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4. अध्धयन पद्धति एवं उपकरण
4. अध्धयन पद्धति एवं उपकरण
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उनका मापन एवं मल्ू यांकन करना अनिवार्य होता है । यह कार्य शोध के लिए चयनित उपयक्त
ु उपकरणों द्वारा ही
संभव होता है ।
एक अच्छे उपकरण की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं:-
शोध विषय की समस्या को भली प्रकार समझकर अध्धयन से सम्बधि ं त साहित्य के अवलोकन व निर्मित
उपकल्पनाओ ं से प्रेरित होकर प्रस्ततु लघु शोध में सृजनात्मकता एवं बद्धि
ु लब्धि की निम्नलिखित मापनी उपकरणों
का प्रयोग किया जा सकता है –
1) सृजनात्मकता के मापन के लिए मानकीकृ त परीक्षण- बाकर मेहंदी का प्रयोग किया जा सकता है ।
2) बद्धि
ु लब्धि के मापन के लिए डॉ. जलोटा का साधारण मानसिक योग्यता परीक्षण प्रयोग किया जा सकता है ।
सज
ृ नात्मकता का परीक्षण
बाकर मेहंदी का सज ृ नात्मकता चिंतन का शाब्दिक व अशाब्दिक परीक्षण - बाकर मेहंदी ने 1973 में
सृजनात्मक चितं न का मापन करने हेतु भारतीय परिस्थितियों के अनक ु ू ल शाब्दिक और अशाब्दिक सृजनात्मक
परीक्षण का निर्माण किया । यह दोनों परीक्षण हिदं ी व अग्रं जे ी दोनों भाषाओ ं में उपलब्ध है तथा सृजनात्मकता के
निम्न तीन पहलओ ु ं का मापन करते हैं –
प्रवाहिता, लचीलापन तथा मौलिकता
शाब्दिक परीक्षण में सम्मिलित परीक्षण निम्न हैं -
क्या होगा परीक्षण
वस्तओु ं के नए उपयोग नए संबंधों के परीक्षण
रुचि की चीजों का सृजन
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अशाब्दिक परीक्षण में सम्मिलित परीक्षण निम्न हैं -
चित्र निर्माण
चित्र पर्ति
ू
ज्यामिति आकृ तियां
बुद्धि लब्धि का परीक्षण
डॉ. एस. एस. जलोटा का साधारण मानसिक योग्यता परीक्षण- इसे शाब्दिक जानकारी को समझने और
व्याख्या करने की क्षमता, संख्याओ ं को पहचानने और संसाधित करने की क्षमता और सारणीबद्ध/ चित्रमय प्रारूप
में बताई गई जानकारी, व्यापक विचार की क्षमता और असंबद्ध अवधारणाओ ं के बीच तार्कि क संबंध बनाने की
क्षमता के रूप में परिभाषित किया गया है ।
इस परीक्षण के द्वारा हम एक समहू की बद्धि ु को माप सकते हैं और बद्धि
ु मान, औसत और सस्ु त श्रेणियों को
वर्गीकृ त कर सकते हैं ।
बुद्धि लब्धि = मानसि कआयु
वास् तवि कआयु
× 100
3.4 न्यादर्श चयन
अनसु धं ान तथा शोध के प्रयोग का प्रारूप न्यादर्श की प्रविधि पर आधारित होता है । एक उत्तम प्रकार के
शोध कार्य में न्यादर्श तथा उसकी जनसख्ं या सबं धं ी समस्त सचू नाओ ं को दिया जाता है । शोध कार्य को सार्थक
करने के लिए न्यादर्श का चयन किया जाता है । परिकल्पना के समान ही न्यादर्श का शैक्षिक अनसु न्धान में
महत्वपर्णू स्थान है । न्यादर्श के अभाव में कोई भी अनसु न्धान कार्य पर्णू नहीं हो सकता ।
मानव के जीवन के प्रत्येक पक्ष में प्रायः न्यादर्श अथवा सैम्पल की आवश्यकता होती है, जैसे- मानव
उबलते हुए चावल के एक दाने से उसके पकने का अनमु ान लगा लेता है, वहीं एक चिकित्सक मनष्ु य की रक्त की
कुछ बँदू ों से ही उसके सम्पर्णू रक्त की स्थिति ज्ञात कर लेता है । इसके अतिरिक्त कुछ ग्राम मिट्टी के माध्यम से कृ षि
वैज्ञानिक, मिट्टी की उर्वरता की पहचान कर लेते हैं अर्थात् जीवन के प्रत्येक पक्ष में न्यादर्श की सैम्पल पद्धति
उपयोग में लायी जाती है । न्यादर्श की इसी उपयोगिता ने शैक्षिक अनसु न्धान में इसका महत्वपर्णू स्थान बनाया है ।
जब भी कभी किसी जनसख्ं या (इकाई, वस्तओ ु ं अथवा मनष्ु यों का समहू ) में किसी चर का विशेष मान ज्ञात करने
के लिए उसकी कुछ इकाइयों का चयन किया जाता है तो इसी चयन प्रक्रिया को निदर्शन कहा जाता है तथा चनु ी
गयी इकाई को न्यादर्श कहा जाता है ।
जनसख्ं या- प्रस्ततु लघश
ु ोध में शोधार्थी द्वारा जबलपरु शहर में स्थित प्रतिभास्थाली ज्ञानोदय विद्यापीठ की
माध्यमिक स्तर(6 वीं-8 वीं कक्षा) की छात्राओ ं को शोध की जनसख्ं या माना जाएगा ।
अध्ययन का न्यादर्श- प्रस्ततु लघश ु ोध कार्य हेतु अनसु धं ानकर्त्ता द्वारा प्रतिभास्थाली ज्ञानोदय विद्यापीठ की
छात्राओ ं का यादृच्छिक विधि से चयन किया जाएगा तथा इनमें से 10 6 वीं कक्षा की छात्राओ ं को, 10 7 वीं
कक्षा की छात्राओ ं को तथा 10 8 वीं कक्षा की छात्राओ ं को प्रशिक्षु हेतु चयन किया जाएगा ।
3.4 सभ
ं ावित परिणाम
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ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से उन छात्रों को शिक्षण प्रदान करने का प्रयास किया जाता है जो प्रत्यक्ष पारंपरिक
कक्षाओ ं में शिक्षण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं, परंतु इस शिक्षण पद्धति का उपयोग बढ़ने के कारण अन्य कारकों
पर प्रभाव देखने को मिला । मख्ु य रूप से छात्रों के चरित्र निर्माण और उनमें संयम की कमी को देखा जा रहा है जो
भारतीय शिक्षा के मल ू स्तम्भ हैं ।
जैनाचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज कहते हैं-
“यदि चारित्र को उच्च नहीं बनाओगे, मन को संयमित नहीं बना पाओगे, तो यह शिक्षा नहीं ।
हेय-उपादेय का ज्ञान कराना ही शिक्षा का मल
ू उद्देश्य होना चाहिए ।”
इन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु इस शोध को संपन्न किया जाएगा ।
प्रस्ततु लघश
ु ोध से संभावित परिणाम कुछ इस प्रकार हो सकते हैं-
शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति की स्थिति को ज्ञात किया जा सके गा ।
छात्रों द्वारा तकनीकी का सदपु योग एवं समय का सदपु योग करने की स्थिति को ज्ञात किया जा सके गा ।
छात्रों की सृजनात्मकता एवं बद्धि ु लब्धि में होने वाले परिवर्तन की स्थिति को ज्ञात किया जा सके गा ।
छात्रों को ऑनलाइन शिक्षण के माध्यम से प्रदान किये गए विषय वस्तु के ज्ञान की स्थिति को ज्ञात किया
जा सके गा ।
छात्रों के जीवन में शिक्षक की भमि ू का, आवश्यकता एवं महत्त्व को ज्ञात किया जा सके गा ।
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