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Subject: Economics

Class: M.A. 3rd Semester


Year/Semester: 2020-2021
Name of thePaper: Labour Economics Part-1st
Topic: श्रम अर्थशास्त्र का परिचय
(Introduction of Labour Economics)
Sub-topic: श्रम अर्थशास्त्र का परिचय
(Introduction of Labour Economics)
Key-words: Labour Economics

Dr. Rakesh Kumar Tiwari


Department of Economics
Faculty of Social Science
Mahatma Gandhi Kashi Vidyapith
Varanasi-02
E: mail: drrakeshtiwari@mgkvp.ac.in
श्रम अर्थशास्त्र का परिचय
(Introduction of Labour
Economics)
श्रम अर्थशास्त्र का तात्पर्थ
(Meaning of Labour Economics)
 ‘श्रम अर्थशास्त्र’ अर्थशास्त्र के अध्ययन की वह शाखा है जिसके अंतर्थत श्रम
एवं उसकी समस्त्याओं तर्ा उससे संबंधित ससदिांतों आदि का अध्ययन ककया
िाता है । (Labor economics is the branch of the study of economics
under which the study of labor and its problems and the principles
related to it are studied.)
मोटे तौि पि अर्थशास्त्र में ककसी भी शािीरिक या मानससक कायथ को श्रम
कहते हैं िो मद्र ु ा की प्राजतत की दृजटट से ककया िाता है। ववषेस अर्ों में श्रम
में केवल उन्ही मानवीय कियाओं को शासमल ककया िाता है जिनसे वस्त्तुओं
औि सेवाओं का उत्पािन औि ववतिण सबंिी आधर्थक कियाएं संभव होती है ।
(Broadly, in economics, any physical or mental work is called labor,
which is done in terms of the attainment of currency. In the specific
sense, labor involves only those human actions that make economic
activities related to the production and distribution of goods and
services possible.)
श्रम अर्थशास्त्र की परिभाषा
(Definition of Labour Economics)
 काटथ ि तर्ा माशथल के अनस ु ाि, “ककसी औदयोर्ीकिण की ओि बढ़ती
हुई अर्वा औदयोर्ीकृत अर्थव्यवस्त्र्ा में श्रम बािाि के संर्ठन,
संस्त्र्ाओं औि आचिण के सलए अध्ययन के रूप में परिभावषत ककया
है ।” (Labour
Economics may be defined “as a study of the organisation
institutions and behaviour of the labour market in an
industrialising or industrialised economy.” – A.M. Carter and
M.R. Marshall : Labour Economics, p.1)
 र्ॉमस के अनुसाि, “श्रम से मानव के उन सभी शािीरिक या मानससक
प्रयासों का बोि होता है िो ककसी फल की आशा स ककये िाते है ।”
(“Labour Connote all human efforts of body or mind which are
undertaken in the expectation of so me reward.” – Thomas.)
अर्ाथत श्रम अर्थशास्त्र वह ववज्ञान तर्ा कला है जिसमें ववसभन्न श्रम
समस्त्याओं का सैदिांततक औि वव्यहारिक रूपों में अध्ययन ककया िाता
है ।
श्रम की विशेषताएं
(Characteristics of Labour)
1. श्रम को श्रसमक से अलर् नहीं ककया िा सकता है ।
(Labour cannot be separated from labourer.)
2. श्रम उत्पािन का सबसे महत्वपण
ू थ सािन है ।
(Labor is the most important factor of production.)
3. श्रम नाशवान वस्त्तु है ।
(Labor is a perishable commodity.)
4. श्रम उत्पािन का साध्य भी है ।
(Labour is also the end of production)
5. श्रसमकों में सौिे बािी की शजतत होती है ।
(Labourers have bargaining power)
6. श्रम को संधचत नहीं ककया िा सकता है ।
(Labour cannot be stored)
7. श्रम से लर्ाताि काम नहीं सलया िा सकता।
(Labor cannot work continuously.)
8. श्रसमक अपनी सेवाओं को बेचता है स्त्वयं को नहीं।
(Labour sells his services not himself.)
9. श्रम र्ततशील होता है ।
(Labour is mobile.)
10. श्रम की पूततथ में शीघ्र परिवतथन नहीं लाया िा सकता।
(Supply of labour cannot be changed goon.)
11. श्रसमक की सेवाएं की प्रकृतत परिवतथन होती है ।
(The nature of labourers services is changeable.)
12. श्रम एक मानवीय सािन है ।
(Labor is a human factor.)
श्रम अर्थशास्त्र का क्षेर
(Scope of Labour Economics)
 डॉ. बी. बी. ससंह के अनुसाि, “यह शािीरिक व मानससक िोनों प्रकाि मिििू ी
पाने वाले श्रम (Wage Labour), उदयोर् तर्ा अन्य व्यवसायों में सेवायुतत
(Employee) के रूप में उसकी काम किने की िशाओं (Working Conditions),
कुल िाटरीय उत्पािन में श्रसमकों के भार् तर्ा उसे तनिाथरित किने वाले
तनयमों, श्रम की संभाववत प्रववृ ियों िोिर्ाि के अवसि बढ़ाने के सािनों, ककसी
उदयोर् या व्यवसाय से संबंधित अन्य पक्षों से श्रसमक का एक ववशि अध्ययन
है ।”
 श्रम अर्थशास्त्र के क्षेर के अंतर्थत निम्िलिखित विषर्ों को सम्मलित ककर्ा
जाता है । :
1. आधर्थक व्यवस्त्र्ा ववशेष की संस्त्र्ार्त रूपिे खा।
(Institutional Framework of the Particular Economic System.)
2. श्रसमक वर्थ एवं श्रम बािाि का आकाि औि िचना।
(The size and composition of the labor class and labor market.)
3. उत्पािन के एक सािन के रूप में श्रम उत्पािकता एवं कायथक्ष मता, कायथिशाएँ।
(Conditions of Work)
4. श्रसमकों की िोखखमें औि समस्त्यांए।
(Risks and Problems of Workers)
5. श्रसमक संघवाि।
(Labor Unionism.)
6. समाि में श्रसमकों की है ससयत।
(Status of workers in society.)
7. श्रम वविान
(Labor Legislation)
G.P. Sinha, The Nature and Scope of Labour Economics, Report of the
Seminar on Labour Economics, 1962, p.18
 अर्ाथत अर्थशास्त्र में िनशजतत आयोिन, श्रम संर्ठन, श्रम एवं सावथितनक
नीतत, मिििू ी औि िोिर्ाि ससदिांत, सामूदहक सौिे बािी ससदिांत तर्ा
सामाजिक सुिक्षा एवं व्यवहाि आदि महत्वपूणथ ववषयों का अध्ययन ककया
िाता है ।
 श्रम अर्थशास्त्र के क्षेर को दृजटटर्त िखते हुए इसके तनम्नसलखखत िो पक्ष
ककये िा सकते हैं :
1. सैदिांततक पक्ष
(Theoretical Aspect)
श्रम अर्थशास्त्र का सैदिांततक पक्ष ववसभन्न मान्यताओं दवािा आधर्थक
व्यवहाि के मॉडलों के बनाने सम्भंधित है औि इस प्रकाि इसे सामान्य
आधर्थक ससदिांतों को एक अंर् माना िा सकता है । वस्त्तुतः श्रम समस्त्याओं
का अध्ययन िस ू िे आधर्थक तत्वों के सन्िभथ में ही किना होता है , तयोंकक
ववसभन्न आधर्थक तत्व एक-िस ू िे पि आधश्रत होते हैं। उिाहिणार्थ, िोिर्ाि की
मारा पि मिििू ी की सामान्य कटौती के प्रभाव मालम ू किने के सलए आय
तनिाथिण की पदितत िे खना िरूिी है ।
2. संस्त्र्ार्त पक्ष
(Institutional Aspect)
श्रम अर्थशास्त्र का संस्त्र्ार्त पक्ष प्रमख
ु रूप में ककसी संस्त्र्ार्त ऐततहाससक
सन्िभथ में श्रम समस्त्याओं के ववश्लेषण से सम्बंधित होता है । वस्त्तुतः
आधर्थक प्रणाली संस्त्र्ार्त ढांचे के बिलने के सार् सार् श्रम समस्त्याओं का
स्त्वरूप भी बिल िाता है । मिििू ी तनिाथिण पदितत या श्रसमक संघों की कायथ
प्रणाली को संस्त्र्ार्त बातें अलर् किके पूिी तिह नहीं समझा िा सकता है ।
आवश्यक रूप से श्रम अर्थशास्त्री ककसी िस ू िे औि अर्थशास्त्री की तिह खास
तौि पि आधर्थक समस्त्याओं औि आधर्थक र्ततववधियों में दिलचस्त्पी लेता
िहता है ।
 एडम्स व समि के अनुसाि, “श्रम समस्त्या का क्षेर इतना ववशाल है कक श्रम
संघवाि एवं औदयोधर्क शांतत की समस्त्याएं उसके अंतर्थत आ िाती हैं। श्रम
समस्त्या के अंतर्थत श्रसमकों की भती से लेकि उत्पािकता वद
ृ धि तक की संपूणथ
समस्त्याएं सजम्मसलत की िाती हैं।”
श्रम अर्थशास्त्र का महत्ि
(Importance of Labour Economics)
 श्रम अर्थशास्त्र के महत्व का अध्ययन तनम्न शीषथकों के अंतर्थत ककया िा
सकता है :-
1. सैदिांततक महत्व
(Theoretical Importance)
I. ज्ञान में वद
ृ धि
(Increase in Knowledge)
II. श्रम समस्त्याओं का ज्ञान
(Knowledge of Labor Problems Knowledge of Labor Problems)
III. श्रम वविान का ज्ञान
(Knowledge of Labor Legislation)
IV. औदयोधर्क प्रिातंर की अविािणा
(Concept of Industrial Democracy)
V. मिििू ी तनतत
(Wage Policy)
2. व्यावहारिक महत्व
(Practical importance)
I. श्रसमकों के दृजटटकोण से व्यावहारिक महत्व
(Practical Importance of Labour Economics from Workers Point of
View)
A. श्रम संघों की उपयोधर्ता
(Utility of Labor Unions)
B. िहन-सहन के स्त्ति में सुिाि
(Improvement in Standard of Living)
C. श्रम वविान
(Labor Legislation)
D. श्रम सहकारिता
(Labour Corporation)
II. सेवायोिकों एवं प्रबंिकों के दृजटटकोण से व्यावहारिक महत्व
(Practical Importance from the Management Point of View)
A. मिििू ी तनिाथिण
(Wage Determination)
B. श्रम कल्याण औि सामाजिक सिु क्षा
(Labor Welfare and Social Security)
C. िोिर्ाि में मानवीय संबंि
(Human Relations in Employment)
D. भती चयन एवं तनयुजतत
(Recruitment Selection and Appointment)
E. श्रम वविान
(Labor Legislation)
F. मानव शजतत तनयोिन
(Manpower Planning)
G. औदयोधर्क मनोववज्ञान
(Industrial psychology)
III. समाि के अन्य वर्ों के सलए व्यावहारिक महत्व
(Importance to Other Sections of Society)
A. समाि सुिाि तो के सलए महत्व
(Importance for Social Reform)
B. िािनेताओं के सलए महत्व
(Importance for Politicians)
श्रम की प्रकृनत एिं समस्त्र्ाएं
(Nature and Problems of Labor)
 श्रम का अर्थ एिं परिभाषाएं
(Meaning and Definitions of Labor)
श्रम से आशय उस सभी मानवीय शािीरिकी अर्वा मानससक श्रम से है िो उत्पतत किने
के उदिे श्य से ककया िाता है ।
 िेवन्स (Jevons) : “श्रम वह मानससक व शािीरिक प्रयत्न है िो अंशतः या पूणत थ ः,
कायथ से प्रातत होने वाले सुख के अततरितत, अन्य ककसी आधर्थक उदिे श्य से ककया
िाता है ।”
(Labor is that exertion of mind or body undertaken partly or wholly with a
purpose of doing some economics activity other than the pleasure derived
directly from the work.”
Jevons, as quoted by Marshall, Principles of Economics, p.65)
 माशथल (Marshall) : “श्रम से असभप्राय मनटु य के आधर्थक कायथ से है , चाहे वह हार् से
ककया िाये या मजस्त्तटक से ।”
(“By labour is meant the economic work of man, whether with the hand or
the head.” –- Marshall)
श्रम समस्त्र्ाएं तर्ा उिका िर्ीकिण
(Labor Problems and Their Classification)
 श्रम समस्त्याओं से आशय या तो व्यजततर्त (Individual) श्रसमकों की तनिी समस्त्याओं
से या औदयधर्क िोिर्ाि से उत्पन्न होने वाली सामान्य आधर्थक तर्ा सामाजिक
समस्त्याओं से हो सकता है ।
 श्रम समस्त्याओं का तनम्नसलखखत शीषथकों के अंतर्थत हम अध्ययन कि सकते हैं :
1. मिििू ी संबंिी समस्त्याएं
(Wages Related Problems)
2. श्रम के कायथ से संबंधित समस्त्याएं
(Work Condition Related Problems)
3. िोिर्ाि की सिु क्षा से संबंधित समस्त्याएं
(Employment security related problems)
4. सामाजिक सुिक्षा संबंिी समस्त्याएं
( Social security related problems)
5. संघवाि की समस्त्या
(Labour union related problem)
 श्रम समस्त्याओं का श्रम अर्थशास्त्र से र्हिा संबंि है तयोंकक वे उन बातों का नतीिा
होती है िो श्रम अर्थशास्त्र के अध्ययन की ववषय सामग्री है । एक का एक अध्ययन
हमें आवश्यक रूप से िस ू िे के अध्ययन की ओि ले िाता है । कफि भी श्रम समस्त्याओं
के समािान की प्रकृतत अलर् होती है तयोंकक यह समस्त्याएं र्ततशील तर्ा
परिवतथनशील (Dynamic and Transitory) होती है औि इनकी तीव्रता अलर्-अलर्
अर्थव्यवस्त्र्ाओं में अलर्-अलर् होती है औि इनका समािान भी अलर्-अलर्
अर्थव्यवस्त्र्ाओं में अलर्-अलर् ढं र् से ककया िाता है । िबकक श्रम अर्थशास्त्र की
समस्त्याएं पीढ़ी-िि-पीढ़ी (Generation to Generation) लर्भर् एक सी िहती है औि
स्त्र्ाई औि जस्त्र्ि होती हैं।
प्रश्न
(Question)
1. मानव िीवन में श्रम के महत्व पि प्रकाश डासलये ।
2. श्रम अर्थशास्त्र की ववषय सामग्री, स्त्वभाव एवं क्षेर का आलोचनात्मक मूल्याङ्कन
कीजिए।
3. श्रम अर्थशास्त्र में 'श्रम' का तया अर्थ होता है ? श्रम की ववशेषताओं की वववेचना
कीजिए।
4. श्रम के वर्ीकिण के ववसभन्न आिािों का सववस्त्ताि वणथन किें ।
संदभथ
(References)
 वी. सी. ससन्हा एवं पुटपा ससन्हा, “श्रम अर्थशास्त्र”
 पी. के. र्ुतता, “श्रम अर्थशास्त्र”
 आि. सी. सतसे ना, “श्रम समस्त्या औि सामाजिक कल्याण”
Books Recommended
 V.C. Sinha and Pushpa Sinha, “Labour Economics”
 P.K. Gupta, “Labour Economics”

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