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कार्यशाला Workshop

        कार्यशाला Workshop
कार्यशाला workshop एक निश्चित विषय पर प्रायोगिक कार्य होता है जिसमें समूह के सदस्य अपने ज्ञान एवं
अनुभव के आदान-प्रदान द्वारा विषय के बारे में सीखते हैं। कार्यशाला में प्रायोगिक कार्य एवं ज्ञान को अधिक
महत्व दिया जाता है । अधिकतम कार्यशालाएं नियंत्रित सदस्यों द्वारा प्रारं भ की जाती है । कार्यशाला में भाग लेने
वाले समस्या या विषय पर कार्य प्रारं भ करते हैं

कार्यशाला के उद्देश्य(objective of workshop):-


1. ज्ञानात्मक उद्देश्य(Cognitive Objectives):-
(1). जटिल समस्याओं का समाधान ढूंढना।

(2).अनस
ु ंधान की विधियों का निर्धारण करना।

(3).समस्याओं के प्रति सूझ उत्पन्न करना।

(4).अनुसंधान के सामाजिक एवं दार्शनिक पक्षों का विवेचन करना।

2.भावनात्मक उद्देश्य(Affective Objectives):-

(1)वर्तमान समस्या क्षेत्रों के प्रति जागरूकता।

(2).तात्कालिक समस्याओं के प्रति सक्रियता।

(3).अनुसंधान की विधा में निपुणता।

(4).अनुसंधानिक प्रक्रिया की प्रशंसा।

(5).अनुसंधानों में विश्वास।

3.मन:क्रियात्मक उद्देश्य(Psychomotive Objectives):-


(1).अनस
ु ंधानों के अभिकल्प तैयार करना।

(2).अनुसंधानों की समस्याओं का चयन एवं निर्धारण करना।

(3).संबंधित साहित्य संग्रह की विधा सीखना।

(4).उपकरण चयन की आवश्यक शर्तों की जानकारी प्राप्त करना।


(5).अनस
ु ंधान करने की योग्यता का विकास करना।

कार्यशाला में भागीदारी करने वाले व्यक्ति(persons involved in work-shop):-

1.संचालक

2.आयोजक

3.विषय-विशेषज्ञ

4.सहभागी

कार्यशाला प्रविधि की प्रक्रिया(Procedure of Workshop):-

प्राय: अनुसंधान के किसी विषय, क्षेत्र, समस्या के संदर्भ में कार्यशाला का आयोजन 3-10 दिन तक किया जाता है ,
कार्यशाला की तीन अवस्थाएं हो सकती है -
प्रथम अवस्था:- इस अवस्था में प्रकरण से संबंधित प्रस्तत
ु ीकरण एवं स्पष्टीकरण होता है ।

द्वितीय अवस्था:- यह अवस्था तीन दिन से एक सप्ताह तक चलती है । समस्त प्रशिक्षणार्थियों को छोटे -छोटे
समूहों में विभाजित किया जाता है । प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी को अपने-अपने कार्य निर्धारण की स्वतंत्रता दी जाती है ।
कार्य करने के बाद अपने-अपने समूह में सुधार का प्रयास किया जाता है । इस अवस्था के अंतिम चरण में सभी
समह
ू एक साथ मिलते हैं और अपने कार्यों की व्याख्या प्रस्तत
ु करके रिपोर्ट तैयार की जाती है ।

तत
ृ ीय अवस्था:- तत
ृ ीय अवस्था अनौपचारिक होती है । इसमें सभी प्रशिक्षणार्थी अपने-अपने कार्य क्षेत्रों में जाकर
कार्यप्रणाली में सुधार करते हैं। इस अवस्था को अनुकरण अवस्था भी कहते हैं। इस अवस्था के अंत में कार्य का
समापन होता है और विभिन्न प्रयोगों की व्यवहारिकता की व्याख्या प्रस्तुत की जाती है ।

कार्यशाला की विशेषताएं(characteristics of workshop):-


1.अनुसंधान संबंधी उच्च ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति।

2.अनुसंधान की नवीन उपागम की सैद्धांतिक एवं क्रियात्मक पक्षों का बोध करना।

3.अनस
ु ंधानों के व्यावहारिक उपयोगों की संभावनाओं को खोजना।

4.उच्च स्तरीय व्यक्तिगत क्रियाओं को प्रोत्साहित करना तथा उनके अभ्यास के अवसर जुटाना।

5.सामूहिक भावना एवं सामूहिक रूप से कार्य परू ा करने की क्षमताओं का विकास करना।

6.नवीन प्रत्ययों एवं उपागमों से परिचित होना तथा उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना।
कार्यशाला की सीमाएं(Limitations of Workshop):-
कार्यशाला की प्रमुख सीमाएं निम्नलिखित है –

1.अत्यधिक समय की आवश्यकता

2.रोचकता

3.ज्ञानात्मक अधिक, क्रियात्मक कम

4.विशिष्ट सामग्री की आवश्यकता

5.विशिष्ट दक्ष व्यक्तियों की आवश्यकता

6.सहयोगात्मक रवैये का अभाव

7.अनुसरण का अभाव

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