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सम्पूर्ण क्रान्ति-अन्तिम कार्य योजना (PLAN OF NEW INDIA & NEW WORLD
सम्पूर्ण क्रान्ति-अन्तिम कार्य योजना (PLAN OF NEW INDIA & NEW WORLD
स ूर्ण क्रान्त
अन्त म कार्ण र्ोजना
“वि शा ” से क्त
“वि शा ” से क्त
िंत्रिा
रा र
स भु रा र
रा र िाद
भारिीय रा र िाद की प्रािीनिा
महवर्ष अरवि (15 अग , 1872 ई - 5 वदस र 1950 ई )
िैव क रा र िाद
नीवि
रा र नीवि और राजनीवि
क्राम्म और स ूणष क्राम्म
र्शहीद भगि वसंह (19 अक्टू बर, 1907 ई - 23 मािष 1931 ई )
िोकनायक जय प्रकार्श नारायण (11 अक्टु बर, 1902 ई - 8 अक्टु बर, 1979 ई )
पं 0 िीराम र्शमाष आिायष (2 वसि र, 1911 - 2 जून, 1990)
यदु नाथ वसंह (6 जु िाई, 1945 ई – 30 मई, 2020 ई )
समाज
समाजिाद
ामी वििेकान (12 जनिरी, 1863 ई -4 जुिाई, 1902 ई )
जावि, सं ृ वि और समाजिाद
समाज नीवि
भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब
मेरी समर नीवि
डा0 राम मनोहर िोवहया (23 मािष, 1910 ई - 12 अक्टु बर, 1967 ई )
दीनदयाि उपा ाय (25 वसि र, 1916 ई - 11 फरिरी, 1968 ई )
सम ा
समाधान
मैत्रेय बु
िि कुर्श वसंह “वि मानि” (16 अक्टु बर, 1967 ई - )
वि र्शा
वि र्शा : भूवमका
वि र्शा : र्शा -सावह समीक्षा
वि र्शा की थापना
वि र्शा की रिना क्यों?
वि र्शा के बाद का मनु , समाज और र्शासन
एक ही वि र्शा सावह के विवभ नाम
अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र िी िि कुर्श वसंह” वि मानि” का मानिों के नाम खुिा िुनौिी पत्र
अवनिषिनीय कम्म महाअििार का कार्शी-स कार्शी क्षेि्र से वि र्शाम्म का अम्म म स -स े र्श
वि र्शाम्म
ई र का मम्म , मानि का मम्म और क ूट्र
वि का मूि म - ”जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“
वडवजट्ि इम्मਔया
सरकारी वडवजट्िाइजेर्शन ि नीजी वडवजट्िाइजेर्शन
रा र वनमाष ण के विए वडवजट्िाइजेर्शन
वडवजट्ि ग्राम/नगर िाडष का अथष
स ूणष क्राम्म की अिधारणा में वडवजट्िाइजेर्शन
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मेरे इस जीिन की एक अिग यात्रा में ”वद “ र्श का जो दर्शषन हुआ िह इस प्रकार है ”वद “
र्श का प्रयोग िेदों के समय से ही हो रहा है और िह दू सरे र्श ों के साथ वमिकर ”वद व “, ”वद रूप“,
”वद वदन“, ”वद िर्ष“, ”वद युग“ इ ावद के रूप में हमारे सामने है अनेक वि ान ि ि ि ाओं ने इस वद
र्श का अनेक-अनेक प्रकार से अथष बिायें हैं यहाूँ वद र्श के प्रयोग ि उसके अथष को नीिे वदया जा रहा है
वजससे हम सभी को उसके अथष के प्रवि समझ बन सकें
01. ”महाभारि“ का यु और ”गीिा“ ৯ान का प्रार वजस र्श्य से होिा है , िह है -”संजय“ और ”धृिरा र “ के
बीि िािाष िाप वजसमें महवर्ष ास ारा यु को दे खने ि धृिरा र को उसका “जैसा हो रहा है िैसा ही हाि”
सुनाने के विए संजय को एक व दी जािी है वजसे हम सभी ”वद व “ के नाम से जानिे हैं
02. ”अम्मखि विर्श् ि गायत्री पररिार“ के सं थापक, ”युग वनमाष ण योजना“ के संिािक ि 3000 से भी अवधक
पु क-पुविकाओं के िेखक पं 0 िीराम र्शमाष आिायष (ज -20 वसि र, 1911, मृ ु-2 जून, 1990), वजनके
कई िाख समथषक-सद हैं , के अनुसार ”वद का अथष दे ििा नहीं हो सकिा ऋेद (2,164.46) में कहा
गया है -अव্ रूपी सूयष को इ वमत्र िरूण कहिे हैं िही वद सुपर गुरू ान है वनरूि दै िि काਔ
(7,18) में कहा गया है -जो वदवि में प्रकट् होिा है उसे वद कहिे हैं वदवि, को कहिे हैं नैघु क काਔ
में वदन के 12 नाम विखे हैं उनमें द् यु र्श भी वदन का िािक है अब वद का अथष हुआ वक-जो वदन में
प्रकट् होिा है और यह प्र क्ष है वक वदन में सूयष ही प्रकट् होिा है अिः वद सूयष का नाम है ऋेद
(1,16:3,10) के म में कहा गया है वक-आग का घोड़ा (सूयष) है इसमें भी सूयष का ही िणषन है िेद में वद
नाम सूयष का है , दे ििा को वद कदावप नहीं कहिे ाकरण से भी वद र्श का अथष दे ििा नहीं बनिा
वदि् धािु में ाथेयि प्र य िगाने से वद र्श बनिा है इसकी ु व यह हुई-वदि भिं वद न अथाष ि जो
वदवि में प्रकट् होिा है अिः वद केिि सूयष ही को कहिे हैं वदवि, द् यु को कहिे हैं और द् यु वदन का नाम
है दे ििा र्श दू सरें दे िािि आवद सूत्रों से बनिा है इस कारण भी वद और दे ििा र्श ों का आपस में
कोई स नहीं है “वद ” र्श और “दे ििा” र्श बनाने के रूप ही अिग-अिग हैं “
03. ”৯ान ि सं ृ वि“ और ”बाबा भोिेनाथ“ की नगरी कार्शी (िाराणसी, उ0प्र0, भारि) के बनारसी सं ृ वि में
वद र्श का अ र्श के साथ प्रयोग कर ”वद वनपट्ान“, ”वद ान“, ”वद आन “ की पर रा है
इस पर रा का िाहक कार्शी (िाराणसी) का अ ी मुह ा है वजस पर प्रो0 कार्शी नाथ वसंह ारा पु क
”कार्शी की अ ी“ भी विखा गया है और वफ भी बना है कार्शी ৯ान की नगरी है यहाूँ के िोगों का ज
ही ৯ान में होिा है और ৯ान में ही जीिन जीिे है , ৯ान ही बोििे हैं िथा ৯ान में ही र्शरीर ाग करिे हैं इनकी
जीिन र्शैिी और भार्ा में सारा र्शा समावहि होिा है इसके उदाहरण को केिि ”वद वनपट्ान“ के अथष से
”स ईर्शोऽवनिषिनीयप्रेम रुपः“- ई र अवनिषिनीय प्रेम रुप है नारद ारा िणषन वकया हुआ ई र
का यह िक्षण है और सब िोगों को ीकार है यह मेरे जीिन का ढ़ वि ास है बहुि से म्मियों के समूह
को समव कहिे हैं और प्र ेक म्मि, व कहिािा है आप और मैं दोनों व हैं , समाज समव है आप और मैं-
पर्शु , पक्षी, कीड़ा, कीड़े से भी िुक्ष प्राणी, िृक्ष, ििा, पृ ी, नक्षत्र और िारे यह प्र ेक व है और यह वि समव है
जो वक िेदा में विराट्, वहरण गभष या ई र कहिािा है और पुराणों में ब्र ा, वि ु, दे िी इ ावद व को
म्मिर्शः ि िा होिी है या नहीं, और यवद होिी है िो उसका नाम क्या होना िावहए व को समव के विए
अपनी इৢा और सुख का स ूणष ाग करना िावहए या नहीं, िे प्र ेक समाज के विए विर न सम ाएूँ हैं सब
थानों में समाज इन सम ाओं के समाधान में संि্ रहिा है ये बड़ी-बड़ी िरं गों के समान आधुवनक पव मी
समाज में हििि मिा रही हैं जो समाज के अवधप के विए म्मिगि ि िा का ाग िाहिा है िह वस ा
समाजिाद कहिािा है और जो म्मि के पक्ष का समथषन करिा है िह म्मििाद कहिािा है
सबका ामी (परमा ा) कोई म्मि विर्शेर् नहीं हो सकिा, िह िो सबकी समव रुप ही होगा
िैरािान मनु आ ा र्श का अथष म्मिगि ”मैं“ न समझकर, उस सिष ापी ई र को समझिा है जो
अ याष मी होकर सबमें िास कर रहा हो िे समव के रुप में सब को प्रिीि हो सकिे हैं ऐसा होिे हुए जब जीि
और ई र रुपिः अवभ हैं , िब जीिों की सेिा और ई र से प्रेम करने का अथष एक ही है यहाूँ एक विर्शेर्िा है
जब जीि को जीि समझकर सेिा की जािी है िब िह दया है , वक ु प्रेम नहीं पर ु जब उसे आ ा समझकर
सेिा करो िब िह प्रेम कहिािा है आ ा ही एक मात्र प्रेम का पात्र है , यह िुवि, ृवि और अपरोक्षानुभूवि से
जाना जा सकिा है
सिे र कभी भी विर्शेर् म्मि नहीं बन सकिे जीि है व ; और सम जीिों की समव है , ई र
जीि में अवि ा प्रबि है ; ई र वि ा और अवि ा की समव रूपी माया को िर्शीभूि करके विराजमान है और
ाधीन भाि से उस थािर-जंगमा क जगि को अपने भीिर से बाहर वनकाि रहा है पर ु ब्र उस व -
समव से अथिा जीि-ई र से परे है ब्र का अ र्शां र्श भाग नहीं होिा
समव से प्रेम वकये वबना हम व से प्रेम कैसे कर सकिे हैं ? ई र ही िह समव है सारे वि का
यवद एक अखਔ रूप से वि न वकया जाय, िो िही ई र है , और उसे पृथक-पृथक रूप से दे खने पर िही यह
मान संसार है - व है समव िह इकाई है , वजसमें िाखों छोट्ी-छोट्ी इकाईयों का मेि है इस समव के
मा म से ही सारे वि को प्रेम करना स ि है ”
- ामी वििेकान
”मेरा“, व है ”िु ारा“, व है ”हमारा“, समव है ये ”मेरा“, ”िु ारा“, व ”मैं” है ”हमारा“,
समव ”मैं” है ” व “ म्मिगि होिा है जबवक ”समव “ सािषजवनक, ूनिम एिं अवधकिम साझा वजसे अंग्रेजी
में कामन (Common) कहिे हैं , होिा है
िंत्रिा र्श अंग्रेजी रूपां िरण “विबट्ी” (Liberty) िेवट्न भार्ा के िीबर (Liber) र्श से वनकिा है
वजसका अथष होिा है – “बंधनों का अभाि (Absence of Restraint)” इৢा अनुसार कायष करने की िंत्रिा है
परं िु िंत्रिा का यह अथष ठीक नहीं है '
अने बाकषर (Arnest barker के अनुसार - "वजस प्रकार बदसूरिी का न होना खूबसूरिी नहीं है
उसी प्रकार बंधनों का अभाि भी िंत्रिा नहीं है " अने बाकषर ने “parincipls of social and political
theory” (सामावजक और राजनीविक वस ां ि ि , 1951) के अंिगषि िंत्रिा के नैविक आधार पर विर्शेर् बि
वदया है उसने अपनी ििाष का आरं भ जमषन दार्शष वनक इमैनुएि कां ट् वक इस यं वसम्म से वकया है वक
“वििेकर्शीि प्रकृवि अपने आप में सा है ”
अर ु ने दास प्रथा का समथषन इस आधार पर वकया था वक कुछ मनु “वििेकर्शीि प्रकृवि” की िेणी
में नहीं आिे ; िे केिि जीिे जागिे उपकरण (Living Tools) होिे हैं , इसविए िे िंत्रिा के अवधकारी नहीं
यूरोपीय विंिन में र्शिाम्म यों िक यह मा िा प्रिविि रही
हॉ मानिे हैं वक रा৸ की स ा के सारे िाभ िभी उठाए जा सकिे हैं जब म्मि की िंत्रिा को
अ ंि सीवमि कर वदया जाए उसका मुূ सरोकार कानून और ि थापक रा৸ (Law and Order State) से
है ; उसने म्मि की िंत्रिा को गौण माना है यही कारण है वक हॉ (Hobbes) को पूणषस ािाद
(Absolutism) का प्रििषक माना जािा है इसके विपरीि जॉन िॉक और जे एस वमि जैसे दार्शषवनक यह िकष दे िे
हैं वक म्मि की िंत्रिा को साथषक बनाने के विए रा৸ की स ा को यथासंभि सीवमि करना जरूरी है
िंत्रिा का सारभूि अथष (Liberty Meaning) यह है वक वििेकर्शीि क ाष को जो कुछ सिो म
प्रिीि हो, िही कुछ करने में िह समथष हो और उसके कायषकिाप बाहर के वकसी प्रविबंध से न बंधे हो
01. औपिाररक व से वििेकर्शीि किाष के विए िंत्रिा की मां ग प्रविबंधों के अभाि के रुप में की जािी है
02. िोग अपनी रिना क और क्षमिाओं का विकास कर सकें
रूसो - "आम सहमवि का अथष ही िंत्रिा है ", "जो िोग िंत्र होने से इं कार करें गे उ ें बिपूिषक िंत्र वकया
जाएगा ", " िंत्रिा को छोड़ना मनु िा को छोड़ना है मनु िा के अवधकारों और किष ों को दे दे ना है ",
“सामा इৢा की अधीनिा को यथाथष िंत्रिा मानिा है उसके अनुसार "मनु िंत्र पैदा हुआ है वकंिु सिषत्र
जंजीरों से जकड़ा है "
पोलाडण - " िंत्रिा का वनिास समानिा में है "
मैकेंजी - "अनुविि थान पर उविि पाबंवदयों की थापना "
ला ी - " िंत्रिा उस िािािरण को बनाए रखना है , वजसमें म्मि को जीिन का सिो म विकास करने की
सुविधा प्रा हो "
पोलाडण - " िंत्रिा का केिि एक ही समाधान है और िह समानिा में वनवहि है िंत्रिा के वबना समानिा कुछ
िोगों की उৢृं खििा में बदि जािी है "
LT Hob House - "एक म्मि की वनरं कुर्श िंत्रिा का अथष होगा वक बाकी सब घोर पराधीनिा की बेवड़यों में
जकड़े जाएं ''
हॉ – “ िंत्रिा को बाहरी बाधाओं की अनुपम्म थवि” हॉ ने िेवियाथन (Leviathan) में िंत्रिा को “विरोध
की अनुपम्म थवि” के रूप में पररभावर्ि वकया है 1789 में फ्ां स की क्रां वि की मानिीय अवधकार घोर्णा में कहा
गया है वक िंत्रिा िह सब कुछ करने की र्शम्मि का नाम है वजससे दू सरे म्मियों को आघाि न पहुं िे
जे एस वमल - "अपनी भिाई के विए दू सरों को िंत्रिा से िंविि नहीं करना या बाधा नहीं डािना " जे एस वमि
(J.S.Mill) ने िंत्रिा को मानि जीिन का मूि आधार माना है
टी एच ग्रीन (T.H.Green) - "वजस प्रकार सौंदयष कुरूपिा के अभाि का ही नाम नहीं होिा उसी प्रकार िंत्रिा
प्रविबंधों के अभाि का ही नाम नहीं है "
लॉक (Locke) - िंत्रिा को ही संपव मानिा है
ला ी (Laski) - " िंत्रिा एक सकाराਚ ि ु है वजसका अथष केिि बंधनों का अभाि नहीं है "
बाकणर - "खोखिी िंत्रिा और सै ां विक म्मििाद का अग्रदू ि था "
कािंट (kant) - " आरोवपि किष भािना के परम आदे र्शों का पािन ही िंत्रिा है "
वसले (sile) - " िंत्रिा अवि र्शासन का वििोम है ''
स भु रा र
पररचर्
भारिभूवम का वि यी - भारिमिा के रूप में दर्शषन कर, भारिीयों को निीन िेिना दे ने िािे,
रा र िादी महवर्ष अरवि घोर् का ज 15 अग , 1872 ई. में हुआ वपिा का नाम कृ धन घोर् और मािा का
नाम णषििा दे िी था प्रारम्म क वर्शक्षा दावजषविंग में हुई उৡ वर्शक्षा इैਔ के मानिेस्ट्र और कैम्म ज में प्रा
की इनके वपिा िाहिे थे वक पुत्र आई.सी.एस. करके उৡावधकारी बने , पर ु सन् 1890 में आई.सी.एस. की
अ ारोहण की परीक्षा में जानबूझकर असफि होने से उ ीणष न हो सके
इैਔ से िौट्कर, बड़ौदा रा৸ में अंग्रेजी के प्रा ापक बनें िहाूँ ब्र ान ि वि ु भा र िेिे
नाम के दो योवगयों के स कष में आये 29 िर्ष की आयु में भूपािि बसु की क ा मृणाविनी से इनका वििाह
हुआ सन् 1903 में भवगनी वनिेवदिा से भेंट् हुई 1906 ई. में किक ा िापस आये ”ि े मािरम्“ पत्र स ादन के
मा म से रा र से िा प्रार की अिीपुर बम काਔ में इ ें ब ी बनाकर, अिीपुर कारागृह में भेज वदया गया जेि
में इ ें आ साक्षाਚार प्रा हुआ जेि से मुम्मि के प ाि् अंग्रेजों ने अपने रा৸ की सीमा से बाहर कर वदया
आ ाम्म क िेिना इिनी प्रगाढ़ जागृि हुई वक 1910 ई. में स ासी होकर पां वडिेरी में रहने िगे 1914 ई. में
”आयष“ नामक अंग्रेजी मावसक प्रार वकया 1918 ई. में इनकी प ी का दे हािसान हुआ िीमिी मीरा ररिडष नाम
की फ्ां सीसी मवहिा ने प्रभाविि होकर इनका वर्श ग्रहण वकया बाद में िे िीमाूँ के नाम से जानी गईं 24
नि र, 1926 को इ ें वसम्म प्रा हुई वद िाइफ वडिाइन, योवगक साधना, ऐसेज आन गीिा आवद 15 ग्र
विखे उनका वि ास था वक भारि एक वदन अखਔ होकर रहे गा 5 वदस र 1950 को अपनी इहिीिा समा
कर परम ि में समा गये
िी अरवि की प्रमुख कृवियां द मदर, िेट्सष आन योगा, सावित्री, योग सम य, वद जीिन, ूिर
पोअट्र ी है प्रमुख वर्श ि क िाि, नविवन का गु , कैखुसरो दादा भाई सेठना, वनरोदबरन, एम.पी.पਔि,
प्रणब, इ सेन थे
िी अरवि के भारिीय वर्शक्षा वि न में मह पूणष योगदान वकया उ ोंने सिषप्रथम घोर्णा की वक -
मानि सां साररक जीिन में भी दै िी र्शम्मि प्रा कर सकिा है मानि भौविक जीिन िीि करिे हुए िथा अ
मानिों की सेिा करिे हुए अपने मानस को ”अवि मानस“ िथा यं को ”अवि मानि“ में पररिविषि कर सकिा है
िी अरवि के दर्शषन का िশ ”उदा स का ৯ान“ है जो ”समग्र जीिन व “ ारा प्रा होिा है समग्र जीिन
व मानि के ब्र में िीन या एकाकार होने पर विकवसि होिी है ई र के प्रवि पूणष समपषण ारा मानि ”अवि
मानि“ बन जािा है अथाष ि िह सि, रज ि िम की प्रिृव से ऊपर उठकर ৯ानी बन जािा है अविमानि की म्म थवि
में म्मि सभी प्रावणयों को अपना ही रूप समझिा है जब म्मि र्शारीररक, मानवसक िथा आम्म क व से
एकाकार हो जािा है िो उसमें दै िी र्शम्मि का प्रादु भाष ि होिा है समग्र जीिन- व हे िु अरवि ने योगा ास पर
हावमद अिंसारी
“वपछिी सदी में रा र िाद की अिधारणा काफी प्रबि रही यह अिग बाि है वक सदी के बीि में ही
पर र अंिर वनभषरिा ने वि ग्राम की िे िना को ज वदया इस िे िना ने रा र िाद की अिधारणा को काफी हद
िक बदि वदया है आज वनरपेक्ष ि स ूणष संप्रभुिा का युग समा हो गया है राजनीविक प्रभुिा को भी वि के
साथ जोड़ वदया है आज मामिे अ राष र ीय ायािय को सौंपे जा रहे हैं मानिावधकारों के नये मानक िागू हो रहे
हैं इन सबसे ऐसा िगिा है जै से रा৸ों का विरा र ीकरण हो रहा है आज सम ाएं रा र ीय सीमाओं के बाहर ििी
गई है महामारी, जििायु पररििषन, आवथषक सं कट् आवद पूरे वि को प्रभािी कर रहा है इनका हि िैव क र
पर बाििीि ि सहयोग से ही सं भि है इसको दे खिे हुए हमें रा र िाद ि अ राष र ीयिािाद के विर्य में गंभीरिा से
वििार करने की जरूरि है इन म्म थवियों को दे खिे हुए नई सदी में वि৯ान, प्रौ ोवगकी ि निप्रििष न रा र की
स िा के विए खासे मह पूणष सावबि होंगे छात्रों से इस वदर्शा में प्रयास करने ि िीक से हट्कर नया सोिने
का आ ान करिा हूँ “ (बी.एि.यू के 93िें दीक्षां ि समारोह ि कृ मूविष फाउਔे र्शन, िाराणसी में बोििे हुए)
- श्ी हावमद अिंसारी (पूिण उपरा र पवत, भारत)
साभार - दै वनक जािरर्, िारार्सी, वद0 13 माचण, 2011
अৢा और बुरा, सही और गिि, गुण और दोर्, ाय और जुमष जैसी अिधारणाओं को पररभावर्ि
करके, नीविर्शा मानिीय नैविकिा के प्र ों को सुिझाने का प्रयास करिा हैं बौम्म क समीक्षा के क्षेत्र के रूप में ,
िह नैविक दर्शषन, िणाष क नीविर्शा , और मू वस ां ि के क्षेत्रों से भी संबंवधि हैं
रर्शिथष कीडर कहिे हैं वक ""नीविर्शा " की मानक पररभार्ाओं में 'आदर्शष मानि िररत्र का वि৯ान'
या 'नैविक किष का वि৯ान' जैसे िाक्यां र्श आम िौर पर र्शावमि रहे हैं "[1] ररिडष विवियम पॉि और विंडा
ए र की पररभार्ा के अनुसार, नीविर्शा "एक संक नाओं और वस ा ों का समुৡय हैं , जो, कौनसा िहार
संिेदन-समथष जीिों की मदद करिा हैं या उ ें नुक़सान पहुूँ ििा हैं , ये वनधाष ररि करने में हमारा मागषदर्शष न करिा
हैं " [2] कैम्म ज वडक्शनरी ऑफ़ वफिोवसफी यह कहिी हैं वक नीविर्शा र्श का "उपयोग सामा िः विवनवमयी
रूप से 'नैविकिा' के साथ होिा हैं ' और कभी-कभी वकसी विर्शेर् पर रा, समूह या म्मि के नैविक वस ा ों के
अथष हे िु इसका अवधक संकीणष उपयोग होिा हैं " [3] पॉि और ए र कहिे हैं वक ादािर िोग सामवजक
प्रथाओं, धावमषक आ थाओं और विवध इनके अनु सार िहार करने और नीविर्शा के म भ्रवमि हो जािे हैं और
नीविर्शा को अकेिी संक ना नहीं मानिे [2]
मनु के िहार का अ यन अनेक र्शा ों में अनेक व यों से वकया जािा है मानि िहार,
प्रकृवि के ापारों की भां वि, कायष -कारण-शंखिा के रूप में होिा है और उसका कारणमूिक अ यन एिं
ाূा की जा सकिी है मनोवि৯ान यही करिा है वकंिु प्राकृविक ापारों को हम अৢा या बुरा कहकर
विर्शेवर्ि नहीं करिे रा े में अिानक िर्ाष आ जाने से भीगने पर हम बादिों को कुिा০ नहीं कहने िगिे इसके
विपरीि साथी मनु ों के कमों पर हम बराबर भिे-बुरे का वनणषय दे िे हैं इस प्रकार वनणषय दे ने की सािषभौम
मानिीय प्रिृव ही आिारदर्शषन की जननी है आिारर्शा में हम िम्म थि रूप से विंिन करिे हुए यह जानने
का प्रय करिे हैं वक हमारे अৢाई-बुराई के वनणषयों का बुम्म ग्रा आधार क्या है कहा जािा है , आिारर्शा
वनयामक अथिा आदर्शाष ेर्ी वि৯ान है , जबवक मनोवि৯ान याथाथाष ेर्ी र्शा है वन य ही र्शा ों के इस
िगीकरण में कुछ ि है , पर िह भ्रामक भी हो सकिा है उि िगीकरण यह धारणा उ कर सकिा है वक
आिारदर्शषन का काम नैविक िहार के वनयमों का अ ेर्ण िथा उद् घाट्न नहीं है , अवपिु कृवत्रम ढं ग से िैसे
वनयमों को मानि समाज पर िाद दे ना है वकंिु यह धारणा गिि है नीविर्शा वजन नैविक वनयमों की खोज
करिा है िे यं मनु की मूि िेिना में वनवहि हैं अि ही यह िेिना विवभ समाजों िथा युगों में विवभ रूप
धारण करिी वदखाई दे िी है इस अनेकरूपिा का प्रधान कारण मानि प्रकृवि की जवट्ििा िथा मानिीय िेय की
विविधरूपिा है विवभ दे र्शकािों के वििारक अपने समाजों के प्रिविि विवधवनर्ेधों में वनवहि नैविक पैमानों का
ही अ ेर्ण करिे हैं हमारे अपने युग में ही, अनेक नई पुरानी सं ृ वियों के सम्म िन के कारण, वििारकों के विए
यह संभि हो सकिा है वक िे अनवगनि रूवढ़यों िथा सापेশ मा िाओं से ऊपर उठकर ि ुि: सािषभौम नैविक
वस ां िों के उद् घाट्न की ओर अग्रसर हों
रा र नीवत और राजनीवत
उ ेरक, र्शासक और मागषदर्शषक आ ा सिष ापी है इसविए एका का अथष संयुि आ ा या
सािषजवनक आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा है िब िह समाज कहिािा है जब एका
का अथष म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है अििार, संयुि आ ा का साकार रुप होिा है
जबवक म्मि, म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन प्रणािी में समाज का समथषक दै िी प्रिृव िथा
र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या समाजि या जनि या बहुि या राज
कहिािा है और क्षेत्र गणरा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि का समथषक
असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸ कहिािा है ऐसी
ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि अपने -अपने
अवधप के विए संघर्ष होिा रहा है
सािषभौवमकिा, सािषभौम “मैं” है , समव है , समभाि है , संयुि है , रा र है , रा र नीवि है , समभाि
िोक/गण/जन क ाण समावहि है , ई रीय पक्ष है जबवक िैयम्मििा, म्मिगि “मैं ” है , व है , विर्मभाि है ,
अिगाि है , रा৸ है , रा৸नीवि है , विर्मभाि िोक/गण/जन क ाण समावहि है , आसुरी पक्ष है
केिि रा৸/स ा के विए राजनीवि, राजनीवि नही ं बम्म रा৸नीवि है जबवक रा र के विए राजनीवि,
राजनीवि है इस अ र को “सविि सरोज” ारा अपने छोट्े से कवििा के मा म से अৢी प्रकार ि वकया
गया है जो वन िि् है -
राजनीवत की विसात
खोखले िार्दोिं पर
जनता के अरमानोिं का क
करके वबछाई जाती है
वजसमें सरकारोिं की
तमाम वििलताएाँ
चालाकी से छु पाई जाती हैं
कभी न्तक्तित आक्षेपोिं तो
कभी आडिं बरोिं के दम पर
बेतुके आदशण बाज़ार में
ऊाँचे दामोिं पे वबक़िार्े जाते हैं
रा र नीवत की शालीनता
आने िाले पीढ़ी का
भवि तर् कर दे ती है
वि पटल पर अपने मु की
वनत नई कामर्ाबी िढ़ दे ती है
समािेशी विकास और समाना र विचारोिं के
हर ार कदम-कदम पे खोल दे ती है
पररचर्
भगि वसंह, भारि के एक महान िंत्रिा सेनानी क्रां विकारी थे ि र्शेखर आजाद ि पाट्ी के अ
सद ों के साथ वमिकर इ ोंने दे र्श की आजादी के विए अभूिपूिष साहस के साथ र्शम्मिर्शािी वब्रवट्र्श सरकार का
मुक़ाबिा वकया पहिे िाहौर में साਔसष की ह ा और उसके बाद वद ी की के ीय संसद (सेरि असे िी) में
बम-वि ोट् करके वब्रवट्र्श साम्रा৸ के विरु खुिे वििोह को बुि ी प्रदान की इ ोंने असे िी में बम
फेंककर भी भागने से मना कर वदया वजसके फि रूप इ ें 23 मािष 1931 को इनके दो अ सावथयों, राजगुरु
िथा सुखदे ि के साथ फाूँ सी पर िट्का वदया गया सारे दे र्श ने उनके बविदान को बड़ी ग ीरिा से याद वकया
भगि वसंह संधु का ज 28 वसिंबर 1907 को प्रिविि है पर ु िਚािीन अनेक साশों के अनुसार
उनका ज 19 अक्टू बर 1907 ई को हुआ था उनके वपिा का नाम सरदार वकर्शन वसंह संधू और मािा का नाम
वि ाििी कौर था यह एक जाट् पररिार था अमृिसर में 13 अप्रैि 1919 को हुए जवियाूँ िािा बाग ह ाकाਔ ने
भगि वसंह की सोि पर गहरा प्रभाि डािा था िाहौर के नेर्शनि कॉिेज की पढ़ाई छोड़कर भगि वसंह ने भारि
की आजादी के विये नौजिान भारि सभा की थापना की थी काकोरी काਔ में राम प्रसाद “वबम्म ि” सवहि 4
पररचर्
जय प्रकार्श नारायण “जे.पी.” का ज 11 अक्टु बर, 1902 को ग्राम वसिाबवदयारा, बविया, उ र प्रदे र्श
में हुआ था उनका वििाह वबहार के मर्शहर गाूँ धीिादी बृज वकर्शोर प्रसाद की पुत्री प्रभाििी के साथ अक्टु बर,
1920 में हुआ प्रभाििी वििाह के उपरा क ुरबा गाूँ धी के साथ गाूँ धी आिम में रहीं िे भारिीय ि िा
सेनानी और राजनेिा थे उनहें 1970 में इम्म रा गाूँ धी के म्मखिाफ विपक्ष का नेिृ के विए जाना जािा है िे
समाज-सेिक थे, वज ें “िोकनायक” के नाम से भी जाना जािा है पट्ना में अपने वि ाथी जीिन में जय प्रकार्श
नारायण ने ि िा संग्राम में वह ा विया प्रविभार्शािी युिाओं को प्रेररि करने के विए डा0 राजे प्रसाद और
सुप्रवस गाूँ धीिादी डा0 अनुग्रह नारायण वस ा, जो गाूँ धी के एक वनकट् सहयोगी रहे ारा थावपि “वबहार
वि ापीठ” में जय प्रकार्श नारायण र्शावमि हो गए 1922 में िे उৡ वर्शक्षा के विए अमेररका गये, जहाूँ उ ोंने
1922-1929 के बीि कैविफोवनषया वि वि ािय, बरकिी, विसकां सन वि वि ािय में समाज र्शा का अ यन
वकया पढ़ाई के महं गे खिे को िहन करने के विए उ ोंने खेिों, क वनयों, रे ोरे ों में काम वकया िे माक्र्स के
समाजिाद से प्रभाविि हुए उ ोंने एम.ए. की वडग्री हावसि की उनकी मािाजी की िवबयि ठीक न होने की िजह
से िे भारि िापस आ गए और पीएि.डी. पूरी न कर सके
1929 में जब िे अमेररका से िौट्े , भारिीय ि िा संग्राम िेजी पर था उनका स कष गाूँ धी जी के
साथ काम कर रहे जिाहरिाि नेहरू से हुआ िे भारिीय ि िा संग्राम का वह ा बने 1932 में गाूँ धी, नेहरू
और अ मह पूणष कां ग्रेसी नेिाओं के जेि जाने के बाद, उ ोंने भारि के अिग-अिग वह ों में संग्राम का नेिृ
वकया अ िः उ ें भी मिास में वसि र, 1932 में वगर ार कर विया गया और नावसक के जेि में भे ज वदया
गया यहाूँ उनकी मुिाकाि एम.आर.मासानी, अ০ुि पट्िधषन, एन.सी.गोरे , अर्शोक मेहिा, एम.एि.दां ििािा, िा रस
मा ारे ास औा सी.के.नारायणर्शा ी जैसे उ ाही कां ग्रेसी नेिाओं से हुई जे ि में इनके ारा की गई ििाष ओं ने
कां ग्रेस सोसवि पाट्ी (सी.एस.पी.) को ज वदया सी.एस.पी. समाजिाद में वि ास रखिी थी जब कां ग्रेस ने
1934 में वह ा िेने का फैसिा वकया िो जेपी और सी.एस.पी. ने इसका विरोध वकया
“िोकनायक जयप्रकार्श के स ूणष क्राम्म का नारा साकार नहीं हुआ, िे िोक सावह को वजविि
रखने का प्रयास कर रहे थे ” (िोकनायक जयप्रकार्श नारायण ज र्शिा ी समारोह, जय प्रकार्श नगर, बविया
(उ0 प्र0), 11 अक्टू बर’2001)
-च शेखर (पूिण प्रधानम ी, भारत)
विर्शाि जनसभा में जे.पी. ने पहिी बार “स ूणष क्राम्म ” के दो र्श ों का उৡारण वकया क्राम्म र्श
नया नहीं था, िेवकन “स ूणष क्राम्म ” नया था गाूँ धी पर रा में “समग्र क्राम्म ” का प्रयोग होिा था जे.पी. का
“स ूणष”, गाूँ धी का “समग्र” है
आजीिन पद-प्रवि ा से दू र रहकर “स ूणष क्राम्म ” के उद् घोर्क और िोक सावह को वजविि रखने
के विए प्रय र्शीि महानिम म्मि इनकी वदर्शा से र्शेर् कायष यह है वक म्मि के पूणषिा के विए सावह िथा
स ूणष, सिोৡ और अम्म म ि था का सूत्र ि ाূा प्र ुि हो िावक िोक सावह िथा स ूणष क्राम्म का
इनका सपना पूणष हो जाये
पररचर्
पं. िी राम र्शमाष आिायष का ज बुधिार, 2 वसि र, 1911 (सं. 1968, आव न, कृ पक्ष, त्रयोदर्शी)
को आगरा (उ0प्र0) से जिेसर रोड 24 वक.मी. पर म्म थि आूँ ििखेड़ा में हुआ था आूँ ििखेड़ा का यह थान ििषमान
में एक यु गिीथष बन िुका है यहीं से उनकी सेिा-साधना प्रार हुई वर्शक्षा एिं ग्रामीण ाि न की कई
गविविवधयाूँ यहाूँ से उ ोंने ििाईं विरासि में वमिी प्रिुर भू -स दा का उपयोग अपने और अपने पररिार के विए
न करके उ ोंने समावजक गविविवधयों के विए वकया एक भाग से अपनी मािा जी की ृवि में दान कुूँिरर इर
कािेज की थापना करायी, र्शेर् रावर्श बाद में गायत्री िपोभूवम हे िू समवपषि कर दी आप गायत्री के वस साधक,
3000 से अवधक पु क-पुम्म काओं के िेखक, िेद, पुराण, उपवनर्द् के भा कार, िै৯ावनक आ ा िाद के
जनक, ि िा संग्राम सेनानी, युग वनमाष ण योजना के सूत्रधार, वििार क्राम्म अवभयान के प्रणेिा और ऋवर्
पर रा के उ ायक के रूप में थावपि हैं और अम्मखि वि गायत्री पररिार की थापना की आप ापक कायष को
थावपि ि संिाविि करिे हुए 2 जून, 1990 में ब्र िीन हो गये
पररचर्
स कार्शी क्षेत्र के िुनार क्षेत्र (वजिा मीरजापुर, उ र प्रदे र्श) के ग्राम-वनयामिपुर किाूँ में 6 जु िाई,
1945 को ज ें िी यदु नाथ वसंह, एक क्राम्म कारी, वि क, जन समथषक और जनवप्रय नेिा के रूप में जाने जािे हैं
इनके वपिा का नाम िी सहदे ि वसंह ि मािा का नाम िीमिी दु िेसरा दे िी था
कार्शी वह दू वि वि ािय से स कमৢा म्म थि से र ि वह दू ू ि से उस समय संिाविि प्री
यूवनिवसषट्ी कोसष (पी.यू.सी) करने के उपरा आप वि वि ािय में केवमकि इं वजवनयररं ग में प्रिेर्श विए छात्र
राजनीवि ि जन सम ाओं से िविि होकर आप राजनीवि में प्रिेर्श विये वजसका प्रभाि आपके वर्शक्षा पर भी पड़ा
और आप इं वजवनयररं ग की वडग्री पूणष नहीं कर पाये आप उ र प्रदे र्श के िुनार विधान सभा क्षेत्र से िार बार 1980,
1985, 1989, 1991 में विधायक िुने गये आप राजनीवि के दौरान कभी भी रा৸ समथषक नहीं रहे बम्म सदै ि
जन समथषक ही रहें और जन सम ाओं को सदै ि प्राथवमकिा में रखिे हुए रा৸ को वििर्श करिे रहे आपका
दु भाष था वक आप जब भी विधायक रहे , आपकी पाट्ी की सरकार नहीं रही और आप ऐसे दौर में विधायक रहे
जब विधायक वनवध जैसी कोई योजना िागू नहीं थी फि रूप आप सरकारी सहायिा के ारा क्षेत्र के भौविक
विकास में योगदान वििर्शिापूिषक नहीं दे पाये
आप िुनार क्षेत्र में िुनाि के दौरान जनिा के अवििोकवप्रय नेिा के रूप में अपने समय में थावपि थे
इसका प्र क्ष दर्शषन जनिा ने यं उस रै िी को दे खकर अनुभि वकया जो 10 वकिोमीट्र से भी ि ी भीड़ भरी
“रामनगर (िाराणसी) से वि ािि (मीरजापुर) िक का क्षेत्र पुराणों में िवणषि स कार्शी का क्षेत्र है ”
- र्दु नार् वसिं ह, पूिण विधार्क, चुनार क्षेत्र
साभार - रा र ीर् सहारा, लखनऊ, वद0 17 जून, 1998)
“ििषमान समय में दे र्श र पर ि था पररििषन की ििाष बहुि अवधक हो रही है इसमें मेरे वििार से
सिषप्रथम आरक्षण के मापदਔ पर पुनः वििार करने का समय आ गया है दे र्श के ि िा के समय जाविगि
आरक्षण की आि किा थी और िह सीवमि समय के विए ही िागू वकया गया था पर ु राजनीविक िाभ के
कारणों से िह ििषमान िक िागू है हम समाज से मनु िादी ि था को समा करने की बाि करिे हैं पर ु एक
िरफ आज समाज इससे धीरे -धीरे मुि हो रहा है और दू सरी िरफ संविधान ही इसका समथष क बनिा जा रहा है
ऐसी म्म थवि में आरक्षण ि था का मापदਔ जावि आधाररि से र्शारीररक, आवथषक और मानवसक आधाररि कर
दे नी िावहए जो धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि भी है और िोकि का धमष भी धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि
है
मेरे वििार में ि था पररििषन का दू सरा आधार युिाओं को अवधकिम अवधकार से युि करने पर
वििार करने का समय आ गया है दे र्श में 18 िर्ष के उम्र पर िोट् दे ने का अवधकार िथा वििाह का उम्र िड़कों के
विए 21 िर्ष िथा िड़वकयों के विए 18 िर्ष िो कर वदया गया है पर ु उ ें पैिृक स व स ी अवधकार अभी
िक नहीं वदया गया है इसविए उ रावधकार स ी अवधवनयम की भी आि किा आ गयी है वजसमें यह
प्राविधान हो वक 25 िर्ष की अि था में उसे पै िृक स व अथाष ि दादा की स व वजसमें वपिा की अवजषि स व
र्शावमि न रहें , उसके अवधकार में हो जाये
वकसी भी वििार पर वकया गया आदान-प्रदान ही ापार होिा है और यह वजिनी गवि से होिा है
उिनी ही गवि से ापार, विकास और विनार्श होिा है दे र्श के विकास के विए धन के आदान-प्रदान को िेज
करना पड़े गा और ऐसे सभी वब दु ओं का पहिान करना होगा जो धन के आदान-प्रदान में बाधा डाििी है इसविए
कािेधन का मु ा अहम मु ा है ऐसे प्राविधान की आि किा है वक वजससे यह धन दे र्श के विकास में िगे
विवभ प्रकार के अनेकों सावह ों से भरे इस संसार में यह भी एक सम ा है वक हम वकस सावह
को पढ़े वजससे हमें ৯ान की व र्शीघ्रिा से प्रा हो जाये वि र्शा इस सम ा को हि करिे हुए एक ही
संगवठि पु क के रूप में उपि हो िुका है यह इस स कार्शी क्षेत्र की एक महान और ऐविहावसक उपिम्म
है वजसके कारण यह क्षेत्र सदै ि याद वकया जाये गा ”
- र्दु नार् वसिंह, पूिण विधार्क, चुनार क्षेत्र
समाज
समाजिाद
ामी वििेकान (12 जनिरी, 1863-4 जुलाई, 1902)
जावत, सिं ृ वत और समाजिाद
समाज नीवत
भारत का ऐवतहावसक क्रम विकास और अ प्रब
मेरी समर नीवत
डा0 राम मनोहर लोवहर्ा (23 माचण, 1910 - 12 अक्टु बर, 1967)
दीनदर्ाल उपा ार् (25 वसत र, 1916 - 11 िरिरी, 1968)
पररभाषा
विवभ वि ानों ने समाज की वभ -वभ पररभार्ा की है -
ग्रीन ने समाज की अिधारणा की जो ाূा की है उसके अनुसार समाज एक बहुि बड़ा समूह है वजसका कोई
भी म्मि सद हो सकिा है समाज जनसंূा, संगठन, समय, थान और ाथों से बना होिा है
एडम म्म थ- मनु ने पार ररक िाभ के वनवम जो कृवत्रम उपाय वकया है िह समाज है
डॉ0 जे - मनु के र्शाम्म पूणष स ों की अि था का नाम समाज है
प्रो0 वगवडं ৗ- समाज यं एक संघ है , यह एक संगठन है और िहारों का योग है , वजसमें सहयोग दे ने िािे
म्मि एक-दू सरे से स ंवधि है
प्रो0 मैकाइिर- समाज का अथष मानि ारा थावपि ऐसे स ंधों से है , वज ें थावपि करने के विये उसे वििर्श होना
पड़िा है
संक्षेप में यह कहा जा सकिा है , समाज एक उ े पू णष समूह होिा है , जो वकसी एक क्षेत्र में बनिा है ,
उसके सद एक एिं अपन में बंधे होिे हैं
समाज की विशेषताएाँ
समाज की कविपय विर्शेर्िाएूँ वन विम्मखि हैं वज ें सामा िया सभी समाजर्शा ी ीकार करिे हैं -
एक से अवधक सद
िृहद सं ृ वि
क्षेत्रीयिा
सामावजक संबंधों का दायरा
िम विभाजन
समाज के विवभ रूप
समाज के कुछ रूप वन विम्मखि हैं -
1. पूिी समाज िथा पव मी समाज
2. पूिष-औ ोवगक समाज (वर्शकारी समाज, पर्शुपािक समाज, उ ान-समाज, कृवर् समाज, साम िादी
समाज), औ ोवगक समाज, िथा उ र-औ ोवगक समाज
3. सूिना समाज िथा ৯ान समाज
4. कुछ र्शैक्षवणक, ािसावयक और िै৯ावनक संघ अपने आप को “समाज” (सोसायट्ी) कहिे हैं , जैसे
अमेररकी गवणिीय समाज (American Mathematical Society), रॉयि सोसायट्ी आवद
5. कुछ दे र्शों में, कभी-कभी ापाररक इकाइयों को भी “समाज” कहा जािा है , जैसे कॉ-ऑपरे वट्ि सोसायट्ी
ामी वििेकान
(12 जनिरी, 1863-4 जुलाई, 1902)
01. सं ृ ि में “जावि“ का अथष है िगष या िेणी विर्शेर् यह सृव के मूि में ही वि मान है विवित्रिा अथाष ि् जावि
का अथष ही सृव है “एकोऽहं बहु ाम् “-मैं एक हूँ अनेक हो जाऊूँ विवभ िेदों में इस प्रकार की बाि पायी
जािी है सृव के पूिष एक रहिा है , सृव हुई वक विवित्रिा र्शुरु हुई अिः यवद यह विवित्रिा ब हो जाय िो
सृव का ही िोप हो जायेगा जब िक कोई जावि र्शम्मिर्शािी और वक्रयार्शीि रहे गी, िब िक िह विवित्रिा
अि पैदा करे गी ৸ोंवह उसका ऐसी विवित्रिा उ ादन करना ब होिा है या ब कर वदया जािा है
ोंवह िह जावि न हो जािी है जावि का मूि अथष था एिं सैकडों िर्ष िक यही अथष प्रिविि था, प्र ेक म्मि
को अपनी प्रकृवि को, अपने विर्शेर् को प्रकावर्शि करने की ाधीनिा आधुवनक र्शा ग्र ों में भी जावियों
का आपस में खाना-पीना वनवर् नहीं हुआ है और न वकसी प्रािीन ग्र में उनका आपस में ाह-र्शादी
करना मना है िो वफर भारि के अधःपिन का कारण क्या था?-जावि स ी इस भाि का ाग जैसे गीिा
समाज नीवत
01. सभी कािों में प्रािीन ररवियों को नये ढं ग में पररिविषि करने से ही उ वि हुई है भारि में प्रिीन युग में भी धमष
प्रिारकों ने इसी प्रकार काम वकया था केिि बु दे ि के धमष ने ही प्रािीन ररवि और नीवियों का वि ंस
वकया था भारि से उसके वनमूषि हो जाने का यही कारण है (वििेकान जी के संग में , पृ -19)
02. िथाकवथि समाज सुधार के विर्य में ह क्षेप न करना क्योंवक पहिे आ ाम्म क सुधार हुये वबना अ वकसी
भी प्रकार का सुधार हो नहीं सकिा (पत्राििी भाग-1, पृ -296)
03. िोगों को यवद आ वनभषरर्शीि बनने की वर्शक्षा नहीं दी जाय िो जगि के स ूणष ऐ यष पूणष रुप से प्रदान करने
पर भी भारि के एक छोट्े से छोट्े गाूँ ि की भी सहायिा नहीं की जा सकिी वर्शक्षा प्रदान हमारा पहिा काम
होना िावहए, िररत्र एिं बुम्म दोनों के ही उਚर्ष साधन के विए वर्शक्षा वि ार आि क है (पत्राििी भाग-2,
पृ -125)
01. जावि सम ा का सूत्रपाि था एिं भारि में कमषकाਔ, दर्शषन िथा जड़िाद के म उस वत्रभुजा क संग्राम का
मूि भी यही था वजसका समाधान हमारे इस युग िक स ि नहीं हो पाया है इस सम ा के समाधान का
प्रथम प्रयास था-सिषसम य के वस ा का उपयोग, वजसने आवदकाि से ही मनु को अनेक में भी
विवभ रूपों में िवक्षि एक ही स के दर्शषन की वर्शक्षा दी इस स दाय के महान नेिा क्षवत्रय िगष के यं
िीकृ एिं उनकी उपदे र्शाििी गीिा ने, जैवनयों, बौ ों एिं इिर जन स दायों ारा िायी गयी उथि-पुथि
के फि रूप विविध क्राम्म यों के बाद भी अपने को भारि का “अििार“ एिं जीिन का यथाथषिम् दर्शषन वस
वकया य वप थोड़े समय के विए िनाि कम हो गया, िेवकन उसके मूि में वनवहि सामावजक अभािों का,
जावि पर रा में क्षवत्रयों ारा सिषप्रथम होने का दािा एिं पुरोवहिों के विर्शेर्ावधकार की सिषविवदि असवह ुिा
का, जो अनेक कारणों से दो थे , समाधान इससे नहीं हो सका जाविभेद एिं विंगभेद को ठु कराकर कृ ने
आ ৯ान एिं आ साक्षाਚार का ार सब के विए समान रूप से खोि वदया, िेवकन उ ोंने इस सम ा को
सामावजक र पर ৸ों का ों बना रहने वदया पुनः यह सम ा आज िक ििी आ रही है (भारि का
ऐविहावसक क्रम विकास और अ प्रब , पृ -6)
02. भारि के इविहास में साधारणिः दे खा गया है वक धावमषक उथि-पुथि के बाद सदा ही एक राजनीविक एकिा
थावपि हो जािी है , जो ूनावधक रूप से सम दे र्श में ा हो जािी है इस एकिा के फि रूप उसको
ज दे ने िािा धावमषक व कोण भी र्शम्मिर्शािी बनिा है (भारि का ऐविहावसक क्रम विकास और अ
प्रब , पृ -14)
03. भौविकीकरण की अथाष ि् याम्म क वक्रया-किाप के र की ओर अवधकावधक म्मखंििे जाने की इৢाएं , पर्शु
मानि की है इम्म यों के इन सम ब नों का वनराकरण कर दे ने की इৢा उ होने पर ही मनु के
हृदय में धमष का उदय होिा है इस प्रकार हम दे खिे हैं वक धमष का समग्र अवभप्राय मनु को इम्म यों के
ब नों में फंसने से बिाना और अपनी िंत्रिा को वस करने में उसकी सहायिा करना है उस िশ की
ओर वनिृव की इस र्शम्मि के प्रथम प्रयास को नैविकिा कहिे हैं समग्र नैविकिा का अवभप्राय इस अधःपिन
01. जो मनु अपने जीिन के िौदह िर्ों िक िगािार उपिास का मुकाबिा करिा रहा हो, वजसे यह भी न
मािूम रहा हो वक दू सरे वदन का भोजन कहाूँ से आयेगा, सोने के विए थान कहाूँ वमिेगा, िह इिनी सरििा
से धमकाया नहीं जा सकिा जो मनु वबना कपड़ों के और वबना यह जाने वक दू सरे समय भोजन कहाूँ से
वमिेगा, उस थान पर रहा हो, जहाूँ का िापमान र्शू से भी िीस वडग्री कम हो, िह भारििर्ष में इिनी सरििा
से नहीं डराया जा सकिा यही पहिी बाि है जो में उनसे कहं गा, मुझमें अपनी थोड़ी ढ़िा है , मेरा थोड़ा वनज
का अनुभि भी है , और मुझे संसार को कुछ संदेर्श दे ना है और यह स े र्श मैं वबना वकसी डर के, वबना वकसी
प्रकार भवि की वि ा वकये सब के समक्ष घोवर्ि करू ं गा (मेरी समर नीवि, पृ -12)
िोवहया के समाजिादी आ ोिन की संक ना के मूि में अवनिायषिः “वििार और कमष ” की उभय
उपम्म थवि थी वजसके मूविषमंि रूप यं डा0 िोवहया थे और आज उ ोंने “वििार और कमष ” की इस सं युम्मि
को अपने आिरण से जीि उदाहरण भी प्र ुि वकया अं ग्रेजों के म्मखिाफ भारि के ाधीनिा आ ोिन में भाग
िेने िािे िमाम म्मियों की भाूँ वि िोवहया भी प्रभाविि थे िे जेि भी गये और िैसी ही यािनाएूँ भी सही आजादी
से पूिष ही कां ग्रेस के भीिर उनका सोर्शवि ग्रुप था, िेवकन 15 अग , 1947 को अं ग्रेजों से मुम्मि पाने पर िे
उ वसि िो थे िेवकन विभाजन की कीमि पर पाई गई इस ि िा के कारण नेहरू और नेहरू की कां ग्रेस से
उनका रा ा हमेर्शा के विए अिग हो गया ि िा के नाम पर स ा की वि ा का यह खुिा खेि िोवहया ने
अपनी नंगी आूँ खों से दे खा था और इसविए ि िा के बाद की कां ग्रेस पाट्ी और कां ग्रेवसयों के प्रवि उनमें इिना
रोर् और क्षोभ था वक उ ें धुर दवक्षणपंथी और बामपंवथयों को साथ िेना भी उ ें बेहिर विक ही प्रिीि हुआ
ि िा बाद के राजनेिाओं में िोवहया मौविक वििारक थे िोवहया के मन में भारिीय गणि को िेकर ठे ठ
दे सी सोि थी अपने इविहास, अपनी भार्ा के स भष में िे किई पव म से कई वस ा उधार िेकर ाূा करने
को राजी नहीं थे सन् 1932 में जमषनी से पीएि.डी. की उपावध प्रा करने िािे राममनोहर िोवहया ने साठ के
दर्शक में दे र्श से अंग्रेजी हट्ाने का जो आ ान वकया, िह अंग्रेजी हट्ाओ आ ोिन की गणना अब िक के कुछ इने
वगने आ ोिनों में की जा सकिी है उनके विए भार्ा राजनीवि का मु ा नहीं बम्म अपने ावभमान का प्र
और िाखों-करोड़ों को हीन ग्रम्म से उबारकर आ वि ास से भर दे ने का था- “मैं िाहूँ गा वक वह दु ान के
साधारण िोग अपने अंग्रेजी के अ৯ान पर िजाएूँ नहीं, बम्म गिष करें इस सामंिी भार्ा को उ ीं के विए छोड़ दें
वजनके माूँ -बाप अगर र्शरीर से नहीं िो आ ा से अं ग्रेज रहें हैं ”
हािां वक िोवहया भी जमषनी यानी विदे र्श से पढ़ाई कर के आये थे, िेवकन उ ें उन प्रिीकों का अहसास
था वजनसे इस दे र्श की पहिान है वर्शिरावत्र पर वित्रकूट् में “रामायण मेिा” उ ीं की संक ना थी, जो सौभा से
अभी िक अनिरि ििा आ रहा है आज भी वित्रकूट् के उस मेिे में हजारों भूखे -नगें-वनधषन भारििासीयों की
भीड़ यंमेि जुट्िी है िो िगिा है वक ये ही हैं वजनकी विंिा िोवहया को थी, िेवकन आज इनकी विंिा करने के
विए िोवहया के िोग कहाूँ है ? िोवहया ही थे जो राजनीवि की गंदी गिी में र्शु आिरण की बाि करिे थे िे
एकमात्र ऐसे राजनेिा थे वज ोंने अपनी पाट्ी की सरकार से खुिेआम ागपत्र की माूँ ग की, क्योंवक उस सरकार
के र्शासन में आ ोिनकाररयों पर गोिी ििाई गई थी
ान रहे ाधीन भारि में वकसी रा৸ में यह पहिी गैर कां ग्रेसी सरकार थी- “वह दु ान की राजनीवि
में िब सफाई और भिाई आएगी जब वकसी पाट्ी के खराब काम की वन ा उसी पाट्ी के िोग करें और मैं यह
याद वदिा दू ूँ वक मुझे यह कहने का हक है वक हम ही वह दु ान में एक राजनीविक पाट्ी हैं वज ोंने अपनी
अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र िी िि कुर्श वसंह “वि मानि” का मानिों के नाम खुिा
िुनौिी पत्र
अपने-अपने धमण शा -उपवनषद् -पुरार् इ ावद का अ र्न करें कही िं ऐसा तो नही िं वक-
सन् 2016 ई0
बुधिार, 20 जनिरी, 2016 ई0
िैयार करें मू ों और उ ीदों पर आधाररि ूवप्र (विवडओ का फ्ेवसंग से छात्रों और वर्शक्षकों को
स े र्श - रा र वनमाष ण का आ ानं ) साभार -दै वनक जागरण, 20 जनिरी, 2016- श्ी प्रर्ि मुखजी, रा र पवत, भारत
मिंिलिार, 8– 9 माचण, 2016 ई0
पूणष सूयष ग्रहण 8-9 मािष को पूणष सू यष ग्रहण पड़े गा, जो सुमात्रा, बोरनेओ, सुिािेवसया से अৢी िरह
वदखाई दे गा आं वर्शक रूप से यह दवक्षण एिं पूिी एवर्शया और ऑ र े विया से वदखेगा भारि में यह ग्रहण 9 मािष
को सुबह 4 बजे वदखाई दे गा
बुधिार, 23 माचण, 2016 ई0
आं वर्शक िंि ग्रहण 23 मािष को यह िंि ग्रहण एवर्शया, ऑ र े विया, उ री अमेररका और दवक्ष ण
अमेररका के कुछ भागों में वदखाई दे गा आं वर्शक रूप से यह एवर्शया, ऑ र े विया, भारिीय महासागर,
आकषवट्क, अंट्ाकषवट्का से वदखेगा
ऐसी वर्शक्षा की जरूरि है जो समवपषि, वि सनीय और आ वि ास से ििरे ज युिा िैयार करे वर्शक्षा
ऐसी होनी िावहए जो न केिि कावबि पेर्शेिर दे बम्म िो समाज ि दे र्श के प्रवि जुड़ाि भी महसूस करे ( ामी
राम वहमाियन वि वि ािय के पहिे वदक्षां ि समारोह में बोििे हुएं ) - श्ी प्रर्ि मुखजी, रा र पवत, भारत
शुक्रिार, 26 अि , 2016 ई0
भारि को अब क्रवमक विकास की नहीं कायाक की जरूरि है यह िब िक संभि नहीं जब िक
प्रर्शासवनक प्रणािी में आमूि-िूि पररििषन न हो विहाजा नई सोि, नई सं थान और नई िकनीकी अपनानी
होगी 19िी ं सदी के प्रर्शासवनक प्रणािी के साथ 21िी ं सदी में नहीं प्रिेर्श वकया जा सकिा है र ी-र ी प्रगवि से
सन् 2017 ई0
रवििार, 26 िरिरी, 2017 ई0
साि का पहिा सूयषग्रहण
मई, 2017 ई0
रिना क आिोिना, िोकि को मजबूि बनािी है (के सरकार के िीन िर्ष पूरे होने पर समीक्षा
िि ं) - श्ी नरे मोदी, प्रधानमिंत्री, भारत
सोमिार, 7 अि , 2017 ई0
रक्षाबंधन िािे वदन खं डग्रास िंिग्रहण था
सोमिार, 21 अि , 2017 ई0
साि 2017 का दू सरा सूयषग्रहण भारिीय समय के मुिावबक यह ग्रहण राि में 9.15 वमनट् से र्शुरु होगा
और राि में 2.34 वमनट् पर ख होगा
वसत र, 2017 ई0
“वि र्शा - द नािेज आफ फाइनि नािेज” पु क का सारां र्श – “मैं स काशी से कन्त महाितार
बोल रहा हाँ” र्शीर्षक के रूप में प्रकावर्शि ISBN : 9781947752948 वन पिे पर भी पु क को भेजा गया
01- PRESIDENT OF INDIA, 02- PRIME MINISTER OF INDIA, 03- NITI AAYOG, 04. NCERT, 05.
BUREAU OF INDIAN STANDARD, 06. UNIVERSITY GRANTS COMMISSION (UGC), 07. MINISTRY
सन् 2018 ई0
13 जुिाई 2018, भारि में सुबह 7 बजकर 18 वमनट्, ख होने का समय 8 बजकर 13 वमनट् 5
सेकेंड इससे पहिे 31 जनिरी को साि का पहिा िंिग्रहण दे खा गया था इस िं िग्रहण के दौरान 152 साि बाद
बहुि दु िषभ सं योग बना था 27 जु िाई को होने िािा िंि ग्रहण भारि में वदखाई दे गा और सदी का सबसे िंबा
िंिग्रहण होगा
सन् 2019 ई0
6 जनिरी, का पहिा सूयषग्रहण भारिीय समयानुसार सुबह 5 बजकर 4 वमनट् से र्शुरू होकर 9
बजकर 18 वमनट् िक ििा हािां वक यह आं वर्शक सू यषग्रहण भारि और आसपास के दे र्शों में नहीं वदखाई वदया
जापान, कोररया, रूस समेि अ कुछ दे र्शों में यह नजर आया
साि का दू सरा सूयषग्रहण 2 जु िाई को पूणष ग्रहण, ये ग्रहण भी भारि में वदखाई नहीं वदया 2 जुिाई
को िगने िािा सूयष ग्रहण िार घंट्े 33 सेकेंड िक ििेगा अगर आप इस िर्ष के पूणष सूयषग्रहण को नहीं दे ख पािे
हैं िो आपको 14 वदसंबर, 2020 िक का इं िजार करना होगा
मिंिलिार, 25 जून 2019 ई0
ामी स वमत्रान वगरर ब्र िीन
आपके विचार आपके ”भारत माता मन्त र“ पु क से-
1. म्म प ामनु िरे म सूयषि मसाविि पुनदष दिा िा जानिा सं गमेमवह (ऋृेद-5/51/15) ”जैसे सूयष और
ि मा वनराि अ ररक्ष में वनरापद एिं राक्षसावद से अबावधि वनविषध्न यात्रा करिे हैं , वििरण करिे हैं , िैसे
ही हम अपने ब ु -बा िों के साथ िोक-यात्रा में ेहपूिषक, वनविष िििे रहें और हम सबका मागष मंगिमय
हो “ भगिान र्शंकर के रण मात्र से ऐसा स ि है , क्योंवक िे क ाण के दे ि हैं िे दे िावधदे ि महादे ि िो हैं
ही, वक ु भारिमािा का रूप- रण करने पर िो यह भाि जीि रूप से जाग्रि हो जािा है वक भारि का
समग्र दर्शषन भगिान र्शंकर में ही हो रहा है वििारपूिषक दे खें, िो भगिान र्शंकर स ूणष रा र के प्रिीक हैं ,
भगिान िीराम रा र की आदर्शष-मयाष दा के और गंगा रा र में प्रिावहि होने िािी सं ृ वि की उसके साथ उसमें
ब्र ि भी अ वनषवहि होना िावहए, क्योंवक ब्र ि से विवहन सं ृ वि दीघषकाि िक नहीं रह सकिी इस
ब्र ि के साक्षाि् रूप िीकृ हैं इसविए भारिीय सं ृ वि का सिां ग रूप राम, कृ , र्शंकर और गंगा
का समम्म ि रूप है
अ घटना क्रम
िषण 2020 ई0 में खिोवलर् घटना : 6 ग्रहर् (4 चिंद्र ग्रहर्, 2 सूर्ण ग्रहर्)
10 जनिरी 2020 िंि ग्रहण - ग्रहण का ट्ाइम: राि 10 बजकर 37 वमनट् से 11 जनिरी को 2
बजकर 42 वमनट् कहां वदखाई दे गा: भारि, यूरोप, अफ्ीक, एवर्शया और आ र े विया
5 जून 2020 िंि ग्रहण - रावत्र को 11 बजकर 15 वमनट् से 6 जून को 2 बजकर 34 वमनट् िक कहां
वदखाई दे गा: भारि, यूरोप, अफ्ीक, एवर्शया और आ र े विया
21 जून 2020 सूयष ग्रहण - 21 जून की सुबह 9 बजकर 15 वमनट् से दोपहर 15 बजकर 03 वमनट्
िक भारि, दवक्षण पूिष यूरोप और एवर्शया इस साि के सूयष ग्रहण पर अवधकिर ৸ोविवर्यों की नजरें हैं क्योंवक
यह ग्रहण वमथुन रावर्श में िगेगा 21 जून को िगने िािे ग्रहण का सू िक काि 12 घंट्े पहिे ही िग जाएगा इस
साि पड़ने िािे ग्रहण बहुि मह पूणष माने जा रहे हैं क्योंवक ৸ोविवर्यों के अनु सार इन ग्रहण से वमथुन रावर्श के
जािकों पर विर्शेर् प्रभाि पड़े गा उस समय कुि छह ग्रह िक्री होंगे जो अৢा सं केि नहीं है कहा जा रहा है वक
ग्रहण के कारण ग्रहों की ऐसी म्म थवि वि भर के विए विंिाजनक मानी जा रही है
5 जुिाई 2020 िंि ग्रहण - सुबह 08 बजकर 37 वमनट् से 11 बजकर 22 वमनट् िक अमेररका,
दवक्षण पूिष यूरोप और अफ्ीका
30 निंबर 2020 िंि ग्रहण - दोपहर को 13 बजकर 02 वमनट् से र्शुरू होगा और र्शाम 17 बजकर
23 वमनट् िक भारि, अमेररका, प्रर्शां ि महासागर, एवर्शया और आ र े विया
14 वदसंबर 2020 सूयषग्रहण - र्शाम को 19 बजकर 03 वमनट् से 15 वदसं बर को 12 बजे सू यषग्रहण
भारि में नहीं वदखेगा, इसको प्रर्शां ि महासागर
िषण 2020 ई0 में प्राकृवतक घटना : कोरोना (COVID-19) िार्रस से िैव क महामारी
ग्रहों के सम्म िन ि समय के योग से ৸ोविर् वि৯ान काि पररििषन और नये यु ग की र्शुरुआि िथा
ई र के अििरण की सूिना का प्रिीक मानिा है िो ििषमान, वि৯ान उसे मात्र एक ब्र ाਔीय घट्ना मानिा है
उपरोि घट्नाएं एिं संयोग वि , भारि, अ राष र ीय, रा৸, समाज, पररिार और म्मि सवहि वि৯ान
और धमष क्षेत्र के समक्ष ि थी पर ु िह एक-एक कर घवट्ि होिी गयी और िह इविहास बन गयी सभी
घट्नाएं अिग-अिग क्षेत्रों के समक्ष अिग-अिग रुप में ৯ान में थी, न वक एक साथ पररणाम रुप कोई भी
पररणाम वि , भारि, रा৸, अ राष र ीय, समाज, पररिार, म्मि, वि৯ान ि धमष क्षे त्र दे ने में सक्षम नही ं था अथाष ि् िह
इन घट्नाओं से पूणष मुि था
खिोल ि ৸ोवतष वि৯ान के अनुसार- उपरोि घट्नायें युग की समाम्म और भगिान के अििरण
के समय का सूिक होिी हैं ििषमान कवियुग की आयु 4,32,000 िर्ष मानी गयी है वजसका प्रार 18 फरिरी
3102 ई0 पू0 माना जािा है
सिण৯पीठम् कालीमठ, िारार्सी के ामी ब्र ान नार् सर ती के अनुसार- ग्रहण से
उ ावदि पुਘ से कवियु ग का 10,000 िर्ष आयु कम हो जािा है (दे खें -”अमर उजािा“ इिाहाबाद सं रण,
वदनां क-11-08-1999 पूणष सूयषग्रहण के अिसर पर प्रकावर्शि) और 821 िर्ष कवियुग का र्शेर् रहने पर कम्म
अििार का अििरण माना गया है इस प्रकार कवियुग का िीि कुि िर्ष 5102 िर्ष हुआ और यवद कम्म
अििार अभी होिा है िो कवियुग के कुि आयु 4,32,000 में से 5102+821 िर्ष घट्कर 4,26,071 िर्ष ग्रहण ारा
उ ावदि पुਘ से समा हो जाने िावहए वजसके विए 43 ग्रहण की आि किा है खगोि िै৯ावनकों का ऐसा
अनुमान है वक िर्ष में सूयषग्रहण की म्म थवि 2 से 5 बार िक आिी है कवियु ग के िीि िर्ष 5102 िर्ों में क्या 43
ग्रहण नहीं आये होंगे? जबवक 20 मािष 2015 िक 14 सूयषग्रहण हुये यवद यह माना जाय िो ग्रहण से उ पुਘ
वसफष भारि में ही होिा है िो क्या 5102 िर्ों के दौरान भारि में 43 ग्रहण नहीं हुये होंगे? जबवक ि ग्रहण से
उ ावदि पुਘ से कवियु ग की आयु कम होना अिग है इस प्रकार दे खने पर कवियुग की आयु िगभग समा हो
िुकी है
16 जुिाई 2000 गुरुपूवणषमा के वदन पूणष ि ग्रहण और 5 जुिाई 2001 को अंर्श ि ग्रहण गुरुओं के
विए प्रकार्शमय पूवणष मा नहीं बम्म अ कारमय अमाि ा था क्योंवक एक ओर यह पूणष ि ग्रहण 13 अग
1859 के बाद हुआ जो अब यह सन् 3000 के बाद ही होगा िो गुरु पूवणषमा के पािन अिसर पर ही हुआ जो मात्र
व गुरुओं के भरमार का प्राकृविक रुप से विरोध का सूिक था
वकसी भी युग में अििार, महापुरूर्, संि या वकसी भी म्मि के गुण को सीधे दे खकर पहिानने की
क्षमिा वकसी भी म्मि के अ र नहीं रही है उस म्मि को, यं के अपने गुणों को ৯ान, कमष, जीिन के मा म
ारा ि करना होिा है उसके बाद ही कुछ िोग उ ें पहिानिे हैं और उनके साथ एक-दू सरे के सदु पयोग के
विए साथ आिे रहे हैं प्रािीन समय में यह कायष बहुि कवठन होिा था इसके विए िे अनेक प्रकार के आयोजन
करिे थे
ििषमान युग में भी अनेक प्रकार के आयोजन जैसे-सेवमनार, स ेिन, प्रदर्शष नी, मेिे, परीक्षाएूँ ,
प्रवि धाष इ ावद ारा अपनी योिा प्रदवर्शषि वकये जािे हैं पर ु यह सब समय िेने िािा है और आम नागररक
- श्ीकृ (आदर्शष सामावजक मानि) के धमष (आ ाम्म क स ) थापना का कारण आवथषक था,
ई र (सािणभौम स -वस ा ) के तम िुर् प्रधान (शिंकर) के पूर्ाणितार
गुरु के स में ामी वििेकान जी कहिे हैं -”हम गुरु के वबना कोई ৯ान प्रा नहीं कर सकिे
अब बाि यह है वक यवद मनु , दे ििा अथिा कोई गषदूि हमारे गुरु हो, िो िे भी िो ससीम हैं , वफर उनसे पहिे
उनके गुरु कौन थे? हमें मजबूर होकर यह िरम वस ा म्म थर करना ही होगा वक एक ऐसे गुरु हैं जो काि के
ारा सीमाब या अविम्मৢ नहीं हैं उ ीं अन ৯ान स गुरु को, वजनका आवद भी नहीं और अ भी नहीं,
ई र कहिे हैं (राजयोग, रामकृ वमर्शन, पृ -134)
ििषमान समय में म्मि ( व ) के गुरुओं की भरमार है पर ु समाज (समव ) के गुरु का पूणष अभाि
है िह िही है जो ििषमान और भवि की िैव क आि किा-ििषमान ि थानुसार वि -र्शाम्म -एकिा-म्म थरिा-
विकास-सुरक्षा के विए प्रब का माडि दे सकें, साथ ही पूणष मानि, थ समाज, थ िोकि और थ
उ ोग की प्राम्म का आधारवर्शिा रख फि रुप में वि ापी पूणष एका करें ििषमान समय और कुछ भी नहीं
अन ৯ान स गुरु वन िंक कम्म अििार का ही समय है वजसका रुप समव गुरु का ही रुप है उसका
सम कायष उपरोि सािाष वधक खगोिीय घट्नाओं की अिवध में ही स हुआ है वजसके स में सन् 1996
में ही हािैਔ वनिासी भवि ििा वम0 क्राइसे ने कहा था वक-”मैं भारि में एक महापुरुर् को रुप से
दे ख रहा हूँ जो वि के विए योजनाएूँ बना रहा है “ भारिीय आ ा के अनुसार भी पूणष ब्र ाििार पूणष स गुण
रूप िीराम िथा पूणष वि ु अििार पूणष रज गुण रूप िीकृ हो िुके हैं अभी जो र्शेर् थे िह हैं -पूणष वर्शि-र्शंकर
अििार पूणष िम गुण रूप यही अम्म म वन िंक कम्म अििार हैं वर्शिगुरु हैं , क ाण रुप हैं और जब िक
इनका आगमन नहीं हुआ था िब िक नेिा, ििष मान व गुरु, वि क इ ावद का भारि और वि का क ाण
कर दे ने का प्रय वन ि, भ्रमा क और समय गिाने िािा ही था हमें वर्शि-र्शंकर के पू णष प्रेरक पूणाष ििार के
रुप में ि िि कुर्श वसं ह ”वि मानि“ ारा ि कमों पर वि न और समपषण करना िावहए और समपषण
करना ही पड़े गा
I am pleased to join you to celebrate the life and achievements of Nelson Mandela - one of the
greatest leaders of our time, a moral giant whose legacy continues to guide us today.
Let me also express condolences to Madiba’s family and the people of South Africa on the
untimely passing of his daughter, Zindzi, this month.
On today’s commemoration of Nelson Mandela Day, I am delighted to extend my warmest
congratulations to the 2020 laureates of the United Nations Nelson Rolihlahla Mandela Prize:
Mrs. Marianna Vardinoyannis of Greece and Dr. Morissana Kouyate of Guinea.
Both are recognized for their long-standing commitment to the service of humanity in the
areas of human rights, access to health care, and the empowerment of women and girls and
the most vulnerable in society.
I commend them for advancing the United Nations’ mission and carrying on the extraordinary
legacy of Nelson Mandela.
As Madiba himself once said: “As long as poverty, injustice and gross inequality persist in our
world, none of us can truly rest.”
This message was the core of the Nelson Mandela lecture I delivered this weekend.
High and rising levels of inequality threaten our well-being and our future.
Inequality damages everyone.
It is a brake on human development and opportunities, and is associated with unfair
international relations, but also with economic instability, corruption, financial crises, increased
crime and poor physical and mental health.
The answer lies in a New Social Contract, to ensure economic and social justice and respect for
human rights.
A New Social Contract within societies will enable young people to live in dignity.
It will ensure women have the same prospects and opportunities as men.
And it will protect the sick, the vulnerable, and minorities of all kinds.
https://www.un.org/sg/en/content/sg/statement/2020-07-20/secretary-generals-remarks-
annual-general-assembly-commemoration-of-nelson-mandela-international-day-and-united-
nations-nelson-rolihlahla-mandela-prize-laureate
वह ी भाषा रर्
(ने न मंडेिा अंिराष र ीय वदिस और संयुि रा र ने न रोिीहिा मंडेिा पुर ार पुर ार विजेिा [के
रूप में वििररि] महासविि की िावर्षक आमसभा की वट् णी)
मुझे ने न मंडेिा के जीिन और उपिम्म यों का ज मनाने के विए र्शावमि होने की कृपा है - हमारे
समय के सबसे महान नेिाओं में से एक, एक नैविक विर्शाि वजसकी विरासि आज भी हमारा मागषदर्शषन करिी है
मुझे इस महीने, मदीबा के पररिार और दवक्षण अफ्ीका के िोगों ारा अपनी बेट्ी, वजंजी के असामवयक वनधन पर
र्शोक संिेदना ि करें
ध िाद
मानि स िा के विकास के साथ जनसंূा में भी बढ़ो री होिी गई हम सभी पररिार, कुनबे -कबीिे
से होिे हुये गाूँ ि, रा৸, वजिा, प्रदे र्श, दे र्श और अब वि -रा र िक आ गये हैं ये र मानि के सामूवहक सोि के
क्षेत्र हैं प्र ेक सोि-क्षेत्र की अपनी आि किा और ि था संिािन है छोट्े र पर म्मि का म्मि से
स कष होिा है इसविए िहाूँ सिेक्षण की बहुि आि किा नहीं पड़िी क्योंवक िहाूँ स कष के ारा ही राय-मि-
वििार के आूँ कड़े वमि जािे हैं सोि के बड़े क्षेत्र में ि था संिािन के विए योजना बनानी पड़िी है ये योजनाएूँ
ििषमान के विए िथा साथ ही साथ भवि की आि किानुसार भी होिी हैं
ििषमान िथा भवि की आि किानुसार योजना बनाने के विए उस क्षेत्र के र के आूँ कड़ों की
आि किा होिी है ये आूँ कड़ें उस विर्य क्षेत्र के विए होिे हैं वजस क्षेत्र के विए ििषमान िथा भवि की
आि किानुसार योजना बनानी होिी है
आधुवनक जीिन में सिेक्षण के वबना कोई योजना बनानी मुम्म ि है क्योंवक हम सभी इिने विर्शाि
जनसंূा की ओर बढ़िे जा रहें वक उनकी ि था के विए वबना सिेक्षण से प्रा आूँ कड़ों के वबना ि था
स ािना अस ि है ििषमान समय में सिेक्षण और आूँ कड़ा हमारे जीिन का अंग है और व ( म्मिगि) रूप
से वजससे हम सभी संिाविि हैं िह अब ि होकर समव (संयुि) रूप से संिाविि हो रहे हैं जीिन के हर क्षेत्र
में सिेक्षण का प्रयोग ि उपयोवगिा प्रिेर्श कर िुकी है
ििषमान आधुवनक जीिन की अवधकिम योजनाएूँ िैव क व से अथाष ि् अपने मन को इस पृ ी से
बाहर म्म थि कर स ूणष पृ ी के विए सिेक्षण कर योजनाएूँ , कानून-वनयम इ ावद बन रहें हैं वजस प्रकार म्मि
यं और पररिार के विए ििषमान और भवि के विए योजना संकविि आूँ कड़े के आधार पर बनािा है उसी
प्रकार िैव क नेिृ पूरे पृ ी पर रहने िािे मनु , जीिन, पयाष िरण और पृ ी की सुरक्षा के विए योजना बनािे हैं
और यह सिेक्षण और संकविि आूँ कड़ों के वबना अस ि है
वजस प्रकार नदी में जि का सिि प्रिाह होिा रहिा है उसका उपयोग वसंिाईं में हो सकिा है पर ु
बाूँ ध बनाकर जि का उपयोग करने से वबजिी भी बनायी जा सकिी है उसी प्रकार मानि समाज में आूँ कड़ों
(डाट्ा) का सदै ि प्रिाह हो रहा है उसे अपने मम्म में रोककर इका करने से ही उसका वि ेर्ण हो सकिा
है वजिने अवधक आूँ कड़ों से वि ेर्ण होगा पररणाम उिना ही सट्ीक होगा यही बुम्म है क ूट्र में भी यवद
आूँ कड़े कम होंगे िो वि ेर्ण भी कम ही प्रा वकये जा सकिे हैं वजिने बड़े क्षेत्र के विए कायष करना हो उिने
बड़े क्षेत्र से स म्म ि आूँ कड़े जुट्ाये जािे हैं यही बुम्म है कोई भी कायष वसफष एक कारण से नहीं होिा अवधक से
अवधक कारणों को जानना, कमष की सट्ीक ाূा है
इस प्रकार हमारा संिािक इৢा नहीं बम्म आूँ कड़े हैं और मन से वकसी ि ु को दे खना स नहीं है
बम्म आूँ कड़ों की व से दे खना स है पृ ी के बाहर अपने मन को म्म थि कर स ूणष पृ ी के क ाण के विए
वक्रयाकिापों का सिेक्षण और आूँ कड़ों के प्रमाण के फि रूप ही िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि“ और उनका
र्शा ”वि र्शा “ ि हुआ है इसविए मनु जीिन में सिेक्षण और आूँ कड़ों का बहुि मह है भवि के
बौम्म क मनु का यही अ है
सम ा और समाधान
सम ा
समाधान
समाधान
यहाूँ हम भारि की आ ररक और बा संकट् के अम्म म हि और वि नेिृ की अवहं सक नीवि पर
अम्म म व प्र ुि कर रहे है जो स रूप में 21िीं सदी और भवि के स िेिना आधाररि वि के विए भारि
की ओर से किष िथा अ के विए अवधकार रूप आम्मखरी रा ा है
”सृव ” का अर्ण होता है - स ूणष ब्र ाਔ की रुकी म्म थवि के आगे एका िा के साथ निवनमाष ण
”सृव करने की म्म थवि“ में भूिकाि की ििाष की म्म थवि आ जाने पर उसे ”सृव रूकना“ कहिे हैं ऐसी ही म्म थवि
महाभारि यु के समय िीकृ के समक्ष आ गया था जब अजुषन ने यु से मना कर वदया था पररणाम रूप
िीकृ ”गीिा“ उपदे र्श के विए भूिकाि की ििाष में उिझ गये थे ”रचना” का अर्ण होता है- उपि िा पर
आधाररि एका िा के साथ निवनमाष ण ”विकास” का अर्ण होता है - उपि िा पर आधाररि निवनमाष ण
विकास का कोई िশ नहीं होिा जब विकास एका िा की ओर होिी है िो िह रिना बन जािी है विकास िশ
विवहन होिा है इसविए कािा र में िह विनार्श का रुप िे िेिी है
ििषमान में “पुनवनषमाष ण” के अ गषि िही कायष हैं जो सरकार के िैधावनक प्रवक्रया के अनुसार, उसके
सहयोग और उससे मुि अि था में रहकर म्मि यं सामावजक, आवथषक और मानवसक निवनमाष ण के विए कर
सकिा है क्योंवक इस संसार में कुछ भी सुधार के विए नहीं है , या िो िह पूणष है या िह विकवसि करने के विए है
िृक्ष की र्शाखा को पुनः िने में नहीं समेट्ा जा सकिा बम्म उसे विकवसि कर बीज िक अि पहुूँ िाया जा
सकिा है , वजससे पुनः िृक्ष का निवनमाष ण हो वकसी म्मि का सुधार नहीं होिा बम्म िह विकवसि होिा है और
िह नया मानि बनिा है सम सुधारों का एक मात्र रा ा है -निवनमाष ण इसविए िािािरण को बदिना
आि क है वजससे म्मि यं बदि जायेगा और यही एक मात्र उपाय है
सभी निवनमाष ण मुূिः िीन क्षेत्रों में होिे हैं -र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक वजस प्रकार वकसी
म्मि ( व ) का र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक निवनमाष ण होिा है उसी प्रकार म्मि-समूह या दे र्श (समव ) का
र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक निवनमाष ण होिा है “पुनवनषमाष ण” व ि समव दोनों के विए निवनमाष ण का एक
मात्र उपाय है
पौरावणक कथाओं में एिं आधाररि वफ या दू रदर्शष न के धारािावहकों में वदखाया जािा है वक नारद
जी दे ि िोक जािे हैं और पृ ी की सम ाओं को दे ििाओं के समक्ष रखिे हैं और उस अनुसार दे ििागण अपने
कायष क्षेत्रानुसार सम ा पर वि न करिे हैं एिं हि वनकािकर पृ ीिावसयों को उपि करािे हैं
वर्शक्षा में सुधार, सामावजक पररििषन या कोई अ सम ा पर स ेिन, सेवमनार, संिाद इ ावद केिि
सम ा विर्य पर वि न हैं जैसे पौरावणक कथाओं में दे ििाओं का सम ा पर वि न होिा है िेवकन सम ा का
हि ही ना वनकिे िो वि न केिि एक आयोजन मात्र बनकर रह जािा है हाूँ , दे र्श-विदे र्श में इस प्रकार के होने
िािे आयोजन से वनकिे वििार उनके विए मह पूणष जरूर बन जािा है जो कहीं दू र से इसे आकड़ें के रूप में
दे खिे हुये मनु ों के विए आि किा समझिे हुये हि पर कायष करने िािे होिे हैं इसविए ही िो कहा गया है -
िो आिाज सुनी गयी और उसका हि िैयार वकया गया जो वन मूि वस ा पर आधाररि है यवद
यह सािषजवनक रूप से स है , ीकार है िो यह समझना िावहए वक सािषभौम सम ा समाधान के विए विकवसि
प्रणािी पूणषिया सािषभौम स सै ाम्म क है क्योंवक प्रणािी का विकास इन पर ही आधाररि है िाहे िह समव
समाधान के विए हो या व समाधान के विए ये वस ा हैं -
1. स ूर्ण ब्र ाਔ में कुछ भी न्त र्र नही िं है
2. सभी र्िं की न्त र्रता और शान्त के वलए िवतशील हैं
3. उस सािणभौम एका (सािणभौम आ ा) का कोई नाम नही िं हैं , उसका नाम मानिीर् भाषा
के केिल श हैं
राजनैवतक क्रान्त
िैव क स ूणष क्राम्म
भारि रीय स ूणष क्राम्म
सामावजक क्रान्त - ई रीय समाज
सािं ृ वतक क्रान्त – एका कमषिाद
बौन्त क क्रािंवत - एक रा र ीय र्शा - वि र्शा
आ ान्त क क्रािंवत - मन (मानि संसाधन) का वि मानक (WS-0) िृंखिा
शैक्षवर्क क्रान्त -स मानक वर्शक्षा - पूणष ৯ान का पूरक पाਉक्रम
आवर्णक क्रान्त - मानक विपणन प्रणािी : 3F (Fuel-Fire-Fuel)
भारि रीय - पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष
भारि रीय - वडवजट्ि प्रापट्ी और एजे नेट्िकष
अितारी मन
अििारी (पुरूर्), मन के िीनों गुण स , रज और िम का पूणष संियन का सािषभौम साकार रूप होिा है
पर ु िह िीनों गुणों से युि होिे हुये भी उससे मुि रहिा है और अपने पूिषििी मन के िीनों गुण से युि स ,
रज और िम मनों के सिोৡ अि था की अगिी कड़ी होिा है ये सािषभौम प्रमावणि मागषदर्शष क दर्शषन (Guider
Philosophy) अथाष ि् G, वक्रया यन दर्शषन (Operating Philosophy) अथाष ि् O और विकास/ विनार्श दर्शषन
(Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D का संयुि रूप होिा है
पूणष ৯ान अथाष ि् अपने माविक यं के में म्म थि मागषदर्शषक दर्शषन (Guider Philosophy) अथाष ि् G
एिं विकास दर्शषन (Development/Destroyer Philosophy) अथाष ि् D है इसकी पररवध आदान-प्रदान या
ापार या वक्रयािक्र या वक्रया यन दर्शषन (Operating Philosophy) अथाष ि् O है यही आ ा अथाष ि् अथाष ि्
अ वि৯ान का सिोৡ एिं अम्म म आवि ार है िथा यहीं पदाथष अथाष ि् वि৯ान ारा आवि ृ ि परमाणु
की संरिना भी है वजसके के में G के रुप में प्रोट्ान P है िथा D के रुप में ूट्रान N है इसकी पररवध O के रुप
में इिेक्टरान E है प्रा০ अ आ ा वि৯ान िथा पा ा पदाथष वि৯ान में एकिा का यही सूत्र है वििाद
मात्र नाम के कारण है वजसके अनुसार इिेक्टरान या वक्रया यन दर्शषन में विवभ स दायों, संगठनों, दिों के
वििार सवहि म्मिगि वििार वजसके अनुसार अथाष ि् अपने मन या मन के समूहों के अनुसार िे समाज िथा रा৸
का नेिृ करना िाहिे हैं जबवक ये सािषजवनक स नहीं है इसविए ही इन वििारों की समथषन र्शम्मि कभी
म्म थर नहीं रहिी जबवक के या आ ा या एकिा में विकास दर्शषन म्म थि है के में प्रोट्ान की म्म थवि अ
मागषदर्शष क दर्शषन या अ विकास दर्शषन की म्म थवि, िूंवक यह सािषजवनक स विकास दर्शषन का अ रुप है
इसविए यह म्मिगि प्रमावणि है इसी कारण आ ा भी वििाद और व वििार के रुप में रहा जबवक यह
स था िेवकन ूट्रान की म्म थवि मागषदर्शष क दर्शषन या विकास दर्शषन की म्म थवि है इसविए यह
सािषजवनक स है स ू णष मानक है , समव स है , स वस ा है वजसकी थापना से म्मि मन उस िरम
म्म थवि में थावपि होकर उसी प्रकार िेजी से वि वनमाष ण कर सकिा है वजस प्रकार पदाथष वि৯ान ारा आवि ृ ि
ूट्रान बम इस वि का विनार्श कर सकिा है
”वजिने वदनों से जगि है उिने वदनों से मन का अभाि-उस एक वि मन का अभाि कभी नहीं हुआ
प्र ेक मानि, प्र ेक प्राणी उस वि मन से ही वनवमषि हो रहा है क्योंवक िह सदा ही ििषमान है और उन सब के
वनमाष ण के विए आदान-प्रदान कर रहा है “ (धर् म वि৯ान, राम कृ वमर्शन, पृ -27)
- ामी वििेकान
“एक िरह का वस एक ही बार होिा है , दोबारा नहीं होिा क्योंवक जो वस हो गया, वफर नही
िौट्िा गया वफर िापस नहीं आिा एक ही बार िुम उसकी झिक पािे हो- बु की, महािीर की, क्राइ ही,
मुह द की, एक ही बार झिक पािे हो, वफर गये सो गये वफर विराट् में िीन हो गये वफर दोबारा उनके जैसा
आदमी नहीं होगा, नहीं हो सकिा मगर बहुि िोग नकििी होंगे उनको िुम साधु कहिे हो उन नकिीिी का
बड़ा स ान है क्योंवक िे िु ारे र्शा के अनुसार मािूम पड़िे हैं जब भी वसद् ध आयेगा सब अ कर
दे गा वस आिा ही है क्राम्म की िरह ! प्र ेक वस बगािि िेकर आिा है , एक क्राम्म का संदेर्श िेकर आिा है
एक आग की िरह आिा है - एक िुफान रोर्शनी का! िेवकन जो अूँधेरे में पड़े हैं उनकी आूँ खे अगर एकदम से
उिनी रोर्शनी न झेि सके और नाराज हो जाय िो कुछ आ यष नहीं
O
वक्रर्ा र्न दशणन (Operating Philosophy) अर्ाणत् O
D
विकास/ विनाश दशणन (Development/Destroyer Philosophy) अर्ाणत् D
(सािणजवनक प्रमावर्त विकास दशणन (Development/Destroyer Philosophy) अर्ाणत् D की
अि र्ा)
मनु को अवधक पूणष बनाने और संिािन के विए अििार ारा आये मुূ आपरे वट्ं ग वस म
(Avatar’s Operating System- AOS) सं रण (Version) इस प्रकार हैं -
उपरोि मुূ मूि सं रण के उपरा अनेक अ मनु ों (संि, गुरू, मािा-वपिा, वमत्र, सहयोगी,
दि, संगठन इ ावद) ारा मनु के संिािन के विए नया आपरे वट्ं ग वस म सं रण आिे गये और मनु उससे
संिाविि होिे गये पर ु उ ें पिा ही नहीं िि पा रहा वक कौन सा सं रण उनके विए उपयोगी है
जैसे आपके आपरे वट्ं ग वस म (Operating System) में अनके सुविधाएूँ हैं उसी प्रकार मानि-10
(AOS : Human-10) सं रण में भी अनेक सुविधाएूँ जैसे - काट्ना (Cut), विपकाना (Paste), नकि बनाना
(Copy), र करना (Delete), सुधारना (Edit), नाम बदिना (Rename), रिना करना (Create), भेजना (Send),
पढ़ना (Read), विखना (Write), िाइरस (Virus), एी-िाइरस (Anti-Virus) इ ावद हैं
वजस प्रकार एक रोबोट्, िैसे ही रोबोट् का वनमाष ण कर सकिा है जैसा वक उसमें सा िेयर डािा गया
है उसी प्रकार एक मनु , मनु , िैसे ही मनु का वनमाष ण कर सकिा है जैसा वक उसमें सा िेयर (वििार-
वस ा ) डािा गया है
कुछ भी हो सा िेयर में वजिनी अवधक सुविधा, उिना ही िह पररणाम दे ने में सक्षम सब कुछ
”माइक्रोप्रोसेसर/मम्म ” के सा िेयर पर ही वनभषर होिा है और सा िेयर उिना ही उৡ र का बन सकिा
है वजिना वििार का वि ार होिा है वजिना वििार का वि ार होिा है िह उिना ही ापाररक िाभ दे सकिा है
वजसके जीि उदाहरण आप हैं
Y- YOG ( योग )
A - ASHRAM ( आिम )
M - MEDITATION ( ान )
. - DOT ( वब दु या डाट् या दर्शमिि या पूणषविराम )
C - CONCIOUSNESS ( िेिना )
2- आदर्शष िैव क मानि/जन/गण/िोक/ /मैं /आ ा/ि ् र का स रूप
3- वि मानक-र्शू (WS-0) : मन की गुणि ा का वि मानक िृखंिा
1. ड ू.एस. (WS)-0 : वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-00 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
4. ड ू.एस. (WS)-0000 : मानि (सूक्ष्म िथा थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
5. ड ू.एस. (WS)-00000 : उपासना और उपासना थि का वि मानक
1. न्त र्वत - म्मिगि प्रमावणि अ मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि
मा म ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि सियु ग की अम्म म म्म थवि है इस युग में कुि 6 अििार
म , कूमष, िाराह, नृंवसंह, िामन और परर्शुराम हुये
2. न्त र्वत -सािषजवनक प्रमावणि अ मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि
मा म - प्रकृवि ि ब्र ाਔ ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि त्रेिायुग की अम्म म म्म थवि है इस
युग में साििें अििार िी राम हुयें
3. न्त र्वत - म्मिगि प्रमावणि मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् म्मिगि प्रमावणि
म्मि ि भौविक ि ु मा म ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि ापर यु ग की अम्म म म्म थवि है
इस युग में आूँ ठिें अििार िी कृ हुयें
4. न्त र्वत - सािषजवनक प्रमावणि मागष से मन का आ ीय केम्म ि म्म थवि अथाष ि् सािषजवनक प्रमावणि
म्मि ि भौविक ि ु मा म ारा आ ा पर केम्म ि मन यह म्म थवि कवियु ग की अम्म म म्म थवि है
इस युग में निें अििार बु हुये और दसिें और अम्म म अििार िी िि कुर्श वसं ह ”वि मानि“ ि हैं
उपरोि म्म थवि में म्म थि मन से ही उस युग में र्शा -सावह ों की रिना होिी रही है और उस
अनुसार ही प्र ेक म्मि अपनी म्म थवि का पिा िगा सकिा है वक िह वकस युग में जी रहा है
उपरोि में से कोई भी म्म थवि जब म्मिगि होिी है िब िह म्मि उस युग में म्म थि होिा है िाहे
समाज या स ूणष वि वकसी भी युग में क्यों न हो इसी प्रकार जब उपरोि म्म थवि में से कोई भी म्म थवि में समाज
या स ूणष वि अथाष ि् अवधकिम म्मि उस म्म थवि में म्म थि होिे है िब समाज या स ूणष वि उस यु ग में म्म थि हो
जािा है
युग पररििषन सदै ि उस समय होिा है जब समाज के सिोৡ मानवसक र पर एक नया अ ाय या
कड़ी जुड़िा है और एक नये वििार से ि था या मानवसक पररििषन होिा है इस प्रकार यह आ साि् करना
िावहए वक स ूणष समाज इस समय िौथे युग-कवियु ग के अ में है और जैसे-जैसे “वि र्शा ” के ৯ान से युि
पहलार्ुि : स र्ुि
02. ब्रा र् धमण -ब्रा र् िर्-ईसापूिण 6000-2500
दू सरार्ुि : त्रेतार्ुि
03. िैवदक धमण -श्ीराम-ईसापूिण 6000-2500
तीसरार्ुि : ापरर्ुि
04. िेदा अ ै त धमण-श्ीकृ -ईसापूिण 3000
01. म ाितार - इस अििार ारा धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने का मानक वििार-
वस ा थावपि हुआ
03. िाराह अितार - इस अििार ारा सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि ,
सवक्रय, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण
(प्रेरणा का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ
04. नरवसिंह अितार - इस अििार ारा प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के
विए ररि कायषिाही का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ
05. िामन अितार - इस अििार ारा भवि ा, राजा के गुण का प्रयोग करना, थोड़ी सी भूवम पर
गणरा৸ ि था की थापना ि ि था को वजविि करना, उसके सुख से प्रजा को पररविि कराने
िािे गुण (समाज का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ
07. राम अितार - इस अििार ारा आदर्शष िररत्र के गुण के साथ प्रसार करने िािा गुण ( म्मिगि
आदर्शष िररत्र के आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ
08. कृ अितार - इस अििार ारा आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक
मि-मिा र ि वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे
गुण (सामावजक आदर्शष म्मि का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण
का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ
09. बु अितार - इस अििार ारा प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष , संघ और बुम्म के र्शरण में
जाने का गुण (धमष, संघ और बुम्म का वस ा ) का मानक वििार-वस ा थावपि हुआ
10. कन्त अितार- इस अििार ारा आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक
िैव क म्मि िररत्र अथाषि् सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का मानक
वििार-वस ा थावपि करने का काम ििषमान है और िो अम्म म भी है
उपरोि दस अििार ारा थावपि वििार-वस ा का संयुि रूप ही मानक पूणष मानि का रूप है
प्र ेक पूिष के अििार ारा थावपि वििार-वस ा अगिे अििार में िह संक्रवमि अथाष ि् वि मान रहिे हुये
अििरण होिा है इस प्रकार अम्म म अििार में पूिष के सभी अििार के गुण वि मान होंगे और अम्म म अििार
ही मानि समाज के विए मानक मानि होगा
िोकनायक जयप्रकार्श नारायण के अनुसार स ूणष क्रां वि में साि क्रां वियाूँ र्शावमि है – 1. राजनैविक,
2. आवथषक, 3. सामावजक, 4. सां ृ विक, 5. बौम्म क, 6. र्शैक्षवणक ि 7. आ ाम्म क क्रां वि
राजनैवतक क्रान्त
िैव क स ूणष क्राम्म
भारि रीय स ूणष क्राम्म
सामावजक क्रान्त - ई रीय समाज
सािं ृ वतक क्रान्त – एका कमषिाद
बौन्त क क्रािंवत - एक रा र ीय र्शा - वि र्शा
आ ान्त क क्रािंवत - मन (मानि संसाधन) का वि मानक (WS-0) िृंखिा
शैक्षवर्क क्रान्त -स मानक वर्शक्षा - पूणष ৯ान का पूरक पाਉक्रम
आवर्णक क्रान्त - मानक विपणन प्रणािी : 3F (Fuel-Fire-Fuel)
भारि रीय - पुनवनषमाष ण - स वर्शक्षा का रा र ीय िीव्र मागष
भारि रीय - वडवजट्ि प्रापट्ी और एजे नेट्िकष
ISO-9000 और ISO-14000 िृंखिा की िरह “स ूणष मानक” अथाष ि वि मानक - र्शू (WS-0)
िंखिा की वि ापी थापना
प्रकावर्शि खुर्शमय िीसरी सह ाम्म के साथ यह एक सिोৡ समािार है वक नयी सह ाम्म केिि
बीिे सह ाम्म यों की िरह एक सह ाम्म नहीं है यह प्रकावर्शि और वि के विए नये अ ाय के प्रार का
सह ाम्म है केिि िि ों ारा िশ वनधाष रण का नहीं बम्म गीकरण के विए अवसमीि भूमਔिीय मनु
और सिोৡ अवभभािक सं युि रा र सं घ सवहि सभी र के अवभभािक के किष के साथ कायष योजना पर
आधाररि क्योंवक दू सरी सह ाम्म के अ िक वि की आि किा, जो वकसी के ारा प्रविवनवध नहीं हुई
उसे वििादमुि और सफििापूिषक प्र ु ि वकया जा िुका है जबवक विवभ विर्यों जैसे -वि৯ान, धमष, आ ा ,
समाज, रा৸, राजनीवि, अ राष र ीय स , पररिार, म्मि, विवभ सं गठनों के वक्रयाकिाप, प्राकृविक,
ब्र ाਔीय, दे र्श, सं युि रा र संघ इ ावद की म्म थवि और पररणाम सािषजवनक प्रमावणि रुप में थे
वि৯ान के सिोৡ आवि ार के आधार पर अब यह वििाद मुि हो िुका है वक मन केिि म्मि,
समाज, और रा৸ को ही नहीं प्रभाविि करिा बम्म यह प्रकृवि और ब्र ाਔ को भी प्रभाविि करिा है
के ीयकृि और ानीकृि मन विवभ र्शारीररक सामावजक और रा৸ के असमा िाओं के उपिार का अम्म म
मागष है थायी म्म थरिा, विकास, र्शाम्म , एकिा, समपष ण और सुरक्षा के विए प्र े क रा৸ के र्शासन प्रणािी के विए
आि क है वक रा৸ अपने उ े के विए नागररकों का वनमाष ण करें और यह वनधाष ररि हो िुका है वक क्रमब
थ मानि पीढ़ी के विए वि की सुरक्षा आि क है इसविए वि मानि के वनमाष ण की आि किा है , िेवकन
ऐसा नहीं है और विवभ अवनयम्म ि सम ा जैसे-जनसंূा, रोग, प्रदू र्ण, आिंकिाद, भ्र ािार, विके ीकृि मानि
र्शम्मि एिं कमष इ ावद िगािार बढ़ रहे है जबवक अ ररक्ष और ब्र ाਔ के क्षेत्र में मानि का ापक विकास
अभी र्शेर् है दू सरी िरफ िाभकारी भूमਔिीकरण विर्शेर्ीकृि मन के वनमाष ण के कारण विरोध और नासमझी से
संघर्ष कर रहा है और यह अस ि है वक विवभ विर्यों के प्रवि जागरण सम ाओं का हि उपि कराये गा
मानक के विकास के इविहास में उ ादों के मानकीकरण के बाद ििषमान में मानि, प्रवक्रया और
पयाष िरण का मानकीकरण िथा थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एिं आई0 एस0 ओ0-14000 िृंखिा के ारा
मानकीकरण के क्षे त्र में बढ़ रहा है िेवकन इस बढ़िे हुये िृंखिा में मनु की आि किा (जो मानि और
मानििा के विए आि क है ) का आधार “मानि संसाधन का मानकीकरण” है क्योंवक मनु सभी (जीि और
वनजीि) का वनमाष णकिाष और उसका वनय णकिाष है मानि संसाधन के मानकीकरण के बाद सभी विर्य
आसानी से िশ अथाष ि् वि रीय गुणि ा की ओर बढ़ जायेगी क्योंवक मानि संसाधन के मानक में सभी ि ों के
मूि वस ा का समािेर्श होगा
ििषमान समय में र्श - “वनमाष ण” भूमਔिीय रुप से पररविि हो िुका है इसविए हमें अपना िশ
मनु के वनमाष ण के विए वनधाष ररि करना िावहए और दू सरी िरफ वििादमुि, , प्रकावर्शि िथा ििषमान
सरकारी प्रवक्रया के अनुसार मानक प्रवक्रया उपि है जैसा वक हम सभी जानिे हैं वक मानक हमेर्शा स का
सािषजवनक प्रमावणि विर्य होिा है न वक वििारों का म्मिगि प्रमावणि विर्य अथाष ि् प्र ुि मानक विवभ
विर्यों जैसे-आ ा , वि৯ान, िकनीकी, समावजक, नीविक, सै ाम्म क, राजनीविक इ ावद के ापक समथषन के
साथ होगा “उपयोग के विए िैयार” िथा “प्रवक्रया के विए िैयार” के आधार पर प्र ुि मानि के वि रीय
वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C (World Class
Manufactuing–Total Life Maintenance- Satya, Heart, Yoga, Ashram, Meditation.Conceousnesas) प्रणािी
आवि ृ ि है वजसमें स ूणष ि सहभावगिा (Total System Involvement-TSI) है और वि मानक र्शू : मन
की गुणि ा का वि मानक िृंखिा (WS-0 : World Standard of Mind Series) समावहि है जो वि मानि
मानि एिं संयुि मानि (सं गठन, सं था, ससंद, सरकार इ ावद) ारा उ ावदि उ ादों को धीरे -धीरे
िैव क र पर मानकीकरण हो रहा है ऐसे में सं युि रा र संघ को प्रब और वक्रयाकिाप का िैव क र पर
मानकीकरण करना िावहए वजस प्रकार औ ोवगक क्षे त्र अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन (International
Standardisation Organisation-ISO) ारा संयुि मन (उ ोग, सं थान, उ ाद इ ावद) को उ ाद, सं था,
पयाष िरण की गुणि ा के विए ISO प्रमाणपत्र जैसे- ISO-9000, ISO-14000 िृं खिा इ ावद प्रदान वकये जािे है
उसी प्रकार सं युि रा र सं घ को नये अवभकरण वि मानकीकरण सं गठन (World Standardisation
Organisation-WSO) बनाकर या अन्र्िरा र ीय मानकीकरण सं गठन को अपने अधीन िेकर ISO-0/WSO-0 का
प्रमाण पत्र यो म्मि और सं था को दे ना िावहए जो गुणि ा मानक के अनुरूप हों भारि को यही कायष
भारिीय मानक ूरो (Bureau of Indiand Standard-BIS) के ारा IS-0 िृंखिा ारा करना िावहए भारि को
यह कायष रा र ीय वर्शक्षा प्रणािी (National Education System-NES) ि वि को यह कायष वि वर्शक्षा प्रणािी
(World Education System-WES) ारा करना िावहए
“यवद हम संसार का मागष ग्रहण करें गे और संसार को और अवधक विभावजि करें गे िो र्शाम्म ,
सवह ुिा और ि िा के अपने उ े में सफि नहीं हो सकिे यवद हम इस यु -विवक्ष दु वनयाूँ को र्शाम्म
और स का प्रकार्श वदखाएं िो स ि है वक हम सं सार में कोई अৢा पररििष न कर सकें िोकि से मेरा
मििब सम ाओं को र्शाम्म पूिषक हि करने से है अगर हम सम ाओं को र्शाम्म पूिषक हि नहीं कर पािे िो
इसका मििब है वक िोकि को अपनाने में हम असफि रहें हैं ” - पिं0 जिाहर लाल नेहरू
हम अपनी योजनाओं को सवक्रय रुप से वक्रयाम्म ि करें , इसके विए मानकों का होना अ
आि क है िथा यह जरुरी है वक मानकों के वनधाष रण ि पािन हे िु प्रय र्शीि रहें
साभार - भारिीय मानक ूरो, त्रैमावसकी- ”मानक दू ि“, िर्ष-19, अंक-1, 1999
-पिं0 जिाहर लाल नेहरु
यह समय की माूँ ग है वक जीिन के सभी क्षेत्रों में गुणिा के प्रवि रा र ीय प्रविब िा हो हमारी सं िुव
वकसी भी प्रकार के उ ादन से नहीं अवपिु हमारे ारा उ ावदि उਚृ ि ुओं और दी जाने िािी उਚृ सेिाओं
से हो साभार - भारिीय मानक ूरो, त्रैमावसकी- ”मानक दू ि“, िर्ष-20, अंक-1-2, 2000
-राजीि िााँधी
माचण, 1997 ई0
भारि, सं युि रा र सं घ के पु नगषठन में अपना योगदान दे -कौिी अ ान
माचण, 2000 ई0
वि को िोकि , भारि का उपहार; ৯ान और सू िना आधाररि सहयोग; भारि और अमेररका
वमिकर वि को नई वदर्शा दे सकिा है ; भारि यवद र्शू और दर्शमिि न वदया होिा िो क ूट्र वि बनाना
अस ि होिा; प्र ेक दे र्श कहिा है हम महान हैं पर ु कैसे? यह वस करना एक िुनौवि है इ ावद
(भारि यात्रा पर वद0 20-24 मािष ’ 2000 के समय िि )
-वबल न्ति न
रवििार, 11 अि , 2002 ई0
वि का कोई भी धमष िभी आगे बढ़िा है जब िह अपने आप में निीनिा िािा है सनािन धमष नयी
बािों को अपने आप में पिाने की क्षमिा रखिा है
साभार - स ागष, िाराणसी, वद0 11 अग 2002
-श्ीमती शीला दीवक्षत
मिंिलिार, 9 नि र, 2010 ई0
एवर्शया अथिा पूरी दु वनया में भारि एक उभरिा हुआ दे र्श भर नहीं है , बम्म यह पहिे से उभर िुका
है और मेरा यह ढ़ वि ास है वक भारि और अमेररका के बीि स , जो साझा वहिों और मू ों से बंधे हैं , 21िीं
र्शिा ी की सिाष वधक वनणाष यक साझोदारीयों में से एक है मैं इसी साझेदारी के वनमाष ण के विए यहाूँ आया हूँ यह
िह सपना है वजसे हम वमिकर साकार कर सकिे हैं साझा भवि के प्रवि मेरे वि ास का आधार भारि के समृ
अिीि के प्रवि मेरे स ान पर आधाररि है भारि िह स िा है जो हजारों िर्ों से दु वनया की वदर्शा िय कर रही
है भारि ने मानि र्शरीर के रह ों से परदा उठाया यह कहना अविर्शयोम्मि न होगी वक हमारे आज के सूिना
युग की जड़ें भारिीय प्रयोगों से संब है , वजनमें र्शू की खोज र्शावमि है भारि ने न केिि हमारे वदमाग को
खोिा बम्म हमारे नैविक क ना को भी वि ाररि वकया मैं संयुि रा र सुरक्षा पररर्द् का पु नगषठन िाहूँ गा,
वजसमें भारि थायी सद के रूप में मौजूद रहे
वि में भारि सही थान हावसि कर रहा है , ऐसे में हमें दोनों दे र्शों की साझेदारी को इस सदी की
मह पूणष साझेदारी में पररििषन करने का ऐविहावसक अिसर वमिा है िूूँवक 21िीं सदी में ৯ान ही मुिा है , इसविए
हम छात्रों, कािेजों और वि वि ाियों में विवनमय को बढ़ािा दें गे
िैवदक काि से भारि के ৯ान-वि৯ान एिं स -अवहं सा के वस ा ों का पूरा वि िोहा मानिा आ रहा
है ििषमान में उৡ कोवट् के डाक्टर, इं वजवनयर और सूिना वि৯ान के विर्शेर्৯ पू रे वि में अपनी प्रविभा के दम पर
छाये हुये हैं आवथषक महार्शम्मि के रूप में भारि की पहिान बन रही है इ ीं खूवबयों के बूिे भारि और सनािन
धमष वफर से वि गुरू की पदिी हावसि करे गा (गाूँ धी वि ा सं थान, िाराणसी में)
साभार - दै वनक जागरण, िाराणसी, वद0 26 वदस र, 2010
-विरधर मालिीर्
“युिाओं वि को एक करो” (“मन की बाि” रे वडयो कायषक्रम ारा िी बराक ओबामा के साथ)
साभार - दै वनक जागरण ि कार्शी िािाष , िाराणसी सं रण, वद0 28 जनिरी, 2015
- श्ी नरे मोदी, प्रधानमिं त्री, भारत
सिंघ का मुূालर्
वि राजनीविक पाट्ी संघ का मुূािय सं थापक सद के वनणयाष नुसार वकसी भी दे र्श में हो सकिा
है
वि -रा र ीय-जन एजेਔा सावह 2012+: संघ का आधार सावह िह है जो सभी मानि की मूि
आि किा है , जो सभी मानि में एक है िह है - कमष और उसे कािानुसार करने का ৯ान-कमष৯ान अ राष र ीय
मानकीकरण संगठन ारा िा विर्यों अथाष ि् उ ोंगों के उ ाद के वनमाष ण की अ राष र ीय गुणि ा की िृंखिा
ISO-9000 की भाूँ वि, मानि, समाज और संगठन ारा अ ः विर्य मानि मन के वनमाष ण की वि गुणि ा की
िृंखिा WSO/ISO-0 जो धमषवनरपेक्ष एिं सिषधमषसमभाि नाम है अथाष ि् वििार एिं सावह , विर्य एिं विर्शेर्৯,
ब्र ाਔ ( थूि एिं सूक्ष्म) के प्रब और वक्रयाकिाप िथा उपासना थि के अ राष र ीय/वि मानक है वजसकी
उपयोवगिा वि र्शाम्म , वि एकिा, एिं वि म्म थरिा में होना है इसे उस उ े से स -िेिना की ओर बढ़िे वि
के सामने रखा जा रहा है वजसकी थापना यथार्शीघ्र होनी है संघ एका कमषिाद का समथषक है न वक
एका सं ृ वििाद का ििषमान िथा भवि के विए वि की इसकी उपयोवगिा और आि किा ही संघ का
साख है
भारत में सिंघ के सिं र्ापक पाटी को सिंघ के िठन की घोषर्ा से लाभ
िंत्रिा प्राम्म से पहिे भारिीय जनिा के समक्ष मात्र एक ही सािषजवनक मु ा था वजस पर सभी
भारिीय एक जुट् हुए थे िह था - ” िंत्रिा“ वजसे प्रा कर िेने के बाद सभी अपनी-अपनी दु वनया में संकुविि
हो गये पररणाम रुप ििषमान में कोई भी रा र ीय मु ा र्शेर् नहीं है ऐसी म्म थवि में वमर्शन की कायष योजना ारा
सं थापक राजनीविक पाट्ी रा र ीय र पर एक मु े पर एक जुट् करने का िाभ प्रा होगा साथ ही वि
राजनीविक पाट्ी संघ की घोर्णा से पूरे वि के समक्ष अपनी गुरुिा वस करने का िाभ वमिेगा भारि में इसका
सीधा प्रभाि अ राजनीविक दिों को मु ा विवहन कर दे ना होगा वजसका सीधा िाभ रा र ीय र पर सं थापक
राजनीविक दि को होगा
2. राजनैवतक छात्र सिंिठन प्रको : राजनैविक छात्र संगठन प्रको में एक रा र ीय अ क्ष होंगे इसी प्रकार
प्रदे र्श एिं जनपद र पर भी एक अ क्ष होंगे
3. अराजनैवतक वकसान सिंिठन प्रको : अराजनैविक वकसान संगठन प्रको में एक रा र ीय अ क्ष होंगे
इसी प्रकार प्रदे र्श एिं जनपद र पर भी एक अ क्ष होंगे
4. अराजनैवतक बुन्त जीिी सिंिठन प्रको : अराजनैविक बुव जीिी संगठन प्रको में एक रा र ीय अ क्ष
होंगे इसी प्रकार प्रदे र्श एिं जनपद र पर भी एक अ क्ष होंगे
5. अराजनैवतक धावमणक सिंिठन प्रको : अराजनैविक धावमषक संगठन प्रको में प्र ेक धमष से एक धमषगुरु
होंगे जो सद रा र ीय अ क्ष मਔि कहे जायेंगे प्रदे र्श र पर इस प्रको में कोई प्राविधान नहीं होगा
धावमषक प्रको ारा जारी िि संयुि िि होगा
पररचर्
बापू ि रा र वपिा की उपावधयों से स ावनि महा ा गाूँ धी 19िी ं र्शिा ी के ऐसे महापु रूर् हुए, वज ोंने
स और अंवहसा के र्श से, वजनके रा৸ में कभी सू याष नहीं होिा था, उस महार्शम्मिर्शािी अं ग्रेजी र्शासन को
भारि से खदे ड़ वदया उ ोंने स को ही ई र माना और कहा वक ई र ही स है
आव न, कृ पक्ष, ादर्शी, सं.1926 िद् नुसार 2 अक्टु बर, 1869 ई0 को मोहनदास करमि गाूँ धी ने
ज िेकर, गुजराि रा৸ के पोरब र की धरिी को ध वकया साि िर्ष की उम्र में उ ें पाठर्शािा भेजा गया
अपनी स वन ा से अ ापक को प्रभाविि वकया रामायण, महाभारि का प्रभाि बिपन से ही जीिन पर पड़ा
गीिा और नरसी मेहिा के पदों की जीिन पर गहरी छाप िग गई नरसी जी का “िै िजण िो िेणे कवहये जे पीड़
पराई जाणे रे ”, यह भजन जीिन में समा गया और वन प्राथषना का अं ग बन गया उनके वपिा करमि गाूँ धी मोध
समुदाय से स रखिे थे और अंग्रेजों के अधीन िािे भारि के कवठयािाड़ एजे ी में एक छोट्ी सी ररयासि
पोरब र प्रां ि के दीिान अथाष ि प्रधान मंत्री थे परनामी िै ि वह दू समुदाय की उनकी मािा पुििीबाई, करमि
की िैथी प ी थी ं उनकी पहिी िीन पव यां प्रसि के समय मर गई थी ं छोट्ी उम्र में ही क ुरबा गाूँ धी के साथ
इनका वििाह हो गया बिपन में पढ़िे समय, बुरी सं गि के कारण कुछ बुरी आदिें पड़ गई 19 िर्ष की उम्र में
बैरर र बनने के विए इं ैਔ गये और माूँ से की हुई प्रवि৯ा के कारण सदै ि कुसंग से बिे रहे बैरर र बनने के
बाद भारि आये यहाूँ बैरर र ी नहीं ििी, िो दवक्षण अफ्ीका ििे गये कािे -गोरे के भेद से उनका वदि दहि गया
और अंग्रेजों के विरू आिाज उठाई एक मुकदमें की पैरिी में उनको बड़ी ূावि वमिी अफ्ीका से िौट्ने पर
मु ई के अपोिो ब रगाह पर कवठयािाड़ िेर्शभूर्ा में दे खिे ही असंূ िोगों ने ागि वकया गाूँ धी जी, गोखिे
के साथ पूना आये बाद में रे ि के िीसरे दजे में बैठकर सारे दे र्श का भ्रमण कर िोगों को पास से दे ख-समझा
वबहार रा৸ के ि ारन वजिे में नीि की खेिी करने िािे वकसानों को स ाग्रह की प्रेरणा दे कर
अंग्रेजों से मुम्मि वदिाई “जवियाूँ िािा बाग” के नृर्शंस ह ाकाਔ से गाूँ धी जी का हृदय िविि हो गया और स ूणष
दे र्श में असहयोग आ ोिन की योजना वक्रयाम्म ि करने का संक विया जैसे ही आ ोिन ने जोर पकड़ा,
अंग्रेज सरकार ने गाूँ धी जी को पकड़कर ब करने की ठानी और “यंग इम्मਔया” में प्रकावर्शि िेख के आधार पर
ब ी बनाकर “यरिदा” जेि भेज वदया गया स िादी, वन ि भाि के कारण अंग्रेजों के वदि में गाूँ धी के प्रवि
स ान बढ़ रहा था जेि के वनयमों का गाूँ धी जी पू रा पािन करिे थे िरखा कािकर, महान िेखकों के ग्र
पढ़कर अपना समय िीि करिे थे िे अपनी छोट्ी भूि को भी वहमािय जैसी भूि मानिे थे हररजन उ ार,
2. मैंने भी ीकार वकया वक एक अवहं सक रा৸ में भी पुविस बि की जरूरि अवनिायष हो सकिी है पुविस
रैं कों का गठन अवहं सा में वि ास रखने िािों से वकया जायेगा िोग उनकी हर स ि मदद करें गे और
आपसी सहयोग के मा म से िे वकसी भी उपिि का आसानी से समाना कर िेंगे िम और पूंजी िथा
हड़िािों के बीि वहं सक झगड़ें बहुि कम होंगे और वहसंक रा৸ों में िो बहुि कम होंगे क्योंवक अवहं सक
समाज की बाहुििा का प्रभाि समाज में प्रमुख ि ों का स ान करने के विए महान होगा इसी प्रकार
सा दावयक अ ि था के विए कोई जगह नहीं होगी
नीवत आर्ोि के उ े
1. रा र ीय उ े ों को ान में रखिे हुए, सेक्टर और र ै ट्ेजीस के साथ रा৸ के सवक्रय सहयोग से दे र्श के
विकास से संबंवधि िশों की साझी पररक ना को प्राथवमकिा दे ना इस िरह नीवि आयोग प्रधानमंत्री और
मुূमंवत्रयों के ‘रा र ीय एजेंडा’ के फ्ेमिकष को गविर्शीििा प्रदान करे गा
2. मजबूि रा৸ से ही मजबूि रा र का वनमाष ण होिा है इस बाि को मानिे हुए ही रा৸ों के साथ वनरं िर ििने
िािे ढ़ां िागि सहयोग पहिों और मेकेवन৷ के मा म से साझे संघिाद का पोर्ण करना
3. ग्रामीण र से र्शुरू करिे हुए धीरे -धीरे उৡ रों िक वि सनीय योजनाओं के वनमाष ण के मैकेवन৷ को
विकवसि करना
4. आवथषक र ै ट्ेजी और नीवि में विर्शेर्रूप से ान वदए जाने िािे क्षेत्रों को सुवनव ि करना जहां रा र ीय सुरक्षा
वहि र्शावमि हैं
5. समाज के उन िगों पर विर्शेर् ान दे ना वज ें आवथषक विकास का पयाष िाभ नहीं वमिा है
6. र ै ट्ेवजक और दीघाष िवध नीवियों, पहिों और कायषक्रमों के फ्ेमिकष का वनमाष ण करना और उसकी दक्षिा
की प्रगवि की वनगरानी करना फीडबैक और वनगरानी से सीख िेकर उ ें जरूरि के अनुसार सुधार करिे
हुए म ािवध नई पहिों में प्रयोग में िाना
7. र्शैक्षवणक और नीवि अनुसंधान सं थान सवहि रा र ीय और अं िराष र ीय वथंक ट्ैं क के प्रमुख े क-हो सष के
बीि साझेदारी को बढ़ाना और सिाह दे ना
8. रा र ीय और अं िराष र ीय विर्शेर्৯ों, पेर्शेिरों और अ पाट्ष नरों के समूहों के मा म से उ म सहयोग ि था
के ৯ान को नया रूप दे ना
9. विकास एजेंडा के कायाष यन को गवि प्रदान करने के विए इं ट्र-सेक्टर और इं ट्र-वडपाट्ष मेंट्ि से जु ड़े मु ों
के समाधान के विए ेट्फामष मुहैया कराना
10. े ट्-आफ़-दा-आट््ष स ररसोसष सेंट्र का वनमाष ण करना जो सिि और समान विकास में े क-हो सष िक
इसका प्रसार करने में सिो म िरीकों और सुर्शासन में सहायिा करे
11. कायषक्रमों और पहिों के कायाष यन का सवक्रय मू ां कन और वनगरानी करना वजसमें जरूरि के संसाधनों
की पहिान इस िरह से की जाए जहां सफ़ििा और वडिीिरी के वि ार की संभािनाएं हों
12. कायषक्रमों और पहिों के कायाष यन में क्षमिा वनमाष ण और प्रौ ोवगकी के निीनीकरण पर ान दे ना
13. रा र ीय विकास एजेंडा के वन ादन और उम्म म्मखि उ े ों की पूविष में जरूरि की अ गविविवधयों को
र्शुरू करना
िूंवक सरकार ने एक सहयोगा क संघिाद, नागररकों की भागीदारी के वि ार, सबको समान
अिसर, र्शासन में भागीदारी और ििक विकास परक प्रौ ोवगकी का उ रो र प्रयोग के ारा सुर्शासन के विए
बुधिार, 31 अि , 2016 ई0
प्रधानमंत्री ने भी भारि के कायाक के विए अंिरवनवहि वस ां िों को वकया है उ ोंने हजारों
िर्ों से ििी आ रही भारिीय परं पराओं से अनुभि हावसि करने िािे विर्शेर्৯ों, जनिा के सुझािों और विपरीि
वििारों को ानपूिषक सुनने का सुझाि वदया है यवद हमने ऐसा कर वदया िो हम नीवियों और योजनाओं को न
वसफष विफि होने से बिा िेंगे, बम्म भवि के जोम्मखमों से भी इ ें सुरवक्षि कर दें गे इन सबका अथष है भवि
की योजनाओं और विकास के विए जरूरी बुवनयादी बािों को वफर से पररभावर्ि करना और उ ें नए रूप में
रिना इसके विए सोि के एक नए र की जरूरि होिी है यह वकस िरह होगा, यह बहुि कुछ आयोग की ट्ीम
की रूपरे खा और व कोण पर वनभषर करे गा प्रधानमंत्री ने नीवि आयोग की ट्ीम के विए मह पूणष वदर्शावनदे र्श
िय वकए हैं अब नीवि आयोग पर वनभषर करिा है वक िह आर्शाओं के अनुरूप आिरण करे और पररणाम दे
(”अगिी सदी की िैयारी“ र्शीर्षक से दै वनक जागरण में प्रकावर्शि िेख)
-मुरली मनोहर जोशी
आिायष रजनीर्श “ओर्शो” की िाणी है - “इस दे र्श को कुछ बािे समझनी होगी एक िो इस दे र्श को
यह बाि समझनी होगी वक िु ारी परे र्शावनयों, िु ारी गरीबी, िु ारी मुसीबिों, िु ारी दीनिा के बहुि कुछ
कारण िु ारे अंध वि ासों में है , कम से कम डे ढ़ हजार साि वपछे वघसट् रहा है ये डे ढ़ हजार साि पूरे होने
जरूरी है भारि को म्मखंिकर आधुवनक बनाना जरूरी है मेरी उ ुकिा है वक इस दे र्श का सौभा खुिे, यह दे र्श
भी खुर्शहाि हो, यह दे र्श भी समृ हो क्योंवक समृ हो यह दे र्श िो वफर राम की धुन गुंजे, समृ हो यह दे र्श िो
वफर िोग गीि गाूँ ये, प्रभु की प्राथषना करें समृ हो यह दे र्श िो मंवदर की घंवट्या वफर बजे, पूजा के थाि वफर
सजे समृद्ध हो यह दे र्श िो वफर बाूँ सुरी बजे कृ की, वफर रास रिे!”
भारि को स ूणष क्राम्म की जरूरि है क्राम्म के प्रवि वििार यह है वक- “राजनीविक, आवथषक ि
सामावजक पररम्म थवि में उसकी थिा के विए पररििषन ही क्राम्म है , और यह िभी मानी जायेगी जब उसके
मू ों, मा िाओं, प वियों और स ों की जगह नये मू , मा िा, प वि और स थावपि हों अथाष ि
क्राम्म के विए ििषमान ि था की थिा के विए नयी ि था थावपि करनी होगी यवद ि था पररििषन के
आ ोिन में वििेक नहीं हो, केिि भािना हो िो िह आ ोिन वहं सक हो जािा है वहं सा से कभी ि था नहीं
बदििी, केिि स ा पर बैठने िािे िोग बदििे है वहं सा में वििेक नहीं उ ाद होिा है उ ाद से वििोह होिा है
क्राम्म नहीं क्राम्म में नयी ि था का दर्शषन - र्शा होिा है अथाष ि क्राम्म का िশ होिा है और उस िশ के
अनुरुप उसे प्रा करने की योजना होिी है दर्शषन के अभाि में क्राम्म का कोई िশ नहीं होिा ”
स ूणष क्राम्म से हमारा िा यष सभी विर्यों के अपने स अथों में थापना से है जो आपके र्श ों में
“आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि के आधार पर एक भारि - िे भारि” है िोकि से हम राजि में नहीं
जा सकिे इसविए ि था पररििषन का अथष ही वनरथषक है आि किा है ििषमान िोकि ि था को ही स
आधाररि करने की वजसे ि था स ीकरण कहा जा सकिा है इस कायष में हमें मानकर्शा की आि किा है
वजससे िोि कर यह दे ख सके वक इस िोकि ि था में कहाूँ सुधार करने से स ीकरण हो जायेगा यह
मानकर्शा ही “वि र्शा ” है जो भारि के िेज विकास सवहि कायाक का प्रारूप है िेज विकास िही दे र्श
कर सकिा है जहाूँ के नागररक अपने दे र्श के प्रवि समवपषि हों और कम से कम उनका मम्म दे र्श र िक
ापक हो संकुविि मम्म को ापक करने से ही िह ििषमान में आ पायेगा इन सब उ े ों की प्राम्म के
विए मूि रूप में वन विम्मखि कायष करने आि क हैं जो आ ाम्म क एिं दार्शषवनक विरासि का सािषभौम स -
वस ा रूप है -
अवधकतम प्रभािी लाभ – वि विकास की मुূधारा का वनधाष रण करिे हुये भारि का वि के प्रवि दावय - नि
वि वनमाष ण और मानििा की अगिी पीढ़ी के उदय को पूणष करिे हुये काि में भारि अपनी गुरूिा को वस
कर सकेगा साथ ही वि क ाण के अपने दावय को वनभा सकेगा वििार आधाररि वि से मानक आधाररि
वि का वनमाष ण, दे र्श आधाररि रा र िाद से िैव क रा र िाद का उदय, एका कमषिाद से मानि के र्शम्मि का वि
विकास की वदर्शा में एकीकरण, पािर और प्रावफट् के मूि उ े से मानि मम्म विकास और र्शासन प्रणािी
के िैव क मानकीकरण की वदर्शा में उदय, दे र्शों के वि ारिादी और वि र्शम्मि की नीवि से सम यिादी और
ूनतम प्रभािी हावन – िैव क र पर वििार आधाररि िानार्शाही समाज, िानार्शाही रा र िाद और िानार्शाही
दे र्श का वनधाष रण, नकारा क िररत्र के समाज और दे र्श का वनधाष रण
अवधकतम प्रभािी लाभ – अवधकिम अवधकार से युि मुূ/प्रधान संिािक (भारि में प्रधानमंत्री) के सीधे
जनिा ारा िुनाि होने पर िह सৡे अथों में जनिा का प्रविवनवध होगा और सरकार अपने कायषकाि िक म्म थर
रहे गी, सरकार के हट्ाने का रा ा ब हो िुका होगा वजससे विकास कायष में बाधा नहीं आयेगी सद ों के
खरीद-फरोি की अिोकिाम्म क रा ा हमेर्शा के विए ब हो जायेगा
ूनतम प्रभािी हावन – पाट्ी/दि ि का धीरे -धीरे अिनवि
अवधकतम प्रभािी लाभ – जन प्रविवनवधयों पर बढ़िे खिष को कम वकया जा सकेगा और विकास कायष में बेिजह
बाधा नहीं आयेगी
ूनतम प्रभािी हावन – विधानसभा र पर राजनीवि को ापार बना िेने िािों को नुकसान होगा
अवधकतम प्रभािी लाभ – संसदीय क्षेत्र में विकास कायष पर व रखने में सां सदों को आसानी होगी
ूनतम प्रभािी हावन – कुछ भी नहीं
5. सिंसदीर् क्षेत्र में सािंसद का कार्ाणलर्, सिंसद सत्र के दौरान वद ी केिल अ र्ार्ी वनिास
के वलए हा ल
6. सािंसद प्र ाशी केिल उसी क्षेत्र का पैवत्रक वनिासी और एक चुनाि में केिल एक चुनाि
क्षेत्र से ही चुनाि प्र ाशी बनने की अनुमवत
अवधकतम प्रभािी लाभ – सां सद, जनिा से पूणषिया पररविि दो थानों से िुनाि में आने पर प्रविब अथाष ि
िुनाि खिष को बिाना
ूनतम प्रभािी हावन – कई थानों और कहीं से भी िुनाि में आ जाने िािों का रा ा ब
7. भारतीर् ऋवष आश्म प वतनुसार सरकारी सेिा का सेिावनिृव की उम्र 50 िषण (िृह र्
आश्म), विर 25 िषण स न्त त विभाि का मािणदशणक मਔल (िानप्र र् आश्म) में 50
प्रवतशत उपन्त र्वत अवनिार्ण और 50 प्रवतशत िेतन, विर जीिनपर्ण पेंशन और अ
सुविधाएाँ (स ास आश्म)
अवधकतम प्रभािी लाभ – कमषिारीयों की र्शारीररक कमषठिा और अनुभि के मागषदर्शषन पर आधाररि होने से
कायष कुर्शििा-पूणषिा में िेजी आयेगी और नये युिा िगष को सेिा के अिसर वमिने में भी अवधक अिसर प्रा
होगा 50 िर्ष के बाद समाज से जुड़ने का भी अिसर प्रा होगा अ था िे विर्शेर् प्रकार के बनकर घर-समाज में
अ ि था उ करिे हैं
ूनतम प्रभािी हावन – अकमषठ-वनक ें कमषिारीयों को नुकसान होगा
अवधकतम प्रभािी लाभ – िुनाि खिष में कमी, अवधकिम मिदािाओं की भागीदारी, पररणाम र्शीघ्र, पूणषिया
पारदर्शी, मिदािा सूिी हमेर्शा िैयार
ूनतम प्रभािी हावन – िुनाि में भ्र ािार करने िािों पर पूणष प्रविब
अवधकतम प्रभािी लाभ – वजिा र पर उ ोगों का विकास, सरकारी रार्शन की दु कान का भ्र ािार पूणषिया
ब , केिि यो नागररक को ही सबसीडी
ूनतम प्रभािी हावन –भ्र ािार करने िािों पर पूणष प्रविब
10. सरकारी विभािीर् र पर सिाई-सुधार (भ्र ाचार समा ) करने के वलए पहली िलती
पर 1000/-रुपर्े जुमाणना, दू सरी िलती वनव त समर् में होने पर 5 िुना (5000/-रुपर्े )
जुमाणना, तीसरी िलती पर 10 िुना (20000/-रुपर्े ) जुमाणना राजकोष में जमा करार्ें
इससे दे श की आवर्णक न्त र्वत ठीक होिी विभाि का हर कमणचारी ठीक चलने और
सुधार का ान रखेिा सार् ही िलती करने िाले के पररिार िाले भी सुधरें िे और
िलती करने िाले को, िलती न करने के वलर्े प्रेररत करें िे जबवक सारा पररिार
नमकहरामी के पैसे से मौज कर रहा र्ा, तो िह सजा का हकदार भी तो है जब कम
पिार आर्ेिी, तो परे शानी तो बढ़े िी ही वजससे आने िाला नेता भी पहले से सीखें
उसके घर के प्रार्ी, स ी भी िलती करने से रोकें समाज, जनता, उसकी िलती पर,
उसे निरत की वनिाह से दे खें (पु क – “विर्शाि ৯ान वि৯ान - सबका समाधान” में वि ृि
वििरण उपि )
अवधकतम प्रभािी लाभ – कमषिारीयों में कमषठिा बढ़े गी, समयानुसार कायष पूणष होगा, नागररक में सरकारी कामों
के प्रवि वनगरानी की प्रिृव बढ़े गी
ूनतम प्रभािी हावन –भ्र ािार करने िािों पर पूणष प्रविब
01. नागररक के मम्म को आधुवनक, वि नर्शीि, पूणष, एकीकृि, समकक्षीकरण ि समझ से युि करने के
विए “स मानक वर्शक्षा” से युि करना वजसके विए रा र ीय िोकिाम्म क नागररक पात्रिा परीक्षा
(National Democratic Civilian Elegibility Test - NDCET) सरकारी सेिाओं के विए अवनिायष करना
साथ ही छात्र के विए अवनिायष रूप से कभी भी उ ीणष करना आि क िभी उनका र्शैवक्षक वडग्री मा
इस प्रकार वर्शक्षक पात्रिा परीक्षा (Teacher Elegibility Test - TET) अपने आप समा हो जाये गी
02. भारि के प्रवि समवपषि नागररक वनमाष ण का पाਉक्रम “स मानक वर्शक्षा” को संविधान का अंग बनाना
03. एक रा र - एक पाਉक्रम - एक वर्शक्षा बोडष की ि था क्योंवक वर्शक्षा का स रा र से है न वक रा र के
वकसी भाग से
04. वर्शक्षा और आि क ि ु के विपणन क्षेत्र में भारिीय आ ा एिं दर्शषन आधाररि दे र्शी विपणन
प्रणािी: 3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) अवनिायष रूप से िागू करना वजससे उनका खिष ही उ ें आवथषक
िाभ दे फि रूप क्रय र्शम्मि में बढ़ो री
05. ाय क्षेत्र में समय सीमा में ब ाय और आवथषक अपराध का दਔ सिोৡ करना
06. आरक्षण का आधार र्शारीररक, आवथषक ि मानवसक करना
07. नीजी क्षेत्र के वि ािय और विवक ािय के र्शु को वनयंवत्रि करना
08. भूवम विक्रय पंजीकरण, ब्रोकर को दजष कराये वबना न करना ब्रोकर को कानून के दायरे में िाना
09. एक रा र - एक वबक्री कर - एक आयकर सभी कर समा
10. एक रा र - एक रा र ीय िोकिाम्म क नागररक संवहिा, दਔ संवहिा जो मवहिा-पुरूर् में भेद ना करे
11. एक रा र - एक रा र ीय िोकिाम्म क धमष (समव धमष) वजसकी सीमा दे र्श र, अ प्रिविि धमष म्मिगि
धमष ( व धमष) वजसकी सीमा पररिार क्षेत्र
12. एक रा र - एक नागररकिा संূा (इम्मग्रेट्ेड सवकषट्-विप युि आधार काडष ) - स ूणष र्शारीररक -
आवथषक/संसाधन - मानवसक - वक्रयाकिाप - उपि िा (नागररक डाट्ाबेस), वनगरानी अथाष ि यात्रा
स म्म ि वट्कट्, होट्ि ि थाने से भी जोड़ना
13. पद पर वनयुम्मि के समय ूनिम योिा को ही अवधकिम योिा वनधाष ररि करना अथाष ि वजस पद के
विए जो योिा वनधाष ररि की जािी है , वनयुम्मि के समय उ ीदिार की अवधकिम योिा भी िही होनी
िावहए अ था अयो घोवर्ि वनयुम्मि उपरा वर्शक्षा ग्रहण करने की ि िा
14. भारिीय ऋवर् आिम प विनुसार उ रावधकार स ी अवधवनयम वजसमें यह प्राविधान हो वक 25 िर्ष की
अि था (गृह थ आिम में प्रिेर्श) में उसे पैिृक स व अथाष ि दादा की स व वजसमें वपिा की अवजषि
स व र्शावमि न रहें , पुत्र के अवधकार में हो जाये
“र्शोवर्ि िगष की सुरक्षा उसके सरकार और कां ग्रेस दोनों से ि होने में है हमें अपना रा ा यं
बनाना होगा और यं राजनीविक र्शम्मि र्शोवर्िों की सम ाओं का वनिारण नहीं हो सकिी, उनका उ ार
समाज में उनका उविि थान पाने में वनवहि है उनको अपना रहने का बुरा िरीका बदिना होगा उनको वर्शवक्षि
होना िावहए एक बड़ी आि किा उनकी हीनिा की भािना को झकझोरने, और उनके अ र उस दै िीय
असंिोर् की थापना करने की है जो सभी ऊूँिाइयों का स्रोि है वर्शवक्षि बनो!!!, संगवठि रहो!!!, संघर्ष करो!!!
सामावजक क्राम्म साकार बनाने के विए वकसी महान विभूवि की आि किा है या नहीं यह प्र यवद एक िरफ
रख वदया जाय, िो भी सामावजक क्राम्म की वज ेदारी मूििः समाज के बुम्म मान िगष पर ही रहिी है , इसे िा ि
में कोई भी अ ीकार नहीं कर सकिा भवि काि की ओर व रखकर ििष मान समय में समाज को यो मागष
वदखिाना यह बुम्म मान िगष का पवित्र किष है यह किष वनभाने की कुर्शििा वजस समाज के बुम्म मान िोग
वदखिािे हैं िही जीिन किह में वट्क सकिा है सही रा र िाद है , जावि भािना का परर ाग सामावजक िथा
आवथषक पुनवनषमाष ण के आमूि पररििषनिादी कायष क्रम के वबना अ ृ कभी भी अपनी दर्शा में सु धार नहीं कर
सकिे रा र िाद िभी औवि ग्रहण कर सकिा है जब िोगों के बीि जावि, न या रं ग का अ र भुिाकर उसमें
सामावजक समरसिा ि माि को सिोৡ थान वदया जाय रा र का स भष में रा र ीयिा का अथष होना िावहए-
सामावजक एकिा की ढ़ भािना, अ राष र ीय स भष में इसका अथष है -भाईिारा वर्शक्षा प्र ेक म्मि का
ज वस अवधकार है अिः वर्शक्षा के दरिाजे प्र ेक भारिीय नागररक के विए खुिे होने िावहए एक म्मि के
वर्शवक्षि होने का अथष है - एक म्मि का वर्शवक्षि होना िेवकन एक ी के वर्शवक्षि होने का अथष है वक एक पररिार
का वर्शवक्षि होना ” - बाबा साहेब भीम राि अ ेडकर
राज-सुराज आ ोलन
र्शासक और मागषदर्शष क आ ा सिष ापी है इसविए एका का अथष संयुि आ ा या सािषजवनक
आ ा है जब एका का अथष संयुि आ ा समझा जािा है िब िह समाज कहिािा है जब एका का अथष
म्मिगि आ ा समझा जािा है िब म्मि कहिािा है म्मि (अििार) संयुि आ ा का साकार रुप होिा है
जबवक म्मि (पुनजष ) म्मिगि आ ा का साकार रुप होिा है र्शासन प्रणािी में समाज का समथषक दै िी
प्रिृव िथा र्शासन ि था प्रजाि या िोकि या ि या मानिि या समाजि या जनि या बहुि ् र
या राज कहिािा है और क्षेत्र गण रा৸ कहिािा है ऐसी ि था सुराज कहिािी है र्शासन प्रणािी में म्मि
का समथषक असुरी प्रिृव िथा र्शासन ि था रा৸ि या राजि या एकि कहिािा है और क्षेत्र रा৸
कहिािा है ऐसी ि था कुराज कहिािी है सनािन से ही दै िी और असुरी प्रिृव यों अथाष ि् दोनों ि ों के बीि
अपने -अपने अवधप के विए संघर्ष होिा रहा है जब-जब समाज में एकि ा क या राजि ा क अवधप
होिा है िब-िब मानििा या समाज समथषक अििारों के ारा गणरा৸ की थापना की जािी है या यूूँ कहें
गणि या गणरा৸ की थापना- थिा ही अििार का मूि उ े अथाष ि् िশ होिा है र्शेर् सभी साधन अथाष ि्
मागष
अििारों के प्र क्ष और प्रेरक दो कायष विवध हैं प्र क्ष अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का
प्र क्ष प्रयोग कर समाज का स ीकरण करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग होिा है जब अधमष का
नेिृ एक या कुछ मानिों पर केम्म ि होिा है प्रेरक अििार िे होिे हैं जो यं अपनी र्शम्मि का अप्र क्ष प्रयोग
कर समाज का स ीकरण जनिा एिं नेिृ किाष के मा म से करिे हैं यह कायष विवध समाज में उस समय प्रयोग
होिा है जब समाज में अधमष का नेिृ अनेक मानिों और नेिृ किाष ओं पर केम्म ि होिा है
इन विवधयों में से कुि मुূ दस अििारों में से प्रथम साि (म , कूमष, िाराह, नृवसंह, िामन,
परर्शुराम, राम) अििारों ने समाज का स ीकरण प्र क्ष विवध के प्रयोग ारा वकया था आठिें अििार (िीकृ ) ने
दोनों विवधयों प्र क्ष ओर प्रेरक का प्रयोग वकया था निें (भगिान बु ) और अम्म म दसिें अििार की कायष विवध
प्रेरक ही है
जि- ािन (जहाूँ जि है िहाूँ थि और जहाूँ थि है िहाूँ जि) के समय मछिी से मागष दर्शषन (मछिी
के गिीर्शीििा से वस ा प्रा कर) पाकर मानि की रक्षा करने िािा ई र (सािषभौम स -वस ा ) का पहिा
अंर्शाििार म ाििार के बाद मानि का पुनः विकास प्रार हुआ दू सरे कूमाष ििार (कछु ए के गुण का वस ा ),
िीसरे - िाराह अििार (सुअर के गुण का वस ा ), िौथे- नृवसंह (वसंह के गुण का वस ा ), िथा पाूँ ििे िामन
अििार (ब्रा ण के गुण का वस ा ) िक एक ही साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हुआ करिे थे और जब-
जब िे रा৸ समथषक या उसे बढ़ािा दे ने िािे इ ावद असुरी गुणों से युि हुए उ ें दू सरे से पाूँ ििें अंर्शाििार ने
साकार रुप में कािानुसार वभ -वभ मागों से गुणों का प्रयोग कर गणरा৸ का अवधप थावपि वकया
ई र (सािषभौम स -वस ा ) के छठें अंर्श अििार परर्शुराम के समय िक मानि जावि का विकास
इिना हो गया था वक अिग-अिग रा৸ों के अनेक साकार र्शासक और मागषदर्शष क राजा हो गये थे उनमें से जो भी
रा৸ समथषक असुरी गुणों से युि थे उन सबको परर्शुराम ने साकार रुप में िध कर डािा पर ु बार-बार िध की
हमारा स ान
भूवमका
भाि-1
विशाल ৯ान-वि৯ान
गुिाम
स ी
महान
स ों को सৡाई से वनभाओ
सबका सार
01.सरकारी प्राणी-जनिा का सेिक, सरकार का नौकर, दे र्श का िािक ि रक्षक
02.गैर सरकारी प्राणी-जनिा या प्रजा की एक इकाई
03.जनिा-गैर सरकारी प्राणी की भीड़
नेिा और िुनाि
हमारा दे र्श
घर और सৡाई
ब्र ा
परमान
भाि-2
भारत सरकार के विभाि ि सिाई-सुधार
नगरपाविका या महापाविका
डी. एम. साहब
डी. एस. ओ. ि डी. एस. ओ. विभाग
वर्शक्षा और वर्शक्षा विभाग
विद् युि और विद् युि विभाग
पुविस और पुविस विभाग
डाक और डाक विभाग
रे ि और रे ि विभाग
पररिहन और पररिहन विभाग
भाि-3
सबका समाधान
(पु क: ”वि शा -द नालेज आि िाइनल नालेज“ से साभार)
अ ार्-1 : सम ा और समाधान
सम ा
समाधान
स ूणष क्राम्म -अम्म म कायष योजना
पुनवनषमाष ण (RENEW)-सम ा, समाधान और रा र वनमाष ण की योजना
पुनवनषमाण (RENEW)- ग्राम एिं नगर िाडष प्रेरक
स अथष
स का स आधार
वसफष ৯ानी होना कािानुसार अयोिा ही नही सृव में बाधक भी
वनमाष ण के मागष और पूिी िथा पव मी दे र्शों के भाि
मैं भवि या िू भूि? और ििष मान का स अथष
आ था या मूखषिा? और आ था का स अथष
”वनमाष ण और उ ादन“ भािना की उपयोवगिा
वििोही या सािषजवनक प्रमावणि कृ किा समावहि वि मानि किा
भारि और संयुि रा र संघ को आ ान
ई र, दे ििा और वि৯ान
पहिे संविधान या मनु ?
नया, पुराना और ििषमान
मुझे (आ ा) को प्रा करने का मागष
प्राथवमकिा वकसकी- िररत्र की या सािषभौम स -वस ा की?
ि होने का कारण और ि होने में क
कािजयी, जीिन और थष सावह
भा और कमष
सफििा की सरि और कािानुसार विवध
ान अ ास की कािानुसार विवध
अििार, महापुरूर् और साधारण मानि
मनु जीिन के प्रकार
गुरू के प्रकार
म्मििाद और मानििािाद
वि रूप एिं वद रूप
ऋवर् और ऋवर् पर रा
”बहुि पहुूँ िे हुये हैं “, ”दर्शष न“ और ”आर्शीिाष द“
जीिन जीने की विवध
आर्शीिाष द
इৢा और आकड़ा
स -मागषदर्शष न
1. ”बहुत पहुाँचे हुर्े हैं “ - इसका अथष होिा है - पहिा अ जषगि के स में - आ ाम्म क सािषभौम स -
वस ा ों का अनुभि, दू सरा बा जगि के स में - उৡ पीठासीन राजनेिा और धमाष िायष से स
वजससे क ाण ि ाथष का कायष स कर सकें िीसरा कोई अथष नहीं होिा
2. ”दशणन“ - इसका अथष होिा है - पहिा अ जषगि के स में - उनके स ूणष रूप जीिन, ৯ान ि कमष
को दे खना, दू सरा बा जगि के स में - केिि र्शरीर, संसाधन और मवहमामਔन को दे खना िीसरा
कोई अथष नहीं होिा दू सरे प्रकार के दर्शषन से दर्शषन करने िािे को कोई िाभ नहीं होिा
3. ”आशीिाणद“ - इसका अथष होिा है - पहिा अ जषगि के स में - उनसे अपने क ाणाथष र्श
सुनना , दू सरा बा जगि के स में - उनसे अपने क ाण के विए कायष िेना या उनके ৯ान को अपने
क ाण के विए जीिन में उपयोग करना िीसरा कोई अथष नहीं होिा पहिे प्रकार के आर्शीिाष द से
आर्शीिाष द िेने िािे को कोई िाभ नहीं होिा
2. मनि र के ितणमान 7िें मनि र िैि त मनु से 8िें मनि र सािं िवर्ण मनु का प्रार
- इसविए वक सां िवणष मनु के ”सािषभौम“ गुण का प्रयोग कर िी िि कुर्श वसंह ”वि मानि” ि हैं
5. ास और ापर र्ुि में आठिें अितार श्ीकृ ारा प्रार वकर्ा िर्ा कार्ण “निसृजन” के प्रर्म भाि
“सािणभौम ৯ान” के शा ”िीता” से व तीर् अन्त म भाि ”सािणभौम कमण৯ान”, ”पूर्ण৯ान का पूरक शा ”,
लोकत का ”धमण वनरपे क्ष धमण शा ” और आम आदमी का ”समाजिादी शा ” ारा ि र्ा स ीकरर्
और मन के ब्र ाਔीर्करर् और नर्े ास का प्रार
- इसविए वक नया और अम्म म र्शा ”वि र्शा ” प्रकावर्शि हो िुका है
मैत्रेर् बु
लि कुश वसिंह “वि मानि” (16 अक्टु बर, 1967 - )
वि शा
वि शा : भूवमका
वि शा : शा -सावह समीक्षा
वि शा की र्ापना
वि शा की रचना योिं?
वि शा के बाद का मनु , समाज और शासन
एक ही वि शा सावह के विवभ नाम
अवनिणचनीर् कन्त महाअितार भोिे र श्ी लि कुश वसिंह” वि मानि” का मानिोिं के नाम
खुला चुनौती पत्र
अवनिणचनीर् कन्त महाअितार का काशी-स काशी क्षेत्र से वि शान्त का अन्त म स -
स ेश
मैत्रेय (सं ृ ि), मे े (पावि), या मैथरर (वसंहिी), बौ मा िाओं के अनुसार भवि के बु हैं
कविपय बौ ग्र ों, जैसे अवमिाभ सूत्र और स मषपुਔरीक सूत्र में इनका नाम अवजि भी िवणषि है
बौ पर राओं के अनुसार, मैत्रेय एक बोवधस हैं जो पृ ी पर भवि में अििररि होंगे और बु
प्रा करें गे िथा विर्शु धमष की वर्शक्षा दें गे ग्र ों के अनुसार, मैत्रेय ििषमान बु , गौिम बु (वज ें र्शाक्यमुवन भी
कहा जािा है ) के उ रावधकारी होंगे मैत्रेय के आगमन की भवि िाणी एक ऐसे समय में इनके आने की बाि
कहिी है जब धरिी के िोग धमष को वि ृि कर िुके होंगे बौ पर रा की यह अिधारणा समय के साथ अ
कई मिाििम्म यों की कथाओं में भी थान प्रा कर िुकी है
"मैत्रेय" र्श सं ृ ि के "वमत्र" अथिा "वमत्रिा" से वनकिा है पावि भार्ा में यह "मे ेय" है और पावि
र्शाखा के दीघ वनकाय (अ ाय 26) और बु िंर्श (अ ाय 28) में इसका उ ेख वमििा है पावि र्शाखा के
अवधकिर वह े प्र ो र के रूप में वमििे हैं , हािाूँ वक, यह सु वबिकुि ही अिग स भों में वर्श ों से िािाष करिे
हुए वमििा है इसी कारण कविपय वि ानों का मि है वक यह बाद में जोड़ा हुआ अथिा कुछ पररिविषि वकया हुआ
हो सकिा है
उ री भारि में पहिी सदी के आसपास अपने उਚर्ष पर रही ग्रीक-बौ गां धार किा में मैत्रेय एक
बहुप्रिविि विर्य के रूप में वनरूवपि वकये गए हैं गौिम बु (र्शाक्यमुवन) के साथ मैत्रेय का वित्रण विविध रूपों
में हुआ है और इन किाकृवियों में गौिम और मैत्रेय में वभ िा का वनरूपण एक प्रमुख विर्य रहा है िौथी से छठीं
र्शिा ी के काि में िीन में गौिम बु और मैत्रेय बु के एक दू सरे के समानाथी के रूप में भी प्रयोग वमििे हैं
हािाूँ वक इन दोनों के िीनी वनरूपण की पूणष ূा और समीक्षा अभी िक नहीं हुई है मैत्रेय बु के वनरूपण का
वथयोसोवफकि परं परा में, मैत्रेय के कई पहिू हैं , मात्र भवि के बु के रूप में ही नहीं अवपिु , इसमें
अ पराभौविक संक नाओं का समािेर्श वमििा है बीसिी ं सदी की र्शुरूआि में, वथयोसोफी के जिाहकों को
यह वि ास हो ििा था वक एक िैव क गुरु के रूप में मैत्रेय बु का आगमन अि ंभािी है "वजद् दु कृ मूविष "
नामक एक बािक को इसके विए अहष के रूप में भी ीकार वकया गया था
- वर्र्ोसोिी
अहमवदया धमष के िोगों का मानना रहा है वक उ ीसिी सदी के वमजाष गुिाम अहमद उन अपेक्षाओं पर
खरे उिरिे हैं और िे संभििः मैत्रेय बु हैं
- अहमवदर्ा
बहाई मि का मानना है वक बहाउ ाह उन सभी िक्षणों पर खरे उिरिे हैं जो मैत्रेय बु के आगमन की
भवि िाणी में हैं बहाई मि के िोग यह मानिे हैं वक मैत्रेय बु की भवि िाणी में सवह ुिा और प्रेम को फैिाने
िािे वजस मागषदर्शषक के आगमन की बाि कही गयी थी, बहाउ ाह के ारा वदए गए वि र्शां वि के संदेर्शों में िे
साफ़ िौर पर दे खी जा सकिी हैं
- बहाई स दार्
ज
सोमिार, 16 अक्टु बर, 1967 (सिं. 2024, आव न, शुक्त पक्ष-त्रर्ोदशी, रे िती नक्षत्र)
-पं. िी राम र्शमाष आिायष का ज बुधिार, 2 वसि र, 1911 (सं. 1968, आव न, कृ पक्ष, त्रयोदर्शी)
-भारि का म म ि िा-आवथषक ि मानवसक ि िा का समय
-भारि में एकदिीय सरकार
- ामी वििेकान के विरर्शाम्म में िीन होने के 65 िर्ष 3 माह 11 वदन बाद का समय
-वियोवनड (वियो-वसंह रावर्श) उ ाओं का अमेररका में प्रथम बौछार के 10 माह 29 वदन बाद का समय
-अंक 7 (वदनां क 16 का 1 ि 6 जोड़ने पर)-एक ऐसा ज ां क जो र्शुभ माना जािा है
-वदनां क 16-एक ऐसा वदनां क जो माह के बीि में रहकर संिुिन थावपि करिा है
-िीराम की ज विवथ निमी (9) है , िीकृ की ज विवथ अ मी (8) है 9 के अंक का वकसी अंक से
गुणा करें , सारां र्श (अंको का योग) 9 ही रहिा है 8 का गुणा घट्िा-बढ़िा रहिा है अंक 8 िौवकक-संसारी है , 9
जवट्ि है जस का िस रहिा है डा0 िोवहया का कहना था-”राम मनु हैं , मयाष दा और आदर्शष पर िििे हुए दे ि
बनिे हैं , िेवकन कृ दे ििा हैं िे िोक संग्रह के विए मनु बनिे हैं , दे ि से नीिे उिरिे हैं राम और कृ ,
भारिीय प्र৯ा के सम्राट् हैं “ इसी क्रम में िि कुर्श वसंह का ज विवथ त्रयोदर्शी (13) है प्र ेक मास में कृ पक्ष
की िेरहिी ं विवथ की रावत्र मास वर्शिरावत्र िथा फा ुन मास की कृ पक्ष की िेरहिी ं विवथ की रावत्र महावर्शिरावत्र
कहिािी है वह दू धमष में मनु के ज के बारहिी ं विवथ के सं ार को बरही िथा र्शरीर से मुि होने के िेरहिी ं
विवथ के अम्म म सं ार को िेरहिीं कहिे हैं अथाष ि् िेरह का अंक वर्शिर्शंकर का प्रिीक और वदन सोमिार जो
वर्शि-र्शंकर का वदन माना जािा है
-माह अक्टु बर-एक ऐसा माह वजसमें सािाष वधक महापु रूर्ों और सािषजवनक जीिन में सफि म्मियों ने
ज ग्रहण वकया जैसे-डा0 एनी िुड बेसे , अग्रणी वथयोसोवफ , (1 अक्टु बर), रा र वपिा महा ा गाूँ धी (2
अक्टु बर), ”जय जिान-जय वकसान“ का नारा दे ने िािे ि कार्शी क्षेत्र के वनिासी भू िपूिष व िीय प्रधानमंत्री िाि
बहादु र र्शा ी (2 अक्टु बर), वफ अवभनेिा राजकुमार (8 अक्टु बर), वफ अवभनेत्री रे खा (10 अक्टु बर), ”स ूणष
क्राम्म “ के उद् घोर्क िोक नायक जय प्रकार्श नारायण (11 अक्टु बर), नानाजी दे र्शमुख ि महानायक वफ
अवभनेिा अवमिाभ बৡन (11 अक्टु बर), ”वमसाइि मैन“ के नाम से विূाि पूिष रा र पवि ए. पी. जे. अ ु ि किाम
पररचर्
अपने विर्शेर् किा के साथ ज िेने िािे म्मियों के ज माह अक्टु बर के सोमिार, 16 अक्टु बर
1967 (आव न, र्शुल पक्ष-त्रयोदर्शी, रे ििी नक्षत्र) समय 02.15 ए.एम. बजे को ररफाइनरी ट्ाउनवर्शप अ िाि
(सरकारी अ िाि), बेगूसराय (वबहार) में िी िि कुर्श वसंह का ज हुआ और ट्ाउनवर्शप के E1-53, E2-53,
D2F-76, D2F-45 और साइट् कािोनी के D-58, C-45 में रहें इनकी मािा का नाम िीमिी िमेिी दे िी िथा वपिा
का नाम िी धीरज नारायण वसंह जो इम्मਔयन आयि कापाष रेर्शन वि0 (आई.ओ.सी.वि.) के बरौनी ररफाइनरी में
कायषरि थे और उ ादन अवभयंिा के पद से सन् 1995 में ैम्मৢक सेिावनिृि हो िुके हैं जो वक ग्राम-वनयामिपुर
किाूँ , पुरूर्ो मपुर, मीरजापुर (उ0प्र0) वपन-231305 के वनिासी हैं दादा का नाम .राजाराम ि दादी का नाम
िीमिी दौििी दे िी था ज के समय दादा गषिासी हो िुके थे जो कभी क ीर के राजघराने में कुछ समय के
विए सेिारि भी थे मािष सन् 1991 में इनका वििाह िुनार क्षेत्र के धनैिा (मझरा) ग्राम में वर्शि कुमारी दे िी से हुआ
और जनिरी सन् 1994 में पुत्र का ज हुआ मई सन् 1994 में वर्शि कुमारी दे िी की मृ ु होने के उपरा िे
िगभग घर की वज ेदारीयों से मुि रह कर भारि दे र्श में भ्रमण करिे हुये विंिन ि वि र्शा के संकिन कायष में
िग गये वकसी भी म्मि का नाम उसके अबोध अि था में ही रखा जािा है अथाष ि् म्मि का प्रथम नाम प्रकृवि
प्रद ही होिा है िि कुर्श वसंह नाम उनकी दादी 0 िीमिी दौििी दे िी के ारा उ ें प्रा हुआ
सारािंश के अनुसार
01. समव गीिा - यथाथष प्रकार्श
02. मैं स कार्शी से कम्म महाििार बोि रहा हूँ
भाि के अनुसार
03. वि र्शा - विर्य-प्रिेर्श
04. वि र्शा - अ ाय-एक : ई र
05. वि र्शा - अ ाय-दो : जीिन पररिय
06. वि र्शा - अ ाय-िीन : ৯ान पररिय
07. वि र्शा - अ ाय-िार : कमष पररिय (सािषजवनक प्रमावणि महाय৯)
08. वि र्शा - अ ाय-पाूँ ि (भाग - 01) : सािषजवनक प्रमावणि वि रूप
09. वि र्शा - अ ाय-पाूँ ि (भाग - 02) : सािषजवनक प्रमावणि वि रूप
10. वि र्शा - पररवर्श
मनु का प्र ेक बৡा वन क्ष, पूणष, धमषयुि, धमषवनरपेक्ष और सिषधमषसमभाि रूप में ही होिा है
जैसे-जैसे िह बड़ा होिा है , बৡे के पूिषििी सं ार, वििारधारा, धारणाएूँ ि मा िाएूँ उसे बाूँ धिे हुये अपूणष, पक्ष ि
स दाययुि बना दे िी है और िह जीिन पयष उस छवि में बूँधकर एक विर्शेर् प्रिृव के मनु के रूप में ि
होिा है यह उसी प्रकार होिा है वजस प्रकार एक नया क ूट्र वजसमें कोई भी ए ीकेर्शन सा िेयर न डािा
गया हो और वफर उसमें वकसी विर्शेर्-विर्शेर् कायष के विए ए ीकेर्शन सा िेयर डािना र्शुरू वकया जाय िो िह
क ूट्र उस विर्शेर् कायष ि प्रिृव िािा बन जािा है वजसका उसमें ए ीकेर्शन सा िेयर डािा गया है
प्र ुि “वि र्शा : द नािेज आफ फाइनि नािेज” मनु के मम्म के विए एक ऐसा सा िेयर है
जो उसे पूणष और सभी वििारों को समझने में सक्षम बनािा है यह र्शा एक मानक र्शा है वजसमें प्र ेक र
का मनु अपनी छवि दे ख सकिा है उदाहरण रूप वजस प्रकार हम वकसी ठोस पदाथष को वकिो से िोििे हैं
उसी प्रकार मनु के मम्म को िोिने का यह र्शा है कभी भी ठोस पदाथष से वकिो को नहीं िोिा जािा
हम यह नहीं कहिे वक इिना ठोस पदाथष बराबर एक वकिो बम्म हम यह कहिे हैं वक एक वकिो बराबर इिना
ठोस पदाथष
इस र्शा को पढ़ने ि समझने के पहिे पाठकगण अपने मम्म को नये क ूट्र की भाूँ वि ररि
कर िें , वजसका मैं वनिेदन भी करिा हूँ वकसी भी पू िाष ग्रह ि सं ार से ग्रवसि होकर पढ़ने पर र्शा समझ के
बाहर हो जायेगा क्योंवक र्शा बहुआयामी (म ी डायमें नि) है अथाष ि अनेक वदर्शाओं से एक साथ दे खने पर ही
इसके ৯ान का प्रकार्श आप में प्रकावर्शि होगा ऐसा न करने पर आप र्शा को वकसी विर्शेर् वििार, मि ि
स दाय का समझ बैठ जायेंगे जो आपका वििार हो सकिा है पर ु इस र्शा का नहीं र्शा के बहुि से र्श
इसके पाठकों को कवठन अथो िािे वदख सकिे हैं यह म्मि के अपने वि न र की सम ा से ही ि हो
रहा है म्मियों को इन कवठन र्श ों के अथों को सरि भार्ा में समझना इस र्शा के क्रवमक अ यन ि वि न
से ही स ि हो सकेगा ज से मनु वसखिा ही ििा जािा है म्मि को जहाूँ पहुूँ िना होिा है उसके विए
म्मि को ही प्रय करना होिा है पहुूँ ि का िह थान म्मि िक िि कर नहीं आिा इसविए यं को िहाूँ
पहुूँ िायें , यही िाभकारी होगा आज िक र्शा ों के प्रवि व यह रही है वक ये सब रह िाद का विर्य है ऐसा
नहीं है वसफष व की बाि है वक आप वकस व से उसे समझने का प्रय करिे हैं भार्ा के अक्षर ि र्श िो िही
होिे हैं वसफष वि न र और र्श ों का अथष ही उसे कवठन ि आसान भार्ा र्शैिी में विभावजि करिा है
प्र ुि र्शा वकसी धमष -स दाय विर्शेर् की सिोৡिा का र्शा नहीं है बम्म सभी को अपने -अपने
धमष -स दाय और एक दू सरे के धमष -स दाय के प्रवि समझ को विकवसि करिे हुये ৯ान ि कमष৯ान ारा
एकीकरण का र्शा है एक मात्र ৯ान ि कमष৯ान ही ऐसा विर्य है जो मनु को मनु से जोड़ सकिा है क्योंवक
इसका स सीधे मम्म से है और कौन नहीं िाहे गा वक उसका मम्म ৯ान-बुम्म के विए पूणषिा की ओर
बढ़े ৯ान-कमष৯ान के अिािा जो कुछ है िह सं ृ वि है और उस पर एकीकरण अस ि ही नहीं नामुमवकन है
मैं यह कभी नहीं िाहिा वक यह पृ ी एकरं गी हो जाये वजस प्रकार प्र ेक घर का माविक अपने बाग में अनेक
रं ग ि प्रकार का फूि इसविए उगािा है वक उसके बाग की सु रिा और वनखरे उसी प्रकार परमा ा ने इस पृ ी
पर समय-समय पर उ अनेक अििारों, पैग रों, दू िों इ ावद के मा म से धमष-स दाय उ कर मनु ों
को युगों-युगों से सं ाररि ि वनमाष ण की प्रवक्रया प्रार वकया है िावक उसकी यह पृ ी रूपी बाग सु र और
रं गवबरं गी िगे और अब िह समय आ िुका है वजसमें मनु को पूणष सं ाररि वकया जाये यह जानना आि क
है वक यह र्शा उस सिोৡ और अम्म म मन र पर जाकर मनु को पूणष सं ाररि करने के विए आवि ृ ि
वप्रर् मानिोिं,
हम (अििारी िृंखिा) आप िोगों के प्रवि क ाण भािना रखिे हुये उन सभी रह ों को खोिकर रख
दे ना िाहिे है वजससे आज िक हम आप का भोग करिे आये है पत्र के अ में यह भी बिाऊगा वक इन रह ों
के खोिने के प्रवि मेरा उ े क्या है ? और यह भाि हमारे मन में क्यों आया? वदि खोिकर यह भी करें गे वक
हम िोगों की उ व कैसे हुई? और हमने अपने अवधप के विए क्या-क्या वकया अब म्म थवि क्या है िथा भावि
में काि की गवि वकस ओर जा रही है ?
इन सब बािों को करने से पहिे कुछ सू त्रों को करना िाहूँ गा ििष मान समय में यह दे ख
रहा हूँ वक आरोप-प्र ारोप िथा अपने अपने सीवमि मम्म से अनेकों प्रकार की ाূा की सं ृ वि बढ़िी जा
रही है इस स में यह कहना िाहूँ गा वक सिषप्रथम यह जानो वक अब िक के संसार में उ कोई भी
महापुरूर्, पैग र, दू ि इ ावद सािषजवनक प्रमावणि रूप से पूणष रूप में नही थे क्योंवक यवद िे पूणष होिे िो उनके
ारा ि वििारों की स ा उसी भाूँ वि वनविषरोध रूप से थावपि हो िुकी होिी वजस प्रकार सािषजवनक प्रमावणि
वि৯ान ने अपनी स ा को अ समय में ही सभी के उपर थावपि कर विया है दू सरी बाि यह है वक सीवमि
मम्म से असीम मम्म (या अपने से अवधक मम्म ) की सही ाূा कभी नहीं की जा सकिी यवद िुम
िी कृ (या अपने से अवधक) की ाূा करना िाहिे हो िो पहिे िी कृ के मम्म (या अपने से अवधक
मम्म ) के बराबर होना पड़े गा इसी प्रकार बु , मुह द, ईसा इ ावद के स में भी है िीसरी बाि यह है
वक आरोप-प्र ारोप की सं ृ वि से कोई हि नही वनकििा, न ही बुम्म का विकास होिा है बम्म सा दावयक
वि े र् ि एक दू सरे का प्रिार-प्रसार ही होिा है क्योंवक िुम विरोध या आरोप-प्र ारोप ही सही पर ु अपने विरोधी
का नाम िो िेिे ही हो फि रूप वजसके पास बुम्म की प्रबििा होिी है उसके विए अ बुम्म िािा विरोधी
प्रिारक बन जािा है और यह िो िुम जानिे ही होगे वक हम बुम्म प्रबि िगष है इसविए िुम िोग अनजाने ही
हमारे प्रिारक बने बैठे हो इसके विए आि क है वक िुम िोग ऐसे रा े को अपनाओं वजससे हम िोगों का नाम
न ही आये और िुम िोग में बुम्म का विकास िेजी से हो िु ें यह बाि सदा याद रखनी पड़े गी वक बुम्म के विकास
से संगवठि सं गठन ि ी अिवध िक थावय बनाये रहिी है जबवक इसके विपरीि संगवठि सं गठन को कभी भी
बुम्म के प्रयोग ारा विखम्मਔि वकया जा सकिा है प्रायः ऐसे सं गठन का प्रयोग िु ारे अपने ही नेिा अपने ाथष
को साधने में करिे है
हे मानिों, पहिे कमष या पहिे ৯ान बुम्म ? यह प्र िो पहिे अਔा या पहिे मुगी? जैसा प्र है , और
यह सदा से अनसु िझा ही है और रहे गा भी पर ु इिना िो जानना आि क है वक हम कमष करिे -करिे कुछ
वनयमों को प्रा करिे है यवद हम इन वनयमों पर ान दे िे रहिे हैं िो हमें अपने गिवियों के पुनरािृव को रोकने
में सहयोग वमििा है इन वनयमों का जानना ही ৯ान-बुम्म कहिािा है अब कोई म्मि यह सोि सकिा है वक
कमष करने से पहिे हम इन वनयमों का अ यन करें गे िो कोई यह सोि सकिा है वक ৯ान-बुम्म को पढ़ने से क्या
होगा, हमें पहिे कमष करना है इस म्म थवि में इन दोनों में पहिे वनयमों को अ यन कर कमष करने िािे म्मि के
जीिन में विकास की गवि अवधक होगी जबवक पहिे कमष करने िािा म्मि उ ीं वनयमों को कमष करिे -करिे
अनुभि करे गा जो पहिे ही अनुभि कर ि की जा िुकी है वर्शक्षा का अथष यही है वक पहिे उन िमाम वनयमों
का अ यन कर विया जाय वफर कमषरि हुआ जाय हम ऐसा ही करिे रहे हैं और िुम को निािे रहे हैं
कम समय में अवधकिम ৯ान-बुम्म के विकास का मागष यह है वक वजस प्रकार वि৯ान के क्षेत्र में वजस
ि ु का आवि ार पूणष हो जािा है पुनः उसके आवि ार पर समय ि बुम्म खिष नहीं करिे बम्म उसके आगे
की ओर आवि ार या उस आवि ार को समझने पर समय ि बुम्म खिष वकया जािा है उसी प्रकार ৯ान के क्षेत्र
01. मुূ-िुर् वस ा - इसमें धारा के विपरीि वदर्शा (राधा) में गवि करने का वििार-वस ा मानि
मम्म में डािा गया
02. मुূ-िुर् वस ा - इसमें सहनर्शीि, र्शां ि, धैयषिान, िगनर्शीि, दोनों पक्षों के बीि म थ की भूवमका
िािा गुण (सम य का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
03. मुূ-िुर् वस ा - इसमें सूझ-बुझ, स , पुरूर्ाथी, धीर-ग ीर, वन ामी, बवि , सवक्रय,
र्शाकाहारी, अवहं सक और समूह प्रेमी, िोगों का मनोबि बढ़ाना, उ ावहि और सवक्रय करने िािा गुण
(प्रेरणा का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
04. मुূ-िुर् वस ा - प्र क्ष रूप से एका-एक िশ को पूणष करने िािे (िশ के विए ररि कायषिाही
का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
07. मुূ-िुर् वस ा - आदर्शष िररत्र के गुण के साथ प्रसार करने िािा गुण ( म्मिगि आदर्शष िररत्र के
आधार पर वििार प्रसार का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
08. मुূ-िुर् वस ा - आदर्शष सामावजक म्मि िररत्र के गुण, समाज में ा अनेक मि-मिा र ि
वििारों के सम य और एकीकरण से स -वििार के प्रेरक ৯ान को वनकािने िािे गुण (सामावजक
आदर्शष म्मि का वस ा और म्मि से उठकर वििार आधाररि म्मि वनमाष ण का वस ा ) का
वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
09. मुূ-िुर् वस ा - प्रजा को प्रेररि करने के विए धमष, संघ और बुम्म के र्शरण में जाने का गुण (धमष,
संघ और बुम्म का वस ा ) का वििार-वस ा मानि मम्म में डािा गया
10. मुূ-िुर् वस ा - आदर्शष मानक सामावजक म्मि िररत्र समावहि आदर्शष मानक िैव क म्मि
िररत्र अथाष ि सािषजवनक प्रमावणि आदर्शष मानक िैव क म्मि िररत्र का वििार-वस ा मानि मम्म
में डािने का काम ििषमान है और िो अम्म म भी है
हे मानिोिं, अब न्त र्वत या है तर्ा भावि में काल की िवत वकस ओर जा रही है? हे मानिों अब
म्म थवि यह है वक हमें आपके परम वप्रय वस ा “र्शम्मि और िाभ (पािर और प्रावफट्)” से कोई असहमवि नहीं हैं
बम्म यह आपमें कुछ करने की प्रिृव का महान गुण हैं इसका प्रकार्श आप में सदै ि जििे रहना िावहए काि
की गवि इस प्रकार्श को कैसे सफििापूिषक प्रा वकया जा सकिा है उस ৯ान को ग्रहण करके उस अनुसार कायष
करने की ओर जा रही है अथाष ि ৯ान यु ग की ओर जा रही है और मम्म का विकास ही इसका मागष है भवि
का समय ऐसे ही मानिों के ागि की प्रिीक्षा कर रहा है
वि शािंवत के वस ा
वि र्शां वि कैसे प्रा की जा सकिी है , इसके विए कई वस ां िों का प्र ाि वकया गया है इनमें से
कई नीिे सूिीब हैं वि र्शां वि हावसि की जा सकिी है , जब संसाधनों को िेकर संघर्ष नहीं हो उदाहरण के
विए, िेि एक ऐसा ही संसाधन है और िेि की आपूविष को िेकर संघर्ष जाना पहिाना है इसविए, पुन:-प्रयो৸
ईंधन स्रोि का उपयोग करने िािी प्रौ ोवगकी विकवसि करना वि र्शां वि हावसि करने का एक िरीका हो सकिा
है
सिंभािना
जबवक वि र्शां वि सै ां विक रूप से संभि है , कुछ का मानना है वक मानि प्रकृवि ाभाविक िौर पर
इसे रोकिी है यह वि ास इस वििार से उपजा है वक मनु प्राकृविक रूप से वहं सक है या कुछ पररम्म थवियों में
िकषसंगि कारण वहं सक कायष करने के विए प्रेररि करिी है िथावप दू सरों का मानना है वक यु मानि प्रकृवि का
एक सहज वह ा नहीं हैं , और यह वमथक िा ि में िोगों को वि र्शां वि के विए प्रेररि होने से रोकिा है
को डे वन৷
को डे वन৷ के कुछ समथषकों का दािा है वक ट्ै ररफ हट्ाने और अंिराष र ीय मुि ापार र्शुरू करने से
यु असंभि हो जायेंगे, क्योंवक मुि ापार एक रा र को आ वनभषर बनने से रोकिा है , जो िंबे यु ों की एक
आि किा है उदाहरण के विए, यवद एक दे र्श आ্ेया ों का उ ादन और दू सरा गोिा-बारूद का उ ादन
करिा है , िो दोनों एक-दू सरे से ही िड़ें गे, क्योंवक पहिा गोिा-बारूद हावसि करने में असमथष होगा और दू सरा
हवथयार हावसि करने में
आिोिकों का िकष है वक मुि ापार एक दे र्श को यु के मामिे में अ थायी रूप से आ वनभषर
बनने की आपाि योजना बनाने से नहीं रोक सकिा या एक दे र्श साधारण िौर पर अपनी जरूरि एक दू सरे दे र्श से
पूरी कर सकिा है इसका एक अৢा उदाहरण पहिा वि यु है वब्रट्े न और जमषनी दोनों यु के दौरान
आं वर्शक रूप से आ वनभषर बनने में कामयाब हो गये यह विर्शेर् रूप से इस ि की िजह से अहम था वक
जमषनी के पास एक यु अथष ि था बनाने की कोई योजना नहीं थी
अवधक आम िौर पर, इसके अ समथषकों का िकष है वक मुि ापार, भिे ही यु को असंभि नहीं
बनायें , पर िह यु करा सकिा है और यु ों के कारण ापार पर प्रविबंध कई विवभ दे र्शों में उ ादन, अनुसंधान
और वबक्री में िगी अं िराष र ीय कंपवनयों के विए महं गे सावबि हो सकिे हैं इस िरह, एक र्शम्मिर्शािी िॉबी-जो
केिि रा र ीय कंपवनयों के कारण उपम्म थि नहीं होिी िो िह यु के म्मखिाफ िकष दे सकिी है
व पक्षीर् आ विनाश
व पक्षीय आ विनार्श (कभी-कभी इसे एम.ए.डी (MAD) कहा जािा है ) सै रणनीवि का एक
वस ां ि है , वजसमें दो प्रवि ं ी पक्षों ारा पूणष पैमाने पर परमाणु हवथयारों के उपयोग से हमिािर और रक्षक दोनों
के विनार्श का प्रभािी पररणाम वनकििा है र्शीि यु के दौरान व पक्षीय आ विनार्श की नीवि के समथषकों की
िजह से यु की घािकिा इस कदर बढ़ी वक वकसी भी पक्ष के विए वकसी र्शु िाभ की संभािना नहीं बनी और
इस िरह यु थष सावबि हुए
िै ीकरर्
कुछ िोग रा र ीय राजनीवि में एक प्रिृव दे खिे हैं , वजसके िहि नगर-रा৸ और रा र -रा৸ एकीकृि
हो गये और सुझाि वदया वक अं िराष र ीय मंि इसका पािन करे गा िीन, इट्िी, संयुि रा৸ अमेररका, जमषनी,
भारि और वब्रट्े न जैसे कई दे र्श एकीकृि हो गये , जबवक यूरोपीय यूवनयन ने बाद में इसका अनुपािन वकया और
इससे संकेि वमििा है वक और अवधक भूमंडिीकरण एक एकीकृि वि ि था बनाने में मदद करे गा
-सिंिवठत शािंवत
वि र्शां वि को थानीय, -वनधाष ररि िहार के एक पररणाम के रूप में दर्शाष या गया है , जो र्शम्मि के
सं थानीकरण को रोकिा है और वहं सा को बढ़ािा दे िा है समाधान बहुि कुछ सहमवि िािे एजेंडे या उৡ
प्रावधकार, िाहे िह दै िीय हो या राजनीविक, में वनिेर्श पर उिना आधाररि नहीं है , वजिना आपसी सहवमि िािे
िंत्रों का -संगवठि नेट्िकष, वजसका पररणाम एक िहायष राजनीविक-आवथषक सामावजक िानेबाने के रूप में
वनकििा है अवभसरण के उ ेरण के विए प्रमुख िकनीक वििारों का प्रयोग है , वजसे बैककाम्म ं ग कहिे है , और
इससे कोई भागीदारी में सक्षम हो सकिा है , भिे ही िह वकसी सां ृ विक पृ भूवम, धावमषक वस ां ि, राजनीविक
संब िा या जनसां म्मূकीय उम्र का हो समान सहयोगी िंत्र खुिी स्रोि िािी पररयोजनाओं के आसपास इं ट्रनेट्
के जररये उभर रहे हैं और सामावजक मीवडया का विकास हो रहा है
वि शािंवत के धावमणक वस ा
बौ धमण
कई बौ धमाष ििंबी मानिे हैं वक वि र्शां वि िभी हो सकिी है , जब हम अपने मन के भीिर पहिे
र्शां वि थावपि करें बौद् ध धमष के सं थापक वस ाथष गौिम ने कहा, ”र्शां वि भीिर से आिी है .इसे इसके वबना न
ििार्शें ”, वििार यह है वक गु ा और मन की अ नकारा क अि थाएं यु और िड़ाई के कारण हैं बौ ों का
वि ास है वक िोग केिि िभी र्शां वि और स ाि के साथ जी सकिे हैं , जब हम अपने मन से क्रोध जैसी
नकारा क भािनाओं को ाग दें और ार और करुणा जैसी सकारा क भािनाएं पैदा करें
ईसाई धमण
बुवनयादी ईसाई आदर्शष स ाि और वि ास को दू सरों से साझा करने के जररये र्शां वि को बढ़ािा दे िा
है , साथ ही साथ उ ें भी माफ कर दे ने, जो र्शां वि भंग करने की कोवर्शर्श करिे हैं नीिे दो िुने हुए उपदे र्श वदये जा
रहे हैं -
”िेवकन मैं िु ें कहिा हूँ , अपने दु नों से ार करो, जो िु ें र्शाप दे िे हैं , उ ें आर्शीिाष द दो, उनका
भिा करो, जो िुमसे नफरि करिे हैं और उनके विए प्राथषना करो, जो िुमसे े र्पूणष सिूक करिे हैं और उ ीड़न
करिे हैं , क्योंवक िे िु ारे परम वपिा की संिान हो सकिे हैं , जो गष में है क्योंवक उसने जो सूयष बनाया है , िह दु
और भिा दोनों पर उगिा है और उविि और अनुविि दोनों पर िर्ाष बरसािा है ”
(मै ू 05:44-45)
”मैं िु ें एक नया आदे र्श दे िा हं , वक िुम एक दू सरे को ार करो, जैसा वक मैंने िुमसे ार वकया है ,
क्योंवक िुम एक दू सरे से ार करिे हो इसके ारा सभी िोग जानेंगे वक िुम सब मेरे वर्श हो, अगर िु ें दू सरे
के विए ार है ”
(जॉन 13:34-35)
वहिंदू धमण
परं परागि रूप से वहं दू धमष में िसुधैि कुट्ुं बकम की अिधारणा गृहीि की गई है , वजसका अनुिाद है ,
”पूरा वि एक पररिार है ” इस कथन का सार यह बिािा है वक केिि किुवर्ि मन ही व भाजन और विभेद दे खिा
है हम वजिना अवधक ৯ान की ििार्श करें गे, उिना ही समािेर्शी होंगे और हमें सां साररक भ्रम या माया से अपने
भीिर की आ ा को मुि करना होगा वहं दुओं के मुिावबक ऐसा सोिा जािा है वक वि र्शां वि केिि आं िररक
साधनों के मा म से हावसि की जा सकिी है खुद को कृवत्रम सीमाओं से आजाद करके, जो हमें अिग करिी है ,
िेवकन र्शां वि हावसि करने के विए अৢी है
इ ाम धमण
इ ाम धमष के अनुसार केिि एक खुदा में यकीन और एडम और ईि के रूप में समान मािा-वपिा
का होना मनु ों का र्शां वि और भाईिारे के साथ एक साथ रहने का सबसे बड़ा कारण है वि र्शां वि के इ ामी
वििार कुरान में िवणषि है , जहाूँ पूरी मानििा को एक पररिार के रूप में मा िा प्रा है सभी िोग एडम के बৡे
हैं इ ामी आ था का उ े िोगों को अपनी वबरादरी की ओर अपने यं के प्राकृविक झुकाि की पहिान
कराना है इ ामी परिोकर्शा के अनुसार पैगंबर जीसस के नेिृ में उनके दू सरे अििरण में पूरा वि एकजुट्
हो जायेगा, उस समय इिना ৸ादा प्रेम, ाय और र्शां वि होगी वक दु वनया गष जैसी हो जाएगी
आई.ई.सी.आर.सी ारा 5 अक्टू बर 2009 को र्शावमि वकया गया-वि र्शां वि में धावमषक भागीदारी पर
इ ावमक एजुकेर्शनि एं ड क िरि ररसिष सेंट्र (आई.ई.सी.आर.सी) के अनुसंधान और वि र्शां वि ि था की
अिधारणा का वि ाररि िणषन निीनिम प्रकार्शन ”ि ष पीस आडष र-ट्ु आड्ष स एन इं ट्रनेर्शनि े ट्” में वकया गया
है
र्हदी धमण
यहदी धमष पारं पररक रूप से वसखािा है वक भवि में वकसी समय एक महान नेिा का उदय होगा
और िह इजराइि के िोगों को एकजुट् करे गा, वजसके पररणाम रूप वि में र्शां वि और समृम्म आयेगी ये
वििार मूिि-िनाख और र ानी ाূाओं के उ रणों के हैं
मसीहा के प्रवस वििार के अिािा वट्क्कुन ओिम (वि के सं ार) का वििार भी मौजूद है
वट्क्कुन ओिम की उपिम्म विवभ साधनों के मा म से होिी है , जैसे ई र के दै िी आदे र्शों (स ाि, किुि
कानूनों, आवद का पािन करिे हुए) को आनु ावनक रूप से पािन करने, साथ ही साथ उदाहरण के ारा बाकी
दु वनया को राजी करने से होिी है वट्क्कुन ओिम की उपिम्म दान और सामावजक ाय के मा म से भी होिी
जैन धमण
सभी िरह के जीिन, मानिीय या गैर-मानिीय, में करुणा जैन धमष का केंि है मानि जीिन एक
अव िीय, ৯ान िक पहुं िने के एक दु िषभ अिसर, वकसी भी म्मि की ह ा नहीं करने, इससे मििब नहीं वक
उसने क्या अपराध वकया है , के अिसर के रूप में मू िान है , वजसे अक नीय घृवणि माना जािा है यह एक
ऐसा धमष है , वजसमें अपने सभी संप्रदायों और परं पराओं के वभक्षुओं और गैर-पादरी िगष की जरूरि होिी है , उ ें
र्शाकाहारी होने की आि किा होिी है भारि के कुछ क्षेत्र, जैसे गुजरािी जैवनयों से बहुि प्रभाविि होिे है और
अসर पंथ के थानीय वहं दुओं का बहुमि र्शाकाहारी बन जािा है
वसख धमण
”सभी जीि-जंिु उनके हैं , िह सभी के विए है ” (गुरु ग्रंथ सावहब, 425) इसके अिािा गुरुओं ने आगे
उपदे र्श वदया है वक ”एक बेदाग ई र की ुवि गाओ, िह सब के भीिर वनवहि है ” (गुरु ग्रंथ सावहब, 706) ”वसख
के गुरु की खास विर्शेर्िा यह है वक िह जावि-िगीकरण के ढां िे से परे जािा है और विनम्रिा की ओर प्रेररि होिा
है , िब उसका िम ई र के दरिाजे पर ीकायष हो जािा है ” (भाई गुरदास जी, 1)
भी है -
3- िैव क मानि वनमाष ण िकनीकी- WCM-TLM-SHYAM.C प्रणािी
S - SATYA ( स )
H- HEART ( हृदय )
Y- YOG ( योग )
A - ASHRAM ( आिम )
M - MEDITATION ( ान )
. - DOT ( वब दु या डाट् या दर्शमिि या पूणषविराम )
C - CONCIOUSNESS ( िेिना )
4- आदर्शष िैव क मानि/जन/गण/िोक/ /मैं /आ ा/ि का स रूप
3- वि मानक-र्शू (WS-0) : मन की गुणि ा का वि मानक िृखंिा
1. ड ू.एस. (WS)-0 : वििार एिम् सावह का वि मानक
2. ड ू.एस. (WS)-00 : विर्य एिम् विर्शेर्৯ों की पररभार्ा का वि मानक
3. ड ू.एस. (WS)-00 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिम् थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानक
वि मानक-शू श्ृिंखला
(वनमाणर् का आ ान्त क ूटरान बम)
जैसे-जैसे मानि जावि का सम्रा৸ इस पृ ी पर बढ़िा जा रहा है िैसे -िैसे ही िह विवभ सम ाओं से
भी वघरिा जा रहा है सम ायें भी विवभ प्रकार की है वज ें मूिि-दो भागों में बाूँ ट्ा जा सकिा है या यूूँ कहें वक
इन दो सम ाओं से अिग कोई और सम ा है ही नहीं प्रथम ी या म्मिगि सम ा िथा व िीय समव या
सामावजक या सािषजवनक या संयुि सम ा प्रथम प्रकार की सम ा का मूि कारण यं म्मि या और व िीय
प्रकार की सम ा होिी है जबवक व िीय प्रकार की सम ा का मूि कारण म्मि ही होिा है क्योंवक समव नाम
का कोई म्मि नहीं होिा िह म्मि का समूह ही होिा है अथाष ि् म्मि ही समव सम ा को ज दे िा है
उसके उपरा ही समव सम ा, के रूप में पु न- म्मि को प्रभाविि करिी है
उपरोि दोनों सम ाओं के समाधान के विए दो रा े हैं प्रथम म्मि को स से जोड़ा जाय िब
समव ि-स से जुड़ जायेगा दू सरा यह है वक समव को स से जोड़ा जाय िो म्मि ंय स से जुड़
जायेगा यहाूँ आि क है वक स और वििार अथाष ि् दर्शषन को रूप से समझ विया जाय वििार कई हो
सकिे हैं स एक होिा है वििार म्मि होिा है स समव होिा है वििार को कायष में बदिने के बाद स का
ज होिा है वििार छोट्ा िक्र है , स एक बड़ा, सिोৡ और अम्म म िक्र है वििारों का अ , स है वििार
म्मिगि स है जबवक स सािष जवनक स है अथाष ि् स ू णष या वि या अ राष र ीय अथाष ि् समव मानक है
और जो मानक है िह वििार या म्मिगि वििार कभी भी नहीं हो सकिा सािषजवनक स , वििारों को प्रविब
करने िािी िोकि प्रणािी की िरम विकवसि अि था है इसविए थ िोकि की प्राम्म के विए प्रथम िथा
सािषजवनक स , ि करना पड़े गा वफर ि थाओं को उसके अनुसार थावपि करना पड़े गा वििार को दे र्श -
काि-ब है जबवक स दे र्श-काि मुि है
व हो या समव दोनों को कमष करना पड़िा है कमष की प्रणािी भी दो ही प्रकार की होिी है
प्रथम-पहिे कमष वफर ৯ान, व िीय-पहिे ৯ान वफर कमष प्रथम कायष प्रणािी में सम ायें अवधक उ होिी है
व िीय प्रकार के कायषप्रणािी में सम ायें कम उ होिी हैं ििषमान िोकि प्रणािी में कमष पहिे हो रहा है
৯ान बाद में प्रा हो रहा है इसविए ही वनयम कानून िो बनिे हैं पर ु उनका दू रगामी प्रभाि र्शू ही प्रा होिा
है अभी िक यह वकया जा रहा था वक स और वििार क्या है ? और कायष प्रणािी के मागष क्या है ?
अब हम पुन: सम ाओं के समाधान के रा ों पर आिे हैं सम ायें कभी भी पूणषि: समा नहीं
होिी वसफष उनको कम करने का प्रयास होिा है मानि सदा से अपने कमों का अवधकिम उपयोग और पररणाम
प्रा करने का प्रय वकया है वजसके पररणाम रूप ििषमान का ि रूप है सम ाओं के समाधान के रा ों
में प्रथम रा ा कवठन और ििषमान समय में प्रभािहीन है क्योंवक म्मि को स से जोड़ने के दो मागष हैं प्रथम
म्मि ही म्मि को स से जोड़े ऐसे में म्मि के ज दर और म्मि को स से जोड़ने िािों की ज दर में
मन (मानि संसाधन) के वि मानक (WS)-0 िृंखिा के वि ापी थापना के वन विम्मखि र्शासवनक प्रवक्रया
ारा मागष है
1. जनता ि जन सिंिठन ारा- जनिा ि जन संगठन ारा जनवहि के विए सिोৡ ायािय में यह याविका
दायर की जा सकिी है वक सभी प्रकार के संगठन जैसे -राजनीविक दि, औ ोवगक समूह, वर्शक्षण समूह जनिा को
यह बिायें वक िह वकस प्रकार के मन का वनमाष ण कर रहा है िथा उसका मानक क्या है ?
2. भारत सरकार ारा- भारि सरकार इस िृंखिा को थावपि करने के विए संसद में प्र ाि प्र ु ि कर अपने
सं थान भारिीय मानक ूरो (BIS) के मा म से समकक्ष िृंखिा थावपि कर वि ापी थापना के विए
अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन (ISO) के समक्ष प्र ु ि कर सकिा है साथ ही सं युि रा र सं घ (UNO) में भी
प्र ु ि कर सं युि रा र सं घ (UNO) के पुनषगठन ि पू णष िोकिंत्र की प्राम्म के विए मागष वदखा सकिा है संयुि
रा र संघ (UNO) के सन् 2046 ई0 में 100 िर्ष पूरे होने पर वि सरकार के गठन ि वि संविधान के वनमाष ण का
यही WS-0 िृंखिा आधार वस ा है जो भारि अभी ही खोज िुका है
4. सिंर्ुक्त रा र सिं घ (UNO) ारा- सं युि रा र संघ सीधे इस मानक िृंखिा को थापना के विए अपने सद
दे र्शों के महासभा के समक्ष प्र ु ि कर अ राष र ीय मानकीकरण संगठन (ISO) ि वि ापार संगठन के मा म से
सभी दे र्शों में थावपि करने के विए उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 ि ISO-
14000 िृंखिा का वि ापी थापना हो रहा है वि ापार संगठन के ऊपर मन (मानि संसाधन) के वि
मानक WS-0 िृंखिा की थापना से भारि दबाि बना सकिा है
5. अ राण र ीर् मानकीकरर् सिंिठन (ISO) ारा- अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन सीधे इस िृंखिा को थावपि
कर सभी दे र्शों के विए सं युि रा र सं घ ि वि ापार संगठन के मा म से सभी दे र्शों में थावपि करने के विए
उसी प्रकार बा कर सकिा है , वजस प्रकार ISO-9000 ि ISO-14000 िृंखिा का वि ापी थापना हो रहा है
मानि एिम् सं युि मानि (संगठन, सं था, ससंद, सरकार इ ावद) ारा उ ावदि उ ादों को धीरे -
धीरे िैव क र पर मानकीकरण हो रहा है ऐसे में सं युि रा र संघ को प्रब और वक्रयाकिाप का िैव क र
पर मानकीकरण करना िावहए वजस प्रकार औ ोवगक क्षेत्र अ राष र ीय मानकीकरण सं गठन ¼International
Standardization Organisation-ISO½ ारा संयुि मन (उ ोग, सं थान, उ ाद इ ावद) को उ ाद, सं था,
पयाष िरण की गुणि ा के विए ISO प्रमाणपत्र जैसे-ISO-9000 ि ISO-14000 िृंखिा इ ावद प्रदान वकये जािे है
उसी प्रकार सं युि रा र सं घ को नये अवभकरण वि मानकीकरण संगठन ¼World Standardization
Organisation-WSO½ बनाकर या अ राष र ीय मानकीकरण संगठन को अपने अधीन िेकर ISO-0/WSO-0 का
प्रमाण पत्र यो म्मि और सं था को दे ना िावहए जो गुणि ा मानक के अनुरूप हों भारि को यही कायष
भारिीय मानक ूरो ¼Bureau of Indian Standard-BIS½ के ारा IS-0 िृं खिा ारा करना िावहए भारि
को यह कायष रा र ीय वर्शक्षा प्रणािी ¼National Education System-NES½ ि वि को यह कायष वि वर्शक्षा
प्रणािी ¼World Education System-WES½ ारा करना िावहए
जब वक यह वर्शक्षा प्रणािी भारि िथा सं युि रा र सं घ ारा जनसाधारण को उपि नहीं हो जािी
िब िक जन साधारण के म्मिगि इৢा की पूविष के विए “पुनवनषमाष ण (RENEW-Real Education National
Express Way) ” ारा उपि करायी जा रही है
21िीं सदी और भवि का समय अपने विराट् सम ाओं को िेकर कह रहा है - “आओ वि के
मानिों आओ, मेरी िुनौवि को ीकार करो या िो िु म सम ाओं, संकीणष वििारधाराओं, अ ि थाओं, अहं कारों
से ग्रवसि हो आपस में यु कर अपने ही विकास का नार्श कर पुन: विकास के विए संघर्ष करो या िो िुम सभी
सम ाओं का हि प्र ुि कर मुझे परा करो “ ऐसे िुनौवि पूणष समय में वि के अ दे र्शों के समक्ष कोई वि ा
का विर्य हो या न हो र्शाम्म दू ि अवहं सक िपोभूवम भारि के समक्ष वि ा का विर्य अि है और वसफष िही ऐसी
िुनौवि को ीकार करने में सक्षम भी है यह इसविए नहीं वक उसके अ र वि नेिृ , वि र्शाम्म और वि
र्शासक बनने की प्रबि इৢा है पर ु इसविए वक वि प्रेम, जीि ही वर्शि, वर्शि ही जीि उसका मुূ आधार है
वजस पर आधाररि होकर िह ब्र ाਔीय रक्षा, विकास, स ुिन, म्म थरिा, एकिा के विए अवहं सक और र्शाम्म मागष
से क ि करिे हुये अ अपने भाइयों और बहनों के अवधकारों के विए प्रेम भाि से सेिा और क ाण करिा
रहा है पर ु उसके बदिे भारि को सदा ही अ ने उन वस ा ों को उसके म्मिगि वििारधारा से ही जोड़कर
दे खा पररणाम रूप िे अपने अवधकार और क ाण के मागष को भी पहिानने में असमथष रहे , बािजूद इसके
प्र ेक िैव क सं कट् की घड़ी में भारि की ओर ही मुूँह कर उ ीद को दे खिे रहिे हैं
प्रकावर्शि खुर्शमय िीसरी सह ाम्म के साथ यह एक सिोৡ समािार है वक नयी सह ाम्म केिि
बीिे सह ाम्म यों की िरह एक सह ाम्म नहीं है यह प्रकावर्शि और वि के विए नये अ ाय के प्रार का
सह ाब्र्वद है केिि िि ों ारा िশ वनधाष रण का नहीं बम्म गीकरण के विए अवसमीि भूमਔिीय मनु
और सिोৡ अवभभािक सं युि रा र सं घ सवहि सभी र के अवभभािक के किष के साथ कायष योजना पर
आधाररि क्योंवक दू सरी सह ाम्म के अ िक वि की आि किा, जो वकसी के ारा प्रविवनवध नहीं हुई
उसे वििादमुि और सफििापूिषक प्र ु ि वकया जा िुका है जबवक विवभ विर्यों जैसे-वि৯ान, धमष, आ ा ,
समाज, रा৸, राजवनवि, अ राष र ीय स , पररिार, म्मि, विवभ सं गठनों के वक्रयाकिाप, प्राकृविक,
ब्र ाਔीय, दे र्श, सं युि रा र सं घ इ ावद की म्म थवि और पररणाम सािषजवनक प्रमावणि रुप में थे
वि৯ान के सिोৡ आवि ार के आधार पर अब यह वििाद मुि हो िुका है वक मन केिि म्मि,
समाज, और रा৸ को ही नहीं प्रभाविि करिा बम्म यह प्रकृवि और ब्र ाਔ को भी प्रभाविि करिा है
के ीयकृि और ानीकृि मन विवभ र्शारीररक सामावजक और रा৸ के असमा िाओं के उपिार का अम्म म
मागष है थायी म्म थरिा, विकास, र्शाम्म , एकिा, समपष ण और सुरक्षा के विए प्र े क रा৸ के र्शासन प्रणािी के विए
आि क है वक रा৸ अपने उ े के विए नागररकों का वनमाष ण करें और यह वनधाष ररि हो िुका है वक क्रमब
थ मानि पीढ़ी के विए वि की सुरक्षा आि क है इसविए वि मानि के वनमाष ण की आि किा है , िेवकन
ऐसा नहीं है और विवभ अवनयम्म ि सम ा जैसे-जनसंূा, रोग, प्रदू र्ण, आिंकिाद, भ्र ािार, विके ीकृि मानि
र्शम्मि एिं कमष इ ावद िगािार बढ़ रहे है जबवक अ ररक्ष और ब्र ाਔ के क्षेत्र में मानि का ापक विकास
अभी र्शेर् है दू सरी िरफ िाभकारी भूमਔिीकरण विर्शेर्ीकृि मन के वनमाष ण के कारण विरोध और नासमझी से
संघर्ष कर रहा है और यह अस ि है वक विवभ विर्यों के प्रवि जागरण सम ाओं का हि उपि कराये गा
मानक के विकास के इविहास में उ ादों के मानकीकरण के बाद ििषमान में मानि, प्रवक्रया और
पयाष िरण का मानकीकरण िथा थापना आई0 एस0 ओ0-9000 एिं आई0 एस0 ओ0-14000 िृंखिा के ारा
मानकीकरण के क्षेत्र में बढ़ रहा है िेवकन इस बढ़िे हुए िृंखिा में मनु की आि किा (जो मानि और
मानििा के विए आि क है ) का आधार “मानि संसाधन का मानकीकरण” है क्योंवक मनु सभी (जीि और
नीजीि) वनमाष ण और उसका वनय णकिाष है मानि सं साधन के मानकीकरण के बाद सभी विर्य आसानी से िশ
अथाष ि् वि रीय गुणि ा की ओर बढ़ जाये गी क्योंवक मानि संसाधन के मानक में सभी ि ों के मूि वस ा का
समािेर्श होगा
ििषमान समय में र्श - “वनमाष ण” भूमਔिीय रुप से पररविि हो िुका है इसविए हमें अपना िশ
मनु के वनमाष ण के विए वनधाष ररि करना िावहए और दू सरी िरफ वििादमुि, , प्रकावर्शि िथा ििषमान
सरकारी प्रवक्रया के अनुसार मानक प्रवक्रया उपि है जैसा वक हम सभी जानिे हैं वक मानक हमेर्शा स का
सािषजवनक प्रमावणि विर्य होिा है न वक वििारों का म्मिगि प्रमावणि विर्य अथाष ि् प्र ुि मानक विवभ
विर्यों जैसे-आ ा , वि৯ान, िकनीकी, समावजक, नीविक, सै ाम्म क, राजनीविक इ ावद के ापक समथषन के
साथ होगा “उपयोग के विए िैयार” िथा “प्रवक्रया के विए िैयार” के आधार पर प्र ुि मानि के वि रीय
वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए मानि वनमाष ण िकनीकी WCM-TLM-SHYAM.C
(World Class Manufactuing–Total Life Maintenance-Satya, Heart, Yoga, Ashram,
Meditation.Conceousness)प्रणािी आवि ृ ि है वजसमें स ूणष ि
सहं भावगिा (Total System Involvement-TSI) है औरं वि मानक र्शू -मन की गुणि ा का वि मानक
िृंखिा (WS-0 : World Standard of Mind Series) समावहि है जो और कुछ नहीं, यह वि मानि वनमाष ण
प्रवक्रया की िकनीकी और मानि संसाधन की गुणि ा का वि मानक है जैसे -औ ोवगक क्षेत्र में इ ी০ू ट् आफ
ा मे ीने , जापान ारा उ ादों के वि रीय वनमाष ण विवध को प्रा करने के विए उ ाद वनमाष ण िकनीकी
120 िषण पहले ामी वििे कान का कर्न वजसके 50 िषण बाद सिंर्ुक्त रा र सिंघ का िठन हुआ-
“समग्र संसार का अखਔ , वजसकें ग्रहण करने के विए संसार प्रिीक्षा कर रहा है , हमारे उपवनर्दों
का दू सरा भाि है प्रािीन काि के हदब ी और पाथष क्य इस समय िेजी से कम होिे जा रहे हैं हमारे उपवनर्दों ने
ठीक ही कहा है - “अ৯ान ही सिष प्रकार के दु ःखो का कारण है ” सामावजक अथिा आ ाम्म क जीिन की हो वजस
अि था में दे खो, यह वब ु ि सही उिरिा है अ৯ान से ही हम पर र घृणा करिे हैं , अ৯ान से ही एक एक दू सरे
को जानिे नहीं और इसविए ार नहीं करिे जब हम एक दू सरे को जान िेंगे, प्रेम का उदय हे ागा प्रे म का उदय
भारि के संविधान के अनु ৢेद-एक में भारि के दो आवधकाररक नाम हैं -(इम्मਔया दै ट् इज भारि)
वह ी में “भारि” और अं गेजी में “इम्मਔया (INDIA)” इम्मਔया नाम की उ व वस ु नदी के अंग्रेजी नाम “इਔस“
से हुई है भारि नाम, एक प्रािीन वह दू सम्राट् भरि जो वक मनु के िंर्शज ऋर्भदे ि के ৸े पुत्र थे िथा वजनकी
कथा भागिि पुराण में है , के नाम से विया गया है भारि (भा + रि) र्श का मििब है - “आ ररक प्रकार्श में
िीन” एक िीसरा नाम “वह दु ान” भी है वजसका अथष है -वह या वह दू की भूवम, जो वक प्रािीन काि के ऋवर्यों
ारा वदया गया था प्रािीन काि में यह कम प्रयुि होिा था िथा कािा र में अवधक प्रिविि हुआ विर्शेर्कर
अरब/ईरान में भारि में यह नाम मुगि काि से अवधक प्रिविि हुआ य वप इसका समकािीन उपयोग कम और
प्राय-उ री भारि के विए होिा है इसके अविररि भारििर्ष को िैवदक काि से “आयाष ििष ”, “ज ू ीप” और
“अजनाभदे र्श” के नाम से भी जाना जािा रहा है बहुि पहिे यह दे र्श सोने की विवड़या जाना जािा था
भारि को एक सनािन रा र माना जािा है क्योंवक यह मानि स िा का पहिा रा र था भारिीय दर्शष न
के अनुसार सृव उ व के प ाि् ब्र ा के मानसपुत्र ायंभुि मनु ने ि था स ािी इनके दो पुत्र, वप्रयव्रि और
उ ानपाद थे उ ानपाद भि ध्रुि के वपिा थे इ ीं वप्रयव्रि के 10 पु त्र थे 3 पुत्र बा काि से ही विरि थे इस
कारण वप्रयव्रि ने पृ ी को साि भागों में विभि कर एक-एक भाग प्र ेक पु त्र को सौंप वदया इ ीं में से एक थे -
आ্ीध, वज ें ज ू ीप का र्शासन कायष सौंपा गया िृ ाि था में आ্ीध ने अपने 9 पुत्रों को ज ू ीप के विवभ 9
थानों का र्शासन दावय सौंपा इन 9 पुा़त्रों में सबसे बड़े थे -नावभ, वज ें वहमिर्ष का भू -भाग वमिा इ ोंने वहमिर्ष
को यं के नाम से जोड़कर, अजनाभिर्ष प्रिाररि वकया यह वहमिर्ष या अजनाभिर्ष ही प्रािीन भारि दे र्श था
राजा नावभ के पुत्र थे -ऋर्भ ऋर्भदे ि के 100 पुत्रों में भरि ৸े एिं सबसे गुणिान थे ऋर्भदे ि ने िानप्र थ िेने
पर उ ें राजपाट् सौंप वदया पहिे भारििर्ष का नाम ऋर्भदे ि के वपिा नावभराज के नाम पर अजनाभिर्ष प्रवस
था भरि के नाम से ही िोग अजनाभखਔ को भारििर्ष कहने िगे वि ु पुराण, िायु पुराण, विंग पु राण,
िीम ागिि, महाभारि इ ावद में भारि का उ ेख आिा है इससे पिा िििा है वक महाभारि काि से पहिे ही
भारि नाम प्रिविि था एक अ मि के अनुसार दु और र्शकु िा के पु त्र भरि के नाम पर भारि नाम पड़ा
पर ु विवभ स्रोिों में िवणष ि ि ों के आधार पर यह मा िा गिि सावबि होिी है पूरी िै ि पर रा और जैन
पर रा में बार-बार दजष है वक समुि से िेकर वहमािय िक फैिे इस दे र्श का नाम प्रथम िीथंकर दार्शषवनक राजा
भगिान ऋर्भदे ि के पुत्र भरि के नाम पर भारििर्ष पड़ा इसके अविररि वजस पुराण में भारििर्ष का वििरण है
ि ु वजससे मनु का जीिन संकट् में पड़ सकिा है उसे दे ििा मानिा है इस प्रकार हमारे भारि में 33 करोड़
दे ििा पहिे से ही हैं और हमारा भारि स ूणष ब्र ाਔ को ही दे ििा और ई र के रूप में दे खिा ि मानिा है और
इसकी ि था ि विकास हे िु कमष करिा रहा है “भारि” ने “र्शू ” ि “दर्शमिि” वदया वजसपर वि৯ान की भार्ा
गवणि ट्ीकी हुई है “भारि” का अपनी भार्ा में नाम “भारि” है िथा वि भार्ा में नाम ßINDIAÞ है ßINDIAÞ का
विरोध नहीं होना िावहए बम्म भारि को वि भारि बनाकर नाम ßINDIAÞ को पूणषिा प्रदान करना िावहए
संकुिन में नहीं बम्म ापकिा में वि ास करना िावहए अंर्श में नहीं बम्म पू णषिा, समग्रिा ि सािषभौवमकिा में
वि ास करना िावहए समग्र ब्र ाਔ वनर र फैि रहा है मानि जावि को भी अपने मम्म और हृदय को फैिा
कर वि ृि करना होगा िभी विकास, र्शाम्म , एकिा ि म्म थरिा आयेगी
भारत में एक
भारि का रा र ीय ज-विरं गा भारि का रा र ीय गान-जन-गण-मन
भारि का रा र ीय गीि-ि े मािरम् भारि का रा र ीय वि -अर्शोक
भारि का रा र ीय पं िां ग-र्शक संिि भारि का रा र ीय िाक्य-स मेि जयिे
भारि की रा र ीयिा-भारिीयिा भारि की रा र भार्ा-वहं दी
भारि की रा र ीय विवप-दे ि नागरी भारि का रा र ीय ज गीि-वहं द दे र्श का ारा झंडा
भारि का रा र ीय नारा-िमेि जयिे भारि की रा र ीय विदे र्शनीवि-गुट् वनरपेक्ष
भारि का रा र ीय पु र ार-भारि र भारि का रा र ीय सूिना पत्र- ेि पत्र
भारि का रा र ीय िृ क्ष-बरगद भारि की रा र ीय मुिा-रूपया
भारि की रा र ीय नदी-गंगा भारि का रा र ीय पक्षी-मोर
भारि का रा र ीय पर्शु -बाघ भारि का रा र ीय फूि-कमि
भारि का रा र ीय फि-आम भारि का रा र ीय खे ि-हॉकी
भारि की रा र ीय वमठाई-जिेबी भारि के रा र ीय मुिा वि ( )
इस प्रकार वि सरकार के विए पुनः भारि ारा र्शू आधाररि अम्म म आवि ार पूणष हुआ है
(आवि ार के वि ृत जानकारी के वलए “वि शा ” अ ार्-तीन दे खें)
मानक का अथष है -“िह सिषमा पैमाना, वजससे हम उस विर्य का मू ां कन करिे है वजस विर्य
का िह पैमाना होिा है “ इस प्रकार मन की गुणि ा का मानक म्मि िथा संयुि म्मि (अथाष ि् सं था, संघ,
सरकार इ ावद) के मू ाकंन का पैमाना है िूूँवक आवि ार का विर्य सिष ापी ब्र ाਔीय वनयम पर आधाररि
है इसविए िह प्र ेक विर्यों से स म्म ि है वजसकी उपयोवगिा प्र ेक विर्य के स रूप को जानने में है िूूँवक
मानि कमष करिे-करिे ৯ान प्रा करिे हुऐ प्रकृवि के वक्रयाकिापों को धीरे -धीरे अपने अधीन करने की ओर
अग्रसर है इसविए पूणषि-प्रकृवि के पद पर बैठने के विए प्रकृवि ारा धारण की गई स ुविि कायषप्रणािी को
मानि ारा अपनाना ही होगा अ था िह स ुविि कायष न कर अ ि था उ कर दे गा यह िैसे ही है जैसे
वकसी कमषिारी को प्रब क (मैनेजर) के पद पर बैठा वदया जाये िो स ुविि कायष संिािन के विए प्रब क की
स ुविि कायषप्रणािी को उसे अपनाना ही होगा अ था िह स ुविि कायष न कर अ ि था उ कर दे गा
आवि ार की उपयोवगिा ापक होिे हुए भी मूि रूप से म्मि र से वि र िक के मन और संयुि मन
के प्रब को ि करना एिम् एक कमष৯ान ारा िृंखिाब करना है वजससे स ूणष र्शम्मि एक मुखी हो वि
विकास की वदर्शा में केम्म ि हो जाये पररणाम रूप एक दू सरे को विकास की ओर विकास करािे हुऐ यं को
भी विकास करने के विए पूणष ि िा प्रा हो जायेगी स ूणष वक्रयाकिापों को संिाविि करने िािे मूि दो
किाष -मानि (मन) और प्रकृवि (वि मन) दोनों का कमष৯ान एक होना आि क है प्रकृवि (वि मन) िो पूणष धारण
कर सफििापूिषक कायष कर ही रही है मानि जावि में जो भी सफििा प्रा कर रहे हैं िे अ৯ानिा में इसकें
आं वर्शंक धारण में िथा जो असफििा प्रा कर रहे हैं , िे पूणषि: धारण से मुि है इसी कमष৯ान से प्रकृवि, मानि
और संयुि मन प्रभाविि और संिाविि है वकसी मानि का कमषक्षेत्र स ूणष ब्र ाਔ हो सकिा है और वकसी का
उसके र रूप में छोट्ा यहाूँ िक वक वसफष यं म्मि का अपना र पर ु कमष৯ान िो सभी का एक ही होगा
ििषमान समय में विर्शेर्ीकरण की वर्शक्षा, भारि में िि ही रहा है और िह कोई बहुि बड़ी सम ा भी
नहीं है सम ा है सामा ीकरण वर्शक्षा की म्मियों के वििार से सदै ि ि होिा रहा है वक-मैकािे वर्शक्षा
प वि बदिनी िावहए, रा र ीय वर्शक्षा नीवि ि पाਉक्रम बनना िावहए ये िो वििार हैं पाਉक्रम बनेगा कैसे?, कौन
बनायेगा? पाਉक्रम में पढ़ायेंगे क्या? ये सम ा थी और िह हि की जा िुकी है जो भारि सरकार के सामने
सरकारी-वनजी योजनाओं जैसे ट्र ां सपोट्ष , डाक, बैंक, बीमा की िरह वनजी वर्शक्षा के रूप में “पुनवनषमाष ण-स वर्शक्षा
का रा र ीय िीव्र मागष ” ारा पहिी बार इसके आवि ारक ारा प्र ु ि है जो रा र वनमाष ण का ापार है
“जीिन में मेरी सिोৡ अवभिार्ा यह है वक ऐसा िक्र प्रिषिन कर दू ूँ जो वक उৡ एिं िे वििारों को
सब के ार- ार पर पहुूँ िा दे वफर ी-पुरूर् को अपने भा का वनमाष ण ं य करने दो हमारे पूिषजों ने िथा
अ दे र्शों ने जीिन के मह पूणष प्र ों पर क्या वििार वकया है यह सिषसाधारण को जानने दो विर्शेर्कर उ ें
दे खने दो वक और िोग क्या कर रहे हैं वफर उ ें अपना वनणषय करने दो रासायवनक ि इके कर दो और
प्रकृवि के वनयमानुसार िे वकसी विर्शेर् आकार धारण कर िेंगे -पररिम करो, अट्ि रहो ‘धमष को वबना हावन
पहुूँ िाये जनिा की उ वि’-इसे अपना आदर्शष िाक्य बना िो ”
“वर्शक्षा का मििब यह नहीं है वक िु ारे वदमाग में ऐसी बहुि सी बािें इस िरह से ठूंस दी जाये, जो
आपस में िड़ने िगे और िु ारा वदमाग उ ें जीिन भर हजम न कर सकें वजस वर्शक्षा से हम अपना जीिन
वनमाष ण कर सकें, मनु बन सके, िररत्र गठन कर सकें और वििारों का सां मज कर सके, िही िा ि में वर्शक्षा
कहिाने यो है यवद िुम पाूँ ि ही भािों को हजम कर िद् नुसार जीिन और िररत्र गठन कर सके िो िु ारी
वर्शक्षा उस आदमी की अपे क्षा बहुि अवधक है वजसने एक पूरी की पूरी िाइब्रे री ही कठं थ कर िी है ”
“उसी मूि स की वफर से वर्शक्षा ग्रहण करनी होगी, जो केिि यहीं से, हमारी इसी मािृभूवम से
प्रिाररि हुआ था वफर एक बार भारि को संसार में इसी मूि ि का-इसी स का प्रिार करना होगा ऐसा क्यों
है ? इसविए नहीं वक यह स हमारे र्शा ों में विखा है िरन् हमारे रा र ीय सावह का प्र ेक विभाग और हमारा
रा र ीय जीिन उससे पू णषिः ओि-प्रोि है इस धावमषक सवह ुिा की िथा इस सहानुभूवि की, मािृभाि की महान
वर्शक्षा प्र ेक बािक, ी, पुरुर्, वर्शवक्षि, अवर्शवक्षि सब जावि और िणष िािे सीख सकिे हैं िु मको अने क नामों से
पुकारा जािा है , पर िु म एक हो िथाकवथि समाज-सुधार के विर्य में ह क्षेप न करना क्योंवक पहिे आ ाम्म क
सुधार हुये वबना अ वकसी भी प्रकार का सुधार हो नहीं सकिा, भारि के वर्शवक्षि समाज से मैं इस बाि पर सहमि
हूँ वक समाज का आमूि पररििषन करना आि क है पर यह वकया वकस िरह जाये? सुधारकों की सब कुछ न
कर डािने की रीवि थष वस हो िुकी है मेरी योजना यह है , हमने अिीि में कुछ बुरा नहीं वकया वन य ही नहीं
“सुधमाष , जरूरि है इस यु ग में अनगढ़ मानि को गढ़ने की मनु ाथी, संकीणषिा से ग्रवसि हो गया
है इन दु बषििाओं के आक्रा मनमानी र्शल वदखने में अসर आिे हैं पेट् और पररिार को आदर्शष मान बैठे हैं ”
-अिधूत भििान राम
“मनु अपने भा का वनमाष िा आप है , इस वि ास के आधार पर हमारी मा िा है वक हम उਚृ
बनेंगे और दू सरों को िे बनायेंगे, िो युग अि बदिेगा हम बदिेंगे - युग बदिेगा, हम सुधरें गे -युग सुधरे गा इस
ि पर हमारा पररपूणष वि ास है ” - पिं0 श्ीराम शमाण आचार्ण, सिं र्ापक, अन्तखल वि िार्त्री पररिार
भाि-2 : सम ा
सम ा
समव (संयुि) समाधान
व ( म्मिगि) समाधान
भाि-8 : आमिंत्रर्
हमारा िसाय - ड ू.एस. (WS)-000 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिं थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का वि मानकके
अनुसार
वि का मूि म -“जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“
प्रार के पहिे वद - व
ि था के पररििषन या स ीकरण का पहिा प्रारूप और उसकी कायष विवध
वमिे सुर मेरा िु ारा, िो सुर बने हमारा
सफििा का पैमाना
सफििा का नाम विर्शेर्৯िा (Specialist) नहीं, बम्म ৯िा (Generalized) है
एक वि - िे वि के वनमाष ण के विए आि क कायष
कृवर् के आवि ारक - आवद पुरूर् महवर्ष कूमष -क प
एक सिेक्षण
म्मि की म्म थवि
म्मि और पररिार पर धमष की म्म थवि
म्मि पर ापार की म्म थवि
म्मि का पररणाम
वडवजट्ि इम्मਔया
“पुनवनषमाष ण” की अिधारण में वडवजट्िाइजेर्शन
वडवजट्ि ग्राम/नगर िाडष का अथष
सरकारी वडवजट्िाइजेर्शन ि नीजी वडवजट्िाइजेर्शन
रा र वनमाष ण के विए वडवजट्िाइजेर्शन
सहजीिन
राज-सुराज
मानक ग्राम / नगर िाडष - “पुनवनषमाष ण” की अिधारणा
स - स े र्श
स नेट्िकष (REAL NETWORK)
ग्राम प्रधान, सभासद और ग्राम/नगर िाडष प्रेरक - अथष और मुূ कायष
वनिासीयों को िाभ
हमारा िसाय - ड ू.एस. (WS)-000 : ब्र ाਔ (सूक्ष्म एिं थूि) के प्रब और वक्रयाकिाप का
वि मानकके अनुसार
वि का मूि म -“जय जिान-जय वकसान-जय वि৯ान-जय ৯ान-जय कमष৯ान“
भारिीय र्शा ों की एक िाक्य में वर्शक्षा
अवनिषिनीय कम्म महाअििार भोगे र िी िि कुर्श वसंह”वि मानि” का मानिों के नाम खुिा िुनौिी पत्र
अवनिषिनीय कम्म महाअििार का कार्शी-स कार्शी क्षेत्र से वि र्शाम्म का अम्म म स -स े र्श
3-एफ (3-F : Fuel-Fire-Fuel) विपणन प्रणािी के िागू वकये वबना भारि को सोने की विवड़या बनाना
और आ ाम्म क और दार्शष वनक विरासि के आधार पर एक भारि - िे भारि का वनमाष ण एक सपना है जो कहने
से नहीं बम्म उस प्रणािी को अपनाने से पूरा हो सकिा है
व कोर् और प वत
मंत्रािय/विभाग/रा৸ पूरी िरह से भारि सरकार ारा थावपि आईसीट्ी की बुवनयादी सुविधाओं का िाभ
उठायेंगें
मौजूदा/िि रहे ई-र्शासन पहिों का पुनो ान वकया जाएगा एिं उ ें वडवजट्ि इं वडया के वस ां िों के साथ
पंम्मिब वकया जायेगा ोप िृम्म , प्रोसेस पुनरष िना, एकीकृि अंिप्रषयोगा क वस म और लाउड और
मोबाइि जैसी उभरिी प्रौ ोवगवकयों का उपयोग नागररकों को सरकारी सेिाओं के वििरण को बढ़ाने के
विए वकया जाएगा
रा৸ों को उनके सामावजक-आवथषक जरूरिों के अनुसार प्रासंवगक विवर्श पररयोजनाओं के पहिान एिं
र्शावमि वकए जाने के विए ििीिापन वदया जाएगा
ई-र्शासन नागररक केम्म ि सेिा अवभवि ास सुवनव ि करने के विए आि क हद िक एक केंिीकृि
पहि के मा म से प्रो ावहि वकया जाएगा
सफििाओं की पहिान की जाएगी और उनकी प्रविकृवि सिि की जाएगी
जहाूँ भी संभि हो सािषजवनक वनजी भागीदारी पसंद की जाएगी
यूवनक आई डी के उपयोग का प्रो ाहन पहिान, प्रमाणीकरण और िाभ प्रदान करने के विए वकया
जाएगा
एनआईसी का पुनगषठन केंि और रा৸ र पर सभी सरकारी विभागों को आई ट्ी समथषन मजबूि करने
के विए वकया जाएगा
कम से कम 10 प्रमुख मंत्राियों में मुূ सूिना अवधकारी (सीआईओ) का पद बनाया जाएगा िावक विवभ
ई-गिनेंस पररयोजनाओं को िेजी से वनमाष ण, विकास एिं िागू वकया जा सके
डीईआईट्ीिाई कायषक्रम के प्रबंधन के विए विभाग के भीिर आि क िरर पदों का सृजन करे गा
के ीय मंत्राियों/विभागों और रा৸ सरकारों को इस कायषक्रम के िहि विवभ वमर्शन मोड और अ
पररयोजनाओं के कायाष यन के विए समग्र वज ेदारी होगी रा र ीय र पर समग्र एकत्रीकरण और
एकीकरण की जरूरि को दे खिे हुए यह उपयुि माना गया वक वडवजट्ि इं वडया कायषक्रम प्र ेक र्शावमि
एजेंसी की अৢी िरह से पररभावर्ि भूवमकाओं और वज ेदाररयों के साथ एक कायषक्रम के रूप में को
िागू वकया जाए
भारि के के सरकार/प्रदे र्श सरकार ारा विकवसि िेबसाइट् से ग्राम/नगर िाडष के वनिासी को मात्र
िाभ इिना ही है वक वनिासी सरकारी योजनाओं को जान सकिा है और उसके अपने क्षेि्र में वकये गये कायष को
जान सकिा है और एक बार िाभ िेने के बाद उस िेबसाइट् की उपयोवगिा समा हो जािी है जैसे- आधार
काडष , पैन काडष , रार्शन काडष , िोट्र काडष इ ावद के बन जाने के बाद उस म्मि के विए उस िेबसाइट् की
उपयोवगिा समा हो जािी है
नीजी (ग्राम /नगर वनिासी ारा विकवसि) िेबसाइट् से ग्राम/नगर िाडष के वनिासी को मात्र िाभ इिना
ही है वक वनिासी अपने ग्राम का पररिय ि सरकारी योजनाओं को जान सकिा है और उसके अपने क्षेत्र में वकये
गये कायष को जान सकिा है
नीजी (प्राइिेट् क नी/अधष -सरकारी क नी/कापोरे र्शन ारा विकवसि) िेबसाइट् से ग्राम/नगर िाडष
के वनिासी को मात्र िाभ इिना ही है वक वनिासी नीजी (प्राइिेट् क नी/अधष -सरकारी क नी/कापोरे र्शन ारा
विकवसि) िेबसाइट् से उसके योजनाओं को जान सकिा है और उसके अपने क्षेत्र में वकये गये कायष को जान
सकिा है अथाष ि आपको ग्राहक बनाने के विए और अपना ापार बढ़ाने के विए िह ऐसा करिा है यवद वनिासी
उसके ग्राहक नहीं बने िो उस वनिासी के विए उस िेबसाइट् की उपयोवगिा नहीं रह जािी
ारा संिाविि पररयोजना छात्रिृव , पररयोजना सहायिा, पररयोजना सामावजक सहायिा से जुड़े
उ ाद (प्रोडक्ट) - पररयोजना पुनषवनमाष ण के A- सामा ीकरण (Generalisation) वर्शक्षा का स वर्शक्षा (REAL
EDUCATION), स पेर्शा (REAL PROFESSION), स पु क (REAL BOOK), स म्म थवि (REAL STATUS),
स ए े ट् एजे (REAL ESTATE AGENT), स वकसान (REAL KISAN), B- विर्शेर्ीकरण (Specialisation)
वर्शक्षा का स कौर्शि (REAL SKILL), स वडजीट्ि कोविंग (REAL DIGITAL COACHING), स नेट्िकष
(REAL NETWORK) के सभी पाਉक्रम ि संसाधन, छात्रिृव , सहायिा, समावजक सहायिा, सृव पु कािय
योजना ि अ सामावजक कायष छात्रिृव वििरण प्रवक्रया प्रणािी 3F (Fuel-Fire-Fuel) से जुड़े हुए हैं वजनका
पाਉक्रम ि संसाधन र्शु अिग-अिग हैं िेवकन पंजीकरण र्शु मुि है उ ाद ि र्शु वििरण दे खने के
विए www.moralrenew.com पर जायें र्शु रू0 1000/- से िेकर रू0 20,000/- िक हैं जो विवभ
पाਉक्रम के हैं
पररयोजना छात्रिृव ि पररयोजना सहायिा में पंजीकरण के विए सभी अवधकृि हैं जबवक पररयोजना
समावजक सहायिा में पंजीकरण केिि ग्राम/नगर िाडष प्रेरक ही करने के विए अवधकृि हैं
अब ग्राम/नगर िाडष प्रेरक, वनिासी ि अ के विए आवथषक िाभ के अिसर क्या हैं यह जानना
आि क है र्शेर् िाभ िो अनमोि हैं
अ. पाਉक्रम के बदिे में छात्रिृव िुनने ि पाਉक्रम र्शु जमा करने पर एक िर्ष में ूनिम रू0 5,000/-
दी जािी है
आ. िर्ष में एक बार छात्रिृव रू0 5,000/- प्रा करने के उपरा हमारे ापार के िाभां स को सदै ि प्रा
करने के विए जीिन में एक बार दो नये वि ाथीयों को पाਉक्रम के बारे में बिाना ि उनका प्रिेर्श कराना
अवनिायष है िाभां स की रावर्श रू0 5,000/- के गुणक में ही दी जािी है वजसकी अवधकिम सीमा प्रिेर्श
िेने िािे वि ाथीयों की संূा पर वनभषर करिा है
हमारा िसाय वन विम्मखि सामावजक उ रदावय की भी पूविष करिी है सभी सहायिा कायाष िय
को आिेदन प्रा होने की विवथ से िीसरे माह से प्रार होिा है
अ. निजात (New Born) सहार्ता - बৡे के ज होने पर निजाि सहायिा रू0 500/- प्रवि माह 5 िर्ष
की उम्र िक दी जािी है
आ. विकलािंि सहार्ता (Handicapped Help) - र्शारीररक रूप से अपंग म्मि जो वकसी सरकारी नौकरी
में नहीं हैं उ ें विकिां ग सहायिा रू0 500/- प्रवि माह आजीिन दी जािी है
इ. िरर नािररक सहार्ता (Senior Citizen Help) - 60 िर्ष या उससे अवधक उम्र के ऐसे िरर
नागररक जो सरकारी नौकरी में पूिष में नहीं रहे , उ ें िरर नागररक सहायिा रू0 500/- प्रवि माह
आजीिन दी जािी है
ई. विधुर सहार्ता (Widower Help) - 60 िर्ष से कम उम्र के ऐसे पुरूर् म्मि वजनकी प ी का
गषिास हो िुका है और उ ोंने वफर वििाह न वकया हो, उ ें विधुर सहायिा रू0 500/- प्रवि माह 60
िर्ष की उम्र िक दी जािी है उसके बाद िे पुनः सहायिा के विए आिेदन कर िरर नागररक सहायिा में
आ सकिे हैं मवहिा विधिा को सहायिा दे ने का कोई प्राविधान नहीं रखा गया है क्योंवक सरकार ारा
उ ें विवभ प्रकार की सहायिा ि अिसर प्रदान की गयी है समाज ारा भी उ ें सहयोग और सहानुभूवि
प्रा है
उ. अनार् (Orphan) सहार्ता - 14 िर् र् या उससे कम उम्र के ऐसे बৡे वजनके मािा-वपिा दोनों
गषिासी हो िुके हैं उ ें अनाथ सहायिा रू0 500/- प्रवि माह 18 िर्ष की उम्र िक दी जािी है
ारा संिाविि पररयोजना राय ी का थ मवहिा वमर्शन से जुड़े उ ाद (प्रोडक्ट) - उ ाद, र्शु ,
पंजीकरण ि िाभ वििरण जानने के विए ग्राम/नगर िाडष प्रेरक से स कष करें पररयोजना राय ी में पंजीकरण के
विए पंजीकृि म्मि ही केिि अवधकृि हैं
पिंजीकरर् के उपरा
पंजीकरण करिे ही िह इस प्रणािी का सद बन जािा है वजसे वन सुविधा प्रा हो जािी है -
1. सद , यवद िाहे िो िह यं को 1.वपनकोड क्षेत्र (कायाष िय), 2.विधायक क्षेत्र (प्र ार्शी/नेिा) या 3.
संसदीय क्षेत्र (प्र ार्शी/नेिा) के रूप में यं वनयुि कर सकिा है िेवकन इन िीनों में से केिि एक ही हो
सकिा है
2. वपनकोड क्षेत्र (कायाष िय), एक ािसावयक थान है इसविए इसकी योिा होना आि क है यह एक
वपनकोड क्षेत्र के विए एक ही होगा योिा के विए िेबसाइट् दे खें
3. पंजीकृि सद अपने क्षेत्र के प्र ार्शी (विधायक/सां सद) को िेबसाइट् से अपना िोट् दे कर सिषमा
प्र ार्शी िुन सकेंगे वजसे काई भी दे ख सकेगा
4. पंजीकृि सद कायष योजना और वर्शक्षा-৯ान विकास के विए अनेक पु कों को e-Book के रूप में
डाउनिोड कर सकेगा
िेबसाइट पररचर्
स ूणष क्राम्म के विए इस प्रणािी में वन विम्मखि 3 िेबसाइट् हैं -
1- www.rashtriyanitiayog.com – “सामाज” क्षेत्र ारा भारि रीय स ूणष क्राम्म के विए नेट्िकष
2- www.moralrenew.com – “स मानक वर्शक्षा” ारा भारि रीय स ूणष क्राम्म के विए नेट्िकष
3- www.leledirect.com – “ ापार” क्षेत्र ारा भारि रीय स ूणष क्राम्म के विए नेट्िकष
उपरोि वकसी भी एक िेबसाइट् से पंजीकृि म्मि/संगठन, िः ही अ दो िेबसाइट् के विए भी
पंजीकृि हो जािा है इसविए सभी पर अिग-अिग पंजीकरण नहीं करना है अिग-अिग पंजीकरण कर दे ने
पर आपके अगि-अिग 3 खािे हो जायेंगे
सभी िेबसाइट् के उ ि (Vertical) और क्षैविज (Horizental) मीनू एक समान हैं
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