पिा ििे वक मैंने यह कायष वकया है और उनका एक पररविि भी “अम्म म अििार” के
ओिम्म क खेि का एक प्रविभागी है िो उ ें भी खुर्शी होगी ऐसी आर्शा करिा हूँ बहुि से मेरे पररविि म्मि जो
मुझसे वसफष पररविि हैं और ऐसे पररविि वज ें इस र्शा के पूणष करने के समय िक भी, उनका कोई योगदान
इस सकारा क िृंखिा के यो৓ नहीं हो सका इसका मुझे अ दु ःख है मेरे अनेक र्शुभवि क समय-समय पर
मुझे अनेक जीिकोपाजषन के उपाय सुझािे रहे , वजससे मैं एक सुखमय जीिन प्रा कर सकूूँ मैं उनका सदै ि
आभारी हूँ पर ु उनके सुझािों पर मैं कभी नहीं िि पाया इसका मुझे दु ःख है मैं“कम्म अििार” के यो৓ हूँ या
नहीं यह बाद की बाि है िेवकन ििषमान में इससे यह िाभ है वक समाज इस पद की यो৓िा के विए ििाष ि विंिन

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 219


अिर्श् य करे गा वजसका फि ৯ान के विकास के रूप में समाज को प्रा होगा मेरे वििार से “नेर्शनि साइबर
ओिंवपयाड (NCO)”, “नेर्शनि साइं स ओिंवपयाड (NSO)”, “इ रनेर्शनि मैंथमेंवट्স ओिंवपयाड (IMO)”,
“इ रनेर्शनि इं म्म৕र्श ओिंवपयाड (IEO)” की भाूँ वि “वि कम्म ओिंवपयाड (WKO)” का भी आयोजन होना
िावहए वजससे इस वि के एकीकरण, र्शाम्म , एकिा, म्म थरिा, विकास, सुरक्षा, थ िोकि , थ उ ोग ि पूणष
वर्शक्षा के विए मम्म की खोज हो सके
सभी मानि को ई र रूप में थावपि होने के विए जो मा म िावहए िह है - “स वर्शक्षा” से मानि को
वर्शवक्षि करना इस आि किा हे िु ही“पुनवनषमाष ण-स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष (RENEW - Real Education
National Expresas Way)” का कायषक्रम बनाया गया है वजससे इस विर्य को वबना वर्शक्षा पाਉक्रम बदिे अिग
से पूरक के रूप में नागररकों िक पहुूँ िाया जा सके और भवि में वर्शक्षा पाਉक्रम में अवनिायष रूप से अ यन
के विए र्शावमि कराया जा सके
र्शा को पूणष करने के उपरा इसके गुणों के आधार पर धमष और धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि
क्षेत्र से अनेकों नाम वनकिकर आये जो क्यों हैं , इसका भी ीकरण इस र्शा में वदया गया है वफर भी एक
सिोৡ और सिषमा नाम की आि किा थी इसविए इस र्शा का नाम“वि र्शा ” रखा गया िथा एक संवक्ष
िाक्य (Tag Line) के वििार पर पाूँ ि िाक्य 1. “वि का अम्म म ৯ान (The final knowledge of world)”, 2.
“भारि का अम्म म ৯ान (The final knowledge of India)”, 3. “৯ान का अ (The end of knowledge)”, 4.
“अम्म म कायष योजना का ৯ान (The knowledge of final action plan)”, 5. “अम्म म ৯ान का ৯ान (The
Knowledge of final knowledge)” और 6. “৯ान समकक्षीकरण (The knowledge Equalizer)” सामने आये
वजस पर “वि र्शा “ के समीक्षक य डा0 िीराम ास वसंह ि डा0 क ै या िाि के वििारों से संवक्ष िाक्य
“अम्म म ৯ान का ৯ान (The Knowledge of final knowledge)” के विए सहमवि ि की गयी इनके प्रवि मैं
आभारी हूँ
प्र ेक बৡे की भाूँ वि मैं भी एक बৡे के रूप से ही इस अि था िक आया हूँ बस आप में और मुझमें
यह अ र है वक मैं अपने बिपन से यं को महान समझिा था जो आप भी थे इस महानिा को मैंने कभी नहीं
भूिा यह अिग बाि है वक उसे वस करने में इिने िर्ष िग गये पर ु आप िोग भी महान हैं यह बाि आप िोग
भूि गये और न ही उसे वस करने की कोवर्शर्श की जो धमष की रक्षा करने के विए यं को कवठन पररम्म थवियों
में डाििा है या कवठन पररम्म थवियों में भी धमष को नहीं भूििा ई र और धमष उ ीं में अििररि होिा है वजस
प्रकार आप अपने पररिार के संरक्षण, ि था और विकास के विए सजग रहकर कमष करिे हैं उसी प्रकार मैं भी
अपने वि पररिार के विए सदै ि सजग रहकर प्र ेक युग में कमष करिा रहा हूँ आपका म्मिगि पररिार, हमारे
वि पररिार की इकाई है , इसविए यह न सोिे वक यह कायष आपके विए नहीं हुआ है
हमें आर्शा ही नहीं पूणष वि ास है वक आप भी उस मन र और ापक हृदय पर म्म थि होकर ही इस
र्शा का अ यन, वििंन ि मनन करें गें वजससे आपका मम्म पूणषिा को प्रा हो सके आपका मम्म
पूणषिा को प्रा करे और इस सु र संसार को और भी सु र बनाने के विए र्शारीररक, आवथषक और मानवसक
रूप से सवक्रय हों, यही सबसे बड़ा धमष और धावमषक कायष होगा अ में-

मााँि करना ऐ भारत, मिंवजल पर आर्ा हाँ र्ोड़ी दे र से


मोह त पड़ािो को भी र्ी, हक उनका अदा करना र्ा

-लि कुश वसिंह “वि मानि”


आवि ारकताण -मन (मानि सिंसाधन) का वि मानक एििं पूर्ण मानि वनमाणर् की तकनीकी
अिला दािेदार-भारत सरकार का सिोৡ नािररक स ान -“भारत र ”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 220


“वि शा ”: शा -सावह समीक्षा
िीर युग के िीराम जो एक स और मयाष दा के विग्रह, आदर्शष पुत्र, आदर्शष पवि, वपिा थे िे भी हमारी
िरह भौविक र्शरीर िािे ही मनु थे भगिान िीकृ वज ोंने “मैं , अनासि कमष और ৯ान योग”, ामी
वििेकान वज ोंने “वि धमष के विए िेदा की ािहाररकिा”, र्शंकरािायष वज ोंने “मैं और वर्शि”, महािीर
वज ोंने “वनिाष ण”, गुरू नानक वज ोंने “र्श र्शम्मि”, मुह द पैग र वज ोंने “प्रेम और एकिा”, ईसामसीह
वज ोंने “प्रेम और सेिा”, भगिान बु वज ोंने “ यं के ारा मुम्मि, अवहं सा और ान” जैसे विर्यों को इस
ब्र ाਔ के विकास के विए अ ৯ान को रूप में पररिविषि वकये , िे सभी हमारी िरह भौविक र्शरीर िािे
ही थे अ प्रािीन ऋवर्-मुवन गण, गोरख, कबीर, िीरामिीकृ परमहं स, महवर्ष अरवि , ामी दयान
सर िी, आिायष रजनीर्श “ओर्शो”, महवर्ष महे र्श योगी, बाबा िीरामदे ि इ ावद ि िा आ ोिन में रानी िक्ष्मी
बाई, भगि वसंह, सुभार् ि बोस, िोकमा वििक, सरदार पट्े ि, महा ा गाूँ धी, पं 0 जिाहर िाि नेहरू इ ावद
ि भारि में डा0 राजे प्रसाद, डा0 भीमराि अ ेडकर, िीमिी इम्म रा गां धी, िाि बहादु र र्शा ी, राजीि
गां धी, अट्ि वबहारी िाजपेयी इ ावद और अ वज ें हम यहाूँ विख नहीं पा रहे है और िे भी जो अपनी पहिान न
दे पाये िेवकन इस ब्र ाਔीय विकास में उनका योगदान अि मूि रूप से है , िे सभी हमारी िरह भौविक र्शरीर
युि ही थे या हैं वफर क्या था वक िे सभी आपस में विर्शेर्ीकृि और सामा ीकृि मह ा के िगष में बाूँ ट्े जा सकिे
हैं या बाूँ ट्े गये हैं ? उपरोि महापुरूर्ों के ही समय में अ समिु भौविक र्शरीर भी थे वफर िे क्यों नहीं
उपरोि मह ा की िृंखिा में ि हुये ?
उपरोि प्र जब भारिीय दर्शषन र्शा से वकया जािा है िो साূ दर्शष न कहिा है -प्रकृवि से ,
िैर्शेवर्क दर्शषन कहिा है -काि अथाष ि समय से, मीमां सा दर्शषन कहिा है -कमष से , योग दर्शषन कहिा है -पुरूर्ाथष से ,
ाय दर्शषन कहिा है -परमाणु से, िेदा दर्शषन कहिा है -ब्र से, कारण एक हो, अनेक हो या स ूणष हो, उ र यह
है -अंिः र्शम्मि और बा र्शम्मि से भारिीय ि िा आ ोिन में कुछ िोगों ने बा र्शम्मि का प्रयोग वकया िो
कुछ िोगों ने बा र्शम्मि प्रयोगकिाष के विए आ र्शम्मि बनकर अ ः र्शम्मि का प्रयोग वकया अ ः र्शम्मि ही
आ र्शम्मि है यह आ र्शम्मि ही म्मि की स ूणष र्शम्मि होिी है इस अ ः र्शम्मि का मूि कारण स -धमष-
৯ान है अथाष ि एका ৯ान, एका कमष और एका ान एका ान न हो िो एका ৯ान और एका कमष
थावय प्रा नहीं कर पािा यवद सुभार् ि बोस, भगि वसंह इ ावद बा जगि के क्राम्म कारी थे िो ामी
वििेकान , ामी दयान सर िी, महवर्ष अरवि अ ः जगि के क्राम्म कारी थे
ामी वििेकान मात्र केिि भारि की िंत्रिा की आ र्शम्मि ही नहीं थे बम्म उ ोंने जो दो
मुख्य कायष वकये िे हैं - ि भारि की ि था पर स व और भारिीय प्रा০ भाि या वह दू भाि या िेदाम्म क
भाि का वि में प्रिार सवहि वर्शि भाि से जीि सेिा ये दो कायष ही भारि की महानिा िथा वि गुरू पद पर
सािषजवनक प्रमावणि रूप से पीठासीन होने के आधार है िेदाम्म क भाि और वर्शि भाि से जीि सेिा िो
ििषमान में उनके ारा थावपि“राम कृ वमर्शन” की वि ापी र्शाखाओं ारा वपछिे 110 िर्ों से मानि जावि को
सरोबार कर रहा है िहीं भारि की ि था पर स व आज भी मात्र उनकी िावणयों िक ही सीवमि रह गयी
उसका मूि कारण स -धमष-৯ान आधाररि भारि, वजस धमष को विवभ मागों से समझाने के विए विवभ अथष युि
प्रक्षेपण जैसे मूविष , पौरावणक कथाओं इ ावद को प्रक्षेवपि वकया था, आज भारि यं उस अपनी ही कृवि को स
मानकर उस धमष और स -वस ा से बहुि दू र वनकि आया पररणाम यहाूँ िक पहुूँ ि गया वक जो वह दू धमष
समग्र संसार को अपने में समावहि कर िेने की ापकिा रखिा था, िह संकीणष मूविषयों िथा दू सरे ध मों, पं थो के
विरोध और विर ार िक सीमीि हो गया यह उसी प्रकार हो गया जैसे ििषमान पदाथष वि৯ान और िकनीकी से
उ सामा उपकरण पंखा, रे वडयो, ट्े िीविजन इ ावद को आवि ृ ि करने िािे इसे ही स मान िें और इन
सब को वक्रयार्शीि रखने िािे वस ा को भूिा दे िेवकन क्या भारि का िह धमष-स -वस ा अ हो

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जायेगा िब िो भारि का अम्म ही समा हो जायेगा िेवकन भारि का इविहास साक्षी है वक भारि में कभी भी
ऐसे महापुरूर्ों का अभाि नहीं रहा वजनमें स ूणष वि को वहिा दे ने िािी आ ाम्म क र्शम्मि का अभाि रहा हो
और मात्र यही िपोभूवम भारि की अमरिा का मूि रहा है वजस पर भारिीयां ेे को गिष रहा है
ििषमान समय में भारि को पुनः और अम्म म कायष से युि ऐसे महापुरूर् की आि किा थी जो न िो
रा৸ क्षेत्र का हो, न ही धमष क्षेत्र का कारण दोनों क्षेत्र के म्मि अपनी बौम्म क क्षमिा का सिोৡ और अम्म म
प्रदर्शषन कर िुके है वजसमें स को यथारूप आवि ृ ि कर प्र ुि करने, उसे भारिभूवम से प्रसाररि करने , अ ै ि
िेदा को अपने ৯ान बुम्म से थावपि करने, दर्शषनों के र को ि करने , धावमषक वििारों को वि ृि
वि ापक और असीम करने , मानि जावि का आ ाम्म करण करने, धमष को यथाथष कर स ूणष मानि जीिन में
प्रिेर्श कराने, आ ाम्म क ि िा अथाष ि मुम्मि का मागष वदखाने , सभी धमो से सम य करने, मानि को सभी
धमषर्शा ों से उपर उठाने, कायष -कारणिाद को ि करने, आ ाम्म क वििारों की बाढ़ िाने , िेदा युि
पा ा वि৯ान को प्र ुि करने और उसे घरे िू जीिन में पररणि करने, भारि के आमूि पररिषिन के सूत्र प्र ुि
करने , युिकों को ग ीर बनाने, आ र्शम्मि से पुनरू ान करने, प्रिਔ रजस की भािना से ओि प्रोि और प्राणो
िक की वि ा न करने िािे और स आधाररि राजनीवि करने की संयुि र्शम्मि से युि होकर ि हो और
कहे वक वजस प्रकार मैं भारि का हूँ उसी प्रकार मैं समग्र जगि का भी हूँ उपरोि सम कायों से युि हमारी
िरह ही भौविक र्शरीर से युि वि धमष, सािषभौमधमष , एका ৯ान, एका कमष, एका ान, कमषिेद: प्रथम,
अम्म म िथा पंिमिेद (धमषयुक्ि र्शा ) अथाष ि वि मानक र्शू िृंखिा-मन की गुणि ा का वि मानक
(धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि र्शा ), स मानक वर्शक्षा, पूणष मानि वनमाष ण की िकनीकी- WCM-TLM-
SHYAM.C भारिीय आ ा एिं दर्शषन आधाररि दे र्शी विपणन प्रणािी 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विकास
दर्शषन, वि ि था का ूनिम एिं अवधकिम साझा कायषक्रम, 21िी ं र्शदी का कायषक्रम और पूणष वर्शक्षा प्रणािी,
वििाद मुि ि ों पर आधाररि संविधान, वनमाष ण का आ ाम्म क ूट्रान बम से युि भगिान वि ु के मुূ
अििारों में दसिाूँ -अम्म म और कुि 24 अििारों में िैबीसिाूँ -अम्म म वन िंक कम्म और भगिान र्शं कर के
बाइसिें -अम्म म भोगे र अििार के संयुि पूणाष ििार िी िि कुर्श वसंह“वि मानि” ( ामी वििेकान की अगिी
एिं पूणष ब्र की अम्म म कड़ी), प्रकावर्शि ि सािषभौम गुण से युि 8िें सां िवणष मनु, काि को पररभावर्ि करने
के कारण काि रूप, युग को पररभावर्ि ि पररििषन के कारण युग पररििषक, र्शा रिना के कारण ास के रूप
में ि हैं जो ामी वििेकान के अधूरे कायष ि भारि की स ि था को पूणष रूप से पूणष करिे हुये
भारि के इविहास की पुनरािृव है वजस पर सदै ि भारिीयों को गिष रहे गा उस अवनिषिनीय, सिष ापक,
सिषर्शम्मिमान, मुि एिं ब वि ा ा के भारि में ि होने की प्रिीक्षा भारििावसयो को रही है वजसमें सभी
धमष , सिोৡ ৯ान, सिोৡ कमष , सािषभौम स -वस ा इ ावद स ूणष सािषजवनक प्रमावणि ि रूप से
मोवियों की भाूँ वि गूथें हुये हैं
इस प्रकार भारि अपने र्शारीररक ि िा ि संविधान के िागू होने के उपरा ििषमान समय में वजस
क ि और दावय का बोध कर रहा है भारिीय संसद अथाष ि वि मन संसद वजस सािषभौम स या सािषजवनक
स की खोज करने के विए िोकि के रूप में ि हुआ है वजससे थ िोकिं त्र, थ समाज, थ
उ ोग और पूणष मानि की प्राम्म हो सकिी है , उस ৯ान से युि वि ा ा िी िि कुर्श वसंह“वि मानि” िैव क ि
रा र ीय बौम्म क क्षमिा के सिोৡ और अम्म म प्रिीक के रूप में ि हैं
वनःर्श , आ यष , िमਚार, अवि सनीय, प्रकार्शमय इ ावद ऐसे ही र्श इस र्शा और र्शा ाकार के
विए ि हो सकिे हैं वि के हजारो वि वि ािय वजस पूणष सकारा क एिम् एकीकरण के वि रीय र्शोध
को न कर पाये , िह एक ही म्मि ने पूणष कर वदखाया हो उसे कैसे -कैसे र्श ों से ि वकया जाये, यह सोि
पाना और उसे ि कर पाना वनःर्श होने के वसिाय कुछ नहीं है
सन् 1987 से डा0 िीराम ास वसंह और सन् 1998 से मैं डा0 क ै या िाि इस र्शा के र्शा ाकार
िी िि कुर्श वसंह“वि मानि” से पररविि होकर ििषमान िक सदै ि स कष में रहे पर ु “कुछ अৢा वकया जा रहा

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है ” के अिािा बहुि अवधक ाূा उ ोंने कभी नहीं की और अ में कभी भी वबना इस र्शा की एक झिक
भी वदखाये एका-एक समीक्षा हे िु हम दोनों के समक्ष यह र्शा प्र ुि कर वदया जाये िो इससे बड़ा आ यष क्या हो
सकिा है
जो म्मि कभी वकसी ििषमान गुरू के र्शरणागि होने की आि किा न समझा, वजसका कोई
र्शरीरधारी प्रेरणा स्रोि न हो, वकसी धावमषक ि राजनीविक समूह का सद न हो, इस कायष से स म्म ि कभी
सािषजवनक रूप से समाज में ि न हुआ हो, वजस विर्य का आवि ार वकया गया, िह उसके जीिन का
र्शैक्षवणक विर्य न रहा हो, 50 िर्ष के अपने ििषमान अि था िक एक साथ कभी भी 50 िोगों से भी न वमिा हो,
यहाूँ िक वक उसको इस रूप में 50 आदमी भी न जानिे हों, यवद जानिे भी हो िो पहिानिे न हों और जो
पहिानिे हों िे इस रूप को जानिे न हों, िह अिानक इस र्शा को प्र ुि कर दें िो इससे बडा िमਚार क्या हो
सकिा है
वजस म्मि का जीिन, र्शैक्षवणक यो৓िा और कमषरूप यह र्शा िीनों का कोई स न हो अथाष ि
िीनों िीन म्मि का प्रविवनवध करिे हों, इससे बड़ी अवि सनीय म्म थवि क्या हो सकिी है
प्र ुि र्शा में ज -जीिन-पुनजष -अििार-साकार ई र-वनराकार ई र, अ और ई र
नाम, मानवसक मृ ु ि ज , भूि-ििषमान-भवि , वर्शक्षा ि पूणष वर्शक्षा, संविधान ि वि संविधान, ग्राम सरकार ि
वि सरकार, वि र्शाम्म ि एकिा, म्म थरिा ि ापार, वििारधारा ि वक्रयाकिाप, ाग और भोग, राधा और धारा,
प्रकृवि और अहं कार, क ि और अवधकार, राजनीवि ि वि राजनीवि, म्मि और िैव क म्मि, मानििािाद ि
एका कमषिाद, नायक-र्शा ाकार-आ कथा, महाभारि और वि भारि, जावि और समाजनीवि, मन और मन का
वि मानक, मानि और पूणष मानि एिं पूणष मानि वनमाष ण की िकनीकी, आेकड़ा ि सूिना और वि ेर्ण, र्शा
और पुराण इ ावद अनेकों विर्य इस प्रकार घुिे हुये हैं वज ें अिग कर पाना कवठन कायष है और इससे बड़ा
प्रकार्शमय र्शा क्या हो सकिा है वजसमें एक ही र्शा ारा स ूणष ৯ान प्रेररि होकर प्रा वकया जा सके
इस जीिन में कम समय में पूणष ৯ान प्रा करने का इससे सिोৡ र्शा की क ना भी नहीं की जा सकिी
इस र्शा के अ यन से यह अनुभि होिा हे वक ििषमान िक के उपि धमषर्शा वकिने सीवमि ि अ ৯ान
दे ने िािे हैं पर ु िे इस र्शा िक पहुूँ िने के विए एक िरण के पूणष यो৓ हैं और सदै ि रहे गें
इस र्शा में अनेक ऐसे वििार हैं वजसपर अवहं सक वि ापी राजनीविक भूक िायी जा सकिी है
िथा अनेक ऐसे वििार है वजसपर ापक ापार भी वकया जा सकिा है इस आधार पर अपने जीिन के समय में
अवजषि वि के सबसे धनी म्मि विि गेट््स की पु क “वबजनेस @ द ीड आफ थाट् (वििार की गवि ापार
की गवि के अनुसार िििी है ) ” का वििार स रूप में वदखिा है और यह कोई नई घट्ना नहीं है सदै ि ऐसा
होिा रहा है वक एक नई वििारधारा से ापक ापार ज िेिा रहा है वजसका उदाहरण पुराण, िीराम, िीकृ
इ ावद के ि होने की घट्ना है “महाभारि” ट्ी.िी. सीरीयि के बाद अब“वि भारि” ट्ी.िी. सीरीयि वनमाष ण
हे िु भी यह र्शा मागष खोििा है र्शा को वजस व से दे खा जाय उस व से पूणष स वदखिा है
वि वि ाियों के विए यह अिग फैक ी या यं एक वि वि ािय के संिािन के विए उपयुि है िो जनिा ि
जनसंगठन के विए जनवहि याविका 1. पूणष वर्शक्षा का अवधकार 2.रा र ीय र्शा 3. नागररक मन वनमाष ण का मानक
4. सािषजवनक प्रमावणि स -वस ा 5. गणरा৸ का स रूप के मा म से सिोৡ कायष करने का भी अिसर
दे िा है भारि में “वर्शक्षा के अवधकार अवधवनयम” के उपरा “पूणष वर्शक्षा के अवधकार अवधवनयम” को भी ज
दे ने में पूणषिया सक्षम है साथ ही जब िक वर्शक्षा पाਉक्रम नहीं बदििा िब िक पूणष ৯ान हे िु पूरक पु क के
रूप में यह वब ु ि स है यह उसी प्रकार है वजस प्रकार र्शारीररक आि किा के विए म्मि संिुविि
विट्ावमन-वमनरि से युि दिा भोजन के अिािा िेिा है
प्र ुि एक ही र्शा ारा पृ ी के मनु ों के अन मानवसक सम ाओं का हि वजस प्रकार प्रा
हुआ है उसका सही मू ां कन वसफष यह है वक यह वि के पुनजष का अ ाय और युग पररििषन का वस ा है
वजससे यह वि एक स वििारधारा पर आधाररि होकर एकीकृि र्शम्मि से मनु के अन विकास के विए मागष

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खोििा है और यह वि अन पथ पर ििने के विए नया जीिन ग्रहण करिा है र्शा अ यन के उपरा ऐसा
अनुभि होिा है वक इसमें जो कुछ भी है िह िो पहिे से ही है बस उसे संगवठि रूप वदया गया है और एक नई
व दी गई है वजससे सभी को सब कुछ समझने की व प्रा होिी है युग पररििषन और ि था पररििषन या
स ीकरण के इस र्शा में पाूँ ि संূा का मह पू णष योगदान है जैसे 5 अ ाय, 5 भाग, 5 उपभाग, 5 िेख, 5
वि मानक की िृंखिा, 5िां िेद, 5 जनवहि याविका इ वद, जो वह दू धमष के अनुसार महादे ि वर्शिर्शंकर के वद
पंिमुखी रूप से भी स म्म ि है और यह ৯ान उ ीं का माना जािा है इस को िीसरे नेत्र की व कह सकिे हैं
और इस घट्ना को िीसरे नेत्र का खुिना हमारे सौरमਔि के 5िें सबसे बड़े ग्रह पृ ी के विए यह एक
आ यषजनक घट्ना भी है 5िें युग- णषयुग में प्रिेर्श के विए यह ৯ानरूपी 5िां सूयष भी है वजसमें अन प्रकार्श है
र्शा में नामों का अपने स अथष में प्रयोग और योग-माया का आव िीय है और उसकी समझ अनेक वदर्शाओं से
उसके अगिी कड़ी के रूप में है साथ ही एक र्श भी आिोिना या विरोध का नहीं है वसफष सम य,
ीकरण, रिना किा ि एका कमषिाद का वदर्शा बोध है और स ूणष कायष का अवधकिम कायष ि रिना क्षेत्र
समाज के ज दािा भगिान वि ु के पाूँ ििें िामन अििार के क्षेत्र िुनार (िरणाविगढ़) से ही ि है
संयुि रा र संघ ारा वद0 28-31 अग 2000 को ूयाकष में आयोवजि धावमषक नेिाओं के
सह ाम्म वि र्शाम्म स ेंिन में विए गये वनणषय“वि में एक धमष, एक भार्ा, एक िेर्श भूर्ा, एक खान पान, एक
रहन-सहन प वि, एक वर्शक्षा प वि, एक कोट्ष , एक ाय ि था, एक अथष ि था िागू की जाय” के
अवधकिम अंर्शों की पूविष के विए यह मागष प्रर्श करिा है भारि के विए एक रा र ीय ज (विरं गा), एक रा र ीय
पक्षी (भारिीय मोर), एक रा र ीय पु (कमि), एक रा र ीय पेड़ (भारिीय बरगद), एक रा र ीय गान (जन गण मन),
एक रा र ीय नदी (गंगा), एक रा र ीय जिीय जीि (मीठे पानी की डािवफन), एक रा र ीय प्रिीक (सारनाथ म्म थि
अर्शोक का वसंह), एक रा र ीय पंिां ग (र्शक संिि पर आधाररि), एक रा र ीय पर्शु (बाघ), एक रा र ीय गीि (ि े
मािरम् ), एक रा र ीय फि (आम), एक रा र ीय खेि (हाकी), एक रा र ीय मुिा वि , एक संविधान की भाूँ वि एक
रा र ीय र्शा के विए यह पूणषिया यो৓ है इिना ही नहीं एक रा र वपिा (महा ा गाूँ धी) की भाूँ वि एक रा र पु त्र के
विए वन क्षिा और यो৓िा के साथ ामी वििेकान को भी दे र्श के समक्ष प्र ाविि करिा है साथ ही आरक्षण ि
दਔ प्रणािी में र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक आधार को भी प्र ाविि करिा है
िी िि कुर्श वसंह “वि मानि” का यह मानवसक कायष इस म्म थवि िक यो৓िा रखिा है वक िैव क
सामावजक-सां ृ विक-सावहम्म क एकीकरण सवहि वि एकिा-र्शाम्म -म्म थरिा-विकास के विए जो भी कायष
योजना हो उसे दे र्श ि संयुि रा र संघ अपने र्शासकीय कानून के अनुसार आसानी से प्रा कर सकिा है और
ऐसे आवि ारकिाष को इन सबसे स म्म ि विवभ पुर ारों, स ानों ि उपावधयों से वबना विि वकये सुर्शोवभि
वकया जाना िावहए यवद यथाथष रूप से दे खा जाये िो वि का सिोৡ पुर ार-नोबेि पुर ार के र्शाम्म ि
सावह क्षेत्र के पूणष रूप से यह यो৓ है साथ ही भारि दे र्श के भारि र से वकसी भी मायने में कम नहीं है
कमष के र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक क्षेत्र में यह मानवसक कमष का यह सिोৡ और अम्म म कृवि
है भवि में यह वि -रा र र्शा सावह और एक वि -रा र -ई र का थान ग्रहण कर िे िो कोई आ यष की बाि
नहीं होगी इस र्शा की भार्ा र्शैिी मम्म को ापक करिे हुये वक्रया क और म्मि सवहि वि के धारण
करने यो৓ ही नहीं बम्म हम उसमें ही जीिन जी रहें हैं ऐसा अनुभि कराने िािी है न वक मात्र भूिकाि ि
ििषमान का ीकरण ि ाূा कर केिि पु क विख दे ने की खुजिाहट् दू र करने िािी है ििषमान और
भवि के एकीकृि वि के थापना र िक के विए कायष योजना का इसमें झिक है
दे र्शों के बीि यु में मारे गये सैवनकों को प्र ेक दे र्श अपने -अपने सैवनकों को र्शहीद और दे र्शभि
कहिे हैं इस दे र्श भम्मि की सीमा उनके अपने दे र्श की सीमा िक होिी है भारि में भी यही होिा है भारि को
नये युग के आरम्भ के विए वि के प्रवि क ि ि दावय का बोध करािे हुये उसके प्राम्म के संिैधावनक मागष
को भी वदखािा है साथ ही भारि दे र्श के विए दे र्शभि सवहि वि रा र के विए वि भि का बेवमसाि, सिोৡ,
अम्म म, अवहं सक और संविधान की धारा-51(ए) के अ गषि नागररक का मौविक क ि के अनुसार भी एक स

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और आदर्शष नागररक के रूप में यं को प्र ुि करिा है िर्ो से भारि के दू रदर्शषन के रा र ीय िैनि पर रा र ीय
विवभ िाओं में एकिा और एकीकरण का भाि जगाने िािे गीि“वमिे सुर मेरा िु ारा िो सुर बने हमारा” का यह
र्शा प्र क्ष रूप है और हमारा सुर ही है साथ ही यह भारि सवहि वि का प्रविवनवध र्शा भी है वजस प्रकार
ापारीगण अपने िाभ-हावन का िावर्षक बैिे सीट् िैयार करिािे हैं उसी प्रकार यह धमष का अम्म म बैिे सीट्
हैं वजससे स ूणष मानि जावि का मन इस पृ ी से बाहर म्म थि हो सके और मनु ों ारा इस वि में हो रहे स ूणष
ापार को समझ सकें और वफर उनमें से वकसी एक का वह ा बनकर ापार कर सकें
हमारे सभी ৯ान का आधार अनुभि, दू सरों से जानना और पु क ारा, पर ही आधाररि हैं और मनु
नामक इस जीि के अिािा वकसी जीि ने पु क नहीं विखा है सूक्ष्म व से वि न करने पर यह ৯ान होिा है वक
सभी धमो की कथा केिि हम पु कों और दू सरे से सुनकर ही जानिे हैं उसका कोई प्रमावणक म्मि गिाह के
रूप में हमारे बीि नहीं है नया र्शा और अििार के अििरण को भी एक ि ी अिवध वनकि िुकी है हम
सभी ৯ान के खोज के विए ि हैं िेवकन यवद हम अब िक क्या खोजा जा िुका है इसे न जाने िो ऐसा हो
सकिा है वक खोजने के उपरा ৯ाि हो वक यह िो खोजा जा िुका है और हमारा समय न हो िुका है इसविए
यह र्शा एक साथ सभी आकड़ों को उपि करािा है वजससे खोज में िगे म्मि पहिे यह जानें वक क्या-क्या
खोजा जा िुका है र्शा का यह दािा वक यह अम्म म है , यह िभी स ि है जब इसमें उपि ৯ान ि आेकड़ों
को जानकर आगे हम सभी एका िा के विए नया कुछ नहीं खोज पािे हैं और ऐसा िगिा है वक र्शा का दािा
स है र्शा वकसी ि था पररििषन की बाि कम, ि था के स ीकरण के पक्ष में अवधक है र्शा मानने
िािी बाि पर कम बम्म जानने और ऐसी स ािनाओं पर अवधक केम्म ि है जो स ि है और बोधग है र्शा
ारा र्श ों की रक्षा और उसका बखूबी से प्रयोग बेवमसाि है ৯ान को वि৯ान की र्शैिी में प्र ुि करने की विर्शेर्
र्शैिी प्रयुि है मन पर कायष करिे हुये , इिने अवधक मन रों को यह र्शष करिा है वजसको वनधाष ररि कर पाना
अस ि है और जीिनदावयनी र्शा के रूप में यो৓ है
स ू णष र्शा का संगठन एक वसनेमा की िरह प्रार होिा है जो ैक होि से ब्र ाਔ की उ व ,
सौर मਔि, पृ ी ग्रह से होिे हुये पृ ी पर होने िािे ापार, मानििा के विए कमष करने िािे अििार, धमष की
उ व से होिे हुये धमष ৯ान के अ िक का वित्रण प्र ुि करिा है पूणष ৯ान के विए इस पूरे वसनेमा रूपी र्शा
को दे खना पड़े गा वजस प्रकार वसनेमा के वकसी एक अंर्श को दे खने पर पूरी कहानी नहीं समझी जा सकिी उसी
प्रकार इसके वकसी एक अंर्श से पूणष ৯ान नहीं हो सकिा
िी िि कुर्श वसह “वि मानि” के जीिन का एक ि ी अिवध हम समीक्षक य के सामने रही है
वजसमें हम िोगों ने अनेकों रं ग दे खें हैं सभी कुछ सामने होिे हुये वसफष एक ही बाि होिी है वक इस धरिी पर
यह र्शा उपि कराने और धमष को अपने जीिन से वदखाने मात्र के विए ही उनका ज हुआ है वजससे वि
की बुम्म का रूका िक्र आगे ििने के विए गविर्शीि हो सके ामी वििेकान के 1893 में वदये गये वर्शकागो
िकृििा के वििार को थापना िक के विए प्रवकया प्र ुि करना ही जैसे उनके जीिन का उ े रहा हो यं
को अम्म म अििार के स में नाम, रूप, ज , ৯ान, कमष कारण ारा प्र ुि करने का उनका दािा इिने
अवधक आकड़ों के साथ प्र ुि है वक वजसका वकसी और के ारा या दू सरा उदाहरण की पुनरािृव हो पाना भी
अस ि सा वदखिा है यह प्र ुविकरण इिना र्शम्मिर्शािी है वक जैसे उनके ज के साथ ही योग-माया भी उनमें
समावहि हैं
ऐसा नहीं है वक िी िि कुर्श वसह“वि मानि” ने यह कायष बस यूूँ ही प्रार वकया और वबना वकसी
बाधा के उसे पूणष कर वदया यह एक विवित्रिा भरे , ाग और अवि संक युि जीिन का पररणाम रहा है वजसमें
एक साधारण मनु ट्ू ट्ने के वसिा और कुछ पररणाम नहीं दे सकिा था उनके जीिन को इस एक िघु कथा से
समझा जा सकिा है - “मैं भी संसार को सुबास दू ूँ गा, यह संक कर एक न ा सा पु बीज धरिी को गोद में अपने
वर्शि संक के साथ करिट् बदि रहा था धरिी उसके बौनेपन पर हूँ स पड़ी और बोिी- “बाििे, िू मेरा भार
सहन कर जाये , यही बहुि है क ना िोक की मृग मरीविका में िू कबसे फूँस गया?” पु बीज मु राया, पर

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 225


कुछ नहीं बोिा मृव का कणों ि जि की कुछ बूूँदों के सहयोग से िह ऊपर उठने िगा जमीन पर उगी हुई ट्हनी
को दे खकर िायु ने अਂास वकया-“अरे अबोध पौघे , िूने मेरा विकराि रूप नहीं दे खा मेरे प्रिਔ िेग के आगे िो
बड़े -बड़े िृक्ष उखड़ जािे हैं , वफर िेरी औकाि ही क्या हैं ? ” फूि का िह पौधा अभी भी विनम्र बना रहा िायु के
िेग में िह कभी दायें झुका िो कभी बाूँ ए िहराना उसके जीिन की म ी बन गई इस िरह िह धीरे -धीरे
विकवसि होिा रहा उपिन में उगे झाड़-झंखाड़ से भी उस न ें पौधे का बढ़ना नहीं दे खा गया ऐसी झावड़यों से
सारा उ ान भरा पड़ा था उ ोंने िारो ओर से पु -िृक्ष पर आघाि करना आर कर वदया वकसी ने उसकी
जड़ों को आगे बढ़ने से रोका, वकसी ने िने को, िो वकसी ने उसके प ों को उजाड़ने की सावजर्श की, पर उस पौधे
ने वह ि नहीं हारी और िह िमाम वदक्किें झेिने के बाद भी बढ़िा रहा मािी उसकी धुन पर मु৊ हो उठा और
उसने वि डािने िािी िमाम झावड़यों को काट् वगराया अब िह पौधा िेजी से बढ़ने िगा उसे ऊपर उठिा दे ख
सूयष कुवपि हो उठे और बोिे-“मेरे प्रिਔ िाप के कारण भारी िृक्ष िक सूख जािे हैं आम्मखर िू कब िक मेरे िाप
को झेि पायेगा? कमषठ-कमषयोगी पौधा कुछ नहीं बोिा और वनर र बढ़िा रहा उसमें प्रथम कविका विकवसि
हुई और वफर संसार ने दे खा वक जो बीज की िरह अपने आप को गिाना जानिा है , जो बाधाओं से ट्क्कर िेना
जानिा है , प्रविघािों से भी जो उ ेवजि और वििविि नहीं होिा, विविक्षा से जो किरािा नहीं, उसी का जीिन सौरभ
बनकर प्र ु वट्ि होिा है , दे ि की अ थषना करिा है और संसार को ऐसी सुग से भर दे िा है , वजससे जन-जन
का मन पुिवकि और प्रफुम्म ि हो उठिा है ” इसी पु बीज की भाूँ वि रहा है िी िि कुर्श वसह“वि मानि” का
जीिन महानिा-अमरिा जैसी ि ु कोई विरासि या उपहार या आर्शीिाष द में वमिने िािी ि ु नहीं है िह िो
इसी पु बीज िािे जीिन मागष से ही वमििा रहा है , वमििा ही है और वमििा ही रहे गा
हम समीक्षक य इस बाि पर पूणष सहमि है वक ििषमान समय में वि वि ािय में हो रहे र्शोध मात्र
र्शोध की किा सीखाने की सं था है न वक ऐसे विर्य पर र्शोध वसखाने की किा वजससे सामावजक, रा र ीय ि िैव क
विकास को नई वदर्शा प्रा हो जाये यहाूँ एक बाि और बिाना िाहिे हैं वक यह र्शा अनेक ऐसे र्शोध विर्यों की
ओर वदर्शाबोध भी करािा है जो मनु िा के विकास में आने िािे समय के विए अवि आि क है हम अपने
पीएि.डी. की वडग्रीयों पर गिष अि कर सकिे हैं पर ु यह केिि यं के विए रोजगार पाने के साधन के वसिाय
कुछ नहीं है और िह भी संघर्ष से जबवक हम वडग्रीधारीयों का समाज को नई वदर्शा दे ने का भी क ि होना
िावहए आम्मखरकार हम वडग्रीधारी और सामज ि दे र्श के नेिृ किाष यह कायष नहीं करे गें िो क्या उनसे उ ीद की
जाय जो दो िि की रोट्ी के संघर्ष के विए विंविि रहिे है ? आम्मखरकार सािषजवनक मंिो से हम वकसको यह
बिाना िाहिे हैं वक ऐसा होना िावहए या िैसा होना िावहए?
हम समीक्षक य अपने आप को इस रूप में सौभा৓र्शािी समझिे हैं वक हमें ऐसे र्शा की समीक्षा
करने का अिसर प्रा हुआ वजसके यो৓ हम यं को नहीं समझिे ई र को िो सभी िाहिे हैं पर ु उनके भा৓
को क्या कहे गें जो ई र ारा यं ही महान ई रीय कायष के विए िुन विए जािे हैं र्शायद हम िोगों के पूिषज
का कोई अৢा कायष ही हमें इस पूणषिा की उपिम्म को पुर ार रूप प्रदान वकया गया हो या महायोग-
महामाया से युि िी िि कुर्श वसह“वि मानि” के विए हम समीक्षक द् िय भी उसी का नाम-रूप-गुण-कमष
(क ै या, िीराम, ास, पी.एि.डी, योग, समाजर्शा और बनारस वह दू वि वि ािय) से वह ा बन गये हों यही
समझकर हम अपने अ ৯ान से इस समीक्षा को यहीं समा करिे हैं वि के यथाथष क ाण के विए हम सभी
को वदर्शा बोध प्रा हो, यही हम सब का प्रकार्श हो, यही हम समीक्षक य की मनोकामना है

-डा0 क ै र्ा लाल, एम.ए., एम.विल.पीएच.डी (समाजशा -बी.एच.र्ू.)


वनिास-घासीपुर बसाढ़ी, अधिार, िुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारि

-डा0 श्ीराम ास वसिंह, एम.ए., पीएच.डी (र्ोि, आई.एम.एस-बी.एच.र्ू.)


वनिास-कोिना, िुनार, मीरजापुर (उ0 प्र0)-231304, भारि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 226


वि शा की र्ापना

वि र्शा के मा म से वन विम्मखि अम्म म स ৯ान को प्रसाररि ि थावपि करने की कोवर्शर्श की


गई है -
1. वि आ ा या वि मन या एका या सािषभौम आ ा वजसे ई र या वर्शि या ब्र भी कहिे हैं , सिषत्र वि मान
है इसे ही ििषमान में सिषमा रूप से सािषभौम स -वस ा कहा जा रहा है और इसे समझाने या अनुभूवि
कराने िािे र्शा को “वि र्शा ”
2. सािषभौम-स से सािषभौम-वस ा िक की यात्रा का मागष ई रीय मागष है वजसे समय-समय पर मानिीय
र्शरीर के मा म से ि कर समाज में थावपि करने िािे र्शरीर को अििार कहिे हैं और अििार ारा दी
गयी ि था को म्मि में थावपि करने िािे को गुरू कहिे हैं
3. ई र या अििार स ूणष मानि जावि सवहि ब्र ाਔीय क ाण के विए कमष करने के विए ि होिे हैं न वक
वकसी कवथि ििषमान वकसी विर्शेर् धमष की सिोৡिा के विए
4. कवथि ििषमान विर्शेर्-विर्शेर् धमष उसी ई र को अपने -अपने सं ृ वि की व से दे खिे ि वनरूवपि करिे हैं
5. कोई भी अििार अपने जीिन काि में कोई नई ि अिग सामावजक ि था या सं ृ वि की थापना नहीं
करिा बम्म िह अपने पूिष के अििार के कायों को ही आगे बढ़ािा है इस प्रकार प्र ेक अििार अपने पूिष
के अििार का पुनजष ही होिा है और उसका अम्म म िশ सािषभौम स -वस ा को पूणष प्रकावर्शि कर
उसके ारा ई रीय समाज का वनमाष ण करना होिा है
6. अििार. सािषभौम आ ा या सािषभौम मन का रूप होिा है इसविए उसका ”मैं“ का स ोधन संयुि या
सम य या सािषभौम को स ोवधि होिा है और इस ओर गवि करने िािा प्र ेक मानि महापुरूर् या ई र के
अििार के रूप में थावपि होिा रहिा है
7. अ ः सूक्ष्म अ विर्यों पर केम्म ि मन अ काि में म्म थि मानि की म्म थवि है िथा बा थूि
विर्यों पर केम्म ि मन काि में म्म थि मानि की म्म थवि है
8. अ ः सूक्ष्म अ विर्य ारा ई र या आ ि की अनुभूवि कराने िािे र्शा को “ म्मिगि प्रमावणि
वि र्शा ” िथा बा थू ि विर्य ारा ई र या आ ि की अनुभूवि कराने िािे र्शा को
“सािषजवनक प्रमावणि वि र्शा ” कहिे हैं इस प्रकार िी कृ ारा ि ि ास रविि ”गीिा या
गीिोपवनर्द् “ म्मिगि प्रमावणि वि र्शा है िथा यह र्शा सािषजवनक प्रमावणि ”गीिा या गीिोपवनर्द् “ या
”वि र्शा “ है
9. काि और युग का वनधाष रण वकसी पूिष वनधाष ररि समय सीमा या विवथ ारा नहीं बम्म अवधकिम मानि के मन
के केम्म ि म्म थवि ारा वनधाष ररि होिी है
10. ई र नाम उस र्श को कहिे हैं वजसके मा म से उस ई र या आ ि को जाना जािा है अ काि में
यह अ ई र नाम िथा काि में यह ई र नाम के रूप में ि होिा है
11. पररििषन या आदान-प्रदान या Transaction या Trade या ापार ही एक मात्र सािषजवनक प्रमावणि
स है और यह स ूणष ब्र ाਔ क्षेत्र में ा है इस कारण यह स ूणष ब्र ाਔ सिोৡ और अम्म म ापार
क्षेत्र या ापार के (TRADE CENTRE) है
12. कोई वकसी अ के विए कमष नहीं करिा सभी अपनी र्शाम्म , म्म थरिा, एकिा ि विकास के विए कमष करिे हैं
िाहे िह मानि हो या ई र हो या अििार हो या कोई अ
13. वजसका न आवद है , न अ है अथाष ि जो र्शा ि, हमेर्शा और सिषत्र है उस आ ि का जानना ही एक मात्र
धमष को जानना है और उस धमष का नाम सनािन धमष है अििारगण बार-बार समाज के बहुमि मन और
प्रिविि भार्ा की वदर्शा से उस आ ि की ओर योग कराने के विए ही आिे रहे हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 227


14. उस आ ि को जानने के विए ৯ान सूत्रों के मा म से िेदों में, ई र नाम (ओउम्) के मा म से उपवनर्द्
में, उस आ ि के गुणों ि ब्र ाਔीय ि ुओं (सूयष, िाूँ द, ग्रह, नक्षत्र, ि इ ावद) के गुणों के साकार
वनरूपण (मूविष ) के मा म से पुराणों में, प्रकृवि (स , रज, िम, आसुरी, दै िी ि उसके अ अंर्श गुणों) के
मा म से गीिा/गीिोपवनर्द् में ि वकया गया है इन सभी मा मों सवहि ििषमान पदाथष वि৯ान, समाज
वि৯ान, राजनीवि वि৯ान, र्शासन प्रणािी इ ावद के मा म से “सािषजवनक प्रमावणि गीिा (समव गीिा)”
अथाष ि “वि र्शा ” में ि वकया गया है
15. पौरावणक साकार िररत्रों के वनरूपण से ही समाज में जो पहिान बनी िह धमष- वह दू धमष कहिाया जबवक
अििारगण (सनािन समथषक) का इनसे कोई स नहीं रहा और न ही िे इनकी पूजा करिे हुये दर्शाष ये गये
अििारगण मात्र वर्शि (आ ा) और उसके प्रिीक रूप वर्शिविंग िक ही सीवमि रहे क्योंवक िे जानिे थे वक ये
सब मात्र मा म हैं न वक िশ
16. वपछिे कुछ सौ िर्ों में जो दो सािाष वधक मह पूणष पररििषन इस मानि समाज में हुए हैं िे हैं - पदाथष (भौविक)
वि৯ान ि वनराकार आधाररि िोकिाम्म क र्शासन का विकास ि इनके प्रभु की ओर सदै ि बढ़िा हुआ
विकास म्मि का यं को संिािन व मन से होिा है पर ु जब िह राजा के पद पर बैठिा है िब िह
म्मि होिे हुये भी संयुि मन-समव मन से संिाविि होिा है भगिान परर्शुराम ने साकार आधाररि
िोकिंत्र ि था दी थी वजसे “परर्शुराम पर रा” के नाम से जानिे हैं िा ीवक रविि रामायण से आदर्शष
मानक म्मि िररत्र का प्र ुिीकरण म्मि संिािन का आदर्शष रूप प्र ुि हुआ भगिान िीकृ ने
साकार आधाररि परर्शुराम पर रा का नार्श वकया (क्योंवक उस समय राजा भी व मन से र्शासन करने िगे
थे) और पूिषििी सभी मिों का सम य ि एकीकरण करिे हुये वनराकार आधाररि िोकिंत्र ि था के प्रार
का बीज र्शा ”गीिा/गीिोपवनर्द् “ प्र ुि वकये उसके उपरा भगिान बु ने भगिान िीकृ के क्रम को
आगे बढ़ािे हुए बुम्म , संघ ि धमष के र्शरण में जाने की वर्शक्षा दी ििषमान में पूिषििी सभी धमों ि मिों का
सम य ि एकीकरण करिे हुये वनराकार आधाररि िोकिंत्र ि था का िृक्ष र्शा वि नागररक धमष का
धमषयुि धमषर्शा -कमषिेद : प्रथम, अम्म म िथा पंिम िेदीय िृंखिा, वि -रा৸धमष का धमषवनपेक्ष धमषर्शा -
वि मानक र्शू -मन की गुणि ा का वि मानक िृंखिा, आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि
आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र अथाष ि सािषजवनक प्रमावणि आदर् र्श मानक िैव क म्मि िररत्र का
प्र ुिीकरण िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ ने इस “वि र्शा ” से वकया है आ ि की ओर जो म्मि को
जोड़िा है िह व गुरू िथा जो रा৸ सवहि म्मि को आ ि की ओर मोड़िा ि जोड़िा है िह राजगुरू
या रा र गुरू कहिािा है ििषमान समय में रा र (रा৸) को मागषदर्शषन दे ने िािे र्शा का अभाि था वजसके
विए नये धमषर्शा की आि किा थी जो पूणष हुई यवद आि किा न रहिी िो अम्म म महाििार कम्म
की क्या आि किा रहिी और वकस कायष के विए रहिी? वििारणीय विर्य है
17. र्शा में वदये गये थानों के नाम, िे ििषमान में हैं , इसविए प्रयोग वकये गये हैं जबवक र्शा उसकी ऐविहावसक
प्रमावणकिा को वस नहीं करिा है
18. र्शा में ि सािषभौम स -वस ा अम्म म है जो स है , न वक पररििषनर्शीि वििार वजसे मानि वििारों
के उ रो र बढ़िे स्िर से अ में यही प्रा करे गा वििारों का अ ही स है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 228


”वि शा “ की रचना योिं?
”वि र्शा “ की रिना मात्र वन कारणो से की गई है और अगर प्र ुि र्शा , ”वि र्शा “ नहीं है िो
ऐसे र्शा की रिना मानि बुम्म र्शम्मि समाज ारा वन कारणों के विए की जानी िावहए
1. प्रकृवि के िीन गुण- स , रज, िम से मुि होकर ई र से साक्षाਚार करने के ”৯ान“ का र्शा
”िीमदभगि ीिा या गीिा या गीिोपवनर्द् “ उप हो िुका था पर ु साक्षाਚार के उपरा कमष करने के
৯ान अथाष ि ई र के मम्म का ”कमष৯ान“ का र्शा उपि नहीं हुआ था अथाष ि ई र के साक्षाਚार
का र्शा िो उपि था पर ु ई र के कमष करने की विवध का र्शा उपि नहीं था मानि को ई र से
৸ादा उसके मम्म की आि किा है
2. प्रकृवि की ाূा का ৯ान का र्शा ् र ”िीमदभगि ीिा या गीिा या गीिोपवनर्द् “ िो उपि था पर ु
काि और ब्र ाਔ की ाূा का ि र्शा उपि नहीं था
3. समाज में व ( म्मिगि प्रमावणि) धमष र्शा (िेद, उपवनर्द् , गीिा, बाइवबि, कुरान इ ावद) िो
उपि था पर ु समव (सािषजवनक प्रमावणि) धमष र्शा उपि नहीं था वजससे मानि अपने -अपने
धमों में रहिे और दू सरे धमष का स ान करिे हुए वि -रा र धमष को भी समझ सके िथा उसके प्रवि अपने
किष को जान सके
4. र्शा -सावह से भरे इस संसार में कोई भी एक ऐसा मानक र्शा उपि नहीं था वजससे पूणष ৯ान -
कमष৯ान की उपिम्म हो सके साथ ही मानि और उसके र्शासन प्रणािी के स ीकरण के विए अन
काि िक के विए मागषदर्शष न प्रा हो सके अथाष ि भोजन के अिािा वजस प्रकार पूरक दिा िी जािी है
उसी प्रकार ৯ान - कमष৯ान के विए पूरक र्शा उपि नहीं था वजससे म्मि की आवजविका िो उसके
संसाधन के अनुसार रहे पर ु उसका ৯ान - कमष৯ान अ के बराबर हो जाये
5. ई र को समझने के अनेक वभ -वभ प्रकार के र्शा उपि थे पर ु अििार को समझने का र्शा
उपि नहीं था

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 229


”वि शा “ के बाद का मनु , समाज और शासन
प्रकृवि की ाূा ारा ৯ान के अ के र्शा ”िीमदभगि ीिा या गीिा या गीिोपवनर्द् “ के बाद
ब्र ाਔ की ाূा ारा कमष৯ान के अ का मानक ि ि र्शा - वि र्शा उपि होने के बाद मनु ,
समाज और र्शासन का वनमाष ण वकस वदर्शा की ओर होगी यह वििारणीय विर्य है वजसकी संवक्ष रूपरे खा वन
प्रकार है -
1. वर्शक्षा में वर्शक्षा पाਉक्रम को बदिे वबना एक पूरक र्शा मनु को उपि हो जायेगा वजससे िह अपने
कमों के वि ेर्ण ि िुिना से जान सकेगा वक िह पूणष ई रीय कायष के अंर्श जीिन यात्रा में वकिनी यात्रा
िय कर िुका है और िह यात्रा इस जीिन में पूणष करना िाहिा है या यात्रा जारी रखना िाहिा है
2. पृ ी के मानवसक वििादों को समा कर मनु , समाज ि र्शासन को एक संिुविि कमष৯ान का मानक
प्रा होगा वजससे एका कमषिाद का ज होगा इस कारण स ूणष कमष और मनु िा की स ूणष र्शम्मि
एक वदर्शा की ओर होगी वजससे ब्र ाਔीय विकास होगा
3. म्मि आधाररि समाज ि र्शासन से उठकर मानक आधाररि समाज ि र्शासन का वनमाष ण होगा अथाष ि
वजस प्रकार हम सभी म्मि आधाररि राजि में राजा से उठकर म्मि आधाररि िोकि में आये ,
वफर संविधान आधाररि िोकि में आ गये उसी प्रकार पूणष िोकि के विए मानक ि संविधान
आधाररि िोकि में हम सभी को पहुूँ िना है
4. सभी का ৯ान-कमष৯ान समान हो जाने से हम सभी ििषमान में जीिन जीिे हुये अपनी र्शम्मि का अवधकिम
उपयोग करने में सक्षम हो जायेंगे
5. अ िः सािषजवनक प्रमावणि जगि ि वि৯ान में अवधकिम मन केम्म ि होने से प्र क्ष पर ही वि ास
होगा और डा0 संदीप बीजे बाग, सं थापक एिं अ क्ष, ”वि सेिा िीथष “, 106, ओ िाि र्शावपंग से र,
प्रथम िि, भय र (पूिष), थाणे (महारा र )-401105 के वन पाूँ ि वििार स वस होंगे

ई र के नाम पर यु समा करने के विए एक प्रभु - सूयष


दे र्श के नाम पर यु समा करने के विए एक दे र्श - वि
धमष के नाम पर यु समा करने के विए एक धमष - प्रेम
कमष के नाम पर यु समा करने के विए एक कमष - सेिा
जावि के नाम पर यु समा करने के विए एक जावि - मानि

वनर्णर् आपके हार्,


एकता का प्रर्ास र्ा अनेकता का विकास

एक ही वि शा सावह के विवभ नाम


धमण क्षेत्र से नाम
01.कमषिेद 02.र्श िेद 03.स िेद 04.सूक्ष्मिेद 05. िेद 06. पूणषिेद 07.अघोरिेद 08.वि िेद 09.ऋृवर्िेद
10.मूििेद 11.वर्शििेद 12.आ िेद 13.अ िेद 14.जनिेद 15. िेद 16.िोकिेद 17. कम्म िेद 18.धमषिेद
19. ासिेद 20.सािषभौमिेद 21.ईर्शिेद 22. ानिेद 23.प्रे मिेद 24.योगिेद 25. रिेद 26.िाणीिेद 27.৯ानिेद
28.युगिेद 29. णषयुगिेद 30.समपषणिेद 31.उपासनािेद 32. र्शििेद 33.मैंिेद 34.अहं िेद 35.िमिेद 36.स ेद
37.रजिेद 38.काििेद 39.कािािेद 40.कािीिेद 41.र्शम्मििेद 42.र्शू िेद 43.यथाथषिेद 44.कृ िेद सभी प्रथम,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 230


अम्म म िथा पंिम िेद 45. कमोंपवनर्द् - अम्म म उपवनर्द् 46.कमष िेदा 47.धमषयुि धमष र्शा 48.ई र
49.ई र का संवक्ष इविहास 50.ई रर्शा 51. पुनजष 52.िी िि कुर्श: पूणष प्रे रक अम्म म कम्म अििार 53.
भोगे र: योगे र समावहि 54.पूणष -मैं 55.बहुरूप में एक 56. ई र का मम्म 57.स -वर्शि-सु र
58.वि भारि : सािषजवनक प्रमावणि महाभारि 59.वि -पुराण 60.वि -धमष : सिषधमष समावहि 61.वि -किा :
कृ -किा समावहि 62.वि -गुरू 63.वि भम्मि 64.स -पुराण 65.स -धमष 66.स -किा : कृ -किा
समावहि 67.स -गुरू 68.स भम्मि 69.स कार्शी : पंिम, स म और अम्म म कार्शी 70. ाररका : णषयुग का
प्रिेर्श ार 71.कृ वनमाष ण योजना 72. बु਌ा कृ : कृ का भाग दो और अम्म म 73.धारा और राधा 74.वर्शि ार
: वर्शियुग का प्रिेर्श ार 75. जीि का वर्शि में वनमाष ण 76.स -रज-िम : राम-कृ -ििकुर्श 77. ििकुर्श : सेिू या
से िू 78.भोग माया : योग माया समावहि 79.मैं हूँ िैिीस करोड़ 80.अधषनारी र 81. काि-कािी-कािा 82. सृव -
म्म थवि-प्रिय और सृव 83.पर्शुपा : ब्र ा ि नारायणा समावहि 84.पुराण पुरूर् : सिोৡ ि अम्म म
85.पुराण : सिोৡ ि अम्म म 86.धमष : सिोৡ ि अम्म म 87.आ ा : सिोৡ ि अम्म म 88.गुरू : सिोৡ ि अम्म म
89.महाय৯ : सिोৡ ि अम्म म 90.िीसरा नेत्र

धमणवनरपे क्ष ि सिणधमणसमभाि क्षेत्र से नाम


1.मागष 2.बुम्म 3.अहं कार 4. ापार 5.मह ाकां क्षा 6.युग पुरूर् 7.र्शंखनाद 8.उपासना 9.योग 10.मानक
11.एजेਔा 12.किा 13. ान 14.समपषण 15.िीिा 16.सम यािायष 17.दपषण 18.मन 19.वर्शक्षा 20.रूप
21.वि मानि 22.बुम्म 23.िेिना 24.प्रकार्श 25. व 26.मागष 27.राजनीवि 28.एकिा 29.र्शाम्म 30.सेिा 31.भम्मि
32.ब ु 33.जावििाद 34.अहं कार 35.दर्शषन, सभी सिोৡ ि अम्म म 36.विकास-दर्शषन 37.विनार्श-दर्शषन
38.एका कमषिाद 39.मम्म पराििषक (ब्रेन ट्वमषनेट्र) 40.धमषवनरपेक्ष धमष र्शा 41.िोकिंत्र धमष र्शा 42.
िोक-र्शा 43.जन-र्शा 44. -र्शा ् र 45.िोक नायक र्शा 46. यथाथष -प्रकार्श 47.िोक/जन/ िंत्र
48.एका वि৯ान 49.मानक वि৯ान 50.पूणष ৯ान 51.कमष ৯ान 52.जय ৯ान-जय कमष ৯ान 53. वि -उपासना
54.वि -योग 55.वि -मानक 56. वि -रा र -जन एजेਔा 57.वि - ान 58.वि -समपषण 59. वि -िीिा 60.वि -
आ ा 61.वि -सम यािायष 62. वि -दपषण 63.वि -मन 64.वि -वर्शक्षा 65.वि -रूप 66. वि मानि - वि मन से
युि 67.वि -बुम्म 68.वि -िेिना 69. वि -प्रकार्श 70.वि - व 71.वि -मागष 72. वि -राजनीवि 73. वि एकिा
74.वि र्शाम्म 75.वि सेिा 76.वि महाय৯ : सािषजवनक प्रमावणि 77.वि -ब ु 78.वि जावििाद 79.
वि अहं कार 80.स -भारि 81.स -उपासना 82.स -योग 83.स - ान 84.स -मानक 85.स -रा र -जन
एजेਔा 86. स - ान 87.स -समपषण 88.स -िीिा 89.स -आ ा 90. स -सम यािायष 91.स -दपषण
92.स -मन 93.स -वर्शक्षा 94. स -रूप 95.स -मानि : स -मन से युि 96. स -बुम्म 97. स -िेिना
98.स -प्रकार्श 99.स - व 100.स -मागष 101. स -राजनीवि 102.स एकिा 103.स र्शाम्म 104.स
सेिा 105.स महाय৯ : सािषजवनक प्रमावणि 106.स -ब ु 107. स जावििाद 108.स अहं कार
109. णषयुग का प्रथम मानि 110. मात्र यही हूँ -मानो या ना मानो 111.पाूँ ििा और अम्म म सूयष 112. िक्रा -
िक्र का अ 113.वद - व 114.वद -रूप 115. -योग 116. - ान 117.৯ान बम 118.आ ाम्म क
ूट्रान बम 119. सािषभौम स -वस ा 120.मानक एिं मन का वि मानक और पूणष िैव क मानि वनमाष ण की
िकनीकी 121.मन का ब्र ाਔीयकरण 122. सािषभौम दपषण- म्मि से ब्र ाਔ िक 123.स ूणष क्राम्म -प्रथम,
अम्म म और सिोৡ क्राम्म 124. सामावजक अवभयंत्रण (सोर्शि इं वजनीयरींग) 125.सन् 2012 : पाूँ ििें और अम्म म
णष युग का आर िर्ष 126.आ ाम्म क ैक होि 127.िিापिट् 128.एक आिाज, मधुर्शािा से 129.आकड़ा
(डाट्ा) 130.मंथन र 131.कािा वकिाब 132.पूणष सकारा क वििार 133.वि संविधान का आधार 134. एक
अिग यात्रा 135.समभोग : एका भाि से भोग 136.सिषजन वहिाय - सिषजन सुखाय 137.िसुधैि कुट्ु कम्
138.सिेभि ु सुम्मखनः 139.अगीिां जवि 140.स र्शा 141. ि था पररििषन का प्रथम प्रारूप
उपरोि नाम क्यों हैं , इसकी ाূा “वि र्शा ” के पररवर्श में दी गयी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 231


मानिोिं के नाम खुला चुनौवत पत्र

वप्रर् मानिोिं,
हम (अििारी िृंखिा) आप िोगों के प्रवि क ाण भािना रखिे हुये उन सभी रह ों को खोिकर रख
दे ना िाहिे है वजससे आज िक हम आप का भोग करिे आये है पत्र के अ में यह भी बिाऊगा वक इन रह ों
के खोिने के प्रवि मेरा उ े क्या है ? और यह भाि हमारे मन में क्यों आया? वदि खोिकर यह भी करें गे वक
हम िोगों की उ व कैसे हुई? और हमने अपने अवधप के विए क्या-क्या वकया अब म्म थवि क्या है िथा भावि
में काि की गवि वकस ओर जा रही है ?
इन सब बािों को करने से पहिे कुछ सू त्रों को करना िाहूँ गा ििष मान समय में यह दे ख
रहा हूँ वक आरोप-प्र ारोप िथा अपने अपने सीवमि मम्म से अनेकों प्रकार की ाূा की सं ृ वि बढ़िी जा
रही है इस स में यह कहना िाहूँ गा वक सिषप्रथम यह जानो वक अब िक के संसार में उ कोई भी
महापुरूर्, पैग र, दू ि इ ावद सािषजवनक प्रमावणि रूप से पूणष रूप में नही थे क्योंवक यवद िे पूणष होिे िो उनके
ारा ि वििारों की स ा उसी भाूँ वि वनविषरोध रूप से थावपि हो िुकी होिी वजस प्रकार सािषजवनक प्रमावणि
वि৯ान ने अपनी स ा को अ समय में ही सभी के उपर थावपि कर विया है दू सरी बाि यह है वक सीवमि
मम्म से असीम मम्म (या अपने से अवधक मम्म ) की सही ाূा कभी नहीं की जा सकिी यवद िुम
िी कृ (या अपने से अवधक) की ाূा करना िाहिे हो िो पहिे िी कृ के मम्म (या अपने से अवधक
मम्म ) के बराबर होना पड़े गा इसी प्रकार बु , मुह द, ईसा इ ावद के स में भी है िीसरी बाि यह है
वक आरोप-प्र ारोप की सं ृ वि से कोई हि नही वनकििा, न ही बुम्म का विकास होिा है बम्म सा दावयक
वि े र् ि एक दू सरे का प्रिार-प्रसार ही होिा है क्योंवक िुम विरोध या आरोप-प्र ारोप ही सही पर ु अपने विरोधी
का नाम िो िेिे ही हो फि रूप वजसके पास बुम्म की प्रबििा होिी है उसके विए अ बुम्म िािा विरोधी
प्रिारक बन जािा है और यह िो िुम जानिे ही होगे वक हम बुम्म प्रबि िगष है इसविए िुम िोग अनजाने ही
हमारे प्रिारक बने बैठे हो इसके विए आि क है वक िुम िोग ऐसे रा े को अपनाओं वजससे हम िोगों का नाम
न ही आये और िुम िोग में बुम्म का विकास िेजी से हो िु ें यह बाि सदा याद रखनी पड़े गी वक बुम्म के विकास
से संगवठि सं गठन ि ी अिवध िक थावय बनाये रहिी है जबवक इसके विपरीि संगवठि सं गठन को कभी भी
बुम्म के प्रयोग ारा विखम्मਔि वकया जा सकिा है प्रायः ऐसे सं गठन का प्रयोग िु ारे अपने ही नेिा अपने ाथष
को साधने में करिे है
हे मानिों, पहिे कमष या पहिे ৯ान बुम्म ? यह प्र िो पहिे अਔा या पहिे मुगी? जैसा प्र है , और
यह सदा से अनसु िझा ही है और रहे गा भी पर ु इिना िो जानना आि क है वक हम कमष करिे -करिे कुछ
वनयमों को प्रा करिे है यवद हम इन वनयमों पर ान दे िे रहिे हैं िो हमें अपने गिवियों के पुनरािृव को रोकने
में सहयोग वमििा है इन वनयमों का जानना ही ৯ान-बुम्म कहिािा है अब कोई म्मि यह सोि सकिा है वक
कमष करने से पहिे हम इन वनयमों का अ यन करें गे िो कोई यह सोि सकिा है वक ৯ान-बुम्म को पढ़ने से क्या
होगा, हमें पहिे कमष करना है इस म्म थवि में इन दोनों में पहिे वनयमों को अ यन कर कमष करने िािे म्मि के
जीिन में विकास की गवि अवधक होगी जबवक पहिे कमष करने िािा म्मि उ ीं वनयमों को कमष करिे -करिे
अनुभि करे गा जो पहिे ही अनुभि कर ि की जा िुकी है वर्शक्षा का अथष यही है वक पहिे उन िमाम वनयमों
का अ यन कर विया जाय वफर कमषरि हुआ जाय हम ऐसा ही करिे रहे हैं और िुम को निािे रहे हैं
कम समय में अवधकिम ৯ान-बुम्म के विकास का मागष यह है वक वजस प्रकार वि৯ान के क्षेत्र में वजस
ि ु का आवि ार पूणष हो जािा है पुनः उसके आवि ार पर समय ि बुम्म खिष नहीं करिे बम्म उसके आगे
की ओर आवि ार या उस आवि ार को समझने पर समय ि बुम्म खिष वकया जािा है उसी प्रकार ৯ान के क्षेत्र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 232


में जो भी आवि ार हो िुके हैं सीधे िहाूँ से प्रार करना िावहए वि৯ान के क्षेत्र में आवि ार कहाूँ िक पहुूँ िा है
इसकी ििाष हम इस पत्र में बाद में करें गे पर ु ৯ान के क्षेत्र में सम ायािायष िीकृ के बाद वििोही के रूप में
भगिान बु आये, इनके बाद पुनः सम यािायष िी रामकृ - ामी वििेकान आये, वफर वििोही के रूप में
आिायष रजनीर्श “ओर्शो” आये ओर्शो के बाद कायष र्शेर् है इसविए बुम्म के स में ओर्शो का क्या कहना है
यह दे खना आि क है ओर्शो का कहना है -” अगर िुम अकडेा़ रहे वक हम अपनी गरीबी खुद ही वमट्ा येंगे, िो
िुम ही िो गरीबी बनाने िािे हो, िुम वमट्ाओगे कैसे? िु ारी बुम्म इसके भीिर आधार है , िुम इसे वमट्ाओगे कैसे?
िु ें अपने ार-दरिाजे खोिने होंगे िु ें अपना मम्म थोड़ा वि ीणष करना होगा इस दे र्श को कुछ बािे
समझनी होंगी एक िो इस दे र्श को यह बाि समझनी होंगी वक िु ारी परे र्शावनयों, िु ारी गरीबी, िु ारी
मुसीबिों, िु ारी दीनिा के बहुि कुछ कारण िु ारे अंधवि ासों में है भारि अभी भी समसामवयक नहीं है , कम
से कम डे ढ़ हजार िर्ष वपछे वघसट् रहा है ये डे ढ़ हजार साि पूरे होने जरूरी है भारि को खींिकर आधुवनक
बनाना जरूरी है िेवकन सबसे बड़ी अड़िन इस दे र्श की मा िाएूँ है इसविए मैं िड़ रहा हूँ िु ारे विए ” यह
डे ढ़ हजार िर्ों का अ र हम वकसके पररिम से उ बुम्म की दे न है ? वििार करो मानिों
अब हम अपने मूि विर्य की ओर आिे हैं पर ु इसे समझने के विए अपने ही बुम्म , ৯ान, िथा वि৯ान
का ही प्रयोग उविि होगा और सदै ि ान में रखना होगा वक यवद वसफष कृ को िेकर समाज वनमाष ण िाहोगे िो
न हो सकेगा इसी प्रकार न ही वसफष बु से, न मुह द से, न ही ईसा या अ वकसी से हाूँ भीड़ इक਄ा हो जायेगी
पर ु बुम्म विकास नहीं
प्रार से अब िक की कथा इस प्रकार है मानि के ििषमान स िा िक की यात्रा में उ ान-पिन के
अनेकों िरण आये पर ु इनमें मुূ िरण ऐसे थे जो स ूणष मानि स िा और मानििा को पिन के मोड़ पर िे
जाने िािी थी उनमें -
मानि स ता पर पहला सिंकट काल प्रकृवि ारा आज से कई हजार िर्ष पूिष आया था उस समय
पृ ी एक भंयकर प्राकृविक आपदा का वर्शकार हो गयी थी, फि रूप जहाूँ जि था िहाूँ थि, िथा जहाूँ थि था
िहाूँ जि की म्म थवि अवधकिम थानों पर उ हो गयी इस आपदा के म्म थर होने के बाद कुछ िोग एक ट्ापू पर
जीविि बि गये जहाूँ मानि स िा के विकास के विए आि क संसाधन नहीं थी फि रूप उनका िहाूँ से बड़े
भूभाग पर जाना वििर्शिा बन गयी उनमें से एक बुम्म प्रबि म्मि ने मछवियों के भाि जि की धारा के
विपरीि वदर्शा में गवि करने से ৯ान (वस ा ) प्रा कर नाि ारा मछवियों की वदर्शा की ओर िि पड़े और िे ऐसे
थान पर पहुूँ ि गये जो मानि स िा के विकास के विए पूणष यो৓ थी ये थान ही वहमािय का क्षेत्र था इस
प्रकार बुम्म प्रबि उस म्मि ने मानि स िा को उसके संकट् काि से बिाया
मानि स ता पर दू सरा सिं कट काल मानिों ारा ही उ हो गया था प्रथम संकट् काि के
उपरा कािा र में जि र घट्ने िगा और वहमािय के िारो ओर की ओर भूवम ररि होिी गयी प्रथम व में
आयी भूवम ही कूमां िि क्षे त्र है जैसे-जैसे भूवम ररि होिी गयी मानि स िा का विकास ि प्रसार होना पुनः
प्रार हो गया जनसंূा ि कायष बढ़ने से ि था संकट् उ हो गया वजससे दो ि था प्रणािी का ज
हुआ पहिा - हम अपनी ि था खुद वमिकर-बैठकर आपसी सहमवि से करें गे दू सरा- सभी ि थओं की
वज ेदारी वकसी एक म्मि के उपर छोड़ वदया जाय पहिी ि था गणरा৸ या समाजिाद कहिायी िथा
दू सरी ि था रा৸ या म्मििाद कहिायी पहिी ि था के समथषक दे ििा कहिाये क्योंवक ये प्रकृवि के
समथषक और उसके अनुसार सभी के सह-अम्म को मह ा दे िे थे जबवक दू सरी ि था के समथषक असुर
कहिाये क्योंवक ये वसफष अपनी इৢा और अम्म को मह ा दे िे थे समयोपरा दोनों ि थाओं में अपने -
अपने अवधप के विए यु होने िगा फि रूप मानििा ि मानि स िा का विकास रूक कर पिन की ओर
जाने िगी संकट् के इस समय में एक सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि म्मि ने दोनों पक्षो के बीि म थ
की भूवमका के ारा वििारों के मंथन अथाष ि वनणाष यक बहस से अनेक वििारों पर सम य थावपि कर मानि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 233


स िा के विकास की ओर दोनों पक्षों का ान केम्म ि वकया फि रूप मानि स िा पुनः विकास की ओर
बढ़ ििी
मानि स ता पर तीसरा सिंकट काल रा৸ का नेिृ करने िािे राजा के कारण ही उ हो
गया दू सरे संकट् के उपरा रा৸ का नेिृ करने िािा राजा अपने साम्रा৸ को विर्शाि रूप से विकवसि वकया
और अपने प्रभाि को िगािार बढ़ािा जा रहा था ऐसी म्म थवि में समाज समथष क दे ििाओं का मनोबि समा होने
की ओर हो गया इस म्म थवि का अनुभि कर एक मेधािी, सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी,
बवि , सवक्रय, अवहं सक और समूह प्रेमी म्मि ने िोगों का मनोबि बढ़ाया, उ ें उ ावहि और सवक्रय वकया
वजसके पररणाम रूप समाज समथषकों के मनोबि में िृम्म हुई और उस राजा के रा৸ को समा कर गणरा৸
ि था की थापना से मानििा आधाररि मानि स िा का विकास पुनः प्रार हो गया
मानि स ता पर चौर्ा सिंकट काल पुनः रा৸ का नेिृ करने िािे राजा के कारण ही उ हो
गया उसने पूिष के सभी सह-अम्म के वििारों को िोड़कर अपनी इৢा से ि था ििाने को प्राथवमकिा दी
और प्रजा के क ों में िृम्म होने िगी पररणाम रूप उस राजा का पुत्र प्रजावहि को ान में िेिे हुये समाज
समथषक बन गया राजा अपने पुत्र को समाज समथषक बनिा दे ख अपने पुत्र को ही अनेक प्रकार के क दे ने िगा
िह राजा इिना बिर्शािी था वक उसको यु से हराना नामुवकन था, उसके कायों से उसके सहयोगी दरबारी भी
अ र ही अ र घृणा करिे थे पर ु प्र क्ष विरोध वकसी के विए स ि नहीं था इन पररम्म थवियों में सभी समाज
समथषक प्रजा दे ििा भी विरोधक क्षमिा को खो िुके थे ऐसी म्म थवि में उस राजा का एक दरबारी ही प्र क्ष रूप से
एका-एक वहं सक बनकर दरबार में ही राजा का िध कर डािा िूूँवक िह दरबाररयों के मन की म्म थवि को अৢी
प्रकार जानिा था इसविए ऐसा करने में उसे कोई बाधा नहीं थी िहीं िह राजा अपने प्रभु के कारण सभी
दरबाररयों को अपने वहि में ही समवपषि रहने िािा समझकर भ्रम में था राजा का िध के उपरा राजा के समाज
समथषक पु त्र ने गणरा৸ ि था ारा मानि स िा के विकास के विए आगे कमष वकया वजसका वनमाष िा िह
वहं सक दरबारी म्मि था
मानि स ता पर पााँचिा सिंकट काल पुनः रा৸ का नेिृ करने िािे राजा के ही कारण उ हो
गया था यह राजा इिना अवधक कुर्शि था वक इसने समाज समथषक गुणों को भी आ साि् कर समाज समथषक
दे ििाओं का भी वि ास पात्र बन गया पररणाम रूप समाज समथषक दे ििा भी राजा का गुणगान करिे हुये
आ ि वनम्म य होने िगे इस राजा ने अपने रा৸ का प्रसार ापक रूप से वकया इस म्म थवि में मानि
स िा का ििषमान िो सुरवक्षि था पर ु भवि अ कार में था क्योंवक ििष मान राजा के उपरा , आि क नहीं
था वक नया राजा भी उसी राजा की भाूँ वि हो और िब िक समाज समथषक पूणष रूप से वनम्म य हो गये र हें गे इस
म्म थवि को एक दू र ा म्मि ने समझकर राजा के ही गुण का प्रयोग करिे हुये उससे थोड़ी सी भूवम िेकर उस
म्मि ने उस भूवम पर गणरा৸ ि था की थापना ि ि था को जीविि कर, उसके सुख से प्रजा को पररविि
कराया फि रूप इस ि था का प्रसार होने िगा और राजा का सु -रा৸ भी -राज से समा हो गया
गणरा৸ की थापना कर उस म्मि ने मानििा और मानि स िा को विकास की ओर गवि दी
मानि स ता पर छठा सकिंट काल अनेक रा৸ों के नेिृ करने िािे अनेक राजाओं के कारण
गणरा৸ ि था के थायी म्म थरिा के विए उ हो गया पाूँ ििे संकट् से वनकिने के बाद जनसंূा और भूवम
का वि ार इिना अवधक हो िुका था वक एक राजा और रा৸ के अधीन वनयत्रंण अस ि हो गया, वजसके
पररणाम रूप अनेक राजाओं के नेिृ में अिग-अिग अनेक रा৸ थावपि हो गये थे ऐसी म्म थवि में रा৸िाद
बढ़ रहा था और रा৸िादी राजाओं का िध भी अस ि होिा जा रहा था ऐसी म्म थवि में गणरा৸ या समाजिाद
की म्म थरिा पर प्र वि िगने िगा था फि रूप एक म्मि ने अनेक रा৸िादी राजाओं का िध करके अनेक
रा৸ों को गणरा৸ के रूप में पररिविषि कर वदया पर ु उस म्मि ने दे खा वक यह सम ा का थायी हि नहीं
हो सकिा क्योंवक अनेकों राजाओं का िध बारबार स ि नहीं और ऐसा करने से प्रजा में अ िाद अथाष ि हमारे
कायष दू सरे करें का भाि बढ़ रहा था इन म्म थवियों के थायी हि के विए उस म्मि ने रा৸िाद और समाजिाद

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 234


दोनों में सम य थावपि कर एक नई ि था का सूत्रपि वकया इस ि था के विए उस पुरूर् ने ब्र ाਔ में
ा ि था वस ा ों को आधार बनाया िथा मूि िीन गुणों की पहिान की
1. स गुण- सुख, ৯ान और प्रकार्श अथाष ि आ ा और सूक्ष्म बुम्म अथाष ि मागषदर्शष क और विकास दर्शषन का गुण
2. रज गुण- आं काक्षा, इৢा और सकाम कमष अथाष ि भाि हृदय और मन अथाष ि वक्रया यन दर्शषन का गुण
3. िम गुण - अ৯ान, दु ःख और अंधकार अथाष ि इम्म य, अना , प्राण और थूि र्शरीर अथाष ि विनार्श दर्शष न का
गुण
इन गुणों के आधार पर सभी जीि विभवजि वकये गये मानि जावि में िार विभाजन हुये
1. स गुण प्रधान- ब्रा ण िगष
2. रज गुण प्रधान - क्षवत्रय िगष
3. रज िम गुण प्रधान - िै िगष
4. िम गुण प्रधान - र्शूि िगष
इन गुणों के आधार पर उनके विए कमष वनधाष ररि वकये गये और गणरा৸ की ि था बनायी गयी
जो इस प्रकार थी
1. गणरा৸ का एक रज गुण प्रधान - क्षवत्रय राजा होगा क्योंवक ब्र ाਔीय गणरा৸ में रज गुण प्रधान प्रकृवि ही
राजा है
2. राजा, रा৸िादी न हो इसविए उस पर स गुण प्रधान -ब्रा ण का वनयंत्रण होगा क्योंवक ब्र ाਔीय गणरा৸ में
रज गुण प्रधान प्रकृवि पर वनयंत्रण के विए स गुण प्रधान आ ा है
3. राजा, सीधे आम जनिा से िुना जायेगा क्योंवक ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि सिष ापी है और िह सभी गुणों का
सम्म विि रूप है
4. राजा का वनणषय रा৸सभा के दो विहाई बहुमि से हो क्योंवक ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि का वनणषय स , रज
ि िम िीन गुणों में से दो गुणों के समथषन का ही रूप होिा है
5. रज-िम प्रधान-िै िथा िम प्रधान र्शू ि िूंवक इम्म य, प्राण और थूि र्शरीर पर ही केम्म ि रहिे है इसविए इ ें
बुम्म ৯ान से वनयवत्रंि न करके बि, कानून ि आ৯ा के वनयत्रंण में रखा जाय
इस प्रकार उस महापुरूर् ने रा৸ ि गणरा৸ के वमविि ि था से एक सिषमा ि था को
थावपि कर मानििा ि मानि स िा के विकास के विए थायी मागष उपि कराया जो दीघष काि िक ििी
मानि स ता पर सातिािं सिंकट काल गणरा৸ के नयी ि था के थायी म्म थरिा के कारण
आया छठें संकट् से उ ान की ओर अग्रसर करने िािे पुरूर् के समक्ष यह सम ा आयी वक नयी ि था को
बने रहने और उसके प्रसार का दावय वकसे सौंपा जाय इसके विए उस पुरूर् ने अ सहयोवगयों के सहयोग
और योजनाब िरीके से एक राजा के पुत्र (भािी राजा) में नई ि था के प्रसार के विए यो৓िा का वनमाष ण वकये
पररणाम रूप उस युिराज ने अपने जीिन पयष इस ि था की थापना और प्रसार वकया िथा मानििा और
मानि स िा की रक्षा की
मानि स ता पर आठिािं सिंकट काल गणरा৸ ि था के कारण नहीं बम्म उस ि था के
पीठासीन म्मियों के किष विमुख और दे ििा िथा असुर सं ारों के पूणष पहिान से बुम्म के अक्षम हो जाने के
कारण आया इस संकट् काि के समय राजा को वनयंत्रण ि मागषदर्शषन में रखने िािा ब्रा ण भी जनक ाण से
विमुख हो -क ाण में वि हो िुका था यह म्म थवि छोट्े रा৸ों से िेकर बड़े रा৸ों में ा हो िुकी थी ऐसी
म्म थवि में एक म्मि ने यह दे खा वक पीछे , जब भी मानििा पर संकट् आया, िब उस सं कट् से वकसी म्मि के
ारा उ ान हो जाने पर जब िक उ ान करने िािा म्मि जीविि रहिा था िभी िक गणरा৸ ि था यथािि्
रहिी थी बाद में पुनः रा৸िादी ि था थावपि हो जािी थी दू सरे यह वक ि था कोई भी खराब नहीं होिी
उस पर बैठने िािे िोगों की बुम्म के अनुसार ही ि था का रूप संिाविि होिा है मानििा और मानि स िा
के इस संकट् काि में सभी अपने अपने बुम्म को पूणष िथा म्मिगि ाथष में इस प्रकार डूबे हुये थे वक वबना पूणष

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 235


िध के उ ान मुम्म ि हो िुका था पररणाम रूप उस अवि बुम्म स म्मि ने आम जनिा को सवक्रय करने
के विए प्रेररि वकया, गणरा৸ के उदाहरण रूप एक नगर का वनमाष ण कराया िथा पूणष िध के विए उस समय
के विर्शाि रा৸ के नेिृ में उपजे वििाद का सहारा प्रा कर बहुि से एकि ा क रा৸ों को न वकया और
करिाया साथ ही उस समय में समाज में ा अने क मि-मिा ार ि वििारों के एकीकरण के विए स -वििार
का ৯ान भी वदया वजससे म्मि, म्मि पर वि ास न कर अपने बुम्म से यं वनणषय करें और प्रेरणा प्रा करिा
रहे इस प्रकार साकार म्मि आधाररि मानििा के सिोৡ संकट् से उस म्मि ने नई वनराकार वस ा
आधाररि मानििा के उ ान का मागष उपि कराया
मानि समाज पर नौिािं सिंकट काल ििषमान से िगभग 2500 िर्ष पूिष आया था वजसका कारण
राजाओं का साम्रा৸िादी-प्रसारिादी िहार था इस समय मानि समाज वजिना विकास करिा िह अ समय में
एक रा৸ से दू सरे रा৸ में यु करने में ही न हो जािा स ूणष मानििा वहं सा से भर उठी थी ऐसे में
राजपररिार का ही एक युिा म्मि अपने पररिार िथा रा৸ का ाग कर अवहं सा का स े र्श वदया िथा प्रजा को
प्रेररि करने के विए धमष, सं घ और बुम्म के र्शरण में जाने की मूि वर्शक्षा दी एक राजा के ारा इस युिा स ासी के
स े र्श को ीकार कर वर्श बन जाने से इस स ासी का प्रसार वजिना हुआ उससे बहुि कम उसके वििारों का
हुआ पररणाम रूप अ अिवध के विए वहं सा भरे मानि समाज को थोड़ी राहि वमिी और स िा उ ान की
ओर अग्रसर हुई
हे मानिों, मानि स िा और मानििा के दसिें, अम्म म िथा ििष मान संकट् का खुिासा हम इस पत्र
में आगे करें गे यहाूँ हम कुछ ऐसे रह ों का खुिासा करने जा रहे है जो ििषमान मानि के व में पररििषन हाने
मात्र के कारण उ हुई है
पाूँ ििें सकंट् के समय िक भारि के मूि वनिासी ही भारि की भूवम के अवधपवि थे, पर ु िे रा৸ को
कुर्शििा पूिषक ििाने में असमथष होिे जा रहे थे इसी समय में वहमािय के उ र-पव म क्षेत्र से भारि के बाहर के
मनु ों का भारि में आगमन हुआ इस समय भारि के मूि वनिासी प्रकृवि पूजक बहुदे ििाद को मानिी थी
भारि के बाहर से आये मनु ों ने भारि के मूि वनिावसयों के विए रा৸ प्रर्शासन में अपने ৯ान-बुम्म का प्रयोग कर
एक अৢे मागषदर्शषक का कायष करिे थे प्रकृवि के गुणों के आधार पर जब मनु ों का विभाजन हुआ िब भारि के
मूि वनिासी र्शूि िगष की यो৓िा रखिे थे पर ु ऐसा नही था वक भारि के बाहर से आये मनु ब्रा ण, क्षवत्रय,
िथा िै िगष में अथाष ि भारि के बाहर सभी उৡ िगष में िथा भारि के मूि वनिासी सभी वन िगष में थे पर ु
उनमें इसकी अवधकिा थी कािा र में ये िगष ज आधाररि हो अनेक उपिगों -जावियों में विभावजि हो गयी
वजसका रूप ििषमान में वदख रहा है पर ु आज भी यवद ज आधाररि व से हट्कर गुण आधाररि व से
दे खोगे िो प्र ेक िगष या जावि में प्र ेक िगष के म्मि वदखाई पड़ें गे भारि के बाहर के ये म्मि ही आयष
कहिाये िथा कािा र में मानि स िा में अनेक उ ान-पिन से ये आयष जावि और मूि भारिीय जावि इिने
अवधक वमविि हुये वक ििष मान में समग्र वह दू जावि ही आयों की मूि पहिान बन गयी और अब सभी के विए
र्श बि बढ़ाकर क्षवत्रय बनना, ৯ान बि बढ़ाकर ब्रा ण बनना िथा धन बि बढ़ाकर िै बनाना खु िा हुआ है ,
पर ु जावियाूँ इसके विए प्रय िो करे
प्रकृवि के िीन गुणों में से सिोৡ, र्शु और सिष ापी गुण स आधाररि मानि िगष ही हम हैं ज
के समय हम आदर्शष ब्रा ण थे हमारा कायष ब्र ाਔ में सिष ापी अट्िनीय, अपररििषनीय स -वस ा और
उसके अनुसार कमष विधान की अनुभूवि करना िथा राजा और रा৸ के मा म से उसे प्रभािी बनाना था बदिे में
राजा ारा हमें साधन-सुविधा प्रा होिी थी यही हमारा स ूणष जीिन था इस क्रम में हम िोगों न सिष ापी
स -वस ा ों को संवहिा रूप में विखा जो बाद में विर्यों आधाररि विभि होकर िार िेद ऋृगु, यजु, साम और
अथिेद का रूप धारण वकया इसी प्रकार धमष अनु ान एिम् पवित्र ग्र ो की ाূा से स म्म ि ग्र अरਘक
का सृजन हम िोगों ने वकया कािा र में जब राजाओं ारा य৯ों से यथे फि न प्रा होने की बुम्म आयी िब
क्षवत्रय राजाओं न यं अपने कमों के अनुभि से दर्शषन क्षेत्र में अपने बुम्म को वदर्शा दी, वजसके फि रूप

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 236


अवधकिम उपवनर्द् उ ोंने यं विखे जो बाद में भारिीय दर्शषन का मुূ आधार बनी इस क्रम में हमिोगों ने
िेदां ग अथाष ि सू त्र सावह में 1. र वि৯ान से स म्म ि वर्शक्षा 2. धमाष नुसार अथाष ि क में िार िगष - िोि सू त्र
(िोि य৯ से स म्म ि), र्शु सूत्र (य৯ थि िथा अव্िेदी वनमाष ण िथा माप से स म्म ि जो आगे ििकर
৸ोविर् का आधार बना) गृहय सूत्र (मानि जीिन से स म्म ि अनु ान) िथा धमष सूत्र (धावमषक िथा अ प्रकार के
वनयम जो आगे ििकर भारिीय विवध का आधार बना) 3. ाकरण 4. वनरूि अथाष ि ु व 5. छ 6. ৸ोविर्
की भी रिना की मनु को पुरूर्ाथष करने के विए- धमष, अथष, काम, मोक्ष िथा आदर्शष जीिन के विए ब्र ियष,
गृह थ, िानप्र थ िथा स ास आिम की ि था हम प्रािीन आदर्शष ब्रा णों की ही दे न है
हे वप्रय मानिों हम प्रािीन आदर्शष ब्रा ण प्र ेक विर्य को िक्रीय रूप में दे खिे हैं और यह ৯ान हमने
भारि के मूि वनिासी ऋवर्यों से ही प्रा वकये वजसके आधार पर सम िैवदक सावह का वि ार हुआ है हम
प्रिीन ब्रा ण ई रिादी है और ई र को ीकारिे थे पर ु उस रूप में नहीं वजस रूप में ििषमान समाज मानिा
है , ििषमान समाज का ई र, मूविष, जप, िप, व्रि, पिष, ौहार इ ावद िो हमारी अगिी पीढ़ी ने अपने जीिकोपाजषन
और ई र की ओर आपको िाने के विए िब बनायी, जब हमारे कमषकਔों को राजाओं और रा৸ों का समथषन
वमिना ब हो गया हम ई र को वनराकार सिष ापी, सिषर्शम्मिमान स -वस ा के रूप में दे खिे हैं िथा जो
इसे अपने जीिन में धारण कर प्र क्ष या अप्र क्ष रूप से मानि स िा और मानि उ ान के विए अगिे िरण के
रूप में कािानुसार प्रयोग करिा हैं उसे साकार ई र या अििार कहे इस प्रकार मानि स िा और मानििा पर
आये उपरोि िवणषि नौ सकंट्ों से उ ान की ओर िे जाने िािे म्मियों को हमने क्रमर्शः उनके गुणों के आधार
पर िथा नाम से म , कूमष, िाराह, नृवसंह, िामन, परर्शुराम िथा राम को प्र क्ष अंर्शाििार, िी कृ को
ाम्मिगि प्रमावणि प्र क्ष एिम् प्रेरक पूणाष ििार िथा भगिान बु को प्रेरक अंर्शाििार कहा और ीकार वकया
है और जो भी ऐसा करे गा िह अििार कहा ही जाये गा स कहूँ िो हम आदर्शष ब्रा णों का िही प्रविरूप होिा
है और मात्र अििार ही हमिोगों के समपष ण का कारण होिा है िही मात्र एक सिोৡ आदर्शष ब्रा ण होिा है
क्योंवक िही ब्र है यहाूँ िक आने के विए िु ें थूि र्शरीर, इम्म य, प्राण, भाि, मन िथा सूक्ष्म बुम्म को पार करना
होगा अथाष ि िु ारा मन इन सब विर्यों में होिे हुये भी इनसे मुि होना िावहए िभी िुम इन सबका सं िािन
कर सकिे हो अभी िो िु म इस क्रम में धीरे -धीरे बढ़िे हुए बुम्म िक पहुूँ ि रहे हो मैं नहीं कह रहा वक िु म
बुम्म हीन हो, िु ारा कमष कह रहा है क्योंवक बुम्म का अथष यह नहीं होिा वक िुम थूि र्शरीर, इम्म य, प्राण, भाि,
मन की पूविष के विए अपनी बुम्म िगाओ ऐसी बुम्म क्षैविज अथाष ि जीिन र की बुम्म कही जािी है िु ें उ ि
अथाष ि सामावजक, राजनीविक, रा र ीय, िै व क र की ओर बुम्म खिष करनी िावहए िभी िु ारा उ ान हो
सकिा है जब िु म सिोৡ और आ ीय र पर पहुूँ ि जाओगे िो िुम ब्रा ण, क्षवत्रय, िै ि र्शूि में
आि किानुसार ि समयानुसार पररिविषि हो अवभनय करने में हमिोगों की भाूँ वि कुर्शि हो जाओगे क्योंवक यह
एक पर एक आिरण की भाूँ वि गुणों का सं क्रमणीय, सं ग्रहणीय और गुणा क रूप है अथाष ि र्शू ि होने पर िै के
गुणों को नहीं समझा जा सकिा पर ु िै होने पर र्शूि के गुण को आसानी से समझा जा सकिा है इसी प्रकार
क्षवत्रय होने पर िै ि र्शू ि के गुणों को, ब्रा ण होने पर क्षवत्रय, िै ि र्शूि के गुणों को िथा आदर्शष ब्रा ण अथाष ि
ब्र होने पर ब्रा ण, क्षवत्रय, िै ि र्शू ि के गुणों को आसानी से समझा जा सकिा है आदर्शष ब्रा ण अथाष ि ब्र
का अंर्श िो सभी में वि मान है पर ु िह गुणों के आिरण से वछपा है इन गुणों पर एक-एक कर वनयंत्रण करिे
हुये आिरण हट्ािे जाओ अ िः िुम यं को ब्र रूप में दे खोगे िु म कहोगे इससे क्या होगा? िो हम यह
और स रूप से कहिे हैं वक िुम हम िोगों जैसे हो जाओगे और िु ारी बुम्म क्षैविज सवहि उ ि हो जाये गी िब
िुम अपने िा विक अवधकार को प्रा कर पाओगे
हे मानिों इस संसार में मानि र्शरीर से ि होने िािे िहारों में असीम विवभ िा और विवित्रिा है
हमिोगों का प्रय स िथा िोकक ाण के थायी भाि को बनाये रखने के विए विवभ रूपों से इस ओर मोड़ना
िथा जोड़ना ही रहा है इन मानि िहारों के विवित्रिाओं और विवभ िाओं में कुछ िो ऐसे होिे हैं जो अपनी ही
इৢा पर आजीिन संकम्म ि रहिे हैं ये ऐसे होिे हैं वक ‘हम नहीं बदिेगे िाहे जमाना क्यों न बदि जाये ’ कुछ ऐसे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 237


होिे हैं जो अपनी इৢा की पूविष के विए अनेकों प्रकार के अनैविक कायष करने से भी नहीं िूकिे, िाहे उसका
पररणाम अ िः दु ःखदायी ही क्यों न हो कुछ ऐसे होिे हैं जो म्मिगि र पर आदष र्श म्मि के रूप में िो कुछ
समावजक र पर िो कुछ िैव क र पर आदष र्श के रूप में यं को प्र ु ि करिे हैं मनु के इन विवभ
िहारों की वक्रया के रूप में समझने के विए ही हमिोगों ने पुराणों की रिना की वजससे मनु अनेक प्रकार के
िहारों सवहि समग्र ब्र ाਔ को एक साथ समझ सके और अपने िहार को वनयंवत्रि कर सके साथ ही यं
अपने िहारों को समझे और उसके अनुसार ि हो सके हे मानिों जगि् का स ूणष क ाण क ाण में
ही वनवहि है पर ु जो का अथष वसफष म्मिगि समझिे हैं िे ही म्मििादी असुरी प्रकृवि के होिे हैं िथा जो
का अथष सािषमौभ, वजसमें िह यं भी होिा है , ऐसा समझिे हैं िे दै िी समाजिादी प्रकृवि के होिे हैं असुरी
प्रिृव याूँ वसफष सीधी रे खा में सोििी ही जैसे - ज वफर मृ ु जबवक दै िी प्रिृव याूँ िक्रीय रूप में अथाष ि ज वफर
मृ ु वफर ज इस प्रकार सोििी हैं सम पुराणों की रिना दै िी प्रिृवि की ही कृवियाूँ हैं वजसमें असु रों के
आदर्शष गुरू को र्शु क्रािायष कहा गया है जबवक दे ििाओं के आदर्शष गुरू को गुरू बृह वि कहा गया राजाओं के
आदर्शष राजा को इ कहा गया है अ सभी ब्र ाਔ में उपि प्रभािकारी विर्यों को दे ििाओं के रूप में
क ना कर प्रक्षेवपि वकया गया है जैसे - िायु दे ि, अव্ दे ि, ि दे ि इ ावद इसी प्रकार आदर्शष म्मि िररत्र
को ब्रहमा एिम् पररिार िथा आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र अथाष ि म्मिगि प्रमावणि आदर्शष िैव क म्मि
िररत्र को वि ु एिम् पररिार िथा आदर्शष िैव क म्मि अथाष ि सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष िैव क म्मि िररत्र
को वर्शि-र्शंकर एिम् पररिार के रूप में प्रक्षेवपि है यहाूँ ान दे ने यो৓ यह है वक आदर्शष िैव क म्मि िररत्र में
आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र िथा आदर्शष समावजक म्मि िररत्र में आदर्शष म्मि िररत्र समावहि है इन
आदर्शष िररत्रों की इनकी गुणों के अनुसार इनके ि , र्श , र्शा , िाहन इ ावद भी प्रक्षेवपि वकये गये हैं जो मात्र
म्मिगि प्रमावणि प्रविका क मानि रूप में प्रक्षेपण मात्र है न वक िा विकिा के आधार रूप में इन मानक
आदर्शष िररत्रों के पूणष या अंर्श रूप में जो भी मानि संसार में ि होिा है उसे पुनजष या अंर्श या पूणष अििार
के रूप में ीकार वकया जािा है और िूंवक दै िी प्रिृव याूँ प्र ेक ि ु के पूिष के भी एक अम्म को ीकार
करिी हैं इसविए इन पुनजष या अंर्श या पूणष अििारों को आदर्शष मानक िररत्रों से जोड़कर अििारी पुराण की
रिना की जािी रही है इस अनुसार उपरोि नौ अंर्श-पूणष अििारों में दो - िीराम को ब्र ा का पूणाष ििार िथा िी
कृ को वि ु का पूणाष ििार कहा गया जबवक र्शेर् साि (म , कूमष, िाराह, नृवसंह, िामन, परर्शुराम िथा बु ),
ई र (स -वस ा ) के अंर्शाििार के रूप में ीकार वकये गये हैं
हे मानिों र्शा रिनाकार को ास उपावध से पु कारा जािा है ास वकिने वद और दू र ि ा रहे
होंगे, इस पर वििार करना आि क है क्योंवक अ िः हम सभी के वििारों का वनमाष ण वििारों को ही पढ़कर या
सुनकर ही होिा रहा है और अनुभि ारा उसकी पुव की जािी रही है ास रविि पुराणों में कुि 24 (1. िी
सनकावद, 2. िराहाििार, 3. नारद मुवन, 4. नर-नारायण, 5. कवपि, 6. द ात्रेय, 7. य৯, 8. ऋर्भदे ि, 9. पृथु, 10.
म ाििार, 11. कूमष, 12. ध रर, 13. मोवहनी, 14. हयग्रीि, 15. नृवसंह, 16. िामन, 17. गजे ोधाराििार, 18.
परर्शुराम , 19. िेद ास, 20. ह ाििार, 21. राम, 22. कृ , 23. बु , 24. कम्म ) अििार वजसमें मुূ 10
(म , कूमष, िाराह, नृवसंह, िामन, परर्शुराम, राम, कृ , बु और कम्म ) अििार का ही वििरण है दोनों में
अम्म म, कम्म अििार ही हैं िो क्या अम्म म अििार के बाद अििारी िृंखिा का कायष समा हो जायेगा? और
यवद यह स होिा है िब ास के उस अििारी िृंखिा के गवणि को आप िोग क्या कहोगे? इसे जानने के विए
मानि स िा के उस अम्म म संकट् को पहिानना होगा जो अम्म म अििार का कायष होगा यह अम्म म अििार
ही सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष िैव क म्मि िररत्र और वर्शि-र्शंकर के पू णाष ििार के रूप में होगा क्योंवक
कािक्रम में ब्र ा के पू णाष ििार के रूप में िीराम िथा वि ु का पूणाष ििार के रूप में िीकृ का अििरण हो
िुका है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 238


मानि स ता पर दसिााँ और अन्त मिं सिंकट काल यं मानिों ारा ही उ हो गया था वजसका
৯ान यं मानिों को भी नहीं था इस संकट् को समझने के विए एक स -प्र क्ष िृिा उदाहरण रूप विख
रहा हूँ -
मैं जब भी हाबड़ा (पव म बंगाि) जािा हूँ िब दो थानों पर अि जािा हूँ पहिा राम कृ वमर्शन,
बेिूड़ मठ और दू सरा िन वि उ ान (बोट्े वनकि गाडष न) यहाूँ कुि अब िक िीन बार, सन् 1984 (कािेज
र्शैक्षवणक यात्रा), सन् 1987 ( यं) और सन् 2010 ( यं) में जा िुका हूँ राम कृ वमर्शन, बेिूड़ मठ इसविए
जािा हूँ क्योंवक िहाूँ से सिोৡ “आ ाम्म क स ” की अनुभूवि कर सकूूँ, उस मन र से यं का योग करा
सकूूँ िन वि उ ान (बोट्े वनकि गाडष न) इसविए जािा हूँ क्योंवक िहाूँ एक िट् िृक्ष है वजसे वबग बवनयान ट्र ी (Big
Banyan Tree) कहिे हैं , यहाूँ बैठकर मैं संसार की सं रिना, ि और उसके सं गठन से यं का महायोग करािा
हूँ इन दोनों के कारण यं को मैं सािषभौम का एक इकाई होिे भी, यं को सािषभौम ही अनुभि करिा हूँ और
यह सिि मेरे अ र प्रिावहि होिा रहिा है
बड़ा िट िृक्ष (Big Banyan Tree), सैकड़ों िर्ष पुराना एक विर्शाि क्षेत्र में फैिा िट् िृक्ष है
वजसका मूि िृक्ष अब अम्म में नहीं है उसके िनों से वनकिे सैंकड़ों जड़ ििष मान में यं एक िृक्ष, वफर उनके
िनों से वनकिे सैंकड़ों जड़ भी ििषमान में एक-एक िृ क्ष के रूप में थावपि हैं और सभी एक-दू सरे से जु ड़े हुये हैं ,
बस जो नहीं है , िह है मूि िृक्ष इस प्रकार स ूणष िृक्ष पररिार एक बड़े क्षेत्र में फैि िुका है और वनर र जारी भी
है प्र ेक यं ि िृक्ष के रूप में थावपि िृक्ष का अपने पररिार के रूप में िना, प ा, फूि और फि सब
वनकििे रहिे हैं और वजसे जहाूँ अथाष ि नजदीकी स्रोि से सुविधा अथाष ि खुराक वमि सकिा हैं िहाूँ से प्रा करिे
हुये विकास कर रहे हैं इस कायष में आपस में कोई वििाद नहीं है कोई वकसी पर अवधप जमाना नहीं िाहिा, ना
ही अ के विकास में कोई बाधा पहुूँ िािा है वजसको वजस ओर उविि िािािरण वमििा जािा है , उस ओर िह
विकास कर रहा है कुि वमिाकर प्रेररि सु र्शासन की भाूँ वि संिाविि है इस िट् िृक्ष के सबसे बाद अथाष ि
ििषमान के िनों-प ों के विए उसका ज दािा ि पािनकिाष के रूप में उसका नजदीकी जड़ ही है इसविए
उसकी कथा-कहानी िहीं से र्शुरू होिी है और िहीं िक उसका ৯ान है जो एक संकुविि और सीवमि ৯ान है िह
पूणष को नहीं जान रहा, उसका पूणष , सािषभौम पूणष नहीं बम्म सीवमि पूणष है सीवमि पूणष में भी िह
आन में हैं और विकासर्शीि है उसका विकास होना सािषभौम का ही विकास होना है पर ु उसे उसका ৯ान
नहीं है और िह उस सािषभौम के विकास में अपने योगदान को करिे हुये भी यं को गौरिाम्म ि नहीं अनुभि कर
रहा है सािषभौम से युि होने के बाद भी उसे अपने पररिार से ही जुड़ा रहना उसकी वििर्शिा भी है और इसके
अिािा कोई अ मागष भी नहीं हैं उसके सािषभौम का मागष भी उसके अपने पररिार के ही मागष से होकर जािा
है िृक्ष के साथ यह मजबूरी भी है वक क्योंवक िह म्म थर है इसविए उसका छोट्ा पररिार केिि पड़ोस िक के ही
दायरे के स कष में है दू सरे छोर के पररिार का क्या हाि है उसे कुछ नहीं पिा
हे मानिों, ये संसार भी उपरोि िट् िृक्ष के सामन ही फैिा हुआ है पर ु उस भाूँ वि विकास नहीं कर
रहा है मनु के अ र बीमारी की भाूँ वि अवधकिम “र्शम्मि और िाभ (पािर और प्रावफट्)” की दौड़ ने उसे
अवधप , अ ािार, दू सरे को दबाना इ ावद से युि कर वदया है और जो इस दौड़ में नहीं हैं िे सीवमि पू णष में
आन के साथ विकासर्शीि हैं उ ें और भी िेज विकास की इৢा है पर ु उनके बुम्म का दायरा ही सीवमि है
इसविए उ ें मागष नहीं वमि रहा है यवद उनको मागष भी वमि रहा हो िो िट् िृक्ष की भाूँ वि उसके नजदीकी
ज दािा ने उसे यह बिा रखा है वक जब उस सािषभौम का मागष मेरे ही रा े से जािा है िो जो मैं कह रहा हूँ उसे
करो और इसके विए िे अपने पररिार के विए अने क प्रकार की प्रणािी दे रखे हैं जबवक ये प्रणािी दे ने िािे
उनके नजदीकी ज दािा यं कहाूँ से आये हैं यं उ े भी नहीं पिा क्योंवक िे यं भी उस िट् िृक्ष के खो गये
मूि जड़ की िरह अपने मूि जड़ को नहीं जानिे िे भी अपने नजदीकी ज दािा का ही अनुसरण कर रहे होिे
हैं ये प्रणािीयाूँ अनेक प्रकार की हैं उदाहरण रूप कुछ मुূ वन िि् हैं -

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 239


1. उनके ारा प्र ुि कुछ पु कें होिी हैं वज ें वनयमानुसार प्रविवदन पढ़ना होिा है पढ़ने के पूिष र्शु िा की भी
प्रवक्रया अवनिायष होिी है अ था पु कें पररणाम नहीं दे पायेंगी, ये भी र्शिष होिी हैं
2. उनके ारा भोजन से स म्म ि कुछ वनयम बना वदये जािे हैं वक क्या खाना है और क्या नहीं खाना है
3. उनके ारा कोई म दे कर उसे वनयमानुसार जपने के विए दे वदया जािा है
4. उनके ारा वकसी य -ि ारा सम ा मुम्मि का उपाय बिा वदया जािा है
5. उनके ारा वकसी विर्शे र् प्रकार के रं ग और ढ़ग के ि वनधाष ररि कर दी जािी है वजससे उनकी पहिान एक
अिग रूप में हो अथाष ि समाज का एक और विभाजन कर उसे प्र ु ि कर दे िे हैं
सामा रूप से सभी ारा अवनिायष रूप से ये भी वनधाष ररि कर दी जािी है वक वकसी दू सरे के वनयमों
को न िो जानना है , न सुनना है , न पढ़ना है और न ही उसमें र्शावमि होना है अथाष ि एक गविर्शीि प्राणी मनु को
वजसे सदै ि िे से, िे िम और सिोৡ िक उठने -विकास करने के विए वनवमषि वकया गया था, उसे एक सीवमि
दायरे में बुम्म ब कर वदया गया मनु वजसका वनमाष ण अपनी मम्म को असीम क्षमिा को विकवसि कर ई र
रूप में ि होना था, उसे जड़ (म्म थर) बना वदया गया
हे मानिों, मनु ों की सबसे बड़ी कमजोरी “ यं में गुणों का विकास कर यं बन जाने या हो जाने ” में
नहीं बम्म “पाने ” की इৢा है इस पाने की इৢा की कमजोरी का पररणाम ही है उपरोि अनेक प्रकार के
बुम्म ब करने की विवधयाूँ
हे मानिों, उपरोि के पृ भूवम में उनका उ े केिि अपने ाथष की पूविष के वसिाय कुछ नहीं
होिा क्योंवक मागषदर्शष क या प्रेरक या वर्शक्षक का उ े यं से िे मानि का वनमाष ण होिा है न वक सदै ि जीिन
भर एक ही प्रणािी या प्रवक्रया या कक्षा में पढ़िे -दु हरािे रहने के विए वििर्श करना उपरोि के पृ भूवम में
र्शारीररक-आवथषक-मानवसक र्शोर्ण का ही कायष विवभ प्रकार से िि रहा है कोई अपने कृवर् कायष को मु में
हि करिा रहा है , िो कोई अपने नाम के उ ादों को वसफष उ ें ही खरीदने के विए बुम्म ब कर वदया है
हे मानिों, इन सबको आ था का ापार कहिे हैं जबवक मैं दे ख रहा हूँ वक प्र ेक सं ाररि करने
की वक्रया जो उस काि के विए आ था का विर्य था उसके अगिे काि के विए सं ाररि करने की नयी वक्रया
उपि हो जाने के बािजू द, मानि र्शरीर वपछिे काि के सं ाररि करने िािी वक्रया के प्रवि आ था रखिे हुये
मूखषिा का प्रदर्शषन कर रहा है सभी कािों में, सभी सं ाररि करने की वक्रयाओं में मैं (सािषभौम आ ा) ही
आ था का विर्य था पर ु वक्रया के प्रवि आ था रखना मूखषिा का प्रमाण ही िो है िाहे िह म्मिगि इৢा
से हो या सामावजक प्रदर्शष न की इৢा से इन सम सं ाररि करने के वक्रया के पीछे जो रह आज िक
गोपनीय था उसे मैंने िु ारें समक्ष सािषजवनक प्रकावर्शि कर वदया है अब कुछ भी गोपनीय नहीं बािजूद इसके
प्र ेक मनु अपनी मूखषिा रूपी आ था को प्रदवर्शषि करने के विए ि है पर ु िह मुझ (सािषभौम आ ा)
को प्रा नहीं कर सकिा हे मानिों, ई र बहुमि से नहीं वनधाष ररि वकया जािा इसविए ही उसे अवनििषनीय कहा
गया है वकसी भी ि ु के प्रवि आ था के विकास से और सम मानिों को उसके प्रवि आ थािान् बना दे ने से िह
ि ु गुण प्रकट् कर िैसा नहीं बन सकिी जैसा आप उ ीद करिे हो
हे मानिों, एक िरह से दे खा जाये िो उपरोि ि था से कोई सम ा है ही नहीं क्योंवक वजसकी
इৢा जहाूँ से पूविष हो रही है और विकास का मागष वमि रहा है , िह िहाूँ से जुडा हुआ है इसविए मानि स िा
पर आया यह दसिाूँ और अम्म म संकट्, संकट् होिे हुये भी संकट् जैसा नहीं वदखिा इस ि था से हमें कोई
सम ा भी नहीं है सम ा ये है वक धमष को वजस उ े के विए वनवमषि वकया गया था िही धमष, संकट् में है यह
धमष ही उस िट् िृक्ष का मूि है , सािषभौम है , समव है इसके ৯ान से युि दोनों को अथाष ि विर्शाि संसार रूपी िट्
िृक्ष के छोट्े -छोट्े पररिार के नेिृ किाष मुम्मखया सवहि उसके सद ों को होना आि क है िभी पररिार के
नेिृ किाष मुम्मखया ारा बनाये गये उपरोि प्रणािी-वनयम पररणाम-फि दे पायेंगे वजसकी इৢा पररिार के
सद करिे हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 240


हे मानिों, अब सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष िै व क म्मि िररत्र और वर्शि-र्शंकर के पूणाष ििार के
रूप में होने िािे अम्म म अििार के रूप को समझिे हैं वजनसे सं कट् में पड़े धमष का उ ान होना है -
इस क्रम में पहिे वर्शि-र्शं कर के रूप को समझिे हैं वफर अम्म म अििार के विए बिे र्शेर् कायष को
भी समझेंगे वर्शि-र्शंकंर अििार के आठ रूप और उनके अथष वन िि हैं -
1. शिण- स ूणष पृ ी को धारण कर िेना अथाष ि पृ ी के विकास या सृव कायष में इस रूप को पार वकये वबना
स ि न होना
2. भि- जगि को संजीिन दे ना अथाष ि उस विर्य को दे ना वजससे जगि सं कुविि ि मृ ु को प्रा होने न पाये
3. उग्र- जगि के भीिर और बाहर रहकर िी वि ु को धारण करना अथाष ि जगि के पािन के विए प्र क्ष या
प्रेरक कमष करना
4. भीम- सिष ापक आकार्शा क रूप अथाष ि आकार्श की भाूँ वि सिष ापी अन ৯ान जो सभी नेिृ वििारों
को अपने में समावहि कर िे
5. पशुपवत- मनु समाज से पर्शु प्रिृव यों को समा करना अथाष ि पर्शु मानि से मनु को उठाकर ई र मानि
की ओर िे जाना दू सरे रूप में जीि का वर्शि रूप में वनमाष ण
6. ईशान- सूयष रूप से वदन में स ूणष संसार में प्रकार्श करना अथाष ि ऐसा ৯ान जो स ूणष संसार को पूणष ৯ान से
प्रकावर्शि कर दे
7. महादे ि- ि रूप से राि में स ूणष संसार में अमृि िर्ाष ारा प्रकार्श ि िृम्म दे ना अथाष ि ऐसा ৯ान जो संसार
को अमृिरूपी र्शीिि ৯ान से प्रकावर्शि कर दे
8. रूद्र- जीिा ा का रूप अथाष ि वर्शि का जीि रूप में ि होना
वर्शि-र्शंकर दे ििा ि दानि दोनों के दे ििा हैं जबवक िी वि ु वसफष दे ििाओं के दे ििा हैं अथाष ि
वर्शि-र्शंकर जब रूि रूप की प्राथवमकिा में होंगे िब उनके विए दे ििा ि दानि दोनो वप्रय होंगे िेवकन जब उग्र
रूप की प्राथवमकिा में होंगे िब केिि दे ििा वप्रय होंगे अथाष ि वर्शि-र्शंकर का पूणषििार इन आठ रूपों से युि
हो संसार का क ाण करिे हैं
हे मानिों, अब सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष िैव क म्मि िररत्र और वर्शि-र्शंकर के पूणाष ििार के
रूप में होने िािे अम्म म अििार के कायष को समझिे हैं वजनसे संकट् में पड़े धमष का उ ान होना है -
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के दसिें और अम्म म अििार के समय िक रा৸ और समाज िः
ही प्राकृविक बि के अधीन कमष करिे -करिे वस ा प्रा करिे हुए पूणष गणरा৸ की ओर बढ़ रहा था
पररणाम रुप गणरा৸ का रुप होिे हुए भी गणरा৸ वसफष रा৸ था और एकि ा क अथाष ि् म्मि समथषक
िथा समाज समथषक दोनों की ओर वििर्शिािर्श बढ़ रहा था
भारि में वनम्म िम्मखि रुप ि हो िुका था
1. ग्राम, विकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ और गणसंघ का रुप
2. वसफष ग्राम र पर राजा (ग्राम ि नगर पंिायि अ क्ष) का िुनाि सीधे जनिा ारा
3. गणरा৸ को संिाविि करने के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान
4. गणरा৸ के ि ों को सं िाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप-वनयम और कानून
5. राजा पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप- रा र पवि, रा৸पाि, वजिावधकारी इ ावद
वि र पर वन विम्मखि रुप ि हो िुका था
1. गणरा৸ों के सं घ के रुप में सं युि रा र सं घ का रुप
2. संघ के संिािन के विए संिािक और संिािक का वनराकार रुप- संविधान
3. संघ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप- वनयम और कानून
4. संघ पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप-पाूँ ि िीट्ो पािर
5. प्र ाि पर वनणषय के विए सद ों की सभा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 241


6. नेिृ के विए राजा- महासविि
वजस प्रकार आठिें अििार ारा ि आ ा के वनराकार रुप “गीिा” के प्रसार के कारण आ ीय
प्राकृविक बि सवक्रय होकर गणरा৸ के रुप को वििर्शिािर्श समाज की ओर बढ़ा रहा था उसी प्रकार अम्म म
अििार ारा वन विम्मखि र्शेर् समव कायष पूणष कर प्र ुि कर दे ने मात्र से ही वििर्शिािर्श उसके अवधप की
थापना हो जाना है
1. गणरा৸ या िोकि के स रुप- गणरा৸ या िोकि के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
2. राजा और सभा सवहि गणरा৸ पर वनय ण के विए साकार ब्रा ण का वनराकार रुप- मन का अ राष र ीय/
वि मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रुप- प्रब का अ राष र ीय/ वि मानक
4. गणरा৸ के संिािन के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
5. साकार ब्रा ण वनमाष ण के विए वर्शक्षा का रुप- वर्शक्षा पाਉक्रम का अ राष र ीय/ वि मानक
इस समव कायष ारा ही काि ि यु ग पररििषन होगा न वक वसफष वि ाने से वक “सियुग आयेगा” ,
“सियुग आये गा” से यह समव कायष वजस र्शरीर से स होगा िही अम्म म अििार के रूप में ि होगा धमष
में म्म थि िह अििार िाहे वजस स दाय (ििषमान अथष में धमष) का होगा उसका मूि िশ यही र्शेर् समव कायष
होगा और थापना का मा म उसके स दाय की पर रा ि सं ृ वि होगी
हे मानिोिं, उपरोक्त कार्ण ही उस एक मात्र शेष अन्त म अितार का कार्ण है और जो उपरोि
कायष को पूणष करे गा िह कम्म अििार के नाम से जाना जायेगा हे मानिों उपरोि कायष ही र्शेर् ई र के विए
कायष है और मनु के विए िुनौवि
इस क्रम में मैं िि कुर्श वसं ह “वि मानि” अपने “वि र्शा ” से उपरोि कायष को पूणष करने के विए
और यं को धमष मागष से अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र के रूप में िथा भारिीय िोकिाम्म क गणरा৸
मागष से “भारि र ” के रूप में थावपि करने के विए एक मागष -एक प्रारूप प्र ु ि वकया हूँ जो अपने यु ग-समय में
पहिा प्रारूप है इस प्रारूप “वि र्शा ” के धमषक्षेत्र से 90 नाम और धमषवनरपे क्ष या सिषधमषसमभाि क्षेत्र से 141
नाम दे ने के बाद भी इस प्रारूप का नाम “ब्र ाਔर्शा ” नहीं रखा मनु ों के विए यह िुनौवि है वक िे
“ब्र ाਔर्शा ” की रिना कर मेरे प्रारूप “वि र्शा ” को गिि या सं कुविि वस कर मुझे अवनिषिनीय कम्म
महाअििार भोगे र की यो৓िा से िंविि कर दे हे मानिों अगर आप ऐसा कर पाओं िो मेरे विए मेरे ारा उ
वकये गये अन कृवियों में सबसे स ान के यो৓ मानि नाम की कृवि ही अम्म म रूप से सिषिे होगी अ था
“वि र्शा ” से मैं िु ारे अ र प्रिेर्श कर िु म में से ही यं को प्रकट् करूूँ गा
हे मानिोिं, इन रह ोिं के खोलने के प्रवत मेरा उ े या है? यह उ े सरि है क्योंवक एक
सरि, साधारण, अघोर का उ े कभी भी कठीन, असाधारण और घोर नहीं हो सकिा साधारण सी बाि है -
प्र ेक ि ु यं अपने जै सा ही वनमाष ण, उ ादन या प्रजनन करिी है इस क्रम में ई र भी यं जैसा ई र का ही
वनमाष ण, उ ादन या प्रजनन करे गा, न वक मूखष, अ৯ानी, बुम्म ब और गुिाम मनु का मात्र एक वििार- “ई र ने
इৢा ि की वक मैं एक हूँ , अनेक हो जाऊूँ ” और “सभी ई र हैं ” , यह प्रार और अम्म म िশ है मनु की
रिना “पािर और प्रावफट् (र्शम्मि और िाभ)” के विए नहीं बम्म असीम मम्म क्षमिा के विकास के विए हुआ
है फि रूप िह यं को ई र रूप में अनुभि कर सके, जहाूँ उसे वकसी गुरू की आि किा न पड़ें , िह
ंयभू हो जाये, उसका प्रकार्श िह यं हो एक गुरू का िশ भी यही होिा है वक वर्श मागषदर्शषन प्रा कर
गुरू से आगे वनकिकर, गुरू िथा यं अपना नाम और कृवि इस संसार में फैिाये, ना वक जीिनभर एक ही कक्षा
में (गुरू में) पढ़िा रह जाये एक ही कक्षा में जीिनभर पढ़ने िािे को समाज क्या नाम दे िा है , समाज अৢी प्रकार
जानिा है और आपिोग खु द यं भी जािने हैं “वि र्शा ” से कािक्रम को उसी मुূधारा में मोड़ वदया गया है
एक र्शा ाकार, अपने ारा ि वकये गये पूिष के र्शा का उ े और उसकी सीमा िो बिा ही सकिा है पर ु
ाূाकार ऐसा नहीं कर सकिा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 242


ामी वििेकान जी कहिे हैं - “हम गुरु के वबना कोई ৯ान प्रा नहीं कर सकिे अब बाि यह है
वक यवद मनु , दे ििा अथिा कोई गषदूि हमारे गुरु हो, िो िे भी िो ससीम हैं , वफर उनसे पहिे उनके गुरु कौन
थे? हमें मजबूर होकर यह िरम वस ा म्म थर करना ही होगा वक एक ऐसे गुरु हैं जो काि के ारा सीमाब या
अविम्मৢ नहीं हैं उ ीं अन ৯ान स गुरु को, वजनका आवद भी नहीं और अ भी नहीं, ई र कहिे हैं
(राजयोग, रामकृ वमर्शन, पृ -134)
िाूँ द की ओर ईर्शारा करने िािे की उूँ गिी की ओर नहीं, िाूँ द की ओर दे खा जािा है और िाूँ द को
पकड़ा जािा है न वक उूँ गिी वदखाने िािे को
हे मानिोिं, र्ह भाि हमारे मन में योिं आर्ा? यह भाि हमारे मन में आने का कारण हृदय की
विर्शाििा है हम अब अपने ारा वनवमषि उ ादों को, अब और अवधक समय िक कबाड़ के रूप में न िो रख
सकिे हैं और ना ही दे खना िाहिे हैं अब सभी को हम यं जैसा पूणष दे खना िाहिे हैं
हे मानिोिं, हम लोिोिं की उ व कैसे हुई? हमारी उ व ৯ान से हुई है वज ें ৯ान है िही अपने
आप को संघर्ष में पािे हैं और सिषिे िा के विए कमषर्शीि हैं र्शेर् सभी िो प्रकृवि के अनुसार आिे -जािे रहिे हैं
इस ৯ान को ही ब्र कहिे हैं दे ििा रूप में इस ৯ान को ब्र ा के रूप में प्रक्षेवपि वकया गया है यह ৯ान वजस-
वजस अंगो ारा प्राथवमकिा से अनुभि में आिा है उिने प्रकार के मानि अपने -आप को उ समझिे हैं पुराण
रिनाकार महवर्ष ास ने ब्र ा अथाष ि ৯ान के पुत्रों का प्रक्षेपण वकये हैं ब्र ा के 10 मानस पुत्रों 1. मन (वििार से
৯ान प्रा करने िािे) से मरीवि, 2. नेत्रों (दे खकर ৯ान प्रा करने िािे) से अवत्र, 3. मुख (िाणी से ৯ान प्रा करने
िािे) से अंवगरा, 4. कान (सुन कर ৯ान प्रा करने िािे) से पु ि , 5. नावभ (के से ৯ान प्रा करने िािे) से
पुिह, 6. हाथ (कमष से ৯ान प्रा करने िािे) से कृिु, 7. िा ( र्शष से ৯ान प्रा करने िािे) से भृगु, 8. प्राण ( ास
से ৯ान प्रा करने िािे) से िवर्श , 9. अूँगूठे (आ ा से ৯ान प्रा करने िािे) से दक्ष िथा 10. गोद (प्रेम से ৯ान
प्रा करने िािे) से नारद उ हुये ये दस प्रकार ৯ान से उ है और इिने प्रकार के मानि वनवमषि होकर
संसार में वििरण कर रहे हैं इसे ये न समझना िावहए वक मन या नेत्र इ ावद से कैसे ब्र ा ने अपने पुत्रों को उ
वकया? िूंवक र्शरीर का अम्म अ थायी है इसविए वििार के आधार पर ये मनु के िगष या िेणी का वनधाष रण है
हमारे ारा इिने िगों अथाष ि पररिार को उ करने के बाद यं को सिषिे और मूि वस करिे रहना भी
हमारी ही वज े दारी और किष है िावक हमारा पररिार एक संयुि पररिार के रूप में प्रकावर्शि हो
हे मानिोिं, हमने अपने अवधप के वलए या-या वकर्ा? हे मानिों हमने अपने अवधप के विए
सदै ि साम-दाम-दਔ-भेद की विवध से वन विम्मखि गुणों को समय-समय पर प्रेम से मानि मम्म में थावपि
वकया और करिा रहूँ गा और अ में इसे मानिों को ेৢा से ीकार करने पर वििर्श भी कर दू ूँ गा-

01. मुূ-िुर् वस ा - इसमें धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने का वििार-वस ा मानि
मम्म में डािा गया

02. मुূ-िुर् वस ा - इसमें सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि, दोनों पक्षों के बीि म थ की भूवमका
िािा गुण (सम य का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

03. मुূ-िुर् वस ा - इसमें सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि , सवक्रय,
र्शाकाहारी, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण
(प्रेरणा का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

04. मुূ-िुर् वस ा - प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के विए ररि कायषिाही
का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 243


05. मुূ-िुर् वस ा - भवि ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूवम पर गणरा৸ ि था
की थापना ि ि था को वजविि करना, उसके सुख से प्रजा को पररविि कराने िािे गुण (समाज का
वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

06. मुূ-िुर् वस ा - गणरा৸ ि था को ब्र ाਔ में ा ि था वस ा ों को आधार बनाने िािे


गुण और ि था के प्रसार के विए यो৓ म्मि को वनयुि करने िािे गुण (िोकि का वस ा और
उसके प्रसार के विए यो৓ उ रावधकारी वनयुि करने का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म
में डािा गया

07. मुূ-िुर् वस ा - आदर्शष िररत्र के गुण के साथ प्रसार करने िािा गुण ( म्मिगि आदर्शष िररत्र के
आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

08. मुূ-िुर् वस ा - आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मि-मिा र ि
वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे गुण (सामावजक
आदर्शष म्मि का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण का वस ा ) का
वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

09. मुূ-िुर् वस ा - प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष, संघ और बुम्म के र्शरण में जाने का गुण (धमष,
संघ और बुम्म का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया

10. मुূ-िुर् वस ा - आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक िैव क म्मि
िररत्र अथाष ि सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का वििार-वस ा मानि मम्म
में डािने का काम ििषमान है और िो अम्म म भी है

हे मानिोिं, अब न्त र्वत या है तर्ा भावि में काल की िवत वकस ओर जा रही है? हे मानिों अब
म्म थवि यह है वक हमें आपके परम वप्रय वस ा “र्शम्मि और िाभ (पािर और प्रावफट्)” से कोई असहमवि नहीं हैं
बम्म यह आपमें कुछ करने की प्रिृव का महान गुण हैं इसका प्रकार्श आप में सदै ि जििे रहना िावहए काि
की गवि इस प्रकार्श को कैसे सफििापूिषक प्रा वकया जा सकिा है उस ৯ान को ग्रहण करके उस अनुसार कायष
करने की ओर जा रही है अथाष ि ৯ान यु ग की ओर जा रही है और मम्म का विकास ही इसका मागष है भवि
का समय ऐसे ही मानिों के ागि की प्रिीक्षा कर रहा है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 244


काशी-स काशी क्षेत्र से
वि शान्त का अन्त म स -स े श

वप्रर् आ ीर् मानिोिं,


इस संसार के मनु ों को अपना अम्म म स े र्श दे ने से पहिे मैं आपको उस क्षे त्र से पररिय कराना
िाहिा हूँ वजस क्षेत्र से यह स े र्श दे ने का साहस वकया गया है क्योंवक कोई भी वक्रया वबना कारण के नहीं होिी
मेरा सम मूि कायष वजस क्षेत्र से स ूणष हुआ, उस क्षेत्र को मैं स कार्शी क्षे त्र कहिा हूँ और मैं वजस ग्राम का
वनिासी हूँ िह कार्शी (िाराणसी) के िौरासी कोस यात्रा िथा स कार्शी क्षेत्र का उभय क्षेत्र में म्म थि है इसविए मैं
वजिना कार्शी (िाराणसी) का हूँ उिना ही स कार्शी का हूँ इस प्रकार यह स े र्श कार्शी-स कार्शी का संयुि
स े र्श है
स कार्शी क्षे त्र जो कार्शी (िाराणसी), वि ािि, वर्शि ार और सोनभि के बीि का क्षेत्र है , एक
पौरावणक-आ ाम्म क और साधना के विए उपयुि क्षेत्र के रूप में प्रािीन काि से आकर्षण में रहा है इस क्षेत्र
का हृदय क्षेत्र िुनार है िुनार का वकिा राजा विक्रमावद ने अपने भाई भिषहरर के िप ा में वहं सक जानिरों ारा
िधान न उ हो इसके विए बनिाया था ये राजा विक्रमावद िही हैं वजनके नाम से विक्रम स ि् कैिेਔर
थावपि है िुनार ई र के पाूँ ििें अििार-िामन अििार का क्षेत्र है वजनसे समाज की र्शम्मि का प्रथम ज हुआ
था
स कार्शी क्षेत्र के िारों कोण पर म्म थि 1. कार्शी (िाराणसी) का अपना प्रािीन और पुरािन इविहास है
जो सिषविवदि है 2. वि ािि, जो वर्शि-र्शम्मि के उपासना का अद् भुि के है यर्शोदा से उ पु त्री (वजनके
बदिे िीकृ प्रा हुये थे) महासर िी अ भुजा दे िी के नाम से यहीं थावपि हैं भारि दे र्श का मानक समय माूँ
वि िावसनी धाम से िय होिा है पुराणों के अनुसार रािण ने भी इसे मानक समय थि मानकर यहाूँ वर्शिविंग
की थापना की थी 3. वर्शि ार, वत्रकोणीय िाम्म क साधना के विए जगि विূाि था और साधना की राजधानी
था इसे ही मीरजापुर गजेवट्यर में गु कार्शी की सं৯ा से अवभकम्म ि वकया गया है 4. सोनभि, सोन सं ृ वि की
पौरावणक पृ भूवम िैवदककािीन स िा की पराका ापरक ऐविहावसकिा से स है स पर राओं का एक
मह पूणष पररव्रजन इस क्षे त्र में हुआ वजसमें र्शैि ि र्शाि प्रमुख थे र्शैि स दाय से जुड़े अघोर ि ने इसे बहुि
सराहा और इसे अपनी कमषभूवम बना विया सोन नद के िट् पर र्शि छे दन वक्रया की भी प्रवर्शक्षा आयु िेद के
वज৯ासुओं को दी जािी थी र्शैि ि से प्रभाविि अघोर ि र्शि-साधना में वस ह था और र्शि में इकार की
प्राण प्रवि ा का जीि रूप वर्शि को दे दे ना इनकी अिौवकक साधना का िरमोਚर्ष है अघोरप ी नाम के प ाि्
“राम” का प्रयोग करिे थे इस क्षेत्र में सिणष िगष में प्रायः ब्रा ण िगष भी राम का प्रयोग अपने नाम में करिा है इस
क्षेत्र में पार्शुपाि ि के महान साधक िोररक का नाम विर्शेर् है
उपरोि िो अवि संवक्ष पररिय है वि ार से “वि र्शा ” के अ ाय-दो में प्रकावर्शि है , वजस क्षेत्र से
ये वि ऐविहावसक अम्म म, अपररििषनीय और अट्िनीय स े र्श दे ने का साहस वकया गया है
हे मानिों, इस संसार में ि सावह , दर्शषन, मि, स दाय, वनयम, संविधान इ ावद को ि करने
का मा म मात्र केिि मानि र्शरीर ही है इसविए यह सोिो की यवद सािषभौम स -वस ा आधाररि ऐसा
सावह जो सािषदेर्शीय, सािषकाविक और स ूणष मानि समाज के विए असीम गुणों और वदर्शाओं से यु ि हो,
अम्म म रुप से एक ही मानि र्शरीर से ि हो रहा हो वजसके ৯ान के वबना मानि, मानि नहीं पर्शु हो, उसे
ीकार और आ साि् करना मानि की वििर्शिा हो, िो िु म उस िकिाष मानि को क्या कहोगे? और उसका
क्या दोर्? यह िो मैं िुम पर ही छोड़िा हूँ पर ु धावमषक-आ ाम्म क भार्ा में उसी असीम गुणों-वदर्शाओं के
प्रकाਅ र्शरीर को पू णष और अम्म म साकार-सगुण- -ब्र -ई र-आ ा-वर्शि कहिे हैं िथा सािषभौम स -

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 245


वस ा को वनराकार-वनगुषण-अ -ब्र -ई र-आ ा-वर्शि कहिे हैं िह र्शरीर िूूँवक वस ा युि होिा है
इसविए िह धमषर्शा का प्रमाण रुप होिा है जो धमषर्शा ों और धमष৯ावनयों के प्रवि वि ास बढ़ािा है ििषमान
समय में वसफष यह दे खने की आि किा है वक क्या िह सािषभौम स -वस ा र्शा -सावह वि विकास-
एकिा-म्म थरिा-र्शाम्म के क्षेत्र में कुछ रिना क भूवमका वनभा सकिा है या नहीं? यह दे खने की आि किा नहीं
है वक उसका िकिाष एक ही र्शरीर है क्योंवक इससे कोई िाभ नहीं प्र ेक मानि िाहे िह वकसी भी र का
हो िह र्शारीररक संरिना में समान होिा है पर ु िह वििारों से ही विवभ र पर पीठासीन है , इसविए मानि,
र्शरीर नहीं वििार है उसी प्रकार वि मानि र्शरीर नहीं, वि वििार अथाष ि् सािषभौम स -वस ा है इसी प्रकार
“मैं” , अहं कार नहीं, “वस ा ” है प्र ेक र पर पीठासीन मानि अपने र का वस ा रुप से “मैं” का अंर्श
रुप से िथा वििार रुप से “अहं कार” का अं र्श रुप ही है “मैं” का पूणष , िा विक, सिोৡ और अम्म म रुप
िही होगा जो स ूणष ब्र ाਔ के सभी विर्यों में ा हो जाय िभी िो िह असीम गुणों और वदर्शाओं से युि
होगा िथा प्र ेक वदर्शा या गुण से उसका नाम अिग-अिग होगा पर ु िह एक ही होगा हे मानि, िुम इसे दे ख
नहीं पािे क्योंवक िुम “ व ” से युि हो अथाष ि् िु म एक ही वदर्शा या गुण ारा दे खने की क्षमिा रखिे हो िु ें
“वद व ” अथाष ि् अनेक वदर्शा या गुणों ारा एक साथ दे खने की क्षमिा रखनी िावहए िभी िुम यथाथष को दे ख
पाओगे, िभी िुम “मैं” के वि रुप को दे ख पाओगे व से युि होने के कारण ही िुम मेरे आभासी रुप-र्शरीर रुप
को ही दे खिे हो, िु म मेरे िा विक रुप-वस ा रुप को दे ख ही नहीं पािे इसी कारण िु म मुझे अहं कार रुप में
दे खिे हो और इसी कारण िुम “भूमਔिीकरण (Globalisation)” का विरोध करिे हो जबवक “৕ोबिाई৲” व
ही “वद व ” है वजसका िुम मात्र विरोध कर सकिे हो क्योंवक यह प्राकृविक बि के अधीन है जो िु ें मानि से
वि मानि िक के विकास के विए अट्िनीय है व , अहं कार है , अंधकार है , अपूणष मानि है िो वद व ,
वस ा है , प्रकार्श है , पूणषमानि-वि मानि है िुम मानि की अि था से वि मानि की अि था में आने का प्रय
करो न वक वि मानि का विरोध विरोध से िु ारी क्षवि ही होगी वजस प्रकार “िीकृ ” नाम है “योगे र” अि था
है , “गदाधर” नाम है “रामकृ परमहं स” अि था है , “वस ाथष” नाम है “बु ” अि था है , “नरे नाथ द ” नाम है
“ ामी वििेकान ” अि था है , “रजनीर्श” नाम है “ओर्शो” अि था है उसी प्रकार म्मियों के नाम, नाम है
“भोगे र वि मानि” उसकी िरम विकवसि, सिोৡ और अम्म म अि था है “ व ” से युि होकर वििार ि
करना वनरथषक है , प्रभािहीन है , यहाूँ िक की िु ें विरोध करने का भी अवधकार नहीं क्योंवक ििषमान और भवि
के समय में इसका कोई मह नहीं, अथष नहीं क्योंवक िह म्मिगि वििार होगा न वक सािषजवनक संयुि वििार
यह सािषजवनक संयुि वििार ही “एका वििार” है और यही िह अम्म म स है , यही “सािषभौम स -वस ा ”
है यही धमषवनपरपेक्ष और सिषधमषसमभाि नाम से वि मानक-र्शू िृंखिा: मन की गुणि ा का वि मानक िथा
धमष नाम से कमषिेद: प्रथम, अम्म म और पंिमिेदीय िृंखिा है वजसकी र्शाखाएं स ूणष ब्र ाਔ में ा है और
स ूणष ब्र ाਔ ि है वजसकी थापना िेिना के अम्म म रुप- स िेिना के अधीन है यही “मैं” का
रुप है यही “वि -ब ु ” , “िसुधैि-कुट्ु कम् ” , “बहुजनवहिाय-बहुजनसुखाय” , “एका -मानििािाद” ,
“सिेभि ु-सुम्मखनः” की थापना का “एका कमषिाद” आधाररि अम्म म मागष है
मन और मन का मानक मन- म्मिगि प्रमावणि अ स मन का मानक-सािषजवनक प्रमावणि
स अनासि मन अथाष ि् आ ा अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि अ आ ा अथाष ि् मन का अ मानक
मन का मानक अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि आ ा अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि अनासि मन मन का
मानक में मन समावहि है
आ ा का सािषजवनक प्रमावणि धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि रुप एका ৯ान, एका ৯ान
सवहि एका कमष िथा एका ৯ान और एका कमष सवहि एका ान के िीन ि होने के र हैं जो
क्रमर्शः एका िाणी, एका िाणी सवहि एका प्रेम िथा एका िाणी और एका प्रेम सवहि एका समपषण
ारा र्शम्मि प्रा करिा है वजनका धमषयुि अ रुप भारिीय सं ृ वि के पौरावणक कथाओं में ब्र ा, वि ु,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 246


महे र्श (र्शंकर) के रुप में िथा सर िी, िक्ष्मी और पािषिी र्शम्मि के रुप में प्रक्षेवपि हैं वजनकी उपयोवगिा क्रमर्शः
म्मि, समाज और ब्र ाਔ को संिुिन, म्म थरिा एिं विकास में है
यवद िुम उपरोि गुणों को रखिे हो िो िुम ही ब्र ा हो, वि ु और महे र्श हो साथ ही सर िी, िक्ष्मी
और पािषिी भी और यवद यह सीवमि कमषक्षेत्र िक में है िो िुम एक सीमाब और यवद यह स ूणष ब्र ाਔ के
सिोৡ ापक अम्म म और असीवमि कमष क्षे त्र िक में है िो िु म एक मूि ब्र ा, वि ु, महे र्श और र्शम्मि सर िी,
िक्ष्मी और पािषिी के अििार हो यवद िुम इस अनुसार नहीं िो िुम इनके अिािा मानि, दानि, पर्शु -मानि
इ ावद हो
जब प्र ेक र्श धमष और धमषवनरपेक्ष या सिषधमषसमभाि में िगीकृि वकया जा सकिा है िब ई र
नाम को भी धमषयुि नाम और धमष वनरपेक्ष या सिषधमषसमभाि नाम में ि वकया जा सकिा है क्योंवक ई र
नाम भी र्श है वजस प्रकार म्मिगि प्रमावणि अ काि के विए धमषयुि समव ई र नाम-” ऊूँ” है उसी
प्रकार सािषजवनक प्रमावणि काि के विए धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि समव ई र नाम- ” TRADE
CENTRE” है वजसमें धमष युि ई र नाम-” ऊूँ” का धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि रुप समावहि है
एक ही दे र्श काि मुि सिष ापी अ स -धमष-৯ान है -आ ा और एक ही दे र्श काि मुि
सिष ापी स -धमष -৯ान है - वक्रया या पररििषन या E=MC2 या आदान-प्रदान
या TRADE या TRANSACTION इस प्रकार सिोৡ और अम्म म स -धमष-৯ान से सम विर्यों के यथाथष
ि रुप सिषमा , सािषजवनक प्रमावणि और अम्म म है और ि किाष ৯ानी या ब्र या वर्शि की अम्म म
कड़ी है इस आधार पर यह कहा जा सकिा है वक “आ ा” और मेरा रुप (आदान-प्रदान) ही थ उ ोग,
थ समाज और थ िोकि सवहि वि र्शाम्म , एकिा, म्म थरिा और विकास का अम्म म मागष है िाहे िह
ििषमान में आ साि् वकया जाये या भवि में पर ु स िो यही है
मन से मन के मानक के ि होने के स ूणष यात्रा में कुछ महापुरुर्ों ने अ मानक आ ा को
ि करने के विए कायष वकये िो कुछ ने अ सवहि मानक के विए मन के अ मानक आ ा की
िृंखिा में वनिृव मागी-साधु, संि इ ावद वजनकी सिोৡ म्म थवि ब्र ा हैं मन के अ सवहि मानक के
िृंखिा में प्रिृव मागी-गृह थ युि स ासी इ ावद वजनकी सिोৡ म्म थवि वि ु हैं इस मानक को िहाररकिा
में िाने के विए ान मागी वजनकी सिोৡ म्म थवि महे र्श हैं और यही ििष मान िथा भवि के समाज की
आि किा है और यही मन के मानक की उपयोवगिा है
मन के मानक को ि करने में जो र्श , ৯ान-वि৯ान, नाम-रुप इ ावद प्रयोग वकये गये हैं -िे सब
मन से मन के मानक के विकास यात्रा में विवभ महापु रुर्ों ारा ि हो मानि समाज में पहिे से मा िा प्रा
कर वि मान है मैं (वि ा ा) वसफष उसको ििष मान की आि किा और ििषमान से जोड़ने के विए समयानुसार
ि कर मन के मानक को ि कर वदया हूँ यवद समाज इसे आ साि् नहीं करिा िो उसके पहिे मैं
(वि ा ा) ही उसे आ साि् नहीं करिा क्योंवक मैं र्शु -बु -मुि आ ा हूँ , मैं नाम-रुप से मुि हूँ , मैं वर्शि हूँ , मैं
वर्शि हूँ , मैं वर्शि हूँ और ऐसा कहने िािा मैं पहिा नहीं हूँ मुझसे पहिे भी अने क वस ों ारा ऐसी उद् घोर्णा की
जा िुकी है और िे अपने समय के दे र्श-काि म्म थवियों में उसे वस भी कर िुके हैं और जब िक प्र े क मानि ऐसा
कहने के यो৓ नहीं बनिा िब िक धमष र्शा ों में सृव के प्रार में कहा गया ई रीय िाणी-” ई र ने इৢा ि
की वक मैं एक हूँ अनेक हो जाऊूँ” कैसे वस हो पाये गा मेरे उद् घोर् का सबसे बड़ा प्रमाण “स मानक वर्शक्षा”
ारा िশ “पुनवनष माष ण” ि उसके प्राम्म की कायष योजना है जो अपने आप में पु रािन, वििक्षण और ििषमान िक
ऐसा नहीं हुआ है , जैसा है िीराम ारा र्शारीररक र्शम्मि के मा म से र्शारीररक र्शम्मि का प्रयोग कर स ीकरण
हुआ था, िीकृ ारा आवथषक र्शम्मि के मा म से म्मिगि बौम्म क र्शम्मि का प्रयोग कर स ीकरण हुआ था,
अब यह कायष म्मिगि बौम्म क र्शम्मि के मा म से सािषभौम बौम्म क र्शम्मि का प्रयोग कर स ीकरण वकया जा
रहा है जो िीराम, िीकृ के क्रम में अगिा कायष है यह मानने का कायष नहीं जानने का कायष है मानने से,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 247


मानने िािे का कोई क ाण नहीं होिा, क ाण िो वसफष जानने िािों का ही होिा रहा है , होिा है और होिा
रहे गा
ििषमान एिं भवि के मानि समाज को मैं (वि ा ा) का यह अम्म म स संदेर्श है वक-मानि की
िा विक िेिना-स िेिना अथाष ि् भूिकाि का अनुभि और भवि की आि किानुसार ििषमान में पररणाम
৯ान से युि हो कायष करना है न वक पर्शुओं की प्राकृविक िेिना अथाष ि् र्शु रुप से ििषमान में कायष करना है
स िेिना में प्राकृविक िेिना समावहि रहिी है अथाष ि् मानि का विकास प्राकृविक िेिना से स िेिना की
ओर होना िावहए और वि৯ान की भाूँ वि धमष के विर्य में भी सदा आवि ृ ि विर्य से आवि ार की ओर बढ़ना
िावहए अ था म्म थवि यह होगी वक िह िो आपके पास पहिे से आवि ृ ि था पर ु उसी के आवि ार में आपने
पूरा जीिन िीि कर वदया
स ूणष मानि समाज से यह वनिेदन है वक ई र के स में जो कुछ भी अब िक आवि ृ ि है
य वप वक िह सब मैं (आ ा) इस भौविक र्शरीर (िी िि कुर्श वसं ह “वि मानि” ) से ि कर िुका हूँ िेवकन
वफर भी म्मि ई र नहीं बन सकिा वसफष समव ही ई र होिा है और समव ही सं युि है वजसकी िरम
विकवसि अि था स ूणष ब्र ाਔ का यथाथष रुप है जो एक संयुि वििार-स -वस ा ही है म्मि नहीं जबवक
इसको ि और आ साि् करने िािा म्मि ही है अथाष ि् ई र और म्मि एक दू सरे पर वनभषर है
पररणाम रुप जो कुछ भी इस भौविक र्शरीर ारा ि कर दे ना था-िह दे वदया गया और बाि यहीं समा हो
गयी क्योंवक मैं (वि ा ा) िु ारे अनूरुप सामा हो गया क्योंवक ई र (संयुि वििार स -वस ा ) बाहर हो
गया और िह सभी में ा हो गया िू भी सामा , मैं भी सामा िू भी ई र, मैं भी ई र िू भी वर्शि, मैं भी
वर्शि इससे अिग वसफष माया, भ्रम, अ वि ास है और जब िक मैं (वि ा ा) इस र्शरीर में हूँ एक ििषमान और
भवि का एका ान यु ि प्रबु मानि के वसिाय कुछ अवधक भी नहीं समझा जाना िावहए बस यही वनिेदन
है
इस अम्म म के स में यह कहना िाहूँ गा वक इस पर अभी वििाद करने से कोई िाभ नहीं है अभी
िो वसफष यह दे खना है वक यह कािानुसार ििषमान और भवि के विए म्मि से वि प्रब िक के विए उपयोगी
है या नहीं और जब िक मानि सृव रहे गी िब िक यह सािषभौम स -वस ा अभे और अकाਅ बना रहिा है
िब यह समझ िेना होगा वक यह अम्म म था और ि करने िािा मानि र्शरीर पूणष ब्र की अम्म म कड़ी
अथाष ि् वर्शि का साकार सगुण रुप ही था
आिोिना और विरोध मानि का भाि है पर ु स की आिोिना और विरोध यवद वबना वििारे ही
होगा िो यह उस मनु के विए यं की मूखषिा का प्रदर्शषन ही बन सकिा है क्योंवक ऐसा नहीं है वक अ मनु
इसे नहीं समझ रहे हैं इसविए इसके विए थोड़ा सिकषिा रखें विर्शेर्कर उन िोगों के विए जो सािषजवनक रुप से
वििार प्र ुि करिे हैं
हाूँ , एक अम्म म स और-उपरोि अम्म म स भी स और अम्म म स है या नहीं? इसके विए
भी िो ৯ान और बुम्म िावहए
प्रकावर्शि खुर्शमय िीसरी सह ाम्म के साथ यह एक सिोৡ समािार है वक नयी सह ाम्म केिि
बीिे सह ाम्म यों की िरह एक सह ाम्म नहीं है यह प्रकावर्शि और वि के विए नये अ ाय के प्रार का
सह ाम्म है केिि िि ों ारा िশ वनधाष रण का नहीं बम्म गीकरण के विए अवसमीि भूमਔिीय मनु
और सिोৡ अवभभािक सं युि रा र सं घ सवहि सभी र के अवभभािक के किष के साथ कायष योजना पर
आधाररि क्योंवक दू सरी सह ाम्म के अ िक वि की आि किा, जो वकसी के ारा प्रविवनवध नहीं हुई
उसे वििादमुि और सफििापूिषक प्र ु ि वकया जा िुका है जबवक विवभ विर्यों जैसे -वि৯ान, धमष, आ ा ,
समाज, रा৸, राजनीवि, अ राष र ीय स , पररिार, म्मि, विवभ सं गठनों के वक्रयाकिाप, प्राकृविक,
ब्र ाਔीय, दे र्श, सं युि रा र सं घ इ ावद की म्म थवि और पररणाम सािषजवनक प्रमावणि रुप में थे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 248


वि৯ान के सिोৡ आवि ार के आधार पर अब यह वििाद मुि हो िुका है वक मन केिि म्मि,
समाज, और रा৸ को ही नहीं प्रभाविि करिा बम्म यह प्रकृवि और ब्र ाਔ को भी प्रभाविि करिा है
के ीयकृि और ानीकृि मन विवभ र्शारीररक सामावजक और रा৸ के असमा िाओं के उपिार का अम्म म
मागष है थायी म्म थरिा, विकास, र्शाम्म , एकिा, समपष ण और सुरक्षा के विए प्र े क रा৸ के र्शासन प्रणािी के विए
आि क है वक रा৸ अपने उ े के विए नागररकों का वनमाष ण करें और यह वनधाष ररि हो िुका है वक क्रमब
थ मानि पीढ़ी के विए वि की सुरक्षा आि क है इसविए वि मानि के वनमाष ण की आि किा है , िेवकन
ऐसा नहीं है और विवभ अवनयम्म ि सम ा जै से-जनसंূा, रोग, प्रदू र्ण, आिंकिाद, भ्र ािार, विके ीकृि मानि
र्शम्मि एिं कमष इ ावद िगािार बढ़ रहे है जबवक अ ररक्ष और ब्र ाਔ के क्षेत्र में मानि का ापक विकास
अभी र्शेर् है दू सरी िरफ िाभकारी भूमਔिीकरण विर्शेर्ीकृि मन के वनमाष ण के कारण विरोध और नासमझी से
संघर्ष कर रहा है और यह अस ि है वक विवभ विर्यों के प्रवि जागरण सम ाओं का हि उपि कराये गा
मानक के विकास के इविहास में उ ादों के मानकीकरण के बाद ििषमान में मानि, प्रवक्रया और
पयाष िरण का मानकीकरण िथा थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एिं आई0 एस0 ओ0-14000 िृंखिा के ारा
मानकीकरण के क्षे त्र में बढ़ रहा है िेवकन इस बढ़िे हुये िृंखिा में मनु की आि किा (जो मानि और
मानििा के विए आि क है ) का आधार “मानि संसाधन का मानकीकरण” है क्योंवक मनु सभी (जीि और
वनजीि) का वनमाष णकिाष और उसका वनय णकिाष है मानि संसाधन के मानकीकरण के बाद सभी विर्य
आसानी से िশ अथाष ि् वि रीय गुणि ा की ओर बढ़ जायेगी क्योंवक मानि संसाधन के मानक में सभी ि ों के
मूि वस ा का समािेर्श होगा
ििषमान समय में र्श - “वनमाष ण” भूमਔिीय रुप से पररविि हो िुका है इसविए हमें अपना िশ
मनु के वनमाष ण के विए वनधाष ररि करना िावहए और दू सरी िरफ वििादमुि, , प्रकावर्शि िथा ििषमान
सरकारी प्रवक्रया के अनुसार मानक प्रवक्रया उपि है जैसा वक हम सभी जानिे हैं वक मानक हमेर्शा स का
सािषजवनक प्रमावणि विर्य होिा है न वक वििारों का म्मिगि प्रमावणि विर्य अथाष ि् प्र ुि मानक विवभ
विर्यों जैसे-आ ा , वि৯ान, िकनीकी, समावजक, नीविक, सै ाम्म क, राजनीविक इ ावद के ापक समथषन के
साथ होगा “उपयोग के विए िैयार” िथा “प्रवक्रया के विए िैयार” के आधार पर प्र ुि मानि के वि रीय
वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class
Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousnesas) प्रणािी
आवि ृ ि है वजसमें स ूणष ि सहभावगिा (Total System Involvement-TSI) है और वि मानक र्शू : मन
की गुणि ा का वि मानक िृंखिा (WS-0 : World Standard of Mind Series) समावहि है जो वि मानि
वनमाष ण प्रवक्रया की िकनीकी और मानि संसाधन की गुणि ा का वि मानक है जैसे -औ ोवगक क्षेत्र में इ ी০ूट्
आफ ा में ीने , जापान ारा उ ादों के वि रीय वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए उ ाद वनमाष ण
िकनीकी ड ू0 सी0 एम0-ट्ी0 पी0 एम0-5 एस (WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing - Total
Productive Maintenance -Siri (छूँ ट्ाई), Seton (सु िम्म थि), Sesaso ( ৢिा), Siketsu (अৢा र),
Shituke (अनुर्शासन) प्रणािी संिाविि है वजसमें स ूणष कमषिारी सहभावगिा (Total Employees
Involvement) है ) का प्रयोग उ ोगों में वि रीय वनमाष ण प्रवक्रया के विए होिा है और आई.एस.ओ.-
9000 (ISO-9000) िथा आई.एस.ओ.-14000 (ISO-14000) है
युग के अनुसार स ीकरण का मागष उपि कराना ई र का किष है आवििों पर स ीकरण का
मागष प्रभाविि करना अवभभािक का किष है और स ीकरण के मागष के अनुसार जीना आवििों का किष है
जैसा वक हम सभी जानिे है वक अवभभािक, आवििों के समझने और समथषन की प्रविक्षा नहीं करिे अवभभािक
यवद वकसी विर्य को आि क समझिे हैं िब केिि र्शम्मि और र्शीघ्रिा से प्रभािी बनाना अम्म म मागष होिा है
वि के बৡों के विए यह अवधकार है वक पूणष ৯ान के ारा पूणष मानि अथाष ि् वि मानि के रुप में बनना हम सभी
वि के नागररक सभी र के अवभभािक जैसे -महासविि सं युि रा र संघ, रा र ों के रा र पवि-प्रधानमंत्री, धमष,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 249


समाज, राजनीवि, उ ोग, वर्शक्षा, प्रब , पत्रकाररिा इ ावद ारा अ समाना र आि क िশ के साथ इसे
जीिन का मुূ और मूि िশ वनधाष ररि कर प्रभािी बनाने की आर्शा करिे हैं क्योंवक िশ वनधाष रण िि का
सूयष नये सह ाम्म के साथ डूब िुका है और कायष योजना का सूयष उग िुका है इसविए धरिी को गष बनाने
का अम्म म मागष वसफष किष है और रहने िािे वसफष स -वस ा से युि संयुिमन आधाररि मानि है , न वक
संयुिमन या म्मिगिमन से युिमानि
आवि ार विर्य “ म्मिगि मन और सं युिमन का वि मानक और पू णषमानि वनमाष ण की िकनीकी
है वजसे धमष क्षेत्र से कमषिेद: प्रथम, अम्म म िथा पंिमिे दीय िृंखिा िथा र्शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की गुणि ा का
वि मानक िृंखिा िथा WCM-TLM-SHYAM.C िकनीकी कहिे है स ूणष आवि ार सािषभौम स -वस ा
अथाष ि स ूणष ब्र ाਔ में ा अट्िनीय, अपररििष नीय, र्शा ि ि सनािन वनयम पर आधाररि है , न वक मानिीय
वििार या मि पर आधाररि ” स ूणष ब्र ाਔ में ा एक ही स -वस ा ारा म्मिगि ि सं युि मन को
एकमुखी कर सिोৡ, मूि और अम्म म र पर थावपि करने के विए र्शू पर अम्म म आवि ार WS-0 िृंखिा
की वन विम्मखि पाूँ ि र्शाखाएूँ है
1. ड ू.एस. (WS)-0 :वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-000 :ब्र ाਔ (सू क्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानि (सूक्ष्म िथा थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
5. ड ू.एस. (WS)-00000 :उपासना और उपासना थि का वि मानक
संयुि रा र सं घ सीधे इस मानक िृंखिा को थापना के विए अपने सद दे र्शों के महासभा के समक्ष
प्र ु ि कर अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन ि वि ापार सं गठन के मा म से सभी दे र्शों में थावपि करने के
विए उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 ि ISO-14000 िृंखिा का वि ापी थापना हो
रहा है
20 िर्ों से वजस समय की प्रिीक्षा मैं िि कुर्श वसंह “वि मानि” कर रहा था िह आ गया है जो
म्मि प्राकृविक बि को समझ जािे हैं िे उसके अनुसार कायष योजना िैयार करिे है इस क्रम में म्मि, समाज,
दे र्श ि वि की आि किा को 20 िर्ष पहिे ही समझ विया गया था और उस अनुसार ही िশ वनधाष ररि कर
उसके प्राम्म के विए कायष योजना िैयार की जा रही थी वसफष िশ वनधाष रण से ही कायष स नहीं हो जािा
बम्म िশ की स िा की प्रमावणकिा के विए धमष र्शा ों, पुराणों, दार्शषवनकों, सामावजक-राजनीविक
नेिृ किाष ओ,ं वि৯ान ि आ ा इ ावद के वििारों-वस ा ों के ारा उसे पुव प्रदान करने की भी आि किा
होिी है वफर उसे उस िশ िक पहुूँ िाने के विए कायष योजना बनानी पड़िी है
ििषमान समय, स ूणष पुनवनषमाष ण और स ीकरण का समय है हमें प्र ेक विर्य को प्रार से
समझना और समझाना पड़े गा िभी म्मि, समाज, दे र्श ि वि को स वदर्शा प्रा हो सकेगी और इस कायष को
करने िािा कार्शी-स कार्शी क्षे त्र इस ििष मान समय में रा र गुरू बनेगा वजसका कारण होगा-” रा र को स
मागषदर्शषन दे ना” और वफर यही कारण भारि को जगिगुरू के रूप में थावपि कर दे गा
हम सभी के मोट्र िाहनों में, िाहन वकिने वकिोमीट्र ििा उसे वदखाने के विए एक यंत्र होिा है
यवद इस यंत्र की अवधकिम 6 अंकों िक वकिोमीट्र वदखाने की क्षमिा हो िब उसमें 6 अंक वदखिे है जो प्रार
में 000000 के रूप में होिा है िाहन के िििे अथाष ि विकास करिे रहने से 000001 वफर 000002 इस क्रम से
बढ़िे हुये पहिे इकाई में, वफर दहाई में, वफर सैकड़ा में, वफर हजार में, वफर दस हजार में, वफर िाख में, के क्रम
में यह आगे बढ़िे हुये बदििा रहिा है एक समय ऐसा आिा है जब सभी अं क 999999 हो जािे हें वफर क्या
होगा? वफर सभी 000000 के अपने प्रार िािी म्म थवि में आ जायेंगे इन 6 अं क के प्र ेक अं क के िक्र में 0 से 9
अंक के िक्र होिे है जो िाहन के ििने से बदिकर ििे हुये वकिोमीट्र को वदखािे है यही म्म थवि भी इस सृव
के काि िक्र की है सृव िक्र में पहिे काि है वजसके दो रूप अ और हैं वफर इन दोनों काि में 5 युग

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 250


हैं 4 अ काि के 1 काि के और इन दोनों काि में 14 मनि र और मनु हैं 7 अ काि के 7
काि के वफर इन युगों में युगाििार अििार होिे हैं वफर ास ि र्शा होिे हैं ये सब िैसे ही है जैसे अंक
गवणि में इकाई, दहाई, सै कड़ा, हजार, दस हजार, िाख इ ावद होिे हैं उपर उदाहरण वदये गये यंत्र में जब सभी
अंक 999999 हो जािे हैं िब विकास के अगिे एक बदिाि से इकाई, दहाई, सैकड़ा, हजार, दस हजार, िाख
सभी बदििे हैं ििषमान सृ व िक्र की म्म थवि भी यही हो गयी है वक अब अगिे अििार के मात्र एक विकास के
विए स ीकरण से काि, मनि र ि मनु, अििार, ास ि र्शा सभी बदिेंगे इसविए दे र्श ि वि के धमाष िायों,
वि ानों, ৸ोविर्ािायों इ ावद को अपने -अपने र्शा ों को दे खने ि समझने की आि किा आ गयी है क्योंवक
कहीं ये कायष िही िो नहीं है ? और यवद नहीं िो िह कौन सा कायष होगा जो इन सबको बदिने िािी घट्ना को
घवट्ि करे गा?
सामा िः मनु का भाि अपने जैसा ही दू सरे को समझना होिा है िह कैसे यह सोि सकिा है
वक एक म्मि सां साररक कायों से वनविष रहिे हुये 20 िर्ों से ऐसी र्शोध ि योजना पर ान केम्म ि कर कायष
करने में िगा हुआ है जो भारि को उसके स महानिा की ओर िे जाने िािा कायष है और ऐसा कायष भारि
सवहि वि के विए वकिने बड़े समािार का विर्य बनेगा?
“वि र्शा ” में ज -जीिन-पुनजष -अििार-साकार ई र-वनराकार ई र, अ और ई र
नाम, मानवसक मृ ु ि ज , भूि-ििषमान-भवि , वर्शक्षा ि पूणष वर्शक्षा, संविधान ि वि संविधान, ग्राम सरकार ि
वि सरकार, वि र्शाम्म ि एकिा, म्म थरिा ि ापार, वििारधारा ि वक्रयाकिाप, ाग और भोग, राधा और धारा,
प्रकृवि और अहं कार, किष और अवधकार, राजनीवि ि वि राजनीवि, म्मि और िैव क म्मि, ৯ान ि
कमष৯ान, योग, अ और योग ि ान, मानििािाद ि एका कमषिाद, नायक-र्शा ाकार-आ कथा,
महाभारि और वि भारि, जावि और समाजनीवि, मन और मन का वि मानक, मानि और पूणष मानि एिं पूणष
मानि वनमाष ण की िकनीकी, आकड़ा ि सूिना और वि ेर्ण, र्शा और पुराण इ ावद अनेकों विर्य और उनके
ििषमान समय के र्शासवनक ि था में थापना र िक की विवध को ि वकया गया है इस एक ही
“वि र्शा ” सावह के गुणों के आधार पर धमष क्षेत्र से 90 नाम और धमषवनरपेक्ष ि सिषधमषसमभाि क्षेत्र से 141 नाम
भी वनधाष ररि वकये गये हैं
जब दु वनया बीसिी ं सदी के समाम्म के समीप थी िब िर्ष 1995 ई0 में कोपे नहे गन में सामावजक
विकास का वि वर्शखर स ेंिन हुआ था इस वर्शखर स ेंिन में यह माना गया वक-” आवथषक विकास अपने आप
में मह पूणष विर्य नहीं है , उसे समावजक विकास के वहि में काम करना िावहए यह कहा गया वक वपछिे िर्ों में
आवथषक विकास िो हुआ, पर सभी दे र्श सामावजक विकास की व से वपछड़े ही रहे वजसमें मुূिः िीन वब दु ओं-
बढ़िी बेरोजगारी, भीर्ण गरीबी और सामावजक विघट्न पर वि ा ि की गई यह ीकार वकया गया वक
सामावजक विकास की सम ा सािषभौवमक है यह सिषत्र है , िेवकन इस घोर सम ा का समाधान प्र ेक सं ृ वि
के स भष में खोजना िावहए ” इसका सीधा सा अथष यह है वक म्मि हो या दे र्श, आवथषक विकास िभी सफि होगा
जब बौम्म क विकास के साथ मनु के गुणि ा में भी विकास हो इसी स ेिन में भारि ने यह घोर्णा की वक-”
िह अपने सकि घरे िू उ ाद का 6 प्रविर्शि वर्शक्षा पर य करे गा ” भारि इस पर िब से वकिना अमि कर पाया
यह िो सबके सामने है िेवकन बौम्म क विकास के साथ मनु के गुणि ा में भी विकास के विए भारि सवहि वि
के हजारों वि वि ािय वजस पूणष सकारा क एिम् एकीकरण के वि रीय र्शोध को न कर पाये, िह पूणष वकया
जा िुका है और उसे पाਉक्रम का रूप दे कर पुनवनषमाष ण के मा म से आपके सामने है पररणाम रूप एकि
सािषभौवमक रिना क बुम्म बनाम वि बुम्म का रूप आपके सामने है
र्शा ों ि अनेक भवि ििाओं के भवि िाणीयों को पूणषिया वस करिे हुये यह कायष उसी समय
अिवध में स हुआ है भवि िाणीयों के अनुसार ही ज , कायष प्रार और पूणष करने का समय और जीिन है
अवधक जानने के विए इ रनेट् पर गूगि ि फेसबुक में वनयामिपु र किाूँ , िि कुर्श वसंह “वि मानि” , स कार्शी,

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 251


वि र्शा , वि मानि (NIYAMATPUR KALAN, LAVA KUSH SINGH “VISHWMANAV” , SATYAKASHI,
VISHWSHASTRA, VISHWMANAV) इ ावद से सिष कर जानकारी पायी जा सकिी है
सामावजक-आवथषक प्रणािी और वर्शक्षा के दावय पर आधाररि स ू णष कायष योजना को रा र को
समवपषि करिे हुये और प्रकृवि से विए गये हिा, पानी, धूप इ ावद का कजष उिारिे हुये, इस ापार पर यं का
एकावधकार न रहे इसविए इसे, पूरी रूवि से संिाविि करने िािों के हाथों में ही सौंपने की भी योजना है वजससे
৯ान का ापार भी हो जाये गा और रा र से िा भी हो जाये गी
जर् भारत दे श, जर् वि रा र

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 252


भाि-12
आ ान्त क क्रािंवत - मन (मानि सिंसाधन) का वि मानक (WS-0)
श्ृिंखला
वि शान्त
ई र का मन्त , मानि का मन्त और क ू टर
वि का मूल म - ”जर् जिान-जर् वकसान-जर् वि৯ान-जर् ৯ान-जर् कमण৯ान“
वि मानक-शू श्ृिंखला (वनमाणर् का आ ान्त क ूटरान बम)
भारत का सिंकट, हल, वि नेतृ की अवहिं सक नीवत, सिोৡ सिंकट और
वििशता
िर्रा৸-सिंघ को मािण दशणन
01. िर्रा৸ोिं के सिंघ-भारत को स और अन्त म मािण दशणन
02. रा र ो के सिंघ - सिंर्ुक्त रा र सिंघ को स और अन्त म मािण दशणन
03. अितारी सिंविधान से वमलकर भारतीर् सिंविधान बनार्ेिा वि सरकार का
सिंविधान
04. ”भारत“ के वि रूप का नाम है -”इन्तਔर्ा (INDIA)“
05. वि सरकार के वलए पु नः भारत ारा शू आधाररत अन्त म आवि ार
- शू का प्रर्म आवि ार का पररचर्
- शू आधाररत अन्त म आवि ार का पररचर्

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 253


वि शान्त
वि र्शां वि सभी दे र्शों और/या िोगों के बीि और उनके भीिर िंत्रिा, र्शां वि और खुर्शी का एक
आदर्शष है वि र्शां वि पूरी पृ ी में अवहं सा थावपि करने का एक वििार है , वजसके िहि दे र्श या िो ेৢा से या
र्शासन की एक प्रणािी के जररये इৢा से सहयोग करिे हैं , िावक यु को रोका जा सके हािां वक कभी-कभी इस
र्श का प्रयोग वि र्शां वि के विए सभी म्मियों के बीि सभी िरह की दु नी के खा े के संदभष में वकया जािा
है

वि शािंवत के वस ा
वि र्शां वि कैसे प्रा की जा सकिी है , इसके विए कई वस ां िों का प्र ाि वकया गया है इनमें से
कई नीिे सूिीब हैं वि र्शां वि हावसि की जा सकिी है , जब संसाधनों को िेकर संघर्ष नहीं हो उदाहरण के
विए, िेि एक ऐसा ही संसाधन है और िेि की आपूविष को िेकर संघर्ष जाना पहिाना है इसविए, पुन:-प्रयो৸
ईंधन स्रोि का उपयोग करने िािी प्रौ ोवगकी विकवसि करना वि र्शां वि हावसि करने का एक िरीका हो सकिा
है

सिंभािना
जबवक वि र्शां वि सै ां विक रूप से संभि है , कुछ का मानना है वक मानि प्रकृवि ाभाविक िौर पर
इसे रोकिी है यह वि ास इस वििार से उपजा है वक मनु प्राकृविक रूप से वहं सक है या कुछ पररम्म थवियों में
िकषसंगि कारण वहं सक कायष करने के विए प्रेररि करिी है िथावप दू सरों का मानना है वक यु मानि प्रकृवि का
एक सहज वह ा नहीं हैं , और यह वमथक िा ि में िोगों को वि र्शां वि के विए प्रेररि होने से रोकिा है

विवभ राजनीवतक विचारधाराएिं


दािा वकया जािा है वक कभी-कभी वि र्शां वि वकसी खास राजनीविक वििारधारा का एक अपररहायष
पररणाम होिी है पूिष अमेररकी रा र पवि जॉजष ड ू बुर्श के मुिावबक ”िोकिं त्र का प्रयाण (विकास क्रम) वि
र्शां वि का नेिृ करे गा ” एक माक्र्सिादी वििारक वियोन त्रो की का मानना है वक वि क्रां वि क ुवन वि
र्शां वि का नेिृ करे गी

लोकतािं वत्रक शािंवत वस ािंत


वििादा द डे मोक्रेवट्क र्शां वि वस ां ि के समथषकों का दािा है वक इस बाि के मजबूि अनुभिज
साশ मौजूद हैं वक िोकिां वत्रक दे र्श कभी नहीं या मुम्म ि से ही एक-दू सरे के म्मखिाफ यु छे ड़िे हैं (केिि
अपिाद हैं कोड यु , ट्बोट् यु और ऑपरे र्शन फोकष) जैक िेिी (1988) बार-बार जोर दे कर यह वस ां ि बिािे
हैं वक ”िाहे कुछ भी हो, अं िराष र ीय संबंधों में हमें एक िहाररक कानून की आि किा है ” औ ोवगक क्रां वि के
बाद से िोकिां वत्रक बनने िािे दे र्शों में िृम्म हो रही है एक वि र्शां वि इस प्रकार संभि है , अगर यह रुझान जारी
रहे और अगर िोकिां वत्रक र्शां वि वस ां ि सही हो हािां वक इस वस ां ि के कई संभि अपिाद है

पूिंजीिादी शािंवत वस ािंत


अपनी ”कैवपट्वि৷ पीस ोरी” पु क में आयन रैं ड मानिी है वक इविहास के बड़े यु उस समय
के अपेक्षाकृि अवधक वनयंवत्रि अथष ि थाओं िािे दे र्शों ारा मुि (अथष ि थाओं) के म्मखिाफ िड़े गये और उस
पूंजीिाद ने मानि जावि को इविहास में सबसे िंबे समय िक र्शां वि प्रदान की और वजस अिवध में पूरी स दु वनया

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 254


की भागीदारी में 1815 में नेपोवियन यु के अंि से 1914 में प्रथम वि यु के वछड़ने िक यु नहीं हुए यह याद
रखा जाना िावहए वक उ ीसिी ं सदी की राजनीविक प्रणावियां र्शु पूंजीिादी नहीं थी,ं बम्म वमविि
अथष ि थाओं िािी थी ं हािां वक पूंजीिाद के ि का प्रभु था, पर यह पूंजीिाद की एक सदी के उिने ही करीब
था, वजिना मानि जावि के आने िक था िेवकन पूरी उ ीसिी ं सदी के दौरान रा৸िाद के ि फििे -फूििे रहे
और 1914 में पूरी दु वनया में इसके वि ोट् के समय िक र्शावमि सरकारों पर रा৸िाद की नीवियों का बोिबािा
रहा हािां वक, इस वस ां ि ने यूरोप के बाहर के दे र्शों, साथ ही साथ एकीकरण के विए जमषनी और इट्िी में हुए
यु ों, फ्ां को-पवसषयन यु और यूरोप के अ संघर्ों के म्मखिाफ पव मी दे र्शों ारा छे ड़े गये क्रूर औपवनिेवर्शक
यु ों की अनदे खी की यह यु के अभाि को र्शां वि के पैमाने के रूप में पेर्श करिा है , जब िा विक रूप में िगष
संघर्ष मौजूद रहा

को डे वन৷
को डे वन৷ के कुछ समथषकों का दािा है वक ट्ै ररफ हट्ाने और अंिराष र ीय मुि ापार र्शुरू करने से
यु असंभि हो जायेंगे, क्योंवक मुि ापार एक रा र को आ वनभषर बनने से रोकिा है , जो िंबे यु ों की एक
आि किा है उदाहरण के विए, यवद एक दे र्श आ্ेया ों का उ ादन और दू सरा गोिा-बारूद का उ ादन
करिा है , िो दोनों एक-दू सरे से ही िड़ें गे, क्योंवक पहिा गोिा-बारूद हावसि करने में असमथष होगा और दू सरा
हवथयार हावसि करने में

आिोिकों का िकष है वक मुि ापार एक दे र्श को यु के मामिे में अ थायी रूप से आ वनभषर
बनने की आपाि योजना बनाने से नहीं रोक सकिा या एक दे र्श साधारण िौर पर अपनी जरूरि एक दू सरे दे र्श से
पूरी कर सकिा है इसका एक अৢा उदाहरण पहिा वि यु है वब्रट्े न और जमषनी दोनों यु के दौरान
आं वर्शक रूप से आ वनभषर बनने में कामयाब हो गये यह विर्शेर् रूप से इस ि की िजह से अहम था वक
जमषनी के पास एक यु अथष ि था बनाने की कोई योजना नहीं थी

अवधक आम िौर पर, इसके अ समथषकों का िकष है वक मुि ापार, भिे ही यु को असंभि नहीं
बनायें , पर िह यु करा सकिा है और यु ों के कारण ापार पर प्रविबंध कई विवभ दे र्शों में उ ादन, अनुसंधान
और वबक्री में िगी अं िराष र ीय कंपवनयों के विए महं गे सावबि हो सकिे हैं इस िरह, एक र्शम्मिर्शािी िॉबी-जो
केिि रा र ीय कंपवनयों के कारण उपम्म थि नहीं होिी िो िह यु के म्मखिाफ िकष दे सकिी है

व पक्षीर् आ विनाश
व पक्षीय आ विनार्श (कभी-कभी इसे एम.ए.डी (MAD) कहा जािा है ) सै रणनीवि का एक
वस ां ि है , वजसमें दो प्रवि ं ी पक्षों ारा पूणष पैमाने पर परमाणु हवथयारों के उपयोग से हमिािर और रक्षक दोनों
के विनार्श का प्रभािी पररणाम वनकििा है र्शीि यु के दौरान व पक्षीय आ विनार्श की नीवि के समथषकों की
िजह से यु की घािकिा इस कदर बढ़ी वक वकसी भी पक्ष के विए वकसी र्शु िाभ की संभािना नहीं बनी और
इस िरह यु थष सावबि हुए

िै ीकरर्
कुछ िोग रा र ीय राजनीवि में एक प्रिृव दे खिे हैं , वजसके िहि नगर-रा৸ और रा र -रा৸ एकीकृि
हो गये और सुझाि वदया वक अं िराष र ीय मंि इसका पािन करे गा िीन, इट्िी, संयुि रा৸ अमेररका, जमषनी,
भारि और वब्रट्े न जैसे कई दे र्श एकीकृि हो गये , जबवक यूरोपीय यूवनयन ने बाद में इसका अनुपािन वकया और
इससे संकेि वमििा है वक और अवधक भूमंडिीकरण एक एकीकृि वि ि था बनाने में मदद करे गा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 255


पृर्कतािाद और िैर-ह क्षेपिाद
पृथकिािाद और गैर-ह क्षेपिाद के समथषकों का दािा है वक कई रा र ों से बनी एक दु वनया उस
समय िक र्शां विपूिषक सह-अम्म के साथ रह सकिी है , जब िक िह घरे िू मामिों की िरफ मजबूिी से ान
केंविि रखे और दू सरे दे र्शों पर अपनी इৢा थोपने की कोवर्शर्श नहीं करे गैर-ह क्षेपिाद के संबंध में
पृथकिािाद को िेकर भ्रवमि नहीं होना िावहए गैर-ह क्षेपिाद की िरह पृथकिािाद दू सरे रा र ों के आं िररक
मामिों में ह क्षेप से बिने की सिाह दे िा है , िेवकन संरक्षणिाद और अंिराष र ीय ापार और पयषट्न पर प्रविबंध
पर जोर दे िा है दू सरी िरफ गैर-ह क्षेपिाद मुि ापार (को डे वन৷ की िरह) के राजनीविक ि सै
अ-ह क्षेप के संयोजन की िकािि करिा है जापान जैसे रा र र्शायद अिीि में पृथकिािादी नीवियों की थापना
के विए सबसे ৸ादा जाने जािे हैं जापानी ईदो, िोकुगािा ने एक पृथकिािादी अिवध ईदो अिवध र्शु रू की,
वजसके िहि जापान ने पूरी दु वनया से अपने को अिग कर वदया यह एक प्रवस अिगाि अिवध थी और कई
क्षेत्रों में अৢी िरह प्रिेम्मखि की गई

-सिंिवठत शािंवत
वि र्शां वि को थानीय, -वनधाष ररि िहार के एक पररणाम के रूप में दर्शाष या गया है , जो र्शम्मि के
सं थानीकरण को रोकिा है और वहं सा को बढ़ािा दे िा है समाधान बहुि कुछ सहमवि िािे एजेंडे या उৡ
प्रावधकार, िाहे िह दै िीय हो या राजनीविक, में वनिेर्श पर उिना आधाररि नहीं है , वजिना आपसी सहवमि िािे
िंत्रों का -संगवठि नेट्िकष, वजसका पररणाम एक िहायष राजनीविक-आवथषक सामावजक िानेबाने के रूप में
वनकििा है अवभसरण के उ ेरण के विए प्रमुख िकनीक वििारों का प्रयोग है , वजसे बैककाम्म ं ग कहिे है , और
इससे कोई भागीदारी में सक्षम हो सकिा है , भिे ही िह वकसी सां ृ विक पृ भूवम, धावमषक वस ां ि, राजनीविक
संब िा या जनसां म्मূकीय उम्र का हो समान सहयोगी िंत्र खुिी स्रोि िािी पररयोजनाओं के आसपास इं ट्रनेट्
के जररये उभर रहे हैं और सामावजक मीवडया का विकास हो रहा है

आवर्णक मानदिं डोिं का वस ािंत


आवथषक मानदं डों का वस ांि आवथषक म्म थवियों को प्रर्शासन के सं थानों और संघर्ष से संब करिा है ,
म्मिगि ग्राहकिगीय अथष ि थाओं को अिैयम्मिक बाजारो ुख अथष ि थाओं से अिग करिा है और बाद
िािी अथष ि थाओं को रा र ों के भीिर और उनके बीि थायी र्शां वि की पहिान दे िा है हािां वक मानि इविहास
के ৸ादािर समाज म्मिगि संबंधों पर आधाररि है समूहों के म्मि एक दू सरे को जानिे हैं और पक्ष का
विवनमय करिे हैं आज समूहों के कम आय िािे समाज पदानुक्रम समूह के नेिाओं के बीि म्मिगि संबंधों के
आधार पर धन वििररि करिे हैं , जो अসर ग्राहकिगषिाद और भ्र ािार के साथ जुड़ी हुई एक प्रवक्रया मानी जािी
है माइकि मोउसेयू का िकष है वक इस प्रकार की सामावजक-अथष ि था में संघर्ष हमेर्शा से मौजूद रहा है , भिे
ही िह प्रৢ या खुिा रहा हो, क्योंवक म्मि र्शारीररक और आवथषक सुरक्षा के विए अपने समूहों पर वनभषर रहिे
हैं और इस िरह अपने रा৸ों के बजाय अपने समूहों के प्रवि िफादार रहिे है , और क्योंवक समूह रा৸ के खजाने
िक पहुूँ ि के विए सिि संघर्ष की म्म थवि में होिे हैं आब समझदारी की प्रवक्रयाओं के मा म से िोग मजबूि
सामूवहक पहिान के प्रवि अ होिे हैं और बाहरी िाकिों के डर ि मनोिै৯ावनक पूिाष नुकूििा के कारण उसी
वदर्शा में बह जािे हैं , वजससे सां प्रदावयक वहं सा, नरसंहार और आिंकिाद संभि हो पािा है
बाजारो ुख सामावजक अथष ि थाएं म्मिगि संबंधों से नहीं, बाजार के अिैयम्मिक बि से
एकीकृि होिी है , जहाूँ ৸ादािर म्मि रा৸ ारा िागू अनुबंधों के िहि अजनवबयों पर वि ास करने के विए
आवथषक रूप से वनभषर होिे हैं यह रा৸ के प्रवि िफादारी पैदा करिी है , जो कानून का र्शासन और अनुबंध
वन क्ष और वि रूप से िागू करिी है और अनुबंध करने की िंत्रिा में समान संरक्षण प्रदान करिी है , वजसे
उदारिादी िोकिंत्र कहा जािा है यु बाजार एकीकृि अथष ि थाओं िािे दे र्शों के भीिर और उनके बीि नहीं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 256


हो सकिे, क्योंवक यु में एक-दू सरे को नुकसान पहुं िाने की आि किा होिी है और इस िरह की
अथष ि थाओं में हर कोई िभी आवथषक रूप से बेहिर रह सकिा है , जब बाजार में दू सरे भी बेहिर रहें , बदिर
नहीं िड़ने के बजाय, बाजारो ुख सामावजक अथष ि थाओं में नागररक हर वकसी के अवधकारों और क ाण के
बारे में गहरी विंिा करिे हैं , इसविए िे घर में आवथषक विकास और विदे र्श में आवथषक सहयोग और मानिावधकारों
की मां ग करिे हैं िा ि में, बाजारो ुख सामावजक अथष ि थाओं िािे दे र्शों में िैव क मु ों, पर सहमवि होिी है
और उन दोनों के बीि वकसी वििाद में एक भी मौि नहीं हुई है
आवथषक मानदं डों के वस ां ि को र्शा ीय उदार वस ांि के रूप में भ्रवमि नहीं होने दे ना िावहए बाद
िािा मानिा है वक बाजार प्राकृविक होिे हैं और मुि बाजार धन को बढ़ािा दे िा है इसके विपरीि, आवथषक
मानदं डों का वस ां ि बिािा है वक कैसे बाजार-अनुबंध एक गहन अ यन िािा िरीका है और रा৸ का खिष,
विवनयमन और पुनविषिरण यह सुवनव ि करने के विए जरूरी है वक हर कोई ”सामावजक बाजार” अथष ि था में
भागीदारी कर सके, जो हर वकसी के वहि में है

वि शािंवत के धावमणक वस ा

कई धमों और धावमषक नेिाओं वहं सा ख करने और/या वि र्शां वि की इৢा ि की है


बहाई धमण
वि र्शां वि के िশ के विवर्श संबंध में, बहाई वि ास के बहाउ ा ने थाई र्शां वि की थापना के विए
पूरी दु वनया की ओर से समवथषि सामूवहक सुरक्षा ि था का सुझाि दे िा है यूवनिसषि हाउस ऑफ जम्म स िे द
प्रोवमज ऑफ ि ष पीस में इस प्रवक्रया के बारे में विखा है , ऐसा करीब-करीब हर धमष मे कहा गया है

बौ धमण
कई बौ धमाष ििंबी मानिे हैं वक वि र्शां वि िभी हो सकिी है , जब हम अपने मन के भीिर पहिे
र्शां वि थावपि करें बौद् ध धमष के सं थापक वस ाथष गौिम ने कहा, ”र्शां वि भीिर से आिी है .इसे इसके वबना न
ििार्शें ”, वििार यह है वक गु ा और मन की अ नकारा क अि थाएं यु और िड़ाई के कारण हैं बौ ों का
वि ास है वक िोग केिि िभी र्शां वि और स ाि के साथ जी सकिे हैं , जब हम अपने मन से क्रोध जैसी
नकारा क भािनाओं को ाग दें और ार और करुणा जैसी सकारा क भािनाएं पैदा करें

ईसाई धमण
बुवनयादी ईसाई आदर्शष स ाि और वि ास को दू सरों से साझा करने के जररये र्शां वि को बढ़ािा दे िा
है , साथ ही साथ उ ें भी माफ कर दे ने, जो र्शां वि भंग करने की कोवर्शर्श करिे हैं नीिे दो िुने हुए उपदे र्श वदये जा
रहे हैं -
”िेवकन मैं िु ें कहिा हूँ , अपने दु नों से ार करो, जो िु ें र्शाप दे िे हैं , उ ें आर्शीिाष द दो, उनका
भिा करो, जो िुमसे नफरि करिे हैं और उनके विए प्राथषना करो, जो िुमसे े र्पूणष सिूक करिे हैं और उ ीड़न
करिे हैं , क्योंवक िे िु ारे परम वपिा की संिान हो सकिे हैं , जो गष में है क्योंवक उसने जो सूयष बनाया है , िह दु
और भिा दोनों पर उगिा है और उविि और अनुविि दोनों पर िर्ाष बरसािा है ”
(मै ू 05:44-45)
”मैं िु ें एक नया आदे र्श दे िा हं , वक िुम एक दू सरे को ार करो, जैसा वक मैंने िुमसे ार वकया है ,
क्योंवक िुम एक दू सरे से ार करिे हो इसके ारा सभी िोग जानेंगे वक िुम सब मेरे वर्श हो, अगर िु ें दू सरे
के विए ार है ”
(जॉन 13:34-35)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 257


जॉन 14:06 में यीर्शु मसीह के र्श ों के कारण, जो कहिे हैं , ”मैं मागष हूँ , स हूँ और जीिन हूँ और
मेरे मा म के वबना कोई भी परम वपिा के पास नहीं आिा कई ईसाई यीर्शु मसीह के अिािा ई र िक पहुं िने
का कोई अ िरीका ीकार करने में असमथष हैं इसविए, ईसाई ार का एक सৡा कायष होगा, इस बाि का
प्रिार करना वक केिि एक भगिान है और एक ही पररत्रािा है ईसाइयों को अपने र्शत्रुओं से ार करने और
उपदे र्शों के सुसमािार प्रिाररि करने को कहा जािा है
सदी से पहिे ई र के प्राकਅ िािे वििार के अनुयाइयों का वि ास है वक वि र्शां वि यीर्शू मसीह के
दू सरी बार अििररि होने और महाक के बाद मसीह के 1000 साि का र्शासन र्शुरू होने िक वि र्शां वि प्रा
नहीं की जा सकिी इसविए, ईसाइयों को केिि ईसा मसीह के मा म से मुम्मि का संदेर्श फैिाना िावहए, जबवक
उनकी परिोक वि ा बिािी है वक ईसा के हजार साि का र्शासन र्शुरू होने िक ईसा विरोवधयों के र्शासन के साि
सािों की महाक की अिवध के दौरान यु और प्राकृविक आपदाओं में काफी िृम्म होगी

वहिंदू धमण
परं परागि रूप से वहं दू धमष में िसुधैि कुट्ुं बकम की अिधारणा गृहीि की गई है , वजसका अनुिाद है ,
”पूरा वि एक पररिार है ” इस कथन का सार यह बिािा है वक केिि किुवर्ि मन ही व भाजन और विभेद दे खिा
है हम वजिना अवधक ৯ान की ििार्श करें गे, उिना ही समािेर्शी होंगे और हमें सां साररक भ्रम या माया से अपने
भीिर की आ ा को मुि करना होगा वहं दुओं के मुिावबक ऐसा सोिा जािा है वक वि र्शां वि केिि आं िररक
साधनों के मा म से हावसि की जा सकिी है खुद को कृवत्रम सीमाओं से आजाद करके, जो हमें अिग करिी है ,
िेवकन र्शां वि हावसि करने के विए अৢी है

इ ाम धमण
इ ाम धमष के अनुसार केिि एक खुदा में यकीन और एडम और ईि के रूप में समान मािा-वपिा
का होना मनु ों का र्शां वि और भाईिारे के साथ एक साथ रहने का सबसे बड़ा कारण है वि र्शां वि के इ ामी
वििार कुरान में िवणषि है , जहाूँ पूरी मानििा को एक पररिार के रूप में मा िा प्रा है सभी िोग एडम के बৡे
हैं इ ामी आ था का उ े िोगों को अपनी वबरादरी की ओर अपने यं के प्राकृविक झुकाि की पहिान
कराना है इ ामी परिोकर्शा के अनुसार पैगंबर जीसस के नेिृ में उनके दू सरे अििरण में पूरा वि एकजुट्
हो जायेगा, उस समय इिना ৸ादा प्रेम, ाय और र्शां वि होगी वक दु वनया गष जैसी हो जाएगी
आई.ई.सी.आर.सी ारा 5 अक्टू बर 2009 को र्शावमि वकया गया-वि र्शां वि में धावमषक भागीदारी पर
इ ावमक एजुकेर्शनि एं ड क िरि ररसिष सेंट्र (आई.ई.सी.आर.सी) के अनुसंधान और वि र्शां वि ि था की
अिधारणा का वि ाररि िणषन निीनिम प्रकार्शन ”ि ष पीस आडष र-ट्ु आड्ष स एन इं ट्रनेर्शनि े ट्” में वकया गया
है

र्हदी धमण
यहदी धमष पारं पररक रूप से वसखािा है वक भवि में वकसी समय एक महान नेिा का उदय होगा
और िह इजराइि के िोगों को एकजुट् करे गा, वजसके पररणाम रूप वि में र्शां वि और समृम्म आयेगी ये
वििार मूिि-िनाख और र ानी ाূाओं के उ रणों के हैं
मसीहा के प्रवस वििार के अिािा वट्क्कुन ओिम (वि के सं ार) का वििार भी मौजूद है
वट्क्कुन ओिम की उपिम्म विवभ साधनों के मा म से होिी है , जैसे ई र के दै िी आदे र्शों (स ाि, किुि
कानूनों, आवद का पािन करिे हुए) को आनु ावनक रूप से पािन करने, साथ ही साथ उदाहरण के ारा बाकी
दु वनया को राजी करने से होिी है वट्क्कुन ओिम की उपिम्म दान और सामावजक ाय के मा म से भी होिी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 258


है कई यहवदयों का मानना है वक जब वट्क्कुन ओिम की उपिम्म हो जायेगी या जब दु वनया का सं ार हो
जायेगा है , िब मुम्मिदािा युग की र्शुरुआि होगी

जैन धमण
सभी िरह के जीिन, मानिीय या गैर-मानिीय, में करुणा जैन धमष का केंि है मानि जीिन एक
अव िीय, ৯ान िक पहुं िने के एक दु िषभ अिसर, वकसी भी म्मि की ह ा नहीं करने, इससे मििब नहीं वक
उसने क्या अपराध वकया है , के अिसर के रूप में मू िान है , वजसे अक नीय घृवणि माना जािा है यह एक
ऐसा धमष है , वजसमें अपने सभी संप्रदायों और परं पराओं के वभक्षुओं और गैर-पादरी िगष की जरूरि होिी है , उ ें
र्शाकाहारी होने की आि किा होिी है भारि के कुछ क्षेत्र, जैसे गुजरािी जैवनयों से बहुि प्रभाविि होिे है और
अসर पंथ के थानीय वहं दुओं का बहुमि र्शाकाहारी बन जािा है

वसख धमण
”सभी जीि-जंिु उनके हैं , िह सभी के विए है ” (गुरु ग्रंथ सावहब, 425) इसके अिािा गुरुओं ने आगे
उपदे र्श वदया है वक ”एक बेदाग ई र की ुवि गाओ, िह सब के भीिर वनवहि है ” (गुरु ग्रंथ सावहब, 706) ”वसख
के गुरु की खास विर्शेर्िा यह है वक िह जावि-िगीकरण के ढां िे से परे जािा है और विनम्रिा की ओर प्रेररि होिा
है , िब उसका िम ई र के दरिाजे पर ीकायष हो जािा है ” (भाई गुरदास जी, 1)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 259


ई र का मन्त , मानि का मन्त और क ूटर
ामी वििेकान जी ने कहा है -
”हमारे स ुख दो र्श हैं - क्षुि ब्र ाਔ और बृहि ब्र ाਔ, अ -और बवहः हम अनुभूवि के ारा ही
इन दोनों से स िाभ करिे है , आ र अनुभूवि और बा अनुभूवि अ ा र अनुभूवि के ारा संग्रवहि स
समूह मनोवि৯ान, दर्शषन और धमष के नाम से पररविि है , और बा अनुभूवि से भौविक वि৯ान की उ व हुई है
अब बाि यह है वक जो स ूणष स है उसका इन दोनों जगि की अनुभूवि के साथ सम य होगा क्षुि ब्र ाਔ,
बृहि् ब्र ाਔ के स को साक्षी प्रदान करे गा, उसी प्रकार बृहि् ब्र ाਔ भी क्षुि ब्र ाਔ के स को ीकार
करे गा िाहे वजस वि ा में हो प्रकृि स में कभी पर र अिरोध रह नहीं सकिा, आ र स समूह के साथ
बा स समूह का सम य है “
(धमष वि৯ान, रामकृ वमर्शन, पृ -10-11)
आ र अनुभूवि से ि भारि के सिषप्रािीन दर्शषनों (बम्म वि के) में से एक और ििषमान िक
अभे सां ূ दर्शषन में ब्र ाਔ वि৯ान की वि ृि ाূा उपि है

ामी वििेकान जी के ाূा के अनुसार-


”प्रथमि-अ ि प्रकृवि (अथाष ि् िीन आयाम-सि, रज, और िम), यह सिष ापी बुम्म ि (1.महि्) में
पररणि होिी है , यह वफर सिष ापी अंहि (2.अहं कार) में और यह पररणाम प्रा करके वफर सिष ापी
इं वियग्रा भूि (3.ि ात्रा-सूक्ष्मभूि-गंध, ाद, र्शष , व , वन 4.इम्म य ৯ान-िोि, िा, नेत्र, वज ा, घ्राण) में
पररणि होिा है यही भूि समव इम्म य अथिा के समूह (5.मन) और समव सूक्ष्म परमाणु समूह (6.इम्म य-
कमष -िाक, ह , पाद, उप थ, गुदा) में पररणि होिा है वफर इन सबके वमिने से इस थूि जगि प्रपंि (7. थूि
भूि-आकार्श, िायु, अव্, जि, पृ ी) की उ व होिी है सां ূ मि के अनुसार यही सृव का क्रम है और बृहि्
ब्र ाਔ में जो है -िह व अथिा क्षूि ब्र ाਔ में भी अि रहे गा “
(धमष वि৯ान, पृ -33)
”जब सा ाि था भंग होिी है , िब ये विवभ र्शम्मि समूह विवभ रूपों में सम्म विि होने िगिे है और
िभी यह ब्र ाਔ बवहगषि होिा है और समय आिा है जब ि ुओं का उसी आवदम सा ाि था में वफर से िौट्ने
का उपक्रम िििा है (अथाष ि् एक ि का अ ) और ऐसा भी समय आिा है वक सब जो कुछ भािाप है , उस
सब का स ूणष अभाि हो जािा है (अथाष ि् स ूणष ब्र ाਔ का अ ) वफर कुछ समय प ाि् यह अि था न हो
जािी है िथा र्शम्मियों के बाहर की ओर प्रसाररि होने का उपक्रम आर होिा है िथा ब्र ाਔ धीरे -धीरे
िंरगाकार में बवहगषि होिा है जगि् की सब गवि िरं ग के आकार में ही होिा है -एक बार उ ान, वफर पिन “
(धमष वि৯ान, पृ -13)
”प्रिय और सृव अथिा क्रम संकोि और क्रम विकास (अथाष ि् एक ि या स ूणष ब्र ाਔ का अ
और आर ) अन काि से िि रहे हैं अिएि हम जब आवद अथिा आर की बाि करिे है िब हम एक क
(अथाष ि् िक्र) आर की ओर ही िশ रखिे हैं “
(धमष वि৯ान, पृ -14)
”समग्र प्रकृवि के प ाि् वनव ि रूप से कोई ऐसी स ा है , वजसका आिोक उन पर पड़कर महि् ,
अहं ৯ान और सब नाना ि ुओं के रूप में प्रिीि हो रहा है और इस स ा को कवपि (सां ূ दर्शषन के ाূािा)
पु रूर् अथिा आ ा कहिे है िेदा ी भी उसे आ ा कहिे है कवपि के मि के अनुसार पुरूर् अवमि पदाथष है -िह
यौवगक पदाथष नहीं है िही एक मात्र अजड़ पदाथष और सब प्रपंि विकार की जड़ है पुरूर् ही एक मात्र ৯ािा है “
(धमष वि৯ान, पृ -52)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 260


”यवद हम एक मानि का वि े र्ण कर सके िो समग्र जगि् का वि ेर्ण हमने कर विया क्योंवक िे
सब एक ही वनयम से वनवमषि हैं अिएि यवद यह स हो वक इस व िेणी के पीछे ऐसे म्मि वि मान हैं , जो
सम प्रकृवि से अिीि हैं , जो वकसी प्रकार के उपादान से वनवमषि नहीं है अथाष ि् पुरूर्, िो यह एक ही युम्मि
समव ब्र ाਔ पर भी घवट्ि होगी िथा उसके प ाि् भी एक िैि ीकार करने का प्रयोजन होगा जो सिष ापी
िैि प्रकृवि के समग्र विकारों के प ाि् भाग में वि मान है उसे िेदा सब का वनय ा-ई र कहिा है “
(धमष वि৯ान, पृ -63)
इस प्रकार आ र अनुभूवि से हम पािे है वक एक ई र (आ ा) है , वजसकी उपम्म थवि में िीन
आयामी प्रकृवि अपने साि आयामों में मूि रूप से ि है और इसी के उ े क्रम से अ ि होिी है
बा अनुभूवि से ि भौविक वि৯ान के निीनिम आवि ार के आवि ारक महान िै৯ावनक एिम्
वब्रवट्र्श ब्र ाਔ िै৯ावनक ीफेन विवियम हावकंग (वज ें दू सरा आई ट्ाइन कहा जािा है ) के अनुसार-
” ैक होि (सिोৡ गुरू ाकर्षण की ब्र ाਔीय अवि सघन ि ु) के पी-ब्रे माडि में पी-ब्रेन थान
के िीन आयामों और अ साि आयामों में िििी है वजनके बारे में हमें कुछ पिा नहीं िििा यवद हम सभी बिों
के एकीकरण का एक सािषभौम समीकरण विकवसि करें िो हम ई र के मम्म को जान जायेगें क्योंवक हम
भवि के कायष का वनधाष रण कर सकेगें , और यह मनु के मम्म के ारा सिोৡ अवि ार होगी
(प्रो0 ीफेन हावकंग के भारि यात्रा पर रा र ीय सहारा समािार पत्र के 27 जनिरी ”2001 को प्रकावर्शि ”ह क्षेप”
अंक से)“
भौविक वि৯ान के ििषमान ब्र ाਔ ाূा के अनुसार ैक होि एक ि या ब्र ाਔ के अ का
प्रिीक है अथाष ि् िह एक ि ् र या ब्र ाਔ के प्रार का भी प्रिीक होगा इस प्रकार बा अनुभूवि से हम पािे है
वक एक वसंगुिाररट्ी (एकििा) है िथा िीन और साि आयाम है
उपरोि दोनों में एकीकरण करिे हुये दर्शषन र्शा के सािषजवनक प्रमावणि विकास/विनार्श दर्शषन के
अनुसार-सृव में, सृव का कारण मानक अथाष ि् आ ा अथाष ि् ैक होि से स गुण युि मागषदर्शषक दर्शषन
(Guider Philosophy) से प्रार होकर म्म थवि में रज गुण युि वक्रया यन दर्शष न (Operating Philosophy) से
होिे हुये प्रिय में िम गुण युि विकास/विनार्श दर्शषन (Destroyer / Development Philosophy) को ि
करिा है वजससे आदान-प्रदान (Transaction) ग्रामीण (Rural) आधुवनकिा/अनुकिनिा (Advancement /
Adaptability) विकास (Development), वर्शक्षा (Education) प्राकृविक स (Natural Truth) ि धमष
(Religion) या एक या के ि होिा है
एक वसंगुिाररट्ी (एकििा) आ ा है िथा िीन आयाम स , रज और िम है साि आयाम आदान-
प्रदान (Transaction), ग्रामीण (Rural), आधुवनकिा/अनुकिनिा (Advancement / Adaptability), विकास
(Development)], वर्शक्षा (Education), प्राकृविक स (Natural Truth) ि धमष (Religion) है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 261


कोई भी विकास दर्शषन अपने अ र पुराने सभी दर्शषनों को समावहि कर िेिा है अथाष ि् उसका विनार्श
कर दे िा है और यं मागषदर्शषक दर्शषन का थान िे िेिा है अथाष ि् सृव -म्म थवि-प्रिय वफर सृव िक्रीय रूप में
ऐसा सोिने िािा ही नये पररभार्ा में आम्म क और वसफष सीधी रे खा में सृव -म्म थवि-प्रिय सोिने िािा नाम्म क
कहिािा है
दोनों अनुभूवि (दर्शषन और भौविक वि৯ान) के ारा िक्रीय वक्रया बीज से िृक्ष के क्रम विकास िथा िृक्ष
से बीज के क्रम संकुिन के रूप में हैं दू सरें र्श ों में बीज से बीज या िृक्ष से िृक्ष िक्र है यवद ैक होि का
माडि बा अनुभूवि का स है िो वनव ि रूप से यह अ ा र अनुभूवि का भी प्रमाण होना िावहए, और यह
इसविए आ यषजनक है क्योंवक यह िा ि में एक समान है अथाष ि् आ ा र िथा बा दोनों अनुभूवियों में सृव
और प्रिय का मूि िीन और साि आयामों के रूप में है दोनों अनुभूवियों ब्र ाਔ की ाূा िथा उसके भवि
को वनव ि करने मे भी सक्षम हैं अथाष ि् दै वनक जीिन में उसकी कोई उपयोवगिा नहीं है िेवकन यह है वक
ई र (आ ा या एकििा) की उपम्म थवि को जानने के विए एक ही आयाम काफी है पर ु उसके वक्रयाकिाप या
ई र के मम्म को जानने के विए अवधकिम आयामों को एक साथ जानना आि क है न वक केिि एक
आयाम को इस प्रकार वनव ििा (वफসींग) का सािषभौम वस ा यह है वक-”अवधकिम आयामों के ৯ान से
भवि का वनधाष रण या अवधकिम आयामों के पररणाम के अनुसार कायष करना” अवधकिम आयामों को
आवि ृ ि करना िै৯ावनक (भौविक या दर्शषन) का कायष है िथा अवधकिम आयामों के पररणाम के अनुसार यं के
विकास के विए कायष करना मनु ों का कायष है
सां ূ दर्शषन के अनूसार-
”एक मनु अथिा कोई भी प्राणी वजस वनयम से गवठि है , समग्र वि ब्र ाਔ भी ठीक उसी वनयम से
विरविि है इसविए हमारा जैसे एक मन है , उसी प्रकार एक वि मन भी है “
(धमष वि৯ान, पृ -25)
दोनों स समूह (आ र और बा ) यवद एक समान है िब यह वनव ि है वक दै वनक जीिन के विए
उपयोगी स ूणष स , मानिीय स के अनुभूवि के साथ सम य में होगा क्योंवक वजस प्रकार एक मन है उसी
प्रकार एक वि मन है यही स ूणष स ब्र ाਔ िथा मनु जीिन के प्र ेक ि ु की ाূा करने में सक्षम
होगा क्योंवक बीज सभी र्शाखाओं, प ों, फूिों, फिों और अ में बीज को विकवसि करने में सक्षम होिा है यवद
सृव और प्रिय के माडि (भौविक वि৯ान और दर्शषन) में िीन और साि आयाम हैं िब ये वनव ि है वक स ूणष स
के मूि माडि में भी िीन और साि आयाम होंगे और यह आ यषजनक इसविए है वक यह ऐसा ही है इस प्रकार
यह वनव ि होिा है वक ई र का मम्म िीन और साि आयामों में कायष करिा है अथाष ि् इन आयामों को एक
साथ दे खने पर ही ई र के मम्म को िा विक व अथाष ि् वद व ारा दे खा जा सकिा है और ये आयाम
मनु के विवभ रूपों सवहि वि रीय भवि , वि रीय वक्रयाकिाप, वि रीय पररभार्ा, वि रीय वनमाष ण,
वि रीय प्रब , वि रीय विकास, वि रीय वर्शक्षा, वि रीय मानि संसाधन इ ावद को वनव ि (वफস)
करने में सक्षम होगा और यही अम्म म स ूणष क्राम्म िथा मानि मम्म के ारा मानि के विए सिोৡ िथा
अम्म म आवि ार होगा
मानि के विकास क्रम की वदर्शा से दे खने पर भी हम पािे है वक मनु पहिे कमष करना प्रार वकया
और कमष करिे करिे अ :-जगि की ओर से एक ৯ान का आवि ार वकया यही एक ৯ान स का बीज
अथाष ि् आ ा या पुरूर् या वसंगुिररट्ी (एकििा) है वफर बा जगि से कमष करिे करिे वस ा ों का आवि ार
करिे हुये ििषमान में सािषभौम वस ा अथाष ि् वस ा के बीज की ओर बढ़ रहा है और अ ि:-उसे सािषभौम
वस ा वििर्शिािर्श िावहए ही क्योंवक यही मनु की पूणषिा अथाष ि् िैव क मानि वनमाष ण का समीकरण होगा
अ ा र अनुभूवि बा अनुभूवि िथा मानि के विकास क्रम की वदर्शा के अिािा भारिीय समाज में
एक ऐसा क्षेत्र और है वजसपर सिाष वधक विंिन ि वकया जािा है िह है -वनगुषण या वनराकार िथा सगुण या
साकार ब्र इस स में ामी वििेकाननद जी कहिे हैं -

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 262


”हमारे र्शा ों मे परमा ा के दो रूप कहे गये है -सगुण और वनगुण सगुण ई र के अथष में
सिष ापी-संसार की सृव म्म थवि और प्रिय के किाष हैं संसार के अनावद जनक िथा जननी हैं उनके साथ हमारा
वन भेद है मुम्मि का अथष -उनके समीप और सािोक्य की प्राम्म है सगुण ब्र के ये सब विर्शेर्ण वनगुषण ब्र के
स में अनाि क और अयौम्मिक है इसविए ा৸ कर वदये गये िह वनगुषण और सिष ापी पुरूर् ৯ानिान्
नहीं कहा जा सकिा क्योंवक ৯ान मन का धमष है इस वनगुणष पुरूर् के साथ हमारा क्या स है ? स यह है
वक हम उससे अवभ हैं -िह और हम एक हैं हर एक मनु उसी वनगुषण पुरूर् का-जो सब प्रावणयों का मूि
कारण है , अिग अिग प्रकार्श है जब हम इस अन और वनगुषण पुरूर् से अपने को पृथक सोििे हैं िभी हमारे
दु ःख की उ व होिी है और इस अवनिष िनीय वनगुषण स ा के साथ अभेद ৯ान ही मुम्मि है संक्षेपिः-हम अपने
र्शा ों में ई र के इ ीं दोनों ”भािों“ का उ ेख दे खिे है यहाूँ यह कहना आि क है वक वनगुषण ब िाद ही सब
प्रकार के नीवि-वि৯ानों की नींि है “
(वह दु धमष, पृ -40-41)
”जैसा वक यह थूि र्शरीर थूि र्शम्मियों का आधार है , िैसे ही सूक्ष्म र्शरीर सू क्ष्म र्शम्मियों का आधार
है वज ें हम-वििार कहिे है यह वििार र्शम्मि विवभ रूपों में प्रकावर्शि हे ािी रहिी है इनमें कोई भेद नहीं है ,
केिि इिना ही है वक एक उसी ि ु का थूि और दू सरा सूक्ष्म रूप है इस सूक्ष्म र्शरीर और थूि र्शरीर में भी
कोई पाथषक्य नहीं है सूक्ष्म र्शरीर भी भौविक है , केिि इिना ही वक िह अ सूक्ष्म जड़ ि ु है “
(वह दु धमष, पृ -107)
ामी वििेकान जी के उपरोि ाূा से यह है वक प्र ेक मनु र्शरीर का एक वनराकार
या वनगुषण रूप है वज ें वििार कहिे है मनु का यही वनराकार या वनगुषण रूप जब स -वस ा होिा है िब िह
अििार िथा अििरण कहिािा है और उसे ई र के साकार या सगुण रूप में जाना जािा है अथाष ि् मनु ,
मनु जवनि वििारों का साकार रूप है िो अििार, सिष ापी अज ा वन -सािषभौम स -वस ा का साकार
रूप हैं मनु और अििार के र्शरीर िो मानि के ही होिे है पर ु मानि, वििार के अनुसार िथा अििार,
सािषभौम स -वस ा के अनुसार कायष करिे हैं केिि यही अ र है िूूँवक जगि की सब गवि िरं गाकार अथाष ि्
उ ान और पिन के रूप में होिी है इसविए जब जगि पिन अथाष ि् वििारों की अवधकिा के अधीन हो जािा है
िब उसे उ ान अथाष ि् सािषभौम स -वस ा की अवधकिा के अधीन करिे के विए ही युगाििार का अििरण
होिा है म्मिगि प्रमावणि पूणाष ििार िी कृ और उनका वनराकार वनगुषण रूप-गीिोपवनर्द् इसका उदाहरण
है जो स का पूणष ि म्मिगि प्रमावणि रूप है जबवक सािषजवनक प्रमावणि पूणाष ििार और उसका
वनराकार रूप सािषभौम स -वस ा का पूणष ि सािषजवनक प्रिावणि रूप का ि होना अगिा िरण है
इस प्रकार प्र े क वदर्शाओं-आ र (दर्शषन), बा (भौविक वि৯ान), मानि विकास क्रम, सगुण ब्र
(अििार) िथा वनगुषण ब (सािषभौम स -वस ा ) की ओर से हम यही पािे है वक ई र का मम्म सािषभौम
वस ा से युि िीन और साि आयामों में ही वक्रयार्शीि है जो अगिा और अम्म म िरण है
ामी वििेकान जी इसी स ूणष िा विक सािषभौम स -वस ा की ओर के ीि करिे हुये कहे
है -
”अ में दे र्श-काि ब ৯ान का महावमिन उस ৯ान से होगा जो इन दोनों से परे है , जो मन िथा
इम्म यों के पहुूँ ि से परे है , जो वनरपेक्ष है , अव िीय है “
(वि৯ान और आ वमकिा, रामकृ वमर्शन, पृ -36)
इस प्रकार हम यह भी पािे है वक वकसी एक महापुरूर् या अंर्शअििार के वििार या स से समाज
या दे र्श या वि का क ाण अस ि है इसके विए सभी के सम यक वस ा और पूिाष ििार की आि किा
होगी, वजसमें सभी हो और सब में सािषभौम स -वस ा का अंर्श हो
अब क ना करें ऐसे साकार मानि र्शरीर की जो सािषभौम स -वस ा सवहि सभी आयामों का
अवि ारकिाष और उससे युि हो, िो उसकी र्शम्मि क्या होगी? उसकी र्शम्मि प्र ेक विर्य पर वि रीय

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 263


ाূा, वि रीय सावह , वि रीय योजना और उसकी थापना के विए वि रीय नीवि सवहि सभी आयामों
एिम् उसकी अन र्शाखाओं ारा एक साथ समाना र कायष होगी उसके ि करने की र्शैिी मूि जड़ (बीज)
से र्शाखाओं की ओर होगी िथा उसका स े र्श होगा-”िुम अपने रूप को उसमें दे खों, िु म उस जड़ (बीज) अथाष ि्
सािषभौम स -वस ा को समझो वफर िु ें कुछ भी समझने की जरूरि न रहे गी, वफर िुम यं सम र्शाखाओं
के ाূािा, सावह कार, योजनाकार इ ावद बन जाओगे ” िह अपने आपको वकसी विर्शेर् क्षेत्र में ब नहीं
करे गा क्योंवक उसके पास असीम कायष क्षेत्र और ि होने के विए असीम वि रीय विर्य क्षेत्र होंगे वजस पर िह
सामाना र कायष करे गा उस असीम मनु का विजय िो उसी वदन हो गया होगा वजस वदन िह सावह ों ि
योजनाओं में ि हो गया होगा, जो मानि समाज के विवभ क्षेत्रों से मनु ों को प्राथवमकिा से िाभ उठाने के
विए ि होगा, जो क ाण के स अथष का मागष होगा फि रूप इ ें आ साि् करने के उपरा ही मनु
अपने स रूप में थावपि हो कह सकेगा-”सिष ापी हम इिने असीम है वक यह समग्र ब्र ाਔ भी मेरा अंर्श
मात्र है ” िब प्र े क मनु ब्र ाਔ के प्र ेक ि ु को अपने र्शरीर का अंग समझ उसके प्रभािों से ि- ू िष
िेिना से युि रहे गा और जब िक ऐसा नहीं होिा िब िक सभी जागरण, सभी िादे , सभी आ ोिन, प्रे रणा से
युि न हो सकेंगे और न ही क ाण या ि था पररििषन या क्राम्म या आवथषक ि िा का दािा थावपि हो
स ाथष हो सकेगा
ामी वििेकान जी ने कहा है -
”सुधारको से मैं कहूँ गा वक मैं यं उनसे कहीं बढ़कर सुधारक हूँ िे िोग ईधर-उधर थोड़ा सुधार
करना िाहिे है -और मैं िाहिा हूँ आमूि सुधार हम िोगों का मिभेद है केिि सुधार प्रणािी में उनकी प्रणािी
विनार्शा क है और मेरी संघट्ना क मैं सुधार में वि ास नहीं करिा मैं वि ास करिा हूँ ाभाविक उ वि में ”
(मेरी समर नीवि, पृ -13)
सामा मानि अपने विर्य क्षेत्र से मूि जड़ (बीज) की ओर दे खिे हैं अथाष ि् िे एक आयाम (वदर्शा) की
व रखिे हैं इसविए उस असीम मानि को अपनी वदर्शा से सीवमि कर दे खेंगे और अपनी वदर्शा से सावह कार,
दार्शषवनक, राजनीवि৯, धावमषक इ ावद विर्शेर्ण वनधाष ररि कर दें गे जो स िो होगा पर ु उस असीम मानि के विए
अंर्श मात्र होगा ऐसे में िे अपने विर्य क्षेत्र से अपूणष व रखिे हुये उस असीम मानि को अपने पद के विए खिरे
का अनुभि करें गे फि रूप उसी व के कारण संघर्ष करें गे वजसे िे अपने विए खिरा या अनुपयोगी समझेंगे
जबवक र्शारीररक ि िा के विए आवथषक, आवथषक ि िा के विए आ ाम्म क ि िा का विकासो ुख
और्वध युि िक्र म्मि िथा दे र्श के विए हमेर्शा प्रभािी होिा है
समाज को यह सोिना होगा वक उस असीम मनु को िह क्या नाम दे गा? जो सािषभौम स -वस ा
सवहि सभी आयामों से युि ाূािा और उसका थापक होगा ৯ानीयों ि बुम्म जीवियों को ”कािजयी सावह ”
ि ”जीिन सावह ” में अ र, ”प्रासंवगक वििार” ि ”स वििार” में अ र, ”मानक जीिन” ि ”दपषण जीिन” में
अ र इ ावद पर सोिना होगा और िे समािार पत्रों के संपादकगण जो यह समझिे है वक उ ें जो समझ में आये
वसफष िही समािार है क्या नाम दें गे? उ ें यह ीकार करना िावहए वक िे ৯ानी हैं पर ु ानी अथाषि् सिष৯
नहीं उ ें यह समझना िावहए वक आ ৯ पुरूर्ों की व सािषदेर्शीय िथा अना ৯ पुरूर्ों की व एकदे र्शीय
होिी है दै वनक जीिन में ई र के मम्म की सािषजवनक प्रमावणि खोज का सबसे बड़ा िाभ यही होगा वक
मनु में स व का प्रकार्श होगा अथाष ि् ”उपयोवगिा को दे खना मूि व , एक आयाम से दे खना सां साररक व ,
अनेक आयामों को एक साथ दे खना वद व िथा वसफष वि िा को दे खना व दोर् है ” में थावपि मनु होंगे िब
मनु अपने क ाण के मागष को पहिानने में िेिना से युि हो सकेगा क्योंवक अवधकिम म्मि इस सािषभौम
वस ा से अनवभ৯ है वक-”विवभ प्रकार के के ीयकृि कायष के संयोग से एक पररणाम उ होिा है न वक एक
कायष से ”
मेरा स ूणष कायष उसी असीम मानि का कायष है िथा ि सावह और योजना स -वस ा सवहि
सभी आयामों पर वनव ि है जो मनु को वि रीय रूप में ि करने के विए वनव ि है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 264


प्रो0 हावकंग के अनुसार-”सूिना कभी भी मु में नहीं ढोई जािी, इसका एहसास हर वकसी को उस
िि होिा है जब उसके घर ट्े िीफोन वबि आिा है ”
अथाष ि् वकसी कायष के प्रार में जुड़ने िािे म्मि सूिना ि योजना का िाभ वजिना स ावनि ि
सरििा से पािे हैं , ठीक उिना ही कवठनिा से कायष पूणष होने के बाद प्रा होिा है क्योंवक प्रार में वनः ाथष बाद
में ाथष का रूप होिा है ”वफসींग” अथाष ि् ”वनव ििा” का आ ाम्म क अथष स िेिना अथाष ि् ”भूिकाि
का अनुभि और भवि की आि किा के अनुसार ििषमान में कायष करना है ” और मेरा कायष सािषभौम वस ा
पर आधाररि ”वफস” है इसविए मेरी िुनौविपूणष घोर्णा है -”बढ़ो समाज के क ाण करने िािो बढ़ोगे िो हमें ही
पाओंगे, न बढ़ोगे िो जनिा से िु ारा वि ास उठे गा और मेरा बढेा़ गा मैं िक्रा हूँ वकसी भी और से आओंगे मैं ही
वमिूगाूँ ”
मनु र्शरीर, प्रकृवि के अ एकीकृि सािषभौम स -वस ा को प्रकृवि के एकीकृि
सािषभौम स -वस ा में पररिविषि करने का मा म मात्र है मनु एक िंत्र इकाई नहीं बम्म एक
ाय र्शासी र्शरीर (अ ः िक्र) है जो प्रकृवि (बा अम्म म िक्र) के विए समवपषि है क्योंवक अ िः उसका र्शरीर
ि वििार, प्राकृविक बि ि वस ा ारा आसानी से हार जािा है
मनु का र्शरीर इसी प्रकृवि के पदाथो से वनवमषि है इसविए प्रकृवि के प्र ेक ि ु से िह प्रभाविि
होिा है और उसके रोग ग्र होने पर सभी उपाय इसी प्रकृवि के ि ुओं में ही उपि है प्र ेक ि ु में और्वध
है इसविए और्वध के आवि ार को मैं अवधक मह नहीं दे िा क्योंवक मैं जानिा हूँ वक ी हो या पुरूर् सभी को
सािषभौम आ ा से जुड़कर हृदय और बुम्म के िि पर ही जीना िावहए र्शरीर और आि किा के िि पर जीने
से भोग ही होिा है , समभोग नहीं सािषभौम आ ा से जुड़कर हृदय और बुम्म के िि पर जीने से र्शरीर की
थिा और दीघाष यु भी प्रा होिी है प्रकृवि से वजिना दू र भागेंगे, उिना ही और्वध की जरूरि आयेगी
प्राकृविक रहें - थ रहें वह दू धमष र्शा ों में सृव के प्रार के स में कहा गया है वक- ”ई र ने इৢा ि
की वक मैं एक हूँ , अनेक हो जाऊूँ” इस प्रकार जब िही ई र सभी में है िब वनव ि रूप से जब िक सभी मानि
ई र नहीं हो जािे िब िक दु वनया के अ होने का कोई प्र ही नहीं उठिा और विकास क्रम िििा रहे गा मानि,
ई र वनवमषि उसका प्रविरूप है इसविए मनु का िশ ”पािर और प्रावफट् (र्शम्मि और धन िाभ)” नहीं, बम्म
मम्म का सिोৡ विकास है
मेरी व में वि৯ान ने मनु जीिन में सबसे बड़ा आवि ार ”माइक्रोप्रोसेसर” का वकया है क्योंवक
िह मनु के मम्म का प्रविरूप है इस मम्म रूपी ”माइक्रोप्रोसेसर” में अंग जोड़े जािे हैं वजससे िह
क ूट्र या रोबोट् (मर्शीनी मनु ) बनिा है क ूट्र भी जब रोग ग्र होिा है िो िह भी उ ीं ि ु से और्वध
पािा है वजससे िह बना है मनु भी एक प्रणािी है और क ूट्र भी एक प्रणािी है वजस प्रकार मनु के र्शरीर
में अंग जोड़ दे ने से िह काम करना र्शुरू नहीं करिा उसी प्रकार क ूट्र में मानीट्र, वप्रंट्र, ै नर इ ावद जोड़
दे ने से िह काम नहीं करिा मनु र्शरीर में यह िम्म का ि (Nurvous System) है िो क ूट्र में यह िािक
सा िेयर (Driver Software) हैं वजसे आपने अपनी पु क वबजनेस @ द ीड आफ थाट् (Business @ the
speed of thought-1999) में (Digital Nurvous System) नाम वदया है मनु वजससे िििा है िह भी
सा िेयर (Software) ही है वजसे वििार-वा़स ा कहिे हैं सा िेयर भी नहीं वदखिा और वििार-वा़स ा भी
नहीं वदखिे
मनु वनवमषि हाडष िेयर ”माइक्रोप्रोसेसर” युि क ूट्र को आपरे वट्ं ग मोड में िाने के विए उसमें दो
प्रकार के मेमोरी हैं , एक रीड ओनिी मेमोरी (Read Only Memory-ROM) वजसकी उपयोवगिा है केिि पढ़ने के
विए ये ”माइक्रोप्रोसेसर” वनमाष िा ारा पहिे से ही ”माइक्रोप्रोसेसर” में ही होिा है दू सरा रै ਔम एসेस मेमोरी
(Random Access Memory-RAM) वजसकी उपयोवगिा है कहीं से पढ़ने और विखने के विए ये आपरे वट्ं ग
वस म (Operating System) अथाष ि पररिािन प्रणािी, सा िेयर वनमाष िा ारा वदया जािा है क ूट्र जब
आन वकया जािा है िब पहिे RAM के सा िेयर के अनुसार यं को िैयार करिा है वफर ROM से आपरे वट्ं ग

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 265


वस म (Operating System) अथाष ि पररिािन प्रणािी के अनुसार यं को िैयार कर िह काम करने के विए
िैयार हो जािा है ये आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) कई प्रकार के हैं वजसमें अवधक प्रयोग वकया जाने
िािा एक आपका (Micro Soft) आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) है जो पहिे वड आपरे वट्ं ग वस म
(Disk Operating System) के रूप में आया वफर Windows के रूप में सामने है इन आपरे वट्ं ग वस म
(Operating System) के कई सं रण (Version) आपकी ओर से आये प्र ेक बार अवधक सुविधाओं और
अवधक क ूट्र अंगों के जोड़ने के विए वडवजट्ि िम्म का ि (Digital Nurvous System) सवहि कायष को
आसान बनाने की सुविधा के साथ आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) कई आये िेवकन जो अवधक
सुविधाजनक, ािहाररक और अवधक क ूट्रों िक पहुूँ ि बना सकी, उसमें से एक Windows Operating
System, वजसका Windows-10 सं रण (Version) अभी िक का ििषमान है
ई र वनवमषि हाडष िेयर ”मम्म ” युि मनु को आपरे वट्ं ग मोड में िाने के विए उसमें भी दो प्रकार
के मेमोरी हैं , एक रीड ओनिी मेमोरी (Read Only Memory-ROM) वजसकी उपयोवगिा है केिि पढ़ने के विए
ये ”मम्म ” वनमाष िा ारा पहिे से ही ”मम्म ” में ही होिा है दू सरा रै ਔम एসेस मेमोरी (Random Access
Memory-RAM) वजसकी उपयोवगिा है कहीं से पढ़ने और विखने के विए ये आपरे वट्ं ग वस म (Operating
System) अथाष ि पररिािन प्रणािी, वििार-वा़स ा वनमाष िा (अििार, संि, गुरू, मािा-वपिा, वमत्र, सहयोगी, दि,
संगठन इ ावद) ारा वदया जािा है मनु जब सोये से जागिा है िब पहिे RAM के सा िेयर के अनुसार यं
को िैयार करिा है वफर ROM से आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) अथाष ि पररिािन प्रणािी जैसा उसके
मम्म में डािा गया है , के अनुसार यं को िैयार कर िह काम करने के विए िैयार हो जािा है ये आपरे वट्ं ग
वस म (Operating System) कई प्रकार के हैं वजसमें अवधक प्रयोग वकया जाने िािा ”पािर और प्रावफट् (र्शम्मि
और धन िाभ)” िािा वििार-वस ा है
वजस प्रकार वडवजट्ि िम्म का ि (Digital Nurvous System) से सभी क ूट्र प्रणािी कायषर्शीि
हैं और इ रनेट् से क ूट्र-मोबाइि जुड़े हुये हैं उसी प्रकार वििार-वा़स ा से सभी मनु जुड़े हुए हैं दानों ही
प्रकार में बहुि से िोग इस ৯ान से युि होकर संिािन कर रहें हैं या संिाविि हैं और बहुि से िोग वबना ৯ान के
केिि संिािन कर रहें हैं या संिाविि हैं
वजस प्रकार क ूट्र के संिािन के विए आपरे वट्ं ग वस म के कई सं रण (Version) आये , उसी
प्रकार मनु के संिािन के विए आपरे वट्ं ग वस म के कई सं रण (Version) आये वजस प्रकार क ूट्र के
संिािन के विए आपरे वट्ं ग वस म के कई सं रण (Version) आने का कारण उसे अवधक पूणष बनाना था उसी
प्रकार मनु के संिािन के विए आपरे वट्ं ग वस म के कई सं रण (Version) आने का कारण उसे अवधक पूणष
बनाना था बस दोनों में अ र यह है वक क ूट्र के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म सं रण (Version)
आने पर िोग अपने क ूट्र को आधुवनक/अनुकूि (Advance/Adapt) करने में कोई संकोि नहीं करिे िहीं
मनु के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म सं रण (Version) आने पर िोग अपने मम्म को
आधुवनक/अनुकूि (Advance/Adapt) नहीं बनािे बम्म जो वजस आपरे वट्ं ग वस म में उसके वनमाष िा ारा
फूँसाया गया है िो िहीं पड़ा है और िो िहीं हैं इस उ ीद में वक िह पूरी िरह, पूरी सुविधाओं के साथ काम करे गा
और उसके अनुसार पररणाम दे गा
मनु को अवधक पूणष बनाने और संिािन के विए अििार ारा आये मुূ आपरे वट्ं ग वस म
(Avatar’s Operating System- AOS) सं रण (Version) इस प्रकार हैं -
मानि-1 (AOS : Human-1)
मुূ-गुण वस ा - इसमें धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने का वििार-वस ा मानि
मम्म में डािा गया
मानि-2 (AOS : Human-2)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 266


मुূ-गुण वस ा - इसमें सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि, दोनों पक्षों के बीि म थ की
भूवमका िािा गुण (सम य का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-3 (AOS : Human-3)
मुূ-गुण वस ा - इसमें सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि , सवक्रय,
र्शाकाहारी, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण (प्रेरणा का
वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-4 (AOS : Human-4)
मुূ-गुण वस ा - प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के विए ररि
कायषिाही का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-5 (AOS : Human-5)
मुূ-गुण वस ा - भवि ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूवम पर गणरा৸ ि था
की थापना ि ि था को वजविि करना, उसके सुख से प्रजा को पररविि कराने िािे गुण (समाज का वस ा )
का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-6 (AOS : Human-6)
मुূ-गुण वस ा - गणरा৸ ि था को ब्र ाਔ में ा ि था वस ा ों को आधार बनाने िािे
गुण और ि था के प्रसार के विए यो৓ म्मि को वनयुि करने िािे गुण (िोकि का वस ा और उसके
प्रसार के विए यो৓ उ रावधकारी वनयुि करने का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-7 (AOS : Human-7)
मुূ-गुण वस ा - आदर्शष िररत्र के गुण के साथ प्रसार करने िािा गुण ( म्मिगि आदर्शष िररत्र के
आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-8 (AOS : Human-8)
मुূ-गुण वस ा - आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मि-मिा र ि
वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे गुण (सामावजक आदर्शष म्मि
का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण का वस ा ) का वििार-वस ा मानि
मम्म में डािा गया
मानि-9 (AOS : Human-9)
मुূ-गुण वस ा - प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष , संघ और बुम्म के र्शरण में जाने का गुण (धमष,
संघ और बुम्म का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
मानि-10 (AOS : Human-10)
मुূ-गुण वस ा - आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक िैव क म्मि
िररत्र अथाष ि सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का वििार-वस ा मानि मम्म में
डािने का मानि-10 (AOS : Human-10) सं रण (Version) अभी िक का ििषमान है और िो अम्म म
सं रण भी है
उपरोि मुূ मूि सं रण के उपरा अनेक अ मनु ों (संि, गुरू, मािा-वपिा, वमत्र, सहयोगी,
दि, संगठन इ ावद) ारा मनु के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म सं रण आिे गये और मनु उससे
संिाविि होिे गये पर ु उ ें पिा ही नहीं िि पा रहा वक कौन सा सं रण उनके विए उपयोगी है
जैसे आपके आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) में अनके सुविधाएूँ हैं उसी प्रकार मानि-10
(AOS : Human-10) सं रण में भी अनेक सुविधाएूँ जै से - काट्ना (Cut), विपकाना (Paste), नकि बनाना
(Copy), र करना (Delete), सुधारना (Edit), नाम बदिना (Rename), रिना करना (Create), भेजना (Send),
पढ़ना (Read), विखना (Write), िाइरस (Virus), ए਒ी-िाइरस (Anti-Virus) इ ावद हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 267


वजस प्रकार एक रोबोट्, िैसे ही रोबोट् का वनमाष ण कर सकिा है जैसा वक उसमें सा िेयर डािा गया
है उसी प्रकार एक मनु , मनु , िैसे ही मनु का वनमाष ण कर सकिा है जैसा वक उसमें सा िेयर (वििार-
वस ा ) डािा गया है
कुछ भी हो सा िेयर में वजिनी अवधक सुविधा, उिना ही िह पररणाम दे ने में सक्षम सब कुछ
”माइक्रोप्रोसेसर/मम्म ” के सा िेयर पर ही वनभषर होिा है और सा िेयर उिना ही उৡ र का बन सकिा
है वजिना वििार का वि ार होिा है वजिना वििार का वि ार होिा है िह उिना ही ापाररक िाभ दे सकिा है
वजसके जीि उदाहरण आप हैं
मनु के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म मानि-10 (AOS : Human-10) सं रण ही
”वि र्शा ”है आपके आपरे वट्ं ग वस म सा िेयर से क ूट्र िििा है मेरे आपरे वट्ं ग वस म मानि-10
(AOS : Human-10) सं रण से मनु और उसके संगठन ििेंगे यही योजना है
मानि-10 (AOS : Human-10) आपरे वट्ं ग वस म वन विम्मखि से युि है जो वि र्शाम्म का अम्म म मागष

भी है -
3- िैव क मानि वनमाष ण िकनीकी- WCM-TLM-SHYAM.C प्रणािी
S - SATYA ( स )
H- HEART ( हृदय )
Y- YOG ( योग )
A - ASHRAM ( आिम )
M - MEDITATION ( ान )
. - DOT ( वब दु या डाट् या दर्शमिि या पूणषविराम )
C - CONCIOUSNESS ( िेिना )
4- आदर्शष िैव क मानि/जन/गण/िोक/ /मैं /आ ा/ि का स रूप
3- वि मानक-र्शू (WS-0) : मन की गुणि ा का वि मानक िृखंिा
1. ड ू.एस. (WS)-0 : वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-00 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक

4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानि (सूक्ष्म िथा थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक


5. ड ू.एस. (WS)-00000: उपासना और उपासना थि का वि मानक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 268


वि का मूल म -
“जर् जिान-जर् वकसान-जर् वि৯ान-जर् ৯ान-जर् कमण৯ान“
प्रगविर्शीि मानि समाज में मानि का विकास जैसे-जैसे होिा गया उसके पररणाम रूप विवभ
सामावजक-असामावजक विर्य क्षेत्रों का भी विकास होिा गया समाज में प्र ेक विर्य क्षेत्रों की एक मह पूणष
भूवमका है वजसमें वकसी भी क्षेत्र को पूणष रूप में मह हीन नहीं कह सकिे न ही पूणष रूप से मह पू णष कह
सकिे है क्योंवक क्षेत्र कोई भी हो मानि की अपनी व ही उसके उपयोग और दु रूपयोग से उस क्षेत्र को
मह हीन, मह पूणष या सामावजक-असामावजक रूप में वनधाष रण करिी है इसविए मानि की व जब िक विर्य
क्षेत्र के गुण, अथष, उपयोवगिा और दु रूपयोवगिा के ৯ान पर के ीि नहीं होगी िब िक वकसी भी क्षेत्र को वनव ि
रूप से पू णष-मह पूणष वनधाष रण कर पाना अस ि है यहाूँ यह कहा जा रहा है वक िा विर्य क्षेत्र िाहे कोई भी
हो िह मूिि: मानि ारा ही संिाविि, आवि ृ ि, वनयवमि और थावपि की जािी है इसविए मानि का ৯ान और
कमष৯ान ही प्र ेक विर्य क्षे त्र की उपयोवगिा और दु रूपयोवगिा का वनधाष रण करिा है
प्र ेक विर्य का विकास सिि होिा रहिा है आज हम जो कुछ भी उ ाद ािहार में दे खिे है िह
और यहाूँ िक वक मानि का वनमाष ण भी एक ि े प्रवक्रया, सुधार, परीक्षण, रखरखाि इ ावद का ही पररणाम है
सिि विकास के पररणाम रूप ही िह अपनी पू णषिा और अम्म म रूप को प्रा होिा है भारि के विकास का
मूि म भी विकास की प्रवक्रया को पार करिे हुऐ अपने पूणष और अम्म म रूप में ि हो िुका है भारि के
पूणष मूिम के रूप का बीज भूिपूिष प्रधानम ी 0 िाि बहादु र र्शा ी ने “जय जिान-जय वकसान“ का
नारा दे कर वकये यह बीज समयानुसार भारि की मूि आि किा थी, जो आज भी है और आगे भी रहे गी यहाूँ से
भारि के मूिम के रूप का विकास प्रार होिा है मई 1998 में परमाणु बम परीक्षण के उपरा प्रधानमं ी
िी अट्ि वबहारी बाजपे यी ने इस मूिमं के रूप के विकास क्रम में “जय वि৯ान“ जोड़कर मूिम के रूप
को “जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान“ के रूप में प्र ुि वकये जो समयानुसार आज की आि किा है जो
आगे भी रहे गी
“जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान“ िक ही भारि के मूिम का पूणष विकवसि अथाष ि् अम्म म
रूप नहीं है क्योंवक जिान-वकसान-वि৯ान िीनों थान पर मानि ही बैठा है इसविए मूिम के रूप में जब
िक मानि के वनमाष ण का सूत्र नहीं होगा िब िक मूिम का रूप भी पूणष नहीं हो सकिा इसी कमी को पूणष
कर पूणषिा प्रदान करने के विए “वि -ब ु “,“िसुधैि-कुट्ु कम् ”, “बहुजन वहिाय-बहुजन सुखाय“,“एका
मानििािाद“ की थापना के विए एका कमषिाद आधाररि सािषभौम स -वस ा (धमषयुि नाम-कमषिेद-प्रथम,
अम्म म िथा पंिमिेदीय िृं खिा अथाष ि् धमषवनरपेक्ष -सिषधमषस ाि नाम-वि मानक-र्शू िृंखिा-मन की गुणििा
का वि मानक) का आवि ार कर “जय ৯ान-जय कमष৯ान“ को जोड़कर भारि के मूिम को पूणष और अम्म म
रूप-“जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“ को ि वकया गया है जो समयानुसार
आज की आि किा है जो आगे भी रहे गी िूूँवक भारि का सिोৡ और अम्म म ापक रूप ही वि है अथाष ि्
भारि ही वि है और वि ही भारि है इसविए यह मूिम भारि का ही नहीं स ूणष वि का अम्म म मूिम
है
“৯ान“ वजससे हम अपने वििारों को एकिा-समभाि-ब ु -धैयष रूप में प्र ुि करने में सक्षम होिे
हैं जैसा वक मई 1998 में भारि ने परमाणु बम परीक्षण के उपरा उठे वि ापी वििाद को समा करने के
विए “৯ान“ का प्रयोग कर अपने वििारों की समभाि रूप में वि में समक्ष रखने में सफि हुआ “कमष৯ान“
वजससे हम समभाि में म्म थि हो कमष करिे है अथाष ि् ई र भाि से उपि सं साधनों पर आधाररि हो कमष करिे
हैं “৯ान“ से हम वसफष एकिा-समभाि-ब ु -धैयष की भार्ा बोि सकिे हैं जबवक “कमष৯ान“ से कायष करिे हुए
एकिा-समभाि-ब ु -धैयष की भार्ा बोि सकिे है “৯ान“ यथािि् म्म थवि बनाये रखिे हुए र्शाम्म का प्रिीक है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 269


िो “कमष৯ान“ विकास करिे हुये र्शाम्म बनाये रखने का प्रिीक है ৯ानाि था में कमष प्राकृविक िेिना अथाष ि्
र्शु रूप से ििषमान म्म थवि में प्राथवमकिा से कमष करना, के अ गषि होिा है जबवक कमष৯ानाि था में कमष
प्राकृविक िेिना समावहि स िेिना अथाष ि् भूिकाि का अनुभि, भवि की आि किा के साथ प्राथवमकिा के
साथ ििषमान में कायष करना, के अ गषि होिा है ििषमान और भवि की आि किाओं को दे खिे हुऐ मात्र
“৯ान“ से ही अब विकास स ि नहीं है क्योंवक यह अि था “नीविविहीन“ अि था है अब “नीवियुि“ अि था
कमष৯ानाि था की आि किा है वजसके अभाि के कारण ही संसाधनों के होिे हुये भी बेरोजगारी, अपराधों का
विकास, विखਔन इ ावद विनार्शक म्म थवि उ हो रही है इस कमष৯ान का आवि ार स ूणष वि के
मानिजावि के विए महानिम उपिम्म हैं

वि मानक-शू श्ृिंखला
(वनमाणर् का आ ान्त क ूटरान बम)
जैसे-जैसे मानि जावि का सम्रा৸ इस पृ ी पर बढ़िा जा रहा है िैसे -िैसे ही िह विवभ सम ाओं से
भी वघरिा जा रहा है सम ायें भी विवभ प्रकार की है वज ें मूिि-दो भागों में बाूँ ट्ा जा सकिा है या यूूँ कहें वक
इन दो सम ाओं से अिग कोई और सम ा है ही नहीं प्रथम ी या म्मिगि सम ा िथा व िीय समव या
सामावजक या सािषजवनक या संयुि सम ा प्रथम प्रकार की सम ा का मूि कारण यं म्मि या और व िीय
प्रकार की सम ा होिी है जबवक व िीय प्रकार की सम ा का मूि कारण म्मि ही होिा है क्योंवक समव नाम
का कोई म्मि नहीं होिा िह म्मि का समूह ही होिा है अथाष ि् म्मि ही समव सम ा को ज दे िा है
उसके उपरा ही समव सम ा, के रूप में पु न- म्मि को प्रभाविि करिी है
उपरोि दोनों सम ाओं के समाधान के विए दो रा े हैं प्रथम म्मि को स से जोड़ा जाय िब
समव ि-स से जुड़ जायेगा दू सरा यह है वक समव को स से जोड़ा जाय िो म्मि ंय स से जुड़
जायेगा यहाूँ आि क है वक स और वििार अथाष ि् दर्शषन को रूप से समझ विया जाय वििार कई हो
सकिे हैं स एक होिा है वििार म्मि होिा है स समव होिा है वििार को कायष में बदिने के बाद स का
ज होिा है वििार छोट्ा िक्र है , स एक बड़ा, सिोৡ और अम्म म िक्र है वििारों का अ , स है वििार
म्मिगि स है जबवक स सािष जवनक स है अथाष ि् स ू णष या वि या अ राष र ीय अथाष ि् समव मानक है
और जो मानक है िह वििार या म्मिगि वििार कभी भी नहीं हो सकिा सािषजवनक स , वििारों को प्रविब
करने िािी िोकि प्रणािी की िरम विकवसि अि था है इसविए थ िोकि की प्राम्म के विए प्रथम िथा
सािषजवनक स , ि करना पड़े गा वफर ि थाओं को उसके अनुसार थावपि करना पड़े गा वििार को दे र्श -
काि-ब है जबवक स दे र्श-काि मुि है
व हो या समव दोनों को कमष करना पड़िा है कमष की प्रणािी भी दो ही प्रकार की होिी है
प्रथम-पहिे कमष वफर ৯ान, व िीय-पहिे ৯ान वफर कमष प्रथम कायष प्रणािी में सम ायें अवधक उ होिी है
व िीय प्रकार के कायषप्रणािी में सम ायें कम उ होिी हैं ििषमान िोकि प्रणािी में कमष पहिे हो रहा है
৯ान बाद में प्रा हो रहा है इसविए ही वनयम कानून िो बनिे हैं पर ु उनका दू रगामी प्रभाि र्शू ही प्रा होिा
है अभी िक यह वकया जा रहा था वक स और वििार क्या है ? और कायष प्रणािी के मागष क्या है ?
अब हम पुन: सम ाओं के समाधान के रा ों पर आिे हैं सम ायें कभी भी पूणषि: समा नहीं
होिी वसफष उनको कम करने का प्रयास होिा है मानि सदा से अपने कमों का अवधकिम उपयोग और पररणाम
प्रा करने का प्रय वकया है वजसके पररणाम रूप ििषमान का ि रूप है सम ाओं के समाधान के रा ों
में प्रथम रा ा कवठन और ििषमान समय में प्रभािहीन है क्योंवक म्मि को स से जोड़ने के दो मागष हैं प्रथम
म्मि ही म्मि को स से जोड़े ऐसे में म्मि के ज दर और म्मि को स से जोड़ने िािों की ज दर में

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 270


इिना अवधक अ र है वक उसकी म्म थवि साइवकि सिार ारा राजधानी एসप्रेस को पीछे छोड़ने का प्रय है
और स ৯ान का भी अभाि है वजसके पररणाम रूप विवभ जन जागरण कायषक्रम भी असफििा को प्रा
कर अनुपयोगी प्रिीि हो रहे है व िीय-समव ही म्मि को स से जोड़े दू सरे रूप में सम ाओं के समाधान के
रा ों में यही व िीय मागष ही अथाष ि् समव को स से जोड़ने का रा ा है वजससे म्मि को स से जोड़ने का
कायष भी पूणष हो जािा है यह मागष प्रभािकारी, आसान और अम्म म इसविए है वक वर्शक्षा का विकास वजस िेजी से
हो रहा है और प्र ेक के विए वर्शक्षा आि क बनिी जा रही है उसी िेजी से इस मा म से म्मि का ज के
साथ सीधा स भी है इस मा म से स वर्शक्षा ारा म्मि को स से जोड़ने की गवि भी ज दर के समान
होगी मात्र यही मागष, थ िोकि , थ समाज, नै विक उ ान, वि र्शाम्म , एकिा, वि म्म थरिा, वि विकास
सवहि र्शम्मि का वि विकास के प्रवि उपयोवगिा का अम्म म मागष है
स ूणष ब्र ाਔ को प्रभाविि करने िािी िीन र्शम्मियाूँ या िक्र या मागष है प्रथम-सिोৡ और अम्म म-
प्राकृविक या आ ीय या स -धमष-৯ान िक्र, व िीय- व िक्र, िृिीय-समव िक्र प्रथम िक्र को ही एकिा िक्र
कहिे हैं वजसका प्रा০, पा ा , रा৸, समाज, धमष, धमषवनरपेक्ष, सिषधमसमभाि, स दाय इ ावद के समषथकों में
कोई भी इसे अ ीकार नहीं कर सकिा अ था िह ब ाਔ विरोधी वस हो जायेगा व िीय एिम् िृिीय िक्र
वि৯ान आधाररि िक्र है व िीय िक्र- व िक्र की सिोৡ, प्रथम एिम् अम्म म म्म थवि म्मिगि प्रमावणि अ
वि৯ान-आ ा वि৯ान आधाररि है वजसके अ गषि विवभ मि, दर्शषन, वििार समावहि है और आधाररि विवभ
स दाय, दि, संगठन इ ावद संिाविि हो रहे हैं यही व धमष भी है इस िक्र की उपयोवगिा मात्र व मन
को स ुिन, म्म थरिा और र्शाम्म प्रदान करिा है िूंवक यह म्मिगि प्रमावणि होिा है इसविए इनके विवभ छोट्े
छोट्े िक्रों के समथषकों में वििाद भी होिे हैं िृिीय िक्र-समव िक्र की सिोৡ, प्रथम एिम् अम्म म म्म थवि
सािषजवनक प्रमावणि वि৯ान-पदाथष वि৯ान आधाररि है वजसके अ गषि पदावथषक स समावहि है और
आधाररि भौविक समाज सं िाविि हो रहें हैं इस िक्र की उपयोवगिा मात्र व एिम् समव को संसाधन उपि
कराना हैं और बा केम्म ि व मन को र्शाम्म , म्म थरिा और स ुिन प्रदान करना है िूंवक यह सािषजवनक
प्रमावणि होिा है इसविए इसमें वििाद का कोई भी रा ा नहीं है म्मिगि प्रमावणि अ वि৯ान-आ ा
वि৯ान का रूप-सािषजवनक प्रमावणि वि৯ान-पदाथष वि৯ान अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि अ पदाथष
वि৯ान का सािषजवनक प्रमावणि आ ा वि৯ान, वि৯ान की दो अ एिम् अि था है प्रथम िक्र
स -धमष-৯ान िक्र की उपयोवगिा दोनों वदर्शाहीन िक्रो- व एिम् समव िक्रों को एकिा की वदर्शा में बां धे
रखना है दू सरे रूप में समव िक्र, प्रथम िक्र से वमिकर समव धमष को उ करिा है
िूूँवक कािानुसार कमष৯ान की उपि िा नहीं थी इसविए ििषमान समय में िीनों र्शम्मियों की प्रथम,
सिोৡ और अम्म म म्म थवि अपने वन िम म्म थवि म्मि र्शरीर में थावपि हो िुकी है प्रथम िक्र- म्मि र्शरीर के
बा आड रों, व िीय िक्र-र्शारीररक र्शम्मि िथा िृ िीय िक्र म्मि समूह की र्शम्मि अथाष ि् िोकि के रूप में
थावपि हो िुकी है िोकि सािषजवनक स का समथष कों का समूह है पर ु यह आि क नहीं वक िह स ूणष
एकिा की ओर ही हो थ िोकि की िरम म्म थवि स ूणष एकिा की वदर्शा अथाष ि् प्रथम िक्र की िरम म्म थवि
की वदर्शा की ओर ही होकर प्रा वकया जा सकिा है न वक ििषमान िोकि के वन िम म्म थवि की वदर्शा से
इस ब्र ाਔ में कुछ भी म्म थर नहीं है वजसे ििषमान का पदाथष वि৯ान भी ीकार करिा है और जो
म्म थर नहीं है िह अपनी म्म थरिा के विए वक्रयार्शीि है स ूणष ब्र ाਔ को प्रभाविि करने िािी िीनों र्शम्मियों में
प्रथम र्शम्मि-आ ीय र्शम्मि पर कोई भी र्शम्मि अपना प्रभाि नहीं डाि सकिी इसविए यह र्शम्मि अपनी र्शम्मि,
एकिा एिम् म्म थरिा के विए र्शा ि से सवक्रय है इस र्शम्मि का स एक जीिन से नहीं बम्म कई जीिन से
होिा है व िीय र्शम्मि- व र्शम्मि मूिि: दो प्रकार से सवक्रय है -प्रथम-वनिृव मागष और व िीय प्रिृव मागष वनिृव
मागष इस जगि को अस मानकर व वि न आधाररि अ वि৯ान-आ ा वि৯ान ारा र्शाम्म , म्म थरिा को
प्रा करिा है िह इस जगि से वजिना प्रा करिा है उससे कम ही िौट्ा पािा है उसका सम कायष र्शु रूप
से ंय के विए ही होिा है यह मागष समाज िथा रा৸ से पूणषि: वन ीय होिा है यह मागष वसफष यं की मुम्मि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 271


के विए ही सवक्रय होिा है इस मागष की िरम म्म थवि प्रथम र्शम्मि अथाष ि् आ ीय र्शम्मि से योग होिा है यवद
जीिन है िो कमष वकये वबना कोई भी नहीं रह सकिा इसविए योग के उपरा यवद कोई सूत्र समाज िथा रा৸ के
विए प्रा होिे हैं िो िह उसके अनुसार यं िथा दू सरों के विए कमष करिा है और िह प्रिृव मागष में पररिविषि
हो जािा है अ था िह वनिृव मागष में ही कमष करिा है प्रिृव मागष इस जगि को स मानकर समव वि न
आधाररि एिम् अ वि৯ान ारा र्शाम्म , म्म थरिा को प्रा करिा है िह इस जगि से वजिना प्रा करिा
है उससे अवधक उसे िौट्ा दे िा है उसका सम कायष यं सवहि समाज और रा৸ की र्शाम्म एिम म्म थरिा के
विए होिा है िथा समाज िथा रा৸ में पूणषि: सवक्रय होिा है इस मागष का जीिन ही प्रथम र्शम्मि-आ ीय र्शम्मि
की म्म थरिा, र्शाम्म और एकिा की प्राम्म की ओर एक जीिन होिा है िृिीय र्शम्मि -समव र्शम्मि सािषजवनक स
के ारा कमष करके यं, समाज िथा रा৸ को र्शाम्म , म्म थरिा प्रदान करिा है िृिीय र्शम्मि और प्रिृव मागी का
संयुि जीिन प्रथम र्शम्मि-आ ीय र्शम्मि की म्म थरिा, र्शाम्म और एकिा का सिोৡ, अम्म म और ि स ूणष
जीिन होिा है र्शु रूप से िृिीय र्शम्मि से युि होकर कमष करने िािे भौविकिा आधाररि प्रिृव मागष कहे जािे
हैं
िोकि व वििारों को प्रविबम्म ि कर सािषजवनक वििार अथाष ि् स को प्रकावर्शि करने का
मा म है वजसकी िरम विकवसि म्म थवि सािषजवनक स या समव स अथाष ि् स ूणष मानक अथाष ि् स -
वस ा है जो मिों ारा ि होिा है प्र यह वक िोकि मन के ि जैसे -वर्शक्षा पाਉक्रम कर नीवि,
विदे र्श नीवि, आरक्षण नीवि, आवथषक नीवि, उ ोग नीवि, मुिा प्रिाह इ ावद के स -वस ा के वबना ৯ान के ऐसे
वनिृव मागी और िे वज ें इन ि ों का ৯ान नहीं है , क्या िे अपना मि दे कर िोकि को थिा की ओर िे जा
रहे हैं ? जब िक स -वस ा ारा इन ि ों को वििादमुि कर उसे वर्शक्षा पाਉक्रम ारा म्मि में थावपि
नहीं वकया जािा िोकि की थिा, समाज की थिा, नैविक उ ान, वि र्शाम्म , वि एकिा, वि रक्षा,
वि म्म थरिा सवहि वि विकास की कामना करना अस ि है
समाज हो या रा৸, प्रा০ हो या पा ा , धमष हो या धमषवनरपेक्ष या सिषधमषसमभाि, एकिा के विए
कमष करने का सािषजवनक विरोध हम नहीं कर सकिे क्योंवक यही हमारा उ े है आधुवनक पदाथष वि৯ान
कहिा है परमाणु संरिना में इिेक्टरानों की संূा के घट्ने -बढ़ने से ही विवभ ि ों का ज हुआ है और विवभ
ि ों के योग से विवभ पदाथों का इसी प्रकार प्रा০ अ आ ा वि৯ान कहिा है मन की उৡिम एिम्
वन िम अि था से ही उৡ एिम् वन वििार अथाष ि् दर्शषन युि म्मि का ज होिा है वजससे म्मि का मह
और महानिा ि होिी है पुन: ऐसे म्मियों के समूह से स दाय, सं गठन दि इ ावद का ज होिा है यह
इिेक्टरान और मन दोनों अम्म थर, आदान-प्रदान युि वक्रयार्शीि विर्य है इनसे पूणष मुम्मि पर ही के या आ ा
या एकिा के दर्शषन को प्रापि वकया जा सकिा है इिेक्टरान और मन की म्म थवि वक्रया यन दर्शषन की म्म थवि िथा
के या आ ा या एकिा की म्म थवि विकास दर्शषन की म्म थवि होिी है इसविए कमषिेद -प्रथम, अम्म म िथा
पंिमिेद (धमषयुिनाम) अथाष ि् WSO:0 िंखिा-मन की गुणि ा का वि मानक (धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि
नाम) कहिा है -“पूणष ৯ान अथाष ि् अपने माविक ं य के में म्म थि मागषदर्शषन (Guider philosophy) अथाष ि् G
एिम् विकास दर्शषन ¼Development philosophy) अथाष ि् D है इसकी पररवध या आदान-प्रदान या ापार या
वक्रयािक्र या वक्रया यन दर्शषन (Operating philosophy) अथाष ि् O है यही आ ा अथाष ि् अ वि৯ान का
सिोৡ एिम् अम्म म आवि ार है िथा यही पदाथष अथाष ि् वि৯ान ारा अवि ृ ि परमाणु की संरिना भी है
वजसके के में G के रूप में प्रोट्ान-P िथा D के रूप में ूट्रान-N है इसकी पररवध O के रूप में इिेक्टरान-E है
प्रा০ अ आ ा वि৯ान िथा पा ा पदाथष वि৯ान में एकिा का यही सूत्र है वििाद मात्र नाम के
कारण है ”
वजसके अनुसार इिेक्टरान या वक्रया यन दर्शषन में विवभ स दायों, संगठनों, दिों के वििार सवहि
म्मिगि वििार हैं वजसके अनुसार अथाष ि् अपने मन या मन के समूहों के अनु सार िे समाज िथा रा৸ का नेिृ
करिा है जबवक ये सािषजवनक स नहीं है इसविए ही उन वििारों की समथषन र्शम्मि कभी म्म थर नहीं रहिी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 272


जबवक के या आ ा या एकिा में विकास दर्शषन म्म थि है के में प्रोट्ान की म्म थवि अ मागषदर्शषक दर्शष न या
अ विकास दर्शषन की म्म थवि, िूंवक यह सािषजवनक स विकास दर्शषन का अ रूप है इसविए यह
म्मिगि प्रमावणि है इसी कारण आ ा भी वििाद और व वििार के रूप में रहा जबवक यह स था
िेवकन ूट्रान की म्म थवि मागषदर्शषन दर्शषन या विकास दर्शषन की म्म थवि है इसविए यह सािषजवनक स
है स ूणष मानक है , समव स है , स -वस ा है वजसकी थापना से म्मि का मन उस िरम म्म थवि में
थावपि होकर उसी प्रकार िेजी से वि वनमाष ण कर सकिा है वजस प्रकार पदाथष वि৯ान ारा अवि ृ ि ूट्रान बम
इस वि का विनार्श कर सकिा है इस प्रकार WSO-0 िृंखिा मन के वनमाष ण ारा वि वनमाष ण के प्रवि प्रयोग
करना किष भी है िथा दावय भी है 100 िर्ष पू िष ामी वििेकान जी ने अपने जीिन की इৢा को ि
करिे हुये कहा था वक-“जीिन में मेरी सिोৡ अवभिार्ा यह है वक ऐसा िक्र प्रिष िन कर दू ूँ जो वक उৡ एिम् िे
वििारों को सब के ार- ार पर पहुं िा दे वफर ी-पुरूर् को अपने भा৓ का वनमाष ण ं य करने दो हमारे पूिषजों
ने िथा अ दे र्शों ने जीिन के मह पूणष प्र ों पर क्या वििार वकया है यह सिषसाधारण को जानने दो विर्शे र्कर
उ ें दे खने दो वक और िोग क्या कर रहे हैं वफर उ े अपना वनणषय करने दो रासायवनक ि इक਄े कर दो और
प्रकृवि के वनयमानु सार िे वकसी विर्शेर् आकर को धारण कर िेगें-पररिम करो, अट्ि रहो “, “धमष को वबना हावन
पहुूँ िाये जनिा की उ वि-इसे अपना आदर्शष िाक्य बना िो “ (“ ामी वििे कान रा र को आ ान“, पृ -66 से)
क्या यह ामी वििेकान की इৢा की पूविष का कायष नहीं है ?

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 273


भारत का सिंकट, हल, वि नेतृ की अवहिं सक नीवत,
सिोৡ सिंकट और वििशता
सामावजक क्राम्म या विकास सवहि पूणष मानि वनमाष ण की प्रवक्रया एक ि ी अिवध की प्रवक्रया है
इसके विए दू रगामी आि किा को व में रखिे हुए कायष करने की विवध के विए वब दु का वनधाष रण होिा है जो
हमारे मागषदर्शषक होिे हैं -
1. औ ोवगक क्षे त्र में Institute of Plant Maintenance, JAPAN ारा उ ादों के वि रीय वनमाष ण विवध को
प्रा करने के विए उ ाद वनमाष ण िकनीकी-WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-Total
Productive Maintenance
Siri (छूँ ट्ाई), Seton (सु िम्म थि), Sesso ( ৢिा), Siketsu (अৢा र), Shituke (अनुर्शासन) प्रणािी
संिाविि है वजसमें स ूणष कमषिारी सहभावगिा (Total Employees Involvement) है ये 5S मागषदर्शष क वब दु
हैं
3. िी िि कुर्श वसंह “वि मानि“ ारा मानि के वि रीय वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण
िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufactuing–Total Life Maintenance-Satya, Heart,
Yoga, Ashram, Meditation.Conceousness) प्रणािी आवि ृ ि है वजसमें स ू णष ि सहं भावगिा (Total
System Involvement-TSI) है ये SHYAM.C मागषदर्शषक वब दु हैं
4. सोमिार, 9 जून 2014 को भारि के 16िीं िोकसभा के संसद के संयुि सत्र को स ोवधि करिे हुये िी प्रणि
मुखजी, रा र पवि, भारि ने विकास ि िশ प्राम्म के कायष के विए अनके वब दु ओं को दे र्श के समक्ष रखें वजसमें
मुূ था-
1. आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के आधार पर साकार होगा एक भारि-िे भारि का सपना
2. सोर्शि मीवडया का प्रयोग कर सरकार को बेहिर बनाने की कोवर्शर्श
3. सबका साथ, सबका विकास
4. 100 नये माडि र्शहर बसाना
5. 5T - ट्र े वडर्शन (Tradition), ट्र े ड (Trade), ट्ू रर৷ (Tourism), ट्े क्नािाजी (Technology), और
ट्ै िे (Talent) का मंत्र

मन (मानि संसाधन) के वि मानक (WS)-0 िृंखिा के वि ापी थापना के वन विम्मखि र्शासवनक प्रवक्रया
ारा मागष है
1. जनता ि जन सिंिठन ारा- जनिा ि जन संगठन ारा जनवहि के विए सिोৡ ायािय में यह याविका
दायर की जा सकिी है वक सभी प्रकार के संगठन जैसे -राजनीविक दि, औ ोवगक समूह, वर्शक्षण समूह जनिा को
यह बिायें वक िह वकस प्रकार के मन का वनमाष ण कर रहा है िथा उसका मानक क्या है ?

2. भारत सरकार ारा- भारि सरकार इस िृंखिा को थावपि करने के विए संसद में प्र ाि प्र ु ि कर अपने
सं थान भारिीय मानक ूरो (BIS) के मा म से समकक्ष िृंखिा थावपि कर वि ापी थापना के विए
अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन (ISO) के समक्ष प्र ु ि कर सकिा है साथ ही सं युि रा र सं घ (UNO) में भी
प्र ु ि कर सं युि रा र सं घ (UNO) के पुनषगठन ि पू णष िोकिंत्र की प्राम्म के विए मागष वदखा सकिा है संयुि
रा र संघ (UNO) के सन् 2046 ई0 में 100 िर्ष पूरे होने पर वि सरकार के गठन ि वि संविधान के वनमाष ण का
यही WS-0 िृंखिा आधार वस ा है जो भारि अभी ही खोज िुका है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 274


3. राजनीवतक दल ारा- भारि का कोई एक रा र ीय राजनीविक दि वजसकी राजनैविक इৢार्शम्मि हो, िह वि
राजनीविक पाट्ी संघ (WPPO) का गठन कर प्र ेक दे र्श से एक राजनीविक दि को संघ में साथ िेिे हुए संयुि
रा र संघ पर थापना के विए दबाि बना सकिा है

4. सिंर्ुक्त रा र सिं घ (UNO) ारा- सं युि रा र संघ सीधे इस मानक िृंखिा को थापना के विए अपने सद
दे र्शों के महासभा के समक्ष प्र ु ि कर अ राष र ीय मानकीकरण संगठन (ISO) ि वि ापार संगठन के मा म से
सभी दे र्शों में थावपि करने के विए उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 ि ISO-
14000 िृंखिा का वि ापी थापना हो रहा है वि ापार संगठन के ऊपर मन (मानि संसाधन) के वि
मानक WS-0 िृंखिा की थापना से भारि दबाि बना सकिा है

5. अ राण र ीर् मानकीकरर् सिंिठन (ISO) ारा- अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन सीधे इस िृंखिा को थावपि
कर सभी दे र्शों के विए सं युि रा र सं घ ि वि ापार संगठन के मा म से सभी दे र्शों में थावपि करने के विए
उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 ि ISO-14000 िृंखिा का वि ापी थापना हो रहा है

मानि एिम् सं युि मानि (संगठन, सं था, ससंद, सरकार इ ावद) ारा उ ावदि उ ादों को धीरे -
धीरे िैव क र पर मानकीकरण हो रहा है ऐसे में सं युि रा र संघ को प्रब और वक्रयाकिाप का िैव क र
पर मानकीकरण करना िावहए वजस प्रकार औ ोवगक क्षेत्र अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन ¼International
Standardization Organisation-ISO½ ारा संयुि मन (उ ोग, सं थान, उ ाद इ ावद) को उ ाद, सं था,
पयाष िरण की गुणि ा के विए ISO प्रमाणपत्र जैसे-ISO-9000 ि ISO-14000 िृंखिा इ ावद प्रदान वकये जािे है
उसी प्रकार सं युि रा र सं घ को नये अवभकरण वि मानकीकरण संगठन ¼World Standardization
Organisation-WSO½ बनाकर या अ राष र ीय मानकीकरण संगठन को अपने अधीन िेकर ISO-0/WSO-0 का
प्रमाण पत्र यो৓ म्मि और सं था को दे ना िावहए जो गुणि ा मानक के अनुरूप हों भारि को यही कायष
भारिीय मानक ूरो ¼Bureau of Indian Standard-BIS½ के ारा IS-0 िृं खिा ारा करना िावहए भारि
को यह कायष रा र ीय वर्शक्षा प्रणािी ¼National Education System-NES½ ि वि को यह कायष वि वर्शक्षा
प्रणािी ¼World Education System-WES½ ारा करना िावहए
जब वक यह वर्शक्षा प्रणािी भारि िथा सं युि रा र सं घ ारा जनसाधारण को उपि नहीं हो जािी
िब िक जन साधारण के म्मिगि इৢा की पूविष के विए “पुनवनषमाष ण (RENEW-Real Education National
Express Way) ” ारा उपि करायी जा रही है
21िीं सदी और भवि का समय अपने विराट् सम ाओं को िेकर कह रहा है - “आओ वि के
मानिों आओ, मेरी िुनौवि को ीकार करो या िो िु म सम ाओं, संकीणष वििारधाराओं, अ ि थाओं, अहं कारों
से ग्रवसि हो आपस में यु कर अपने ही विकास का नार्श कर पुन: विकास के विए संघर्ष करो या िो िुम सभी
सम ाओं का हि प्र ुि कर मुझे परा करो “ ऐसे िुनौवि पूणष समय में वि के अ दे र्शों के समक्ष कोई वि ा
का विर्य हो या न हो र्शाम्म दू ि अवहं सक िपोभूवम भारि के समक्ष वि ा का विर्य अि है और वसफष िही ऐसी
िुनौवि को ीकार करने में सक्षम भी है यह इसविए नहीं वक उसके अ र वि नेिृ , वि र्शाम्म और वि
र्शासक बनने की प्रबि इৢा है पर ु इसविए वक वि प्रेम, जीि ही वर्शि, वर्शि ही जीि उसका मुূ आधार है
वजस पर आधाररि होकर िह ब्र ाਔीय रक्षा, विकास, स ुिन, म्म थरिा, एकिा के विए अवहं सक और र्शाम्म मागष
से क ि करिे हुये अ अपने भाइयों और बहनों के अवधकारों के विए प्रेम भाि से सेिा और क ाण करिा
रहा है पर ु उसके बदिे भारि को सदा ही अ ने उन वस ा ों को उसके म्मिगि वििारधारा से ही जोड़कर
दे खा पररणाम रूप िे अपने अवधकार और क ाण के मागष को भी पहिानने में असमथष रहे , बािजूद इसके
प्र ेक िैव क सं कट् की घड़ी में भारि की ओर ही मुूँह कर उ ीद को दे खिे रहिे हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 275


ऐसे समय में जब प्रकृवि समावहि मानि, पर्शु, पक्षी यहाूँ िक वक प्र ेक जीि मानिों के िहार से
संत्र हो िुके है , यं भारि भी आ ररक और बा दोनों संकट्ों से विम्म ि, असहाय, क ि ों से विमुख और
भ्रवमि हो गया है जो भारिीय भाि के वििारक, ৯ानी बुम्म जीिी, राजनेिा इ ावद के अम्म म और पूणष उपि
৯ान र्शम्मि का पररिायक ही है वफर भी भारि वनव है क्योंवक िह जानिा है वक िपोभूवि भारि में स -आ ा
का वनिास है िह स -आ ा खुिी आूँ खों से दे खिे हुये ऐसे उविि समय की ही प्रिीक्षा करिा है जब िह यं को
थावपि और अम्म के प्रवि वि ास वदिाने के विए ि कर सके इस वनव िा के कारण ही सिषत्र दे र्शभम्मि
भाि के गीिों, वफ ों, पौरावणक कथाओं के -ि मा मों से उसके ागि की िैयारी करिा है और अपने
अपार प्रेम भाि से उसे कमष करिे हुये ि होने पर मजबूर कर दे िा है और यह भारि “हमें वि ा नहीं उनकी
उ ें वि ा हमारी है , हमारे नाि के रक्षक सुदर्शषन िक्र धारी है ” कहिे हुये अपनी म्म थवि और पररम्म थवि पर
स ोर् की सां सें िेिा है वजसके स में महवर्ष अरवि के वद व से वनकिी िाणी- “भारि की रिना विधािा
ने संयोग के बेिरिीब ईंट्ों से नहीं की है इसकी योजना वकसी िैि र्शम्मि ने बनाई है जो इसके विपरीि कायष
करे गा िह मरे गा ही मरे गा ” अक्षरर्श: पूणष स है
यहाूँ हम भारि की आ ररक और बा सं कट्, उसके अम्म म हि, वि नेिृ की अवहं सक नीवि
और उसके प ाि् उ हुये सिोৡ और अम्म म संकट् सवहि वििर्शिा पर अम्म म व प्र ुि कर रहे हैं जो स
रूप में 21िीं सदी और भवि के स िेिना आधाररि वि के विए भारि की ओर से किष िथा अ के विए
अवधकार रूप आम्मखरी रा ा है
भारि का ििषमान और भवि का मूि आ ररक संकट्-कानून, संविधान, राजनैविक प्रणािी का
संकट्, अथष ि था का सं कट्, नागररक समाज का सं कट्, रा र ीय सु रक्षा का सं कट् िथा मूि बा संकट्-पहिान
और वििारधारा का सं कट् िथा विदे र्शनीवि का संकट् है जो दे खने में िो आम जनिा से जुड़ा हुआ नहीं िगिा
पर ु यह संकट् आम जनिा के उपर पू णष रूप से प्रभािी है आम जनिा मूिि: दो वििारों से संिाविि है एक-
जो उसके जीिन से सीधे प्र क्ष रूप से जुड़ा दे र्श-काि ब ৯ान है जैसे- म्मिगि र्शारीररक, आवथषक, मानवसक
आधाररि विवक ीय, िकनीकी, वि৯ान, ापार, वििार एिम् सावह आधाररि होकर यं का अपना प्र क्ष
जीिकोपाजषन करना दू सरा-जो उसके जीिन से अप्र क्ष रूप से जुड़ा हैं जैसे -सािषजवनक या संयुि, र्शारीररक,
आवथषक, मानवसक आधाररि विवक ीय, िकनीकी, ৯ान, ापार, वििार एिम् सावह आधाररि होकर यं का
अपना सवहि पररिार, दे र्श, समाज, वि का जीिकोपाजषन करिा है ये ही पररिार, समाज, दे र्श, वि की नीवियाूँ
है पहिे के बहुमि के कारण म्मि म्मिगि अथाषि् भौविकिाद में म्म थि होकर पररिार, समाज, दे र्श, वि पर
आधाररि वििारों, ि थाओं और नीवियों की अिनवि करिा हैं पररणाम रूप उपरोि संकट् सवहि यं अपने
दे र्श, वि के प्रवि भम्मिभाि समा कर दे िा है जबवक दू सरे के बहुमि के कारण यं अपने जीिकोपाजषन
सवहि जीिन और सं युि जीिन दोनों िम्म थि होिा है ििषमान समय में पहिे का पूणष बहुमि थावपि होकर
अब दू सरे की बहुमि थावपि होने की ओर समय िक्र की गवि हैं वजसका उदाहरण ही 21िीं सदी और भवि के
प्रवि वि ा ि हो रही है और इसके विपरीि थावपि बहुमि इस वि ा से मुि भी होकर यं अपनी स ा की
वि ा में िगा हुआ है जबवक हमारा साथषक किष दे र्श-काि मुि वििारों की और बढ़िे समय िक्र की ओर भी
गवि प्रदान करना होना िावहए िभी उपरोि संकट् से मुम्मि पायी जा सकिी है
भारि के इस आ ररक और बा संकट् का अम्म म थापना र िक का हि ही अवहं सक, सुरवक्षि,
एक, म्म थर, विकास, र्शाम्म और स िेिना युि वि के वनमाष ण के विए वििादमुि, , सिषमा , सािषजवनक
प्रमावणि वि मानक र्शू िृंखिा-मन की गुणि ा का वि मानक िृंखिा िी िि कुर्श वसंह “वि मानि” ारा
आवि ृ ि सिोৡ और अम्म म आवि ार है जो स ूणष एकिा के साथ ििषमान िोकि का धमष और
धमषवनरपेक्ष या सिषधमषसमभाि आधाररि र्शा और उसकी थापना र्शासवनक प्रवक्रया के अनुसार है जो पूणष
मानि थ समाज, थ िोकि , थ उ ोग िथा थ अथष ि था की प्राम्म का अम्म म रा ा हैं
वि मानक-र्शू िृंखिा की वक्रया ारा फि की प्राम्म जो इसकी उपयोवगिा भी है , की प्रवक्रया का मुূ वस ा -

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 276


“वजस प्रकार परमाणु में इिेक्टरानों की संূा घट्ा-बढ़ाकर वन िम से उৡिम, सिोৡ और अम्म म ि ों िक
सभी की प्राम्म की जा सकिी है उसी प्रकार प्र ेक म्मि के मन को उৡिम, सिोৡ और अम्म म म्म थवि िक
के ৯ान को अपने प्र ेक वक्रया की प्रविवक्रया के ৯ान से युि होकर वक्रया कर प्रा कर सकिा है “
वि मानक-र्शू िंखिा के पाूँ ि र्शाखाओं में पहिी र्शाखा-वि मानक-0-वििार एिम् सावह का
वि मानक की उपयोवगिा विवभ विर्यों पर िैिाररक िेखन, रिना, -ि कायषक्रम जैसे-दू रदर्शषन, वफ
इ ावद िथा मानि जीिन के विए उपयोगी सावह ों की वदर्शा वनधाष ररि करिा है दू सरी र्शाखा-वि मानक-00-
विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक की उपयोवगिा विवभ विर्यों और उसके विर्शेर्৯ों की पररभार्ा
का अम्म म ि पररभार्ा का ৯ान है िीसरी र्शाखा-वि मानक-000-स ूणष ब्र ाਔ ( थूि िथा सूक्ष्म) प्रब
और वक्रयाकिाप का वि मानक की उपयोवगिा एक ही वस ा ारा अ और जगि के प्रब को
कर विवभ ि ों पर आधाररि सं विधान वनमाष ण करने में है िथा सभी सं युि मन (पंिायि, रा৸, दे र्श, सं युि रा र
संघ एिम् अ म थ संयुि मन) को एक ही वस ा पर वक्रयाकिाप करने और उसकी वदर्शा वनधाष ररि करने
में है वजससे प्र ेक सं युि मन की वदर्शा ब्र ाਔीय विकास की वदर्शा में कर र्शम्मि का उपयोग एक मुखी वकया
जा सके िौथा-वि मानक-0000-मानि प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक की उपयोवगिा एक ही वस ा
वजससे स ूणष ब्र ाਔ प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक वनधाष ररि है , उसी से अ मानि (सूक्ष्म र्शरीर)
िथा मानि ( थू ि र्शरीर) के प्रब को करने िथा उसके विवभ ि ों को वििाद मुि करने में है िथा
सभी म्मिगि मन ( म्मि) को एक ही वस ा वजससे संयुि मन का वक्रयाकिाप और उसकी वदर्शा वनधाष ररि
है , उसी वस ा से म्मि के वक्रयाकिाप करने और उसकी वदर्शा वनधाष ररि करने में है वजससे प्र ेक मानि के
वक्रयाकिाप की वदर्शा, संयुि मन के वक्रयाकिाप की वदर्शा से जुड़कर वि विकास की वदर्शा में हो सके वजससे
स ूणष र्शम्मि एक मुखी होकर स ूणष मानि जावि प्राकृविक संसाधनों और प्राकृविक वक्रयाकिापों से एकिा रखिे
हुये, ब्र ाਔीय विकास और उसके रह ों को आवि ृ ि करने में उपयोग कर सकें यही स ूणष वक्रयाकिापों का
मानक ही कमष৯ान है , कमष৯ान है पाििाूँ -वि मानक-00000-उपासना थि का वि मानक की उपयोवगिा
मन को उ ीं वस ा ों पर के ीभूि करने का थि है जो वि मानक-000 और वि मानक-0000 में ि है
इस वि मानक-र्शू िृंखिा का यं अपने दे र्श सवहि वि ापी थापना ही भारि का क ि और
दावय सवहि उन सभी सिोৡ भािों की प्राम्म है वजसे अभी िक सामा ि: सं कीणष और एक विर्शेर् स दाय का
वििार समझा जािा रहा है इसकी थापना से भारि यं अपने दे र्श सवहि वि के सभी दे र्शों के प्र ेक नागररक
को उसके वदर्शा और थान से ही सं युि रा र सं घ िक को एकमुखी कर वि विकास की मुূधारा से जोड़
सकेगा पररणाम रूप सं कीणष वििारों से दे र्शों को गुिामी दे ने िािे दे र्शों पर ापक वििार-स -वस ा का
आिरण डािा जा सकेगा, जो वि क ाण सवहि भारि की अ सािषभौवमकिा का सािषभौवमकिा में
पररििषन का अम्म म मागष है इसकी वि ापी थापना की नीवि ही भारि की स ूणष विदे र्श नीवि का मुূ
वस ा है इसके उपरा विदे र्श नीवि के सूक्ष्म वनयम ि: हो जायेंगे िूूँवक यह भारिीय भाि ारा वि
प्रब का अम्म म जनि ीय वस ा की थापना का अम्म म मागष है इसविए भारिीय संसद को इसके थापना के
प्रवि, इसकी उपि िा के बािजूद वनम्म य रहना यं भारि, आम जनिा िथा मानििा के प्रवि िे सभी
नकारा क सं৯ा का ि रूप होगा वजसे सम्म विि रूप से असुरी या पर्शु प्रिृवि कहिे हैं वजस प्रकार
वि मानक-र्शू िृंखिा की र्शाखायें और पुन: उन र्शाखाओं से वनकिी अन र्शाखायें स ूणष ब्र ाਔ के सभी
विर्यों को अपने बाहों में िेकर उनका स रूप ि कर दे िी है उसी प्रकार इसके भारि िथा वि ापी
थापना के भी अनेक मागष है और यही इसकी थापना की अवहं सक नीवि है इसके भारि िथा
वि ापी थापना के वन विम्मखि मागष हैं -
भारि में इसकी थापना के दो मागष है , प्रथम-संसद सद ों के सिषस वि से संसद ारा और व िीय
आम जनिा सवहि संगठन ारा प्रथम िूूँवक िोकि वििारों को ब कर सािषजवनक स को ि करने का
ि है और यह सािषजवनक स ही प्र े क मानि अथाष ि् आम जनिा का यथाथष है आम जनिा का ि ही

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 277


िोकि है इसविए भारिीय संसद जो वि में सबसे बड़ा िोकि आधाररि संसद है , जो िोकिम्म क वि
संसद का ही अविकवसि रूप है , उसे र्शु रूप से जुड़े इस सािषजवनक स वि मानक-र्शू िृंखिा को संसद
सद ों की सिषस वि से थावपि कर िोकि के पररपििा, थिा, वि ास और ि था का अम्म म मा म
का पररिय दे ना िावहए इसके बाद ही -ि , -राज सवहि वि के समक्ष यह कहा जा सकिा है वक
िोकि ही वि ि था का सबसे सर्शि ि है जो जनिा ारा, जनिा के विए और जनिा ारा र्शावसि ि
है इसमें संसद को जरा भी स े ह नहीं होना िावहए वक जो संसद का क ि और दावय है उसका आवि ार
एक सामा ग्रामिासी ने वकया है जो भारि और भारिीय संसद की गररमा को बढ़ािा ही है आवि ार संसद
ारा हो या वकसी और के ारा यवद िह उसके क ि और दावय को पूणषिा प्रदान करिा है िो उसकी थापना
संसद को सिषस वि से की जानी िावहए अ था सं सद ही पूणषरूप से आम जनिा ारा विरोध का वर्शकार हो
जायेगा वजन संसद सद ों को इस सािषजवनक स वि मानक-र्शू िृंखिा पर विरोध हो उ ें मात्र विरोध ही
नहीं बम्म विरोध का उविि कारण और उसके सािष जवनक स ि हि के साथ विरोध करना िावहए अ था
िे यं अपने ही नकारा क िररत्र को सािषजवनक रूप से ि कर दें गे, इसका ान उनको रखना िावहए इस
कायष में सद ों को यह ान दे ना होगा वक वििारों का पररणाम ही सािषजवनक स होिा है और स के ि हो
जाने पर वििारों का अम्म सदा के विए समा हो जािा है संसद ारा सिषस वि हो जाने पर वि मानक-र्शू
िृंखिा रा र ीय ऐजे ा हो जाये गी वि मानक-र्शू िृं खिा रा र ीय एजे ा का स रूप है ही पर ु सं विधान
वनदे वर्शि संसद में इसका सिष स वि होना सं िैधावनक रूप से आि क है रा र ीय ऐजे ा के रूप में ीकार कर
विये जाने पर यं सरकार को दे र्श में वक्रया यन के विए सिषप्रथम काि पररििषन अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि
अ काि से सािषजवनक प्रमावणि काि की घोर्णा दे र्श र से करनी पड़े गी क्योंवक जनिा को यह बिाना
आि क होगा वक ििष मान समय में अवधकिम म्मि का मन बा विर्यों की ओर संसाधनों पर केम्म ि हो गया
है पु न: रा र ीय पु नवनष माष ण सवमवि का गठन कर वि मानक-र्शू िृंखिा को वि ृि कर वििादमुि ि ों पर
आधाररि भारिीय संविधान को ि कर (जो भारि के मूि संविधान से वमिकर पूणष वि संविधान में पररिविषि
हो जायेगा) विवभ म ािय और विभागों ारा प्रभािी कराना िावहए वजसमें सिषप्र थम भारिीय मानक ू रो में
वि मानक-र्शू िृंखिा के समकक्ष आई.एस.-र्शू िृंखिा मानक विकवसि कर िेना िावहए वि मानक-र्शू
िृंखिा के ৯ान से पररपूणष होने के बाद ही संविधान संर्शोधन साथषक होगा
भारि में वि मानक-र्शू िृंखिा की थापना का व िीय मागष आम जनिा एिम् संगठनों ारा है
आम जनिा और सामावजक संगठनों को जनवहि के विए सिोৡ ायािय में जनवहि याविका, राजनीविक दिों
के मानक और संसद के क ि िथा दावय के विए ायािय को बा कराना है वक िह संसद िथा राजनीविक
दि अपने िा विक रूप के विए कायष प्रार करें िथा मानि मन वनमाष ण करने के वक्रयाकिाप का अपना
मानक प्र ुि करें इससे ायािय भी संविधानानुसार अपनी गररमा िथा यं उसको अपने विए एक वदर्शा
वनदे र्श थावपि करने का वस ा प्रा हो जायेगा ापाररक-औ ोवगक समूह को भारिीय मानक ूरो में
वि मानक-र्शू िृंखिा के समकक्ष आई.एस.-र्शू िृं खिा मानक विकवसि करने के विए कदम उठाने िावहए
वजससे उ ें यह िाभ होगा वक िे अपने संगठन-समूह को अ राष र ीय गुणि ा के साथ अ राष र ीय र का मानि
संसाधन विकवसि करने का प्रमाण-पत्र प्रा करें गे जो उ ें वि बाजार के प्रवि धाष में सिोৡिा वदिा सकेगा
यही नहीं उनके अपने आ ररक सुरक्षा, गुणि ा, प्रब कीय इ ावद के प्रवर्शक्षण में य भी कम हो जायेगा
क्योंवक पूणष ৯ान से युि मानि संसाधन होने पर उनकी सूक्ष्म व ि: ही इन गुणों से युि और रिना क हो
जाये गी अ राष र ीय र का मानि सं साधन वनमाष ण से िाभ यह होगा वक उ ादों के उपयोग की मानवसकिा के
विकास सवहि कमष৯ान ारा आदान-प्रदान में गवि आने से उनके उ ादों के विए बाजार सदा ही वनवमषि होिा
रहे गा पररणाम रूप “म ी का दौर” जैसे सम ाओं से मुम्मि पायी जा सकेगी जो अथष ि था और उसके
मू पर भी ापक अनुकूि प्रभाि डािेगा राजनीविक संगठनों को वि मानक-र्शू िृंखिा की थापना के विए
उपरोि मागों से प्रेररि कर, संसद में प्र उठाकर और आम जनिा में अपने वस ा अथाष ि् वि मानक-र्शू

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 278


िृंखिा सवहि उसके िाभ के प्रसार से प्रय करना िावहए इससे उ ें िाभ यह होगा वक आम जनिा का वि ास,
रा र ीय एकिा, यं की िोकवप्रयिा, राजनै विक अम्म थरिा, दे र्शभम्मि की थायी म्म थरिा सवहि वि भिों का
वनमाष ण, सामावजक पररििष न और वनमाष ण, स ूणष क्राम्म इ ावद जो भी भारि सवहि वि के वहि में सिोৡ और
अम्म म है , उस कायष का ऐविहावसक िेय उ ें प्रा होगा
भारि ारा वि मानक-र्शू िृंखिा के वि ापी थापना के भी दो मागष है प्रथम-भारि सरकार
ारा, व िीय-भारि के वकसी एक राजनीविक दि ारा प्रथम-रा र ीय ऐजे ा जो वि राजनीवि ऐजे ा भी है को
भारि सरकार सं युि रा र सं घ के समक्ष प्र ुि कर अपने पक्ष में अ दे र्शों को साथ िेना िावहए िूूँ वक यह
अवहं सक मागष से वि वनमाष ण, रक्षा, र्शाम्म , एकिा, विकास, म्म थरिा, क ाण और सेिा के विए नेिृ है इसविए
अ दे र्शों के साथ आने में बाधा नहीं आये गी इससे िाभ यह होगा वक सं युि रा र संघ, वि ापार सं गठन के
अ गषि वट्र , यू ने ो, सं युि रा र सु रक्षा पररर्द, सी.ट्ी.बी.ट्ी.इ ावद में संर्शोधन-पुनगषठन-भागीदारी के विए
मागष आसान हो जायेगा जो सभी दे र्शों की सम ा है पररणाम रूप वि वर्शक्षा प्रणािी, वि मानकीकरण
संगठन, वि संविधान एिम् संसोवधि-पुनगषवठि संगठनों का ज होगा वि मानक-र्शू िृंखिा का मानक
विकवसि करने के विए िोकि ि था पर आधाररि अ राष र ीय मानकीकरण संगठन में इसके प्रवि अ दे र्शों
से समथषन प्रा कर आसानी से मा िा प्रा वकया जा सकिा है और समकक्ष आई0एस0ओ0-र्शू िृंखिा
विकवसि की जा सकिी है वि मानक-र्शू िृंखिा की थापना के विए ििष मान समय िथा भवि में और भी
उपयुि समय भारि के अनुकूि ही है क्योंवक जहाूँ एक ओर उसे अभी सी.ट्ी.बी.ट्ी.पर ह ाक्षर करने है , िहीं
दू सरी ओर भारिीय भाि का अवहं सक स -वस ा वि मानक-र्शू िृं खिा की थापना का प्र ाि
सी0ट्ी0बी0ट्ी0 के पीछे छु पी मानवसकिा को आसानी से ि कर दे गा सी0ट्ी0बी0ट्ी0 वदर्शाहीन पदाथष वि৯ान
का पररणाम है िो वि मानक-र्शू िृंखिा की थापना का प्र ाि सी0ट्ी0बी0ट्ी0 जैसी म्म थवि ही उ न हो
उसका वस ा है पररणाम रूप न िाहिे हुये भी वि की सं कीणष मानवसकिा आधाररि नेिृ िािे दे र्श जो
यं अपनी जनिा को मानवसक गुिाम बनाये हुये हैं , पर भी भारिीय भाि का वस ा ि: प्रभािी हो जायेगा
क्योंवक वि रक्षा के विए इसकी थापना प्र ेक दे र्शों के विए अवनिायष हो जाये गी वि विंिक दे र्श अैर संयुि
रा र संघ इसके विए वििर्श भी होगा क्योंवक वि मानक-र्शू िृंखिा का विरोध यं उसकी वि विंिक, वि रक्षा,
वि विकास, वि म्म थरिा, वि र्शाम्म , वि एकिा जै सी छवि को पूणषरूप से कर दे गा सं युि रा र संघ ारा
ीकृि हो जाने की वदर्शा में सिषप्रथम काि पररििषन वि र से करनी पडेा़ गी क्योंवक वि के प्र ेक नागररक को
यह बिाना आि क होगा वक ििषमान समय में अवधकिम म्मि का मन बा विर्यों अथाष ि् संसाधनों पर
केम्म ि हो गया है उसके फि रूप वि मानक-र्शू िृंखिा की थापना अपने विवभ संगठनों के मा म से
करना प्रार करे गा
भारि ारा वि मानक-र्शू िृंखिा के वि ापी थापना का व िीय मागष -उपरोि सभी नीवियों का
प्रयोग करिे हुये भारि का कोई एक राजनीविक दि स िेिना आधाररि वि वनमाष ण के विए वि राजनीविक
पाट्ी संघ (ड ू.पी.पी.ओ.) का गठन करने के विए आगे आकर कर सकिा हैं वजसमें प्र ेक दे र्श से एक
राजनीविक पाट्ी को सद बनाना िावहए वजससे िाभ यह होगा वक ड ू.पी.पी.ओ. ारा संयुि रा र संघ पर
दबाि बनाया जा सकेगा और प्र ेक दे र्श अपने दे र्श की जनिा का सिोৡ क ाण कर अपने दे र्श में दि की
सिोৡिा थावपि कर सकेगी भारिीय राजनीविक दि को भारि में सम सिोৡ और अम्म म कायष करने का
िेय प्रा होगा
सामावजक पररििषन, वनमाष ण, नैविक उ ान और स ूणष एकिा की प्राम्म एक ि ी अिवध की
प्रवक्रया है 21िीं सदी और भवि की आि किा को दे खिे हुये उसका बीज अभी ही समाज में बोना होगा जो
आि किा और वििर्शिा भी बन िुकी है , वि मानक-र्शू िृंखिा उसी का बीज हैं वजसकी थापना के विए
भारि सवहि अ दे र्शों के आम जनिा, संगठन ओर सरकार को र्शीघ्रिार्शीघ्र ऐसा उसी भाूँ वि करना िावहए जैसे
मािा-वपिा अपने बৡे को समायानुसार आि क संसाधन उपि करािे है ऐसा इसविए भी करना िावहए

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 279


क्योंवक ििष मान समय में ने िृ किाष ओ,ं िोकि , सरकार और भवि के प्रवि वजस प्रकार अवि ास बढ़ रहा है
उसे वि ास में पररिविषि करने का प्रथम और अम्म म मागष यही है उ ें यथार्शीघ्र इसकी थापना के विए जुट्
जाना िावहए क्योंवक ििष मान नेिृ किाष , िोकि , सरकार और जनिा िाहे जैसे भी हो पर ु भवि के
नेिृ किाष , िोकि , सरकार और जनिा की पूणष थिा के कायष का वि ऐविहावसक िेय िो उ ें कम से कम
प्रा हो जायेगा और यही हृदय पररििषन, आ प्रकार्श, स पक्ष, इं रीय र्शरण में आना इ ावद कहा जािा है
प्र ेक सुख के साथ दु ःख साया की भाूँ वि िगा रहिा है यवद भारि और वि के समक्ष वि मानक-
र्शू िृंखिा के आवि ार का सिोৡ और अम्म म सुख है िो ठीक उिना ापक सिोৡ और अम्म म दु ःख भी
है कमषर्शीि िि कुर्श वसं ह “वि मानि” का ििषमान और वििादमुि स -वििार-र्शम्मि-स -वस ा से युि
होना ही भारि िथा वि के समक्ष सिोৡ संकट् है स ूणष वि कैसे एक भारिीय युिा के स -वििार को अपने
उपर प्रभािी होने दे गा? भिे ही यह स ूणष वि के क ाण का एकमेि, सिोৡ और अम्म म रा ा हो भिे ही
उस युिा का उ े मात्र इिना हो वक प्र ेक विर्य, पद, म्मि, संगठन और दे र्श अपने उ े को पू णषरूप से
अपने मागष से ही प्रा कर िे और भिे ही िह म्मि से वि िक की आ ा की आिाज ही क्यों न हो?
जब सािषजवनक स ि होिा है , जो मानि समाज में वसफष एक और अम्म म बार ही ि
होिा है िब स ूणष सं कीणष वििार और उससे युि अहं कार पर आघाि होिा है पररणाम रूप अ ि
संकीणष वििार और अहं कार ही उसके धारणकिाष के समक्ष संकट् रूप में ि होिा है पर ु िे उसे न दे खकर
स -वििार को ही सं कट् समझने िगिे हैं म्मि से िेकर सं युि रा र संघ िक के अपने -अपने संकीणष वििार हैं
जो स -वििार के ि होने से इस प्रकार ि होंगे िूूँवक वि मानक-र्शू िृंखिा ही सं युि रा र सं घ के
स ूणष उ े ों को पूणष करने का प्रथम और अम्म म मागष है इसविए उसके ारा इसका ागि होगा पर ु उसके
विर्शेर्ावधकार प्रा दे र्श (िीट्ो पािर) और संकीणष वििारों पर आधाररि दे र्श इसका विरोध वबना वकसी उविि
कारण और समाधान के कर सकिे हैं यह उनकी अपनी र्शम्मि का दु रूपयोग िथा अपने दे र्श की जनिा और वि
के भावि को अर्शा करने का ही रूप िे सकिा है पररणाम रूप भारि की र्शाम्म और अवहं सक छवि वि
के समक्ष रूप से थावपि होगी भारि के सामने यह संकट् उसके ििष मान सं ृ वि-भूिकाि में हो िु के
महापुरूर्ों के नाम पर झਔे , डਔे , र्शोर्ण, अ ािार, आ ोिन, जीिकोपाजषन, युिाओं को मह न दे ना, ििषमान
वक्रयाकिापों पर आधाररि होकर एक दू सरे पर कट्ाक्ष करना इ ावद है न वक उन महापुरूर्ों के वििारों को
परर ृ ि कर ििषमान एिम् भवि के यो৓ बनाना िथा युिाओं को अपना भवि समझकर कायष करना है
भारिीय संसद के समक्ष सं कट् का कारण ििषमान और भूिकाि पर बहस करना और भवि के आि क मु ों
को उठाकर जनिा पर छोड़ दे ना है प्रा০ आधाररि धमषक्षेत्र पर संकट् का कारण अयो৓िा, अपूणषिा और
आड र युि घोवर्ि ई र, अििार और आिायष है पा ा आधाररि रा৸ क्षेत्र पर संकट् का कारण नेिाओं
और उनके दिों का ाथष मय होकर राजनीवि करना िथा भूिकाि के महापुरूर्ों, क्राम्म काररयों, धमष৯ों के नामों
को भुनाना, अ दिों का एक व पर कट्ाक्ष करना है अ आ ा वि৯ान और पदाथष वि৯ान के
समक्ष संकट् उनका वदर्शाहीन होना है प्रब -नीवि-वििार के समक्ष संकट् उनमें एकिा का न होना है समाज
क्षेत्र के समक्ष संकट् उनका आपस में समभाि का न होना है स दाय-सं ृ वि-जावि के समक्ष संकट् आपस में
एक दू सरे के ऊपर अपनी सिोৡिा वस करना है प्रौढ़-िृ के समक्ष सं कट् िे जो न कर सके, उसका वकसी से
उ ीद न करना और िे जो कर सके है , उससे अवधक कर पाने की वकसी से उ ीद न करना है युिा र्शम्मि के
समक्ष संकट्-वदर्शा-विहीन, िশ-विहीन, वद भ्रवमि, असंगवठि, भौविकिा और ं य के वनवणषि मागष को ही स ूणष
समझना है आम जनिा के समक्ष सं कट्-৯ान ही सम दु ःखों का नार्शकिाष है पर वि ास न करना है र्शरीर को
ही प्राथवमकिा दे ने िािों के समक्ष सं कट् उनका र्शारीररक बि से ही संसार को झुका दे ने का भ्रम है ईसाई
वमर्शनरीयों का सं कट्-उनका अंग्रेजी प्रसार से ईसाईकरण करने का भ्रम है
उपरोि ापक संकट् वसफष मानवसक है वसफष अपने मन को बदि दे ने से सबको अपने ही रा े से
उसका िশ प्रा हो जािा है यही मूि संकट् है वक म्मि अपनी इৢा भी नहीं बदि सकिे वजससे न िो उनका

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 280


र्शारीररक, न ही आवथषक क्षवि ही स ि है पर ु यह वि की वििर्शिा है वक िह वििर्श होकर प्राकृविक बि या
संयुि मन बि से िह एक की ओर ही जा रहा है इसविए इसकी थापना िो वनव ि है पररणाम रूप स ूणष
वि का मानवसक िध भी सुवनव ि है िाहे िह ििषमान में हो या भवि में िूूँवक यह संकट् िैिाररक है
िैयम्मिक नहीं इसविए घािक अ ों से मुि है बम्म यह घािक अ ों को ही समा कर दे ने में सक्षम है इस
प्रकार वि मानि का र्शरीर संकट् नहीं है बम्म उनके ारा आवि ृ ि, अवनयंम्म ि, अपररििषनीय, असंग्रहणीय,
सम सिोৡ और अम्म म ापकिा से युि अम्म म वििारों का िक्र-सुदर्शषन िक्र और पर्शु प्रिृव यों का नार्श
करने िािा सािषभौम स -वस ा का अ -पर्शुपा है वजसका न े प्रविर्शि थापना सं युि मन ारा कमष
करिे -करिे ৯ान की ओर बढ़ने से हो ही िुकी है र्शे र् दस प्रविर्शि ही उसका स -वर्शि और सु र है वजसकी
थापना के उपरा ससीम जीिा ा असीम वि में िथा असीम वि ससीम जीिा ा में िथा ससीम जीिा ा
असीम परमा ा में, वनराकार साकार में, साकार वनराकार में िथा आ ा परमा ा में, परमा ा आ ा में एकाकार
होकर सम वि प्रेममय और कमषमय होकर धरिी पर गष वनमाष ण में एकजुट् हो एक ही आिाज में कहे गा-
“िाहे गुरू की फिह ”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 281


िर्रा৸-सिंघ को मािणदशणन

01.िर्रा৸ोिं के सिंघ-भारत को स और अन्त म मािणदशणन

गणरा৸ों का सं घ भारि अपनी ि िा प्राम्म के बाद से अब िक िा जगि का विकास करिे -


करिे इस मोड़ िक आ िुका है जहाूँ से आगे की ओर जाने के विए उसे अ : जगि का विकास करना होगा इस
विकास के न होने के कारण ही भारि के पास वििाद िो है पर ु हि नहीं विरोध िो है पर ु हि के साथ विरोध
नहीं विरोध है पर उविि कारण के साथ विरोध नहीं फि रुप समाज (जनिा) के अवधप िािा गणरा৸, रा৸
( म्मि) समवथषि गणरा৸ की ओर बढ़ गया है िहीं दू सरी िरफ वििर्शिा िर्श गणरा৸ के स रुप की ओर भी
बढ़ रहा है अ : जगि का विकास न होने के कारण यह भी कर पाना मुम्म ि हो गया है वक कौन से मु े
गणरा৸ के हैं और कौन से मु े स दाय के हैं वििावदि मु ों की एक ि ी िृंखिा है वजनमें से कुछ को िो
वस ा ारा हि वकया जा सकिा है पर ु कुछ िो वबना नैविक उ ान के स ि ही नहीं हैं क्योंवक हाथी पर
अवधकृि हाथ में अंकुर्श यु ि महािि के नैविकिा पर ही यह वनभषर करिा है वक िह अं कुर्श का प्रयोग हाथी को
संिाविि करने के विए करे या हाथी को मौि दे ने के विए करे यह वस ा ारा वनयम्म ि नहीं हो सकिा
वििावदि मु े वजस पर भारि वक्रयार्शीि हो िुका है उनमें से प्रमुख हैं -संविधान-समीक्षा, वर्शक्षा-पाਉक्रम, धमष थि
विधेयक, प्रादे वर्शक ाय िा, रा৸ों का पुनगषठन, मवहिा आरक्षण इ ावद और भवि में आने िािे समय सीमा
के अ र युिाओं को पैिृक स व का अवधकार जो मु े उठ िुके हैं उ ें दबाया नहीं जा सकिा क्योंवक िहाूँ िक
मन र बढ़कर बीज रुप में ि हो गया है
भारि को इस प्र ुि सािष भौम स -वस ा से मागषदर्शष न प्रा कर अपने िथा सं युि रा र सं घ के
पुनगषठन के विए वक्रया यन करना िावहए यह सािषभौम स -वस ा विरोध नहीं बम्म िह जो कुछ समाज में
अब िक के महामानिों ारा उपि कराया गया था वजसको ीकारने, मानने और समझने िािे हैं , उन सबको
ीकार के साथ स का प्र ुिीकरण है जो एक िरह से ीकार और हि के साथ विरोध ही है वजसका विक
वकसी राजनीविक दि, अ संगठन या मोिाष के पास नहीं हो सकिा क्योंवक स का विक वसफष स होिा है
और िह एक ही होिा है भारिीय संविधान के अनुसार वबना संसद के वि ास के कोई भी संिैधावनक पररििषन
स ि नहीं है इसविए इससे पहिे की यह वकसी दि का राजनीविक मु ा बने, सामूवहक रुप से सभी राजनीविक
दि इसे संसद में प्र ुि करें और ापक विं िन करके वक्रया यन के विए मंजूरी दे क्योंवक इसके समथषन के
वबना कोई भी म्मि, दि, संगठन यं अपने आप को भारिीय या भारि का र्शुभविंिक भी नहीं कह सकिा
भारि स आधाररि है और उस स का दे र्श-काि मुि सिष ापी सािषजवनक प्रमावणि रुप ि हो आपके
समक्ष प्र ुि है सोिने का विर्य है वक यवद उस रा৸ का नाम वह दू हो या एक म्मि से ि हुआ हो िो क्या
उस स को स नहीं कहें गे? यवद वकसी वमठाई का नाम जहर रख वदया जाये िो क्या उस वमठाई को खाना
छोड़ा जा सकिा है ? कदावप नहीं इससे िो यं की ही हावन होगी स को ीकारने और आ साि करने पर
एक िरह से वह दू और उस म्मि का ही ीकार और आ साि करना हुआ पर ु नाम नहीं गुण दे खें यहीं
विकास का मागष है
यवद सामूवहक रुप से संसद में इसे प्र ु ि नहीं वकया गया और यवद एक वकसी दि का राजनीविक
मु ा भी न बना िो भी वि ा का विर्य नहीं कम से कम यह जानकर खुर्शी होगी की भारि का र्शुभवि क वसफष
इस वस ा का आवि ारकिाष और उसका समूह ही है निमानि सृव किाष ई र (सािषभौम स -वस ा ) के
आठिें अििार भगिान िीकृ ारा प्रार वकया गया कायष और प्रथम िरण के विए ि म्मिगि प्रमावणि
आ ा के वनराकार रुप का सावह “गीिा” के प्रिार-प्रसार का पररणाम ही है वजससे आ ीय प्राकृविक बि
सवक्रय होकर वििर्शिािर्श ग्राम, क्षेत्र, नगर जनपद र पर पंिायि िथा प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ का

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 282


अविकवसि रुप ि हुआ है क्योंवक ৯ान बढ़ने से वस ा की प्राम्म होिी है और अब प्रार वकया गया कायष
और अम्म म िरण के विए ि सािषजवनक प्रमावणि आ ा के वनराकार रुप का सावह - “कमषिेद-प्रथम,
अम्म म िथा पंिमिेदीय िृंखिा” अथाष ि् “वि मानक-र्शू -मन की गुणि ा का वि मानक िृंखिा” के
प्र ुिीकरण के प्रभाि से वििर्शिािर्श म्मि से वि िक को गणरा৸ के स रुप को प्रा करने के विए वििर्श
कर दे गा िुम कमष करिे -करिे भारि का नार्श करिे हुए िहीं वस ा प्रा कर मुझ िक ही आओगे जो मैं पहिे
ही िु ारे सामने ि कर िुका हूँ िु म ििष मान भारि को भारि न बनने दो और मैं भवि का भारि स ू णष वि
को भारि बनाने का य -आ ाम्म क- ूट्रान बम ापकिा से छोड़ वदया हूँ भारि का नार्श करने िािे पहिे िुम
आराम से थे मैं परे र्शान था, अब िुम परे र्शान रहोगे मैं आराम करुूँगा िब ही मेरी जीि वनव ि है ये हैं -मानिीय
सीमा से परे की बुम्म , िेिना और आ र्शम्मि! म्मिगि प्रमावणि प्रथम सम यािायष योगे र िीकृ की
म्मिगि वर्शक्षा म्मि के विए थी- “समभाि (अ ै ि) में म्म थि हो कमष करो और पररणाम की इৢा मुझ (आ ा)
पर छोड़ दो ” और अब सािषजवनक प्रमावणि अम्म म सम यािायष भोगे र िी िि कुर्श वसंह “वि मानि“ की
सािषजवनक वर्शक्षा म्मि िथा संयुि म्मि के विए है - “समभाि (अ ै ि) में म्म थि िथा पररणाम के ৯ान से युि
हो कमष करो और पररणाम की इৢा मुझ (आ ा) पर छोड़ दो” ारा प्र ेक र के म्मि और संयुि म्मि के
विए पररणाम का ৯ान उसके समक्ष है
ई र के आठिें प्र क्ष एिम प्रेरक म्मिगि प्रमावणि पूणाष ििार िी कृ िथा वि ु (एका िाणी,
एका ৯ान, एका कमष ि एका प्रेम) के पूणाष ििार के रुप में ि िी कृ का मुূ गुण आदर्शष सामावजक
म्मि का िररत्र िथा अििारी गुणों में साकार र्शरीर आधाररि “परर्शुराम पर रा” की असफििा को दे खिे हुये
उसका नार्श करके वनराकार वनयम आधाररि “परर्शुराम पर रा” को प्रार करना था वजसके विऐ िे वि
मानक ৯ान ि म्मिगि प्रमावणि वि र्शा -गीिोपवनर्द् ि वकये
िीकृ का नाम बेिने िािे वसफष भम्मि में ही िीन हैं उनके मूि कायष वि मानक ৯ान िथा
वनराकार वनयम आधाररि “परर्शुराम पर रा” का नाम ही नहीं िेिे जबवक भारि िथा वि र पर गणरा৸ का
सिरुप वन विम्मखि रुप में ि हो िुका है
भारि में वनम्म िम्मखि रुप ि हो िुका था
1. ग्राम, विकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ और गणसंघ का रुप
2. वसफष ग्राम और नगर र पर राजा (ग्राम ि नगर पं िायि अ क्ष) का िुनाि सीधे जनिा ारा
3. गणरा৸ को संिाविि करने के विए संिािक का वनराकार रुप-संविधान
4. गणरा৸ के ि ों को सं िाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप-वनयम और कानून
5. राजा पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप-रा र पवि, रा৸पाि, वजिावधकारी इ ावद
वि र पर वन विम्मखि रुप ि हो िुका था
1. गणरा৸ों के सं घ के रुप में सं युि रा र सं घ का रुप
2. संघ के संिािन के विए संिािक और संिािक का वनराकार रुप-संविधान
3. संघ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रूप-वनयम और कानून
4. संघ पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रूप-पाूँ ि िीट्ो पािर
5. प्र ाि पर वनणषय के विए सद ों की सभा
6. नेिृ के विए राजा-महासविि
िीकृ की वदर्शा से र्शेर् कायष मानक कमष ৯ान का प्र ुिीकरण ारा वनयम आधाररि “परर्शुराम
पर रा” को पू णषिा प्रदान करना है वजसके विए वन विम्मखि की आि किा है -
1. गणरा৸ या िोकि के स रुप-गणरा৸ या िोकि के रूप का वि मानक
2. राजा और सभा सवहि गणरा৸ पर वनय ण के विए साकार ब्रा ण का वनराकार रूप-मन का वि मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रूप-प्रब का वि मानक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 283


4. गणरा৸ के संिािन के विए संिािक का वनराकार रूप-संविधान के रूप का वि मानक
5. साकार ब्रा ण वनमाष ण के विए वर्शक्षा का रूप-वर्शक्षा पाਉक्रम का वि मानक
आवि ार विर्य- “ म्मिगि मन और संयुिमन का वि मानक और पूणषमानि वनमाष ण की
िकनीकी है वजसे धमष क्षे त्र से कमषिेद-प्रथम, अम्म म िथा पंिमिेदीय िृंखिा िथा र्शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की
गुणि ा का वि मानक िृंखिा िथा WCM-TLM-SHYAM.C िकनीकी कहिे है स ूणष आवि ार सािषभौम
स -वस ा अथाष ि् स ूणष ब्र ाਔ में ा अट्िनीय, अपररििषनीय, र्शा ि ि सनािन वनयम पर आधाररि है , न
वक मानिीय वििार या मि पर आधाररि ”
स ूणष ब्र ाਔ में ा एक ही स -वस ा ारा म्मिगि ि संयुि मन को एकमुखी कर
सिोৡ, मूि और अम्म म र पर थावपि करने के विए र्शू पर अम्म म आवि ार WS-0 : िृंखिा की
वन विम्मखि पाूँ ि र्शाखाएूँ हैं
01. ड ू.एस.(WS)-0 -विचार एिम् सावह का वि मानक
02. ड ू.एस.(WS)-00 -विषर् एिम् विशेष৯ोिं की पररभाषा का वि मानक
03. ड ू.एस.(WS)-000 -ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् र्ूल) के प्रब और वक्रर्ाकलाप का वि मानक
04. ड ू.एस.(WS)-0000 -मानि (सूक्ष्म तर्ा र्ूल) के प्रब और वक्रर्ाकलाप का वि मानक
05. ड ू.एस.(WS)-00000 -उपासना और उपासना र्ल का वि मानक
भारत सरकार इस श्ृिंखला को र्ावपत करने के वलए सिंसद में प्र ाि प्र ुत कर अपने
सिं र्ान भारतीर् मानक ूरो ¼BIS½ के मा म से समकक्ष श्ृिंखला र्ावपत कर वि ापी र्ापना के
वलए अ राण र ीर् मानकीकरर् सिं िठन ¼ISO½ के समक्ष प्र ुत कर सकता है सार् ही सिं र्ुक्त रा र
सिंघ ¼UNO½ में भी प्र ुत कर सिं र्ुक्त रा र सिं घ के पु नणिठन ि पू र्ण लोकतिंत्र की प्रान्त के वलए मािण वदखा
सकता है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 284


02.रा र ोिं के सिंघ-सिंर्ुक्त रा र सिंघ को स और अन्त म मािणदशणन

प्रकावर्शि खुर्शमय िीसरी सह ाम्म के साथ यह एक सिोৡ समािार है वक नयी सह ाम्म केिि
बीिे सह ाम्म यों की िरह एक सह ाम्म नहीं है यह प्रकावर्शि और वि के विए नये अ ाय के प्रार का
सह ाब्र्वद है केिि िि ों ारा िশ वनधाष रण का नहीं बम्म गीकरण के विए अवसमीि भूमਔिीय मनु
और सिोৡ अवभभािक सं युि रा र सं घ सवहि सभी र के अवभभािक के किष के साथ कायष योजना पर
आधाररि क्योंवक दू सरी सह ाम्म के अ िक वि की आि किा, जो वकसी के ारा प्रविवनवध नहीं हुई
उसे वििादमुि और सफििापूिषक प्र ु ि वकया जा िुका है जबवक विवभ विर्यों जैसे-वि৯ान, धमष, आ ा ,
समाज, रा৸, राजवनवि, अ राष र ीय स , पररिार, म्मि, विवभ सं गठनों के वक्रयाकिाप, प्राकृविक,
ब्र ाਔीय, दे र्श, सं युि रा र सं घ इ ावद की म्म थवि और पररणाम सािषजवनक प्रमावणि रुप में थे
वि৯ान के सिोৡ आवि ार के आधार पर अब यह वििाद मुि हो िुका है वक मन केिि म्मि,
समाज, और रा৸ को ही नहीं प्रभाविि करिा बम्म यह प्रकृवि और ब्र ाਔ को भी प्रभाविि करिा है
के ीयकृि और ानीकृि मन विवभ र्शारीररक सामावजक और रा৸ के असमा िाओं के उपिार का अम्म म
मागष है थायी म्म थरिा, विकास, र्शाम्म , एकिा, समपष ण और सुरक्षा के विए प्र े क रा৸ के र्शासन प्रणािी के विए
आि क है वक रा৸ अपने उ े के विए नागररकों का वनमाष ण करें और यह वनधाष ररि हो िुका है वक क्रमब
थ मानि पीढ़ी के विए वि की सुरक्षा आि क है इसविए वि मानि के वनमाष ण की आि किा है , िेवकन
ऐसा नहीं है और विवभ अवनयम्म ि सम ा जैसे-जनसंূा, रोग, प्रदू र्ण, आिंकिाद, भ्र ािार, विके ीकृि मानि
र्शम्मि एिं कमष इ ावद िगािार बढ़ रहे है जबवक अ ररक्ष और ब्र ाਔ के क्षेत्र में मानि का ापक विकास
अभी र्शेर् है दू सरी िरफ िाभकारी भूमਔिीकरण विर्शेर्ीकृि मन के वनमाष ण के कारण विरोध और नासमझी से
संघर्ष कर रहा है और यह अस ि है वक विवभ विर्यों के प्रवि जागरण सम ाओं का हि उपि कराये गा
मानक के विकास के इविहास में उ ादों के मानकीकरण के बाद ििषमान में मानि, प्रवक्रया और
पयाष िरण का मानकीकरण िथा थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एिं आई0 एस0 ओ0-14000 िृंखिा के ारा
मानकीकरण के क्षेत्र में बढ़ रहा है िेवकन इस बढ़िे हुए िृंखिा में मनु की आि किा (जो मानि और
मानििा के विए आि क है ) का आधार “मानि संसाधन का मानकीकरण” है क्योंवक मनु सभी (जीि और
नीजीि) वनमाष ण और उसका वनय णकिाष है मानि सं साधन के मानकीकरण के बाद सभी विर्य आसानी से िশ
अथाष ि् वि रीय गुणि ा की ओर बढ़ जाये गी क्योंवक मानि संसाधन के मानक में सभी ि ों के मूि वस ा का
समािेर्श होगा
ििषमान समय में र्श - “वनमाष ण” भूमਔिीय रुप से पररविि हो िुका है इसविए हमें अपना िশ
मनु के वनमाष ण के विए वनधाष ररि करना िावहए और दू सरी िरफ वििादमुि, , प्रकावर्शि िथा ििषमान
सरकारी प्रवक्रया के अनुसार मानक प्रवक्रया उपि है जैसा वक हम सभी जानिे हैं वक मानक हमेर्शा स का
सािषजवनक प्रमावणि विर्य होिा है न वक वििारों का म्मिगि प्रमावणि विर्य अथाष ि् प्र ुि मानक विवभ
विर्यों जैसे-आ ा , वि৯ान, िकनीकी, समावजक, नीविक, सै ाम्म क, राजनीविक इ ावद के ापक समथषन के
साथ होगा “उपयोग के विए िैयार” िथा “प्रवक्रया के विए िैयार” के आधार पर प्र ुि मानि के वि रीय
वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C
(World Class Manufactuing–Total Life Maintenance-Satya, Heart, Yoga, Ashram,
Meditation.Conceousness)प्रणािी आवि ृ ि है वजसमें स ूणष ि
सहं भावगिा (Total System Involvement-TSI) है औरं वि मानक र्शू -मन की गुणि ा का वि मानक
िृंखिा (WS-0 : World Standard of Mind Series) समावहि है जो और कुछ नहीं, यह वि मानि वनमाष ण
प्रवक्रया की िकनीकी और मानि संसाधन की गुणि ा का वि मानक है जैसे -औ ोवगक क्षेत्र में इ ी০ू ट् आफ
ा मे ीने , जापान ारा उ ादों के वि रीय वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए उ ाद वनमाष ण िकनीकी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 285


ड ू0 सी0 एम0-ट्ी0 पी0 एम0-5 एस (WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-
Total Productive Maintenance- Siri(छूँ ट्ाई) ,
Seton (सु िम्म थि), Sesso ( ৢिा), Siketsu (अৢा र), Shituke (अनुर्शासन) प्रणािी संिाविि है वजसमें
स ूणष कमषिारी सहभावगिा (Total Employees Involvement) है ) का प्रयोग उ ोगों में वि रीय वनमाष ण
प्रवक्रया के विए होिा है और आई.एस.ओ.-9000 (ISO-9000) िथा आई.एस.ओ.-14000 (ISO-14000) है
युग के अनुसार स ीकरण का मागष उपि कराना ई र का किष है आवििों पर स ीकरण का
मागष प्रभाविि करना अवभभािक का किष है और स ीकरण के मागष के अनुसार जीना आवििों का किष है
जैसा वक हम सभी जानिे है वक अवभभािक, आवििों के समझने और समथषन की प्रविक्षा नहीं करिे अवभभािक
यवद वकसी विर्य को आि क समझिे हैं िब केिि र्शम्मि और र्शीघ्रिा से प्रभािी बनाना अम्म म मागष होिा है
वि के बৡों के विए यह अवधकार है वक पूणष ৯ान के ारा पूणष मानि अथाष ि् वि मानि के रुप में बनना हम सभी
वि के नागररक सभी र के अवभभािक जैसे -महासविि सं युि रा र सं घ, रा र ों के रा र पवि-प्रधानमंत्री, धमष,
समाज, राजनीवि, उ ोग, वर्शक्षा, प्रब , पत्रकाररिा इ ावद ारा अ समाना र आि क िশ के साथ इसे
जीिन का मुূ और मूि िশ वनधाष ररि कर प्रभािी बनाने की आर्शा करिे हैं क्योंवक िশ वनधाष रण िि का
सूयष नये सह ाम्म के साथ डूब िुका है और कायष योजना का सूयष उग िुका है इसविए धरिी को गष बनाने
का अम्म म मागष वसफष किष है और रहने िािे वसफष स -वस ा से युि संयुिमन आधाररि मानि है , न वक
संयुिमन या म्मिगिमन के युिमानि
आवि ार विर्य- “ म्मिगि मन और संयुिमन का वि मानक और पूणषमानि वनमाष ण की
िकनीकी है वजसे धमष क्षे त्र से कमषिेद-प्रथम, अम्म म िथा पंिमिेदीय िृंखिा िथा र्शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की
गुणि ा का वि मानक िृंखिा िथा WCM-TLM-SHYAM.C िकनीकी कहिे है स ूणष आवि ार सािषभौम
स -वस ा अथाष ि् स ूणष ब्र ाਔ में ा अट्िनीय, अपररििषनीय, र्शा ि ि सनािन वनयम पर आधाररि है , न
वक मानिीय वििार या मि पर आधाररि ”
स ूणष ब्र ाਔ में ा एक ही स -वस ा ारा म्मिगि ि संयुि मन को एकमुखी कर
सिोৡ, मूि और अम्म म र पर थावपि करने के विए र्शू पर अम्म म आवि ार WS-0 : िृंखिा की
वन विम्मखि पाूँ ि र्शाखाएूँ हैं
01. ड ू.एस.(WS)-0 -विचार एिम् सावह का वि मानक
02. ड ू.एस.(WS)-00 -विषर् एिम् विशेष৯ोिं की पररभाषा का वि मानक
03. ड ू.एस.(WS)-000 -ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् र्ूल) के प्रब और वक्रर्ाकलाप का वि मानक
04. ड ू.एस.(WS)-0000 -मानि (सूक्ष्म तर्ा र्ूल) के प्रब और वक्रर्ाकलाप का वि मानक
05. ड ू.एस.(WS)-00000 -उपासना और उपासना र्ल का वि मानक
सिं र्ुक्त रा र सिं घ सीधे इस मानक श्ृिं खला को र्ापना के वलए अपने सद दे शोिं के महासभा
के समक्ष प्र ुत कर अ राण र ीर् मानकीकरर् सिंिठन ि वि ापार सिं िठन के मा म से सभी दे शो में
र्ावपत करने के वलए उसी प्रकार बा कर सकता है, वजस प्रकार ISO-9000 ि ISO-14000 श्ृिंखला का
वि ापी र्ापना हो रहा है

120 िषण पहले ामी वििे कान का कर्न वजसके 50 िषण बाद सिंर्ुक्त रा र सिंघ का िठन हुआ-
“समग्र संसार का अखਔ , वजसकें ग्रहण करने के विए संसार प्रिीक्षा कर रहा है , हमारे उपवनर्दों
का दू सरा भाि है प्रािीन काि के हदब ी और पाथष क्य इस समय िेजी से कम होिे जा रहे हैं हमारे उपवनर्दों ने
ठीक ही कहा है - “अ৯ान ही सिष प्रकार के दु ःखो का कारण है ” सामावजक अथिा आ ाम्म क जीिन की हो वजस
अि था में दे खो, यह वब ु ि सही उिरिा है अ৯ान से ही हम पर र घृणा करिे हैं , अ৯ान से ही एक एक दू सरे
को जानिे नहीं और इसविए ार नहीं करिे जब हम एक दू सरे को जान िेंगे, प्रेम का उदय हे ागा प्रे म का उदय

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 286


वनव ि है क्योंवक क्या हम सब एक नहीं हैं ? इसविए हम दे खिे है वक िे ा न करने पर भी हम सब का एक भाि
भाि से ही आ जािा है यहाूँ िक की राजनीवि और समाजनीवि के क्षेत्रों में भी जो सम ायें बीस िर्ष पहिे
केिि रा र ीय थी, इस समय उसकी मीमां सा केिि रा र ीयिा के आधार पर और विर्शाि आकार धारण कर रही हैं
केिि अ राष र ीय सं गठन, अ राष र ीय विधान ये ही आजकि के मूिि रूप हैं ”
- ामी वििेकान
ितणमान में लि कुश वसिंह “वि मानि” का कर्न-
“र्शासन और र्शासक, विकासा क हो या विनार्शा क प्रणािी कोई भी हो-एकि ा क अथाष ि्
राजि या बहुि ा क िोकि िह िब िक अब थायी और अपने उ े में सफि नहीं हो सकिा जब िक
वक िह अपने उ े की प्राम्म के अनुरूप जनिा का वनमाष ण और उ ादन न करें हमारा उ े है - “अपने
सीवमि कमष सवहि असीम मन युि मानि का वनमाष ण और उ ादन” , वजसके विए हमारे स ुख दो मागष है -एक-
गणरा৸ों का संघ भारि, दू सरा-रा र ों का सं घ संयुि रा र सं घ दोनों एक ही है बस कमष क्षे त्र की सीमा में अ र
है दोनों का उ े एक है बस कायष अिग है भारि का अपने जनिा के प्रवि किष और दावय िथा वि के
विए संयुि रा र सं घ ारा ऐसी वििादमुि प्रब नीवि उपि कराना है वजससे दोनों अपने उ े को वनबाष ध
गवि से प्रा करें जबवक सं युि रा र सं घ को वसफष अपने अधीन कायष स ादन ही करना मात्र है उसे प्रब
नीवि का आवि ार नहीं करना है िह कर भी नहीं सकिा और न ही वकया क्योंवक िह पा ा के प्रभाि मਔि
में है पा ा के पास स के आवि ार का इविहास नहीं है जबवक प्रा০ के पास सनािन से स के आवि ार
का ापक संक्रमणीय, सं ग्रहणीय और गुणा क रूप से अनुभि संग्रहीि है अब भारि म्मिगि प्रमावणि भाि
आधाररि स नहीं कहे गा क्योंवक अब सािषजवनक प्रमावणि कमष, ि और मानक आधाररि समय आ गया है
जो वि ापी रूप से पदाथष वि৯ान और आ ा वि৯ान सवहि प्रा০ और पा ा सं ृ वियों में सािषजवनक रूप
से प्रमावणि होगा और उस वििादमुि प्रब नीवि से जब मूि अवधकार वर्शक्षा ारा मनु का वनमाष ण और
उ ादन होगा िब भारि िथा सं युि रा र सं घ को उसका उ े प्रा होगा अ था िह रोको-रोको, वनरोध-
वनरोध िािे कानून में ही अवधकावधक समय ि धन खिष करिा रहे गा वजसकी जवट्ििा बढ़िे ही जाना है भारि
और संयुि रा र सं घ दोनों में से वकसी के प्रार से मनु का “वि मानि” के रूप में वनमाष ण और उ ादन प्रार
हो जायेगा वि के सभी दे र्शों के बीि सं ृ वियों का वमिण िेजी से हो रहा है ऐसी म्म थवि में उसे मानि सं साधन
जो वक सम वनमाष ण और उ ादन का मूि है , का भी विवभ विर्यों की भां वि मानकीकरण िथा वि प्रब के
विए प्रब का मानकीकारण करना ही होगा स ूणष वि में वनमाष ण से उ उ ाद की गुणि ा का मानक,
सं था की गुणि ा ISO-9000 वफर प्रकृवि के क ि ि दावय को यं का किष ि दावय मानकर पयाष िरण
की गुणि ा का मानक ISO-14000 ीकारा जा िुका है िो वफर गुणि ा से युि प्रकृवि की भाूँ वि यं मनु
अपना गुणि ा का मानकीकारण कब करे गा? िह मागष जो अभी िक उपि नहीं था िह वि मानक-र्शू (WS-
0)-मन की गुणि ा का वि मानक िृंखिा के रूप में उपि हो िुका है जो मेरा क ि था और अब अ
मानिों का अवधकार है संसाधन, ৯ान-वि৯ान, िकनीकी से युि पृ ी कमि की भाूँ वि म्मखिने को उ ुक है ,
मानििा का रिना क सहयोग िेकर भारि िथा सं युि रा र सं घ, उसके म्मखिने में सहयोग करें जो उसका
किष और दावय है वजस पर मनु ई र रूप में विराजमान हो सके “
-लि कुश वसिंह “वि मानि”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 287


03. अितारी सिंविधान से वमलकर भारतीर् सिंविधान बनार्ेिा वि सरकार का
सिंविधान
7 अरब की जनसंূा से ऊपर की ओर बढ़िा सौरमਔि का यह पृ ी ग्रह वजसकी स ूणष
जनसंূा का पाूँ ििां वह ा अकेिे इस िीन ओर से वघरा सु र, पररिविषि मौसम युि भूवम िपोभूवम भारि में ही
है इिनी विर्शाि जनसंূा को एक र्शासन ि था में बाूँ धे रखने की के विए भारि की र्शारीररक ि िा 15
अग , 1947 के बाद जो प्रणािी अपनायी गयी िह है -िोकि प्रणािी िूूँवक इिनी बड़ी जनसंূा का िोकि
वकसी भी दे र्श में नहीं है इसविए यह वि का सबसे बड़ा िोकि भी है अथाष ि् इसे ििषमान समय का सबसे बड़ा
संयुि मन या समव मन या वि मन भी कह सकिे हैं भारि का यह संसद उस संसद का छोट्ा रूप है वजसकी
िरम विकवसि अि था िोकि आधाररि वि रा र के विए वि संसद है जो वि नागररकों के विए वि सं विधान
और वि सरकार को प्र ुि कर सके वजस प्रकार यह वि वकसी एक व वििार का नहीं हो सकिा क्योंवक
वजस प्रकार वि में अनेकों स दाय और व वििार के समथष क हैं , ठीक उसी प्रकार छोट्े रूप में भारि में भी
है अथाष ि् भारि सरकार हो या वि सरकार उसका सं विधान हमेर्शा धमषवनरपेक्ष अथाष ि् सिषधमषसमभाि अथाष ि् धमष
अथाष ि् एक आधाररि ही हो सकिा है यहाूँ धमष र्श से ििषमान अथो में वकसी विर्शेर् व धमष (स दाय) को
नहीं समझना िावहए धमष र्श को समव धमष (एक या संयुि धमष) के रूप में विया गया है क्योंवक व धमष
िो कई हो सकिे हैं और हैं भी पर ु समव धमष एक ही होिा है , और र्शा ि से एक ही है और एक ही रहे गा
राजि हो या िोकि प्रणािी, दोनों में मुূि: जो विर्शेर् होिी हैं िे हैं -संविधान वजससे स ूणष
र्शावसि क्षेत्र, प्रणािी और पद वनयवमि होिी हैं कानून वजससे अवधकार, ाय की प्राम्म सवहि अपराधों पर
वनयंत्रण वकया जािा है इसके अिािा समय-समय पर वपछिे कायों और वनणषयों के अनुभि के आधार पर विवभ
प्रणािी जैसे वर्शक्षा, आवथषक, उ ोग, क ाण, कर, विदे र्श इ ावद के सु धार की नीवि वनधाष रण के विए प्राविधान जो
मंत्री मਔि या स म्म ि मंत्री ारा वनधाष ररि होिी है ये विवभ प्रणािी ही समव ि अथाष ि् सं युि मन ि
कहिािे हैं राजि प्रणािी में ये ि पूणषिया स म्म ि दे र्श के साकार राजा ारा वनधाष ररि होिा है जबवक
िोकि में ये ि पूणषिया स म्म ि दे र्श के वनराकार संविधान और सरकार ारा वनधाष ररि होिा है सरकार
उसी की होिी है वजसका बहुमि होिा है बार-बार सरकार बदिने से प्रणािीयों पर भी प्रभाि पड़िा है और उन
प्रणािी का पू णष पररणाम प्रा हुये वबना भी बदिाि की म्म थवि आ जािी है पररणाम रूप ि थाएूँ अस ुिन
की म्म थवि की ओर बढ़ जािी है
समाज और रा৸ को वनयंवत्रि करने के विए प्रा০ आ ाम्म क भारिीय प्रणािी “मूि” आधाररि है
जबवक पा ा भौविकिा प्रणािी “फि” आधाररि है यह मूि और फि ही संसार का प्रथम और प्रािीन भारिीय
दर्शषन के जनक कवपि मुवन के “वक्रया-कारण” वनयम का कारण और वक्रया है जो र्शा ि से अकाਅ है और िह
सदा ही अकाਅ बना भी रहे गा क्योंवक िह सािषजवनक रूप से प्रमावणि र्शा ि स है प्रा০ भारिीय प्रणािी
वनयम बनािे समय कारण ारा प्रेररि होकर वनयंवत्रि करने का वनयम बनािा है ििषमान की अम्म म आि किा
“৯ान ही सम दु ःखों और सम ाओं का नार्शकिाष है ”, यह कारण केम्म ि मन ारा ही उ हुआ है वकसी भी
विर्य के प्रवि उपयोवगिा ि दु रूपयोवगिा की व म्मि की नैविकिा पर ही वनभषर करिी है यह नैविकिा अ :
जगि का विर्य है जो ৯ान ारा उ होिा है , न वक बा जगि के ापक कानू न से ििषमान समय का उपरोि
िवणषि संविधान, कानून और समव ि फि आधाररि पा ा प्रणािी केम्म ि है वजससे नैविक उ ान कभी भी
स ि नहीं है क्योंवक फि आधाररि ि था िह है वजसमें अनैविक कमष हो जाने के बाद वनयंत्रण के उपाय होिे हैं
िथा कारण आधाररि ि था िह है वजसमें अनैविक कमष होने की स ािना को ही कम वकया जािा है क्योंवक यह
नैविक उ ान आधाररि होिी है भारि को छोड़कर अ दे र्शों को नैविक उ ान की आि किा हो या न हो
पर ु भारि को नैविक उ ान की आि किा इसविए है वक िह वि के र्शाम्म , एकिा, म्म थरिा, विकास एिं रक्षा
का नेिृ किाष की यो৓िा रखिा है और उसका वि के प्रवि दावय भी है साथ ही वि का सबसे बड़ा िोकि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 288


उसके ारा ही संिाविि हो रहा है और उसे यह वस भी करना है वक हमारा संविधान और िोकि प्रणािी ही
वि को सही वदर्शा और सािषजवनक स को प्र ुि कर सकिा है राज का सही अथष है - “ ” अथाष ि् “मैं”
अथाष ि् “आ ा” का अथष “जो सभी में ा है ” अथाष ि् “सािषभौम” अथाष ि् “समव ” का राज है न वक “ ” अथाष ि्
“मैं” अथाष ि् “र्शरीर” अथाष ि् “ म्मिगि” अथाष ि् “ व ” का राज समव राज ही िा विक राज है और यही
दे ििाओं का राज है जबवक व राज अस राज है और यही असुरों का राज है यही धमष राज और
अधमष राज है इसके अपने -अपने समथषक सदै ि अपनी सिोৡिा के विए आपस में यु करिे रहे हैं
प्रािीन भारिीय प्रणािी में नैविक उ ान के विए जीिन की प्रथम सीढ़ी ब्र ियष आिम थी, जहाूँ
गुरूकुि ारा ৯ान-अ वि৯ान-अ िकनीकी एिं जीिन के विए आि क वि ाओं का ৯ान दे कर आिायष
का दावय समाज में एक नैविकिायुि पूणष मानि दे ना होिा था यह गुरूकुि का क ि और उ े भी होिा
था पररणाम रूप प्र ेक म्मि विर्यों की उपयोवगिा और दु रूपयोवगिा को समझने में सक्षम होिा था र्शेर्
सभी ि उिने विकवसि नहीं थे िेवकन िे भी अ ि रूप से स -वस ा ारा ही संिाविि होिे थे क्योंवक
उनके मूि वस ा का ৯ान उ ें ब्र ियष आिम में प्रदान कर वदये जािे थे आि किा पड़ने पर आिायष राजा
की सम ाओं को भी सु िझािे थे या मागदर्शषन दे िे थे पर ु िे कभी भी राजा के पद पर पीठासीन नहीं होिे थे
ििषमान में यह आिम प्रथा प्रणािी स ि नहीं है िेवकन वर्शक्षा प्रणािी ि पाਉक्रम को स -वस ा युि अथाष ि्
৯ान- वि৯ान- िकनीकी एिं जीिन की आि क वि ाओं का ৯ान से युि कर दे ने पर उसके उ े को
प्रा वकया जा सकिा है इसी प्रकार ििषमान समय के विवभ ि ों को भी वििाद मुि स -वस ा युि
बनाया जा सकिा है इससे िाभ यह होगा वक सरकार म्म थर रहे या अम्म थर, सं सदीय प्रणािी हो या रा र पवि
प्रणािी, एकि ीय प्रणािी हो या बहुि ीय प्रणािी सभी के विकास की मूि आि किा सवहि नैविकिायुि
पूणष मानि का वनमाष ण वर्शक्षा के मा म से िििा रहे गा ििषमान नेिृ किाष िाहे जैसे भी हों पर ु आने िािे
नेिृ किाष ऐसे न रहें गे ििषमान नेिृ किाष ओं को ऐसा करना भी िावहए क्योंवक इसके विए उ ें कम से कम
भवि की थिा के विए ऐसा कायष करने का िेय िो प्रा हो जाये गा और भारि को उसके राज का
िा विक अथष भी प्रा हो जायेगा
अ ৯ान का रूप है -कमष इस कमष के दर्शषन को ही मूि मानकर सािषजवनक स -वस ा
के आधार पर समव ि अथाष ि् संयुि मन ि अथाष ि् िोकि मन के सभी ि ों का वििादमुि रूप
ि कर भारिीय संविधान को वि संविधान में पररिविषि करने के विए वििादमुि ि ों पर आधाररि भारि का
संविधान का वनमाष ण करना होगा क्योंवक ििषमान संविधान संयुि मन युि मानिों ारा वनवमषि है जबवक संविधान
का स रूप-स से युि संयुि मन से युि मानिों (अििार) ारा वनवमषि होिा है जो ििषमान संविधान का
अगिा और अम्म म िरण है अथाष ि् ििषमान संविधान, स संविधान की प्राम्म की ओर बढ़िा हुआ एक कदम ही
है न वक पूणष रूपेण गिि संविधान वजसके स में ामी वििेकान जी ने संकेि दे िे हुए 100 िर्ष पहिे ही
कहे थे - “हे मेरे वमत्रों, प्र ेक दे र्श में एक ही वनयम है िह यह वक थोड़े से र्शम्मिमान मनु जो भी करिे हैं िही
होिा है बाकी सब िोग भे वड़याधसान का ही अनुकरण करिे हैं मैंने िु ारे पाविषयामे , सीनेट्, िोट्, मेजाररट्ी,
बैिट् आवद सब दे खा है सभी जगह ऐसा ही है अब प्र यह है वक भारििर्ष में कौन र्शम्मिमान पुरूर् है ? िे ही
जो धमषिीर हैं िे ही हमारे समाज को ििािे हैं िे ही समाज की रीवि-नीवि में पररििषन की आि किा होने पर
उसे बदि दे िे हैं हम िु पिाप उसे सु निे हैं और उसे मानिे हैं (वििे कान रा र को आ ान, रामकृ वमर्शन,
पृ -55)” संविधान, वनयम, कानून के स में उ ोंने कहा था वक- “एक बाि पर वििार करके दे म्मखये, मनु
वनयमों को बनािा है या वनयम मनु को बनािे हैं ? मनु रूपया पैदा करिा है या रूपया मनु को पैदा करिा
है ? मनु कीविष और नाम पैदा करिा है या कीविष और नाम मनु को पैदा करिा है ? मेरे वमत्रों पहिे मनु बवनये,
िब आप दे खेंगे वक िे सब बाकी िीजें यं आपका अनुसरण करें गी पर र के घृवणि े र्भाि को छोवड़ये और
सदु दे , सदु पाय, स ाहस एिं सदीघष का अिि न कीवजए आपने मनु योवन में ज विया है िो अपनी कीविष
यहीं छोड़ जाइए (वििे कान रा र को आ ान, रामकृ वमर्शन, पृ -55)”

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 289


स से सािषभौम स -वस ा िक का मागष अििारों का मागष है सािषभौम स -वसं ा की
अनुभूवि ही अििरण है इसके अंर्श अनुभूवि को अंर्श अििार िथा पूणष अनुभूवि को पूणष अििार कहिे है
अििार मानि मात्र के विए ही कमष करिे हैं न वक वकसी विर्शेर् मानि समूह या स दाय के विए अििार, धमष,
धमषवनरपेक्ष ि सिषधमषसमभाि से युि अथाष ि् एका से युि होिे है इस प्रकार अििार से उ र्शा मानि के
विए होिे हैं , न वक वकसी विर्शेर् मानि समूह के विए उ ेरक, र्शासक और मागषदर्शष क आ ा सिष ापी है
इसविए एका का अथष सं युि आ ा या सािषजवनक आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा
है िब िह समाज कहिािा है जब एका का अथष म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है
अििार, संयुि आ ा का साकार रुप होिा है जबवक म्मि म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन
प्रणािी में समाज का समथष क दै िी प्रिृव िथा र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या
समाजि या जनि या बहुि या राज कहिािा है और क्षेत्र गणरा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज
कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि का समथषक असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या
एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸ कहिािा है ऐसी ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी
प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि अपने -अपने अवधप के विए सं घर्ष होिा रहा है जब-जब समाज में
एकि ा क या राजि ा क अवधप होिा है िब-िब मानििा या समाज समथषक अििारों के ारा गणरा৸
की थापना की जािी है या यूूँ कहें गणि या गणरा৸ की थापना ही अििार का मूि उ े अथाष ि् िশ होिा
है र्शेर् सभी साधन अथाष ि् मागष
अििारों के प्र क्ष और प्रेरक दो कायष विवध हैं प्र क्ष अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का प्र क्ष
प्रयोग कर समाज का स ीकरण करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग होिा है जब अधमष का नेिृ
एक या कुछ मानिों पर केम्म ि होिा है प्रेरक अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का अप्र क्ष प्रयोग कर
समाज का स ीकरण जनिा एिं नेिृ किाष के मा म से करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग
होिा है जब समाज में अधमष का नेिृ अनेक मानिों और नेिृ किाष ओं पर केम्म ि होिा है
इन विवधयों में से कुि मुূ दस अििारों में से प्रथम साि (म , कूमष , िाराह, नृवसंह, िामन,
परर्शुराम, राम) अििारों ने समाज का स ीकरण प्र क्ष विवध के प्रयोग ारा वकया था आठिें अििार (िीकृ ) ने
दोनों विवधयों प्र क्ष ओर प्रेरक का प्रयोग वकया था निें (भगिान बु ) और अम्म म दसिें अििार की कायष विवध
प्रेरक ही है
जि- ािन (जहाूँ जि है िहाूँ थि और जहाूँ थि है िहाूँ जि) के समय मछिी से मागष दर्शषन (मछिी
के गिीर्शीििा से वस ा प्रा कर) पाकर मानि की रक्षा करने िािा ई र (सािषभौम स -वस ा ) का पहिा
अंर्शाििार म ाििार के बाद मानि का पुनः विकास प्रार हुआ दू सरे कूमाष ििार (कछु ए के गुण का वस ा ),
िीसरे - िाराह अििार (सुअर के गुण का वस ा ), िौथे- नृ वसंह (वसंह के गुण का वस ा ), िथा पाूँ ििे िामन
अििार (ब्रा ण के गुण का वस ा ) िक एक ही साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हुआ करिे थे और जब-
जब िे रा৸ समथषक या उसे बढ़ािा दे ने िािे इ ावद असुरी गुणों से युि हुए उ ें दू सरे से पाूँ ििें अंर्शाििार ने
साकार रुप में कािानुसार वभ -वभ मागों से गुणों का प्रयोग कर गणरा৸ का अवधप थावपि वकया
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के छठें अंर्श अििार परर्शुराम के समय िक मानि जावि का विकास
इिना हो गया था वक अिग-अिग रा৸ों के अनेक साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हो गये थे उनमें से जो भी
रा৸ समथषक असुरी गुणों से युि थे उन सबको परर्शुराम ने साकार रुप में िध कर डािा पर ु बार-बार िध की
सम ा का थाई हि वनकािने के विए उ ोंने रा৸ और गणरा৸ की वमविि ि था ारा एक ि था दी जो
आगे ििकर “परर्शु राम पर रा” कहिायी ि था वन प्रकार थी-
1. प्रकृवि में ा िीन गुण- स , रज और िम के प्रधानिा के अनुसार मनु का िार िणों में वनधाष रण स गुण
प्रधान - ब्रा ण, रज गुण प्रधान-क्षवत्रय, रज एिं िम गुण प्रधान-िै , िम गुण प्रधान-र्शूि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 290


2. गणरा৸ का र्शासक राजा होगा जो क्षवत्रय होगा जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि जो रज गुण अथाष ि् कमष
अथाष ि् र्शम्मि प्रधान है
3. गणरा৸ में रा৸ सभा होगी वजसके अनेक सद होंगे जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि के स , रज एिं िम
गुणों से युि विवभ ि ु हैं
4. राजा का वनणषय रा৸सभा का ही वनणषय है जैसे-ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि का वनणषय िहीं है जो स , रज
एिं िम गुणों का सम्म विि वनणषय होिा है
5. राजा का िुनाि जनिा करे क्योंवक िह अपने गणरा৸ में सिष ापी और जनिा का सम्म विि रुप है जैसे-
ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि सिष ापी है और िह स , रज एिं िम गुणों का सम्म विि रुप है
6. राजा और उसकी सभा रा৸िादी न हो इसविए उस पर वनय ण के विए स गुण प्रधान ब्रा ण का वनय ण
होगा जैसे- ब्र ाਔीय गणरा৸ में प्रकृवि पर वनय ण के विए स गुण प्रधान आ ा का वनय ण होिा है
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के साििें अंर्श अििार िीराम ारा इसी परर्शुराम पर रा का ही
प्रसार और थापना हुआ था
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के आठिें अििार िीकृ के समय िक म्म थवि यह हो गयी थी राजा
पर वनय ण के विए वनयुि ब्रा ण भी समाज और धमष की ाূा करने में असमथष हो गये क्योंवक अनेक धमष
सावह ों, मि-मिा र, िणष , जावियों में समाज विभावजि होने से म्मि संकीणष और वद भ्रवमि हो गया था और
रा৸ समथषकों की संূा अवधक हो गयी थी पररणाम रुप मात्र एक ही रा ा बिा था- निमानि सृव इसके
विए उ ोंने स ूणष धमष -सावह ों और मि-मिा रों के एकीकरण के विए आ ा के सिष ापी म्मिगि प्रमावणि
वनराकार रुप का उपदे र्श ”गीिा“ ि वकये और गणरा৸ का उदाहरण ाररका नगर का वनमाष ण कर वकये
उनकी गणरा৸ ि था उनके जीिन काि में ही न हो गयी पर ु “गीिा” आज भी प्रेरक बनीं हुई है
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के निें अििार भगिान बु के समय पुनः रा৸ एकि ा क होकर
वहं सा क हो गया पररणाम रुप बु ने अवहं सा के उपदे र्श के साथ म्मियों को धमष, बुम्म और संघ के र्शरण में
जाने की वर्शक्षा दी संघ की वर्शक्षा गणरा৸ की वर्शक्षा थी धमष की वर्शक्षा आ ा की वर्शक्षा थी बुम्म की वर्शक्षा,
प्रब और संिािन की वर्शक्षा थी जो प्रजा के मा म से प्रेरणा ारा गणरा৸ के वनमाष ण की प्रेरणा थी
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के दसिें और अम्म म अििार के समय िक रा৸ और समाज िः ही
प्राकृविक बि के अधीन कमष करिे-करिे वस ा प्रा करिे हुए पूणष गणरा৸ की ओर बढ़ रहा था
पररणाम रुप गणरा৸ का रुप होिे हुए भी गणरा৸ वसफष रा৸ था और एकि ा क अथाष ि् म्मि समथषक
िथा समाज समथषक दोनों की ओर वििर्शिािर्श बढ़ रहा था
भारि में वनम्म िम्मखि रुप ि हो िुका था
1. ग्राम, विकास खਔ, नगर, जनपद, प्रदे र्श और दे र्श र पर गणरा৸ और गणसं घ का रुप
2. वसफष ग्राम ि नगर र पर राजा (ग्राम ि नगर पंिायि अ क्ष ) का िुनाि सीधे जनिा ारा
3. गणरा৸ को संिाविि करने के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान
4. गणरा৸ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप-वनयम और कानून
5. राजा पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप- रा र पवि, रा৸पाि, वजिावधकारी इ ावद
वि र पर वन विम्मखि रुप ि हो िुका था
1. गणरा৸ों के संघ के रुप में संयुि रा र संघ का रुप
2. संघ के संिािन के विए संिािक और संिािक का वनराकार रुप- संविधान
3. संघ के ि ों को संिाविि करने के विए ि और वक्रयाकिाप का वनराकार रुप- वनयम और कानून
4. संघ पर वनय ण के विए ब्रा ण का साकार रुप-पाूँ ि िीट्ो पािर
5. प्र ाि पर वनणषय के विए सद ों की सभा
6. नेिृ के विए राजा- महासविि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 291


वजस प्रकार आठिें अििार ारा ि आ ा के वनराकार रुप ”गीिा” के प्रसार के कारण आ ीय
प्राकृविक बि सवक्रय होकर गणरा৸ के रुप को वििर्शिािर्श समाज की ओर बढ़ा रहा था उसी प्रकार अम्म म
अििार ारा वन विम्मखि र्शेर् समव कायष पूणष कर प्र ु ि कर दे ने मात्र से ही वििर्शिािर्श उसके अवधप की
थापना हो जाना है
1. गणरा৸ या िोकि के स रुप- गणरा৸ या िोकि के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
2. राजा और सभा सवहि गणरा৸ पर वनय ण के विए साकार ब्रा ण का वनराकार रुप- मन का अ राष र ीय/
वि मानक
3. गणरा৸ के प्रब का स रुप- प्रब का अ राष र ीय/ वि मानक
4. गणरा৸ के संिािन के विए संिािक का वनराकार रुप- संविधान के रुप का अ राष र ीय/ वि मानक
5. साकार ब्रा ण वनमाष ण के विए वर्शक्षा का रुप- वर्शक्षा पाਉक्रम का अ राष र ीय/ वि मानक
इस समव कायष ारा ही काि ि युग पररििषन होगा न वक वसफष वि ाने से वक ”सियुग आयेगा” ,
”सियुग आयेगा” से यह समव कायष वजस र्शरीर से स होगा िही अम्म म अििार के रूप में ि होगा धमष
में म्म थि िह अििार िाहे वजस स दाय (ििषमान अथष में धमष) का होगा उसका मूि िশ यही र्शेर् समव कायष
होगा और थापना का मा म उसके स दाय की पर रा ि सं ृ वि होगी
वजस प्रकार के में संविधान संसद है , प्रदे र्श में संविधान विधान सभा है उसी प्रकार ग्राम नगर में भी
संविधान होना िावहए वजस प्रकार के और प्रदे र्श के ायािय और पुविस ि था है उसी प्रकार ग्राम नगर के
भी होने िावहए कहने का अथष ये है वक वजस प्रकार की ि थायें के और प्रदे र्श की अपनी हैं उसी प्रकार की
ि था छोट्े रुप में ग्राम नगर की भी होनी िावहए सं घ (रा৸) या महासंघ (के ) से स वसफष उस गणरा৸
से होिा है प्र ेक नागररक से नहीं संघ या महासंघ का कायष मात्र अपने गणरा৸ों में आपसी सम य ि स ुिन
करना होिा है उस पर र्शासन करना नहीं िभी िो सৡे अथों में गणरा৸ ि था या राज-सुराज ि था
कहिाये गी यहीं रा र वपिा महा ा गाूँ धी की प्रवस यु म्मि “भारि ग्राम (नगर) गणरा৸ों का संघ हो” और “राम
रा৸ ” का स अथष है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 292


04. “भारत “ के वि रूप का नाम है -”इन्तਔर्ा ”

भारि के संविधान के अनु ৢेद-एक में भारि के दो आवधकाररक नाम हैं -(इम्मਔया दै ट् इज भारि)
वह ी में “भारि” और अं गेजी में “इम्मਔया (INDIA)” इम्मਔया नाम की उ व वस ु नदी के अंग्रेजी नाम “इਔस“
से हुई है भारि नाम, एक प्रािीन वह दू सम्राट् भरि जो वक मनु के िंर्शज ऋर्भदे ि के ৸े पुत्र थे िथा वजनकी
कथा भागिि पुराण में है , के नाम से विया गया है भारि (भा + रि) र्श का मििब है - “आ ररक प्रकार्श में
िीन” एक िीसरा नाम “वह दु ान” भी है वजसका अथष है -वह या वह दू की भूवम, जो वक प्रािीन काि के ऋवर्यों
ारा वदया गया था प्रािीन काि में यह कम प्रयुि होिा था िथा कािा र में अवधक प्रिविि हुआ विर्शेर्कर
अरब/ईरान में भारि में यह नाम मुगि काि से अवधक प्रिविि हुआ य वप इसका समकािीन उपयोग कम और
प्राय-उ री भारि के विए होिा है इसके अविररि भारििर्ष को िैवदक काि से “आयाष ििष ”, “ज ू ीप” और
“अजनाभदे र्श” के नाम से भी जाना जािा रहा है बहुि पहिे यह दे र्श सोने की विवड़या जाना जािा था
भारि को एक सनािन रा र माना जािा है क्योंवक यह मानि स िा का पहिा रा र था भारिीय दर्शष न
के अनुसार सृव उ व के प ाि् ब्र ा के मानसपुत्र ायंभुि मनु ने ि था स ािी इनके दो पुत्र, वप्रयव्रि और
उ ानपाद थे उ ानपाद भि ध्रुि के वपिा थे इ ीं वप्रयव्रि के 10 पु त्र थे 3 पुत्र बा काि से ही विरि थे इस
कारण वप्रयव्रि ने पृ ी को साि भागों में विभि कर एक-एक भाग प्र ेक पु त्र को सौंप वदया इ ीं में से एक थे -
आ্ीध, वज ें ज ू ीप का र्शासन कायष सौंपा गया िृ ाि था में आ্ीध ने अपने 9 पुत्रों को ज ू ीप के विवभ 9
थानों का र्शासन दावय सौंपा इन 9 पुा़त्रों में सबसे बड़े थे -नावभ, वज ें वहमिर्ष का भू -भाग वमिा इ ोंने वहमिर्ष
को यं के नाम से जोड़कर, अजनाभिर्ष प्रिाररि वकया यह वहमिर्ष या अजनाभिर्ष ही प्रािीन भारि दे र्श था
राजा नावभ के पुत्र थे -ऋर्भ ऋर्भदे ि के 100 पुत्रों में भरि ৸े एिं सबसे गुणिान थे ऋर्भदे ि ने िानप्र थ िेने
पर उ ें राजपाट् सौंप वदया पहिे भारििर्ष का नाम ऋर्भदे ि के वपिा नावभराज के नाम पर अजनाभिर्ष प्रवस
था भरि के नाम से ही िोग अजनाभखਔ को भारििर्ष कहने िगे वि ु पुराण, िायु पुराण, विंग पु राण,
िीम ागिि, महाभारि इ ावद में भारि का उ ेख आिा है इससे पिा िििा है वक महाभारि काि से पहिे ही
भारि नाम प्रिविि था एक अ मि के अनुसार दु और र्शकु िा के पु त्र भरि के नाम पर भारि नाम पड़ा
पर ु विवभ स्रोिों में िवणष ि ि ों के आधार पर यह मा िा गिि सावबि होिी है पूरी िै ि पर रा और जैन
पर रा में बार-बार दजष है वक समुि से िेकर वहमािय िक फैिे इस दे र्श का नाम प्रथम िीथंकर दार्शषवनक राजा
भगिान ऋर्भदे ि के पुत्र भरि के नाम पर भारििर्ष पड़ा इसके अविररि वजस पुराण में भारििर्ष का वििरण है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 293


िहाूँ इसे ऋर्भ पुत्र भरि के नाम पर ही पड़ा बिाया गया है इस स में यह ान दे ना होगा वक 7िें मनु के
आगे 2 िंर्श हो गये थे -पहिा इষाकु या सू यषिंर्श और दू सरा ि िंर्श इसी ि िंर्श में दु -र्शकु िा के पु त्र
भरि का ज हुआ वजसका उ ेख ब्र िैििष पुराण में है इस स भष में गीिा के विवभ ोक में भगिान
िीकृ , अजुषन को भारि कह कर स ोवधि करिे हैं इसके अविररि ऋर्भ पु त्र भरि िथा दु पुत्र भरि में 6
म र का अ राि है अि: यह दे र्श अ प्रािीन काि से ही भारि है
भारि गणरा৸, पौरावणक ज ू ीप, दवक्षण एवर्शया में म्म थि भारिीय उपमहा ीप का सबसे बड़ा दे र्श
है भारि भौगोविक व से वि का साििाूँ सबसे बड़ा और जनसंূा की व से दू सरा बड़ा दे र्श है भारि के
पव म में पावक ान, उ र-पूिष में िीन-नेपाि-भूट्ान और पूिष में बां ৕ादे र्श- ां मार दे र्श म्म थि है वह महासागर
में इसके दवक्षण-पव म में मािदीि, दवक्षण में िीिंका और दवक्षण-पूिष में इਔोनेवर्शया है इसके उ र में वहमािय
पिषि है और दवक्षण में वह महासागर है पूिष में बंगाि की खाड़ी है िथा पव म में अरब सागर है भारि में कई
बड़ी नवदया हैं गंगा नदी भारिीय स िा में अ पवित्र मानी जािी हैं अ बड़ी नवदयाूँ नमषदा, ब्र पुत्र, यमुना,
गोदािरी, कािेरी, कृ ा, ि ि, सििज, ास हैं यह वि का सबसे बड़ा िोकि है यहाूँ 300 से अवधक
भार्ाएूँ बोिी जािी हैं यह वि की कुछ प्रािीनिम स िाओं का पािना रहा है जैसे -वस ु घाट्ी स िा और
मह पूणष ऐविहावसक ापार पथो का अवभ अं ग रहा है वि के िार प्रमुख धमष -सनािन-वह दू , बौ , जैन िथा
वसख भारि में ज ें और विकवसि हुए
“भारि” ने वि का सिषप्रथम, प्रािीन और ििषमान िक अकाਅ “वक्रया-कारण” दर्शषन कवपि मुवन के
मा म से वदया वजसे आज का वि৯ान (पदाथष या भौविक वि৯ान) ने भी आइ ट्ाइन के मा म
से E=mc दे कर और ढ़िा ही प्रदान की है भारि प्र ेक ि ु वजससे मनु जीिन पािा है और ऐसी प्र ेक
2

ि ु वजससे मनु का जीिन संकट् में पड़ सकिा है उसे दे ििा मानिा है इस प्रकार हमारे भारि में 33 करोड़
दे ििा पहिे से ही हैं और हमारा भारि स ूणष ब्र ाਔ को ही दे ििा और ई र के रूप में दे खिा ि मानिा है और
इसकी ि था ि विकास हे िु कमष करिा रहा है “भारि” ने “र्शू ” ि “दर्शमिि” वदया वजसपर वि৯ान की भार्ा
गवणि ट्ीकी हुई है “भारि” का अपनी भार्ा में नाम “भारि” है िथा वि भार्ा में नाम ßINDIAÞ है ßINDIAÞ का
विरोध नहीं होना िावहए बम्म भारि को वि भारि बनाकर नाम ßINDIAÞ को पूणषिा प्रदान करना िावहए
संकुिन में नहीं बम्म ापकिा में वि ास करना िावहए अंर्श में नहीं बम्म पू णषिा, समग्रिा ि सािषभौवमकिा में
वि ास करना िावहए समग्र ब्र ाਔ वनर र फैि रहा है मानि जावि को भी अपने मम्म और हृदय को फैिा
कर वि ृि करना होगा िभी विकास, र्शाम्म , एकिा ि म्म थरिा आयेगी

भारत में एक
भारि का रा र ीय ज-विरं गा भारि का रा र ीय गान-जन-गण-मन
भारि का रा र ीय गीि-ि े मािरम् भारि का रा र ीय वि -अर्शोक
भारि का रा र ीय पं िां ग-र्शक संिि भारि का रा र ीय िाक्य-स मेि जयिे
भारि की रा र ीयिा-भारिीयिा भारि की रा र भार्ा-वहं दी
भारि की रा र ीय विवप-दे ि नागरी भारि का रा र ीय ज गीि-वहं द दे र्श का ारा झंडा
भारि का रा र ीय नारा-िमेि जयिे भारि की रा र ीय विदे र्शनीवि-गुट् वनरपेक्ष
भारि का रा र ीय पु र ार-भारि र भारि का रा र ीय सूिना पत्र- ेि पत्र
भारि का रा र ीय िृ क्ष-बरगद भारि की रा र ीय मुिा-रूपया
भारि की रा र ीय नदी-गंगा भारि का रा र ीय पक्षी-मोर
भारि का रा र ीय पर्शु -बाघ भारि का रा र ीय फूि-कमि
भारि का रा र ीय फि-आम भारि का रा र ीय खे ि-हॉकी
भारि की रा र ीय वमठाई-जिेबी भारि के रा र ीय मुिा वि ( )

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 294


भारि के रा र ीय पिष 26 जनिरी (गणिं त्र वदिस) और 15 अग ( िं त्रिा वदिस)
भारि की रा र ीय योजना-पं ि िर्ीय योजना (पहिे योजना आयोग अब नीवि आयोग)
भारि का रा र ीय र्शा -अभी वनधाष ररि नहीं
भारि के वि रूप का र्शा ही “वि र्शा ” है वजसकी उपयोवगिा एक रा र -एक र्शा के रूप है
ििष मान समय में भारिीय सं विधान को ही रा र ीय र्शा के रूप में माना जािा है जबवक िी िि कुर्श वसं ह
“वि मानि” का कहना है - “वकसी दे र्श का संविधान, उस दे र्श के ावभमान का र्शा िब िक नहीं हो सकिा जब
िक उस दे र्श की मूि भािना का वर्शक्षा पाਉक्रम उसका अंग न हो इस प्रकार भारि दे र्श का संविधान भारि दे र्श
का र्शा नहीं है संविधान को भारि का र्शा बनाने के विए भारि की मूि भािना के अनुरूप नागररक वनमाष ण
के वर्शक्षा पाਉक्रम को संविधान के अंग के रूप में र्शावमि करना होगा जबवक रा र ीय सं विधान और रा र ीय र्शा
के विए हमें वि के र पर दे खना होगा क्योंवक दे र्श िो अनेक हैं रा र केिि एक वि है , यह धरिी है , यह पृ ी
है भारि को वि गुरू बनने का अम्म म रा ा यह है वक िह अपने संविधान को िैव क र पर वििार कर उसमें
वि वर्शक्षा पाਉक्रम को र्शावमि करे यह कायष उसी वदर्शा की ओर एक पहि है , एक मागष है और उस उ ीद
का एक हि है रा र ीयिा की पररभार्ा ि नागररक किष के वनधाष रण का मागष है वजस पर वििार करने का मागष
खुिा हुआ है ”
-लि कुश वसिंह ”वि मानि“

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 295


05. वि सरकार के वलए पुन: भारत ारा शू आधाररत अन्त म आवि ार

शू का प्रर्म आवि ार का पररचर्


र्शू (0), दर्शमिि संূा प्रणािी में सं ূा है यह दर्शमिि प्रणािी का मूिभूि आधार भी है वकसी
भी संূा को र्शू से गुणा करने से र्शू प्रा होिा है वकसी भी संূा को र्शू से जोड़ने या घट्ाने पर िही
संূा प्रा होिी है
र्शू का आवि ार वकसने और कब वकया यह आज िक अंधकार के गिष में छु पा हुआ है पर ु
स ूणष वि में यह ि थावपि हो िुका है वक र्शू का आवि ार भारि में ही हुआ है ऐसी भी कथाएूँ प्रिविि हैं
वक पहिी बार र्शू का आवि ार बावबि में हुआ और दू सरी बार माया स िा के िोगों ने इसका आवि ार
वकया पर दोनों ही बार के आवि ार संূा प्रणािी को प्रभाविि करने में असमथष रहे िथा वि के िोगों ने इसे
भुिा वदया वफर भारि में वह दु ओं ने िीसरी बार र्शू का आवि ार वकया वह दु ओं ने र्शू के विर्य में कैसे
जाना यह आज भी अनु ररि प्र है अवधकिम वि ानों का मि है वक पाूँ ििी ं र्शिा ी के म में र्शू का
आवि ार वकया गया सन् 498 में भारिीय गवणि৯ एिं खगोििेिा आयषभਂ ने कहा “ थानं थानं दसा गुणम् ”
अथाष ि दस गुना करने के विए संূा के आगे र्शू रखो और र्शायद यही संূा के दर्शमिि वस ा का उ ि
रहा होगा आयषभਂ ारा रविि गवणिीय खगोिर्शा ग्र आयषभਂीय के संূा प्रणािी में र्शू िथा उसके विए
विवर्श संकेि सम्म विि था इसी कारण से उ ें सं ূाओं को र्श ों में प्रदवर्शष ि करने का अिसर वमिा प्रािीन
बक्षािी विवप में, वजसका वक सही काि अब िक वनव ि नहीं हो पाया है पर ु वनव ि रूप से उसका काि
आयषभਂ के काि से प्रािीन है , र्शू का प्रयोग वकया गया है और उसके विए उसमें संकेि भी वनव ि है उपरोि
उदाहरणों से है वक भारि में र्शू का प्रयोग ब्र गु रविि ग्र ब्र ु ट् वस ा में पाया गया है इस ग्र
में नकारा क संূाओं और बीजगवणिीय वस ा ों का भी प्रयोग हुआ है 7िीं र्शिा ी जो ब्र गु का काि था,
र्शू से स म्म ि वििार क ोवडया िक पहुूँ ि िुके थे और द ािेजों से ৯ाि होिा है वक बाद में ये क ोवडया से
िीन िथा अ मुम्म म सं सार में फैि गये इस बार भारि में वह दु ओं के ारा आवि ृ ि र्शू ने सम वि की
संূा प्रणािी को प्रभाविि वकया और स ूणष वि को जानकारी वमिी म -पूिष में म्म थि अरब दे र्शों ने भी र्शू
को भारिीय वि ानों से प्रा वकया अ िः 12िीं र्शिा ी में भारि का यह र्शू पव म में यूरोप िक पहुूँ िा

शू आधाररत अन्त म आवि ार का पररचर्


आवि ार विर्य- “ म्मिगि मन और संयुिमन का वि मानक और पूणषमानि वनमाष ण की
िकनीकी है वजसे धमष क्षे त्र से कमषिेद-प्रथम, अम्म म िथा पंिमिेदीय िृंखिा िथा र्शासन क्षेत्र से WS-0 : मन की
गुणि ा का वि मानक िृंखिा िथा WCM-TLM-SHYAM.C िकनीकी कहिे है स ूणष आवि ार सािषभौम
स -वस ा अथाष ि् स ूणष ब्र ाਔ में ा अट्िनीय, अपररििषनीय, र्शा ि ि सनािन वनयम पर आधाररि है , न
वक मानिीय वििार या मि पर आधाररि ”
स ूणष ब्र ाਔ में ा एक ही स -वस ा ारा म्मिगि ि संयुि मन को एकमुखी कर
सिोৡ, मूि और अम्म म र पर थावपि करने के विए र्शू पर अम्म म आवि ार WS-0 : िृंखिा की
वन विम्मखि पाूँ ि र्शाखाएूँ हैं
01. ड ू.एस.(WS)-0 -विचार एिम् सावह का वि मानक
02. ड ू.एस.(WS)-00 -विषर् एिम् विशेष৯ोिं की पररभाषा का वि मानक
03. ड ू.एस.(WS)-000 -ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् र्ूल) के प्रब और वक्रर्ाकलाप का वि मानक

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 296


04. ड ू.एस.(WS)-0000 -मानि (सूक्ष्म तर्ा र्ूल) के प्रब और वक्रर्ाकलाप का वि मानक
05. ड ू.एस.(WS)-00000 -उपासना और उपासना र्ल का वि मानक

इस प्रकार वि सरकार के विए पुनः भारि ारा र्शू आधाररि अम्म म आवि ार पूणष हुआ है
(आवि ार के वि ृत जानकारी के वलए “वि शा ” अ ार्-तीन दे खें)

मानक का अथष है -“िह सिषमा पैमाना, वजससे हम उस विर्य का मू ां कन करिे है वजस विर्य
का िह पैमाना होिा है “ इस प्रकार मन की गुणि ा का मानक म्मि िथा संयुि म्मि (अथाष ि् सं था, संघ,
सरकार इ ावद) के मू ाकंन का पैमाना है िूूँवक आवि ार का विर्य सिष ापी ब्र ाਔीय वनयम पर आधाररि
है इसविए िह प्र ेक विर्यों से स म्म ि है वजसकी उपयोवगिा प्र ेक विर्य के स रूप को जानने में है िूूँवक
मानि कमष करिे-करिे ৯ान प्रा करिे हुऐ प्रकृवि के वक्रयाकिापों को धीरे -धीरे अपने अधीन करने की ओर
अग्रसर है इसविए पूणषि-प्रकृवि के पद पर बैठने के विए प्रकृवि ारा धारण की गई स ुविि कायषप्रणािी को
मानि ारा अपनाना ही होगा अ था िह स ुविि कायष न कर अ ि था उ कर दे गा यह िैसे ही है जैसे
वकसी कमषिारी को प्रब क (मैनेजर) के पद पर बैठा वदया जाये िो स ुविि कायष संिािन के विए प्रब क की
स ुविि कायषप्रणािी को उसे अपनाना ही होगा अ था िह स ुविि कायष न कर अ ि था उ कर दे गा
आवि ार की उपयोवगिा ापक होिे हुए भी मूि रूप से म्मि र से वि र िक के मन और संयुि मन
के प्रब को ि करना एिम् एक कमष৯ान ारा िृंखिाब करना है वजससे स ूणष र्शम्मि एक मुखी हो वि
विकास की वदर्शा में केम्म ि हो जाये पररणाम रूप एक दू सरे को विकास की ओर विकास करािे हुऐ यं को
भी विकास करने के विए पूणष ि िा प्रा हो जायेगी स ूणष वक्रयाकिापों को संिाविि करने िािे मूि दो
किाष -मानि (मन) और प्रकृवि (वि मन) दोनों का कमष৯ान एक होना आि क है प्रकृवि (वि मन) िो पूणष धारण
कर सफििापूिषक कायष कर ही रही है मानि जावि में जो भी सफििा प्रा कर रहे हैं िे अ৯ानिा में इसकें
आं वर्शंक धारण में िथा जो असफििा प्रा कर रहे हैं , िे पूणषि: धारण से मुि है इसी कमष৯ान से प्रकृवि, मानि
और संयुि मन प्रभाविि और संिाविि है वकसी मानि का कमषक्षेत्र स ूणष ब्र ाਔ हो सकिा है और वकसी का
उसके र रूप में छोट्ा यहाूँ िक वक वसफष यं म्मि का अपना र पर ु कमष৯ान िो सभी का एक ही होगा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 297


भाि-13
शैक्षवर्क क्रान्त -स मानक वशक्षा - पूर्ण ৯ान का पूरक पाਉक्रम

एक नािररक - श्े नािररक के वनमाणर् के वलए आि क कार्ण


नेतृ कताणओ िं के स न्त त विचार
पु नवनणमाणर् - स वशक्षा का रा र ीर् तीव्र मािण www.moralrenew.com

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 298


एक नािररक - श्े नािररक के वनमाणर् के वलए आि क कार्ण
“नया भारि (NEW INDIA)”, केिि आवथषक विकास से नहीं बनाया जा सकिा, उसके विए रा र ीय
बौम्म क विकास भी िावहए पिं0 दीन दर्ाल उपा ार् की र्े िार्ी विचारर्ीर् है - “पूिंजीिादी साहस और
पूिंजी को मह दे ते है तो क ुवन श्म को पूिंजीिादी र्िं के वलए अवधक वह ा मााँिते है और
क ुवन अपने वलए र्ह नारा अनुवचत, अ ार्पूर्ण और समाजघाती है धन का अभाि मनु को
वन रूर् और क्रूर बना दे ता है तो धन का प्रभाि उसे शोषक सामावजक दावर् वनरपेक्ष, द ी और
दमनकारी मनु पशु नही िं है केिल पेट भर जाने से िह सुखी और सिंतु हो जार्ेिा उसकी जीिन र्ात्रा
“पेट” से आिे “परमा ा” तक जाती है उसके मन उसकी बुन्त और उसकी आ ा का भी कुछ तकाजा
है इस तकाजे को ान में रखे वबना बनाई िई प्र ेक ि र्ा अ कावलक ही नही घातक भी होिी ”
भारि को वि गुरू बनाना ि अৢे वदन िाना, यह फि है वजसका जड़ म्मि के मम्म और गाूँ ि
में है जड़ को मजबूि करने से भारि नामक िृक्ष से अपने आप फि वनकिने िगेंगे पुनवनषमाष ण म्मि के
मम्म को मजबूि करने का ही कायषक्रम है र्शेर् म्मि ि र्शासन वमिकर पूरा कर िेगें इसका हमें वि ास है
जो म्मि या दे र्श केिि आवथषक उ वि को ही सिष मानिा है िह म्मि या दे र्श एक पर्शुिि् जीिन
वनिाष ह के मागष पर है -जीना और पीढ़ी बढ़ाना दू सरे रूप में इसे ऐसे समझा जा सकिा है वक ऐसे म्मि वजनका
िশ धन रहा था िे अपने धन के बि पर अपनी मूविष अपने घर पर ही िगा सकिे हैं पर ु वजनका िশ धन नहीं
था, उनका समाज ने उ ें , उनके रहिे या उनके जाने के बाद अनेकों प्रकार से स ान वदया है और ये सािषजवनक
रूप से सभी के सामने प्रमावणि है पूणष की प्राम्म का मागष र्शारीररक-आवथषक उ ान के साथ-साथ मानवसक-
बौम्म क उ ान होना िावहए और यही है ही इस प्रकार भारि यवद पूणषिा ि वि गुरूिा की ओर बढ़ना िाहिा है
िब उसे मात्र कौर्शि विकास ही नहीं बम्म रा र ीय बौम्म क विकास की ओर भी बढ़ना होगा बौम्म क विकास,
म्मि ि रा र का इस ब्र ाਔ के प्रवि दावय है और उसका िশ है
रा र के पू णष के विए पू णष वर्शक्षा वन विम्मखि वर्शक्षा का सं युि रूप है -
अ-सामा ीकरर् (Generalisation) वशक्षा
৯ान के वलए- यह वर्शक्षा म्मि और रा र का बौम्म क विकास करािी है वजससे म्मि ि रा र ीय सु ख
में िृम्म होिी है

ब-विशेषीकरर् (Specialisation) वशक्षा


कौशल के वलए- यह वर्शक्षा म्मि और रा र का कौर्शि विकास करािी है वजससे म्मि ि रा र ीय
उ ादकिा में िृम्म होिी है

स-स नेटिकण (REAL NETWORK)


समाज में प्रकावशत होने के वलए - क्योंवक कोई भी क्यों न हो उसे यं अपना पररिय (BIO-
DATA) दे ना पड़िा है िभी उसके अनुसार समाज उसका उपयोग करिा है

ििषमान समय में विर्शेर्ीकरण की वर्शक्षा, भारि में िि ही रहा है और िह कोई बहुि बड़ी सम ा भी
नहीं है सम ा है सामा ीकरण वर्शक्षा की म्मियों के वििार से सदै ि ि होिा रहा है वक-मैकािे वर्शक्षा
प वि बदिनी िावहए, रा र ीय वर्शक्षा नीवि ि पाਉक्रम बनना िावहए ये िो वििार हैं पाਉक्रम बनेगा कैसे?, कौन
बनायेगा? पाਉक्रम में पढ़ायेंगे क्या? ये सम ा थी और िह हि की जा िुकी है जो भारि सरकार के सामने
सरकारी-वनजी योजनाओं जैसे ट्र ां सपोट्ष , डाक, बैंक, बीमा की िरह वनजी वर्शक्षा के रूप में “पुनवनषमाष ण-स वर्शक्षा
का रा र ीय िीव्र मागष ” ारा पहिी बार इसके आवि ारक ारा प्र ु ि है जो रा र वनमाष ण का ापार है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 299


नेतृ कताणओ िं के स न्त त विचार
“मैं भारि में काफी घूमा हूँ दाएं -बाएं , इधर-उधर मैंने यह दे र्श छान मारा और यहाूँ मुझे एक भी
वभखारी, एक भी िोर दे खने को नहीं वमिा यह दे र्श इिना समृ है और इसके नैविक मू इिने उৡ हैं और
यहाूँ के िोग इिनी सक्षमिा और यो৓िा विए हुए हैं वक हम यह दे र्श कभी जीि सकिे हैं यह मुझे नहीं िगा इस
दे र्श की आ ाम्म क और सां ृ विक पर रा इस दे र्श की रीढ़ है और हमें यवद यह दे र्श जीिना है िो इसे िोड़ना
ही पड़े गा उसके विए इस दे र्श की प्रािीन वर्शक्षण प वि और सं ृ वि बदिनी ही पड़े गी भारिीय िोग यवद यह
मानने िगे वक विदे र्शी (विर्शेर्िः) जो है िे हैं , अपनी यं की सं ृ वि से भी ऊूँिी हैं िो िे अपना आ स ान
गिाूँ बैठेंगे और वफर िे िही बनेंगे जो हम िाहिे हैं -एक गुिाम दे र्श”
- लाडण मैकाले, ितणमान भारत की वशक्षा प्रर्ाली इनकी कही जाती है
(2 िरिरी, 1835 को वब्रटे न की पावलणर्ामे में वदर्े िए लाडण मैकाले के भाषर् के कुछ अिंश)

“जीिन में मेरी सिोৡ अवभिार्ा यह है वक ऐसा िक्र प्रिषिन कर दू ूँ जो वक उৡ एिं िे वििारों को
सब के ार- ार पर पहुूँ िा दे वफर ी-पुरूर् को अपने भा৓ का वनमाष ण ं य करने दो हमारे पूिषजों ने िथा
अ दे र्शों ने जीिन के मह पूणष प्र ों पर क्या वििार वकया है यह सिषसाधारण को जानने दो विर्शेर्कर उ ें
दे खने दो वक और िोग क्या कर रहे हैं वफर उ ें अपना वनणषय करने दो रासायवनक ि इक਄े कर दो और
प्रकृवि के वनयमानुसार िे वकसी विर्शेर् आकार धारण कर िेंगे -पररिम करो, अट्ि रहो ‘धमष को वबना हावन
पहुूँ िाये जनिा की उ वि’-इसे अपना आदर्शष िाक्य बना िो ”
“वर्शक्षा का मििब यह नहीं है वक िु ारे वदमाग में ऐसी बहुि सी बािें इस िरह से ठूंस दी जाये, जो
आपस में िड़ने िगे और िु ारा वदमाग उ ें जीिन भर हजम न कर सकें वजस वर्शक्षा से हम अपना जीिन
वनमाष ण कर सकें, मनु बन सके, िररत्र गठन कर सकें और वििारों का सां मज कर सके, िही िा ि में वर्शक्षा
कहिाने यो৓ है यवद िुम पाूँ ि ही भािों को हजम कर िद् नुसार जीिन और िररत्र गठन कर सके िो िु ारी
वर्शक्षा उस आदमी की अपे क्षा बहुि अवधक है वजसने एक पूरी की पूरी िाइब्रे री ही कठं थ कर िी है ”
“उसी मूि स की वफर से वर्शक्षा ग्रहण करनी होगी, जो केिि यहीं से, हमारी इसी मािृभूवम से
प्रिाररि हुआ था वफर एक बार भारि को संसार में इसी मूि ि का-इसी स का प्रिार करना होगा ऐसा क्यों
है ? इसविए नहीं वक यह स हमारे र्शा ों में विखा है िरन् हमारे रा र ीय सावह का प्र ेक विभाग और हमारा
रा र ीय जीिन उससे पू णषिः ओि-प्रोि है इस धावमषक सवह ुिा की िथा इस सहानुभूवि की, मािृभाि की महान
वर्शक्षा प्र ेक बािक, ी, पुरुर्, वर्शवक्षि, अवर्शवक्षि सब जावि और िणष िािे सीख सकिे हैं िु मको अने क नामों से
पुकारा जािा है , पर िु म एक हो िथाकवथि समाज-सुधार के विर्य में ह क्षेप न करना क्योंवक पहिे आ ाम्म क
सुधार हुये वबना अ वकसी भी प्रकार का सुधार हो नहीं सकिा, भारि के वर्शवक्षि समाज से मैं इस बाि पर सहमि
हूँ वक समाज का आमूि पररििषन करना आि क है पर यह वकया वकस िरह जाये? सुधारकों की सब कुछ न
कर डािने की रीवि थष वस हो िुकी है मेरी योजना यह है , हमने अिीि में कुछ बुरा नहीं वकया वन य ही नहीं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 300


वकया हमारा समाज खराब नहीं, बम्म अৢा है मैं केिि िाहिा हूँ वक िह और भी अৢा हो हमें अस से
स िक अथिा बुरे से अৢे िक पहुूँ िना नहीं है िरन् स से उৡिर स िक, िे से िे िर और िे िम िक
पहुूँ िना है मैं अपने दे र्शिावसयों से कहिा हूँ वक अब िक जो िुमने वकया, सो अৢा ही वकया है , अब इस समय
और भी अৢा करने का मौका आ गया है ”
“एक बाि पर वििार करके दे म्मखए, मनु वनयमों को बनािा है या वनयम मनु को बनािे हैं ? मनु
रुपया पैदा करिा है या रुपया मनु पैदा करिा है ? मनु कीविष और नाम पै दा करिा है या कीविष और नाम
मनु को पैदा करिे हैं ? मेरे वमत्रों, पहिे मनु बवनये, िब आप दे खेंगे वक िे सब बाकी िीजें यं आपका
अनुसरण करें गी पर र के घृवणि े र्भाि को छोवड़ये और सदु े , सदु पाय, स ाहस एिं सदीघष का अिि न
वकवजए आपने मनु योवन में ज विया है िो अपनी कीविष यहीं छोड़ जाइये ”
“वनम्म यिा, हीनबुम्म और कपट् से दे र्श छा गया है क्या बुम्म मान िोग यह दे खकर म्म थर रह सकिे
हैं ? रोना नहीं आिा? मिास, ब ई, पंजाब, बंगाि-कहीं भी िो जीिनी र्शम्मि का वि वदखाई नहीं दे िा िुम िोग
सोि रहे हो, ‘हम वर्शवक्षि हैं ’ क्या खाक सीखा है ? दू सरों की कुछ बािों को दू सरी भार्ा में रट्कर मम्म में
भरकर, परीक्षा में उ ीणष होकर सोि रहे हो वक हम वर्शवक्षि हो गये हैं वधम्म धक्, इसका नाम कहीं वर्शक्षा है ?
िु ारी वर्शक्षा का उ े क्या है ? या िो ? लकष बनना या एक िकीि बनना, और बहुि हुआ िो लकी का ही
दू सरा रूप एक वड ी मवज र े ट् की नौकरी यही न? इससे िु ें या दे र्श को क्या िाभ हुआ? ”
“वसफष पु कों पर वनभषर रहने से मानि-मन केिि अिनवि की ओर जािा है यह कहने से और घोर
नाम्म किा क्या हो सकिी है वक ई रीय ৯ान केिि इस पु क में या उस र्शा में आब है ”
“सामावजक ावध का प्रविकार बाहरी उपायों ारा नहीं होगा; हमें उसके विए भीिरी उपायों का
अिि न करना होगा-मन पर कायष करने की िे ा करनी होगी िाहे हम वकिनी ही ि ी िौड़ी बािें क्यों न करें ,
हमें जान िेना होगा वक समाज के दोर्ों को दू र करने के विए प्र क्ष रूप से नहीं िरन् वर्शक्षादान ारा परोक्ष रूप
से उसकी िे ा करनी होगी ”
“बहुि वदनों िक मा री करने से बुम्म वबगड़ जािी है ৯ान का विकास नहीं होिा वदन राि िड़कों
के बीि रहने से धीरे -धीरे जड़िा आ जािी है ; इसविए आगे अब मा री न कर मेरे वपिाजी य वप िकीि थे, वफर
भी मेरी यह इৢा नहीं वक मेरे पररिार में कोई िकीि बने मेरे गुरु दे ि इसके विरोधी थे एिं मेरा भी यह वि ास है
वक वजस पररिार के कुछ िोग िकीि हो उस पररिार में अि ही कुछ न कुछ गड़बड़ी होगी हमारा दे र्श िकीिों
से छा गया है -प्रवििर्ष वि वि ाियों से सै कड़ों िकीि वनकि रहे हैं हमारी जावि के विए इस समय कमषि रिा
िथा िै৯ावनक प्रविभा की आि किा है ”
“िोगों को यवद आ वनभषरर्शीि बनने की वर्शक्षा नहीं दी जाय िो जगि के स ूणष ऐ यष पूणष रुप से
प्रदान करने पर भी भारि के एक छोट्े से छोट्े गाूँ ि की भी सहायिा नहीं की जा सकिी वर्शक्षा प्रदान हमारा पहिा
काम होना िावहए, िररत्र एिं बुम्म दोनों के ही उਚर्ष साधन के विए वर्शक्षा वि ार आि क है ”
“अनुभि ही ৯ान का एक मात्र स्रोि है वि में केिि धमष ही ऐसा वि৯ान है वजसमें वन य का
अभाि है , क्योंवक अनुभि पर आविि वि৯ान के रूप में उसकी वर्शक्षा नहीं दी जािी ऐसा नहीं होना िावहए पर ु
कुछ ऐसे िोगों का एक छोट्ा समूह भी सिषदा वि मान रहिा है , जो धमष की वर्शक्षा अनुभि के मा म से दे िे हैं ये
िोग रह िादी कहिािे हैं और िे हरे क धमष में, एक ही िाणी बोििे हैं और एक ही स की वर्शक्षा दे िे हैं यह
धमष का यथाथष वि৯ान है जैसे गवणि र्शा वि के वकसी भी भाग में वभ -वभ नहीं होिे िे सभी एक ही प्रकार
के होिे है िथा उनकी म्म थवि भी एक ही होिी है उन िोगों का अनुभि एक ही है और यही अनुभि धमष का रूप
धारण कर िेिा है ”
“आम्मखर इस उৡ वर्शक्षा के रहने या न रहने से क्या बनिा वबगड़िा है ? यह कहीं ৸ादा अৢा होगा
वक यह उৡ वर्शक्षा प्रा कर नौकरी के द रों को खाक छानने के बजाय िोग थोड़ी सी याम्म क वर्शक्षा प्रा करें
वजससे काम-ध ें में िगकर अपना पेट् िो भर सकेंगे ” - ामी वििेकान

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 301


“इस दे र्श को कुछ बािे समझनी होगी एक िो इस दे र्श को यह बाि समझनी होगी वक िु ारी
परे र्शावनयों, िु ारी गरीबी, िु ारी मुसीबिों, िु ारी दीनिा के बहुि कुछ कारण िु ारे अंधवि ासों में है , कम से
कम डे ढ़ हजार साि वपछे वघसट् रहा है ये डे ढ़ हजार साि पू रे होने जरूरी है भारि को म्मखंिकर आधुवनक
बनाना जरूरी है मेरी उ ुकिा है वक इस दे र्श का सौभा৓ खुिे, यह दे र्श भी खुर्शहाि हो, यह दे र्श भी समृ हो
क्योंवक समृ हो यह दे र्श िो वफर राम की धुन गुंजे, समृ हो यह दे र्श िो वफर िोग गीि गाूँ ये, प्रभु की प्राथषना
करें समृ हो यह दे र्श िो मंवदर की घंवट्या वफर बजे, पूजा के थाि वफर सजे समृ हो यह दे र्श िो वफर बाूँ सुरी
बजे कृ की, वफर रास रिे! यह दीन दररि दे र्श, अभी िुम इसमें कृ को भी िे आओगे िो राधा कहाूँ पाओगे
नािनेिािी? अभी िुम कृ को भी िे आओगे, िो कृ बड़ी मुम्म ि में पड़ जायेंगे, माखन कहाूँ िुरायेंगे? माखन
है कहाूँ ? दू ध दही की मट्वकया कैसे िोड़ें गे? दू ध दही की कहाूँ , पानी िक की मट्वकया मुम्म ि है निों पर इिनी
भीड़ है ! और एक आध गोपी की मट्की फोड़ दी, जो नि से पानी भरकर िौट् रही थी, िो पुविस में ररपोट्ष दजष
करा दे गी कृ की, िीन बजे राि से पानी भरने खड़ी थी नौ बजिे -बजिे पानी भर पायी और इन स৪न ने कंकड़ी
मार दी धमष का ज होिा है जब दे र्श समृ होिा है धमष समृ की सुिास है िो मैं जरूर िाहिा हूँ यह दे र्श
सौभा৓र्शािी हो िेवकन सबसे बड़ी अड़िन इसी दे र्श की मा िाएं हैं इसविए मैं िुमसे िड़ रहा हूँ िु ारे विए
आज भारि गरीब है भारि अपनी ही िे ा से इस गरीबी से बाहर नहीं वनकि सकेगा, कोई उपाय नहीं है भारि
गरीबी के बाहर वनकि सकिा हैं , अगर सारी मनु िा का सहयोग वमिे क्योंवक मनु िा के पास इस िरह के
िकनीक, इस िरह का वि৯ान मौजूद है वक इस दे र्श की गरीबी वमट् जाये िेवकन िुम अकड़े रहे वक हम अपनी
गरीबी खुद ही वमट्ायेंगे, िो िुम ही िो गरीबी बनाने िािे हो, िुम वमट्ाओगे कैसे? िु ारी बुम्म इसकी भीिर आधार
है , िुम इसे वमट्ाओगे कैसे? िु ें अपने ार-दरिाजे खोिने होंगे िु ें अपना मम्म थोड़ा वि ार करना होगा
िु ें मनु िा का सहयोग िेना होगा और ऐसा नहीं वक िु ारे पास कुछ दे ने को नहीं है िु ारे पास कुछ दे ने
को है दु वनया को िुम दु वनया को ान दे सकिे हो अगर अमेररका को ान खोजना है िो अपने बिबूिे नहीं
खोज सकेगा अमेररका उसे भारि की िरफ नजर उठानी पड़े गी मगर िे समझदार िोग हैं ान सीखने पूरब
ििे आिे हैं कोई अड़िन नहीं है उ ें बाधा नहीं है बुम्म मानी का िक्षण यही है वक जो जहाूँ से वमि सकिा हो िे
विया जाये यह सारी पृ ी हमारी हैं सारी मनु िा इक਄ी होकर अगर उपाय करे िो कोई भी सम ा पृ ी पर
बिने का कोई भी कारण नहीं है दु वनया में दो िरह की वर्शक्षायें होनी िावहए, अभी एक ही िरह की वर्शक्षा है और
इसविए दु वनया में बड़ा अधुरापन है बৡों को हम ू ि भेजिे है , कािेज भेजिे है , युवनिवसषट्ी भेजिे है , मगर एक
ही िरह की वर्शक्षा िहाूँ - कैसे वजयो? कैसे आवजविका अजषन करें ? कैसे धन कमाओं? कैसे पद प्रवि ा पाओं जीिन
के आयोजन वसखािे हैं जीिन की कुर्शििा वसखािे हैं दू सरी इससे भी मह पूणष वर्शक्षा िह है - कैसे मरो? कैसे
मृ ु के साथ आविंगन करो? कैसे मृ ु में प्रिेर्श करो? यह वर्शक्षा पृ ी से वब ु ि खो गयी ऐसा अिीि में नहीं था
अिीि में दोनों वर्शक्षाएं उपि थी ं इसविए जीिन को हमने िार वह ों में बाट्ा था पৡीस िर्ष िक वि ाथी का
जीिन, ब्र ियष का जीिन गुरू के पास बैठना जीिन कैसे जीना है , इसकी िै यारी करनी है जीिन की र्शैिी
सीखनी है वफर पৡीस िर्ष िक गृह थ का जीिन जो गुरू के िरणों में बैठकर वसखा है उसका प्रयोग, उसका
ािहाररक प्रयोग वफर जब िु म पिास िर्ष के होने िगो िो िु ारे बৡे पৡीस िर्ष के करीब होने िगेंगे उनके
गुरू के गृह से िौट्ने के वदन करीब होने िगेंगे अब उनके वदन आ गये वक िे जीिन को वजये वफर भी वपिा और
बৡे पैदा करिे ििा जाये िो यह अर्शोभन समझा जािा था यह अर्शोभन है अब बৡे, बৡे पैदा करें गे अब िुम
इन म्मखिौनों से उपर उठो िो पৡीस िर्ष िानप्र थ जं गि की िरफ मुूँह - इसका अथष होिा है वक अभी जंगि गये
नहीं, अभी घर छोड़ा नहीं िेवकन घर की िरफ पीठ जंगि की िरफ मुूँह िावक िु ारे बेट्ों को िु ारी सिाह की
जरूरि पड़े िो पूछ िें अपनी िरफ से सिाह मि दे ना िानप्र थी यं सिाह नहीं दे िा वफर पिह र िर्ष के
जब िुम हो जाओगे, िो सब छोड़कर जंगि ििे जाना िे र्शेर् अंविम पिीस िर्ष मृ ु की िैयारी थे उसी का नाम
स ास था पिीस िर्ष जीिन के प्रार में जीिन की िैयारी, और जीिन के अं ि में पৡीस िर्ष मृ ु की िैयारी
उपावधयाूँ वमििी है - पी0 एि0 डी0, डी0 विट्0 और डी0 वफि0 और उनका बड़ा स ान होिा है उनका काम

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 302


क्या है ? उनका काम यह है वक िे िय करिे हैं वक गोरखनाथ कब पैदा हुए थे कोई कहिा है दसिी ं सदी के अंि
में, कोई कहिा है ৓ारहिीं सदी के प्रार में इस पर बड़ा वििाद िििा है बड़े -बड़े वि वि ाियों के ৯ानी वसर
खपा कर खोज में िगे रहिे है र्शा ों की, प्रमाणों की, इसकी, उसकी उनकी पूरी वज गी इसी में जािी है इससे
बड़ा अ৯ान और क्या होगा? गोरख कब पैदा हुए, इसे जानकर करोगे क्या? इसे जान भी विया िो पाओगे क्या?
गोरख न भी पैदा हुए, यह भी वस हो जाये, िो भी क्या फायदा? हुए हों या न हुए हों, अथषहीन है गोरख ने क्या
वजया उसका ाद िो इसविए िु ारे वि वि ािय ऐसी थषिा के कामों में संि্ है वक बड़ा आ यष होिा है वक
इ ें वि वि ािय कहो या न कहो इनका काम ही........िु ारे वि वि ािय में ििने िािी वजिनी र्शोध है , सब
कूड़ा-करकट् है ” - आचार्ण रजनीश “ओशो”

“सुधमाष , जरूरि है इस यु ग में अनगढ़ मानि को गढ़ने की मनु ाथी, संकीणषिा से ग्रवसि हो गया
है इन दु बषििाओं के आक्रा मनमानी र्शल वदखने में अসर आिे हैं पेट् और पररिार को आदर्शष मान बैठे हैं ”
-अिधूत भििान राम
“मनु अपने भा৓ का वनमाष िा आप है , इस वि ास के आधार पर हमारी मा िा है वक हम उਚृ
बनेंगे और दू सरों को िे बनायेंगे, िो युग अि बदिेगा हम बदिेंगे - युग बदिेगा, हम सुधरें गे -युग सुधरे गा इस
ि पर हमारा पररपूणष वि ास है ” - पिं0 श्ीराम शमाण आचार्ण, सिं र्ापक, अन्तखल वि िार्त्री पररिार

बृह वतिार, 11 वसत र, 1997 ई0


वर्शक्षा प्रवक्रया मे ापक सुधारों की जरूरि है ‘यह रा ा वद ी की ओर जािा है ’ विखा साइन बोडष
पढ़ िेना मात्र वर्शक्षा नहीं है इसके बारे में वि न करना पड़े गा और कोई िশ वनधाष ररि करना पडेा़ गा सामावजक
पररििषन वकस िरह से , इसकी प्राथवमकिाये क्या होगीं? यह िय करना पड़े गा इक्कीसिी र्शिा ी के विए हमें
कायषक्रम िय करने पडेा़ ं गे मौजूदा िोकि खराब नहीं है पर ु इसको और बेहिर बनाने की आि किा है
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 11-9-97
-रोमेश भਔारी
शुक्रिार, 25 वदस र, 1998 ई0
वर्शक्षा में दू र व होनी िावहए िथा हमारी वर्शक्षा नीवि और वर्शक्षा ि था ऐसी होनी िावहए वजससे हम
भवि दे ख सकें और भवि की आि किाओं को प्रा कर सकें
साभार - आज, िाराणसी, वद0 25-12-1998
-केशरी नार् वत्रपाठी
रवििार, 8 वदस र, 2002 ई0
अৢी वर्शक्षा ि था ही प्रबु नागररक पैदा करिी है , बৡों को नैविक वर्शक्षा प्रदान की जाय और
रोजगार के नये अिसर पैदा वकये जायें, रा र ीय र्शाम्म ि सािषभौवमक स ाि के विए सभी धमष आ ाम्म क
आ ोिन में र्शावमि हो जायें निीनिा के ारा ही ৯ान को धन में बदिा जा सकिा है “
साभार, दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 8 वदस र 2002
-ए.पी.जे. अ ु ल कलाम
रवििार, 8 जून, 2008 ई0
र्शासन में फैिे भ्र ािार के म्मखिाफ छात्र आगे आएं वर्शक्षा का दे र्शी माेडि िावहए (गुरूकुि
कां गड़ी वि वि ािय के दीक्षां ि समारोह में)
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 8-06-2008
-लाल कृ आडिार्ी

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 303


बुधिार, 10 नि र, 2010 ई0
वि वि ाियों में वसफष परीक्षाओं में ही नहीं, र्शोध कायों में भी नकि का बोिबािा है , कोई भी
वि वि ािय ऐसा नहीं वजसके वकसी र्शोध को अ राष र ीय िो क्या, रा र ीय र पर भी मा िा वमिी हो (िखनऊ
में आयोवजि 21 रा৸ वि वि ाियों ि अ के कुिपवियों के स ेिन में )
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 10 नि र 2010 -बी.एल.जोशी
बुधिार, 21 नि र, 2012 ई0
वि वि ािय के कुिपवियों और वर्शक्षकों को वर्शक्षा का र और उ ि करना िावहए एक बार
अपना वदि ट्ट्ोिना िावहए वक क्या िाकई उनकी वर्शक्षा रीय है हर साि सैकड़ों र्शोधावथषयों को पीएि.डी की
उपावध दी जा रही है , िेवकन उनमें से वकिने नोबेि र के हैं साि में एक-दो र्शोध िो नोबेि र के हों
(रूहे िखਔ वि वि ािय, बरे िी, उ0प्र0, के दीक्षां ि समारोह में)
साभार - अमर उजािा, िखनऊ, वद0 21.11.2012
-श्ी बी.एल. जोशी
रवििार, 26 वदस र, 2010 ई0
वि एक पररिार है न वक बाजार भारिीय मानकों में गुरू-वर्श पर रा की अिधारणा को मजबूिी
दे ने की जरूरि है र्शैक्षवणक सं थानों में नई िेिना, वििारधारा वनकािनी होगी वजससे सामावजक ि रा र ीय उ ान
को बि वमिे र्शाम्म , मू ों की वर्शक्षा ही आज की आि किा है महामना की सोि मानिीय मू के समािेर्श
िािे युिाओं के मम्म का विकास था, िाहे िह इं वजवनयर हो, वि৯ान या वर्शक्षाविद् यहाूँ के छात्र दु वनया में
मानिीय मू के राजदू ि बनें िावक दे र्श में न र एक बना बी.एि.यू . अब दु वनया के विए आदर्शष बने इस
वि वि ािय (बी.एि.यू.) सरीखा दू सरा कोई उਚृ सं थान ही नहीं जहाूँ संयुि रा र संघ ारा यूने ो िेयर फार
पीस एं ड इं ट्रक िर अंडर ै म्मਔंग की थापना हुई वि वि ािय का दवक्षणी पररसर मुূ पररसर की वसफष
कापी भर नहीं है , बम्म यह िो भवि में “नये वि वि ािय का रूप िेगा“
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 26 वदस र, 2010
-डा0 कर्ण वसिंह
वि৯ान ि आ ा में काफी समानिाएं हैं और दोनों के विए अनुर्शासन सबसे ৸ादा जरूरी है इन
दोनों का मानि के विकास में भारी योगदान है जब िक ये एक साथ वमिकर काम नहीं करें गे उनका पूरा िाभ
हावसि नहीं वकया जा सकिा वि वि ािय समाज के विए उपयोगी अनुसंधान पर जोर दें िावक उनका िाभ
जनिा ि दे र्श को हो ৯ान के विए वर्शक्षा अवजषि की जानी िावहए और दे र्श के युिाओं के विकास के विए वर्शक्षा
प वि में समग्र व कोण अपनाया जाना जरूरी है इसका मकसद युिाओं को बौम्म क और िकनीकी व से
सक्षम बनाना होना िावहए (वि৯ान ि आ ाम्म क खोज पर रा र ीय स ेिन, नई वद ी के उद् घाट्न में बोििे हुए)
साभार - वह दु ान, िाराणसी, वद0 13 मािष, 2011
-श्ीमती प्रवतभा पावटल
रवििार, 27 नि र, 2011 ई0
वर्शक्षा का नया माडि विकवसि करना होगा वपछिे 25 िर्ों से हम अमीर िोगों की सम ा सुिझा
रहे हैं अब हमें गरीबों की सम ा सुिझाने का नैविक दावय वनभाना िावहए दे र्श में 25 िर्ष से कम उम्र के 55
करोड़ िोग हैं हमें सोिना होगा वक हम उ ें नौकरी और प्रवर्शक्षण कैसे दें गे भौविकी, रसायन, गवणि जैसे
पार ररक विर्यों को पढ़ने का युग समा हो गया अब िो हमें रिना किा, सम य, िीडरवर्शप, ৕ोबि िथा
प्रोफेर्शनि विर्यों को पढ़ने िथा सूिना िकनीक के जररए पढ़ाई पर ान केम्म ि करने की जरूरि है हमारे दे र्श
में जो अ ापक हैं , िे र्शोध नहीं करिे और जो र्शोध करिे हैं िे पढ़ािे नहीं हमें पूरी सोि को बदिनी है
साभार - वह दु ान, िाराणसी सं रण,27 नि र, 2011
-सैम वपत्रोदा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 304


बृह वतिार, 25 वदस र, 2014 ई0
अৢी वर्शक्षा, वर्शक्षकों से जुड़ी है वर्शक्षक को हर पर राओं का ৯ान होना िावहए हम वि को अৢे
वर्शक्षक दे सकिे हैं विगि छह महीने से पूरा वि हमारी ओर दे ख रहा है ऋवर्-मुवनयों की वर्शक्षा पर हमें गिष है
21िी ं सदी में वि को उपयोगी योगदान दे ने की माूँ ग है पूणष के िশ को प्रा करना वि৯ान हो या िकनीकी,
इसके पीछे पररपूणष मानि मन की ही वि को आि किा है रोबोट् िो पाूँ ि वि৯ानी वमिकर भी पैदा कर दें गे
मनु का पूणष , िकनीकी में समावहि नहीं हो सकिा पूणषिा मििब जनवहि किा-सावह से ही होगा
निजागरण (बी.एि.यू, िाराणसी में) साभार - कार्शी िािाष , िाराणसी सं रण, वद0 26 वदस र, 2014
- श्ी नरे मोदी, प्रधानमिंत्री, भारत
बुधिार, 20 जनिरी, 2016 ई0
ऐसी वर्शक्षा की जरूरि है जो समवपषि, वि सनीय और आ वि ास से ििरे ज युिा िैयार करे वर्शक्षा
ऐसी होनी िावहए जो न केिि कावबि पेर्शेिर दे बम्म िो समाज ि दे र्श के प्रवि जुड़ाि भी महसूस करे ( ामी
राम वहमाियन वि वि ािय के पहिे वदक्षां ि समारोह में बोििे हुएं )
- श्ी प्रर्ि मुखजी, रा र पवत, भारत

(उपरोक्त सभी नेतृ कताणओ िं के क्त विचार पर


व करर् के वलए ”वि शा ” अ ार् - पााँच दे खें)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 305


”पुनवनणमाणर् - स वशक्षा का रा र ीर् तीव्र मािण
(RENEW-Real Education National Express Way)
www.moralrenew.com
म्मि के निवनमाष ण अथाष ि् वि रीय म्मि वनमाष ण के विए WCM-TLM-SHYAM.C िकनीकी
की वर्शक्षा “पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष (RENEW-Real Education National Express Way)”
के रूप में संिाविि है क्योंवक यह िकनीकी वर्शक्षा, वर्शक्षण सं थानों में उपि नहीं है और वर्शक्षा पाਉक्रम में
पररििषन की सरकारी जवट्ििा से यह इिनी ज ी पाਉक्रम में िाया भी नहीं जा सकिा इसविए इसे अिग से
ही म्मि को यं अपनी पूणषिा के विए अ यन की सुविधा िेनी पड़े गी जो उनके विए ििषमान प्रवि धाष भरी
दु वनया में कािानुसार होकर आगे वनकिने की सुविधा, स जीने की किा (Real Art of Living), पूणष जीिन और
िैव क मानि के रुप में थावपि करने का ৯ान है
उ ोगों/ सं थानों की गु णि ा का अ राष र ीय मानक- ISO-9000 िृंखिा है जो भारिीय मानक- IS-
9000 िृंखिा का समकक्ष है वजसे वि रीय वनमाष ण (World Class Manufacturing-WCM) विवध ारा प्रा
करने के विवभ मागष हैं जैसे स ूणष उ ादकिा परररक्षण (Total Productive Maintenance-TPM) िथा
स ूणष गुणि ा प्रब न (Total Quality Management-TQM) TMP और TQM में प्रिेर्श के विवभ जागरण
विवध हैं जैसे- 5S उस, प्र ेक कमषिारी की सहभावगिा (Total Employees Involvement-TEI) गुणि ा िक्र
(Quality Circle-QC) इ ावद ये सभी केिि उ ोगों के विए विर्शेर्ीकृि जागरण विवधयां हैं जो िा विर्यों पर
मन को केम्म ि कर गुणि ा को प्रा करने का मा म है सेिा पूिष और सेिा वनिृव के उपरा इन जागरण
विवधयों का दै वनक जीिन में कोई उपयोवगिा नहीं रह जािी पररणाम रुप गुणि ा युि उ ाद और उ ादन िो
बढ़ जािा है पर ु उ ादों और संसाधनों की उपयोवगिा की मानवसकिा का वनमाष ण उस अनुपाि में नहीं बढ़िा
इसी कारण इसे पव मी सं ृ वि आधाररि जागरण विवध कहिे हैं
मन की गुणि ा का वि /अ राष र ीय मानक WS-0 िृंखिा है वजसे वि रीय वनमाष ण विवध ारा
प्रा करने का एक और अम्म म मागष है - स ूणष जीिन परररक्षण (Total Life Maintenance-TLM) वजसमें प्रिेर्श
का एक और अम्म म विवध है - स (Satya), हृदय (Heart), योग (Yog), आिम (Ashram), ान (Meditaion)
और िेिना (Conciousness) - SHYAM.C विवध यह मन के विए सामा कृि जागरण विवध है जो अ ः विर्य
मन पर केम्म ि कर गु णि ा को प्रा वकया जािा है इसकी उपयोवगिा जीिन के प्र ेक क्षण में होिी है क्योंवक
इसका स स -वस ा , कािानुसार योग और उम्र के अनुसार कमष से होिा है पररणाम रुप थ समाज,
थ उ ोग सवहि उ ादों और संसाधनों की उपयोवगिा की मानवसकिा बढ़िी है इसी कारण इसे भारिीय
सं ृ वि आधाररि जागरण विवध कहिे हैं
इस प्रकार वि रीय वनमाष ण विवध के दो भाग हैं प्रथम सामा ीकृि-TLM व िीय विर्शेर्ीकृि-TPM
या TQM, TLM बड़ा िक्र है , TPM या TQM उसका अ ः और छोट्ा िक्र है अथाष ि् TLM से TPM और TQM को
प्रा वकया जा सकिा है पर ु TPM या TQM से TLM को नहीं प्रा वकया जा सकिा TLM मानि सं साधन
विकास, सिोৡ प्रब , मानि अवधकार, भारिीयिा आधाररि उ ोग, थ समाज, थ िोकि एिं पूणष मानि
के वनमाष ण का वि रीय वनमाष ण विवध है वजस प्रकार Institute of Plant Maintenance जापान ारा 5S का
संिािन TPM के विए है उसी प्रकार “पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष (RENEW-Real Education
National Express Way)” ारा स (Satya), हृदय (Heart), योग (Yog), आिम (Ashram), ान
(Meditaion) और िेिना (Conciousness) (SHYAM.C) का संिािन TLM के विए है
TLM के प्रिे र्श ार- स , हृदय, योग, आिम, ान और िेिना (SHYAM.C) है स के अ गषि
दे र्शकाि मुि स और दे र्शकाि ब स है दे र्शकाि मुि स के अ गषि दे र्शकाि मुि अ स और

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 306


दे र्शकाि मुि स है यह दे र्शकाि मुि स ही सािषभौम स -वस ा अथाष ि् WS-0 िृंखिा (WS-
0 : वििार एिं सावह , WS-00 : विर्य एिं विर्शेर्৯ों की पररभार्ा, WS-000 : वि प्रब और वक्रयाकिाप, WS-
0000 : मानि प्रब और वक्रयाकिाप िथा WS-00000 : उपासना थि का वि /अ राष र ीय मानक) मन की
गुणि ा का अ राष र ीय मानक सवहि स ू णष ि सहभावगिा (Total System Involvement-TSI) है दे र्शकाि
ब स के अ गषि दे र्शकाि ब अ स अथाष ि् अ वि৯ान अथाष ि् अ ा वि৯ान िथा दे र्शकाि ब
स अथाष ि् वि৯ान अथाष ि् पदाथष वि৯ान है
रा र वनमाष ण या सामावजक क्राम्म या विकास सवहि पू णष मानि वनमाष ण की प्रवक्रया एक ि ी अिवध
की प्रवक्रया है इसके विए दू रगामी आि किा को व में रखिे हुए कायष करने की विवध के विए वब दु का
वनधाष रण होिा है जो हमारे मागषदर्शष क होिे हैं -
01. औ ोवगक क्षेत्र में Japanese Institute of Plant Engineers (JIPE) ारा उ ादों के वि रीय वनमाष ण
विवध को प्रा करने के विए उ ाद वनमाष ण िकनीकी- WCM-TPM-5S (World Class Manufacturing-
Total Productive Maintenance-
Siri (छूँ ट्ाई), Seton (सु िम्म थि), Sesso ( ৢिा), Siketsu (अৢा र), Shituke (अनुर्शासन) प्रणािी
संिाविि है वजसमें स ूणष कमषिारी सहभावगिा (Total Employees Involvement) है ये 5S मागषदर्शष क
वब दु हैं
02. िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ ारा मानि के वि रीय वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण
िकनीकी-WCM-TLM-SHYAM.C (World Class Manufacturing–Total Life Maintenance-Satya,
Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousness) प्रणािी आवि ृ ि है वजसमें स ू णष ि
सहं भावगिा (Total System Involvement-TSI) है ये SHYAM.C मागषदर्शषक वब दु हैं
03. सोमिार, 9 जून 2014 को भारि के 16िीं िोकसभा के संसद के संयुि सत्र को स ोवधि करिे हुये िी प्रणि
मुखजी, रा र पवि, भारि ने विकास ि िশ प्राम्म के कायष के विए अनके वब दु ओं को दे र्श के समक्ष रखें
वजसमें मुূ था-1.आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के आधार पर साकार होगा एक भारि-िे भारि का
सपना 2.सोर्शि मीवडया का प्रयोग कर सरकार को बेहिर बनाने की कोवर्शर्श 3.सबका साथ, सबका
विकास 4.100 नये माडि र्शहर बसाना 5.5T-ट्र े वडर्शन (Tradition), ट्र े ड (Trade), ट्ू रर৷ (Tourism),
ट्े क्नािाजी (Technology) और ट्ै िे (Talent) का मंत्र
रा र वनमाष ण का ापार रा र पवि िी प्रणि मुखजी ारा प्र ु ि वकये गये मागषदर्शष क वब दु ओं का
सम्म विि रूप है नये र्शहर के रूप में िाराणसी के दवक्षण थ्री इन िन ”स कार्शी नगर“ की योजना उस क्षेत्र के
विकास पर आधाररि है िो आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के आधार पर एक भारि-िे भारि के सपने को
साकार करने के विए पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष (RENEW-
Real Education National Express Way) ारा रा र वनमाष ण का ापार समाजिाद पर आधाररि भारि दे र्श के
आम आदमी के विए प्र ु ि है वकसी म्मि के बौम्म क विकास के विए आि क है वक उसे भोजन, ा
और वनधाष ररि आवथषक आय को सुवनव ि कर वदया जाय और यह यवद उसके र्शैवक्षक जीिन से ही कर वदया जाय
िो र्शेर् सपने को िह यं पूरा कर िेगा यवद िह नहीं कर पािा िो उसका वज ेदार भी िह यं होगा, न वक
अवभभािक या ई र पुनवनषमाष ण, इसी सुवनव िा पर आधाररि है
मानि एिं संयुि मानि (सं गठन, सं था, ससंद, सरकार इ ावद) ारा उ ावदि उ ादों का धीरे -धीरे
िै व क र पर मानकीकरण हो रहा है ऐसे में सं युि रा र सं घ को प्रब और वक्रयाकिाप का िै व क र पर
मानकीकरण करना िावहए वजस प्रकार औ ोवगक क्षे त्र अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन (International
Standardization Organisation-ISO) ारा संयुि मन (उ ोग, सं थान, उ ाद इ ावद) को उ ाद, सं था,
पयाष िरण की गुणि ा के विए ISO प्रमाणपत्र जैसे- ISO-9000, ISO-14000 िृंखिा इ ावद प्रदान वकये जािे हैं
उसी प्रकार सं युि रा र सं घ को नये अवभकरण वि मानकीकरण सं गठन (World Standardization

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 307


Organisation-WSO) बनाकर या अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन को अपने अधीन िेकर ISO/WSO-0 का
प्रमाण पत्र यो৓ म्मि और सं था को दे ना िावहए जो गुणि ा मानक के अनुरूप हों भारि को यही कायष
भारिीय मानक ूरो (Bureau of Indian Standard-BIS) के ारा IS-0 िृंखिा ारा करना िावहए भारि को
यह कायष रा र ीय वर्शक्षा प्रणािी (National Education System-NES) ि वि को यह कायष वि वर्शक्षा
प्रणािी (World Education System-WES) ारा करना िावहए जब िक यह वर्शक्षा प्रणािी भारि िथा संयुि
रा र संघ ारा जनसाधारण को उपि नहीं हो जािी िब िक यह ”पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र
मागष (RENEW-Real Education National Express Way)“ ारा उपि करायी जा रही है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 308


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 309
विषर्- सूची
प्रार के पहिे वद - व
ि था के पररििषन या स ीकरण का पहिा प्रारूप और उसकी कायष विवध
वमिे सुर मेरा िु ारा, िो सुर बने हमारा
नये समाज के वनमाष ण का आधार
ई रीय समाज
ई रीय समाज वनमाष ण की कायषिाही आधाररि पु कें
वि -नागररक धमष का धमषयुि धमषर्शा - कमषिेद: प्रथम, अम्म म िथा पंिम िेदीय िृंखिा
वि -रा৸ धमष का धमषवनरपेक्ष धमषर्शा - वि मानक र्शू -मन की गुणि ा का वि मानक (WS-0) िृंखिा
प्राकृविक स वमर्शन (Natural Truth Mission)
वि धमष मम्म र
स कार्शी ब्र ाਔीय एका वि৯ान वि वि ािय
(Satyakashi Universal Integration Science University-SUISU)
“स कार्शी महायोजना” (िाराणसी-वि ािि-वर्शि ार-सोनभि के बीि का क्षेत्र)

भाि-1 : आवर्णक त ता की र्ात्रा

गुिाम का अथष ि दास प्रथा (पा ा )


गुिाम प्रथा-दु वनया की हाट् में वबकिे हैं इं सान
िैव क बौम्म क विकास के साथ बदिा गुिामी का रूप
पाररिवमक का इविहास और िेिन (सैिरी) का अथष
मजदू री, िेिन, भ े और मानदे य, प्रो ाहन, सौदागर, अवभकिाष , विर्शेर्ावधकार, दिािी का अथष
राय ी-अथष और प्रकार, ई र और पुनजष
क्या आपको ि ु खरीदने पर क नी राय ी दे िी है जबवक क नी आपके कारण हैं ?
विपणन प्रणािी (Marketing System)
नेट्िकषर-एक िेज आवथषक गवि का कायषकिाष पर ु अस ावनि
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी
पुनवनषमाष ण-3-एफ विपणन प्रणािी से युि
पुनवनषमाष ण-म ी िेिेि माकेवट्ं ग (MLM) नहीं हैं
सफििा का पैमाना
सफििा का नाम विर्शेर्৯िा (Specialist) नहीं, बम्म ৯िा (Generalized) है

भाि-2 : सम ा

सम ा
समव (संयुि) समाधान
व ( म्मिगि) समाधान

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 310


भाि-3 : समाधान

समव (संयुि) समाधान


वि राजनीविक पाट्ी संघ (World Political Party Organisation - WPPO)
रा र ीय क्राम्म मोिाष
रा र ीय सहजीिन आ ोिन
राज-सुराज आ ोिन
वि एकीकरण आ ोिन (सै ाम्म क)
वि ापी थापना का मागष
एक वि - िे वि के वनमाष ण के विए आि क कायष
स म्म ि वििार
व ( म्मिगि) समाधान
पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष
(RENEW-Real Education National Express Way)
स म्म ि वििार

भाि-4 : पु नवनणमाणर् - स वशक्षा का रा र ीर् तीव्र मािण


www.moralrenew.com

वर्शक्षा, वर्शक्षा मा म, वर्शक्षक/गुरू, वि ाथी/छात्र और वर्शक्षा पाਉक्रम


” ापार“ और ”वर्शक्षा का ापार“
”स मानक वर्शक्षा का ापार“-एक अ हीन ापार
पुनवनषमाष ण-रा र वनमाष ण का ापार
पुनवनषमाष ण क्यों?
प्रिेर्श पंजीकरण की यो৓िा (Eligibility)
छात्रिृव ( ािरवर्शप), सहायिा और राय ी दे ने का हमारा आधार
पाਉक्रम र्शु (Course Fees)
छात्रिृव और राय ी (Scholarship & Royalty)
ये पाਉक्रम क्या है ?
अ-सामा ीकरण (Generalization) वर्शक्षा
01. स वर्शक्षा (REAL EDUCATION)
02. स पेर्शा (REAL PROFESSION)
03. स पु क (REAL BOOK)
04. स म्म थवि (REAL STATUS)
05. स ए े ट् एजे (REAL ESTATE AGENT)
06. स वकसान (REAL KISAN)
ब-विर्शेर्ीकरण (Specialization) वर्शक्षा
01. स कौर्शि (REAL SKILL)
02. वडजीट्ि कोविंग (DIGITAL COACHING)

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 311


स-स नेट्िकष (REAL NETWORK)
हमारा उ े क्या है ?
आपकी सम ा और हमारा उपाय
पुनवनषमाष ण-छात्रिृव , सहायिा ि राय ी वििरण विवथ
पुनवनषमाष ण-प्रणािी की विर्शेर्िाएूँ

भाि-5 : स नेटिकण (REAL NETWORK)

01. वडवजट्ि ग्राम नेट्िकष (Digital Village Network)


02. वडवजट्ि नगर िाडष नेट्िकष (Digital City Ward Network)
03. वडवजट्ि एन.जी.ओ/ट्र नेट्िकष (Digital NGO/Trust Network)
04. वडवजट्ि वि मानक मानि नेट्िकष (Digital World Standard Human Network)
05. वडवजट्ि नेिृ नेट्िकष (Digital Leader Network)
06. वडवजट्ि जनषवि नेट्िकष (Digital Journalist Network)
07. वडवजट्ि वर्शक्षक नेट्िकष (Digital Teacher Network)
08. वडवजट्ि र्शैवक्षक सं थान नेट्िकष (Digital Educational Institute Network)
09. वडवजट्ि िेखक-ग्र कार-रिवयिा नेट्िकष (Digital Author Network)
10. वडवजट्ि गायक नेट्िकष (Digital Singer Network)
11. वडवजट्ि म्मखिाड़ी नेट्िकष (Digital Sports Man Network)
12. वडवजट्ि पु क विक्रेिा नेट्िकष (Digital Book Saler Network)
13. वडवजट्ि होट्ि और आहार गृह नेट्िकष (Digital Hotel & Restaurant Network)

भाि-6 : वडवजटल प्रापटी और एजे नेटिकण


www.leledirect.com

प्रवर्शक्षु एजे (TRAINEE AGENT)


ि एजे (FREELANCE AGENT)
थायी एजे (PERMANENT AGENT)
वपन कोड एररया एजे ी (PIN CODE AREA AGENCY)
वपन कोड एररया एजे ी (PIN CODE AREA AGENCY) का कायष
वस म की विर्शेर्िाएूँ
भाि-7 : पु नवनणमाणर् के प्रे रक (Catalyst)

नेट्िकषर-एक िेज आवथषक गवि का कायषकिाष पर ु अस ावनि


1. नेट्िकषर की म्म थवि
2. समाज के म्मि की म्म थवि
3. नेट्िकष क नी की म्म थवि
रा र वनमाष ण का ापार और उसकी विवध क्या है ?
प्रिेर्श के / प्रेरक की यो৓िा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 312


ापार का थावय (Stability of Business)
पुनवनमाष ण की संिािन प्रणािी की विर्शेर्िाएूँ
प्रेरक को आवथषक िाभ
पुनवनमाष ण पद
1.मਔि प्रेरक (Division Catalyst-Dv.C)
2.वजिा प्रेरक (District Catalyst-Dt.C)
3.”वि र्शा “ मम्म र (Vishwshastra Temple-V.T)
4.ब्राਔ फ्ै ाइजी (Brand Franchisee-B.F)
5.डाक क्षेत्र प्रिेर्श के (Postal area Admission Center-PAC)
6.ग्राम/नगर िाडष प्रेरक (Village/City ward Catalyst-V.C)
7. ि प्रेरक (Freelance Catalyst-F.C)

भाि-8 : आमिंत्रर्

बेरोजगारों ि एम. एि. एम नेट्िकषरों को आमंत्रण


छात्रों को आमंत्रण

भाि-9 : रा र वनमाणर् का हमारा िसार्-एक मानक िसार्

हमारा िसाय - ड ू.एस. (WS)-000 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिं थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानकके
अनुसार
वि का मूि म -“जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 313


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 314
विषर्- सूची

प्रार के पहिे वद - व
ि था के पररििषन या स ीकरण का पहिा प्रारूप और उसकी कायष विवध
वमिे सुर मेरा िु ारा, िो सुर बने हमारा
सफििा का पैमाना
सफििा का नाम विर्शेर्৯िा (Specialist) नहीं, बम्म ৯िा (Generalized) है
एक वि - िे वि के वनमाष ण के विए आि क कायष
कृवर् के आवि ारक - आवद पुरूर् महवर्ष कूमष -क प
एक सिेक्षण
म्मि की म्म थवि
म्मि और पररिार पर धमष की म्म थवि
म्मि पर ापार की म्म थवि
म्मि का पररणाम

भाि-1 : वडजीटल इन्तਔर्ा

वडवजट्ि इम्मਔया
“पुनवनषमाष ण” की अिधारण में वडवजट्िाइजेर्शन
वडवजट्ि ग्राम/नगर िाडष का अथष
सरकारी वडवजट्िाइजेर्शन ि नीजी वडवजट्िाइजेर्शन
रा र वनमाष ण के विए वडवजट्िाइजेर्शन

भाि-2 : आवर्णक त ता की र्ात्रा

गुिाम का अथष ि दास प्रथा (पा ा )


गुिाम प्रथा-दु वनया की हाट् में वबकिे हैं इं सान
िैव क बौम्म क विकास के साथ बदिा गुिामी का रूप
पाररिवमक का इविहास और िेिन (सैिरी) का अथष
मजदू री, िेिन, भ े और मानदे य, प्रो ाहन, सौदागर, अवभकिाष , विर्शेर्ावधकार, दिािी का अथष
राय ी-अथष और प्रकार, ई र और पुनजष
क्या आपको ि ु खरीदने पर क नी राय ी दे िी है जबवक क नी आपके कारण हैं ?
विपणन प्रणािी (Marketing System)
नेट्िकषर-एक िेज आवथषक गवि का कायषकिाष पर ु अस ावनि
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी
पुनवनषमाष ण-3-एफ विपणन प्रणािी से युि
पुनवनषमाष ण-म ी िेिेि माकेवट्ं ग (MLM) नहीं हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 315


भाि-3 : पु नवनणमाणर् - स वशक्षा का रा र ीर् तीव्र मािण
www.moralrenew.com
स म्म ि वििार
वर्शक्षा, वर्शक्षा मा म, वर्शक्षक/गुरू, वि ाथी/छात्र और वर्शक्षा पाਉक्रम
” ापार“ और ”वर्शक्षा का ापार“
”स मानक वर्शक्षा का ापार“-एक अ हीन ापार
पुनवनषमाष ण-रा र वनमाष ण का ापार
पुनवनषमाष ण क्यों?
प्रिेर्श पंजीकरण की यो৓िा (Eligibility)
छात्रिृव ( ािरवर्शप), सहायिा और राय ी दे ने का हमारा आधार
पाਉक्रम र्शु (Course Fees)
छात्रिृव और राय ी (Scholarship & Royalty)
ये पाਉक्रम क्या है ?
अ-सामा ीकरण (Generalization) वर्शक्षा
01. स वर्शक्षा (REAL EDUCATION)
02. स पेर्शा (REAL PROFESSION)
03. स पु क (REAL BOOK)
04. स म्म थवि (REAL STATUS)
05. स ए े ट् एजे (REAL ESTATE AGENT)
06. स वकसान (REAL KISAN)
ब-विर्शेर्ीकरण (Specialization) वर्शक्षा
01. स कौर्शि (REAL SKILL)
02. वडजीट्ि कोविंग (DIGITAL COACHING)
स-स नेट्िकष (REAL NETWORK)
हमारा उ े क्या है ?
आपकी सम ा और हमारा उपाय
पुनवनषमाष ण-छात्रिृव , सहायिा ि राय ी वििरण विवथ
पुनवनषमाष ण-प्रणािी की विर्शेर्िाएूँ

भाि-4 : पु नवनणमाणर् के प्रे रक (Catalyst)

नेट्िकषर-एक िेज आवथषक गवि का कायषकिाष पर ु अस ावनि


1. नेट्िकषर की म्म थवि
2. समाज के म्मि की म्म थवि
3. नेट्िकष क नी की म्म थवि
रा र वनमाष ण का ापार और उसकी विवध क्या है ?
प्रिेर्श के / प्रेरक की यो৓िा
ापार का थावय (Stability of Business)
पुनवनमाष ण की संिािन प्रणािी की विर्शेर्िाएूँ
प्रेरक को आवथषक िाभ

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 316


पुनवनमाष ण पद
1.मਔि प्रेरक (Division Catalyst-Dv.C)
2.वजिा प्रेरक (District Catalyst-Dt.C)
3.”वि र्शा “ मम्म र (Vishwshastra Temple-V.T)
4.ब्राਔ फ्ै ाइजी (Brand Franchisee-B.F)
5.डाक क्षेत्र प्रिेर्श के (Postal area Admission Center-PAC)
6.ग्राम/नगर िाडष प्रेरक (Village/City ward Catalyst-V.C)
7. ि प्रेरक (Freelance Catalyst-F.C)

भाि-5 : ग्राम एििं निर

ग्राम या गाूँ ि और ग्राम पंिायि


नगर, नगर िाडष और नगर पंिायि/वनगम/पाविका
पंिायिी राज

भाि-6 : मानक ग्राम एििं निर िाडण

सहजीिन
राज-सुराज
मानक ग्राम / नगर िाडष - “पुनवनषमाष ण” की अिधारणा

भाि-7 : स नेटिकण (REAL NETWORK)

स - स े र्श
स नेट्िकष (REAL NETWORK)
ग्राम प्रधान, सभासद और ग्राम/नगर िाडष प्रेरक - अथष और मुূ कायष
वनिासीयों को िाभ

भाि-8 : वडवजटल प्रापटी और एजे नेटिकण


www.leledirect.com

प्रवर्शक्षु एजे (TRAINEE AGENT)


ि एजे (FREELANCE AGENT)
थायी एजे (PERMANENT AGENT)
वपन कोड एररया एजे ी (PIN CODE AREA AGENCY)
वपन कोड एररया एजे ी (PIN CODE AREA AGENCY) का कायष
वस म की विर्शेर्िाएूँ

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 317


भाि-9 : आमिंत्रर्

बेरोजगारों ि एम. एि. एम नेट्िकषरों को आमंत्रण


छात्रों को आमंत्रण

भाि-10 : रा र वनमाणर् का हमारा िसार्-एक मानक िसार्

हमारा िसाय - ड ू.एस. (WS)-000 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिं थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का
वि मानकके अनुसार
वि का मूि म -“जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“
भारिीय र्शा ों की एक िाक्य में वर्शक्षा

भाि-11 : समव धमण व

अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र िी िि कुर्श वसंह”वि मानि” का मानिों के नाम खुिा िुनौिी पत्र
अवनिषिनीय कम्म महाअििार का कार्शी-स कार्शी क्षेत्र से वि र्शाम्म का अम्म म स -स े र्श

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 318


भाि-14
आवर्णक क्रान्त - मानक विपर्न प्रर्ाली : 3F (Fuel-Fire-Fuel)

या आपको ि ु खरीदने पर क नी रार् ी दे ती है जबवक क नी आपके कारर् हैं ?


3-एि (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपर्न प्रर्ाली

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 319


या आपको ि ु खरीदने पर क नी रार् ी दे ती है जबवक क नी
आपके कारर् हैं?
मनु समाज ि सरकार में ापार के प्रणािी से राय ी र्श का ज हुआ है जो वकसी
म्मि/सं था के मौविक खोज/कृवि इ ावद के प्रवि उसकी रक्षा ि ापारीकरण के विए उसे धनरावर्श के रूप में
भुगिान का अवधकार दे िा है राय ी संपव , पेट्ेंट्, कापीराइट् वकए गए कायष या मिावधकार (फ्ै ाइजी) के
कानूनी माविक को उनके ारा भुगिान वकया जािा है जो इसका उपयोग करना िाहिे हैं ৸ादािर मामिों में,
राय ी संपव के उपयोग के विए माविक की भरपाई करने के विए वदया जािा हैं , जो कानूनी िौर पर बा कारी
हैं
इस संसार में प्र ेक जीि का अपना मौविक कमष -इৢा है और िह उसी अनु सार कमष कर रहा है
ई र और पुनजष के सािष भौम स -वस ा के अनु सार हम यह पािे हैं वक हम जो भी कमष -इৢा करिे हैं िह
हमें उस अनुसार ज -ज ा र िक कमष -इৢा के पररणाम/फि के रूप में प्रा होिा रहिा है
इस ब्र ाਔ में वजस प्रकार उ ेरक सािषभौम आ ा की उपम्म थवि में सम वक्रया का सं िािन िि
रहा है उसी प्रकार मानि समाज में उ ेरक मुिा की उपम्म थवि में मानि के सम ापार िि रहे हैं
वजस प्रकार हमारे सभी कमष-इৢा का पररणाम/फि राय ी के रूप में सािषभौम आ ा ारा प्रदान
वकये जा रहे हैं उसी प्रकार मानि समाज के ि ुओं से स म्म ि ापार में भी उसके साथ वकये गये कमष के भी
पररणाम/फि राय ी के रूप में प्रा होनी िावहए मौविक खोज/आवि ार के साथ राय ी का प्राविधान बढ़िे
बौम्म क विकास के साथ िो है ही पर ु यवद वकसी क नी के उ ाद का प्रयोग हम करिे हैं िो ये उस क नी के
साथ वकया गया हमारा कमष भी राय ी के िेणी में आिा है क्योंवक हम ही उस क नी के विकास में योगदान दे ने
िािे हैं राय ी का सीधा सा अथष है -हमारे कमों का पररणाम/फि हमें वमिना िावहए वजस प्रकार ई र हमें
ज -ज ा र िक पररणाम/फि दे िा है , उसी प्रकार मनु वनवमषि ापाररक सं थान ारा भी हमें उसका
पररणाम/फि वमिना िावहए
ििषमान समय में म्म थवि यह है वक भिे ही कৡा माि (रा मैवट्ररयि) ई र ारा दी गई है िेवकन
उसके उपयोग का रूप मनु वनवमषि ही है और हम उससे वकसी भी िरह बि नहीं सकिे वजधर दे खो उधर
मनु वनवमषि उ ाद से हम वघरे हुए हैं हमारे जीिन में बहुि सी दै वनक उपयोग की ऐसी ि ुएूँ हैं वजनके उपयोग
के वबना हम बि नहीं सकिे बहुि सी ऐसी वनमाष िा क नी भी है वजनके उ ाद का उपयोग हम िर्ों से करिे आ
रहे हैं िेवकन उनका और हमारा स केिि वनमाष िा और उपभोिा का ही है जबवक हमारी िजह से ही ये
क नी िाभ प्रा कर आज िक बनी हुयी हैं , और हमें उनके साथ इिना कमष करने के बािजूद भी हम सब को
राय ी के रूप में कुछ भी प्रा नहीं होिा जबवक थायी ग्राहक बनाने के विए राय ी दे ना क नी के थावय
को सुवनव ि भी करिा है
जबवक होना र्ह चावहए वक क नी ारा ग्राहक के खरीद के अलि-अलि लশ के अनुसार
छूट (वड ाउ ) का अलि-अलि वनधाणररत प्रवतशत हो और एक वनधाणररत खरीद लশ को प्रा कर
लेने के बाद क नी ारा उस ग्राहक को पीढ़ी दर पीढ़ी के वलए रार् ी दे नी चावहए
और ऐसा नही िं है लेवकन कुछ क नी ऐसी हैं जो ऐसा कर रही िं है और अनेक दे शोिं में उनका
ापार कम समर् में तेजी से बढ़ा हैं, िही िं उनके उ ाद भी िैव क िुਙ ा र के भी हैं
अपने जीिकोपाजणन के वलए शारीररक िुलामी से चला आवर्णक त ता का सिर अभी
पेंशन तक ही पहुाँचा है जब हम रार् ी तक पहुाँच जार्ेंिे तब हम सभी स आवर्णक त ता के अन्त म
लশ को प्रा कर लेंिे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 320


3-एि (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपर्न प्रर्ाली
कुि वमिाकर उपभोिा जो कहीं वकसी और मा म से धन अवजषि करिा है उसके उस धन को िेने
के विए वकये गये सारे प्रपं ि विपणन के अ गषि आिे हैं यवद उपभोिा के पास धन नहीं िो ये सारे प्रपंि बेकार
वस हो जािे हैं उसके विए फाइने (आसान वक ों में धन िुकाने की ि था), खरीदे और दू सरे को खरीद
करायें िािी प्रणािी भी विपणन के प्रपंि में से ही है
वि में र्शायद वकसी भी दे र्श में सरकार ारा वनव ि की गई विपणन प्रणािी िागू नहीं हैं सरकार को
केिि विवभ प्रकार के करों (Taxes) से मििब होिा है वनमाष िा अपने उ ाद को िाहे वजस विवध/प्रणािी से
बेिे बस म ीिेिेि माकेवट्ं ग के विए कुछ वदर्शा वनदे र्श भारि में समय-समय पर वनधाष ररि होिे रहिे हैं
िे न ने कहा था, “ब्र ाਔीय दर्शषन मनु के अनुरूप बैठने के विए नहीं, बम्म ब्र ाਔ के
अनुरूप बैठने के विए रिा गया है मनु के पास ठीक उसी िरह अपना एक नीजी धमष नहीं हो सकिा, वजस
िरह उसके पास एक वनजी सूयष और एक िंिमा नहीं हो सकिा ” अथाष ि मनु , मनु के साथ ापार करने के
विए अनेक प्रकार की प्रणािी का विकास िो कर सकिा है पर ु िह एक मानक प्रणािी नहीं हो सकिी मानक
प्रणािी िही हो सकिी है जो ब्र ाਔीय दर्शषन अथाष ि सािष भौम स -वस ा के अनुरूप होगा िह प्रणािी
क ाणकारी- िाभकारी और सरि होगी ब्र ाਔ एक ापार क्षेत्र अथाष ि ापार के है सिष ापी सािषभौम
आ ा (ई र-सािषभौम स -वस ा ) की उपम्म थवि में सिषत्र ापार िि रहा है जहाूँ भी, कुछ भी आदान-प्रदान
हो रहा हो, िह सब ापार के ही अधीन है वकसी वििार पर आधाररि होकर आदान-प्रदान का नेिृ किाष
ापारी और आदान-प्रदान में र्शावमि होने िािा ग्राहक होिा है प्र ेक म्मि ही ापारी है और िही दू सरे के
विए ग्राहक भी है यवद म्मि आपस में आदान-प्रदान कर ापार कर रहें हैं िो इस संसार-ब्र ाਔ में ई र का
ापार िि रहा है और सभी ि ुएूँ उनके उ ाद है उन सब ि ुओं का आदान-प्रदान हो रहा है वजसके
ापारी यं ई र हैं ये सनािन वस ा है वजस प्रकार मानि वनयंवत्रि ापार का माविक मानि (क नी, फमष
इ ावद) होिा है उसी प्रकार ई र वनयंवत्रि ापार का माविक ई र यं हैं दोनों ही म्म थवियों के अपने -अपने
वनयम ारा ापार संिाविि हैं
ई र संिाविि ापार की प्रणािी की विर्शेर्िाओं को जानने से ही एक मानक प्रणािी बन सकिी है
जो क ाणकारी-िाभकारी और सरि हो
“कम्म ” अििार के स में कहा गया है वक उसका कोई गुरू नहीं होगा, िह यं से प्रकावर्शि
यंभू होगा वजसके बारे में में कहा गया है वक
“ऋवर्-ि , दे ििा इ , छ गायत्री अहवमम्म वपिु रर मेधा मृि जग्रभ अहं सूयष इिावजवन ”
अर्िणिेद, काਔ 20, सूक्त 115, मिंत्र 1
अथाष ि “मैं परम वपिा परमा ा से स ৯ान की विवध को धारण करिा हूँ और मैं िेज ी सूयष के
समान प्रकट् हुआ हूँ ” जबवक सबसे प्रािीन िंर्श ायं भुि मनु के पुत्र उ ानपाद र्शाखा में ब्र ा के 10 मानस पुत्रों
में से मन से मरीवि ि प ी किा के पु त्र क प ि प ी अवदवि के पुत्र आवद (सू यष) की िौथी प ी छाया से दो पुत्रों
में से एक 8िें मनु - सािवणष मनु होंगे वजनसे ही ििषमान मनि र 7िें िैि ि मनु की समाम्म होगी ान रहे वक
8िें मनु - सािवणष मनु, सूयष पुत्र हैं अथाष ि कम्म अििार और 8िें मनु - सािवणष मनु दोनों, दो नहीं बम्म एक ही हैं
और सूयष पुत्र हैं इसविए सूयष वस ा पर ही भारिीय आ ा एिं दर्शषन आधाररि दे र्शी विपणन प्रणािी का
नामकरण 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) रखा गया है अथाष ि ऐसा वस ा वजसके नीिे ईंधन (Fuel) हो बीि में
अव্ (Fuel) हो वफर उसके उपर ईंधन (Fuel) हो, िो िो आग कब बुझेगी? ईंधन के कारण आग जि रहा है , आग
के कारण ईंधन वमि रहा हो िो िो आग कब बुझेगी? जिने से ही ईंधन बन रहा हो िो िो आग कब बुझेगी?
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी, िूूँवक भारिीय आ ा एिं दर्शष न आधाररि दे र्शी
विपणन प्रणािी और एक स मानक विपणन प्रणािी है इसविए भारि के जो भी नेिृ किाष ये िाहिे हों वक भारि

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 321


को सोने की विवड़या बनायेंगे और आ ाम्म क और दार्शषवनक विरासि के आधार पर एक भारि - िे भारि का
वनमाष ण करें गे, उ ें उ ाद के ऐसे क्षेत्र में जो मनु के विए उपयोग करना मजबूरी हो, उस क्षेत्र के विपणन
क नी/संगठन को इस प्रणािी का संिािन अवनिायष कर दे ना िावहए और अ क्षेत्र में विपणन ैम्मৢक रूप से
िििे रहने दे ना िावहए अवनिायष करने के क्षेत्र ये हो सकिे हैं जैसे - वर्शक्षा क्षेत्र, दै वनक उपभोग के ि ु क्षेत्र

खचण के वलए धन नही िं, अब धन लाभ के वलए खचण


3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी से दै वनक उपभोग के ि ु क्षेत्र के विपणन क नी के
विपणन खिष में बहुि अवधक कमी आ जायेगी, साथ ही उपभोिा यं ही उ ाद को खरीदने के विए यं आने
िगेंगे उ ें उ ाद बेिने के अनेक प्रकार के प्रपंि से मुम्मि वमि जायेगी क्योंवक अभी िक उपभोिा धन िाभ
कहीं और से अवजषि करिा था और उ ाद कहीं और से खरीदिा था िेवकन 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel)
विपणन प्रणािी से उसे उ ाद खरीदने से भी धन िाभ होने िगेगा पररणाम रूप उपभोिा की क्रय र्शम्मि बढ़
जायेगी और यह सभी के विए िाभदायक होगा और िब एक नया ৯ान सू त्र ज िेगा “खिष के विए धन नहीं, अब
धन िाभ के विए खिष ”

वशक्षा के वलए धन नही िं, अब धन लाभ के वलए वशक्षा


3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी से वर्शक्षा क्षेत्र के विपणन क नी और सरकार के
खिष में बहुि अवधक कमी आ जायेगी, साथ ही वर्शक्षाथी यं आने िगेंगे उ ें अनेक प्रकार के अनुदान/छात्रिृव
दे ने से मुम्मि वमि जायेगी क्योंवक अभी िक वर्शक्षाथी के अवभभािक धन िाभ कहीं और से अवजषि करिे थे और
मूँहगी होिी वर्शक्षा के विए भुगिान कहीं और करिे थे , िेवकन 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी से
उ ें वर्शक्षा से भी धन िाभ होने िगेगा पररणाम रूप वर्शक्षा से रूवि बढ़ जायेगी और यह सभी के विए
िाभदायक होगा और िब एक नया ৯ान सू त्र ज िेगा “वर्शक्षा के विए धन नहीं, अब धन िाभ के विए वर्शक्षा”

3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी के िागू वकये वबना भारि को सोने की विवड़या बनाना
और आ ाम्म क और दार्शष वनक विरासि के आधार पर एक भारि - िे भारि का वनमाष ण एक सपना है जो कहने
से नहीं बम्म उस प्रणािी को अपनाने से पूरा हो सकिा है

3-एि (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपर्न प्रर्ाली का वि ृत वििरर् “वि शा ”अ ार्-4 में


उपल है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 322


भाि-15
वडजीटल इन्तਔर्ा
वडवजटल इन्तਔर्ा
सरकारी वडवजटलाइजेशन ि नीजी वडवजटलाइजेशन
रा र वनमाणर् के वलए वडवजटलाइजेशन
वडवजटल ग्राम/निर िाडण का अर्ण
स ूर्ण क्रान्त की अिधारर्ा में वडवजटलाइजेशन
www.rashtriyanitiayog.com
www.moralrenew.com
www.leledirect.com

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 323


वडवजटल इिं वडर्ा
अंकीय भारि या वडवजट्ि भारि (वडवजट्ि इम्मਔया) सरकारी विभागों एिं भारि के िोगों को एक
दू सरे के पास िाने की भारि सरकार की एक पहि है वडवजट्ि इं वडया भारि सरकार की एक पहि है वजसके
िहि सरकारी विभागों को दे र्श की जनिा से जोड़ना है इसका उ े यह सुवनव ि करना है वक वबना कागज के
इ ेमाि के सरकारी सेिाएं इिेक्टरॉवनक रूप से जनिा िक पहुं ि सकें इस योजना का एक उ े ग्रामीण
इिाकों को हाई ीड इं ट्रनेट् के मा म से जोड़ना भी है वडवजट्ि इं वडया के िीन कोर घट्क हैं -
1- वडवजट्ि आधारभूि ढाूँ िे का वनमाष ण करना
2- इिेक्टरॉवनक रूप से सेिाओं को जनिा िक पहुं िाना
3- वडवजट्ि साक्षरिा
योजना को 2019 िक कायाष वयि करने का िশ है एक ट्ू -िे ेट्फॉमष का वनमाष ण वकया जाएगा
जहाूँ दोनों (सेिा प्रदािा और उपभोिा) को िाभ होगा यह एक अंिर-मंत्राियी पहि होगी जहाूँ सभी मंत्रािय
िथा विभाग अपनी सेिाएं जनिा िक पहुं िाएं गें जैसे वक ा , वर्शक्षा और ावयक सेिा आवद ियवनि रूप से
पम्म क प्राइिेट् पाट्ष नरवर्शप (पीपीपी) मॉडि को अपनाया जाएगा इसके अविररि रा र ीय सूिना केंि के
पुनवनषमाष ण की भी योजना है यह योजना मोदी प्रर्शासन की ट्ॉप प्राथवमकिा िािी पररयोजनाओं में से एक है यह
एक सराहनीय और सभी साझेदारों की पूणष समथषन िािी पररयोजना है जबवक इसमें िीगि फ्ेमिकष, गोपनीयिा
का अभाि, डाट्ा सुरक्षा वनयमों की कमी, नागररक ाय िा हनन िथा भारिीय ई-सविषिां स के विए संसदीय
वनगरानी की कमी िथा भारिीय साइबर असुरक्षा जैसी कई मह पूणष कवमयाूँ भी हैं वडवजट्ि इं वडया को
कायाष वयि करने से पहिे इन सभी कवमयों को दू र करना होगा

वडवजटल इिं वडर्ा के सामने चुनौवतर्ााँ


हािां वक भारि सॉ िेयर की एक महार्शम्मि के रूप में जाना जािा है , वफर भी नागररकों के विए
इिेक्टरॉवनक सरकारी सेिाओं की उपि िा अभी भी अपेक्षाकृि कम है 2006 में अनुमोवदि रा र ीय ई-र्शासन
योजना ने वमर्शन मोड पररयोजनाओं और कोर आईसीट्ी बुवनयादी सुविधा के मा म से एक सिि प्रगवि की है ,
िेवकन दे र्श में इिेक्टरॉवनস विवनमाष ण और ई-र्शासन में प्रभािी प्रगवि सुवनव ि करने के विए अवधक प्रयास की
आि क है वडवजट्ि इं वडया विजन इस पहि को संिेग एिं प्रगवि प्रदान करिा है और इसमें इिेक्टरॉवनक
सेिाओं, उ ादों, उपकरणों, विवनमाष ण और रोजगार के अिसरों को र्शावमि करने से समािेर्शी विकास को बढ़ािा
वमिेगा 21 िी ं सदी में भारि अपने नागररकों की आकां क्षाओं को पूरा करने के विए प्रयास करे गा जहाूँ सरकार
और उसकी सेिाएं नागररकों के दरिाजे पर उपि हों और िंबे समय िक सकारा क प्रभाि की वदर्शा में
योगदान करें वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम का उ े आई ट्ी की क्षमिा को इ ेमाि कर के भारि को वडवजट्ि
रूप से सर्शि समाज और ৯ान अथष ि था में पररणि करना है
भारि सरकार की सं था भारि ब्रॉडबैंड नेट्िकष विवमट्े ड (बीबीएनएि) नेर्शनि ऑव कि फाइबि
नेट्िकष जैसी पररयोजना को कायाष वयि करे गी जो वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम की दे खरे ख करे गा बीबीएनएि ने
यूनाइट्े ड ट्े िीकॉम विवमट्े ड को 250,000 गाूँ िों को एफट्ीट्ीएि ब्रॉडबैंड आधाररि िथा जीपीओएन के ारा
जोड़ने का आदे र्श वदया है यह 2017 िक (अपेवक्षि) पूणष होने िािी वडवजट्ि इं वडया पररयोजना को सभी
आधारभूि सुविधाएं मुहैया कराएगी
वडवजट्ि इं वडया भारि सरकार की आ ासना क योजना है कई क वनयों ने इस योजना में अपनी
वदिि ी वदखायी है यह भी माना जा रहा है वक ई-कॉमसष वडवजट्ि इं वडया प्रोजेक्ट को सुगम बनाने में मदद
करे गा जबवक, इसे कायाष वयि करने में कई िुनौवियाूँ और कानूनी बाधाएं भी आ सकिी हैं कुछ िोगों का यह

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 324


भी मानना है वक दे र्श में वडवजट्ि इं वडया सफि िब िक नहीं हो सकिा जब िक वक आि क बीसीबी ई-गिनेंस
को िागू न वकया जाए िथा एकमात्र रा र ीय ई-र्शासन योजना (National e-Governance Plan) का अपूणष
वक्रया यन भी इस योजना को प्रभाविि कर सकिा है वनजिा सुरक्षा, डाट्ा सुरक्षा, साइबर कानून, ट्े िीग्राफ, ई-
र्शासन िथा ई-कॉमसष आवद के क्षेत्र में भारि का कमजोर वनयंत्रण है कई कानूनी विर्शेर्৯ों का यह भी मानना है
वक वबना साइबर सुरक्षा के ई-प्रर्शासन और वडवजट्ि इं वडया थष है भारि ने साइबर सुरक्षा ििन ने भारिीय
साइबर ेस की कवमयों को उजागर वकया है यहाूँ िक वक अब िक रा र ीय साइबर सुरक्षा योजना 2013 अभी
िक वक्रयानिवयि नहीं हो पायी है इन सभी ििषमान पररम्म थयों में मह पूणष आधारभूि सुरक्षा को प्रबंधन करना
भारि सरकार के विए कवठन कायष होगा िथा इस प्रोजेक्ट में उविि ई-किरा प्रबंधन के प्रािधान की भी कमी है

वडवजटल रूप से सशक्त समाज और ৯ान अर्ण ि र्ा के वलए एक कार्णक्रम


वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम का उ े दे र्श को वडवजट्ि रूप से सर्शि समाज और ৯ान अथष ि था
में पररणि करना है यह 7 अग 2014 को प्रधानमंत्री की बैठक के दौरान कायषक्रम के प्रारूप पर विए गये
मह पूणष वनणषयों का अनुपािन और सरकार के सभी मंत्राियों को इस विर्शाि कायषक्रम के प्रवि जागरूक करने
के विए है जो सरकार के सभी क्षेत्रों पर रोर्शनी डाििी है यह कायषक्रम इिेक्टरॉवनস और सूिना प्रौ ोवगकी
विभाग (डीईआईट्ीिाई) ारा पररकम्म ि वकया गया है यह कायषक्रम ििषमान िर्ष से 2018 िक िरणब िरीके
से कायाष म्म ि वकया जायेगा वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम पररििषनकारी प्रकृवि का है जो यह सुवनव ि करे गा की
सरकारी सेिाएूँ इिेक्टरॉवनक रूप से नागररकों के विए उपि हैं ििषमान में अवधकिर ई-गिनेंस पररयोजनाओं
के विए धन का स्रोि के ीय या रा৸ सरकारों में संबंवधि मंत्राियों/विभागों के बजट्ीय प्रािधानों के मा म से
होिा है वडवजट्ि इं वडया की पररयोजना(ओं) के विए धन की आि किाओं का आकिन संबंवधि नोडि
मंत्राियों/विभागों ारा वकया जाएगा

वडवजटल इिं वडर्ा के व क्षेत्र


 प्र ेक नागररक के विए इ फ्ा र क्चर एक उपयोवगिा के रूप में
 मां ग पर र्शासन और सेिाएं
 नागररकों का वडवजट्ि सर्शम्मिकरण
 एक कोर उपयोवगिा के रूप में उৡ गवि का इं ट्रनेट् सभी ग्राम पंिायिों में उपि कराया जाएगा
 जीिन से मृ ु िक वडवजट्ि पहिान- अव िीय, आजीिन, ऑनिाइन और प्रमावणक
 मोबाइि फोन और बैंक खािा म्मिगि र पर वडवजट्ि और वि ीय प्रक्षेत्र में भाग िेने के विए सक्षमिा
प्रदान करे गा
 उनके इिाके में कॉमन सविषस सेंट्र खोिा जाएगा
 पम्म क लाउड पर साझा करने यो৓ वनजी जगह
 दे र्श में वनरापद और सुरवक्षि साइबर- ेस

वडवजटल इिं वडर्ा का कार्ण-क्षेत्र


 भारि को एक ৯ान भवि के विए िैयार करना
 पररििषन को साकार करने के विए महसूस करना - आई ट्ी (इं वडयन ट्ै िेंट्) + आई ट्ी (इं फोमेर्शन
ट्े क्नोिॉजी) = आइ ट्ी (इं वडया ट्ु मौरो)
 पररििषन को सक्षम करने के विए प्रौ ोवगकी को केंिीय बनाना
 एक र्शीर्ष कायषक्रम बनना जो कई विभागों िक पहुं िे

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 325


यह कायषक्रम एक बड़ी संূा में वििारों और सोिों को एक एकि और ापक व में वपरोिा है
वजससे उनमें से प्र ेक को एक बड़े िশ के वह े के रूप में दे खा जा सके इस कायषक्रम का प्र ेक अंर्श अपने
आप में पूणष है साथ ही िह एक बड़ी ि ीर का वह ा है एक साथ जोड़ने पर यह समग्रिा में वमर्शन को
पररििषनकारी बना दे िा है वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम में कई मौजूदा योजनाओं को पुनगषवठि और पुनकेंविि एिं
एक सुगवठि ढं ग से िागू वकया जाएगा वडवजट्ि इं वडया के रूप में कायषक्रमों की आम ब्रां वडं ग, उनके
पररििषनकारी प्रभाि पर प्रकार्श डाििा है

वडवजटल इिं वडर्ा कार्णक्रम के नौ िं भ –


1. ब्रॉडबैंड हाईिे , 2. मोबाइि कनेम्मक्टविट्ी के विए सािषभौवमक पहुूँ ि, 3. पम्म क इं ट्रनेट् एসेस
कायषक्रम, 4. ई-गिनेंस - प्रौ ोवगकी के मा म से सरकार में सुधार, 5. ई-क्रां वि - सेिाओं की इिेक्टरावनक
वडिीिरी, 6. सभी के विए सूिना, 7. इिेक्टरॉवनস विवनमाष ण, 8. नौकररयों के विए आईट्ी, 9. अिी हािे
कायषक्रम

व कोर् और प वत
 मंत्रािय/विभाग/रा৸ पूरी िरह से भारि सरकार ारा थावपि आईसीट्ी की बुवनयादी सुविधाओं का िाभ
उठायेंगें
 मौजूदा/िि रहे ई-र्शासन पहिों का पुनो ान वकया जाएगा एिं उ ें वडवजट्ि इं वडया के वस ां िों के साथ
पंम्मिब वकया जायेगा ोप िृम्म , प्रोसेस पुनरष िना, एकीकृि अंिप्रषयोगा क वस म और लाउड और
मोबाइि जैसी उभरिी प्रौ ोवगवकयों का उपयोग नागररकों को सरकारी सेिाओं के वििरण को बढ़ाने के
विए वकया जाएगा
 रा৸ों को उनके सामावजक-आवथषक जरूरिों के अनुसार प्रासंवगक विवर्श पररयोजनाओं के पहिान एिं
र्शावमि वकए जाने के विए ििीिापन वदया जाएगा
 ई-र्शासन नागररक केम्म ि सेिा अवभवि ास सुवनव ि करने के विए आि क हद िक एक केंिीकृि
पहि के मा म से प्रो ावहि वकया जाएगा
 सफििाओं की पहिान की जाएगी और उनकी प्रविकृवि सिि की जाएगी
 जहाूँ भी संभि हो सािषजवनक वनजी भागीदारी पसंद की जाएगी
 यूवनक आई डी के उपयोग का प्रो ाहन पहिान, प्रमाणीकरण और िाभ प्रदान करने के विए वकया
जाएगा
 एनआईसी का पुनगषठन केंि और रा৸ र पर सभी सरकारी विभागों को आई ट्ी समथषन मजबूि करने
के विए वकया जाएगा
 कम से कम 10 प्रमुख मंत्राियों में मुূ सूिना अवधकारी (सीआईओ) का पद बनाया जाएगा िावक विवभ
ई-गिनेंस पररयोजनाओं को िेजी से वनमाष ण, विकास एिं िागू वकया जा सके
 डीईआईट्ीिाई कायषक्रम के प्रबंधन के विए विभाग के भीिर आि क िरर पदों का सृजन करे गा
 के ीय मंत्राियों/विभागों और रा৸ सरकारों को इस कायषक्रम के िहि विवभ वमर्शन मोड और अ
पररयोजनाओं के कायाष यन के विए समग्र वज ेदारी होगी रा र ीय र पर समग्र एकत्रीकरण और
एकीकरण की जरूरि को दे खिे हुए यह उपयुि माना गया वक वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम प्र ेक र्शावमि
एजेंसी की अৢी िरह से पररभावर्ि भूवमकाओं और वज ेदाररयों के साथ एक कायषक्रम के रूप में को
िागू वकया जाए

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 326


सरकारी वडवजटलाइजेशन ि नीजी वडवजटलाइजेशन
सरकारी िेबसाइट से लाभ

भारि के के सरकार/प्रदे र्श सरकार ारा विकवसि िेबसाइट् से ग्राम/नगर िाडष के वनिासी को मात्र
िाभ इिना ही है वक वनिासी सरकारी योजनाओं को जान सकिा है और उसके अपने क्षेि्र में वकये गये कायष को
जान सकिा है और एक बार िाभ िेने के बाद उस िेबसाइट् की उपयोवगिा समा हो जािी है जैसे- आधार
काडष , पैन काडष , रार्शन काडष , िोट्र काडष इ ावद के बन जाने के बाद उस म्मि के विए उस िेबसाइट् की
उपयोवगिा समा हो जािी है

नीजी िेबसाइट से लाभ

नीजी (ग्राम /निर वनिासी ारा विकवसत) िेबसाइट से लाभ

नीजी (ग्राम /नगर वनिासी ारा विकवसि) िेबसाइट् से ग्राम/नगर िाडष के वनिासी को मात्र िाभ इिना
ही है वक वनिासी अपने ग्राम का पररिय ि सरकारी योजनाओं को जान सकिा है और उसके अपने क्षेत्र में वकये
गये कायष को जान सकिा है

नीजी (प्राइिेट क नी/अधण-सरकारी क नी/कापोरे शन ारा विकवसत) िेबसाइट से लाभ

नीजी (प्राइिेट् क नी/अधष -सरकारी क नी/कापोरे र्शन ारा विकवसि) िेबसाइट् से ग्राम/नगर िाडष
के वनिासी को मात्र िाभ इिना ही है वक वनिासी नीजी (प्राइिेट् क नी/अधष -सरकारी क नी/कापोरे र्शन ारा
विकवसि) िेबसाइट् से उसके योजनाओं को जान सकिा है और उसके अपने क्षेत्र में वकये गये कायष को जान
सकिा है अथाष ि आपको ग्राहक बनाने के विए और अपना ापार बढ़ाने के विए िह ऐसा करिा है यवद वनिासी
उसके ग्राहक नहीं बने िो उस वनिासी के विए उस िेबसाइट् की उपयोवगिा नहीं रह जािी

रा र वनमाणर् के वलए वडवजटलाइजेशन


रा र वनमाष ण के विए विकवसि िेबसाइट् उपरोि (सरकारी ि नीजी िेबसाइट्) का सम्म विि रूप के
साथ वनिासीयों के समग्र विकास से स म्म ि है वजससे ग्राम/नगर िाडष के वनिासीयों को सरकारी योजनाओं के
जानकारी के साथ-साथ बौम्म क विकास के साथ ापार करने और आवथषक िाभ कमाने के विए सबको समान
अिसर दे िा है अथाष ि यह वनिासीयों को मात्र ग्राहक नहीं, वनिासीयों को ापारी भी बनािा है इसविए इसकी
उपयेवगिा वनिासीयों के जीिन में सदै ि बनी रहिी है इसविए ही कहा गया है - ”৯ान क्राम्म - गाूँ ि/नगर से वि
की ओर“, ”सारा ৯ान-संसार-सूिना, आपके अपने ग्राम/नगर िाडष के िेबसाइट् से“ और ”केिि सूिना और सेिा
नहीं, रा र वनमाष ण के ापार का वडवजट्ि ग्राम/नगर िाडष नेट्िकष”
इसविए ग्राम/नगर िाडष प्रेरक, वनिासी ि अ के विए उ ाद (प्रोडक्ट) के अिसर क्या हैं यह जानना
आि क है उ ादों का संवक्ष वििरण वन प्रकार हैं -

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 327


अ. क नी समूह (ग्रु प आि क नी) के नीजी क नी और टर नेटिकण

ारा संिाविि पररयोजना छात्रिृव , पररयोजना सहायिा, पररयोजना सामावजक सहायिा से जुड़े
उ ाद (प्रोडक्ट) - पररयोजना पुनषवनमाष ण के A- सामा ीकरण (Generalisation) वर्शक्षा का स वर्शक्षा (REAL
EDUCATION), स पेर्शा (REAL PROFESSION), स पु क (REAL BOOK), स म्म थवि (REAL STATUS),
स ए े ट् एजे (REAL ESTATE AGENT), स वकसान (REAL KISAN), B- विर्शेर्ीकरण (Specialisation)
वर्शक्षा का स कौर्शि (REAL SKILL), स वडजीट्ि कोविंग (REAL DIGITAL COACHING), स नेट्िकष
(REAL NETWORK) के सभी पाਉक्रम ि संसाधन, छात्रिृव , सहायिा, समावजक सहायिा, सृव पु कािय
योजना ि अ सामावजक कायष छात्रिृव वििरण प्रवक्रया प्रणािी 3F (Fuel-Fire-Fuel) से जुड़े हुए हैं वजनका
पाਉक्रम ि संसाधन र्शु अिग-अिग हैं िेवकन पंजीकरण र्शु मुि है उ ाद ि र्शु वििरण दे खने के
विए www.moralrenew.com पर जायें र्शु रू0 1000/- से िेकर रू0 20,000/- िक हैं जो विवभ
पाਉक्रम के हैं
पररयोजना छात्रिृव ि पररयोजना सहायिा में पंजीकरण के विए सभी अवधकृि हैं जबवक पररयोजना
समावजक सहायिा में पंजीकरण केिि ग्राम/नगर िाडष प्रेरक ही करने के विए अवधकृि हैं
अब ग्राम/नगर िाडष प्रेरक, वनिासी ि अ के विए आवथषक िाभ के अिसर क्या हैं यह जानना
आि क है र्शेर् िाभ िो अनमोि हैं

1. पररर्ोजना छात्रिृव - पाਉक्रम के बदले छात्रिृव सहार्ता (Scholarship Help)

अ. पाਉक्रम के बदिे में छात्रिृव िुनने ि पाਉक्रम र्शु जमा करने पर एक िर्ष में ूनिम रू0 5,000/-
दी जािी है
आ. िर्ष में एक बार छात्रिृव रू0 5,000/- प्रा करने के उपरा हमारे ापार के िाभां स को सदै ि प्रा
करने के विए जीिन में एक बार दो नये वि ाथीयों को पाਉक्रम के बारे में बिाना ि उनका प्रिेर्श कराना
अवनिायष है िाभां स की रावर्श रू0 5,000/- के गुणक में ही दी जािी है वजसकी अवधकिम सीमा प्रिेर्श
िेने िािे वि ाथीयों की संূा पर वनभषर करिा है

2. पररर्ोजना सहार्ता - पाਉक्रम के बदले सहार्ता (Help)

1. वशक्षा सहार्ता (Education Help)


अ. पाਉक्रम के बदिे में वर्शक्षा सहायिा िुनने ि पाਉक्रम र्शु जमा करने पर एक िर्ष िक
रू0 500/- प्रवि माह वर्शक्षा सहायिा दी जािी है
आ. ब. एक िर्ष िक रू0 500/- प्रवि माह वर्शक्षा सहायिा प्रा करने के उपरा 18 िर्ष की उम्र
िक वर्शक्षा सहायिा जारी रखने के विए जीिन में एक बार दो नये वि ाथी का प्रिेर्श आि क
है

2. ा सहार्ता (Health Help)


अ. पाਉक्रम के बदिे में ा सहायिा िुनने ि पाਉक्रम र्शु जमा करने पर रू0 500/-
प्रवि माह िक की ा िधषक दिा दी जािी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 328


आ. एक िर्ष िक रू0 500/- प्रवि माह ा सहायिा प्रा करने के उपरा आजीिन ा
सहायिा जारी रखने के विए जीिन में एक बार दो नये वि ाथी का प्रिेर्श आि क है

3. घरे लू पु कालर् सहार्ता (Home Library Help)


अ. पाਉक्रम के बदिे में घरे िू पु कािय सहायिा िुनने ि पाਉक्रम र्शु जमा करने पर रू0
500/- प्रवि माह िक की ৯ानिधषक पु कंेे दी जािी है
आ. एक िर्ष िक रू0 500/- प्रवि माह पु कािय सहायिा प्रा करने के उपरा आजीिन
घरे िू पु कािय सहायिा जारी रखने के विए जीिन में एक बार दो नये वि ाथी का प्रिेर्श
आि क है

4. पर्णटन सहार्ता (Tourism Help)


अ. पाਉक्रम के बदिे में पयषट्न सहायिा िुनने ि पाਉक्रम र्शु जमा करने पर प्रवि िर्ष एक
बार दे र्श में कहीं भी पयषट्न के विए आने -जाने का रे ि आरवक्षि वट्कट् वदया जािा है वजसका
कायषक्रम एक माह पूिष आप बिािे है
आ. एक िर्ष िक पयषट्न सहायिा प्रा करने के उपरा आजीिन पयषट्न सहायिा जारी रखने के
विए जीिन में एक बार दो नये वि ाथी का प्रिेर्श आि क है

3. पररर्ोजना सामावजक सहार्ता शु मुक्त (PROJECT Social Help Free)

हमारा िसाय वन विम्मखि सामावजक उ रदावय की भी पूविष करिी है सभी सहायिा कायाष िय
को आिेदन प्रा होने की विवथ से िीसरे माह से प्रार होिा है

अ. निजात (New Born) सहार्ता - बৡे के ज होने पर निजाि सहायिा रू0 500/- प्रवि माह 5 िर्ष
की उम्र िक दी जािी है
आ. विकलािंि सहार्ता (Handicapped Help) - र्शारीररक रूप से अपंग म्मि जो वकसी सरकारी नौकरी
में नहीं हैं उ ें विकिां ग सहायिा रू0 500/- प्रवि माह आजीिन दी जािी है

इ. िरर नािररक सहार्ता (Senior Citizen Help) - 60 िर्ष या उससे अवधक उम्र के ऐसे िरर
नागररक जो सरकारी नौकरी में पूिष में नहीं रहे , उ ें िरर नागररक सहायिा रू0 500/- प्रवि माह
आजीिन दी जािी है

ई. विधुर सहार्ता (Widower Help) - 60 िर्ष से कम उम्र के ऐसे पुरूर् म्मि वजनकी प ी का
गषिास हो िुका है और उ ोंने वफर वििाह न वकया हो, उ ें विधुर सहायिा रू0 500/- प्रवि माह 60
िर्ष की उम्र िक दी जािी है उसके बाद िे पुनः सहायिा के विए आिेदन कर िरर नागररक सहायिा में
आ सकिे हैं मवहिा विधिा को सहायिा दे ने का कोई प्राविधान नहीं रखा गया है क्योंवक सरकार ारा
उ ें विवभ प्रकार की सहायिा ि अिसर प्रदान की गयी है समाज ारा भी उ ें सहयोग और सहानुभूवि
प्रा है

उ. अनार् (Orphan) सहार्ता - 14 िर् र् या उससे कम उम्र के ऐसे बৡे वजनके मािा-वपिा दोनों
गषिासी हो िुके हैं उ ें अनाथ सहायिा रू0 500/- प्रवि माह 18 िर्ष की उम्र िक दी जािी है

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 329


ब. म ी नेशनल क नी

ारा संिाविि पररयोजना राय ी का थ मवहिा वमर्शन से जुड़े उ ाद (प्रोडक्ट) - उ ाद, र्शु ,
पंजीकरण ि िाभ वििरण जानने के विए ग्राम/नगर िाडष प्रेरक से स कष करें पररयोजना राय ी में पंजीकरण के
विए पंजीकृि म्मि ही केिि अवधकृि हैं

वडवजटल ग्राम/निर िाडण का अर्ण


क ूट्र, मोबाइि और इ रनेट् का उपयोग करिे हुये ऐसी ि था उपि कराना वजससे
नागररक के र्शारीररक, आवथषक/संसाधन एिं मानवसक विकास के सम संसाधन उसे उपि हो सके और
इसकी सूिना भी उसे हो इस क्रम में वन विम्मखि वब दु होना आि क है -
1. सरकारी सेिा और सूिना ग्राम/नगर िाडष र पर उपि हो जो उसके अपने ग्राम/नगर िाडष के
िेबसाइट् के मा म से ही पहूँ ेुि हो सके
2. सभी ग्राम/नगर िाडष के िेबसाइट् नेट्िकष में हों वजससे कोई भी नागररक वकसी भी ग्राम/नगर िाडष का
पररिय प्रा कर सके
3. नागररक के र्शारीररक, आवथषक/संसाधन एिं मानवसक विकास के सम संसाधन उसके अपने ग्राम/नगर
िाडष के िेबसाइट् से उपि हो वजससे िह अपने आप को विकवसि कर सके और यं िथा संविधान की
धारा-51(अ) : नागररक का मौविक किष के अनुसार रा र के विए किष कर सके
4. भारिीय भाि के अनुसार एक समान मनु बुम्म वनमाष ण के विए ”स मानक वर्शक्षा“ सभी के विए
उपि हो वजससे ”एक भारि - िे भारि“ का वनमाष ण और थ िोकि की प्राम्म हो सके
5. 100 प्रविर्शि सूिना का वडवजट्िाइजेर्शन और आवथषक िाभ प्रा करने का अवसवमि अिसर होना िावहए
जहाूँ कमी हो िो वसफष काम करने िािों की, न वक काम की वजससे भ्र ािार से मुम्मि पायी जा सके

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 330


स ूर्ण क्रान्त की अिधारर्ा में वडवजटलाइजेशन

क नी बि (COMPANY FORCE) में क नी की प्राथवमकिा प्रणािी को आगे बढ़ाने में होिी है


ट्ीम बि (TEAM FORCE) में ट्ीम की प्राथवमकिा प्रणािी को आगे बढ़ाने में होिी है जबवक मानिीय बि (MAN
FORCE) में म्मि की आि किा ही प्रणािी को आगे बढ़ाने में िः होिी है FACEBOOK, TWITTER,
WHATSAPP इ ावद मानिीय बि (MAN FORCE) के उदाहरण हैं इन सोर्शि िेबसाइट् पर म्मि यं अपनी
आि किा के विए पंजीकृि होिे हैं
स ूणष क्राम्म के विए वडवजट्िाइजेर्शन राजनीविक, विकास की मुূधारा का र्शैवक्षक और
ापाररक रूप का वमविि प्रणािी है जो मानिीय आि किा की मूि आि किा है इसविए इसे मानिीय
बि (MAN FORCE) आधाररि प्रणािी भी कहिे हैं
“स ूणष क्राम्म ”, न िो कोई क नी है और ना ही कोई संगठन/पाट्ी या दि, यह केिि एक उ े है
जो नागररक को केिि एक विके ीकृि प्रणािी उपि करािे हुये विकास की मुূधारा को वदखा रहा है साथ
ही प्र ेक नागररक को उसके यं के विकास के विए मागष दे रहा है

प्रर्ाली (SYSTEM) की मुূ विशेषताएाँ


पिंजीकरर् वकर्े वबना
1. भारि के वकसी वपन कोड क्षेत्र से पंजीकृि सद की सूिी दे ख सकिे हैं
2. भारि के वकसी वजिा क्षेत्र से पंजीकृि संगठन की सूिी दे ख सकिे हैं और उसके िेबसाइट् पर जा सकिे हैं
3. भारि के वकसी भी विधायक और संसदीय क्षेत्र के ट्ाप 25 प्र ार्शी (नेिा-LEADER)) वज ें पंजीकृि सद ों
ने अपना मि दे कर बनाया है , की सूिी दे ख सकिे हैं
4. भारि के वकसी भी वपन कोड क्षेत्र के कायाष िय का पिा (ADDRESS) दे ख सकिे हैं
5. रा र ीय नीवि आयोग (रानीआ) के “एक भारि-िे भारि” के मु े पढ़ सकिे हैं जो समाज ारा रा र वनमाष ण के
विए वनधाष ररि वकये गये हैं
6. रा र वनमाष ण और युग पररििषन के विए भारिीय आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि पर आधाररि र्शा -
सावह की सूिी दे ख सकिे हैं और िे कहाूँ से प्रा होंगे, उसे दे ख सकिे हैं
7. प्र ार्शी अपने क्षेत्र में A4 साइज में बनाये गये प्रिार सामग्री को दे ख सकिे हैं
8. िेबसाइट् संिािन के विए स ूणष जानकारी पढ़, दे ख और डाउनिोड कर सकिे हैं

पिंजीकरर् के उपरा
पंजीकरण करिे ही िह इस प्रणािी का सद बन जािा है वजसे वन सुविधा प्रा हो जािी है -
1. सद , यवद िाहे िो िह यं को 1.वपनकोड क्षेत्र (कायाष िय), 2.विधायक क्षेत्र (प्र ार्शी/नेिा) या 3.
संसदीय क्षेत्र (प्र ार्शी/नेिा) के रूप में यं वनयुि कर सकिा है िेवकन इन िीनों में से केिि एक ही हो
सकिा है
2. वपनकोड क्षेत्र (कायाष िय), एक ािसावयक थान है इसविए इसकी यो৓िा होना आि क है यह एक
वपनकोड क्षेत्र के विए एक ही होगा यो৓िा के विए िेबसाइट् दे खें
3. पंजीकृि सद अपने क्षेत्र के प्र ार्शी (विधायक/सां सद) को िेबसाइट् से अपना िोट् दे कर सिषमा
प्र ार्शी िुन सकेंगे वजसे काई भी दे ख सकेगा
4. पंजीकृि सद कायष योजना और वर्शक्षा-৯ान विकास के विए अनेक पु कों को e-Book के रूप में
डाउनिोड कर सकेगा

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 331


5. पंजीकृि सद प्रापट्ी कारोबार से स म्म ि अनेक िगों के खरीद-वबक्री के विए डाट्ा दे सकेगा और
दू सरे ारा वदये गये डाट्ा को दे ख ि दे ने िािे से स कष कर सकेगा इस प्रकार वकसी भी वपन कोड क्षेत्र
में वबकने िािे प्रपाट्ी को दे खा जा सकेगा और आपस में ापार कर सकेंगे सौदे में प्रणािी का कोई
ह क्षेप या िाभ में भागीदारी नहीं

3F (Fuel-Fire-Fuel) विपर्न प्रर्ाली से जुड़ने के उपरा


1. सभी पंजीकृि सद , िाभ प्रा करने के िेणी में आ जायेंगे
2. विके ीकृि आवथषक प्रणािी होने के कारण आप सीधे अपने नजदीकी वपनकोड क्षेत्र के कायाष िय से सभी
आवथषक िेन-दे न करें गे जबवक भारि के वकसी वपनकोड क्षेत्र कायाष िय से भी कर सकेंगे प्रणािी
(Software) केिि आपके िाभ को बिािा रहे गा वजसे आप िेबसाइट् से दे ख सकेंगे
3. सेिा र्शु हमेर्शा सुरवक्षि एिं 100 प्रविर्शि िापसी/समायोजन यो৓ विर्शेर् रूप में जब िक वक आप
िाभां स नहीं प्रा कर िुके हैं
4. आपके प्रापट्ी िसाय में स कष का वि ृि दायरा वपन कोड क्षेत्र र पर प्रापट्ी खोज ि सीधे खरीदने
ि बेिने िािे से स कष और सू िना या सौदे में प्रणािी का कोई ह क्षेप या िाभ में भागीदारी नहीं
5. सूिना, स कष, िाभ, िाभां स, सेिा र्शु सब आपका प्रणािी मात्र एक अिसर उपि कराने िािे की
भूवमका में क्योंवक िह एक अपने बड़े पररयोजना के विए ररयि इ े ट् एजे नेट्िकष िैयार करने के
उ े से काम कर रही है वजसमें प्रथम अिसर पंजीकृि एजे को ही वमिेगा
6. आपका सभी आवथषक िेन-दे न वपनकोड क्षेत्र कायाष िय पर ही रहिा है इसविए वकसी भी समय आप
वपनकोड क्षेत्र कायाष िय से स कष कर िेन-दे न कर सकिे हैं इसके विए जरूरी नहीं वक िह वपनकोड
क्षेत्र कायाष िय आपके क्षेत्र का ही हो जैसे बैंक में खािा वकसी भी र्शाखा में होने पर भी आप वकसी भी
ATM से धन प्रा और जमा कर सकिे हैं

बाररश उ ी िं कमरे में पहुाँ चती है , वजनके छत नही िं होते हैं


अৢे वदन उ ी िं के आते हैं , वजनके मन्त ब नही िं होते हैं

िेबसाइट पररचर्
स ूणष क्राम्म के विए इस प्रणािी में वन विम्मखि 3 िेबसाइट् हैं -
1- www.rashtriyanitiayog.com – “सामाज” क्षेत्र ारा भारि रीय स ूणष क्राम्म के विए नेट्िकष
2- www.moralrenew.com – “स मानक वर्शक्षा” ारा भारि रीय स ूणष क्राम्म के विए नेट्िकष
3- www.leledirect.com – “ ापार” क्षेत्र ारा भारि रीय स ूणष क्राम्म के विए नेट्िकष
उपरोि वकसी भी एक िेबसाइट् से पंजीकृि म्मि/संगठन, िः ही अ दो िेबसाइट् के विए भी
पंजीकृि हो जािा है इसविए सभी पर अिग-अिग पंजीकरण नहीं करना है अिग-अिग पंजीकरण कर दे ने
पर आपके अगि-अिग 3 खािे हो जायेंगे
सभी िेबसाइट् के उ ि (Vertical) और क्षैविज (Horizental) मीनू एक समान हैं
उ ि (Vertical) मीनू - इसमें मुख पृ , प्रेरक, हमारा नेटिकण, वििरवर्का, प्रचार सामग्री, स ूर्ण क्रान्त ,
घोषर्ा-पत्र, शा -सावह , स कण र्शीर्षक हैं

क्षैवतज (Horizental) मीनू - इसमें हमारे बारे में, समाचार, सेिा कार्ण, सिंसदीर् क्षेत्र, विधार्क क्षेत्र, डाक
क्षेत्र, सद , प्रापटी खोजें , पिंजीकरर्, लािइन, स कण र्शीर्षक हैं

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 332


वि ारपूिणक जानने के वलए िेबसाइट से वन पुन्त का डाउनलोड करें

स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 333


स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 334
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 335
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 336
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 337
स ू र्ण क्रान्त -अन्त म कार्ण र्ोजना पृ - 338

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