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व्यावसायिक अध्ययन प्रबंधन

BUSINESS STUDIES MANAGEMENT


प्रबंधन (परिचय)
 उपलब्ध संसाधनों का दक्षतापूर्वक तथा प्रभावपूर्ण तरीके से उपयोग करते हुए
लोगों के कार्यों में समन्वय करना ताकि लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा
सके ।

 पूर्वानुमान करना तथा योजना बनाना, संगठन बनाना, आदेश देना, समन्वय
करना ही प्रबंधन है। - फ्रे डेरिक हेनरी फे योल
प्रबंधन के लक्षण (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)
1. आर्थिक संसाधन (ECONOMIC RESOURCES) 2. लक्ष्य उन्मुख (GOAL ORIENTED)

प्रबंधन के लक्षण (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)


3. विशिष्ट प्रक्रिया( DISTINCT PROCESS) 4. एकीकृ त बल(INTEGRATED FORCE)

 प्रबंधन एक अलग प्रक्रिया है, जिसमें संसाधनों  प्रबंधन प्रक्रियाओं का अनुप्रयोग जो गुंजाइश,
के उपयोग द्वारा निर्धारित उद्देश्यों को निर्धारित अनुसूची, लागत, जोखिम, गुणवत्ता और
करने और पूरा करने के लिए नियोजन, संसाधनों के कु छ या सभी मूलभूत घटकों को
आयोजन, सक्रियण और नियंत्रित किया जाता एकीकृ त करता है।
है। - George R Terry

प्रबंधन के लक्षण (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)


5. प्राधिकरण की प्रणाली 6. बहु-विषयक विषय

 प्रबंधकों की एक टीम के रूप में प्रबंधन  प्रबंधन अध्ययन के एक क्षेत्र (यानी अनुशासन) के रूप में
विकसित हुआ है, इंजीनियरिंग, नृविज्ञान, समाजशास्त्र और
प्राधिकरण की एक प्रणाली, कमांड और नियंत्रण मनोविज्ञान जैसे कई अन्य विषयों की मदद ले रहा है।
का एक पदानुक्रम का प्रतिनिधित्व करता है।
 विभिन्न स्तरों पर प्रबंधकों के पास प्राधिकरण
की अलग-अलग डिग्री होती है।
 आम तौर पर, जैसा कि हम प्रबंधकीय पदानुक्रम
में नीचे जाते हैं, प्राधिकरण की डिग्री धीरे-धीरे
कम हो जाती है।
 प्राधिकरण प्रबंधकों को अपने कार्यों को प्रभावी
ढंग से करने में सक्षम बनाता है।

प्रबंधन के लक्षण (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)


प्रबंधन के लक्षण (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)

7. यूनिवर्सल एप्लीके शन:


 प्रबंधन सार्वभौमिक है।
 प्रबंधन के सिद्धांत और तकनीक व्यापार, शिक्षा, सैन्य, सरकार और अस्पताल के क्षेत्र में समान रूप से लागू हैं।
 हेनरी फे योल ने सुझाव दिया कि प्रबंधन के सिद्धांत कमोबेश हर स्थिति में लागू होंगे।
प्रबंधन के लक्षण (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT)

7. यूनिवर्सल एप्लीके शन:

प्रबंधन सार्वभौमिक है।


प्रबंधन के सिद्धांत और तकनीक व्यापार,
शिक्षा, सैन्य, सरकार और अस्पताल के
क्षेत्र में समान रूप से लागू हैं।
हेनरी फे योल ने सुझाव दिया कि
प्रबंधन के सिद्धांत कमोबेश हर स्थिति में
लागू होंगे।
प्रबंधन के कार्य( FUNCTIONS OF MANAGEMENT)
नियोजन (PLANNING)
संगठन (ORGANISATION)

 संगठन (organisation) वह सामाजिक व्यवस्था


या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है, जो अपने कार्यों
की समीक्षा करते हुए स्वयं का नियन्त्रण करती है, तथा
अपने पर्यावरण से जिसकी अलग सीमा होती है।
संगठन तरह-तरह के हो सकते हैं - सामाजिक,
राजनैतिक, आर्थिक, सैनिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक
आदि।
नियुक्तिकरण(APPOINTMENT)
 किसी पद पर योग्य, कु शल एवं सही
व्यक्ति का चुनाव करना ही नियुक्तिकरण
कहलाता है। नियुक्तिकरण से किसी
संगठन या उपक्रम के कार्यों का
कु शलतापूर्वक निष्पादन करके निरन्तर
विकास को प्राप्त किया जा सकता है।
निर्देशन(DIRECTING)
 निर्देशन एक प्रक्रिया है जिसके अनुसार एक व्यक्ति को
सहायता प्रदान की जाती है जिससे कि वह अपने
समस्या को समझते हुए आवश्यक निर्णय ले सके और
निष्कर्ष निकालते हुये अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सके ।
 चाइशोम इस व्याख्या को इस प्रकार लिखते है कि –
रचनात्मक उपक्रम तथा जीवन से सम्बन्धित
समस्याओं के समाधान की व्यक्ति में सूझ विकसित
करना निर्देशन का उद्देश्य है ताकि वह अपनी जीवन
भर की समस्याओं का समाधान करने के योग्य बन
सके ।
नियंत्रण(CONTROLLING)
 नियंत्रण यह सुनिश्चित करने की
प्रक्रिया है कि वास्तविक गतिविधियां
योजना गतिविधियों के अनुरूप हों।
नियंत्रित करना सुनिश्चित करता है कि
योजनाबद्ध लक्ष्यों को प्राप्त करने के
लिए संगठनात्मक संसाधनों का प्रभावी
और कु शल उपयोग हो।
प्रबंधन के सिद्धांत(PRINCIPLES OF MANAGEMENT)
एफ० डब्ल्यू० टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत

1. विज्ञान न की  अंगूठा टेक शासन- इस 3. मानसिक क्रांति- इसके द्वारा श्रमिकों व प्रबंधक
सिद्धांत के अनुसार निर्णय तत्वों के आधार को को एक दूसरे के प्रति सोच को बदलने पर जोर
तथ्यों पर आधारित होने चाहिए ना कि अंगूठा दिया गया है l जिससे संगठन में परस्पर विश्वास की
टेक नियमों के आधार पर संगठन में किए जाने भावना उत्पन्न हो सके तथा उत्पादन को बढ़ाया जा
वाले प्रत्येक कार्य वैज्ञानिक जांच के आधार पर सके l  दोनों पक्षों के लाभ के बंटवारे की अपेक्षा
होना चाहिए ना कि अंतदृष्टि व निजी विचार पर l लाभ में वृद्धि की बात सोचनी चाहिए l

2. सहयोग न कि टकराव- 4. सहयोग ना की व्यक्तिवाद-


इस सिद्धांत के अनुसार प्रबंध एवं श्रमिकों में सिद्धांत मधुरता ना कि विवाद का संशोधित रूप है
विश्वास एवं  समझदारी होनी चाहिए l उन्हें एक lइसके अनुसार संगठन में श्रमिकों एवं प्रबंधकों के
दूसरे के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करनी बीच सहयोग होना चाहिए जिससे कार्य को सरलता
चाहिए जिससे वह एक टीम के रूप में कार्य कर से किया जा सके l
सकें l
एफ० डब्ल्यू० टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धांत
5. अधिकतम  कार्य क्षमता एवं श्रमिकों का विकास-
टेलर के अनुसार श्रमिकों का चयन कार्य क्षमता के
अनुसार कार्य एवं योग्यता को ध्यान में रखकर किया
जाना चाहिए तथा उनकी कार्य क्षमता एवं कु शलता
बढ़ाने हेतु उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए
इससे कं पनी एवं श्रमिकों की खुशहाली बढ़ेगी तथा
कु शल श्रमिक के साथ सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति में 
सरलता होगी l
हेनरी फे योल के सिद्धान्त
1. कार्य विभाजन-कार्य का विभाजन कर विशिष्ट 3. अनुशासन- अनुशासन एक विस्तृत शब्द है जिसमें
व्यक्तियों को विशिष्ट कार्य के लिए नियुक्त किया जाये किसी संस्था के कर्मचारियों की आज्ञाकारिता, व्यवहार
ताकि लक्ष्य प्राप्ति के लिए अधिक तीव्रता से आगे बढा तथा आदर की अभिव्यक्ति है।
जा सके ।

4. आदेश की एकता - कार्य करने वाले व्यक्ति को एक


2. प्राधिकार एवं उत्तरदायित्व- प्राधिकार तथा समय में एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए ।
उत्तरदायित्व एक-दूसरे से संबंधित तथा हैं । प्राधिकार आदेश देने वाले अधिक होने पर अनुशासन भंग होता है,
के अभाव में कोई व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह अधिकार कमजोर पड़ता है तथा श्रमिक की प्रवृत्ति काम
नहीं कर सकता है । टालने की हो जाती है ।
हेनरी फे योल के सिद्धान्त

5. निर्देश की एकता- एक ही प्रकार के कार्यों के लिए एक  6. सामान्य हित के सामने व्यक्तिगत हित गौण-व्यक्तिगत
ही निर्देश तथा एक ही योजना होनी चाहिए । निर्देशों की और सामूहिक हितों में समन्वय रखना प्रबन्धकों का
एकता से फे योल का आशय है कि “सामान्य उद्देश्य के प्रमुख दायित्व है फिर भी यदि इनमें कहीं टकराव होता है
तो सामूहिक हितों की रक्षार्थ व्यक्तिगत हितों को समर्पित
लिए व्यक्तियों के एक समूह के लिए एक निर्देश होना
कर देना चाहिए ।
चाहिए ।”
हेनरी फे योल के सिद्धान्त

7. कर्मचारियों को पारिश्रमिक -आर्थिक पारिश्रमिक के लिए 8. के न्द्रीकरण-फे योल की मान्यता है कि किसी संस्था में
ही प्रत्येक व्यक्ति कार्य करता है । प्रेरणात्मक मजदूरी प्राधिकारों का के न्द्रीकरण उसी सीमा तक होना चाहिए
प्रणाली द्वारा कर्मचारी पूर्ण निष्ठा,लगन एवं क्षमता से जहां तक सम्भव हो और विभिन्न स्तरों पर प्राधिकार एवं
कार्य करते है तथा श्रम संबंध अधिक अच्छे बने रहते हैं दायित्वों में सन्तुलन बना रहे । के न्द्रीकरण इस बात पर
। भी निर्भर करता है कि संस्था की प्रकृ ति कै सी है और
अधीनस्थों की कार्य कु शलता का स्तर क्या है?
हेनरी फे योल के सिद्धान्त
9. श्रेणी श्रृंखला - श्रेणी शृंखला से तात्पर्य यह है 10. व्यवस्था - इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक
कि किसी उपक्रम में ऊपर से नीचे तक तथा वस्तु अथवा व्यक्ति के लिए एक निश्चित स्थान
नीचे से ऊपर तक पदाधिकारियों के मध्य निर्धारित हो तथा वह वस्तु अथवा व्यक्ति उसी
सम्प्रेषण के उद्देश्य से सम्पर्क रूपी एक निर्धारित स्थान पर रहे प्रबन्ध का आधारपूत
शृंखला होनी चाहिए और सभी स्तर के सिद्धान्त वस्तु एवं व्यक्ति दोनों की उचित
अधिकारियों को इसका पालन करना चाहिए व्यवस्था करना है ताकि न्यूनतम प्रयासों द्वारा
श्रेणी शृंखला का सबसे बड़ा लाभ यह होता है निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके । इसके
कि इससे आदेश की एकता का स्वतः ही अतिरिक्त विशिष्ट स्थान पर कार्यरत विशिष्ट
पालन हो जाता है । व्यक्ति को उसके कार्य के लिए उत्तरदायी
ठहराया जा सकता है ।
हेनरी फे योल के सिद्धान्त
11. समानता - प्रबन्ध न्यायपूर्ण व दयापूर्ण व्यवहार से 12. कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थायित्व - इस सिद्धान्त के
कर्मचारियों की वफादारी एवं स्नेह को प्राप्त कर सकता अनुसार स्थिर कार्मिक दल संस्था की पूंजी है। यदि
है। प्रबन्धकों द्वारा किया गया समतापूर्ण व्यवहार कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थायित्व होगा तो कर्मचारी
कर्मचारियों में निष्ठापूर्वक व समर्पित कार्य करने की सेवा असुरक्षा के भय से मुक्त रहेंगे। ऐसे वातावरण में
भावना को जन्म देता है जिससे उनकी कार्य क्षमता में कर्मचारी सेवा का अंग बनकर लगन और निष्ठा के साथ
वृद्धि होती है। कार्य सीखता है तथा अपने दायित्वों के निर्वाह के लिए
सजग रहता है। 
इससे उसकी कार्य-कु शलता में निरन्तर वृद्धि होती है
। कर्मचारियों के कार्यकाल में स्थिरता न होना
कु प्रबन्ध का प्रत्यक्ष प्रमाण है । फे योल ने दर्शाया कि
अनावश्यक कर्मचारी परिवर्तन की कीमत भयावह
होती है।
हेनरी फे योल के सिद्धान्त
13. पहल - फे योल के अनुसार यदि कर्मचारी 14. सहयोग की भावना - यह सिद्धान्त ‘संगठन ही
किसी अच्छी योजना को प्रस्तावित करता हैं तथा शक्ति है’ के महत्व को प्रदर्शित करता है । किसी भी
उसकी कार्यरूप देने की सुव्यवस्था का सुझाव उपक्रम के निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए
देता है तो प्रबन्ध को उसे मान्यता देनी चाहिए प्रयास किये जाते है । यदि विभिन्न समूह तथा समूह
ताकि उनकी पहल-क्षमता का विकास हो सके । के सदस्यों के बीच सहयोग नहीं तो लक्ष्य प्राप्त
प्रबन्ध का प्रमुख ध्येय यही है कि व्यक्तियों का करना भी असम्भव होगा ।
उस स्तर तक विकास कर दिया जाये कि वह यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि सभी
अपने कार्यों को भली-भांति समझने लगें तथा कर्मचारी एक-दूसरे के सहयोगी ही और आपसी
उन्हें करने के लिए तत्पर रहें।  व्यक्ति में स्वयं कु छ मतभेद भुलाकर सदैव सहयोग की भावना से कार्य
करने की भावना का विकास होना एक बहुत बडी करें ताकि संस्था निर्बाध गति से अपने लक्ष्य की
उपलब्धि है । इससे निश्चित रूप से लक्ष्य प्राप्त ओर अग्रसर हो ।
करने में सहायता मिलती है।
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
फे योल एवं टेलर के सिद्धांत में अंतर
प्रबंधन प्रक्रिया (MANAGEMENT PROCESS)
प्रबंधन प्रक्रिया (MANAGEMENT PROCESS)
प्रबंधन प्रक्रिया किसी भी प्रकार की गतिविधि जैसे कि एक परियोजना या एक प्रक्रिया के निष्पादन को व्यवस्थित करने और
अग्रणी करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने, योजना बनाने और / या नियंत्रित करने की एक प्रक्रिया है। एक संगठन का
वरिष्ठ प्रबंधन अपनी प्रबंधन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होता है।
नियोजन(PLANNIG) :
नियोजन - क्या किया जाना है और कै से किया जाना है,
इस बारे में पहले से सोच और निर्णय लेने की एक
मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस प्रकार, योजना रचनात्मकता
और नवीनता के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। यह
मानसिक गतिविधि है, जिसमें प्रबंधक प्राप्त किए जाने
वाले लक्ष्यों के बारे में निर्णय लेता है, और जिन कार्यों के
माध्यम से उन्हें पूरा करना होता है।
नियोजन(PLANNIG) :
 उदाहरण : श्री शिवम से उनके व्यवसायिक सहयोगी श्री सत्यम
किसी कार्य के सम्बन्ध में मिलना चाहते है। श्री शिवम द्वारा उनसे
मिलने के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों का निर्धारण नियोजन ही है।
 – सत्यम से किस दिन मिला जाय?
– किस समय मिला जाय?
– कहॉं मिला जाय?
– किस सम्बन्ध में मुलाकात होनी है?
– किन बातों पर विचार विमर्श होना है?
– विचार विमर्श में किसको शामिल किया जाय आदि?
नियोजन की परिभाषाएँ 
 जार्ज आर. टेरी – ‘‘नियोजन भविष्य में झोंकने की एक विधि
है। भावी आवश्यकताओं का रचनात्मक पुनर्निरीक्षण है जिससे कि
वर्तमान क्रियाओं को निर्धारित लक्ष्यों के सन्दर्भ में समायोजित किया जासके ।’’ 
 एम.ई.हर्ले – ‘‘क्या करना चाहिए इसका पहले से ही निधार्रण
करना नियोजन कहलाता है।वैज्ञानिक लक्ष्यों, नीतियों, विधियों तथा
कार्यक्रमों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करना ही व्यावसायिक नियोजन
कहलाता है।’’ 
 कू ण्टज और ओ डोनल – ‘‘व्यवसायिक नियोजन एक बौद्धिक
प्रक्रिया है किसी क्रिया के कारण का सचेत निर्धारण है, निर्णयों को
लक्ष्यों तथ्यों तथा पूर्व-विचारित अनुमानों पर आधारित है ।’’ 
नियोजन की विशेषताए
 नियोजन प्रबंध का प्राथमिक कार्य है क्योंकि नियोजन  नियोजन उपलब्ध विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का
प्रबन्ध के चयन है। 
अन्य सभी कार्यो जैसे स्टाफिं ग, सन्देशवाहन,  नियोजन एक सतत एवं लोचपूर्ण प्रक्रिया है। 
अभिप्रेरण आदि से  नियोजन एक मार्गदर्शक का कार्य करती है। 
पहले किया जाता है।   नियोजन में प्रत्येक क्रियाओं में पारस्परिक निर्भरता पायी
 नियोजन का सार तत्व पूर्वानुमान है। जाती
 नियोजन में ऐक्यता पायी जाती है अर्थात एक समय में है।
किसी  नियोजन में संगठनात्मकता का तत्व पाया जाता है।
कार्य विशेष के सम्बन्ध में एक ही योजना कार्यान्वित  निर्णयन नियोजन का अभिन्न अंग है। 
की जा
सकती है। 
 प्रबंध के प्रत्येक स्तर पर नियोजन पाया जाता है। 
नियोजन की विशेषताए :
 नियोजन भावी तथ्यों व आंकड़ों पर आधारित होता है। यह इन
क्रियाओं का विश्लेषण एवं वर्गीकरण करता है। इसके साथ ही
यह इन क्रियाओं का क्रम निर्धारण करता है। 
 नियोजन लक्ष्यों, नीतियों, नियमों, एवं प्रविधियों को निश्चित
करता है।
 नियोजन प्रबन्धकों की कार्यकु शलता का आधार है।
नियोजन की प्रकृ ति 
 नियोजन की निरन्तरता– नियोजन की आवश्यकता व्यवसाय की स्थापना के पूर्व से लेकर, व्यवसाय के संचालन में हर
समय बनी रहती है। व्यवसाय के संचालन में हर समय किसी न किसी विषय पर निर्णय लिया जाता है जो
नियोजन पर ही आधारित होते हैं।
 नियोजन की प्राथमिकता–  नियोजन सभी प्रबन्धकीय कार्यों में प्राथमिक स्थान रखता है। प्रबन्धकीय कार्यों में इसका प्रथम
स्थान है। पूर्वानुमान की नींव पर नियोजन को आधार बनाया जाता है।इस नियोजन रूपी आधार पर
संगठन, स्टाफिं ग, अभिप्रेरण एवं नियंत्रण के स्तम्भ खड़े किये जाते हैं।
 नियोजन की सर्वव्यापकता– नियोजन मानव जीवन के हर
पहलू से सम्बन्धित होने के साथ साथ संगठन के प्रत्येक स्तर पर और
समाज के प्रत्येक क्षेत्र में पाया जाता है।
 नियोजन की कार्यकु शलता  –  नियोजन की कार्य कु शलता आदाय और प्रदाय पर निर्भर करती है। उसी नियोजन को
सर्वश्रेष्ठ माना जाता है जिसमें न्यूनतम लागत पर न्यूनतम अवांछनीय परिणामों को प्रबट करते हुए अधिकतम प्रतिफल
प्रदान करें।
 नियोजन एक मानसिक क्रिया  – नियोजन एक बौद्धिक एवं मानसिक प्रक्रिया है। इसमें विभिन्न प्रबन्धकीय क्रियाओं का
सजगतापूर्वक क्रमनिर्धारण किया जाता है।
नियोजन के प्रकार
नियोजन समान तथा विभिन्न समयावधि व उद्देश्यों के 4. क्रियात्मक नियोजन – यह नियोजन संगठन की क्रियाओं से
लिए किया जाता है इस प्रकार नियोजन के प्रमुख प्रकार सम्बन्धित
हैं :- होता है।
1. दीर्घकालीन नियोजन - दीर्घकालीन उद्देश्यों की पूर्ति के 5 .स्तरीय नियोजन – यह नियोजन ऐसी सभी सगंठनों में पाया
लिए किया जाता है। जैसे पूंजीगत सम्पत्तियों की जाता है
व्यवस्था करना, कु शल कार्मिकों की व्यवस्था करना, जहॉं कु शल प्रबन्धन हेतु प्रबंध को कई स्तरों में विभाजित
नवीन पूंजीगत योजनाओं को कार्यान्वित करना, स्वस्थ कर दिया
प्रतिस्पर्द्धा बनाये रखना आदि जाता है यह उच्च स्तरीय, मध्यस्तरीय तथा निम्नस्तरीय
2. अल्पकालीन नियोजन – यह दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, हो सकते हैं। 
तिमाही, छमाही या वार्षिक हो सकता है। 6. उद्देश्य आधारित नियोजन – इस नियोजन में विभिन्न
3. भौतिक नियोजन – यह नियोजन किसी उद्देश्य के भौतिक उद्देश्यों की
संसाधनों पूर्ति हेतु नियोजन किया जाता है जैसे सुधार योजनाओं का
से सम्बन्धित होता है। इसमें उपक्रम के लिए भवन, नियोजन,
उपकरणों आदि की नवाचार योजना का नियोजन, विक्रय सम्वर्द्धन नियोजन
व्यवस्था की जाती है। आदि।
नियोजन का महत्व 
 नियोजन की अनुपस्थिति में व्यवसायिक सफलता प्राप्त करना असम्भव है। नियोजन ही संगठन का मार्गदर्शन करता है तथा
मार्ग में आने वाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करने में सहायक होता है। अर्नेस्ट सी. मिलर ने ठीक ही कहा है कि, ‘‘बिना
नियोजन के कोई भी कार्य के वल निष्प्रयोजन क्रिया होगी जिससे
अव्यवस्था के अतिरिक्त कु छ भी प्राप्त न होगा।
1. संगठन के उददेश्यों पर ध्यान के न्द्रित करना
2. लागत व्ययों को कम करना
3. भविष्य की अनिश्चितता का सामना करने के लिए 
4. प्रबन्धकीय कार्यो में समन्वय स्थापित करना  
5. मनोबल एवं अभिप्रेरण में वृद्धि   
6. उतावले निर्णयों पर रोक
7. सृजनात्मकता को प्रोत्साहन 
संगठन:

संगठन- वह सामाजिक व्यवस्था या युक्ति है जिसका लक्ष्य एक होता है, जो अपने कार्यों की समीक्षा करते हुए स्वयं
का नियन्त्रण करती है, तथा अपने पर्यावरण से जिसकी अलग सीमा होती है। संगठन तरह-तरह के हो सकते हैं -
सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सैनिक, व्यावसायिक, वैज्ञानिक आदि।
संगठन का परिभाषाएँ(DEFINITIONS OF ORGANISATION):
 शब्द ‘संगठन’ शब्द ‘Organicism’ से निकला है जिसका अर्थ है- ‘साझी गतिविधि में लगे परस्पर निर्भर अंगों का
एक संगठित निकाय’ ।
 मूनी- “ एक साझा उद्देश्य की पूर्ति के प्रत्येक मानव सभा संगठन का रूप संघ का रूप ही संगठन है ।”
 साइमन- “ संगठन से हमारा आशय सहकारी प्रयोग की एक सुनियोजित व्यवस्था से है जिसमें हर प्रतिभागी की एक
भूमिका कर्त्तव्य और जिम्मेदारियाँ होती है ।”
 गुलिक- “ संगठन सत्ता का वह निर्धारित औपचारिक ढाँचा है जिसके जरिए परिभाषिक उद्देश्य के लिए कार्य के उपविभागों
को व्यवस्थित, परिभाषित और संयोजित किया जाता है ।”
 एल. डी. व्हाइट- “एक संगठन के कार्यों और जिम्मेदारियों के बँटवारे के जरिए किसी आम सहमति के उद्देश्य की पूर्ति का
रास्ता सुगम बनाने के लिए कर्मचारियों की व्यवस्था है ।”
संगठन के लाक्षणिक विशेषताएँ (FEATURES OF ORGANISATION):

निकोलस हेनरी ने संगठनों की लाक्षणिक विशेषताओं को निम्न प्रकार से संक्षेपित किया है:
1. संगठन उद्देश्यपूर्ण, जटिल मानवीय समूह होते हैं ।
2. इनकी पहचान द्वितीयक सम्बन्धों के द्वारा की जाती है ।
3. इनके विशेषीकृ त और सीमित लक्ष्य होते हैं ।
4. संवहनीय सहकारी गतिविधि इनकी एक विशेषता है ।
5. ये एक बड़े सामाजिक तंत्र के भीतर एकीकृ त होते हैं ।
6. ये अपने पर्यावरण को सेवाएँ और उत्पाद उपलब्ध कराते हैं ।
7. ये अपने पर्यावरण के साथ आदान-प्रदान पर निर्भर रहते हैं ।

एल डी व्हाइट के अनुसार एक संगठन में तीन प्राथमिक तत्व होते हैं, जैसे कि- व्यक्ति, साझा प्रयास और सामान्य उद्देश्य ।
संगठन के तत्व

सी आई बरनार्ड के अनुसार एक संगठन के तत्व हैं:

(i) सामान्य उद्देश्य,

(ii) संचार,

(iii) सेवा करने की इच्छा ।

हरबर्ड ए साइमन के अनुसार एक संगठन के कार्यों में सदस्यों के बीच कार्य विभाजन, मानक व्यवहारों का निर्माण, एक
संचार प्रणाली की उपलब्धि, निर्णयों का पारेषण और सदस्यों का प्रशिक्षण शामिल है ।
संगठन के आधार (BASES OF ORGANISATION):
लूथर गुलिक ने संगठन के चार आधारों की पहचान की है ।

1. उद्देश्य- इसका अर्थ है संगठन द्वारा किया जाने वाला काम । काम पर आधारित संगठन उदाहरण हैं- रक्षा विभाग, स्वास्थ्य
विभाग, श्रम विभाग, मानव संसाधन विकास विभाग इत्यादि ।
2. प्रक्रिया- इसका अर्थ काम को पूरा करने में संगठन द्वारा प्रयोग में लाई तकनीक या विशिष्ट कौशल से है । इस प्रक्रिया पर
आधारित संगठनों की मिसालें हैं- अंतरिक्ष विभाग, कानून विभाग, समुद्र विकास विभाग, इलैक्ट्रांनिक्स विभाग इत्यादि ।
3. व्यक्ति- इसका अर्थ है- संगठन की सेवा प्राप्त कर रहे लोगों का समूह (ग्राहक गण) । ग्राहकों पर आधारित संगठन के
उदाहरण हैं- पुनर्वास विभाग, आदिवासी कल्याण विभाग, स्त्री कल्याण विभाग इत्यादि ।
4. स्थान- इसका अर्थ हैं- संगठन के अंतर्गत आनेवाला भूभागीय क्षेत्र । स्थान पर आधारित संगठन के उदाहरण हैं- बाहरी
मामलों का विभाग और इसके अंतर्गत क्षेत्रीय विभाजन, दामोदर घाटी विभाग, रेलवे के क्षेत्रीय कार्यालय इत्यादि ।
संगठन की प्रक्रिया:

किसी भी उपक्रम के संगठन का निर्माण करने के लिए जो आवश्यक कदम उठाये जाते हैं, वे निम्न प्रकार से हैं -

(1) उद्देश्यों का निर्धारण करना -संगठन प्रक्रिया का प्रथम कदम संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करना है। संस्था के
उद्देश्यों के निर्धारण के अभाव में संगठन का कोई महत्त्व नहीं रहता।
(2) कार्यों को परिभाषित करना - कार्यों को परिभाषित करते समय संस्था के उद्देश्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता
है। प्रत्येक कार्य को उपकार्यों में विभाजित किया जाता है जिससे कि उने कर्मचारियों में बाँटा जा सके और उनका दायित्व
निर्धारित किया जा सके ।
(3) कर्मचारियों के मध्य कार्य का विभाजन - क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करने के उपरान्त अगला कदम है, कार्यों का
कर्मचारियों के मध्य विभाजन करना। कार्य विभाजन में कर्मचारियों की रूचि, शारीरिक क्षमता, शैक्षणिक योग्यता, कार्य
अनुभव आदि को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
संगठन की प्रक्रिया:
(4) समन्वय - संगठन संरचना की अन्तिम प्रक्रिया है। विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करना, जिससे कि
उपक्रम के समस्त विभाग एकजुट होकर संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में प्रयत्नशील हो सकें ।
(5) क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करना - समान प्रकृ ति अथवा सम्बन्धित क्रियाओं को श्रेणीबद्ध किया जाता है। क्रियाओं के
श्रेणीबद्ध करने से विभागों तथा उपविभागों का निर्माण होता है।
(6) व्युत्पन्न उद्देश्यों, नीतियों तथा योजनाओं का निर्माण
(7) क्रियाओं का उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों की दृष्टि से श्रेणीबद्ध करना जिससे कि साधनों का अधिकतम
उपयोग हो सके ।
(8) क्रियाओं की विभिन्न श्रेणियों का परस्पर गठबन्धन। इस प्रकार का गठबन्धन क्षितिजीत तथा ऊध्वधिर हो सकता है।
(9) अधिकारों का प्रत्यायोजन - कर्मचारियों के मध्य कार्य वितरण द्वारा उन्हें कार्य सम्पादन व उत्तरदायित्व सौंप दिया
जाता है। उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए उत्तरदायित्व के अनुरूप अधिकार भी कर्मचारियों को सौंपे जाने चाहिए।
संगठन की क्षेत्र एवं प्रकृ ति
(1) यह एक गतिशील क्रियात्मक प्रक्रिया है। (8) इसमें सदस्यों के कार्यकारी सम्बन्ध निश्चित होते हैं।
(2) यह सहकारी प्रयासों की एक व्यवस्था है। (9) यह एक प्रबन्धकीय क्रिया है जो चक्रीय है, न कि एक
(3) यह परस्परवादी चलों का समूह है। दैनिक घटित होने वाली क्रिया।
(4) यह प्रबन्ध का कार्य, साधन एवं शरीर रचना है। (10) यह समूह एक कार्यकारी नेतृत्व के अन्तर्गत कार्य करता
(5) इसमें सदस्यों के अधिकारों व कार्य क्षेत्र की सीमा स्पष्ट है।
होती है। (11) आधुनिक संगठन सामाजिक सम्बन्धों की प्रणाली है।
(6) संगठन यांत्रिक नहीं है, न ही एक संकलन है। यह एक (12) इसमें सदस्यों की पद-स्थितियाँ, भूमिकाएँ एवं
मानवीय एवं जैविक व्यवस्था भी है। औपचारिक सत्ता भी निश्चित होती है।
(7) संगठन व्यक्तियों का समूह है।
स्टाफिं ग (STAFFING):
स्टाफ प्रबंधन का एक सतत और महत्वपूर्ण कार्य है। उद्देश्यों को निर्धारित करने के बाद, रणनीतियों, नीतियों, कार्यक्रमों,
प्रक्रियाओं, और उनकी उपलब्धि के लिए तैयार किए गए नियम, रणनीतियों के कार्यान्वयन के लिए गतिविधियों, नीतियों,
कार्यक्रमों, आदि की पहचान की गई और नौकरियों में समूहीकृ त किया गया, प्रबंधन प्रक्रिया में अगला तार्कि क कदम है।
स्टाफिं ग (STAFFING):

किसी प्रतिष्ठान की सबसे मूल्यवान उन आस्तियों के प्रबंधन का कौशलगत और सुसंगत दृष्टिकोण है- जो वहां काम कर रहे
हैं तथा व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से व्यापार के उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान दे रहे हैं। "मानव संसाधन प्रबंधन" और
"मानव संसाधन" शब्दों का स्थान मुख्यतः "कार्मिक प्रबंधन" शब्द ने ले लिया है, जो प्रतिष्ठान में लोगों के प्रबंधन में
शामिल प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है। सामान्य अर्थ में HRM का मतलब लोगों को रोजगार देना, उनके संसाधनों का
विकास करना, उपयोग करना, उनकी सेवाओं को काम और प्रतिष्टान की आवश्यकता के अनुरूप बनाये रखना और बदले
में (भरण-पोषण) मुआवजा देते रहना है।
स्टाफिं ग की परिभाषाएं
 McFarland के अनुसार स्टाफिं ग  Koontz, O’Donnell, Heinz
एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा Weihrich के अनुसार स्टाफिं ग के
प्रबंधक सक्षम कर्मचारियों के रूप में प्रबंधन समारोह को कार्यस्थल की
व्यक्तियों की भर्ती, चयन और विकास आवश्यकताओं की पहचान, उपलब्ध लोगों,
के माध्यम से एक संगठन का निर्माण सूची, नियुक्ति, चयन, प्लेसमेंट, पदोन्नति,
मूल्यांकन, क्षतिपूर्ति और आवश्यक लोगों के
करते हैं I
प्रशिक्षण के माध्यम से संगठन संरचना में
स्थिति को भरने के रूप में परिभाषित किया
गया है।
स्टाफिं ग की लाक्षणिक विशेषताएं(FEATURES OF ORGANISATION):

1. प्रबंधन के सभी व्यापक कार्य


2. क्रियात्मक कार्य
3. विशाल स्कोप
स्टाफिं ग (STAFFING):

इसमें कई उप-कार्य शामिल हैं:

 मैनपावर प्लानिंग जिसमें संख्या का निर्धारण और आवश्यक कार्मिक शामिल हैं।


 उद्यम में नौकरियों की तलाश के लिए पर्याप्त संख्या में संभावित कर्मचारियों को आकर्षित करने के लिए भर्ती।
 विचाराधीन नौकरियों के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्तियों का चयन।
 प्लेसमेंट, इंडक्शन और ओरिएंटेशन।
 स्थानान्तरण, पदोन्नति, समाप्ति और छंटनी।
 कर्मचारियों का प्रशिक्षण और विकास।
स्टाफिं ग का महत्व

 प्रशिक्षण और विकास
 प्रभावी समन्वय
 प्रभावी भर्ती और नियुक्ति
 प्रभावी मानव संसाधन का निर्माण
 संसाधन का इष्टतम(optimum) उपयोग
 कॉर्पोरेट छवि को बढ़ाता है
 कार्य संतुष्टि
स्टाफिं ग (STAFFING):

स्टाफिं ग के तत्त्व स्टाफिं ग का स्कोप

 जनशक्ति नियोजन  भर्ती


 कार्य विश्लेषण  प्रेरणा
 भर्ती और चयन  कर्मचारी रखरखाव
 प्रशिक्षण और विकास  मानव संबंध
 प्रदर्शन का मूल्यांकन
स्टाफिं ग को प्रभावित करने वाले कारक

स्टाफिं ग को प्रभावित करने वाले बाहरी स्टाफिं ग को प्रभावित करने वाले आंतरिक
कारक कारक

 मानव संसाधनों के लिए प्रतिद्वंद्विता की प्रकृ ति  संगठनात्मक छवि


 कानूनी कारक  पिछले व्यवहार
 सामाजिक सांस्कृ तिक कारक  संगठन का आकार
 बाहरी प्रभाव  संगठनात्मक व्यवसाय योजना
धन्यवाद

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