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] सांस्कृतिक अस्मिता' का अर्थ है-हमारी सांस्कृतिक पहचान अर्थात् हमारे जीने, खान-पान, रहन-
सहन, सोचने-विचारने आदि के तौर-तरीके जो हमें दूसरों से अलग करते हैं तथा जिनसे
हमारी वि ष्ट प शि हचान बनी है। उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सांस्कृतिक अस्मिता कमजोर होती जा
रही है। हम सांस्कृतिक अस्मिता की बात कितनी ही करें; परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है,
आस्थाओं का क्षरण हुआ है। कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं,
पचिम के श्चि सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं। हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम
आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त
गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है, जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने के स्वरूप में
अन्तर्निहित होता है। यह 'कृ' (करना) धातु सेबनाहै । इस धातु सेतीन ब्द बनतेहैं 'प्रकृति' की मूल
स्थिति,य ह सं स् कृ त हो जा ता है औ र ज ब य ह बि ग ड़ 'विकृत'
जा ता हैहो जाता
तो है।भारत की सांस्कृतिक अस्मिता
का अर्थ है-भारत की सांस्कृ तिक पहचान। यह पहचान उपभोक्तावादी संस्कृ ति के प्रसार के कारण नष्ट हो रही है। संस्कृ ति के
प्रमुख तत्व प्रतीक, भाषा, मानदंड, मूल्य और कलाकृतियाँ हैं। भाषा प्रभावी सामाजिक संपर्क को
संभव बनाती है और यह प्रभावित करती है कि लोग अवधारणाओं और वस्तुओं की कल्पना कैसे
करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका को अलग करने वाले प्रमुख मूल्यों में व्यक्तिवाद,
प्रतिस्पर्धा और कार्य नैतिकता के प्रति प्रतिबद्धता शा मिलहै।

संस्कृति वह जटिल समग्रता है, जिसमें ज्ञान, विवास सश्वा


, कला, आचरण, कानून, अभ्यास और ऐसी
अन्य योग्यताएं और आदतें शा मिलहैं, जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के रूप में प्राप्त करता
है। भौतिक संस्कृति मूर्त होती है, जबकि अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है। भौतिक संस्कृति का माप
संभव है, जबकि अभौतिक संस्कृति का माप संभव नहीं है।

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