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रूबाइयाां : फिराक गोरखपरु ी (Class12)

1. फिराक की रुबाई के आधार पर मााँ द्वारा बच्चे को खखलाने और प्रसन्न करने का दृश्य प्रस्तुत
कीजिए।
मााँ अपने बच्चे को चााँद का टुकड़ा मानती हैं वह उसे अपनी गोद में ललए हुए आांगन में खड़ी है । कभी
वह उसे अपने हाथों पर झूलाती है, तो कभी हवा में उछाल दे त ी है । उछलने पर बच्चे के मुाँह से
प्रसन्नता भरी फकलकारी ननकल पड़ती है । इस प्रकार मााँ बच्चे का यह वात्सल्यपर्
ू ण दृश्य मनोरम है ।
2. मााँ द्वारा बच्चे को नहलाने-धुलाने का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
मााँ अपने लशशु को अपने हाथों से िल को उछाल-उछाल कर बच्चे के तन पर डालती है । बाद में वह
उसके उलझे हुए गीले बालों में कांघी करती है । कांघी के बाद िब वह बच्चे को अपने घुटनों में थामकर
कपड़े पहनाती है, तो बच्चा बड़े मधुर प्यार से मााँ की ओर ननहारता है । मााँ-बेटे का यह मधुर दृश्य
सचमुच मनमोहक होता है।
3. ददवाली के ददन की साि-सज्िा और मााँ के वात्सल्य का चचत्रर् अपने शब्दों में कीजिए।
दीपावली के ददन सारा घर रां ग-रोगन से सि कर नया हो गया है । मााँ घर में चीनी लमट्टी से बने हुए
खखलौने ले आयी है। बच्चा उन खखलौनों को बड़े प्यार से ननहारता है । मााँ बच्चे को प्रसन्न करने के
ललए उसके खखलौने वाले सांसार के बीच एक नन्हा ददया िला दे ती है । उस समय उसके चेहरे पर
ममता, कोमलता और वात्सल्य की उिली दमक होती है ।
4. बालक द्वारा चााँद माांगने की जिद का वर्णन अपने शब्दों में करें ।
बालक आकाश में खखले चााँद को दे खकर उसे पा लेना चाहता है । वह समझता है फक यह चाांद एक
खखलौना है। अतः जिद बाांध लेता है। मााँ उसे बहलाने के ललए दपणर् में चाांद का प्रनतबबांब ददखाती है।
बच्चा प्रनतबबांब दे खकर प्रसन्न हो उठता है ।
5. रक्षाबंधन के बारे में कवि ने क्या कहा है?
कवव ने रक्षाबांधन के बारे में कहा है फक आकाश में हल्के- हल्के बादल छाये हुए हैं। इस बीच नन्ही-
सी प्यारी बहन अपने भाई के ललए चमकदार राखी लेकर आती है , राखी चमकदार लच्छों वाली है। वह
उस राखी को भाई की कलाई पर बाांधने के ललए तैयार है ।
6. रुबाई फकसे कहते हैं?
उदण,ू िारसी भाषा में रुबाई एक छां द की श्रेर्ी का काव्य है, िो काफिया या तुकबांदी पर आधाररत है ।
इसमें पहली, दस
ू री और चौथी पांजतत में लयात्मकता होती है । तीसरी पांजतत स्वतांत्र होती है ।
7. रुबाई छां द की भाषा शैली पर प्रकाश डाललए।
• रुबाई की भाषा उदण ू एवां लोक भाषा लमचश्रत है । ‘चााँद का टुकड़ा’ मह
ु ावरे का प्रयोग बच्चे को
सुांदर बताने के ललए हुआ है।
• यह छांद उदण ू कववता का अत्यांत प्रलसद्ध छां द है। वात्सल्य रस का प्रयोग। भाषा सरल तथा
सहि है। वर्णन में दृश्यात्मकता है ।
• बबिली की तरह चमक उपमा अलांकार ‘हल्की- हल्की’ पुनरुजतत प्रकाश ‘स्वभावोजतत’ अलांकार
बच्चे की जिद और ठुनकना स्वाभाववक वर्णनहैं।
• पूरी रुबाइयों में दृश्य बबांब का सुांदर प्रयोग, मााँ और लशशु के अत्यांत सहि और मनोरम रूपों
का चचत्रर्।
• उदण ू शब्दावली का साथणक प्रयोग। ददवाली की िगमग सिावट, नया रां ग-रोगन, लमट्टी के
दीए, िलना- ये सब दीपावली के उत्सव को साकार करते हैं। ‘जिदयाया व हई’ शब्द प्रयोग
ववशेष है।

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