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श्रम अर्थशास्त्र का परिचय

(Introduction of Labour
Economics)
Made By: Dr. Rakesh Kumar Tiwari
Assistant professor
Department of Economics
Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith
Email Id: rakeshtiwari54@gmail.com
Subject-Economics
Paper- Labour Economics Part-1st
Paper- 5th
Class- M.A. 3rd Semester (2020-2021)
श्रम अर्थशास्त्र का तात्पर्य
(Meaning of Labour Economics)
 ‘श्रम अर्थशास्त्र’ अर्थशास्त्र के अध्ययन की वह शाखा है जिसके अंतर्गत श्रम एवं उसकी समस्याओं तथा उससे संबंधित
सिद्धांतों आदि का अध्ययन किया जाता है। (Labor economics is the branch of the study
of economics under which the study of labor and its problems and the
principles related to it are studied.)
मोटे तौर पर अर्थशास्त्र में किसी भी
शारीरिक या मानसिक कार्य को श्रम कहते हैं जो मुद्रा की प्राप्ति की दृष्टि से किया जाता है। विषेस अर्थों में श्रम में के वल
उन्ही मानवीय क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिनसे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन और वितरण सबंधी आर्थिक
क्रियाएं संभव होती है। (Broadly, in economics, any physical or mental work is
called labor, which is done in terms of the attainment of currency. In
the specific sense, labor involves only those human actions that make
economic activities related to the production and distribution of
goods and services possible.)
श्रम अर्थशास्त्र की परिभाषा
(Definition of Labour Economics)
 कार्टर तथा मार्शल के अनुसार, “किसी औद्योगीकरण की ओर बढ़ती हुई अथवा औद्योगीकृ त अर्थव्यवस्था में श्रम
बाजार के संगठन, संस्थाओं और आचरण के लिए अध्ययन के रूप में परिभाषित किया है।”
(Labour Economics may be defined “as a
study of the organisation institutions and behaviour of the labour
market in an industrialising or industrialised economy.” – A.M.
Carter and M.R. Marshall : Labour Economics, p.1)
 थॉमस के अनुसार, “श्रम से मानव के उन सभी शारीरिक या मानसिक प्रयासों का बोध होता है जो किसी फल की
आशा स किये जाते है।” (“Labour
Connote all human efforts of body or mind which are undertaken
in the expectation of so me reward.” – Thomas.)
अर्थात श्रम अर्थशास्त्र वह विज्ञान तथा कला है जिसमें विभिन्न श्रम समस्याओं का सैद्धांतिक और वव्यहारिक रूपों में
अध्ययन किया जाता है।
श्रम की विशेषताएं
(Characteristics of Labour)
1. श्रम को श्रमिक से अलग नहीं किया जा सकता है। (Labour cannot
be separated from labourer.)
2. श्रम उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। (Labor is the most
important factor of production.)
3. श्रम नाशवान वस्तु है। (Labor is a
perishable commodity.)
4. श्रम उत्पादन का साध्य भी है। (Labour
is also the end of production)
5. श्रमिकों में सौदेबाजी की शक्ति होती है। (Labourers have
bargaining power)
6. श्रम को संचित नहीं किया जा सकता है।
(Labour cannot be stored)
7. श्रम से लगातार काम नहीं लिया जा सकता।
(Labor cannot work continuously.)
8. श्रमिक अपनी सेवाओं को बेचता है स्वयं को नहीं। (Labour
sells his services not himself.)
9. श्रम गतिशील होता है।
(Labour is mobile.)
10. श्रम की पूर्ति में शीघ्र परिवर्तन नहीं लाया जा सकता।
(Supply of labour cannot be changed goon.)
11. श्रमिक की सेवाएं की प्रकृ ति परिवर्तन होती है। (The
nature of labourers services is changeable.)
12. श्रम एक मानवीय साधन है। (Labor is
a human factor.)
श्रम अर्थशास्त्र का क्षेत्र
(Scope of Labour Economics)
 डॉ. बी. बी. सिंह के अनुसार, “यह शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार मजदूरी पाने वाले श्रम (Wage
Labour), उद्योग तथा अन्य व्यवसायों में सेवायुक्त (Employee) के रूप में उसकी काम करने की दशाओं
(Working Conditions), कु ल राष्ट्रीय उत्पादन में श्रमिकों के भाग तथा उसे निर्धारित करने वाले नियमों, श्रम
की संभावित प्रवृत्तियों रोजगार के अवसर बढ़ाने के साधनों, किसी उद्योग या व्यवसाय से संबंधित अन्य पक्षों से श्रमिक
का एक विशद अध्ययन है।”
 श्रम अर्थशास्त्र के क्षेत्र के अंतर्गत निम्नलिखित विषयों को सम्मलित किया जाता है। :
1. आर्थिक व्यवस्था विशेष की संस्थागत रूपरेखा।
(Institutional Framework of the Particular Economic System.)
2. श्रमिक वर्ग एवं श्रम बाजार का आकार और रचना। (The size and
composition of the labor class and labor market.)
3. उत्पादन के एक साधन के रूप में श्रम उत्पादकता एवं कार्यक्षमता, कार्यदशाएँ। (Conditions of Work)
4. श्रमिकों की जोखिमें और समस्यांए। (Risks and
Problems of Workers)
5. श्रमिक संघवाद।
(Labor Unionism.)
6. समाज में श्रमिकों की हैसियत। (Status of
workers in society.)
7. श्रम विधान (Labor
Legislation)
G.P. Sinha, The Nature and Scope of Labour Economics,
Report of the Seminar on Labour Economics, 1962, p.18
 अर्थात अर्थशास्त्र में जनशक्ति आयोजन, श्रम संगठन, श्रम एवं सार्वजनिक नीति, मजदूरी और रोजगार सिद्धांत,
सामूहिक सौदेबाजी सिद्धांत तथा सामाजिक सुरक्षा एवं व्यवहार आदि महत्वपूर्ण विषयों का अध्ययन किया जाता है।
 श्रम अर्थशास्त्र के क्षेत्र को दृष्टिगत रखते हुए इसके निम्नलिखित दो पक्ष किये जा सकते हैं :
1. सैद्धांतिक पक्ष (Theoretical
Aspect) श्रम अर्थशास्त्र का
सैद्धांतिक पक्ष विभिन्न मान्यताओं द्वारा आर्थिक व्यवहार के मॉडलों के बनाने सम्भंधित है और इस प्रकार इसे सामान्य
आर्थिक सिद्धांतों को एक अंग माना जा सकता है। वस्तुतः श्रम समस्याओं का अध्ययन दूसरे आर्थिक तत्वों के सन्दर्भ
में ही करना होता है, क्योंकि विभिन्न आर्थिक तत्व एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं। उदाहरणार्थ, रोजगार की मात्रा पर
मजदूरी की सामान्य कटौती के प्रभाव मालूम करने के लिए आय निर्धारण की पद्धति देखना जरूरी है।
2. संस्थागत पक्ष
(Institutional Aspect)
श्रम अर्थशास्त्र का संस्थागत पक्ष प्रमुख रूप में किसी संस्थागत ऐतिहासिक सन्दर्भ में श्रम समस्याओं के विश्लेषण से
सम्बंधित होता है। वस्तुतः आर्थिक प्रणाली संस्थागत ढांचे के बदलने के साथ साथ श्रम समस्याओं का स्वरूप भी
बदल जाता है। मजदूरी निर्धारण पद्धति या श्रमिक संघों की कार्य प्रणाली को संस्थागत बातें अलग करके पूरी तरह नहीं
समझा जा सकता है। आवश्यक रूप से श्रम अर्थशास्त्री किसी दूसरे और अर्थशास्त्री की तरह खास तौर पर आर्थिक
समस्याओं और आर्थिक गतिविधियों में दिलचस्पी लेता रहता है।
 एडम्स व समर के अनुसार, “श्रम समस्या का क्षेत्र इतना विशाल है कि श्रम संघवाद एवं औद्योगिक शांति की समस्याएं
उसके अंतर्गत आ जाती हैं। श्रम समस्या के अंतर्गत श्रमिकों की भर्ती से लेकर उत्पादकता वृद्धि तक की संपूर्ण समस्याएं
सम्मिलित की जाती हैं।”
श्रम अर्थशास्त्र का महत्व
(Importance of Labour Economics)
 श्रम अर्थशास्त्र के महत्व का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है:-
1. सैद्धांतिक महत्व
(Theoretical Importance)
I. ज्ञान में वृद्धि (Increase in
Knowledge)
II. श्रम समस्याओं का ज्ञान (Knowledge
of Labor Problems Knowledge of Labor Problems)
III. श्रम विधान का ज्ञान (Knowledge
of Labor Legislation)
IV. औद्योगिक प्रजातंत्र की अवधारणा (Concept
of Industrial Democracy)
V. मजदूरी निति
(Wage Policy)
2. व्यावहारिक महत्व (Practical
importance)
I. श्रमिकों के दृष्टिकोण से व्यावहारिक महत्व
(Practical Importance of Labour Economics from Workers Point of
View)
A. श्रम संघों की उपयोगिता
(Utility of Labor Unions)
B. रहन-सहन के स्तर में सुधार
(Improvement in Standard of Living)
C. श्रम विधान
(Labor Legislation)
D. श्रम सहकारिता
(Labour Corporation)
II. सेवायोजकों एवं प्रबंधकों के दृष्टिकोण से व्यावहारिक महत्व (Practical
Importance from the Management Point of View)
A. मजदूरी निर्धारण (Wage
Determination)
B. श्रम कल्याण और सामाजिक सुरक्षा (Labor
Welfare and Social Security)
C. रोजगार में मानवीय संबंध (Human
Relations in Employment)
D. भर्ती चयन एवं नियुक्ति (Recruitment
Selection and Appointment)
E. श्रम विधान (Labor
Legislation)
F. मानव शक्ति नियोजन (Manpower
Planning)
G. औद्योगिक मनोविज्ञान
(Industrial psychology)
III. समाज के अन्य वर्गों के लिए व्यावहारिक महत्व (Importance to
Other Sections of Society)
A. समाज सुधार तो के लिए महत्व (Importance for
Social Reform)
B. राजनेताओं के लिए महत्व (Importance for
Politicians)
श्रम की प्रकृ ति एवं समस्याएं
(Nature and Problems of Labor)
 श्रम का अर्थ एवं परिभाषाएं
(Meaning and Definitions of Labor)
श्रम से आशय उस सभी मानवीय शारीरिकी अथवा मानसिक श्रम से है जो उत्पति करने के उद्देश्य से किया जाता है।
 जेवन्स (Jevons) : “श्रम वह मानसिक व शारीरिक प्रयत्न है जो अंशतः या पूर्णतः, कार्य से प्राप्त होने वाले सुख के अतिरिक्त,
अन्य किसी आर्थिक उद्देश्य से किया जाता है।”
(Labor is that exertion of mind or body undertaken partly or
wholly with a purpose of doing some economics activity other than the
pleasure derived directly from the work.”

Jevons, as quoted by Marshall, Principles of Economics, p.65)


 मार्शल (Marshall) : “श्रम से अभिप्राय मनुष्य के आर्थिक कार्य से है, चाहे वह हाथ से किया जाये या मस्तिष्क से।”
(“By labour is meant the economic work
of man, whether with the hand or the head.” –- Marshall)
श्रम समस्याएं तथा उनका वर्गीकरण
(Labor Problems and Their Classification)
 श्रम समस्याओं से आशय या तो व्यक्तिगत (Individual) श्रमिकों की निजी समस्याओं से या औद्यगिक रोजगार से उत्पन्न होने
वाली सामान्य आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं से हो सकता है।
 श्रम समस्याओं का निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत हम अध्ययन कर सकते हैं :
1. मजदूरी संबंधी समस्याएं (Wages Related
Problems)
2. श्रम के कार्य से संबंधित समस्याएं (Work Condition
Related Problems)
3. रोजगार की सुरक्षा से संबंधित समस्याएं (Employment security
related problems)
4. सामाजिक सुरक्षा संबंधी समस्याएं ( Social
security related problems)
5. संघवाद की समस्या (Labour
union related problem)
 श्रम समस्याओं का श्रम अर्थशास्त्र से गहरा संबंध है क्योंकि वे उन बातों का नतीजा होती है जो श्रम अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय
सामग्री है। एक का एक अध्ययन हमें आवश्यक रूप से दूसरे के अध्ययन की ओर ले जाता है। फिर भी श्रम समस्याओं के समाधान की
प्रकृ ति अलग होती है क्योंकि यह समस्याएं गतिशील तथा परिवर्तनशील (Dynamic and Transitory) होती है और इनकी
तीव्रता अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं में अलग-अलग होती है और इनका समाधान भी अलग-अलग अर्थव्यवस्थाओं में अलग-अलग ढंग
से किया जाता है। जबकि श्रम अर्थशास्त्र की समस्याएं पीढ़ी-दर-पीढ़ी (Generation to Generation) लगभग एक सी
रहती है और स्थाई और स्थिर होती हैं।
संदर्भ
(References)
 वी. सी. सिन्हा एवं पुष्पा सिन्हा, “श्रम अर्थशास्त्र”
 पी. के . गुप्ता, “श्रम अर्थशास्त्र”
 आर. सी. सक्सेना, “श्रम समस्या और सामाजिक कल्याण”
Books Recommended
 V.C. Sinha and Pushpa Sinha, “Labour Economics”
 P.K. Gupta, “Labour Economics”

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