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साांख्यदर्शन में ग्रहों के कारकत्व (कारकभाव) की सीधी चचाश नह ां होती है , क्योंकक

साांख्यदर्शन और ज्योततष दोनों ह अलग-अलग र्ास्त्र हैं और उनकी दृष्टि भभन्न है ।


साांख्यदर्शन मख्
ु यत: मानव जीवन, प्रकृतत, और परु
ु ष के भसदधाांतों पर केंद्रित है, जबकक
ज्योततष ग्रहों, नक्षरों, और राभर्यों के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित है।

ज्योततष में , ग्रहों को ववभभन्न भावों और राभर्यों के साथ जोड़कर कारकत्व भमलता है,
ष्जससे ववभभन्न पहलओ
ु ां पर उनका प्रभाव होता है। यह कारकत्व व्यष्क्त की जन्मकांु डल के
आधार पर तनधाशररत होता है। तनम्नभलखित हैं कुछ ग्रह और उनके कारकत्व के उदाहरण:

1. सूयश (Sun) - आत्मा, स्त्वास्त््य, वपत ृ


2. चांि (Moon) - मन, मात ृ
3. मांगल (Mars) - र्ौयश, भूभम, भात ृ
4. बह
ृ स्त्पतत (Jupiter) - ज्ञान, धमश, गुरु
5. र्क्र
ु (Venus) - सौन्दयश, सि
ु , समद
ृ धध
6. र्तन (Saturn) - कमश, न्याय, श्रभमक
7. राहु (Rahu) - अदृश्य, माया, छाया
8. केतु (Ketu) - तनराकार, त्याग, मोक्ष

ज्योततष में इन ग्रहों का स्त्थान और सांयोजन कांु डल में ववचार ककया जाता है ताकक उनका
सह प्रभाव तनधाशररत ककया जा सके। ककसी ग्रह की ष्स्त्थतत और कारकत्व व्यष्क्त के जीवन
में ववभभन्न क्षेरों में प्रभाव डाल सकती हैं।

साांख्यदर्शन में 25 तत्त्वों का भसदधाांत है, और इसमें ग्रहों के कारकत्व (कारक भूत गुण) का
स्त्पटि उल्लेि नह ां है। साांख्यदर्शन का मख्
ु य ध्येय प्रकृतत, परु
ु ष, त्ररगण
ु ा, बद
ु धध, अहांकार,
इष्न्ियााँ, मन, पञ्चभत
ू , कमश, दुःु ि, सि
ु , ज्ञान, आद्रद के भसदधाांतों पर है।

ज्योततष (ववदया) ह वह भाग है जो ग्रहों के कारकत्व और उनके प्रभावों पर ववर्ेष ध्यान


केंद्रित करता है । ज्योततष में , ग्रहों को जन्मकांु डल में ववभभन्न भावों और राभर्यों में ष्स्त्थत
होने के आधार पर कारक गण
ु और कारकत्व द्रदए जाते हैं।

यहाां कुछ ग्रहों के कारकत्व का उदाहरण है:

1. सूय:श आत्मा, स्त्वास्त््य, वपत,ृ राजा


2. चांि: मात,ृ मन, जल, नजर
3. मांगल: भभू म, बौना, बल, आतांक
4. बह
ृ स्त्पतत: बुदधध, भर्क्षा, ववदया, गुरु, धमश
5. र्ुक्र: सौंदयश, सि
ु , सामांजस्त्य, कला, सांगीत
6. र्तन: न्याय, धमश, श्रम, कमश, तनयम

इसके अलावा, राहु और केतु भी कुछ ववर्ेष कारकत्वों के साथ जुड़े होते हैं। ज्योततष में , ये
ग्रह और उनके कारकत्व जातक की जन्मकांु डल में दे िे जाते हैं और इनका ववर्ेष प्रभाव
मान्य ककया जाता है ।

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साांख्यदर्शन के 25 तत्त्वों granho ka sambnadh


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साांख्यदर्शन एक प्राचीन भारतीय दर्शन है जो मुख्यत: सांख्या, प्रकृतत, और पुरुष के


भसदधाांतों पर आधाररत है । साांख्यदर्शन में 25 मुख्य तत्त्वों का सम्बांध नह ां होता है , बष्ल्क
इसमें 25 तत्त्वों की सूची नह ां होती है।

साांख्यदर्शन के सांस्त्थापक महवषश कवपल (Maharshi Kapila) थे, और इन्होंने साांख्य सर


ू ों में
भसदधाांतों को वववेचन ककया। इसमें सांख्या, प्रकृतत, पुरुष, त्ररगण
ु ा (सत्त्व, रजस, तामस),
महत ्, अहांकार, बुदधध, अांकुर् (योग्यता), इष्न्ियााँ, तन्माराएाँ, मन, पञ्चभूत, कमश, दुःु ि,
सुि, ज्ञान, ऐश्वयश (ईश्वर य र्ष्क्त), वैराग्य, प्राण, आकार्, वायु, अष्ग्न, जल, प्
ृ वी, तेज
(प्रकार्) इत्याद्रद के तत्त्वों पर ववचार ककया गया है ।

यद्रद आपको इन तत्त्वों के वववेचन की आवश्यकता है , तो आप साांख्यदर्शन के मौभलक ग्रांथों


जैसे कक साांख्यकाररका, साांख्यसूर, और तत्त्वकौमुद को स्त्तुद कर सकते हैं। इन ग्रांथों में
साांख्यदर्शन के मूल भसदधाांतों का वववेचन ववस्त्तार से भमलेगा।

साांख्यदर्शन के 25 तत्त्वों grah nakshatro rashi ka sambnadh


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साांख्यदर्शन और ज्योततष (ग्रह, नक्षर, और राभर्) दोनों ह ववभभन्न र्ास्त्र हैं और इनमें से
प्रत्येक अपने-अपने क्षेर में ववचार करता है। साांख्यदर्शन ने मख्
ु यत: मानव जीवन, प्रकृतत,
और पुरुष के भसदधाांतों पर ध्यान द्रदया है, जबकक ज्योततष ने ग्रहों, नक्षरों, और राभर्यों के
आधार पर भववटयवाणी और जातक के गण
ु -दोषों का ववश्लेषण ककया है।
साांख्यदर्शन में 25 तत्त्वों का उल्लेि ककया गया है , जैसा कक मैंने पहले बताया है, और
इसमें ग्रह, नक्षर, और राभर्यों का वववरण र्ाभमल नह ां है। ज्योततष में ग्रह, नक्षर, और
राभर्यााँ व्यष्क्त के जन्मचक्र के अांतगशत आती हैं और उनका ववर्ेष महत्व होता है।

ज्योततष र्ास्त्र में, ग्रह अांग्रेजी में 'planets' कहे जाते हैं, और इनमें सूय,श चांि, मांगल,
बह ृ स्त्पतत, र्क्र
ु , र्तन, राहु, और केतु र्ाभमल हैं। इन ग्रहों का जीवन पर ववर्ेष प्रभाव होता
है , और ज्योततष ववधध के अनुसार इनकी ष्स्त्थतत और गोचर व्यष्क्त के जीवन में बदलाव
ला सकती हैं।

नक्षर एक छोिा द्रहस्त्सा होता है जो आकार् में द्रदिाई दे ने वाले तारों का समूह होता है ।
ज्योततष में , जन्मकांु डल को नक्षर क्षेर के आधार पर बनाया जाता है और नक्षरों की
ष्स्त्थतत का महत्वपूणश भूभमका होती है ।

राभर् जन्मकांु डल का एक और महत्वपूणश द्रहस्त्सा है, जो 12 धचन्हों में ववभाष्जत होती है ।


राभर् के आधार पर ज्योततषीय गण
ु , स्त्वभाव, और ववर्ेष गुण तनधाशररत ककए जाते हैं।

इस प्रकार, साांख्यदर्शन और ज्योततष दोनों ह अलग-अलग दर्शन हैं और उनमें अलग-अलग


तत्त्वों की चचाश होती है । इनका सम्बांध एक दस
ू रे के भसदधाांतों के साथ नह ां होता है ।

साांख्यदर्शन के 25 तत्त्वों ke grah karakatvas


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साांख्यदर्शन में 25 तत्त्वों का भसदधाांत है, और इसमें ग्रहों के कारकत्व (कारक भूत गुण) का
स्त्पटि उल्लेि नह ां है। साांख्यदर्शन का मुख्य ध्येय प्रकृतत, पुरुष, त्ररगण
ु ा, बुदधध, अहांकार,
इष्न्ियााँ, मन, पञ्चभत
ू , कमश, दुःु ि, सि
ु , ज्ञान, आद्रद के भसदधाांतों पर है।

ज्योततष (ववदया) ह वह भाग है जो ग्रहों के कारकत्व और उनके प्रभावों पर ववर्ेष ध्यान


केंद्रित करता है । ज्योततष में , ग्रहों को जन्मकांु डल में ववभभन्न भावों और राभर्यों में ष्स्त्थत
होने के आधार पर कारक गुण और कारकत्व द्रदए जाते हैं।

यहाां कुछ ग्रहों के कारकत्व का उदाहरण है:

1. सय
ू :श आत्मा, स्त्वास्त््य, वपत,ृ राजा
2. चांि: मात,ृ मन, जल, नजर
3. मांगल: भभू म, बौना, बल, आतांक
4. बह
ृ स्त्पतत: बुदधध, भर्क्षा, ववदया, गुरु, धमश
5. र्ुक्र: सौंदयश, सि
ु , सामांजस्त्य, कला, सांगीत
6. र्तन: न्याय, धमश, श्रम, कमश, तनयम

इसके अलावा, राहु और केतु भी कुछ ववर्ेष कारकत्वों के साथ जुड़े होते हैं। ज्योततष में , ये
ग्रह और उनके कारकत्व जातक की जन्मकांु डल में दे िे जाते हैं और इनका ववर्ेष प्रभाव
मान्य ककया जाता है ।

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साांख्यदर्शन में 25 तत्त्वों ke namm


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साांख्यदर्शन में 25 मख्


ु य तत्त्वों को "तत्त्व" नह ,ां बष्ल्क "तत्वातन" कहा जाता है , जो महवषश
कवपल के साांख्यसूरों में ववस्त्तत
ृ रूप से वखणशत हैं। ये साांख्यदर्शन के मुख्य भसदधाांतों को
समझने में मदद करते हैं। ये 25 तत्त्व तनम्नभलखित होते हैं:

1. प्रकृतत (Prakriti): प्रकृतत र्ष्क्त, प्रधान तत्त्व, प्राकृत, प्रववृ ि।


2. महत ् (Mahat): बुदधध, महातत्त्व, ज्ञान, महान, बुदधधतत्त्व।
3. अहांकार (Ahankara): अहांकारतत्त्व, अहां कृतत, अभभमान, अहां ता।
4. मन (Manas): मनोबद
ु धधअहांकारधचिातन, अांतुःकरण, बुदधधतत्त्व।
5. पञ्चतन्मारा (Panchatanmatra): र्ब्द, स्त्पर्श, रूप, रस, गांध।
6. पञ्चभूत (Panchabhuta): प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु, आकार्।
7. इष्न्िय (Indriya): ज्ञानेष्न्िय, कमेष्न्िय, श्रोर, त्वक, चक्षु, रसना, घ्राण, वाक् ।
8. तन्मारा (Tanmatra): र्ब्दतन्मारा, स्त्पर्शतन्मारा, रूपतन्मारा, रसतन्मारा,
गांधतन्मारा।
9. कमश (Karma): कक्रयार्ष्क्त, प्रववृ ितत्त्व, कायश, करण।
10. महाभूत (Mahabhuta): भूततत्त्व, प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु, आकार्।
11. दुःु ि (Duhkha): सांसारदुःु ि, जीवन का दुःु ि, जन्ममरणाद्रद का दुःु ि।
12. सुि (Sukha): आत्मसुि, मुष्क्तसि
ु , आनांद, परमानांद।
13. इच्छा (Ichha): कामना, इच्छार्ष्क्त, इच्छातत्त्व।
14. दवन्दव (Dvandva): सुि-दुःु ि, लाभ-हातन, जय-पराजय, द्रहत-अद्रहत।
15. परु
ु ष (Purusha): जीवात्मा, साक्षी, चेतना, परु
ु षत्त्व।
16. आत्मा (Atma): जीवात्मा, अन्तरात्मा, आत्मतत्त्व।
17. बुदधध (Buddhi): ववचारर्ष्क्त, साक्षी, बुदधधतत्त्व।
18. योग्यता (Yogyata): कतशव्ययोग्यता, सांयोगयोग्यता, कारणयोग्यता।
19. अववदया (Avidya): अज्ञान, मूलाववदया, असिा, अव्यक्त।
20. ऐश्वयश (Aishvarya): ईश्वर यर्ष्क्त, दै वयोग्यता, तनयिा।
21. वैराग्य (Vairagya): ववरष्क्त, मोक्षभाव, तनटकामता।
22. प्राण (Prana): जीवनर्ष्क्त, प्राणतत्त्व, प्राणवाय।ु
23. अकार् (Akasha): आकार्तत्त्व, र्ून्य, ब्रह्माकार्।
24. वायु (Vayu): वायुतत्त्व, प्राणवायु, गततर्ष्क्त।
25. अष्ग्न (Agni): अष्ग्नतत्त्व, तेज, ज्ञानर्ष्क्त।

इन 25 तत्त्वों का सम्बांध साांख्यदर्शन में जीवन के अन्यान्य पहलओ


ु ां के साथ होता है, जो
मानव अष्स्त्तत्व को समझने और मष्ु क्त की प्राष्तत के माध्यम से सांबांधधत हैं

साांख्यदर्शन में 25 तत्त्वों का उपरोक्त सूची के साथ ग्रहों के कारकत्व का सीधा सम्बांध नह ां
होता है, क्योंकक ये दोनों अलग-अलग दर्शन हैं। ग्रहों के कारकत्व का वववरण ज्योततष
र्ास्त्र में भमलता है, जो आकार्ीय गततयों, राभर्यों, और भावों के साथ जड़
ु ा होता है ।

यहाां कुछ मुख्य ग्रह और उनके कारकत्वों का उपरोक्त सांक्षेप है:

1. सूयश (Sun): प्रमि


ु कारकत्व - स्त्वास्त््य, आत्मा, वपत,ृ राजा, र्ष्क्त।
2. चांि (Moon): प्रमि
ु कारकत्व - मात,ृ मन, नजर, जल, भूभम।
3. मांगल (Mars): प्रमि
ु कारकत्व - बल, युदध, वीरता, भूभम, र्ष्क्त।
4. बह
ृ स्त्पतत (Jupiter): प्रमुि कारकत्व - बुदधध, ववदया, धमश, गुरु, ज्ञान, सि
ु ।
5. र्क्र
ु (Venus): प्रमुि कारकत्व - सौंदयश, सुि, कला, सांगीत, वववाह, भोग।
6. र्तन (Saturn): प्रमि
ु कारकत्व - कमश, न्याय, धमश, श्रम, कद्रिनाइयााँ, उपासना।
7. राहु (Rahu) और केतु (Ketu): प्रमि
ु कारकत्व - कमश, मोक्ष, रहस्त्य, उपासना,
कद्रिनाइयााँ।

यह ग्रह कारकत्व आत्मकेंद्रित होते हैं और जन्मकांु डल में इनकी ष्स्त्थतत पर ववचार ककया
जाता है ताकक व्यष्क्त के जीवन में उनका प्रभाव समझा जा सके।

साांख्यदर्शन के उपरोक्त 25 तत्त्वों में ग्रहों के कारकत्व का सीधा सम्बांध नह ां होता है ,


क्योंकक साांख्यदर्शन और ज्योततष दोनों ह अलग-अलग र्ास्त्र हैं।

ग्रहों के कारकत्व का वववरण ज्योततष र्ास्त्र में भमलता है , जो आकार्ीय गततयों, राभर्यों,
और भावों के साथ जड़
ु ा होता है । यहाां कुछ ग्रह और उनके कारकत्वों का सांक्षेप है:
1. सूयश (Sun): आत्मा, जीवन र्ष्क्त, प्रमुि कारक।
2. चांि (Moon): मन, भावनाएां, जन्म-मत्ृ यु, जल तत्त्व का प्रतीक।
3. मांगल (Mars): ऊजाश, कक्रयार्ष्क्त, यद
ु ध, बल, तेज।
4. बह
ृ स्त्पतत (Jupiter): बद
ु धध, ववदया, धमश, गरु
ु , ज्ञान।
5. र्क्र
ु (Venus): सौंदयश, सि
ु , कला, सांगीत, वववाह, प्रेम।
6. र्तन (Saturn): कमश, न्याय, सांयम, श्रम, साधना।
7. राहु (Rahu) और केतु (Ketu): कमश, उपासना, रहस्त्य, मोक्ष।

यह ग्रह कारकत्व जातक की जन्मकांु डल में दे िा जाता है ताकक उनका प्रभाव उनके जीवन
में समझा जा सके। कुछ ग्रह ववर्ेष भावों को तनद्रदश टि करते हैं, जबकक कुछ ग्रह ववर्ेष
राभर्यों में अधधक प्रभावी होते हैं।

पांच तत्व: र्र र के पाांच तत्व और इसे सां तुभलत करने के भलए योग

डॉ ऋवषता चांिा 27 द्रदसांबर 2019 5 द्रितपखणयााँ

प्राचीन इततहास और सभ्यताओां के ग्रांथों में "पांच तत्व" र्ब्द का अक्सर उल्लेि ककया
गया है । यह र्ब्द " पाांच तत्वों" को सांदभभशत करता है ष्जनसे यह ब्रह्माांड और हमारा
र्र र बना है ।
द्रहांद ू पौराखणक कथाओां के अनुसार , मनुटय का र्र र इन पाांच मूल तत्वों से बना है
और ऐसा माना जाता है कक जब कोई मर जाता है , तो उसका र्र र वापस इन तत्वों
में बदल जाता है और पाररष्स्त्थततकी तांर के साथ भमधश्रत हो जाता है ।
पांच-तत्व र्ब्द की उत्पवि

' पञ्च तत्व ' र्ब्द की उत्पवि सांस्त्कृ त से हु ई है और यह दो र्ब्दों से भमलकर बना
है "पांच" का अथश है 'पाांच' और "तत्व" तत्वों को दर्ाशता है ।
जीवन के सावशभौभमक तनयम का पालन करते हु ए, इस ग्रह पर हर चीज पाांच मूल
तत्वों से बनी है , ष्जन्हें "पां चमहाभूत" (उच्चारण पांच महाभो तस ) भी कहा जाता है ।
ववज्ञापनों

पााँच तत्व हैं :

▪ आकार् या ईथर या अांतररक्ष


▪ वायु या हवा
▪ जल या पानी
▪ अष्ग्न या आग
▪ प्
ृ वी या प ्
ृ वी
पाांच तत्व द्रदए गए तत्व से सांबांधधत भौततक गुणों, ऊजाश से सांबांधधत ववर्ेषताओां और
जैववक कायों को दर्ाशते हैं।

घनत्व के अनुस ार , इन पाांच तत्वों को तनम्नभलखित क्रम में व्यवष्स्त्थत ककया जा


सकता है : प ्
ृ वी>जल>अष्ग्न>वायु>आकार्>अां तररक्ष ।
ब्रह्माांड की नीांव के रूप में पांच-तत्व

सांपूण श ब्रह्माांड की नीांव पाांच प्रमुि तत्वों दवारा रिी गई है । वे इस बहती हु ई द तु नया
के भलए नद तल की तरह काम करते हैं। इस सांसार के सभी जीववत और तनजीव
अष्स्त्तत्व पांच-तत्व या पाांच तत्वों से बने हैं।
ववज्ञापनों

इन पाांच तत्वों का समामेलन ब्रह्माांड में प्रत्येक वस्त्तु और प्राणी को एक व्यापक


स्त्पेक्रम प्रदान करता है । यह न के वल इसे ववववध बनाता है बष्ल्क इसे एक असाधारण
आयाम भी दे ता है ।
प्रत्ये क वस्त्तु और व्यष्क्त में रचना का अनुपात और सामग्री भभन्न हो सकती है ले ककन
एक अववभाज्य रूप में मौजूद होती है , जो ववभभन्न तत्वों की बहु मुिी प्रततभा के कारण
भमधश्रत बनावि की होती है ।

समस्त्त ब्रह्माांडीय चेतना और आत्मा में ये पााँच तत्व उनके अष्स्त्तत्व के अभभन्न अांग
के रूप में समाद्रहत हैं ।

पााँच तत्वों का सां रचनात्मक गिन

▪ वायु की उत्पवि आकार् से मानी जाती है और यह सवशव्यापी है ।


▪ अष्ग्न तत्व की जड़ें हवा में हैं और इसभलए यह हवा से अधधक सघन है ।
▪ जल की स्त्थापना अष्ग्न से होती है और इसका घनत्व अष्ग्न से अधधक होता है ।
▪ ब्रह्माांड के सभी पााँच तत्वों में सबसे अधधक घनत्व प ्
ृ वी में पाया जाता है
। कहा जाता है कक प ्ृ वी की उत्पवि जल से हु ई है ।
ककसी तत्व का प्रत्येक परमाणु इन पांचतत्वों से उत्पन्न होता है ।
1. आकार् - अां तररक्ष तत्व

आकार् तत्व वह स्त्थान है जो ब्रह्माांड के ष्स्त्थर और गततर्ील तत्वों से परे मौजूद


है । यह स्त्थान प्रोिॉन जैसे तत्वों दवारा कब्जा ककया जा सकता है और साथ ह यह
कु छ न्यूरॉन को भी इसमें घूमने की अनुमतत दे ता है ।

2. वायु - वायु तत्व

यह इस ब्रह्माांड में मौजूद अधधकाांर् तत्वों के भलए प्रेरक र्ष्क्त का प्रतततनधधत्व करता
है । मानव र्र र में 5 प्राणों के रूप में अलग-अलग वायु ववदयमान हैं । यह सवशव्यापी
है और अपने नाभभक के चारों ओर इलेक्रॉनों को स्त्थानाांतररत करने के भलए अपना बल
प्रदान कर सकता है ।
3. अष्ग्न - अष्ग्न तत्व

यह उस ऊजाश का प्रतततनधधत्व करता है ष्जसे अन्य प्रकार की ऊजाश में पररवतत त


श ककया
जा सकता है ।

प्रत्ये क परमाणु के अांदर कु छ न कु छ गुतत ऊजाश मौजूद होती है । इस प्रकार की ऊजाश


तब मुक्त हो सकती है जब कोई परमाणु िू ि जाता है और इसे ऊटमाक्षेपी कहा जाता
है । और जब यह ऊजाश ककसी चीज़ के तनमाशण के भलए तत्वों दवारा ल जाती है , तो
इसे एांडोथभमशक कहा जाता है ।
.

4. जल- जल तत्व

यह वह बल दे ता है जो ककसी तत्व के ववभभन्न भागों को आकवषशत करने और उसे एक


साथ रिने के भलए आवश्यक है । इस प्रकार की प्रकक्रया को सांसांजन के रूप में जाना
जाता है और पानी सांसांजक बल प्रदान करके प्रोिॉन, न्यूरॉन और इले क्रॉनों को एक ह
क्षेर में आकवषशत रिता है ।

5. प ्
ृ वी - प ्
ृ वी तत्व

यह तत्व ककसी तत्व को मै द्ररक्स प्रदान करता है । चूांकक प ्


ृ वी िोस अवस्त्था से बनी है
और उसका प्रतततनधधत्व करती है , इसभलए यह एक तत्व में भी वैसा ह योगदान दे ती
है । इसके पररणामस्त्वरूप परमाणु के इलेक्रॉन, प्रोिॉन और न्यूरॉन की सांरचना होती
है ।

पाांच तत्व और स्त्वास्त््य

जैसा कक पहले ह चचाश की जा चुकी है , सभी सजीव और तनजीव वस्त्तुएाँ इन पााँच


तत्वों से बनी हैं। तो जो कु छ भी हमें घेरता है , जो कु छ भी हम िाते हैं,
पाररष्स्त्थततकी तांर की जैव ववववधता, इन पांच तत्वों को एक साथ रिती है ।
प्रकृ तत में पाए जाने वाले पदाथश , जैसे भोजन, पौधे, जड़ी-बूद्रियााँ, झाडड़यााँ, सूरज की
रोर्नी, हवा, पानी, ितनज, आद्रद का ढााँचा पांच तत्व की अवधारणा के सांबांध में मानव
र्र र के समान है । यह स्त्वास्त््य को बनाए रिता है और इस श्र ांृिला के उधचत सांतुलन
के भलए इसे पयाशवरण के साथ जोड़ता है ।
यद्रद ये तत्व एक-द स
ू रे के भलए अच्छी तरह से आनुपाततक हैं , तो यह एक स्त्वस्त्थ और
स्त्वस्त्थ र्र र की ओर ले जाता है । बेहतर स्त्वास्त््य के भलए सामांजस्त्यपूण श सांबांध बनाने
के भलए र्र र और प्रकृ तत के बीच सांतुलन बनाए रिना चाद्रहए। जब सांरचना में कोई
असामांजस्त्य होता है , तो यह र्र र की िराबी का कारण बन सकता है ।

इां द्रियों और पांच तत्वों की अवधारणा


भौततक सांसार की समझ इां द्रियों या "इां द्रियों" की मदद से की जाती है । " इां द्रियााँ " न
के वल पााँच ज्ञानेष्न्ियों से, बष्ल्क पााँच कमेष्न्ियों से भी तनभमशत होती हैं । पाांच
कमेष्न्ियों को स्त्वरयांर, हाथ, पैर, जननेष्न्िय और गुदा नाम द्रदया गया है । पााँच
ज्ञानेष्न्ियााँ आाँि, कान, नाक, जीभ और त्वचा हैं ।
ये पााँच ज्ञानेष्न्ियााँ हमें वास्त्तववकता को दे िने और ज्ञान प्रदान करने में मदद करती
हैं , इन्हें "ज्ञानइष्न्ियााँ" के रूप में जाना जाता है और पााँच कमेष्न्ियााँ हमें कायश करने
में मदद करती हैं , इन्हें "कमे ष्न्ियााँ" के रूप में जाना जाता है ।
पााँच तनचले चक्र पांचतत्व से सांबांधधत हैं । सुांधधस्त्तान, मूलाधार, अनाहत, ववर्ुदध और
मखणपुर नामक ये चक्र ऊजाश के प्रवाह के साथ तालमेल त्रबिाते हैं जो पांच तत्व और
सांबांधधत इांद्रियों के साथ आसपास होता है ।
मानव र्र र का प्रतततनधधत्व करने वाले पाांच तत्व

" प्
ृ वी तत्व " हड्डडयों और माांसपेभर्यों का प्रतततनधधत्व करता है । रक्त जो सांयोजी
ऊतक है और महत्वपूण श महत्व का है , उसका प्रतततनधधत्व " जल तत्व " दवारा ककया
जाता है । वाय ु तत्व साांस ले ने और श्वसन के भलए ग्रहण करता है । र्र र का
तापमान अथाशत होभमयोस्त्िै भसस को बनाए रिने के भलए उत्पन्न और अवर्ोवषत गमी
को " अष्ग्न तत्व " दवारा दर्ाशया जाता है । मनुटय का र्र र एक बतशन के रूप में बना
है या इसमें एक नहर है जहाां अांगों को रिा जाता है । र्र र के भीतर की यह खाल पन
या िोिलापन " अां तररक्ष तत्व " दवारा दर्ाशया जाता है ।
पााँच उां गभलयााँ पााँच तत्वों का प्रतततनधधत्व करती हैं

प्राण र्ष्क्त या प्राण र्ष्क्त का गिन पााँचों उां गभलयों में तनद्रहत है , उां गभलयों का भसरा
ऊजाश प्रवाह का सबसे बड़ा कें ि है । प्रत्येक उां गल पाांच तत्वों या महाभूत के ववभभन्न
घिकों का प्रतततनधधत्व करती है ।
▪ अष्ग्न (अष्ग्न): अांगूिा
▪ वायु (वायु): तजशनी

▪ अांतररक्ष (आकार्): मध्यमा उां गल

▪ प्
ृ वी (प ्
ृ वी): अनाभमका

▪ जल (जल): छोि उां गल

ब्रह्माण्ड में सबसे बड़ा तत्व वायु है । यह ब्रह्माांड के अधधकतम स्त्थान के साथ-साथ
मानव र्र र के अांदर भी तघरा हु आ है । यह र्र र की कोभर्काओां और अांतुःकोभर्कीय
स्त्थान को भरता है । इसभलए, इसका प्रतततनधधत्व सबसे लांबी उां गल यानी मध्यमा
उां गल से होता है ।
ये सभी तत्व ककसी र्र र के अष्स्त्तत्व और कामकाज के भलए महत्वपूण श हैं । यद्रद इनमें
से ककसी भी तत्व को हिा द्रदया जाए, तो यह र्र र के ढहने का कारण बन सकता
है । र्र र के र्ार ररक कायों को पूरा करने के भलए मौजूद सभी प्रकार की ऊजाश
बुतनयाद आवश्यकता है । इन्हें जीवन र्ष्क्त या प्राण र्ष्क्त के रूप में जाना जाता
है , उदाहरण के भलए ऊजाश के ववभभन्न रूपों जैसे ववदयुत, रासायतनक, ववदयुत
चुम्बकीय ऊजाश और बायोएनजी का समामेलन । इन महत्वपूण श र्ष्क्तयों में असांतुलन
स्त्वास्त््य को प्रभाववत करता है ।
मानव अां गों और चक्रों का पांच -तत्त्व से जुड़ाव

र्र र के पाांच तत्व अांग प्रणाभलयों से कै से जुड़ े हैं , इसकी समझ होने से व्यष्क्त बेहतर
स्त्वास्त््य की ओर बढ़ सकता है ।

1. आकार् या अां तररक्ष - सुनने का अां ग

पहला तत्व आकार् या अांतररक्ष है और इसका सांबांध श्रवण से है । सुनने की इांद्रिय


आकार् तत्व से प्रेररत होती है । यह मुां ह के साथ-साथ कानों से भी मेल िाता है और
इसभलए क्रमर्ुः कमेंद्रिय और ज्ञानें द्रिय के रूप में कायश करता है । इसका सांबांध ववर् ुदध
चक्र से है ।
यह भी पढ़ें : गला चक्र (ववर्ुदध) का अथश और इसे कै से सांतुभलत करें

2. वायु या वायु - स्त्पर्श का अां ग

दस
ू रा तत्व वायु या हवा है और यह गततर्ीलता या गतत का प्रतततनधधत्व करता
है । यह स्त्पर्श या स्त्पर्श की भावना को दर्ाशता है और कमेंद्रिय के रूप में हाथों
और ज्ञानें द्रिय के रूप में त्वचा से मेल िाता है । वायु घिक से सांबांधधत चक्र अनाहत
चक्र है ।
यह भी पढ़ें : हृदय चक्र (अनाहत): अथश और इसे कै से सांतुभलत करें

3. अष्ग्न या आग - दे िने का अां ग

तीसरा तत्व अष्ग्न या अष्ग्न है । यह ऊजाश के प्रवाह से जुड़ा है । यह दे िने या दे िने


की भावना यानी " रूपा " को उिेष्जत करता है । यह आांिों से जुड़ा है
क्योंकक ज्ञानें द्रिय और कमेंद्रिय को पैरों दवारा दर्ाशया जाता है । इससे सम्बांधधत
चक्र मखणपुर चक्र है .
यह भी पढ़ें : सोलर तले क्सस चक्र (मखणपुर): अथश और इसे कै से सांतुभलत करें

4. जल या पानी - स्त्वाद का अां ग

चौथा तत्व है जल या जल। जल तत्व अष्स्त्तत्वमान प्राखणयों के आकषशण बल का


मागशदर्शन करता है । यह स्त्वाद या रस की अनुभूतत को उिे ष्जत करता है । जल तत्व
जीभ से सांबांधधत है क्योंकक ज्ञानें द्रिय और जननाांग कमेंद्रिय का प्रतततनधधत्व करते
हैं । यह स्त्वाधधटिान चक्र से जुड़ा है ।
यह भी पढ़ें : त्ररक चक्र (स्त्वाधधटिान): अथश और इसे कै से सांतुभलत करें

5. प ्
ृ वी या प ्
ृ वी - गां ध का अां ग

पााँचवााँ तत्व प ्
ृ वी या प ्
ृ वी या भूभम है । यह र्र र के िोस मैद्ररक्स का प्रतततनधधत्व
करता है । यह गांध की अनुभूतत का प्रतततनधधत्व करता है । यह ज्ञानेष्न्िय के रूप में
नाक और कमेष्न्िय के रूप में गुदा से मेल िाता है । इससे जुड़ा चक्र मूल ाधार चक्र है ।
यह भी पढ़ें : मूलाधार चक्र: अथश और इसे कै से सांतुभलत करें

पांचतत्वों में असांतुलन होने पर अनेक र्ार ररक व्याधधयों का अनुभव होता है ।

तत्वों के असां तुल न से उत्पन्न रोग

1. जल तत्व का असां तुल न


जल तत्व का प्रभाव रक्त और उसके घिकों पर पड़ सकता है
. इससे रक्त पतला हो सकता है या रक्त का थक्का जम सकता है । अन्य प्रभाव
साइनसाइद्रिस, सदी, अस्त्थमा, पेर्ाब करने या पेर्ाब करने के दौरान समस्त्या, एडडमा
या सूजन और प्रजनन प्रणाल की ववकृ तत के रूप में प्रकि हो सकते हैं ।

2. प ्
ृ वी तत्व का असां तुल न

प्
ृ वी तत्वों के असांतुलन के कारण र्र र में वजन सांबांधी प्रभाव दे िने को भमल सकते
हैं ।
प्
ृ वी तत्व का असांतुलन मोिापे या वजन बढ़ने के साथ-साथ वजन घिने के रूप में
भी प्रकि हो सकता है । यह कोले स्त्रॉल के स्त्तर को बढ़ाकर अर्ाांत भलवपड प्रोफाइल का
कारण बन सकता है । इसके पररणामस्त्वरूप हड्डडयों और माांसपेभर्यों से सांबांधधत ववकार
और सामान्य कमजोर भी होती है ।

3. अष्ग्न तत्व का असां तुल न

अष्ग्न तत्व में असांतुलन के कारण र्र र के अांदर और बाहर ऊजाश का प्रवाह बाधधत
होता है । इससे महत्वपूण श ऊजाश की हातन हो सकती है ।

एभसडडि के लक्षण द्रदिने से जिर अष्ग्न भी बाधधत हो सकती है । इससे मधुमेह,


तापमान भभन्नता, त्वचा ववकार और मानभसक बीमार हो सकती है ।

4. वायु तत्व का असां तुल न

वायु तत्व के असांतुलन से तांत्ररका तांर से सांबांधधत ववकार हो सकते हैं । इसका असर
ब्लड प्रेर्र और फे फड़ों पर पड़ सकता है . इससे गततभांग, ववकृ तत, ददश और अवसाद हो
सकता है ।

5. अां तररक्ष तत्व का असां तुल न

इससे वाणी सांबांधी ववकार हो सकते हैं । इससे कान के रोग, थायराइड ववकार, भमगी,
वाणी ववकार, गले की समस्त्याएां और मानभसक रोग हो सकते हैं ।

योग और पाांच तत्व

चूांकक पाांच तत्वों का प्रतततनधधत्व पाांच अांगुभलयों दवारा भी ककया जाता है ,


इसभलए ववभभन्न योग मुिाओां (हाथ की मुिाओां) का अभ्यास ककसी व्यष्क्त को इन
तत्वों के बीच सांतुलन लाने में मदद कर सकता है ।
योग और ध्यान की मूल मुिा में "मुिा" र्ाभमल है जो नाडड़यों या मेररडडयन के बीच
ऊजाशवान सांबांध बनाती है । ष्जस तरह से हम अपनी उां गभलयों को मुिा में जोड़ते हैं
वह ऊजाश को तनदे भर्त करने और र्र र के साथ-साथ द्रदमाग में ववर्ेष तरां ग दै ध्यश ऊजाश
उत्पन्न करने के भलए इसे ववभर्टि चैनलों के साथ जोड़ने के भलए ष्जम्मेदार
है । जागरूकता और जाग तृ त की आांतररक भावना हमारे हाथों को जोड़कर और आसन
और श्वास को ववतनयभमत करके र्र र और द्रदमाग को एकजुि करके प्रातत की जा
सकती है ।
जाद ई
ु पााँच उां गभलयााँ

मुिाओां की मदद से र्र र के चयापचय को कररश्माई रूप से प्रभाववत या तनयांत्ररत


ककया जा सकता है । स्त्वास्त््य को प्रभाववत करने वाल ववभभन्न मुिाएाँ वायु
मुिा , आकार् मुिा , म त
ृ सांजीवनी मुिा , प्राण मुिा आद्रद हैं ।
योग र्र र के पाांच तत्वों को सां तुभलत करने में कै से मदद करता है ?

योग और प्राणायाम (योधगक श्वास) के ववभभन्न रूप र्र र के पाांच तत्वों को सांतुभलत
करने में मदद करते हैं ।
आसन जो गतत और प्रवाह के माध्यम से मानव र्र र की गततर्ील ववर्ेषताओां को
दर्ाशते हैं, र्र र में अष्ग्न को बढ़ाते हैं। तनयभमत रूप से योगाभ्यास करने की आदत
गहर साांस ले ने की प्रकक्रया को तनयांत्ररत करने में मदद करती है । यह श्वसन की
प्रकक्रया और गैसों के आदान-प्रदान को पररटकृ त करता है । वायु सबसे बड़ा तत्व होने के
कारण र्र र के अांगों को साफ करके ववषहरण करता है । हातनकारक ववषाक्त पदाथों को
बाहर तनकालने के भलए योग के माध्यम से इसका उधचत तनयमन ककया जा सकता
है । यह पूरे र्र र में वायु-प्रवाह को तनयांत्ररत करके सभी क्षेरों और घिकों को र्ुदध
करता है ।
योग के आसन जो घुमाव और ऊजाश उत्पादन के तांर पर आधाररत हैं, वे
हैं पष्श्चमोिानासन (आगे की ओर झुकना) , अधशमत्स्त्ये न्िासन (आधा र ढ़ की हड्डी को
मोड़ना) , नौकासन (नाव मुिा) । वे पाचन को तेज़ करने और उधचत र्ार ररक
प्रकक्रयाओां को बनाए रिने में बेहद र्ष्क्तर्ाल हैं। ये मोड़ आांतररक और आांतीय अांगों
की माभलर् करते हैं और ववषहरण प्रदान करते हैं ।
छाती िोलने वाले आसन का सां बांध वाय ु तत्व को सां तुभलत करने से है

तनटकषश

यद्रद आप आसन के दौरान साांस के उपयोग को िीक से तनयांत्ररत करना सीिते हैं और
दै तनक जीवन में प्राणायाम की कला में महारत हाभसल करने का प्रयास करते हैं , तो
आप र्ाांतत और अपनी आांतररक र्ष्क्त दोनों को बढ़ा और बढ़ा सकते हैं । यह आपको
पांच तत्व के घिकों को सांतुभलत करने और उां गभलयों की ववभभन्न सांरचनाओां की मदद
से ऊजाश को एक तनधाशररत और ववभर्टि द्रदर्ा में तनदे भर्त करने में मदद करता
है । प्राणायाम की तकनीक का उपयोग र्र र के तत्वों में तछपे असांतुलन को पहचानने
और स्त्वस्त्थ जीवन के भलए सांतुलन लाने के भलए भी ककया जा सकता है ।

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How is our physical body made of Panchabhutas (philosophy, Hinduism)?

The five elements (pañca-bhūtas) are earth, water, fire, air and ākāśa.

They are the five basic constituents of everything in the Universe not only
bodies (which are essentially non-different from animal bodies) but not in
their literal form but figuratively.

The same classification using only FOUR elements is employed in Hindu


psychology to categorise personality “types”.

A summary of these four personality types this given:–

EARTH TYPES

Key-words:— sense of form, order, utility, and practicality, material


manifestation or physical expression.

Work involved with the Earth, the body, or any form of physical matter
(e.g. professions as artisans, gardeners, doctors, bankers or farmers, all of
whom deal with something tangible in the material world.)

WATER TYPES

Key-words:— intuition, emotions, love, affection, compassion, empathy and


attachment.

Work involved with caring or nurturing, psychology and with human


relationships. Involvement with groups, societies and the masses in general.
FIRE TYPES

Key words:— strong will, ambition, determination, discrimination, perception,


and a critical mind.

People with a preponderance of Fire often seek power and a display of


force and drama. Their focus is more on the self and character than upon
the interchange with others. They like to be popular but usually to
dominate, not to be on the same level with others, as is the case with
Water folk. Fire gives us the need to develop real independence, clarity,
and understanding, and not just to shine over or rule over others.

AIR TYPES

Key words:— versatility of movement and change, generally more on a


mental level, communication, flow, changeable, unstable, unattached,
independent.

People with preponderance of the Air element are often intellectual or at


least mental types. They seek communication and realization of ideas and
ideals; their love is usually of knowledge. They are often speculative and
idealistic and not concerned with practical results. They may live in a realm
of ideas and calculations, plans and projections but seldom put these plans
into practice or carry through on projects. They seek to ascend but may
not have the foundation for it. Their energies may get scattered or diffused.
Doctor at Self-Employment4y
Everything in the
universe, including the
human body are
supposed to be made of
Panchatatva or the five
basis elements.

When we die we are


supposed to become
one with these five
elements.

This makes some sense but not complete sense. There is definitely water
and air in the body. There is heat in the body but not fire. Do sky and
land too exist in the human body?

The five basic elements are also called as Panchamahabhuta or five


transient forces. What are these transient force?

The Panchatatva or Panchamahabhuta actually symbolize the first five of


the seven basic forces that convert an idea into an action.
It is obvious that the last two are symbolized by Sun and represented by
his two sons Yama and Shani.

The last two stages are excluded because most people won’t have control
over their ideas in the last two stages.

The five elements symbolize the five forces because the elements give an
idea about how our live will be with that kind of thinking.

With Vishnu force, our life would be as flexible as water and like a wave
of water, which will have a trough and a crest, life with Vishnu will have
an upper and a lower limit. It is for this reason that Vishnu is considered
as the Preserver because with Vishnu there will not be large scale
fluctuations in our life.

Shiva makes us disciplined and therefore he is associated with land. He


can give us maximum power and make us grossly disciplined. It is for this
reason that he is associated with Mt. Kailash.

Thus, it is the Atman that has forces, the first five of which are symbolized
by the Panchatatva.
tudied Bengaluru, Karnataka, India (Graduated 1996)2y

What exactly is Vaatha, Pitha, and Kaba? What can they do to a human
body?

Thanks for Question Sir..!!

Vatha Pitha Kapha are 3 Doshas which are formed by basic five primorial
elements like

Prithvi- Aaap- Teja- Vaayu -Aakasha.


Scriptures are based on seven stage muscle tone based thinking. When an
idea is passed through the seven stage muscle tone based thinking
mechanism, each of the stages feels distinctly different. Since the stages
were not compatible with languages, they were symbolized by elements of
nature.

The last two stages are not to be used. Thus, actually the Mahabhutas are
seven. The last two stages are symbolized by the Sun and the two sons
of Surya.
Therefore, the body is not made of Panchamahabhutas and these five
elements symbolize the first five stages of the seven stage muscle tone
based thinking called Brahman.

How is Mokhsa connected to the human body?

Moksha is supposed to mean liberation from unending cycles of rebirth. It


is also defined as liberation from samsara.

While everyone knows these definitions no one knows


why Moksha played a central role in Hinduism.

Our knowledge of scriptures including god,


Enlightenment, Moksha, etc. is based on the literal
meanings of verses of scriptures. He have absolutely
no idea of the intended meanings of scriptures.

Lets try to understand the intended meanings of


verses of scriptures.

PURUSHA

The tones of all the muscles of our body can


synchronize, equalize and unify. In Hinduism the
unified muscle is called Purusha.

All verses of scriptures are actually about the properties of the unified
muscle only.

Why is the unified muscle so important to our life? If it is really important


then why is that it is not found in any text book of human anatomy or
physiology?

SOUL / ATMAN
According to Purusha Sukta 10.90.6, Rig Veda soul is the pattern
generated when the point of contraction of the unified muscle moves from
its default state at the level of navel to the feet, to the head and finally to
the default state at the level of the navel.

What has this to do with the body?

BODY AND SOUL


Structurally body and soul are the same and both are anatomically our
muscular system. However, functionally they are different.

Body brings about movements and soul supplies power to it and thus
indirectly facilitates or retards it.

However, power supply to the body is extremely complicated because body


has infinite options and the options have to be reduced to just one after
careful thinking. Moreover, energy optimization is very important. For this
soul has seven level muscle tone based thinking.

SEVEN STAGE THINKING AND ENLIGHTENMENT


Power supply by soul has seven levels and a lower limit called Positive
(urge to achieve) attitude and a Negative (satisfaction) attitude. Each level
of power is also a level of consciousness. In Hinduism each level is
associated with a kind of thinking and a basic Hindu god.

A person is supposed to be enlightened if he can use the entire spectrum


of seven stage thinking in both manual and automatic modes.

However, this is not how we feel our body. We don’t even feel the
existence of the soul in our body. We wonder weather we really have a
soul.

MODERN SOUL
In modern way of life we live beyond our Negative (satisfaction) attitude.
Then our soul will be reset automatically and then we can neither feel or
control our soul. Movements directly generate the needed power.

SOUL IN MOKSHA

A person is supposed to have attained Moksha if he can use the entire


limits of his soul between his Positive and Negative attitudes in both
manual and automatic modes. This gives him absolute control over what
he does under all conditions.
The added advantage is that he has attained enlightenment and therefore
he knows how a person behaves in a society under all conditions.

Therefore, the body remains unchanged in modernism, religious and


spiritual lives and also in Enlightenment and Moksha. It is the invisible soul
that keeps changing in all these.
प्रकृतत के 5 तत्व और मानव र्र र के साथ उनका सांबांध

1. घर
2. ब्लॉग
3. स्त्वास्त््य और कल्याण
4. प्रकृतत के 5 तत्व और मानव र्र र के साथ उनका सांबांध

क्या आप प्रकृतत के 5 तत्वों के साथ मानव र्र र के सांबांध के बारे में जानते हैं?

दतु नया भर में बहुत से प्राचीन दर्शन ब्रह्माांड की सांरचना को 5 तत्वों में वगीकृत करते हैं:
प् ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु और आकार् (अांतररक्ष)। इन्हें "पांच महाभूत" भी कहा जाता
है । इन पाांच तत्वों का ज्ञान हमें प्रकृतत के तनयमों को समझने में मदद करता है ।

पाांच तत्वों में से प्रत्येक प्रकृतत में पदाथश की एक ष्स्त्थतत का प्रतततनधधत्व करता है । िोस
पदाथश को "प्
ृ वी" तत्व के रूप में वगीकृत ककया गया है । जल वह सब कुछ है जो तरल
है । वायु वह सब कुछ है जो गैस है । अष्ग्न प्रकृतत का वह भाग है जो पदाथश की एक
अवस्त्था को दस
ू र अवस्त्था में बदल दे ता है । ईथर अन्य तत्वों की जननी है और उच्च
आध्याष्त्मक अनुभवों का आधार है ।

मानव र्र र के तत्वों का प्रकृतत के 5 तत्वों से गहरा सांबांध है

सांपूणश सष्ृ टि अलग-अलग अनुपात में पाांच तत्वों से बनी है । मानव र्र र भी अलग-अलग
अनुपात में इन 5 तत्वों का उत्पाद है। 72% जल, 12% प्
ृ वी, 6% वाय,ु 4% अष्ग्न और
र्ेष आकार् है। आमतौर पर, पहले चार तत्वों का प्रततर्त ष्स्त्थर रहता है लेककन ईथर का
प्रततर्त बढ़ाया जा सकता है। प्रत्येक तत्व र्र र में ववभभन्न सांरचनाओां के भलए ष्जम्मेदार
है ।

प्
ृ वी दााँत, नािून, हड्डडयााँ, माांसपेभर्यााँ, त्वचा, ऊतक और बाल जैसी िोस सांरचनाएाँ
बनाती है। ये र्र र को सांरचना और मजबूती दे ते हैं। जल से लार, मूर, वीयश, रक्त और
पसीना बनता है। अष्ग्न से भूि, तयास, नीांद, आांिों की रोर्नी और त्वचा का रां ग बनता
है । वायु ववस्त्तार, सांकुचन, कांपन और दमन सद्रहत सभी गततववधधयों के भलए ष्जम्मेदार
है । अांतररक्ष सभी तत्वों में सबसे सूक्ष्म है और रे डडयो आववृ ियों, प्रकार् ववककरण, ब्रह्माांडीय
ककरणों आद्रद के रूप में र्र र की िोिल गह
ु ाओां में मौजद
ू है ।

मानव र्र र में "प्राण" (महत्वपूणश र्ष्क्त) भी सीधे इन 5 तत्वों से जुड़ा हुआ है । प्रकृतत का
तनयम इन तत्वों को सांतुभलत रिने की माांग करता है ।

प्रकृतत के पाांच तत्वों का असांतुलन ह अधधकाांर् बीमाररयों का कारण है

क्रोतनक (स्त्वयां प्रकि) रोगों का स्रोत ककसी भी तत्व की अर्ुदधता है या यद्रद र्र र में
ककसी अन्य तत्व के साथ तत्वों का सांतुलन त्रबगड़ गया है।

1. जल तत्व का असांतुलन: यह अधधक बलगम, सदी, साइनसाइद्रिस, ग्रांधथयों की सूजन,


ऊतकों की सज
ू न, रक्त का पतला होना या रक्त का थक्का जमने के रूप में द्रदिाई दे ता
है ।
2. प्
ृ वी तत्व का असांतुलन: र्र र में सामान्य कमजोर , हड्डडयों से कैष्ल्र्यम की कमी,
मोिापा, कोलेस्त्रॉल, वजन घिना और वजन बढ़ना, माांसपेभर्यों के रोग आद्रद के रूप में
प्रकि होता है । 3.
अष्ग्न तत्व का असांतल
ु न: बि
ु ार के रूप में प्रकि होता है। त्वचा रोग जैसे सज
ू न, र्र र में
िां डक या गमी का बढ़ना, अत्यधधक पसीना आना, हाइपर-एभसडडि , पोषक तत्वों का पाचन
और अवर्ोषण धीमा होना, र्र र में ववषाक्त पदाथश, मधुमेह, आद्रद। 4.
वायु तत्व का असांतल
ु न: त्वचा में सि
ू ापन, रक्तचाप होता है समस्त्याएां, फेफड़ों के ववकार,
सि
ू ी िाांसी, सज
ू न, कब्ज, सस्त्
ु ती, अतनिा, माांसपेभर्यों में ऐांिन, अवसाद, आद्रद।
5. अांतररक्ष तत्व का असांतुलन: थायराइड ववकार, गले की समस्त्याएां, वाणी ववकार, भमगी,
पागलपन, कान के रोग आद्रद के रूप में द्रदिाई दे ता है । .

योग मदद कर सकता है

योग हमें इन तत्वों को र्ुदध करने, सांतल


ु न बहाल करने और अच्छा स्त्वास्त््य बनाए रिने
में मदद कर सकता है । 5 तत्वों की सफाई तकनीकों को "भत
ू र्ुदधध" के रूप में जाना
जाता है । प्रत्येक तत्व में तनद्रहत आांतररक र्ष्क्तयों एवां क्षमताओां को उजागर करना। योग
इन सभी तत्वों पर महारत हाभसल करने की तकनीक भी प्रदान करता है - ष्जसे "भूत
भसदधध" के रूप में जाना जाता है ।

जीवनर्ैल परामर्श और पुरानी बीमार के भलए जगदगुरु कृपालु प्राकृततक धचककत्सा


अस्त्पताल से सांपकश करें ।
पांच तत्व - 5 तत्वों के बारे में वह सब कुछ जो आपको जानना आवश्यक है

अन ु ट का दवारा 14 फरवर 2020

(अांततम अदयतन ततधथ: 14 फरवर , 2020)


र्ब्द "पांच तत्व" का र्ाष्ब्दक अथश है जीवन के पाांच तत्व (सांस्त्कृत में 'पांच' का अथश है पाांच
और 'तत्व' का अथश है तत्व)। द्रदलचस्त्प बात यह है कक सांपण
ू श आयव
ु ेद्रदक और यौधगक
सांस्त्कृतत पाांच प्रमि
ु तत्वों के भसदधाांत पर आधाररत है ।

जीवन के सावशभौभमक तनयम का पालन करते हुए, इस ग्रह पर हर चीज पाांच मूल तत्वों से
बनी है, ष्जन्हें " पांचमहाभूत " भी कहा जाता है। तत्त्व के ये तत्व हैं:
• आकार् (आकार् या अांतररक्ष)
• वायु (वायु)
• जल _
• अष्ग्न (अष्ग्न)
• प्
ृ वी (प्
ृ वी)
इस ब्रह्माांड में , सजीव या तनजीव वस्त्तु से लेकर हर चीज़ इन तत्वों के भमश्रण से बनी
है । वास्त्तव में , ये तत्व हर उस चीज के अष्स्त्तत्व के भलए ष्जम्मेदार हैं जो हम दे िते हैं,
महसूस करते हैं, सूांघते हैं, िाते हैं, सुनते हैं और यहाां तक कक अनुभव भी करते हैं।

इसके अलावा, यद्रद आप उन सभी मामलों का गहराई से ववश्लेषण करते हैं जो आज हम


दे िते हैं, तो आप इस त्य पर ध्यान द्रदए त्रबना नह ां रह पाएांगे कक सब कुछ एक ह मूल
तत्वों से बना है, लेककन केवल तत्वों की सांरचना में भभन्न हैं, और यह त्य है पांचतत्वों
का ववधान.

पचा तत्त्वों के बीच अांतसंबांध

ब्रह्माण्ड के पााँच प्रमि


ु तत्व, स्त्वयां, हमारे दवारा अनुभव की जाने वाल समस्त्त ब्रह्माांडीय
चेतना को समाद्रहत करते हुए एक दस
ू रे के साथ सांबांध रिते हैं।

आइए आकार् तत्व (आकार्/आकार्/अांतररक्ष) से र्ुरू करें । यह तत्व पच्च तत्व के सभी
तत्वों में सबसे सक्ष्
ू म है । यह वह तत्व है जो र्न्
ू य में भी मौजद
ू है और इसकी तल
ु ना
मनटु य की चेतना से की जा सकती है। यह तत्व हर चीज़ के अष्स्त्तत्व के भलए जगह
बनाता है और हर चीज़ को समायोष्जत करता है ।
वायु तत्व (वाय)ु जीववत रहने का आधार है और आकार् की तल
ु ना में कम सूक्ष्म है,
लेककन इसकी जड़ें आकार् में गहर हैं। वायु अष्ग्न तत्त्व (अष्ग्न) की उत्पवि का स्रोत है ,
जो सघन है और अधधक ऊजाश से भरपरू है और हर चीज को राि में बदलने के साथ-साथ
बनाने और नटि करने की क्षमता रिता है ।
इसी प्रकार, जल तत्व (जल) वायु में वाटप से उत्पन्न होता है और अष्ग्न को धीमा या बांद
कर सकता है । यहाां तक कक प्
ृ वी तत्व (प्
ृ वी) भी जल से उत्पन्न होता है और सभी
तत्वों में सबसे सघन तत्व है ।

परमाणु स्त्तर पर ये तत्व कौन से हैं?

िैर, इन तत्वों के भलए अांग्रेजी र्ब्द त्रबल्कुल कफि बैिता है, लेककन इन सभी तत्वों का
ववज्ञान में भी सुांदर प्रतततनधधत्व है और परमाणु स्त्तर पर भी इनका महत्व है।

अब तक यह स्त्पटि हो चक
ु ा है कक प्रत्येक चेतन या अचेतन वस्त्तु इन पााँच तत्वों से बनी
है ।

• आकार् (आकार् तत्व) से र्ुरू होकर , यह ववर्ेष तत्व वह स्त्थान है ष्जसमें


परमाणु मौजूद है । इलेक्रॉन इसके चारों ओर घूमते हैं और पूर सांरचना स्त्थान
घेर लेती है।
• वायु (वायु तत्व) नाभभक के चारों ओर इलेक्रॉनों की गतत के बल का
प्रतततनधधत्व करता है ।
• अष्ग्न (अष्ग्न तत्व) प्रत्येक परमाणु में मौजूद गुतत ऊटमा का प्रतततनधधत्व
करता है जो िूिने पर तनकल जाती है।
• जल (जल तत्व) सामांजस्त्य के बल का प्रतततनधधत्व करता है जो प्रोिॉन,
इलेक्रॉन और न्यूरॉन को एक दस
ू रे के प्रतत आकवषशत होने की अनुमतत दे ता है ।
• प्
ृ वी (प्
ृ वी तत्व) ककसी तत्व के िोस भाग का प्रतततनधधत्व करता है ।

अनर्
ु ांभसत - कांु डभलनी योग क्या है ? कांु डभलनी योग की उत्पवि और लाभ

स्त्वास्त््य की दृष्टि से पााँच प्रमि


ु तत्व (पांच तत्व)।

हमारे चारों ओर की दतु नया की तरह, यहाां तक कक हमारा र्र र भी इन सभी पाांच प्रमि

तत्वों से बना है । हम जो कुछ भी िाते हैं उससे लेकर हमारे दवारा उत्सष्जशत प्रत्येक पदाथश
तक, ये प्रमि
ु तत्व हर पदाथश के भलए प्रमि
ु घिक हैं।
जब उधचत स्त्वास्त््य बनाए रिने की बात आती है तो पच्च तत्व की अवधारणा त्रबल्कुल
कफि बैिती है । आप तभी स्त्वस्त्थ रह सकते हैं जब ये सभी प्रमुि तत्व आपके र्र र में
अच्छी तरह से सांतभु लत हों, और र्र र सांतल
ु न कैसे बनाए रिेगा? बस, अनावश्यक तत्वों
को हिाकर और दस
ू रों को प्रेररत करके।

पाांच प्रमि
ु तत्वों के साथ, मानव र्र र में ' ग्यारह इांद्रियाां ' भी र्ाभमल हैं। इन 'इांद्रियों' में
मूल पाांच इांद्रियाां (आांि, कान, नाक, जीभ और गांध), साथ ह पाांच कक्रया अांग (स्त्वर, हाथ,
पैर, जननाांग और गुदा) और मन र्ाभमल हैं।
ये इांद्रियाां बाहर दतु नया से जानकार तनकालने के भलए ष्जम्मेदार हैं और इन्हें ' ज्ञानेंद्रिय '
कहा जाता है । इसी प्रकार, पाांच कक्रया अांग हमें बाहर दतु नया की उिेजना पर प्रततकक्रया
करने में मदद करते हैं ष्जन्हें ' कमेंद्रिय ' के नाम से जाना जाता है ।
अब काडडशनल तत्वों के अनस
ु ार, ववचार करने वाल 'ज्ञानेंद्रिय' और प्रततकक्रया दे ने वाल
'कमेंद्रिय' अलग-अलग हैं और अांतररक्ष के अष्स्त्तत्व में इसकी भभू मका महत्वपण
ू श है।

मैं। आकार्

आकार् की बात करें तो यह सुनने की इांद्रिय से सांबांधधत है, ज्ञानेंद्रिय कान है और कमेंद्रिय
स्त्वर या मि
ु है।

दववतीय. वायु

अष्स्त्तत्व में इसकी भभू मका गतत के रूप में है और यह स्त्पर्श की अनुभतू त से सांबांधधत
है । ज्ञानेंद्रिय त्वचा है और कमेंद्रिय हाथ हैं, बाहर दतु नया की वायु का अनुभव ककया जाता
है ।

iii. अष्ग्न

यह अष्स्त्तत्व में उच्च ऊजाश का तत्व है, दृष्टि की भावना या रूपा से सांबांधधत है, ष्जसमें
ज्ञानेंद्रिय आांिें हैं और कमेंद्रिय पैर हैं।

iv. जल

यह तत्व ब्रह्माण्ड में आकषशण र्ष्क्त के रूप में ववदयमान है । सांवेदना का स्त्वाद एक प्रमि

कारक है और ज्ञानेंद्रिय जीभ (रस) है , और कमेंद्रिय जननाांग है ।
वी. प्ृ वी

ष्जस िोस पदाथश को हम महसूस करते हैं वह प्


ृ वी ह है और गांध की अनुभूतत इस पदाथश
का मूल है और ज्ञानेंद्रिय नाक है और कमेंद्रिय गुदा है ।

तो, पांच तत्व का परू ा भसदधाांत आयुवेद और योग में एक बहुत ह आवश्यक घिक है
क्योंकक जब तक ये सभी घिक सह सांरेिण में नह ां होते हैं, तब तक कोई भी अच्छे
जीवन और स्त्वास्त््य का ववर्ेषाधधकार प्रातत नह ां कर सकता है।

जीवन के सांबांध में पांच तत्व

पांच तत्व में मूल तत्व जीवन के ववभभन्न पहलुओां के ववभभन्न सांबांधों का प्रतीक है , जो हमें
इस दतु नया में अष्स्त्तत्व का एक पूरा पैकेज प्रदान करने के भलए एक-दस
ू रे से जुड़े हुए हैं।

र्र र प्
ृ वी के समान है

आपका र्र र आपका भौततक अष्स्त्तत्व है , और वह तत्व है ष्जसका उपयोग आप सभी


पहलुओां में जीवन का अनुभव करने के भलए करते हैं। इसके अलावा, जो भी पदाथश आप
अपने चारों ओर दे िते हैं, महसूस करते हैं और ववश्लेषण करते हैं वे मूल रूप से वस्त्तुएां हैं
और अधधकाांर् प्
ृ वी का प्रतततनधधत्व करने वाल िोस वस्त्तुएां हैं।

यद्रद आपका र्र र न होता तो आपके अष्स्त्तत्व का पता नह ां चलता और आप जीवन का


अनुभव नह ां कर पाते।

जल के रूप में मन

यद्रद आपके पास मन नह ां है तो आपका र्र र भसफश माांस और हड्डी का एक िुकड़ा होगा,
क्योंकक यह तत्व ववचारों के प्रवाह को चालू रिता है और आपके अष्स्त्तत्व को साथशक
बनाता है।

इसके अततररक्त, हम इस त्य को जानते हैं कक पानी प्


ृ वी की तल
ु ना में कम सक्ष्
ू म है ,
इसभलए इसे एक िोस वस्त्तु की तरह महसस
ू नह ां ककया जा सकता है। चकांू क पानी कम
सूक्ष्म है , इसभलए इसे इस तरह भी दर्ाशया जा सकता है : यद्रद आपका र्र र एक स्त्थान पर
मौजूद है , तो आपका मन कह ां और भिक रहा है क्योंकक यह पानी के प्रवाह की तरह है
जो कभी नह ां रुकता।
आग के रूप में बद
ु धध

आग वह धचांगार है जो कुछ चीजों को दृश्यमान बनाती है और इसमें तनष्श्चत रूप से बहुत


अधधक ऊजाश होती है , और यह बात बुदधध के भलए भी लागू होती है । जब तक मन में
बुदधध की धचांगार नह ां होगी, तब तक यह ककसी ववर्ेष द्रदर्ा में तनरां तर बहने वाल नद ह
रहे गी।

वायु के रूप में जागरूकता

हवा का एक झोंका आपको आस-पास होने वाल ककसी चीज़ के प्रतत जागरूक होने का
एहसास द्रदला सकता है । यह घिक जीवन के एक भाग के रूप में मनुटय के अष्स्त्तत्व के
भलए आवश्यक है। पयाशवरण के बारे में पयाशतत जागरूकता प्रातत करने के बाद ह , आपके
द्रदमाग की बुदधध आपके र्र र को अच्छी तरह से काम करने के भलए एक तनष्श्चत द्रदर्ा
में चला सकती है ।

आकार्/अांतररक्ष के रूप में चेतना

आकार् चमकदार सूरज से लेकर अाँधेर तारों भर रात तक सब कुछ अपने में समाद्रहत कर
लेता है। यह हर जगह मौजूद है और इसे कभी भी िाररज नह ां ककया जा सकता है। यह
तत्व जीवन का अनुभवकताश है! चेतना के त्रबना, आप कुछ भी नह ां जान पाएांगे, भले ह
आपके पास र्र र या मन हो, इसका कोई फायदा नह ां होगा क्योंकक जागरूकता के त्रबना,
बुदधध उत्पन्न की जा सकती है ।

आइए गहर नीांद में होने का एक उदाहरण लें, लेककन सपने दे िने की ष्स्त्थतत में नह ां, यहाां
आपके पास अपने अष्स्त्तत्व के बारे में चेतना है, भले ह आपके पास जागरूकता, बुदधध,
सतकश द्रदमाग या कामकाजी र्र र न हो। चेतना अांतररक्ष की तरह है और यह आपके
अष्स्त्तत्व का एकमार कारण है । यह वह तत्व है जो आपको जीववत, मत
ृ या तनजीव से
अलग करता है ।

चेतना अांगि
ू े की तरह है , जो अन्य सभी उां गभलयों से अलग है लेककन आपके सभी हाथों के
काम करने के भलए एक आवश्यक घिक है।

तनटकषश के तौर पर
पच तत्व ह वह कारण है ष्जसके कारण मैं जीववत हूां और यह लेि भलि रहा हूां, और यह
वह तत्व है ष्जसके कारण आप जीववत हैं और इस लेि को पढ़ रहे हैं।

इसभलए, इस ब्रह्माांड में सभी तत्व सांबांधधत हैं और उनमें से ककसी को भी अलग नह ां
ककया जा सकता है । इसके अततररक्त, इस त्य को दर्ाशते हुए कक कोई भी वस्त्त,ु जानवर
या इांसान हमसे इतना अलग नह ां है ष्जतना हम सोचते हैं और सभी की दे िभाल करना
व्यापक तस्त्वीर में स्त्वयां की दे िभाल करना है ।

आयर्व
ु ेद में 5 तत्र्वों की शक्तत और उनका हमारे शरीर से संबंध

जब हमारे शरीर को समझने की बात आती है , तो प्राचीन भारतीय आयर्व


ु ेददक दशशन की
एक आकर्शक अर्वधारणा है जो हमारे आंतररक कामकाज पर प्रकाश डालती है । यह
अर्वधारणा आयुर्वेद में पांच तत्र्वों - पथ्
ृ र्वी, जल, अक्नन, र्वायु और आकाश (या अंतररक्ष) के
इदश -गिदश घूमती है - और र्वे हमारे शरीर, दोर् और स्र्वाद से कैसे संबंगधत हैं। ये तत्र्व केर्वल
अमूतश अर्वधारणाएँ नहीं हैं; र्वे हमारे अक्स्तत्र्व के ताने-बाने में बन
ु े हुए हैं, हमारी शारीररक
और मानससक क्स्ितत को तनयंत्रित करते हैं। इस लेख में , हम इस ददलचस्प संबंध पर
िहराई से वर्वचार करें िे और पता लिाएंिे कक यह हमारे समग्र कल्याण को कैसे प्रभावर्वत
करता है ।

1. ईिर तत्र्व

आयुर्वेद में पांच मूलभूत तत्र्वों में से प्रारं सभक, क्जसे संस्कृत या ईिर में " आकाश " के
रूप में जाना जाता है , अपनी ईिर प्रकृतत के कारण इस मौसलक पदानक्र
ु म में शीर्श स्िान
रखता है । अतसर इसे "अंतररक्ष" के रूप में र्वर्णशत ककया जाता है , यह शून्यता के सार को
समादहत करता है और कैनर्वास के रूप में कायश करता है क्जस पर अन्य तत्र्व प्रकट होते
हैं। ध्र्वतन और ईिर एक संबंध साझा करते हैं। कान को आयुर्वद
े में पंच महाभूतों, पांच
तत्र्वों, वर्वशेर्कर आकाश तत्र्व से संबगं धत संर्वेदी अंि के रूप में पहचाना जाता है।

ईिर की सूक्ष्म और व्यापक प्रकृतत सुनने की भार्वना से प्रततध्र्वतनत होती है । ऐसा कहा
जाता है कक यह कानों और ध्र्वतन और कंपन को दे खने की हमारी क्षमता को प्रभावर्वत
करता है । श्रर्वण हातन और आर्वाज की हातन जैसी हातन तब होती है जब आकाश तत्र्व के
कामकाज में कोई व्यर्वधान होता है। शरीर के भीतर, ईिर तत्र्व कोसशकाओं के बीच रहने
र्वाले स्िान के रूप में मौजद
ू है। आयर्व
ु ेद में आकाश तत्र्व का संबंध अध्यात्म से भी है ।
तत्र्वों के क्षेि में, ईिर िले के चक्र के साि अपना संबंध पाता है , क्जसे वर्वशुद्गध के रूप में
जाना जाता है , जो पंच महाभूतों को समझने और हमारी भलाई के साि इसके संबंध का
एक महत्र्वपण
ू श पहलू है । यह संबंध ध्र्वतन और संचार के साि िले के चक्र के सहसंबंध से
उत्पन्न होता है , तयोंकक ऐसा माना जाता है कक ध्र्वतन ईिर के माध्यम से िज
ु रती है ।

2. र्वायु तत्र्व

संस्कृत में " र्वायु " के रूप में जाना जाता है , आयुर्वेद में र्वायु तत्र्व पंच महाभूतों में से
दस
ू रा है। इसकी उत्पवि पहले तत्र्व यानी ईिर से होती है । हर्वा शुष्क, हल्की, ठं डी, खरु दरी
और िततशील है। ये िुण इसे हमारे अक्स्तत्र्व के सलए महत्र्वपूणश बनाते हैं, तयोंकक यह
िततशीलता को सक्षम बनाता है । त्र्वचा, जो स्पशश की अनुभूतत के सलए हमारे इंटरफेस के
रूप में कायश करती है , को र्वायु तत्र्व का संबंगधत संर्वेदी अंि माना जाता है। र्वायु तत्र्व को
उसके ददशात्मक प्रर्वाह के आधार पर पाँच अलि-अलि रूपों में र्विीकृत ककया जा सकता
है । इनमें आंतररक प्रर्वाह शासमल है क्जसे "प्राण" कहा जाता है , बाहरी प्रर्वाह क्जसे "व्यान"
कहा जाता है , ऊपर की ओर जाने र्वाली ितत क्जसे "उदान" कहा जाता है , नीचे की ओर
जाने र्वाली ितत क्जसे "अपान" कहा जाता है और र्वह बल जो इन आंदोलनों को सुसंित
और केंद्र में रखता है , क्जसे "के रूप में जाना जाता है। समाना।”

ये पाँच जदटल िततवर्वगधयाँ सामदू हक रूप से र्वायु और प्राण के नाम से जानी जाती हैं। र्वायु
की सक्ष्
ू म और िततशील प्रकृतत तंत्रिका तंि को तनयंत्रित करती है , जो सोच, रचनात्मकता
और संचार जैसे मानससक कायों को प्रभावर्वत करती है । बहुत अगधक र्वायु तत्र्व बहुत
अगधक वर्वचारों को जन्म दे सकता है। श्र्वसन प्रणाली के सलए र्वायु की आत्मीयता इसे
उगचत श्र्वास और फेफडों के कायश के सलए महत्र्वपूणश बनाती है । छाती के मध्य में क्स्ित
अनादहता चक्र र्वायु तत्र्व से संबंगधत है।

3. अक्नन तत्र्व

अक्नन, या संस्कृत में "अक्नन", आयुर्वेद में एक महत्र्वपूणश तत्र्व है , जो पररर्वतशन और ऊजाश
का प्रतीक है। यह िमी के ससद्धांत का प्रतततनगधत्र्व करता है , जो पाचन, चयापचय और
जीर्वन शक्तत के सलए महत्र्वपण
ू श है । अक्नन के िण
ु िमश, तीक्ष्ण, हल्के और तीव्र हैं

अनुक्रम में इसका स्िान ईिर और र्वायु से इसके वर्वकास से आता है , जो अपने भीतर
दोनों के सार को समादहत करता है । आयुर्वद
े में आँखों को अक्नन तत्र्व का तदनुरूप संर्वेदी
अंि माना िया है। ईिर और र्वायु, पंच महाभत
ू ों (आयर्व
ु ेद में पांच तत्र्व) में से दो, अक्नन
की वर्वशेर्ताओं को आकार दे ने में आर्वश्यक भसू मका तनभाते हैं। ईिर र्वह स्िान प्रदान
करता है जहां अक्नन प्रकट हो सकती है , जबकक र्वायु अक्नन को प्रज्र्वसलत करने और जलाने
की क्षमता प्रदान करती है ।

आयुर्वेद में अक्नन तत्र्व पाचन अक्नन या "अक्नन" को तनयंत्रित करता है , जो पेट और छोटी
आंत में रहता है। एक मजबत
ू अक्नन पोर्क तत्र्वों के कुशल पाचन और अर्वशोर्ण को
सुतनक्श्चत करती है । यह ध्यान रखना ददलचस्प है कक अक्नन शरीर में वर्वसभन्न रूप धारण
कर सकती है , प्रत्येक का अपना अनूठा कायश है :

1. साधक अक्नन : बुद्गध को तनयंत्रित करता है ।


2. अलोचका अक्नन : आंखों में काम करती है ।
3. पचक अक्नन : पाचन को सुिम बनाता है ।
4. रं जक अक्नन : रतत धातु को लाल रं ि प्रदान करती है ।
5. भ्रजक अक्नन : यह त्र्वचा के स्र्वास्थ्य को बनाए रखने के सलए महत्र्वपूणश है ।

अक्नन दृक्ष्ट और धारणा की स्पष्टता बनाए रखने में भी महत्र्वपूणश भसू मका तनभाती है । यह
आंखों और प्रकाश को पहचानने और उसकी व्याख्या करने की उनकी क्षमता से जुडा है ।
हालाँकक, अक्नन ऊजाश की अगधकता पेट की समस्याओं, सूजन और स्र्वभार्व संबंधी
समस्याओं जैसे वर्वसभन्न मुद्दों को जन्म दे सकती है ।

मर्णपुर चक्र , क्जसे नासभ या सौर जाल चक्र के रूप में भी जाना जाता है , अक्नन तत्र्व से
जदटल रूप से जड
ु ा हुआ है , जो आयुर्वेद में अक्नन तत्र्व का प्रतततनगधत्र्व करता है। चक्रों
और पंच महाभूतों (आयुर्वेद में तत्र्व) के बीच इस संबंध को समझना आयुर्वेद द्र्वारा प्रस्तत ु
कल्याण के समग्र दृक्ष्टकोण की खोज के सलए मौसलक है ।

4. जल तत्र्व

जल, क्जसे आयर्व


ु ेद में "जला" के नाम से जाना जाता है , आयर्व
ु दे में मल
ू भत
ू तत्र्वों में से
एक है और प्रर्वाह, शीतलता, िीलापन और कोमलता जैसे िण
ु ों से जुडा है । यह पंच
महाभूतों (आयुर्वेद में पांच तत्र्व) के संतुलन में महत्र्वपूणश भूसमका तनभाता है।

जल का अक्स्तत्र्व ईिर, र्वायु और अक्नन के समश्रण से होता है , जो अपनी संरचना में इन


तीन तत्र्वों के पहलओ
ु ं को शासमल करता है । हमारे शरीर के भीतर, पानी वर्वसभन्न रूपों में
मौजूद होता है, क्जसमें लार, रतत, पसीना और र्वीयश जैसे सभी शारीररक तरल पदािश
शासमल होते हैं। आयर्व
ु ेद में जीभ को जल तत्र्व के अनुरूप संर्वेदी अंि माना जाता है ,
तयोंकक स्र्वाद की भार्वना इस तत्र्व से तनकटता से जुडी होती है ।
पानी जदटल रूप से "रस" से जुडा हुआ है , जो स्र्वाद की भार्वना से संबंगधत है। स्र्वाद से
जुडी कोई भी समस्या जल तत्र्व से भी जड ु ी हो सकती है । स्र्वाद के अलार्वा, पानी हमारी
भार्वनाओं को तनयंत्रित करने और ऊतकों सदहत वर्वसभन्न पहलओ
ु ं में सामंजस्य स्िावपत
करने में भी महत्र्वपण
ू श भसू मका तनभाता है। यह ध्यान रखना महत्र्वपण
ू श है कक पानी में
असंतुलन के वर्वसभन्न प्रभार्व हो सकते हैं - बहुत अगधक पानी पाचन अक्नन (अक्नन) के
सलए समस्याएं पैदा कर सकता है , जबकक बहुत कम पानी कब्ज जैसी समस्याएं पैदा कर
सकता है।

यह दे खते हुए कक हमारे शरीर का एक महत्र्वपण ू श दहस्सा, लिभि 70%, पानी से बना है ,
इसकी उपक्स्ितत या अनप ु क्स्ितत संभावर्वत चन
ु ौततयों का संकेत दे ती है जो स्र्वास्थ्य और
संतुलन बनाए रखने में उत्पन्न हो सकती हैं। चक्रों के क्षेि में , स्र्वागधष्ठान चक्र जल तत्र्व
से जुडा है , जो शरीर के भीतर समग्र ऊजाश संतुलन में इसके महत्र्व पर जोर दे ता है ।

इसके अलार्वा, पानी को उपचार क्षमताओं के सलए जाना जाता है , और यह हाइड्रोिेरेपी


उपचार जैसी प्रिाओं में स्पष्ट है , जहां गचककत्सीय उद्दे श्यों के सलए पानी का उपयोि ककया
जाता है । आयुर्वेद में तत्र्वों में से एक के रूप में पानी की भूसमका को समझना हमारे शरीर
में कल्याण और संतल
ु न बनाए रखने में इसके महत्र्व की सराहना करने के सलए महत्र्वपूणश
है ।

5. पथ्
ृ र्वी तत्र्व

पथ्
ृ र्वी, पंच महाभूतों या आयुर्वेद में पांच तत्र्वों का दहस्सा है, इसका अक्स्तत्र्व चार अन्य
तत्र्वों: आकाश, र्वाय,ु अक्नन और जल के समामेलन से उत्पन्न हुआ है । यह पथ् ृ र्वी तत्र्व
अपनी कठोरता, क्स्िरता, सस् ु ती, शष्ु कता, र्वजन और घनत्र्व के िण
ु ों से वर्वसशष्ट रूप से
पहचाना जाता है ।

पंच महाभूतों (आयुर्वेद में तत्र्व) के संदभश में , नाक को पथ्


ृ र्वी तत्र्व का तदनुरूप संर्वेदी अंि
माना जाता है । पथ्
ृ र्वी तत्र्व हमारी हड्डडयों, र्वसा, मांसपेसशयों और ऊतकों को शासमल करते
हुए हमारे भौततक स्र्वरूप को संरचना और दृढ़ता प्रदान करने में महत्र्वपण
ू श भसू मका तनभाता
है ।

जब पथ्ृ र्वी तत्र्व प्रबल होता है या असंतुसलत हो जाता है , तो यह घने बाल, त्र्वचा, नाखून,
भारीपन की भार्वना, सुस्ती और अन्य शारीररक लक्षणों के रूप में प्रकट हो सकता है। पथ्
ृ र्वी
तत्र्व का घनत्र्व हड्डडयों पर इसके प्रभार्व में सबसे अगधक स्पष्ट है , तयोंकक यह हड्डडयों
की मजबत
ू ी और संरचना का समिशन करता है । पथ्
ृ र्वी के तत्र्वों में असंतल
ु न के कारण
हड्डडयां कमजोर हो सकती हैं और उनमें फ्रैतचर होने की संभार्वना हो सकती है , साि ही
अन्य स्र्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जैसे र्वजन में उतार-चढ़ार्व, मांसपेसशयों में
कमजोरी, कोलेस्रॉल का ऊंचा स्तर या हड्डडयों के घनत्र्व में बदलार्व।

हालाँकक, जब पथ्
ृ र्वी तत्र्व को पंच महाभत
ू ों (आयुर्वेद में तत्र्व) के ढांचे के भीतर संतसु लत
ककया जाता है, तो यह दृढ़ता, क्स्िरता और आत्मवर्वश्र्वास की िहरी भार्वना प्रदान करता है ।
यह संतुलन क्स्िरता और आत्मवर्वश्र्वास की भार्वनाओं से जुडा है। चक्रों के संदभश में , रीढ़
की हड्डी के आधार पर क्स्ित मल ू ाधार चक्र, पथ्
ृ र्वी तत्र्व के साि घतनष्ठ रूप से जड
ु ा हुआ
है , जो हमारे समग्र कल्याण में इसके महत्र्व को रे खांककत करता है ।

आयुर्वेद में इन तत्र्वों की िततशील परस्पर कक्रया को समझना शरीर और ददमाि में
स्र्वास्थ्य और संतुलन बनाए रखने में आयुर्वेद के समग्र दृक्ष्टकोण के सलए मौसलक है।

दे खें कक पंचकमश उपचार के साि डडटॉतस और कायाकल्प कैसे काम करता है

आयर्व
ु ेद में 6 स्र्वाद और 5 तत्र्व

स्त्वाद मौभलक सांघ वववरण

भमिाई प्
ृ वी और जल पौष्टिक, ग्राउां डडांग और िां डा करने वाला

िट्िा प्
ृ वी और अष्ग्न पाचनवधशक, उिेजक और गमश करने वाला

नमकीन जल और अष्ग्न नमी दे ना, गमश करना और उिेष्जत करना

कड़वा ईथर और वायु ववषहरण, र्ीतलता और र्ुदधध

किु आग और हवा उिेजक, गरम और पाचक

स्त्तम्मक वायु और प्
ृ वी सुिाना, िां डा करना

आयुर्वेद में 3 दोर् और 5 तत्र्व


दोष मौभलक सांघ वववरण

वात ईथर और वायु र्ुटकता से जुड़ी गतत को तनयांत्ररत करता है

वपि आग और पानी गमी से सांबांधधत पाचन को तनयांत्ररत करता है

कफ प्
ृ वी और जल नमी से जुड़ी ष्स्त्थरता को तनयांत्ररत करता है

आयर्व
ु ेद के 5 तत्र्वों और उनके िण
ु ों को समझने से हमें यह समझने में मदद समलती है
कक र्वे कैसे प्रकट होते हैं। यह हमें यह समझने की ददशा में एक कदम और करीब ले जाता
है कक हम इस खब ू सरू त ब्रहमांड और प्रकृतत से कैसे जडु े हुए हैं। कहा जाता है कक हम
इन्हीं से जन्मे हैं और अंत में इन्हीं में वर्वलीन हो जायेंिे।

प ां च भूत: योग की प्र क ृ त त के 5 त त् व

पर प्रकाभर्त5 नवां ब र 2021


दवाराद्रिमोथी बधगश न

पारां पररक चीनी धचककत्सा से लेकर फेंगर्ुई तक, लगभग हर प्राचीन सांस्त्कृतत में कई
बतु नयाद तत्वों से बनी प्राकृततक घिनाओां की प्रकृतत का वणशन ककया गया
है । योग, आयव
ु ेद और भारतीय दर्शन में पाांच तत्वों को पांच भत
ू कहा जाता है। ये पाांच
मूल तत्व हैं प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु और अांतररक्ष या आकार्। वे मानव र्र र और
भौततक सांसार के भौततक और ऊजाशवान गण
ु ों का प्रतततनधधत्व करते हैं। इन पाांच तत्वों का
उतार-चढ़ाव हमार र्ार ररक, मानभसक और भावनात्मक भलाई को प्रभाववत करता है। जब
वे सामांजस्त्य में होते हैं, तो हम र्ाांतत और अच्छे स्त्वास्त््य का अनुभव करते हैं। जब वे
सांतुलन से बाहर हो जाते हैं, तो हम पीड़ा और अप्रसन्नता का अनुभव कर सकते
हैं। प्रकृतत के इन तनयमों के बारे में जागरूकता और समझ हमें अपने योग
और ध्यान प्रथाओां के माध्यम से उन्हें सांतल
ु न की ष्स्त्थतत में लाने की अनुमतत दे ती है ।

प्रकृ तत के 5 तत्व

प्रकृतत के 5 तत्वों को सांस्त्कृत में पांच भत


ू , या पांचमहाभत
ू के रूप में जाना जाता है । वे
ब्रह्माांड के बुतनयाद तनमाशण िांडों का तनमाशण करते हैं, प्रत्येक व्यष्क्त, जानवर, पौधे और
वस्त्तु पांच भूतों के ववभभन्न सांयोजनों से बने हैं।
प्रत्येक तत्व की अपनी ववर्ेषताएाँ और गण
ु होते हैं:

1. प्
ृ वी या भभू म (प्
ृ वी) - दृढ़ता, ष्स्त्थरता और ग्राउां डडांग का प्रतततनधधत्व करती है ।

2. अपास या जल (जल) - तरलता, अनक


ु ू लनर्ीलता और पररवतशन का प्रतततनधधत्व
करता है ।

3. तेजस या अष्ग्न (अष्ग्न) - ऊजाश, जुनून और पररवतशन का प्रतततनधधत्व करता है ।

4. वायु (वायु) - गतत, ववस्त्तार और सांचार का प्रतततनधधत्व करता है ।

5. आकार् (अांतररक्ष या ईथर) - र्ून्यता, चेतना और अांतज्ञाशन का प्रतततनधधत्व करता


है ।

प्
ृ वी, जल और अष्ग्न मूतश चीजें हैं ष्जन्हें छुआ या दे िा जा सकता है; वे पदाथश के रूप में
मौजूद हैं। अांतररक्ष और वायु अमूतश हैं कफर भी वे हमारे चारों ओर हर जगह मौजद
ू हैं, भले
ह हम उन्हें दे ि नह ां सकते। इसभलए प्ृ वी, जल और अष्ग्न को समझना हमारे भलए
अांतररक्ष और वायु की तुलना में आसान है क्योंकक उनके पास अधधक िोस रूप हैं। हालााँकक,
सभी पााँच तत्व समान रूप से महत्वपूणश और परस्त्पर जुड़े हुए हैं।

योग में पाां च तत्वों का महत्व

तीन आयव
ु द्रे दक दोष दो मल
ू तत्वों का सांयोजन हैं। वात दोष वायु और आकार् से बनता
है । वपि दोष अष्ग्न और जल से बनता है। कफ दोष प्ृ वी और जल का भमश्रण है ।

योग की तकनीकें और अभ्यास पाांच आयव


ु ेद्रदक तत्वों में सामांजस्त्य और सांतुलन बनाने में
बहुत प्रभावी हो सकते हैं। अपने योग अभ्यास में प्रत्येक तत्व की जागरूकता को समझने
और र्ाभमल करने से, आप पाएांगे कक स्त्वास्त््य, कल्याण और िर् ु ी पैदा करने के भलए
अपने व्यष्क्तगत दोष को सांतभु लत और सस
ु ांगत बनाना आसान है ।

प्रकृतत के तत्वों का अनुभव करने पर जोर दे ने के साथ योग का अभ्यास करने से हमें कई
लाभ भमलते हैं। योग हमें भसिाता है कक जब ये पाांचों हमारे भीतर सांतभु लत हो जाते हैं, तो
हमने पण
ू श कल्याण प्रातत कर भलया है। इसका मतलब है कक हम र्ाांत, र्ाांततपण
ू ,श िर्
ु ,
स्त्वस्त्थ और मजबत
ू महसस
ू करते हैं।

तत्वों को सां त ु भ लत और स ु स ां ग त बनाने के भलए योग का उपयोग करना


तत्वों को सांतुभलत और सुसांगत बनाने के भलए योग का उपयोग करने के भलए, एक समय
में एक तत्व पर ध्यान केंद्रित करके र्ुरुआत करें । हम अनुर्स
ां ा करते हैं कक आप अपनी
यारा प्
ृ वी तत्व से र्रू
ु करें , क्योंकक यह बाकी सभी चीजों का आधार है ।

अपने योग अभ्यास में पााँच तत्वों को र्ाभमल करते समय, उनकी भौततकता पर बहुत
अधधक ध्यान केंद्रित न करने का प्रयास करें । इसके बजाय, उनकी ऊजाश और कांपन के बारे
में सोचें , या जब आप योगा मैि पर चलते हैं और साांस लेते हैं तो इन तत्वों का सार
आपके र्र र, द्रदमाग और भावनाओां को कैसे प्रभाववत करता है।

अपने अभ्यास के दौरान यथासांभव तत्व की अनुभूतत को महसूस करने का प्रयास करें । एक
बार जब आप पहले तत्व से जुड़ने में महारत हाभसल कर लेते हैं, तो आप अगले तत्व पर
आगे बढ़ सकते हैं। अांततुः, आप अपने दवारा अभ्यास ककए जाने वाले प्रत्येक आसन में
प्रत्येक के गण
ु ों का अनुभव करने पर काम कर सकते हैं ।

1. प ्
ृ वी तत्व

चेतना की यारा प्
ृ वी, प्
ृ वी तत्व से र्रू
ु होती है। इस मल
ू भत
ू तत्व को एक पीले वगश
दवारा दर्ाशया गया है और यह मूलाधार चक्र, मूल या प्रथम चक्र से मेल िाता है । प्रकृतत
का यह पहलू जमीनीपन, ष्स्त्थरता, र्ष्क्त, स्त्थातयत्व, धैय,श उवशरता और सुरक्षा को तनयांत्ररत
करता है । यह र्र र में हमार हड्डडयों, माांसपेभर्यों, नािूनों, बालों और दाांतों की िोस
सांरचनाओां में प्रकि होता है। इससे जुड़ी इांद्रिय नाक है ।

जब प्
ृ वी तत्व असांतुभलत होता है , तो लोगों को थकान, असुरक्षा, कमजोर , भय,
स्त्वाभमत्व, लालची, भौततकवाद , ऊजाश की कमी या भूि न लगना महसूस होता है । हमार
त्वचा, नािून, दाांत, बाल और हड्डडयों से जुड़ी समस्त्याएां भी असांतुलन की ओर इर्ारा कर
सकती हैं।

आप तनयभमत रूप से िड़े होकर और सांतभु लत योगासनों का अभ्यास करके प्


ृ वी के साथ
सामांजस्त्य स्त्थावपत कर सकते हैं और उससे जुड़ सकते हैं, जो ष्स्त्थरता, ताकत और जमीन
से जुड़े रहने को बढ़ावा दे ता है । इनमें माउां िे न , र , चेयर , वॉररयर 2 और सीिे ड फॉरवडश
बेंड जैसे आसन र्ाभमल हैं । वे मुिा और ष्स्त्थरता में सुधार करने और पैर की माांसपेभर्यों
को मजबूत करने में भी मदद करते हैं, जो आपको िड़े होने की सभी मुिाओां में मदद
करे गा । इन आसनों का सुरक्षक्षत अभ्यास करते समय उनकी र्ाांत करने वाल , ष्स्त्थर करने
वाल , ष्स्त्थर करने वाल और मजबत
ू करने वाल कक्रयाओां पर ध्यान केंद्रित करें ।
जैसे ह आप इन मुिाओां के माध्यम से आगे बढ़ते हैं और प्
ृ वी के साथ अपने सांबांध को
दे िते हैं, और जब आप अपने पैरों और पैर की माांसपेभर्यों को सकक्रय करते हैं तो जमीन
आपको कैसे सहारा दे ती है । अपने पैरों को ज़मीन में दबाते हुए, एक ष्स्त्थर, सरु क्षक्षत और
केंद्रित आधार प्रदान करते हुए महसस
ू करने पर ध्यान केंद्रित करें ।

2. जल तत्व

हम आमतौर पर पानी के बारे में उसके कई रूपों में सोचते हैं, ष्जनमें नद्रदयााँ, महासागर,
झीलें, तालाब, झरने और बाररर् की बूाँदें र्ाभमल हैं। कफर भी, हमारे र्र र के अांदर, पानी
हमारे स्त्वास्त््य में महत्वपूणश भूभमका तनभाता है । जल तत्व दस
ू रे चक्र, स्त्वाधधटिान से जुड़ा
है , जो नाभभ और जघन हड्डी के बीच ष्स्त्थत है । इसका प्रतीक श्वेत अदशधचांि है। यह
तत्व तरलता, र्ुदधध, पोषण को तनयांत्ररत करता है और ऊजाश, तरल पदाथश और भौततक
र्र र की गतत को तनयांत्ररत करता है। जल तत्व सि
ु दायक और कामुक है, और हमें हमार
भावनाओां और सांवेदनाओां से जोड़ने में मदद करता है। यह र्र र में रक्त, लसीका, आाँस,ू
लार, पसीना, मर
ू , वीयश और स्त्तन के दध
ू के रूप में प्रकि होता है ।

जब जल तत्व असांतुभलत होता है , तो हमें व्यसन, भावनात्मक अभभव्यष्क्त, रचनात्मकता


और मानभसक किोरता जैसी समस्त्याओां का अनुभव हो सकता है । पाचन, उन्मूलन, यौन
कक्रया, मर
ू ार्य पर तनयांरण या माभसक धमश में समस्त्याएां भी असांतुभलत जल तत्व का
सांकेत हो सकती हैं।

आप चांचलता, तरलता और सहज गतत की भावना के साथ आसन का अभ्यास करके


प्रकृतत के जल पहलू के साथ सामांजस्त्य स्त्थावपत कर सकते हैं और उससे जुड़ सकते
हैं। त्रबल्ल / गाय , सय
ू श नमस्त्कार , कक्रसेंि लांज, कबत
ू र , बाउां ड एांगल , हल , कोबरा
, द्रिड्डी , कक्रसेंि मन
ू , मछल और डाउन डॉग जैसी मि
ु ाओां में साांस की नाड़ी और
ववन्यास प्रकार की गततववधधयों पर ध्यान केंद्रित करें । ध्यान दें कक कैसे प्रत्येक मुिा
आपके र्र र के भीतर अलग-अलग सांवेदनाएाँ लाती है । जैसे ह आप इन मुिाओां को धारण
करते हैं, अपने आप को त्रबना ककसी प्रततरोध या तनणशय के उनमें द्रहलने और बहने की
अनुमतत दें । चलने और साांस लेने के नए तर कों के साथ प्रयोग करने के भलए स्त्वतांर
महसूस करें ।

इसके अलावा, प्राणायाम को अपने अभ्यास में र्ाभमल करने से आपका द्रदमाग र्ाांत हो
सकता है और जल तत्व को सकक्रय करने के भलए आपके तांत्ररका तांर को आराम भमल
सकता है। डायाफ्राभमक साांस , 3-भाग पेि की साांस और समान साांस जैसी साांस लेने की
तकनीकों का अभ्यास करें ।
3. अष्ग्न तत्व

जबकक हमारे अांदर आग का एक अांततनशद्रहत डर है, हमारे योग अभ्यास में इस तत्व के
साथ जागने से पररवतशन की र्ष्क्तर्ाल ष्स्त्थततयों को बढ़ावा भमल सकता है। अष्ग्न
तत्व सौर जाल में ष्स्त्थत मखणपुर या तीसरे चक्र से जुड़ा हुआ है , और इसे ऊपर की ओर
इर्ारा करते हुए लाल त्ररकोण दवारा दर्ाशया गया है । अष्ग्न तत्व गमश, उज्ज्वल, सकक्रय,
गततर्ील, मजबत
ू करने वाला और उिेजक है । यह तत्व जुनून, क्रोध, महत्वाकाांक्षा, इच्छा,
इच्छार्ष्क्त, साहस, आत्मववश्वास, आत्म-अभभव्यष्क्त, रचनात्मक सोच और नेतत्ृ व को
तनयांत्ररत करता है । यह हमारे चयापचय, ऊजाश और र्र र के तापमान को तनयांत्ररत करता
है ।

जब अष्ग्न तत्व सांतल


ु न से बाहर हो जाता है, तो हमें प्रेरणा, एकाग्रता, तनणशय लेने,
अनुर्ासन और आवेग तनयांरण में समस्त्याओां का अनुभव हो सकता है। सज
ू न, बि
ु ार और
पाचन या उन्मल
ू न से सांबांधधत समस्त्याएां ये सभी सांकेत हैं कक अष्ग्न तत्व पर ध्यान दे ने
की आवश्यकता है।

आप ऐसे आसनों का अभ्यास करके अष्ग्न के साथ सामांजस्त्य स्त्थावपत कर सकते हैं और
उससे जुड़ सकते हैं जो पररसांचरण को उिेष्जत करते हैं, कोर को सकक्रय करते हैं और गमी
पैदा करते हैं, जैसे वॉररयर 3 , ईगल , बो , त्रब्रज , चेयर , कैमल , तलैंक , प्रेयर
ट्ववस्त्ि और बोि । इसके अलावा, कपालभातत जैसे वाभमंग प्राणायाम श्वास अभ्यास को
र्ाभमल करने से आपकी आांतररक अष्ग्न सकक्रय हो जाएगी। अत्यधधक आग के लक्षणों को
कम करने के भलए, भसि कैर और र्ीतल के र्ीतलन प्राणायाम का उपयोग करें ।

अष्ग्न तत्व के साथ काम करते समय, उपष्स्त्थत, स्त्पटि द्रदमाग, केंद्रित, आत्मववश्वासी,
मि
ु र, मजबत
ू और साहसी होने पर ध्यान केंद्रित करें । मन को र्द
ु ध करने के भलए
नकारात्मक ववचारों और भावनाओां को जलाने के भलए इस तत्व के अपने अनुभव का
उपयोग करें ।

4. वायु तत्व

हि योग परां परा मानव र्र र में पाांच वायु सूक्ष्म ऊजाशवान हवाओां या वायु का वणशन करती
है जो ववभभन्न प्रकार की प्राण ऊजाश का प्रतततनधधत्व करती हैं। वायु तत्व हृदय के केंि में
ष्स्त्थत अनाहत या चौथे चक्र से जुड़ा है। इसे नीले वि
ृ दवारा दर्ाशया गया है । वायु तत्व
सौम्य, उत्थानकार , पोषण करने वाला, उपचार करने वाला, मक्
ु त करने वाला और सांतल
ु न
बनाने वाला है । प्रकृतत का यह पहलू र्र र में सभी प्रकार की गततववधधयों, गततज
गततववधधयों, श्वास, सोच और पररसांचरण को तनयांत्ररत करता है ।

जब वायु तत्व सांतुभलत होता है , तो हम र्ाांततपूण,श धैयव


श ान, दयालु, प्रेमपूण,श दयालु,
समझदार, क्षमार्ील, स्त्वीकार करने वाले, सद्रहटण,ु गैर-तनणशयात्मक और िुले द्रदल वाले
होते हैं। जब वायु तत्व असांतुभलत होता है, तो लोग अधीर, तकशर्ील, भयभीत, धचांततत,
बाध्यकार , अतनणाशयक और उड़ने वाले हो जाते हैं।

आप आसन का अभ्यास करके वायु तत्व के साथ सामांजस्त्य स्त्थावपत कर सकते हैं और
उससे जुड़ सकते हैं जो हृदय और फेफड़ों को िोलता है जैसे कोबरा , ऊपर की ओर
कुिा , ऊांि , मछल , नतशक और पद्रहया की छाती िोलने वाल पीि । गहर योधगक
डायाफ्राभमक श्वास और हल्केपन, र्ाांतत और सहजता की भावना के साथ इन आसनों का
अभ्यास करें । सभी प्रकार के योधगक श्वास कायश वायु तत्व को सकक्रय करें गे, कफर
भी उज्जायी और साम ववृ ि प्राणायाम का प्रभाव सबसे मजबत
ू होगा।

5. आकार् तत्व

ईथर या आकार् तत्व न तो द्रदिाई दे ता है और न ह सुनाई दे ता है , कफर भी यह व्यातत


है और हर चीज को एक साथ जोड़ता है। यह तत्वों में सबसे सक्ष्
ू म है और गले में
ष्स्त्थत ववर्ुदधध या पाांचवें चक्र से जुड़ा है । इसे काले अांडाकार आकार दवारा दर्ाशया गया है ।

ईथर तत्व व्यापक, र्ाांत, सि


ु दायक, ग्रहणर्ील, सहज, आध्याष्त्मक, सावशभौभमक,
कालातीत, अनांत और असीम है। यह र्ुदध चेतना, अांतज्ञाशन, रचनात्मकता, कल्पना, प्रेरणा,
ववश्वास, प्रेम, करुणा, सहानुभूतत, र्ाांतत, आनांद, आनांद, सत्य, पववरता, ज्ञान और
उत्कृटिता का प्रतततनधधत्व करता है । यह तत्व सांचार, वाणी, श्रवण, अांतज्ञाशन, स्त्वतन,
दरू दभर्शता और आध्याष्त्मक जागरूकता को तनयांत्ररत करता है ।

जब ईथर तत्व सांतुभलत होता है , तो हम जड़ु ा हुआ, सुरक्षक्षत, सुरक्षक्षत, सांरक्षक्षत, समधथशत,
तयार, स्त्वीकार, समझा और ष्स्त्थर महसूस करते हैं। हम दस ू रों, स्त्वयां, जीवन, आत्मा,
ब्रह्माांड और अपनी उच्च र्ष्क्त से गहराई से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। सांतुलन में होने
पर, हम अहांकार के बजाय द्रदल से बोलते और कायश करते हैं।

चाँ कू क यह गततह न है , ध्यान, जागरूकता और सचेतनता के माध्यम से इस तत्व को


सवोिम रूप से सांतुभलत और मजबूत ककया जाता है। ककसी भी प्रकार का ध्यान अभ्यास
ईथर की दृढ़ता से िेती करे गा। हि योग अभ्यास में , आप साांसों के बीच र्ाांतत और अपने
र्र र के आस-पास की जगह की जागरूकता पर ध्यान केंद्रित करते हुए लांबे समय तक
मुिा धारण करके ईथर के गण
ु ों को ववकभसत कर सकते हैं। ईथर पर ध्यान केंद्रित करने के
भलए सबसे अच्छे आसन र्वासन , चाइल्ड , सीिे ड फॉरवडश बेंड , बेल ट्ववस्त्ि , बाउां ड
एांगल , क्रोकोडाइल और माउां िे न पोज़ हैं ।

मांरों का जाप भी आपको आकार् तत्व तक पहुाँचने में मदद कर सकता है। आप ज़ोर से
जप कर सकते हैं, लेककन ककसी मांर का मौन जप ईथर के अभी भी ववर्ाल गुणों से जुड़ने
का सबसे र्ष्क्तर्ाल तर का होगा।

भ ू त भसदधध

भत
ू भसदधध एक योधगक साधना है, जो जल (प्
ृ वी), वाय,ु अष्ग्न, अांतररक्ष और आकार् के
पाांच तत्वों को र्द
ु ध करती है । इस सांस्त्कृत र्ब्द का अनव
ु ाद "तत्वों की र्द
ु धध" के रूप में
ककया जाता है। “यह स्त्वयां को नकारात्मक ऊजाशओ,ां ववचारों, भावनाओां और आदतों से र्ुदध
करने की प्रकक्रया है। इस अभ्यास का उददे श्य योधगयों को उनकी भौततक प्रकृतत से मुक्त
करना और चेतना के उच्च स्त्तर के दवार िोलना है।

भत
ू भसदधध एक उन्नत योग अभ्यास है ष्जसमें पाांच तत्वों की महत्वपण
ू श ऊजाश को सांतभु लत
करने के भलए कांु भक (साांस रोकना), दृश्य और मांर ध्यान के अभ्यास में अनुभव की
आवश्यकता होती है । यह ध्यान अभ्यास चक्रों के बीज (बीज) मांरों के जाप के साथ
सात चक्रों में से प्रत्येक की कल्पना करने पर आपका ध्यान केंद्रित करता है । आप इस
अभ्यास के भलए स्त्वामीजे.कॉम और योगइांिरनेर्नल.कॉम पर तनदे र् पा सकते हैं ।

कोष: अष्स्त्तत्व की 5 परतें

यद्रद आप एक ववभर्टि स्त्वास्त््य-सचेत योग इां िरने र्नल पािक हैं , तो आप सांभवतुः
आज पहले ह व्यायाम कर चुके हैं । चाहे आप तेज़ सैर पर गए हों, कु छ िे तनस िेला
हो, या ष्जम में कसरत की हो, आप अपने भौततक र्र र को आकार में रिने के
महत्व को पहचानते हैं । ले ककन क्या आपने अभी तक अपने सूक्ष्म र्र र का व्यायाम
ककया है ? या आपका कारण र्र र? योग परां परा के अनुसार, हममें से प्रत्ये क के पास
पाांच र्र र हैं , ष्जनमें से प्रत्ये क ऊजाश के अधधकाधधक मह न ग्रे ड से बना है । और यद्रद
हम पूर तरह से सां तुभलत, स्त्वस्त्थ जीवन जीने का इरादा रिते हैं , तो यह हमें बताता
है , हमारे सभी र्र रों को अच्छी ष्स्त्थतत में रिने की आवश्यकता है ।
योग परां परा के अन ुस ार, हममें से प्रत्ये क के पास पाांच र्र र हैं , ष्जनमें से प्रत्ये क
ऊजाश के अधधकाधधक मह न ग्रे ड से बना है ।

हमारे व्यष्क्तत्व को बनाने वाले पाांच उिरोिर सू क्ष्म र्र रों का वणशन तैविर य
उपतनषद नामक योग क्लाभसक में ककया गया है :

“मनुटय अपने दवारा िाए गए भोजन से तनभमशत एक भौततक र्र र से बना है । जो


लोग इस र्र र की दे िभाल करते हैं उनका पोषण ब्रह्माांड दवारा ह ककया जाता है ।

“इसके अांदर जीवन ऊजाश से बना एक और र्र र है । यह भौततक र्र र को भरता है


और अपना आकार ले ता है । जो लोग इस महत्वप ूण श र्ष्क्त को द्रदव्य मानते हैं वे
उत्कृ टि स्त्वास्त््य और द घाशयु का अनुभव करते हैं क्योंकक यह ऊजाश भौततक जीवन का
स्रोत है ।

“प्राण र्ष्क्त के भीतर एक और र्र र है , यह ववचार ऊजाश से बना है । यह दो सघन


वपांडों को भरता है और इसका आकार एक जैसा होता है । जो लोग मानभसक र्र र को
समझते हैं और तनयां त्ररत करते हैं वे अब भय से पीडड़त नह ां होते हैं ।

“बु दधध से बना एक और र्र र अभी भी अधधक गहरा है । यह तीन सघन वपांडों में
व्यातत है और एक ह रूप धारण कर ले ता है । जो लोग यहाां अपनी जागरूकता
स्त्थावपत करते हैं वे स्त्वयां को अस्त्वस्त्थ ववचारों और कायों से मुक्त करते हैं , और
अपने लक्ष्यों को प्रातत करने के भलए आवश्यक आत्म-तनयां र ण ववकभसत करते हैं।

“इसके अांदर अभी भी एक सूक्ष्म र्र र तछपा हु आ है , जो र्ुदध आनांद से बना है । यह


अन्य र्र रों में व्यातत है और समान आकार साझा करता है । इसे िुर्ी, प्रसन्नता और
आनांद के रूप में अनुभ व ककया जाता है ।

इन पाांच तनकायों को सांस्त्कृ त में कोष, या "म्यान" कहा जाता है , क्योंकक प्रत्ये क एक
म्यान में तलवार की तरह अगले में कफि बैिता है । जैसा कक हम जानते हैं , के वल
सबसे सघन पदाथश ह पदाथश से बना होता है ; अन्य चार ऊजाश अवस्त्थाएाँ हैं जो भौततक
आाँिों के भलए अदृश्य हैं , हालााँकक जब हम बार की से ध्यान दे ते हैं तो हम अपने अांदर
उनकी उपष्स्त्थतत को आसानी से महस ूस कर सकते हैं । चाँू कक आांतररक र्र र जीवन के
दौरान हमार भलाई का स्रोत हैं और वे वाहन हैं ष्जनसे हम म त्ृ यु के बाद यारा करते
हैं , भारत के प्राचीन योधगयों ने बार -बार से प्रत्ये क को मजबूत और िोन करने के
भलए ववभर्टि अभ्यास ववकभसत ककए।
आपका दस
ू रा र्र र

आप पहले से ह अपने भौततक र्र र से पररधचत हैं । इसे योग में अन्नमय कोष कहा
जाता है , (माया का अथश है "बना हु आ" और अन्न का अथश है "भोजन" या "भौततक
पदाथश।") ले ककन योग आपको एक द स ू रे र्र र, आयोजन क्षेर के बारे में भी जागरूक
करता है जो आपके भौततक र्र र को एक साथ रिता है । यह जीवन ऊजाश है जो साांस
ले ने से ले कर पाचन और रक्त पररसांचरण तक आपकी जैववक प्रकक्रयाओां को तनयांत्ररत
करती है । इसे चीनी धचककत्सा में ची और योग में प्राण कहा जाता है । प्राचीन
भमस्रवासी इसे का कहते थे।

एक्य ूपां क्चर और होम्योपैथी सीधे आपके भौततक र्र र को प्रभाववत नह ां करते हैं ; वे
उस महत्वप ूण श र्ष्क्त पर काम करते हैं जो इसे सकक्रय और कायम रिती है ।

एक्यू पांक् चर और होम्योपैथी सीधे आपके भौततक र्र र को प्रभाववत नह ां करते हैं ; वे
उस महत्वप ूण श र्ष्क्त पर काम करते हैं जो इसे सकक्रय और कायम रिती है । पष्श्चम
में रूद्रढ़वाद धचककत्सकों ने 19वीां सद तक जीवन र्ष्क्त के महत्व को पहचाना,
ले ककन सल्फा दवाओां और एांि बायोद्रिक दवाओां के ववकास के साथ, उनका ध्यान
मानव जीव ववज्ञान में अांततनशद्रहत ऊजाश ष्स्त्थततयों से हिकर ववर्ेष रूप से भौततक
र्र र पर कें द्रित हो गया।

योग में ऊजाश र्र र को प्राण-माया कोष कहा जाता है । जब यह काम करना बांद कर
दे ता है तो आपका भौततक र्र र काम नह ां कर पाता। आपका हृदय और फे फड़े काम
करना बांद कर दे ते हैं और आपकी कोभर्काएां ववघद्रित होने लगती हैं । पष्श्चमी
सांस्त्कृ तत में हम अपने भौततक र्र र को दृढ़ता से पहचानते हैं , कफर भी प्राण के
समथशन और तनदे र्न के त्रबना, यह कु छ भमनिों से अधधक जीववत नह ां रह सकता है ।

योग पुनुःपूतत श के भलए प्राणायाम नामक अभ्यासों की एक पूर श्रे णी को समवपशत करता
है

प्राणमय कोष की जीवन र्ष्क्त. डायाफ्राभमक श्वास, सांप ूण श योधगक श्वास और


वैकष्ल्पक नाभसका श्वास जैसे व्यायाम ववर्ेष रूप से आपके द स
ू रे आवरण के समुधचत
कायश को बढ़ाने के भलए डडज़ाइन ककए गए हैं ।

इसके अलावा, महत्वपूण श र्ष्क्त के स्त्वास्त््य को बनाए रिने के भलए भरपूर ताजी हवा
और धूप प्रातत करना आवश्यक है । योग ग्रांथ बताते हैं कक सूय श प्राण का अांततम स्रोत
है , और ऐसा कहा जाता है कक कु छ उन्नत योगी वषों तक त्रबना कु छ िाए रहते
हैं ; इसके बजाय वे के वल सू य श दवारा उत्सष्जशत प्राण को अवर्ोवषत करते हैं । हालााँकक,
हममें से अधधकाांर् के भलए, ताजा सांपूण श भोजन प्राण का एक प्रमुि स्रोत है ।

आपका तीसरा र्र र

तीसरा आवरण या मानभसक र्र र हमार सांवेद और मोिर गततववधधयों और हमार


द्रदन-प्रततद्रदन की जागरूकता के भलए ष्जम्मे दार उपकरण है जब हम "स्त्वचाभलत रूप
से" कायश कर रहे होते हैं । यह हमार पाां च इां द्रियों से इनप ुि सांसाधधत करता है और
प्रततकक्रयात्मक रूप से प्रततकक्रया करता है । जब हम जीवन में तनष्टक्रय रूप से आगे
बढ़ते हैं , अपने पयाश वरण को सकक्रय रूप से आकार दे ने के बजाय उस पर प्रततकक्रया
करते हैं , तो हमार जागरूकता यह ां कें द्रित होती है । बहु त से लोग, और अधधकाांर्
जानवर, तनयभमत रूप से इस स्त्तर पर काम करते हैं ।

इस र्र र को मनोमय कोष कहा जाता है (ष्जसका अथश है "ववचार प्रकक्रयाओां से बना
र्र र")। पष्श्चम में हम अपनी तनयभमत मानभसक ष्स्त्थतत को मष्स्त्तटक से जोड़ते हैं ,
ले ककन योग के अनुसार सांप ूण श तांत्ररका तांर (मष्स्त्तटक सद्रहत) के वल मनोमय कोष की
गततववधध में मध्यस्त्थता करता है , भौततक र्र र के माध्यम से इस उच्च ऊजाश ष्स्त्थतत
के आदे र्ों को व्यक्त करता है ।

जब आप ककसी मर ज को कोमा में दे िते हैं तो आपको इसका स्त्पटि एहसास होता है
कक मानभसक र्र र क्या है । उनका द स
ू रा आवरण अभी भी काम कर रहा है इसभलए
उनका हृदय पांप करना जार रिता है और उनके फे फड़े फै लते और भसकु ड़ते हैं । ले ककन
व्यष्क्त को बाहर द तु नया के बारे में कोई जागरूकता नह ां है और कारश वाई करने की
कोई क्षमता नह ां है क्योंकक मानभसक र्र र की गततववधध बांद हो गई है । प्राणमय कोष
हमार पहल साां स के क्षण से ले कर आखिर साांस तक काम करता है , ले ककन मनोमय
कोष दै तनक आधार पर अस्त्थायी रूप से बांद हो जाता है , और गहर नीांद की ष्स्त्थतत
के दौरान िुद को पुनजीववत करता है ।

मांर ध्यान के अभ्यास से मनोमय कोष का स्त्वास्त््य काफी बढ़ जाता है । यह इस


आांतररक र्र र को र्ाांत और सांतुभलत करता है , और मानभसक जद्रिलताओां और जुनूनी
ववचारों में बांधी ऊजाश की "गाांिों" को मुक्त करने में मदद करता है । जो योगी ध्यान
में बहु त अधधक समय त्रबताते हैं , उन्हें अक्सर नीांद की बहु त कम आवश्यकता होती है ,
आांभर्क रूप से क्योंकक उनके मानभसक वाहन एक कार की तरह बेहतर ढां ग से काम
कर रहे होते हैं , ष्जसे अभी-अभी ट्य ून -अप ककया गया है ।
मानभसक र्र र हमारे दवारा प्रदि इष्न्िय छापों को "पोवषत" करता है । उदाहरण के
भलए, यद्रद हम अपने तीसरे आवरण को द्रहांसक ि वी र्ो और वीडडयो गे म की तनरां तर
धारा प्रदान करते हैं , तो यह उिे जना के तेजी से आक्रामक रूपों की लालसा करना र्ुरू
कर दे ता है , और अधधक उिे ष्जत हो सकता है और द स
ू रों की पीड़ा के प्रतत कम
सांव ेदनर्ील हो सकता है । यद्रद हम इसे बहु त अधधक काम या बहु त अधधक िेल से
भर दे ते हैं तो हम एक प्रकार की मानभसक "अपच" का अनुभव कर सकते हैं , ष्जससे
हम परे र्ान या थका हु आ महसू स करते हैं । एक सामांजस्त्यपू ण श वातावरण, द्रदलचस्त्प
पेर्े वर चु नौततयााँ, और मज़ेदार और सहायक ररश्ते द्रदमाग के भलए एक आदर्श आहार
प्रदान करते हैं । प्रत्याहार, या सांवेद प्रत्याहार का एक दै तनक सर, जो ध्यान की ओर
ले जाता है , एक उत्कृ टि आांतररक धुन प्रदान करता है ।

आपका चौथा र्र र

सूक्ष् मतर अभी भी ववज्ञानमय कोष है (ववज्ञान का अथश है "तनणशय या वववेक की


र्ष्क्त")। इसका अनुवाद अक्सर "बुदधध" के रूप में ककया जाता है , ले ककन वास्त्तववक
अथश व्यापक है , ष्जसमें वववेक और इच्छा सद्रहत उच्च मन के सभी कायश र्ाभमल
हैं । तीसरे आवरण या मानभसक र्र र और चौथे आवरण या बौदधधक र्र र के बीच
अांतर को उन लोगों पर नज़र डालकर समझना आसान हो सकता है ष्जनमें ववज्ञानमय
कोष अववकभसत है ।

ऐसा ह एक प्रकार वह है ष्जसका अपने जीवन पर तनयांरण नह ां है , जो तनणशय ले ने


और सकक्रय रूप से प्रततकक्रया दे ने के बजाय लगातार पररष्स्त्थततयों पर प्रततकक्रया कर
रहा है । इस प्रकार की मद्रहला को अपना मन बनाने, अपने बारे में सोचने या
रचनात्मक होने में कद्रिनाई होती है । उसके पास बहु त कम इच्छार्ष्क्त है और वह
लगातार अपने ह िराब फै सले का भर्कार होती रहती है ।

अपयाशतत चौथे आवरण का एक और उदाहरण वह व्यष्क्त है ष्जसके पास मजबूत


व्यष्क्तगत नैततकता नह ां है । वह धाभमशक सेवाओां में भाग ले सकता है और नैततक
मूल् यों के बारे में पववरता से बात कर सकता है , ले ककन जब द स
ू रों की कीमत पर िुद
को लाभ पहुां चाने का अवसर आता है , तो वह कायश करने में सांकोच नह ां करता
है । सह और गलत के बीच अांतर करने की उसकी क्षमता कमजोर है ; उसके भलए
वववेक एक जीववत अनुभव के बजाय एक साधारण बात है ।

एक सकक्रय चौथा आवरण ह मनुटय को जानवरों से अलग करता है । के वल मनुट यों में
ह अपने जीवन को तनदे भर्त करने, व वृ ि की प्रेरणा से मुक्त होने और नैततक ववकल्प
चुन ने की क्षमता होती है । ऋवषयों ने स्त्वस्त्थ ववज्ञानमय कोष के ववकास को इतना
महत्वपूण श माना कक उन्होंने इसके भलए अभ्यासों को योग प्रणाल की र्ुरुआत में ह
रिा। ये यम और तनयम हैं , प्रततबदधताएां जो प्रत्ये क योग छार को करने के भलए
कहा जाता है : नुक सान न पहुां चाएां, झू ि न बोलें , चोर न करें , अततभोग न करें , या
वास्त्तव में आवश्यकता से अधधक की इच्छा न करें ; इसके बजाय आपसे सांतु टि, र्ुदध,
आत्म-अन ुर्ाभसत, अध्ययनर्ील और समवपशत होने के भलए कहा जाता है ।

ज्ञान योग भी इसी कोष के साथ काम करता है । यह बुदधध का मागश है ष्जसमें आपको
आध्याष्त्मक सत्यों का अध्ययन करने, उन पर गहराई से ववचार करने और अांततुः
उन्हें अपने व्यष्क्तत्व के मूल में र्ाभमल करने की सलाह द जाती है । इस मागश पर
आपकी आध्याष्त्मक समझ वह "भोजन" बन जाती है ष्जससे आप अपनी बुदधध का
पोषण करते हैं ।

जैसे-जै से आपका ध्यान अभ्यास मह नों और वषों में गहरा होता जाता है , आांतररक
मागशदर्शन से जुड़ ने की आपकी क्षमता बढ़ती जाती है । आप अपने जीवन की घिनाओां,
यहाां तक कक ददश नाक घिनाओां को भी र्ाांत और वस्त्तुतनटि तर के से अनुभव करना
र्ुरू कर दे ते हैं । आपकी योधगक जीवनर्ैल , धचांत न और ध्यान से तनणशय की स्त्पटिता,
अधधक सहज अांतदृशष्टि और इच्छार्ष्क्त में व द
ृ धध होती है क्योंकक आपका ववज्ञानमय
कोष मजबूत और अधधक सांतुभलत होता है ।

आपका पाांचवाां र्र र

अधधकाांर् मनुटयों में , पााँचवााँ आवरण पूर तरह से अववकभसत है । यह आनांद मय कोष
है , सबसे सू क्ष्म र्र र ष्जसे आनांद (आध्याष्त्मक आनांद ) के रूप में अनु भव ककया जाता
है । आम तौर पर के वल सांतों, ऋवषयों और वास्त्तववक रहस्त्यवाद्रदयों ने ह आनां द को
अपने दै तनक अनुभ व का जीवांत द्रहस्त्सा बनाने के भलए आवश्यक आांतररक कायश ककया
है , और अधधकाांर् लोगों को र्ायद ह पता भी हो कक चेतना का यह स्त्तर उनके भीतर
मौजूद है ।

आम तौर पर के वल सां तों, सां तों और वास्त्तववक रहस्त्यवाद्रदयों ने ह आनां द को अपने


दै तनक अन ुभ व का जीवांत द्रहस्त्सा बनाने के भलए आवश्यक आां तररक कायश ककया है ,
और अधधकाांर् लोगों को र्ायद ह पता भी हो कक चेत ना का यह स्त्तर उनके भीतर
मौजू द है ।
आनांदमय कोष योग में अत्यांत महत्वपू ण श है क्योंकक यह हमार सामान्य जागरूकता
और हमारे उच्च स्त्व के बीच िड़ा अांततम और सबसे पतला पदाश है । बहु त से लोग,
ष्जन्हें म त्ृ यु के तनकि का अनुभव हु आ है , उन्होंने सवशव् यापी ज्ञान और त्रबना र्तश
तयार को प्रसाररत करने वाल एक र्ानदार सफे द रोर्नी का अनुभव ककया है । यह
आनांदमय कोष का अनुभव है । सांत और फकीर अपने मन को र्ुदध करते हैं ताकक वे
जीवन भर यह अनु भव प्रातत कर सकें , न कक के वल म ृत्य ु के क्षखणक क्षण के भलए।

ताांत्ररक परां परा में , आत्मा को अक्सर भर्व के रूप में दर्ाश या जाता है , पारलौककक
भगवान जो हमेर्ा द्रदव्य चेत ना में डू बे रहते हैं । पदाथश/ऊजाश को र्ष्क्त कहा जाता है ,
सवोच्च दे वी ष्जसका द्रदव्य र्र र यह सां पूण श ब्रह्माांड है । ऐसा कहा जाता है कक वे एक-
दस
ू रे से अकथनीय तीव्रता से तयार करते हैं । उनके सवोच्च प्रेम का अनुभव आनांद मय
कोष में होता है , जहाां आत्मा और पदाथश आवेर् पूण श रूप से आभलांगनबदध होते हैं ।

हम तीन अभ्यासों के माध्यम से अपने आनांदमय कोर् को जाग त


ृ कर सकते
हैं । पहल है सेवा, तनुःस्त्वाथश सेवा। यह हमारे हृदय को अन्य प्राखणयों के साथ हमार
सहज एकता के भलए िोलता है । द स
ू रा है भष्क्त योग, भगवान के प्रतत समपशण । यह
हमारे हृदय को सवशव् यापी द्रदव्य सिा के साथ हमार एकता के भलए िोलता है । तीसरा
है समाधध, गहन रूप से कें द्रित ध्यान, जो हमारे हृदय को हमारे अपने द्रदव्य अष्स्त्तत्व
के भलए िोलता है ।

द ष्ततमान स्त्वास्त््य

आप एक बहु आयामी प्राणी हैं . आपकी जागरूकता कई अलग-अलग स्त्तरों पर प्रकि


होती है । योग आपको स्त्वयां से पररधचत कराता है और आपको अपने अष्स्त्तत्व के हर
स्त्तर पर पूण श और र्ाल नता से जीने के भलए प्रभर्क्षक्षत करता है । हि आसन से जो
आपके भौततक र्र र को मजबूत और िोन करता है , साांस ले ने के व्यायाम से जो
आपकी जीवन र्ष्क्त को सांतुभलत और जीवांत बनाता है , ध्यान अभ्यास से जो आपके
द्रदमाग को र्ाांत और साफ़ करता है , स्त्व-अध्ययन और तनुःस्त्वाथश प्रे म से जो ज्ञान की
आांतररक द तु नया को िोलता है और एकता, योग एक समग्र प्रणाल है जो आपके
व्यष्क्तत्व के हर द्रहस्त्से को ववकभसत और एकीकृ त करती है । अपने पाांच र्र रों और
आांतररक स्त्व (ष्जसकी जागरूकता उन सभी को प्रकाभर्त करती है ) को जानकर, आप
एक प्रबुदध जीवन के स्त्वास्त््य और पू ण शता का अनुभव कर सकते हैं ।

अपने पााँच कोर्ों का अनभ


ु व करना
पााँच कोर् सैद धाांततक तनमाशण नह ां हैं । वे आपके अष्स्त्तत्व के वास्त्तववक द्रहस्त्से हैं
ष्जन्हें आप वास्त्तव में अनुभ व कर सकते हैं । तनम्नभलखित आि-चरणीय अभ्यास
आपको अपने व्यष्क्तत्व के इन आांतररक आयामों को पूर तरह से समझने में मदद
करें गे ।

1. अपने भसर, गदश न और धड़ को एक सीधी रे िा में रिकर आराम से बैिें । त्रबना
तनाव के सीधे बैिें । आप सतकश और तनावमु क्त दोनों महसूस करें गे ।
2. अपने आस-पास के दृश्यों और ध्वतनयों से अपनी जागरूकता हिाकर अपनी आाँिें
बांद कर लें । अपना पूरा ध्यान अपने भौततक र्र र पर लाएाँ। अपने भसर और
कां धों, छाती और कमर, पीि और पेि, बाहों और पैरों के प्रतत सचेत रहें । यह
आपका अन्नमय कोष है ।
3. अपना पूरा ध्यान अपनी नाभसका के बीच के त्रबांद ु पर लाएाँ और महसू स करें कक
आप सााँस ले रहे हैं । धीरे -धीरे आपकी साांस अधधक धीमी, सुचारू और र्ाांतत से
प्रवाद्रहत होगी। अपने र्र र के माध्यम से स्त्पांद्रदत होने वाल ऊजाश के प्रतत सचेत
रहें । यह आपके द्रदल की धड़कन बढ़ा रहा है , आपके फे फड़े फै ल रहे हैं और
भसकु ड़ रहे हैं , आपकी नसों में रक्त प्रवाह बढ़ रहा है , आपका पेि फू ल रहा
है । इस गततववधध को सांचाभलत करने वाल र्ष्क्त-आपका भौततक र्र र ह नह ां -
आपका प्राण-माया कोष है ।
4. अपनी जागरूकता को अपने मष्स्त्तटक में स्त्थानाांतररत करें । अपनी जागरूकता के
उस द्रहस्त्से पर ध्यान दें जो आपके सांवेद इनपुि और मोिर आउिपुि को
तनयांत्ररत कर रहा है । यह आपका वह द्रहस्त्सा है जो दे िता है कक आपकी नाक में
िुजल हो रह है और वह आपके हाथ को इसे िुजलाने का आदे र् दे ता
है । इसमें भलिा है कक आप इतने लांबे समय तक एक ह ष्स्त्थतत में बै िे रहने में
असहज महसू स करते हैं और चाहते हैं कक आप अपने पैर द्रहलाएां। यह प्रततवती
मानभसक बकवास उत्पन्न करता है जो लगातार आपके द्रदमाग में चलती रहती
है । यह आपका मनोमय कोष है ।
5. अपनी िोपड़ी के अांदर अपनी जागरूकता को ऊां चा उिाएां। अपनी जागरूकता के
उस द्रहस्त्से को महसू स करें ष्जसने सचेत रूप से इस अभ्यास में भाग ले ने का
तनणशय भलया और अभी आपको र्ाांत बैिने और इसे पूरा करने का आदे र् दे रहा
है । यह आपकी आत्म-जागरूकता को बढ़ाने के मूल् य को पहचानता है और
आपको सुबह जल्द उिकर हि आसन और ध्यान करने के भलए मजबूर करता
है , भले ह त्रबस्त्तर पर आराम करना अधधक सुिद हो सकता है । यह आपका
ववज्ञानमय कोष है ।
6. अपनी जागरूकता को अपने हृदय में के ष्न्ित करें । गहराई से आराम करो; सुचारू
रूप से और समान रूप से साांस ले ते रहें । अब, ष्जतना आवश्यक हो उतना समय
ले ते हु ए, अपने आप को पूण श र्ाांतत की ष्स्त्थतत में आने दें । उस आांतररक र्ाांतत
की गहराई में र्ुदधतम िुर्ी की भावना तछपी हु ई है । यह कोई भावनात्मक
उत्साह नह ां है , हालााँ कक जब आप इस अवस्त्था को छोड़ते हैं तो यह आपके अांदर
अत्यधधक िुर्ी और कृ तज्ञता की भावना के रूप में प्रकि हो सकता है । यह पूण श
सांतुष्टि, प ूण श सामांजस्त्य और स्त्थायी र्ाांत त का स्त्थान है । न अभाव, न भय, न
इच्छा की भावना है । यह आपका आनांदमय कोष है ।
7. अब बस अपनी जागरूकता के प्रतत जागरूक रहें । ष्जस र्ुदध चेतना को यह
अनुभव हो रहा है वह इस अनुभ व से परे है । यह आपका सच्चा आांतररक स्त्व है ,
आपका अमर अष्स्त्तत्व है । जब तक आप अपना ध्यान वहााँ रि सकते हैं तब
तक अपने अष्स्त्तत्व में आराम करें ।
8. अपना ध्यान अपनी साांसों पर लौिाएाँ। धीरे -धीरे , सहजता से और समान रूप से
साांस लें । अपनी आाँिें िोलें । उिने से पहले आराम करने और इस अनुभव को
आत्मसात करने के भलए कु छ समय तनकालें ।

मत्ृ यु से जन्म तक—और उससे आगे तक

कई योग ग्रांथों में आप पााँच कोषों को तीन में सम ूद्रहत पाएांगे । भौततक र्र र और प्राण
र्ष्क्त को स्त्थूल र्र र, "स्त्थूल र्र र" कहा जाता है । मानभसक र्र र और बुदधध को
सूक्ष् म र्र र, "सू क्ष्म" या "सूक्ष्म र्र र" कहा जाता है । आनांदमय आवरण को करण
र्र र, "कारण र्र र" कहा जाता है । इन्हें कई अलग-अलग आध्याष्त्मक परां पराओां में
मान्यता प्रातत है । तलूिाकश , एक यूनानी पुजार , जो पहल र्ताब्द ईस्त्वी में डेल् फ़ी के
मांद्रदर की अध्यक्षता करता था, ने उन्हें क्रमर्ुः सोमा, मानस और नूस कहा।

म त्ृ यु के समय स्त्थूल र्र र ववघद्रित हो जाता है । पुनजशन्म के समय स ूक्ष् म र्र र
ववघद्रित हो जाता है , ष्जससे आप अपने अगले जीवन में एक नया व्यष्क्तत्व ववकभसत
कर सकते हैं । कारण र्र र आपके कमों को सामान की तरह अपने साथ ले कर बार-बार
पुनजशन् म ले ता है । यह अांततुः मुष्क्त के समय ववघद्रित हो जाता है , जब उच्च स्त्व
जन्म और म त्ृ य ु के चक्र से अलग हो जाता है ।

You all must be aware of Panchtatva. The word 'panchatatva' originates


from Sanskrit, where "panch" stands for five and "tatva" indicates elements.
Following the universal law of life, every thing on this planet is composed
of five basic elements or the "panchamahabhutas". These are : Akash
(Sky or Space), Vayu (Air), Jal (Water), Agni (Fire) and Prithvi (Earth).

If we relate them to life, here is the pictorial representation of it.

Body as Earth:

The earth - solid as it is - houses the soil, landscape, flora and fauna.
With its tremendous magnetic fields and gravitational force, it keeps every
living and non-living thing grounded to the earth.

Right from the birth we try to perceive everything in this world in material
"form" or Body. Even using the word "I", we refer to our Physical body.
The same happens when we look outside to the World, identifying to all
the forms of physical entities. We cannot relate to anything without a
physical "Body" or structure. Even those things we cannot perceive with
our sense organs, we try to objectify as an image with our imagination. So
our world is only full of objects, bodies, entities and images.

We connect to the world outside through our body Sense organs. The five
sense organs are Ears, Skin, Eyes, Tongue and Nose which help to
perceive five physical attributes of this Universe, which are Sound, Touch,
Sight, Taste and Smell.

In summary, we owe our existence to our physical body. This is why the
ancient people referred the Body as the Earth element, because our life is
on Earth. Anything that is gross, solid, inert , the ancient's referred to as
Body or Earth. This Earth is symbolized as the little finger of the hand.

Water as Mind:

Water is the source of life - and it flows within all of us. 70% of the earth
is water and the same goes for the human body.
Does our Sense organs really perceive the physical world?. No. There is
something subtler than the body that is involved in perception. This is the
Mind or Mana. The physical eyes may be looking at an object, but if we
are not mentally connected to the physical organ , there is no perception
of that object.

So it is the mind that brings reality to the body or the physical world.
Without the mind there is no Body. This we experience in sleep or when
we are unconscious due to brain injury or anesthetized. So it is the mind
that gives the body a reality.

However this mind is not solid like the Body. The mind can change rapidly
and flow or alternate between various sense perceptions. The mind also
can flow backward in time and leap forward in time. Because of this fluid
nature, the ancient's attributed the Mind to the water element.

The Vedic Scholars says that like the fluid water solidifies into a solid
block of ice, the Body is nothing but the solidified energy of the mind. The
mind is represented by the ring finger. Wedding is the symbolic of the
joining of two minds and hence a wedding ring is worn on the "Mind"
finger!

Fire as Intelligence:

Fire is the source of energy and light. Light is important for making the
beauty of the world visible to all of us - in all its radiant colours.

The sensory signals received by the body-sense-organs is perceived or


translated as thoughts. Each thought refers to an object or image and we
generate infinite number of such thoughts. The constant flux of thoughts is
called as the mind. Interestingly ,the thoughts are stream-lined into a
logical information pattern by a subtler aspect called Intelligence or Buddhi.
Without Intelligence, Mind would just be a random flow of thoughts without
any logic in it. In other words, Intelligence illuminates the path for the Mind
to flow logically. Hence the ancients associated the fire element with
Intelligence.

Our mind, is droplets of thoughts flowing like a river and cannot be still. It
flows forward to the future or backwards to the past. The most important
attribute of Intelligence is that, it pulls the mind inward to the present
moment, the Being, the Awareness. The intelligence ignites or fuses the
Mind to the inner Awareness. Thus Intelligence is the middle man between
the Mind and the inner Awareness and hence symbolized as the middle
finger.

Air as Awareness:

Air, which can also be linked to space and atmosphere is a powerful life
source that is important to sustain life.

Only when we are alive we can feel our Body, Mind and Intelligence. That
Aliveness is known as Awareness. Without Awareness, we are dead. It is
the Awareness that enlivens all the three, the Body, Mind and Intelligence.
Like the air is needed for the fire to burn, Awareness is needed for the
fire of intelligence to propel the functioning of the Mind and the Body.
Hence the ancients rightly called the Awareness as the Air element.

According to the Ancient Vedic Science, Awareness which we feel as


liveliness is the most subtlest Energy form. Like the water vapor that
condenses to form fluid water and finally solidifies to ice form, Awareness-
energy condenses to form the fluid Mind and solid Body. The Sum total of
Awareness, intelligence, Mind and Body is called as energy. Modern
Quantum physics arrives at this same conclusion that the material world
(matter) is only condensed Energy.
Sky as Consciousness:

The sky is the vast open space that accommodates everything. The clear
blue sky above us acts as a shelter to the earth in the day, while at night
it serves as a gateway to the starry galaxies that exist light years ahead of
us.

The puzzlingly fact is that we lose the Awareness of the Body, Mind and
intelligence during the dream-less deep sleep state. This state is called as
Consciousness by Vedic Scholars. So in deep sleep state, the Awareness
of Consciousness is never lost at any time because it is the
Consciousness that is manifested as Awareness, Intelligence, Mind and
Body. Being in Awareness without being Aware of Intelligence, Mind and
Body is known as Consciousness. In other words Consciousness is
Unconditional Awareness (without any form).

Without Consciousness nothing can exist. Everything exists in


Consciousness, the living , the dead, the moving the immobile, the small
the big. Like everything exists in space , all existence come into "Being
due to Consciousness. This is why the ancients associated Consciousness
to the space element.

Like the thumb finger needed for all the other fingers to function, without
Consciousness nothing can exist and function. So Consciousness is
symbolized as the thumb finger.

Like the thumb that remains untouched yet needed for other fingers, so is
Consciousness remains undisturbed by Awareness, Intelligence, Mind and
Body. Consciousness like thumb does not depend on the other four, but all
the four cannot function or exist without Consciousness. All the four, the
Awareness, intelligence, Mind and Body can be experienced, but not the
Consciousness, because it is the experiencer itself. This Truth is not
obvious to our normal state of mind and hence the ancients termed this
Truth to be secretive (Guhya) or mystical. Unfortunately common man took
the statement literally and thought this Truth should not be revealed to
anyone. All revelations that people experience is this Self-revealing Truth or
Knowledge.

Hope you will understand relation, these five aspects of Consciousness,


Awareness, Intelligence, Mind and Body are the fundamental to all
attributes in this Universe. This is mirrored in every walk of life.

पांचतत्व से तो आप सभी पररधचत होंगे। ' पांचतत्व ' र्ब्द की उत्पवि सांस्त्कृत से हुई है ,
जहाां "पांच" का अथश पाांच है और "तत्व" तत्वों को इांधगत करता है । जीवन के सावशभौभमक
तनयम का पालन करते हुए, इस ग्रह पर प्रत्येक वस्त्तु पााँच मल
ू तत्वों या "पांचमहाभत
ू ों" से
बनी है। ये हैं: आकार् (आकार् या अांतररक्ष), वायु (वाय)ु , जल (पानी), अष्ग्न (अष्ग्न)
और प्
ृ वी (प्
ृ वी)।

यद्रद हम इन्हें जीवन से जोड़ते हैं तो इसका सधचर धचरण यहाां द्रदया गया है।

- - - -

प्
ृ वी के रूप में र्र र:

प्
ृ वी - जैसा कक यह िोस है - इसमें भमट्ि , पररदृश्य, वनस्त्पततयाां और जीव-जांतु मौजूद
हैं। अपने जबरदस्त्त चुांबकीय क्षेर और गुरुत्वाकषशण बल के साथ, यह हर जीववत और
तनजीव चीज़ को प्
ृ वी पर द्रिकाए रिता है।

जन्म से ह हम इस दतु नया में हर चीज को भौततक "रूप" या र्र र में दे िने की कोभर्र्
करते हैं। "मैं" र्ब्द का प्रयोग करते हुए भी हम अपने भौततक र्र र का उल्लेि करते
हैं। ऐसा ह तब होता है जब हम भौततक सांस्त्थाओां के सभी रूपों की पहचान करते हुए
दतु नया से बाहर दे िते हैं। हम भौततक "र्र र" या सांरचना के त्रबना ककसी भी चीज़ से
सांबांधधत नह ां हो सकते। यहाां तक कक ष्जन चीज़ों को हम अपनी इांद्रियों से नह ां दे ि पाते,
उन्हें भी हम अपनी कल्पना से एक छवव के रूप में धचत्ररत करने का प्रयास करते हैं। तो
हमार दतु नया केवल वस्त्तुओ,ां तनकायों, सांस्त्थाओां और छववयों से भर है ।
हम अपने र्र र की इांद्रियों के माध्यम से बाहर दतु नया से जुड़ते हैं। पाांच इांद्रियाां कान,
त्वचा, आांिें, जीभ और नाक हैं जो इस ब्रह्माांड के पाांच भौततक गण
ु ों को समझने में मदद
करती हैं, जो ध्वतन, स्त्पर्श, दृष्टि, स्त्वाद और गांध हैं।

सांक्षेप में , हमारा अष्स्त्तत्व हमारे भौततक र्र र के कारण है। इसीभलए प्राचीन लोग र्र र को
प्
ृ वी तत्व कहते थे, क्योंकक हमारा जीवन प्
ृ वी पर है। जो कुछ भी स्त्थूल, िोस, जड़ है ,
प्राचीन उसे र्र र या प्
ृ वी कहते हैं। इस प्
ृ वी को हाथ की छोि उां गल के रूप में दर्ाशया
गया है ।

मन के रूप में जल:

जल जीवन का स्रोत है - और यह हम सभी के भीतर बहता है। प्


ृ वी का 70% द्रहस्त्सा
पानी है और यह बात मानव र्र र पर भी लागू होती है।

क्या हमार इांद्रियााँ वास्त्तव में भौततक सांसार को समझती हैं? नह ां, र्र र से भी अधधक
सूक्ष्म कुछ है जो धारणा में र्ाभमल है । यह मन या मन है . भौततक आाँिें ककसी वस्त्तु को
दे ि सकती हैं, लेककन यद्रद हम मानभसक रूप से भौततक अांग से नह ां जुड़े हैं, तो उस वस्त्तु
की कोई अनुभूतत नह ां होती है ।

तो यह मन ह है जो र्र र या भौततक सांसार में वास्त्तववकता लाता है । मन के त्रबना कोई


र्र र नह ां है. इसका अनभ
ु व हम नीांद में या मष्स्त्तटक की चोि या बेहोर्ी के कारण बेहोर्
होने पर करते हैं। तो यह मन ह है जो र्र र को वास्त्तववकता दे ता है ।

हालााँकक यह मन र्र र की तरह िोस नह ां है । मन तेजी से बदल सकता है और ववभभन्न


इांद्रिय धारणाओां के बीच प्रवाद्रहत या वैकष्ल्पक हो सकता है । मन भी समय में पीछे की
ओर बह सकता है और समय में आगे छलाांग लगा सकता है । इस तरल प्रकृतत के कारण,
प्राचीनों ने मन को जल तत्व से जोड़ा।

वैद्रदक ववदवानों का कहना है कक जैसे तरल पानी जम कर बफश का एक िोस िांड बन


जाता है , वैसे ह र्र र और कुछ नह ां बष्ल्क मन की िोस ऊजाश है । मन का प्रतततनधधत्व
अनाभमका उां गल से ककया जाता है । र्ाद दो द्रदमागों के भमलन का प्रतीक है और इसभलए
र्ाद की अांगूिी "मन" उां गल पर पहनी जाती है!
बद
ु धध के रूप में अष्ग्न:

अष्ग्न ऊजाश और प्रकार् का स्रोत है । दतु नया की सांद


ु रता को उसके सभी उज्ज्वल रां गों में
हम सभी को दृश्यमान बनाने के भलए प्रकार् महत्वपण
ू श है ।

र्र र-इांद्रिय-अांगों दवारा प्रातत सांवेद सांकेतों को ववचारों के रूप में माना या अनुवाद्रदत ककया
जाता है । प्रत्येक ववचार ककसी वस्त्तु या छवव को सांदभभशत करता है और हम ऐसे अनधगनत
ववचार उत्पन्न करते हैं। ववचारों के तनरां तर प्रवाह को मन कहा जाता है । द्रदलचस्त्प बात यह
है कक ववचारों को इांिेभलजेंस या बुदधध नामक एक सूक्ष्म पहलू दवारा ताककशक सूचना पैिनश
में प्रवाद्रहत ककया जाता है ।

बद
ु धध के त्रबना, मन त्रबना ककसी तकश के ववचारों का एक यादृष्च्छक प्रवाह मार होगा। दस
ू रे
र्ब्दों में, बद
ु धधमिा मन को ताककशक रूप से प्रवाद्रहत करने का मागश प्रर्स्त्त करती
है । इसभलए पूवज
श ों ने अष्ग्न तत्व को बुदधध से जोड़ा।

हमारा मन, ववचारों की बूांदें हैं जो नद की तरह बहती हैं और ष्स्त्थर नह ां रह सकतीां। यह
आगे से भववटय की ओर या पीछे से अतीत की ओर बहती है। बुदधधमिा का सबसे
महत्वपूणश गुण यह है कक, यह मन को वतशमान क्षण, अष्स्त्तत्व, जागरूकता की ओर िीांचती
है । बुदधध मन को आांतररक जागरूकता से प्रज्वभलत या जोड़ती है । इस प्रकार बुदधध मन
और आांतररक जागरूकता के बीच का मध्य परु
ु ष है और इसभलए इसे मध्य उां गल के रूप
में दर्ाशया गया है ।

जागरूकता के रूप में वाय:ु

वायु, ष्जसे अांतररक्ष और वायुमांडल से भी जोड़ा जा सकता है, एक र्ष्क्तर्ाल जीवन स्रोत
है जो जीवन को बनाए रिने के भलए महत्वपूणश है।

जब हम जीववत होते हैं तभी हम अपने र्र र, मन और बद


ु धध को महसस
ू कर सकते
हैं। उस जीवांतता को जागरूकता के रूप में जाना जाता है। जागरूकता के त्रबना, हम मर
चुके हैं। यह जागरूकता ह है जो र्र र, मन और बुदधध तीनों को जीवांत बनाती है । जैसे
आग जलाने के भलए हवा की आवश्यकता होती है, वैसे ह मन और र्र र के कामकाज को
आगे बढ़ाने के भलए बुदधध की अष्ग्न के भलए जागरूकता की आवश्यकता होती है । इसभलए
पूवज
श ों ने िीक ह जागरूकता को वायु तत्व कहा है ।
प्राचीन वैद्रदक ववज्ञान के अनुसार जागरूकता, ष्जसे हम सजीवता के रूप में महसूस करते
हैं, सबसे सक्ष्
ू मतम ऊजाश रूप है । जलवाटप की तरह जो सांघतनत होकर तरल पानी बनाता है
और अांत में बफश के रूप में जम जाता है, जागरूकता-ऊजाश सांघतनत होकर तरल मन और
िोस र्र र बनाती है । जागरूकता, बुदधध, मन और र्र र के कुल योग को ऊजाश कहा जाता
है । आधुतनक क्वाांिम भौततकी इसी तनटकषश पर पहुांचती है कक भौततक जगत (पदाथश) केवल
सांघतनत ऊजाश है ।

चेतना के रूप में आकार्:

आकार् एक ववर्ाल िुला स्त्थान है जो हर चीज़ को समायोष्जत करता है। हमारे ऊपर का
साफ नीला आकार् द्रदन में प्
ृ वी के भलए आश्रय का काम करता है , जबकक रात में यह
तारों वाल आकार्गांगाओां के भलए प्रवेर् दवार के रूप में काम करता है जो हमसे प्रकार्
वषश आगे मौजूद हैं।

है रान करने वाला त्य यह है कक स्त्वतन-रद्रहत गहर नीांद की अवस्त्था के दौरान हम र्र र,
मन और बुदधध की जागरूकता िो दे ते हैं। इस अवस्त्था को वैद्रदक ववदवान चेतना कहते
हैं। इसभलए गहर नीांद की अवस्त्था में , चेतना की जागरूकता कभी भी नटि नह ां होती है
क्योंकक यह चेतना ह है जो जागरूकता, बद
ु धध, मन और र्र र के रूप में प्रकि होती
है । बद
ु धध, मन और र्र र के प्रतत जागरूक हुए त्रबना जागरूकता में रहना चेतना के रूप में
जाना जाता है । दस
ू रे र्ब्दों में चेतना त्रबना र्तश जागरूकता (त्रबना ककसी रूप के) है।

चेतना के त्रबना कुछ भी अष्स्त्तत्व में नह ां हो सकता। चेतना में सब कुछ मौजूद है, जीववत,
मत
ृ , गततर्ील, अचल, छोिा बड़ा। जैसे सब कुछ अांतररक्ष में मौजूद है , सारा अष्स्त्तत्व
चेतना के कारण अष्स्त्तत्व में आता है । यह कारण है कक पूवज
श ों ने चेतना को अांतररक्ष तत्व
से जोड़ा।

अन्य सभी अांगभु लयों के कायश करने के भलए अांगि


ू े की उां गल की तरह, चेतना के त्रबना कुछ
भी अष्स्त्तत्व में नह ां रह सकता और कायश नह ां कर सकता। इसभलए चेतना को अांगि
ू े की
उां गल के रूप में दर्ाशया गया है ।

जैसे अांगूिा अछूता रहता है कफर भी अन्य उां गभलयों के भलए आवश्यक होता है , वैसे ह
चेतना जागरूकता, बद
ु धध, मन और र्र र से अछूती रहती है । अांगूिे की तरह चेतना अन्य
चार पर तनभशर नह ां है, लेककन चारों चेतना के त्रबना कायश नह ां कर सकते या अष्स्त्तत्व में
नह ां रह सकते। जागरूकता, बुदधध, मन और र्र र, इन चारों का अनुभव ककया जा सकता
है , लेककन चेतना का नह ां, क्योंकक यह स्त्वयां अनभ
ु वकताश है । यह सत्य हमार सामान्य
मानभसक ष्स्त्थतत के भलए स्त्पटि नह ां है और इसभलए पव
ू ज
श ों ने इस सत्य को गतु त (गह्
ु य)
या रहस्त्यमय कहा है । दभ
ु ाशग्य से आम आदमी ने इस कथन को अक्षरर्ुः भलया और सोचा
कक यह सत्य ककसी के सामने प्रकि नह ां होना चाद्रहए। लोगों दवारा अनुभव ककए जाने वाले
सभी रहस्त्योदघािन यह स्त्व-प्रकि करण सत्य या ज्ञान हैं।

आर्ा है कक आप सांबध
ां को समझेंगे, चेतना, जागरूकता, बुदधध, मन और र्र र के ये पाांच
पहलू इस ब्रह्माांड में सभी गण
ु ों के भलए मौभलक हैं। यह जीवन के हर क्षेर में प्रततत्रबांत्रबत
होता है।

सष्ृ टि के पाांच तत्व

समस्त्त सष्ृ टि के आधार को सरल तर के से समझना।

आपके और मेरे सद्रहत समस्त्त सष्ृ टि का आधार पााँच तत्व हैं ष्जन्हें " पांचभत
ू " या
" पांचतत्व " कहा जाता है ।
यौधगक सांस्त्कृतत में , र्र र और मन की समग्र भलाई मख्
ु य रूप से इन पाांच तत्वों के सह
सांतुलन से जुड़ी है । एक या अधधक तत्वों में असांतुलन उन तत्वों दवारा र्ाभसत क्षेरों में
महत्वपूणश समस्त्याएां पैदा कर सकता है।

ध्यान दें कक आज अपने र्र र या द्रदमाग को बनाए रिना ककतना बड़ा काम है। ऐसा
इसभलए है क्योंकक हम र्ायद ह कभी पाांच तत्वों से परू तरह पररधचत होते हैं। एक बार
जब आप इन पाांच तत्वों के सांपकश में आ जाते हैं, और वे सांतल
ु न में आ जाते हैं, तो
आपकी भलाई के बारे में कुछ भी तय करने के भलए नह ां बचेगा।

आपके भसस्त्िम में ये पाांच तत्व ककतने सुव्यवष्स्त्थत हैं, यह तय करता है कक आपका
द्रदमाग और र्र र ककतना ष्स्त्थर और जैववक रूप से मजबूत है ।

भगवद गीता के अध्याय 7 में कृटण ने पांचतत्वों का वणशन इस प्रकार ककया है :


भभू मरापोऽनलो वायुःु िां मनो बद
ु धधरे व च |
अहांकार इततयां मे भभन्ना प्रकृततरटिधा || 4||
भूभमर-आपो 'नालो वायुुः िां मनो बुदधधर एव च
अहांकार इततयाम ् मे भभन्न प्रकृतत अटिधा

-बीजी 7.4

"प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वाय,ु आकार्, मन, बद
ु धध और अहां कार मेर भौततक ऊजाश के आि
घिक हैं।"
आि घिकों में से, पाांच तत्व प्
ृ वी ( भूभम ), अष्ग्न ( अष्ग्न ), जल ( नीर ), वायु
( वायु ), और अांतररक्ष/ईथर ( आकार् ) हैं।
योधगक र्र र रचना ववज्ञान के अनुसार, आपके र्र र का 72% भाग जल है, 12% भाग
प्
ृ वी है, 6% भाग वायु है, 4% भाग अष्ग्न है और र्ेष भाग आकार् है । आइए जानें कक
वे हमार रचना में कैसे प्रकि होते हैं।
मज़ेदार त्य: ध्यान दें कक "भगवान" र्ब्द की ध्वतनयााँ इन पााँच तत्वों का प्रतततनधधत्व
करती हैं।
भ - भभू म, अष्ग्न - अष्ग्न, व - वाय,ु आ - आकार्, न - नीर
अभभव्यष्क्त में पाांच तत्व

पााँचों तत्वों में से प्रत्येक पदाथश की एक अवस्त्था का प्रतततनधधत्व करता है। प्


ृ वी पूणत
श ुः
िोस है , जल पण
ू त
श ुः तरल है और वायु पण
ू त
श या गैस है। जो पदाथश के एक रूप को दस
ू रे रूप
में पररवततशत करता है वह अष्ग्न है और जो सभी पदाथश को एक साथ रिता है वह
अांतररक्ष या ईथर है । इस प्रकार वे प्रकृतत में प्रकि होते हैं।

चाँूकक अष्ग्न में एक पररवतशनकार कारक होता है , अधधकाांर् यौधगक अनुटिानों में अष्ग्न
र्ाभमल होती है क्योंकक वे इस तत्व का उपयोग पदाथश की अन्य अवस्त्थाओां को र्ुदध
करने, सर्क्त बनाने और सांर्ोधधत करने के भलए कर सकते हैं।

र्र र में इन तत्वों के प्राकृततक क्रम को समझना भी आवश्यक है । प्


ृ वी और जल हमेर्ा
नाभभ (मर
ू और मल) के नीचे होते हैं, और अष्ग्न धड़ (पाचन) के बीच में होती है जबकक
वायु और आकार् ऊपर र्र र (श्वास और चेतना) पर हावी होते हैं।

इस अनुभाग को र्ाभमल करने का कारण इन तत्वों के भौततक गुणों की पहचान करना


है । जब हम प्रत्येक तत्व का व्यष्क्तगत रूप से अन्वेषण करते हैं, तो हम बेहतर समझ के
भलए बहुत सरल, दै तनक उदाहरणों का उपयोग करें गे।

आइए हम प्रत्येक तत्व की सांपण


ू त
श ा में जाांच करें और जब उनमें से एक सह सांतल
ु न िो
दे ता है तो क्या होता है ।
पहला तत्व: प्
ृ वी या भभू म

भौततक र्र र में हम जो हैं वह भमट्ि है । जन्म से लेकर मत्ृ यु तक, हम सभी प्
ृ वी के
सांसाधनों का उपभोग करते हैं। आपका र्र र पूर तरह से उन सभी अलग-अलग चीज़ों से
बना है ष्जनका आपने वषों से उपभोग ककया है।

वपछले दो दर्कों में , जैववक से प्रसांस्त्कृत िादय पदाथों की ओर एक महत्वपण


ू श बदलाव
दे िा गया है । प्रसांस्त्कृत भोजन का सीधा सा मतलब है कक यह एक ऐसी प्रकक्रया से गज
ु रा
है जहाां इसने अपनी मौभलकता िो द और कुछ और बन गया।

यह अब आपके र्र र के भलए उतना पौष्टिक नह ां है ष्जतना जैववक होने पर


था। इसभलए, साष्त्वक आहार का अत्यधधक महत्व है क्योंकक आप जो भी िाते हैं, अांततुः
आप वह बन जाते हैं।
यह एक गहन कथन है क्योंकक यह हमारे तनमाशण में प्
ृ वी तत्व के महत्व की ओर इर्ारा
करता है । यह हमारे अष्स्त्तत्व को आकार दे ता है ।

प्
ृ वी तत्व ग्राउां डडांग, ष्स्त्थरता, धैय,श स्त्थातयत्व और सरु क्षा को तनयांत्ररत करता है। हमारे
र्र र में , यह हमार हड्डडयों, माांसपेभर्यों, दाांतों आद्रद की िोस सांरचनाओां के रूप में प्रकि
होता है।

जब प्
ृ वी सांतल
ु न से बाहर हो जाती है : आप थकान, असुरक्षा, भय, स्त्वाभमत्व, लालच,
ऊजाश की कमी या भूि में कमी महसूस कर सकते हैं। इससे हमार त्वचा, दाांत, बाल और
हड्डडयों में भी समस्त्याएां आ सकती हैं।
दस
ू रा तत्व: अष्ग्न या अष्ग्न

हमारा र्र र हमारे भीतर मौजूद एक ववर्ेष अष्ग्न के कारण जीववत है। यद्रद हमारे र्र र
िां डे होते तो हम अब तक मर चुके होते। यहाां तक कक ग्रह स्त्वयां सौर ऊजाश से सांचाभलत है,
जो जीवन के तनवाशह के भलए अष्ग्न की आवश्यकता को दर्ाशता है । अष्ग्न भी मत्ृ यु है
क्योंकक यह सब कुछ नटि कर दे ती है । यह कारण है कक अष्ग्न दे व (अष्ग्न दे वता) को
अक्सर दो-मांह
ु वाले दे वता के रूप में दर्ाशया जाता है।

अष्ग्न तत्व गततर्ील, बलवधशक और उिेजक है। यह जुनून, महत्वाकाांक्षा, इच्छा, रचनात्मक
सोच और नेतत्ृ व को तनयांत्ररत करता है । यह हमारे र्र र में चयापचय, ऊजाश और र्र र के
तापमान को तनयांत्ररत करता है।
जब अष्ग्न सांतल
ु न से बाहर हो जाती है : आप प्रेरणा, एकाग्रता, सूजन, बि
ु ार और पाचन
सांबांधी समस्त्याओां की कमी महसूस कर सकते हैं।
तीसरा तत्व: जल या नीर

जल समस्त्त जीवन का आधार है । पौधों, जानवरों और मनुटयों सद्रहत सभी जीवन फलते-
फूलते हैं क्योंकक वे पयाशतत रूप से हाइड्रेिेड होते हैं। जल गतत का प्रतततनधधत्व करता है।

कोई भी जल स्रोत जो गततमान नह ां है वह पीने योग्य नह ां रहता। इस तत्व को अपनाने


का ववचार आपके र्र र को एक नद में बदलना है ।

एक नद तनरां तर गतत में रहती है, और उस प्रकक्रया के कारण वह ताज़ा रहती है । इसी
प्रकार, हमारे र्र र को जल तत्व को ताज़ा और सकक्रय रिने के भलए चक्रीय दृष्टिकोण से
पयाशतत पानी इकट्िा करने और उसका तनपिान करने की आवश्यकता होती है ।

ध्यान दें कक एक र्र र जो प्रकृतत की प्राकृततक गततववधधयों को प्रततत्रबांत्रबत करता है वह


अब तक का सबसे स्त्वस्त्थ र्र र है। ऐसा इसभलए क्योंकक हम भले ह प्रकृतत से दरू एक
कमरे में बैिे हों, लेककन प्रकृतत हमारा परू ा र्र र है, इसभलए हम इससे कभी अलग नह ां हो
सकते।

जल का तत्व भौततक र्र र में र्ुदधध, पोषण, गतत और तरलता को तनयांत्ररत करता है । यह
भावनाओां और भावनाओां को भी तनयांत्ररत करता है क्योंकक मन की गतत भी एक मौभलक
वास्त्तववकता है ।

जब पानी असांतुभलत हो जाता है : आप व्यसन, भावनात्मक अभभव्यष्क्त, रचनात्मकता और


ववचारों से सांबांधधत समस्त्याओां का अनुभव कर सकते हैं। पाचन, यौन कक्रया या माभसक
धमश सांबांधी समस्त्याएां भी उत्पन्न हो सकती हैं।
चौथा तत्व: वायु या वायु

पााँच वायु ( प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान ) सक्ष्


ू म ऊजाशएाँ हैं जो मानव र्र र को
सांतभु लत करती हैं। अगर हम वायु को दे िें तो सबसे पहल चीज़ जो हमारे द्रदमाग में आती
है वह है साांस।
साांस दतु नया के साथ हमारा पहला सांबांध है। साांसों के कारण ह हम जीववत हैं और सष्ृ टि
का अनुभव कर रहे हैं। श्वास के त्रबना तो मत्ृ यु ह है। वायु तत्व र्र र में सभी प्रकार की
गततववधधयों के साथ-साथ श्वास, सोच और पररसांचरण को तनयांत्ररत करता है । सबसे
महत्वपूणश बात यह है कक यह जीवन को स्त्वयां तनयांत्ररत करता है।
जब वायु असांतुभलत हो: आप अधीर, भयभीत, क्रोधधत, धचांततत, अतनणाशयक और उड़ने वाले
हो सकते हैं। आपको ऊजाश की कमी और साांस फूलने का भी अनुभव हो सकता है ।
पाांचवाां तत्व: ईथर या आकार्

इन पाांचों में से आकार् सबसे रहस्त्यमय तत्व है । यह न तो दृश्यमान है और न ह श्रव्य,


इसे प्रत्यक्ष रूप से छुआ या अनुभव भी नह ां ककया जा सकता है , कफर भी यह व्यातत है
और हर चीज को एक साथ जोड़ता है । यह सभी तत्वों में सबसे सूक्ष्म है , कफर भी यह
सष्ृ टि के सांपूणश ववस्त्तार में है ।

अांतररक्ष तत्व र्ाांत, सि


ु द, ग्रहणर्ील, सहज, आध्याष्त्मक, अनांत और असीम है। यह
र्द
ु ध, अछूती चेतना का प्रतततनधधत्व करता है ष्जसमें सभी आध्याष्त्मक चीजें र्ाभमल
हैं। यह तत्व सांचार, वाणी, श्रवण, अांतज्ञाशन, स्त्वतन, आध्याष्त्मक जागरूकता और ववकास
को तनयांत्ररत करता है और यह एकमार तत्व है जो गततह न है ।

जब अांतररक्ष सांतल
ु न से बाहर हो: आप कनेक्र्न, सुरक्षा और सावशभौभमक प्रेम की कमी
महसूस कर सकते हैं। आप महसूस कर सकते हैं कक ब्रह्माांड में आपको समझा या स्त्वीकार
नह ां ककया जा रहा है।
हालाांकक भत
ू र्द
ु धध या पांचभत
ू कक्रया जैसे ववभर्टि तर के हैं , मेरे व्यष्क्तगत अनभ
ु व में ,
सकक्रय भागीदार के त्रबना सभी तत्वों को सांतुभलत करने के भलए प्राकृततक, जैववक जीवन
जीना सबसे अच्छा तर का है ।
आर्ा है आपको यह लेि पसांद आया होगा. मैंने इन पाांच तत्वों के बारे में जो कुछ भी
जानता था वह सब साझा ककया है ; मुझे खुर्ी है कक आप इस ववषय पर जो कुछ भी साझा
कर सकें, साझा करें । धन्यवाद

पांच महाभत
ू : प्रकृतत और जीवन के पाांच तत्वों के बारे में सब कुछ

प्राचीन ववदवानों दवारा प्रततपाद्रदत भसदधाांतों के अनुसार, ब्रह्माांड का अन्य पदाथश केवल पााँच
प्राकृततक तत्वों से प्रातत हुआ है । प्रकृतत के सभी पाांच तत्व इस ब्रह्माांड में ष्स्त्थर सांतल
ु न में
पाए जा सकते हैं। उदाहरण के भलए, यद्रद ववश्व का जल स्त्तर एक ववभर्टि त्रबद
ां ु से अधधक
बढ़ जाए तो ववश्वव्यापी बाढ़ ववनार्कार होगी। जल, वाय,ु अष्ग्न, आकार् और प्ृ वी के
पाांच तत्व भमलकर पांचतत्व का तनमाशण करते हैं।
कहा जाता है कक ये पाांच घिक मानव र्र र का भी तनमाशण करते हैं। मानव र्र र की पाांच
इांद्रियाां वैचाररक रूप से इन पाांच तत्वों से सांबधां धत हैं। इन पाांच प्राकृततक घिकों के भलए
एक और र्ब्द पांच महाभत
ू है। पााँच तत्वों में से प्रत्येक का एक ग्रह र्ासक है। हम यहाां
उनके बारे में अधधक गहराई से जानेंगे।

पांच महाभूत

चाहे वह फेंगर्ई
ु हो या पारां पररक चीनी धचककत्सा, लगभग हर प्राचीन सांस्त्कृतत ने प्राकृततक
घिनाओां को कई मल
ू भत
ू तत्वों से बना बताया है । पांच भत
ू प्रकृतत, आयव
ु ेद और अन्य
भारतीय दर्शन के 5 तत्वों का नाम हैं । प्ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु और अांतररक्ष (या आकार्)
आवतश सारणी के मल
ू पाांच में र्ाभमल हैं। वे मानव र्र र और भौततक सांसार के मत
ू श और
ऊजाशवान पहलओ
ु ां के भलए िड़े हैं।

प्रकृतत के इन पाांच तत्वों का सांतुलन इस बात को प्रभाववत करता है कक हम र्ार ररक,


मानभसक और भावनात्मक रूप से कैसा महसूस करते हैं । जब दोनों सांतुलन में होते हैं तो
जीवन र्ाांत और स्त्वस्त्थ होता है। जब इनमें से एक या अधधक कारक खराब हो जाते हैं, तो
यह ददश और परे र्ानी का कारण बन सकता है । योग और ध्यान के माध्यम से , हम इन
प्राकृततक तनयमों के साथ अधधक तालमेल त्रबिा सकते हैं और सांतुलन की ष्स्त्थतत लाने में
मदद कर सकते हैं।

प्रकृतत के 5 तत्व

सांस्त्कृत में प्रकृतत के पााँच तत्वों को पांच भत


ू कहा जाता है। पांच भत
ू ों के ववभभन्न सांयोजनों
से ब्रह्माांड में मनटु यों से लेकर पौधों और जानवरों तक हर जीववत वस्त्तु का तनमाशण होता
है ।

पदाथश में प्
ृ वी, जल और अष्ग्न के तत्व र्ाभमल हैं, जो बोधगम्य हैं और इन्हें सांभाला जा
सकता है । भले ह हम इसे दे ि नह ां सकते, हवा और अांतररक्ष हर जगह हैं। अपनी मूतश
अभभव्यष्क्तयों के कारण, प्ृ वी, जल और अष्ग्न अांतररक्ष और वायु की तुलना में हमारे
द्रदमाग के भलए अधधक आसानी से सल
ु भ हैं। हालााँकक, पााँच घिक अन्योन्याधश्रत और
महत्वपण
ू श हैं।

तत्व 1: प्
ृ वी
प्
ृ वी तत्व, प्ृ वी, आत्मज्ञान के मागश का पहला पड़ाव है। मल
ू या प्रथम चक्र, मल
ू ाधार, को
एक पीले वगश दवारा दर्ाशया गया है, जो इसके महत्व को दर्ाशता है । प्रकृतत की ये ववर्ेषताएां
ह हमें सुरक्षक्षत महसस
ू कराती हैं। यह र्र र में हमारे कांकाल के पथर ले ढााँचे और किोर
ऊतकों के रूप में द्रदिाई दे ता है जो हमार माांसपेभर्यों, सीांगों और अन्य उपाांगों को बनाते
हैं। इससे जड़
ु ी इांद्रियों में से एक नाक गुहा है ।

तत्व 2: जल

पानी कई प्रकार के होते हैं, लेककन सबसे आम जो मन में आते हैं वे हैं नद्रदयााँ, महासागर,
झीलें, तालाब, झरने और बाररर् की बद
ाँू ें । कफर भी, पानी हमारे र्र र के अांदर
हमारे स्त्वास्त््य में एक आवश्यक भभू मका तनभाता है । स्त्वाधधटिान, त्ररक (या दस
ू रा) चक्र,
नाभभ और जघन हड्डी के बीच ष्स्त्थत है और पानी के तत्व से जड़
ु ा है।

सफ़ेद रां ग का एक िाल अधशचांि इसका प्रतीक है । ऊजाश, तरल पदाथश और भौततक र्र र के
प्रवाह को ववतनयभमत करने के अलावा, यह तत्व र्द
ु धध और पोषण का प्रभार है । पानी के
र्ाांत और कामक
ु गण
ु हमारे भावनात्मक बांधन को मजबत
ू करते हैं। यह रक्त, लसीका,
आाँस,ू लार, पसीना, मूर, र्क्र
ु ाणु और स्त्तन के दध
ू जैसे तरल पदाथों में द्रदिाई दे ता है ।

तत्व 3: आग

आग के प्रतत हमार स्त्वाभाववक घण


ृ ा के बावजद
ू , इसे अपने योग अभ्यास में र्ाभमल करने
से आपको चेतना की गहराई से जीवन-पररवतशनकार ष्स्त्थतत प्रातत करने में मदद भमल
सकती है । ऊपर की ओर इांधगत करने वाले लाल त्ररकोण अष्ग्न तत्व का प्रतीक हैं, जो सौर
जाल में तीसरे चक्र (मखणपरु ) से सांबांधधत है ।

अष्ग्न तत्व के गण
ु ताप, प्रकार्, गतत, र्ष्क्त और उिेजना हैं। प्रेम, घण
ृ ा, क्रोध,
महत्वाकाांक्षा, इच्छा, दृढ़ सांकल्प, बहादरु , आत्म-आश्वासन, आत्म-अभभव्यष्क्त, मौभलक
ववचार और नेतत्ृ व जैसी भावनाएाँ सभी इसके दायरे में हैं। हमारा चयापचय, ऊजाश स्त्तर और
मुख्य तापमान सभी इसके दवारा बनाए रिा जाता है ।

तत्व 4: वायु

पाांच वायु र्र र में सक्ष्


ू म ऊजाशवान हवाएां या हवाएां हैं जो प्राण ऊजाश के ववभभन्न रूपों से
जड़
ु ी हैं, जैसा कक हि योग परां परा दवारा वखणशत है। चौथा चक्र, ष्जसे हृदय केंि भी कहा
जाता है , वायु तत्व से जड़
ु ा है। इसके भलए आइकन एक नीला वि
ृ है. वायु तत्व के गण

सौम्य, पोषण करने वाले, उपचार करने वाले, मष्ु क्त दे ने वाले और सांतुलनकार उपष्स्त्थतत
के हैं। गतत, श्वसन, ववचार और रक्त प्रवाह सद्रहत सभी र्ार ररक कायश प्रकृतत के इस
मौभलक तनयम दवारा तनयांत्ररत होते हैं।

तत्व 5: आत्मा

मनटु य के पास घम
ू ने-कफरने के भलए बहुत जगह है। श्वासनल मांह
ु से पेि तक भोजन के
पररवहन को सवु वधाजनक बनाकर पाचन प्रकक्रया में महत्वपण
ू श भभू मका तनभाती है। यहाां इन
गभलयारों में अकासा को प्रदभर्शत ककया गया है, ष्जसे स्रोत के नाम से भी जाना जाता
है । गभश में त्रबताए समय के दौरान भर्र्ु इनका ववकास करता है। ईथर या आकार् तत्व को
ववभभन्न र्ार ररक प्रणाभलयों, जैसे पाचन, श्वसन, सांचार, लसीका और सेलल
ु र प्रणाभलयों में
मौजद
ू स्रोत या पररवहन चैनलों का स्रोत माना जाता है।

Panch Tatva: न केवल मनटु य बष्ल्क भगवान में भी ववदयमान है यह पाांच तत्व, जातनए
क्या है पांचतत्व का महत्व?

Panch Tatva श्रष्ृ टि में जीवन के भलए महत्वपूणश पाांच तत्वों को वेद भाषा में पांचतत्व

कहा जाता है । साांसाररक जीवन में इन पांचतत्वों का ववर्ेष महत्व है । आइए जानते हैं क्या

और ककतने हैं पांचतत्व और उनका महत्व?

नई द्रदल्ल , अध्यात्म डेस्त्क; 5 Elements of Panch Tatva: वेद एवां परु ाणों में बताया

गया है कक सष्ृ टि के रचतयता भगवान ववटणु दवारा ककया गया था। वह ां सष्ृ टि पर जीवन

के भलए पाांच तत्वों की उत्पवि भगवान भर्व से हुई थी। ब्रह्माांड के तनमाशण में पाांच तत्वों

की अहम भभू मका है। वह पाांच तत्व हैं- आकार्, वायु, अष्ग्न, जल और प्ृ वी। इन पाांच

तत्वों को वेद भाषा में पांचतत्व कहा जाता है । इसी से आत्मा और र्र र की उत्पवि होती

है । सवशप्रथम आकार् कफर वाय,ु वायु के पश्चात अष्ग्न, अष्ग्न से जल और जल के बाद

प्
ृ वी। इन पाांच तत्वों के बाद प्
ृ वी से औषधध का तनमाशण होता है , औषधध से अन्न, अन्न
से वीयश और अांत वीयश से पुरुष या र्र र उत्पन्न होते हैं। इसका वणशन तैविर य उपतनषद में

ववस्त्तार से ककया गया। साांसाररक जीवन में इन पांचतत्वों का ववर्ेष महत्व है ।

पुराणों में बताया गया है कक भर्व और आद्रदर्ष्क्त से भमलकर पांच तत्वों का तनमाशण हुआ

था, ताकक सष्ृ टि पर जीवन तनरां तर चलता रहे । बता दें कक मानव र्र र भी पांचतत्वों से

भमलकर ह बनता है । ककसी जीव में यह तत्व कम होते हैं तो ककसी में इसकी मारा अधधक

होती है। मत्ृ यु के बाद भी व्यष्क्त का र्र र इन पांच तत्वों में ह भमल जाता है। यहाां तक

कक भगवान में भी पांच तत्व ह तनवास करते हैं। आइए जानते हैं, क्या है पांचतत्व और

उनका महत्व?

प्
ृ वी

हमारा र्र र जो द्रदिाई दे ता है, वह इस जगत का ह द्रहस्त्सा है और उसे प्


ृ वी कहते हैं
और इसी से हमारा भौततक र्र र बना हुआ है। लेककन इसमें तब तक जान नह ां आती है

जब तक अन्य तत्व सष्म्मभलत नह ां होते हैं। ष्जस तरह ककसी चीज के तनमाशण में भभन्न-

भभन्न चीजों की आवश्यकता होती है , उसी प्रकार जीव-जांतओ


ु ां के तनमाशण में भी प्
ृ वी से
अलग चार अन्य चीजों की भी आवश्यकता होती है ।

जल

वैद्रदक एवां वैज्ञातनक दृष्टिकोण से यद्रद दे िा जाए तो जल ह मनुटय का सबसे अहम

द्रहस्त्सा है । मनटु य के र्र र में लगभग 70 प्रततर्त जल मौजद


ू है । उसी तरह ष्जस तरह
धरती के तीन चौथाई द्रहस्त्सा जल से भरा हुआ है। यह जल व्यष्क्त के िन
ू और र्र र
दोनों में हैं। तभी कहा गया है कक अन्न के त्रबना कुछ द्रदन जीव-जांतु जीववत रह सकते हैं,

लेककन जल के त्रबना यह सांभव नह ां है।

अष्ग्न

अष्ग्न की उत्पवि जल से मानी जाती है। ष्जस तरह जल हमारे र्र र को ऊजाश प्रदान

करती है , उसी तरह अष्ग्न भी ऊजाश के रूप में र्र र में ववदयमान है । अष्ग्न के कारण ह
र्र र चल-कफर सकता है । अष्ग्न तत्व ऊटमा, र्ष्क्त, ऊजाश और ताप का प्रतीक है । हमारे

र्र र में ष्जतनी गमाशहि होती है, वह अष्ग्न तत्व के कारण ह है । यह तत्व अधधकाांर् रूप

से र्र र को तनरोगी रिता है । साथ ह इससे बल और र्ष्क्त प्रातत होती है।

वायु

धरती पर जीवन के भलए वायु को सबसे महत्वपूणश तत्व बताया गया है । माना जाता है कक

वायु की उत्पवि के कारण ह अष्ग्न की उत्पवि होती है। हमारा र्र र यद प्राणवायु लेता

है म, तभी वह जीववत कहलता है । अन्यथा वायु के तनकल जाने से र्र र में तनजीव हो

जाता है । ष्जतना प्राण है वह सभी वायु तत्व के करण है । यह धरती, पेड़, पौधे, पर्ु-पक्षी

सभी के भलए प्राणवायु आवश्यक होती है। इसभलए वायु को ह आयु भी कहा गया है ।

आकार्

आकार् वह तत्व है ष्जसमें प्


ृ वी, जल, अष्ग्न और वायु यह सभी चार तत्व ववदयमान हैं।
आकार् ह आत्मा का वाहक है और साधना के भलए सबसे महत्त्वपूणश मन जाता है । ष्जस

तरह आकार् अनांत है उसी तरह मन की भी कोई सीमा नह ां होते है । इसभलए आकार् तत्व

को भौततक रूप से मन कहा गया है । आकार् में बादल भी आते हैं, धूल भी उड़ती है और

रौर्नी भी होती है। िीक उसी तरह मन में भी सुि, दि


ु और र्ाांतत यह सभी भाव उत्पन्न
होते हैं।

पांचतत्व

पांचतत्व (पांच + तत्व) का अथश है पाांच तत्व या "पांचमहाभत


ू "। ये हैं: प्
ृ वी (प्
ृ वी), जल
(पानी), अष्ग्न (अष्ग्न), वायु (वाय)ु और आकार् (अांतररक्ष)।

सम्पूणश ब्रह्माण्ड का तनमाशण इन्ह ां पाांच तत्वों से हुआ है। प्रत्येक रूप में इन तत्वों की
सांरचना और भमश्रण - सजीव या तनजीव - तनभमशत वस्त्तु की सांरचना, प्रकृतत और कायश के
आधार पर डडग्री में भभन्न होता है । भमश्रण की भभन्नता भी प्रकृतत में ववववधता पैदा करती
है जबकक जीवन का चक्र तब कायम रहता है जब ये सभी पाांच तत्व सामांजस्त्य की ष्स्त्थतत
में मौजूद होते हैं। प्रत्येक तत्व अपनी मूल भ्रूण ऊजाश से व्यष्क्तगत रूप से समद
ृ ध है।

मनटु य के रूप में हम भी इन पाांच तत्वों के सांयोजन से पैदा हुए हैं। इन तत्वों की मल
ू भत

ववर्ेषताओां को समझने से हमें अपनी अव्यक्त र्ष्क्त, अांततनशद्रहत प्राकृततक गण
ु ों और
चररर तनमाशण का आकलन करने में मदद भमलती है ।

धरती

िे रा कफ़रमा, अपने जबरदस्त्त चुांबकीय क्षेर और गुरुत्वाकषशण बल के साथ, हर चीज़ को


ज़मीन पर रिता है। प्
ृ वी का अपनी धुर पर घूमना और सूयश के चारों ओर पररभ्रमण
पूणत
श ुः अनुर्ाभसत है । कल्पना कीष्जए यद्रद प्
ृ वी की यह गतत अनुर्ासनह न हो गई तो
सवशथा अराजकता फैल जाएगी।

पानी

जीवन का स्रोत जल एक महत्वपण


ू श तत्व है । मानव र्र र की तरह प्ृ वी का सिर प्रततर्त
से अधधक द्रहस्त्सा पानी है। यह कई रूपों में द्रदिाई दे ता है - बाररर् की बूांदों से लेकर
तालाबों, झीलों, कुओां, झरनों, झरनों, नद्रदयों और ववर्ाल महासागरों तक। असांख्य रूपों की
यह उपष्स्त्थतत हमें पानी के मूल गण
ु के बारे में बताती है - कक यह स्त्वयां को हर
कल्पनीय और कल्पनीय आकार में समायोष्जत कर लेता है ।

आग

ऊटमा और प्रकार् का स्रोत, अष्ग्न हमें हर चीज़ द्रदिाई दे ती है । जहाां तनयांत्ररत आग जीवन
को बनाए रिने में सहायक होती है, वह ां अतनयांत्ररत आग ववनार् की ओर ले जाती
है । अष्ग्न पववरता है क्योंकक अष्ग्न में डालने पर कोई भी चीज़ अपने मूल रूप में
पररवततशत हो जाती है।

वायु

वायु एक र्ष्क्तर्ाल स्रोत है जो जीवन को बनाए रिने के भलए महत्वपूणश है । यह अन्य


सभी ऊजाशओां को कायश करने के भलए सर्क्त बनाता है। पवनों के रूप में वायु का प्रवाह
द्रदर्ाओां की सीमा से मुक्त है । वायु ववभभन्न द्रदर्ाओां में बहती है जो स्त्वतांरता का
प्रतततनधधत्व करती है ।

अांतररक्ष

अांतररक्ष भौततक जगत में सभी चीजों का आधार और सार है । यह सष्ृ टि का सबसे पहला
तत्व है , सावशभौभमक है और सभी चीजों का 'धारक' है।

चाँूकक 'पांचतत्व' सीधे तौर पर हमारे "स्त्वयां" से सांबांधधत है, क्या अब समय नह ां आ गया है
कक हम गहराई से जााँच करें और स्त्वयां से तनम्नभलखित सरल प्रश्न पछ
ू ें :
क) क्या हम अपने कामकाजी जीवन में अनुर्ाभसत हैं या हम अपनी ह भर्धथलता और
सस्त्
ु ती के भर्कार हैं?

ि) क्या हम स्त्वभाव से उदार हैं या हम द्रहसाब-ककताब बराबर करने के भलए तकश-ववतकश


करने पर आमादा हैं?

ग) क्या हमार ववचार प्रकक्रया सह नैततकता और नेक कायों की ओर ले जाने वाल र्ुदध
है या क्या हम िुद को परस्त्पर ववरोधी चौराहे पर पाते हैं?

घ) क्या हम वास्त्तववक अथों में स्त्वतांरता को महत्व दे ते हैं और इस तरह दस


ू रों को उधचत
सम्मान और स्त्थान दे ते हैं या हम स्त्वाथी जीवन जीने में व्यस्त्त हैं?

ई) क्या हम अपने दृष्टिकोण में सावशभौभमक हैं या अभी भी धमशतनरपेक्ष और साांप्रदातयक,


जातत और पांथ के िेल में उलझे हुए हैं?
अांत में , 'पांचतत्व' की सांक्षक्षतत समझ हमें अपने पयाशवरण के बारे में बेहतर जागरूकता की
द्रदर्ा में भी मागशदर्शन करे गी।

तत्र्व

पंच तत्र्व और संतल


ु न
मनुष्य ईश्र्वर की अद्भुत रचना है। ईश्र्वर ने
शांतत और समद्
ृ गध प्रदान करने के सलए
प्रकृतत का तनमाशण ककया है । जब तक मानर्व
ने पशु की भाँतत प्रकृतत को ईश्र्वर का उपहार
माना, उसके अनुसार उसका उपभोि ककया,
तब तक र्वह समद्
ृ ध और शांततपण
ू श िा, जब
उसका मक्स्तष्क वर्वकससत होने लिा तो
उसने अपनी बुद्गध, शक्तत को उजािर
ककया, पररणाम अच्छे और बरु े दोनों िे। अब
प्रश्न यह है कक अच्छा या बरु ा तया है ?
प्रकृतत के अनुसार ककया िया कायश अच्छे
पररणाम दे ता है और इसके वर्वपरीत भी। र्वास्तु हमारे संतों द्र्वारा प्रकृतत के तनयम को ददया
िया नाम है । मनष्ु य जो भी तनमाशण करता है उसे कुछ तनयमों का पालन करना पडता है ,
इसे ही र्वास्तुशास्ि कहा जाता है। तयोंकक उन्हें लिता है कक सफलता का संबंध ससफश उनके
त्रबजनेस और घर से है । जैसा कक लोि सोचते हैं कक र्वास्तुशास्ि का संबंध केर्वल तनमाशण
से है । दस
ू री ओर यह शास्ि ककसी भी रचना के तनयम बता सकता है। ककसी भी भर्वन का
तनमाशण करते समय और र्वास्तु तनयमों का पालन करके घर की सुंदरता के साि-साि आप
र्वहां रहने र्वाले लोिों की खुशी और आराम, सफलता और सम्मान को संतुसलत कर सकते
हैं। क्जस प्रकार ककसी भी मशीन को चलाने के सलए सभी छोटे -बडे दहस्सों का संतुलन एक
साि काम करता है , उसी प्रकार घर में भी पररर्वार के सभी छोटे -बडे सदस्यों के बीच
संतल
ु न होना पररर्वार की खश
ु हाली के सलए आर्वश्यक होता है और जीर्वन सच
ु ारु रूप से
चलता है। इस संतुलन को र्वास्तुशास्ि के नाम से जाना जाता है ।
ब्रहमांड में सूय,श चंद्रमा, तारे और उपग्रह अपनी धुरी पर घूम रहे हैं, इसके घूमने के सलए
जो ऊजाश क्जम्मेदार है र्वह इसकी आंतररक ऊजाश है । तीव्र ितत से घूमने के कारण समान
एर्वं वर्वपरीत बाहय ऊजाश भी उत्पन्न होती है । ये आंतररक और बाहय ऊजाशएँ ब्रहमांड में
संतुलन के सलए क्जम्मेदार हैं। इस ऊजाश को चुंबकीय या िुरुत्र्वाकर्शण बल कहा जाता है ।
सूयश सभी ग्रहों में सबसे शक्ततशाली है इससलए सभी ग्रह उसकी ओर आकवर्शत होते हैं। सूयश
की आंतररक ऊजाश ग्रहों की आंतररक ऊजाश को आकवर्शत करती है र्वहीं दोनों की बाहरी और
वर्वपरीत ऊजाश एक दस
ू रे को प्रततकवर्शत करती है । इस आकर्शण और प्रततकर्शण के कारण
ग्रहों की सूयश के चारों ओर पररक्रमा और पररक्रमण होता है । यह तनयम पथ्
ृ र्वी पर भी लािू
होता है तयोंकक हम सभी पथ्
ृ र्वी पर रहते हैं इससलए सूयश और पथ्
ृ र्वी की यह ऊजाश हम पर
भी प्रभार्व डालती है। इसका प्रभार्व मनुष्य पर बुरा या अच्छा दोनों ही हो सकता है ।
मानर्व शरीर (पंच तत्र्व) से बना है जैसे - जल, र्वाय,ु अक्नन, पथ्ृ र्वी और अंतररक्ष। जब पंच
तत्र्व संतुलन में होते हैं तो यह सख
ु , सफलता, समद्
ृ गध, शांतत आदद प्रदान करते हैं।

यह एक वर्वशेर् सि
ू है, जीर्वन इसी सि
ू के अनस
ु ार कायश करता है , संपण
ू श ब्रहमांड पंचतत्र्व
से तनसमशत है। जो भी हमारी सहायता करता है , पंच तत्र्व के तनयम पर काम करता है ।
जहाँ जीर्वन है , र्वहाँ मत्ृ यु है । भिर्वान कृष्ण ने अजन
ुश को अपना वर्वराट रूप ददखाया और
कहा कक मैं ही सक्ृ ष्ट की रचना करता हूं और मैं ही इसका वर्वनाश भी करता हूं। ये जीर्वन
का सत्य है. इसे काल चक्र के नाम से भी जाना जाता है । ब्रहमांड का चक्र पंचतत्र्व में
घूमता है। इस पर ब्रहमा, वर्वष्णु, महे श त्रिदे र्व समलकर काम करते हैं। पथ्
ृ र्वी का प्रमुख भाि
जल है और हमारा शरीर पंचतत्र्व से बना है इससलए हमारे शरीर का भी प्रमुख भाि जल
अिाशत जल तत्र्व है। जीर्वन चक्र में जल तत्र्व र्वायु तत्र्व बनाता है । हर्वा कहाँ से आती है ?
यह हमें पौधों से प्राप्त ऑतसीजन प्रदान करता है इससलए हम इसे लकडी भी कहते हैं।
र्वायु से अक्नन बनती है - अक्नन को जलाने के सलए र्वायु की आर्वश्यकता होती है , अक्नन के
जलने के बाद जो अर्वशेर् बचता है र्वह पथ्ृ र्वी है। पथ्ृ र्वी आकाश से आच्छाददत है । जल पन
ु ः
र्वर्ाश के रूप में आता है । इसी तरह जीर्वन चक्र के साि भी है . इसकी रचना ब्रहमा ने की
है । जो तनसमशत हुआ है र्वह नष्ट हो जायेिा। प्रत्येक र्वस्तु नश्र्वर है . जल अक्नन को नष्ट
कर दे ता है , अक्नन अंतररक्ष को नष्ट कर दे ती है , र्वायु आकाश या अंतररक्ष में अदृश्य है
इससलए अंतररक्ष र्वायु को नष्ट कर दे ता है, र्वायु हमें लकडी या जंिल से समलती है , हम
समट्टी के नीचे एक बीज बोते हैं क्जससे एक पौधा बनता है जो एक वर्वशाल र्वक्ष
ृ के रूप में
होता है इससलए र्वायु नष्ट हो जाती है जब पथ्
ृ र्वी पर र्वर्ाश होती है तो र्वह उसे अर्वशोवर्त
कर लेती है। हम पथ्
ृ र्वी पर नमी को महसस
ू तो कर सकते हैं लेककन दे ख नहीं सकते
इससलए पथ्
ृ र्वी से पानी खत्म हो जाता है। संहार का चक्र इस प्रकार कायश करता है कक यह
महे श (भिर्वान सशर्व) द्र्वारा ककया जाता है। भिर्वान वर्वष्णु दोनों चक्रों को संतसु लत करते
हैं। गचि में हरा तीर सज
ृ न से संबंगधत है तिा लाल तीर वर्वनाश से संबंगधत है।

जल तत्र्व

पानी मनुष्य की धमतनयों में रतत के प्रर्वाह


में मदद करता है और हमारे शरीर में
संर्वेदनशीलता पानी के कारण ही होती है ।
पानी कासलख दे ता है. इसका हमारे शरीर में
महत्र्वपूणश स्िान है । जब हमारे शरीर में
अक्नन तत्र्व अगधक होता है तो उसे जल
तत्र्व द्र्वारा संतसु लत ककया जाता है। िमी के
दौरान मनुष्य अगधक पानी का सेर्वन करता
है , यह इसका एक उदाहरण है , िमी के दौरान स्नान करने की इच्छा इसका एक और
उदाहरण है।

• जल तत्र्व र्वायु तत्र्व को समवपशत है।


• जल तत्र्व अक्नन तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।
• आकाश तत्र्व जल तत्र्व को समवपशत है ।
• पथ्
ृ र्वी तत्र्व जल तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।

र्वायु तत्र्व

र्वायु तत्र्व मनष्ु य को जीर्वन दे ता है इसके


त्रबना मनष्ु य जीवर्वत नहीं रह सकता। अंदर
और बाहर हर्वा की उपक्स्ितत बराबर होती है
इससे व्यक्तत ठीक से चल पाता है। उसका
हृदय धडकता है और र्वायु का दबार्व क्जससे
रतत शरीर के प्रत्येक अंि तक पहुंचता है,
इसका उदाहरण है। मलमूि का तनपटान भी
र्वायु तत्र्व का एक उदाहरण है।

• र्वायु तत्र्व अक्नन तत्र्व को समवपशत है ।


• र्वायु तत्र्व पथ्
ृ र्वी तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।
• जल तत्र्व र्वायु तत्र्व को समवपशत है।
• आकाश तत्र्व र्वायु तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।

अक्नन तत्र्व
मनुष्य की अंदर और बाहर की ऊजाश ऊष्मा
है । शरीर के अंदर अक्नन तत्र्व शरीर के
तापमान को तनयंत्रित करता है , भोजन को
पचाने में मदद करता है । मानर्व शरीर के
बाहर अक्नन तत्र्व िमश और ठं डा महसस

करता है ।

• अक्नन तत्र्व पथ्


ृ र्वी तत्र्व को समवपशत है ।
• अक्नन तत्र्व आकाश तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।
• र्वायु तत्र्व अक्नन तत्र्व को समवपशत है ।
• जल तत्र्व अक्नन तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।

पथ्
ृ र्वी तत्र्व

यह शांतत का प्रतीक है . जब मानर्व शरीर


सप्ु त अर्वस्िा में होता है तो यह सभी तत्र्वों
को ठीक से काम करने का प्रबंधन करता है ।
अर्वचेतन मन पथ्
ृ र्वी तत्र्व के अंतिशत है। हम
अपना भोजन उठाते हैं और उसे जीभ पर
रखते हैं, अर्वचेतन मन हमें मसालों का स्र्वाद
बताता है । भोजन को चबाना, भोजन को
पचाना और चयापचय करना पथ्
ृ र्वी तत्र्व के
अंतिशत है । माँ के िभश में पल रहा बच्चा
पथ्
ृ र्वी तत्र्व का उदाहरण है। इसीसलए माँ को
धरती कहा जाता है । पथ्
ृ र्वी जीर्वन के साि-साि मत्ृ यु का भी कारण है , पथ्
ृ र्वी पर तनसमशत
प्रत्येक र्वस्तु पथ्
ृ र्वी से संबंगधत र्वस्तओ
ु ं से बनी है। पथ्
ृ र्वी तत्र्व के घटने से जंिल नष्ट हो
जायेंिे और भर्वन ढह जायेंिे।

• पथ्
ृ र्वी तत्र्व आकाश तत्र्व को समवपशत है ।
• पथ्
ृ र्वी तत्र्व जल तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।
• अक्नन तत्र्व पथ्
ृ र्वी तत्र्व को समवपशत है ।
• र्वायु तत्र्व पथ्
ृ र्वी तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।

आकाश तत्र्व
आकाश तत्र्व एक महत्र्वपूणश तत्र्व है । यह
मनुष्य में वर्वचार लाता है। यह पथ्
ृ र्वी को
धारण करता है इससलए इसे वपता कहा जाता
है । पथ्
ृ र्वी तत्र्व जल तत्र्व को तनयंत्रित करता
है , जल तत्र्व अक्नन तत्र्व को तनयंत्रित करता
है , अक्नन तत्र्व र्वायु तत्र्व को तनयंत्रित करता
है , तो इस प्रकार ये सभी तत्र्व पथ्
ृ र्वी तत्र्व
द्र्वारा तनयंत्रित होते हैं और पथ्
ृ र्वी आकाश
तत्र्व को समवपशत है । हमारा मन पथ्
ृ र्वी है
और वर्वचार आकाश है इससलए पथ्
ृ र्वी आकाश के साि समलकर वर्वचार उत्पन्न करती है और
र्वह वर्वचार पूरा होता है । कफर र्वह वर्वचार व्यार्वहाररक हो जाता है , क्जस तरह जीर्वन आिे
बढ़ता है ।

• आकाश तत्र्व जल तत्र्व को समवपशत है ।


• आकाश तत्र्व र्वायु तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।
• पथ्
ृ र्वी तत्र्व आकाश तत्र्व को समवपशत है ।
• अक्नन तत्र्व आकाश तत्र्व को तनयंत्रित करता है ।

जीवन के साथ तालमेल में

क्षक्षतत , जे अल , पी अवाक , जी अगन , एस अमीरा ,

पांच त अत्व य एह ए धाम र्र रा

यह गोस्त्वामी तल
ु सीदास का एक प्रभसदध दोहा है , जो प्रभसदध भारतीय कववयों में से एक
हैं, ष्जन्होंने सांस्त्कृत महाकाव्य, रामायण को स्त्थानीय भाषा अवधी ( रामचररतमानस ) में
दोबारा कहने के भलए प्रर्ांसा हाभसल की ।
इसका मतलब है कक अधम र्र र (हमारे र्र र) में पांच (पाांच) तत्व (तत्व) र्ाभमल हैं -
क्षक्षतत ( प्ृ वी ) , जल ( जल), पावक (अष्ग्न), गगन (अांतररक्ष/ईथर/आकार्), समीरा (हवा)।

के अनस
ु ारवैद्रदक ववचारधारा, जब आत्मा (परु
ु षसांस्त्कृत में ) जीवन का रूप लेता है, इसे नाम
द्रदया गया है प्रकृतत(अथश प्रकृतत).माना जाता है कक प्रकृतत पााँच तत्वों से बनी है -पांच तत्व–
अांतररक्ष, वाय,ु जल, अष्ग्न,औरधरती.

प्रत्येक व्यष्क्त प्रकृतत का एक लघु सांस्त्करण है और इसभलए इसमें सभी पाांच तत्व र्ाभमल
हैं।

प्राचीन भारतीय दार्शतनकों ने व्यष्क्तगत मानव र्र र या बड़े ब्रह्माांडीय र्र र को इन पााँच
मल
ू तत्वों के रूप में वगीकृत ककया।

जबकक पांच तत्व मानव र्र र और भौततक दतु नया के भौततक और ऊजाशवान गण
ु ों का
प्रतततनधधत्व करते हैं, इन पाांच तत्वों का दोलन हमारे र्ार ररक, मानभसक और भावनात्मक
कल्याण को प्रभाववत करता है।

आइए इन तत्वों के बारे में कुछ रोचक त्य दे िें:

प्रकृतत में , कुछ भी सांपण


ू श नह ां है और सब कुछ सांपण
ू श है । पेड़ों को ववकृत ककया जा सकता

है , अजीब तर कों से मोड़ा जा सकता है , और वे कफर भी सांद


ु र हैं - ऐभलस वॉकर

1. आकार्/गगन या अांतररक्ष

पाां च तत्वों का वास्त्त ु सां त ु ल न

पां च तत्व र्ब्द दो र्ब्दों से भमलकर बना है "पां च " अथाश त पाां च और "तत्व" अथाश त
तत्व। पां च तत्व म ू ल रूप से 5 तत्व हैं प ृ् वी, जल, अष्ग्न, वाय ु और आकार्,
आकार् का अथश है आकार् या अां त ररक्ष। ये पाां च तत्व न के वल वे हैं ष्जनसे
ब्रह्माां ड बना है , बष्ल्क वे भी हैं ष्जनसे हम बने हैं और वे हमारे जीवन के हर
पहल ू का द्रहस्त्सा हैं । चाहे वह योग हो, आय ु व े द हो, धचककत्सा हो या वास्त्त ु हो।
प्रत्ये क तत्व हमारे र्र र या हमारे आस-पास के वातावरण में इन 5 तत्वों के
सां त ु ल न पर आधाररत है । ज्योततष में भी प्रत्ये क ग्रह और राभर् का सां ब ां ध एक तत्व
से होता है जो उसके म ू ल स्त्वभाव का वणश न करता है ।

ये 5 तत्व स्त्थायी हैं और वे पररवतश न के स्त्पर्श से परे हैं क्योंकक वे ब्रह्माां ड के


ब ु त नयाद तनमाश ण िां ड बनाते हैं ।

पााँ च तत्व हमारे जीवन और ि ु र् हाल में सि क और महत्वप ू ण श भ ू भ मका तनभाते


हैं । ऐसा इसभलए है क्योंकक हमारा र्र र, मन और आत्मा साम ू द्र हक रूप से इन
तत्वों से ज ु ड़ े और प्रभाववत भी होते हैं ।

हम अपना भोजन प ृ् वी से प्रातत करते हैं और जीवन के अां त में हमारा र्र र भी
प ृ् वी पर ह लौि आता है । हमारे र्र र के कु ल वजन का 75% से अधधक द्रहस्त्सा
पानी का होता है । अष्ग्न र्र र की गमी और द ष्ततमान ऊजाश का प्रतततनधधत्व
करती है और सभी चयापचय और रासायतनक कक्रयाओां में मौज ू द होती है । वाय ु
हमारे प ू रे र्र र में बहती है और प्रत्ये क कोभर्का को ऑक्सीजन प्रदान करती
है । यह प्रत्ये क चयापचय गततववधध का भी द्रहस्त्सा है । अां त ररक्ष हमारे चारों ओर है ।

पाां च तत्वों में से प्रत्ये क का उनकी प्रकृ तत के आधार पर अन्य तत्वों के साथ एक
तनष्श्चत सां ब ां ध है । ये ररश्ते प्रकृ तत के तनयम बनाते हैं ।

यद्रद ये तत्व आपके घर में सां त ु ल न में हैं तो वे आपके भलए भाग्य और सौभाग्य
लाएां ग े । जब पानी सां त ु भ लत अवस्त्था में होता है तो यह अधधक अवसर पै द ा करता
है , बे ह तर प्रततरक्षा प्रदान करता है और यद्रद प ृ् वी सां त ु भ लत ष्स्त्थतत में होती है तो
यह जीवन, कररयर, व्यवहार और ररश्तों में ष्स्त्थरता लाती है ।

इन पाां च तत्वों में कोई भी असां त ु ल न आपके जीवन में समस्त्याओां का कारण बन
सकता है । उदाहरण के भलए असां त ु भ लत अवस्त्था में वाय ु क्रोध की समस्त्या,
पड़ोभसयों के साथ समस्त्या या फां सने की भावना पै द ा कर सकती है ; जबकक जब
आग असां त ु भ लत होती है तो यह द ुघ श ि ना, चोर और बदनामी का कारण बन सकती
है ।

आप इन 5 तत्वों के बारे में अधधक जानने के भलए हमसे सां प कश कर सकते हैं और
वे हमारे दै तनक जीवन में कै से महत्वप ू ण श भ ू भ मका तनभाते हैं । हम आपको यह पता
लगाने में मदद कर सकते हैं कक इन 5 तत्वों के अन ु स ार आपका घर वास्त्त ु
अन ु रू प है या नह ां और अन ु प ालन न होने की ष्स्त्थतत में आपको आसान उपाय
प्रदान कर सकते हैं ।

पांचतत्व आयुवेद में र्र र के प्रकार का ववश्लेषण


प्रकृतत ववश्लेषण (वात, वपि, कफ पर क्षण)
प्रत्येक मनुटय में अदववतीय अनुपात में तीन दोष (वात, वपि और कफ) होते हैं, इसे प्रकृतत
के रूप में जाना जाता है । आयुवेद में रोगी के तनदान में प्रकृतत ववश्लेषण की महत्वपूणश
भभू मका है । अपनी प्रकृतत को जानने से आपको बेहतर जीवन जीने में मदद भमल सकती है:
• Ø प्रकृतत का व्यष्क्तगत ववश्लेषण आपको अपने र्र र और उसकी आवश्यकताओां
के बारे में जानने में मदद करता है
• Ø अपनी प्रकृतत को जानने से आपको सवोिम स्त्वास्त््य बनाए रिने में मदद भमल
सकती है।
• Ø यह आपको एक अच्छा और सांतुभलत व्यष्क्तगत, पाररवाररक और व्यावसातयक
जीवन बनाए रिने में मदद करे गा
• Ø आपके र्र र की आवश्यकताओां के अनुसार आपकी जीवनर्ैल की योजना बनाने
में आपकी सहायता करता है
• Ø प्रकृतत ववश्लेषण आपको सांतभु लत आहार की योजना बनाने में मदद करे गा।
• Ø अपनी ताकत और कमजोररयों को जानना।
• Ø बीमार का पूवाशनम
ु ान लगाना और उसकी रोकथाम करना।

पांचतत्वों की अवधारणा, ष्जसका अथश सांस्त्कृत में "पाांच तत्व" है, एक प्राचीन दर्शन है
ष्जसकी उत्पवि भारतीय सांस्त्कृतत में हुई थी। यह उन मूलभूत तत्वों का वणशन करता है जो
ब्रह्माांड और उसके भीतर मौजूद हर चीज को बनाते हैं: प् ृ वी (प्
ृ वी), जल (जल), अष्ग्न
(अष्ग्न), वायु (वायु), और ईथर (आकार्)। ये तत्व न केवल भौततक सांसार में मौजूद हैं,
बष्ल्क हमारे भीतर भी मौजूद हैं, जो हमारे अष्स्त्तत्व को आकार दे ते हैं। इस लेि में, हम
पांचतत्वों के अांतसंबांध के बारे में ववस्त्तार से जानेंगे और कैसे उनके सांबांधों को समझने से
हमारे जीवन में सदभाव और सांतुलन की गहर भावना आ सकती है ।
· प्
ृ वी (प्
ृ वी): प्
ृ वी का तत्व ष्स्त्थरता, ग्राउां डडांग और दृढ़ता का प्रतततनधधत्व करता
है । यह हमारे र्र र और भौततक सांसार सद्रहत भौततक क्षेर का प्रतीक है। प्
ृ वी जीवन को
पनपने और बढ़ने के भलए आधार प्रदान करती है । इस तत्व से जुड़ने में प्राकृततक दतु नया
की सराहना करना, पयाशवरण का पोषण करना और प्
ृ वी पर नांगे पैर चलना, बागवानी
करना या प्रकृतत में समय त्रबताना जैसी गततववधधयों के माध्यम से िुद को मजबूत करना
र्ाभमल है।
· जल (जल): जल तरलता, अनक
ु ू लनर्ीलता और भावनात्मक गहराई का प्रतीक है । यह
हमार भावनाओां, अांतज्ञाशन और जीवन के उतार-चढ़ाव से जड़
ु ा है । पानी की तरह जो
पररदृश्य को आकार दे ता है और सभी जीववत प्राखणयों का पोषण करता है , पानी के तत्व से
जुड़ने में हमार भावनाओां को गले लगाना, आत्म-धचांतन का अभ्यास करना और करुणा
और सहानुभूतत पैदा करना र्ाभमल है। तैराकी, स्त्नान करने या जल तनकायों के पास बैिने
जैसी गततववधधयों में सांलग्न होने से हमें पानी की पररवतशनकार र्ष्क्त का लाभ उिाने में
मदद भमल सकती है।
· अष्ग्न (अष्ग्न): अष्ग्न ऊजाश, जुनून और पररवतशन का प्रतततनधधत्व करती है । यह हमार
इच्छाओां, महत्वाकाांक्षाओां और हमारे भीतर रचनात्मकता की चमक से जुड़ा है । अष्ग्न
प्रकार् और गमी प्रदान करती है, ववकास और पररवतशन को सक्षम बनाती है । अष्ग्न तत्व
से जुड़ने में हमारे जन
ु ून को प्रज्वभलत करना, दृढ़ सांकल्प के साथ अपने लक्ष्यों का पीछा
करना और आत्म-अभभव्यष्क्त को अपनाना र्ाभमल है । मोमबवियााँ जलाना, अष्ग्न
अनुटिानों का अभ्यास करना, या उत्साह पैदा करने वाल गततववधधयों में र्ाभमल होना हमें
आग की र्ष्क्त का उपयोग करने में मदद कर सकता है ।
· वायु (वाय)ु : वायु गतत, सांचार और स्त्वतांरता का प्रतीक है । यह साांस, बद
ु धध और ववचारों
के आदान-प्रदान से जड़
ु ा है । वायु ध्वतन तरां गों को वहन करती है , ष्जससे हमें दस
ू रों के
साथ सांवाद करने और जुड़ने की अनुमतत भमलती है । वायु तत्व से जुड़ने में हमार साांसों
पर ध्यान केंद्रित करना, ध्यानपण
ू श प्रथाओां में सांलग्न होना और स्त्पटि सांचार के माध्यम से
िुद को व्यक्त करना र्ाभमल है । िुल जगहों पर समय त्रबताना, गहर सााँस लेने के
व्यायाम का अभ्यास करना, या गायन या पवन वादययांर बजाने जैसी गततववधधयों में
र्ाभमल होने से हमें वायु तत्व के प्रतत तालमेल त्रबिाने में मदद भमल सकती है ।
· ईथर (आकार्): ईथर अांतररक्ष, ववस्त्तार और चेतना का प्रतततनधधत्व करता है । यह पाांच
तत्वों में सबसे सक्ष्
ू म है और अन्य तत्वों के अष्स्त्तत्व के भलए एक माध्यम प्रदान करता
है । ईथर भौततक सीमाओां को पार करता है और हमें अनांत से जोड़ता है । ईथर तत्व से
जुड़ने में र्ाांतत, ध्यान ववकभसत करना और हमार जागरूकता का ववस्त्तार करना र्ाभमल
है । मौन के क्षण ढूाँढना, तारों को दे िना, या सचेतनता का अभ्यास करना हमें ईथर की
ववर्ालता का लाभ उिाने में मदद कर सकता है।
पांचतत्वों की अांतसंबध
ां ता: पांचतत्वों की अांतसंबांधता को समझना हमारे जीवन में सदभाव
और सांतुलन प्रातत करने के भलए महत्वपण
ू श है। ये तत्व अलग-अलग सांस्त्थाएां नह ां हैं बष्ल्क
परस्त्पर कक्रया और प्रभाव की तनरां तर ष्स्त्थतत में मौजूद हैं। प्
ृ वी जल के प्रवाह के भलए एक
िोस आधार प्रदान करती है , जल अष्ग्न के ववकास को पोवषत करता है , अष्ग्न वायु की
गतत में बदल जाती है , और वायु आकार् की फुसफुसाहि को वहन करती है। बदले में ,
ईथर अन्य सभी तत्वों के सह-अष्स्त्तत्व के भलए जगह रिता है।
पांचतत्वों के अांतसंबांध को पहचानने और अपनाने से, हम अपने बारे में और अपने आस-
पास की दतु नया के साथ अपने सांबांध की गहर समझ प्रातत कर सकते हैं। हम ष्स्त्थरता
और तरलता, जुनून और बुदधध, और ज़मीनीपन और ववस्त्तार के बीच सांतुलन ढूांढकर,
अपने भीतर प्रत्येक तत्व के गुणों में सामांजस्त्य बनाना सीि सकते हैं।
पांचतत्व हमारे अष्स्त्तत्व को आकार दे ने वाले तत्वों के अांतसंबांध को समझने के भलए एक
गहन रूपरे िा प्रदान करते हैं। प्रत्येक तत्व - प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु और आकार् - की
िोज और उससे जड़
ु कर हम सदभाव, सांतल
ु न और आत्म-जागरूकता की एक बड़ी भावना
ववकभसत कर सकते हैं। इन तत्वों के गण
ु ों को अपनाने से हमें जीवन की प्राकृततक लय के
साथ तालमेल त्रबिाने और ब्रह्माांड में अपनी और अपनी जगह की गहर समझ प्रातत करने
की अनुमतत भमलती है ।

प्रकृतत के पाांच तत्वों का महत्व - प्रकृतत के पाांच तत्व


एस्त्रोत्रबक्स |

प्राचीन काल से ह ववदवानों का मानना है कक ब्रह्माांड पाांच तत्वों की सांरचना से बना है । ये


पाांचों तत्व इस ब्रह्माांड में सांतभु लत अवस्त्था में मौजूद हैं। उदाहरण के भलए: यद्रद पानी का
स्त्तर एक तनष्श्चत सीमा तक बढ़ जाता है , तो परू दतु नया पानी से भर जाएगी ष्जसके
पररणामस्त्वरूप बाढ़ आएगी। जल, वायु, अष्ग्न, आकार् और प्
ृ वी इन पाांच तत्वों को एक
साथ "पांचतत्व" के रूप में जाना जाता है ।

कहा जाता है कक मानव र्र र भी इन्ह ां पाांच तत्वों से बना है। तकनीकी रूप से कहें तो ये
पाांच तत्व मानव र्र र की पाांच इांद्रियों से सांबांधधत हैं। इन पाांच तत्वों को पांचमहाभत
ू भी
कहा जाता है । इन पाांच तत्वों को उनके सांबांधधत स्त्वामी और ग्रह सौंपे गए हैं। इस लेि में
हम इनके बारे में ववस्त्तार से चचाश करें गे।

अांतररक्ष
बह
ृ स्त्पतत "अांतररक्ष" तत्व का स्त्वामी है । अांतररक्ष ह एकमार ऐसा तत्व है ष्जसकी कोई
सीमा नह ां है । प्
ृ वी या प्
ृ वी अांतररक्ष का कारक तत्व है । आर्ा और उत्साह अांतररक्ष के
अधधकार क्षेर में आते हैं।

वास्त्तु र्ास्त्र में आकार् को ब्रह्माण्ड का मक्


ु त स्त्थान माना गया है । ''र्ब्द'' अांतररक्ष का
ववर्ेष लक्षण है और इसका सांबांध मनटु य के कानों से है। ववभभन्न प्राचीन ग्रांथों और वेदों
में र्ब्द, अक्षर और नाद को भगवान ब्रह्मा का अलग-अलग रूप माना गया है । जब कोई
व्यष्क्त ककसी र्ब्द या अक्षर को सुनता है तभी उसका अथश समझ पाता है । अांतररक्ष और
ब्रह्माांड की भी यह अवधारणा है. जब अांतररक्ष में गततववधधयााँ होती हैं तभी प्
ृ वी प्रकार्,
ऊटमा, गुरुत्वाकषशण, चुांबकीय क्षेर आद्रद प्रातत कर पाती है। प्राकृततक घिनाओां में होने वाले
इन सभी पररवतशनों का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है। इस प्रकार, अांतररक्ष या
आकार् के महत्व को त्रबल्कुल भी नजरअांदाज नह ां ककया जा सकता है। भगवान भर्व को
आकार् का अधधपतत दे वता माना जाता है।

वायु
र्तन “वायु” तत्व का स्त्वामी है । स्त्पर्श या अनुभूतत वायु का कारक तत्व है। वायु की कक्रया
श्वास के दायरे में आती है । प्
ृ वी चारों ओर से वायु से तघर हुई है और इस प्रकार, वायु
और उसके कायश के त्रबना कोई भी जीववत जीव जीववत नह ां रह सकता है। वायु गैसों और
तत्वों से बनी है जो मानव जातत के अष्स्त्तत्व के भलए आवश्यक हैं। वायु की अनुपष्स्त्थतत
का अथश है प्
ृ वी या ककसी अन्य पौधे पर जीवन की अनुपष्स्त्थतत। हवा में ऑक्सीजन साांस
लेने और आग जलाने के भलए आवश्यक है। यद्रद मनुटय के मष्स्त्तटक को पयाशतत
ऑक्सीजन न भमले तो र्र र अपनी कुछ आवश्यक इांद्रियों को भी िो सकता है जो जीवन
जीने के भलए आवश्यक हैं।

ववदवानों ने वायु के गुणों को दो भागों में बााँिा है - र्ब्द और स्त्पर्श। स्त्पर्श इांद्रिय का सांबांध
र्र र की त्वचा से है और वायु इसका आधार है । भगवान ववटणु वायु के अधधपतत दे वता
हैं।

आग
मांगल और सूयश दोनों उग्र ग्रह हैं और अष्ग्न तत्व के स्त्वामी माने जाते हैं। अष्ग्न का
कारक चेहरा या रूप है । अष्ग्न की कक्रया जीवन के दायरे में आती है। वस्त्तुतुः सूयश अष्ग्न
का स्रोत है जो प्
ृ वी पर प्रकार् दे ता है। सय
ू श की अनप
ु ष्स्त्थतत में प्
ृ वी पर प्रकार् नह ां
होगा। अांधकार की छाया परू प्
ृ वी को ढक लेगी ष्जससे जीवन का ववनार् हो जाएगा। सय
ू श
से तनकलने वाल अष्ग्न अन्य ग्रहों को भी ऊजाश प्रदान करती है। सूयश के केंि से तनकलने
वाल रोर्नी इस ग्रह पर जीवन के अष्स्त्तत्व का सबसे महत्वपूणश कारण है। अष्ग्न प्
ृ वी
पर सभी प्रकार की ऊजाशओां का प्रमुि स्रोत है । सूयश को अष्ग्न का अधधपतत दे वता माना
जाता है ।

पानी
चांिमा और र्क्र
ु दोनों को जल तत्व माना जाता है और इस प्रकार जल को तनयांत्ररत करते
हैं। यह रस या अमत
ृ का कारक है । चांकू क जल और रक्त दोनों तरल रूप में हैं, इसभलए
यह तत्व रक्त के दायरे में आते हैं।
ववदवानों ने जल को चार भागों में बााँिा है - र्ब्द, स्त्पर्श, रूप और रस। यहााँ "जूस" र्ब्द
स्त्वाद का दयोतक है । प्
ृ वी पर तरल रूप में पाई जाने वाल सभी चीजों को जल र्ीषशक के
अांतगशत वगीकृत ककया गया है । जीववत रहने के भलए पानी एक और आवश्यक कारक
है । प्
ृ वी पर त्रबजल पैदा करने के भलए भी पानी का उपयोग ककया जाता है । भगवान इांि
और भगवान ब्रह्मा को जल तत्व का र्ासक दे वता माना जाता है।

धरती
बुध प्
ृ वी का स्त्वामी है । सुगांध या गांध प्ृ वी का कारक तत्व है । अष्ग्न की कक्रया के
अांतगशत हड्डडयााँ एवां त्वचा आती है। ववदवानों के अनुसार प्
ृ वी एक ववर्ाल चुांबकीय भूभम
है । भौगोभलक उिर ध्रुव चुांबक के दक्षक्षणी भसरे पर ष्स्त्थत है। यह कारण है कक चुांबक
कम्पास का उिर ध्रुव सदै व उिर द्रदर्ा की ओर तनदे भर्त होता है ।

वास्त्तु र्ास्त्र में प्


ृ वी के इस चुांबकीय गण
ु का व्यापक रूप से उपयोग ककया जाता
है । इसका उपयोग प्
ृ वी पर दबाव बनाने के भलए ककया जाता है । वास्त्तर्
ु ास्त्र में दक्षक्षण
द्रदर्ा पर भार बढ़ाने पर अधधक जोर द्रदया जाता है । यह कारण है कक दक्षक्षण द्रदर्ा की
ओर भसर करके सोना स्त्वास्त््य की दृष्टि से अच्छा माना जाता है । अगर धाभमशक दृष्टि से
बात करें तो दक्षक्षण द्रदर्ा की ओर पैर करना वष्जशत है क्योंकक ऐसा माना जाता है कक
दक्षक्षण द्रदर्ा में यमराज का वास होता है ।

यह तनटकषश तनकाला जा सकता है, कक ये सभी पााँच तत्व प्


ृ वी पर मानव जीवन के
अष्स्त्तत्व के भलए आवश्यक हैं। इन पााँच तत्वों के अभाव में मनुटय या ककसी भी प्रकार की
जीववत वस्त्तु के जीवन की कल्पना नह ां की जा सकती। जल जीवन में सांतुष्टि प्रदान
करता है , जबकक वायु ऑक्सीजन के रूप में र्र र में घम
ू ती है । अांतररक्ष महत्वाकाांक्षा
जगाता है , और प्ृ वी हमें जीवन में सद्रहटणु होने का मागशदर्शन करती है। जब मानव र्र र
में आग का स्त्तर बढ़ जाता है , तो सांतुलन बनाए रिने के भलए पानी इसे कम कर दे ता है
और यह ष्स्त्थतत अांतररक्ष और वायु के साथ भी होती है ।

भारतीय सांस्त्कृतत में, 'पांचतत्व' उन 'पाांच महान तत्वों' का प्रतततनधधत्व करता है ष्जनसे
जीवन उत्पन्न होता है । ऐसा माना जाता है कक यह सांपण
ू श सावशभौभमक पदाथश अतनवायश रूप
से इन "पांचतत्व" या पाांच मूल तत्वों से बना है - प्
ृ वी (प्
ृ वी), जल (जल), अष्ग्न
(प्रकार्), वायु (पवन) और आकार् (आकार्)।

उल्लेिनीय रूप से, मानव र्र र भी 'पांचतत्व' या पाांच तत्वों से बना है जो पाांच इांद्रियों को
दर्ाशते हैं जो कान, त्वचा, आांिें, जीभ और नाक हैं। ये सभी पाांच सांवेद प्रततकक्रयाओां को
सुववधाजनक बनाते हैं - गांध, स्त्वाद, श्रवण, स्त्पर्श और दृष्टि जो आांतररक और बाहर
वातावरण के बीच सांतुलन बनाए रिने के भलए ष्जम्मेदार हैं। ककतना अजीब सहसांबध
ां है
लेककन ककतना सच है। इसे बहुत अच्छी तरह से इस तरह समझाया जा सकता है कक जब
भी, हमारे आांतररक और बाहर वातावरण में असांतल
ु न होता है तो हमारा मन, हमारा र्र र
और हमार आत्मा एक दि
ु ी ष्स्त्थतत की याद द्रदलाते हैं। इसभलए, हमार साांस्त्कृततक
नैततकता और सहज सांवेदनर्ीलता हमें इन पाांच तत्वों - जीवन के सार - के र्ाांततपण
ू श
समन्वय में रहने के भलए प्रेररत करती है !

एक साथ, इन तत्वों को व्यापक पररप्रेक्ष्य में हमारे मन, र्र र और आत्मा के अनुरूप
समन्वतयत ककया जा सकता है :

प्
ृ वी हमारे र्र र का प्रतततनधधत्व करती है

धरती माता जीवनदातयनी है जो एक िोस अवस्त्था-भमट्ि , वनस्त्पतत और जीव-जन्तु का


प्रतततनधधत्व करती है । अपने अववश्वसनीय चुांबकीय क्षेर और गुरुत्वाकषशण बल के कारण,
जो प्
ृ वी से जड़
ु ी हर जीववत और तनजीव चीज़ को पकड़कर रिता है। जैसा कक हम सभी
जानते हैं कक हम अपनी र्ार ररक इांद्रियों के माध्यम से बाहर दतु नया से जड़
ु ते हैं। हमारे
अष्स्त्तत्व का अष्स्त्तत्व हमारे र्र र के प्रतत बहुत हद तक उिरदायी है जो अांततुः जीवन का
सबसे महत्वपूणश 'तत्व' है !

जल हमारे मन का प्रतततनधधत्व करता है

सारा जीवन पानी से उत्पन्न होता है - एच 2 0 जो प्


ृ वी का लगभग दो-ततहाई द्रहस्त्सा है
और मानव र्र र के समान है । िीक है ! पाधथशव, र्ार ररक और सांवेद जुड़ाव के बारे में बात
करने के बाद। हम यह उल्लेि करना चाहें गे कक र्र र के अलावा धारणा की एक नाजुक
परत अभी भी बनी हुई है ष्जसे 'मन' या 'मनटु य' के रूप में जाना जाता है जो सत्य को
र्ार ररक पदाथों तक ले जाती है। मन और र्र र दोनों साथ-साथ चलते हैं, एक के त्रबना
दस
ू रा कुछ भी नह ां है! लेककन मन का सबसे बड़ा दोष यह है कक यह िोस या किोर नह ां
है , बष्ल्क यह असीभमत सीमाओां के साथ पानी की तरह उतार-चढ़ाव या बहता रहता है !

अष्ग्न हमार बुदधधमिा का प्रतततनधधत्व करती है

यह र्ब्द अपने आप में इस अथश में तनष्श्चत है कक अष्ग्न ऊजाश का महत्वपूणश स्रोत
है । प्रकार् चमकते रां गों में प्रकृतत की सुांदरता की दृश्यता को सुववधाजनक बनाता है । र्र र
और मन के मेल से प्रातत सांवेद सांकेतों की व्याख्या ववचारों के रूप में की जाती है , जहाां
प्रत्येक ववचार के अपने उड़ने वाले रां ग होते हैं, जो एक पररटकृत बद
ु धध दवारा र्ाभसत
ताककशक रूपरे िा को जन्म दे ते हैं।
कफर, बुदधध के अभाव में , हमारा द्रदमाग त्रबना ककसी ताककशक इनपुि के ववचारों का एक
अतनयोष्जत प्रवाह मार होगा। जैसा कक द्रहांद ू उदधरण है - " तमसो माज्योततगशमय " - यह
बद
ु धध ह है जो हमें अज्ञानता के अांधेरे से ज्ञान और सदभावना के मागश पर ले जाती है जो
हमारे मन, र्र र और आत्मा को उज्ज्वल करती है जो हमारे आांतररक स्त्व को मजबत

करती है ।

वायु जागरूकता का प्रतततनधधत्व करती है

सबसे आवश्यक 'O2 ' सवशव्यापी, स्त्पटि और जीवनदायी "वाय"ु है जो अांतररक्ष और पररवेर्
का सहवती है । वायु जीववत प्राखणयों का प्रतीक है। यह हमार सचेतनता और चेतना को
जागत
ृ या सचेत करता है जो हमारे मन, र्र र और आत्मा को जगाती है। समझाने में
सरल है - िीक वैसे ह जैसे जब आग जलाने के भलए हवा की आवश्यकता होती है । िुद को
सफलता की ओर ले जाने के भलए बुदधधमिा के जुनून को बढ़ाने के भलए जागतृ त की
आवश्यकता है। हमारे मन और आत्मा का जागरण जलवाटप की तरह है जो सांघतनत होकर
पानी की बांद
ू ें बनाता है । यद्रद एक ववभर्टि ष्स्त्थतत द जाए तो बफश जम कर परू तरह से
एक अलग ऊजाश स्त्तर में पररवततशत हो सकती है ।

चेतना के रूप में आकार्:

अांतररक्ष की ओर जाने वाला अनांत, अनांत क्षक्षततज ष्जसे 'आकार्' के नाम से जाना जाता
है , सांपण
ू श एनधचलाडा का घर है । द्रदन के समय, परे का तनमशल नीला आकार् हमारे भसर पर
छत जैसा होता है । रात के समय यह चमकदार भसतारों के चमकते समूहों के भलए एक
पोस्त्िर के रूप में कायश करता है। आकार् चेतना का प्रतततनधधत्व करता है इसके त्रबना इस
सांसार में कुछ भी अष्स्त्तत्व में नह ां है । हम सब और हर चीज़ अांतररक्ष में मौजद
ू है , सारा
अष्स्त्तत्व चेतना के कारण ह जीवन में आता है । चेतना को जीवन के अन्य तत्वों की तरह
महसूस या अनुभव नह ां ककया जा सकता क्योंकक यह भीतर ह रहती है !

जीवन के ये सभी पाांच तत्व इस ब्रह्माांड के " पांचभूत " हैं और हमारे जीवन के हर पहलू
में समान रूप से पररलक्षक्षत होते हैं। हममें से लगभग सभी ने "गीता सार" के उत्कृटि
ववचारों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा, सुना और अनुभव ककया है । हमारे जीवन के सफर का
कोई न कोई पड़ाव ष्जांदगी की कड़वी सच्चाइयों से जुड़ा होता है । धाभमशक होते हुए भी हमारे
जीवन के पांचतत्व भगवदगीता से जड़
ु ।े हम कुछ र्ाश्वत सत्यों को अपने जीवन की
नीरसता में आत्मसात करने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी हमें अपना समय अपने
आध्याष्त्मक ज्ञान के भलए तनकालना चाद्रहए। मन, र्र र और आत्मा के साथ जुड़ाव की
ष्स्त्थतत!!!

पांच महाभत

पांच महाभूत तीन महागण


ु ों - सत्व, रज और तम
के भौततक प्रतततनधध हैं। महाभूतों का सांबांध तीन
महागण
ु ों से इस प्रकार है :
• आकार् महाभत
ू -सत्व महागण

• वायु महाभत
ू - रजस महगण

• अष्ग्न महाभूत - रजस और सत्व महागण

• जल महाभूत - सत्व और तम महागुण
• प्
ृ वी महाभूत - तम महागण

ववभभन्न महाभत
ू ों के तनमाशण के दौरान सबसे
हल्के से सघन और सबसे सघन महाभूत में सांक्रमण होता है। पांच महाभूतों की उपयक्
ुश त
महागण
ु रचना से यह भी स्त्पटि है कक आकार् महाभूत सत्व महागण
ु (जो सबसे हल्का
महागण
ु है ) से बना है, जबकक प्
ृ वी महाभूत तम - सबसे भार और जद्रिल महागण
ु से
बना है। अन्य महाभत
ू सत्व से तम तक सांक्रमण के ववभभन्न स्त्तर हैं।

भभन्न-भभन्न महाभत

इांद्रिय दवारा जो कुछ भी महसूस ककया जा सकता है वह इन सभी पांच महाभूतों से बना
है । इन पांच महाभूतों में से ककसी एक का सापेक्ष प्रभुत्व ह ककसी वस्त्तु की ववर्ेषताओां और
हम पर उसके प्रभाव को तनधाशररत करता है। ये र्र र के ववभर्टि भाग में प्रमि
ु हैं:
र्ाभसत
महाभत
ू सांवेद र्र र में कायश
सांकाय
र्र र के सभी िल
ु े और ववर्ाल अांग आकार् महाभत
ू के क्षेर हैं; यह
आकार् श्रवण
र्र र में ववभभन्न तरल पदाथों और पोषक तत्वों की आवाजाह के भलए
महाभूत इांि
जगह प्रदान करता है
यह र्र र का गततर्ील भाग है। यह सााँस लेना-छोड़ना, र्र र में ववभभन्न
वायु स्त्पर्श की
तरल पदाथों की गतत और र्र र के ववभभन्न अांगों की गततववधधयों के
महाभूत अनुभूतत
भलए ष्जम्मेदार है । आाँि की पलकों का िुलना और बांद होना।
यह र्र र का अष्ग्न तत्व है । यह र्र र के तापमान के तनयमन के भलए
अष्ग्न दे िने
ष्जम्मेदार है ; चमकती और दमकती त्वचा; पाचन तांर में भोजन के पाचन
महाभूत का भाव
और आत्मसात के साथ-साथ सूक्ष्म स्त्तर पर पाचन।
यह र्र र को जोड़ने वाल र्ष्क्त है जो र्र र के ववभभन्न अांगों को एक
साथ रहने के भलए ष्जम्मेदार है । यह र्र र के अांदर र्र र के तरल पदाथश
जल स्त्वाद का
और पोषक तत्वों के पररवहन और स्त्वाि और मर
ू के रूप में र्र र के
महाभत
ू अनभ
ु व
अपभर्टि पदाथों को र्र र से बाहर तनकालने के भलए मीडडया के रूप में
भी कायश करता है ।
यह र्र र का सांरचना तनमाशण करने वाला भाग है । यह र्र र के अांगों के
प्
ृ वी गांध की
भलए सांरचनात्मक ढाांचा प्रदान करता है । हमारे र्र र के सभी अांग सांरचना
महाभूत भावना
में पाधथशव हैं अथाशत मुख्यतुः प्
ृ वी महाभत
ू से बने हैं।

पांच महाभत
ू ों का त्ररदोषों से सांबांध:

तीन दोष पांचमहाभूतों से बने हैं। त्ररदोषों की सांरचना इस प्रकार है :


• वात दोष : आकार् + वायु महाभूत
• वपि दोष : अष्ग्न महाभूत
• कफ दोष : जल+प्
ृ वीमहाभूत।

लेककन इसका मतलब यह कदावप नह ां है कक वात दोष में आकार् और वायु के अलावा
अन्य तीन महाभत
ू ों का योगदान र्ून्य है । क्योंकक इस धरती पर हर चीज़ पांच महाभूततक
(सभी पाांच महाभूतों से बनी) है। तीन दोषों को दरू करें . ककसी दोष में महाभूत की प्रबलता
उसके व्यवहार को तनधाशररत करती है । दोष महाभूतों दवारा सांचाभलत होते हैं, इसभलए इनका
उपचार भी महाभूतों दवारा सांचाभलत होता है । इसभलए हर महाभूत के स्त्वभाव को समझना
जरूर है। ताकक हम इलाज के भलए उधचत कॉल कर सकें.

पांच महाभूतों के बीच सामांजस्त्य त्ररदोषों के बीच सामांजस्त्य पैदा करे गा। पण
ू त
श या स्त्वस्त्थ
अवस्त्था, इसी प्रकार पांच महाभूतों में कोई भी गड़बड़ी अांततुः असामांजस्त्य को जन्म
दे गी। यह सामांजस्त्य सभी स्त्तरों पर होगा - दोष, धातु और मल।

तो उपचार के बारे में बात करते समय; आयुवेद हमेर्ा पांच महाभूतों की सामांजस्त्यपूणश
ष्स्त्थतत को बनाए रिने की सलाह दे ता है । और उपचार की लाइन उसी भसदधाांत पर काम
करती है । इस प्रकार प्रत्येक उपचार बढ़े हुए महाभूत को र्ाांत करता है और क्षीण महाभूत
की पतू तश करता है।
पाांच मूल तत्व (पांचमहाभत
ू ) और मानव र्र र पर उनके प्रभाव

आयव
ु ेद के अनुसार , इस ब्रह्माांड में सब कुछ पाांच मूल तत्वों से बना है । ये पाांच
तत्व प्
ृ वी (प्
ृ वी), जल (जल), अष्ग्न (अष्ग्न या तेज), वायु (वाय)ु और, आकार् या
आकार् (आकार्) हैं और इन्हें एक साथ पांचमहाभूत कहा जाता है ।

ये सबसे सूक्ष्म तत्व हैं, जो सजीव और तनजीव पदाथों का तनमाशण करते हैं। औषधधयों,
जड़ी-बद्रू ियों और जीववत प्राखणयों सद्रहत हर चीज़ इन्ह ां मूल तत्वों से बनी है । प्रत्येक पदाथश
में ये सभी पाांच तत्व समाद्रहत होते हैं। एक या एक से अधधक तत्वों का असांतुलन व्यष्क्त
के जीवन में समस्त्याओां का कारण बनता है और इन तत्वों को सांतभु लत करके इन
समस्त्याओां का समाधान ककया जा सकता है। यह कारण है कक अलग-अलग व्यष्क्तयों का
व्यवहार अलग-अलग होता है, यह सब इन तत्वों की सांरचना के कारण है । इन्हें सांतुभलत
करने के भलए आयुवेद साष्त्वक आहार का सेवन करने का सुझाव दे ता है ।

आइए इन तत्वों की मूल ववर्ेषताओां को समझें-

1. प्
ृ वी
प्
ृ वी ष्स्त्थर, भार और किोर है। जो कुछ भी िोस है वह प्
ृ वी है । प्
ृ वी में धारण
करने या रोकने की र्ष्क्त है । इसका अथश है ष्स्त्थरता, स्त्थातयत्व और दृढ़ता। हमारे
र्र र में हड्डडयााँ, दााँत, कोभर्काएाँ और ऊतक जैसे अांग प्
ृ वी तत्व को दर्ाशते हैं। यह
र्र र में ताकत और ष्स्त्थरता में सुधार करता है ।

प्
ृ वी तत्व की कमी का प्रभाव
जब बाल झड़ने लगते हैं , दाांत और हड्डडयाां कमजोर हो जाती हैं, िन
ू बहना बांद
नह ां होता और व्यष्क्त का वजन नह ां बढ़ता, तो इन सभी समस्त्याओां के समाधान के
भलए प्
ृ वी तत्व को बढ़ाना पड़ता है ।
उच्च प्
ृ वी तत्व का प्रभाव
यद्रद ककसी का वजन अधधक है , मल किोर है , र्र र में गाांिें या ट्यम
ू र ववकभसत
होने लगते हैं, तो उसे प्
ृ वी तत्व कम करने की जरूरत है ।

2. जल
जल का मुख्य गण
ु उसकी र्ीतलता है । पानी धचकनाई दे ने में भी मदद करता है
और इसमें एकजि
ु गण
ु भी होते हैं।
कम प्
ृ वी तत्व का प्रभाव
सूिी त्वचा या र्र र में कह ां भी जलन का इलाज जल तत्व को बढ़ाकर ककया जा
सकता है। अष्ग्न तत्व या वपि, वात या वायु तत्व से होने वाले रोगों में जल का
सेवन लाभकार होता है ।
उच्च प्
ृ वी तत्व का प्रभाव
र्र र या अांग में ककसी स्त्थान पर पानी की अधधकता से सूजन हो जाती है । पानी की
अधधकता से हमारे र्र र में ऊपर बताए गए गण
ु बढ़ जाते हैं और इसके ववपर त
कम हो जाते हैं।

3. अष्ग्न
अष्ग्न का सबसे आवश्यक गण
ु ऊटमा है जो चीजों को पररपक्व बनाती है , वपघलाने
और र्ुदध करने में मदद करती है। अष्ग्न में पररवतशन की र्ष्क्त है । यह िोस को
तरल में और तरल को गैस में बदल सकता है । सांतभु लत अष्ग्न अांडार्य के भसस्त्ि,
गभाशर्य के फाइब्रॉएड, जोड़ों के ऑष्स्त्ियोफाइट्स और र ढ़ की हड्डी को वपघला
सकती है।
अष्ग्न तत्व के कम होने का प्रभाव
यद्रद अष्ग्न कम हो जाती है तो भोजन की इच्छा में कमी, उच्च कोलेस्त्रॉल स्त्तर,
मधुमेह, रचनात्मकता की कमी हो जाती है।
उच्च अष्ग्न तत्व का प्रभाव
यद्रद अष्ग्न बढ़ती है तो इसके पररणामस्त्वरूप अम्लता , जलन के साथ गहरे रां ग का
मर
ू , वपिी या त्वचा पर चकिे, क्रोध , आक्रामकता आद्रद हो सकते हैं।

4. पवन
वायु तत्व की प्रकृतत असांतुभलत, िां डी और र्ुटक है । र्र र और जीवन में वायु का
प्रवाह उिम होना चाद्रहए।
तनम्न वायु तत्व का प्रभाव
यद्रद वायु कम हो जाए तो मलत्याग न करना, तनम्न रक्तचाप, आलस्त्य, रचनात्मक
ववचारों की कमी हो सकती है और जीवन बहुत धीमी गतत से चलने लगता है।
उच्च वायु तत्व का प्रभाव
यद्रद वायु तेज हो जाए तो माांसपेभर्यों में ऐांिन, पाककंसन और मन अष्स्त्थर हो
सकता है।

5. अांतररक्ष
अांतररक्ष तत्व अप्रततरोधक है और यह दो चीजों के बीच के अांतराल या स्त्थान को भी
पररभावषत करता है । हमारे जोड़ों, ववचारों आद्रद के बीच एक सह जगह बनी रहनी
चाद्रहए।
उच्च स्त्थान तत्व का प्रभाव
काडडशयोमेगाल (हृदय के आकार में वद
ृ धध), स्त्तलेनोमेगाल (तल हा में वद
ृ धध),
हे पेिोमेगाल (यकृत का बढ़ना), एन्यूररज्म (रक्त- वाद्रहकाओां में भरा हुआ गुब्बारा),
वैररकोज (मड़
ु ी हुई नसें) जगह बढ़ने का कारण है और र्र र के भलए अनप
ु यक्
ु त है।
कम जगह तत्व का प्रभाव
यद्रद ककसी कारण से जोड़ों के बीच जगह कम हो जाती है , तो जोड़ प्रततरोध करें गे
और जोड़ों में ददश होगा। यद्रद ववचारों में स्त्पेस कम हो जाए तो यह और भी
ितरनाक है और धचांता ववकार, धचड़धचड़े व्यवहार, अतनिा और द्रहांसा का कारण बनता
है ।

इसे सांतुभलत करें

चाँकू क हमारा र्र र इन 5 तत्वों से बना है, इसभलए कोई भी असांतल


ु न हमारे र्र र के
सामांजस्त्य को त्रबगाड़ दे गा और हमें दि
ु ी ष्स्त्थततयों में ले जाएगा, जबकक तत्वों का
सामांजस्त्य अच्छे स्त्वास्त््य को बढ़ावा दे गा। आयुवेद भी तत्वों की ष्स्त्थरता पर जोर दे ता है
और गुणों के अनुसार भोजन का सेवन करने का सुझाव दे ता है ।

एक और द्रदलचस्त्प त्य, योग का अभ्यास हमारे र्र र में तत्वों को सांतुभलत करने का एक
र्ानदार तर का है। वेलनेस कॉनशर पर हमारा कफिनेस कोच इनमें से प्रत्येक का अच्छा
अनुपात बनाए रिने के भलए आपके वकशआउि को भसांक करने में आपकी मदद कर सकता
है ।

पाांच तत्व - मानव र्र र को प्राकृततक पयाशवरण से जोड़ें

पााँच तत्व भसदधाांत धातु, लकड़ी, जल, अष्ग्न और प्


ृ वी को भौततक सांसार के मूल तत्वों
के रूप में रिता है । ये तत्व तनरां तर गतत और पररवतशन में हैं। इसके अलावा, पाांच तत्वों के
बीच के जद्रिल सांबांधों को परस्त्पर तनभशरता और आपसी सांयम के ररश्ते के माध्यम से
समझाया गया है ।
पारां पररक चीनी धचककत्सा धचककत्सक ज़ैंग फू अांगों और ऊतकों के र्र र ववज्ञान और
ववकृतत ववज्ञान और प्राकृततक वातावरण के बीच सांबांधों का अध्ययन करने के भलए पाांच
तत्व भसदधाांत का उपयोग करते हैं। घिना की ववभभन्न ववर्ेषताओां, कायों और रूपों के
आधार पर, र्र र ववज्ञान और ववकृतत ववज्ञान के बीच जद्रिल सांबांधों के साथ-साथ मानव
र्र र और प्राकृततक पयाशवरण के बीच सांबांध को समझाया गया।
पाांच तत्वों का भसदधाांत पाांच तत्वों में से प्रत्येक को अमत
ू श सामान्यीकरण की एक श्रि
ां ृ ला
प्रदान करता है और कफर उन्हें सभी घिनाओां के वगीकरण पर लागू करता है। उदाहरण के
भलए, लकड़ी में अांकुरण, ववस्त्तार, कोमलता और सामांजस्त्य के पहलू र्ाभमल थे। कफर उन
ववर्ेषताओां वाल ककसी भी चीज़ का अनुमान लकड़ी तत्व की श्रेणी में लगाया जाना
चाद्रहए। बाकी पाांच तत्वों के भलए: आग में गमी और भड़कना का पहलू र्ाभमल है ; प्
ृ वी में
ववकास, पोषण और पररवतशन के पहलू र्ाभमल हैं; धातु सफाई, सांहार, ताकत और दृढ़ता से
जुड़ा है और पानी िां ड, नमी और नीचे की ओर बहने से जड़
ु ा
पांच तत्व - पाांच तत्व

ईथर

वायु

आग

पानी

धरती

1.ईथर
5 तत्वों में से पहला पांच महाभूत सबसे सक्ष्
ू म तत्व िाल स्त्थान, गोंद बाांधने वाल र्ष्क्त
और सवशव्यापी है । अन्य तत्व जो स्त्थान भरता है वह ईथर है। र्ब्द- वह स्त्थान जो ध्वतन
के कांपन उत्पन्न होने से पहले मौजद
ू होता है

ध्वतन + ईथर = सन
ु ने या आवाज की समस्त्याओां का अववभाज्य नक
ु सान ईथर के
असांतुलन के कारण होता है ईथर वह सब कुछ है जो अन्य चार तत्व नह ां हैं। ईथर भार ,
हल्का, गमश नह ां है , इसभलए ईथर र्ुटक, घना और िां डा है । यह सबसे महां गा तत्व है और
भेदभाव पैदा करता है। इसे समझना सबसे कद्रिन है लेककन अन्य सभी तत्वों के अष्स्त्तत्व
के भलए यह आवश्यक है । र्र र में आांत, मूरार्य, फेफड़े जैसी िोिल िाल जगहें ईथर
दोष से भर होती हैं। ईथर के प्रभाववत होने पर वात दोष अपने आप हो जाता है। र्र र में
ईथर स्त्थान बढ़ा सकता है और सांरचना घिा सकता है। (ऊतक का ववनार्, पाककंसांस रोग)
ईथर पोषण, र्ार ररक और भावनात्मक प्रेम से सांतभु लत होता है । अन्य चार तत्वों को
सांतुभलत करने से स्त्वाभाववक रूप से ईथर सांतुभलत हो जाएगा। कड़वे िादय पदाथों में
अधधकाांर् ईथर होता है , हालाांकक ईथर स्त्वादह न होता है । जब ईथर तत्वों को एक साथ नह ां
रिता, तो मत्ृ यु घद्रित होती है।

2. एयर
यह ईथर से ववकभसत हुआ है जहाां गततर्ील, गततज ऊजाश होने की क्षमता बढ़ हुई
है । स्त्पर्श और आकार्वाणी अववभाज्य हैं। स्त्पर्श = स्त्पर्श का अव्यक्त रूप, त्वचा वायु तत्व
है वायु भी जीवन ऊजाश (प्राण) या पाांच प्रकार की वायु से जुड़ी हुई है ।

• आवक प्राण (प्राण)


• बाह्य प्राण (व्यान)
• उध्वाशधर प्राण (उदान)
• अधोमि
ु ी प्राण (अपाना)
• केंि प्राण (समान)
हवा बहुत तेज़ या बहुत धीमी गतत से चल सकती है या अत्यधधक उिेजना या सुस्त्ती या
पक्षाघात का कारण बन सकती है । कड़वे िादय पदाथश = वायु + आकार् वात दोष =
आकार् + वाय।ु

3. आग
सांस्त्कृत में तेजस. इसका ववकास ईथर और वायु से हुआ है । ईथर अष्ग्न को भीतर मौजूद
रहने के भलए स्त्थान प्रदान करता है , जबकक वायु अष्ग्न को जलने की क्षमता प्रदान करती
है । यह हवा की उपष्स्त्थतत ह है ष्जसके कारण आग कभी र्ाांत नह ां होती। अष्ग्न ऊजाश को
उसके स्रोत से मुक्त करने की प्रकक्रया है। अष्ग्न आांिों के माध्यम से प्रवेर् करती है और
धारणा दे ती है, आांिों का कोई भी ववकार, दृश्य हातन अष्ग्न दोष के कारण होती है, चलने,
दौड़ने और द्रदर्ा बदलने के भलए अष्ग्न की आवश्यकता होती है । अष्ग्न प्रकार्, ताप,
चमक, ऊजाश, ऊटमा, चयापचय, समझ, पररवतशन आद्रद का प्रतततनधधत्व करती है

र्र र में पााँच प्रकार की अष्ग्न होती है


1. पांचक अष्ग्न - पाचन
2. साधक अष्ग्न - बद
ु धध
3. एलोलोक अष्ग्न - दृश्य
4. रां जक अष्ग्न - र्र र में रां ग जोड़ता है
5. भ्रसक अष्ग्न - स्त्पर्श, त्वचा

अधधक अष्ग्न उत्पन्न होने से गमी उत्पन्न हो जाती है , मल नटि हो जाता है , पसीना
आता है, पेर्ाब आता है , काष्न्त बढ़ती है , आाँिें चमकती हैं, बद
ु धध तीव्र होती है, अष्ग्न की
कमी - िां ड लगना, चयापचय धीमा होना, मल और मूर कम हो जाना, बहुत अधधक अष्ग्न
के लक्षण = आाँिों में िन
ू आना, त्वचा पर लाल चकिे, बि
ु ार, द्रदमाग तीव्र, आद्रद वपि =
अष्ग्न + जल।

4.पानी
चौथे तत्व को अपस के नाम से भी जाना जाता है । आकार् जल को स्त्थान प्रदान करता है ,
वायु गततर्ीलता प्रदान करती है, अष्ग्न वायु के घषशण से उत्पन्न होती है । प्रकृतत सघन हो
जाती है , आग िां डी हो जाती है और पानी का रूप ले लेती है। जल तत्व के स्त्वाद असांतुलन
का स्त्वाद/रस ववकार जल र्र र का रक्षक और मूल पोषण भी है

• से बचाता है
• ईथर का ववघिन
• हवा का िुरदरापन
• आग की गरमी
पाांच प्रकार के जल
1. बोधक कफ - लार आद्रद
2. क्लेदक कफ - पाचक रस
3. तपशक कफ - स्त्नायु सांबांधी आवेग
4. श्लेषक कफ - जोड़, उपाष्स्त्थ
5. अवलांबक कफ - हृदय, फेफड़े
5.प्
ृ वी
ईथर अष्स्त्तत्व के भलए स्त्थान प्रदान करता है , वायु प्
ृ वी को सक्ष्
ू म गतत प्रदान करती है,
अष्ग्न प्रकृतत के रासायतनक बांधनों से बांधी सांरचना के भीतर तछपी हुई है । ई= मैक2

जल गैसों और िोस अवस्त्था के बीच का अांतर है। सभी पाांच तत्व ईथर से पैदा हुए हैं और
प्
ृ वी के भीतर समाद्रहत हैं। गांध/गांध का प्
ृ वी तत्व से गहरा सांबांध है । सूांघने की क्षमता
में ववकार प्
ृ वी तत्व में असांतुलन का पररचायक है । भोजन और र्ौच से प्
ृ वी तत्व का
सांतल
ु न बना रहता है , दस्त्त से र्र र कमजोर हो जाता है , कब्ज से र्र र ववषाक्त हो जाता
है । सांपूणश र्र र प्
ृ वी पर आधाररत है । अधधक प्
ृ वी त्वचा, नािून, बड़ी माांसपेभर्यााँ, सघन
वायु दे गी। कम प्
ृ वी ऑथोप्रोभसस, कमजोर हड्डडयााँ आद्रद दे गी। गभाशवस्त्था के दौरान
अधधक उपवास करने से बचना चाद्रहए क्योंकक गभश में बच्चे के तनमाशण के भलए प्ृ वी तत्व
आवश्यक है। प्ृ वी तत्व का एक कायश र्र र के तापमान को तनयांत्ररत करना भी है । कफ =
जल+प्
ृ वी

घरपांचमहाभूतपांचमहाभूत: ब्रह्माांड के 5 मल
ू तत्व

पांचमहाभूत: ब्रह्माांड के 5 मल
ू तत्व

\आयुवेद का मानना है कक प्रकृतत के घिक और व्यवहार हमारे र्र र के समान हैं। यह


ब्रह्माांड पाांच महत्वपण
ू श तत्वों (स्त्थल
ू जगत) से बना है, वैसे ह यह र्र र (सक्ष्
ू म जगत) भी
है । इस ब्रह्माांड में सभी चीजें 5 मूल तत्वों से बनी हैं, भसवाय जीववत चीजों केएक र्ाश्वत
आत्मा का भी आर्ीवाशद भमला। ब्रह्माांड के इन 5 मूल तत्वों को पांचमहाभूत कहा जाता है ।
ये हैं:

• प्
ृ वी या Earth
• जल या पानी
• अष्ग्न या अष्ग्न
• वायु या वायु
• आकार् या अांतररक्ष/ईथर
इन तत्वों का सांतुलन ववभभन्न वातावरणों में उतार-चढ़ाव करता है और एक तत्व दस
ू रे में
पररवततशत हो सकता है ।

उदाहरण के भलए, बहुत कम तापमान पर जल तत्व को प्


ृ वी तत्व, बफश में बदला जा
सकता है और वह पानी गमश होने पर भाप में बदल जाता है और वाटपीकरण होने पर
अांतररक्ष बन जाता है ।

ऊपर तत्व तनचले तत्व से दवू षत हो जाता है । उदाहरण के भलए, यद्रद भमट्ि (प्
ृ वी) को
पानी में भमला द्रदया जाए तो पानी कीचड़ बन जाता है , यद्रद पानी को आग में भमला द्रदया
जाए तो धआ
ु ां उत्पन्न होता है ।

इसके ववपर त, तनचला तत्व ऊपर तत्व दवारा र्ुदध होता है । उबलने पर गांदा पानी अष्ग्न
दवारा र्ुदध हो जाता है । जबकक अष्ग्न वायु से र्ुदध होती है अथाशत वायु के त्रबना अष्ग्न
नह ां जलती। इसी प्रकार आकार् से आने वाल वायु की र्ुदधता का तात्पयश यह है कक बांद
स्त्थान की वायु प्रदवू षत है और िुले आकार् की वायु र्ुदध है।

इस प्रकार इन पाांचों तत्वों में से प्रत्येक एक दस


ू रे में सांयभमत तर के से ववदयमान है ।
द्रदलचस्त्प बात यह है कक ये सभी पाांच तत्व मन पर भी र्ासन करते हैं और समय-समय
पर मन में अलग-अलग तरह की तरां गें और चेतना पैदा करते हैं।
पांचमहाभूत की उत्पवि

पांचमहाभूत का तनमाशण चेतना की


ष्स्त्थतत से भौततकता की ष्स्त्थतत तक
की यारा है । पुराने वैद्रदक ग्रांथों के
अनुसार, इस ब्रह्माांड की उत्पवि
अव्यक्त, अव्यक्त (तछपे हुए) से हुई है।
अव्यक्त में 3 र्ाश्वत गण
ु होते हैं -
त्ररगण
ु , अथाशत ् सत्व गुण, राजस गण

और तमस गण
ु ।

कफर क्रमानस
ु ार महत ् (बद
ु धध) और
अहांकार (अहां कार) का तनमाशण होता
है ।

तैजस और भत
ू ाद्रद अहां कार भमलकर 5
तन्मारा (र्ब्द, स्त्पर्श, रूप, रस, गांध)
बन जाते हैं - यानी 5 इांद्रियाां (ध्वतन,
स्त्पर्श, दृष्टि, स्त्वाद, गांध)।

तन्मारा कफर अपने-अपने पांचमहाभूत


(आकार्, वाय,ु अष्ग्न, जल, प्
ृ वी) में
ववकभसत हो जाती है ।

पांचमहाभूतों के गण
ु :

पांचमहाभूत और त्ररगण
ु :
पााँच भूतों में से प्रत्येक में सभी 3 गुण होते हैं - सत्व, रजस और तमस लेककन एक या दो
प्रमि
ु होते हैं।

सत्व प्रधान
ईथर/अांतररक्ष

वायु रजस प्रधान

अष्ग्न सत्व+रजस प्रधान

जला सत्व+तमस प्रधान

प्
ृ वी तमस प्रधान

राजस और तमस गण
ु के साथ अहांकार र्र र के साथ पहचान का कारण बनता है और हमें
अपने सच्चे स्त्वरूप को भल
ू ा दे ता है ।

आकार् तत्व सत्व प्रधान है । इसीभलए ककसी व्यष्क्त की र्ार ररक भलाई के भलए अन्य चार
भूतों के सांतुलन और र्ुदधधकरण के बारे में धचांततत होना ह पयाशतत है।

जब कोई व्यष्क्त ब्रह्माांड की अव्यक्त, रहस्त्यमय प्रकृतत की िोज करना चाहता है , तो उसे
आकार् तत्व पर भी ध्यान दे ना र्ुरू कर दे ना चाद्रहए।

पांचमहाभूत और 5 इांद्रियााँ (तन्मारा)

प्रत्येक महान तत्व सभी 5 तन्माराओां (इांद्रियों) का सांयोजन है लेककन एक तन्मारा की


प्रधानता दर्ाशता है।

आकार्:
आकार् तत्व उच्चतम स्त्तर पर है । इसका प्रमि
ु इष्न्िय गण
ु ध्वतन है।
आकार् या आकार् तत्व से सांबांधधत सांवेद अांग कान है क्योंकक यह िोिला होता है और
ध्वतन तरां गों को प्रसाररत करता है ।
वाय:ु
वायु तत्व का प्रमि
ु इष्न्िय गण
ु स्त्पर्श है । चूांकक वायु का ववकास आकार् से हुआ है ,
इसभलए इसमें ध्वतन का गुण भी तनद्रहत है।
वायु तत्व से सांबधां धत ज्ञानेष्न्िय त्वचा है । त्वचा ककसी भी हलचल, दबाव में बदलाव या
सूक्ष्म रूप में कांपन का पता लगाने के भलए बहुत सांवेदनर्ील होती है। त्वचा के ववरुदध
ककसी भी हलचल को आसानी से दजश ककया जा सकता है।
अष्ग्न:
इसका प्रमुि इष्न्िय गुण दृष्टि है। चाँकू क अष्ग्न वायु से ववकभसत हुई है , इसभलए इसमें
ध्वतन और स्त्पर्श के गण
ु भी तनद्रहत हैं।
अष्ग्न से सम्बांधधत ज्ञानेष्न्िय आाँिें हैं।
जाला:
जल तत्व का मख्
ु य इांद्रिय गण
ु स्त्वाद है। चाँकू क जल अष्ग्न से ववकभसत हुआ है , इसमें
ध्वतन, स्त्पर्श और दृष्टि के गुण भी तनद्रहत हैं।
जल से सांबांधधत सांवेद अांग जीभ है ।
प्
ृ वी:
इसका मुख्य इष्न्िय गुण गांध है । चकूां क प्ृ वी जल से ववकभसत हुई है , इसभलए इसमें
ध्वतन, स्त्पर्श, दृष्टि और स्त्वाद के गुण भी ववरासत में भमले हैं।

प्
ृ वी से सम्बांधधत ज्ञानेष्न्िय नाक है ।

पांचमहाभत
ू और 6 स्त्वादों की धारणा
जीभ से कुल 6 प्रकार के स्त्वादों का बोध होता है । प्रत्येक स्त्वाद में कुछ तनष्श्चत अनप
ु ात
में पांचमहाभूत र्ाभमल होते हैं।

उदाहरण: प्राकृततक चीनी,


भमिाई प्
ृ वी + जल
केला

िट्िा प्
ृ वी + अष्ग्न उदाहरण: दह , सेब

उदाहरण: नीम, कॉफ़ी,


कड़वा अष्ग्न+वायु
करे ला

नमकीन अष्ग्न + जल उदाहरण: लवण

उदाहरण: मसाले (अदरक,


किु अष्ग्न + आकार्
काल भमचश)
स्त्तम्मक प्
ृ वी + वायु उदाहरण: आांवला, जामुन

पांचमहाभूत, 5 महान तत्वों के लक्षण:

धरती:
प्
ृ वी का मतलब यहाां भमट्ि नह ां है , बष्ल्क वह चीज है जो र्र र को भार पन दे ती है ।
इसका सांबांध ब्रह्माांड के साथ-साथ र्र र की सभी िोस और किोर सांरचनाओां से है । यह
िोस, घना, भार , किोर, ष्स्त्थर, नीरस और धीमा है । हमारे र्र र का 12% भाग प्
ृ वी है ।
प्रधान लक्षण: िुरदरापन (िरत्व)
स्त्थान उदाहरण: हड्डी, नािून, दाांत, माांसपेभर्याां, माांस को प्
ृ वी प्रधान माना जाएगा।
मख्
ु य कायश:
• इस ब्रह्माांड में ककसी भी पदाथश का भार या िव्यमान उसमें प्
ृ वी तत्वों की उपष्स्त्थतत के
कारण होता है ।
• प्
ृ वी तत्व आकार और किोरता भी प्रदान करता है ।
महत्व:

• जन्म से लेकर मत्ृ यु तक हम तनरां तर धरती माता की गोद में रहते हैं। हमारा अांततम
सांस्त्कार ककया जाता है और धरती पर ववल न कर द्रदया जाता है ।

• पौधे और जड़ी-बद्रू ियााँ, सष्ब्जयााँ और कई िादय पदाथश जो स्त्वस्त्थ र्र र को बनाए रिने
के भलए फायदे मांद हैं, प्
ृ वी से उगाए और ववकभसत ककए गए हैं।

• धरती माता के गभश में ववभभन्न प्रकार के स्त्वास्त््यवधशक एवां मूल्यवान ितनज, रसायन,
तरल पदाथश आद्रद तछपे हुए हैं।

• बच्चे और बड़े जो िेलने, िाने या धरती पर सोने के र्ौकीन होते हैं, वे दस


ू रों की तल
ु ना
में अधधक स्त्वस्त्थ और सकक्रय पाए जाते हैं।

• हमारा मानना है कक जानवर अपनी िोई हुई ऊजाश पन


ु ुः प्रातत कर लेते हैं और इस तरह
प्
ृ वी की भमट्ि पर अपना पक्ष रिकर िद
ु को िीक कर लेते हैं।

• इसने वैज्ञातनक रूप से पर क्षण ककया है और दे िा है कक प्


ृ वी वविाभमन, ितनज, धातु,
रसायन, क्षार और नमक, रत्न, हबशल और अन्य औषधीय पौधों की ववभर्टि प्रकृतत को
अपनाती है जो मनटु य के भलए सबसे अधधक फायदे मांद है।

सांबदध भावनाएाँ: समेकन, प्रेम, असवु वधा या आराम की भावना। समान गण


ु ों वाला कोई भी
आहार, भोजन या जड़ी-बद्रू ियााँ, व्यायाम र्र र को पोषण, समथशन, र्ष्क्त और ष्स्त्थरता
प्रदान करे गा।

पानी:
जल तत्व को जल या अपा भी कहा जाता है । यह िां डा, तरल, नीरस और पतलापन जैसे
गण
ु द्रदिाता है । यह र्र र का 72% द्रहस्त्सा है ।

प्रमुि ववर्ेषता: तरलता या तरलता (िवत्व)।


स्त्थान उदाहरण: रक्त, लसीका, गुतत रस, एांजाइम। ववभभन्न उत्सजशन उत्पाद - मूर,
पसीना, मल भी जल के ह रूप हैं।

• इसका सबसे महत्वपण


ू श कायश बांधन या सामांजस्त्य है । यह दो कोभर्काओां को एक साथ
बाांधता है ।

महत्व:

• सभी जीववत प्राणी, चाहे वह मनटु य हो, जानवर हों, या पौधे हों, साथ ह प्
ृ वी भी पानी
के त्रबना जीववत नह ां रह सकती। पानी से ह पौधों में हररयाल कायम रहती है ।

• जल से स्त्नान र्र र को र्द


ु ध करने की प्रकक्रया है । (स्त्नान कई प्रकार के होते हैं - कद्रि
स्त्नान, मेरुदां ड स्त्नान, भाप स्त्नान, भसज स्त्नान, सामान्य स्त्नान) • सात धातुओां

में - रस (तलाज्मा), रक्त, ममसा (माांसपेर्ी), मेदा (वसा ऊतक), मज्जा (हड्डी) मज्जा),
र्क्र
ु (प्रजनन िव) - पानी आनप
ु ाततक रूप से मौजद
ू है। • जल का सेवन 'अष्ग्न' या 'वपि'
और 'वाय'ु या 'वात' से होने वाल बीमाररयों जैसे एभसडडि , त्वचा की समस्त्या, कब्ज,
सूिापन आद्रद में उपयोगी है । सांबांधधत भावनाएां: एकजुिता, एकता की भावना, तैरती हुई
भावना

आग
प्रत्येक पदाथश का तापमान उसमें अष्ग्न तत्व की उपष्स्त्थतत के कारण होता है । आग एक ह
समय में प्रकार् और गमी उत्सष्जशत करती है । समान गुणों वाला कोई भी आहार, भोजन
या जड़ी-बद्रू ियााँ र्र र के भीतर इस तत्व को बढ़ा दें गी। उदाहरण के भलए- भमचश, अदरक,
लहसुन, भमचश र्र र में 'वपि' या अष्ग्न तत्व को बढ़ाएांगे।

प्रमि
ु ववर्ेषता: ऊटमा (उटणता)

स्त्थान उदाहरण: र्र र का तापमान, सूय,श प्


ृ वी की ऊटमा ऊजाश।

मुख्य कायश:

• इसका मुख्य कायश पररवतशन है । कोई भी प्रकक्रया ष्जसमें पररवतशन र्ाभमल होता है , जैसे
भोजन का पाचन या श्वसन, अष्ग्न तत्व र्ाभमल होता है ।

• यह कई अन्य कायश करता है जैसे ववचारों का प्रवेर् और पररवतशन, बद


ु धध और प्रकार् की
धारणा।

महत्त्व:

• हमारा जीवन अष्ग्न का उत्पाद है । र्र र की गमी का नटि होना जीवन के अांत को
दर्ाशता है। गमी के त्रबना कोई भी इांसान या जानवर या योजना जीववत नह ां रह सकती।

• सूयश और अष्ग्न से उत्पन्न गमी से ह पौधे और जीव बढ़ते हैं।

• मनुटय या जानवर या पौधे जो पयाशतत सूयश का प्रकार् प्रातत करते हैं वे कम या


त्रबल्कुल भी सूयश का प्रकार् प्रातत न करने वाले लोगों की तुलना में स्त्वस्त्थ और कफि होते
हैं।

• बीमाररयााँ वहाां घर बना लेती हैं जहाां न गमी होती है और न ह रोर्नी।

सांबदध भावनाएाँ: उग्र भावना, बुिार, गमश और गमश, चुभने वाल और गांभीर, तीव्र, र्टु क
और हल्की, भि
ू , पाचन, तयास, आलस्त्य, आद्रद।

वायु
यह हल्का, सि
ू ा, सूक्ष्म, कोमल, गततर्ील, पारदर्ी और िुरदरा होता है । यह र्र र का
4% द्रहस्त्सा है । कोई भी आहार, व्यायाम, औषधध ष्जसमें ऐसे गण
ु हों, र्र र में 'वात' या
'वाय'ु तत्व को बढ़ाएगा।

प्रमुि ववर्ेषता: गततर्ीलता (चलतवा)

स्त्थान उदाहरण: हृदय कक्षों और फेफड़ों का स्त्पांदन, ववस्त्तार या ववश्राम, पेि की गतत,
तांत्ररकाओां में आवेगों की गतत।

मुख्य कायश: र्र र में गतत, र्ुटकता के भलए ष्जम्मेदार।

महत्त्व:

• वायु ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, नाइरोजन और अन्य गैसों की आपतू तश करती है जो मनटु यों,
जानवरों और पौधों के जीवन के भलए आवश्यक हैं।

• ष्जस प्रकार मछल पानी के त्रबना छिपिा कर मर जाती है , उसी प्रकार प्ृ वी पर रहने
वाला प्राणी वायु के त्रबना एक क्षण भी जीववत नह ां रह सकता। एक व्यष्क्त 24 घांिे
लगातार वायु का सेवन करता है।

• यह एक कहावत है कक जब दवा काम नह ां करती है , तो रोगी को िोए हुए स्त्वास्त््य को


िीक करने के भलए वायु पररवतशन की सलाह द जाती है ।

सांबदध भावनाएाँ: सांवद


े नर्ीलता, मूतत
श ा।

अांतररक्ष या आकार् (आकार्):

इसे आकार् तत्व भी कहा जाता है । ईथर घषशण रद्रहत, सूक्ष्म, मुलायम, प्रचुर है । यह
आत्मा, मन और र्र र का प्रतीक है। समान गण
ु ों वाला कोई भी आहार, भोजन या जड़ी-
बूद्रियााँ र्र र के भीतर अांतररक्ष तत्व को बढ़ाएांगी

प्रमुि ववर्ेषता: अप्रततरोध (अप्रततघातत्व)

स्त्थान उदाहरण: र्र र के भीतर िोिल गह


ु ाएाँ और ब्रह्माांड के िाल क्षेर। नाभसका मागश,
श्वासनल में मौजूद।

मख्
ु य कायश: कणों के बीच का स्त्थान ईथर के कारण होता है ।

महत्त्व:
सभी तत्वों में से अांतररक्ष या आकार् ऊजाश, कक्रया और र्ष्क्त से भरपूर है । कोई कहता है
यह वायु है , कोई बादल, कोई तनवाशत। यह एक ऐसा सूक्ष्म तत्व है जो हर तरल और िोस
पदाथश में रहता है ।

सांबदध भावनाएाँ: सकारात्मकता, र्ाांतत, र्ाांतत

पांचमहाभूत और त्ररदोष:

आयव
ु ेद महान पाांच तत्वों के सांयोजन को त्ररदोष (तीन र्ष्क्तयों) अथाशत ् वात, वपि और
कफ में पररभावषत करता है । इन पाांच तत्वों का सांयोजन व्यष्क्तगत प्रकृतत या सांववधान
को तनधाशररत करता है। र्र र के सवोिम कामकाज के भलए, इन पाांच तत्वों को एक साथ
रहना चाद्रहए और सदभाव में काम करना चाद्रहए। यह त्ररदोषों दवारा सतु नष्श्चत ककया जाता
है ।

वाय+
ु ईथर प्राण
वात

वपि जल+अष्ग्न तेजस

कफ जल+प्
ृ वी ओजस या ओज

सात चक्र और पांचमहाभत


ू :

इसमें 7 चक्रों की बहुत महत्वपण


ू श भभू मका है क्योंकक पांचमहाभत
ू ों दवारा प्रकि सभी रचनाएाँ
केवल इन चक्रों के माध्यम से ह पहुाँच योग्य हैं। प्रत्येक चक्र एक भत
ू से जुड़ा है और
कुछ र्ष्क्तर्ाल ववर्ेषताएां प्रदान करता है।

चक्र भत
ू ववर्ेषताएाँ

मल
ू ाधार/मल
ू चक्र धरती समथशन और ष्स्त्थरता

आनांद और कल्याण की
स्त्वाधधटिान/त्ररक चक्र पानी
सामान्य भावना

मखणपुर/सौर जालक
आग र्ष्क्त और बुदधध
चक्र
अनाहत/हृदय चक्र वायु प्रेम, क्षमा, करुणा

आस्त्था, भरोसा,
ववर्द
ु ध/गले का चक्र ईथर
रचनात्मकता

अजना/भौह चक्र ईथर ज्ञान, गररमा, अांतज्ञाशन

सहस्रार/क्राउन चक्र ईथर सांतुलन और एकता

हस्त्तमि
ु ाएाँ और पांचमहाभत

हमार उां गभलयाां 5 महाभूतों का प्रतततनधधत्व करती हैं।

कतनटिा/छोि उां गल जाला/पानी

अनाभमका/अनाभमका प्
ृ वी/प्
ृ वी

मध्यमा/मध्यमा उां गल आकार्/आकार्

तजशनी/तजशनी वाय/ु हवा

अांगटु ि/अांगि
ू ा अष्ग्न/अष्ग्न
पांचमहाभूत में उतार-चढ़ाव के कारण होने वाले रोग:

आयव
ु ेद के अनस
ु ार, रोग तीन दोषों - वात, वपि और कफ के बीच असांतल
ु न के कारण होते
हैं, जो पाांच तत्वों से बने होते हैं।

• प्
ृ वी तत्व: एभलफेंद्रियाभसस, भलम्फेडेमा , तल हा, यकृत, रसौल , मोिापा, आद्रद।

• जल तत्व: जलोदर, जलोदर, पेधचर्, अत्यधधक पेर्ाब, कटिातशव, दुःु स्त्वतन, सामान्य सदी,
िाांसी, आद्रद।

• अष्ग्न तत्व: फोड़े का फूिना एवां फुांसी, है जा, रक्त-वपि, अततसार, क्षय आद्रद।

• वायु तत्व: गद्रिया, लकवा, ददश , कांपकांपी, नाड़ी ववक्षेप, आद्रद।

• आकार्: बेहोर्ी, भमगी, उन्माद, पागलपन, सनक, अतनिा , गलतफहमी, घबराहि ,


दुःु स्त्वतन, गूांगापन, बहरापन, ववस्त्मतृ त (ववस्त्मतृ त), आद्रद।

पाांच तत्वों की सफाई और सांतल


ु न

ककसी र्र र के भीतर जब ये तत्व एक-दस


ू रे के साथ तनधाशररत या तनधाशररत सांबांध में होते
हैं, तो यह स्त्वस्त्थ और मजबत
ू रहता है । लेककन उसमें कोई कमी होने पर वह नाजक
ु ,
सुस्त्त और बीमार हो जाता है । इसभलए स्त्वस्त्थ र्र र बनाए रिने और लांबे समय तक सि
ु ी
जीवन पाने के भलए व्यष्क्त को इसकी कमी को दरू करने का प्रयास करना चाद्रहए।

तत्व-वार, हम तनम्नभलखित तर के से आगे बढ़ते हैं:

प्
ृ वी तत्व का सांतल
ु न और र्द
ु धधकरण कैसे करें ?

• ऐसा दे िा गया है कक र्र र के भलए लाभकार एक ववर्ेष प्रकार की गैस प्


ृ वी दवारा
तनबाशध रूप से उत्सष्जशत होती रहती है। सब
ु ह-सब
ु ह नांगे पैर धरती पर िहलना चाद्रहए। र्र र
प्
ृ वी से तनकलने वाल वायु को अवर्ोवषत करता है जबकक प्ृ वी पैरों के माध्यम से
ववषाक्त पदाथों को ग्रहण करती है । कृपया ध्यान रिें कक ऐसा केवल सुबह के समय ह
होता है। अन्य समय में प्
ृ वी से कुछ हातनकारक वायु आती है, अत: प्
ृ वी पर चलते
समय पैरों को ढक लेना चाद्रहए।

• सब
ु ह के समय ककसी बगीचे, पाकश आद्रद में हर घास पर नांगे पैर िहलना अधधक
उपयोगी होता है । घास पर ओस की छोि -छोि बूांदें पैरों को िां डक पहुांचाती हैं, ष्जससे
मष्स्त्तटक और आांिों की रोर्नी में भी सुधार होता है ।

• प्राकृततक धचककत्सा: प्राचीन काल से ह रोग को िीक करने के भलए 5 तत्वों से युक्त
प्राकृततक धचककत्सा उपचार प्रचभलत है । भमट्ि में र्र र से जहर ले ववषाक्त पदाथों को
बाहर तनकालने की अदभुत क्षमता होती है। र्र र के प्रभाववत द्रहस्त्से से ववषाक्त पदाथों को
बाहर तनकालने के भलए पानी से गील भमट्ि को र्र र के प्रभाववत द्रहस्त्से (कीचड़
धचककत्सा) पर लगाया जाता है ।
जल तत्व का सांतुलन और र्ुदधधकरण कैसे करें

पानी में सजीवता है. इसका तनमाशण हवा में फैल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसों के
सांयोजन से होता है।

• जल र्र र को सीांचता है । इसभलए उधचत सांतुलन बनाए रिने के भलए पयाशतत पानी पीना
चाद्रहए ताकक र्र र हाइड्रेिेड, मजबूत और कफि रहे ।

• मानव र्र र में 70% जल तत्व होते हैं। उससे कम र्र र में सूिापन, नाडड़यों की
किोरता, हड्डडयों का जमाव, रक्त का गाढ़ा होना, तयास, सज
ू न आद्रद को भड़काता है । याद
रिें, केवल पानी का सेवन करने से आप अपने र्र र में जल तत्व को सांतभु लत नह ां कर
सकते हैं। आपके भोजन में पानी अवश्य होना चाद्रहए।
• जल से स्त्नान र्र र को र्ुदध करने की प्रकक्रया है। (स्त्नान कई प्रकार के होते हैं-द्रहपबाथ,
स्त्पाइनल-कॉडश बाथ, स्त्ि म बाथ, भसट्ज़बाथ, सामान्य स्त्नान)

• हमारा र्र र 70% से अधधक पानी है और हमारा ग्रह भी ऐसा ह है । इसभलए अच्छे
स्त्वास्त््य और र्र र में पानी की मारा बरकरार रिने के भलए हमें केवल उन्ह ां िादय
पदाथों का सेवन करना चाद्रहए ष्जनमें 70% से अधधक पानी हो। सष्ब्जयों में 70% से
अधधक पानी होता है , फलों में 90% से अधधक पानी होता है ।

अष्ग्न तत्व का सांतल


ु न और र्द
ु धधकरण कैसे करें

• हमारा भोजन पेि में जिराष्ग्न या पाचन अष्ग्न दवारा पचता है।

• अष्ग्न तत्व को बढ़ाने के भलए अपने र्र र को कुछ दे र के भलए धप


ू में रिें। सय
ू श के
प्रकार् में रहने का सबसे अच्छा समय सूयोदय के तुरांत बाद लगभग 15 भमनि तक है ।
सूयाशस्त्त से िीक पहले का समय भी अच्छा है ।

• जलते हुए घी के द ये या ककसी जैववक द पक के सामने बैिने से भी र्र र में अष्ग्न


तत्व की र्ुदधध होती है और आभा बढ़ती है ।

• सूयश की सततरां गी पराबैंगनी ककरणें आनांदमय स्त्वास्त््य के भलए बहुत फायदे मांद होती हैं।
डॉक्िर भी मानते हैं कक सूरज की रोर्नी सबसे ताकतवर औषधध है । अतुः सूयस्त्
श नान
स्त्वास्त््य सुधार की एक अदभुत प्रकक्रया है ।

सबसे पहले द पक की ओर मुांह करके बैिें, कफर पलिकर बैिें ताकक आपके अांदर का अष्ग्न
तत्व कफर से जागत
ृ हो जाए।
वायु तत्व का सांतल
ु न और र्द
ु धधकरण कैसे करें

• कपालभातत, अनल
ु ोम-ववलोम, उज्जायी कक्रया जैसे प्राणायामों के माध्यम से आकार् में
फैल वायु से कुछ महत्वपूणश तत्वों को िीांच भलया जाता है । प्राणायाम रक्त को र्ुदध
करता है ष्जससे फेफड़े मजबत
ू बनते हैं।

आकार्/आकार् तत्वों का सांतल


ु न और र्द
ु धधकरण कैसे करें ?

यह अनांत है, अांतह न है . जैसे आकार् हमारे बाहर हर जगह है , वैसे ह आकार् हमारे र्र र
के अांदर भी है। इसीभलए एक र्र र के भीतर असांख्य गततर्ील जीवन कोभर्काएाँ या जीवाणु
होते हैं।
इसे र्ून्य (सांस्त्कृत) या र्ून्य के रूप में भी जाना जाता है - र्ब्द या ध्वतन के रूप में

• र्ब्द, ववचार, ववश्वास तरां गों के रूप में आकार् में चारों ओर फैलते हैं और अपने मूल
रूप में प्रसाररत और सन
ु े जाते हैं।

• नीले आकार् में ध्यान करने से मन को बहुत र्ाांतत भमलती है और चारों ओर िर्
ु ी
महसूस होती है। ष्जतनी अधधक एकाग्रता और श्रदधा होगी उतना अधधक लाभ होगा।
• प्राणायाम के बाद का समय आकार् तत्व से ववचारों और जागरूकता को आकवषशत करने
के भलए फायदे मांद है।

• हमारे मन में सकारात्मक या नकारात्मक ववचारों के कारण स्त्वास्त््य पर बहुत अधधक


प्रभाव पड़ता है । ववचार र्ष्क्त के माध्यम से आकार् का आह्वान करके लोग बीमार या
स्त्वस्त्थ हो सकते हैं।

• जो लोग अच्छे स्त्वास्त््य, लांबे जीवन और सुनहरे भववटय की कल्पना करते रहते हैं वे
आम तौर पर पोवषत और स्त्वस्त्थ पाए जाते हैं। और अगर कुछ लोग बीमार भी पड़ जाते हैं
तो वो जल्द ह िीक हो जाते हैं। जो लोग बीमार से छुिकारा पाना चाहते हैं और स्त्वस्त्थ
होना चाहते हैं, उन्हें मन को धगरने नह ां दे ना चाद्रहए, बष्ल्क उसे ऊांचा रिना चाद्रहए।

इन पाांच तत्वों को साफ करने और सांतभु लत करने का अभ्यास करना बहुत आसान है
लेककन जो लोग तनयभमत रूप से अभ्यास करते हैं उनके भलए इसके र्ार ररक और
मानभसक लाभ बहुत अधधक होते हैं।

5 तत्वों की उपष्स्त्थतत के साक्षी बनें

हम जो भी वस्त्तुएाँ दे िते हैं और जो भी प्रभाव हम अपनी इांद्रियों के माध्यम से प्रातत


करते हैं, वे इन 5 तत्वों दवारा उत्पन्न होते हैं। उसमें प्रत्येक पररवतशन तब तनभमशत होता है
जब 5 तत्वों के पारां पररक अनप
ु ात में कोई भभन्नता होती है। इस भौततकवाद सांसार में
सभी प्रकार की कक्रयाएाँ और प्रततकक्रयाएाँ इन पााँच तत्वों की गतत से सांचाभलत होती हैं।

कुछ उदाहरण:
(i) सामान्य:

• ब्रह्माांड के द्रहस्त्सों में ववववधता उन िांडों में 5 तत्वों की सांरचना में असमानता के कारण
है । उिर ध्रव
ु अत्यधधक बफीला और द्रहमाच्छाद्रदत है , यहाां कोई कृवष नह ां है, ध्रव
ु ीय भाल,ू
पें गुइन, लोमड़ी आद्रद जैसे बहुत कम बफीले जानवर वहाां दे िे जाते हैं। इसका कारण वहाां
अष्ग्न तत्व की कमी है ।

• इसी तरह, दक्षक्षण अफ्रीका या दक्षक्षण अमेररका अत्यधधक गमश हैं, प्


ृ वी जलते हुए तवे
की तरह भुन जाती है और सभी द्रदर्ाओां से आग की लपिें उिती हैं। ऐसा ताप या अष्ग्न
तत्वों की अत्यधधक उपष्स्त्थतत के कारण होता है ।

• मध्य-पव
ू श के दे र्ों में असांख्य तफ़
ू ान और चक्रवात अत्यधधक वायु तत्व के कररश्मे का
सांकेत दे ते हैं।

• असम और पव
ू ी दवीपों में अत्यधधक वषाश जल तत्व के गहन अष्स्त्तत्व को दर्ाशती है।

• हम अलग-अलग प्रदे र्ों या क्षेरों में 5 तत्वों की सांरचना में ववचलन के कारण अनाज
और अनाज, सष्ब्जयाां, दध
ू , मछल , चाय आद्रद की मारा और स्त्वाद में असमानता दे िते
हैं।

(ii) मनुटय

• यह दे िा गया है कक कुछ मौसम या एक इकाई ककसी के भलए अनक


ु ू ल है लेककन दस
ू रों
के भलए र्रत
ु ापण
ू श है - यह दर्ाशता है कक अलग-अलग लोगों में 5 तत्व अलग-अलग होते
हैं।

• स्त्री और परु
ु ष में ववदयमान 5 तत्वों की मारा के आधार पर पर
ु ी या पर
ु का जन्म
तनधाशररत ककया जाता है ।

• बीमार या तांदरु
ु स्त्ती भी 5 तत्वों पर तनभशर करती है । िान-पान के दौरान लापरवाह या
जागरूकता के कारण र्र र में 5 तत्वों के अनप
ु ात में उतार-चढ़ाव होता है ष्जसके
पररणामस्त्वरूप र्र र में दो ष्स्त्थततयाां पैदा हो जाती हैं।
5 तत्व
घर - 5 तत्व
पााँच तत्व भसदधाांत सभी चीनी आध्याष्त्मक अध्ययनों की मल
ू समझ है । ऐसा माना जाता
है कक हमारे ब्रह्माांड में सभी पदाथश, साथ ह सांवेदनर्ील प्राणी, पाांच तत्वों से बने हैं
। हालााँकक, इसका मतलब यह नह ां है कक पााँच तत्व भौततक हैं।
पाांच तत्व मूलतुः क्यई
ू के प्रकार हैं। मौभलक जीवन र्ष्क्तयों - तयन और याांग के बीच
परस्त्पर कक्रया क्यूई के पाांच चरण बनाती है । प्रत्येक चरण तयन और याांग के ववभभन्न
अनुपातों का उत्पाद है ।

पररवतशनकार ऊजाश के इन पााँच चरणों को पााँच तत्वों के रूप में जाना जाता है।

तत्व गुण आकार रां ग की

धरती आकषशक सघन अस्त्तबल घन आकृततयााँ चपि और भरू ा, बेज, पीला


चौड़ी आकृततयााँ

धातु तीव्र नक
ु ीला छे दन गोलाकार, गोलाकार सफ़ेद, सोना,
चााँद

पानी नीचे की ओर चलता है , लहरदार, अतनष्श्चतकाल न काला, गहरा नीला


मुक्त/अनबाउां ड

लकड़ी सहनर्ील बाहर की ओर बढ़ता लांबा और आयताकार हरा


है
तत्व गण
ु आकार रां ग की

आग हर द्रदर्ा में फैलता है, गमाशहि त्ररकोणीय नक


ु ीला, नक
ु ीला लाल, नारां गी,
त्रबिेरता है बैंगनी, गुलाबी

इन तत्वों को भौततक वस्त्तुओां दवारा भी दर्ाशया जा सकता है :

धरती पहाड़, चट्िानें, ईंिें , पत्थर

लकड़ी पौधे, झाडड़यााँ, पेड़, फूल, घास, बाांस, फ़नश

धातु तलवार, कुल्हाड़ी, आभूषण, सोना, लोहा, चााँद , ताांबा

आग आग, मोमबवियााँ, लाल द पक, त्रबजल , त्रबजल

पानी तालाब, ष्स्त्वभमांग पूल, फव्वारे , झीलें, समुि, एक्वैररयम

फेंगर्ई
ु में साइककल
सभी 5 तत्व तीन प्रकार के सांबांध साझा करते हैं ष्जन्हें 'चक्र' कहा जाता है , ष्जसके
माध्यम से एक तत्व दस
ू रे तत्व को प्रभाववत कर सकता है । चक्र के आधार पर, ये तत्व
एक दस
ू रे का उत्पादन (बढ़ना), तनयांरण (प्रततरोध), कमजोर करना या नटि करना करते हैं।

• उत्पादक चक्र
• तनयांरण चक्र
• कमजोर चक्र
• ववनार्कार चक्र
• जल से लकड़ी उत्पन्न होती है
• लकड़ी आग पैदा
करती है
• अष्ग्न से प्
ृ वी
उत्पन्न होती है
• प्
ृ वी धातु उत्पन्न
करती है
• धातु जल उत्पन्न
करती है
यह चक्र आगे की श्रि
ां ृ ला
को दर्ाशता है, पानी पेड़ों
(लकड़ी) को पोषण प्रदान
करता है , ष्जसे बाद में
आग के भलए ईंधन के
रूप में उपयोग ककया
जाता है , ष्जसके
पररणामस्त्वरूप राि
(प्
ृ वी) बनती है । प्
ृ वी का िनन ितनजों या धातु के भलए ककया जाता है, जो वपघलने पर
पानी की तरह बहती है । इसे उत्पादक चक्र के रूप में जाना जाता है , जहाां तत्व एक दस
ू रे
का उत्पादन करते हैं।
उत्पादक चक्र के भलए याद रिने योग्य मख्
ु य बात यह है कक एक तत्व अपने दवारा
उत्पाद्रदत तत्व को मजबूत और ववकभसत करता है ।
5 तत्र्वों की अर्वधारणा - पंचमहाभत
ू - त्रिदोर्

आयुर्वेद के अनुसार, इस ब्रहमांड में प्रत्येक र्वस्तु अलि-अलि अनुपात में पांच मूल तत्र्वों
से बनी है । ये पांच तत्र्व या पंच भूत हैं पथ्ृ र्वी (पथ्
ृ र्वी), जल (जल), र्वायु (र्वायु), अक्नन
(अक्नन), आकाश (आकाश)। भोजन, ग्रह और प्रत्येक जीवर्वत और तनजीर्व र्वस्तु इन 5 तत्र्वों
से बनी है । स्िल
ू जित स्तर और सक्ष्
ू म जित स्तर पर एक मौसलक सामंजस्य है और
हमारा शरीर ब्रहमांड की एक बहुत ही सक्ष्
ू म छवर्व है। एकमाि चीज़ जो जीवर्वत और तनजीर्व
चीजों को अलि करती है र्वह आत्मा है।

5 तत्र्वों के लक्षण

पंचमहाभूत और शरीर में त्रिदोर् के रूप में उनका प्रतततनगधत्र्व

1. अंतररक्ष (ईिर) - शरीर के भीतर खोखले िह


ु ाओं और ब्रहमांड के खाली क्षेिों में
मौजूद, ध्र्वतन संचाररत करता है , ककसी भी चीज़ के प्रतत प्रततरोधी नहीं, घर्शण
रदहत या गचकना, सक्ष्
ू म, नरम, प्रचुर। समान िुणों र्वाला कोई भी आहार, भोजन
या जडी-बूदटयाँ शरीर के भीतर अंतररक्ष तत्र्व को बढ़ाएंिी।
2. र्वायु - हल्का, शुष्क, सूक्ष्म, िततशील, पारदशी और रूक्ष र्वायु के िण
ु हैं। यह
शरीर में िततशीलता, शुष्कता के सलए क्जम्मेदार है। कोई भी आहार, व्यायाम,
और्गध क्जसमें ऐसे िण
ु हों, शरीर में "र्वात" या र्वायु तत्र्व को बढ़ाएिा।
3. अक्नन - यह िमश, तीक्ष्ण, तीव्र, शष्ु क और हल्की होती है । आि प्रकाश और िमी
उत्सक्जशत करती है । कोई भी भोजन, आहार, व्यायाम और जडी-बूदटयाँ क्जनमें
समान िण
ु हों, हमारे शरीर में इस तत्र्व को बढ़ा दें िे। उदाहरण के सलए - समचश,
अदरक, लहसुन और समचश शरीर में "वपि" या अक्नन तत्र्व "को बढ़ाएंिे।
4. पानी - पानी नम, सजातीय या गचपगचपा, ठं डा, नरम और तैलीय (त्रबना िंध
र्वाला) होता है । यह हमारे शरीर में कई खाद्य पदािों, दध
ू और जडी-बदू टयों में भी
मौजूद होता है । पानी की अगधकता हमारे शरीर में उपरोतत वर्वशेर्ताओं को बढ़ाती
है और इसके वर्वपरीत कम कर दे ती है। 'अक्नन' या 'वपि' और 'र्वाय'ु या 'र्वात' से
होने र्वाले रोिों में जल का सेर्वन लाभकारी होता है । उदाहरण के सलए एससडडटी,
त्र्वचा संबंधी समस्याएं, कब्ज, सूखापन, अत्यगधक टूटना या
मेटाबोलाइट्स/एंडोटॉक्तसन का संचय। दस
ू रे शब्दों में यह वर्वर्हरण एजेंट के रूप में
कायश करता है ।
5. पथ्
ृ र्वी - यह ठोस, सघन, क्स्िर, भारी, कठोर, नीरस तिा धीमी है। पथ्
ृ र्वी ब्रहमांड
और हमारे शरीर में ठोस संरचनाओं का तनमाशण करती है। कोई भी भोजन,
व्यायाम, जडी-बदू टयाँ क्जनमें समान िण
ु हैं, पोर्ण, सहायता प्रदान करें िे और
शरीर में भारीपन पैदा करें िे। इससे ताकत और क्स्िरता में भी सुधार होिा।

ये उन 5 तत्र्वों की वर्वशेर्ताएं हैं, क्जनसे यह संपूणश ब्रहमांड बना है। इन वर्वशेर्ताओं का


उपयोि करके, इस दतु नया में हर चीज को अलि-अलि अनुपात और अनुपात में इन 5
तत्र्वों के संयोजन से बना र्विीकृत ककया जा सकता है। यहां तक कक रसायन वर्वज्ञान की
आधतु नक आर्वतश सारणी में सभी प्राकृततक तत्र्वों को इन 5 तत्र्वों के अंतिशत र्विीकृत ककया
जा सकता है। उदाहरण के सलए, एक स्टील की छड में लकडी की तुलना में अगधक समट्टी
होती है। लकडी में पथ्ृ र्वी और पानी है । हमारे शरीर में सभी 5 हैं यानी अंतररक्ष और र्वायु
(खोखले अंि और शरीर के िुहा), अक्नन (रसायन), पथ्
ृ र्वी (हड्डी संरचनाएं) और पानी (लार,
पाचन रस और इंरासेल्युलर या अततररतत सेलुलर तरल पदािश)।

एक परमाणु 5 तत्र्वों के संयोजन को भी दशाशता है। वर्वद्यत


ु आर्वेश एक परमाणु के भीतर
अक्नन ऊजाश को दशाशता है । परमाणु प्रततकक्रया भी परमाणु के भीतर तनदहत अक्नन ऊजाश का
एक उदाहरण है ।

पथ्
ृ र्वी तत्र्व को एक परमाणु के भीतर इलेतरॉन, प्रोटॉन और न्यर
ू ॉन के द्रव्यमान के साि-
साि उप-परमाणु कणों द्र्वारा दशाशया जाता है ।

जल उपपरमाक्वर्वक कणों के बीच सामंजस्य के सलए क्जम्मेदार है। जल तत्र्व की संसतत


प्रकृतत के कारण र्वे एक परमाणु में बंधे हुए हैं।

खाली र्वायु तत्र्व को उस बल द्र्वारा दशाशया जाता है जो नासभक के चारों ओर इलेतरॉनों की


ितत का कारण बनता है ।

ईिर एक परमाणु के अंदर और उसके आस-पास की जिह के बीच का खाली स्िान है।

इन ऊजाशओ,ं वर्वशेर् रूप से र्वात (र्वायु), वपि (अक्नन) और कफ (जल) का संतुलन परमाणु
को बनाए रखता है और इसे परमाणु बम बनने से रोकता है । इसी प्रकार ये शक्ततयाँ इस
सम्पण
ू श ब्रहमावड को चला रही हैं।

अंतररक्ष में घूम रहे ग्रहों और आकाशिंिाओं का उदाहरण भी त्रि-ऊजाश मॉड्यूल के उदाहरण
में कफट बैठता है ।

इसी प्रकार यह सादृश्य सेलुलर कायश और संरचना के मामले में भी उपयोिी है। कोसशकाओं
के भीतर माइटोकॉक्न्ड्रया और अन्य इंरासेल्युलर ऑिेनेल में होने र्वाला चयापचय अक्नन
ऊजाश का एक उदाहरण है। ऑतसीजन हर्वा का प्रतततनगधत्र्व करता है और पानी पानी का
प्रतततनगधत्र्व करता है । कोसशकाओं के भीतर प्लाज्मा र्झल्ली और अन्य ठोस चीजों की
संरचना पथ्
ृ र्वी तत्र्व का प्रतततनगधत्र्व करती है। ररक्ततकाओं में ररतत स्िान को आकाश तत्र्व
द्र्वारा प्रस्तुत ककया जाता है ।

इन तत्र्वों का संतुलन वर्वसभन्न र्वातार्वरणों में उतार-चढ़ार्व करता है और एक तत्र्व दस


ू रे में
पररर्वततशत हो सकता है । उदाहरण के सलए, यदद जल तत्र्व को बहुत कम तापमान में
संग्रहीत ककया जाए तो र्वह पथ्
ृ र्वी तत्र्व में बदल सकता है । इसी प्रकार, र्वही पानी िमश होने
पर भाप बन जाता है और र्वाष्पीकृत होकर अंतररक्ष बन जाता है ।

इसी प्रकार यदद हम ककसी चीज को जलाते हैं तो र्वह अपना रूप बदल लेती है । मान
लीक्जए हम कािज का एक टुकडा जलाते हैं, तो उसके कुछ दहस्से अंतररक्ष और र्वायु
बनकर र्वाक्ष्पत हो जाते हैं और र्वह पथ्
ृ र्वी से र्वायु और अंतररक्ष में बदल जाता है ।
मनष्ु य में तत्र्वों का प्रतततनगधत्र्व

पाँच तत्र्व वर्वसभन्न सजीर्व और तनजीर्व र्वस्तओ


ु ं में वर्वसभन्न अनप
ु ातों और अनप
ु ातों में
मौजूद होते हैं। जीवर्वत चीजों में पांच तत्र्व और एक आत्मा होती है जबकक तनजीर्व चीजों
की संरचना में केर्वल 5 तत्र्व होते हैं।

ये 5 तत्र्व मनुष्यों में 3 ऊजाशओं के रूप में स्र्वयं का प्रतततनगधत्र्व करते हैं क्जन्हें 'दोर्' या
त्रि-दोर् कहा जाता है । इन दोर्ों को त्रि-ऊजाशएँ भी कहा जा सकता है।

"त्रिदोर्" ससद्धांत या त्रि-ऊजाशएँ

आयर्व
ु ेद का एक अन्य मौसलक ससद्धांत "त्रिदोर्" ससद्धांत या त्रि-ऊजाश ससद्धांत है । इसे 3
जैवर्वक या शारीररक और भौततक शक्ततयों में पंचभूतों (पांच तत्र्वों) के संयोजन के रूप में
भी समझा जा सकता है जो हमारे शरीर के चयापचय कायों और संरचनात्मक संरचना को
पूरा करते हैं। इन त्रि-ऊजाशओं के संतुलन को स्र्वास्थ्य की क्स्ितत के रूप में जाना जाता है
और उनके असंतुलन को बीमारी कहा जाता है । जो कुछ भी इस संतुलन को बहाल करता है
र्वह स्र्वास्थ्य के सलए अच्छा है । इससलए इस संतुलन को बहाल करने और स्र्वास्थ्य प्रदान
करने के सलए ककसी भी आहार, व्यायाम, व्यर्वहार या दर्वा की ससफाररश की जा सकती है ।
त्रि-ऊजाशएँ हैं

त्ररदोष ऊजाश समकक्ष प्रारां भभक रचना


वात गततज ऊजाश वायु + आकार्

वपि थमशल ऊजाश अष्ग्न + जल

कफ सांभाववत ऊजाश प्
ृ वी + जल

र्वात, वपि, कफ और 5 तत्र्वों के बीच संबध


यह 3 बतु नयादी ऊजाशओं की भौततक प्रारं सभक संरचना है जो शरीर के स्र्वास्थ्य को बनाए
रखने के सलए तालमेल से कायश करती है । इनका संतुलन शारीररक स्तर पर स्र्वास्थ्य बनाये
रखने के सलए उिरदायी है। हालाँकक इस पस्
ु तक के आिे के अध्यायों में आयुर्वेद के कई
और ससद्धांत हैं जो पूणश शारीररक, मानससक, सामाक्जक और आध्याक्त्मक कल्याण के सलए
इंदद्रयों-शरीर-मन-आत्मा धुरी के बीच संतल
ु न और समन्र्वय पर जोर दे ते हैं।

आयु (जीर्वन) केर्वल कालानुक्रसमक र्वर्ों में मापा िया जीर्वन काल नहीं है , बक्ल्क यह मन-
शरीर-इंदद्रयों और आत्मा का समलन है । इससलए आयर्व
ु ेद में मन और आत्मा का बहुत
महत्र्व है ।

पांचतत्व क्या है ?
29 नवांबर 2023 चालोि भमलर दवारा
क्या आप यह जानने को उत्सुक हैं कक पांचतत्व क्या है ? आप सह जगह पर आए हैं
क्योंकक मैं आपको पांचतत्व के बारे में
बहुत ह सरल व्याख्या में सब कुछ बताने जा रहा
हूां। त्रबना अधधक चचाश के आइए जानना र्रू
ु करें कक पांचतत्व क्या है ?

प्राचीन दर्शन और परां पराओां में , पांचतत्व, या पाांच तत्वों की अवधारणा, ब्रह्माांड के मूलभूत
तनमाशण िांडों को समझने की आधारभर्ला बनाती है। ववववध सांस्त्कृततयों और दार्शतनक ढााँचों
में तनद्रहत, पांचतत्व मौभलक र्ष्क्तयों की परस्त्पर कक्रया के माध्यम से अष्स्त्तत्व की गहन
िोज का प्रतीक है । यह ब्लॉग पांचतत्व के सार और महत्व को उजागर करने, दतु नया की
हमार समझ को आकार दे ने में इसकी भभू मका पर प्रकार् डालने की यारा पर तनकलता है।

पांचतत्व क्या है ?

1. प्
ृ वी (प्
ृ वी): ष्स्त्थरता और दृढ़ता का प्रतततनधधत्व करते हुए, प्
ृ वी प्ृ वी के
तत्व का प्रतीक है। यह नीांव, उवशरता और भौततक पदाथश का प्रतीक है जो
जीवन को बनाए रिता है , जो सभी मत
ू श पदाथों का आधार बनता है ।
2. जल (जल): जल तरलता, अनुकूलनर्ीलता और जीवन के सार का प्रतीक
है । यह तत्व पानी में प्रवाह, र्ुदधता और पररवतशनकार प्रकृतत का प्रतीक है,
जो जीवन चक्रों को जोड़ता है और पोषण को बढ़ावा दे ता है।
3. अष्ग्न (अष्ग्न): अष्ग्न ऊजाश, रोर्नी और पररवतशन का प्रतीक है। यह गमी
और प्रकार् की पररवतशनकार र्ष्क्त का प्रतततनधधत्व करता है , जो ववनार् और
पुनजशनन, साथ ह ज्ञान और ज्ञान की धचांगार दोनों को दर्ाशता है ।
4. वायु (वाय)ु : वायु गतत, स्त्वतांरता और साांस का प्रतीक है । यह तत्व हवा की
गततर्ील र्ष्क्त का प्रतीक है, जो जीवन की प्रकक्रयाओां, पररसांचरण और सांचार
को सक्षम बनाता है, साथ ह पररवतशन और मुष्क्त का भी प्रतततनधधत्व करता
है ।
5. ईथर (आकार्): आकार् अांतररक्ष, ववस्त्तार और असीभमत ववस्त्तार का
प्रतततनधधत्व करता है जहाां सारा अष्स्त्तत्व प्रकि होता है । यह चेतना की
असीभमत प्रकृतत का प्रतीक है, जो सभी तत्वों को जोड़ती है और सज
ृ न के
भलए कैनवास प्रदान करती है ।
महत्व और दार्शतनक तनद्रहताथश

1. सांतल
ु न और सामांजस्त्य : पांचतत्व इन मौभलक र्ष्क्तयों के सांतल
ु न और
परस्त्पर तनभशरता को समझने का आधार बनता है । ऐसा माना जाता है कक इन
तत्वों के बीच सामांजस्त्य स्त्थावपत करने से स्त्वयां और ब्रह्माांड के भीतर
सामांजस्त्य स्त्थावपत होता है ।
2. अष्स्त्तत्व का समग्र दृष्टिकोण : पांचतत्व की अवधारणा अष्स्त्तत्व पर एक
समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है, जो जीवन की परस्त्पर सांबदधता और चक्रीय
प्रकृतत पर जोर दे ती है , जहाां सभी तत्व एकजुि होते हैं और बातचीत करते हैं।
3. आध्याष्त्मक और उपचार परां पराएां : पांचतत्व ववभभन्न आध्याष्त्मक और उपचार
प्रथाओां में महत्व रिता है , अनुटिानों, ध्यान और वैकष्ल्पक उपचारों को
प्रभाववत करता है जो मौभलक सांरेिण के माध्यम से सांतुलन और कल्याण को
बहाल करना चाहते हैं।
4. पयाशवरण और पाररष्स्त्थततक महत्व : पांचतत्व को समझने से प्रकृतत के तत्वों
के प्रतत गहर सराहना, पाररष्स्त्थततक जागरूकता को बढ़ावा दे ना और प्राकृततक
दतु नया के सांरक्षण और सम्मान के महत्व को बढ़ावा भमलता है ।
तनटकषश
पांचतत्व अष्स्त्तत्व की सवोत्कृटिता को समाद्रहत करता है , जो हमार दतु नया और चेतना को
आकार दे ने वाल मौभलक र्ष्क्तयों की परस्त्पर कक्रया पर धचांतन को आमांत्ररत करता है । इन
पाांच तत्वों के लेंस के माध्यम से, प्राचीन दर्शन और परां पराएां जीवन के अांतसंबध
ां , सांतुलन
और चक्रीय प्रकृतत में अांतदृशष्टि प्रदान करती हैं। पांचतत्व में तनद्रहत ज्ञान को अपनाने से
समग्र दृष्टिकोण को बढ़ावा भमलता है , प्रकृतत के प्रतत श्रदधा का पोषण होता है , स्त्वयां के
भीतर सांतल
ु न को बढ़ावा भमलता है और तत्वों के ब्रह्माांडीय नत्ृ य के भीतर हमारे स्त्थान की
गहर समझ को बढ़ावा
पांच कोष ~ पाांच कोषों का ज्ञान

मैं कौन हूाँ?

अदवैत वेदाांत में पााँच कोषों (पांच कोष) का ज्ञान व्यष्क्तत्व की भ्रामक प्रकृतत को प्रदभर्शत
करता है। जब हम अपने र्ार ररक, प्राखणक, मानभसक और बौदधधक आवरणों की परतों को
हिा दे ते हैं, तो हम आत्मा की मौभलक एकता, वास्त्तववक स्त्व के प्रतत जागरूक हो जाते
हैं। इस अांतदृशष्टि से उत्पन्न गैर-दवैत की गहर अनभ
ु तू त व्यष्क्त को सभी ताककशक भेदों को
पार करने और सवोच्च चेतना के साथ एकता का अनभ
ु व करने की अनम
ु तत दे ती है जो कक
तनरपेक्ष है ।

पाांच कोषों का ज्ञान (पाांच परतें ~ पांच कोष)

पररचय:

तैविर य उपतनषद, िांड-2 का प्रारां भभक वाक्य है "सत्यम ज्ञानम अनांतम ब्रह्म" ष्जसका
र्ाष्ब्दक अथश है कक ब्रह्म का ज्ञाता सवोच्च को प्रातत करता है।

आइए उन पाांच आवरणों के बारे में जानें जो हमारे वास्त्तववक सार, हमार वास्त्तववक प्रकृतत
को घेरे हुए हैं, जैसा कक पारां पररक अदवैत वेदाांत में वखणशत है , जो पहचान की क्रभमक परतों
को धचत्ररत करने के भलए एक मॉडल का उपयोग करता है जो हमार वास्त्तववक प्रकृतत को
अस्त्पटि करता है ।

हमार वास्त्तववक प्रकृतत आवरणों से ढकी हुई है ~ [सांस्त्कृत में कोष का अथश है कोष]
ष्जसे "पांच कोष" के रूप में जाना जाता है।

तैविर य उपतनषद के अनस


ु ार, हमारा असल सार इन म्यानों से उसी तरह ढका हुआ है
जैसे एक म्यान तलवार की धार को ढकता है । व्यष्क्तत्व के मि
ु ौिे के पीछे स्त्वयां तछपा
होता है ।
तैविर य उपतनषद का दस
ू रा अध्याय "ब्रह्मानांदवल्ल " पााँच आवरणों के बारे में भसिाता
है । इस परू े पाांच कोष मॉडल की अवधारणा अत्यधधक प्रतीकात्मक और रूपक है ।
पाांच कोर् इस प्रकार हैं :-
1) अन्नमय कोर्
2) प्राण माया कोर्
3) मनोमय कोर्
4) ववज्ञानमय कोर्
5) आनांदमय कोर्
तस्त्वीर: सौजन्य: # दे बाश्री
पहल परत: "अन्नमय कोष" (অন্নময়ক োষ ):
भोजन (अन्न = अन्न) से ह प्
ृ वी पर रहने वाले सभी प्राखणयों
की उत्पवि होती है, और भोजन के माध्यम से ह वे जीववत
रहते हैं, और अांत में वे भोजन में ह लौि आते हैं।
पहल परत, सबसे स्त्थल
ू परत ष्जसके साथ हम पहल बार िद

को र्र र के रूप में पहचानते हैं, भोजन से बनी होती है और
इसे " अन्नमय कोर् " (অন্নময়ক োষ) के रूप में जाना जाता
है । र्र र जन्म लेता है , बढ़
ू ा होता है , मर जाता है और सड़ कर
वापस उसी भोजन में बदल जाता है ष्जससे वह उत्पन्न हुआ था। इसका वास्त्तववक "स्त्व"
से कोई लेना-दे ना नह ां है । यह र्र र ह "स्त्व" नह ां है ।

दस
ू र परत: "प्राण माया कोष" (প্রোনময়ক োষ)

यह महत्वपण
ू श जीवन र्ष्क्त है ष्जसके भलए र्र र अनप्र
ु ाखणत होता है, और कक्रयाएां की
जाती हैं। यह परत "प्राण" श्वास से बनी है ष्जसे "प्राण माया कोष" (প্রোনময়ক োষ) के
नाम से जाना जाता है । हम भौततक र्र र , सूक्ष्म र्र र और कारण र्र र से बने
बहुस्त्तर य प्राणी हैं। पहला उल्लेखित कोष, अन्नमय कोष चार कोषों से व्यातत है।
अगल परत, दस ू र परत "प्राण माया कोष" है । अन्नमय कोर् प्राण का प्रभाव है। प्राण
माया कोर् अन्नमय कोर् को तनयांत्ररत करता है ।

"प्राण" महत्वपण
ू श ऊजाश है और हमारे भलए अदृश्य है। यह ववदयत
ु र्ष्क्त की तरह है, जो
मर्ीनों को जीवन दे ती है और मर्ीनें चलती हैं, चेतन करती हैं। उसी प्रकार यह महत्वपण
ू श
ऊजाश "प्राण" हमें , जीववत र्र रों को जीवांत बनाती है। यह भौततक र्र र की पहल परत को
चलाता है । यह प्राण और अधधक सूक्ष्मतर ऊजाश जो कक मन है , से बाह्य है । मन इतना
सूक्ष्म और पारदर्ी है कक मन चेतना को प्रततत्रबांत्रबत कर सकता है ।

प्राण वास्त्तव में प्राखणयों का जीवन है और इसभलए इसे सावशभौभमक जीवन कहा जाता है
। यह सामान्य ज्ञान की बात है कक जीवन तभी तक सांभव है जब तक प्राखणक ऊजाश जीव
के ववभभन्न अांगों को जीववत रिती है ।
यदयवप यह महत्वपूणश जीवन र्ष्क्त र्र र को जीवांत बनाती है और कायश करती है, लेककन
यह " वास्त्तववक आत्म " नह ां है । एक बार जब " प्राण " र्र र छोड़ दे ता है तो यह प्राण
माया कोष जीवन को मत्ृ यु से अलग कर दे ता है । यह कोष पााँच प्राणों ( प्राण, उदान,
व्यान, समान, अपान ) से बना है । र्र र को पण
ू श रूप से सांचाभलत करने के भलए इन प्राणों
का अपना-अपना महत्व है । प्राणायाम के अभ्यास के माध्यम से (प्राणायाम श्वास व्यायाम
है , जैसा कक प्राचीन ग्रांथों में वखणशत योग का द्रहस्त्सा है ) , हम अगल परत "मनोमय
कोष" (মন োময়ন োষ) तक पहुांच सकते हैं। लेककन यह वास्त्तववक स्त्व नह ां है .

तीसर परत:- मनोमय कोष

यह आत्मा वपछले एक (प्राण) में


सष्न्नद्रहत है जो कक ववचारर्ील मन
से यक्
ु त मानभसक आवरण है। इस
मन (मानस "মন") और धारणा के
अांगों को "मनोमया कोर्"
(মকনোময়ক োষ) के रूप में जाना
जाता है । यह वह आवरण है जो हमें
सीभमत करता है और हमें उससे आगे
जाने से रोकता है ।

पांच कोष ( पाांच कोष) को तीन तनकायों में ववभाष्जत ककया जा सकता है : ये तीन र्र र
क्रमर्ुः गहर नीांद, सपने और जागने की ष्स्त्थतत में अनभ
ु व की वस्त्तुएां हैं। यह कारण र्र र
है ष्जसका अनभ
ु व गहर नीांद में होता है । स्त्वतन में सूक्ष्म र्र र और जाग्रत अवस्त्था में
भौततक र्र र।

तीन र्र र इस प्रकार हैं:-


ए) स्त्थल
ू र्र र "स्त्थल
ू र्र र" = (~ सांस्त्कृत र्ब्द) पहल परत आनांदमय कोर् से बना
है ।
बी) सूक्ष्म र्र र "सूक्ष्म र्र र" (~ सांस्त्कृत र्ब्द) में प्राणायाम कोर्, मनोमय कोर् और
ववज्ञानमय कोर् र्ाभमल हैं। इसे सूक्ष्म र्र र के नाम से भी जाना जाता है ।
सी) कारण र्र र "कारण र्र र" (~ सांस्त्कृत र्ब्द) में आनांदमय कोष र्ाभमल है।

यह आत्मा वपछले एक (प्राण) में सष्न्नद्रहत है जो कक ववचारर्ील मन से यक्


ु त मानभसक
आवरण है । इस मन (मानस "মন") और धारणा के अांगों को "मनोमया कोर्"
(মকনোময়ক োষ) के रूप में जाना जाता है। यह वह आवरण है जो हमें सीभमत करता है
और हमें उससे आगे जाने से रोकता है ।
यह कोष र्ष्क्तर्ाल है क्योंकक बांधन और मुष्क्त मन पर तनभशर करती है । यह प्राण माया
कोर् में व्यातत है ।
मल
ू रूप से, यह र्र र मन से बना है ष्जसके माध्यम से हम पाांच एजेंिों (इांद्रियों) के
माध्यम से दतु नया को समझते हैं। मन तीन स्त्तरों पर कायश करता है।
1. चेतन मन
2. अवचेतन मन
3. अचेतन मन।
उपरोक्त तीनों मन सावशभौभमक मन के उपसमुच्चय हैं।
मनटु य इस म्यान में फांस गया है क्योंकक हमेर्ा लोगों को मन (बांदर मन) दवारा अपहरण
कर भलया जाता है।
पतांजभल योग सर
ू 1.2 में "योग मन के पररवतशनों को र्ाांत करना है '~" " योगस्त्स धचि
ववृ ि तनरोधुः" ।
जब मन के उतार-चढ़ाव र्ाांत हो जाते हैं, तो हमारा वास्त्तववक स्त्वरूप प्रकि हो जाता
है । तब हमारे पास मन से परे स्त्वयां को समझने के भलए पयाशतत स्त्पटिता होती
है । प्राणायाम और प्रत्याहार (इांद्रियों की मानभसक वापसी) के माध्यम से हम अगल परत
तक पहुांच सकते हैं। लेककन यह वास्त्तववक स्त्व नह ां है.

चौथी परत:- ववज्ञानमय कोष (বিজ্ঞোনময় )

मन (मानस ~ सांस्त्कृत र्ब्द) से परे मन के उच्च स्त्तर हैं जो सत्य और भम्या फल को


वास्त्तववक या अवास्त्तववक पहचानने में भेदभाव के भलए ष्जम्मेदार हैं। मौन में यह त्रबना
सोचे समझे जान लेता है । यह बद
ु धध (बद
ु धध~सांस्त्कृत र्ब्द) है । इस बौदधधक कोर् को
"ववज्ञानमय कोर्" के नाम से जाना जाता है ।

ववज्ञानमय कोष (~बद


ु धध) ज्ञान का आवरण। यह सूक्ष्म र्र र का द्रहस्त्सा है. जब सक्ष्
ू म
र्र र अनर्
ु ाभसत होता है, तो भौततक र्र र भी अत्यधधक स्त्वस्त्थ और मजबत
ू हो जाता
है । मन जो कक सूक्ष्म र्र र का र्ासक है, साांसाररक स्त्नेह, आसष्क्त, इच्छाओां आद्रद से
क्षीण हो जाता है। अभ्यास के माध्यम से मन इस आवरण के तनयांरण में आ जाता है ।
यह आत्मा वपछले मनोमय कोष में सष्न्नद्रहत है। लेककन यह वास्त्तववक स्त्व नह ां है.

मैं इस कोष का साक्षी (वास्त्तववक स्त्व) हूां।


मन अधधकतर पहल परत से जुड़ा होता है जो र्र र के अलावा कुछ नह ां है , अहां कार के
साथ झि
ू ी पहचान है। इसमें रूप, आकार, नाम, प्रभसदधध सब कुछ है । स्त्वयां के भलए,
आांतररक स्त्व के भलए, बाहर स्त्व के भलए और इस सांसार के अन्य लोगों के भलए बहुत
अधधक दृश्यमान (সংসোর)।
• ष्जस अिूि र्ाांतत की हम तलार् करते हैं वह असीभमत और र्ाश्वत र्ाांतत का अनभ
ु व
करने से प्रातत होती है जो हमार सच्ची पहचान है । यदयवप अज्ञानता से अस्त्पटि है , यह
हमारे भीतर मौजूद है, प्रकि होने की प्रतीक्षा कर रहा है । यह अनभ
ु व आत्मज्ञान है -
आत्म-साक्षात्कार। {चौथी परत की सहायता से प्रातत ककया जाने वाला अनभ
ु व
} • मन पर काबू पाकर आत्म-साक्षात्कार प्रातत ककया जा सकता है। ष्जस तरह केवल एक
साफ, ववकृत दपशण ह हमारे चेहरे को वैसा प्रततत्रबांत्रबत कर सकता है जैसा वह वास्त्तव में
है , उसी तरह केवल एक-केंद्रित और र्ाांत द्रदमाग ह अज्ञानता के पदे को हिाकर स्त्वयां को
प्रकि और प्रततत्रबांत्रबत कर सकता है ।
मन को अज्ञान की सीमाओां से मक्
ु त करने का प्रयास एक नािक है जो अनाद्रद काल से
दोहराया जाता रहा है।
परां तु यद्रद मन अपने आप में व्यातत होकर ववज्ञानमय कोर् की ओर ले जाए तो क्या
होगा?
आइए मन से परे दे िें।
मन (मानस) से परे , मन के उच्च स्त्तर हैं जो भेदभाव, सत्य और असत्य, वास्त्तववक या
अवास्त्तववक को पहचानने के भलए ष्जम्मेदार हैं। मौन में यह त्रबना सोचे-समझे जान लेता है
कक बद
ु धध क्या है (बद
ु धध~িুদ্ধি)। इस बौदधधक कोर् को "ववज्ञानमय कोर्" ~ ज्ञान का
कोर् कहा जाता है ।
वेदाांत के अनस
ु ार, र्ास्त्रों का अध्ययन सत्य की प्राष्तत में मदद करता है , जब कोई
आवश्यक चार गुना अनर्
ु ासन से सस
ु ष्ज्जत होता है : -
1. वास्त्तववक (तनत्य বনত্য~ र्ाश्वत) और अवास्त्तववक (अतनत्य অবনত্য~ क्षणभांगरु ) के
बीच भेदभाव।
2. असत ् का त्याग (ववरागा~বিরোগ্য)
3. छह गुना गण
ु ।
4. मष्ु क्त की लालसा (मोक्ष ~মমোক্ষ প্রোবি: जन्म और मत्ृ यु के चक्र से बचने के भलए)

र्ब्द "स्त्व" का अथश आम तौर पर "आत्मान" (आत्मा) होता है । लेककन सांस्त्कृत र्ब्द
"आत्मान" है, ष्जसका अनव
ु ाद नह ां ककया जा सकता। यह आत्मा प्रत्येक व्यष्क्त के भलए
मत्ृ यह
ु न, जन्म रद्रहत, र्ाश्वत और वास्त्तववक है। यह बदलते र्र र, इांद्रियों, मन और
अहां कार के पीछे अपररवतशनीय वास्त्तववकता (सत ् ~ৎ) है । यह आत्मा है , जो र्द
ु ध चेतना
(বিত্্) है और समय-स्त्थान कारणता से अप्रभाववत है । यह अनांत है और दस
ू रे के त्रबना यह
एक है।
ष्जस प्रकार व्यष्क्त में अपररवतशनीय वास्त्तववकता को आत्मा के रूप में जाना जाता है , उसी
प्रकार ब्रह्माांड में अपररवतशनीय वास्त्तववकता को "ब्राह्मण" के रूप में जाना जाता है । वेदाांत
कहता है कक यह ब्रह्म और आत्मा एक ह हैं।
ववज्ञानमय कोष में ज्ञान के पाांच अांगों (জ্ঞোকনদ্ধিয়) के साथ बद
ु धध र्ाभमल है ।

पाांचवी परत:- "आनांदमय कोष"

यह आत्मा वपछले वाले में सष्न्नद्रहत है। आनांद स्त्वयां से पररपण


ू श है और उससे भरा हुआ
है । यहाां सबसे गहन र्ाांतत और मौन की उपष्स्त्थतत होती है जब मन, मन नह ां हो जाता
है । यह आनांद की ष्स्त्थतत है
सेंि
आइए हम "तैविर य उपतनषद" के दस
ू रे अध्याय के पहले श्लोक (1 श्लोक) को याद करें
ष्जसे "ब्रह्मानांद वल्ल " के नाम से जाना जाता है ।
वाक्य को पन
ु ुः उदधत
ृ करते हुए:-

"सत्यम ज्ञानम अनांतम ब्रह्म" ष्जसका अथश है "ब्रह्म" का ज्ञाता सवोच्च को प्रातत करता
है "। ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनांत है, जो हमारा अपना स्त्वरूप, आत्मा है । ब्रह्म ज्ञान की
वस्त्तु नह ां है । यह सदै व साक्षी ववषय है । (দ্রষ্টো~ िटिा ).
तैविर य उपतनषद के दस
ू रे अध्याय में "मानव आनांद" की पररभाषा है । मानव आनांद की
एक इकाई. उसे र्ीघ्र ह अपने अगले ब्लॉग में भलिांग
ू ा।

आत्मा अनांत है . वास्त्तव में उस एक, सजातीय सिा, सवोच्च सिा और परम सिा में कोई
बहुलता या बहुलता नह ां है । अध्यारोपण और अपनी अज्ञानता के कारण हम अपने
वास्त्तववक स्त्वरूप को भूल गये हैं। यह अकेला ह
प्रकार्क के रूप में ववदयमान है । यह "आत्मान" वास्त्तववक "स्त्वयां" अपने गौरवर्ाल
अष्स्त्तत्व में , अपनी सत ्-धचत प्रकृतत को प्रकि करता है जो आनांदमय है । इसीभलए इस
कोष को "आनांदमय कोष" कहा जाता है। दरअसल, तैविर य उपतनषद में वखणशत यह पाांच
कोर् मॉडल स्त्वयां के ववभभन्न स्त्तरों को समझने के भलए एक ववचार मार है । आत्मा का
र्ाश्वत स्त्वरूप आनांद ह है ।

पााँच परतों या कोर्ों की पहचान के माध्यम से स्त्वयां का पता चलता है । इससे पता चलता
है कक: -
"मैं भौततक र्र र नह ां हूां"
"मैं प्राण (साांस) नह ां हूां"
"मैं मन नह ां हूां"
"मैं बद
ु धध (बद
ु धध) नह ां हूां"
"मैं आनांदमय कोष भी नह ां हूां" . ☆☆
तो कफर मैं कौन हूाँ?

☆☆ मैं इन पााँच कोर्ों का साक्षी हूाँ।

हमारा सच्चा स्त्वरूप आरां भ रद्रहत, अांतह न, अदवैत, असीम, सदै व मुक्त, र्द
ु ध, जागरूक,
सवोच्च आनांद है । माया (अववदया) नामक अज्ञान के कारण, हम जन्म और मत्ृ यु के चक्र
से गज
ु रते हैं और यह ददश , पीड़ा और दि
ु ों का कारण है । वेदाांत में माया की तल
ु ना पदे से
की गई है ।
स्त्वयां की वास्त्तववक प्रकृतत की अज्ञानता इस कारण र्र र या बीज-र्र र का गिन करती
है । यह सूक्ष्म आवरण के माध्यम से सांपण
ू श ब्रह्माांड की उपष्स्त्थतत को प्रदभर्शत करता है ।
यह आनांदमय कोष या कारण र्र र अवैयष्क्तक, तनराकार, सावशभौभमक, एक आनांदमय
स्त्थान है ष्जसे आमतौर पर गहर नीांद (सष
ु ष्ु तत~সুসূবি) के भीतर पहचाना जाता है ★★
★★ माांडूक्य उपतनषद आत्मा की 4 अवस्त्थाओां के बारे में बताता है। एक अवस्त्था होती है
तीसर अवस्त्था, ष्जसे गहर नीांद के नाम से जाना जाता है । दस
ू र अवस्त्था को स्त्वतन
अवस्त्था ( ) के नाम से जाना जाता है । पहल अवस्त्था को जागत
ृ अवस्त्था के नाम से जाना
जाता है ।
चौथी अवस्त्था को तुररया के नाम से जाना जाता है।

हमें र्द
ु ध चेतना के साथ तादात्म्य का एहसास करने के भलए इन पाांच आवरणों से ऊपर
उिना होगा। इसभलए, हमें धारणा की सभी वस्त्तओ
ु ां से आत्मा के अांतरतम सार को बाहर
तनकालने के भलए, एक के बाद एक सभी परतों को हिाने की जरूरत है । जब आवरण के
साथ तादात्म्य समातत हो जाता है , तो आत्मा को अनांत अष्स्त्तत्व का एहसास होता है और
वह मत्ृ यु से परे मुक्त हो जाता है ।

मैं नीचे द्रदए गए धचर के माध्यम से इस अवधारणा को प्रस्त्तत


ु करने का प्रयास कर रहा
हूां:-
द्रितपखणयााँ: -

माया ( ~सांस्त्कृत र्ब्द ): --

वेदाांत के अनस
ु ार हमारा वास्त्तववक स्त्वरूप द्रदव्य, र्द
ु ध, पररपण
ू ,श र्ाश्वत और मुक्त
है । हमें ब्रह्म नह ां बनना है , क्योंकक हम वह हैं। लेककन माया वह परदा है जो हमारे
वास्त्तववक स्त्वरूप को ढक लेती है। माया कम र्रू
ु हो रह है. माया के साथ ह काल
उत्पन्न होता है। यह अकल्पनीय, अवणशनीय (अतनवशचनीय) है । भ्रम र्ब्द का प्रयोग प्राय:
माया के अथश में ककया जाता है , परां तु ववदवान इसे अनधु चत बताते हैं। इसका अथश बताने के
भलए अांग्रेजी में कोई समकक्ष र्ब्द नह ां है ।
प्राचीन पववर ग्रांथों के अनस
ु ार, हमें ज्ञात है कक जब हमें अपने वास्त्तववक स्त्वरूप का
एहसास होता है तो माया गायब हो जाती है ।

^^आत्मान और ब्रह्म: -
वेदाांत के अनस
ु ार, हममें जो परम है वह आत्मा है , ब्रह्माांड में जो परम है वह ब्रह्म
है । यह सावशभौभमक वास्त्तववकता है. सांपण
ू श पदाथश ह ब्रह्म है। वह पदाथश, जब ककसी ववर्ेष
प्राणी के सार के रूप में कल्पना की जाती है तो वह आत्मा है । ब्रह्माण्ड इसी कुल पदाथश
से प्रकि हुआ है ष्जसे ब्रह्म कहा जा सकता है । यह आत्मा है , ब्रह्माांड की आत्मा। यह
ब्रह्म त्रबना पव
ू श या पश्च के, त्रबना आांतररक या बाहर के है। यह आत्मा ब्रह्म है , जो हर
चीज़ का बोधक है ।

सम्मातनत पािकों से मेरा ववनम्र अनरु ोध है कक यद्रद कोई हो तो अपनी राय या प्रश्न साझा
करें । साइि को आकषशक बनाने के सझ
ु ाव मेरे भलए अववश्वसनीय रूप से सहायक
होंगे। पािकों से अनुरोध है कक ववषय को र्ुरू से जार रिने के भलए सभी पोस्त्ि पढ़ें । मेर
मेल आईडी है: arun7663@gmail.com

पांच तत्व (5 तत्व): जीवन का सार। 2025 से पहले आद्रद काल से प्


ृ वी के कण-कण और
अनन्त सष्ृ टियों पर ईश्वर दे व और सत्य सत्य है
ब्लॉग

र्ब्द "पांच तत्व" का र्ाष्ब्दक अथश है जीवन के पाांच तत्व (सांस्त्कृ त में 'पांच' का अथश है
पाांच और 'तत्व' का अथश है तत्व)। जीवन के सावशभौभमक तनयम का पालन करते हु ए,
इस ग्रह पर हर चीज पाांच मूल तत्वों से बनी है , ष्जन्हें " पांचमहाभूत " भी कहा जाता
है । तत्त्व के ये तत्व हैं:
• आकार् (आकार् या अांतररक्ष या ब्रह्माांड)
• वायु (वायु)
• जल _
• अष्ग्न (अष्ग्न)
• प्
ृ वी (प ्
ृ वी)
इस ब्रह्माांड में , सजीव या तनजीव वस्त्तु से लेकर हर चीज़ इन तत्वों के भमश्रण से बनी
है । वास्त्तव में , ये तत्व हर उस चीज के अष्स्त्तत्व के भलए ष्जम्मेदार हैं जो हम दे िते
हैं, महसूस करते हैं, सूांघते हैं, िाते हैं, सुनते हैं और यहाां तक कक अनुभव भी करते
हैं। इसके अलावा, यद्रद आप उन सभी मामलों का गहराई से ववश्लेषण करते हैं जो आज
हम दे िते हैं, तो आप इस त्य पर ध्यान द्रदए त्रबना नह ां रह पाएांगे कक सब कु छ एक
ह मूल तत्वों से बना है , लेककन के वल तत्वों की सांरचना में भभन्न हैं, और यह त्य है
पांच तत्व का ववधान.
ब्रह्माण्ड के पााँच प्रमुि तत्व, स्त्वयां, हमारे दवारा अनुभव की जाने वाल समस्त्त
ब्रह्माांडीय चेतना को समाद्रहत करते हु ए एक द स
ू रे के साथ सांबांध रिते
हैं। आइए आकार् तत्व (आकार्/आकार्/अांतररक्ष/ब्रह्माांड) से र्ुरू करें । यह तत्व
पांचतत्वों के सभी तत्वों में सबसे सूक्ष्म है । यह वह तत्व है जो र्ून्य में भी मौजूद है
और इसकी तुलना मनुटय की चेतना से की जा सकती है । यह तत्व हर चीज़ के
अष्स्त्तत्व के भलए जगह बनाता है और हर चीज़ को समायोष्जत करता है ।
वायु तत्व (वायु) जीववत रहने का आधार है और ब्रह्माांड की तुलना में कम सूक्ष्म है ,
लेककन इसकी जड़ें आकार् में गहर हैं। वायु अष्ग्न तत्त्व (अष्ग्न) की उत्पवि का स्रोत
है , जो सघन है और अधधक ऊजाश से भरपूर है और हर चीज को राि में बदलने के
साथ-साथ बनाने और नटि करने की क्षमता रिता है ।
इसी प्रकार, जल तत्व (जल) वायु में वाटप से उत्पन्न होता है और अष्ग्न को धीमा
या बांद कर सकता है । यहाां तक कक प्
ृ वी तत्व (प्
ृ वी) भी जल से उत्पन्न होता है
और सभी तत्वों में सबसे सघन तत्व है ।
परमाणु स्त्तर पर 5 तत्व कौन से हैं?
िैर, इन तत्वों के भलए अांग्रेजी र्ब्द त्रबल्कु ल कफि बैिता है , लेककन इन सभी तत्वों का
ववज्ञान में भी सुांदर प्रतततनधधत्व है और परमाणु स्त्तर पर भी इनका महत्व है । अब तक
यह स्त्पटि हो चुका है कक प्रत्येक चेतन या अचेतन वस्त्तु इन पााँच तत्वों से बनी है ।
• आकार् (आकार् या ब्रह्माांड या अांतररक्ष) से र्ुरू होकर , यह ववर्ेष तत्व
वह स्त्थान है ष्जसमें परमाणु मौजूद है । इलेक्रॉन इसके चारों ओर घूमते हैं
और पूर सांरचना स्त्थान घेर लेती है ।
• वायु (वायु तत्व) नाभभक के चारों ओर इलेक्रॉनों की गतत के बल का
प्रतततनधधत्व करता है ।
• अष्ग्न (अष्ग्न तत्व) प्रत्येक परमाणु में मौजूद गुतत ऊटमा का प्रतततनधधत्व
करता है जो िू िने पर तनकल जाती है ।
• जल (जल तत्व) सामांजस्त्य के बल का प्रतततनधधत्व करता है जो प्रोिॉन,
इलेक्रॉन और न्यूरॉन को एक द स
ू रे के प्रतत आकवषशत होने की अनुमतत दे ता
है ।
• प्
ृ वी (प ्
ृ वी तत्व) ककसी तत्व के िोस भाग का प्रतततनधधत्व करता है ।
स्त्वास्त््य की दृष्टि से पााँच प्रमुि तत्व (पांच तत्व)।
हमारे चारों ओर की द तु नया की तरह, यहाां तक कक हमारा र्र र भी इन सभी पाांच
प्रमुि तत्वों से बना है । हम जो कुछ भी िाते हैं उससे लेकर हमारे दवारा उत्सष्जशत
प्रत्येक पदाथश तक, ये प्रमुि तत्व हर पदाथश के भलए प्रमुि घिक हैं। जब उधचत
स्त्वास्त््य बनाए रिने की बात आती है तो पांच तत्व की अवधारणा त्रबल्कु ल कफि बैिती
है । आप तभी स्त्वस्त्थ रह सकते हैं जब ये सभी प्रमुि तत्व आपके र्र र में अच्छी तरह
से सांतुभलत हों, और र्र र सांतुलन कै से बनाए रिेगा? बस, अनावश्यक तत्वों को
हिाकर और द स
ू रों को प्रेररत करके ।
• पाांच प्रमुि तत्वों के साथ, मानव र्र र में ' ग्यारह इां द्रियाां ' भी र्ाभमल
हैं। इन 'इांद्रियों' में मूल पाांच इांद्रियाां (आांि, कान, नाक, जीभ और गांध),
साथ ह पाांच कक्रया अांग (स्त्वर, हाथ, पैर, जननाांग और गुदा) और मन
र्ाभमल हैं । ये इांद्रियाां बाहर दतु नया से जानकार तनकालने के भलए ष्जम्मेदार
हैं और इन्हें ' ज्ञानें द्रिय ' कहा जाता है । इसी प्रकार, पाांच कक्रया अांग हमें
बाहर द तु नया की उिेजना पर प्रततकक्रया करने में मदद करते हैं ष्जन्हें
' कमेंद्रिय ' के नाम से जाना जाता है । अब काडड न
श ल तत्वों के अनुसार,
ववचार करने वाल 'ज्ञानें द्रिय' और प्रततकक्रया दे ने वाल 'कमेंद्रिय' अलग-अलग
हैं और अांतररक्ष के अष्स्त्तत्व में इसकी भूभमका महत्वपूणश है ।
• आकार् /आकार्/ब्रह्माांड/अांतररक्ष: आकार् (ईथर/आकार्) की बात करें
तो इसका सांबांध सुनने की इांद्रिय से है , ज्ञानें द्रिय कान है और कमेंद्रिय
स्त्वर या मुि है ।
• वायु : अष्स्त्तत्व में इसकी भूभमका गतत के रूप में है और यह स्त्पर्श
की भावना से सांबांधधत है । ज्ञानें द्रिय त्वचा है और कमेंद्रिय हाथ हैं,
बाहर द तु नया की वायु का अनुभव ककया जाता है ।
• अष्ग्न : यह अष्स्त्तत्व में उच्च ऊजाश का तत्व है , दृष्टि या रूपा की
भावना से सांबांधधत है , ज्ञानें द्रिय आांिें हैं और कमेंद्रिय पैर हैं।
• जल : यह तत्व ब्रह्माण्ड में आकषशण र्ष्क्त के रूप में ववदयमान
है । सांवेदना का स्त्वाद एक प्रमुि कारक है और ज्ञानें द्रिय जीभ (रस) है ,
और कमेंद्रिय जननाांग है ।
• प्
ृ वी : ष्जस िोस पदाथश को हम महसूस करते हैं वह प ्
ृ वी ह है और
गांध की अनुभूतत इस पदाथश का मूल है ज्ञानें द्रिय नाक है और कमेंद्रिय
गुदा है ।
तो, पांच तत्व का पूरा भसदधाांत एक बहुत ह आवश्यक घिक है क्योंकक जब तक ये
सभी घिक सह सांरेिण में नह ां होते हैं, तब तक कोई भी अच्छे जीवन और स्त्वास्त््य
का ववर्ेषाधधकार प्रातत नह ां कर सकता है ।
जीवन के सांबांध में पांच तत्व
पांच तत्व में मूल तत्व जीवन के ववभभन्न पहलुओां के ववभभन्न सांबांधों का प्रतीक है , जो
हमें इस द तु नया में अष्स्त्तत्व का एक पूरा पैके ज प्रदान करने के भलए एक-द स
ू रे से जुड़े
हु ए हैं।
• र्र र प ्
ृ वी के समान है
• जल के रूप में मन
• आग के रूप में बुदधध
• वायु के रूप में जागरूकता
• आकार्/अांतररक्ष/ब्रह्माांड के रूप में चेतना
पच तत्व ह वह कारण है ष्जसके कारण मैं जीववत हूां और यह लेि भलि रहा हूां , और
यह वह तत्व है ष्जसके कारण आप जीववत हैं और इस लेि को पढ़ रहे हैं। इसभलए,
इस ब्रह्माांड में सभी तत्व सांबांधधत हैं और उनमें से ककसी को भी अलग नह ां ककया जा
सकता है । इसके अततररक्त, इस त्य को दर्ाशते हु ए कक कोई भी वस्त्तु, जानवर या
इांसान हमसे इतना अलग नह ां है ष्जतना हम सोचते हैं और सभी की दे िभाल करना
व्यापक तस्त्वीर में स्त्वयां की दे िभाल करना है ।
• प्
ृ वी के रूप में र्र र: प्
ृ वी - जैसा कक यह िोस है - भमट्ि , पररदृश्य,
वनस्त्पतत और जीव-जांतुओां का घर है । अपने जबरदस्त्त चुांबकीय क्षेर और
गुरुत्वाकषशण बल के साथ, यह हर जीववत और तनजीव चीज़ को प ्
ृ वी पर
द्रिकाए रिता है । जन्म से ह हम इस दतु नया में हर चीज को भौततक "रूप"
या र्र र में दे िने की कोभर्र् करते हैं। यहाां तक कक "मैं" र्ब्द का प्रयोग
करते हु ए भी हम अपने भौततक र्र र का उल्लेि करते हैं। ऐसा ह तब होता
है जब हम भौततक सांस्त्थाओां के सभी रूपों की पहचान करते हु ए द तु नया से
बाहर दे िते हैं। हम भौततक "र्र र" या सांरचना के त्रबना ककसी भी चीज़ से
सांबांधधत नह ां हो सकते। यहाां तक कक ष्जन चीज़ों को हम अपनी इांद्रियों से
नह ां दे ि पाते, उन्हें भी हम अपनी कल्पना से एक छवव के रूप में धचत्ररत
करने का प्रयास करते हैं। तो हमार दतु नया के वल वस्त्तुओां, तनकायों,
सांस्त्थाओां और छववयों से भर है । हम अपने र्र र की इांद्रियों के माध्यम से
बाहर द तु नया से जुड़ते हैं। पाांच इांद्रियाां कान, त्वचा, आांिें , जीभ और नाक हैं
जो इस ब्रह्माांड के पाांच भौततक गुणों को समझने में मदद करती हैं, जो
ध्वतन, स्त्पर्श, दृष्टि, स्त्वाद और गांध हैं। सांक्षेप में , हमारा अष्स्त्तत्व हमारे
भौततक र्र र के कारण है । इसीभलए प्राचीन लोग र्र र को प ्
ृ वी तत्व कहते
थे, क्योंकक हमारा जीवन प ्
ृ वी पर है । जो कु छ भी स्त्थूल, िोस, जड़ है ,
प्राचीन उसे र्र र या प ्
ृ वी कहते हैं। इस प ्
ृ वी को हाथ की छोि उां गल के
रूप में दर्ाशया गया है । आपका र्र र आपका भौततक अष्स्त्तत्व है , और वह
तत्व है ष्जसका उपयोग आप सभी पहलुओां में जीवन का अनुभव करने के
भलए करते हैं। इसके अलावा, जो भी पदाथश आप अपने चारों ओर दे िते हैं,
महसूस करते हैं और ववश्लेषण करते हैं वे मूल रूप से वस्त्तुएां हैं और
अधधकाांर् प ्
ृ वी का प्रतततनधधत्व करने वाल िोस वस्त्तुएां हैं। यद्रद आपका
र्र र न होता तो आपके अष्स्त्तत्व का पता नह ां चलता और आप जीवन का
अनुभव नह ां कर पाते।
• मन के रूप में जल: जल जीवन का स्रोत है - और यह हम सभी के भीतर
बहता है । प ्
ृ वी का 70% द्रहस्त्सा पानी है और यह बात मानव र्र र पर भी
लागू होती है । क्या हमार इांद्रियााँ वास्त्तव में भौततक सांसार को समझती
हैं? नह ां, र्र र से भी अधधक सूक्ष्म कु छ है जो धारणा में र्ाभमल है । यह
मन या मन है . भौततक आाँिें ककसी वस्त्तु को दे ि सकती हैं, लेककन यद्रद
हम मानभसक रूप से भौततक अांग से नह ां जुड़े हैं, तो उस वस्त्तु की कोई
अनुभूतत नह ां होती है । तो यह मन ह है जो र्र र या भौततक सांसार में
वास्त्तववकता लाता है । मन के त्रबना कोई र्र र नह ां है . इसका अनुभव हम
नीांद में या मष्स्त्तटक की चोि या बेहोर्ी के कारण बेहोर् होने पर करते
हैं। तो यह मन ह है जो र्र र को वास्त्तववकता दे ता है । हालााँकक यह मन
र्र र की तरह िोस नह ां है । मन तेजी से बदल सकता है और ववभभन्न
इांद्रिय धारणाओां के बीच प्रवाद्रहत या वैकष्ल्पक हो सकता है । मन भी समय
में पीछे की ओर बह सकता है और समय में आगे छलाांग लगा सकता
है । इस तरल प्रकृतत के कारण, प्राचीनों ने मन को जल तत्व से
जोड़ा। वैद्रदक ववदवानों का कहना है कक जैसे तरल पानी जम कर बफश का
एक िोस िांड बन जाता है , वैसे ह र्र र और कु छ नह ां बष्ल्क मन की िोस
ऊजाश है । मन का प्रतततनधधत्व अनाभमका उां गल से ककया जाता है । र्ाद दो
द्रदमागों के भमलन का प्रतीक है और इसभलए र्ाद की अांगूिी "मन" उां गल
पर पहनी जाती है । यद्रद आपके पास मन नह ां है तो आपका र्र र भसफश
माांस और हड्डी का एक िुकड़ा होगा, क्योंकक यह तत्व ववचारों के प्रवाह को
चालू रिता है और आपके अष्स्त्तत्व को साथशक बनाता है । इसके अततररक्त,
हम इस त्य को जानते हैं कक पानी प ्
ृ वी की तुलना में कम सूक्ष्म है ,
इसभलए इसे एक िोस वस्त्तु की तरह महसूस नह ां ककया जा सकता है । चूांकक
पानी कम सूक्ष्म है , इसभलए इसे इस तरह भी दर्ाशया जा सकता है : यद्रद
आपका र्र र एक स्त्थान पर मौजूद है , तो आपका मन कह ां और भिक रहा
है क्योंकक यह पानी के प्रवाह की तरह है जो कभी नह ां रुकता।
• बुदधध के रूप में अष्ग्न: अष्ग्न ऊजाश और प्रकार् का स्रोत है । दतु नया की
सुांदरता को उसके सभी उज्ज्वल रां गों में हम सभी को दृश्यमान बनाने के
भलए प्रकार् महत्वपूणश है । र्र र-इांद्रिय-अांगों दवारा प्रातत सांवेद सांके तों को
ववचारों के रूप में माना या अनुवाद्रदत ककया जाता है । प्रत्येक ववचार ककसी
वस्त्तु या छवव को सांदभभशत करता है और हम ऐसे अनधगनत ववचार उत्पन्न
करते हैं। ववचारों के तनरां तर प्रवाह को मन कहा जाता है । द्रदलचस्त्प बात यह
है कक ववचारों को इांिेभलजेंस या बुदधध नामक एक सूक्ष्म पहलू दवारा ताककश क
सूचना पैिनश में प्रवाद्रहत ककया जाता है । बुदधध के त्रबना, मन त्रबना ककसी
तकश के ववचारों का एक यादृष्च्छक प्रवाह मार होगा। द स
ू रे र्ब्दों में ,
बुदधधमिा मन को ताककश क रूप से प्रवाद्रहत करने का मागश प्रर्स्त्त करती
है । इसभलए पूवशजों ने अष्ग्न तत्व को बुदधध से जोड़ा। हमारा मन, ववचारों
की बूांदें हैं जो नद की तरह बहती हैं और ष्स्त्थर नह ां रह सकतीां। यह आगे
से भववटय की ओर या पीछे से अतीत की ओर बहती है । बुदधधमिा का
सबसे महत्वपूणश गुण यह है कक, यह मन को वतशमान क्षण, अष्स्त्तत्व,
जागरूकता की ओर िीांचती है । बुदधध मन को आांतररक जागरूकता से
प्रज्वभलत या जोड़ती है । इस प्रकार बुदधध मन और आांतररक जागरूकता के
बीच का मध्य पुरुष है और इसभलए इसे मध्य उां गल के रूप में दर्ाशया गया
है । आग वह धचांगार है जो कुछ चीजों को दृश्यमान बनाती है और इसमें
तनष्श्चत रूप से बहु त अधधक ऊजाश होती है , और यह बात बुदधध के भलए भी
लागू होती है । जब तक मन में बुदधध की धचांगार नह ां होगी, तब तक यह
ककसी ववर्ेष द्रदर्ा में तनरां तर बहने वाल नद ह रहे गी।
• जागरूकता के रूप में वायु: वायु, ष्जसे अांतररक्ष और वायुमांडल से भी जोड़ा
जा सकता है , एक र्ष्क्तर्ाल जीवन स्रोत है जो जीवन को बनाए रिने के
भलए महत्वपूणश है । जब हम जीववत होते हैं तभी हम अपने र्र र, मन और
बुदधध को महसूस कर सकते हैं। उस जीवांतता को जागरूकता के रूप में
जाना जाता है । जागरूकता के त्रबना, हम मर चुके हैं। यह जागरूकता ह है
जो र्र र, मन और बुदधध तीनों को जीवांत बनाती है । जैसे आग जलाने के
भलए हवा की आवश्यकता होती है , वैसे ह मन और र्र र के कामकाज को
आगे बढ़ाने के भलए बुदधध की अष्ग्न के भलए जागरूकता की आवश्यकता
होती है । इसभलए पूवशजों ने िीक ह जागरूकता को वायु तत्व कहा है । प्राचीन
वैद्रदक ववज्ञान के अनुसार जागरूकता, ष्जसे हम सजीवता के रूप में महसूस
करते हैं, सबसे सूक्ष्मतम ऊजाश रूप है । जलवाटप की तरह जो सांघतनत होकर
तरल पानी बनाता है और अांत में बफश के रूप में जम जाता है , जागरूकता-
ऊजाश सांघतनत होकर तरल मन और िोस र्र र बनाती है । जागरूकता, बुदधध,
मन और र्र र के कु ल योग को ऊजाश कहा जाता है । आधुतनक क्वाांिम
भौततकी इसी तनटकषश पर पहुां चती है कक भौततक जगत (पदाथश) के वल
सांघतनत ऊजाश है । हवा का एक झोंका आपको आस-पास होने वाल ककसी
चीज़ के प्रतत जागरूक होने का एहसास द्रदला सकता है । यह घिक जीवन के
एक भाग के रूप में मनुटय के अष्स्त्तत्व के भलए आवश्यक है । पयाशवरण के
बारे में पयाशतत जागरूकता प्रातत करने के बाद ह , आपके द्रदमाग की बुदधध
आपके र्र र को अच्छी तरह से काम करने के भलए एक तनष्श्चत द्रदर्ा में
चला सकती है ।
• आकार्/ब्रह्माांड/अांतररक्ष चेतना के रूप में : आकार् एक ववर्ाल िुला स्त्थान है
जो हर चीज़ को समायोष्जत करता है । हमारे ऊपर का साफ नीला आकार्
द्रदन में प ्
ृ वी के भलए आश्रय का काम करता है , जबकक रात में यह तारों
वाल आकार्गांगाओां के भलए प्रवेर् दवार के रूप में काम करता है जो हमसे
प्रकार् वषश आगे मौजूद हैं। है रान करने वाला त्य यह है कक स्त्वतन-रद्रहत
गहर नीांद की अवस्त्था के दौरान हम र्र र, मन और बुदधध की जागरूकता
िो दे ते हैं। इस अवस्त्था को वैद्रदक ववदवान चेतना कहते हैं। इसभलए गहर
नीांद की अवस्त्था में , चेतना की जागरूकता कभी भी नटि नह ां होती है
क्योंकक यह चेतना ह है जो जागरूकता, बुदधध, मन और र्र र के रूप में
प्रकि होती है । बुदधध, मन और र्र र के प्रतत जागरूक हु ए त्रबना जागरूकता
में रहना चेतना के रूप में जाना जाता है । द स
ू रे र्ब्दों में चेतना त्रबना र्तश
जागरूकता (त्रबना ककसी रूप के ) है । चेतना के त्रबना कुछ भी अष्स्त्तत्व में
नह ां हो सकता। चेतना में सब कुछ मौजूद है , जीववत, म त
ृ , गततर्ील, अचल,
छोिा बड़ा। जैसे सब कुछ अांतररक्ष में मौजूद है , सारा अष्स्त्तत्व "चेतना के
कारण अष्स्त्तत्व" में आता है । यह कारण है कक पूवशजों ने चेतना को अांतररक्ष
तत्व से जोड़ा। अन्य सभी अांगुभलयों के कायश करने के भलए अांगूिे की उां गल
की तरह, चेतना के त्रबना कु छ भी अष्स्त्तत्व में नह ां रह सकता और कायश
नह ां कर सकता। इसभलए चेतना को अांगूिे की उां गल के रूप में दर्ाशया गया
है । जैसे अांगूिा अछूता रहता है कफर भी अन्य उां गभलयों के भलए आवश्यक
होता है , वैसे ह चेतना जागरूकता, बुदधध, मन और र्र र से अछूती रहती
है । अांगूिे की तरह चेतना अन्य चार पर तनभशर नह ां है , लेककन चारों चेतना
के त्रबना कायश नह ां कर सकते या अष्स्त्तत्व में नह ां रह सकते। जागरूकता,
बुदधध, मन और र्र र, इन चारों का अनुभव ककया जा सकता है , लेककन
चेतना का नह ां, क्योंकक यह स्त्वयां अनुभवकताश है । यह सत्य हमार सामान्य
मानभसक ष्स्त्थतत के भलए स्त्पटि नह ां है और इसभलए पूवशजों ने इस सत्य को
गुतत या रहस्त्यमय कहा है । द भ
ु ाशग्य से आम आदमी ने इस कथन को
अक्षरर्ुः भलया और सोचा कक यह सत्य ककसी के सामने प्रकि नह ां होना
चाद्रहए। लोगों दवारा अनुभव ककए जाने वाले सभी रहस्त्योदघािन यह स्त्व-
प्रकि करण सत्य या ज्ञान हैं। आर्ा है कक आप सांबांध को समझेंगे, चेतना,
जागरूकता, बुदधध, मन और र्र र के ये पाांच पहलू इस ब्रह्माांड में सभी
गुणों के भलए मौभलक हैं। यह जीवन के हर क्षेर में प्रततत्रबांत्रबत होता
है । आकार् चमकदार सूरज से लेकर अाँधेर तारों भर रात तक सब कुछ
अपने में समाद्रहत कर लेता है । यह हर जगह मौजूद है और इसे कभी भी
िाररज नह ां ककया जा सकता है । यह तत्व जीवन का अनुभवकताश है ! चेतना
के त्रबना, आप कु छ भी नह ां जान पाएांगे, भले ह आपके पास र्र र या मन
हो, इसका कोई फायदा नह ां होगा क्योंकक जागरूकता के त्रबना, बुदधध उत्पन्न
की जा सकती है । आइए गहर नीांद में होने का एक उदाहरण लें , लेककन
सपने दे िने की ष्स्त्थतत में नह ां, यहाां आपके पास अपने अष्स्त्तत्व के बारे में
चेतना है , भले ह आपके पास जागरूकता, बुदधध, सतकश द्रदमाग या
कामकाजी र्र र न हो। चेतना अांतररक्ष की तरह है और यह आपके अष्स्त्तत्व
का एकमार कारण है । यह वह तत्व है जो आपको जीववत, मत
ृ या तनजीव
से अलग करता है । चेतना अांगूिे की तरह है ,
5 तत्वों का असांतुलन
• जल तत्व का असांतुलन : जल तत्व का प्रभाव रक्त और उसके घिकों पर
पड़ सकता है । इससे रक्त पतला हो सकता है या रक्त का थक्का जम
सकता है । अन्य प्रभाव साइनसाइद्रिस, सदी, अस्त्थमा, पेर्ाब करने या पेर्ाब
करने के दौरान समस्त्या, एडडमा या सूजन और प्रजनन प्रणाल की ववकृ तत
के रूप में प्रकि हो सकते हैं।
• प्
ृ वी तत्व का असांतुलन : प ्
ृ वी तत्व के असांतुलन के कारण र्र र में वजन
सांबांधी प्रभाव दे िने को भमलते हैं। प ्
ृ वी तत्व का असांतुलन मोिापे या वजन
बढ़ने के साथ-साथ वजन घिने के रूप में भी प्रकि हो सकता है । यह
कोलेस्त्रॉल के स्त्तर को बढ़ाकर अर्ाांत भलवपड प्रोफाइल का कारण बन सकता
है । इसके पररणामस्त्वरूप हड्डडयों और माांसपेभर्यों से सांबांधधत ववकार और
सामान्य कमजोर भी होती है ।
• अष्ग्न तत्व का असांतुलन: अष्ग्न तत्व में असांतुलन के कारण र्र र के अांदर
और बाहर ऊजाश का प्रवाह बाधधत होता है । इससे महत्वपूणश ऊजाश की हातन
हो सकती है । एभसडडि के लक्षण द्रदिने से जिर अष्ग्न भी बाधधत हो
सकती है । इससे मधुमेह, तापमान भभन्नता, त्वचा ववकार और मानभसक
बीमार हो सकती है ।
• वायु तत्व का असांतुलन : वायु तत्व के असांतुलन से तांत्ररका तांर से सांबांधधत
ववकार हो सकते हैं। इसका असर ब्लड प्रेर्र और फे फड़ों पर पड़ सकता
है . इससे गततभांग, ववकृ तत, ददश और अवसाद हो सकता है ।
• आकार् तत्व का असांतुलन : इससे वाणी सांबांधी ववकार हो सकते हैं। इससे
कान के रोग, थायराइड ववकार, भमगी, वाणी ववकार, गले की समस्त्याएां और
मानभसक रोग हो सकते हैं।
भर्व का अथश है र्ुदध या र्ुभ। भर्व एक गैर-कां पनर्ील ऊजाश को दर्ाशते हैं जो प्रकृ तत में
अदवैत है और सत्व, रजस और तमस के त्ररगुण से मुक्त है । भर्व र्ुभ हैं क्योंकक यह
मेर र्ाश्वत आत्मा की वास्त्तववक प्रकृ तत को दर्ाशते हैं जो त्ररगुणों से अछू ती, पारलौककक
और समय की र्ुरुआत से हमेर्ा बदलती रचनाओां से परे है । भर्व का वास्त्तववक अथश
सवोच्च चेतना, तेज और जागरूकता में तनद्रहत है जो साांसाररक माया से अप्रभाववत है ।
भर्व के कई पहलू हैं, कल्याणकार भी और भयावह भी। भर्व र्ुभ हैं, अदभुत हैं (रुि),
न त्ृ य के दे वता (निराज), ब्रह्माांड के भगवान (ववश्वनाथ), वे सांहारक और पररवतशक
हैं। वह असीम, पारमाधथशक, अपररवतशनर्ील, तनराकार और अनाद्रद या अांत रद्रहत भी है ।
तीसरा नेर भर्व की द्रदव्य एवां र्ुदध दृष्टि का प्रतीक है ।
भर्व की तीसर आांि माया की दतु नया के ववनार् का प्रतीक है । यह ज्ञान की आांि है
जो सह और गलत, ज्ञान और अज्ञान, सत्य और झूि, सत्य और असत्य के बीच अांतर
करती है । तीसर आांि क्रोध का भी प्रतततनधधत्व करती है , इसे हमेर्ा बांद रहना चाद्रहए।
मेर दो आाँिें र्ाश्वत ज्ञान प्रातत करने, ईश्वर (भर्व) को समझने और 2035 से पहले
प्
ृ वी के हर कण में र्ाश्वत पररवतशन लाने के भलए पयाशतत नह ां हैं।
आध्याष्त्मक दृष्टिकोण से, तीसर आाँि मेर आांतररक जागतृ त और आध्याष्त्मक जाग तृ त
का प्रतततनधधत्व करती है । यह अष्ग्न या ज्ञान और ज्ञान की रोर्न रोर्नी का
प्रतततनधधत्व करता है जो मुझे र्ाश्वत सत्य (सत्य) प्रातत करने की अनुमतत दे ता
है । मेर तीसर आांि साांसाररक इच्छाओां की अस्त्वीकृतत का प्रतततनधधत्व करती है । मुझमें
समता (सांतुलन), साधुता (चररर की र्ुदधता) और द रू दृष्टि (व्यापक दृष्टि) होनी
चाद्रहए। मुझे स्त्वाथश से उत्पन्न इच्छाओां का भर्कार नह ां बनना चाद्रहए। महादे व की
तीसर आांि से कोई नह ां बच सकता. जब तक मेरा मन र्ाांत रहता है तब तक मेर
तीसर आाँि बांद रहती है , लेककन जब मुझे क्रोध आता है , तो कोई भी चीज़ (प ्
ृ वी के
हर कण पर मौजूद सभी सजीव और तनजीव जीव/वस्त्तुएाँ) मेर तीसर आाँि की र्ुदध
अष्ग्न से बच नह ां पाती हैं।
तीसर आांि मेरे अांतज्ञाशन, अांतदृशष्टि और ज्ञान जैसे गुणों का भी प्रतीक है ।
मेर तीसर आाँि र्ष्क्त, स ज
ृ न, पालन और ववनार् का प्रतीक है , यह आद्रदकाल से
आांतररक ज्ञान और स ज
ृ न के र्ाश्वत ज्ञान की भी आाँि है । भर्व की तीसर आाँि मुझे
दृश्य से परे दे िने की अनुमतत दे ती है , ष्जसे मेर अन्य दो आाँिें नह ां दे ि सकतीां।
मेर तीसर आांि अच्छे (सत्य) को बुराई से बचाती है । जब तीसर आाँि िुलती है , तो
आद्रद काल से प ्
ृ वी के हर कण पर मौजूद सारा अांधकार और अज्ञान नटि हो जाता है ।
अनांत प ्
ृ वी, अनांत स्त्वगश, अनांत ब्रह्माांड और अनांत रचनाओां में सभी दे वता, राक्षस और
मनुटय आद्रदकाल से ह तीसर आांि से डरते हैं। यदयवप तीसर आाँि अधधकाांर् समय
बन्द रहती है , परन्तु जैसे ह वह िुलती है ववनार् हो जाता है । ऐसा इसभलए है क्योंकक
तीसर आांि वह रहस्त्यमय आांि है जो भौततक द तु नया से परे दे िती है ।
भर्व का ब्रह्माांडीय न त्ृ य "ताांडव", र्ाश्वत ऊजाश के पाांच भसदधाांतों का प्रतीक है - स ज
ृ न,
सांरक्षण, ववनार्, भ्रम और मुष्क्त। भर्व दवारा अपने ब्रह्माांडीय न त्ृ य से र्ुरू ककया गया
ववनार् छोि सी प ्
ृ वी पर नई रचना का माध्यम है ।
ब्रह्मा - स ज
ृ न करता है
भर्व - नटि/रूपाांतररत करते हैं।
ववटणु - के वल र्ाश्वत सत्य को कायम/सांरक्षक्षत करता है ।
ब्रह्मा – स ज
ृ न करता है
भर्व- ववनार्/पररवतशन करते हैं।
ववटणु - के वल र्ाश्वत सत्य की रक्षा करते हैं।
ब्रह्मा - तनमाशण
भर्व- नार्/रूपाांतरण।
ववटणु - के वल र्ाश्वत सत्य जपतो।
मैं न तो मन हूां , न बुदधध, न व्यवहार, न ह धचि हूां , मैं न तो कान हूां , न जीभ, न
सासा, न ह दर्शन हूां , मैं न तो आकार् हूां , न धरती, न अष्ग्न, न ह वायु , मैं तो
र्ुदध स्त्वतांर हूां , अनाद्रद, अनांत भर्व हूां ।
मैं न मन हूां , न बुदधध, न अहां कार, न ह अांतरात्मा का प्रततत्रबम्ब हूां । मैं पाांच इांद्रियाां
नह ां हूां . मैं उससे परे हूां . मैं न आकार् हूां , न प ्
ृ वी, न अष्ग्न, न वायु (अथाशत पाांच
तत्व)। मैं वास्त्तव में वह र्ाश्वत ज्ञान और आनांद , भर्व, प्रेम और र्ुदध चेतना हूां ।
न पुण्यां न पापां न सौख्यां न द :ु िां न मांरो न तीथं न वेदो न यज्ञुः |अहां भोजनां नैव
भोज्यां न भोक्ता धचदानांद रूप: भर्वोऽहां भर्वोऽहम ् ||
न मैं पुण्य हूां , न पाप, न सुि और न दिु , न मांर, न तीथश, न वेद और न यज्ञ, न
भोजन हूां , न जाने वाला हूां और न िाने वाला हूां , मैं चैतन्य रूप हूां , आनांद हूां , भर्व हूाँ ,
भर्व हूाँ …
मैं न पुण्य हूां , न पाप हूां , न सुि हूां , न द ि
ु हूां , न मांर हूां , न तीथश हूां , न वेद हूां , न यज्ञ
हूां , न मैं अन्न हूां , न िाऊां गा, न िाने वाला हूां , मैं चैतन्य स्त्वरूप हूां , आनांद हूां , मैं हूां
भर्व, मैं भर्व हूां ...
आचारल्लभते धमशम ् आचारल्लभते धनम ्। आचाराधियमातनोतत आचारो हन्त्यलक्षणम ् ॥
सदाचार से ह धमश की प्राष्तत होती है , सदाचार से ह धन की प्राष्तत होती है , सदाचार
से ह उच्च स्त्थान प्रातत होता है , सदाचार से ह अर्ुभ सुसमाचार का नार् होता है ।
अच्छे आचरण से व्यष्क्त को धमश की प्राष्तत होती है ; अच्छे आचरण से धन की प्राष्तत
होती है ; अच्छे आचरण से व्यष्क्त उच्च पद प्रातत करता है ; अच्छा आचरण ह सवोच्च
चररर है ; अच्छा आचरण ह सत्य है .
सदयां हृदयां यस्त्य भावषतां सत्यभूवषतम ्। कायां परद्रहतां यस्त्य कभलस्त्िस्त्य करोतत ककम ्।
मेरा हृदय करुणा से भर गया है ; वाणी सत्य से सुर्ोभभत है . मेरे र्ुदध कमश, र्ुदध
वाणी और र्ुदध ववचार द स
ू रों और भगवान के लाभ के भलए हैं - कभलपुरुष/नश्वर
मनुटय मेरा क्या कर सकता है ?
ष्जसके हृदय में दवा है , उसकी वाणी में सत्य है , द स
ू रे के द्रहत के भलए जो काम करता
है , उसका काल (म त्ृ यु) भी क्या होता है अथाशत उस व्यष्क्त को म त्ृ यु का भी भय नह ां
होता।
गोपातयतरां दातारां धमशतनत्यमतद्रितम ्। अकामदवेषसांयुक्तमनुजशयष्न्त मानवाुः।। -
सुभावषतरत्नभांडागार
एमलॉग में कहा गया है कक राजा के प्रतत स्त्नेह है , जो उनकी रक्षा करता है , दान दे ता
है , धमश के प्रतत समवपशत है , व्यापक जाग तृ त है , और इरादे , घ ण
ृ ा से मुक्त हैं।
लोग उस राजा से तयार करते हैं जो उनकी रक्षा करता है , दान दे ता है , धमश के प्रतत
समवपशत है , जाग त
ृ है , काम, क्रोध और घ ण
ृ ा से मुक्त है और तनभशय है ।
सत्येनोत्पदयते धमो दयादानैववशवधशते। क्षमाया स्त्थातयते धमशुः क्रोधलोभैववशनश्यतत ॥
धमश सत्य से उत्पन्न होता है । औषधध और दान के माध्यम से यह बढ़ गया
है । क्षमार्ीलता की भावना से यह स्त्थावपत होता है । क्रोध और लालच के माध्यम से यह
ववनार् हो जाता है । .
धमश सत्य से उत्पन्न होता है । करुणा और प्रसाद से यह बढ़ता है । सहनर्ीलता के
माध्यम से, यह कायम रहता है (अष्स्त्तत्व में रहता है )। क्रोध और लोभ से यह लुतत हो
जाता है ।
यो ददातत सहस्त्राखण गावमश्व र्तातन च। अभयां सवशसत्वेभ्य स्त्तददानभमतत चोच्यते॥
जो सभी मिाधीर्ों को अभयदान दे ता है , उसे दान कहते हैं।
जो सभी प्राखणयों को अभय प्रदान करता है उसे दान/दान/दान कहा जाता है ।
ब्रह्म सत्यम ्, जगत ् भम्या ईश्वर सत्य है , सांसार एक भ्रम है ।
यथा धचिां तथा वाचो यथा वाचस्त्तथा कक्रया ।धचिे वाधच कक्रयायाां च साधूनमेकरूपता
॥ जैसा मन, वैसी वाणी; जैसी वाणी वैसी कक्रया। मेरे मन, वाणी और कमश में एकरूपता
है .
यो ददातत सहस्त्राखण गावमश्व र्तातन च। अभयां सवशसत्वेभ्य स्त्तददानभमतत चोच्यते ॥जो
अनाद्रद काल से प ्
ृ वी के कण-कण पर सभी सजीव और तनजीव प्राखणयों/वस्त्तुओां में भूि
और भय को नटि करता है , उसे उदारता/दान कहा जाता है ।
मैं अपने ववश्वास से बना हूां . जैसा मैं ववश्वास करता हूां , वैसा ह मैं हूां - भगवद गीता
"मुझे अपने तनधाशररत कतशव्यों का पालन करने का अधधकार है , लेककन मैं अपने कायों
के फल का हकदार नह ां हूां ।" - भगवद गीता
"मैं के वल कमश का हकदार हूां , उसके फल का कभी नह ां।" - भगवद गीता"
यद्रद कोई मुझे प्रेम और भष्क्त के साथ एक पिा, एक फू ल, एक फल या पानी प्रदान
करता है , तो मैं इसे स्त्वीकार करूां गा। - भगवद गीता, भगवद गीता
सभी के प्रतत सदभावना द्रदिाएाँ, तनडर और र्ुदध रहें , आध्याष्त्मक जीवन के प्रतत अपने
दृढ़ सांकल्प या समपशण में कभी कमी न रिें । मुक्तहस्त्त से दो। आत्म-तनयांत्ररत,
ईमानदार, सच्चे, प्रेमपूणश और सेवा करने और बदलने की इच्छा से पररपूणश बनें । र्ास्त्रों
की सच्चाई का एहसास करें ; अलग रहना सीिें और त्याग में आनांद लेना सीिें । क्रोध
न करें और न ह ककसी जीववत प्राणी को नुकसान पहुाँ चाएाँ बष्ल्क दयालु और सौम्य
बनें ; सभी के प्रतत सदभावना द्रदिाओ. जोर्, धैयश, इच्छार्ष्क्त, पववरता ववकभसत
करें ; दवेष और अभभमान से द रू रहो, कफर मैं अपना द्रदव्य भाग्य प्रातत कर लूांगा।'' -
भागवद गीता
काम के भलए काम करो, अपने भलए नह ां। कमश करो लेककन मेरे कमों से आसक्त मत
होओ। द तु नया में रहो, लेककन इसके नह ां, ”-भगवद गीता
"मैं कमश में अकमश और अकमश में कमश दे िता हूां , मैं मनुटयों में बुदधधमान हूां ।" - भागवद
गीता
“जब मैं इांद्रियों के सुि पर ध्यान केंद्रित करता हूां , तो मेरे अांदर उनके प्रतत आकषशण
पैदा हो जाता है । आकषशण से इच्छा उत्पन्न होती है , कब्जे की लालसा, और यह जुनून,
क्रोध की ओर ले जाती है । जुनून से मन की उलझन, कफर याददाश्त की हातन, कतशव्य
की ववस्त्म तृ त होती है । इस हातन से तकश का ववनार् होता है , और तकश का ववनार् मुझे
ववनार् की ओर ले जाता है ।'' भगवद गीता
“आत्मा ववनार् से परे है । कोई भी उस आत्मा का अांत नह ां कर सकता जो र्ाश्वत
है । -भागवद गीता"
“प्रत्येक तनुःस्त्वाथश कायश, अजुशन, ब्रह्म, र्ाश्वत, अनांत भगवान से पैदा होता है । वह सेवा
के प्रत्येक कायश में उपष्स्त्थत रहते हैं। हे अजुशन, सारा जीवन इसी तनयम पर आधाररत
है । यद्रद मैं इसका उल्लांघन करता हूां , अपने सुि के भलए अपनी इांद्रियों में भलतत रहता
हूां और द सू रों की जरूरतों को नजरअांदाज करता हूां , तो मैंने अपना जीवन बबाशद कर
द्रदया है । आनांद और त ष्ृ तत का स्रोत भमल जाने के बाद, मैं अब बाहर द तु नया से िुर्ी
नह ां चाहता। मुझे ककसी भी कायश से कुछ भी हाभसल या िोना नह ां है ; न तो लोग और
न ह चीज़ें मेर सुरक्षा को प्रभाववत कर सकती हैं। मैं ववश्व के कल्याण के भलए तनरां तर
प्रयत्नर्ील रहता हूाँ ; तनुःस्त्वाथश कमश के प्रतत समपशण से मैं जीवन के सवोच्च लक्ष्य को
प्रातत करूां गा। मैं अपना काम हमेर्ा द स ू रों के कल्याण को ध्यान में रिकर करता हूां ।” -
भागवद गीता
“हजारों व्यष्क्तयों में से, र्ायद ह कोई पूणशता के भलए प्रयास करता है ; और ष्जन लोगों
ने पूणशता प्रातत कर ल है , उनमें से र्ायद ह कोई मुझे सच में जानता हो। (7,3)" -
भगवद गीता
जब ध्यान में महारत हाभसल हो जाती है , तो मन हवा रद्रहत स्त्थान में द पक की लौ की
तरह अिल रहता है । र्ाांत मन में , ध्यान की गहराई में , आत्मा स्त्वयां को प्रकि करती
है । स्त्वयां के माध्यम से स्त्वयां को दे िकर, मैं पूणश तष्ृ तत के आनांद और र्ाांतत को जानता
हूां । इांद्रियों से परे , र्ाांत मन में प्रकि उस स्त्थायी आनांद को प्रातत करने के बाद, मैं
कभी भी र्ाश्वत सत्य से ववचभलत नह ां होता। ”- भगवद गीता
सवशर सांबुदधयुः - सभी ष्स्त्थततयों में समभाव बनाए रिें
सवशभूतद्रहते रताुः - सभी प्राखणयों के कल्याण में सांलग्न रहें
सष्न्नयम्येष्न्ियग्रामम ् - इांद्रियों और मन को वर् में रिें
अव्यक्तां पयुशपासते - ईश्वर को ब्रह्माांड और जीववत प्राखणयों के पीछे की र्ुदध चेतना के
रूप में समझें
मेरे भगवान भर्व धमश के धारक हैं
मेरे भगवान भर्व सत्य के धारक हैं
मेरे भगवान भर्व पुरुषाथश के धारक हैं
मेरे भगवान भर्व यज्ञ के धारक हैं
मेरे भगवान भर्व आद्रद काल से अनांत प ष्ृ ्वयों, अनांत स्त्वगों, अनांत ब्रह्माांडों और अनांत
रचनाओां के तनमाशता, पालनकताश और सांहारक हैं।
सत्या 2035
2035 से पहले प ्
ृ वी के कण-कण पर महादे व/भर्व - र्ुभ
भर्व का अथश र्ुदध या र्ुभ है । भर्व एक गैर-वैबेररयन ऊजाश को धचत्ररत करता है जो
प्रकृ तत में अदवैत है और सत्व, रजस और तमस के त्ररगुणों से मुक्त है । भर्व र्ुभ हैं
क्योंकक ये त्ररगुणों से धूभमल मेर सनातन आत्मा के वास्त्तववक स्त्वरूप को प्रभाववत
करते हैं, समय की र्ुरुआत से ह पारलौककक और कभी-कभी-बदलने वाले आदर्ों से
अलग हो जाते हैं। भर्व का सह अथश सवोच्च, स्त्वतांर, तेज और जागरूकता में तनद्रहत है
जो ब्रह्मा से अप्रभाववत है ।
भर्व के कई भसदधाांत, उदार और साथ ह भयानक हैं। भर्व र्ुभ हैं, भयानक (रुि),
न त्ृ य के भगवान (निराज), ब्रह्माांड के भगवान (ववश्वनाथ), वे ववध्वांसक और पररवतशक
हैं। वह काि, पारलौककक, अपररवतशनवाद , तनराकार और आद्रद या अांत के भी है ।
तत
ृ ीय भर्व दर्शन के द्रदव्य एवां र्ुदध दर्शन का प्रतीक है ।
भर्व की तीसर आांि माया (ब्रह्म) की द तु नया के ववनार् का प्रतीक है । यह ज्ञान की
दृष्टि है जो सह और गलत, ज्ञान और अज्ञान, सत्य और असत्य के बीच अांतर करता
है । तीसरे क्रोध का भी प्रतततनधधत्व होता है , इसे हमेर्ा बांद रिना चाद्रहए।
मेरे दो र्ाश्वत ज्ञान प्रातत करने के भलए ष्स्त्थरता नह ां है , भगवान (भर्व) को मान्यता
द गई है और 2035 से पहले प ्
ृ वी के कण-कण में र्ाश्वत पररवतशन ककया गया है ।
आध्याष्त्मक दृष्टिकोण से, तीसर आाँि मेरे आांतररक दे वता और आध्याष्त्मक जाग तृ त
का प्रतततनधधत्व करती है । यह अष्ग्नमय ज्ञान की रोर्नी का प्रतततनधधत्व करता है जो
मुझे र्ाश्वत सत्य प्रातत करने की अनुमतत दे ता है । मेर तीसर आांि वैयष्क्तक स्त्िू डडयो
का प्रतततनधध है । मेरे पास समता (सांतुलन), साधुता (चररर की पववरता) और द रू दृष्टि
(व्यापक दृष्टि) होनी चाद्रहए। मुझे स्त्वाथश से उत्पन्न कलाकार का भर्कार नह ां होना
चाद्रहए। महादे व के तीसरे उत्सव से कोई बच नह ां सकता। जब तक मेरा मन र्ाांत है ,
तब तक मेरा तीसरा नेर बांद रहता है , लेककन जब मैं क्रोधधत होता हूां , तब मेरे तीसरे
नेर की र्ुदध अष्ग्न से कुछ भी (प ्
ृ वी के कण-कण पर सभी चेतन और तनजीव
जीव/वस्त्तुएां) बच नह ां पाता ।।
तीसरा मेरे आाँि का गुणधमश जैसे अांतरज्ञान, काजल और ज्ञान को भी जानें ।
मेर तीसर आाँि र्ष्क्त, तनमाशण, जीववका और ववनार् का प्रतीक है , यह समय की
र्ुरुआत से ह आांतररक ज्ञान और स ज
ृ न के र्ाश्वत ज्ञान की आाँि भी है । भर्व की
तीसर आांि मुझे स्त्पटि से दे िने के उिर में भमलती है , कु छ ऐसा जो मैं अन्य दो नह ां
दे ि सका।
मेर तीसर आाँि अच्छे (सत्य) को बुराई से बचाती है । जब तीसर आाँि िुलती है , तब
समय की र्ुरुआत से ह प ्
ृ वी के कण-कण पर मौजूद समस्त्त अांधकार और अज्ञान का
नार् हो जाता है ।
समय की र्ुरुआत के बाद अनांत प ्
ृ वी, अनांत स्त्वगश, अनांत ब्रह्माांड और सभी दे वताओां,
राक्षसों और कलाकृ ततयों पर तीसर आांि से डर लगता है । हालााँकक थडश आई ज्यादातर
समय बांद रहती है , लेककन जैसे ह यह िुलती है , ववनार् हो जाता है । ऐसा ह है
क्योंकक तीसर आांि रहस्त्यमयी आांि है जो भौततक द तु नया से पीछे हि गई है ।
भर्व का लौककक न त्ृ य "ताांडव", र्ाश्वत ऊजाश के पाांच भसदधाांत- तनमाशण, सांरक्षण,
ववनार्, ब्रह्मा और मुष्क्त का प्रतीक है । भर्व ने अपने लौककक न त्ृ य के साथ ववनार्
की र्ुरुआत की, भलद्रिल सी अथश पर नई रचना का एक माध्यम है ।

पांचतत्व क्या है इनका महत्व FIVE ELEMENTS PANCHTATVA KYA HAI IN


HINDI
June 3, 2023 Kanaram siyol GENERAL KNOWLEDGE

पांचतत्व क्या है इनका महत्व five Elements Panchtatva Kya hai In Hindi केवल
अष्ग्न ह पांचतत्व में प्रमुि है जो भय उत्पन्न करती है . हम साांस लेते है , प्
ृ वी पर पैर
रिते, जल में स्त्नान करते है.

हम केवल अष्ग्न के तनकि सम्मानपव


ू क
श जाते है . यह एक ऐसा तत्व है जो सदा जागरूक
रहता है. और दरू से दे िने में सदा सुिकार लगता है .

कभी कभी र्ीतप्रधान दे र्ों को छोड़कर हम ष्जस वायु में साांस लेते है , उस वायु को दे ि
नह पाते है और कौन कहेगा ऐसा िश्य मनोहर होता है .

पांचतत्व क्या है महत्व five Elements Panchtatva Kya hai In Hindi

“तछती जल पावक गगन समीरा, पांचतत्व रधचत अधम सर रा” यानी प्


ृ वी, जल, अष्ग्न,
वायु और आकार् से हमार काया बनी हुई हैं. इन पााँचों के सांयोग से ह हमारा र्र र
बनता है इसका पालन पोषण होता है और अांत में इन्ह में समाद्रहत हो जाता हैं.

हम प् ृ वी को घमू ते हुए दे ि नह पाते है. उसके भीतर से ह जन्म लेने वाले वक्ष ृ या
अन्यान्य वनस्त्पततयााँ इतने धीरे धीरे बाहर तनकलती है.कक उन्हें दे िने पर आनन्द नह
आता है.

प्
ृ वी को दे िने पर ककसी का धैयश छुि सकता है. क्युकक वह तो अनांत ववर्ाल
अधग्रभर्िाओां की एक पतल पपड़ी जैसी है. ष्जसका तनमाशण अपेक्षाकृत अवधचशन है. इन
िश्यो के पीछे लालातयत रहना धैयश का धौतक नह है.

नद के रूप में बहने वाला जल एकाध क्षण के भलए दे िते समय अवश्य ह रमणीय प्रतीत
होता है. कफर उसके बाद जल की अतनयभमत गततर्ीलता थकान वाल हो जाती है .

ववववधता तथा रमणीयता की िष्टि से केवल सम्पूणश समुि का जल ह अष्ग्न की प्रततस्त्पधाश


कर सकता है . ककन्तु एक इमारत के प्रज्वभलत होते समय ष्जस प्रकार का िश्य द्रदिाई
दे ता है , उसकी तुलना में कम रोमाांधचत प्रतीत होता है. जहााँ तक अन्य बातों का सम्बन्ध
है .
समुि की नीरसता तथा उकलाहि के अलग अलग अवसर होते है . भले ह वह पण
ू श रूप से
प्रर्ाांत लगता हो. ककसी जाल या झांझर के भीतर रिी हुई थोड़ी सी अष्ग्न तब तक
मनोरां जक और प्रेरक लगती है.

जब आप उसे बाहर न तनकाले इस प्रकार की अष्ग्न एक मुट्िी भर भमिि अथवा धगलार्


भरे जल के समान है. जो आाँिों के भलए आनन्द का ववषय तो बनता ह है . वह ककसी
गौरवपूणत
श महता का सांकेत भी करती है .

अन्य रूपों में भले ह वे प्रचरु नमूनों के रूप में ववदयमान हो. अष्ग्न की पववरता की
अपेक्षा हमे कम प्रभाववत करते है.पौराखणक आख्यान के मुतात्रबक़ केवल अष्ग्न को ह स्त्वगश
से प्
ृ वी पर उतारा गया था. अन्य पांचतत्व र्ुरुआत से ह यह पर ववदयमान थे.

What are the five elements of the body ?

हमारे ऋवष मनीवषयों और ग्रांथों में पञ्चतत्व अथाशत पाांच तत्वों के बारे में बताया गया हैं
जो है भभू म अथवा धरती, आकार् या गगन, वाय,ु अष्ग्न और जल. मानव जीवन की
उत्पवि सम्पण
ू श जीवन का पालन इन्ह तत्वों पर आधाररत हैं.

न केवल जीवन के भलए इन पाांच तत्वों का होना जरूर हैं, बष्ल्क जीवनोपराांत भी हमार
दे ह इन पांचतत्वों में ववल न हो जाती हैं. मतु नयों ने पांचतत्वों को सरल र्ब्दों से समझाने के
भलए इन्हें भगवान कहा हैं. यानी भ से भभू म, ग से गगन, वा से वायु अ से अष्ग्न और न
से नीर या जल.

पांचतत्वों के गुणधमश

• प्
ृ वी– धैयश और सहन र्ष्क्त की पयाशय धरती की सतह पर करोड़ो जीवों का जीवन
हैं. इसे से उत्पन्न अन्न से हम अपना पेि भरते हैं. पीने योग्य जल और वायु भी
इसी के वातावरण में भमलती हैं.
• जल – जीवन के महत्वपूणश तत्वों में जल भी एक हैं, इसके त्रबना महज कुछ घांिे या
द्रदनों में ह जीवन ल ला समातत हो जाएगी. मांगल आद्रद ग्रहों पर जीवन इसभलए
नह ां हैं क्योंकक वहाां जल नह ां हैं. इसीभलए तो कहा जाता है जल ह जीवन हैं, त्रबन
जल सब सन
ू .

• अष्ग्न – यहााँ अष्ग्न का आर्य ऊजाश और र्ष्क्त से हैं. ऊजाश जो हमें भोजन और
सूयश से प्रातत होती हैं. प्
ृ वी पर ववदयमान जल और वायु को पाकर स्त्वयां को
उजाशवान महसूस करते हैं. सजीवों और तनजीवों में मूल अांतर उजाश का ह हैं. हमारे
भलए ऊजाश का सबसे बड़ा स्रोत सूयश हैं.
• वायु तत्व- साांस लेने के भलए प्राणवायु जरूर हैं, इसकी अल्पमारा में दम घि
ु ने
लगता हैं. यह हमारे जीवन के भलए आवश्यक पांचभत
ू ो में एक हैं. वायम
ु ांडल में
उपलब्ध कुल गैसों में केवल ऑक्सीजन ह जीवनदातयनी है इसे प्राणवायु भी कहते
हैं.
• आकार् तत्व– पांचतत्वों में अांततम तत्व आकार् या गगन हैं जो सभी तत्वों में
सांतुलनकार माना जाता हैं. यह हमारे वायुमांडल और ब्रह्माांड को स्त्थातयत्व दे ता हैं.

आचायश चरक ने इन पाांच तत्वों के सांगम से सभी स्त्वादों का तनमाशण भी बताया हैं. उनके
ग्रन्थ चरक सांद्रहता में प्रमुि तत्वों के भमलन से बने स्त्वादों के तनम्न सूर बताये गये हैं.

1. मीिा-प्
ृ वी+जल
2. िारा- प्
ृ वी+अष्ग्न
3. िट्िा- जल+अष्ग्न
4. तीिा-वायु+अष्ग्न
5. कसैला-वाय+
ु जल
6. कड़वा-वायु+आकार्

पांचतत्वों का मानव र्र र पर प्रभाव व महत्व Effect and importance of Panchatatva


on human body

जब हम दे ह र्र र या काया की बात करते है तो यह प्


ृ वी, जल, वायु और अष्ग्न इन
चारों के समागम का रूप हैं. हमारा र्र र रस, रक्त, माांस, भेद, अष्स्त्थ, मज्जा, एवां र्क्र

इन सात धातओ
ु ां का सांयोग है ष्जसे हम भौततक अथवा स्त्थल
ू र्र र कहते हैं.

आकार्, वायु, अष्ग्न, जल और अष्ग्न इन्हें सूक्ष्म भूत या तत्व कहा जाता है . प्रकृतत में
ववदयमान इन्ह तत्वों से र्र र बनता हैं अल्प मारा में इनकी उपष्स्त्थतत के उपरान्त ये
बेहद र्ष्क्तर्ाल होते हैं. इन पांचभत
ू ों का प्रकृतत के साथ सह सामजस्त्य त्रबिाया जाए तो
व्यष्क्त में बड़ी आांतररक र्ष्क्त पैदा की जा सकती हैं.

अब हम इन सभी पाांच तत्वों के हमारे मानव र्र र के बनने से लेकर इस पर पड़ने वाले
प्रभाव के बारे में जानेगे.
आकार् तत्व का मानव र्र र पर प्रभाव व महत्व:- Effect and importance of sky
element on human body

हमारे द्रहन्द ू र्ास्त्रों में कहा गया है आकार् से वायु, वायु से अष्ग्न, अष्ग्न से जल और
जल से हमार प्
ृ वी की उत्पवि हुई हैं. आकार् एक अणु ववह न तत्व हैं.

इसकी अनप
ु ष्स्त्थतत में मानव र्र र िीक वैसा ह हो जब हम उपवास रिते हैं आमार्य को
अन्न न भमले तो सार ऊजाश क्षीण हो जाती हैं. इस तरह जीवन में र्ष्क्त का सांचार का
श्रेय आकार् को जाता हैं.

यह हमारे र्र र को तनमशल कर र्ेष चार तत्वों को उनके यथास्त्थान और ष्स्त्थतत को बनाए
रिने में भी मदद करता हैं. आकार् को सभी तत्वों को जन्म दे ने वाला और अांत में सभी
को अपने में समा दे ने वाला कहा गया हैं. आकार् का आर्य र्ून्य होता हैं अथाशत एक
िाल पन जहााँ ककसी की उपष्स्त्थतत नह ां हैं.

ष्जन व्यष्क्तयों में आकार् तत्व की प्रधानता होती है वे सदै व प्रसन्नधचत, स्त्फूतश, उजाशवान,
और हल्के फुल्के प्रतीत होते हैं जबकक इसकी कमी वाले व्यष्क्त थके हारे नािर्
ु , ऊजाश
ववह न और आलस्त्य में रहते हैं.

धाभमशक ग्रांथों में दे वताओां और ऋवष मतु नयों की अलौककक र्ष्क्तयों के बारे में हम सभी ने
पढ़ा हैं. कहते है वे उपवास/ तपस्त्या आद्रद से अपनी दे ह में आकार् तत्व में वद
ृ धध करते थे.

इसकी मदद से ह वे मनचाहे स्त्थान पर क्षणभर में आ जा सकते थे, उड़ सकते थे क्षमता
से अधधक भार चीज उिा लेते थे ककसी की दे ह में प्रववटि हो जाया करते थे. इसभलए कहा
जाता है जो मानव आकार् तत्व की प्रधानता को बढ़ा लेता है वह र्ार ररक, मानभसक और
आध्याष्त्मक रूप से अजेय हो जाता हैं.

वैसे दे िने में आकार् सभी पांचतत्वों में ववस्त्तत


ृ हैं मगर इसकी एक ववर्ेषता यह भी है कक
यह बेहद सूक्ष्म से सक्ष्
ू म स्त्थान में भी प्रवेर् कर सकता हैं.

आकार् तत्व की मारा अपने र्र र में बढ़ाने के भलए ढ ले ढाले सूती वस्त्र पहनना चाद्रहए
साथ ह अधधक समय तक िुले गगन में ववचरण करना, स्त्वच्छ वातावरण में अधधक
समय व्यतीत करना, तनयत अवधध में व्रत रिना और अपने भोजन को र्ुदध व साष्त्वक
रिकर इस तत्व की वद
ृ धध की जा सकती हैं.
वायु तत्व का मानव र्र र पर प्रभाव व महत्व- Effect and importance of air
element on human body

इससे पूवश हमने प्रमुि पांचतत्व आकार् के बारे में जाना हैं, अब हम वायु अथाशत हवा के
ववषय में जानेगे. यह आकार् के उदभव के साथ ह स्त्वयां प्रततस्त्थावपत होने वाला तत्व भी
हैं.

वायु अन्य तत्वों अष्ग्न, जल और प्


ृ वी की तनमाशणकताश भी हैं. मानव जीवन अन्य तत्वों
जैसे अन्न, जल, धूप के बगैर कुछ समय के भलए जीववत रह सकता हैं मगर वायु के
अभाव में जीवन असम्भव हैं.

वायु तत्व से जीवन में र्ष्क्त और स्त्फूततश भमलती हैं इसके भलए जरूर है भमलने वाल वायु
र्ुदध हो. दवू षत वातावरण मे रहने वाले लोगों के साथ अक्सर स्त्वास्त््य समस्त्याएां दे िी
जाती हैं कई भयानक बीमाररयााँ प्रदवू षत वायु के कारण मनुटय को अस्त्वस्त्थ बना रह हैं.

आज भी गााँवों में बसने वाले लोग सवु वधासम्पन्न र्हरों में बसने वाले लोगों से अधधक
लम्बी आयु जीते हैं, क्योंकक वे अपना अधधकतर जीवन िल
ु े प्राकृततक माहौल में त्रबताते हैं
स्त्वच्छ भोजन और स्त्वच्छ भोजन द घाशयु प्रदान करते हैं.

अष्ग्न तत्व का र्र र पर प्रभाव व महत्व :- Effect and importance of fire element
on body

अष्ग्न या ऊटमा हमें कई स्रोतों से भमलती हैं जैसे पके फल, अनाज, जल आद्रद से भी इस
तत्व की पूततश हो जाती हैं. सूयश की धूप में इन फलों और अनाजों के पकने के कारण इनमें
बड़ी मारा में ऊजाश का भांडार होता हैं. पांचतत्वों में वायु के पश्चात अष्ग्न तत्व आता हैं जो
समान रूप से अन्य तत्वों की तरह महत्वपण
ू श हैं.

सांसार का अष्स्त्तत्व अष्ग्न पर ह द्रिका हैं इसके ववभभन्न रूपों में हम ऊजाश पाते हैं. सूयश से
धूप से भमलने वाल वविाभमन डी हड्डडयों को मजबूत बनाने में कारगर हैं. साथ ह धूप के
कारण र्र र में ववभभन्न रोगाणु और कीिाणुओां से भी बचाव हो पाता हैं.

तनत्य सूयश की रोर्नी से र्र र में वात वपि और कफ की समस्त्या से भी छुिकारा पाया जा
सकता हैं. सूयश के इसी महत्व को ध्यान में रिते हुए हमारे ऋवष मुतनयों ने सुबह के समय
योग और सूयश नमस्त्कार की पदधतत िोजी.
जल तत्व का र्र र पर प्रभाव व महत्व- Effect and importance of water element
on the body

हमारा र्र र 70 प्रततर्त जल से ह बना हैं, साथ ह हम पानी पीकर, फल सष्ब्जयों आद्रद
से भी र्र र में जलापतू तश करते हैं.

पांचतत्व में जल का चौथा स्त्थान है यह प्ृ वी पर मानव समेत अधधकाांर् जीवों का हे तु भी


हैं. र्र र की आवश्यकता से लेकर इसकी स्त्वच्छता तक जल हमारे भलए उपयोगी हैं.

र्र र में ववदयमान जल वाांतछत उपयोग के पश्चात पसीने, श्वास और पेर्ाब के जररये
तनटकाभसत कर द्रदया जाता हैं. सवेरे जल्द उिकर पानी पीने के कई स्त्वास्त््य लाभ हैं. साथ
ह स्त्वस्त्थ रहने के भलए िां डे जल से नहाना लाभकार हैं.

हमारा जीवन प्रत्येक दृष्टिकोण से जल पर ह आधश्रत हैं. अपनी भूि भमिाने के भलए ष्जन
अनाज का भक्षण हम करते हैं वह जल के त्रबना उगाया जाना सम्भव नह ां हैं.

मनुटय को स्त्वस्त्थ और सुिी जीवन जीने के भलए पांचतत्व के इस र्र र को प्राकृततक


वातावरण के मध्य सांतुभलत रूप से जीवन त्रबताना चाद्रहए.

प्
ृ वी तत्व का र्र र पर प्रभाव व महत्व- Influence and importance of the earth
element on the body

धरा धरती प्
ृ वी ष्जसे हम अपनी मााँ कहकर पक
ु ारते हैं पांचतत्व का पाांचवा और आखिर
तत्व हैं. हम इसी धरती मााँ की गोद में जन्म लेते हैं पलते बड़े होते हैं और आखिर में इसी
की गोद में समा जाते हैं. हमारे समस्त्त कक्रयाकलाप यह सम्पन्न होते हैं.

Panch mahabhoot

योग दर्शन के अनुसार समस्त्त जड़ एवां चेतन पदाथों की उत्त्पवि पांच महाभत
ू ों से हुई हैं।
इन पांच महाभूतों से हमारे र्र र के अलग - अलग अांग बने हुए हैं।

पांच महाभूत
उपतनषदों के अनस
ु ार-

आत्मा से आकार् उत्पन्न हुआ आकार् से वाय,ु वायु से अष्ग्न, अष्ग्न से जल, जल से
प्
ृ वी इस क्रम में आकार् को वपता व प्
ृ वी को माता कहा गया है।

आकार् तत्व-

हमारे र्र र में जो असांख्य सूक्ष्म अवकार् क्षेर है जहाां वायु का सांचार होता है , वह
आकार् तत्व ह है ष्जन िव्यो में आकार् तत्व की प्रधानता होती है उन्हें आकार्ीय िव्य
कहा जाता है । यह िव्य सक्ष्
ू म, हल्के, फैलने वाले, समतल तथा कोमल होते हैं।
गण
ु - र्ब्द,
वणश- काला,
ग्रह- बह
ृ स्त्पतत,
मांर- हम,
यह तत्व र्ार ररक आकषशण डर भय उत्पन्न करते हैं।

वायु तत्व-

वायु तत्व है प्राणों का सांचार करता है यह र्र र में कफ तथा वपि को गतत प्रदान
करता है । ष्जससे वायु िव की प्रधानता होती हैं। उन्हें वायु िव कहा जाता है । यह िव
र्ीतल, सूक्ष्म, रूिे तथा हल्के होते है।
रां ग - हरा,
गण
ु - स्त्पर्श,
आकृतत - षिकोण,
ग्रह - र्तन,
वायुतत्व हमारे र्र र में ववभभन्न चीजों का सांचार करने में तथा श्वसन कक्रया में
सहायक होता हैं।

अष्ग्न तत्व -
अष्ग्न तत्व हमारे र्र र में भोजन का पाचन करके र्र र को ऊजाश तथा र्ष्क्त प्रदान
करता है । यह तत्व हमारे र्र र की रोग प्रततरोधक क्षमता को पटु ि करता है । ष्जन िव्यों
में अष्ग्न तत्व की प्रधानता होती हैं, उन्हें तेजस िव्य कहा जाता हैं। ये िव्य सक्ष्
ू म, गमश,
हल्के, सि
ू े तथा तीक्ष्ण होते हैं।
वणश - लाल,
आकृतत - त्ररभुज,
गुण - दृश्य,
चक्र - मखणपरु चक्र,
कोर् - मनोमाय कोर्,
वायु - समान वायु,
अष्ग्न तत्व हमारे र्र र में भूि, तयास तथा तनांिा करने में सहायक है ।

जल तत्व -

जल तत्व र्र र के तापमान को बनाए रिने और रक्त सांचार में महत्वपण


ू श योगदान
हैं। ष्जन िव्य में जल तत्व की अधधक प्रधानता होती हैं उन्हें जल य िव्य कहा जाता है ।
यह िव्य र्ीतल, मांद, सधन, अष्स्त्थर, सरल एवां साांि होते हैं।
गुण - स्त्वाद,
चक्र - स्त्वाधधटिान चक्र,
कोष - प्राणमय कोर्,
वायु - प्राणवाय,ु
आकृतत - अधशचांि,
रां ग - सफेद ,
इस तत्व से हमारे र्र र में लार, मूर, वीयश, रक्त , पसीना आद्रद बनता है ।

प्
ृ वी तत्व -

प्
ृ वी तत्व र्र र के अांत स्रावी तांर को पुटि करता है, और रोग प्रततरोधक क्षमता को
बढ़ाता है। ष्जन तत्वों में प्
ृ वी तत्व की प्रधानता होती है, उन्हें पाधथशव िव्य कहा जाता है।
यह िव्य स्त्थूल, दृढ़, िोस, भार , रूिे एवां गांध युक्त होते हैं।
चक्र - मूलाधार चक्र,
वणश - पीला,
गण
ु - गांध,
आकृतत - चकोर,
कोर् - अन्नमय कोर्,
वायु - प्राणवाय,ु
यह तत्व हमारे र्र र को िोस वस्त्तु या आकृतत बनाते हैं। जैसे - अष्स्त्थ, मास, त्वचा,
बाल, मासतन्तु इत्याद्रद।

प्
ृ वी - िोस,
आकार् - र्ून्य,
जल - िव,
अष्ग्न - तलाज्मा,
वायु - गैस,।

इसमें प्
ृ वी का प्रत्येक पदाथश बना है ।इस से बने पदाथश तनजीव तनजीव बने पदाथश तनजीव
तनजीव होते हैं। सांजीव बनने के भलए इनको आत्मा चाद्रहए। आत्मा को वैद्रदक साद्रहत्य में
पुरुष कहा गया है ।

ब्रह्माांड का सक्ष्
ू म स्त्वरूप मनटु य र्र र

ऊपर आकार् में जो कुछ द्रदि रहा है वह अखिल ब्रह्माांड का नजारा है। यह ब्रह्माांड
अनांत रहस्त्यों से भरा है , हम इांसान लगभग एक प्रततर्त ह ब्रह्माांड के रहस्त्यों को जान
पाने में सफल हो पाए हैं। जैसे प्
ृ वी में गुरुत्वाकषशण बल है जो ककसी भी वस्त्तु को अपने
केंि की ओर िीांचती है िीक उसी प्रकार एक आकार्ीय बल भी मौजद
ू है जो ब्रह्माांड के सभी
ग्रह, उपग्रह, वपांड एवां तारे को अकास में िाांग के रिा है अथाशत इनके भार को थामे रिा है ।
गौर करें तो पूरे ब्रह्माांड में तथा इसके भीतर के ग्रहों, उपग्रहो, वपांड या तारों में मुख्यतुः पााँच
तत्व धरती, जल, अष्ग्न, अकास एवां वायु पाए जाते हैं और इन्ह ां मुख्य पााँच तत्वों से वह
बने भी होते हैं तथा बनते रहते है, जहााँ यह सांतुलन की ष्स्त्थतत में है वहााँ जीव जांतु के
तनवास के भलए अनुकूल वातावरण है वह ां इनका असांतुलन या एक दो तत्वों को ह ववदधमान
होना अनुपयुक्तता की ष्स्त्थतत होती है ।

मनुटय तन भी इन्ह ां पांचमहाभत


ू ों धरती, जल, अष्ग्न, अकास एवां वायु तत्वों से बना है ।
यद्रद गहराई से परिा जाए तो ब्रह्माांड का सूक्ष्म रूप मनुटय र्र र प्रतीत होता है । ऋवष
मुतनयों के वषो योग, साधना एवां अनुसांधान से यह बात भसदध हुआ कक मनुटय तन पाांच
तत्वों से बना है और इन्ह ां पाांच तत्वों में मत्ृ यु उपराांत ववल न हो जाता है । मनटु य र्र र पर
यद्रद नजर डाले तो यह पााँच भागो में ह ववभक्त है, पहला भाग तलवे से घुिना जो जल
तत्व से बना है । जल प्
ृ वी के अांदर सवशर पाया जाता है । फाइलेररया आद्रद बीमार जल के
ह कारण से होता है जो घुिने के नीचे जल जमा हो जाने के कारण अप्रत्याभर्त मोिा हो
जाता है ।

दस
ू रा भाग घुिने से लेकर कमर तक का जो प्
ृ वी तत्त्व का है । घुिने से लेकर कमर
तक साइद्रिका या कोई अन्य रोग-व्याधध हो रहा है तो यह समझ लेना चाद्रहए कक धरती से
उपजने वाले िादयान्नों में से कोई िान पान की कमी, अधधकता या अतनभमयता के कारण
हो रहबहै । उधचत पोषक तत्व युक्त िान-पान से र्र र के प्
ृ वी तत्त्व के भाग घुिने से कमर
तक के समस्त्या को िीक ककया जा सकता है ।

तीसरा, कमर से लेकर सीने के िीक नीचले हड्डी डाईफ्राम तक अष्ग्न तत्व का द्रहस्त्सा
है । अक्सर सुबह में िाल पेि भूि की ज्वाला समझ में आती है , यह इस भलए होता है कक
र्र र सांचालन के जो तनयम भसदधान्त है उसके ववपर त जाकर िादद पदाथो का सेवन तथा
अनुपलब्धता पेि में अष्ग्न तत्वों को अतनयांत्ररत करता है ष्जससे कई प्रकार के बीमाररयाां
पनप जाती है और सध
ु ार न करने पर र्र र के अांग-प्रत्यांग-उपाांगों की क्षतत होने लगती है ।

चौथा, छाती के तनचले द्रहस्त्से से गदश न तक द्रहस्त्सा वायु तत्व से बना होता है । यह ां
फेंफड़े में वायुमांडल से प्रातत ऑक्सीजन को र्ुदधधकरण कर पूरे र्र र में भेजा जाता है । यह
भाग को क्षततग्रस्त्त रोगग्रस्त्त होना यह दर्ाशता है कक प्राणवायु ऑक्सीजन आदान-प्रदान में
कह ां न कह ां कोई ववकृतत है इसे योग-व्याम, कपाल भााँतत, अनल
ु ोमववलोम या अन्य प्रकार
से िीक करने की जरूरत है।

पााँचवाां जो द्रहस्त्सा है गदश न से लेकर परू ा सर के ऊपर द्रहस्त्से तक जो अकास तत्वों से


बना है। यह बड़ा ह रहस्त्मयी अनांत राजो को छुपाया है । सर के बाल एांि ना समान ह है जो
ब्रह्माांड में व्यातत ध्वतन तरां गों को छोड़ते या अवसोवषत करते हैं। वैज्ञातनको का भी मानना
है कक मनटु य अपने मष्स्त्तटक यानी अकास तत्व का एक चौथाई भाग भी उपयोग नह ां करता।
ऋवषयों महवषशयों ने अकास तत्व को बलर्ाल बनाने के भलए कई भसदध मांरो का इजात
ककया है ष्जसे मुि से बोलने या जाप करने से यह ध्वतन ब्रह्माांड में प्रसाररत होती है और
अकास से भी तनरां तर ध्वतन प्रकि होती रहती है , जब ध्वतनयों से ध्वतनयों का िकराव होता
है तो तरां गें उस मष्स्त्तटक कपाल तक पहुांचती है जहाां से वह छोड़ा गया था इस प्रकक्रया बार-
बार दोहराने से अकास तत्व मजबूत होता है एवां र्र र में गजब की ओज-तेज सद्रहत कायश
साम्यश ऊजाश का प्रादभ
ु ाशव हो जाता है तथा ज्ञान और वववेक भी जागत
ृ हो जाते है ष्जससे
इांसान को मनवाांतछत फल प्रातत होने लगते हैं।

हााँथ के हथेल और पैर के जो तलवे है और इसके पााँच अाँगभु लयााँ है वह भी एक


रहस्त्यमयी भसदधाांतों को छुपाए है । हााँथ की हां थेल और पैर के तलवे में परू े र्र र के अांग,
प्रत्यांग, उपाांगों के केंि त्रबांद ु तनधाशररत स्त्थानों पर अवष्स्त्थत है । पौराखणक धचककत्सीय पदधतत
में हथेभलयों एवां तलवो में एक्यूप्रेर्र करके र्र र के कमजोर अांग, प्रत्यांग, उपाांग में जान
फांू का जाता रहा। हााँथ की पाांच उाँ गभलयााँ कानी, अनाभमका, मध्यमा, तजशनी और अांगि
ू ा में
क्रमर्ुः प्
ृ वी, जल, आकार्, वायु और अष्ग्न तत्वों का प्रतततनधधत्व है ।

स्त्वस्त््य र्र र की पररकल्पना तभी की जा सकती है जब र्र र में इन पांचमहाभूत


तत्वों सांतुलन की ष्स्त्थतत में हो, यद्रद ये सांतुलन की ष्स्त्थतत में न हो या एक-दो तत्वों की
प्रधानता, या एक-दो तत्वों की ववरलता, नगण्यता व्यष्क्त को मानभसक, र्ार ररक रूप से
कमजोर बनाते है।

साधारण मनुटय दतु नयााँ के ववषयों में रमा रहता है पर कभी अपने अदभुत दे वदल
ु भ

मानव तन के रहस्त्यों को समझने की कोभर्र् नह ां करता। ष्जस व्यष्क्त ने र्र र के रहस्त्यों
गहराइयों, तनयमों को समझ भलया वह लांबे समय तक तनरोग स्त्वस्त््य रह लेता है तथा
ष्जसने नजरअांदाज ककया तथा साांसाररक सि
ु ों, भोग-ववलार् में भलतत रहा वह अपने र्र र
को ह रोग का घर बना दे ता है कफर धचककत्सकों की बल्ले -बल्ले हो जाती है एवां उनके भलए
उपचार के बहाने धनाजशन का मुख्य स्रोत।

दतु नयााँ की कोई ऐसी वस्त्तु या गततववधध नह ां है ष्जसके अपने तनयम भसदधान्त न हो...!
तनयम भसदधान्त से भिकना उस वस्त्तु गततववधध के सांचालन में बाधा है तथा एक द्रदन
हमेर्ा के भलए नटि भी कर सकता है । िीक उसी प्रकार र्र र के अपने तनयम कायदे एवां
भसदधान्त है जो ऋवष मुतनयों ने किोर तप के उपराांत ज्ञानाजशन ककया है , उनके र्ाश्रों में
आर्ीवाशद स्त्वरूप उनके कथनों को त्रबना तकश-ववतकश ककये पालन करना चाद्रहए।

अतुः हे मानव भेद-भाव, दलगत राजनीतत, कूिनीतत से ऊपर उिकर र्र र के रहस्त्यों
को समझने की कोभर्र् कर और मनटु य तन को ज्ञान और वववेक की कसौि पर कस कर
साथशक उपयोग करते हुए मानवता प्राखणमार के कल्याण सहयोग के भलए कायश करना ह
सवशश्रेटि भष्क्त होगी इससे परमवपता परमेश्वर का आर्ीवाशद दल
ु ार तयार भी भमलेगा।

मनटु य के जीवन में पााँच तत्व का क्या महत्व है ?

GENERAL

आयुवेद में प्रकृतत के पाांच तत्व, ष्जन्हें पांच-तत्व या पांच-महाभत


ू के नाम से जाना जाता है,
मानव र्र र का तनमाशण करते हैं। भारतीय भसदधाांत की मान्यता है की ब्रह्माांड पाांच तत्वों
से बना है , जो जल, वायु, अष्ग्न, आकार् और प्
ृ वी है । ये तत्व ब्रह्माांड में सांतभु लत अवस्त्था
में मौजूद हैं। ऋवष मतु नयों का मानना था कक सार प्रकृतत व्यष्क्त का द्रहस्त्सा है, क्योंकक हम
सभी प्रकृतत से बने हैं, हमारा अष्स्त्तत्व प्रकृतत में हैं और इसी प्रकृतत मे ह पाांच तत्वों को
बहुआयामी (multidimensional) माना जा सकता है , इस आद्रिशकल में हम पाांच तत्वों को
मानव जीवन में उनकी भभू मका के अनुर्ार मानव र्र र के साथ सांबांधधत कर रहे हैं।

पांचमहाभत
ू और आयव
ु ेद

वैद्रदक ववज्ञान के अनस


ु ार, जब आत्मा ( परु
ु ष) जीवन का रूप लेती है तो ये प्रकृतत के पााँच
तत्वों से बानी होती है , अथाशत - प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु और आकार्। आयव
ु ेद और योग
सर
ू इनके महत्व के बारे में समझते हैं की ब्रह्माांड इन पाांच तत्वों से बना एक एकीकृत इकाई
(integrated unit) के रूप में काम करते है और प्
ृ वी को सांभालता है । सभी पदाथश पााँच
मूल तत्वों से बने हैं, उन्हें पांचमहाभूत के नाम से जाना जाता है । पौधों, जानवरों और मनुटयों
सद्रहत सभी जीववत प्राखणयों का आधार प्रकृतत के पाांच तत्व हैं |

हमारे र्र र के साथ तनम्नभलखित तर के से पाांच इांद्रियाां जुड़ी हुई हैं:

1- अांतररक्ष - कान (श्रवण / ध्वतन) से जड़


ु ा हुआ है

2- त्वचा के साथ वायु (स्त्पर्श)

3- आग (दृष्टि / रां ग) के साथ

4- जीभ के साथ पानी (स्त्वाद)

5- प्
ृ वी नाक के साथ (गांध)

पररणाम और चचाश -

र्र र में ऊजाश ववभभन्न रूपों में मौजूद होती है जैसे जैव ऊजाश (Bio Energy), ववदयुत
चुम्बकीय ऊजाश (electromagnetic energy), याांत्ररक ऊजाश (Mechanical energy) और
रसायन ऊजाश (Chemical energy) इन सब को सामूद्रहक रूप से र्र र की महत्वपूणश ऊजाश
कहा जाता है और इन पाांच तत्वों में कोई भी असांतल
ु न र्र र में बीमाररयााँ लाता है।

पाांच तत्त्व औ उनका क्षेर:


1- र्र र में प्ृ वी तत्व का असांतुलन आांर, बड़ी आांत, की बीमाररयों से जुड़ा हुआ है और
र्र र के िोस द्रहस्त्से जैसे: हड्डडयााँ, दााँत आद्रद, पैर, पैर, घुिने, र ढ़ की हड्डी, िाने के ववकार
और बार-बार होने वाल बीमाररयााँ प्
ृ वी तत्त्व की कमी कमी से होती हैं ।

2- जल तत्व का असांतुलन प्रजनन अांगो (Reproductive organs), तल हा (Spleen), भूि


न लगना, मूर सांबांधी ववकारों से जुड़ा है, इस के आलावा माभसक धमश सांबांधी कद्रिनाइयााँ,
यौन रोग (Sexual Problems) और भर्रर में लचीलेपन (Flexibility) की कमी भी जल
तत्त्व के असांचलन की वजह से होती हैं

3- र्र र में अष्ग्न तत्व के असांतुलन से िाने और पाचन सांबध


ां ी ववकार, अल्सर, मधुमेह,
माांसपेभर्यों में ऐांिन,

थकान और उच्च रक्तचाप (Hypertension) जैसे बीमाररयााँ होती हैं

4- हवा तत्त्व में असांतुलन के कारण हृदय के ववकार, फेफड़े, स्त्तन ववकार, साांस लेने में
द्रदक्कत, अस्त्थमा, सकुशलेर्न प्रॉब्लम, इम्यन
ू भसस्त्िम की कमी, कांधे और गदश न में तनाव ददश,
छाती और र्र र में जलन होती हैं।

5- अांतररक्ष तत्व के असांतल


ु न से थायरॉइड ववकार, गले, भाषण, बोलने और कान से सांबांधधत
समस्त्याएाँ उत्पन्न हो सकती हैं।

तनटकषश

जब तक आप के र्र र में प्रकृतत के पांच तत्वों का सांतल


ु न बना रहते है , तब तक वह सरु क्षक्षत
और स्त्वस्त्थ रहता है। जैसे ह ककसी को इनमें से ककसी भी तत्व में असांतल
ु न का सामना
करना पड़ता है, वह स्त्वास्त््य सांबांधी समस्त्याओां से ग्रस्त्त हो जाता है | यद्रद सभी धचककत्सक
पाांच तत्वों का अध्ययन करते हैं और प्रकृतत और मानव र्र र के साथ उनके सांबांध में
ववश्वास करते हैं और उन्हें अपने रोधगयों के ववभभन्न स्त्वास्त््य समय के साथ जोड़ कर दे िते
हैं, तो यह बीमाररयों को समझने और उपचार करने में सहायता करे गा।
पांच तत्वों का महत्व
jai ho....
Radhe radhe....
प्राचीन समय से ह ववदवानों का मत रहा है कक इस सष्ृ टि की सांरचना पाांच तत्वों से
भमलकर हुई है . सष्ृ टि में इन पांचतत्वों का सांतुलन बना हुआ है।

यद्रद यह सांतुलन त्रबगड़ गया तो यह प्रलयकार हो सकता है. जैसे यद्रद प्राकृततक रुप से
जलतत्व की मारा अधधक हो जाती है तो प्
ृ वी पर चारों ओर जल ह जल हो सकता है
अथवा बाढ़ आद्रद का प्रकोप अत्यधधक हो सकता है. आकार्, वाय,ु अष्ग्न, जल और प्
ृ वी
को पांचतत्व का नाम द्रदया गया है ।

माना जाता है कक मानव र्र र भी इन्ह ां पांचतत्वों से भमलकर बना है।

वास्त्तववकता में यह पांचतत्व मानव की पाांच इष्न्ियों से सांबांधधत है. जीभ, नाक, कान,
त्वचा और आाँिें हमार पाांच इष्न्ियों का काम करती है . इन पांचतत्वों को पांचमहाभूत भी
कहा गया है . इन पाांचो तत्वों के स्त्वामी ग्रह, कारकत्व, अधधकार क्षेर आद्रद भी तनधाशररत
ककए गये हैं

(1) आकार्

आकार् तत्व का स्त्वामी ग्रह गुरु है . आकार् एक ऎसा क्षेर है ष्जसका कोई सीमा नह ां है.
प्
ृ वी के साथ ्-साथ समूचा ब्रह्माांड इस तत्व का कारकत्व र्ब्द है . इसके अधधकार क्षेर में
आर्ा तथा उत्साह आद्रद आते हैं. वात तथा कफ इसकी धातु हैं। वास्त्तु र्ास्त्र में आकार्
र्ब्द का अथश ररक्त स्त्थान माना गया है. आकार् का ववर्ेष गण
ु “र्ब्द” है और इस र्ब्द
का सांबांध हमारे कानों से है. कानों से हम सुनते हैं और आकार् का स्त्वामी ग्रह गुरु है
इसभलए ज्योततष र्ास्त्र में भी श्रवण र्ष्क्त का कारक गरु
ु को ह माना गया है । र्ब्द जब
हमारे कानों तक पहुांचते है तभी उनका कुछ अथश तनकलता है. वेद तथा परु ाणों में र्ब्द,
अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है । वास्त्तव में आकार् में होने वाल गततववधधयों
से गरु
ु त्वाकषशण, प्रकार्, ऊटमा, चांब
ु कीय़ क्षेर और प्रभाव तरां गों में पररवतशन होता है. इस
पररवतशन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है . इसभलए आकार् कहें या अवकार् कहें
या ररक्त स्त्थान कहें , हमें इसके महत्व को कभी नह ां भूलना चाद्रहए. आकार् का दे वता
भगवान भर्वजी को माना गया है।

(2) वायु

वायु तत्व के स्त्वामी ग्रह र्तन हैं. इस तत्व का कारकत्व स्त्पर्श है . इसके अधधकार क्षेर में
श्वाांस कक्रया आती है. वात इस तत्व की धातु है . यह धरती चारों ओर से वायु से तघर हुई
है . सांभव है कक वायु अथवा वात का आवरण ह बाद में वातावरण कहलाया हो। वायु में
मानव को जीववत रिने वाल आक्सीजन गैस मौजूद होती है. जीने और जलने के भलए
आक्सीजन बहुत जरुर है. इसके त्रबना मानव जीवन की कल्पना भी नह ां की जा सकती है .
यद्रद हमारे मष्स्त्तटक तक आक्सीजन पूर तरह से नह ां पहुांच पाई तो हमार बहुत सी
कोभर्काएाँ नटि हो सकती हैं. व्यष्क्त अपांग अथवा बुदधध से जड़ हो सकता है।
प्राचीन समय से ह ववदवानों ने वायु के दो गुण माने हैं. वह है – र्ब्द तथा स्त्पर्श. स्त्पर्श
का सांबांध त्वचा से माना गया है . सांवेदनर्ील नाड़ी तांर और मनटु य की चेतना श्वाांस
प्रकक्रया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है . वायु के दे वता भगवान ववटणु माने गये हैं।
(3) अष्ग्न

सय
ू श तथा मांगल अष्ग्न प्रधान ग्रह होने से अष्ग्न तत्व के स्त्वामी ग्रह माने गए हैं. अष्ग्न
का कारकत्व रुप है . इसका अधधकार क्षेर जीवन र्ष्क्त है. इस तत्व की धातु वपि है.
हम्सभी जानते हैं कक सूयश की अष्ग्न से ह धरती पर जीवन सांभव है । यद्रद सूयश नह ां होगा
तो चारों ओर भसवाय अांधकार के कुछ नह ां होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ह नह ां
की जा सकती है. सूयश पर जलने वाल अष्ग्न सभी ग्रहों को ऊजाश तथा प्रकार् दे ती है । इसी
अष्ग्न के प्रभाव से प्ृ वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनक
ु ू ल पररष्स्त्थततयााँ बनती हैं.
र्ब्द तथा स्त्पर्श के साथ रुप को भी अष्ग्न का गण
ु माना जाता है . रुप का सांबांध नेरों से
माना गया है. ऊजाश का मुख्य स्त्रोत अष्ग्न तत्व है । सभी प्रकार की ऊजाश चाहे वह सौर
ऊजाश हो या आणववक ऊजाश हो या ऊटमा ऊजाश हो सभी का आधार अष्ग्न ह है . अष्ग्न के
दे वता सय
ू श अथवा अष्ग्न को ह माना गया है ।
(4) जल
चांि तथा र्क्र
ु दोनों को ह जलतत्व ग्रह माना गया है. इसभलए जल तत्व के स्त्वामी
ग्रह चांि तथा र्क्र
ु दोनो ह हैं. इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है. इन दोनों का
अधधकार रुधधर अथवा रक्त पर माना गया है क्योंकक जल तरल होता है और रक्त भी
तरल होता है . कफ धातु इस तत्व के अन्तगशत आती है । ववदवानों ने जल के चार गण

र्ब्द, स्त्पर्श, रुप तथा रस माने हैं. यहााँ रस का अथश स्त्वाद से है . स्त्वाद या रस का सांबांध
हमार जीभ से है. प्
ृ वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं।
जल के त्रबना जीवन सांभ्हव नह ां है . जल तथा जल की तरां गों का उपयोग ववदयत
ु ऊजाश के
उत्पादन में ककया जाता है . हम यह भी भल -भााँतत जानते हैं कक ववश्व की सभी सभ्यताएाँ
नद्रदयों के ककनारे ह ववकभसत हुई हैं. जल के दे वता वरुण तथा इन्ि को माना गया है .
मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का दे वता माना गया है ।

(5) प्
ृ वी

प्
ृ वी का स्त्वामी ग्रह बुध है . इस तत्व का कारकत्व गांध है . इस तत्व के अधधकार क्षेर में
हड्डी तथा मााँस आता है . इस तत्व के अन्तगशत आने वाल धातु वात, वपि तथा कफ तीनों
ह आती हैं. ववदवानों के मतानुसार प्
ृ वी एक ववर्ालकाय चुांबक है. इस चुांबक का दक्षक्षणी
भसरा भौगोभलक उिर ध्रुव में ष्स्त्थत है. सांभव है इसी कारण द्रदर्ा सूचक चुांबक का उिर
ध्रव
ु सदा उिर द्रदर्ा का ह सांकेत दे ता है । प्
ृ वी के इसी चुांबकीय गण
ु का उपयोग वास्त्तु
र्ास्त्र में अधधक होता है . इस चुांबक का उपयोग वास्त्तु में भूभम पर दबाव के भलए ककया
जाता है . वास्त्तु र्ास्त्र में दक्षक्षण द्रदर्ा में भार बढ़ाने पर अधधक बल द्रदया जाता है . हो
सकता है इसी कारण दक्षक्षण द्रदर्ा की ओर भसर करके सोना स्त्वास्त््य के भलए अच्छा माना
गया है . यद्रद इस बात को धमश से जोड़ा जाए तो कहा जाता है कक दक्षक्षण द्रदर्ा की ओर
पैर करके ना सोएां क्योंकक दक्षक्षण में यमराज का वास होता है। प्
ृ वी अथवा भूभम के पााँच
गण
ु र्ब्द, स्त्पर्श, रुप, स्त्वाद तथा आकार माने गए हैं. आकार तथा भार के साथ गांध भी
प्
ृ वी का ववभर्टि गण
ु है क्योंकक इसका सांबांध नाभसका की घ्राण र्ष्क्त से है। उपरोक्त
ववश्लेषण से यह तनटकषश तनकलता है कक पांचतत्व मानव जीवन को अत्यधधक प्रभाववत
करते हैं. उनके त्रबना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले ककसी भी जीव के जीवन की
कल्पना ह नह ां की जा सकती है। इन पाांच तत्वों का प्रभाव मानव के कमश, प्रारब्ध, भाग्य
तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है. जल यद्रद सुि प्रदान करता है तो सांबांधों की ऊटमा सि

को बढ़ाने का काम करती है और वायु र्र र में प्राण वायु बनकर घम
ू ती है. आकार्
महत्वाकाांक्षा जगाता है तो प्ृ वी सहनर्ीलता व यथाथश का पाि भसिाती है . यद्रद दे ह में
अष्ग्न तत्व बढ़ता है तो जल्की मारा बढ़ाने से उसे सांतुभलत ककया जा सकता है. यद्रद वायु
दोष है तो आकार् तत्व को बढ़ाने से यह सांतभु लत रहेगें...
क्या है पांच तत्व और तन्मारा साधना ?क्या है पांच तत्वों के सांतुलन के पााँच प्रकार के
अभ्यास?
क्या है पांच तत्वों का महत्त्वपण
ू श सक्ष्
ू म ववज्ञान?-
08 FACTS;-
1-पांच तत्वों के दवारा इस समस्त्त सष्ृ टि का तनमाशण हुआ है। मनुटय का र्र र भी पााँच
तत्वों से ह बना हुआ है ।पांचतत्व को ब्रह्माांड में व्यातत लौककक एवां अलौककक वस्त्तओ
ु ां का
प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष कारण और पररणतत माना गया है। ब्रह्माांड में प्रकृतत से उत्पन्न सभी
वस्त्तुओां में पांचतत्व की अलग-अलग मारा मौजूद है। अपने उदभव के बाद सभी वस्त्तुएाँ
नश्वरता को प्रातत होकर इनमें ह ववल न हो जाती है।तुलसीदास जी ने रामचररतमानस के
ककष्टकांधाकाांड में भलिा है ''क्षक्षतत जल पावक गगन समीरा। पांच रधचत यह अधम
सर रा।''।यह पााँच तत्व है ..क्रमर्:, क्षक्षतत यानी कक प्
ृ वी, जल यानी कक पानी, पावक यानी
कक आग, गगन यानी आकार् और समीर यानी कक हवा।
2-योगववदया में तत्व साधना का अपना महत्त्व एवां स्त्थान है । प्ृ वी आद्रद पााँच तत्वों से ह
समस्त्त सांसार बना हैं। ववदयुत आद्रद ष्जतनी भी र्ष्क्तयााँ इस ववश्व में मौजूद हैं। वे सभी
इन पञ्च तत्वों की ह अन्तद्रहशत क्षमता है । आकृतत-प्रकृतत की भभन्नता युक्त ष्जतने भी
पदाथश इस सांसार में दृष्टिगोचर होते हैं वे सब इन्ह ां तत्वों के योग-सांयोग से बने हैं।
न केवल र्र र की, वरन ् मन की भी बनावि- तथा ष्स्त्थतत में इन्ह ां पांचतत्वों की भभन्न
मारा का कारण है । र्ार ररक, मानभसक दब
ु ल
श ता एवां रुग्णता में भी प्राय: इन तत्वों की ह
न्यूनाधधकता पदे के पीछे काम करती रहती है ।
3-हमारे मनीवषयों ने इन पांच तत्त्वों को सदा याद रिने के भलए एक आसान तर का
तनकाला और कहा कक यद्रद मनटु य 'भगवान' को सदा याद रिे तो इन पाांच तत्वों का
ध्यान भी बना रहे गा। उन्होंने पांच तत्वों को ककसी को भगवान के रूप में तो ककसी को
अलइलअह
अथाशत अल्लाह के रूप में याद रिने की भर्क्षा द ।भगवान में आए इन अक्षरों का ववश्लेषण
इस प्रकार ककया गया है - भगवान- भ- भूभम यातन प्
ृ वी, ग- गगन यातन आकार्, व- वायु
यातन हवा, अ- अष्ग्न अथाशत आग और न- नीर यातन जल।इसी प्रकार अलइलअइ (अल्लाह)
अक्षरों का ववश्लेषण इस प्रकार ककया गया है - अ- आब यातन पानी, ल- लाब- यातन भूभम,
इ- इला-द्रदव्य पदाथश अथाशत वाय,ु अ- आसमान यातन गगन और ह- हरां क यातन अष्ग्न। इस
पाांच तत्वों के सांचालन व समन्वय से हमारे र्र र में ष्स्त्थत चेतना (प्राणर्ष्क्त) त्रबजल -सी
होती है।
4-इससे उत्पन्न ववदयुत मष्स्त्तक में प्रवाद्रहत होकर मष्स्त्तटक के 2.4 से 3.3 अरब कोषों
को सकक्रय और तनयभमत करती है । ये कोष अतत सूक्ष्म रोम के सदृश्य एवां कांघे के दाांतों
की तरह पांष्क्त में जमे हुए होते हैं। मष्स्त्तटक के कोष ...पाांच प्रकार् के होते हैं और पांच
महाभूतों (प्
ृ वी, जल, अष्ग्न, वायु एवां आकार्) का प्रतततनधधत्व करते हैं। मूलरूप से ये
सब मूल तत्व हमारे र्र र में बराबर मारा में रहने चाद्रहए।इन तत्वों का जब तक र्र र में
उधचत भाग रहता है तब तक स्त्वस्त्थता रहती है । जब कमी आने लगती है तो र्र र तनबशल,
तनस्त्तेज, आलसी, अर्क्त तथा रोगी रहने लगता है । स्त्वास्त््य को कायम रिने के भलए यह
आवश्यक है कक तत्वों को उधचत मारा में र्र र में रिने का हम तनरां तर प्रयत्न करते रहें
और जो कमी आवे उसे पूरा करते रहें ।
5-प्
ृ वी तत्व असीम सहनर्ीलता का दयोतक है और इससे मनुटय धन-धान्य से पररपूणश
होता है। इसके रुद्रिपण
ू श होने से लोग स्त्वाथी हो जाते हैं। जल तत्व र्ीतलता प्रदान करता
है । इसमें ववकार आने से सौम्यता कम हो जाती है । अष्ग्न तत्व ववचार र्ष्क्त में सहायक
बनता है और मष्स्त्तटक के भेद अांतर को परिने वाल र्ष्क्त को सरल बनाता है । यद्रद
इसमें रुद्रि आ जाए तो हमार सोचने की र्ष्क्त का ह्रास होने लगता है । वायु तत्व
मानभसक र्ष्क्त तथा स्त्मरण र्ष्क्त की क्षमता को पोषण प्रदान करता है। अगर इसमें
ववकार आने लगे तो स्त्मरण र्ष्क्त कम होने लगती है । आकार् तत्व आवश्यक सांतल
ु न
बनाए रिता है । इसमें ववकार आने से हमारा र्ार ररक सांतुलन िोने लगता है ।
6-प्
ृ वी तत्व का केन्ि मल दवार और जननेष्न्िय के बीच है इसे मूलाधार चक्र कहते हैं।
जल तत्व का केन्ि मूरार्य की सीध में पेडू पर है इसे स्त्वाधधटिान चक्र कहते हैं। अष्ग्न
तत्व का तनवास नाभभ और मेरुदण्ड के बीच में है इसे मखणपुर चक्र कहते हैं। वायु केन्ि
हृदय प्रदे र् के अनाहत चक्र में है । आकार् तत्व का ववर्ेष स्त्थान कण्ि में है , इसे ववर्ुदध
चक्र कहा जाता है।
कब ककस तत्व की प्रबलता है इसकी परि थोड़ा सा साधना अभ्यास होने पर सरलतापव
ू क

की जा सकती है।
7-प्
ृ वी तत्व का रां ग पीला, जल का नीला/काला, अष्ग्न का लाल, वायु का हरा/ भूरा और
आकार् का श्वेत /ग्रे है । आाँिें बन्द करने पर द्रदिाई पड़े तब उसके अनुसार तत्व की
प्रबलता आाँकी जा सकती है। ष्जह्वा इष्न्िय को सधा लेने पर मुाँह में स्त्वाद बदलते रहने
की प्रकक्रया को समझकर भी तत्वों की प्रबलता जानी जा सकती है । प्
ृ वी तत्व का स्त्वाद
मीिा, जल का कसैला, अष्ग्न का तीिा, वायु का िट्िा और आकार् का िार होता है ।
गुण एवां स्त्वभाव की दृष्टि से यह वगीकरण ककया जाय तो अष्ग्न और आकार् सतोगुण
वायु और जल रजोगण
ु तथा प्
ृ वी को तमोगण
ु कहा जा सकता है ।
8-र्र र ववश्लेषणकिाशओां रासायतनक पदाथों की न्यन
ू ाधधकता अथवा अमक
ु जीवाणओ
ु ां की
उपष्स्त्थतत- अनुपष्स्त्थतत को र्ार ररक असन्तुलन का कारण मानते हैं, पर सूक्ष्मदभर्शयों, की
दृष्टि में तत्वों का-असन्तल
ु न ह इन समस्त्त सांभ्राततयों का प्रधान कारण होता है। ककस
तत्व को र्र र में अथवा मन क्षेर में कमी है उसकी पूततश के भलए क्या ककया जाय, इसका
पता लगाने के भलए तत्व ववज्ञानी ककसी व्यष्क्त में क्या रां ग कम पड़ रहा है , क्या घि रहा
है यह ध्यानस्त्थ होकर दे िते हैं और औषधध उपचारकताशओां की तरह जो कमी पड़ी थी, जो
ववकृतत बड़ी थी उसे उस तत्व प्रधान आहार- ववहार में अथवा अपने में उस तत्व को उभार
कर उसे अनद
ु ान रूप रोगी या अभावग्रस्त्त को दे ते हैं। इस तत्व उपचार का लाभ सामान्य
औषधध धचककत्सा की तल
ु ना में कह ां अधधक होता है ।
क्या है तन्मारा साधना...पांच तन्माराओां का पांच ज्ञानेष्न्ियों से सम्बन्ध? ;-
08 FACTS;-
1- पााँच इष्न्ियों के िूाँिे से, पााँच तन्माराओां के रस्त्सों से जीव बाँधा हुआ है । यह रस्त्से बड़े
ह आकषशक हैं ।परमात्मा ने पांच तत्वों में तन्मारायें उत्पन्न कर और उनके अनभ ु व के
भलये र्र र में ज्ञानेष्न्ियााँ बनाकर, र्र र और सांसार को आपस में घतनटि आकषशण के साथ
सम्बदध कर द्रदया है । यद्रद पांचतत्व केवल स्त्कूल ह होते, उनमें तन्मारायें न होतीां तो
इष्न्ियों को सांसार के ककसी पदाथश में कुछ आनन्द न आता।
पााँचतत्व पााँच ज्ञानेष्न्िय पााँचतन्मारा
1-1-आकार् कान' 'र्ब्द'
1-2-वायु त्वचा 'स्त्पर्श'
1-3-अष्ग्न नेर 'रूप'
1-4-जल जीभ 'रस'
1-5-प्
ृ वी नाभसका 'गन्ध'
2-आकार् की तन्मारा 'र्ब्द' है । वह कान दवारा हमें अनुभव होता है । कान भी आकार्
तत्व की प्रधानता वाल इष्न्िय हैं।
3-वायु की तन्मारा 'स्त्पर्श' का ज्ञान त्वचा को होता है । त्वचा में फैले हुए ज्ञान तन्तु दस
ू र
वस्त्तओ
ु ां का ताप, भार, घनत्व एवां उसके स्त्पर्श की प्रततकक्रया का अनभ ु व कराते हैं।
4-अष्ग्न तत्व की तन्मारा 'रूप' है। यह अष्ग्न- प्रधान इष्न्िय नेर दवारा अनुभव ककया
जाता है । रूप को आाँिें ह दे िती हैं।
5-जल तत्व की तन्मारा 'रस' है । रस का जल-प्रधान इष्न्िय ष्जह्वा दवारा अनुभव होता है,
षिरसों का िट्िे , मीिे , िार , तीिे, कड़ुवे, कसैले का स्त्वाद जीभ पहचानती है ।
6-प्
ृ वी तत्व की तमन्मारा 'गन्ध' को प् ृ वी गुण प्रधान नाभसका इष्न्िय मालूम करती है ।
7-इष्न्ियों में तन्माराओां का अनुभव कराने की र्ष्क्त न हो तो सांसार का और र्र र का
सम्बन्ध ह िूि जाय। जीव को सांसार में जीवन-यापन की सवु वधा भले ह हो पर ककसी
प्रकार का आनन्द र्ेष न रहे गा। सांसार के ववववध पदाथों में जो हमें मनमोहक आकषशण
प्रतीत होते हैं उनका एकमार कारण 'तन्मार' र्ष्क्त है।
8-कल्पना कीष्जये कक हम सांसार के ककसी पदाथश के रूप में को न दे ि सकें तो सवशर मौन
एवां नीरवता ह रहेगी। स्त्वाद न चि सकें तो िाने में कोई अन्तर न रहेगा। गांध का
अनुभव न हो तो हातनकारक सड़ााँध और उपयोगी उपवन में क्या फकश ककया जा सकेगा।
त्वचा की र्ष्क्त न हो तो सदी, गमी, स्त्नान, वायु- सेवन, कोमल र्ैय्या के सेवन आद्रद से
कोई प्रयोजन न रह जायेगा।
क्या है रां गों की सक्ष्
ू म र्ष्क्त तथा तत्व साधना?-
12 FACTS;-
1-तत्व साधना उच्चस्त्तर य साधना ववज्ञान का एक महत्त्वपण
ू श ववधान है । पांच तत्वों की यह
साधना मनुटय की र्ार ररक और मानभसक कद्रिनाइयों के समाधान का एक नया मागश
िोलती है ।रां गों की र्ोभा सवशववद्रदत है, पर उनकी सूक्ष्म र्ष्क्त की जानकार त्रबरलों को ह
होती है।सामान्य रां ग र्ष्क्त भी अपना प्रभाव रिती है, कफर सूक्ष्म रूप से काम करने वाल
तत्वों से सम्बष्न्धत रां ग र्ष्क्त का तो कहना ह क्या।
2-कफल्िरों से युक्त.. तनयोनआकश लेम्प- लेसर ककरणों के उपकरण- एक्सरे ज की ववभर्टि
धाराएाँ- क्वान्िा ककरणें इनजेद्रिक्स- क्वान्िम इलेक्रोतनक्स आद्रद का प्रस्त्तुतीकरण सय
ू श
ककरणों की ववर्ेष रां ग धाराओां का ववश्लेषण करके ह सम्भव हो सका है । अब यह ववज्ञान
द्रदन-द्रदन अधधक महत्त्वपण
ू श स्त्तर पर उभरता चला आ रहा है ।
3-तत्वों के रां गों के सम्बन्ध में पाश्चात्य ववज्ञातनयों की मान्यता यह है कक आकार् तत्व
का रां ग नीला, अष्ग्न का लाल, जल का हरा, वायु का पीला और प्
ृ वी का भूरा-मिमैला
सफेद है। र्र र में ष्जस तत्व की कमी पड़ती है या बढ़ोिर होती है उसका अनुमान अांगों
के अथवा मलों के स्त्वाभाववक रां गों में पररवतशन दे िकर लगाया जा सकता है।
4-लाल रोर्नी का उिेजनात्मक प्रभाव असांद्रदग्ध है। प्रातुःकाल और सायांकाल जब सूयोदय
और सूयाशस्त्त की लाभलमा आकार् में छाई रहती है तब पेड़-पौधा, जलचर और पक्षी आद्रद
अधधक कक्रयार्ील और बढ़ते ववकभसत होते पाये जाते हैं। वनस्त्पततयों की वद
ृ धध ककस समय
ककस क्रम से होती है इसका लेिा-जोिा रिने वालों का तनटकषश यह है कक प्रात: सायांकाल
के थोड़े से समय में वे ष्जतनी तीव्र गतत से बढ़ते हैं उतने अन्य ककसी समय नह ां।
मछभलयों की उछल-कूद इसी समय सबसे अधधक होती है । पक्षक्षयों का चहचाहाना ष्जतना
दोनों सांध्या काल में होता है उतना चौबीस घण्िों में अन्य ककसी समय नह ां होता है ।
5-इसी प्रकार पीला, हरा, बेंगनी, गुलाबी आद्रद अन्य रां गों का अपना-अपना प्रभाव होता है ।
त्वचा तो नस्त्ल के द्रहसाब से काल , पील , सफेद या लाल रहती है , पर उसके पीछे भी रां गों
के उतार-चढ़ाव झााँकते रहते हैं। साधारण ष्स्त्थतत में त्वचा का जो रां ग था उसमें तत्वों के
पररवतशन के अनप
ु ात से पररवतशन आ जाता है । यह हेर-फेर हाथ-पैरों के नािन
ू ों में, जीभ में ,
आाँि की पत
ु भलयों में अधधक स्त्पटिता के साथ दे िा जा सकता है । इसभलए र्र र में होने
वाले तत्वों की न्यूनाधधकता को इन्हें दे िकर आसानी से समझा जा सकता है मल-मूर में
भी यह अन्तर द्रदिाई पड़ता है । सन्तुभलत ष्स्त्थतत में पेर्ाब साधारण स्त्वच्छ जल की तरह
होगा, पर यद्रद कोई बीमार होगी तो उसका रां ग बदलेगा।
6-डाक्िर मल-मूर रक्त आद्रद का रासायतनक ववश्लेषण करके अथवा उनमें पाये जाने वाले
ववषाणुओां को दे िकर रोग का तनणशय करता है तत्ववेिा अपने ढां ग से जब तत्व धचककत्सा
करते हैं तो यह पता लगाते हैं कक र्र र के आधार पांच तत्वों में से ककसकी ककतनी मारा
घि -बड़ी है । यह जानने के भलए उन्हें रां गों का र्र र में जो हेर-फेर हुआ है उसे दे िना
पड़ता है । तत्ववेिा मन: र्ाष्स्त्रयों को अपनी द्रदव्यदृष्टि इतनी ववकभसत करनी पड़ती है कक
मनुटय के चेहरे के इदश -धगदश ववदयमान तेजोबलय की आभा को दे ि सकें और उसमें रां गों
की दृष्टि से क्या पररवतशन हुआ है इसे समझ सकें।
7-मानवीय ववदयुत की ऊजाश र्र र के हर अांग में रहती है और वह बाह्य जगत से सम्बन्ध
भमलाने के भलए त्वचा के परतों में अधधक सकक्रय रहती है । र्र र का कोई भी अांग स्त्पर्श
ककया जाय उसमें तापमान की ह तरह ववदयुत ऊजाश का अनुभव ककया जायेगा। यह ऊजाश
सामान्य त्रबजल की तरह उतना स्त्पटि झिका नह ां मारती या मर्ीनें चलाने के काम नह ां
आती कफर भी अपने कायों को सामान्य त्रबजल की अपेक्षा अधधक अच्छी तरह सम्पन्न
करती है ।
मष्स्त्तटक स्त्पटित: एक जीता जागता त्रबजल घर है।
8-समस्त्त काया में त्रबिरे पड़े अगखणत तन्तुओां में सांवेदना सम्बन्ध बनाये रहने, उन्हें काम
करने की प्रेरणा दे ने में मष्स्त्तटक को भार मारा में त्रबजल िचश करनी पड़ती है । उसका
उत्पादन भी िोपड़ी के भीतर ह होता है ! अधधक समीपता के कारण अधधक मारा में
त्रबजल उपलब्ध हो सके, इसीभलए प्रकृतत ने महत्त्वपण
ू श ज्ञानेष्न्ियााँ भसर के साथ जोड़कर
रिी हैं। आाँि, कान, नाक, जीभ जैसी महत्त्वपूणश ज्ञानेष्न्ियााँ गरदन से ऊपर ह हैं। इस
भर्रो भाग में सबसे अधधक ववदयत
ु मारा रहती है इसभलए तत्त्वदर्ी आाँिें हर मनटु य के
भसर के इदश -धगदश प्राय डेढ़ फुि के घेरे में एक तेजोवलय का प्रकार् ..'लाल गोल घेरा'
चमकता दे ि सकती हैं।
9-दे वताओां के धचरों में उनके चेहरे के इदश -धगदश एक सूयश जैसा प्रकार् गोलक त्रबिरा द्रदिाया
जाता है । इस अलकाांर धचरण में तेजोबलय (Halo)की अधधक मारा का आभास भमलता है ।
अधधक तेजस्त्वी और मनस्त्वी व्यष्क्तयों में स्त्पटित: यह मारा अधधक होती है उसी के सहारे
वे
दस
ू रों को प्रभाववत करने में समथश होते हैं।तेजोबलय(Halo) में इन्ि धनुष जैसे अलग-अलग
रे िाओां वाले तो नह ां पर भमधश्रत रां ग घल
ु े रहते हैं। उनका भमश्रण मन: क्षेर में काम करने
वाले तत्वों की न्यन
ू ाधधकता के द्रहसाब से ह होता है । तत्वों की सघनता के द्रहसाब से रां गों
का आभास इस तेजोबलय (Halo)की पररधध में पाया जाता है ।
10-प्
ृ वी सबसे स्त्थूल और भार है, इसके बाद क्रमर्: जल, अष्ग्न, वायु और आकार् का
नम्बर आता है। तेजोबलय की स्त्वाभाववक ष्स्त्थतत में रां गों की आभा भी इसी क्रम से चलती
है ।स्त्थूल र्र र- स्त्थूल पांच तत्वों से बना है । आकार्, वाय,ु अष्ग्न, जल, प्
ृ वी यह पााँच
तत्व सवाशववद्रदत हैं। काय-कलेवर में ववदयमान रक्त, मााँस, अष्स्त्थ, त्वचा तथा ववभभन्न
अांग-प्रत्यांग इन्ह ां के दवारा बने हैं। सक्ष्
ू म र्र र में तन्माराओां के रूप में यह तत्व भी सक्ष्
ू म
हो जाते हैं। आकार् की तन्मारा-र्ब्द, वाय,ु का स्त्पर्श अष्ग्न का रूप, जल का रस और
प्
ृ वी, की गन्ध है। सूक्ष्म र्र र की सांरचना अष्ग्न, जल आद्रद से नह ां वरन ् सूक्ष्म
तन्माराओां से हुई है, कफर भी उन्हें तत्व तो कह ह सकते हैं।
11-सूक्ष्म र्र र की नाडड़यों में बहने वाले प्राण प्रवाह में ज्वार भािे की तरह तत्व
तन्माराओां उभार आते रहते हैं लहरों की तरह उनमें से एक आगे बढ़ता है तो दस
ू रा उसका
स्त्थान ग्रहण कर लेता है । अन्त:क्षेर में कब कौन सा तत्व बढ़ा हुआ है यह पता साधना
दवारा मन: ष्स्त्थतत लगा सकती है । हर तत्व की अपनी ववर्ेषता है उसी के अनरू ु प
व्यष्क्तत्व में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। प्रकृतत और साम्यश में हे र-फेर होता रहता है।
सक्ष्
ू म र्र र में कब कौन सा तत्व बढ़ा हुआ है और ककस तत्व की प्रबलता के समय क्या
करना अधधक फलप्रद होता है ?
12-यद्रद इस रहस्त्य को जाना जा सके तो ककसी महत्त्वपण
ू श कायश का आरम्भ उपयुक्त समय
पर ककया जा सकता है और सफलता का पक्ष अधधक सरल एवां प्रर्स्त्त बनाया जा सकता
है ।
व्यष्क्त की त्वचा का रां ग चेहरे पर उड़ता हुआ तेजोबलय(Halo), उसकी स्त्वाद सम्बन्धी
अनुभूततयााँ रां ग ववर्ेष की पसन्दगी को कुछ परि कर यह जाना जा सकता है कक उसके
र्र र में ककस तत्व की न्यूनता एवां ककस की अधधकता है।ष्जस की न्यूनता हो उसे पूरा
करने के भलए उस रां ग के वस्त्रों का उपयोग, कमरे की पत
ु ाई, खिड़ककयों के पदे , उसी रां ग
के कााँच में कुछ समय पानी रिकर पीने की प्रकक्रया अपनाई जाती है । आहार में अभीटि
रां ग के फल आद्रद का प्रयोग कराया जाता है । रां गीन बल्व की रोर्नी पीडड़त भाग या
समस्त्त अांग पर डाल जाती है ।
स्त्वर ववज्ञान की प्राण-ववधधयााँ तथा छायोपासना ;-
05 FACTS;-
1-माण्डुक्योपतनषद, प्रश्नोपतनषद तथा भर्व स्त्वरोदय मानते हैं कक पांचतत्वों का ववकास मन
से, मन का प्राण से और प्राण का समाधध ( पराचेतना) से हुआ है ।साधक योगी तत्व का
पता लगाकर अपने भववटय का पता लगा लेते हैं। इससे वे अपनी मनोदर्ा और
कक्रयाकलापों को तनयांत्ररत कर जीवन को बेहतर बना सकते हैं।योगी आपके छोड़े हुए साांस
(प्रश्वास) की लांबाई के दे ि कर तत्व की प्रधानता पता लगाने की बात कहते हैं। इस तत्व
से आप अपने मनोकातयक (मन और तन) अवस्त्था का पता लगा सकते हैं। इसके पता
लगाने से आप, योग दवारा, अपने कायश, मनोदर्ा आद्रद पर तनयांरण रि सकते हैं। लेककन
ये यौधगक ववधध,
ज्योततष ववदया से भभन्न है । इसकी कई ववधधयााँ योगी बताते हैं, कुछ चरण इस प्रकार हैं...
2-भर्व स्त्वरोदय ग्रांथ मानता है कक श्वास का ग्रहों, सूयश और चांि की गततयों से सांबध
ां होता
है ।भगवान भर्व कहते हैं कक हे दे वव, स्त्वरज्ञान से बड़ा कोई भी गतु त ज्ञान नह ां है ।क्योंकक
स्त्वर-ज्ञान के अनस
ु ार कायश करनेवाले व्यष्क्त सभी वाांतछत फल अनायास ह भमल जाते
हैं।मााँ पावशती को उिर दे ते हुए भगवान भर्व ने कहा- ''इस सांसार में प्राण ह सबसे बड़ा
भमर और सबसे बड़ा सिा है । इस जगत में प्राण से बढ़कर कोई बन्धु नह ां है । इस र्र र
रूपी नगर में प्राण-वायु एक सैतनक की तरह इसकी रक्षा करता है । श्वास के रूप में र्र र
में प्रवेर् करते समय इसकी लम्बाई दस अांगुल और बाहर तनकलने के समय बारह अांगुल
होता है। चलते-कफरते समय प्राण वायु (सााँस) की लम्बाई चौबीस अांगुल, दौड़ते समय
बयाल स अांगुल, मैथुन करते समय पैंसि और सोते समय (नीांद में ) सौ अांगुल होती है ।
सााँस की स्त्वाभाववक लम्बाई बारह अांगुल होती है, पर भोजन और वमन करते समय इसकी
लम्बाई अिारह अांगल
ु हो जाती है ।
3-भगवान भर्व बताते हैं कक ''यद्रद प्राण की लम्बाई कम की जाय तो अलौककक भसदधधयााँ
भमलती हैं। यद्रद प्राण-वायु की लम्बाई एक अांगुल कम कर द जाय, तो व्यष्क्त तनटकाम हो
जाता है , दो अांगुल कम होने से आनन्द की प्राष्तत होती है और तीन अांगुल होने से कववत्व
या लेिन र्ष्क्त भमलती है। सााँस की लम्बाई चार अांगुल कम होने से वाक् -भसदधध,पााँच
अांगुल
कम होने से दरू -दृष्टि, छुः अांगुल कम होने से आकार् में उड़ने की र्ष्क्त और सात अांगुल
कम होने से प्रचांड वेग से चलने की गतत प्रातत होती हैं।यद्रद श्वास की लम्बाई आि अांगुल
कम हो जाय, तो साधक को आि भसदधधयों की प्राष्तत होती है, नौ अांगल
ु कम होने पर नौ
तनधधयााँ प्रातत होती हैं ..''
4-''दस अांगुल कम होने पर अपने र्र र को दस ववभभन्न आकारों में बदलने की क्षमता आ
जाती है और ग्यारह अांगुल कम होने पर र्र र छाया की तरह हो जाता है, अथाशत ् उस
व्यष्क्त
की छाया नह ां पड़ती है ।श्वास की लम्बाई बारह अांगुल कम होने पर साधक अमरत्व प्रातत
कर लेता है, अथाशत ् साधना के दौरान ऐसी ष्स्त्थतत आती है कक श्वास की गतत रुक जाने के
बाद भी वह जीववत रह सकता है , और जब साधक नि-भर्ि अपने प्राणों को तनयांत्ररत कर
लेता है, तो वह भि
ू , तयास और साांसाररक वासनाओां पर ववजय प्रातत कर लेता है ।''
5-छायोपासना कर कांि प्रदे र् पर मन को एकाग्र ककया जाता है।कफर उसको साधक अपलक
तनहारता है और उस पर रािक करता है ।इसके बाद र्र र को ज़रा भी न द्रहलाते हुए
आकार् में दे िता है - कफर छाया की अनक
ु ृ तत द्रदिती है।इसकी कुछ आववृ ियों के बाद
षण्मुिी मुिा के अभ्यास करने से धचदाकार् (धचि का आकार्) में उत्पन्न होने वाले रां ग
को दे िते हैं। ये जो भी रां ग होता है , उस पर नीचे द गई सारणी के द्रहसाब से तत्व का
पता चलता है । उदाहरण के भलए अगर यह पीला हो तो प्
ृ वी तत्व की प्रधानता मानी
जाती है ।
क्या है पांच तत्व?-
04 FACTS;-
1-मानव र्र र पाांच तत्वों से बना होता है; भमट्ि , पानी, अष्ग्न, वायु और र्ून्य। इन्हें पांच
महाभूत या पांच तत्व भी कहा जाता है । ये सभी तत्व र्र र के सात प्रमि
ु चक्रों में बांिे हैं।
सात चक्र और पाांच तत्वों का सांतुलन ह हमारे तन व मन को स्त्वस्त्थ रिता है ।
2-यद्रद चेहरे पर धूभमलता छाई हो, आकषशण क्षमता की कमी हो गयी हो, मोिापा या
दब
ु लापन आ गया हो,ऑकफस में पररष्स्त्थततयाां अनक
ु ू ल नह ां रह रह हो,पतत या प्रेमी,प्रेभमका
या पत्नी से सम्बन्ध िीक नह ां रह पा रहे हो तो इसका सीधा अथश होता है की अष्ग्न तत्व
न्यून हो गया है .. क्यकूां क समस्त्त आकषशण का आधार है अष्ग्न तत्व। यद्रद घर में धन नह ां
रुक रहा हो,काम त्रबगड रहे हो,िन
ू पतला हो गया हो ,गभश नह ां िहर रहा हो तो ,ये सभी
ववकृततयााँ जल तत्व से सम्बांधधत होती हैं। इस प्रकार जीवन की सभी ष्स्त्थतत के भलए इन
तत्वों की ववकृतत ह उिरदायी है ।
3-भूत अथाशत ् ष्जसकी सिा हो या जो ववदयमान रहता हो, उसे भूत कहते हैं।महान ् भूतों को
महाभूत कहते हैं ।भत
ू ककसी के कायश नह ां होते- अथाशत ् ककसी से उत्पन्न नह ां होते, अवपतु
महाभूतों के ये उपादान कारण होते हैं ।ककन्तु पांचभूत स्त्वयां ककसी से उत्पन्न नह ां होते,
इसभलए ये तनत्य हैं ।महाभूत सांसार के सभी चल-अचल वस्त्तओ
ु ां में व्यातत है , अतुः
इन्हें महाभत
ू कहते हैं ।इस प्
ृ वी के समस्त्त जीवों का र्र र और तनजीवश सभी पदाथश पांच
महाभत
ू ों दवारा तनभमतश हैं ।
4-यह हमार सष्ृ टि भत
ू ों का समद
ु ाय है । प्
ृ वी में गतत वायु से तथा अवयवों का मेल एवां
सांगिन जल से और उटणता अष्ग्न से आई है । प्
ृ वी अांततम तत्त्व है , अथाशत ् उससे ककसी
नये तत्त्व की उत्पवि नह ां होती है ।यह समस्त्त ववश्व पञ्चमहाभूतों की ह िेल है । इन
पञ्चमहाभूतों का जो इष्न्ियग्राह्य ववषय नह ां है, वह तन्मारा महाभूत है और जो
इष्न्ियग्राह्य है वे ह भूत है । आत्मा, आकार् अव्यक्त तत्व है और र्ेष व्यक्त तत्त्व है ।
पञ्चमहाभूतों की उत्पवि और मानव जीवन पर प्रभाव ;-
11 FACTS;-
1-सष्ृ टि का प्रारां भभक ववकास क्रम यह है कक यह परमाणओ
ु ां में प्रारां भ होती है ।ईश्वर जगत ्
का साक्षी है ष्जसके सष्न्नधान मार से प्रकृतत सांसार की रचना में प्रवि
ृ होती है । स्त्वतांर
अवस्त्था में रहने के भलये परमाणु िव्य का अांततम अवयव है तथा परमाणु तनत्य हैं। उस
एक परम तत्व से सत्व, रज और तम की उत्पवि हुई। यह इलेक्रॉन, न्यूरॉन और प्रोिॉन्स
का आधार हैं। इन्ह ां से प्रकृतत का जन्म हुआ।प्रकृतत का पुरुष से सम्पकश होता है तो उससे
सवप्रशथम महित्त्व या महान ् की उत्पवि होती है - महत ् से अहांकार।प्रकृतत से महत ्, महत ् से
अहांकार, अहांकार से मन और इांद्रियाां तथा पाांच तन्मारा और पांच महाभूतों का जन्म हुआ।
2-प्ृ वी, जल, तेज, वायु परमाणओ ु ां के सांयोग से बने हैं। सवशप्रथम इन्ह ां परमाणओ
ु ां से
कक्रया होती है और दो परमाणओ
ु ां के सांयोग से दवयणक
ु उत्पन्न होते हैं। ऐसे ह तीन
दवयणुकों के सांयोग से रयणक
ु बनता है, तत्पश्चात ् चतरु णक
ु आद्रद क्रम से महती प्
ृ वी,
महत ् आकार्, महत ् तेज तथा महत ् वायु उत्पन्न होता है ।महत्त्व या स्त्थूलत्व आ जाने के
कारण ह इनको महाभूत कहते हैं।
3-वैर्ेवषक दर्शन के अनुसार प्रलय की ष्स्त्थतत में जब परमात्मा को सष्ृ टि तनमाशण की इच्छा
हुई, तब आकार् महाभूत के दो परमाणुओां में परस्त्पर आकषणश के दवारा सांयोग होने लगा
। दवयणुक की रचना हुई तथा तीन दवयणुक के भमलने से रसरे णुकी तनभमशत हुई
।दवयणक
ु तक गुणों में सूक्ष्मता तथा भूत में अव्यक्त अवस्त्था रहती है अथातश स्त्थूल आाँिों
से नह ां द्रदिाई दे ता है ।रसरे णु में यह भत
ू प्रत्यक्ष-योग्यता अथातश स्त्थल
ू आाँिों से द्रदिाई
दे ने वाला हो जाता है।
4-प्
ृ वी, जल, वायु, अष्ग्न, आकार्, मन, बुदधध और अहांकार यह प्रकृतत के आि तत्व हैं।
जब हम प्
ृ वी कहते हैं तो भसफश हमार प्
ृ वी नह ां है ।प्रकृतत के इन्ह ां रूपों में सत्व, रज
और तम गण
ु ों की साम्यता रहती है । प्रकृतत के प्रत्येक कण में उक्त तीनों गण
ु होते हैं।
यह साम्यवस्त्था भांग होती है तो महत ् बनता है ।
5-प्रकृतत वह अणु है ष्जसे तोड़ा नह ां जा सकता, ककांतु महत ् जब िूिता है तो अहां कार का
रूप धरता है। अहांकारों से ज्ञानेंद्रियाां, कामेद्रियाां और मन बनता है । अहांकारों से ह तन्मारा
भी बनती है और उनसे ह पांचमहाभत
ू का तनमाशण होता है ।वास्त्तव में , महत ् ह बद
ु धध है ।
महत ् में सत्व, रज और तम के सांतल
ु न िूिने पर बद
ु धध तनभमशत होती है। महत ् का एक
अांर् प्रत्येक पदाथश या प्राणी में बुदधध का कायश करता है ।
6-चाँूकक प्रकृतत त्ररगण
ु ाष्त्मका होती है अतुः उससे उत्पन्न हुए महत ् तत्व तथा अहांकार भी
त्ररगण
ु ात्मक होते हैं ।बुदधध से अहांकार के तीन रूप पैदा होते हैं-
6-1-वैकाररक/ साष्त्वक अहांकार;-
पहला साष्त्वक अहांकार ष्जसे वैकाररक भी कहते हैं ववज्ञान की भाषा में इसे न्यूरॉन कहा
जा सकता है। यह पांच महाभूतों के जन्म का आधार माना जाता है।
6-2-तैजस अहां कार ;-
दस ू रा तेजस अहां कार इससे तेज की उत्पवि हुई, ष्जसे वतशमान भाषा में इलेक्रॉन कह सकते
हैं।तैजस अहांकार की सहायता से भत ू ाद्रद अहां कार दवारा पञ्च तन्माराएाँ उत्पन्न होती है ।
6-3-भूताद्रद अहांकार;-
तीसरा अहांकार भत
ू ाद्रद है । यह पांच महाभत
ू ों (आकार्, आयु, अष्ग्न, जल और प्
ृ वी) का
पदाथश रूप प्रस्त्तत
ु करता है । वतशमान ववज्ञान के अनुसार इसे प्रोिोन्स कह सकते हैं। इससे
रासायतनक तत्वों के अणओ
ु ां का भार न्यूनाधधक होता है । अत: पांचमहाभूतों में पदाथश तत्व
इनके कारण ह माना जाता है ।
7-साष्त्वक अहांकार और तेजस अहांकार के सांयोग से मन और पाांच इांद्रियाां बनती हैं। तेजस
और भत
ू ाद्रद अहांकार के सांयोग से तन्मारा एवां पांच महाभत
ू बनते हैं। पण
ू श जड़ जगत प्रकृतत
के इन आि रूपों में ह बनता है , ककांतु आत्म-तत्व इससे पथ
ृ क है । इस आत्म तत्व की
उपष्स्त्थतत मार से ह यह सारा प्रपांच होता है ।
8-यह ब्रह्माांड अांडाकार है । यह ब्रह्माांड जल या बफश और उसके बादलों से तघरा हुआ है ।
इससे जल से भी दस गुना ज्यादा यह अष्ग्न तत्व से आच्छाद्रदत है और इससे भी दस
गुना ज्यादा यह वायु से तघरा हुआ माना
गया है । वायु से दस गुना ज्यादा यह आकार् से तघरा हुआ है और यह आकार् जहाां तक
प्रकाभर्त होता है, वहाां से यह दस गुना ज्यादा तामस अांधकार से तघरा हुआ है । और यह
तामस अांधकार भी अपने से दस गन ु ा ज्यादा महत ् से तघरा हुआ है।
9-महत ् उस एक असीभमत, अपररमेय और अनांत से तघरा है । उस अनांत से ह पण
ू श की
उत्पवि होती है और उसी से उसका पालन होता है और अांतत: यह ब्रह्माांड उस अनांत में ह
ल न हो जाता है। प्रकृतत का ब्रह्म में लय (ल न) हो जाना ह प्रलय है । यह सांपूणश ब्रह्माांड
ह प्रकृतत कह गई है। इसे ह र्ष्क्त कहते हैं।
10-महाभूतों के गण
ु ....
गांधत्व, िवत्व, उटणत्व, चलत्व गुण क्रमर्ुः प्
ृ वी, जल, तेज (अष्ग्न) और वायु के
होते हैं ।आकार् का गुण अप्रततघात(रुकावि) होता है ।महाभूतों का सत्व, रज और तम से
भी घतनटि सांबांध है ।र्ास्त्रों में उल्लेि भमलता है...
10-1-सत्व गण
ु की अधधकता वाला आकार् होता है ।
10-2-रजो गण
ु की अधधकता वाला वायु होता है ।
10-3-सत्व और रजोगुण की अधधकता वाला अष्ग्न महाभूत होता है ।
10-4-सत्व और तमोगुण की अधधकता वाला जल महाभूत होता है ।
10-5-तमोगुण की प्रधानता वाला प्
ृ वी होती है ।
11-उपरोक्त ववश्लेषण से यह तनटकषश तनकलता है कक पांचतत्व मानव जीवन को अत्यधधक
प्रभाववत करते हैं।उनके त्रबना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले ककसी भी जीव के जीवन
की कल्पना ह नह ां की जा सकती है। इन पाांच तत्वों का प्रभाव मानव के कमश, प्रारब्ध,
भाग्य तथा आचरण पर भी परू ा पड़ता है. जल यद्रद सि
ु प्रदान करता है तो सांबांधों की
ऊटमा सि
ु को बढ़ाने का काम करती है और वायु र्र र में प्राण वायु बनकर घूमती है ।
आकार् महत्वाकाांक्षा जगाता है तो प्
ृ वी सहनर्ीलता व यथाथश का पाि भसिाती है।यद्रद दे ह
में अष्ग्न तत्व बढ़ता है तो जल्की मारा बढ़ाने से उसे सांतभु लत ककया जा सकता है।यद्रद
वायु दोष है तो आकार् तत्व को बढ़ाने से यह सांतुभलत रहेगें।
पांच तत्वों के सांतुलन के पााँच प्रकार के अभ्यास ;-
नीचे कुछ ऐसे अभ्यास बताये जाते हैं ष्जनको करते रहने से र्र र में तत्वों की जो कमी
हो जाती है उसकी पतू तश होती रह सकती है और मनटु य अपने स्त्वास्त््य को अच्छा बनाये
रहते हुए द घश जीवन प्रातत कर सकता है ।
1-प्
ृ वी तत्व( Earth/Skin);-
04 POINTS;-
1-प्
ृ वी का स्त्वामी ग्रह बुध है।इस तत्व का कारकत्व गांध है।इस तत्व के अधधकार क्षेर में
हड्डी तथा मााँस आता है ।इस तत्व के अन्तगशत आने वाल धातु वात, वपि तथा कफ तीनों
ह आती हैं।ववदवानों के मतानुसार प्ृ वी एक ववर्ालकाय चुांबक है ।इस चुांबक का दक्षक्षणी
भसरा भौगोभलक उिर ध्रुव में ष्स्त्थत है।सांभव है इसी कारण द्रदर्ा सूचक चुांबक का उिर
ध्रुव सदा उिर द्रदर्ा का ह सांकेत दे ता है ।प्
ृ वी के इसी चुांबकीय गण
ु का उपयोग वास्त्तु
र्ास्त्र में अधधक होता है ।इस चांब
ु क का उपयोग वास्त्तु में भभू म पर दबाव के भलए ककया
जाता है ।वास्त्तु र्ास्त्र में दक्षक्षण द्रदर्ा में भार बढ़ाने पर अधधक बल द्रदया जाता है।इसी
कारण दक्षक्षण द्रदर्ा की ओर भसर करके सोना स्त्वास्त््य के भलए अच्छा माना गया है ।
2-प्
ृ वी अथवा भूभम के पााँच गण
ु र्ब्द, स्त्पर्श, रुप, स्त्वाद तथा आकार माने गए हैं।आकार
तथा भार के साथ गांध भी प्
ृ वी का ववभर्टि गुण है क्योंकक इसका सांबांध नाभसका की घ्राण
र्ष्क्त से है । प्
ृ वी तत्व में ववषों को िीांचने की अदभुत र्ष्क्त है ।भमट्ि की द्रिककया बााँध
कर
फोड़े तथा अन्य अनेक रोग दरू ककये जा सकते हैं। प्
ृ वी में से एक प्रकार की गैस हर
समय तनकलती रहती है । इसको र्र र में आकवषशत करना बहुत लाभदायक है ।प्रततद्रदन
प्रातुःकाल
नांगे पैर िहलने से पैर और प्
ृ वी का सांयोग होता है । उससे पैरों के दवारा र्र र के ववष
खिच कर जमीन में चले जाते हैं और ब्रह्ममुहूतश में जो अनेक आश्चयशजनक गण
ु ों से युक्त
वायु प्
ृ वी में से तनकलती है उसको र्र र सोि लेता है ।
3-प्रातुःकाल के भसवाय यह लाभ और ककसी समय में प्रातत नह ां हो सकता। अन्य समयों
में तो प्
ृ वी से हातनकारक वायु भी तनकलती है ष्जससे बचने के भलए जत
ू ा आद्रद पहनने
की
जरूरत होती है।प्रातुःकाल नांगे पैर िहलने के भलए कोई स्त्वच्छ जगह तलार् करनी चाद्रहए।
ककसी बगीचे, पाकश, िेल या अन्य ऐसे ह साफ स्त्थान में प्रतत द्रदन नांगे पााँवों कम से कम
आधा घांिा तनत्य िहलना चाद्रहए।हर घास भी वहााँ हो तो और भी अच्छा।घास के ऊपर
जमी हुई नमी पैरों को िां डा करती है। वह िां डक मष्स्त्तटक तक पहुाँचती है । साथ ह यह
भावना करते चलना चाद्रहए “प् ृ वी की जीवनी र्ष्क्त को मैं पैरों दवारा िीांच कर अपने
र्र र में भर रहा हूाँ और मेरे र्र र के ववषों को प्
ृ वी िीांच कर मुझे तनमशल बना रह है।”
यह भावना ष्जतनी ह बलवती होगी, उतना ह लाभ अधधक होगा।
4-हफ्ते में एक दो बार स्त्वच्छ भरु भरु पील भमट्ि या र्द
ु ध बालू लेकर उसे पानी से गील
करके र्र र पर साबन
ु को तरह मलना चाद्रहए। कुछ दे र तक उस भमट्ि को र्र र पर लगा
रहने दे ना चाद्रहए और बाद में स्त्वच्छ पानी से स्त्नान करके भमट्ि को परू तरह से छुड़ा
दे ना चाद्रहए। इस मतृ तका स्त्नान से र्र र के भीतर और चमड़े के ववष खिांच जाते हैं और
त्वचा कोमल एवां चमकदार बन जाती है ।
2-जल तत्व( Water-body);-
05 POINTS;-
1-चांि तथा र्ुक्र दोनों को ह जलतत्व ग्रह माना गया है ।इसभलए जल तत्व के स्त्वामी ग्रह
चांि तथा र्क्र
ु दोनो ह हैं।इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है।यहााँ रस का अथश
स्त्वाद से है । स्त्वाद या रस का सांबांध हमार जीभ से है ।इन दोनों का अधधकार रुधधर अथवा
रक्त पर माना गया है क्योंकक जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है।कफ धातु
इस तत्व के अन्तगशत आती है ।
2-प्
ृ वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं।जल के त्रबना
जीवन सांभ्हव नह ां है ।जल तथा जल की तरां गों का उपयोग ववदयुत ऊजाश के उत्पादन में
ककया जाता है। हम यह भी भल -भााँतत जानते हैं कक ववश्व की सभी सभ्यताएाँ नद्रदयों के
ककनारे ह ववकभसत हुई हैं।जल के दे वता वरुण तथा इन्ि को माना गया है । मतान्तर से
ब्रह्मा जी को भी जल का दे वता माना गया है ।मुरझाई हुई चीजें जल के दवारा हर हो
जाती हैं। जल में बहुत बड़ी सजीवता है।
3-पौधे में पानी दे कर हरा भरा रिा जाता है , इसी प्रकार र्र र को स्त्नान के दवारा सजीव
रिा जाता है। मैल साफ करना ह स्त्नान का उददे श्य नह ां हैं वरन ् जल में भमल हुई
ववदयुत र्ष्क्त, ऑक्सीजन, नाइरोजन आद्रद अमूल्य तत्वों दवारा र्र र को सीांचना भी है ।
इसभलए ताजे, स्त्वच्छ, सह्य ताप के जल से स्त्नान करना कभी न भूलना चाद्रहए। वैसे तो
सवेरे का स्त्नान ह सवशश्रेटि है पर यद्रद सुववधा न हो तो दोपहर से पहले स्त्नान जरूर कर
लेना चाद्रहए। मध्याह्न के बाद का स्त्नान लाभदायक नह ां होता। हााँ गमी के द्रदनों में सांध्या
को भी स्त्नान ककया जा सकता है।
4-प्रातुःकाल सोकर उिते ह वरुण दे वता की उपासना करने का एक तर का यह है कक
कुल्ला करने के बाद स्त्वच्छ जल का एक धगलास पीया जाए। इसके बाद कुछ दे र त्रबस्त्तर
पर इधर उधर करविें बदलनी चाद्रहए। इसके बाद र्ौच जाना चाद्रहए। इस उपासना का
वरदान तुरन्त भमलता है । िुल कर र्ौच होता है और पेि साफ हो जाता है। यह ‘उषापान’
वरुण दे वता की प्रत्यक्ष आराधना है ।
5-जब भी आपको पानी पीने की आवश्यकता पड़े, दध
ू की तरह घूाँि घूाँि कर पानी वपयें।
चाहे कैसी ह तयास लग रह हो एक दम गिापि न पी जाना चाद्रहए। हर एक घूाँि के साथ
यह भावना करते जाना चाद्रहए-”इस अमत ृ तल्
ु य जल में जो मधरु ता और र्ष्क्त भर हुई
है , उसे मैं िीांच रहा हूाँ।” इस भावना के साथ वपया हुआ पानी, दध ू के समान गण ु कारक
होता है। पानी पीने में कांजूसी न करनी चाद्रहए। भोजन करते समय अधधक पानी न वपयें
इसका ध्यान रिते हुए अन्य ककसी भी समय की तयास को जल दवारा समुधचत र तत से
पूरा करना चाद्रहए। व्रत के द्रदन तो िास तौर से कई बार काफी मारा में पानी पीना
चाद्रहए।
3-अष्ग्न तत्व(Fire/Temperature );-
04 POINTS;-
1-सूयश तथा मांगल अष्ग्न प्रधान ग्रह होने से अष्ग्न तत्व के स्त्वामी ग्रह माने गए हैं।अष्ग्न
का कारकत्व रुप है ।इसका अधधकार क्षेर जीवन र्ष्क्त है । इस तत्व की धातु वपि है। हम
सभी जानते हैं कक सय
ू श की अष्ग्न से ह धरती पर जीवन सांभव है ।यद्रद सय
ू श नह ां होगा तो
चारों ओर भसवाय अांधकार के कुछ नह ां होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ह नह ां की
जा सकती है।सूयश पर जलने वाल अष्ग्न सभी ग्रहों को ऊजाश तथा प्रकार् दे ती है ।इसी
अष्ग्न के प्रभाव से प्ृ वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनक
ु ू ल पररष्स्त्थततयााँ बनती हैं।
2- रुप को अष्ग्न का गण
ु माना जाता है । रुप का सांबांध नेरों से माना गया है । ऊजाश का
मुख्य स्त्रोत अष्ग्न तत्व है ।सभी प्रकार की ऊजाश चाहे वह सौर ऊजाश हो या आणववक ऊजाश
हो या ऊटमा ऊजाश हो सभी का आधार अष्ग्न ह है।अष्ग्न के दे वता सूयश अथवा अष्ग्न को
ह माना गया है ।जीवन को बढ़ाने ओर ववकभसत करने का काम अष्ग्न तत्व का है ष्जसे
गमी कहते हैं। गमी न हो तो कोई वनस्त्पतत एवां जीव ववकभसत नह ां हो सकता। गमी के
केन्ि सूयश उपासना और अष्ग्न उपासना एक ह बात है ।
3-स्त्नान करके गीले र्र र से ह प्रातुःकाल न सूयश के दर्शन करने चाद्रहए और जल का अर्घयश
दे ना चाद्रहए। पानी में त्रबजल का बहुत जोर रहता है । बादलों के जल के कारण आकार् में
त्रबजल चमकती है। इलेष्क्रभसि के तारों में भी वषाश ऋतु में बड़ी तेजी रहती है । पानी में
त्रबजल की गमी को िीांचने की ववर्ेष र्ष्क्त है । इसभलए र्र र को तौभलया से पोंछने के
बाद नम र्र र से ह नांगे बदन सूयश नारायण के सामने जाकर अर्घयश दे ना चाद्रहए। यद्रद
नद , तालाब, नहर पास में हो कमर तक जल में िड़े होकर अर्घयश दे ना चाद्रहए।
4-अर्घयश लोिे से भी द्रदया जा सकता है और अांजभल से भी, जैसी सवु वधा हो कर लेना
चाद्रहए। सूयश के दर्शन के पश्चात ् नेर बन्द करके उनका ध्यान करना चाद्रहए और मन ह
मन यह भावना दह
ु रानी चाद्रहए-”भगवान सय
ू श नारायण का तेज मेरे र्र र में प्रवेर् करके
नस नस को द ष्ततमान सतेज और प्रफुष्ल्लत कर रहे हैं और मेरे अांग प्रत्यांग में स्त्फूततश
उत्पन्न हो रह है ।” स्त्नान के बाद इस कक्रया को तनत्य करना चाद्रहए।
4--वायु तत्व(Air/Oxygen ) ;-
07 POINTS;-
1-वायु तत्व के स्त्वामी ग्रह र्तन हैं। इस तत्व का कारकत्व स्त्पर्श है ।इसके अधधकार क्षेर में
श्वाांस कक्रया आती है ।वात इस तत्व की धातु है ।यह धरती चारों ओर से वायु से तघर हुई
है । वायु में मानव को जीववत रिने वाल आक्सीजन गैस मौजद ू होती है ।जीने और जलने
के भलए आक्सीजन बहुत जरुर है । इसके त्रबना मानव जीवन की कल्पना भी नह ां की जा
सकती है। यद्रद हमारे मष्स्त्तटक तक आक्सीजन पूर तरह से नह ां पहुांच पाई तो हमार
बहुत सी कोभर्काएाँ नटि हो सकती हैं।व्यष्क्त अपांग अथवा बुदधध से जड़ हो सकता है ।
2-वायु का गण
ु हैं ..स्त्पर्श।स्त्पर्श का सांबांध त्वचा से माना गया है।सांवेदनर्ील नाड़ी तांर और
मनुटय की चेतना श्वाांस प्रकक्रया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है । वायु के दे वता
भगवान ववटणु माने गये हैं।उिम वायु का ष्जतना स्त्वास्त््य पर प्रभाव पड़ता है उतना
भोजन का नह ।ां डॉक्िर लोग क्षय आद्रद असाध्य रोधगयों को पहाड़ों पर जाने की सलाह दे ते
हैं क्योंकक वे समझते हैं कक बद्रढ़या दवाओां की अपेक्षा उिम वायु में अधधक पोषक तत्व
मौजूद हैं।
3-र्र र को पोषण करने वाले तत्वों का थोड़ा भाग भोजन से प्रातत होता है , अधधकााँर् भाग
की पतू तश वायु दवारा होती है। जो वस्त्तुएां स्त्थूल हैं वे सूक्ष्म रूप से वायु मांडल में भी भ्रमण
करती रहती हैं। बीमार तथा योगी बहुत समय तक त्रबना िाये वपये भी जीववत रहते हैं।
उनका स्त्थूल भोजन बन्द है तो भी वायु दवारा बहुत सी िुराकें भमलती रहती हैं। यह
कारण है कक वायु दवारा प्रातत होने वाले ऑक्सीजन आद्रद अनेक प्रकार के भोजन बन्द हो
जाने पर मनटु य की क्षण भर में मत्ृ यु हो जाती है । त्रबना वायु के जीवन सांभव नह ।ां
4-अनन्त आकार् में से वायु दवारा प्राणप्रद तत्वों को िीांचने के भलए भारत के तत्व दर्ी
ऋवषयों ने प्राणायाम की बहुमूल्य प्रणाल का तनमाशण ककया है । मोि बुदधध से दे िने में
प्राणायाम एक मामूल सी फेफड़ों की कसरत मालम ू पड़ती है ककन्तु सूक्ष्म दृष्टि से इस
कक्रया दवारा अतनवशचनीय लाभ प्रतीत हुए हैं। प्राणायाम दवारा अखिल आकार् में से
अत्यन्त बहुमूल्य पोषक पदाथों को िीांचकर र्र र को पुटि बनाया जा सकता है।
5-स्त्नान करने के उपरान्त ककसी एकान्त स्त्थान में जाइए। समतल भूभम पर आसन त्रबछा
कर पदमासन से बैि जाइए। मेरुदां ड त्रबलकुल सीधा रहे । नेरों को अधिुला रखिए। अब धीरे
धीरे नाक दवारा सााँस िीांचना आरम्भ कीष्जए और दृढ़ इच्छा र्ष्क्त के साथ भावना
कीष्जए कक “ववश्वव्यापी महान प्राण भण्डार में से मैं स्त्वास्त््यदायक प्राणतत्व सााँस के साथ
िीांच रहा हूाँ और वह प्राण मेरे रक्त प्रवाह तथा समस्त्त नाड़ी तन्तुओां में प्रवाद्रहत होता हुआ
सूयचश क्र में (आमार्य का वह स्त्थान जहााँ पसभलयााँ और पेि भमलते हैं) इकट्िा हो रहा है।
इस भावना को ध्यान दवारा धचरवत ् मतू तशमान रूप से दे िने का प्रयत्न करना चाद्रहए।
6-जब फेफड़ों को वायु से अच्छी तरह भर लो तो दस सैककण्ड तक वायु को भीतर रोके
रहो। रोकने के समय ऐसा ध्यान करना चाद्रहए कक “प्राणतत्व मेरे अांग प्रत्यांगों में परू रत हो
रहा है ।” अब वायु को नाभसका दवारा ह धीरे धीरे बाहर तनकालो और तनकालते समय ऐसा
अनभ
ु व करो कक “र्र र के सारे दोष, रोग और ववष वायु के साथ साथ तनकाल बाहर ककये
जा रहे हैं।”
7-उपरोक्त प्रकार से आरम्भ में दस प्राणायाम करने चाद्रहए कफर धीरे धीरे बढ़ाकर
सुववधानुसार आधे घांिे तक कई बार इन प्राणायामों को ककया जा सकता है । अभ्यास पूरा
करने के उपरान्त आपको ऐसा अनुभव होगा कक रक्त की गतत तीव्र हो गई है और सारे
र्र र की नाडड़यों में एक प्रकार की स्त्फूततश, ताजगी और ववदयत
ु र्ष्क्त दौड़ रह है । इस
प्राणायाम को कुछ द्रदन लगातार करने से अनेक र्ार ररक और मानभसक लाभों का स्त्वयां
अनुभव होगा।
4-आकार् तत्व ( Space/ Thought);-
06 POINTS;-
1-आकार् तत्व का स्त्वामी ग्रह गुरु है।आकार् एक ऎसा क्षेर है ष्जसका कोई सीमा नह ां
है ।प्
ृ वी के साथ ्-साथ समूचा ब्रह्माांड इस तत्व का कारकत्व र्ब्द है ।इसके अधधकार क्षेर में
आर्ा तथा उत्साह आद्रद आते हैं।वात तथा कफ इसकी धातु हैं।वास्त्तु र्ास्त्र में आकार्
र्ब्द का अथश ररक्त स्त्थान माना गया है।आकार् का ववर्ेष गण
ु “र्ब्द” है और इस र्ब्द
का सांबांध हमारे कानों से है।कानों से हम सुनते हैं और आकार् का स्त्वामी ग्रह गुरु है
इसभलए ज्योततष र्ास्त्र में भी श्रवण र्ष्क्त का कारक गुरु को ह माना गया है ।
2-र्ब्द जब हमारे कानों तक पहुांचते है तभी उनका कुछ अथश तनकलता है।वेद तथा परु ाणों
में र्ब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है । वास्त्तव में आकार् में होने वाल
गततववधधयों से गुरुत्वाकषशण, प्रकार्, ऊटमा, चुांबकीय़ क्षेर और प्रभाव तरां गों में पररवतशन
होता है।इस पररवतशन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है। इसभलए आकार् कहें या
अवकार् कहें या ररक्त स्त्थान कहें , हमें इसके महत्व को कभी नह ां भूलना चाद्रहए।आकार्
का दे वता भगवान भर्वजी को माना गया है ।
3-आकार् का अथश र्न्
ू य या पोल समझा जाता है । पर यह र्ून्य या पोल िाल स्त्थान नह ां
है । ईथर तत्व (Ethar) हर जगह व्यातत है। इस ईथर को ह आकार् कहते हैं। रे डडयो
/ि .वी. दवारा ब्रॉडकास्त्ि ककये हुए र्ब्द ईथर तत्व में लहरों के रूप में चारों ओर फैल जाते
हैं और उन र्ब्दों को दरू दरू स्त्थानों में भी सन
ु ा जाता है। केवल र्ब्द ह नह ां ववचार और
ववश्वास भी आकार् में (ईथर में ) लहरों के रूप में बहते रहते हैं। जैसी ह हमार मनोभूभम
होती है उसी के अनुरूप ववचार इकट्िे होकर हमारे पास आ जाते हैं। हमार मनोभभू म,
रुधच, इच्छा जैसी होती हैं उसी के अनुसार आकार् में से ववचार, प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रातत
होते हैं।
4-सष्ृ टि के आद्रद से लेकर अब तक असांख्य प्राखणयों दवारा जो असांख्य प्रकार के ववचार
अब तक ककये गये हैं वे नटि नह ां हुए वरन ् अब तक मौजूद हैं, आकार् में उड़ते कफरते हैं।
यह ववचार अपने अनरूु प भभू म जहााँ दे िते हैं वह ां भसमि भसमि कर इकट्िे होने लगते हैं।
कोई व्यष्क्त बरु े ववचार करता है तो उसी के अनरू
ु प असांख्य नई बातें उसे अपने आप सझ

पड़ती हैं, इसी प्रकार भले ववचारों के बारे में भी है हम जैसी अपनी मनोभभू म बनाते हैं उसी
के अनुरूप ववचार और ववश्वासों का समूह हमारे पास इकट्िा हो जाता है और यह तो
तनष्श्चत ह है कक ववचारो की प्रेरणा से ह कायश होते हैं। जो जैसा सोचता है वह वैसे ह
काम भी करने लगता है ।
5-आकार् तत्व में से लाभदायक सदववचारों को आकवषशत करने के भलए प्राणायाम के बाद
का समय िीक है । एकान्त स्त्थान में ककसी नरम त्रबछाने पर धचि होकर लेि जाओ, या
द वार का सहारा लेकर र्र र को त्रबलकुल ढ ला कर दो। नेरों को बन्द करके अपने चारों
ओर नीले आकार् का ध्यान करो। नीले रां ग का ध्यान करना मन को बड़ी र्ाष्न्त प्रदान
करता है ।
जब नीले रां ग का ध्यान िीक हो जाए तब ऐसी भावना करनी चाद्रहए कक ‘तनखिल नील
आकार् में फैले हुए सदववचार, सदववश्वास, सत्प्रभाव चारों ओर से एकत्ररत होकर मेरे र्र र
में ववदयुत ककरणों की भााँतत प्रवेर् कर रहे हैं और उनके प्रभाव से मेरा अन्तुःकरण दया,
प्रेम, परोपकार, कतशव्यपरायणता, सेवा, सदाचार, र्ाष्न्त, ववनय, गांभीरता, प्रसन्नता, उत्साह,
साहस, दृढ़ता, वववेक आद्रद सदगण
ु ों से भर रहा है।”
6-यह भावना िूब मजबूती और द्रदलचस्त्पी के साथ मनोयोग तथा श्रदधा पूवक
श होनी
चाद्रहए। ष्जतनी ह एकाग्रता और श्रदधा होगी उतना ह इससे लाभ होगा।आकार् तत्व की
इस साधना के फलस्त्वरूप अनेक भसदध, महात्मा, सत्परु
ु ष, अवतार तथा दे वताओां की
र्ष्क्तयााँ आकर अपने प्रभाव डालती हैं और मानभसक दग
ु ण
ुश ों को दरू करके श्रेटितम
सदभावनाओां का बीज जमाती हैं।
NOTE;-
उपरोक्त पााँच तत्वों की साधनाएां दे िने में छोि और सरल हैं तो भी इनका लाभ अत्यन्त
ववषद है। तनत्य पााँचों तत्वों का जो साधन कर सकते हैं। वे इन सबको करें जो पााँचों को
एक साथ न कर सकते हों वे एक -एक दो -दो करके ककया करें । ष्जन्हें प्रततद्रदन करने की
सवु वधा न हो वे सतताह में एक दो द्रदन के भलए भी अपना कायशक्रम तनष्श्चत रूप से चलाने
का प्रयत्न करें । रवववार के द्रदन भी इन पााँचों साधनों को परू ा करते रहें तो भी बहुत लाभ
होगा। तनत्य प्रतत तनयभमत रूप से अभ्यास करने वालों को तो र्ार ररक और मानभसक
लाभ इससे बहुत अधधक होता है ।
क्या हैं तत्व दर्शन? --
1-जल तत्व;-
04 FACTS;-
1-जल तत्व की उत्पवि अष्ग्न तत्व के बाद मानी गयी है । जल हमारे जीवन में सबसे
महत्वपण
ू श है । वायु और अष्ग्न तत्व भमल कर इस का तनमाशण करते है। जहा हम भोजन के
त्रबना मह नो जीववत रह सकते है तो पानी के त्रबना भसफश कुछ द्रदन ।चन्िमा की आकषशण
र्ष्क्त से जल आवेभर्त हो कर सैकड़ो फुि ऊपर उि जाता है। हमारे र्र र में भी जल की
अधधकता है । तो सोधचये ये जल आवेभर्त हो कर हमें ककतना प्रभाववत करता होगा ।
जब हम तत्व के रूप में जल को जानने की कोभसस करते है तो हम पाते है की यह वो
तत्व है जो की स्रष्टि के तनमाशण के बाद जीवन की उत्पवि का कारण है ।
2-जल तत्व की उत्त्पवि वायु और अष्ग्न से मानी गयी है । वायु के घषशण से अष्ग्न उत्पन्न
हुई और अष्ग्न ने वायु से जल का तनमाशण ककया ।इसे हम ववज्ञानां के जररये समझ सकते
है ...
एक बीकर में हाईड्रोजन और एक बीकर में आक्सीजन ले कर उन्हें एक नल से जोड़े। अब
हम जैसे ह बेक्र के जररये स्त्पाकश करें गे हईड्रोजन के दो अणु आक्सीजन के एक अणु से
भमल कर जल के एक अणु का तनमाशण कर दे ते है । जल का तनमाशण तब तक नह होता
जब तक की अष्ग्न न हो।
3-इस तत्व को जानने वाला अपनी भि
ू और तयास पर तनयांरण पा लेता है ।इस कारण ह
हमारे ऋवषयो को लम्बे समय तक ध्यान में रहने पर भी भि
ू और तयास नह लगती थी।
ये स्त्वयां पर ववजय का प्रतीक है । .
4-1-रां ग एव आकृतत .. इस की आकृतत अधश चााँद जैसी और रां ग चाांद के समान माना गया
है ध्यान में इसी आकृतत और रां ग का ध्यान करते है ।
4-2-श्वास दवारा पहचान - इस समय श्वास बारह अांगल
ु तक चल रह होती है।इस समय
स्त्वर भीगा चल रहा होता है।
4-3-दपशण ववधध दवारा पहचान - इस की आकृतत अधश चााँद जैसी बनती है ।
4-4-स्त्वाद दवारा पहचान - जब यह स्त्वर चल रहा हो मि
ु का स्त्वाद कसैला प्रतीत होता है।
4-5-रां ग दवारा पहचान - इस का रां ग ध्यान में चाांद जैसा प्रतीत होता है ।
4-6-बीज मांर - वां
4-7-ध्यान ववधध - भसदधआसन में अधश चााँद जैसी आकृतत को दे ि.े . ष्जस का रां ग चाांद
जैसा हो और बीज मांर ''वां ''का जप करे ।
2-अष्ग्न तत्व;-
04 FACTS;-
1-हमार सनातन या वैद्रदक सांस्त्कृतत यज्ञ सांस्त्कृतत रह है । हम सतयुग से ह अष्ग्न के
उपासक रहे है ।अष्ग्न में सदै व ऊपर उिने का गण
ु होता है । यद्रद हम अपने वैद्रदक ध्वज
पर ध्यान दे जो उस का रां ग और और उस की आकृतत अष्ग्न का प्रतीक है। हमारा तेज
ष्जसे वैज्ञातनक भाषा में हम अपनी इलेक्रो मैग्नद्रिक कफल्ड भी कहते है अष्ग्न तत्व पर
तनभशर
करता है । यह असीम ऊजाश का स्रोत है । इसे हम भर्व तत्व के नाम से भी जानते है ।
2-ककसी भी कायश में चाहे वो अध्याष्त्मक हो या साांसाररक.. हमें ऊजाश की आवश्यकता होती
है और स्त्थूल से सूक्ष्म ऊजाश अधधक प्रभावी होती है । अष्ग्न तत्व न भसफश हमें प्रभावर्ल
बनाता है ;अवपतु हमार अध्याष्त्मक और साांसाररक उन्नतत भी करता है ।
3-वायु तत्व के बाद अष्ग्न की उत्त्पवि वायु के घषशण से मानी जाती है । ष्जतने भी भी तारे
है वो सब वायु के गोले है और उनके घषशण ( नाभभकीय सांलयन या वविांडन ) से ह अष्ग्न
की
उत्पवि हुई। र्र र में दोनों कांधे अष्ग्न तत्व का प्रतततनधधत्व करते है । जव सूयश स्त्वर (
दाद्रहना स्त्वर ) चल रहा हो और उस में अष्ग्न तत्व हो तो ;यह मांगल ग्रह का प्रतततनधधत्व
करता है ।जब चन्ि स्त्वर चल रहा और अष्ग्न तत्व हो तो ;यह र्क्र
ु ग्रह का प्रतततनधधत्व
करता है ।
4-1-पहचान ..श्वास दवारा -- जब सााँस 4 अांगुल तक चल रह तो तो अष्ग्न तत्व होता है

4-2-पहचान..स्त्वाद दवारा -- सूक्ष्म ववश्लेषण करने पर मुि का स्त्वाद तीिा प्रतीत होता है।
4-3-पहचान..रां ग दवारा -- इस का रां ग लाल होता है . ध्यान ववधध दवारा इसे हम जान
सकते है ।
4-4-दपशण ववधध दवारा पहचान-- दपशण ववधध में में हम सााँस का प्रवाह ऊपर की तरफ
पाएांगे और आकृतत त्ररकोण होगी।
4-5-आकृतत -- इस की आकृतत त्ररकोण होती है।
4-6-बीज मांर -- रां
4-7-लाभ ..लाल रां गके प्रयोग से भूि बढती है ,तयास लगती है । ष्जनको भूि न लगती हो
तो इसका प्रयोग करे ।ये प्राकृततक प्रयोग है जो तनष्श्चत ह लाभ प्रदान करता है ।
युदध में या अन्य साहभसक कायश में सफलता द्रदलाता है।जब आप को कभी काफी जोर से
क्रोध आये.. उस वक्त यद्रद आप गौर करें गे; तो अष्ग्न तत्व ह चल रहा होगा।
4-8-प्रयोग -- अपने भसदधआसन में इस के बीज मांर का जाप करते हुए.. ध्यान में एक
त्ररकोण आकृतत दे िे ..ष्जस का रां ग लाल हो ।
वायु तत्व;-
04 FACTS;-
1-श्रष्टि तनमाशण क्रम में space अथाशत आकार् तत्व के बाद वायु तत्व आया। ब्रह्माण्ड
ष्जतने भी तारे है वो गैस के गोले है और उस के बाद ग्रह , उपग्रह आद्रद उन के िूिे हुए
भाग
है । जहा वायु के घषशण से अष्ग्न उत्त्पन्न होती और तो वह जल भी वायु के एक तनष्श्चत
अनुपात में बना भमश्रण मार है। इस तत्व को साधना बेहद कद्रिन है ।इस की महिा इस
बात से ह समझ में आती है कक हमारा सक्ष्
ू म र्र र 5 प्रकार की वायु आपान , उदान,
व्यान, समान और प्राण में और 10 प्रकार की उपवायु में वखणशत है । र्र र में नाभभ में इस
का स्त्थान माना जाता है ।
2-इस तत्व की पहचान तनम्न तर को से कर सकते है ...
श्वास दवारा -- इस की पहचान हम अपनी श्वास दवारा कर सकते है । यद्रद श्वास 8
अांगुल तक चल रह हो वायु तत्व चल रहा होता है । इस की भलए आप अपने सर को सीधा
रि कर अपनी श्वास की गतत अपने हाथ से (हथेल के िीक ववपर त ) महसूस करे ।
स्त्वाद दवारा -- सूक्ष्म अध्यन करने पर मुि का स्त्वाद िट्िा प्रतीत होता है।
दपशण ववधध दवारा -- यद्रद वायु तत्व चल रहा हो तो इस की गतत ततरछी होती है । इस का
आकार गोल होता है ।
3- इस का रां ग हरा या गहरा भरू ाहोता है। कांु डल जागरण में जो लाभ है उस की सम्पण
ू श
लौककक भसदधधयााँ इस तत्व में प्रातत हो जाती है और इन का त्याग कर आकार् तत्व
भसदध कर साधक परालौककक र्ष्क्तया प्रातत कर लेता है।स्त्पटि है की बाकक के तीन तत्व
तत्व भी इसी से बनते है अतुः वे स्त्वयां ह भसदद हो जाते है ।तांर र्ास्त्र में आकार् में
आवागमन की अनेक
ववधधयााँ द हुई है। जो साधक वायु में धचडड़या की तरह उड़ने की तथा दस
ू रो के मन की
बात अपने आप जानने की इच्छा रिता हो वह श्रदधा पूवक श इस बीज मांर -- ''यां'' को
भसदध करे ।
4-साधना ववधध -- इस मांर की साधना के भलए आप आसान लगा कर बैि जाये और हवा
में ष्स्त्थर एक हरा या भूरा गोले का ध्यान करे और इसके बीज मांर ''यां'' का उच्चारण करे

..SHIVOHAM...

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