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प्रयोग संख्या - 1

संप्रत्यय निर्माण

समस्या:- वर्गीकरण विधि द्वारा प्रयोज्य के


संप्रत्यय निर्माण का अध्ययन करना।

प्रस्तावना :- संप्रत्यय अनुक्रियाओं की वह


अवस्था है जिसके द्वारा प्रत्यक्षीकृ त
अनुभवों से प्राप्त प्रदत्तों की व्याख्या और
संगठन से होता है। Vinacke (1957) ने यह
कहा है कि "संप्रत्यय संज्ञानात्मक की वह
अवस्था है जो वर्तमान उत्तेजना के संदर्भ में
गत अनुभवों से कु छ विशिष्ट लक्षणों को
उपस्थित करती है अनुभवों के संगठन का
प्रतिनिधित्व करती है तथा वस्तुओं के अर्थ
का निर्धारण करती है। नए ज्ञान नए
अनुभवों की वृद्धि के साथ- साथ इनमें
परिवर्तन भी होता रहता है इसका सम्बन्ध
व्यक्ति, वस्तु, गुणों तथा सम्बन्धों के
सम्बन्ध में हो सकता है। यह निश्चित भी
हो सकता है और अनिश्चित भी हो सकता
है।"

Chall (1958) के अनुसार- "संप्रत्यय का


अध्ययन इसलिए आवश्यक है कि यह
व्यक्ति की ऐसी चीजों का निर्धारण करता है
जैसे की व्यक्ति क्या करता है, क्या जानता
है तथा उसका क्या विश्वास है।

संप्रलय निर्माण के प्रकार :- संप्रत्यय निर्माण


के मुख्य 3 प्रकार होते हैं जो निम्नलिखित
है-

1.संयोजक संप्रत्यय

2.वियोजक संप्रत्यय

3.सम्बन्ध संप्रत्यय

संप्रत्यय निर्माण को प्रभावित करने वाले


कारक-
निम्नांकित कारक संप्रत्यय निर्माण को
प्रभावित करते हैं:-

ज्ञानेन्द्रियां

बौद्धिक क्षमता

अधिगम

अनुभव

परिवेश

व्यक्तित्व

शिक्षा

लिंग

संप्रत्यय निर्माण की विधियां


1. वर्गीकरण विधि:- इस विधि के अनुसार
सामान्यीकरण के आधार पर विभिन्न वर्गों
के उद्दीपक को सामान्य विशेषता के आधार
पर विभिन्न वर्गों में बांटना होता है। इस
प्रकार की विधि का प्रयोग Heidbreder
(1947-1948) ने अपने उपयोग में किया।

2. स्मरण विधि:- इसका उपयोग Hull (1920)


ने अपने प्रयोग में स्मृति क्षेत्र में Paired-
associate पर किया। इसे विभेदीकरण
अधिगम का प्रयोग कहा जाता है।

उपकल्पना:- संप्रत्यय निर्माण में क्रमिक


प्रयासों के बढ़ने से संप्रत्यय निर्माण में
त्रुटियां कम होती हैं और समय भी कम
लगता है।

चर:- 1. स्वतंत्र चर:- विभिन्न आकृ ति वाले


गुटकों का आकार एवं ऊं चाई

2. आश्रित चर:- प्रत्येक प्रयास में लिया गया


समय एवं की गईं त्रुटियां।

आवश्यक सामग्री:- Hanfmann-Kasanin का


संप्रत्यय निर्माण परीक्षण (22 गुटके ) 5 रंगों, 6
आकृ तियों, 2 ऊं चाइयों तथा 2 आकारों के
गुटके । [यह 4 भागों में विभाजित होते हैं।
LAG ऊं चे तथा बड़े आकार वाले, MUR ऊं चे
तथा छोटे, BIK बड़े तथा चपटे, CEV चपटे तथा
छोटे आकार के होते हैं]

विराम घड़ी, पेन, पेंसिल इत्यादि।

अभिकल्प:- अभिकल्प बांए पृष्ठ पर अंकित


है।

प्रयोज्य का परिचय:-

नाम

कक्षा

आयु
लिंग

सावधानियां:-

1. प्रकाश की उचित व्यवस्था की गई।

2. प्रयोज्य के बैठने की उचित व्यवस्था की


गई।

3. प्रयोज्य के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित


किया गया।

4. वातावरण शांत रखा गया।

5. प्रयोग में आने वाली सभी सामग्री की


जांच कर ली गई।
प्रयोग विधि:- प्रयोग में आने वाली सामग्री
को मेज पर रख लिया गया। नीचे लिखे
संके त को प्रयोज्य को नही बताया गया और
गुटके देते समय उसको नही दिखाया गया।
प्रत्येक प्रयोग के बाद उसे 1 मिनट का
विश्राम दिया गया। प्रत्येक प्रयास करने से
पूर्व 'तैयार' का संके त दिया गया। कार्य
आरंभ होते ही विराम घड़ी चला दी गई।
प्रत्येक प्रयास में की गईं त्रुटियां एवं लिए
गए समय का औसत सावधानी पूर्वक लिख
लिया गया।

अंत: दर्शन रिपोर्ट:-


निरीक्षण विवरण:-

व्याख्या विश्लेषण:- प्रस्तुत प्रयोग की


समस्या वर्गीकृ त विधि द्वारा प्रयोज्य की
संप्रत्यय अनुभवों से प्राप्त किया गया।

अशुद्धियां तथा लिए गए समय जिसमे


प्रत्यक्षीकरण अनुभवों से प्राप्त प्रदत्तों की
व्याख्या और संगठन होता है।

इस प्रयोग में प्रथम वर्ग प्रयास में कु ल __


अशुद्धियां हुईं जिसका औसत __ है।

दूसरे प्रयास में कु ल __ अशुद्धियां हुईं जिसका


औसत __ है।
तीसरे प्रयास में कु ल __ अशुद्धियां हुईं
जिसका औसत __ है।

चौथे प्रयास में कोई अशुद्धि नही हुई।

इस प्रकार प्रथम वर्ग प्रयास में सबसे अधिक


अशुद्धियां हुईं, दूसरे में उससे कम, तीसरे में
उससे कम तथा चौथे प्रयास में बिलकु ल
अशुद्धियां नही हुईं।

प्रयोज्य ने प्रथम वर्ग प्रयास में कार्य करने


में कु ल समय __ sec लिया तथा जिसका
औसत प्रतिशत प्रतिक्रिया काल __ sec हुआ।
दूसरे प्रयास में कार्य करने में कु ल समय __
sec लिया तथा जिसका औसत प्रतिशत
प्रतिक्रिया काल __ sec हुआ।

तीसरे प्रयास में कार्य करने में कु ल समय


__ sec लिया तथा जिसका औसत प्रतिशत
प्रतिक्रिया काल __ sec हुआ।

चौथे प्रयास में कार्य करने में कु ल समय __


sec लिया तथा जिसका औसत प्रतिशत
प्रतिक्रिया काल __ sec हुआ।

चौथे प्रयास में प्रयोज्य ने कोई अशुद्धियां


नही की तथा समय भी कम लगा।
इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि प्रयोज्य
के अभ्यास बढ़ने के परिणाम स्वरूप गुटके
को छाटने में धीरे - धीरे समय कम लगता
गया तथा अशुद्धियां भीं कम होती गईं तथा
अंत में बिलकु ल अशुद्धियां नही हुईं तथा
प्रयोज्य गुटके छांटना सीख गया।

इस परिणाम से उपकल्पना की संपुष्टि होती


है। कक्षा के अन्य विद्यार्थियों के परिणाम
मेरे परिणाम से मिलते जुलते आएं हैं। इससे
उपकल्पना स्वीकार की जाती है।

निष्कर्ष:- संप्रत्यय निर्माण में अभ्यास का


प्रभाव सकारात्मक पड़ा है जिसके परिणाम
स्वरूप समय तथा अशुद्धियों की मात्रा में
कमी आई है और प्रयोज्य संप्रत्यय निर्माण
करना सीख गया। इस परिणाम की संपुष्टि
Thorndike के अभ्यास तथा त्रुटि सिद्धांत से
भी मिलता है।

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